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मैंने अपने बदन पर लदे उन मजबूत मांशाहारियों को चिल्लाते हुये ऊपर की ओर धकेला और सब के सब बिखर गये। मेरे तेज और लंबी गूंज के कारण वहां मौजूद बीटा अपना सर नहीं उठा पा रहे थे। सभी अल्फा अपनी जगह खड़े होकर बस मुझे ही घुर रहे थे। हर कोई ये गणना करने की कोशिश कर रहा था कि मै कौन सा वेयरवुल्फ हूं। चमकीला श्वेत, गहरी लाल आंखें और दहाड़ ऐसी के केवल फर्स्ट अल्फा ईडन ही मुझसे नजरे मिला पा रही थी।
चेन खींच रहे वूल्फ ने जब वो दहाड़ सुना, अपनी जगह पर खड़े हो गये। उनके हाथ से चेन छूट चुकी थी। ओशुन धड़ाम से नीचे गिरी और मेरे ओर देखने लगी। मै पागलों कि तरह दहाड़ते हुये आगे बढ़ा और अपने हाथों से ओशुन के हाथ पाऊं पर बंधे कड़े को तोड़ते हुए उसे मुक्त करवाया। उसकी भी श्वांस अटकी पड़ी थी। उसने खुद का शेप शिफ्ट किया और अगले जी पल वो एक फॉक्स थी, जो सीधा हमला वहां के एक अल्फा पर कर दी। उस हमले को रोकने के लिए ईडन ने वुल्फ साउंड की लंबी और ऊंची आवाज निकाली।
ये हम दोनों पर हमला करने के संकेत थे। मेरे ऊपर 2 बीटा कूद गये, जिनकी गर्दन को मैंने हवा में ही पकड़ लिया और एक ही बार में पूरे अंदर के जोड़ लगाकर अपनी मुठ्ठी बंद कर दी। ऐस लगा जैसे मैंने किसी केले को पकड़ कर अपनी मुट्ठी की जकड़ में दबा दिया हूं। एक ही बार में उन दोनों की आंख और जीभ बाहर आ गयी। मैंने दोनो के मृत शरीर को लहराकर फेंका और वापस से दहाड़ लगाते हुए ईडन के पास पहुंच गया।
मै हवा में जितनी तेजी से कूदकर उसके पास पहुंचा था ईडन ने उतनी ही तेज लात मारकर मुझे दीवार से चिपका दिया… "मज़ा आयेगा किड। तुम्हे ज्यादा चोट तो नहीं लगी।"..
चोट की किसे फिक्र थी। मै खड़ा होकर फिर से लंबी और गहरी दहाड़ लगाया। ईडन का ध्यान मुझ पर था और उसके सारे अल्फा और बीटा मेरे दहाड़ से जैसे जमे हुये थे। मै उठकर खड़ा हो रहा था और ईडन मेरे ओर देख रही थी। मैंने फर्स्ट अल्फा की पॉवर को पहली बार मेहसूस किया था, और उसके वार को भी। कभी-कभी वो मंजर याद आता है। मै खड़ा होकर ईडन को देख रहा था। वो कंप्लीट वुल्फ में बदल चुकी थी। बिल्कुल काले रंग की एक जायंट वुल्फ। मै खड़ा उसकी आखों में देख रहा था, उसकी खून सी लाल आखें मुझ पर टिकी थी। मैंने दौड़ लगाया लेकिन अगले ही पल मै जाकर दीवार से टकराया, ऐसा लगा मेरा पूरा शरीर 2 चक्की के बीच में है।
पीछे से दीवार और आगे से तेज रफ्तार से दौड़ रही ईडन। एक तो ईडन का 200 किलो से ज्यादा वजनी शरीर ऊपर से जब वह पूरी रफ्तार से दौड़कर टकराई ऐसा लगा पीठ और पेट चिपक चुके हैं। अत्रियां मुंह को आ गई और मै दीवार फाड़कर बाहर था। आखों के आगे अंधेरा सा छा गया था, और जब आखें खुली, तो ऐसा लगा मेरी हर हड्डियां चूर हो चुकी है। मै इंसानी शरीर में था और दर्द से कर्राह रहा था। खड़े होकर जब मैंने गौर किया तो मेरे और ईडन के बीच में ओशुन थी जो उसके सामने दूध पीती बच्ची जैसी लग रही थी। कंप्लीट जियांट वुल्फ के सामने छोटी सी फॉक्स, लेकिन पूरी हिम्मत से मोर्चा संभाले थी।
कड़कती हड्डियों को मैंने थोड़ा इधर मरोड़ा, थोड़ा उधर मरोड़ा। शेप सिफ्ट करने के बाद शरीर में आये बदलाव के कारण सारे खंजर ना जाने कहां रह गये, लेकिन बेल्ट से एक खंजर अब भी लटक रहा था। मैं 10 कदम पीछे गया, वो खंजर निकालकर अपने हाथो में लिया, अपना शेप शिफ्ट किया और तेज दौड़ लगाता हुआ मै बिल्कुल हवा में था। ठीक उस वक़्त वो जियांट वुल्फ ईडन भी हवा में थी और उसका पूरा ध्यान ओशुन पर था। मै हवा में ही जाकर उससे टकराया। मेरा पूरा खंजर जाकर ईडन के आंख में घुसा। टूननन की आवाज आयी और ऐसा लगा खंजर आंख के बदला लोहे की मोटी चादर से टकरा गयी हो।
ईडन का ध्यान टूटकर मेरे ऊपर आया। टकराने के क्रम में मै संतुलित नहीं रह पाया और सीधा नीचे आकर गिरा और मेरे ठीक ऊपर ईडन थी। जो अपने पूरे शरीर का वजन मेरे ऊपर डालकर अपना चेहरा मेरे चेहरे के ऊपर रखी हुई थी। मेरा पूरा शरीर उसके नीचे दबा स्थूल पर गया था। मै हिल तक नहीं पा रहा था।
ईडन अपना बड़ा सा पंजा उठाकर मेरे चेहरे पर अपने मजबूत और नुकीले नाखूनों से हमला करने ही वाली थी, तभी ऐसा लगा जैसे साइकिल पूरी गति से आकर सीधा बड़ी सी ट्रक से टकरा गयी हो। ईडन को ओशुन के इस टक्कर से कोई फर्क नहीं पड़ा। उल्टा फॉक्स बनी ओशुन, अपने सर पर अपना पाऊं लगाकर खुद को नॉर्मल करने की कोशिश कर रही थी। तभी ईडन ने अपने पंजे के २ नाखून उसके पीठ में घुसाकर हवा में उठा ली। एक झलक ईडन ने ओशुन को देखा और अपने नाखून बाए ओर तेजी से झटक दी। ओशुन इतनी तेज हवा में उछल कर बाउंड्री के दीवार से टकराई मानो कोई बुलेट निकलकर दीवार से टकराई हो। शायद ईडन उसे यह समझना चाहती हो बाद में आओ, अभी यहां तेरा कोई काम नहीं।
मै ओशुन के लिए छटपटा गया किन्तु बेबस था और मेरी लाख कोशिशों के बावजूद भी ईडेन को अपने ऊपर से हटा नहीं पाया। अपने पंजे से उसके बदन पर लगातार वार करने की कोशिश करता रहा लेकिन ऐसा लग रहा था मेरे क्ला किसी लोहे से टकरा रहे। तभी मुझे ध्यान आया मैंने तो चाकू इसके आंख में मारा था। मैंने उसकी आंखों में देखा, जैसे ही उसके आखों में देखा, समझ में आ गया कि इसके आंख तक में कुछ नहीं घुसाया जा सकता। हीरे सी शख्त लाल आखें थी वो।
