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Incest All short story collected from Net

आप केसी सेक्स स्टोरी पढना चाहते है. ??

  • माँ - बेटा

  • भाई - बहेन

  • देवर - भाभी

  • दामाद – सासु

  • ससुर – बहु


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junglecouple1984

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मेरी सास की वासना मेरे लंड से शांत हुई


मेरा नाम राज है.

मेरी सास का नाम शिवानी है. उनकी उम्र 45 साल है. सासू मां का फिगर 38-34-40 का है. रंग हल्का सांवला सा है लेकिन वो देखने में बहुत मस्त माल दिखती हैं.

एक दिन की बात है, जब मैं अपनी पत्नी को उसके मायके छोड़ने गया.
तो उसकी मम्मी, मतलब मेरी सास ही घर में अकेली थीं. ससुर जी शहर से कहीं बाहर गए थे.

उसी समय इत्तेफाक से एक फोन आ जाने के कारण मुझे कुछ जरूरी काम निकल आया.
वो काम मेरी ससुराल के शहर में ही था, तो मुझे अपनी ससुराल में रुकना पड़ गया.

मैं अपनी बीवी के साथ जब ससुराल पहुंचा था, तो उस वक्त रात भी काफी हो चुकी थी.

हम सभी लोगों ने मतलब मैं, मेरी पत्नी और मेरी सास ने साथ में बैठ कर खाना खाया.
खाने के बाद मेरी पत्नी अन्दर वाले रूम में सोने चली गई.
मैं गेस्ट रूम में सोफे पर लेट गया. मेरी सास का कमरा गेस्ट रूम के ठीक सामने था, जिसकी खिड़की हमेशा खुली रहती थी.

मैं काफी रात तक फोन चलाता रहा.
फिर मैं बाथरूम जाने के लिए उठा तो देखा सास के कमरे से मोबाइल में वीडियो चलने की आवाज आ रही थी.

मैंने खिड़की के नजदीक खड़े होकर देखा तो सास अपनी साड़ी को ऊपर किए अपनी चूत में उंगली कर रही थीं.

शायद वो मोबाइल में सेक्स वीडियो देख कर ही अपनी चूत में उंगली अन्दर बाहर कर रही थी.
मुझे ये सीन काफी हॉट लगा, तो मैं खिड़की की आड़ में खड़ा होकर सास का हस्तमैथुन देखता रहा.

उनकी मादक जवानी को देख कर मेरा लंड खड़ा हो गया था.
मैं अपना लंड हिलाते हुए मुठ मारने लगा. कुछ ही देर में मेरे लंड का पानी वहीं निकल गया और मैं हाथ में लंड पकड़े हुए बाथरूम में चला गया.

बाथरूम से आने के बाद मैं गेस्ट रूम में सोफे पर लेट गया और सो गया.

सुबह जब मेरी नींद खुली तो मेरी सास एक ब्लैक साड़ी में मेरे सामने चाय लेकर खड़ी थीं.
मैं सास को देखता रहा.

सास ने मुस्कुरा कर पूछा- क्या हुआ दामाद जी … चाय पी लीजिए.

मैं कुछ नहीं बोला और रात का सीन इमेजिन करके अपनी सास की चुत और मम्मों की नंगी छवि को अपने मन मस्तिष्क में उकेरने लगा.

सास ने मुझे मम्मों को ताड़ते देखा, तो वो हंस कर चली गईं.

मैं अब भी रात के बारे में सोच रहा था. मैंने ठान लिया था कि सास को चोदने के बाद ही मैं यहां से जाऊंगा.

उतने में मेरी पत्नी भी तैयार होकर आ गई.
वो बोली- मैं जरा अपनी सहेलियों के यहां होकर आती हूं. आप खाना खा लेना और अपना जो भी काम हो, वो कर लेना.

मैं मन ही मन बहुत खुश हुआ. मुझे ऐसे ही किसी वक्त का इंतजार था.

मैंने अपनी पत्नी से बोल दिया- ठीक है, जब तुम अपनी सहेलियों के पास से लौटना, तो आने से पहले मुझे एक कॉल जरूर कर लेना ताकि मैं भी अपना काम समेट लूं.
वो हां कह कर चली गई.

मैं वहीं बैठे बैठे टीवी देखने लगा.

उतने में सास जी मेरे पास आईं और बोलीं- नाश्ते में आप क्या खाएंगे?
मैंने बोला- आपका जो मन करे, वो बना लीजिए.
सास बोलीं- ठीक है … आप नहा लीजिए. मैं अभी नाश्ता बना देती हूं.

इसके बाद सास मेरी तरफ गांड करके मटकते हुए किचन में चली गईं.
मैं भी उनके पीछे पीछे चला गया और उनसे पूछने लगा- लाइये मैं आपको कुछ हेल्प कर देता हूँ.
वो हंस कर बोलीं- नहीं नहीं … मैं कर लूंगी.

मैंने भी स्माइल करके उनको देखते हुए दांत दिखा दिए.

इतने में उनकी साड़ी का पल्लू गिर गया, तो वो उठाने को नीचे झुक गईं.
आए हाय … उनके मस्त गोल मम्मों की घाटी देख कर लंड टन टन करने लगा.

मैं अपनी सास की चूचियां देख कर मदहोश हो गया था और बस उनके दूध देखता ही रह गया.
उसी समय सास ने मुझे देख लिया और वो समझ गईं कि मैं उनके मम्मों को देख रहा हूँ.

सास बोलीं- क्या हुआ … ऐसे क्या देख रहे हैं?
मैंने झट से नजरें हटाईं और बोला- क..कुछ नहीं ऐसे ही.

फिर मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया कि आप रात में क्या कर रही थीं?
मेरी इस बात पर वो चौंक गईं और बोलीं- कब?

मैंने बोला- रात में जब मैं बाथरूम जाने लिए उठा था तो खिड़की से आपको देखा था. आप मोबाइल में देखते हुए कुछ कर रही थीं.
वो ये सुनकर शर्मा गईं और बोलीं- कुछ नहीं … बस यूं ही गाने सुन रही थी.

मैंने उनको पीछे से पकड़ लिया और बोला- अब बता भी दीजिए मुझसे क्या शर्माना!
सास बोलीं- छोड़ो मुझे … आप ये क्या कर रहे हैं.
मैंने बोला- वही, जो आपको चाहिए है और उसी के लिए आप अपनी उंगली को परेशान कर रही थीं.

मेरे इतना बोलने के बाद वो भी चुप हो गईं और उन्होंने अपने हाथ पैर हिलाना बन्द कर दिए.

मेरी सास मुझसे बोलने लगीं कि बहुत दिनों से तुम्हारे ससुर जी बाहर हैं … तो खुद से करना पड़ता है.
मैंने बोला- खुद से क्यों … मैं तो हूं!

मेरी सास ये सुनते ही बोल पड़ीं- अगर प्राची को पता चल गया तो?
प्राची मेरी पत्नी का नाम है.
मैंने बोला- उसे कुछ पता नहीं चलेगा. उसके आने से पहले सब हो जाएगा.

इस बात पर मेरी प्यासी सास हंस दीं.
उनको हंसते देख कर मैंने एक मिनट की भी देरी नहीं की. मैंने पीछे से उनके मम्मों को पकड़ लिया और जोर जोर से दबाने लगा.

वो भी गर्म आहें भरने लगीं- उफ्फ आह्ह्हह!

मैंने सास को सीधा करके अपने सीने से लगाया और उनके होंठों पर अपने होंठ रख कर चूसने लगा.
साथ ही मेरे दोनों हाथ सास की गांड के ऊपर रख कर उनकी मखमली गांड को दबाने लगा.
सच में बड़ी मस्त और एकदम टनाटन गोल गांड थी.

इतने में सास ने मेरे लोवर में अपना हाथ डाल दिया और मेरे लंड को जोर से दबाने लगी.
मुझे इससे और भी ज्यादा मजा आने लगा.

मैं उनकी साड़ी को उतारने लगा. सास की साड़ी उतार कर मैंने किचन के फर्श पर फेंक दी और उनको गोद में उठा कर गेस्ट रूम में ले आया.

इधर मैंने उनको सोफे पर लिटा दिया और मैं सास के ऊपर चढ़ गया.
अब हम दोनों किस करने लगे.

मैं अपनी सास के मम्मों को जोर जोर से दबाते हुए उनकी आंखों में वासना से देखने लगा.
साथ ही मैंने सास के ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए. मेरी सास अन्दर ने काली ब्रा पहनी हुई थी, जिसमें वो और भी मस्त माल लग रही थीं.

वो बोलीं- अब मत तड़पाओ दामाद जी. जल्दी से मेरी आग शांत कर दो.

मैं उनके ऊपर से उठा और अपनी टी-शर्ट निकालने लगा.
उतने में उन्होंने भो उठ कर मेरा लोअर नीचे कर दिया और मेरा लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगीं.

मैंने भी जोर जोर से उनके मुँह में अपना लंड पेलना चालू कर दिया.
इसी बीच मैंने सास का ब्लाउज उतार कर अलग कर दिया और उनके बाल पकड़ कर अपना लंड चुसवाने लगा.
कुछ मिनट तक लंड चुसवाने के बाद मैंने उनको सोफे पर लिटा दिया और उनका एक पैर ऊपर करके उनकी झांट रहित चूत में थूक लगा दिया.

फिर सास की लपलप करती चुत में मैंने अपना लंड रख दिया. लंड का सुपारे सास की चुत से टच हुआ तो सास की एक मादक सिसकारी निकल गई.
मैंने उनकी सिसकारी सुनी, तो झटका दे दिया.
सास की कराह निकल गई. वो अपने पैरों से मेरी कमर को जकड़ने लगीं.

मैंने सास की चुत में आधा लंड अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया.

वो मस्ती से ‘आह्हह उफ्फ ..’ करने लगीं और बोलीं- आह मजा आ गया … आप पूरा लंड पेल दो दामाद जी.
मैंने दूसरे झटके में पूरा लंड उनकी चूत की जड़ तक पेल दिया.

वो ‘आई आह्हहह मर गई ..’ करने लगीं.
मैं जोर जोर से उनको चोदने लगा और सास ‘उफ्फ आह्ह उफ्फ ..’ करती रहीं.

मैंने उन्हें चोदते हुए ही उनकी ब्रा को उतार दिया और उनके दोनों मम्मों को बारी से चूसने लगा.

सास मस्ती से मचलते हुए चुत चुदवा रही थीं.

कुछ देर बाद मैंने लंड चुत से खींचा और उनको औंधा होने के लिए कहा.
सास समझी नहीं, तो मैंने उनसे घोड़ी बनने को बोला.

सास एक चुदासी रंडी की भाषा में बोलीं- चाहे जिस पोज में चोद लो दामाद जी … बस आज मेरी फाड़ दो. आप मेरी गांड भी मार लो … आह आज से मैं आपकी रंडी सास हूं. मुझे जोर जोर से चोदो.

सास जैसे ही घोड़ी बनी तो मैंने अपने लंड पर थूक लगाया और पीछे से उंगली करके सास की गांड में भी थूक लगा दिया.
फिर सास के बाल पकड़ कर मैंने उनकी गांड में लंड सैट कर दिया.

सुपारा गांड के फूल को खोलने लगा, तो वो ‘आईआ … ऊऊऊ उफ्फ आह्ह ..’ करने लगीं.
मैंने जोर से झटका मारा, तो लंड का आगे का हिस्सा सास की गांड में घुसता चला गया.

सास ‘ऊऊऊऊ उफ्फ़ आहह ..’ करने लगीं.
मगर वो बोलने लगीं- रुकना मत … आह आज फाड़ दो मेरी गांड.
मैंने बोला- हां ले मेरी रंडी सास … साली आज तेरी गांड फाड़ ही दूंगा.

बस मैं अपनी सास को गाली देते हुए जोर जोर से उनकी गांड में लंड पेलने लगा.
दस मिनट तक सास की गांड मारने के बाद मैंने उनकी गांड के अन्दर ही लंड का पानी निकाल दिया.

सास हांफते हुए बोलीं- दामाद जी … आह आज मैं बहुत खुश हूं. तुमने मुझे मस्त कर दिया.

फिर हम दोनों अलग हो गए.

सास ने अपने कपड़े उठाए और अपने कमरे में चली गईं.
मैं बाथरूम में चला गया.

कुछ ही देर में मेरी बीवी का फोन आ गया.
मैंने उससे कह दिया कि थोड़ी देर लग जाएगी, अभी काम नहीं हो पाया है.

फिर मैं घर से निकल गया और एक घंटे बाद वापस आ गया.

उस दिन मैंने ससुराल में ही रुकने का मन बना लिया था.
सास ने भी मनुहार करके रुकने के लिए कहा … तो मेरी बीवी भी कहने लगी- हां आज रुक जाओ, कल चले जाना.

मैं मान गया और शाम को दारू का इंतजाम करने के लिए बाजार चला गया.
मेरी बीवी को मालूम है कि मैं दारू पीता हूँ.
मैंने उससे कहा कि आज शाम को कुछ स्पेशल बना देना.
वो समझ गई.

बाद में सास ने पूछा तो मैंने उन्हें दारू की बात कह दी, तो वो धीरे से मेरे नजदीक आकर बोलीं- मेरे लिए भी ले आना.

बस अब क्या था. रात को मैंने बीवी को नींद की दवा खिलाने का जिम्मा सास को दे दिया और उन्होंने दूध में मिला कर मेरी बीवी को नींद की दवा पिला दी.

प्राची सोई तो सास और दामाद की दारू पार्टी शुरू हो गई.
उस रात मैंने अपनी सास की दो बार चुत चोदी और एक बार गांड मारी.

सुबह मैं ससुराल से निकल गया.

इसके बाद से जब भी मुझे मौका मिलता, तो मैं अपनी सास को बाजारू रंडी बना कर चोद लेता हूं.
 

junglecouple1984

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मां बेटे का नाजायज वाला प्यार- 1




मेरा नाम संगीता है और मेरी उम्र अभी 45 साल है. मगर मैं ये जो कहानी बताने जा रही हूँ … वो पुरानी है.

जब मेरी शादी अशोक से हुई थी, मैं 19 साल की थी. शादी के एक साल बाद ही हमारा एक बेटा निखिल हुआ.

हमारी ज़िंदगी अच्छे से चल रही थी कि अचानक ही शादी के 3 साल बाद ही अशोक की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी.

मैं महज 22 साल की उम्र में ही विधवा हो चुकी थी. मेरे जिंदगी में मेरे अलावा मेरे बेटे निखिल के सिवाए कोई नहीं था.
मेरी दुनिया में कोई रह गया था, तो वो निखिल था.

समाज और घर वाले मुझे दूसरी शादी करने के लिए बहुत फ़ोर्स करने लगे.
मगर मैंने ठान लिया था कि अब मैं दोबारा शादी नहीं करूंगी. मैंने अपने बेटे के सहारे जिन्दगी ऐसे ही गुजार दूंगी.

बस मैं अपने बेटे साथ जिंदगी व्यतीत करने लगी.

मैं गांव में रहती थी. समय के साथ मेरे शरीर में अब हलचल होनी शुरू हो चुकी थी. मेरे अन्दर सेक्स की एक लपट उठनी शुरू हो गयी.
मैंने अपने दिल को हजारों बार समझाया मगर ये जवानी बहुत ही तकलीफ देने वाली होती है.

एक दिन अचानक ही बाजार में ललित मिल गया.
ललित मेरे गांव का एक लड़का था. शादी से पहले मेरा अफेयर ललित के साथ ही था. ललित एक ऐसा लड़का था … जो मेरे पति से पहले मेरे साथ अनगिनत बार शारिरिक संबंध बना चुका था.

मैं शादी भी इसी से करना चाहती थी मगर घरवालों को ये बात पसन्द नहीं आई और मेरी शादी अशोक से करा दी गई थी.

अब तक मैं ललित को भूल चुकी थी मगर आज उसे देख मुझे उसके साथ गुजारा हुआ हर लम्हा याद आ गया.

ललित मुझे देख अचंभित था कि महज तीन साल पहले शादी हुई थी और अब ये विधवा हो चुकी है.
बड़ी झिझक से उसने मुझसे बात की.

मैं भी उससे बातें करने लगी. मैंने उसे अपनी पूरी कहानी बता दी.

उस दिन तो हम वहां से अलग हो गए मगर ललित को देख कर मेरे अन्दर अजीब से लहरें उठनी शुरू हो गई थीं.

मैंने अपने आपको बहुत रोका कि जो पहले हुआ, वो अब ठीक नहीं है. क्योंकि अब मैं एक बच्चे का मां जो थी.

एक के बाद एक 3-4 बार हमारी मुलाकात हो चुकी थी मगर अभी तक सब कुछ सिर्फ बातों तक सीमित था.

शारीरिक जरूरतों के चलते मैं अपने आपको ज्यादा दिन रोक नहीं पायी और एक दोनों के मर्जी से फिर से संबंध बन गए.

मेरे अन्दर एक साल से घुमड़ रहे बादल उस दिन जम के बरस गए थे. मेरा एक एक अंग ललित की फुहारों से तरबतर होकर झूम गया था.

एक बार फिर से ललित से सम्बन्ध बने, तो बस फिर क्या था. उस दिन के बाद से ललित और मेरे मिलने की सिलसिला शुरू हो गया.

करीब 4 साल बीत गए हमें पता ही नहीं चला कि हम दोनों किस दरिया में बहे जा रहे थे. हम कहीं न कहीं किसी भी हालत में इन 4 सालों में हर एक दिन मिलते और अपनी कामवासना को शांत कर लेते थे.

मगर ऐसा नाजायज संबंध ज्यादा दिन नहीं छुपता.
धीरे-धीरे हमारी बातें गांव में फैल गईं और सभी जान गए कि मेरे और ललित के बीच में क्या संबंध हैं.

ये बात मेरे घरवालों तक पहुंची, तो सब मुझे जैसे काट खाने को आतुर हो गए थे. तरह-तरह के ताने मारने लगे.
मैं थक कर गांव छोड़ कर शहर चली गयी. वहां मुझे अपना पेट पालना था. साथ में मेरे बेटे का भी अच्छे से पालन पोषण करना था.

मैं पढ़ी लिखी थी, तो मुझे एक कंपनी में काम मिल गया. मैं वहां काम करने लगी … साथ में यहां भी मुझे अपने शरीर की आवश्यकता का ध्यान रखना था.

कुछ दिनों बाद ही मेरे कंपनी के एक लड़के के साथ मेरा टांका भिड़ गया और उस लड़के के साथ मेरा रिश्ता फलने फूलने लगा.

दस साल तक कंपनी में काम करते रहने के बाद अब मेरे बेटे निखिल की उम्र जानने समझने की हो गई थी. उधर कंपनी वाले उस लड़के की शादी हो गई थी. जिसके बाद हमारे बीच कोई सम्पर्क नहीं रह गया था.
मेरे अन्दर भी अब सेक्स की भूख शांत हो चुकी थी.

निखिल 12 वीं तक की पढ़ाई पूरी करके अब कॉलेज जाने लगा था. मेरा लड़का अब जवान हो गया था. मेरी उम्र भी अब आगे बढ़ने लगी थी.

मगर कहते हैं न कि चढ़ती जवानी और दूसरा उतरती जवानी दोनों पर काबू रख पाना बहुत मुश्किल होती है.
मैं तो चढ़ती जवानी से निकल गयी थी … मगर 39 साल की उम्र में मैं जवानी की अंतिम अवस्था में पहुंच चुकी थी.

मेरे शरीर में एकाएक सेक्स की तीव्र इच्छा होने लगी थी.
मगर मैं इससे बच रही थी.

कारण था निखिल अब 19 साल का हो चुका था. अगर अब मैं कुछ गलत करती और ये बात किसी को पता चल जाती या निखिल को पता चल जाता तो आप समझ सकते हैं कि एक जवान बेटे पर क्या गुजरेगी.

मैं अपने आपको बहुत समझा बुझा कर रख रही थी. अपना ध्यान दूसरी तरफ बिजी रख रही थी.

मगर एक रात जब मैं सो रही थी. करीब रात 11 बजे मुझे बाजू वाले कमरे में जहां निखिल सोता था. वहां से अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देने लगी थीं.

मुझे लगा निखिल कोई मूवी देख रहा होगा मगर जब बहुत देर तक किसी लड़की की हंसने की आवाजें आने लगीं, तो मैं चुपचाप उठ कर खिड़की से झांकने लगी.

