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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Tri2010

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भाग:–64





पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी। सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?


आर्यमणि गहन चिंतन में था और उसे कोई रास्ता मिल न रहा था। अपने मुखिया को गहरे सोच में डूबा देखकर सभी ने उसे घेर लिया। रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या सोच रहे हो बॉस?"


आर्यमणि, छोटा बॉक्स के ओर इशारा करते... "सोच रहा हूं इसे जो खोलने में कामयाब हुआ, उसे भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। कोई ये कारगर उपाय बताये की कैसे हम इतना सारा सोना बिना इन बड़े बक्सों के सुरक्षित ले जाये, तो उसे भी भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। और यदि किसी ने दोनो उपाय बता दिये फिर तो उसे हफ्ते भर तक नॉन–वेज खाने की आजादी।


तीनों टीन वुल्फ खुशी से पागल हो गये। पहले मैं, पहले मैं बोलकर, तीनों ही चाह रहे थे कैसे भी करके पहले उन्हें ही सुना जाये। आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते... "हम चिट्ठी लुटायेंगे, जिसका नाम निकलेगा उसे मौका दिया जायेगा।"…


रूही:– बॉस मेरा नाम मत डालना...


अलबेली:– क्यों तुझे नॉन वेज नही खाना क्या?


रूही:– पहले तुम चूजों को मौका देती हूं। जब तुम में से किसी से नहीं होगा तब मैं सारा मैटर सॉल्व कर दूंगी..


अलबेली:– बड़ी आयी दादी... दादा आप पर्चे उड़ाओ...


इवान:– हम तीन ही है ना... तो पीठ पीछे नंबर पूछ लेते है।


अलबेली और ओजल दोनो ने भी हामी भर दी। इवान को पीछे घुमा दिया गया और पीठ के पीछे सबका नंबर पूछने लगे। पहला नंबर इवान का, दूसरा नंबर अलबेली और तीसरे पर ओजल रही। इवान सबसे पहले आगे आते.… "बॉस सोना जैसा चीज हम छिपाकर नही ले जा सकते इसलिए आधा सोना यहां के क्रू मेंबर को देकर उनसे एक खाली कंटेनर मांग लेंगे और उसी में सोना लादकर ले जायेंगे"…


आर्यमणि:– आइडिया बुरा नही है। चलो अब इस छोटे बॉक्स को खोलो।


बहुत देर तक कोशिश करने के बाद जब बॉक्स खुलने का कोई उपाय नहीं सूझा, तब इवान ने बॉक्स को एक टेबल पर रखा और अपने दोनो हाथ बॉक्स के सामने रख कर... "खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम"..


3 बार बोलने के बाद भी जब बॉक्स नही खुला तब अलबेली, इवान को धक्के मारकर किनारे करती, अपने दोनो हाथ सामने लाकर... "आबरा का डबरा... आबरा का डबरा.. आबरा का डबरा... बीसी आबरा का डबरा खुल जा"


अब धक्का खाने की बारी अलबेली की थी। उसे हटाकर ओजल सामने आयी और उसने भी अपने दोनो हाथ आगे बढ़ाकर.… "ओम फट स्वाहा... ओम फट स्वाहा.. ओम फट स्वाहा"… ओजल ने तो कोशिश में जैसा चार चांद लगा दिये। हर बार "ओम फट स्वाहा" बोलने के बाद 4–5 सोने के सिक्के उस बक्से पर खींचकर मारती।


तीनों मुंह लटकाये कतार में खड़े थे। उनका चेहरा देखकर आर्यमणि हंसते हुये…. "रूही जी आप कोशिश नही करेंगी क्या?"


रूही:– एक बार तुम भी कोशिश कर लो बॉस..


आर्यमणि:– मैं कोशिश कर के थक गया..


"रुकिये जरा"… इतना कहकर रूही अपने बैग से दस्ताने का जोड़ा निकली। साथ में उसके हाथ में एक चिमटी भी थी। रूही चिमटी से दस्ताने के ऊपर लगे एक पतले प्लास्टिक के परत को बड़ी ही ऐतिहात से निकालकर उसे अपने दाएं हथेली पर लगायी। फिर दूसरे दस्ताने से पतले प्लास्टिक की परत को निकालकर उसे भी बड़े ऐतिहात से अपने बाएं पंजे पर लगायी। दोनो हाथ में प्लास्टिक की परत चढ़ाने के बाद रूही उस बॉक्स के पास आकर, उसके ऊपर अपना दायां हाथ रख दी।


दायां हाथ जैसे ही रखी बॉक्स के ऊपर हल्की सी रौशनी हुई और दोनो हाथ के पंजे का आकार बॉक्स के दोनो किनारे पर बन गया। रूही दोनो किनारे पर बने उस पंजे के ऊपर जैसे ही अपना पंजा रखी, वह बॉक्स अपने आप ही खुल गया। सभी की आंखें बड़ी हो गयी। हर कोई बॉक्स के अंदर रखी चीज को झांकने लगा। बॉक्स के अंदर 4 नायब किस्म के छोटे–छोटे पत्थर रखे थे।


रूही:– आंखें फाड़कर सब बाद में देख लेना, पहले सभी बॉक्स को यहां लेकर आओ...


सभी भागकर गये और बाकी के 9 बॉक्स को एक–एक करके रूही के सामने रखते गये और रूही हर बॉक्स को खोलती चली गयी। हर कोई अब बॉक्स को छोड़कर, रूही को टकटकी लगाये देख रहा था.… "क्या??? ऐसे क्या घूर रहे हो सब?


आर्यमणि:– तुमने ये खोला कैसे...


रूही:– सुकेश भारद्वाज के हथेली के निशान से...


सभी एक साथ.… "क्या?"


रूही:– क्या नही, पूछो कैसे खोली। तो जवाब बहुत आसान है किसी दिन सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था। हालाकि पहली बार तो मेरे साथ जबरदस्ती हुई नही थी और ना ही मैं वैसी जिल्लत की जिंदगी जीना चाहती थी, इसलिए मैं भी तैयार बैठी थी। पतले से प्लास्टिक पेपर पर ग्रेफाइट डालकर पूरे बिस्तर पर ही प्लास्टिक को बिछा रखी थी। सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती करता रहा और साथ में पूरे बिस्तर पर उसके हाथ के निशान छपते रहे।


आर्यमणि:– ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बतायी?


रूही:– क्योंकि मुझे भी नही पता था। जबरदस्ती करने वाला मास्क में रहता था और उसके पीछे सरदार खान अपनी दहाड़ से मुझे नियंत्रित कर रहा होता था।


आर्यमणि:– फिर तुम्हे कैसे पता चला की वह सुकेश है...


रूही:– कभी पता नही चलता। मैं तो वो हाथ के निशान लेकर भूमि दीदी के पास गयी थी। उन्होंने ही मुझे बताया की यह हाथ के निशान किसके है। वैसे हाथ के निशान भी उन्होंने ही लेने कहा था। खैर ये लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना ही था कि मैं जिल्लत की जिंदगी जीना नही चाहती थी और भूमि दीदी उस दौरान सरदार खान और प्रहरी के बीच कितना गहरा संबंध है उसकी खोज में जुटी थी। उन्होंने वादा किया था कि यदि मैं निशान लाने में कामयाब हो गयी तो फिर कोई भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा। और ठीक वैसा हुआ भी... हां लेकिन एक बात ये भी है कि तब तक तुम भी नागपुर पहुंच गये थे।


आर्यमणि:– फिर भी तुम्हे कैसे यकीन था कि ये बॉक्स उसके हाथ के निशान से खुल जायेगा और तुम्हे क्या सपना आया था, जो सुकेश भारद्वाज के हाथों के निशान साथ लिये घूम रही?


आर्यमणि:– बॉस क्या कभी आपने मेरे और अलबेली के कपड़ों पर ध्यान दिया। शायद नही... यदि दिये होते तो पता चला की हम 2–3 कपड़ो में ही बार–बार आपको नजर आते। नए कपड़े लेने के लिये भी हमारे कपड़े 4 लोगों के बीच फाड़कर उतार दिये जाते थे। आपने कहा नागपुर छोड़ना है तो अपना बैग सीधे उठाकर ले आयी। मैंने कोई अलग से पैकिंग नही की बल्कि बैग में ही ग्लोब्स पहले से रखे थे। और ऐसे 3 सेट ग्लोब्स उस बैग में और है, जिसमे सुकेश के हाथो के निशान है।


इवान:– बस करो दीदी अब रहने भी दो। मेरा खून खौल रहा है।


अलबेली:– रूही लेकिन तुम्हे कैसे पता की ये सुकेश के हाथ के निशान से खुलेंगे?


रूही:– सभी वेयरवॉल्फ गंवार होते है, जिन्हे टेक्नोलॉजी से कोई मतलब ही नहीं होता। अपने बॉस को ही ले लो। इसके मौसा के घर में खुफिया दरवाजा है, लेकिन उसकी सिक्योरिटी किस पर आश्रित है उसका ज्ञान नही। बॉस को ये डॉट है कि सोने के बक्से खुलते ही वो लोग हमारे लोकेशन जान चुके होंगे। लेकिन एक बार भी सोचा नहीं होगा की ये लोकेशन उन तक पहुंचता कैसे है? यदि कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का ज्ञान बॉस के पास होता तो अभी सोना ले जाने की इतनी चिंता न होती। अब जिसके घर का माल है, निशान भी तो उसी के हाथों का लगेगा।


आर्यमणि:– अब बस भी करो... हर कोई हर चीज नहीं सिख सकता। अब ये बताओ की सोने का क्या करना है।


रूही:– "कप्तान को पैसे खिलाओ और एक हेलीकॉप्टर मगवाओ। हम में से कोई एक मैक्सिको जायेगा। वहां जाकर छोटे–छोटे 100 बॉक्स बनवाये और उसे कार्गो हेलीकॉप्टर से शिप पर डिलीवर कर दे। इसके अलावा जो बड़े–छोटे बॉक्स को हमने इस लोकेशन पर खोला है, यदि उन्हें पानी में भी फेंक देते है तो वो लोग लास्ट लोकेशन और हमारे शिप के रनिंग टाइम को मैच करके सीधा मैक्सिको पहुंच जायेंगे। ये काफी क्लोज लोकेशन होगा। फिर पीछे जो हम उन्हे भरमाने का इंतजाम कर आये हैं, वो सब चौपट हो जायेगा।"

"अपने साथ एक और कार्गो शिप अर्जेंटीना के लिये निकली थी। बाहर जाकर देखो तो वो दिख जायेगा। बॉस आप इन सभी शीट को बांधो और तैरते हुये पहुंचो उस शिप पर। बिना किसी की नजर में आये मेटल के इस शीट को उस शिप पर फेंककर वापस आ जाओ।"


आर्यमणि:– कुछ ज्यादा नही उम्मीद लगाये बैठी हो। दूसरी कार्गो शिप तो साथ में ही चल रही है, लेकिन खुली आंखों से देखने पर जब वो शिप छोटी नजर आती है तब तुम दूरी समझ रही हो। 3–4 किलोमीटर की दूरी बनाकर वो हमारे पेरलेल चल रही होगी। और मैं इतनी दूर तैर कर पहचूंगा कैसे...


रूही:– अपने योग अभ्यास और अंदर के हवा को जो तुम तूफान बनाकर बाहर निकाल सकते हो, उस तकनीक से। बॉस हवा के बवंडर को अपनी फूंक से चिर चुके हो। यदि उसके आधा तेज हवा भी निकालते हो, तब तैरने में मेहनत भी नही करनी पड़ेगी और बड़ी आसानी से ये दूरी तय कर लोगे बॉस।


आर्यमणि:– हम्मम !!! ठीक है सभी छोटे बॉक्स को मेटल की शीट में वापस घुसा दो और मेटल के सभी शीट को अच्छे से बांध दो। और रूही तुम मैक्सिको निकलने की तैयारी करो।


रूही:– जी ऐसा नहीं होगा बॉस। तुम पहले जाकर मेटल के शीट को दूसरे शिप पर फेंक आओ, उसके बाद खुद ही मैक्सिको जाना।


आर्यमणि:– मैं ही क्यों?


रूही:– क्योंकि हम में से इकलौते तुम ही हो जो अंदर के इमोशन को सही ढंग से पढ़ सकते हो और विदेश भी काफी ज्यादा घूमे हो। इतने सारे बॉक्स हम क्यों ले रहे कहीं इस बात से कोई पीछे न पड़ जाये।


आर्यमणि:– ठीक है फिर ऐसा ही करते है।


मेटल के शीट को बांध दिया गया। सबसे नजरे बचाकर आर्यमणि, शीट को साथ लिये कूद गया। चारो ही हाथ जोड़कर बस प्राथना में जुट गये। नीचे कूदने के बाद तो आर्यमणि जैसे डूब ही गया हो। नीचे न तो दिख ही रहा था और न ही कोई हलचल थी। इधर आर्यमणि मेटल के शीट के साथ जैसे ही कूदा बड़ी तेजी के साथ नीचे जाने लगा। नीचे जाते हुये आर्यमणि ऊपर आने की कोशिश करने से पहले, रस्सी के हुक को अपने बांह में फसाया। सब कुछ पूर्ण रूप से सेट हो जाने के बाद, जैसे ही आर्यमणि ने सर को ऊपर करके फूंक मारा, ऐसा लगा जैसे उसने कुआं बना दिया हो। ऊपर के हिस्से का पानी विस्फोट के साथ हटा। इतना तेज पानी उछला की ऊपर खड़े चारो भींग गये।


पानी का झोंका जब चारो के पास से हटा तब सबको आर्यमणि सतह पर दिखने लगा। चारो काफी खुश हो गये। इधर आर्यमणि भी रूही की सलाह अनुसार हवा की फूंक के साथ सामने रास्ता बनाया। फिर तो कुछ दूर तक पानी भी 2 हिस्सों में ऐसे बंट गया, मानो समुद्र में कोई रास्ता दिखने लगा हो और आर्यमणि उतनी ही तेजी से उन रास्तों पर तैर रहा था। आर्यमणि इतनी आसानी से तेजी के साथ आगे बढ़ रहा था जैसे वह कोई समुद्री चिता हो।


महज चंद मिनट में वह दूसरे शिप के नजदीक था। शिप पर मौजूद लोगों के गंध को सूंघकर उसके पोजिशन का पता किया। रास्ता साफ देखकर आर्यमणि शिप की बॉडी पर बने सीढियों के सहारे चढ़ गया। पूरे ऐतिहात और सभी क्रू मेंबर को चकमा देकर आर्यमणि ने मेटल के शीट को कंटेनर के बीच छिपा दिया और गहरे महासागर में कूदकर वापस आ गया।


जैसे ही आर्यमणि अपने शिप पर चढ़ा तालियों से उसका स्वागत होने लगा। पूरा अल्फा पैक आर्यमणि के चारो ओर नाच–नाच कर उसे बधाई दे रहे थे। आर्यमणि उनका जोश और उत्साह देखकर खुलकर हंसने लगा। कुछ देर नाचने के बाद सभी रुक गये। रूही आर्यमणि को ध्यान दिलाने लगी की उसे अब अपने शिप के कप्तान के पास जाना है। आर्यमणि कप्तान के पास तो गया लेकिन कप्तान हंसते हुये आर्यमणि से कहा... "दोस्त जमीन की सतह से इतनी दूर केवल क्षमता वाले विमान ही आ सकते है, कोई मामूली हेलीकॉप्टर नही।


आर्यमणि:– फिर हेलीकॉप्टर कितनी दूरी तक आ सकता है।


कप्तान:– कोई आइडिया नही है दोस्त। कभी ऐसी जरूरत पड़ी ही नही। वैसे करने क्या वाले हो। तुम्हारा वो बड़ा–बड़ा बॉक्स वैसे ही संदेह पैदा करता है। कुछ स्मगलिंग तो नही कर रहे.…


आर्यमणि:– हां सोना स्मगलिंग कर रहा हूं।


कप्तान:– क्या, सोना?


आर्यमणि:– हां सही सुना... 5000 किलो सोना है जिसे मैं बॉक्स से निकाल चुका हूं और बॉक्स को मैने समुद्र में फेंक दिया।


कप्तान:– तुम्हे शिप पर लाकर मैने गलती की है। लेकिन कोई बात नही अभी तुम देखोगे की कैसे क्षमता वाले कयी विमान यहां तक पहुंचते है।


आर्यमणि:– तुम्हे इस से क्या फायदा होगा। इस सोने में मेरा प्रॉफिट 2 मिलियन यूएसडी का है। 1 मिलियन तुम रख लेना।


कप्तान:– मैं सोने का आधा हिस्सा लूंगा। बात यदि जमी तो बताओ वरना तुम्हे पकड़वाने के लिये २०% इनाम तो वैसे ही मिल जायेगा जो 1 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।


आर्यमणि:– मुझे मंजूर है। सोना निकालने का सुरक्षित तरीका बताओ और अपना आधा सोना ले लो।


कप्तान:– इस कार्गो के २ कंटेनर मेरे है, जिसमे मैंने अपने फायदा का कुछ सामान रखा है। एक कंटेनर में मेरा आधा सोना और दूसरे कंटेनर में तुम्हारा आधा सोना।


आर्यमणि:– हां लेकिन कंटेनर जब लोड होकर पोर्ट के स्क्यूरिटी से निकलेगी तब कौन सा पेपर दिखाएंगे और इंटरनेशनल बॉर्डर को कैसे क्रॉस करेंगे..


कप्तान:– कंटेनर के पेपर तो अभी तैयार हो जायेगा। पोर्ट से कंटेनर बाहर निकलने की जिम्मेदारी मेरी। आगे का तुम अपना देख लो। वैसे एक बात बता दूं, मैक्सिको के इंटरनेशनल बॉर्डर से यदि एक मूर्ति भी बाहर निकलती है तब भी उसे खोलकर चेक किया जाता है। ड्रग्स की तस्करी के कारण इंटरनेशनल तो क्या नेशनल चेकिंग भी कम नहीं होती।


आर्यमणि:– हम्मम ठीक है... तुम काम करवाओ...


कप्तान:– जरा मुझे और मेरे क्रू को सोने के दर्शन तो करवा दो।


आर्यमणि:– हां अभी दर्शन करवा देता हूं। ओह एक बात बताना भूल गया मैं। हम 5 लोग ये सोना बड़ी दूर से लूटकर ला रहे है। रास्ते में न जाने कितने की नजर पड़ी और हर नजर को हमने 2 गज जमीन के नीचे दफन कर दिया। यदि हमें डबल क्रॉस करने की सोच रहे फिर तैयारी थोड़ी तगड़ी रखना...


कप्तान फीकी सी मुस्कान देते.… "नही आपस में कोई झगड़ा नहीं। 2 बंदर के रोटी के झगड़े में अक्सर दोनो बंदर मर जाते है और फायदा बिल्ली को होता है।


आर्यमणि:– समझदार हो.. लग जाओ काम पर..


आर्यमणि गया तो था हेलीकॉप्टर लेने लेकिन वापस वो शिप के कप्तान और क्रू मेंबर के साथ आया। उन लोगों ने जब इतना सोना देखा फिर तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। हर किसी के मन में बैईमानी थी, जिसे आर्यमणि साफ मेहसूस कर रहा था। इस से पहले की 40 क्रू मेंबर में से कोई एक्शन लेता, आर्यमणि तेजी दिखाते 5 सिक्योरिटी वालों का गन अपने कब्जे में ले चुका था।


यह इतनी जल्दी हुआ की कोई संभल भी नही पाया। आर्यमणि गन को उनके पाऊं में फेंकते... "किसी को यदि लगे की वह बंदूक के जोर पर हमसे जीत सकता है, वह एक कोशिश करके देख ले। उनकी लाश कब गिरेगी उन्हे पता भी नही चलेगा। इसलिए जितना मिल रहा उसमे खुश रहो। वरना तुम लोग जब तक सोचोगे की कुछ करना है, उस से पहले ही तुम्हारा काम ख़त्म हो चुका होगा।"


एक छोटे से करतब, और उसके बाद दिये गये भाषण के बाद सभी का दिमाग ठिकाने आ गया। तेजी से सारा काम हुआ। सारा सोना 2 कंटेनर में लोड था और दोनो कंटेनर के पेपर कप्तान के पास। कप्तान ही पोर्ट से सोना बाहर निकालता। उसके बाद दोनो अलग–अलग रास्ते पर। आर्यमणि राजी हो चुका था क्योंकि पेपर तो आर्यमणि के फर्जी पासपोर्ट के नाम पर ही बना था लेकिन कप्तान के मन की बईमानि भी आर्यमणि समझ रहा था।


गहरी काली रात थी। क्रू मेंबर आर्यमणि और उसके पैक के सोने का इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि रात और गहरा होने का इंतजार। मध्य रात्रि के बाद आर्यमणि अपने हॉल से बाहर आया और ठीक उसी वक्त 6 सिक्योरिटी गार्ड आर्यमणि के हॉल के ओर बढ़ रहे थे। पहला सामना उन्ही 6 गार्ड से हुआ और कब उनकी यादास्त गयी उन्हे भी पता नही। सुबह तक तो आर्यमणि ने सबको लूथरिया वुलापिनी के इंजेक्शन और क्ला का मजा दे चुका था। कप्तान की यादों में बस यही था कि उसके दोनो कंटेनर में आर्यमणि ने भंगार लोड किया है और कंटेनर के अंदर जो उसका सामान था उसके बदले 20 हजार यूएसडी उसे मिलेंगे जो उसके समान की कीमत से 5 गुणा ज्यादा थी।


सोना ठिकाने लग चुका था। वुल्फ पैक अभी के लिये तो राहत की श्वांस लिया लेकिन सबको एक बात कहनी पर गयी की लूटना जितना आसान होता है, उस से कहीं ज्यादा लूट का माल सुरक्षित ले जाना। इस से उन्हें यह बात भी पता चला की प्रहरी का बॉक्स काफी सुरक्षित था जो 3–4 स्कैनर से गुजरा लेकिन अंदर क्या था पता नही चला।


रूही:– बॉस अब समझे टेक्नोलॉजी का महत्व। जहां हम इतने सारे सोने के लिये अभी से परेशान है, जब वही सोना किसी महफूज बॉक्स में बंद था, तब हमे तो क्या अच्छे–अच्छे सिक्योरिटी सिस्टम को पता न चला की अंदर क्या है।


आर्यमणि:– हां हम भी सबसे पहले टेक्नोलॉजी ही सीखेंगे... ये अपने आप में एक सुपरनेचुरल पावर है।


रूही:– बॉस उस पर तो बाद में ध्यान देंगे लेकिन अभी जरा उन पत्थरों के दर्शन कर ले। कुल 40 पत्थर है, 4 अलग–अलग रंग के।


आर्यमणि:– हां मैं उन पत्थरों के बारे में जानता हूं। 350 किताब जो मैंने जलाये थे। जिसमे लिखा हुआ था कि कैसे एक सिद्ध प्राप्त साधु को मारा गया, उनमें इन पत्थरों का जिक्र था। मेरी जानकारी और ये पत्थर, जल्द से जल्द संन्यासी शिवम के पास पहुंचाना होगा।


रूही:– कैसे?


आर्यमणि:– वो सब मैं देख लूंगा फिलहाल अब इस पर से ध्यान हटाकर हम अपने दिनचर्या में ध्यान देते हैं।


सभा खत्म और सभी लोग अपने–अपने दिनचर्या में लग गये। अगले कुछ दिनों में सभी मैक्सिको के पोर्ट पर थे। 20 हजार डॉलर कैश मिलने पर कप्तान तो इतना खुश था कि आर्यमणि के दोनो कंटेनर को खुद बाहर निकाला और स्क्रैप पिघलाने की जगह तक का बंदोबस्त कर चुका था। आर्यमणि तो जैसे सब कुछ पहले से सोच रखा हो।


वीराने में एक बड़ी भट्टी तैयार की गयी। ट्रक के व्हील रिम बनाने का सांचा मगवाया गया। एक रिम के वजन 50 किलो और कुल 100 रिम को तैयार किया गया। रिम तैयार करने के बाद स्टील के रंग की चमचमाता ग्राफिटी सभी रिम के ऊपर चढ़ा दिया गया। 200 रिम इन लोगों ने बाजार से उठा लिये। बाजार के 100 रिम को वहीं वीराने में ही छोड़ दिया और बचे 100 रिम के साथ अपने सोने के रिम भी लोड करवा दिया।

कुछ दिनों तक पूरा वुल्फ पैक दिन–रात सभी कामों को छोड़कर बस सोने को सुरक्षित बाहर निकलने के कारनामे को अंजाम देता रहा। बड़े से ट्रक में पूरा माल लोड था। बचे 100 व्हील रिम को आधे से भी कम दाम में बिना बिल के इन लोगों ने बेच दिया और व्हील वाले ट्रक के साथ अपने आगे के सफर पर निकल चले।
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भाग:–65





नागपुर शहर...

नागपुर शहर में एसपी प्रभार बदलने के कुछ दिन बाद कमिश्नर प्रभार भी बदल गया था। जिस दिन निशांत ने केस जीता उसी दिन उसके पापा राकेश नाईक ने नागपुर की पैतृक संपत्ति, एक पूरा ऑफिशियल बिल्डिंग ही चित्रा और निशांत के नाम लिख चुके थे। हालांकि राकेश नाईक को सुप्रीम कोर्ट के जीत की खबर तो पहले से थी। साथ में जो वकील केस लड़ रहा था उसे देखकर राकेश समझ चुका था कि एक दिन से ज्यादा ये केस नही चलने वाला। निशांत का वकील पहले दिन ही डिग्री ले लेगा। इसलिये वहीं पास के रजिस्टार ऑफिस में राकेश ने पहले ही सारी प्रक्रिया पूरी कर रखी थी, बस चित्रा और निशांत के सिग्नेचर की देरी थी। केस जितने के बाद वो फॉर्मुलिटी भी पूरी हो गयी।


राकेश, उज्जवल और अक्षरा को देख अपनी छाती चौड़ी किये पेपर लेकर कोर्ट रूम के बाहर ही खड़ा था। जैसे ही निशांत और चित्रा बाहर निकले, राकेश उसके हाथ में पेपर थमाते... "दोनो इसपर सिग्नेचर कर दो।" फिर उज्जवल और अक्षरा से...


"तुम्हारे एक कहे पर मैं उनसे नफरत (कुलकर्णी परिवार) करता रहा जिसके बच्चे को आगे तुमने दामाद बनाने का फैसला कर लिया। और जब वो बच्चा नादानी में कुछ अच्छा और कुछ बुरा कर गया, तब सबके सामने तो भरी सभा में उसे बधाई दी, लेकिन पीठ पीछे उसके प्रोजेक्ट को हथियाने चाहते थे। आर्यमणि अपने दोस्तों के लिये इतना मरता था कि पूरा प्रोजेक्ट उनके नाम कर गया और तुम लोगों से ये भी देखा न गया। पूरा गवर्नमेंट को ही मैनेज करने के बाद भी क्या हासिल कर लिये? तुमसे तो अच्छा केशव और जया थे, जिसने उस रात की पूरी बात बता दी और तुमने मुझे ऐसे किनारा किया जैसे मैं कोई था ही नहीं। जाओ खुश रहो तुम लोग।"…


उस रात की घटना से शायद राकेश आज भी आहत था। हो भी क्यों न। दगाबाजी तो राकेश के साथ हुई ही थी। सब लोग एक हो गये और आर्यमणि के दिल में राकेश के लिये कभी इज्जत आयी ही नही। राकेश भी अपना पूरा भड़ास निकाल दिया, जिसका नतीजा उसे ट्रांसफर से भुगतना पड़ा। जाने से पहले राकेश ने सिविल लाइन के पास ही 2 फ्लैट खरीद लिया। एक फ्लैट चित्रा और निशांत के लिये तो दूसरा फ्लैट माधव के नाम। अपने बेटे और बेटी दोनों को एक लग्जरियस कार खरीद कर गिफ्ट कर दिया। जाने से पहले उसने केशव और जया से माफी भी मांगी और अपने बच्चे को उन्ही के भरोसे छोड़कर नागपुर से निकल गया। राकेश के जाने के अगले दिन ही निशांत भी वर्ल्ड टूर के लिये फ्लाइट ले चुका था।


आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट का काम शुरू हो चुका था। नागपुर के प्राइम लोकेशन पर एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, जो की चित्रा और निशांत का ही था, उसका पूरा एक फ्लोर "अस्त्र लिमिटेड" का ऑफिस था। एमडी के ऑफिस में चित्रा और माधव साथ बैठकर पिज्जा का एक स्लाइस मुंह में लेती.… "एंकी एक बात बताओ"..


