If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.
"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है, जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे, तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।
निशांत:– माफ कीजिएगा, मेरा एक सवाल है। ये जो अभी पोर्टल खुला था, क्या वह टेलीपोर्टेशन नही हुआ...
संन्यासी शिवम:– हां ये भी आज के युग का टेलीपोर्टेशन है। इसे कुपोषित टेलीपोर्टेशन भी कह सकते हो। टेलीपोर्टेशन में कभी कोई द्वार नही खुलता, वहां किसी भी प्रकार के मार्ग को देखा नही जा सकता। हालांकि एक जगह से दूसरे जगह पहुंचने के लिए जो पोर्टल अर्थात द्वार खोलते है, वह होता तो काल्पनिक ही है, किंतु द्वार दिखता है। इसलिए सही मायने में यह टेलीपोर्टेशन नही। हालांकि पोर्टल बनाने की सिद्धि भी आसान नहीं होती। इसकी भी सिद्धि अब तक गिने चुने सिद्ध पुरुष के पास ही है। और हां तांत्रिक अध्यात के पास भी है। तांत्रिक के विषय में इतना ही कहूंगा की हो सकता है उनके पास टेलीपोर्टेशन की पूर्ण सिद्धि भी हो। क्योंकि उनके पीछे पूरा एक वंश वृक्ष था, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी सिद्धि गुप्त रूप से आगे बढाते रहे हैं। लेकिन इसपर भी संदेह मात्र है, क्योंकि आज से पहले इन तांत्रिकों के बारे में केवल सुना ही था। हम लोग भी पहली बार आमने–सामने होंगे...
आर्यमणि:– आपकी बात और रीछ स्त्री को जानने के बाद मन विचलित सा हो गया है। क्यों है ये ताकत की होड़? इतनी ताकत किस काम कि जिससे पूरे मानव संसार को ही खत्म कर दो? फिर तुम्हारी ये ताकत देखेगा कौन?... क्यों करते है लोग ऐसा? आराम से हंसी खुशी नही रह सकते क्या? जिसे देखो अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगा है। कैसे हो गये है हम?...
संन्यासी शिवम:– तुम ज्यादा विचलित न हो। जैसा मैंने कहा, खुद को थोड़ा वक्त दो। बस एक ही सत्य है, मृत्यु। जब तक मृत्यु नही आती, तब तक मुस्कुराते हुए अपने कर्म किये जाओ।
आर्यमणि:– आप यहां से जाने के बाद क्या करेंगे संन्यासी जी...
संन्यासी शिवम:– पुर्नस्थापित अंगूठी मिल चुकी है इसलिए यहां से सीधा पूर्वी हिमालय जाऊंगा, कमचनजंघा की गोद में। हमारे तात्कालिक गुरुजी अभी जोड़ने के काम में लगे हैं। इसी संदर्व में हम कंचनजंघा स्थित अपने शक्ति के केंद्र वाले गांव को लगभग पुनर्स्थापित कर चुके थे। तभी तो खोजी पारीयान के तिलिस्म के टूटते ही हम तुम्हारे पीछे आये। क्योंकि गांव बसाने की लिए हमे बस वो आखरी चीज, पुर्नस्थापित अंगूठी चाहिए थी।
निशांत:– यदि ये अंगूठी इतनी जरूरी थी, फिर आप लोग ने क्यों नही ढूंढा...
संन्यासी शिवम:– कुछ वर्ष पहले कोशिश हुयि थी, तब कोई और गुरुजी थे। किंतु किसी ने छिपकर ऐसा आघात किया कि हम वर्षो पीछे हो गये। हमारे तात्कालिक गुरुजी पहले सभी आश्रम और मठ को जोड़ते। तत्पश्चात अंगूठी ढूढने निकलते। उस से पहले ही तुम दोनो ने ढूंढ लिया। हमारी मेहनत और समय दोनो बचाने के लिये आभार व्यक्त करते है।
निशांत:– वैसे एक सवाल बार–बार दिमाग में आ रहा है?
संन्यासी शिवम:– क्या?
निशांत:– इतना तो समझ गया की ये झोलर प्रहरी को रीछ स्त्री के यहां होने की खबर कैसे लगी। लेकिन एक बात समझ में नही आयि की वो प्रहरी यहां तांत्रिक के साथ लड़ाई में क्यों नही सामिल थे? सतपुरा आने से पहले जब मीटिंग हुई थी, तब हमे बताया गया था कि 5 किलोमीटर का क्षेत्र बांध दिया गया है, इसका क्या मतलब निकलता है?
आर्यमणि:– "यहां का पूरा माहोल और संन्यासी शिवम जी को सुनने के बाद तो पूरी कहानी ही कनेक्ट हो चुकी है। इसका जवाब मैं दे देता हूं। हर अनुष्ठान की अपनी एक विधि और खास समय होता है। रीछ स्त्री महाजनिका कैद से छूट तो गयि, लेकिन ऐडियाना के मकबरे को खोलने के लिए उसे इंतजार करना पड़ा। कुछ प्रहरी को पूरी बात पहले से पता थी, लेकिन ना तो तांत्रिक और न ही प्रहरी को, साधुओं और संन्यासियों का जरा भी भनक था।"
"प्रहरी तो सही समय पर यहां पहुंचे थे। आज से 4 दिन पहले जब ऐडियाना का मकबरा खोला जाता और अंदर का समान बांटकर, रीछ स्त्री के हाथों मेरी और कुछ लोगों की बलि चढ़ाई जाती। हां तब ये क्षेत्र भी 5 किलोमीटर तक बांधा गया था, वो भी तांत्रिकों द्वारा। लेकिन प्रहरी और तांत्रिक तब मात खा गये, जब उन्हें यह क्षेत्र किसी और के द्वारा भी बंधा हुआ मिला। एडियाना का मकबरा खुलने की विधि में बाधा होने लगी और तब तांत्रिक और उसके चेलों ने पोर्टल की मदद ली।"
"यहां पर तांत्रिक और प्रहरी का सीधा शक मुझपर गया। इसलिए 4 रात पहले मुझे मारने की योजना बनाई गयि।उन्हे लगा सरदार खान मुझे मार देगा। खैर आज जबतक सिद्ध पुरुष और संन्यासी का सामना तांत्रिक से नही हुआ था, तबतक ये लोग भी यही समझते रहे कि मैं ही कोई सिद्ध पुरुष हूं, जिसने ये पूरा खेल रचा है। अब मैं सिद्ध पुरुष हूं इसलिए प्रहरी सामने से मुझे मारने नही आये क्योंकि उनका भेद खुल जाता। उन प्रहरी को यही लग रहा की आर्यमणि तो रीछ स्त्री के पीछे नागपुर आया है। प्रहरी को यह भी विश्वास था कि मैं सरदार खान से बच गया तो क्या हुआ, तांत्रिक और रीछ स्त्री से नही बच पाऊंगा"...
"प्रहरी की एक खतरनाक प्लानिंग का खुलासा तो तुमने ही कर दिया था निशांत। जब कहे थे कि बहुत से शिकारी की जान जाने वाली है। और वो सही भी था क्योंकि भूमि दीदी को भी प्रहरी समुदाय में अलग ही लेवल का शक है। गुटबाजी तो हर संस्था में होती है। किंतु प्रहरी में उस से भी ज्यादा कुछ हो रहा है, इसका अंदेशा था शायद उन्हें। इसलिए भूमि दीदी को कमजोर करने के लिये उनके सभी खास लोगों को यहां ले आया।"
निशांत:– ओह अब मैं समझा की तू उस वक्त क्या समझाना चाह रहा था...
आर्यमणि:– क्या?
निशांत:– तेजस और सुकेश २ टॉप क्लास के प्रहरी, और पलक जो सबको यहां लेकर आयि। बिजली का खंजर इन्ही ३ लोगों में से कोई एक ले जाता और जिस तरह का संग्रहालय तेरे मौसा (सुकेश) ने अपने घर में बना रखा है। जिस विश्वास से सुकेश के सहायक ने रीछ स्त्री का पता बताया और वह सबको यहां ले आया। सुकेश ही शायद तांत्रिक के साथ मिला हुआ प्रहरी होगा। अगर सुकेश नही तो फिर तेजस या पलक। या फिर तीनों ही, या तीनों में से कोई २… क्योंकि यहां आये प्रहरी में से ही कोई प्रहरी खंजर लेकर जाता।
आर्यमणि:– बस कर ज्यादा गहराई में मत जा, वरना मेरी तरह ही तेरा हाल होगा।
निशांत:– मूर्ख समझा है क्या? तू मुझसे ज्यादा जानता है, इसलिए ज्यादा कन्फ्यूज है। मुझे यहां ३ प्रहरी करप्ट दिखे। यदि मुझसे पूछो तो ये लोग ताकत के भूखे है। जो की एक बच्चा भी समझ सकता है। पर जैसे कुछ सवाल तेरे ऊपर है न, तू ताकतवर तो है, लेकिन है क्या? यहां आने के पीछे मकसद क्या है? ठीक वैसे ही उनके लिए तेरे मन में है... ये लोग है क्या? और ताकत पाने के पीछे का मकसद क्या है? क्या मात्र ताकतवर बनना है, या पीछे कोई बहुत बड़ी योजना है?
सन्यासी शिवम:– हाहाहा, दोनो ही प्रतिभा के धनी हो। तुम दोनो साथ हो तो हर उस बिन्दु को देख सकते हो, जो दूसरे को १००० बार देखने से ना मिले।
आर्यमणि:– वैसे एक झोल तो आप लोगों ने भी किया है।
संन्यासी शिवम:– क्या?
आर्यमणि:– ठीक उसी रात क्षेत्र को बांधे जब मैं यहां पहुंचा। न तो कोई अंदर आ सकता था न ही कोई बाहर। फिर सिर्फ मुझे और निशांत को ही बंधे हुए क्षेत्र के अंदर घुसने दिया होगा। बाकी मुझे विश्वास है कि बहुत से लोग बांधे हुए क्षेत्र की सीमा के पास होंगे, लेकिन अंदर नही आ पा रहे। रीछ स्त्री कुछ बताने आयेगी नही और तांत्रिक के पूरे समूह को ही गायब कर दिया। देखा जाय तो आप लोगों ने भी ये पूरा खेल परदे के पीछे रहकर ही खेल गये। उल्टा मुझे हाईलाइट कर दिया...
संन्यासी शिवम:– मुझे लगा इस ओर तुम्हारा ध्यान नहीं जायेगा। सबसे पहले तो माफी चाहूंगा जो तुम्हे फसाते हुये हम आगे बढ़े। विश्वास मानो हम अभी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे, जिसमे हमारे तात्कालिक गुरु जी और आचार्य जी, आश्रम के सभी इकाई को जोड़ने में लगे है। इस वक्त हम किसी के सामने अपने होने का भेद नहीं खोल सकते। वैसे अब चिंता मत करो, हमने दोनो ही शंका को दूर कर दिया।
आर्यमणि:– कौन सी..
संन्यासी शिवम:– पहली की तुम हमारे बंधे क्षेत्र में घुसे ही नही। लोगों ने यही देखा की तुम भी उन्ही की तरह जूझ रहे। क्योंकि हमने तुम्हारी होलोग्राफिक इमेज को अब भी सीमा के बाहर रखा है। अब चूंकि तुम भी उन लोगों की तरह बाहर घूम रहे, इसलिए तुम एक सिद्ध पुरुष कैसे हो सकते? प्रहरी को यकीन हो गया है कि रीछ स्त्री के बंधे क्षेत्र में कोई नही घुसा इसलिए दिमाग में एक ही बात होगी, "शायद तांत्रिक के मन में ही बईमानि आ गयि हो।"
निशांत:– होलोग्राफिक इमेज.. क्या ऐसा भी कोई सिद्ध किया हुआ मंत्र है?...
संन्यासी शिवम:– हां है न, विज्ञान। हमारे पास कमाल के प्रोग्राम डिजाइनर और सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
निशांत:– क्या सच में?....
संन्यासी शिवम:– हां बिलकुल। वैसे भी अब तो हमारे साथ हो, जल्द ही सबको जान जाओगे...
आर्यमणि:– चलो मेरा बोझ तो घटा। वैसे यहां से मैं एक बात सीखकर जा रहा...
निशांत:– क्या?
आर्यमणि:– हम जैसे लोगों के लिए भटकना ज्यादा प्रेरणादायक है। हम गंगटोक में भटके, क्या कुछ नही सीखा... मैं 3–4 साल घुमा क्या कुछ नही सीखा। जबकि उस दौड़ में तू नागपुर में ही रहा और क्या सीखा..
निशांत:– प्रहरी के लौड़ा–लहसुन सीखा। इस से ज्यादा कुछ नहीं...
आर्यमणि:– अब देख, सतपुरा के जंगल हम घूमने आये, फिर क्या हुआ...
निशांत:– पूरी सृष्टि ही हैरतंगेज चीजों से भरी है जिसका हमने बूंद ही देखा हो शायद...
फिर दोनो दोस्त एक साथ एक सुर में... "माफ करना संन्यासी जी जो हम कहने वाले है... इतना कहकर दोनो ने हाथ जोड़ लिये और चिल्लाकर कहने लगे... "मां चुदाये दुनिया, हम तो उम्र भर भटकते रहेंगे।"..
संन्यासी हंसते हुए... "तुम दोनो ऐसी भाषा का भी प्रयोग करते हो?"
आर्यमणि:– हां जब अकेले होते हैं... वैसे हमने 8 साल की उम्र से 16–17 साल तक ज्यादातर वक्त एक दूसरे के साथ अकेले ही बिताया है।
निशांत:– हां लेकिन ये भी है, ऐसी बातें किसी और के सामने निकलती भी नही... संन्यासी सर मुझे भी अब आपके साथ कुछ दिन भटकना है...
आर्यमणि:– क्यों तू मेरे साथ नही भटकेगा...
निशांत:– अभी बिलकुल नहीं... तू भटक कर अपना ज्ञान अर्जित कर और मैं भटक कर अपना ज्ञान अर्जित करूंगा... और जब दोनो भाई मिलेंगे तब पायेंगे की हमने दुगनी दुनिया देखी है...
आर्यमणि, निशांत के गले लगते... "ये हुई न असली खोजी वाली बात"…
संन्यासी शिवम:– अभी तुम्हे अपने साथ बहुत ज्यादा भटका तो नही सकता, लेकिन हां कुछ अच्छा सोचा है तुम्हारे बारे में...
निशांत:– क्या..
संन्यासी दोनो के हाथ में एक–एक पुस्तक देते... "जल्द ही पता चल जायेगा। अब मैं चलता हूं।"… सन्यासी अपनी बात कहकर वहां से निकल गये। आर्यमणि और निशांत भी बातें करते हुये कैंप की ओर चल दिये। पीछले कुछ घंटों की बातो को दिमाग से दूर करने के लिये इधर–उधर की बातें करते हुये पहुंचे।
दोनो कैंप के पास तो पहुंचे लेकिन वहां का नजारा देखते ही समझ चुके थे कि वहां क्या हो चुका था? वहां का माहोल देखकर आर्यमणि और निशांत को ज्यादा आश्चर्य नही हुआ, बस अफसोस हो रहा था। चारो ओर कई शिकारियों की लाश बिछी थी। जिसमे २ मुख्य नाम थे, पैट्रिक और रिचा। पैट्रिक और रिचा के साथ लगभग 30 शिकारी मारे गये थे। बचे हुये शिकारी फुफकार मारते अपने गुस्से का परिचय दे रहे थे। उन्ही के बीच से पलक भागती हुई पहुंची और आर्यमणि के गले लगती... "ऊपर वाले का शुक्र है कि तुम सुरक्षित हो"…
आर्यमणि:– पलक यहां हुआ क्या था?
पलक:– वह रीछ स्त्री महाजनिका अचानक ही यहां पहुंची और उसने हम पर हमला कर दिया।
निशांत, लाश के ऊपर लगे तीर और भला को देखते... "तीर और भला से हमला किया?"
रिचा के ही टीम का एक साथी तेनु.… "घटिया वेयरवोल्फ और उसका मालिक दोनो ही लड़ाई के वक्त नदारत थे। साले फट्टू तू आया ही क्यों था। चल भाग यहां से।
पलक:– तेनु जुबान संभाल कर..
तेनु पलक को आंखें दिखाते... "तेजस यहां मुझे सब संभालने के लिये कह कर गया है। अपनी जुबान मीटिंग में ही खोलना। और तू निष्कासित वर्धराज का पोते, अपने वुल्फ की तरह तू भी निकल फट्टू"…
निशांत तो २–२ हाथ करने में मूड में आ गया लेकिन आर्यमणि ने उसे शांत करवाया और अपने साथ लेकर निकल गया। कुछ घंटों के सफर के बाद रास्ते में अलबेली और रूही भी मिली, जिन्हे उठाते दोनो आगे बढ़ गये।..
आर्यमणि:– क्या खबर...
रूही:– शायद उसका नाम नित्या था।
आर्यमणि:– किसका..
रूही:– वो औरत...उसके पूरे बदन पर मैले कपड़े थे जो जगह–जगह से फटे थे। मानो बरसों से उसने अपने बदन पर कोई दूसरा कपड़ा न पहना हो। बदन का जो हिस्सा दिख रहा था सब धूल में डूबा। ऐसा लग रहा था धूल की चमरी जमी है। उसके होंटों पर भी धूल चढ़ा था, और जब वो बोलने के लिए होंठ खोली, उसके धूल जमी खुस्क होंठ पूरा फटकर लाल–लाल दिखने लगे। चेहरा ऐसा झुलसा था मानो भट्टी के पास उसके चेहरे को रखा गया था। हवा की भांति वो लहराती थी। किसी धूवें की प्रतिबिंब हो जैसे। तेजस उसे नित्या कहकर पुकार रहा था, इस से ज्यादा उसकी नई भाषा मुझे समझ में नही आयि। वह क्या थी पता नही, लेकिन इंसान तो बिलकुल भी नहीं थी। तेजस ने उससे कुछ कहा और वो सबसे पहले तुम दोनो पर ही हमला करने पहुंची।"
"बॉस वो तुम्हे मारने की कोशिश करती रही लेकिन तुम और निशांत तो धुवें के कोहरे में घुसकर बचते रहे। जब वह तुम दोनो को नही मार पायि, फिर सीधा कैंप पहुंची और वहां हमला कर दिया। वह अकेली थी और शिकारियों से घिरी। उसकी अट्टहास भरी हंसी और खुद का परिचय रीछ स्त्री महाजनिका के रूप में बताकर हमला शुरू कर दी। उसके बाद जो हुआ वह हैरतंगेज और दिल दहला देने वाला था। मानो वो औरत बंदूक की गोली से भी तेज लहराती हो। एक साथ 30–40 बुलेट चले होंगे और ऐसा भी नही था की वह एक जगह से भागकर दूसरे जगह पर गयि हो। अपनी जगह पर ही थी और १ फिट के दायरे में रहकर वह हर बुलेट को चकमा दे रही थी।"
हर एक शिकारी ने वेयरवोल्फ पकड़ने वाले सारे पैंतरे को अपना लिया। सुपर साउंड वेव वाली रॉड हो या फिर करेंट गन फायर। ऐसा लग रहा था १० मिनट तक खुद को मारने का एक मौका दे रही हो। फिर उसके बाद तो क्या ही वो कहर बनकर बरसी। वहां न तो धनुष–बाण थी, और ना ही भाला। लेकिन जब वह अपने दोनो हाथ फैलायी तब चारो ओर बवंडर सा उठा था। वह नित्या दिखना बंद हो गयि। बस चारो ओर गोल घूमता बवंडर। और फिर उसी बवंडर से बाण निकले। भाले निकले। सभी जाकर सीधा सीने में घुस गये और जब हवा शांत हुई तब वहां नित्या नही थी। बस चारो ओर लाश ही लाश।
निशांत:– वाउ!!! प्रहरियों का एक और मजबूत किरदार जो प्रहरी को मार रहा। और इसी के साथ ये भी पता चल गया की ३ में से एक कौन था जो खंजर लेने पहुंचा था।
रूही:– कौन सा खंजर...
आर्यमणि:– ऐडियाना के मकबरे का खंजर। पूरी घटना में सुकेश भारद्वाज और पलक कहां थे?
रूही:– माहोल शांत होने तक पलक वहीं थी लेकिन उसके बाद कुछ देर के लिये वह कहीं गयि थी। सुकेश और तेजस तो पहले से गायब थे, जिन्हे ढूंढने मैंने अलबेली को भेजा था।
आर्यमणि:– बकर–बकर करने वाली इतनी शांत क्यों है?..
अलबेली:– क्योंकि आज जान बच गयि वही बहुत है। सुकेश और तेजस कैंप से २ किलोमीटर दूर थे। दोनो में कोई बातचीत नहीं हो रही थी, केवल एक ही दिशा में देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह नित्या पहुंची। सुकेश के सीधे पाऊं में ही गिर गयि। तीनों की कुछ बातें हो रही थी तभी पलक भी वहां पहुंची... तीनों अजीब सी भाषा में बात कर रहे थे, समझ से परे। शायद मैं कच्ची हूं, इसलिए मैं उन तीनो में से किसी की भावना पढ़ नही पायि। बहुत कोशिश की, कि मैं उनकी भावना समझ सकूं, लेकिन कुछ पता न चला।"
"लेकिन तभी नित्या ने मेरी ओर देखा। मैं 500–600 मीटर दूर बैठी, उनकी बातें सुन रही थी। पेड़ों के पीछे जहां से न वो मुझे देख सकती थी और ना मैं उन्हे। लेकिन मुझे एहसास हुआ की मेरी ओर कुछ तो खतरा बढ़ रहा है। मै बिना वक्त गवाए एक जंगली सूअर के पीछे आ गयि और एक भला सीधा जंगली सूअर के सीने में। जैसे किसी ने उस भाले पर जादू किया हो। रास्ते में पड़ने वाले सभी पेड़ों के दाएं–बाएं से होते हुये सीधा एक जीव के सीने में घुस गया। मैं तो जान बचाकर भागी वहां से। बॉस अभी मेरी उम्र ही क्या है। जिंदगी तो कुछ वक्त पहले से ही शुरू हुई है लेकिन उसे भी वो डायन नित्या छीन लेना चाहती थी। बॉस बहुत खतरनाक थी वो।
अलबेली की बात सुनकर आर्यमणि निशांत को देखने लगा। निशांत अपने हाथ जोड़ते... "मुझे नहीं पता की खंजर लेने कौन प्रहरी पहुंचा था। तीनो ही साथ है, या केवल तेजस या फिर जो भी नए समीकरण हो। मुझे माफ करो।"
आर्यमणि हंसते हुये... "अब सब थोड़ा शांत हो जाओ और चलो सीधा वापस नागपुर।"..
अलबेली:– मुझे तो लगा अपने पैक की सबसे छोटी सदस्य के लिये अभी आप उस नित्या से लड़ने चल देंगे...
आर्यमणि:– लड़ाई छोड़ो और पहले ट्रेनिंग में ध्यान दो। पड़ी लकड़ी उठाने का शौक न रखो।
निशांत:– अनुभव बोलता है। एक पड़ी लकड़ी उठाने वाला ही समझ सकता है आगे का दर्द..
आर्यमणि:– और कौन सी पड़ी लकड़ी उठाई है मैंने..
निशांत:– कहां–कहां की नही उठाया, फिर वो मैत्री के चक्कर में... (तभी आर्य ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया। निशांत किसी तरह अपना मुंह निकलते).. अबे बोलने तो दे...
आर्यमणि:– नही तू नही बोलेगा.."….
निशांत:– क्यों न बोलूं, इन्हे भी अपने बॉस के बारे में जानने का हक है। क्यों टीम, क्या कहती हो...
रूही और अलबेली चहकी ही थी कि बॉस की घूरती नजरों का सामना हो गया और दोनो शांत...
"साले डराता क्यों है। पैक का मुखिया हो गया तो क्या इन्हे डरायेगा।"…… "अच्छा !!! तो फिर खोल पड़ी लकड़ी के किस्से। मैं तो नफीसा से शुरू करूंगा।"… "आर्य तू नफीसा से शुरू करेगा तो मैं भी नफीसा से शुरू करूंगा।"…. "वो तो तेरे साथ थी न"….. "मैं कहता हूं तेरे साथ थी। बुला पंचायत देखते है उसकी शक्ल देखकर किसपर यकीन करते है।"…
रूही:– थी कौन ये नफीसा ..
दोनो के मुख से अनायास ही निकल गया... "शीमेल (shemale) कमिनी"…
अलबेली तो समझ ही नही पायि। लेकिन जब रूही ने उसे पूरा बताया तब वह भी खुलकर हंसने लगी। और रह–रह कर एक ही सवाल जो हर २ मिनट पर आ रहा था... "पता कब चला की वो एक..."
अगले २ दिनो तक चुहुलबाजी चलती रही। चारों सफर का पूरा आनंद उठाते नागपुर पहुंच गये। नागपुर में भूमि का पारा देखने लायक था। जबसे उसने सुना था कि रिचा और पैट्रिक नही रहे, तबसे वह सो नहीं पायि थी। दिल और दिमाग पर बस एक ही नाम छाया था, रीछ स्त्री। और भूमि को किसी भी कीमत पर अपने साथियों का बदला चाहिये था। आर्यमणि कोई भी बात बता नही सकता था और भूमि कोई भी दिल लुभावन बात से शांत नहीं हो रही थी। उसे तो बस बदला ही चाहिये था। जब बात नही बनी तब आर्यमणि ने भूमि को कुछ दिनों के लिये अकेले छोड़ना ही उचित समझा। इधर आर्यमणि ने भूमि को अकेले छोड़ना उचित समझा, उधर रूही और अलबेली को भी सबने छोड़ दिया। या यूं कहे कि सबने घर से धक्के देकर निकाल दिया।
आर्यमणि को लौटे २ दिन हो गये थे किंतु भूमि का शोक और क्रोध कम होने का नाम ही नही ले रहा था। पहले दिन आर्यमणि ने यथा संभव समझाने की कोशिश तो किया था, लेकिन शायद भूमि कुछ सुनने को तैयार नही थी। २ दिन बाद आर्यमणि से रहा नही गया। उसके मानसिक परिस्थिति का सीधा असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी होता। कितनी ही मिन्नतें किया तब भूमि साथ आने को तैयार हुई। लेकिन इस बार आर्यमणि अकेले कोशिश नही करना चाहता था, इसलिए साथ में निशांत को ले लिया।
तीनों ही एक मंदिर में बैठे। भूमि कुछ देर तक शांत होकर मां दुर्गा की प्रतिमा को देखती रही, फिर अचानक ही उसके आंखों से आंसू निकल आये.… "रिचा और पैट्रिक ने क्या नही किया मेरे लिये और मैं यहां एक असहाय की तरह बैठी उसके मरने की खबर पर आंसू बहा रही"…
आर्यमणि, भूमि के आंखों से आंसू साफ करने लगा। इधर निशांत अपने शब्द तीर छोड़ते.… "रिचा भी तो कोई साफ प्रहरी नही थी। अपने ब्वॉयफ्रेंड मानस के साथ मिलकर वह भी तो साजिश ही कर रही थी दीदी"…
भूमि, लगभग चिल्लाती हुई... "जिसके बारे में पता नही हो, उसपर ऐसे तंज़ नही करते समझे।"…
आर्यमणि:– ऐसा क्या हो गया दीदी... निशांत पर क्यों भड़क रही हो...