अन्दर का नजारा देखकर मैं तो दंग रह गयी थी. अन्दर नेहा थी, ये निखिल के क्लास के ही लड़की थी. वो निखिल के साथ कई बार घर आ चुकी थी.

इस समय नेहा पूरी तरह नंगी थी और नीचे बैठ कर निखिल के लंड को चूस रही थी.
जब मेरी नज़र निखिल के तने लंड पर गई तो मेरा होश उड़ गया.

एकदम घोड़े जैसा लंबा और मोटा लंड. इतना मोटा और लंबा लंड दुनिया में हज़ारों में एक दो लोगों का ही होता होगा.

नेहा लंड का महज टोपा बस को मुँह में ले पा रही थी.

ये सब देख मेरे अन्दर अजीब सी लहर दौड़ गयी. देखते देखते ही उन दोनों की चुदायी चालू हो गई थी.
मैं बस चुपचाप दर्शक की तरह देख रही थी.

मेरा हाथ अब मेरी चुत में जा पहुंचा था. मेरी चुत गर्म हो गयी थी. उधर नेहा निखिल के लंड को ठीक से अन्दर भी नहीं ले पा रही थी … वो बहुत तकलीफ में थी.

मुझे ये सब देख बहुत जोश आ गया था. मगर मैं वहां जा भी नहीं सकती थी क्योंकि वो मेरा बेटा था.

करीब 40 मिनट की मैराथन चुदायी के बाद नेहा बिल्कुल मूर्छित सी पड़ गयी थी.
निखिल ने अपना पानी नेहा के बदन पर गिरा दिया था.

अब तक मेरी चुत भी दो बार पानी छोड़ चुकी थी.

मैं वापस बिस्तर में आ गई. उसी बीच मुझे समझ आ गया कि नेहा चुपके से निकल गयी.

सारी रात मुझे निखिल के घोड़े जैसा लंड दिमाग में घूमता रहा था. मेरे अन्दर कामवासना बढ़ गई थी.
फिर जैसे तैसे मुझे नींद आ गयी.

सुबह निखिल को देखा तो फिर से वही चित्र दिमाग में घूमने लगा. मगर मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी.
मुझे सेक्स करने का बहुत इच्छा बढ़ गयी थी मगर मैं कहीं हाथ पांव भी नहीं मार सकती थी.

अब तो हर रात मैं वही नजारा देखती और खुद को उंगली से शांत कर लेती.

करीब 5 दिन तक मैंने लगातार नेहा और निखिल की चुदायी देखी. उसके बाद करीब 4-5 दिन नेहा नहीं आई थी.

उसी बीच मुझे जरूरी काम से गांव जाना था. मैंने निखिल से अपने गांव जाने की बात कही.

वो कॉलेज से आने के बाद गांव जाने की बात बोला. निखिल 4 बजे घर आया, तो हम दोनों शाम को 5:30 घर से निकले.

गांव शहर से 70 किलोमीटर दूर था. हम दोनों को एक दिन बाद वापस भी आना था. तो एक जोड़ी कपड़े लिए और घर से मोटरसाइकिल से निकल गए.

ठंडी का मौसम शुरू हो गया था. हम घर से निकले तभी हल्का अंधेरा छाने लगा था.

करीब हम 40 किलोमीटर पहुंच पाए थे कि अचानक ही काले बादल घिर आए और तेज़ बारिश शुरू हो गई. हम दोनों रास्ते में ऐसी जगह फंसे थे, जहां से सीधा हमारा गांव आता … बीच में और कोई गांव नहीं था.

बारिश तेज़ थी, इस कारण से हम भीग गए थे और बाइक भी धीरे चल पा रही थी.

मैंने निखिल को एक पेड़ के नीचे रुकने को बोला ताकि हम थोड़ी देर बारिश से बच जाएं. हम तो वैसे भी पूरी तरह भीग चुके थे.

तभी धीरे-धीरे बिजली चमकना भी शुरू हो गई थी. जब जब बिजली के चमकने से लाइट आती … निखिल और मैं पूरी तरह दिख जाते थे.
मेरी साड़ी मेरे शरीर में चिपक गयी थी. निखिल मेरे तरफ देख रहा था, जब रोशनी में मेरा नज़र उससे टकरातीं, तो वो नज़रें झुका लेता था.

मुझे अजीब लगने लगा था.
हम दोनों ने बिजली के कड़कने की हल्की आवाज़ सुन कर उस पेड़ से हटने का मन बनाया और गाड़ी पर बैठ कर निकल गए.

अभी हम दोनों दो किलोमीटर ही गए होंगे कि रास्ते में एक बंद ढाबा दिखा. हम वहां रुक गए … सोचा शायद इधर कोई होगा.

मगर जब वहां पहुंचे, तो देखा वहां कोई आदमी नहीं था.

अन्दर एक कमरा था, जहां एक छोटी सी चारपाई थी. हम दोनों वहां रुके, तो बारिश के पानी से भीगने से बच गए थे. मगर हम दोनों पूरी तरह भीग चुके थे. हमें ठंड भी लग रही थी.

मैं- निखिल तुम अपने गीले कपड़े निकाल दो … ठंड कम लगेगी.
निखिल- हां, मैं यहीं बाहर रह जाता हूं आप भी अन्दर कमरे में जाकर कपड़े सुखा लो … नहीं तो आपको ठंड लग जाएगी.

मैं अन्दर जाकर साड़ी निकाल कर वहां लगी एक खूंटी में टांग दी. बाहर निखिल भी अपनी शर्ट उतार कर सुखाने लगा था.

चारों तरफ घुप्प अंधेरा था. मैं ऐसी ही चारपाई में बैठी थी कि अचानक जोर से तेज़ बिजली के कड़कने से मेरे मुँह से चीख निकल गयी थी.
निखिल मेरी चीख सुन भागा-भागा अन्दर आया.

उसके नजदीक आते ही पहले से कहीं तेज़ एक बार फिर बिजली कड़की. मैं झट से निखिल को पकड़ कर उससे लिपट गयी.

मैंने उसे जोर से जकड़ लिया था. मेरे सीने के उभार उसके सीने से दब गए थे. मेरी सांसें उसकी छाती से टकराने लगी थीं.

वो नए खून के जवान लड़का था. एक स्त्री के गिरफ्त में आते ही उसके अन्दर हलचल शुरू हो गई थी.
निखिल ने भी मुझे अपने हाथों से जकड़ लिया था. मेरी पीठ का ज्यादातर हिस्सा खुला था.

मैं- मुझे बिजली से बहुत डर लग रहा है
निखिल- मैं हूँ न यहां … आप डरो नहीं.

तभी मुझे मेरे कमर के आस-पास कुछ उभार महसूस होने लगा था.
मैं समझ गई थी कि निखिल का तगड़ा लंड तन रहा है.

उसके बारे में सोच कर ही मेरे अन्दर एक अजीब कशमकश होने लगी थी.
मैं उसके सीने में सिर छुपाए उस उभार को महसूस करने लगी थी.

मैं- मुझे बहुत ठंड लग रही है.
निखिल- बस कुछ देर ऐसे ही दोनों लिपटे रहेंगे … तो ठंड कम हो जाएगी.
मैं- मुझे और जोर से जकड़ो निखिल … गर्मी मिलेगी.

फिर मुझे निखिल और जोर से अपने बांहों में कसने लगा. मेरा स्तन उसकी छाती से जोर से दब चुका था. उसके हाथ मेरी पीठ पर थे.

मेरे अन्दर चुदायी का नशा छाने लगा था. मैं भूल चुकी थी कि जिससे मैं लिपटी थी … वो मेरा सगा बेटा है.

मुझे अपनी कमर में जहां उभार महसूस हो रहा था, उस जगह को मैं हल्के हल्के से दाएं बांए करके कमर से रगड़ रही थी. आह कितनी गर्मी थी वहां.

निखिल को मेरी इस हरकत के बारे में पता लग गया था. वो अपनी कमर को मेरी तरफ जोर से चिपकाने की कोशिश करने लगा था. उसका हाथ मेरे पीठ में हल्का हल्का चलने लगा था.

मुझसे अब ये गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी; मैं बोली- निखिल हम दोनों ठंड से मर जाएंगे. अब हमें जिंदा रहने के लिए अपने अन्दर की गर्मी को एक-दूसरे के सहारे से सम्भालना पड़ेगा.

निखिल- हां.
मैं निखिल की हां सुनते ही अपना हाथ निखिल के लंड पर ले गई. मैं उसके लंड को सहलाने लगी.

मेरे ऐसे करते ही निखिल मेरे कंधे पर अपना सिर रख कर उस जगह को होंठों से चूमने लगा.

मैंने उसकी पैंट ढीली करके लंड बाहर निकाल लिया और हाथों से पकड़ लिया.

आह … गजब की लंबाई मोटाई थी. उसका खड़ा लंड मेरी पूरी मुट्ठी में नहीं समा रहा था.
आज मैं भी अपनी ढलती जवानी की ज्वाला को संभाल नहीं पा रही थी.

मेरे अन्दर इस वक़्त बस चुदायी की भूख जाग गई थी. सामने वाला लड़का जो भी हो, ये मुझे होश नहीं रह गया था.

दूसरी तरफ निखिल भी ना जाने कौन सी धुन में था कि बिना झिझक के वो मेरा साथ देने को आतुर हो चला था.
उसने मेरे पेट में अपना हाथ घुमाते हुए अपना हाथ वहां पहुंचा दिया, जहां से मुझे अपनी आग शांत करनी थी.

आज मैं अपनी चुत में अपने बेटे के हाथों का स्पर्श महसूस करने लगी थी.

मेरा बेटा अपनी उंगलियों से मेरी चुत को गजब तरीके से सहलाने लगा था.

तभी निखिल मुझे पलट दिया. अब मैं उसकी तरफ पीठ करके खड़ी थी. वो मेरे स्तनों को मसलने लगा था.

निखिल भी बहुत जोश में था. वो मेरे पेटीकोट को ऊपर करने लगा. पेटीकोट को कमर तक उठा कर मेरे कच्छे को नीचे खिसका दिया.
फिर मुझे घोड़ी के जैसे हल्का सा सामने को झुका कर उसने अपना तगड़ा लंड मेरी चुत में टिका दिया.

चुत में निखिल के लंड के स्पर्श से मेरा रोम-रोम झुनझुनाहट से भर गया था. आज खुद के बेटे का लंड मेरी चुत के अन्दर जाने वाला था.

निखिल ने मेरी चुत की दरार में लंड का टोपा फंसाया और अन्दर लंड उतारने लगा.
मेरी आह निकलने लगी थी.

निखिल ने धीरे-धीरे खिसकाते हुए अपने लंड को अन्दर तक पेल कर अपना कब्जा जमा लिया था. मुझे ऐसा लगने लगा था, जैसे निखिल का लंड मेरे सीने तक न आ जाए.

मैं जिंदगी में पहली बार इतने मोटे लंबे लंड से चुद रही थी, वो भी अपने बेटे के लंड से.
 

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मां बेटे का नाजायज वाला प्यार- 2




अब तक आपने पढ़ा था कि निखिल ने मेरी चुत में लंड पेल दिया था.


निखिल मेरे चूतड़ को पकड़ कर अब लंड अन्दर बाहर करने लगा.

अहह … मैं सातवें आसमान में उड़ रही थी. आज मेरी चुत के सभी हिस्सों के अच्छे से इस्तेमाल हो रहा था. मैं झुक कर अपने बेटे की धक्के झेल रही थी.
निखिल तेज़ी से लंड चुत में दौड़ाने लगा था. सारी सर्दी छू-मंतर हो गई थी.

‘अहह ओह्ह उफ़्फ़ सीईईईई अहह ओह्ह ओह्ह आहहहह … ओह अहह उफ़्फ़ उफ्फ्फ ..’
कमरे में बस यहीं कामुक सिसकारियां गूंजने लगी थीं.

मेरा जवान बेटा आज एक मंजे हुए खिलाड़ी की तरह मुझसे खेल रहा था. उसके साथ मेरा खून का रिश्ता तो पहले से ही था मगर आज हमारे बीच एक जिस्मानी रिश्ता भी बन चुका था.

हमारे जिस्मों से ठंड एकदम से गायब हो गई थी. बस अब हम दोनों चुदायी की एक अनोखी दुनिया में खो चुके थे.
हम सब कुछ भूलकर एक दूसरे के शारीरिक भूख को मिटा रहे थे.

शायद मैंने या निखिल ने कभी ये नहीं सोचा होगा कि हमारे बीच की ममता और स्नेह वाले रिश्ते के अलावा कभी हम दोनों चुदाई वाला रिश्ता भी बनाएंगे.

घोड़े की तरह निखिल मेरी चुत में लंड काफी समय से दौड़ाए जा रहा था.

फिर थोड़ी देर बाद निखिल मुझे वहां पड़ी चारपाई में ले जाकर लिटा दिया और वो मेरे ऊपर छा गया.
मेरी दोनों टांगों को फैला कर मेरे छेद में अपना हथौड़ा डाल कर रगड़ने लगा.

निखिल मुझे जोरदार किस करने लगा. ये भी मेरा उसके साथ पहला किस था. जब बचपन में मैं निखिल के छोटे होंठों को चूमती थी, तो मुझे बहुत ही खुशी मिलती थी. क्योंकि वो मेरे जिगर का टुकड़ा था.

आज भी उसके होंठों को जब मैं चूम रही थी, तो मुझे अपार आनन्द मिल रहा था. मगर उस आनन्द और आज के आनन्द में बहुत फर्क था.

आज वो मुझे अपनी महबूबा की तरह चूम रहा था. उसके शरीर से मेरा शरीर लिपट गया था और चुत में लंड का घर्षण चल रहा था.
मेरी चुत बार-बार पानी छोड़ रही थी, जिस कारण निखिल का लंड आसानी से मेरी चुत में फिसल रहा था.

मैं आनन्द से सराबोर होकर अपने अन्दर उठे वासना के तूफान के शांत होने की अवस्था में आ चुकी थी. मैं आती भी कैसे नहीं … मेरी चुत में लगातार 20 मिनट से जो प्रहार हो रहे थे.
वो भी बिना रुके!

मेरे बेटे ने मेरी चुत में लंड की धकापेल जो मचा रखी थी.
मेरा शरीर ऐंठने लगा था.

फिर कुछ ही देर बाद तेज़ झटकों ने मुझे बता दिया कि तुम तो अब गईं, मेरा शरीर हिल गया था.
मेरी चरमसीमा प्राप्त करना ही शायद मेरा आज का प्रारब्ध था.

निखिल भी मेरे पीछे-पीछे तेज़ धक्कों के साथ ही अपना परमानन्द को प्राप्त करने में लग गया था.
उसने अपना सारा आनन्द मेरी चुत में ही उड़ेल दिया. हम दोनों एकदम शांत हो गए थे. बाहर हो रही बारिश भी ना जाने कब की शांत हो चुकी थी.

निखिल मुझसे अलग होकर कमरे से निकल गया और थोड़ी देर बाद ही उसकी आवाज आई- जल्दी चलो, बरसात बंद हो गयी है.
मैं- हां बस दो मिनट में आ रही हूँ.

मैं जल्दी से अपने कपड़े ठीक करके निकली.
निखिल गाड़ी पर बैठ कर मेरे आने का इंतज़ार कर रहा था.
मैं जाकर गाड़ी पर बैठ गयी और हम निकल गए.

पूरे रास्ते में हम दोनों एकदम खामोश थे. घर पहुंच कर दोनों अलग-अलग कमरे में चले गए.
मैं रात की सुनहरी यादों में खो कर सो गई थी.

हम एक दिन वहीं रुके, फिर काम निपटा कर अगली सुबह वापस निकल गए.
हमारे बीच उस रात वाली घटना के बारे में अभी तक कोई बात नहीं हुई थी. हम अपने शहर वाले घर में आ गए.

हम दोनों उस घटना को जैसे जानते ही नहीं हैं … वाला व्यवहार करने लगे थे.
मैं भी उस रात की घटना को महज ठंड से बचने के लिए किए उपाय समझ कर नार्मल जिंदगी बिताने लगी.

मगर मेरे अन्दर उमड़ रहे बादल मुझे परेशान कर रहे थे.

दो दिन बाद रात में मुझे मन किया कि चल कर देखा जाए कि निखिल ने नेहा को फिर से बुलाया या नहीं.
मैंने कमरे में झांक कर देखा तो सच में निखिल और नेहा का रोमांस अपने चरम पर था. दोनों आपस में गुत्थमगुत्थी कर रहे थे.

सीन देख कर मेरे अन्दर की हवस तेज़ होने लगी.
ऐसे ही मैं 4 चार दिन देखती रही. आखिरकार मेरे सब्र का बांध टूटने लगा था.

पांचवें दिन हम दोनों रात में खाना खा रहे थे. मुझसे रहा नहीं गया.

मैं- बेटा ये नेहा कितने दिनों से रात में आती है.
निखिल ने घबरा कर कहा- क्या … नहीं तो वो कहां आती है.

मैं- घबराओ नहीं, मुझे सब पता है. वो रात में आती है और तुम दोनों क्या करते हो, ये मैं देख चुकी हूँ.
निखिल- वो हम दोनों प्यार करते हैं.

मैं- मुझे सब पता है. इस उम्र में लड़कों और लड़कियों को इस चीज़ की बहुत जरूरत होती है. मगर जवानी के जोश में ध्यान रखना, कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए. दुनिया में बदनामी न हो. ना तो तेरी … और ना नेहा की.
निखिल- ऐसा कुछ नहीं होगा मम्मी. वैसे भी हम बाहर ज्यादा बातें नहीं करते.

मैं- मैं एक बात बोलना चाहती हूँ.
निखिल- क्या?

मैं- यही कि उस बारिश वाली रात हमारे बीच जो कुछ हुआ, वो केवल ठंड से बचने के लिए किए गए काम का हिस्सा था. मगर उस दिन से मेरे अन्दर एक अजीब सी चाहत दौड़ गयी है. पता नहीं मैं अपने शरीर को ठीक से संभाल नहीं पा रही हूँ. शायद जिंदगी भर अकेली रहने की आदत सी पड़ गयी थी. मगर एकाएक उस रात मेरी सो चुकी अरमानों में तूने एक नई किरण डाल दी है. मैं चाहती हूँ कि अभी कुछ दिन तुम नेहा को मत बुलाना.
निखिल- मैं समझा नहीं मम्मी.

मैं- बस तुम नेहा को रात में मत बुलाना … फिर मैं बाकी समझा दूंगी.
निखिल- ठीक है.

मैं- क्या वो आज आ रही है?
निखिल- नहीं, आज ही उसका पीरियड चालू हुआ है.
मैं- ठीक है, जाओ आराम करो.

निखिल अपने कमरे में चला गया.

मुझे आज सेक्स करने का बहुत मन था. मैंने जल्दी से काम समाप्त किया और कुछ देर अपने कमरे में आराम करने लगी.

कुछ देर के बाद जब मेरी वासना बर्दाश्त से बाहर हुई तो उठ कर सीधी निखिल के कमरे में चली गयी.
वहां निखिल सो रहा था. मैं भी उसके साथ उसके बाजू में जाकर लेट गई.

निखिल जान चुका था कि मैं उसके साथ सो गयी हूँ.

मैं धीरे-धीरे निखिल से चिपक कर सोने लगी. मेरे मन में संदेह था कि पता नहीं आज निखिल मुझ में कोई इंटरेस्ट लेगा या नहीं.

मगर मेरा सोचना गलत था.

निखिल पलट गया और मेरी तरफ चेहरा करके मेरे चेहरे को देखने लगा था. मैं भी उसे देख रही थी. हम दोनों की नज़र एक दूसरे को देख रही थीं.

तभी निखिल मेरे होंठों की तरफ बढ़ गया और मेरे होंठों को चूमने लगा.
मैं भी निखिल का बखूबी साथ दे रही थी.

हम दोनों शांत थे. मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ लगा दिए और जोर से किस करने लगी. मेरे अन्दर की आग भड़क रही थी.
निखिल का तो अभी गर्म खून था ही … वो जोश से भरा हुआ था.

मैं आज फिर एक बार अपने ही बेटे के होंठों को चूम रही थी. वो मुझसे लिपट गया था. मेरे दोनों स्तन उसके सीने से दब गए थे.

निखिल ने बड़ी तेजी से मेरे ब्लाउज के हुक खोल दिए और ब्लाउज निकाल दिया. अगले ही पल मेरे स्तन उसके हाथों में आ चुके थे.