माधव:– हां..


चित्रा:– बाबूजी को अपने प्रोजेक्ट के बारे में बता दिये की नही...


माधव:– अभी पहले मैन्युफैक्चर यूनिट बनकर पूरा तैयार हो जाये। उसके बाद जब प्रोजेक्ट पर काम शुरू होगा तब बतायेंगे।


चित्रा:– हम्मम और क्या बताओगे..


माधव:– ये भी बताऊंगा की हमारी शुरवाती सैलरी 1 लाख रुपया महीना होगी और कंपनी के प्रॉफिट में २० टका हिस्सा भी।


चित्रा:– और भी कुछ जो उन्हें बताना चाहो..


माधव:– और क्या बताऊंगा?


चित्रा:– और कुछ नही बताओगे...


माधव:– और क्या बताना है?


चित्रा:– फाइन.. बैठकर यहां पिज्जा खाओ मैं नया ब्वॉयफ्रेंड ढूंढ लूंगी...


माधव:– अरे.. अरे.. अरे.. भारी भूल हो गयी। चित्रा सुनो.. सुनो तो...


चित्रा:– गो टू हेल एंकी... पीछे मत आना..


"एक तरफ बाबूजी दूसरी तरह ये चित्रा... अरे रुक तो जाओ। तुम सुनी, हम अभी ही बाबूजी को फोन घुमा दे रहे हैं।"… माधव चिल्लाते हुये चित्रा के पीछे भागा..


"तुमसे ना हो पायेगा फट्टू... दम है तो अभी लगाकर दिखाओ"….


"अरे रुको तो... देखो रिंग हो रहा है"… जबतक माधव खड़ा होकर फोन की घंटी सुनता.… "हेल्लो"… फोन के दूसरे ओर से बाबूजी की कड़कती आवाज...


चित्रा ने भी उस आवाज को सुना... आवाज सुनते ही वो पलट गयी, जब तक उधर से बाबूजी ३ बार हेल्लो चिल्ला चुके थे.…


माधव:– हां बाबूजी प्रणाम..


बाबूजी:– हां खुश रहा.. सब कुशल मंगल..


माधव:– हां बाबूजी सब बढ़िया। इ बार भी हम टॉप किये है बाबूजी..


बाबूजी:– कौनो आईआईटी में टॉप नही किये। सरकारी नौकरी के लिये कंपीटेशन की तयारी करे के पड़ी। टॉप करे से कोनो सरकारी नौकरी वाला न बन जएबे।


माधव चुप, चित्रा मुंह से बुदबुदाती... "फट्टू कहीं के"… उधर से कोई जवाब न सुनकर... "ठीक है बेटा अच्छे से तैयारी कर। हम फोन रख रहे है।"..


माधव:– बाबूजी तनिक रुकिये..


बाबूजी:– हां बोला..


माधव:– वो बाबूजी.. हम..


बाबूजी:– हिचकिचा काहे रहे हो। पैसा कम पड़ गया..


माधव:– नही बाबूजी ऊ बात नही है..


चित्रा जोर से चिल्लाते.… "आपके बेटा अनके माधव सिंह को चित्रा नाईक यानी की मुझसे प्यार हो गया गया है। बहु का प्रणाम स्वीकार कीजिये बाबूजी और जल्दी से हमारा रिश्ता तय कर दीजिये।"…


माधव की सिट्टी–पिट्टी गुम। उधर से बाबूजी चिल्लाते... "फोन रख कपूत, तू खेतिये लायक है। कुछ दिन में पहुंचते है।"…


कॉल डिस्कनेक्ट और माधव टुकुर–टुकुर फोन को देखने लगा। माधव की हालत देख, चित्रा हंस रही थी। बेचारा माधव उसके तो अभी से पाऊं कांपने लगे थे। दोनो अपने ही धुन में थे, कि तभी वहां का स्टाफ एक चिट्ठी लेकर पहुंच गया। सरकारी चिट्ठी थी, जिसमे पहले तो "अस्त्र लिमिटेड" को उसके प्रोजेक्ट के लिये धन्यवाद कहा गया। साथ ही साथ उन्हे डीआरडीओ (DRDO) आने का न्योता भी मिला था, जहां वो अपने प्रोजेक्ट का छोटा प्रारूप सेट करके उत्पादन दिखा सके।


जैसा की "अस्त्र लिमिटेड" के प्रोजेक्ट में वर्णित था कि उनके उत्पादन, लगभग 40 से 50 फीसदी की कम कीमत पर भारत सरकार को गन, ऑटोमेटिक राइफल और ऑपरेशन में इस्तमाल होने वाले खास राइफल मुहैया करवायेगी जिसकी गुणवत्ता तत्काल इस्तमाल हो रहे हथियार के बराबर या उस से उच्च स्तर की होगी। यदि इस छोटे से प्रारूप में वो सफल होते है तब 10 गुणा और बड़े पैमाने पर इस प्रोजेक्ट को शुरू किया जायेगा, ताकि हथियारों के लिये विदेशी बाजार पर निर्भर रहना न पड़े। चिट्ठी में यह भी साफ लिखा था कि.…


"हम समझते है, छोटे प्रारूप से उत्पादन की कीमत बढ़ेगी। लेकिन हमारी एक्सपर्ट टीम वहां होगी जो छोटे से मॉडल से तय कर लेगी की बड़े पैमाने पर जब उत्पादन शुरू होगा तो कितने प्रतिसत कम खर्च पर बनेगी। यदि आपका प्रोजेक्ट सफल होता है, तब आपके "गन एंड ऑटोमेटिक राइफल रिसर्च यूनिट" पर भी विचार करेंगे, जो हथियार की गुणवत्ता को और भी ज्यादा बढ़ा सके और बदलते वक्त के साथ नए तकनीक के हथियार मुहैया करवा सके। अपनी टीम के साथ विचार–विमर्श करके एक समय तय कर ले और डीआरडीओ (DRDO) पहुंचे। हमारी सुभकमना आपके साथ है।"


चिट्ठी देखकर तो माधव और चित्रा दोनो उछल पड़े। चित्रा ने तुरंत ही वह चिट्ठी निशांत को मेल कर दी। आधे घंटे बाद निशांत ने जवाब में लिखा, 92 दिन के बाद का कोई भी समय तय कर ले। चित्रा ने भी तुरंत सरकारी विभाग को जवाबी पत्री भेज दी, जिसमे 3 महीने के बाद की एक तारीख तय कर दी।


खुशी की बात थी इसलिए चित्रा, माधव के साथ सीधा कलेक्टर आवास पहुंची, जहां आर्यमणि के परिवार के साथ भूमि भी सेटल थी। चित्रा की खुशी देखते हुये भूमि पूछे बिना रह नहीं पायी.… "क्या हुआ चित्रा, इस अस्थिपंजर ने अपने बाबूजी से तेरे बारे में बात कर लिया क्या, जो इतनी चहक रही?"


चित्रा:– ससुर जी भी ट्रेन की टिकिट बनावा रहे होंगे.. एंकी बोल नही पा रहा था, इसलिए मैंने खुद बात कर ली।


आर्यमणि की मां जया.… "चलो अच्छा हुआ। वैसे भी निलंजना (चित्रा की मां) तेरी जिम्मेदारी मुझ पर ही सौंप गयी है। आने दे इसके बाबूजी को भी, देखते हैं कितना खूंखार है।"..


भूमि:– मासी केवल 10 लाख नेट और एक ललकी बुलेट ही तो एंकी के बाबूजी को ऑफर करनी है, उसी में तो सब सेट है।


चित्रा:– क्या भूमि दीदी आप भी एंकी के पीछे पड़ गयी।


जया:– मेरी कोई बेटी नही इसलिए चित्रा को मै अपनी बेटी की तरह विदा करूंगी। 10 लाख तो मैं केवल इसके कपड़ो पर खर्च कर दूं।


चित्रा:– अहो थांबा... प्रत्येकजण खूप उत्साही आहे. माझे पण ऐक.. (ओह रुको ... हर कोई कितना उत्साहित है। मेरी भी सुनो)


भूमि और जया एक साथ... "बोला"..


चित्रा, चिट्ठी उनके हाथ में देती... "सब खुद ही पढ़ लो"..


उस चिट्ठी को पढ़ने के बाद तो जैसे सभी जोश में आ गये। उनकी कामयाबी के लिये जया और भूमि बधाई देने लगी। चित्रा थोड़ी मायूस होती... "आर्य का प्रोजेक्ट था ये। और ये सफलता भी उसी की है।"..


"कौन सी सफलता"… पीछे से जयदेव भी वहां पहुंच गया..


चित्रा:– जयदेव जीजू, आर्य के "आर्म्स & एम्यूनेशन" प्रोजेक्ट की सफलता की बात कर रहे थे...


जयदेव:– कौन वो हमारे प्रहरी समुदाय वाला प्रोजेक्ट..


भूमि:– तुम्हे अभी झगड़ा करना है क्या जयदेव? प्रहरी का पैसा लगा है बस... यदि ज्यादा दिल में दर्द हो रहा है तो बोलो, पैसे वापस करवा देती हूं।


जयदेव:– मुझे नही ये बात अपने बाबूजी को समझाओ...


भूमि:– अब आर्य किताब लेकर चला गया उसका गुस्सा तुम लोग किसी से भी निकाल रहे। जब बाबा के दिल में इतना ही दर्द था तो क्यों प्रहरी सभा में आर्यमणि की वाह–वाही करवाये। अनंत कीर्ति किताब का चोर बना देते।


जयदेव, अपने दोनो हाथ जोड़ते... "मुझे माफ करो, और अपना गुस्सा शांत करो। गुस्सा, होने वाले बच्चे के लिये खतरनाक होगा।"


भूमि:– हां और बच्चे का बाप कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गया है। जयदेव तुम्हारी कमी अखड़ती है। जब से मैं प्रेगनेंट हुई हूं, तुमने तो खुद को और भी ज्यादा वयस्त कर लिया है।


जया, हैरानी के साथ खड़ी होती.… "तुम लोग जरा शांत रहो।"…


हर कोई शांत हो गया। जया बड़े ध्यान से मुख्य दरवाजे को देख रही थी। बड़े गौर से देखने के बाद एक चिमटी उठायी और दीवार पर लगे एक छोटे काले धब्बे को उस चिमटी से निकालती.… "ये करोड़ों वायरस का समूह, काफी खरनाक है।"


चित्रा:– क्या आप भी ना आंटी...


जया:– तुम लोगों को कुछ भी पता नही... खैर छोड़ो ये बातें.. जयदेव बाबू ये तो सच है कि आप भूमि को समय नहीं दे रहे...


जयदेव:– जब आप है मासी तो मुझे कोई चिंता नहीं। वैसे आर्य की कोई खबर...


जया बड़े ही उदास मन से... "पता न मेरे बेटे को किसकी नजर लगी है। पहले मैत्री के कारण हमसे कटा–काटा रहता था। उस गम से उबरने के बाद कुछ दिन तो हुये थे, जब वो हमारे साथ था। लेकिन तभी पता न कहां गायब हो गया। वापस लौटकर जब आया तब उसने जाहिर किया की वो हमे कितना चाहता है। उसकी हंसी कुछ दिन तो देखी थी, कि फिर से गायब। जयदेव कहीं से भी मेरे बेटे को ढूंढ लाओ। केशव तो लगभग हर एंबेसी में आर्य की तस्वीर भिजवा चुके हैं, लेकिन वहां से भी कोई जवाब नही आया।"


भूमि:– चिंता मत करो मासी, जहां भी होगा सुरक्षित होगा और जल्द ही लौटेगा...


जयदेव:– अच्छा चलता हूं मैं। आर्य की कोई खबर मिली तो जरूर बताऊंगा...


जयदेव वहां से वापस सुकेश के घर लौटा। वहां सुकेश, उज्जवल, तेजस, मीनाक्षी, अक्षरा सब बैठे हुये थे। जयदेव के पहुंचते ही... "क्या खबर है?"


जयदेव:– हमारा वशीकरण वाले जीव को जया ने चिमटे से पकड़ लिया।


सभी एक साथ चौंकते हुये... "क्या???"


जयदेव:– हां बिलकुल... ऊपर से जया के घर के सभी स्टाफ बिलकुल नए थे। हमारा एक भी आदमी वहां नही था। गैजेट वैग्रह सब बंद है। यहां तक की चित्रा और उसके ब्वॉयफ्रेंड के अपार्टमेंट में जो हमने आस–पास लोग रखे थे, वह भी गायब है। चित्रा के पास नया ड्राइवर है। उसके ब्वॉयफ्रेंड के पास नया ड्राइवर। केशव के डीएम ऑफ़िस में भी सारे नए स्टाफ है। हमने अपने जितने लोग लगाये थे सब के सब उन लोगों के आस–पास से गायब हो चुके है।


मीनाक्षी:– हां लेकिन जया ने चिमटी से अपना वशीकरण जीव कैसे पकड़ लिया?


जयदेव:– मैने उन्हे हवा में छोड़ा था, लेकिन वो सब जाकर बाहरी दीवार से चिपक गये। पतले पेन के छोटे से डॉट जितने थे, उसे भी जया ने पकड़ लिया।


अक्षरा:– जरूर ये कुलकर्णी परिवार और भूमि हमारे बारे में सब जानते है। वर्धराज जाने से पहले कुछ सिद्धियां इन्हे भी सीखा गया होगा इसलिए अपने बचने के उपाय पहले से कर रखे है।


जयदेव:– और चित्रा का क्या? उसने कैसे हमारे लोगों को हटाया...


अक्षरा:– हां तो वो भी साथ में मिली है। सबके साथ उसे भी मार दो।


जयदेव:– "उन्हे नही मार पायेंगे क्योंकि बीच में कोई तीसरा है। रीछ स्त्री जब ऐडियाना का मकबरा खोल रही थी, तब हमे लगा था कि आर्यमणि ने हमारा काम बिगड़ा है। लेकिन वो काम किसी सिद्ध पुरुष का था। पूरे जगह को ही उसने अपने सिद्धियों से बांध दिया था। आर्यमणि पर नित्या ने हमले भी किये, लेकिन वह घायल तक नही हुआ।"

"ऐसा ही कुछ नागपुर में उस रात भी हुआ था। आर्यमणि तो रात 11.30 बजे तक सरदार खान को लेकर निकल गया। स्वामी, सुकेश के घर से चोरी करने के बाद उल्टे रास्ते के जंगल कैसे पहुंचा? जो हमला आर्यमणि पर होना चाहिए था वह हमला स्वामी पर हो गया। सबसे अचरज तो इस बात का है कि जादूगर महान का दंश (सुकेश के घर से चोरी हुआ एक नायाब दंश, जिसके सहारे स्वामी को थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी से जीतते हुये दिखाया गया था) जो कभी हमसे सक्रिय नही हुआ, वह स्वामी के हाथ में सक्रिय था और उसके बाद वह दंश कहां गायब हुआ किसी को नहीं पता। वह दंश तो चोरी के समान के साथ भी नही गया फिर वो गया कहां? हमारा लूट का माल हवा निगल गयी या जमीन खा गयी कुछ पता ही नही चल रहा। तुम लोगों को नही लगता की बीच में कोई है जो अपना खेल रच रहा।


जयदेव अपने हिसाब से आकलन कर रहा था। उसे न तो आर्यमणि के ताकतों के बारे में पता था और न ही आर्यमणि के एक्जिट पॉइंट के बारे में कोई भी ज्ञान। वेयरवॉल्फ यादें देख सकते हैं, ये पता था। लेकिन यादों के साथ छेड़–छाड़ और दिमाग में अपनी कल्पना के कुछ अलग तस्वीर डाल देना, ऐसा कोई वुल्फ नही कर सकता था। इसलिए यादों के साथ छेड़–छाड़ हुई है, ऐसा कोई भी सीक्रेट प्रहरी सपने में भी नही सोच सकता था।



जयदेव बस अपनी समीक्षा दे रहा था कि क्यों वो लोग पिछड़ रहे है? उसकी बातें सुनने के बाद सुकेश कुछ सोचते हुये.… "सतपुरा के जंगल वाले कांड में पलक ने भी ऐसी ही आसंका जताई थी।"


जयदेव:– हां बिलकुल... उसी ने हमारा ध्यान इस पहलू पर खींचा था, वरना हम आर्यमणि के ऊपर ही ध्यान केंद्रित किये रहते...


मीनाक्षी:– तो क्या लगता है, कौन इसके पीछे हो सकता है?


जयदेव, कुटिल मुस्कान अपने चेहरे पर लाते.… "और कौन, वही हमारा पुराना दुश्मन... शायद आश्रम फिर से सक्रिय हो गया है और परदे के पीछे से वही कहानी रच रहा। जहां भी हमारा मामला फंसता है, फिर वह आर्यमणि हो या स्वामी या फिर जया, वहां बीच में ये चला आता है और हमारे कमजोर दुश्मन को भी ऐसे सामने रखता है जैसे वो हमारे लिये खतरा हो।"


उज्जवल:– इस से आश्रम वालों को क्या फायदा होगा?


जयदेव:– वही जो कभी छिपकर हमने किया था। दुश्मन के बारे में पूरा जानना। कमजोर और मजबूत पक्ष को परखना। वह हमे इन छोटे लोगों से भिड़ाना चाहता है। ताकि पहले हम छोटे हमले से इन लोगों को मार सके। छोटे हमले जैसे आज मैंने वशीकरण जीव पूरे उस समूह पर छोड़ा था, जो आर्यमणि के करीबी थे। वह जीव खुली आंखों से पकड़ में आ गया। इतनी सिद्धि केवल आश्रम वालों के पास ही हो सकती है। अब वो लोग ये सोच रहे होंगे की, हमलोग जया को सीक्रेट प्रहरी के लिये खतरा समझ रहे और इसलिए हम जया को मारने का प्रयास करेंगे। यदि मारने गये तब जया तो नही मरेगी, लेकिन हमारा एक और दाव उन आश्रम वालों के नजर में होगा।


कुछ लोग तो वाकई में उलझते है। लेकिन कुछ खुद से उड़ता तीर अपने पिछवाड़े में ले लेते हैं। आर्यमणि उस रात नागपुर से सबके दिमाग को इस कदर खाली करके भागा था कि सीक्रेट प्रहरी के दिमाग का फ्यूज ही उड़ गया। पलक की एक सही समीक्षा के ऊपर अपने नए समीकरण को जोड़कर जयदेव एंड कंपनी अब कुछ अलग या यूं कह लें की बिलकुल ही अलग दिशा में सोच को आगे ले जा रहे थे।


जहां तक बात जया की थी। तो जयदेव ने न तो कोई वशीकरण जीव छोड़ा था और न ही सबके बीच चल रही बात को रोक कर जया ने चिमटी से उस वशीकरण जीव को मुख्य दरवाजे से निकाला था। बल्कि ये पूरी घटना जयदेव के दिमाग की इतनी गहरी उपज थी कि जयदेव अपने मस्तिष्क भ्रम को पूर्ण सत्य मान लिया। और ये हो भी क्यों न... दिमाग में लगातार जब एक ही प्रकार की थ्योरी रात दिन घूमती रहेगी तो दिमाग भी अपने विजन से उस थ्योरी को प्रूफ कर ही देगा। सत्य और कल्पना का मायाजाल, जहां दिमाग की माया नजरों के सामने वह दृश्य दिखा देती है जिसे हम पहले से स्वीकार कर सच मान चुके होते है। जैसे की जयदेव के साथ हो रहा था। उसने आश्रम को सबसे बड़ा खतरा मान लिया था इसलिए दिमाग वही दिखा रहा था जो वह पहले से सत्य मान बैठा था।


आश्रम का सक्रिय होना सुनकर ही सीक्रेट प्रहरी के बीच हाहाकार मचा था। ऊपर से सुकेश के घर की चोरी ने और भी ज्यादा अपंग बना दिया था, क्योंकि सिद्ध पुरुष से निपटने और प्राणघाती चोट देने वाले सारे हथियार तो उन्ही चोरी के समान में थे। सभी लोग आगे क्या करना है उसपर विचार विमर्श कर ही रहे थे कि बहुत दिन बाद एक खुश खबरी इनके हाथ लगी थी। बीते 45–50 दिनो में पहली बार इतने खुश थे कि मुंह से हूटिंग अपने आप ही निकल रही थी। इतने दिनो में पहली बार कोई ढंग की खबर हाथ लगी थी। खबर मिल चुकी थी कि जो बॉक्स लूट कर ले गये थे, उन्हे खोला जा चुका है और अब उसका लोकेशन भी पता चल चुका है।
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Tri2010

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भाग:–66





लगभग २ महीने बाद… बर्कले, कार्लीफिर्निया, यू.एस.ए


शांत सा माहौल, पशु पक्षियों की आवाज और एक प्यारा सा 2 फ्लोर का कॉटेज, जो शानदार तरीके 4000 स्क्वायर फुट में बाना हुआ था। 2 कमरा, किचेन, लिविंग रूम और हॉल नीचे। ऊपर 3 कमरे और एक्सरसाइज करने के लिए बड़ा सा क्षेत्र। साइड से बड़ा सा गराज जिसमे 4-5 गाड़ियों के रखने कि जगह थी। उसी के नीचे एक बेसमेंट जिसे अपनी जरूरतों के हिसाब से इस्तमाल कर सकते थे, वहां सोने की रिम को रख दिया गया था। आगे बड़ा सा लॉन और पार्किंग स्पेस, उसी के साथ किनारे से कई खड़े बृक्ष की फेंसिंग। 200 मीटर के दायरे में कोई घर नहीं। और पीछे पुरा जंगल और पहाड़, जहां बहुत कम ही लोग जाया करते थे।…


"सो कैसा है ये तुम्हारा घर"… आर्य ने सबसे पूछा।


अलबेली:- कभी नागपुर से कोल्हापुर नहीं गयी और 2 महीने में दुनिया घुमाकर यहां तक पहुंचा दिये बॉस… वूहू.. लेकिन बॉस ये मेरा नाम मर्करी काहे रख दिये, बल्ब की जगह मुझे ही जलाओगे क्या?


उसकी बात सुनते ही सभी हसने लगे… "अरे ये फेक नाम है, तुझे यहां तेरे अपने नाम से ही पुकरेंगे। ड्रामा क्वीन अलबेली, और स्कूल के लिए जो नाम होगा वो है केली"..


ओजल:- केला की बहन केली।


अलबेली:- अब सब मुझे ऐसे ही नाम दो। लेकिन मुझे अलबेली ही बुलाना। आई ने रखा था, सुनने में अच्छा लगता है।


आर्यमणि:- अब शांति से सब सुनेगे। ये भारत नहीं है कि किसी के भी फटे में घुस गये। यहां लोग दावत पर भी जाते है तो अपने घर से खाना उठा कर ले जाते है। इसलिए जो तुमसे बात करने आये उसी से बात करना।


इवान:- कैसे बात करूं, मराठी या हिंदी में।


अलबेली:- तू गूंगा बनकर बात कर। मै भी वही करने वाली हूं। हमारे बीच तो ये रूही और बॉस ही है इंजिनियरिंग वाले।


आर्यमणि:- 2–4 लाइन बोलना अलग बात है लेकिन यहां रहने के हिसाब से तो ये भाषा मुझे भी नही आती। परेशानी तो है लेकिन इसका एक हल भी है। रूही अपने पास वुल्फबेन कितना बचा है।


रूही:- नहीं खुद से सीख लेंगे आर्य, ये चीटिंग है।


इवान:- हां तो रूही को खुद से सीखने दो, हमे पंजा फाड़ गर्दन का ज्ञान भी चलेगा।


आर्यमणि:- अब पैक की मेजोरिटी कह रही है रूही मान जाओ। भाषा सीखे बिना कैसे काम बनेगा। चलो अंग्रेजी का टीचर ढूंढा जाये।


रूही:- मै कह रही हूं ये चीटिंग है, और मै कहीं नहीं जाने वाली। मेरा दिल गवारा नहीं कर रहा। किसी की मेमोरी से उसकी स्टडी चुराना और फिर दूसरे के मेमोरी में डालना।


अलबेली:- कौन सा हम रोज-रोज करेंगे। केवल आज ही तो करेंगे इसके बाद नहीं।


रूही:- ये प्रकृति के नियम के खिलाफ है। प्योर अल्फा की शक्ति का नाजायज फायदा ले रहे हो आर्य।


आर्यमणि:- हम्मम ! बात तो तुम सही कह रही हो रूही। लेकिन कभी-कभी हमे आउट ऑफ द वे जाकर काम करना पड़ता है। मै वादा करता हूं, ये हम पहला और आखरी ऐसा काम करेंगे जो वाकई में हमे नहीं करना चाहिए था।


बाकी सब भी रूही और आर्यमणि के हाथ के ऊपर हाथ रखते… "हम भी वादा करते है।"..


रूही:- हां ठीक है समझ गयी.. लेकिन ये आखरी बार होगा। चलो चलते है।


ओजल:– जब सब राजी हो ही गये है, तो मैं चाहूंगी कि मुझे किसी कंप्यूटर जीनियस का ज्ञान मिले।


इवान:– फिर मुझे केमिस्ट्री का ज्ञान चाहिए।


अलबेली:– अंग्रेजी के बदला ये क्या सब सीख रहे है। इवान मुझे भी कुछ अच्छा बता...


रूही:– ये कुछ ज्यादा नही हो रहा...


इवान:– ये ज्यादा उनसे क्यों नही पूछते जिन्होंने हमें अंधेरे में फेंक दिया। वैसे हम है तो इंसान ही, फिर इंसानियत के लिये कुछ सीख रहे इसमें बुराई क्या है?


रूही:– वाह!!! सोच अच्छा करने की और रास्ता ही गलत चुन रहे, फिर अच्छे बुरे में अंतर कैसे करोगे।


ओजल, रूही के कंधे से लटकती... "तुम क्यों हो दीदी। इसके बाद जैसा तुम कहोगी हम आंख मूंद कर कर लेंगे।अच्छा और बुरे का अंतर आप हमसे बेहतर जानती हो। अलबेली तू फिजिक्स ले"


रूही:– वाह!!! अभी तक मैने तो हां–हूं भी नही किया और अपनी बात कहने के बाद सीधा आगे के कार्यक्रम में लग गये।


अलबेली:– ओ दीदी, लोगों ने हमारे साथ बेईमानी करके हमें वक्त से पीछे धकेल दिया। आज थोड़ा हम बेईमानी करके आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे। अब मान भी जाओ...


रूही:– ठीक है चूंकि ये आखरी बार है इसलिए अपने मन के विषय ले लो। बॉस पूरी की पूरी पढ़ाई दिमाग में डाल देना इतना आसान होगा क्या? अभी तक तो तुम केवल कुछ यादें ही डाले हो किसी के दिमाग में, उसका भी डेटा ना लिया की यादें डालने के बाद दिमाग की क्या हालत होती होगी। ऐसे में इतनी सारी यादें एक साथ डालना, क्या यह सुरक्षित होगा?


आर्यमणि:– मुझे नही पता, लेकिन इसका भी उपाय है। मैं इस पर पहले सोध कर लूंगा।


रूही:– हां ये ठीक रहेगा। तो साेध कैसे करे।


आर्यमणि:– अपने पसंदीदा विषय वनस्पति विज्ञान से..


