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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.6%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.2%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 74 39.4%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.4%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.5%

  • Total voters
    188

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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354
वंदना और शालिनी ने मिलकर रागिनी को बातो से निवस्त्र करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन अब तो हाथ भी चलने लगे है।
शुरुवात का वैभव में और अभी के वैभव में जमीन आसमान का फर्क है। पहले वाला वैभव शायद कभी मेनका देवी को माफ नहीं करता लेकिन रागिनी अनु और रूपा की वजह से जो परिवर्तन उसमे आए है उसने वैभव के सोच को इतना परिवर्तित कर दिया है की उसने आसानी से क्षमा कर दिया।
उम्दा अपडेट भाई अगले अपडेट की प्रतीक्षा में ❣️
Aurat ka chakkar babu bhaiya aurat ka chakkar... :D

Vaibhav ko in teen balaao ne badal diya aur uski naiya dubo di :lol:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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Sabhi updates ek dum shandar he TheBlackBlood Shubham Bhai,
Thanks
Shadi ke ghar ke mahaul ka ekdum umda aur jivant chitran kiya he aapne.................Haldi ki rasam me bhabhiyo dwara double meaning wali chhedchhad ladka aur ladki dono ke sath hi ki jaati he.............
Mama ki pyas bujhane wala scene bada hi majedar raha.........halanki ye sach bhi he shadi wale ghar me pati patni ka milan bada hi mushkil ho jata he....................

Keep posting Bhai
Shadi ke bheed bhaad wale mahaul me bhi log jugaad bana hi lete hain aur ye khud ki experience wali baat bata raha hu, :D
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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भाई शुभम आप सुहागरात जरूर लिखो, लेकिन कहानी में बदलाव मत करो।
Are bhai kahani me koi badlav karne ka to sawaal hi nahi hai. Apan ne sirf suhagrat wale scene ke chalte aage update delete kiye hain. Ye kahani vaibhav ragini aur rupa ke vivah ke sath hi end ho gai thi...
दोनो अपडेट में रागिनी और शालिनी का संवाद और वैभव का मेनका से बहुत ही इमोशनल पार्ट था।

हालांकि हल्दी में शालिनी और रागिनी का मजाक भी जबरदस्त बनाया आपने। और हल्दी रस्म ही ऐसी चूल्हेबाजियों की है। वैभव की कोई भाभी नही है, मतलब है तो लेकिन अब वो ऐसी चूल्हेबाजी बाद में करेगी 😜, नही तो वैभव की हल्दी में भी कुछ धमाल होता।
Vaibhav ki taraf aise mahaul me thodi rochakta laane ke liye hi mami ko add Kiya tha...warna uski taraf sukha type hi rahta..
खैर SANJU ( V. R. ) भैया, मामियों की बात है, तो मामी भांजे का रिश्ता भी कुछ मजाक का होता है। बाकी तो सबकी फितरत है कि किस रिश्ते को किस दिशा में ले जाय।

बढ़िया अपडेट भाई।
Bilkul, mamiyo se hansi mazaak bade araam se chal jata hai, haan uski ek sima hoti hai. Baaki aaj kal to log har rishte ke sath mazaak karne lage hain... :sigh2:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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अध्याय - 163
━━━━━━༻♥༺━━━━━━




आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।


अब आगे....


अगले दिन दोपहर को विभोर और अजीत हवेली आ गए। पिता जी ने उन्हें शहर से ले आने के लिए शेरा के साथ अमर मामा को भेजा था। दोनों जब हवेली पहुंचे तो मां और पिता जी ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया। जाने क्या सोच कर पिता जी की आंखें नम हो गईं। उनसे मिलने के बाद वो अपनी मां से मिले। चाची की आंखों में आंसुओं का समंदर मानों हिलोरें ले रहा था। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और दोनों को खुद से छुपका लिया। कुसुम, विभोर से उमर में दस महीने छोटी थी जबकि अजीत से वो साल भर बड़ी थी। विभोर ने उसके चेहरे को प्यार और स्नेह से सहलाया और अजीत ने उसके पांव छुए। सब उन्हें देख कर बड़ा खुश थे।

विदेश की आबो हवा में रहने से दोनों अलग ही नज़र आ रहे थे। दोनों जब मेरा पांव छूने के लिए झुके तो मैंने बीच में ही रोक कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। ये देख मेनका चाची की आंखों से आंसू कतरा छलक ही पड़ा। साफ दिख रहा था कि वो अपने अंदर मचल रहे गुबार को बहुत मुश्किल से रोके हुए हैं। मैंने अपने दोनों छोटे भाइयों को खुद से अलग किया और फिर हाल चाल पूछ कर आराम करने को कहा।

दोपहर को खाना पीना करने के बाद मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेनका चाची कमरे में आ गईं। मैं उन्हें देख उठ कर बैठ गया।

"क्या बात है चाची?" मैंने उनसे पूछा____"मुझसे कोई काम था क्या?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है वैभव।" चाची ने कहा____"मैं यहां तुमसे ये कहने आई हूं कि अभी थोड़ी देर में सरला (हवेली की नौकरानी) यहां आएगी। वो तुम्हारे पूरे बदन की मालिश करेगी इस लिए तुम अपने कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ मालिश करवाने के लिए।"

"पर मालिश करने की क्या ज़रूरत है चाची?" मैंने उनसे पूछा।

"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" चाची ने मेरे पास आ कर कहा____"मेरे सबसे अच्छे बेटे का विवाह होने वाला है। उसकी सेहत का हर तरह से ख़याल रखना ज़रूरी है। अब तुम ज़्यादा कुछ मत सोचो और अपने सारे कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ। मैं तो खुद ही तुम्हारी मालिश करना चाहती थी लेकिन दीदी ही नहीं मानी। कहने लगीं कि मालिश का काम नौकरानी कर देगी और मुझे उनके कामों में मेरी सहायता चाहिए।"

"हां तो ग़लत क्या कहा उन्होंने?" मैंने कहा____"आपके बिना हवेली में ढंग से कोई काम हो भी नहीं सकेगा और ये बात वो भी जानती हैं। तभी तो वो आपको ऐसा कह रहीं थी। ख़ैर ये सब छोड़िए और ये बताइए कि विभोर और अजीत से उनका हाल चाल पूछा आपने?"

"अभी तो वो दोनों सो रहे हैं।" चाची ने अधीरता से कहा____"शायद लंबे सफ़र के चलते थके हुए थे। शाम को जब उठेंगे तो पूछूंगी। वैसे सच कहूं तो उन्हें देख कर मन में सिर्फ एक ही ख़याल आता है कि उन दोनों से कैसे पूरे मन से बात कर सकूंगी? बार बार मन में वही सब उभर आता है और हृदय दुख से भर जाता है।"

"आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखना होगा चाची।" मैंने कहा____"उन्हें आपके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं दिखने चाहिए जिससे उन्हें ये लगे कि आप अंदर से दुखी हैं। ऐसे में आप भी जानती हैं कि वो भी दुखी हो जाएंगे और आपसे आपके दुख का कारण पूछने लगेंगे जोकि आप हर्गिज़ नहीं बता सकतीं हैं।"

"अभी तक उन्हें देखने को बहुत मन करता था वैभव।" चाची ने दुखी हो कर कहा____"लेकिन अब जब वो आंखों के सामने आ गए हैं तो उनसे मिलने से घबराने लगी हूं। समझ में नहीं आता कि कैसे दोनों के सामने खुद को सामान्य रख पाऊंगी मैं?"

"मैं आपके अंदर का हाल समझता हूं चाची।" मैंने कहा____"लेकिन ये भी सच है कि आपको उनसे मिलना तो पड़ेगा ही। आख़िर वो आपके बेटे हैं। माता पिता तो हर हाल में अपने बच्चों को खुश ही रखते हैं तो आपको भी उनसे खुशी से मिलना होगा और उन्हें अपना प्यार व स्नेह देना होगा।"

मेरी बात सुन कर चाची कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी कमरे के बाहर से किसी के आने की पदचाप सुनाई पड़ी।

"लगता है सरला आ गई है।" चाची ने कहा____"तुम उससे अच्छे से मालिश करवाओ। मैं अब जा रही हूं, बाकी चिंता मत करो। किसी न किसी तरह मैं खुद को सम्हाल ही लूंगी।"

इतना कह कर मेनका चाची पलट कर कमरे से निकल गईं। उनके जाते ही कमरे में सरला दाख़िल हुई। उसके एक हाथ में मोटी सी चादर थी और दूसरे में एक कटोरी जिसमें तेल भरा हुआ था। सरला तीस साल की एक शादी शुदा औरत थी। रंग गेहुंआ था और जिस्म गठीला। उसे देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दो ही पलों में मेरी आंखों ने उसके समूचे बदन का मुआयना कर लिया। पहले वाला वैभव पूरी तरह से अभी ख़त्म नहीं हुआ था।

"छोटे कुंवर।" तभी सरला ने कहा____"मालकिन ने मुझे आपकी मालिश करने भेजा है। आप अपने कपड़े उतार लीजिए।"

"क्या सारे कपड़े उतारने पड़ेंगे मुझे?" मैंने उसे देखते हुए पूछा तो उसने कहा____"जी छोटे कुंवर। मालकिन ने कहा है कि आपके पूरे बदन की मालिश करनी है।"

"पूरे बदन की?" मैंने थोड़ी उलझन में उसकी तरफ देखा____"मतलब क्या मुझे अपना कच्छा भी उतारना पड़ेगा?"

सरला मेरी इस बात से थोड़ा शरमा गई। नज़रें चुराते हुए हुए बोली____"हाय राम! ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?"

"अरे! मैं तो तुम्हारी बात सुनने के बाद ही पूछ रहा हूं तुमसे।" मैंने कहा____"तुमने कहा कि पूरे बदन की मालिश करनी है। इसका तो यही मतलब हुआ कि मुझे अपने बाकी कपड़ों के साथ साथ अपना कच्छा भी उतार देना होगा। तभी तो पूरे बदन की मालिश होगी। भला उस जगह को क्यों छोड़ दोगी तुम?"

मेरी बात सुन कर सरला का चेहरा शर्म से लाल हो गया। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने बड़ी मुश्किल से कहा____"अगर आप कहेंगे तो मैं हर जगह की मालिश कर दूंगी।"

"अच्छा क्या सच में?" मैंने हैरानी से उसे देखा।

"आप अपने कपड़े उतार लीजिए।" उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा और कमरे के फर्श पर हाथ में ली हुई मोटी चादर को बिछाने लगी।

मैं कुछ पलों तक उलझन में पड़ा उसे देखता रहा फिर अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही मैंने अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं सिर्फ कच्छे में था। ठंड का मौसम था इस लिए थोड़ी थोड़ी ठंड लगने लगी थी मुझे। सरला ने कनखियों से मेरी तरफ देखा और फिर अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे कमर में खोंसने लगी।

"अब आप यहां पर लेट जाइए छोटे कुंवर।" उसने पलंग से एक तकिया ले कर उसको चादर के सिरहाने पर रखते हुए कहा____"अ...और ये क्या आपने अपना कच्छा नहीं उतारा? क्या आपको अपने बदन के हर हिस्से की मालिश नहीं करवानी है?"

"मुझे कोई समस्या नहीं है।" मैंने कहा____"वो तो मैंने इस लिए नहीं उतारा क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हें असहज महसूस हो।"

"कहते तो आप ठीक हैं।" उसने कहा____"लेकिन मैं आपकी अच्छे से मालिश करूंगी। आख़िर आपका विवाह होने वाला है। खुशी के ऐसे अवसर पर आपको पूरी तरह से हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी ही है।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"क्या तुम ये सोचती हो कि मैं अभी हष्ट पुष्ट नहीं हूं?"

"अरे! ये क्या बातें कर रहा है भांजे?" अमर मामा कमरे में आते ही बोले____"जब ये कह रही है कि हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी है तो तुझे मान लेना चाहिए।"

"मामा आप यहां?" मैं मामा को देखते ही चौंक पड़ा।

"तुझे ढूंढ रहा था।" मामा ने कहा____"दीदी ने बताया कि तू अपने कमरे में मालिश करवा रहा है तो यहीं चला आया। मैं भी देखना चाहता था कि मेरा भांजा किस तरीके से अपनी मालिश करवाता है?"

सरला, मामा के आ जाने से और उनकी बातों से बहुत ज़्यादा असहज हो गई।

"तो देख लिया आपने?" मैंने पूछा____"या अभी और देखना है?"

"हां देख लिया और समझ भी लिया।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा_____"अब अगर मैं देखने बैठ जाऊंगा तो तू अच्छे से मालिश नहीं करवा सकेगा इस लिए चलता हूं मैं।" कहने के साथ ही मामा सरला से बोले____"और तुम, मेरे भांजे की अच्छे से मालिश करना। किसी भी तरह की कसर बाकी मत रखना, समझ गई न तुम?"

सरला ने शर्माते हुए हां में सिर हिलाया। उधर मामा ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा____"और तू भी ज़्यादा नाटक मत करना, समझ गया ना?"

उनकी बात पर मैं मुस्कुरा उठा। वो जब चले गए तो सरला ने मानों राहत की सांस ली। उसके बाद उसने कमरे की खिड़की खोली और जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। ये देख मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं ये सच में तो मुझे पूरा नंगा नहीं करने वाली है?

मैं उसी को देखे जा रहा था। उसने अपनी साड़ी को निकाल कर एक तरफ रखा और फिर पेटीकोट को अपने घुटनों तक उठा कर बाकी का हिस्सा कमर में खोंस लिया। ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी छातियां मानों ब्लाउज फाड़ने को तैयार थीं। उसका गदराया हुआ बदन मेरे अंदर तूफ़ान सा पैदा करने लगा।

"ऐसे मत देखिए छोटे कुंवर मुझे शर्म आ रही है?" सहसा सरला की आवाज़ से मैं चौंका____"ऐसे में कैसे मैं आपकी अच्छे से मालिश कर पाऊंगी?"

"तुम ऐसे हाल में मालिश करोगी मेरी?" मैंने उसे देखते हुए पूछा।

"और नहीं तो क्या?" उसने कहा____"साड़ी पहने पहने मालिश करूंगी तो ठीक से नहीं कर पाऊंगी और मेरी साड़ी में तेल भी लग जाएगा।"

बात तो उसने उचित ही कही थी इस लिए मैंने ज़्यादा कुछ न कहा किंतु ये ज़रूर सोचने लगा कि क्या सच में सरला मेरे पूरे बदन की मालिश करेगी?

बहरहाल सरला ने कटोरी को उठाया और मेरे पैरों के पास बगल से बैठ गई। वो अब मेरे इतना पास थी कि मेरी निगाह एक ही पल में ब्लाउज से झांकती उसकी छातियों पर जम गईं। सच में काफी बड़ी और ठोस नज़र आ रहीं थी उसकी छातियां। मेरे पूरे बदन में सनसनी सी दौड़ने लगी। धड़कनें तो पहले ही तेज़ तेज़ चल रहीं थी। मैंने फ़ौरन ही उससे नज़र हटा ली और खुद पर नियंत्रण रखने के लिए आंखें बंद कर ली।

पहले तो सरला आराम से ही तेल लगा रही थी किंतु जल्दी ही उसने ज़ोर लगा कर मालिश करना शुरू कर दिया। मुझे अच्छा तो लग ही रहा था किंतु मज़ा भी आ रहा था। तेल से चिपचिपी हथेलियां जब मेरी जांघों के अंतिम छोर तक आती तो मेरे अंडकोशों में झनझनाहट होने लगती। पूरे बदन में मज़े की लहर दौड़ जाती।

"कैसा लग रहा है छोटे कुंवर?" सहसा उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने आंखें खोल कर उसे देखा।

उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। वो घुटनों के बल झुकी सी थी जिससे मेरी नज़र जल्द ही उसके ब्लाउज से आधे से ज़्यादा झांकती छातियों पर जा कर जम गई। वो ज़ोर लगा कर नीचे से ऊपर आती तो उसकी छातियों में लहर सी पैदा हो जाती। फ़ौरन ही वो ताड़ गई कि मैं उसकी छातियां देख रहा हूं। उसे शर्म तो आई लेकिन उसने न तो कुछ कहा और ना ही अपनी छातियों को छुपाने का उपक्रम किया। बल्कि वो उसी तरह मालिश करते हुए मुझे देखती रही।

"क्या हुआ कुंवर जी?" जब मैं बिना कोई जवाब दिए उसकी छातियों को ही देखता रहा तो उसने फिर कहा____"आपने जवाब नहीं दिया?"

