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Family Introduction
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Thank you sooo much Ek anjaan humsafar broShaandaar update tha dear bro, thank you. Ab se kya kya hota hai aur honewaala hai, dekhne Ko milenge aanewaale updates dwara jinks intezaar rahega Besabri se hamein, Bhai.
Same to you
Ye kya hai bhai
भाई क्या तुमने इस कहानी को दुबारा से लिखना शुरू किया है, क्योंकि जहां तक मुझे याद है इस कहानी को लेखक अधूरा छोड़ गया थाUPDATE 1
तेज हवाऐं चल रही थी। शायद तूफ़ान था क्यूंकि ऐसा लग रहा था मानो अभी इन हवाओं के झोके बड़े-बड़े पेंड़ों को उख़ाड़ फेकेगा। बरसात भी इतनी तेजी से हो रही थी की मानो पूरा संसार ना डूबा दे। बादल की गरज ऐसी थी की उसे सुनकर लोग अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठे थे।
जहां एक तरफ इस तूफानी और डरावनी रात में लोग अपने घरों में बैठे थे। वहीं दूसरी तरफ एक लड़का, इस तूफान से लड़ते हुए आगे भागते हुए चले जा रहा था
वो लड़का इस गति से आगे बढ़ रहा था, मानो उसे इस तूफान से कोई डर ही नही। तेज़ चल रही हवाऐं उसे रोकने की बेइंतहा कोशिश करती। वो लड़का बार-बार ज़मीन पर गीरता लेकिन फीर खड़े हो कर तूफान से लड़ते हुए आगे की तरफ बढ़ चलता।
ऐसे ही तूफान से लड़ कर वो एक बड़े बरगद के पेंड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया। वो पूरी तरह से भीग चूका था। तेज तूफान की वज़ह से वो ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था। शायद बहुत थक गया था। वो एक दफ़ा पीछे मुड़ कर गाँव की तरफ देखा। उसकी आंखे नम हो गयी, शायद आंशू भी छलके होंगे मगर बारीश की बूंदे उसके आशूं के बूंदो में मील रहे थे। वो लड़का कुछ देर तक काली अंधेरी रात में गाँव की तरफ देखता रहा, उसे दूर एक कमरे में हल्का उज़ाल दीख रहा था। उसे ही देखते हुए वो बोला...
"मैं जा रहा हूं माँ!!"
और ये बोलकर वो लड़का अपने हांथ से आंशू पोछते हुए वापस पलटते हुए गाँव के आखिरी छोर के सड़क पर अपने कदम बढ़ा दीये....
तूफान शांत होने लगी थी। बरसात भी अब रीमझीम सी हो गयी थी, पर वो लड़का अभी भी उसी गति से उस कच्ची सड़क पर आगे बढ़ा जा रहा था। तभी उस लड़के की कान में तेज आवाज़ पड़ी....
पलट कर देखा तो उसकी आँखें चौंधिंया गयी। क्यूंकि एक तेज प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ी थी। उसने अपना हांथ उठाते हुए अपने चेहरे के सामने कीया और उस प्रकाश को अपनी आँखों पर पड़ने से रोका। वो आवाज़ सुनकर ये समझ गया था की ये ट्रेन की हॉर्न की आवाज़ है। कुछ देर बाद जब ट्रेन का इंजन उसे क्रॉस करते हुए आगे नीकला, तो उस लड़के ने अपना हांथ अपनी आँखों के सामने से हटाया। उसके सामने ट्रेन के डीब्बे थे, शायद ट्रेन सीग्नल ना होने की वजह से रुक गयी थी।
उसने देखा ट्रेन के डीब्बे के अंदर लाइट जल रही थीं॥ वो कुछ सोंचते हुए उस ट्रेन को देखते रहा। तभी ट्रेन ने हॉर्न मारा। शायद अब ट्रेन सिग्नल दे रही थी की, ट्रेन चलने वाली है। ट्रेन जैसे ही अपने पहीये को चलायी, वो लड़का भी अपना पैर चलाया, और भागते हुए ट्रेन पर चढ़ जाता है। और चलती ट्रेन के गेट पर खड़ा होकर एक बार फीर से वो उसी गाँव की तरफ देखने लगता है। और एक बार फीर उसकी आँखों के सामने वही कमरा दीखता है जीसमे से हल्का उज़ाला था। और देखते ही देखते ट्रेन ने रफ्तार बढ़ाई और हल्के उज़ाले वाला कमरा भी उसकी आँखों से ओझल हो गया.....