भूमि खींचकर एक थप्पड़ मारती.… "तू बस अपने ही धुन में रह। सरदार खान को जाकर बस चुनौती दे, और मैं तेरे किये को अपना बताकर आज ये दिन देख रही। उन सबको यही लगता है कि तेरे पीछे से मैं ही सब कुछ करवा रही।
आर्यमणि:– आप किसके पीछे है? मेरे कुछ करने का असर आपकी टीम पर कैसे,... कभी कुछ बताया है आपने?
भूमि:– मुझे कुछ नहीं बताना केवल रीछ स्त्री चाहिये। सबको मारने के बाद कहां गयि वो?
निशांत:– यहीं नागपुर में आयि है।
भूमि आश्चर्य से.… "क्या?"
निशांत:– हां बिलकुल... रीछ स्त्री के नाम पर सरदार खान ने ही तो सबकी बलि ले ली थी। वहां जो भी बवंडर और जादुई खेला था, वह तो बस कंप्यूटराइज्ड था। जादुई हमला मंत्र से होता है। आपको आश्चर्य नही हुआ कि हवा के बवंडर से भाले और तीर निकल रहे थे....
भूमि अपना सर झुका कर निशांत की बातों पर सोच रही थी। ऊपर आर्यमणि अपनी आंखें बड़ी किये सवालिया नजरों से घूरने लगा, मानो कह रहा हो... "ये क्या गंध मचा रहा है।"…. निशांत भी उसे शांत रहने और आगे साथ देने का इशारा कर दिया। कुछ देर तक भूमि सोचती रही...
भूमि:– तुम्हारी बातों का क्या आधार है? क्या तुमने वहां सरदार खान को देखा था?
आर्यमणि:– तेनु वहां का मुखिया बना था। उसे पता है कि सरदार खान वहां था।
भूमि:– तुम दोनो को पक्का यकीन है...
दोनो एक साथ... "हां"..
भूमि, ने 2–3 कॉल किये। थोड़ा जोड़ देकर पूछी और बात सच निकली। सरदार खान को सतपुरा के जंगल में देखा गया था। भूमि गहरी श्वास लेती... "रिचा मेरी बुराई करती थी। वह हमारे परिवार के खिलाफ बोलती थी।हर जगह मुझे और भारद्वाज खानदान को कदमों में लाने की साजिश करती हुई पायि जाती थी। इसलिए वह दूसरे खेमे की चहीती हो गयि और वहां की सभी सूचना मुझ तक मिल जाती। पहले तो हम दोनो को मामला सीधा लगा, जिसमे पैसे और पावर के कारण करप्शन दिखता है। लेकिन यहां उस से भी बड़ी कुछ और बात थी।"..
आर्यमणि:– कौन सी बात दीदी...
भूमि:– मुझे बस अंदेशा है अभी। सरदार खान का नाम आ गया, मतलब इन सबके पीछे भी वही है...
आर्यमणि:– पहेलियां क्यों बुझा रही हो दीदी, पूरी बात बताओ?
भूमि:– जल्द ही बताऊंगी, तब तक अपनी जिंदगी एंजॉय कर.… वैसे भी तुझसे इस बारे में बात करती ही भले सतपुरा वाला कांड होता की नही होता।
आर्यमणि:– अधूरी बातें हां..
भूमि:– थप्पड़ खायेगा फिर से...
निशांत:– लगता है मैं यहां पर हूं इसलिए नही बता रही..
भूमि:– बेटा तुम दोनो को मैं डिलीवरी के वक्त से जानती हूं। तेरे रायते भी यहां कुछ कम नहीं है निशांत। बस एक ही बात कहूंगी अपनी जिंदगी जी, और प्रहरी से पूरा दूरी बना ले। वक्त अब बिल्कुल सही नही, आपसी मौत का खेल शुरू हो गया है। अब रीछ स्त्री के नाम से सबकी बलि ली जायेगी, जैसे रिचा और पैट्रिक के साथ हुआ। आर्य बेटा प्लीज मेरी बात मान ले। देख तुझे मैं जल्द ही पूरी बात बता दूंगी... तू मेरा प्यारा भाई है कि नही..
आर्यमणि:– ठीक है दीदी, जैसा आप कहो... आज से मैं प्रहरी से दूर ही रहूंगा...
निशांत:– दीदी आप चिंता मत करो। आज से इसे मैं अपने साथ रखूंगा..
भूमि:– हां ये ज्यादा सही है...
आर्यमणि:– क्या सही है। सबकी जान खतरे में है और शांत रहने कह रहे...
भूमि:– मैं तो पहले ही १० सालों के लिए प्रहरी से बाहर हो गयि। यदि उन्हें मुझे मारना होता तो मेरी टीम के साथ मुझे भी ले जाते। उन्हे मुझसे कोई खतरा नही। तू भी किनारे हो जा, तुम्हे भी कोई खतरा नही.. आसान है..
आर्यमणि:– जैसा आप ठीक समझो... चलो चलते हैं यहां से...
कुछ वक्त बिता। धीरे–धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा। आर्यमणि की जिंदगी कॉलेज, दोस्त और पलक के संग प्यार से बीत रहा था। ख्यालों में भी कुछ ऐसा नहीं चल रहा था, जो प्रहरी के संग किसी तरह के तालमेल को दर्शाते हो। सबकुल जैसे पहले की तरह हो चुका था। कॉलेज के वक्त को छोड़ दिया जाय तो, निशांत के साथ 5–6 घंटे गुजर ही जाते थे। बचा समय पलक और परिवार का।
निशांत की ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी थी। चर्चाओं के दौरान वह अपनी ट्रेनिंग की बातें साझा किया करता था। संन्यासी शिवम, निशांत से टेलीपैथी के माध्यम से बात किया करता था। दोनो रात के २ घंटे और सुबह के २ घंटे योग और मंत्र अभ्यास करते थे। वहीं बातों के दौरान, संन्यासी शिवम द्वारा आर्यमणि को दी गयि किताब के बारे में निशांत ने पूछ लिया। किताब के विषय में चर्चा करते हुए आर्यमणि काफी खुश नजर आ रहा था। यहां तक कि उसने यह भी स्वीकार किया कि उस पुस्तक का जबसे वह अनुसरण किया है, फिर प्रहरी एक साइड लाइन स्टोरी हो गयि और वह किताब मुख्य धारा में चली आयि।
अब इतना रायता फैलाने के बाद कोई पुस्तक के कारण शांत बैठ जाए, फिर तो उस पुस्तक के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है। निशांत ने भी जिज्ञासावश पूछ लिया और फिर तो उसके बाद जैसे आर्यमणि किसी ख्यालों की गहराई में खो गया हो...
"वह किताब नही है निशांत, जीवन जीने का तरीका है। हमारे पुरातन सभ्यता की सबसे बड़ी पूंजी। हमारे दुनिया में होने का अर्थ। बाजार में बहुत से योग और अध्यात्म की पुस्तक मिलती है लेकिन एक भी पुस्तक संन्यासी शिवम की दी हुई पुस्तक के समतुल्य नही।"
आर्यमणि की भावना सुनकर निशांत हंसते हुये कह भी दिया.… "मुझे संन्यासियों ने मंत्र शक्ति दिखाकर अपने ओर खींच लिया और तुझे उस पुस्तक के जरिए"… निशांत की बात सुनकर आर्यमणि हंसने लगा। रोज की तरह ही दोनो दोस्त बात करते हुये रूही और अलबेली से मिलने ट्रेनिंग पॉइंट तक जा रहे थे। आज दोनो को पहुंचने में शायद देर हो चुकी थी। वहां चित्रा, अलबेली के साथ बैठी थी और दोनो आपसी बातचीत के मध्य में थे... "अपने पैक के मुखिया को गर्व महसूस करवाना तो हमारा एकमात्र लक्ष्य होता है। उसमे भी जब एक अल्फा आर्य भईया जैसा हो। जिस दिन हम सतपुरा से यहां पहुंचे थे, उसी दिन हमे बस्ती से निकाल दिया गया था।".... अलबेली, चित्रा के किसी सवाल का जवाब दे रही थी शायद।
आर्यमणि:- क्या कही..
अलबेली:- हम परेशान नहीं करना चाहते थे आपको।
आर्यमणि:- मै जानता था ऐसा कुछ होने वाला है। चिंता मत करो तुम्हे तुम्हारे घर ले जाने आया हूं, लेकिन वादा करो वहां तुम कुछ गड़बड़ नहीं करोगी, वरना हम सबके लिये मुश्किलें में बढ़ जाएगी। रूही कहां है..
अलबेली:– अपनी टेंपररी ब्वॉयफ्रेंड के साथ घूमने... हिहिहिहि...
चित्रा:– आज सोची की हम चारो मिलकर कहीं धमाल करते है। इसलिए तुम दोनो को लेने यहीं चली आयि।
आर्यमणि:– ठीक है फिर जैसा तुम कहो। मैं जरा रूही और अलबेली के घर की समस्या का समाधान कर दूं, फिर वहीं से निकल चलेंगे.…
सहमति होते ही आर्यमणि ने एक धीमा संकेत दिया जिसे सुनकर रूही, माधव के साथ वापस आयी। …. "चित्रा, माधव को बहुत डारा कर रखी हो यार, एक किस्स कही देने तो लड़का 2 फिट दूर खड़ा हो गया।"….
चित्रा, माधव को आंख दिखती….. "क्या है, कहीं खुद को उसका सच का बॉयफ्रेंड तो नहीं समझ रहे थे माधव। दाल में जरूर कुछ काला है इसलिए रूही कह रही है। जरूर तुमने किस्स करने की कोशिश की होगी।
माधव:- इ तो हद हो गई। रूही ने सब साफ़ साफ़ कह दिया फिर भी तुम हमसे ही मज़े लेने पर तुल जाओ चित्रा। बेकार मे इतना सुनने से तो अच्छा था एक झन्नाटेदार चुम्मा ले ही लेते।
"तुमलोग एक मिनट जरा शांत रहो।"… कहते हुए आर्य ने कॉल उठाया… "हां दीदी"….. उधर से जो भी बात हुई हो… "ठीक है दीदी, आता हूं मै।"..
"चलो वापस। तुम दोनो (रूही और अलबेली) भी आओ मेरे साथ।"… सभी कार से निकल गये। रास्ते में आर्यमणि ने रूही और अलबेली को एक फ्लैट में ड्रॉप करते हुए कहने लगा… "फिलहाल तुम दोनो यहां एडजस्ट करो। कोई स्थाई पता ढूंढ़ता हूं। जरूरत का लगभग समान है। रूही, अलबेली का ख्याल रखना। अभी अनुभव कम है और यहां आसपास लोगो को कटने या चोट लगने से खून निकलते रहता है।"..
रूही:- अलबेली के साथ-साथ मुझे भी कंट्रोल करना होगा। फिलहाल तो हम लेथारिया वुलपिना से काम चला लेंगे।
आर्यमणि:- यहां शिकारियों का पूरा जाल बसता है रूही। एक छोटी सी गलती पूरे पैक को मुसीबत में डाल देगी, बस ये ख्याल रखना।
अलबेली:- भईया हमे ट्विन वोल्फ वाले जंगल का इलाका दे दो। वहीं कॉटेज बनाकर रह लेंगे।
आर्यमणि:- हम्मम ! मै देखता हूं क्या कर सकता हूं, फिलहाल यहां एडजस्ट करो। और ये कुछ पैसे रखो, काम आयेंगे।
आर्यमणि उन्हें समझाकर 20 हजार रूपए दिया और वहां से निकल गया। निशांत, माधव और चित्रा को लेकर अपनी मासी के घर चला आया। घर के अंदर कदम रखते ही, माणिक और मुक्ता से परिचय करवाते हुए सभी कहने लगे… "यही है आर्य।" माहोल थोड़ा तड़कता भड़कता था और यहां सरप्राइज इंजेगमेंट देखने को मिल रहा था। माणिक का रिश्ता पलक की बड़ी बहन नम्रता से और मुक्ता का रिश्ता पलक के बड़े भाई राजदीप से होने का रहा था।
आर्यमणि सबको नमस्ते करते हुए अपने साथ आये माधव का परिचय भी सबसे करवाने लगा। आर्यमणि पीछे जाकर आराम से बैठ गया। थोड़ी ही देर बाद नम्रता और राजदीप, अपने-अपने जीवन साथी को अंगूठी पहना रहे थे और 2 महीने बाद नाशिक से इन दोनो की शादी।
पूरे रिश्तेदारों का जमावड़ा था। वो लोग भी २ घंटे बाद शुरू होने वाले पार्टी का इंतजार कर रहे थे। आर्यमणि लगभग भिड़ से दूर था और अकेले बैठकर कुछ सोच रहा था।… "क्या बात है आर्यमणि, तेरे और पलक के बीच में कोई झगड़ा हुआ है क्या, तू तो इसे देख भी नहीं रहा।"… भूमि सबके बीच से आवाज़ लगाती हुई कहने लगी।
नम्रता:- मेरा लगन मेरे पूरे खानदान ने बैठकर तय किया है। मुश्किल से मै घंटा भर भी नहीं मिली होऊंगी, लेकिन जितना उसे जाना है, अब तो घरवाले ये लगन कैंसल भी कर दे तो भी मै आर्य से ही लगन करूंगी।..
प्रहरी मीटिंग में पलक द्वारा कही गई बात जो नम्रता ने तंज कसते कहा। जैसे ही नम्रता का डायलॉग खत्म हुआ पूरे घरवाले जोड़ से हंसने लगे। पलक सबसे नजरे चुराती अपनी मां अक्षरा के पास बैठ गई। अक्षरा उसके सर पर हाथ फेरती… "राजदीप फिर उस लड़के का क्या हुआ जिससे ये मिलने उस दिन सुबह निकली थी।"..
जया:- इन दोनों के बीच में कोई लड़का भी है?
मीनाक्षी:- लव ट्राइंगल।
वैदेही:- ट्राइंगल नहीं है लव स्क्वेयर है। एक शनिवार कि सुबह तो आर्य भी किसी के साथ डेट पर निकला था।
पलक:- हां समझ गयि की आप लोगो को भूमि दीदी या राजदीप दादा ने सब कुछ बता दिया है।
अक्षरा:- मतलब तुम्हारी अरेंज मैरेज नहीं हुई?
पलक:- कंप्लीट अरेंज मैरिज है। कुछ महीने पहले मुझे दादा (राजदीप) ने कहा था दोनो परिवार के रिश्ते मजबूत करने के लिए आर्य को मै इस घर का जमाई बनाऊंगा। जिस लड़के से लगन होना है, उसी से मिल रही थी। पहले तो यही कहते ना एक दूसरे से मिलकर एक दूसरे को जान लो, सो हमने जान लिया।
नम्रता:- बहुत स्यानी है ये दादा।
जया:- स्यानि नहीं समझदार है। जब पता है कि दोनो ओर से एक ही कोशिश हो रही है, तो किसी और से मिलने नहीं गयि, किसी और को देखने नहीं गयि, बल्कि उसी को जानने गयि, जिसके साथ लोग उसका लगन करवाना चाह रहे थे।
अक्षरा:- काही ही असो, दोन्ही कुटुंब एकत्र आले (जो भी हो दोनो परिवार को एक साथ ले आयी)
जहां लोग होंगे वहां महफिल भी होगी। लेकिन इस महफिल में 2 लोग बिल्कुल ही ख़ामोश थे। एक थी भूमि और दूसरा आर्यमणि। शायद दोनो के दिमाग में इस वक़्त कुछ बात चल रही थी और दोनो एक दूसरे से बात करना भी चाह रहे थे, लेकिन भिड़ की वजह से मौका नहीं मिल रहा था।
तभी भूमि कहने लगी… "आप लोग बातें करो मै डॉक्टर के पास से होकर आती हूं। चल आर्य।"..
जया:- वो क्या करेगा जाकर, मै चलती हूं।
भूमि:- माझी भोळी मासी, बस रूटीन चेकअप है। आप अपनी बहू के साथ बैठो, और दोनो बहने बस बहू की होकर रह जाना।
मीनाक्षी:- जा डॉक्टर को दिखा कर आ, अपना खून मत जला। वैसे भी हीमोग्लोबिन कम है तेरा।
भूमि:- हाव, फिक्र मत करो आपका ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता मुझसे। अच्छा मै छाया (पर्सनल असिस्टेंट) से मिलती हुई आऊंगी, इसलिए थोड़ी देर हो जायेगी।
भूमि अपनी बात कहकर निकल गई। दोनो कार में बैठकर चलने लगे। घर से थोड़ी दूर जैसे ही कार आगे बढ़ी….. "मुसीबत आती नहीं है उसे हम खुद निमंत्रण देते है।"
आर्यमणि:- पलक की सारी गलती मेरी है और मै उसे ठीक करके दूंगा। (सतपुरा जंगल कांड जहां पलक, भूमि की पूरी टीम को लेकर गयि थी)
भूमि:- हाहाहाहा… हां मुझे तुमसे यही उम्मीद है आर्य। वैसे पलक की ग़लती तो तू नहीं ही सुधरेगा, हां लेकिन अपने लक्ष्य के ओर जरूर बढ़ेगा.…
आर्यमणि:- कैसे समझ लेती हो मेरे बारे मे इतना कुछ..
भूमि:- क्योंकि जब तू इस दुनिया मे पहली बार आया था, तब तुझे वहां घेरे बहुत से लोग खड़े थे। लेकिन पहली बार अपने नन्ही सी उंगलियों से तूने मेरी उंगली थामी थी। बच्चा है तू मेरा, और इसी मोह ने कभी ख्याल ही नहीं आने दिया कि मेरा अपना कोई बच्चा नहीं। तुझे ना समझूं...
आर्यमणि:- हम्मम !!! जानती हो दीदी जब मै यहां आने के बारे सोचता हूं तो खुद मे हंसी आ जाती है। मैं केवल एक सवाल का जवाब लेने आया था। ऐसा फंसा की वो सवाल ही याद नहीं रहता और दुनिया भर पंगे हजार...
भूमि:- हाहाहाहाहा.. छोड़ जाने दे। बस तुझे मैं बता दूं... तू जब अपना मकसद साध चुका होगा, तब मै नागपुर प्रहरी समुदाय को अलग कर लूंगी। इनके साथ रहकर बीच के लोगो का पता करना मुश्किल है, लेकिन अलग होकर बहुत कुछ किया जा सकता है। चल बाकी बहुत कुछ आराम से तुझे सामझा दूंगी, अभी पहले कुछ और काम किया जाए..
आर्यमणि:- लेकिन दीदी आप उनके पीछे हो, जिसने ३० शिकारी को तो यूं साफ कर दिया। आप प्लीज उनके पीछे मत जाओ... मुझे बहुत चिंता हो रही है।
भूमि:– मैं अकेली कहां हूं। हमे जान लेना भी आता है और खुद की जान बचाना भी। तुझे पता हो की न हो लेकिन हम जिनका पता लगा रहे वो कोई आम इंसान नही। वो कोई वेयरवोल्फ भी नहीं लेकिन जो सरदार खान जैसे बीस्ट को पालते हो, उसे मामूली इंसान समझने की भूल नही कर सकती। इसलिए पूरे सुरक्षित रहकर खेल खेलते हैं। वैसे तेरे आने का मुझे बहुत फायदा हुआ है, सबका ध्यान बस तेरी ओर है।
आर्यमणि:– २ तरह की बात आप खुद ही बोलती हो। उस दिन की मंदिर वाली बात और आज की बात में कोई मेल ही नही है।
भूमि:– उस दिन गुस्से में थी। मुझे अपने २ सागिर्द के जाने का अफसोस हो रहा था। गुस्से में निकल गया।
भूमि:– उस दिन गुस्से में थी। मुझे अपने २ सागिर्द के जाने का अफसोस हो रहा था। गुस्से में निकल गया।
आर्यमणि:– ना ना, अभी क्यों नही कहती उन सबके मौत का जिम्मेदार मैं ही हूं... लेकिन सतपुरा के जंगल में मेरी जान चली जाती उसकी कोई फिक्र नहीं...
भूमि:– मुझे सतपुरा मात्र एक यात्रा लगी। रीछ स्त्री किसी को इतनी आसानी से कैसे मिलेगी.. वो भी पता किसने लगाया था तो शुकेश भारद्वाज ने... मुझे उसपर रत्ती भर भी यकीन नही था।
आर्यमणि, आश्चर्य से... "क्या आपको मौसा जी पर यकीन नही"…
भूमि:– जैसे तुझे बड़ा यकीन था... अपना ये झूठा एक्सप्रेशन किसी और को दिखाना।
आर्यमणि:– अच्छा ऐसी बात है तो एक बात का जवाब दो, जब पलक ने टीम अनाउंस किया और आप भी जाने को इच्छुक थी, तब तो मुझे कुछ और बात ही लग रही थी..
भूमि:– क्या लगा तुझे?
आर्यमणि:– यही की आपकी पूरी टीम को जान बूझकर ले जा रहे हैं। उन्हे मारने की साजिश खुद आपके पिताजी बना रहे...
भूमि:– हां तुमने बिलकुल सही अंदाजा लगाया था।
आर्यमणि:– इसका मतलब आप भी शहिद होना चाहती थी।
भूमि:– जिस वक्त मंदिर में तुम दोनो ने मुझे शांत किया ठीक उसी वक्त मैं सारी बातों को कनेक्ट कर चुकी थी। एक पुरानी पापी नाम है "नित्या".. उसी का किया है सब कुछ। तुम्हारे दादा वर्धराज को उस वक्त बहुत वाह–वाही मिली थी, जब उन्होंने नित्या को बेनकाब किया था। एक पूर्व की प्रहरी, जो खुद विचित्र प्रकार की सुपरनैचुरल थी। नित्या जिसके बारे में पता करना था की वो किस प्रकार की सुपरनेचुरल है, वह प्रहरी के अड्डे से भाग गयि। उसे वेयरवोल्फ घोषित कर दिया गया और सबसे हास्यप्रद तो आगे आने वाला था। उसे भगाने का इल्ज़ाम भी तुम्हारे दादा जी पर लगा था।
आर्यमणि:– एक वुल्फ को भगाना क्या इतनी बड़ी बात होती है...
भूमि:– प्रायः मौकों पर तो कभी नही लेकिन जब कोई तथाकथित वेयरवोल्फ नित्या, किसी प्रहरी के अड्डे से एक पूरी टीम को खत्म करके निकली हो, तब बहुत बड़ी बात होती है।
आर्यमणि:– अतीत की इतनी बातें मुझसे छिपाई गई..
भूमि:– 8 साल की उम्र से जो लड़का जंगल में रहे और घर के अभिभावक की एक न सुने, उसके मुंह से ये सब सुनना सोभा नही देता मेरे लाल... तुझे दुनिया एक्सप्लोर करना है, लेकिन परिवार को नही जानना। तुम्हे स्वार्थी कह दूं गलत होगा क्या, जिसे अपनी मां का इतिहास पता नही। जया कुलकर्णी जब प्रहरी में शिकारी हुआ करती थी तब क्या बला थी और कैसे एक द्वंद में उसने सामने से सरदार खान और उसके गुर्गों को अपनी जूती पर ले आयि थी।
आर्यमणि, छोटा सा मुंह बनाते.… "शौली (solly), माफ कर दो...
भूमि:– तेरा अभिनय मैं खूब जानती हूं। अभी भी दिमाग बस उसी सवाल पर अटका है, कि क्यों मैं सतपुरा के जंगल साथ जाना चाहती थी? ऊपर से बस ऐसे भोली सूरत बना रहे...
आर्यमणि:– गिल्ट फील मत करवाओ... मैं जानता हूं कि तुम भड़ास निकालने के लिए मुझे लेकर आयि हो, इसलिए सवाल के जवाब में सीधा इतिहास से शुरू कर दी...
भूमि:– मैं सतपुरा जाना चाहती थी क्योंकि किसी की शक्ति रावण के समतुल्य क्यों न हो, हम उनसे भी अपनी और अपनी टीम की जान बचा सकते हैं। मिल गया तेरा जवाब...
आर्यमणि:– क्या सच में ऐसा है?
भूमि:– यकीन करने के अलावा कोई विकल्प है क्या? यदि फिर भी तुझे इस सत्य को सत्यापित ही करना है तब जया मासी से पूछ लेना...
आर्यमणि:– अच्छा सुनो दीदी मुंह मत फुलाओ, मैं दिल से माफी मांगता हूं। दरअसल जब भी मैं दादा जी के बारे में सुनता हूं, और प्रहरी जिस प्रकार से आज भी उन्हें बेजजत करते हैं, मेरा खून खौल जाता है। इसलिए मैं किसी भी उस अतीत को नही जानना चाहता जिसकी कहानी में कहीं न कहीं वही जिक्र हो... "कैसे वर्धराज कुलकर्णी को बेज्जत किया गया।
भूमि:– शायद प्रेगनेंसी की वजह से मूड स्विंग ज्यादा हो रहा। जया मासी ने तेरे २१वे जन्मदिवस पर सब कुछ बताने के फैसला किया था, और मैं तुझे उस वक्त के लिए कोस रही थी, जब हम तुम्हे बताते भी नही...
आर्यमणि:– छोड़ो जाने दो... आप कुछ अतीत की बातें कर रही थी, वो पूरी करो..
भूमि:– तुम्हारे दादा जी जया मासी के पथप्रदर्शक रहे थे। उन्होंने ही जया मासी को एक भस्म बनाना सिखाया था। टारगेट को देखकर वह भस्म बस हवा में उड़ा दो। सामने वाला कुछ देर के लिए भ्रमित हो जाता है।…
आर्यमणि:– अच्छा एक सिद्ध किया हुआ ट्रिक। तुम्हे क्या लगता है, रावण जैसा ब्रह्म ज्ञानी इस भ्रम में फंस सकता है...
