कहानी : दंश
कहानीकार : Kala Nag भाई साहब
क्या कमाल की कहानी प्रस्तुत करी है मेरे भाई! अद्भुत! छोटी कहानी लेकिन असर बहुत ही बड़ा! वाह!
कुछ बात तो है भाई - मेरे मित्रों ने जो कहानियाँ लिखीं हैं, वो मेरे हिसाब से सबसे बढ़िया हैं। हाँलाकि मैं इस बात का श्रेय नहीं ले सकता, लेकिन इस बात पर गर्व अवश्य कर सकता हूँ कि ऐसे ऐसे बढ़िया लेखक मेरे मित्रों में से हैं!
बहुत प्रसिद्ध गीत है : ‘आदमी जो देता है, आदमी जो लेता है… ज़िन्दगी भर वो दुवायें पीछा करती हैं…’, और उसी तर्ज़ पर, ‘आदमी जो करता है, आदमी जो सहता है… ज़िन्दगी भर वो गुनाहें पीछा करती हैं…’
विश्वंभर पटनायक का अतीत पाप भरा था - और जैसा कि हम जानते हैं, वकील का पेशा भी पाप-रहित नहीं हो सकता है। ख़ास कर विश्वंभर का, जिसने केवल अपराधियों को बचाने में ही जीवन व्यतीत कर दिया। और देखो - उसको सजा कैसे मिली? उसकी ही बेटी का बलात्कार हो गया, और वो भी उसके ही पाप की पैदाईश द्वारा! हाँलाकि इस बात की सही नहीं ठहराया जा सकता - दिव्या का बेटा उतना ही बड़ा पापी है जितना विश्वंभर! लोग इसको नैसर्गिक न्याय कह सकते हैं, लेकिन...
अद्भुत सी बात लिख दी आपने, और एक सन्देश भी दे दिया। उधर, हम पाठक भी सोच में पड़ गए कि कौन पापी है! क्योंकि दोनों ही स्थितियों में निर्दोषों ने ही पाप को झेला है।
अद्भुत रचना!
