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शाम ढलने से पहले रघुनाथ और शिवांश घर लौट आते ही । शोभा बेहद खुश थी । क्योंकि की उसे पता थी कि उसके पिता अक्सर महिने में दो या तीन बार बिग बाजार जाते ही जिसमे उसके कोई फरमाइश रहती है पिता से । जैसे कि कोई सिंगर का सामान नई कपड़े वगैरा । आज भी उसके लिए राघुनाथ ने फ्रॉक ले के आया था जो आज कल wrap dress ke नाम से प्रसिद्ध है । और शिवांश के ही पसंद के थे जो को सोभा ने पहले ही कह दी शिवांश को उसके पसंद के लाने को क्योंकि रघुनाथ के पसंद बेकार लगती है उसे ।
रघुनाथ ने अपनी पत्नी के लिऐ बनारसी साड़ी और अपनी मां के लिए कांजीवरम साड़ी ले थे शिवांश के पसंद के । अपनी पत्नी के लिए लाया हया साड़ी अपने पास रख के मां के लिऐ हुए सारी शिवांश को देने को बोला ।
शिवांश सारी पिसे कमर में छुपा के अपनी दादी के कमरे में गया दबे पाव और प्यार से शुर लगाया "दादी ई ई । ओ मेरी प्यारी दादी "
नागेश्वरी ऐसे ही दोपहर का खाना खा के बस बिस्तर पे करवट ली थी लेकिन जैसे ही अपने पोते का मक्खन मार आवाज सुनी वो गहरी नींद की नाटक करने लगी । शिवांश उसके पेड़ो पास बैठ के बोला । " अभी भी गुस्सा हो क्या मेरी जलपरी " और खीक्क खिक्क हसने लगा
नागेश्वरी और जल रही थी लेकिन उसने कोई हरकत नहीं की । शिवांश अपनी दादी की पाव दबाने लगा और बोला । " अरे उठ जाओ आपके लिए कुछ लाया हूं ।"
नागेश्वरी फिर भी नही उठी । तो शिवांश शैतानी मूड में आया तो अपनी दादी की नाक के पास उंलगी रख के बोला " अरे कही सच में निकल तो नही लिए । अरे इससे ज्यादा खुशखबरी और क्या होगी पूरे परिवार के लिऐ "
नागेश्वरी झट पट उठ गई और अपने पोते को बिस्तर पे मुंह के बल झुका के पीठ पे मुक्का बरसाने लगा " नालायक । सैतान जब तक में मार ना जाऊं तूझे चैन नही मिलेगा ना बाधमास "
शिवांश हंसने लगा ।
"हां हां हां बस करो आपके पहले कहीं में ना निकल जाऊं "
नागेश्वरी तब मुक्के बरसना छोर के अपनी खुली बालो को सबरने लगी " तुझे कोई नही सुधार सकता । ला दे मेरा गिफात "
शिवांश हांस के सारी का पेकेट अपनी दादी को देते हुए बोला "कैसा ही । पसन्द आई"
नागेश्वरी सारी खोल के देखने लगी और मुस्कुरा के बोली " वाह सारी तो बेहद अच्छी ले आया लेकीन हरा रंग में क्यू ले आया लाल रांग का नही मिला क्या "
शिवांश अपनी दादी की गाल चूम के बोला " मेरी प्यारी दादी हरा रंग आप पे बेहद झसेंगी । वैसे भी आपके पास लाल रंग की सारी बेहद ही । कभी तो अपने पोते को पसन्द से खुश हो जाओ "
"अरे नही में तो ऐसे ही बोल रही थी । मुझे तुम्हारी पसन्द बेहद पसंद ही जो भी तू ले " और पोते के शर सेहला दिए
" चलो जल्दी से पहन की दिखाओ । आपकी फोटो खींच के अपने कमरे के दीवार में बड़ी सी फ्रेम के आपकी फ़ोटो लगाऊंगा "
"अरे हट मुउया । मेरी फोटो तू अपने कमरे में क्यू लगाएगा " नागेश्वरी शर्मा गई थी ।
" मुझे नींद बेहद लगती है शायद आपकी डरवाना चेहरा देख के मेरी नींद थोड़ा कम हो जाए "
नागेश्वरी चिढ़ गई और पोते को मारने के लिए हाथ आगे की ही थी शिवांश फुर्ती दिखा के हास के भाग निकला । नागेश्वरी अपने पोते के शरारत से मुस्कुरा के खुद को बोली " बेहद सैतन ही "
रात को खाना खा के सब अपने अपने कमरे में चले गए । लेकीन रघुनाथ का मन आज कुछ ज्यादा ही मचल रहा था । वो अपनी पत्नी चमेली के साथ बिस्तर में गुफ्तगू कर रहा था । और चमेली के मोनचोल कमर पर हाथ फिरा रहा था ।
चमेली अपने पति को मुस्कुराती हुई माना कर रही थी ।" हटो जी । मुझे नींद आ रही ही है आज बेहद काम किया ही मैने "
