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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Tri2010

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भाग:–54





दोपहर के 3 बजते-बजते सभी थक गये थे। शादी की रस्में भी 5 बजे से शुरू होती इसलिए ये तीनों भी सभा भंग करके निकल गये। तीनों सवा 5 बजे तक तैयार होकर आये। चित्रा और आर्यमणि लगभग एक ही वक़्त पर कमरे से निकले। चित्रा, आर्यमणि को देखकर पूछने लगी, "कैसी लग रही हूं".. आर्यमणि अपनी बाहें फैला कर उसे गले से लगाते, "सेक्सी लग रही है। लगता है पहली बार तुझे देखकर नीयत फिसल जायेगी।"


चित्रा उसके सर पर एक हाथ मारती, हंसती हुई कहने लगी… "पागल कहीं का। ये निशांत कहां रह गया।"..


इतने में निशांत भी बाहर आ गया.. चित्रा और आर्यमणि दोनो ने अपनी बाहें खोल ली, निशांत बीच में घुसकर दोनो के गले लगते… "साला शादी आज किसी की भी हो, ये पुरा फंक्शन तो हम तीनो के ही नाम होगा।"..


"तुम दोस्तो के बीच में हमे भी जगह मिलेगी क्या"… भूमि और जया साथ आती, भूमि ने पूछ लिया। चित्रा और निशांत ने आर्यमणि को छोड़ा। भूमि, आर्यमणि को गौर से देखने लगी। उसकि आंख डबडबा गयी। वो आर्यमणि को कसकर अपने गले लगाती, उसके गर्दन और चेहरे को चूमती हुई अलग हुयि।


जया जब अपने बच्चे के गले लगी, तब आर्यमणि को उससे अलग होने का दिल ही नहीं किया। कुछ देर तक गले लगे रहे फिर अलग होते.… "मै और मेरी बेटी अपने हिसाब से एन्जॉय कर लेंगे, ये वक़्त तुम तीनो का है। कोई कमी ना रहे।"..


तीनों हॉल में जाने से पहले फिर से 2 बियर चढ़ाए और इस बार कॉकटेल का मज़ा लेते, 1 पेग स्कॉच का भी लगा लिया। तीनों हल्का-हल्का झूम रहे थे। जैसे ही हॉल में पहुंचे स्टेज पर माला पहने कपल पुतले की तरह बैठे हुये थे। लोग आ रहे थे हाथ मिलाकर बधाई दे रहे थे। फोटो खींचाते और चले जाते।


जैसे ही तीनों अंदर आये... "लगता है ये सेल्फी आज कल लोग प्रूफ के लिये लेते है। हां भाई मै भी शादी में पहुंचा था। तुम भी मेरे घर के कार्यक्रम में आ जाना।".. आर्यमणि ने कहा..


चित्रा:- हां वही तो…. अरे दूल्हा-दुल्हन के दोस्त हो। थोड़े 2-4 पोल खोल दो, तो हमे भी पता चले कितनी मेहनत से दोनो घोड़ी चढ़े है।


निशांत:- या इन सब की ऐसी जवानी रही है, जिस जवानी में कोई कहानी ना है।


आर्यमणि:- अपने बच्चो को केवल क्या अपने शादी की वीडियो दिखाएंगे.. देख बेटा एक इकलौता कारनामे जो हमने तुम्हरे बगैर किया था।


चुपचाप गुमसुम से लोग जैसे हसने लगे हो। तभी स्टेज से पलक की आवाज आयी… "दूसरो के साथ तो बहुत नाचे। दूसरो की खूब तारीफ भी किये.. जारा एक नजर देख भी लेते मुझे, और यहां अपनी कोई कहानी बाना लेते, तो समझती। वरना हमारा भविष्य भी लगभग इनके जैसा ही समझो।"..


स्टेज पर माईक पहुंच चुका था। नये होने वाले जमाई, माणिक बोलने लगा… "आर्य, हम दोनों ही जमाई है। दोस्त ये तो इज्जत पर बात बन आयी।"..


चित्रा:- ऐसी बात है क्या.. कोई नहीं आज तो यहां फिर कहानी बनकर ही जायेगी, जो पलक और आर्य अपने बच्चो को नहीं सुनायेंगे। बल्कि यहां मौजूद हर कोई उनके बच्चे से कहेगा, फलाने की शादी में तुम्हारे मम्मी-पापा ने ऐसा हंगामा किया। पलक जी नीचे तो उतर आओ स्टेज से।


पलक जैसे ही नीचे उतरी निशांत ने सालसा बजवा दिया। इधर आर्यमणि सजावट के फूल से गुलाब को तोड़कर अपने दांत में फसाया और घुटने पर 20 फिट फिसलते हुए उसके पास पहुंचा। पलक के हाथो को थामकर वो खड़ा हुआ और उसकी आखों में देखकर इतना ही कहा…


"आज तो मार ही डालोगी।".. पलक हसी, आर्यमणि कमर पर बांधे लंहगे के ऊपर हाथ रखकर उसके कमर को जकड़ लिया और सालसा के इतने तेज मूव्स को करवाता गया कि पलक को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो ऐसे भी डांस कर सकती है।


वो केवल अपने बदन को पूरा ढीला छोड़ चुकी थी। जैसे-जैसे आर्यमणि नचा रहा था, पलक ठीक वैसे-वैसे करती जा रही थी। लोग दोनो को देखकर अपने अंदर रोमांस फील कर रहे थे। तभी नाचते हुए आर्यमणि ने पलक को गोल घूमाकर अपने बाहों में लिया और अपने होंठ से गुलाब निकालकर उसके होंठ को छूते हुए खड़ा कर दिया। आर्यमणि अपने घुटने पर बैठकर, गुलाब बढ़ाते हुए.... "आई लव यू"..


इतनी भारी भीर के बीच पलक के होंठ जब आर्यमणि ने छुये, वो तो बुत्त बन गयि। उसकी नजरें चारो ओर घूम रही थी, और सभी लोग दोनो को देखकर मुस्कुरा रहे थे। पलक हिम्मत करती गुलाब आर्यमणि के हाथ से ली और "लव यू टू" कहकर वहां से भागी।


इसी बीच जया पहुंच गयि, आर्यमणि का कान पकड़कर… "इतनी बेशर्मी, ये अमेरिका नहीं इंडिया है।"..


भूमि:- मासी इंडिया के किसी कोन में इतना प्यार से प्यार का इजहार करने वाला मिलेगा क्या? मानती हूं भावनाओ में खो गया, लेकिन बेशर्म नहीं है।


लोग खड़े हो गये और तालियां बजाने लगे। तालियां बजाते हुए "वंस मोर, वोंस मोर" चिल्लाने लगे। तभी आर्यमणि अपनी मां के गले लगकर रोते हुए .. "सॉरी मां" कहा और माईक को निकालकर फेंक दिया।


जया अपने बच्चे के गाल को चूमती, धीमे से उसे अपना ख्याल रखने के लिए कहने लगी। पीछे से भूमि भी वहां पहुंची और आखें दिखाती… "ऐसे लिखेगा कहानी"… वो भूमि के भी गले लग गया। भूमि भी उसे कान में धीमे से ख्याल रखने का बोलकर उसके चहेरे को थाम ली और मुसकुराते हुए उसके माथे को चूम ली।


पीछे से चित्रा और निशांत भी पहुंच गए। दोनो भाई बहन ने अपने एक-एक बांह खोलकर… "आ जा तुम हमारे गले लग। सबको कोई बुराई नहीं भी दिख रही होगी तो भी तुझे रुला दिया।"..


आर्यमणि अपने नजरे चुराए दोनो के गले लग गया। दोनो उसे कुछ देर तक भींचे रहे फिर उसे छोड़ दिया। इतने में ही वो फॉर्मेलिटी के लिये अपनी मासी के पास पहुंचा और उसके गोद में अपना सर रखकर.. "सॉरी मासी" कहने लगा। मीनाक्षी उसके गाल पर धीमे से मारती… "ऐसे सबके सामने कोई करता है क्या?"..


आर्यमणि:- मै तो अकेले में भी नहीं करता लेकिन पता नहीं क्यों वो गलती से हो गया।


उसे सुनकर वहां बैठी सारी औरतें हसने लगी। सभी बस एक ही बात कहने लगी… "जारा भी छल नहीं है इसमें तो।"..


शाम के 6 बज चुके थे लड़के को लड़के के कमरे में और लड़की को लड़की के कमरे में भेज दिया गया था। आगे की विधि के लिए मंडप सज रहा था। लोग कुछ जा रहे थे, कुछ आ रहे थे। आर्यमणि भी नागपुर निकलने के लिए तैयार था। तभी जब वो दरवाजे पर अकेला हुआ, पलक उसका हाथ खींचकर अंधेरे में ले गयि और उसके होंठ को चूमती… "मुझे ना आज कुछ-कुछ हो रहा है और तुम भी हाथ नहीं लग रहे, सोच रही हूं, श्रवण को मौका दे दूं।"..


आर्यमणि:- ना ना.. ये गलत है। पहले मुझसे कह दो मेरे मुंह पर… तुमसे ऊब गई हूं, ब्रेकअप। फिर जिसके पास कहोगी मै खुद लेकर चला जाऊंगा।


पलक उसके सीने पर हाथ चलाती…. "बहुत गंदी बात थी ये।"


आर्यमणि:- मै जा रहा हूं तुम्हारे ड्रीम को पूरा करने, यहां सबको संभाल लेना। पहुंचकर कॉल करूंगा।


पलक, फिर से होंठ चूमती… "प्लीज़ अभी मत जाओ।"..


आर्यमणि:- मेरे साथ आओ..


पलक:- पागल हो क्या, मै शादी छोड़कर नागपुर नहीं जा सकती।


आर्यमणि:- भरोसा रखो.. और चलो।


पलक भी कार में बैठ गई और दोनो रिजॉर्ट के बाहर थे। आर्यमणि ने कार को घूमकर रिजॉर्ट के पीछे के ओर लिया और जंगल के हिस्से से कूदकर रिजॉर्ट में दाखिल हो गया। पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। फिर भी वो पीछे-पीछे चली जा रही थी। दोनो एक डिलक्स स्वीट के पीछे खड़े थे। आर्यमणि पीछे का दरवाजा खोलकर पलक को अंदर आने कहा, और जैसे ही उस कमरे की बत्ती जली.. पलक अपने मुंह पर हाथ रखती… "आर्य ये क्या है।"..


आर्यमणि, आंख मारते… "2 लोगो के सुहागरात के लिये सेज सज रही थी, मैंने हमारे लिए भी सजवा लिया"


सुनते ही पलक अपनी एरिया ऊंची करती आर्य के होंठ को चूमने लगी। आर्य उसे गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया। ये फूलों की महल और मखमली बिस्तर। आर्य अपने हाथ से पलक के चुन्नी को उसके सीने से हटाकर उसके पेट पर होंठ लगाकर चूमने लगा।


सजी हुई सेज और फूलों कि खुशबू दोनो में गुदगुदा कसिस पैदा कर रही थी। पलक का मदमस्त बदन और लहंगा चुन्नी में पूरी तरह सजी हुई पलक कमाल की अप्सरा लग रही थी। धीमे से डोर को खिंचते हुये आर्यमणि ने लहंगे को खोल दिया। फिर पतली कमर से धीरे-धीरे सरकते हुए लहंगे को पैंटी समेत खींचकर निकाला और आराम से टांग कर रख दिया।


इधर पलक उठकर बैठ चुकी थी और आर्य अपने होंठ से उसके चोली के एक एक धागे के को खोलते उसके पीठ को चूमते नीचे के धागों को खोलने लगा। .. चारो ओर का ये माहौल उनके मिलन में चार चांद लगा रहे थे। अंदर बहुत धीमा सा नशा चढ़ रहा था जो बदन के अंदर मीठा–मीठा एहसास पैदा कर रहा था।


चोली के बदन से अलग होते ही पलक पूरी नंगी हो चुकी थी। उसका पूरा बदन चमक रहा था। छरहरे बदन पर उसके मस्त सुडोल स्तन अलग की आग लगा रहे थे। ऊपर से बदन को आज ऐसे चिकना करवाकर आयी थी कि हाथ फिसल रहे थे। आर्यमणि उसके पूरे बदन पर हाथ फेरते स्तन को अपने हाथों के गिरफ्त में लिया और उसके होंठ चूमने लगे। पलक झपट कर उसे बिस्तर पर उल्टा लिटाकर उसके ऊपर आ गई। अपनी होंठ उसके होंठ से लगाकर चूमने लगी। दोनो इस कदर एक दूसरे के होंठ चूम रहे थे कि पूरे होंठ से लेकर थुद्दी तक गीला हो चुका था। पलक थोड़ी ऊपर होकर अपने स्तन उसके मुंह के पास रख दी और बिस्तर का किनारा पकड़ कर मदहोशी में खोने को बेकरार होने लगी।


आर्य भी बिना देर किए उसके स्तन पर बारी-बारी से जीभ फिराते, उसके निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा। स्तन को अपने दांतों तले दबाकर हल्का-हल्का काट रहा था। पलक के बदन में बिजली जैसी करंट दौड़ रही हो जैसे। वो अपने इस रोमांच को और आगे बढाते हुये, अपने पाऊं उसके चेहरे के दोनो ओर करती, अपनी योनि को उसके मुंह के ऊपर ले गयि। पीछे से उसका पतला शरीर और नीचे की मदमस्त कमर। योनि पर आर्य के होंठ लगते ही पूरा बदन ऐसे फाड़फड़या जैसे वो तड़प रही हो।


आर्य भी मस्ती में चूर अपने दोनो पंजे से उसके नितम्ब को इतनी मजबूती से पकड़े था, पंजों के लाल निशान पड़ गये थे। आर्यमणि अपने पुरा मुंह खोलकर योनि को मुंह में कैद कर लिया। कभी जीभ को अंदर घुसाकर तेजी में ऊपर नीचे कर रहा था। तो कभी पलक की जान निकालते क्लिट को दांतों तले दबाकर हल्का काटते हुये, चूसकर ऊपर खींच रहा था। पलक बिल्कुल पागल होकर उसके ऊपर से हटी। उसका पूरा बदन अकड़ गया और बिस्तर को ऐसे अपने मुट्ठी में भींचकर अकड़ी की हाथ में आए फूल मसल कर रह गये और बिस्तर पर सिलवटें पड़ गयि।


पलक की उत्तेजना जैसे ही कम हुई वो आर्यमणि के पैंट को खोलकर नीचे जाने दी। उसके लिंग को बाहर निकालकर मुठीयाने लगी। लिंग छूने में इतना गुदगुदा और मजेदार लग रहा था कि आज उसने भी पहली बार ओरल ट्राई कर लिया। जैसे ही उसने अपने जीभ से लिंग को ऊपर से लेकर नीचे तक चाटी, आर्यमणि ऐसा मचला, ऐसा तड़पा की उसकी तड़प देखकर पलक हसने लगी।


इधर पलक ने उसका लिंग चाटते हुए जैसे ही अपने मुंह में लिंग को ली। आर्य ने उसके बाल को मुट्ठी में भींचकर, सर पर दवाब डालकर मुंह को लिंग के जड़ तक जाने दिया। पलक का श्वांस लेना भी दूभर हो गया और वो छटपटाकर अपना सिर ऊपर ली। उसकी पूरी छाती अपनी ही थूक से गीली हो चुकी थी। एक बार फिर वो उसके ऊपर आकर आर्य के होंठ को चूमती अपने होंठ और जीभ फिरते नीचे आयी। उसके सीने पर अपनी जीभ चलती उसके निप्पल में दांत गड़ाकर चूसती हुई नीचे लिंग को मुठियाने लगी।


आर्य तेज-तेज श्वांस लेता इस अद्भुत क्षण का मज़ा ले रहा था। पलक फिर से उसके कमर तक आती उसके लिंग को दोबारा चूसने लगी और आर्य अपने हाथ उसके दरारों में घुसकर गुदा मार्ग के चारो ओर उंगली फिराने लगा। हाथ नीचे ले जाकर योनि को रगड़ने लगा। पलक पागल हो उठी। लिंग से अपना सर हटाकर अपने पाऊं आर्य के कमर के दोनों ओर करके, लिंग को अपने योनि से टीकई और पुरा लिंग एक बार में योनि के अंदर लेती, गप से बैठ गयि।


सजी हुई सेज। बिल्कुल नरम गद्दे और फूलों की आती भिनी-भीनी खुशबू, आज आग को और भी ज्यादा भड़का रही थी। ऊपर से पलक का चमकता बदन। पलक अपना सर झटकती, आर्यमणि के सीने पर अपने दोनो हाथ टिकाकर उछल रही थी। हर धक्के के साथ गद्दा 6 इंच तक नीचे घुस जाता। दोनो मस्ती की पूरी सिसकारी लेते, लिंग और योनि के अप्रतिम खेल को पूरे मस्ती और जोश के साथ खेल रहे थे। आर्यमणि नीचे से अपने कमर झटक रहा था और पलक ऊपर बैठकर अपनी कमर हिलाकर पूरे लिंग को जर तक ठोकर मरवा रही थी।


झटके मारते हुए आर्यमणि उठकर बैठ गया। पलक के स्तन आर्य के सीने में समा चुके थे और वो बिस्तर पर अपने दोनो हाथ टिकाकर, ऊपर कमर का ऐसा जोरदार झटके मार रहा था कि पलक का बदन 2 फिट तक हवा में उछलता। उसके स्तन आर्यमणि के सीने से चिपककर, घिसते हुये ऊपर–नीचे हो रहे थे। बाल बिखर कर पूरा फैले चुका था। और हर धक्के के साथ एक ऊंची लंबी "आह्हहहहहहहहह" की सिसकारी निकलती.. कामुकता पूरे माहौल में बिखर रही थी।


दोनो पूर्ण नंगे होकर पूरे बिस्तर पर ऐसे काम लीला में मस्त थे जिसकी गवाही बिस्तर के मसले हुए फूल दे रहे थे। योनि के अंदर, पर रहे हर धक्के पर दोनो का बदन थिरक रहा था। और फिर अंत में पलक का बदन पहले अकड़ गया और वो निढल पर गयि। आर्यमणि का लिंग जैसे ही योनि के बाहर निकला पलक उसे हाथ में लेकर तेजी से आगे पीछे करने लगी और कुछ देर बाद आर्य अपना पूरा वीर्य विस्तार पर गिराकर वहीं निढल सो गया।



पलक खुद उठी और आर्यमणि को भी उठाई। पलक अपना पूरा हुलिया बिल्कुल पहले जैसा की, और फटाफट कपड़े पहन कर तैयार भी हो चुकी थी। आर्यमणि भी मुंह पर पानी मारकर फ्रेश हुआ और खुद को ठीक करके दोनो जैसे आये थे वैसे ही बाहर निकल गये। रात के 8 बजे के करीब आर्यमणि को एयरपोर्ट पर ड्रॉप करके सवा 8 (8.15pm) बजे तक पलक वापस शादी में पहुंच चुकी थी। पलक आते ही सबसे पहले नहाने चली गई और उसके बाद वापस ब्यूटीशियन के पास आकर हल्का मेकअप करवाई।


पलक रात 8.45 तक वापस खुशबू बिखेरती हुयि इधर से उधर छम-छम करके घूमने लगी। अब शादी की रशमे 9 बजे से शुरू होनी थी इसलिए पलक अपनी बहन के कमरे में दाखिल हो गयि। नम्रता आराम से बैठकर आइने में खुद को देख रही थी, थोड़ी मायूस लग रही थी शायद.…. पलक पीछे से उसके गले लगती…. "ऐसे मायूस क्यों?"..
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पलक रात 8.45 तक वापस खुशबू बिखेरती हुयि इधर से उधर छम-छम करके घूमने लगी। अब शादी की रशमे 9 बजे से शुरू होनी थी इसलिए पलक अपनी बहन के कमरे में दाखिल हो गयि। नम्रता आराम से बैठकर आइने में खुद को देख रही थी, थोड़ी मायूस लग रही थी शायद.…. पलक पीछे से उसके गले लगती…. "ऐसे मायूस क्यों?"..


नम्रता:- कल से बहुत कुछ बदल जायेगा। मेरी पहचान और मेरा काम बदल जायेगा।


पलक:- भावना तो नहीं बदलेगी ना। मेरे लिए वहीं काफी है।


नम्रता:- 5 साल पहले जो 2 बहन थी पलक और नम्रता वो शायद आज ना हो। और शायद जो रिश्ता आज है वो 5 साल बाद ना होगा। परिवर्तन ही नियम है।


पलक:- हम्मम ! किसी से प्यार करती थी क्या?


नम्रता:- नहीं ऐसा कोई नहीं था, और जो था वो प्यार के काबिल नहीं था। मै तो आइने में बस अपने जीवन दर्शन को देख रही थी और सोच रही थी क्या इस जन्म में कुछ हासिल भी कर पाऊंगी।


"पागल, शादी के दिन ऐसा नहीं सोचते है। कुछ हासिल करने के लिए बस कर्म किए जाओ, माहौल बनता जायेगा, और तब तुम उस पल को भी मेहसूस करोगी जब तुम कहोगी की हां मैंने कर्म पथ पर चलकर ये मुकाम हासिल किया। जैसे कि आज।"…. भूमि अपनी उपस्थिति जाहिर करती हुई कहने लगी...


पलक, हसरत भरी नजरो से भूमि को देखती… "जैसे कि आज क्या दीदी।"..


भूमि:- जैसे कि हमे कोपचे वाले पथ पर चलकर होने वाले का चुम्मा मिला करता था। पलक ने मेहनत कि, कर्म किया और सबके बीच होंठ पर चुम्मी पायि।



नम्रता:- हीहीहीहीही… बेचारा आर्यमणि, लगता है शर्माकर भाग गया ।


पलक:- शर्माकर नहीं भगा है, एडवांस बता देती हूं, तैयार हो जाओ "फील द प्राउड मोमेंट" के लिए।


नम्रता और भूमि दोनो उत्सुकता से…. "ऐसा क्या करने वाला है। कहीं कोई बेवकूफी या उस से भी बढ़कर कोई पागलपन।"..


पलक:- नहीं दीदी वो कोई बेवकूफी नहीं करने गया है, बल्कि ऐसा काम करने गया है जिसे जानकर आप कहेंगी… "ये तो कमाल कर दिया आर्य।"..


नम्रता:- क्या बैंक में डाका डालकर सारा माल हमारे पास लायेगा।


पलक नहीं उससे भी बढ़कर… "वो अनंत कीर्ति की पुस्तक खोलने गया है।"..


नम्रता और भूमि दोनो साथ में चौंकते हुये…. "ये कैसे होगा। बाबा के गैर मौजूदगी में बुक तक कोई पहुंच नहीं सकता। उसे खोलना तो दूर कि बात है। एक मिनट तुमने कहा कि वो खोलने गया है। इस वक़्त आर्य कहां है?


पलक:- नागपुर के लिए उड़ चुका है।


भूमि:- दोघेही वेडे आहेत (दोनो पागल है)


नम्रता:- पलक इतना बड़ा फैसला तुम दोनों अकेले कैसे ले सकते हो।


पलक:- जब काम अच्छे भावना से कि जाती है तो उसमें रिस्क भी लेना पड़े तो कोई गम नहीं। हमे आज रात तक का वक़्त दो, कल सुबह तुम सब का होगा।


भूमि:- ना मै इसमें हूं और ना ही मुझे कुछ पता है। कल सुबह तक मै रुक जाती हूं, फिर तुम सुकेश और उज्जवल भारद्वाज को जवाब देती रहना।


नम्रता:- मेरी प्रार्थना है, तुम दोनो कामयाब हो। जब तुमने इतना बड़ा रिस्क ले ही लिया है तो हौसले से आगे बढ़ो। भूमि देसाई, ऐसे मुंह नहीं मोड़ सकती।


भूमि:- ठीक है बाबा समझ गई। भावना अच्छी है और हमे सामने से बता रही हो इसलिए अगर वो फेल भी होता है तो मै मैनेज कर लूंगी।


पलक दोनो के गले लगती… "आप दोनो बेस्ट है।"..


भूमि:- बेस्ट रात तो नम्रता की होने वाली है, इसे बेस्ट ऑफ लक तो बोल दो। पूरे मज़े करना और कोई जल्दबाजी नहीं।


पलक:- बेस्ट ऑफ लक दीदी अपना अनुभव साझा करना, मुझे भी कुछ सीखने मिलेगा।


भूमि:- क्यों तेरे पास मोबाइल नहीं है क्या?"..


