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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.3%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.0%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.2%

  • Total voters
    191

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Bohot badhiya update Bhai.
Aap ek umda writer ho isme koi sak Nahi.
Mujhe lagta hai roop chand jyada khus nahi hoga thakuro or sahukaro k mel se.
 

agmr66608

Member
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शायद हिन्दी फॉन्ट मे लिखी हुई एक बेहतरीन उपन्यास मे से एक है। इसे दुबारा शुरू करने के लिए आपके आभार और बहुत धन्यबाद। उम्मीद है की आप इसे जरूर पूरा करेंगे।
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
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TheBlackBlood - मित्र - अखिर इन्तजार खत्म हुआ, बेह्तरीन कहानी है, कई प्रश्नों के उत्तर बाकी है, मन मे कसमकस चल रही थी अब प्रश्नो के जबाब मिल जाएगे, ठाकुरों के साथ दुश्मनी कौन महारथी है, कितनी बार तो घर वालो पर ही शक़ होता है, आप लिखते जाय हम सब आप को ढेरो ढेर स्नेह व प्रतिक्रिया व्यक्त करते रहेगे ♥️😍
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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अध्याय - 36
----------☆☆☆----------


अब तक....

मणि शंकर की इस बात के बाद ख़ामोशी छा गई। उसके बाद ख़ामोशी से ही भोजन शुरू हुआ। बीच बीच में भोजन परोसने वाली औरतें आती और हम सबकी थाली में कुछ न कुछ रख जातीं। मैं ज़्यादा खाने का आदी नहीं था इस लिए मैंने कुछ भी लेने से मना कर दिया था लेकिन मणि शंकर और उसके भाई न माने। मैंने महसूस किया था कि उनके बेटों में से ज़्यादातर लड़के अब मेरे प्रति सहज हो गए थे और जब भी मेरी उनसे नज़रें चार हो जाती थीं तो वो बस हल्के से मुस्कुरा देते थे। उनके चेहरे के भावों से मैं समझ जाता था कि उनके अंदर कैसी भावना होगी। ख़ैर किसी तरह भोजन का कार्यक्रम संपन्न हुआ और हम सब वहां से उठ कर बाहर बनी एक बड़ी सी बैठक में आ गए।

अब आगे....


"प्रणाम दादा ठाकुर।" इंस्पेक्टर धनञ्जय ने दादा ठाकुर के पैर छुए और फिर खड़ा हो गया।
"ख़ुश रहो।" दादा ठाकुर ने अपनी प्रभावशाली आवाज़ में कहा और फिर एक नज़र आस पास घुमाने के बाद दरवाज़े के अंदर दाखिल हो ग‌ए। उनके पीछे दरोगा भी आ गया। अंदर आने के बाद धनञ्जय ने दरवाज़ा बंद कर दिया।

"आपने यहाँ आने का कष्ट क्यों किया?" दरोगा ने नम्र भाव से कहा____"मुझे सन्देश भेजवा दिया होता तो मैं खुद ही हवेली आ जाता।"

"कोई बात नहीं।" दादा ठाकुर ने सपाट लहजे में कहा और कमरे में रखी चारपाई पर जा कर बैठ गए जबकि धनञ्जय ज़मीन पर ही हाथ बांधे खड़ा रहा।

"उस आदमी के बारे में क्या पता चला तुम्हें?" दादा ठाकुर ने ख़ामोशी को चीरते हुए कहा____"और ये भी कि मुरारी की हत्या के सम्बन्ध में तुमने अब तक क्या पता किया?"

"उस रात जिस काले नक़ाबपोश की हत्या हुई थी उसके बारे में मैंने आस पास के कई गांवों में पता किया था दादा ठाकुर।" दरोगा ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हैरत की बात ये पता चली कि वो आदमी इस गांव का ही क्या बल्कि आस पास के किसी भी गांव का नहीं था। मैंने अपने मुखबिरों को उसके बारे में पता करने के लिए लगाया था और आज ही मेरे एक मुखबिर ने बताया कि वो आदमी असल में कौन था।"

"साफ साफ़ बताओ।" दादा ठाकुर ने धनञ्जय की तरफ उत्सुकता से देखा।
"मेरे मुखबिर ने बताया कि वो आदमी पास के ही शहर का था।" दरोगा ने कहा____"उसका नाम बनवारी था। बनवारी का एक साथी भी है जिसका नाम नागेश नामदेव है। दोनों ही शहर के छंटे हुए बदमाश हैं। चोरी डकैती लूट मार और क़त्ल जैसी वारदातों को अंजाम देना उनके लिए डाल चावल खा लेने जैसा आसान काम है। पुलिस फाइल में दोनों के ही जुर्म की दास्तान दर्ज है। मुखबिर के बताने पर जब मैंने उन दोनों का शहर में पता लगवाया तो पता चला कि वो दोनों काफी टाईम से शहर में देखे नहीं गए हैं और ना ही उनके द्वारा किसी वारदात को अंजाम दिया गया है। इसका मतलब यही हुआ कि आपका जो कोई भी दुश्मन है उसने उन दोनों को ही अपने काम के लिए चुना है और कुछ इस तरीके से उनको काम करने के लिए कहा है कि वो दोनों ग़लती से भी किसी की नज़र में न आएं। अब क्योंकि शहर में वो दोनों काफी टाइम से देखे नहीं गए थे तो ज़ाहिर है वो दोनों शहर में थे ही नहीं बल्कि वो यहीं थे, इसी गांव में लेकिन सबकी नज़रों से छुप कर। ख़ैर उन दोनों में से एक को तो उस सफेदपोश ने उस रात जान से मार दिया लेकिन दूसरे की अभी लाश नहीं मिली है तो ज़ाहिर है कि वो अभी ज़िंदा है।"