रूही:– ठीक है चलो कोशिश करते हैं।


वहीं से एक टैक्सी बुक हुई। वुल्फबेन का एक इंजेक्शन लिया उन लोगों ने और चल दिए इंटरनेट के पते पर, जहां वनस्पति विज्ञान के महान सोधकर्ता रहते थे। मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में जैसे ही घुसने लगे, गार्ड उसे रोकते… "यहां क्या काम है।" (परिवर्तित भाषा)


आर्यमणि:- वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर विलियम कूपर से मिलना है।


गार्ड:- सर से मिलने का अपॉइंटमेंट है।


आर्यमणि, 10 डॉलर का एक नोट दिखाते… "मेरे पास ये है, मीटिंग हो पायेगी क्या।"


गार्ड:- मुझे नहीं पता वो अभी है भी या नहीं।


आर्यमणि, 10 डॉलर के 2 नोट दिखाते… "अब"


गार्ड:- पूछना पड़ेगा।


आर्यमणि, 3 नोट निकालकर…. "इसके बाद चला जाऊंगा।"..


गार्ड, 30 डॉलर झटपट खींचते.… "50 डॉलर कूपर सर के असिस्टेंट के लिए और सर से मिलना किस उद्देश्य से आये हो।


आर्यमणि, 50 डॉलर बढ़ाते… "उनसे वनस्पति विज्ञान सीखनी है। जो भी उनकी फीस है, अभी पुरा एडवांस दे दूंगा। लेकिन पहले एक डेमो क्लास लेंगे।"..


गार्ड उसे अपने पीछे आने कहा। सभी पीछे-पीछे चल दिये। गार्ड ने सामने से असिस्टेंट को 50 डॉलर थमाया और मामला समझाया। असिस्टेंट ने पांचों को एक झलक देखा और अंदर जाकर कुछ देर बाद वापस आया।… "तुम लोग मेरे साथ आओ।"..


सभी अंदर के एक वेटिंग एरिया में आकर बैठ गये। कुछ देर बाद विलियम मास्टर साहब आये। थोड़ी बहुत पूछताछ के बाद पांचों को एक छोटे से क्लास में ले गये। रूही चोर नजर से चारो ओर देखी और आर्यमणि के कान में कहने लगी… "यहां तो 2 सीसी टीवी कैमरे लगा हुआ है।"..


आर्यमणि:- वाशरूम का पूछो उससे है की नहीं, और चेक करके आओ वहां कोई कैमरा तो नहीं लगा। साले के शक्ल पर ही ठरकी लिखा है।


रूही, आर्यमणि की बात सुनकर हसने लगी। वो जाकर अपने एनिमल इंस्टिंक्ट से चारो ओर का जायजा लेने लगी, आर्यमणि का शक सही था। उस छोटे बाथरूम में तो 3 कैमरा लगा था। रूही वापस आकर सारा ब्योरा आर्यमणि के कानो में दी, और कहने लगी… "अब क्या करेंगे।"…


आर्यमणि सबको खड़े हो जाने का इशारा किया और इशारों में समझा दिया इसे घेरकर अपना काम करना है। पांचों खड़े हो गये। विलियम कूपर को चारो ओर से घेर लिया गया। अचानक से पांचों को यूं गोल घेरे देख विलियम घबराकर उठने की कोशिश कर ही रहा था कि इतने में एक इंजेक्शन उसे लग गया और आर्यमणि के बड़े–बड़े नाखून उसके गर्दन में।"..


लगभग 70–80 मिनट की प्रक्रिया और उसके बाद आर्यमणि ने उसे हील कर दिया। सब लोग वापस आकर बैठ गये। विलियम की आखें खुलते ही आश्चर्य से वो देखते… "तुम सब यहां थे ना।"..


आर्यमणि:- आपने ही तो बुलाया था।


वो कॉफ्यूज होकर अपना सर खुजाने लगा। 45 मिनट का डेमो क्लास था, घड़ी देखा तो 1 घंटा से ऊपर हो गया था। कूपर चेहरे से काफी कन्फ्यूज दिख रहा था। पूरे अल्फा पैक को एक नजर बड़े ध्यान से देखते... "क्या तुम्हारा डेमो क्लास खत्म हो गया?"


आर्यमणि:– हां बिलकुल मिस्टर कूपर...


कूपर:– तो आगे के क्लास के बारे में क्या सोचा है?


आर्यमणि:- मिस्टर कूपर आप बहुत हाई क्लास पढ़ाते है और हम बेसिक वाले है। रहने दीजिये और अपने एक क्लास की फीस बताईये।


विलियम थोड़ा चिढ़ते हुए… "500 डॉलर।"


आर्यमणि:- पागल हो गया है क्या? मुझे रसीद दो बाकी मैं लीगल में देख लूंगा।


विलियम तुरंत अपने सुर बदलते… "50 डॉलर दो, और यदि क्लास शुरू करना हो तो उसके लिये एडवांस 1000 डॉलर लगेंगे, तुम सभी के महीने दिन की फीस।


आर्यमणि उसे 50 डॉलर देकर वहां से बाहर आया। जैसे ही अल्फा पैक बाहर आया कान फाड़ हूटिंग करने लगे। आवाज इतनी तेज थी कि मामला थाने पहुंच गया और पांचों को पुलिस ने पहली हिदायत देकर छोड़ दिया। खुश तो काफी थे। वहीं से पूरा अल्फा पैक शॉपिंग के लिये निकल गया। शॉपिंग तो ऐसे कर रहे थे जैसे पूरे शॉपिंग मॉल को लूट लेंगे। अत्याधुनिक जिम सेटअप, कपड़े, ज्वेलरी, टीवी, वाशिंग मशीन, घर के जरूरतों के ढेर सारे उपकरण, लैपटॉप, मोबाइल, ग्रॉसरी के समान। जो भी जरूरत का दिखता गया सब उठाते चले गये। एक शाम की शॉपिंग पर उन लोगों ने 50 हजार डॉलर उड़ा दिये।


अब जहां रहते है, वहां के कुछ नियम भी होंगे। शॉपिंग मॉल के मैनेजर ने आर्यमणि को इंश्योरेंस पॉलिसी समझाकर हर कीमती सामान का इंसोरेंस कर दिया। इसके अलावा घर की सुरक्षा के मद्दे नजर 5000 यूएसडी का अलार्म सिक्योरिटी सिस्टम को इंस्टॉल करने का सुझाव देने लगा। आर्यमणि को लग गया की ये बंदा काम का है। उसने भी तुरंत अपने बिजली, गैस, पानी इत्यादि के कनेक्शन की बात कर ली। मैनेजर ने भी वहीं बैठे–बैठे मात्र एक फोन कॉल पर सारा काम करवा दिया।


आर्यमणि भी खुश। कौन सा अपने पैसा लग रहा था, इंसोरेंस, सिक्योरिटी इत्यादि, इत्यादि जो भी मैनेजर ने सुझाव दिया आर्यमणि उसे खरीद लिया। 50 हजार यूएसडी शॉपिंग मॉल में और 30 हजार यूएसडी मैनेजर के सजेशन पर आर्यमणि ने खर्च कर डाले। इधर आर्यमणि ने मैनेजर के कहे अनुसार समान खरीदा। उधर मॉल के मैनेजर ने उन लोगों का समान फ्री डेलिवरी भी करवाया और इलेक्ट्रॉनिक सामान को उसके घर में लगाने के लिये इलेक्ट्रीशियन और टेक्नीशियन दोनो को साथ ही भेज दिया। साथ में अन्य टेक्नीशियन भी थे जो अन्य जरूरी चीजों को घर में फिट करते।


शाम तक इन लोगों का घर कंप्लीट हो चुका था जहां जिम, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, केबल, वाईफाई, हाई सिक्योरिटी अलार्म, गैस कनेक्शन, पानी कनेक्शन, इत्यादि, इत्यादि लग चुके थे। सभी लोग आराम से फुर्सत में बैठे। लिविंग रूम में क्राउच लग गया था। पांचों वहीं बैठकर आराम से पिज्जा का लुफ्त उठाते.… "बॉस अब एक्सपेरिमेंट हो जाये क्या?"


आर्यमणि:– ठीक है पहले रूही से ही शुरू करते हैं।


रूही:– नाना, कुछ गड़बड़ हो गयी तो मैं मेंटल हो जाऊंगी। पहले अलबेली पर ट्राय करो।


अलबेली:– नाना, ओजल ने इसके लिये सबसे ज्यादा मेहनत की है। ओजल को पहला मौका मिलना चाहिए।


ओजल:– मुझे कोई ऐतराज नहीं। अब जब मैं जोखिम उठा रही हूं तो ज्ञान के भंडार को दिमाग में संरक्षित करने के संदर्भ में मेरी कुछ इच्छा है। यदि ये प्रयोग सफल हुआ तब वह करेंगे। और मैं पूछ नही रही हूं। बॉस मैं रिस्क ले रही तो मेरी बात मानोगे या नही।


आर्यमणि हां में अपना सर हिलाया और गर्दन के पीछे अपने क्ला घुसाकर आंख मूंद लिया। पहला खेप ज्ञान का उसने अंदर डाला। विलियम कूपर से जितना फिल्टर ज्ञान लिया था, उसका 1% अंदर डाल दिया। एक मिनट बाद दोनो में अपनी आंखें खोल ली। हर कोई ओजल को बड़े ध्यान से देख रहा था। ओजल कुछ पल मौन रहने के बाद.… "क्या हुआ ऐसे घूर क्यों रहे हो?"


सब लोग ध्यान मुद्रा से विश्राम की स्थिति में आते... "तू ठीक तो है न। दिमाग के पुर्जे अपने जगह पर"…. अलबेली मजाकिया अंदाज में पूछी... ओजल उसकी बातों को दरकिनार करती... "वहां से डिक्शनरी उठाओ और मैं जो बोल रही उसे मैच करके देखो।"… अपनी बात कह कर ओजल ने मशरूम को अपने हाथ में लेकर... "इसे एगारिकस बिस्पोरस कहते है।"


अलबेली चौंकती हुई... "क्या एंगा रिंगा विस्फोटस, ये कैसा नाम है "


आर्यमणि:– अलबेली कुछ देर बस चुप चाप देखो... ओजल बहुत बढ़िया। कुछ और बताओ...


ओजल फिर वनस्पति विज्ञान के बारे में कुछ–कुछ बताने लगी। आर्यमणि उसे बीच में ही रोकते वापस क्ला उसके गर्दन में घुसाया और इस बार 30% यादें डाल दीया। ओजल इस बार आंख तक नही खोल पा रही थी। उसके सर में जैसे फुल वॉल्यूम पर डीजे बज रहा हो। उसे आंख खोलने में भी परेशानी हो रही थी। आर्यमणि समझ गया की एक साथ इतनी ज्यादा याद दिमाग झेल नहीं पायेगा, इसलिए उसने तुरंत अपना क्ला अंदर डाला और 5 फीसदी याद को ओजल के दिमाग से हटा दिया। हां लेकिन 25% यादें भी ओजल को उतनी ही तकलीफ दे रही थी। आर्यमणि ऐसे ही 5% और कम किया। लेकिन ओजल के लिये फिर भी कोई राहत नहीं। कुल 10% पर जब आया तब जाकर ओजल पूरी तरह से होश में आयी और उसका व्यवहार भी सामान्य था।


आर्यमणि समझ चुका था कि एक बार कितनी यादों को दिमाग में डालना है। हां लेकिन दोबारा याद को अंदर डालने के लिये दिमाग कितने देर में तैयार होता है, यह समझना अभी बाकी था। आर्यमणि पहले एक घंटा से शुरू किया। यानी की एक घंटे बाद आर्यमणि, ओजल के दिमाग में कुछ डाला, लेकिन एक घंटे बाद भी वही समस्या हुई। एक घंटा का समय अंतराल 2 घंटा हुआ, फिर 3 घंटा। 21 घंटे बाद जब आर्यमणि ने ओजल के दिमाग में वापस कुछ याद डाला तब जाकर कोई समस्या नहीं था। आर्यमणि ने इस बार एक साथ 15% यादें डाल दिया। 15% याद ओजल ने बड़े आसानी से अपने अंदर समेट लिया।



आर्यमणि ने फिर एक पैमाना तय कर लिया। उसे समझ में आ चुका था कि वुल्फ ब्रेन होने के कारण हर बार याद समेटने की क्षमता बढ़ जाती है। साथ ही साथ २ याद डालने के बीच में समय अंतराल भी कम लगता है। जैसे पहले 21 घंटा था तो अगली बार मात्र 15 घंटे लगे। परीक्षण सफल रहा और अगले 4 दिन में विलियम कूपर का पूरा ज्ञान हर किसी में साझा हो चुका था। इसी के साथ ओजल ने अपनी शर्त भी रख दी। उसे कंप्यूटर साइंस के अलावा अंग्रेजी भाषा पर भी पूरा कमांड चाहिए, इसलिए किसी इंग्लिश के विद्वान का ज्ञान भी उसे चाहिए। और जो अलग–अलग विषय सबने चुने है, वो सारे विषय हर कोई एक दूसरे से साझा करेगा।


अब चुकी ओजल के शर्त पर सबने हामी भरी थी और किसी को कहीं से कोई बुराई नजर नही आ रही थी, इसलिए सब राजी हो गये। न सिर्फ कैलिफोर्निया से बल्कि अमेरिका के दूसरे शहरों से भी विद्वान को ढूंढा गया और बड़े ही चतुराई से सबका ज्ञान अपने अंदर समेट लिया गया। जैसे कंप्यूटर साइंस और जीव विज्ञान के लिये न्यूयॉर्क के 1 विद्वान प्रोफेसर और एक विद्वान डॉक्टर को पकड़ा, तो वाणिज्य शस्त्र और अंग्रेजी के लिये वॉशिंगटन डीसी पहुंच गये। ऐसे ही करके पांचों ने पहले विलियम कूपर का दिमाग अपने रिसर्च के लिये इस्तमाल किया। उसके बाद ओजल की अंग्रेजी और कंप्यूटर साइंस, आर्यमणि का जीव विज्ञान, रूही का वाणिज्य शास्त्र, इवान की केमिस्ट्री और अलबेली की फिजिक्स के लिये विद्वानों को ढूंढा गया। उनके अध्यन को उनके दिमाग से चुराया गया और उसके बाद मे हर किसी के पास हर विषय को साझा कर दिया गया।
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Tri2010

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भाग:–67







पहले इन लोगों ने कैलिफोर्निया के विद्वानों से ज्ञान लिया था, उसके बाद अमेरिका भ्रमण पर निकले थे। करीब महीना दिन में सारा ज्ञान समेटकर कैलिफोर्निया अपने स्थाई निवास पर पहुंचे। सभी एक साथ हॉल में बैठकर पंचायत लगाये।


रूही:– यहां आ गये। सीखना था अंग्रेजी उसके साथ–साथ न जाने क्या–क्या नही हमने सिख लिया। या यूं कह लें की गलत तरीके से सिख लिया। अब आगे क्या?


आर्यमणि:- ज्ञान लेना गलत नही था लेकिन उसे हमने अर्जित गलत तरीके से किया। कोई बात नही जो भी ज्ञान है उसका प्रसार करके हम अपनी गलती को ठीक करने की कोशिश करेंगे। अब आगे यही करना है।


ओजल:– सही कहा भैया। और जबतक यहां मज़ा आ रहा है रहेंगे, मज़ा खत्म तो पैकअप करके कहीं और।


अलबेली:- मै थक गई हूं, मै ऊपर वाला कमरा ले लेती हूं।


इवान और ओजल भी उसके पीछे निकल गये सोने। रूही और आर्यमणि दोनो बैठे हुये थे… "कहां से कहां आ गये ना बॉस। जिंदगी भी कितनी अजीब है।"..


आर्यमणि:- तुम तो इंजीनियरिंग फोर्थ ईयर में थी ना। मेरी वजह से तुम्हारा तो पुरा कैरियर खत्म हो गया।


रूही:- या नए कैरियर की शुरुआत। इन तीनों का कुछ सोचा है?


आर्यमणि:- कुछ दिन यहां के माहौल में ढलने देते है। स्कूल का पता किया था, इनको ग्रेड 11 में एडमिशन करवाने का सोच रहा हूं।


रूही:- और टेस्ट जो होगा उसका क्या?


आर्यमणि:- ज्ञान की घुट्टी दी है ना। 11th ग्रेड के टेस्ट तो क्या उन्हे डॉक्टर की डिग्री लेने में कोई परेशानी नही होगी।


रूही:- हां ये भी सही है। वैसे पिछले कुछ महीनों से बहुत भागदौड़ हो गई, मै भी चलती हूं आराम करने।


आर्यमणि:- हम्मम ठीक है जाओ।


आर्यमणि कुछ देर वहीं बैठा रहा, अपने फोन को देखते। सोचते–सोचते कब उसकी आंख लग गयी पता ही नहीं चला। सुबह अलबेली और इवान के झगड़े से उसकी नींद खुली… "क्या हुआ दोनो के बीच लड़ाई किस बात की हो रही है?"..


अलबेली:- टीवी देखने को लेकर, और किस बात पर।


आर्यमणि:- अब टीवी देखने में झगड़ा कैसा?


अलबेली:- बॉस ये ना पता नहीं कौन-कौन सी मूवी सुबह-सुबह लगा दिया। शर्म नाम की चीज है कि नहीं पूछो इससे।


इवान:- बॉस वो मुझे थोड़े ना पता था कि यहां पुरा ओपन ही दिखा देते है। 5 सेकंड के लिये आया और गया उसपर ये झगड़ा करने बैठ गई।


आर्यमणि:- समय क्या हुआ है।


इवान:- 4.30 बज रहे है।


आर्यमणि:- ठीक है इवान सबको जगाकर ले आओ, जबतक मै अलबेली से ट्रेनिंग शुरू करता हूं।


"अलबेली याद है ना क्या करना है, दिमाग में कुछ भी अंधेरा नहीं होने देना है और पुरा ध्यान अपने दिमाग पर। अपने धड़कन और गुस्से पर पूरा काबू। समझ गयी।"..


अलबेली ने हां में अपना सर हिलाया और आर्यमणि को अपने तैयार होने का इशारा की। आर्यमणि ने पूरा चाकू उसके पेट में घुसा दिया। दर्द से वो बिलबिला गयी और अगले ही पल उसने अपना शेप शिफ्ट कर लिया।


शेप शिफ्ट करते ही वो तेजी के साथ अपने क्ला आर्यमणि पर चलाने लगी। आर्यमणि बिना कोई परेशानी के अपने हाथो से उसे रोकता रहा। वो गुस्से में ये भी नहीं देख पायी की उसका जख्म कबका भर चुका है। हमला करते-करते उसे अचानक ख्याल आया और अपनी जगह खड़े होकर अपनी तेज श्वांस को काबू करती, लंबी श्वांस अंदर खींचने लगी और फिर धीमी श्वांस बाहर।


कुछ पल के बाद… "सॉरी दादा, वो मै खुद पर काबू नहीं रख पायी।"..


आर्यमणि:- कुछ भी हो पहले से बेहतर है। पहले 5 मिनट में होश आता था आज 2 मिनट में आया है।


लगभग 2 घंटे सबकी ट्रेनिंग चली और सबसे आखरी में आर्यमणि की। जिसमें पहले चारो ने मिलकर उसपर लगातार हमले किये। कोई शेप शिफ्ट नहीं। फिर इलेक्ट्रिक चेयर और बाद में अन्य तरह की ट्रेनिंग। इसके बाद सबसे आखरी में शुरू हो गया इनके योगा का अभ्यास।


ट्रेनिंग खत्म होने के बाद सबने फिर एक नींद मार ली और सुबह के 9 बजे सब नाश्ते पर मिले। नाश्ते के वक़्त सबकी एक ही राय थी, भेज खाने में बिल्कुल मज़ा नहीं आता। आर्यमणि सबके ओर हंसते हुए देखता और प्यार से कहता… "खाना शरीर की जरूरत है, तुम लोग प्रीडेटर नहीं इंसान हो।"..


आज आर्यमणि ने तीनों टीन वुल्फ को पूरा शहर घूमने भेज दिया और खुद रूही को लेकर पहले ड्राइविंग स्कूल पहुंचा। पैसे फेके और लाइसेंस के लिये अप्लाई कर दिया। वहां से निकलकर दोनो बैंक पहुंचे जहां 5 खाते खुलवाने और सभी खाते में लगभग 2 मिलियन अमाउंट जमा करने की बात जैसे ही कहे, बैंक वाले तो दामाद की तरह ट्रीट करने लगे और सारी पेपर फॉर्मेलिटी तुरंत हो गयी।


आर्यमणि और रूही वहां से निकलकर टीन वुल्फ के स्कूल एडमिशन की प्रक्रिया समझने स्कूल पहुंच गये और उसके बाद वापस घर। घर आकर रूही ने एक बार तीनों को कॉल लगाया और उनके हाल चाल लेकर आर्यमणि के पास आकर बैठ गई।… "अपने लोगो के बीच ना होने से कितना खाली-खाली लग रहा है ना।"..


आर्यमणि:- खाली क्यों लगेगा, ये कहो की काम नहीं है उल्लू। वैसे बात क्या है आज बहुत सेक्सी दिख रही..


रूही:- ओह हो मै सेक्सी दिख रही हूं, या ये क्यों नहीं कहते कि कुछ-कुछ हो रहा है।


आर्यमणि:- एक हॉट लड़की जब पास में हो तो मूड अपने आप ही बन जाता है।


रूही:- सोच लो ये हॉट लड़की उम्र भर तुम्हारे साथ रहने वाली है और एक बात बता दूं मिस्टर आर्यमणि कुलकर्णी, मुझे तुमसे बिल्कुल प्यार नहीं। मुझे जानते हो कैसा लड़के की ख्वाहिश है..


आर्यमणि:- कैसे लड़के की..


रूही:- कोई मुझे छेड़े ना तो वो खुद उससे कभी नहीं जीत सकता हो, लेकिन फिर भी मेरे लिए भिड़कर मार खा जाये। ऐसा लड़का जिसकी अपने मां बाप से फटती हो, लेकिन जब मेरा मैटर हो तो चेहरे पर शिकन दिल में डर रहे, फिर भी हिम्मत जुटा कर अपने पिता से कह सके, मुझे रूही से प्यार है। बेसिकली बिल्कुल इनोसेंट जो मुझसे प्यार करे।


आर्यमणि:- तो यहां रहने से थोड़े ना मिलेगा ऐसा लड़का। चलो वापस भारत।


रूही, आर्यमणि को किस्स करती… "मेरी किस्मत में होगा तो मुझे मिल ही जाएगा। तब तुम मेरी तरफ देखना भी नहीं। लेकिन अभी तो कुछ तन की इक्छाएँ है, उसे तो पूरी कर लूं।"..


आर्यमणि, हड़बड़ा कर उठ गया। रूही हैरानी से आर्यमणि को देखती... "क्या हुआ बॉस, ऐसे उठकर क्यों जा रहे।"


आर्यमणि:– तुम भी आओ...


दोनो बेसमेंट में पहुंच गये। आर्यमणि अपने सोने के भंडार को देखते... "इसके बारे में तो भूल ही गये।"


रूही:– हां ये अमेरिका है और हमारी मस्त मौलों की टोली। कहीं कोई सरकारी विभाग वाले यहां पहुंच गये फिर परेशानी हो जायेगी।


आर्यमणि:– हां लेकिन इतने सोने का करे क्या? 5000 किलो सोना है।


रूही:– कोई कारगर उपाय नहीं मिल रहा है। यहां की जैसी प्रशासन व्यवस्था है, बिना बिल के कुछ भी बेचे तो चोरी का माल ही माना जायेगा। इसे तो किसी चोर बाजार ही ठिकाने लगाना होगा।


आर्यमणि:– ज्वेलरी शॉप डाल ली जाये तो। पैसे इतने ही पड़े–पड़े सर जायेंगे और गोल्ड इतना है कि कहीं बिक न पायेगा।


रूही:– बात तो सही कह रहे हो, लेकिन हम यहां टूरिस्ट वीजा पर है। 6 महीने के लिये घर लीज पर लिया है। यहां धंधा शुरू करना तो दूर की बात है, लंबे समय तक रहने के लिये पहले जुगाड करना होगा।


आर्यमणि:– सबसे आसान और बेस्ट तरीका क्या है।


रूही:– यहां के किसी निवासी से शादी कर के ग्रीन कार्ड बनवा लो। लेकिन फिर उन तीनो का क्या...


आर्यमणि:– हम इतना डिस्कस क्यों कर रहे है। वो मॉल का मैनेजर है न निकोल, उसके पास चलते हैं। वैसे भी उसका क्रिसमस का महीना तो हमने ही रौशन किया है न।


रूही:– एक काम करते है, दोनो के लिये बढ़िया सा गिफ्ट लेते है। 1 बॉटल सैंपियन कि और कुछ मंहगे खिलौने उनके बच्चे के लिये।


आर्यमणि:– हां चलो ये भी सही है...


दोनो बाजार निकले वहां से महंगा लेडीज पर्स, मंहगी वॉच, बच्चों के लिये लेटेस्ट विडियो गेम, और एक जो गोद में था उसके लिये खूबसूरत सा पालना। सारा गिफ्ट पैक करके आर्यमणि और रूही निकोल के घर रात के करीब 9 बजे पहुंचे। बेल बजी और दरवाजे पर उसकी बीवी। बड़ा ही भद्दा सा मुंह बनाते, बिलकुल रफ आवाज में पूछी... "क्या काम है।"…


शायद यहां के लोगों को पहचान पूछने की जरूरत न पड़ती। सीधा काम पूछो और दरवाजे से चलता करो। आर्यमणि और रूही उसकी बात सुनकर बिना कुछ बोले ही वहां से निकलने लगे। वह औरत गुस्से में चिल्लाती... "बेल बजाकर परेशान करते हो। शक्ल से ही चोर नजर आ रहे। रूको मैं अभी तुम्हारी कंप्लेन करती हूं।"..


आर्यमणि:– मुझे निकोल से काम था लेकिन तुम्हारा व्यवहार देखकर अब मैं जा रहा। अपने हब्बी से कहना वही आदमी आया था जिसने उसके कहने पर 30 हजार यूएसडी के समान लिये। लेकिन अब मुझे उसके यहां का व्यवहार पसंद नही आया।


वह औरत दरवाजे से ही माफी मांगती दौड़ी लेकिन आर्यमणि रुका नही और वहां से टैक्सी लेकर अपने घर लौट आया। घर लौटकर वह हाल में बैठा ही था कि पीछे से घर की बेल बजी। आर्यमणि ने दरवाजा खोला तो सामने निकोल और उसकी बीवी खड़े थे। आर्यमणि भी उतने ही रफ लहजे में.… "क्या काम है।"…


वह औरत अपने दोनो हाथ जोड़ती.… "कुछ लड़के पहले ही परेशान कर के गये थे इसलिए मैं थोड़ी उखड़ी थी। प्लीज हमे माफ कर दीजिये।"..


आर्यमणि पूरा दरवाजा खोलते... "अंदर आओ"…


निकोल:– सर प्लीज बात दिल पर मत लीजिये, मैं अपनी बीवी की गलती के लिये शर्मिंदा हूं।


आर्यमणि:– क्यों हमारे शक्ल पर तो चोर लिखा है न... तुम्हारी बीवी ने तो हमे चोर बना दिया। न तो तुम्हारी माफी चाहिए और न ही तुम्हारे स्टोर का एक भी समान।


आर्यमणि की बात सुनकर स्टोर मैनेजर निकोल का चेहरा बिल्कुल उतर गया। एक तो दिसंबर का फेस्टिव महीना ऊपर से जॉब जाने का डर। निकोल का चेहरा देख उसकी बीवी का चेहरा भी आत्मग्लानी से भर आया... "वापस करने दो इसे समान, मैं खरीद लूंगी। बल्कि आपके पहचान का कोई कार डीलर हो तो वो भी बता दीजिए"…


रूही की आवाज सुनकर निकोल का भारी मन जैसे खिल गया हो.… "क्या मैम"..


आर्यमणि:– उसका नाम रूही है और मेरा...


निकोल:– और आपका आर्यमणि। यदि आप मजाक कर रहे थे वाकई आपने मेरे श्वांस अटका दी थी। और यदि मजाक नही कर रहे तो समझिए श्वान्स अब भी अटकी है।


आर्यमणि, अपने हाथ से उन्हे गिफ्ट देते... "आपकी पत्नी ने हमारा दिल दुखाया इसलिए हमने भी वही किया। अब बात बराबर, और ये गिफ्ट जो आपके लिये लेकर आये थे।"..


