Story- " Ek hi Khwahish "
Writer- Valentine rider.
कहानी बहुत खुबसूरत थी और प्रेरणादायक भी थी। हमारे जिंदगी मे लाख मुसीबत रहे हैं लेकिन इरादें और हौसले मजबूत रहे तो हमे जिंदगी को खुबसूरत बनाने से कोई रोक नही सकता।
कजरी और सुधा की कहानी सिर्फ परिकल्पना नही है। हजारों गणिकाओं की कहानी है।
एक रीयल कहानी इस स्टोरी से मिलता जुलता पेश कर रहा हूं -
करीब सौ साल पहले की बात है। पंजाब के एक छोटे गांव मे एक लड़की ने जन्म लिया। दस वर्ष की उम्र मे ही उसके माता पिता की मृत्यु हो गई। उस लड़की के चाचा चाची ने सम्पति के लालच मे उसे दिल्ली के एक कोठे पर बेच दिया। उसे हर रोज मर्दों के समक्ष परोसा जाने लगा। उसकी जीवन सिसकियों की भेंट चढ़ गई। कुछेक साल बाद लड़की ने हिम्मत किया और उस कोठे से फरार हो गई। संयोग से उसकी मुलाकात वहीं लखनऊ के एक नबाब से होती है। नबाब उसे अपने साथ लखनऊ लाता है और अपना रखैल बना लेता है। नबाब पहले से ही विवाहित और बाल बच्चेदार था। चार साल बाद नबाब की मौत हो जाती है और उसके बाद नबाब की फैमिली उसे धक्के मारकर घर से बाहर निकाल देती है।
इसके बाद वो एक रईसजादे की हैवानियत की शिकार होती है। जी भर के शोषण करने के बाद उसे लखनऊ के एक कोठे पर छोड़ देता है। उस कोठे पर धंधा करते हुए अभी कुछ दिन ही हुए थे कि वहां के दरबान जो एक सरदार ही थे , के साथ उसकी शादी हो जाती है लेकिन कोठे के मालकिन के इस शर्त के साथ कि वो धंधा करना बंद नही करेगी।
उस सरदार से उसे एक पुत्री होती है। उसकी लड़की का बचपन उसी कोठे पर कटता है। लेकिन जब वो चौदह साल की हुई तो उसे भी जिस्मफरोसी के धंधे मे उतार दिया जाता है।
लेकिन यह लड़की काफी महत्त्वाकांक्षी थी। वो एक दिन वहां से भाग कर सीधे दिल्ली चली जाती है और एक मिल्स मे काम करने लगती है। कुछ दिन बाद उस मिल्स के सुपरवाइजर से पहले प्यार और फिर शादी हो जाती है और एक साल बाद एक लड़की की मां बनती है।
कुछेक साल बाद वो अपने हसबैंड और बच्ची के साथ बॉम्बे चली जाती है। उन दिनों फिल्म मे लड़की के लिए काम मिलना ज्यादा मुश्किल नही होता था। वो काम के लिए फिल्म स्टुडियो एवं निर्देशक के घर जाकर चक्कर काटना शुरू करती है लेकिन उसे कोई भी काम नही मिलता।
वो अपनी आठ साल की लड़की को इस फिल्ड मे उतारने का निश्चय करती है। और संयोग से उसकी बच्ची को काम मिल जाता है। उस बच्ची की पहली फिल्म राजश्री प्रोडक्शन की ' सूरज ' थी। इसके बाद वो कई फिल्म मे काम करती है लेकिन इस दौरान इस बच्ची के पिता इन्हे छोड़कर कहीं गायब हो जाते है और आज तक उनके बारे मे कोई खबर नही है कि वो जिंदा भी है या मर गए।
तीन चार साल तक काम करने के बाद अचानक मां अपनी बच्ची को लेकर पंजाब चली जाती है। वो नही चाहती थी कि उसकी लड़की का फिल्मी कैरियर बाल कलाकार करते हुए डेजी ईरानी की तरह खत्म हो जाए।
पांच साल बाद वो अपनी लड़की को लेकर वापस बॉम्बे आती है। उसकी एक हाॅट फोटो शूट करवा कर फिल्म मैग्जीन मे छपवाती है। इस बार फिर से किस्मत मेहरबान होता है और उसे रणधीर कपूर के साथ एक फिल्म मे हिरोइन का रोल मिल जाता है।
इसके बाद से ही इस लड़की का गोल्डन पीरियड प्रारम्भ हो जाता है।
यादों की बारात , हवस , खेल खेल मे , रफूचक्कर , दीवार , शराफत छोड़ दी मैने , कभी कभी , अदालत , धर्मवीर , कस्मेवादे , अमर अकबर एन्थोनी , परवरिश , द ग्रेट गेमब्लर , जानी दुश्मन , काला पत्थर वगैरह फिल्मों से सफलता के झंडे गाड़ दिए।
( आप शायद समझ गए होंगे कि मै किस अभिनेत्री की बात कह रहा हूं)
सफलता के मुकाम पर रहने के बावजूद भी सिर्फ बाइस साल की उम्र मे इन्होने एक प्रतिष्ठित फिल्मी घराने के एक बेहद ही लोकप्रिय फिल्म अभिनेता के साथ शादी कर लिया। इनका पुत्र भी एक फेमस अभिनेता है और इनकी बहू भी एक लोकप्रिय हिरोइन है।
फिलहाल वो अपनी जिंदगी फिल्मी अंदाज मे काफी जिंदादिली के साथ जी रही है।
कहने का तात्पर्य है कि परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत और कठिन क्यों न हो , अपने हौसले का दामन कभी नही छोड़ना चाहिए। जीवन है तो संघर्ष भी होगा ही।
कजरी की हिम्मत और हौसले की दाद दी जानी चाहिए जिसने विपरीत परिस्थतियों मे भी हार नही मानी और अपनी बेटी को एक नेक इंसान बनाया। खुशी की सफलता कजरी के संघर्ष और त्याग के नींव पर ही खड़ी हुई ।
सुधा का किरदार भी बहुत बढ़िया लगा। खुद दुखियारी होकर भी कजरी और खुशी के दुख दूर करने मे प्रयत्नशील रही।
बहुत खुबसूरत कहानी थी और मुझे बहुत ही पसंद आया।