मेरी बड़ी-बड़ी मखमली दूधिया सुडौल चूचियों को सहलाने से मुझे जो मज़ा मिल रहा था, वो और कहीं नहीं मिल सकता था.

निखिल मेरे स्तनों को चूसने लगा.
मुझे एक बार फिर निखिल का बचपन याद आ गया था कि कैसे इन्हीं स्तनों से मैं इसकी भूख शांत करती थी.
आज भी वो मेरे इन्हीं स्तनों को चूस रहा था. मगर आज वो मेरी भूख शांत कर रहा था.
उस समय उसका पेट की भूख शांत होती थी और आज ये मेरे जिस्म की भूख शांत कर रहा था.

मगर ये वासना की भूख थी.

मेरे स्तनों को चूसे जाने से मेरे अन्दर काफी तेज उत्तेजना दौड़ने लगी थी.
मैं निखिल के होंठों को दोबारा चूमने लगी और उसके गाल, गर्दन, पीठ, नाभि सभी जगह बारी-बारी चुम्बनों की बौछार करने लगी.

धीरे-धीरे वो भी अब मेरे साथ सब कुछ करने को जैसे तैयार हो चुका था.

निखिल ने अपने हाथों से मेरी साड़ी और पेटीकोट को कमर तक उठा दिया था और हाथों से मेरी चुत को स्पर्श करने लगा था.
उसकी इस हरकत से मैं एकदम कांप उठी. मेरी चुत में उसके हाथों का स्पर्श होते ही मेरे अन्दर भी एक अजीब सी कंपकंपी आने लगी थी.

निखिल के हाथ को पकड़ कर मैं अपनी चुत में दबाने लगी थी.
मैंने भी अपना पूरा जोर लगा दिया था और चुत को रगड़वाने लगी थी.

निखिल के चुत रगड़ने से मेरी सिसकारियां निकल पड़ी थीं.
वो अब मेरी चुत को और जोर-जोर से सहलाने लगा था.

मैं बहुत देर तक ऐसे ही चुत को रगड़वाने से गर्मा गई थी.
बीच-बीच में मेरी चुत पानी छोड़ने लगी थी. मैं साड़ी और पेटीकोट की बंधन से आजाद होना चाहती थी इसलिए मैंने दोनों को नीचे खिसका दिया.

मेरी नंगी चुत देखकर निखिल ललचा गया था.
निखिल धीरे से अपना चेहरा मेरी चुत के पास ले गया और मेरी चुत को चूसने लगा.

अहह … मेरे शरीर में एक करंट की लहर सी दौड़ गयी.
निखिल जोर-जोर से अपनी जीभ चुत में घुमा रहा था.

मैं अब पूरी तरह मूड में आ चुकी थी. मैं लेट कर आंखें बंद करके मादक सिस्कारियां ले रही थी.

निखिल का लंड भी अब मेरी चुत में सैर करने को आतुर हो चुका था.
मगर मैं निखिल के मोटा लंबा लंड का स्वाद चखना चाहती थी.

मैंने निखिल के सारे कपड़े उतार कर उसे पूरा नंगा कर दिया. निखिल का लंड पूरी तरह अपने 7 इंची रूप में आ गया था.

मैंने घुटनों के बल बैठ कर निखिल के लंड को पकड़ कर धीरे से अपने मुँह में ले लिया.
आह लंड चूसने का गजब का आनन्द था. निखिल का लंड मेरे मुँह में आधा भी नहीं समा पा रहा था.
मैंने निखिल के लंड को जीभर के चूसा.

फिर मैं बिस्तर में लेट गयी; मेरी जांघों को फैला दिया.

फिर उसने मेरी टांगों को अपने कंधे पर ले लीं और खुद मेरी टांगों के बीच में आ गया.
मेरे बेटे ने अपना लंड मेरी चुत में फिट किया और अन्दर पेल दिया.
उसका लंड एक ही झटके में मेरी चुत की गहराई में समा गया.

लंड चुत में समाते ही मेरे और निखिल के बीच एक बार फिर नाजायज संबंध बन चुका था. ऐसा संबंध जो बहुत बड़ा पाप था. बिना कोई जोर लगाए मेरे बेटे का मोटा लंड पूरी तरह मेरी चुत में डूब गया था.

निखिल मेरे नंगे जिस्म को चूमते हुए अपना लंड चुत में दौड़ाने लगा.

अहह गजब का मदहोश करने वाला पल था. कल तक जिस बेटे के बारे में गलत नहीं सोच पा रही थी, आज मैं उसके साथ शारीरिक संबंध बना रही थी.
इस उम्र में ऐसा भारी लंड शायद ही किसी लड़के का होता होगा.

निखिल के हर एक झटके का मैं अपनी चुत में खूब मज़े लेने लगी थी. मैं बिस्तर में लेटी हुई थी और मेरी चुत में मेरे बेटे के लंड के धक्कों को बौछार हो रही थी.

मेरा बेटा अपना लंड मेरी चुत में काफी तेजी से रगड़ रहा था. मेरी चुत के पानी से निखिल का लंड पूरी तरह भीग गया था और आराम से चुत में दौड़ रहा था. मैं निखिल को बार-बार उसके होंठों और गर्दन को चूमते हुए धक्के लगवा रही थी.

मैं सब कुछ भूल चुकी थी. मैं जिसके साथ मज़े कर रही थी, वो मेरा सगा बेटा था और शायद वो भी भूल गया था कि वो अपने मम्मी के साथ संभोग कर रहा है.

बीच-बीच में मेरी चुत पानी छोड़ रही थी. मैं अपने बेटे निखिल के मोटे लंड से करीब 20 मिनट से लगातार चुद रही थी.

आखिरकार निखिल के पानी छोड़ने का टाइम आ गया. उसने अपना वेग दोगुना कर दिया और मुझे कसके जकड़ लिया.

जब उसका पानी निकला, तो पूरा लंड उसने मेरी चुत के अन्दर ही रोक दिया था. उसके गर्म लावा के निकलने का पूरा आभास मेरी चुत की गहरई में हो रहा था.
जब निखिल पूरी तरह से झड़ गया, तो वैसे ही लंड को चुत में डाल कर मेरे ऊपर ही कुछ देर तक पड़ा रहा.

मैं जोर-जोर से हांफ रही थी.

कुछ देर बाद निखिल मुझसे से अलग हो कर मेरे बाजू में लेट गया.
मेरे शरीर में अब एक संतुष्टि थी. मेरी आंखों में एक चमक थी … मैं बहुत खुश थी. निखिल मेरे माथे को चूमने लगा.

मैं भी निखिल के होंठों को चूम कर बिस्तर से उठने लगी.

निखिल ने मुझे अपनी तरफ खींच कर बिस्तर में ही रोक लिया था.
वो मेरे मम्मों में प्यार से हाथ फेरने लगा था.

निखिल की हरकतों से मेरे अन्दर दोबारा जोश भरने लगा था और कुछ देर बाद हम दोबारा चुदाई करने को तैयार हो चुके थे.

इस बार मैं उसके ऊपर आकर मेरी चुत लंड में फंसा कर चुदायी करने लगी.

अभी तक हम दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई थी. जो भी हो रहा था … बड़ी खामोशी से दोबारा होने लगा था.

हमारा दूसरा राउंड थोड़ा लम्बा चला था. इस बार फिर से उसने सारा पानी अन्दर ही गिरा दिया था.
ये रात बहुत ही सुहानी गुजरी थी.

हम दोनों मां बेटे ने एक ही कमरे में रात बिता दी थी.
सुबह मैं जल्दी उठी, जब मैं जगी, तब निखिल सो रहा था.

बाकी दिनों की तरह ही दिन बीतने लगे थे. मगर अब हमारी रातें रंगीन होने लगी थीं.

करीब 7 महीने हमारे बीच संबंध बनते रहे. उसके बाद शायद मेरी शरीर से वो सुनहरा दौर गुजर गया.

अब 15-20 दिन में एकाध बार चुदाई हो जाया करती थी.
धीरे धीरे मेरी रुचि भी इन सबसे हट चुकी थी.

निखिल की शादी नेहा से हो गई थी. अब वो दोनों बड़े प्यार से अपना दाम्पत्य जीवन जी रहे थे.

मेरे और निखिल के बीच में जो कुछ भी हुआ, वो हम दोनों के अलावा किसी और को पता नहीं … मगर मेरे बेटे ने मुझे वो दिया, जिसे कोई भी बेटा अपनी मां को नहीं दे पाता.

मैंने अपने बेटे से शरीरिक संबंध बनाया, इसका कोई दुख नहीं है बल्कि मुझे अपने आगे का रास्ता मिल चुका था.

 

junglecouple1984

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जंगल में बड़ी चाची की चूत का मंगल


हाय दोस्तो, मैं राहुल साहू गरियाबंद (छत्तीसगढ़) के पास के गांव का हूँ.

मेरी उम्र अभी 26 है, कद 5 फ़ीट 10 इंच, लंड का आकार 8 इंच लंबा व 3 इंच मोटा है.
अपने इस मूसल लंड से मैंने कई आंटियों को चोदा है और चोद चोदकर भरपूर संतुष्ट किया है.

मेरी बड़ी चाची भले ही देखने में काली है लेकिन गदरीली मांसल जांघों वाली और मोटी गांड की मालकिन है. उसके बड़े बड़े चूचे हैं जो कि उसके ब्लाउज को रुलाते रहते हैं.

उसका कद 5 फिट 6 इंच और साइज 36-30-38 का है. उसके अंगों में इतनी मादकता है कि काली होने बावजूद वो मर्दों को अपनी तरफ आकर्षित किया करती है.

हम दोनों का परिचय तो हो गया. अब मैं असली घटना का वर्णन करूंगा कि कैसे, कब और क्या हुआ था.
यह कहानी तब की है जब मैं 19 साल का था और मेरी बड़ी चाची 38 की थी।

मेरे तीन दादा थे. मेरी बड़ी चाची मेरे बड़े दादा की बहू थी. मेरा घर और बड़ी चाची का घर अगल बगल में जुड़ा हुआ था तो मेरा आना जाना लगा रहता था और वो भी हमारे यहां आती जाती रहती थी.

मैंने पहले उनको कभी गन्दी नजरों से नहीं देखा था लेकिन एक बार हम दोनों की जिंदगी में ऐसी घटना घटी कि उसकी बाद से मेरे विचार उनके लिए बदल गये.

हुआ यूँ कि दोस्तो, मैं एक दिन दोपहर में उनके घर गया था. मैं भैय्या को ढूंढते हुए उनके रूम गया तो कोई नहीं था वहां. फिर मैंने सोचा घर में कोई नहीं है और मैं वापस आ रहा था.

अचानक मुझे जोर से कराहने की आवाज आई और हाँफने की.
फिर मैं बड़ी चाची के रूम की तरफ गया.
वहाँ जो नजारा था वो देखकर मैं स्तब्ध रह गया.

बड़ी चाची पूरी नंगी होकर बड़े चाचा से चुदवा रही थी. जल्द ही बड़े चाचा का झड़ गया.
उससे बड़ी चाची भड़क गयी और बोल रही थी- तुम्हारे लंड में अब दम नहीं रहा, मुझे शांत किये बिना ही झड़ जाते हो।

फिर बड़े चाचा कपड़े पहनकर बाहर चले गये.

आप लोग जानते हो कि गांव में पति पत्नी में उम्र का काफी फासला देखा जाता है. वैसा ही उन दोनों में भी था.

बड़ी चाची चुदक्कड़ थी. रंग से काली थी, मगर भरा-पूरा बदन देखकर लगता था कि बहुत लंड ले चुकी है. इसकी पुष्टि करने के लिए मैंने बड़ी चाची से दोस्ती करने की सोची.

धीरे धीरे मैं उनके करीब आया. वो भी चुदक्कड़ थी तो मेरे जैसा जवान लंड देखकर जल्दी ही खुल गयी.
तब उन्होंने बताया था कि जवानी में बहुत लोगों के लंड लिए थे. शादी से पहले भी चुदवाई थी.

उसने ये भी बताया कि बड़े चाचा ने उनके मांसल शरीर और बड़े स्तन और बड़ी गांड देखकर ही शादी की थी।
मजे की बात तो ये थी दोस्तो कि शादी फिक्स होने के बाद सगाई से पहले बड़े चाचा ने बड़ी चाची को खेत में चोदा था.

भले ही बड़े चाचा अभी उनको संतुष्ट नहीं कर पाते थे लेकिन पहले वो भी बहुत बड़े हवसी थे।
ये सब कहानी बड़ी चाची ने मुझे उनकी चुदाई के बाद बतायी थी.

तो दोस्तो, ये तो बड़ी चाची और बड़े चाचा की कहानी हो गयी. अब आगे चलते हैं.

मेरी बड़ी चाची बड़े चाचा की अधूरी चुदाई से नाराज अभी भी नंगी बिस्तर में चूत में उंगली कर रही थी.
उसको देखकर मैं भी लंड निकालकर मुठ मारने लगा।

फिर उसके बाद मैं सोच रहा था कि इसकी चूत में इतनी ही प्यास है तो मैं ही जाकर चोद दूँ क्या?
फिर मैंने सोचा कि आखिर वो मेरी बड़ी चाची है. मुझसे चुदेगी क्यों?
यही सोचकर मैं वापस आ गया.

चाची की चुदाई का ये सब नजारा मैंने खिड़की से देखा था. मुझे नहीं पता चला था कि बड़ी चाची ने भी मुझे देख लिया था. वो भी मुझे अपना शिकार बनाना चाह रही थी.

अब अगले दिन से मैं उनके घर जाने लगा. वैसे पहले भी लगभग रोज ही जाता था.

वो गहरे गले का ब्लाउज पहनती थी जिससे उनके क्लीवेज साफ साफ दिखते थे. बड़े बड़े स्तन थे उनके और वो इतने टाइट ब्लाऊज पहनती थी कि बटन टूटने को हुए रहते थे.

मैं रोज उनके बदन के दर्शन करने उनके घर जाता था.

एक दिन तो वो नहा रही थी बाथरूम में और घर में उस वक्त कोई नहीं था.

मैं आवाज देते हुए गया. सोचा कि यहीं कहीं मूतने गयी होगी तो चूत के दर्शन कर लूंगा.
मैं छुपकर देखने लगा.

मैंने देखा कि वो चुदासी औरत पेटीकोट को स्तन के ऊपर तक बांध कर नहा रही थी।

फिर मैंने उनको पुकारा तो वो बोली- मैं नहा रही हूँ. अच्छा हुआ कि तू आ गया. एक बार आकर जरा साबुन लगा दे मेरी पीठ पर।

उसके बाद फिर मैं गया और उनकी पीठ पर साबुन लगाने लगा. उसके भीगे बदन को देखकर मेरा लंड फुफकार मारने लगा।
फिर वो बोली- जा बेटा … मैं नहाकर आती हूँ।

फिर मैं आकर वहीं पर पास में ही छुप गया. मैं वहां से गया नहीं. मैंने देखा कि उसने अपना पेटीकोट उतार दिया और वो पूरी की पूरी नंगी होकर नहाने लगी.
मैंने वहीं पर उसको नंगी देखकर मुठ मारी और फिर आकर रूम में बैठ गया.

वो अपनी पैंटी और ब्लाउज रूम में छोड़कर गयी हुई थी.

फिर वो आई और मुझसे अपनी पैंटी मांगने लगी. उसने पैंटी ली और मेरी ओर पीठ करके पहनने भी लगी.

मैं तो उसको देखकर पागल हुआ जा रहा था. मन किया कि साली को यहीं पटक कर चोद दूं. मेरा दिमाग खराब कर रही थी गांड दिखाकर. मगर मेरे मन में डर भी था कि कहीं कुछ उल्टा हो जाये और फिर सब गड़बड़ हो जाये.

फिर उन्होंने अपनी जांघों पर तेल लगाया और एक टांग को पलंग पर रखकर मालिश करने लगी. वो जान बूझकर ये सब कर रही थी. उसके बाद उन्होंने फिर मेरी तरफ पीठ की और अपने पेटीकोट को चूचियों से नीचे करते हुए अपने ब्लाऊज को पहनने लगी.

उसके बाद उन्होंने मुझे हुक लगाने को बोला. मैं हुक लगाते हुए उसकी बड़ी सी गांड में लंड को टच करने लगा.
मैं बहाने से उसकी पीठ पर हाथ फिरा रहा था और वो कुछ बोल भी नहीं रही थी.

मेरे पास मौका था लेकिन डर के मारे उस दिन मैं उनके साथ कुछ नहीं कर पाया। ये सिलसिला बहुत दिनों से चल रहा था. उनका अंग प्रदर्शन करना और मेरा उनका दीदार करना।

फिर एक दिन मैं अपने घर में टी.वी. पर डब्ल्यू.डब्ल्यू.ई. देख रहा था और बड़ी चाची मेरी साइड में आकर चिपककर बैठ गयी.
उस समय पुरुषों का मैच चल रहा था.

उसके बाद महिलाओं का मैच चालू हो गया तो मैंने चैनल बदल दिया.
बड़ी चाची ने कहा- चलने दे बेटा, मेरे को अच्छा लगता है.

फिर वो खत्म हो गया तो मैंने मूवी लगायी.

इत्तेफाक से मर्डर मूवी चल रही थी। उसमें हॉट सीन चल रहा था तो मैंने चेंज कर दिया.

अब उसने मेरे हाथ से रिमोट ही छीन लिया. फिर उसने दोबारा से वही मूवी लगा दी और मेरे पैरों पर अपने पैर रगड़ने लगी.

वो अब पूरा सिग्नल दे रही थी.
ये सब होने के बाद भी मैं उनसे कुछ नहीं बोल पाया।

हम लोग एक मध्यमवर्गीय परिवार से थे. मार्च-अप्रैल महीने में हमारी तरफ रोजगार का साधन नहीं रहता तो हम लोग महुआ संग्रहित करने जाते हैं जिससे शराब बनायी जाती है।

मैं और बड़ी चाची हर वर्ष सुबह 5 बजे उठकर जाते थे. मैं उनकी सहायता करता था। हम लोग शराब नहीं बनाते हैं. हम लोग उसे संग्रहित करके व्यापारियों को बेच देते हैं और फिर उनको व्यापारी लोग कोल्ड स्टोर में रखकर कुछ महीनों के बाद जो शराब बनाते हैं उनको बेचते हैं।
ये हम जंगल वासियों के लिये रोजगार का साधन जैसा होता है.

तो अब वापस से स्टोरी पर आते हैं. मैं बड़ी चाची के साथ जंगल में था और वो झुककर काम करते हुए मुझे अपने चूचे दिखा रही थी.

फिर वो वहीं बैठकर पेशाब करने लगी. मैं उसकी ओर देख रहा था. उसकी गांड मुझे दिख गयी. मैंने सोच लिया कि अब तो इसकी चुदाई जंगल में ही कर दूंगा मैं.

अगले दिन हम लोग बाइक से जा रहे थे और वो मेरे से बिल्कुल चिपक कर बैठी हुई थी. मेरा लंड लोअर में पूरा तन चुका था. उसका उभार साफ साफ नजर आ रहा था.

हम लोग जैसे ही पहुंचे वहाँ मैंने गाड़ी साइड में लगा दी.

बड़ी चाची अपनी साड़ी और पेटीकोट को जांघ के ऊपर तक लाकर बांधकर काम करने लगी.
मैं आज उसकी जांघों को निहार रहा था. चूचे तो उसके रोज ही देखता था.

मैंने सोच लिया था कि आज इसको चोदना है. फिर मैं भी महुआ बीनने लग गया. जानबूझ कर मैं उनकी तरफ ही गया उनके पीछे। फिर उनके एकदम करीब पहुंच गया.

क्या होता है कि जब महुआ बीनते हैं तो सर ऊपर नहीं करते हैं और मैं कब उनके इतने करीब पहुंच गया कि पता ही नहीं चला. उनकी सेक्सी टाँगें व मोटी मोटी जांघें इतने करीब से देख कर मैं पागल हो गया।

हिम्मत करके मैंने उनकी जांघों को अपने हाथों से पकड़ लिया.
बड़ी चाची झट से पलटी और बोली- राहुल … ये क्या कर रहा है?
मैंने बोला- 2 महीने से जो आपने मुझमें वासना की आग जलाई है उसका परिणाम है।

वो झूठी नौटंकी करते हुए बोली- ये गलत है राहुल, मैं तुम्हारी चाची हूं।

फिर मैं खड़ा हुआ और बोला- रोज मुझे अपने नंगे शरीर का दीदार कराती थी तो वो क्या था? मेरे पैरों को अपने पैरों से रगड़ना वो क्या था? मेरे सामने अपनी जांघों में तेल लगाना … मेरे सामने पैंटी पहनना और मुझसे ब्लाउज के हुक लगवाना क्या था?