"हमें भी यही आशंका थी कि ऐसा कोई आदमी हमारे गांव का या आस पास के किसी गांव का नहीं हो सकता।" दादा ठाकुर ने गहरी स्वास छोड़ते हुए कहा____"हमारा जो भी दुश्मन है वो ऐसे किसी आदमी को इस तरह के काम के लिए चुनेगा भी नहीं जो इस गांव का हो अथवा किसी दूसरे गांव का। क्योंकि उसे अपनी गोपनीयता का ख़ास तौर पर ख़याल रखना है। खैर जैसा कि तुमने कहा कि उनमें से एक मारा गया है और एक की लाश नहीं मिली है तो ज़ाहिर है उस दूसरे वाले से हमें या हमारे बेटे को अभी भी ख़तरा है।"

"सही कह रहे हैं आप।" दरोगा ने सिर हिलाते हुए कहा____"उस दूसरे वाले नक़ाबपोश से अभी भी ख़तरा है और संभव है कि कई बार की नाकामी के बाद इस बार वो पूरी योजना के साथ आप पर या छोटे ठाकुर पर हमला करे इस लिए आपको और छोटे ठाकुर को थोड़ा सम्हल कर रहना होगा।"

"ह्म्म्म।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"और मुरारी की हत्या के विषय में क्या पता किया तुमने? हमारे लिए अब ये सहन करना मुश्किल होता जा रहा है कि मुरारी का हत्यारा अभी भी खुली हवा में सांस ले रहा है। हमें यकीन है कि मुरारी की हत्या किसी और वजह से नहीं बल्कि हमारी ही वजह से हुई है। हम ये बोझ अपने सीने में ले कर नहीं बैठे रह सकते। जिस किसी ने भी उस निर्दोष की हत्या की है उसे जल्द से जल्द हम सज़ा देना चाहते हैं।"

"मेरा ख़याल है कि मुरारी की हत्या उसी सफेदपोश ने अपने उन दो चुने हुए आदमियों के द्वारा करवाई है।" दरोगा ने सोचने वाले भाव से कहा_____"ये तो उस दिन हमारा दुर्भाग्य था कि वो सफेदपोश हाथ से निकल गया और उसने उस काले नक़ाबपोश यानी बनवारी को जान से मार दिया था वरना अगर वो दोनों ही पकड़ में आ जाते तो सच का पता चल जाता।"

"जो नहीं हो पाया उसकी बात मत करो धनञ्जय।" दादा ठाकुर ने खीझते हुए से लहजे में कहा_____"बल्कि एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगा कर या तो उस दूसरे नकाबपोश का पता लगाओ या फिर उस सफेदपोश का। हम जानना चाहते हैं कि इस गांव में अथवा आस पास के गांव में ऐसा कौन है जो हमसे ऐसी दुश्मनी निभा रहा है और हमारा हर तरह से नाम ख़राब करना चाहता है? सिर्फ शक के आधार पर हम किसी पर हाथ नहीं डालना चाहते, बल्कि हमें ठोस सबूत चाहिए उस ब्यक्ति के बारे में।"

"मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूं दादा ठाकुर।" दरोगा धनञ्जय ने कहा_____"मगर शायद वो ब्यक्ति ज़रूरत से ज़्यादा ही शातिर है। वो पूरी सावधानी बरत रहा है और नहीं चाहता कि उससे कोई छोटी सी भी ग़लती हो। हालांकि ऐसा हर बार नहीं हो सकता, मुझे पूरा यकीन है कि एक दिन वो अपनी ही होशियारी के चलते पकड़ में आ जाएगा।"

"हम और इंतज़ार नहीं कर सकते धनञ्जय।" दादा ठाकुर ने दरोगा की तरफ देखते हुए कहा____"हमें जल्द से जल्द मुरारी का हत्यारा चाहिए। एक बात और, अगर तुम्हें किसी पर शक है तो तुम बेझिझक उसे उठा सकते हो और उससे सच का पता लगा सकते हो। हमारी तरफ से तुम्हें पूरी छूट है लेकिन इस बात का ख़ास ध्यान रहे कि इसके बारे में बाहर किसी को भनक भी न लग सके।"

"आप बेफिक्र रहें दादा ठाकुर।" धनञ्जय ने कहा____"जल्द ही इस बारे में आपको बेहतर ख़बर दूंगा मैं।"

कुछ देर और दादा ठाकुर दरोगा के पास रुके और फिर वो जिस तरह बिना किसी की नज़र में आए हुए आए थे उसी तरह चले भी गए। दरोगा के चेहरे पर दृढ़ता के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे।
☆☆☆

बाहर बैठक में हम सब बैठे हुए थे और हर विषय पर बातें कर रहे थे। मणि शंकर और उसके भाई मेरे बदले हुए रवैए से बेहद खुश और सहज हो गए थे। यही हाल उनके बेटों का भी था। कुछ ही देर में मैं उन सबके बीच पूरी तरह घुल मिल गया था। मैंने पूरी तरह से अपनी योजना के अनुसार उनको ये एहसास करा दिया था कि अब उनमें से किसी को भी मुझसे किसी भी तरह से न तो डरने की ज़रूरत है और ना ही असहज होने की।

हरि शंकर के बेटे मानिकचंद्र के हाथ में अभी भी प्लास्टर चढा हुआ था। मैंने उससे उसकी उस दशा के लिए कई बार माफ़ी मांगी थी जिससे वो बार बार यही कहता रहा कि नहीं इसमें ज़्यादातर उसी की ग़लती थी। मणि शंकर की पोती और चंद्रभान की बेटी जो कि अभी छोटी सी ही थी वो जब खेलते हुए बाहर आई तो मैंने उसे उठा कर अपनी गोद में बैठा लिया था और उसे खूब लाड प्यार दे रहा था। वो छोटी सी बच्ची मुझे बहुत ही प्यारी लग रही थी। मुझे उसको इस तरह ख़ुशी ख़ुशी लाड प्यार देते देख उसका बाप चंद्रभान और बाकी सब ख़ुशी से मुस्कुरा रहे थे। वो छोटी सी बच्ची कुछ ही पलों में मुझसे घुल मिल ग‌ई थी। उसकी तोतली बातें मुझे बहुत ही अच्छी लग रहीं थी।

"चन्द्र भैया, आपकी ये बेटी आज से मेरी गुड़िया है।" मैंने चन्द्रभान की तरफ देखते हुए कहा____"और मैं इसे अपने साथ हवेली ले जाऊंगा।" कहने के साथ ही मैंने उस बच्ची से बड़े प्यार से कहा____"अपने इस चाचा के साथ हवेली चलोगी न गुड़िया?"

