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Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; ...
 
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dhparikh

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अपडेट 23


अजय को ‘वापस’ आए हुए कोई एक महीना हो गया था।

उसको यकीन हो गया था कि अब यही उसका जीवन है। जवानी का जोश और ज़िन्दगी के थपेड़ों से मिली हुई सीख - इन दोनों के मेल से उसको अपना और दूसरों का भविष्य सुधारना है। यही उसका मिशन था।

एक बात थी जो उसने नोटिस करी - अब उसके जीवन में जो हो रहा था, वो सब कुछ ‘पिछले’ जीवन में ज़रूरी नहीं था कि हो रहा हो। मतलब हर बात की हूबहू पुनरावृत्ति नहीं हो रही थी। सामान्य तौर पर देखें, तो लोग वही थे, कम्पनियाँ वही थीं, घटनाएँ वही थीं। लेकिन हर बात में थोड़ा बहुत अंतर अवश्य था। एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ। अजय को याद था कि जब उसने बारहवीं की पढ़ाई शुरू करी थी, तब उसको पेट में किसी इन्फेक्शन के कारण दो दिन अस्पताल में बिताने पड़े थे। उसके बाद से उसने अपनी दिनचर्या बदल दी थी। उस परिवर्तन के कारण अजय का भूतकाल बदल गया था, लिहाज़ा, उसको इस बार इन्फेक्शन नहीं हुआ। एक और परिवर्तन था - जहाँ शशि मैम को वो अपने पूर्व जीवन में भी जानता था, उसको श्रद्धा मैम की कोई याद नहीं थी। मतलब इस जीवन में आ कर भविष्य बदल तो रहा था।

जो बड़े परिवर्तन थे वो उसके अपनों के जीवन में थे।

कमल और माया का संग तो ख़ैर अब स्थापित हुआ ही हुआ समझना चाहिए। उसके बारे में विस्तार से बताया जाएगा।

उधर कणिका के घर से भयंकर वितंडावाद हुआ। उसके मम्मी पापा ने दिल्ली आकर खूब झगड़ा, गाली गलौज, और बदतमीज़ियाँ करीं। कुछ कुछ रागिनी जैसी यादें ताज़ा हो आईं। किरण जी को उन्होंने धमकाया भी उन्होंने कि वो प्रशांत पर कणिका का रेप करने का केस कर देंगे। लेकिन फिर अजय ने उनको उल्टा पट्टी पढ़ाई कि यहाँ तो घण्टा कुछ होने वाला है उस केस का। प्रशांत भैया अमेरिकन हो गए थे, इसलिए भारत के कानून उन पर लागू नहीं थे। और कणिका स्वयं शिकागो की पुलिस के पास कोई रिपोर्ट इसलिए नहीं दर्ज़ कर रही थी क्योंकि वहाँ की पुलिस यहाँ के जैसी कामचोर पुलिस नहीं है। वो पूरी तफ़्तीश करते हैं। वैसे भी अनेकों गवाह थे जो बता सकते थे कि कणिका खुद प्रशांत के गले मढ़ी थी और उसका उल्लू काट रही थी। दोनों में सेक्स हुआ था - इस बात से किसी को इंकार नहीं था, लेकिन वो दोनों की रज़ामंदी से हुआ था। जो वारदात शिकागो में हुई है, उसका न्याय या अन्याय यहाँ दिल्ली में नहीं हो सकता था।

यह जान कर कणिका के माँ बाप को मिर्च तो बहुत लगी, लेकिन वो उस मिर्च के निवारण के लिए कुछ कर नहीं सकते थे। अपना सा मुँह ले कर वापस चले गए। हाँ - कुछ सम्बन्धियों से अजय के परिवार के रिश्ते अवश्य बिगड़ गए इस घटना के बाद। प्रशांत भैया उन सम्बन्धियों के यहाँ सर्टिफाइड रेपिस्ट, ठरकी, और बदचलन इत्यादि नामों से जाने जाने लगे। उसके लिए कणिका ‘बेचारी’ और ‘अबला’ थी, जिसका शोषण हुआ था। अशोक जी और अजय पर इस बात का कोई ख़ास प्रभाव नहीं हुआ। किरण जी पर भी प्रभाव हुआ, क्योंकि वो प्रशांत की माँ थीं। ख़ैर, कड़वी दवाई अभी पी लेने का यह लाभ हुआ कि आगे ज़हर नहीं पीना पड़ेगा।

कणिका के बाहर निकलने से प्रशांत के जीवन में पैट्रिशिया के वापस आने का मार्ग प्रशस्त हो गया।


**


दिल्ली में बारिश का मौसम आ गया था और रह रह कर झमाझम बारिश होती रहती थी।

इस एक महीने में अजय के मुताबिक बहुत सी बातें हो गईं थीं। सबसे पहली बात, जो सबसे महत्वपूर्ण थी, वो यह थी कि कमल और माया एक दूसरे को जानने और समझने लगे थे। कमल की माया के लिए जो मोहब्बत थी, वो बड़ी सच्ची और कोमल तरीक़े की थी - जैसा कि अजय को पहले से ही मालूम था। किशोर राणा जी की इच्छानुसार माया रोज़ ही कमल के घर चली जाती, और उनके और सरिता जी के साथ रामायण का पाठ करती। यह पूजा पाठ एक बहाना था, जिससे माया अपने भविष्य के ‘घर’ के बारे में ठीक से जान सके, और समय आने पर उसका उचित तरीके से सञ्चालन कर सके।

ऐसा नहीं है कि माया की उपस्थिति में कमल का दिल मचलता नहीं था। खूब मचलता था, लेकिन माया उसको प्रेमपूर्वक और आदरपूर्वक स्वयं पर नियंत्रण रखने को प्रोत्साहित करती रहती थी।

फिर भी अंतरंगता के कोमल क्षण स्वयं ही उपस्थित हो जाते थे।

एक बार सरिता जी ने अनुरोध कर के माया को घर पर रोक लिया और अजय के वहाँ इत्तला कर दी कि आज ‘बहू’ वहीं रहेगी। अच्छी बात थी। जैसा कि आज से कई वर्षों पूर्व सामान्य बात थी, रात में बिजली गुल हो गई। शायद बारिश के आसार बन रहे थे, इस कारण से बिजली विभाग ने पहले से ही बिजली काट दी। बादल उमड़ घुमड़ रहे थे, इसलिए माया बँगले की दूसरी मंज़िल की छत पर आ कर ठंडी बयार का आनंद लेने लगी। कमल वहाँ पहले से ही उपस्थित था।

कमल ने अँधेरे में भी माया के आकार को पहचान लिया। उसको देख कर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई। जब से माया उसके जीवन में आई थी, तब से एक अलग ही तरीक़े का सुकून आ गया था उसके मन में! सभी मित्रों को यह बात पता चल गई थी कि अजय की बहन और कमल की शादी तय हो गई है। कुछ लोग इस बात से उसको चिढ़ाते भी थे, और अनेकों लोग इसी बात से चिढ़ते और उससे ईर्ष्या भी करते थे। लेकिन सच्चा प्रेम करने वालों को इस बात की परवाह नहीं होती कि अन्य लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। कमल इस बात से संतुष्ट था और बहुत प्रसन्न भी था कि एक बहुत ही अच्छी लड़की उसकी जीवनसंगिनी बनेगी!

अँधेरे में अंतरंगता बढ़ जाती है, क्योंकि शायद शर्म और झिझक थोड़ी कम हो जाती है।

उसने अपनी दोनों बाहें फैला कर माया को मूक आमंत्रण दिया।

माया एक पल को झिझकी, लेकिन अपने प्रिय की बाहों में कौन लड़की नहीं समां जाना चाहती? शर्म और झिझक भरे चार पाँच क़दम और वो कमल के आलिंगन में समां गई। पहला आलिंगन! दोनों को एक दूसरे के शरीरों की गर्माहट और कोमलता के एहसास से आनंद आ गया। माया के परफ्यूम की महक कमल के इस एहसास को और भी बढ़ा रही थी और आनंदातिरेक में कमल ने उसको अपनी बाहों में और भी समेट लिया।

ठीक उसी समय बारिश भी शुरू हो गई। रिमझिम रिमझिम! ठंडी! कोमल ठंडी बयार के साथ!

कुछ ही बूँदें गिरी होंगी, कि मिट्टी से सोंधी सोंधी महक आने लगी।

इस महक के पीछे का विज्ञान अगर जानेंगे, तो आपको वो एहसास कत्तई ग़ैररोमांटिक लगने लगेगा। लेकिन प्रेम को समझने के लिए, विज्ञान की समझ होना आवश्यक नहीं।

माया बोली, “भीग जाएँगे... अंदर चलें?”

“नहीं,” कमल ने कहा, “आज हम आपकी नहीं सुनेंगे... आज हम अपनी करेंगे!”

कमल की आवाज़ कोई परिपक्व नहीं थी, लेकिन उसमें एक दृढ़ता थी... और एक कोमलता भी! दृढ़ता - माया के पुरुष की और कोमलता उसके प्रेमी की। उसकी बाहों में वो लरज गई।

“क्या करना चाहते हैं आप?”

“आपको किस...”


**


उसी समय, घर के ग्राउंड फ्लोर पर,



सरिता जी : “बच्चे छत पर हैं! भीग जायेंगे...”

किशोर जी : “अरे भाग्यवान, छोड़ दीजिए उनको कभी कभी! ... पहली बारिश है उनकी साथ में... थोड़ा मज़ा लेने दीजिए उनको भी! या भूल गईं हमारी जवानी की बातें!”

“हाहाहा... आप भी न!” सरिता जी अपने ‘मधुमास’ को याद कर के शर्मा गईं।

जब दोनों का विवाह हुआ था, तब सरिता जी बहुत बड़ी नहीं थीं। वैसे भी, उनके समाज में लड़कियाँ बहुत समय तक अनब्याही नहीं रहती हैं। किशोर जी उनसे दस वर्ष बड़े थे। उस मामले में थोड़ी बेमेल जोड़ी थी यह। लेकिन दोनों के बीच तीव्र आसक्ति और समयानुसार अगाध प्रेम था। विवाह के बाद उनका ‘मधुमास’ कोई चार महीने चला। किशोर जी बड़े थे, लेकिन ऐसी चुलबुली पत्नी पा कर वो भी छोटे हो गए। दोनों के अंतरंग खेल अपने कमरे की सीमा में ही नहीं होते थे, बल्कि जहाँ भी दोनों को अवसर मिलता, वो वहीं शुरू हो जाते थे। कई बार दोनों को इस व्यवहार के कारण किशोर जी के माँ बाप ने घुड़का था। लेकिन दोनों में कोई सुधार या बदलाव नहीं आया था। चार महीने में सरिता जी की कोख में कमल आ गया था और अपने नियत समय में उन्होंने उसको जन्म भी दिया।

वंश का चिराग आने से सभी लोग प्रसन्न थे। लेकिन बाद में सरिता जी घर परिवार में, और किशोर जी व्यवसाय और व्यापार में ऐसे व्यस्त हुए कि ‘वैसे’ खेलने का अवसर ही नहीं मिला। सरिता जी दो बार पुनः गर्भवती हुईं, लेकिन किन्ही अबूझ कारणों से वो पुनः माँ नहीं बन सकीं।

“मैं तो इसलिए कह रही थी कि कहीं बारिश में भीग कर तबियत न खराब हो जाए दोनों की!”