इस बात पर वो हंसने लगी और बोली- मुझे क्या पता वो क्या था?
फिर मेरे पास आई और कहा- गांडू इतने दिनों से तेरे को लाइन दे रही हूं, खुले आम ऑफर दे रही हूं, 2 महीनों से नहीं चुदी हूँ … तुझे कुछ दिखाई नहीं देता क्या चूतिया?

ये कहते हुए उसने मेरे लंड को हाथ में पकड़ लिया और बोली- इसके लिए ही ये सब किया मैंने!

बस फिर क्या था दोस्तो … फिर हमारा कार्यक्रम चालू हो गया.
उन्होंने मेरे होंठों को चूमना चालू कर दिया. मैं भी उनका बराबर का साथ दे रहा था.

फिर तो हम एक दूसरे को बेताहाशा चूमने लगे।

देखते ही देखते पूरे नंगे हो गये. मैंने उनकी जांघों से धीरे धीरे चुसाई करते करते चूत का रास्ता ले लिया.

अब मैं चूत में जीभ डालकर चाटने लगा. वो सिसकारी मारने लगी। फिर मैंने आवाज ज्यादा न गूंजने से बचाने के लिए बड़ी चाची के मुंह में लंड दे दिया. वो मेरा लंबा मोटा लंड देखकर खुशी से पागल हो गयी और मेरी मस्त चुसाई करने लगी.

कुछ देर तक मैंने उसके मुंह में धक्के दे देकर लंड चुसवाया और फिर हम दोनों 69 की अवस्था में एक दूसरे को तृप्त करने लगे.
चुसाई करते हुए हम दोनों एक बार झड़ गए.
हम एक दूसरे के रस को चाट चाटकर पी गए।

फिर थोड़ी देर बाद हम दोनों ने एक दूसरे को फिर से तैयार किया. मेरा लंड जैसे ही खड़ा हुआ मैंने उनको लिटा कर उनकी चूत में लंड झटके से डाल दिया.

आधा लंड उनकी चूत में घुस गया.
वो चिहुँक उठी.

मैं धीरे धीरे करके लंड को घुसाने लगा और वो भी दर्द में तड़पती रही।
थोड़ी देर के बाद वो मेरा खूब साथ देने लगी।

वो अब कमर हिला हिलाकर चुदवाने लगी। चाची कईयों का लंड ले चुकी थी इसलिए पूरे अनुभव के साथ मुझसे चुदवा रही थी।
चुदाई में मस्त होकर वो मेरी पीठ कर खरोंचने लगी. मेरी पीठ पर जलन होने लगी थी.

मैं अपनी पूरी ताकत के साथ चूत को पेल रहा था। फिर मैंने उनको डॉगी पोज़ में भी चोदा और फिर उनको गोदी में उठाकर पेला।
वो मेरी चुदाई से बहुत खुश हो रही थी.

उसके चेहरे पर संतुष्टि झलक रही थी.
वो कहने लगी- आह्ह राहुल … तेरा लंड और चुदाई मजेदार है … मुझे चोदता रह … आह्ह … चोदता जा … जब तक मैं तुझे रोकूं नहीं.

मैं उनको उठाये हुए चोद रहा था. मेरे हाथ उसकी गांड के छेद को सहला रहे थे.
मैंने बोला- ये छेद तो रह ही गया.
वो बोली- मैंने आज तक गांड चुदाई नहीं करवाई है मगर तेरी इच्छा है तो कर लेना.

मैंने उसको नीचे उतारा और उसको कुतिया बनाकर उसकी गांड के छेद को चाटने लगा.
मैं उसकी गांड के छेद में जीभ घुमाकर चूसने लगा.
वो पागल हो रही थी.

फिर मैंने ढेर सारा थूक हाथ पर डाला और उसकी गांड के छेद में उंगली करने लगा.
उसको दर्द हो रहा था. वो मना करने लगी.

मैंने उसकी गांड में अपना लंड घुसा दिया और वो एकदम से चीख पड़ी.
वो मुझे पीछे धकेलने लगी.

लेकिन मैं उस पर चढ़ गया और गांड को चोदने लगा.
वो कराहती रही और मैं चोदता गया.

जब उसकी गांड खुल गयी तो वो फिर आराम से चुदवाने लगी.

उसकी चूचियों को भींचते हुए अब मैं उसकी गांड को लंड से ठोक रहा था.

उसके चूतड़ हर धक्के के साथ उछल रहे थे. फिर चोदते हुए मैंने उसकी गांड में माल गिरा दिया.

2 घंटे की इस घमासान मैराथन चुदाई के बाद हम लोग बेहद थक गए थे। थोड़ी देर बाद हम लोग घर आ गए।

रात को चाची ने मुझे फिर बुलाया और फिर हमने पूरी रात चुदाई की क्योंकि बड़े चाचा एक बार सोने के बाद उठते ही नहीं थे.
चाची अपनी अय्याशी के लिए बड़े चाचा को नींद की दवा दे देती थी.

हम लोग उनकी बगल में ही चुदाई करते रहे और वो सोते रहे. जितने दिन महुआ के लिये गये तो हम लोगों ने रोज ही कम से कम एक घंटा जंगल में मंगल किया।

जंगल में चुदवाने के बाद फिर रात को वो मेरी बीवी की तरह चुदवाती थी. आज भी मैं उनको चोदता हूँ. वो मेरे घर में आती है तो मेरे रूम में जरूर आती है.

चुपके से वो मेरे रूम के अंदर मुझसे अपनी चूत और गांड चटवाती है. मैं भी उसकी मोटी गांड और प्यासी चूत के पूरे मजे लेता हूं. उसने पैंटी और ब्रा पहनना छोड़ रखा है और सीधे आकर मेरे मुंह से चूत लगा देती है.

तो ये थी मेरी बड़ी चाची की चुदाई की कहानी. आपको जंगल सेक्स कहानी पसंद आई होगी.
 

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ससुराल में बीवी और उसकी भानजी संग- 1



यह कहानी लगभग 5 वर्ष पुरानी है। मेरी पत्नी शशि को सुबह 4:00 बजे फोन आया कि उसके ताऊ जी (पिता के बड़े भाई) का स्वर्गवास हो गया है.
खबर सुनकर ही पत्नी विचलित हो गई. पत्नी के रोने की आवाज सुनकर मेरी आंखें खुलीं तो मुझे भी इस दुखद खबर का पता चला।

आनन-फानन में पत्नी के मायके जाने की तैयारियां शुरू हुईं और 1 घंटे के भीतर ही हम दोनों अपनी कार से निकल भी गए।
मेरठ से लुधियाना के सफर में मेरी पत्नी शशि के कई बार आंसू ढलक आये क्योंकि उसके मायके में संयुक्त परिवार है तो आपस में लगाव होना स्वाभाविक ही है.

हालांकि 5 घंटे के सफर की थकान मुझपर भी हावी थी मगर वहां का गमगीन माहौल देखकर मैं भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अपने ताऊ ससुर के अंतिम संस्कार में शामिल हो गया।

धीरे-धीरे परिवार के सभी सदस्य वहां पहुंच गए। दोपहर को 2:00 बजे अंतिम संस्कार कर दिया गया।

तब तक थकान इतनी हो गयी थी कि घर आकर स्नान करने के बाद कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।

रात्रि भोज के समय भी जब मेरी आंख खुली तब तक बचे हुए कुछ मेहमान भी आ रहे थे.
मैंने शशि से पूछा कि वापस अभी चलना है या सुबह चलोगी?

इतना बोलते ही मेरी सासू मां मुझ पर गुस्सा करने लगीं और बोलीं- कम से कम ऐसे में तो लड़की को कुछ दिन मायके में रहने दो?
सासू मां की स्नेहपूर्ण डांट सुनकर मैंने शशि को वहीं छोड़ने का निर्णय किया और अगले दिन सुबह अपनी कार से अकेला ही घर वापस आ गया।

अब 13 दिन के लिए शशि अपने मायके में ही रहने वाली थी और मेरी शादी के बाद यह पहला मौका था जब मुझे शशि के बिना अकेले इतने दिन और रात दोनों ही काटने थे।

मेरे लिए यह समय किसी सज़ा से कम नहीं था मगर परिस्थिति के आगे हम दोनों ही नतमस्तक थे।

शुरू के चार-पांच दिन तो बच्चों के साथ खेलते खेलते और शशि को याद करते बीत गए. फिर उसके बाद धीरे धीरे विरह की ज्वाला बहुत तेजी से धधकने लगी।

दसवां दिन आते आते तो मेरे लिए एक-एक पल काटना मुश्किल हो रहा था।
मैं और शशि रोज एक दूसरे से फोन पर बात करते थे. अगर मौका लग जाता तो फोन पर ही थोड़ा बहुत कामक्रीड़ा का आनंद भी ले लेते।

मगर यह तो उस आनंद का एक प्रतिशत भी नहीं था जो शशि के मेरी बांहों में होने के बाद मिलता था।

मेरी तो रातों की नींद भी उड़ चुकी थी। अब अक्सर मैं दिन और रात जागता रहता।

कई बार शशि मुझे डांट भी चुकी थी मगर मैं क्या करूं कुछ किये नहीं बन रहा था। मुझे तो उसी के नग्न बदन से चिपक कर सोने की आदत पड़ी हुई थी। उसके बिना कैसे नींद आती?

आखिर में इंतजार करते-करते 11 दिन पूरे बीत गए।
12वें दिन जब मेरे सब्र का बांध टूट गया तो मैंने अपनी गाड़ी उठाई और लुधियाना के लिए निकल गया।
इस बारे में मैंने किसी को कुछ नहीं बताया था।

शाम को 6:00 बजे जब मैं शशि के मायके पहुंचा तो वह भी मुझे अचानक सामने देखकर हतप्रभ थी।
उससे ज्यादा मजा तो तब आया जब शशि की सहेली मनजीत ने शशि पर चुटकी मारते हुए पीछे से कहा- कौन सी घुट्टी पिलाती है तू जीजा जी को … जो ये तेरे बिना रह ही नहीं पाते?

शशि तो बेचारी शर्माकर सिर झुकाकर ही रह गई और मेरी सब सालियां मेरा मजाक उड़ाते हुए मुझे घर के अंदर ले गईं।
अब घर के अंदर का माहौल ठीक हो चुका था। अगले दिन होने वाले तेरहवीं के संस्कार की तैयारियां चल रही थीं।

मैंने भी जाकर थोड़ा आराम करने के बाद काम में सबका हाथ बंटाना शुरू कर दिया।
शाम तक सब अपने-अपने काम से निवृत हो चुके थे।

मैंने मौका देखकर शशि को इशारा भी कर दिया कि आज रात को उसे मेरे साथ कहीं अलग कमरे में सोना है।
मेरा बदन उसके बदन के लिए तड़प रहा था।

शशि ने भी मेरे कान में फुसफुसाकर कहा- जानेमन … मैं कितनी बेचैन हूं बता नहीं सकती. मेरे पूरे बदन को तुम्हारी जरूरत है, चाहे कैसे भी करूं मगर आज रात यह बेचैनी जरूर मिटा दूंगी।

उसके प्यास भरे शब्दों से आश्वस्त होकर मैं नहाने चला गया और रात्रि भोज के पश्चात शशि के इशारे का इंतजार करने लगा।
मुझे पक्का विश्वास था कि जल्दी या देर से ही सही … मगर शशि कुछ ना कुछ इंतज़ाम जरूर करेगी।

तभी मेरे साले ने आकर कहा- जीजा जी … आपके सोने का इंतजाम पड़ोस वाले चड्ढा जी के घर में किया गया है। चलिए मैं आपको वहां छोड़ आता हूं।

साला सामने खड़ा था और मैं चारों तरफ नजर घुमाकर शशि को ढूंढ रहा था। वो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
मैं मन मसोसकर चुपचाप अपने साले के साथ चड्ढा जी के घर पहुंच गया और बिस्तर पर लेटकर सोने की तैयारी करने लगा।

लेट तो गया किंतु नींद तो मुझसे कोसों दूर थी।
मैंने मोबाइल निकालकर शशि को कॉल करने की कोशिश भी की मगर उसके फोन पर घंटी तो बज रही थी लेकिन वह कॉल नहीं उठा रही थी।

अब मुझे झुंझलाहट होने लगी थी। गुस्सा भी सातवें आसमान पर था। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था।

रात के करीब 11:00 बज चुके थे और आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था।

बराबर में ही शशि के मायके से सभी लोगों के बातें करने की आवाजें आ रही थीं मगर शशि की आवाज उसमें भी नहीं थी। ना ही शशि मेरा फोन उठा रही थी।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या चल रहा है?

सोच रहा था कि शशि गई तो कहां गई? उसको कम से कम मेरा फोन तो उठाना चाहिए था?

अभी मैं इसी ऊहापोह में था कि किसी ने मेरा दरवाजा खटखटाया।
मुझे लगा कि शायद शशि ही होगी।

मैंने उसे सीधे अंदर आने को कहा और तभी ‘मौसा जी, नमस्ते!’ की आवाज के साथ शशि की बड़ी बहन अनीता की पुत्री दिव्या कमरे में दाखिल हुई।

पहले मैं दिव्या के बारे में आपको बता दूं. दिव्या शशि की बड़ी बहन की सबसे बड़ी बेटी थी. दिव्या और शशि की उम्र में सिर्फ 8 साल का अंतर था।

यूं तो शशि दिव्या की मौसी लगती थी लेकिन वो दोनों आपस में पक्की सहेलियां थीं। दिव्या मुझे अपना जीजा ही मानती थी और अक्सर मुझे जीजाजी कहकर भी पुकार लेती थी.

दिव्या एक अति खूबसूरत, दुग्ध वर्ण कामायनी, छरहरी काया वाली महिला थी। फर्क सिर्फ इतना था कि शादी के बाद शशि तो मेरे पास आ गई थी और दिव्या अपने पति के साथ कनाडा चली गई थी।

आज मैंने दिव्या को करीब 5 साल बाद देखा था. अब तो दिव्या पहले से भी ज्यादा निखर गई थी। दिव्या का पति मनोज एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर था जो अब कनाडा शिफ्ट हो चुका था।

दिव्या आधुनिक परिपेक्ष में रहने वाली एक आधुनिक महिला थी। उसे सिर्फ एक ही दुख था कि पिछले 5 साल में उसके घर में संतान नहीं आई थी।
इसके अलावा शायद दुनिया का कोई सुख ऐसा नहीं था जो दिव्या की झोली में नहीं था।

अंदर आते ही दिव्या ने अपनी खनकती आवाज में मुझे नमस्ते की और अपने मजाकिया अंदाज में हर बार की तरह मैंने भी उसे ‘आओ स्वीटहार्ट’ कहकर उसका स्वागत किया।

दिव्या मुझे आंख मारते हुए बोली- मौसा जी … मैं अभी आपसे मिलने नहीं आई हूं, अभी तो मैं एक सीक्रेट मिशन पर हूं!
मैंने आश्चर्यचकित होते हुए कहा- कैसा मिशन?
तो दिव्या ने कहा- आपको बिल्कुल चुप रहना है. आपकी आवाज नहीं आनी चाहिए और बिना कोई भी शोर किए आपको मेरे पीछे चुपचाप चलते जाना है!

‘ओके स्वीटहार्ट’ बोलकर हम भी उस कामायिनी के पीछे चुपचाप हो लिए!
कमरे से निकलकर वो मुझे दबे पांव चड्ढा जी की सीढ़ियों से चलाते हुए चड्ढा जी की छत पर ले गई।

चड्ढा जी की छत मेरी ससुराल की छत से मिलती थी। छत पर जाकर दिव्या ने मुझे चड्ढा जी की छत कूदकर मेरी ससुराल की छत पर जाने को कहा।

बिना कोई आवाज निकाले जब मैंने उससे इशारे में सवाल किया तो उसने मुझे प्यार से धक्का देते हुए बहुत हल्की आवाज में कहा- आप जाओ, बस!

उसका इशारा पाकर मैं चुपचाप दोनों छतों के बीच की दीवार को फांदकर अपनी ससुराल की छत पर चला गया।
मेरी ससुराल की छत पर एक छोटा सा कमरा बना हुआ था जिसमें अक्सर घर का पुराना सामान रखा जाता था।

मैंने देखा कि उस कमरे के अंदर की लाइट जल रही थी। मैं दबे पांव उस कमरे की तरफ गया, दरवाजा खुला था। जैसे ही मैं कमरे के अंदर दाखिल हुआ मैं तो देखता ही रह गया।

मेरी शशि बिल्कुल अद्भुत … अति सुंदर … रूपवान अप्सरा सी लग रही थी। मेरा सारा गुस्सा काफ़ूर हो चुका था।
मेरे अंदर जाते ही शशि ने मुझे गले से लगा लिया.
मैंने भी अपनी बांहें पसारकर उसे अपनी बांहों में भर लिया।

2 मिनट तक उसे अपनी बांहों में रखने के बाद मैंने उससे सवाल किया- 2 घंटे से तुम्हें ढूंढ रहा हूं … तुम थी कहां?
तो शशि ने बताया- बुद्धू, तुम्हारे लिए ही तैयार हो रही थी। अब इस तरह के माहौल में अपने घर में तो तैयार नहीं हो सकती थी न? बड़ी मुश्किल से दिव्या को लेकर उसकी एक सहेली के घर गई थी। वहीं जाकर तुम्हारे लिए पूरी तरह से तैयार होकर दिव्या के साथ ही छुपते छुपाते यहां तक आई हूं। घर में किसी को नहीं पता कि मैं कहां हूं। इसीलिए मोबाइल भी साइलेंट कर रखा था, सिर्फ दिव्या ही हमारी राजदार है।

मैंने मन ही मन दिव्या को धन्यवाद दिया और अपने होंठों को शशि के होंठों पर रख दिया।
शशि के होंठ किसी अंगारे की तरह तप रहे थे। ये तो जैसे इसी प्रतीक्षा में थे कि कब मेरे होंठ उसको छुएं।

शशि मेरे होंठों पर हावी होकर बहुत तेजी से मेरे होंठ चूसने लगी. अब समझ में आ रहा था कि जितना मैं बेचैन था उतनी ही बेचैन मेरे लिए मेरी शशि भी थी।

यह पति पत्नी का प्यार ही कुछ ऐसा होता है। गैरों से तो इंसान अपना प्यार जता भी देता है लेकिन पति पत्नी जितना प्यार एक दूसरे को करते हैं वह जता ही नहीं पाते।

आज शशि की बेचैनी देखकर मेरी पीड़ा खत्म हो गई थी।
मैंने कसकर अपनी बांहों में शशि को दबा लिया।
आह्ह … की सिसकारी के साथ शशि ने मेरे होंठों को छोड़ दिया।

मैं पागलों की तरह शशि के पूरे चेहरे को चूमने लगा। शशि की आंख … नाक … होंठ … गला … ये सभी अंग मेरे प्रिय रहे हैं।

शशि ने मेरी पीठ पर हाथ फिराना शुरू कर दिया।

अब मैंने भी चूमते चूमते शशि की हरे रंग की कुर्ती धीरे धीरे ऊपर सरकानी शुरू कर दी।
शशि तो जैसे इसी इंतजार में थी।
थोड़ी सी कुर्ती ऊपर सरकते ही उसे निकालने के लिए शशि ने अपने दोनों हाथ ऊपर कर दिये।

मैंने बहुत प्यार से शशि की कुर्ती को उसके बदन से अलग कर दिया। अब शशि का गोरा बदन मेरे सामने सिर्फ एक ब्रा में था। मैं चारों तरफ देखते हुए कोई बिस्तर खोजने लगा जहां शशि को लिटा सकूँ।

शायद शशि मेरी बात समझ गई थी।
वो तुरंत बोली- साहब, यहां बिस्तर नहीं मिलेगा. नीचे से चादर लेकर आई हूं. उसे यहीं फर्श पर बिछा लो। उसी से आज काम चलाना पड़ेगा।

मैंने और शशि मिलकर उस चादर को कमरे के फर्श पर बिछा लिया और मैंने शशि को वहीं चादर पर लिटा लिया।
शशि का गोरा गदराया हुआ कामुक बदन सदा से मेरी कमजोरी रहा था।

मैं तो पागलों की तरह शशि का बदन चाटने लगा।
मेरी इस हरकत को देखकर शशि हंसने लगी।
मैं अचानक रुका और शशि से पूछा- हंस क्यों रही हो?