कमरे में हल्की रौशनी थी, एक लैम्प जल रहा था। बीस्तर पर दो ज़ीस्म एक दुसरे में समाने की कोशिश में जुटे थे। मादरजात नग्न अवस्था में दोनो उस बीस्तर पर गुत्थम-गुत्थी हुए काम क्रीडा में लीन थे। कमरे में फैली उज़ाले की हल्की रौशनी में भी उस औरत का बदन चांद की तरह चमक रहा था। उसके उपर लेटा वो सख्श उस औरत के ठोस उरोज़ो को अपने हांथों में पकड़ कर बारी बारी से चुसते हुए अपनी कमर के झटके दे रहा था।
उस औरत की सीसकारी पूरे कमरे में गूंज रही थी। वो औरत अब अपनी गोरी टांगे उठाते हुए उस सख्श के कमर के इर्द-गीर्द रखते हुए शिकंजे में कस लेती है। और एक जोर की चींख के साथ वो उस सख्श को काफी तेजी से अपनी आगोश में जकड़ लेती है और वो सख्श भी चींघाड़ते हुए अपनी कमर उठा कर जोर-जोर के तीन से चार झटके मारता है। और हांफते हुए उस औरत के उपर ही नीढ़ाल हो कर गीर जाता है।
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"बस हो गया तेरा
अब जा अपने कमरे में। आज जो हुआ मैं नही चाहती की कीसी को कुछ पता चले।"
उस औरत की बात सुनकर वो सख्श मुस्कुराते हुए उसके गुलाबी होठों को चूमते हुए, उसके उपर से उठ जाता है और अपने कपड़े पहन कर जैसे ही जाने को होता है। वो बला की खुबसूरत औरत एक बार फीर बोली--
"जरा छुप कर जाना, और ध्यान से गलती से भी अभय के कमरे की तरफ से मत जाना समझे।"
उस औरत की बात सुनकर, वो सख्श एक बार फीर मुस्कुराते हुए बोला--
"वो अभी बच्चा है भाभी, देख भी लीया तो क्या करेगा? और वैसे भी वो तुमसे इतना डरता है, की कीसी से कुछ बोलने की हीम्मत भी नही करेगा।"
उस सख्श की आवाज़ सुनकर, वो औरत बेड पर उठ कर बैठ जाती है और अपनी अंगीयां (ब्रा) को पहनते हुए बोली...
"ना जाने क्यूँ...आज बहुत अज़ीब सी बेचैनी हो रही है मुझे। मैने अभय के सांथ बहुत गलत कीया।"
"ये सब छोड़ो भाभी, अब तूम सो जाओ।"
कहते हुए वो सख्श उस कमरे से बाहर नीकल जाता है। वो औरत अभी भी बीस्तर पर ब्रा पहने बैठी थी। और कुछ सोंच रही थी, तभी उसके कानो में ट्रेन की हॉर्न सुनायी पड़ती है। वो औरत भागते हुए कमरे की उस खीड़की पर पहुंच कर बाहर झाकती है। उसे दूर गाँव की आखिर छोर पर ट्रेन के डीब्बे में जल रही लाईटें दीखी, जैसे ही ट्रेन धीरे-धीरे चली। मानो उस औरत की धड़कने भी धिरे-धिरे बढ़ने लगी....
***********
ट्रेन के गेट पर बैठा वो लड़का, एक टक बाहर की तरफ देखे जा रहा था। आँखों से छलकते आशूं उसके दर्द को बयां कर रहे थे। कहां जा रहा था वो? कीस लिए जा रहा था वो? कुछ नही पता था उसे। अपने चेहरे पर उदासी का चादर ओढ़े कीसी बेज़ान पत्थर की तरह वो ट्रेन की गेट पर गुमसुम सा बैठा था। उसके अगल-बगल कुछ लोग भी बैठे थे। जो उसके गले में लटक रही सोने की महंगी चैन को देख रहे थे। उनकी नज़रों में लालच साफ दीख रही थी। और शायद उस लड़के का सोने का इंतज़ार कर रहे थे। ताकी वो अपना हांथ साफ कर सके।
पर अंदर से टूटा वो परीदां जीसका आज आशियाना भी उज़ड़ गया था। उसकी आँखों से नींद कोषो दूर था। शायद सोंच रहा था की, अपना आशियाना कहां बनाये???
*********
अगली सुबह
सुबह-सुबह संध्या उठते हुए हवेली के बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गयी। उसके बगल में रमन सिंह और ललिता भी बैठी थी। तभी वहां एक ३0 साल की सांवली सी औरत अपने हांथ में एक ट्रे लेकर आती है, और सामने टेबल पर रखते हुए सबको चाय देकर चली जाती है।
संध्या चाय की चुस्की लेते हुए बोली...
