• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,419
116,351
354
Bohot badhiya update bhai .
Kahani sahi ja Rahi hai.
Bhoji ko kuch karo yar . Aise to akeli dukhi hoti rahegi bechari
Or kusum konsa raaj chipa rahi h uspe bhi rosni dalo
Shukriya Bhai, sab kuch apne samay par hi hoga, thoda dhairya rakho ;)
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,419
116,351
354
मस्त अनुच्छेद है मित्र। लेकिन उस हरामियो का उस तरह का गलत काम का असली मनसा समझ मे नहीं आया। जब तक उस दोनों को उचित सजा नहीं मिलता है तब तक दिल को सुकून नहीं मिलेगा।
Shukriya bhai, Sahukaro wala matter settle hone ke baad ab usi ka number lagega, khair sath bane rahe :dost:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,419
116,351
354
Bahut hi badhiya update tha ....kahani romanchak to hoti ja rahi h par dard bhi de rahi h .... Mughe to jald se jald kusum wale update ka intezar h mai chahta hu kusum wala matter jald solve ho aur naukrani ka bhi pardafash ho....

Bs ye kusum wali kadi h jo dard de rahi....kusum wala matter solve hone me abhi kitna update lagega ...

Waise aksar bade bade haveliyon me bahut sare raah chhipe huye hote h aur ghar ke kai sadasya bhi do chehre Wale hote h .....

Pura itihaas bhara pada h
Shukriya bhai,
Bhai sab kuch hoga lekin apne uchit samay par. Kahani ka matlab ye nahi hai ki sab kuch jaldi ho jaye ya fir jaldi se usme koi fer badal kar diya jaye. Kahani me bhi real life ki tarah cheeze apne uchit samay par hi hoti hain, warna baad aap log hi kahoge ki yaha aisa kaise ho sakta hai ya waisa kaise ho sakta hai? Main chaahta hu ki har cheez tark sangat ho aur waastavikta ke dharatal ko touch kar ke chale. Khair dhairya rakho, jald hi cheeze badalti huyi nazar aane wali hain :dost:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,419
116,351
354
Sahi kaha yaar dono chachere bhaiyo ko sudharna hi padega ..
Jab tak kisi ke paap ya gunaah ka ghada nahi bharta tab tak aise kisi bhi paapi ya gunahgaar ko kisi se saza nahi milti. Wahi baat in do chachere bhaiyo par laagu hoti hai. Vaibhav chaahta to unhe pahle hi sabak sikha diya hota lekin socho usse kya hota? Baat bigad jaati bhai kyoki apne hi ghar ka maamla hai. Menka chachi aur jagtap chacha ke man me alag hi soch paida ho jati. Waise bhi jab tak kisi cheez ka thos pramaad na ho to us par hath nahi daalna chahiye. Yahi vajah hai vaibhav ne ab tak kuch nahi kiya, lekin iska matlab ye nahi hai ki wo aage bhi kuch nahi karega. Samay aane do bhai, uchit samay par unka bhi hisaab hoga lekin aise ki us hisaab se kisi ko bhi apatti na hone paye :D
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,419
116,351
354
TheBlackBlood मित्र - क्या बढ़िया भावनाओ का चित्रण किया है, एक स्त्री जिसका पति एक भविष्यवाणी के आधर पर अल्प आयु है व उन्हें सन्तान के सुख का भी इन्तजार है, उन का चित्रण अद्भुत है.. ये कुंवर दोनों भाइयो को लेकर कान्हा चले जाते हैं, वैभव का नया रूप सामने आ रहा है, अनुराधा के संग रोमांस बहुत बढ़िया.....
Shukriya bhai,
Is kahani me bahut kuch hai, pyar hai, dhokha hai, chhal kapat hai, jaalsaazi hai, tyaag hai, prabal bhavnaaye hain, samarpan hai, rahasya hai aur action to hoga hi. Main chaahta hu ye jo kuch bhi hain in sabko apni apni jagah par sahi tarike se darsha saku taaki in sabka level badhiya rahe. Mera reader bhaiyo se yahi nivedan hai ki wo thoda dhairya banaye rakhe :declare:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,419
116,351
354
Jabarjast update tha bhai.
Vaibhav aur Bhabhi ke beech najdiki hai bhi aur duri bhi. Lagta hai Bhabhi ke karib lane ke liye Vaibhav ke bhai ko niptana pad jayega haha. Waisi same condition Anuradha ke sath bhi lagti hai.
Khair ye sab toh chalta rhega lekin thoda story me action wale part ka intezar hai ab. Dekhna hai Vaibhav apne bhaiyo aur Gaurav ke liye kya krta hai.
Shukriya bhai is pratikriya ke liye,
Maujooda paristhiti me action ka kaam nahi hai bhai, kyoki cheezo ko thande dimaag se sahi jagah par fix rakhne ki zarurat hai aur vaibhav wahi kar raha hai. Jab action ka number aayega tab wo rukega nahi. Khair dekhiye kya hota hai :dost:
 

Sanju@

Well-Known Member
4,723
18,989
158
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 14
----------☆☆☆---------




अब तक,,,,,

"तो तुम इस वक़्त इस घर में अकेली हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से पूछा____"क्या तुम काकी के साथ गेहू कटवाने नहीं गई?"
"ग‌ई थी।" अनुराधा ने कहा____"लेकिन सिर दर्द करने लगा था तो माँ ने मुझे घर जाने को कह दिया। अभी थोड़ी देर पहले ही यहाँ आई हूं।"

अनुराधा इस वक़्त घर में अकेली थी और ये जान कर पता नहीं क्यों मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गईं थी। मुमकिन था कि मेरे जैसा ही हाल अनुराधा का भी होगा। आज से पहले कभी वो मेरे सामने अपने घर में अकेली नहीं थी। वो बरामदे के पास ही चुप चाप खड़ी थी और अपने दुपट्टे के छोर को पकड़ कर उसे कभी इधर उमेठती तो कभी उधर। मैं उसके मासूमियत से भरे चेहरे को ही निहारे जा रहा था और मेरा ज़हन न जाने क्या क्या सोचने में लगा हुआ था। अभी मैं सोचमे गुम ही था कि अचानक उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी और जो कुछ उसने कहा उसने मेरे चेहरे का रंग ही उड़ा दिया।


अब आगे,,,,,


"क्या हुआ छोटे ठाकुर?" मेरे चेहरे का उड़ा हुआ रंग देख अनुराधा ने इस बार मेरी तरफ एकटक देखते हुए कहा____"बताइए ना, उस रात आप और माँ एक साथ ही थे ना?"

अनुराधा ने यही बात पूछी थी मुझसे जिससे मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था। हलांकि मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाल लिया था मगर तब तक शायद देर हो चुकी थी और अनुराधा मेरे चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर समझ गई थी।

"सुना तो मैंने भी था आपके बारे में।" मुझे चुप देख अनुराधा ने संजीदगी से कहा____"मगर जब आप पिता जी के साथ इतने महीने से इस घर में आते जाते रहे और मैंने भी कभी आपको कुछ ग़लत करते नहीं देखा तो मुझे लगा कि मैंने बेकार में ही आपके बारे में तरह तरह की बातें सुनी थी। मैं आपको बहुत अच्छा इंसान समझने लगी थी छोटे ठाकुर मगर उस रात आपने जो किया उससे ये साबित हो गया कि मैंने जो कुछ आपके बारे में सुना था वो सब सच ही तो था। भला मैं ये कैसे सोच सकती थी कि जिस इंसान को मैं अच्छा समझती हूं वो असल में एक ऐसा इंसान है जो ना तो कोई रिश्ता देखता है और ना ही उमर। वो ये भी नहीं सोचता कि जिस इंसान ने बुरे वक़्त में उसकी इतनी मदद की थी उसी के घर की औरत को उसने अपनी हवश का शिकार बना लिया है। अगर उस रात मैं अपनी आँखों से वो सब नहीं देखती तो शायद मैं कभी भी कही सुनी बातों पर यकीन नहीं करती मगर सच तो आँखों के सामने ही जैसे निर्वस्त्र हो के खड़ा था।"

अनुराधा की बातों ने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया था और मुझ में कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं रह गई थी किन्तु ज़हन में ये सवाल ज़रूर चकरा रहा था कि अगर अनुराधा ने उस रात सब कुछ देख ही लिया था तो दूसरे दिन सुबह जब उसने इस बारे में मुझसे बात की थी तो उसने खुल कर सब कुछ मुझे क्यों नहीं बता दिया था? बल्कि उसने तो अपनी बातों से यही ज़ाहिर किया था कि उसने कुछ नहीं देखा है। तभी मेरे मन में ख़याल आया कि अनुराधा ने शायद इस लिए ये सब मुझसे पहले नहीं कहा होगा क्योंकि उसे मुझसे बात करने का सही मौका ही नहीं मिला होगा।

"दूसरे दिन सुबह जब मैंने आपसे इस बारे में पूछा तो आपने मुझसे झूठ कहा कि आपने माँ को नहीं देखा था।" मुझे सोचो में गुम देख अनुराधा ने फिर कहा____"मैं चाहती तो उसी वक़्त आपको सब बता देती कि मैंने आप दोनों की करतूतें अपनी आँखों से देख ली हैं मगर मैं उस वक़्त आपसे ऐसा नहीं कह पाई थी क्योंकि मुझे इस बारे में आपसे बात करने में बेहद शर्म महसूस हो रही थी।"

"मुझे माफ़ कर दो अनुराधा।" मैं भला अब इसके सिवा क्या कहता____"मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हुई है।"
"माफी मांग लेने से क्या आपका गुनाह मिट जाएगा छोटे ठाकुर?" अनुराधा ने शख़्त भाव से कहा____"और फिर वो गुनाह सिर्फ आपने ही बस तो नहीं किया था बल्कि मेरी माँ ने भी तो किया था। मैंने देखा था कि कैसे वो अपनी इच्छा से वो सब ख़ुशी ख़ुशी कर रही थी। मुझे तो सोच कर ही घिन आती है कि मेरी अपनी माँ ने ऐसा घिनौना काम अपने बेटे की उम्र के लड़के के साथ किया।"

