- 79,419
- 116,351
- 354
Death Kiñg bhaiग्रामीण जीवन पर लिखी गई कहानियां सदैव ही बेहद खूबसूरत होती हैं और यदि उन्हें देवनागरी लिपि में लिखा गया हो, तो उसका कोई मुकाबला हो ही नही सकता। वैसे तो मैं अधिकतर “एडल्टरी" सेक्शन से थोड़ा दूर ही रहता हूं, क्योंकि आज तक जितनी भी एडल्टरी कहानियां मैंने इस फोरम पर पढ़ी हैं, ज्यादातर में निराशा ही हुई। कारण, कहानी के नाम पर केवल एक ही चीज़ का होना... खैर, जितनी भी एडलटरी कहानियां मैने पढ़ी हैं, उनमें से यदि कोई सबसे भिन्न और सर्वश्रेष्ठ है, तो वो यही है। कुछ महीने पहले ही इस कहानी पर नज़र पड़ी थी, परंतु जब ज्ञात हुआ के ये कहानी अधूरी छूट गई है, तो निश्चित ही काफी दुख हुआ, परंतु अच्छा लगा देखकर के आपने एक दफा फिर कहानी को शुरू कर दिया है, आशा है इस बार इसे अंजाम तक आप पहुंचा ही दोगे, वैसे भी अधूरी कहानियां आपके नाम के साथ मेल नही खाती...
कहानी की शुरुआत एक बागी लड़के के साथ हुई थी जो धीरे – धीरे पूरी तरह बदल गया है। वैभव ठाकुर, अर्थात इस कहानी का नायक, एक समय पर अपने पिता और अपने खानदान के नाम को मलिन करने का हर संभव प्रयास करने वाले लड़के में आए ये परिवर्तन निश्चित ही चौंका देने वाले हैं। परंतु कहीं न कहीं वैभव का ये “कायाकल्प" व्यर्थ ही नहीं हुआ है। 4 महीने भारी कष्टों को उठाने के बाद ही शायद वो उस सच्चाई को समझ पाया है जिस से वो वर्षों से भागता आया था। कर्तव्यबोध, यही एक ऐसा मार्ग है जो आवारा से आवारा व्यक्ति को कर्म के पथ पर लौटा देता है और निश्चित ही, वैभव को अपने कर्तव्यों का, अपने धर्म का बोध हो चुका है। वैभव के चरित्र में कितनी भी खामियां हों या कितने भी गुनाह उसने आज तक किए हों, परंतु उसे पूरी तरह गलत नही ठहराया जा सकता।
किसी के घर की इज्ज़त के साथ खेलना, वैभव जैसे को शोभा तो नही देता, परंतु इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता के उसने आज तक जितनी भी लड़कियों – औरतों को भोगा है, वो उनकी सहमति से ही भोगा है, ना कि उनके साथ किसी प्रकार की ज़ोर – ज़बरदस्ती करके... रागिनी की ओर वैभव का आकर्षित होना, एक बार फिर इसे जायज़ नही ठहराया जा सकता,आखिर भाभी को सदियों से मां समान ही माना गया है... परंतु वैभव के इन कृत्यों और सोच की जड़ें काफी पुरानी हैं, बंदिशें तो शायद किसी को भी पसंद नही होती, परंतु कोई – कोई ऐसा भी होता है जो थोड़ी भी रोक – टोक बर्दाश्त नहीं कर पाता, वैभव उन्ही में से एक है। बचपन से ही इसी सोच के साथ वो बड़ा हुआ, और फिर मेरी दृष्टि में अपने पिता द्वारा लगातार अंतराल पर मिलने वाली सज़ा के कारण वो ढीठ भी हो गया। जब कोई नवयुवक इस स्थिति में पहुंच जाता है, जहां ना उसे अपने माता – पिता का भय रहता है और ना ही उनके सम्मान की परवाह, अक्सर ऐसे में वो वैभव समान ही दिखने लग जाता है।