वो बोली- तुम्हारी पागलों वाली हरकत पर हंस रही हूँ! अरे बाबा, अब मैं यही हूं तुम्हारे पास! कोई जल्दी नहीं है, हम आराम से एक दूसरे का साथ इंजॉय कर सकते हैं अब!

बोलकर वो अपने हाथ पीछे ले जाकर अपनी ब्रा का हुक खोलने लगी. मैंने उसकी मदद करते हुए उसकी ब्रा का हुक खोला और उसके दोनों दुग्ध कलश को आजाद कर दिया।

टेनिस बॉल की भांति दोनों दूध कूद कर मेरे सामने बाहर आ गए।
शशि की ये चूचियां मेरे लिए ईश्वर के किसी प्रसाद से कम नहीं थीं। शादी के बाद आज तक मैंने इनसे ज्यादा शायद किसी को प्यार नहीं किया था।

आज तेरह दिन बाद यह दोनों मोटी मोटी पहाड़ियां मुझे निमंत्रण सा देती प्रतीत हो रही थीं। मगर अब मुझे भरोसा था कि शशि मेरी बांहों में है तो कोई जल्दी करने की जरूरत नहीं है।

मैं बहुत प्यार से हल्के हल्के अपनी जीभ से शशि के बाएं चूचक को सहलाने लगा और एक हाथ से हल्के हल्के शशि के दाएं चूचक को मसलने लगा। अब तो शशि को भी पूरा आनंद आने लगा।

अब शशि की हंसी सिसकारियों में बदल गई- ह्म्म … उफ़्फ़ … आहह … की मादक आवाज़ मुझे पागल कर रही थी और मैं अपने दोनों हाथों से उसके इस अधनंगे बदन का आनंद ले रहा था।

हालांकि मैं शुरू से ही शशि के नंगे बदन का दीवाना रहा हूं लेकिन आज तेरह दिन बाद उसकी ये चूचियां मुझे ज्यादा ही उत्तेजना दे रही थीं। मन तो हो रहा था कि बस इनके साथ ही खेलता जाऊं।

मैंने शशि के बदन को चाटते चाटते उसकी पजामी का नाड़ा भी खोल दिया।
शशि तो जैसे इसी इंतजार में थी। नाड़ा खुलते ही उसने अपनी पजामी और उसके साथ ही अपनी पैंटी को भी अपनी टांगों से नीचे की तरफ सरका दिया।

शशि का गोरा बदन, शशि की केले के तने जैसी चिकनी जांघें और उसके बीच प्यारी सी चमचमाती हुई मूत्रदायिनी योनि मुझे पागल बना रही थी।

पजामी और पैंटी अपने बदन से अलग करते ही शशि का बायां हाथ सीधे मेरे बरमूडा पर गया।
नाग की तरह फुँकार रहे मेरे लिंग को शशि ने अपने हाथ पाश में जकड़ लिया।

शशि के 36 साइज के मोटे भरे हुए दुग्ध कलश और आह्ह … की एक मीठी सिसकारी के साथ मैं शशि को और करीब से चिपक गया।

मेरी कामुक पत्नी ने अपना हाथ ऊपर करके मेरी टी-शर्ट और बनियान दोनों ही पकड़ कर मेरे बदन से हटा दिये।
अब मैं सिर्फ एक बरमूडा में शशि के ऊपर था। उसने अपना पैर ऊपर करके, मेरे बरमूडा के इलास्टिक में फंसाकर उसे नीचे सरका दिया।

मैंने भी शशि की मदद करते हुए पूरा बरमूडा ही निकाल फेंका। अब शशि और मैं पूरी तरह से नग्नावस्था में एक दूसरे के साथ गुत्थम-गुत्था थे। मैंने वहीं फर्श पर शशि को उल्टा लेटा दिया और पीछे से शशि के बदन के ऊपर पूरा लेट गया।

लेटकर मैं अपने बदन से शशि के बदन की मालिश करने लगा। मेरा यह तरीका शशि को सदा से ही पसंद आया है। मेरा लिंग पूर्णावस्था में शशि के दोनों चूतड़ों के बीच की दरार पर रगड़ मार रहा था।

मैं पूरा शरीर ऊपर नीचे करके शशि के गोरे चिकने और मुलायम बदन की मालिश कर रहा था। शशि की मादक चीत्कार अब उस छोटे से कमरे में गूंज रही थी।
तभी शशि ने मेरे कान में फुसफुसाया- जल्दी करो … कभी कोई छत पर ना आ जाए!

मैंने अपनी घड़ी में समय देखा तो रात के 12:00 बज चुके थे। मैंने भी देर न करते हुए शशि के ऊपर से हटकर उसी अवस्था में शशि को घुटनों के बल मोड़ दिया और शशि को डॉगी स्टाइल में बिठाकर पीछे की तरफ से नीचे लेट गया।

अब शशि के स्वर्गद्वार (योनि) का मुंह बिल्कुल मेरे मुंह के ऊपर था। शशि की योनि से निकलने वाली गर्म भांप सीधे मेरे मुंह पर आ रही थी। उसी से अहसास हो रहा था कि इस समय शशि के अंदर कितनी काम ज्वाला धधक रही है!
 

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ससुराल में बीवी और उसकी भानजी संग- 2



अभी तक आपने जाना कि मेरे ससुर की मृत्यु पर बीवी 13 दिन तक मायके में रुकी हुई थी. 12वें दिन मेरे सब्र का बांध टूट गया. मैं उसी शाम उसके घर जा पहुंचा और उसे रात को अकेले में मिलने के लिए बुलाया।

हमारा मिलन होते ही दोनों एक दूसरे के जिस्मों में गुत्थमगुत्था हो गये और चुम्बनों के दौर के पश्चात् नग्न जिस्मों की आग को चुदाई से मिटाने के लिए तैयार हो गये.

देर होते देख शशि ने शीघ्रता से चुदाई को अंजाम देने का आग्रह किया और मैंने उसे घुटनों के बल डॉगी स्टाइल में झुका लिया. उसकी योनि का द्वार मेरे मुंह के ठीक सामने आ गया था।

अब आगे लाइव फैमिली सेक्स कहानी:

मैंने अपनी जीभ निकालकर शशि के योनि द्वार के दोनों होंठों को चाटना शुरु कर दिया। अब तो शशि की सिसकारियां उसके काबू से बाहर होने लगीं।
सिसकरती हुई शशि ने कहा- धीरे से करो, मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है! कहीं बाहर किसी ने आवाज सुन ली तो ठीक नहीं होगा!

मुझ पर जैसे शशि की चेतावनी का कोई असर ही नहीं था। मैंने तो अपनी जीभ को गोल घुमा कर धीरे से उस काम द्वार (योनि) के अंदर ठेलना शुरू कर दिया। शशि ने अपने घुटनों को एक दूसरे के साथ जोड़ लिया।

चादर उसने कसकर पकड़ ली। उसका पूरा बदन अकड़ने लगा और वो ऐसे ही अपने नितंब हिला हिलाकर जोर जोर से झटके मारने लगी।
मैं समझ गया कि अब शशि के लिए रुकना मुश्किल है।

मैंने उठकर पीछे की तरफ बढ़ते हुए अपना पौरूषांग (लिंग) शशि के योनि द्वार पर लगा दिया।
आज 12 दिन बाद मेरा लिंग उस स्वर्गद्वार को छू रहा था। बेचैनी इतनी कि अभी मैंने उसको छुआ ही था कि शशि ने पीछे की तरफ झटका मारा।

इसी झटके में लोहे की तरह तपता हुआ मेरा लिंग शशि के योनि द्वार को चीरता हुआ अंदर तक प्रवेश कर गया। शशि की बेचैनी का आलम तो यह था कि मेरा इंतजार किए बिना ही उसने बहुत तेजी से अपने शरीर को आगे पीछे सरकाना शुरू कर दिया।

शशि की अधीरता देखकर मैं भी आपे से बाहर हो रहा था। मैंने दोनों हाथों से शशि की पीठ को पकड़ा और धकाधक जोर जोर से धक्के मारने शुरू कर दिए।

हम दोनों की धक्का एक्सप्रेस बहुत तेजी से चलने लगी और फिर चुदाई करते हुए बीच में ऐसा समय आया कि हम दोनों की धक्का एक्सप्रेस फेल हो गई। मेरे लिंगमुंड के छोटे से मुख से एक बड़ी सी धार वीर्य लिये हुए मेरी बीवी की योनि के अंदर गिरी और मैं बिल्कुल निढाल हो गया।

मैंने देखा कि शशि भी निढाल हो चुकी थी। हम दोनों वहीं एक दूसरे के बराबर में लेट गए और एक दूसरे से चिपक गए। ऐसा लग रहा था जैसे हम बरसों बाद मिले हों।

हम दोनों के जिस्मों के मध्य में एक सेंटीमीटर भी जगह नहीं थी। हम दोनों निस्तेज अवस्था में आंख बंद किए एक दूसरे से चिपके हुए लेटे थे।

तभी किसी के खखारने की आवाज हुई और उसने पूछा- काम निपट गया हो तो मैं अंदर आ जाऊं?
यह दिव्या की आवाज थी।

हम दोनों घबराकर उठे और अपने अपने कपड़े पहने।
मैंने इशारा करके शशि से पूछा तो शशि ने मुझे बताया कि उसने दिव्या को हमारा काम निपटने तक छत पर ही चौकीदारी करने को कहा था।

झुंझलाहट में मैंने अपना सिर पीट लिया।
हो सकता है कि दिव्या बाहर से सब कुछ देख रही हो!!
अभी हमने पूरे कपड़े पहने ही थे कि दिव्या ने अंदर प्रवेश किया तो मुझे याद आया कि इस दरवाजे में तो कुंडली भी नहीं है!

मेरे ख्यालों में तो यही घूमने लगा कि जब मैं और शशि काम अवस्था में लीन थे तो शायद दिव्या दरवाजे में से झांक कर हमें देख रही होगी। दिव्या के अंदर आते ही शशि ने मुस्कराकर उसका स्वागत किया।

दिव्या एकदम दोनों के पास बैठ गई।
शशि ने उसको थैंक्यू बोला।
मैंने खुद को संयमित करते हुए बहुत हल्की सी आवाज में दिव्या का स्वागत करते हुए उससे पूछा- स्वीटहार्ट, तुझे कैसे पता लगा क्या काम निबट गया है?

मेरे सवाल का निडरता से सामना करते हुए दिव्या ने बिंदास अंदाज में कहा- मौसा जी … 5 साल तो मेरी शादी को भी हो गए हैं! मैं भी जानती हूं कि एक पारी कितनी देर में खेली जाती है!

मैंने आँख मारते हुए और शशि की तरफ मुखातिब होते हुए कहा- मुझे तो लगता है कि दिव्या बाहर से पूरा गेम देख रही थी!
तभी दिव्या खड़े होते हुए बोली- मौसा जी, फालतू शक मत करो! मैं तो छत के दूसरे किनारे पर खड़ी थी। जब मुझे अंदाजा हो गया कि आप लोगों की पारी खत्म हो चुकी है, तभी इधर आई हूं।

उसने कह तो दिया लेकिन उसके चेहरे पर दिखने वाली शैतानी मुस्कान कुछ और ही बयां कर रही थी।

माहौल को बदलने के लिए शशि ने दिव्या से उसके परिवार की बातें शुरू कर दीं।

मैंने कहा- यार, मैं चला जाता हूं। तुम यहां औरतों वाली बातें कर लो!
दिव्या ने कहा- चलो छोड़ो, आज तो मौसा जी साथ हैं, अगर आपको नींद नहीं आई है तो हम तीनों मिलकर लूडो खेलते हैं?

उसका मूड देख मैंने दिव्या की बात पर तुरंत सहमति दे दी।
दिव्या ने अपना मोबाइल निकाला और उसमें लूडो खेल चलाकर हमारे आगे कर दिया।
हम तीनों काफी देर तक एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते हुए लूडो खेलते रहे।

मगर मेरा ध्यान लगातार ही दिव्या की शैतानी मुस्कराहट पर ही था।

करीब 3:00 बजे शशि ने कहा- अब मुझे नींद आ रही है।
दिव्या मुझसे बोली- मौसा जी, मैं आपके साथ चलती हूं … आप उसी तरह छत से नीचे उतर जाना तो मैं चड्ढा जी के गेट की कुंडी लगा लूंगी।

दिव्या मुझे वापस मेरे बिस्तर तक छोड़ कर आई और उसके बाद शशि और दिव्या आकर सो गईं।

मेरी आंखों से तो अभी भी नींद कोसों दूर थी। मुझे रह-रहकर दिव्या की वही शैतानी मुस्कराहट दिखाई दे रही थी।

ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं जब शशि की योनि में पीछे से जोर-जोर से अपने लिंग के धक्के मार रहा था, तब दिव्या दरवाजे में से वह नजारा देखकर मुस्करा रही होगी।
यह सोचकर ही मेरे तो पूरे बदन के रोंगटे खड़े हो रहे थे।

अचानक मेरा हाथ बरमूडा पर गया तो पाया कि बरमूडा के अंदर मेरा प्रिय नाग भी फुंफकार रहा था।
उसकी यह तड़प दिव्या की उस मुस्कराहट के लिए थी।

कुछ ही पलों में दिव्या मेरी नजरों में मेरी साली की बेटी की छवि से उतरकर एक कामदेवी बन गई थी।
दिव्या के बारे में सोचते सोचते मुझे कब नींद आ गई पता भी नहीं चला।

सुबह 8:00 बजे दिव्या ने ही आकर मुझे जगाया।

नींद खुलते ही मैंने दिव्या को अंदर बुलाया और उससे पूछा कि शशि कहां है?
हंसते हुए दिव्या बोली- मौसा जी, कभी किसी और को भी याद कर लिया करो? आपके दिलो-दिमाग पर हर समय मौसी ही छाई रहती हैं! इतना प्यार मैंने किसी दूसरे पति-पत्नी में नहीं देखा।

ये बोलकर वह हंसती हुई कमरे से बाहर चली गई।
मैं भी उठकर अपने नित्य कर्म में लग गया।

उसके बाद तेरहवीं की रस्म आदि के कार्यक्रम में दिन कब निकल गया पता ही नहीं चला।

शाम को 5:00 बजे तक सब फ्री हो चुके थे। वापस जाने वाले रिश्तेदार भी जा चुके थे। सिर्फ कुछ ही लोग घर में रुके थे।

मैंने भी शशि से वापस चलने के लिए कहा।
तभी दिव्या की मम्मी और दिव्या दोनों आए और बोले- कम से कम आज और रुकिए! आप थक गए हैं। कल हम भी चले जाएंगे, आप भी चले जाइएगा. आज बैठकर ढे़र सारी बातें करेंगे.

मैं शायद दिव्या के रोकने की ही प्रतीक्षा कर रहा था। उसके एक बार बोलते ही मैंने वहां रुकने का निर्णय किया।
शशि के पास वहां न रुकने का कोई कारण भी नहीं था। मायका तो हर लड़की को प्यारा होता है।

हमें वहां बैठाकर दिव्या की मम्मी चाय बनाने चली गई। अब मेरा ध्यान पूरी तरह से दिव्या पर था और मैं सोच रहा था कि कैसे यह कामायनी आज मेरी बांहों में हो।

मेरा दिमाग लगातार दिव्या के कामुक बदन को भोगने की तरकीब लड़ा रहा था। मेरे अंदर का भद्र पुरुष शायद कहीं चला गया था और मेरा शैतानी दिमाग न जाने क्या क्या सोचने लगा था।

मैंने महसूस किया कि मेरी टांगों के बीच में भी यह सोच सोचकर कुछ हलचल हो रही है।
तब तक चाय बन कर आ गई।

चाय की चुस्कियां लेते हुए मैं सिर्फ दिव्या को भोगने की तरकीब ही लड़ा रहा था।

दिव्या और शशि आपस में बातें कर रहे थे।
तभी दिव्या बोली- आज भी हम लोग लूडो खेलेंगे!
ये सुनकर मुझे तो जैसे संजीवनी हाथ लगी!

मैंने तुरंत हां करते हुए कहा- लेकिन वहीं खेलेंगे जहां कल खेले थे!
थोड़ी सी ना नुकुर के बाद शशि और दिव्या ने भी खेल के स्थान पर सहमति जता दी।

अब तो मुझे अपना टारगेट थोड़ा आसान लगने लगा। दिमाग यही सोच रहा था कि दिव्या को कैसे कहूं? वो मानेगी या नहीं? दिव्या से पहले तो मुझे शशि को बोलना पड़ेगा क्योंकि मैंने कभी शशि से छुपाकर कोई काम नहीं किया था।

काफी सोच विचारने के बाद मैंने शशि से थोड़ी देर बाजार चलने के लिए कहा। शशि तुरंत तैयार होकर आ गई। मैं अपने साले की बाइक लेकर शशि को साथ लेकर बाजार के लिए निकल गया।

बाजार में एक अच्छे रेस्टोरेंट में जाकर मैंने सबसे पहले शशि को चाट खिलाई! उसके बाद शशि से कहा कि अपनी पसंद का जो भी लेना है ले लो क्योंकि कल सुबह हम चले जाएंगे।

मैं चाहता था कि जब मैं शशि से दिव्या के लिए कहूं तो उसका मूड बिल्कुल ठीक हो और वह किसी तरह का कोई हंगामा न करे।
करीब एक घंटा बाजार में बिताने के बाद और अपनी जरूरत और पसंद की कुछ चीजें लेने के बाद शशि ने वापस चलने को कहा।

घर की ओर बढ़ने से पहले मैं शशि को लेकर पास के ही एक पार्क में चला गया। बहुत दिन बाद हम पार्क में गए थे।

शाम के लगभग 7:00 बजे थे। पार्क का मौसम बहुत सुहावना था।
पार्क में कई लोग टहल रहे थे।

धीरे-धीरे शशि का मूड भांपकर मैंने शशि से दिव्या के बारे में पूछा- शादी के 6 साल बाद भी दिव्या को कोई औलाद क्यों नहीं है? क्या दिव्या में कोई कमी है या उसके पति मनोज में?

शशि ने बताया कि 3 साल पहले इस बारे में जब दिव्या की मम्मी से उसकी बात हुई थी तो उन्होंने बताया था कि डॉक्टर के हिसाब से तो दोनों ही ठीक हैं, कोई कमी नहीं है। फिर पता नहीं दिव्या के घर में औलाद क्यों नहीं है? इस बात पर वह और पूरा परिवार दुखी भी है।

मैंने हंसते हुए कहा- अरे तो दिव्या को एक बार हमारी सेवाएं लेनी चाहिएं!

अचानक शशि ने मेरी तरफ देखा और मुस्कराकर बोली- सुधर जाओ! दिव्या मेरी भांजी है!
मैंने भी पलटवार करते हुए कहा- तेरी भांजी है ना! मेरी तो स्वीटहार्ट है!

शशि को मालूम था कि मैं शुरू से ही दिव्या को स्वीटहार्ट बोलता आया हूं।
शशि ने तुरंत मुझे रोकते हुए कहा- ए मिस्टर, आपकी निगाह गलत जगह पर है।

मैंने भी शशि के अच्छे मूड का फायदा उठाने की कोशिश करते हुए अगला प्रयास किया और कहा- यार एक बात बताओ … क्या पता दिव्या की गोद भराई मेरे ही हाथों से लिखी हो? एक बार कोशिश करने में क्या जाता है?

मेरी इस बात पर अचानक शशि सीरियस हो गई और बोली- मैं भी चाहती हूं कि दिव्या के घर में जल्द से जल्द नन्हा-मुन्ना बालक खेलने लगे लेकिन जो तुम सोच रहे हो वह सोचना बंद कर दो।
मैंने महसूस किया कि मेरी बात पर शशि सीरियस जरूर थी लेकिन गुस्सा नहीं थी।

तो मैंने प्रयास जारी रखते हुए कहा- देखो मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूं और तुमको धोखा नहीं देना चाहता हूं मगर मुझे ऐसा लगता है कि मेरा एक चांस दिव्या के घर में खुशियां ला सकता है और मैं यह काम तुम्हारी सहमति से ही करना चाहता हूं. हां, अगर तुम नहीं चाहती तो मैं दिव्या की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखूंगा!

