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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Tri2010

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भाग:–74





4 के विरूद्ध 1, लौडो के तो इज्जत पर बात आ गयी। 20 बार कोशिश कर चुके थे। सब थक कर बैठ गये और कोच ने फाइनल विसेल बजा दिया। उसे तो पहला ऑफर बॉयज की टीम से ही आ गया। ओजल सबको हाथ जोड़कर कहने लगी, वो सिर्फ 1 या 2 साल के लिये यहां आयी है और कोशिश कर रहे लोग कई सालों से कोशिश कर रहे है। वो टीम में सामिल नहीं होगी लेकिन जेरी और नताली को कुछ-कुछ स्किल सीखा सकती है।


फोर्स तो बहुत हुआ लेकिन ओजल नहीं मानी। कुछ देर में मैदान खाली हो गया। नताली और जेरी आमने-सामने। जेरी अपने घुटने पर बैठ गया और नताली को परपोज कर दिया। नताली ऐटिट्यूड दिखती… "नहीं, तुम मुझे पसंद नहीं।"..


ओजल हंसती हुई… "ये क्या ईगो सेटिस्फेक्शन था।"..


नताली हंसती हुई… "हां.. अपने परिचित को बोलो दोबारा परपोज करे।"..


शर्त सामने थी, और जेरी ने दोबारा परपोज कर दिया। दोनो ने एक्सेप्ट भी किया और एक दूसरे को चूमने भी लगे। लेकिन इन सब के बीच अचानक से ओजल लाइम लाइट में आ गयी। स्कूल में चारो ओर उसी की चर्चा और लोग उस से दोस्ती करने के लिये बेताब। शाम को तीनो ड्राइविंग स्कूल पहुंचे। आज तो वहां भी इनको क्लीन चिट मिल गया और साथ में कुछ कंडीशंस वाले ड्राइविंग लाइसेंस। तीनों बहुत खुश थे और आते ही… "बॉस, रूही… दोनो के लिये सरप्राइज है।"


दोनो अपने कमरे से बाहर निकलते… "क्या हुआ क्या सरप्राइज है।"


तीनों एक साथ…. "हमे ड्राइविंग लाइसेंस मिल गया.. वुहु।"


रूही:- कार खरीदकर ही आना था ना। और हां हमारी तरह फाइनेंस पर उठाना कार।


इवान:- वो क्यों भला..


आर्यमणि:- क्योंकि वक़्त कब बदले और कौन सा शहर हमे बुला रहा हो किसे पता। वैसे एक सरप्राइज और भी है, जो 50-50 में है।


ओजल:- कैसा सरप्राइज..


आर्यमणि:- सुनिश्चित नहीं है, लेकिन हो सकता है हम लोग जल्द ही एक्शन करते नजर आयेंगे। बहुत दिनों से लगता है तुमलोग भी बोर हो गये हो।


तीनों एक साथ… "कार छोड़ो चलो पहले एक्शन की तैयारी करते है।"


रूही:- नहीं-नहीं चलो पहले कार लेते है। वैसे कैसी कार चाहिए तुम तीनो को, कुछ सोचा है।


तीनों एक ही वक़्त में आगे पीछे लगभग एक ही बात कहे… सेवर्लेट" की वो चार सीटर मिनी पिक अप आती है ना वही।"


आर्यमणि:- तीनों थोड़े कम फिल्में देखा करो। चलो चलते है।


कार लेने के बाद पारंपरिक ढंग से स्वागत करके उसे गराज में लाकर लगाया गया। तीनों ऊपर बैठकर बातें कर रहे थे, रूही सबके लिए कुछ पका रही थी इसी बीच वो डॉक्टर अपनी पत्नी के साथ आ गया।.... "हमे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है। मैंने सोचा वीकेंड टूर प्लान कर रहे है और साथ में अपनी हॉट वाइल लिली (डॉक्टर की पत्नी) भी हो तो सफ़र का आनंद ही कुछ और होगा। तुम्हारे 1 मिलियन कौन से अकाउंट में ट्रांसफर करने है वो बताओ।"..


पैसों की लेनदेन पूरे होने के बाद आर्यमणि, डॉक्टर माईक और उसकी पत्नी से उसका मोबाइल लेकर… "आगे का सफर आप हमारे हिसाब से करेंगे डॉक्टर।"


डॉक्टर:- जैसी तुम्हारी मर्जी।


आर्यमणि ने रूही को उनके साथ एयरपोर्ट भेजकर ऊपर आया और तीनों को अकेले एयरपोर्ट पहुंचकर, साथ मैक्सिको चलने के लिये कहा। उनका काम था बिना खुद को जाहिर किये पीछा करना और नजर बनाये रखना की कोई हमारा पीछा तो नहीं कर रहा। यदि कोई हमारा पीछा कर रहा हो तो उसे सफाई से, रास्ते से हटा देना। उसके बाद किसी जंगल में शिकारी और वुल्फ जो मिलकर काम करते है, उनसे जाकर पहले मैं और रूही मिलने जायेंगे। तुमलोग 12 घंटे बाद जंगल के लिये निकलोगे। रास्ते में हम फूट प्रिंट छोड़ते जायेंगे, उसी हिसाब से आगे बढ़ना और हमारे सिग्नल का इंतजार करना। जैसे ही एक्शन शुरू होते है, तुम तीनो जंगल में फैले हुये दुश्मनों को लिटा देना और यदि तुम पर कोई खतरा आता है तब तुरंत आवाज़ लगाना।


सारी बातें क्लियर हो गयी और इधर तीनों ऑनलाइन टिकिट बुक करके जब रास्ते में थे…. "बॉस तो सिम्पल प्लान बता रहे है। देखो अगर ड्रग का धंधा करते है तो इनके पास कैश पैसा भी उतना ही होगा। इसलिए हमे प्लान में थोड़ी तब्दीली लानी होगी।"… इवान ने कहा..


अलबेली:- बॉस चमरी उधेड़ देंगे यदि पता चला कि हम पैसों को उड़ाने के बारे में सोच रहे थे।


ओजल:- कौन सा वो मेहनत का पैसा कमा रहे है। ज़हर का कारोबार करके कमाया है।


इवान:- और कौन सा हम बुरे काम करते है, हमारे खर्च के लिए भी तो पैसे ऐसे ही लोगों के पास से आये है। सो इन पैसे से हम कुछ लोगों के लिये कुछ ना कुछ अच्छा कर सकते है।


अलबेली:- गधों, तुम एक गैंग का पैसा लोगे और इन पैसों के पीछे 4 गैंग वाले पड़ जायेंगे। फिर रोज लफड़े, फिर रोज झगड़े और अंत में यहां से जाना होगा।


ओजल:- हां लेकिन कहीं हमे कैश लेकर आना पड़ा तो, उसकी तैयारी तो करनी होगी ना। बॉस ने नहीं सोचा तो क्या हुआ, हम एक ट्रक लेकर चलेंगे, बॉस के पास प्रस्ताव रखेंगे। मान गये तो ठीक नहीं तो कोई बात नहीं।


अलबेली:- दोनो भाई बहन मिलकर चुरण तो नहीं दे रहे। कोई बेवकूफी मत करना, अपनी मर्जी से खुलकर जीने का मौका मिला है, मै इसे ट्रैवलिंग में बर्बाद नहीं करना चाहती।


इवान:- तुम्हारे बिना पत्ता भी नहीं हिलेगा, अब खुश।


अलबेली:- हां बहुत खुश।


पांचों एक ही प्लेन में उड़ान भर रहे थे लेकिन अलग-अलग। 360⁰ की आंखें थी सबकी और चारो ओर नजर दिये हुए थे। फ्लाइट मैक्सिको लैंड हुई और सब अपने-अपने रास्ते। इवान, ओजल और अलबेली सीधा पहुंचे मैक्सिको के काला बाजार। वहां से उन्होंने 4 कटाना खरीदा और आर्यमणि के लिए 2 सई वैपन। एक वैन में ट्विंस सवार हो गए और एक पिकअप लेकर अलबेली उनके पीछे बढ़ी।


तीनों जाकर रात के लिये होटल में रुके, और अगली सुबह आर्यमणि के मार्क रास्ते पर चल दिये… एक बड़े सा पाऊं का निशान आर्यमणि और रूही ने बनाया था। तीनों समझ गये उन्हें इस पॉइंट पर रुकना है।


दोनो गाड़ी पार्क करने के बाद तीनों साथ हुये… "ये सुपरनैचुरल और शिकारी की भिड़ंत ऐसे घने जंगलों के बीच क्यों होता है? यहां का माहौल देखकर ही लोगों को हार्ट अटैक आ जाये।"… जंगल के शांत और खौफनाक माहौल को मेहसूस करती, अलबेली कहने लगी।


ओजल:- ऐसा लग रहा है वो.. "दि रिंग".. मूवी में चुड़ैल के कुएं के पास जैसा हॉरर इफेक्ट डाला था, वैसा ही यहां भी डाले है। कहीं सच में कोई चुड़ैल हुई तो?


इवान:- काम पर ध्यान दे, बॉस और रूही रात से यहां है?


"रुको, एक मिनट, ऐसे आगे मत बढ़ो।"… इवान ने दोनो को रोकते हुये कहा।


ओजल:- अब क्या हुआ, काम पर ही ध्यान देने जा रहे है?


इवान:- पाऊं के निशान देखी हो, दोनो ने ऐड़ी से गड्ढे बनाये है, इसका मतलब है रुको, आगे कुछ खतरा है। खतरे को भांपकर फिर आगे बढ़ो।


अलबेली:- हम्मम ! चलो हम फ़ैल जाते है और इस सीमा के बाहर रहकर देखते है आगे कोई खतरा है कि नहीं.…


ओजल:- फुट साइन देखो, क्रॉस है, मतलब आगे बढ़ना ही नहीं है। बॉस ऐसा कैसे कर सकते है।


"वो कर सकता है।".… पिछे से एक आवाज आयी और तीनों चौंककर देखने लगे.. ओजल और अलबेली उसे घेरती.. "तुम कौन हो।"..


आदमी:- मुसाफिर, इस जंगल का मुसाफिर..


इवान:- ये भी हमारे साथ फ्लाइट में था। हमारे साथ ही चला था बर्कले (कारलीफॉर्निया) से।


आदमी:- मेरा नाम बॉब इवानविस्की है, यहां आते–जाते रहता हूं। तुम तीनों चाहो तो मेरे साथ अंदर तक चल सकते हो, या आगे जाने का खतरा मोल लोगे मना करने के बावजूद, ये तुम्हारी मर्जी है।


तीनों आपस में कुछ बातें की और उसके साथ जाने के लिए हामी भर दी। वो आदमी बॉब वहां खड़ा होकर किसी को कॉल लगाया और थोड़ी देर बाद 2 जीप वहां पहुंच गई। उस जीप में तीनों सवार होकर निकल गये। बॉब किसी रॉस्ले नाम के आदमी से मिला, उसने एक बैग बॉब को थमा दिया। बॉब बाग को अपने पास रखते... "रॉस्ले, ये कुछ नए लोग धंधा करना चाहते है, इन्हे धंधा समझा दो। जो भी माल लेंगे कैश लेंगे, बस धंधा पहली बार कर रहे है।"..


रॉस्ले:- थैंक्स बॉब…. क्यों किड्स क्या बेचना पसंद करोगे।


ओजल:- जो सबसे ज्यादा नसिला हो, एक कश और दुनिया हील जाये।


रॉस्ले:- हाहाहाहा… तुम्हारा पैक कहां है।


इवान:- हमे पैक की जरूरत नहीं, हम पहले से ही पैक में है। दि अल्फा पैक। लेकिन पैक और वुल्फ वो ताकत नहीं देते जो ये पैसा देता है।


रॉस्ले:- धंधे में तुम जैसे ही सोच वाले लोग तो चाहिए। सुनो बॉब इतने शानदार लोगो से मिलवाने के लिए आज रात का जश्न मेरे ओर से। तुम तीनों रेस्ट करो, मै कुछ लोगो से बात करके तुम लोगो को धंधे के बारे में सब बताता हूं, वैसे माल कितने का लोगे।


अलबेली:- एक दिन में कितने का बिक जाता है।


रॉस्ले:- कोई लिमिट नहीं है, यहां हम बिलियन का माल सेकंड में बेच देते है।


अलबेली:- ठीक है 1 मिलियन का माल शुरवात के लिये।


रॉस्ले:- धंधा नया शुरू कर रहे हो ना..


इवान:- कम है क्या, ठीक है 5 मिलियन का खरीद लेंगे।


रॉस्ले, उन्हें गन प्वाइंट पर लेते… "9 एमएम सिल्वर बुलेट, इधर गोली अंदर और जान बाहर। बॉब के कारण अपन तुम्हारा इंक्वायरी नहीं किया और तुम फिरकी ले रहा है।


ओजल अपना अकाउंट स्टेटस दिखती… "तुम्हारी औकात नहीं हमरे साथ धंधा करने की। चलो सब"..


बॉब:- अरे बेवकूफों रॉस्ले कह रहा है पहले 10 हजार का माल लो, रिस्क और मार्केट देखो, फिर धीरे-धीरे धंधा बढ़ाओ। पहली बार आये हो। धंधा पहली बार कर रहे हो और तुम्हे 5 मिलियन का माल चाहिए, कोई भी चौंक जायेगा।


रॉस्ले:- ये किड्स बहुत आगे तक जायेगा बॉब। आज तूने अपनी बिरादरी वालो को अपने पास लाकर दिल खुश कर दिया है। रात यही रुक और आराम से पार्टी करके जाना।


बॉब:- रॉस्ले तुम जानते हो मै रुक नहीं सकता..


ओजल:- बॉब हमारे लिये रुक जाओ।


रुक गया बॉब। चारो हाथ में बियर लिये जंगल में भटक रहे थे, तभी ओजल बॉब से उसकी पहचान पूछने लगी। उसने कुछ नहीं बताया सिर्फ इतना ही कहा वो अपने काम के वजह से यहां है, अगर वो तीनो अपने साथी को छुड़ाकर यहां से निकलने में कामयाब हो गये, तो उसके पते पर आकर मिले। बॉब इसके आलवा कोई जानकारी नहीं दिया और उन्हें जंगल घुमाते-घुमाते एक और सीमा तक ले आया…


"इस रास्ते पर चलते जाओगे तो आगे तुम्हे फार्मिंग दिखेगी, वहीं तुम्हारे साथी कैद है। एक बात याद रहे इसके अंदर यदि तुम पकड़े गये, फिर कभी वापस लौटकर नहीं आ सकते। रॉस्ले अच्छा आदमी है, लेकिन मजबूर। यदि सबको बचाते हो तो उसे भी निकाल लेना। वो जितने लोगो को निकालना चाहे उसकी मदद कर देना। तुम्हारे हथियार तुम्हारे कमरे में पहुंच गये है, बेस्ट ऑफ लक।"


इसके ठीक पूर्व रात के समय छिपते-छिपाते जैसे ही रूही और आर्यमणि वहां पहुंचे उन्हें ट्रैप कर लिया गया। गले में सिल्वर का पट्टा, जिसके अंदर करंट। एक बार करंट का कमांड दिया उन लोगो ने, तो रूही और आर्यमणि गला पकड़ कर बैठ गये और रहम की भीख मांगने लगे। उन्हें बेबस देखकर वो शिकारी हंसे और, हाथ और पाऊं में भी ठीक वैसा ही पट्टा लगा दिया। ये डॉक्टर माइक और लीली का बिछाया जाल था जिसमे दोनो जान बूझकर फंस चुके थे।


डॉक्टर माईक और लिली को वहां रुकना पड़ा, क्योंकि एक पुरा दिन आर्यमणि और रूही का काम देखने के बाद ही उनको रात में पेमेंट मिलती। वहां वुल्फ का काम देखकर आर्यमणि दंग था। कई किलोमीटर तक का फैला फार्म, और नशे के पौधों को पानी की जगह वुल्फ ब्लड से सीचते थे। एक रात में वुल्फ ब्लड से सींचकर पुरा पौधा तैयार कर लेते थे।… दोनो ने जब यहां का हाल देखा, आखों के सामने हैवानियत का ऐसा नजारा देखकर दंग थे…. "बॉस ऐसा भी होता है क्या?"..


आर्यमणि:- दुनिया इनोवेटिव हो गयी है रूही। ये नया अनुभव भी करो और दिमाग को पूरा काबू में रखकर ये देखने की कोशिश करो, इन लाचारों को कैसे बचाएं।


एक रात से अगले दिन का शाम के 5 बज रहे थे। शाम का वक्त था, लेकिन जंगल के अंदर घनघोर अंधेरा, ऐसा लग रहा था अमवस्या की रात थी। रूही और आर्यमणि दोनो आसपास लेटे थे। रूही बेसुध कोई होश ही नहीं, उसी की तरह बाकियों की भी हालत थी। उस बड़े से फार्म में सकड़ो वेयरवॉल्फ थे, जिनके हाथ, पाऊं, और गले में चांदी के पट्टे लगे थे। हर पट्टे मोटी जंजीर से लगा हुआ था। कोई अपनी मर्जी से खून बहाता तो ठीक वरना पट्टे के अंदर लगे हाई वोल्टेज वाले करेंट को जैसे ही ट्रिगर किया जाता, वुल्फ मिर्गी के रोगी समान छटपटाते बेहोश हो जाते। बेहोश वुल्फ के हाथ से खून निकलना कौन सी बड़ी बात थी। उनके शरीर से कतरा-कतरा खून का निचोड़ लिया जाता था।


आर्यमणि बड़ी सफाई से अपना पट्टा खोल चुका था। अपने दांत से होंठ को काटकर खून निकाला और रूही के होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगा। जैसे ही खून का कतरा रूही के अंदर गया, गहरी श्वांस लेती वो अपने आखें खोल ली और पागलों की तरह खून चूसने लगी। होश ही नहीं कुछ भी बस चूसती रही। तभी रूही के कान में वुल्फ साउंड सुनाई दिया। यह आवाज ओजल, इवान, और अलेबली की थी। इधर बॉब ने जैसे ही आर्यमणि और रूही का पता बताया। तीनों अपने कमरे से हथियार निकालकर उस सीमा तक पहुंच चुके थे जिसके आगे फार्मिंग शुरू होती थी और वहीं से खड़े होकर वुल्फ साउंड दे रहे थे।


रूही होंठ छोड़कर जैसे ही वुल्फ साउंड का जवाब देने के लिए मुंह खोली… "नहीं, मत आवाज़ दो, उनको निपटने दो। हमे वक़्त मिल गया है इन सबको बचाने का। जबतक ये लोग टीन्स के साथ उलझे है, तुम सबको खोलो। तुम्हे सिल्वर एलर्जी तो नहीं।"..


रूही:- आर्यमणि, तुम्हारी हालत जारा भी ठीक नहीं, तुम्हारे बिना हम यहां से कैसे निकलेंगे?


आर्यमणि, रूही को घूरते.… "ओय पागल मैं मारने वाला नही जो इतने शोक में डूबकर बातें कर रही हो। अब जो कहा है वो करो, या डर लग रहा है सिल्वर एलर्जी का।


रूही मस्ती में आर्यमणि के होंठ चूमती… "तुमने कहा है ना… एलर्जी होगी भी, तो भी करूंगी। जल्दी से रिकवर हो जाओ, सब साथ घर चलेंगे।"


वुल्फ साउंड जैसे ही आया… बॉब अपना सर पीटते… "ये टीन, एंट्री तो बहुत समझदारी वाली मारे थे लेकिन ये क्या बेवकूफी कर गये।


यहां की जगह व्यूह जैसी बनी थी। ड्रग्स माफिया के इलाके में घुसते ही पहला दायरा 200 मीटर का था। ये दायरा प्रवेश द्वार पर खड़े सुरक्षा कर्मी के अंदर आता था। इनका काम था किसी बाहर वाले को 200 मीटर के आगे न जाने दे। 200 मीटर के आगे सुरक्षा कर्मी की सीमा थी। ये लोग वहां से अंदर 300 मीटर की सुरक्षा देखते थे। कोई भटका हुआ उनकी से सीमा में आ जाये तो उन्हे प्रवेश द्वार वाले सुरक्षा कर्मी के पास पहुंचाना इनका काम था। हां लेकिन कोई इनकी बात न माने तो सीधा गोली मार देते थे। कुल 500 मीटर के दायरे में 2 सुरक्षा कर्मी की टीम तैनात थी। और उसके आगे फार्मिंग का इलाका शुरू होता था जो मिलो फैला था और वहां की सुरक्षा एक बड़े से मिलिट्री बंकर से करते थे।
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Tri2010

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भाग:–75





आखरी सीमा फार्मिंग की सीमा। इसके मध्य में एक बड़ा सा मिलिट्री बंकर था, जहां से हर सीमा की निगरानी से लेकर तरह–तरह के हथियार और बेहतरीन लड़ाका द्वारा पूरे क्षेत्र को नियंत्रण में रखा जाता था। फार्मिंग के इलाके में सैकडों कैदी वेयरवुल्फ थे। उनके खून से नशीले पौधों की सिंचाई की जाती थी। यहां हर वूल्फ को सिल्वर पट्टे डालकर जंजीर से बांधकर जमीन पर लिटा दिया जाता था। उनके नब्ज में 8-10 नीडल घुसकर, 8-10 खुले पाइप खेत के क्यारियों में छोड़ दिया जाता था। हर वूल्फ का ब्लड पाइप के जरिये मिट्टी तक पहुंचती। तीनों टीन वुल्फ फार्मिंग सर्कल के बॉर्डर पर खड़े होकर आवाज लगा रहे थे।


ओजल:- कमाल का वुल्फ साउंड था दोस्तो, वापस साउंड नहीं आया मतलब उन्हें वक़्त चाहिए, तबतक हाथ ना आओ, जबतक बॉस और रूही दीदी की आवाज ना सुनो।


अलबेली:- तो चलो बॉस और रूही वक़्त दिया जाये, जितना हम दे सकते है। आज जो कुछ भी ट्रेनिंग से सीखा है उसका प्रेक्टिकल देने क वक्त आ गया दोस्तों...


इवान:- सोचा था बाद में कभी कह दू, लेकिन मै कहे बिना रह नहीं पाऊंगा, क्या पता सब जब नॉर्मल हो तो मै हिम्मत जुटा पाऊं या नहीं, माझे आयुष्य अलबेली, आई लव यू…


दोनो लड़कियां इवान का मुंह देखने लगी, अलबेली हंसती… "ये कब हुआ, ना कोई सीन बना, ना कोई रोमांटिक-एक्शन मोमेंट क्रिएट हुआ, सीधा लव हो गया। ओजल तुझे कुछ समझ में आया।"..


ओजल:- लगता है एक्शन के एक्साइटमेंट में तुम्हे हग करके किस्स करना चाह रहा है। जल्दी इसे किस्स दे दे और काम पर लग जा, इस बारे में आराम से सोचेंगे।


अलबेली, इवान का कॉलर पकड़ कर अपने ऊपर खींचती.. "एक किस्स के लिए इतनी झिझक"… कहते हुए अलबेली ने इवान के कमर में हाथ डाला और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगी।


तभी वहां खास किस्म का तेज और लाउड म्यूज़िक प्ले होने लगा। वेयरवोल्फ हंटर द्वारा प्रयोग में लाया जाना वाला एक आधुनिक हथियार। इसके धुन को कुछ इस प्रकार बनाया गया था जिसे सुनकर हर वुल्फ अपना सर पकड़कर वहीं बैठने पर मजबूर हो जाये। म्यूजिक के शुरू होते ही ओजल के चेहरे पर खिंचाव सा गया। ओजल दोनो को एक हाथ मारते… "केवल किस्स ही कर रहे थे ना, हरामियों गुम किधर हो। हमे फसाने के लिए एक्शन शुरू हो गया है। आंह्हहह !! इनकी ये घटिया म्यूज़िक।"


इवान अपने बैग से इयर कैप निकला, खुद भी लगाया और दोनो को भी पहनने के लिये दिया। तीनों इयर कैप पहनकर वहीं नीचे जमीन पर सर पकड़ कर बैठ गये। थोड़ी ही देर में एक जीप भड़कर वहां शिकारी पहुंचे। शिकारियों ने उन्हें घेर लिया और सभी हंसते हुए जीप से नीचे उतरे… और आपस में बात करते.. "साला एक को पकड़ो और पुरा पैक हाथ लग जाता है। लेकिन ये पहला सर्किल कैसे पार किये।".... "पहले इनमे इलेक्ट्रिक शॉक प्रड्स (वो रॉड जिसके सिरे से इलेक्ट्रिक शॉक लगता है) घुसा दे, फिर कल इसपर मीटिंग करेंगे।


तीनों के हाथ जमीन पर और हाथ में थी, म्यान के अंदर कैद कटाना। अलबेली ने एक छोटा इशारा किया और तीनों ने पूरी ताकत से, नीचे बैठे-बैठे उन लोगों के टखने पर, काटाने के म्यान से ऐसा हमला किया कि उनका टखना चूर हो गया।


तीनों एक साथ बिल्कुल ऊंचे सुर में लगातार वूल्फ साउंड निकलते.… "वूऊऊऊऊऊऊऊ"… "वऊऊऊऊऊ"… "वूऊऊऊऊऊऊऊऊ"… यह ललकार वाली वुल्फ साउंड थी। तीनो अपने दुश्मनों को चुनौती दे रहे थे। शिकारी और वेयरवुल्फ के बॉस ने जब यह वूल्फ साउंड सुना, बंकर से शिकारी और वोल्फ की पूरी टुकड़ी को आवाज के पीछे भेज दिया। इसके साथ दोनो सीमा के सुरक्षा कर्मी को भी इनके लगा दिया गया।


तीनों के कंधे तिकोने शेप में जुड़े थे जो बीच से एक ट्राइंगल का निर्माण कर रहा था। कटाना अपने म्यान से बाहर आ चुका था और तीनों एक दूसरे को कवर करते धीरे-धीरे अन्दर, उनके फार्मिंग एरिया के ओर बढ़ रहे थे। कुछ दूर चले होंगे तभी रॉस्ले अपनी टीम के साथ पहुंच गया। जानी पहचानी गंध पाकर अलबेली वूल्फ साउंड में दहारी, ऐसा जैसे वहां के बीटा को कंट्रोल कर रही हो। रॉस्ले और उसके साथ आये 10 वुल्फ अपनी जगह रुक गए, जिसमें कोई अल्फा नहीं था।


ओजल:- रॉस्ले हमसे दूर रहो वरना कटाना खुल चुकी है और अब ये दोस्त या दुश्मन नहीं देखेगी। आज रात सब आजाद होंगे।


इधर उस जगह के बॉस का पूरा ध्यान अपने 3 दुश्मनों पर था, जिसने वुल्फ को पागल बनाने वाले म्यूज़िक से खुद को बचाकर अंदर की ओर बढ़ रहे थे। उसके मोशन सेंसर पर तीनों वूल्फ की लोकेशन आ रही थी जो तिकोना बनाकर एक दूसरे को कवर करते हुए चल रहे थे। उस बॉस का पूरा ध्यान सीमा पर था और फार्म के अंदर रूही एक-एक करके बड़ी तेजी के साथ कैदी वूल्फ को खोल रही थी। लगभग 20 वुल्फ को वो छुड़ा चुकी थी, तभी वहां चारो ओर बड़ी-बड़ी लाइट जलनी शुरू हो गई। माईक पर एक खतरनाक अनाउंस…


"तुम्हारा कोई भी पैक हो, उसे तुम ले जाओ, हमे यहां वॉयलेंस नहीं चाहिए। लेकिन यदि तुम तीनों ने लड़ाई नहीं रोकी तो मै यहां कैद सभी वुल्फ को मारने में देर नहीं करूंगा। हम अपने आदमी पीछे कर रहे है, तुम अपना ट्राइंगल छोड़कर अपने पैक को पहचान लो, और यहां से लेकर जाओ।"


ओजल:- क्या करे.. ?