भूमि:– तो मैं कौन सा राम हुई जा रही। बस मुंह से निकल गया... दूसरे तो यकीन कर लिये इसपर..
आर्यमणि:– लोग इतने भी मूर्ख होते हैं आज पता चला। भगवान श्री राम इसलिए कहलाए क्योंकि उन्होंने रावण को मारा था। बस इस एक बात से रावण की शक्ति की व्याख्या की जा सकती है।
भूमि:– चल छोड़.. ये बता की इस ट्रिक से मैं नित्या से बच सकती थी या नही...
आर्यमणि:– मैंने उसे नही देखा इसलिए कह नही सकता.. इस ट्रिक से आप अपने दुश्मन को एक बार चौंका जरूर सकती हो, लेकिन इस से जान नही बचेगी। इसलिए कहता हूं दूर रहो प्रहरी से।
भूमि:– केवल एक भस्म ही थोड़े ना है...
आर्यमणि:– और क्या है?
भूमि:– दिमाग..
आर्यमणि:– हां वो भी देख लिया। भस्म से रावण को भरमाने का जो स्त्री दम रखे, उसके दिमाग पर तो मुझे बिल्कुल भी शक करना ही नही चाहिए...
भूमि:– मजाक मत बना... अच्छा तू बता सबसे अच्छी तकनीक क्या है?
आर्यमणि:– बिलकुल खामोश रहे। छिप कर रहे। खुद को कमजोर और डरा हुआ साबित करो। दुश्मनों की पहचान और उसकी पूरी ताकत का पता लगाती रहो। और मैं इतिहास के सबसे बड़े हथियार का वर्णन कर देता हूं। होलिका भी उस आग में जल गयि थी जिसे वह अपने काबू में समझती थी... क्या समझी...
भूमि:– क्या बात है, मेरे साथ रहकर तेरा दिमाग भी बिलकुल शार्प हो गया है।
आर्यमणि:– हां कुछ तो आपकी सोभत का असर है।
दोनो बात करते चले जा रहे थे। भूमि कार को एक छोटे से घर के पास रोकती… "आओ मेरे साथ।"..
भूमि अपने साथ उसे उस घर के अंदर ले आयी। चाभी से उस घर को खोलती अंदर घुसी। आर्यमणि जैसे ही वहां घुसा, आंख मूंदकर अपनी श्वांस अंदर खींचने लगा… भूमि उसे अपने साथ घर के नीचे बने तहखाने में ले आयी। जैसे ही नीचे पहुंचे… एक लड़का और एक लड़की भूमि के ओर दौड़कर आये, दोनो भूमि के गाल मुंह चूमते… "आई बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दो ना।"..
भूमि, दोनो को ढेर सारे चिकन मटन देती हुई आर्य को ऊपर ले आयी… "हम्मम ! किस सोच में डूब गये आर्य।"..
आर्यमणि:- 2 टीन वुल्फ..
भूमि:- नहीं, 2 जुड़वा टीन वुल्फ..
आर्यमणि:- जो भी हो, ये आपको आई क्यों पुकार रहे है।
भूमि:- केवल दूध नहीं पिलाया है, बाकी जब ये 2 महीने के थे, तबसे पाल रही हूं। तू रूही और अलबेली को बुला ले यहां।
आर्यमणि ने रूही को सन्देश भेजने के बाद… "दीदी कुछ समझाओगी मुझे।"..
भूमि:- ये सुकेश भारद्वाज यानी के मेरा बाबा के बच्चे है।
कानो में तानपूरा जैसे बजने लगे हो। चारो ओर दिमाग झन्नाने वाली ऐसी ध्वनि जो दिमाग को पागल कर दे। आर्यमणि लड़खड़ाकर पास पड़े कुर्सी पर बैठ गया। आश्चर्य भरी घूरती नज़रों से भूमि को देखते हुए…. "मासी को इस बारे में पता है।"….
भूमि:- "शायद हां, और शायद उन्हे कोई आपत्ती भी नहीं। प्रहरी के बहुत से राज बहुत से लोगो को पता है, लेकिन किसी को भी प्रहरी के सीक्रेट ग्रुप के बारे में नही पता, जिसके मुखिया सुकेश भारद्वाज है। बड़ी सी महफिल में सुकेश, उज्जवल, अक्षरा और मीनाक्षी का नंगा नाच होता है। उसकी महफिल में और कौन–कौन होता है पता न लगा पायि। लेकिन हर महीने एक बड़ी महफिल सरदार खान महल में ही सजती है, और ये सभी बूढ़े तुझे 25–26 वर्ष से ज्यादा के नही दिखेंगे। इंसानों को जिंदा नोचकर खाना, सरदार खान के खून को अपने नब्ज में चढ़ाना इस महफिल का सबसे बड़ा आकर्षण होता है।"
"जिन-जिन को इस राज पता चला वो मारे गये और जिन्हे इनके राज के बारे में भनक लगी उन्हें प्रहरी से निकालकर कहीं दूर भेज दिया गया। सरदार खान को सह कोई और नहीं बल्कि भारद्वाज खानदान दे रहा है। फेहरीन, रूही की मां एक अल्फा हीलर थी। विश्व में अपनी जैसी इकलौती और वो २०० साल पुराने विशाल बरगद के पेड़ तक को हील कर सकती थी। उसके पास बहुत से राज थे। लेकिन मरने से कुछ समय पूर्व इन्हे। मेरे कदमों में फेंक कर इतना ही कही थी… "मै तो मरने ही वाली हूं, तुम चाहो तो अपने सौतेले भाई-बहन को मार सकती हो या बचा सकती हो।"… कुछ और बातें हो पाती उससे पहले ही वहां आहट होने लगी और मै इन दोनों को लेकर चली आयी।"
"तो ये है प्रहरी का घिनौना रूप"…. इससे पहले कि रूही आगे कुछ और बोल पाती, आर्यमणि ने अपना हाथ रूही के ओर किया और वो अपनी जगह रुक गई।…
भूमि:- उसे बोलने दो आर्यमणि। मै यहां के झूट की ज़िंदगी से थक गई हूं। मुझे सुकून दे दो।
आर्यमणि:- हमे यहां लाने का मतलब..
भूमि:- तुम्हारी, रूही और अलबेली की जान खतरे में है। रूही और अलबेली के बाहर होने के कारण ही किले कि इतनी इंफॉर्मेशन बाहर आयी है। उन्हें अब तुम खतरा लगने लगे हो और तुम्हे मारने का फरमान जारी हो चुका है।
आर्यमणि:- किसने किया ये फरमान जारी।
भूमि:- प्रहरी के सिक्रेट बॉडी ने। पलक ने मीटिंग आम कर दी है इसलिए प्रहरी की सिक्रेट बॉडी उन 22 लोगो का सजा तय कर चुकी है, साथ में सरदार खान को मारकर उसकी शक्ति उसका बेटा लेगा, फने खान। ये भी तय हो चुका है ताकि पलक को हीरो दिखाया जा सके। इन सब कांड के बीच तुम लोगो को मारकर एक दूसरे की दुश्मनी दिखा देंगे।
आर्यमणि:- हम्मम ! कितना वक़्त है हमारे पास।
भूमि:- ज्यादा वक़्त नहीं है आर्यमणि। यूं समझ लो 2 महीने है। क्योंकि जिस दिन शादी के लिए हम नाशिक जाएंगे, सारा खेल रचा जायेगा।
आर्यमणि:- आप इन दोनों ट्विन के खाने में लेथारिया वुलपिना देती आ रही हो ना।
भूमि:- नहीं, कभी-कभी देती हूं। इनका इंसान पक्ष काफी स्ट्रॉन्ग है और दोनो के पास अद्भुत कंट्रोल है। बहुत बचाकर इन्हे रखना पड़ता है।
आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है.. कोई नहीं आज से ये मेरी जिम्मेदारी है दीदी। लेकिन एक बात बताओ क्या आप यहां जिंदा हो।
भूमि:- जब तक मर नहीं जाती इनके राज का पता लगाती रहूंगी, वरना मुझे लगभग मरा ही समझो। बात यहां उतनी भी सीधी नहीं है आर्य जितनी दिखती है। तुम्हे एक बात जानकर हैरानी होगी कि प्रहरी में 12 ऐसे लोग है जिन्हें आज तक छींक भी नहीं आयी। यानी कि कभी किसी प्रकार की बीमार नहीं हुई। मुझे तो ऐसा लग रहा है मै किसी जाल में हूं, गुत्थी सुलझने के बदले और उलझ ही जाती है।
तभी वहां धड़ाम से दरवाजा खुला, जया और केशव अंदर पहुंच गए… "भूमि तुमने सब बता दिया इसे।"…
आर्यमणि:- मां मै तो यहां एक सवाल का जवाब ढूंढते हुए पहुंचा था अब तो ऐसा लग रहा है, ज़िन्दगी ही सवाल बन गई है।
केशव:- हाहाहाहा… ये तुम्हारे पैक है, रूही तो दिखने में काफी हॉट है।
जया, केशव को एक हाथ मारती…. "शर्म करो कुछ तो।"… "अरे बाबा माहौल तो थोड़ा हल्का कर लेने दो। बैठ जाओ तुम सब आराम से।"..
जया, आर्यमणि का हाथ थामती हुई…. "तुम्हे पता है तुम्हारी मीनाक्षी मासी ने और उस अक्षरा ने तुम्हारी शादी कब तय कि थी, जब तुमने मैत्री के भाई शूहोत्र लोपचे को मारा था। पलक को बचपन से इसलिए तैयार ही किया गया है। उन सबको लगता है तुम्हारे दादा यानी वर्धराज कुलकर्णी ने तुम्हारे अंदर कुछ अलोकिक शक्ति निहित कर दिया। और यही वजह थी कि तुम इन सब की नजर मे शुरू से हो...
रूही:- कमाल की बात है, मै यहां मौजूद हर किसी के इमोशन को परख सकती हूं, लेकिन पलक कई बार कॉलेज में मेरे पास से गुजरी थी और उसके इमोशंस मै नहीं समझ पायि। बॉस ने मुझे जब ये बताया तब मुझे लगा मजाक है लेकिन वाकई में बॉस की बात सच थी।
जया:- ऐसे बहुत से राज दफन है यहां, जो मै 30 सालो से समझ नहीं पायि।
भूमि:- और मै 20 सालों से।
जया:- तुझे तो तभी समझ जाना चाहिए था जब हमने तुम्हे मीनाक्षी के घर नहीं रहने दिया था। मै, भूमि और केशव तो बहुत खुश थे की तुम बिना कॉन्टैक्ट के गायब हो गये। हमे सुकून था कि कम से कम तुम इस खतरनाक माहौल का हिस्सा नहीं बने। सच तो ये है भूमि ने तुम्हे कभी ढूंढने की कोशिश ही नहीं की वरना भूमि को तुम नहीं मिलते, ऐसा हो सकता है क्या?
केशव:- फिर तुम एक दिन अचानक आ गये। हम मजबूर थे तुम्हे नागपुर भेजने के लिये, इसलिए तुम्हे यहां भेजना पड़ा।
आर्यमणि:- पापा गंगटोक मे मेरे जंगल जाने पर जो कहते थे नागपुर भेज दूंगा। नागपुर भेज दूंगा… उसका क्या...
भूमि:- मौसा और मौसी की मजबूरी थी। यदि मेरी आई–बाबा को भनक लग जाती की हमे इनके पूरे समुदाय पर शक है, तो वो तुम्हे बस जिंदा छोड़ देते और बाकी हम सब मारे जाते। ये सब ताकत के भूखे इंसान है और तुम अपने जंगल के कारनामे के कारण हीरो थे। तुम्हे नहीं लगता कि एक पुलिस ऑफिसर का बार-बार घूम फिर कर उसी जगह ट्रांसफर हो जाना, जहां तुम्हारे मम्मी पापा है, एक सोची समझी नीति होगी। जी हां राकेश नाईक मेरे आई-बाबा के आंख और कान है।
आर्यमणि:- और कितने लोगो को पता है ये बात।
भूमि:- हम तीनो के अलावा कुछ है करीबी जो इस बात की जानकारी रखते है और सीक्रेटली काम करते है।
जया, अपने बेटे के सर पर हाथ फेरती उसके माथे को चूमती…. "जनता है तुझमें सब कुछ बहुत अच्छा है बस एक ही कमी है। तुम एक काम में इतने फोकस हो जाते हो की तुम्हे उस काम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं। मै ये नहीं कहती की ये गलत है, लेकिन तुम जिस जगह पर अपने सवाल के जवाब ढूंढ़ने आये वो एक व्यूह हैं। एक ऐसी रचना जहां राज पता करने आओगे तो अपने सवाल भूलकर यहां की चक्की में पीस जाओगे। चल मुझे तू ये मत बता की तू कौन सा सवाल का जवाब ढूंढ़ने आया था। बस ये बता दे कि तुम्हे उन सवाल के जवाब मिले कि नहीं। या ये बता दे कि कितने दिन में मिल जाएंगे
आर्यमणि:- ऐसा कोई तूफान वाले सवाल नही थे। मुझे बस मेरी जिज्ञासा ने खींचा था। मैं तो सवाल के बारे में ही भूल चुका हूं। रोज नई पहेली का पता चलता है और रोज नई कहानी सामने आती है। ऐसा लग रहा है मै पागल हो जाऊंगा।
केशव:- तुम जिस सवाल के जवाब के लिये आये और यहां आकर जो नये सवालों के उलझन में किया है, वैसे इन प्रहरी के इतिहास में पहले कभी नही हुआ। मै बता दू, तुमने कुछ महीने में यहां सबको अपना दुश्मन बना लिया। हां एक काम अच्छा किए जो हमे भूमि के पास पहुंचा दिया। हमे इससे ज्यादा चिंता किसी कि नहीं थी, और तुम्हारी तो बिल्कुल भी नहीं..
जया:- मेरी एक बात मानेगा..
आर्यमणि:- क्या मां?
जया:- यें तेरा पैक है ना..
आर्यमणि:- हां मां..
जया:- अपने पैक को लेकर नई जगह जा, कुछ साल सवालों को भुल जा। क्योंकि जब तू सवालों को भूलेगा तब जिंदगी तुझे उन सवालों के जवाब रोज मर्रा के अनुभव से हिंट करेगी। खुलकर जीना सीखा, जिंदगी को थोड़ा कैजुअली ले। फिर देख काम के साथ जीवन में भी आनंद आएगा।
आर्यमणि:- हम्मम ! शायद आप सही कहती हो मां।
जया:- और एक बात मेरे लाल, तेरे रायते को हम यहां साथ मिलकर संभाल लेंगे, तू हमारी चिंता तो बिल्कुल भी मत करना।
भूमि:- अब कुछ काम की बात। जाने से पहले तुम वो अनंत कीर्ति की पुस्तक अपने साथ लिए जाना। एक बार वो खोल लिए तो समझो यहां के बहुत सारे राज खुल जाएंगे। दूसरा यदि जाने से पहले तुम सरदार खान की शक्तियों को उसके शरीर से अलग करते चले गए तो नागपुर समझो साफ़ हो जाएगा। खैर इस पर तो तुम्हारा खुद भी फोकस है। एक बार सरदार साफ फिर हम यहां अपने कारनामे कर सकते है। तीसरी सबसे जरूरी बात, बीस्ट अल्फा मे सरदार खान सबसे बड़ा बीस्ट है। हो सकता है कि तुम उसे पहले भी मात दे चुके होगे लेकिन इस भूल से मत जाना कि इस बार भी मात दे दोगे। पहली बात उसके अंदर कुछ भी भोंक नही सकते और दूसरी सबसे जरूरी बात, उसके पीछे बहुत बड़ा दिमाग है। बस एक बात ख्याल रहे उसे मारने के चक्कर में तुम मरना मत और यदि कामयाब होते हो तो ये समझ लेना सीक्रेट प्रहरी समुदाय तुम्हारे पीछे पड़ गया, और वो तुम्हे जमीन के किसी भी कोने से ढूंढ निकालेंगे।
जया:- चल अब हंस दे और जिंदगी को जी। अपने पैक के साथ रह। रूही, तुम सब एक पैक हो, ख्याल रखना एक दूसरे का। और कहीं भी ये जाए, इसको बोलना कोई भी काम वक़्त लेकर करे, ऐसा ना हो वहां भी नागपुर जैसा हाल कर दे। 3-4 एक्शन में तो फिल्म का क्लाइमेक्स आ जाता है, और इसने तो कुछ महीने में केवल और केवल एक्शन करके रायता फैला दिया।
रूही:- आप सब जाओ… हम सब निकलने कि तैयारी करते है। आर्यमणि मै इन सबको लेकर ट्विंस के जंगल में मिलूंगी।
आर्यमणि, भूमि के साथ चला। पहले डॉक्टर, फिर छाया और वापस सीधा अपने घर। आर्यमणि को बड़ा आश्चर्य हुआ जब घर आकर उसने भूमि को देखा। अपनी माता पिता से बिल्कुल सामान्य रूप से मिल रही थी। वो साफ समझ पा रहा था कि क्या छलावा है और क्या हकीकत।
आर्यमणि अपने माता-पिता और अपनी मौसेरी बहन के अभिनय को देखकर अंदर ही अंदर नमन किया और वो भी सामान्य रूप से, बिना किसी बदलाव के सबसे बातें करता रहा। कुछ ही देर बाद पार्टी शुरू हो गई थी। उस पार्टी में आर्यमणि शिरकत करते एक ही बात नोटिस की, यहां बहुत से ऐसे लोग थे जिनकी भावना वो मेहसूस नहीं कर सकता था।
आर्यमणि अपने माता-पिता और अपनी मौसेरी बहन के अभिनय को देखकर अंदर ही अंदर नमन किया और वो भी सामान्य रूप से, बिना किसी बदलाव के सबसे बातें करता रहा। कुछ ही देर बाद पार्टी शुरू हो गई थी। उस पार्टी में आर्यमणि शिरकत करते एक ही बात नोटिस की, यहां बहुत से ऐसे लोग थे जिनकी भावना वो मेहसूस नहीं कर सकता था।
उनमें ना केवल पलक थी बल्कि कुछ लोगों को छोड़कर सभी एक जैसे थे। आर्यमणि आश्चर्य से उन सभी के चेहरे देख रहा था तभी पीछे से पलक ने उसके कंधे पर हाथ रखी। काले और लाल धारियों वाली ड्रेस जो उसके बदन से बिल्कुल चिपकी हुई थी, ओपन शोल्डर और चेहरे का लगा मेकअप, आर्यमणि देखते ही अपना छाती पकड़ लिया… "क्या हुआ आर्य"..
आर्यमणि:- श्वांस लेने में थोड़ी तकलीफ हो रही है, यहां से चलो।
पलक, कंधे का सहारा देती, हड़बड़ी में उसके साथ निकली। दोनो चल रहे थे तभी आर्य को एक पैसेज दिखा और उसने पलक का हाथ खींचकर पैसेज की दीवार से चिपका दिया, और अपने होंठ आगे ही बढ़ाया ही था… "क्या कर रहे हो आर्य, यहां कोई आ जाएगा।"..
आर्यमणि उसके बदन की खुशबू लेते…. "आह्हहह ! तुम मुझे दीवाना बना रही हो पलक।"..
पलक:- हीहीहीहीही… कंट्रोल किंग, आप तो अपनी रानी को देखकर उतावले हो गये।
आर्यमणि आगे कोई बात ना करके अपने होंठ आगे बढ़ा दिया, पलक भी अपने बदन को ढीला छोड़ती, उसके होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगी। दोनो एक दूसरे के होंठ का स्पर्श पाकर एक अलग ही दुनिया में थे। तभी गले की खराश से दोनो का ध्यान टूटा…. "इतना प्रोग्रेस, लगता है तुम दोनो की एंगेजमेंट भी जल्द करवानी होगी।"..
आर्यमणि का ध्यान टूटा। दोनो ने जब सामने नम्रता को देखा तब झटके के साथ अलग हो गए। आर्यमणि, नम्रता के इमोशंस को साफ पढ़ सकता था, उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ और वो गौर से उसे देखने लगा… नम्रता हंसती हुई उसके बाल बिखेरते…. "पलकी संभाल इसे, ये तो मुझे ही घूरने लगा।"
पलक:- दीदी आप लग ही इतनी खूबसूरत रही हो। किसी की नजर थम जाए।
नम्रता:- और तुम दोनो जो ये सब कर रहे थे हां.. ये सब क्या है?
पलक:- इंसानी इमोशन है दीदी अपने पार्टनर को देखकर नहीं निकलेगा तो किसे देखकर निकलेगा।
आर्यमणि:- हमे चलना चाहिए।
दोनो वहां से वापस हॉल में चले आये। पलक आर्यमणि के कंधे पर अपने दोनो हाथ टिकाकर, चुपके से उसके गाल पर किस्स करती… "तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया आर्य। लेकिन ऐसा लगता है जैसे मैंने तुम्हारी वाह-वाही अपने नाम करवा ली है।"
आर्यमणि:- तुम भी तो मै ही हूं ना। तुम खुश तो मै खुश।
पलक, आर्यमणि के गाल खींचती… "लेकिन तुम तो यहां खुश नजर नहीं आ रहे आर्य। बात क्या है, किसी ने कुछ कह दिया क्या?"
आर्यमणि, पलक के ओर देखकर मुस्कुराते हुए… "चलो बैठकर कुछ बातें करते है।"
पलक:- हां अब बताओ।
आर्यमणि:- तुम्हे नहीं लगता कि मेरे मौसा जी थोड़े अजीब है। और साथ ने तुम्हारे पापा भी.. सॉरी दिल पर मत लेना..
यह सुनते पलक के चेहरे का रंग थोड़ा उड़ा… "आर्य, खुलकर कहो ना क्या कहना चाहते हो।"..
आर्यमणि:- मैंने भारतीय इतिहास की खाक छान मारी। आज से 400 वर्ष पूर्व युद्ध के लिये केवल 12 तरह के हथियार इस्तमाल होते थे। अनंत कीर्ति के पुस्तक को खोलने के लिए जो शर्तें बताई गई है वो एक भ्रम है। और मै जान गया हूं उसे कैसे खोलना है। या यूं समझो की मै वो पुस्तक सभी लोगो के लिये खोल सकता हूं।
पलक, उत्सुकता से… "कैसे?"
आर्यमणि:- तुम मांसहारी हो ना। ना तो तुम्हे विधि बताई जा सकती है ना अनुष्ठान का कोई काम करवाया जा सकता है। बस यूं समझ लो कि वो एक शुद्ध पुस्तक है, जिसे शुद्ध मंत्र के द्वारा बंद किया गया है। 7 से 11 दिन के बीच छोटे से अनुष्ठान से वो पुस्तक बड़े आराम से खुल जायेगी। पुस्तक पूर्णिमा की रात को ही खुलेगी और तब जाकर लोग उस कमरे में जाएंगे, पुस्तक को नमन करके अपनी पढ़ाई शुरू कर देंगे।
पलक:- और यदि नहीं खुली तो..
आर्यमणि:- दुनिया ये सवाल करे तो समझ में आता है, तुम्हारा ऐसा सवाल करना दर्द दे जाता है। खैर, मुझे कोई दिलचस्पी नहीं उस पुस्तक में। मै बस सही जरिया के बारे में जब सोचा और मौसा जी का चेहरा सामने आया तो हंसी आ गयि। हंसी आयि मुझे इस बात पर की जिस युग में युद्ध के बड़ी मुश्किल से 12 हथियार मिलते हो, वहां 25 अलग-अलग तरह के हथियार बंद लोग। फनी है ना।
पलक, आर्यमणि के गाल को चूमती…. "तुम तो यहां मेरे प्राउड हो। सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन जब हम अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे तब इन लोगो को एक बार और हम पर प्राउड फील होगा।"
आर्यमणि, हैरानी से उसका चेहरा देखते हुए… "पर ऐसा होगा ही क्यों? मौसा जी से कल मै इस विषय में बात करूंगा और किसी सुध् साकहारी के हाथो पूरे अनुष्ठान की विधि को बता दूंगा। वो जाने और उनका काम।"… कहते हुए आर्यमणि ने पलक को बाहों में भर लिया..
पलक अपनी केवाहनी आर्यमणि के पेट में मारती… "लोग है आर्य, क्या कर रहे हो।"
आर्यमणि:- अपनी रानी के साथ रोमांस कर रहा हूं।
पलक:- कुछ बातें 2 लोगों के बीच ही हो तो ही अच्छी लगती है। वैसे भी इस वक़्त तुम्हारी रानी को इंतजार है तुम्हारे एक नए कीर्तिमान की। यूं समझो मेरे जीवन की ख्वाहिश। बचपन से उस पुस्तक के बारे में सुनती आयी हूं, एक अरमान तो दिल में है ही वो पुस्तक मैं खोलूं, इसलिए तो 25 तरह के हथियारबंद लोगो से लड़ने की कोशिश करती हूं।
आर्यमणि:- ये शर्त पूरी करना आसान है। बुलेट प्रूफ जैकेट लो और उसके ऊपर स्टील मेश फेंसिंग करवाओ सर पर भी वैसा ही नाईट वाला हेलमेट डालो। बड़ी सी भाला लेकर जय प्रहरी बोलते हुए घुस जाओ…
पलक:- कुछ तुम्हारे ही दिमाग वाले थे, उन्होंने तो एक स्टेप आगे का सोच लिया था और रोबो सूट पहन कर आये थे। काका हंसते हुए उसे ले गये पुस्तक के पास और सब के सब नाकाम रहे। क्या चाहते हो, इतनी मेहनत के बाद मै भी नाकामयाब रहूं।
आर्यमणि:- विश्वास होना चाहिए, कामयाबी खुद व खुद मिलेगी।
पलक:- विश्वास तो है मेरे किंग। पर किंग अपनी क्वीन की नहीं सुन रहे।
आर्यमणि:- हम्मम ! एक राजा जब अपने रानी के विश्वास भरी फरियाद नहीं सुन सकता तो वो प्रजा की क्या सुनेगा.. बताओ।
पलक:- सब लोग यहां है, चलो उस पुस्तक को चुरा लेंगे, और फिर 7 दिन बाद सबको सरप्राइज देंगे।
आर्यमणि:- इस से अच्छा मैं मांग ना लूं।
पलक:- काका नहीं देंगे।
आर्यमणि:- हां तो मैं नहीं लूंगा।
पलक:- तुम्हारी रानी नाराज हो जायेगी।
आर्यमणि:- रानी को अपने काबू में रखना और उसकी नजायज मांग पर उसे एक थप्पड़ लगाना एक बुद्धिमान राजा का काम होता है।
आर्यमणि अपनी बात कहते हुए धीमे से पलक को एक थप्पड़ मार दिया। कम तो आर्यमणि भी नहीं था। जब सुकेश भारद्वाज की नजर उनके ओर थी तभी वो थप्पड़ मारा। सुकेश भारद्वाज दोनो को काफी देर से देख भी रहा था, थप्पड़ परते ही वो आर्यमणि के पास पहुंचा…. "ये क्या है, तुम दोनो यहां बैठकर झगड़ा कर रहे।"..