गिफ्ट देखकर तो दोनो मियां–बीवी का चेहरा खिल गया। ऊपर से उनके बच्चों तक के लिये गिफ्ट। दोनो पूरा खुश हो गये। रूही, निकोल की बीवी के साथ गिफ्ट का समान कार में रखवा रही थी और निकोल, आर्यमणि के साथ था।


निकोल:– बताइए सर क्या मदद कर सकता हूं।


आर्यमणि:– यदि मैं यहां के किसी लोकल रेजिडेंस से शादी कर लूं तो मुझे ग्रीन कार्ड मिल जायेगी...


निकोल:– थोड़ी परेशानी होगी, लेकिन हां मिल जायेगी..


आर्यमणि:– मेरे साथ तीन टीनएजर रहते है, फिर उनका क्या?


निकोल:– तीनों प्रवासी है और क्या आप पर डिपेंडेंट है..


आर्यमणि:– हां...


निकोल:– आपको मेयर से मिलना चाहिए। आप पसंद आ गये तो आपके ग्रीन कार्ड से लेकर उन टीनएजर के एडोप्टेशन का भी बंदोबस्त हो जायेगा।


आर्यमणि:– और क्या मेयर मुझसे मिलेंगे...


निकोल:– हां बिलकुल मिलेंगे.... शॉपिंग मॉल उन्ही का तो है। कहिए तो मैं अपॉइंटमेंट ले लूं।


आर्यमणि:– रहने दो, हमारी बात नही बनी तो तुम्हारी नौकरी चली जायेगी।


निकोल:– मुझे यकीन है बात बन जायेगी। मैं अपॉइंटमेंट फिक्स करके टेक्स्ट करता हूं।


2 दिन बाद मेयर से मीटिंग फिक्स हो गयी। आर्यमणि और रूही उससे मिले। कुछ बातें हुई। 50 हजार यूएसडी उसके इलेक्शन फंड में गया। 10 हजार डॉलर में एक लड़का और एक लड़की ने दोनो से शादी कर ली। मैरिज काउंसलर ने आकर विजिट मारी। सारे पेपर पुख्ता किये। उसके बाद वो दोनो अपने–अपने 10 हजार यूएसडी लेकर अपने घर। अब बस एक बार तलाक के वक्त मुलाकात करनी थी, जिसका पेपर पहले ही साइन करवा कर रख लिया गया था।


आर्यमणि मिठाई लेकर मेयर के पास पहुंचा और अपने आगे की योजना उसने बतायी की कैसे वह कैलिफोर्निया के पास जो गोल्ड माइन्स है उसके जरिये सोने का बड़ा डिस्ट्रीब्यूटर बनना चाहता है। हालांकि पहले तो मनसा ज्वेलरी शॉप की ही थी लेकिन थोड़े से सर्वे के बाद यह विकल्प ज्यादा बेहतर लगा।


मेयर:– हां लेकिन सोना ही क्यों? उसमे तो पहले से बहुत लोग घुसे है।


आर्यमणि:– हां लेकिन आप तो नही है न इस धंधे में..


मेयर:– न तो मैं इस धंधे में हूं और न ही कोई मदद कर सकता हूं। इसमें मेरा कोई रोल ही नही है। सब फेडरल (सेंट्रल) गवर्मेंट देखती है।


आर्यमणि:– हां तो एक गोल्ड ब्रिक फैक्ट्री हम भी डाल लेंगे। इसमें बुराई क्या है। प्रॉफिट का 10% आपके पार्टी फंड में। बाकी आप अपना पैसा लगाना चाहे तो वो भी लगा सकते है।


मेयर:– कितने का इन्वेस्टमेंट प्लान है?


आर्यमणि:– 150–200 मिलियन डॉलर। आते ही 2 मिलियन खर्च हो गये है। कुछ तो रिकवर करूंगा।


मेयर:– मुझे प्रॉफिट का 30% चाहिए.. वो भी अनऑफिशियली..


आर्यमणि:– मुझे मंजूर है लेकिन 50 मैट्रिक टन बिकने के बाद ये डील शुरू होगी।


मेयर:– और 50 मेट्रिक टन का प्रॉफिट...


आर्यमणि:– उसमे हम दोनो में से किसी का प्रॉफिट नही होगा। आप अनाउंस करेंगे की पहले 50 मेट्रिक टन तक हम धंधा जीरो परसेंट पर करेंगे। ये आपके इलेक्शन कैंपेन में काम आयेगा और हम कुछ कस्टमर भी बना लेंगे...


मेयर:– गोल्ड का रेट फेडरल यूनिट तय करती है उसमे कम या ज्यादा नही कर सकते। हां लेकिन तुम 20 मेट्रिक टन का प्रॉफिट कैलिफोर्निया के नाम अनाउंस कर दो और 30 मैट्रिक टन का प्रॉफिट सीधा फेडरल यूनिट के नाम, फिर तो तुम हीरो हुये।


आर्यमणि:– ऐसी बात है क्या? फिर तो अभी से कर दिया।


मेयर:– बधाई हो। सही धंधा अच्छा चुना है। हां लेकिन कुछ और धंधा करते तो मैं भी तुम्हारे साथ अपना पैसा लगाता।


आर्यमणि:– और अब..


मेयर:– अब तो तुम मेरे खास दोस्त हो। परमिशन से लेकर लैंड और फैक्ट्री सेटअप सब मेरी कंपनी को टेंडर दे दो। 1 महीने में काम पूरा हो जायेगा।


आर्यमणि:– ठीक है पेपर भिजवा देना, मैं साइन कर दूंगा।


मेयर:– "ओह हां एक बात मैं बताना भूल ही गया। इस से पहले की तुम पेपर साइन करो मैं एक बात साफ कर दूं, मैं गोल्ड का धंधा सिर्फ इसलिए नहीं करता क्योंकि वह धंधा मेरा बाप करता है। यदि मैंने उसके धंधे में हाथ डाला फिर मैं और मेरा करियर दोनो नही रहेगा। एक तो वैसे ही बाहर से आये हो ऊपर से बड़े लोगों का धंधा कर रहे। कहीं कोई परेशानी होगी तो मैं बीच में नही आऊंगा उल्टा उन परेशान करने वालों में से मैं भी एक रहूंगा।"

"अपनी सारी टर्म्स डिस्कस हो चुकी है। रिस्क मैंने तुम्हे बता दिया। इसके बाद तुम आगे अपना सोच कर करना। यदि गोल्ड का बिजनेस नही करना तो हम कुछ और धंधे के बारे में डिस्कस कर सकते हैं जिसमे कोई रिस्क नहीं होगा।"


आर्यमणि:– वो धंधा ही क्या जो रिस्क लेकर न किया जाये। आप तो गोल्ड डिस्ट्रीब्यूशन का सारा प्रक्रिया कर के, गोल्ड ब्रिक फैक्ट्री की परमिशन ले लो।


मेयर हंसते हुये हाथ मिलाते... "लगता है कुछ बड़ा करने के इरादे से यहां पहुंचे हो।"..


आर्यमणि:– वो कारनामे ही क्या जो बड़ा ना हो। चलता हूं।
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Tri2010

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भाग:–68







धीरे धीरे करके एक छोटा सा आशियाना तैयार हो गया। सुबह ट्रेनिंग और तीनों टीन वूल्फ के झगड़ो की आवाज गूंजती। ड्राइविंग स्कूल में तीनों का एडमिशन भी हो गया और वहां के संचालक द्वार क्लीन चिट यानी की ड्राइविंग लाइसेंस मिलने पर तीनों के लिये अपनी-अपनी गाडियां।


इसी बीच इन तीनों के एडमिशन का भी टेस्ट हुआ। टेस्ट रिजल्ट देखकर प्रिंसिपल बोलने लगे, तीनों को हम ग्रेड 12th का टेस्ट लेंगे, इसके बाद बताएंगे। 12th ग्रेड का टेस्ट होने से पहले तीनों को हिदायत मिल गयी की पेपर के 3 सवाल छोड़ दे। फाइनली टेस्ट हुआ रिजल्ट आया और तीनों का 12th ग्रेड में एडमिशन। आर्यमणि के जेब से 3000 डॉलर निकल गये। 20 दिन बाद आकर क्लास शुरू करने को कह दिया गया। बाहर निकलकर पांचों हंसते हुए विलियम बाबा की जय कर रहे थे। लगभग एक रूटीन कि लाइफ, जिसमें सुबह की मजबूत ट्रेनिंग, उसके बाद कोई काम नहीं जिसे जहां जाना है जाओ घूमना है घूमो, फिर शाम को ओजल, इवान और अलबेली की ड्राइविंग स्कूल।


स्कूल का पहला दिन। अलबेली और ओजल ने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही स्कूल कैंपस था। लड़के–लड़कियां घास पर लेटे बातें कर रहे है। कुछ लड़के सपोर्ट टीम के कपड़ों में घूम रहे थे। कैंपस में कई लव बर्डस भी घूम रहे थे, तो कुछ पढ़ाकू टाइप भी थे। ओजल और अलबेली को हंसी तब आ गयी जब कुछ लड़कियां अपने पैंटी का प्रदर्शन करती, केवल अपने पिछवाड़े को ढकने जितना छोटा मिनी–स्कर्ट पहन कर ग्रुप में फुदक रही थी। चीयर गिर्ल्स…


इवान की इन सब पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी, वो बस दोनो के साथ था। 3 टीन वुल्फ जिनकी देह दशा बिल्कुल अलग। लंबी कद-काठी के साथ-साथ शरीर की आकर्षक संरचना। चेहरे की बनावट और आकर्षण ऐसा की नजर भर देखने पर मजबूर कर दे। तीनों गये प्रिंसिपल ऑफिस और वहां से अपने-अपने क्लास का पता करके क्लास में। कुछ क्लास तीनों के साथ में थे, और 1–2 क्लास अलग–अलग। बीच में बहुत सारे खाली परियड्स।


वो कहते है ना सब कुछ फिल्मी हो जाये तो बात ही क्या थी फिर। लड़के और लड़कियों के ग्रुप द्वारा तंग करना, टांग खिंचना और कमेंट पास करने जैसा कुछ नहीं था। यहां के स्टूडेंट्स जो भी करते आपस के ग्रुप में ही करते और अपनी ही दुनिया में मस्त रहते, कौन आया कौन गया उनसे कोई मतलब नहीं। सब कुछ जैसे सामान्य रूप से चल रहा था। तीनों टीन वुल्फ को उनका काम मिल चुका था। एक आर्यमणि और रूही थे जिनके काम की कोई खबर नहीं थी। मेयर बात तो बड़ी–बड़ी कर रहा था, लेकिन एक महीना से ऊपर हो गया, न तो गोल्ड ब्रिक फैक्ट्री की परमिशन मिली थी और ना ही उसके फैक्ट्री का कोई काम आगे बढ़ा था। ऊपर से बेसमेंट में रखा सोना किसी सर दर्द से कम नहीं था।


रूही:– बॉस ये मेयर कहीं सिर्फ ग्रीन कार्ड दिलाने का 50 हजार यूएस डॉलर तो न ले लिया।


आर्यमणि:– 50 कहां कुल 70 हजार यूएसडी खर्च हुये हैं रूही।


रूही:– मैं जरा इस मेयर के घर की सिक्योरिटी ब्रिज को समझती हूं। आज रात विजिट मारते हैं।


आर्यमणि:– हम्मम… अच्छा प्लान है।


देर रात का वक्त मेयर अपने बेडरूम में सोया था। सुरक्षा के लिहाज से अति–सुरक्षित घर। आर्यमणि और रूही सभी सुरक्षा प्रणाली को भेदकर दबे पाऊं दोनो (आर्यमणि और रूही) मेयर के बेडरूम में पहुंच चुके थे। मेयर मस्त किसी खूबसूरत महिला के साथ सो रहा था। रूही ने उसे इंजेक्शन लगाया और आर्यमणि ने उसके गर्दन में पंजा। 5 मिनट के बाद दोनो सड़क पर थे।


रूही:– क्या हुआ बॉस, ऐसा क्या देख लिया जो मुस्कुराए जा रहे।


आर्यमणि:– मेयर की बीवी और बच्चे बाहर गये है। मेयर यहां मस्त अपने स्टाफ के साथ सोया था।


रूही, भद्दा सा मुंह बनाते... "मर्द हो न इसलिए दूसरे मर्द की चीटिंग पर ऐसे मुस्कुरा रहे हो"


आर्यमणि:– गलत समझ रही हो। मैं तो ये सोच रहा था की यदि मेयर की बीवी को इस बार का पता चल जाये तो..


रूही:– उसे कैसे पता चलेगा..


आर्यमणि, अपना फोन दिखाते... "शायद पता चल भी चुका हो।"


रूही, हंसती हुई... "बॉस शरारती आप भी कम नही। मियां बीवी के झगड़े में बेचारे बच्चे पीस जायेंगे।"


आर्यमणि:– वो तो वैसे भी पीसने वाले थे। मेयर अपनी बीवी को मरवाना चाहता है।


रूही:– क्या?


आर्यमणि:– हां सही सुना तुमने। मेयर एक बड़े झोल में फसा हुआ है। देश के एक नामचीन नेता से गलत डील कर लिया। उसे तकरीबन 50 मिलियन चुकाने है और उसकी बीवी उसे एक रुपया नही दे रही।


रूही:– उसका इतना बड़ा बिजनेस है, फिर अपनी बीवी से पैसे क्यों मांगेगा...


आर्यमणि:– क्योंकि पूरा बिजनेस इसकी बीवी का है। अपने बीवी के वजह से ही वह मेयर भी बना है। करप्शन से कुछ पैसे तो जोड़े है लेकिन 50 मिलियन से बहुत दूर है। पहले ये पूरे पैसे मुझसे ही लेता लेकिन गोल्ड डिस्ट्रीब्यूशन का लाइसेंस ये बनवा नही पाया। फेडरल में अर्जी डाली तो थी इसने, लेकिन अगले ही दिन इसके बाप लोग पहुंच गये और फॉर्म इसके मुंह पर मारकर इतना ही कहा कि… "ये धंधा उनका है। अगली बार फॉर्म के जगह बॉम्ब फोड़कर जायेगा।"


मेयर ने उसे मेरे साथ बहुत भिड़ाने की कोशिश किया लेकिन उसने एक ही बात कही.… "यदि ऐसा था तो तू उसे गोली मारकर फोन करता, न की इसका फॉर्म तेरे ऑफिस से आता। मैं उसे बिलकुल नहीं जानता लेकिन इतना जानता हूं कि तू मर गया तो वो क्या कोई दूसरा भी इस धंधे को शुरू करने का सोचकर जब तुझ जैसे के साथ मिले तो उसका काम न हो।"… अब उस बेचारे ने मेरा काम किया नही, इसलिए मुझसे 50 मिलियन कैसे निकलवाता।


रूही:– हलवा है क्या जो हम 50 मिलियन दे देते..


आर्यमणि:– बड़े आराम से। इधर हम प्रोजेक्ट के लिये अपना सफेद पैसा दिखाते उधर कोर्ट में तलाक की अर्जी लगती। कोर्ट जुर्माने में हमारी आधी संपत्ति हमारे पेपर वाले जीवन साथी को दे देती। वहीं से ये मेयर अपना पैसा रिकवर करने वाला था।


रूही:– साला बईमान, अच्छा किया बॉस... ठूकने दो चुतीये को। लेकिन बॉस अपने तो 50 हजार यूएसडी गये न।


आर्यमणि:– ऐसे कैसे चले गये... उसके दिमाग से बैंक डिटेल निकाल लिया हूं। 4 मिलियन यूएसडी का मामला है और तुम जानती हो की बिना फसे कैसे पैसे ट्रांसफर करने है।


रूही:– कैसे करना है मतलब... हम दोनो तो साथ में ही होंगे न...


आर्यमणि:– नही.. मैं वेगस जाऊंगा और तुम तीनो को लेकर यूएसए के बाहर किसी रिमोट लोकेशन से मेयर के पैसे उड़ाओगी।


रूही, आंखें फाड़कर आर्यमणि को घूरती.… "बॉस वेगास.. जिस्म और जूए का शौक कबसे"…


आर्यमणि:– ए पागल सोने की डील करने जा रहा हूं। मेयर के उस बाप से मिलने जिसने मेरा डिस्ट्रीब्यूशन प्लांट लगने नही दिया।


रूही:– हम्मम !! ठीक है वीकेंड पर निकलते है। और कोई काम...


आर्यमणि:– अभी घर पर आराम से चलते है। आज एक नजर अपने इन्वेस्टमेंट पर भी मार लेते है।


दोनो देर रात घर पहुंचे। तीनों टीन वुल्फ मस्त नींद में सोये हुये थे। आर्यमणि और रूही लैपटॉप लेकर बैठे और अपने शेयर मार्केट के पैसों पर नजर देने लगे। दोनो अपने पैसे का ग्राफ ऊपर बढ़ता देख खुशी से एक दूसरे को गले लगाते.… "वूहू.. बॉस कुल मिलाकर हम 20% से ग्रो कर गये।"


आर्यमणि:– एक साथ सारे पैसे निकाल लो..


रूही:– लेकिन क्यों बॉस... मात्र २ कंपनी ही तो लॉस में है। बाकी सभी तो अच्छे ग्रोथ में है।


आर्यमणि:– 16 दिसंबर है आज... 9 दिन है अभी क्रिसमस में। अब वक्त है कंपनी बदलने का। रिटेल मार्केट में अभी काफी उछाल देखने मिलेगा, इसलिए सारा पैसा वहां लगा दो। 24 नवंबर को हम सारा पैसा निकाल लेंगे। जहां तक मेरी कैलकुलेशन कहती है, हम अगले 7–8 दिन में 30% और प्रॉफिट बनायेंगे।


रूही:– मैं क्या सोच रही थी 120 मिलियन यूएसडी को यहीं लगे रहने देते हैं। 24 दिसंबर तक 10 से 15% तक का प्रॉफिट यहां से आ जायेगा। हम 150 मिलियन और मार्केट में इन्वेस्ट कर देते है।


आर्यमणि:– हां ये ज्यादा बेहतर विकल्प है। वैसे "अस्त्र लिमिटेड" के शेयर मार्केट में आये या नही..


रूही:– अभी नही...


आर्यमणि:– नजर बनाये रखना क्योंकि उसके एक भी शेयर किसी दूसरे को नहीं लेने दे सकते।


रूही:– ऐसा क्या खास है आपकी कंपनी में...


आर्यमणि:– तुम नही जानती... अगर आज 1 रुपया से उसका शेयर शुरू होगा तो 5 साल बाद उसका शेयर अपने पीक पर होगा जो अनुमानित 10 हजार होगा। यानी एक शेर की कीमत अपने पहले दिन से 10000 गुणा ज्यादा की कीमत। इतना प्रॉफिट हमे किसी और में नही मिलने वाला। ऊपर से एक साथ हम इतने पैसे लगायेंगे की अपनी कम्पनी की तरक्की में और चार चांद लग जायेगा।


रूही:– ठीक है बॉस उसे सेंसेक्स पर रजिस्टर तो हो जाने दो पहले...


आर्यमणि:– हां ठीक है... चलो गुड नाईट..


दोनो सोने चल दिये। वीकेंड पर काम निपटाना था इसलिए सभी शुक्रवार की रात ही निकले। एक ओर रूही टीन वुल्फ के साथ कनाडा में नियाग्रा फॉल और टोरंटो देखने निकली, वहीं आर्यमणि लास वेगास निकला। अल्फा पैक संडे तक कनाडा में मजे करके लौट आती जबकि आर्यमणि गया और काम खत्म करके लौटा।



अल्फा पैक कनाडा टूर पर

वुल्फ कभी अकेला नहीं रहता, उनका शिकार हो जाता है। हर वुल्फ पैक की तरह अल्फा पैक भी भली भांति ये बात समझती थी, इसलिए 2 की टीम में ये लोग निकले थे। रूही और ओजल एक साथ थी, क्योंकि अलबेली का बड़बोलापन देखकर रूही ने ओजल को एडॉप्ट किया था, वहीं इवान और अलबेली आर्यमणि के हिस्से में थे।


टोरंटो लैंड करने के बाद रूही अपना काम करने एकांत की ऐसी जगह ढूंढने लगी जहां उसे कोई ढूंढ न पाये। इधर इवान और अलबेली दोनो टोरंटो शहर घूमने निकल गये। हां लेकिन सभी 2 किलोमीटर के दायरे में ही थे ताकि आराम से एक दूसरे को संदेश दे सके। शहर का माहौल और क्रिसमस का ऐसा समय था कि चारो ओर कपल ही कपल घूम रहे थे। हर उम्र के कपल दिख रहे थे जिनकी मस्ती दोनो के मन में जिज्ञासा पैदा कर रही थी। इवान से रहा न गया और वो अलबेली को हसरत भरी नजरों से देखते.… "क्या तू मेरी गर्लफ्रंड बनेगी"..


अलबेली:– क्या बात है, आखिर तूने पूछ ही लिया। कमर में हाथ डालकर चल ना। यहां आकर मुझे भी बड़ी इच्छा हो रही थी कि अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ घूमती। बड़ी संकोच में थी कि तुझसे पूछूं कैसे?


इवान, अलबेली के कमर में हाथ डालकर उसे जोड़ से खींच लिया। अलबेली झटका खा कर इवान से बिलकुल चिपक गयी। दोनो एक दूसरे के में चिपके बदन को अनुभव कर रहे थे। दोनो की नजरें एक दूसरे से टकराने लगी। तन बदन में झुर–झुरी सी पैदा हो रही थी। दोनो एक दूसरे को देखते हुये मचल गये।


अलबेली अपनी नजर हटाकर सामने देखती... "अब ऐसे खड़े–खड़े देखता रहेगा या अपनी गर्लफ्रेंड को घुमायेगा भी। इवान जैसे चीड़ निद्रा से जाग रहा हो। गुमसुम सा हां–हूं में जवाब दिया और अलबेली को खुद से चिपकाये घूमने लगा। एक तो दोनो टीनएजर ऊपर से पहली बार किसी के बदन से एक कपल की तरह चिपके थे। ये उमंग और उन्माद ही अजीब था। बदन में सुरुसुरी मादक एहसास जैसे फैल रही हो।


दोनो शाम तक एक दूसरे के साथ घूमते रहे। हल्का अंधेरा था और चारो ओर जगमग रौशनी जलने लगी। दोनो एक दूसरे के बदन से चिपके रौशनी को देखने में खो से गये। तभी इवान, अलबेली को कमर के नीचे से पकड़कर ऊपर उठा लिया और गोल–गोल घुमाने लगा। अलबेली भी खिलखिला कर हंसती हुई अपने दोनो बांह फैलाकर हसने लगी। अलबेली की खिली हंसी जैसे उसके कान में मिश्री घोल रही थी। इवान गोल घुमाना बंद करके अलबेली को धीरे–धीरे नीचे उतरने लगा।


बदन से बदन को स्पर्श करते जब अलबेली धीमे–धीमे नीचे आ रही थी तब दोनो के मन में न जाने कितनी ही अद्भुत तरंगे एक साथ जन्म ले रही थी। जब अलबेली के वक्ष, इवान के सीने से टकराते धीमे से नीचे हुये दोनो के अंदर से आह्ह्ह् निकल गयी। दोनो एक इंच के फासले से एक दूसरे से नजरें मिला रहे थे। इवान के अंदर से जैसे अरमान जागे हो और वह तेजी से अलबेली के होंठ को अपने होटों से स्पर्श करता सीधा हो गया। अलबेली के की आंखें बड़ी और चेहरे पर हल्की हंसी फैल गयी। कुछ देर तक अलबेली भी मौन खड़ी होकर देखती रही और फिर.…


अलबेली अपनी एडियां ऊंची करती इवान के गले में हाथ डाल दी और होंठ से होंठ लगाकर चुम्बन देने लगी। इवान भी अलबेली को बाहों में भरकर उतने ही कसीस के साथ चुम्बन देने लगा। दोनो अपने पहले चुम्बन से इतने उत्तेजित हो गये की उनका क्ला बाहर निकल आया। क्ला जैसे ही बाहर आया अलबेली का क्ला इवान के गर्दन में घुसा और इवान का क्ला अलबेली के कमर के ऊपर। दोनो झटके के साथ अलग हुये और एक दूसरे को देखकर हंसने लगे।


इवान:– मैं बता नही सकता मैं कैसा महसूस कर रहा हूं। आज से पहले कभी इतना जिंदा होने का एहसास मुझे कभी नही हुआ।


अलबेली:– हिहिहिहिही.. मैं तो बता नही सकती अंदर से कैसा महसूस हो रहा है। साला ये क्ला बीच में आ गया वरना होंठ छोड़ने की मेरी इच्छा ही नहीं हो रही थी।


इवान:– भैया सही कहते थे हमे पहले नियंत्रण सीखना चाहिए।


अलबेली छोटा सा मुंह बनाते... "अब क्या चुम्मा का नियंत्रण सीखने तू भैया के पास जायेगा।


इवान:– तेरी तो... मसखरी करती है...


इवान अपनी बात कहने के साथ ही अलबेली पर झपटा लेकिन अलबेली भी उतनी ही तेज, झटक कर किनारे हुई और ठेंगा दिखाते.… "जा जा.. भैया से ही नियंत्रण सिख कर आ।"…


अलबेली आगे और इवान पीछे.. दोनो हंसते हुये भाग रहे थे। भागते हुये दोनो किसी अंधेरी सी जगह में पहुंच गये। अलबेली आगे दौड़ रही थी और अचानक से झटका खा कर पीछे गिरी। अलबेली की बेइंतहां दर्द भरी चीख निकल गयी। इवान और तेज दौड़ते अलबेली को संभाला। ऐसा लगा जैसे वह तेज करेंट का झटका खायी हो। उसके मुंह से झाग निकल रहा था। इवान अपने शर्ट से अलबेली का मुंह पोंछते इधर–उधर देखने लगा। उसके आंखों से आंसू बह रहे थे और इवान लगातार अलबेली को जगाने की कोशिश करने लगा।


तभी वहां इवान को कुछ लोग दिखने लगे। हाथों में बंदूक, बड़ी सी कुल्हाड़ी और तरह–तरह के हथियार लिये... "बच्चे किस जंगल से भागकर हमारे इलाके में आये हो"… कुछ शिकारी इवान की नजरो के सामने थे, और बेहोश पड़ी अलबेली, इवान की गोद में। इवान की आंखों में अंगार और दिमाग में खून दौड़ने लगा। अलबेली को नीचे रखते तेजी से दौड़ लगाया और वह भी झटका खा कर अलबेली के पास ही बेहोश हो गया।


एक शिकारी:– करेंट हटाओ और दोनो को साफ कर दो।


उसकी बात सुनकर जैसे ही किसी एक शिकारी ने अपना पहला कदम आगे बढ़ाया, अचानक ही कोई उसके पास से तेज गुजरा और उसे अपने साथ लेकर गायब। यह इतना तेजी में हुआ की केवल उस शिकारी की चीख ही सुनाई दी। दूसरे शिकारी चारो ओर देखने लगे। इतने में फिर एक तेज दौड़ और झपट्टा मारकर एक और शिकारी को भी ले गये।


शिकारी:– सब लोग फैल जाओ, यहां और भी मेहमान आये हुये हैं।


शिकारी अपना हथियार लेकर चारो ओर फैल गये। २ शिकारियों ने अलबेली और इवान को माउंटेन एश के गोले में फसाकर वहां से चल दिये। २ शिकारी जिनको झपट्टा मारकर सबके बीच से उड़ा के गये, वह कभी दाएं से चिल्लाता तो कभी बाएं से। आवाज कभी पास से आती तो कभी बहुत दूर से। सभी शिकारी अपना बैक अप बुलाने लगे। इसके पूर्व रूही और ओजल इसी लोकेशन पर कुछ घंटे पहले पहुंचे थे। उन्हे मेयर का बैंक अकाउंट एक्सेस करना था और इस लोकेशन से अच्छी जगह कहीं और नहीं थी, क्योंकि इसके आस पास आधे किलोमीटर के इलाके में कोई कैमरा नही लगा था।


रूही यहां पहुंची और सीधा 4 मिलियन बेनामी खाते में ट्रांसफर करने के बाद लैपटॉप को वहीं कही छिपा दी। रूही जब अपना काम कर रही थी तब ओजल चारो ओर का मुआयना करने लगी। वह समझ गयी की किसके इलाके में है। रूही को धीमे से ठूस्की देती हुई कहने लगी.… "निकलो यहां से, शिकारी का इलाका है।"


रूही को जैसे ही पता चला वह झटपट वहां से हटी। रूही और ओजल ने दोनो (इवान और अलबेली) को सचेत करने कई बार पुकारा भी लेकिन दोनों में से किसी का जवाब ही नहीं आया। हां घूमते–घूमते दोनो एक बार नजर जरूर आये लेकिन इवान और अलबेली को देखकर दोनो (रूही और ओजल) समझ चुके थे कि क्यों उनकी पुकार पर कोई जवाब नही आया।
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भाग:–69







अलबेली और इवान को फुर्सत से घूमने छोड़ दिया गया और ये दोनो भी अपना घूमने लगे। अभी कुछ देर पहले अलबेली और इवान का जब क्ला बाहर आया तब वह शिकारियों की नजरों में आ गये। आते भी क्यों न शिकारी के इलाके में ही रोमांस कर रहे थे। बिजली का तेज झटका लगते ही अलबेली, रूही को आवाज लगा चुकी थी। रूही ने जैसे ही वह आवाज सुनी फिर तो सब कुछ छोड़कर आवाज के पास पहुंची। रूही और ओजल ने दो शिकारी को गायब कर दिया। बौखलाए शिकारी चारो ओर फैल चुके थे।


इधर थोड़ी देर के बाद इवान और अलबेली को भी होश आ चुका था और शिकारियों की भनभनाहट सुनकर दोनो समझ चुके थे कि उनकी मदद आ चुकी है। इवान ने अलबेली की कलाई थाम ली और उसे हील करने लगा। अलबेली को जैसे राहत की श्वांस मिली हो। कुछ देर हील होने के बाद उसे जब होश आया तब वह इवान की हालत को अच्छे से समझ पायी। अलबेली बावरी की तरह इवान के पूरे मुंह को पोंछती, उसकी कलाई थामी और उसका दर्द लेने लगी। दोनो एक दूसरे की कलाई थाम, एक दूसरे का दर्द, एक दूसरे के आंखों में झांकते हुये ले रहे थे।… "ओ टोरंटो के लैला मजनू, मुझे सुन रहे हो।"…


अलबेली और इवान दोनो एक साथ.… "हां सुन रहे है।"..