भूमि की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगी। कुछ देर बाद वही पुराना फिल्मी डायलॉग सुनने को मिला… "दुल्हन को ले आइये, मुहरत का समय बिता जा रहा है।"


विधिवत दोनो शादी रात 10.30 तक संपन्न हो गयि। गेस्ट के साथ बातचीत और खाते पीते हुये रात के 12 बज गये थे। दोनो ही नव दंपत्ति के मन में लड्डू फुट रहे थे। अलग-अलग जगहों के 2 लग्जरियस स्वीट इनके सुहागरात के लिए अलग से सजाकर रखी गयि थी। जिसके सुहाग की सेज उनके आने का इंतजार कर रही थी।


पलक और भूमि, नम्रता को छोड़ने उसके स्वीट तक गये। नम्रता को वहां बिस्तर पर आराम से बिठाकर कुछ देर की बातें हुई। फिर सभी सखी सहेलियां और बहनों ने धक्का देकर माणिक को अंदर भेज दिया। माणिक जब अंदर जा रहा था तब पीछे से भूमि कहने लगी… "माणिक शिकायत नहीं आनी चाहिए मेरी उत्तराधिकारी की।"


दोनो बेचारे शर्मा गये और तेजी से दरवाजा बंद कर लिया। भूमि और पलक के साथ कयि लड़कियां वहां से निकलकर आ रही थी। किनारे से एक जगह पर रिश्तेदारों की भीड़ लगी थी। भूमि और पलक भी उस ओर भिड़ को देखकर चल दी। जैसे ही पलक ने सामने का नजारा देखा उसका दिमाग चक्कर खा गया।


2 कदम पीछे हटकर उसने स्वीटी के ऊपर का बोर्ड देखा… "हैप्पी वेडिंग नाईट.. राजदीप एंड मुक्ता" और अंदर के सेज पर तो कोई और ही खेल खेलकर चला गया था। बिखरे बिस्तर, बिस्तर पर मसले फुल, चादर में पड़ी सिलवटें। कोनो पर सजे फूल की टूटी लड़ी, और बिस्तर पर ताजा वीर्य के धब्बे। जो मज़ा सुहाग की सेज पर भईया और भाभी को लेना था, वहां छोटी बहन और उसका ब्वॉयफ्रैंड मज़ा लूटकर बिखरे सेज को भईया और भाभी के लिए गिफ्ट कर दिया। पलक का दिमाग शॉक्ड। वो दबे पाऊं पीछे आयी और आकर आर्यमणि को कॉल लगाने लगी। 10 मिनट तक ट्राय करती रही लेकिन कोई नेटवर्क ही नहीं मिल रहा था।


पलक:- भूमि दीदी आर्यमणि को कॉल लगाओ, वो पहुंचा की नहीं।


भूमि:- कल तो इन नेटवर्क कंपनी वालो को डंडा कर दूंगी। अभी यहां के मैनेजर को कॉल लगा रही हूं, नेटवर्क ही नहीं मिल रहा। बेचारे दोनो (राजदीप और मुक्ता), जिसने भी ये किया है, अच्छा नहीं किया। खैर दूसरे स्वीट का इंतजाम कर दिया है।


तभी वहां एक छोटी उम्र का प्रहरी पहुंचा और चिढ़कर भूमि से कहने लगा… "दीदी किसने ये रिजॉर्ट बुक किया है। इन रिजॉर्ट वालो ने यहां सिग्नल जैमर लगा रखा था। मै 2 घंटे से परेशान हूं।"


भूमि:- क्या हुआ महा, सब ठीक तो है ना।


माही:- दीदी आज 8 से 10 के बीच बाबा का हर्निया ऑपरेशन था। आई से कॉन्टैक्ट करने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन ये साले सिग्नल जैमर लगाये बैठे है।


ये सुनकर तो पलक का दिमाग पूरी तरह से घूम गया। अपने बाबा को वो अकेले में ले जाकर पूरी बात बताने लगी। उज्जवल भारद्वाज ने सुकेश भारद्वाज से कुछ बात की। उसने तुरंत अपना नेटवर्क चेक किया। ये लोग रिजॉर्ट के रिसेप्शन पर जा ही रहे थे कि सभी का नेटवर्क आ गया। सुकेश अपने कदम रोककर सरदार खान को कॉल लगाने लगा, लेकिन वहां का भी कॉल नहीं लगा।


भूमि को बुलाकर नागपुर में रुके प्रहरी से कॉन्टैक्ट करने कहा गया, लेकिन एक भी प्रहरी ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर उज्जवल और सुकेश ने अपने-अपने कॉन्टैक्ट के जरिये शहर के विभिन्न इलाकों की जानकारी ली। जब पूरी जानकारी आ गयि तब उन लोगो ने 4-5 लोगो को सरदार खान के इलाके में भेजा... उधर से जो जवाब मिला, उसे सुनकर पहले सुकेश झटके खाकर गिर गया, और जब उज्जवल ने सुना तो उसे भी सदमा सा लगा।


केशव, जया और भूमि तीनों दूर से बैठकर सबके चेहरे देख रहे थे।… इसी बीच पलक को बीच में बुलाया गया, उसे एक जोरदार थप्पड़ भी पड़ी… "आव बेचारी, इसका तो गाल लाल हो गया। चलो पैकिंग करने.. लगता है अभी ही सब नागपुर लौटेंगे।"


नाशिक एयरपोर्ट वक़्त लगभग 8 बजने वाले थे। आर्यमणि कार से उतरकर पलक के होटों को चूमा… "हे स्वीटहर्ट, लगता है तूफान आने वाला है, हम दोनों इस तूफान का मज़ा लेंगे। मेरा वादा है, आज की रात तुम्हारे जीवन की सबसे यादगार रात होगी।"…


पलक को हाथ हिलाकर अलविदा कहते आर्यमणि बढ़ चला। आखों में चस्मा लगाये विश्वास के साथ चलने लगा। चौड़ी छाती, चेहरे पर विजय की कुटिल मुस्कान और चलने में वो अंदाज की लोग पीछे मुड़कर देखने पर विवश हो जाए।


जैसे ही थोड़ी दूर वो आगे बढ़ा, 2 लोग उसे रिसीव करके छोटे रनवे के ओर ले गए, जहां एक छोटा प्राइवेट जेट पहले से उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था। इसके पूर्व ही ढलते सांझ के साथ रूही अपनी टीम के साथ काम शुरू कर चुकी थी।


किले के अंदर जश्न जैसा माहौल। बस्ती का लगभग 500 मीटर का दायरा। चारो ओर से घिरी हुई बस्ती, बस्ती के बिचो-बीच लंबा चौड़ा एक चौपाल। कितने वेयरवुल्फ थे उस 500 मीटर के किले में थे वो तो किसी को पता नहीं। लेकिन किले के बिचबिच बने चौपाल में थे 200 आदमखोर जंगली कुत्ते, 180 कुरुर वेयरवुल्फ, 5 अल्फा और उन सबका बाप था एक बीस्ट वुल्फ।


पूर्णिमा यानी वेयरवुल्फ के लिये वरदान। आम दिनो से 10 गुना ज्यादा आक्रमकता। आम दिनों के मुकाबले 50 गुना ज्यादा ताकत मेहसूस करना। और आम दिनों की अपेक्षा जीत को निश्चित सुनिश्चित करना। ये थी पूर्णिमा कि रात एक वेयरवुल्फ का परिचय। फिर तो जितने वेयरवुल्फ साथ होंगे उनकी ताकत भी उसी मल्टीपल में बढ़ती है। किले के चौपाल से 6.30 बजे शाम की पहली वुल्फ साउंड। बहुत ही खतरनाक और दिल दहला देने वाला था वो। सभी प्रहरी एक साथ इतनी वुल्फ साउंड कभी नहीं सुने थे। उन्हें लग चुका था कि वो इनका मुकाबला नहीं कर सकते।


इधर रूही.... बॉयज एंड गर्ल्स हैव ए फन। और इवान तुम जारा अलबेली को बीच–बीच में शांत करवाते रहना। पूर्णिमा है और ये खुले में, कहीं भाग ना जाय..


इवान:- ये तो हथकड़ी में है मेरे साथ, चिंता नक्को रे।


रूही:- बेटा ओजल अपने 10 शिकारी मेहमान को जरा यहां तक ले आओ। कहना शहर खतरे में है और उनके बीच केवल हम ही उनकी उम्मीद है। इसलिए एक दूसरे पर भरोसा करने का वक़्त आ गया है। वरना पूर्णिमा है और 185 वेयरवुल्फ के साथ एक बीस्ट अल्फा शहर को बर्बाद कर देगा।


ओजल निकल गयी शिकारियों के पास, जो इतने सारे वुल्फ साउंड सुनकर घबराए थे और मदद के लिए कॉल तो लगा रहे थे लेकिन किसी की भी लाइन कनेक्ट नहीं हो रही थी। नाशिक का सिग्नल जैमर, जिसे आर्यमणि ने बरी ही सफाई से चारो ओर फिट करवाया था। लगभग 8 किलोमीटर के रेंज वाले 3 सिग्नल जैमर लगे थे। सभी जैमर को ओपन करने का वक़्त था रात के 12 बजकर 15 मिनट के बाद कभी भी।


ठीक वैसा ही सिग्नल जैमर सरदार खान के इलाके में भी लगा था। कुछ सरकारी कर्मचारियों की मदद से 8 किलोमीटर के क्षेत्र में जैमर को लगा दिया गया था। सिग्नल सरदार खान के किले का भी जाम हो चुका था जिसे खोलने का समय अगले आदेश तक। बेचारे शिकारी मदद के लिए फोन मिलाते रहे, लेकिन फोन मिला नहीं।


शिकारियों के पास तुरंत ही संदेश लेकर ओजल पहुंची। घबराए तो थे, ही इसलिए अब अपनी गाड़ी पर सवार होकर तुरंत उसके पीछे चल दिये। इधर चढ़ते चांद को देखकर रूही का दिल डोलने लगा। 12 लैपटॉप पहले से ऑन थे। कई सारे उड़न तस्तरी अर्थात ड्रोन तैयार थे जिनकी मदद गुलाल बरसाना था.. माउंटेन एश का गुलाल लिये सभी ड्रोन तैयार थे।


ये माउंटेन एश एक तरह का लक्ष्मण रेखा होता है जिसे कोई वेयरवुल्फ पार नहीं कर सकता। शिकारियों का झुंड वहां पहुंच चुका था। आर्यमणि के पैक को देखकर सुनिश्चित करने लगे… "तुमलोग आर्यमणि के पैक हो क्या?"..


रूही:- बातों का वक़्त नहीं है अभी शिकारी जी। कंप्यूटर कमांड दीजिए और ये ड्रोन पूरे इलाके में माउंटेन एश बरसा देगा। फिर आगे क्या करना है वो तो आप समझ ही गये होंगे।


शिकारी:- पहली बार एक वेयरवुल्फ को माउटेन एश का प्रयोग करते देख रहा हूं।


सभी शिकारी के साथ-साथ ओजल और रूही भी लग गई कंप्यूटर पर। तेजी के साथ ड्रोन 600 मीटर का दायरा कवर किया। बाजार के ओर से माउंटेन एश को उड़ेलते हुए सभी ड्रोन आगे बढ़ रहे थे। लगभग 15 मिनट में ही माउंटेन एश की गुलाल चारो ओर बिखरी पड़ी थी। एक शिकारी आगे बढकर रूही से कहने लगा… "तुम्हारा काम खत्म हो गया है। अब तुम लोग यहां से जा सकते हो।"..


"ऐसे कैसे हम यहां से चले जाए शिकारी जी, ये तो हमारे शिकार है और हमारी रणनीति। आप लोग इस पूर्णिमा की शाम का आनंद उठाइये और प्रहरी समुदाय से कहियेगा, उनका काम अल्फा पैक ने कर दिया।".. रूही उस शिकारी के करीब आकर कहने लगी जो अपना हाथ अभी-अभी चाबुक पर रखा था।
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भाग:–56






"ऐसे कैसे हम यहां से चले जाए शिकारी जी, ये तो हमारे शिकार है और हमारी रणनीति। आप लोग इस पूर्णिमा की शाम का आनंद उठाइये और प्रहरी समुदाय से कहियेगा, उनका काम अल्फा पैक ने कर दिया।".. रूही उस शिकारी के करीब आकर कहने लगी जो अपना हाथ अभी-अभी चाबुक पर रखा था।


रूही… आंहा, कोई हरकत नहीं शिकारी जी। आप के पीछे आपके 9 लोग है। वो क्या है ना हम अपना बदला खुद ले लेंगे।


जबतक वो शिकारी बात कर रहा था। ओजल, इवान और अलबेली ने अपनी दबे पाऊं वाली शिकारी गति दिखाते, उसके 9 लोगो के हाथ पाऊं बांध चुके थे।


शिकारी:- तुम माउंटेन एश की सीमा नहीं पार कर पाओगी।


रूही:- पार करना भी नहीं है। जैसे-जैसे चंद्रमा अपने उफान पर होगा, माउंटेन एश के सीमा में बंधे बेबस वेयरवोल्फ पूर्ण उत्तेजित हो जायेंगे। और ये पूर्णिमा उन्हें इतना आक्रोशित कर देगा कि ये लोग एक दूसरे को ही फाड़ डालेंगे।


शिकारी:- इस लड़की (अलबेली) को उस लड़के (इवान) के साथ क्यों बांध रखी हो?


रूही:- लड़की नही अलबेली। पूर्णिमा की रात से निपटने के लिये उसके पास अभी पूरा कंट्रोल नही है। चिंता मत करो अलबेली को लेथारिया वुलपिना का डोज देंगे, जरा चंदा मामा को अपने पूर्ण सबाब पर तो आने दो।


शिकारी:- तुम लोग कमाल के हो। नेक्स्ट लेवल वेयरवुल्फ..


रूही:- शिकारी जी हम भी आपकी तरह इंसान ही है। बस आप लोग ने ही हमे हमेशा जानवर की तरह ट्रीट किया है। मेरे बॉस आर्यमणि ने हमे सिखाया है कि हम इंसान है, इसलिए क्ला और फेंग से लड़ाई में विश्वास नहीं रखते। बाकी यदि क्ला और फेंग है तो एक्स्ट्रा फीचर है। बुरे वक़्त में इस्तमाल करेंगे।


शिकारी:- मुझे भी पैक ही कर दो, हम ड्रोन कैमरा से तुम्हारा कारनामा देखेंगे।


रूही:- वो भी कर देंगे शिकारी जी। पहले हमारा पेमेंट तो हो जाने दो। तुम्हे खोलकर ही रखा है अपने पेमेंट के लिये।


शिकारी:- कैसा पेमेंट?


रूही:- ओय 12 लैपी, ये 1000 ड्रोन, ऊपर से माउंटेन एश कितना कीमती मिला है। फिर ये हथियार जो हमारे पास है, उसे हम एक बार ही इस्तमाल करेंगे, उसके बाद तो जायेगा तुम्हारे हेडक्वार्टर ही। वैसे भी जनता के दान में दिये पैसे से तुम्हारा प्रहरी समुदाय अरबपति हैं। तुम्हारा काम मै कर रही हूं सो हमारा मेहनताना और इनकी कीमत, नाजायज मांग तो नहीं है।


शिकारी:- मेरा नाम बद्री मुले है। तुमसे अच्छा लगा मिलकर। बिल दो और पैसे लो।


रूही:- और माउंटेन एश के पैसे।


बद्री:- कितना किलो मंगवाई थी।


रूही:- 2 क्विंटल।


बद्री:- हम्मम ठीक है। पर यहां तो नेटवर्क नहीं, होता तो अभी ट्रांसफर कर देता पैसे।


रूही:- यहां जैमर का रेंज नहीं है। ये देख लो बिल्स। और रीमबर्स कर दो सर जी।


बद्री अपना अकाउंट खोलकर… "अकाउंट नंबर और डिटेल डालो अपना।"..


रूही ने उसमे अपना अकाउंट नंबर और डिटेल डाल दिया।… "आधा घंटा लगेगा, बेनिफिशरी एड होने दो।"


रूही:- कोई नहीं हमारे पास पुरा वक़्त है। बॉस अभी तो निकले भी नहीं है। रात के 11-12 से पहले तो वैसे भी काम खत्म नहीं होना है।


तभी कुछ देर बाद सरदार के इलाके से वुल्फ साउंड आने शुरू हो गये। यहां से अलबेली भी वुल्फ साउंड देती पागलों कि तरह करने लगी। वो अपना शेप शिफ्ट कर चुकी थी और चूंकि वो एक अल्फा थी, इसलिए धैर पटक, धोबी पछाड़ से भी ज्यादा खतरनाक अलबेली ने इवान को पटक दिया। दर्द से कर्रहाने की आवाज आने लगी। अलबेली अपने पंजे और दातों से इवान को फाड़ने के लिए आतुर थी। ओजल और इवान मिलकर किसी तरह उसे रोकने की कोशिश तो कर रहे थे, लेकिन वो उन जैसे 10 पर अकेली भारी थी। रूही ने डोज काउंट किया और हवा के रफ्तार से गयि, अलबेली के गर्दन में लेथारिया वुलपिना के 20ml के 2 इंजेक्शन लगाकर वापस बद्री के पास पहुंच गयि।


अगले 2 मिनट में अलबेली पूरी तरह शांत थी। वो अपना शेप शिफ्ट करती… "अरे ये क्या हो गया। रूही, क्यों इन्हे रोकने कही।"..


रूही, बद्रिं के भी हाथ पाऊं बांधते…. "अरे यहां हमारे प्रहरी भईया खड़े थे ना, बहुत शातिर होते है। अब रोना बंद करो और उनके दर्द को ठीक करो।"..


अलबेली पहले ओजल के पास पहुंची। उसके सारे दर्द को खींचकर पुरा हील की और बाद में इवान को।…. "अलबेली, कंट्रोल सीख ना रे बाबा, अकेले में हमे तो तू नरक लोक पहुंचा देगी।"..


इसी बीच बद्री मुंह पर बांधी पट्टी से... "उम्म उम्म" करने लगा।… रूही अलबेली को देखती... "बद्री जी के पट्टी खोल अलबेली, जारा बोलने दे इन्हे भी"… अलबेली उसका पट्टी खोलती… "तुम इतनी छोटी उम्र में अल्फा कैसे हो गयि।"


अलबेली:- बॉस जरा शादी में बिज़ी थे वरना ये दोनो भी अल्फा होते घोंचू।… (अलबेली अपने कमर के ऊपर का कपड़ा हटाती)… ये देख टैटू.. द अल्फा पैक।


बद्री:- हम्मम ! लेकिन तुम लोग ज्यादा देर तक यहां रहे तो वहां सरदार खान के किले में पुलिस पहुंच जायेगी।


रूही.… "अभी जादू देख… 10, 9, 8, 7, 6, 5, 4, 3, 2, 1, 0"… और चारो ओर आवाज़ गूंजने लगी… "मोरया रे बप्पा मोरया रे"….. "विनायक आला रे बद्री। आता कोण आम्हाला रोखेल। (अब कौन रोकेगा हमे)


रात 9 जैसे ही बजे… "चलो तैयार हो जाओ, एक्शन टाइम आला रे।"


खटाक, फटाक, सटाक.. मात्र 2 मिनट में ही चारो अपने बदन पर जगह-जगह भारी हथियार खोस चुके थे। हर किसी के पीठ पर एक बैग टंगा हुआ था।… "क्या हुआ तुम्हारा बॉस आने वाला है क्या।?..


रूही:- ध्यान से सुनो ये आहट.. आने वाला नहीं बल्कि आ चुका है।


रूही की बात समाप्त भी नहीं हुई थी कि उससे पहले ही आर्यमणि पहुंच चुका था।… "ओह दोस्ती बढायि जा रही है?"..


रूही:- सूट उप हो जाओ बॉस। वैसे पलक की दी हुई सूट मे भी कमाल लग रहे हो। ऐसे जाओगे तो हॉलीवुड का एक्शन होगा...


अपने पैक के साथ आर्यमणि तैयार हो चुका था। काफी तेजी के साथ सभी किले ओर बढ़े। किले के मुख्य मार्ग पर बिखरे माउंटेन ऐश को आर्यमणि बीच से साफ करते हुये बढ़ रहा था और बाकी सभी कतार बनाकर उसके पीछे चल रहे थे। किले में पहुंचते ही आर्यमणि तेजी के साथ वहां के हर घर में घुसा। वहां बंद हर वेयरवुल्फ को देखा। पूर्णिमा की रात अक्सर यह होता है। कई वुल्फ अपनी अक्रमाता बर्दास्त नहीं कर पाते इसलिए इनकी और वुल्फ खुद की सुरक्षा के लिये, उनका मुंह बांधकर जंजीरों में जकड़ देते हैं।


उस बस्ती के घरों में 40 बंधे वुल्फ और उसके साथ उसकी मां या पैक से कोई दिख गया। आर्यमणि के ठीक पीछे लाइन बनाये उसकी पूरी टीम। अलबेली और रूही हर किसी के गर्दन के पीछे अपने क्ला घुसाकर उसकी यादे लेती और जो भटका हुए लगते उन्हें मौत का तोहफा देकर आगे बढ़ जाते। हालांकि घर में बंधे वुल्फ और उनके साथ वाले लगभग 15 क्लीन थे। बाकी सभी वुल्फ अत्यंत ही निर्दयि और विकृत मानसिकता के थे। बढ़ते हुये सभी चौपाल पर पहुंचे। चौपाल के अंदर पागल बनाने वाला खतरनाक आवाजें आ रही थी। बीस्ट वुल्फ की शांत करने की दहाड़ पर सभी वुल्फ सहम से जाते लेकिन अगले ही पल फिर से वो सब आक्रोशित हो उठते। बीस्ट वुल्फ पर लगातार हमले हो रहे थे। इकलौता वहीं था जो शेप शिफ्ट नहीं कर पाया था और सभी वुल्फ के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ था।


आर्यमणि, चौपाल का दरवाजा खोलते… "रूही चौपाल पर ये लोग झुंड बनाकर किसे नोच रहे। झुंड को हल्का करो और बीच से जगह बनाओ। जारा सरदार खान से एक मुलाकात कर लिया जाय। लगता है बहुत दर्द में है।"..


सरदार खान का बेटा फने खान, अपने पिता की ताकत पाने के इरादे से तय वक्त से पहले ही उसे मॉडिफाइड कैनीन डिस्टेंपर वायरस खिला चुका था। जिसका नतीजा यह हुआ कि उसके नाक और मुंह से लगातार ब्लैक ब्लड बह रहा था और वो अपना शेप शिफ्ट नहीं कर पा रहा था।


"एक्शन टाइम बच्चो।"… चारो एक लाइन से खड़े हो गये और वोल्फवेन बुलेट फायर करने लगे। देखते ही देखते बीच से लाशें गिरना शुरू हो चुकी थी। वुल्फ के बीच भगदड़ मच गया। इसी बीच आर्यमणि अपने हाथ में वो एक फिट की सई वैपन लिये बीच से चलते हुये आगे बढ़ रहा था। आर्यमणि के पीछे वो चारो नहीं जा सकते थे क्योंकि उसने चौपाल के दरवाजे पर बिखरा माउंटेन ऐश साफ नहीं किया था। देखते ही देखते वुल्फ की भीड़ के बीच आर्यमणि कहीं गायब सा हो गया। इधर ये चारो गोली चला-चला कर आर्यमणि के ऊपर भिड़ का बोझ और लादे जा रहे थे।


तभी जैसे वहां विस्फोट हुआ हो और सभी वुल्फ तीतर बितर हो गये।… रूही सिटी बजाती हुई… "बॉस छा गये। अब क्या यहां स्लो मोशन पिक्चर बनाओगे, काम खत्म करो यार जल्दी।"


आर्यमणि:- हां सही सुझाव है।


आर्यमणि ने अपना शेप शिफ्ट किया, और सरदार खान की आखें फटी की फटी रह गई। आर्यमणि ने अपनी तेज दहाड़ लगायि और वहां मौजूद सभी जंगली कुत्ते के साथ-साथ सभी वुल्फ बिल्कुल शांत अपनी जगह पर बैठ गये। आर्यमणि तेजी से सबके पास से गुजरते हुये सबकी यादों में झांकता, वहां मौजूद हर किसी की याद में किसी न किसी को नोचते हुये ही उसने पाया। हर दोषी का सर वो धर से नीचे उतरता चला गया। तभी आर्यमणि के हाथ एक दोषी अल्फा लगा। उसे बालों से खींचकर आर्यमणि चौपाल के दरवाजे तक लाया और उसके दोनो हाथ और दोनो पाऊं तोड़ कर बिठा दिया।


वहां मौजूद 5 अल्फा में से 2 अल्फा अच्छे थे। आर्यमणि उन्हें जगाते… "जल्दी से अपने पैक और इनोसेंट वुल्फ को अलग करो। इतने में आर्यमणि की दहाड़ से शांत वुल्फ एक बार फिर तब आक्रामक हो गये जब सरदार खान ने वापस हमला की दहाड़ लगा दी। इसके प्रतिउत्तर में आर्यमणि ने फिर एक बार दहाड़ा और आकर सरदार खान के मुंह को बंद कर दिया। उन दो अल्फा ने अपना पूरा पैक अलग कर लिया और साथ में उन लोगो को भी, जो केवल पैक के वजह से सरदार खान के साथ थे। लगभग 30 वुल्फ को उसने अलग कर लिया जिसमें से 3 मरने के कगार पर थे और 12 अगले 5 मिनट में मरने वाले थे। आर्यमणि अपने तेज हाथो से उन 3 के अंदर की वोल्फबेन बुलेट निकाला और उनके दर्द को अपने अंदर खींचकर हील करने लगा। आर्यमणि ने माउंटेन एश की दीवार हटायि। वो चारो भी अंदर घुसे फिर शुरू हुआ मौत का तांडव। पहले तो 3 अल्फा में से 2 अल्फा ट्विंस के लिये छोड़ा गया और बचे 1 अल्फा की शक्तियों बांट दिया गया चारो में। 30 बीटा वूल्फ 2 अल्फा के साथ चुपचाप जाकर किनारे खड़े हो गये, जहां जंगली कुत्ते एक ओर से बैठे हुये थे। बाकी के वुल्फ को विल्फबेन बुलेट लगती जा रही थी। आर्यमणि आराम से आकर सरदार खान के पास बैठ गया…. "हम्मम ! तुम्हे पहले पहचान जाता तो ये गलती ना होती।"..