“अरे तो हो जाए ख़राब! डॉक्टर बुलवा लेंगे हम! ... चिंता मत कीजिए…”

कहते हुए किशोर जी ने सरिता जी को अपनी बाहों में समेट लिया और उनको चूमते हुए उनकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगे। सरिता जी बमुश्किल छत्तीस वर्ष की हुई थीं। वो अभी भी आकर्षक थीं और उनका चुलबुलापन कम नहीं हुआ था। लिहाज़ा, जब भी दोनों को अवसर मिलता, सम्भोग अवश्य करते।


**
Nice update....
 

Surajs13

New Member
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18
अपडेट 23


अजय को ‘वापस’ आए हुए कोई एक महीना हो गया था।

उसको यकीन हो गया था कि अब यही उसका जीवन है। जवानी का जोश और ज़िन्दगी के थपेड़ों से मिली हुई सीख - इन दोनों के मेल से उसको अपना और दूसरों का भविष्य सुधारना है। यही उसका मिशन था।

एक बात थी जो उसने नोटिस करी - अब उसके जीवन में जो हो रहा था, वो सब कुछ ‘पिछले’ जीवन में ज़रूरी नहीं था कि हो रहा हो। मतलब हर बात की हूबहू पुनरावृत्ति नहीं हो रही थी। सामान्य तौर पर देखें, तो लोग वही थे, कम्पनियाँ वही थीं, घटनाएँ वही थीं। लेकिन हर बात में थोड़ा बहुत अंतर अवश्य था। एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ। अजय को याद था कि जब उसने बारहवीं की पढ़ाई शुरू करी थी, तब उसको पेट में किसी इन्फेक्शन के कारण दो दिन अस्पताल में बिताने पड़े थे। उसके बाद से उसने अपनी दिनचर्या बदल दी थी। उस परिवर्तन के कारण अजय का भूतकाल बदल गया था, लिहाज़ा, उसको इस बार इन्फेक्शन नहीं हुआ। एक और परिवर्तन था - जहाँ शशि मैम को वो अपने पूर्व जीवन में भी जानता था, उसको श्रद्धा मैम की कोई याद नहीं थी। मतलब इस जीवन में आ कर भविष्य बदल तो रहा था।

जो बड़े परिवर्तन थे वो उसके अपनों के जीवन में थे।

कमल और माया का संग तो ख़ैर अब स्थापित हुआ ही हुआ समझना चाहिए। उसके बारे में विस्तार से बताया जाएगा।

उधर कणिका के घर से भयंकर वितंडावाद हुआ। उसके मम्मी पापा ने दिल्ली आकर खूब झगड़ा, गाली गलौज, और बदतमीज़ियाँ करीं। कुछ कुछ रागिनी जैसी यादें ताज़ा हो आईं। किरण जी को उन्होंने धमकाया भी उन्होंने कि वो प्रशांत पर कणिका का रेप करने का केस कर देंगे। लेकिन फिर अजय ने उनको उल्टा पट्टी पढ़ाई कि यहाँ तो घण्टा कुछ होने वाला है उस केस का। प्रशांत भैया अमेरिकन हो गए थे, इसलिए भारत के कानून उन पर लागू नहीं थे। और कणिका स्वयं शिकागो की पुलिस के पास कोई रिपोर्ट इसलिए नहीं दर्ज़ कर रही थी क्योंकि वहाँ की पुलिस यहाँ के जैसी कामचोर पुलिस नहीं है। वो पूरी तफ़्तीश करते हैं। वैसे भी अनेकों गवाह थे जो बता सकते थे कि कणिका खुद प्रशांत के गले मढ़ी थी और उसका उल्लू काट रही थी। दोनों में सेक्स हुआ था - इस बात से किसी को इंकार नहीं था, लेकिन वो दोनों की रज़ामंदी से हुआ था। जो वारदात शिकागो में हुई है, उसका न्याय या अन्याय यहाँ दिल्ली में नहीं हो सकता था।

यह जान कर कणिका के माँ बाप को मिर्च तो बहुत लगी, लेकिन वो उस मिर्च के निवारण के लिए कुछ कर नहीं सकते थे। अपना सा मुँह ले कर वापस चले गए। हाँ - कुछ सम्बन्धियों से अजय के परिवार के रिश्ते अवश्य बिगड़ गए इस घटना के बाद। प्रशांत भैया उन सम्बन्धियों के यहाँ सर्टिफाइड रेपिस्ट, ठरकी, और बदचलन इत्यादि नामों से जाने जाने लगे। उसके लिए कणिका ‘बेचारी’ और ‘अबला’ थी, जिसका शोषण हुआ था। अशोक जी और अजय पर इस बात का कोई ख़ास प्रभाव नहीं हुआ। किरण जी पर भी प्रभाव हुआ, क्योंकि वो प्रशांत की माँ थीं। ख़ैर, कड़वी दवाई अभी पी लेने का यह लाभ हुआ कि आगे ज़हर नहीं पीना पड़ेगा।

कणिका के बाहर निकलने से प्रशांत के जीवन में पैट्रिशिया के वापस आने का मार्ग प्रशस्त हो गया।


**


दिल्ली में बारिश का मौसम आ गया था और रह रह कर झमाझम बारिश होती रहती थी।

इस एक महीने में अजय के मुताबिक बहुत सी बातें हो गईं थीं। सबसे पहली बात, जो सबसे महत्वपूर्ण थी, वो यह थी कि कमल और माया एक दूसरे को जानने और समझने लगे थे। कमल की माया के लिए जो मोहब्बत थी, वो बड़ी सच्ची और कोमल तरीक़े की थी - जैसा कि अजय को पहले से ही मालूम था। किशोर राणा जी की इच्छानुसार माया रोज़ ही कमल के घर चली जाती, और उनके और सरिता जी के साथ रामायण का पाठ करती। यह पूजा पाठ एक बहाना था, जिससे माया अपने भविष्य के ‘घर’ के बारे में ठीक से जान सके, और समय आने पर उसका उचित तरीके से सञ्चालन कर सके।

ऐसा नहीं है कि माया की उपस्थिति में कमल का दिल मचलता नहीं था। खूब मचलता था, लेकिन माया उसको प्रेमपूर्वक और आदरपूर्वक स्वयं पर नियंत्रण रखने को प्रोत्साहित करती रहती थी।

फिर भी अंतरंगता के कोमल क्षण स्वयं ही उपस्थित हो जाते थे।

एक बार सरिता जी ने अनुरोध कर के माया को घर पर रोक लिया और अजय के वहाँ इत्तला कर दी कि आज ‘बहू’ वहीं रहेगी। अच्छी बात थी। जैसा कि आज से कई वर्षों पूर्व सामान्य बात थी, रात में बिजली गुल हो गई। शायद बारिश के आसार बन रहे थे, इस कारण से बिजली विभाग ने पहले से ही बिजली काट दी। बादल उमड़ घुमड़ रहे थे, इसलिए माया बँगले की दूसरी मंज़िल की छत पर आ कर ठंडी बयार का आनंद लेने लगी। कमल वहाँ पहले से ही उपस्थित था।

कमल ने अँधेरे में भी माया के आकार को पहचान लिया। उसको देख कर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई। जब से माया उसके जीवन में आई थी, तब से एक अलग ही तरीक़े का सुकून आ गया था उसके मन में! सभी मित्रों को यह बात पता चल गई थी कि अजय की बहन और कमल की शादी तय हो गई है। कुछ लोग इस बात से उसको चिढ़ाते भी थे, और अनेकों लोग इसी बात से चिढ़ते और उससे ईर्ष्या भी करते थे। लेकिन सच्चा प्रेम करने वालों को इस बात की परवाह नहीं होती कि अन्य लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। कमल इस बात से संतुष्ट था और बहुत प्रसन्न भी था कि एक बहुत ही अच्छी लड़की उसकी जीवनसंगिनी बनेगी!

अँधेरे में अंतरंगता बढ़ जाती है, क्योंकि शायद शर्म और झिझक थोड़ी कम हो जाती है।

उसने अपनी दोनों बाहें फैला कर माया को मूक आमंत्रण दिया।

माया एक पल को झिझकी, लेकिन अपने प्रिय की बाहों में कौन लड़की नहीं समां जाना चाहती? शर्म और झिझक भरे चार पाँच क़दम और वो कमल के आलिंगन में समां गई। पहला आलिंगन! दोनों को एक दूसरे के शरीरों की गर्माहट और कोमलता के एहसास से आनंद आ गया। माया के परफ्यूम की महक कमल के इस एहसास को और भी बढ़ा रही थी और आनंदातिरेक में कमल ने उसको अपनी बाहों में और भी समेट लिया।

ठीक उसी समय बारिश भी शुरू हो गई। रिमझिम रिमझिम! ठंडी! कोमल ठंडी बयार के साथ!

कुछ ही बूँदें गिरी होंगी, कि मिट्टी से सोंधी सोंधी महक आने लगी।

इस महक के पीछे का विज्ञान अगर जानेंगे, तो आपको वो एहसास कत्तई ग़ैररोमांटिक लगने लगेगा। लेकिन प्रेम को समझने के लिए, विज्ञान की समझ होना आवश्यक नहीं।

माया बोली, “भीग जाएँगे... अंदर चलें?”

“नहीं,” कमल ने कहा, “आज हम आपकी नहीं सुनेंगे... आज हम अपनी करेंगे!”

कमल की आवाज़ कोई परिपक्व नहीं थी, लेकिन उसमें एक दृढ़ता थी... और एक कोमलता भी! दृढ़ता - माया के पुरुष की और कोमलता उसके प्रेमी की। उसकी बाहों में वो लरज गई।

“क्या करना चाहते हैं आप?”

“आपको किस...”


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उसी समय, घर के ग्राउंड फ्लोर पर,



सरिता जी : “बच्चे छत पर हैं! भीग जायेंगे...”

किशोर जी : “अरे भाग्यवान, छोड़ दीजिए उनको कभी कभी! ... पहली बारिश है उनकी साथ में... थोड़ा मज़ा लेने दीजिए उनको भी! या भूल गईं हमारी जवानी की बातें!”

“हाहाहा... आप भी न!” सरिता जी अपने ‘मधुमास’ को याद कर के शर्मा गईं।

जब दोनों का विवाह हुआ था, तब सरिता जी बहुत बड़ी नहीं थीं। वैसे भी, उनके समाज में लड़कियाँ बहुत समय तक अनब्याही नहीं रहती हैं। किशोर जी उनसे दस वर्ष बड़े थे। उस मामले में थोड़ी बेमेल जोड़ी थी यह। लेकिन दोनों के बीच तीव्र आसक्ति और समयानुसार अगाध प्रेम था। विवाह के बाद उनका ‘मधुमास’ कोई चार महीने चला। किशोर जी बड़े थे, लेकिन ऐसी चुलबुली पत्नी पा कर वो भी छोटे हो गए। दोनों के अंतरंग खेल अपने कमरे की सीमा में ही नहीं होते थे, बल्कि जहाँ भी दोनों को अवसर मिलता, वो वहीं शुरू हो जाते थे। कई बार दोनों को इस व्यवहार के कारण किशोर जी के माँ बाप ने घुड़का था। लेकिन दोनों में कोई सुधार या बदलाव नहीं आया था। चार महीने में सरिता जी की कोख में कमल आ गया था और अपने नियत समय में उन्होंने उसको जन्म भी दिया।

वंश का चिराग आने से सभी लोग प्रसन्न थे। लेकिन बाद में सरिता जी घर परिवार में, और किशोर जी व्यवसाय और व्यापार में ऐसे व्यस्त हुए कि ‘वैसे’ खेलने का अवसर ही नहीं मिला। सरिता जी दो बार पुनः गर्भवती हुईं, लेकिन किन्ही अबूझ कारणों से वो पुनः माँ नहीं बन सकीं।

“मैं तो इसलिए कह रही थी कि कहीं बारिश में भीग कर तबियत न खराब हो जाए दोनों की!”

“अरे तो हो जाए ख़राब! डॉक्टर बुलवा लेंगे हम! ... चिंता मत कीजिए…”

कहते हुए किशोर जी ने सरिता जी को अपनी बाहों में समेट लिया और उनको चूमते हुए उनकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगे। सरिता जी बमुश्किल छत्तीस वर्ष की हुई थीं। वो अभी भी आकर्षक थीं और उनका चुलबुलापन कम नहीं हुआ था। लिहाज़ा, जब भी दोनों को अवसर मिलता, सम्भोग अवश्य करते।


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Bhai bas ye jan na hai, kya nayi zindgi me kuch samsayo ka samna karega ya fir sab kuch bahdiya badhiya hoga.