"ओह! हां तुमने कुछ कहा क्या?" मैं एकदम से हड़बड़ा सा गया तो इस बार वो खिलखिला कर हंस पड़ी। उसके हंसने पर मैं थोड़ा झेंप गया।

"मैं आपसे पूछ रही थी कि मेरे मालिश करने से आपको कैसा लग रहा है?" फिर उसने कहा।

"अच्छा लग रहा है।" मैंने कहा____"बस ऐसे ही करती रहो।"

वो मुस्कुराई और पलट कर कटोरी को उठा लिया। कटोरी से ढेर सारा तेल उसने मेरी जांघ पर डाला और उसे अपनी हथेली से फैला कर फिर से मालिश करने लगी। सहसा मेरी नज़र मेरे कच्छे पर पड़ी तो मैं चौंक गया। मेरा लंड अपने पूरे अवतार में खड़ा था और कच्छे को तंबू बनाए हुए था। ज़ाहिर है सरला भी ये देख चुकी होगी। मुझे बड़ा अजीब लगा और थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई।

"क्या अब मैं उल्टा लेट जाऊं?" मैंने अपने लंड के उठान को छुपाने के लिए उससे पूछा।

"अभी नहीं छोटे कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी तो पैरों के बाद आपके पेट और सीने की मालिश करूंगी मैं। उसके बाद ही आपको उल्टा लेटना होगा।"

"ठीक है जल्दी करो फिर।" मैं अब असहज सा महसूस करने लगा था। अभी तक मुझे अपने लंड का ख़याल ही नहीं रहा था। वो साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने देखा सरला बार बार मेरे लंड को घूरने लगती थी।

आख़िर कुछ देर में जब पैरों की मालिश हो गई तो वो तेल ले कर ऊपर की तरफ आई। ना चाहते हुए भी मेरी निगाह उस पर ठहर गई। दिल की धड़कनें और भी तेज़ हो गई। उसका पेट कमर नाभि सब साफ दिख रही थी मुझे।

"आपके मामा जी कह गए हैं कि मैं आपकी मालिश करने में कोई कसर बाकी ना रखूं।" फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए अब मैं वैसी ही मालिश करूंगी और हां आप भी विरोध मत कीजिएगा।"

"कैसी मालिश करेगी तुम?" मैंने आशंकित भाव से उसे देखा।

"बस देखते जाइए।" उसने गहरी मुस्कान से कहा____"आप भी क्या याद करेंगे कि सरला ने कितनी ज़बरदस्त मालिश की थी आपकी।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने उत्सुकता से कहा____"मैं भी तो देखूं तुम आज कैसे मालिश करती हो मेरी।"

"ठीक है।" सरला के चेहरे पर एकाएक चमक उभर आई____"लेकिन आपको भी मेरी एक बात माननी होगी। मैं जो भी करूं आप करने देंगे और सिर्फ मालिश का आनंद लेंगे।"

"ठीक है।" मैं मुस्कुराया____"मैं तुम्हें किसी बात के लिए नहीं रोकूंगा।"

सरला मेरी बात सुन कर खुश हो गई। उसने कटोरी से मेरे सीने पर तेल डाला और उसे हथेली से फैलाने लगी। जल्दी ही वो मेरे पूरे सीने और पेट पर तेल फैला कर मालिश करने लगी। मैं बस उसको देखता रहा। मैंने पहली बार गौर किया कि वो नौकरानी ज़रूर थी लेकिन बदन से क़हर ढा रही थी। तभी मैं चौंका। वो मेरे कच्छे को पकड़ कर नीचे खिसकाने लगी।

"ये क्या कर रही हो?" मैंने झट से उसे रोका।

"आपने तो कहा था कि आप मुझे नहीं रोकेंगे?" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____फिर अब क्यों रोक रहे हैं? देखिए, कच्छा नहीं उतारूंगी तो तेल लग जाएगा इसमें और वैसे भी पूरे बदन की मालिश करनी है ना तो इसे उतारना ही पड़ेगा।"

मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि कहीं आज ये मेरा ईमान न डगमगा दे। मुझसे ऐसी ग़लती न करवा दे जो न करने का मैंने भाभी को वचन दिया था। फिर सहसा मुझे ख़याल आया कि ये तो मेरे ऊपर निर्भर करता है कि मैं खुद पर काबू रख सकता हूं या नहीं।

मेरी इजाज़त मिलते ही सरला ने खुशी से मेरा कच्छा उतार कर मेरी टांगों से अलग कर दिया। कच्छे के उतरते ही मेरा लंड उछल कर छत की तरफ तन गया।

"हाय राम! ये....ये इतना बड़ा क्या है।" सरला की मानों चीख निकल गई।

"तुम तो ऐसे चीख उठी हो जैसे ये तुम्हारे अंदर ही घुस गया हो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाय राम! छोटे कुंवर ये क्या कह रहे हैं?" सरला एकदम से चौंकी____"ना जी ना। ये मेरे अंदर घुस गया तो मैं तो जीवित ही ना बचूंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने कहा____"ये तुम्हारे अंदर वैसे भी नहीं घुसेगा। अब चलो मालिश शुरू करो। मैं भी तो देखूं कि तुम कैसी मालिश करती हो आज।"

सरला आश्चर्य से अभी भी मेरे लंड को ही घूरे जा रही थी। फिर जैसे उसे होश आया तो उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई। उधर मेरा लंड बार बार ठुमक रहा था। मेरी शर्म और झिझक अब ख़त्म हो चुकी थी।

"अब तो मैं पक्का आपकी वैसी ही मालिश करूंगी छोटे कुंवर।" फिर उसने खुशी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"जैसा मैं कह रही थी। अब बस आप मेरा कमाल देखिए।"

कहने के साथ ही सरला अपना ब्लाउज खोलने लगी। ये देख मैं चौंका लेकिन मैंने उसे रोका नहीं। अब मैं भी देखना चाहता था कि वो क्या करने वाली है। जल्दी ही उसने अपने बदन से ब्लाउज निकाल कर एक तरफ रख दिया। उसकी छातियां सच में बड़ी और ठोस थीं। कुंवारी लड़की की तरह तनी हुईं थी। मेरा ईमान फिर से डोलने लगा। पूरे जिस्म में झुरझुरी होने लगी। उधर ब्लाउज एक तरफ रखने के बाद वो खड़ी हुई और अपना पेटीकोट खोलने लगी।

मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं क्या वो मुझसे चुदने का सोच ली‌‌ है? नहीं नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं होने दे सकता।

"ये क्या कर रही हो तुम?" मैंने उसे रोका____"अपने कपड़े क्यों उतार रही हो तुम?"

"फ़िक्र मत कीजिए कुंवर।" उसने कहा____"मैं आपके साथ वो नहीं करूंगी और कपड़े इस लिए उतार रही हूं ताकि मालिश करते समय मेरे इन कपड़ों पर तेल न लग जाए।"

मैंने राहत की सांस ली लेकिन अब ये सोचने लगा कि क्या ये नंगी हो कर मेरी मालिश करेगी? सरला ने पेटीकोट उतार कर उसे भी एक तरफ रख दिया। पेटीकोट के अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। मोटी मोटी जांघों के बीच बालों से भरी उसकी चूत पर मेरी नज़र पड़ी तो एक बार फिर से मेरे पूरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई।

उधर जैसे ही सरला को एहसास हुआ कि मैं उसे देख रहा हूं तो उसने जल्दी से अपनी योनि छुपा ली। उसके चहरे पर शर्म की लाली उभर आई लेकिन हैरानी की बात थी कि वो इसके बाद भी पूरी नंगी हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब ये क्या करने वाली है?

"छोटे कुंवर, अपनी आंखें बंद कर लीजिए ना।" सरला ने कहा____"आप मुझे इस तरह देखेंगे तो मुझे बहुत शर्म आएगी और मैं पूरे मन से आपकी मालिश नहीं कर पाऊंगी।"

मुझे भी लगा कि यही ठीक रहेगा। मैं भी उसे नहीं देखना चाहता था क्योंकि इस हालत में देखने से मेरा अपना बुरा हाल होने लगा था। मैंने आंखें बंद कर ली तो वो मेरे क़रीब आई। कुछ देर तक पता नहीं वो क्या करती रही लेकिन फिर अचानक ही मुझे अपने ऊपर कुछ महसूस हुआ। वो तेल था जो मेरे सीने से होते हुए पेट पर आया और फिर उसकी धार मेरे लंड पर पड़ने लगी। मेरे पूरे जिस्म में आनंद की लहर दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में सरला के हाथ उस तेल को मेरे पूरे बदन में फैलाने लगे।

मैं उस वक्त चौंक उठा जब सरला के हाथों ने मेरे लंड को पकड़ लिया। सरला के चिपचिपे हाथ मेरे लंड को हौले हौले सहलाते हुए उस पर तेल मलने लगे। आज काफी समय बाद किसी औरत का हाथ मेरे लंड पर पहुंचा था। आनंद की तरंगें पूरे बदन में दौड़ने लगीं थी। मैं सरला को रोकना चाहता था लेकिन मज़ा भी आ रहा था इस लिए रोक नहीं रहा था। उधर सरला बड़े आराम से मेरे लंड को तेल से भिंगो कर उसकी मालिश करने लगी थी। पहले तो वो एक हाथ से कर रही थी लेकिन अब दोनों हाथों से जैसे उसे मसलने लगी थी। मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया था।

"ये...ये क्या कर रही हो तुम?" आनंद से अपनी पलकें बंद किए मैंने उससे कहा।

"चुपचाप लेटे रहिए कुंवर।" सरला ने भारी आवाज़ में कहा____"ये तो अभी शुरुआत है। आगे आगे देखिए क्या होता है। आप बस मालिश का आनंद लीजिए।"

सरला की बातों से मेरे पूरे बदन में झुरझुरी हुई। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी सांसें भारी हो चलीं थी। कुछ देर तक वो इसी तरह मेरे लंड को तेल लगा लगा कर मसलती रही फिर एकदम से उसके हाथ हट गए। मैंने राहत की सांस ली। एकाएक मैं ये महसूस कर के चौंका कि मेरी दोनों जांघों पर कोई बहुत ही मुलायम चीज़ रख गई है। मैंने उत्सुकता के चलते आंखें खोल कर देखा तो हैरान रह गया।

सरला पूरी तरह नंगी थी। मेरी तरफ मुंह कर के वो मेरी जांघों पर बैठ गई थी। उसके दोनों पैर अलग अलग तरफ फ़ैल से गए थे। जांघों के बीच बालों से भरी चूत भी फैल गई थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा थोड़ा थोड़ा नज़र आने लगा था। तभी सरला ने कटोरा उठाया। उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था। कटोरे में भरे तेल को उसने अपने सीने पर उड़ेलना शुरू कर दिया। कटोरे का तेल बड़ी तेज़ी से उसकी छातियों को भिगोता हुआ नीचे तरफ आया। कुछ नीचे मेरे लंड पर गिरा। सरला थोड़ा सा आगे सरक आई जिससे तेल मेरे पेट पर गिरने लगा।

सरला ने कटोरा एक तरफ रखा और फिर जल्दी जल्दी तेल को अपनी छातियों पर और पेट पर मलने लगी। उसके बाद वो आहिस्ता से मेरे ऊपर झुकने लगी। मैं उसकी इस क्रिया को चकित भाव देखे जा रहा था। कुछ ही पलों में वो मेरे ऊपर लेट सी गई। उसकी छातियां मेरे सीने में धंस गई। उसकी नाभि के नीचे मेरा लंड दब गया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई।

"ये क्या कर रही हो?" मैं भौचक्का सा बोल पड़ा तो उसने मेरी तरफ देखा।

हम दोनों की नज़रें मिलीं। वो मुस्कुरा उठी। अपने दोनों हाथ मेरे आजू बाजू जमा कर वो अपने बदन को मेरे बदन पर रगड़ने लगी। उसकी बड़ी बड़ी और ठोस छातियां मेरे जिस्म में रगड़ खाते हुए नीचे की तरफ जा कर मेरे लंड पर ठहर गईं। मेरा लंड उसकी दोनों छातियों के बीच फंस गया। सरला से मुझे ऐसे करतब की उम्मीद नहीं थी। तभी वो मेरे चेहरे की तरफ सरकने लगी। मेरा लंड उसकी छातियों का दबाव सहते हुए उसके पेट की तरफ जाने लगा। इधर उसकी छातियां मेरे सीने पर आईं उधर मेरा लंड उसकी नाभि के नीचे पहुंच कर उसकी चूत के बालों पर जा टकराया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रहीं थी।

"कैसा लग रहा है कुंवर।" सरला मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर मानों नशे में बोली____"आपको अच्छा तो लग रहा है ना?"

"तुम अच्छे की बात करती हो।" मैं मज़े के तरंग में बोला____"मुझे तो अत्यधिक मज़ा आ रहा है सरला। मुझे नहीं पता था कि तुम्हें ये कला भी आती है। कहां से सीखा है ये?"

"कहीं से नहीं सीखा कुंवर।" उसने कहा____"ये तो अचानक ही सूझ गया था मुझे।"

"यकीन नहीं होता।" मैंने कहा____"ख़ैर बहुत मज़ा आ रहा है। ऐसे ही करती रहो।"

सरला का चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल क़रीब था। उसके गुलाबी होंठ मेरे एकदम पास ही थे। मेरा जी तो किया कि लपक लूं लेकिन फिर मैंने इरादा बदल दिया। मैं अपने से कुछ भी नहीं करना चाहता था।

"खुद को मत रोकिए छोटे कुंवर।" सरला मेरी मंशा समझ कर बोल पड़ी____"आज इस मालिश का भरपूर आनंद लीजिए। मुझ पर भरोसा रखिए, मैं आपको बिल्कुल भी निराश नहीं करूंगी।"

"पर तुम्हें मुझसे निराश होना पड़ेगा।" मैंने दृढ़ता से कहा____"तुम जिस चीज़ के बारे में सोच रही हो वो नहीं हो सकेगा। मैं तुम्हें इतना करने दे रहा हूं यही बहुत बड़ी बात है।"

"ठीक है जैसी आपकी मर्ज़ी।" कहने के साथ ही सरला फिर से नीचे को सरकने लगी।

मेरा बुरा हाल होने लगा था। जी कर रहा था कि एक झटके से उठ जाऊं और सरला को नीचे पटक कर उसको बुरी तरह चोदना शुरू कर दूं। अपनी इस भावना को मैंने बड़ी बेदर्दी से कुचला और आंखें बंद कर ली। उधर सरला नीचे पहुंच कर मेरे लंड को अपनी दोनों छातियों के बीच फंसाया और फिर दोनों तरफ से अपनी छातियों का दबाद देते हुए मानों मुट्ठ मारने लगी। मेरे जिस्म में और भी ज़्यादा मज़े की तरंगें उठने लगीं।

कुछ देर तक सरला अपनी छातियों से मेरे लंड को मसलती रही उसके बाद वो फिर से ऊपर सरकने लगी। उसकी ठोस छातियां मेरे जिस्म से रगड़ खाते हुए ऊपर की तरफ आने लगीं। तेल लगा होने से बड़ा अजीब सा मज़ा आ रहा था।

तभी मैं चौंका। सरला की छातियां मेरे सीने से उठ कर अचानक मेरे चेहरे से टकराईं। तेल की चिपचिपाहट मेरे चेहरे पर लग गई और तेल की गंध मेरे नथुनों में समा गई। मैंने फ़ौरन अपनी आंखें खोली। सरला एकदम से मेरे ऊपर ही सवार नज़र आई। उसकी तेल में नहाई बड़ी बड़ी छातियां मेरे चेहरे को छू रहीं थी। सरला की ये हिम्मत देख मुझे हैरानी भी हुई और थोड़ा गुस्सा भी आया। यकीनन वो मुझे उकसा रही थी। यानि वो चाहती थी कि मैं अपना आपा खो दूं और फिर वही कर बैठूं जो मैं किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहता था। मैंने अब तक सरला के जिस्म के नाज़ुक अंगों को हाथ तक नहीं लगाया था जबकि में अंदर का हाल तो अब ऐसा था कि उसको बुरी तरह रौंद डालने के लिए मन कर रहा था मेरा। मेरे हाथ उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को आटे की तरह गूंथ डालने को मचल रहे थे मगर मैं बेतहाशा सब्र किए हुए था। ये अलग बात है कि अपने अंदर मज़े की लहर को रोकना मेरे बस में नहीं था।

"कितनी भी कोशिश कर लो तुम।" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"ठाकुर वैभव सिंह को मज़बूर नहीं कर पाओगी तुम। बेहतर होगा कि तुम सिर्फ अपने काम पर ध्यान दो।"

"क्या आप मुझे चुनौती दे रहे हैं कुंवर?" सरला ने भी मेरी आंखों में देखा____"इसका मतलब आप चाहते हैं कि मैं ऐसी कोशिश करती रहूं?"

"तुम अपनी सोच के अनुसार कुछ भी मतलब निकाल सकती हो।" मैं हल्के से मुस्कुराया____"बाकी मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि तुम कोई कोशिश करो। तुम मेरी मालिश करने आई हो तो सिर्फ वही करो। मुझसे चुदने का ख़याल ज़हन से निकाल दो क्योंकि वो मैं नहीं करूंगा और ना ही करने दूंगा। मैंने अपनी होने वाली बीवी को बहुत पहले वचन दिया था कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा। ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिसके लिए मैं अब तक बदनाम रहा हूं।"

"वाह! कुंवर जी।" सरला मुस्कुराई____"आपकी ये बात सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस स्थिति में भी आप खुद को रोके हुए हैं और आपको अपने वचन का ख़याल है। ये बहुत बड़ी बात है। मैं भी आपको अब मजबूर नहीं करूंगी बल्कि आपके वचन का सम्मान करते हुए सिर्फ आपकी मालिश करूंगी। अब मैं उन सबको बताऊंगी कि आप बदल गए हैं और एक अच्छे इंसान बन गए हैं जो कहती थीं कि आप इन मामलों में बहुत बदनाम हैं।"

"तुम्हें ये सब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं है सरला।" मैंने कहा____"तुम बस अपना काम करो और खुशी खुशी जाओ यहां से।"

"ठीक है कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे आपसे एक विनती है।"

"कैसी विनती?"

"मेरे मालिश के चलते आपका ये मूसल।" उसने मेरे खड़े हुए लंड को देखते हुए कहा____"पूरी तरह से संभोग के लिए तैयार हो चुका है। इसके अंदर की आग को बाहर निकालना ज़रूरी है। क्या मैं आपको शांत कर दूं?"