वैभव की दृष्टि अपनी चाची, मेनका पर भी बिगड़ी अवश्य थी, परंतु साथ ही उसे अपनी गलती का भान भी हो गया, परंतु क्या ये केवल एक ही बार के लिए था? शायद नहीं, एक बार संभोग की लत लग जाने के बाद, वैभव को उसके अभाव में इन सबका सामना तो करना ही पड़ेगा। परंतु, देखने योग्य रहेगा के क्या वो अपनी नियत अपनी घर की महिलाओं पर भी खराब कर लेगा, या अभी उसमें कुछ मर्यादा शेष है... रागिनी के प्रति आकर्षण महसूस करने की बात को यदि दरकिनार कर दिया जाए, तो ये तो स्पष्ट है के वैभव पूरे दिल से उसका सम्मान करता है, और उसके दुख को महसूस भी कर पाता है... खैर, वैभव के चरित्र में आए इन आकस्मिक बदलावों से जहां दादा ठाकुर और जगताप बेहद खुश हैं, वहीं साहूकारों का हैरान – परेशान होना भी पूरी तरह अपेक्षित ही है। मणिशंकर और उसके भाइयों के चरण स्पर्श करना, यहां तक की उनके बेटे, जो वैभव से आयु में बड़े हैं, उन्हें यूं सम्मान देना, आसानी से हज़म हो जाने वाले काम नही किए हैं वैभव ने पिछले कुछ समय में। निश्चित ही इन बदलावों का गहरा प्रभाव होने वाला है, ठाकुरों पर, साहूकारों पर, गांव पर और उस सफेदपोश पर भी।
मुरारी की हत्या इस कहानी के प्रथम रहस्य के रूप में सामने आई, जिसका इल्ज़ाम वैभव के माथे आया। हालांकि, कुछ ही अंतराल के बाद जगन और बाकी सभी को भी पूर्ण विश्वास हो गया था के वैभव का इस सबसे कोई नाता नहीं था। हां, एक तरह से नाता था शायद,आखिर मुरारी की हत्या वैभव और ठाकुरों से रंजिश और बैर का ही नतीजा थी। खैर, इस मामले में पुख्ता रूप से कोई जानकारी निकलकर सामने नही आई है, परंतु फिलहाल के लिए वही सफेदपोश संदेह के दायरे में खड़ा नज़र आता है। दरोगा को भी अभी तक कोई पुख्ता सबूत या कोई कड़ी हाथ नही लगी है, परंतु जिस प्रकार से पिछले कुछ समय में उस सफेदपोश की योजनाएं असफल हुई हैं, बौखलाहट में गलती हो सकती है, जिसका फायदा दरोगा को उठाना होगा। जगन भी शुरुआत में रहस्मयी सा लगा था, कहीं न कहीं उसपर भी संदेह बना ही हुआ था, मुरारी के कत्ल को लेकर, हालांकि फिलहाल के लिए जगन सकारात्मक किरदार लग रहा है, परंतु वो मुरारी का कातिल हो सकता है, अभी भी मेरा यही मानना है। खैर, मुरारी की तेरहवीं सही तरीके से हो गई, जिसमें वैभव का ही हाथ था। देखते हैं मुरारी के कत्ल और कातिल की हकीकत कब तक बाहर आती है।
रूपचंद्र ही एक ऐसा साहूकारों से जुड़ा व्यक्ति है, जो अभी तक सबसे ज्यादा संदेहपूर्ण रहा है। हां, गौरव का नाम भी सामने आया है, परंतु रूपचंद्र काफी शातिर और रहस्यमयी जान पड़ता है। पहले अनुराधा के साथ ज़बरदस्ती संबंध बनाने का प्रयास, और फिर रजनी के साथ उसके संबंध, यहां गौर करने वाली बात ये है की, रजनी और रूपचंद्र के बीच हो रहे संभोग वाले दृश्य, में कहीं ऐसा नही लगा के रजनी किसी दबाव में आकर वो सब कर रही हो, अलबत्ता यही प्रतीत हुआ को उस सबमें रजनी की पूर्णरूपेण सहमति थी। अब इनके संबंध की शुरुआत कैसे हुई ये तो आगे चलकर ही पता चलेगा, परंतु एक बात साफ है के रजनी और उसकी सास प्रभा,दोनो ही भरोसे के काबिल नही हैं, और इनमें से किसी पर भी भरोसा करना वैभव के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। खैर, रूपचंद्र का निशाना वैभव तो है ही, परंतु वो कुसुम के जरिए वैभव से बदला लेना चाहता है, कारण, उसे रूपा और वैभव के संबंधों के विषय में सब ज्ञात है। परंतु यहां सवाल ये उठता है की उसे सब ज्ञात हुआ कब, और उसके बाद भी उसने कुछ किया क्यों नहीं? और क्या अब, जब साहूकारों और ठाकुरों के संबंध बदले हैं, तब भी रूपचंद्र कुसुम को अपना निशाने बनाए रखेगा? क्या अब भी वो वैभव से सीधे तौर पर जंग करने की कोशिश करेगा, या फिर...?