संध्या -- "तुम्हे पता है ना रमन, आज अभय का जन्मदिन है। मैं चाहती हूँ की, आज ये हवेली दुल्हन की तरह सजे,, सब को पता चलना चाहिए की आज छोटे ठाकुर का जन्मदिन है।"
रमन भी चाय की चुस्कीया लेते हुए बोला...
रमन –(कुटिल मुस्कान के साथ) तुम चिंता मत करो भाभी आज का दिन पूरा गांव याद रहेगा
रमन अभी बोल ही रहा था की, तभी वहां मालती आ गयी
मालती -- "दीदी, अभय को देखा क्या तुमने?"
संध्या – सो रहा होगा वो मालती अब इतनी सुबह सुबह कहा उठता है वो ?
मालती – वो अपने में तो नहीं है , मैं देख कर आ रही हूं ! मुझे लगा कल की मार की वजह से डर के मारे आज जल्दी उठ गया होगा
मालती की बात सुनते ही , संध्या गुस्से से लाल गए और एक झटके में कुर्सी पर से उठते हुए गुस्से में चिल्लाते हुए बोली…
संध्या – बेटा है मेरा वो कोई दुश्मन नही जो मैं उसे डरा धमका के रखूगी हा हो गईं कल मुझसे गलती गुस्से में मारा थोड़ा बहुत तो क्या होगया ?
संध्या को इस तरह चिल्लाते देख मालती शीतलता से बोली…
मालती – अपने आप को झूठी दिलासा क्यों दे रहे हो दीदी ? मुझे नही लगता की कल आपने अभय को थोड़ा बहुत मारा था और वो पहली बार भी नही था
अब तो संध्या जल भुन कर राख सी हो गई क्योंकि मालती की सच बात उसे तीखी मिर्ची की तरह लगी या उसे खुद की हुई गलती का एहसास था
संध्या –( गुस्से में) तू कहना क्या चाहती है मै…मैं भला उससे क्यों नफरत करूगी मेरा बेटा है वो और तुझे लगता है की मुझे उसकी फिक्र नहीं है सिर्फ तुझे है क्या
मालती –(संध्या की बात सुन गुस्से में बोली) मुझे क्या पता दीदी ? अभय तुम्हारा बेटा है मारो चाहे काटो मुझे उससे क्या मुझे वो अपने कमरे में नही दिखा तो पूछने चली आई यहा पे
कहते हुए मालती वहां से चली जाती है। संध्या अपना सर पकड़ कर वही चेयर पर बैठ जाती है। संध्या को इस हालत में देख रमन संध्या के कंधे पर हांथ रखते हुए बोला...
रमन – क्या भाभी आप भी छोटी छोटी बात को दिल में…
रमन अपनी बात पूरी नहीं कर पाया था की संध्या बीच मो बोली
संध्या – रमन तुम जाओ यहां से मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो
संध्या की गुस्से से भरी आवाज सुनके रमन को लगा अभी यहां से जाना ठीक रहेगा
रमन –(हवेली से बाहर मेन गेट पे आते ही पीछे पलट के संध्या को देख के बोला) बस कुछ वक्त और फिर तू मेरी बन जाएगी
इस तरफ
संध्या अपने सर पे हाथ रख के बैठी गहरी सोच में डूबी हुई थी की तभी दो हाथ संध्या की आखों पे पड़े उसकी आंखे बंद हो गई अपनी आखों पे किसी के हाथ को महसूस कर संध्या के होठों पे मुस्कान आग्यी
संध्या –(गहरी मुस्कान के साथ) नाराज है तू अपनी मां से बस एक बार माफ कर दे तेरी कसम खाती हो अब से मैं ऐसा कुछ नही करोगी जिससे तुझे तकलीफ हो मेरे बच्चे
संध्या की बात सुनते ही अमन जोर से हंसने लगा और अपना हाथ हटाते ही संध्या के सामने जा के खड़ा होगया
संध्या ने अपने सामने अमन को पाया क्यों की उसे लगा ये उसका बेटा अभय है लेकिन ए0ने सामने अमन को देख संध्या की हसी गायब हो गई
अमन –(हस्ते हुए) अरे ताई मां आपको क्या लगा मैं अभय हूं
संध्या –(झूठी मुस्कान के साथ) बदमाश कही का मुझे सच में लगा मेरा बेटा अभय है
अमन –आपको लगता है अभय ऐसा भी कर सकता है अगर वो ऐसा करता तो अभी तक उसको दो थप्पड़ खा चुका होता (बोल के जोर जोर से हंसने लगा)
अमन की ऐसी बात सुन संध्या के मन में गुस्सा आने लगा लेकिन तभी अमन कुछ ऐसा बोला
अमन –(हस्ते हुए) एक बात बताऊं आपको बेचारा अभय कल शाम आपके हाथ की मार खाने के बाद मैने रात को अभय को हवेली से भागते हुए देखा था वो ऐसा भागा की वापस ही नही लौटा
अब चौंकने की बारी संध्या की थी, अमन की बात सुनते ही उसके हांथ-पांव में कंपकपी उठने लगी। वैसे तो धड़कने बढ़ने लगती है, मगर संध्या की मानो धड़कने थमने लगी थी। सुर्ख हो चली आवाज़ और चेहरे पर घबराहट के लक्षण लीए बोल पड़ी...