Khair jaise bhi dukh ho purane wale dukh se to acche aur kam hi honge

Babut khoobsurat update bhai
 

parkas

Well-Known Member
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303
अपडेट 23


अजय को ‘वापस’ आए हुए कोई एक महीना हो गया था।

उसको यकीन हो गया था कि अब यही उसका जीवन है। जवानी का जोश और ज़िन्दगी के थपेड़ों से मिली हुई सीख - इन दोनों के मेल से उसको अपना और दूसरों का भविष्य सुधारना है। यही उसका मिशन था।

एक बात थी जो उसने नोटिस करी - अब उसके जीवन में जो हो रहा था, वो सब कुछ ‘पिछले’ जीवन में ज़रूरी नहीं था कि हो रहा हो। मतलब हर बात की हूबहू पुनरावृत्ति नहीं हो रही थी। सामान्य तौर पर देखें, तो लोग वही थे, कम्पनियाँ वही थीं, घटनाएँ वही थीं। लेकिन हर बात में थोड़ा बहुत अंतर अवश्य था। एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ। अजय को याद था कि जब उसने बारहवीं की पढ़ाई शुरू करी थी, तब उसको पेट में किसी इन्फेक्शन के कारण दो दिन अस्पताल में बिताने पड़े थे। उसके बाद से उसने अपनी दिनचर्या बदल दी थी। उस परिवर्तन के कारण अजय का भूतकाल बदल गया था, लिहाज़ा, उसको इस बार इन्फेक्शन नहीं हुआ। एक और परिवर्तन था - जहाँ शशि मैम को वो अपने पूर्व जीवन में भी जानता था, उसको श्रद्धा मैम की कोई याद नहीं थी। मतलब इस जीवन में आ कर भविष्य बदल तो रहा था।

जो बड़े परिवर्तन थे वो उसके अपनों के जीवन में थे।

कमल और माया का संग तो ख़ैर अब स्थापित हुआ ही हुआ समझना चाहिए। उसके बारे में विस्तार से बताया जाएगा।

उधर कणिका के घर से भयंकर वितंडावाद हुआ। उसके मम्मी पापा ने दिल्ली आकर खूब झगड़ा, गाली गलौज, और बदतमीज़ियाँ करीं। कुछ कुछ रागिनी जैसी यादें ताज़ा हो आईं। किरण जी को उन्होंने धमकाया भी उन्होंने कि वो प्रशांत पर कणिका का रेप करने का केस कर देंगे। लेकिन फिर अजय ने उनको उल्टा पट्टी पढ़ाई कि यहाँ तो घण्टा कुछ होने वाला है उस केस का। प्रशांत भैया अमेरिकन हो गए थे, इसलिए भारत के कानून उन पर लागू नहीं थे। और कणिका स्वयं शिकागो की पुलिस के पास कोई रिपोर्ट इसलिए नहीं दर्ज़ कर रही थी क्योंकि वहाँ की पुलिस यहाँ के जैसी कामचोर पुलिस नहीं है। वो पूरी तफ़्तीश करते हैं। वैसे भी अनेकों गवाह थे जो बता सकते थे कि कणिका खुद प्रशांत के गले मढ़ी थी और उसका उल्लू काट रही थी। दोनों में सेक्स हुआ था - इस बात से किसी को इंकार नहीं था, लेकिन वो दोनों की रज़ामंदी से हुआ था। जो वारदात शिकागो में हुई है, उसका न्याय या अन्याय यहाँ दिल्ली में नहीं हो सकता था।

यह जान कर कणिका के माँ बाप को मिर्च तो बहुत लगी, लेकिन वो उस मिर्च के निवारण के लिए कुछ कर नहीं सकते थे। अपना सा मुँह ले कर वापस चले गए। हाँ - कुछ सम्बन्धियों से अजय के परिवार के रिश्ते अवश्य बिगड़ गए इस घटना के बाद। प्रशांत भैया उन सम्बन्धियों के यहाँ सर्टिफाइड रेपिस्ट, ठरकी, और बदचलन इत्यादि नामों से जाने जाने लगे। उसके लिए कणिका ‘बेचारी’ और ‘अबला’ थी, जिसका शोषण हुआ था। अशोक जी और अजय पर इस बात का कोई ख़ास प्रभाव नहीं हुआ। किरण जी पर भी प्रभाव हुआ, क्योंकि वो प्रशांत की माँ थीं। ख़ैर, कड़वी दवाई अभी पी लेने का यह लाभ हुआ कि आगे ज़हर नहीं पीना पड़ेगा।

कणिका के बाहर निकलने से प्रशांत के जीवन में पैट्रिशिया के वापस आने का मार्ग प्रशस्त हो गया।


**


दिल्ली में बारिश का मौसम आ गया था और रह रह कर झमाझम बारिश होती रहती थी।

इस एक महीने में अजय के मुताबिक बहुत सी बातें हो गईं थीं। सबसे पहली बात, जो सबसे महत्वपूर्ण थी, वो यह थी कि कमल और माया एक दूसरे को जानने और समझने लगे थे। कमल की माया के लिए जो मोहब्बत थी, वो बड़ी सच्ची और कोमल तरीक़े की थी - जैसा कि अजय को पहले से ही मालूम था। किशोर राणा जी की इच्छानुसार माया रोज़ ही कमल के घर चली जाती, और उनके और सरिता जी के साथ रामायण का पाठ करती। यह पूजा पाठ एक बहाना था, जिससे माया अपने भविष्य के ‘घर’ के बारे में ठीक से जान सके, और समय आने पर उसका उचित तरीके से सञ्चालन कर सके।

ऐसा नहीं है कि माया की उपस्थिति में कमल का दिल मचलता नहीं था। खूब मचलता था, लेकिन माया उसको प्रेमपूर्वक और आदरपूर्वक स्वयं पर नियंत्रण रखने को प्रोत्साहित करती रहती थी।

फिर भी अंतरंगता के कोमल क्षण स्वयं ही उपस्थित हो जाते थे।

एक बार सरिता जी ने अनुरोध कर के माया को घर पर रोक लिया और अजय के वहाँ इत्तला कर दी कि आज ‘बहू’ वहीं रहेगी। अच्छी बात थी। जैसा कि आज से कई वर्षों पूर्व सामान्य बात थी, रात में बिजली गुल हो गई। शायद बारिश के आसार बन रहे थे, इस कारण से बिजली विभाग ने पहले से ही बिजली काट दी। बादल उमड़ घुमड़ रहे थे, इसलिए माया बँगले की दूसरी मंज़िल की छत पर आ कर ठंडी बयार का आनंद लेने लगी। कमल वहाँ पहले से ही उपस्थित था।

कमल ने अँधेरे में भी माया के आकार को पहचान लिया। उसको देख कर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई। जब से माया उसके जीवन में आई थी, तब से एक अलग ही तरीक़े का सुकून आ गया था उसके मन में! सभी मित्रों को यह बात पता चल गई थी कि अजय की बहन और कमल की शादी तय हो गई है। कुछ लोग इस बात से उसको चिढ़ाते भी थे, और अनेकों लोग इसी बात से चिढ़ते और उससे ईर्ष्या भी करते थे। लेकिन सच्चा प्रेम करने वालों को इस बात की परवाह नहीं होती कि अन्य लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। कमल इस बात से संतुष्ट था और बहुत प्रसन्न भी था कि एक बहुत ही अच्छी लड़की उसकी जीवनसंगिनी बनेगी!

अँधेरे में अंतरंगता बढ़ जाती है, क्योंकि शायद शर्म और झिझक थोड़ी कम हो जाती है।

उसने अपनी दोनों बाहें फैला कर माया को मूक आमंत्रण दिया।

माया एक पल को झिझकी, लेकिन अपने प्रिय की बाहों में कौन लड़की नहीं समां जाना चाहती? शर्म और झिझक भरे चार पाँच क़दम और वो कमल के आलिंगन में समां गई। पहला आलिंगन! दोनों को एक दूसरे के शरीरों की गर्माहट और कोमलता के एहसास से आनंद आ गया। माया के परफ्यूम की महक कमल के इस एहसास को और भी बढ़ा रही थी और आनंदातिरेक में कमल ने उसको अपनी बाहों में और भी समेट लिया।

ठीक उसी समय बारिश भी शुरू हो गई। रिमझिम रिमझिम! ठंडी! कोमल ठंडी बयार के साथ!

कुछ ही बूँदें गिरी होंगी, कि मिट्टी से सोंधी सोंधी महक आने लगी।

इस महक के पीछे का विज्ञान अगर जानेंगे, तो आपको वो एहसास कत्तई ग़ैररोमांटिक लगने लगेगा। लेकिन प्रेम को समझने के लिए, विज्ञान की समझ होना आवश्यक नहीं।

माया बोली, “भीग जाएँगे... अंदर चलें?”

“नहीं,” कमल ने कहा, “आज हम आपकी नहीं सुनेंगे... आज हम अपनी करेंगे!”

कमल की आवाज़ कोई परिपक्व नहीं थी, लेकिन उसमें एक दृढ़ता थी... और एक कोमलता भी! दृढ़ता - माया के पुरुष की और कोमलता उसके प्रेमी की। उसकी बाहों में वो लरज गई।

“क्या करना चाहते हैं आप?”

“आपको किस...”


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उसी समय, घर के ग्राउंड फ्लोर पर,



सरिता जी : “बच्चे छत पर हैं! भीग जायेंगे...”

किशोर जी : “अरे भाग्यवान, छोड़ दीजिए उनको कभी कभी! ... पहली बारिश है उनकी साथ में... थोड़ा मज़ा लेने दीजिए उनको भी! या भूल गईं हमारी जवानी की बातें!”

“हाहाहा... आप भी न!” सरिता जी अपने ‘मधुमास’ को याद कर के शर्मा गईं।

जब दोनों का विवाह हुआ था, तब सरिता जी बहुत बड़ी नहीं थीं। वैसे भी, उनके समाज में लड़कियाँ बहुत समय तक अनब्याही नहीं रहती हैं। किशोर जी उनसे दस वर्ष बड़े थे। उस मामले में थोड़ी बेमेल जोड़ी थी यह। लेकिन दोनों के बीच तीव्र आसक्ति और समयानुसार अगाध प्रेम था। विवाह के बाद उनका ‘मधुमास’ कोई चार महीने चला। किशोर जी बड़े थे, लेकिन ऐसी चुलबुली पत्नी पा कर वो भी छोटे हो गए। दोनों के अंतरंग खेल अपने कमरे की सीमा में ही नहीं होते थे, बल्कि जहाँ भी दोनों को अवसर मिलता, वो वहीं शुरू हो जाते थे। कई बार दोनों को इस व्यवहार के कारण किशोर जी के माँ बाप ने घुड़का था। लेकिन दोनों में कोई सुधार या बदलाव नहीं आया था। चार महीने में सरिता जी की कोख में कमल आ गया था और अपने नियत समय में उन्होंने उसको जन्म भी दिया।

वंश का चिराग आने से सभी लोग प्रसन्न थे। लेकिन बाद में सरिता जी घर परिवार में, और किशोर जी व्यवसाय और व्यापार में ऐसे व्यस्त हुए कि ‘वैसे’ खेलने का अवसर ही नहीं मिला। सरिता जी दो बार पुनः गर्भवती हुईं, लेकिन किन्ही अबूझ कारणों से वो पुनः माँ नहीं बन सकीं।

“मैं तो इसलिए कह रही थी कि कहीं बारिश में भीग कर तबियत न खराब हो जाए दोनों की!”