आर्यमणि:- सरदार तुम भुल रहे हो जबतक मैं अपनी पहचान जाहिर ना करूं, किसी के दिमाग में ये ख्याल भी नहीं आ सकता।


सरदार:- तो शक्ति कि भूख तुम्हे भी यहां खींच लाई।


आर्यमणि, उसके हाथ पर अपना हाथ रखकर उसके दर्द को थोड़ा खींचने लगा। सरदार को काफी राहत महसूस होने लगी। ऐसा सुकून जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन जिस वायरस के दर्द का शिकार सरदार था, उस दर्द को आर्यमणि भी मेहसूस कर रहा था। आर्यमणि ने सरदार का हाथ छोड़ दिया और सरदार दोबारा दर्द से कर्राह गया।


आर्यमणि:– तुम्हारा बेटा फने नही दिख रहा...


सरदार:– ओह तो उस चूतिये को तूने सह दिया था। क्या किया उसने मेरे साथ?


आर्यमणि:– तुझे कुत्तों के अंदर पाया जाने वाला एक खतरनाक वायरस खिला दिया। जिसका नतीजा सामने है। वैसे तुझे मारने का फरमान तेरे आकाओं ने उसे दिया था। भारद्वाज एंड कंपनी... जानता तो होगा ही।


सरदार:– तू कुछ भी कहे और मैं मान लूं। वो अपेक्स सुपरनैचुरल है। समस्त प्राणियों में बिशेस और ताकतवर। उन्हे मुझे मारने के लिये इतने एक्सपेरिमेंट की जरूरत नहीं पड़ती। हां, लेकिन तू नौसिखिए, फने को इतना नही बताया की मेरे किसी इंसानी चमड़ी को भी भेदा नही जा सकता। मुझे मारने आया था उल्टा उसे और उसके साथियों को ही मौत की नींद सुला दिया।


आर्यमणि:- तू भ्रम में ही मरेगा सरदार। वैसे जानकर हैरानी हुई की तेरा ये आगे से 5 फिट निकले तोंद वाले भद्दा इंसानी शरीर को भी नही भेदा जा सकता। तुम्हारी जिंदगी तो नासूर हो गयि सरदार। मैंने तुम्हे छोड़ भी दिया तो ना तो तुम ढंग से जी सकते हो, ना मर सकते हो।


सरदार:- तो रुके क्यों हो, दे दो मौत मुझे और ले लो मेरी शक्तियां।


आर्यमणि:- इसी ताकत ने तेरा क्या हाल किया है? मुझे ताकत में कोई इंट्रेस्ट नहीं। पूछता हूं अपने पैक से, उन्हें ताकत की जरूरत है क्या? अरे चारो कितने स्लो हो, गोली मारने में कोई इतना वक़्त लगता है क्या?


चारो ने लगभग एक ही बात कही…. "हो गया बॉस"


आर्यमणि:- हमारे पैक के ट्विंस, अल्फा बने की नहीं। क्यों ओजल और इवान..


ट्विंस साथ में:- हां बन गये है लेकिन वो भी आपकी इक्छा थी सिर्फ इसीलिए...


आर्यमणि:- अच्छा सुनो सरदार खान की शक्ति तुम में से किसे चाहिए?


रूही:- हम तो टूर पर जा रहे, उसके पास बहुत पैसे और गोल्ड होंगे, वो ले लो।


अलबेली:- इसकी शक्ति मैंने ले ली तो मै भी इसकी तरह घिनौनी दिखने लगुंगी। मुझे नहीं चाहिए।


ओजल:- यहां से निकले क्या? इस गंदे माहौल को ही फील करना अजीब लग रहा है। ऐसा लग रहा है काले साये ने इस जगह को सदियों से घेर रखा है। खुशी ने यहां अपना मुंह मोड़ लिया है।


इवान:- हां ओजल सही कह रही है।


आर्यमणि:- तेरी शक्तियों में किसी को इंट्रेस्ट नहीं। खैर मै जारा उन सब की याद मिटा दू, जिन्हे मार नही सकता और मुझे प्योर अल्फा के रूप में देख चुके। रूही तुम सरदार के घर जाकर वो क्या पैसे और गोल्ड की बात कर रही थी, उसे ले आओ।


आर्यमणि जबतक उन 2 अल्फा और उसके साथ 30 वुल्फ के पास पहुंचा।… "तुम सब को 1 घंटे के लिए बेहोश करूंगा, मै नहीं चाहता कि कोई प्योर अल्फा का जिक्र भी करे। आज से तुम सब अपने पैक के साथ रहने के लिए स्वतंत्र हो।"


एक अल्फा नावेद…. "यहां रहे तो हमे भी सरदार की तरह बनने के लिए फोर्स किया जायेगा। कहीं भी अपने पैक के साथ रह लेंगे, लेकिन इस जगह पर नहीं।"


आर्यमणि:- तुम्हारी याद में तो ऐसी कोई जानकारी मुझे तब नहीं दिखी थी नावेद, कहना क्या चाहते हो?


नावेद:- एक वुल्फ के लिये उसका पैक ही उसका परिवार होता है। एक बीटा अपने अल्फा पर हमला तो कर सकता है, लेकिन एक अल्फा हमेशा अपने पैक के बीटा को संरक्षण देता है। यहां तो मैंने सरदार को अपने ही कोर पैक को खाते देखा है। ये बीस्ट अल्फा होने के साथ साथ बहुत ही घिनौना भी था। और शायद इसे ऐसा ही बनाया गया था। ऐसा मेरि समीक्षा कहती है।


दूसरा अल्फा असद… "नावेद ने सही कहा है। ये बात हम सबने मेहसूस की है। यहां लाकर हमारी आत्मा को तोड़ा जाता है। इंसानी रूप में रहते है लेकिन इंसानी पक्ष को मारने में कोई कसर नहीं छोड़ा इसने।"


आर्यमणि:- पहले एक छोटी सी बात बता दूं। आज के बाद नागपुर प्रहरी क्षेत्र में बहुत से बदलाव होगा। भूमि दीदी पूरी कमान अपने हाथ में लेने वाली है। यहां अब तुम दोनो ही हो। मै यह तो नहीं कहूंगा की तुम दोनो यहां बंध कर रहो, लेकिन तुम यहां नहीं होगे तो कोई ना कोई होगा। और वो जो कोई भी होगा उसे अब सरदार जैसा नहीं बनाया जायेगा। तुम अपने पैक के साथ यहां रहो। अगर हालात नहीं बदले तो यह जगह छोड़ देना। लेकिन मुझे नही लगता कि यहां से सरदार को गायब कर देने से सरदार को बनाने वाले लोग यहां फिर हिम्मत करेंगे सरदार जैसे किसी को वापस लाने की। और एक बात, तुम सब शापित नहीं हो, तुम्हारे रूप में ऊपरवाले ने कुछ अच्छा डाला है। खुद को जानवर प्रोजेक्ट करने से अच्छा है, खुद में विशेष होने जैसा मेहसूस करो।


"कुबेर का खजाना हाथ लग गया यहां तो बहुत सारे पैसे और प्रॉपर्टी के पेपर है। गोल्ड नहीं मिला लेकिन।".. रूही तीनों के साथ आते ही कहने लगी।


आर्यमणि ने पहले अपना काम खत्म किया। वहां सबको बेहोश करके, उसके गर्दन के पीछे अपना क्ला डालकर उनकी याद से केवल प्योर अल्फा, और ट्विन की याद मिटाने के बाद, आर्यमणि एक छोटा सा नोट छोड़ दिया….


"ये जगह और यहां के सारे लोग अब तुम दोनो के है। तुम दोनो अल्फा होने का फर्ज निभाओ। इन सब को कैसे अच्छी जिंदगी दे सकते हो उसके बारे में सोचना। तुम सब की हर समस्या भूमि दीदी और मेरी मां जया कुलकर्णी सुनेगी और हर संभव मदद करेगी। अब चलता हुं। ज़िन्दगी रही तो फिर मिलेंगे। अलविदा नावेद, अलविदा असद। और हां, रात के 2 बजे तक बहुत से मेहमान पहुंच जाएंगे, ये जगह साफ कर देना और उनसे बताना, हम यहां कैसे लड़े और सरदार खान को लेकर गये।"
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भाग:–57





रूही:- बॉस 11:00 बजने वाले है। हम शेड्यूल से देरी से चल रहे है।


आर्यमणि:- हां चलो निकलते है यहां से। ओजल, इवान और अलबेली तुम तीनों यहां से जंगली कुत्तों को दूर जंगल में ले जाओ और सबको खत्म करके हमसे मीटिंग प्वाइंट पर मिलो।


"ठीक है बॉस" कहते हुए तीनों, कुत्तों को लेकर जंगल के ओर चल दिये। आर्यमणि अपने बैग खोला, सिल्वर की 2 हथकड़ी सरदार के हाथ और पाऊं में लगा दिया और मुंह पर टेप मारकर उस किले से निकालने लगा। किले से निकलने से पहले उसने माउंटेन एश साफ कर दिया ताकि ये लोग अपनी जगह घूम सके और सरदार को लेकर शिकारियों के पास आ गये।


सभी शिकारी वहीं बंधे हुए थे। आर्यमणि ने सबको बेहोश किया। रूही ने सभी शिकारियों को वुल्फबेन का इंजेक्शन लगा दी और आर्यमणि अपना क्ला उनके भी गर्दन के पीछे लगाकर उनकी याद से ट्विन कि तस्वीर को मिटाने लगा।…..


"क्या हुआ इतने आश्चर्य में क्यों पड़ गए।".. रूही आर्यमणि का चेहरा देखकर पूछने लगी।


याद मिटाने के दौरान 2 शिकारियों को आर्यमणि बड़े आश्चर्य से देख रहा था। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया पर रूही पूछने लगी। "कुछ नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने उनके जख्म को हील कर दिया और सरदार को लेकर मीटिंग प्वाइंट पर चल दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने रूही को, सभी शिकारियों को कहीं दूर छोड़कर मीटिंग पॉइंट पर पहुंचने बोला। मीटिंग पॉइंट यानी नागपुर–जबलपुर के नेशनल हाईवे की सड़क के पास का जंगल, जहां इनकी गाड़ी पहले से खड़ी थी। सबकुछ अपने शेड्यूल से चल रहा था। सरदार खान को पैक कर के वैन में लोड किया जा चुका था। लेकिन तभी वहां की हवा में विछोभ जैसे पैदा हो गया हो। विचित्र सी आंधी, जो चारों दिशाओं से बह रही थी और आर्यमणि जहां खड़ा था, वहां के 10 मीटर के दायरे में टकराकर विस्फोट पैदा कर रही थी।


धूल, मिट्टी और तरह–तरह के कण के साथ लड़की के बड़े–बड़े टुकड़े उड़ रहे थे। एक इंच, २ इंच के लकड़ी के टुकड़े किसी गोली की भांति शरीर में घुस रहे थे। आर्यमणि खतरा तो भांप रहा था, लेकिन एक साथ इतने खतरे थे कि किस–किस से बचे। पूरा शरीर ही लहू–लुहान हो गया था। आशानिय पीड़ा ऐसी थी की ब्लड पैक १० किलोमीटर की दूरी से पहचान चुके थे। आर्यमणि के पास हवा में विछोभ था, तो इधर पैक के दिल में विछोभ पैदा हो रहा था।


सभी पागलों की तरह अपने मुखिया के ओर भागे। तभी सभी के कानो में आर्यमणि की आवाज गूंजने लगी... "एक किलोमीटर के आस पास भी मत आना। अभी इनके तिलिस्मी हमले से मैं खुद जिंदा बचने की सोच रहा, तुम सब आये तो तुम्हे बचाने में कोई नही बचेगा। दिल की आग शांत करने का मौका मिलेगा। मेरे बुलावे का इंतजार करो।"


आर्यमणि ने उन्हें रुकने का आदेश तो दे दिया। रूही समझ भी गयि। लेकिन तीन टीन वुल्फ को कौन समझाए जो आर्यमणि के मना करने के बाद भी रुके ही नही। रूही 1 किलोमीटर के दायरे के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर पहुंची और वहां से मीटिंग पॉइंट को देखने लगी। वहां कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था। हां बस उसे 4 पॉइंट दिख रहे थे जहां रेत में लिपटे किसी इंसान के खड़े होने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसके पूरे शरीर से धूल निकल रहा हो। इसी बीच तीनों टीन वुल्फ लगभग उनके करीब पहुंच रहे थे। तीनों ही काफी तेजी से बवंडर की दिशा में ही बढ़ रहे थे।


रूही:– बॉस आप सुन सकते हो क्या? तीनों टीन वुल्फ कुछ ही सेकंड में आपके नजदीक होंगे।


आर्यमणि, किसी तरह अपनी टूटती आवाज में... "तुम 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही रहो।"


रूही, का कलेजा कांप गया.… "बॉस आप ठीक तो है न"


आर्यमणि:– अपना मुंह बंद करो और मुझे ध्यान लगाने दो.…


वक्त बहुत कम था। आर्यमणि न केवल घायल था बल्कि शरीर के अंग–अंग में इतने लड़की घुस चुके थे कि वह खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। वक्त था नही और शायद आर्यमणि आने वाले खतरे को भांप चुका था। फिर तो तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंजी। हवा यूं तो आवाज को गोल–गोल घूमाकर ऊपर के ओर उड़ाने के इरादे से थी, लेकिन उस तिलिस्मी बवंडर में इतना दम कहां था जो आर्यमणि की तेज दहाड़ को रोक सके। कलेजा थम जाये ऐसी दहाड़। आम इंसान सुनकर जिसके दिल की धड़कन रुक जाये ऐसी दहाड़। दहाड़ इतनी भयावह थी की बीच में विस्फोट करते दायरे से ही पूरी जगह बना चुकी थी।


गोल घूम रहे बवंडर के बीच से जैसे हवा का तेज बवंडर निकला हो। आर्यमणि की दहाड़ जैसे पूरे बवंडर को ही दिशा दे रही थी। २ किनारे पर खड़े शिकारी उस आंधी में बह गये। तीनों टीन वुल्फ और रूही जहां थे वहीं बैठ गये। उसके अगले ही पल जैसे जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे थे और देखते ही देखते पूरा वुल्फ पैक उस जड़ के बड़े से गोल आवरण के बीच सुरक्षित थे। आर्यमणि ने ऐसा चमत्कार दिखाया था, जिसे देखकर सभी शिकारी बस शांत होकर कुछ पल के लिये आर्यमणि को ही देखने लगे।


पहली बार वह किसी के सामने अपने भव्य स्वरूप में आया था। पहली बार शिकारियों ने उसे पूर्ण वुल्फ के रूप में देखा था। लेकिन उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि आर्यमणि किस तरह का वुल्फ था। आर्यमणि शेप शिफ्ट करने के साथ ही पहले तो अपनी दहाड़ से चौंका दिया उसके बाद जैसे ही अपने पंजे को भूमि में घुसाया, ठीक वैसे ही भूमि में हलचल हुयि, जिसका नतीजा तीनों टीन वुल्फ और रूही के पास देखने मिल रहा था। जड़ों के रेशे उन चारों को अपने आवरण के अंदर बड़ी तेजी से ढक रही थे।


प्रकृति की सेवा का नतीजा था। लागातार पेड़–पौधों को हिल करते हुये आर्यमणि अपने अंदर इतनी क्षमता उत्पन्न कर चुका था कि उसके पंजे भूमि में घुसते ही अंदर से जड़ों के रेशे तक को उगा कर अपनी दिमाग की शक्ति से उसे आकार दे सकता था। वुल्फ के शक्तियों की पहेली में एक ऐसी शक्ति जिसे सबसे पहले दुनिया की सबसे महान अल्फा हिलर फेहरिन (रूही की मां) ने अपने अंदर विकसित किया था। यह उन शिकारियों के साथ–साथ पूरे वुल्फ पैक के लिये भी अचंभित करने वाला कारनामा था।


लेकिन शिकारी तो यहां शिकार करने आये थे। पहले तो आर्यमणि को उलझाकर उसके पैक को नजदीक बुलाना था। फिर उसके बाद पहले आर्यमणि के पैक को खत्म करना था ताकि गुस्से में आर्यमणि का दिमाग ही काम करना बंद कर दे। उसके बाद बड़े ही आराम से मजे लेते हुये आर्यमणि को मारना था। किंतु उन्होंने थोड़ा कम आंका। बहरहाल आर्यमणि जो भी करिश्में दिखा रहा था शिकारियों को उसे सीखना में कोई रुचि नहीं थी। उनका शिकार तो इतनी बुरी तरह ऐसा घायल था की खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। ऊपर से अभी एक जगह बैठकर अपना ध्यान केंद्रित किये था। भला इस से अच्छा मौका भी कोई हो सकता था क्या?


२ केंद्र से अब भी हवा का बहाव काफी तेज था। सामने के 2 केंद्र को तो आर्यमणि अपनी दहाड़ से उड़ा चुका था, लेकिन पीछे से २ शिकारी भी अपने अद्भुत कौशल का परिचय दे रहे थे। शिकारियों के आपसी नजरों का तालमेल हुआ और अगले ही पीछे से हवा के बहाव से कई सारे तेज, नुकीले, पूरी धातु के बने भाले निकलने लगे। एक तो लगातार बहते रक्त ने आर्यमणि को पूर्ण रूप से धीमा कर दिया था ऊपर से पंजा भूमि के अंदर था। आर्यमणि जबतक अपना हाथ निकालकर आने वाले खतरे से पूरा बचता तब तक पीछे से शरीर को चिड़ते हुये ३ भला आगे निकल आया।


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आर्यमणि के प्राण ही जैसे निकल गये हो। आर्यमणि लगभग मरा सा जमीन पर गिरा। जड़ों के बीच में फसे टीन वुल्फ और रूही छटपटा कर रह गये। आर्यमणि के मूर्छित होकर गिरने के साथ ही वो लोग भी जमीन पर आ चुके थे। 8 शिकारी, जिन्हे सीक्रेट बॉडी ने भेजा था। जिन्हे ये लोग अपने थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी भी कहते है। दिख तो इंसानों की तरह ही रहे थे लेकिन इनकी क्षमता इन्हे सैतन से कम दर्जा नहीं देती। वायु नियंत्रण करना। वायु के बवंडर के बीच से नुकीले भाले और तीर का निकलना, जो सीधा सामने वाले के प्राण ही ले ले।


8 शिकारी, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने शिकार की स्थिति को जानने के लिये आगे बढ़े।…. कुछ दूर बढ़े ही थे कि पीछे से आवाज आयि.… "क्यों बे खजूर, मेरा दोस्त मरा या नही, सुनिश्चित करने जा रहा।"


आठों एक साथ मुड़े। पीछे संन्यासी शिवम और निशांत खड़ा था। उन सभी शिकारियों में से एक ने बोला... "हम तो केवल वुल्फ पैक को मारने आये थे। लेकिन क्या करे पीछे कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ सकते। दोनो को मार दो।"…


जैसे ही मारने के आदेश हुये, 4 शिकारी बिलकुल हवा मे लहराते हुये चार दिशाओं में पहुंच गये। इधर सन्यासी शिवम और निशांत दोनो सामने खड़े दुश्मन का पूर्ण अवलोकन भी कर रहे थे, साथ ही साथ आर्यमणि का हैरतंगेज कारनामा भी देख रहे थे, कि कैसे उसने मिट्टी में अपने क्ला को डाला और उसे जड़ों ने जकड़ना शुरू कर दिया। इधर सभी शिकारी अपना पूर्ण ध्यान इन्ही दोनो पर केंद्रित किये थे। चार कोनो से घेरने के बाद जैसे ही शिकारियों ने अपने दोनो हाथ फैलाये, शिवम टेलीपैथी के जरिए निशांत को वायु विघ्न के मंत्र पढ़ने के लिये कहने लगा। दोनो ने एक साथ वायु विघ्न के मंत्र पढ़े, लेकिन उन सभी शिकारियों पर मंत्रों का कोई प्रभाव ही नही पड़ा।


निशांत और संन्यासी शिवम दोनो ही आने वाले खतरे को भांप चुके थे इसलिए सबसे पहले तो पूर्ण सुरक्षा का मंत्र खुद पर ही पढ़ा। खुद को पूरी तरह से सुरक्षित किये ही थे की तभी उन दोनो के ऊपर वायु का विस्फोट सा होने लगा। उनके सुरक्षा घेरे के बाहर हो रहे हवा के विस्फोट को दोनो अपनी आखों से देख रहे थे। हवा के साथ आते लकड़ी के टुकड़े भी उनकी आंखों के सामने थे। निशांत हैरानी से अपनी आंखें बड़ी किये.… "क्या भ्रमित अंगूठी यहां काम आती।"


संन्यासी शिवम:– अभी तुम जिस हवा से भ्रम पैदा कर रहे हो, जब वही हवा हमला करने लगे तब कहना मुश्किल होगा। सुरक्षा मंत्र खोल कर जांच लो।


संन्यासी शिवम की बात मानकर निशांत ने अपनी एक उंगली बाहर की और एक सेकंड पूरा होने से पहले उसकी उंगली लहूलुहान थी.… "जान बच गयि सीनियर। क्या इसी हवा के हमले से आर्यमणि को घायल किये होंगे।"


संन्यासी शिवम:– हमारे लिये इन हमलों से ज्यादा जरूरी इस बात का मूल्यांकन करना है कि हमारे मंत्र इनपर बेअसर क्यों हुये?


