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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

Kalyansurya

Well-Known Member
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173
Shubham bhai ye story to complete ho gai to kya ab aap apni dusri story..... ( rajrani badalte reshte )..... jo aduri chod rakhi hai usko star kab kar rhe ho bhai pleses comment me bta dejiya
 

Mr. Perfect

"Perfect Man"
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3,733
143
Hello The_InnoCent bhai. Ab kaisi tabiyat hai aapki dadi ki. I hope wo ab theek hongi____

Shubham bhai mujhe aapki story ke 2nd part ka intjar hai. Plz bhai jaldi se shuru karne ki koshis kare_____
 

Xfan

Active Member
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138
एक नया संसार
अपडेट........《 53 》

अब तक,,,,,,,,

"इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं है डियर।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तुमने जो कुछ भी किया उसमें सिर्फ तुमहारी अपने पति के प्रति चिंता व फिक्र थी। ख़ैर अब जो हो गया सो हो गया मगर अब हमें बड़ी ही होशियारी और सतर्कता से काम लेना होगा। तुम उन्हें ये नहीं बताओगी कि कल तुमने उन्हें किस वजह हे फोन किया था बल्कि यही कहोगी कि तुम्हें उनकी बहुत याद आ रही थी। दूसरी बात शिवा को भी समझा दो कि वो उनके सामने ऐसी कोई भी बात न करे जिससे किसी भी तरह की बात खुलने का चाॅस बन जाए।"

"हमारी दूसरी बेटी नीलम भी तो आज आ गई है मुम्बई से।" प्रतिमा ने कहा___"इतना ही नहीं उसके साथ में मेरी बहन की बेटी सोनम भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका।
"हाॅ अजय।" प्रतिमा ने बेचैनी से कहा___"वो दोनो ऊपर कमरे में इस वक्त सो रही हैं।"

"अरे तो तुम उनके पास जाओ।" अजय सिंह एकदम से फिक्रमंद हो उठा था, बोला___"और उन दोनो को अच्छी तरह समझा दो कि वो दोनो अपने नाना जी के सामने हालातों के संबंध में किसी भी तरह की कोई बात नहीं करेंगी।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं अभी जाती हूॅ उनके पास और सब कुछ समझाती हूॅ उन्हें।"

ये कह कर प्रतिमा तेज़ तेज़ क़दमों के साथ ऊपर के कमरे में जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। जबकि उसके जाने के बाद अजय सिंह एक बाथ पुनः असहाय सा सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर पसर गया था। चेहरे पर चिंता व परेशानी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,

उधर पुलिस वालों की कार से मैं और आदित्य भी सुरक्षित रितू दीदी के पास फार्महाउस पर पहुॅच गए थे। सारे रास्ते मैं सारी बातों और सारे हालातों के बारे में बारीकी से मनन करता आया था। इस जंग में मुझे दो ताकतों से भिड़ना था। एक तो अपने ताऊ अजय सिंह से और दूसरा मंत्री से। रितू दीदी ने मुझे मंत्री के संबंध में सारी बातें बता दी थी। मैं जान कर खुश था कि रितू दीदी के पास मंत्री के खिलाफ़ ऐसे सबूत हैं कि वो जब चाहे उस मंत्री और उसके साथियों को बीच चौराहे पर नंगा दौड़ने पर बिवश कर दें। इधर वही हाल मेरा भी था। मेरे पास भी अजय सिंह के खिलाफ़ ऐसे सबूत थे कि उन सबूतों के आधार पर अजय सिंह पलक झपकते ही कानून की ऐसी गिरफ्त में पहुॅच जाएगा जहाॅ से बच कर निकलना उसी तरह नामुमकिन था जैसे किसी नदी के दो किनारोउअं आपस मिलना नामुमकिन ही नहीं असंभव होता है।

मेरे मन में कभी कभी ये ख़याल भी आता था कि इस खेल को एक पल में खत्म कर दूॅ। यानी ग़ैर कानूनी धंधा करने और अवैध गैर कानूनी ऐसा पदार्थ रखने के जुर्म में अजय सिंह ऊम्र भर का लिए जेल की सलाखों के पीछे चला जाए जो पदार्थ किसी भी इंसान की ज़िंदगी खत्म करने के लिए काफी थे। मगर मैं ऐसा करना नहीं चाहता था बल्कि मैं तो अजय सिंह को खुद अपने हाथों से ऐसी सज़ा देना चाहता था कि वो मौत के लिए गिड़गिड़ाए मगर मौत उसे नसीब न हो सके।

मुझे इस बात का भी एहसास था कि आज भले ही मंत्री सच्चाई को पूरी तरह न जानता हो मगर देर सवेर उसे सब कुछ पता चल ही जाएगा। वो चुप नहीं बैठेगा बल्कि कुछ तो ऐसा करेगा ही कि उसके गले में फॅसी हुई हड्डी निकल सके और उसके बच्चे सही सलामत उसे वापस मिल सकें। मुझे एहसास था कि ये दोनो ही ताकतें बहुत ही खतरनाक साबित हो सकती है हमारे लिए। हम अभी तक इसी लिए सेफ रह सके थे क्योंकि हमने खुल कर तथा सामने आकर कोई काम नहीं किया था। बल्कि हर काम दोनो ताकतों की ग़ैर जानकारी में एवं छुप कर किया था। मगर हालात ज्यादा दिन तक ऐसे ही नहीं बने रह सकते थे। इस लिए इन सब बातों पर विचार करके मुझे सबसे पहले अपनी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करना था।

फार्महाउस पर हमें छोंड़ कर वो पुलिस के आदमी वापस चले गए थे। रितू दीदी मुझे वापस आया देख कर बेहद खुश हो गई थी। आदित्य तो सीधा कमरे की तरफ चला गया था जबकि मैं और कुछ देर वहीं ड्राइंगरूम में बैठा सबसे बातें करता रहा। नैना बुआ ने मुझसे मुम्बई में सबका हाल चाल पूछा। उसके बाद मैं भी उठ कर कमरे की तरफ बढ़ गया।

कमरे के अटैच बाथरूम में मैं मस्त ठंडे पानी से नहाया तो तबीयत हरी हो गई। नहा कर मैं टावेल लपेटे ही बाथरूम से कमरे में आ गया। जैसे ही मैं कमरे में आया तो बेड पर आराम से बैठी रितू दीदी पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं चौंका। दरअसल मैं इस वक्त सिर्फ एक टावेल में ही था। बाॅकी ऊपर का समूचा जिस्म नंगा ही था मेरा। रितू दीदी के सामने इस तरह आ जाने से मुझे शर्म सी महसूस हुई।

"ओहो क्या बात है राज।" सहसा रितू दीदी की चहकती हुई आवाज़ मेरे कानों से टकराई___"क्या बाॅडी शाॅडी बना रखी है तुमने। ओहो सिक्स पैक भी है। पक्का जिम करते होगे तुम, है न?"

"हाॅ थोड़ा बहुत करता हूॅ दीदी।" मैने शर्माते हुए कहा।
"अरे तुम शर्मा क्यों रहे हो राज?" रितू दीदी का चौंका हुआ स्वर___"भला मुझसे किस बात की शरम भाई? मैं तो तेरी बहन हूॅ कोई ग़ैर लड़की नहीं जिससे तू शरमाए।"

"पर दीदी।" मैने असहज भाव से कहा___"मैं कभी आपके सामने इस हालत में नहीं आया न। इस लिए मुझे थोड़ी शरम आ रही है।"

मेरी ये बात सुन कर रितू दीदी बेड से उतर कर मेरे क़रीब आ गई और फिर मेरे चेहरे को अपनी हॅथेलियों के बीच लेते हुए कहा___"ओए ये क्या बात हुई भला? तू मेरा सबसे अच्छा और सबसे हैण्डसम भाई है। तुझे मुझसे किसी भी तरह से शरमाने की या झिझकने की ज़रूरत नहीं है। तुझे पता है राज, अब तक मैं ऐसे रिश्तों के बीच थी जो कहने को तो मेरे अपने थे मगर उन सभी के अंदर पाप और गंदगी भरी हुई थी। ऐसे लोगों से मेरा कोई संबंध नहीं है अब। दुनियाॅ में मेरा अगर कोई अपना है तो वो है तू। मेरी ज़िंदगी का अब एक ही मकसद है भाई और वो है तेरे साथ ग़लत करने वालों सर्वनाश करना और तुझे संसार की हर खुशी देना। मेरा दिल करता है कि मैं तुझ पर कुर्बान हो जाऊॅ मेरे भाई, फना हो जाऊॅ तुझ पर।"

"मुझे पता है दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि आप मुझसे बहुत प्यार करती हैं। इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि आज आप अपने ही माता पिता के खिलाफ़ हो गई हैं और अपने माता पिता के सबसे बड़े दुश्मन का साथ दे रही हैं। मुझे इस बात की खुशी नहीं है कि आपने मेरे लिए अपने माता पिता से बगावत की है बल्कि इस बात की खुशी है कि मैं जिस रितू दीदी से बात करने के लिए अब तक तरस रहा था वो आज मेरे पास हैं।"

"काश ये सब मैं पहले ही सोच
लेती राज।" रितू दीदी एकदम से दुखी होकर मुझसे लिपट गईं। फिर भारी स्वर में बोलीं___"तो इतने सालों तक मैं अपने भाई से दूर न रहती और ना ही ऐसे हालात पैदा होते।"

"हालात तो तब भी ऐसे ही पैदा होते दीदी।" मैने कहा___"क्योंकि इंसानों की फितरत कभी नहीं बदलती। वो अपनी फितरत से मजबूर होकर पहले भी वही करता जो आज कर रहा है।"
"माना कि मेरे पिता अपनी फितरत के चलते वही सब करते जो आज कर रहे हैं।" रितू दीदी ने कहा___"मगर मैं तेरी बात कर रही हूॅ राज। तू मुझे पहले ही तो मिल जाता न? मेरी वजह से तेरे दिल को इतनी तक़लीफ तो न होती जितनी अब तक हुई थी।"

"कोई बात नहीं दीदी।" मैने प्यार से कहा___"जो गुज़र गया उसे भूल जाइये और आज की बात करिये तथा आज के माहौल में खुश रहिए।"
"तू साथ है तो अब मैं खुश ही रहूॅगी राज।" रितू दीदी ने मेरी ऑखों में देखते हुए कहा___"तुझे पता है राज, इसके पहले मैं कभी किसी लड़के के क़रीब नहीं गई। पता नहीं क्यों पर मुझे हर लड़के से एक नफ़रत सी थी। आज के समय में हर लड़का लड़की एक दूसरे के जाने कितने क़रीब आ जाते हैं मगर मुझे इन सब बातों से बेहद चिढ़ थी। मगर विधी से मिलने के बाद और उसकी प्रेम कहानी सुनने के बाद मुझे एहसास हुआ कि आज भी ऐसे लोग हैं जो पाक़ मोहब्बत करते हैं और एक मिसाल बन जाते हैं। मैं बहुत खुश थी मेरे भाई कि ऐसा इंसान मेरा अपना भाई ही है और फिर मुझे एहसास हुआ कि कितनी ग़लत थी मैं जो तुझे बचपन से ही ग़लत समझती आ रही थी। बस उसके बाद जब सबकुछ पता चला तो तेरे लिए मेरे हृदय में और भी जगह हो गई भाई। मेरी अंतर्आत्मा से बस एक ही आवाज़ आती है और वो ये कि अब तुझसे ही मेरी हर खुशी है और दुख भी।"

"जो होता है सब अच्छे के लिए ही होता है दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज मेरी सबसे अच्छी दीदी मेरे पास है और मुझे इतना प्यार करती है। मैं बता नहीं सकता कि इस बात से मैं कितना खुश हूॅ दीदी। मेरा तो मुम्बई जाने का बिलकुल भी मन नहीं था। मगर सबको लेकर जाना भी ज़रूरी था। लेकिन वहाॅ से वापस आपके पास आ जाने के लिए मैं उतावला हो रहा था। मुझे लग रहा था कि मैं पलक झपकते ही आपके पास पहुॅच जाऊॅ।"

"ऐसी बातें मत कर राज।" रितू दीदी की आवाज़ काॅप सी गई। वो मुझसे कस के लिपट गईं और फिर बोली___"तुझे नहीं पता कि तेरी ऐसी बातों से मैं कितनी कमज़ोर हो सकती हूॅ। कहीं ऐसा न हो जाए कि मैं तेरे बिना एक पल भी रह न पाऊॅ।"

"तो क्या हुआ दीदी?" मैंने कहा___"सब कुछ ठीक होने के बाद हम सब एक साथ ही तो रहेंगे। फिर आप ऐसा क्यों कह रही हैं?"
"तू नहीं समझेगा राज।" रितू दीदी ने सहसा बेचैनी से पहलू बदला___"ख़ैर छोंड़ ये सब। मैं ये कह रही हूॅ कि विधी के माता पिता भी यहाॅ आ गए हैं। उनसे भी मिल लेना तुम।"

"मैं आपसे एक ज़रूरी बात जानना चाहता हूॅ।" मैने दीदी से कहा___"और वो ये कि ये फार्महाउस आपके पास कैसे है?"
"ये फार्महाउस डैड ने मेरे नाम बहुत पहले ही कर दिया था।" रितू दीदी ने कहा___"ऐसे ही दो फार्महाउस और हैं। एक नीलम के लिए और दूसरा शिवा के लिए। पर तू ये क्यों पूछ रहा है राज?"

"इसका मतलब।" राज को झटका सा लगा था___"इस फार्महाउस के बारे में बड़े पापा जानते हैं। जाने भी क्यों न आख़िर दिया तो उन्होंने ही है आपको। इस लिए अब आप ये भी जान लीजिए कि यहाॅ पर रहना भी हमारे लिए खतरे से खाली नहीं है।"

"क्या????" रितू दीदी भी बुरी तरह हिल गईं, कदाचित उन्हें भी अब तक इस बात का एहसास नहीं था। किन्तु अब हो गया था___"ये तो यकीनन सच कहा तूने। ओह माई गाड मुझे इस बारे में पहले ही सोच लेना चाहिए था। सचमुच राज यहाॅ हममें से कोई भी सुरक्षित नहीं है। ये तो अच्छा हुआ कि अभी तक डैड का ध्यान फार्महाउस की तरफ नहीं गया है। मगर इसमें अब ज़रा भी शक नहीं कि बहुत जल्द उन्हें इस फार्महाउस का ख़याल आ सकता है। वो सोच सकते हैं कि मैं और तुम यहाॅ छुपे हो सकते हैं। अतः वो ज़रूर इसका पता लगाएॅगे। अब क्या होगा राज?"