“अरे तो हो जाए ख़राब! डॉक्टर बुलवा लेंगे हम! ... चिंता मत कीजिए…”

कहते हुए किशोर जी ने सरिता जी को अपनी बाहों में समेट लिया और उनको चूमते हुए उनकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगे। सरिता जी बमुश्किल छत्तीस वर्ष की हुई थीं। वो अभी भी आकर्षक थीं और उनका चुलबुलापन कम नहीं हुआ था। लिहाज़ा, जब भी दोनों को अवसर मिलता, सम्भोग अवश्य करते।


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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

park

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अपडेट 22


सवेरे से जो राणा साहब के यहाँ पहुँचे, अजय और उसके परिवार की वापसी शाम से पहले न हो सकी। जब रिश्तेदारी जम रही हो, तब कोई ऐसे रूखा रूखा जाने नहीं देता। राणा साहब ने भोजन का बढ़िया बंदोबस्त करवाया हुआ था। इस रविवार का दिन किसी पर्व की तरह बीता। खाना पीना कर के सभी वापस आए। रास्ते में अजय माया को कमल का नाम ले ले कर छेड़ता रहा। और समय होता, तो शायद माँ और पापा उसको यूँ करने से मना करते। लेकिन यह रिश्ता संभव हो पाया था अजय के कारण। इसलिए वो भी अजय के साथ ही इस हँसी चुहल में शामिल हो गए थे।

माया ने आज दिन भर बहुत कम बोला था, लेकिन जैसी संतुष्टि उसको आज मिली थी, वो अभूतपूर्व थी।

किसी भी पारम्परिक सोच वाली लड़की के लिए किसी की ब्याहता बनना एक सम्मान की बात होती है। यह उसको अपने जीवन में स्थापित करता है। उसको अपना संसार बसाने की अनुमति देता है। जिस स्थिति में वो कुछ सालों पहले थी, वहाँ से वो अपने लिए ऐसा भविष्य सोच भी नहीं सकती थी। लेकिन वो सोचा हुआ और न सोचा हुआ - सब कुछ - अब संभव होता प्रतीत हो रहा था। उसका होने वाला ससुराल बहुत अच्छा था। अपनी होने वाली सास, सरिता जी को वो कुछ वर्षों से जानती थी और पसंद भी करती थी। सरिता जी ने आज तक उसको एक बार भी उसके निम्न जाति के होने के तथ्य को ले कर कम नहीं आँका था। वो एक अच्छी, और वात्सल्यपूर्ण महिला थीं। उनकी ममता के तले वो अपने होने वाले पति के साथ अपना भविष्य बना सकती थी।

होने वाले पति... कैसी कमाल की बात है न! वो अपने मन में भी कमल का नाम नहीं ले पा रही थी। उसने तो आज से ही कमल को ‘इनको’, ‘उनको’, ‘वो’ कहना शुरू कर दिया था। इस बात पर भी खिंचाई हुई थी माया की।

घर आ कर अशोक जी और किरण जी अपने सम्बन्धियों और मित्रों को यह ख़ुशख़बरी देने में व्यस्त हो गए।

रात में किरण जी ने प्रशांत को फ़ोन लगाया। किरण जी हमेशा से ही चाहती थीं कि उनके बच्चों में अगर किसी का ब्याह पहले हो, तो वो उनकी बेटी माया का हो। इस सम्भावना से वो बहुत प्रसन्न थीं। प्रशांत ने जब यह खबर सुनी, तो वो बहुत खुश हुआ। माया को वो बहुत स्नेह करता था। वो बाहर से आई है, इस बात से उसको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था। वो बस इसी बात से खुश था कि अब उसकी एक छोटी बहन भी है। इस मामले में उसका दिल बहुत बड़ा था। उसने माया को भी बहुत सारी बधाईयाँ दी। यह सब होने के बाद अजय ने फ़ोन ले लिया,

“हेल्लो भैया,”

“हेल्लो मेरे जादूगर! भाई वाह, क्या कमाल का काम किया है तूने मेरे भाई!”

“कोई कमाल वमाल नहीं है भैया,” अजय बोला, “कमल दीदी को बहुत पसंद करता है। उसने जब मुझे ये बात बताई, तो मैंने दीदी को और पापा को यह बात बोल दी। ... और पापा तो ठहरे हमारे बाप! उन्होंने कहा कि वो कमल के पापा से बात करेंगे। आज वहाँ गए, और सब फिक्स हो गया भगवान की दया से!”

“हाँ यार, भगवान की दया तो है! ... माया बहुत अच्छी बच्ची है! उसको खुश देखता हूँ न, तो बहुत अच्छा लगता है मुझे!”

“हाँ भैया, दीदी बहुत अच्छी तो हैं।”

“बहुत अच्छा किया तूने! पुण्य मिलेगा बहुत!”

“हा हा!”

“सच में!”

“अगर ऐसी बात है, तो एक और पुण्य दे दो!”

“मतलब?”

“अब मतलब भी समझाना पड़ेगा आपको?”

प्रशांत दो पल चुप रहा, फिर बोला, “यार... कल बहुत झगड़ा हुआ उससे!”

“क्यों? इग्नोर कर दिया, इसीलिए न?”

“हाँ,”

“बोला था मैंने! वो है ही वैसी! सच कह रहा हूँ भैया, एक बार चूत ले ली का मतलब ये नहीं कि उम्र भर अपनी मरवाओ!”

“हा हा! स्साले, कैसा बोलता है अपने बड़े भाई से!”

“गलत कह रहा हूँ क्या?”

“नहीं, गलत तो नहीं है...”

“भैया, सही साथी का होना ज़िन्दगी को आसान कर देता है। ... कणिका जैसी है, वो आपका जीना दुश्वार कर देगी। सच कह रहा हूँ!”

“आई नो,” प्रशांत ने गहरी सांस ले कर कहा, “उसका एक बड़ा एक्साम्पल मिल गया है मुझे कल ही!”

“आपको पैट्रिशिया अच्छी लगती हैं न? आप उनसे बात करो न?”

“अरे यार! बेवकूफ़ी के चक्कर में मैंने उसको अपने से दूर कर दिया!”

“क्या भैया! बेवकूफ़ी सुधारी भी जा सकती है।”

“कैसे?”

“आप मुझे पैट्रिशिया का नंबर दीजिये। मैं उनसे बात करूँगा...”

“यार ये क्या बात हुई! मान न मान, मैं तेरा मेहमान!”

“मैं ऐसा ही हूँ!”

“हा हा हा! कब से?” प्रशांत ने हँसते हुए कहा, “लेकिन एक बात कहूँ अज्जू... तू वाकई चेंज हो गया है। बहुत ही बदल गया है तेरा बिहैवियर...”

“आई नो! मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो गई है!”

“हा हा हा हा! मोक्ष... हा हा हा हा!”
“हाँ... हँस लो!”

“अच्छा, एक बात बता... इन दोनों की शादी कब हो रही है?”

“मैं तो चाहता हूँ कि जल्दी से जल्दी हो जाए!”

“हम्म... लेकिन कमल की पढ़ाई पर असर नहीं पड़ेगा?”

“क्या भैया! पता नहीं हम हिन्दुस्तानियों को पढ़ाई को ले कर कौन सा रोग लगा हुआ है। कमल को कौन सा आईएएस बनना है? पास होना है न, मैं करवा दूँगा! केवल पास नहीं, फर्स्ट डिवीज़न में, विद डिस्टिंक्शन!”

“हा हा! सही है!”

“और माया दीदी समझदार हैं। वो कमल को बहकने नहीं देंगी!” अजय ने हँसते हुए कहा, “वो उसको एनफ मोटिवेट कर के रखेंगी। नो पढ़ाई, नो सेक्स!”

“हा हा हा हा! तू भी न! ... अरे मैं वो नहीं कह रहा हूँ! लेकिन शादी के बाद ब्रेक चाहिए होता है न!”

“भैया, माँ और पापा ने बताया था कि नवम्बर में ही डेट निकलेगी।”

“हम्म्म,”

“तो या तो उसमें सगाई कर लो, या फिर शादी...”

“हम्म्म,”

“नवम्बर में कर लेंगे, तो हनीमून के लिए विंटर वेकेशंस तो हैं हीं!”

“लेकिन दोनों शादी कर तो सकते हैं? या कि नहीं? वो अभी इक्कीस का हुआ नहीं होगा!”

“नहीं हुआ है, लेकिन दोनों एडल्ट्स हैं। ऐसे में शादी हो सकती है। बाद में कमल अगर कोई ऑब्जेक्शन करता है, तब ही शादी वॉइड की जा सकती है। दोनों के लिए शादी करना पनिशेबल नहीं है।”

“वो क्यों ऑब्जेक्ट करेगा!”

“हाँ! क्यों ही करेगा।” अजय मुस्कुराया, “लेकिन आप बताइए...”

“मैं क्या बताऊँ?”

“पैट्रिशिया भाभी का नंबर! मैं उनसे बात करूँगा... और माँ से कहूँगा कि कणिका के माँ बाप से बात करें, कि वो अपनी बेटी समझाएँ कि आप के ऊपर डोरे डालना बंद कर दे। कुछ नहीं होने वाला।”

“नहीं, मैं ही उसको समझाता हूँ। तू सही कहता है... कणिका मेरे लिए सही लड़की नहीं है और न ही मैं उसके लिए सही लड़का हूँ...”



**



प्रशांत से पैट्रिशिया का नंबर ले कर अजय ने उसको फ़ोन लगाया।

ऐसे अचानक से ही, प्रशांत के भाई का फ़ोन सुन कर उसको घोर आश्चर्य हुआ। वैसे उसका और प्रशांत का ब्रेकअप नहीं हुआ था, लेकिन कणिका के आने के बाद से दोनों में दूरियाँ आ गई थीं।

“हाय, पैट्रिशिया हियर,”

“हाय भाभी,” अजय ने चहकते हुए कहा, “आई ऍम अजय, प्रशांत का छोटा भाई!”

[इस वार्तालाप को हिंदी में अनुवाद कर के ही लिखा जाएगा]

“हेलो,” पैट्रिशिया को समझ नहीं आया कि वो प्रशांत के भाई से कैसे बात करे।

“भाभी, आपको शॉकिंग लग सकता है कि ये कौन यूँ अचानक से आ गया... लेकिन मुझसे रहा नहीं गया।” उसने बताया, “और मैं आपको ‘भाभी’ इसलिए कह रहा हूँ कि मैं आपको आपके नाम से नहीं बुला सकता। ... हमारे कल्चर में भाभी का ओहदा माँ जैसा होता है। अगर माँ नहीं, तो बड़ी बहन तो होती ही है भाभी...”

“अजय, मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं आपकी बात का क्या जवाब दूँ,”

“अभी आप बस सुन लीजिए... शायद प्रशांत भैया गिल्ट फ़ीलिंग्स के कारण आपसे कुछ कह न सकें, लेकिन मुझे पता है सब कुछ! इसलिए मैं आप से सब कुछ सच सच बता देना चाहता हूँ!”

“ओके...”

“भाभी, भैया आपको बहुत चाहते हैं! लेकिन हमारे मामा मामी बहुत लालची हैं। लड़का विदेश में है और यहाँ उनकी माँ के पास दौलत है, यह सोच कर उन्होंने सोचा कि क्यों न अपनी बेटी प्रशांत भैया के सर मढ़ दें! वो भी इतनी मैनीपुलेटिव है कि आते ही उसने भैया का शिकार करना शुरू कर दिया... जबरदस्ती उनके सर चढ़ती चली गई। डिसेंसी के चक्कर में वो उसको मना भी न कर सके। ... मैनीपुलेट कर के कणिका ने उनके साथ सेक्स भी कर लिया... अब मारे गिल्ट के वो उसको मना नहीं कर पा रहे हैं। गले की हड्डी बन गई है कणिका - न निगल सकते हैं, और न उगल सकते हैं!”