पलक, अपने आंख से 2 बूंद आशु टपकाती…. "काका जिस काम से 10 लोगों का भला हो वो काम के लिए प्रेरित करना क्या नाजायज काम है।"..
सुकेश:- बिल्कुल नहीं, क्यों आर्य पलक के कौन से काम के लिए तुम ना कह रहे हो।
"मौसा वो"… तभी पलक उसके मुंह पर हाथ रखती… "काका इस से कहो कि मेरा काम कर दे। मेरी तो नहीं सुना, कहीं आपकी सुन ले।"..
सुकेश:- शायद मै अपनी एक ख्वाहिश के लिए आर्य से जिद नहीं कर सका, इसलिए तुम्हारे काम के लिए भी नहीं कह पाऊंगा। लेकिन, भूमि को तो यहां भेज ही सकता हूं।
आर्यमणि, अपने मुंह पर से पलक का हाथ हटाकर, अपने दोनो हाथ जोड़ते झुक गया… "किसी को भी मत बुलाओ मौसा जी, मै कर दूंगा चिंता ना करो। और हां आपने अपनी ख्वाहिश ना बता कर मुझे हर्ट किया है। मै कोई गैर नहीं था, आप मुझसे कह सकते थे, वो भी हक से और ऑर्डर देकर। चलो पलक"..
पलक के साथ वो बाहर आ गया। पलक उसके कंधे और हाथ रखती…. "इतना नहीं सोचते जिंदगी में थोड़ा स्पेस देना सीखो, ताकि लोगों को समझ सको। अभी तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, किताब के बारे में फिर कभी देखते है।"
आर्यमणि:- लोग अगर धैर्य के साथ काम लेते, तब वो पुस्तक कब का खुल चुकी होती। मेरी रानी, 7 दिन के अनुष्ठान के लिए तैयारी भी करनी होती है। 2 महीने बाद गुरु पूर्णिमा है। क्या समझी..
पलक:- लेकिन आर्य, उस दिन तो राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी है...
आर्यमणि:- हां लेकिन वह शुभ दिन है। पुस्तक खोलने के लिए देर रात का एक शानदार मुहरत मे पुस्तक खोलने की कोशिश करूंगा।
पलक:- 7 दिन बाद भी तो पूर्णिमा है..
आर्यमणि:- रानी को फिर भी 2 महीने इंतजार करना होगा। चलो अन्दर चलते है और हां एक बात और..
पलक:- क्या आर्य...
आर्यमणि:- लव यू माय क्वीन...
पलक:- लव यू टू माय किंग...
आर्यमणि, पलक के होंठ का एक छोटा सा स्पर्श लेते… "चलो चला जाए।
आर्यमणि रात के इस पार्टी के बाद सीधा ट्विंस के जंगल में पहुंचा, जहां चारों उनका इंतजार कर रहे थे। आर्यमणि चारो को सब से खुशखबरी देते हुए बताया.… "2 महीने तक कोई प्रहरी उन्हे परेशान नहीं करने वाला। वो इस वक्त नहीं चाहेंगे कि आर्यमणि अपने पैक के सोक मे रहे, इसलिए यहां तुम सब प्रहरी से मेहफूज हो।"
फिर बात आगे बढ़ाते हुए आर्यमणि उन्हे चेतावनी देने लगा... "प्रहरी कुछ नहीं करेंगे इसका ये मतलब नहीं कि हम सुस्त पड़ जाएं। मानता हूं, तुम सब ने बहुत कुछ झेला है। लेकिन मेरे लिए बस 2 महीने और कष्ट कर लो। अगले 2 महीने तक शरीर को बीमार कर देने वाली ट्रेनिंग, खून जला देने वाली ट्रेनिंग। बिना रुके और बेहोशी में भी केवल ट्रेनिंग। एक बात और, एक शिकारी भी आयेगी तुम सब को प्रशिक्षित करने, कोई काट मत लेना उसे। रूही, मै रहूं की ना रहूं, तुम्हे सब पर नजर बनाए रखनी है"…
रूही:- बॉस 3 टीन वूल्फ की जिम्मेदारी.…. इतने हॉट फिगर वाली लड़की को इतने बड़े बच्चों की मां बना दिये।
आर्यमणि उसे घूरते हुए वहां से निकल गया। आर्यमणि ने अब तो जैसे यहां से दूर जाने की ठान ली हो। मुंबई प्रहरी समूह का नया चेहरा स्वामी भी गुप्त रूप से जांच करने नागपुर पहुंच चुका था। दरअसल वो यहां कुछ पता करने नहीं आया था, बल्कि अपने और भूमि के बीच के रिश्ते को नया रूप देने आया था, ताकि आगे की राह आसान हो जाए।
इसी संदर्व मे जब वो भूमि से मिला और आर्यमणि के महत्वकांछी प्रोजेक्ट, "आर्म्स डेवलपमेंट यूनिट" के बारे में सुना, उसने तुरंत प्रहरी की मीटिंग में उसे "प्रहरी समुदाय महत्वकांछी प्रोजेक्ट" का नाम दिया, जिसे एक गैर प्रहरी, आर्यमणि अपनी देख रेख मे चलाता और उसके साथ प्रहरी की उसमे भागीदारी रहती। पैसों कि तो इस समुदाय के पास कोई कमी थी नहीं। आर्यमणि ने जो छोटा प्रारूप के मॉडल को इन सबके सामने पेश किया। उस छोटे प्रारूप को कई गुना ज्यादा बढ़ाकर एक पूरे क्षमता वाले प्रोजेक्ट के रूप में गवर्नमेंट के पास एप्रोवल के लिए भेज दिया गया था।
शायद एप्रोवाल मे वक्त लगता, लेकिन गवर्नमेंट को सेक्योरिटीज अमाउंट दिखाने के लिए आर्यमणि के पास कई बिलियन व्हाइट मनी उसके कंपनी अकाउंट में जमा हो चुके थे। देवगिरी भाऊ अलग से अपनी कुल संपत्ति का 40% हिस्सा आर्यमणि को देने का एनाउंस कर चुके थे।
हालांकि इस घोसना के बाद मुंबई की लॉबी में एक बार और फुट पड़ने लगी थी। लेकिन अमृत पाठक सबको धैर्य बनाए रखने और धीरेन पर विश्वास करने की सलाह दिया। उसने सबको केवल इतना ही समझाते हुए अपना पक्ष रखा.… "स्वामी, प्रहरी के मुख्यालय, नागपुर में है। इतना घन कुछ भी नहीं यदि वो प्रहरी भारद्वाज को पूरे समुदाय से साफ कर दे। एक बार वो लोग चले गये फिर हम सोच भी नहीं सकते उस से कहीं ज्यादा पैसा हमारे पास होगा"…
मूर्ख लोग छोटी साजिशों से बस भूमि की मुश्किलें बढ़ाने से ज्यादा कुछ नहीं कर रहे थे। लेकिन इन सब को दरकिनार कर भूमि और आर्यमणि दोनो जितना वक्त मिलता उतने मे एक दूसरे के करीब रहते। आर्यमणि भूमि के पेट की चूमकर, मुस्कुराते हुए अक्सर कहता... "हीरो तेरे जन्म के वक्त मै नहीं रहूंगा लेकिन तू जब आये तो मेरी भूमि दीदी को फिर मेरी याद ना आये"…
भूमि लेटी हुई बस आर्यमणि की प्यारी बातों को सुन रही होती और उसके सर पर हाथ फेर रही होती। कई बार आर्यमणि कई तरह की कथाएं कहता, जिसे भूमि भी बड़े इत्मीनान से सुना करती थी। कब दोनो को सुकून भरी नींद आ जाती, पता ही नहीं चलता था।
आर्यमणि कॉलेज जाना छोड़ चुका था और सुबह से लेकर कॉलेज के वक्त तक अपने पैक के साथ होता। उन्हे प्रशिक्षित करता। अलग ही लगाव था, जिसे आर्यमणि उनसे कभी जता तो नहीं पता लेकिन दिल जलता, जब उसे यह ख्याल आता की शिकारी कितनी बेरहमी से एक वूल्फ पैक को आधा खत्म करते और आधा को सरदार खान के किले में भटकने छोड़ देते।
उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।
उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।
माधव और पलक के जाने के बाद, चित्रा और निशांत, दोनो ही आर्यमणि के साथ घंटो बैठकर बातें करते। हां अब लेकिन दोनो भाई बहन मे उतनी ही लड़ाइयां भी होने लगी थी, जिसका नतीजा एक दिन देखने को भी मिल गया। चित्रा की मां निलांजना बैठकर निशांत को धुतकारती हुयि कहने लगी, "तेरे लक्षण ठीक होते तो प्रहरी से एकाध लड़की के रिश्ते तो आ ही गये होते"… चित्रा मजे लेती हुई कहने लगी… "मां, कल फिर कॉलेज मै सैंडिल खाया था। वो तो माधव ने बचा लिया वरना वीडियो वायरल होनी पक्का था।"
निशांत भी चिढ़ते हुए कह दिया... "बेटी ने क्या किया जो एक भी रिश्ता नहीं आया"…
आर्यमणि:- हो गया... चित्रा को इसकी क्यों फिकर हो, क्यों चित्रा। उसके लिए लड़कों कि कमी है क्या?
निलांजना:- बिल्कुल सही कहा आर्य... बस एक यही गधा है, ना लड़की पटी ना ही कोई रिश्ता आया...
निशांत:- मै तो हीरो हूं लड़कियां लाइन लगाये रहती है..
चित्रा:- साथ में ये भी कह दे चप्पल, जूते और थप्पड़ों के साथ...
निशांत:- चल चल चुड़ैल, इस हीरो के लिए कोई हेरोइन है, तेरी तरह किसी हड्डी को तो नहीं चुन सकता ना। सला अस्थिपंजार मेरा होने वाला जीजा है। सोचकर ही बदन कांप जाता है...
निशांत ने जैसे ही कहा, आर्यमणि के मुंह पर हाथ। किसी तरह हंसी रोकने की कोशिश। माधव को चित्रा के घर में कौन नहीं जानता था। चित्रा की मां अवाक.. तभी निशांत के गाल पर पहला जोरदार तमाचा... "कुत्ता तू भाई नहीं हो सकता"… और चित्रा गायब होकर सीधा अपने कमरे मे।
पहले थप्पड़ का असर खत्म भी ना हुआ हो शायद इसी बीच दूसरा और तीसरा थप्पड़ भी पड़ गया... "भाई ऐसे होते है क्या? कोई तुम्हारी बहन को लाइन मार रहा था और तू कुछ ना कर पाया। छी, दूर हो जा नज़रों से नालायक"… माता जी भी थप्पड़ लगाकर गायब हो गयि।
निशांत अपने दोनो गाल पर हाथ रखे... "बाप का थप्पड़ उधार रह गया, वो ऑफिस से आकर लगायेगा"…
आर्यमणि, उसके सर पर एक हाथ मारते... "तुझे अस्तिपंजर नहीं कहना चाहिए था। चित्रा लड़ लेगी अपने प्यार के लिए लेकिन जो दूसरे उसके बारे में विचार रखते है, वैसे विचार तेरे हुये तो वो टूट जायेगी। जा उसके पास, तू चित्रा को संभाल, मै आंटी को समझाता हूं।
आंटी तो एक बार मे समझी, जब आर्यमणि ने यह कह दिया कि निशांत पहले भी मजाक मे कई बार ऐसा कह चुका है। लेकिन चित्रा को मानाने मे वक्त लगा। बड़ी मुश्किल से वह समझ पायि की माधव उसका सब कुछ हो सकता है, लेकिन निशांत और उसके बीच दोस्ती का रिश्ता है और दोस्त के लिए ऐसे कॉमेंट आम है।
खैर, ये मामला तो उसी वक्त थम गया लेकिन अगले दिन कॉलेज में माधव, चित्रा और पूरे ग्रुप से से कटा-कटा सा था। सबने जब घेरकर पूछा तब बेचारा आंसू बहाते हुये कहने लगा... "अब चित्रा से वो उसी दिन मिलेगा जब उसके पास अच्छी नौकरी होगी।" काफी जिद किया गया। चित्रा ने कई इमोशनल ड्रामे किए, गुस्सा, प्यार हर तरह की तरकीब एक घंटे तक आजमाने के बाद वो मुंह खोला...
"बाबूजी भोरे-भोरे आये और कुत्ते कि तरह पीटकर घर लौट गये। कहते गए अगली बार किसी लड़की के गार्डियन का कॉल आया तो घर पर खेती करवाएंगे"…. उफ्फफफ बेचारे के छलकते आंसू और उसका बेरहम बाप की दास्तां सुनकर सब लोटपोट होकर हंसते रहे। चित्रा ऐसा सब पर भड़की की एक महीने तक अपने प्रेमी और खुद की शक्ल किसी को नहीं दिखाई। वो अलग बात थी कि सभी ढिट अपनी शक्ल लेकर उन्हे दिखाते ही रहते और चिढाना तो कभी बंद ही हुआ ही नहीं।
आर्यमणि के लिए खुशियों का मौसम चल रहा था। सुबह कि शुरवात अपने नये परिवार अपने पैक के साथ। दिन से लेकर शाम तक उन दोस्तों के बीच जिनकी गाली भी बिल्कुल मिश्री घोले। जिन्होंने आज तक कभी आर्यमणि को किसी अलौकिक या ताकतवर के रूप में देखा ही नहीं... अपनों के बीच भावना और देखने का नजरिया कैसे बदल सकता था। और दिन का आखरी प्रहर, यानी नींद आने तक, वो अपने मम्मी पापा और भूमि दीदी के साथ रहता। उन तीनो के साथ वो अपने भांजे से घंटों बात करता था...
एक-एक दिन करके 2 महीने कब नजदीक आये पता भी नहीं चला। इन 2 महीने मे पलक और आर्यमणि की भावनाएं भी काफी करीब आ चुकी थी। राजदीप और नम्रता की शादी के कुछ दिन रह गए थे। पलक शादी के लेकर काफी उत्साहित थी और चहक रही थी। आर्यमणि उसके गोद में सर डालकर लेटा था और पलक उसके बाल मे हाथ फेर रही थी...
पलक:- ये रानी तुमसे खफा है..
आर्यमणि:- क्या हो गया मेरी रानी को..
पलक:- हुंह !!! तुम तो पुस्तक को भूल ही गये... कब हमने तय किया था। उसके बाद तो उसपर एक छोटी सी चर्चा भी नहीं हुयि। तुम कहीं अपना वादा भूल तो नहीं गये...
आर्यमणि:- तुम घर जाओ..
पलक, आर्यमणि के होठ को अंगूठे ने दबाकर खींचती... "गुस्सा हां.. राजा को अपनी रानी पर गुस्सा।
आर्यमणि:- सब कुछ मंजूर लेकिन जिसे मुझ पर भरोसा नहीं वो मेरे साथ ही क्यूं है। और वो मेरी रानी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती...
पलक:- मतलब..
आर्यमणि:- मतलब मै सुकेश मौसा को पूरी विधि बताकर फुर्सत। बाहर निकलकर कोई रानी ढूंढू लूंगा जो अपने राजा पर भरोसा करे..
पलक जोड़ से आर्यमणि का गला दबाती... "दूसरी रानी... हां.. बोलते क्यों नहीं... दूसरी रानी... ।
आर्यमणि, पलक के गोद से उठकर... "तुम दूसरी हमारे बीच नहीं चाहती तो अपने राजा मे विश्वास रखो।
पलक आर्यमणि की आंखों मे देखती... "हां मुझे भरोसा है"…
आर्यमणि, पलक के आंखों में झांकते, उसके नरम मुलायम होंठ को अपने अपने होंठ तले दबाकर चूमने लगा। पलक अपनी मध्यम चलती श्वांस को गहराई तक खींचती, इस उन्मोदक चुम्बन के एहसास की अपने अंदर समाने लगी।…
"तुम्हे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कल राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी से पहले का कोई फंक्शन होना है ना। सब लोग जब पार्टी मे होंगे तब हम वहां से निकलेंगे और अनंत कीर्ति कि उस पुस्तक को खोलने की मुहिम शुरू करेंगे। अब मेरी रानी खुश है।"…
आर्यमणि की बात सुनकर पलक चहकती हुई उस से लिपट गई। पलक, आर्यमणि के गाल पर अपने दांत के निशान बनाती... "बहुत खुश मेरे राजा.. इतनी खुश की बता नहीं सकती। इधर राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी और उसी रात मैं पूरे मेहमानों के बीच ये खुशखबरी सबको दूंगी"…
पलक की उत्सुकता को देखकर आर्यमणि भी हंसने लगा। अगले दिन सुबह के ट्रेनिंग के बाद आर्यमणि ने पैक को आराम करने के लिए कह दिया। केवल आराम और कोई ट्रेनिंग नहीं। उनसे मिलने के बाद वो सीधा चित्रा और निशांत के पास चला आया। रोज के तरह आज भी किसी बात को लेकर दोनों भाई बहन मे जंग छिड़ी हुई थी।
खैर, ये तो कहानी रोज-रोज की ही थी। रिजल्ट को लेकर ही दोनो भाई बहन मे बहस छिड़ी हुई थी। बहस भी केवल इस बात की, आर्यमणि से कम सब्जेक्ट मे निशांत के बैक लगे है। इस वर्ष का भी टॉपर बिहार के लल्लन टॉप मेधावी छात्र माधव ही था और उस बेचारे को पार्टी के नाम पर निशांत और आर्यमणि ने लूट लिया।
ऐसा लूटा की बेचारे को बिल देते वक्त पैसे कमती पड़ गये। बिल काउंटर पर माधव खड़ा, हसरत भरी नजरों से सबके हंसते चेहरे को देख रहा था। हां लेकिन थोड़ा ईगो वाला लड़का था, अपनी लवर से कैसे पैसे मांग लेता, इसलिए बेचारा झिझकते हुये आर्यमणि के पास 4 बार मंडरा गया लेकिन पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई...
चित्रा, माधव के हाथ खींचकर उसे अपने पास बैठायी... "कितना बिल हुआ है"…
माधव:- हम दे रहे है, तुम क्यों परेशान होती हो..
निशांत:- मत ले माधव, अपनी गर्लफ्रेंड से पैसे कभी मत ले.. वरना तुम्हे बाबूजी क्या कहेंगे.. नालायक, नकारा, निकम्मा, होने वाली बहू से पैसे कैसे ले लिये"..
माधव:- देखो निशांत..
चित्रा, माधव का कॉलर खींचती... "तुम देखो माधव इधर, उनकी बातों पर ध्यान मत दो। जाओ पैसे दो और इस बार जब बाबूजी कुछ बोले तो साफ कह देना... ई पैसा दहेज का है जो किस्तों में लिये है"
आर्यमणि:- बेचारा माधव उसके दहेज के 11000 रुपए तो तुम लोगों ने उड़ा दिये...
सभी थोड़े अजीब नज़रों से आर्यमणि को देखते... "दहेज के पैसे"
आर्यमणि:- हां माधव की माय और बाबूजी को एक ललकी बुलेट और 10 लाख दहेज चाहिए। बेचारा माधव अभी से अपने शादी मे लेने वाले दहेज के पैसे जोड़ रहा है.. सच्चा आशिक़..
बेचारा माधव... "हमको साला आना ही नहीं चाहिए था यहां। कोनो दूसरा होता ना ऐसा गाली उसको देते की क्या ही कह दू, लेडीज है इसलिए चुप हूं आर्य। चित्रा पैसे दे देना हम बाद में मिलते है।"… बेचारा झुंझलाकर अपनी फटी इज्जत बचाते भगा। हां वो अलग बात थी कि उसके जाते ही चित्रा भर पेट निशांत और आर्यमणि से झगड़े की।
शाम के वक्त, एक छोटे से पार्टी का माहौल चल रहा था। सभी लोग पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। आर्यमणि भूमि का हाथ पकड़े उस से बातें कर रहा था। उफ्फफफ क्या अदा से वहां पलक पहुंची, और सबके बीच से आर्यमणि का हाथ थामते… "कुछ देर मेरे पास भी रहने दीजिए, कई-कई दिन अपनी शक्ल नहीं दिखता।"…
मीनाक्षी:- जा ले जा मुझे क्या करना। ये तो आज कल हमे भी शक्ल नहीं दिखाता…
जया:- मेरा भी वही हाल है...
भूमि:- आपण सर्व वेडे आहात का? आर्यमणि, पलक तुम दोनो जाओ।…
भूमि सबको आंखें दिखाती दोनो को जाने के लिये बोल दी। दोनो कुछ देर तक उस पार्टी मे नजर आये, उसके बाद चुपके से बाहर निकल गये... "आर्य, कार तैयार है।"
आर्यमणि:- मेरे पास भी कार है.. और मै जानता हूं कि हम क्या करने जा रहे है। चले अब मेरी रानी...
पलक को लेकर आर्यमणि अपनी मासी के घर चला आया। जैसा कि पहले से अंदाज़ था। आर्यमणि ऐड़ा बना रहा और पलक दिखाने के लिए सारी सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुकी थी। जैसे ही पुस्तक उसके हाथ लगी, आर्यमणि उसे गेरुआ वस्त्र में लपेटकर अपने बैग में रख लिया। पलक उसके बैग को देखकर कहने लगी… "मेरी सौत है ये तुम्हारी बैग, हर पल तुम्हारे साथ रहती है।"..
आर्यमणि:- ठीक है आज रात तुम मेरे साथ रहना।
पलक, अपनी आखें चढाती… "और कहां"
आर्यमणि:- तुम्हारे कमरे में, और कहां?
पलक:- सच ही कहा था निशांत ने, तुम्हे यूएस की हवा लगी है। ये भारत है, शादी फिक्स होने पर नहीं शादी के बाद एक कमरे में रहने की अनुमति मिलती है।
आर्यमणि:- अच्छा, और यदि मै चोरी से पहुंच गया तो?
पलक:- अब मै अपने राजा को बाहर तो नहीं ही रख सकती..
आर्यमणि, कार स्टार्ट करते… "थैंक्स"..
पलक:- तुम ये पुस्तक किसी सेफ जगह नहीं रखोगे।
आर्यमणि:- मेरे बैग से ज्यादा सेफ कौन सी जगह होगी, जो हमेशा मेरे पास रहती है।
पलक:- और किसी ने कार ही चोरी कर ली तो।
आर्यमणि:- यहां का स्पेशल नंबर प्लेट देख रही हो, हर चोर को पता है कि ये भूमि देसाई की कार है। किसे अपनी चमरी उधेरवानी है। इसलिए कोई डर नहीं। वैसे भी कार में जीपीएस लगा है 2 मिनट में गाड़ी बंद और चोर हाथ में।
पलक:- जी सर समझ गयि। अनुष्ठान कब शुरू करोगे?
आर्यमणि:- कल चलेंगे किसी पंडित के पास एक ग्रह की स्तिथि जान लूं, बिल्कुल उसी समय में शुरू करूंगा और दूसरे ग्रह की स्तिथि पर कार्य संपन्न। भूमि दीदी का घर खाली है, वहीं करूंगा पुरा अनुष्ठान।
पलक, आर्यमणि के गाल चूमती… "तुम बेस्ट हो आर्य।"
आर्यमणि:- बिना तुम्हारे मेरे बेस्ट होने का कोई मतलब नहीं।
आर्यमणि वापस लौटकर पार्टी में आया। जैसे ही दोनो पार्टी में पहुंचे एक बड़ा सा अनाउंसमेंट हो रहा था। जहां स्टेज पर दोनो कपल, राजदीप-मुक्त, नम्रता-माणिक, पहले से थे वहीं आर्यमणि और पलक को भी बुलाया जा रहा था।
दोनो एक साथ पहुंचे। हर कोई देखकर बस यही कह रहा था, दोनो एक दूसरे के लिये ही बने है। वहीं उनके ऐसे कॉमेंट सुनकर माधव धीमे से चित्रा के कान में कहने लगा…. "हमको कोर्ट मैरिज ही करना पड़ेगा, वरना हमे देखकर लोग कहेंगे, ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लौट आया।"
चित्रा:- बोलने वालों का काम होता है बोलना माधव, तुम्हारे साथ मै खुश रहती हूं, वहीं बहुत है।
माधव:- वैसे देखा जाए तो टेक्निकली दोनो की जोड़ी गलत है।
चित्रा, माधव के ओर मुड़कर उसे घूरती हुई… "कैसे?"..
माधव:- दोनो एक जैसा स्वभाव रखते है, बिल्कुल शांत और गंभीर। इमोशन घंटा दिखाएंगे। आर्य कहेगा, मूड रोमांटिक है। और देख लेना इसी टोन में कहेगा। तब पलक कहेगी.. हम्मम। दोनो खुद से ही अपने कपड़े उतार लेंगे और सब कुछ होने के बाद कहेंगे.. आई लव यू।
चित्रा सुनकर ही हंस हंस कर पागल हो गयि। पास में निशांत खड़ा था वो भी हंसते हुये उसे एक चपेट लगा दिया… "पागल कहीं का।" उधर से आर्यमणि भी इन्हीं तीनों को देख रहा था, आर्यमणि चित्रा की हंसी सुनकर वहीं इशारे में पूछने लगा क्या हुआ? चित्रा उसका चेहरा देखकर और भी जोड़ से हंसती हुई इधर से "कुछ नहीं" का इशारा करने लगी।
आर्यमणि जैसे ही उस मंच से नीचे उतरा पलक के कान में रात को उसके कमरे में आने वाली बात फिर से दोहराते हुये, उसे तबतक लोगो से मिलने के लिये बोल दिया और खुद इन तीनों के टेबल पर बैठ गया…
चित्रा:- बड़े अच्छे लग रहे थे तुम दोनो..
आर्यमणि:- हम्मम ! थैंक्स..
चित्रा, निशांत और माधव तीनो कुछ ना कुछ खा रहे थे। आर्यमणि का "हम्मम ! थैंक्स" बोलना और तीनो की हंसी छूट गई। अचानक से हंसी के कारण मुंह का निवाला बाहर निकल आया। आर्यमणि उन्हें देखकर… "मैने ऐसा क्या जोक कर दिया।"..