मै अपनी सोच में था, उधर पूरे मुंह के बराबर ईडन का पंजा। लेफ्ट और राइट से ईडन अपने लोहे से भी ज्यादा मजबूत पंजे मेरे चेहरे पर चलाती रही। मैं खांस रहा था और खून मेरे मुंह से निकल रहा था। मेरे दोनो गाल गायब हो चुके थे, वहां के चमरी को ईडन रूई की तरह उधेड़ चुकी थी। मेरा पूरा चेहरा खून में डूब चुका था, आखों के आगे अंधेरा छाने लगा था।
तभी ऐसा मेहसूस हुआ कि अगला हमला मेरे गर्दन पर होने वाला है, जिसे वो मेरे धर से अलग करना चाहती थी। जान जा रही है इसलिए खुद को बचाने की कोशिश ने मुझे अजीब सी ताकत दी और मैंने अपने फटे मुंह से पुरा जोर लगाकर दहाड़ाते हुये अपना शरीर उछाल दिया। मेरे उछलने में साथ ही ईडन भी उछलकर कुछ दूर आगे जाकर गिरी। मै अपनी ऊर्जा समेटते किसी तरह खड़ा हुआ। पूरे शरीर का हड्डी पाउडर बन गया था। पेट के अंदर शायद ही कोई ऑर्गन सलामत बचा था। गाल को ऐसे गायब की थी कि खून में लथपथ पूरा जबरा दिख रहा था। फिर भी मेरे एटीट्यूड में कोई कमी नही थी। खड़े होते ही मैंने अपने पूरे चेहरे पर पंजा फेरते, खून को पसीने की तरह झटका और ईडन को अपने हाथ के इशारे से बुलाने लगा।
ईडन अपना सर झाड़कर अपने चारो पाऊं पर खड़ी हुई। हम दोनों ने दौड़ लगाया, हम दोनों ही हवा में थे। हम दोनों के पंजे हमला करने के लिए तैयार। मैंने अपना पंजा चलाया। मेरे नाखून उसके आंख के ऊपर के चमरी में घुसकर वहीं उखड़ गये। हां लेकिन ऐसा लगा जैसे मेरे नाखून उसके आंख के पास घुस चुका था। जबकि मै अपनी स्थिति कुछ पल बाद जाना। उसके पंजा मेरे सर में घुसकर, अंदर के मांस और बाल सहित नोचते हुये बाहर आ चुका था। मै पूरी तरह से छटपटा रहा था। मेरे सर को खेत समझकर ईडन, मेरे सर के उपरी सतह पर 4 क्यारी बाना चुकी थी। सर से टपकता खून और वो असहनीय दर्द। ईडन क्या चीज थी समझ से पड़े। मेरी जान जाने को आयी थी और मैंने अपना सब कुछ गवाकर ईडन के शरीर से मात्र 2 बूंद खून निकाल पाया था।
कुछ शुकून तो तब भी मुझे मिल जाता जब वो मेरे तरह शेप शिफ्ट करके बस इंसान से मिलता जुलता भेड़िया बनती। कम से कम उसके चेहरे का हल्का दर्द देखकर सुकून तो मिलता। यहां मेरी जान जाने वाली थी और ये बस अपने पंजे झटककर आंख के ऊपर फसे क्ला को निकाल रही थी। एक बार फिर मै ईडन के सामने खड़ा था। हालांकि खड़ी तो वही थी, मै तो लगभग मरा ही हुआ था, बस ईडन को मेरे अंदर से थोड़ी और जान निकालनी बाकी थी।
अब मेरे पास कोई उपाय नहीं बचा था सिवाय वहां से भागने के। मैं उस हॉल से बाहर भागने के लिये तेजी के साथ दौड़ लगा दिया। ईडन भी मेरे पीछे दौड़ लगा चुकी थी। जान बचाने के इरादे से मैंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, और भागते हुये अचानक से ब्रेक लगा दिया। ब्रेक लगाकर मैं बाहर दरवाजे पर लगे ट्रैप वायर से एक इंच पीछे रुका। लेकिन मुझ पर हमला करने के इरादे से हवा की रफ्तार से दौड़ती हुई ईडन छलांग लगाकर अपने पंजे फैला ली।
ईडेन हवा में 15 फिट ऊंचा छलांग लगाकर मेरे गर्दन को निशाने पर ली थी। मैने भी अपना आखरी फुर्ती किसी तरह दिखाया। तेजी के साथ नीचे झुककर मैं बस एक कदम आगे बढ़ गया और ईडन मेरे सर के ऊपर से गुजर रही थी। ईडन अपनी पूरी गति से जाकर सीधा ट्रैप वायर में घुस गयी, जिसमें करेंट भी दौड़ रहा था। पतले धारदार तार शायद कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन एक साथ सकड़ों ट्रैप वायर लगे थे और उसमें भी करेंट दौड़ता हुआ। एक तो ईडन कि गति अनियंत्रित ऊपर से बिजली के झटके के कारण उसके शेप शिफ्टिंग अनियंत्रित हुआ। और इसी के साथ कटे–फटे इंसानी मांस के लोथड़े पूरे ट्रैप वायर में फंसे थे।
पूरा प्रकरण इतनी तेजी में हुआ की ईडन कब काल के गाल में समाई पता ही नही चला। और जब पता चला तो केवल चीख ही निकल रही थी। ईडेन के मरते ही मेरे कान में जोरों की चींख गूंज रही थी। ईडन के मरने पर कई वूल्फ के साथ, ओशुन के दिल से भी ऊंचा वियोग भरा चीख निकल रहा था। मैं ईडन के साथ लड़ाई में व्यस्त था और पीछे हॉल में क्या चल रहा था उसका मुझे कोई ज्ञान नहीं। अंदर बाकी के वूल्फ क्या कर रहे थे, उन्होंने मुझ पर क्यों हमला नहीं किया या क्यों नहीं कर रहे थे, मुझे कुछ पता नहीं? ईडन के मरने से दूसरों की दर्द भरी चिंख उतना चौंकाने वाला नहीं था, लेकिन ईडन के लिये ओशुन का वियोग मेरे समझ से परे था? परंतु इस क्यों का पता करने के लिये मुझे होश में रहना पड़ता, जो की मैं बिलकुल भी नही था। ईडेन के मरने के बाद कब मैं जमीन पर गिरा मुझे खुद भी पता नही।
मेरी आंख जब खुली तब मै कहां था मुझे भी खबर नहीं। बस मेरे साथ कोई था। कुछ पल के लिये चेतना लौटती और फिर आखें बंद। पूरी तरह जब आखें खुली तब हल्की-हल्की शरद हवाएं मेरे बदन में लग रही थी, जो मुझे मीठा अनुभव करवा रही थी। मै एक छोटे से कॉटेज में था। किन्तु ये ओशुन का कॉटेज नहीं था। बाहर निकलकर, वहां के माहौल को देखा। ये कोई और जंगल था, लेकिन जर्मनी का ब्लैक फॉरेस्ट नहीं था।
मै कॉटेज में वापस आकर अपने चेहरे को हाथ लगाया। मेरे पूरे चेहरा पर पट्टी लगा हुआ था। पट्टी को देखकर मुझे सारी कहानी याद आ गयी और फिर याद आने लगी ओशुन की। मै हड़बड़ी में बाहर निकला ही था कि सामने से बॉब आते हुये दिखा। मुझे खड़ा देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान थी और दूर से ही चिल्लाते हुये कहा… "बहुत शख्त जान हो आर्य, ऐसे नहीं मर सकते।"..