बोलते बोलते अनुराधा का चेहरा सुर्ख पड़ गया था। मैं पहली बार उस मासूम का ये रूप देख रहा था। हमेशा शांत रहने वाली लड़की आज मुझसे बड़ी ही शख़्ती से बात कर रही थी और इधर मैं किसी से भी न डरने वाला उसकी ऐसी बातें सुन कर अपराधी की भाँति अपनी गर्दन को झुकाए खड़ा रह गया था।

"जगन काका ने ठीक ही कहा था कि आपने ही उनके भाई की हत्या की है।" अनुराधा ने ये कहा तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा____"और मुझे भी यही लगता है कि आपने ही मेरे बाबू की हत्या की है।"

"नहीं अनुराधा ये झूठ है।" मैंने जैसे हताश भाव से कहा मगर उसने जैसे फटकारते हुए कहा____"अपनी गन्दी जुबान से मेरा नाम मत लीजिए छोटे ठाकुर। मेरे दिल में आपके प्रति जो इज्ज़त बनी थी वो उसी दिन मिट गई थी जिस दिन मैंने अपनी आँखों से आपको मेरी माँ के साथ वो घिनौना काम करते देखा था।"

"मैं मानता हूं कि मैंने काकी के साथ वो सब घिनौना काम कर के बहुत बड़ा गुनाह किया है।" मैंने शर्मिंदगी से कहा____"इसके लिए तुम जो चाहो सज़ा दे दो मुझे मगर मेरा यकीन मानो मैंने मुरारी काका की हत्या नहीं की है। भला मैं अपने फरिश्ता जैसे काका की हत्या क्यों करुंगा?"

"मुझे मूर्ख मत समझिए छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूं जो कुछ समझती ही नहीं हूं। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि आपने ही मेरे बाबू की हत्या की है क्योंकि आपके और माँ के नाजायज़ सम्बन्धों के बारे में मेरे बाबू को भी पता चल गया रहा होगा और जब उन्होंने आपसे इस बारे में कुछ कहा होगा तो आपने उन्हें जान से मार देने का सोच लिया। इसके लिए आपने उस रात मेरे बाबू को जम कर शराब पिलाई और उन्हें घर ले आए। मैंने देखा था उस रात मेरे बाबू को शराब के नशे में किसी बात का भी होश नहीं था। रात में आपने खाना खाया और चले गए। उसके बाद आपने हमारे सो जाने का इंतज़ार किया और जब आपने सोचा कि हम सब खा पी कर सो गए होंगे तो आप चुपके से यहाँ आए और बाबू को बहला फुसला कर घर के पीछे ले गए और फिर वहां आपने मेरे बाबू की हत्या कर दी।"

अनुराधा की ये बातें सुन कर मैं उसे हैरानी से इस तरह देखने लगा था जैसे अचानक ही अनुराधा के सिर पर आगरे का ताजमहल आ कर नाचने लगा हो। अनुराधा ने बड़ी ही कुशलता से मुझे अपने पिता का हत्यारा साबित कर दिया था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि भोली भाली सी दिखने वाली इस लड़की का ज़हन इतना कुछ भी सोच सकता है।

"अब चुप क्यों हो गए छोटे ठाकुर?" मुझे ख़ामोश देख अनुराधा ने कठोर भाव से कहा____"क्या ये सोचने लगे हैं कि मैंने आपको बेनक़ाब कर दिया है? मैं चाहती तो उसी दिन ये सब बातें चीख चीख कर सबके सामने कह देती मगर ये सोच कर चुप रही कि मेरे कहने से आपका भला क्या बिगड़ जाएगा? आप तो बड़े लोग हैं। भला हम ग़रीब लोग दादा ठाकुर के बेटे का क्या बिगाड़ लेंगे? इस लिए चुप ही रही और आज सोचती हूं कि सच ही तो सोचा था मैंने। क्योंकि मेरे बाबू की लाश सुबह से दोपहर तक पड़ी रह गई थी मगर जगन काका के रपट लिखाने के बाद भी दरोगा नहीं आया था। आता भी कैसे? दादा ठाकुर ने उसे पैसा खिला कर उसको मेरे बाबू की हत्या की जांच करने से ही मना कर दिया होगा।"

"ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है अनुराधा।" मैंने बेबस भाव से कहा____"तुम बेवजह ही जाने क्या क्या सोच रही हो। मैं ये मानता हूं कि मैंने और काकी ने एक साथ नाजायज़ सम्बन्ध बना कर गुनाह किया है और उसके लिए मैं तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं। लेकिन मैं अपने माता पिता की, यहाँ तक कि खुद अपनी क़सम खा कर कहता हूं कि मैंने मुरारी काका की हत्या नहीं की है। उन्हें मेरे और काकी के सम्बन्धों के बारे में कुछ भी नहीं पता था और जब उन्हें कुछ पता ही नहीं था तो वो मुझसे इस बारे में कैसे कुछ कहते और जब वो कुछ कहते ही नहीं तो मैं उनकी हत्या भला कैसे कर देता? एक पल के अगर ये मान भी लिया जाए कि काका को इन सम्बन्धों का पता था तब भी मैं उनकी हत्या करने जैसा गुनाह नहीं करता। मैं उनके पैरों में गिर कर उनसे अपने गुनाहों के लिए माफ़ी मांगता और उनसे कहता कि वो जो चाहें मुझे सज़ा दे दें। तुम यकीन नहीं करोगी अनुराधा मगर ये सच है कि आज के वक़्त में अगर किसी के लिए मेरे दिल में इज्ज़त और सम्मान की भावना है तो वो हैं मुरारी काका।"

"मुझे आप पर और आपकी बातों पर ज़रा सा भी भरोसा नहीं हो सकता छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने सपाट लहजे में कहा____"और हां एक बात और...मेरी आपसे हाथ जोड़ कर विनती है कि अब से आप यहाँ मत आइएगा। मैं अपने बाबू के हत्यारे को और मेरी माँ के साथ घिनौना काम करने वाले की सूरत भी नहीं देखना चाहती। अब आप जा सकते हैं।"

"मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं अनुराधा?" मैंने हताश भाव से ये कहा ही था कि अनुराधा ने गुस्से में कहा____"मैंने कहा ना कि अपनी गन्दी जुबान से मेरा नाम मत लीजिए?"

"मैंने जो किया है उसको मैं तहे दिल से कबूल कर रहा हूं।" मैंने कहा____"और उसके लिए तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं।"
"मैं कौन होती हूं आपको सज़ा देने वाली?" अनुराधा ने अजीब भाव से कहा____"आप बड़े लोग हैं। आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"

"ये सच है कि दूसरा कोई भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।" मैंने दो क़दम अनुराधा की तरफ बढ़ कर कहा____"मगर मुरारी काका के घर का हर सदस्य मेरा सब कुछ बिगाड़ सकता है। तुम्हें पूरा हक़ है अनुराधा कि तुम अपनी मर्ज़ी से जो चाहो मुझे सज़ा दे दो। मैं तुम्हारी हर सज़ा को ख़ुशी ख़ुशी कबूल कर लूंगा मगर मेरा यकीन करो मैंने मुरारी काका जैसे देवता की हत्या नहीं की है। वो मेरे लिए देवता जैसे ही थे और तुम्हारी तरह मुझे भी उनकी इस तरह हत्या हो जाने से दुःख है।"

पता नहीं मेरी बातों का असर था या कुछ और मगर इस बार अनुराधा कुछ बोली नहीं थी बल्कि मेरी तरफ अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे का गुस्सा गायब होता प्रतीत हो रहा था और फिर से उसके चेहरे पर उसकी मासूमियत नज़र आने लगी थी। उसके चेहरे के बदलते भाव देख कर अभी मैंने राहत की सांस ली ही थी कि तभी अचानक फिर से उसके चेहरे के भाव पहले जैसे होते दिखे।

"आप मुझे बहला नहीं सकते छोटे ठाकुर।" फिर उसने कर्कश भाव से कहा____"मैं गांव की बांकी लड़कियों जैसी नहीं हूं जो आपकी बातों के जाल में फंस जाऊंगी और आपके लिए अपना सब कुछ लुटा दूंगी। ख़बरदार मेरे बारे में ऐसा सोचना भी मत। अब चले जाइए यहाँ से, मैं दादा ठाकुर के बेटे की सूरत भी नहीं देखना चाहती।"

"तुम्हें मेरा जितना अपमान करना हो कर लो अनुराधा।" मैं सच में उसकी बातों से खुद को बुरा महसूस करने लगा था, इस लिए थोड़ा दुखी भाव से बोला____"अगर तुम्हें मेरा इस तरह से अपमान करने में ही ख़ुशी मिलती है तो यही सही किन्तु एक बात मेरी भी सुन लो। मैं चार महीने पहले तक यकीनन बहुत बुरा था और गांव की हर लड़की या औरत को अपने नीचे लेटाने की ही सोचता था मगर अपने पिता द्वारा गांव से निष्कासित किये जाने पर जब से यहाँ आया हूं तब से मैं वैसा नहीं रहा। मुरारी काका से मुलाक़ात हुई और उनके साथ जब इस घर में आया तो तुम्हे देखा। शुरुआत में तुम्हें देख कर मेरे मन में यही आया था कि तुम्हें भी बांकी लड़कियों की तरह एक दिन अपने जाल में फसाऊंगा मगर मैं ऐसा नहीं कर सका। जानती हो क्यों? क्योंकि जब भी तुम्हें देख कर तुम्हें अपने जाल में फसाने की सोचता था तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारने लगती थी और कहती थी कि और कितनी मासूम कलियों को मसल कर उन्हें बर्बाद करोगे ठाकुर वैभव सिंह? अपनी आत्मा की इस आवाज़ पर हर बार मेरे इरादे ख़ाक में मिल जाते थे। उसके बाद तो फिर मैंने इस बारे में सोचना ही बंद कर दिया। तुम खुद ही मुझे बताओ कि क्या मैंने कभी तुम पर ग़लत नज़र डाली है? मैंने तो हमेशा ही अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना किया था मगर तुमसे रूबरू होने के बाद मैं खुद नहीं जानता कि क्यों मैंने अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना नहीं किया?"