निशांत:– किसी एक को पकड़कर आचार्य जी के पास ले चलते है।


संन्यासी शिवम:– हम तो लड़ नही सकते। अब उम्मीद सिर्फ आर्यमणि से ही है। उसके बाद ही आगे का कुछ सोच सकते है।


"ये क्या हो रहा है"…. निशांत हड़बड़ाते हुये पूछा... "भ्रमित अंगूठी के भरोसे मत रहना। हो सकता है हमारे मंत्र इनपर बेअसर है तो ये लोग सुरक्षा मंत्र के अंदर भी हमला कर सकते है।"….. निशांत जबतक "कैसे" पूछा तब तक दोनो ही हवा में खींचते हुये २ शिकारियों के निकट पहुंच चुके थे और अगले ही पल दोनो को तेज–तेज २ मुक्के पर गये। दोनो का जबड़ा हिल गया।


निशांत, हवा में ही गुलाटी खाते.… "सालों ने जबड़ा तोड़ दिया लेकिन एक बात का सुकून है खुद पर मंत्र पढ़ो तो उनके मार का असर कम हो जाता है।"…


संन्यासी शिवम:– हां सही आकलन। बाहुबल में भी ये लोग कमजोर नही। हाथियों जितनी ताकत रखते है।


सुरक्षा मंत्र के घेरे में बंद दोनो पर हवा की मार का असर तो नही हो रहा था इसलिए शिकारियों ने भी उन्हें मारने का निंजा तकनीक तुरंत ही विकसित कर लिया था। दोनो को अपने पास खींचते और जबरदस्त मुक्का जड़ देते। दोनो जैसे कोई पंचिंग बॉल बन गये थे। हवा में ही ये दोनो शिकारी के पास खींचे चले जाते और वहां से मुक्का खाकर हवा में ही लहराते हुये दूसरे शिकारी के पास। हर मुक्का पड़ने से पहले खुद के ऊपर ही मंत्र पढ़ लेते लेकिन फिर भी मुक्के का जोड़ इतना था की असर साफ दिख रहा था। दोनो की ही हालत खराब हो चुकी थी। यदि कुछ देर और ऐसा ही चलता रहा फिर तो निशांत और संन्यासी शिवम दोनो मंत्र जपने की हालत में नहीं होते।


इसके पूर्व जैसे ही निशांत और संन्यासी शिवम यहां पहुंचे, शिकारियों का पूरा ध्यान दोनो पर ही रहा। इधर जड़ों का बड़ा सा आवरण बनाकर आर्यमणि किसी तरह खड़ा हुआ। एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।


आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।


पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।


आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।


खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।


फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।


शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।


गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।


जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।


छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।


बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।


दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।


"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।


जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।


साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।


अब मैदान में इकलौता शिकारी बचा था। आर्यमणि उसे भी मार ही चुका होता लेकिन बीच में निशांत आ गया और उसे जिंदा छोड़ने के लिये कह दिया। आर्यमणि निशांत की बात मानकर उसे छोड़ दिया और संन्यासी शिवम की अर्जी पर उसे जड़ों की रेशों में पैक करके गिफ्ट भी कर दिया। आर्यमणि जैसे ही फुर्सत हुआ, बेचैनी के साथ निशांत का हाथ थाम लिया। आर्यमणि जैसे एक साथ उसका दर्द पूरा खींच लेना चाहता हो। लेकिन तभी निशांत अपना हाथ झटकते.… "नही दोस्त, यही सब चीजें तो मुझे मजबूत बनाएगी। मुझे अपनी क्षमता से हिल होने दो"….


आर्यमणि, निशांत की बात पर मुस्कुराते.… "चल ठीक है। शादी का क्या माहोल था।"


निशांत:– मैं जब निकला तब तक तो सबका खाना पीना चल रहा था। ये ले अपनी अनंत कीर्ति की किताब। जैसा तूने कहा था।


आर्यमणि:– मुझे लगा मात्र इस किताब के कारण कहीं तुमलोग पोर्टल न करो।


संन्यासी शिवम:– किताब के प्रति तुम्हारी रुचि अतुलनीय है। यदि तुम्हे कुछ खास लगी ये किताब, फिर तो वाकई में कुछ खास ही होगी। इसलिए जैसे ही हमे निशांत ने बताया हम तैयार हो गये।


आर्यमणि:– किताब लाने में कोई दिक्कत तो नही हुई।


निशांत:– बिलकुल भी नहीं। हम पोर्टल के जरिए सीधा कमरे में पहुंचे और किताब उठाकर सीधा तुम्हारे पास। लेकिन यहां तो अलग ही खेल चल रहा था। कौन थे ये लोग और कहां से आये थे?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नहीं। मेरा खुद पहली बार सामना हुआ है। वैसे तुम दोनो ने भी यहां सही वक्त पर एंट्री मारी है। वरना मेरे लिए मुश्किल हो जाता।


संन्यासी शिवम:– हम नही भी आते तो भी तुम प्रकृति की गोद में लपेटे जा चुके होते। उल्टा हम दोनो फंस गये थे।


निशांत:– अब कौन किसकी जान बचाया उसका क्रेडिट देना बंद करते है। अंत भला तो सब भला। वैसे क्या हैवानियत दिखाई तूने। मैने तो कई मौकों पर अपनी आंखें बंद कर ली।


अलबेली:– हां लेकिन हमने चटकारा मार कर मजा लिया।


आर्यमणि, निशांत से बात करने में इतना मशगूल हुआ कि उसे पैक के बारे में याद ही नहीं रहा। जैसे ही अलबेली की आवाज आयि, आर्यमणि थोड़ा अफसोस जाहिर करते.… "माफ करना निशांत की हालत देखकर तुम लोगों का ख्याल नही आया। तुम लोग ठीक तो हो न"


रूही:– बॉस आपने जो किया उसपर हम रास्ते में बहस करेंगे, फिलहाल अपनी ये वैन बुरी तरह डैमेज हो गयि है। इस से कहीं नहीं जा सकते।


आर्यमणि:– ठीक है तुम सभी सरदार खान के किले के पास वाला बैकअप वैन ले आओ। जब तक मैं इन दोनो से थोड़ी और चर्चा कर लेता हूं।


रूही:– ठीक है बॉस... वैसे एक बात तो मनना होगा, आपने क्या कमाल का चिड़ा है। फैन हो गई आपकी...


संन्यासी शिवम:– हां लेकिन आर्यमणि ने अपनी शक्ति का सही उपयोग किया, वरना इनका हवाई हमला वाकई खतरनाक था।


निशांत:– खतरनाक... ऐसा खतरनाक की भ्रमित अंगूठी के पूरे भ्रम हो ही उलझा दिया।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है।


निशांत:– हां सही कह रहा हूं। मुझ पर तो हवा का ही हमला हो गया भाई... अब जिस चीज से भ्रमित अंगूठी भ्रम पैदा करती हो, उसी को कोई हथियार बना, ले फिर क्या कर सकते है?


आर्यमणि:– मुझे क्या पता... तू ही बता क्या कर सकते हैं?


निशांत:– मैं बताता हूं ना, क्या कर सकते है... मुझे अभी तरह–तरह के भ्रमित मंत्र पर सिद्धि हासिल करना होगा। वैसे तूने भी तो हवा को कंट्रोल किया था?


आर्यमणि:– नही... मैंने हवा को नियंत्रण नही किया बल्कि अपने अंदर की दहाड़ वाली ऊर्जा को हवा में बदलकर बस उल्टा प्रयोग किया था.…


संन्यासी शिवम:– फिर तो प्रयोग काफी सफल रहा। इस बिंदु पर यदि ढंग से अभ्यास करो तो अपने अंदर की और कई सारी ऊर्जा को उपयोग में ला सकते हो...




आर्यमणि:– हां आपने सही कहा। वैसे लंबी–लंबी श्वास लेना मैने उसी पुस्तक के योगा से सीखा है, जो आपने दी थी। मुझे लगता है अब हमे चलना चाहिए...


निशांत, आर्यमणि के गले लगते.… "हां बिलकुल आर्य। अपना ख्याल रखना और नए सफर के शुरवात की शुभकामनाएं।


आर्यमणि:– और तुम्हे भी अपने नए सफर की सुभकामना... पूरा सिद्धि हासिल करके ही हिमालय की चोटी से नीचे आना..


दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।
Dangerous update
 

Tri2010

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2,007
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भाग:–58






दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।


रात साढ़े ११ (11.30pm) बजे तक जहां 2 बंदरों की लड़ाई चल रही थी, उसी बीच एक बिल्ली भी अपनी बाजी मारने की कोशिश में था, जिसका अंदाजा दोनो में से किसी पक्ष को सपने में भी नही आया होगा। शाम के 7.30 बजे धीरेन स्वामी सुकेश भारद्वाज के घर में घुसकर उसके सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुका था। स्वामी भी प्रहरी के उन शिकारियों में से था, जो सुकेश के निजी संग्रालय को घूम चुका था। कुछ वर्ष पूर्व भूमि के साथ वह भी 25 तरह के हथियार से लड़ा था किंतु अनंत कीर्ति की किताब नही खोल पाया था।


धीरेन स्वामी, सुकेश के सभी सुरक्षा इंतजाम को तोड़ने का पहले से इंतजाम कर चुका था, इसलिए उसे संग्रहालय में घुसने में कोई भी परेशानी नही हुई। हां लेकिन उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर) तब हो गया, जब उस संग्रहालय में कहीं भी अनंत कीर्ति की पुस्तक नही थी। स्वामी पागलों की तरह नही–नही करते कुछ देर तक वहीं बैठ गया। किस्मत ही कहा जा सकता है, क्योंकि आर्यमणि ने एक जैमर नाशिक रिजॉर्ट के आस–पास के इलाके में लगाया था, तो दूसरा जैमर सरदार खान के बस्ती के आस पास। और धीरेन स्वामी ने अपने लोगों को नाशिक एयरपोर्ट पर लगाया था, ताकि यदि कोई नाशिक से लौटे तो तुरंत उस तक सूचना पहुंच जाय। सवा 8 बजे धीरेन स्वामी को नाशिक एयरपोर्ट से खबर मिली कि आर्यमणि प्राइवेट जेट से नागपुर निकला है।


धीरेन स्वामी ने कुछ सोचते हुये, अपने कुछ लोगों को नागपुर एयरपोर्ट भेजा और इधर बड़ी सी वोल्वो बस मंगवाया। संग्रहालय के पूरे समान को समेटने और तेजी से भागने के लिये धीरेन स्वामी ने एक बड़ा सा वोल्वो बस को ही पूरी तरह से खाली करके उसमे समान लोड करने की पूरी व्यवस्था कर चुका था। वह अपने विचार में पूरा सुनिश्चित था, कि यदि आर्यमणि लौटकर अपने मौसा के घर आता है तो उसे मार दिया जायेगा। लेकिन उसे आश्चर्य तब हो गया जब पता चला की आर्यमणि एयरपोर्ट से सीधा सरदार खान के बस्ती के ओर निकला है।


धीरेन स्वामी ने अपने ३ लोगों को उसके पीछे लगा दिया और पहले इत्मीनान से सुकेश का संग्रहालय साफ करने लगा। उस बड़ी सी वोल्वो बस में उसने सुकेश भारद्वाज के पूरे संग्रहालय को ही समेट लिया। तकरीबन 400 किताब, जगदूगर की दंश, कई सारे आर्टिफैक्ट, 8–10 बंद बक्से और जितने भी हथियार थे, सबको अच्छे से पैक करके वोल्वो में लोड कर लिया। उसका काम लगभग 10.30 बजे तक समाप्त हो चुका था। काम खत्म करने के बाद धीरेन स्वामी अपने लोगों के साथ सीधा सरदार खान के बस्ती के ओर निकला।


नागपुर एयरपोर्ट से वैन लेकर आर्यमणि सरदार खान के बस्ती के ओर निकला यहां तक तो स्वामी को सूचना मिली थी, लेकिन उसके बाद उसके किसी आदमी की कोई खबर नहीं आयि। आयेगी भी कैसे, सरदार खान की बस्ती में जैमर जो लगा हुआ था। धीरेन स्वामी जैसे–जैसे सरदार खान के बस्ती के करीब जा रहा था, वैसे–वैसे डीजे की आवाज तेज सुनाई दे रही थी। धीरेन स्वामी अपने काफिले के साथ कुछ दूर आगे बढ़ा ही था कि रास्ते में उसके एक आदमी ने हाथ दिखाकर रोका.…


स्वामी अपने आदमी राजू से... "राजू क्या खबर है।"


राजू:– यहां अलग ही ड्रामा चल रहा है सर। आर्यमणि, पूर्णिमा की रात सरदार खान से लड़ा। और अभी–अभी अपनी टीम के साथ सरदार खान को लेकर अपने एक्जिट पॉइंट पर निकला है।


राजू और अपने २ साथियों के साथ आर्यमणि के पीछे आया था। यहां जब पहुंचा तभी उन तीनो को सिग्नल जैमर का भी पता चला। राजू जिस जगह खड़ा था, वहीं शुरू से खड़ा रहा। बाकी उसके २ आदमी पूरी जगह की पूरी जांच करने के बाद उसके पास आकर सूचना पहुंचाया। उन्ही में से एक आदमी ने सरदार खान और आर्यमणि की टीम के बीच खूनी जंग की बात बताई, तो दूसरा जंगल के दूसरे हिस्से में जांच करते हुये, हाईवे से कुछ दूर अंदर एक खड़ी वैन का पता लगाया था, जो आर्यमणि का एक्जिट पॉइंट था।


राजू पूरी सूचना स्वामी के साथ साझा कर दिया। स्वामी अपने सभी आदमी को गाड़ी में बिठाया और पूरा काफिला सरदार खान की बस्ती को छोड़ नागपुर–जबलपुर हाईवे पर चल दिया। काफिला जब आर्यमणि के एक्जिट पॉइंट के पास से गुजर रहा था तभी राजू ने स्वामी को बताया की.… "यहीं के सड़क से आधा किलोमीटर अंदर एक वैन खड़ी है। जिसका दूसरा संकरा रास्ता तकरीबन 400 मीटर आगे हाईवे के मोड़ से मिलता है। अपना एक आदमी वहीं खड़ा है।" स्वामी अपने काफिले को बिना रोके 400 मीटर आगे ले गया और रास्ते के दोनो ओर गाड़ी लगाकर पहले तो अपने आदमी से आर्यमणि के बारे में जानकारी लिया। पाता चला की आर्यमणि अब तक इस रास्ते को क्रॉस नही किया है। स्वामी राहत की श्वांस लिया और आर्यमणि को ब्लॉक करने का आदेश दे डाला।


आर्यमणि को ब्लॉक करने के आदेश देने के बाद अपने 8 आदमियों के साथ वह जंगल के अंदर मुआयना करने निकला। स्वामी जंगल के अंदर चलते हुये आर्यमणि के मीटिंग पॉइंट के ओर चल दिया। कुछ दूर आगे गया ही था कि ऊंचाई से टॉर्च की रौशनी का इशारा हुआ। यह इशारा स्वामी के तीसरे आदमी का था। स्वामी उसके पास पहुंचकर... "क्या खबर है।"…


उसका आदमी नाइट विजन वाला दूरबीन देते... "अभी–अभी आर्यमणि अपने वैन के पास पहुंचा था। लेकिन उसके बाद पता नही कहां से इतनी आंधी चलने लगी"…


स्वामी बड़े ध्यान से उस ओर देखने लगा। आर्यमणि की फाइट जैसे–जैसे बढ़ रही थी, स्वामी की आंखें वैसे–वैसे बड़ी हो रही थी। फिर तो सबका कलेजा तब दहल गया जब सबने आर्यमणि की दहाड़ सुनी, और उस दहाड़ को सुनने के बाद केवल स्वामी ही था, जो वहां से भाग नही लेकिन कलेजा तो उसका भी कांप ही गया था। बाकी उसके साथ आये 8 लोग ऐसे पागलों की तरह भागे की जंगल में पेड़ और पत्थरों से टकराकर घायल होकर वहीं बेहोश हो गये।


स्वामी फिर भी डटा रहा। अब तक जो भी उसने प्रहरी समुदाय में देखा और जितनी भी शक्तियां उसे चाहिए थी, यहां की लड़ाई देखने के बाद उसे एहसास हो गया की वह प्रहरी के मात्र दिखावे की दुनिया की शक्तियों के लिये पागल था, जबकि आंतरिक शक्तियां तो सोच से भी पड़े है। एक ही वक्त में उसके जहन में कई सारे सवाल खड़े हो गये। जैसे की वोल्फबेन से टेस्ट के बाद भी आर्यमणि मरा नही, जबकि वह एक वुल्फ है? उस से भी हैरानी तो तब हुई जब स्वामी ने क्ला और जड़ वाला कारनामा देखा। आर्यमणि से दूसरा पक्ष कौन लड़ रहा जो हवा को आंधी कैसे बना रहा था? ये किस तरह का शिकारी है जिसके पास अलौकिक शक्ति है? यह तब की बात थी जब आर्यमणि के ऊपर भाला चला था और वह लगभग मरा हुआ सा गिरा था। उसके बाद तो जैसे स्वामी ने अपना माथा ही पकड़ लिया, जब निशांत और संन्यासी शिवम वहां पोर्टल के जरिये पहुंचे। स्वामी पूरी घटना बड़े ध्यान से देख रहा था और शक्तियों के इतने बड़े भंडार को समझने की कोशिश कर रहा था।


इधर आर्यमणि सारा काम खत्म करने के बाद, नागपुर–जबलपुर हाईवे के रास्ते पर तो गया, लेकिन संकरा रास्ता जो आगे मोड़ पर हाईवे से मिलता था और जिस जगह पर स्वामी ने अपने लोग खड़े किये थे, उस रास्ते से न जाकर बल्कि पीछे का रास्ता लिया। आर्यमणि वैन को हाईवे के किनारे खड़ा करता.… "तुम लोगों को किसी और के होने की गंध नही मिली क्या"…


पूरा पैक एक साथ... "नही..."


आर्यमणि:– हम्मम... नागपुर एयरपोर्ट से ही मेरा पीछा हो रहा था और लड़ाई के दौरान मैंने धीरेन स्वामी को देखा था।


रूही:– फिर तो उसने सब देखा होगा...


आर्यमणि:– मुझे जंगल में धीरेन स्वामी के अलावा 8 और लोगों की गंध मिली थी। वो लोग अब भी जंगल में है, केवल धीरेन स्वामी को छोड़कर। वह संकरे रास्ते के दूसरे छोड़ से लगे हाईवे पर खड़ा है। तुम लोग अपने सेंस इस्तमाल करो और उन्हे सुनने की कोशिश करो।


रूही:– कानो में सांप, कीड़े, बुच्छू, पूरे बस में बैठे पैसेंजर, कुछ और लोग, तरह–तरह की आवाज एक साथ आ रही है... बॉस दिमाग फट जायेगा। बहुत सी आवाज एक साथ आ रही है...


आर्यमणि:– कोई और ध्यान लगा रहा है...


अलबेली:– एक बॉस उसके साथ कुछ चमचे हमारा बेसब्री से हाईवे के किनारे इंतजार कर रहे है। भारी हथियार, वोल्फबेन, हाई साउंड वेव रॉड... वेयरवॉल्फ को मारने के तरह–तरह के इंतजाम किये है।


रूही:– ये झूठ बोल रही है...


आर्यमणि:– तुम अब भी क्यों नही मान लेती की अलबेली सुनने में काफी फोकस है। सतपुरा के जंगल में जबकि उसने प्रूफ भी दे दिया, फिर भी तुम नही मानती..


रूही:– बॉस आप जूनियर के सामने मुझे नीचा दिखा रहे।


आर्यमणि:– रूही शांत जाओ और अभी यहां का एक्शन प्लान क्या होना चाहिए उसपर फोकस करो।


रूही:– आप जंगल जाकर वहां घात लगाये लोगों से निपटिये और उनकी याद मिटाकर हाईवे के दूसरे हिस्से पहुंचिये। जब तक हम चारो सीधा जाते हैं और हाईवे पर घात लगाये लोगों को बेहोश करके रखते हैं।


आर्यमणि अपना माथा पीटते... "कोई इस से बेहतर कुछ बतायेगा?"


रूही:– इसमें क्या बुराई है बॉस...


आर्यमणि, घूरती नजरों से देखा और रूही शांत।… "भैया जो जंगल में है, उनकी कुछ डिटेल"… नया पैक मेंबर इवान ने पूछा..


आर्यमणि:– कोई हथियार नही... बस अपने पोजिशन पर है।


इवान:– मैं और ओजल वैन को वापस संकरे रास्ते पर ले जाते है। रूही और अलबेली जंगल में फैल जायेगी। उनके जितने भी लोग जंगल में होंगे उनका ध्यान वैन पर होगा और इधर रूही और अलबेली को काफी आसानी होगी। आप आराम से सीधे जाओ, और वहां का मामला खत्म करके हमे सिग्नल देना। हम उन 8 लोगों को वैन में लोड करके ले आयेंगे।


आर्यमणि:– बेहतर योजना... हम इसी पर काम करेंगे। और जिस–जिस के चेहरे की भावना पर सवाल आये हैं वो चुपचाप अपना मुंह बंद कर ले, क्योंकि 12 बजने वाले है और हमने अब तक नागपुर नही छोड़ा है।


सब काम पर लग गये। रूही और अलबेली का काम बिलकुल ही आसान था, क्योंकि जिन्हे घात लगाये समझ रहे थे वो सब तो बेहोश थे। जबतक वैन में बेहोश लोगों को लोड किया गया, तबतक आर्यमणि भी अपना काम कर चुका था। हाईवे से नीचे उतरकर वह दौड़ लगाया और घात लगाये शिकारियों के ठीक पीछे पहुंच गया। हर किसी की नजर रास्ते पर ही थी, क्योंकि वैन के आने का सब इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि बड़ी ही सफाई से सबको बेहोश करता चला गया।

कुल २२ लोग थे वहां। 16 को तो उसने आसानी से बेहोश कर दिया क्योंकि वह फैले हुये थे। बचे 6 लोग साथ में बैठे थे, जिसमे से एक स्वामी भी था। आर्यमणि की वैन के आने का इंतजार स्वामी भी कर रहा था, लेकिन वैन को न आते देख स्वामी को कुछ–कुछ शंका होने लगी। किंतु स्वामी अब शंका करके भी क्या ही कर लेता। आर्यमणि उनके वोल्वो में ही पहुंच चुका था। फिर तो केवल वोल्वो की दीवार से लोगों के टकराने की आवाज ही आ रही थी।


आर्यमणि अपना काम खत्म करके, अपने पैक को सिग्नल देने के बाद स्वामी के सभी लोगों को एक जगह इकट्ठा किया और सबकी यादों से आखरी के कुछ वक्त की उन तस्वीरों को मिटाने लगा, जिनमे आर्यमणि की कोई चर्चा अथवा उसके या उसके पैक की कोई याद हो।स्वामी को छोड़कर सबके मेमोरी से छेड़ –छाड़ हो चुका था। जबतक रूही भी अपनी पूरी टीम को लेकर पहुंच चुकी थी। उन 8 लोगों की यादों से भी छेड़–छाड़ करने के बाद आर्यमणि स्वामी के पास पहुंचा।


स्वामी का गुजरा वक्त जैसे आर्यमणि को धोका सा लगा हो। भले ही उसने भूमि के साथ धोका किया था, लेकिन उसे आर्यमणि भी मेहसूस कर रहा था। स्वामी के लिये तो आर्यमणि ने कुछ और ही सोच रखा था। स्वामी की यादों से पूरी तरह से खेलने के बाद आर्यमणि सुकेश को एक और चोट देने की ठान चुका था। उसने वोल्वो से सभी तरह के हथियार को अपने वैन में लोड कर दिया और अपने वैन से सरदार खान को निकालकर वोल्वो में..... "चलो यहां का काम खत्म हुआ"…


स्वामी का गुजरा वक्त जैसे आर्यमणि को धोका सा लगा हो। भले ही उसने भूमि के साथ धोका किया था, लेकिन उसे आर्यमणि भी मेहसूस कर रहा था। स्वामी के लिये तो आर्यमणि ने कुछ और ही सोच रखा था। स्वामी की यादों से पूरी तरह से खेलने के बाद आर्यमणि सुकेश को एक और चोट देने की ठान चुका था। उसने वोल्वो से सभी तरह के हथियार को अपने वैन में लोड कर दिया और अपने वैन से सरदार खान को निकालकर वोल्वो में..... "चलो यहां का काम खत्म हुआ"…


रूही:– सब ठीक तो है न बॉस... तुम स्वामी की यादों में पिछले 10 मिनट में थे।


आर्यमणि:– कुछ नही बस आराम से स्वामी की याद देख रहा था। भूमि दीदी को इसने बहुत धोका दिया। चलो चलते हैं, हम शेड्यूल से काफी देर से चल रहे हैं।


रूही:– वोल्वो में स्वामी का एक आदमी बेहोश है, उसका क्या?