ओजल:– वहां की पोजिशन बताओ..


इवान:– हमारे सामने माउंटेन एश का घेरा है। आस–पास भ्रमित करने वाली गंध है। शायद शिकारियों ने जाल फैलाया है।


अलबेली:– कुल 6 लोग यहां है। मैं उन सबकी भावना मेहसूस कर सकती हूं। उनकी धड़कन सुन सकती हूं। सभी हम पर ही निशाना लगाये है।


रूही:– अभी मजा चखाते है। ओजल शिकारियों को ही माउंटेन ऐश की लाइन पर फेंक दे। चल जल्दी कर...


रूही और अलबेली जो अपने साथ एक–एक शिकारी को लिये घूम रही थी। बड़ी ही तेजी के साथ वहां से गुजरी और दोनो शिकारी को दूर से ही माउंटेन ऐश की लाइन पर फेंक दी। जैसे ही २ शिकारी अलबेली और इवान के पास गिरे, माउंटेन ऐश की लाइन तहस नहस हो गयी।


जैसे ही 2 शिकारी वहां गिरे घात लगाये सारे शिकारी चौकन्ना और फिर तो अंधाधुन फायरिंग शुरू हो गयी। अंधेरे में शिकारियों को लगा वेयरवोल्फ ने माउंटेन ऐश की लाइन तोड़ने के लिये कुछ फेंका है। फ्रैक्शन सेकंड में ही अलबेली और इवान सारे खतरे को भांप चुके थे। उसने अपने साथ दोनो शिकारी को उठाया और वहां से भाग कर खुद को सुरक्षित किया। दोनो शिकारी कर्राहते हुये इवान और अलबेली को ही देख रहे थे।


इवान ने अलबेली को इशारा किया और दोनो शिकारियों का दर्द खींचने लगे.… "क्या देख रहे हो शिकारी। हमारी दुश्मनी तो चलती रहेगी लेकिन इस दुश्मनी में किसी की जान चली गयी तो बहुत बुरा होगा। रूही दीदी, ओजल क्या हम निकले। यहां सब साफ है।"..


रूही:– हां निकलो... हम भी इनके इलाके के बॉर्डर पर ही है।


इधर रूही ने हामी भरी और पूरा अल्फा पैक वहां से निकल गया। शिकारियों की नजरों में आने के बाद रूही वहां रुकना ठीक नही समझी इसलिए सबके साथ रविवार तक पूरा एंजॉय करने कनाडा के दूसरे शहर चली आयी।



आर्यमणि.. लॉस वेगस के सफर पर


शुक्रवार की रात आर्यमणि वेगस के लिये निकला। रात के करीब 9.30 बजे वह वेगस पहुंचा। एक बड़े से कैसिनो में घुसकर वहां वेटर को 100 डॉलर थमाते... "पार्केंसन कहां मिलेगा"..


वेटर, इशारा करते.… कोने से आखरी गेट के पीछे लेकिन वहां तुम जा नही सकते...


आर्यमणि वेटर को बिना जवाब दिये उधर चला गया। गेट के रास्ते पर खड़े अत्याधुनिक हथियार लिये बैल जैसे पहलवान गार्ड उसका रास्ता रोकते... "क्लब उधर है। यहां नही आ सकते।"


आर्यमणि:– पार्केंसन से कहो कैलिफोर्निया में गोल्ड ब्रिक की फैक्ट्री डालने वाला आर्यमणि आया है।


गार्ड ने आर्यमणि को वहीं खड़े रहने कहा और एक गार्ड अंदर घुसा। कुछ मिनट बाद वह दरवाजा खोलकर आर्यमणि को अंदर बुलाया... आर्यमणि जैसे ही अंदर गया दरवाजा बंद। एक बड़ा सा हॉल जिसके कोने–कोने पर सूट बूट में बॉडीगार्ड खड़े थे। दरवाजे के ठीक सामने एक बड़ा सा डेस्क था जिसके पीछे लगे एक आलीशान कुर्सी पर बैठकर पार्केंसन सिगार पी रहा था। सामने कुछ लोग बैठे थे जो आर्यमणि के अंदर आते ही बाहर चले गये।


पार्केंसन ने आर्यमणि को हाथ के इशारे से बुलाया। जैसे ही आर्यमणि उसके डेस्क के पास पहुंचा 2 लोगों ने उसे धर दबोचा और उसके चेहरे के बाएं हिस्से को डेस्क से चिपकाकर कनपट्टी पर बंदूक तान दिये। आर्यमणि बिना हिले–डुले आराम से डेस्क पर चेहरा टिकाये था। पार्केंसन, आर्यमणि के गाल पर थपथपाते... "बड़ी हिम्मत है तुझमें। मेयर ने तेरे बारे में बताया। मैने सोचा तू बच्चा है, धंधा करने की चाहत थी इसलिए तूने एक अच्छा धंधा चुन लिया, कोई बुराई नही थी इसमें। बस गलती मेयर से हुई जो तुझे अच्छे से समझाया नही। मुझे लगा मेयर को समझा दिया है तो वो तुझे समझा देगा लेकिन लगता नही की तू ठीक से समझा है। तुम सब जरा अच्छे से इसे समझाओ"


जैसे ही पार्केंसन ने मारने का ऑर्डर दिया 2 लोग हवा में उड़ते हुये जाकर दीवार से टकरा गये। आर्यमणि को गन प्वाइंट पर लिये दोनो गार्ड हवा में उड़ रहे थे। आर्यमणि ने दोनो को अपने एक–एक हाथ से दबोचकर ऐसे फेका जैसे 2 हल्के सब्जी के झोले को पीछे हवा में फेंकते है। आर्यमणि का यह एक्शन देखकर दूसरे बॉडीगार्ड हरकत में आ गये... इसी बीच आर्यमणि अपनी भारी आवाज से सबको पहचान करवाते.… "लगता है मैने ठीक से अपना परिचय नही करवाया वरना इतनी परेशानी नही होती। मुझे लगता है कुछ देर बैठकर बात करने के बाद हम किसी नतीजे पर पहुंच सकते हैं।"


आर्यमणि जबतक अपनी भारी आवाज में बात कर रहा था, पार्केंसन के बॉडीगार्ड उसे घेर चुके थे। पार्केंसन सबको रिलैक्स करते आर्यमणि को बैठने का इशारा किया... "देखो लड़के जब बात से काम हो जाये तो हम भी हथियार बीच में नही लाते। मुझे बताओ तुम इतनी दूर क्यों आये हो?"


आर्यमणि:– मुझे ब्रिक फैक्ट्री लगाने या सोने का डिस्ट्रीब्यूटर बनने में कोई दिलचस्पी नहीं..


पार्केंसन:– इंट्रेस्टिंग... आगे बताओ..


आर्यमणि:– मेरे पास कुछ गोल्ड है, और मैं किसी भी माफिया या नेता को उसमें एक जरा हिस्सा नही देना चाहता। जैसे तुम्हे अपने धंधे से प्यार है और किसी दूसरे को हिस्सा नही देना चाहते, ठीक वैसे ही।


पार्केंसन:– ओह तो ये बात है। अपने गोल्ड में से किसी को हिस्सा नही देना इसलिए तुमने गोल्ड डिस्ट्रीब्यूटर बनने का सोचा। लेकिन डिस्ट्रीब्यूटर ही क्यों.. क्या बहुत ज्यादा गोल्ड है?


आर्यमणि:– तुम्हारे सोच से भी ज्यादा...


पार्केंसन:– हम्मम... बताओ कैसे मदद करूं?


आर्यमणि:– कोई बीच का रास्ता निकालते है। मेरा काम निकलने तक ही मुझे गोल्ड से जुड़े कामों ने इंटरेस्ट है। और तुम तो जानते ही होगे की ब्लैक से व्हाइट करने में कितना मेहनत लगता है।


पार्केंसन:– बीच का रास्ता... ठीक है यदि 1 मेट्रिक टन तक गोल्ड हुआ तो तुम्हारे गोल्ड डिस्ट्रीब्यूशन प्राइस से 20% नीचे लूंगा। यदि 10 मेट्रिक टन तक हुआ तो 30% नीचे के प्राइस में। उस से ज्यादा है तो 10 मेट्रिक टन इस साल और फिर अगले साल...


आर्यमणि:– डील को लॉक करते है।


पार्केंसन:– कितना माल है..


आर्यमणि:– 5 मैट्रिक टन..


पार्केंसन, अपने एक आदमी को बुलाया सब कैलकुलेशन करने के बाद... "145 मिलियन (उस वक्त मजूदा रेट के हिसाब से) होते है। मेरा 30% काट कर तुम्हारे 101.5 मिलियन। माल कहां है उसकी लोकेशन बताओ। चेक करवाकर लोड होने के बाद पैसे ट्रांसफर कर देता हूं।"


आर्यमणि:– इतना सारा माल पीछे में कोई देखने गया। कहीं कोई चोरी हो गयी तो?


पार्केंसन:– उसकी चिंता तुम मत करो... तुम्हे चिंता इस बात की होनी चाहिए की कहीं तुम गलत हुये तो...


आर्यमणि उसकी बात सुनकर मुस्कुराने लगा। आर्यमणि अपने घर का सभी सिक्योरिटी ब्रिज हटाया। पार्केंसन के कुछ लोग बेसमेंट में घुसे। उन्होंने कुछ रिम उठाकर पहले सोने की गुणवत्ता चेक किया, फिर कुछ रिम का वजन लिया। सब कुछ सुनिश्चित होने के बाद जैसे ही अनलोगों ने कैलिफोर्निया से संदेश भेजा, वैसे ही यहां आर्यमणि के दिये अकाउंट में पैसे ट्रांसफर हो गये।


आर्यमणि जिज्ञासावश पार्केंसन से पूछ ही लिया.… "न कोई बारगेन, न ही पूछे की माल कहां से आया। न ही डील में कोई गलत मनसा। मुझे तो लगा था यहां मुझे बहुत टाइम लगने वाला है।"…


पार्केंसन:– "हाहहा... तुम्हारे सवाल में ही जवाब है। ज्यादा से ज्यादा मैं पूरा बैमानी कर लेता। तुम्हे मारने की कोशिश करता... इस से क्या हो जाता... इन सब में मेरे 1 घंटे लगते। तुम्हारे घर से माल चोरी करने और फिर उसे पुलिस से बचाने में दिमाग खपाना पड़ता सो अलग। 4–5 घंटे की माथापच्ची के बाद मैं 145 मिलियन कमा लेता। पर अभी..."

"आधे घंटे में एक नौजवान दोस्त बना लिया। 43.5 मिलियन की कमाई कर लिया और सबसे जरूरी चीज। अगली बार हम 5 मिनिट में फोन पर डील करेंगे और 10 मिलियन ही कमाई मानो उस डील से होगा। तो सोच लो बचे साढ़े 3 घंटे में मैं तुमसे कितना कमा लूंगा। फिगर 100 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।"


आर्यमणि:– बिजनेस में कमाल का डेडीकेशन है।


पार्केंसन उसे 8–10 कार्ड थमाते... "10 मिलियन + के प्रॉफिट का जो भी डील हो, सीधा मुझे कॉल करना वरना इन सब कार्ड में से किसी भी पार्क को फोन करके डील सेट कर लेना।


आर्यमणि:– ये आपके सभी स्टाफ का नाम पार्क ही है।


पार्केंसन:– हां... मैं भी एक पार्क ही हूं। किसी भी नंबर के पार्क (जैसे की पार्क–1, पार्क–2) को पुकारो, उसके गैर हाजरी में कोई न कोई आ ही जाता है। काम में काफी सहूलियत होती है। पार्क–2 आर्यमणि का ड्रिंक आज मेरी तरफ से। इसके होस्ट तुम हुये हमारे मेहमान को किसी बात की शिकायत नही होनी चाहिए।


आर्यमणि ने पार्केंसन को शुक्रिया कहा और वहां से सीधा एयरपोर्ट चला आया। रात 12.30 की फ्लाइट थी और आर्यमणि 2 बजे तक कैलिफोर्निया एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी में था। घर लौटने के क्रम में उसके टैक्सी का टायर पंक्चर हो गया। टैक्सी वाले ने माफी मांग लिया और आगे कुछ और व्यवस्था देख लेने कह दिया।


घर पास में ही था आर्यमणि पद यात्रा करते हुये निकला। कुछ दूर आगे बढ़ा होगा की स्ट्रीट लाइट बुझने लगी। देखते ही देखते पूरी सड़क पर अंधेरा पसर गया। आर्यमणि को खतरे का आभास तो हो रहा था लेकिन आस पास किसी के होने के संकेत नही मिल रहे थे। आर्यमणि समझ चुका था की खतरा उसके पीछे पहुंच गयी है। वह तेज दौड़ लगाया और सीधा अपने कॉटेज के पीछे वाले जंगल में रुका।


जंगल में जब वह पहुंचा उसके कुछ देर बाद ही पत्तों की खर–खराहट की आवाज आने लगी। आर्यमणि किसी की मौजूदगी को मेहसूस तो नही कर सकता था लेकिन जिस प्रकार से पाऊं के नीचे पत्ते मसल रहे थे, उसे लग गया की कोई तो है।


आर्यमणि:– प्रहरी का नया तिलिस्मी योद्धा... अकेले ही मुझसे लड़ने चला आया।


तभी आर्यमणि के सामने एक टीनएजर लड़का खड़ा हो गया। आर्यमणि उसे बड़े ध्यान से देखते... "तुम तो अभी काफी छोटे हो, प्रहरी ने तुम्हे अकेले ही भेज दिया"..


लड़का:– हां ऐसा ही समझो। अब वहीं खड़े रहकर टाइम पास करोगे या लड़ना भी है...


आर्यमणि अपने जूते निकलकर, अपने अंगूठे को ही हल्का जमीन में धसा दिया। देखते ही देखते जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे जो उस लड़के के पाऊं से लिपट गये। वह लड़का अपनी जगह से हिल भी नहीं सकता था। आर्यमणि उसे फिर एक बार चेतावनी देते... "लड़के अपनी पहचान बताओ। आखिर कौन सी प्रजाति के हो तुम लोग, जो खुद को अपेक्स सुपरनैचुरल कहते हो।"


लड़का, आर्यमणि की बात का कोई जवाब न देकर अपने कमर में लटके कई खंजरों में से एक खंजर को निकाला और काफी तेजी से आर्यमणि के ओर फेंका। आर्यमणि सामने से खतरे को आते देख बिजली की गति से खतरे के सामने से हटा। लेकिन जब आर्यमणि खड़ा हुआ, उसके कंधे से खून की धार बह रही थी। आर्यमणि काफी आश्चर्य में पड़ गया। आंख मूंदकर वह समझने की कोशिश करने लगा की अभी हुआ क्या? आर्यमणि के दिमाग में जैसे सब कुछ स्लो मोशन में चल रहा हो।


तभी उसे झटका सा लगा हो जैसे। उस लड़के ने एक खंजर के पीछे दूसरा खंजर इस तेजी से फेंका की उसके खतरा भांपने की सेंस तक धोखा खा गयी। और क्या सटीक गणना था। खतरा भांप कर बिजली की तरह हटने के क्रम में ही उसे दूसरा खंजर लग गया। आर्यमणि अपने कंधे से खंजर को निकालते... "ये खंजर मुझे मार नही सकती, लेकिन तू आज जरूर मारेगा।"


आर्यमणि अपनी बात कहते हुये तेज दौड़ लगा दिया। वह जब दौड़ रहा था, आस–पास के पत्ते किसी बवंडर में फंस कर उड़ने वाले पत्तों को तरह कई फिट ऊपर उठे। अपनी तेज दहाड़ के साथ आर्यमणि 10 फिट ऊंचा छलांग लगा चुका था और उसका मुक्का उस लड़के के सीने को फाड़कर बाहर निकलने के लिये तैयार। लेकिन ना जाने आज सीक्रेट प्रहरी के किस हथियार से पाला पड़ा था। आर्यमणि 10 फिट ऊंचा छलांग लगाकर अपने मुक्के से उसके सीने को निशाना बनाये था, लेकिन ऐसा लगा जैसे आर्यमणि ने किसी स्प्रिंग पर हमला किया हो। झट से उस लड़के ने अपने शरीर को आर्यमणि के हमले की जगह से ठीक पीछे किया, जबकि पाऊं उसके अपनी जगह पर जमे थे।


आर्यमणि ने शॉट मिस किया और वह हवा में ही उस लड़के से आगे बढ़ गया। वह लड़का भी आर्यमणि को जैसे कोई फुटबॉल समझ लिया हो... एक लात उठाया और पूरे स्टाइल से पेट पर ऐसे जमाया की आर्यमणि की 2 पसलियां टूट गयी और वह खुद काफी दूर एक पेड़ से जाकर टकराया। हमला इतना तेज और घातक था की आर्यमणि के आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा।


आर्यमणि इतनी बुरी तरह टूटा था कि उसकी खुद की हीलिंग क्षमता ने जवाब दे दिया था। हाथ लगाकर जब वह खुद को हील करने लगा तब हाथों की नब्जों ने जैसे दर्द खींचने से मना कर दिया हो। वह लड़का अब भी अपनी जगह खड़ा था। आर्यमणि काफी धीमे ही सही लेकिन खुद को हील होता मेहसूस कर रहा था। जब थोड़ा होश आया तब यह भी ख्याल आया की वह लड़का तो जड़ों की रेशों से निकल चुका है।


आर्यमणि खुद में थोड़ा हिम्मत भरते, अपने क्ला को पसलियों के बीच घुसाया और 2 नाखूनों के बीच टूटी पसली को पकड़कर उसे सीधा करते उन पसलियों को हील करने की कोशिश किया। आर्यमणि के खुद की थोड़ी हीलिंग और उंगलियों से जी तोड़ हील करने का जज्बे ने आर्यमणि को राहत दिलवाया और उसकी पसली हील हो गयी l एक पसली हील होने के बाद दूसरी और फिर खुद को हील करना...


काफी वक्त लगा खुद को पूरा हील करने में लेकिन आर्यमणि पूर्ण रूप से तैयार था। इस बीच वह लड़का बिना कोई प्रतिक्रिया दिये अपनी जगह खड़ा रहा। आर्यमणि तेजी से उसके करीब पहुंचा और अपनी गति का प्रयोग करके, उस पर क्ला से हमला करने लगा। आर्यमणि हमला तो कर रहा था, किंतु पहले ही पंच से उसे पता चल गया की वह हवा में ही मरता रह जायेगा। क्या गजब की उसके बचने की क्षमता थी। किसी भीं गति और कितना ही नजदीक से आर्यमणि हमला करे, वह लड़का किसी स्प्रिंग की तरह लचीलापन दिखाते, किसी भी दिशा में झुक जाता और उतने ही तेजी से अपना मुक्का चला चुका होता।


नजारा अकल्पनीय था। आर्यमणि जितना तेज हो सकता था उतना तेज हमला करता और वह लड़का उस से भी तेज बचते हुये जवाबी हमला करता। तेजी के साथ लगातार पड़ते मुक्कों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। एक तो दम से मारा गया मुक्का उसमे भी बिजली की रफ्तार। आर्यमणि के जिस अंग पर मुक्का लगता वह हिस्सा 4 इंच तक धंस जाता। कुछ ही पल में आर्यमणि का पूरा बदन सूज चुका था। हांफते और बदहाली में वह पीछे हटा और खड़ा होकर अपने दर्द से उबरने की कोशिश करने लगा। शरीर में इतनी क्षति हुई थी कि अब वह हाथों से हील नही हो पा रहा था। आंख की रौशनी बिलकुल धुंधली हो गयी थी और दिमाग अब गहरी निद्रा में जाने के लिये तड़प रहा था। फिर भी आर्यमणि खुद को संभाले अपने नए दुश्मन को समझने की कोशिश कर रहा था, जो अपनी जगह से एक कदम भी इधर–उधर नही हुआ था।
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भाग:–70





नजारा अकल्पनीय था। आर्यमणि जितना तेज हो सकता था उतना तेज हमला करता और वह लड़का उस से भी तेज बचते हुये जवाबी हमला करता। तेजी के साथ लगातार पड़ते मुक्कों की आवाज चारो ओर गूंज रही थी। एक तो दम से मारा गया मुक्का उसमे भी बिजली की रफ्तार। आर्यमणि के जिस अंग पर मुक्का लगता वह हिस्सा 4 इंच तक धंस जाता। कुछ ही पल में आर्यमणि का पूरा बदन सूज चुका था। हांफते और बदहाली में वह पीछे हटा और खड़ा होकर अपने दर्द से उबरने की कोशिश करने लगा। शरीर में इतनी क्षति हुई थी कि अब वह हाथों से हील नही हो पा रहा था। आंख की रौशनी बिलकुल धुंधली हो गयी थी और दिमाग अब गहरी निद्रा में जाने के लिये तड़प रहा था। फिर भी आर्यमणि खुद को संभाले अपने नए दुश्मन को समझने की कोशिश कर रहा था, जो अपनी जगह से एक कदम भी इधर–उधर नही हुआ था।


खुद से उम्र में कहीं छोटे एक तिल्लिश्मी बालक को आर्यमणि ने एक बार और ध्यान से देखने की कोशिश की। लेकिन नजर इतनी साफ नही थी कि अब उस बालक का चेहरा अच्छे से देख पाये। फिर निकली आर्यमणि के मुंह से दिल दहला देने वाली आवाज। यूं तो इस आवाज का दायरा सीमित था, लेकिन सीमित दायरे में गूंजी ये आवाज किसी भयंकर तूफान से कम नही था।बवंडर सी आंधी जिस प्रकार आती है, आर्यमणि की दहाड़ ठीक वैसी ही बवंडर तूफान उठा रहा थे।


आर्यमणि अपना शेप पूर्ण रूप से बदल चुका था। हीरे की भांति चमकीला बदन, विशाल और कठोर। ऐसा लग रहा था चमरी के जगह सीसा रख दिया हो, जिसके नीचे पूरे बदन पर फैले रक्त नलिकाओं को देखा जा सकता था, जिसमे बिलकुल गहरे काला रंग का खून बह रहा था। आर्यमणि अपने विकराल रूम में आ चुका था। उसका बदन पूरी तरह से हील हो चुका था तथा अपनी दहाड़ से उठे बवंडर के बीच एक बार फिर आर्यमणि उस लड़के के सामने खड़ा था।


एक बार फिर मारने की कोशिश अपने चरम पर थी। आर्यमणि पूरी रफ्तार से हमला किया और नतीजा फिर से वही हुआ, काफी तेज रिफ्लेक्स और जवाबी मुक्का उतने ही रफ्तार से लगा। फिर से खेल शुरू हो चुका था, लेकिन इस बार उस लड़के का मुक्का जब भी पड़ता पहले के मुकाबले कमजोर होता। अब तक आर्यमणि उस लड़के को छू भी नहीं पाया था, लेकिन फिर भी इस बार वह लड़का धीमा पड़ता जा रहा था।


आर्यमणि ने हथेली से जितने भी दर्द लिये। जितने भी टॉक्सिक उसने आज तक समेटा था, सब के सब उसके रक्त कोशिकाओं में बह रहा था। जब भी वह लड़का आर्यमणि के बदन पर मुक्का चलाता, ऐसा लगता उसका मुक्का 4 इंच तेजाब में घुस गया हो। ऐसा तेजाब जिसका असर बाद में भी बना रहता। और यही वजह थी कि वह लड़का धीरे–धीरे कमजोर पड़ने लगा था। एक वक्त ऐसा भी आया जब मुक्का तो पड़ रहा था लेकिन अब मानो आर्यमणि के शरीर को मात्र स्पर्श जैसा महसूस हो रहा हो। हां उस लड़के के रिफ्लेक्स अब भी काफी तेज थे। आर्यमणि उसे छू नही पा रहा था लेकिन जवाबी मुक्का भी अब बेअसर सा दिख रहा था।


कुछ वक्त बिताने के बाद आर्यमणि के हाथ अब मौका आ चुका था। पूर्ण रूप से तैयार आर्यमणि ने पूरे दहाड़ के साथ एक तेज हमला किया। आर्यमणि के हमले से बचने के लिये वह लड़का मुक्के के दिशा से अपने शरीर को किनारे किया और जैसे ही अपना मुक्का चलाया, ठीक उसी वक्त आर्यमणि ने अपना दूसरा मुक्का उस लड़के के मुक्के पर ही दे मारा। लागातार टॉक्सिक से टकराने के कारण उस लड़के का मुक्का पहले ही धीमा पड़ गया था, और उसके पास इस बार आर्यमणि के मुक्के से बचने का कोई काट नही था।


एक सम्पूर्ण जोरदार मुक्का ही तो पड़ा था और वह कहावत सच होती नजर आने लगी... "100 चोट सोनार की, एक चोट लोहार की"…. ठीक उसी प्रकार आर्यमणि के एक जोरदार मुक्के ने उस लड़के को हक्का बक्का कर दिया। वो तो शुक्र था कि उस लड़के ने ना तो सामने से मुक्का में मुक्का भिड़ाया था और न ही आर्यमणि का जब मुक्का उसके कलाई के आस–पास वाले हिस्से में लगा, तो उस हिस्से के ठीक पीछे कोई दीवार या कोई ऐसी चीज रखी हो जो रोकने का काम करे। यदि आर्यमणि के मुक्के और किसी दीवार के बीच उस बालक का वो कलाई का हिस्सा आ गया होता, तब फिर सबूत न रहता की उस हाथ में पहले कभी कलाई या उसके नीचे का पंजा भी था।


आर्यमणि का मुक्का पड़ा और उस लड़के का हाथ इतनी तेजी से हवा में लहराया की उसके कंधे तक उखड़ गये। हवा में लहराने से उसकी सारे नशे खींच चुकी थी। दवाब के कारण उसके ऊपरी हाथ में कितने फ्रैक्चर आये होंगे ये तो उस लड़के का दर्द ही बता रहा होगा लेकिन जिस हिस्से में आर्यमणि का मुक्का लगा वह पूरा हिस्सा झूल रहा था। दर्द और पीड़ा से वह लड़का अंदर ही अंदर पागल हो चुका था। एक हाथ ने पूरा काम करना बंद कर दिया था, लेकिन जज्बा तो उसका भी कम नही था। बिना दर्द का इजहार किये वह लड़का अब भी अपने जगह पर ही खड़ा था। न तो वह अपनी जगह से हिला और न ही लड़ाई रोकने के इरादे से था।


आर्यमणि हमला करना बंद करके 2 कदम पीछे हुआ... "जितना वक्त लेना है, लेकर खुद को ठीक करो।"..