संध्या –(घभराते हुए) क क्या मतलब है तेरा अ अभय भाग गया हवेली से
अमन –हा कल रात में मैने अभय को हवेली से भागते हुए देखा था मुझे लगा आजाएगा अपने आप और देर रात मैं पानी पीने उठा था तब देखा अभय का कमरा खुला पड़ा है अंडर देखा खाली था कमरा कोई नही था वहा पे
संध्या झट से चेयर पर से उठ खड़ी हुई, और हवेली के अंदर भागी।
संध्या –(डरते हुए चिल्लाने लगी) अभय…अभय…अभय…अभय…अभय
पागलो की तरह संध्या चीखती-चील्लाती अभय के कमरे की तरफ बढ़ी। संध्या की चील्लाहट सुनकर, मालती,ललीता,नीधि और हवेली के नौकर-चाकर भी वहां पहुंच गये। सबने देखा की संध्या पगला सी गयी है। सब हैरान थे, की आखिर क्या हुआ? ललिता ने संध्या को संभालते हुए पूछा
ललिता – क्या हुआ दीदी आप इस्त्रह चिल्ला क्यों रहे हो
संध्या –(रोते हुए) मेरा अभय कहा है
मालती –(ये बात सुन के गुस्से में चिल्ला के) यही बात तो मैं भी पूछने आई थी दीदी क्योंकि अभय सुबह से नही दिख रहा है मुझे
अब संध्या की हालत को लकवा मार गया था। थूक गले के अंदर ही नही जा रहा था। आँखें हैरत से फैली, चेहरे पर बीना कीसी भाव के बेजान नीर्जीव वस्तु की तरह वो धड़ाम से नीचे फर्श पर बैठ गयी। संध्या की हालत पर सब के रंग उड़ गये। ललिता और मालती संध्या को संभालने लगी।
ललिता –(संध्या को संभालते हुए) दीदी घबराओ मत यह कही होगा अभी आजाएगा अभय
सभी की बात सुन संध्या जैसे जिंदा लाश की तरह बन गई थी
संध्या –(सदमे मे) चला गया मुझे छोड़ के चला गया मेरा अभय
इतना बोल संध्या वही जमीन में गिर के बेहोश होगई
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तो कैसा लगा आप सबको ये अपडेट
बताएगा जरूर कहानी में काफी कुछ एडिट कर रहा हूं मैं थोड़ा समय लग रहा है मै ये बात मानता हो
बस मेरी कोशिश यही है की गलती से भी कोई गलती ना हो
कहानी को मैं देवनागरी में जरूर लिख रहा हूं लेकिन मेरे लिए आसान नहीं है आप सब से प्राथना करूंगा कोई गलती हो शब्दो में तो बता जरूर देना
बस साथ बने रहे जैसे मैने अपने दोनो कहानियों को मंजिल तक ले आया इसे भी इसकी मंजिल तक ले आऊंगा
धन्यवाद
Yahi to mai bol raha thaMasti kar rhe hai bhai hum log aap bhi sath jud jaaooo orr bhi jada maja aane lgega aapko
Bilkulभाई क्या तुमने इस कहानी को दुबारा से लिखना शुरू किया है, क्योंकि जहां तक मुझे याद है इस कहानी को लेखक अधूरा छोड़ गया था
HummBilkul
Koi baat nahi enjoy karo mitra Waise bhi wo sab coments tumhare liye thode the, is kahani per bohot se maharthi hai hai jinko is poori story se hi dikkat hai, jab se devil ne likhna start kiya tab se koi na koi usko ungli karke paresaan kar hi raha tha, 2 ko to ban bhi kar diya fir bhi kisi or id se aata hai koi unme sePahle hua tha but gussa tikta hi nahi hai demag me jyada Der,,,,BTW story pe comments mera point of view hota hai bas aur kuch nahi aur main koi writer to hu nahi ki bolu story me ye hona cahiye,,ishe badal do .
And sorry for that my behavior like this (kyonki main aysa hi hu )