"फिक्र मत कीजिए।" मैने कहा___"सारे रास्ते मैं यही सोच रहा था और फिर मैने इसका बंदोबस्त भी किया है।"
"बंदोबस्त??" रितू दीदी हैरान।

"हाॅ दीदी।" मैने कहा___"इसका तो मुझे भी अंदाज़ा था कि ये फार्महाउस आपके पास बड़े पापा की वजह से ही आया हो सकता है। इस लिए इसका ख़याल देर सवेर उन्हें आ ही जाएगा। अतः मैने फौरन ही अपने एक दोस्त को फोन किया। मेरा वो दोस्त आजकल इंदौर में है अपने माता पिता व भाई बहन के साथ। घर से और दौलत से भी सम्पन्न है वो। उसके पापा इन्कमटैक्स के बड़े ऑफिसर हैं तथा उसका बड़ा भाई पुलिस में एसीपी है। गुनगुन से क़रीब दस किलोमीटर पहले ही उसका गाॅव है रेवती। जहाॅ पर उसका बड़ा भारी पुश्तैनी घर है। किन्तु उस घर में कोई नहीं रहता है। घर की देख रेख के लिए एक दो केयरटेकर रखे हुए हैं उसके डैड ने। मैने अपने उसी दोस्त से बात की थी तथा उसको सारी बातें भी बताई और कहा कि कुछ समय के लिए मुझे उसके घर की ज़रूरत है रहने के लिए। मेरी सारी बातें सुनकर उसने अपनी माॅम से बात किया। उसकी माॅम मुझे अपने बेटे की तरह ही चाहती थी। शेखर ने जब अपनी माॅ से मेरी सारी कहानी बताई तो वो मेरे लिए चिंतित हो गईं और फौरन ही उन्होंने कह दिया कि मुझे आज ही उनके घर में शिफ्ट हो जाना चाहिए। उन्होंने घर के केयरटेकर को फोन करके मेरे बारे में बता दिया है। एक काम उन्होंने ये भी किया कि अपनी बहन को जो कि रेवती में ही रहती हैं भी सूचित कर दिया है। उनसे कहा कि वो अपने पति को किसी ऐसे वाहन के साथ मेरे पास भेज दें जिसमें हम सब और हमारा सामान आराम से आ सके।"

"ये तो बहुत ही अच्छी बात है राज।" रितू दीदी ने खुश होकर मेरे गाल पर चुम्बन जड़ दिया___"तूने सचमुच बहुत ही कमाल का और होशियारी का काम किया है। मगर एक समस्या भी है।"
"कैसी समस्या दीदी?" मैं चकराया।
"यही कि हम सब और हमारा सामान वगैरह तो यहाॅ से वहाॅ शिफ्ट हो जाएगा।" रितू दीदी ने कहा___"मगर हम तहखाने में मौजूद उस मंत्री के पिल्लों को कैसे ले जाएॅगे और वहाॅ उन्हें कैसे रखेंगे? यहाॅ तो तहखाना था जहाॅ पर मैने उन सबको कैद किया हुआ है जबकि वहाॅ पर ऐसा कोई तहखाना नहीं हो सकता।"

"कोई ज़रूरी तो नहीं कि उन सबको तहखाने में ही रखा जाए।" मैने कहा___"हम उन लोगों को किसी कमरे में भी वैसे ही बाध कर रख सकते हैं। बस इस बात का ख़याल रखना होगा कि वो चीख चिल्ला न सकें। वरना उनकी आवाज़ से बाहरी लोगों को पता भी लग सकता है।"

"हाॅ ये भी सही है।" रितू दीदी ने कहा___"और हाॅ हरिया काका और शंकर काका भी हमारे साथ ही जाएॅगे। वो बेचारे मुझे अपनी बेटी की तरह ही चाहते हैं। मेरे लिए वो कुछ भी कर सकते हैं। वो दोनो अच्छे इंसान है राज। यहाॅ पर उन्हें अकेले छोंड़ चले जाना कतई उचित नहीं है।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"हम उन्हें भी साथ ले चलेंगे। मगर यहाॅ से चलने की फौरन तैयारी कीजिए। मेरे दोस्त शेखर का कभी भी फोन आ सकता है ये बताने के लिए कि उसके मौसा वाहन लेकर हमारे पास पहुॅचने ही वाले हैं।"

"क्या हमें आज ही यहाॅ से निकलना होगा?" रितू दीदी ने हैरानी से कहा था।
"बिलकुल दीदी।" मैने कहा___"हम एक पल की भी देरी नहीं कर सकते। बड़े पापा का कुछ पता नहीं कि उनके मन में किस पल इस फार्महाउस का ख़याल आ जाए और वो फौरन हम सबका पता लगाने के लिए यहाॅ आ धमकें। इस लिए बेहतर यही है कि उनके यहाॅ धमकने से पहले ही हम लोग यहाॅ से कूच कर जाएॅ।"

"सही कह रहा है तू।" रितू दीदी ने हालात की गंभीरता को समझते हुए कहा___"वक्त और हालात का कोई भरोसा नहीं किया जा सकता।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"अब आप जाइये और सबको बता दीजिए। मैं भी कपड़े पहन कर आता हूॅ हाथ बटाने।"

"चल ठीक है।" दीदी ने कहा और फौरन ही कमरे से बाहर निकल गईं। उनके जाने के बाद मैने भी आनन फानन में कपड़े पहने। तभी मेरा आई फोन बजा। (यहाॅ पर मैं आप सबको (खास कर नैना जी को) ये बता दूॅ कि आई फोन सिर्फ रितू दीदी के पास ही नहीं था बल्कि मेरे और गुड़िया (निधी) के पास भी है)

मैने मोबाइल उठाकर देखा तो शेखर का ही काल था। मैने तुरंत ही काल रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया। उधर से शेखर ने बताया कि उसके मौसा कुछ ऐसे आदमियों को भी साथ में लेकर आ रहे जो तुम सबकी सुरक्षा का भी ख़याल रखेंगे। मैं उसकी बात सुन कर मुस्कुराया और उसे इसके लिए धन्यवाद दिया। उसने बताया कि दस से बीस मिनट के बीच उसके मौसा मेरे पास पहुॅच जाएॅगे। उसके बाद काल कट हो गई।

मैं फौरन ही कमरे से निकल कर नीचे आया और सबके साथ सामान को इकट्ठा कर उसे पैक करवाने लगा। मैने आदित्य से कहा कि वो हरिया काका को भी इस बात का बता दे और उससे कहे कि वो तहखाने से उन चारों पिल्लों को तथा मंत्री की बेटी को बेहोश कर तहखाने से बाहर निकालने की तैयारी करें। मेरी बात सुनकर आदित्य फौरन ही हरिया काका के पास चला गया। इधर नैना बुआ तथा विधी के माता पिता भी सारे सामान को पैक करने में लगे हुए थे। रितू दीदी ने बताया कि पवन का सामान भी पैक रखा हुआ है जिसे साथ ही यहाॅ से ले चलना है।

लगभग बीस मिनट बाद ही दो इनोवा कार तथा उसके पीछे एक टैम्पो फार्महाउस में दाखिल हुए। मैं ये देख कर हैरान रह गया कि इतने सारे वाहन शेखर ने भेजवा दिये थे। कदाचित उसे अंदाज़ा था कि सबको लाने में इतने ही वाहनों की ज़रूरत पड़ सकती थी। टैम्पो में सारा सामान और दोनो कारों में हम सब लोग बैठ कर आराम से यहाॅ से जा सकता थे। ख़ैर सामान तो पैक हो ही चुका था। अतः मैं और आदित्य जल्दी जल्दी सारे सामान को टैम्पो में लोड करने लगे। इस काम में मौसा के साथ आए हुए चार पाॅच आदमी भी लग गए। कुछ ही देर में सारा सामान टैम्पो में लोड हो गया।

हरिया काका और शंकर काका ने उन चारों पिल्लों और उस पिल्ली को भी टैम्पो में ही ठूॅस दिया और खुद भी उसी टैम्पो में चढ़ गए। मौसा के तीन आदमी भी टैम्पो में चढ़ गए। टैम्पो का पिछला फटका लगा कर ऊपर से मोटी तिरपाल को ढॅक दिया गया। जिससे अंदर का कुछ भी देखा नहीं जा सकता था।

उसके बाद मैने विधी के माता पिता, नैना बुआ, तथा बिंदिया काकी को एक इनोवा में बैठा दिया। उस इनोवा में मौसा का एक आदमी भी आगे की शीट पर हाॅथ में बंदूख लिए बैठ गया। दूसरी इनोवा में मैं आदित्य और रितू दीदी बैठ गए। आगे की शीट पर आख़िरी बचा बंदूकधारी भी बैठ गया। उसके बाद सारा क़ाफिला चल दिया वहाॅ से। इसके पहले हमने अच्छी तरह से चेक कर लिया था कि हमारी कोई ऐसी चीज़ तो नहीं छूट गई जो ज़रूरी हो।

रितू दीदी ने रास्ते में किसी को फोन लगाया और उससे कहा कि उसके फार्महाउस से पुलिस जिप्सी अपने साथ ले जाकर थाने में खड़ा कर दें। फार्महाउस में एक और जीप थी जो कि अजय सिंह की ही थी उसे वहीं खड़े रहने दिया था। लगभग आधा घंटे बाद हम रेवती पहुॅच गए। इस बीच रास्ते में हमें इक्का दुक्का वाहन तो मिले मगर उनमें कोई मंत्री या अजय सिंह का आदमी नहीं था। रेवती में शेखर के मकान के सामने ही हमारा क़ाफिला रुका। घर के बाहर ही दो केयरटेकर खड़े दिखे। वाहनों के रुकते ही वो हमारे पास आ गए।

हम सब वाहनों से उतर कर बाहर आए तो वो दोनो केयर टेकर हमें घर के अंदर की तरफ ले गए। मैं और आदित्य बाहर ही थे। टैम्पो से पहले उन पाॅचों कैदियों को निकाल कर घर के अंदर एक ऐसे कमरे में ले आए जो सबसे अलग और आख़िर में था। उसके बाद हम सबने मिल कर टैम्पो से सारा सामान उतार कर अंदर ले गए। उन बंदूखधारियों हमारी बड़ी मदद की।

शेखर के मौसा, जिनका नाम केशव शर्मा था वो बड़े ही खुशदिल इंसान थे। मुझे उनका नेचर बड़ा पसंद आया था। वो अंत तक हमारे पास ही रहे और हमारी हर ब्यवस्था के बारे में देखते सुनते रहे तथा हमारी हर ज़रूरों की लिस्ट बनाते रहे। दरअसल यहाॅ रहता तो कोई था नहीं। दो केयरटेकर थे जो कि घर से अलग एक तरफ बने सर्वेन्ट क्वार्टर में रहते थे। वो सारा दिन सारे सामान को जमाने में और रखने में चला गया। इस बीच शेखर की माॅम सुगंधा ऑटी का फोन भी आया था। उन्होंने मुझसे बड़े प्यार से बात की और ये भी कहा कि मैं यहाॅ पर किसी भी चीज़ के लिए संकोच न करूॅ। ये घर अपना ही है और हर चीज़ का उपयोग बड़े शौक से कर सकते हैं हम। मैं सुगंधा ऑटी से बात करके मुतमईन हो गया था और खुश भी। उसके बाद मैं और आदित्य मौसा जी के साथ मार्केट चले गए। जहाॅ से हमें राशन पानी तथा और भी कई सारी चीज़ें लेनी थी। मौसा जी ने कहा कि गैस सिलेण्डर वो अपने यहाॅ से हमे दे देंगे।

सारी ब्यवस्था और सब कुछ सही करवाने के बाद मौसा जी ये कह कर अपने घर चले गए कि हमें जब भी किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो हम बेझिझक उनसे फोन बता सकते हैं। उन्होंने कहा कि वो बीच बीच में आते रहेंगे हाल चाल के लिए। मौसा जी का घर रेवती में ही था किन्तु मुख्य सड़क के पीछे था। पैदल चल कर जाने में लगभग दस मिनट से भी कम का समय लगता था।

शेखर का ये घर दो मंजिला था तथा काफी बड़ा था। आज के समय का बना ये घर वेल डेकोरेटेड था। अंदर से ऐसा लगता था जैसे कोई बॅगला हो। हलाॅकि मुम्बई वाले मेरे बॅगले के मुकाबले ये कुछ भी नहीं था। होता भी कैसे उस बॅगले की कीमत भी तो डेढ़ सौ करोड़ रुपये थी। ख़ैर रात हो चुकी थी इन सब कामों में। अतः बिंदिया काकी ने अपनी रसोई सम्हाल ली थी। उनकी मदद के लिए नैना बुआ भी साथ थी। विधी की माॅ भी खाना बनाने में मदद करना चाहती थी मगर नैना बुआ ने साफ कह दिया था कि वो बस आराम करें। उन्हें यहाॅ पर कोई काम करने की ज़रूरत नहीं है।

रात का डिनर करने के बाद हम सब अपने अपने कमरों में सोने के लिए चल दिये। विधी के माता पिता ग्राउण्ड फ्लोर पर ही बने कमरे को चुना था अतः वो उसी कमरे में चले गए। नीचे तीन कमरे और भी थे। जिनमे से एक पर हरिया काका व बिंदिया काकी तथा दूसरे पर शंकर काका सोने के लिए चले गए। जबकि ऊपर के कमरों में मैं आदित्य नैना बुआ व रितू दीदी चले गए।