"कैसे शांत करोगी?" मैंने पूछा।

"हाथ से ही करूंगी और कैसे?" वो हल्के से हंसी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम अपनी ये इच्छा पूरी कर सकती हो।"

सरला खुश हो गई। वो मेरे ऊपर से उठी और नंगी ही मेरे लंड के पास बैठ गई। तेल तो पहले से ही लगा हुआ था इस लिए वो लंड को पकड़ कर मुठियाने लगी।

"वैसे आपकी होने वाली दोनों पत्नियां बहुत भाग्यशाली हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उनके नसीब में इतना बड़ा औजार जो मिलने वाला है। मुझे पूरा यकीन है कि इस मामले में वो हमेशा खुश रहेंगी।"

उसकी इस बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने रूपा और रागिनी भाभी का चेहरा चमक उठा। रूपा से तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन रागिनी भाभी का सोच कर ही जिस्म में अजीब सा एहसास होने लगा।

"क्या मैं इसे चूम लूं कुंवर?" सरला की आवाज़ से मैं चौंका।

"ठीक है जो तुम्हें ठीक लगे कर लो।" मैंने कहा____"लेकिन जल्दी करो। मुझे बाहर भी जाना है।"

सरला फ़ौरन ही अपने काम में लग गई। वो कभी मुट्ठ मारती तो कभी झुक कर मेरे लंड को चूम लेती। फिर एकाएक ही उसने मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गरम मुख का जैसे ही एहसास हुआ तो मजे से मेरी आंखें बंद हो गईं। दोनों हाथों से लंड पकड़े वो उसे चूसे जा रही थी। मैं हैरान भी था उसकी इस हरकत से लेकिन मज़े में बोला कुछ नहीं।

मेरा बहुत मन कर रहा था कि सरला के सिर को थाम लूं और कमर उठा उठा कर उसके मुंह को ही चोदना शुरू कर दूं लेकिन मैंने अपनी इस इच्छा को बड़ी मुश्किल से रोका। हालाकि मज़े के चलते मेरी कमर खुद ही उठ जा रही थी। सरला कभी मेरे अंडकोशों को सहलाती तो कभी मुट्ठी मारते हुए लंड चूसने लगती। मेरा मज़े में बुरा हाल हुआ जा रहा था। अपनी इच्छाओं को दबा के रखना बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा था। सरला किसी कुशल खिलाड़ी की तरह मेरा लंड चूसने में लगी हुई थी।

आख़िर दस मिनट बाद मुझे लगने लगा कि मेरी नशों में दौड़ता लहू बड़ी तेज़ी से मेरे अंडकोशों की तरफ भागता हुआ जा रहा है। सरला को भी शायद एहसास हो गया था। वो और तेज़ी से मुठ मारनी लगी।

"आह!" मेरे मुंह से मज़े में डूबी आह निकली और मुझे झटके लगने लगे।

सरला ने लपक कर मेरे लंड को मुंह में भर लिया और मेरा वीर्य पीने लगी। आनंद की चरम सीमा में पहुंचने के बाद मैं एकदम शांत पड़ गया। उधर सरला सारा वीर्य गटकने के बाद अब मेरे लंड को चाट रही थी। बड़ी की कौमुक और चुदक्कड़ औरत थी शायद।



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Hum hai rahi pyar ke
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अध्याय - 163
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आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।


अब आगे....


अगले दिन दोपहर को विभोर और अजीत हवेली आ गए। पिता जी ने उन्हें शहर से ले आने के लिए शेरा के साथ अमर मामा को भेजा था। दोनों जब हवेली पहुंचे तो मां और पिता जी ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया। जाने क्या सोच कर पिता जी की आंखें नम हो गईं। उनसे मिलने के बाद वो अपनी मां से मिले। चाची की आंखों में आंसुओं का समंदर मानों हिलोरें ले रहा था। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और दोनों को खुद से छुपका लिया। कुसुम, विभोर से उमर में दस महीने छोटी थी जबकि अजीत से वो साल भर बड़ी थी। विभोर ने उसके चेहरे को प्यार और स्नेह से सहलाया और अजीत ने उसके पांव छुए। सब उन्हें देख कर बड़ा खुश थे।

विदेश की आबो हवा में रहने से दोनों अलग ही नज़र आ रहे थे। दोनों जब मेरा पांव छूने के लिए झुके तो मैंने बीच में ही रोक कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। ये देख मेनका चाची की आंखों से आंसू कतरा छलक ही पड़ा। साफ दिख रहा था कि वो अपने अंदर मचल रहे गुबार को बहुत मुश्किल से रोके हुए हैं। मैंने अपने दोनों छोटे भाइयों को खुद से अलग किया और फिर हाल चाल पूछ कर आराम करने को कहा।

दोपहर को खाना पीना करने के बाद मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेनका चाची कमरे में आ गईं। मैं उन्हें देख उठ कर बैठ गया।

"क्या बात है चाची?" मैंने उनसे पूछा____"मुझसे कोई काम था क्या?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है वैभव।" चाची ने कहा____"मैं यहां तुमसे ये कहने आई हूं कि अभी थोड़ी देर में सरला (हवेली की नौकरानी) यहां आएगी। वो तुम्हारे पूरे बदन की मालिश करेगी इस लिए तुम अपने कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ मालिश करवाने के लिए।"

"पर मालिश करने की क्या ज़रूरत है चाची?" मैंने उनसे पूछा।

"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" चाची ने मेरे पास आ कर कहा____"मेरे सबसे अच्छे बेटे का विवाह होने वाला है। उसकी सेहत का हर तरह से ख़याल रखना ज़रूरी है। अब तुम ज़्यादा कुछ मत सोचो और अपने सारे कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ। मैं तो खुद ही तुम्हारी मालिश करना चाहती थी लेकिन दीदी ही नहीं मानी। कहने लगीं कि मालिश का काम नौकरानी कर देगी और मुझे उनके कामों में मेरी सहायता चाहिए।"

"हां तो ग़लत क्या कहा उन्होंने?" मैंने कहा____"आपके बिना हवेली में ढंग से कोई काम हो भी नहीं सकेगा और ये बात वो भी जानती हैं। तभी तो वो आपको ऐसा कह रहीं थी। ख़ैर ये सब छोड़िए और ये बताइए कि विभोर और अजीत से उनका हाल चाल पूछा आपने?"

"अभी तो वो दोनों सो रहे हैं।" चाची ने अधीरता से कहा____"शायद लंबे सफ़र के चलते थके हुए थे। शाम को जब उठेंगे तो पूछूंगी। वैसे सच कहूं तो उन्हें देख कर मन में सिर्फ एक ही ख़याल आता है कि उन दोनों से कैसे पूरे मन से बात कर सकूंगी? बार बार मन में वही सब उभर आता है और हृदय दुख से भर जाता है।"

"आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखना होगा चाची।" मैंने कहा____"उन्हें आपके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं दिखने चाहिए जिससे उन्हें ये लगे कि आप अंदर से दुखी हैं। ऐसे में आप भी जानती हैं कि वो भी दुखी हो जाएंगे और आपसे आपके दुख का कारण पूछने लगेंगे जोकि आप हर्गिज़ नहीं बता सकतीं हैं।"

"अभी तक उन्हें देखने को बहुत मन करता था वैभव।" चाची ने दुखी हो कर कहा____"लेकिन अब जब वो आंखों के सामने आ गए हैं तो उनसे मिलने से घबराने लगी हूं। समझ में नहीं आता कि कैसे दोनों के सामने खुद को सामान्य रख पाऊंगी मैं?"

"मैं आपके अंदर का हाल समझता हूं चाची।" मैंने कहा____"लेकिन ये भी सच है कि आपको उनसे मिलना तो पड़ेगा ही। आख़िर वो आपके बेटे हैं। माता पिता तो हर हाल में अपने बच्चों को खुश ही रखते हैं तो आपको भी उनसे खुशी से मिलना होगा और उन्हें अपना प्यार व स्नेह देना होगा।"

मेरी बात सुन कर चाची कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी कमरे के बाहर से किसी के आने की पदचाप सुनाई पड़ी।

"लगता है सरला आ गई है।" चाची ने कहा____"तुम उससे अच्छे से मालिश करवाओ। मैं अब जा रही हूं, बाकी चिंता मत करो। किसी न किसी तरह मैं खुद को सम्हाल ही लूंगी।"

इतना कह कर मेनका चाची पलट कर कमरे से निकल गईं। उनके जाते ही कमरे में सरला दाख़िल हुई। उसके एक हाथ में मोटी सी चादर थी और दूसरे में एक कटोरी जिसमें तेल भरा हुआ था। सरला तीस साल की एक शादी शुदा औरत थी। रंग गेहुंआ था और जिस्म गठीला। उसे देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दो ही पलों में मेरी आंखों ने उसके समूचे बदन का मुआयना कर लिया। पहले वाला वैभव पूरी तरह से अभी ख़त्म नहीं हुआ था।

"छोटे कुंवर।" तभी सरला ने कहा____"मालकिन ने मुझे आपकी मालिश करने भेजा है। आप अपने कपड़े उतार लीजिए।"

"क्या सारे कपड़े उतारने पड़ेंगे मुझे?" मैंने उसे देखते हुए पूछा तो उसने कहा____"जी छोटे कुंवर। मालकिन ने कहा है कि आपके पूरे बदन की मालिश करनी है।"

"पूरे बदन की?" मैंने थोड़ी उलझन में उसकी तरफ देखा____"मतलब क्या मुझे अपना कच्छा भी उतारना पड़ेगा?"

सरला मेरी इस बात से थोड़ा शरमा गई। नज़रें चुराते हुए हुए बोली____"हाय राम! ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?"

"अरे! मैं तो तुम्हारी बात सुनने के बाद ही पूछ रहा हूं तुमसे।" मैंने कहा____"तुमने कहा कि पूरे बदन की मालिश करनी है। इसका तो यही मतलब हुआ कि मुझे अपने बाकी कपड़ों के साथ साथ अपना कच्छा भी उतार देना होगा। तभी तो पूरे बदन की मालिश होगी। भला उस जगह को क्यों छोड़ दोगी तुम?"

मेरी बात सुन कर सरला का चेहरा शर्म से लाल हो गया। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने बड़ी मुश्किल से कहा____"अगर आप कहेंगे तो मैं हर जगह की मालिश कर दूंगी।"

"अच्छा क्या सच में?" मैंने हैरानी से उसे देखा।

"आप अपने कपड़े उतार लीजिए।" उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा और कमरे के फर्श पर हाथ में ली हुई मोटी चादर को बिछाने लगी।

मैं कुछ पलों तक उलझन में पड़ा उसे देखता रहा फिर अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही मैंने अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं सिर्फ कच्छे में था। ठंड का मौसम था इस लिए थोड़ी थोड़ी ठंड लगने लगी थी मुझे। सरला ने कनखियों से मेरी तरफ देखा और फिर अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे कमर में खोंसने लगी।

"अब आप यहां पर लेट जाइए छोटे कुंवर।" उसने पलंग से एक तकिया ले कर उसको चादर के सिरहाने पर रखते हुए कहा____"अ...और ये क्या आपने अपना कच्छा नहीं उतारा? क्या आपको अपने बदन के हर हिस्से की मालिश नहीं करवानी है?"

"मुझे कोई समस्या नहीं है।" मैंने कहा____"वो तो मैंने इस लिए नहीं उतारा क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हें असहज महसूस हो।"

"कहते तो आप ठीक हैं।" उसने कहा____"लेकिन मैं आपकी अच्छे से मालिश करूंगी। आख़िर आपका विवाह होने वाला है। खुशी के ऐसे अवसर पर आपको पूरी तरह से हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी ही है।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"क्या तुम ये सोचती हो कि मैं अभी हष्ट पुष्ट नहीं हूं?"

"अरे! ये क्या बातें कर रहा है भांजे?" अमर मामा कमरे में आते ही बोले____"जब ये कह रही है कि हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी है तो तुझे मान लेना चाहिए।"

"मामा आप यहां?" मैं मामा को देखते ही चौंक पड़ा।

"तुझे ढूंढ रहा था।" मामा ने कहा____"दीदी ने बताया कि तू अपने कमरे में मालिश करवा रहा है तो यहीं चला आया। मैं भी देखना चाहता था कि मेरा भांजा किस तरीके से अपनी मालिश करवाता है?"

सरला, मामा के आ जाने से और उनकी बातों से बहुत ज़्यादा असहज हो गई।

"तो देख लिया आपने?" मैंने पूछा____"या अभी और देखना है?"

"हां देख लिया और समझ भी लिया।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा_____"अब अगर मैं देखने बैठ जाऊंगा तो तू अच्छे से मालिश नहीं करवा सकेगा इस लिए चलता हूं मैं।" कहने के साथ ही मामा सरला से बोले____"और तुम, मेरे भांजे की अच्छे से मालिश करना। किसी भी तरह की कसर बाकी मत रखना, समझ गई न तुम?"

सरला ने शर्माते हुए हां में सिर हिलाया। उधर मामा ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा____"और तू भी ज़्यादा नाटक मत करना, समझ गया ना?"

उनकी बात पर मैं मुस्कुरा उठा। वो जब चले गए तो सरला ने मानों राहत की सांस ली। उसके बाद उसने कमरे की खिड़की खोली और जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। ये देख मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं ये सच में तो मुझे पूरा नंगा नहीं करने वाली है?

मैं उसी को देखे जा रहा था। उसने अपनी साड़ी को निकाल कर एक तरफ रखा और फिर पेटीकोट को अपने घुटनों तक उठा कर बाकी का हिस्सा कमर में खोंस लिया। ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी छातियां मानों ब्लाउज फाड़ने को तैयार थीं। उसका गदराया हुआ बदन मेरे अंदर तूफ़ान सा पैदा करने लगा।

"ऐसे मत देखिए छोटे कुंवर मुझे शर्म आ रही है?" सहसा सरला की आवाज़ से मैं चौंका____"ऐसे में कैसे मैं आपकी अच्छे से मालिश कर पाऊंगी?"

"तुम ऐसे हाल में मालिश करोगी मेरी?" मैंने उसे देखते हुए पूछा।

"और नहीं तो क्या?" उसने कहा____"साड़ी पहने पहने मालिश करूंगी तो ठीक से नहीं कर पाऊंगी और मेरी साड़ी में तेल भी लग जाएगा।"

बात तो उसने उचित ही कही थी इस लिए मैंने ज़्यादा कुछ न कहा किंतु ये ज़रूर सोचने लगा कि क्या सच में सरला मेरे पूरे बदन की मालिश करेगी?

बहरहाल सरला ने कटोरी को उठाया और मेरे पैरों के पास बगल से बैठ गई। वो अब मेरे इतना पास थी कि मेरी निगाह एक ही पल में ब्लाउज से झांकती उसकी छातियों पर जम गईं। सच में काफी बड़ी और ठोस नज़र आ रहीं थी उसकी छातियां। मेरे पूरे बदन में सनसनी सी दौड़ने लगी। धड़कनें तो पहले ही तेज़ तेज़ चल रहीं थी। मैंने फ़ौरन ही उससे नज़र हटा ली और खुद पर नियंत्रण रखने के लिए आंखें बंद कर ली।

पहले तो सरला आराम से ही तेल लगा रही थी किंतु जल्दी ही उसने ज़ोर लगा कर मालिश करना शुरू कर दिया। मुझे अच्छा तो लग ही रहा था किंतु मज़ा भी आ रहा था। तेल से चिपचिपी हथेलियां जब मेरी जांघों के अंतिम छोर तक आती तो मेरे अंडकोशों में झनझनाहट होने लगती। पूरे बदन में मज़े की लहर दौड़ जाती।

"कैसा लग रहा है छोटे कुंवर?" सहसा उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने आंखें खोल कर उसे देखा।

उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। वो घुटनों के बल झुकी सी थी जिससे मेरी नज़र जल्द ही उसके ब्लाउज से आधे से ज़्यादा झांकती छातियों पर जा कर जम गई। वो ज़ोर लगा कर नीचे से ऊपर आती तो उसकी छातियों में लहर सी पैदा हो जाती। फ़ौरन ही वो ताड़ गई कि मैं उसकी छातियां देख रहा हूं। उसे शर्म तो आई लेकिन उसने न तो कुछ कहा और ना ही अपनी छातियों को छुपाने का उपक्रम किया। बल्कि वो उसी तरह मालिश करते हुए मुझे देखती रही।

"क्या हुआ कुंवर जी?" जब मैं बिना कोई जवाब दिए उसकी छातियों को ही देखता रहा तो उसने फिर कहा____"आपने जवाब नहीं दिया?"

"ओह! हां तुमने कुछ कहा क्या?" मैं एकदम से हड़बड़ा सा गया तो इस बार वो खिलखिला कर हंस पड़ी। उसके हंसने पर मैं थोड़ा झेंप गया।

"मैं आपसे पूछ रही थी कि मेरे मालिश करने से आपको कैसा लग रहा है?" फिर उसने कहा।

"अच्छा लग रहा है।" मैंने कहा____"बस ऐसे ही करती रहो।"

वो मुस्कुराई और पलट कर कटोरी को उठा लिया। कटोरी से ढेर सारा तेल उसने मेरी जांघ पर डाला और उसे अपनी हथेली से फैला कर फिर से मालिश करने लगी। सहसा मेरी नज़र मेरे कच्छे पर पड़ी तो मैं चौंक गया। मेरा लंड अपने पूरे अवतार में खड़ा था और कच्छे को तंबू बनाए हुए था। ज़ाहिर है सरला भी ये देख चुकी होगी। मुझे बड़ा अजीब लगा और थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई।

"क्या अब मैं उल्टा लेट जाऊं?" मैंने अपने लंड के उठान को छुपाने के लिए उससे पूछा।

"अभी नहीं छोटे कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी तो पैरों के बाद आपके पेट और सीने की मालिश करूंगी मैं। उसके बाद ही आपको उल्टा लेटना होगा।"

"ठीक है जल्दी करो फिर।" मैं अब असहज सा महसूस करने लगा था। अभी तक मुझे अपने लंड का ख़याल ही नहीं रहा था। वो साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने देखा सरला बार बार मेरे लंड को घूरने लगती थी।

आख़िर कुछ देर में जब पैरों की मालिश हो गई तो वो तेल ले कर ऊपर की तरफ आई। ना चाहते हुए भी मेरी निगाह उस पर ठहर गई। दिल की धड़कनें और भी तेज़ हो गई। उसका पेट कमर नाभि सब साफ दिख रही थी मुझे।

"आपके मामा जी कह गए हैं कि मैं आपकी मालिश करने में कोई कसर बाकी ना रखूं।" फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए अब मैं वैसी ही मालिश करूंगी और हां आप भी विरोध मत कीजिएगा।"

"कैसी मालिश करेगी तुम?" मैंने आशंकित भाव से उसे देखा।

"बस देखते जाइए।" उसने गहरी मुस्कान से कहा____"आप भी क्या याद करेंगे कि सरला ने कितनी ज़बरदस्त मालिश की थी आपकी।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने उत्सुकता से कहा____"मैं भी तो देखूं तुम आज कैसे मालिश करती हो मेरी।"

"ठीक है।" सरला के चेहरे पर एकाएक चमक उभर आई____"लेकिन आपको भी मेरी एक बात माननी होगी। मैं जो भी करूं आप करने देंगे और सिर्फ मालिश का आनंद लेंगे।"

"ठीक है।" मैं मुस्कुराया____"मैं तुम्हें किसी बात के लिए नहीं रोकूंगा।"