“आई अंडरस्टैंड अजय,” पैट्रिशिया ने कहा - अजय की बातें सुन कर वो थोड़ी आश्वस्त तो हुई थी, “लेकिन प्रशांत को थोड़ा स्ट्रांग तो होना पड़ेगा न?”

“बिलकुल होना पड़ेगा। लेकिन आप इण्डिया के फैमिलिअल टाइस (पारिवारिक संबंधों) को पूरी तरह नहीं समझ रही हैं।” अजय ने समझाया, “समाज में रिस्पेक्ट पाने के लिए लोग खुद को बेच देतें हैं यहाँ!”

“व्हाट!”

“लेकिन आप उसकी चिंता न करिए! मुझे बस इतना दीजिए कि क्या आप भैया से प्यार करती हैं या नहीं? उनसे शादी करना चाहती हैं, या नहीं?”

“ऑफ़कोर्स आई लव हिम, अजय! एंड आई वांट टू मैरी हिम!” बोलते बोलते उसकी आवाज़ रुंआंसी हो गई, “आई थॉट इट वास वैरी क्लियर बिटवीन अस... लेकिन!”

“बस, इतना बहुत है भाभी! कणिका और उसकी फॅमिली को हमारी फॅमिली देख लेगी! आप बस भैया की लाइफ में वापस आ जाईए!”

“मैं कभी गई ही नहीं थी अजय... मैं अमेरिकन ज़रूर हूँ, लेकिन मेरे वैल्यू सिस्टम खराब नहीं हैं!”

“आई नो भाभी... आप उन बातों की चिंता न करिए! अगर आपके पहले रिलेशनशिप्स थे, तो भैया और कणिका के भी थे। वो कोई दूध के धोये नहीं हैं। डोंट वरी!”

“अजय... आई डोंट नो व्हाट टू से टू यू, बट यू आर आस्सम!”

“आई नो भाभी, आई नो!” अजय मुस्कुराया, “बाय भाभी!”


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park

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अजय को ‘वापस’ आए हुए कोई एक महीना हो गया था।

उसको यकीन हो गया था कि अब यही उसका जीवन है। जवानी का जोश और ज़िन्दगी के थपेड़ों से मिली हुई सीख - इन दोनों के मेल से उसको अपना और दूसरों का भविष्य सुधारना है। यही उसका मिशन था।

एक बात थी जो उसने नोटिस करी - अब उसके जीवन में जो हो रहा था, वो सब कुछ ‘पिछले’ जीवन में ज़रूरी नहीं था कि हो रहा हो। मतलब हर बात की हूबहू पुनरावृत्ति नहीं हो रही थी। सामान्य तौर पर देखें, तो लोग वही थे, कम्पनियाँ वही थीं, घटनाएँ वही थीं। लेकिन हर बात में थोड़ा बहुत अंतर अवश्य था। एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ। अजय को याद था कि जब उसने बारहवीं की पढ़ाई शुरू करी थी, तब उसको पेट में किसी इन्फेक्शन के कारण दो दिन अस्पताल में बिताने पड़े थे। उसके बाद से उसने अपनी दिनचर्या बदल दी थी। उस परिवर्तन के कारण अजय का भूतकाल बदल गया था, लिहाज़ा, उसको इस बार इन्फेक्शन नहीं हुआ। एक और परिवर्तन था - जहाँ शशि मैम को वो अपने पूर्व जीवन में भी जानता था, उसको श्रद्धा मैम की कोई याद नहीं थी। मतलब इस जीवन में आ कर भविष्य बदल तो रहा था।

जो बड़े परिवर्तन थे वो उसके अपनों के जीवन में थे।

कमल और माया का संग तो ख़ैर अब स्थापित हुआ ही हुआ समझना चाहिए। उसके बारे में विस्तार से बताया जाएगा।

उधर कणिका के घर से भयंकर वितंडावाद हुआ। उसके मम्मी पापा ने दिल्ली आकर खूब झगड़ा, गाली गलौज, और बदतमीज़ियाँ करीं। कुछ कुछ रागिनी जैसी यादें ताज़ा हो आईं। किरण जी को उन्होंने धमकाया भी उन्होंने कि वो प्रशांत पर कणिका का रेप करने का केस कर देंगे। लेकिन फिर अजय ने उनको उल्टा पट्टी पढ़ाई कि यहाँ तो घण्टा कुछ होने वाला है उस केस का। प्रशांत भैया अमेरिकन हो गए थे, इसलिए भारत के कानून उन पर लागू नहीं थे। और कणिका स्वयं शिकागो की पुलिस के पास कोई रिपोर्ट इसलिए नहीं दर्ज़ कर रही थी क्योंकि वहाँ की पुलिस यहाँ के जैसी कामचोर पुलिस नहीं है। वो पूरी तफ़्तीश करते हैं। वैसे भी अनेकों गवाह थे जो बता सकते थे कि कणिका खुद प्रशांत के गले मढ़ी थी और उसका उल्लू काट रही थी। दोनों में सेक्स हुआ था - इस बात से किसी को इंकार नहीं था, लेकिन वो दोनों की रज़ामंदी से हुआ था। जो वारदात शिकागो में हुई है, उसका न्याय या अन्याय यहाँ दिल्ली में नहीं हो सकता था।

यह जान कर कणिका के माँ बाप को मिर्च तो बहुत लगी, लेकिन वो उस मिर्च के निवारण के लिए कुछ कर नहीं सकते थे। अपना सा मुँह ले कर वापस चले गए। हाँ - कुछ सम्बन्धियों से अजय के परिवार के रिश्ते अवश्य बिगड़ गए इस घटना के बाद। प्रशांत भैया उन सम्बन्धियों के यहाँ सर्टिफाइड रेपिस्ट, ठरकी, और बदचलन इत्यादि नामों से जाने जाने लगे। उसके लिए कणिका ‘बेचारी’ और ‘अबला’ थी, जिसका शोषण हुआ था। अशोक जी और अजय पर इस बात का कोई ख़ास प्रभाव नहीं हुआ। किरण जी पर भी प्रभाव हुआ, क्योंकि वो प्रशांत की माँ थीं। ख़ैर, कड़वी दवाई अभी पी लेने का यह लाभ हुआ कि आगे ज़हर नहीं पीना पड़ेगा।

कणिका के बाहर निकलने से प्रशांत के जीवन में पैट्रिशिया के वापस आने का मार्ग प्रशस्त हो गया।


**


दिल्ली में बारिश का मौसम आ गया था और रह रह कर झमाझम बारिश होती रहती थी।

इस एक महीने में अजय के मुताबिक बहुत सी बातें हो गईं थीं। सबसे पहली बात, जो सबसे महत्वपूर्ण थी, वो यह थी कि कमल और माया एक दूसरे को जानने और समझने लगे थे। कमल की माया के लिए जो मोहब्बत थी, वो बड़ी सच्ची और कोमल तरीक़े की थी - जैसा कि अजय को पहले से ही मालूम था। किशोर राणा जी की इच्छानुसार माया रोज़ ही कमल के घर चली जाती, और उनके और सरिता जी के साथ रामायण का पाठ करती। यह पूजा पाठ एक बहाना था, जिससे माया अपने भविष्य के ‘घर’ के बारे में ठीक से जान सके, और समय आने पर उसका उचित तरीके से सञ्चालन कर सके।

ऐसा नहीं है कि माया की उपस्थिति में कमल का दिल मचलता नहीं था। खूब मचलता था, लेकिन माया उसको प्रेमपूर्वक और आदरपूर्वक स्वयं पर नियंत्रण रखने को प्रोत्साहित करती रहती थी।

फिर भी अंतरंगता के कोमल क्षण स्वयं ही उपस्थित हो जाते थे।

एक बार सरिता जी ने अनुरोध कर के माया को घर पर रोक लिया और अजय के वहाँ इत्तला कर दी कि आज ‘बहू’ वहीं रहेगी। अच्छी बात थी। जैसा कि आज से कई वर्षों पूर्व सामान्य बात थी, रात में बिजली गुल हो गई। शायद बारिश के आसार बन रहे थे, इस कारण से बिजली विभाग ने पहले से ही बिजली काट दी। बादल उमड़ घुमड़ रहे थे, इसलिए माया बँगले की दूसरी मंज़िल की छत पर आ कर ठंडी बयार का आनंद लेने लगी। कमल वहाँ पहले से ही उपस्थित था।

कमल ने अँधेरे में भी माया के आकार को पहचान लिया। उसको देख कर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई। जब से माया उसके जीवन में आई थी, तब से एक अलग ही तरीक़े का सुकून आ गया था उसके मन में! सभी मित्रों को यह बात पता चल गई थी कि अजय की बहन और कमल की शादी तय हो गई है। कुछ लोग इस बात से उसको चिढ़ाते भी थे, और अनेकों लोग इसी बात से चिढ़ते और उससे ईर्ष्या भी करते थे। लेकिन सच्चा प्रेम करने वालों को इस बात की परवाह नहीं होती कि अन्य लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। कमल इस बात से संतुष्ट था और बहुत प्रसन्न भी था कि एक बहुत ही अच्छी लड़की उसकी जीवनसंगिनी बनेगी!

अँधेरे में अंतरंगता बढ़ जाती है, क्योंकि शायद शर्म और झिझक थोड़ी कम हो जाती है।

उसने अपनी दोनों बाहें फैला कर माया को मूक आमंत्रण दिया।

माया एक पल को झिझकी, लेकिन अपने प्रिय की बाहों में कौन लड़की नहीं समां जाना चाहती? शर्म और झिझक भरे चार पाँच क़दम और वो कमल के आलिंगन में समां गई। पहला आलिंगन! दोनों को एक दूसरे के शरीरों की गर्माहट और कोमलता के एहसास से आनंद आ गया। माया के परफ्यूम की महक कमल के इस एहसास को और भी बढ़ा रही थी और आनंदातिरेक में कमल ने उसको अपनी बाहों में और भी समेट लिया।

ठीक उसी समय बारिश भी शुरू हो गई। रिमझिम रिमझिम! ठंडी! कोमल ठंडी बयार के साथ!

कुछ ही बूँदें गिरी होंगी, कि मिट्टी से सोंधी सोंधी महक आने लगी।

इस महक के पीछे का विज्ञान अगर जानेंगे, तो आपको वो एहसास कत्तई ग़ैररोमांटिक लगने लगेगा। लेकिन प्रेम को समझने के लिए, विज्ञान की समझ होना आवश्यक नहीं।

माया बोली, “भीग जाएँगे... अंदर चलें?”

“नहीं,” कमल ने कहा, “आज हम आपकी नहीं सुनेंगे... आज हम अपनी करेंगे!”

कमल की आवाज़ कोई परिपक्व नहीं थी, लेकिन उसमें एक दृढ़ता थी... और एक कोमलता भी! दृढ़ता - माया के पुरुष की और कोमलता उसके प्रेमी की। उसकी बाहों में वो लरज गई।

“क्या करना चाहते हैं आप?”

“आपको किस...”


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उसी समय, घर के ग्राउंड फ्लोर पर,



सरिता जी : “बच्चे छत पर हैं! भीग जायेंगे...”

किशोर जी : “अरे भाग्यवान, छोड़ दीजिए उनको कभी कभी! ... पहली बारिश है उनकी साथ में... थोड़ा मज़ा लेने दीजिए उनको भी! या भूल गईं हमारी जवानी की बातें!”