इन सब कामों से हम सब काफी थक चुके थे अतः बेड पर लेटते ही नींद को आन् ही था। किन्तु मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरे मन में कई सारी बातें चल रही थी। फार्महाउस से यहाॅ शिफ्ट हो जाने से अब किसी का ख़तरा नहीं था। बल्कि अब तो खुल कर हम कोई काम कर सकते थे। मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा मुझे ऐसा लगा जैसे दरवाजे पर बाहर से किसी ने दस्तक दी हो। मैं ये सोचते हुए बेड से उठ कर दरवाजे की तरफ चल दिया कि इस वक्त कौन हो सकता है?
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उधर हवेली में प्रतिमा का बाप व अजय सिंह का ससुर जगमोहन सिंह उस वक्त हवेली पहुॅचा जब अजय सिंह फ्रेश होने के बाद खाना खाने के लिए डायनिंग टेबल के चारो तरफ लगी कुर्सियों में से मुख्य कुर्सी पर बैठा था। जगमोहन सिंह को हवेली के बाहर तैनात अजय सिंह का एक आदमी अंदर लेकर आया था।

अपने ससुर को आज वर्षों बाद देख कर अजय सिंह फौरन ही अपनी कुर्सी से उठ कर जगमोहन की तरफ बढ़ा और उसके पैर छू कर आशीर्वाद लिया। अभी अजय सिंह अपने ससुर के पाॅव छू कर खड़ा ही हुआ था कि तभी प्रतिमा भी किचेन से हाॅथ में थाली लिए आई। प्रतिमा की नज़र जब अपने पिता पर पड़ी तो वो एकदम से मानो बुत बन गई। काफी देर बाद उसकी तंद्रा तब टूटी जब अजय सिंह ने उससे कहा कि देखो प्रतिमा पापा जी आ गए।

हाॅथ में ली हुई थाली को प्रतिमा ने डायनिंग टेबल पर रखा और फिर भाग कर जगमोहन की तरफ बढ़ी और अपने पिता के गले से लग गई। भावनाओं और जज़्बातों ने मानो प्रबल रूप धारण कर लिया जिसके प्रभाव से उसकी ऑखों से ऑसू झर झर करके बहने लगे थे। प्रतिमा अपने पिता के सीने से छुपकी ज़ार ज़ार रोये जा रही थी। जगमोहन खुद भी बेहद ग़मगीन हो गया था और हो भी क्यों न आख़िर प्रतिमा उसकी लाडली बेटी जो थी। अपनी बेटी को अपने कलेजे से लगाए जगमोहन को आज असीम सुख शान्ति मिल रही थी। वर्षों से उसके अंदर दर्द से भरी हुई टीस कम हो गई थी।

कितनी ही देर तक प्रतिमा अपने पिता के गले लगी रही उसके बाद जब उसके अंदर का गुबार खत्म हुआ तो वो अपने पिता से अलग हुई और अपने पिता से उनका हाल चाल पूछने लगी। कुछ देर बाद अजय सिंह ने प्रतिमा और अपने ससुर से कहा कि वो फ्रेश हो लें ताकि हम साथ में बैठ कर ही खाना खाएॅ। अजय सिंह की बात पर जगमोहन सिंह बोले कि वो बेटी के घर का अन्न कैसे खा सकते हैं? इस पर अजय सिंह ने हॅसते हुए कहा कि पापा जी आप भी क्या बाबा आदम के रीति रिवाज लिए बैठे हैं। आज के समय के सबसे बड़े वकील होते हुए भी ऐसी बात करते हैं। आख़िर अपने दामाद और बेटी के बार बार कहने पर जगमोहन सिंह को अजय सिंह के साथ बैठ कर खाना ही पड़ा।

खाना खाने के बाद ससुर दामाद के बीच ढेर सारी बातें हुईं उसके बाद अजय सिंह प्रतिमा को बता कर अपनी फैक्ट्री के लिए निकल गया। काफी दिन से फैक्ट्री नहीं गया था वह। वैसे भी वो चाहता था कि वर्षों के बाद बाप बेटी मिले हैं तो वो फ्री होकर एक दूसरे से बातें करें। अजय सिंह प्रतिमा को किनारे पर बुला कर उससे एक बार पुनः ये कहा कि वो या कोई भी जगमोहन जी से हमारे हालातों के संबंध में कोई बात न करे। सब कुछ समझा बुझा कर अजय सिंह हवेली से बाहर आ गया।

बाहर आते ही उसे शिवा इस तरफ ही आता दिखाई दिया। अजय सिंह उसे देख कर ठिठक गया। अपनी ही धुन में मस्ती से आता हुआ शिवा अपने बाप को देख कर हैरान रह गया और फिर एकदम से झपट कर उसके गला लग गया।

"ओह डैड आप आ गए।" शिवा खुशी से झूमता हुआ बोला था।
"मैं तो आ ही गया बर्खुरदार।" अजय सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तुम इस वक्त कहाॅ से इस तरह मस्ती में डूबे चले आ रहे थे?"
"वो मैं गेस्टहाउस की तरफ से आ रहा था डैड।" शिवा ने कहा___"दरअसल आपके बिजनेस संबंधी दोस्तों ने अपने आदमी हमारी मदद के लिए यहाॅ भेज गए थे। इस लिए मैं उन्हीं के पास बैठा हुआ था। माॅम ने कहा था कि उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो उन सबका ख़याल रखूॅ।"

"ओह आई सी।" अजय सिंह आदमियों का सुन कर सहसा चौंक पड़ा था फिर बोला___"चलो ये तो बहुत अच्छी बात है बेटे। मुझे खुशी हुई कि तुम अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगे हो। ख़ैर मैं ये कह रहा हूॅ कि आज तुम्हारे नाना जी आए हुए हैं इस लिए तुम या कोई भी उनके सामने हमारे हालातों के संबंध में कोई भी बात नहीं करोगे। और हाॅ, तुम भी ज़रा सम्हल कर उनसे बात करना। वो बहुत ही जहीन इंसान हैं। इंसान को पहचानने में उन्हें ज़रा भी वक्त नहीं लगेगा। अतः सोच समझ कर और होशियारी से उनके सामने जाना। ऐसा न हो कि तुम्हारे हाव भाव से उन्हें ऐसा प्रतीत हो जाए कि तुम किस टाइप के लड़के हो? तुम समझ रहे हो न कि मैं क्या कहना चाहता हूॅ?"

"डोन्ट वरी डैड।" शिवा ने कहा___"मेरी वजह से नाना जी को कुछ और सोचने का मौका ही नहीं मिलेगा और न ही उन्हें हमारे हालातों का कुछ पता चलेगा।"
"गुड ब्वाय।" अजय सिंह मुस्कुराया___"अब जाओ तुम। मैं भी ज़रा उन आदमियों से मिल लूॅ, उसके बाद मुझे थोड़ी देर के लिए फैक्ट्री भी जाना है।"
"ओके बाय डैड।" ये कह कर शिवा हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गया।

शिवा का जाने के बाद अजय सिंह भी गेस्ट हाउस की तरफ चल दिया। अभी वो कुछ क़दम ही चला था कि सहसा पीछे से उसे प्रतिमा की आवाज़ सुनाई दी। उसने पलट कर देखा तो प्रतिमा हवेली के मुख्य दरवाजे पर खड़ी थी। अजय सिंह के पलटते ही प्रतिमा ने उसे बताया कि लैण्डलाइन फोन पर किसी का काल आया हुआ है और वो उससे बात करना चाहता है। प्रतिमा की बात सुन कर अजय सिंह वापस हवेली के अंदर की तरफ चल दिया। उसे याद आया कि उसके मोबाइल पर तो सिम कार्ड है ही नहीं।

"हैलो।" अपने कमरे में रखे लैण्डलाइन फोन के रिसीवर को कान से लगाते ही अजय सिंह ने अपनी आवाज़ को प्रतभावशाली बनाते हुए कहा था।
"ठाकुर।" उधर से किसी की स्पष्ट आवाज़ उभरी__"हम इस प्रदेश के मंत्री दिवाकर चौधरी बोल रहे हैं।"

"म..मंत्री???" अजय सिंह उधर ईआ वाक्य सुन कर बुरी तरह चौंका था, फिर लरजते हुए स्वर में बोला____"क्या सच में आप मंत्री जी ही बोल रहे हैं?"
"हाॅ ठाकुर।" उधर से दिवाकर चौधरी ने खास अंदाज़ में कहा___"क्या तुम्हें हमारे मंत्री होने पर शक़ है?"

"न..न..नहीं नहीं मंत्री जी।" अजय सिंह बुरी तरह सकपकाया___"म मैं तो बस इस लिए ऐसा कह गया क्योंकि मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि प्रदेश की इतनी बड़ी शख्सियत का फोन मेरे पास आ सकता है। मैं तो ये सोच सोच कर हैरान हूॅ कि भला मुझसे मंत्री जी का क्या काम हो सकता है जिसके तहत आपने मुझे फोन किया है।"

"कुछ तो खास वजह होगी ही ठाकुर।" उधर से दिवाकर चौधरी ने कहा___"वरना इस फानी दुनियाॅ में बेमतलब कोई भी किसी को याद नहीं करता।"
"हाॅ ये बात तो बिलकुल सच है मंत्री जी।" अजय सिंह के दिमाग़ के घोड़े बड़ी तेज़ी से ये पता लगाने के लिए दौड़ रहे थे कि मंत्री ने उसे किस वजह से फोन किया हो सकता है? किन्तु प्रत्यक्ष में बोला___"आज के समय में हर इंसान मतलबी बन चुका है। ख़ैर आप बताइये मेरे लिए क्या आदेश है आपका?"

"दोस्तों को आदेश नहीं देते ठाकुर।" उधर से चौधरी ने कहा___"बल्कि साफ शब्दों में कह दिया जाता है जो कहना होता है। ख़ैर हम ये कह रहे है कि हम तुमसे मिलना चाहते हैं। मिलने के बाद ही तसल्ली से हमारे बीच बात चीत होगी और ये भी कि वो खास वजह क्या है जिसके तहत हमने तुम्हें फोन किया है?"

"जैसा आप कहें मंत्री जी।" अजय सिंह मंत्री के मुख से दोस्तों शब्द सुन कर सोचने पर मजबूर हो गया था। हलाॅकि मंत्री का उसे फोन करना मौजूदा हालात के हिसाब से उसके लिए कहीं न कहीं राहत और खुशी की बात थी। उसे भी पता था कि मंत्री दिवाकर चौधरी क्या चीज़ है। फिर बोला___"बताइये मुझे कब और कहाॅ मिलने आना होगा आपसे?"

"वैसे समय तो अभी भी है ठाकुर।" उधर से मंत्री ने कहा___"क्योंकि अभी शाम भी नहीं हुई है। इस लिए चाहो तो अभी हमारे यहाॅ आ सकते हो। इस वक्त हम गुनगुन में ही अपने आवास पर मौजूद हैं। किन्तु अगर तुम्हारे पास इस वक्त टाइम नहीं है तो कोई बात नहीं कल सुबह आ जाना। हमें कोई परेशानी नहीं है।"

"ये कैसी बात कर रहे हैं मंत्री जी?" अजय सिंह ने चापलूसी वाले अंदाज़ से कहा___"आप मुझे अपना समझ कर इतनी इज्ज़त से बुलाएॅ और मैं तत्काल न आऊॅ ऐसा कैसे हो सकता है भला? मैं तो अपने सारे ज़रूरी काम छोंड़ कर आपके पास ही दौड़ा चला आऊॅगा चौधरी साहब। बस कुछ देर तक इंतज़ार कर लीजिए। मैं फौरन ही अपने गाॅव हल्दीपुर से गुनगुन में आपके आवास पर आने के लिए निकल रहा हूॅ।"

"ओके हम इन्तज़ार कर रहे हैं ठाकुर।" उधर से मंत्री ने कहा___"तुम हमारे दोस्त की तरह ही हो इस लिए अपने दोस्त का वैलकम भी हम शानदार तरीके से ही करेंगे।"
"ये तो मेरी खुशनसीबी है मंत्री जी।" अजय सिंह एकदम से खुश होते हुए बोला___"जो आप मुझे अपना दोस्त कह रहे हैं वरना मेरी आपके सामने भला क्या औकात?"

"ऐसी कोई बात नहीं है ठाकुर।" मंत्री ने कहा___"हर इंसान अपनी जगह पर औकात वाला ही होता है। तुम भी अपनी जगह किसी से कम नहीं हो। हमें सब पता है तुम्हारे बारे में। ख़ैर छोंड़ो ये सब। आओ फिर मिलकर ही बाॅकी बातें होंगी।"
"जी ठीक है चौधरी साहब।" अजय सिंह के ऐसा कहते ही उधर से काल कट गई।

रिसीवर को हाॅथ में पकड़े अजय सिंह किसी बुत की मानिंद खड़ रह गया था। उसकी ऑखें ऐसी चमकने लगी थी जैसे उसकी ऑखों के अंदर हज़ारों वाट के बल्ब एकाएक ही रौशन हो उठे थे। चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। कुछ देर तक अजय सिंह इसी तरह रिसीवर हाॅथ में खड़ा रहा फिर जैसे उसे होश आया। उसने मुस्कुरा कर रिसीवर को वापस केड्रिल पर रखा और फिर कमरे में ही एक तरफ रखी आलमारी की तरफ बढ़ चला।

आलमारी से उसने अपने सबसे अच्छे और सबसे कीमती कपड़े निकाले। अपने जिस्म पर पहले से ही पहने हुए कपड़ों को निकाला उसने और फिर उन कपड़ों को पहनना शुरू किया जिन्हें उसने आलमारी से निकाला था। उसके चेहरे पर इस वक्त एक अलग ही चमक दिख रही थी। ख़ैर कुछ ही देर में वह कपड़ों को पहन कर एक तरफ दीवार से सटे आदमकद आईने के सामने आया और उसमें खुद को देखने लगा। कीमती कोट पैन्ट में इस वक्त वो काफी जॅच रहा था और लग भी रहा था कि वो कोई बहुत बड़ा आदमी है। सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद वो मुस्कुराते हुए ही कमरे से बाहर की तरफ चल दिया।

ड्राइंगरूम में बैठे जगमोहन सिंह, प्रतिमा व शिवा की नज़र जैसे ही अजय सिंह पर पड़ी तो जगमोहन सिंह को छोंड़ कर प्रतिमा व शिवा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे। जबकि जगमोहन सिंह के चेहरे पर ये सोच कर खुशी के भाव उभरे कि उसका दामाद वाकई में एक शख्सियत वाला तथा प्रभावशाली ब्यक्तित्व रखने वाला इंसान है। उसे पहली बार लगा कि उसकी बेटी ने अपने पति के रूप में ग़लत चुनाव नहीं किया था। यहाॅ आने के बाद उसने इतनी बड़ी हवेली और अंदर बाहर इतने सारे नौकर चाकर देखे तो उसे समझ आ गया था कि उसका दामाद वास्तव में कोई ऐरा ग़ैरा नहीं था। बल्कि इस गाॅव का राजा था वो।

"प्रतिमा मैं ज़रा मंत्री जी के पास जा रहा हूॅ।" अजय सिंह ने ये बात कुछ इस अंदाज़ से कही थी कि सोफे पर बैठे जगमोहन सिंह पर अपना एक खास असर डाल सके और ऐसा हुआ भी। जबकि अजय सिंह बोला___"अभी उन्हीं का फोन आया हुआ था। उन्होने मुझे किसी ज़रूरी काम से याद किया है। अतः हो सकता है कि मुझे वापस आने में देर हो जाए तो तुम पापा जी का अच्छे से ख़याल रखना।"

"ठीक है आप जाइये।" प्रतिमा ने अपने पिता की मौजूदगी में अजय सिंह से आप कह कर बात की, बोली___"मैं पापा का बहुत अच्छे से ख़याल रखूॅगी।"
"इसमें ख़याल रखने की क्या बात है बेटा?" सहसा जगमोहन सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा___"ये तो मेरा भी अपना ही घर है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत हुई तो मैं खुद ही ले लूॅगा। क्यों बेटी?"