मै कुछ बोलने की स्तिथि में नहीं था। उस लड़ाई में मेरे केवल पाऊं ही सलामत बचे थे ऊपर की पूरी बॉडी ही चुड़ हो चुकी थी। इस बात का एहसास तब हुआ जब मै हाथ ऊपर करने लगा और मुझे इतना तेज दर्द हुआ की छटपटाते हुये मै वहीं दरवाजे से टिककर बैठ गया।
बॉब मुझे सहारा देकर उठाया और अपने साथ चलने का इशारा किया। मै उसके पीछे आया। वो मुझे आइने के सामने खड़ा कर दिया और मेरे शरीर के ऊपर से कपड़ा हटाया। मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया की ये दिखाना क्या चाह रहा है? मेरा पूरा शरीर सूजन से काला पड़ चुका था। मै सवालिया नजरो से उसे देखने लगा तब उसने मेरे कंधे पर उंगली डालकर अंदर घुसा दिया। मै दर्द से छटपटा गया। उसकी उंगली अंदर घुस गई। ऐसा लगा जैसे उस जगह की मेरी हड्डियां झड़ गई हो। अंदर में बस हड्डियों का शेप ही था बाकी कोई छु कर थोड़ा सा प्रेशर लगा दे, तो वो पाउडर की तरह झड़ रहा था। फिर उसने मेरी सर की पट्टी हटाई। मुझे याद आया ईडन पंजा घुसा था मेरे सर में। जब उसने एंगल देकर ऊपर एक सीसा लगाया तो मै देख सकता था सर में नाखून के 1 से 2 इंच के गड्ढे थे जिसमे मवाद भड़ा हुआ था, जो काफी बदबूदार था।
मैंने उसे इशारे में चेहरे की पट्टियां खोलने कहां। वो मुस्कुराकर चेहरे की पट्टी खोल दिया। पट्टियां चेहरे के अंदर जमे मवाद से चिपकने के कारण काफी शख्त होकर खुल रही थी और दर्द से मेरे दांत बज रहे थे। जब वो पट्टी खुली बस मेरे आंख और ऊपर का माथा ही समझ में आने लायक था बाकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। मेरी नाक कहां है मेरे गाल कहां है। मेरी ठुद्दी कहां है, कुछ पता नही चल रहा था। बस मावाद भड़ा था, एक बदबूदार तरल पदार्थ।
"आर्यमणि, चलो तुम्हे हील किया जाये।"… बॉब एक बार फिर मुझे अपने पीछे आने कहा। चारो ओर बर्फ ही बर्फ और बर्फ के नीचे जमीन से उगे हुये जंगल। मै हैरानी से वहां के चारो ओर देख रहा था। काफी ठंडा मौसम था, लेकिन फिर भी मुझे सुकून दे रहा था। बॉब मुझे एक बहुत ही घने वृक्ष के पास ले आया। तकरीबन 6 मीटर के डायमीटर वाला वो घना वृक्ष था, उसके पास खड़ा करके वो मुझे वृक्ष को हील करने कहने लगा। मै सवालिया नजरो से उसे देख रहा था और बस इतना ही सोच रहा था… "ये पागल तो नहीं। मेडिकल और सीजर हेल्प के बदले ये मुझसे क्या करवा रहा है?"…
"जो बातें मुझे समझ में नहीं आती वो काम मै क्यों करूं। ऐसा लगता है पूरी पृथ्वी ही खतरे में है और मै इकलौता उसका रखवाला।"… बॉब ने ताने में मुझे मेरा ही डायलॉग चिपका दिया।
जी तो किया मुंह तोड़ दू कमिने का। लेकिन ना तो उसके मुंह तोड़ने लायक मेरी हालत थी और ना ही उसकी बात ना मानने की कोई वजह, भले ही उसकी कोई भी बात मेरे समझ में आये की ना आये। मैंने अपनी आंखें मूंद ली, अपना हाथ उस पेड़ पर रखा और बड़े प्यार से हाथ उसपर टिका दिया। वो पेड़ हील होना शुरू हो गया। मेरे नब्ज में काला द्रव्य उल्टा बहना शुरू हुआ जो उभरी हुई त्वचा से साफ नजर आ रहा था। दर्द भरा अनुभव था। ऐसा लग रहा था मेरी जान निकल रही हो। मेरी मांसपेशियों में खिंचाव सा था, जो कमजोर शरीर में शेप शिफ्ट करने के कारण मेरे हड्डियों के जवाब देने का नतीजा था। मेरा पुरा चेहरा खींचा जा रहा था और पूरे चेहरे पर दर्द रेंगने जैसा महसूस हो रहा था। वही हाल मेरे सभी मांसपेशियों का था। मेरे ऊपर के शरीर की हड्डियां कड़क रही थी जो धीरे-धीरे कठोर हो रही है। और हड्डियों का कठोर होना इतना भयावाह दर्द पैदा कर रहा था कि मै चिल्लाये बिना रह नहीं पाया।
मै गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहा था, लेकिन पेड़ से अपने हाथ नहीं हटाया। इतना दर्द तो मुझे ईडन ने भी नहीं दिया जितना दर्द मै उस वक़्त मेहसूस कर रहा था। लगभग 4–5 घंटे लगे होंगे उस पेड़ हो हील होने में। जब मुझे लगा कि वो पेड़ हील हो गया, मै अपने हाथ हटाया और वहीं लड़खड़ा कर बेहोश हो गया।
जब आंख खुली तो बिल्कुल अंधेरा हो चुका था। हालांकि ये रात का अंधेरा था और कॉटेज में पूरी रौशनी जल रही थी। कहीं दूर से खाने कि लाजवाब खुशबू आ रही थी। आह्हहह क्या खुशबू थी, दाल मखनी, बैगन भर्ता, रोटि और चावल। मै इतना भूखा था कि खुशबू सूंघ कर ही नशा छा गया। मै बिना देर किये वहां पहुंचा, देखा बॉब खाना लगा ही रहा था। मुझे कुछ ना सूझा और मै टूट पड़ा खाने पर। पेट के बस अब और नहीं कहने के बावजूद भी मै 4-5 निवाला चावल जबरदस्ती खाकर डकार लेते हुए उठा। बॉब को गुड नाईट बोलकर सीधा अपने बिस्तर में।
अगली सुबह जब मेरी बॉब से मुलाकात हुई, उससे पहले ही मैंने खुद को आइने में देख चुका था। कल और आज की तस्वीर में बहुत कुछ अंतर था। ना सिर्फ मै पुरा रिकवर हुआ था बल्कि पहले से ज्यादा ऊर्जावान मेहसूस कर रहा था। बॉब से मिलते ही पहले तो मैंने उसका शुक्रिया अदा किया और हैरानी जताते हुए पूछने लगा… "बॉब आखिर तुम्हे कैसे विश्वास था कि मै पेड़ को हील करूंगा तो पेड़ मुझे हील कर देगा?"