"हां मैं तलूंगी।" उसने अपनी तोतली भाषा में कहा____"आप मुधे लड्दू थाने को दोगे न?"
"बिल्कुल दूंगा मेरी गुड़िया।" मैंने हल्के से हंसते हुए कहा____"मैं अपनी इस प्यारी सी गुड़िया के लिए ढेर सारे लड्डू बनवाऊंगा और सारा का सारा लड्डू तुम्हें दे दूंगा।"

"पल मैं थारे लड्दू तैसे था पाऊंगी?" उसने बड़ी मासूमियत से देखते हुए मुझसे कहा____"मेला पेत तो बहुत थोता है।"
"तो तुम थोड़ा थोड़ा कर के खाना गुड़िया।" मैंने उसे समझाते हुए कहा____"थोड़ा थोड़ा करके तुम सारे लड्डू खा जाओगी।"

"थारा लड्दू था दाऊंगी तो लड्दू तुक नहीं दाएंगे?" उसने मुड़ कर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"फिल मैं ता थाऊगी?"
"अरे! तो मैं अपनी इस प्यारी सी गुड़िया के लिए फिर से बहुत सारा लड्डू बनवा दूंगा।" मैंने उसके फूले हुए गालों को प्यार से सहला कर कहा____"उसके बाद तुम फिर से लड्डू खाने लगना।"

"हां पल मैं अपने लड्दू किथी को नहीं दूंगी।" उसने अपनी प्यारी और तोतली भाषा में कहा____"थाले लड्दू मैं ही थाऊंगी।"
"हां मेरी गुड़िया।" मैंने फिर से उसके गाल सहला कर कहा____"सारे लड्डू तुम्हीं खाओगी और अगर कोई तुमसे तुम्हारे लड्डू ले ले तो तुम सीधा आ कर अपने इस चाचा को बताना। मैं उसकी खूब पिटाई करुंगा। ठीक है ना?"

मेरी बात सुन कर वो छोटी सी बच्ची बड़ा खुश हुई और खिलखिला कर हंसने लगी। कुछ ही देर में आलम ये हो गया कि वो अब मेरी गोद से नीचे उतरने का नाम ही नहीं ले रही थी। बैठक में बैठे सभी लोग हम दोनों की बातों से मुस्कुरा रहे थे। तभी मणि शंकर की बीवी फूलवती आई और उस छोटी सी बच्ची को अपने पास बुलाने लगी लेकिन उसने मेरी गोद से उसके पास जाने से साफ़ इंकार कर दिया।

"मैं नहीं आऊंगी दादी।" उसने अपनी दादी से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"मैं अपने ताता के थात दाऊंगी। मेले ताता मुधे बूथाला लड्दू देंगे।"

बच्ची की बात सुन कर जहां मैं मुस्कुरा उठा वहीं बैठक में बैठे बाकी कुछ लोग ठहाका लगा कर हसने लगे। उस मासूम सी बच्ची ने उन हंसने वालों की तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली____"मैं आपके थात दाऊंगी न ताता?"

"हां मेरी गुड़िया।" मैंने उसके माथे को प्यार से चूमते हुए कहा____"तुम मेरे साथ ही हवेली जाओगी। वहां पर तुम्हारी एक बुआ है जो तुम्हें ढेर साड़ी मिठाई देगी और तुम्हें अपने साथ ही रखेगी।"

"तो मैं लड्दू औल मिथाई दोनों थाऊगी ताता?" उसने इस बार हैरानी से पूछा था।
"और नहीं तो क्या।" मैंने मुस्कुरा कर कहा____"मेरी ये प्यारी गुड़िया सब कुछ खाएगी। तुम जो जो कहोगी वो सब तुम्हें खाने को मिलेंगा।"

मेरी बात सुन कर बच्ची एक बार फिर से ख़ुशी से उछलने लगी। उसके साथ मेरी ये बातें, मेरा प्यार और स्नेह कोई दिखावा नहीं था बल्कि सच में वो मुझे बहुत प्यारी लगने लगी थी और मेरा जी चाह रहा था कि मैं बस उसे यूं ही प्यार और स्नेह देता रहूं। फूलवती को खाली हाथ ही अंदर जाना पड़ा। वो बच्ची मेरी गोद से उपरी ही नहीं।

"बड़ी हैरानी की बात है वैभव कि ये तुमसे इतना जल्दी इतना घुल मिल ग‌ई है।" हरी शंकर ने कहा____"वरना जिसे ये पहचानती नहीं उससे दूर ही रहती है। अपनी माँ से ज़्यादा ये अपनी दादी के पास रहती है लेकिन देखा न कि इसने अपनी दादी के पास जाने से भी साफ इंकार कर दिया।"

"बच्चों को जहां प्यार और स्नेह मिलता है वो वहीं जाते हैं हरि काका।" मैंने कहा____"ख़ैर अब तो ये पक्की बात है कि इसे मैं अपने साथ ही ले जाऊंगा। चंद्र भैया आज से ये आपकी बेटी नहीं बल्कि मेरी प्यारी सी गुड़िया है। आपको कोई दिक्कत तो नहीं है न?"