"जी आपने बिलकुल ठीक कहा पापा।" प्रतिमा ने खुशी से मुस्कुराते हुऐ कहा।
"फिर तो ठीक है पापा।" अजय सिंह भी मुस्कुराया__"मुझे आपकी ये बात बहुत अच्छी लगी। ख़ैर मैं जल्दी वापस आने की कोशिश करूॅगा और फिर आपसे ढेर सारी बातें होंगी। अच्छा अब चलता हूॅ।"

अजय सिंह के कहने पर जगमोहन सिंह ने हाॅ में सिर हिलाया जबकि अजय सिंह फौरन ही हवेली से बाहर की तरफ बढ़ चला। उसके मन में इस वक्त मंत्री से मिलने की बड़ी ब्याकुलता पैदा हो गई थी। उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि प्रदेश का मंत्री उसे दोस्त मान कर उससे मिलना चाहता है। मंत्री से संबंध होना उसके लिए कितना फायदेमंद हो सकता था इसका बखूबी अंदाज़ा था उसे। इसी लिए तो वो जल्द से जल्द मंत्री के पास पहुॅच जाना चाहता था।

बाहर एक तरफ खड़ी अपनी मर्सडीज कार के पास पहुॅच कर उसने कार का दरवाजा खोला और ड्राइंविंग शीट पर बैठ गया। कुछ ही पलों में उसकी कार गुनगुन के लिए रवाना हो गई थी।
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उधर गुनगुन में अपने आवास पर मंत्री दिवाकर चौधरी अपने दो दोस्तों और एक रखैल दोस्त यानी सुनीता के साथ ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठा था। इस वक्त ड्राइंग रूम में इन चारों के अलावा और कोई नहीं था। मंत्री के सुरक्षा गार्ड सब बाहर ही तैनात थे।

"वैसे आपको क्या लगता है चौधरी साहब।" सहसा अशोक मेहरा कह उठा___"वो ठाकुर हमारी इस मामले में क्या सहायता कर सकता है? जबकि उसकी खुद की बेटी ही उसके खिलाफ़ है।"

"इन्हीं सब चीज़ों के बारे में तो जानना है अशोक।" मंत्री ने सोचते हुए कहा___"मुझे लगता है कि इस मामले से जुड़ी हर चीज़ ठाकुर को क्राॅस करती है। हमने ये तो समझ लिया कि हमारे मामले जो हो रहा है वो कौन और क्यों कर रहा है मगर हम ये भी जानना चाहते हैं कि जो हमारा दुश्मन है उसने या उसकी माॅ बहन ने ऐसा क्या किया था जिसकी वजह से ठाकुर ने उन तीनों को हवेली से ही नहीं बल्कि सारी ज़मीन जायदाद से भी बेदखल कर दिया है? सबसे महत्वपूर्ण बात हमें ये भी जानना है कि ऐसा क्या हुआ है जिसके तहत ठाकुर की अपनी बेटी खुद अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो गई है?"

"बात तो आपकी एकदम सही है चौधरी साहब।" अशोक ने कहा___"किन्तु इससे निष्कर्श क्या निकलेगा? मेरा मतलब है कि इससे हमारा फायदा क्या होगा?"

"नफ़ा नुकसान तो अपनी जगह है ही अशोक।" चौधरी ने कहा___"किन्तु इस मामले में कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में पक्के तौर पर जानना बहुत ज़रूरी है। तुमने कहा था कि ठाकुर की बेटी जो थानेदारनी है और अपने पैरेन्ट्स के खिलाफ़ है वो हमारे दुश्मन और ठाकुर के भतीजे की मदद इस लिए नहीं कर सकती क्योंकि वो भी उससे अपने माॅ बाप की तरह नफ़रत करती है। ये बातें एक दूसरे से मैच नहीं खा रही हैं अथवा ये भी कह सकते हैं कि जॅच नहीं रही हैं।"

"जी मैं कुछ समझा नहीं चौधरी साहब।" अशोक मेहरा के माॅथे पर उलझनपूर्ण भाव आए___"कौन सी बातें नहीं जॅच रही आपको?"

"यही कि एक तरफ तो तुम ये भी कह रहे हो कि ठाकुर की थानेदारनी बेटी उस विराज नाम के अपने भाई से नफ़रत करती है।" मंत्री ने कहा___"इस लिए वो उसकी मदद नहीं कर सकती। जबकि दूसरी तरफ तुम ये भी कह रहे हो कि ठाकुर की वही थानेदारनी बेटी खुद अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ है। सोचने वाली बात हैं अशोक कि ऐसा कैसे हो सकता है? आम तौर पर बच्चे वही करते हैं जो उनके माॅ बाप उन्हें सीख देते हैं अथवा करने को कहते हैं। यहाॅ सोचने वाली बात ये है कि अगर वो थानेदारनी अपने माॅ बाप की सीख अथवा कहे के अनुसार अपने चचेरे भाई से नफ़रत करती है तो फिर अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ वो किस वजह से हो गई है?"

"आपकी इन सब बातों में ज़बरदस्त प्वाइंट है चौधरी साहब।" सहसा अवधेश श्रीवास्तव कह उठा___"सचमुच ये सोचने वाली बात है कि आख़िर ऐसा क्या हुआ है जिसके चलते ठाकुर की बेटी उसके खिलाफ़ है? संभव है कि उसे कोई ऐसी बात अपने माॅ या पिता की पता चल गई हो जिसके चलते उसने अपने माॅ बाप से किनारा कर लिया हो। या फिर ऐसा हो सकता है कि सोच या विचारों के चलते थानेदारनी अपने पैरेन्टस् से दूर हो।"

"ये सब तो महज संभावनाएॅ हैं अवधेश।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"जो सही भी और ग़लत भी हो सकती हैं मगर हमें वो बात पता करना है जो सिर्फ और सिर्फ सच हो। ख़ैर फिक्र की कोई बात नहीं है, हमने ठाकुर को बुलाया है। वो आता ही होगा हमारे पास। उसी से पूछेंगे कि सच्चाई क्या है?"

"लेकिन चौधरी साहब।" अशोक मेहरा ने एक बार पुनः हस्ताक्षेप किया___"सवाल तो एक बार फिर खड़ा हो जाता है कि इस सबसे हमारा फायदा क्या होगा? हम ये तो जानते ही हैं कि हमारा दुश्मन ठाकुर का वो भतीजा है जिसका नाम विराज है और वो मुम्बई में रहता है। फिर अचानक आप ठाकुर और उसकी बेटी को बीच में कैसे ले आए? इस मामले में ये कहाॅ से आ गए? ठाकुर की बेटी अपने माॅ बाप के खिलाफ़ है ये उनका आपसी मैटर है। इस लिए हमें इससे क्या लेना देना भला? हमें तो अपने टार्गेट पर फोकस रखना है ना?"

"तुम बात को या तो अनसुना कर गए हो अशोक या फिर बात को समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हो।" मंत्री ने स्पष्ट भाव से कहा___"जबकि तुम्हें सबसे पहले ये सोचना चाहिए कि हम बेवजह फालतू की बकवास करने का शौक नहीं रखते हैं। ख़ैर, बात दरअसल ये कि अगर ठाकुर की बेटी सचमुच में अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ है तो वो अपने उस भाई की मदद क्यों नहीं कर सकती जो अपने माॅ बाप की तरह ही उस लड़के से नफ़रत करती थी? संभव है कि उसे उस वजह का पता चल गया हो जिस वजह के चलते उसके बाप ने विराज और विराज की माॅ बहन को हर चीज़ से बेदखल किया था। उसे पता चल गया हो कि जिस वजह से विराज को बेदखल किया था उसके बाप ने वो वजह वास्तव में बेवजह ही थी। यानी विराज व विराज की माॅ बहन अपनी जगह सही रहे हों। उस सूरत में संभव है कि रितू ने उस संबंध में अपने पैरेंट्स से बात की हो और उनसे कहा हो कि विराज और उसकी माॅ बहन को बेदखल करके उसने अच्छा नहीं किया। वो अगर बेक़सूर हैं तो उन्हें उनका हक़ मिलना ही चाहिए। इस संबंध में अपनी बेटी की ये बात शायद ठाकुर को पसंद न आई हो और उसने विराज का हक़ देने से साफ इंकार कर दिया हो। इस वजह से थानेदारनी अपने माॅ बाप से अलग हो गई और संभव है कि इसी के चलते वो अपने उस चचेरे भाई के प्रति अपनी नफ़रत को मिटा कर उसकी मदद भी करने लगी हो। हलाॅकि ये सब भी महज संभावनाएॅ ही हैं किन्तु हो सकता है कि यही सच हो।"

अशोक मेहरा ही नहीं बल्कि वहाॅ बैठे अवधेश व सुनीता भी चौधरी की इन संभावना भरी बातें सुन कर चकित रह गए थे। एक बेटी का अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ होने की क्या खूब वजह सोच कर बयान किया था उसने।

"अगर आपकी संभावनाएॅ सच हैं।" फिर अवधेश ने कहा___"तो यकीनन वो थानेदारनी विराज की मदद कर सकती है। मैं सब समझ गया चौधरी साहब, आपने यही सब सोच कर ठाकुर को यहाॅ बुलाया है।"

"बिलकुल।" चौधरी मुस्कुराया___"किन्तु इस वजह के अलावा भी एक महत्वपूर्ण वजह है।"
"वो क्या चौधरी साहब?" तीनो एक बार फिर चौंके।
"अगर ठाकुर ने सचमुच ही विराज और उसकी माॅ बहन को बेवजह ही हर चीज़ से बेदखल किया है।" चौधरी ने कहा___"तो ये भी सच ही होगा कि विराज अपने ताऊ को दुश्मन समझता होगा और ये भी चाहता होगा कि उसका हक़ किसी भी सूरत में उसे मिले। ठाकुर ने अगर धन दौलत अथवा सारी प्रापर्टी को हथियाने की गरज से उसे बेदखल किया होगा तो फिर ये पक्की बात है कि ठाकुर किसी भी कीमत में वो प्रापर्टी अथवा उस प्रापर्टी में से विराज का हक़ नहीं देगा। कहने का मतलब ये कि विराज को अपना हक़ आसानी से नहीं मिलने वाला। इस लिए वो ऐसा कुछ ज़रूर करेगा जिसके तहत उसे अपने ताऊ से अपना हक़ वापस मिल सके।"

तीनो मुह फाड़े देखते रह गए चौधरी को। किसी के मुख से कोई बोल न फूट सका था। जबकि चौधरी उन सबके चेहरों पर मॅडराते भावों को देखते हुए पुनः कहना शुरू किया____"हलाॅकि ये भी महज संभावनाएॅ ही हैं दोस्तो जो ग़लत भी हो सकती हैं। मगर हमें कहीं न कहीं ऐसा आभास भी हो रहा है कि हमारी इन संभावनाओं पर कुछ न कुछ तो सच्चाई ज़रूर है। हमने ठाकुर, ठाकुर की बेटी, तथा विराज, इन तीनों पर ग़ौर किया है और इनके बीच पैदा हुए हालातों पर भी ग़ौर किया है। इसके बाद ही हमारे दिमाग़ में इन संभावनाओं का आगमन हुआ है।"

"मुझे तो ऐसा लगता है चौधरी साहब।" सहसा अवधेश कह उठा___"कि आपने उन तीनों का ऑपरेशन कर दिया है। आपकी संभावनाओं में कहीं पर भी ऐसा नहीं लग रहा है कि उनमें कहीं कोई लोचा है।"

"ठाकुर की बेटी का अपने माॅ बाप से भले ही चाहे जो पंगा हो अवधेश।" चौधरी ने गहरी साॅस ली___"जिसके तहत वो अपने माॅ बाप के खिलाफ़ है। मगर ये बात तो सच ही समझो कि ठाकुर और विराज का छत्तीस का ऑकड़ा है। ज़र ज़ोरू ज़मीन ये कभी किसी की नहीं हुई। इसने जाने जाने कितने पाक़ रिश्तों को नेस्तनाबूत किया होगा अब तक इसका हममें से कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता। विराज व ठाकुर के बीच हक़ की लड़ाई है ये पक्की बात है और जब तक इस लड़ाई का अंत नहीं होगा दोनो में से कोई भी चैन से नहीं बैठेगा। ख़ैर, तुमने सुना होगा कि हमने फोन पर ठाकुर को दोस्त कहा था। वो इसी लिए कहा था कि मौजूदा हालात में हम दोनो का एक ही टार्गेट है-----विराज। इस लिए हमने उसे दोस्त कहा। हम उससे विराज के संबंध में सारी जानकारी हासिल करेंगे और फिर उस हिसाब से आगे की रणनीति बनाएॅगे।"