सरला मेरी बात सुन कर खुश हो गई। उसने कटोरी से मेरे सीने पर तेल डाला और उसे हथेली से फैलाने लगी। जल्दी ही वो मेरे पूरे सीने और पेट पर तेल फैला कर मालिश करने लगी। मैं बस उसको देखता रहा। मैंने पहली बार गौर किया कि वो नौकरानी ज़रूर थी लेकिन बदन से क़हर ढा रही थी। तभी मैं चौंका। वो मेरे कच्छे को पकड़ कर नीचे खिसकाने लगी।

"ये क्या कर रही हो?" मैंने झट से उसे रोका।

"आपने तो कहा था कि आप मुझे नहीं रोकेंगे?" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____फिर अब क्यों रोक रहे हैं? देखिए, कच्छा नहीं उतारूंगी तो तेल लग जाएगा इसमें और वैसे भी पूरे बदन की मालिश करनी है ना तो इसे उतारना ही पड़ेगा।"

मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि कहीं आज ये मेरा ईमान न डगमगा दे। मुझसे ऐसी ग़लती न करवा दे जो न करने का मैंने भाभी को वचन दिया था। फिर सहसा मुझे ख़याल आया कि ये तो मेरे ऊपर निर्भर करता है कि मैं खुद पर काबू रख सकता हूं या नहीं।

मेरी इजाज़त मिलते ही सरला ने खुशी से मेरा कच्छा उतार कर मेरी टांगों से अलग कर दिया। कच्छे के उतरते ही मेरा लंड उछल कर छत की तरफ तन गया।

"हाय राम! ये....ये इतना बड़ा क्या है।" सरला की मानों चीख निकल गई।

"तुम तो ऐसे चीख उठी हो जैसे ये तुम्हारे अंदर ही घुस गया हो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाय राम! छोटे कुंवर ये क्या कह रहे हैं?" सरला एकदम से चौंकी____"ना जी ना। ये मेरे अंदर घुस गया तो मैं तो जीवित ही ना बचूंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने कहा____"ये तुम्हारे अंदर वैसे भी नहीं घुसेगा। अब चलो मालिश शुरू करो। मैं भी तो देखूं कि तुम कैसी मालिश करती हो आज।"

सरला आश्चर्य से अभी भी मेरे लंड को ही घूरे जा रही थी। फिर जैसे उसे होश आया तो उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई। उधर मेरा लंड बार बार ठुमक रहा था। मेरी शर्म और झिझक अब ख़त्म हो चुकी थी।

"अब तो मैं पक्का आपकी वैसी ही मालिश करूंगी छोटे कुंवर।" फिर उसने खुशी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"जैसा मैं कह रही थी। अब बस आप मेरा कमाल देखिए।"

कहने के साथ ही सरला अपना ब्लाउज खोलने लगी। ये देख मैं चौंका लेकिन मैंने उसे रोका नहीं। अब मैं भी देखना चाहता था कि वो क्या करने वाली है। जल्दी ही उसने अपने बदन से ब्लाउज निकाल कर एक तरफ रख दिया। उसकी छातियां सच में बड़ी और ठोस थीं। कुंवारी लड़की की तरह तनी हुईं थी। मेरा ईमान फिर से डोलने लगा। पूरे जिस्म में झुरझुरी होने लगी। उधर ब्लाउज एक तरफ रखने के बाद वो खड़ी हुई और अपना पेटीकोट खोलने लगी।

मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं क्या वो मुझसे चुदने का सोच ली‌‌ है? नहीं नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं होने दे सकता।

"ये क्या कर रही हो तुम?" मैंने उसे रोका____"अपने कपड़े क्यों उतार रही हो तुम?"

"फ़िक्र मत कीजिए कुंवर।" उसने कहा____"मैं आपके साथ वो नहीं करूंगी और कपड़े इस लिए उतार रही हूं ताकि मालिश करते समय मेरे इन कपड़ों पर तेल न लग जाए।"

मैंने राहत की सांस ली लेकिन अब ये सोचने लगा कि क्या ये नंगी हो कर मेरी मालिश करेगी? सरला ने पेटीकोट उतार कर उसे भी एक तरफ रख दिया। पेटीकोट के अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। मोटी मोटी जांघों के बीच बालों से भरी उसकी चूत पर मेरी नज़र पड़ी तो एक बार फिर से मेरे पूरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई।

उधर जैसे ही सरला को एहसास हुआ कि मैं उसे देख रहा हूं तो उसने जल्दी से अपनी योनि छुपा ली। उसके चहरे पर शर्म की लाली उभर आई लेकिन हैरानी की बात थी कि वो इसके बाद भी पूरी नंगी हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब ये क्या करने वाली है?

"छोटे कुंवर, अपनी आंखें बंद कर लीजिए ना।" सरला ने कहा____"आप मुझे इस तरह देखेंगे तो मुझे बहुत शर्म आएगी और मैं पूरे मन से आपकी मालिश नहीं कर पाऊंगी।"

मुझे भी लगा कि यही ठीक रहेगा। मैं भी उसे नहीं देखना चाहता था क्योंकि इस हालत में देखने से मेरा अपना बुरा हाल होने लगा था। मैंने आंखें बंद कर ली तो वो मेरे क़रीब आई। कुछ देर तक पता नहीं वो क्या करती रही लेकिन फिर अचानक ही मुझे अपने ऊपर कुछ महसूस हुआ। वो तेल था जो मेरे सीने से होते हुए पेट पर आया और फिर उसकी धार मेरे लंड पर पड़ने लगी। मेरे पूरे जिस्म में आनंद की लहर दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में सरला के हाथ उस तेल को मेरे पूरे बदन में फैलाने लगे।

मैं उस वक्त चौंक उठा जब सरला के हाथों ने मेरे लंड को पकड़ लिया। सरला के चिपचिपे हाथ मेरे लंड को हौले हौले सहलाते हुए उस पर तेल मलने लगे। आज काफी समय बाद किसी औरत का हाथ मेरे लंड पर पहुंचा था। आनंद की तरंगें पूरे बदन में दौड़ने लगीं थी। मैं सरला को रोकना चाहता था लेकिन मज़ा भी आ रहा था इस लिए रोक नहीं रहा था। उधर सरला बड़े आराम से मेरे लंड को तेल से भिंगो कर उसकी मालिश करने लगी थी। पहले तो वो एक हाथ से कर रही थी लेकिन अब दोनों हाथों से जैसे उसे मसलने लगी थी। मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया था।

"ये...ये क्या कर रही हो तुम?" आनंद से अपनी पलकें बंद किए मैंने उससे कहा।

"चुपचाप लेटे रहिए कुंवर।" सरला ने भारी आवाज़ में कहा____"ये तो अभी शुरुआत है। आगे आगे देखिए क्या होता है। आप बस मालिश का आनंद लीजिए।"

सरला की बातों से मेरे पूरे बदन में झुरझुरी हुई। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी सांसें भारी हो चलीं थी। कुछ देर तक वो इसी तरह मेरे लंड को तेल लगा लगा कर मसलती रही फिर एकदम से उसके हाथ हट गए। मैंने राहत की सांस ली। एकाएक मैं ये महसूस कर के चौंका कि मेरी दोनों जांघों पर कोई बहुत ही मुलायम चीज़ रख गई है। मैंने उत्सुकता के चलते आंखें खोल कर देखा तो हैरान रह गया।

सरला पूरी तरह नंगी थी। मेरी तरफ मुंह कर के वो मेरी जांघों पर बैठ गई थी। उसके दोनों पैर अलग अलग तरफ फ़ैल से गए थे। जांघों के बीच बालों से भरी चूत भी फैल गई थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा थोड़ा थोड़ा नज़र आने लगा था। तभी सरला ने कटोरा उठाया। उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था। कटोरे में भरे तेल को उसने अपने सीने पर उड़ेलना शुरू कर दिया। कटोरे का तेल बड़ी तेज़ी से उसकी छातियों को भिगोता हुआ नीचे तरफ आया। कुछ नीचे मेरे लंड पर गिरा। सरला थोड़ा सा आगे सरक आई जिससे तेल मेरे पेट पर गिरने लगा।

सरला ने कटोरा एक तरफ रखा और फिर जल्दी जल्दी तेल को अपनी छातियों पर और पेट पर मलने लगी। उसके बाद वो आहिस्ता से मेरे ऊपर झुकने लगी। मैं उसकी इस क्रिया को चकित भाव देखे जा रहा था। कुछ ही पलों में वो मेरे ऊपर लेट सी गई। उसकी छातियां मेरे सीने में धंस गई। उसकी नाभि के नीचे मेरा लंड दब गया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई।

"ये क्या कर रही हो?" मैं भौचक्का सा बोल पड़ा तो उसने मेरी तरफ देखा।

हम दोनों की नज़रें मिलीं। वो मुस्कुरा उठी। अपने दोनों हाथ मेरे आजू बाजू जमा कर वो अपने बदन को मेरे बदन पर रगड़ने लगी। उसकी बड़ी बड़ी और ठोस छातियां मेरे जिस्म में रगड़ खाते हुए नीचे की तरफ जा कर मेरे लंड पर ठहर गईं। मेरा लंड उसकी दोनों छातियों के बीच फंस गया। सरला से मुझे ऐसे करतब की उम्मीद नहीं थी। तभी वो मेरे चेहरे की तरफ सरकने लगी। मेरा लंड उसकी छातियों का दबाव सहते हुए उसके पेट की तरफ जाने लगा। इधर उसकी छातियां मेरे सीने पर आईं उधर मेरा लंड उसकी नाभि के नीचे पहुंच कर उसकी चूत के बालों पर जा टकराया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रहीं थी।

"कैसा लग रहा है कुंवर।" सरला मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर मानों नशे में बोली____"आपको अच्छा तो लग रहा है ना?"

"तुम अच्छे की बात करती हो।" मैं मज़े के तरंग में बोला____"मुझे तो अत्यधिक मज़ा आ रहा है सरला। मुझे नहीं पता था कि तुम्हें ये कला भी आती है। कहां से सीखा है ये?"

"कहीं से नहीं सीखा कुंवर।" उसने कहा____"ये तो अचानक ही सूझ गया था मुझे।"

"यकीन नहीं होता।" मैंने कहा____"ख़ैर बहुत मज़ा आ रहा है। ऐसे ही करती रहो।"

सरला का चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल क़रीब था। उसके गुलाबी होंठ मेरे एकदम पास ही थे। मेरा जी तो किया कि लपक लूं लेकिन फिर मैंने इरादा बदल दिया। मैं अपने से कुछ भी नहीं करना चाहता था।

"खुद को मत रोकिए छोटे कुंवर।" सरला मेरी मंशा समझ कर बोल पड़ी____"आज इस मालिश का भरपूर आनंद लीजिए। मुझ पर भरोसा रखिए, मैं आपको बिल्कुल भी निराश नहीं करूंगी।"

"पर तुम्हें मुझसे निराश होना पड़ेगा।" मैंने दृढ़ता से कहा____"तुम जिस चीज़ के बारे में सोच रही हो वो नहीं हो सकेगा। मैं तुम्हें इतना करने दे रहा हूं यही बहुत बड़ी बात है।"

"ठीक है जैसी आपकी मर्ज़ी।" कहने के साथ ही सरला फिर से नीचे को सरकने लगी।

मेरा बुरा हाल होने लगा था। जी कर रहा था कि एक झटके से उठ जाऊं और सरला को नीचे पटक कर उसको बुरी तरह चोदना शुरू कर दूं। अपनी इस भावना को मैंने बड़ी बेदर्दी से कुचला और आंखें बंद कर ली। उधर सरला नीचे पहुंच कर मेरे लंड को अपनी दोनों छातियों के बीच फंसाया और फिर दोनों तरफ से अपनी छातियों का दबाद देते हुए मानों मुट्ठ मारने लगी। मेरे जिस्म में और भी ज़्यादा मज़े की तरंगें उठने लगीं।

कुछ देर तक सरला अपनी छातियों से मेरे लंड को मसलती रही उसके बाद वो फिर से ऊपर सरकने लगी। उसकी ठोस छातियां मेरे जिस्म से रगड़ खाते हुए ऊपर की तरफ आने लगीं। तेल लगा होने से बड़ा अजीब सा मज़ा आ रहा था।

तभी मैं चौंका। सरला की छातियां मेरे सीने से उठ कर अचानक मेरे चेहरे से टकराईं। तेल की चिपचिपाहट मेरे चेहरे पर लग गई और तेल की गंध मेरे नथुनों में समा गई। मैंने फ़ौरन अपनी आंखें खोली। सरला एकदम से मेरे ऊपर ही सवार नज़र आई। उसकी तेल में नहाई बड़ी बड़ी छातियां मेरे चेहरे को छू रहीं थी। सरला की ये हिम्मत देख मुझे हैरानी भी हुई और थोड़ा गुस्सा भी आया। यकीनन वो मुझे उकसा रही थी। यानि वो चाहती थी कि मैं अपना आपा खो दूं और फिर वही कर बैठूं जो मैं किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहता था। मैंने अब तक सरला के जिस्म के नाज़ुक अंगों को हाथ तक नहीं लगाया था जबकि में अंदर का हाल तो अब ऐसा था कि उसको बुरी तरह रौंद डालने के लिए मन कर रहा था मेरा। मेरे हाथ उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को आटे की तरह गूंथ डालने को मचल रहे थे मगर मैं बेतहाशा सब्र किए हुए था। ये अलग बात है कि अपने अंदर मज़े की लहर को रोकना मेरे बस में नहीं था।

"कितनी भी कोशिश कर लो तुम।" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"ठाकुर वैभव सिंह को मज़बूर नहीं कर पाओगी तुम। बेहतर होगा कि तुम सिर्फ अपने काम पर ध्यान दो।"

"क्या आप मुझे चुनौती दे रहे हैं कुंवर?" सरला ने भी मेरी आंखों में देखा____"इसका मतलब आप चाहते हैं कि मैं ऐसी कोशिश करती रहूं?"

"तुम अपनी सोच के अनुसार कुछ भी मतलब निकाल सकती हो।" मैं हल्के से मुस्कुराया____"बाकी मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि तुम कोई कोशिश करो। तुम मेरी मालिश करने आई हो तो सिर्फ वही करो। मुझसे चुदने का ख़याल ज़हन से निकाल दो क्योंकि वो मैं नहीं करूंगा और ना ही करने दूंगा। मैंने अपनी होने वाली बीवी को बहुत पहले वचन दिया था कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा। ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिसके लिए मैं अब तक बदनाम रहा हूं।"

"वाह! कुंवर जी।" सरला मुस्कुराई____"आपकी ये बात सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस स्थिति में भी आप खुद को रोके हुए हैं और आपको अपने वचन का ख़याल है। ये बहुत बड़ी बात है। मैं भी आपको अब मजबूर नहीं करूंगी बल्कि आपके वचन का सम्मान करते हुए सिर्फ आपकी मालिश करूंगी। अब मैं उन सबको बताऊंगी कि आप बदल गए हैं और एक अच्छे इंसान बन गए हैं जो कहती थीं कि आप इन मामलों में बहुत बदनाम हैं।"

"तुम्हें ये सब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं है सरला।" मैंने कहा____"तुम बस अपना काम करो और खुशी खुशी जाओ यहां से।"

"ठीक है कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे आपसे एक विनती है।"

"कैसी विनती?"

"मेरे मालिश के चलते आपका ये मूसल।" उसने मेरे खड़े हुए लंड को देखते हुए कहा____"पूरी तरह से संभोग के लिए तैयार हो चुका है। इसके अंदर की आग को बाहर निकालना ज़रूरी है। क्या मैं आपको शांत कर दूं?"

"कैसे शांत करोगी?" मैंने पूछा।

"हाथ से ही करूंगी और कैसे?" वो हल्के से हंसी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम अपनी ये इच्छा पूरी कर सकती हो।"

सरला खुश हो गई। वो मेरे ऊपर से उठी और नंगी ही मेरे लंड के पास बैठ गई। तेल तो पहले से ही लगा हुआ था इस लिए वो लंड को पकड़ कर मुठियाने लगी।

"वैसे आपकी होने वाली दोनों पत्नियां बहुत भाग्यशाली हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उनके नसीब में इतना बड़ा औजार जो मिलने वाला है। मुझे पूरा यकीन है कि इस मामले में वो हमेशा खुश रहेंगी।"

उसकी इस बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने रूपा और रागिनी भाभी का चेहरा चमक उठा। रूपा से तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन रागिनी भाभी का सोच कर ही जिस्म में अजीब सा एहसास होने लगा।

"क्या मैं इसे चूम लूं कुंवर?" सरला की आवाज़ से मैं चौंका।

"ठीक है जो तुम्हें ठीक लगे कर लो।" मैंने कहा____"लेकिन जल्दी करो। मुझे बाहर भी जाना है।"

सरला फ़ौरन ही अपने काम में लग गई। वो कभी मुट्ठ मारती तो कभी झुक कर मेरे लंड को चूम लेती। फिर एकाएक ही उसने मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गरम मुख का जैसे ही एहसास हुआ तो मजे से मेरी आंखें बंद हो गईं। दोनों हाथों से लंड पकड़े वो उसे चूसे जा रही थी। मैं हैरान भी था उसकी इस हरकत से लेकिन मज़े में बोला कुछ नहीं।

मेरा बहुत मन कर रहा था कि सरला के सिर को थाम लूं और कमर उठा उठा कर उसके मुंह को ही चोदना शुरू कर दूं लेकिन मैंने अपनी इस इच्छा को बड़ी मुश्किल से रोका। हालाकि मज़े के चलते मेरी कमर खुद ही उठ जा रही थी। सरला कभी मेरे अंडकोशों को सहलाती तो कभी मुट्ठी मारते हुए लंड चूसने लगती। मेरा मज़े में बुरा हाल हुआ जा रहा था। अपनी इच्छाओं को दबा के रखना बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा था। सरला किसी कुशल खिलाड़ी की तरह मेरा लंड चूसने में लगी हुई थी।

आख़िर दस मिनट बाद मुझे लगने लगा कि मेरी नशों में दौड़ता लहू बड़ी तेज़ी से मेरे अंडकोशों की तरफ भागता हुआ जा रहा है। सरला को भी शायद एहसास हो गया था। वो और तेज़ी से मुठ मारनी लगी।

"आह!" मेरे मुंह से मज़े में डूबी आह निकली और मुझे झटके लगने लगे।

सरला ने लपक कर मेरे लंड को मुंह में भर लिया और मेरा वीर्य पीने लगी। आनंद की चरम सीमा में पहुंचने के बाद मैं एकदम शांत पड़ गया। उधर सरला सारा वीर्य गटकने के बाद अब मेरे लंड को चाट रही थी। बड़ी की कौमुक और चुदक्कड़ औरत थी शायद।




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Vaibhav ki toh band Baj gayi, sarla saral ta se nahi madmast hokar ragad gai
Vaibhav ki negarh ko thod na saki
 
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अध्याय - 163
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आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।


अब आगे....