इवान:- टाइम पास ही तो करना है, ध्यान से फ़ैल जाओ और हवा को मेहसूस करो। हम अपने अलग-अलग पैक चुनेंगे। 14, 16 और 14 का पैक। साले को शॉक्ड दे दो।


तीनों ने ट्राइंगल तोड़ा और ऐतिहात से आगे बढ़ने लगे। बंकर के अंदर बैठा बॉस जैसे ही तीनों को रौशनी में देखा… "ये तो टीन वुल्फ है, कसिके पैक के वोल्फ है।"


साथ काम करने वाला एक अल्फा वुल्फ… "तीनों अल्फा है बॉस।"


बॉस शॉक्ड होते… "लेकिन 3 अल्फा वुल्फ एक साथ कैसे आ गये।"


अल्फा वुल्फ:- शायद अलग-अलग आये हो। अंदर के किसी ने मदद की हो और तीनों को साथ मिलकर लड़ने के लिये भेजा हो।


बॉस:- लड़ाई करके क्यों नुकसान बढ़ना जब खुद फसने चले आ रहे है। वुल्फ पॉयजन का ट्रनकुलाइजर तैयार करो, और तीनों को बेहोश करो, जल्दी।


बॉस का हुक्म मिलते ही अल्फा वुल्फ का इशारा हुआ और लगभग 20 ट्रंकुलाइजर एक साथ अलबेली, इवान और ओशुन के ओर बढ़ने लगे। तीनों की आंखें तो खुली थी लेकिन मन तो हवा की तरह बह रहा था। सामने से आ रही ट्रक्यूलाइजर को तीनों स्लो मोशन में बढ़ते हुये देख रहे थे, जबतक वो बुलेट शरीर तक पहुंचती, कटाना को इतनी तेज गति से आगे ओर घुमाया सभी ट्रानकलाइजर बर्बाद होकर भूमि पर गिर गया।


तीनों उस माहौल को थर्राते हुए एक बार फिर ऊंची-लंबी वोल्फ साउंड निकालते… "तूने क्या हमे शिकार समझ रखा है जो झांसे में आयेंगे।.. इस दहाड़ पर तो केवल थर्राया होगा, कहीं हमारे बॉस ने अपनी दहार सुनाई, फिर तुम शिकारियों का पेशाब निकल जायेगा।".. इवान ने धमकाया


ओजल:- बस कर इवान कहीं डर से ना मर जाये..


उस फार्म का बॉस.… "अभी तक तो मैंने सोचा था कि तुम्हे केवल बेहोश करके गुलाम बनाऊंगा, लेकिन तुम्हारी किस्मत में मरना लिखा है। सिल्वर बुलेट लोड करो और पूरी एक मैगजीन खाली होने पर ये तीनों नहीं मरे तो फार्म से किसी भी 3 वूल्फ की लाश गिरा देना। पिलर में फिट किये बड़ी–बड़ी नली वाले 20 हैवी गन बंकर में लगा था। एक मैगजीन मतलब लगभग 1000 राउंड का बड़ा सा चटाई लोड हो रहा था।


इधर बातचीत का दौर शुरू होते ही रूही अपने काम पर और तेज़ी से लग गयी। तभी फार्म में मौजूद हर वूल्फ को भूमि की सतह पर कुछ होने का एहसास होने लगा। चारो ओर जो हरे पौधे और उसके ऊपर का फूल लगा था, मुरझा कर झुलस गया। आर्यमणि खेत की मिट्टी में पूरा पंजा घुसाकर वहां के पूरे पोषण के साथ उसके अंदर के टॉक्सिक को भी खींच चुका था। मिट्टी के साथ–साथ पौधों के जड़ों से भी आर्यमणि पूरा पोषण खींच चुका था। जिसका नतीजा यह हुआ कि कई किलोमीटर में फैले इस फार्म की पूरी फसल झुलस गयी।


कहानी यहां 2 हिस्सों में चल रही थी। एक ओर तीनों टीन वूल्फ, अलबेली, ओजल और इवान जंगल के शिकारी और वूल्फ को सामने से चुनौती दे रहे थे, वहीं रूही यहां कैद वूल्फ को करंट दौड़ रही चांदी कि जंजीर से आज़ाद करने में लगी हुई थी। यहां का बॉस तो बंकर में था और उसकी नजरें स्क्रीन पर तीनों टीन वूल्फ को ही मॉनिटर कर रही थी, इसलिए उसने सीधा अलबेली, ओजल और इवान पर हमला करवा दिया।


और इधर इवान, ओजल और अलबेली भी पूरा तैयार थे। तीनो ही पूर्ण रूप से जैसे वातावरण में समा गये थे। वहां के कण–कण को मेहसूस कर रहे हो जैसे। हवा के परिवर्तन को मेहसूस करते तीनो बिलकुल हवा की भांति लहराते, जब अपने कटना को चलाने लगे.… फिर तो बॉस के स्क्रीन पर न तो ठीक से तीनो टीन वुल्फ नजर आ रहे थे और काटना को तो नंगी आंखों से देखा ही नहीं जा सकता था, बस ऊसके लहर को मेहसूस किया जा सकता था।

"बॉस जल्दी काम ख़त्म करो। हमे यदि सिल्वर बुलेट छु भी लेती है तो हम इमर्जेंसी साउंड भेजेंगे। अभी हमें नहीं मरना।".. इवान ने आर्यमणि के गुप्त संदेश भेजा


तीनों टीन वूल्फ पर सिल्वर बुलेट की फायरिंग हो रही थी। रूही की चिंता सातवे आसमान पर पहुंच गयी। टीन वूल्फ अभी थे तो बच्चे ही। रूही जल्दी-जल्दी अपना काम समेट रही थी। तभी हवा का झोंका सा आर्यमणि, रूही के पास से गुजरा, जो कहता गया.… "तुम जल्दी से सभी कैदी को छुड़ाकर किनारे करो। बंकर की बुलेट फायरिंग मै रोकता हूं।"


रूही थोड़ा और समय ली। बचे हुये वुल्फ की बेड़ियां खुल चुकी थी और इधर सिल्वर बुलेट तो चल रही थी, लेकिन तीनों लहराते हुये क्या ही कटाना चला रहे थे। बुलेट तो जैसे कटना के आगे सरेंडर कर चुकी थी। जैसा कि शिकारियों के बॉस ने पहले कहा था... "सिल्वर बुलेट फायर करो, यदि पूरी मैगज़ीन खाली होने के बाद भी टीन वूल्फ नहीं मरे तो फार्म में कैद किसी भी 3 वूल्फ को मार देने।"… बंकर से इनकी सिल्वर बुलेट टीन वूल्फ पर फायरिंग हो रही थी। सभी सिल्वर बुलेट कटाना की धार को मज़ा चखने के बाद दम तोड़कर टीन वूल्फ के कदमों में बिछ जाते।


पूरे मगजिंन खत्म भी नहीं हुआ था कि एक तेज दहाड़ उस जंगल में गूंजी… किसी शक्तिशाली और आक्रमक वेयरवुल्फ की दिल दहला देने वाली, हमला करने की तेज दहाड़। बंकर में बैठा शिकारियों के बॉस के पास वाला अल्फा वुल्फ बिल्कुल शांत होकर अपना सर पकड़ लिया। इधर चोट खाये और कैद में फंसे वूल्फ जो खुद को जल्दी हील कर सकते थे, आर्यमणि की एक आवाज पर बंकर के अंदर दौड़ लगा चुके थे। लेकिन बंकर माउंटेन एश से घिरी हुई थी। बौखलाये कयी वेयरवुल्फ माउंटेन एश की खींची लाइन के बाहर खड़े होकर अपने गुस्से की दहाड़ से शिकारियों के बॉस को जाता रहे थे कि आज उनका दिन है।


आर्यमणि भी उन चोट खाये वेयरवुल्फ की मनोदशा को भांपकर माउंटेन एश की रेखा को मिटा दिया। रेखा मिटते ही सभी गुस्साए वूल्फ बंकर में घुसे। आर्यमणि सबसे आगे रहकर सीधा शिकारियों के बॉस को पकड़ा और उसके शर्ट के कॉलर को दीवार के खूंटी से टांग दिया। तकरीबन 40 शिकारी और 20 वुल्फ वहां बंकर में थे और आर्यमणि के साथ उनके विरुद्ध लड़ने के लिए कुल 20 गुस्साए वेयरवुल्फ ही पहुंचे थे, बांकी के कैदी वूल्फ लड़ने क्या उठने की हालत में भी नहीं थे।


आर्यमणि का ध्यान उस ओर तब गया जब एक कैदी वुल्फ की दर्द भरी चींख आर्यमणि के कानो तक पहुंची। आर्यमणि अपनी दोनों मजबूत भुजाएं फैलाकर पूरे रफ्तार से दौड़ा। अपनी चौड़ी भुजाओं के बीच 5-6 शिकारियों को एक साथ समेटकर, दौड़ते हुए दीवार से बिल्कुल चिपका दिया और कतार में सबसे आगे खड़े शिकारी के सीने पर एक जोरदार लात दे मारा। ऐसा लग रहा था आर्यमणि जानने कि कोशिश कर रहा कि क्या होगा जब.… 6 मजबूत लोगों कि कतार को एक साथ दीवार से पहले टकरा दिया जाये और फिर उसके ऊपर 1 लात जमाकर चेक किया जाये कि ये मजबूत इंसान कितना चपटा हो सकते है।


आर्यमणि अपने थेओरी पर एक्सपेरिमेंट कर चुका था। परिणाम भी काफी रोचक आये। आर्यमणि की लात कतार में आगे खड़े 3 शिकारी के पेट फाड़कर अंदर घुस गया था। और बचे 3 शिकारी के शरीर के सारे अस्तिपनजर के ऐसे चिथरे हुये की मौके पर ही दम तोड़ दिये। अंत में नतीजा यही आया, मानव शरीर भी उसके दिमाग की तरह बड़ा ही ईगो वाला होता है। मरना या टूटना मंजूर है लेकिन चपटा होना वसूलों के खिलाफ है। तत्काल दूसरी थेओरी भी आर्यमणि के दिमाग में आ गयी, क्या हो जब एक तेज गति से उड़ता नारियल दूसरे नारियल से टकरा जाये? क्या दोनों नारियल को मात्र दर्द होगा या फूट जायेगा? और फूटेगा भी तो फूटने का ब्लास्ट इमापैक्ट कैसा होगा? क्या बस छोटा लाइन मात्र फटकर पानी निकलेगा या चिथरे हो चुके होंगे?


थेओरी दिमाग में थी। एक्सपेरिमेंट में लिए थोड़ा झुक कर एक वूल्फ का पाऊं पकड़ कर खींच दिया। बेचारे का चेहरा धम्मम से फ्लोर पर टकराया। सर नीचे जमीन पर था और आर्यमणि उसका एक पाऊं पकड़कर हवा में किसी मुर्गे की तरह उठाये हुआ था। हां लेकिन इस मुर्गे को छीलकर बिरयानी तो बनानी नहीं थी। नारियल कॉलिजन पर एक्सपेरिमेंट करना था। इसलिए आर्यमणि ने तेज़ी से हाथ घुमाया। वूल्फ का सर ऊपर हवा में और अगले ही पल धैर पैट दूसरे वूल्फ के सर पर पटक दिया...


चीटिंग कर दिया आर्यमणि ने। थेओरी में तो केवल टकराना चेक करना था, लेकिन अमाउंट ऑफ फोर्स को उसने फिक्स ही नहीं किया। अपनी पूरी क्षमता से बूम… टकरा दिया, एक के ऊपर दूसरे का सर। वो टक्कर ऐसी थी मानो विस्फोट हुआ हो। विस्फोट की आवाज सुनकर दुश्मन और दोस्त सभी आवाज के ओर देखने लगे। हर किसी के मुंह पर सर के चिथरों के छीटें आकर पड़े। खैर इस थेओरी का एक्सपेरिमेंट विफल रहा, लेकिन परिणाम देखकर दुश्मन खेमे में ऐसी खामोशी छाई कि वो लोग दोनों हाथ जोड़कर कहने लगे.… "भाई-भाई नो मोर ह्यूमैन ट्रॉयल"


आर्यमणि ने ओके करके अपने दोनो हाथ खड़े कर दिये और बाकी कैद किये गये गुस्साये वूल्फ को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हुए कहने लगा.…. "तुम लोगो के जो भी शिकार है, आज छोड़ना मत। बस केवल याद रहे मै जबतक खड़ा हूं कोई अपने दांत लगाकर खून नहीं पियेगा और मांस नहीं नोचेगा।"..


नीचे रूही अब भी कई कैद वुल्फ को छुड़ाने में लगी थी। वहीं कुछ और वुल्फ रूही की मदद कर रहे थे। तीनो टीन वुल्फ तो आज जैसे कहर का पर्यावाची शब्द बन गये थे। शिकारियों और वुल्फ की टीम इनके आस पास में ही थे। बुलेट फायरिंग रुकते ही तीनो सैकड़ों दुश्मन के बीच घिरे थे। रूही दूर से जब यह नजारा देखी, पूरे तेजी से भागना शुरू की। और जितनी तेज वो दौड़ना शुरू की थी, धीरे–धीरे गति अपने आप ही कम होने लगी।


रूही जब दौड़ना शुरू की तब भी भीड़ लगा ही हुआ था। बस बीच से हवा में कटे हुये हाथ, पाऊं और सर ही नजर आ रहे थे। चारा काटने की मशीन में जैसे चारा को कुतरा–कुतरा कर के काट देते हैं ठीक उसी प्रकार तीनो की कटाना लहरा रही थी। और लहराने की गति का तो कोई आकलन ही नहीं था। जब तक रूही वहां पहुंची तब तक तीनो ने मिलकर लाशें बिछा दी थी। बस एक टीम थोड़ी दूर बैठकर यह पूरा तमाशा देख रही थी। रूही के हाथ कुछ न लगा तो वो लास्की और उसके साथ खड़े 4 वुल्फ पर ही कहर बनकर बरसने वाली थी।


अलबेली उसे बीच मे ही रोकती... "रूको, ये अपने साथ में है।"


रूही:– हुंह… ये भी उनके साथ है और मेरा शिकार है...


ओजल:– क्ला और फेंग से मरोगी तो बॉस को क्या जवाब दोगी...


रूही:– बॉस बंकर में एक्शन कर रहा तुम तीनो ने यहां सबका सफाया कर दिया। मेरे लिये कुछ तो छोड़ा होता।समाज सेवा के काम पर लगा दिये। अब क्या मैं इन बचे लोगों का भी शिकार न करूं?


अलबेली, चिल्लाती हुई... "बस करो.. हमने कहा न वो अपने साथ है।"


रूही:– ये हरामी डॉक्टर और उसकी बीवी तो न है साथ में... और ये एक नया आदमी भी दिख रहा... क्या मैं इन्हे मार दूं...


इवान:– बस दीदी क्यों इतना पैनिक हो रही... ये डॉक्टर और उसकी बीवी तो मुख्य साजिशकर्ता है इन्हे आराम से मारेंगे... और वो आदमी बॉब भला मानस है। अभी सब बंकर चलते है, क्या पता वहां आपके लिये कोई शिकार बचा हो?


इधर बंकर में सामने डरे हुए शिकारी और कुछ घबराये से वुल्फ। ऊपर दीवार से टंगा शिकारियों का बॉस। फिर तो वहां उस बंकर में रक्त ही रक्त था। गुस्साये कैदी वूल्फ ने पूरा रक्त चरित्र दिखाते हुये हर एक शिकारी और उसका साथ देने वाले वूल्फ को अपने क्लॉ से फाड़कर रक्त स्नान कर रहे थे।…


"वो डॉक्टर और उसकी बीवी कहां है।"… आर्यमणि गुस्से से पूछने लगा।


"यहां है दोनो, चुपके से भाग रहे थे।"… पीछे से बॉब, लोस्की और लोस्की के सभी साथी, डॉक्टर माइक और उसकी पत्नी लिली को पकड़ कर ला रहे थे। हा लेकिन एक आवाज ने आर्यमणि का ध्यान पूरा खींचा, वो चौंकरकर आवाज़ के ओर मुड़ा.. आश्चर्य से आर्यमणि की आखें फ़ैल गई… "बॉब तुम यहां।"


बॉब:- हां मुझे भी उतनी ही हैरानी हुई थी, उस रात जब तुमने इस मदरचोद को बचाया था।


आर्यमणि:- तो तुमने इसे जहर दिया था..


बॉब:- हां और तुम समझ सकते हो क्यों जहर दिया होगा। पैसे के लिये जब ये अपने जान बचाने वाले को बेच सकता है, तब कितना गिरा होगा ये हरामि। तुम्हे देखकर सोच नहीं सकते मै कितना खुश हूं। मै आया था तुमसे मिलने। लेकिन उससे पहले ही डॉक्टर तुमसे मिलने पहुंच गया और पता नहीं कैसे तुम्हे झांसे में ले लिया।


आर्यमणि:- इस धूर्त की सच्चाई का पता तो हम दोनो को इसके इमोशन से ही हो गया था... तुम रूही को तो जानते हो ना...


बॉब:- हां तुम्हारे पूरे पैक को देखा हूं। कमाल की क्षमता है और तुमने उन्हें ये एहसास करवाया है कि वो भी एक इंसान है, जिन्हे खास बनाया गया है...


आर्यमणि:- सब तुम्हारे ज्ञान का नतीजा है बॉब, वरना मै भी भटका हुआ था। रूही और मुझे पहली मुलाकात से ही भनक थी, ये धूर्त है। हम तो इसकी मनसा समझने की कोशिश कर रहे थे। हम दोनों तो बस यही सोचकर आये थे कि देखे यहां क्या होता है और ये किस तरह का संगठन है, जहां शिकारियों के साथ वूल्फ भी काम कर रहे।


बॉब:- इसलिए तो मै भी पीछे-पीछे चला आया। लगा कहीं हेल्प की जरूरत ना पड़े।


आर्यमणि:- बॉब तुम पीछा कर रह थे और तुम्हारी गंध मुझ तक नहीं आयी?


बॉब:- मैंने ही सिखाया था और मै ही गंध कवर ना कर सकूं। वैसे मै तुम्हे निराश नहीं करना चाहता, लेकिन शायद कुछ देखकर तुम्हे अच्छा नहीं लगेगा। उस कमजरब (शिकारियों के बॉस) की आंख और हाथ निकाल कर लाओ अभी दिखता हूं।


आर्यमणि बिना कोई देर किये उसका हाथ और आंख निकाल लाया। बॉब ने आंख और हाथ से फ्लोर पर बायोमेट्रिक कमांड दिया और नीचे खुफिया सेक्शन का दरवाजा खुल गया। बाकी सबको ऊपर रहने के लिये बोलकर आर्यमणि नीचे उतर गया।


नीचे की पूरी जगह खाली नजर आ रही थी। वहां केवल एक मेडिकल बेड लगा हुआ था जो हैरानी और आश्चर्य का केंद्र बना हुआ था। उस बेड पर कोई लड़की लेटी हुई थी। उसके दोनो हाथ नीचे झूल रहे थे। जहां बेड लगा था वहां नीचे फर्निस फ्लोर नही था, बल्कि मिट्टी की जमीन थी। लड़की के दोनों हाथ पर जड़ें के रेशे जैसे पूरा लिपटा था जो जमीन से निकलकर उसके हाथ की नब्जों पर फैला हुआ था। उसके चेहरे के ऊपर कोई कैप चढ़ा था क्यूंकि चेहरे के ऊपर रखा कपड़ा किसी के सर की आम ऊंचाई से काफी ऊंचा था।


आर्यमणि:- ऐसे किसे लिटा कर रखा है।


बॉब:- खुद को संभालना…


बॉब ने जैसे ही उस कवर के ऊपर का कपड़ा हटाया, अंदर बिल्कुल जमा हुआ चेहरा को देखकर आर्यमणि लड़खड़ा गया। जैसे ही आर्यमणि को उसके पैक ने दर्द में पाया चारो एक साथ वूल्फ साउंड निकालते दौड़े। वो लोग जैसे ही सीढ़ियों पर पहुंचे आर्यमणि अपना हाथ उनकी ओर करते उन्हें रोका… "मै ठीक हूं तुम लोग ऊपर के लोगों की मदद करो।"..
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भाग:–76





बॉब ने जैसे ही उस कवर के ऊपर का कपड़ा हटाया, अंदर बिल्कुल जमा हुआ चेहरा को देखकर आर्यमणि लड़खड़ा गया। जैसे ही आर्यमणि को उसके पैक ने दर्द में पाया चारो एक साथ वूल्फ साउंड निकालते दौड़े। वो लोग जैसे ही सीढ़ियों पर पहुंचे आर्यमणि अपना हाथ उनकी ओर करते उन्हें रोका… "मै ठीक हूं तुम लोग ऊपर के लोगों की मदद करो।"..


आर्यमणि:- बॉब ये क्या किया है इसके साथ?


बॉब:- ओशुन का ये हाल यहां के लोगो ने नहीं किया है। यहां के गैंग को इन सब के विषय में पता ही नहीं। तुम्हारे भारत जाने के 10-12 दिन के बाद की बात है, जब ओशुन का एक इमरजेंसी मैसेज आया, उसने क्या लिखा खुद ही देखो...


बॉब ने उसे एक संदेश दिखाया जिसमे लिखा था… "मेरे पीछे कौन पड़ा है पता नहीं, लेकिन उसे एक अल्फा वेयर केयोटी की तलाश थी, किसी खतरनाक काम के लिये। जानती हूं जीत नहीं पाऊंगी, लेकिन अपने परिवार को बचाने की कोशिश जरूर करूंगी। आर्य से कभी मिलो तो कहना मै उसे बहुत चाहती थी, उसका दिल तोड़ने कि वजह बता देना। शायद मुझे माफ़ कर दे। मैं रहूं किसी के भी साथ, उसके लिये कभी चाहत कम नहीं होगी।"


आर्यमणि पूरा मायूस दिख रहा था। संदेश पढ़ते–पढ़ते वहीं बैठ गया। एक-एक करके आर्यमणि का पूरा पैक उसके पास पहुंचा। सभी आर्यमणि के ऊपर अपना सर रखकर रो रहे थे।… "उसे कुछ देर अकेला छोड़ दो, तुम लोग आओ मेरे साथ।".. बॉब, आर्यमणि के पैक को लेकर ऊपर आ गया।


वहां मौजूद वुल्फ, बंकर से निकलकर नीचे पड़े उन वुल्फ की मदद कर रहे थे जिनका खून निचोड़ लिया गया था। इसके पूर्व जबतक आर्यमणि नीचे जा रहा था, वहां मौजूद सारे वुल्फ शिकारी के खून और मांस पर ऐसे आकर्षित थे कि उन्हें जैसे खजाना मिल गया हो। अलबेली ने उन वुल्फ को कंट्रोल किया था, रूही और ट्विंस ने बिना कोई देर किये मानव के मांस और रक्त को तेजी से साफ कर दिया।



उस वक्त तो उन्हें रोक लिया, लेकिन वहां का हर वुल्फ बहुत ही कमजोर और उसे से भी कहीं ज्यादा भूखा था। इस जगह में अब भी 3 इंसान (डॉक्टर दंपत्ति और बॉब) मौजूद थे। रूही ने वुल्फ कंट्रोल साउंड दिया और सभी वुल्फ भागते हुए ऊपर आये।


रूही:- एक भी वुल्फ इस बंकर से बाहर नहीं निकलेगा, कमजोर और घायल पड़े साथी को भी यही बंकर में ले आओ। तुम तीनों इन सबके लिए पूरे खाने की वयवस्था करो।


लास्की:- कहीं भटकने की जरूरत नहीं है। किचेन में सबके खाने का प्रयाप्त स्टॉक मिल जायेगा।


ट्विंस और लास्की की जिम्मेदारी थी पकाना और यहां रूही और अलबेली इन भूखे और कमजोर वुल्फ को किसी तरह रोक कर रखते। पहले आ रही ताजा कटे जानवर के रक्त की खुशबू जो सभी वेयरवुल्फ को बागी बनने पर मजबूर कर रहे थे। उसके बाद भुन मांस की खुशबू। जैसे ही उनको छोड़ा गया, खाने पर ऐसे टूटे मानो जन्मों के भूखे हो। देखते ही देखते पुरा खाना चाट गये और डाकर तक नहीं लिया। इधर ओजल ने अपने पैक के लिए भेज सूप, पनीर फ्राय और रोटियां पकाकर ले आयी थी। उन्हें ये सब खाते देख बाकी वूल्फ अचरज में पड़ गये। तीनों ने मिलकर, रूही को खाना लेकर नीचे आर्यमणि को खाना खिलाने के लिये भेज दिया। आर्यमणि, ओशुन के पास खड़ा बस उसी का चेहरा देख रहा था….