मेरी इसी बात ने शायद शशि का दिल जीत लिया.
उसने पार्क में ही मुझे अपने गले से लगा लिया और बोली- मुझे तुम पर पूरा विश्वास है और शायद तुम्हारी बात भी सही है कि दिव्या अगर शायद कहीं बाहर ट्राई करे तो हो सकता है कि उसकी गोद भर जाए!

ऐसा लग रहा था कि मेरा तीर सही निशाने पर लगा है।

कुछ देर चुप बैठने के बाद अचानक शशि बोली- क्या तुम सच में दिव्या को इतना खुश देखना चाहते हो?

मैंने पलट कर कहा- ये सिर्फ दिव्या की खुशी का नहीं बल्कि तेरी और पूरे परिवार की खुशी का सवाल है बाबू! अगर दिव्या की गोद भर जाएगी तो तुम्हारा पूरा परिवार खुश हो जाएगा!

शशि ने मेरे माथे को चूमते हुए कहा- तुम कितना सोचते हो मेरे परिवार के बारे में!
मैंने भी चुपचाप एक मुस्कान के साथ शशि को गले से लगा लिया परंतु अभी भी पूरा प्लान फाइनल नहीं था।

फिर शशि ने घर चलने को कहा।

मैं सोचने लगा कि शशि लगभग सहमत है परंतु बात आगे कैसे बढ़ेगी! इस बारे में शशि से ज्यादा बात करना मुझे उचित नहीं लगा।

मैं भी शशि के साथ साथ घर को निकल लिया। घर आकर ये सब रात्रि भोज की तैयारी में लग गए।

खाना खाने के बाद मेरे साले ने मुझे पुनः चड्ढा जी वाले कमरे में ही चलने के लिए कहा।

सच कहूं तो मैं खुद उसी कमरे में सोना चाहता था। मैं तो 9:00 बजे ही चड्ढा जी वाले कमरे में जाकर लेट गया और शशि और दिव्या के संदेश का इंतजार करने लगा।

करीब 10:00 बजे दिव्या ने मेरे मोबाइल पर व्हाट्सएप पर मैसेज करके मुझे छत पर उसी कमरे में लूडो खेलने के लिए बुलाया।

मैं तो जैसे इसी इंतजार में था; मैं तुरंत उठ कर दबे पांव छत की तरफ चल दिया और अपने पूर्व रात्रि वाले कामकक्ष को बढ़ता चला गया।

शशि और दिव्या मुझसे पहले ही वहां बैठी थीं। आज तो फर्श पर एक गद्दा भी बिछा हुआ था।

कमरे में जाते ही दोनों ने एक मीठी सी मुस्कान के साथ मेरा स्वागत किया और दिव्या ने तुरंत अपने मोबाइल में लूडो लगा लिया.
हम तीनों करीब आधा घंटा लूडो खेलते रहे।

आधे घंटे बाद शशि बोली- मुझे थोड़ा काम है। मैं घर में सब लोगों के लिए दूध बनाकर आती हूं। तुम दोनों के लिए भी दूध लेकर आऊंगी तब तक तुम खेलते रहो।

यह कहकर शशि वहां से उठकर चली गई। शशि के जाते ही मेरे मोबाइल पर व्हाट्सएप के मैसेज की घंटी बजी.

मैंने जैसे ही मैसेज खोलकर देखा तो शशि का मैसेज था जिसमें लिखा था- मैं कम से कम एक घंटा नहीं आऊंगी. कोशिश करके देख लो. मगर प्लीज जबरदस्ती मत करना और ऐसा कोई काम मत करना जिससे कल को तुम्हारी बदनामी हो।

मैसेज पढ़ते ही मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। मैंने मन ही मन शशि को धन्यवाद दिया.
दिव्या ने तो जैसे मेरी मुस्कराहट को पढ़ लिया था; तुरंत मुझे चिढ़ाते हुए बोली- लगता है मौसी का मैसेज है.

उसके सवाल पर मैंने हां में सर हिला दिया.
दिव्या मेरी चुटकी लेते हुए बोली- मौसी ने लिखा होगा कि दिव्या को जल्दी से यहां से भगाओ!

मैंने भी उसके मजाक का मजाक में ही जवाब देते हुए कहा- तेरी मौसी ने लिखा है कि अभी तो मैं नीचे हूं, तुम दिव्या पर चढ़ जाओ!
“धत्त!! “कुछ तो शर्म करो मौसा जी!” बोलकर दिव्या ने नजरें झुका लीं।

यह तो मैं समझ गया था कि दिव्या ने मेरी बात को मजाक में ही लिया है और बुरा नहीं माना है।
अब मेरा दिमाग बहुत तेजी से काम कर रहा था कि कैसे जल्दी से जल्दी दिव्या को बांहों में लिया जाए!

तभी दिव्या ने लूडो का नया मैच लगा लिया और मुझे खेलने को कहा।
मैंने कहा- कुछ शर्त लगाएगी तभी खेलूंगा!
दिव्या बोली- आप हार जाते हो, आज भी फिर से हार जाओगे!

मैंने कहा- चल तू ही जीत जाना, मगर शर्त तो लगा ले!
दिव्या बोली- जो आप चाहो वो मंजूर!
मैंने भी नजरों ही नजरों में दिव्या पर वार करते हुए कहा- सोच ले, कभी बाद में मुकर मत जाना?

दिव्या बोली- मौसा जी, आपकी स्वीटहार्ट का वादा है … जो बोलती है वो करती भी है. कभी नहीं मुकरती!
ये बोलकर उसने तुरंत नया गेम स्टार्ट कर दिया.

लगातार गेम के दौरान मैं दिव्या को किसी न किसी बात पर छेड़ता रहा.

मैं भी यह चाहता था कि दिव्या और मेरे बीच की झिझक थोड़ी कम हो जाए।
मैंने जानबूझकर दिव्या से पिछली रात का जिक्र करते हुए पूछा- जब मैं और शशि अंदर थे तब तू देख रही थी न कि हम क्या कर रहे हैं?

दिव्या ने नजरें नीची करके हंसते हुए कहा- मौसा जी, रात गई बात गई!
मैंने बस इसी बात को पकड़ कर बात आगे बढ़ाते हुए अगला सवाल दागा- अच्छा एक बात बता … हम दोनों को प्यार करते देख कर तेरा मन नहीं हुआ?

उसने भी तपाक से जवाब दिया- मौसा जी मन होने से क्या होता है? मैं तो यहां अकेली आई हूं!
मैंने अगला पासा फेंकते हुए कहा- तो क्या हुआ? हम हैं ना तेरे स्वीटहार्ट, तू तो खुद को मेरी साली मानती है और साली तो आधी घरवाली होती है!

दिव्या ने खनकती सी हंसी के साथ कहा- लगता है मौसी ने कई दिनों से आपकी पिटाई नहीं की है।
मैंने कहा- क्यों? तूने कल रात देखा नहीं कि वह अपने होंठों से कितनी बुरी तरह मेरी पिटाई कर रही थी?

वो बोली- आखिर मौसी के अंदर तेरह दिन का जोश जो था!
मैंने बस दिव्या की इस बात को पकड़ा और तुरंत उसकी नजरों से नजरें मिलाते हुए कहा- जोश में ही तो मजा आता है!

मेरे कहते ही जैसे अचानक दिव्या की चोरी पकड़ी गई। उसने नजरें नीचे कर लीं. मैंने महसूस किया कि दिव्या की सांसों में हल्की हल्की गर्मी थी।
अब दिव्या की तपती जवानी पर बस अंतिम वार करना बाकी था।
 

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भोले लड़के ने माँ के साथ सेक्स किया


मेरा नाम लखन है और मैंने स्कूल पढ़ कर पढ़ना छोड़ दिया था क्योंकि हम लोग काफ़ी ग़रीब घर से हैं.

अभी मेरी उम्र 18 साल है. हालांकि आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मैं आज भी लंड चूत चुदाई जैसी बातों से अनजान हूँ. मैं एक भोला सा लड़का हूँ. पर इस घटना के बाद से मुझे इसका काफी ज्ञान हो गया.

मेरी माँ का नाम सुजाता है और वो 42 साल की हैं. वो देखने में बड़ी मांसल और खूबसूरत हैं.

आप लोगों को तो पता ही है कि गांव में लोग अक्सर जल्दी खाना खा पीकर सो जाते हैं.
एक दिन की बात है. जब मेरी माँ, पिताजी और मैं खाना खा कर बस सोने की तैयारी कर रहे थे. हम सभी साथ में ही सोते थे, क्योंकि हमारे यहां दो कमरे ही हैं. जिसमें से एक में रसोई घर है और दूसरा कमरा बाकी सभी रहने सोने खाने के काम में आता है. उसी कमरे में हम तीनों साथ ही सोते थे.

उस दिन भी माँ ने रोज की तरह बिस्तर नीचे ज़मीन पर ही लगाया था. सोते समय माँ ने टेबल फैन चालू कर दिया और हम सब सो गए.

मेरे पिताजी तो काम करके आते ही खाना खाकर सो जाते हैं क्योंकि वो काफ़ी मेहनत का काम करते हैं और उनकी उम्र भी हो चुकी है. शायद पापा की उम्र मम्मी से करीब दस साल बड़ी है. पिताजी ने सोते समय तौलिया लपेट लिया और वो टांगें पसार कर सो गए. मम्मी ने भी अपनी साड़ी उतार दी. वो भी ब्लाउज और पेटीकोट में ही सो गईं.

मुझे तो बचपन से ही माँ नंगा ही सुलाती आई थी. क्योंकि मैं रात में पेशाब नहीं रोक पाता था. इसलिए माँ मुझे एक साइड सुलाती थीं. वो खुद बीच में सोती थीं. माँ शुरू से ही चड्डी या चोली नहीं पहनती थीं. मैंने रात को पानी पीने के लिए आंख खोलीं, तो मैं देखता ही रह गया. मेरे पिताजी मेरी माँ के ऊपर चढ़ कर कुछ कर रहे थे. मैंने अपनी आंखों को फिर बंद कर लिया और चुपके से देखने लगा. मैंने आज तक ऐसा कभी नहीं देखा था. इसलिए मैं अब ऐसा देख कर हैरान था.

पापा ने मम्मी के ब्लाउज को निकाल दिया और उनके पेटीकोट को ऊपर कर दिया. उन्होंने खुद भी अपना तौलिया निकाल दिया और नंगे हो गए.

फिर पापा ने मम्मी की टांगों के बीच में उंगली डाल दी और आगे पीछे करने लगे. साथ ही वे माँ के चूचों को चूस चूस कर पीने लगे.

थोड़ी देर दूध पीने के बाद पिताजी ने नीचे सरक कर माँ की टांगों के बीच आकर कुछ चाटना शुरू कर दिया. मगर मैं कुछ समझ नहीं पाया कि पिताजी क्या कर रहे हैं. क्योंकि मैंने आज तक देखा नहीं था कि औरतों की टांगों के बीच में क्या होता है. मैं तो ये सोच-सोच कर हैरान हो रहा था कि मेरे पिताजी क्या कर रहे हैं.

तभी अचानक लाइट चली गयी और मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया, तो मैं सो गया.

सुबह जब माँ मुझे जगाने आईं, तो माँ मुझ पर चिल्लाने लगीं क्योंकि मैंने बिस्तर में ही पेशाब कर दी थी. मैं चूंकि बिल्कुल नंगा ही सोया था, तो माँ ने मुझे खड़ा किया और बाथरूम में ले जाकर मुझे नहलाने लगीं. इस समय वो भी केवल पेटीकोट पहने हुए थीं. ताकि मुझे नहलाने में उनके कपड़े गीले ना हो जाएं.

तभी अचानक मेरी नज़र मेरी माँ के पेटीकोट पर गयी, तो मैंने देखा कि माँ का पेटीकोट ऊंचा सा हो गया.

मैंने माँ से पूछा कि माँ ये आपकी टांगों के बीच में क्या है?
माँ ने मुझसे ‘कुछ नहीं है.’ कह कर बात को टाल दिया.

फिर मुझे तैयार करके वो अपना काम करने लगीं. मैं अपने दोस्तों के साथ खेलने चला गया. तभी मुझे कुछ सूझा, तो मैंने अपने एक दोस्त से पूछा कि औरतों की टांगों के बीच में क्या होता है.

तब मुझे मेरे दोस्त ने अपने मोबाइल में एक वीडियो दिखाया और उसने बताया कि औरतों की टांगों के बीच में चुत होती है. आदमियों की टांगों के बीच में लंड होता है, जिसे चुत में डाल कर चुदाई का मजा लिया जाता है.

उससे और भी जानकारी मिली, तब मुझे कुछ सेक्स के बारे में मालूम हुआ. फिर मुझे इन चीजों के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता हुई.

फिर शाम को जब मैं घर पहुंचा, तो माँ ने कहा कि बेटा तेरे पिताजी काम के सिलसिले में बाहर गए हैं, तो मैं तुम्हारे लिए खाना बना देती हूँ. हम जल्दी खाना खा कर सो जाएंगे.
तो मैंने कहा- ठीक है माँ, मुझे भूख भी तेज लग रही है.

माँ ने जल्दी से खाना बनाया और हम दोनों खाना खाकर सोने की तैयारी करने लगे. अभी लेटने की तैयारी ही की थी कि लाइट आज फिर चली गयी.

माँ ने बिस्तर लगाया और मच्छरदानी लगा दी, ताकि हमें मच्छर ना काटें.

माँ बोली- बेटा पंखे को सामने रख दे और तार लगा कर स्विच ऑन कर देना ताकि लाइट जब आए, तो पंखा चालू हो जाए.
मैंने पंखे को पैरों की ओर रख कर उसे सैट कर दिया और सो गया.
तब तक माँ भी सो चुकी थीं.

रोजाना की तरह पेशाब के कारण मुझे नंगा ही सोना पड़ता था, तो मैं माँ के पास आकर सो गया. माँ ने भी रोजाना की तरह साड़ी निकाल दी थी.

माँ सो गईं, कुछ घंटों बाद लाइट आ गयी, तो मेरी नींद खुल गयी. पंखा चालू हुआ, तो हवा से माँ का पेटीकोट ऊंचा हो गया. उनका पेटीकोट पेट के ऊपर चढ़ गया. तो मैंने देखा कि माँ तो नीचे से पूरी नंगी हो गयी थीं.

आज पहली बार मैं अपनी माँ को नंगी देख रहा था मगर मुझे कुछ समझ नहीं थी. मैंने देखा कि माँ की चूत पर तो जैसे बारिश हो गयी हो, इस तरह से पसीना पसीना हो रहा था. तब मुझे याद आया कि कल रात पिताजी ने माँ की चुत से इसी पसीने को चाटा था.

मैंने सोचा कि आज पिताजी नहीं हैं, तो क्यों ना मैं ही माँ की चुत चाट कर साफ कर दूं. बस मैं खड़ा हो कर माँ के करीब लेट गया. मैंने माँ को मैंने जगा कर उनसे पूछने की कोशिश की, मगर माँ गहरी नींद में सोई हुई थीं, तो माँ जागी ही नहीं.

मैं माँ की टांगों के बीच में आकर माँ की चुत को चाटने लगा और उनकी चूत का सारा पसीना चाट चाट कर साफ़ कर दिया.

मगर अब परेशानी ये थी कि माँ की चूत में से और पानी आने लगा. अब मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. फिर सोचा कि माँ को गर्मी लग रही होगी, इसलिए पानी तो साफ़ करना ही पड़ेगा. तो मैं एक बार फिर से माँ की चुत चाटने लगा. तब मुझे कुछ चुत से निकला हुआ पानी का स्वाद नमकीन सा लगा. मुझे अब मज़े आने लगे थे और मैं माँ की चुत से नमकीन पानी पिए जा रहा था. तभी मुझे याद आया कि मेरे दोस्त ने जो मुझे वीडियो दिखाया था, उसमें एक आदमी अपना बड़ा सा लंड चुत में फंसाता है.

तब मैंने सोचा कि क्यों ना मैं भी ऐसा ही करूं. मेरा लंड तो, माँ की चुत चाट चाट कर यूं भी खड़ा हो गया था.

मैंने अपना खड़ा लंड माँ चुत पर रखा और अन्दर डाला, तो मेरा लंड माँ की चुत में सट से चला गया. माँ की चुत तो पानी निकलने के कारण पहले से ही पूरी चिकनी हो गयी थी.

मुझे भी लंड पेलने में मजा आ रहा था. मैं धीरे धीरे में माँ को चोदने लगा. मुझे वाकयी बहुत मज़ा आ रहा था. कुछ देर माँ की चुदाई करके मेरे लंड ने भी पानी छोड़ दिया. मैंने देखा कि माँ की चुत में तो मानो बाढ़ सी आ गयी थी. उनकी चूत मेरे पानी निकल जाने से इस तरह से पानी पानी हो रही थी कि मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूं. जब कुछ समझ नहीं आया, तो मैंने सोचा कि मैंने ही ये पानी माँ की चुत में छोड़ा है, तो मैं ही इसे साफ़ कर देता हूँ. फिर मैंने माँ की चुत चाटना शुरू की और सारा पानी पी गया.

अब मैं थक चुका था, तो मैं सो गया. अगले दिन भी पिताजी नहीं आए, तो मैं इस बात से बहुत खुश हुआ. मैं आज फिर से बेसब्री से रात होने का इंतज़ार करने लगा. जैसे ही रात हुई, हम सोने गए.

माँ ने कहा- बेटा, रात को तो बहुत गर्मी हो रही थी.
मैंने कहा- माँ आप सो जाओ, मैं पंखा आपकी तरफ कर देता हूँ.

माँ पंखे के सामने ही सोई हुई थीं. मैंने पंखा चालू किया, तो माँ ने कहा- बेटा मुझे हवा नहीं लग रही है.

मैंने टेबल फैन को नीचे करके जैसे ही चालू किया, तो माँ का पेटीकोट फिर उड़ कर पेट पर चढ़ गया.

मैं पास में हो गया और माँ की चुत पर हाथ रख कर कहा कि माँ रात को इसमें से बहुत पसीना आ रहा था, तो मैंने इसे चाट चाट कर साफ़ किया था.
माँ मेरी बात सुनते ही घबरा सी गयी और वो अपने पेटीकोट को नीचे करके बोलीं- क्या? तूने सच में मेरी चुत को चाटा था?
मैंने कहा- हां माँ … मैंने आपको जगाने की कोशिश भी की थी, मगर आप जागी नहीं, तो मैंने भी पिताजी की तरह आपकी चुत को चाटा और मेरा लंड भी मैंने इसमें डाला था.
माँ ने भौंचक्का होते हुए कहा- बेटा, ये बात किसी को ना बताना.
मैंने कहा- ठीक है माँ, मगर मुझे आपकी चुत का पानी चाटना है, मुझे बहुत अच्छा लगा था.
माँ ने कहा- नहीं बेटा तुमको ऐसा नहीं करना चाहिए.
मैंने कहा- पिताजी भी तो आपकी चुत चाटते हैं, तो मुझे भी आपकी प्यारी सी चुत को चाटनी है.
माँ ने मुझसे कहा- बेटा तुम अभी छोटे हो, सो जाओ.

पता नहीं माँ मुझे उनकी चुत क्यों नहीं चाटने दे रही थीं, मगर मुझे तो माँ की चुत का स्वाद बहुत ही नमकीन लगा था. तो मैं माँ के सोने का इंतज़ार करने लगा.

माँ के सोते ही मैंने मा का पेटीकोट ऊंचा किया और चुत को चाटने लगा. धीरे धीरे माँ की चुत से पानी आने लगा. मैंने खूब जोरों से माँ की चुत का रसपान किया और इसके बाद लंड पेल कर माँ को चोद दिया.

अब मैं रोजाना माँ के सोने के बाद माँ की चुत भी चाटता हूँ और लंड भी डाल देता हूँ.

आप मेरी इस माँ सेक्स की कहानी को पढ़कर मुझे ज़रूर बताएं कि आपको कहानी कैसी लगी.
sexy story.
 

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गलतफहमी में माँ ने मुझसे चुदाई करवाई


मेरा नाम हर्षल है. मेरी उम्र 22 साल है. मैं पुणे महाराष्ट्र का रहने वाला हूँ.
मेरी कदकाठी सामान्य है … पर मुझे 8 इंच लम्बे लंड की सौगात मिली है.