अभी चौधरी ने ये कहा ही था कि सहसा तभी ड्राइंग रूम में एक आदमी दाखिल हुआ। उसने बड़े अदब से चौधरी को बताया कि बाहर कोई आदमी आपसे मिलने आया है। वो आदमी अपना नाम ठाकुर अजय सिंह बता रहा है। उस आदमी की बात सुन कर चौधरी मुस्कुराया और अपने उस आदमी से कहा कि उसे इज्ज़त से अंदर ले आओ। चौधरी की बात सुन कर वो आदमी पहले अदब से सिर झुकाया फिर वापस बाहर की तरफ चला गया।

कुछ ही देर में उसी आदमी के साथ अजय सिंह ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ। उसे देखते ही चौधरी अपने सोफे से उठा हलाॅकि वो प्रदेश का मंत्री था और अजय सिंह के लिए उठना उसकी शान के खिलाफ़ था किन्तु फिर भी वो उठा ही। उसकी देखा देखी बाॅकी सब भी उठ गए।

"मोस्ट वेलकम ठाकुर।" चौधरी ने गर्मजोशी से तथा मुस्कुराते हुए अजय सिंह से हाॅथ मिलाया और फिर एक अन्य खाली सोफे की तरफ बैठने का इशारा किया और खुद भी अपनी जगह पर आ कर बैठ गया।

"बहुत बहुत शुक्रिया चौधरी साहब।" अजय सिंह ने अपने अंदर ही हड़बड़ाहट पर काबू पाते हुए किन्तु बड़ी शालीनता से कहा___"आज तो मेरे भाग्य ही खुल गए है जो आपके दर्शन हो गए।"

"ऐसा कुछ भी नहीं है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"इस वक्त हम किसी मंत्री की हैसियत से नहीं बल्कि एक आम इंसान तथा एक दोस्त की हैसियत से तुमसे मिल रहे हैं। और वैसे भी ये तो हमें भी पता चला है कि हमसे पहले जो मंत्री थे उनसे तुम्हारे बहुत गहरे ताल्लुकात थे। सारा पुलिस महकमा ही तुम्हारी मुट्ठी में होता था। किन्तु हमने सुना कि रात भर में सारा कुछ बदल गया था। इस सबका बड़ा हो हल्ला भी हुआ था। मगर किसी की समझ में न आया कि ऐसा क्यों हुआ था। आज भी ये रहस्य ही बना हुआ है।"

दिवाकर चौधरी की इस बात से अजय सिंह तो चौंका ही मगर उसके साथ साथ अशोक, अवधेश व सुनीता आदि भी चौंके थे। किन्तु उन लोगों ने बीच में कहा कुछ नहीं।

"हाॅ ये तो आपने सच कहा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने सहसा गहरी साॅस ली___"एक वक्त था जब हर चीज़ मेरे लिए आसान थी मगर एक ऑधी आई और सब कुछ उड़ा कर ले गई। अब उन जगहों पर गहन ख़ामोशी के सिवा कुछ भी शेष नहीं रहा।"

"इसका मतलब तो ये हुआ कि वो सारा कुछ तुम्हारी वजह से बदल गया था?" इस बार चौंकने की बारी मानो चौधरी की थी। हैरत से बोला___"मगर आख़िर ऐसा हुआ क्या था ठाकुर? यकीनन कोई बड़ी वजह थी क्योंकि इतना बड़ा सिस्टम यहाॅ तक कि प्रदेश के मंत्री का तबादला हो जाना कोई मामूली बात नहीं है। उस सबसे तो हर कोई हैरान रह गया था। आज जबकि तुम्हारे मुख से ही पता चला कि वो सब तुम्हारी वजह से हुआ था तो इस सबको जानने की उत्सुकता और भी बढ़ गई है।"

अजय सिंह समझ सकता था कि उसे मंत्री को इस सबके बारे में बताना ही पड़ेगा। वो भी चाहता था कि किसी वजह से ही सही मगर उसे मंत्री का साथ मिल जाए। अतः उसने संक्षेप में अपनी फैक्ट्री में लगी आग वाले केस के संबंध में बता दिया। ये भी कि बाद में उसे ये पता चल ही गया कि फैक्ट्री में लगी आग के पीछे उसके अपने ही भतीजे विराज का हाॅथ था। मंत्री ये जान कर हैरान रह गया कि विराज ने इतना बड़ा काण्ड किया हुआ है अपने ताऊ के साथ। अजय सिंह ने मंत्री को ये भी बताया कि मंत्री का तबादला और सारे पुलिस महकमे को बदल देने में भी विराज का ही हाॅथ था। ये बात सुन कर तो चौधरी की गाॅड में कीड़े ही कुलबुलाने लगे। वो सोचने पर मजबूर हो गया कि विराज आख़िर चीज़ क्या है जो मंत्री और सारे पुलिस डिपार्टमेन्ट तक को इधर से उधर कर देने की क्षमता रखता है? चौधरी जैसा ही हाल वहाॅ बैठे बाॅकी सबका भी था।

"तुम्हारी कहानी तो वाकई में हैरतअंगेज है यार।" चौधरी ने चकित भाव से कहा___"मगर ये समझ नहीं आया कि तुम्हारे भतीजे विराज ने ऐसा किया क्यों?"

मंत्री ने जानबूझ कर ये सवाल किया था। उसे पता तो था किन्तु वो अजय सिंह के मुख से सच्चाई सुनना चाहता था।

"बड़ी लम्बी कहानी है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस छोंड़ते हुए कहा___"कभी कभी हमारे साथ वो सब भी हो जाता है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती है। दरअसल बात ये थी मैने अपने मॅझले भाई की बीवी और उसके दोनो बच्चों को घर और ज़मीन जायदाद से बेदखल कर दिया था। इसकी वजह ये थी कि मेरे भाई की बीवी गौरी एक चरित्रहीन औरत थी। जवानी में ही उसके पति की मौत हो गई थी जिसकी वजह से उससे अपने अंदर की गर्मी बर्दास्त नहीं हुई। शुरू शुरू में तो सब ठीक था मगर फिर उसके चाल चलन दिखने शुरू हुए। मैं जो कि उसका जेठ लगता था और गाॅवों में रिवाज है कि छोटे भाई की बीवी अपने जेठ के सामने सिर खुला नहीं रखती और ना ही उसे छूती है। मगर गौरी अपनी वासना और हवश की वजह से मुझ पर ही डोरे डालने लगी। मैं उसकी उस हरकत से हैरान था। हमारे खानदान कभी ऐसा नहीं हुआ था। हर कोई छोटे बड़े की मान मर्यादा का ख़याल रखता था। उधर दिनप्रति गौरी की हरकतों से मेरा दिमाग़ खराब होने लगा। मैने उसकी हरकतों के बारे में सबसे पहले अपनी पत्नी को बताया और उससे कहा भी कि वो गौरी को समझाए बुझाए कि ये सब कितना ग़तना ग़लत और पाप कर रही है। मेरी पत्नी ने गौरी को बहुत समझाया। मगर गौरी तो जैसे वासना और हवश में अंधी हो चुकी थी। जिसका नतीजा ये निकला कि एक दिन वो मुझे मेरे कमरे में अकेला देख कर आ धमकी और ज़बरदस्ती मुझसे सेक्स संबंध बनाने को कहने लगी। मैं उसकी उस हरकत और बातों से बहुत गुस्सा हुआ। जबकि वो मुझसे लपटी पड़ी थी। तभी इस बीच मेरी पत्नी आ गई। उसने गौरी को मुझसे छुड़ाया और उसे घसीटते हुए कमरे से बाहर ले गई। मेरी पत्नी ने उस सबके कैमरे द्वारा फोटोग्राफ्स भी निकाले थे। ऐसा इस लिए क्योंकि अगर हम गौरी की इन हरकतों के बारे में घर में किसी से बताते तो कोई भी हमारी बात पर यकीन ही न करता। क्योंकि सब गौरी को बहुत ही ज्यादा संस्कारी और आदर्श औरत मानते थे। ख़ैर उस दिन हमारे पास सबूत भी था इस लिए सबको मानना ही पड़ा और फिर सबकी सहमति से ही मैने उसे और उसीए बच्चों को हवेली से बाहर निकाल दिया। हवेली से बाहर मैने उसे खेतों पर बने मकान में रहने की रियायत ज़रूर दे दी थी। ऐसा इस लिए क्योंकि वो आख़िर थी तो हमारे खानदान की बहू ही। हमने सोचा था कि हवेली से दूर खुतों पर बने मकान में रहेगी तो सब कुछ ठीक ही रहेगा। मगर हमारा ऐसा सोचना भी ग़लत हो गया। क्योंकि वो खेतों पर काम कर रहे मजदूरों पर ही वासना और हवस के चलते डोरे डालने लगी थी। एक दिन हमारे एक मजदूर ने इस बारे में मुझसे डरते हुए बताया। उसकी बात सुनकर मुझे गौरी पर हद से ज्यादा गुस्सा आया। उसके बाद मैने फैसला कर लिया कि अब उसे और उसके बच्चों को मैं उस गाॅव में नहीं रहने दूॅगा। क्योंकि इससे हमारी और हमारे खानदान की बहुत बदनामी होती। अतः मैने उसे हर चीज़ से बेदखल कर दिया। गौरी का लड़का थोड़ा बहुत समझदार था मगर वो भी अपनी माॅ की बातों को ही सच मानता था। उसे लगता था कि हमने उसकी माॅ को बेवजह ही हवेली से निकाला था। वो अपना और अपनी माॅ बहन का घर खर्चा चलाने के लिए मुम्बई में कहीं नौकरी करने चला गया था। जबकि उसके पीछे यहाॅ उसकी माॅ ये सब गुल खिला रही थी। ख़ैर, एक दिन बाद पता चला कि विराज अपनी माॅ व बहन को अपने साथ मुम्बई ले गया। उसके बाद अभी कुछ समय पहले से ही ये सब शुरू हुआ। यानी विराज ये सोच कर मुझसे बदला ले रहा है कि मैने उसके और उसके परिवार के साथ ग़लत किया है।"

"ओह तो ये हैं सारी बातें।" सब कुछ सुनने के बाद चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"लेकिन इतना कुछ हुआ और तुमको अंदाज़ा भी न हुआ कि ये सब तुम्हारे भतीजे ने ही किया है?"

"अंदाज़ा तो तब होता चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"जब मुझे उससे इस सबकी उम्मीद होती। मैं तो यही समझता था कि वो लड़का निहायत ही सीधा सादा और भोला है। भला मुझे क्या पता था कि वो किसी डायनामाइट से कम नहीं है।"

"ख़ैर।" चौधरी ने पहलू बदला___"हमने सुना है कि तुम्हारी अपनी बेटी जो कि पुलिस इंस्पेक्टर है वो आजकल तुम्हारे खिलाफ़ हो चुकी है। ये क्या चक्कर है?"
"चक्कर वक्कर कुछ नहीं है चौधरी साहब।" अजय सिंह मन ही मन बुरी तरह चौंका था किन्तु चेहरे पर चौंकने के भावों को आने न दिया था, बोला___"दरअसल बात ये है कि हमें उसका पुलिस की नौकरी करना ज़रा भी पसंद नहीं था। जबकि पुलिस की नौकरी करना उसका शौक था बचपन से ही। मैने और मेरी पत्नी प्रतिमा ने उससे कहा कि ये पुलिस की नौकरी छोंड़ दो, भला उसे नौकरी करने ज़रूरत ही क्या है? उसे जिस चीज़ की भी ज़रूरत होती है हम उसके बोलने से पहले ही वो चीज़ लाकर उसके क़दमों में डाल देते हैं। मगर वो हमारी बात सुनती ही नहीं। बचपन से ही ज़िद्दी थी वो। एक दिन उसकी माॅ ने कदाचित कुछ ज्यादा ही कड़े शब्दों में कह दिया था। जिसकी वजह से वो गुस्सा हो गई और कहने लगी कि उसे हमारी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। वो अपनी ज़रूरतें खुद पूरी कर लेगी। बस उस दिन के बाद से वो ना तो मुझसे बोलती है और ना ही अपनी माॅ से। यहाॅ तक कि घर भी नहीं आती।"

"बड़ी अजीब बात है।" दिवाकर चौधरी ने कहा__"भला तुम लोगों को उसका नौकरी करने से एतराज़ क्यों है? आज की जनरेशन ज़रा एडवाॅस टेक्नालाॅजी में सम्मिलित है। वो खुद पर और अपने टैलेन्ट के बल पर ही जीवन जीना चाहते हैं। अतः तुम दोनो का उसका नौकरी करने से ऐतराज़ करना सरासर ग़लत था। ख़ैर, जैसा कि तुमने बताया कि उस दिन से वो घर भी नहीं आती है तो सवाल ये है कि वो रहती कहाॅ है फिर? क्या तुमने पता करने की कोशिश नहीं की कि तुम्हारी लड़की रहती कहाॅ है? दिन का तो चलो ठीक है कि वो पुलिस में अपनी ड्यूटी के चलते कहीं न कहीं ब्यस्त ही रहती होगी मगर रात को? रात को कहाॅ रहती होगी वो?"

"पुलिस वाली है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा__"खुद कमाती है। इस लिए कहीं न कहीं अपने रहने के लिए कोई किराये से कमरा ले लिया होगा।"
"ये तो तुम संभावना ब्यक्त कर रहे हो ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जबकि तुम्हें खुद पता लगाना चाहिए था कि अगर वो लौटकर हवेली नहीं आती है तो रहती कहाॅ है? कैसे बाप हो तुम ठाकुर?"