कभी-कभी दिल मजबूत रखना पड़ता है।
अपनो की हालत देखकर गम पीना पड़ता है।

वक़्त हर मरहम की दवा तो नहीं लेकिन,
वक़्त के साथ हर दर्द में जीना आ जाता है।
खुदा इतना खुदगर्ज नहीं जो रोता छोड़ दे।
जबतक दर्द की दावा ना मिले दर्द ही दवा बन जाता है।


"मेरी आई अक्सर ये कहा करती थी। अपनी जिल्लत भरी जिंदगी में बस यही उनके चंद शब्द थे जो किसी एंटीबायोटिक कि तरह काम करते थे। उनके कहे शब्दों पर विश्वास तब हो गया जब तुम मेरी जिंदगी में आये। आओ खाना खा लो, वो तुम्हारे साथ किसी कारण से भले ही नहीं रह पायी हो, लेकिन उठकर प्यार से तुम्हे ऐसे चूम लेगी की तुम्हारे हर गम को मरहम मिल जायेगा।"..


आर्यमणि, रूही की बात सुनकर उसके पास बैठा और खाने के ओर देखकर सोचने लगा। रूही रोटी का एक निवाला उसके मुंह के ओर बढ़ाई.. आर्यमणि कुछ देर तक निवाले को देखता रहा और फिर खाना शुरू किया…


"तुम्हारी आई बहुत अच्छी थी, शायद बहुत समझदार भी। बस वक़्त ने तुम्हारे साथ थोड़ी सी बेईमानी कर दी, वरना तुम भी उनकी ही परछाई हो।"..


रूही:- क्या दफन है सीने में आर्य, ये लड़की तुम्हारे उस दौड़ कि साथी है ना जब तुम अचानक से गायब हुये थे।…


आर्यमणि वक़्त की गहराइयों में कुछ दूर पीछे जाकर…


मै उस दौर में था जब मेरी भावना एक वेयरवुल्फ से जुड़ी थी, नाम था मैत्री। मै उसके परिवार की सच्चाई नहीं जानता था। लेकिन मेरे पापा और मम्मी उनकी सच्चाई जानते थे। बहुत छोटे थे हम इसलिए उस बात पर मेरे घर वाले ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे। खासकर मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी के कारण। लेकिन मेरी भूमि दीदी जब भी मेरे पास होती तो उनकी खुशी के लिए मै मैत्री से 10-15 दिन नहीं मिलता था।


उफ्फ वो क्या गुस्सा हुआ करती थी और मै उसे मनाया करता था। तब उन लोगो का बड़ा सा परिवार जंगल के इलाके में, बड़े से कॉटेज में रहता था। तकरीबन 40 लोग थे वहां, सब के सब मुझसे नफरत करने वाले। लेकिन जिनको नफरत करनी है वो करते रहे, हम दोनों को एक दूसरे का साथ उतना ही प्यारा था। स्कूल में हम हमेशा साथ रहा करते थे। साथ घुमा करते थे। मुझे इस बात का कभी उसने एहसास तक नहीं होने दिया कि उसके घरवाले मैत्री पर तरह-तरह का प्रेशर डालते थे। स्कूल में मुझसे दूर और अपने भाई बहन के साथ रहने के लिये रोज उसे टर्चर किया जाता था।


एक दिन की बात है शाम के वक़्त था, मै जंगल के ओर आया हुआ था। मैत्री पेड़ के नीचे बैठी थी और मै उसके गोद में सर रखकर लेटा हुए था। वो बड़े प्यार से मेरे बाल में हाथ फेर रही थी और मै आंख मूंद कर सोया था.. प्यारी सी आवाज उसकी मेरे कानो में पड़ रही थी…


"आर्य, बड़े होकर हम वो अवरुद्ध के पार चले जाएंगे जहां उस दुनिया में कोई नहीं आ सके।"… मैत्री मुझे उसी अवरुद्ध के बारे में बोल रही थी जिसका भस्म के घेरे से सुपरनैचुरल नहीं निकल पाते। कारण वही था, ये अवरुद्ध जहां है, वहां मतलब होगा कि 2 दुनिया के बीच की दीवार। आपको उसके पार जाना है तो आपको ट्रु होना होगा। यदि इंसानी दुनिया में ये अवरुद्ध है तो आपको ट्रू इंसान होना पड़ेगा या हिमालय के उस सीमा पार जाना चाहते है तो आपको ट्रु उन जैसा बनना पड़ेगा।


खैर उसकी प्यारी सी ख्वाइश थी, एक अलग दुनिया में जाने की। जहां हम दोनों हो, बस उस आवाज के पीछे छिपे दर्द और गहराई को नहीं समझ सका की उसके घरवाले उस पर कितना प्रेशर बनाये है। उसी वक़्त वहां उसका भाई शूहोत्र पहुंच गया। आते ही उसने मेरा कॉलर पकड़ कर उठाया और धराम ने नीचे पटक दिया। मै भी नहीं जानता मुझे कहां–कहां चोट आयी, बस नजरें मैत्री पर थी और वो काफी परेशान दिख रही थी। मै अपने दर्द को देखे बगैर उससे इतना ही कहा.. "शांत रहो।"..


मैत्री:- तुम्हे चोट लगी है आर्य..


उसकी इस बात पर शूहोत्र ने गुस्से में उसे एक थप्पड़ लगा दिया। पता नहीं उस वक़्त मेरे अंदर क्या हो गया था। मै उठा.. खुद से आधे फिट लंबे और शारीरिक बल में कहीं ज्यादा आगे वाले लड़के को पीटना शुरू कर दिया। वो भी मुझे मार रहा था, लेकिन मै उसे ज्यादा मार रहा था।


तब मैंने पहली बार उसे देखा था.. वो पीली आखें, बड़े बड़े पंजे, दैत्य जैसे 2 बड़े बड़े दांत, उसका साढ़े 4 फिट का शरीर ऐसा लगा साढ़े 6 फिट का हो गया हो। लेकिन गुस्सा मुझ पे सवार था। मुझे मारा कोई बात नहीं पर मैत्री को मारा ये मै पचा नहीं पा रहा था।


उसके पंजे मुझे फाड़ने के लिए आतुर थे, वो मुझ से बहुत तेज था। वो जितनी तेजी से मुझे मार रहा था मै उतनी तेजी से बचते हुए उसपर हमले करता रहा। उसकी लम्बाई तक मेरे हाथ नहीं पहुंच पा रहे थे इसलिए मैंने अपना पाऊं उठाया, घुटनों के नीचे उसे पूरी ताकत से मारा था और उसका पाऊं टूटकर लटक गया था।


उसी वक़्त मेरे दादा वर्धराज, भूमि दीदी, तेजस दादा, निशांत के पापा, मेरे मम्मी पापा सब वहां पहुंच गये थे। उधर से भी उनका पूरा खानदान पहुंचा था। मेरे दादा ने वहां का झगड़ा सुलझाया, दोनो पक्षों को शांत करवाया। लेकिन तेजस के मन में शायद कुछ और ही चल रहा था। हालांकि तब ये बात किसी को नहीं पता थी लेकिन बाद में मुझे पता चल गया। लोपचे कॉटेज को 2 दिन बाद आग लगा दिया गया था। उसके परिवार के बहुत से लोग अंदर जलकर मर गये। बस कुछ ही लोग बचे जो देश छोड़कर जर्मनी चले गये। एक लंबा अर्सा बिता होगा जब मुझे मैत्री का पहला ई–मेल आया। महीने में 2, 3 बार बात भी हो जाती।


वो अपना हर नया अनुभव साझा करती और साथ में ओशुन के बारे में भी बताया करती थी। वो मुझसे कहा करती थी, बस कुछ दिन रुक जाओ हम साथ होंगे। शायद मुझसे लगाव और प्यार रखने के कारण ही उसे अपनी जान गंवानी पड़ी। मेरे लिये वो अपने परिवार और पैक तोड़कर इंडिया आयी थी और उसे किसी शिकारी ने मार डाला था। मार तो शूहोत्र को भी दिया था, लेकिन शिकारियों से बचाकर मैंने उसे निकला था।


उसी दौरान एक घटना हो गई, एक बीटा सुहोत्र ने मुझे बाइट किया था। एक बीटा के बाइट से मैंने शेप शिफ्ट किया था, खैर आगे इसका बहुत जिक्र होने वाला है। मुझे झांसा देकर बहुत सारे रास्तों से होते हुये आखिर में समुद्र के रास्ते से जर्मनी लाया। दरसअल मुझे शूहोत्र ही लेकर आया था, सिर्फ और सिर्फ इसलिए ताकि मैत्री मुझे अपनी जगह वुल्फ हाउस में देखना चाहती थी, जो कि एक छलावा था। हकीकत तो ये थी कि मैत्री की सोक सभा में मुझे नोचकर खाया जाना था।


वहां फिर लोगों ने चमत्कार देखा एक बीटा के बाइट से मै शेप शिफ्ट कर चुका था और मुझमें हील होने की एबिलिटी आ गयी थी। इसे शायद श्राप ही कह लो। क्योंकि ब्लैक फॉरेस्ट मेरा जेल था, जहां वो मुझे नंगा रखा करते और रोज खून चूसकर हालत ऐसी कर दी थी कि शरीर के नाम पर केवल हड्डी का ढांचा बचा था।


लगातार कुछ दिन के प्रताड़ना के बाद ओशुन ने मुझे वास्तविकता बताई कि मेरी क्षमता क्या है और मैंने गंगटोक के जंगल में क्या-क्या किया था। उसने मुझसे बताया था कि वो नियम से बंधी है, जितना हुआ उतना वो मुझे बता दी। ऐसा नहीं था कि उसके एहसास करवाने के बाद मुझे उस नर्क से मुक्ति मिल गयी थी, लेकिन मैंने अपने शरीर की फ़िक्र करना छोड़कर अपने दिमाग को संतुलित करना सीखा।


वो मुझे जलील करते, मेरे बदन को नोचते यहां तक कि मेरे पीछे कभी कटिला तार में लिपटा डंडा डालते तो कभी सरिया। बस रोजाना 2 घंटे ही मै जाग पता था, उस से ज्यादा हिम्मत नहीं बचती। लेकिन उन 2 घंटो में मै इनके पागलपन को भूलकर बस जंगल को गौर करता, पेड़ पर मार्किंग करता।


लगभग 1 महीना बीतने के बाद समझ में आया कि मै जहां से निकलने की कोशिश कर रहा हूं वहां से तो वो लोग आते है, तो क्यों ना जंगल के दूसरे ओर भागा जाये। अगला 10 दिन मैंने टेस्ट किया कि जंगल के दूसरे ओर जाने पर क्या प्रतिक्रिया होता है। और तब मुझे पता चला कि जंगल के दूसरे हिस्से में वो नहीं जाते थे। लेकिन मेरी किस्मत, मै हर रोज वहीं लाकर पटक दिया जाता था, जहां से मेरी आंखें खुला करती थी।


"आखें खोलो, उठो.. वेक अप"… मेरे कानो में आवाज़ आ रही थी। शरीर मेरा कुछ हरकत में था, मैं कुछ पी रहा था, लेकिन क्या पता नहीं। ये कोई और वक़्त था जब मै अपनी आखें खोल रहा था। आखें जब खुली तब मेरा सिर ओशुन की गोद में था और उसकी कलाई मेरे मुंह में। उस वक़्त मुझे पता चला कि ओशुन अपने हाथ की नब्ज काटकर मुझे खून पिला रही थी।


मै झटके से उठा। कुछ घृणा अंदर से मेहसूस हो रहा था। मुझे उल्टी आ गई और ओशुन से थोड़ी दूर हटकर उल्टियां करने लगा। ओशुन भी मेरे पीछे आयी। पीठ पर हाथ डालकर उसने मुझे शांत करवाया। शांत होने के बाद मै वहां से हटा और आकर वहीं अपनी जगह पर बैठ गया। वो भी मेरे पास आकर बैठी। मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं बची थी मै उसपर गुस्से में चिल्ला कर कह सकूं कि वो क्या कर रही थी। फिर भी जितना हो सकता था इतने गुस्से में… "ये तुम क्या कर रही थी, मुझे खून क्यों पिलाया।"


ओशुन, मुझे ऊपर से लेकर नीचे तक बड़े ध्यान से देखी। मुझे मेरी वास्तविक स्थिति का ज्ञात हुआ, मैं पूर्णतः नंगा था और थोड़ी झिझक के साथ खुद में सिमट गया।… "तुम रोज बेहोश रहते हो, शरीर में तुम्हारे जब जान आता है तब तुम जागते हो और ठीक उसी वक़्त जान निकालने भेड़िए तुम्हारे पास पहुंच जाते है।"


इतना कहकर उसने मेरे गोद में कपड़े रख दिये और वहां से उठकर चली गई। मै पीछे से उसे आवाज लगाता रहा लेकिन वो बिजली कि गति से वहां से निकल गयी। उसके जाने के बाद भी मै अपनी जगह बैठा रहा और ओशुन के बारे में ही सोचता रहा। क्यों आयी, क्यों गयी और मुझे इस वक़्त क्यों जगाया, ये सब सवाल मेरे मन में उठ रहे थे। शायद वो मेरे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाती इसलिए बिना कुछ कहे वहां से चली गयी। लेकिन जाते–जाते मेरे लिए बहुत कुछ करके जा चुकी थी।


मै अपनी जगह से उठा और उसके लाये कपड़े पहनकर जंगल के दूसरे हिस्से के ओर बढ़ चला जहां ये लोग नहीं जाते थे। मै जितना तेज हो सकता था उतना तेज वहां से निकला। 24 घंटे के किस प्रहर में मैंने चलना शुरू किया पता नहीं, लेकिन मै जितना तेज हो सकता था, चलता गया। मार्किंग किए हुये पेड़ सब पीछे छूट चुके थे, और मै उनसे कोसों दूर, जंगल के दूसरे हिस्से में बढ़ता जा रहा था। चलते-चलते मै जंगल के मैदानी भाग में पहुंच गया। पीछे कौन सा वक़्त गुजरा था, मेरी जिंदगी कहां से शुरू हुई और मै कहां पहुंच गया, वो अभी कुछ याद नहीं था, केवल चेहरे पर खुशी थी और सामने मनमोहक सा झील था।


"तुम कौन हो अजनबी, और इस इलाके में क्या कर रहे हो।"… कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया। उनमें से एक 40-41वर्षीय व्यक्ति ने मुझे ऊपर से नीचे घूरते हुये पूछने लगा।
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भाग:–77






"तुम कौन हो अजनबी, और इस इलाके में क्या कर रहे हो।"… कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया। उनमें से एक 40-41वर्षीय व्यक्ति ने मुझे ऊपर से नीचे घूरते हुये पूछने लगा।


"मै एक मुसाफिर हूं, और मेरा नाम आर्यमणि है। ब्लैक फॉरेस्ट में गुम हो गया हूं, और भटकते हुये यहां तक आ पहुंचा।"… मैंने भी जवाब में कहा


"मेरा नाम मैक्स है आर्यमणि, और तुम इस वक़्त जंगल के सबसे ख़तरनाक इलाके में घूम रहे हो। ऊपर से तुम्हारी हालत भी कुछ ठीक नहीं लग रही।"... वो चिंता जाहिर करते हुए उस क्षेत्र के बारे ने बताने लगा।


मै:- हम्मम ! मुझे पता नहीं था सर, मुझे जंगल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।


मैक्स:- मेरे पीछे आओ।


तकरीबन 5-6 किलोमीटर पश्चिम में चलने के बाद वो मुझे अपने साथ एक घर में ले गया और अपनी पत्नी थिया से परिचय करवाते हुए कहने लगा…. "कुछ दिन तुम यहीं पर ठहरो, जब हम शहर के ओर निकलेंगे, तब तुम्हे वहां छोड़ देंगे। फिर तुम अपने दोस्तों से संपर्क कर पाओगे।"


मैं बहुत ही दुविधा में था। एक वुल्फ हाउस से किसी तरह बचकर निकला था और सामने एक और हाउस, और 2 अंजाने लोग द्वार पर खड़े…. संकोच में मै अपनी जगह खड़ा रहा और दुविधा में फंसा सोचता रहा, यहां रुकना चाहिए या नहीं रुकना चाहिए।


शायद मैक्स मेरे अंदर के असमंजस की स्तिथि को पहचान गया। वो हंसते हुए मेरे कंधे पर किसी दोस्त की तरह हाथ रखा और अपनी पहचान पत्र दिखाते हुए कहने लगा… "घबराओ मत, मै इस जंगल का रेंजर हूं, और मेरे जैसे 400 रेंजर इस जंगल में है। तुम यहां सुरक्षित हो और किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं। थिया इन्हे अंदर ले जाओ और कुछ खाने के लिये दो।"


अपनी बात कहकर मैक्स वहां से चला गया और थिया मुस्कुरा कर मेरा स्वागत करती अपने साथ अंदर ले गयी। घर के अंदर का पूरा ब्यौरा देकर उसने मुझे एक टॉवेल लाकर दिया और फ्रेश होकर आने के लिये कहने लगी, जबतक वो मेरे लिए कुछ खाने को लेकर आती। मै संकोच में सिर्फ इतना ही कह सका की मेरे पास कोई कपड़े नहीं है। मेरी बात सुनकर वो मुस्कुराई और मैक्स के कुछ कपड़े मुझे देती हुई कहने लगी, "फिलहाल आप इसी से काम चला लीजिये, जब आप शहर पहुंचेंगे फिर अपने हिसाब से कपड़े ले लीजियेगा।"



आह वो सुकून, मैं बयान नहीं कर सकता कितना अच्छा मेहसूस कर रहा था जब मेरे बदन पर गरम पानी गिर रहा था। कुछ अच्छा होने जैसा मेहसूस हो रहा था। मै अपने अंदर जितना अच्छा मेहसूस कर रहा था मेरे अंदर उतनी ही ज्यादा ऊर्जा का संचार हो रहा था। मेरी तो बाथरूम से बाहर आने की इक्छा ही नहीं हुई।


काफी देर तक मै गरम पानी का शावर लेकर, खुद को तरोताजा महसूस करता रहा और मैक्स के कपड़े पहनने लगा। कपड़े बिल्कुल फिटिंग थे बस लंबाई इंच भर छोटी लग रही थी। मै थिया के कहे अनुसार आकर डायनिंग टेबल पर बैठ गया। चंद सेकेंड बाद थिया भी उस जगह पहुंची और मुझे देखकर काफी घबराई सी लग रही थी। मुझे कुछ समझ में नहीं आया की हुआ क्या, अभी तो थोड़ी देर पहले वो मुस्कुराकर मेरा स्वागत कर रही थी फिर ऐसे अचानक। मै सोच ही रहा था कि थिया हड़बड़ा कर मेरे पास आयी…. "तुम एक वेयरवुल्फ हो।"..


मैं दंग रह गया, उसके सवाल से मेरे चेहरे की रंगत भी उड़ गई। मै क्या जवाब देता, बस हां में अपना सर हिला दिया। जैसे ही मैंने अपना सर हां में हिलाया उसके चेहरे पर और भी चिंता की लकीरें बढ़ने लगी। वो मेरा हाथ पकड़कर पीछे के रास्ते से बाहर निकलती हुई कहने लगी…. "यहां से उत्तर की दिशा में तकरीबन 4 किलोमीटर की दूरी पर तुम्हे छोटी सी पहाड़ी और घने जंगल दिखेंगे। जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी तुम वहां पहुंचकर मेरा इंतजार करना। मै सब कुछ वहीं आकर समझाऊंगी।"..


उसकी बातों से लगा कि मै शायद मुसीबत में हूं इसलिए उसकी बात मानते हुये, मैं भी उसके दिये कंपास की मदद से उत्तर दिशा की ओर चल दिया। जैसा थिया ने कहा था ठीक वैसा ही माहौल था वहां का। मै आराम से एक चट्टान के नीचे बैठ गया और गहरी श्वांस लेते हुये खुद पर ही हसने लगा। मेरे आखों के आगे जंगल और पहाड़ का नजारा था और आखों के अंदर अपने दोस्त निशांत की याद। हम ऐसी ही जगह में साथ घुमा करते थे। चित्रा का वो नाराज़ होना, जब हम जंगलों में भटका करते थे। मेरी जंगल जाने की बात पर मां का वो पर्दा डालना। मै अपनी खुली आंखों से चारो ओर देख रहा था और अपने साथ होने वाली घटना पर हंस रहा था।


तकरीबन 4 दिन बाद एक रात मुझे टॉर्च की रौशनी दिखाई दी। कोई आ रहा था। मै सचेत हो गया और जाकर पहाड़ के बीच पतली सी जगह में छिप गया। तभी मेरे कानों में जानी पहचानी सी आवाज सुनाई देने लगी और मै चिंता मुक्त हुआ। थिया की आवाज पर मै प्रतिक्रिया देते हुये उसे अपने पास बुलाया। वो टॉर्च की रौशनी बंद करके वहीं एक चट्टान के पास बैठी और मेरे बारे में पूछने लगी। मै उसके सवालों का कोई जवाब नहीं दिया, उल्टा वहां के बारे में ही पूछने लगा कि वो मुझे देखकर कैसे पहचान गयी की मै भी एक वुल्फ हूं, और मुझे यहां छिपकर रहने के लिए क्यों कही?


थिया:- यहां इंसानों और वेयरवोल्फ के बीच जंग छिड़ी हुई है। कोई इंसान वेयरवोल्फ के इलाके में नहीं जा सकता और कोई वेयरवोल्फ इंसानों के इलाके में नहीं आ सकता।


मै जिज्ञासावश पूछने लगा यदि कोई गलती से पहुंच गया..


थिया:- शायद वो उसकी आखरी गलती हो। जंगल के उस क्षेत्र को इंसानों के लिए प्रतिबंधित किया गया है जिस ओर भेड़िए रहते हैं। बड़े-बड़े बोर्ड लगा रखा है, प्रतिबंधित क्षेत्र में जाना और अपनी जान गवाना। जंगल प्रबंधन को दोष ना दिया जाये। और तुम भटकते हुए इस ओर चले आये। तुम्हारा पैक कहां है?


"मेरा कोई पैक नहीं और मै एक वुल्फ हूं ये मुझे भी पता नहीं था।"… इतना कहने के बाद मै कुछ पल ख़ामोश हो गया। वो मेरे कंधे पर किसी अपने कि तरह हाथ रखती हुई अपनी कहानी बताने के लिये कहने लगी। मै कुछ देर तक उसकी बात पर सोचता रहा, फिर शुरू से लेकर अंत तक अपने आने की पूरी कहानी उसे बयां कर दिया।


मेरी बात सुनकर वो काफी हैरान थी। फिर थिया अपने बारे में बताई, वो एक जानवरों कि डॉक्टर थी जो ब्लैक फॉरेस्ट में जानवरों की देखभाल के लिये काम करती थी। वहीं उसकी मुलाकात मैक्स से हुई। दोनो में प्यार हुआ और फिर शादी। शादी के बाद ही उसे पहली बार वेयरवुल्फ के बारे में पता चला था। इससे पहले वो केवल अपने दोस्त से सुना करती थी, लेकिन कभी अपनी आखों से शेप शिफ्ट करते नहीं देखी थी। इसलिए उसे अपने दोस्त पर कभी यकीन नहीं हुआ।


वो अपनी दुविधा बताती हुई कहने लगी.… "वेयरवुल्फ होते तो इंसान है, लेकिन अपनी जानवर प्रवृति के लिए सबसे ज्यादा कुख्यात है। मैक्स और उसके जैसे 40 शिकारियों के यहां आने से पहले इस जंगल पर केवल वुल्फ का राज चलता था।।इंसानों का खून उनके मुंह लग गया था। और चूंकि इंसानी मांस एक नशा होता किसी के मुंह लग जाये फिर वो जानवर भूखा मर जायेगा लेकिन इंसानों को ही खायेगा। इस जंगल में सैलानियों के साथ आये दिन घटनाएं होने लगी। कभी-कभी किसी ग्रुप से 1 या 2 तो कभी–कभी पुरा ग्रुप ही गायब होने लगा"

"कुछ विशेषज्ञों के अनुसार ब्लैक फॉरेस्ट में सुपरनेचुरल की गतिविधियों के कारण ऐसा हो रहा था। क्योंकि उठाये गये इंसान के पास से किसी भी नरभक्षी जानवर के पंजों के निशान नहीं मिल रहे थे। फिर इस जंगल में मैक्स की टीम को भेजा गया और तब से ये जंगल शांत था। मैक्स वेयरवोल्फ के लिये जल्लाद तो मुसीबतें फसे इंसानों के लिये काफी नरम दिल इंसान है। जब तुम घर आये तब तुम्हारी हालत ऐसी थी मानो तुम्हारे किसी ग्रुप पर वेयरवोल्फ का हमला हो गया हो और तुम भूखे प्यासे अपनी जान बचाकर जंगल में कई महीनों भटकते रहे हो।"

"मैक्स ने तुम्हे देखा और वो घर ले आया। बाद में तुम जब हील होकर अपने शरीर को तुरंत ही पहले से बेहतर कर चुके थे, फिर मुझे समझते देर नहीं लगी कि तुम एक वेयरवोल्फ हो, जो शायद गलती से इस ओर चला आया। मैक्स यदि तुम्हे देख लेता तो तुम्हे जान से मार देता इसलिए तुम्हे यहां भेजना पड़ा।"


मै:- हम्मम ! आप का शुक्रिया। मुझे इस जंगल से निकलना है, क्या आप मेरी मदद कर सकती है?