आजकल मैं अक्सर हर हफ्ते अलग अलग औरतों के साथ सोना पसंद करता हूं.

यह कहानी मेरी सत्य जीवन घटना पर आधारित है.
मुझे यह कहानी बताते हुए बहुत शरम महसूस हो रही है. पर मैं करूं भी तो क्या, मुझे अपने दिल का बोझ हल्का करना है.

मेरी माँ एक बहुत ही साधारण महिला हैं. लेकिन वो बहुत ही आकर्षक दिखती हैं. उनकी उम्र 40 साल है. उनका गोरा रंग, तो किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींच लेता है.

उनकी फिगर तो इतनी कंटीली है, हे भगवान … क्या बताऊं; मेरी मॉम की मादक देह अच्छे अच्छों का ध्यान भटका देती है.
माँ की फिगर 36-30-32 की है.

वो हमेशा साड़ी पहनती हैं. कई बार खाना बनाने के वक्त वो अपनी साड़ी पेट के नीचे दबा लेती हैं और उस वक्त उनकी नाभि साफ झलकती है. ऐसी कामुक नाभि देखकर तो किसी का भी लंड सलामी देने लगे.

जब वो सज-धज कर किसी शादी या फंक्शन आदि में जाती हैं तो सभी लोगों की निगाहें उन पर गड़ जाती हैं.

यह बात उन दिनों की है जब मैं 20 साल का था.
आपको तो पता ही है कि इस उम्र में जवानी का खुमार चढ़ा हुआ होता है.

पर मेरी माँ के बारे में मैंने कभी कोई गलत बात मन में भी आने नहीं दी थी.
मैं एक मिडल क्लास फैमिली से हूं तो अक्सर हम लोग एक ही कमरे में सोते थे.

एक दिन अचानक रात को मुझे कुछ आवाजें सुनाई दीं.
मैंने हल्के से पलट कर देखा, तो मुझे दिखा कि मेरे पापा मेरी माँ की जांघों के पास बैठे हैं.
मैं बिना आवाज किए वो सब देखता रहा.

मेरे पापा ने अपनी चड्डी उतार कर फेंक दी. इसके बाद में उन्होंने अपना हाथ माँ की साड़ी में डाल दिया और माँ की पेंटी भी उतार कर फेंक दी.

इसके बाद पापा जी माँ के ऊपर चढ़ गए.

वो नजारा देखकर मेरा बुरा हाल हो गया.

पापा ने जोर से धक्के मारना चालू कर दिया. मेरी माँ जोर जोर से सिसकारियां लेने लगीं.
लेकिन कुछ होता, इससे पहले मेरे पापा झड़ गए. उसके बाद वो करवट लेकर सो गए.

मुझे तभी पता चल गया था कि मेरे बाप में दम नहीं है.

थोड़ी देर बाद मैं हल्का होने के लिए बाथरूम जाने के लिए उठा.
मगर उससे पहले मेरी माँ मुझे बाथरूम जाते दिखीं.

मैं थोड़ी देर रुका और माँ के आने की राह देखने लगा. पर कुछ ज्यादा समय हो गया, माँ वापस नहीं आईं, तो मैं उनको देखने के लिए गया.

अभी जैसे ही मैं बाथरूम में घुसता, मुझे माँ की सिसकारियां सुनाई दीं.

मैंने धीरे से अन्दर झांका, तो मैं दंग रह गया.
मेरी माँ ने अपनी साड़ी ऊपर कर ली थी और वो फर्श पर लेटी हुई थीं.

उनका हाथ अपनी साड़ी के नीचे अपनी योनि में घुसा हुआ था. उन्होंने अपनी दो उंगलियां योनि में डाल रखी थीं.
वो जोर जोर से अपनी योनि को खोद रही थीं.

मैं दरवाजे के बाहर खड़ा होकर ये सब तमाशा देख रहा था.
मैंने समय ना गंवाते हुए अपना लंड निकाला और मसलने लगा.

माँ अपने मम्मे जोर जोर से मसल रही थीं. मेरी माँ ने उस रात काफी देर अपनी चूत में उंगली की.
झड़ने के बाद उन्होंने अपना पूरा रस अपनी उंगली की मदद से चाट लिया.

इधर मैं भी झड़ गया था. मैं माँ के पहले बिस्तर पर जाकर सो गया.

जब मैं सुबह उठा तो अब मेरा माँ की तरफ देखने का नजरिया बदल गया था.

मेरी माँ अक्सर बाथरूम से निकलने के बाद साड़ी पहनती हैं. वो हमेशा अपनी चूचियों पर पेटीकोट बाँध कर बाहर आती हैं.
मैं ये मौका हाथ से नहीं जाने देता और उस कमरे में जाकर बैठ जाता हूं.

जब वो साड़ी पहनती हैं तो उनका पेटीकोट नीचे गिर जाता है और उनके मम्मे उछल कर बाहर आ जाते हैं.
कसम से मॉम के वो बड़े बड़े मम्मे और उनके ऊपर वो काले चूचे देखकर ऐसा लगता है कि बस उनको पकड़ कर चूस लो.

मैं उन्हें उस दिन से इस अवस्था में कैमरा में शूट करने लगा.

फिर जब भी मेरा मन करता, मैं उनके मम्मे देखकर मुठ मार लेता था.

कई बार तो मैं उनकी जांघों पर सर रख के सोने का बहाना करके उनके मम्मों को दबा भी देता था. मेरा उनके रसीले गुलाबी होंठ देखकर चूसने का मन करता था.

लेकिन मुझे पता नहीं था कि एक दिन मुझे ये सब करने का मौका मिलेगा.

हुआ यूं कि मेरे पापा को तीन दिन के लिए बाहर गांव जाना था.
अब तो मुझे पता था मेरी भूखी माँ तो पूरी तरह हवस की शिकार हो जाएगी.

मेरे पापा सुबह काम के लिए निकल गए.

दोपहर को मैंने सोने का नाटक किया. जैसे ही मैं सोया, मेरी माँ बाथरूम के और चल पड़ी.
फिर क्या, मैं भी उनके पीछे चला गया.

लेकिन उस दिन तो उन्होंने कमाल ही कर दिया.
उन्होंने उस दिन हाथ में बेलन लिया हुआ था और उन्होंने उस बेलन को अपनी चुत पे सैट कर रखा था.

थोड़ी देर बाद वो बेलन का हैंडल उनकी चुत के अन्दर चला गया और और उसी के साथ माँ की सांसें तेज हो गईं.

वो जोर जोर से सिसकारियां लेने लगीं. मन तो कर रहा था कि उनकी चुत को अभी अन्दर जाकर चोद दूं.

फिर उन्होंने अपना ब्लाउज निकाल के फेंक दिया. वो अब पूरी तरह नंगी हो चुकी थीं.

मैंने झट से अपना मोबाईल निकाला और उनका वीडियो बनाना शुरू कर दिया.

थोड़ी देर बाद माँ झड़ गईं. उन्होंने वो बेलन चुत से निकाल कर मुँह में ले लिया. अब जब तक पापा वापस नहीं आए, ऐसा हर रोज होने लगा.

तीन दिनों बाद पापा शाम को घर आए.
उस रात हमने खाना बाहर से मंगाया था.

खाना खाने के बाद मैं बाथरूम में मोबाईल लेकर चला गया और वीडियो देखने लगा. लेकिन फिर सोचा कि आज तो पापा माँ को चोदेंगे ही … मतलब रात को माँ फिर से लाइव शो दिखाएंगी.

उस रात मेरे पापा मुझे बोले- हर्षल, तू आज नीचे अपनी माँ के साथ सो जा, मेरी पीठ में दर्द है, तो मैं बेड पे सोता हूं.

मैं हमेशा बेड पर सोता हूं.
लेकिन उस दिन मैं माँ के साथ सोने को तैयार हो गया क्योंकि माँ के साथ सोते समय मैं हमेशा उनके पेट पर हाथ फिराता हूं.

मैं और पापा लाइट बंद करके सो गए.

पापा तो कुछ ही देर में गहरी नींद में चले गए. कुछ देर बाद माँ सब कुछ घर का काम करके मेरे पास आकर सो गईं.

कमरे में अंधेरा था, इसलिए ये समझ पाना मुश्किल था कि कौन कहां सोया हुआ है.

थोड़ी देर बाद मैंने अपने पैर पर कुछ हरकत महसूस की.

मैंने देखा कि मेरी माँ ने अपना एक पैर मेरी टांगों पर डाल दिया था. उनका ये पैर पूरा नंगा था. उन्होंने अपनी साड़ी उतार कर फेंक दी थी और अपना पेटीकोट भी ऊपर तक चढ़ा लिया था.

उन्होंने धीरे से आवाज निकाली और बोली- क्यों जी, आज नहीं चोदोगे क्या?

मेरी तो फटी पड़ी थी, पर मैं कुछ नहीं बोला.

फिर माँ ने अपना एक हाथ मेरे चड्डी के ऊपर से फेरा. मेरा लंड तो वैसे भी सलामी दे रहा था.
फिर वो बोलीं- अजी आपका तो आज बड़ा फुदक रहा है, लगता है मेरी फ़ुद्दी की आज खैर नहीं. क्या खा के आये हो बाहर गांव से जो इतने जोश में हो. आज तो प्यास बुझा ही दो, मेरी इस चुलबुली की.

मैं और मेरे पापा हमेशा एक ही टाइप का पजामा पहनते थे तो माँ को वैसे भी समझ नहीं आने वाला था कि वहां पे मैं सोया हूं, पापा नहीं.

मुझे कुछ सूझता, उससे पहले माँ ने मेरे पजामा में हाथ डालकर मेरा लंड पकड़ लिया.
मेरे तो शरीर में करन्ट दौड़ गया.

वो लंड हाथ में लेते ही चौंक गईं और बोलीं- तुम्हारा लंड इतना बड़ा कैसे? सच में आज तो मैं इससे रात भर चुदाऊंगी.

फिर मैंने झट से उनका हाथ अपने लंड पे से हटाया.

माँ बोलीं- क्या हुआ, आज नहीं चोदेंगे क्या?

लेकिन मैंने फिर सोचा वैसे भी इनको कहां कुछ दिख रहा है … और मैंने मौके का फायदा उठाने का सोच लिया.

मैं झट से उठा और उनकी जांघों के पास जा के बैठ गया.

मैंने धीरे से उनके पैरों पर हाथ फिराना शुरू किया और बाद में तेजी से मसलने लगा.

तब मैंने अपनी माँ के जांघों पर चूमना शुरू किया. पहली बार मैंने किसी औरत के बदन को चूमा था.

मैं पागलों की तरह चूसने लगा. मैंने उनके हाथ उनके सर के पीछे रख दिए ताकि वो मुझे छू ना सकें.

फिर मैं धीरे से उनकी चुत की तरफ हुआ. मैंने माँ की चुत को सूँघा और सच में मैं तो जन्नत में पहुंच गया.

फिर क्या था … मैंने अपनी माँ की पेंटी उतारी और सूंघने लगा. मैंने वो पेंटी माँ की नाक के नीचे रख दी.

उनके लिए ये सब नया था, वो बोलीं- क्यों जी, आज तो कुछ अलग ही रंग दिखा रहे हो.

मैं कुछ नहीं बोला और मैंने झट से अपनी एक उंगली उनकी चुत में डाल दी जिसकी वजह से वो सिसक उठीं.
माँ बोलीं- क्या कर रहे हो … जरा धीरे करो … मेरी आवाज से कहीं हर्षल जग ना जाए.

मैंने ध्यान नहीं दिया और दूसरी उंगली भी डाल दी.
माँ और जोर से सिसक उठीं.

फिर मैंने धीरे धीरे उंगलियों को अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया.
मैं अपनी उंगली अन्दर डालता और बाहर निकाल कर अपने मुँह में ले लेता.

उसके बाद मैंने अपनी जीभ का कमाल दिखाया. मैंने माँ का पेटीकोट उतार लिया अब वो सिर्फ ब्लॉउज में थीं. मैंने अपनी जीभ माँ की चुत पर टिकायी और चूत चाटने लगा.

माँ सिसिया कर बोलीं- आह क्या कर रहे हो … उम्म्ह… अहह… हय… याह… आऊ आआअ … आपने ये सब कहां से सीखा? उम्म्मह … आज तो आपका लंड और जीभ दोनों कमाल कर रहे हैं.

मैंने अपनी माँ की चूत चाटना चालू रखा. पागलों की तरह मैं माँ की चुत पर टूट पड़ा. मैंने अपनी दोनों उंगलियां चुत में डाल दीं और चुत की मलाई चाटने लगा. माँ तो पागल हुए जा रही थीं.

एक बात तो मेरे समझ में आ गयी थी कि मेरे बाप से पिछले 20 सालों में कुछ नहीं हुआ. उसका लंड तो छोटा था ही, मगर वो कभी माँ को संतुष्ट नहीं कर पाया.

माँ के कंठ से मादक आहें निकल रही थीं- उम्मम … आह अअई अआ … चाटो इसी तरह से … निकाल दो मेरी चुत का पानी … चूसो मेरी चुलबुली को … आह कब से तड़प रही है … याम्म्म आ.

फिर मैंने जोर से चाटना शुरू किया तो जल्दी ही माँ झड़ गईं.

मैंने उनकी चुत का सारा रस गटक लिया. उसका स्वाद तो आज भी मुँह में है. माँ तो जैसे अचम्भित हो गयी थीं.

वे बोलीं- पति देव, आज तो कमाल कर दिया … अब तो तुझे रोज ऐसे ही चटाऊंगी. अब देर ना करो, मेरी चुत को पेल दो. दिखा दो अपने लंड का जलवा मेरे राजा.

लेकिन मुझे उनके साथ बहुत कुछ करना था.
मैंने उनके ब्लाउज के हुक खोले और उसको निकाल दिया और उनके मदमस्त मम्मों को आजाद कर दिया.

मैं माँ के मम्मे तो देख नहीं पा रहा था लेकिन मैं उन्हें महसूस कर था.
मैंने जोर जोर से उन्हें मसलना चालू किया.

फिर मैंने एक स्तन को अपने मुँह में भर लिया. उनका स्तन इतना बड़ा था कि मुँह में नहीं समा रहा था.

मेरी माँ मुझे भरपूर साथ दे रही थीं.
मैंने उसके हाथ सर के पीछे रख दिए ताकि वो मुझे छू ना पाएं.

मैं उनके मम्मे मसल रहा था, चूस रहा था. मैंने उनकी चुची को काट लिया.
वो चिहुंक उठीं- धीरे रेरे … आह आई आह म्मम्म … चूसो उन्हें … अपने हर्षल के बाद किसी ने नहीं चूसा उन्हें … मसलो और दूध पियो मेरा आज … म्म्मह … मेरे राजा आ अअआअ.

उन्हें क्या पता था कि उनका हर्षल ही उनके स्तन चूस रहा है. मैंने उनका दूध इतने सालों बाद पिया था.

फिर मेरा मन किया कि उनके होंठ चूस लूँ!
लेकिन मैं अपने होंठ टिका देता, तो शायद वो समझ जातीं. इसलिए मैंने अपना लंड उनके मुँह पे रख दिया.

वो तो पहले समझ नहीं पाईं, बाद में मैंने अपने लंड को उनके मुँह पे घिसना चालू कर दिया.
“म्म्मम … ये क्या आज तो जनाब मुँह में चोदेंगे मुझे … कहीं मुँह में ही ना झड़ जाना!”

मैंने अपना लंड मुँह में ठूंस दिया.

मम्मी के कंठ से आवाज निकलने लगी- ग्लोप … ग्लप … ग्लोप उम्ह म्म्मम् … वाह क्या टेस्ट है तुम्हारे लंड का … मजा आ गया … उऊ ओंम्म्म … सृलपप अअअह.

माँ तो मेरे लंड को ऐसे चूस रही थीं जैसे छोटे बच्चे को पहले बार चोकोबार मिला हो.
मेरी तो जान निकली जा रही थी कि कहीं मैं चुत में पहुंचने से पहले झड़ ना जाऊं.

मैंने अपना लंड निकाला और उनके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए. क्या मुलायम होंठ थे एकदम रेशम की तरह.
‘उन्नह … जीभ डालो मेरे मुँह में अपनी … चाटो न मेरी जीभ को …’

एक लंबे किस के बाद माँ बोलीं- राजा … आअअअ … अब बर्दाश्त नहीं हो रहा … जल्दी से डाल दो अपने लंड को मेरे चूत में प्लीज़ … चोदो इसे आज फाड़ डालो इस निगोड़ी फ़ुद्दी को.

मुझे समझ आ गया कि इस वक्त मेरी माँ के ऊपर वासना का भूत सवार है उनको मेरे होंठ चूसने से भी मेरे पापा न होने का अहसास नहीं हुआ.

फिर क्या मेरी तो लॉटरी निकल पड़ी थी.
मैंने झट से अपना लंड चुत के मुहाने पर रखा और एक धक्का लगा दिया.

मेरा लंड बड़ा होने के कारण आधे से भी कम अन्दर जा पाया था.
जैसे ही लंड अन्दर गया, माँ चिल्ला उठीं- क्या कर रहे होओ ओओह … इतनी टाइट चुत को फाड़ोगे क्याआ … धीरे डालो ना जरा … आअ अहह … आज तो मार ही दिया.

मैं थोड़ा सा डर गया … अगर मेरा बाप उठ गया तो मुसीबत हो जाएगी.

मैंने तुरंत अपना हाथ माँ के मुँह पे दबा दिया और एक और झटका मारा. इस बार मेरा लंड आधे से भी ज्यादा अन्दर घुस गया.

माँ के मुँह पे हाथ होने के कारण उनकी आवाज नहीं निकली, मगर आंसू निकल आए, जो मेरे हाथ को छू कर नीचे गिरे. लेकिन मैं डटा रहा.

अब मैंने अपना पूरा लंड बाहर निकाला और चुत पे फिर से सैट किया. फिर एक धक्के में पूरा लंड चुत में घुसेड़ दिया.
मेरा लंड सनसनाता हुआ माँ की चूत के अन्दर चला गया.

माँ ने तो हाथ को काट लिया और मेरा हाथ हट गया.
मैंने धक्के मारना चालू रखे.

माँ रोती हुई लेकिन चुदासी आवाज में बोलीं- तुम तो हैवान हो … आआह … उम्म्मह … इस्स … आह … अब रुको मत … अअ अआ … चोदो मेरी कली को … म्म्मह … पीस डालो ऐसे ही … यसस्स!

फिर मैंने दस मिनट तक ऊपर से चोदा और बाद में मैंने उनके मम्मों पे चाटें मारना शुरू की.

तभी मैंने उन्हें पलट दिया और डॉगी स्टाईल में चोदना शुरू कर दिया क्योंकि मैं उनकी गांड पे चमाट मारते हुए उनकी चुदाई करना चाहता था.

मैंने माँ की गांड पे जोर से चमाट मारना शुरू किया. इसी के साथ में लंड भी पेलता रहा.

“आआअह … और मारो मेरी गांड पे … चोदो मुझे … इसस्स … म्म्मम्म मेरे राजा … ऐसे ही … चोदो अपनी रांड को … म्म्म … अअआया … मैं झड़ने वाली हूँ … ऊऊऊह … आआ … ओह … ओह!”

मैं भी झड़ने वाला था लेकिन मैंने अपने लंड को निकाल लिया और माँ की छाती के पास लेके गया.
मैंने उनके मम्मों पर अपना वीर्य गिरा दिया.
वो अपनी उंगली से मेरे वीर्य को चाटने लगीं.

मैंने भी उनकी चुत का पानी पी लिया.

माँ- मेरे राजा ऐसी चुदाई रोज किया करो मेरी … म्म्मम्म … तुम्हारा रस भी कितना टेस्टी है … म्म्मम्म … चाट लो मेरी चूत को … आह … आह … 20 सालों के बाद आज मैं संतुष्ट हुई हूं.

फिर हम सो गए.

सुबह जब मेरी आँख खुली तो मेरी गांड पर हाथ पड़ा क्योंकि माँ गुस्से में मेरे सामने खड़ी थीं.

उन्हें रात के बारे में सब कुछ समझ आ चुका था लेकिन वो पापा के सामने कुछ बोल भी नहीं सकती थीं.
Cery sexy story.
 