“हाहाहा... आप भी न!” सरिता जी अपने ‘मधुमास’ को याद कर के शर्मा गईं।

जब दोनों का विवाह हुआ था, तब सरिता जी बहुत बड़ी नहीं थीं। वैसे भी, उनके समाज में लड़कियाँ बहुत समय तक अनब्याही नहीं रहती हैं। किशोर जी उनसे दस वर्ष बड़े थे। उस मामले में थोड़ी बेमेल जोड़ी थी यह। लेकिन दोनों के बीच तीव्र आसक्ति और समयानुसार अगाध प्रेम था। विवाह के बाद उनका ‘मधुमास’ कोई चार महीने चला। किशोर जी बड़े थे, लेकिन ऐसी चुलबुली पत्नी पा कर वो भी छोटे हो गए। दोनों के अंतरंग खेल अपने कमरे की सीमा में ही नहीं होते थे, बल्कि जहाँ भी दोनों को अवसर मिलता, वो वहीं शुरू हो जाते थे। कई बार दोनों को इस व्यवहार के कारण किशोर जी के माँ बाप ने घुड़का था। लेकिन दोनों में कोई सुधार या बदलाव नहीं आया था। चार महीने में सरिता जी की कोख में कमल आ गया था और अपने नियत समय में उन्होंने उसको जन्म भी दिया।

वंश का चिराग आने से सभी लोग प्रसन्न थे। लेकिन बाद में सरिता जी घर परिवार में, और किशोर जी व्यवसाय और व्यापार में ऐसे व्यस्त हुए कि ‘वैसे’ खेलने का अवसर ही नहीं मिला। सरिता जी दो बार पुनः गर्भवती हुईं, लेकिन किन्ही अबूझ कारणों से वो पुनः माँ नहीं बन सकीं।

“मैं तो इसलिए कह रही थी कि कहीं बारिश में भीग कर तबियत न खराब हो जाए दोनों की!”

“अरे तो हो जाए ख़राब! डॉक्टर बुलवा लेंगे हम! ... चिंता मत कीजिए…”

कहते हुए किशोर जी ने सरिता जी को अपनी बाहों में समेट लिया और उनको चूमते हुए उनकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगे। सरिता जी बमुश्किल छत्तीस वर्ष की हुई थीं। वो अभी भी आकर्षक थीं और उनका चुलबुलापन कम नहीं हुआ था। लिहाज़ा, जब भी दोनों को अवसर मिलता, सम्भोग अवश्य करते।


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अजय को ‘वापस’ आए हुए कोई एक महीना हो गया था।

उसको यकीन हो गया था कि अब यही उसका जीवन है। जवानी का जोश और ज़िन्दगी के थपेड़ों से मिली हुई सीख - इन दोनों के मेल से उसको अपना और दूसरों का भविष्य सुधारना है। यही उसका मिशन था।

एक बात थी जो उसने नोटिस करी - अब उसके जीवन में जो हो रहा था, वो सब कुछ ‘पिछले’ जीवन में ज़रूरी नहीं था कि हो रहा हो। मतलब हर बात की हूबहू पुनरावृत्ति नहीं हो रही थी। सामान्य तौर पर देखें, तो लोग वही थे, कम्पनियाँ वही थीं, घटनाएँ वही थीं। लेकिन हर बात में थोड़ा बहुत अंतर अवश्य था। एक छोटा सा उदाहरण देता हूँ। अजय को याद था कि जब उसने बारहवीं की पढ़ाई शुरू करी थी, तब उसको पेट में किसी इन्फेक्शन के कारण दो दिन अस्पताल में बिताने पड़े थे। उसके बाद से उसने अपनी दिनचर्या बदल दी थी। उस परिवर्तन के कारण अजय का भूतकाल बदल गया था, लिहाज़ा, उसको इस बार इन्फेक्शन नहीं हुआ। एक और परिवर्तन था - जहाँ शशि मैम को वो अपने पूर्व जीवन में भी जानता था, उसको श्रद्धा मैम की कोई याद नहीं थी। मतलब इस जीवन में आ कर भविष्य बदल तो रहा था।

जो बड़े परिवर्तन थे वो उसके अपनों के जीवन में थे।

कमल और माया का संग तो ख़ैर अब स्थापित हुआ ही हुआ समझना चाहिए। उसके बारे में विस्तार से बताया जाएगा।

उधर कणिका के घर से भयंकर वितंडावाद हुआ। उसके मम्मी पापा ने दिल्ली आकर खूब झगड़ा, गाली गलौज, और बदतमीज़ियाँ करीं। कुछ कुछ रागिनी जैसी यादें ताज़ा हो आईं। किरण जी को उन्होंने धमकाया भी उन्होंने कि वो प्रशांत पर कणिका का रेप करने का केस कर देंगे। लेकिन फिर अजय ने उनको उल्टा पट्टी पढ़ाई कि यहाँ तो घण्टा कुछ होने वाला है उस केस का। प्रशांत भैया अमेरिकन हो गए थे, इसलिए भारत के कानून उन पर लागू नहीं थे। और कणिका स्वयं शिकागो की पुलिस के पास कोई रिपोर्ट इसलिए नहीं दर्ज़ कर रही थी क्योंकि वहाँ की पुलिस यहाँ के जैसी कामचोर पुलिस नहीं है। वो पूरी तफ़्तीश करते हैं। वैसे भी अनेकों गवाह थे जो बता सकते थे कि कणिका खुद प्रशांत के गले मढ़ी थी और उसका उल्लू काट रही थी। दोनों में सेक्स हुआ था - इस बात से किसी को इंकार नहीं था, लेकिन वो दोनों की रज़ामंदी से हुआ था। जो वारदात शिकागो में हुई है, उसका न्याय या अन्याय यहाँ दिल्ली में नहीं हो सकता था।

यह जान कर कणिका के माँ बाप को मिर्च तो बहुत लगी, लेकिन वो उस मिर्च के निवारण के लिए कुछ कर नहीं सकते थे। अपना सा मुँह ले कर वापस चले गए। हाँ - कुछ सम्बन्धियों से अजय के परिवार के रिश्ते अवश्य बिगड़ गए इस घटना के बाद। प्रशांत भैया उन सम्बन्धियों के यहाँ सर्टिफाइड रेपिस्ट, ठरकी, और बदचलन इत्यादि नामों से जाने जाने लगे। उसके लिए कणिका ‘बेचारी’ और ‘अबला’ थी, जिसका शोषण हुआ था। अशोक जी और अजय पर इस बात का कोई ख़ास प्रभाव नहीं हुआ। किरण जी पर भी प्रभाव हुआ, क्योंकि वो प्रशांत की माँ थीं। ख़ैर, कड़वी दवाई अभी पी लेने का यह लाभ हुआ कि आगे ज़हर नहीं पीना पड़ेगा।

कणिका के बाहर निकलने से प्रशांत के जीवन में पैट्रिशिया के वापस आने का मार्ग प्रशस्त हो गया।


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दिल्ली में बारिश का मौसम आ गया था और रह रह कर झमाझम बारिश होती रहती थी।

इस एक महीने में अजय के मुताबिक बहुत सी बातें हो गईं थीं। सबसे पहली बात, जो सबसे महत्वपूर्ण थी, वो यह थी कि कमल और माया एक दूसरे को जानने और समझने लगे थे। कमल की माया के लिए जो मोहब्बत थी, वो बड़ी सच्ची और कोमल तरीक़े की थी - जैसा कि अजय को पहले से ही मालूम था। किशोर राणा जी की इच्छानुसार माया रोज़ ही कमल के घर चली जाती, और उनके और सरिता जी के साथ रामायण का पाठ करती। यह पूजा पाठ एक बहाना था, जिससे माया अपने भविष्य के ‘घर’ के बारे में ठीक से जान सके, और समय आने पर उसका उचित तरीके से सञ्चालन कर सके।

ऐसा नहीं है कि माया की उपस्थिति में कमल का दिल मचलता नहीं था। खूब मचलता था, लेकिन माया उसको प्रेमपूर्वक और आदरपूर्वक स्वयं पर नियंत्रण रखने को प्रोत्साहित करती रहती थी।

फिर भी अंतरंगता के कोमल क्षण स्वयं ही उपस्थित हो जाते थे।

एक बार सरिता जी ने अनुरोध कर के माया को घर पर रोक लिया और अजय के वहाँ इत्तला कर दी कि आज ‘बहू’ वहीं रहेगी। अच्छी बात थी। जैसा कि आज से कई वर्षों पूर्व सामान्य बात थी, रात में बिजली गुल हो गई। शायद बारिश के आसार बन रहे थे, इस कारण से बिजली विभाग ने पहले से ही बिजली काट दी। बादल उमड़ घुमड़ रहे थे, इसलिए माया बँगले की दूसरी मंज़िल की छत पर आ कर ठंडी बयार का आनंद लेने लगी। कमल वहाँ पहले से ही उपस्थित था।

कमल ने अँधेरे में भी माया के आकार को पहचान लिया। उसको देख कर उसके होंठों पर मुस्कान आ गई। जब से माया उसके जीवन में आई थी, तब से एक अलग ही तरीक़े का सुकून आ गया था उसके मन में! सभी मित्रों को यह बात पता चल गई थी कि अजय की बहन और कमल की शादी तय हो गई है। कुछ लोग इस बात से उसको चिढ़ाते भी थे, और अनेकों लोग इसी बात से चिढ़ते और उससे ईर्ष्या भी करते थे। लेकिन सच्चा प्रेम करने वालों को इस बात की परवाह नहीं होती कि अन्य लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। कमल इस बात से संतुष्ट था और बहुत प्रसन्न भी था कि एक बहुत ही अच्छी लड़की उसकी जीवनसंगिनी बनेगी!

अँधेरे में अंतरंगता बढ़ जाती है, क्योंकि शायद शर्म और झिझक थोड़ी कम हो जाती है।

उसने अपनी दोनों बाहें फैला कर माया को मूक आमंत्रण दिया।

माया एक पल को झिझकी, लेकिन अपने प्रिय की बाहों में कौन लड़की नहीं समां जाना चाहती? शर्म और झिझक भरे चार पाँच क़दम और वो कमल के आलिंगन में समां गई। पहला आलिंगन! दोनों को एक दूसरे के शरीरों की गर्माहट और कोमलता के एहसास से आनंद आ गया। माया के परफ्यूम की महक कमल के इस एहसास को और भी बढ़ा रही थी और आनंदातिरेक में कमल ने उसको अपनी बाहों में और भी समेट लिया।

ठीक उसी समय बारिश भी शुरू हो गई। रिमझिम रिमझिम! ठंडी! कोमल ठंडी बयार के साथ!

कुछ ही बूँदें गिरी होंगी, कि मिट्टी से सोंधी सोंधी महक आने लगी।

इस महक के पीछे का विज्ञान अगर जानेंगे, तो आपको वो एहसास कत्तई ग़ैररोमांटिक लगने लगेगा। लेकिन प्रेम को समझने के लिए, विज्ञान की समझ होना आवश्यक नहीं।

माया बोली, “भीग जाएँगे... अंदर चलें?”

“नहीं,” कमल ने कहा, “आज हम आपकी नहीं सुनेंगे... आज हम अपनी करेंगे!”

कमल की आवाज़ कोई परिपक्व नहीं थी, लेकिन उसमें एक दृढ़ता थी... और एक कोमलता भी! दृढ़ता - माया के पुरुष की और कोमलता उसके प्रेमी की। उसकी बाहों में वो लरज गई।

“क्या करना चाहते हैं आप?”

“आपको किस...”


**


उसी समय, घर के ग्राउंड फ्लोर पर,



सरिता जी : “बच्चे छत पर हैं! भीग जायेंगे...”

किशोर जी : “अरे भाग्यवान, छोड़ दीजिए उनको कभी कभी! ... पहली बारिश है उनकी साथ में... थोड़ा मज़ा लेने दीजिए उनको भी! या भूल गईं हमारी जवानी की बातें!”