आर्यमणि:– उसे रहने दो, बड़े काम का वो आदमी है।


स्वामी नामक छोटे से बाधा को साफ करने के बाद पूरा अल्फा पैक हाईवे पर धूल उड़ाते जबलपुर के ओर बढ़ गया। वोल्वो अपने पूरी रफ्तार में थी। सभी कुछ किलोमीटर आगे चले होंगे, की सबसे पहले तो पूरा पैक ने उन्हे जड़ों की रेशों में जकड़ने की लिये लड़ने लगा। आर्यमणि सबको शांत करवाकर कुछ देर के लिये खामोश हुआ ही था कि सबके सवालों के बौछार फिर शुरू हो गये। "निशांत के साथ संन्यासी कौन था? ये क्ला को जमीन में घुसा कर कौन सा जादू किये? ये किस तरह का दरवाजा हवा में खुला जिसके जरिये निशांत और उसके साथ वाला आदमी गायब हो गया?"

बातचीत का लंबा माहोल चला जहां आर्यमणि ने एक–एक सवाल का जवाब पूरे विस्तार से साझा किया। हवा को नियंत्रण करने वाले शिकारियों के हमला करने के तरीकों को विस्तार में सुनकर अल्फा पैक काफी अचंभित था। सभी सवालों के जवाब के बाद आर्यमणि शांति से आंख मूंद लिया और अल्फा पैक अभी हुये हमले पर बात करते जा रहे थे। कुछ देर तक सबकी इधर–उधर की बातें सुनने के बाद, आर्यमणि सबको चुप करवाते.… "हमारे साथ में एक मेहमान को भी है। मैं जरा उस से भी कुछ सवाल जवाब कर लेता हूं, तुमलोग जरा शांत रहो। आर्यमणि सरदार का मुंह खोलकर… "हां सरदार कुछ सवाल जवाब हो जाये।"
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भाग:–59







आर्यमणि सबको चुप करवाते.… "हमारे साथ में एक मेहमान को भी है। मैं जरा उस से भी कुछ सवाल जवाब कर लेता हूं, तुमलोग जरा शांत रहो। आर्यमणि सरदार का मुंह खोलकर… "हां सरदार कुछ सवाल जवाब हो जाये।"


सरदार:- मेरा थोड़ा दर्द ले लो।


आर्यमणि:- हम्मम ! दर्द नहीं तुम्हारी याद ही ले लेते है सरदार।


आर्यमणि ने अपना क्ला सरदार के गर्दन में पिछले हिस्से में डाला और उसकी यादों में झांकने लगा। ऐसी काली यादें सिर्फ इसी की हो सकती थी। अपने जीवन काल में इसने केवल जिस्म भोगना ही किया था, फिर चाहे कामुक संतुष्टि हो या नोचकर भूख मिटान। आर्यमणि के अंदर कुछ अजीब सा होने लगा। उसने अपना दूसरा हाथ हवा में उठा दिया। रूही बस को किनारे खड़ी करते… "बॉस के हाथ में सभी अपने क्ला घुसाओ, जल्दी।"..


हर किसी ने तुरंत ही अपना क्ला आर्यमणि के हाथ में घुसा दिया। चूंकि उन सब के हाथ आर्यमणि के प्योर ब्लड में थे, इसलिए उन्हें काले अंधेरे नहीं दिखे केवल सरदार खान की यादें दिख रही थी। काफी लंबी याद जिसमे केवल वॉयलेंस ही था। लेकिन उसमें कहीं भी ये नहीं था कि सरदार नागपुर कैसे पहुंचा। आर्यमणि पूरी याद देखने के बाद अपना क्ला निकला। कुछ देर तक खुद को शांत करता रहा…. "इसकी यादें बहुत ही विचलित करने वाली हैं।"..


रूही:- और मेरी मां फेहरिन के साथ इसने बहुत घिनौना काम किया था। सिर्फ मेरी वजह से वो आत्महत्या तक नहीं कर पायि।


ओजल:- इसे मार डालो, जिंदा रहने के लायक नहीं। आई (भूमि) ने मुझे मेरा इतिहास बताया था, सुनने में मार्मिक लगा था। लेकिन अभी जब अपने जन्म देने वाली मां की हालत देखी, रूह कांप गया मेरा।


अलबेली ने तो कुछ कहा ही नहीं बल्कि बैग से उसने एक चाकू निकाला और सीधा सरदार के सीने में उतारने की कोशिश करने लगी। लेकिन वो चाकू सरदार के सीने में घुसा नहीं।


आर्यमणि तेज दहाड़ा… सभी सहम कर शांत हो गये… "इसकी मौत तो आज तय है। रूही तुम गाड़ी आगे बढ़ाओ। सरदार हमने सब देखा। मै बहुत ज्यादा सवाल पूछ कर अब अपना वक़्त बर्बाद नहीं करूंगा और ना ही तुम्हे साथ रखकर अपने पैक का खून जलाऊंगा.... कुछ कहना है तुम्हे अपने आखरी के पलों में.."


सरदार खान:- "मुझे मेरे बेटे ने कमजोर कर दिया और मेरे शरीर में पता नहीं कौन सा जहर उतार दिया। इतना सब कुछ देखने के बाद मैं समझ गया की चौपाल पर तुमने सही कहा था। मेरे अंदर जहर उन्हीं लोगों का दिया है जिसने मुझे बनाया और वो मेरी ताकत मेरे बेटे के अंदर डालकर अपनी इमेज साफ रखना चाहते थे। जैसा कि तुम जानते हो मेरी याद से छेड़छाड़ किया गया है, और वो सिर्फ इसी दिन के लिये किया गया था। तुम उनकी ताकत का अंदाजा भी नहीं लगा सकते। हम जैसे प्रेडेटर का वो लोग मालिक है और मेरे मालिको का तुम एक बाल भी बांका नहीं कर सकते। उसके सामने कीड़े मकोड़े के बराबर हो तुम लोग। वो अपेक्स सुपरनैचुरल है, मै एक बीस्ट और तुम लोग की तो कोई श्रेणी ही नहीं।"

"अभी जिनसे तुम्हारा सामना हुआ था, वो थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी थे, जिसे तुमने बड़ी मुश्किल से झेला। तब क्या होगा जब सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी का सामना करोगे। इसके आगे तो तुम्हारे बाप ही है, जिन्हे पूजनीय सिवा छोड़कर कुछ और कह ही नही सकते। वो आयेंगे तुम्हे, तुम्हारे पैक सहित समाप्त करेंगे और चलते बनेंगे। सिवाय मुंह देखने के और कुछ न कर पाओगे"


रूही:- सुन बे घिनौने से जीव, तूने ये जिस भी पूजनीय तोप का नाम लिया है... वो हमे मारे या हम उसे, ये तो भविष्य की बातें है, जिसे देखने के लिये तू नही जिंदा रहेगा। बॉस क्या टाइम पास कर रहे हो, वैसे भी ये कुछ बताने वाला है नहीं, मार डालो।


आर्यमणि:- इसे खुद भी कुछ पता नहीं है रूही, जितना जानता था बता चुका। अपने मालिको का गुणगान कर चुका। खैर जिसके बारे में जानते नही उसकी चिंता काहे... बस को साइड में लगाओ, इसे मुक्ति दे दिया जाय…


सरदार खान को हाईवे से दूर अंदर सुनसान में ले जाया गया। उसके हाथ और पाऊं को सिल्वर हथकड़ी से बांधकर उसके मुंह को सिल्वर कैप से भर दिया गया, जिसमें पाइप मात्र का छेद था। उसके जरिये एक पाइप उसके मुंह के अंदर आंतरियों तक डाल दिया गया। नाक के जरिये भी 2 पाइप उतार दिए गये। हाथ और पाऊं को सिल्वर की चेन में जकड़कर पेड़ से टाईट बांध दिया गया।…. "चलो ये तैयार है।"


तीन ट्यूब उसके शरीर के अंदर तक थे। एक ट्यूब से पहले धीरे–धीरे उसके शरीर में लिक्वड वुल्फबेन उतारा जाने लगा। दूसरे पाइप से लिक्वड मर्करी और तीसरे पाइप से पेट्रोल। 8 लीटर लिक्वड वुल्फबेन पहले गया। लगभग उसके 15 मिनट बाद 6 लीटर पेट्रोल और सबसे आखरी में 4 लीटर लिक्वड मर्करी।


रूही:- सब डाल दिया इसके अंदर।


आर्यमणि:- पेट्रोल डालते रहो और, इसके चिथरे उड़ाने है।


रूही:- बॉस, 12.30 बज गया है, लोग हमारी तलाश में निकल रहे होंगे।


आर्यमणि:- एक का कॉल नहीं आया है अभी तक, मतलब अभी सब मामला समझने कि कोशिश ही कर रहे होंगे।


"मुझसे और इंतजार नहीं होता, आप तो हमे पकाये जा रहे हो। ये हुआ रावण दहन को तैयार। सब ताली बजाकर हैप्पी दशहरा कहो"… रूही जल्दी मे अपनी बात कही और सभी ने पेट्रोल पाइप में आग लगा दिया। अंदर ऐसा विस्फोट हुआ कि आर्यमणि के पूरे शरीर पर मांस के छींटे थे। उसका शरीर विस्फोट के संपर्क में आ चुका था और हालत कुछ फिल्मी सी हो गई थी। चेहरे की चमरी जल गई। कपड़ों में आग लगना और फिर बुझाया गया। आर्यमणि की हालत कुछ ऐसी थी.… आधा चेहरा जला। आधे जले कपड़े और पूरे शरीर पर मांस के छींटे के साथ शरीर पर विस्फोट के काले मैल लगे थे।


आर्यमणि बदहाली से हालात में चारो को घूरने लगा। आर्यमणि को देखकर चारो हसने लगे। रात के तकरीबन पौने १ (12.45am) बज रहे थे, आर्यमणि के मोबाइल पर रिंग बजा… "शांत हो जाओ, और तुम सब भी सुनो।"… कहते हुए आर्यमणि ने फोन स्पीकर पर डाला..


पलक:– हेलो...

आर्यमणि:– हां पलक...

पलक:– उम्म्मआह्ह्ह्ह... लव यू मेरे किंग। नागपुर पहुंचकर अब तक गुड न्यूज नही दिये।

आर्यमणि:– मुझे लगा गुड न्यूज तुम्हे देना है। हमने एक साथ इतने शानदार कारनामे किये की मुझे लगा तुम उम्मीद से होगी।

पलक, खून का घूंट अपने अंदर पीती.… "मजाक नही मेरे किंग। प्लीज बताओ ना...


आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक खोलने की कोशिश तो की लेकिन जब वह नही खुला तब घूमने निकल आया। अब किस मुंह से कह देता की मैं असफल हो गया।


"कहां हो अभी तुम मेरे किंग।"… पलक की गंभीर आवाज़..

आर्यमणि जोड़ से हंसते हुये.… "राजा–रानी.. हाहाहा.. तुम्हे ये बचकाना नही लग रहा है क्या?"

पलक चिढ़ती हुई... "कहां हो तुम इस वक्त आर्य"…

आर्यमणि:– सरदार खान के चीथड़े उड़ा रहा था। तुम इतनी सीरियस क्यों हो?

पलक, लगभग चिल्लाती हुई…. "सरदार खान तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं थी, तुम्हारे वॉयलेंस के कारण संतुलन बिगड़ चुका है। तुमने यह अच्छा नहीं किया।"


आर्यमणि:- अच्छा नही किया। पलक एक दरिंदे को मैंने मारा है, जिसने मेरे पैक के साथ बहुत ही अत्याचार किया था। रेपिस्ट और मडरर के लिये इतना भी क्या गुस्सा। मैने तुमसे प्यार किया लेकिन शायद तुमने मुझे कभी समझा ही नहीं। मेरे साथ रहकर तुमने इतना नहीं जाना की मेरे डिक्शनरी में अच्छा या बुरा जैसा कोई शब्द नहीं होता। अब जो कर दिया सो कर दिया। रत्ती भर भी उसका अफसोस नहीं...


पलक:- अनंत कीर्ति की किताब कहां है।


आर्यमणि:- वो मुझसे खुलते-खुलते रह गई। जब मै खोल लूंगा तो किताब का सारांश पीडीएफ बनाकर मेल कर दूंगा।


पलक:- दुनिया में किसी के लिए इतनी चाहत नही हुयि, जितना मैने तुम्हे चाहा था आर्य। लेकिन तुमने अपना मकसद पाने के लिए मुझसे झूट बोला। तुमने मेरे साथ धोका किया है आर्य, तुम्हे इसकी कीमत चुकानी होगी।


आर्यमणि:- प्यार तो मैने भी किया था पलक। यदि ऐसा न होता तो आर्यमणि का इतिहास पलट लो, वो किसी को इतनी सफाई नही दे रहा होता। शायद अपनी किस्मत में किसी प्रियसी का प्रेम ही नही। और क्या कही तुम अपने मकसद के लिये मैंने तुम्हारा इस्तमाल किया। ओ बावड़ी लड़की, सरदार खान को मारना मेरा मकसद कहां से हो गया। उसके सपने क्या मुझे बचपन से आते थे? यहां आया और मुझे एक दरिंदे के बारे में पता चला, नरक का टिकिट काट दिया। ठीक वैसे ही एक दिन मै मौसा के हॉल का टीवी इधर से उधर कर रहा था, पता नहीं क्या हो गया उस घर में। मौसा ने मुझे एक फैंटेसी बुक दिखा दी।"

"अब जिस पुस्तक का इतना शानदार इतिहास हो उसे पढ़ने के लिये दिल में बेईमानी आ गयी बस। यहां धूम पार्ट 1, पार्ट 2, और पार्ट 3 की तरह कोई एक्शन सीरीज प्लान नहीं कर रहा था। लगता है तुम लोग किसी मकसद को साधने के लिए इतनी प्लांनिंग करते हो। जैसा की शायद सतपुरा के जंगल में हुआ था। अपने से इतना नहीं होता। अब तो बात ईगो की है। मै ये बुक अपने पास रखूंगा। इस किताब की क्या कीमत चुकानी है, वो बता दो।"


पलक:- तुम्हारे छाती चिड़कर दिल बाहर निकालना ही इसकी कीमत होगी। तुमने मुझे धोका दिया है। कीमत तो चुकानी होगी, वो भी तुम्हे अपनी मौत से।


आर्यमणि:- "तुम्हे बुक जाने का गम है, या सरदार के मरने का या इन दोनों के चक्कर में तुम्हारे परिवार ने मुझसे नाता तोड़ने कह दिया उसका गम है, मुझे नहीं पता। अब मैं ये बुक लेकर चला। वरना पहले मुझे लगा था, सरदार को मारकर जब मैं वापस आऊंगा तो तुम मुझे प्रहरी का गलेंटरी अवॉर्ड दिलवा दोगी। तुमने तो किताब चोर बाना दिया। खैर, तुमने जो मुझे इस किताब तक पहुंचाने रिस्क लिया और मुझ पर भरोसा जताया उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया। मैं तुम्हारे भरोसे को टूटने नहीं दूंगा। एक दिन यह किताब खोलकर रहूंगा।"

"मैंने और मेरे पैक ने सरदार को खत्म किया। तुम्हारे 10 प्रहरी को बचाया। शहर पर एक बड़ा हमला होने वाला था, जिसे ये लोग जंगली कुत्तों का अटेक दिखाते, उस से शहर को बचाया। बिना कोई सच्चाई जाने तुमने दुश्मनी की बात कह दी। मै चला, अब किसी को अपनी शक्ल ना दिखाऊंगा। तबतक, जबतक मेरा दिल ना जुड़ जाये। और हां देवगिरी भाऊ को थैंक्स कह देना। उन्होंने जो मुझे 40% का मालिक बनाया था, वो मै अपने हिस्से के 40% ले लिया हूं। जहां भी रहूंगा उनके पैसे से लोक कल्याण करूंगा। रूही मेरे दिल की फीलिंग जारा गाने बजाकर सुना दो।"


पलक उधर से कुछ–कुछ कह रही थी लेकिन आर्यमणि ने सुना ही नहीं। उपर से रूही ने… "ये दुनिया, ये महफिल, मेरे काम की नहीं"….. वाला गाना बजाकर फोन को स्पीकर के पास रख दिया।


आर्यमणि:- सरदार की बची लाश को क्रॉस चेक कर लिया ना? ऐसा ना हो हम यहां लौटकर आये और ये जिंदा मिले। इसकी हीलिंग पॉवर कमाल की है।


रूही:- हम सबने चेक कर लिया है बॉस, तुम भी सुनिश्चित कर लो।


ओजल:- ओ ओ.. पुलिस आ रही है।


आर्यमणि:- अच्छा है, वो आरी निकलो। पुलिस वालों से ही लाश कटवाकर इसकी मौत सुनिश्चित करेंगे।


1 एसआई, 1 हेड कांस्टेबल और 4 कांस्टेबल के साथ एक पुलिस जीप उनके पास रुकी। इससे पहले कि वो कुछ कहते… "जेल ले जाओगे या पैसे चाहिए।"..


एस आई… "कितने पैसे है।"..


आर्यमणि:- मेरे हिसाब से किये तो 20 लाख। और यहां से आंख मूंदकर केवल जाना है तो 2 लाख। जल्दी बताओ कि क्या करना है।


एस आई:- ये अच्छा आदमी था, या बुरा आदमी।


आर्यमणि:- कोई फर्क पड़ता है क्या?


एस आई:- अच्छा आदमी हुआ तो 1 करोड़ की मांग होगी, वो क्या है ना जमीर गवाही नहीं देगा। बुरा आदमी है तो 20 लाख बहुत है, पार्टी भी कर लेंगे।


रूही:- ये मेरा बाप था। नागपुर बॉर्डर पर इसकी अपनी बस्ती है, सरदार खान नाम है इसका।


एस आई:- 50% डिस्काउंट है फिर तो। साले ने बहुत परेशान कर रखा था... यहां के कई गांव वालों को गायब किया था।


आर्यमणि:- इसकी लाश को काटो। रूही 50 लाख दो इन्हे। सुनिये सर इसकी वजह से जिन घरों की माली हालात खराब हुई है उन्हें मदद कर दीजिएगा।


एस.आई, लाश को बीच से कई टुकड़े करते…. "इतनी ज्यादा दुश्मनी थी, की मरने के बाद चिड़वा रहे। खैर तुमलोग अच्छे लगे। लो एक काम तुम्हारा कर दिया, अब तुम सब निकलो, मै केवल विस्फोट का केस बनाता हूं, और इसकी लाश को गायब करता हूं।


आर्यमणि, एस.आई कि बात मानकर वहां से निकल गया। उसके जाते ही एस.आई, सरदार खान के ऊपर थूकते हुए…. "मैं तो यहीं था जब तू लाया गया। आह दिल को कितना सुकून सा मिला। चलो ठिकाने लगाओ इसको और इस जगह की रिपोर्ट तैयार करके दो।"..


इधर ये सब जैसे ही निकले…. "इन लोगो के पास हमारे यहां आने की पूर्व सूचना थी ना। लगा ही नहीं की ये किसी के फोन करने के कारण आये हैं।".. रूही ने अपनी आशंका जाहिर की


आर्यमणि:- सरदार अपनी दावत के लिये यहीं से लोगो को उठाया करता था। ये थानेदार यहीं आस-पास का लोकल है, जिसको पहले से काफी खुन्नस थी। इसकी गंध मैंने 20 किलोमीटर पहले ही सूंघ ली थी, जब हम एमपी में इन किये। ये बॉर्डर पर ही गस्त लगा रहा था। खैर समय नहीं है, चलो पहले निकला जाय।


इन लोगो ने वोल्वो को एमपी के एक छोटे से टाउन सिवनी तक लेकर आये, जो नागपुर और जबलपुर के हाईवे पर पड़ने वाला पहला टाउन था। वोल्वो एक वीराने में लगा जहां उसके समान को ट्रक में लोड किया गया और वाया बालाघाट (एमपी), गोंदिया (महाराष्ट्र) के रास्ते उसे कोचीन के सबसे व्यस्त पोर्ट तक पहुंचाने की वयवस्थ करवा दी गयि थी। वोल्वो खाली करवाने के तुरंत बाद जबलपुर, प्रयागराज के रास्ते दिल्ली के लिये रवाना हो गयि। वोल्वो पर लाये स्वामी के बेहोश आदमी के दिमाग के साथ आर्यमणि ने थोड़ी सी छेड़–छाड़ किया और उसे 40 लाख के बैग के साथ वहीं वीराने में छोड़ दिया। वोल्वो एक अतरिक्त काम था, जिसे करवाने के लिये थोड़ी मेहनत करनी पड़ी थी। बाकी चकमा देने का जो भी काम था, वह वोल्वो के खाली होने के साथ ही चल रहा था।


वोल्वो का काम समाप्त करने के उपरांत वुल्फ पैक सिवनी टाउन से जबलपुर के रास्ते पर तकरीबन 20 किलोमीटर आगे तक दौड़ लगाते पहुंचे, जहां इनके लिये 2 स्पोर्ट कार पहले से खड़ी थी। एक कार में रूही और दूसरे में आर्यमणि, और दोनो स्पोर्ट कार हवा से बातें करती हुयि जबलपुर निकली। सभी के मोबाइल सड़क पर थे। लगभग रात के 2 बजे तक इनका लोकेशन सबको मिलता रहा, उसके बाद अदृश्य हो गये।
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भाग:–60





नाशिक रात के लगभग 12 से 12.10 बजे के बीच जब पलक के भाई राजदीप के सुहागरात स्वीट की घटना प्रकाश में आयी, पलक का दिमाग शन्न हो गया और उसे धोके की बू आने लगी। पलक समझ चुकी थी, जिस सुहागरात कि सेज को आर्यमणि ने अपना बताया था, दरअसल वो जान बुझकर उसे यहां लेकर आया था। पलक के दिमाग में एक के बाद एक तस्वीर बनती जा रही थी। जिसमें आर्यमणि के साजिश और झूठ का एहसास पलक को होता जा रहा था।


आर्यमणि के ऊपर शक की सुई तो इस बात से ही अटक गयी की वो जान बूझकर मुझे फर्स्ट नाईट में शॉक्ड देने वाला था और पलक को रह-रह कर ये ख्याल आता रहा.. "भाई की सुहागरात कि सेज पर मुझे ही इस्तमाल कर लिया।".. गुस्सा अपने सातवे आसमान पर था लेकिन पलक किसी से अपना गुस्सा कह भी नहीं सकती थी।


धोखा हो चुका था और पलक को समझ में आ चुका था कि आर्यमणि अब नागपुर में नहीं रुकने वाला, कहीं गायब हो रहा होगा। पलक कुछ कर नहीं सकती थी, क्योंकि उसे शक किस बात पर हुआ यह कैसे बताती। 10 मिनट के बाद पलक को बताने की एक कड़ी मिली जब सिग्नल जैमर का किस्सा सामने आया। और एक बार सिग्नल जैमर का किस्सा सामने आया, तब तो पलक का दिमाग और भी ज्यादा घूम गया। क्योंकि बहुत सी योजना के लिये जरूरी दिशा निर्देश तो आर्यमणि के नागपुर पहुंचने और अनंत कीर्ति के पुस्तक खुलने के बाद की थी।


रात के तकरीबन साढ़े 12 बजे पलक के गाल पर तमाचा पड़ा, जिसे देखकर जया, केशव और भूमि अपने भाव जाहिर करते, उसके लिए मुस्कुराकर अफ़सोस कर रहे थे। थप्पड़ पड़ने के कुछ देर बाद पलक ने आर्यमणि को कॉल लगाया और दोनो के बीच एक लंबे बात चित के बाद….