चेतन और सुनील को साहूकारों और मुंशी के परिवार के पीछे लगाने का वैभव का फैसला कारगर साबित हो सकता है, बशर्ते वो दोनो भी वैभव के खिलाफ ना हों। वैसे भी ऐसे दोस्त, कभी भी सच्चे नही होते, वैभव से दोस्ती केवल लड़कीबाजी और आर्थिक विकास का ही परिणाम है, वरना मुझे नही लगता के वैभव के जीने – मरने से इन्हे कोई अंतर पड़ेगा। बात करें रूपा को तो, निश्चित ही बेहद सुंदर चरित्र के रूप में सामने आई है वो। शुरुआत में तो वैभव की पहचान और उसके चरित्र को जानकर, रूपा ने उससे दूरी बना ली थी, परंतु धीरे – धीरे वो वैभव से प्रेम करने लगी और इसी प्रेम में बहकर रूपा ने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया। यहां यदि रूपा को भी संदेह की नज़र से देखा जाए तो, कहीं भी ऐसा प्रतीत नही होता के वो भी वैभव के विरुद्ध षड्यंत्र में शामिल हो सकती है। फिलहाल के लिए तो नही,आगे चलकर...? या शायद हो भी सकता है, के रूपा अब भी वैभव के ही विरुद्ध हो, जब वैभव ने साहूकारों के प्रति अपना संदेह ज़ाहिर किया था, तब उसके बदले भाव, रूपचंद्र को उसकी सच्चाई ज्ञात होना, देखते हैं इन सबका क्या अर्थ निकलता है...
वैसे इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता के वैभव के लिए रूपा निश्चित ही और लड़कियों से भिन्न है, शायद अनुराधा अभी के लिए वैभव के जीवन में मौजूद सबसे खास लड़की है (परिवार से अलग), परंतु निश्चित रूप से रूपा के प्रति वैभव के अंदर कुछ अलग भाव स्पष्ट नज़र आते हैं... क्या वो भी रूपा से प्रेम कर बैठा है, या नहीं, देखना रोमांचक रहेगा।
दादा ठाकुर, शायद अभी तक इस कहानी का सबसे रौबदार और सशक्त किरदार, वैभव को गांव से निष्कासित करने की जो वजह उन्होंने वैभव को बताई वो अर्धसत्य है, इसमें कोई दोराय नहीं। साहूकारों और ठाकुरों के बीच की अनबन की असली वजह भी अभी तक वैभव को नही बताई गई है। और निश्चित ही कई ऐसी बातें होंगी, जो दादा ठाकुर सबसे छुपाते फिर रहें होंगे। वो तो भला हो रागिनी का,वरना अभिनव को लेकर भविष्यवाणी के बारे में भी वैभव कभी ना जान पाता। और इसी प्रकार के किरदारों से मुझे सख्त चिढ़ है, जब तक गर्दन पर तलवार और सर पर मौत ना आ जाए, इनका मुंह नही खुलता। खैर, देखते हैं, कब ये सारा सच वैभव के सामने प्रकट करेंगे। जगताप का किरदार अभी तक अपने बड़े भाई के लक्ष्मण जैसा ही रहा है, जिसके लिए दादा ठाकुर ही सर्वोपरि है, वैभव के लिए भी वो अपने भीतर प्रेम भाव रखते हैं, आगे चलकर इनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है।