अगले दिन दोपहर को विभोर और अजीत हवेली आ गए। पिता जी ने उन्हें शहर से ले आने के लिए शेरा के साथ अमर मामा को भेजा था। दोनों जब हवेली पहुंचे तो मां और पिता जी ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया। जाने क्या सोच कर पिता जी की आंखें नम हो गईं। उनसे मिलने के बाद वो अपनी मां से मिले। चाची की आंखों में आंसुओं का समंदर मानों हिलोरें ले रहा था। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और दोनों को खुद से छुपका लिया। कुसुम, विभोर से उमर में दस महीने छोटी थी जबकि अजीत से वो साल भर बड़ी थी। विभोर ने उसके चेहरे को प्यार और स्नेह से सहलाया और अजीत ने उसके पांव छुए। सब उन्हें देख कर बड़ा खुश थे।

विदेश की आबो हवा में रहने से दोनों अलग ही नज़र आ रहे थे। दोनों जब मेरा पांव छूने के लिए झुके तो मैंने बीच में ही रोक कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। ये देख मेनका चाची की आंखों से आंसू कतरा छलक ही पड़ा। साफ दिख रहा था कि वो अपने अंदर मचल रहे गुबार को बहुत मुश्किल से रोके हुए हैं। मैंने अपने दोनों छोटे भाइयों को खुद से अलग किया और फिर हाल चाल पूछ कर आराम करने को कहा।

दोपहर को खाना पीना करने के बाद मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेनका चाची कमरे में आ गईं। मैं उन्हें देख उठ कर बैठ गया।

"क्या बात है चाची?" मैंने उनसे पूछा____"मुझसे कोई काम था क्या?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है वैभव।" चाची ने कहा____"मैं यहां तुमसे ये कहने आई हूं कि अभी थोड़ी देर में सरला (हवेली की नौकरानी) यहां आएगी। वो तुम्हारे पूरे बदन की मालिश करेगी इस लिए तुम अपने कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ मालिश करवाने के लिए।"

"पर मालिश करने की क्या ज़रूरत है चाची?" मैंने उनसे पूछा।

"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" चाची ने मेरे पास आ कर कहा____"मेरे सबसे अच्छे बेटे का विवाह होने वाला है। उसकी सेहत का हर तरह से ख़याल रखना ज़रूरी है। अब तुम ज़्यादा कुछ मत सोचो और अपने सारे कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ। मैं तो खुद ही तुम्हारी मालिश करना चाहती थी लेकिन दीदी ही नहीं मानी। कहने लगीं कि मालिश का काम नौकरानी कर देगी और मुझे उनके कामों में मेरी सहायता चाहिए।"

"हां तो ग़लत क्या कहा उन्होंने?" मैंने कहा____"आपके बिना हवेली में ढंग से कोई काम हो भी नहीं सकेगा और ये बात वो भी जानती हैं। तभी तो वो आपको ऐसा कह रहीं थी। ख़ैर ये सब छोड़िए और ये बताइए कि विभोर और अजीत से उनका हाल चाल पूछा आपने?"

"अभी तो वो दोनों सो रहे हैं।" चाची ने अधीरता से कहा____"शायद लंबे सफ़र के चलते थके हुए थे। शाम को जब उठेंगे तो पूछूंगी। वैसे सच कहूं तो उन्हें देख कर मन में सिर्फ एक ही ख़याल आता है कि उन दोनों से कैसे पूरे मन से बात कर सकूंगी? बार बार मन में वही सब उभर आता है और हृदय दुख से भर जाता है।"

"आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखना होगा चाची।" मैंने कहा____"उन्हें आपके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं दिखने चाहिए जिससे उन्हें ये लगे कि आप अंदर से दुखी हैं। ऐसे में आप भी जानती हैं कि वो भी दुखी हो जाएंगे और आपसे आपके दुख का कारण पूछने लगेंगे जोकि आप हर्गिज़ नहीं बता सकतीं हैं।"

"अभी तक उन्हें देखने को बहुत मन करता था वैभव।" चाची ने दुखी हो कर कहा____"लेकिन अब जब वो आंखों के सामने आ गए हैं तो उनसे मिलने से घबराने लगी हूं। समझ में नहीं आता कि कैसे दोनों के सामने खुद को सामान्य रख पाऊंगी मैं?"

"मैं आपके अंदर का हाल समझता हूं चाची।" मैंने कहा____"लेकिन ये भी सच है कि आपको उनसे मिलना तो पड़ेगा ही। आख़िर वो आपके बेटे हैं। माता पिता तो हर हाल में अपने बच्चों को खुश ही रखते हैं तो आपको भी उनसे खुशी से मिलना होगा और उन्हें अपना प्यार व स्नेह देना होगा।"

मेरी बात सुन कर चाची कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी कमरे के बाहर से किसी के आने की पदचाप सुनाई पड़ी।

"लगता है सरला आ गई है।" चाची ने कहा____"तुम उससे अच्छे से मालिश करवाओ। मैं अब जा रही हूं, बाकी चिंता मत करो। किसी न किसी तरह मैं खुद को सम्हाल ही लूंगी।"

इतना कह कर मेनका चाची पलट कर कमरे से निकल गईं। उनके जाते ही कमरे में सरला दाख़िल हुई। उसके एक हाथ में मोटी सी चादर थी और दूसरे में एक कटोरी जिसमें तेल भरा हुआ था। सरला तीस साल की एक शादी शुदा औरत थी। रंग गेहुंआ था और जिस्म गठीला। उसे देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दो ही पलों में मेरी आंखों ने उसके समूचे बदन का मुआयना कर लिया। पहले वाला वैभव पूरी तरह से अभी ख़त्म नहीं हुआ था।

"छोटे कुंवर।" तभी सरला ने कहा____"मालकिन ने मुझे आपकी मालिश करने भेजा है। आप अपने कपड़े उतार लीजिए।"

"क्या सारे कपड़े उतारने पड़ेंगे मुझे?" मैंने उसे देखते हुए पूछा तो उसने कहा____"जी छोटे कुंवर। मालकिन ने कहा है कि आपके पूरे बदन की मालिश करनी है।"

"पूरे बदन की?" मैंने थोड़ी उलझन में उसकी तरफ देखा____"मतलब क्या मुझे अपना कच्छा भी उतारना पड़ेगा?"

सरला मेरी इस बात से थोड़ा शरमा गई। नज़रें चुराते हुए हुए बोली____"हाय राम! ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?"

"अरे! मैं तो तुम्हारी बात सुनने के बाद ही पूछ रहा हूं तुमसे।" मैंने कहा____"तुमने कहा कि पूरे बदन की मालिश करनी है। इसका तो यही मतलब हुआ कि मुझे अपने बाकी कपड़ों के साथ साथ अपना कच्छा भी उतार देना होगा। तभी तो पूरे बदन की मालिश होगी। भला उस जगह को क्यों छोड़ दोगी तुम?"

मेरी बात सुन कर सरला का चेहरा शर्म से लाल हो गया। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने बड़ी मुश्किल से कहा____"अगर आप कहेंगे तो मैं हर जगह की मालिश कर दूंगी।"

"अच्छा क्या सच में?" मैंने हैरानी से उसे देखा।

"आप अपने कपड़े उतार लीजिए।" उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा और कमरे के फर्श पर हाथ में ली हुई मोटी चादर को बिछाने लगी।

मैं कुछ पलों तक उलझन में पड़ा उसे देखता रहा फिर अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही मैंने अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं सिर्फ कच्छे में था। ठंड का मौसम था इस लिए थोड़ी थोड़ी ठंड लगने लगी थी मुझे। सरला ने कनखियों से मेरी तरफ देखा और फिर अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे कमर में खोंसने लगी।

"अब आप यहां पर लेट जाइए छोटे कुंवर।" उसने पलंग से एक तकिया ले कर उसको चादर के सिरहाने पर रखते हुए कहा____"अ...और ये क्या आपने अपना कच्छा नहीं उतारा? क्या आपको अपने बदन के हर हिस्से की मालिश नहीं करवानी है?"

"मुझे कोई समस्या नहीं है।" मैंने कहा____"वो तो मैंने इस लिए नहीं उतारा क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हें असहज महसूस हो।"

"कहते तो आप ठीक हैं।" उसने कहा____"लेकिन मैं आपकी अच्छे से मालिश करूंगी। आख़िर आपका विवाह होने वाला है। खुशी के ऐसे अवसर पर आपको पूरी तरह से हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी ही है।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"क्या तुम ये सोचती हो कि मैं अभी हष्ट पुष्ट नहीं हूं?"

"अरे! ये क्या बातें कर रहा है भांजे?" अमर मामा कमरे में आते ही बोले____"जब ये कह रही है कि हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी है तो तुझे मान लेना चाहिए।"

"मामा आप यहां?" मैं मामा को देखते ही चौंक पड़ा।

"तुझे ढूंढ रहा था।" मामा ने कहा____"दीदी ने बताया कि तू अपने कमरे में मालिश करवा रहा है तो यहीं चला आया। मैं भी देखना चाहता था कि मेरा भांजा किस तरीके से अपनी मालिश करवाता है?"

सरला, मामा के आ जाने से और उनकी बातों से बहुत ज़्यादा असहज हो गई।

"तो देख लिया आपने?" मैंने पूछा____"या अभी और देखना है?"

"हां देख लिया और समझ भी लिया।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा_____"अब अगर मैं देखने बैठ जाऊंगा तो तू अच्छे से मालिश नहीं करवा सकेगा इस लिए चलता हूं मैं।" कहने के साथ ही मामा सरला से बोले____"और तुम, मेरे भांजे की अच्छे से मालिश करना। किसी भी तरह की कसर बाकी मत रखना, समझ गई न तुम?"

सरला ने शर्माते हुए हां में सिर हिलाया। उधर मामा ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा____"और तू भी ज़्यादा नाटक मत करना, समझ गया ना?"

उनकी बात पर मैं मुस्कुरा उठा। वो जब चले गए तो सरला ने मानों राहत की सांस ली। उसके बाद उसने कमरे की खिड़की खोली और जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। ये देख मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं ये सच में तो मुझे पूरा नंगा नहीं करने वाली है?

मैं उसी को देखे जा रहा था। उसने अपनी साड़ी को निकाल कर एक तरफ रखा और फिर पेटीकोट को अपने घुटनों तक उठा कर बाकी का हिस्सा कमर में खोंस लिया। ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी छातियां मानों ब्लाउज फाड़ने को तैयार थीं। उसका गदराया हुआ बदन मेरे अंदर तूफ़ान सा पैदा करने लगा।

"ऐसे मत देखिए छोटे कुंवर मुझे शर्म आ रही है?" सहसा सरला की आवाज़ से मैं चौंका____"ऐसे में कैसे मैं आपकी अच्छे से मालिश कर पाऊंगी?"

"तुम ऐसे हाल में मालिश करोगी मेरी?" मैंने उसे देखते हुए पूछा।

"और नहीं तो क्या?" उसने कहा____"साड़ी पहने पहने मालिश करूंगी तो ठीक से नहीं कर पाऊंगी और मेरी साड़ी में तेल भी लग जाएगा।"

बात तो उसने उचित ही कही थी इस लिए मैंने ज़्यादा कुछ न कहा किंतु ये ज़रूर सोचने लगा कि क्या सच में सरला मेरे पूरे बदन की मालिश करेगी?

बहरहाल सरला ने कटोरी को उठाया और मेरे पैरों के पास बगल से बैठ गई। वो अब मेरे इतना पास थी कि मेरी निगाह एक ही पल में ब्लाउज से झांकती उसकी छातियों पर जम गईं। सच में काफी बड़ी और ठोस नज़र आ रहीं थी उसकी छातियां। मेरे पूरे बदन में सनसनी सी दौड़ने लगी। धड़कनें तो पहले ही तेज़ तेज़ चल रहीं थी। मैंने फ़ौरन ही उससे नज़र हटा ली और खुद पर नियंत्रण रखने के लिए आंखें बंद कर ली।

पहले तो सरला आराम से ही तेल लगा रही थी किंतु जल्दी ही उसने ज़ोर लगा कर मालिश करना शुरू कर दिया। मुझे अच्छा तो लग ही रहा था किंतु मज़ा भी आ रहा था। तेल से चिपचिपी हथेलियां जब मेरी जांघों के अंतिम छोर तक आती तो मेरे अंडकोशों में झनझनाहट होने लगती। पूरे बदन में मज़े की लहर दौड़ जाती।

"कैसा लग रहा है छोटे कुंवर?" सहसा उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने आंखें खोल कर उसे देखा।

उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। वो घुटनों के बल झुकी सी थी जिससे मेरी नज़र जल्द ही उसके ब्लाउज से आधे से ज़्यादा झांकती छातियों पर जा कर जम गई। वो ज़ोर लगा कर नीचे से ऊपर आती तो उसकी छातियों में लहर सी पैदा हो जाती। फ़ौरन ही वो ताड़ गई कि मैं उसकी छातियां देख रहा हूं। उसे शर्म तो आई लेकिन उसने न तो कुछ कहा और ना ही अपनी छातियों को छुपाने का उपक्रम किया। बल्कि वो उसी तरह मालिश करते हुए मुझे देखती रही।

"क्या हुआ कुंवर जी?" जब मैं बिना कोई जवाब दिए उसकी छातियों को ही देखता रहा तो उसने फिर कहा____"आपने जवाब नहीं दिया?"

"ओह! हां तुमने कुछ कहा क्या?" मैं एकदम से हड़बड़ा सा गया तो इस बार वो खिलखिला कर हंस पड़ी। उसके हंसने पर मैं थोड़ा झेंप गया।

"मैं आपसे पूछ रही थी कि मेरे मालिश करने से आपको कैसा लग रहा है?" फिर उसने कहा।

"अच्छा लग रहा है।" मैंने कहा____"बस ऐसे ही करती रहो।"

वो मुस्कुराई और पलट कर कटोरी को उठा लिया। कटोरी से ढेर सारा तेल उसने मेरी जांघ पर डाला और उसे अपनी हथेली से फैला कर फिर से मालिश करने लगी। सहसा मेरी नज़र मेरे कच्छे पर पड़ी तो मैं चौंक गया। मेरा लंड अपने पूरे अवतार में खड़ा था और कच्छे को तंबू बनाए हुए था। ज़ाहिर है सरला भी ये देख चुकी होगी। मुझे बड़ा अजीब लगा और थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई।

"क्या अब मैं उल्टा लेट जाऊं?" मैंने अपने लंड के उठान को छुपाने के लिए उससे पूछा।

"अभी नहीं छोटे कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी तो पैरों के बाद आपके पेट और सीने की मालिश करूंगी मैं। उसके बाद ही आपको उल्टा लेटना होगा।"

"ठीक है जल्दी करो फिर।" मैं अब असहज सा महसूस करने लगा था। अभी तक मुझे अपने लंड का ख़याल ही नहीं रहा था। वो साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने देखा सरला बार बार मेरे लंड को घूरने लगती थी।

आख़िर कुछ देर में जब पैरों की मालिश हो गई तो वो तेल ले कर ऊपर की तरफ आई। ना चाहते हुए भी मेरी निगाह उस पर ठहर गई। दिल की धड़कनें और भी तेज़ हो गई। उसका पेट कमर नाभि सब साफ दिख रही थी मुझे।

"आपके मामा जी कह गए हैं कि मैं आपकी मालिश करने में कोई कसर बाकी ना रखूं।" फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए अब मैं वैसी ही मालिश करूंगी और हां आप भी विरोध मत कीजिएगा।"

"कैसी मालिश करेगी तुम?" मैंने आशंकित भाव से उसे देखा।

"बस देखते जाइए।" उसने गहरी मुस्कान से कहा____"आप भी क्या याद करेंगे कि सरला ने कितनी ज़बरदस्त मालिश की थी आपकी।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने उत्सुकता से कहा____"मैं भी तो देखूं तुम आज कैसे मालिश करती हो मेरी।"

"ठीक है।" सरला के चेहरे पर एकाएक चमक उभर आई____"लेकिन आपको भी मेरी एक बात माननी होगी। मैं जो भी करूं आप करने देंगे और सिर्फ मालिश का आनंद लेंगे।"

"ठीक है।" मैं मुस्कुराया____"मैं तुम्हें किसी बात के लिए नहीं रोकूंगा।"

सरला मेरी बात सुन कर खुश हो गई। उसने कटोरी से मेरे सीने पर तेल डाला और उसे हथेली से फैलाने लगी। जल्दी ही वो मेरे पूरे सीने और पेट पर तेल फैला कर मालिश करने लगी। मैं बस उसको देखता रहा। मैंने पहली बार गौर किया कि वो नौकरानी ज़रूर थी लेकिन बदन से क़हर ढा रही थी। तभी मैं चौंका। वो मेरे कच्छे को पकड़ कर नीचे खिसकाने लगी।

"ये क्या कर रही हो?" मैंने झट से उसे रोका।

"आपने तो कहा था कि आप मुझे नहीं रोकेंगे?" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____फिर अब क्यों रोक रहे हैं? देखिए, कच्छा नहीं उतारूंगी तो तेल लग जाएगा इसमें और वैसे भी पूरे बदन की मालिश करनी है ना तो इसे उतारना ही पड़ेगा।"

मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि कहीं आज ये मेरा ईमान न डगमगा दे। मुझसे ऐसी ग़लती न करवा दे जो न करने का मैंने भाभी को वचन दिया था। फिर सहसा मुझे ख़याल आया कि ये तो मेरे ऊपर निर्भर करता है कि मैं खुद पर काबू रख सकता हूं या नहीं।

मेरी इजाज़त मिलते ही सरला ने खुशी से मेरा कच्छा उतार कर मेरी टांगों से अलग कर दिया। कच्छे के उतरते ही मेरा लंड उछल कर छत की तरफ तन गया।

"हाय राम! ये....ये इतना बड़ा क्या है।" सरला की मानों चीख निकल गई।

"तुम तो ऐसे चीख उठी हो जैसे ये तुम्हारे अंदर ही घुस गया हो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाय राम! छोटे कुंवर ये क्या कह रहे हैं?" सरला एकदम से चौंकी____"ना जी ना। ये मेरे अंदर घुस गया तो मैं तो जीवित ही ना बचूंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने कहा____"ये तुम्हारे अंदर वैसे भी नहीं घुसेगा। अब चलो मालिश शुरू करो। मैं भी तो देखूं कि तुम कैसी मालिश करती हो आज।"

सरला आश्चर्य से अभी भी मेरे लंड को ही घूरे जा रही थी। फिर जैसे उसे होश आया तो उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई। उधर मेरा लंड बार बार ठुमक रहा था। मेरी शर्म और झिझक अब ख़त्म हो चुकी थी।

"अब तो मैं पक्का आपकी वैसी ही मालिश करूंगी छोटे कुंवर।" फिर उसने खुशी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"जैसा मैं कह रही थी। अब बस आप मेरा कमाल देखिए।"

कहने के साथ ही सरला अपना ब्लाउज खोलने लगी। ये देख मैं चौंका लेकिन मैंने उसे रोका नहीं। अब मैं भी देखना चाहता था कि वो क्या करने वाली है। जल्दी ही उसने अपने बदन से ब्लाउज निकाल कर एक तरफ रख दिया। उसकी छातियां सच में बड़ी और ठोस थीं। कुंवारी लड़की की तरह तनी हुईं थी। मेरा ईमान फिर से डोलने लगा। पूरे जिस्म में झुरझुरी होने लगी। उधर ब्लाउज एक तरफ रखने के बाद वो खड़ी हुई और अपना पेटीकोट खोलने लगी।

मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं क्या वो मुझसे चुदने का सोच ली‌‌ है? नहीं नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं होने दे सकता।

"ये क्या कर रही हो तुम?" मैंने उसे रोका____"अपने कपड़े क्यों उतार रही हो तुम?"