थिया:- वही बताने आयी थी। मेरे एक मित्र है बॉब वो कुछ दिनों में मेरे पास मिलने आ रहे है। उन्हीं के साथ तुम्हे बाहर निकालने कि योजना है। तबतक तुम यहां आराम से रहो और चौकान्ना रहना। एक बात और कोई मिले भी तो घबराना मत और अपनी असलियत नहीं जाहिर होने देना। अब मै चलती हूं, अपना ख्याल रखना।


लंबी बातचित के बाद थिया वहां से चली गयी और मै एक छोटी सी गुफा में आकर लेट गया। जैसे-जैसे दिन बीत रहा था मेरा शरीर पहले से बेहतर होता जा रहा था। मै अपने अंदर ताकत को मेहसूस कर सकता था। एक सुबह मै कुछ खाने लायक पौधों को पानी में उबाल रहा था और ब्लैक फॉरेस्ट से बाहर निकलने के बारे में सोचकर खुश हो रहा था। तभी अचानक ऐसा लगा किसी ने मेरे खाने के बर्तन को भरी आग पर से गिरा दिया। एक तो इस इलाके में ना तो कोई फल के पेड़ थे और ना ही भूमि में नीचे खाने लायक कोई जड़ उगती थी। कई किलोमीटर से भटक कर कुछ पौष्टिक पौधों को ढूंढ़कर लता था, उसे भी गिरा दिया।


गुस्से से मै मुड़ा और 1 कपल बदहाल से थे जो बेसुध होकर भाग रहे थे और भागने के क्रम में उन्हें ये तक होश नहीं रहा की वो मेरा पक रहा खाना गिरा चुके थे। जबतक मै उनकी ओर गुस्से से मुड़ा, दोनो मेरे पीछे आकर एक दाएं तो दूसरा बाएं कांधे से आकर लटक गए… "हेल्प मी प्लीज, हेल्प मी।"..


कमाल की होती है अंग्रेजी भाषा। जोड़े और सहवास तो 2 मिनट के पहचान में बाना लेते है, लेकिन जब जान पर बनती है तो सब पहले खुद को बचाना चाहते है। खैर, मैंने इन बातो पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया बस उनसे उनकी हाल के वजह पूछना चाह रहा था तभी सामने से 4 वजह दिखाई दिया। ब्लैक फॉरेस्ट के सबसे ख़तरनाक शिकारी। देखने से ही जिसे भय पैदा हो जाये। शेर के आकर से 2 गुना बड़े। भूरी आंखें और मिलकर शिकार करने की आदत जो इन्हे सबसे ज्यादा खतरनाक बनाती है। जीवन में में पहली बार किसी असली वुल्फ के सामने खड़ा था, वो भी ब्लैक फॉरेस्ट के 4 जायंट साइज के ब्लैक वुल्फ, जो वुल्फ साउंड देकर अपने और साथियों को बुला रहे थे। एक बार फिर मै किसी दैत्य जानवर के शिकार के बीच में खड़ा था।


श्वांस माध्यम थी, नजरे चारो ओर आस–पास की चीजों को देख रही थी। मै निर्भीक खड़ा बस इनसे निपटने की सोच रहा था। तभी उन 4 में से एक वुल्फ शिकार को परखने के लिए मुझ पर नजर जमाकर दाएं से बाएं घूमना शुरू किया।


ये दोनो मेरा खाना तो गिरा ही चुके थे लेकिन अंगीठी में आग अब भी जल रही थी और उसमें जल रही 2 लकड़ियां मेरे नजर में थी। मुझे पता था गस्त लगा रहा भेड़िया कभी भी हमला कर सकता था, और उसके हमला करते ही उनके साथी भी हम पर हमला बोल देते। कुछ ही पल में हमारा गरम शरीर ठंडा पड़ने वाला था। शायद मै तो बच भी जाता लेकिन इन दोनों को अपनी जान गवानी पड़ सकती थी।


बिना नजरो के संपर्क तोड़ो मैंने जलती हुई लकड़ी को अपने हाथ में उठा लिया… और उन्हें धीमे से कहने लगा, पीछे चलो और पहाड़ों के पतली दरार में घुस जाओ। शायद दोनो काफी डरे हुए थे और कुछ भी सोच पाने कि स्तिथि में नहीं थे। मेरे लिए मुसीबत बढ़ती जा रही थी और वो दोनो सुनने को तैयार ही नहीं थे।


दाएं से बाएं वो भेड़िया 3 बार गस्त लगा चुका था। वो भी समझ चुका था कि शिकार आसान है और चौथे गस्त के बाद जायंट वुल्फ और उसके साथी हम पर हमला बोल देते। तभी मैंने जोर से चिल्लाया… "पहाड़ों के बीच भागो, अभी।"..


शायद मेरी चिंख से उनकी चेतना वापस लौट आयी, और दोनो अपनी जान बचाने के लिये तेजी में भागे। मैं चिल्लाया वो भागे और इतने में गस्त लगा रहा भेड़िया छलांग लगा दिया। मै साफ देख सकता था वो लगभग मेरे सर के ऊपर था। उसके दोनो बड़े पंजे लगभग मेरे चेहरे से ज्यादा बड़े थे, जिसके एक पंजे के वार से मै नीचे गिरता और फिर मेरे गर्दन और कंधे के बीच इनका जबड़ा। एक बार में ही वो भेड़िया मेरे गर्दन के मांस को नोचकर प्राणघाती हमला कर चुका होता।


मै अपनी फुर्ती से थोड़ा आगे हुआ और जलती हुई लकड़ी उसके गर्दन में पुरा घुसा दिया। वह वुल्फ थोड़ा सा घायल होकर ठीक मेरे पीछे गिरा। नजर पीछे घुमा कर देखा तो वो दोनो फंसे कपल सुरक्षित स्थान तक पहुंच चुके थे, किन्तु मेरे लिए अब मुश्किलें बढ़ गयी थी। घायल वुल्फ पूरे गुस्से में अपनी आवाज निकाला और मेरे पीछे भागने के रास्ते को बॉल्क कर चुका था। उसके तीनो साथी सामने से एक साथ गस्त लगाना शुरू कर चुके थे।


शायद ना हार मानने वाली बीमारी के कारण आज लग रहा था जान जाने वाली हैं। फिर मन में भय की जगह उमंग ने स्थान लिया और सोच केवल इतनी सी थी कि जब जान ही जानी है तो एक द्वंद ही क्यों ना हो जाये? खुद की जान बचाने की एक कोशिश ही क्यों ना हो जाये?


मैं तेजी दिखाते हुये आगे आया और ठीक सामने खड़ा वुल्फ मेरी ओर प्रहार करने दौड़ चुका था। मैंने तेज लात अपने अस्थाई अंगीठी पर मारी और जलता हुआ लकड़ी उस वुल्फ के बदन के ऊपर गिरा। वो तिलमिलाहट में भटक कर तेजी से आगे निकल गया और जाकर पीछे वाले वुल्फ से उसकी भयंकर टक्कर हो गई, जो मुझ पर पीछे से हमला कर चुका था। मैं बस एक सेकंड के लिये ही रिलैक्स हुआ, इतने में वो दोनो कपल चिल्लाने लगे।


पीछे और आगे से तो संभल गया लेकिन बाएं ओर से दौड़कर छलांग लगा चुके वोल्फ से मेरी टक्कर हो गयी। जब मै अंगीठी को लात मार रहा था तब बाएं से हुये वुल्फ के हमले में मै जमीन पर गिर चुका था। अंगीठी पर लात मारने के क्रम में मै थोड़ा झुका था, इसलिए वोल्फ द्वारा मेरे चेहरे पर चलाया गया पंजा तो नहीं लगा, लेकिन उसका भारी शरीर पुरा मुझसे टकरा गया। बहुत तेजी के साथ हम दोनों ही अनियंत्रित होकर नीचे गिर गये। मै संभालता उससे पहले ही आखरी भेड़िया मेरी गर्दन में अपना दांत घूसाकर मेरे प्राण निकालने के लिये झपट परा। खौफनाक नजारा था वो। उसके आगे का पतला सा मुंह किसी भी साइज के इंसान के गर्दन में अपने दोनो दांत घुसा सकते थे।


वो मेरे गर्दन के बीच अपनी दांत घुसाकर मेरे प्राण निकालने की कोशिश करता, उससे पहले ही मैंने अपना डंडा उसके मुंह में घुसा दिया। उसकी बाइट इतनी तेज थी कि डंडे का जो भी हिस्सा उसके दांत के बीच आया, वो पाउडर बन गया। तभी वहां मैक्स जैसे भगवान बनकर पहुंचा हो। 8-10 हवाई फायरिंग हुई। मै अपनी पीठ को ऊपर उठाकर देखा तो मैक्स और उसकी टीम वहां पर खड़ी थी। वो मुझे देखकर हंस रहे थे और लगातार हवा में तब तक फायर करते रहे, जबतक वो वुल्फ का झुंड भाग ना गया।


उनके आते ही मै सुकून से वहीं जमीन पर बिछ गया और आंख मूंदकर अपनी श्वांस सामान्य करने लगा। मैक्स मुझे हाथ देकर उठाया और हंसते हुये कहने लगा… "अब मुझे समझ में आ रहा है कि कैसे तुम्हारा ग्रुप शायद जानवरो का शिकार हो गया और तुम बच गये।"..


मै:- यहां कब से थे?

मैक्स:- जब पहला वुल्फ साउंड हुआ।


उसने जवाब दिया और हम सब हसने लगे… "तुम्हे देखकर लगता नहीं कि तुम जंगल के माहौल से अनजान हो। बस एक कमी है।".. मैक्स मेरे कपड़ों पर पड़ी धूल झड़ते हुए कहने लगा..


मै:- क्या..????


वो पौधों के ओर इशारा करते हुये कहने लगा… "जंगल में रहने वाले शिकार करते है और मांस खाते है। ये पौधे खाने वाले तो आजकल शहर में भी नहीं मिलेंगे।"..


उसकी बात सुनकर मैंने बस मुस्कुराकर अपनी प्रतिक्रिया दी और कपल को लेकर हम उसके घर की ओर चल पड़े। रास्ते में वो मुझे मेरे जंगल के किस्से सुनने लगा और मैंने गंगटोक के कुछ रेस्क्यू किस्से सुना दिये। वो मेरी बात सुनकर काफी प्रभावित हुआ और मेरे घर से भाग के यहां आने पर थोड़ी सी नाराजगी भी जताई।


मैंने उसे अपने यहां आने की वजह बस पापा से नाराजगी बताई थी। मैक्स हम तीनो को लेकर एक बार फिर अपने घर पर था। थिया मुझे देखकर मानो बूत्त बन गयी हो। घबराहट उसके चेहरे पर साफ देखा जा सकता था। फीकी सी मुस्कान और प्यारी सी आवाज… "उस दिन तुम भाग कहां गये थे।"..
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भाग:–78





मैंने उसे अपने यहां आने की वजह बस पापा से नाराजगी बताई थी। मैक्स हम तीनो को लेकर एक बार फिर अपने घर पर था। थिया मुझे देखकर मानो बूत्त बन गयी हो। घबराहट उसके चेहरे पर साफ देखा जा सकता था। फीकी सी मुस्कान और प्यारी सी आवाज… "उस दिन तुम कहां भाग गये थे।"..


मैक्स:- जंगल घूमने भागा था। ये नहीं होता तो ये लड़का और लड़की भी जिंदा नहीं होते।


मुख्य द्वार पर छोटे से विराम के बाद हम सब अंदर प्रवेश किये। थिया की बेचैनी उसके चेहरे से साफ झलक चल रही थी, किन्तु मुझसे अकेले में बात करने का मौका नहीं मिल रहा था। रात का वक़्त था और मै अपने कमरे में आराम कर रहा था। तभी मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई और दरवाजा खोला तो सामने वही लड़की थी, जिसकी जान मैने बचाई थी।


मेरी उससे कुछ बात हो पाती उससे पहले ही वो सीधा मेरे होंठों को चूमने लगी। मुझे कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जो भी हो रहा था वो अच्छा लग रहा था। थोड़े आश्चर्य के बाद मैंने भी उसके होटों को चूमना शुरू कर दिया। किसी लड़की के साथ इंटीमेसी के ख्याल से किया गया यह मेरा पहला किस्स था, जो मेरी धड़कन को कई गुना बढ़ा रहा था।


मेरी हथेली उसके नितम्ब को अपने मुट्ठी में इस कदर जकड़ ली की वो तिलमिला कर होंठ को अलग करती दर्द और मज़े का मिलजुला सिसकारी अपने मुंह से निकालने लगी। तभी वहां पर किसी के आने की आहट हुई और हम दोनों को एक दूसरे में चिपके देख मुझे आखें दिखाने लगी। थिया थी, जो अपनी नजरो से मुझे रुकने का इशारा कर रही थी और वो लड़की एक नजर थिया को देख, वापस मेरे होंठ को चूमने लगी। मैंने उस लड़की को खुद से दूर किया और उसे अपने बॉयफ्रेंड के पास लौट जाने के लिये कह दिया। थोड़ा चिढ़कर वो चली गयी और थिया मेरा हाथ पकड़ कर कमरे में ले जाती हुई… "सॉरी तुम्हे रोकना नहीं चाहिए था। लेकिन तुमने अपना शेप शिफ्ट किया था और तुम्हारे पंजे वुल्फ के थे।"..


उसकी बात सुनकर मै थोड़ा सकते में आ गया और हैरानी से उसे देखने लगा… थिया सवालिया नजरो से मुझे देखती, पूछने लगी… "यहां वापस क्यों आये, समझाई थी ना यहां खतरा है।"..


मै:- मै खुद नहीं आया। मेरे हालात मुझे यहां खींच लाये है।


थिया:– अपने हालात पर कुछ रहम खाओ और 2 दिन बाद मेरा दोस्त बॉब आ रहा है, उसके साथ तुम निकल जाना। लेकिन तबतक कोई भी ऐसा काम मत करना जो तुम्हारी धड़कने इतना बढ़ा दे की तुम अपना शेप शिफ्ट कर लो, खासकर सेक्स। और हां 5 दिन बाद पूर्णिमा है, यदि तुम बॉब के साथ नहीं निकले तो फिर तुम कभी ब्लैक फॉरेस्ट से नहीं निकल पाओगे।


थिया मुझे समझाकर वहां से चली गयी और मै खुद की हालत पर तय नहीं कर पा रहा था कि रोऊं या हंसू। मुझे निशांत की याद आ गयी, जब वो किसी खूबसूरत लड़की की जान बचाता तो सामने से कह देता, जान बचाई इनाम में मुझे मज़े करने दो। 2 बार सफलता हासिल किया भी और मज़े भी किये। लेकिन तब मै समझ नहीं पाता था कि महज कुछ देर के काम–वासना के लिये वो इतना व्याकुल क्यों रहता है। आज समझ में आया तो लगा जान बचाने का साला सही मेहनताना मांगा करता था।


खैर 2 दिन बाद बॉब तो आ गया लेकिन मेरी मुश्किल आसान नहीं हुई। क्योंकि बॉब खुद 2-3 महीनों के लिये ब्लैक फॉरेस्ट आया था। बॉब इवानविस्की यही नाम बताया था उसने और मेरी हालत पर वो हंस रहा था। बॉब मेरे जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट। यूं समझ लो कि मेरी जिंदगी की असली कहानी यहीं से शुरू हो रही थी। शाम को मै, थिया और बॉब, तीनों उसी झील किनारे बैठे थे और बॉब हंस रहा था। थिया थोड़ी चिढ़ती हुई बॉब को उसी झील में धकेलती हुई… "मदरफॅकर".. बोली और उठकर वो वहां से चली गयी। मै हाथ देकर उसे बाहर निकाला और सवालिया नजरो से देखने लगा..


बॉब हंसते हुये… "हाई स्कूल में हम गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड थे। 3 महीने की हमारी शादी चली, फिर स्टडी के लिए हम अलग हुये और उसी के साथ हमारा डाइवोर्स भी हो गया।"..


मै उसकी बात पर बिना किसी प्रतिक्रिया के बस चारो ओर जंगल को देखने लगा.. "तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है।".. बॉब ने पूछा..


मै:- नहीं..


बॉब:- होगी भी कैसे इतना ख़ामोश जो रहते हो। चलो उठो एक वॉक करते है।


हम दोनों साथ-साथ चलने लगे। कुछ दूर चलने के बाद… "देखो दोस्त, तुमने जो थिया को बताया उसने मुझे बताया। इतना जान गया हूं कि तुम ईडन के यहां ये पता लगाने पहुंचे की तुम्हारी लवर मैत्री किन हालातों में उन्हें छोड़कर गयी? क्योंकि कहीं ना कहीं तुम्हारे मन में था कि तुम्हारी लवर मैत्री को मारने के पीछे केवल शिकारी नहीं। लेकिन तुम पुरा खुलकर हमे नहीं बता रहे। जबतक तुम पूरी बात बताओगे नहीं, हम तुम्हारी मदद नहीं कर पायेंगे।"


मै:- कैसी मदद..


बॉब:- यहां किसी को नहीं पता कि जंगल के उस हिस्से में मैने ऐसा क्या किया था, जो सुपरनैचुरल अपने क्षेत्र से हमारे क्षेत्र में नहीं आ पाते। ब्लैक फॉरेस्ट के उस क्षेत्र से इस क्षेत्र में आने का अर्थ था कि तुम एक सुपरनैचुरल नहीं हो, तभी मैक्स ने तुम्हारी मदद की। इस वक़्त मेरे दिमाग में भी बहुत से सवाल है जिसका जवाब तुम्हारी पूरी बात सुनने के बाद ही शायद मिले। इसलिए जबतक तुम अपना इतिहास और वुल्फ हाउस में हुई हर छोटी-बड़ी घटना मुझसे साझा नही करते, तबतक मै किसी नतीजे पर पहुंच सकता हूं।


हालांकि तब मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया था की बॉब ऐसा क्यों पूछ रहा है। उसे आश्चर्य क्यों हो रहा था कि मैं एक नया–ताजा वेयरवोल्फ होकर भी वेयरवोल्फ के क्षेत्र से जंगल के इस हिस्से में कैसे आ गया? क्योंकि बॉब वेयरवोल्फ के पूरे इलाके को ही माउंटेन ऐश की रेखा से बांध रखा था। मैने उसकी पूरी बात सुनने के बाद इतना ही कहा…. "मुझे इस बारे में बात नहीं करनी।"


बॉब:- जैसा उम्मीद किया था वैसे ही जवाब।


उसके बाद ना तो बॉब ने मुझसे कुछ बात की और ना मैंने कुछ कहा, बस चलते जा रहे थे। चलते-चलते हम दोनों के कान में किसी मृग के कर्राहने की आवाज पहुंची। बॉब एक बार मेरी ओर देखा और तेजी से आवाज़ के पीछे जाने लगा। मुझे समझ में नहीं आया कि उसने ऐसा क्यों किया। इन सब बातो को दरकिनार करके मै भी तेजी से उस हिरण के आवाज के पीछे चल दिया।


हमदोनों उस जगह पर साथ ही पहुंचे, जहां सियार का एक झुंड, हिरण को घायल कर चुका था और अब-तब में उसके प्राण निकलने ही वाले थे। पेड़ की सूखी टहनी गिरी हुई थी, जिसे मैंने उठाया और तेजी से दौड़ते हुए एक सियार के सर पर दे मारा। मै वहीं नहीं रुका, क्योंकि जनता था ये चालाक शिकारी है, इसलिए जल्दी से उठकर 2-3 और सियार पर हमला कर दिया।


उन्हें लग गया कि उनके शिकार के बीच कोई मजबूत दावेदार आ गया है, इसलिए चुपचाप वो अपना शिकार छोड़कर दूर चले गये और दूर से खड़े होकर हमारे जाने की प्रतीक्षा करने लगे। मै हिरण के पास पहुंचा, उसके बहते खून को देखा और अपने साथ लिये बैग को खोलकर उसमे से कॉटन निकाल लिया।


इन सब बातों में मै भुल ही गया था कि मेरे साथ बॉब भी हैं। शियार के काटने का जहर ना फैला उसका इंजेक्शन लगाकर जब मै उठा तो बॉब मुझे हैरानी से देखते हुये पूछने लगा… "ताजा खून और हिरण के इतने लजीज मांस को छोड़कर उसका इलाज कर दिये। यहां तो 2-2 आश्चर्य की बात हो गई।"..


मै:- क्या?


बॉब:- तुम्हे जानवरो का सही इलाज कैसे करने आता है? दूसरा नया वेयरवुल्फ में इतना कंट्रोल कहां से आ गया?


मै:- मै वेयरवुल्फ नहीं बल्कि शापित हूं, जो ना तो इंसान रहा और ना ही वुल्फ।


बॉब:- लगता है थिया ने किसी अच्छे पर भरोसा किया है लेकिन है पक्का सरदर्द। भाई तू कुछ तो खुलकर बोल दे। अच्छा मुझे जरा शेप शिफ्ट करके दिखाओ।


मै:- मुझे नहीं पता कि इंसान से वुल्फ कैसे बनना है। बस केवल 2 बार वो भी अपने आप शेप शिफ्ट हुआ था। पहली बार जब ईडन कोई खून वाली रश्म कर रही थी, जिसमें खून को नाद में जमा किया जा रहा था, और दूसरी बार कुछ दिन पहले जब मै किसी लड़की को चूम रहा था।


बॉब:- हम्मम ! तो चलो पहले शेप शिफ्ट करना सिखाएं तुम्हे। लेकिन उससे पहले ये बताओ तुमने जानवरो का इलाज करना कहां से सीखा?


मै:- जब से पैदा हुआ पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में रहा हूं। इतना तो मै डॉक्टर को देखते-देखते सीख चुका था।


हम दोनों बात करते हुए, बॉब के गेस्ट हाउस में चले आये, जहां उसने मुझे एक कुर्सी पर बिठा दिया… "अब जो मै करने जा रहा हूं उससे तुम्हे तकलीफ होगी, लेकिन विश्वास करो यही सही रास्ता है।" उसने मेरे हाथ पाऊं बांध दिए और मुझे बिजली के खतरनाक झटके देने लगा।


मैं पहली कि तरह चिंख़ रहा था लेकिन मेरी आवाज बंधे मुंह में घूट रही थी। अच्छा खासा बिजली के झटके देने के बाद उसने मुझे खोल दिया और हैरानी से देखने लगा। फिर उसने अपने बैग से नशे का एक पाउडर निकला जो लोगो के अग्रेशन को बढ़ा देता है। "लीपो" था उस ड्रग का नाम जो ऑप्वाइड था। इस ड्रग के बारे में मै जानता था। हिमालय के तश्कर इस ड्रग का इस्तमाल हाथियों पर करते थे, जिससे वो पागल होकर अपने झुंड से इधर-उधर भटक जाया करते थे और फिर वो लोग इनका शिकार कर लेते थे।


मैंने जैसे ही उस ड्रग को देखा आश्चर्य से बॉब को घूरते हुए पूछने लगा… "क्या तुम हाथी के दांत की तस्करी करते हो?"


बॉब:- हाहाहाहा .. नहीं इलाज करता हूं उनका। हां तुमने सही पहचाना ये वही ड्रग है जो हाथियों को पागल करने के लिए इस्तमाल होता है। लेकिन क्या तुम्हे पता है इस ड्रग का इस्तमाल आज कल के लड़के-लड़कियां करते है, अपनी ताकत बढ़ाने और कत्ल आम मचाने के लिये।


मै:- नहीं मुझे ये पता नहीं था। फिर तो इस्तमाल करने वालों की जिंदगी नरक बन जाती होगी?


बॉब:- हां छोटी सी जीत के लिये जिंदगी हार जाते है।


अपनी बात कहकर बॉब ने लिपो ड्रग को मेरे ऊपर उड़ा दिया। श्वांस के जरिये वो मेरे अंदर घुस गया और जब मेरी आंख खुली तब बॉब मेरे करीब बैठा हुआ था। मैंने उठते ही बॉब का गला दबोच लिया। मै इतना गुस्से में था कि उसे लगभग मार ही दिया था।


गला छूटते ही बॉब तेज-तेज खांसने लगा। किसी तरह खुद को सामान्य करते हुये कहने लगा मेरे साथ आओ। लेकिन मै उसके साथ कहीं भी जाने के मूड से नहीं था। फिर भी वो ज़िद करने लगा तब मै उसके साथ चल दिया… "देखो वो ड्रग लेने के बाद ये सब तुमने किया है।"….


मैं आश्चर्य से चारो ओर देखने लगा… झील के किनारे ही तकरीबन 8 फिट गहरा और 12 फिट लंबा चौड़ा गड्ढा खोदा हुआ था।… "ये सब मैंने नहीं किया था?"..