बॉब हंसते हुए… "इस पर हम काफी लंबी चर्चा करेंगे, अभी तुम बहुत कच्चे हो, बहुत कुछ सीखना बाकी है। वैसे मुझे लगता है कि तुम्हारे पास शायद सवालों की कोई कमी नहीं है।"..
मै:- ओशुन मुझे छोड़कर जा चुकी है ना?..
मायूसी से मैंने पूछा था। अंदर दिल जोड़ों से धड़क रहा था। मन बेचैन था सुनने के लिये की नहीं वो यहीं कहीं है बस कुछ दिनों के लिये गयी है। लेकिन ऐसा नहीं था.… बॉब मेरी भावना को पढ़ रहा था। वो मेरे हाथ को थामकर जैसे मेरे भावना को सांत्वना दे रहा हो…
"तुम्हारे साथ हुये हादसे के एक दिन बाद मै वहां पहुंचा था। तुम ओशुन के कॉटेज में थे। पुरा लहूलुहान, और वहीं पास में ये लेटर ओशुन ने तुम्हरे लिये छोड़ा था।"..
बॉब एक लेटर बढ़ाते हुए कहने लगा। मैंने वो लेटर अपने हाथ में लिया। चेहरे पर निराशा से भरी एक मुस्कान और लेटर में छोटा सा संदेश।…..
"तुम जिस सच कि तलाश में तड़प रहे थे वो सच मैंने तुम्हे बताया, और मुझे ईडन से मुक्त होना था सो तुमने करवा दिया। हमारी दुनिया अलग है आर्य, तुम अपना ख्याल रखना। माफ करना, तुम्हारा इस्तमाल नहीं करना चाहती थी लेकिन तुम में कुछ तो बात मुझे दिखी, जो मेरे कई वर्षों की कैद से रिहाई का जरिया था। तुम्हारी भावना को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था फिर भी मुझे मजबूरी में करना पड़ा। उम्मीद करती हूं तुम खुद को संभाल लोगे और हो सके तो मुझे माफ कर देना।
बॉब एक लेटर बढ़ाते हुए कहने लगा। मैंने वो लेटर अपने हाथ में लिया। चेहरे पर निराशा से भरी एक मुस्कान और लेटर में छोटा सा संदेश।…..
"तुम जिस सच कि तलाश में तड़प रहे थे वो सच मैंने तुम्हे बताया, और मुझे ईडन से मुक्त होना था सो तुमने करवा दिया। हमारी दुनिया अलग है आर्य, तुम अपना ख्याल रखना। माफ करना, तुम्हारा इस्तमाल नहीं करना चाहती थी लेकिन तुम में कुछ तो बात मुझे दिखी, जो मेरे कई वर्षों की कैद से रिहाई का जरिया था। तुम्हारी भावना को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था फिर भी मुझे मजबूरी में करना पड़ा। उम्मीद करती हूं तुम खुद को संभाल लोगे और हो सके तो मुझे माफ कर देना।
मै वो लेटर पढ़कर मुस्कुरा रहा था।… "बॉब जब ईडन मर रही थी, तब दर्द भरी तेज चींख ओशुन के मुंह से सुना था। मुझे वो तब भी हैरान कर गयी की ओशुन ईडन को मरते हुए क्यों नहीं देखना चाहती थी, जबकि लेटर में तो वो कई सालों से छुटकारा पाने की बात कर रही है।"..
बॉब:- ताकत की चाहत सुपरनैचुरल वर्ल्ड की सबसे बड़ी कमजोरी रही है आर्य। इस दुनिया में केवल ताकत हासिल करना ही लक्ष्य होता है। बिना क्ला और फेंग के ईडन को मार डाले, अफ़सोस तो होगा ना उसे। ईडन की पूरी ताकत बर्बाद हो गयी।
जैसे ही मैंने बॉब की वो बात सुनी फिर मै हड़बड़ी में पूछने लगा… "बॉब वहां कितनी लाशें थी।"..
बॉब शायद मेरे सवाल को भांप गया.… "हां ओशुन अब एक अल्फा है। उसके साथ उसके 4 और साथी अजरा, रोज, लिलियन लोरीश और जाइनेप यलविक ये सब भी एक अल्फा है। वुल्फ हाउस में 5 अल्फा की ताकत चुराने के इरादे से उसके बीटा ने मार डाला, जिसके सूत्रधार तुम बने।
मै:- कैसे?
बॉब:- एनिमल कंट्रोंल इंस्टिंक्ट। तुम्हारी आवाज़ अल्फा तक को काबू कर सकती है। फर्स्ट अल्फा तक को शांत कर सकती है। ओशुन और उसके दोस्तों ने उस मौके का फायदा उठा ले गये।
मैं:– मेरी आवाज जब अल्फा को कंट्रोल कर सकते थे तब एक बीटा कंट्रोल में क्यों नहीं रहा।
बॉब:– क्योंकि तुमने ओशुन को कंट्रोल नही किया था। वो तुम्हारे साथ थी, और उसके साथ जो भी होंगे वो तुम्हारे तरफ हुये। सीधी बात है, तुम्हारी दहाड़ से तुम्हारे साथ वाले एग्रेसिव होंगे और विपक्षी शांत।
मैं:– लेकिन ओशुन और बाकी के वोल्फ तो ईडन के साथ ब्लड ओथ में थे न।
बॉब:– ब्लड ओथ में होने से क्या होता है। वफादारी बदल चुकी थी इसलिए अलग असर देखने मिला।
मै:- ओशुन अपना नया पैक बनाकर गयी।
बॉब:- ओशुन अल्फा ग्रुप के साथ निकली थी। ये पैक तो नहीं था, लेकिन आपसी समझौता जरूर था। पहले ओशुन अपनी मां के पैक से मिलती और बाकियों को वो पैक उसकी मंजिल तक पहुंचता।
मै, गहरी श्वास लेते खुद को थोड़ा आराम देते… "तुम मुझे कहां ले आये फिर, और मेरे साथ क्या-क्या हुआ वो तो बता दो?"
बॉब:- एक शर्त पर..