इतना सब कहने के बाद मैं चुप हो गया और अनुराधा की तरफ देखने लगा। अनुराधा के चेहरे के भाव फिर से मुझे बदलते दिख रहे थे। ये सच था कि मैंने ये सब कह कर कोई डींगे नहीं मारी थी बल्कि अपने अंदर का सच ही कहा था और अब मैं एक सुकून सा महसूस कर रहा था। हलांकि इस बात से मैं अभी भी चिंतित था कि अनुराधा मुझे अपने बाप का हत्यारा समझती है जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।

"इन सब बातों के बाद भी अगर तुम मुझे ग़लत ही समझती हो तो कोई बात नहीं।" अनुराधा जब कुछ न बोली तो मैंने कहा____"तुम नहीं चाहती तो आज के बाद कभी तुम्हें अपनी सूरत नहीं दिखाऊंगा मगर मैं भी तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक मुरारी काका के असल हत्यारे का पता नहीं लगा लेता। जिस दिन मैंने असल हत्यारे को पकड़ लिया उसी दिन उस हत्यारे को ले कर तुम्हारे सामने आऊंगा और ये ठाकुर वैभव सिंह का वादा है तुमसे। चलता हूं अब।"

"रूक जाइए।" कहने के बाद मैं पलटा ही था कि पीछे से अनुराधा की ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, जिसे सुन कर मैं ठिठक गया। मुझे रुक गया देख उसने इस बार थोड़े नरम लहजे में कहा____"समय बहुत ख़राब चल रहा है छोटे ठाकुर इस लिए अपना ख़याल रखिएगा।"

अनुराधा की ये बात सुन कर मैं मन ही मन बुरी तरह चौंका और पलट कर हैरानी से उसकी तरफ देखा। मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि अनुराधा ऐसा कहेगी। दूसरी चौंकाने वाली बात ये थी कि उसने समय के ख़राब होने की बात क्यों कही थी मुझसे और मुझे अपना ख़याल रखने के लिए क्यों कहा था उसने?

"ये क्या कह रही हो तुम?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"समय ख़राब चल रहा है का क्या मतलब है और ये क्यों कहा कि मैं अपना ख़याल रखूं?"
"मैं जानती हूं कि आपने मेरे बाबू की हत्या नहीं की है।" अनुराधा ने सपाट लहजे में कहा____"मैंने तो बस ऐसे ही कहा था मगर इसका मतलब ये नहीं है कि मैंने आपको माफ़ कर दिया है। आपने जो घिनौना काम किया है उसके लिए मैं आपको कभी माफ़ नहीं कर सकती। अब रही बात इसकी कि मैंने समय ख़राब चलने की बात और आपको अपना ख़याल रखने की बात क्यों कही तो इसका जवाब ये है कि जो लोग मुसीबत मोल ले कर अकेले ही रास्तों पर चलते हैं उनके लिए ये ज़रूरी ही होता है कि वो अपना ख़याल रखें।"

"मैं कुछ समझा नहीं।" मैंने उलझ गए भाव से कहा____"आख़िर तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?"
"इतने नासमझ तो नहीं लगते छोटे ठाकुर जो मेरी इतनी सी बात का मतलब भी ना समझ पाएं।" अनुराधा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"अब जाइए यहाँ से। जगन काका दिन में कई बार यहाँ आ कर हमारा हाल चाल देखते हैं। अगर उन्होंने आपको यहाँ देख लिया तो आपका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन वो मेरे बारे में ग़लत ज़रूर सोच बैठेंगे और मैं नहीं चाहती कि पिता सामान मेरे काका मुझे शक की नज़रों से देखने लगें।"

अनुराधा की बातें सुन कर मैं कुछ देर उसके मासूम से चेहरे की तरफ देखता रहा। वो खुद भी मुझे ही देख रही थी। ये अलग बात है कि जल्दी ही उसने अपनी नज़रों को मुझ पर से हटा लिया था। उसके बाद मैं पलटा और घर से बाहर निकल गया। अपने मन में कई तरह के सवाल लिए मैंने बुलेट को स्टार्ट किया और मुरारी काका के गांव की तरफ चल दिया। इस बार मैं मुख्य सड़क से अपने गांव की तरफ जाना चाहता था।

मुरारी काका के गांव से होते हुए मैं मुख्य सड़क पर आ गया था और मेरी बुलेट कच्ची सड़क पर पीछे की तरफ धूल उड़ाते हुए जैसे उड़ी चली जा रही थी। सड़क के दोनों तरफ खेत थे जिनमे गेहू की पकी हुई फसल खड़ी थी और कुछ दूरी पर कुछ किसान लोग फसल की कटाई में भी लगे हुए थे। मैं अनुराधा की बातें सोचते हुए बुलेट चला रहा था कि तभी सामने कुछ दूर सड़क पर मुझे एक जीप खड़ी हुई दिखी और उस जीप के पास कई सारे लोग भी खड़े हुए दिखे। दूर से ही मैंने उस जीप को पहचान लिया। जीप हमारी ही थी किन्तु मैं ये सोचने लगा कि दोनों गांवों के बीच इस जगह पर हमारी जीप क्यों खड़ी थी? थोड़ा और पास गया तो जीप के ही पास खड़े लोगों के चेहरे साफ़ दिखे तो मैं उन चेहरों को भी पहचान गया।

जीप के पास बड़े भैया विभोर और अजीत के साथ खड़े थे और उन तीनों के सामने चार दूसरे लड़के खड़े थे। मैं उन चारों लड़कों को पहचान गया। वो चारों साहूकारों के लड़के थे। मैं समझ गया कि मेरे भाइयों के बीच साहूकारों के लड़कों की कोई बात चीत हो रही है। तभी उन सबकी नज़र मुझ पर पड़ी। मैं अब उनके काफी पास आ गया था। मेरी बुलेट जैसे ही उनके पास आ कर रुकी तो उन चारों लड़कों के चेहरे के भाव बदल गए और इधर बड़े भैया और विभोर अजीत के चेहरे पर भी अजीब से भाव उभर आए।

"क्या हो रहा है यहाँ?" मैंने बुलेट में बैठे बैठे ही शख़्त भाव से उन चारों की तरफ देखते हुए कहा तो वो चारों तो कुछ न बोले किन्तु बड़े भैया बोल पड़े____"तुम्हारी ज़रूरत नहीं है यहां। हम सम्हाल लेंगे इन्हें।"

"क्या इन लोगों ने आपका रास्ता रोका है?" मैंने इस बार थोड़ा और शख़्त भाव से कहा तो बड़े भैया ने इस बार गुस्से में कहा____"मैंने कहा न कि तुम्हारी ज़रूरत नहीं है, हम सम्हाल लेंगे। तुम जाओ यहाँ से।"

"लगता है गांव से निकाले जाने के बाद चार महीना जंगल में रह कर भी छोटे ठाकुर की गर्मी नहीं उत्तरी है।" साहूकारों के उन चारों लड़कों में से एक ने ब्यंग से मुस्कुराते हुए कहा____"किसी ने सच ही कहा है कि रस्सी जल गई पर बल नहीं गया।"

उसकी ये बात सुन कर बाकी के तीनों हंसने लगे तो मेरी झांठें सुलग गईं। मेरा चेहरा पलक झपकते ही गुस्से में तमतमा गया। मैं एक झटके से मोटर साइकिल से नीचे उतरा और बिजली की सी तेज़ी से आगे बढ़ कर मैंने एक मुक्का उस बोलने वाले लड़के के चेहरे पर जड़ दिया जिससे वो दूसरे वाले से टकराया तो दूसरा भी भरभरा कर तीसरे वाले से जा टकराया। इधर मेरे ऐसा करने पर बड़े भैया गुस्से में मुझे रुक जाने को बोले तो मैंने क़हर भरी नज़रों से उनकी तरफ देखा। मुझे गुस्से से अपनी तरफ देखता देख वो एकदम से चुप हो गए और उनके बगल से खड़े विभोर और अजीत सहम गए।

बड़े भैया को गुस्से से देखने के बाद अभी मैं वापस पलटा ही था कि उनमे से एक ने मुझे ज़ोर का धक्का मारा जिससे मैं पीछे फिसलते हुए बुलेट से जा टकराया। उनके द्वारा धक्का दिए जाने से मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया। इससे पहले कि उनमे से कोई मुझ पर हमला करता मैंने एक को अपने पास देखा तो ज़ोर से एक लात उसके पेट में लगा दी जिससे वो दर्द से चीखते हुए पीछे की तरफ फिसलता चला गया। मुझे सम्हलने का मौका मिल चुका था इस लिए जैसे ही दूसरे ने मुझे मारने के लिए अपना एक हाथ चलाया तो मैंने गर्दन को दाएं तरफ कर के उसका वो हाथ पकड़ लिया और इससे पहले कि वो कुछ कर पाता मैंने तेज़ी से उसकी तरफ अपनी पीठ की और उसके उस हाथ को अपने दाएं कंधे पर रख कर नीचे की तरफ ज़ोर का झटका दिया। वातावरण में कड़कड़ की आवाज़ हुई और साथ ही दर्दनाक चीख भी गूँज उठी। मैंने उसका हाथ तोड़ दिया था। वो अपना हाथ दूसरे हाथ से पकड़े बुरी तरह दर्द से तड़पने लगा था। उसका ये हाल देख कर बाकी तीनों सकते में आ ग‌ए।