फिर उसने मुझे कल रात की फुटेज दिखाई जिसमे मै अपना शेप शिफ्ट किये हुये था। बिल्कुल काले रोंयेदार बाल थे मेरे ऊपर और मै अपने नाखून से मिट्टी खोद रहा था। मेरे आस पास से कई जानवर गुजरे और मै बस उनकी ओर गर्दन घुमा देता। वो जानवर झुक कर अपनी नजरें इधर-उधर करते और फिर जब मै गड्ढे खोदने लग जाता, तो वो सब जहां से आये थे, वहां वापस लौट जाते।


मै:- बॉब ये कौन सा खेल, खेल रहे हो मेरे साथ।


बॉब:- अभी कुछ भी समझाने का वक़्त नहीं है आर्यमणि। बस इतना ही समझो कि तुम 2 जीवन के बिल्कुल बीच में हो, और यदि तुमने जल्द ही अपना शेप शिफ्ट करना नहीं सीखा तो अपने साथ-साथ बहुत से लोगों के लिये खरनाक साबित होगे।


मै:- जी ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा, तुम्हारे धोके से दिये उस ड्रग के कारण मेरी ऐसी हालत हुई थी।


बॉब:- आर्यमणि बहुत टफ चीज हो यार। तुम मेरी किसी बात का यकीन क्यों नहीं करते।


मै:- मुझे जो बातें समझ में आती है मै केवल उन पर यकीन करता हूं। मुझे तुम्हारी बातें समझ में नहीं आती। ऐसा लगा रहा है जैसे तुम कोई हॉलीवुड मूवी की स्टोरी सुना रहे, जिसमे हर किसी की जान खतरे में है। दुनिया खतरे में है। सिर्फ मै ही हूं रखवाला और यदि मैंने तुम्हारा कहा नहीं माना तो पूरी दुनिया खतरे में आ जायेगी। मानता हूं कि कुछ ऐसा नहीं होना चाहिए था जो मेरे साथ हो गया है। मै खुद भी पजल बाना हूं कि ये मेरे साथ हुआ क्यों और इस से छुटकारा पाने के उपाय क्या है?

"और जानते हो सबसे बड़ी बात क्या है। इन सब के कारण मै भूलते जा रहा हूं कि मैं यहां क्यों आया था? क्या जरूरत आन पड़ी जो मै यहां आया? मेरे यहां होने की वजह क्या है? एक तो मुझे बस सीधा-सीधा उस मैत्री के बाप से केवल इतना पूछना था कि मत्री आपकी ही बेटी थी ना या कहीं से उठा लाये थे, जो इतने खतरे को जानते हुए भी इंडिया भेज दिया? और भेज दिया तो मुझे तो कम से कम बता देते, मेरी बेटी तुम्हारे प्यार में पड़कर वहां चली गयी है, उसका ख्याल रखना। उसे खींचकर 2 थप्पड़ मारने आया था मै यहां। फिर यहां से निकलकर मै नागपुर जाता और वहां अपनी भूमि दीदी का गला पकड़कर पूछता कि क्यों.. जब वो जानती थी कि मै मत्री को चाहता हूं तो क्यों अपने लोग भेजी? क्यों उसे मारा?

"शायद उसका गला दबाकर मै उसे मार नहीं पता, क्योंकि जितना मै मैत्री को चाहता हूं उतनी ही अपनी दीदी से भी लगाव है। लेकिन दिल की भड़ास निकालने के बाद मै फिर कभी उनकी शक्ल नहीं देखता। लेकिन मुझे देखो। देखो ना मुझे। मैं यहां क्या कर रहा हूं। बस पागलों कि तरह एक–एक दिन गुजरते देख रहा हूं और तुम्हारे चुत्यापे सुन रहा हूं। नहीं निकल रहा है अंदर से वुल्फ तो लो कलेजा चिर कर निकाल लो, लेकिन मेरा पीछा छोड़ो। बेवकूफों की तरह नचाये जा रहे हो। अनाप शनाप लॉजिक दिये जा रहे हो।"


इतने दिनों की भड़ास बॉब पर ही निकालने लगा। वो मेरी बात सुनकर ये भी ना हुआ की चला जाये। उल्टा हंसकर मेरे गुस्से को भड़काने लगा। मै अपनी दर्द भरी दास्तान कह रहा था और वो बत्तीसी निकाल रहा था। मेरी पूरी बात सुनने के बाद वो अपना बत्तीसी फाड़े कहने लगा…. "सुनकर बुरा लगा मैत्री मर गयी। कम से कम 3-4 बार नंगे होकर वो तुम्हे अपने ऊपर कूदने देती तब कहीं जाकर मरना था ना। मज़े तो ले लेते।"…


"आह्हः … चुप हो जाओ तुम".. पूरे गुस्से में मैंने दीवार में फिट किया हुआ पुराने जमाने का एक वजनी वॉर्डरोब दोनो हाथ से खींचकर निकाल लिया और उसे पूरा उठा लिया। लेकिन ना तो बॉब वहां से भगा और ना ही हसना बंद किया।


"तुम्हे खुद पता नहीं की तुम क्या हो, फिर उस लड़की के बारे में कैसे पता लगा सकते जिसके पैक ने तुम्हे महज एक खिलौना बनाकर नोचा हैं। अपनी बहन के इमोशंस का कैसे सामना करोगे, जब वो तुम्हे एक लड़की के लिये धिक्करेगी और तुम यूं गुस्से में उसकी जान ले लोगे। मुझे मारने से तुम्हारी समस्या का हल हो जाये तो मार दो, मै यहां खड़ा हूं।"


मुझे क्यों सुनाई देने लगी बॉब की कोई भी बात, मैंने वो वॉर्डरोब उठाकर सीधा उसके ऊपर फेंक दिया। शक्त जान है साला वो भी रूही, वॉर्डरोब के बीच के स्पेस में था, लकड़ी का कोई किनारा नहीं लगा उसपर।


मेरा मन नहीं हुआ फिर मै वहां रुकूं। वैसे भी 1 दिन बाद पूर्णिमा थी, जिस कारण थिया भी काफी घबराई थी। सो मैंने अंत में फैसला किया कि चल दूं उधर ही जिस काम के लिये आया था, मैत्री के बाप जितन लोपचे से मिलने। मैं जंगल के उसी भाग में वापस जाने लगा जिस भाग से मै आया था। लंबा सफर था इसलिए मै तेज-तेज चल रहा था। फिर पता नहीं क्यों मुझे लगा मै इससे भी ज्यादा तेज हो सकता हूं, उससे भी ज्यादा, और भी ज्यादा.….


मेरे ज्यादा तेज दौड़ने की कोई सीमा नहीं थी। मै जंगल के उस हिस्से में महज चंद मिनट में पहुंच गया जहां से आने में मैंने कई दिन लगा दिये थे। मैं ब्लैक फॉरेस्ट के 2 क्षेत्र के सीमा पर खड़ा था... पीछे इंसानों का इलाका और सामने दरिंदो का।
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भाग:–79






मेरे ज्यादा तेज दौड़ने की कोई सीमा नहीं थी। मै जंगल के उस हिस्से में महज चंद मिनट में पहुंच गया जहां से आने में मैंने कई दिन लगा दिये थे। मैं ब्लैक फॉरेस्ट के 2 क्षेत्र के सीमा पर खड़ा था... पीछे इंसानों का इलाका और सामने दरिंदो का।


मै कुछ असमंजस में था लेकिन तभी पहली बार मै अपने होश में बला की उस खूबसूरत, नीले नैनो वाली लड़की को देख रहा था, जिसका नाम ओशुन था। मै इस पल यहां था और अगले ही पल ओशुन के करीब। पत्तों की सरसराहट और हवा के कम्पन की आवाज से वो मेरी ओर मुड़ी, लेकिन तुरंत ही मै घूमकर सामने, वो सामने देखी तो मैं पीछे। लगभग 5 मिनट तक उसे परेशान करने के बाद ठीक ओशुन के सामने खड़ा हो गया।


ओशुन जैसे ही मुझे देखी, मेरा हाथ थामकर वो तेजी से भागी, मै भी उसके साथ भगा। हम दोनों ही भाग रहे थे… "क्या हुआ, मेरा स्पीड टेस्ट ले रही हो?'


ओशुन:- किसी मूर्ख की मूर्खता पर रो रही हूं और उसे छिपाने जा रही।


मै उसकी बात सुनकर थोड़ा निराश हो गया और उससे हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा… ओशुन मेरे ओर पलटी, उसके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी। वो तेजी से दौड़ती हुई बस इतना ही कही… "जहां ले चल रही हूं वहां चलकर गुस्सा कर लेना। बस अभी चलते रहो।"..


मै उसकी बात सुनकर ना नहीं कर पाया। हम दोनों जंगल के पूर्वी क्षेत्र में थे, जहां झोपड़ी बना हुआ था। एक झोपड़ी का दरवाजा खुला और शुरू होते ही झोपड़ी खत्म। वहां एक बिस्तर लगी हुई थी। थोड़ी सी खाली जगह और कुछ छोटे-छोटे हथियार दीवार पर टंगे थे। आते ही ओशुन ने चादर बदली और साफ चादर बिछाकर बैठने को कहने लगी।


मै:- ये किसका झोपड़ी है..


ओशुन:- मै यहां रहती हूं।


मै:- लेकिन तुम तो अपने पैक के साथ वुल्फ हाउस में रहती हो ना?


ओशुन:- नहीं, मेरा कोई पैक नहीं है। मै एक वेयर कैयोटी हूं।


मै:- वेयर कायोटि क्या वेयरवुल्फ से अलग होते है।


ओशुन:- हां बहुत अलग होते है। अब तुम यहां आराम करो। मै वुल्फ हाउस के चक्कर लगाकर आती हूं। और प्लीज यहां से बाहर मत जाना। कहो तो तुम्हारे पाऊं पर जाऊं।


मै:- नहीं मै कहीं नहीं जाऊंगा, तुम वुल्फ हाउस से हो आओ।


यूं तो जंगल में लगभग शाम जैसा ही माहौल होता था, लेकिन पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले चांद लगभग पुरा ही था। जितनी घनघोर और काली ये जंगल होनी चाहिए थी, उतनी काली नहीं थी, शायद चंद्रमा का ही हल्का-हल्का प्रभाव था।


ना निकलने कि बात मानकर भी झोपड़ी से निकल आया और वहां आस–पास घूम रहा था। थोड़ी दूर आगे ही एक मैदानी भाग था, जहां छोटा सा एक झील था और झील के किनारे खड़ी थी ओशुन। अपने पतले से उजले लिबास को बदन पर लपेट चांद की रौशनी में खड़ी वो झील को निहार रही थी। मैंने भी एक नजर उस झील को देखा, मुझे कुछ खास नहीं लगी। इसलिए मै वापस ओशुन पर नजर गड़ाये उसे देखने लगा। उसने अपने कंधे से सरकाक लिबास को पाऊं में गिरा दी। फिर अपनी पैंटी को निकालकर उसी के ऊपर डाल दी और झील में नहाने के लिए कुद गयी।


उसके भींगे लंबे बाल जो कंधे से आगे के ओर जा रहे थे और पानी में डूबे उसके सीने से उपरी भाग दिख रहा था। उसे छिपकर देखने का आनंद ही कुछ और था। कामुकता में वशीभूत होकर मैंने भी उस झील में छलांग लगा दिया। पानी में हुई इस हलचल से ओशुन सचेत तो हुई किन्तु जबतक वो समझ पाती की कौन है, मै उसके पीछे खड़ा था।..


ओशुन:– मना की थी ना बाहर नहीं आने।


मैं पीछे से उसके पेट को अपनी बाहों में जकड़ा और उसके गर्दन को चूमते हुये… "बाहर नहीं आता तो ये नजारा कहां से देखने को मिलता।"..


"ये अच्छा तरीका नहीं है आर्य, छोड़ो मुझे और जाओ यहां से।".… ओशुन मेरी पकड़ से छूटने की कोशिश करती हुई, शिकायती लहजे में कहने लगी।


मै वासना की आग में जल रहा था और थोड़ा हट दिखाते हुये अपने हाथ ऊपर करके, उसके उन खूबसूरत उरोजो के ओर ले जाना लगा, जिसके उभार सीने से बिल्कुल खड़े और इतने विकसित थे कि जिन्हे पूरे हाथ में भरकर उन्हें अपने गिरफ्त में करने का एक अलग ही आनंद था। बस ऐसे ही कुछ कल्पना के साथ मैंने अपने हाथ ऊपर बढ़ा तो दिये, किन्तु बीच में ही ओशुन मेरे दोनो हाथ को पकड़ती… "इसे जबरदस्ती करना कहते है आर्य। प्लीज मुझे इरिटेट मत करो वरना अच्छा नहीं होगा।"


ओशुन का नया खिला योबन था और मैं किशोरावस्था से जवानी के दहलीज पर कदम ही रखा था। उसके नग्न बदन का खिंचाव ही अजब था, वो मुझे रोकने की कोशिश कर रही थी और मै जोर लगाकर अपने हाथ ऊपर बढ़ा रहा था। मेरे हाथ को रोक पाना ओशुन के वश में नहीं था। वो कोशिश तो करके देख चुकी थी उसके बावजूद भी मेरे हाथ उसके दोनो स्तन के ऊपर थे और मेरे पूरे हथेली के गिरफ्त में।


मादक एहसास था वो। उसके गोलाकार और सुडोल स्तन मेरे हाथो में थे और ओशुन की सभी कोशिश नाकामयाब हो रही थी।… "आर्य….. मेरे बदन से हाथ हटाओ अभी।"… वो गुस्से में चिल्लाई और मै उसके गर्दन पर अपना जीभ के नोक को लगाकर धीरे-धीरे उसके कानों के ओर बढ़ने लगा। पानी में हल्का हिलकोर होने लगा और ओशुन का बदन सिहरने लगा। अंदर से उसे गुदगुदा एहसास हो रहा था, और उसकी हल्की छटपटाहट, पानी में मधुर छप–छप की आवाज पैदा कर रही थी।


मैं लगातार उसके स्तन पर हाथ की पकड़ को मजबूत किये, उसके गर्दन पर अपनी जीभ चला रहा था। और वो छटपटाती हुई बस किसी तरह रुकने के लिये कह रही थी। अरमान तो मुझे बहुत कुछ करने का था लेकिन ओशुन शायद इसके लिए तैयार नहीं थी। कब उसने अपना शेप शिफ्ट किया और छोटी सी लोमड़ी में तब्दील होकर मेरे गिरफ्त से छूटकर भागी, मुझे पता भी नहीं चला। मै बस अपना हाथ मलते रह गया। कुछ देर पानी में ही खड़ा रहा, फिर वासना जब शांत हुई तो पानी से निकलकर बाहर आया।


बाहर निकलकर जैसे ही मै थोड़ा आगे बढ़ा, ओशुन अपने उजले लिबास पहने सामने खड़ी थी। बदन हल्का गिला होने के कारण छाती से उसके कपड़ा चिपका हुआ था। ब्रा ना पहनने के कारण उसके पूरे स्तन के आकर दिख रहा था। कपड़ा इतना पतला था की उसके मादक स्तन झलक रहे था। जैसे ही ओशुन की नजरों ने मेरी नजरों का पीछा शुरू की, मै अपनी नजरें चुराते धीमे से "सॉरी" कहने लगा।


ओशुन अपने कदम बढ़ाती.. "इट्स ओके, मै समझ सकती हूं, तुम थोड़े एक्साइटेड हो गये थे।"..


मै पीछे से ओशुन का हाथ पकड़ कर रोकते… "सॉरी खुद के लिये कह रहा था। तुम्हे देखकर तो तम्मना वही है बस उमंग थोड़े काबू में है।"


ओशुन मेरे ओर मुड़ती… "ये क्या है आर्यमणि, मतलब किसी लड़की के साथ जबरदस्ती करना और उसके बाद भी खड़े होकर ऐसी बातें कर रहे हो। ये गलत है।"..


मै:- गलत सही मै नहीं जानता। एक तो तुम इतनी कामुक और दिलकश हो की तुम्हारी सूरत दिल में उतर जाती है। उसपर से तुम्हारा ये कातिलाना बदन, तुम जानती हो जब तुम्हे बिना कपड़ों के देखा तो मेरी यहां क्या हालत हुई थी।


ओशुन:- बिना कपड़ों के देखोगे तो क्या जबरदस्ती करोगे. ..


मै:- तुम्हे ऐसी हालत में देखकर जो मेरा रेप हो गया उसका क्या?


ओशुन:- हीहीहीही.. तुम्हारा तो यहां महीनों रेप होता रहा था आर्य। पिछले कुछ दिनों से यहां नहीं हो तो सबकी जिंदगी बोरिंग सी हो गयी हैं।


मुझे उसकी बात पर काफी तेज गुस्सा आया और मैंने खींचकर एक तमाचा जड़ दिया। उसका हाथ छोड़कर मै उस झोपड़ी में चला आया और हर पल मेरे अंदर हो रहे विलक्षित बदलाव को मै बस मेहसूस तो कर सकता था, लेकिन शायद रोक नहीं सकता था। मुझे अब बॉब की बातें भी सही लगने लगी थी कि मै खुद के लिये और दूसरे के लिए खतरनाक हूं। मुझे ओशुन का गुस्सा होना भी जायज लग रहा था। लेकिन फिर भी ना तो जबरदस्ती ओशुन के बदन को हाथ लगाने का रत्ती भर भी अफ़सोस था और ना ही बॉब को लगभग जान से मारने कि कोशिश पर कोई पछतावा, बस खुद पर ही गुस्सा आ रहा था।


मैंने तय कर लिया की जब मेरी बॉडी खून के एक-एक कतरे को निचोड़े जाने के बाद हील कर सकती है तो खुद पर हुए अत्याचार को मैं क्यों नहीं हील कर सकता। मै गुस्से में बाहर निकला और अपनी भड़ास निकालने के लिए पूरे जोड़ से एक बड़े से घने पेड़ पर मारना शुरू कर दिया। मुझे जितनी तकलीफ होती उतनी ही जोड़ से चिल्लाते हुये मै पेड़ पर मार रहा था। जोर और भी ज्यादा जोर, मेरे हाथ से खून निकलना शुरू हो गया। ऐसा लगा जैसे हड्डियां टूट चुकी है। लेकिन अंदर का गुस्सा शांत नही हो रहा था और मै लगातार मारते ही जा रहा था।


"तुम जब गुस्से होते हो तो तुम्हे देखने से लगता है जैसे काले बालों वाला खाल में कोई शैतान काम कर रहा हो। और जब नजदीक जाता हूं तो पाता चलता है तुम किसी हैवान में बदल चुके हो। जब तुम वॉर्डरोब फेक रहे थे तब भी और जब तुम एक टीनएजर के साथ पानी में जबरनदस्ती कर रहे थे तब भी। और अभी जब इस बेजुबान और स्थिर पेड़ पर अत्याचार कर रहे हो तब भी।"..


बॉब मेरे पीछे खड़ा होकर अपनी बात कह रहा था और उसके पास ओशुन खड़ी थी। मैं इतने अंधेरे में भी दोनों का चेहरा साफ–साफ देख सकता था। हांफती हुई मेरी श्वांस चल रही थी और बॉब ने तभी 4-5 तस्वीर खींची जिसका फ़्लैश मेरे चेहरे पर पड़ा। मै अपने श्वांस को काबू किया। धीरे-धीरे शायद मै वापस जानवर से इंसान बना और तब ओशुन मेरे पास आती हुई कहने लगी…. "आर्य, खुद को सजा देकर क्या करोगे, जो हो उसे कबूल करके आगे बढ़ो। तुम खुद के बदलाव को मेहसूस नहीं करना चाहते।"..


मै:- सॉरी बॉब..


ओशुन:- और मुझ जैसी नाजुक लड़की को जो दैत्य बनकर डराया, उसके लिये माफी कौन मांगेगा। तुम जानते हो पानी में मुझसे 4–5 फिट लंबे लग रहे थे और चौड़े इतने की मुझ जैसी 4 ओशुन को भी तुम अकेले ढक लो। ऐसा लग रहा था किसी बिल्ली के साथ कोई बब्बर शेर सेक्स की कोशिश कर रहा है। मेरे तो प्राण हलख में आ गये थे।


मै:- सॉरी ओशुन.. अब से बॉब तुम जो बोलोगे मैं वही करूंगा।


बॉब:- तुमने इस विशाल पेड़ को तकलीफ़ पहुंचाई है, इसके दर्द को तुम मेहसूस करो।


मै:- कैसे..


बॉब:- ठीक वैसे ही जैसे उस हिरण का दर्द तुमने मेहसूस किया था। जब तुम उसके दर्द को मेहसूस करते उसपर हाथ फेर थे, वो काफी शांत और पिरा मुक्त मेहसूस कर रही थी। शायद वो हिरण उतनी घायल नहीं थी, इसलिए तुम्हे अपने अंदर हिरण का दर्द मेहसूस नहीं हुआ, लेकिन ये पेड़ लगभग रो रहा है। ये भी ठीक उसी प्रकार घायल है जैसे वो हिरण थी।


बॉब की बात कुछ-कुछ समझ में आ रही थी, और कुछ बातें अजीब थी। लेकिन फिर भी मै उसका कहा मानते पेड़ को घायल समझकर बिल्कुल उसी एहसाह में अपने हाथ लगाने लगा। आंख मूंदे बिल्कुल सौम्यता से... कुछ पल बीते होंगे जब मुझे अजीब सा लगने लगा। ऐसा लगा नसों में खून नहीं बल्कि पीड़ा दौड़ रहा है, जो खून की धारा के बिल्कुल उल्टी ऊपर की ओर जा रही थी। मै जब आंख खोला तब देख सकता था कि मेरी नशें, स्किन से कुछ सेंटीमीटर ऊपर उभरी हुई थी। हर एक नब्ज उभरी हुई दिख रही थी जो पेड़ से उसका दर्द अपने अंदर खींच रही थी। यह मुझे असहनीय पीड़ा दे रही थी और मुझे चिल्लाने पर मजबूर कर रही थी। ऐसा लगा जैसे मेरी आखों की नसें फट जायेगी। आंखों तक की सारी नशें बिल्कुल उभरी हुई मेहसूस हो रही थी और जैसे छोटे–छोटे कीड़े रेंग रहे हो, ठीक उसी प्रकार आंखों की नशों के अंदर कुछ रेंगने का एहसास था। लेकिन ना तो मै चिल्लाया और ना ही अपना हाथ हटाया।


थोड़े वक़्त बाद धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा। बिल्कुल शांत और ख़ामोश। पेड़ पर हाथ रखने का अलग ही अनुभव था। ये बयान नहीं किया जा सकता। मै अपने मां के गोद जैसा सुकून मेहसूस कर रहा था। मुस्कान थी मेरे चेहरे पर और मै खुद में कुछ अच्छा मेहसूस कर रहा था। "आर्य एक अल्फा है।".... ओशुन की आखें बड़ी थी और चेहरे के भाव बिलकुल अलग थे।


बॉब मुस्कुरा रहा था लेकिन वो मुझे देखकर मुस्कुरा नहीं रहा था बल्कि ओशुन के भाव को देखकर मुस्कुरा रहा था। ओशुन के चेहरे के भाव और जहन में उठ रहे सवालों पर बॉब ने उसे कहा... "फर्स्ट अल्फा, अल्फा, बीटा, ओमेगा ये सब कुछ नहीं, आर्यमणि बस एक सुपरनैचुरल है। बाकी तुम जितना इसके करीब रहोगी उतना अच्छे से जान सकती हो।"..


ओशुन:- मतलब..


बॉब:- मतलब की तुम अगले 10 दिन तक इसके साथ रहो। वैसे भी कल पूर्णिमा है तो शायद ये तुम्हारे पास ही रहे तो ज्यादा अच्छा है। मै 10 दिन के लिये कुछ काम से जा रहा हूं, उसके बाद तुम्हारी जिम्मेदारी खत्म। अगर कोई समस्या हो तो बताओ।


ओशुन:- ये साढ़े 7 फिट लंबा और 3 फिट चौड़ा बिल्कुल काला बीस्ट वुल्फ और मै कहां 5 फिट 6 इंच की कमसिन सी लड़की, जो शेप शिफ्ट करती है तो नीचे जमीन में 4 फिट की फॉक्स रहती है। कहीं मुझे ये कच्चा ना चबा जाये।


बॉब:- हाहाहाहा.. बाकी बातो का डर ठीक है, लेकिन ये किसी भी शेप में रहे, मांस नहीं खाता। इसलिए फिक्र मत करो कच्चा नहीं चबायेगा।


ओशुन:- दिखने में बीस्ट वुल्फ और खाने से सकाहरी। कहीं मुझे चबाकर ही मनासहरी ना बन जाये।


बॉब:- ठीक है भाई आर्यमणि चलो चलते है।


ओशुन:- 10 दिन तो मेरे पास रहने दो बॉब फिर तुम इसे यहां से ले जाओगे। वहां से ये अपने घर लौट जायेगा। इसके साथ कुछ यादें मुझे भी समेट लेने दो। अब तक दर्द में ही देखी हूं इसे, कुछ दिन सामान्य रूप से बिना दर्द के इंसानी रूप में भी देख लेने दो। मेरे जहन में आर्यमणि की कुछ अच्छी यादें रहे।


बॉब:- ठीक है किड्स ख्याल रखना अपना और आर्यमणि जब ओशुन के ख्याल बेकाबू कर दे तो बस यहां किसी भी पेड़ पर ठीक वैसे ही हाथ रखना जैसा इस पेड़ पर रखे थे, तुम अपने आप शांत हो जाओगे।


मै:- शुक्रिया बॉब


रात काफी हो गयी थी। ओशुन मेरा हाथ थामे चल रही थी। उस पेड़ को स्पर्श करने के बाद मै हर स्पर्श को जैसे मेहसूस कर सकता था। काफी सौम्य और बिल्कुल नाजुक हथेली थी ओशुन की। जैसे ही अचानक फिर ख्याल आया पानी का… "ओशुन टॉप नीचे करो और मुझे अपने स्तन दिखाओ।"..
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भाग:–80






रात काफी हो गयी थी। ओशुन मेरा हाथ थामे चल रही थी। उस पेड़ को स्पर्श करने के बाद मै हर स्पर्श को जैसे मेहसूस कर सकता था। काफी सौम्य और बिल्कुल नाजुक हथेली थी ओशुन की। जैसे ही अचानक फिर ख्याल आया पानी का… "ओशुन टॉप नीचे करो और मुझे अपने स्तन दिखाओ।"..


ओशुन:- क्या ?


मै:- टॉपलेस हो जाओ..