“हाहाहा... आप भी न!” सरिता जी अपने ‘मधुमास’ को याद कर के शर्मा गईं।

जब दोनों का विवाह हुआ था, तब सरिता जी बहुत बड़ी नहीं थीं। वैसे भी, उनके समाज में लड़कियाँ बहुत समय तक अनब्याही नहीं रहती हैं। किशोर जी उनसे दस वर्ष बड़े थे। उस मामले में थोड़ी बेमेल जोड़ी थी यह। लेकिन दोनों के बीच तीव्र आसक्ति और समयानुसार अगाध प्रेम था। विवाह के बाद उनका ‘मधुमास’ कोई चार महीने चला। किशोर जी बड़े थे, लेकिन ऐसी चुलबुली पत्नी पा कर वो भी छोटे हो गए। दोनों के अंतरंग खेल अपने कमरे की सीमा में ही नहीं होते थे, बल्कि जहाँ भी दोनों को अवसर मिलता, वो वहीं शुरू हो जाते थे। कई बार दोनों को इस व्यवहार के कारण किशोर जी के माँ बाप ने घुड़का था। लेकिन दोनों में कोई सुधार या बदलाव नहीं आया था। चार महीने में सरिता जी की कोख में कमल आ गया था और अपने नियत समय में उन्होंने उसको जन्म भी दिया।

वंश का चिराग आने से सभी लोग प्रसन्न थे। लेकिन बाद में सरिता जी घर परिवार में, और किशोर जी व्यवसाय और व्यापार में ऐसे व्यस्त हुए कि ‘वैसे’ खेलने का अवसर ही नहीं मिला। सरिता जी दो बार पुनः गर्भवती हुईं, लेकिन किन्ही अबूझ कारणों से वो पुनः माँ नहीं बन सकीं।

“मैं तो इसलिए कह रही थी कि कहीं बारिश में भीग कर तबियत न खराब हो जाए दोनों की!”

“अरे तो हो जाए ख़राब! डॉक्टर बुलवा लेंगे हम! ... चिंता मत कीजिए…”

कहते हुए किशोर जी ने सरिता जी को अपनी बाहों में समेट लिया और उनको चूमते हुए उनकी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगे। सरिता जी बमुश्किल छत्तीस वर्ष की हुई थीं। वो अभी भी आकर्षक थीं और उनका चुलबुलापन कम नहीं हुआ था। लिहाज़ा, जब भी दोनों को अवसर मिलता, सम्भोग अवश्य करते।


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Nice update....
 
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माया और कमल की शादी के डेट्स लगभग फिक्स हो गए हैं । यह बहुत बढ़िया डिसिजन है । जब लड़का लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार हों तो शुभ कार्य मे देर नही करनी चाहिए ।
शादी से पूर्व माया और कमल ने एकांत मे कुछ रोमांटिक पल भी साथ गुजारे । यह भी एक अच्छा कदम था । इस से उन्हे एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का मौका मिल गया ।
कमल के मां-बाप भी कोई कम रोमांटिक नही है । वैसे भी उनकी उम्र अब भी रोमांटिक होने की ही है । यह देखना वास्तव मे रोमांचित होगा जब दोनो बाप बेटे लगभग एक समय मे ही बाप बनेंगे ।
यह दर्शाता है कि प्यार इश्क मोहब्बत किसी उम्र का मोहताज नही होती ।

इधर कणिका मैडम का पता आखिरकार कट ही गया । वह प्रशांत के जीवन मे ग्रहण बनने से रह गई और निस्संदेह इसका कारण अजय ही था । कोई जानबूझकर अपने लिए गढ्ढा नही खोदता और कणिका मैडम की असलियत अजय से बेहतर कौन जान सकता था !
कणिका के माता पिता अपनी बेटी को डोली पर बिठाने चाहते थे लेकिन कहार ही भाग खड़े हुए । :horseride:
वैसे हम इन्तजार कर रहे हैं रागिनी मैडम की । आखिर हम भी तो देखें , शादी से पूर्व उसके लक्षण कैसे थे ! :?:

खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
 

Rihanna

Don't get too close dear, you may burn yourself up
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अपडेट 3


“अरे... अज्जू बेटे, इतनी जल्दी वापस आ गए?” अजय की ताई माँ - किरण जी - ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

समय के हिसाब से उसको देर रात तक वापस आना चाहिए था।

“... मीटिंग जल्दी ख़तम हो गई क्या बेटे?”

किरण जी - अजय के पिता अशोक जी के बड़े भाई अनामि जी की पत्नी थीं। पूरे परिवार में अब केवल वो ही शेष रही थीं, और वो अजय के साथ थीं, पास थीं... लिहाज़ा, वो हर प्रकार से अजय की माता जी थीं। इसलिए वो भी उनको ‘माँ’ ही कहता था।

“नहीं माँ,” अजय ने जूते उतारते हुए कहा, “हुआ यह कि रास्ते में एक एक्सीडेंट हो गया... उसके कारण मैं मुंबई पहुँच ही नहीं पाया!”

“क्या?” माँ तुरंत ही चिंतातुर होते हुए बोलीं, “तुझे चोट वोट तो नहीं लगी? ... दिखा... क्या हुआ?”

माँ लोगों की छठी इन्द्रिय ऐसी ही होती है - बच्चों के मुँह से रत्ती भर भी समस्या सुन लें, तो उनको लगता है कि अनर्थ ही हो गया होगा।

“नहीं माँ,” कह कर अजय ने माँ को पूरी कहानी सुनाई।

“सॉरी बेटे... कि वो बच नहीं सके!” माँ ने सहानुभूतिपूर्वक कहा, “लेकिन, तूने पूरी कोशिश करी... वो ज़्यादा मैटर करता है। ... वैसे भी वो बूढ़े पुरुष थे...”

“हाँ माँ,” अजय बोला, “... लेकिन सच में माँ, मुझको एक समय में वाक़ई लग रहा था कि वो बच जाएँगे...”

“समय होता है बेटा जाने का... सभी का समय होता है।” माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, फिर बात बदलते हुए बोलीं, “वैसे चलो, बहुत अच्छा हुआ कि तू जल्दी आ गया... मैं भी सोच रही थी कि तेरे वापस आने तक कैसे समय बीतेगा! ... अब तू आ गया है, तो तेरी पसंद की कच्छी दाबेली बनाती हूँ और अदरक वाली चाय!”

अजय ख़ुशी से मुस्कुराया, “हाँ माँ! मज़ा आ जाएगा!”

कुछ समय बाद माँ बेटा दोनों कच्छी दाबेली और अदरक वाली चाय का आनंद ले रहे थे। अब तो यही आलम थे - ऐसी छोटी छोटी बातों से ही खुशियाँ मिल रही थीं। जेल के अंदर तो... ख़ैर!

चाय नाश्ता ख़तम हुआ ही था कि अजय को पुलिस का फ़ोन आया।

कुछ सामान्य प्रश्नोत्तर के बाद पुलिस इंस्पेक्टर ने अजय को उसकी सूझ-बूझ और उस बूढ़े आदमी की सहायता करने के लिए धन्यवाद दिया और यह भी बताया कि उसको इस बार डिपार्टमेंट की तरफ़ से “सर्टिफिकेट ऑफ़ अप्प्रेसिएशन” भी दिया जाएगा। एक समय था जब पुलिस ने एक झूठे आपराधिक केस में उलझा कर उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दी थीं। और एक आज का समय है कि वो उसकी अनुशंसा करना चाहते हैं! समय समय का फेर! उसने सोचा और इस हास्यास्पद स्थिति पर हँसे बिना न रह सका। माँ को भी बताया, तो वो भी उसकी हँसी में शामिल हो गईं - कैसा कठिन समय था वो! इतना कि वो भी उसको याद नहीं करना चाहती थीं।

बाकी का समय सामान्य ही रहा।

लेकिन अजय को रह रह कर आज की बातें याद आ रही थीं - ख़ास कर उस बूढ़े प्रजापति की! कैसा दुर्भाग्य था उनका कि बच्चों के होते हुए भी उनको यूँ अकेले रहना पड़ा, और यूँ अकेले ही - एक अजनबी के सामने - अपने प्राण त्यागने पड़े! क्या ही अच्छा होता अगर बच्चे नहीं, कम से कम उनका कोई हितैषी ही उनके साथ होता। फिर उसने सोचा कि वो उनका हितैषी ही तो था। उस कठिन समय में वो उनके साथ था... उनकी प्राण-रक्षा करने का प्रयास कर रहा था। ऐसे लोग ही तो हितैषी होते हैं!

उसको अपने बड़े (चचेरे) भाई प्रशांत भैया की याद हो आई। वो भी तो माँ से अलग हो गए! इतने साल हो गए - क्या जी रही हैं या मर रही हैं, कुछ जानकारी ही नहीं है उनको। ऐसा तब होता है जब कोई गोल्ड-डिगर लड़की आती है, और आपको आपके परिवार से अलग कर देती है। वही उनके साथ भी हुआ था। बिल्कुल रागिनी के ही जैसी हैं कणिका भाभी! सुन्दर - लेकिन ज़हर बुझी! उनको भैया के घर में सभी से समस्या थी। न जाने क्यों! माँ को उनका विवाह सम्बन्ध पसंद नहीं आया था, क्योंकि उनको कणिका भाभी के परिवार का चरित्र पता था। पुराने सम्बन्धी थे वो - उनके मौसेरे भाई की बेटी थी कणिका भाभी। प्रशांत भैया के अमेरिका जाने के एक साल बाद येन-केन-प्रकारेण वो उसी युनिवर्सिटी में पढ़ने गईं, जहाँ भैया थे।

शायद इसी मिशन के साथ कि वो उनको फँसा लें। भैया भी एक नम्बरी मेहरे आदमी थे। फँस गए!

विचारों की श्रंखला में फिर उसको अपने दिवंगत पिता की याद हो आई।

क्या राजा आदमी थे, और किस हालत में गए! उसकी आँखें भर आईं।

“माँ...” रात में सोने के समय उसने माँ से कहा, “आपके पास लेट जाऊँ?”

“क्या हो गया बेटे?” माँ ने लाड़ से उसके बालों को बिगाड़ते हुए कहा, “सब ठीक है?”

“नहीं माँ...” उसने झिझकते हुए कहा, “आज जो सब हुआ... वो सब... और अब पापा की याद आ रही है... और फिर भैया ने जो सब किया... मन ठीक नहीं है माँ,”

“बस बेटे... ऐसा सब नहीं सोचते!” माँ ने उसको समझाते हुए कहा, “ये सब किस्मत की बातें हैं! भगवान पर भरोसा रखो... सब ठीक हो जाएगा!”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने मुस्कुराते हुए आगे कहा, “और तुम्हारे पहले क्वेश्चन का आंसर है, हाँ... आ जा! तुमको मुझसे पूछने की ज़रुरत नहीं!”

माँ को पता था कि अजय आज बहुत ही डिस्टर्ब्ड था - ऐसा पहले कुछ बार हो चुका था।

अजय एक अच्छा लड़का था... अपने ख़ुद के बेटे द्वारा उपेक्षित किए जाने के बाद अजय ने उनको सम्हाला था, और बिल्कुल अच्छे बेटे की ही तरह बर्ताव किया था। उसके पास बेहद सीमित साधन शेष थे, लेकिन उसने माँ की हर आवश्यकता का पूरा ध्यान रखा था। अजय वो बेटा था, जो अपना न हो कर भी अपने से कहीं अधिक अपना था! ऐसे बेटे की माँ बनना किसी भी स्त्री का सौभाग्य हो सकता है।

धीरे से आ जा री अँखियन में निंदिया आ जा री आ जा...
चुपके से नयनन की बगियन में निंदिया आ जा री आ जा”

माँ की इस लोरी पर अजय पहले तो मुस्कुराने, फिर हँसने लगा, “... क्या माँ... मैं कोई छोटा बच्चा हूँ कि मुझे लोरी सुना रही हो?”

“नहीं हो?”