"वैभव ये तुमने क्या कर दिया?" पीछे से बड़े भैया की गुस्से में डूबी ये आवाज़ गूँजी तो मैंने पलट उनकी तरफ देखा और कहा____"अब आप जा सकते हैं यहाँ से। अगर आपको मेरी ज़रूरत नहीं थी तो मुझे भी किसी की ज़रूरत नहीं है। इन हिजड़ों के लिए वैभव सिंह अकेला ही काफी है।"

"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि तुमने क्या किया है?" बड़े भैया ने गुस्से में कहा____"तुमने गुस्से में मानिक का हाथ तोड़ दिया है और इसके लिए इसका बाप पंचायत बुला कर तुम्हें सज़ा भी दिलवा सकता है।"

बड़े भैया की बात का अभी मैं जवाब देने ही वाला था कि तभी मेरी नज़र दाएं तरफ पड़ी। उनमे से एक लकड़ी का मोटा सा डंडा लिए मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ा था। लकड़ी का वो डंडा जाने कहां से उसके हाथ में आ गया था। शायद सड़क के किनारे खेत पर ही कहीं पड़ा हुआ दिखा होगा उसे। ख़ैर जैसे ही उसने उस लकड़ी के डंडे को घुमा कर मेरी तरफ उसका प्रहार किया तो मैं जल्दी से झुक गया जिससे उसका वॉर मेरे सिर के ऊपर से निकल गया। प्रहार इतना तेज़ था कि वो खुद भी उसके ज़ोर पर तिरछा हो गया था और इससे पहले कि वो सीधा होता मैंने उछल कर एक लात उसकी पीठ पर मारी जिससे वो भरभरा कर ज़मीन पर जा गिरा। लकड़ी का डंडा उसके हाथ से छूट गया था जिसे मैंने फ़ौरन ही आगे बढ़ कर उठा लिया। अब मेरे हाथ में लकड़ी का वो मोटा सा डंडा था और आँखों में भयंकर गुस्से की आग।

"रूक जाओ अब, बहुत हो गया।" मुझे डंडा ले कर उनमे से एक की तरफ बढ़ते देख पीछे से बड़े भैया ज़ोर से चिल्लाए____"अब अगर तुमने किसी को मारा तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा।"
"इतनी भी कायरता मत दिखाइए बड़े भइया।" मैंने पलट कर शख़्त भाव से कहा____"कि आपके ठाकुर होने पर ही सवाल खड़ा हो जाए।"

"अपनी जुबान को लगाम दो वैभव।" बड़े भैया ने गुस्से से हुंकारते हुए कहा____"ठाकुर का मतलब ये नहीं होता कि बेवजह किसी का हाथ ही तोड़ दिया जाए।"
"तो आपकी नज़र में मैंने बेवजह ही इस हरामज़ादे मानिक का हाथ तोड़ा है?" मैंने गुस्से से हांफते हुए कहा____"वाह भैया वाह! आपको ये नहीं सुनाई दिया कि इसने आपके छोटे भाई को क्या कहा था, उल्टा आप इन लोगों की ही पैरवी करने लगे?"

"उसने जो कहा उसके लिए तुम्हें उसका हाथ तोड़ने की क्या ज़रूरत थी?" बड़े भैया ने शख़्त भाव से कहा____"दूसरे तरीके से भी तो उसे जवाब दे सकते थे तुम?"
"ठाकुर वैभव सिंह को सिर्फ एक ही तरीका आता है बड़े भइया।" मैंने उनकी आँखों में देखते हुए कहा____"और वो ये कि औकात से बाहर वाले अगर अपनी औकात दिखाएं तो उन्हें उसी वक्त उनकी औकात अपने तरीके से दिखा दो। ये हरामज़ादा साला अपनी औकात भूल गया था इस लिए इसे इसकी औकात दिलाना ज़रूरी हो गया था।"

"औकात तो अब मैं तुझे दिखाऊंगा वैभव सिंह।" पीछे से मानिक की ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मेरा गुस्सा फिर से आसमान छूने लगा और मैं डंडा लिए उसकी तरफ तेज़ी से बढ़ा और इससे पहले कि बड़े भैया मुझे रोक पाते मैंने घुमा कर डंडे का वार उसकी टांग पर किया तो वो हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाया।

"तेरी माँ को चोदूं मादरचोद।" डंडा मारने के बाद मैंने गुस्से से कहा____"तू मेरी औकात दिखायेगा मुझे? अपने बाप हरिशंकर से जा कर मेरी औकात पूछ, जो मुझे देखते ही अपना सिर झुका कर मुझे सलाम करने लगता है। साले रंडी की औलाद तू मुझे औकात दिखाएगा? चल उठ बेटीचोद, मैं तुझे तेरे ही घर में तेरी औकात दिखाऊंगा। फिर तू भी देखेगा कि तेरा बाप और तेरा पूरा खानदान कैसे मेरे तलवे चाटने लगेगा। उठ मादरचोद वरना जान से मार दूंगा।"

मैंने एक लात उसके पेट में मारी तो वो फिर से दर्द में बिलबिलाया। उसके साथ आए उसके भाई और चाचा के लड़के सहमे से खड़े हुए थे। उनमे अब हिम्मत ही नहीं थी कि वो मेरा प्रतिकार कर सकें। तभी पीछे से मुझे जीप के स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने पलट कर देखा तो बड़े भैया विभोर और अजीत के साथ जीप में बैठ कर गांव की तरफ चल पड़े थे। मुझे उनके इस तरह चले जाने से घंटा कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।

"उठ ना मादरचोद।" मानिक जब न उठा तो मैंने गुस्से में एक लात और उसके पेट में जमा दी____"चल मैं तुझे तेरे ही घर में तेरे ही घर वालों के सामने तेरी औकात दिखाता हूं। तू अपनी आँखों से देखेगा कि जब मैं तुझे तेरी औकात दिखाऊंगा तब तेरे घर वाले कैसे तेरे लिए मुझसे रहम की भीख माँगेंगे।"

"इसे माफ़ कर दीजिये छोटे ठाकुर।"मानिक के चाचा के लड़के ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा____"अब से हम में से कोई भी आपसे बददमीची से बात नहीं करेगा। भगवान के लिए इसे छोड़ दीजिए।"
"तू इसे अभी के अभी उठा और घर ले चल।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"आज मैं इसे इसके ही घर में इसकी औकात दिखाऊंगा। क्यों रे मादरचोद अब बोलता क्यों नहीं तू? बोल वरना यही डंडा तेरी गांड में डाल दूंगा।"

"मुझे माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" मैंने इस बार जब ज़ोर से उसके पिछवाड़े पर डंडा मारा तो वो दर्द से कराहते हुए बोल पड़ा था____"अब से ऐसी ग़लती नहीं होगी।"
"क्यों इतनी जल्दी अपनी औकात पहचान गया तू?" मैंने उसके सीने में अपना एक पैर रख कर उस पर दबाव बढ़ाते हुए कहा_____"चल अब बता मेरे भाइयों को बीच सड़क पर क्यों रोक रखा था तूने?"

"हम तो बस उनसे उनका हाल चाल ही पूछ रहे थे।" मानिक ने दर्द से कराहते हुए कहा____"वो क्या है न कि आज होलिका दहन है और फिर कल रंगों की होली भी है। उसी के बारे में चर्चा भी कर रहे थे।"

"आज से पहले तो कभी ऐसे त्योहारों के लिए तुम लोगों ने हमसे चर्चा नहीं की थी।" मैंने उसे घूरते हुए कहा____"फिर आज ये चर्चा क्यों? सच सच बता वरना ये डंडा देख रहा है न? इसे तेरी गांड में घुसाने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगाऊंगा मैं।"

"मैं सच ही कह रहा हूं छोटे ठाकुर।" मानिक ने हकलाते हुए कहा___"हम इसी बारे में चर्चा कर रहे थे। ये सच है कि आज से पहले कभी हमारा खानदान ठाकुर खानदान के साथ ऐसे त्योहारों पर एक साथ नहीं रहा लेकिन इस बार अगर हम एक साथ रहें तो इसमें ग़लत ही क्या है? हमारे घर के बड़े बुजुर्ग भी इस बारे में चर्चा कर रहे थे कि ठाकुरों से हमें अपने रिश्ते सुधार लेने चाहिए और मिल जुल कर हर त्यौहार में साथ ही रहना चाहिए।"

"कमाल है।" मैंने ब्यंग से मुस्कुराते हुए कहा____"साहूकारों को इतनी अकल कहां से आ गई और ये भी कि वो ये कैसे सोचने लगे कि उन्हें हमसे अपने रिश्ते सुधार लेने चाहिए? तू साले मुझे चूतिया समझता है क्या जो मैं तेरी इस बात पर यकीन कर लूंगा?"

"सच यही है छोटे ठाकुर।" मानिक ने कराहते हुए कहा____"मैं जानता हूं कि आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं हो सकता इस लिए अगर आप चाहें तो मेरे घर जा कर खुद इस बात की तस्दीक कर सकते हैं?"