वह लड़का अपने कमर से एक खंजर निकालते.... "तुम्हारी तरह खुद को मैं ठीक नही कर सकता लेकिन तैयार हूं।"… इतना कहकर उस लड़के ने आर्यमणि को आने का इशारा किया। फिर से वही तेज–तेज हमले का सिलसिला शुरू हो गया। अब वह लड़का खंजर थाम ले या बंदूक। उसके दोनो हाथ के मुक्के ने आर्यमणि के बदन का इतना टॉक्सिक छू लिया था कि अब वह काम करने से तो रहा। मात्र एक पंच का तो मामला था, आर्यमणि जाते ही एक मुक्का घूमाकर दे दिया। उस लड़के का दूसरा हाथ भी पूरा बेकार हो चुका था।


एक बार फिर आर्यमणि अपना कदम पीछे लिया। 2 कदम नहीं बल्कि पूरी दूरी बनाकर अब उसकी हालत का जायजा ले रहा था और उस लड़के को भी पूरा वक्त दिया, जैसे की उसने पहले आर्यमणि को दिया था। वह लड़का दर्द में भी मुस्कुराया। दोनो हाथ में तो जान बचा नही था, लेकिन फिर भी आंखों के इशारे से लड़ने के लिये बुला रहा था। आर्यमणि अपना कदम आगे बढ़ाते…. "जैसे तुम्हार मर्जी"…कहने के साथ ही अपनी नब्ज को काटकर तेज फूंक लगा दिया।


अंदर की फूंक बहुत ज्यादा तेज तो नही लेकिन तेज तूफान उठ चुका था। खून की बूंदें छींटों की तरह बिखर रही थी। तूफान के साथ उड़ते छींटे किसी घातक अम्लीय वर्षा से कम न था। लेकिन उस लड़के का रिफ्लेक्स.… आती हुई छींटों को भी वह किसी हथियार के रूप में देख रहा था। किंतु वह लड़का भी क्या करे? यह एक दिशा से चलने वाला कोई मुक्का नही था, जो अपने रिफ्लेक्स से वह लड़का खुद को मुक्के की दिशा से किनारे कर लेता। चाहु दिशा से आर्यमणि का रक्त बारिश चल रहा था। कुछ छींटों से तो बच गया, लेकिन शरीर के जिस हिस्से पर खून की बूंद गिरी, वह बूंद कपड़े समेत शरीर तक में छेद कर देता। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने उस लड़के के पूरे बदन में ही छेद–छेद करने का इरादा बना लिया था।



बड़े आराम से आर्यमणि अपना एक–एक कदम आगे बढ़ाते हुये, अपने फूंक को सामने की निश्चित दिशा देते बढ़ रहा था। आर्यमणि उस लड़के के नजदीक पहुंचकर फूंकना बंद किया और अपनी कलाई को पकड़ कर हील किया। आर्यमणि पहली बार उस लड़के के भावना को मेहसूस कर रहा था। असहनीय पीड़ा जो उसकी जान ले रही थी। अब कहां इतना दम बचा की खुद को बचा सके। हां किंतु आर्यमणि उसे अपने तेज हथौड़े वाला मुक्के का स्वाद चखाता, उस से पहले ही वह लड़का बेहोश होकर धम्म से गिर गया।


आर्यमणि इस से पहले की आगे कुछ सोचता उसके पास 2 लोग और पहुंच चुके थे.… "आर्य इसे जल्दी से उठा, और कॉटेज लेकर चल"….. यह आवाज सुनकर आर्यमणि के चेहरे पर जैसे मुस्कान आ गयी हो। मुड़कर देखा तो न केवल वहां निशांत था, बल्कि संन्यासी शिवम भी थे। आर्यमणि के चेहरे की भावना बता रही थी की वह कितना खुश था। लेकिन इस से पहले की वह अपनी भावना जाहिर करता, निशांत दोबारा कह दिया... "गधे, भरत मिलाप बाद में करेंगे, पहले उस लड़के की जान बचाओ और कॉटेज चलो"…


आर्यमणि, उस लड़के को अपने गोद में उठाकर, उसके जख्म को हील करते कॉटेज के ओर कदम बढ़ा दिया... "ये मेरा कोई टेस्ट था क्या?"..


निशांत:– हां कह सकते हो लेकिन टेस्ट उस लड़के का भी था।


आर्यमणि:– क्या ये तुम लोगों में से एक है?


संन्यासी शिवम:– हां हम में से एक है और इसे रक्षक बनना था इसलिए अपना टेस्ट देने आया था।


आर्यमणि:– ये रक्षक क्या होता है?


संन्यासी शिवम:– साथ चलो, हमारे आचार्य जी आ चुके है वो सब बता देंगे...


सभी कॉटेज पहुंचे। कॉटेज में भरा पूरा माहोल था। मीटर जितनी सफेद दाढ़ी में एक वृद्ध व्यक्ति के साथ कुछ संन्यासी और योगी थे। एक प्यारी सी किशोरी भी थी, जो उस लड़के को मूर्छित देखते ही बेहोश हो गयी। शायद उसे किसी प्रकार का पैनिक अटैक आया था। संन्यासी शिवम के कहने पर आर्यमणि ने उस लड़की का भी उपचार कर दिया। दोनो किशोर गहरी निद्रा में थे। आर्यमणि दोनो को ऊपर लिटाकर नीचे सबके बीच आया।


आर्यमणि, अपने दोनो हाथ जोड़ते... "यहां चल क्या रहा है? वो लड़का कौन है जिसे मरना पसंद था लेकिन अपनी जमीन उसने छोड़ा नहीं। क्या आप लोग भी प्रहरी तो नही बनते जा रहे, जो इंसानों को ही हथियार बना रहे हो।


निशांत:– कोई भी बात समझ ले न पहले मेरे भाई..


आर्यमणि:– समझना क्या है यार... कभी किसी जानवर का दर्द लो और उसे सुकून में देखो। तुम्हारी अंतरात्मा तक खुश हो जायेगी। वो एहसास जब तुम बेजुबानों के आंखों में अपने प्रति आभार मेहसूस करते देखते हो। मुख से कुछ बोल नही सकते लेकिन अपने रोम–रोम से वह धन्यवाद कहते है। जान लेना आसान है, पर जान बचाने वाले से बढ़कर कोई नही...


निशांत:– मुझ पर हमला होते देख तुमने तो कई लोगों की कुरुरता से जान ले ली थी। जिसकी तू बात कर रहा है उसके आंखों के सामने उसकी मां को जिंदा आग की भट्टी में झोंक दिया। लोग यहां तक नही रुके। जिसके साथ पढ़ा था, हंसा, खेला, और पूरे साल जिनके साथ ही रहता था, उतने बड़े परिवार को एक साथ आग की भट्टी में झोंक दिया। उसे कैसा होना चाहिए? तूने उस लड़के की उम्र देखी न, अब तू ही तय कर ले की उसकी मानसिकता कैसी होनी चाहिए?


आर्यमणि कुछ देर खामोश रहने के बाद.… "तो क्या वो मेरे हाथ से मारा जाता तो उसका बदला पूरा हो जाता? या फिर मुझे कहते बदला लेने?


आचार्य जी:– "उसका नाम अपस्यु है। अपने गुरुकुल काल के दूसरे वर्ष में उसने अपनी सातवी इंद्री जागृत कर ली थी। पांचवे वर्ष में सारी इंद्रियों पर नियंत्रण पा चुका था। हर शास्त्र का ज्ञान। जितनी हम सिद्धियां जानते है उन पूर्ण सिद्धियों का ज्ञान। ये सब उसने गुरुकुल के पांचवे साल तक अर्जित कर लिया था। उसके और हमारे गुरु, गुरु निशी उसे एक रक्षक बनाना चाहते थे। उसका अस्त्र और शस्त्र का प्रशिक्षण शुरू ही होने वाला था कि उसकी जिंदगी ही पूरी बदल गयी।"

"जिस वक्त गुरु निशी की मृत्यु हुई, अपस्यु ही उनका प्रथम शिष्य थे। प्रथम शिष्य यानी गुरु के समतुल्य। अब इसे अपस्यु की किस्मत कहो या नियति, वह अचानक सात्त्विक आश्रम का गुरु बन गया। बीते कुछ महीनों में जिस प्रकार से तुमने योग और तप का आचरण दिखाया, अपस्यु को लग गया कि तुम आश्रम के सबसे बेहतर गुरु बनोगे। एक विशुद्ध ब्राह्मण जो अलौकिक मुहरत में, ग्रहों के सबसे उत्तम मिलन पर एक अलौकिक रूप में जन्म लिये।"

"मैने ही उनसे कहा था कि आर्यमणि एक रक्षक के रूप में ज्यादा विशेष है और उसका अलौकिक जन्म भी उसी ओर इशारा कर रहे। अपस्यु नही माना और कहने लगा "यदि वो बिना छल के केवल अपने शारीरिक क्षमता से तुम्हे हरा देगा, तब हमे उसकी बात माननी होगी।" अपस्यु, तुम्हारे सामने नही टिक पाया और रक्षक न बनने के मलाल ने उसे अपनी जगह से हिलने नही दिया।


आर्यमणि:– छल मतलब कैसा छल करके जीत जाते...


निशांत:– ठीक वैसे ही जैसे पारीयान के तिलिस्म में हमने अनजाने में उस शेर को छला था, भ्रम से। कई तरह के मंत्र से। और वो तो आश्रम के गुरुजी हुये, उसके पास तो वो पत्थर भी है जो तुम्हे बांध दे। यहां के पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली।


आर्यमणि:– और वो लड़की कौन थी.. जो इस बालक गुरुजी को देखकर बेहोश हो गयी।


निशांत:– उसकी परछाई.. उसकी प्रीयसी... अवनी.. वह गुरुजी को बेहोशी की हालत में घायल देख ले, फिर उसकी स्थिति मरने जैसी हो जाती है...


"इतनी छोटी उम्र में ऐसा घनिष्ठ रिश्ता... अतुलनीय है..."… आर्यमणि इतना कहकर निशांत को खींचकर एक थप्पड़ लगा दिया...


निशांत:– अब ये क्यों?


आर्यमणि:– घर के अंदर आते ही ताक झांक करने और उन 40 पत्थरों को देखने के लिये, जिसे मैंने अब तक न दिखाया था...


निशांत:– मैने कब देखा उसे...


आर्यमणि:– अच्छा इसलिए थोड़ी देर पहले मुझे कह रहा था की बालक गुरुजी के पास ऐसे पत्थर है जो मेरे पास रखे पत्थरों के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावशाली..


निशांत:– पकड़ लिया तूने... वैसे गलती हमारी नही है। ऐसे पत्थर को जबतक सही तरीके से छिपा कर नही रखोगे वह अपने पीछे निशान छोड़ती है।


आर्यमणि:– क्या मतलब निशानी छोड़ती है...क्या इस पत्थर के सहारे इसका मालिक यहां तक पहुंच सकता है...


आचार्य जी:– अब नही पहुंचेगा... सभी निशानी को मिटाकर एक भ्रमित निशान बना दिया है जो दुनिया के किसी भी कोने में पत्थर के होने के संकेत दे सकते है। शुक्र है ये पत्थर पानी के रास्ते लाये वरना कहीं हवा या जमीनी मार्ग से लाते तब तो इसका मालिक कबका न पहुंच गया होता।


आर्यमणि:– कमाल के है आप लोग। निशांत ने अभी कहा कि बालक गुरुजी बिना छल के लड़े, तो उनका शरीर हवा जैसा लचीला क्यों था?


आचार्य जी:– तुम्हारा शरीर भी तो एक प्राकृतिक संरचना ही है ना, फिर तुम कैसे रूप बदलकर अपने शरीर की पूरी संरचना बदल लेते हो। ये शरीर अपने आप में ब्रह्म है। इसपर जितना नियंत्रण होगा, उतना ही विशेष रूप से क्षमताओं को निखार सकते है।


आर्यमणि:– एक बात बताइए की जब आपके पास सब कुछ था। अपस्यु जब अपने शिक्षा के पांचवे वर्ष सारी सिद्धियां प्राप्त कर लिया था। फिर उसकी मां, गुरुजी, ये सब कैसे मर गये। क्या अपस्यु इन सबकी रक्षा नही कर सकता था?


आचार्य जी:– होने को तो बहुत कुछ हो सकता था लेकिन गुरु निशी किसी साजिश का शिकार थे। भारे के कातिल और सामने से मारने वाले में इतना दम न था। किसी ने पीछे से छल किया था जिसके बारे में अब पता चला है... अपस्यु के साथ में परेशानी यह हो गयी की वह बहुत छोटा था और मंत्रों का समुचित प्रयोग उस से नही हो पाया।


आर्यमणि:– सारी बात अपनी जगह है लेकिन बिना मेरी सहमति के आप मुझे रक्षक या गुरु कैसे बना सकते है। बताओ उस लिलिपुटियन (अपस्यु) ने मुझे ऐसा मारा की मेरे शरीर के पुर्जे–पुर्जे हिला डाले। यदि मैंने दिमाग न लगाया होता तब तो वह मुझे पक्का घुटनों पर ला दिया होता। उसके बाद जब मैंने उसके दोनो कलाई तोड़ डाले फिर भी वह अपनी जगह छोड़ा नहीं। बताओ कहीं मैं सीने पर जमाकर एक मुक्का रख दिया होता तो। और हां मैं अपने पैक और ये दुनिया भ्रमण को छोड़कर कुछ न बनने वाला। रक्षक या गुरु कुछ नही। बताओ ये संन्यासी शिवम, इनके साथ और न जाने कितने महर्षि और योगी है, जो आश्रम का भार संभाल सकते हैं लेकिन आप आचार्य जी उस बच्चे को छोड़ नही रहे। उल्टा मैं जो आपके कम्युनिटी से दूर–दूर तक ताल्लुक नहीं रखता, उसे गुरु या रक्षक बनाने पर तुले हो।


आचार्य जी:– बातें बहुत हो गयी। मैं तुम्हे रक्षक और गुरु दोनो के लिये प्रशिक्षित करूंगा। और यही अपस्यु के लिये भी लागू होगा। मुझे समझाने की जरूरत नहीं की क्यों तुम दोनो ही। अपस्यु जानता है कि वही गुरु क्यों है। अब तुम्हारी बारी... अपने क्ला मेरे मस्तिष्क में डालो...


आर्यमणि:– हो ही नही सकता... मैने रूही से वादा किया है कि ज्ञान पाने के लिये कोई शॉर्टकट नही...


आचार्य जी:– तुम्हारे पास जो है वो अलौकिक वरदान है। इस से समाज कल्याण के लिये ज्ञान दे रहा हूं। तुम्हारी मर्जी हो तो भी ठीक, वरना जब तुम्हे ज्ञान होगा तब खुद ही समझ जाओगे की क्यों हमने जबरदस्ती किया?


आर्यमणि:– रुको तिलिस्मी लोगो, मैं अपनी मर्जी से क्ला डालता हूं। पहले लिथेरिया वुलापीनी का इंजेक्शन तो लगा लेने दो...


आचार्य जी:– उसकी जरूरत नही है। बहुत कुछ तुम अपने विषय में भी नही जानते, उसका अध्यन भी जरूरी है।... तुम्हारे क्ला अंदर घुसने से मैं वेयरवोल्फ नही बन सकता... डरो मत...


आर्यमणि:– ये तो नई बात पता चल रही है। ठीक है जैसा आप कहो...


आर्यमणि अपनी बात कहते क्ला को उनके गले के पीछे डाल दिया। लगभग एक दिन बाद आर्यमणि की आंखें खुल रही थी। जब उसकी आंखें खुली चेहरे पर मुस्कान और आंखों में आचार्य जी के लिये आभार था।


आर्यमणि:– आचार्य जी मुझे आगे क्या करना होगा...


आचार्य जी:– तुम्हे अपने अंदर के ज्ञान को खुद में स्थापित करना होगा।


आर्यमणि:– मतलब..


गुरु अपस्यु के साथ वाली लड़की अवनी.… "आचार्य जी के कहने का मतलब है सॉफ्टवेयर दिमाग में डाल दिया है उसे इंस्टॉल कीजिए तब जाकर सभी फाइल को एक्सेस कर पायेंगे।"..


आर्यमणि:– तुम दोनो कब जागे... और आज कुछ नये चेहरे भी साथ में है।


आचार्य जी:– हम लोगों के निकलने का समय हो गया है। आर्यमणि तुम जीवन दर्शन के लिये निकले हो, अपने जीवन का अनुभव के साथ अपनी सारी सिद्धियां प्राप्त कर लेना। जीवन का ज्ञान ही मूल ज्ञान है, जिसके बिना सारी सिद्धियां बेकार है। प्रकृति की सेवा जारी रखना। ये तुम्हारे वायक्तिव, और पाने वाले सिद्धियों को और भी ज्यादा निखारेगा। हम लोग जा रहे है, बाकी दोनो गुरुजी आपस में जान पहचान बना लो।


आर्यमणि:– और निशांत...


निशांत:– अभी मेरी तपस्या अधूरी है। आचार्य जी ने एक दिन का विश्राम दिया था। वो आज पूरा हो गया।


संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..
Interesting update
 

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भाग:–71







संन्यासी शिवम ने वहीं से पोर्टल खोल दिया। सभी लोग उस पोर्टल के जरिये निकल गये, सिवाय अपस्यु और उसके साथ के कुछ लोगों के। आर्यमणि, अपस्यु के साथ जंगलों के ओर निकला... "और छोटे गुरु जी अपने साथ मुझे भी फसा दिये।"..


अपस्यु:– बड़े गुरु जी मुझे लगा अब मैं रक्षक बन जाऊंगा। लेकिन आचार्य जी ने हम दोनो को फसा दिया। खैर अच्छा लगा आपसे मिलकर। मात्र कुछ महीनो के ध्यान में अपने कुंडलिनी चक्र को जागृत कर लेना कोई मामूली बात नही है। आप प्रतिभा के धनी है।


आर्यमणि:– तारीफ तो तुम्हारी भी होनी चाहिए छोटे, इतनी कम उम्र में गुरु जी। खैर अब इस पर चर्चा बंद करते हैं। क्या तुम मुझे हवा की तरह तेज लहराना सिखाओगे...


अपस्यु:– हां क्यों नही बड़े गुरु जी। बहुत आसान है.. और आपके लिये तो और ज्यादा आसान होगा..


आर्यमणि:– कैसे...


अपस्यु:– आप इस पूरे वातावरण को मेहसूस कर सकते हो, खुद में समा सकते हो। ॐ का जाप करके मन के सभी ख्यालों को भूल जाओ और बहती हवा को मेहसूस करो...


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– अब बस हवा के परिवर्तन को सुनो..


आर्यमणि:– हां, हां..


अपस्यु:– बस मेहसूस करो...


आर्यमणि बिलकुल खो गया। इधर हवा का परिवर्तन यानी अपस्यु का तेजी से चाकू चलाना। आर्यमणि अब भी आंखे मूंदे था। वह बस हवा के परिवर्तन को मेहसूस करता और परिवर्तित हवा के विपरीत अपने शरीर को ले जाता, जबकि उसके पाऊं एक जगह ही टीके थे।


अपस्यु:– बड़े गुरुजी आंखे खोल लो। आंखें आपकी सब कुछ देखेगी लेकिन अंतर्मन के ध्यान को हवा की भांति बहने दो। हवा के परिवर्तन को मेहसूस करते रहो...


आर्यमणि अपनी आंखें खोल लिया। वह चारो ओर देख रहा था, लेकिन अंदर से उसका ध्यान पूरे वातावरण से घुला–मिला था। अपस्यु लगातार आर्यमणि पर चाकू से वार कर रहा था और आर्यमणि उसे अपनी आंखों से देखकर नही बच रहा था। बल्कि उसकी आंखें देख रही थी की कैसे हवा के परिवर्तन को मेहसूस करके शरीर इतना तेज लहरा रहा है...


आर्यमणि:– और तेज छोटे गुरुजी..


अपस्यु भी हवा को मेहसूस करते काफी तेज हमला कर रहा था... दोनो के बदन मानो हवा की सुर में लहरा रहे थे। जितना तेज अपस्यु हमला कर रहा था, उस से भी कहीं ज्यादा तेज आर्यमणि अपना बचाव कर रहा था। दोनो विराम लिये। अपस्यु आगे चर्चा करते हुये आर्यमणि से सिर्फ इतना ही कहा की जब आप पूर्ण रूप से वातावरण में खो जाते हैं, तब कण–कण को मेहसूस कर सकते है।


आर्यमणि काफी खुश हुआ। दोनो की चर्चा आगे बढ़ी। अपस्यु ने सबसे पहले तो अपने और अवनी के बीच चल रहे रिश्ते को किसी से न बताने के लिये कहा। दुनिया और दोस्तों की नजरों में वो दोनो केवल अच्छे दोस्त थे, जबकि आचार्य जी या फिर गुरु निशी से ये बात कभी छिपी नही रही की अपस्यु और अवनी एक दूसरे को चाहते हैं। आर्यमणि मान गया।


चर्चाओं का एक छोटा सा सिलसिला शुरू हुआ। अपस्यु ने आश्रम पर चल रहे साजिश के बारे में बताया। शुरू से लेकर आज तक कैसे आश्रम जब भी उठने की कोशिश करता रहा है, कुछ साजिशकर्ता उसे ध्वस्त करते रहे। गुरु निशी की संदिग्ध मृत्यु के विषय में चर्चा हुई। अपस्यु के अनुसार.… "जिन लोगों ने आश्रम में आग लगायी वो कहीं से भी गुरु निशी के आगे नहीं टिकते। सामने रहकर मारने वाले की तो पहचान है लेकिन पीछे किसकी साजिश थी वह पता नहीं था, तबतक जबतक की आर्यमणि के पीछे संन्यासी शिवांश नही पहुंचे थे। और अब हमें पता है की लंबे समय से कौन पीछे से साजिश कर रहा था। लेकिन अपने इस दुश्मन के बारे में जरा भी ज्ञान नहीं।"



आर्यमणि मुस्कुराते हुये कहने लगा.… "धीरे बच्चे.. मैं बड़ा और तुम छोटे।"..


अपस्यु:– हां बड़े गुरुजी..


आर्यमणि:– "ठीक है छोटे फिर तुम जो ये अपनो को समेट कर खुद में सक्षम होने का काम कर रहे थे, उसे करते रहो। कुछ साल का वक्त लो ताकि दिल का दर्द और हल्का हो जाये। ये न सिर्फ तुम्हारे लिये बेहतर होगा बल्कि तुम्हारी टीम के लिये भी उतना ही फायदेमंद होगा। जिसने तुम्हारे आंखों के सामने तुम्हारे परिवार को मारा, वो तुम्हारा हुआ। मारना मत उन्हे... क्योंकि मार दिये तो एक झटके में मुक्ति मिल जायेगी। उन्हे सजा देना... ऐसा की मरने से पहले पल–पल मौत की भीख मांगे।"

"परदे के पीछे वाला जो नालायक है वो मेरा हुआ। मेरे पूरे परिवार को उसने बहुत परेशान किया है। मेरे ब्लड पैक को खून के आंसू रुलाये हैं। इनका कृतज्ञ देखकर मैं आहत हूं। निकलने से पहले मै उनकी लंका में सेंध मारकर आया था। संन्यासी शिवांश से आग्रह भी कर आया था कि मेरे परिवार की देखभाल करे।"


अपस्यु:– आश्रम के कई लोग नागपुर पहुंच चुके है। हमारी सर्विलेंस उन अजीब से लोगों पर भी शुरू हो चुकी है जो आश्रम के दुश्मन है। हम उन्हे अब समझना शुरू कर चुके है। उनके दिमाग से खेलना शुरू कर चुके है।


आर्यमणि:– उस आदमी से कुछ पता चला, जिसे संन्यासी शिवम को मैने पैक करके दिया था। (थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी, जिसे संन्यासी शिवम अपने साथ ले गया था)


अपस्यु:– आपने जिस आदमी को पैक करके शिवम के साथ भेजा था, वह मरा हुआ हमारे पास पहुंचा। अपने समुदाय का काफी वफादार सेवक था। हमने वहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया।


आर्यमणि:– उस तांत्रिक का क्या हुआ जिसे रीछ स्त्री के पास से पकड़े थे।


अपस्यु:– तांत्रिक उध्यात एक जटिल व्यक्ति है। हम उन्हे बांधने में कामयाब तो हुये है, लेकिन कुछ भी जानकारी नही निकाल सके। उनके पास हमलोगों से कहीं ज्यादा सिद्धि है, जिसका तोड़ हमारे पास नही। कुछ भी अनुकूल नहीं है शायद। और हम हर मोर्चे पर कमजोर दिख रहे।


आर्यमणि:– मरना ही तो है, कौन सा हम अमर वरदान लेकर आये हैं। फिर इतनी चिंता क्यों? इतनी छोटी उम्र में इतना बोझ लोगे तो जो कर सकते हो, वो भी नही कर पाओगे। चिल मार छोटे, सब अच्छा ही होगा।


अपस्यु:– हां कह सकते है। मुझे बड़े गुरु जी मिल गये। सो अब मैं अपनी नाकामी पर शर्मिंदा नहीं हो सकता क्योंकि मेरे ऊपर संभालने वाला कोई आ गया है। वरना पहले ऐसा लगता था, मैं गलती कैसे कर सकता हूं।


आर्यमणि:– चलो फिर सुकून है। आज से अपनी चिंता आधी कर दो। दोनो पक्ष को हम एक साथ सजा देंगे। तुम आग लगाने वाले को जिस अवधि में साफ करोगे, उसी अवधि में मैं इन एपेक्स सुपरनैचुरल का भी सफाया करूंगा। हम दोनो ये काम एक वक्त पर करेंगे।


अपस्यु:– हां ये बेहतर विकल्प है। जबतक हम अपनी तयारी में भी पूरा परिपक्व हो जायेंगे।


आर्यमणि:– बिलकुल सही कहा...


अपस्यु:– मैने सुना है ये जो आप इंसानी रूप लिये घूम रहे है, वो मेकअप से ऐसा बदला है कि वास्तविक रूप का पता ही नही चलता। इतना बढ़िया आर्ट सीखा कहां से।


आर्यमणि:– मेरे बीते वक्त में एक दर्द का दौड़ था। उस दौड़ में मैने बहुत सी चीजें सीखी थी। कुछ काम की और कुछ फालतू... ये मेरे फालतू कामों में से एक था जो भारत छोड़ने के बाद बहुत काम आया।


अपस्यु:– हमारे साथ स्वस्तिका आयी है। गुरु निशी की गोद ली हुई पुत्री है। उसे ये आर्ट सीखा दो ना बड़े गुरुजी...


आर्यमणि:– मेरे पास कुछ विषय के विद्वानों का ज्ञान है। चलो देखते हैं किसकी किसमे रुचि है, उनको शायद मैं मदद कर सकूं। वैसे एक बात बताओ मेरे घर का सिक्योरिटी सिस्टम को किसी मंत्र से तोड़ा या कोई कंप्यूटर एक्सपर्ट है।


अपस्यु:– एमी है न, वही ये सारा काम देखती है..


आर्यमणि:– विश्वास मानो इस भौतिक दुनिया में कंप्यूटर और पैसे से बड़ा कोई सुपरनैचुरल पावर नही। अच्छा लगा एक कंप्यूटर एक्सपर्ट तुम्हारी टीम में है..