"मुझे भला क्यों कोई दिक्कत होगी वैभव?" चन्द्रभान ने मुस्कुराते हुए कहा____"हम सब तो इसके कारनामों के आदी हैं लेकिन दिक्कत तुम्हें ही होगी क्योंकि जब इसकी शैतानियां देखोगे तो तब यही सोचोगे कि किस आफ़त को हवेली में ले आए हो।"

"अब जो भी होगा देखा जाएगा चंद्र भइया।" मैंने कहा____"वैसे भी मुझे तो इसकी शैतानियों से भी इस पर प्यार ही आएगा और साथ ही बेहद आनंद भी आएगा।"

ऐसी ही बातों के बाद मैंने उन सबसे जाने की इजाज़त ली जिस पर सब बोलने लगे कि अभी कुछ देर और रुको। मैंने उन सबसे कहा कि अब तो मेरा आना जाना लगा ही रहेगा। मेरी बातें सुन कर मणि शंकर ने कहा कि ठीक है, वो मुझे बग्घी में खुद हवेली तक छोड़ने जाएंगे तो मैंने उन्हें ये कह कर मना कर दिया कि आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े हैं।

उस बच्ची को क्योंकि अब मैं खुद ही ले जाना चाहता था इस लिए मैं उसे ले कर चल पड़ा। अपने से बड़ों का मैंने पैर छू कर आशीर्वाद लिया और फिर बैठक से बाहर निकल आया। मुझे बग्घी में हवेली तक छोड़ने के लिए सूर्यभान और मानिकचंद्र तैयार हुए। सबके चेहरों पर खुशी की चमक दिखाई दे रही थी। बाहर आ कर मैं उस बच्ची के साथ बग्घी में बैठ गया। मेरे बगल से हरि शंकर का बेटा मानिकचंद्र बैठ गया जबकि मणि शंकर का दूसरा बेटा आगे बैठ कर बग्घी चलाने लगा। सारे रास्ते मैं ज़्यादातर उस बच्ची से ही बातें करता रहा था। उसकी तोतली भाषा और मीठी मीठी बातें मुझे बेहद आनंद दे रहीं थी। बीच बीच में मैं मानिकचंद्र और सूर्यभान से भी बातें करता जा रहा था। हमारे बीच अब अच्छा खासा ताल मेल बन गया था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हमारे बीच आज से पहले कितनी दुश्मनी थी।

हवेली में पहुंच कर हम सब बग्घी से उतरे। वहां मौजूद नौकरों ने हम सबका सिर नवा कर अभिवादन किया। अभी मैं हवेली के मुख्य द्वार की तरफ ही मुड़ा था कि अंदर से बड़े भैया अभिनव के साथ विभोर और अजीत बाहर निकले। उन तीनों की नज़र हम पर पड़ी तो पहले तो वो अपनी जगह पर ठिठक गए फिर सामान्य भाव से आगे बढ़ते हुए हमारे पास आ ग‌ए। मैंने बड़े भैया को प्रणाम किया तो उन्होंने हल्के से सिर हिला दिया। उधर विभोर और अजीत ने पहले मुझे और फिर सूर्यभान और मानिकचंद्र को प्रणाम किया। सूर्यभान और मानिकचंद्र को मेरे साथ देख कर बड़े भैया का चेहरा तो सामान्य ही रहा लेकिन विभोर और अजीत के चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए थे।

बड़े भैया और वो दोनों कहीं जाने की तयारी में थे इस लिए वो औपचारिक बातों के बाद जीप ले कर निकल गए जबकि मैं उस बच्ची को गोद में लिए हवेली के अंदर की तरफ चल पड़ा। मेरे साथ सूर्यभान और मानिकचंद्र भी आ रहे थे। हालांकि उन दोनों ने वापस लौट जाने को कहा था पर मैंने उन्हें वापस जाने नहीं दिया था। कुछ ही देर में हम सब अंदर बैठक में आ गए। अंदर जगताप चाचा मिले। सूर्यभान और मानिकचंद्र ने उन्हें प्रणाम किया और फिर ख़ुशी ख़ुशी बैठक में बैठाया। पिता जी मुझे नज़र नहीं आए। मेरे साथ छोटी सी बच्ची को देख कर जगताप चाचा पहले तो चौंके थे फिर पूछने लगे कि ये तुम्हारे साथ कैसे तो मैंने उन्हें सारी कहानी संक्षेप में बता दी जिसे सुन कर वो बस मुस्कुरा कर रह ग‌ए।

सूर्यभान और मानिकचंद्र का जगताप चाचा ने यथोचित स्वागत किया। हवेली की ठकुराइन यानी कि मेरी माँ भी उनसे मिली। कुछ देर बाद वो दोनों जाने की इजाज़त मांगने लगे और उस बच्ची से भी चलने को कहा लेकिन उस बच्ची में उनके साथ जाने से इंकार कर दिया। वो अभी तक मेरी गोद में ही चढ़ी हुई थी। खैर दोनों के जाने के बाद मैं भी अंदर चला गया।

अंदर कुसुम मुझे मिली और उसने जब मेरे साथ एक छोटी बच्ची को देखा तो पूछने लगी कि ये कौन है और मेरे पास कैसे आई तो मैंने उसे भी सब कुछ बताया। उसके बाद मैं उस बच्ची को लिए अपने कमरे की तरफ चल दिया। कुसुम को ये भी बोलता गया कि वो उस बच्ची के लिए लड्डू ले कर आए।

माहौल एकदम से बदल सा गया था और मुझे भी इस माहौल में थोड़ा अच्छा महसूस हो रहा था। मेरे कमरे में वो बच्ची मेरे बेड पर बैठी ख़ुशी ख़ुशी लड्डू खा रही थी। कुसुम उसके पास ही बैठी थी। थोड़ी देर में रागिनी भाभी और मेनका चची भी मेरे कमरे में आ ग‌ईं थी। वो सब उस प्यारी सी बच्ची को देख कर खुश थीं और उससे बातें करती जा रही थी। वो बच्ची जब अपनी तोतली भाषा में बातें करती तो वो सब मुस्कुरा उठतीं थी। सहसा मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी तो मैं चौंका।


---------☆☆☆---------
Bahut hi achha update tha achha laga padhke ... Ab bas jldi jldi update aata rahe bahut intazaar kiya h iska....
 