"वो तो मैं करुंगा ही।" मैंने उसके सीने से अपना पैर खींच कर वापस ज़मीन पर रखते हुए कहा____"और अगर मुझे पता चला कि तेरी ये बातें सिरे से ही झूंठी हैं तो सोच लेना इस गांव से साहूकारों का नामो निशान मिटा दूंगा मैं।"

"बिल्कुल छोटे ठाकुर।" मानिक ने दर्द को सहते हुए कहा____"वैसे इस बारे में मेरे पिता जी ने दादा ठाकुर जी से भी बात की थी। आप चाहें तो दादा ठाकुर जी से खुद भी इस बारे में पूछ सकते हैं।"

मानिक की इस बात से मैं सोच में पड़ गया था। मुझे ज़रा भी यकीन नहीं हो रहा था कि गांव के साहूकार लोग हम ठाकुरों से अपने सम्बन्ध सुधारना चाहते हैं। जब से मैंने होश सम्हाला था तब से मैं यही देखता आया था कि शाहूकार हमेशा से ही हमारे खिलाफ़ रहे हैं। हलांकि मुझे इसकी मूल वजह का पता नहीं था और ना ही मैंने कभी जानने की कोशिश की थी। ख़ैर, मज़ेदार बात ये थी कि मेरे लंड ने साहूकारों के घर में भी अपने झंडे गाड़े थे। मानिक के ताऊ की दूसरे नंबर वाली लड़की को मैं कई बार पेल चुका था।

मैने मानिकचंद्र को छोड़ दिया था और उसे ये हिदायत भी दी कि अब अगर उसने अपनी औकात दिखाई तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा और साथ ही ये भी कहा कि मैं इस सच्चाई का पता खुद लगाऊंगा और अगर ये सच न हुआ तो इसके अंजाम के बारे में भी वो सोच लेगा।

बुलेट स्टार्ट कर के मैं गांव की तरफ चल पड़ा। मेरे ज़हन में अभी भी मानिक की बातें गूँज रही थी और मन में कई तरह के सवाल उभर रहे थे। अगर मानिकचंद्र की बात सच थी तो यकीनन उसके बाप ने पिता जी से इस बारे में बात की होगी। अब सवाल ये था कि क्या मुझे पिता जी से इस बारे में पूछना चाहिए? एक तरफ तो मैं हवेली के काम काज में कोई दिलचस्पी नहीं रखता था जबकि दूसरी तरफ ये जानना भी मैं ज़रूरी समझ रहा था। हलांकि सवाल तो ये भी था कि मैं भला इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी समझता था? मुझे तो इससे कोई मतलब नहीं था फिर इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी था मेरे लिए? क्या इस लिए कि मैं ये समझता था कि इस सबका का सम्बन्ध भी कहीं न कहीं मुरारी की हत्या और मेरी फसल में आग लगने से था?

मेरे ज़हन में पिता जी की बातें गूँज उठी। जिसमे वो कह रहे थे कि कुछ लोग हमारे खिलाफ़ कुछ ऐसा करने की फ़िराक में हैं जिससे हमारा वर्चस्व ही ख़त्म हो जाए। अब सवाल ये था कि ऐसे लोग क्या ये शाहूकार ही थे? गांव के साहूकारों ने अचानक ही हमसे अपने सम्बन्ध सुधारने के बारे में क्यों सोचा और सोचा ही नहीं बल्कि इसके लिए वो दादा ठाकुर से बात भी कर चुके हैं? मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि क्या ये किसी तरह की कोई साज़िश है जिसके तार जाने कहां कहां जुड़े हुए प्रतीत हो रहे हैं?


---------☆☆☆---------
वैभव और अनुराधा के मां के बीच जिस्मानी संबंध इस बात का अनुराधा को पता चल गया है और अनुराधा वैभव को हो अपने बाप का कातिल मानती है और उसे अपने घर से जाने के लिए कहती है ऐसा लगता है वो भी कुछ बातें वैभव से छुपा रही है । लेकिन जाने पर समय बहुत खराब है अपना ख्याल रखयिगा ऐसा बोलती
लेकिन क्या पहले तो बहुत गुस्सा है फिर ऐसा क्यू बोला कुछ तो जरूर हुआ है ????
वैभव के अंदर वो सब कुछ है जो एक ठाकुर में पाया जाता है ।खून भी काफी गरम है । साहूकारों के लड़के को बहुत बुरा मारता है और उसका हाथ तोड़ देता है जानी उसका बड़ा भाई न तो कुछ बोलता है और न ही उसकी सहायता करता है लेकिन क्यू?????? इसकी क्या वजह हैं साहूकारों के ठाकुरों से संबंध सुधारना चाहते हैं ये बात हजम नही हो रही है कुछ तो लोचा जरूर है


बहुत ही बढ़िया अपडेट है
 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
4,723
18,989
158
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 15
----------☆☆☆---------



अब तक,,,,,

बुलेट स्टार्ट कर के मैं गांव की तरफ चल पड़ा। मेरे ज़हन में अभी भी मानिक की बातें गूँज रही थी और मन में कई तरह के सवाल उभर रहे थे। अगर मानिकचंद्र की बात सच थी तो यकीनन उसके बाप ने पिता जी से इस बारे में बात की होगी। अब सवाल ये था कि क्या मुझे पिता जी से इस बारे में पूछना चाहिए? एक तरफ तो मैं हवेली के काम काज में कोई दिलचस्पी नहीं रखता था जबकि दूसरी तरफ ये जानना भी मैं ज़रूरी समझ रहा था। हलांकि सवाल तो ये भी था कि मैं भला इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी समझता था? मुझे तो इससे कोई मतलब नहीं था फिर इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी था मेरे लिए? क्या इस लिए कि मैं ये समझता था कि इस सबका का सम्बन्ध भी कहीं न कहीं मुरारी की हत्या और मेरी फसल में आग लगने से था?

मेरे ज़हन में पिता जी की बातें गूँज उठी। जिसमे वो कह रहे थे कि कुछ लोग हमारे खिलाफ़ कुछ ऐसा करने की फ़िराक में हैं जिससे हमारा वर्चस्व ही ख़त्म हो जाए। अब सवाल ये था कि ऐसे लोग क्या ये शाहूकार ही थे? गांव के साहूकारों ने अचानक ही हमसे अपने सम्बन्ध सुधारने के बारे में क्यों सोचा और सोचा ही नहीं बल्कि इसके लिए वो दादा ठाकुर से बात भी कर चुके हैं? मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि क्या ये किसी तरह की कोई साज़िश है जिसके तार जाने कहां कहां जुड़े हुए प्रतीत हो रहे हैं?


अब आगे,,,,,


मैं अपने ज़हन में कई सारे सवाल लिए गांव में दाखिल हुआ तो मेरी नज़र मुंशी के घर पर पड़ी। मुझे याद आया कि मैंने मुंशी की बहू को आज शाम बगीचे पर बुलाया है। अभी तो शाम होने में वक़्त था। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि आज रजनी को दबा के चोदूंगा। सरोज काकी के साथ संबंध बनाना अब मुश्किल ही था। अनुराधा को अब सब पता था और आज उसने इस बारे में बात कर के मुझे हिला कर भी रख दिया था। मैं इस बात से बेहद चिंतित हो उठा था कि अनुराधा की नज़र में अब मेरी कोई इज्ज़त नहीं रही। अनुराधा को हासिल करना भी जैसे अब मेरे लिए ख़्वाब ही बन कर रह गया था। अनुराधा एक ऐसी लड़की थी जिस पर मेरा कोई ज़ोर नहीं था। उसके सामने जाते ही मेरे अंदर का ठाकुर मानो भीगी बिल्ली बन जाता था। मैं अक्सर सोचता था कि ऐसा क्यों होता था? आख़िर मैं हर लड़कियों की तरह अनुराधा को भी अपने नीचे क्यों नहीं लेटा पाता? मेरे इन सवालों के जवाब मेरे पास जैसे थे ही नहीं।

मुंशी के घर के सामने से अभी मैं बुलेट से गुज़र ही जाने वाला था कि तभी मेरे कानो में मुंशी की आवाज़ पड़ी तो मैंने मोटर साइकिल की रफ़्तार को धीमी कर के रोक दिया। मुंशी ने छोटे ठाकुर कह कर पुकारा था मुझे। मैं जैसे ही उसके घर के सामने से गुज़रा था तभी वो अपने घर से निकला था और उसकी नज़र मुझ पर पड़ गई थी।

"अच्छा हुआ छोटे ठाकुर कि आप यहीं पर मिल गए मुझे।" मुंशी दौड़ कर मेरे पास आता हुआ बोला____"रघू की माँ ने बताया मुझे कि आपने मुझे मिलने के लिए कहा है तो मैं आपसे ही मिलने हवेली की तरफ जा रहा था।"

"हां मैं आया था एक डेढ़ घंटे पहले।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"मेरे पूछने पर काकी ने बताया था कि आप और रघुवीर कहीं गए हैं।"
"जी वो ठाकुर साहब के कहने पर शहर चला गया था।" मुंशी ने कहा____"कल रंगो का त्यौहार है न तो उसी सिलसिले में कुछ ज़रूरी सामान मंगवाया था ठाकुर साहब ने। ख़ैर आप बताइए किस लिए याद किया था आपने मुझे?"