ओशुन मेरे आखों में झांकी, कुछ पल खामोशी से वो मेरे अंदर तक झांकने की कोशिश करती रही। फिर आहिस्ते से अपने स्ट्रिप को खिसकाकर अपनी ड्रेस को नीचे जाने दी। उसके स्तन की वास्तविक हालत देखकर मै सिहर गया।… "क्या मै इनपर हाथ रख सकता हूं।"… ओशुन इस तरह से हंसी मानो मुझे बेवकूफ कह रही हो। उसने पलकें झुकाकर अपनी रजामंदी दी और मैं अपना हाथ उसके स्तन पर उसी सौम्यता से रखा जैसे उस मृग अथवा पेड़ पर रखा था और ओशुन की पीड़ा को मेहसूस करने लगा।


मैं आंख खोलकर ओशुन के चेहरे को देखने लगा। उसके चेहरे पर असीम सुकून के भाव थे, जो चेहरे से पढ़ा जा सकता था। धीरे-धीरे मेरे नब्ज में ओशुन का उतरता दर्द सामान्य होने लगा। वह अपने अंदर पुरा सुकून मेहसूस करती गहरी श्वांस खींची और मेरे हाथ को अपने सीने से हटाकर सीधा मेरे ऊपर पुरा वजन दे दी, मानो कह रही थी प्लीज अब मुझसे खड़ा नहीं रहा जा सकता। और मेरे ऊपर पुरा भार देकर वो सुकून से श्वांस लेने लगी।


कुछ देर तक ओशुन अभूतपूर्व सुकून को मेहसूस कर रही थी, मानो किसी ने उसके हृदय की धड़कन को पुनर्जीवित कर दिया हो, जो एक लंबे समय से धड़क तो रही थी, लेकिन अंदर वो ऊर्जा नहीं थी। ओशुन अपने सुकून के पल में इस कदर खोई की उसे एहसास तक ना रहा की कब सुबह भी हो गयी। दूर से आती वुल्फ साउंड सुनकर ओशुन गहरी नींद से जागी। जब वो अपने आसपास का माहौल देखी, "ओह नो" उसके होटों पर थी और प्यारी सी मुस्कान चेहरे पर। वो खड़ी होकर मुझे देख रही थी और मुस्कराते चेहरे पर थोड़ी सी अफ़सोस की भावना थी।


तभी मै झुका और उसके ड्रेस को उसके पाऊं से ऊपर किया और कंधे तक चढ़ाया। मुझे देखकर वो मुस्कुराई और मुड़कर अपने कदम बढ़ा रही थी। मैं भी मुस्कुराते हुये झोपड़ी के ओर कदम बढ़ा दिया। मै भी मुस्कुराया वो भी मुस्कुराई, शायद मैं भी उसे नजर भर देखना चाहता था और शायद उसके दिल की भी यही इक्छा थी। हम दोनों ही पलटे। एक दूसरे को देखकर चेहरा खिला हुआ था और नजरे एक दूसरे पर बनी हुई।


तभी ओशुन अपने कदम बढ़ाकर अपनी ऐरियों को ऊपर की, अपने हाथ मेरे कांधे पर डाली और अपने होंठ को मेरे होंठ से स्पर्श करती अपनी आंखे मूंद ली। बिल्कुल ठंडा और मुलायम स्पर्श था, जो दिल में हलचल मचा गया। उस स्पर्श को मेहसूस करने के लिये दिल कबसे ना जाने व्याकुल हो। आहिस्ते से मैंने भी अपने होंठ उसके होंठ से स्पर्श किये। ठंडे और मुलायम होटों के स्पर्श और चेहरे पर टकराती गर्म श्वांस, दिल में प्यारी सी बेचैनी दे रही थी। हम दोनों के जज्बात लगभग एक जैसे थे। तभी कानो में फिर से वुल्फ साउंड गूंजी, और ओशुन किस्स को तोड़ती थोड़ी झुंझलाई.. "ऑफ ओ, हनी मै जारा इन्हे शांत करके आयी, तब तक प्लीज तुम झोपड़ी में ही रहना।"..


"मै बोर हो जाऊंगा ओशुन"… "ठीक है एक काम करो झील के उस पार कम से कम 20 किलोमीटर दूर जब जाओगे एक छोटी सी बस्ती दिखेगी। बस वहीं आस पास टहलना, मै वहीं आकर मिलती हूं।"… इतना कहकर ओशुन मुड़ गयी लेकिन एक कदम आगे गयी होगी की वो फिर पलटी और मेरे होटों पर अपने होटों का छोटा सा स्पर्श देती… "मै जल्दी आयी"


ओशुन शायद वहां कुछ और देर रुकती तो वो जा नहीं पाती इसलिए शायद इस बार जब मुड़ी तो बिजली की रफ्तार पकड़ ली। मै भी उल्टी दिशा में दौड़ लगा दिया। कुछ ही पल में मै उस बस्ती के पास था। बस्ती तो वहां थी, लेकिन वहां कोई इंसान नहीं था। मुझे थोड़ी हैरानी हुई और जिज्ञासावश एक झोपड़ी में घुसा।


दरवाजा को खोलने के लिये दरवाजे पर मैंने हथेली रखा ही था कि वो स्पर्श मुझे विचलित कर गयी। मैंने अपनी हथेली दरवाजे से टिकाकर अपनी आंख मूंद लिया और फिर झटके से अपने हाथ पीछे खींच लिया। उस दरवाजे पर जैसे किसी के आतंक की कहानी लिखी हुई थी। दरवाजा खोलकर जैसे ही मैं अंदर पहुंचा लगा कि कोई है, लेकिन ये मेरा भ्रम मात्र था। ओशुन जिस झोपड़ी में रहती थी और यह झोपड़ी, दोनो की बनावट लगभग एक सी थी। केवल फर्क सिर्फ इतना था कि यहां की खाली झोपड़ी में किसी के होने का विचलित एहसास था, जबकि वहां सुकून था।


मै एक-एक करके हर झोपड़ी के दरवाजे पर हाथ रखा और हर दरवाजे पर लगभग एक जैसा ही अनुभव था। हर झोपड़ी के अंदर, वहां के आस–पास के खुले माहोल, हर चीज में कुछ तो ऐसा था, जो मुझे किसी के होने का एहसास तो करवाता, किन्तु वहां कोई होता नहीं। मै वहां से निकलकर बाहर आया। विचलित मन में कई सारे सवाल उठ रहे थे। मै बैठकर मुसकुराते हुये बस इतना ही सोच रहा था कि…. "क्या बदलाव इतना विचलित करता है। मै पहले दिन से ही जैसे ब्लैक फॉरेस्ट की दुनिया में उलझता सा जा रहा हूं। मैंने तो इस जगह का नाम ही पजल लैंड रख दिया, क्या हो रहा था, क्यों हो रहा था, कुछ भी समझ में आने वाला नही।"


फिर दिखी एक परी। ओशुन सामने से चली आ रही थी। उसका हुस्न जैसे दिल में उतर रहा था। लहराती हुई चली आ रही थी। खुद को अच्छे से संवारा था। पहले से कुछ अलग लेकिन काफी दिलकश दिख रही थी। ओशुन के शरीर से लिपटा गहरे नीले रंग का कपड़ा, उसके मनमोहक रूप को और भी निखार रहा था। मेरे करीब वो पहुंची, और मुझे खड़ा होने के लिये कहने लगी। मै उसके आखों में देखते खड़ा हो गया। हम दोनों ही खड़े थे और दोनो की नजरें एक दूसरे से मिल रही थी। वो मेरा हाथ थामकर नीचे घुटनों पर बैठ गयी। जब वो बैठी हम दोनों ही समझ गये की क्या होने वाला है। दोनो के ही चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी।


ओशुन अपने घुटने पर बैठकर धीमे से कहने लगी… "अपनी नजरे मुझ पर से हटाओ वरना मेरी धड़कने इतनी बेकाबू हो जाएगी की मै तुम्हारी तरह शेप शिफ्ट कर चुकी रहूंगी।"..


अनायास ही मुझे आभाष हुआ कि मेरी धड़कने इतनी बढ़ चुकी है कि मै, मै ना होकर एक वुल्फ में तब्दील हो चुका था। मुझे अंदर ही अंदर अफ़सोस सा होने लगा। मेरे दैत्याकार हाथ जो इस वक़्त ओशुन के हाथ में था, उसमें मानो कोई जान नहीं बची हो। वो बेजान होकर बस लद गया। ओशुन शायद मेरी दिल की भावना समझ चुकी थी, वो फिर भी मेरा हाथ थामे रही। खुद की हालात जब बुरी लगी तो धड़कने भी काबू में थी और शरीर भी। हाथ बिल्कुल सामान्य दिखने लगा था, किन्तु भावनाएं पहली जैसी नहीं रही। लेकिन ये तो केवल मेरे दिल के हाल था। ओशुन मेरी कलाई थामे अब भी अपने घुटनों पर बैठी थी, वही प्यारी सी मुस्कान उसके मासूम से छोटे चहरे पर थी और अपने होंठ से मेरी कलाई चूमती… "आई लव यू"..


शायद कुछ गलत सुना क्या, मेरी आखें बड़ी हो गयी। आश्चर्य से मै ओशुन के ओर देखने लगा। "हीही".. की मीठी ध्वनि मेरे कानों में पड़ी। ओशुन एक बार फिर से कही। लेकिन इस बार खुल कर और चिल्लाकर कहने लगी… "मिस्टर आर्य, तुम्हे देखकर दिल जोड़ों से धड़कता है। आई लव यू।"..


वो अपनी भावना का इजहार करती हुई खड़ी हो गयी और अपने बांह मेरे गले में डालकर, मुस्कुराती वो मुझे देखती रही। "आहहह" क्या फीलिंग थी बिल्कुल अलग और रोमांचकारी। कमर में हाथ डालकर मैंने ओशुन को अपने ओर खींचा। अब वो बिल्कुल मुझ से चिपक चुकी थी। उसके वक्ष मेरे सीने से लगे थे। धड़कन की आवाज कानों में सुनाई दे रही थी। चेहरा हल्का पीछे था और उसका खिला रूप दिल में बस रहा था… "धक–धक.. धक–धक".. की जोड़ की आवाज मेरे सीने से आ रही थी। बेख्याली में मेरे आंख बंद होने लगे। श्वांस बिखरने सी लगी थी और उसके होंठ के नरम एहसास अपने होंठ से छूने के लिए दिल मचलने लगा था।


तभी ओशुन अपनी एक उंगली मेरे होंठ से टिका कर मेरे बढ़ते होंठों पर थोड़ा विपरीत फोर्स लगाई। मै रुककर सवालिया नजरो से उसे देखने लगा। मेरी नजरो को पढ़कर एक बार धीमे से हंसी… "हनी पहले तुम्हारे शेप शिफ्ट का कुछ करना होगा। अब मुझे नीचे उतारो।"..


मैंने फिर से खुद की हालात पर गौर किया। किन्तु इस बार अफ़सोस नहीं था बल्कि ओशुन की बात सुनकर मै मुसकुराते हुए उसे नीचे उतार दिया। मुझे इस रूप में मुस्कुराते हुये देखकर ओशुन खुलकर हसने लगी। उसकी हसी कितनी प्यारी थी ये बयां कर पाना मुश्किल होगा। बस वो खुलकर हंस रही थी और मै उसे देखे जा रहा था।


"हनी जायंट शेप में तुम्हारी स्माइल कातिलाना थी। एक दम फाड़ू। सॉरी मै खुद को रोक नहीं पायी।"… ओशुन हंसती हुई अपनी बात रखी।


उसकी बात सुनकर मै फिर से मुस्कुरा दिया। कुछ समय हमलोग ने एक दूसरे में खोकर बिता दिया। हम दोनों जब बैठकर बातें कर रहे थे तब मै बार-बार ओशुन का चेहरा देख रहा था। मुझे पहली बार यह एहसास हो रहा था कि इंसान इस पृथ्वी के किसी भी कोने में क्यों ना रहते हो, भावनाएं हर किसी में होती है। हालांकि सुपरनैचुरल कल्चर प्रायः सब जगह एक जैसा ही होता है..


जैसे कि खुले विचार। ओपन सेक्स, अपने हिसाब से पार्टनर चुनना और पैक के साथ बंधकर रहना। लेकिन भारत की सभ्यता और जर्मनी की सभ्यता में काफी अंतर पाया जाता है। यूरोप के परिवेश में पले लड़के-लड़कियां और भारतीय परिवेश में पले बढ़े लड़के-लड़कियों में सभ्यता का अंतर तो होता ही है। वहां कितने भी ओपन ख्याल क्यों ना हो रिश्ते छिपाने पड़ते है। लेकिन यहां ऐसी बात नहीं थी। तो मन में कहीं ना कहीं ये भी था कि यहां भावनात्मक जुड़ाव, प्यार मोहब्ब्त ये सब थोड़े कम होते होंगे।


लेकिन जब आप वास्तव में इन इलाकों में रहते है तो कुछ अलग ही तस्वीर नजर आती है। बस ढोने वाले रिश्ते और रिश्ते में आयी दरार को ये बचाने कि ज्यादा कोशिश नहीं करते। लेकिन बाकी हर किसी की फीलिंग एक जैसी ही होती है। मै अब तक यहां कुछ लोगो से मिलकर काफी प्रभावित हुआ था। मैक्स, था तो एक शिकारी लेकिन मुसीबत में फसे इंसानों को वो अपने घर ले जाकर सेवा करता और उन्हें सुरक्षित निकालता। वहीं उसकी पत्नी थिया, जिसने पहली मुलाकात में ही मेरी काफी मदद की। उसके बाद उसका दोस्त बॉब, जिसे मैंने लगभग जान से ही मार दिया था, लेकिन फिर भी वो मेरे पीछे आया, और वो भी अपने अतीत के एक टूटे रिश्ते के कहने पर।


ओशुन के बारे में मै क्या बताऊं। शुरवात के दिनों में मै जब यहां आकर जहालत झेल रहा था, पता ना बेहोशी में उसने मेरे लिए क्या-क्या किया हो। ये उसने मुझे आज तक कभी नहीं बताया। मै तो यहां लोगो की मानसिकता का भनक भी नहीं लगा पाता, यदि ओशुन ने मुझे सब बताया ना होता। ना ही कभी मैक्स, थिया और बॉब से मिलता।


ओशुन के साथ बात करते-करते मै इन्हीं सब बातो में डूब सा गया। तभी वो मुझे ख्यालों से बाहर लाती हुई पूछने लगी… "क्या हुआ कहां खो गए।"..


मै:- कुछ नहीं, तुम बताओ तुमने मुझे यहां क्यों भेजा।


ओशुन:- ब्लैक फॉरेस्ट का वुल्फ गांव। वुल्फ हाउस से पहले यहां यही था। मेरा गांव। प्यारा गांव..


ओशुन अपनी बात कहते थोड़ी ख़ामोश दिख रही थी। मुझे उसके अंदर का दर्द कुछ-कुछ समझ में आ रहा था लेकिन मै उसका इतिहास पूछकर और दर्द में नहीं डालना चाहता था, इसलिए उसका हाथ थामकर मै वहां से चल दिया।


कुछ देर बाद हम उस छोटे से झोपड़ी में थे, जो इस वक़्त हमारा आशियाना था। मैंने जब उस झोपडी को अंदर से देखा तो देखकर खिल गया। एक लड़की जो प्यार में है फिर अपनी भावनाए दिखाने के लिए कितनी छोटी-छोटी चीजों पर काम करती है। वो झोपड़ी अंदर से बिल्कुल हमारी तरह खिली हुई थी। मानो ओशुन ने झोपड़ी के अंदर जान डालकर अपनी भावना मुझसे बयां कर रही हो।


झोपड़ी के अंदर जारा भी धूल के निशान नहीं, चारो ओर उजाला फैला हुआ था। धूल, मिट्टी और अंधेरे के कारण ना दिखने वाले दीवारों का रंग बिल्कुल श्वेत और उसके पर्दे गहरे हरे रंग के। हर दीवार के कोने में कुछ फूल टंगे हुए थे, जो चारो ओर प्यारी खुशबू बिखेर रही थी। मै वहां की खुशबू अपने जहन में उतारकर, दोनो बाहें फैलाये लेट गया। ओशुन भी मेरे साथ लेटती, मेरी ओर करवट ली और मेरे सीने से अपने सर को लगाकर सोने लगी।


रात भर का मै भी जगा था। उसपर इस वक़्त का एहसास काफी आनंदमय और सुखद था। मैं आंख मूंदकर ओशुन को खुद में मेहसूस करने लगा। उसे मेहसूस करते कब मेरी आंख लग गयी, मुझे पता ही नहीं चला। जब मेरी आंख खुली तब हल्का अंधेरा हो रहा था। ओशुन तो मेरे पास नहीं थी लेकिन उसका एक पत्र मेरे पास पड़ा था, जिसमें उसने मेरे लिए संदेश था।..

"मै वुल्फ हाउस जा रही हूं। बिस्तर पर तुम्हारे लिये कपड़े पड़े है, नहाकर ये कपड़े पहन लेना और प्लीज बाहर मत निकालना। मै चांद निकलने से पहले तुम्हारे पास आ जाऊंगी।"


शाम ढल चुकी थी, और मै नहाकर तैयार हो चुका था। बिस्तर पर बैठकर मै ओशुन के बारे में कुछ सोचूं, उससे पहले ही वो दरवाजा खोल कर अंदर। उफ्फ क्या क़यामत लग रही थी वो। ऐसा लग रहा था कोई जहरीली जादूगरनी अपने नीली आखों से मेरा कत्ल करने वाली है। उसपर से उसके गहरे लाल रंग वाला वो पतला सा कपड़ा, जिसके ऊपर उसके कंधे खुले थे और बीचोबीच एक छोटा सा नेकलेस लटक रहा था। उस नेकलेस के आखरी में लगा सितारों के एक पत्थर, काफी मनमोहक लग रहा था जो रह-रह कर मेरा ध्यान खींच रहा था।


"क्या देख रहे हो।" .. ओशुन मुसकुराते हुये मेरे करीब आकर बैठी और मुझसे पूछने लगी। मैं उसके नेकलेस में लगे सितारे को अपने हाथो में लेकर… "बहुत प्यारा लग रहा है ये।"…


ओशुन:- मेरी मॉम का है। ये जगह छोड़ने से पहले उन्होंने मुझे दिया था।


मै:- तुम्हारी मॉम तुम्हे छोड़कर चली गयी?


ओशुन:- हां मेरे पापा अपने पैक के साथ रुक गये, मेरी मॉम अपने पैक के साथ चली गयी। बस जाते–जाते मुझे ये निशानी देकर गयी।


हम दोनों की बातें अभी शुरू ही हुई थी, ठीक उसी वक़्त ऐसा लगा जैसे मेरे पूरे शरीर में खिंचाव सा हो रहा है। फिर भी मै उन खिंचाव पर ज्यादा ध्यान ना देते हुए… "तुम्हारी मॉम भी तुम्हारी तरह खुएबूरत होंगी।"..


ओशुन:- हीहीही.. और मेरे डैड बदसूरत थे क्या?


मै:- कोई बेवकूफ और अड़ियल होगा, जो इतनी सुन्दर बीवी को जाने दिया।..


मै अपनी बात कह तो रहा था ओशुन से, लेकिन मुझे अंदर से कुछ अजीब, और दिल में ऐसी भावना जाग रही थी कि मै खतरे में हूं, ओशुन खतरे में है। वो दरिंदे ईडन के लोग हम पर हमला करने आ रहे है और मुझे किसी भी तरह से ओशुन की बचाना हैं। मै खुद में काफी विचलित मेहसूस करने के बावजूद, किसी तरह खुद को काबू किये हुये था और ओशुन का मुस्कुराता चेहरा इसमें मेरी पूरी मदद कर रहा था। शायद पहले पूर्णिमा का असर हो रहा था।


ओशुन:- मेरे डैडी बेवकूफ है और इस वक़्त तुम क्या कर रहे हो?


मै:- कुछ समझा नहीं..


ओशुन:- कुछ समझे नहीं या समझकर भी समझना नहीं चाहते। क्या तुम्हे यहां की खुशबू मेहसूस नहीं हो रही।


मै:- ओशुन सच कहूं तो इस वक़्त मुझे अजीब सी बेचैनी मेहसूस हो रही है। मेरा जी कर रहा है उस ईडन का मै गला धर से अलग कर दूं। उस लोपचे के शरीर के 100 टुकड़े करके पूछूं की मैत्री को क्यों उसने अकेले इंडिया जाने दिया। मुझे क्यों एक बार भी सूचना नहीं दिया।


मुझे ये एहसास ही नहीं हुआ कि कब मैंने अपना शेप शिफ्ट कर लिया और एक वेयरवुल्फ में तब्दील हो गया। ओशुन मेरी बात सुनकर मुस्कुराई और मेरा हाथ थामकर बोलने लगी… "अब भी मैत्री तुम्हारे दिल में है ना, इसलिए तुम मुझ से भावनात्मक जुड़ना नहीं चाहते। तालाब में केवल मेरे बदन को देखकर तुम एक्साइटेड हो गये थे।"..


ओशुन की बात सुनकर मै बिल्कुल ख़ामोश हो गया। मेरे अंदर की बेचैनी और घुटन एक किनारे और ओशुन का वो मुस्कुराता चेहरा दूसरी ओर, जो मुझसे ये जानने को इक्कछूक़ थी कि क्या मै उससे भावनाओ के साथ जुड़ा हूं, या केवल मेरी उत्तेजना थी जो तालाब के ओर मुझे खींच ले गयी थी?
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Tri2010

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भाग:–81






ओशुन की बात सुनकर मै बिल्कुल ख़ामोश हो गया। मेरे अंदर की बेचैनी और घुटन एक किनारे और ओशुन का वो मुस्कुराता चेहरा दूसरी ओर, जो मुझसे ये जानने को इक्कछूक़ थी कि क्या मै उससे भावनाओ के साथ जुड़ा हूं, या केवल मेरी उत्तेजना थी जो तालाब के ओर मुझे खींच ले गयी थी?


मै अपनी उलझनों में खोया हुआ था और तभी ओशुन बिल्कुल मेरे गोद में चढ़कर अपने होंठ मेरे होंठ से लगाती हुई किस्स करना शुरू कर चुकी थी। मै असमंजस की स्तिथि में उसका साथ नहीं दे पाया। वो अपने होंठ मेरे होंठ से हटाकर… "क्या हुआ।"..


नज़रों में सवाल, चेहरे पर मुस्कान, मै उसकी ओर देखते हुये कहने लगा… "मैत्री दिल से गयी नहीं, इसका अर्थ ये नहीं की तुम दिल में नहीं हो ओशुन। बस तुम्हे यकीन कैसे दिलाऊं वो समझ में नहीं आ रहा। इस वक़्त मेरा दिल ना जाने कितने रफ्तार से धड़क रहा है। अपने ऊपर हुये हर जिल्लत का बदला लेने के लिये मेरा दिल कह रहा है उठो, अभी उठो.. उस ईडन और उसके तमाम लोगो को मार डालो। लेकिन दिल में उतरता ये तुम्हारा चेहरा कहीं मेरे नजरो से ओझल ना हो जाये इसलिए मै बदला को दबा कर अपने प्यार पर ध्यान दे रहा हूं।"..


"सीईईईईईईईईईईईईईईईई"…. बिल्कुल खामोश। जानते हो इस वक़्त मेरा दिल क्या कह रहा है।"… ओशुन अपनी बात कहती मुस्कान से भरे चेहरे पर थोड़ी शरारत लाती, मेरे दोनों हाथ अपने स्तन पर रख कर मुझे आंख मार दी, और वापस से मेरे होटों को चूमने लगी।


उसके होटों का स्पर्श ऐसा था कि मदहोशी के आलम में मै सब भुल सा गया। बेखयाली ऐसी थी कि मेरे हाथ उसके स्तनों को कभी मिज रहे थे तो कब उसे प्यार से सहला रहे थे और वो लगातार किस्स को बीच बीच में तोड़कर "आंह आंह" करती रही।


मेरे आंख व्याकुल हो चुके थे उसके जवान योबन को देखने के लिये। उसके स्तन भींचते हुये उसके नये कपड़े को खींचता रहा। तभी वो अपना किस्स तोड़ती मेरे आखों में देखकर मुकुराई। मेरे कान को दांत में दबाकर मेरे उपर से हटी और मुझे धक्के देकर लिटा दिया।


उत्तेजना में मै अपने पीठ को उठाकर ओशुन को देखने की कोशिश करता रहा और वो मुझे बार-बार लिटाकर ना जाने क्या कर रही थी। "आह्हहहहहहहहहहह" की आवाज अचानक से मेरे मुंह से निकली। मेरे उत्तेजना की आग पूरे चरम पर पहुंच गई। और जब मै उत्तेजना में उठकर ओशुन को देखने की कोशिश कर रहा था मुझे पता भी नहीं चला कब उसने मेरे नीचे के कपड़े निकालकर मुझे नंगा कर दिया था।


उत्तेजना में जलते मेरे लिंग पर उसके हाथ बिल्कुल बर्फ से ठंडे और मक्खन से मुलायम। लिंग पर ओशुन के नरम हाथ गहरा मादक लहर का सृजन कर रहा था। मै गहरी आवाज़ निकालने पर मजबूर हो गया और ओशुन.. "हिहि".. करती अपनी शरारत दिखाने लगी थी। उसके ठंडे मुलायम हाथ मेरे लिंग को पूरा शक्त बाना चुके थे, जान तो तब निकल गई जब उसने मेरे लिंग को अपने मुंह में लिया, और मुंह में लेकर वो चूसने लगी। लिंग का कुछ हिस्सा ओशुन के मुंह में था और नीचे उसका हाथ ऐसे सरसराते हुए रेंग रहा था कि मै पुरा छटपटा गया। मेरे कमर ख़ुद व खुद हिलने लगे।


मैं उठकर बैठ गया और उसके बाल को अपनी मुट्ठी में लेकर, अपने लिंग पर उसके सर को तेजी में आगे पीछे करता हुए पुरा अंदर तक डालकर कर रुक गया। उफ्फफफ क्या रोमांच था। मै उत्तेजना के पंख लगाए उड़ रहा था। "ऊम्मममममममम, ऊम्मममममममम" .. की दबी सी आवाज आने लगी, और ओशुन मेरे कमर के ऊपर तेज-तेज हाथ मारने लगी। "ईईईई .. ये क्या हो गया".. अपनी उत्तेजना में थोड़ा गुम हो गया और जब मैंने ओशुन के बाल छोड़े खांसती हुई वो किसी तरह अपने स्वांस को काबू करने लगी। उसके पुरा मुंह गीला हो गया था और मुंह से झाग निकल रहे थे।


ओशुन मेरे ऊपर कूदकर आयी और मेरा गला पकर कर गुस्से में… "जंगली पहली बार सेक्स कर रहा है क्या?"..


उसकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। पूरे जोश से मैंने उसे उल्टा घुमा दिया। बिस्तर पर वो बाहें फैलाए लेटी हुई थी और मेरा शरीर ऊपर से उसे पुरा कवर किए हुए था। उसके दोनो हाथ मेरे हाथो के नीचे दबे थे और मै उसके नरम होंठ पर जीभ फेरते हुए उसकी आंखो में देखकर कहने लगा… "मेरा सेक्स करने का पहला अनुभव है और सेक्स देखने का जीरो।"..


मेरी बात सुनकर ओशुन खुलकर हसने लगी और मेरे कमर में अपने पाऊं फंसाकर अपने होंठ ऊपर करके मेरे होंठ छूने की कोशिश करने लगी। मुझे देख कर ये अच्छा लगा और मै अपने होंठ उसके होंठ से लगाकर चूमने लगा। हम दोनों पागलों कि तरह एक दूसरे को चूमे जा रहे थे। उत्तेजना में ओशुन अपने नाखून पुरा मेरे पीठ में घुसाए जा रही थी। तभी बीच से उसने अपना पाऊं मोड़कर अपने कपड़े को कमर तक चढ़ा ली और पाऊं से पैंटी को निकलकर मेरे लिंग को अपने योनि के थोड़ा अंदर घुसकर तेजी से घिसने लगी।


योनि पर लिंग घुसते वक़्त वो इतना तेज श्वांस ले रही थी कि उसका स्तन मेरे सीने को छूते हुए ऊपर तक दब जाते। एक लय में ये लगातार हो रहा था जो मुझे पागल बनाये जा रहा था। लिंग पर योनि का स्पर्श से मेरे शरीर में लहर दौरने लगा और मैंने पुरा झटका देकर लिंग को योनि के अंदर पुरा जड़ तक घुसाकर अपने कमर अटका दिया… ओशुन के हाथ बाहर थे जो मेरे चूतड़ को पूरी मुट्ठी में दबोचे थी और लिंग के अंदर जाते ही "ऊम्मममममममममम ऊम्ममममममममम".. की घुटती आवाज अंदर से आने लगी।


काफी मादक और मनमोहक आवाज़ थी जो मेरे अटके कमर में भूचाल लाने के लिए काफी थे। मेरे तेज-तेज झटको से पुरा पलंग "हूंच हुंच" की आवाज निकाल रहा था। "ऊम्ममममममममममम आह्हहहहहहहहहहह " की लगातार आवाज़ ओशुन के बंद मुंह से आ रही थी, जिसे मेरे होटों ने जकड़ रखा था। और मै धक्के पर धक्का मारते जा रहा था। हर धक्के में अपना अलग ही कसीस था और चरम सुख भोगने का अपना ही मजा।

वेयरवोल्फ बनने में पहले पूर्णिमा में मैं भी पूरे मज़े में अपना पहला सेक्स एन्जॉय कर रहा था। योनि के अंदर लिंग डालने का सुख ही कमाल का था और लगातार धक्के मार-मार कर वो सुख की प्राप्ति कर रहा था। फिर तो ऐसा लगा जैसे आखों के आगे अंधेरा छा गया हो। मेरे रोम-रोम से मस्ती की चिंगारी निकलने वाली हो। बदन पुरा अकड़ता जा रहा था श्वांस फुल सी गई और धक्के कि रफ्तार बिल्कुल चौगुनी। "आहहहहहहहहहहह" की तेज आवाज के साथ ही मैंने अपना सारा वीर्य निकालकर उसके पास ही निढल पर गया।


ऐसा लगा मानो पुरा शरीर हल्का हो गया हो। इतने आनंद में था कि अपना हाथ तक उठाने का मन नहीं कर रहा था। श्वांस धीरे-धीरे सामान्य होती चली गई और मै गहरी नींद में चला गया।


ऐसा लग रहा था मै कई दिनों बाद इतनी गहरी नींद में सोया था। जब जगा तो मीठी सी अंगड़ाई लेने लगा और हल्की सी रात की झलकियां मेरे दिमाग में चल रही थी। वो झलकियां याद आते ही जैसे अंग अंग में सुरसुरी दौड़ गयी हो। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी और ओशुन से मिलने की चाहत बढ़ सी गई थी।


मैंने अपनी आंखें खोली और फटाफट उठ गया। दरवाजा खोला ही था कि झलकियों में एक बार देखे बिस्तर ने मेरा ध्यान खींच लिया। मै जितनी तेजी से बाहर जाने की सोच रहा था उतनी ही उदासीनता के साथ दरवाजे से अपना हाथ हटाया और बिस्तर के ओर देखने लगा।


आश्चर्य से मेरी आखें बड़ी हो गई। कलेजा बिल्कुल कांप गया। मै अपने सर को पकड़ कर वहां बिस्तर पर फैले खून, चिथरे हुये ओशुन के कपड़े और पास ही फैले तकिये के रूई को देखने लगा। मैंने आंख मूंद कर अपना कांपता हाथ बिस्तर के ऊपर रखा… "आह्हः ये हैवानियत थी।"…


तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही थी जिसमे मुझे साफ दिख रहा ओशुन के ऊपर मै किसी चादर की तरह था जिसके नीचे वो कहीं दिख ही नहीं रही। मेरे पंजे ने उसके पूरे जिस्म को नोचा, पुरा लहूलुहान शरीर। उसकी हालत पर मै कांप रहा था और खुद की दरिंदगी को मै मेहसूस कर सकता था।


एक जानवर का खून जब बहता है तो मेरी आह निकलती थी, आज मै खुद को ही खून बहाने वाला जानवर मेहसूस करने लगा था। एक ओर ओशुन का वो प्यारा मुस्कुराता सा चेहरे, जिसमें ना जाने कितनी हसरतें और अरमान नजर आती थी, एक ओर दर्द से बेचैन उसका चेहरा जिसके ऊपर मैंने दर्द की कहानी जब लिखनी शुरू की तो ना जाने कब तक दर्द देता रहा।


घृणा, और केवल घृणा। खुद के लिए इस से ज्यादा कुछ नहीं बचा था।.. मै पागलों कि तरह चिल्लाया, घर की दीवार पर पूरी रफ्तार से अपना सर दे मारा। सर फट चुका था, खून बहना शुरू हो गया। मुझे अच्छा लगा। बस बुरा जो लग रहा था वो ये कि अब तक खड़ा कैसे है ये हैवान, मरा क्यों नहीं।


फिर से एक और तेज रफ्तार से मैंने अपना सर दीवार से दे मारा। कहां कितना फटा वो तो कुछ भी याद नहीं लेकिन आखों के आगे अंधेरा छा गया। चेहरे पर पानी गिरने से मेरी आखें खुली। आखें जब खुली तो सामने बॉब था, और मेरा सर ओशुन के गोद में।


"आप जाओ बॉब, मै हूं यहां। उठना भी मत लेटे रहो।"… ओशुन बॉब को वापस जाने के लिए जब कह रही थी तब मै उठने कि कोशिश कर रहा था, जिसकी प्रतिक्रिया में ओशुन मुझे डांटती हुई कहने लगी।" मै बस बॉब के जाने के लिये कह रही थी।"


बॉब:- तुम्हे पक्का यकीन है तुम दोनो को मेरी जरूरत नहीं।


आगे पीछे से लगभग हम दोनों साथ ही कहने लगे… "हां, आप जाओ।"..


बॉब उठकर वहां से चला गया। हम दोनों ही उसे कुछ दूर जाने की प्रतीक्षा करने लगे। जब लगा की वो दूर निकल गया होगा फिर मै तेजी से खड़ा हुआ और अपनी हैवानियत का नजारा देखने लगा। ओशुन के होंठ बीच से फटे थे जिस पर दांत के इस पार से उस पार निकलने का निशान थे। पूरा बदन फर वाले कपड़े से ढका हुआ था, समझते देर नहीं लगी कि अंदर खून अब भी रिश रहा होगा। उसके गुप्तांगों के भाग का ख्याल आया, जिसे सेक्स कि उत्तेजना में मैंने ना जाने कितने घंटो तक रौंदा था।


ख्याल विचलित करने वाले थे और इस वक़्त वहीं विचार दोबारा पूरे जोड़ से उफान पर था… "ये हैवान अब तक खड़ा क्यों है।".. तभी मेरे गालों पर लगातार थप्पड़ पड़ने लगे। इस थप्पड़ में ना तो कोई जोड़ था और ना ही कोई ताकत बस किसी तरह हाथ उठ रहा था और मेरे गाल से लग रहा था।


ओशुन खड़ी नहीं हो पा रही थी, लेकिन वो किसी तरह खड़ी थी। वो अपने फटे होंठ के दर्द से बोल नहीं पा रही थी, लेकिन फिर भी हिम्मत करके उसने बोलना शुरू किया। और सिर्फ बोली ही नहीं बल्कि चिल्लाती हुई बता रही थी….


"तुम्हे इतना बचाया है मरने के लिये। किसने कहा ये सब बेवकूफी करने, हां। तुम्हे यहां कुछ भी समझ में आता है या नहीं, या फिर सोच कर ही आये हो मेरी जिंदगी को तहस-नहस करके जाने की। तुम्हे समझ में नहीं आता की मै तुमसे कितना प्यार करती हूं बेवकूफ। या फिर अक्ल पर पर्दा पड़ा है।"…


ओशुन इतने दर्द में होने के बावजूद भी खुद के दर्द की परवाह किए बगैर मुझ पर चिल्ला रही थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसे खुद में समेटकर उसके पीठ पर हाथ फेरने लगा। तभी हल्की सी उसकी दर्द भरी सिसकी निकला गयी। मै उसे खुद से अलग करते… "प्लीज मुझे माफ़ कर दो।".. इतना कहकर मैं उसके ऊपर से वो फर वाले कपड़े उतारने लगा।


ओशुन एक कदम पीछे हटती… "मुझे कोई हील नहीं होना। कल के अंजाने में दिये जख्म मुझे कहीं ज्यादे प्यारे है, तुम्हारे जान बूझकर कलेजा चिर देने वाले जख्म से। मै सभी परिणाम सोचकर ही आगे बढ़ी थी, वरना उत्तेजित तो तुम 2 रात पहले भी थे। लेकिन तुम्हे यह बात क्यों समझ में आयेगी।"..


मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुराया, उसके दोनो कंधे पकड़कर… "बस मुझे गलती समझ में आ गयी है अब तुम ज्यादा नाटक मत करो। जितना गुस्सा करना हो या चिल्लाना हो वो मेरे काम खत्म होने के बाद कर लेना।"..


मेरी बात सुनकर वो भी हल्का मुस्कुराई। मुंह से "ही ही" की वहीं जानी पहचानी आवाज़ निकलने वाली लेकिन दर्द से केवल उसकी सिसकी निकल रही थी। मैंने उसके कपड़े उतारे और कल जिस ख्याल से वो मेरे साथ रहने का मन बनाकर आयी थी वो ख्याल भी देख लिया। शायद यह कहना ग़लत होगा रूही की ओशुन ने अपने शरीर पर होने वाले अत्याचार के बारे में नही सोचा होगा। क्योंकि पहली बार मैंने जिस तरह से उसके स्तन को निचोड़ था और जख्मी किया था, उस हिसाब से वो पूरी गणना करके आयी थी।


पूरा बदन पर गहरे नाखून के खरोच थे, जो 2–3 सेंटीमीटर अंदर घुसाकर खरोच था। उसके गुप्तांगों के पास खरोच थे जबकि अंदर की पिरा का ज्ञान मुझे तब हुआ जब मैंने अपना हाथ लगाया। ओशुन इतने दर्द में थी कि राहत से छटपटा गयी। उसका दर्द जैसे-जैसे मेरे रगों में दौड़ रहा था मेरे आंसू बाहर आने लगे।


"कोई कैसे किसी का इतना दिये दर्द के बावजूद उससे प्यार कर सकती है। एक हैवान के लिए अपनी भावनाएं जाता सकती है।" मै बस इन्हीं बातों पर सोच था। उधर ओशुन अपने बदन से दर्द को उतरता मेहसूस कर दबी सी आवाज में राहत भरी लंबी "आह्हहहह" भर रही थी। जब सब सामान्य हुआ तब ओशुन गहरी श्वास ले रही थी। आंनद के भाव उसके चेहरे पर थे जिसे वो आंख मूंदकर मेहसूस कर रही थी। उसे सुकून में आखें मूंदे देख मै भी राहत के श्वांस लेने लगा। वो पूर्णतः हील हो चुकी थी लेकिन उसके बदन पर गहरे पंजे के निशान रह गये थे।


मुझे अफ़सोस सा हो रहा था। इतने खूबसूरत और मखमली बदन पर इतने सारे खरोच के निशान मैंने बाना दिए। मै गौर से ओशुन का चेहरा देखने लगा, कहीं चेहरे पर कोई दाग तो नहीं दे दिया, लेकिन शुक्र है वहां कोई निशान नहीं थे। हां दो दांत के निशान जरूर पड़े थे होठों पर लेकिन वो अंदर के ओर से थे जो बाहर से बिल्कुल भी नजर नहीं आते।


"घन घन घन".. टैटू नीडल मशीन के चलने की आवाज जैसे ही आयी, ओशुन अपनी सुकून कि गहराइयों से बाहर आती, उठने की कोशिश करने लगी। मैंने उसे लेटे रहने के लिए कहने लगा। 6 घंटे तक उसे जबरदस्ती लिटाये रखा। मेरा काम जब खत्म हुआ तब मैंने वापस से स्किन को हील किया… "लो हो गया।"..


जैसे ही मैंने "हो गया" कहा वो भागकर गयी और सुकून भरी श्वांस खींचती वाशरूम से बाहर आयी.. "यूं मैड, जबरदस्ती फंसाकर रखा था। 6 बार मै पागल की तरह बोल रही हूं रुको मुझे आने दो, लेकिन एक ये है, एक साथ पूरे काम करके उठना है।"..


ओशुन अपनी भड़ास निकाल रही थी, तभी शायद उसकी नजर टैटू पर गई होगी… "वाउ आर्य, ओह माय गॉड, ओह माय गॉड, ओह माय गॉड।"… वो खुशी से उछल रही थी। उसकी खुशी देखते बन रही थी।.. "कपड़े तो पहन लो कम से कम, और तुम्हे भूख नहीं लगी है क्या?"


ओशुन:- कपड़े पहन लिए तो टैटू कैसे दिखेंगे। मै तो अब कपड़े पहनने से ज्यादा उतारने में विश्वास रखुंगी।


मै:- हाहाहाहा… अरे अरे अरे.. मतलब ऐसे न्यूड होकर टैटू की नुमाइश।


ओशुन:- हां तो.. रुको तुम मेरी कुछ पिक्स ले लो, आज ही अपलोड करूंगी।


अपनी बात कहकर वो अपने एक हाथ से दोनो स्तन को लपेट कर छिपा ली, नीचे एक पतली सी पैंटी को केवल इतना ही हिस्सा कवर करे जो योनि का भाग हो, और तैयार हो गयी। मेरी हंसी निकल गई। हां ये भारत और जर्मनी का कल्चरल डिफरेंस था। भारत में जो अपवाद केस होते है, यहां के लिये सामान्य होता है।


बेमन, मै जला बुझा सा तस्वीर खींचने लगा… वो तरह तरह को मुद्रा (pose) में तस्वीर खींचवाने लगी। तकरीबन 100-150 तस्वीरें उसने खिंचवाई, और अपने लैपटॉप में हर तस्वीर को देखने लगी। हर तस्वीर को देखकर वो अपनी उत्साह से भरी प्रतिक्रिया देती, और मेरा दिल ये सोचकर जल रहा था कि अब सोशल मीडिया पर सब इसे घूरेंगे। शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।
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भाग:–82






शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।


भूख से एक बात और याद आ गयी। 6 घंटे से मै टैटू बना रहा था। उसके पहले ना जाने कितनी देर से मेरे पास बैठी थी। इसे भूख ना लगी थी क्या? एक बात जो उस वक़्त पता चल गयी, लड़कियां सोशल मीडिया का ध्यान खींचने के चक्कर में कितने देर भी भूखे प्यासे रह सकती है। उसका तो पता नहीं लेकिन मुझे तो भूख लगी थी, इसलिए मैंने ही पूछ लिया… "ओशुन तुम्हे भूख नहीं लगी क्या?"..


मै उसके कंधे से लदा था और वो अपने होंठ मेरे होंठ से लगाकर छोटा सा किस्स करती… "हनी, आज तुम्हारे साथ ही खाना खा लूंगी, जल्दी से हम दोनों के लिये कुछ टेस्टी और गरमागरम पका दो ना।"..


शुक्र है उन कपल की तरह इसने नहीं कहा "मेरे लिये पका दो ना। ये मेरे मां के साथ रही तो मै पक्का ही पीस जाऊंगा। भगवान इसे भारत में रहने लायक कुछ सद्बुद्धि दो, वरना ये ब्लैक फॉरेस्ट के थ्रिल तो आज ना कल संभाल ही लूंगा, लेकिन ओशुन की चाहत में यदि इसे घर ले गया तो फैमिली थ्रिल नहीं संभलने वाला।"


जैसे ही घर की बात सोची, मुझे घर की याद आने लगी। मां की, पापा की, निशांत, चित्रा, भूमि दीदी सब मुझे याद आने लगे। कैसे होंगे वो? मुझे लेकर परेशान तो नहीं होंगे? मै इन्हीं सब बातो में खोया, चोरी से उनका सोशल प्रोफाइल देखने लगा। आखों में तब आशु आ गये जब चित्रा का वो पोस्ट देखा.. "घर वापस आ जा आर्य, अब कितना रूठा रहेगा।"..


"क्या हुआ आर्य, तुम ठीक तो हो ना।"… ओशुन मुझे टोकती हुई पूछने लगी।


मैं बस खामोशी से कहा कुछ नहीं, और किचेन के ओर जाने लगा। मेरे पीछे–पीछे वो भी आ गयी।… "तुम आराम से किचेन स्लैब पर बैठो, मै खाना पकाती हूं।"


मै:- नहीं रहने दो, मै पका लेता हूं।


ओशुन:- कही ना बैठ जाओ। सॉरी मुझे कुछ बातो का ध्यान बाद में आया।


मै:- कौन सी बात..


ओशुन:- मैत्री अक्सर यू ट्यूब से तरह-तरह के साकहारी डिशेज बनाना सीखती थी। जब मै पूछती की इन सब की क्या जरूरत है? तब वो कहती कि तुम नहीं समझोगी, किसी के लिये पकाना कितना अच्छा लगता है। जब भी आर्य अपनी मां के हाथ का बना खाना मुझे खिलाता, ऐसा लगता था दुनिया जहां के सारे लजीज खाने उसके आगे फिके है। अक्सर हम दोनों की बहस इस बात के लिये भी हो जाती, जब मै उसे कुछ सेक्सी पोज में तस्वीर पोस्ट करने कहती, वो हमेशा ना कह दिया करती थी। पूछने पर वही जवाब, आर्य को अच्छा नहीं लगेगा। मुझे ये नहीं समझ में आता की किसी की आज़ादी को छीनकर दूसरो को क्या मज़ा आता होगा? पता नहीं क्यों मै भी अपनी आज़ादी को खोते हुये मेहसूस कर रही हूं, लेकिन मुझे जारा भी बुरा नहीं लग रहा।


मै ओशुन की बात सुनकर क्या कहता, ऐसा लगा जैसे नारद जी ऊपर देव लोक में बैठकर किसी नए सॉफ्टवेर का आविष्कार कर चुके हैं। इधर फरियादी ने अर्जी डाली और उधर यदि भगवान ने अर्जी ना सुनी तो नारद जी ब्रेकिंग न्यूज तीनों लोकों में चला देते होंगे। ऐसा लग रहा था कहावत ही बदल दू, और नई कहावत बाना दूं, भगवान के घर ना तो देर है और अंधेर तो कभी रहा ही नहीं।


बहरहाल वो 10 दिन मेरे लिये काफी हसीन रहे रूही। ऐसा लगा मै किसी स्वपन नगरी में हूं। हसीन लम्हात और प्यारे-प्यारे ज़ज्बात थे। हम छोटी–बड़ी खुशियां समेटे बस एक दूसरे में खोकर ब्लैक फॉरेस्ट में अपनी जिंदगी के सबसे हसीन लम्हात को मेहसूस कर रहे थे, जो वर्षों पहले मैंने मैत्री के साथ किया था।


ओशुन के साथ रहकर मैंने अपने अंदर के बदलाव को हंसकर स्वीकार किया। मैंने ब्लैक फॉरेस्ट के लगभग 1200 पेड़ को हील किया था। लगातार पेड़ों के हील करने के कारण मेरे आखों का रंग बदल कर नीला हो गया था। बॉब के अनुसार यह एक स्वाभाविक बदलाव था, जो कि बहुत सारे टॉक्सिक अपने जिस्म में समेटने के कारण हुआ था।


इसी के साथ ओशुन मुझे इक्छा अनुसार शेप शिफ्ट करना भी सीखा रही थी। मुश्किल था ये, क्योंकि शेप या तो गुस्से के कारण शिफ्ट होता या एक्साइटमेंट के कारण। इसके अलावा खुद से कितनी भी कोशिश कर लो होता ही नहीं था। गुस्से की अब कोई वजह नहीं थी और मै अपनी हैवानियत से इतना डारा हुआ था कि एक्साइटमेंट को उस दिन के बाद फिर कभी बढ़ने ही नहीं दिया।


मुझे आये लगभग 8 दिन हो गये थे। इन 8 दिनों में ओशुन ने मुझे वुल्फ हाउस के लोगों से पुरा छिपा कर रखा था। मेरे जेहन में वुल्फ हाउस का किस्सा मात्र एक कड़वी याद बनकर रह गयी थी, जिसे मै याद नहीं करना चाहता था। दोनो झील किनारे बैठे एक दूसरे को देख रहे थे। यहां हम दोनों किसी रोमांटिक मोमेंट में नहीं थे बल्कि मै हंस रहा था और ओशुन काफी खफा थी… "पागलों की तरह तुम्हारा ये हंसना मुझे इरिटेट कर रहा है।".. ओशुन चिढ़ती हुई मुझपर चिल्ला रही थी।


मैंने ओशुन का चेहरा पकड़ कर अपने गोद में लिया और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगा। लेकिन वो काफी गुस्से में लग रही थी। मुझे धक्का देकर खड़ी हो गयी और घूरती हुई कहने लगी… "1-2 दिन बाद तो मुझे छोड़कर जा ही रहे हो, अभी चले जाओ ना।"


मै:- तुम अच्छी टीचर नहीं हो ओशुन, इसलिए मै अब तक शेप शिफ्ट करना नहीं सीख पाया हूं।


ओशुन:- सॉरी, मै थोड़ा ओवर रिएक्ट कर रही थी, लेकिन तुम भी कहां ध्यान दे रहे हो। शेप शिफ्ट करना ऐसा नहीं है कि तुम सोच लोगे और शेप शिफ्ट कर गया। किसी जिम्नास्टिक का अभ्यास करते लोगो को देखा है?


मै:- हां देखा है।


ओशुन:- आम इंसानों के मुकाबले उनका शरीर इतना लचीला कैसे हो जाता है?


मै:- वो रोजाना प्रैक्टिस करते है। और माफ करना उनका कोच भी उनके अभ्यास को सही दिशा में ले जाता है।


ओशुन:- यदि ऐसा होता तो दुनिया का हर इंसान जिम्नास्टिक सीखता। कोई किसी को तबतक कुछ सीखा नहीं सकता जबतक वो खुद में जुनून ना पैदा करे।


मै:- विश्वास करो मैंने स्वीकार कर लिया है कि मै क्या हूं, और मुझे जरा भी अफसोस नहीं।


ओशुन:- गुड, सुनो हनी जिम्नास्टिक सीखनेवाले जैसे बिल्कुल खोकर अपने अंदर वो लचीलापन मेहसूस करते है और फिर कई तरह को कलाएं दिखाते है। मै चाहती हूं तुम भी वैसे ही अपने अंदर की ताकत को बस खोकर मेहसूस करो। शेप शिफ्ट के बारे में ध्यान मत दो। तुम्हे खुद से एहसास हो जायेगा की तुम्हारा शेप शिफ्ट कर गया।


ओशुन की बात पर मै हां में अपना सर हिलाया और कुछ दूरी पर खड़ा होकर अपनी आखें मूंद ली। अपने अंदर हुये बदलाव को मुस्कुराकर मेहसूस करते हुये मै अपने शरीर को ढीला छोड़कर बस अंदर रक्त के संचार को मेहसूस कर रहा था। धड़कने बिल्कुल काबू में थी और सामान्य रूप से एक लय में धड़क रही थी। कानो में दूर तक की सरसराहट सुनाई पड़ रही थी। मेरी मांसपेशियों में अजीब सा खिंचाव होते मै मेहसूस कर रहा था और हर मांसपेशी से मुझे असीम ताकत की अनुभूति हो रही थी।


खिंचाव बढ़ता चला जा रहा था और उसी के साथ मै और भी ज्यादा बढ़ती ताकत को मेहसूस कर रहा था। यह पहला ऐसा अवसर था, जब इतने दिनों में मै अपने अंदर कभी ना खत्म होने वाली एक ऊर्जा को मेहसूस कर रहा था। तभी मेरे सीने पर एक नरम हाथ पड़ने का एहसास हुआ। मै समझ चुका था ये ओशुन का हाथ था जो मेरे सीने पर रखकर मेरी बढ़ी धड़कने चेक कर रही थी। मै अपनी आंख खोलकर उसे देखा, और देखकर मुसकुराते हुए… "क्या लगता है ओशुन मै गुस्से या उत्तेजना के कारण वुल्फ में बदला हूं।"


"जान निकाल दी तुमने।"… कहती हुई ओशुन मेरे पंजे अपने छाती पर रखकर अपनी बढ़ी धड़कन को महसूस करने के लिये कहने लगी।


मै वापस से अपना शेप शिफ्ट करके अपने वास्तविक रूप में आते हुये… "लगता है आज तुम काफी उत्तेजित हो गयी हो।"


ओशुन:- काफी नहीं काफी से भी ज्यादा आर्य। क्या तुम जानते हो अभी जब तुमने शेप शिफ्ट किया तो बीस्ट वुल्फ बिल्कुल भी नहीं लगे।


मै:- हां, वो मैंने भी अपना हाथ देखा। मेरा वुल्फ शरीर आज काला की जगह चमकता उजला क्यूं दिख रहा था?