Riitesh02

Creepy Reader
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अध्याय - 36
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अब तक....

मणि शंकर की इस बात के बाद ख़ामोशी छा गई। उसके बाद ख़ामोशी से ही भोजन शुरू हुआ। बीच बीच में भोजन परोसने वाली औरतें आती और हम सबकी थाली में कुछ न कुछ रख जातीं। मैं ज़्यादा खाने का आदी नहीं था इस लिए मैंने कुछ भी लेने से मना कर दिया था लेकिन मणि शंकर और उसके भाई न माने। मैंने महसूस किया था कि उनके बेटों में से ज़्यादातर लड़के अब मेरे प्रति सहज हो गए थे और जब भी मेरी उनसे नज़रें चार हो जाती थीं तो वो बस हल्के से मुस्कुरा देते थे। उनके चेहरे के भावों से मैं समझ जाता था कि उनके अंदर कैसी भावना होगी। ख़ैर किसी तरह भोजन का कार्यक्रम संपन्न हुआ और हम सब वहां से उठ कर बाहर बनी एक बड़ी सी बैठक में आ गए।

अब आगे....


"प्रणाम दादा ठाकुर।" इंस्पेक्टर धनञ्जय ने दादा ठाकुर के पैर छुए और फिर खड़ा हो गया।
"ख़ुश रहो।" दादा ठाकुर ने अपनी प्रभावशाली आवाज़ में कहा और फिर एक नज़र आस पास घुमाने के बाद दरवाज़े के अंदर दाखिल हो ग‌ए। उनके पीछे दरोगा भी आ गया। अंदर आने के बाद धनञ्जय ने दरवाज़ा बंद कर दिया।

"आपने यहाँ आने का कष्ट क्यों किया?" दरोगा ने नम्र भाव से कहा____"मुझे सन्देश भेजवा दिया होता तो मैं खुद ही हवेली आ जाता।"

"कोई बात नहीं।" दादा ठाकुर ने सपाट लहजे में कहा और कमरे में रखी चारपाई पर जा कर बैठ गए जबकि धनञ्जय ज़मीन पर ही हाथ बांधे खड़ा रहा।

"उस आदमी के बारे में क्या पता चला तुम्हें?" दादा ठाकुर ने ख़ामोशी को चीरते हुए कहा____"और ये भी कि मुरारी की हत्या के सम्बन्ध में तुमने अब तक क्या पता किया?"

"उस रात जिस काले नक़ाबपोश की हत्या हुई थी उसके बारे में मैंने आस पास के कई गांवों में पता किया था दादा ठाकुर।" दरोगा ने गंभीरता से कहा____"लेकिन हैरत की बात ये पता चली कि वो आदमी इस गांव का ही क्या बल्कि आस पास के किसी भी गांव का नहीं था। मैंने अपने मुखबिरों को उसके बारे में पता करने के लिए लगाया था और आज ही मेरे एक मुखबिर ने बताया कि वो आदमी असल में कौन था।"

"साफ साफ़ बताओ।" दादा ठाकुर ने धनञ्जय की तरफ उत्सुकता से देखा।
"मेरे मुखबिर ने बताया कि वो आदमी पास के ही शहर का था।" दरोगा ने कहा____"उसका नाम बनवारी था। बनवारी का एक साथी भी है जिसका नाम नागेश नामदेव है। दोनों ही शहर के छंटे हुए बदमाश हैं। चोरी डकैती लूट मार और क़त्ल जैसी वारदातों को अंजाम देना उनके लिए डाल चावल खा लेने जैसा आसान काम है। पुलिस फाइल में दोनों के ही जुर्म की दास्तान दर्ज है। मुखबिर के बताने पर जब मैंने उन दोनों का शहर में पता लगवाया तो पता चला कि वो दोनों काफी टाईम से शहर में देखे नहीं गए हैं और ना ही उनके द्वारा किसी वारदात को अंजाम दिया गया है। इसका मतलब यही हुआ कि आपका जो कोई भी दुश्मन है उसने उन दोनों को ही अपने काम के लिए चुना है और कुछ इस तरीके से उनको काम करने के लिए कहा है कि वो दोनों ग़लती से भी किसी की नज़र में न आएं। अब क्योंकि शहर में वो दोनों काफी टाइम से देखे नहीं गए थे तो ज़ाहिर है वो दोनों शहर में थे ही नहीं बल्कि वो यहीं थे, इसी गांव में लेकिन सबकी नज़रों से छुप कर। ख़ैर उन दोनों में से एक को तो उस सफेदपोश ने उस रात जान से मार दिया लेकिन दूसरे की अभी लाश नहीं मिली है तो ज़ाहिर है कि वो अभी ज़िंदा है।"

"हमें भी यही आशंका थी कि ऐसा कोई आदमी हमारे गांव का या आस पास के किसी गांव का नहीं हो सकता।" दादा ठाकुर ने गहरी स्वास छोड़ते हुए कहा____"हमारा जो भी दुश्मन है वो ऐसे किसी आदमी को इस तरह के काम के लिए चुनेगा भी नहीं जो इस गांव का हो अथवा किसी दूसरे गांव का। क्योंकि उसे अपनी गोपनीयता का ख़ास तौर पर ख़याल रखना है। खैर जैसा कि तुमने कहा कि उनमें से एक मारा गया है और एक की लाश नहीं मिली है तो ज़ाहिर है उस दूसरे वाले से हमें या हमारे बेटे को अभी भी ख़तरा है।"