तभी चित्रा ने उसे माधव की कहानी बता दी, उनकी बात सुनकर आर्यमणि भी हंसते हुए कहने लगा… "हड्डी ने आकलन तो सही किया है।"
निशांत:- डिस्को चलें।
आर्यमणि:- नाह डिस्को नही। कहीं बैठकर बातें करते है। आज अच्छी चिल बियर मरेंगे, और कहीं दूर पहाड़ पर बैठकर बातें करेंगे। लौटकर वापस आएंगे हम तीनो साथ में रुकेंगे और फिर देर रात तक बातें होंगी। मेरा अगले 2-4 दिन का तो यही शेड्यूल है।
माधव:- चलो तुम तीनों दोस्त रीयूनियन करो, मै चलता हूं।
आर्यमणि:- हड्डी चित्रा के घर लेट नाइट तुझे तो नहीं लें जा सकते, उसके लिए इससे शादी करनी होगी। लेकिन तुम भी हमारे साथ पहाड़ पर बियर पीने चल रहे।
चित्रा:- हां ये चलेगा। अच्छा सुन पलक को भी बोल देती हूं।
आर्यमणि:- नहीं, उसे रहने दो अभी। उसके भाई और बहन की शादी है। 2 हफ्ते बाद शादी है उसे वहां की प्लांनिंग करने दो, मै सबको बता कर आया, फिर चलते है।
7.30 बजे के करीब चारो निकल गए। पूरा एक आइस बॉक्स के साथ बियर की केन खरीद ली। माधव के डिमांड पर एक विस्की की बॉटल भी खरीदा गया, वो भी चित्रा के जानकारी के बगैर।
आर्यमणि सबको लेकर सीधा वुल्फ ट्रेनिंग एरिया के जंगलों में पहुंचा। चारो ढेर सारी बातें कर रहे थे। चित्रा और निशांत के लिए नई बात नहीं थी लेकिन माधव को कहना पड़ गया… "पहली बार आर्य तुम्हे इतने बातें करते सुन रहा हूं।"..
आर्यमणि:- कुछ ही लोग तो है जिनसे बातें कर लेता हूं, लेकिन अब ये आदत बिल्कुल बदलने वाली है, क्योंकि लाइफ को थोड़ा कैजुअली भी जीना चाहिए।"..
सब एक साथ हूटिंग करने लगे। रात के 11:00 बजे सभी वहां से निकल गये। माधव को उसके हॉस्टल ड्रॉप करने के बाद तीनों फिर निशांत के कमरे में इकट्ठा हो गये। निलांजना भी वहां आकर उनके बीच बैठती हुई पूछने लगी… "तीनों कितनी बीयर मार कर आये हो?"
आर्यमणि:- भूख लगी है आंटी आपके कंजूस पति सो गए हो तो छोले भटूरे खिलाओ ना।
निलांजना:- रात के 11:30 बजे छोलें भटूरे, चुप चाप सो जाओ सुबह खिलाती हूं। नाश्ता करके यहीं से कॉलेज निकल जाना। अभी सब्जी रोटी है वो लगवा देती हूं।
निलांजना वहां से चली गयि और उसके रूम में सब्जी रोटी लगवा दी। तीनों खाना खाने के बाद आराम से बिस्तर पर बैठ गए और मूवी का लुफ्त उठाने लगे। आधे घंटे बाद चित्रा दोनो को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में आ गयि। इधर निशांत और आर्यमणि आराम से बैठकर मूवी देखते रहे। तकरीबन 12:45 तक वहां का माहौल पुरा शांत हो चुका था।
आर्यमणि अपने ऊपर नकाब डाला और घूमकर पीछे से वो पलक के दरवाजे तक पहुंच गया। पलक जैसे ही पार्टी से लौटी आराम से बिस्तर पर जाकर गिर गई। 2 बार खिड़की पर नॉक करने के बाद भी जब पलक खिड़की पर नहीं आयी, आर्यमणि ने उसे कॉल लगाया।
6 बार पूरे रिंग जाने के बाद पलक की आंख खुली और आधी जागी आधी सोई सी हालत में… "हेल्लो कौन"
आर्यमणि:- खिड़की पर आओ, पूरी नींद खुल जायेगी।
पलक:- गुड नाईट, सो जाओ सुबह मिलती हूं।
आर्यमणि:- तुम अपनी खिड़की पर आओ मै तुम्हारे कमरे के पीछे हूं।
पलक हड़बड़ा कर अपनी आखें खोली और फोन रखकर खिड़की पर पहुंची… "मुझे लगा आज शाम मज़ाक कर रहे थे।"..
आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है सो जाओ।
पलक:- पहले अंदर आओ.. ऐसे रूठने की जरूरत नहीं है।
पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।"..
पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।"..
आर्यमणि:- कल किसी अच्छे पंडित के पास पहुंचना है, ये तो याद रहेगा ना।
पलक:- भैया और दीदी को बुरा नहीं लगेगा, हम उनसे पहले शादी करेंगे तो।
आर्यमणि:- वेरी फनी….
पलक अपने कदम आगे बढ़ाकर आर्यमणि के ऊपर आयी और नाक से नाक फीराते हुए… "आर्य रूठता भी है, मै आज पहली बार देख रही हूं।"..
आर्यमणि, पलक को बिस्तर पर पलट कर उसके ऊपर आते… "पलक किसी को मानती भी है, पहली बार देख रहा हूं"
पलक, आर्यमणि के गर्दन में हाथ डालकर उसके होंठ अपने होंठ तक लाती…. "बहुत कुछ पलक पहली बार करेगी, क्योंकि उसे आर्य के लिए करना अच्छा लगता है।"..
दोनो की नजरें एक दूसरे से मिल रही थी। दोनो एक दूसरे को देखकर मुस्कुराए और होंठ से होंठ लगाकर एक दूसरे के होंठ चूमने लगे। आर्यमणि होंठ को चुमते हुये अपने धड़कन काउंट को पूरा काबू में करना सीख चुका था। कामुकता तो हावी होती थी लेकिन अब शेप शिफ्ट नहीं होता था।
दोनो एक दूसरे को बेतहाशा चूमते जा रहे थे और बदन पर दोनो के हाथ जैसे रेंग रहे हो। …. "आर्य, यहीं रुक जाते है। आगे मुझसे कंट्रोल नहीं होगा।".. पलक अपने कामुकता पर किसी तरह काबू पाती हुई कहने लगी। आर्यमणि अपने हाथ उसके अर्द्ध विकसित कड़क सुडौल स्तन पर ले जाकर धीमे से दबाते हुये… "तो कंट्रोल करने कौन कह रहा है।"… "आहह्ह्ह्ह" की हल्की पीड़ा और मादक में लिप्त सिसकी पलक के मुंह से निकल गयि। पलक, आर्यमणि है के बाल को अपने हाथो से भींचती आखें बंद कर ली।
आर्यमणि, पलक के गाउन को धीरे से कंधों के नीचे खिसकाने लगा। पलक झिझक में अपने हाथ कांधे पर रखती… "आर्य, अजीब लग रहा है, प्लीज लाइट आफ करने दो।".. आर्यमणि, पलक के ऊपर से हट गया। वह लाइट बंद करके वापस बिस्तर पर आकर लेट गयि। आगे का सोचकर उसकी दिल की धड़कने काफी तेज बढ़ी हुयि थी। बढ़ी धड़कनों के साथ ऊपर नीचे होती छाती को आर्यमणि अपनी आखों से साफ देख सकता था। काफी मादक लग रहा था।
आर्यमणि ने पलक की उल्टा लिटा दिया और पीछे से चैन को खोलकर नीचे सरकते हुए, उसके पीठ पर किस्स करने लगा। पलक दबी सी आवाज में हर छोड़ती और खींचती श्वांस में पूर्ण मादकता से "ईशशशशशशशशश… आह्हहहहहहहहहहहहहह… कर रही थी। उसका पूरा बदन जैसे कांप रहा हो और मादक सिहरन नश-नश में दौड़ रही थी। पहली बार अपने बदन पर मर्दाना स्पर्श उसके मादकता को धधकती आग की तरह भड़का रही थी। पलक झिझक और मस्ती के बीच ऐसी फसी थी कि कब उसके शरीर से गाउन नीचे गया उसे पता नहीं चला। ब्रा के स्ट्रिप खुल चुके थे और पीठ पर गीला–गिला एहसास ने मादक भ्रम से थोड़ा जागृत किया, तब पता चला कि गाउन शरीर से उतर चुका है और ब्रा के स्ट्रिप दोनो ओर से खुले हुये है।
आर्यमणि उसके कमर के दोनों ओर पाऊं किये, अपने जीभ पलक के पीठ पर चलाते हुये, अपने हाथ नीचे ले गया और पलक को थोड़ा सा ऊपर उठा कर, उसके ब्रा को निकालने की कोशिश करने लगा। पलक भी लगभग अपना संयम खो चुकी थी। वो छाती से ब्रा को निकलते हुये देख रही थी और अपनी योनि में चींटियों के रेंगने जैसा मेहसूस कर रही थी। जिसकी गवाह पीछे से हिल रहे उसके कमर और धीमे से थिरकते उसके चूतड़ दे रहे थे। उत्तेजना पलक पर पूरी तरह से हावी होने लगी थी। वो अपने पाऊं लगातार बिस्तर से घिस रही थी। मुठ्ठी में चादर को भींचती और मुठ्ठी खोल देती...
आर्यमणि ब्रा को निकालकर अपने दोनो हाथ नीचे ले गया और उसके स्तन को अपने पूरे हथेली के बीच रखकर, निप्पल को अपने अंगूठे में फसाकर मसलने लगा। छोटे-छोटे ठोस स्तन को हाथ में लेने का अनुभव भी काफी रोमांचित था। आर्यमणि की धड़कने फिर से बेकाबू हो गयि। पलक के बदन का मादक स्पर्श अब उससे बर्दास्त नहीं हो रहा था। वो अपने जीभ को उसके कान के पास फिरते गीला करते चला गया।
पलक हाथ का दबाव अपने स्तन पर मेहसूस करती अपना पूरा मुंह खोलकर फेफड़े में श्वांस को भरने लगी। आर्यमणि अपने दोनो हाथ से स्तनों पर थोड़ा और दवाब बनाया.. "आहहहहहह… ईईईईई, आउच.. थोड़ा धीमे.. आर्य, दूखता है... उफ्फफफफ, आर्य प्लीज.. मर गई... ओहहहहहहहह… आह्हहहहहह"
एसी 16⁰ डिग्री पर थी और दोनो का बदन पसीने में चमक रहा था। पलक अपना मुंह तकिये के नीचे दबाकर अपनी दर्द भरी उत्तेजक आवाज को दबा रही थी, लेकिन आर्यमणि, पलक के स्तन को मसलना धीमे नहीं किया। आर्यमणि पूर्ण उत्तेजना मे था। वो स्तनों को लगातार मसलते हुये, अपना जीभ पलक के चेहरे से लेकर, पीठ पर लगातार चला रहा था।
पूर्ण काम उत्तेजना ऐसी थी कि आर्यमणि थोड़ा ऊपर होकर तेजी से अपना लोअर और टी-शर्ट उतार कर पुरा नंगा हो चुका था। पूर्ण खड़ा लिंग उसके उत्तेजना की गवाही दे रहा था। इस बीच आर्य की कोई हरकत ना पाकर, पलक अपनी उखड़ी श्वांस और उत्तेजना को काबू करने लगी। परंतु कुछ पल का ही विराम मिला उसके बाद तो दिल की धड़कने पहले से ज्यादा बेकाबू हो गया। बदन सिहर गया और रौंगटे खड़े हो गये। झिझक के कारण स्वतः ही हाथ कमर के दोनों किनारे पर चले गये और पैंटी को कमर के नीचे जाने से रोकने की नाकाम कोशिश होने लगी। तेज श्वांस की रफ्तार और अचानक उत्पन्न हुई आने वाले पल को सोचकर बदन की उत्तेजना ने पलक को वो ताकत ही नहीं दी की पलक पेंटी को नीचे जाने से थोड़ा भी रोक पाती। बस किसी तरह से होंठ से इतना ही निकला, "मेरा पहली बार है।"…
पलक अपने दोनो पाऊं के बीच सबकुछ छिपा तो सकती थी लेकिन उल्टे लेटे के कारन सबकुछ जैसे आर्य के पाले में था और पलक बस बढ़ी धड़कनों के साथ मज़ा और झिझक के बीच सब कुछ होता मेहसूस कर रही थी। तेज मादक श्वांस की आवाज दोनो सुन सकते थे। लेकिन दिमाग की उत्तेजना कुछ सुनने और समझें दे तो ना। आर्यमणि अपने हाथ दरारो के बीच जैसे ही डाला उसका लिंग अपने आप हल्का–हल्का वाइब्रेशन मोड पर चला गया। आर्यमणि भी थोड़ा सा सिहर गया। वहीं पलक का ये पहला अनुभव जान ले रहा था। हाथ चूतड़ के बीच दरार से होते हुए जैसे ही योनि के शुरवात के कुछ नीचे गये, "ईशशशशशशशशश..… उफ्फफफफफ… आह्हहह..… आर्ययययययययय"… की तेज सिसकारी काफी रोकने के बाद भी पलक के मुंह से निकलने लगी। वह पूरी तरह से छटपटाने लगी। बदहवास श्वांसे और कामों–उत्तेजना की गर्मी अब तो योनि के अंदर कुछ जलजला की ही मांग कर रही थी जो योनि के तूफान को शांत कर दे।
तकिये के नीचे से दबी मादक सिसकारी लगातार निकल रही थी। चूतड़ बिल्कुल टाईट हो गये, पाऊं अकड़ गये और तीन–चार बार कमर हिलने के बाद पलक पहली बार पूर्ण चरमोत्कर्ष के बहाव को योनि से निकालकर बिल्कुल ढीली पड़ गयि। पलक गहरी श्वांस अपने अंदर खींच रही थी। कुछ बोल पाये, इतनी हिम्मत नहीं थी। बस उल्टी लेटी आर्यमणि का हाथ अपने योनि पर मेहसूस कर रही थी। उसकी उंगली योनि के लिप को कुरेदते हुये अंदर एक इंच तक घुसा था। आर्यमणि जब अपनी उंगली ऊपर नीचे करता, पलक सीने में गुदगुदा एहसास होता और पूरा बदन मचल रहा होता।
इसी बीच आर्य एक बार फिर उपर आया इस बार जैसे ही अपने होंठ पलक के होंठ से मिलाया पलक मस्ती में अपना पूरा जीभ, आर्य के मुंह के अंदर डालकर चूसने लगी। दोनो एक दूसरे के होंठ को चूमते जा रहे थे। आर्य वापस से स्तन को दबोचकर कभी पलक के मुंह से दर्द भरी आवाज निकालने पर मजबूर कर रहा था, तो कभी उसे चैन कि स्वांस देता। लेकिन हर आवाज़ किस्स के अंदर ही दम तोड़ रही थी।
आर्य चूमना बंद करके साइड से एक तकिया उठा लिया। पलक के पाऊं को खींचकर बिस्तर के किनारे तक लाया। कमर बिस्तर के किनारे पर था और पाऊं नीचे जमीन पर और कमर के ऊपर का हिस्सा बिस्तर पर पेट के बल लेटा। आर्य ने पलक के कमर के नीचे तकिया लगाया। उसके पाऊं के बीच में आकर अपने लिंग को योनि की दीवार पर धीरे-धीरे घिसने लगा। योनि से लिंग का स्पर्श होते ही फिर से दोनो के शरीर में उत्तेजना की तरंगे लहर उठी। पलक अपने कमर हल्का–हल्का इधर-उधर हिलाने लगी। आर्य पूर्ण जोश में था और लिंग को योनि में धीरे-धीरे डालने लगा। संकड़ी योनि धीरे-धीरे सुपाड़े के साइज में फैलने लगी। पलक की पूरी श्वांस अटक गई। दिमाग बिल्कुल सुन्न था और मादकता के बीच हल्का दर्द का अनुभव होने लगा।
धीरे-धीरे लिंग योनि के अंदर दस्तक देने लगा। पलक की मदाक आहहह हल्की दर्द की सिसकियां में बदलने लगी… पलक अपने कमर तक हाथ लाकर थपथपाने लगी और किसी तरह दर्द बर्दाश्त किये, आर्य को रुकने का इशारा करने लगी। पलक का हाथ कमर से ही टिका रहा। आर्य रुककर आगे झुका और उसके स्तन को अपने दोनो हाथ से थामकर उसके होंठ से अपने होंठ लगाकर चूमते हुये एक जोरदार धक्का मरा। योनि को किसी ने चिर दिया हो जैसे, पूरा लिंग वैसे ही योनि को चीरते हुये अंदर समा गया।
मुंह की दर्द भरी चींख चुम्बन के नीचे घुट गयि। दर्द से आंखों में आंसू छलक आये। पलक बिन जल मछली की तरह फरफरा गयि। दर्द ना काबिले बर्दास्त था और आवाज़ किस्स में ही अटकि रही। पलक गहरी श्वांस लेती अपने हाथ अपने कमर के इर्द गिर्द चलाती रही लेकिन कोई फायदा नहीं। आर्य अपना लिंग योनि में डाले पलक के होंठ लगातार चूम रहा था और उसके स्तन को अपने हाथो के बीच लिए निप्पल को धीरे-धीरे रगड़ रहा था।
आहिस्ते–आहिस्ते पलक की दर्द और बेचैनी भी शांत होने लगी। योनि के अंदर किसी गरम रॉड की तरह बिल्कुल टाईट फसे लिंग का एहसास उसे जलाने लगा। और धीरे-धीरे उसने खुद को ढीला छोड़ दी। पहले से कई गुना ज्यादा मादक एहसास मेहसूस करते अब दोनो ही पागल हुये जा रहे थे। पलक का कमर फिर से मचलने लगा और आर्य भी होंठ चूमना बंद करके अपने हाथ पलक की छाती से हटाया और दोनो हाथ चूतड़ पर डालकर सीधा खड़ा हुआ। दोनो चूतड़ को पंजे में दबोचकर मसलते हुए धक्के देने लगा।
कसे योनि के अंदर हर धक्का पलक को हल्के दर्द के साथ अजीब सी मादकता दे जाती। तकिए के नीचे से बस... ईशशशशशश, उफ्फफफ, आह्हहहहहहह, ओहहहहहहहहह, आह्हहहह, उफफफफफ, ईशशशशशश... लंबी लंबी सिसकारियों कि आवाज़ आ रही थी।
लगतार तेज धक्कों से चूतड़ थिरक रही थी और दोनो के बदन में मस्ती का करंट दौड़ रहा था। इसी बीच दोनो तेज-तेज आवाज करते "आह आह" करने लगे। मन के अंदर मस्ती चरम पर थी। मज़ा फुट कर निकलने को बेताब था। एक बार फिर पलक का बदन अकड़ गया। इसी बीच आर्य में अपना लिंग पुरा बाहर निकाल लिया और हिलाते हुए अपना वीर्य पलक के चूतड़ पर गिराकर वहीं निढल लेट गया। पलक कुछ देर चरमोत्कर्ष को अनुभव करती वैसी ही लेती रही फिर उठकर बाथरूम में घुस गयि।
जल्दी से वो स्नान करके खुद को फ्रेश की। नीचे हल्का हलका दर्द का अनुभव हो रहा था और जब भी ध्यान योनि के दर्द पर जाता, दिल में गुदगुदी सी होने लगती। पलक तौलिया लपेट कर बाथरूम से बाहर निकली। लाइट जलाकर एक बार सोये हुये आर्य को देखी। बिल्कुल सफेद बदन और करवट लेते कमर के नीचे का हिस्सा देखकर ही पलक को कुछ-कुछ होने लगा। वो तेजी से अपने सारे कपड़े समेटी और भागकर बाथरूम में आ गयि।
पलक कपड़े भी पहन रही थी और दिमाग में आर्य के बदन की तस्वीर भी बन रही थी। पलक अपने ऊपर कपड़े डालकर वापस बिस्तर में आयी। अपने हाथ से उसके बदन को टटोलती हुई हाथ उसके चेहरे तक ले गयि। अपने पूरे पंजे उसके चेहरे पर फिराति, होंठ से होंठ को स्पर्श करके सो गई।
सुबह जब पलक की आंख खुली तब आर्यमणि बिस्तर में नहीं था और पीछे का दरवाजा खुला हुआ था। पलक मुस्कुराती हुई लंबी और मीठी अंगड़ाई ली और बिस्तर को देखने लगी। उठकर वो फ्रेश होने से पहले सभी कपड़ों के साथ बेडशीट भी धुलने के लिए मोड़कर रख दी। इधर पलक के जागने से कुछ ही समय पहले ही आर्यमणि भी जाग चुका था। वो पड़ोस का कैंपस कूदकर घर के अंदर ना जाकर सीधा दरवाजे पर गया, तभी निशांत के पिता राकेश उसे पीछे से आवाज देते… "चलो आज तुम्हारे साथ ही जॉगिंग करता हूं।"..
आर्यमणि:- चलिए..
राकेश:- सुना है आज कल काफी जलवे है तुम्हारे..
आर्यमणि, राकेश के ठीक सामने आते… "आप सीधा कहिए ना क्या कहना चाहते हैं?"..
राकेश:- तुम मुझसे हर वक्त चिढ़े क्यों रहते हो?
राजदीप:- मॉर्निंग मौसा जी, मॉर्निंग आर्य..
आर्यमणि:- मॉर्निंग भईया, पलक नहीं आती क्या जॉगिंग के लिये।
राजदीप:- वो रोज सुबह ट्रेनिंग के लिये जाती है। फिर लौटकर तैयार होकर कॉलेज। यदि सुबह उससे मिलना हो तो तुम भी चले जाया करो ट्रेनिंग करने।
राकेश:- आर्य तो ट्रेनिंग मास्टर है राजदीप, इसे भला ट्रेनिंग की क्या जरूरत।
आर्यमणि:- आप जाया कीजिए अंकल, मैं आईजी होता तो कबका अनफिट घोषित कर दिया होता। आज तक समझ में नहीं आया बिना एक भी केस सॉल्व किये परमोशन कैसे मिल जाती है।
राकेश:- कुछ लोगों के पिता तमाम उम्र एक ही पोस्ट पर रह जाते है इसलिए उन्हें दूसरों की तरक्की फर्जी लगती है।
आर्यमणि:- कुछ लोग सिविल सर्विस में रहकर अपना तोंद निकाल लेते है और पैसे खिला-खिला कर या पैरवी से तरक्की ले लेते है। विशेष सेवा का मेडल भी लगता है उनके लिए सपना ही होगा। जानते है भईया, मेरे पापा को 2 बार टॉप आईएएस का अवॉर्ड मिला। 3 बार विदेशी एंबेसी भी मिल रही थी, लेकिन पापा नहीं गये।
राकेश:- दूसरो के काम को अपने नाम करके ऐसा कारनामा कोई भी कर सकता है।
आर्यमणि:- उसके लिए भी अक्ल लगती है। कुर्सी पर बैठकर सोने और पेट बाहर निकाल लेने से कुछ नहीं होता।
राजदीप:- तुम दोनो बक्श दो मुझे। मासी (निशांत की मां निलजना) मुझे अक्सर ऐसे तीखी बहस के बारे में बताया करती थी, आज ये सब दिखाने का शुक्रिया.. मै चला, दोनो अपना सफर जारी रखो।
आर्यमणि:- ये क्या पलक है जो चेहरा देखकर दौड़ता रहूं। बाय अंकल और थोड़ा कंजूसी कम करके निशांत को भी मेरी तरह एक स्पोर्ट बाइक दिलवा दो।
राकेश:- तू मेरे घर मत आया कर। सुकून से था कुछ साल जब तू नहीं आया करता था।
आर्यमणि:- आऊंगा अब तो रोज आऊंगा। कम से कम एक हफ्ते तक तो जरूर।
राउंड टेबल मीटिंग लगी थी। प्रहरी सीक्रेट बॉडी के सदस्य वहां बैठे हुये थे। पलक अपनी ट्रेनिंग समाप्त करने के उपरांत उन लोगों के सामने खड़ी थी। शायद किसी अहम विषय पर चर्चा थी इसलिए सभी सुबह–सुबह जमा हुये थे। सभा में उपस्थित लोगों में जयदेव, देवगिरी पाठक, तेजस, उज्जवल और सुकेश था।
जयदेव:– पलक, आर्यमणि के ऊपर एक्शन होने में अब से कुछ ही दिन रह गये है। ऐसा क्या खास था जो हम सबको सुबह–सुबह बुला ली।
पलक:– "आप लोगों ने मुझे एक लड़के के पीछे लगाया। उसके पास क्या ताकत है? वह नागपुर में आते ही प्रहरी के हर राज का कैसे पता चलने लगा? क्या उसके दादा ने हमारे विषय में कुछ बताया था, जो वह आते ही इतना अंदर घुस गया कि प्रहरी सीक्रेट बॉडी के राज से बस कुछ कदम दूर ही था? या फिर उसे भूमि ने सब कुछ बताया? मुख्यत: 2 बिंदुओं पर जोड़ दिया गया था... आर्यमणि के पास कैसी ताकत है और क्या वह सीक्रेट बॉडी ग्रुप के बारे में जानता है?"