अपस्यु:– अभी तो सब सीख ही रहे है। और पैसे अपने पास तो बिलकुल नही, लेकिन आश्रम को जलाने वाले दुश्मन के इतने पैसे उड़ाये है कि कहां ले जाये, क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा।


आर्यमणि:– मेरी भूमि दीदी ने एक बात समझाई थी। पैसे का कभी भी सबूत न छोड़ो। और जो पैसा सिर दर्द दे, उसे छोड़कर निकल जाओ... पैसा वो तिलिस्मी चीज है जिसके पीछे हर कोई खींचा चला आता है। एक छोटी सी भूल और आपका खेल खत्म।


अपस्यु:– आपको बाहरी चीजों का बहुत ज्ञान है बड़े गुरु जी। मैं तो गुरुकुल में ही रहा और वहां से जब बाहर निकला तब दुनिया ही बदल चुकी थी। पहले अपनी दुनिया समेट लूं या दुनिया को समझ लूं यही विडंबना है।


आर्यमणि:– "मैं भी शायद कभी जंगल से आगे की दुनिया नही समझ पाता। मैने एक कमीने की जान बचाई। और उसी कमीने ने बदले में लगभग मेरी जान ले ली थी। एक लड़की ने मुझसे कहा था, हर अच्छाई का परिणाम अच्छा नहीं होता। शायद तब वो सही थी, क्योंकि मैं नर्क भोग रहा था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ की मरना तो आसान होता है, मुश्किल तो जिंदगी हो जाती है।"

"खैर आज का आर्यमणि उसी मुश्किल दौड़ का नतीजा है। शायद उस लड़की ने, उस एक घटिया इंसान की करतूत देखी, जिसकी जान मैने बचाई थी। लेकिन उसके बाद के अच्छे परिणाम को वह लड़की देख नही पायी। मेरे एक अच्छे काम के बुरे नतीजे की वजह से मैंने क्या कुछ नही पाया था। ये जिंदगी भी अजीब है छोटे। अच्छे कर्म का नतीजा कहीं न कहीं से अच्छा मिल ही जाता है, बस किसी से उम्मीद मत करना...


अपस्यु:– आपसे बहुत कुछ सीखना होगा बड़े गुरुजी।


आर्यमणि:– नाना... मैं भी सिख ही रहा हूं। तुम भी आराम से अभी कुछ साल भारत से दूर रहो। सुकून से पहले इंसानो के बीच रहकर उनकी अजीब सी भावना को समझो। जिंदगी दर्शन तुम भी लो… फिर आराम से वापस लौटकर सबको सजा देने निकलना...


अपस्यु:– जैसा आप कहो। मेरे यहां के मेंटर तो आप ही हो।


आर्यमणि:– हम्म् सब मिलकर मुझे ही बाप बना दो.. वो तीन टीनएजर कम थे जो तुम्हारा भी एक ग्रुप आ गया।


अपस्यु:– कौन सा मैं आपके साथ रहने वाला हूं। बस बीच–बीच में एक दूसरे की स्किल साझा कर लिया करेंगे।


आर्यमणि:– हां लेकिन मेरी बात मानो और यहां से भारत लौटकर मत जाओ। पूरी टीम को पहले खुल कर जीने दो। कुछ साल जब माहोल से दूर रहोगे, तब सोच में बहुत ज्यादा परिवर्तन और खुद को ज्यादा संयम रख सकते हो। वैसे तुम तो काफी संतुलित हो। मुझसे भी कहीं ज्यादा, ये बात तो मैने जंगल में देख लिया। लेकिन तुम्हारी टीम के लिये शायद ज्यादा फायदेमंद रहे...


अपस्यु:– बड़े गुरु जी यहां रहना आसान होगा क्या?


आर्यमणि:– मुझे जो अनुभव मिला है वो तुम्हारे काम तो आ ही जायेगा। पहले अपनी टीम से मिलवाओ, फिर हम तुम्हारे दुश्मन के पैसे का भी जुगाड लगाते है।


आर्यमणि, अपस्यु की टीम से मिलने चला आया। अपस्यु और ऐमी (अवनी) के अलावा उनके साथ स्वस्तिका, नाम की एक लड़की, पार्थ और आरव नाम के 2 लड़के। कुल 5 लोगों की टीम थी। आर्यमणि ने सबसे थोड़ी जान पहचान बनानी चाही, किंतु अपस्यु को छोड़कर बाकी सब जैसे गहरे सदमे में हो। आर्यमणि उनकी भावना मेहसूस करके चौंक गया। अंदर से सभी काफी दर्द में थे।


आर्यमणि से रहा नही गया। आज से पहले उसने कभी किसी के भावना को अपने नब्ज में उतारने की कोशिश नही किया था। अचानक ही उसने ऐमी और आरव का हाथ थाम लिया। आंख मूंदकर वही "ॐ" का उच्चारण और फिर वह केवल उनके अंदर के दर्द भरी भावना के सिवा और कुछ भी मेहसूस नही करना चाह रहा था। आर्यमणि ने अपना हाथ रखा और भावना को खींचने की कोशिश करने लगा।


आंख मूंदे वह दोनो के दर्द को मेहसूस कर रहा था। फिर ऐसा लगा जैसे उनका दर्द धीरे–धीरे घटता जा रहा है। इधर उन दोनो को अच्छा लग रहा था और उधर आर्यमणि के आंखों से आंसू के धारा फुट रही थी। थोड़ी देर बाद जब आर्यमणि ने उनका हाथ छोड़ा, तब दोनो के चेहरे पर काफी सुकून के भाव थे। उसके बाद फिर आर्यमणि ने स्वस्तिका और पार्थ के हाथ को थाम लिया। कुछ देर बाद वो लोग भी उतने ही शांति महसूस कर रहे थे। अपस्यु अपने दोनो हाथ जोड़ते... "धन्यवाद बड़े गुरुजी"..


आर्यमणि:– तू बड़े ही कहा कर छोटे। हमारी बड़े–छोटे की जोड़ी होगी... मेरा कोई भाई नहीं, लेकिन आज से तू मेरा छोटा भाई है.. ला हाथ इधर ला…


अपस्यु ने जैसे ही हाथ आगे बढाया, आर्यमणि पहले चाकू से अपस्यु का हथेली चिर दिया, फिर खुद का हथेली चिड़कड़ उसके ऊपर रख दिया। दोनो २ मिनट के लिये मौन रहे उसके बाद आर्यमणि, अपस्यु का हाथ हील करके छोड़ दिया। जैसे ही आर्यमणि ने हाथ छोड़ा अपस्यु भी अपने हाथ उलट–पलट कर देखते... "काफी बढ़िया मेहसूस हो रहा। मैं एक्सप्लेन तो नही कर सकता लेकिन ये एहसास ही अलग है।"…


फिर तो बड़े–बड़े बोलकर सबने हाथ आगे बढ़ा दिये। एक छोटे भाई की ख्वाइश थी, तीन छोटे भाई, एक छोटी बहन और साथ में एक बहु भी मिल गयी, जिसका तत्काल वर्णन आर्यमणि ने नही किया। सोमवार की सुबह आर्यमणि का बड़ा सा परिवार एक छत के नीचे था। अपनी मस्ती बिखेड़कर अल्फा पैक भी वापस आ चुके थे। एक दूसरे से परिचय हो गया और इसी के साथ अल्फा पैक की ट्रेनिंग को एक नई दिशा भी मिल गयी।वुल्फ के पास तो हवा के परखने की सेंस तो पहले से होती है, लेकिन अल्फा पैक तो जैसे अपने हर सेंस को पूर्ण रूप से जागृत किये बैठे थे, बस जरूरत एक ट्रिगर की थी।


अपस्यु वहां रुक कर सबको हवा को परखने और पूर्ण रूप से वातावरण में खो कर उसके कण–कण को मेहसूस करने की ट्रेनिंग दे रहा था। और इधर आर्यमणि, अपस्यु और उसकी टीम को धीरे–धीरे ज्ञान से प्रकाशित कर रहा था। स्वस्तिका को डॉक्टर और मेक अप आर्टिस्ट वाला ज्ञान मिल रहा था। ऐमी को कंप्यूटर और फिजिक्स का। आरव को वाणिज्य और केमिस्ट्री। पार्थ को फिजिक्स, और केमिस्ट्री। इन सब के दिमाग में किसी याद को समेटने की क्षमता काफी कम थी। मात्र 5% यादें ही एक दिन में ट्रांसफर हो सकती थी।


वहीं अपस्यु के साथ मामला थोड़ा अलग था। उसका दिमाग एक बार में ही सभी विद्वानों के स्टोर डेटा को अपने अंदर समा लिया। चूंकि अपस्यु आश्रम का गुरु भी था। इसलिए आर्यमणि ने सीक्रेट प्रहरी के उन 350 कितना के आखरी अध्याय को साझा कर दिया जिसमे साधु को मारने की विधि लिखी थी। साथ ही साथ 50 मास्टर क्लास बुक जिसमे अलग–अलग ग्रह पर बसने वाले इंसानों और वहां के पारिस्थितिकी तंत्र तंत्र का वर्णन था, उसे भी साझा कर दिया।


खैर इन सब का संयुक्त अभ्यास काफी रोमांचकारी था। आर्यमणि ने अपस्यु और उसके पूरे टीम को तरह–तरह के हथियार चलाना सिखाया। ट्रैप वायर लगाना और शिकार को फसाने के न जाने कितने तरीके। जिसमे पहला बेहद महत्वपूर्ण सबक था धैर्य। किसी भी तरीके से शिकार पकड़ना हो उसके लिये सबसे ज्यादा जरूरी था धैर्य। उसके बाद दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात, शिकार फसाने का तरीका कोई भी हो, लेकिन किसी भी तरीके में शिकार को शिकारी की भनक नहीं होनी चाहिए।


खैर संयुक्त अभ्यास जोरों पर था और उतने ही टीनएजर के झगड़े भी। कभी भी कोई भी टीनएजर किसी के साथ भी अपना ग्रुप बनाकर लड़ाई का माहोल बना देते थे। कभी–कभी तो आर्यमणि को अपने बाल तक नोचने पड़ जाते थे। हां लेकिन एक अलबेली ही थी जिसके कारनामों से घर में ठहाकों का माहोल बना रहता था। अलबेली तो अपने नाम की तर्ज पर अलबेली ही थी। इवान को चिढ़ाने के लिये वह पार्थ के साथ कभी–कभी फ्लर्ट भी कर देती और इवान जल–बूझ सा जाता। सभी टीनएजर ही थे और जो हाल कुछ दिन पहले अल्फा पैक का था, वैसा ही शोक तो इनके खेमे में भी था। दुनिया में कोई ऐसा शब्द नही बना जो किसी को सदमे से उबार सके, सिवाय वक्त के। और जैसे–जैसे सभी टीनएजर का वक्त साथ में गुजर रहा था, वो लोग भी सामान्य हो रहे थे।


अपस्यु की टीम को सबसे ज्यादा अच्छा जंगल में ही लगता। जब अल्फा पैक किसी जानवर या पेड़ को हील करते, वो लोग अपना हाथ उनके हाथ के ऊपर रख कर वह सबकुछ मेहसूस कर सकते थे, जो अल्फा पैक मेहसूस करता था। अपस्यु और उसके टीम की जिदंगी जैसे खुशनुमा सी होने लगी थी। अल्फा पैक के साथ वो लोग जीवन संजोना सिख रहे थे।


इसी बीच आर्यमणि अपने छोटे (अपस्यु) के काम में भी लगा रहा। अपने पहचान के मेयर की लंका तो खुद आर्यमणि लगा चुका था। इसलिए ग्रीन कार्ड के लिये किसी और जुगाड़ू को पकड़ना था। साथ ही साथ अपस्यु एंड टीम ने जो अपने दुश्मन के पैसे उड़ाये थे, उन्हे भी ठिकाने लगाना था। आर्यमणि कुछ सोचते हुये अपस्यु से लूट का अमाउंट पूछ लिया। अपस्यु ने जब कहा की उसने हवाला के 250 मिलियन उड़ाये हैं, आर्यमणि के होश ही उड़ गये। उस वक्त के भारतीय रुपए से तकरीबन 1000 करोड़ से ऊपर।


आर्यमणि:– ये थोड़ा रुपया है...


अपस्यु:– हमे क्या पता। हमारा तो लूट का माल है। जिनका पैसा है वो जाने की ऊसको कितना नुकसान हुआ।


आर्यमणि:– हम्मम रुको एक से पूछने दो। डील सेट हो गया तो पैसे ठिकाने लग जायेंगे...


आर्यमणि ने पार्किनसन को कॉल लगाया। कॉल लगाते ही सबसे पहले उसने यही पूछा की उसका हवाले का धंधा तो नही। उसने साफ इंकार कर दिया। उसने बताया की वह केवल वेपन, कंस्ट्रक्शन और गोल्ड के धंधे में अपना पैसा लगाता है। बाकी वह हर वो धंधा कर लेगा जिसमे कमीशन अच्छा हो। आर्यमणि ने 250 मिलियन का डील पकड़ाया, जिसे यूरोप के किसी ठिकाने से उठाना था। पार्केनसन एक शर्त पर इस डील को आगे बढ़ाने के लिये राजी हुआ... "जब कभी भी पैसे के पीछे कोई आयेगा, वह सीधा आर्यमणि के पीछे भेज देगा और कमीशन के पैसे तो भूल ही जाओ।" आर्यमणि ने जैसे ही उसके शर्त पर हामी भरी, डील सेट हो गया। 30% कमीशन से पार्किनसन ने मामला शुरू हुआ और 23% पर डील लॉक।


आधे घंटे में लोग ठिकाने पर पहुंच चुके थे। पूरे पैसे चेक हो गये। जैसे ही सब सही निकला अपस्यु के अकाउंट में पैसे भी ट्रांसफर हो गये। अपस्यु इस कमाल के कनेक्शन को देखकर हैरान हो गया। एक काम हो गया था। दूसरा काम यानी की ग्रीन कार्ड के लिये जब आर्यमणि ने पूछा तब पार्किनसन ने उसे या तो मेयर की बीवी से मिलने कह दिया, जो अपने पति को हटाकर खुद एक मेयर बन चुकी थी, या फिर शिकागो चले जाने कहा।


अपस्यु के दोनो समस्या का हल मिल गया था। लगभग 60 दिन साथ बिताने के बाद सभी ने विदा लिया। इस बीच आर्यमणि नए मेयर से मिला। यानी की पुराने मेयर की बीवी, जो अपने पति को हटाकर खुद अब मेयर थी। आर्यमणि ने पहले तो अपना पहचान बताया। आर्यमणि से मिलकर मानो वो मेयर खुश हो गयी हो। उसे भी 50 हजार यूएसडी का चंदा मिला और बदले में अपस्यु और आरव के ग्रीन कार्ड बन गये। स्वस्तिका अपनी अलग पहचान के साथ भारत वापस लौट रही थी। ऐमी की तो अपनी पहचान थी ही और पार्थ पहले से एक ब्रिटिश नागरिक था।


हर कोई विदा लेकर चल दिया। अपस्यु अपनी टीम को सदमे से उबरा देख काफी खुश नजर आ रहा था। नम आंखों से अपने दोनो हाथ जोडकर आर्यमणि से विदा लिया।
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Tri2010

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भाग:–72






अपस्यु और उसकी टीम जा चुकी थी। उनके जाने के साथ ही घर की चहल–पहल भी चली गयी। अलबेली, इवान और ओजल रोज सुबह से स्कूल में व्यस्त हो जाते। स्कूल खत्म करके तीनों वहीं से सीधा ड्राइविंग स्कूल और ड्राइविंग स्कूल से शाम को घर। टीन वुल्फ के लिये फिर भी काम मिल गया था, लेकिन आर्यमणि और रूही का ज्यादातर वक़्त खाली ही गुजरता। लगभग महीना दिन बीतने को आया, दिन में टीवी देखते हुये रूही कहने लगी…. "पड़े–पड़े कबतक दूसरो का पैसा खर्च करेंगे। 3 महीने में हम 30 हजार डॉलर फूंक चुके है।"


आर्यमणि:- क्या करे, कोई शॉप खोल लूं इधर।


रूही:- आइडिया बुरा नहीं है, हम मसालेदार इंडियन डिशेज बनायेंगे।


आर्यमणि:- और क्या होगा उस मसालेदार डिश में, भेजा फ्राई, कबाब, चिकन, मटन।


रूही:- तुम्हे नॉन भेज से इतनी एलर्जी क्यों है। इंसान भी तो खाते है।


आर्यमणि:– और तुम क्या हो जानवर..


रूही:– वही तो, नॉन वेज खाने के समय तुम हमे जानवर काउंट करते हो और सभी चीजों में विशेष इंसान। आम इंसानों की तरह ही यहां भी हमे काउंट किया जाना चाहिए।


आर्यमणि:- हां आम इंसान खाते है लेकिन तुम लोग विशेष इंसान हो। वॉयलेंटली खाओगे, जो तुम्हारे स्वभाव को बदलेगा। यूं समझ लो एक तरह का ज़हर है जो एग्रेसिव बनायेगा।


रूही:- मानती हूं, तो क्या हफ्ते 10 दिन में एक दिन तो पका लेने दो। उन तीन मासूमों का भी तो ख्याल करो।


आर्यमणि:- अच्छा ठीक है आज रात पका लेना।


रूही:- जे बात। थनकू सो मच।


आर्यमणि:- आज रात, रात्रि चरते है। देखते है यहां की नाइट लाइफ।


रूही:- आइडिया बुरा नहीं है, इन तीनों का क्या?


आर्यमणि:- तीनों के सोने के बाद चलेंगे।


आज शाम चारो की अच्छी दावत हुई। चारो ही शाम से खाना शुरू किये। रात सोने से पहले तक डाकर ले लेकर खाये और मस्त चकाचक नींद मारकर सो गये। रात को लगभग 11 बजे आर्यमणि और रूही पैदल सड़कों पर घूमने निकले।


रूही:- आर्य तुम किस सवाल का जवाब ढूंढते हुये नागपुर पहुंचे थे।


आर्यमणि:- था एक बकवास सवाल, जिसने जिंदगी बदल डाली।


रूही:- हाहाहाहा… हां वरना अभी तक तो सर नागपुर में पुरा रंग जमा चुके होते।


आर्यमणि:- कहना क्या चाहती हो.. ???


रूही:- हम यहां लाइफ जीने आये थे। हर मुश्किल और हर सवालों से दूर एकांत की एक जिंदगी, लेकिन जब यहां आकार जीने की कोशिश कर रही हूं तो जीना इतना मुश्किल क्यों लग रहा है?


आर्यमणि:- क्योंकि जब हमारे पास करने को कुछ नहीं होता तो ऐसे ही बकवास बातें दिमाग में आती है।…. जिंदगी में इतनी तन्हाई क्यों है? क्यों लोग आज कल स्वार्थी हो रहे है? मेरे जीने का मकसद क्या? कभी-कभी लगता है मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?


फटाक, एक जोरदार पंच और आर्यमणि की नाक टूट गयी। वो अपने नाक पर रुमाल लगाकर कुछ बोलने ही वाला होता है कि सड़क पर चल रही एक बेकाबू कार पलट जाती है, जो लगभग 20 फिट घिस्टाते हुए एक पोल से जा टकराती है। दोनो दौड़कर वहां पहुंचे और कार में फसे व्यक्ति को निकालने की कोशिश करने लगे। वो आदमी सीट बेल्ट लगाये अंदर फसा था। गाड़ी पलटने के कारण पेट्रोल सड़क पर बह रहा था। रूही को लगा कोई भी सिगरेट पीता आदमी इधर से गुजरा तब तो अपने साथ-साथ पूरे कार को भी फ्राय कर देगा। रूही जबतक मिट्टी वगैरह डालकर वहां बचाव कर रही थी, आर्यमणि उसका सीट बेल्ट खोलते… "रूही इसका पाऊं तो बोनट में फसा हुआ है, तुम एम्बुलेंस को कॉल करो।"..


रूही एम्बुलेंस को कॉल करने लगी, तभी आर्यमणि को मेहसूस हुआ उस आदमी की धड़कन गायब हो रही है। अपना हाथ लगाकर उसने हील करना शुरू किया। जैसे ही हीलिंग शुरू हुई, आर्यमणि किसी तरह खुद को शांत रखने की कोशिश करने लगा। हील करते हुये आर्यमणि को काफी पीड़ा हो रही थी। वह आदमी कार एक्सीडेंट से नही मरता तो भी उसके शरीर में फैल रहा जहर उसे मार देता। आर्यमणि की हीलिंग जैसे ही खत्म हुई, वहां पुलिस और एम्बुलेंस भी आ पहुंची।


उन दोनों का एड्रेस और बयान दर्ज करके पुलिस वाले ने दोनों को जाने के लिए बोल दिया। दोनो वहां से निकले…. "क्या हुआ, उसके खून की खुशबू से परेशान हो।"


रूही:- हां, आर्य बहुत ही अलग खिंचाव होता है ताज़ा कटे खून में, ऊपर से इंसान का हो तो पता नहीं दिमाग में क्या होने लगता है। तुम्हे कभी ऐसा फील नहीं हुआ क्या?


आर्यमणि:- हां पहली बार चित्रा का खून देखकर। तुम्हारे जितना तो नहीं, लेकिन थोड़ा सा खिंचाव था। दरअसल सरदार की गली में हमेशा कटे मांस और खून के गंध पर ही तुम और अलबेली पली बढ़ी हो। उन लोगों ने तुम्हे काबू करने के बदले उन्हें नोचना सिखाया था इसलिए इतना आकर्षण हैं। वैसे ये अच्छा आइडिया है, ब्लड के आकर्षण को काबू करना, कंट्रोल का अच्छा एक्सरसाइज होगा।


अगली सुबह, चारो को खड़ा करके एक बड़ा सा माउंटेन एश का सर्किल बाना दिया गया। आर्यमणि ने एक बकड़े में थोड़ा सा सुराख करके उनके नजदीक रखा और खून की गंध पर काबू पाने की ट्रेनिंग शुरू कर दी। आकर्षण ऐसा था कि उसे पाने के लिए तीनों टीन वुल्फ माउंटेन एश के सर्किल से बाहर आने की जद्दो–जहद करते रहे, और अपनी सारी ऊर्जा उसी में गवा बैठे। माउंटेन एश के सर्किल को हाथ लगाना ही एक सदमे जैसा अनुभव था, और तीनो ने तो काफी ज्यादा जोर लगा दिया था।


ओजल, इवान और अलबेली तीनों को जब सर्किल से बाहर निकाला गया, बेसुध होकर वहीं हॉल में ही लेट गये। जानवर के खून के प्रति रूही का आकर्षण उतना नहीं था, इसलिए वो शांत बस सबके साथ खड़ी रही… रूही उनकी हालत को देखकर आगे बढ़ी हील करने… "नहीं ये हील नहीं होंगे। छोड़ दो ये खुद से रिकवर हो जायेंगे शाम तक।"


रूही:- माउंटेन एश का प्रभाव हम पर इतना क्यों है।


आर्यमणि:- ये एक प्रकार का पौधा है जो हिमालय के ऊंची चोटियों पर पाया जाता है, ग्रीन हाउस बनाकर शिकारी भी इसकी खेती करते है। कहा जाता है यह एक बैरियर है, जो एक दुनिया को दूसरे दुनिया में बांध देता है।


रूही:- तो क्या हम इस बैरियर को पार नहीं कर पायेंगे।


आर्यमणि:- ना तो तुम पूर्ण इस दुनिया की होकर रहना चाहती हो, ना तो तुम पूर्ण उस दुनिया की। इसलिए तुम ये बैरियर पार नहीं कर सकती।


रूही:- लेकिन ओजल और इवान का इंसानी पक्ष ज्यादा मजबूत है, फिर वो क्यों नहीं इस बैरियर से बाहर निकल पाये?


आर्यमणि:- तुम्हे पता है एक अल्फा हिलर इस बैरियर को बहुत आसानी पार कर ली थी और फिर….


रूही:- क्या हुआ क्या सोचने लग गये?


आर्यमणि:- तुम्हे पता है पलक की कोई भी इमोशंस तुम्हे मेहसूस क्यों नहीं हुये?


रूही:- क्यों?


आर्यमणि:- क्योंकि वो सब भी एक सुपरनेचुरल है, जिन्हे इंसानी दुनिया में रहने के लिए ट्रेंड किया गया है। इसका मतलब ये हुआ कि वो जो सरदार खान कह रहा था उनका मालिक अपेक्स सुपरनेचुरल है वो वाकई में सही कह रहा था। प्रहरी में कुछ लोग सुपरनेचुरल होते है, तो कुछ लोग आम इंसान।


रूही:- अब एक माउंटेन एश की बात पर इतनी समीक्षा क्यों?


आर्यमणि:- "सरदार खान की लगभग 400 साल पुरानी याद में एक जगह वर्णित है, नालंदा विश्वविद्यालय। वहां से 10 किलोमीटर पश्चिम में वो गया था, किसी आचार्य से मिलने। मुझे अच्छे से याद है उसके पीछे 8-10 साये थे। यानी कुछ लोग थोड़े दूरी पर खड़े थे जिसकी परछाई सरदार खान के पास तक आ रही थी, और सरदार खान रह-रह कर उस परछाई को देख रहा था। जबकि आचार्य सरदार से नजरे मिलाकर बात कर रहे थे।"

"उसके बाद सरदार खान के कुछ दिनों की यादें नहीं थी। लेकिन एक साल बाद की याद में सरदार खान वहीं आचार्य के पास था और उसके पीछे कुछ शिष्य खड़े थे। इस बार भी आचार्य सरदार खान को ही देख रहे थे, लेकिन वो रह रहकर आचार्य के पीछे खड़े लड़को को देख रहा था।"

"अगर दोनो घटना में कुछ सामान्य था, वो था आचार्य के कुटिया के पास की वो रेखा और दोनो ही दिन में कुछ लोगो का होना। जहां पहली मुलाकात में कुछ लोग सरदार खान के बहुत पीछे खड़े थे और सरदार खान खींची लाइन के बाहर खड़ा होकर आचार्य से बात रहा था… "कुछ शिष्य आपकी सेवा में आना चाहते है।" वहीं दूसरी चर्चा में कुछ शिष्य आचार्य के पीछे खड़े थे और सरदार खान ने कहा था…. "आप है तो सब संभव है आचार्य।" और सबसे बड़ी बात एक शिष्य जब आचार्य की खींची रेखा को पार कर रहा था, सरदार खान के चेहरे के भाव कुछ पल के लिए बदल गये थे।"


रूही:- इसका मतलब तुम कहना चाह रहे हो की वो जो 8-10 लोग थे वो सुपरनेचुरल थे, जिन्हे अचार्य ने माउंटेन ऐश की खींची रेखा से निकलना सिखाया।


आर्यमणि:- हां, 100 फीसदी सुनिश्चित, क्योंकि परिवार के अंदर जो भसर मची है, सिर्फ इसी एक पॉइंट की वजह से। ये जो खुद को एपेक्स सुपरनेचुरल मानते है, उन्हे बस अपने जैसों से प्यार होता है। जैसे की मेरे मौसा के घर में, भूमि दीदी इंसान के रूप में पैदा हुई, इसलिए वो अलग है और उसके लिये इमोशन भी अलग है जबकि तेजस उन्ही जैसा सुपरनेचुरल है, इसलिए तेजस के लिये अलग इमोशन..


रूही:– ये तो बड़ी खबर है। तो क्या इनके सुपरनेचुरल होने के कारण ही हम उनके इमोशन को नही पढ़ सकते..


आर्यमणि:– जहीर सी बात है, इसी एक पहचान के कारण मुझे भी पता चला था की मेरे मौसा–मौसी और तेजस परिवार में एक जैसे है और बाकी सब अलग।


रूही:– किस प्रकार के सुपरनेचुरल है ये लोग, जो खुद को शर्वश्रेठ की श्रेणी में मानते है।


आर्यमणि, जोर से चिल्लाते... "मैं जान गया, मैं जान गया की ये लोग किस प्रकार के सुपरनेचुरल है। ये पृथ्वी पर पाये जाने वाले एक भी सुपरनेचुरल में से नही है। बल्कि... बल्कि ये लोग किसी दूसरे ग्रह के निवासी है। इनके पास जो पृथ्वी से लेकर अन्य ग्रह के मानव प्रजाति के क्लासिफिकेशन का संग्रह है, इस से यही लगता है की इन्होंने कई ग्रहों का भ्रमण भी किया है, और वहां बसने वालों का पूर्ण अवलोकन किया है। हां लेकिन उस पुस्तक में इन्होंने अपना कहीं क्लासिफिकेशन नही लिखा है।"


रूही:– साले हरामि एलियन.. आर्य ये किस प्रकार के एलियन हो सकते है। और इनके पास कैसी ताकत हो सकती है?