अजय सिंह कुछ बोल न सका। उसे एहसास था कि चौधरी सच कह रहा था कि उसे खुद अपनी बेटी के बारे में पता करना चाहिए था। भले ही वो पुलिस वाली थी मगर ये भी सच था कि वो एक लड़की भी थी। वो भले ही अपनी सुरक्षा बखूबी कर ले मगर वो तो उसका बाप था न? उसे तो अपनी बेटी की चिन्ता होनी चाहिए थी। अजय सिंह सोचो में गुम तो था मगर उसके ज़हन में ये भी था कि रितू के साथ उसकी छोटी बहन नैना भी है। शायद यही वजह थी कि उसने अब तक पता करने की कोशिश नहीं की थी कि वो दोनों कहाॅ रहती हैं? अकेले रितू बस होती तो उसे चिंता यकीनन होती मगर उसके साथ में नैना जैसी पढ़ी लिखी व समझदार उसकी बहन भी थी। इस लिए वो बेफिक्र था अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए।

"क्या सोचने लगे ठाकुर?" उसे सोचों में गुम देख कर चौधरी ने कहा___"ख़ैर छोंड़ो यार, ये तुम्हारे घर की बात है तुम्हें जो उचित लगे वो करो। अच्छा एक बात बताओ।"
"ज जी????" अजय सिंह चौंका___"प..पूछिए।"

"क्या ऐसा हो सकता है।" चौधरी ने बड़े ग़ौर से अजय सिंह को देखते हुए कहा___"तुम्हारी बेटी और तुम्हारा भतीजा विराज एक हो गए हों? क्या ऐसा हो सकता है कि विराज ने तुम्हारी बेटी को अपने साथ मिला लिया हो??"

"प..प.पता नहीं।" अजय सिंह के ऊपर जैसे एकाएक सारा आसमान भरभरा कर गिर पड़ा था। बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालते हुए कहा उसने___"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं चौधरी साहब? जबकि ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता। इसकी वजह ये है कि मेरे तीनो ही बच्चे उसकी माॅ की हरकतों की वजह से उससे और उसकी माॅ बहन से कभी कोई बात करने की तो बात दूर बल्कि उन्हें देखना तक पसंद नहीं करते।"

"ऐसा तुम सोचते हो ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा___"जबकि अक्सर ऐसा हो जाया करता है जिसकी हमें पूरी उम्मीद होती है कि ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता।"

"क्या मतलब???" अजय सिंह चकरा सा गया।
"मतलब साफ है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"तुम ये सोच कर ये नहीं मान रहे हो कि तुम्हारी बेटी विराज को देखना तक पसंद नहीं करती इस लिए वो उससे मिल नहीं सकती जबकि ऐसा हो भी सकता है कि वो उससे मिल ही गई हो। विराज की कारगुजारियों से इतना तो पता चल ही गया है कि वो कितना शातिर दिमाग़ रखता है और कितनी ऊॅची पहुॅच भी रखता है। अतः अगर वो अपने शातिर दिमाग़ के चलते तुम्हारी बेटी को अपनी तरफ कर भी ले तो हैरत की बात नहीं होगी। संभव है कि उसने रितू को ऐसा कोई पाठ पढ़ा दिया हो जिसके चलते तुम्हारी बेटी का ब्रेन वाश हो गया हो और अब वो उसे सही मान रही हो और तुम्हें यानी कि अपने बाप को ग़लत।"

अजय सिंह मंत्री की सूझ बूझ तथा उसकी दूरदर्शिता की मन ही मन दाद दिये बिना न रह सका। सच्चाई भले ही कुछ और थी मगर जितना उसने उहे बताया था उस हिसाब से कड़ियों को जोड़ कर सच्चाई के रूप में अपनी संभावनाएॅ इस तरह बयां करना आसान बात न थी। सहसा उसे ख़याल आया कि जबसे वो यहाॅ आया है तब से मंत्री सिर्फ उसी के संबंध में बातें पूछ रहा है जबकि उसे अब तक यही समझ में नहीं आया था कि मंत्री ने आख़िर उसे बुलाया किस लिए था??

"भगवान जाने चौधरी साहब।" फिर उसने पहलू बदलने की गरज से कहा___"कि सच्चाई है इस संबंध में। ख़ैर छोंड़िये ये सब और ये बताइये कि इस नाचीज़ को किस लिए बुलाया था आपने?"

अजय सिंह द्वारा अचानक ही इस तरह पहलू बदल लेना चौधरी को मन ही मन चौंकाया मगर उसने उसे ज़ाहिर न किया। बल्कि उसके पूछने पर वह मुस्कुराया और सेन्टर टेबल पर सजे फल फूल व मॅहगी शराब की तरफ इशारा किया।

"ये तो कमाल हो गया ठाकुर।" फिर चौधरी ने मुस्कुराते हुए ही कहा___"तुम आज यहाॅ पहली बार आए और हमने बातों के चक्कर में ये भी ख़याल नहीं रखा कि घर आए मेहमान का आतिथ्य भी किया जाता है।"

"मैं कोई मेहमान नहीं हूॅ चौधरी साहब।" अजय सिंह ने भी मुस्कुराते हुए कहा___"आपने मुझे दोस्त कह कर मेरा मान बढ़ा दिया है यही बहुत है मेरे लिए। इस नाते अब तो ये भी अपना ही घर हुआ और अपने ही घर में भला कोई मेहमान कैसा हो सकता है?"

"हाॅ तो सही कहा तुमने।" चौधरी हॅसा और फिर बगल से ही बैठे अशोक, अवधेश व सुनीता की तरफ इशारा करते हुए कहा___"इनसे मिलो ठाकुर, ये सब भी हमारे गहरे दोस्त हैं। बल्कि यूॅ समझो कि ये तीनो हमारे दोस्तों की लिस्ट में सबसे ऊपर हैं और आज से तुम भी शामिल हो गए हो।"

"ये तो मेरा सौभाग्य है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने खुश होते हुए कहा___"जो आपने मुझे अपने दोस्त का दर्ज़ा दिया है। मैं पूरी कोशिश करूॅगा कि इस दोस्ती पर खरा उतर सकूॅ।"
"चलो फिर इसी बात पर एक एक जाम हो जाए।" चौधरी ने मुस्कुराते हुए कहा___"और हमारी दोस्ती को सेलीब्रेट किया जाए।"

"जी बिलकुल।" अजय सिंह हॅसा और उन तीनों की तरफ देख कर उन तीनो से हैलो किया तथा हाॅथ भी मिलाया। चौधरी के कहने पर सुनीता ने सबके लिए जाम बनाया और साक़ी बन कर सबको पिलाया भी। इस बीच चौधरी ने अजय सिंह को बताया कि सुनीता उसके साथ साथ बाॅकी उन दोनो को भी हर तरह से खुश रखती है। अजय सिंह ये जान कर हैरान भी हुआ था। मगर फिर ये सोच कर मुस्कुराया भी कि चौधरी भी उसी की तरह ही औरतबाज है।

लगभग आधा घंटे से ऊपर तक जामों का दौर चलता रहा। सब के सब हल्के नशे के सुरूर में आ चुके थे। उसके बाद बातों का सिलसिला फिर से शुरू हुआ। अजय सिंह सबसे काफी खुल चुका था। बाॅकी सब भी अजय सिंह से खुल चुके थे। सुनीता को अजय सिंह की पर्शनाल्टी पहली नज़र में ही भा गई थी और वो उसके नीचे लेटने के लिए बेक़रार हो उठी थी। मगर अभी उसको भी पता था कि उसकी ये बेक़रारी शान्त नहीं होने वाली है। यानी कुछ समय तक इन्तज़ार करना पड़ेगा उसे।

"मज़ा आ गया चौधरी साहब।" अजय सिंह ने नशे के हल्के सुरूर में मुस्कुराते हुए कहा___"आप सच में बहुत अच्छे हैं। एक पल के लिए भी मुझे ऐसा नहीं लगा जैसे इसके पहले आप मेरे लिए ग़ैर थे। सच कहता हूॅ आपसे मिल कर और आपका दोस्त बन कर बहुत अच्छा लग रहा है। बहुत दिनों बाद ऐसे खुश होने का मौका मिला है मुझे।"

"अभी तो इससे भी ज्यादा मज़ा आएगा ठाकुर।" चौधरी ने भी नशे के हल्के सुरूर में कहा___"हमारी दोस्ती में और हमारे साथ में ऐसा ही होता है। हमें वही इंसान अच्छा लगता है जो हमसे वफ़ा करे। वफ़ादार ब्यक्ति के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।"

"मैं ज़रूर आपका वफ़ादार रहूॅगा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"आप जब भी मुझे याद करेंगे मैं आपके सामने हर काम छोंड़ कर हाज़िर हो जाऊॅगा। मुझे भी वफ़ादार इंसान ही अच्छे लगते हैं जो दोस्त के लिए कुछ भी कर जाए मगर...।"

"मगर क्या ठाकुर।" चौधरी ने सिर उठा कर अजय सिंह की तरफ देखा___"तुम्हारे स्वागत में हमसे कोई कमी हो गई है क्या? अगर ऐसा है तो बेझिझक बोल दो यार। जो बोलोगे वो मिलेगा तुम्हें। ये दिवाकर चौधरी का वचन है।"

"न नहीं नहीं चौधरी साहब।" अजय सिंह ने हड़बड़ाते हुए कहा___"आपने किसी बात की कमी नहीं की है। मेरे कहने का मतलब ये था कि आपने मुझे बताया नहीं कि आपने मुझे किस वजह से यहाॅ बुलाया था? देखिए अब तो हम दोनो दोस्त बन गए हैं न। इस लिए अगर कोई बात है आपके मन में तो बेझिझक कहिए। मैं वादा करता हूॅ कि अगर मेरे लिए आपका कोई आदेश है तो मैं जान देकर भी उसे पूरा करूॅगा।"

अजय सिंह की बात इस पर चौधरी ने उसे बड़े ध्यान से देखा जैसे जाॅच रहा हो कि उसकी बात पर कितना दम है। फिर अपने हाॅथ में लिए शराब के प्याले को मुह से लगा कर शराब का हल्का सा घूॅट लिया उसके बाद अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"आदेश तो कुछ भी नहीं है ठाकुर। बस ये समझो कि आज के समय में जो तुम्हारा दुश्मन है वही हमारा भी दुश्मन है।"

"ये आप क्या कह रहे हैं चौधरी साहब?" अजय सिंह ने ऑखें फैलाते हुए कहा____"मेरा दुश्मन तो मेरा वो हरामज़ादा भतीजा बना हुआ है किन्तु वो आपका दुश्मन कैसे बन गया? बात कुछ समझ में नहीं आई चौधरी साहब।"

"तुमने कुछ समय पहले किसी लड़की के सामूहिक रेप के बारे में तो सुना ही होगा न?" चौधरी ने कहा।
"र रेप के बारे में???" अजय सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे। फिर सहसा जैसे उसे याद आया___"ओह हाॅ हाॅ सुना था। आप उसी रेप स्कैण्डल की बात कर रहे हैं न जिस पर कुछ समय पहले काफी हो हल्ला हुआ था? मगर फिर सब कुछ शान्त हो गया था। उसके बाद कुछ पता ही नहीं चला कि क्या हुआ? मगर आपका उस रेप केस से क्या संबंध?"

"दरअसल वो रेप हमारे बच्चों की करतूत का नतीजा था ठाकुर।" चौधरी ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"तुम्हारे गाॅव के ही पास की एक विधी नाम की लड़की थी जिसके साथ हमारे बच्चों ने मिल कर रेप किया था। वो लड़की हमारे बच्चों के ही काॅलेज में पढ़ती थी। उस रेप केस पर हो हल्ला तो ज़रूर हुआ था किन्तु उस पर कोई शख्त ऐक्शन इस लिए नहीं लिया गया था क्योंकि मामला हमारे बच्चों का था। यहाॅ का पुलिस कानून हमारे खिलाफ कोई क़दम उठा ही नहीं सकता था। ये बात उस लड़की के घरवालों को भी समझ आ गई थी। इसी लिए लड़की के घरवालों ने भी कोई केस नहीं किया था और इसी वजह से मामला शान्त पड़ गया था। मगर....।"

"मगर????" अजय सिंह के चेहरे पर हैरत के भाव थे।
"मगर रेप के तीसरे दिन हमारे बच्चे हमारे ही फार्महाउस से गायब हो गए।" चौधरी कह रहा था___"और अब तक उनका कहीं कुछ पता नहीं चल सका है। उन बच्चों में एक हमारा बेटा है और तीन लड़कों में से एक अशोक का है दूसरा अवधेश का और तीसरा सुनीता का। हमने सब कुछ करके देख लिया मगर आज तक कहीं भी बच्चों का पता नहीं चला। सबसे गज़ब तो तब हो गया जब हमारी बेटी भी गायब हो गई।"

"ये आप क्या कह रहे हैं चौधरी साहब??" अजय सिंह हक्का बक्का नज़र आने लगा था, बोला___"मगर आपके बच्चों को गायब किसने किया हो सकता है? और अगर बच्चे अगर रेप के बाद से ही गायब हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि उन्हें उसी ने गायब किया होगा जिसके साथ उन बच्चों ने अहित किया है। लेकिन गायब करने वाले का आपके पास कोई फोन या किसी तरह की सूचना तो आनी ही चाहिए थी। सीधी सी बात है कि अगर ये सब उसने बदला लेने के उद्देष्य से किया है तो वो देर सवेर ये ज़रूर सूचित करता कि आपके बच्चे उसके कब्जे में हैं।"

"बिलकुल सही कहा तुमने ठाकुर।" चौधरी एकाएक कह उठा__"उसे ज़रूर सूचित करना चाहिए था और उसने ऐसा किया भी है।"
"क्या????" अजय सिंह चौंका___"मेरा मतलब है कि क्या सूचित किया उसने?"

"उसने फोन पर हमें बताया कि हमारे बच्चे उसके कब्जे में ही हैं।" चौधरी ने कहा___"और ये भी बताया कि वो उनके साथ क्या करेगा? शुरू शुरू में तो हमें समझ ही नहीं आया कि ऐसा कौन कर सकता है, क्योंकि हमें यही पता नहीं था कि हमारे बच्चों ने किस लड़की के साथ वो सब किया था? दूसरी बात हम ये सोच रहे थे कि अगर मामला इतना बड़ा था तो पुलिस केस ज़रूर होता। इस लिए ये जानने के लिए हमने यहाॅ के पुलिस कमिश्नर से भी बात की थी मगर उसने बताया कि पुलिस ने कोई केस नहीं बनाया। पुलिस केस भी तभी बनाती जब लड़की के घर वाले एफआईआर कराने थाने में जाते। मगर लड़की के घर वाले तो पुलिस की दहलीज़ पर गए ही नहीं थे। हमने भी यही समझा था कि वो हमसे डर गए होंगे इसी लिए पुलिस केस नहीं किया। मगर फिर उस किडनैपर से और अशोक के द्वारा ही समझ में आया कि ऐसा कौन और क्यों कर सकता है?"