"जबसे वह नागपुर आया है, मैं आर्य के साथ उसके तीनों करीबी, चित्रा, निशांत और भूमि के करीब रही हूं। परिवार, प्यार और दोस्ती शायद यही उसके ताकत का सोर्स है। बचपन में जब उसने किसी वेयरवॉल्फ को मारा था, तब भी वह किसी के प्यार में था। एक लड़की जिसका नाम मैत्री था। मैत्री लोपचे उस पूरे घटना की ताकत थी। अपने प्यार पर अत्याचार होते देख उसे अंदर से जुनून पैदा हो गया और अपने अंदर उसने इतनी ताकत समेट ली की फिर कोई वुल्फ उसका मुकाबला नहीं कर सका।"
"हम जितनी भी बार आर्य और वुल्फ के बीच की भिड़ंत देखते है, तब पायेंगे की आर्य पूरे जुनून से लड़ा था। और यही जुनून उसकी ताकत बन गयि थी। एक ऐसी ताकत जो अब बीस्ट वुल्फ को भी चुनौती दे दे। आर्य के साथ जब मैं पहली बार रीछ स्त्री के अनुष्ठान तक पहुंची थी, तब मुझे एक बात बहुत ही अजीब लगी, वह जमीन के अंदर हाथ डालकर पता लगा रहा था, तब उसका बदन नीला पड़ गया था। इसका साफ मतलब था की वर्घराज कुलकर्णी ने अवश्य कोई शुद्ध ज्ञान आर्य में निहित किया है, जो मंत्र का असर उसके शरीर पर नही होने देता। इसी का नतीजा था उसका शरीर नीला होना। अब चूंकि तंत्र–मंत्र और इसके प्रभाव सीक्रेट बॉडी प्रहरी से जुड़े नही है, इसलिए हमें इसकी चिंता नहीं होनी चाहिए और न ही जो भी तंत्र–मंत्र की कोई शक्ति उसके अंदर है, उसका आर्य की क्षमता से कोई लेना देना। क्योंकि यदि ऐसा होता तब आर्य ने रीछ स्त्री को जरूर देखा होता। उसे किसी भी तरह की सिद्धि का प्रयोग करना नही आता, लेकिन इस बात से इंकार भी नही किया जा सकता के उसका शरीर खुद व खुद मंत्रों को काट लेता है।"
"सतपुरा में जो भी हुआ उसकी भी मैं पूरी समीक्षा कर सकती हूं। भूमि अपने घर पर थी। उसके सारे करीबी शिकारी और आर्य सतपुरा में। रीछ स्त्री और तांत्रिक से हम जिस रात मिलते उस रात पूरे क्षेत्र को मंत्रो से ऐसा बंधा की हम किसी से संपर्क नही कर पाये। यहां पर मैं पहला केस लेती हूं, आप लोगों के अनुसार ही... आर्यमणि ही वह सिद्ध पुरुष था जिसने पूरे क्षेत्र को बंधा था। तो भी यह कहीं दूर–दूर तक साबित नही होता की आर्य सीक्रेट प्रहरी को जनता है। इसके पीछे का आसन कारण है, वह जानता था कि प्रहरी से अच्छा सुपरनेचुरल को कोई पकड़ नही सकता इसलिए रीछ स्त्री के मामले में उसने शुरू से हमारी मदद ली है।
जयदेव बीच में ही रोकते... "और वो नित्या ने जब उसे मारने की कोशिश की थी"..
पलक चौंकती हुई अपनी बड़ी सी आंखें दिखाती.… "क्या आर्य को मारने की कोशिश"..
उज्जवल:– मारने से मतलब है कि आर्य पर नित्या ने हमला किया था और वह असफल रही। जबकि नित्या के हथियार बिना किसी सजीव को घायल किये शांत ही नही हो सकते .
पलक:– बाबा मुझे यहां पर साजिश की बु आ रही है। क्या वाकई इतनी बात थी...
सुकेश:– क्या करूं मैं तुम्हारे जज़्बात का पलक। हम जानते हैं कि तुम उसे चाहती हो, फिर हम उसे तब तक नही मार सकते जब तक उसमे तुम्हारी मर्जी न हो। और तुम्हे क्या लगता है, यदि उसे मारने का ही इरादा होता तो वो हमसे बच सकता था...
पलक:– माफ कीजिए, थोड़ी इमोशनल हो गयि थी। खैर जयदेव की बातों पर ही मैं आती हूं। आर्य, नित्या के हमले से कैसे बचा? जैसा कि पहला थ्योरी यह था कि आर्य एक सिद्ध पुरुष है, जो की वह कभी हो भी नहीं सकता उसका कारण भी नित्या का हमला ही है। कोई तो पर्दे के पीछे खड़ा था जिसने आर्य के कंधे पर बंदूक रखकर पूरा कांड कर गया। उसी ने आर्य को भी अपने सिद्धि से बचाया ताकि हमारा ध्यान आर्य पर ही केंद्रित हो और कोई भी भूमि पर शक नही करेगा। क्योंकि यदि भूमि किसी सिद्ध पुरुष के साथ काम करती तब वह अपने एक भी आदमी को मरने नही देती। इसका साफ मतलब है कि किसी और को भी रीछ स्त्री के बारे में मालूम था जो परदे के पीछे रह कर पूरा खेल रच गया।"
"मेरी समीक्षा यही कहती है, आर्य एक सामान्य लड़का है, जिसके पास अपनी खुद की क्षमता इतनी विकसित हो चुकी है कि वह वुल्फ को भी घायल कर सकता है। नागपुर आने से पहले वह जहां भी था, वहां उसे रोचक तथ्य की किताब मिली और उसी किताब की जिज्ञासा ने उसे रीछ स्त्री तक पहुंचा दिया। अनंत कीर्ति भी उसकी जिज्ञासा का ही हिस्सा है। जहां एक ओर वह पूरी जी जान से उसे खोलना तो चाहता है लेकिन दूसरी ओर हमे कभी जाहिर नही होने देता। उसकी इस भावना का सम्मान करते हुए मैं ही आगे आ गयि। मतलब तो किताब खोलने से है।"
"एक मनमौजी लड़का रीछ स्त्री को ढूंढने नागपुर पहुंचा। जब वह यहां पहुंचा तो जाहिर सी बात है उसे भी प्रहरी में उतना ही करप्शन दिखा, जितना हम बाहर को दिखाते आये है, 2 खेमा.. एक अच्छा एक बुरा। बस वहीं उसे पता चला की सरदार खान एक दरिंदा है, जिसे खुद प्रहरी सह दे रहे। अब चूंकि किसी ने आज तक सरदार खान को शेप शिफ्ट किये देखा नही वरना आर्य की तरह वह भी प्रहरी को ऐसी नजरों से देखता मानो वह दरिंदे पाल रहे। लेकिन आर्य ने जिस प्रहरी को देखा है वह बुरे प्रहरी है, जिसका पता भूमि भी लगा रही थी।
बस कुछ ही दिन रह गये है। आर्य अपनी पूरी कोशिश और ज्ञान उस किताब को खोलने में लगा रहा है। उसके बाद किताब आपका। किताब खुलते ही, मैं खुद बुरे प्रहरी पर बिजली बनकर गिरूंगी ताकि मेरे प्यार को यकीन हो जाए की मैने बुरा खेमा को लगभग खत्म कर दिया, जैसे मैंने पहले मीटिंग में किया और आप लोगों ने साथ दिया। आर्य बस एक मनमौजी है जिसे सीक्रेट बॉडी के बारे में पता तो क्या उसे दूर–दूर तक इसके बारे में भनक तक नही। जब एक ताकतवर इंसान, जिसे गर्भ में ही किसी प्रकार का शुद्ध ज्ञान दिया गया था, उसे मारने से बेहतर होगा जिंदा रखना और अपने मतलब के लिए इस्तमाल करना। इसी बहाने जिस प्यार के नाटक ने मुझे आर्य के इतने करीब ला दिया, वह प्यार कभी मुझसे दूर न जाये। किताब खुलने के बाद आर्य पर आप लोग एक ही एक्शन लेंगे और वो है मुझसे विवाह करवाना। क्या सभी सहमत है?
पलक की भावना को सबने मुस्कुराकर स्वागत किया। पलक अपनी पूरी समीक्षा देकर वहां से निकल गयि। पलक एक ट्रेनी थी जिसे सीक्रेट बॉडी में कुछ वक्त बाद सामिल किया जाता। चूंकि वह ट्रेनी थी इसलिए उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था की सरदार खान आर्यमणि जान लेने आया था। यदि उस द्वंद में आर्यमणि मारा जाता तब पलक से कह दिया जाता वुल्फ पैक की दुश्मनी, सीक्रेट बॉडी का कोई रोल नहीं। रीछ स्त्री के बारे में चर्चा आम करने की वजह से सीक्रेट बॉडी पहले से ही खुन्नस खाये थे। लेकिन उसके बाद जब जादुई खंजर से दूर करने का भी शक आर्यमणि पर गया, तब तो बौखलाहट में आर्यमणि को 2 बार मारने की कोशिश कर गये। और जब नही मार पाये तब अपनी ही एक ट्रेनी (पलक) से झूठ बोल दिया, "कि हम बस हमला करवा रहे थे, ताकि सबको लगे की सभी पर हमला हुआ है।"..
खैर पलक तो चली गयि। पलक ने जो भी कहा उसपर न यकीन करने जैसा कुछ नही था। सबको यकीन हो गया की आर्यमणि ने जो भी किया वह मात्र एक संयोग था। लेकिन फिर भी सीक्रेट बॉडी पहले से मन बना चुकी थी, वर्धराज का पोता भले कुछ जानता हो या नही, लेकिन उसे जिंदा नही छोड़ सकते। पलक कहां जायेगी, उसे हम समझा लेंगे।
दिन के वक़्त कैंटीन में सब जमा थे। पलक आर्यमणि से नजरे नहीं मिला पा रही थी। इसी बीच चित्रा पलक से पूछ दी… "आज शाम फिर से वही प्रोग्राम रखे क्या? आज पलक को भी ले चलते है। क्यों पलक?"
पलक:- कहां जाना है?
माधव:- शाम के वक़्त बियर की बॉटल के साथ पहाड़ की ऊंचाई पर मज़े से 4 घूंट पीते, दोस्तो के बीच शाम एन्जॉय करने। लेकिन हां सिर्फ दोस्त होंगे, लवर नहीं कोई..
निशांत, उसे ठोकते… "मेरी बहन इतनी डेयरिंग करके तुम्हे लवर मानी है और तू सिर्फ दोस्त कह रहा है। चित्रा ब्रेकअप मार साले को। किसी और को ढूंढ़ना।"..
पलक:- अपनी तरह मत बनाओ उसे निशांत।..
"क्या मै यहां बैठ जाऊं"… क्लास का एक लड़का पूछते हुए..
आर्यमणि:- आराम से बैठ जाओ। मेरे दोस्त निशांत का दिल इतनी लड़कियों ने तोड़ा हैं कि वो अब कोई और सहारा देख रहा।
जैसे ही उस लड़के ने ये बात सुनी, निशांत का चेहरा घूरते… "मुझे लड़का पसंद है।"..
सबकी कॉफी की कप हाथ में और चुस्की होंटों से, और हंसी में एक दूसरे के ऊपर कॉफी की कुछ फुहार बरसा चुके थे। "भाग.. भाग साला यहां से, वरना इतने जूते मारूंगा की सर के बाल गायब हो जाएंगे।"
लड़का:- मेरा नाम श्रवण है, पलक का मै क्लोज मित्र। और सॉरी दोस्त…. तुम्हारे दोस्त ने मुझसे मज़ाक किया और मैंने तुमसे। मुझे तुम में वैसे भी कोई इंट्रेस्ट नहीं, मै तो यहां पलक से मिलने आया था।
पलक:- दोस्तो ये है श्रवण… और श्रवण ये है..
श्रावण:- हां जनता हूं, तुम्हारा होने वाला पति है जो फिलहाल तुम्हारा बॉयफ्रेंड बाना है। आह्हहह !! पलक दिल में छेद हो गया था जब मैंने यह सुना। एक मौका मुझे भी देती।
आर्यमणि:- जा ले ले मौका मेरा भाई। तुम भी क्या याद करोगे।
पलक, आर्यमणि को घूरती… "सॉरी वो मज़ाक कर रहा है। तुम सीरियसली मत लो इसके मज़ाक को।"..
तभी निशांत अपने मोबाइल का स्क्रीन खोलकर कॉन्टैक्ट लिस्ट सामने रखते.. "श्रवण मेरे लिस्ट में तकरीबन 600 कॉन्टैक्ट है जिसमें से 500 मेरे और आर्य के कॉमन कॉन्टैक्ट होंगे"….
माधव:- और बाकी के 100 नंबर..
चित्रा:- 100 में से कुछ लड़कियों के नंबर अपने दोस्तो से भीख मांग-मांग कर जुगाड़े थे। जिनपर एक बार कॉल लगाने के बाद, ऐसा उधर से थुक परी की दोबारा कॉल नहीं कर पाया। कुछ नंबर पर शुरू से हिम्मत नहीं हुई कॉल करने की। और कुछ लड़कियां अपने घर का काम करवाना चाहती थी इसलिए वो इसे कॉल करती हैं। हां लेकिन इसका नंबर कभी नहीं उठाती। और 2-4 नंबर ऐसे होंगे जिसे हाथ पाऊं जोड़कर निशांत ने किसी तरह अपनी गर्लफ्रेंड तो बनाया लेकिन रिश्ता ज्यादा देर टिक नहीं पाया।
"चटाक" की एक जोरदार थप्पड़… "कमिने हो पूरे तुम निशांत, मैं तो यहां तुमसे माफी मांगने आयी थी, लेकिन तुम डिजर्व नहीं करते।".... निशांत की एक्स गर्लफ्रेंड पहुंची थी और चित्रा को सुनकर उसे एक थप्पड़ चिपका दी।
चित्रा भी उसे एक जोरदार थप्पड़ लगाती… "हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी हाथ उठाने की। वो किस बात के लिए डिजर्व नहीं करता है। मैंने थोड़ा सा मज़ाक क्या कर लिया तुम तो मेरे भाई का कैरेक्टर ही तय करने लग गई.… डिजर्व नहीं करता। क्या करते दिख गया था वो तुम्हे। एक साल से ऊपर साथ रही थी, क्या देखा तुमने ऐसा बताओ हां। जबतक तुम्हारे साथ था, तुम्हारा होकर रहा। बता दो एक टाइम में 2 को मेंटेन कर रहा हो तो। और इससे आगे मैं नहीं बोलूंगी वरना जिस वक्त तुम खुद को निशांत की गर्लफ्रेंड बताती थी, तुम्हारे उस वक्त के किस्से हम सब को पता है। हर कोई अपनी लाइफ जीने के लिए स्वतंत्र है, तुम जियो लेकिन आइंदा मेरे भाई कंचरेक्टर उछाली ना। फिल्म देखकर आ रही है, सबके बीच थप्पड़ मारेगी.. चल भाग यहां से.…
पूरी भड़ास निकालने के बाद वापस से चित्रा के आवेश को जब निशांत और आर्यमणि ने देखा। दोनो उसका मुंह बंद करके दबोच लिए। कुछ देर बाद दोनो ने उसे जैसे ही छोड़ा... "पकड़ क्यों लिए, गलती हो गई केवल एक थप्पड़ लगाई। हिम्मत देखो, मैं बैठी थी और मेरे भाई को थप्पड़ मारेगी। आर्य पकड़ के ला उसको 2-4 थप्पड़ मारना है।
आर्यमणि, चित्रा को डांटते, "चुप... पानी पी"… चित्रा भी उसे घुरी। आर्यमणि टेबल पर पंजा मारते... "पीयो पानी और शांत"… चित्रा छोटा सा मुंह बनाती चुप चाप पानी पी और धीमे से "सॉरी" कह दी।
श्रावण:- नाइस स्पीच चित्रा, काफी खतरनाक हो। वैसे वो मोबाइल और कॉन्टैक्ट लिस्ट वाली बात तो रह ही गई। मुझे निशांत 500 कॉमन कॉन्टैक्ट के बारे में कुछ बता रहा था…
चित्रा:- कहने का उसका साफ मतलब है, किसी को भी कॉल लगा लगाकर बोलो, आर्य ने तुम्हारे साथ मजाक किया। सब यही कहेगा आर्य और मज़ाक, संभव नहीं। और जब ये कहोगे की मै उससे पहले बार मिला रहा था। तब वो सामने से कहेगा क्यों मज़ाक कर रहे हो भाई। इसलिए एक कोशिश तो पलक के साथ कर ही लो, क्या पता तुम्हारी किस्मत मे हो।
माधव:- हाहाहाहा… ई सही है, इसी तेवर के साथ जब चित्रा अपनी सास के साथ बात करेगी तो लोग कहेंगे, बहू टक्कर की आयी है।
छोटी मोटी नोक झोंक के बीच महफिल सजी रही। पलक उन सब से अलविदा लेकर अपने दोस्त श्रवण के साथ घूमने निकल गई। आज शाम आर्य वापस से सभी दोस्तो के साथ उसी जगह पर था। एक और हसीन शाम आगे बढ़ता हुआ। फिर से एक और हसीन रात दोस्तो के साथ, और ढलते रात के साथ फिर से आर्यमणि पलक के दरवाजे पर।
पलक आज रात जाग रही थी। जैसे ही आर्यमणि अंदर आया पलक मिन्नते करती हुई कहने लगी… "प्लीज, आज कुछ मत करना। हल्का-हल्का दर्द हो रहा है। ऊपर से चाल को सही तरह से मैनेज करने के कारण, कुछ ज्यादा ही तकलीफ हो गयि।"..
आर्यमणि हंसते हुए उसके खींचकर गले से लगाया और उसके होंठ चूमकर बिस्तर पर लेट गया। पलक भी उसके साथ लेट गयी। दोनो एक दूसरे को बाहों में लिए सुकून से सोते रहे।
अगले दिन फिर से कॉलेज की वहीं महफिल थी। कॉलेज खत्म करके पलक सीधा अपने फैमिली को ज्वाइन कर ली और शादी की शॉपिंग में व्यस्त हो गई। तीसरी शाम फिर से आर्यमणि की अपने दोस्तो के नाम और रात पलक के बाहों में। आज दर्द तो नहीं था लेकिन काम की थकावट से कुछ करने का मूड नहीं बना। लेकिन आर्यमणि भी अगली रात का निमंत्रण दे आया। सोने से पहले कहते हुए सोया, 2 रात तुम्हारी सुन ली।
अगली रात चढ़ते ही पलक के अरमान भी चढ़ने लगे। रह-रह कर पहली रात की झलक याद आती रही और उसे दीवाना बनाती रही। आज रात आर्य कुछ जल्दी पहुंचा। आते ही दोनो होंठ से होंठ लगाकर एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे। चुमते हुए आर्य ने अपना दोनो हाथ पीछे ले जाकर उसके पैंटी के अन्दर डाल दिया और उसके दोनो चूतड़ को हाथ से दबोच कर मालिश करने लगा।
दीवानगी का वही आलम था। काम पूरा चरम पर आज रात भी थोड़ी सी झिझक बाकी थी इसलिए उत्तेजना में हाथ लिंग को मुट्ठी में दबोचने का कर तो रहा था ,लेकिन झिझक के मारे छु नहीं पा रही थी।
नंगे बदन पर, खासकर उसके स्तन पर जब आर्य के मजबूत हाथ मेहसूस होते पलक की मस्ती अपनी ऊंचाइयों पर होती। आज भी लिंग का वहीं कसाव योनि में मेहसूस हो रहा था, किन्तु आज दर्द कम और मस्ती ज्यादा थी।
शुक्रवार का दिन था, पलक और आर्यमणि एक पंडित से मिले मिलकर सही मूहरत का पता किये। मूहरत पता करने के बाद आर्यमणि आज से ही काम शुरू करता। शायद एक छोटी सी बात आर्यमणि के दिमाग से रह गई। पूर्णिमा के दिन ही राजदीप और नम्रता की शादी नाशिक में थी। इस दिन पुरा नागपुर प्रहरी शादी मे होता और पूर्णिमा यानी वेयरवुल्फ के चरम कुरुरता की रात। कुछ लोगो की काफी लंबी प्लांनिंग थी उस रात को लेकर। जिसकी भनक किसी को नहीं थी। शायद स्वामी, प्रहरी समुदाय के दिल यानी नागपुर में उस रात कुछ तो इतना बड़ा करने वाला था कि नागपुर इकाई और यहां के बड़े-बड़े नाम का दबदबा मिट्टी मे मिल जाता।
शुक्रवार का दिन था, पलक और आर्यमणि एक पंडित से मिले मिलकर सही मूहरत का पता किये। मूहरत पता करने के बाद आर्यमणि आज से ही काम शुरू करता। शायद एक छोटी सी बात आर्यमणि के दिमाग से रह गई। पूर्णिमा के दिन ही राजदीप और नम्रता की शादी नाशिक में थी। इस दिन पुरा नागपुर प्रहरी शादी मे होता और पूर्णिमा यानी वेयरवुल्फ के चरम कुरुरता की रात। कुछ लोगो की काफी लंबी प्लांनिंग थी उस रात को लेकर। जिसकी भनक किसी को नहीं थी। शायद स्वामी, प्रहरी समुदाय के दिल यानी नागपुर में उस रात कुछ तो इतना बड़ा करने वाला था कि नागपुर इकाई और यहां के बड़े-बड़े नाम का दबदबा मिट्टी मे मिल जाता।
एक पुख्ता योजना जहां सुकेश भारद्वाज के घर से अनंत कीर्ति की पुस्तक को चुरा लेना था। जिसके लिए धीरेन स्वामी पूरे सुरक्षा व्यवस्था में सेंध मारने के पुख्ता इंतजाम कर चुका था। इस बात से बेखबर की संतराम और पुराने सुरक्षाकर्मी एक साथ क्यों और कहां छुट्टी पर चले गये। जब कुछ दिनों के लिये नए सुरक्षाकर्मी की बहाल हुई, तब वहां स्वामी के लोग ही बहाल हुये। स्वामी अनंत कीर्ति पुस्तक की चोरी के जरिये सीधा भारद्वाज परिवार पर निशाना साधने वाले था। चूंकि अनंत कीर्ति की पुस्तक जो की प्रहरी मुख्यालय में होनी चाहिए थी, उसे उज्जवल भारद्वाज और देवगिरी पाठक के कहने पर ही सुकेश भारद्वाज के पास रखा गया था। यदि एक बार सुकेश भारद्वाज के घर से वह पुस्तक चोरी हो गयि, फिर प्रहरी से भारद्वाज और उसके सहयोगी को न सिर्फ बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता था, बल्कि उन्हें महाराष्ट्र की सीमा से भी बाहर फेंक देते। बेचारा स्वामी, जिस पुस्तक के इर्द–गिर्द अपनी पूरी चाल चल रहा था, उसे तो यह भी नही पता था कि वर्तमान समय में वह पुस्तक कहां है और किसकी देख रेख में है।
दूसरी प्लांनिंग सीक्रेट बॉडी की थी, जब उन्हे पता चलता की पुस्तक खुल चुकी है। उसी के बाद आर्यमणि और उसके पैक को खत्म किया जाना था। बहरहाल जिनकी जो भी प्लांनिंग थी, वो कहीं ना कहीं आर्यमणि के प्लांनिंग वाली रात की ही थी। क्योंकि आर्यमणि ने भी उसी रात को चुना था जब नागपुर प्रहरी अपने शहर मे ना हो।
फिलहाल इन सब बातों से एक किनारे रखकर अभी तो अनंत कीर्ति की किताब पर काम चल रहा था। पंडित जी से मुहरत के बारे में पूछकर, पलक और आर्यमणि दोनो भूमि के घर पहुंचे। दिन का वक़्त था घर में नौकरों के सिवा कोई नहीं। पलक के दिल के सुकून के लिये आर्यमणि ने किताब निकाली और पलक को बाहर खड़े होकर देखने के लिये कह दिया। उसने किताब पर जैसा ही सौम्य स्पर्श किया, वह किताब चमकने लगी। किताब में जैसे ही चमक दिखी, आर्यमणि ने एक दिखावटी अनुष्ठान शुरू किया, जो पलक के दिल को सुकून दे रहा था।
अनुष्ठान खत्म करके आर्यमणि अपने कमरे में आया। पलक भी उसके पीछे कमरे में आयी और दरवाजा बंद करते… "कल रात दर्द ना के बराबर हुआ और मज़ा ऐसा की दिमाग से उतर नहीं रहा है। आर्य, एक बार और करते है ना।"..
आर्यमणि आंख मारकर पलक को अपने करीब खींचा.. पलक उसे एक छोटी सी किस्स देती हुई कहने लगी… "तुमने मुझे बिगाड़ दिया आर्य।"..
आर्य:- मुझे भी तुम्हारे साथ बिगड़ने में बहुत मज़ा आता है। वरना मुझे बिगाड़ने के लिए बहुत सी लड़कियां आयी और मेरी बेरुखी झेलकर चली गई।
"मै हूं ना मेरे साथ जितना बिगड़ना है बिगड़ लिया करो।" कहती हुई पलक ने होंठ से होंठ लगा दिये। इस बार पलक अपने दहकते अरमान के साथ आर्यमणि के पैंट का बटन खोलकर अपने हाथ उसके अंडरवियर के अंदर डाल दी। सेमी इरेक्ट लिंग को वो अपनी मुट्ठी में पकड़ कर भींच रही थी और तेज चलती श्वांस के साथ आर्य का हाथ अपने स्तन और योनि में एक साथ मेहसूस कर रही थी।
अदभुद क्षण थें। लिंग की गर्मी को हाथ पर मेहसूस करना और मुट्ठी में भर कर खेलने का एहसास ही कुछ अलग था। आज आर्य और भी बिजली गिराते, कपड़े निकालकर उसे सीधा लिटाया और होंठ से उसके बदन को चूमते हुये, जैसे ही होंठ उसके योनि पर डाला, पलक बेचैनी से पागल हो गयि। पूरा मज़ा आज तो दिन के उजाले में था। ऐसा लग रहा था कि वो आर्य को छोड़े ही नहीं। दोनो जब कपड़े पहन कर वापस से तैयार हुये, पलक आर्यमणि के होंठ चूमती… "आज दिन बाना दिया।"..
आर्यमणि:- अभी रात बाकी है।
पलक:- नहीं रात में मत आना। दीदी मेरे साथ होगी। शादी की रस्में शुरू हो गयि है, हम दिन में मज़े करेंगे ना।
आर्यमणि:- मेरा तो अभी एक बार और मन हो रहा है।
पलक, एक हाथ मारते… "सब मेरी ही ढील का नतीजा है। अच्छा सुनो, कल से लेकर शादी तक कॉलेज ऑफ रखना। अब दोस्तो के साथ टिले पर जाकर बहुत बियर पी ली। सब बंद। शादी तक मेरी हेल्प करोगे। और ये तुम्हारी रानी का हुक्म है।
आर्यमणि:- अब रानी का हुक्म कैसे टाल सकतें है। चलिए…
शनिवार की सुबह… आर्यमणि ठीक से उठा भी नहीं था कि सुबह-सुबह पलक का कॉल आ गया।…. "माझा हीरो कसा आहे।"..
आर्यमणि:- जम्हाई और अंगड़ाई ले रहा हूं।
पलक:- वाशरूम जाओ और सीधा नहाकर ही निकालना, मै थोड़ी देर में तुम्हे पिकअप करने आ रही हूं। तैयार हो जाओ मेरी मॉर्निंग बनाने के लिए।
आर्यमणि:- जैसी आपकी इक्छा।
आर्यमणि फटा फटी तैयार होकर घर के दरवाजे पर इंतजार करने लगा। कार रुकी दोनो अंदर और पलक कार ड्राइव करने लगी।.... "सुबह-सुबह पोर्न देखकर आ रही हो क्या?"..
पलक:- तुम्हारे जिस्म को याद करते ही पूरे होश खो देती हूं, मुझे क्यूं पोर्न की जरूरत पड़ने लगी...