रागिनी... अक्सर ही सुंदरता के प्रति आकर्षण हो ही जाता है, और वैभव को भी रागिनी, जिसका विवरण अब तक सुंदरता की मूरत के रूप में मिला है, उसके प्रति आकर्षित होने में देर नहीं लगी। रागिनी अभी तक एक बेहद सहनशील और सुलझी हुई किरदार के रूप में सामने आई है। अपने पति के लिए अल्पायु की भविष्यवाणी, घर में चल रही चीज़ें,वैभव का घर से कुछ समय पहले तक निर्मोही होना,और अभिनव का उसके प्रति रूखा व्यवहार... सब कुछ सहकर भी वो केवल और केवल अपने परिवार के लिए ही सोच रही है, और अपने दुख को अपने अंदर ही ज़ब्त कर, मुस्कुराने की कोशिश कर रही है। हालांकि, कहीं न कहीं अचानक से ही वैभव और रागिनी के बीच आया नजदीकियां, संदेहपूर्ण तो थी। लगा था के शायद रागिनी के मन में भी वैभव के प्रति आकर्षण है, और फिर उसका वैभव से ये कहना के उसने खुद भी मन ही मन पाप तो किए हैं, लगा जरूर था के इसी ओर रागिनी का इशारा था। परंतु वैभव को अपने छोटे भाई के रूप में देखने वाली बात से उसने सभी अटकलों पर पूर्ण विराम लगा दिया। हालांकि, अब भी उसके “मन की उन बातों" को जानना रोचक रहेगा। देखते हैं रागिनी और अभिनव का आगे चलकर क्या होता है।
अभिनव भी अभी तक पूरी तरह खुलकर सामने नही आया है, होली वाले दिन शायद वो नशे में वैभव से वो बर्ताव कर बैठा, पर अगले ही दिन उसने वैभव पर हाथ भी उठा दिया। अभिनव का व्यवहार सभी के लिए रूखा हो चुका है। यहां तक की अपनी पत्नी के लिए भी। इसका कारण उसके अल्पायु होने के भविष्यवाणी हो सकती है। परंतु फिर उसका व्यवहार, विभोर और अजीत के लिए सामान्य क्यों है? सभी कड़ियों को जोड़ा जाए तो मेरे अनुमान से यही कहानी बनती है की अभिनव की कोई कमज़ोर नस, विभोर और अजीत के हाथ लगी हुई है और उन्ही दोनो के कहने पर वो इस प्रकार का व्यवहार कर रहा है। उस रात वैभव ने उसे विभोर – अजीत के कमरे से निकलते भी देखा था। पर यहां एक और सवाल खड़ा हो जाता है। रात के वक्त तो, वो दोनो चिलगोजे, कुसुम के कमरे में होते हैं और कुसुम उनके कमरे में। तो या तो वो अपना कार्यक्रम समेट कर वापिस पहुंच गए होंगे या अभिनव कुसुम से ही मिलने गया होगा? पर कहीं न कहीं यही अंदेशा है के वो दोनो ही अभिनव को किसी चीज़ के जरिए मजबूर कर रहें हैं।
यहीं पर यदि दोनो भाइयों की बात की जाए तो दोनो अव्वल दर्ज़ के चूतियों के रूप में सामने आते हैं। वैसे तो वैभव हमेशा ही सबसे अलग रहा है पर फिर भी एक बार को मान लिया जाए के किसी कारण वो वैभव से नफरत करते हैं। पर कमीनों ने अपने गुनाहों में कुसुम को भी घसीट लिया। यहां तक की किसी वजह से उसे मजबूर भी कर रहें हैं, और हद तो ये है की उस कमीनी नौकरानी को भी वो वजह शायद पता है। अर्थात, वैभव को नुकसान पहुंचाने के लिए दोनो लेदड़ों ने अपनी ही सगी बहन की कमजोर नब्ज़ एक नौकरानी के हाथ में थमा दी? और वो दो कौड़ी की नौकरानी अब कुसुम पर रौब झाड़ रही होगी। बिना किसी संदेह के ये दोनो सजा, और भयंकर सजा के पात्र हैं। उस नौकरानी को भी जल्द ही वैभव को कब्जे में कर लेना चाहिए, वो एक बढ़िया जरिया बन सकती है विभोर और अजीत की हकीकत जानने का।