"ओह तो फिर क्या समझ आया आपको?" अजय सिंह ने पूछा।
"रेप पीड़िता के घर वाले तो ऐसा कर नहीं सकते।" चौधरी ने कहा___"क्योंकि उन्हें पता था कि पुलिस केस से कुछ होने वाला नहीं है और ऐसा करने की क्षमता उनमें थी नहीं। मगर अशोक ने अपने तरीके से पता लगाया कि एक शख्स और है ऐसा जो हमारे बच्चों को इस संबंध में किडनैप कर सकता है।"

"ऐसा शख्स भला कौन हो सकता है चौधरी साहब?" अजय सिंह चौंका।
"तुम्हारा भतीजा विराज।" चौधरी ने मानो अजय सिंह के सिर पर बम्ब फोड़ा।
"क्या????" अजय सिंह इस तरह उछला था जैसे औसके पिछवाड़े पर किसी ने चुपके से गर्म तवा रख दिया हो। फिर हैरत से ऑखें फाड़े हुए बोला___"ये आप क्या कह रहे हैं? भला विराज ऐसा क्यों करेगा?"

"इसकी बहुत बड़ी वजह है ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"दरअसल जिस लड़की का रेप किया था हमारे बच्चों ने उस विधी नाम की लड़की से तुम्हारा भतीजा विराज प्रेम करता था। जब उसे अपनी प्रेमिका के साथ हुए उस भयावह रेप का पता चला तो वो आग बबूला हो गया होगा और फिर मुम्बई से यहाॅ आ कर उसने अपनी प्रेमिका के साथ हुए रेप का बदला लेने के लिए ये सब कारनामा अंजाम दिया। हलाॅकि ये एक संभावना है ठाकुर क्योंकि हमारे पास अभी इस बात का कोई सबूत नहीं है कि विराज ही ये सब कर रहा है। संभावना इस लिए है क्योंकि ये काम या तो विधी के घर वाले कर सकते या फिर विराज। दोनो के ही पास ये सब करने की मजबूत वजह थी। ख़ैर जब हमें अशोक की तहकीक़ात से ये पता चला कि विधी किसी विराज नाम के लड़के से प्रेम करती थी तो हमने विराज के बारे में भी जानकारी हाॅसिल की। उसी जानकारी के तहत ये पता चला कि तुम्हारा भी विराज के साथ ऐसा ही कुछ हाल है। इस लिए हमने सोचा तुमसे मिल कर ही इस संबंध में बात की जाए।"

"सच कहूॅ तो ये बात मेरे लिए निहायत ही नई और चौंकाने वाली है चौधरी साहब।" अजय सिंह के मस्तिष्क में धमाके से हो रहे थे। उसके दिमाग़ की बत्ती भी एकाएक जल उठी थी। अब उसे समझ आया था कि विराज मुम्बई से यहाॅ किस लिए आया था? इसके पहले वो सोच सोच कर परेशान था कि विराज यहाॅ किस वजह से आया रहा होगा। ख़ैर उसने इन सब बातों को अपने दिमाग़ से झटका और फिर बोला___"मुझे तो पता क्या बल्कि इस बात का अंदाज़ा ही नहीं था कि मेरे भतीजे का किसी लड़की से प्रेम संबंध भी हो सकता है और वो उसके चक्कर में आपके साथ इतना कुछ कर सकता है।"

"दूसरी बात ये कि हम तुम्हारी बेटी के विराज से मिल जाने की बात इस लिए कह रहे हैं क्योंकि वो एक पुलिस ऑफिसर थी।" चौधरी कह रहा था___"उसके थाना क्षेत्र के अंतर्गत रेप की वो वारदात हुई थी। इस लि ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसे उस वारदात का पता ही न चला हो। बल्कि ज़रूर चला होगा और जब उसने विधी को उस हालत में देखा होगा तो खुद ही कानूनन कोई ऐक्शन लेने का सोचा होगा। मगर ऐक्शन वो बिना आला ऑफिसर की अनुमति से कैसे ले सकती थी अथवा बिना पीड़िता के घर वालों द्वारा दर्ज़ करवाई गई एफआईआर के कैसे लेसकती थी? कमिश्नर ने उसे इस केस को बनाने से शख्त मना कर दिया होगा। ख़ैर, क्योंकि वो भी पुलिस वाली के साथ साथ एक लड़की थी इस लिए उसे उस रेप पीड़िता विधी से हमदर्दी हुई होगी। जिसके तहत वो उसी हमदर्दी के तहत विधी से मिलने भी गई होगी। उधर विधी के साथ हुई उस घटना की जानकारी किसी तरह विराज को भी हुई और वो फौरन ही मुम्बई से अपनी प्रेमिका के पास आ गया होगा। अतः संभव है कि इसी दौरान विराज की मुलाक़ात तुम्हारी बेटी से हुई हो और उसे भी ये पता चल गया हो कि विधी और विराज दरअसल प्रेमी कॅपल थे। ऐसी मार्मिक घटना के बीच किसी के अंदर मौजूद नफ़रत अगर प्यार में परिवर्तित हो जाए तो कोई हैरत की बात नहीं। ठाकुर, बस इसी वजह से हम कह रहे हैं कि तुम्हारी बेटी इन हालातों में विराज से मिल गई होगी। बाॅकी सच्चाई क्या है ये तो ईश्वर ही बेहतर तरीके से जानता है।"

अजय सिंह चौधरी की संभावना से भरी बातों को सुन कर बुरी तरह चकित था। उसे लगा कहीं यही सब सच तो नहीं? चौधरी की बातों में उसे सच्चाई की बू आ रही थी। हलाॅकि उसे तो पता ही था कि उसकी बेटी विराज का साथ दे रही है आजकल। उसने ये बात चौधरी से बताई नहीं थी, इसकी वजह ये थी कि फिर उसे और भी सारी बातें बतानी पड़ती जिनका हक़ीक़त से संबंध था। मगर अजय सिंह हक़ीक़त बता नहीं सकता था। उसे लगता था कि हक़ीक़त बताने से उसका कैरेक्टर चौधरी के सामने नंगा हो कर रह जाएगा।

"आपकी बातें और आपकी संभावनाएॅ सच भी हो सकती हैं चौधरी साहब।" फिर अजय सिंह ने कहा___"मगर क्योंकि महज संभावनाओं के आधार पर ही तो नहीं चला जा सकता न। इस लिए हमें साथ मिल कर सारी बातों का पता लगाना होगा।"

"हम भी यही कहना चाहते हैं तुमसे।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"मगर हमारे सामने समस्या ये है कि इस मामले में हम कोई भी क़दम खुल कर नहीं उठा सकते। क्योंकि तुम्हारे भतीजे ने साफ शब्दों में धमकी दी है कि अगर हमने कुछ उल्टा सीधा करने की कोशिश की तो वो हमें ही नहीं बल्कि इन तीनों को भी बीच चौराहे पर नंगा दौड़ा देगा।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" अजय सिंह चौधरी की ये बात सुन कर बुरी तरह हैरान रह गया था, बोला__"भला वो ऐसा कैसे कर सकता है?"
"दरअसल।" चौधरी ने ज़रा झिझकते हुए कहा___"उसके पास हम सबके खिलाफ़ ऐसे सबूत हैं जो अगर पब्लिक के सामने आ जाएॅ तो हम चारों का बेड़ा गर्क हो जाएगा।"

चौधरी की बात सुन कर अजय सिंह चौधरी को इस तरह देखने लगा था जैसे अचानक ही उसके सिर पर गधे का सिर नज़र आने लगा हो। अजय सिंह ये सोच कर भी हक्का बक्का रह गया था कि विराज के पास उसके खिलाफ़ तो उसका बेड़ा गर्क कर देने वाला सबूत था ही और अब चौधरी के खिलाफ़ भी ऐसा सबूत है उसके पास। अजय सिंह को लगा कि उसे चक्कर आ जाएगा ये जान कर मगर फिर उसने खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। उसे ये भी समझ आ गया कि जिस उम्मीद से और खुशी से वह चौधरी के पास आया था वो चौधरी तो खुद ही विराज के सामने भीगी बिल्ली बना बैठा है। ये सोचते ही अजय सिंह का सारी उम्मीद और सारी खुशी एक ही पल में नेस्तनाबूत हो गई।

"ये तो बहुत ही गजबनाक बात कह रहे हैं आप।" फिर उसने खुद को सम्हालते हुए कहा___"बड़े आश्चर्य की बात है चौधरी साहब कि आप जैसा इंसान सब कुछ करने की क्षमता रखते हुए भी कुछ नहीं कर सकता है।"

"ये सच है ठाकुर।" चौधरी ने गंभीर भाव से कहा___"जब तक उसके पास हमारे खिलाफ़ वो सबूत हैं तब तक हम कोई ठोस क़दम उठाने का सोच भी नहीं सकते हैं। दूसरी बात उसके कब्जे में हमारे बच्चे भी हैं जिनके साथ वो कुछ भी उल्टा सीधा कर सकता है। ऐसे हालात में हम उसके खिलाफ भला कोई कठोर क़दम कैसे उठा सकते हैं? इस लिए हमने सोचा कि हमारा जो दुश्मन है वही तुम्हारा भी है तो तुम ज़रूर इस मामले में कोई ठोस कार्यवाही कर सकते हो। यकीन मानो ठाकुर, अगर तुम उस नामुराद का पता करके तथा उसके कब्जे से हमारे बच्चों के साथ साथ उस सबूत को भी लाकर हमारे हवाले कर दो तो हम जीवन भर तुम्हारे एहसानमंद रहेंगे। तुम जिस चीज़ की हसरत करोगे वो चीज़ हम लाकर तुम्हें देंगे।"

मंत्री की ये बात सुन कर अजय सिंह चकित रह गया था। उसके मुख से कोई लफ्ज़ न निकल सका था। चौधरी उससे मदद की उम्मीद किये बैठा था जबकि उसे पता ही नहीं था कि इस मामले में तो वो खुद भी पंगु हुआ बैठा है। कितनी अजीब बात थी दोनो एक दूसरे से मदद की उम्मीद कर रहे थे जबकि दोनो ही एक दूसरे की कोई मदद नहीं कर सकते थे। अजय सिंह को एकाएक ही उसका भतीजा किसी भयावह काल की तरह लगने लगा था। उसके समूचे जिस्म में मौत की सी झुरझुरी दौड़ गई थी।

"क्या सोचने लगे ठाकुर।" उसे चुप देख कर चौधरी पुनः बोल पड़ा___"तुमने हमारी बात का कोई जवाब नहीं दिया। जबकि हम तुमसे इस मामले में मदद की बात कर रहे हैं।"
"मैं तो ये सोचने लगा था चौधरी साहब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"कि एक पिद्दी से लड़के ने प्रदेश की इतनी बड़ी हस्ती का जीना हराम कर दिया है। अभी तक तो मैं यही सोच रहा था कि उसने तो सिर्फ मेरा ही जीना हराम किया हुआ था मगर हैरत की बात है कि उसने अपने निशाने पर आपको भी लिया हुआ है।"

"सब वक्त और हालात की बातें हैं ठाकुर।" दिवाकर चौधरी ने कहा___"उसके पास हमारे खिलाफ़ सबूत भी हैं और हमारे बच्चे भी हैं जिनके तहत उसका पलड़ा बहुत भारी है। अगर कम से कम हमारे बच्चे उसके पास नहीं होते तो हम उसे बताते कि हमारे साथ ऐसी ज़ुर्रत करने की क्या सज़ा मिल सकती थी उसे? ख़ैर छोंड़ो, तुम बताओ कि क्या तुम इस मामले में हमारी कोई मदद कर सकते हो या नहीं?"

"मैं पूरी कोशिश करूॅगा चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा___"कि मैं इस मामले में आपके लिए कुछ खास कर सकूॅ और जैसा कि आपको मैं बता ही चुका हूॅ कि वो नामुराद मुझे भी अपना दुश्मन समझता है और मुझसे बदला ले रहा है तो उस हिसाब से ये भी सच है कि मैं भी यही चाहता हूॅ कि जल्द से जल्द वो मेरी पकड़ में आ जाए। एक बार पता चल जाए कि वो कमीना किस कोने में छुपा बैठा है उसके बाद तो मैं उसका खात्मा बहुत ही खूबसूरत ढंग से करूॅगा।"

"ठीक है ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"हम भी यही चाहते हैं कि उसके ठिकाने का पता किसी तरह से चल जाए। उसके बाद हमारे लिए कोई क़दम उठाना भी आसान हो जाएगा।"

ऐसी ही कुछ देर और कुछ बातें होती रहीं। शाम घिर चुकी थी और अब रात होने वाली थी। इस लिए अजय सिंह चौधरी से इजाज़त लेकर वापस हल्दीपुर के लिए निकल चुका था। सारे रास्ते वह चौधरी के बारे में सोचता रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका भतीजा इतना बड़ा सूरमा हो सकता है कि वो प्रदेश के मंत्री तक को अपनी मुट्ठी में कैद कर ले। उसने मंत्री से कह तो दिया था कि वो इस मामले में उसकी मदद करेगा मगर ये तो वही जानता था कि वो उसकी कितनी मदद कर सकता था? ख़ैर थका हारा व परेशान हालत में अजय सिंह अपनी हवेली पहुॅच गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो खुद अपने तथा चौधरी के लिए अब क्या करे?
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है,,,,,,,

आप सबकी प्रतिक्रिया तथा रिव्यू का इन्तज़ार रहेगा।

"पुलिस वाली है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा__"खुद कमाती है। इस लिए कहीं न कहीं अपने रहने के लिए कोई किराये से कमरा ले लिया होगा।"
"ये तो तुम संभावना ब्यक्त कर रहे हो ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जबकि तुम्हें खुद पता लगाना चाहिए था कि अगर वो लौटकर हवेली नहीं आती है तो रहती कहाॅ है? कैसे बाप हो तुम ठाकुर?"