आर्यमणि:– अनोखे पत्थर का प्रयोग जानते है। हवा को कंट्रोल कर सकते है। और क्या खास है वो पूरा पता नही। अपने समुदाय को छोड़कर बाकियों के लिये कोई इमोशन नही। साधुओं से इन्हे खतरा लगता है। खासकर सात्विक आश्रम से और ये लोग किसी वेयरवॉल्फ के झुंड का शिकर भी हो सकते थे। इसलिए वेयरवोल्फ को अपने नियंत्रण में रखते हैं और सात्विक आश्रम को तो कभी खड़ा ही नहीं होने दिया। न जाने कितने साधुओं को मारा होगा इन्होंने..


रूही:– बॉस इतनी गहरी समीक्षा। चलो एक बात तो मान सकती हूं कि सिद्ध पुरुष से उन्हे खतरा है। लेकिन वेयरवॉल्फ... नागपुर के जंगलों में उन एलियन ने तुम्हारा क्या हाल किया था, वो भूल गये क्या?


आर्यमणि:– मैं कुछ नहीं भूलता। सुनो अब ऐसा तो है नही की जिन शक्तियों के साथ ये लोग पहुंचे थे, उन्ही शक्तियों पर आज तक टिके रहे। इनके पास ऐसे पत्थर है जो दूसरों की शक्तियों को अपने अंदर निहित कर सकते है। मैं अभी बता तो नही सकता की उनके पत्थर किस प्रकार की शक्तियों का अधिग्रहण कर लेते है, लेकिन इतना जरूर बता सकता हूं कि वेयरवोल्फ के झुंड ने सीक्रेट प्रहरी का शिकर किया था, इसलिए वेयरवोल्फ के बहुत सी शक्तियों को इन लोगों ने चुरा लिया। इनका दिमाग तब चक्कर खा गया होगा जब वेयरवोल्फ के बारे में इतनी गहराई से जानने और उन्हें अपने नियंत्रण में रखने के बावजूद तुम्हारी मां ने सकडों वर्ष बाद एलियन का शिकर कर लिया था।


रूही:– क्या मेरी मां ने.. ये कैसे कह सकते हो...


आर्यमणि:– "इसमें कैसे वाली तो कोई बात ही नही है। शुरू से उन एलियन के लिये वेयरवोल्फ एक दुश्मन रहा था। एक तो वेयरवोल्फ के खुद की शक्तियां उसके ऊपर इनके झुंड की ताकत, इसके सामने ये एलियन घुटने टेकने पर मजबूर हो जाते होंगे। बाद में इन लोगों ने वेयरवोल्फ पर रिसर्च किया और बहुत से पावर को चोरी कर लिये। इंसानों के मुकाबले वेयरवोल्फ काफी ताकतवर और अकर्मक होते है। इन्हे करप्ट करना काफी आसान होता है, इसलिए इन लोगों ने प्रहरी संस्था में अपनी घुसपैठ बनाई होगी। या नहीं तो पूरे प्रहरी को ही समाप्त करने के बाद पूरे प्रहरी समाज को अपने अनुरूप ढाल दिया होगा।"

"सकड़ों वर्षों बाद अमेजन के जंगलों फेहरीन के झुंड से प्रहरी का सामना हो गया था। संभवतः वह सीक्रेट प्रहरी का झुंड था और पहली बार किसी ट्रू अल्फा से भिड़ रहे थे। फेहरीन नागपुर लायी गयी, तब सरदार खान ने पहली मुलाकात में ही कहा था, "एक को मारने में अपने पूरे पैक को दाव पर लगा दी।"… लेकिन फेहरीन ने जो जवाब दिया वह सरदार खान के मस्तिष्क से गायब था। सीधे दूसरे सवाल परपहुंच गया.… "कैसे बचकर निकल गयी थी तू उस घेरे (माउंटेन ऐश) से।"… और तुम्हारी मां ने कहा था… "तुम्हारी आत्मा तक काली है सरदार।"…

"फेहरीन की एक और बात रह-रह कर याद आती है जब वो सरदार से कह रही थी… "तुम सिर्फ अपने दहाड़ के कारण मुझसे बेहतर हो, और मैंने हमेशा अपने जंगल को बचाया है इसलिए किसी को मरता नहीं देख सकती, और ना ही तुम्हारे नियंत्रण को मै अपने ऊपर से हटा पाती हूं, यही मेरी विवस्ता है।"


रूही:- मेरी आई बेस्ट थी, लेकिन प्रहरी ने उनके साथ बहुत बुरा किया। खैर भावनाएं अपनी जगह लेकिन मुझे ये समझा सकते हो की उन्हे मारने के बदला उन एलियन ने आई को सरदार खान की नरक में क्यों ले आये?


आर्यमणि:- फेहरीन एक ट्रू अल्फा हीलर थी। जिसने सैकड़ों वर्षों बाद उन एलियन को धूल चटाया था। शायद फेहरीन के पावर को चोरी करने के इरादे से नागपुर लेकर आये होंगे। लेकिन ऐसा हो न सका। एलियन को शायद पता न था कि ट्रू अल्फा की पावर चुरायी नही जा सकती। यह काम न तो उनके पत्थरों से हो सका और न ही ये काम सरदार खान कर सकता था। तुम्हे पता है ओजल और इवान को क्यों ये एलियन पैदा होने के साथ ही मार देना चाहते थे...


रूही:– क्यों?


आर्यमणि:– क्योंकि वह नही चाहते थे कि वेयरवोल्फ के साथ उनका कोई हाइब्रिड बच्चा हो। लेकिन सुकेश भारद्वाज से यह गलती हो चुकी थी। अब किस परिस्थिति में यह गलती हुई, ये तो सुकेश, मीनाक्षी, उज्जवल या अक्षरा ही बता सकते है, लेकिन उन्हें भी अंदाजा न होगा की जिस स्त्री को इतने सारे लोग नोच रहे, उनमें से फेहरीन के कोख में सुकेश का ही बच्चा ठहर जायेगा। बच्चा जब पैदा हुआ होगा तब उन एलियन को भी जानकारी हुई होगी। या फिर सरदार खान समझ गया होगा और उसी ने एलियन को बताया हो.. कुछ पक्का नही कह सकते। लेकिन सुकेश को खबर मिल चुकी थी। एक तो वेयरवोल्फ पुराना दुश्मन। उसमे भी एक ट्रू अल्फा का बच्चा उन एलियन के अनुवांशिक गुण वाला। ये हाइब्रिड उनके लिये सर दर्द देने वाला था।
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भाग:–73





आर्यमणि:– एक तो वेयरवोल्फ पुराना दुश्मन। उसमे भी एक ट्रू अल्फा का बच्चा उन एलियन के अनुवांशिक गुण वाला। ये हाइब्रिड उनके लिये सर दर्द देने वाला था।


रूही:– इसका मतलब ओजल और इवान उन एलियन के लिये काल है।


आर्यमणि:– तुम्हारी यादें मिटा दूं या मुंह बंद रखोगी, ये बताओ?


रूही:– लेकिन बॉस, उन दोनो को भी तो सच्चाई पता होनी चाहिए न...


आर्यमणि:– अभी नही... वक्त के साथ उन्हे अपने अनुवांशिक गुण को ट्रिगर करने दो। अभी बता दिये तो हो सकता है उन्हे यकीन हो जाये की वो एलियन से भीड़ सकते है और नागपुर लौट जाये। क्या तुम ऐसा चाहती हो? क्या तुम उन दोनो की जान खतरे में देखना चाहती हो?


रूही:- नही बॉस, बिलकुल नहीं... अभी हमारे बीच कोई बात ही नही हुई.. और न ही हमे पता है कि ये सीक्रेट प्रहरी क्या है। बॉस लेकिन उनका क्लासिफिकेशन भी हमे चाहिए... जैसे उनके पास पूरे ब्रह्मांड के मानव प्रजाति का है।


आर्यमणि:- छोड़ो इस बात को। कल से तुम सब की नई ट्रेनिंग। माउंटेन ऐश को पार करने की ट्रेनिंग शुरू होगी। तुम लोगों के ट्रू अल्फा बनने की ट्रेनिंग... राइट बेबी।


रूही:- हिहीहिहिही… येस डार्लिंग…


लगभग एक हफ्ते बाद सुबह के 10 बज रहे होंगे। तीनों स्कूल चले गये थे, एक कार घर के सामने आकर खड़ी हुई और घर का बेल बजने लगा… रूही जब दरवाजा खोली तो सामने वही व्यक्ति था जिसका कुछ दिन पहले ऐक्सिडेंट हुआ था और साथ में उसके एक खूबसूरत सी लेडी, दोनो इजाज़त मांगकर अंदर दाखिल हुये। रूही उसे बिठाकर ठंडा या गरम के बारे में पूछने लगी। वह आदमी रूही को अपना परिचय देते… "हेल्लो मेरा नाम माईक नॉर्मे है और ये है मेरी पत्नी लिली नोर्मे"..


रूही:- कैसे है अभी, स्वास्थ्य..


लिली, रूही का हाथ थामती… "मै माईक से बहुत प्यार करती हूं, यदि इसे कुछ हो जाता तो मै भी शायद जी नहीं पाती।"..


रूही:- हां लेकिन ऐसा हुआ तो नहीं ना। वैसे भी मैने तो केवल एम्बुलेंस को कॉल किया था।


माईक:- हां लेकिन हॉस्पिटल भी मेरा इलाज नहीं कर सकता था, क्योंकि मुझे पॉयजन दिया गया था। और मै जानता हूं कि आपके बॉयफ्रेंड ने मेरे साथ क्या किया?


रूही:- माफ कीजिएगा एक मिनट इंतजार करेंगे, मैं बस अभी आयी..


माईक:- हां हां क्यों नहीं?


रूही तेजी से आर्यमणि के कमरे में घुसी। आर्यमणि कान में हेड फोन डाले गाने सुन रहा था। रूही उसका हेड फोन निकलती… "मिस्टर बॉयफ्रेंड आपको भले ना सुनाई दे लेकिन सुंघाई तो दे रहा है ना कि घर में लोग आये है।"..


आर्यमणि:- हां, एक तो वही ऐक्सिडेंट वाला आदमी है…


रूही:- हां.… और वो कह रहा है, हमारे बारे में जानता है।


आर्यमणि बाहर आया.. दोनो से एक छोटे से परिचय के बाद… "आप कुछ कह रहे थे हमारे बारे में।"


माईक:- कुछ नहीं कह रहा था, बस इतना कहूंगा की मेरा एक एनिमल क्लीनिक है, अगर आप वहां काम करने आएंगे तो मुझे बहुत हेल्प होगी। बदले में मै आपको पे भी करूंगा और वटनेरियन की डिग्री भी दूंगा।


रूही:- हम्मम ठीक है... हम आपको सोचकर जवाब देंगे।


उन दोनों के जाते ही…. "तुम्हे पक्का यकीन है ना उसने यही कहा था कि वो जनता है हम कौन है।"..


रूही:- मेरे माथे पर तो लिखा है ना कि मै झूठी हूं।


आर्यमणि:- नहीं वहां तो लिखा है मै सेक्सी हूं। यदि किसी को यकीन ना होता हो तो नजरे नीचे के ओर बढ़ाते चले जाइये।


रूही:- क्या मस्त जोक मारा है। वेरी फनी, अब कुछ सोचोगे इनका। या फिर ये शहर छोड़ दे।


आर्यमणि:- नहीं पहले चलकर देखते है कि चक्कर क्या है।


थोड़ी देर बाद दोनो एक बड़े एनिमल क्लीनिक के एंट्रेंस पर थे। आर्यमणि गार्ड से बातें कर रहा था और रूही की नजर पास में ही परे एक कैक्टस पर गई जो लगभग मर रही थी। रूही आराम से नीचे बैठी, बड़े प्यार से उसने कैक्टस को देखा और इधर-उधर देखकर वो पेड़ को हील करना शुरू कर दी। जब वो खड़ी हो रही थी, कैक्टस को हरा होते मेहसूस कर रही थी और अंदर से खुश हो गयी।


इतने में ही वो डॉक्टर बाहर निकल कर आया और दोनो को अपने साथ अंदर लेकर गया। बीमार पड़े जानवर जो आवाज़ निकाल रहे थे एक दम से शांत होकर दोनो को ही घूरने लगे। वो डॉक्टर इन दोनों को देखकर मुस्कुराया और अपने साथ अंदर लेकर गया।


"मुझे यकीन था कि तुम दोनों आओगे। मैंने आज तक केवल 2 वुल्फ से ही मिला हूं जो जहर तक को हील कर सकते थे, लेकिन वो भी इतना अच्छा हील कर पाते या नहीं, पता नहीं।"… डॉक्टर दोनो को बैठने का इशारा करते हुए अपनी बात कहा।


आर्यमणि:- डॉक्टर हमने पहचान जाहिर करने के लिये तुम्हारी जान नहीं बचाई, बस इतना ही कहने आये थे। हमे मजबूर ना करो कि हम लोगो की जान बचाने से पहले 10 बार सोचने लगे।


डॉक्टर:- मैंने सीसी टीवी बंद कर दिया है, तुम चाहो तो अपने क्लॉ घूसाकर देख सकते हो, मै तुम्हारे राज जाहिर कर सकता हूं, या हम साथ मिलकर काम कर सकते है। मै दुनिया भर में घूमकर तरह-तरह के जानवरो का इलाज कर चुका हूं। मेरे सफर के दौरान मै तिब्बत गया था और वहां से 3 साल बाद लौटा हूं। लौटकर जैसे ही अपने शहर आया, मैंने जानवरो के इलाज के लिये मेडिसिन और हर्ब्स दोनो का इस्तमाल शुरू कर दिया। इसके परिणाम काफी रोचक थे और जैसा की तुम बाहर देख सकते हो, यहां बीमार जानवरो की लाइन लगी हुई है।


आर्यमणि:- हां लेकिन तुम्हारा तो धंधा पहले से चकाचक है, फिर हम क्या काम आ सकते है?


डॉक्टर:- जो काम मै 1 घंटे में कर सकता हूं, वो काम तुम 1 मिनट में कर सकते हो।


रूही:- और तुम यहां माल छापोगे ।


डॉक्टर:- कहीं भी अपने पालतू जानवर का इलाज करवायेंगे तो माल तो देंगे ही, तो यहां क्यों नहीं। कुछ अच्छा करने के लिए भी बहुत पैसा चाहिए।


रूही:- ऐसा क्या अच्छा करने की सोच रहे हो जो तुम्हे इतना माल चाहिए डॉक्टर?


डॉक्टर:- तुम्हारे जैसे ही 2 लोग है, मैक्सिको के खतरनाक नारकोटिक्स गैंग के इलाके में फसे। उन दोनों को छोड़ने के लिये 10 मिलियन यूएसडी का सेटलमेंट मांग रहे है।


आर्यमणि:- 2 वुल्फ को एक गैंग पकड़ कर रखी है, मज़ाक तो नहीं कर रहे।


डॉक्टर:- बड़ी शातिर गैंग है। शिकारी और वुल्फ की गैंग जो ड्रग्स की खेती करती है और वहां से लगभग पूरे अमेरिका और यूरोप में सप्लाई करती है। बहुत से वुल्फ वहां मर्जी से काम करते है, तो बहुत से वुल्फ से जबरन काम करवाया जाता है।


आर्यमणि:- लगता है उन दोनों वुल्फ से तुम्हे अच्छी इनकम होती थी।


डॉक्टर:- अच्छी नहीं बहुत अच्छी। मै 2 साल में उन दोनों के जरिए 20 मिलियन कमा सकता हूं, उनके लिये पैसों की चिंता नहीं है। लेकिन क्या करूं इस वक़्त पैसे नहीं है मेरे पास। हॉफ मिलियन कैश है और सारी प्रॉपर्टी को गिरवी भी रख दूं तो 1 मिलियन से ज्यादा नहीं मिलेगा।


रूही:- तो 1 मिलियन यूएसडी में हमसे डील कर लो। पता बताओ हम तुम्हारा काम कर देंगे। वैसे भी बहुत दिन हो गए एक्शन किये।


डॉक्टर:- दोनो पागल हो गये हो क्या? वहां गये तो या तो मारे जाओगे या उन्हीं के गुलाम बनकर रह जाओगे।


रूही:- 1 मिलियन जब पेमेंट कर दोगे तब बात करेंगे, यकीन हो तो डील करना, वरना रहने दो।


डॉक्टर:- हम्मम ! तुमने मेरी जान बचाई है, इसलिए 1 मिलियन कोई बड़ी बात नहीं, यदि डूब भी जाते है तो गम नहीं।


आर्यमणि:- पैसे जब तैयार हो तो चले आना। और हां वीकेंड पर आना, साथ ट्रिप का मज़ा लेंगे।


डॉक्टर:- ठीक है मै पैसे अरेंज करके मिलता हूं।


उधर स्कूल में… अलबेली और इवान अपने एक्स्ट्रा क्लास में म्यूज़िक लिये हुए थे और दोनो को ही म्यूज़िक से काफी रुचि सा हो गया था। एक बैंड के साथ लगभग रोज प्रैक्टिस करते थे जिसमे 8 सदस्य थे, 3 लड़की और 5 लड़के, जिसमे ये दोनो भी थे।


ओजल रोज के तरह ही इधर-उधर भटकती हुई ग्राउंड में पहुंच गयी, जहां हाई स्कूल की टीम अमेरिकन फुटबॉल खेल रही थी। वही खेल जिसमे 11-11 खिलाड़ी 2 ओर होते है। दोनो ओर से कोन शेप बॉल को विरोधी पाले के अंत तक ले जाकर अपना अंक बटोरते है। दूर से देखने पर सांढ की फाइट जैसी यह खेल लगती है। क्योंकि प्रोटेक्शन के लिहाज से इतने अजीब तरह के कपड़े खिलाड़ियों ने पहन रखे होते है की देखने में सांढ जैसे ही प्रतीत होते है।


बहरहाल 11 खिलाड़ी ग्राउंड में थे, कुछ खिलाड़ी बेंच पर बैठे हुए और कोच स्टूडेंट्स का ट्रायल लें रहे थे। हालांकि 11 की टीम फिक्स थी जो एक साइड में बैठकर विदेशी गुटका यानी कि चुइंगम चबा रही थी और ट्रायल दे रहे नए खिलाड़ियों का मनोबल "बू, बू, बू" करके गिरा रहे थे।..


दर्शक की सीढ़ी पर ओजल का एक क्लासमेट बैठा हुआ था, अक्सर तन्हा ही बैठा रहता और अकेले ही ज्यादातर एन्जॉय करता। ओजल उसके पास बैठती… "हाई जेरी".. "हेल्लो ओजल"..


ओजल:- फिर से अकेले बैठे हो जेरी?


मारकस:- अकेला ज्यादा अच्छा लगता है ओजल। तुम भी यहां ट्रायल देने आयी हो क्या?


ओजल:- ना ना, तुम्हे देखने आयी हूं, इतने क्यूट जो लगते हो।


मारकस:- जी शुक्रिया… वैसे बहुत है स्कूल में, और तुम्हारे लिये तो कई लड़के है, फिर मुझ बोरिंग पर दिल कैसे आ गया?


ओजल:- दिल नहीं आया है, तुम अच्छे लगते हो इसलिए बात करने चली आयी। अगर डिस्ट्रूब कर रही हूं तो बता दो..


"हेय इडियट्स, बॉल पास करो।"… फुटबॉल की एक चयनित खिलाड़ी अपने ट्रायल के दौरान बॉल लेने पहुंची, और दोनो के पाऊं के नीचे जो बॉल आकर गिरी थी, उसे बड़े प्यार से मांगी।


ओजल, उसे घूरती… "इसकी तो इडियट्स किसे बोली"..


जेरी, उसका कंधा पकड़ कर रोकते…. "ये लोग स्कूल के हीरो है इसलिए थोड़ी अकड़ है, जाने दो।"..


ओजल:- हम्मम ! लाओ बॉल मुझे दो.. मै देकर आती हूं।


ओजल बॉल लेकर उसके पास पहुंची और अपना हाथ बढ़ा दी। वो लड़की ओजल को देखकर "यू फुल" बड़बड़ाई और पूरे अटिड्यूट से, नजर से नजर मिलाकर उसके हाथ से बॉल ले ली। जैसे ही वो जाने लगी… "हेय यूं मोरोन, बॉल तो लेती जा।".... ओजल ने भी उसी एटिट्यूड से उस लड़की को पुकारा...


उस लड़की ने अपने हाथ में देखा, बॉल नहीं था। वो गुस्से में पलट कर आयी अपने नाक, आंख शिकोरे उसके हाथ से बॉल ली और झटक कर जाने लगी।… "हेय डफर, बॉल तो लेती जा।".. ओजल ने उसे फिर पीछे से टोका।


कम से कम 10 बार ऐसा हुआ होगा। वो लड़की बॉल लेकर जैसे ही मुड़ती और चार कदम आगे जाती बॉल हाथ से गायब। लगभग पूरा ग्राउंड ही उन्हें देख रहा था। अंत में वो लड़की मुस्कुराई… "तुम जिस लड़के से बात कर रही थी, उसे मैंने परपोज किया था। लेकिन उसने मुझे रिजेक्ट कर दिया। सो मै थोड़ा सा रूड हो गयी। आई एम सॉरी, अब बॉल दे दो।"


ओजल:- ये सही टोन है। वैसे भी कहो तो मै बात करूं तुम्हारे लिये। वो मेरा बॉयफ्रेंड नहीं है। हम जब खाली बैठते है तो यूं ही इधर–उधर की बातें करते है।


लड़की:- ओह थैंक्स डियर, बाय द वे मै नतालिया,


ओजल:- मै ओजल हूं, और उसे तो सॉरी कहती जाओ..


वो लड़की नतालिया, जेरी को भी सॉरी कहती हुई चली। ओजल जेरी के पास बैठ गयी और फिर से ग्राउंड पर देखने लगी… "तुम कमाल कि हो ओजल"..


ओजल:- जानती हूं जेरी। अब ये मुझे अपनी टीम का ट्रायल करने कहेंगे, और वो मै करूंगी, लेकिन मै खेलूंगी नहीं।


मारकस:- क्यों?


ओजल:- क्योंकि तुम्हारे साथ बात करना ज्यादा इंट्रेस्टिंग है, खेलने कूदने से।


मारकस:- हाहाहाहा.. तुम भी ना ओजल, इतना बड़ा मौका खो रही हो। फुटबॉल टीम में होना अपने आप में प्राइड की बात है।


ओजल:- क्या तुम्हारी इक्छा है फुटबॉल टीम में जाने की।


मारकस:- इक्छा पता नहीं...


"हेय ओजल, तुम्हे कोच बुला रहे है।"… नताली उनके पास आकर कही। ओजल जवाब देते… "एक मिनट नताली तुम भी रुको।"..


नताली:- जल्दी करो वरना कोच नाराज हो जाएंगे।


ओजल:- जेरी इतना भी क्या सोचना, बताओ ना?


मारकस:- सच कहूं तो हां इक्छा तो है, लेकिन ज्यादा स्किल नहीं है?


ओजल:- नताली को आई लव यू बोलकर यदि तुमने किस्स कर लिया तो मै वो स्किल तुम्हे सीखा दूंगी, जो अभी मै दिखाने वाली हूं, चलो नताली।


नताली बड़ी सी आखें किये… "क्या वो सच में मुझे आई लव यू कहेगा।"..


ओजल:- वो क्या उसका बाप भी कहेगा।


नताली:- उसका बाप नहीं चाहिए, ये बुड्ढे केवल ओरल से ही मस्त रहते है।


ओजल:- हीहीहीही… ट्रायल लेना था ना बॉयफ्रेंड बनाने से पहले, कहीं ये भी ओरल वाला निकला तो। हिहिहिह..


नताली, आंख मारती… "फिर दो बॉयफ्रेंड रखूंगी।"


दोनो हंसते हुये कोच के पास पहुंचे। जैसे ही वो कोच के पास पहुंची… "क्या तुम फुटबॉल का ट्रायल दोगी।"


ओजल:- इन बच्चीयों के साथ मेरा क्या ट्रायल करवाते हो सर, लड़को की टीम बुलाओ और उनके 4 खिलाड़ी और मै अकेली, फिर देखते हैं कौन जीतता है?



कोच:- इतना कॉफिडेंस..


ओजल:- मेरे डिफेंस और आटैक का कोई सामना नहीं कर सकता।


कोच:- ठीक है पहले तुम ये कारनामा यहां के लड़कियों के साथ दिखाओ।


चार लिड़किया एक ओर और उसके विपक्ष में ओजल खड़ी। सिटी बजी और और नियम से गेम आगे बढ़ा। पहली कोशिश, एक लड़की ओजल के सामने थी और 3 लड़की ओजल के गोल पोस्ट पर। प्लान बॉल लेकर सीधा दूर थ्रो और वहां से बिना किसी झंझट के गोल।


सिटी बजी, बॉल हाथ में आया और दूर पास होने से पहले ही बॉल गायब। ओजल अपने विपक्षी के हाथों से बॉल छीनकर बड़े आराम से विपक्षी के गोल पोस्ट में घुसी। क्योंकि वहां कोई डिफेंस ही नहीं था। अलग-अलग तरह के फॉर्मेशन में उन लड़कियों ने खेला। 4 ट्रायल बाद कोच समझ चुका था कि ओजल ने लड़कों की टीम को चैलेंज क्यों देने कही?


गर्ल्स कोच ने बॉयज कोच को संदेश भेजा, लड़को की टीम आते ही हंस रही थी और ओजल सामने खड़ी। पहला मौका उन लोगो ने ओजल को ही दिया। बॉल ओजल के हाथ में और 4 मुस्टंडे सीधा सामने से भिड़ने के इरादे से। ओजल 5 कदम पीछे हटी, उन लोगों ने दौड़ लगाया। सभी टकराने को मरे जा रहे थे और ओजल अपनी जगह खड़ी। लगभग 4 कदम दूर होंगे, तभी ओजल किनारे हट गई। वो इतनी तेज हटी की उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि टक्कर लगी नहीं।


देखने वालों ने दातों तले उंगली दबा ली थी। डिफेंस लाइन सब आगे और ओजल तेज दौड़ लगाती उनके गोल में। फिर उनको मौका मिला। इस बार भी वही रणनीति। तीन लोग आगे डिफेंस लाइन बनाकर चलेंगे और बॉल लिये एक खिलाड़ी उनके पीछे।


वो लोग कंधे से कंधा मिलाये झूक कर दौड़ लगा रहे थे। इस बार इन लोगों ने सोचा कि कहीं ये तेजी से किनारे ना हो जाये, इसलिए रणनिंती के तहत ओजल से 5 कदम पीछे ही सभी अलग होकर थोड़ा-थोड़ा फ़ैल गये और ठीक उसी वक़्त ओजल 2 लोगो के बीच से निकलकर कब पीछे वाले के हाथ से बॉल लेकर विरोधी के पोस्ट पर निकल गयी पता भी नहीं चला।


4 के विरूद्ध 1, लौडो के तो इज्जत पर बात आ गयी। 20 बार कोशिश कर चुके थे। सब थक कर बैठ गये और कोच ने फाइनल विसेल बजा दिया। उसे तो पहला ऑफर बॉयज की टीम से ही आ गया। ओजल सबको हाथ जोड़कर कहने लगी, वो सिर्फ 1 या 2 साल के लिये यहां आयी है और कोशिश कर रहे लोग कई सालों से कोशिश कर रहे है। वो टीम में सामिल नहीं होगी लेकिन जेरी और नताली को कुछ-कुछ स्किल सीखा सकती है।
Majedaar update
 
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