मै:- बॉब अब ये मत कहना कि हमे मिशन पर निकलना है, मिशन इंपॉसिबल। प्लीज तुम मेरी बात को समझो। मै एक आम सा लड़का हूं, किसी वजह से सुपरनैचुरल बन गया। लेकिन आज भी मुझे मेरी मां की गोद याद आती है। मेरी भूमि दीदी को गलत समझा अंदर से सॉरी टाइप फील कर रहा हूं। मेरा बाप मुझे लेकर ही परेशान होगा, उन्हें कहना है पापा मै आपसे बहुत प्यार करता हूं। इतनी सी उम्र में 2 बार लव फेल्योर हो चुका है। खुद के लिए एक प्यारी सी लड़की ढूंढनी है। मुझे चित्रा को तंग करना है। निशांत के साथ रात में घूमकर कुछ मुसीबत में फंसे लोगों को निकालना है। और इस बार कोई खूबसूरत लड़की दिखी तो मै भी कहूंगा जान बचाई उसके बदले हमे प्लीज एक बार सेक्स करने दो, हमारा मेहनताना। बस इतनी सी ख्वाइश है।
बॉब:- "मेरी खुशकिस्मती जो तुमने इतनी बात कर ली। अच्छा मै शुरू से बताता हूं, जो भी अब तक मैंने तुम्हारे बारे में जाना है। तुम एक प्योर अल्फा हो। प्योर अल्फा मतलब बाय बर्थ तुम एक वेयरवुल्फ रहे हो, बस तुम्हारी वो शक्तियां ट्रिगर नहीं हो पायी थी अबतक।"
"तुम्हारा इंसानी पक्ष हर रूप में तुम्हारे साथ रहता है इसलिए जब तुम शेप शिफ्ट करते हो तो आसानी से किसी भी भाषा (जानवर या इंसानी भाषा) को बोल लेते हो। याद करो उस रात की वीडियो जिस रात तुम खुदाई कर रहे थे। एक अनियंत्रित वूल्फ शिकार करता है लेकिन तुम बस खुदाई कर रहे थे और हर जानवरों पर नियंत्रण कर रहे थे.. जबकि.."
मै:- अब ये पॉज की जरूरत है क्या बॉब?
बॉब:- जबकि तुम काली खाल ओढ़े थे। मतलब तुम एक बीस्ट वुल्फ की तरह ही थे, जिसे खुद पर नियंत्रण नहीं था। तुम नहीं जानते थे तुमने शेप शिफ्ट किया है। लेकिन फिर भी तुमने किसी पर हमला नही किया। ये होता है प्योर अल्फा। तुम्हारी जगह यदि ईडन अनियंत्रित होती तो पुरा एक शहर साफ कर देती, और उफ्फ तक नहीं करती।
मै:- फिर बोलते–बोलते रुक गये। अच्छा लग रहा था अपने बारे में अच्छी बातें सुनकर।
बॉब:- टू बी कंटिन्यू..
मै:- इसका क्या मतलब है बॉब और तुम मुझे कहां लेकर आये हो?
बॉब:- टू बी कंटिन्यू का मतलब कल बताऊंगा और इस वक़्त हम दुनिया के सबसे घने और बड़े जंगलों में से एक, रशिया के हिस्से में पड़ने वाले "बोरियल" जंगल में है।
मै:- बॉब देखो सस्पेंस क्रिएट मत करो, जो जानते हो बता दो। वरना भाड़ में गया तुमसे कुछ जानना, मै यहां से भागकर भी भारत वापस जा सकता हूं।
बॉब:- तुम्हारी मर्जी है लेकिन किसी लड़की की जान बचाने के बाद यदि उसके साथ सेक्स करोगे तब पता चलेगा वो चूम किसी इंसान को रही है और सेक्स किसी सैतना में साथ कर रही। और कहीं तुमने उसकी हालत ओशुन जैसी कर दी तब तो वो पक्का स्वर्गवासी भी हो जायेगी।
मै:- बहुत बड़े कमिने हो बॉब....
बॉब किसी सस्पेंस से कम नहीं था। उसने अपने शब्द जाल में ऐसे उलझाया की मैंने भी तय कर लिया चलो इसके साथ भी वक़्त बिताकर देख लिया जाय। वक़्त बीताकर देखा.. शायद मेरे नये बदलाव का बॉब एक ऐसा सहारा था जिसने मुझे मेरी पहचान बताई थी। बॉब मानो सुपरनैचुरल वर्ल्ड का विकिपीडिया था। वो ग्रीक, रोमन, मिस्र, नॉर्थ अमेरिकन और इंडियन सब कॉन्टिनेंट के सारे सुपरनैचुरल के बारे में पढ़ चुका था। उनके अनुसार सभी सभ्यता में सुपरनैचुरल की जितनी ज्यादा जानकारी इंडियन सब कॉन्टिनेंट के माइथोलॉजी हिस्ट्री में मिलती है, वो सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा सटीक है। भारत के इतिहासकारों ने जिस हिसाब से ना सिर्फ जमीन बल्कि महासागर के सुपरनैचुरल को एक्सप्लेन किया था वो अद्भुत है। फिर चाहे वो मत्स्य कन्या हो, या फिर मैन मेड विश कन्या एसासियन, या फिर मीठे पानी के सुपरनैचुरल क्रोकोडायल हो या फिर पृथ्वी पर सबसे विकसित प्रजाति रीछ हो। या फिर बिग फुट के नाम से मशहूर हिमालय की प्रजाति हो या फिर इक्छाधारी नाग हो। या फिर शेषनाग...
बॉब काफी प्रभावित करने वाला व्यक्ति था। मै बस गौर से उसे सुना करता था। उसके पास कई ऐसे दुर्लभ पुस्तकें थी, जो वो मुझे दिखाया करता था। ऐसा नहीं था कि उसने केवल किताबी ज्ञान हासिल की थी, बल्कि बहुत से दुर्लभ सुपरनैचुरल की जानकारी थी। वेयरवुल्फ और उसकी सारी वरायटी तो वो रट्टा मार जनता था।
उसके अनुसार जमीन पर रहने वाले सभी सुपरनेचुरल ताकत बढ़ाने की होड़ में इंसानों के हाथो शिकार होते चले गये। भले ही सुपरनेचुरल खुद को कितना भी सुपीरियर माने, लेकिन इतिहास गवाह था, हर विकृति मानसिकता के लोगो को अंत तक पहुंचना ही पड़ा था, भले ही वो खुद को कितना ही ताकतवर क्यों ना बना ले।
कई दिनों तक हम कई सारे सुपरनैचुरल पर बात करते रहे। ऐसा लग रहा था वो अपना ज्ञान मुझे बांट रहा हो। बॉब के बताने के ढंग और इस विषय से मुझे काफी रुचि हो गई थी। लेकिन बॉब था बहुत बरे वाला कमीना। प्योर अल्फा के विषय में वो कोई चर्चा नहीं करता था। करता भी कैसे वो खुद पहली बार किसी प्योर अल्फा से मिल रहा था।
सुपरनैचुरल के क्लासिफिकेशन का दौर जब खत्म हुआ तब उसने कई अच्छे तो कई बुरे सुपरनैचुरल के बारे में जिक्र किया, जिसकी इतिहास और वर्तमान में चर्चा थी। इसी चर्चा के दौरान मुझे फेहरीन के बारे में पता चला था रूही। तुम्हारी मां के बारे में बॉब पूरा 1 दिन बताते रह गया था। उसके बाद ढेर सारे विकृत वेयरवुल्फ कि चर्चा हुई। मौजूदा हालत में बीस्ट वुल्फ को उसने सबसे मजबूत और खतरनाक बताया। उन्हें रोकने और मारने के उपायों पर भी बात होने लगी।