"इसलिए तो थकान दूर कर रहा हूं पगली । श्वर्ण बूटी से शरण ले के आया हूं देखना आज तुझे जन्नत की सैर करवा दूंगा ।" रघुनाथ दिल में शरारत लिए अपने पत्नी को बेहला रहा था ।
"नही जी आज वैसे ही बेहद थकान ही है। स्वर्ण बूटी की ताकत आजमा मुझे और बेहाल नही होना ही । वैसे भी सारी के साथ आपने ब्लाउज नही लाए । इसलिए सजा ही आपकी कुछ नही मिलेगा आज " चमेली नखरा दिखाने लगी
" अरे सारी के साथ तो ब्लाउज का कपड़ा फ्री में मिलता है ना "
"इस सारी में नही थी कोई ब्लाउज का कपड़ा । आपको देखना चाहिए था ना "
"लेकीन मुझे पता नही था । सारी तो आपके लाड साहब ने देख के ली ही मैंने तो बस बिल दिया ही । मेरी गलती थोरी ही गलती अपने लाडले की ना । तो मुझे क्यू सजा दे रही हो "
" मुझे कुछ नही पता । किसने देख के लिया हे मुझे ब्लाउज चाहिए तो चाहिए तब जा बे कुछ मिलेगा वरना चुप चाप सो जाओ "
लेकिन रघुनाथ आज कुछ ज्यादा ही उत्साहित था । वो कहा मानने वाला था दूध के साथ स्वर्ण बूटी का सुरन मिला के केसर के साथ गटक गया और जबदस्ती अपनी पत्नी के ऊपर चढ़ गया । चमेली ने पहले तो मना किया पहले लेकीन अपने पति प्यार को कैसे माना करती उसको भी रघुनाथ ने अपने बसना से गर्म कर दिया था । देर रात तक दोनो ने एक दूसरे को जिस्म से खेल के रगड़ के अपनी अपनी प्यास बुझा के गहरी नींद सो गए ।
हमेसा की तरह शिवांश सुबह ५ बजे उठ के दातुन मुंह में ले के खेत की तरफ गया और ताजगी के केलिए अकरण दूर करते हुए थोरी कसरत कर के नदी किनारे जड़ के आड़ में बैठ के पेट खाली करने लगा । और जब पेट सफा हो गया तो नदी में अपनी तशरीफ धोने लगा । लेकिन उसे किसी कि हसने की आवाज सुनाई दिया ।
वो जाट से पैंट ऊपर कर के इधर उधर देखने लगा । तो पाया की कूची दूर एक औरत गले तक डुबकी लगा के नहा रही थी और शिवांश को देख के हास रही थी । शिवांश शर्म के मारे अपनी पाटलुंग पकड़ के घोड़े की तरह दौर लगाया घर की तरफ ।
शिवांश शर्म के मारे परेशान था अब कैसे वो उस औरत का सामना करेगा । क्यों की वो उस औरत को अच्छे से पहचानता था । गांव की एक शादी शुदा औरत थी जिसका नाम सरला थी । शिवांश यही सोच रहा था की इतनी सुबह कोई नदी में नहाने जाता ही क्या । लेकीन आज के दिन उसको सरमिंडा होना ही लिखा था भाग्य में तो कोई क्या कर सकता ही भला ।
शिवांश सुबह कि घटना को इतनी गंभीरता से लिया की उसने सोचा की सरला अब तक साइड कोई औरतों को बता चुकी होंगी और अब वो दिन में बाहर नही निकलेगा ।
लेकिन जब दोपहर को उसका पिता उसे अंडे लेने को कहा दूकान से तो शिवांश ने सीधा माना कर दिया । रघुनाथ ने वजह पूछा तो शिवांश कोई जवाब नही दे रहा था ।
रघुनाथ ने फिर जोर दे पूछा तो शिवांश ने शर्माते हुए सुबह का घटना बता दिया । और बोला कि वो अब दिन में कभी बाहर नही निकेलगा । रघुनाथ अपने बेटे के भालेपन को देख के पेट पकड़ के हसने लगे । रघुनाथ को इतना हस्ते देख कर चमेली ने पूछा तो रघुनाथ ने उसे भी बता दिया तो चमेली भी हसने लगी । और फिर चमेली ने अपनी सांस को बता दी फिर दादी ने पोती को बता दी ऐसा करते हुए सब मिल के शिवांश के ऊपर हसने लगा ।
शिवांश शर्मिंदा हो के रोंदू सकल बना के कोने में बैठा रहा । इसे देख के चमेली ने बोली " अरे इसमें क्या है । गलती से देख लिया तो देख लिया । लड़का हो के शर्माता है । अरे इतना क्यू दिल पे ले रहा ही "
नागेश्वरी बोली ।" मुझे चटाते रेहतो ना हमेसा । इसलिए तुझे ऊपरवाले ने ऐसा सजा दिया ही । अब छुपा रह नाक घुसा के कही हा हा हां "