"फ़िक्र मत कीजिए कुंवर।" उसने कहा____"मैं आपके साथ वो नहीं करूंगी और कपड़े इस लिए उतार रही हूं ताकि मालिश करते समय मेरे इन कपड़ों पर तेल न लग जाए।"

मैंने राहत की सांस ली लेकिन अब ये सोचने लगा कि क्या ये नंगी हो कर मेरी मालिश करेगी? सरला ने पेटीकोट उतार कर उसे भी एक तरफ रख दिया। पेटीकोट के अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। मोटी मोटी जांघों के बीच बालों से भरी उसकी चूत पर मेरी नज़र पड़ी तो एक बार फिर से मेरे पूरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई।

उधर जैसे ही सरला को एहसास हुआ कि मैं उसे देख रहा हूं तो उसने जल्दी से अपनी योनि छुपा ली। उसके चहरे पर शर्म की लाली उभर आई लेकिन हैरानी की बात थी कि वो इसके बाद भी पूरी नंगी हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब ये क्या करने वाली है?

"छोटे कुंवर, अपनी आंखें बंद कर लीजिए ना।" सरला ने कहा____"आप मुझे इस तरह देखेंगे तो मुझे बहुत शर्म आएगी और मैं पूरे मन से आपकी मालिश नहीं कर पाऊंगी।"

मुझे भी लगा कि यही ठीक रहेगा। मैं भी उसे नहीं देखना चाहता था क्योंकि इस हालत में देखने से मेरा अपना बुरा हाल होने लगा था। मैंने आंखें बंद कर ली तो वो मेरे क़रीब आई। कुछ देर तक पता नहीं वो क्या करती रही लेकिन फिर अचानक ही मुझे अपने ऊपर कुछ महसूस हुआ। वो तेल था जो मेरे सीने से होते हुए पेट पर आया और फिर उसकी धार मेरे लंड पर पड़ने लगी। मेरे पूरे जिस्म में आनंद की लहर दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में सरला के हाथ उस तेल को मेरे पूरे बदन में फैलाने लगे।

मैं उस वक्त चौंक उठा जब सरला के हाथों ने मेरे लंड को पकड़ लिया। सरला के चिपचिपे हाथ मेरे लंड को हौले हौले सहलाते हुए उस पर तेल मलने लगे। आज काफी समय बाद किसी औरत का हाथ मेरे लंड पर पहुंचा था। आनंद की तरंगें पूरे बदन में दौड़ने लगीं थी। मैं सरला को रोकना चाहता था लेकिन मज़ा भी आ रहा था इस लिए रोक नहीं रहा था। उधर सरला बड़े आराम से मेरे लंड को तेल से भिंगो कर उसकी मालिश करने लगी थी। पहले तो वो एक हाथ से कर रही थी लेकिन अब दोनों हाथों से जैसे उसे मसलने लगी थी। मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया था।

"ये...ये क्या कर रही हो तुम?" आनंद से अपनी पलकें बंद किए मैंने उससे कहा।

"चुपचाप लेटे रहिए कुंवर।" सरला ने भारी आवाज़ में कहा____"ये तो अभी शुरुआत है। आगे आगे देखिए क्या होता है। आप बस मालिश का आनंद लीजिए।"

सरला की बातों से मेरे पूरे बदन में झुरझुरी हुई। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी सांसें भारी हो चलीं थी। कुछ देर तक वो इसी तरह मेरे लंड को तेल लगा लगा कर मसलती रही फिर एकदम से उसके हाथ हट गए। मैंने राहत की सांस ली। एकाएक मैं ये महसूस कर के चौंका कि मेरी दोनों जांघों पर कोई बहुत ही मुलायम चीज़ रख गई है। मैंने उत्सुकता के चलते आंखें खोल कर देखा तो हैरान रह गया।

सरला पूरी तरह नंगी थी। मेरी तरफ मुंह कर के वो मेरी जांघों पर बैठ गई थी। उसके दोनों पैर अलग अलग तरफ फ़ैल से गए थे। जांघों के बीच बालों से भरी चूत भी फैल गई थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा थोड़ा थोड़ा नज़र आने लगा था। तभी सरला ने कटोरा उठाया। उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था। कटोरे में भरे तेल को उसने अपने सीने पर उड़ेलना शुरू कर दिया। कटोरे का तेल बड़ी तेज़ी से उसकी छातियों को भिगोता हुआ नीचे तरफ आया। कुछ नीचे मेरे लंड पर गिरा। सरला थोड़ा सा आगे सरक आई जिससे तेल मेरे पेट पर गिरने लगा।

सरला ने कटोरा एक तरफ रखा और फिर जल्दी जल्दी तेल को अपनी छातियों पर और पेट पर मलने लगी। उसके बाद वो आहिस्ता से मेरे ऊपर झुकने लगी। मैं उसकी इस क्रिया को चकित भाव देखे जा रहा था। कुछ ही पलों में वो मेरे ऊपर लेट सी गई। उसकी छातियां मेरे सीने में धंस गई। उसकी नाभि के नीचे मेरा लंड दब गया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई।

"ये क्या कर रही हो?" मैं भौचक्का सा बोल पड़ा तो उसने मेरी तरफ देखा।

हम दोनों की नज़रें मिलीं। वो मुस्कुरा उठी। अपने दोनों हाथ मेरे आजू बाजू जमा कर वो अपने बदन को मेरे बदन पर रगड़ने लगी। उसकी बड़ी बड़ी और ठोस छातियां मेरे जिस्म में रगड़ खाते हुए नीचे की तरफ जा कर मेरे लंड पर ठहर गईं। मेरा लंड उसकी दोनों छातियों के बीच फंस गया। सरला से मुझे ऐसे करतब की उम्मीद नहीं थी। तभी वो मेरे चेहरे की तरफ सरकने लगी। मेरा लंड उसकी छातियों का दबाव सहते हुए उसके पेट की तरफ जाने लगा। इधर उसकी छातियां मेरे सीने पर आईं उधर मेरा लंड उसकी नाभि के नीचे पहुंच कर उसकी चूत के बालों पर जा टकराया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रहीं थी।

"कैसा लग रहा है कुंवर।" सरला मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर मानों नशे में बोली____"आपको अच्छा तो लग रहा है ना?"

"तुम अच्छे की बात करती हो।" मैं मज़े के तरंग में बोला____"मुझे तो अत्यधिक मज़ा आ रहा है सरला। मुझे नहीं पता था कि तुम्हें ये कला भी आती है। कहां से सीखा है ये?"

"कहीं से नहीं सीखा कुंवर।" उसने कहा____"ये तो अचानक ही सूझ गया था मुझे।"

"यकीन नहीं होता।" मैंने कहा____"ख़ैर बहुत मज़ा आ रहा है। ऐसे ही करती रहो।"

सरला का चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल क़रीब था। उसके गुलाबी होंठ मेरे एकदम पास ही थे। मेरा जी तो किया कि लपक लूं लेकिन फिर मैंने इरादा बदल दिया। मैं अपने से कुछ भी नहीं करना चाहता था।

"खुद को मत रोकिए छोटे कुंवर।" सरला मेरी मंशा समझ कर बोल पड़ी____"आज इस मालिश का भरपूर आनंद लीजिए। मुझ पर भरोसा रखिए, मैं आपको बिल्कुल भी निराश नहीं करूंगी।"

"पर तुम्हें मुझसे निराश होना पड़ेगा।" मैंने दृढ़ता से कहा____"तुम जिस चीज़ के बारे में सोच रही हो वो नहीं हो सकेगा। मैं तुम्हें इतना करने दे रहा हूं यही बहुत बड़ी बात है।"

"ठीक है जैसी आपकी मर्ज़ी।" कहने के साथ ही सरला फिर से नीचे को सरकने लगी।

मेरा बुरा हाल होने लगा था। जी कर रहा था कि एक झटके से उठ जाऊं और सरला को नीचे पटक कर उसको बुरी तरह चोदना शुरू कर दूं। अपनी इस भावना को मैंने बड़ी बेदर्दी से कुचला और आंखें बंद कर ली। उधर सरला नीचे पहुंच कर मेरे लंड को अपनी दोनों छातियों के बीच फंसाया और फिर दोनों तरफ से अपनी छातियों का दबाद देते हुए मानों मुट्ठ मारने लगी। मेरे जिस्म में और भी ज़्यादा मज़े की तरंगें उठने लगीं।

कुछ देर तक सरला अपनी छातियों से मेरे लंड को मसलती रही उसके बाद वो फिर से ऊपर सरकने लगी। उसकी ठोस छातियां मेरे जिस्म से रगड़ खाते हुए ऊपर की तरफ आने लगीं। तेल लगा होने से बड़ा अजीब सा मज़ा आ रहा था।

तभी मैं चौंका। सरला की छातियां मेरे सीने से उठ कर अचानक मेरे चेहरे से टकराईं। तेल की चिपचिपाहट मेरे चेहरे पर लग गई और तेल की गंध मेरे नथुनों में समा गई। मैंने फ़ौरन अपनी आंखें खोली। सरला एकदम से मेरे ऊपर ही सवार नज़र आई। उसकी तेल में नहाई बड़ी बड़ी छातियां मेरे चेहरे को छू रहीं थी। सरला की ये हिम्मत देख मुझे हैरानी भी हुई और थोड़ा गुस्सा भी आया। यकीनन वो मुझे उकसा रही थी। यानि वो चाहती थी कि मैं अपना आपा खो दूं और फिर वही कर बैठूं जो मैं किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहता था। मैंने अब तक सरला के जिस्म के नाज़ुक अंगों को हाथ तक नहीं लगाया था जबकि में अंदर का हाल तो अब ऐसा था कि उसको बुरी तरह रौंद डालने के लिए मन कर रहा था मेरा। मेरे हाथ उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को आटे की तरह गूंथ डालने को मचल रहे थे मगर मैं बेतहाशा सब्र किए हुए था। ये अलग बात है कि अपने अंदर मज़े की लहर को रोकना मेरे बस में नहीं था।

"कितनी भी कोशिश कर लो तुम।" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"ठाकुर वैभव सिंह को मज़बूर नहीं कर पाओगी तुम। बेहतर होगा कि तुम सिर्फ अपने काम पर ध्यान दो।"

"क्या आप मुझे चुनौती दे रहे हैं कुंवर?" सरला ने भी मेरी आंखों में देखा____"इसका मतलब आप चाहते हैं कि मैं ऐसी कोशिश करती रहूं?"

"तुम अपनी सोच के अनुसार कुछ भी मतलब निकाल सकती हो।" मैं हल्के से मुस्कुराया____"बाकी मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि तुम कोई कोशिश करो। तुम मेरी मालिश करने आई हो तो सिर्फ वही करो। मुझसे चुदने का ख़याल ज़हन से निकाल दो क्योंकि वो मैं नहीं करूंगा और ना ही करने दूंगा। मैंने अपनी होने वाली बीवी को बहुत पहले वचन दिया था कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा। ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिसके लिए मैं अब तक बदनाम रहा हूं।"

"वाह! कुंवर जी।" सरला मुस्कुराई____"आपकी ये बात सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस स्थिति में भी आप खुद को रोके हुए हैं और आपको अपने वचन का ख़याल है। ये बहुत बड़ी बात है। मैं भी आपको अब मजबूर नहीं करूंगी बल्कि आपके वचन का सम्मान करते हुए सिर्फ आपकी मालिश करूंगी। अब मैं उन सबको बताऊंगी कि आप बदल गए हैं और एक अच्छे इंसान बन गए हैं जो कहती थीं कि आप इन मामलों में बहुत बदनाम हैं।"

"तुम्हें ये सब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं है सरला।" मैंने कहा____"तुम बस अपना काम करो और खुशी खुशी जाओ यहां से।"

"ठीक है कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे आपसे एक विनती है।"

"कैसी विनती?"

"मेरे मालिश के चलते आपका ये मूसल।" उसने मेरे खड़े हुए लंड को देखते हुए कहा____"पूरी तरह से संभोग के लिए तैयार हो चुका है। इसके अंदर की आग को बाहर निकालना ज़रूरी है। क्या मैं आपको शांत कर दूं?"

"कैसे शांत करोगी?" मैंने पूछा।

"हाथ से ही करूंगी और कैसे?" वो हल्के से हंसी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम अपनी ये इच्छा पूरी कर सकती हो।"

सरला खुश हो गई। वो मेरे ऊपर से उठी और नंगी ही मेरे लंड के पास बैठ गई। तेल तो पहले से ही लगा हुआ था इस लिए वो लंड को पकड़ कर मुठियाने लगी।

"वैसे आपकी होने वाली दोनों पत्नियां बहुत भाग्यशाली हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उनके नसीब में इतना बड़ा औजार जो मिलने वाला है। मुझे पूरा यकीन है कि इस मामले में वो हमेशा खुश रहेंगी।"

उसकी इस बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने रूपा और रागिनी भाभी का चेहरा चमक उठा। रूपा से तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन रागिनी भाभी का सोच कर ही जिस्म में अजीब सा एहसास होने लगा।

"क्या मैं इसे चूम लूं कुंवर?" सरला की आवाज़ से मैं चौंका।

"ठीक है जो तुम्हें ठीक लगे कर लो।" मैंने कहा____"लेकिन जल्दी करो। मुझे बाहर भी जाना है।"

सरला फ़ौरन ही अपने काम में लग गई। वो कभी मुट्ठ मारती तो कभी झुक कर मेरे लंड को चूम लेती। फिर एकाएक ही उसने मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गरम मुख का जैसे ही एहसास हुआ तो मजे से मेरी आंखें बंद हो गईं। दोनों हाथों से लंड पकड़े वो उसे चूसे जा रही थी। मैं हैरान भी था उसकी इस हरकत से लेकिन मज़े में बोला कुछ नहीं।

मेरा बहुत मन कर रहा था कि सरला के सिर को थाम लूं और कमर उठा उठा कर उसके मुंह को ही चोदना शुरू कर दूं लेकिन मैंने अपनी इस इच्छा को बड़ी मुश्किल से रोका। हालाकि मज़े के चलते मेरी कमर खुद ही उठ जा रही थी। सरला कभी मेरे अंडकोशों को सहलाती तो कभी मुट्ठी मारते हुए लंड चूसने लगती। मेरा मज़े में बुरा हाल हुआ जा रहा था। अपनी इच्छाओं को दबा के रखना बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा था। सरला किसी कुशल खिलाड़ी की तरह मेरा लंड चूसने में लगी हुई थी।

आख़िर दस मिनट बाद मुझे लगने लगा कि मेरी नशों में दौड़ता लहू बड़ी तेज़ी से मेरे अंडकोशों की तरफ भागता हुआ जा रहा है। सरला को भी शायद एहसास हो गया था। वो और तेज़ी से मुठ मारनी लगी।

"आह!" मेरे मुंह से मज़े में डूबी आह निकली और मुझे झटके लगने लगे।

सरला ने लपक कर मेरे लंड को मुंह में भर लिया और मेरा वीर्य पीने लगी। आनंद की चरम सीमा में पहुंचने के बाद मैं एकदम शांत पड़ गया। उधर सरला सारा वीर्य गटकने के बाद अब मेरे लंड को चाट रही थी। बड़ी की कौमुक और चुदक्कड़ औरत थी शायद।




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Vaibhav ki toh band Baj gayi, sarla saral ta se nahi madmast hokar ragad gai
Vaibhav ki negarh ko thod na saki
 
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Kuresa Begam

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अध्याय - 163
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आख़िर मेरी बातों से चाची के चेहरे पर से दुख के भाव मिटे और फिर वो मुस्कुराते हुए पलंग से नीचे उतर आईं। कुसुम मुझे भाव विभोर सी देखे जा रही थी। उसकी आंखें भरी हुई थी। ख़ैर कुछ ही पलों में हम तीनों कमरे से बाहर आ गए। चाची और कुसुम अपने अपने काम में लग गईं जबकि मैं खुशी मन से ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।


अब आगे....