"सही कह रहे हैं आप।" दरोगा ने सिर हिलाते हुए कहा____"उस दूसरे वाले नक़ाबपोश से अभी भी ख़तरा है और संभव है कि कई बार की नाकामी के बाद इस बार वो पूरी योजना के साथ आप पर या छोटे ठाकुर पर हमला करे इस लिए आपको और छोटे ठाकुर को थोड़ा सम्हल कर रहना होगा।"

"ह्म्म्म।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"और मुरारी की हत्या के विषय में क्या पता किया तुमने? हमारे लिए अब ये सहन करना मुश्किल होता जा रहा है कि मुरारी का हत्यारा अभी भी खुली हवा में सांस ले रहा है। हमें यकीन है कि मुरारी की हत्या किसी और वजह से नहीं बल्कि हमारी ही वजह से हुई है। हम ये बोझ अपने सीने में ले कर नहीं बैठे रह सकते। जिस किसी ने भी उस निर्दोष की हत्या की है उसे जल्द से जल्द हम सज़ा देना चाहते हैं।"

"मेरा ख़याल है कि मुरारी की हत्या उसी सफेदपोश ने अपने उन दो चुने हुए आदमियों के द्वारा करवाई है।" दरोगा ने सोचने वाले भाव से कहा_____"ये तो उस दिन हमारा दुर्भाग्य था कि वो सफेदपोश हाथ से निकल गया और उसने उस काले नक़ाबपोश यानी बनवारी को जान से मार दिया था वरना अगर वो दोनों ही पकड़ में आ जाते तो सच का पता चल जाता।"

"जो नहीं हो पाया उसकी बात मत करो धनञ्जय।" दादा ठाकुर ने खीझते हुए से लहजे में कहा_____"बल्कि एड़ी से चोटी तक का ज़ोर लगा कर या तो उस दूसरे नकाबपोश का पता लगाओ या फिर उस सफेदपोश का। हम जानना चाहते हैं कि इस गांव में अथवा आस पास के गांव में ऐसा कौन है जो हमसे ऐसी दुश्मनी निभा रहा है और हमारा हर तरह से नाम ख़राब करना चाहता है? सिर्फ शक के आधार पर हम किसी पर हाथ नहीं डालना चाहते, बल्कि हमें ठोस सबूत चाहिए उस ब्यक्ति के बारे में।"

"मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा हूं दादा ठाकुर।" दरोगा धनञ्जय ने कहा_____"मगर शायद वो ब्यक्ति ज़रूरत से ज़्यादा ही शातिर है। वो पूरी सावधानी बरत रहा है और नहीं चाहता कि उससे कोई छोटी सी भी ग़लती हो। हालांकि ऐसा हर बार नहीं हो सकता, मुझे पूरा यकीन है कि एक दिन वो अपनी ही होशियारी के चलते पकड़ में आ जाएगा।"

"हम और इंतज़ार नहीं कर सकते धनञ्जय।" दादा ठाकुर ने दरोगा की तरफ देखते हुए कहा____"हमें जल्द से जल्द मुरारी का हत्यारा चाहिए। एक बात और, अगर तुम्हें किसी पर शक है तो तुम बेझिझक उसे उठा सकते हो और उससे सच का पता लगा सकते हो। हमारी तरफ से तुम्हें पूरी छूट है लेकिन इस बात का ख़ास ध्यान रहे कि इसके बारे में बाहर किसी को भनक भी न लग सके।"

"आप बेफिक्र रहें दादा ठाकुर।" धनञ्जय ने कहा____"जल्द ही इस बारे में आपको बेहतर ख़बर दूंगा मैं।"

कुछ देर और दादा ठाकुर दरोगा के पास रुके और फिर वो जिस तरह बिना किसी की नज़र में आए हुए आए थे उसी तरह चले भी गए। दरोगा के चेहरे पर दृढ़ता के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे।
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बाहर बैठक में हम सब बैठे हुए थे और हर विषय पर बातें कर रहे थे। मणि शंकर और उसके भाई मेरे बदले हुए रवैए से बेहद खुश और सहज हो गए थे। यही हाल उनके बेटों का भी था। कुछ ही देर में मैं उन सबके बीच पूरी तरह घुल मिल गया था। मैंने पूरी तरह से अपनी योजना के अनुसार उनको ये एहसास करा दिया था कि अब उनमें से किसी को भी मुझसे किसी भी तरह से न तो डरने की ज़रूरत है और ना ही असहज होने की।

हरि शंकर के बेटे मानिकचंद्र के हाथ में अभी भी प्लास्टर चढा हुआ था। मैंने उससे उसकी उस दशा के लिए कई बार माफ़ी मांगी थी जिससे वो बार बार यही कहता रहा कि नहीं इसमें ज़्यादातर उसी की ग़लती थी। मणि शंकर की पोती और चंद्रभान की बेटी जो कि अभी छोटी सी ही थी वो जब खेलते हुए बाहर आई तो मैंने उसे उठा कर अपनी गोद में बैठा लिया था और उसे खूब लाड प्यार दे रहा था। वो छोटी सी बच्ची मुझे बहुत ही प्यारी लग रही थी। मुझे उसको इस तरह ख़ुशी ख़ुशी लाड प्यार देते देख उसका बाप चंद्रभान और बाकी सब ख़ुशी से मुस्कुरा रहे थे। वो छोटी सी बच्ची कुछ ही पलों में मुझसे घुल मिल ग‌ई थी। उसकी तोतली बातें मुझे बहुत ही अच्छी लग रहीं थी।

"चन्द्र भैया, आपकी ये बेटी आज से मेरी गुड़िया है।" मैंने चन्द्रभान की तरफ देखते हुए कहा____"और मैं इसे अपने साथ हवेली ले जाऊंगा।" कहने के साथ ही मैंने उस बच्ची से बड़े प्यार से कहा____"अपने इस चाचा के साथ हवेली चलोगी न गुड़िया?"