सुकेश:- पलक को कुछ कहने से पहले हमे खुद में भी समीक्षा करनी चाहिए... आर्यमणि अपनी इमेज साफ करके नागपुर से गया है। हम जैसों से धोका हो गया फिर तो पलक की ट्रेनिंग पीरियड है। इस से पहले की वो हमारी पकड़ से बाहर निकले, चारो ओर लोग लगा दो।


उज्जवल:- प्लेन रनवे पर खड़ी हो गयी है, हमे नागपुर चलना चाहिए।


दूल्हा और दुल्हन के साथ कुछ लोगों को छोड़कर सब लोग देर रात नागपुर पहुंचे। रात के 1 बजे तक चारो ओर लोग फैल चुके थे। आर्यमणि को उसके पैक के साथ जबलपुर हाईवे पर देखा गया था, इसलिए रात के २ बजे तक जबलपुर के चप्पे–चप्पे पर पुलिस को ही, तीनो आर्यमणि, रूही और अलबेली को ढूंढने के काम पर लगा दिया गया था। सीक्रेट प्रहरी को ओजल और इवान के विषय में भनक भी नही थी। और शायद इसी दिन के लिये ओजल और इवान की पहचान छिपाकर रखी गयी थी।


२ बिगड़ैल टीनेजर स्पोर्ट कार को उड़ाते हुये जबलपुर में दाखिल हुये। जबलपुर सीमा के पास आर्यमणि, रूही और अलबेली उतर गये। तीनों ही दौड़ लगाते जबलपुर के एक छोटे से प्राइवेट रनवे पर खड़े थे। पीछे से ओजल और इवान भी उसके पास पहुंच गये। उस प्राइवेट रनवे से दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलौर, हैदराबाद, चेन्नई और केरल के लिये 7 प्राइवेट प्लेन ने उड़ान भरा। कुछ ही घंटो में पूरा अल्फा पैक कोचीन के डॉकयार्ड पर था। एक मालवाहक बड़ी सी शिप खड़ी थी जिसके अंदर तीनो अपना डेरा जमा चुके थे। लगभग 45 घंटे बाद सुकेश के घर से लूटे समान के साथ पूरा वुल्फ पैक विदेश यात्रा पर रवाना हो चुके थे।


जबलपुर पुलिस उस रात आर्यमणि, रूही और अलबेली को ढूंढते रहे, लेकिन जिन ३ लोगों के ढूंढने का फरमान जारी हुआ था, पुलिस को उनके निशान तक नही मिले। नाशिक से रात के तकरीबन 2.30 बजे सभी लोग नागपुर एयरपोर्ट पर लैंड कर चुके थे। भूमि, जया और केशव को मीनाक्षी ने भूमि के ससुराल ही भेज दिया। राकेश नाईक, जो न जाने कबसे आर्यमणि और उसके परिवार की जासूसी करते आया था, उसे जब सुकेश ने किनारा करते उसके घर भेज दिया, तब बेचारे का दिल ही टूट गया। उसे लगा "इतने साल तक इन लोगों के करीब रहा लेकिन आज मुझे किनारे कर दिया"…


खैर पारिवारिक कहानी को इस वक्त बहुत ज्यादा तावोज्जो देने की हालत में सीक्रेट बॉडी नही थे। वो लोग तो रास्ते से ही अपने हर आदमी से संपर्क कर रहे थे। हर पूछ–ताछ में एक खबर सुनने को आतुर... "आर्यमणि मिला क्या?" जिसका जवाब किसी के पास नही था। सिर पकड़कर बैठने की नौबत तब आ गयी, जब सुकेश अपने घर पहुंचा। पूरा संग्रहालय को ही खाली कर दिया गया था। सुकेश ही अकेला नहीं, बल्कि पूरा सीक्रेट प्रहरी ही बिलबिला गया। अनंत कीर्ति की किताब जितनी जरूरी थी, उस से कहीं ज्यादा जरूरी और बेशकीमती खजाना लूट चुका था।


इनके सैकड़ों वर्षों की मेहनत जैसे लूटकर ले गये थे। तकरीबन 12 सीक्रेट बॉडी प्रहरी सुकेश के घर पर थे और सभी सुकेश का गला दबाकर उसे हवा में लटकाये थे। सबका एक ही बात कहना था, "सुकेश और उज्जवल भारद्वाज ने जो भी सुरक्षा इंतजामात किये वो फिसड्डी साबित हुये।" आर्यमणि उसकी सोच से एक कदम आगे निकला जिसने न सिर्फ अनंत कीर्ति की किताब बल्कि घर से उन कीमती सामानों की लूट ले गया, जिनके जाने से कलेजे में इतनी आग लगी थी कि सुकेश को जान से मारने पर ही तुले थे। सबसे आगे तो अक्षरा ही थी।


जयदेव, बीच बचाव करते.… "आपस में लड़ने का वक्त नहीं है। किनारे हटो।"


सुकेश की पत्नी मीनाक्षी भारद्वाज... "चुतिये को मार ही डालो। मैं कहती रह गयी की ये लड़का आर्यमणि रहश्यमयी है। थर्ड लाइन या सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी ही क्यों... अपनी एक टीम के साथ रुकते है। लेकिन इस चुतिये से बड़ी–बड़ी बातें बनवा लो।"


अक्षरा:– सही कहा मीनाक्षी ने। क्या कहा था इसने... एक तरफ अनंत कीर्ति की किताब खुलेगी, दूसरे ओर इसे सरदार खान के इलाके में मरने भेज देंगे। वहां से बच गया तो थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी इनका इंतजार कर रहे होगे। हरामि ने एक बार भी नही सोचा की कहीं ये लड़का हमारे सारे इंतजाम भेद देगा तब।


तेजस:– ये कैसा इंतजाम किये थे। अनंत कीर्ति की पुस्तक कब गायब हुयि, संताराम जैसे सेकंड लाइन शिकारी की टुकड़ी को पता न चला। इसका मतलब समझते हो। तुम तभी आर्यमणि से हार गये जब उसने किताब को यहां से हटाकर अपनी जगह पर रखा। उसकी जगह पर उसके इंतजाम थे। नाक के नीचे से वो किताब ले गया। अपनी जगह से किताब को तो हटाये ही, साथ में सांताराम और उसकी पूरी टीम को भी हटा दिये। आर्यमणि अपनी जगह के साथ–साथ तुम्हारे जगह में भी सेंध लगा गया।


जयदेव:– पूरी रिपोर्ट आ गयी है। इस घर में चोरी आर्यमणि ने नही बल्कि स्वामी और उसके लोगों ने किया था। यहां सीसी टीवी कॉम्प्रोमाइज्ड हुआ था, लेकिन वो गधा भूल गया की रास्ते में कयि सीसी टीवी लगे थे। आर्यमणि कभी नही भाग पता। अनजाने में स्वामी ने उसकी मदद की है।


सभी 11 सीक्रेट बॉडी के सदस्य टुकटुकी लगाये एक साथ.… "कैसे"


जयदेव:– क्योंकि वो स्वामी था, जो थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी से लड़ा और सभी 8 को गायब कर दिया।


सुकेश:– क्या स्वामी???


जयदेव:– हां स्वामी... उसकी यादों को खंगाला गया। वह जादूगर महान की दंश के सहारे अपने सभी थर्ड लाइन शिकारी को हराया। और जब यह लड़ाई चल रही थी तब उसका एक आदमी वोल्वो चुराकर भाग गया। वोल्वो हमारे कब्जे में है, लेकिन उसके अंदर का समान कहीं गायब है।


सुकेश:– चमरी खींच लो और उनसे समान का पता उगलवाओ...


जयदेव:– पता... हां ये सबसे ज्यादा रोचक है। जो आदमी वोल्वो और समान लेकर भागा उसने 40 लाख रूपये में वोल्वो और उसके अंदर के समान का सौदा कर लिया। वो 40 लाख रूपये लेकर गायब। जिससे उसने सौदा किया उसने वोल्वो को 20 लाख रूपये में बेच दिया और अंदर का समान लेकर गायब।


सुकेश:– हां तो जो समान लेकर गायब हुआ, उस आदमी को पकड़ा या नही।


जयदेव:– शायद उसे पता था कि माल चोरी का था। उसने कयि वैन छोटी सी जगह सिवनी से बुक किये। हर वैन में समान लोड किया गया। नागपुर, जबलपुर, तुमसर, बरघाट, छिंदवाड़ा, बालाघाट, पेंच नेशनल पार्क और ऐसे छोटे–बड़े हर जगह मिलाकर 30 पार्सल वैन भिजवाया। अब तक 10 वैन मिले जिनमे रद्दी के अलावा कोई चीज नहीं मिली। बाकी के 20 वैन भी ट्रेस हो जायेंगे, लेकिन मुझे नही लगता की उनमें भी कुछ मिलने वाला है।


उज्जवल अपने माथे पर हाथ पीटते.… "साला ये किस मकड़जाल में फसे है। उस वर्धराज के पोते को ढूंढे या फिर अपने समान को, जो उस स्वामी की वजह से लापता हो गया। मेरे खून की प्यास बढ़ती जा रही है। सबसे पहले इस कम अक्ल सुकेश को मेरे नजरों के सामने से हटाओ, जिसे हर समय लगता है कि हर योजना इसके हिसाब से चल रहा। और वो चुतीया देवगिरी कहां है, जिसने स्वामी को नागपुर भेजा। क्या हमारी लंका लगाने ही भेजे थे। एक वो हरामजदा वर्धराज का पोता कम था जिसने रीछ स्त्री वाला काम खराब कर दिया जो ये दूसरा पहुंच गया।"


सुकेश:– मैं अपनी गलती की जिम्मेदारी लेता हूं। आज से तुम लोगों जिसे मुखिया चुन लो वो मेरा भी मुखिया होगा।


सभी सदस्य एक साथ.… "जयदेव ही हमारा मुखिया होगा। जयदेव तुम ही कहो"…


जयदेव:– "8 सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी गायब हो गये। हमारे पास 40 अभी लाइन अप लोग है। पुणे में सबके ट्रेनिंग की वयवस्था पहले होगी। 80 थर्ड लाइन को सेकंड लाइन की ट्रेनिंग के लिये भेजना होगा। और बाकियों को मुख्य धारा में लेकर आना होगा, ताकि वो हमारे तौर तरीके और सभ्यता को पूर्ण रूप से समझ सके।"

"आर्यमणि के पीछे नित्या के साथ उसकी पूरी टुकड़ी को लगाओ। आज के बाद नित्या की सजा माफ की जा रही है। तेजस, नित्या से बात करने तुम ही जाओगे। बाकी एक और दिमाग वाला ये कौन था, जो हमारा माल लूटकर ले गया। उसकी तलाश यहां हम सब करेंगे। वैसे यदि कुछ सामान का वो लोग इस्तमाल करे तब तो उसे पकड़ने में काफी आसानी हो जायेगी, वर्ना ढूढना कभी बंद नही करेंगे।"

2 दिन बाद प्रहरी के सिक्रेट बॉडी की मीटिंग जिसमे 13 लोगों ने हिस्सा लिया… 12 कोर सीक्रेट मेंबर और 1 पलक, जिसे भविष्य के खिलाड़ी के रूप में तैयार किया जा रहा था। पलक के जैसे और भी कई मेंबर थे, लेकिन किसी को भी एक दूसरे के बारे में ना तो पता था और ना ही वो किसी से जाहिर कर सकते थे।


उज्जवल:- अपनी समीक्षा दो पलक…


पलक:- मैं कुछ भी समीक्षा देने की हालत में नहीं। आप लोग अपना फैसला सुना दीजिये।


सुकेश:- किसी को और कुछ कहना है..



तेजस:- "पलक हमने तुम्हे उसके पीछे लगाया, इसलिए तुम अकेली दोषी नहीं हो। पुस्तक के विषय में उसने जितनी बातें बतायि, उससे तुम्हे क्या हमे भी यकीन हो गया कि वो पुस्तक खोल लेगा। तुम्हे तो पुस्तक के अंदर के ज्ञान का इतना लालच भी नहीं था, जितना हमे था। पुस्तक को लेकर तुम जितना धोका खयि हो, हम भी उतना ही। बस एक बात बता दो, क्या तुम्हे आर्यमणि से सच में प्यार था या उसमे कोई अलौकिक शक्ति की वजह से तुम उसे अपने साथ रखकर भविष्य में आर्यमणि का इस्तमाल करती?


"प्यार में ना होती तो अपना कौमार्य एक ऐसे लड़के के हाथो भंग करती जिसे सीक्रेट प्रहरी खतरा मानते है। साले ने 2 हफ्ते का पूरा मज़ा लिया ये बात मै किसे बताऊं। उसकी तो.. इतना बड़ा छल कर गया। जान बूझकर उस सेज पर मेरे साथ सेक्स किया ताकि मैं कितनी बड़ी बेवकूफ हूं वो मुझे एहसास करवा सके। साला पुरा मज़ा लेकर भागा है।"… पलक अपने ख्यालों में थी, तभी फिर से तेजस ने पूछा…


पलक:- दोनो ही बातें थी। उसकी शक्ति का इस्तमाल करना दिमाग में तो था ही लेकिन यह भी सत्य है कि दिल से उसे चाहा था मैंने। पर क्या ये बात अब मायने रखती है?



जयदेव:- किसी के दिल टूटने का दर्द हम बांट नहीं सकते लेकिन तुम प्यार में रहकर भी हमारे लिये वफादार थी यही बहुत बड़ी बात है। पलक तुम राम शुक्ल के साथ अभी नाशिक रवाना होगी। वहां के आम प्रहरी में अपनी साख बनाओ। साथ ही साथ कल से तुम्हे वो सब मिलना शुरू हो जाएगा जिसकी तुम हकदार हो। तुम्हारी थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी की ट्रेनिंग।

पलक:– क्या मैं पूछ सकती हूं, बुरी तरह से असफल होने के बाद भी मुझे तरक्की क्यों मिल रही।

जयदेव:– क्योंकि तुम हम में से एक हो। तुम्हारी समीक्षा काफी उपयोगी है। जिंदगी का तुम्हे करीब से अनुभव भी हो चुका है। इसलिए मुझे विश्वास है कि तुम जल्द ही हमारे सभा में सामिल होगी और एक भावी लीडर बनकर उभरोगी।


पलक, जयदेव को आभार प्रकट करती वहां से बाहर निकल गयी। उसके बाहर निकलते ही… सभी लोग एक–एक करके एक ही बात कह रहे थे… "क्या पलक अब भी हमारे तौर तरीके के लायक हुई है? उसे इतनी जल्दी थर्ड लाइन की ट्रेनिंग में भेजना एक गलत फैसला हो सकता है।"


जयदेव:- शांत होकर मीटिंग आगे बढ़ाओ। मै अंत में अपनी बात रखूंगा, फिर कहना।


उज्जवल:- देव पहले ये बताओ कि किस बेवकूफ ने तुमसे कहा था 40% शेयर आर्यमणि के नाम करने।


देवगिरी:- दादा वो ताकत का भूखा स्वामी मेरे पास आया था। मुझे लगा कि वो आर्यमणि से उसकी ताकत का राज पता करने की लिये अपने साथ मिला रहा है। उसके आर्म्स एंड एम्यूनेशन फैक्ट्री को उसने इतनी तेजी से स्वीकृति दिलवाया की मैंने भी आर्य को छलावे वाला एक झुनझुना थमा बैठा। मुझे क्या पता था वो अकाउंट एसेस करेगा, वो भी शादी की रात और साला शातिर इतना है कि सिग्नल जैमर लगा रखा था। मुझे भनक तक नहीं लगने दिया और ना ही बैंक का कोई संदेश आने दिया।


मनीषा शुक्ल (मुक्ता की मां और राजदीप की सास)…. "उसके योजना में परिवार के लोग भी सामिल है। जिस तरह से उसके दोस्त ने वहां के महफिल का ध्यान खींचा, जिस तरह से वो अपने परिवार के गले लग रहा था, मुझे तो शक है वो लोग भी मिले हुये है। यदि ऐसा है तो कहीं ना कहीं परिवार के लोग भी शक के दायरे में है।


मीनाक्षी:- परिवार की बात ना करो मनीषा, क्योंकि पारिवारिक दृष्टिकोण से तो मै भी उन सबके साथ सामिल हुयि। आर्यमणि को तो मै भी बहुत चाहती हूं। हमे अफ़सोस होता है, जब नेक्स्ट जेनरेशन आता है। क्योंकि कुछ अच्छे दिल के लोगो को हम सामिल नहीं कर सकते। थोड़ा दर्द भी होता है जब वो मरते है या अपना राज बचाने के लिये उन्हें मारना पड़ता है।(बिलकुल किसी दैत्य वाली हंसी के साथ)… लेकिन क्या करे हमारे जीने का जायका भी वही है।
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मीनाक्षी:- परिवार की बात ना करो मनीषा, क्योंकि पारिवारिक दृष्टिकोण से तो मै भी उन सबके साथ सामिल हुयि। आर्यमणि को तो मै भी बहुत चाहती हूं। हमे अफ़सोस होता है, जब नेक्स्ट जेनरेशन आता है। क्योंकि कुछ अच्छे दिल के लोगो को हम सामिल नहीं कर सकते। थोड़ा दर्द भी होता है जब वो मरते है या अपना राज बचाने के लिये उन्हें मारना पड़ता है।(बिलकुल किसी दैत्य वाली हंसी के साथ)… लेकिन क्या करे हमारे जीने का जायका भी वही है।


उज्जवल:- हां सही कह रही है मीनाक्षी, लेकिन मनीषा की बात सच भी तो हो सकती है। आर्यमणि ने अपने 3 दोस्तों को पूरा आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट का हिस्सेदार बनाया। चित्रा और माधव 2 ऐसे नाम थे जिन्होंने काबुल किया की उन्हे आर्यमणि ने हिस्सेदार बनाया था, यदि ये संपत्ति प्रहरी की है तो हम वापस कर देंगे। जबकि वहीं आर्यमणि के जिगरी दोस्त का कहना था कि "फैक्ट्री का वो कानूनन मालिक है और किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नही। आप जो अपना काम कर रहे है उसे कीजिये और मुझे अपना काम करने दीजिये।"


जयदेव:– हम्मम!!! ठीक है आग लगा दो उसके प्रोजेक्ट में। जहां–जहां से अप्रूवल मिलना है, हर जगह रोड़ा डाल दो और साथ में अपने लीगल डिपार्टमेंट को एक फर्जीवाड़ा का केस भी कहो करने। अक्षरा निशांत रिश्ते तुम्हारा भांजा लगता है, जैसा की आर्यमणि मीनाक्षी का था। इसलिए निशांत तुम्हारी जिम्मेदारी। यदि जरा भी भनक लगे की निशांत को प्रहरी में दिखने वाले आम करप्शन से ऊपर का कोई शक है, इस बार कोई रहम नहीं। आर्यमणि और उस माल गायब करने वालों को ढूंढने गयी टीम ने क्या इनफार्मेशन दी, वो बताओ कोई?


तेजस:- "हॉलीवुड फिल्में कुछ ज्यादा देखते है दोनो पक्ष। नागपुर–जबलपुर हाईवे पर 2 स्पोर्ट्स कार में 3 लोग निकले थे। लेकिन जंगल में पाये पाऊं के निशान और भागने के मिले सबूत से वो 5 लोग थे, जिनमें से 2 को कोई नहीं जानता। जबलपुर से एक चार्टर प्लेन 5 लोगो को लेकर दिल्ली निकली, एक चार्टर प्लेन बंगलौर, और एक चार्टर प्लेन मुंबई। ऐसे करके 7 जगहों के लिये चार्टर प्लेन उड़ान भरी थी। इन सभी जगहों के एयरपोर्ट से डायरेक्ट इंटरनेशनल फ्लाइट जाती है। हमने वहां के बुकिंग चेक करवाई। यहां से कन्फ्यूजन शुरू हो गया। सभी एयरपोर्ट पर कल से लेकर आज तक 5 लोगों के 4 ग्रुप सीसी टीवी से अपनी पहचान छिपाकर, 4 अलग-अलग देश गये। किसी भी जगह से आर्य, रूही या अलबेली के नाम का पासपोर्ट इस्तमाल नही हुआ।"

"वहीं जिसने अपना सामान चोरी किया उसकी सूचना तो पहले से ही थी। और जैसा तुमने आशंका जताया था जयदेव वही हुआ। सिवनी से जितने भी वैन निकले थे सब में फर्जी बुकिंग थी, लेकिन एक बड़ा सा लोड ट्रक के टायर के निशान वोल्वो के आस–पास से मिले थे, जो बालाघाट के रास्ते गोंदिया पहुंची। यहां तो और भी कमाल हो गया था। ट्रक चोरी की थी और उसका ड्राइवर.. ये सबसे ज्यादा इंट्रेस्टिंग पार्ट है। उस ड्राइवर को ट्रक पहुंचाने के 10 हजार रूपये मिले थे। ट्रक में एक भी समान नही। कोई चास्मादित गवाह नही और ना ही वहां पर कोई सीसी टीवी फुटेज थी, जिस से यह पता चले की उस ट्रक से कुछ अनलोड भी किया गया था।"


जयदेव:– इसी ट्रक पर अपना सारा माल था। सब लोग इस ट्रक के पीछे पड़ जाओ। पूरी तहकीकात करो अपना खोया माल मिल जायेगा। तेजस तुम नित्या और उसकी टीम को आर्यमणि के पीछे लगाओ। हमें अपने समान के साथ उनकी जान भी चाहिए जो हमारा कीमती सामान ले जाने की जुर्रत कर बैठे।


तेजस:- हम्मम ! ठीक है।


उज्जवल:– सेकंड लाइन सुपीरियर टीम का 1 शिकारी आर्यमणि के पैक पर भारी पड़ेगा यहां तो पूरी टीम के साथ नित्या को पीछे भेज दिया है, तो अब चिंता की बात ही नहीं। यदि नित्या आर्यमणि को नहीं भी मार पाती है तो भी किताब तो ले ही आयेगी। सरदार खान मारा गया सो अब नागपुर में रहने का भी कोई मतलब नहीं निकलता। भूमि और उसके उत्तराधिकारी को बधाई संदेश देते चलो।"


जयदेव:- पूर्णिमा की रात के एक्शन के कारण आम प्रहरी तो आर्यमणि के फैन हो गये है। प्रहरी की आम मीटिंग में आर्यमणि को क्लीन चिट के साथ धन्यवाद संदेश भी देते जाओ। अब से हाई टेबल सीक्रेट प्रहरी मुख्यालय मुंबई होगा। मीनाक्षी और अक्षरा की जिमेमदरी है यहां से सारी काम कि चीजों को मुंबई पहुंचाना।


मीनाक्षी:- हम्मम ! हो जायेगा। सभा समाप्त करते है। …


3 दिन बाद सतपुड़ा के घने जंगलों में तेजस ने जमीन पर एक कतरा अपने खून का गिराया और "हिश्श्श्ष्ष्ष्ष्शश" की गहरी आवाज़ अपने मुंह से निकाला। अचानक ही वहां के हवा का मिजाज बदलना शुरू हो गया और जबतक तेजस कुछ भांप पता उसके गले पर चाकू लग चुका था।


तेजस के कान के पास लहराती सी आवाज गूंजी…. "हमारी याद कैसे तुम्हे यहां तक खींच लायी।"..


तेजस उसका हाथ पकड़कर प्यार से किनारे करते, सामने खड़ी औरत को ऊपर से लेकर नीचे तक देखते हुए…. "आज भी उतनी ही मादक अदाएं है।"..


बाल रूखे, चेहरा झुलसा हुआ, और बदन के कपड़े मैले। शरीर के ऊपर की हड्डियां तक गिनती की जा सकती थी… "लगता है मेरी सजा माफ़ कर दी गयी है।"


तेजस:- हां तुम्हारी सजा माफ हो चुकी है । एक लड़का है आर्यमणि वो अनंत कीर्ति के पुस्तक को लेकर भाग गया है। उसके पीछे जाना है।


नित्या एक मज़ेदार अंगड़ाई लेती… "आह जंगल से बाहर निकलने का वक़्त आ गया है, चले"…


तेजस:- हां बिल्कुल…


प्रहरी की आम मीटिंग से ठीक पहले सेकंड लाइन सुपीरियर शिकारी टीम के 5 शिकारी के साथ नित्या अपने खोज पर जा चुकी थी। नित्या भी सुकेश, उज्जवल और देवगिरी की तरह ही एक सीक्रेट प्रहरी थी जो अपने पिछली गलती की सजा भुगत रही थी। एक लंबा अरसा हो गया था उसे सतपुड़ा के घने जंगलों में विचरते हुए। जितना दूर जंगल का इलाका, वही उसकी सीमा। मन ही मन वो आर्यमणि को धन्यवाद कह रही थी, जिसके किये ने उसे जंगल के जेल से बाहर निकालकर आज़ाद कर दिया था।


प्रहरी की आम मीटिंग में इस बार भी आर्यमणि का नाम गूंजता रहा। शहर को बड़े संकट से निकालने के लिये उसे धन्यवाद कहा गया साथ में उससे हुई छोटी सी नादानी, अंनत कीर्ति की पुस्तक को साथ ले जाना, उसका कहीं ना कहीं दोषी पलक को बताया गया।


पलक की मनसा साफ तो थी लेकिन उससे गलती हुई जिसकी सजा ये थी कि वो नाशिक प्रहरी इकाई में अस्थाई सदस्य की भूमिका निभाएगी और वहीं से प्रहरी के आगे का अपना सफर शुरू करेगी। इसी के साथ पलक के इल्ज़ाम सही थे जो हसने उच्च सभा में लगाए थे। 22 में से 20 उच्च प्रहरी दोषी पाये गये और सरदार खान जैसे बीस्ट अल्फा को खत्म किया जा चुका था।


नागपुर इकाई मजबूत थी और हमेशा ये अच्छे प्रहरी को सामने लेकर आयी है। इसलिए नागपुर की स्थायी सदस्य नम्रता को नागपुर इकाई का मुखिया घोषित किया जाता है। मीटिंग समाप्त होने तक राजदीप ने कई बड़े अनाउंसेंट कर दिये, उसी के साथ सबको ये भी बताते चला कि उसका ट्रांसफर अब नागपुर से मुंबई हो चुका है, इसलिए उसे नागपुर छोड़ना होगा।…


नागपुर में बीस्ट अल्फा ना होने से क्या-क्या बदलाव आ रहे थे, भूमि इसी बात की समीक्षा में लगी हुई थी। हाई टेबल प्रहरी जिनका मुख्यालय पहले नागपुर था और उन्हें कहीं और जाने की ज़रूरत नही थी, उनके लिये महीने में अब 2–3 बार बाहर जाना आम बात हो गयी थी। भूमि अपने ससुराल में बैठकर आराम से सभी गतिविधियों पर नजर बनायी हुई थी। हालांकि सुकेश, मीनाक्षी और जयदेव बातों के दौरान भूमि अथवा जया से आर्यमणि के विषय में जानने के लिये इच्छुक दिखते लेकिन इन्हें भी आर्यमणि के विषय में पता हो तब ना कुछ बताये।


इधर अचानक ही अपनी मासी का प्यारा निशांत के लिये काफी बढ़ गया था। वह निशांत को बिठाकर एक ही बात पूछा करती थी, "उसे आर्म्स एंड एम्यूनेशन" प्रोजेक्ट से क्या लालच है? क्यों वह प्रहरी से दुश्मनी लेने के लिये तैयार है? क्या इसके पीछे की वजह आर्यमणि है, जो जाने से पहले कुछ बताकर गया था?"