"चलिए अंदर चल कर बात करते हैं।" मैंने कहने के साथ ही मोटर साइकिल को मोड़ कर मुंशी के घर के सामने खड़ी किया और फिर उतर कर मुंशी के घर की तरफ बढ़ चला।

कुछ ही देर में मैं और मुंशी घर के अंदर बैठक में आ कर बैठे गए। मुंशी ने अपने बेटे रघुवीर को आवाज़ दे कर मेरे लिए जल पान लाने को कहा तो वो जी बाबू जी कह कर अंदर चला गया।

"मैं चाहता हूं कि कल का त्यौहार हो जाने के बाद।" रघुवीर अंदर चला गया तो मैंने मुंशी से कहा____"आप कुछ कारीगर और मजदूरों को ले कर मेरे लिए एक मकान का निर्माण करवाएं।"

"मकान का निर्माण??" मेरी बात सुन कर मुंशी चौंका____"ये आप क्या कह रहे हैं छोटे ठाकुर?"
"इसमें इतना चौंकने की ज़रूरत नहीं है मुंशी जी।" मैंने सपाट भाव से कहा____"आप भी अच्छी तरह जानते हैं कि मुझे हवेली में सबके बीच रहना पसंद नहीं है। इस लिए मैं चाहता हूं कि जितना जल्दी हो सके आप एक छोटे से मकान का निर्माण कार्य शुरू करवा दें। मकान उसी जगह पर बनना चाहिए जहां पर मैं गांव से निष्कासित किए जाने पर चार महीने रहा हूं।"

"यदि आपका यही हुकुम है तो मैं ज़रूर आपके इस हुकुम का पालन करुंगा।" मुंशी ने गहरी सांस ले कर कहा____"किन्तु उससे पहले मुझे इसके लिए ठाकुर साहब से भी बात करनी पड़ेगी। आप तो जानते हैं कि उनकी इजाज़त के बिना मैं कुछ नहीं कर सकता।"

"ठीक है आप पिता जी से आज ही इस बारे में बात कर लीजिए।" मैंने कहा____"लेकिन इस बात का ख़याल रहे कि अगर पिता जी इस कार्य के लिए अपनी इजाज़त नहीं भी देते हैं तब भी आपको ये कार्य करना है।"

"आप तो मुझे बहुत बड़े धर्म संकट में डाल रहे हैं छोटे ठाकुर।" मुंशी के माथे पर पसीना उभर आया____"अगर ठाकुर साहब ने मुझे उस जगह पर आपके लिए मकान बनवाने की इजाज़त नहीं दी तो मैं उनकी अवज्ञा कर के कैसे ये कार्य कर पाऊंगा?"

"आपको उनसे इस कार्य के लिए इजाज़त लेनी ही होगी।" मैंने स्पस्ट भाव से कहा____"और आप ये कैसे करेंगे ये आप जानिए। मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि कल का त्यौहार होने के बाद परसों उस जगह पर मकान का निर्माण कार्य शुरू हो जाना चाहिए और अगर ऐसा न हुआ तो इसका अंजाम क्या होगा इस बारे में भी आप सोच लीजिएगा। ख़ैर अब चलता हूं मैं।"

कहने के साथ ही मैं उठ कर खड़ा हो गया। मेरी बातें सुन कर मुंशी के चेहरे पर चिंता और परेशानी के भाव उभर आये थे। तभी रघुवीर अंदर से थाली में कुछ खाने की चीज़ें और पानी ले कर आया तो मैंने उसे हाथ का इशारा कर के वापस भेज दिया।

मुंशी मुझे छोड़ने के लिए घर से बाहर तक आया। मैंने मोटर साइकिल स्टार्ट की और हवेली की तरफ निकल गया। साहूकारों के घर के सामने आया तो देखा दरवाज़े पर एक लड़की खड़ी थी। मुझसे नज़र मिलते ही वो अंदर की तरफ भाग ग‌ई। उसे इस तरह भागता देख मैं मुस्कुरा उठा और फिर आगे बढ़ गया।

हवेली में आ कर मैंने मोटर साइकिल खड़ी की और मुख्य दरवाज़े से अंदर दाखिल हुआ तो मेरी नज़र बाएं तरफ बड़े से बैठक में सिंघासन पर बैठे दादा ठाकुर पर पड़ी। उनके पास ही बड़े भैया और मझले ठाकुर यानी चाचा जी खड़े थे।

"वैभव सिंह।" दादा ठाकुर की कड़क आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैं एकदम से अपनी जगह पर रुक गया और फिर गर्दन घुमा कर उनकी तरफ देखा।

"ये क्या सुन रहे हैं हम?" मुझे अपनी तरफ देखता देख उन्होंने कड़क आवाज़ में ही कहा____"तुमने शाहूकार हरिशंकर के लड़के को मारा और उसका हाथ तोड़ दिया? क्या हम जान सकते हैं कि ऐसा क्यों किया तुमने?"

"ग़लती हो गई पिता जी।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"मुझे उसका हाथ नहीं तोड़ना चाहिए था बल्कि उसे जान से ही मार देना चाहिए था।"
"ख़ामोश।" मेरी बात सुन कर पिता जी गुस्से में गरज उठे____"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि तुमने ऐसा कर के कितना बड़ा अपराध किया है?"

"पिता जी मैंने तो इसे रोकने की बहुत कोशिश की थी।" बड़े भैया ने ये कहा तो पिता जी उनकी तरफ देखते हुए गरजे____"तुम चुप रहो। तुम्हारी बातें हमने सुन ली हैं।" कहने के साथ ही पिता जी मेरी तरफ मुखातिब हुए____"तुम जगताप के साथ अभी हरिशंकर के घर जाओ और उससे अपने किए की माफ़ी मांगो।"

"माफ़ करना पिता जी।" मैंने आवेश में आ कर कहा____"वैभव सिंह अपना सिर कटा सकता है लेकिन उन दो कौड़ी के साहूकारों के सामने अपना सिर झुका कर उनसे माफ़ी नहीं मांग सकता।"

"तुम हमारे हुकुम को मानने से इंकार कर रहे हो?" दादा ठाकुर ने कहर भरी नज़रों से मुझे देखते हुए कहा____"इसका अंजाम जानते हो न तुम?"
"वैभव सिंह ने आज तक किसी अंजाम की परवाह नहीं की पिता जी।" मैंने जानदार मुस्कान के साथ कहा____"और ये बात आपसे बेहतर भला कौन जानता होगा?"

"जागताप।" पिता जी ने गुस्से से चाचा जी की तरफ देख।
"जी बड़े भैया।" चाचा जी एकदम से तन कर खड़े हो ग‌ए।
"इस गुस्ताख़ को।" पिता जी ने गुस्से में हर शब्द को जैसे चबाते हुए कहा____"गिन गिन कर पचास कोड़े लगाओ और इस बात का ख़याल रहे कि कोड़े का हर प्रहार इसकी ऐसी चीखें निकाले कि इसकी चीखों से हवेली का ज़र्रा ज़र्रा दहल जाए।"

"ये आप क्या कह रहे हैं बड़े भैया?" चाचा जगताप ने ब्याकुल भाव से कहा____"इसे माफ़ कर दीजिए। इसकी तरफ से मैं हरिशंकर के घर जा कर उससे माफ़ी मांग लेता हूं।"

"क्या अब तुम भी हमारा हुकुम मानने से इंकार कर रहे हो जगताप?" पिता जी ने चाचा जी को गुस्से से देखते हुए कहा तो चाचा जी जल्दी से बोल पड़े____"नहीं नहीं, मैं भला ऐसी गुस्ताख़ी कैसे कर सकता हूं बड़े भैया। मैं तो बस आपसे...!"

"हम कुछ नहीं सुनना चाहते।" पिता जी ने शख़्त भाव से कहा____"हमने जो कहा है उसका पालन करो। इस नामुराद ने जो किया है उसके लिए इसे माफ़ नहीं किया जाएगा।"

"चाचा जी।" मैंने जगताप चाचा जी को आवाज़ लगाते हुए कहा____"आप पिता जी के हुकुम का पालन कीजिए। ये मत सोचिए कि सज़ा देने वाले के दिल में रहम होगा कि नहीं और ये भी मत सोचिए कि सज़ा जायज़ भी होगी कि नहीं, क्योंकि यहाँ तो अपने मतलब के लिए भी सज़ा दे दी जाती है। यहाँ तो अपने स्वार्थ के लिए अपनी ही औलाद को बली का बकरा बना दिया जाता है, और फिर ऊपर से ये सफाई दी जाती है कि जो कुछ किया गया है उससे इस ठाकुर खानदान का भला होना था। ख़ैर अब देर मत कीजिए चाचा जी, उठाइए कोड़ा और उसे मेरे जिस्म पर पूरी ताकत से बरसाइ‌ए। आपके हर प्रहार पर निकलने वाली मेरी चीखें ऐसी होनी चाहिए जिससे दादा ठाकुर के कलेजे को एक असीम सुख की अनुभूति हो।"

"देखा इस बददमीज़ को?" पिता जी ने चाचा जी की तरफ देखते हुए गुस्से में कहा____"कैसी जुबान में बात कर रहा है ये। इसे लगता है कि इसके साथ जो कुछ हुआ है वो बहुत ही ग़लत हुआ है और इसने जो कुछ आज तक किया है वो सब कुछ सही था। इससे पूछो कि इसने अपनी अब तक की उम्र में ऐसा कौन सा अच्छा काम किया है जिसकी वजह से ठाकुर खानदान का नाम आसमान तक ऊंचा हो गया हो? इससे पूछो जगताप कि इसने आज तक ऐसी कौन सी जिम्मेदारी निभाई है जिसके लिए हमें इस पर गर्व होना चाहिए? इससे ये भी पूछो कि इसने इस गांव की किस औरत को अपनी हवश का शिकार न बनाने से बचाया है? बड़ी बड़ी बातें करने वाला एक बार अपने खुद के गिरेहबान में भी झाँक कर देखे कि उसने आज तक कितने अच्छे अच्छे काम किए हैं?"