अजय सिंह कुछ बोल न सका। उसे एहसास था कि चौधरी सच कह रहा था कि उसे खुद अपनी बेटी के बारे में पता करना चाहिए था। भले ही वो पुलिस वाली थी मगर ये भी सच था कि वो एक लड़की भी थी। वो भले ही अपनी सुरक्षा बखूबी कर ले मगर वो तो उसका बाप था न? उसे तो अपनी बेटी की चिन्ता होनी चाहिए थी। अजय सिंह सोचो में गुम तो था मगर उसके ज़हन में ये भी था कि रितू के साथ उसकी छोटी बहन नैना भी है। शायद यही वजह थी कि उसने अब तक पता करने की कोशिश नहीं की थी कि वो दोनों कहाॅ रहती हैं? अकेले रितू बस होती तो उसे चिंता यकीनन होती मगर उसके साथ में नैना जैसी पढ़ी लिखी व समझदार उसकी बहन भी थी। इस लिए वो बेफिक्र था अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए।

Aapke update ka hi chhota sa paricched hai ye...
Sochane wali baat hai ki...
Jo baap apni hi beti par buri najar rakhata hai usse rondane ka sochata hai yaha tak ki usse jaan se bhi marne se picche na hatne wala uske liye phikarmand ho raha hai...

Ye chhodo appki lekhan-shaili to kaphi acchi hai...
Kahi pe koi chiz bhul gaye to wo dusre update mai dikhayi deti hai...
But ek baat aap kisi chiz ka discription bahot deto ho...
 
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Shubham bhai aapke reply ka intjaar hai_____
 
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"पुलिस वाली है चौधरी साहब।" अजय सिंह ने कहा__"खुद कमाती है। इस लिए कहीं न कहीं अपने रहने के लिए कोई किराये से कमरा ले लिया होगा।"
"ये तो तुम संभावना ब्यक्त कर रहे हो ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जबकि तुम्हें खुद पता लगाना चाहिए था कि अगर वो लौटकर हवेली नहीं आती है तो रहती कहाॅ है? कैसे बाप हो तुम ठाकुर?"

अजय सिंह कुछ बोल न सका। उसे एहसास था कि चौधरी सच कह रहा था कि उसे खुद अपनी बेटी के बारे में पता करना चाहिए था। भले ही वो पुलिस वाली थी मगर ये भी सच था कि वो एक लड़की भी थी। वो भले ही अपनी सुरक्षा बखूबी कर ले मगर वो तो उसका बाप था न? उसे तो अपनी बेटी की चिन्ता होनी चाहिए थी। अजय सिंह सोचो में गुम तो था मगर उसके ज़हन में ये भी था कि रितू के साथ उसकी छोटी बहन नैना भी है। शायद यही वजह थी कि उसने अब तक पता करने की कोशिश नहीं की थी कि वो दोनों कहाॅ रहती हैं? अकेले रितू बस होती तो उसे चिंता यकीनन होती मगर उसके साथ में नैना जैसी पढ़ी लिखी व समझदार उसकी बहन भी थी। इस लिए वो बेफिक्र था अपनी बेटी की सुरक्षा के लिए।

Aapke update ka hi chhota sa paricched hai ye...
Sochane wali baat hai ki...
Jo baap apni hi beti par buri najar rakhata hai usse rondane ka sochata hai yaha tak ki usse jaan se bhi marne se picche na hatne wala uske liye phikarmand ho raha hai...

Ye chhodo appki lekhan-shaili to kaphi acchi hai...
Kahi pe koi chiz bhul gaye to wo dusre update mai dikhayi deti hai...
But ek baat aap kisi chiz ka discription bahot deto ho...
Sahi kaha bro ye sawal kai logo ne Kiya hai har chij Ko bar bar repeat karna
 

firefox420

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dear shubham ji,
aapne gajab hi kar diya is kahani mein... i mean mere paas itne acche shabd hi nahi hai jo aapke dwara likhi gayi kahani ke saath nyay kar sake.

maine 'ek naya sansaar' shuruaat se ant tak padhi hai...ek ek update ka besabri se intezaar rehta tha... aur kabhi jab late hota tha to dil bhi tut jata tha...but phir ye baat bhi mehsus hoti thi ke nahi yaar itni gehrai se ek-ek baat ko likhna koi choti baat nahi hai.........isme bahot samay lagta hai....aur dimag bhi bahot lagana padta hai.....likhi likhayi cheez ko padh lena aur us par comment kar dena bahut aasan hota hai....but ek kore kagaz par ek patkatha taiyaar karna.... kahani to bahot writers likhte hai...but kuch chuninda kahani hi us mukam par pahuch pati hai jo pathako ka raat ko sona bhi dushwaar kar de.....

ek acche lekhak ki yahi pehchan hoti hai ke wo shabdo ke prayog se kahani nahi balki ek naya sansaar bana deta hai...... iske ek - ek kirdaar / paatr se itna lagav sa ho gaya jaise ki ye koi kore kagaz par likhe kuch shabd na hokar balke jite jagte insaan ho. main is kahani ko apni pratikirya pradan kar aapki mehnat ki hosla afzayi karna chahta tha.....koshish bhi ki par meri id mein kuch samasya ke wazah se meri comments post nahi ho pa rahi thi....

hum bharat ke logo mein ke bahut badi kami hai kuch kami ho to 100 log khade ho kar uski kamiya ginna shuru kar dete hai, par jab koi accha kaam ho to chup chap ho kar mook darshak ban jaate hai aur jab tak koi na toke to jaise ki sabne maun dharan kar rakha ho, jaise ke sab bade rishi mahapurush ho aur apni ahmiyat darshate hai....ye cheez maine sirf aapki kahani ki hi nahi balke baaki lekhak bhi is ke liye pathako se anurodh karte rehte hai... ki bhai kahani ke prati apni bhi kuch jimmedari nibhao....

muzhe iss baat ki bahot hi kushi hai ki aapne apna waada nibhaya ......aapne apne pathako ka pura samman rakhte hue is kahani ka ye bhaag apne waade ke anusaar nirdharit samay seema mein pura kar diya..... aur sirf pura hi nahi kiya .....my god ...aag laga di ..... jab iss bhaag ki smapti hui to muzhe dukh bhi bahut hua -------par agle bhaag ki prati utsukta bhi itni bhadi hui hai ke aage pata nahi viraaj ki jindagi mein kaya hone wala hai..... ek baar to meri saanse hi ruk gayi thi jab ritu ko goli lagi.... muzhe padhte padhte itna gussa aya ke agar ritu ko kuch hua to main ye kahani yahi padhni chod dunga..... par phir uss update ko padhne ke kuch samay ke paschayat muzhe ehsaas hua ke yaar jab lekhak ne kahani is tarah sabdo ke jaal mein piroyi hai to kuch soch samajh kar hi kahani ko mod dene ke liye hi ye raasta akhtiyaar kiya hoga..... but that day i realised the potential of your writing, the kind of potential and power that with some ordinary words you can impact my breathing and my heart beats. and this is what truly matters to the writer, and this is what every writer wishes to accomplish by his writing that he can touch the emotion in the heart of it's readers.

i loved every bit of your masterpiece story....muzhe kabhi kabhi aapke banaye kirdaar so itna apnapan sa lagta hai ke kash ye sab asli ho main bhi in logo ki jindagi ka hissa ban jau. kabhi kabhi to khali time mein jab muzhe aapki kahani par dhyan chala jata hai to main apne aap ko kahani ke kirdaar / paatro se jodne ki koshish karta hu. har ek paatr ki itni aham bhumika hai ke bina ek ke ye addhuri si jindagi lagti hai...

love you bro .... love your writing.... and i wish ke aap aise hi hamare liye apna kimti samay nikal kar apni kahani, apne adbhut hunar ke dwara humse judey rahe aur hamara dil behlate rahe.

and i also want to mention this thing particularly about your story or your writing style when ever you show the conversation between characters and mean while one of them receives a phone call you write something like .. " udhar se kuch kaha gaya". I don't know why but when ever i read this bit i always got goosebumps or i got some kind of funny feeling.....iss baat ko padhne ke baad muzhe har baar hasi si aa jati hai...

good luck for your future projects......and hope to see you soon....

particularly missing ritu and "ha nahi to".


to bhai jitna jaldi se jaldi ho sake dobara se baghel pariwaar se mukhatib hone ka avsar pradan kare...aur main aasha karta hu ke aapke ke pariwaar ke sab sadasya kushal mangal ho jaldi se swasth ho jaye. :)
 

VIKRANT

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dear shubham ji,
aapne gajab hi kar diya is kahani mein... i mean mere paas itne acche shabd hi nahi hai jo aapke dwara likhi gayi kahani ke saath nyay kar sake.

maine 'ek naya sansaar' shuruaat se ant tak padhi hai...ek ek update ka besabri se intezaar rehta tha... aur kabhi jab late hota tha to dil bhi tut jata tha...but phir ye baat bhi mehsus hoti thi ke nahi yaar itni gehrai se ek-ek baat ko likhna koi choti baat nahi hai.........isme bahot samay lagta hai....aur dimag bhi bahot lagana padta hai.....likhi likhayi cheez ko padh lena aur us par comment kar dena bahut aasan hota hai....but ek kore kagaz par ek patkatha taiyaar karna.... kahani to bahot writers likhte hai...but kuch chuninda kahani hi us mukam par pahuch pati hai jo pathako ka raat ko sona bhi dushwaar kar de.....

ek acche lekhak ki yahi pehchan hoti hai ke wo shabdo ke prayog se kahani nahi balki ek naya sansaar bana deta hai...... iske ek - ek kirdaar / paatr se itna lagav sa ho gaya jaise ki ye koi kore kagaz par likhe kuch shabd na hokar balke jite jagte insaan ho. main is kahani ko apni pratikirya pradan kar aapki mehnat ki hosla afzayi karna chahta tha.....koshish bhi ki par meri id mein kuch samasya ke wazah se meri comments post nahi ho pa rahi thi....

hum bharat ke logo mein ke bahut badi kami hai kuch kami ho to 100 log khade ho kar uski kamiya ginna shuru kar dete hai, par jab koi accha kaam ho to chup chap ho kar mook darshak ban jaate hai aur jab tak koi na toke to jaise ki sabne maun dharan kar rakha ho, jaise ke sab bade rishi mahapurush ho aur apni ahmiyat darshate hai....ye cheez maine sirf aapki kahani ki hi nahi balke baaki lekhak bhi is ke liye pathako se anurodh karte rehte hai... ki bhai kahani ke prati apni bhi kuch jimmedari nibhao....

muzhe iss baat ki bahot hi kushi hai ki aapne apna waada nibhaya ......aapne apne pathako ka pura samman rakhte hue is kahani ka ye bhaag apne waade ke anusaar nirdharit samay seema mein pura kar diya..... aur sirf pura hi nahi kiya .....my god ...aag laga di ..... jab iss bhaag ki smapti hui to muzhe dukh bhi bahut hua -------par agle bhaag ki prati utsukta bhi itni bhadi hui hai ke aage pata nahi viraaj ki jindagi mein kaya hone wala hai..... ek baar to meri saanse hi ruk gayi thi jab ritu ko goli lagi.... muzhe padhte padhte itna gussa aya ke agar ritu ko kuch hua to main ye kahani yahi padhni chod dunga..... par phir uss update ko padhne ke kuch samay ke paschayat muzhe ehsaas hua ke yaar jab lekhak ne kahani is tarah sabdo ke jaal mein piroyi hai to kuch soch samajh kar hi kahani ko mod dene ke liye hi ye raasta akhtiyaar kiya hoga..... but that day i realised the potential of your writing, the kind of potential and power that with some ordinary words you can impact my breathing and my heart beats. and this is what truly matters to the writer, and this is what every writer wishes to accomplish by his writing that he can touch the emotion in the heart of it's readers.

i loved every bit of your masterpiece story....muzhe kabhi kabhi aapke banaye kirdaar so itna apnapan sa lagta hai ke kash ye sab asli ho main bhi in logo ki jindagi ka hissa ban jau. kabhi kabhi to khali time mein jab muzhe aapki kahani par dhyan chala jata hai to main apne aap ko kahani ke kirdaar / paatro se jodne ki koshish karta hu. har ek paatr ki itni aham bhumika hai ke bina ek ke ye addhuri si jindagi lagti hai...

love you bro .... love your writing.... and i wish ke aap aise hi hamare liye apna kimti samay nikal kar apni kahani, apne adbhut hunar ke dwara humse judey rahe aur hamara dil behlate rahe.

and i also want to mention this thing particularly about your story or your writing style when ever you show the conversation between characters and mean while one of them receives a phone call you write something like .. " udhar se kuch kaha gaya". I don't know why but when ever i read this bit i always got goosebumps or i got some kind of funny feeling.....iss baat ko padhne ke baad muzhe har baar hasi si aa jati hai...

good luck for your future projects......and hope to see you soon....

particularly missing ritu and "ha nahi to".


to bhai jitna jaldi se jaldi ho sake dobara se baghel pariwaar se mukhatib hone ka avsar pradan kare...aur main aasha karta hu ke aapke ke pariwaar ke sab sadasya kushal mangal ho jaldi se swasth ho jaye. :)
Your are absolutely right bro. I agree with you. I think Is story ka ye pahla aisa review hai jisne ek writer ke sath sahi tarike se nyaay kiya hai. :coffee1:

Aapne sach kaha bro ki jab achha kaam hota hai to readers chuppi saadh lete hain aur agar kahi koi chhoti si galti ho jaye to bakheda kar dete hain. Ye baat sahi to nahi hai lekin log kar hi dete hain.:coffee1:

Aapka review mind blowing hai bro. Personaly mujhe bahut achha laga. Anyways is story ke next part ka intjaar hai. I hope ki is part se bhi achha next part hoga.:coffee1:

:celebconf::celebconf::celebconf::celebconf::celebconf:
 
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