"हां मैं तलूंगी।" उसने अपनी तोतली भाषा में कहा____"आप मुधे लड्दू थाने को दोगे न?"
"बिल्कुल दूंगा मेरी गुड़िया।" मैंने हल्के से हंसते हुए कहा____"मैं अपनी इस प्यारी सी गुड़िया के लिए ढेर सारे लड्डू बनवाऊंगा और सारा का सारा लड्डू तुम्हें दे दूंगा।"

"पल मैं थारे लड्दू तैसे था पाऊंगी?" उसने बड़ी मासूमियत से देखते हुए मुझसे कहा____"मेला पेत तो बहुत थोता है।"
"तो तुम थोड़ा थोड़ा कर के खाना गुड़िया।" मैंने उसे समझाते हुए कहा____"थोड़ा थोड़ा करके तुम सारे लड्डू खा जाओगी।"

"थारा लड्दू था दाऊंगी तो लड्दू तुक नहीं दाएंगे?" उसने मुड़ कर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"फिल मैं ता थाऊगी?"
"अरे! तो मैं अपनी इस प्यारी सी गुड़िया के लिए फिर से बहुत सारा लड्डू बनवा दूंगा।" मैंने उसके फूले हुए गालों को प्यार से सहला कर कहा____"उसके बाद तुम फिर से लड्डू खाने लगना।"

"हां पल मैं अपने लड्दू किथी को नहीं दूंगी।" उसने अपनी प्यारी और तोतली भाषा में कहा____"थाले लड्दू मैं ही थाऊंगी।"
"हां मेरी गुड़िया।" मैंने फिर से उसके गाल सहला कर कहा____"सारे लड्डू तुम्हीं खाओगी और अगर कोई तुमसे तुम्हारे लड्डू ले ले तो तुम सीधा आ कर अपने इस चाचा को बताना। मैं उसकी खूब पिटाई करुंगा। ठीक है ना?"

मेरी बात सुन कर वो छोटी सी बच्ची बड़ा खुश हुई और खिलखिला कर हंसने लगी। कुछ ही देर में आलम ये हो गया कि वो अब मेरी गोद से नीचे उतरने का नाम ही नहीं ले रही थी। बैठक में बैठे सभी लोग हम दोनों की बातों से मुस्कुरा रहे थे। तभी मणि शंकर की बीवी फूलवती आई और उस छोटी सी बच्ची को अपने पास बुलाने लगी लेकिन उसने मेरी गोद से उसके पास जाने से साफ़ इंकार कर दिया।

"मैं नहीं आऊंगी दादी।" उसने अपनी दादी से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा____"मैं अपने ताता के थात दाऊंगी। मेले ताता मुधे बूथाला लड्दू देंगे।"

बच्ची की बात सुन कर जहां मैं मुस्कुरा उठा वहीं बैठक में बैठे बाकी कुछ लोग ठहाका लगा कर हसने लगे। उस मासूम सी बच्ची ने उन हंसने वालों की तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली____"मैं आपके थात दाऊंगी न ताता?"

"हां मेरी गुड़िया।" मैंने उसके माथे को प्यार से चूमते हुए कहा____"तुम मेरे साथ ही हवेली जाओगी। वहां पर तुम्हारी एक बुआ है जो तुम्हें ढेर साड़ी मिठाई देगी और तुम्हें अपने साथ ही रखेगी।"

"तो मैं लड्दू औल मिथाई दोनों थाऊगी ताता?" उसने इस बार हैरानी से पूछा था।
"और नहीं तो क्या।" मैंने मुस्कुरा कर कहा____"मेरी ये प्यारी गुड़िया सब कुछ खाएगी। तुम जो जो कहोगी वो सब तुम्हें खाने को मिलेंगा।"

मेरी बात सुन कर बच्ची एक बार फिर से ख़ुशी से उछलने लगी। उसके साथ मेरी ये बातें, मेरा प्यार और स्नेह कोई दिखावा नहीं था बल्कि सच में वो मुझे बहुत प्यारी लगने लगी थी और मेरा जी चाह रहा था कि मैं बस उसे यूं ही प्यार और स्नेह देता रहूं। फूलवती को खाली हाथ ही अंदर जाना पड़ा। वो बच्ची मेरी गोद से उपरी ही नहीं।

"बड़ी हैरानी की बात है वैभव कि ये तुमसे इतना जल्दी इतना घुल मिल ग‌ई है।" हरी शंकर ने कहा____"वरना जिसे ये पहचानती नहीं उससे दूर ही रहती है। अपनी माँ से ज़्यादा ये अपनी दादी के पास रहती है लेकिन देखा न कि इसने अपनी दादी के पास जाने से भी साफ इंकार कर दिया।"

"बच्चों को जहां प्यार और स्नेह मिलता है वो वहीं जाते हैं हरि काका।" मैंने कहा____"ख़ैर अब तो ये पक्की बात है कि इसे मैं अपने साथ ही ले जाऊंगा। चंद्र भैया आज से ये आपकी बेटी नहीं बल्कि मेरी प्यारी सी गुड़िया है। आपको कोई दिक्कत तो नहीं है न?"