कार और भी रफ्तार से बढ़ी और कुछ दूर आगे जाने के बाद एक वीराने से जंगल में रुकी। कार का दरवाजा सेंट्रल लॉक। उजले सीसे पर काला सीसा चढ़ गया। सीट पीछे की ओर थोड़ा खिसकर नीचे झुका। इधर पलक अपने पाऊं से पैंटी निकालने लगी और आर्य अपने जीन्स को घुटने में नीचे करके नंगा हो गया।
आर्य ने कंधे से स्ट्रिप को खिसकाकर ड्रेस को पेट पर जाने दिया। ब्रा के कप को ऊपर करके दोनो स्तन जैसे ही हाथ में लिया… "साइज कुछ बढ़ गए है क्या".. "उफ्फ बातें तो रास्ते भर पूछ लेना, मज़ा मत खराब करो आर्य।".. पलक सीट के पीछे टिककर अपने दोनो पाऊं पूरा फैलाकर, आर्यमणि को अपने ऊपर लेकर उसके होंठ को चूसने लगी...
कुछ देर होटों का रसपान करने के बाद आर्यमणि स्तनों को अपने मुंह से लगाते उसके निप्पल को चूसने लगा और पलक अपने हाथ नीचे ले जाकर उसके लिंग पर हाथ फेरने लगी। पलक, आर्यमणि का शर्ट खींचकर उसका चेहरा अपने चेहरे के ठीक ऊपर लाकर, अपने उंगलियों पर जीभ फेर दी। अपनी गीली उंगली योनि से रगड़ती, लिंग को पकड़कर अपने योनि के ऊपर घिसने लगी।
आर्यमणि, पलक की आखों में देखते हुए, लंबा धक्का मारकर अपना पूरा लिंग एक बार में, योनि में घुसा दिया... "आह्हहहहह, ऊम्ममममम, उफ्फफफफफफफ अद्भुत सुबहहहहहहहहहहहह"… पलक अपने होटों को दातों तले दबाकर, अपने बड़े नाखून वाले हाथ आर्य के चूतड़ पर रखी और पूरी नाखून उसके चूतड़ में घुसाकर आर्यमणि के कमर का सपोर्ट लेती नीचे से अपनी कमर को ऊपर उछालती, लंबे और कड़ारे धक्कों का मज़ा लेने लगी। आर्यमणि की कमर नीचे धक्का लगा रही होती। पलक कमर ऊपर उछाल रही होती और दोनो खुलकर... "उफ्फफफफफफ.. आह्हहहहहहहह"
कुछ ही देर में दोनो चरम पर थे और आर्यमणि योनि में अपना सारा द्रव्य गिराकर, पास वाली सीट बैठकर हाफने लगा। पलक टिश्यू पेपर से साफ करती हुई कहने लगी… "आर्य, कंडोम इस्तमाल किया करो ना। ये क्या चिपचिप अंत में छोड़ जाते हो। स्वीपर बाना दिया है।"..
आर्य अपने कपड़े ठीक करते… "सॉरी"..
पलक:- अब मुझसे भी ऐसे ही रिएक्शन दोगे। अच्छा जो मर्जी वो करना लेकिन मुझसे प्लीज ये 1-2 शब्दो वाले रिएक्शन नहीं दिया करो।
आर्य:- हम्मम ! समझ गया..
पलक:- ऑफ ओ ये हम और तुम वाली जो मुंह बंद करके साउंड देते हो, वो भी बंद करो मेरे साथ।
आर्यमणि, पलटा और उसके होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए उसकी पैंटी कमर तक लाने में मदद करने लगा। आर्यमणि चूमकर अलग बैठते… "अब हैप्पी ना"
पलक:- हां ऐसे कोई शिकायत नहीं रहेगी।
दोनो की गाड़ी फिर से चल परी, प्यार भरी बातों के साथ दोनो आगे बढ़ते रहें। 8 बजे तक गांव पहुंचकर वहां सभी लोगो को शादी में आने का आमंत्रण दी और फिर दोनो वहां से वापस निकल लिये।
दिन के करीब 2 बजे आर्यमणि शादी के काम से फुरसत होकर घर पहुंचा। सभी लोग खाकर अपने-अपने कमरे में आराम कर रहे थे। केवल हाल में माते जया थी, जो जबरदस्ती भूमि को अपने हाथ से खाना खिला रही थी।
वहीं पास में आर्यमणि भी बैठ गया।.… "मां मुझे भी खिलाओ।"… "तू मेरे पास बैठ मै तुझे खिलाती हूं।".. भूमि अपने पास बुलाती कहने लगी। नजारा ही कुछ ऐसा था कि सभी घर के लोग और नौकर देखने में लग गये। जया, भूमि को अपने हाथ से खिला रही थी और भूमि आर्यमणि को।
"क्यों रे आज कल बड़ा ससुरारी बन रहा है। हमे भी तरह-तरह के फंक्शन्स अटेंड करने है, मां को शॉपिंग करवाये ये ख्याल नहीं।"…. जया, आंख दिखाती हुई पूछने लगी। पीछे से भूमि की भाभी वैदेही भी साथ देती... "खाली मां को ही क्यों, मासी है, भाभी है। फिर वो दोनो मयंक और शैली उसपर तो इसका ध्यान ही नहीं रहता।"
आर्यमणि क्या कहता, शाम के वक्त शॉपिंग के लिये हामी भर दिया। शाम के वक़्त पूरी भारद्वाज फैमिली, अपने दूसरे भारद्वाज फैमिली के यहां फंक्शन अटेंड करने जा चुके थे। भूमि और जया, आर्यमणि को लेकर शॉपिंग के लिये निकली।…
भूमि:- आर्य पीछे एक बैग में छोटा सा हार्ड डिस्क और लैपी है। संभाल कर अपने पास रख लेना।"
आर्यमणि:- उसमे क्या है दीदी?
भूमि:- प्रहरी में रहकर मेरा करप्शन का तेरा हिस्सा...
आर्यमणि:- हाहाहाहा.. कितना है।
भूमि:- मेरा करप्शन या तेरा हिस्सा।
आर्यमणि:- दोनो।
भूमि:- सॉरी भाई मेरा धन कितना है वो बताना वसूल के खिलाफ है। तुझे मैंने 2 मिलियन यूएसडी दी हूं, जिसकी अकाउंट डिटेल हार्ड डिस्क मे है। ट्विंस के पास पहले से अलग-अलग अकाउंट है, जिसपर 1 मिलियन यूएसडी है। रूही के पास 1 करोड़ कैश पड़ा हुआ है। इसके अलावा तेरे डिमांड के सारे आइटम तेरे पैक के पास पहुंच गया है। बस तू अपना ख्याल रखना और यहां से जाने के बाद कॉन्टैक्ट में बिल्कुल भी मत रहना।
जया:- बिल्कुल बिंदास होकर जीना, जैसे हमने जीना शुरू किया है। क्योंकि उन्होंने हमे प्रहरी के नाम पर कितनी अच्छी और प्यारी बातें सीखा दी थी। जीना प्रहरी के लिये, मारना प्रहरी के लिये, किन्तु जब इनके करतूत देखे तो पता चला हम इनके लिये मरते रहे और ये उसके पीछे अपना काला मकसद साधते रहे। अगर सरदार खान नहीं भी मरता है तो भी वैल एंड गुड। लेकिन यदि तू उसे मारकर निकला तो समझ हम यहां अंदर ही अंदर नाच रहे होंगे।
तीनों बात कर ही रहे थे कि तभी आर्यमणि के मोबाइल पर संदेश आया और ठीक उसके बाद कॉल… आर्यमणि सबको चुप कराते फोन स्पीकर पर डाला… "हेल्लो, जी कौन"..
देवगिरी पाठक:- तुम्हारा फैन बोल रहा हूं, देवगिरी पाठक।
आर्यमणि:- नमस्ते भाऊ..
देवगिरी:- "खुश रहो…. सुनो मै इधर-उधर की कहानी में ज्यादा विश्वास नहीं रखता, इसलिए पहले सीधा काम की बात करता हूं। मै अपने धंधे का 40% हिस्सा तुम्हे दे रहा हूं, सिर्फ इस विश्वास पर की तुम उनके लिए एक मेहफूज और अच्छा ठिकाना बना पाओ, जो है तो इंसान (वेयरवोल्फ) लेकिन इंसानों के साथ नहीं रह सकते।"
"कंपनी की अकाउंट डिटेल और जरूरी जानकारी तुम्हे मेल करवा दिया है। कंपनी के किस-किस हिस्सेदार के पास कितना प्रोफिट जा रहा है, वो फिगर मिलता रहेगा। बाकी इसपर विस्तार से मै शादी में मिलकर बताऊंगा। रखता हूं अभी।"
फोन कट होते ही…. "चालाक भाऊ, इस बार फंस गया।".. भूमि अपनी प्रतिक्रिया दी।
जया:- मांझे..
भूमि:- मासी वेडा आहे, बब्बोला आज अडकला (पागल है वो मासी, बड़बोला आज फंस गया)
आर्यमणि:- थोड़ा क्लियर बताओ।
भूमि:- मेरे सारे पैसे बच गये रे, वरना मै सोच रही थी तू कब लौटेगा और मै आते ही तुझे बिजनेस में लगाकर कितनी जल्दी अपने पैसे वसूल लूं। लेकिन देख भाऊ को अपनी वाह–वाही की ज्यादा पड़ी है। आम मेंबर के बीच कहता सदस्य ना होने के बावजूद मैंने आर्यमणि को उसके अच्छे काम के लिए 40% हिस्सेदारी दिया। सिर्फ उसके प्रहरी जैसे काम की वजह से.. ..
आर्यमणि:- अब मेरे पास कितने पैसे आएंगे।
भूमि:- अंदाजन 270 मिलियन यूएसडी तेरा हिस्सा। जा बेटा अब तो पूरे एश है तेरे। तू पूरी डिटेल मुझे एक हार्ड डिस्क में दे जरा।
आर्यमणि:- मेल फॉरवर्ड ही करता हूं ना।
भूमि:- भूलकर भी नहीं। पैसे की चोरी जब करने जाओ तो कोई ऑनलाइन बात चित नहीं। अच्छा हां और एक बात। तेरे आर्म्स एंड अम्युनेशन वाली फैक्टरी मै निशांत, चित्रा और माधव के हवाले करूंगी। इस बार इस साले स्वामी को भी आड़े हाथ लेना है। भूमि इमोशनल फूल नहीं है, स्वामी ये तुम भी समझ लो..
आर्यमणि:- तो मुझे क्या करना होगा दीदी...
भूमि:- एक सहमति पत्र और एक अधिग्रहण पत्र, उसके अलावा कुछ ब्लैंक स्टाम्प पेपर पर सिग्नेचर, इतना ही.. एक ही वक्त मे चारो ओर से मारेंगे इन कुत्तों को। ऐसा हाल करूंगी की नागपुर में प्रहरी और शिकारी घुसने से पहले 1000 बार सोचेंगे...
आर्यमणि:– और ये स्वामी कौन है...
भूमि:– एक धूर्त, जिसके प्यार में अंधी होकर पिछले बार इसके धोखे को नही पहचान पायि। खुद को बहुत शातिर समझता है। आर्म्स एंड एम्यूनेशन कम्पनी वाला झोल इस बार स्वामी को भीख मांगने पर मजबूर करवायेगा ..
आर्यमणि:– फिर तो इस काम को सबसे पहले करना है...
शादी में सिर्फ एक हफ्ता रह गये थे और इधर जोर शोर से काम चल रहा था। पलक शादी के साथ-साथ अपने जीवन के नए रोमांच में भी काफी व्यस्त थी और सब चीजों का लुफ्त बड़े मज़े से उठा रही थी। घर परिवार और पलक से फ्री होने के बाद आर्यमणि शाम के करीब 5 बजे अपने पैक के पास पहुंचा।…चारो आराम से बैठकर टीवी पर मूवी देख रहे थे।
आर्यमणि:- क्या चल रहा है यहां…
रूही:- बोर हो गए तो सोचे टीवी देख ले।
आर्यमणि:- ट्विंस यहां मेरे पास आ जाओ।
अलबेली:- भईया जल्दी इन्हे पैक में सामिल करो…
आर्यमणि रूही के ओर देखने लगा। रूही अलबेली से… "अलबेली तू इधर आ जा".
"आई ने तुम्हे हमारा नाम नहीं बताया क्या।"… दोनो एक साथ पुछने लगे।
आर्यमणि:- जी बताया है, खूबसूरत और प्यारी सी दिखने वाली लड़की है ओजल, और उसका खूबसूरत और ईश्वरीय बालक का नाम है इवान। सो तुम दोनो लगभग 2 महीनो से यहां हो। कैसा लगा हम सब के साथ रहकर।
ओजल:- कुछ मजबूरी थी जो आई हमे बाहर नहीं निकाल सकती थी, खुलकर जीना किसे पसंद नहीं।
इवान:- मुझे भी अच्छा लगा। आई अक्सर कहा करती थी, तेरे आर्य भईया आये है और उसके काम को देखकर ऐसा लगता है कि तुम्हे वो ज़िन्दगी मिलेगी जो तुम्हारा सपना है।
आर्यमणि, दोनो के सर पर हाथ फेरते…. "एक वुल्फ का पैक ही उसका परिवार होता है। बदकिस्मत वुल्फ होते है वो, जिनके पैक टूट जाते है और लोग अलग हो जाते है। क्या तुम हमारे साथ पैक में रहना पसंद करोगे।
दोनो भाई बहन एक साथ… "जी बिल्कुल"..
थोड़ी ही देर में रश्म शुरू हुई। पहले इवान को प्रक्रिया बताई गई और ओजल को देखने कहा गया। इवान भी रूही और अलबेली की तरह ही अपने अंदर कुछ मेहसूस कर रहा था और अपने हाथ को ऊपर से लेकर नीचे तक देख रहा था। उसके बाद बारी आयी ओजल की। उसने भी पूरी प्रक्रिया करके पैक में सामिल हो गयि। चूंकि रूही, अलबेली और आर्य को सभी लोग जानते थे इसलिए हवा में फूल को उड़ेलने वाला तकरीबन 1000 ड्रोन खरीदने की जिम्मेदारी ओजल और इवान पर सौंप दी गयि। आगे की तैयारी के लिए रूही को योग्य दिशा निर्देश मिले। रूही समझ गयि और तय समय तक तैयारी कि जिम्मेदारी ले ली।
मंगलवार की सुबह थी। सुबह-सुबह ही राजदीप का फोन आर्यमणि के मोबाइल पर बजने लगा। आर्यमणि फोन पिकअप करते… "सुबह-सुबह मेरी याद कैसे आ गयि भईया। आपको तो अभी किसी और के साथ व्यस्त होना था।"..
राजदीप:- बाकी सबसे तो बात होते रहेगी, लेकिन मै तुम्हे मेरी शादी के लिये खास आमन्त्रित करता हूं। बारात में रंग तुम्हे ही जमाना है।
आर्यमणि:- इसके लिये पहले ही पलक वार्निग दे चुकी है भईया। बोली मेरे राजदीप दादा और दीदी के लगन में तुमने रंग ना जमाया तो हम कोर्ट मैरिज करेंगे, भुल जाना कोई धूम–धाम वाली शादी होगी।
राजदीप:- हाहाहाहा… ज्यादा बातें नहीं करती वो मुझसे लेकिन बहुत चाहती है मुझे। अच्छा मेरा एक छोटा सा काम करोगे।
आर्यमणि:- कहिए ना भईया।
राजदीप:- पलक से साथ मुंबई चले जाओ वहां पर सबके डिज़ाइनर कपड़े बने हुए है उसे लेकर आना है।
आर्यमणि:- एक काम कीजिये आप डिटेल सेंड कर दीजिए मै वहां चला जाता हूं। घर में अभी बहुत से काम होंगे, पलक का वहां होना जरूरी है।
राजदीप:- वो बात नहीं है, दरसअल पलक तुम्हारे लिये वहां से कुछ अपनी पसंद का खरीदना चाहती है। वो तुमसे थोड़ी झिझक रही है बात करने में, और यहां मुंह फुलाए बैठी है, कि सबके लिए आया आर्य के लिए क्यों नहीं?
आर्यमणि:- बच्चो जैसी जिद है। मुझे अच्छा नहीं लगेगा यूं ऐसे अभी कुछ लेना। सॉरी भईया मै वो कपड़े तो ले आऊंगा लेकिन अपने लिये कुछ लेना, मेरा दिल गवारा नहीं कर रहा।
"फोन स्पीकर पर ही है, और तू अपने दिल, जिगर, गुर्दे, कलेजे को अंदर डाल। ये मै कह रही हूं। जैसा राजदीप ने कहा है वो कर। कुछ कहना है क्या तुम्हे इसपर?"…… "नहीं कुछ नहीं आंटी। मैं जाता हूं।"
अक्षरा:- जाता हूं नहीं। यहां आ पलक को ले, और फिर दोनो एयरपोर्ट जाओ। आज तुम दोनों का काम सिर्फ मुंबई घूमना और कपड़े लेना है। आराम से शाम तक शॉपिंग करके सीधा नाशिक पहुंचना। और सुन.. नहीं छोड़ तू यहीं आ फिर बात करती हूं।
कुछ वक़्त बाद आर्यमणि, पलक के घर पर था। दोनो के मुंबई निकलने से पहले अक्षरा, पलक को शख्त हिदायत देकर भेजी, आर्य के पास कम से कम गले और हाथ में पहनने के लिए डायमंड और प्लैटिनम की ज्वेलरी तो होनी ही चाहिए। आर्यमणि गुस्से में चिढ़ते हुए कहता भी निकला..… "बप्पी लहरी ही बना दो।"…. (माफ कीजिएगा यह तब का लिखा था जब बप्पी दा इस दुनिया में थे। उनको भावनापूर्ण श्रद्धांजलि। ॐ शांति !!) उसकी बात सुनकर सब हंसने लगे। जैसे ही कार में बैठकर दोनो कुछ दूर आगे निकले, अपनी सुबह को दुरुस्त करते एक दूसरे के होंठ को बड़ी बेकरारी में चूमे और एयरपोर्ट के लिये निकल गये।
तकरीबन 8.30 बजे सुबह दोनो मुंबई एयरपोर्ट पर थे जहां उनके लिये पहले से एक कार पार्क थी। देवगिरी की वो भेजी कार थी, दोनो उसमे सवार होकर पहले तो देवगिरी के घर पहुंचे जहां बहुत सी बातों पर चर्चा हुई। खासकर देवगिरी के अकूत संपत्ति में से 40% हिस्से को लेकर। दोनो फिर देवगिरी के ड्राइवर के साथ पहले एक बड़े से ज्वेलरी शॉप में गये, जहां पलक ने अपनी पसंद के 2 प्लैटिनम ब्रेसलेट और एक गले का हार खरीदी।
वहां से दोनो पहुंचे फैशन स्टोर। मुंबई की एक महंगी जगह जहां सेलेब्रिटी अपने कपड़ों के लिए आया करते थे। यूं तो ये शॉप 12 बजे खुलती थी, लेकिन देवगिरी का एक कॉल ही काफी था शॉप को 11.30 बजे ओपन करवाने के लिये। पलक ने अपने लिए 4-5 ड्रेस सेलेक्ट की और आर्यमणि के लिये भी उतने ही। दोनो अपने अपने कपड़े लेकर आखरी के ट्रायल रूम के ओर बढ़ रहे थे।
जैसे ही पलक ट्रायल रूम में घुसी, आर्य तेजी के साथ उसी ट्रायल रूम में घुसा और पलक को झटके से दीवार से चिपकाकर उसके गर्दन पर अपने होंठ लगाकर चूमने लगा। पलक भी आर्य के बदन को स्मूच करती उसके चेहरे को ऊपर लेकर आयि और होंठ से होंठ लगाकर किस्स करने लगे।
पलक मिडी ड्रेस पहनकर निकली थी। कूल और स्टाइलिश सिंगल ड्रेस जो नीचे घुटनों तक आती थी। आर्यमणि अपने हाथ नीचे ले जाकर, घुटनों तक लंबे ड्रेस को कमर के ऊपर चढ़ा दिया और पैंटी को किनारे करके योनि के साथ खेलने लगा.….. "आह्हहहहहहह, उफ्फफफ, आह्हहहहहहहह"
पलक पूरा मुंह खोलकर मादक सिसकारियां लेने लगी। आर्यमणि भी उसकी उत्तेजना बढाते, गर्दन पर लव बाइट देते, अपनी उंगली योनि के अंदर डालकर पलक के बदन में भूचाल मचा रहा था। पलक उत्तेजना मे पूरा मुंह खोलकर मादक सिसकारी लेती हुई, अपने हाथ नीचे ले जाकर आर्यमणि के पैंट का जीप खोल दी। लिंग को बाहर निकालकर अपने हाथ से उसे आगे-पीछे करके पूरा तैयार करती, अपने योनि के ऊपर घिसने लगी।
पलक ये उत्तेजना संभाल नहीं पायि और अपने दोनो पाऊं आर्यमणि के कमर मे डालकर उसके गोद में चढ़ गई। आर्यमणि अपनें बांह में उसका पूरा बदन जकर कर अपने ऊपर लिटा दिया और होंठ को पूरे मदहोशी से चूसने लगा। पलक भी उतनी ही मदहोश। अपने हाथ नीचे ले जाकर लिंग के सुपाड़े को अपने योनि के अंदर घुसाई और कमर को हल्का नीचे के ओर धक्का दी... "आह्हहहह.. आह्हहह ……. आह्हहहहहहह.. आर्य.. आह्हह.. और तेज… हां.. हिहिहिही... हां.. हां.. उफ्फफफ.. मज़ा आ गया आर्य.. ईशशशशशश.. धीमे नहीं आर्य.. पूरे जोश से.. यसससस... आह्हहहह"….
उफ्फ क्या मादक एहसास था। दोनो एक दूसरे के होंठ चूमते लगातार धक्के लगा रहे थे। बिल्कुल रोमांचित करने वाला एहसास था। थोड़ी देर में दोनो फारिग होकर श्वांस सामान्य करने लगे। सामान्य होकर दोनो की नजर एक दूसरे पर गयि और दोनो एक दूसरे को देखकर हसने लगे। पलक ने आर्यमणि का चेहरा अपने दोनो हाथ में थामकर उसे पूरा चूमा… "आर्य अब फुर्ती दिखाओ।"..