फिर चर्चा शुरू हुई इतिहास के सर्व शक्तिमान इंसानों की और उनके विकृत प्रभावों को रोकने के लिये उठाये गये कदम। बॉब का एक बात कहना बहुत हद तक सही था, जो प्रकृति से कुछ खास बटोर लिये वो सब सुपरनैचुरल है। फिर हम केवल वेयरवुल्फ कि बात ही क्यूं करे। वेयरवुल्फ भी कई सुपरनैचुरल में से एक है जिसमे कई तरह कि ताकत के साथ शेप शिफ्ट करने कि एबिलिटी होती है। बॉब को वेटनारियन ना कहकर सुपरनैचुरल के डॉक्टर कह दूं तो ज्यादा गलत नहीं होगा। साथ में बहुत ही ज्यादा सेलफिश वाला इंसान भी। ऐसा मै क्यों कह रहा हूं वो भी बताता हूं…
कितने महीने मै उसके साथ रहा मुझे भी याद नहीं। बोरियल, रूस, के जंगल में दिन रोमांच के साथ गुजर रहे थे। बॉब का मानो मै एक रिसर्च सब्जेक्ट बन चुका था क्योंकि एक प्योर अल्फा के बारे में उसे भी पता नहीं था, इसलिए मेरे साथ बिताये अनुभव को वो लिखकर रखता था। मेरी पास किस तरह कि पॉवर है, कितना आक्रमक हो सकता हूं। पूर्णिमा को कैसी हालत रहती है, इसके अलावा प्योर अल्फा में क्या खास बातें होती है सब।
एक तो बॉब अपने आकलन के आधार पर वो मेरी हील पॉवर को परख चुका था। मुझमें अल्फा और फर्स्ट अल्फा के मुकाबले कई गुना ज्यादा हील पॉवर थी। वहीं बहुत बारीकी से छानबीन के बाद उसने मुझे बताया कि हवा, पानी, और आकाश में कहीं भी हुई घटना को मै मेहसूस कर सकता हूं, उसकी झलकियों को मै देख सकता हूं। मुझे उसका ये हवा, पानी और आकाश कि बात पर जोर देकर कहना कुछ समझ में नहीं आया।
तब बॉब अपने अनुभव को साझा करते हुये कहने लगे, बहुत कम ऐसे सुपरनैचुरल होते हैं जिसकी शक्तियां हर मीडियम मे एक जैसी होती है। यह ज्यादातर किसी भी प्योर सुपरनैचुरल में पाया जाता है जो अपनी कुछ शक्तियों को प्रतिकूल मीडियम (विरुद्ध या विपरीत पक्ष वाला मीडियम) में बनाये रख सकते है। हां लेकिन ये सभी प्योर सुपरनैचुरल में देखने मिले ऐसा संभव नहीं।
इसी मे एक बात और बॉब ने जोड़ा था। हर सुपरनैचुरल अलग-अलग मीडियम मे अलग-अलग तरह से रिस्पॉन्ड करता है। इसका ये मतलब नहीं कि मीडियम चेंज होने से केवल शक्तियां जाएंगे ही। हो सकता है दूसरा मीडियम ज्यादा अनुकूल हो। इसी के साथ एक और बात निकलकर आयी। सुपरनैचुरल की शक्तियां अलग-अलग एटमॉस्फियर और क्लाइमेट मे भी बदल सकती है। कहीं के एटमॉस्फियर मे शक्तियां बढ़ेंगी तो कहीं शून्य भी हो सकती है।
बातें थोड़ी अजीब थी लेकिन बॉब के साथ रहकर एक बात तो समझ चुका था, ये पूरी दुनिया ही अजीब चीजों से भरी पड़ी है। तब मुझे ओशुन का वो गांव याद आ गया जहां मैंने हर दरवाजा को छूकर देखा था, और वो मुझे विचलित कर गया था। ऐसा क्यों हुआ था उस वक़्त मै नहीं समझ पाया था, लेकिन आज जब बॉब मुझे प्योर अल्फा को थोड़ा और एक्सप्लोर कर रहा था, तब जाकर समझ में आया।
बस इन्हीं सब बातो में दिन गुजरते गये। बॉब मुझसे तरह-तरह की चीजे करने कहता, जिसमे ज्यादातर नतीजे नहीं निकलते। हां लेकिन कई सारे असफल प्रयोग के बाद, इक्के–दुक्के नई बात भी पता चलती। उसी ने अपने अनुभव के आधार पर आकलन किया था, जितनी ताकत मै शेप शिफ्ट करने के बाद मेहसूस करता हूं, लगभग उतनी ही ताकत मेरी इंसानी शरीर में भी है। बस मै जब भी उन शक्तियों को मेहसूस करता हूं तो अपना शेप शिफ्ट कर लेता हूं।
वो साला अनुभवी व्यक्ति बॉब एक बार और सही था। हमने बहुत से प्रयोग किये इसपर और सफलता भी पाया। बॉब ने हालांकि दिया तो मात्र थेओरी ही था लेकिन जब बॉब की बात सही हुई, सबसे ज्यादा आश्चर्य उसी को हुआ था। मुझे तो कभी–कभी बॉब को देखकर ऐसा लगता था कि साला कोई फेकू है जो 20 तुक्का मारता है, उसमे से 2-4 सही हो जाता है। खैर, तब उसी ने मुझसे कहा था कि जब तक प्योर अल्फा खुद ना चाह ले, कोई जान नहीं पायेगा कि एक वेयरवुल्फ आस पास है। हर किसी को ये तो समझ में आ सकता है कि कुछ है ऐसा जो मेरे ताकत को बढ़ाता है, लेकिन वो चाहकर भी पता नहीं लगा सकता।
मुझ पर वुल्फ को रोकने की सारी तकनीक बेअसर होगी क्योंकि प्योर अल्फा को ना तो अवरुद्ध भस्म यानी माउंटेन एश रोक पायेगी, और ना ही वुल्फबेन से मारा जा सकता है। जहां वेयरवुल्फ करंट लगने से अपने हृदय की गति बढ़ा लेते है, प्योर अल्फा ठीक उसके विपरीत अपनी धड़कन की गति लगातार नीचे ले जाते है। किसी के दिमाग को पढ़ना और उसकी यादों को देखना मेरे अंदर किसी अल्फा की तरह ही थी, बस मै जितनी सरलता से कर सकता था, कोई और शायद ही कर सके।
मैं किसी की पूरी याद देखने के लिये कितना समय लेता हूं, इसका भी टेस्ट बॉब ने किया था। और मजे की बात ये थी कि बोरीयाल के जंगल में जानवर दिखना खुशकिस्मती की बात होती है, इंसान तो भूल ही जाओ। बॉब ने टेस्ट के लिये कह तो दिया, लेकिन बकरा वही था। वेयरवोल्फ के बारे में तो मैं भी जनता था कि उसके क्ला या फेंग से घायल इंसान यदि इम्यून हो गया तब वह भी एक वेयरवॉल्फ बन जायेगा। उस वक्त मेरी विडंबना यही थी कि मैं याद देखूं कैसे?