कुसुम अभी तक बहुत ही चंचल और साथ ही साथ, एक समझदार लड़की के रूप में सामने आई है। अपने भाइयों द्वारा अपने ऊपर किए जा रहे अत्याचार के कारण, वो काफी समझदार हो चुकी है। और बेचारी को मजबूरन अपने उस भाई को, जिसे वो जान से ज्यादा चाहती है, उसे ही चाय में मर्दांगी छीन लेने की दवा मिला कर देनी पड़ रही है। क्या कुसुम जानती है के चाय में उसके दोनो भाई क्या मिलात हैं, यदि नही तो क्या कभी उसने ये नही सोचा के उसमें ज़हर भी हो सकता है? खैर, सुमन बेहद ही प्यारी लड़की के रूप में रही है अभी तक और इस बात में तनिक भी संदेह नहीं, के वैभव के साथ ये छल करने के कारण, उसकी अंतरात्मा भी चोटिल हो चुकी होगी। निश्चित ही कोई बहुत बड़ी बात है जिसके कारण विभोर और अजीत उसे मजबूर कर रहें हैं, अन्यथा वो कभी ये सब नही करती। देखते हैं कब वो सारा सच वैभव को बताएगी, मेरे खयाल से वैभव को खुद ही उस से सब पूछ लेना चाहिए।
अनुराधा, यदि किसी किरदार ने अभी तक सबसे गहरा प्रभाव इस कहानी पर छोड़ा है तो वो अनुराधा ही है। वैभव जैसे युवक का कायापलट कर देना, वो भी बिना कुछ किए, अनुराधा को बाकी सबसे अलग खड़ा करता है। उसके भीतर शुरू से ही वैभव को लेकर कुछ तो है, वैभव को देखकर उसका शर्माना और मुस्कुराना, उसे देख कर अनुराधा का हड़बड़ा जाना, साफ है के वो वैभव के लिए कुछ न कुछ महसूस करने लगी है। वहीं वैभव भी इस कहानी के सभी किरदारों में से यदि किसी के लिए सबसे भिन्न विचार अपने मन में रखता है तो वो अनुराधा ही है। उसके उभारों को अनजाने में देख लेने के पश्चात वैभव का ग्लानि महसूस करना, इसी ओर संकेत करता है। पर क्या दोनो की जोड़ी कभी बन भी पाएगी? क्या दादा ठाकुर कभी दोनो के लिए राजी होंगे? क्या जगन इनके रिश्ते को अपनी सहमति देगा? परंतु सबसे बड़ी बात, क्या ये दोनो अपने खुद के भावों को समझ एक – दूसरे के सामने उन्हें व्यक्त कर पाएंगे?
खैर, अब इसे किस्मत कहो या कुछ और, वैभव धीरे – धीरे सभी बातों को जान रहा है। पहले अपने विरुद्ध हो रहे षड्यंत्र, जिसके कारण दादा ठाकुर ने उसे गांव से निष्कासित किया, फिर उस नकाबपोश के बारे में जिसे दादा ठाकुर ने उसकी सुरक्षा के लिए लगाया था, अभिनव की अल्पायु और रागिनी के मनोभाव, और अब विभोर और अजीत का सच, धीरे – धीरे ही सही, वैभव उस रहस्य की तरफ अपने कदम बढ़ा रहा है जो सबसे छिपा है।
अब देखना ये है के वैभव क्या और कैसे करता है! रजनी का मसला हो या रूपचंद्र का... अनुराधा से नजदीकियां और रूपा के लिए उसके मन में उठते भाव... कुसुम और विभोर – अजीत का रहस्य... साहूकारों की असलियत, दादा ठाकुर के राज़... अभिनव का व्यवहार, कई सारे मसले हैं वैभव के सामने जिन्हे उसे एक – एक कर सुलझाना होगा। बहरहाल, वैभव बीच में एक बार शहर भी गया था किसी रहस्मयी कार्य के लिए, वो क्या हो सकता है?