"मुझे भला क्यों कोई दिक्कत होगी वैभव?" चन्द्रभान ने मुस्कुराते हुए कहा____"हम सब तो इसके कारनामों के आदी हैं लेकिन दिक्कत तुम्हें ही होगी क्योंकि जब इसकी शैतानियां देखोगे तो तब यही सोचोगे कि किस आफ़त को हवेली में ले आए हो।"

"अब जो भी होगा देखा जाएगा चंद्र भइया।" मैंने कहा____"वैसे भी मुझे तो इसकी शैतानियों से भी इस पर प्यार ही आएगा और साथ ही बेहद आनंद भी आएगा।"

ऐसी ही बातों के बाद मैंने उन सबसे जाने की इजाज़त ली जिस पर सब बोलने लगे कि अभी कुछ देर और रुको। मैंने उन सबसे कहा कि अब तो मेरा आना जाना लगा ही रहेगा। मेरी बातें सुन कर मणि शंकर ने कहा कि ठीक है, वो मुझे बग्घी में खुद हवेली तक छोड़ने जाएंगे तो मैंने उन्हें ये कह कर मना कर दिया कि आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े हैं।

उस बच्ची को क्योंकि अब मैं खुद ही ले जाना चाहता था इस लिए मैं उसे ले कर चल पड़ा। अपने से बड़ों का मैंने पैर छू कर आशीर्वाद लिया और फिर बैठक से बाहर निकल आया। मुझे बग्घी में हवेली तक छोड़ने के लिए सूर्यभान और मानिकचंद्र तैयार हुए। सबके चेहरों पर खुशी की चमक दिखाई दे रही थी। बाहर आ कर मैं उस बच्ची के साथ बग्घी में बैठ गया। मेरे बगल से हरि शंकर का बेटा मानिकचंद्र बैठ गया जबकि मणि शंकर का दूसरा बेटा आगे बैठ कर बग्घी चलाने लगा। सारे रास्ते मैं ज़्यादातर उस बच्ची से ही बातें करता रहा था। उसकी तोतली भाषा और मीठी मीठी बातें मुझे बेहद आनंद दे रहीं थी। बीच बीच में मैं मानिकचंद्र और सूर्यभान से भी बातें करता जा रहा था। हमारे बीच अब अच्छा खासा ताल मेल बन गया था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हमारे बीच आज से पहले कितनी दुश्मनी थी।

हवेली में पहुंच कर हम सब बग्घी से उतरे। वहां मौजूद नौकरों ने हम सबका सिर नवा कर अभिवादन किया। अभी मैं हवेली के मुख्य द्वार की तरफ ही मुड़ा था कि अंदर से बड़े भैया अभिनव के साथ विभोर और अजीत बाहर निकले। उन तीनों की नज़र हम पर पड़ी तो पहले तो वो अपनी जगह पर ठिठक गए फिर सामान्य भाव से आगे बढ़ते हुए हमारे पास आ ग‌ए। मैंने बड़े भैया को प्रणाम किया तो उन्होंने हल्के से सिर हिला दिया। उधर विभोर और अजीत ने पहले मुझे और फिर सूर्यभान और मानिकचंद्र को प्रणाम किया। सूर्यभान और मानिकचंद्र को मेरे साथ देख कर बड़े भैया का चेहरा तो सामान्य ही रहा लेकिन विभोर और अजीत के चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए थे।

बड़े भैया और वो दोनों कहीं जाने की तयारी में थे इस लिए वो औपचारिक बातों के बाद जीप ले कर निकल गए जबकि मैं उस बच्ची को गोद में लिए हवेली के अंदर की तरफ चल पड़ा। मेरे साथ सूर्यभान और मानिकचंद्र भी आ रहे थे। हालांकि उन दोनों ने वापस लौट जाने को कहा था पर मैंने उन्हें वापस जाने नहीं दिया था। कुछ ही देर में हम सब अंदर बैठक में आ गए। अंदर जगताप चाचा मिले। सूर्यभान और मानिकचंद्र ने उन्हें प्रणाम किया और फिर ख़ुशी ख़ुशी बैठक में बैठाया। पिता जी मुझे नज़र नहीं आए। मेरे साथ छोटी सी बच्ची को देख कर जगताप चाचा पहले तो चौंके थे फिर पूछने लगे कि ये तुम्हारे साथ कैसे तो मैंने उन्हें सारी कहानी संक्षेप में बता दी जिसे सुन कर वो बस मुस्कुरा कर रह ग‌ए।

सूर्यभान और मानिकचंद्र का जगताप चाचा ने यथोचित स्वागत किया। हवेली की ठकुराइन यानी कि मेरी माँ भी उनसे मिली। कुछ देर बाद वो दोनों जाने की इजाज़त मांगने लगे और उस बच्ची से भी चलने को कहा लेकिन उस बच्ची में उनके साथ जाने से इंकार कर दिया। वो अभी तक मेरी गोद में ही चढ़ी हुई थी। खैर दोनों के जाने के बाद मैं भी अंदर चला गया।

अंदर कुसुम मुझे मिली और उसने जब मेरे साथ एक छोटी बच्ची को देखा तो पूछने लगी कि ये कौन है और मेरे पास कैसे आई तो मैंने उसे भी सब कुछ बताया। उसके बाद मैं उस बच्ची को लिए अपने कमरे की तरफ चल दिया। कुसुम को ये भी बोलता गया कि वो उस बच्ची के लिए लड्डू ले कर आए।

माहौल एकदम से बदल सा गया था और मुझे भी इस माहौल में थोड़ा अच्छा महसूस हो रहा था। मेरे कमरे में वो बच्ची मेरे बेड पर बैठी ख़ुशी ख़ुशी लड्डू खा रही थी। कुसुम उसके पास ही बैठी थी। थोड़ी देर में रागिनी भाभी और मेनका चची भी मेरे कमरे में आ ग‌ईं थी। वो सब उस प्यारी सी बच्ची को देख कर खुश थीं और उससे बातें करती जा रही थी। वो बच्ची जब अपनी तोतली भाषा में बातें करती तो वो सब मुस्कुरा उठतीं थी। सहसा मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी तो मैं चौंका।


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Bade din baad is kahani ke updates padhe mujhe laga tha ke ye naav bhi dup gai hai. Haha
Khair writer ko wapis aur story ke dubara shuru hone pe bahut khusi hai. Hope ab updates kahni ke khatm hone par hi ruke.
 
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