ओशुन:- क्योंकि तुम एक श्वेत वुल्फ ही हो आर्य। इससे पहले का शेप शिफ्ट बस केवल विकृत मानसिकता की देन थी, जो तुम्हारे बस में नहीं था। ये तुम्हारा असली स्वरू है। जिस चरित्र के तुम हो, ठीक वैसा ही तुम्हारा शरीर। मै तो इस कदर आकर्षित थी कि क्या बताऊं। उत्तेजना से रौंगते खड़े हो गये। प्लीज एक बार और अपना शेप शिफ्ट करो ना बहुत ही मस्त फीलिंग थी। मै तो सोच रही हूं जिस वक़्त तुम अपना शेप शिफ्ट करोगे तब मदा वूल्फ की क्या हालत होगी...


मै:- मतलब..


ओशुन:- मतलब डफर वो तो एक्साइटमेंट से पागल हो जायेगी। तुम्हारे साथ सेक्स के लिए टूट पड़ेगी।


मै:- कोई परफ्यूम का एड चल रहा है जो छोड़िया मरी जायेगी मेरे लिये।


ओशुन:- अच्छा तुम भी तो मेरे बदन पर आकर्षित हुये थे। पहली बार वुल्फ हाउस में दूसरी बार झील में।


मै:- ओह हो तो झील वाला कांड तुम्हारा किया हुआ था।


ओशुन:- ही ही.. नहीं वो मैंने जान बूझकर नहीं किया था। बस यूं समझ लो कि कुछ लोगों के पास आकर्षित करने जैसी शक्ति होती है, जैसे कि हम दोनों में है। बातें बहुत हो गयी। चलो ना शेप शिफ्ट करो। मुझे वो एक्साइटमेंट फील करना है।


मै:- नाह मै नहीं करता। मुझे अभी पेड़ को हील करना है।


ओशुन:- मै भी तड़प रही हूं, प्लीज मुझे भी हील कर दो।


मै:- ना मतलब ना..


वहां उस वक़्त हम दोनों के बीच तीखी बहस चली। मै ओशुन को छेड़ रहा था और ओशुन चिढ़ रही थी, बड़ा मज़ा आ रहा था तड़पाने में। जब लगा ओशुन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गयी है, तब मुस्कुराते हुये उसके कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया। "आउच" की आवाज उसके मुंह से निकली और वो मेरे सीने से आकर चिपक गयी।"..


"अरे देखो तो कौन है यहां। क्या ओशुन हमारे खिलौने के साथ अकेली मज़े ले रही हो।"… वुल्फ हाउस के किसी पैक के बीटा ने हमे कहा।


ओशुन, घबराकर मुझे अपने पिछे ली। मै उसकी घबराई धड़कन को मेहसूस कर सकता था। शायद चेहरे से वो जताना नहीं चाहती थी इसलिए, खुद की घबराहट को काबू करते हुये…. "अज़रा ये मेरे और ईडन कि बीच की बात है, मै उससे बात कर लुंगी। बेहतर होगा तुम यहां से चले जाओ।"..


अज़रा यालविक, यहां वुल्फ हाउस के यालविल पैक का एक बीटा था जो अपने 3 साथियों के साथ इस ओर भटकता हुआ चला आया। ओशुन की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगे। मेरी नजरें उन तीनों को देख रही थी। मेरा गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। शायद ओशुन ये बात समझ रही थी, इसलिए वो मेरी हथेली जोड़ से थामी, और मेरे ओर मुड़कर, मेरे होंठ से होंठ लगाकर, पूरे सुरूर में किस्स करती अलग हुई और अपना गर्दन थोड़ा पीछे मोड़कर उनसे कहने लगी… "मेरा प्यार है ये, अब निकलो यहां से। वरना मै भुल जाऊंगी की तुम तीनों मेरे फर्स्ट अल्फा के पैक से हो। और हां किसी को यहां आने की जरूरत नहीं है। हम दोनों ही जरा अपना ये मिलन का काम, जो तुम्हारी वजह से बीच मे रोकना पड़ा था, उसे पूरा करके आते है। अब भागो यहां से।"..


ओशुन के चिल्लाते ही वो लोग वहां से भाग गये। ओशुन मेरा हाथ पकड़कर तेजी से उस ओर भागने लगी, जिस गांव में मुझे वो पहले लेकर आयी थी… "आर्य तुम यहां से ठीक सीधे, पूर्वी दिशा की ओर भागो। कुछ दूर आगे वुल्फ की सीमा है, उसके आगे ये नहीं जा पायेंगे।"


मै:- और तुम ओशुन..


ओशुन:- मै चाहकर भी कहीं नहीं जा सकती आर्य। हम ब्लड पैक से जुड़े है, जबतक ब्लड पैक नहीं टूटता तब तक हम बंधे हुये है।


ओशुन की बात सुनकर मेरी आखें फ़ैल गयी। मै उसे हैरानी से देखने लगा। शायद वो मेरे अंदर के सवाल को भांप गई…. "हां मैत्री भी ब्लड पैक में थी। वो ब्लड पैक तोड़कर गयी थी और उसकी सजा खुद उसके भाई ने दी थी। ईडन चाहती तो मैत्री को यहीं खत्म कर देती। लेकिन मैत्री जिसके लिये बगावत करके गयी थी, ईडन उसे भी मरता हुये देखना चाह रही थी। इसलिए भारत में तुम्हें ट्रैप किया गया था। सुहोत्र तुम्हे मारने की योजना बना ही रहा था, उस से पहले ही वो शिकारियों के निशाने पर आ गया। तुम्हे पता न हो लेकिन मैत्री को मारने के बाद सुहोत्र ने अपनी बहन के गम से 4 इंसानों को नोचकर खाया था। पागलों की तरह हमें बता रहा था कि इन्ही इंसानों के वजह से मैत्री की जान गयी। न उसे एक इंसान (आर्यमणि) से प्यार होता और न ही वो मरती। शिकारियों ने उसे मार ही दिया होता लेकिन यहां आना शायद तुम्हारी किस्मत थी, इसलिए अनजाने में सुहोत्र की ही जान बचा लिये। ब्लड ओथ से बंधे होने के कारण, मै तुम्हे ये सच्चाई नहीं बता पायी। लेकिन अब कोई गिला नहीं। आर्य अब तुम जाओ यहां से।"


मै:- तुम्हे छोड़कर चला जाऊं। तुम्हे मुसीबत में फंसे देखकर।


ओशुन:- "ये गांव देख रहे हो। इस गांव को ईडन ने केवल इसलिए उजाड़ दिया था, क्योंकि ईडन के पैक का एक वुल्फ मेरी मां से पागलों कि तरह प्यार कर बैठा। ईडन को प्यार और बच्चे से कोई ऐतराज नहीं था, बस जो उसके कानों में नहीं जाना चाहिए वो है पैक तोड़कर जाने की इच्छा।"

"अब तुम समझ सकते हो कीन हालातों में मेरी मॉम को यहां से भागना पड़ा होगा। उसके हाथ से 2 दिन का जन्म लिया हुआ बच्चा छीन लिया गया था। इस पूरे गांव पर ईडन नाम का कहर बरस गया। मेरी मॉम और उसके कुछ लोग किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब हुये थे बाकी सब मारे गये।"

"ईडन यहां पर कहर बरसा कर जब लौटी फिर मेरे डैड को भी नहीं छोड़ा था। और मै 2 दिन के उम्र में ही ईडन से ब्लड ओथ से जुड़ गयी। मैंने किसी भी विधि से पैक तोड़ने की बात नहीं की है, इसलिए मै सेफ हूं आर्य। और यदि तुम मुझे पुरा सेफ देखना चाहते हो तो प्लीज लौटकर मत आना। नहीं तो वो ईडन हम दोनों को मार देगी। हनी लिस्टेन, मुझे यदि जिंदा देखना चाहते हो तो यहां फिर कभी लौटकर मत आना।"


उसकी बात सुनकर मै वहां से निराश होकर आगे बढ़ गया। मै जैसे ही आगे जाने के लिए मुड़ा, पीछे से मुझे तेज सरसराहट की आवाज सुनाई दी, जो करीब से दूर होते जा रही थी। ओशुन वहां से निकल गयी थी। मै भी अपने बोझिल क़दमों से चला जा रहा था।


जिस एक कत्ल (मैत्री) का दोषी मै किसी और को समझ रहा था, जिस सवाल ने मुझे भूमि दीदी को अपना दुश्मन बना रखा था। उसका जवाब मुझे मिल चुका था। शायद मेरा वुल्फ हाउस आना मैंने नहीं तय किया था, लेकिन वुल्फ हाउस से वापस जाना मै खुद तय कर सकता था। मैत्री के मौत का जवाब मिल तो गया था, लेकिन ब्लैक फॉरेस्ट की कहानी मै अधूरी छोड़कर जा रहा था।
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जिस एक कत्ल (मैत्री) का दोषी मै किसी और को समझ रहा था, जिस सवाल ने मुझे भूमि दीदी को अपना दुश्मन बना रखा था। उसका जवाब मुझे मिल चुका था। शायद मेरा वुल्फ हाउस आना मैंने नहीं तय किया था, लेकिन वुल्फ हाउस से वापस जाना मै खुद तय कर सकता था। मैत्री के मौत का जवाब मिल तो गया था, लेकिन ब्लैक फॉरेस्ट की कहानी मै अधूरी छोड़कर जा रहा था।


अंदर ही अंदर ये अधूरी कहानी चोट कर रही थी। मै उस गांव से 10 कदम आगे नहीं जा पाया। सोच में ऐसा डूबा की दिन से शाम ढल चुकी थी और मै बस गहरी सोच में डूबा रहा।…. अचानक ही मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी। जिसकी उंगली पकड़ कर मै बड़ा हुआ और जिनके तौड़ तरीकों ने मुझे निडर बनाया था, उनकी साथ बिताये हर लम्हे जैसे ताजा हो गये थे। हां, वही मेरे दादा जी वर्धराज कुलकर्णी। फिर तो मैंने अपनी पूरी जिंदगी को एक झलक में देख लिया। बस यहां केवल खुद को अधूरा सा मेहसूस कर रह था। मै अपने कंधे पर टंगे बैग को मिस कर रहा था, और अब मुझे पता था कि मुझे कहां जाना है। मै पूरी गति से दौड़ता हुये मैक्स के घर पहुंचा जहां मैक्स की पत्नी थिया मुझे अकेली ही मिल गयी। थिया मुझे देखकर थोड़ी हैरान हुई और मैं सीधा मुद्दे पर आते… "मुझे तुम्हारी मदद चाहिए थिया।"..


थिया, आश्चर्य से मेरी ओर देखते… "कैसी मदद"..


मै:- मैक्स अपना वूल्फ के शिकार का सामान कहां रखता है?


थिया मेरी बात सुनकर अब और ज्यादा अपनी आंखे बड़ी नहीं कर सकती थी, लेकिन उसका आश्चर्य जरूर दोगुना हो चुका था… "मैक्स का सामान तुम्हे क्यों चाहिए?"


मैंने भी उससे झूठ बोल दिया… "तुमने वुल्फ हाउस का नाम सुना है?"..


थिया:- हां सुना है।


मै:- वहां सैलानियों का एक पुरा ग्रुप फंस गया है। यदि देर हुई तो वहां सबका शिकार हो जायेगा।


थिया के आश्चर्य से भाव अब घबराहट में तब्दील होते… "क्या कहा तुमने, वुल्फ हाउस में इंसान फसे हुये है?"…


मै:- तुम ये बार-बार अपनी आखें क्यों बड़ी कर लेती हो। जितने ज्यादा सवाल पूछोगी, उतना वक़्त बीतता जायेगा, और उतने ही ज्यादा वो मौत के करीब पहुंचते जायेंगे।


थिया:- लेकिन तुम अकेले वहां के 40-50 वुल्फ से कैसे लड़ सकते हो? और क्या तुम एक वुल्फ होकर अपने ही जैसे लोगो का शिकार करोगे?


मै:- तुम्हारे सवाल के जवाब मै शिकार के सामान लेते हुये भी दे सकता हूं। अब अगर मदद करनी है सो बताओ, वरना मै मैक्स से ही बात कर लेता हूं।


थिया:- नहीं उसे ये खबर मत दो। उसके पास अभी पूरी टीम नही है। मैक्स वहां गया तो जान का खतरा हो सकता है।..


थिया अपनी बात कहती हुई आगे–आगे चल रही थी और मै पीछे–पीछे। थिया की बात सुनकर अंदर से इतना ही निकला.. "साले स्वार्थी।".. मै उसके पीछे चलते हुये एक बसेमनेट में पहुंच गया। जब मै यहां पहुंचा तब समझ में आया कि क्यों थिया कह रही थी कि मैक्स की पूरी टीम नहीं है। ये सब के सब तो कच्चे शिकारी थे जो केवल गन के दम पर टिके हुये थे।


मै:- यहां केवल गन है। करंट वाली वो स्टं रॉड नहीं है। ट्रैप वायर, अवरुद्ध पाउडर सॉरी माउंटेन एश के नाम से जानते हो ना तुम लोग। और वोल्फबेन नहीं है क्या?


थिया, फिर से अपनी आखें बड़ी करती… "क्या बॉब तुम्हे ट्रेनिंग दे रहा है।"..


मै:- नहीं बॉब के फादर ने मुझे बचपन से ट्रेंड किया है, अब ये सब सामान है कि नहीं।


थिया:- नहीं ये सब सामान नहीं है हमारे पास। हां स्टं रॉड के साथ ये सब रखा है इनमें से कुछ चाहिए तो ले लो।


थिया दीवाल से लगे एक वॉर्डरोब को खोलती हुई दिखाने लगी। उसे देखकर मै खुश हो गया… "ये हुई ना बात, अब जाकर सही चीज दिखा रही हो।"..


इन विदेशियों के खंजर बहुत मस्त होते है, मेरा पसंदीदा हथियार। मैंने 2 बैग अलग से उठाया, उसमे 4-5 स्टं रॉड डाल लिया। 2 खंजर अपनी कमर से लटकाया, दो पीठ के किनारे से बेल्ट में टांगकर। 1000 से ऊपर ट्रैप वायर को बैग में डाला। मेडिकल के कुछ सामान और अंत में थिया को ऊपर से नीचे तक देखते… "तुम बहुत सेक्सी दिख रही हो और मै तुम्हे इस वक़्त थैंक्स कहना चाहता हूं।"


थिया ने मुस्कुराकर मेरे कहे शब्द पर अपनी प्रतिक्रिया जताई और कहने लगी… "थैंक्स की कोई जरूरत नहीं है, बस तुम अपना ख्याल रखना।"..


मै खुद से 14-15 साल उम्र में बड़ी एक औरत को शरारत भरी नजरो से देख रहा था। उसकी बात जैसे ही समाप्त हुई, मैंने उसके बैक पर अपना पंजा डालकर उसे मसल दिया। इससे पहले वो कोई प्रतिक्रिया दे पाती, तुरंत ही उसे खींचकर खुद से चिपका लिया और उसके होंठ से अपने होंठ लगाकर एक लम्बी और गहरी किस्स करते हुये अलग हुआ।


बगुले की तरह थिया पुरा ध्यान लगाकर बिल्कुल टुकुर टुकुर घुर रही थी। मै उसका चेहरा देखकर हंसते हुये कहने लगा… "थैंक्स एक्सेप्ट नहीं की तो मै एक बार और तुम्हे थैंक्स कहूं।"..


कुछ ज्यादा ही गुस्से में लग रही थी। मुझ पर सीधा गन ही तान दी। मै हंसते हुये भगा वहां से। इस एक छोटी सी शरारत के बाद थोड़ा खुला सा मेहसूस कर रहा था। वो अलग बात है कि थिया की हालत पर मुझे हंसी और उसके साथ किये जबरदस्ती का थोड़ा अफ़सोस हो रहा था, हां लेकिन दिमाग का सुरूर बन गया था।


पुराने दिनों की याद ताजा हो गई जब मै मैत्री से मिलने जंगल में लोपचे कॉटेज जाता था। दोनो जगह के माहौल में मुझे सब कुछ एक जैसा ही दिख रहा था, बस मैत्री की जगह आज ओशुन थी और जीतन लोपचे का पागल बड़ा भाई निकोच लोपचे की जगह ईडन थी, और उस वक्त की मेरे अंदर की ऊर्जा में और अब कि ऊर्जा में कोई तुलना ही नहीं थी।



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आलीशान वुल्फ हाउस के दरवाजे पर मैं खड़ा था। बाहर की बनावट किसी 5 सितारा होटल के प्रवेश द्वार जैसा था। प्रवेश द्वार के ऊपर 10 फिट का छज्जा निकला हुआ था। प्रवेश द्वार के आगे 2 पिलर पर यह छज्जा टीका हुआ था और मैं इन्ही पिलर पर ट्रैप वायर लगाना शुरू किया। आगे से पीछे यानी की छज्जे के आगे के पिलर से लेकर पीछे प्रवेश द्वार तक हर एक इंच के फासले पर एक ट्रैप वायर लगा था जिसके संख्या 50 थी। कोई अगर प्रवेश द्वार खोलकर भागता तो उनका सामना 50 ट्रैप वायर से हो जाता।


इंच भर के फासले पर आगे से पीछे तक 50 ट्रैप वायर लगे थे और ऊपर से नीचे हर आधे फिट की ऊंचाई पर 20 ट्रैप वायर मैंने लगा दिया था। ट्रैप वायर का पूरा जाल मैने प्रवेश द्वार के बाहर इतना तगड़ा बिछाया था कि भागकर जाने वाले वुल्फ ट्रैप वायर में फंसकर इस लोक से सीधा दूसरे लोग पहुंच जाते। बड़ी ही तेजी से मैंने उसके दरवाजे पर ट्रैप वायर से फैंस कर दिया और बिजली की एक नंगी वायर खींचकर उस ट्रैप वायर में करंट दौड़ दिया। एक तो तेजी से दौड़कर मुख्य दरवाजे से निकलते हुये वेयरवोल्फ को अंतिम क्षणों में यह ट्रैप वायर दिखती नही। ऊपर से यदि वेयरवॉल्फ को अचानक करेंट का झटका लग जाये फिर तो वुल्फ से इंसानों में कब तब्दील हुये उन्हे भी पता न चलता।


मै इतना सब कर रहा हूं और किसी को पता ना चले। उन लोगो ने मेरी गंध पहचान ली थी, लेकिन शायद मुझे परेशान देखने का उन्होंने कुछ अलग ही प्लान बनाया था इसलिए वो अंदर अपने काम में लगे हुए थे और बाहर मै अपने काम में लगा रहा। काम खत्म होने के बाद मैंने अपने बैग को वापस कंधे में टांग लिया और दरवाजा खोलकर अंदर। एक बार फिर वही पहले दिन वाली लड़की रोज बिल्कुल मुझ से चिपक कर अपने बदन को पूरा मेरे ऊपर लाकर… "क्या बात है, कुछ ही दिनों में हैंडसम हंक हो गये। आज तुम्हारे कपड़े उतारने के बाद पहले मै ही आऊंगी, फिर कोई दूसरे।"..


मै उसकी बातों और उसकी हरकतों को नजरंदाज करते आगे बढ़ा। ठीक मेरे सर के ऊपर यही कोई 4 फिट आगे, ओशुन के हाथ और पाऊं मोटी जंजीर से बंधी थी। ओशुन के लेफ्ट हाथ और पाऊं से लगा जंजीर सिरा लेफ्ट साइड में ऊपर खड़े 2 वुल्फ के हाथ में था, और इसी प्रकार राइट साइड की जंजीर भी 2 वुल्फ ने पकड़ रखी थी। मेरे पीछे पूरी वुल्फ सेना केवल आगे जाने का रास्ता छोड़े हुये थे, बाकी सभी ओर से मुझे घेर रखा था।


सामने के बड़े से डायनिंग टेबल पर सभी अल्फा बैठे हुये थे और मुखिया की कुर्सी पर उनकी फर्स्ट अल्फा या शायद बीस्ट अल्फा ईडन बैठी हुई थी। मैं अपना चस्मा निकालकर ऊपर ओशुन के ओर देखा जो फिलहाल तो ठीक थी, लेकिन जैसे ही वहां से मैंने अपना एक कदम आगे बढ़ाया जंजीर के खड़कने की आवाज आने लगी। जंजीर से लगा बेयरिंग घूमकर एक राउंड टाईट किया गया, और उसी के साथ ओशुन के के हाथ पाऊं भी अलग–अलग दिशा में फ़ैल गये।


"पहले एक्शन देखकर बात करोगे या बात करने के बाद एक्शन दिखाऊं, मर्जी तुम लोगो की है। जंजीर एक राउंड और घूमने का मतलब मै समझ जाऊंगा। ओह हां एक बात और मै बता दू, मेरे मार से तुम लोग हील नहीं होगे। नहीं विश्वास हो तो शूहोत्र लोपचे से पूछ लो जो आज-कल तुम लोगों के बीच लंगड़ा लोपचे के नाम से मशहूर है।"…


उनकी जगह, उनका घर, और मै अपनी छाती चौड़ी किये, उन्हें चुनौती दे रहा था। ईडन से ज्यादा तो उसके चेलों में आक्रोश भरा था। लाजमी भी है, फर्स्ट अल्फा खुश तो अल्फा बनने में कामयाबी मिलेगी। मै चारो ओर से घिर चुका, एक साथ चारो ओर से वुल्फ साउंड आने शुरू हो गये। कितने वुल्फ मुझे घेरे खड़े थे पता नहीं। लेकिन उन सब के कद के नीचे मै कहीं नजर नहीं आ रहा था। तभी वहां "खट खट खट" का साउंड हुआ और गुस्साये वुल्फ ने मेरा रास्ता छोड़ा…


"तुम्हारी हिम्मत की मै फैन हो गई। जिस जगह तुम्हारे खानदान प्रहरी के सारे शिकारी सर झुकाकर जाते है, वहां तुम इतने दिलेरी से बात कर रहे। ये तो कमाल हो गया।".. ईडेन के अहंकार भरे शब्द...


मै:- ज्यादा बात करने और कहानी सुनने से मै बोर हो जाता हूं। ओशुन को छोड़ दो और उसे अपने ब्लड ओथ पैक तोड़कर जाने दो।


ईडन की अट्टहास भरी हंसी..… "ठीक है यही सही, पहले वो ओशुन फिर बाद में ये लड़का। लड़के को जान से मत मारना थोड़ी जान बाकी रहे, इस बात का ख्याल रहे।


ईडेन ने जैसे ही मारने का हुक्म दिया, जंजीर को एक राउंड और टाईट किया गया। मैंने ऊपर देखा और खुद से कहा.. "अब यही सही।".. सामने भिड़ लग चुकी थी और मैंने कमर से खंजर निकाल लिया। तभी गुस्साये वुल्फ एक साथ हावी हो गये। मै वुल्फ की भीड़ से निकलना तो चाहता था, लेकिन मेरी शारीरिक क्षमता उनसे ज्यादा नहीं थी।


फिर से वूल्फ हाउस के दरिंदो के नाखून और दांत मेरे बदन को फ़ाड़ रहे थे। इस बार फाड़ने के साथ-साथ अपने घुसे दातों से मांस का हिस्सा भी फाड़ लेना चाहते थे। ऐसा लग रहा था मै एक लाश हूं जिसे चारो ओर से गिद्धों ने ढक रखा था और मांस नोचकर खा लेना चाह रहे थे।


वहीं दूसरी ओर जंजीर के लगातार टाइट किये जाने की वजह से ओशुन की चींख मेरे हृदय में भय पैदा कर रही था। मैं घुंटनो के बल फर्श पर हाथ टिकाये हुये था। ओशुन की आवाज फिर से मेरे कानो तक पहुंचीं। एक लम्बी और गहरी चींख। मैंने अपने बदन को ढीला छोड़ दिया। अपनी ताकत को मेहसूस करने लगा। वुल्फ की वो तेज दहाड़ जो आज तक इस घर में नहीं गूंजी, मेरे गले से वो आवाज़ निकल रही थी।


मैंने अपने बदन पर लदे उन मजबूत मांशाहारियों को चिल्लाते हुये ऊपर की ओर धकेला और सब के सब बिखर गये। मेरे तेज और लंबी गूंज के कारण वहां मौजूद बीटा अपना सर नहीं उठा पा रहे थे। सभी अल्फा अपनी जगह खड़े मेरी ओर तो देख रहे थे परंतु मुझसे नजरे नही मिला पा रहे थे। हर कोई ये गणना करने की कोशिश कर रहा था कि मै कौन सा वेयरवुल्फ हूं। चमकीला श्वेत शरीर, गहरी लाल आंखें और दहाड़ ऐसी के केवल फर्स्ट अल्फा ईडन ही मुझसे नजरे मिला पा रही थी।


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Nice update
 
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