अगले दिन दोपहर को विभोर और अजीत हवेली आ गए। पिता जी ने उन्हें शहर से ले आने के लिए शेरा के साथ अमर मामा को भेजा था। दोनों जब हवेली पहुंचे तो मां और पिता जी ने उन्हें अपने हृदय से लगा लिया। जाने क्या सोच कर पिता जी की आंखें नम हो गईं। उनसे मिलने के बाद वो अपनी मां से मिले। चाची की आंखों में आंसुओं का समंदर मानों हिलोरें ले रहा था। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और दोनों को खुद से छुपका लिया। कुसुम, विभोर से उमर में दस महीने छोटी थी जबकि अजीत से वो साल भर बड़ी थी। विभोर ने उसके चेहरे को प्यार और स्नेह से सहलाया और अजीत ने उसके पांव छुए। सब उन्हें देख कर बड़ा खुश थे।

विदेश की आबो हवा में रहने से दोनों अलग ही नज़र आ रहे थे। दोनों जब मेरा पांव छूने के लिए झुके तो मैंने बीच में ही रोक कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। ये देख मेनका चाची की आंखों से आंसू कतरा छलक ही पड़ा। साफ दिख रहा था कि वो अपने अंदर मचल रहे गुबार को बहुत मुश्किल से रोके हुए हैं। मैंने अपने दोनों छोटे भाइयों को खुद से अलग किया और फिर हाल चाल पूछ कर आराम करने को कहा।

दोपहर को खाना पीना करने के बाद मैं अपने कमरे में लेटा हुआ था कि तभी मेनका चाची कमरे में आ गईं। मैं उन्हें देख उठ कर बैठ गया।

"क्या बात है चाची?" मैंने उनसे पूछा____"मुझसे कोई काम था क्या?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है वैभव।" चाची ने कहा____"मैं यहां तुमसे ये कहने आई हूं कि अभी थोड़ी देर में सरला (हवेली की नौकरानी) यहां आएगी। वो तुम्हारे पूरे बदन की मालिश करेगी इस लिए तुम अपने कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ मालिश करवाने के लिए।"

"पर मालिश करने की क्या ज़रूरत है चाची?" मैंने उनसे पूछा।

"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" चाची ने मेरे पास आ कर कहा____"मेरे सबसे अच्छे बेटे का विवाह होने वाला है। उसकी सेहत का हर तरह से ख़याल रखना ज़रूरी है। अब तुम ज़्यादा कुछ मत सोचो और अपने सारे कपड़े उतार कर तैयार हो जाओ। मैं तो खुद ही तुम्हारी मालिश करना चाहती थी लेकिन दीदी ही नहीं मानी। कहने लगीं कि मालिश का काम नौकरानी कर देगी और मुझे उनके कामों में मेरी सहायता चाहिए।"

"हां तो ग़लत क्या कहा उन्होंने?" मैंने कहा____"आपके बिना हवेली में ढंग से कोई काम हो भी नहीं सकेगा और ये बात वो भी जानती हैं। तभी तो वो आपको ऐसा कह रहीं थी। ख़ैर ये सब छोड़िए और ये बताइए कि विभोर और अजीत से उनका हाल चाल पूछा आपने?"

"अभी तो वो दोनों सो रहे हैं।" चाची ने अधीरता से कहा____"शायद लंबे सफ़र के चलते थके हुए थे। शाम को जब उठेंगे तो पूछूंगी। वैसे सच कहूं तो उन्हें देख कर मन में सिर्फ एक ही ख़याल आता है कि उन दोनों से कैसे पूरे मन से बात कर सकूंगी? बार बार मन में वही सब उभर आता है और हृदय दुख से भर जाता है।"

"आपको अपनी भावनाओं को काबू में रखना होगा चाची।" मैंने कहा____"उन्हें आपके चेहरे पर ऐसे भाव नहीं दिखने चाहिए जिससे उन्हें ये लगे कि आप अंदर से दुखी हैं। ऐसे में आप भी जानती हैं कि वो भी दुखी हो जाएंगे और आपसे आपके दुख का कारण पूछने लगेंगे जोकि आप हर्गिज़ नहीं बता सकतीं हैं।"

"अभी तक उन्हें देखने को बहुत मन करता था वैभव।" चाची ने दुखी हो कर कहा____"लेकिन अब जब वो आंखों के सामने आ गए हैं तो उनसे मिलने से घबराने लगी हूं। समझ में नहीं आता कि कैसे दोनों के सामने खुद को सामान्य रख पाऊंगी मैं?"

"मैं आपके अंदर का हाल समझता हूं चाची।" मैंने कहा____"लेकिन ये भी सच है कि आपको उनसे मिलना तो पड़ेगा ही। आख़िर वो आपके बेटे हैं। माता पिता तो हर हाल में अपने बच्चों को खुश ही रखते हैं तो आपको भी उनसे खुशी से मिलना होगा और उन्हें अपना प्यार व स्नेह देना होगा।"

मेरी बात सुन कर चाची कुछ कहने ही वाली थीं कि तभी कमरे के बाहर से किसी के आने की पदचाप सुनाई पड़ी।

"लगता है सरला आ गई है।" चाची ने कहा____"तुम उससे अच्छे से मालिश करवाओ। मैं अब जा रही हूं, बाकी चिंता मत करो। किसी न किसी तरह मैं खुद को सम्हाल ही लूंगी।"

इतना कह कर मेनका चाची पलट कर कमरे से निकल गईं। उनके जाते ही कमरे में सरला दाख़िल हुई। उसके एक हाथ में मोटी सी चादर थी और दूसरे में एक कटोरी जिसमें तेल भरा हुआ था। सरला तीस साल की एक शादी शुदा औरत थी। रंग गेहुंआ था और जिस्म गठीला। उसे देखते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। दो ही पलों में मेरी आंखों ने उसके समूचे बदन का मुआयना कर लिया। पहले वाला वैभव पूरी तरह से अभी ख़त्म नहीं हुआ था।

"छोटे कुंवर।" तभी सरला ने कहा____"मालकिन ने मुझे आपकी मालिश करने भेजा है। आप अपने कपड़े उतार लीजिए।"

"क्या सारे कपड़े उतारने पड़ेंगे मुझे?" मैंने उसे देखते हुए पूछा तो उसने कहा____"जी छोटे कुंवर। मालकिन ने कहा है कि आपके पूरे बदन की मालिश करनी है।"

"पूरे बदन की?" मैंने थोड़ी उलझन में उसकी तरफ देखा____"मतलब क्या मुझे अपना कच्छा भी उतारना पड़ेगा?"

सरला मेरी इस बात से थोड़ा शरमा गई। नज़रें चुराते हुए हुए बोली____"हाय राम! ये आप क्या कह रहे हैं छोटे कुंवर?"

"अरे! मैं तो तुम्हारी बात सुनने के बाद ही पूछ रहा हूं तुमसे।" मैंने कहा____"तुमने कहा कि पूरे बदन की मालिश करनी है। इसका तो यही मतलब हुआ कि मुझे अपने बाकी कपड़ों के साथ साथ अपना कच्छा भी उतार देना होगा। तभी तो पूरे बदन की मालिश होगी। भला उस जगह को क्यों छोड़ दोगी तुम?"

मेरी बात सुन कर सरला का चेहरा शर्म से लाल हो गया। मंद मंद मुस्कुराते हुए उसने बड़ी मुश्किल से कहा____"अगर आप कहेंगे तो मैं हर जगह की मालिश कर दूंगी।"

"अच्छा क्या सच में?" मैंने हैरानी से उसे देखा।

"आप अपने कपड़े उतार लीजिए।" उसने बिना मेरी तरफ देखे कहा और कमरे के फर्श पर हाथ में ली हुई मोटी चादर को बिछाने लगी।

मैं कुछ पलों तक उलझन में पड़ा उसे देखता रहा फिर अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही मैंने अपने कपड़े उतार दिए। अब मैं सिर्फ कच्छे में था। ठंड का मौसम था इस लिए थोड़ी थोड़ी ठंड लगने लगी थी मुझे। सरला ने कनखियों से मेरी तरफ देखा और फिर अपनी साड़ी के पल्लू को निकाल कर उसे कमर में खोंसने लगी।

"अब आप यहां पर लेट जाइए छोटे कुंवर।" उसने पलंग से एक तकिया ले कर उसको चादर के सिरहाने पर रखते हुए कहा____"अ...और ये क्या आपने अपना कच्छा नहीं उतारा? क्या आपको अपने बदन के हर हिस्से की मालिश नहीं करवानी है?"

"मुझे कोई समस्या नहीं है।" मैंने कहा____"वो तो मैंने इस लिए नहीं उतारा क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम्हें असहज महसूस हो।"

"कहते तो आप ठीक हैं।" उसने कहा____"लेकिन मैं आपकी अच्छे से मालिश करूंगी। आख़िर आपका विवाह होने वाला है। खुशी के ऐसे अवसर पर आपको पूरी तरह से हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी ही है।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"क्या तुम ये सोचती हो कि मैं अभी हष्ट पुष्ट नहीं हूं?"

"अरे! ये क्या बातें कर रहा है भांजे?" अमर मामा कमरे में आते ही बोले____"जब ये कह रही है कि हष्ट पुष्ट करना ज़रूरी है तो तुझे मान लेना चाहिए।"

"मामा आप यहां?" मैं मामा को देखते ही चौंक पड़ा।

"तुझे ढूंढ रहा था।" मामा ने कहा____"दीदी ने बताया कि तू अपने कमरे में मालिश करवा रहा है तो यहीं चला आया। मैं भी देखना चाहता था कि मेरा भांजा किस तरीके से अपनी मालिश करवाता है?"

सरला, मामा के आ जाने से और उनकी बातों से बहुत ज़्यादा असहज हो गई।

"तो देख लिया आपने?" मैंने पूछा____"या अभी और देखना है?"

"हां देख लिया और समझ भी लिया।" मामा ने मुस्कुराते हुए कहा_____"अब अगर मैं देखने बैठ जाऊंगा तो तू अच्छे से मालिश नहीं करवा सकेगा इस लिए चलता हूं मैं।" कहने के साथ ही मामा सरला से बोले____"और तुम, मेरे भांजे की अच्छे से मालिश करना। किसी भी तरह की कसर बाकी मत रखना, समझ गई न तुम?"

सरला ने शर्माते हुए हां में सिर हिलाया। उधर मामा ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा____"और तू भी ज़्यादा नाटक मत करना, समझ गया ना?"

उनकी बात पर मैं मुस्कुरा उठा। वो जब चले गए तो सरला ने मानों राहत की सांस ली। उसके बाद उसने कमरे की खिड़की खोली और जा कर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। ये देख मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि कहीं ये सच में तो मुझे पूरा नंगा नहीं करने वाली है?

मैं उसी को देखे जा रहा था। उसने अपनी साड़ी को निकाल कर एक तरफ रखा और फिर पेटीकोट को अपने घुटनों तक उठा कर बाकी का हिस्सा कमर में खोंस लिया। ब्लाउज में कैद उसकी बड़ी बड़ी छातियां मानों ब्लाउज फाड़ने को तैयार थीं। उसका गदराया हुआ बदन मेरे अंदर तूफ़ान सा पैदा करने लगा।

"ऐसे मत देखिए छोटे कुंवर मुझे शर्म आ रही है?" सहसा सरला की आवाज़ से मैं चौंका____"ऐसे में कैसे मैं आपकी अच्छे से मालिश कर पाऊंगी?"

"तुम ऐसे हाल में मालिश करोगी मेरी?" मैंने उसे देखते हुए पूछा।

"और नहीं तो क्या?" उसने कहा____"साड़ी पहने पहने मालिश करूंगी तो ठीक से नहीं कर पाऊंगी और मेरी साड़ी में तेल भी लग जाएगा।"

बात तो उसने उचित ही कही थी इस लिए मैंने ज़्यादा कुछ न कहा किंतु ये ज़रूर सोचने लगा कि क्या सच में सरला मेरे पूरे बदन की मालिश करेगी?

बहरहाल सरला ने कटोरी को उठाया और मेरे पैरों के पास बगल से बैठ गई। वो अब मेरे इतना पास थी कि मेरी निगाह एक ही पल में ब्लाउज से झांकती उसकी छातियों पर जम गईं। सच में काफी बड़ी और ठोस नज़र आ रहीं थी उसकी छातियां। मेरे पूरे बदन में सनसनी सी दौड़ने लगी। धड़कनें तो पहले ही तेज़ तेज़ चल रहीं थी। मैंने फ़ौरन ही उससे नज़र हटा ली और खुद पर नियंत्रण रखने के लिए आंखें बंद कर ली।

पहले तो सरला आराम से ही तेल लगा रही थी किंतु जल्दी ही उसने ज़ोर लगा कर मालिश करना शुरू कर दिया। मुझे अच्छा तो लग ही रहा था किंतु मज़ा भी आ रहा था। तेल से चिपचिपी हथेलियां जब मेरी जांघों के अंतिम छोर तक आती तो मेरे अंडकोशों में झनझनाहट होने लगती। पूरे बदन में मज़े की लहर दौड़ जाती।

"कैसा लग रहा है छोटे कुंवर?" सहसा उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने आंखें खोल कर उसे देखा।

उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। वो घुटनों के बल झुकी सी थी जिससे मेरी नज़र जल्द ही उसके ब्लाउज से आधे से ज़्यादा झांकती छातियों पर जा कर जम गई। वो ज़ोर लगा कर नीचे से ऊपर आती तो उसकी छातियों में लहर सी पैदा हो जाती। फ़ौरन ही वो ताड़ गई कि मैं उसकी छातियां देख रहा हूं। उसे शर्म तो आई लेकिन उसने न तो कुछ कहा और ना ही अपनी छातियों को छुपाने का उपक्रम किया। बल्कि वो उसी तरह मालिश करते हुए मुझे देखती रही।

"क्या हुआ कुंवर जी?" जब मैं बिना कोई जवाब दिए उसकी छातियों को ही देखता रहा तो उसने फिर कहा____"आपने जवाब नहीं दिया?"

"ओह! हां तुमने कुछ कहा क्या?" मैं एकदम से हड़बड़ा सा गया तो इस बार वो खिलखिला कर हंस पड़ी। उसके हंसने पर मैं थोड़ा झेंप गया।

"मैं आपसे पूछ रही थी कि मेरे मालिश करने से आपको कैसा लग रहा है?" फिर उसने कहा।

"अच्छा लग रहा है।" मैंने कहा____"बस ऐसे ही करती रहो।"

वो मुस्कुराई और पलट कर कटोरी को उठा लिया। कटोरी से ढेर सारा तेल उसने मेरी जांघ पर डाला और उसे अपनी हथेली से फैला कर फिर से मालिश करने लगी। सहसा मेरी नज़र मेरे कच्छे पर पड़ी तो मैं चौंक गया। मेरा लंड अपने पूरे अवतार में खड़ा था और कच्छे को तंबू बनाए हुए था। ज़ाहिर है सरला भी ये देख चुकी होगी। मुझे बड़ा अजीब लगा और थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई।

"क्या अब मैं उल्टा लेट जाऊं?" मैंने अपने लंड के उठान को छुपाने के लिए उससे पूछा।

"अभी नहीं छोटे कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी तो पैरों के बाद आपके पेट और सीने की मालिश करूंगी मैं। उसके बाद ही आपको उल्टा लेटना होगा।"

"ठीक है जल्दी करो फिर।" मैं अब असहज सा महसूस करने लगा था। अभी तक मुझे अपने लंड का ख़याल ही नहीं रहा था। वो साला बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने देखा सरला बार बार मेरे लंड को घूरने लगती थी।

आख़िर कुछ देर में जब पैरों की मालिश हो गई तो वो तेल ले कर ऊपर की तरफ आई। ना चाहते हुए भी मेरी निगाह उस पर ठहर गई। दिल की धड़कनें और भी तेज़ हो गई। उसका पेट कमर नाभि सब साफ दिख रही थी मुझे।

"आपके मामा जी कह गए हैं कि मैं आपकी मालिश करने में कोई कसर बाकी ना रखूं।" फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए अब मैं वैसी ही मालिश करूंगी और हां आप भी विरोध मत कीजिएगा।"

"कैसी मालिश करेगी तुम?" मैंने आशंकित भाव से उसे देखा।

"बस देखते जाइए।" उसने गहरी मुस्कान से कहा____"आप भी क्या याद करेंगे कि सरला ने कितनी ज़बरदस्त मालिश की थी आपकी।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" मैंने उत्सुकता से कहा____"मैं भी तो देखूं तुम आज कैसे मालिश करती हो मेरी।"

"ठीक है।" सरला के चेहरे पर एकाएक चमक उभर आई____"लेकिन आपको भी मेरी एक बात माननी होगी। मैं जो भी करूं आप करने देंगे और सिर्फ मालिश का आनंद लेंगे।"

"ठीक है।" मैं मुस्कुराया____"मैं तुम्हें किसी बात के लिए नहीं रोकूंगा।"

सरला मेरी बात सुन कर खुश हो गई। उसने कटोरी से मेरे सीने पर तेल डाला और उसे हथेली से फैलाने लगी। जल्दी ही वो मेरे पूरे सीने और पेट पर तेल फैला कर मालिश करने लगी। मैं बस उसको देखता रहा। मैंने पहली बार गौर किया कि वो नौकरानी ज़रूर थी लेकिन बदन से क़हर ढा रही थी। तभी मैं चौंका। वो मेरे कच्छे को पकड़ कर नीचे खिसकाने लगी।

"ये क्या कर रही हो?" मैंने झट से उसे रोका।

"आपने तो कहा था कि आप मुझे नहीं रोकेंगे?" उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____फिर अब क्यों रोक रहे हैं? देखिए, कच्छा नहीं उतारूंगी तो तेल लग जाएगा इसमें और वैसे भी पूरे बदन की मालिश करनी है ना तो इसे उतारना ही पड़ेगा।"

मेरे ज़हन में बिजली की तरह ख़याल उभरा कि कहीं आज ये मेरा ईमान न डगमगा दे। मुझसे ऐसी ग़लती न करवा दे जो न करने का मैंने भाभी को वचन दिया था। फिर सहसा मुझे ख़याल आया कि ये तो मेरे ऊपर निर्भर करता है कि मैं खुद पर काबू रख सकता हूं या नहीं।

मेरी इजाज़त मिलते ही सरला ने खुशी से मेरा कच्छा उतार कर मेरी टांगों से अलग कर दिया। कच्छे के उतरते ही मेरा लंड उछल कर छत की तरफ तन गया।

"हाय राम! ये....ये इतना बड़ा क्या है।" सरला की मानों चीख निकल गई।

"तुम तो ऐसे चीख उठी हो जैसे ये तुम्हारे अंदर ही घुस गया हो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

"हाय राम! छोटे कुंवर ये क्या कह रहे हैं?" सरला एकदम से चौंकी____"ना जी ना। ये मेरे अंदर घुस गया तो मैं तो जीवित ही ना बचूंगी।"

"फ़िक्र मत करो।" मैंने कहा____"ये तुम्हारे अंदर वैसे भी नहीं घुसेगा। अब चलो मालिश शुरू करो। मैं भी तो देखूं कि तुम कैसी मालिश करती हो आज।"

सरला आश्चर्य से अभी भी मेरे लंड को ही घूरे जा रही थी। फिर जैसे उसे होश आया तो उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई। उधर मेरा लंड बार बार ठुमक रहा था। मेरी शर्म और झिझक अब ख़त्म हो चुकी थी।

"अब तो मैं पक्का आपकी वैसी ही मालिश करूंगी छोटे कुंवर।" फिर उसने खुशी से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"जैसा मैं कह रही थी। अब बस आप मेरा कमाल देखिए।"

कहने के साथ ही सरला अपना ब्लाउज खोलने लगी। ये देख मैं चौंका लेकिन मैंने उसे रोका नहीं। अब मैं भी देखना चाहता था कि वो क्या करने वाली है। जल्दी ही उसने अपने बदन से ब्लाउज निकाल कर एक तरफ रख दिया। उसकी छातियां सच में बड़ी और ठोस थीं। कुंवारी लड़की की तरह तनी हुईं थी। मेरा ईमान फिर से डोलने लगा। पूरे जिस्म में झुरझुरी होने लगी। उधर ब्लाउज एक तरफ रखने के बाद वो खड़ी हुई और अपना पेटीकोट खोलने लगी।

मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं क्या वो मुझसे चुदने का सोच ली‌‌ है? नहीं नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं होने दे सकता।

"ये क्या कर रही हो तुम?" मैंने उसे रोका____"अपने कपड़े क्यों उतार रही हो तुम?"