कुछ भी कहो बॉब एक जीनियस से कम नही। उसी ने सबसे पहले लुथिरिया वोलुपिनी के साइड इफेक्ट को एक उपचार के रूप में प्रयोग किया था और वो सफल भी रहा। लूथरिया वुलुपिनी न सिर्फ वेयरवोल्फ के लिये एक जहर है बल्कि दावा का काम भी करता है। यदि एंटीडॉट है तो लुथीरिया वुलुपिनि से किसी भी वुल्फ को कंट्रोल किया जा सकता है, खासकर न्यू वेयरवोल्फ को। एंटीडोट है तो लुथीरिया वुलुपिनी का इस्तमाल फेंग और क्ला से घायल इंसान को ठीक करने तथा वेयरवोल्फ में न तब्दील होने के लिये भी कर सकते है। बॉब ने वुल्फ के जितने भी मारने के तरीके थे, उन सब से बचने के उपाय मुझे बताया था।
खैर बॉब टेस्ट के लिये तैयार था और मैं क्ला घुसाकर उसकी यादें लेना शुरू किया। उसके ताज़ा यादों में ही मुझे ओशुन दिख गयी। ओशुन का चेहरा सामने आते ही मैं ख्यालों की गहराई में चला गया। एक–एक करके उसके साथ बिताये हर पल की तस्वीर दिखने लगी। फिर मुझे बॉब का ध्यान आया और मैंने उसकी याद वापस देखन शुरू किया। उसके बाद मैं न तो रुका और न ही भटका। 10 मिनट में उसकी पूरी याद खंगालने के बाद अपना क्ला बाहर निकाला।
बॉब ने आंख खोलते ही सबसे पहले समय देखा और मुझसे, अपने बचपन के बारे में कुछ पूछा। उसे मैंने बता दिया। फिर बॉब ने थिया के बारे में कुछ पूछा। वो भी मैने बता दिया। फिर बॉब ने एनिमल बिहेवियर से संबंधित एक जटिल प्रश्न किया, जिसका जवाब मैं नही दे सका। इतनी पूछताछ के बाद बॉब ने मुझसे कहा... "जैसे टीवी पर कोई मूवी देखने के बाद कुछ अच्छे चीजें दिमाग में छप जाति है और बहुत से चलचित्र पर हम जैसे ध्यान नहीं देते ठीक वैसा ही याद देखने का अनुभव होता है। मेरे जिंदगी की कुछ खास घटना तुम्हे याद है लेकिन पूरी याद देखने के बाद तुम्हे मेरे जिंदगी की सारी घटना याद नहीं। अब तुम ओशुन के बारे में मुझसे कुछ कुछ पूछो?"
मैं, भद्दा सा चेहरा बनाते... "उसकी बात नही करनी।"
बॉब:– अच्छा इसलिए ओशुन की सारी विजुअल इमेज मेरे दिमाग में डाल दिये। तुम्हारे दिमाग में ओशुन से जुड़ी जितनी भी याद है उसे मेरे दिमाग में ऐसे छाप दिये की वो मेरी जिंदगी का हिस्सा लग रहा है।
मैं:– क्या मतलब मैने ओशुन के विजुअल इमेज तुम्हारे दिमाग में डाले...
फिर बॉब ने मुझे हर वो बात बताई जिसे मैं क्ला घुसने के बाद सोचा था। मैं अचंभित और बॉब तो मुझसे भी कई गुणा ज्यादा अचंभित। यादों के साथ ऐसी छेड़–छाड़ न तो कहीं वर्णित था और न ही किसी मौखिक दंत कथाओं में उल्लेख मिलता था। हम दोनो ही इस विषय में और ज्यादा जानने के लिये उत्साहित थे। इस शक्ति के बारे में पता चलते ही फिर बॉब रुका ही नहीं।
आगे यादों से छेड़–छाड़ पर प्रयोग शुरू करने से पहले बॉब बेतुकी सी जिद पर बैठ गया। दुनिया के बेस्ट न्यूरो सर्जन की यादों को ध्यान से देखना। मुझे तो कभी–कभी ऐसा भी लगता था कि बॉब के दिमाग में कहीं चोट लगी थी और कभी–कभी दिमागी संतुलन उसका हिल जाता है। न्यूरो सर्जन की याद देखना? खैर उसकी बात न कैसे मानता। मैं भी राजी हो ही गया।
हमलोग वहां से सीधा पहुंचे स्पेन। स्पेन दुनिया में सबसे बेहतरीन न्यूरोसर्जन देने के लिये काफी प्रसिद्ध देश है। हम लोग दुनिया के सबसे चर्चित और टॉप क्लास नंबर 1 न्यूरोसर्जन का पता लगाया। काफी व्यस्त मानस था और पहले कभी भी किसी मरीज को नहीं देखता। पहले उसके चेले इलाज के लिये आते और जब केस नही संभालता तब शीर्ष वाला डॉक्टर। ऊपर से उनकी फी। आम लोग खुद को बेचकर भी उनकी फी पूरी न दे पाये।
जैसा की बॉब के विषय में मैं पहले भी बता चुका हूं, था तो वो बहुत बड़ा कमिना। उसने पेड़ और पौधों से लिये टॉक्सिक को ब्रेन की नसों में दौड़ाने के लिये कहने लगा। कह तो ऐसे रहा था जैसे सामने हलवा परोस कर खाने कह रहा हो। मुझसे हुआ ही नहीं। एक हफ्ते लग गये टॉक्सिक फ्लो को इच्छा अनुसार बहाव देने में। अभी तो इच्छा अनुसार बहाव दिया था। इसके बाद तो जैसे बॉब का मैं कोई साइंस प्रोजेक्ट हूं। पहले उसने सिखाया टॉक्सिक को ब्लड के साथ बहने दो। मैने ध्यान लगाया और टॉक्सिक को ब्लड का हिस्सा समझा। कमाल हो गया, रगों में टॉक्सिक बहने लगा। हां वो अलग बात थी की मेरा हर वेन शरीर से कुछ सेंटीमीटर उभरा हुआ नजर आता।
इसके बाद बॉब ने जैसे न्यूरोसर्जन को पागल करने की ठान रखी हो। उसने फिर टॉक्सिक को किसी न्यूरो ट्रैमिशन की तरह पूरे शरीर में फैलाने के लिये कहने लगा। अब न्यूरो ट्रासमिशन होता क्या है उसे समझने में पूरा एक दिन गुजर गया। उसके बाद ये काम भी मैने बॉब की मदद से किया। जब मैं न्यूरो ट्रांसमिशन से टॉक्सिक को अपने शरीर में फैला रहा था तब मानो मेरे पूरे शरीर पर नर्व के जाल खुली आंखों से दिख रहा था। मेरा शरीर कोई देख ले तो ऐसा लगता जैसे किसी ने मेरे ऊपर की चमरी को छीलकर हटा दिया और अंदर के पूरे नर्व को दिखा रहा, जो टॉक्सिक के बहाव के कारण दिखने में बिलकुल काला था।