निशांत को अक्षरा की बातें जैसे समझ में ही नही आती थी। हर बार वह अक्षरा को एक ही जवाब देता... "उन्हे बिजनेस और प्रोजेक्ट की कोई समझ ही नही। और जिन मामलों को वो समझती नही, उसके लिये क्यों इतनी खोज–पूछ कर रही।"


पलक के लिये विरहा के दिन आ गये थे। जिस कमरे में उसने अपना पहला संभोग किया। जिस कॉलेज में वो आर्यमणि से मिलती थी। जिस शॉपिंग मॉल में वो आर्यमणि के साथ शॉपिंग के लिये जाया करती थी। जिस कार के अंदर उसने आर्यमणि के साथ काम–लीला में लिप्त हुई। पलक को हर उस जगह से नफरत सी हो गयी थी, जहां भी आर्यमणि की याद बसी थी। आर्यमणि के जाने के 10 दिन के अंदर ही पलक भी नागपुर शहर छोड़ चुकी थी और नाशिक पहुंच गयी, जहां उसकी ट्रेनिंग शुरू होती। नाशिक में प्रहरी के सीक्रेट बॉडी का अपना एक बड़ा सा ट्रेनिंग सेंटर था जो किसी के जानकारी में नही था।


चित्रा एक आम सी लड़की जो रोज ही अपने कॉलेज के कैंटीन में अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ बैठती और खाली टेबल को देखकर मायूस सी हो जाती। माधव यूं तो चित्रा को उसके गुमसुम पलों से उबारने की कोशिश करता लेकिन फिर भी चित्रा के नजरों के सामने खाली कुर्सी खटक जाती जो कभी दोस्तों से भरी होती थी।


एक–एक दिन करके वक्त काफी तेजी से गुजर रहा था। नित्या को काम पर लगा तो दिया गया था, लेकिन इस गरीब दुख्यारी का क्या दोष जिसे कोई यह नहीं बता पा रहा था कि आर्यमणि को ढूंढना कहां से शुरू करे। पूरा सीक्रेट बॉडी ही उसके ऊपर राशन पानी लेकर चढ़ा रहता और एक ही बात कहते.… "तुम्हे आजाद ही इसलिए किया गया है ताकि तुम पता लगा सको। यदि अब पता लगाने वाले गुण तुमसे दूर हो चुके है, फिर तो तुम्हे हम वापस जंगल भेज देते है।"… बेचारी नित्या के लिये काटो तो खून न निकले वाली परिस्थिति थी। हां एक तेजस ही था, जो नित्या पर किसी और चीज से चढ़ा रहता था। बस यही इकलौता सुकून और सुख वह जंगल से निकलने के बाद भोग रही थी।


एक ओर आर्यमणि तो दूसरी ओर वो समान चोर, दोनो मिल न रहे थे, ऊपर से सीक्रेट बॉडी प्रहरी की मुसीबत समाप्त नही हो रही थी। आर्म्स & एम्यूनेशन प्रोजेक्ट में ऐड़ी चोटी का जोड़ लगा दिये। निशांत की कंपनी "अस्त्र लिमिटेड" को कोर्ट का नोटिस मिला, जहां बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच में सुनवाई होनी थी। "अस्त्र लिमिटेड" पर पैसे की धोकेधरी पर इल्ज़ाम लगा था। "अस्त्र लिमिटेड" के ओर से निशांत अपने वकील के साथ कोर्ट में हाजिर हुआ और जो ही उसने सामने वाले वकील की धज्जियां उड़ाया।


पैसों के जिस धोकाधरी का आरोप "अस्त्र लिमिटेड" पर लगा था, उसके बचाव में निशांत के वकील ने वह एग्रीमेंट कोर्ट को पेश कर दिया, जिसमे साफ लिखा था कि.…. "आर्यमणि के आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट देश के सशक्तिकरण वाला प्रोजेक्ट है। बिना किसी भी आर्थिक लाभ के अपना सारा पैसा "अस्त्र लिमिटेड" के प्रोजेक्ट में लगाते है। "अस्त्र लिमिटेड" कंपनी जब कर्ज लिये पैसे के 10 गुणी बड़ी हो जाये तो फिर वो 10 चरण में पैसे की वापसी प्रक्रिया पूरी कर सकते है। और यदि प्रोजेक्ट कहीं असफल रहता है, तब उस परिस्थिति में सारा नुकसान हमारा होगा।"


विपक्ष के वकील ने उस पूरे एग्रीमेंट को ही फर्जी घोषित कर दिया। निशांत के वकील ने जिस एग्रीमेंट को पेश किया था, उस एग्रीमेंट को महाराष्ट्र के सरकारी विभाग द्वारा पूरा लेखा–जोखा ही बदल दिया गया था। विपक्ष के वकील सुनिश्चित थे, इसलिए निशांत से उसके डॉक्यूमेंट की विश्वसनीयता साबित करने के लिये कहा गया। देवगिरी पाठक, महाराष्ट्र का डेप्युटी सीएम... पूरा सरकारी विभाग ही पूर्ण रूप से मैनेज किया था, सिवाय एक छोटी सी भूल के, जिसके ओर शायद ध्यान न गया।


पैसों के लेखा जोखा में देवगिरी की कंपनी ने जो हिसाब दिखाया था उसमे "अस्त्र लिमिटेड" को दिये पैसे का जिक्र था। इसके अलावा देवगिरी की कंपनी के 40% के मेजर हिस्सेदार आर्यमणि द्वारा दिया गया ऑफिशियल लेटर जिसमे "अस्त्र लिमिटेड" को कब और कितने पैसे किस उद्देश्य से दिये उसकी पूरी डिटेल थी। लेन–देन का यह रिकॉर्ड बैंक से लेकर आईटी डिपार्मेंट तक में जमा करवायि गयी थी।


प्रहरी के ओर से केस लड़ने गया नामी वकील खुद को हारते देख, तबियत खराब का बहाना करके दूसरा डेट लेने की सोच रहा था। नागपुर की बेंच शायद राजी भी हो गयी होती लेकिन तभी निशांत के वकील ने सुप्रीम कोर्ट का एक दस्तावेज पेश किया.… "अस्त्र लिमिटेड के प्रोजेक्ट को बंद करवाने के लिये महाराष्ट्र के कई सरकारी और गैर–सरकारी विभाग ने सेंट्रल को कई सारे दस्तावेज भेजे और तुरंत प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों को हिरासत में लेने की मांग कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के फाइनल वर्डिक्ट में यह साफ लिखा था कि एक अच्छे प्रोजेक्ट को सभी अप्रूवल के बाद बंद करवाने की पूरी साजिश रची गयी थी। कोर्ट सभी अर्जी को गलत मानते हुये सभी याचिकाकर्ता की निष्पक्ष जांच करे।"


उस दस्तावेज को पेश करने के बाद निशांत के वकील ने जज से साफ कह दिया की पहले भी कंपनी के ऊपर महाराष्ट्र सरकार के कुछ विभागो की साजिश साफ उजागर हुई है। आज भी जब मामला हमारे पक्ष में है तब अचानक से विपक्ष के वकील की तबीयत खराब हो गयी है। मुझे डर है कि अगली तारीख के आने से पहले सबूतों के साथ छेड़–छाड़ होने की पूरी आशंका है, इसलिए अब यह केस नागपुर ज्यूरिडिक्शन के बाहर बहस किया जाना चाहिए। यदि हमारी अर्जी आपको मंजूर नहीं फिर हम फैसले का बिना इंतजार किये सुप्रीम कोर्ट जायेंगे।


निशांत के वकील को सुनने के बाद तो नागपुर बेंच ने जैसे विपक्ष के वकील को झटका दे दिया है और उसके तबियत खराब होने की परिस्थिति में किसी दूसरे वकील को तुरंत प्रतिनिधित्व के लिये भेजने बोल दिया। प्रहरी को काटो तो खून न निकले। देश के जितने बड़े वकील को उन लोगों ने केस के लिये बुलाया था, निशांत का वकील तो उसका भी गुरु निकला। दिल्ली के इस नामी वकील को निशांत ने नही बल्कि संन्यासी शिवम द्वारा नियुक्त किया गया था।


निशांत ने महज महीने दिन में ही आर्म्स एंड एम्यूनेशन प्रोजेक्ट से पार पा लिया था। निशांत अपनी इस जीत के बाद प्रोजेक्ट का सारा काम चित्रा और माधव को सौंपकर कुछ महीनों के लिये वर्ल्ड टूर पर निकल गया। हालांकि वह हिमालय जा रहा था लेकिन दिखाने के लिये उसका पासपोर्ट यूरोप के विभिन्न देशों में भ्रमण कर रहा था। वहीं चित्रा और माधव प्रोजेक्ट के काम के कारण और भी ज्यादा करीब आ गये। हां इस बीच प्रोजेक्ट का काम करते हुये पहली बार चित्रा को माधव का पूरा नाम पता चला था, "अनके माधव सिंह"।


चित्रा, माधव को चिढाती हुयि उसके पहले नाम को लेकर छेड़ती रही। हालांकि माधव कहता रह गया "अनके" का अर्थ "कृपा" होता है। अर्थ तो अच्छा ही था लेकिन चित्रा इसे छिपाने के पीछे का कारण जानना चाहती थी। अंत में चित्रा जब नही मानी तब माधव को बताना ही पड़ा की "अनके" उसकी मां का नाम है और उसके बाबूजी ने उसके नाम के पहले उसकी मां का नाम जोड़ दिया, ताकि कभी वो अपनी मां से अलग ना मेहसूस करे।


इस बात को जानने के बाद तो जैसे चित्रा का गुस्सा अपने चरम पर। आखिर जब इतने प्यार से उसके बाबूजी ने उसका नाम रखा, फिर अभी से अपनी मां का नाम अलग कर दिया। जबकि अनके सुनने में ऐसा भी नही लगता की किसी स्त्री का नाम हो। बहस का दौर चला जहां माधव भी सही था। क्या बताता वो लोगों को, उसका नाम "अनके माधव सिंह" है और उसकी मां का नाम "अनके सिंह"। चित्रा भी अड़ी थी…. "मां का नाम कौन पूछता है? परिचय में भी कोई मां का नाम पूछने पर ही बताता है? ऐसे में जब लोग जानते की मां का नाम पहले आया है तो कितना इंस्पायरिंग होता।"


बहस का दौड़ चलता रहा और कुछ दिन के झगड़े के बाद दोनो ही मध्यस्ता पर पहुंचे जहां माधव अपने पिताजी की भावना का सम्मान रखते खुद का परिचय सबसे एंकी के रूप में करेगा और पूरा नाम "अनके माधव" बतायेगा, न की केवल माधव। खैर दोनो के विचार और आपस का प्यार भी अनूठा ही था। जैसे हर प्रेमी अपने प्रियसी की बात मानकर "कुत्ता और कमिना" नाम तक को प्यार से स्वीकार कर लेते है। ठीक वैसे ही अपना नया नाम माधव ने भी स्वीकार किया था और अब बड़े गर्व से खुद का परिचय एंकी के रूप में करवाता था।


सीक्रेट बॉडी प्रहरी में आग लगाने के बाद सबकी जिंदगी जैसे चुस्त, दुरुस्त और तंदुरुस्त हो गयी थी। जया और भूमि दुनियादारी को छोड़कर दिन भर आने वाले बच्चे में ही लगी रहती। नम्रता के पास नागपुर प्रहरी की कमान आते ही ठीक वैसा हो रहा था जैसा भूमि चाहती थी। बिलकुल साफ और सच्चे प्रहरी। फिर तो पूरे नागपुर में नम्रता ने ऐसा दबदबा बनाया की प्रहरी के दूसरे इकाई के शिकारी नागपुर आने से पहले १०० बार सोचते... "नागपुर गया तो कहीं बिजली मेरे ऊपर न गिर जाये। हर बईमान प्रहरी नागपुर से साफ कतराने लगा हो जैसे।


नागपुर की घटना को पूरा 45 दिन हो चुके थे। प्रहरी आर्यमणि और संग्रहालय चोर को ढूंढने में ऐड़ी चोटी का जोड़ लगा दिये लेकिन नतीजा कुछ नही निकला। एशिया, यूरोप, से लेकर अमेरिका तक सभी जगह आर्यमणि और संग्रहालय के सामानों की तलाश जारी थी। लोकल पुलिस से लेकर गुंडे तक तलाश रहे थे। हर किसी के पास आर्यमणि, रूही और अलबेली की तस्वीर थी। इसके अलावा संग्रहालय से निकले कुछ अजीब सामानों की तस्वीर भी वितरित की जा चुकी थी। और इन्हे ढूंढकर पकड़ने वालों की इनामी राशि 1 मिलियन यूएसडी थी। सभी पागलों की तरह तलाश कर रहे थे।


लोग इन्हें जमीन पर तलाश कर रहे थे और आर्यमणि.… वह तो गहरे नीले समुद्र के बीच अपने सर पर हाथ रखे उस दिन को झक रहा था जब वह नागपुर से सबको लेकर निकला.…
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Tri2010

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भाग:–62





लोग आर्यमणि को जमीन पर तलाश कर रहे थे और आर्यमणि.… वह तो गहरे नीले समुद्र के बीच अपने सर पर हाथ रखे उस दिन को झक रहा था जब वह नागपुर से सबको लेकर निकला.…


विशाखापत्तनम से कार्गो शिप रवाना हुआ। तकरीबन 16 दिन का पहला सफर जो विशाखापत्तनम से शुरू होकर तंजानिया देश के किसी पोर्ट पर रुकती। सफर शुरू हो गया और सभी अपने विदेश यात्रा पर निकल चुके थे। पहला सफर लगभग शोक में डूबा सफर ही रहा। सबने सरदार खान की याद देखी थी, और उस याद ने जैसे अंदर के गम को कुरेद दिया था। 3 भाई–बहन, ओजल, इवान और रूही, तीनों ने अपनी मां को देखा था। एक ट्रू अल्फा हिलर फेहरीन जिसे एक दिन में इतने दर्द दिये जाते की उसकी खुद की हीलिंग क्षमता जवाब दे जाती। मजबूर इस कदर रहती की अपने हाथों से खुद को हिल करना पड़ता था। और जो कहानी फेहरीन की थी, वही कहानी अलबेली की मां नवेली की भी थी। बस फर्क सिर्फ इतना था की नवेली खुद को हील नही कर सकती लेकिन दर्द कितना भी रोने को मजबूर क्यों न करे उसके चेहरे की मुस्कान कभी गयी नही।


चारो ही शोक में डूबे रहे। रह–रह कर आंसू छलक आते। प्रहरी के सम्पूर्ण समुदाय पर ही ऐसा आक्रोश था कि यदि अभी कोई प्रहरी से सामने आ जाता तो उसे चिड़कर एक ही सवाल पूछते.… "उस वक्त कहां थे जब एक वेयरवोल्फ को नरक में पटक दिया गया और उसके बाद कोई सुध लेने नही पहुंचे।"


आर्यमणि अपने पैक की भावना समझ रहा था लेकिन वह भी उन्हें कुछ दिन शोक में डूबा छोड़ दिया। आर्यमणि इस दौरान सुकेश के घर से लूटे उन 400 पुस्तक को देखने लगा। 350 तो ऐसे किताब थे जिस पर कोई नाम ही नही था और अंदर किसी महान सिद्ध पुरुष की जीवनी। एक सिद्ध पुरुष का जीवन कैसा था। उन्होंने किस प्रकार की सिद्धियां हासिल की थी। उनकी सिद्धियों से कैसे निपटा जाये। और सबसे आखरी में था चौकाने वाला रहस्य, कैसे उस सिद्ध पुरुष को बल और छल से मारा गया था।


एक किताब को तो उसने पूरा पढ़ लिया। फिर उसके बाद हर किताब के सीधा आखरी उस अध्याय को ही पलटता जहां सिद्ध पुरुष के मारने की कहानी लिखी गयी थी। आर्यमणि एक बार उन सभी पुस्तकों की झलकियों को देखने के बाद सभी पुस्तक को जलाना ही ठीक समझा। उसने 350 पुस्तक को जलाकर उसकी राख को समुद्र में बिखेर दिया। 350 पुस्तक के आखरी अध्याय को पढ़ने में आर्यमणि को भी 16 दिन लग गये। कार्गो शिप बंदरगाह पर लग रही थी और आर्यमणि अपने पैक को लेकर तंजानिया की जमीन पर कदम रखा।


5 वैन में उनका सामान लोड था और पांचों ओपन जीप में तंजानिया के प्राकृतिक वादियों को निहारते हुये चल दिये.… सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान को देखते हुये ये लोग तंजानिया की राजधानी डोडोमा पहुंचते। डोडोम से फिर सभी लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरते। जीप पर भी शोक का माहोल छाया हुआ था।….. "क्या तुम्हे पता है, ये जो अपेक्स सुपरनैचुरल का जो नाम सुना है, वह कौन है?"..


रूही:– हां जानती हूं ना, एक प्रहरी ही होगा। अब रैंक बड़ा हो या छोटा कहलाएंगे प्रहरी ही।


आर्यमणि:– हां लेकिन क्या तुम्हे पता है इन लोगों के पास सोध की ऐसी किताब थी, जिसमे किसी अलौकिक साधु के मारने का पूर्ण विवरण लिखा हुआ था।


आर्यमणि की बात सुनकर किसी ने कोई प्रतिक्रिया ही नही दिया, बल्कि इधर–उधर देखने लगे। आर्यमणि को कुछ समझ में ही नही आ रहा था कि इनको शोक से उबारा जाये। चारो में से कोई भी आर्यमणि की किसी भी बात में कोई रुचि ही नही दिखा रहे थे। गुमसुम और खामोशी वाला सफर आगे बढ़ता रहा और 2 दिन के बाद पूरा अल्फा पैक सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान पहुंच चुके थे। 18 दिनो में पहली बार ये लोग थोड़े खुले थे। उधान और वहां के जानवर को देख अपने आखों से ये पूरा नजारा समेट रहे थे। बड़े से घास के मैदान में जहां तक नजर जा रहा था, कई प्रकार के जानवर अपने झुंड में चर रहे थे।


काफी रोमांचक दृश्य था। चारो दौड़कर नजदीक पहुंचे। और करीब से यह पूरा दृश्य अनुभव करना चाहते थे किंतु चारो जैसे–जैसे करीब जा रहे थे, जानवरों में भगदड़ मचने लगी थी। सभी जानवर डरे हुये थे और उन्हें किसी शिकारी के अपने ओर बढ़ने की बु आ रही थी। आर्यमणि दूर बैठा जानवरो की भावना को पढ़ सकता था। छोटा सा ध्वनि विछोभ उसने पैदा किया और देखते ही देखते सभी जानवर अपनी जगह खड़े हो गये। जानवरों को शांत देख चारो खुश हो गये और उनके करीब पहुंचकर उन्हें छूने की कोशिश करने लगे। लेकिन वन विभाग के लोगों ने जानवरों के पास जाने से मना कर दिया।



चारो का मन छोटा हो गया। अपने पैक को एक बार फिर मायूस देखकर आर्यमणि खुद आगे आया और सबके मना करने के बावजूद भी झुंड के एक जंगली बैल के पेट पर हाथ रख दिया। उसके पेट पर हाथ रखने के साथ ही वह बैल अपना सर उठाकर बड़ी व्याकुलता से अपना सर दाएं–बाएं हिलाया और फिर सुकून भरी श्वांस खींचते वह आर्यमणि को अपने सर से स्पर्श कर रहा था। झुंड का वह बैल काफी पीड़ा में था और पीड़ा दूर होते ही धन्यवाद स्वरूप वह बैल अपने सर को आर्यमणि के बदन पर घिसने लगा।


फिर तो अल्फा पैक भी कहां पीछे रहने वाले थे। वो सब भी खतरनाक बैल की झुंड में घुसकर कहीं गायब हो गये। वन विभाग वाले चिल्लाते रह गये लेकिन सुनता कौन है। चारो ने भी किसी बेजुबान के दर्द को हरने का सुख अनुभव किया। यूं तो किसी का दर्द लेना चारो के लिये आसान नहीं था, किंतु चारो अपनी मां के अंजाम को देखकर पिछले कुछ दिनों से इतने दर्द में थे कि उन्होंने बेजुबान के दर्द को पूरा अपने अंदर समाते उसके खुशी के भाव को अपने जहन में उतार रहे थे।


फिर तो यहां वहां फुदक कर जितना हो सकता था जानवरों का दर्द ले रहे थे। इसी क्रम में अलबेली पहुंच गयी जेब्रा के झुंड के पास। जेब्रा यूं तो दिखने में काफी खूबसूरत और लुभावना लगता है, लेकिन ये उतने ही आक्रमक भी होते है। अपने झुंड में किसी गैर को देखना पसंद नही करते। अलबेली, जेब्रा की खूबसूरती पर मोहित होकर उसके पास तो पहुंच गयी, लेकिन जैसे ही उसके बदन पर हाथ रखी, जेब्रा ने दुलत्ती मार उसका नाक ही तोड़ दिया। अलबेली के नाक से रसभरी चुने लगा, जिसे साफ करके वह हिल हुई।


हिल होने के बाद उसके मन में आयी शैतानी और जेब्रा को हील करने के बाद किस प्रकार की नई खुशी अलबेली ने अर्जित किया, उसका विस्तृत विवरण वह अपने बाकी के पैक के साथ साझा करने लगी। रूही, इवान और ओजल तीनों ही जेब्रा के झुंड में घुस गये और कुछ देर बाद अपना नाक पकड़े बाहर आये। झुंड के बाहर जब निकले तब अलबेली बाहर खड़ी हंस रही थी। फिर तो जो ही उन तीनो ने पहले अलबेली को दौड़ाया। आगे अलबेली, पीछे से तीनो और कुछ दूर भागे होंगे की तभी उनके पीछे बैल का बड़ा सा झुंड दौड़ने लगा। अब तो चारो बाप–बाप चिल्लाते बैल के आगे दौड़ रहे थे।


चारो अपने बीते वक्त के गमों से उबरकर उस पूरे जंगल में चहलकदमी करने लगे। उनकी हंसी आपस की नोक झोंक और गुस्से में एक दूसरे को मारकर फुटबॉल बना देना, आम सा हो गया। उनका ये खिला स्वभाव देखकर आर्यमणि भी काफी खुश था। यूं तो आर्यमणि बस एक रात रुकने के इरादे से आया था, लेकिन उसने तय किया की अगले एक हफ्ते तक सभी तंजानिया में ही रहने वाले हैं।


जंगल के मध्य में ही इन लोगों का कैंप लगा। एक बड़े से टेंट में चारो के सोने की व्यवस्था की गयी और दूसरे टेंट में आर्यमणि, बचे हुये 50 पुस्तक के साथ था। आर्यमणि ने एक पुस्तक अपने हाथ में लिया जिसके ऊपर नाम लिखा था। आर्यमणि खुद से कहते... "जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–1। कमाल है इसपर किताब का नाम लिखा है। देखे अंदर क्या है।"


आर्यमणि ने पहला भाग उठाया। सबसे पहले पन्ने पर ही लिखा था पृथ्वी। अंदर के पन्ने उसने पलटे और बड़े ध्यान से पढ़ने लगा। हालांकि कुछ भी ऐसा नया नही था जो आर्यमणि पढ़ रह हो, लेकिन जिस हिसाब से उसमे लिखा गया था, वह काफी रोचक था। पहली बार वह ऐसी पुस्तक देख रहा था जिसमे मानव शरीर को विज्ञान के आधार पर नही, बल्कि शरीर के मजबूत और कमजोर अंगों के हिसाब से लिखा गया था। थोड़ा सा मानव इतिहास, थोड़ा सा भागोलिक दृष्टिकोण और पृथ्वी के किस पारिस्थितिकी तंत्र में कैसी जलवायु है और वहां कौन से शक्तिशाली जीव रहते हैं, उनका संछिप्त उल्लेख था।


आर्यमणि जैसे–जैसे पन्ने पलट रहा था फिर वह संछिप्त उल्लेख, विस्तृत विवरण में लिखा हुआ मिला। मध्यरात्रि हो रही थी और आर्यमणि बड़े ही ध्यान से उस पुस्तक को पढ़ रहा था। मानव शरीर के संरचना को यहां जिस प्रकार से उल्लेखित किया गया था, वैसा वर्णन तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मेडिकल बुक में न मिले। आर्यमणि पढ़ने के क्रम में कहीं खो सा गया था। आर्यमणि किताब में खोया था तभी टेंट की पूरी छत आर्यमणि के ऊपर गिर गयी और उसके ऊपर से जैसे कोई आदमी भी आर्यमणि के ऊपर गिरा हो।


आर्यमणि अपने क्ला से टेंट को फाड़कर बाहर आया और इवान के शर्ट को अपने मुट्ठी में दबोचकर एक हाथ से ऊपर हवा में उठाते.… "मेरे टेंट के ऊपर कूदने की हिम्मत कैसे किये?"