Premkumar65

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गलतफहमी में माँ ने मुझसे चुदाई करवाई


मेरा नाम हर्षल है. मेरी उम्र 22 साल है. मैं पुणे महाराष्ट्र का रहने वाला हूँ.
मेरी कदकाठी सामान्य है … पर मुझे 8 इंच लम्बे लंड की सौगात मिली है.

आजकल मैं अक्सर हर हफ्ते अलग अलग औरतों के साथ सोना पसंद करता हूं.

यह कहानी मेरी सत्य जीवन घटना पर आधारित है.
मुझे यह कहानी बताते हुए बहुत शरम महसूस हो रही है. पर मैं करूं भी तो क्या, मुझे अपने दिल का बोझ हल्का करना है.

मेरी माँ एक बहुत ही साधारण महिला हैं. लेकिन वो बहुत ही आकर्षक दिखती हैं. उनकी उम्र 40 साल है. उनका गोरा रंग, तो किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींच लेता है.

उनकी फिगर तो इतनी कंटीली है, हे भगवान … क्या बताऊं; मेरी मॉम की मादक देह अच्छे अच्छों का ध्यान भटका देती है.
माँ की फिगर 36-30-32 की है.

वो हमेशा साड़ी पहनती हैं. कई बार खाना बनाने के वक्त वो अपनी साड़ी पेट के नीचे दबा लेती हैं और उस वक्त उनकी नाभि साफ झलकती है. ऐसी कामुक नाभि देखकर तो किसी का भी लंड सलामी देने लगे.

जब वो सज-धज कर किसी शादी या फंक्शन आदि में जाती हैं तो सभी लोगों की निगाहें उन पर गड़ जाती हैं.

यह बात उन दिनों की है जब मैं 20 साल का था.
आपको तो पता ही है कि इस उम्र में जवानी का खुमार चढ़ा हुआ होता है.

पर मेरी माँ के बारे में मैंने कभी कोई गलत बात मन में भी आने नहीं दी थी.
मैं एक मिडल क्लास फैमिली से हूं तो अक्सर हम लोग एक ही कमरे में सोते थे.

एक दिन अचानक रात को मुझे कुछ आवाजें सुनाई दीं.
मैंने हल्के से पलट कर देखा, तो मुझे दिखा कि मेरे पापा मेरी माँ की जांघों के पास बैठे हैं.
मैं बिना आवाज किए वो सब देखता रहा.

मेरे पापा ने अपनी चड्डी उतार कर फेंक दी. इसके बाद में उन्होंने अपना हाथ माँ की साड़ी में डाल दिया और माँ की पेंटी भी उतार कर फेंक दी.

इसके बाद पापा जी माँ के ऊपर चढ़ गए.

वो नजारा देखकर मेरा बुरा हाल हो गया.

पापा ने जोर से धक्के मारना चालू कर दिया. मेरी माँ जोर जोर से सिसकारियां लेने लगीं.
लेकिन कुछ होता, इससे पहले मेरे पापा झड़ गए. उसके बाद वो करवट लेकर सो गए.

मुझे तभी पता चल गया था कि मेरे बाप में दम नहीं है.

थोड़ी देर बाद मैं हल्का होने के लिए बाथरूम जाने के लिए उठा.
मगर उससे पहले मेरी माँ मुझे बाथरूम जाते दिखीं.

मैं थोड़ी देर रुका और माँ के आने की राह देखने लगा. पर कुछ ज्यादा समय हो गया, माँ वापस नहीं आईं, तो मैं उनको देखने के लिए गया.

अभी जैसे ही मैं बाथरूम में घुसता, मुझे माँ की सिसकारियां सुनाई दीं.

मैंने धीरे से अन्दर झांका, तो मैं दंग रह गया.
मेरी माँ ने अपनी साड़ी ऊपर कर ली थी और वो फर्श पर लेटी हुई थीं.

उनका हाथ अपनी साड़ी के नीचे अपनी योनि में घुसा हुआ था. उन्होंने अपनी दो उंगलियां योनि में डाल रखी थीं.
वो जोर जोर से अपनी योनि को खोद रही थीं.

मैं दरवाजे के बाहर खड़ा होकर ये सब तमाशा देख रहा था.
मैंने समय ना गंवाते हुए अपना लंड निकाला और मसलने लगा.

माँ अपने मम्मे जोर जोर से मसल रही थीं. मेरी माँ ने उस रात काफी देर अपनी चूत में उंगली की.
झड़ने के बाद उन्होंने अपना पूरा रस अपनी उंगली की मदद से चाट लिया.

इधर मैं भी झड़ गया था. मैं माँ के पहले बिस्तर पर जाकर सो गया.

जब मैं सुबह उठा तो अब मेरा माँ की तरफ देखने का नजरिया बदल गया था.

मेरी माँ अक्सर बाथरूम से निकलने के बाद साड़ी पहनती हैं. वो हमेशा अपनी चूचियों पर पेटीकोट बाँध कर बाहर आती हैं.
मैं ये मौका हाथ से नहीं जाने देता और उस कमरे में जाकर बैठ जाता हूं.

जब वो साड़ी पहनती हैं तो उनका पेटीकोट नीचे गिर जाता है और उनके मम्मे उछल कर बाहर आ जाते हैं.
कसम से मॉम के वो बड़े बड़े मम्मे और उनके ऊपर वो काले चूचे देखकर ऐसा लगता है कि बस उनको पकड़ कर चूस लो.

मैं उन्हें उस दिन से इस अवस्था में कैमरा में शूट करने लगा.

फिर जब भी मेरा मन करता, मैं उनके मम्मे देखकर मुठ मार लेता था.

कई बार तो मैं उनकी जांघों पर सर रख के सोने का बहाना करके उनके मम्मों को दबा भी देता था. मेरा उनके रसीले गुलाबी होंठ देखकर चूसने का मन करता था.

लेकिन मुझे पता नहीं था कि एक दिन मुझे ये सब करने का मौका मिलेगा.

हुआ यूं कि मेरे पापा को तीन दिन के लिए बाहर गांव जाना था.
अब तो मुझे पता था मेरी भूखी माँ तो पूरी तरह हवस की शिकार हो जाएगी.

मेरे पापा सुबह काम के लिए निकल गए.

दोपहर को मैंने सोने का नाटक किया. जैसे ही मैं सोया, मेरी माँ बाथरूम के और चल पड़ी.
फिर क्या, मैं भी उनके पीछे चला गया.

लेकिन उस दिन तो उन्होंने कमाल ही कर दिया.
उन्होंने उस दिन हाथ में बेलन लिया हुआ था और उन्होंने उस बेलन को अपनी चुत पे सैट कर रखा था.

थोड़ी देर बाद वो बेलन का हैंडल उनकी चुत के अन्दर चला गया और और उसी के साथ माँ की सांसें तेज हो गईं.

वो जोर जोर से सिसकारियां लेने लगीं. मन तो कर रहा था कि उनकी चुत को अभी अन्दर जाकर चोद दूं.

फिर उन्होंने अपना ब्लाउज निकाल के फेंक दिया. वो अब पूरी तरह नंगी हो चुकी थीं.

मैंने झट से अपना मोबाईल निकाला और उनका वीडियो बनाना शुरू कर दिया.

थोड़ी देर बाद माँ झड़ गईं. उन्होंने वो बेलन चुत से निकाल कर मुँह में ले लिया. अब जब तक पापा वापस नहीं आए, ऐसा हर रोज होने लगा.

तीन दिनों बाद पापा शाम को घर आए.
उस रात हमने खाना बाहर से मंगाया था.

खाना खाने के बाद मैं बाथरूम में मोबाईल लेकर चला गया और वीडियो देखने लगा. लेकिन फिर सोचा कि आज तो पापा माँ को चोदेंगे ही … मतलब रात को माँ फिर से लाइव शो दिखाएंगी.

उस रात मेरे पापा मुझे बोले- हर्षल, तू आज नीचे अपनी माँ के साथ सो जा, मेरी पीठ में दर्द है, तो मैं बेड पे सोता हूं.

मैं हमेशा बेड पर सोता हूं.
लेकिन उस दिन मैं माँ के साथ सोने को तैयार हो गया क्योंकि माँ के साथ सोते समय मैं हमेशा उनके पेट पर हाथ फिराता हूं.

मैं और पापा लाइट बंद करके सो गए.

पापा तो कुछ ही देर में गहरी नींद में चले गए. कुछ देर बाद माँ सब कुछ घर का काम करके मेरे पास आकर सो गईं.

कमरे में अंधेरा था, इसलिए ये समझ पाना मुश्किल था कि कौन कहां सोया हुआ है.

थोड़ी देर बाद मैंने अपने पैर पर कुछ हरकत महसूस की.

मैंने देखा कि मेरी माँ ने अपना एक पैर मेरी टांगों पर डाल दिया था. उनका ये पैर पूरा नंगा था. उन्होंने अपनी साड़ी उतार कर फेंक दी थी और अपना पेटीकोट भी ऊपर तक चढ़ा लिया था.

उन्होंने धीरे से आवाज निकाली और बोली- क्यों जी, आज नहीं चोदोगे क्या?

मेरी तो फटी पड़ी थी, पर मैं कुछ नहीं बोला.

फिर माँ ने अपना एक हाथ मेरे चड्डी के ऊपर से फेरा. मेरा लंड तो वैसे भी सलामी दे रहा था.
फिर वो बोलीं- अजी आपका तो आज बड़ा फुदक रहा है, लगता है मेरी फ़ुद्दी की आज खैर नहीं. क्या खा के आये हो बाहर गांव से जो इतने जोश में हो. आज तो प्यास बुझा ही दो, मेरी इस चुलबुली की.

मैं और मेरे पापा हमेशा एक ही टाइप का पजामा पहनते थे तो माँ को वैसे भी समझ नहीं आने वाला था कि वहां पे मैं सोया हूं, पापा नहीं.

मुझे कुछ सूझता, उससे पहले माँ ने मेरे पजामा में हाथ डालकर मेरा लंड पकड़ लिया.
मेरे तो शरीर में करन्ट दौड़ गया.

वो लंड हाथ में लेते ही चौंक गईं और बोलीं- तुम्हारा लंड इतना बड़ा कैसे? सच में आज तो मैं इससे रात भर चुदाऊंगी.

फिर मैंने झट से उनका हाथ अपने लंड पे से हटाया.

माँ बोलीं- क्या हुआ, आज नहीं चोदेंगे क्या?

लेकिन मैंने फिर सोचा वैसे भी इनको कहां कुछ दिख रहा है … और मैंने मौके का फायदा उठाने का सोच लिया.

मैं झट से उठा और उनकी जांघों के पास जा के बैठ गया.

मैंने धीरे से उनके पैरों पर हाथ फिराना शुरू किया और बाद में तेजी से मसलने लगा.

तब मैंने अपनी माँ के जांघों पर चूमना शुरू किया. पहली बार मैंने किसी औरत के बदन को चूमा था.

मैं पागलों की तरह चूसने लगा. मैंने उनके हाथ उनके सर के पीछे रख दिए ताकि वो मुझे छू ना सकें.

फिर मैं धीरे से उनकी चुत की तरफ हुआ. मैंने माँ की चुत को सूँघा और सच में मैं तो जन्नत में पहुंच गया.

फिर क्या था … मैंने अपनी माँ की पेंटी उतारी और सूंघने लगा. मैंने वो पेंटी माँ की नाक के नीचे रख दी.

उनके लिए ये सब नया था, वो बोलीं- क्यों जी, आज तो कुछ अलग ही रंग दिखा रहे हो.

मैं कुछ नहीं बोला और मैंने झट से अपनी एक उंगली उनकी चुत में डाल दी जिसकी वजह से वो सिसक उठीं.
माँ बोलीं- क्या कर रहे हो … जरा धीरे करो … मेरी आवाज से कहीं हर्षल जग ना जाए.

मैंने ध्यान नहीं दिया और दूसरी उंगली भी डाल दी.
माँ और जोर से सिसक उठीं.

फिर मैंने धीरे धीरे उंगलियों को अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया.
मैं अपनी उंगली अन्दर डालता और बाहर निकाल कर अपने मुँह में ले लेता.

उसके बाद मैंने अपनी जीभ का कमाल दिखाया. मैंने माँ का पेटीकोट उतार लिया अब वो सिर्फ ब्लॉउज में थीं. मैंने अपनी जीभ माँ की चुत पर टिकायी और चूत चाटने लगा.

माँ सिसिया कर बोलीं- आह क्या कर रहे हो … उम्म्ह… अहह… हय… याह… आऊ आआअ … आपने ये सब कहां से सीखा? उम्म्मह … आज तो आपका लंड और जीभ दोनों कमाल कर रहे हैं.

मैंने अपनी माँ की चूत चाटना चालू रखा. पागलों की तरह मैं माँ की चुत पर टूट पड़ा. मैंने अपनी दोनों उंगलियां चुत में डाल दीं और चुत की मलाई चाटने लगा. माँ तो पागल हुए जा रही थीं.

एक बात तो मेरे समझ में आ गयी थी कि मेरे बाप से पिछले 20 सालों में कुछ नहीं हुआ. उसका लंड तो छोटा था ही, मगर वो कभी माँ को संतुष्ट नहीं कर पाया.

माँ के कंठ से मादक आहें निकल रही थीं- उम्मम … आह अअई अआ … चाटो इसी तरह से … निकाल दो मेरी चुत का पानी … चूसो मेरी चुलबुली को … आह कब से तड़प रही है … याम्म्म आ.

फिर मैंने जोर से चाटना शुरू किया तो जल्दी ही माँ झड़ गईं.

मैंने उनकी चुत का सारा रस गटक लिया. उसका स्वाद तो आज भी मुँह में है. माँ तो जैसे अचम्भित हो गयी थीं.

वे बोलीं- पति देव, आज तो कमाल कर दिया … अब तो तुझे रोज ऐसे ही चटाऊंगी. अब देर ना करो, मेरी चुत को पेल दो. दिखा दो अपने लंड का जलवा मेरे राजा.

लेकिन मुझे उनके साथ बहुत कुछ करना था.
मैंने उनके ब्लाउज के हुक खोले और उसको निकाल दिया और उनके मदमस्त मम्मों को आजाद कर दिया.

मैं माँ के मम्मे तो देख नहीं पा रहा था लेकिन मैं उन्हें महसूस कर था.
मैंने जोर जोर से उन्हें मसलना चालू किया.

फिर मैंने एक स्तन को अपने मुँह में भर लिया. उनका स्तन इतना बड़ा था कि मुँह में नहीं समा रहा था.

मेरी माँ मुझे भरपूर साथ दे रही थीं.
मैंने उसके हाथ सर के पीछे रख दिए ताकि वो मुझे छू ना पाएं.

मैं उनके मम्मे मसल रहा था, चूस रहा था. मैंने उनकी चुची को काट लिया.
वो चिहुंक उठीं- धीरे रेरे … आह आई आह म्मम्म … चूसो उन्हें … अपने हर्षल के बाद किसी ने नहीं चूसा उन्हें … मसलो और दूध पियो मेरा आज … म्म्मह … मेरे राजा आ अअआअ.

उन्हें क्या पता था कि उनका हर्षल ही उनके स्तन चूस रहा है. मैंने उनका दूध इतने सालों बाद पिया था.

फिर मेरा मन किया कि उनके होंठ चूस लूँ!
लेकिन मैं अपने होंठ टिका देता, तो शायद वो समझ जातीं. इसलिए मैंने अपना लंड उनके मुँह पे रख दिया.

वो तो पहले समझ नहीं पाईं, बाद में मैंने अपने लंड को उनके मुँह पे घिसना चालू कर दिया.
“म्म्मम … ये क्या आज तो जनाब मुँह में चोदेंगे मुझे … कहीं मुँह में ही ना झड़ जाना!”

मैंने अपना लंड मुँह में ठूंस दिया.

मम्मी के कंठ से आवाज निकलने लगी- ग्लोप … ग्लप … ग्लोप उम्ह म्म्मम् … वाह क्या टेस्ट है तुम्हारे लंड का … मजा आ गया … उऊ ओंम्म्म … सृलपप अअअह.

माँ तो मेरे लंड को ऐसे चूस रही थीं जैसे छोटे बच्चे को पहले बार चोकोबार मिला हो.
मेरी तो जान निकली जा रही थी कि कहीं मैं चुत में पहुंचने से पहले झड़ ना जाऊं.

मैंने अपना लंड निकाला और उनके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए. क्या मुलायम होंठ थे एकदम रेशम की तरह.
‘उन्नह … जीभ डालो मेरे मुँह में अपनी … चाटो न मेरी जीभ को …’

एक लंबे किस के बाद माँ बोलीं- राजा … आअअअ … अब बर्दाश्त नहीं हो रहा … जल्दी से डाल दो अपने लंड को मेरे चूत में प्लीज़ … चोदो इसे आज फाड़ डालो इस निगोड़ी फ़ुद्दी को.

मुझे समझ आ गया कि इस वक्त मेरी माँ के ऊपर वासना का भूत सवार है उनको मेरे होंठ चूसने से भी मेरे पापा न होने का अहसास नहीं हुआ.

फिर क्या मेरी तो लॉटरी निकल पड़ी थी.
मैंने झट से अपना लंड चुत के मुहाने पर रखा और एक धक्का लगा दिया.

मेरा लंड बड़ा होने के कारण आधे से भी कम अन्दर जा पाया था.
जैसे ही लंड अन्दर गया, माँ चिल्ला उठीं- क्या कर रहे होओ ओओह … इतनी टाइट चुत को फाड़ोगे क्याआ … धीरे डालो ना जरा … आअ अहह … आज तो मार ही दिया.

मैं थोड़ा सा डर गया … अगर मेरा बाप उठ गया तो मुसीबत हो जाएगी.

मैंने तुरंत अपना हाथ माँ के मुँह पे दबा दिया और एक और झटका मारा. इस बार मेरा लंड आधे से भी ज्यादा अन्दर घुस गया.

माँ के मुँह पे हाथ होने के कारण उनकी आवाज नहीं निकली, मगर आंसू निकल आए, जो मेरे हाथ को छू कर नीचे गिरे. लेकिन मैं डटा रहा.

अब मैंने अपना पूरा लंड बाहर निकाला और चुत पे फिर से सैट किया. फिर एक धक्के में पूरा लंड चुत में घुसेड़ दिया.
मेरा लंड सनसनाता हुआ माँ की चूत के अन्दर चला गया.

माँ ने तो हाथ को काट लिया और मेरा हाथ हट गया.
मैंने धक्के मारना चालू रखे.

माँ रोती हुई लेकिन चुदासी आवाज में बोलीं- तुम तो हैवान हो … आआह … उम्म्मह … इस्स … आह … अब रुको मत … अअ अआ … चोदो मेरी कली को … म्म्मह … पीस डालो ऐसे ही … यसस्स!

फिर मैंने दस मिनट तक ऊपर से चोदा और बाद में मैंने उनके मम्मों पे चाटें मारना शुरू की.

तभी मैंने उन्हें पलट दिया और डॉगी स्टाईल में चोदना शुरू कर दिया क्योंकि मैं उनकी गांड पे चमाट मारते हुए उनकी चुदाई करना चाहता था.

मैंने माँ की गांड पे जोर से चमाट मारना शुरू किया. इसी के साथ में लंड भी पेलता रहा.

“आआअह … और मारो मेरी गांड पे … चोदो मुझे … इसस्स … म्म्मम्म मेरे राजा … ऐसे ही … चोदो अपनी रांड को … म्म्म … अअआया … मैं झड़ने वाली हूँ … ऊऊऊह … आआ … ओह … ओह!”

मैं भी झड़ने वाला था लेकिन मैंने अपने लंड को निकाल लिया और माँ की छाती के पास लेके गया.
मैंने उनके मम्मों पर अपना वीर्य गिरा दिया.
वो अपनी उंगली से मेरे वीर्य को चाटने लगीं.

मैंने भी उनकी चुत का पानी पी लिया.

माँ- मेरे राजा ऐसी चुदाई रोज किया करो मेरी … म्म्मम्म … तुम्हारा रस भी कितना टेस्टी है … म्म्मम्म … चाट लो मेरी चूत को … आह … आह … 20 सालों के बाद आज मैं संतुष्ट हुई हूं.

फिर हम सो गए.

सुबह जब मेरी आँख खुली तो मेरी गांड पर हाथ पड़ा क्योंकि माँ गुस्से में मेरे सामने खड़ी थीं.

उन्हें रात के बारे में सब कुछ समझ आ चुका था लेकिन वो पापा के सामने कुछ बोल भी नहीं सकती थीं.
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Habibi@

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