बहुत ही खूबसूरती से कहानी को आप आगे बढ़ा रहे हो भाई। सबसे पहले तो कहानी को आपने पुनः शुरू किया यही बड़ी बात है, अन्यथा इस प्रकार की कहानी यदि अधूरी रह जाती, तो निश्चित ही ये सही ना होता। हिंदी शब्दावली पर बेहतर पकड़ के कारण ही आप इस तरीके से शब्दों की माला पिरो पा रहें हैं, और हर एक शब्द अपनी एक अलग ही मिठास के साथ प्रस्तुत हो रहा है। जैसा मैंने पहले भी कहा, देवनागरी में ग्रामीण जीवन पर लिखी गई कहानियों, का कोई मेल नही हो सकता और यदि इतने बेहतर तरीके से उसे प्रस्तुत किया गया हो, तो उस से बेहतर कुछ नहीं। आशा है आगे भी आप यूंही लिखते रहेंगे।
तीनों ही अध्याय बेहद शानदार थे भाई। अगली कड़ी की प्रतीक्षा में।
Pahle apan ye dekh ke shock hua ki ye update apan ne kab chipka diya, fir jab update dene wale naam par nazar padi to muskura utha. Is review ko padh kar main bina kisi sankoch kah raha hu ki aap forum ke best reviewer SANJU ( V. R. ) Bhaiya ko bhi peechhe chhod diya hai. Sanju bhaiya maaf karna mujhe, mera irada aapko hurt karne ka bilkul bhi nahi hai lekin mujhe yakeen hai ki is review ko padh kar aapke man me bhi khud ke liye yahi vichaar aaya hoga. Ek samay tha jab review ke maamle me Firefox kamdev99008 bhaiya aur Naina in teeno ka koi jawaab nahi tha. Khaas kar firefox aur kamdev bhai ka kyoki inke review achchhe writer ki band bajane wale hote the aur sach kahu to aise reviews ko padh kar maza bhi aata tha. Samay aage badha aur fir aapki entry huyi. aalu bhai jaisa reader bhi aaya, lekin samajh me nahi aaya ki inke aane se pahle wale surma review dena kyo band kar diye jabki har writer ko unke jaise readers ki hi zarurat hai. Ab to firefox aur aalu bhai dikhte hi nahi aur usse nuksaan sirf aur sirf ham jaise mamuli writers ka hi hua hai.
Death Kiñg bhai, is khubsurat review ko maine kayi baar padha hai aur yakeen maano itni khushi huyi ki shabdo me bata nahi sakta. Mera un sabhi reader bhaiyo se kahna hai jo nice update likh kar apna farz pura kar lete hain ki dekho aur kuch seekho inse. Ek writer ko uski mehnat ka fal kis tarah se dene chahiye ye dekho.... Devnagari me review likhna aur wo bhi ek update ke size ka ye koi mamuli baat nahi hai. Devnagari me likhne wale hi samajh sakte hain ki isme kitna time lagta hai aur kitna bariki se soch kar sameeksha Deni padti hai. Well thank death king bhai is khubsurat review ke liye
Ab tak ki kahani ka aapne bahut hi khubsurti se vishleshan kiya hai, isse ye bhi zaahir hota hai ki aapne kahani ko bahut ki baariki se padha hai. Kisi ke dwara jab is tarah ki sameeksha dekhne ko milti hai tab dil ko apaar khushi milti hai aur andar hazaaro Guna josh aur utsaah bhar jata hai. Well kahani ke bare me bas yahi kahuga ki daily update Dena mere liye behad hi mushkil hai lekin jab bhi time milega to thoda thoda kar ke update zarur taiyar karuga aur use post karuga. Der se hi sahi lekin kahani ko uske anjaam tak zarur pahuchaauga, bas aap sab ka sath yu hi bana rahe. Ek lekhak ko isi tarah ka motivation chahiye hota hai. Shukriya death king bhai