"मैंने तो कभी ये कहा ही नहीं कि मैं अच्छा इंसान हूं या मैंने अच्छे काम किए हैं।" मैंने भी पलटवार करने का दुस्साहस किया____"लेकिन इस हवेली में जो खुद को दूध का धुला हुआ समझते हैं उन्होंने खुद कौन सा अच्छा काम किया है? अपनी ही औलाद को बली का बकरा बना कर जंगल में मरने के लिए छोड़ दिया। मैं पूछता हूं कि अगर कोई हम ठाकुरों के खिलाफ़ किसी तरह की साज़िश ही कर रहा था तो उसके लिए क्या ज़रूरी था कि मुझे इस तरह से गांव से निष्कासित कर दिया जाए? इतने पर भी जब खुद को तसल्ली नहीं मिली तो ये भी हुकुम सुना दिया गया कि गांव का कोई भी इंसान मेरी मदद भी ना करे। वाह! बहुत खूब, इसका तो यही मतलब हुआ कि मेरे साथ ऐसा इस लिए किया गया ताकि मैं उस बंज़र ज़मीन पर रहते हुए एक दिन भूखों मर जाऊं और इस हवेली में राज करने वाले दादा ठाकुर को मेरे जैसी नालायक औलाद से मुक्ति मिल जाए।"

"चटाकककक!" जगताप चाचा ने एकदम से खींच कर मेरे गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया और फिर गुस्से में बोले____"अपनी हद में रहो वैभव सिंह। हम मानते हैं कि हमसे ग़लती हुई है मगर इसका मतलब ये नहीं कि तुम जो मन में आए बोलते ही चले जाओ। तुमने दादा ठाकुर की एक ग़लती का तो बखान कर दिया मगर तुमने खुद जो आज तक इतनी ग़लतियां की हैं उसका क्या? तुम किसी को ये सब बोलने का तभी हक़ रख सकते हो जब तुम खुद अपनी जगह सही रहो। अगर तुम खुद ग़लत हो तो तुम्हे कोई अधिकार नहीं है किसी को उसकी ग़लती का एहसास दिलाने का।"

"भाड़ में जाए ग़लती और भाड़ में जाए ग़लती का एहसास।" मैंने गुस्से में तमतमाए हुए लहजे में कहा____"मैं थूकता हूं इस हवेली पर। आपको और आपके दादा ठाकुर को मुबारक हो ये हवेली और इस हवेली का राज पाठ। वैभव सिंह को इस हवेली से कुछ नहीं चाहिए।"

"वैभव सिंह।" दादा ठाकुर गुस्से में दहाड़े मगर मैं उनकी कोई परवाह किए बिना पलटा और हवेली से बाहर निकल गया। इस वक़्त मेरे अंदर गुस्से का दावानल धधक रहा था। मन कर रहा था दुनिया के हर इंसान की जान ले लूं।

गुस्से की आग में भभकता हुआ मैं तेज़ तेज़ क़दमों से चलते हुए हवेली के हाथी दरवाज़े को पार कर गया। इस वक़्त मैं इतने गुस्से में था कि अगर कोई मुझे ज़रा सा भी टोक देता तो मैं उसकी जान ले लेता। कच्ची सड़क पर मैं पैदल ही बढ़ा चला जा रहा था। कुछ दूरी से ही गांव की आबादी शुरू हो जाती थी। सड़क के दोनों तरफ कच्चे मकान बने हुए थे। उन मकानों में रहने वाले अपने अपने काम में लगे हुए थे। कोई मवेशियों को चारा भूषा डाल रहा था तो कोई पानी पिला रहा था। सड़क पर कुछ औरतें हाथ में मिटटी का घड़ा ले कर साहूकारों के घर के पास ही बने कुएं पर पानी भरने जा रहीं थी। मुझ पर जिस किसी की भी नज़र पड़ती तो वो अपना सिर झुका कर हाथ जोड़ लेता था मगर मैं बिना उनकी तरफ देखे गुस्से में आगे बढ़ता ही जा रहा था।

गांव में अब तक ये ख़बर फैल चुकी थी कि मैंने शाहूकार हरिशंकर के लड़के को मारा है और उसका हाथ भी तोड़ दिया है। गांव के लोग जानते थे कि साहूकारों के लड़कों से मेरा झगड़ा होना कोई नई बात नहीं थी और वो ये भी जानते थे कि गांव के शाहूकार ठाकुरों से बैर भाव रखते हैं। आज तक जितनी बार भी मेरी साहूकारों के लड़कों से मार पीट हुई थी उससे मुझ पर कोई आंच नहीं आई थी। इसकी वजह ये थी कि गांव का हर आदमी जानता था कि ठाकुर खानदान का कोई भी सदस्य साहूकारों से या उनके लड़कों से बेवजह नहीं उलझता था। इस लिए जब भी ऐसा कोई मामला होता था तो पंचायत में गांव का हर आदमी हमारा ही पक्ष लेता था।

ऐसा नहीं था कि गांव के लोग हमारे खिलाफ़ बोलने से डरते थे बल्कि वो दादा ठाकुर की इज्ज़त करते थे और वो ये बात अच्छी तरह जानते थे कि गांव के शाहूकार ठाकुरों से जलते हैं और उन्हें नीचा दिखाने के लिए उलटी सीधी हरकतें करते रहते हैं। एक महत्वपूर्ण बात ये भी थी कि गांव के शाहूकार गांव के लोगो को कर्ज़ा तो दे देते थे लेकिन उस कर्ज़े का ब्याज इतना बढ़ा देते थे कि ग़रीब इंसान उसे चुका ही नहीं पाता था और फिर नौबत ये आ जाती थी कि ग़रीब इंसान को अपनी ज़मीन से हाथ धोना पड़ जाता था। कई बार ऐसा मामला दादा ठाकुर तक पंहुचा था और पंचायत भी बैठाई गई जिसमे ज़्यादातर फैसला आम इंसान के खिलाफ़ ही हुआ था। क्योंकि शाहूकार इतने मक्कार और चतुर थे कि वो अपने खिलाफ़ ऐसे मामले के प्रति कोई सबूत ही नहीं बचाते थे। अब सवाल ये था कि ऐसे में ग़रीब इंसान का क्या होता था तो उसका जवाब ये है कि दादा ठाकुर उस ग़रीब को अपनी तरफ से कुछ ज़मीन देते थे और उसकी मदद करते थे। यही वजह थी कि गांव का हर आदमी ठाकुर खानदान को मानता था और उन्हें इज्ज़त देता था।

मैं गुस्से में भन्नाया हुआ साहूकारों के घर के पास आ गया। हरिशंकर के घर के बाहर सड़क के किनारे पर एक पीपल का पेड़ था जिसके नीचे बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था। मैं जैसे ही हरिशंकर के घर के सामने आया तो मेरी नज़र हरिशंकर के बड़े भाई मणिशंकर पर पड़ी। वो अभी अभी हरिशंकर के घर से निकला था और उसके पीछे हरिशंकर और उसके दोनों भतीजे भी निकले थे। मणिशंकर के चेहरे पर इस वक़्त शख़्त भाव थे और उसके दोनों बेटे भी गुस्से में दिख रहे थे जबकि हरिशंकर गंभीर नज़र आ रहा था। मैं समझ तो गया था किन्तु अपने को तो घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था इस लिए आगे बढ़ चला।

"छोटे ठाकुर।" अभी मैं पीपल के पेड़ के पास ही पंहुचा था कि मेरे कानों में ये मर्दाना आवाज़ पड़ी जिससे मैं रुक गया और पलट कर आवाज़ की दिशा में देखा।

"तुमने मेरे भतीजे को मारा और उसका एक हाथ तोड़ दिया।" मणिशंकर मेरे क़रीब आ कर शख़्त भाव से बोला____"ये तुमने ठीक नहीं किया छोटे ठाकुर।"
"शुकर मनाओ कि मैंने सिर्फ उसका हाथ ही तोड़ा है।" मैं पहले से ही गुस्से में भन्नाया हुआ था इस लिए गुर्राते हुए बोला____"वरना अपनी औकात से बाहर होने वाले को मैं ज़िंदा ही नहीं छोड़ता।"

"ख़ून में इतनी गर्मी ठीक नहीं है छोटे ठाकुर।" मणि शंकर ने पहले की तरह ही शख़्ती से कहा____"हम हमेशा से यही चाहते आ रहे हैं कि ठाकुरों से हमारा इस तरह का मन मुटाव न हो कि हमें भी उनका प्रतिकार करना पड़े मगर हम कई बार ये देख चुके हैं कि तुम हमारे घर के लड़कों को बेवजह ही पीट देते हो। अब हम ये बरदास्त नहीं करेंगे।"

"तो उखाड़़ लो जो उखाड़ना हो।" मैं उसके एकदम क़रीब जा कर बोला तो वो दो क़दम पीछे हट गया____"ठाकुर वैभव सिंह किसी के बाप से भी नहीं डरता। इस वक़्त तुम्हारे सामने अकेला ही खड़ा हूं। अगर दम है तो मेरी झाँठ का एक बाल ही उखाड़ कर दिखा दो।"

"पिता जी से तमीज़ में बात कर ठाकुर के पूत।" मणि शंकर का बड़ा बेटा चंद्रभान गुस्से से बोल पड़ा____"वरना एक ही झटके में तेरी गर्दन मरोड़ दूंगा।"
"अगर सच में तू अपने इसी बाप की औलाद है।" मैंने क़हर भरी नज़रों से उसकी तरफ देखते हुए कहा___"तो मेरी गर्दन मरोड़ के दिखा। मैं भी देखता हूं कि तेरे बाप के वीर्य में कितना दम है और तेरी माँ के दूध में कितना ज़हर है।"

मेरी बातें सुन कर चन्द्रभान बुरी तरह आग बबूला हो गया और मैं यही तो चाहता था। इस वक़्त गुस्से की आग में मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं किसी को जी भर के पेलूं। इससे पहले कि उसका बाप उसे कुछ कह पाता वो गुस्से से फुँकारते हुए बड़ी तेज़ी से मेरी तरफ लपका। जैसे ही मेरे क़रीब आ कर उसने मेरी गर्दन पकड़ने की कोशिश की तो मैं तेज़ी से नीचे झुका और दोनों हाथों से उसकी दोनों टांगों को पकड़ कर उसे उठा लिया और दाएं तरफ बने चबूतरे में पूरी ताकत से उछाल दिया जिससे वो भरभरा कर चबूतरे की बाट पर गिरा। चबूतरे की बाट उसकी पीठ पर ज़ोर से लगी थी जिससे उसकी चीख निकल गई थी।