आर्यमणि अपने ट्रॉयल करने वाले कपड़े समेटकर गेट को हल्का खोला। नजर पहले दाएं, फिर बाएं और किसी को इस ओर आते ना देखकर वो सटाक से दूसरे ट्रायल रूम में पहुंच गया। दोनो अपने लिये वहां से 2 ड्रेस सेलेक्ट किये। पलक ने अपनी पसंद की एक शानदार टैक्सिडो जबरदस्ती आर्यमणि से लड़कर, आर्यमणि के लिए खरीदी, जो दिखने में वाकई कमाल का था। नए लिये ड्रेस का फीटिंग माप लेकर, ड्रेस डिजाइनर ने फिटिंग के लिए 2 घंटे का वक्त लिया। पलक वहां से आर्यमणि को लेकर एसेसरीज खरीदने निकली। मैचिंग फुट वेयर इयर रिंग इत्यादि।
तकरीब 4 बजे शाम तक दोनो पूरे शॉपिंग से फ्री हुए और रात के 8 बजे नाशिक के उस रिजॉर्ट में पहुंच चुके थे, जहां शादी से 5 दिन पहले सारे करीबी अतिथि के साथ, शादी वाले परिवार पहले से पहुंचे हुये थे। रंगारंग कार्यक्रम के बीच एक-एक दिन करके आखिर वो दिन भी आ ही गया जब जया और भूमि के कहे अनुसार आर्यमणि अपनी जिंदगी जीने निकलता।
कुल मिलाकर एक उत्कृष्ठ फैसला जहां पहले के कई महीने आर्यमणि के लिए काफी मुश्किल भरा गुजरा था। वो चीजों को जितना जल्दी हल करने की कोशिश कर रहा था, चीजें उतनी ही उलझती चली जा रही थी। वहीं जबसे मां और भूमि दीदी ने उम्मीद से भरा रास्ता दिखाया था, सब कुछ जैसे आसान सा हो गया था। आर्यमणि के मन में ना तो अब किसी भी प्रकार के सवाल को लेकर चिंता थी। और ना ही प्रहरी कौन है और कैसा समुदाय उसकी चिंता। उसे बस एक छोटा सा काम शौपा गया था, सरदार खान की हस्ती को खत्म करके यदि उससे कोई जानकारी निकले तो ठीक, वरना जिंदगी जीने और खुलकर जीने के लिये इन सब से कहीं दूर निकल जाये।
भविष्य क्या रंग लाती वो तो आने वाले वक़्त का सस्पेंस था, जिसे आज तक कोई भविष्य वक्ता भी ढंग से समझ नहीं पाये थे। फिर क्या इंसान और क्या सुपरनेचुरल आने वाले वक़्त में किसी काम को सुनिश्चित कर पाते। हां वो केवल वर्तमान समय में आने वाले वक़्त के लिए योजना बनाकर, भविष्य में किसी कार्य को संपन्न करने कि सोच सकते थे और वो कर रहे थे।
धीरेन स्वामी जो प्रहरी में ताकत की लालच से आया था, वो बहुत सी बातों से अनभिज्ञ अपनी पूर्ण योजना में लगभग सफल हो चुका था। जहां एक ओर उसने अतीत में हुये अपने साथ धोके का बदला ले लिया था, और 22 में से 20 मेंबर के खिलाफ उसने पूरे सबूत जुटा लिये थे। उन्हे पूर्ण रूप से बहिष्कार तथा महाराष्ट्र से बाहर निकालने की तैयारी चल रही थी। वहीं दूसरी ओर आज रात भारद्वाज के घर चोरी के बाद, वह भारद्वाज को भी बाहर का रास्ता दिखाने वाला था।
वहीं दूसरे ओर सरदार खान अपने लगभग 180 कूरूर समर्थक और 6 अल्फा के साथ पूर्ण चांद निकलने का इंतजार कर रहा था। इस बार वह भी आर्यमणि की ताकत को खुद से कहीं ज्यादा आंककर तैयारी कर रहा था, इस बात से अनजान की उसके मालिकों (प्रहरी सीक्रेट बॉडी) ने अभी उसकी किस्मत लिख डाली थी बस फने खान को उसके अंजाम तक पहुंचाना था।
इस शादी में प्रहरी के सिक्रेट बॉडी के सभी लोग मौजूद थे जिनके बारे में बहुत कम ही लोगों को पता था। हर सीक्रेट बॉडी प्रहरी अपने कुछ करीबी प्रहरी को भी साथ रखते थे, ताकि उनका मकसद पूरा होते रहे, बिना किसी परेशानी के। शाम ढलते ही चांद दिख जाता। पूर्णिमा की देर रात सबसे पहली लाश रूही और उसके बाद अलबेली की गिड़नी थी। अलबेली के बाद उन 20 शिकारी का नंबर आता, जिसे भूमि ने सरदार खान और उसकी बस्ती पर, 20 अलग-अलग पोजीशन से नजर रखने बोली थी। इन प्रहरी का शिकार करने के बाद चिन्हित किये 200 आम लोग को 50 अलग-अलग सोसायटी में हैवानियत के साथ मारा जाता। पुलिस और प्रशासन को भरमाने के लिए इन सारी घटनाओं को अलग-अलग इलाकों में जंगली जानवर का प्रकोप दिखाया जाता। इसके लिए दूर जंगल से जंगली कुत्ते लाये गये थे और उन्हें इंसान के मांस का भक्षण करवाया जा रहा था।
इंसानी मांस एक एडिक्ट मांस होता है। यदि किसी मांसाहारी को इंसानी मांस और उसका खून मुंह में लग जाए, फिर वो कई दिनों तक भूखा रह लेगा, लेकिन खायेगा इंसानी मांस ही। इसका बेहतरीन उधारहण शेर है, जिसे एक बार इंसानी मांस और खून की लत लग जाए फिर वो कुछ और खाता ही नहीं। एक पूर्ण कैलकुलेट योजना जिसके अंजाम देने के बाद सरदार खान अपने कुछ साथियों के साथ गायब हो जाता। जैसा की सरदार खान को सीक्रेट बॉडी द्वारा करने कहा गया था। वहीं दूसरी ओर सीक्रेट बॉडी की आंतरिक योजना कुछ और ही थी। पूरे एक्शन के बाद सरदार खान और उसके साथियों को किले में मार देना, जिसके लिये उन्होंने फने खान को तैयार किया था। उसके बाद जब प्रहरी समुदाय सरदार खान पर एक्शन लेती तब सरदार खान को उसके साथियों समेत किले में मारने का श्रेय पलक को जाता। प्रहरी के इस एक्शन से पलक रातों रात वह ऊंचाई हासिल कर लेती जिसके लिए भूमि को न जाने कितने वर्ष लग गये।
ये सभी योजना सीक्रेट बॉडी द्वारा बनाई गयि थी, जिसके मुख्य सदस्यों में उज्जवल और सुकेश भारद्वाज थे, जो शायद सीक्रेट बॉडी के मुखिया भी थे। इनके ऊपर तो भूमि और जया को काफी सालों पहले शक हो चुका था, लेकिन दोनो में से कोई भी यह पता करने में असफल रही की आखिर ये सीक्रेट बॉडी प्रहरी इंसान ही है या कुछ और? नागपुर की घटना को अंजाम देने के बाद प्रहरी की सिक्रेट बॉडी कितने तरह के फैसले लेता, वो भी तय हो चुका था।…
1) नागपुर नरसंहार में सरदार खान का नाम बाहर आने के बाद उसे खत्म कर दिया जाना था। इसके लिये उसके बेटे और करीबी माना जाने वाले फने खान को तैयार किया गया था।
सरदार खान जब अपनी टीम के साथ भागने के लिये वापस किला आता, तो उसे एक पार्टी मे उलझाया जाता। जहां उस एक वेटनरी डॉक्टर द्वारा नया तैयार किया गया कैनिन मॉडिफाइड वायरस खाने में मिलाकर खिला दिया जाता। कैनिन वायरस कुत्तों में पाया जाना वाला एक वायरस होता है, जिसके मॉडिफाइड फॉर्म को एक वुल्फ पर ट्राय किया गया। परिणाम यह हुआ कि नाक और मुंह से काला खून निकलता। वो अपना शेप शिफ्ट नहीं कर पाता। सरदार खान को खाने में वही वायरस खिलाकर उसके इंसानी शरीर को फने खान अपने हाथो से फाड़कर, सरदार खान और उसके साथियों को लापता घोषित कर देता।
2) रात में नाशिक से लौटा हुआ आर्यमणि सीधा किताब के पास जाता इसलिए उसके किताब खुलने से पढ़ने तक आर्यमणि पर कड़ी नजर रखी जानी थी। फिर वो गार्ड जैसे ही संदेश भेजते की यहां हम सब भी किताब पढ़ सकते है। ये सूचना मिलते ही आर्यमणि के पास एक खबर पहुंचती जिसमे रूही और अलबेली सरदार खान के किले मे फंसी हुई नजर आती। गुस्से में बस आर्यमणि को किले में पहुंचना था फिर उसके जोश को दर्द भरी सिसकी में तब्दील करने कि पूरी व्यवस्था सरदार खान कर चुका था। जिसका पहला चरण भूमि के घर से देखने मिलता।
गुस्से में इंसान का दिमाग काम नहीं करता और इसी बात का फायदा उठाकर मंजे हुए स्निपर पहले आर्यमणि को ट्राकुलाइज से इतनी बेहोसी की दावा देते जिस से वह केवल गुस्से में सरदार खान के किले में केवल घुस पता। बाकी आगे की कहानी लिखने के लिए सरदार खान वहां इंतजार कर ही रहा था। कोई चूक न हो इसलिए भूमि के घर से लेकर सरदार खान के किले तक जगह–जगह पर 50 स्निपर को तैनात किया जाना था। आर्यमणि को कार से बाहर लाने और उसे एक स्थान पर रोकने के लिए रास्ते में 500 लोग अलग–अलग जगहों पर योजनाबद्ध तरीके से रखे गये थे। कहीं को बच्चा अचानक से गाड़ी के सामने आता तो कहीं रास्ते में पियक्कड़ झगड़ा करते हुये कार को रोकते।
3) एक सोची समझी योजना जिसमे अभी–अभी रिटायर हुई भूमि को पद छोड़ने से पहले जिम्मेदार लोगो की बहाल ना कर पाने के जुर्म में उसे और उसके तमाम बचे प्रहरी को 10 साल की सजा सुनाई जाती, और उन्हे महाराष्ट्र से निकाल दिया जाता।
4) अन्य इलाके जहां बीस्ट अल्फा है, जैसे की मुंबई, कोल्हापुर, पुणे, नाशिक इत्यादि जगह। वहां पूर्णिमा के रात ही इनकी चल रही पार्टी के दौरान बीस्ट अल्फा को मॉडिफाइड कानिन वायरस सेवन करवाया जाता और उसकी शक्ति को किसी और में स्थानांतरित किया जाता। जब प्रहरी वहां पहुंचते तब पता चलता सरदार खान की तरह यहां के बीस्ट अल्फा भी मारे गये है। जिसे प्रहरी का वन नाइट स्पेशल प्रोग्राम घोषित कर दिया जाता जहां सभी बीस्ट अल्फा को समाप्त कर प्रहरी नए सदस्यों के सामने अपनी नई छवि स्थापित करती।
5) जिसे बिलकुल भी नहीं जिंदा छोड़ा जा सकता था, आर्यमणि, उसके लिये विशेष शिकारियों का भी इंतजाम किया गया था। थर्ड लाइन सुपीरियर सीक्रेट शिकारी, सीक्रेट बॉडी के द्वारा तैयार किया हुआ खतरनाक शिकारियों का समूह।
एक बात तो इस योजना से साफ थी। सीक्रेट प्रहरी बॉडी जान बूझकर अच्छा और बुरा खेमा बनाये रखते थे, जहां प्रहरी सदस्य आपसे में भिड़ते रहे और एक दूसरे के खिलाफ साजिश रचते रहे। जिसे प्रहरी सीक्रेट बॉडी को कोई मतलब नहीं था। बस मकसद सिर्फ उन्हे आपस में उलझाए रखना था, ताकि कोई भी इनके ओर ध्यान न दे।
मनिक्योर, पडिक्योर, स्पा, पार्लर, वैक्सिंग… पूरे रिजॉर्ट में तकरीबन 100 ब्यूटीशियन पहुंची थी, 200 लोगो को सुबह से तैयार करने। शादी की रशमें शाम को 5 बजे से शुरू हो जाती और 8 से 11 के बीच की शुभ मुहरत पर विवाह और 2 शानदार स्वीट में दोनो नए जोड़ों के सुहागरात कि पूरी व्यवस्था थी।
शादी मे पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा था, और यहां कोई अभिभावक खर्च नहीं कर रहे थे बल्कि रिजॉर्ट के खर्च से लेकर अतिथि का पूरा खर्च हर बार की तरह प्रहरी समुदाय ही उठा रहा था। देश के टॉप बिजनेस मैन, पॉलिटीशियन और कई उच्च आयुक्त के अलावा बहुत सारे सेलेब्रिटी शिरकत करने वाले थे। हर कोई सब कुछ भूलकर सजने संवरने में व्यस्त थे। वहीं आर्यमणि और निशांत रिजॉर्ट से थोड़ी दूर जंगली इलाके में पैदल पैदल चल रहे थे।..
आर्यमणि:- शादी काफी शानदार हो रही है ना।
निशांत:- आर्य जो बात बताने लाया है वो बात बता ना। मै तुझे समझ ना सकूं ऐसा हो सकता है क्या।
"तू क्या अकेला समझता है इसे। मै तो जानती ही नहीं।"… पीछे से चित्रा दौड़कर आयी और दोनो कंधे से लटकती हुई कहने लगी।
आर्यमणि:- चलकर बैठते है कहीं।
तीनों कुछ देर तक ख़ामोश बैठे रहे। फिर आर्यमणि चुप्पी तोड़ते हुए कहने लगा… "मैंने कुछ सालों के लिए गायब होने वाला हूं।"
निशांत को तो इस बात का पूरा अंदेशा था। यहां तक कि निशांत खुद भी अब काफी व्यस्त होने वाला था। पोर्टल के जरिए वह हर रात अलग–अलग जगहों पर होता और अब तो कुछ महीने ध्यान के लिये उसे हिमालय के किसी चोटी पर बिताना था। किंतु चित्रा को किसी भी बात की भनक नहीं थी। वह तो आम सी एक लड़की थी जिसकी अपनी ही एक छोटी सी दुनिया थी। जिसमे प्रहरी नाम या उसके काम ठीक वैसे ही थे जैसे अफ्रीकन देश में किसी एनजीओ के नाम या उसके काम होते है।
आर्यमणि की बात सुनकर चित्रा चौंकती हुई…. "क्या बकवास है ये।"
आर्यमणि:- शायद पिछली बार की गलती नहीं दोहराना चाहता इसलिए कुछ लोगो को बताकर जाना चाहता हूं। देखो मै जनता हूं जबसे लौटा हूं बहुत कुछ तुम दोनो से छिपा रहा हूं, लेकिन विश्वास मानो, उन चीजों से दूर रहना ही तुम दोनो के लिए सेफ है।
चित्रा, आर्यमणि के कंधे पर हाथ मारती… "पागल आज फिर रुला दिया ना।"..
निशांत अपनी बहन चित्रा का सर अपने कंधे से टिकाकर उसके आशु पूछते… "चुप हो जाओ चित्रा उसकी सुन तो लो।"..
आर्यमणि:- मै यहां रहा तो मुझे मार दिया जायेगा इसलिए मुझे चुपके से निकाला जा रहा है।
एक और आश्चर्य की बात जिसपर फिर से चित्रा चौंक गयि, और निशांत चौंकने का अभिनय करने लगा… दोनो सवालिया नज़रों से आर्यमणि को देख रहे थे। आर्यमणि अपनी बात आगे बढ़ाते हुये… "कॉलेज में तुम दोनो से दूर रहना मेरे सीने को जलाता था, लेकिन तुम्हे क्या लगता है कॉलेज में मात्र रैगिंग हो रही थी। मुझ पर तबतक कोशिश की जाती रहेगी जब तक मै मर नहीं जाता। मुझे फसाने के लिए वो मेरे अपनों में से किसी को भी मार सकते है। किसी ने तुम दोनों पर या मेरे मम्मी–पापा पर हमला करके उन्हें मार दिया तो मै उसी दिन अपना गला रेत लूंगा।"
चित्रा:- बस कर अब और मत रुला। मै समझ गयि। हमारे लिए तू जरूरी है। बस कहीं भी रहना अपनी खबर देते रहना।
आर्यमणि:- नहीं, कॉन्टैक्ट मे भी नहीं रहूंगा। मेरे लौटने का इंतजार करना, और तुम दोनो प्रहरी से जितनी दूर हो सके उतना दूर रहना। बिना यह एहसास करवाये की तुम जान बूझकर इसमें नहीं पड़ना चाहते।
निशांत:- हां समझ गया, ये प्रहरी ही जड़ हैं। तू लौट दोस्त जबतक हम खुद को इतना ऊंचा ले जाएंगे की फिर ये प्रहरी समुदाय हमे हाथ लगाने से पहले 100 बार सोचेंगे।
चित्रा:- मेरा वादा है आर्य जिसने भी तुझे हमसे दूर किया है, उनसे उनकी खुशियों को दूर ना कि तो मेरा नाम भी चित्रा नहीं। तू बेफिक्र होकर जा। हमे तो कुछ भी पता नहीं तू क्यों गया। यह हम दोनों मेंटेन कर लेंगे। क्यों निशांत?
निशांत:- हां चित्रा।
आर्यमणि, "आर्म्स एंड अम्यूनेशन डेवलपमेंट यूनिट" के सभी लीगल दस्तावेज उनके हाथ मे थामते.. "ऊंची उड़ान के पेपर रखो तुम दोनो। बाकी ये फैक्टरी क्या है? कैसे इसे आगे बढ़ना है? उसकि पूरी टेक्निकल और नॉन टेक्निकल डिटेल, मैंने तुम्हारे बैग मे डाल दिया है.."
निशांत और चित्रा थोड़ी हैरानी से... "आर्म्स एंड अमुनेशन डेवलपमेंट यूनिट का प्लान... ये सब तुमने कब बनाया। कहां से सीखा? या यूएस में जब थे तब ये सब प्लान किया था?
आर्यमणि:- हां, यूएस में मैंने किसी के कॉन्सेप्ट को पूरा उठा लिया। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उन लोगों ने बताया, ये आर्म्स एंड वैपन डेवलपमेंट मे पूरा मैकेनिकल इंजीनियरिंग काम आता है। मैंने सोचा 1 बेरोजगार (निशांत) तो पढ़ ही रहा होगा, उसी के साथ धंधा करूंगा। यहां तो मुझे 3 बेरोजगार मिल गये।
चित्रा और निशांत दोनो एक जोर का लगाते… "कमिना कहीं का..."
आर्यमणि:- मैं चाहता हूं बीटेक के बाद तुम दोनो और माधव, तीनो मैकेनिकल वेपन से एमटेक करो। आगे की पढ़ाई में कैसे क्या करना है, उसकी पूरी डिटेल माधव निकाल लेगा। और हां तुम्हारे बैग में पूरे 2000 पन्ने डाले हैं निशांत। उसमे आर्म्स एंड वैपन डेवलपमेंट की पूरी डिटेल है। एक बार तीनो जरूर पढ़ लेना। फैक्टरी की परमिशन ज्यादा से ज्यादा 3 महीने मे मिल जाएगी, लेकिन सवाल–जवाब के लिये जब बुलाये तो वो पूरा पेपर रट्टा मारा हुआ होना चाहिए..
निशांत, चित्रा के गाल खींचता... "मेरी बहन और मेरा अस्थिपंजर जीजा जायेगा। मैं तो कहीं और फोकस करूंगा.."
चित्रा:- कहां, उन प्रहरी के शिकारियों पर ना, जिसने हमारा दोस्त छीना… जया अंटी को रुलाया, भूमि दीदी से आर्य को दूर किया..
निशांत:- हां वो भी करेंगे। लेकिन उस से पहले स्टाफ की सारी बहाली मुझे ही देखनी होगी.. मस्त, मस्टरपीस, 3 तो मेरी पीए होंगी। 8 घंटे की शिफ्ट अनुसार।
तीनो लाइन से पाऊं लगाकर बैठे थे, चित्रा और आर्यमणि झुककर उसका चेहरा देखते, काफी जोर से... "अक्क थू.."
आर्यमणि:- स्टाफ की चिंता तू छोड़ दे मेरे भाई। वो सब गवर्नमेंट ही देखेगी और लगभग उन्हीं का पूरा स्टाफ होगा। खैर छोड़ो ये सब। आज आखरी रात है और माहौल भी झूमने वाला है.. कुछ हसीन लम्हा कुछ खास लोगो के साथ बटोर लूं।
चित्रा:- चल फिर पहले थोड़ा–थोड़ा टल्ली हुआ जाए। वैसे पलक को इस बारे में पता है।
आर्यमणि:- तुम्हे बस अपनी जानकारी होनी चाहिए। जिसके पास जो जानकारी है वो उनकी है। जिसका किसी और से कोई वास्ता नहीं, फिर चाहे भूमि दीदी हो या मेरी मां–पापा ही क्यों ना हो, लेकिन वो भी नहीं जानते कि तुम्हे पता है या नहीं।
चित्रा और निशांत एक साथ… "हम्मम समझ गये। चलो चलते है। और हां यहां हमारी कैजुअल मीटिंग हुयि ये जताना होगा।"..
"तो फिर यहीं से शुरू करते है"… तीनों ही हूटिंग करते हुए और चिल्लाते हुये बड़े से लॉन में पहुंचे… "सब 2 घंटे के दिखावे के लिए सजते रहो रे। हम तो चले एन्जॉय करने"..
माईक की आवाज पर हर किसी ने तीनो को सुना। तीनों को हंसते और एक दूसरे के साथ छेड़खानी करते लोग देख रहे थे। आते ही तीनों घुस गये राजदीप के कमरे में। राजदीप नंगे बदन केवल तौलिया मे था और कुछ लोग उसे संवार रहे थे…. "ये लो, ये तो सुहागरात कि तैयारी में है।"..
राजदीप, हड़बड़ा कर पूरे तौलिए से अपने बदन को ढकते… "यहां अंदर अचानक से तीनों कैसे घुस गये। किसी ने रोका नहीं।"..
चित्रा:- साफ कह दिया गार्ड को, मुझे रोक दिये तो मैं सीधा नागपुर।
निशांत:- मैंने भी यही कहा।
आर्यमणि:- मैंने भी यही कहा।
राजदीप, अपने हाथ जोड़ते… "क्या चाहिए तुम सब को।"..
निशांत:- ये काम की बात है।
चित्रा:- कॉकटेल काउंटर शुरू करवाओ, थोड़ा टल्ली होंगे।
आर्यमणि:- टल्ली होकर नाचेंगे.. जल्दी करो भईया।
राजदीप:- त्रिमूर्तियों जाओ मै फोन करवाता हूं, तुम्हारे पहुंचने से पहले सब वायवस्था हो जायेगा।
तीनों सीधा शादी के हॉल में पहुंचे जहां सब कुछ सजा हुआ था। 2-2 बियर मारने के बाद बड़ा ही झन्नाटेदार अनाउंसमेंट हुआ, जो चित्रा कर रही थी….
"मुझे जो भी सुन रहे है उनको नमस्कार। शादी की रश्मे शुरू होगी 5 बजे से। मै 4 बजे जाऊंगी तैयार होने। थोड़े कम मेकअप के साथ अपना चेहरा कम चमकाऊंगी और 5 बजे तक तैयार होकर शादी के हॉल में। वो क्या है ना मुझे किसी को दिखाने में इंट्रेस्ट नहीं। क्योंकि मुझे जिसे दिखाना है वो फिक्स है और उसे मै कॉलेज जाने वाले मेकअप में ही मिस वर्ल्ड दिखती हूं, इसलिए एडवांस और हाई-फाई मेकअप पोतना मुझे बकवास लगता है।"
"यहां मेरे साथ 2 क्यूट और हैंडसम लड़के खड़े है। एक मेरा भाई निशांत, उसे 1 रात में कोई गर्लफ्रेंड पटाकर, फोन रिलेशन मेंटेन करने का शौक नहीं, इसलिए वो भी लीपा-पोती में विश्वास नहीं रखता। दूसरा है हम दोनों भाई-बहन के बचपन का साथी आर्य। उसकी तो शादी ही तय हो गयि है। अब पलक जिस दिन उसे देखकर अपने लिए पसंद की थी। उससे कुछ दिन पहले आर्य के पेट में चाकू घुसा था। चेहरे पर 3-4 दिन की हल्की-हल्की दाढ़ी थी। अब वैसे रूप में जब वो पसंद आ सकता है तो थोड़े कम लीपा-पोती में भी आ ही जायेगा। बाकी दूसरी लड़कियां जरा दिल थाम के, ये दोनो इस वक्त भी तुम्हारे दिल में ज़हर बनकर उतर सकते है।"
"खैर, खैर, खैर.… इतना लंबा भाषण देने का मतलब है, जिन-जिन लोगो की शादी हो गयि है या फिर लाइफ पार्टनर फिक्स है। यहां आकर हमारे साथ 2 ठुमके लगाकर एन्जॉय कर सकते है। हां जो सिंगल है और यहां पार्टनर पटाने आये है, या ऊब चुके शादी सुदा लोग, या कमिटेड लोग, किसी और पर डोरे डालने की मनसा रखते हों, वो सजना संवारना जारी रखे। तू म्यूज़िक बजा रे।..
सबको हिलाने वाला भाषण देने के बाद चित्रा माईक फेकी और हाई वोल्टेज म्यूज़िक पर तीनों नाचने लगे। चित्रा का भाषण सुनकर वहां के बहुत से रोमांटिक कपल डांस फ्लोर पहुंच चुके थे।
आर्यमणि को निशांत और चित्रा की मां निलांजना दिख गयि.. उनका हाथ पकड़कर आर्यमणि डांस फ्लोर तक लेकर आया और कमर में हाथ डालकर नाचते हुए कहने लगा… "आंटी आप तो वैसे ही इतनी खूबसूरत हो, आपको मेकअप की क्या जरूरत।"..
निलांजना खुलकर हंसती हुई… "राकेश ने देख लिया ना तुम्हे ऐसे, तो खैर नहीं तुम्हारी।"..
आर्यमणि, चित्रा और निशांत को सुनाते हुये… "तुम दोनो को नहीं लगता तुम्हारि मम्मी के लिए हमे नया पापा ढूंढ़ना होगा। वो राकेश नाईक जम नहीं रहा। क्या कहते हो दोनो।"
चित्रा:- डाइवोर्स करवा देते है।
निशांत:- फिर मेट्रोमनी में डाल देंगे.. हॉट निलांजना के साथ शादी कर 2 जवान बच्चे दहेज में पाये।
तीनों ही कॉलर माईक लगाए थे। जो भी उनकी बात सुन रहे थे हंस-हंस कर लोटपोट हो रहे थे। इसी बीच जया भी आ गई.… जया को देखते हुए चित्रा कहने लगी..… "हमारे बीच आ गई है, गोल्डन एरा क्वीन के नाम से मशहूर जया कुलकर्णी। ओय जया जारा मेरे साथ 2 ठुमके तो लगा।"..
जया:- चित्रा 2 क्या 4 लगा लूंगी, बस मैदान छोड़कर मत भागना।
पीछे से जया का पति केशव… "चित्रा के ओर से मै मैदान में उतरता हूं, जया अब दिखाओ दम।"..
दोनो मिया-बीवी डांस फ्लोर पर नाचने लगे और उन्हें नाचता देख सभी ताली बजाने लगे। कुछ देर बाद और भी परिवार के लोग नाच रहे थे। तभी वहां पर ग्रैंड एंट्री हुई पहली दुल्हन की। मुक्ता आते ही माईक पर कहने लगी… "मेरा होने वाला फिक्स हो गया है। यहां के कॉर्डिनेटर जी (राजदीप), वो तो पता ना क्या-क्या करवा रहे होंगे ब्यूटीशियन से, कोई एक डांस पार्टनर मुझे भी दे दो।"..
आर्यमणि:- कोई एक क्यों पीछे से माणिक भाऊ आ रायले है, आप उनके साथ डांस करो। जबतक मै नम्रता दीदी से डांस के लिए पूछता हूं। वैसे मेरे साथ ही चोट हो गयि, पलक तो हुई सली, माणिक भाव के मज़े है। मेरे ससुराल वाले नीचे किसी को नहीं छोड़ गये, काश अपनी भी कोई साली होती।
अक्षरा:- तू नम्रता को छोड़ उसके साथ तो कोई भी डांस कर लेगा.. मेरे बारे में क्या ख्याल है।
निशांत सिटी बजाते हुए… "मासी आज भी कातिलाना दिखती हो। कहो तो मै अपने पापा के साथ एक मौसा भी ढूंढ लू।"..
नगाड़े बजते रहे और डांस चलता रहा। थोड़ी देर बाद भूमि दूर से ही माईक पर कहती… "मेरे 2 छोटू ब्वॉयफ्रैंड के साथ जिस-जिस ने डांस करना था कर लिया, अब दूर हो जाओ। दोनो सिर्फ मेरे है।"
माणिक:- भूमि मेरी बड़ी साली जी, अपने पुराने आशिक़ को भी मौका दो। एक बार आपके कमर में हाथ डालकर डांस कर लूं, फिर जीवन सफल हो जायेगा।
भूमि:- नम्रता सुन ले इसे, अभी से क्या कह रहा है?
नम्रता:- दीदी आज भर ही तो बेचारा बोलेगा, फिर तो इसका भी हाल जयदेव जीजू जैसा ही होना है। बिल्कुल चुप और पल्लू के पीछे रहने वाले।
नाचते-नाचते भूमि, जया, निशांत, चित्रा और आर्य ने एक गोला बाना लिया। चारो ही आर्यमणि को देखकर धीमे-धीमे डांस कर रहे थे। काफी खुशनुमा पल था ये। ये पल कहीं गुम ना हो जाए इसलिए एक पूरी क्लोज रिकॉर्डिंग आर्य, चित्रा और निशांत ने अपने ऊपर रखी हुई थी।
महफिल जम गया था और लोगों की हंसी पूरे हॉल में गूंज रही थी। अपने और परायों के साथ बिना भेद-भाव और झूमकर नाचने को ही ती शादी कहते है। और इसे जिसने एन्जॉय किया बाद में जाकर यही कहते है, फलाने के शादी में काफी एन्जॉय किया। शायद इसलिए हमारे यहां शादियों में इतने खर्च होते है, ताकि परिवार और रिश्तेदार जो काम में व्यस्त होकर एक दूसरे से जितने दूरियां बाना लिये हो, वो करीब आ सके।