इवान:– बॉस मुझे अलबेली हवा में ऊपर उछालकर फेंकी और मैं सीधा आपके टेंट के ऊपर लैंड हुआ। जरा नजर पास में घूमाकर देखो, हमारे टेंट का छत भी उड़ा हुआ है...


आर्यमणि, इवान को नीचे उतारते.… "अलबेली ये सब क्या है?"


अलबेली:– इस छछुंदर को इधर दो बॉस ऐसा मारूंगी की हिल न हो पायेगा।


आर्यमणि:– यहां तुम लोगों के बीच क्या चल रहा है?


अलबेली:– बॉस मैं सोई थी और इसने मेरी नींद का फायदा उठाकर चुम्मा ले लिया।


आर्यमणि आंखों में खून उतारते इवान का गला दबोचकर उसे हवा में उठाते.… "बाप वाला संस्कार तो अंदर जोर नही मारने लगा इवान"…


इवान:– बॉस गला छोड़ दो। ये पागल हो गयी है आप तो होश में आ जाओ...


आर्यमणि कुछ सोचकर उसे नीचे उतारते... "हां क्या कहना है तुम्हे?"


इवान:– बॉस मुझे भी अभी ही पता चला की मैने इसे चूमा। मैं तो ओजल के पास लेटा था। और जब मैं हवा में आया तब भी वहीं सोया हुआ था।


अलबेली चिल्लाती हुई इवान को मारने पर तूल गयी…."साले झूठे, बॉस के सामने झूठ बोलता है।"


इवान:– नही मैं सच कह रहा...


आर्यमणि:– दोनो चुप... रूही ये सब करस्तानी तुम्हारी है न...


रूही:– बिलकुल नहीं बॉस... मैं तो सोयी हुई थी।


आर्यमणि:– रात के इस प्रहर मुझे पागल बनाने की कोशिश न करो, वरना मैं पूछूंगा नही बल्कि गर्दन में क्ला घुसाकर पता लगा लूंगा। अब जल्दी बताओ ये किसकी साजिश है...


रूही:– ओजल की... उसी ने कहा था रात बहुत बोरिंग हो रही है...


आर्यमणि:– अब दोनो मिलकर रात को एक्साइटिंग बनाओ और जल्दी से दोनो टेंट को ठीक करो वरना दोनो को मैं उल्टा लटका दूंगा...


दोनो छोटा सा मुंह बनाते... "बॉस हम जैसे कोमल और कमसिन"…. इतना ही तो दोनो ने एक श्रृंक में बोला था और अगले ही पल आर्यमणि की घूरती नजरों से सामना हो गया।... "दोनो चुप चाप जाकर जितना कहा है करो"...


दोनो लग गयी काम पर। आधे घंटे में दोनो टेंट तैयार थे। इस बार तीन लड़कियां एक टेंट में और इवान के साथ आर्यमणि अपने टेंट में आ गया। आर्यमणि वापस से किताब को पलटा और इवान नींद की गहराइयों में था। कुछ देर तक तो सब कुछ सामान्य ही था लेकिन उसके बाद तो ऐसा लगा जैसे आर्यमणि के टेंट में कोई मोटर इंजन चल रहा हो, इतना तेज इवान के खर्राटों की आवाज थी। बेचारा आर्यमणि खून के घूंट पीकर रह गया।


अगले दिन फिर से ये लोग सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के आगे का सफर तय करने लगे। घास के मैदानी हिस्से से ये लोग जंगल के इलाके में पहुंच चुके थे। लगभग दिन ढलने को था, इसलिए इन लोगों ने अपना टेंट जंगल के कुछ अंदर घुसते ही लगा लिया। इस बार आर्यमणि ने ३ टेंट लगवाया। एक में खुद दूसरे में इवान और तीसरे में सभी लड़कियां। आज शाम से ही आर्यमणि पुस्तक को लेकर बैठा। पुस्तक की मोटाई के हिसाब से तो 1000 पन्नो से ज्यादा का पुस्तक नही होना चाहिए थी। पूरे पुस्तक की मोटाई लगभग 6 इंच की रही होगी लेकिन उसके अंदर १० हजार से ज्यादा पन्ने थे।


आम तौर पर पन्ने की मोटाई जितनी होती है, उतनी मोटाई में इस पुस्तक के १० पन्ने आ जाये। और इतने साफ और चमकदार पन्ने की देखने से लग रहा था कुछ अलग ही मैटेरियल से इन पन्नो को तैयार किया गया था। खैर आर्यमणि के पढ़ने की गति भी उतनी ही तेज थी। 6–7 घंटे में वह आधे किताब का पूर्ण अध्यन कर चुका था। बचा किताब भी खत्म हो ही जाता लेकिन मध्य रात्रि के पूर्व ही टीन वुल्फ कि आपस में झड़प हो गयी। अलबेली और इवान एक टीम में वहीं रूही और ओजल विपक्ष में। सभी एक दूसरे ना तो मारने में हिचक रहे थे और न ही फुटबॉल बनाकर हवा में उड़ाने से पीछे हट रहे थे।


आज की रात तो एक नही बल्कि 2 लोग आर्यमणि की छत पर लैंड कर रहे थे। बीच बचाव करते और सबका झगड़ा सुलझाने में आर्यमणि को २ घंटे लग गये। उसके बाद किताब पढ़ने की रुचि ही खत्म हो गयी। हां केवल एक वक्त था जब सुबह आर्यमणि, संन्यासी शिवम के किताब के एक अध्याय का अभ्यास कर रहा होता, तब उस 4 घंटे के समय अंतराल में कोई भी आर्यमणि को परेशान नही करता। यहां तक की चारो वहां ऐसे फैले होते की जंगली जानवर तक के आवाज को आर्यमणि के कानो तक नही पंहुचने देते।
This was marvelous
 

Tri2010

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सेरेंगेती राष्ट्रीय उद्यान के घूमने का सफर अगले दिन भी जारी रहा। जैसे–जैसे ये सब अपने गमों से उबर रहे थे, एक दूसरे से उतना ही लड़ भी रहे थे। टीम हमेशा बदलते रहता। झगड़े किसी भी वक्त किसी भी बात के लिये शुरू हो जाता और उनके बीच–बचाव में आर्यमणि का सर दर्द करने लगता। आर्यमणि अब पुस्तकों को किनारे ही कर चुका था, केवल सुबह के पुस्तक को छोड़कर। अब उसका ध्यान उन 8–10 बक्सों के ऊपर था, जो सुकेश के घर से चोरी हुये थे। आर्यमणि को समझ में आ चुका था, जब तक इन्हे काम नही दोगे तब तक कोई शांत नहीं बैठने वाला। यही सोचकर आज की रात आर्यमणि ने उन बक्सों को खोलने का फैसला किया।


रात के १० बज रहे होंगे। हर कोई आर्यमणि के टेंट में ही था। सब लोग ध्यान लगाकर बक्से को देख रहे थे। इसी बीच एक छोटी सी ठुसकी अलबेली को लग गयी। अलबेली, इवान को जोर से धकेलती... "तुझे धक्का मारने का बड़ा शौक चढ़ा है।"


अलबेली ने जो धक्का मरा उस से इवान तो धक्का खाया ही लपेटे में ओजल भी आ गयी। ओजल, इवान को किनारे करती अलबेली के बिलकुल सामने खड़ी हो गयी और उसे भी एक जोरदार धक्का दे दी। लो अब धक्का मुक्की का खेल आर्यमणि के आंखों के सामने ही शुरू हो गया। नौबत यहां तक आ गयी की आर्यमणि जब बीच–बचाव करने इनके बीच पहुंचा, तभी चारो ने एक साथ ऐसे हाथ झटका की आज आर्यमणि अपना टेंट का छप्पर फाड़कर पड़ोस के टेंट की छत पर लैंड किया। फिर तो आर्यमणि भी आज रात इन चारो को आड़े हाथ लेते भीड़ गया। कभी चारो हवा में होते तो कभी आर्यमणि।


माहोल थोड़ा मस्ती मजाक भरा हो गया और चारो की हटखेली में आर्यमणि भी सामिल हो गया। इस प्रकार की हटखेलि से आर्यमणि को अंदर से अच्छा महसूस हो रहा था, लेकिन वो कहते है न... अति सर्वत्र वर्जायते... वही यहां हो गया। अपने बॉस को हटखेली में सामिल होते देखे चारो और भी ज्यादा उद्वंड हो गये। आर्यमणि के लिये तो जैसे सिर दर्द ही बढ़ गया हो। कितना भी गुस्सा कर लो अथवा चिल्ला लो... कुछ घंटे ये चारो शांत हो जाते लेकिन उसके बाद फिरसे इनकी झड़प शुरू। इतने ढीठ थे कि आर्यमणि को हर वक्त पानी पिलाये रहते थे।


7 दिन बाद सभी लोग तंजानिया के लोकल पासपोर्ट लिये, डोडोमा अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर थे, जहां से ये लोग नाइजीरिया के लिये उड़ान भरे। कनेक्टिंग फ्लाइट के जरिये ये लोग सीधा नाइजीरिया के लागोस शहर में उतरे और अगले २ दिन तक इस शहर में पूरे अल्फा पैक की धमाचोकरी जारी थी। एक तो पहले से इन लोगों के पास सुकेश के घर का माल था, ऊपर से इन लोगों ने 6 बड़े ट्राली बैग का लगेज बढ़ा दिया। 2 दिन बाद सभी पोर्ट ऑफ लागोस (अपापा), नाइजीरिया से पोर्ट ऑफ वेराक्रूज, मैक्सिको के लिये अपने कार्गो शिप में थे।


लगभग 30 दिन बाद ये लोग मैक्सिको में होते। आर्यमणि आराम से अपने कमरे में बचे हुये 50 किताब के साथ बैठा था। पढ़ने बैठने से पहले आर्यमणि सबको ट्रेनिंग का टास्क समझकर बैठा था। कार्गो शिप का पहला दिन काफी शांत था। आर्यमणि को शक सा हो गया, कहीं फिर से चारो शोक में तो नही डूब गये। २ बार उठकर जांच करने भी गया लेकिन सभी वुल्फ ट्रेनिंग में मशगूल थे। अगले 4 दिन तक इतना शांत माहोल रहा की आर्यमणि ने जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) के 3 भाग का पूरा अध्यन कर चुका था। यह पुस्तक श्रृंखला अपने भाग के समाप्ति के बाद और भी रोचक होते जा रही थी। क्योंकि जहां पहले 2 भाग में पृथ्वी था, वहीं तीसरा भाग में प्रिटी जैसे किसी अन्य ग्रह के जीवन के विषय में लिखा था।


आर्यमणि आगे और जानने के लिये उत्साहित हो गया। अब तो वह पूरे दिन में मात्र ३ घंटे ही सोता और बाकी समय किताब में ही डूबा रहता। अगले 4 दिन में वह 3 और भाग खत्म करके चौथे पुस्तक को खोल चुका था। वह जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) भाग–7 को पढ़ना शुरू कर चुका था। नागपुर से निकले कुल 35 दिन हो चुके थे। भाग 7 के मध्य में आर्यमणि होगा, जब पहली बार टीन वुल्फ ने दरवाजा खटखटाया। आर्यमणि बाहर आया तब पता चला मामला गंभीर था। 2 घंटा लग गया आर्यमणि को इनका मामला सुलझाते हुये।


इनका मामला सुलझाकर आर्यमणि कुछ घंटे का अध्यन आगे बढ़ाया ही था कि फिर से दरवाजे पर दस्तक होने लगी। इस बार उत्साह में दस्तक हुई थी। इन लोगों ने अपने हाथ के पोषण से कमरे में ही एक फूल के पौधे को 7 फिट बड़ा कर दिया था। यह कारनामा देखने के बाद तो आर्यमणि भी हैरान था। वो भी इनकी खुशियों में सामिल हो गया और खुद भी हाथ लगाकर पेड़ को और बड़ा करने की कोशिश करने लगा। आर्यमणि के चेहरे पर तब चमक आ गयी जब उसके हाथ लगाने के कुछ देर बाद पूरे पेड़ में फूल खिल उठे। यह नजारा देख खुशी से पूरा वुल्फ पैक ही झूमने लगा।


खैर २ घंटे के बाद एक बार फिर आर्यमणि अपने अध्यन मे लिन हो गया। किंतु कुछ देर बाद ही वापस से दरवाजे पर दस्तक। आर्यमणि चिढ़ते हुये पहुंचा और सब पर जोर–जोर से चिल्लाने लगा। पूरा वुल्फ पैक सकते में आने के बदले उसकी चिढ़ पर हंस रहे थे। मामला क्या था और क्यों दरवाजा पीट रहे थे, यह जाने बिना ही वह वापस अपने कमरे में आ गया। 8 दिन पूर्ण शांति के बाद तो जैसे अशांति ने डेरा डाल दिया हो। हर आधे घंटे पर दरवाजा खटखटाने लगता। अगले 1 दिन में आर्यमणि इतना परेशान हो गया की अपने माथे पर हाथ रख कर उस पल को झकने लगा, जब वह इन चारो को लेकर नागपुर से निकला था।


आर्यमणि:– क्या चाहते हो, मैं शांति से न जीयूं?


रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या हुआ बॉस, किसने परेशान किया है आपको? आप खाली नाम बोलो, काम हम तमाम कर देंगे।


आर्यमणि अपने दोनो हाथ जोड़ते.… "परेशान करने वालों में से एक तुम भी हो रूही, जाओ अपना काम तमाम कर लो"…


रूही:– क्या बात कर रहे हो बॉस। मैं मर गयी तो फिर आप गहरे सदमे में चले जाओगे। मरने के बाद तो मुझे तृप्ति भी नही मिलेगी... अल्फा पैक के अलावा किसने परेशान किया?


आर्यमणि:– ये तुम लोग जान बूझ कर मुझे परेशान कर रहे हो ना..


अलबेली:– क्या बात है बॉस बहुत जल्दी समझ गये।


इवान:– सुबह 4 घंटे ध्यान और योग कम था जो अब प्रहरी के किताब में घुस गये।


ओजल:– हमे पसंद नही की आप पूरा दिन किताब से चिपके रहो। हम टीम मेंबर ने मिलकर फैसला लिया है...


आर्यमणि:– हां मैं सुन रहा हूं, आगे बोलो..


रूही:– आगे क्या... आज से किताब पढ़ने के लिये बस 4 घंटे ही मिलेंगे। 8 घंटे तुम 2 तरह के किताब को पढ़ो। 8 घंटे हमारे साथ और 8 घंटे सोना है। सोना मतलब अलग अपने कमरे में नही बल्कि हम सब साथ में बड़े से हॉल में सोयेंगे। और यही फाइनल है...


आर्यमणि:– कोई दूसरा विकल्प नहीं। 8 घंटे मैं यदि अपने कमरे में सो जाऊं तो...


अलबेली:– भैया बिलकुल नहीं। आप वहां जागते रहते हो और इधर हम सब को भी नींद नहीं आती। रोज 2–3 घंटे की नींद से आंखें सूज गयी है।


आर्यमणि:– मेरे जागने से तुम लोगों के नींद न आने का क्या संबंध है...


रूही:– हमारा मुखिया जाग रहा हो और हम सो जाये ऐसा हो नही सकता।


आर्यमणि के पास कोई विकल्प नहीं था सिवाय उनकी बात मानने के। आर्यमणि को अपने पैक की बात माननी ही पड़ी। एक वुल्फ पैक खुशहाली में चला। खट्टे मीठे नोक–झोंक और मस्ती–मजाक का साथ। हर किसी का अपना ही अंदाज था और सभी एक दूसरे से घुलते–मिलते चले।


नाइजीरिया से निकले 15 दिन हो चुके थे। मैक्सिको पहुंचने के लिये लगभग 15 दिन का सफर और बाकी था। पूरा अल्फा पैक अपने बड़े से हॉल में और हॉल के बीचों–बीच सुकेश के घर से चोरी किये हुये बक्से एक लाइन से लगे थे। हर बॉक्स पर उसकी संख्या लिखी थी और वुल्फ पैक चिट्ठी निकालकर पहला बॉक्स खुलने का इंतजार कर रहे थे। चिट्ठी ऊपर हवा में और आर्यमणि ने पहला चिट्ठी उठाया.… सभी एक साथ... "जल्दी से बताओ बॉस, किस बक्से का नंबर निकला"…. "तुम लोग तैयार हो जाओ छठे नंबर का पहला बक्सा खुलेगा"….


4 फिट चौड़ा, 10 फिट लंबा और 4 फिट ऊंचा 10 बक्से। छठे नंबर वाला बक्से को खोला गया। बक्सा जैसा ही खुला सबकी आंखें चमक गयी। अंदर 10ग्राम के सोने के सिक्के। आर्यमणि ने उस पूरे बक्से को ही पलट दिया.… "सब लोग जल्दी से इन सिक्कों की गिनती करो।"


आधे घंटे में पूरी गिनती समाप्त करते.… "बॉस 50 हजार सोने की सिक्के है।"


आर्यमणि:– हम्मम!!! यानी 500 किलो सोना एक बॉक्स में। जल्दी से बाकी के 9 बॉक्स खोलो...


पूरे अल्फा पैक ने तुरंत सारे बक्से को खोल दिया। सब में उतना ही सोना भरा था। वहां बिखरे सोने के भंडार को देखकर सभी की आंखें फटी रह गयी... "इतना सोना। जब इसे क्रेन से उठाकर लोड किया जा रहा था, तब मुझे लगा बॉस क्या ये लोहा–टीना के भंगार का वजन ढो रहे। साला इसमें तो कुबेर का खजाना छिपा था।"


आर्यमणि:– कुछ तो गड़बड़ है। ये ज्यादा से ज्यादा १००० करोड़ का सोना होगा। लेकिन १००० करोड़ को कोई अपने संग्रहालय में क्यों रखेगा। वो भी वहां, जहां अनंत कीर्ति और जीव–जंतु, जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र जैसी किताबे रखी हो। किसी जादूगर का दंश रखा हो। फिर ये लोग इतना वजनी और जगह घेरने वाले बक्से को क्यों उस जगह रखवाएंगे?


रूही:– हमे क्या करना हैं बॉस... १००० करोड़ .. इतना ज्यादा रूपया... मैं तो देखकर पागल हो जाऊंगी...


आर्यमणि बक्से को बड़े ध्यान से देख रहा था। आर्यमणि ने एक बक्से को पलट दिया और उल्टे बक्से को बड़े ध्यान से देखने लगा। कुछ भी संदिग्ध न मिल पाने की परिस्थिति में आर्यमणि ने एक हथौड़ा मंगवाया और पूरे बक्से के पार्ट–पार्ट को खोल दिया। हल्के और मजबूत धातु के 2 परत को जोड़कर हर शीट को तैयार किया गया था जिसकी मोटाई लगभग 4 इंच थी। शायद वजन सहने के हिसाब से शीट को बनाया गया था।


आर्यमणि हर शीट को बड़े ध्यान से देख रहा था। तभी उसे पता नही क्या सूझा और अपने क्ला से हर शीट को कुरेदने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे मेटल के ऊपर कोई नुकीली चीज से घिस रहा हो। हर शीट से मेटल के घिसने की आवाज आ रही थी जो काफी अप्रिय आवाज थी। लेकिन जिस शीट का इस्तमाल नीचे बेस के लिये किया गया था, उस शीट को जब आर्यमणि घिस रहा था, तब बीच का 3X3 फिट का भाग से खरोंच की आवाज निकालना बंद हो गया। उतने बड़े भाग पर जैसे बक्से में इस्तमाल हुये मेटल का रंग चढ़ाया गया था। बीच का हिस्सा जैसे ही आर्यमणि ने खरोचा, तब पता चला की वहां फोम इस्तमाल हुआ है। 2 सेंटीमीटर के फोम को जैसे ही निकला गया उसके नीचे 2.5 फिट लंबा, 2 फिट चौड़ा और 2.5 इंच की मोटाई वाला एक छोटा सा बॉक्स निकला।


जो मेटल पूरे बक्से को बनाने में इस्तमाल हुआ था, उस से कहीं ज्यादा मजबूत मेटल इस छोटे से बॉक्स में इस्तमाल किया गया था। 1mm की थिकनेस वाला यह मेटल हथौड़े के मार से भी नही टूटा। आर्यमणि ने सबसे पहले बाकी के 9 बक्से से वह छोटे बॉक्स को निकाल लिया। आर्यमणि के दिमाग में कहीं न कहीं यह भी घूम रहा था कि जिस छोटे से बॉक्स को बचाने के लिये इतना बड़ा जाल रचा गया है, हो सकता है बक्से के खुलते ही सुकेश एंड कंपनी को कोई सिग्नल मिल जाये।


जिस बक्से में 2500 किलो सोना रखा गया हो ताकि चुराने वाले को लगे की सुकेश भारद्वाज ने अपने संग्रहालय में खजाना रखा था। फिर ऐसा तो हो नही सकता की सुकेश ने उस बक्से को ढूंढने का कोई उपाय का इंतजाम न कर रखा हो। जरूर इस बक्से के खुलते ही सुकेश को जरूर चला होगा। आर्यमणि अपनी इस सोच पर इसलिए भी भरोसा कर रहा था, क्योंकि ऐसा पहले भी हुआ था। जबतक आर्यमणि ने सुकेश का संग्रहालय नही खोला था, तब तक तो सब ठीक था लेकिन जैसे ही संग्रहालय का दरवाजा खुला, सुकेश के साथ–साथ हर किसी तक सूचना पहुंच चुकी थी।


दूसरा समांतर सोच यह भी था कि जिस छोटे से बक्से से ध्यान भटकाने के लिये सुकेश 500 किलो सोना डाल सकता है, उस छिपे बॉक्स में आखिर ऐसा क्या होगा? इन दो सोच के साथ 2 समस्या भी दिमाग में चल रही थी। छोटा सा बॉक्स जो निकला था वह मात्र आयताकार ढांचा था, जिसे खोलने के लिये उसके ऊपर कुछ भी ऐसा हुक या बटन नही लगा था। एक छोटे बॉक्स के ऊपर तो हथौड़ा मारकर भी देख लिया लेकिन वह पिचका तक नही, टूटना तो दूर की बात थी। पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?
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