अभी वो दर्द को बरदास्त करते हुए उठ ही रहा था कि मैंने ज़ोर की लात उसके सीने पर मारी जिससे वो हिचकी लेते हुए चित्त पसर गया और उसका सिर पीछे की तरफ चबूतरे से टकरा गया। यकीनन कुछ पलों के लिए उसकी आंखों के सामने सितारे जगमगाए होंगे। तभी पीछे से किसी ने मुझे दबोच लिया। मैंने सिर को पीछे की तरफ हल्का सा मोड़ कर देखा तो वो सूर्यभान था। मणिशंकर का दूसरा बेटा जिसने मुझे पीछे से दबोच लिया था। उसने मुझे कस के पकड़ा हुआ था और मैं उससे छूटने की कोशिश कर रहा था। तभी मैंने देखा सामने से चन्द्रभान उठ कर मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ा तो मैंने ज़ोर से एक लात इसके पेट में मारी जिससे वो पेट पकड़ कर रह गया। इधर मैंने अपनी कोहनी का वार बड़ी तेज़ी से पीछे सूर्यभान पर किया। कोहनी का वार उसकी काख के निचले हिस्से पर लगा था जिससे उसकी घुटी घुटी सी कराह निकल गई थी और उसकी पकड़ ढीली पड़ गई थी।

मैं जानता था कि ये दोनों भाई हरामी की औलाद हैं और ये दोनों मिल कर अब मुझे पेलेंगे। इस लिए मैंने उन दोनों को कोई मौका देना उचित नहीं समझा। सूर्यभान की पकड़ ढीली हुई तो मैंने फ़ौरन ही उससे खुद को छुड़ा लिया और पलट कर एक घूंसा उसकी नाक में जड़ दिया जिससे उसकी नाक टूट गई और वो दर्द से चीखते हुए अपनी नाक पकड़ कर पीछे हटता चला गया। उसकी नाक से खून की धार बह निकली थी। अभी मैं पलटा ही था कि मेरी पीठ पर चन्द्रभान ने बड़े ज़ोर की लात मारी जिससे मैं लहरा कर मुँह के बल ज़मीन पर गिरा मगर जान बूझ कर एक दो पलटियां भी लिया और ये अच्छा ही किया था मैंने वरना चन्द्रभान की लात एक बार से मेरी पीठ पर पड़ जाती। मैं पलटियां खाया तो चन्द्रभान के लात का खाली वार ज़मीन पर लगा था।

मैं बड़ी तेज़ी से खड़ा हुआ और देखा कि सूर्यभान हाथ में एक डंडा लिए मेरी तरफ लपका। इससे पहले कि वो मुझ तक पहुँचता वातावरण में बंदूख के चलने की बड़ी तेज़ आवाज़ गूँजी जिससे सूर्यभान अपनी जगह पर रुक गया। मणिशंकर तो बंदूख की आवाज़ सुन कर उछल ही पड़ा था। उसने पलट कर देखा तो कुछ ही दूर सड़क पर जगताप चाचा बंदूख लिए खड़े थे और उनके साथ चार हट्टे कट्टे आदमी भी हाथों में बंदूख लिए खड़े थे। जगताप चाचा और उन चार आदमियों को देख कर मणिशंकर के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी। यही हाल उसके भाई हरिशंकर और उसके दोनों बेटों का भी था।

"हम जानते थे कि यही होगा।" जगताप चाचा मणि शंकर की तरफ बढ़ते हुए शख़्त भाव से बोले____"पर इतना जल्दी होगा इसकी हमने कल्पना नहीं की थी।"
"मझले ठाकुर।" मणिशंकर ने सहमे हुए से भाव में कहा____"मैं तो छोटे ठाकुर को यहाँ देख कर इनसे बस ये पूछ रहा था कि इन्होंने मेरे भतीजे को क्यों मारा था मगर ये तो उल्टा मुझे ही उल्टा सीधा बोलने लगे। इनके उल्टा सीधा बोलने पर मेरे बेटे भी खुद को रोक नहीं पाए और फिर ये सब हो गया। कृपया इन्हें माफ़ कर दीजिए।"

"तुम्हारे भतीजे के साथ जो कुछ भी वैभव ने किया है।" जगताप चाचा ने कहा____"उसके लिए तुम्हें दादा ठाकुर के पास शिकायत ले कर जाना चाहिए था। अगर तुम ऐसा करते तो यकीनन तुम्हें न्याय मिलता मगर तुमने ऐसा नहीं किया बल्कि खुद ही न्याय करने का सोचा और हमारे भतीजे को यहाँ अकेला देख कर तुमने अपने बेटों के द्वारा उस पर हमला करवा दिया। तुम्हारा ये दुस्साहस कि तुमने ठाकुर खानदान के एक सदस्य पर अपने बेटों के द्वारा हाथ उठवाया। अब तुम खुद इसके अपराधी हो गए हो मणिशंकर और इसके लिए तुम्हें और तुम्हारे इन दोनों बेटों को सज़ा सज़ा भुगतनी होगी।"

"नहीं नहीं मझले ठाकुर।" मणिशंकर से पहले उसका छोटा भाई हरीशंकर बोल पड़ा____"ये जो कुछ भी हुआ है वो बड़े भाई साहब के कहने पर नहीं हुआ है बल्कि ये तो इन लड़कों की वजह से ही हुआ है। छोटे ठाकुर ने बड़े भाई साहब को उल्टा सीधा बोला था जिससे चन्द्रभान सहन नहीं कर सका। बस उसके बाद ये सब हो गया।"

"तुम हमें सफाई मत दो हरिशंकर।" जगताप चाचा ने गुस्से में कहा____"हम अपनी आँखों से सारा तमाशा देख रहे थे। जब तुम्हारे दोनों भतीजे वैभव के साथ हाथा पाई करने लगे थे तब तुम दोनों चुप चाप खड़े तमाशा देख रहे थे और यही चाह रहे थे कि तुम्हारे ये दोनों भतीजे वैभव को मारें। इसका मतलब ये सब तुम दोनों की इच्छा से ही हो रहा था। तुम दोनों ये चाहते ही नहीं थे कि तुम्हें दादा ठाकुर के द्वारा न्याय मिले।"

"नहीं नहीं मझले ठाकुर।" मणिशंकर बेबस भाव से कह उठा____"ऐसी बात नहीं है। हम सब तो घर से निकले ही यही सोच कर थे कि दादा ठाकुर के पास न्याय के लिए जाएंगे। घर से बाहर आए तो छोटे ठाकुर दिख गए इस लिए मैं बस उनसे पूछने लगा था कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? मुझे तो अंदाज़ा भी नहीं था कि ये मेरे पूछने पर मुझे उल्टा सीधा बोलेंगे और फिर ये सब हो जाएगा।"

"अब इसका फ़ैसला दादा ठाकुर ही करेंगे।" जगताप चाचा ने कहा____"तुम सब इसी वक़्त हवेली चलोगे।" कहने के साथ ही चाचा जी मेरी तरफ मुखातिब हुए____"तुम्हें भी हवेली चलना होगा।"

"मैं अपना फैसला खुद करता हूं।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"मैं ऐसे इंसान के पास न्याय के लिए नहीं जाऊंगा जो अपने मतलब के लिए अपनी ही औलाद को बली का बकरा बना देता है।"

"वैभव सिंह।" जगताप चाचा गुस्से में इतनी ज़ोर से दहाड़े कि बाकी तो सब सहम गए मगर मुझ पर घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ा, जबकि वो बोले____"अपनी इस जुबान को लगाम दो वरना तुम्हारी ज़ुबान काट दी जाएगी।"

"हाथ में बंदूख ले कर।" मैंने ब्यंग भाव से मुस्कुराते हुए कहा____"और कुत्तों की फ़ौज ले कर मुझे मत डराइए चाचा जी। वैभव सिंह उस ज़लज़ले का नाम है जिसकी दहाड़ से पत्थरों के भी दिल दहल जाते हैं। ख़ैर आप इन लोगों को ले जाइए क्योंकि इन्हें ही न्याय की ज़रूरत है। दादा ठाकुर का जो भी फैसला हो उसका फ़रमान ज़ारी कर दीजिएगा। वैभव सिंह आपसे वादा करता है कि फ़ैसले का फरमान सुन कर सज़ा के लिए हाज़िर हो जाएगा।"

मेरी बात सुन कर जहां दोनों शाहूकार और उनके बेटे आश्चर्य चकित थे वहीं जगताप चाचा दाँत पीस कर रह ग‌ए। इधर मैं इतना कहने के बाद पलटा और चन्द्रभान की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोला____"तेरे बाप का वीर्य तो गंदे नाली के पानी से भी ज़्यादा गया गुज़रा निकला रे...चल हट सामने से।"

चन्द्रभान मेरी ये बात सुन कर बुरी तरह तिलमिला कर रह गया जबकि मैं अपने कपड़ों की धूल झाड़ता हुआ आगे बढ़ गया मगर मैं ये न देख सका कि मेरे जाते ही वहां पर किसी के होठों पर बहुत ही जानदार और ज़हरीली मुस्कान उभर आई थी।


---------☆☆☆---------
वैभव ने मुंशी को अपने नए मकान बनाने के लिए बोल दिया घर आने पर दादा ठाकुर उसे बुलाते है क्यू की उसके भाई ने लड़ाई के बारे में बता दिया है और दादा ठाकुर गुस्से में है वैभव सिंह एंग्री यंग मैन की भूमिका निभा रहा है । लगता है जैसे उसके दिल में कोई ज्वालामुखी धधक रहा हो । इतना गुस्सा ! कि अपने बाप को भी नहीं छोड़ा ।
वैसे ठाकुर साहब ने क्या गलत कहा था , यही तो कहा कि तुमने अभी तक ऐसा कौन सा तीर मार लिया जिसके लिए ठाकुरों को तुम पर गर्व हो ।
फिर उसने साहूकारों को अपने गुस्से का शिकार बनाया
लगता है साहूकार के द्वारा कोई बड़ी ही साजिश रची जा रही है ।

बेहतरीन अपडेट
 
Top