“उह हह,” अजय ने ‘न’ में सर हिलाते हुए, मुस्कुराते हुए कहा।

जब माँ से उसने उनके पास लेटने को कहा, तभी वो समझ गईं कि आज बहुत भारी भावनात्मक समस्या में है अजय! समस्या ऐसी, जो उसके मन को खाये ले रही है। वो समझ रही थीं कि क्या चल रहा है उसके मन में... ऐसे में माँ वही करने लगती हैं, जिसको करने से अजय को बहुत सुकून और शांति मिलती है।

“नहीं हो?” माँ ने ब्लाउज़ के बटन खोल कर अपना एक स्तन उसके होंठों से छुवाते हुए कहा, “... आज भी मेरा दुद्धू पीते हो, लेकिन छोटे बच्चे नहीं हो!”

अजय ने मुस्कुरा कर माँ के चूचक को चूम लिया और अपने मुँह में ले कर पीने लगा। पीने क्या लगा - अब कोई दूध थोड़े ही बनता था, जो वो पीने लगता। लेकिन यह एक अवसर होता था माँ के निकट होने का, उनकी ममता के निकट होने का। उसके कारण उसको बहुत शांति मिलती थी।

किरण जी जानती थीं कि अजय का मन जब क्लांत होता है, तब स्तनपान से उसको बहुत शांति मिलती है। जब वो बहुत छोटा था, तब वो और अजय की माँ, प्रियंका जी, दोनों मिल कर अपने बेटों अजय और प्रशांत को बारी बारी से स्तनपान करातीं। इस परिवार में दोनों बच्चों में कोई अंतर नहीं था... और न ही कभी कोई अंतर किया गया। प्रशांत के स्तनपान छोड़ने के बाद से आयुष को दोनों माँओं से स्तनपान करने का एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गया था। ख़ैर, दस साल की उम्र तक स्तनपान करने के बाद वो बंद हो ही गया।

लेकिन उसकी माँ की असमय मृत्यु के बाद से किरण जी ने पुनः उसको स्तनपान कराना शुरू कर दिया था। उस समय पुनः माँ बनने के कारण उनको दूध आता था। यह कुछ वर्षों तक चला। उसके बाद जब अजय वयस्क हुआ, तो फिर यह काम बंद हो गया। लेकिन जेल से छूटने के बाद अजय मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जूझ रहा था। लिहाज़ा, अब जब भी स्तनपान होता, तो वो अधिकतर मनोवैज्ञानिक कारणों के कारण ही होता। पिछले कुछ वर्षों में उन दोनों के ही जीवन में तबाही आ गई थी - अजय के पिता की मृत्यु हो गई, फिर उनका कारोबार पूरी तरह से चौपट हो गया, अजय की पढ़ाई लिखाई भी कहीं की न रही, प्रशांत भैया ने भी उन दोनों से सारे रिश्ते नाते तोड़ लिए, फिर अजय की शादी ख़राब हो गई, माँ - बेटे दोनों दहेज़ के झूठे केस में जेल में रहे... अंतहीन यातनाएँ!

पिछले एक साल से, जेल से छूट कर आने के बाद अब शांति आई है। भारी क़ीमत चुकाई उन दोनों ने, लेकिन शांति आई तो! किरण जी ने यह अवश्य देखा कि कैसी भी गन्दी परिस्थिति क्यों न हो, उनके स्तनों का एहसास पा कर अजय मानसिक और भावनात्मक रूप से शांत हो जाता था - अगली कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए! इसलिए वो कभी भी अजय की स्तनपान करने की प्रार्थना को मना नहीं करती थीं।

“माँ?” कुछ देर बाद अजय ने कहा,

“हाँ बेटे?”

“कभी कभी सोचता हूँ कि काश आपको दूध आता...” वो दबी हुई हँसी हँसते हुए बोला।

“हा हा... बहुत अच्छा होता तब तो! तुझे रोज़ पिलाती अपना दूध!”

“सच में माँ?”

“और क्या!” फिर जैसे कुछ याद करती हुई बोलीं, “बेटे, तुझे दिल्ली वाले अमर भैया याद हैं?”

“हाँ माँ, क्यों? क्या हुआ? ऐसे आपको उनकी याद कैसे आ गई?”

“तू अमर से बात कर न... नौकरी के लिए? ... उसका बिजनेस तो बढ़िया चल रहा है न?”

“हाँ माँ!” अजय को जैसे यह बात इतने सालों में सूझी ही न हो, “आख़िरी बार बात हुई थी तो सब बढ़िया ही था! हाल ही में तो उनकी और उनकी कंपनी की ख़बर भी छपी थी अखबार में... उनसे बात करता हूँ! ... थैंक यू, माँ! मुझे सच में कभी उनकी याद ही नहीं आई इस बारे में!”

माँ बस ममता से मुस्कुराईं।

... लेकिन आपको उनकी याद कैसे आई?”

“अरे, कोई सप्ताह भर पहले काजल से बात हुई थी...”

“अच्छा? आपके पास उनका नंबर है?”

“हाँ... तुझे मैंने कभी बताया नहीं, लेकिन एक बार आई थी वो मिलने जेल में!”

“हे भगवान!” अजय ने सर पीट लिया।
शायद ही कोई ऐसा जानने वाला बचा हो, जिसको इनके संताप के बारे में न पता चला हो! अजय को इस तरह से 'प्रसिद्ध' होना अच्छा नहीं लगता। लेकिन अच्छे लोगों की... हितैषियों की पहचान कठिनाई के समय में ही होती है।

“नहीं बेटे! बहुत अच्छे लोग हैं वो। ... बहुत कम लोग ही हैं जिनको दोस्ती यारी याद रही! देखो न, कौन याद करता है हमको?”

“हम्म्म... अच्छा, वो सब छोड़ो माँ! क्या बोल रही थीं काजल आंटी?”

“मुंबई में ही रहती है अब। ... वो भी और सुमन भी! तुझे मालूम है?”

“नहीं!”

“हाँ, मुंबई में रहती है वो। सुमन भी! ... काजल ने बताया कि बहू को बेटी हुई है!”

“वाओ! सुमन आंटी को? वाओ! अमेज़िंग! कब? ... ये... तीसरा बच्चा है न उनका?”

“अमर को क्यों भूल जाते हो? चौथा बच्चा है...” उन्होंने कहा, “कोई नौ दस महीने की हो गई है अब उसकी बेटी भी!”

“सुमन ऑन्टी बहुत लकी हैं!”

“सुमन और काजल दोनों ही बहुत लकी हैं... दोनों की फ़िर से शादी भी हुई और बच्चे भी!” माँ जैसे चिंतन करती हुई बोलीं, “बहुत प्यारी फैमिली है... इतने दुःख आए उन पर, लेकिन हर दुःख के बाद वो सभी और भी मज़बूत हो गए...”

“जैसा आपने कहा माँ, सब किस्मत की बातें हैं!”

“हाँ बेटे...”

“हमको काजल या सुमन आंटी जैसी बहुएँ क्यों नहीं मिलीं, माँ?”

“किस्मत की बातें हैं बेटे... सब किस्मत की बातें हैं!” इस बार बहुत कोशिश करने पर भी किरण जी की आँखों से आँसू टपक ही पड़े!

अजय नहीं चाहता था कि माँ बहुत दार्शनिक हो जाएँ, इसलिए उसने चुहल करते हुए कहा,

“माँ... अमर भैया भी तो आंटी जी का दूधू पीते थे न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अभी भी! ... अब तो और समय तक पिएगा!”



[प्रिय पाठकों : अमर, काजल, और सुमन के बारे में जानने के लिए मेरी कहानी “मोहब्बत का सफ़र” अवश्य पढ़ें!]


“माँ, आप भी शादी कर लीजिए... फिर मैं भी आपका दूध पियूँगा!”

“हा हा! शादी कर तो लूँ, लेकिन अब कहाँ होंगे मुझे बच्चे!”

“क्यों?”

“अरे! सत्तावन की हो रही हूँ! अगर चाहूँ भी, तो भी ये सब नहीं होने वाला!”

“हम्म्म, मतलब चाह तो है आपको,” अजय ने फिर से चुहल करी।

माँ ने प्यार से उसके कान को उमेठा, “क्या रे, अपनी माँ से चुहल करता है?”

“सॉरी माँ, आऊऊ...” अजय ने अपने कान को सहलाते हुए कहा, “लेकिन माँ, अगर आपको अपनी कोई अधूरी इच्छा पूरी करनी हो, तो वो क्या होगी?”

“तुझे अपनी कोख से जनम देना चाहूँगी मेरे लाल... तेरी असली वाली माँ बनना चाहूँगी... ताई माँ नहीं!” माँ ने बड़ी ममता से कहा, “मेरी एक और भी इच्छा है - और वो ये है कि तेरी किसी बहुत ही अच्छी लड़की से शादी हो!”

“हा हा! पेट भरा नहीं आपका माँ दो दो बहुओं से? ... मेरा तो एक ही बीवी से भर गया माँ... अच्छे से!”

“बेटे, मैं अच्छी सी लड़की की बात कर रही हूँ... ऐसी जो तुझे चाहे... जो तेरी ताक़त बन कर रहे!”

“हा हा! क्या माँ - सपने देखने की आदत नहीं गई तुम्हारी!” अजय ने फ़ीकी सी हँसी हँसते हुए कहा।

“लव यू टू बेटे,” माँ ने उसके मज़ाक को नज़रअंदाज़ कर के, उसके माथे को चूमते हुए कहा, “सो जाओ अब?”

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What an update... :applause:
Kitne unexpected turn of events the...
To ajay ghar laut aaya nd we got to see tai maa... Kiran ji... Dekh k achha lga ki kiran ji koi egoistic bad lady nhi h ... Wo ek sacchi maa ki tarah ajay k paas h...
But ye kya... Ab ek aur kahani pdhni padegi kajal Suman k baare me jaanne k liye??? 😓😓
Mujhe lga ye alag se new story thi... Kya use bina padhe aage continue kar sakti hu? Wo wali fir kabhi padh lungi jab time milega to... Plz answer this for me. I'll wait... Before continuing...
Aapki teacher's love me bhi ye tha... Aur isme bhi aapne wo touch de dia... Tai maa ka suddenly apna blouse side kar k ajay ko breastfeed karwana... 🥵 :hot: My god...
I don't know why but it turns me on somehow... 🥵
🫣🫣
प्रशांत के स्तनपान छोड़ने के बाद से आयुष को दोनों माँओं से स्तनपान करने का एक्सक्लूसिव अधिकार मिल गया था।
Aapne shayad galti se aayush likh dia ajay ki jagah... 🤔🤔 Ya shayad main kuch bhul to nhi rhi?? 🤔
Dekh k accha lga ki aap english words ko bhi sath me use karte jaa rhe ho... iss se kahani aur bhi relatable lgti h kyuki hum day to day life me na jaane kitne English words ka use karte h... Wo bhi bina dhyan diye...
Har serial me jaise ek vamp hoti h wese hi yha bhi h... aur uska naam h... Kanika...
Suman ki family interesting lg rhi h... Hope wakai me wo acchi nikle... Update bohut sundar tha... Nd humesha ki tarah to the point...

शायद इसी मिशन के साथ कि वो उनको फँसा लें। भैया भी एक नम्बरी मेहरे आदमी थे। फँस गए!
Nd this line.... 🤣🤣🤣🤣
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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Bhai bas ye jan na hai, kya nayi zindgi me kuch samsayo ka samna karega ya fir sab kuch bahdiya badhiya hoga.

Khair jaise bhi dukh ho purane wale dukh se to acche aur kam hi honge

Babut khoobsurat update bhai

सूरज भाई, यही तो कहानी के मूल में है।
यही बात खुल गई, तो फिर कहानी कहने सुनने का क्या मतलब? ज़िन्दगी है तो सुख दुःख दोनों ही रहेंगे।
वैसे हर अपडेट में आपको कुछ न कुछ देखने को मिलेगा।
नए अपडेट आने ही वाले हैं :)
 
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