"फ़िक्र मत कीजिए कुंवर।" उसने कहा____"मैं आपके साथ वो नहीं करूंगी और कपड़े इस लिए उतार रही हूं ताकि मालिश करते समय मेरे इन कपड़ों पर तेल न लग जाए।"

मैंने राहत की सांस ली लेकिन अब ये सोचने लगा कि क्या ये नंगी हो कर मेरी मालिश करेगी? सरला ने पेटीकोट उतार कर उसे भी एक तरफ रख दिया। पेटीकोट के अंदर उसने कुछ नहीं पहना था। मोटी मोटी जांघों के बीच बालों से भरी उसकी चूत पर मेरी नज़र पड़ी तो एक बार फिर से मेरे पूरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई।

उधर जैसे ही सरला को एहसास हुआ कि मैं उसे देख रहा हूं तो उसने जल्दी से अपनी योनि छुपा ली। उसके चहरे पर शर्म की लाली उभर आई लेकिन हैरानी की बात थी कि वो इसके बाद भी पूरी नंगी हो गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर अब ये क्या करने वाली है?

"छोटे कुंवर, अपनी आंखें बंद कर लीजिए ना।" सरला ने कहा____"आप मुझे इस तरह देखेंगे तो मुझे बहुत शर्म आएगी और मैं पूरे मन से आपकी मालिश नहीं कर पाऊंगी।"

मुझे भी लगा कि यही ठीक रहेगा। मैं भी उसे नहीं देखना चाहता था क्योंकि इस हालत में देखने से मेरा अपना बुरा हाल होने लगा था। मैंने आंखें बंद कर ली तो वो मेरे क़रीब आई। कुछ देर तक पता नहीं वो क्या करती रही लेकिन फिर अचानक ही मुझे अपने ऊपर कुछ महसूस हुआ। वो तेल था जो मेरे सीने से होते हुए पेट पर आया और फिर उसकी धार मेरे लंड पर पड़ने लगी। मेरे पूरे जिस्म में आनंद की लहर दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में सरला के हाथ उस तेल को मेरे पूरे बदन में फैलाने लगे।

मैं उस वक्त चौंक उठा जब सरला के हाथों ने मेरे लंड को पकड़ लिया। सरला के चिपचिपे हाथ मेरे लंड को हौले हौले सहलाते हुए उस पर तेल मलने लगे। आज काफी समय बाद किसी औरत का हाथ मेरे लंड पर पहुंचा था। आनंद की तरंगें पूरे बदन में दौड़ने लगीं थी। मैं सरला को रोकना चाहता था लेकिन मज़ा भी आ रहा था इस लिए रोक नहीं रहा था। उधर सरला बड़े आराम से मेरे लंड को तेल से भिंगो कर उसकी मालिश करने लगी थी। पहले तो वो एक हाथ से कर रही थी लेकिन अब दोनों हाथों से जैसे उसे मसलने लगी थी। मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया था।

"ये...ये क्या कर रही हो तुम?" आनंद से अपनी पलकें बंद किए मैंने उससे कहा।

"चुपचाप लेटे रहिए कुंवर।" सरला ने भारी आवाज़ में कहा____"ये तो अभी शुरुआत है। आगे आगे देखिए क्या होता है। आप बस मालिश का आनंद लीजिए।"

सरला की बातों से मेरे पूरे बदन में झुरझुरी हुई। उसकी आवाज़ से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी सांसें भारी हो चलीं थी। कुछ देर तक वो इसी तरह मेरे लंड को तेल लगा लगा कर मसलती रही फिर एकदम से उसके हाथ हट गए। मैंने राहत की सांस ली। एकाएक मैं ये महसूस कर के चौंका कि मेरी दोनों जांघों पर कोई बहुत ही मुलायम चीज़ रख गई है। मैंने उत्सुकता के चलते आंखें खोल कर देखा तो हैरान रह गया।

सरला पूरी तरह नंगी थी। मेरी तरफ मुंह कर के वो मेरी जांघों पर बैठ गई थी। उसके दोनों पैर अलग अलग तरफ फ़ैल से गए थे। जांघों के बीच बालों से भरी चूत भी फैल गई थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा थोड़ा थोड़ा नज़र आने लगा था। तभी सरला ने कटोरा उठाया। उसका ध्यान मेरी तरफ नहीं था। कटोरे में भरे तेल को उसने अपने सीने पर उड़ेलना शुरू कर दिया। कटोरे का तेल बड़ी तेज़ी से उसकी छातियों को भिगोता हुआ नीचे तरफ आया। कुछ नीचे मेरे लंड पर गिरा। सरला थोड़ा सा आगे सरक आई जिससे तेल मेरे पेट पर गिरने लगा।

सरला ने कटोरा एक तरफ रखा और फिर जल्दी जल्दी तेल को अपनी छातियों पर और पेट पर मलने लगी। उसके बाद वो आहिस्ता से मेरे ऊपर झुकने लगी। मैं उसकी इस क्रिया को चकित भाव देखे जा रहा था। कुछ ही पलों में वो मेरे ऊपर लेट सी गई। उसकी छातियां मेरे सीने में धंस गई। उसकी नाभि के नीचे मेरा लंड दब गया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई।

"ये क्या कर रही हो?" मैं भौचक्का सा बोल पड़ा तो उसने मेरी तरफ देखा।

हम दोनों की नज़रें मिलीं। वो मुस्कुरा उठी। अपने दोनों हाथ मेरे आजू बाजू जमा कर वो अपने बदन को मेरे बदन पर रगड़ने लगी। उसकी बड़ी बड़ी और ठोस छातियां मेरे जिस्म में रगड़ खाते हुए नीचे की तरफ जा कर मेरे लंड पर ठहर गईं। मेरा लंड उसकी दोनों छातियों के बीच फंस गया। सरला से मुझे ऐसे करतब की उम्मीद नहीं थी। तभी वो मेरे चेहरे की तरफ सरकने लगी। मेरा लंड उसकी छातियों का दबाव सहते हुए उसके पेट की तरफ जाने लगा। इधर उसकी छातियां मेरे सीने पर आईं उधर मेरा लंड उसकी नाभि के नीचे पहुंच कर उसकी चूत के बालों पर जा टकराया। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रहीं थी।

"कैसा लग रहा है कुंवर।" सरला मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर मानों नशे में बोली____"आपको अच्छा तो लग रहा है ना?"

"तुम अच्छे की बात करती हो।" मैं मज़े के तरंग में बोला____"मुझे तो अत्यधिक मज़ा आ रहा है सरला। मुझे नहीं पता था कि तुम्हें ये कला भी आती है। कहां से सीखा है ये?"

"कहीं से नहीं सीखा कुंवर।" उसने कहा____"ये तो अचानक ही सूझ गया था मुझे।"

"यकीन नहीं होता।" मैंने कहा____"ख़ैर बहुत मज़ा आ रहा है। ऐसे ही करती रहो।"

सरला का चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल क़रीब था। उसके गुलाबी होंठ मेरे एकदम पास ही थे। मेरा जी तो किया कि लपक लूं लेकिन फिर मैंने इरादा बदल दिया। मैं अपने से कुछ भी नहीं करना चाहता था।

"खुद को मत रोकिए छोटे कुंवर।" सरला मेरी मंशा समझ कर बोल पड़ी____"आज इस मालिश का भरपूर आनंद लीजिए। मुझ पर भरोसा रखिए, मैं आपको बिल्कुल भी निराश नहीं करूंगी।"

"पर तुम्हें मुझसे निराश होना पड़ेगा।" मैंने दृढ़ता से कहा____"तुम जिस चीज़ के बारे में सोच रही हो वो नहीं हो सकेगा। मैं तुम्हें इतना करने दे रहा हूं यही बहुत बड़ी बात है।"

"ठीक है जैसी आपकी मर्ज़ी।" कहने के साथ ही सरला फिर से नीचे को सरकने लगी।

मेरा बुरा हाल होने लगा था। जी कर रहा था कि एक झटके से उठ जाऊं और सरला को नीचे पटक कर उसको बुरी तरह चोदना शुरू कर दूं। अपनी इस भावना को मैंने बड़ी बेदर्दी से कुचला और आंखें बंद कर ली। उधर सरला नीचे पहुंच कर मेरे लंड को अपनी दोनों छातियों के बीच फंसाया और फिर दोनों तरफ से अपनी छातियों का दबाद देते हुए मानों मुट्ठ मारने लगी। मेरे जिस्म में और भी ज़्यादा मज़े की तरंगें उठने लगीं।

कुछ देर तक सरला अपनी छातियों से मेरे लंड को मसलती रही उसके बाद वो फिर से ऊपर सरकने लगी। उसकी ठोस छातियां मेरे जिस्म से रगड़ खाते हुए ऊपर की तरफ आने लगीं। तेल लगा होने से बड़ा अजीब सा मज़ा आ रहा था।

तभी मैं चौंका। सरला की छातियां मेरे सीने से उठ कर अचानक मेरे चेहरे से टकराईं। तेल की चिपचिपाहट मेरे चेहरे पर लग गई और तेल की गंध मेरे नथुनों में समा गई। मैंने फ़ौरन अपनी आंखें खोली। सरला एकदम से मेरे ऊपर ही सवार नज़र आई। उसकी तेल में नहाई बड़ी बड़ी छातियां मेरे चेहरे को छू रहीं थी। सरला की ये हिम्मत देख मुझे हैरानी भी हुई और थोड़ा गुस्सा भी आया। यकीनन वो मुझे उकसा रही थी। यानि वो चाहती थी कि मैं अपना आपा खो दूं और फिर वही कर बैठूं जो मैं किसी भी कीमत पर नहीं करना चाहता था। मैंने अब तक सरला के जिस्म के नाज़ुक अंगों को हाथ तक नहीं लगाया था जबकि में अंदर का हाल तो अब ऐसा था कि उसको बुरी तरह रौंद डालने के लिए मन कर रहा था मेरा। मेरे हाथ उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को आटे की तरह गूंथ डालने को मचल रहे थे मगर मैं बेतहाशा सब्र किए हुए था। ये अलग बात है कि अपने अंदर मज़े की लहर को रोकना मेरे बस में नहीं था।

"कितनी भी कोशिश कर लो तुम।" मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा____"ठाकुर वैभव सिंह को मज़बूर नहीं कर पाओगी तुम। बेहतर होगा कि तुम सिर्फ अपने काम पर ध्यान दो।"

"क्या आप मुझे चुनौती दे रहे हैं कुंवर?" सरला ने भी मेरी आंखों में देखा____"इसका मतलब आप चाहते हैं कि मैं ऐसी कोशिश करती रहूं?"

"तुम अपनी सोच के अनुसार कुछ भी मतलब निकाल सकती हो।" मैं हल्के से मुस्कुराया____"बाकी मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि तुम कोई कोशिश करो। तुम मेरी मालिश करने आई हो तो सिर्फ वही करो। मुझसे चुदने का ख़याल ज़हन से निकाल दो क्योंकि वो मैं नहीं करूंगा और ना ही करने दूंगा। मैंने अपनी होने वाली बीवी को बहुत पहले वचन दिया था कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरूंगा। ऐसा कोई काम नहीं करूंगा जिसके लिए मैं अब तक बदनाम रहा हूं।"

"वाह! कुंवर जी।" सरला मुस्कुराई____"आपकी ये बात सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा। इस स्थिति में भी आप खुद को रोके हुए हैं और आपको अपने वचन का ख़याल है। ये बहुत बड़ी बात है। मैं भी आपको अब मजबूर नहीं करूंगी बल्कि आपके वचन का सम्मान करते हुए सिर्फ आपकी मालिश करूंगी। अब मैं उन सबको बताऊंगी कि आप बदल गए हैं और एक अच्छे इंसान बन गए हैं जो कहती थीं कि आप इन मामलों में बहुत बदनाम हैं।"

"तुम्हें ये सब किसी से कहने की ज़रूरत नहीं है सरला।" मैंने कहा____"तुम बस अपना काम करो और खुशी खुशी जाओ यहां से।"

"ठीक है कुंवर।" सरला ने मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे आपसे एक विनती है।"

"कैसी विनती?"

"मेरे मालिश के चलते आपका ये मूसल।" उसने मेरे खड़े हुए लंड को देखते हुए कहा____"पूरी तरह से संभोग के लिए तैयार हो चुका है। इसके अंदर की आग को बाहर निकालना ज़रूरी है। क्या मैं आपको शांत कर दूं?"

"कैसे शांत करोगी?" मैंने पूछा।

"हाथ से ही करूंगी और कैसे?" वो हल्के से हंसी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तुम अपनी ये इच्छा पूरी कर सकती हो।"

सरला खुश हो गई। वो मेरे ऊपर से उठी और नंगी ही मेरे लंड के पास बैठ गई। तेल तो पहले से ही लगा हुआ था इस लिए वो लंड को पकड़ कर मुठियाने लगी।

"वैसे आपकी होने वाली दोनों पत्नियां बहुत भाग्यशाली हैं छोटे कुंवर।" फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"उनके नसीब में इतना बड़ा औजार जो मिलने वाला है। मुझे पूरा यकीन है कि इस मामले में वो हमेशा खुश रहेंगी।"

उसकी इस बात से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। पलक झपकते ही मेरी आंखों के सामने रूपा और रागिनी भाभी का चेहरा चमक उठा। रूपा से तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन रागिनी भाभी का सोच कर ही जिस्म में अजीब सा एहसास होने लगा।

"क्या मैं इसे चूम लूं कुंवर?" सरला की आवाज़ से मैं चौंका।

"ठीक है जो तुम्हें ठीक लगे कर लो।" मैंने कहा____"लेकिन जल्दी करो। मुझे बाहर भी जाना है।"

सरला फ़ौरन ही अपने काम में लग गई। वो कभी मुट्ठ मारती तो कभी झुक कर मेरे लंड को चूम लेती। फिर एकाएक ही उसने मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गरम मुख का जैसे ही एहसास हुआ तो मजे से मेरी आंखें बंद हो गईं। दोनों हाथों से लंड पकड़े वो उसे चूसे जा रही थी। मैं हैरान भी था उसकी इस हरकत से लेकिन मज़े में बोला कुछ नहीं।

मेरा बहुत मन कर रहा था कि सरला के सिर को थाम लूं और कमर उठा उठा कर उसके मुंह को ही चोदना शुरू कर दूं लेकिन मैंने अपनी इस इच्छा को बड़ी मुश्किल से रोका। हालाकि मज़े के चलते मेरी कमर खुद ही उठ जा रही थी। सरला कभी मेरे अंडकोशों को सहलाती तो कभी मुट्ठी मारते हुए लंड चूसने लगती। मेरा मज़े में बुरा हाल हुआ जा रहा था। अपनी इच्छाओं को दबा के रखना बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा था। सरला किसी कुशल खिलाड़ी की तरह मेरा लंड चूसने में लगी हुई थी।

आख़िर दस मिनट बाद मुझे लगने लगा कि मेरी नशों में दौड़ता लहू बड़ी तेज़ी से मेरे अंडकोशों की तरफ भागता हुआ जा रहा है। सरला को भी शायद एहसास हो गया था। वो और तेज़ी से मुठ मारनी लगी।

"आह!" मेरे मुंह से मज़े में डूबी आह निकली और मुझे झटके लगने लगे।

सरला ने लपक कर मेरे लंड को मुंह में भर लिया और मेरा वीर्य पीने लगी। आनंद की चरम सीमा में पहुंचने के बाद मैं एकदम शांत पड़ गया। उधर सरला सारा वीर्य गटकने के बाद अब मेरे लंड को चाट रही थी। बड़ी की कौमुक और चुदक्कड़ औरत थी शायद।




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Nice sexy update🙏
 
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