बॉब को पता था कि फ्री में उस डॉक्टर तक कैसे पहुंचना है। हम गये स्पेन के सरकारी हॉस्पिटल। वहां मैने दिमाग से संबंधित दिक्कत बताया। उन लोगों ने ब्लड सैंपल लेकर मुझे एमआरआई (MRI) के लिये भेज दिया। एमआरआई हुआ और डॉक्टर पागल। एमआरआई कर रहे डॉक्टर ने तुरंत एक मेडिकल टीम बुलवा लिया। वो लोग भी मेरा दिमाग देखकर चक्कर खा गये। दिमाग की नशों में खून की जगह जैसे ट्यूमर बह रहा हो। और ये बहाव केवल दिमाग की नशों में ही था बल्कि न्यूरो ट्रांसमिशन देखकर तो जैसे पसीने ही आ गये।
सरकारी हॉस्पिटल का ये केस सीधा पहुंच गया दुनिया के नंबर 1 न्यूरो सर्जन की टीम के पास। उनकी पूरी टीम और शीर्ष पर बैठा डॉक्टर चैलेंज लेने पहुंच गया। उनकी दिमाग की नशों को और भी ज्यादा हिलाने के लिये बॉब ने खास प्रबंध कर रखा था। हर मिनट पर मेरी बीमारी पूरी तरह से ठीक और फिर पूरी तरह से वापस आ जाती। मैं उनके बीच चर्चा का विषय बन गया और मुझ पर एक्सपेरिमेंट करने के लिये उन्होंने मुझे 50 हजार यूरो में साइन कर लिया। हां वो अलग बात है कि पहले मुझे भयभीत किया गया। मरने का डर दिखाया गया। और बाद में उनके मदद के बदले मेरे परिवार के लिये उन्होंने 50 हजार यूरो मुझे दिये।
मुझे क्या करना था मैं भी उनके रिसर्च का हिस्सा बन गया। जिस दिन मैं उनके हॉस्पिटल पहुंचा। उसी दिन से सब काम पर लग गये। टेस्ट के नाम पर मेरे शरीर से न जाने क्या–क्या निकाल लिये, लेकिन कहीं कोई बीमारी निकल ही नहीं रही थी। एक ही टेस्ट को स्पेन के 10 लैब से इन लोगों ने करवाया। सबका नतीजा एक जैसा। जबकि एमआरआई की रिपोर्ट उन्हे चकराने पर मजबूर कर देते। अंत में शीर्ष पर खड़ा टॉप न्यूरोसर्जन अपनी टीम के साथ मेरी सर्जरी का प्लान बनाया।
यहां तक तो सब कुछ मेरे और बॉब के सोच अनुसार ही हुआ। लेकिन आगे जो होने वाला था, उसके बारे में मैं कुछ नही जानता था। पर बॉब से भी चूक हो गयी। हमने सोचा था ऑपरेशन थिएटर में जाने के बाद सभी डॉक्टर को बेहोश करके मैं न्यूरोसर्जन के दिमाग में क्ला घुसा दूंगा। लेकिन वो प्लान ही क्या जो आखरी समय में फेल न हो जाये। सालो ने ऐसा ऑपरेशन थिएटर चुना जिसे देखकर मैने माथा पीट लिया। उस ऑपरेशन थिएटर के ऊपर का छत.…
ये सबसे ज्यादा कमाल का था क्योंकि उसके ऊपर कोई छत ही नही था। आंख उठाकर ऊपर देखो तो सीधा सेकंड फ्लोर का छत नजर आता था और फर्स्ट फ्लोर के छत की जगह बालकोनी टाइप थोड़ा सा छज्जा चारो ओर से निकाले थे। छज्जे के किनारे से 4 फिट की स्टील रॉड की प्यारी सी फेंसिंग थी, जिसे पकड़कर नीचे ऑपरेशन का पूरा नजारा एचडी में खुली आंखों से ले सकते थे। और जिन्हे 12–13 फिट नीचे देख कर कुछ समझ में न आये, उनके लिये 60 इंच का स्क्रीन लगाया गया था। जहां दिमाग का छोटा सा पुर्जा भी 10 इंच से कम का न दिखता। लाइव क्रिकेट मैच जैसे पूरी वयवस्था थी।
ऊपर से तकरीबन 50–60 आमंत्रित डॉक्टर देख रहे थे और नीचे पूरी टीम मेरा ऑपरेशन करने के लिये मरी जा रही थी। मैं करूं तो क्या करूं। बॉब भी साथ में नही था, उसे तो प्रतीक्षालय में इंतजार करने कहा गया था। मैं बड़ी दुविधा में। ऊपर से इन डॉक्टर्स ने एक छोटा बटन दबाया नही की पूरा स्टाफ ओटी में पहुंच जाता। मुझे कुछ सूझ नही रहा था और ये लोग इंजेक्शन लगाकर मुझे बेहोश करने वाले थे।
जब समझदारी काम न आये तब बेवकूफ बनने में ही ज्यादा समझदारी है। ऊपर से मुझे तो वैसे भी दिमागी बीमारी लगी थी। सो मैंने आव देखा न ताव सीधा बेड से कूद गया। मेरे बदन पर न जाने कितने वायर लगे थे और नब्ज में नीडल। सबको नोच खरोच कर गिराते मैं ऑपरेशन थिएटर से बाहर भागा। मेरे पीछे कुछ जूनियर डॉक्टर और नर्स की टीम भागी। मैं तो ओटी के बाहर चला आया और कुछ ही देर में पूरा हॉस्पिटल प्रबंधन मेरे पीछे दौड़ रहा था।
5 मिनट तक इधर–उधर भागने के बाद मैं थोड़ा तेजी दिखाते हुये वापस ऑपरेशन थिएटर में भागा। ऑपरेशन थिएटर में कम से कम 15 लोग रहे होंगे। हां। लेकिन शुक्र था कि कोई ऊपर खड़ा नही था। मुझे कुछ नही सूझा इसलिए मैंने एक बेडशीट में आग लगाकर उसके ऊपर गीला बेडशीट डाल दिया। चारो ओर तेज धुवां उठा और उस धुवां की आड़ में नंबर 1 न्यूरो सर्जन को लूथरिया वुलुपिनी का इंजेक्शन देकर उसके गर्दन में क्ला घुसा दिया।
जब मैंने उस डॉक्टर की यादों में झांका फिर मुझे पता चला की बॉब इस डॉक्टर की यादें देखने के लिये क्यों इतना जोर दे रहा था। किसी की यादें खुद के दिमाग में लेना। दूसरों के दिमाग में यादें डालने तथा भ्रम और सच्चाई बीच की लकीर के बीच कैसे उलझन पैदा करनी है। कौन सी यादें कहां मिलेगी। भूली यादें कहां होती है। यादों को एक दिमाग में कितने तरह से डाला जा सकता है। यादों को किस प्रकार से मिटाया जा सकता है। या फिर अपनी काल्पनिक याद को किसी के दिमाग के अंदर कैसे वास्तविक बना सकते है, मुझे सब पता चल चुका था। मुझे पता चल चुका था कि कहां ध्यान लगाने से क्या सब हो सकता है। मैं दिमाग और नर्वस सिस्टम से जुड़े इतने बातों को समझ चुका था की मैं किसी के दिमाग से यादों का कोई खास हिस्सा बिना किसी परेशानी के उठा सकता था।
फिर तो धुएं की आड़ में मैने बचे 14 लोगों की यादें भी देख ली। सबकी यादें काम की नही थी, इसलिए उन्हे स्टोर नही किया सिवाय 3 और लोगों के। जिसमे से एक प्लास्टिक सर्जन था तो दूसरा कॉस्मेटिक सर्जन। ये दोनो उस न्यूरो सर्जन के दोस्त थे और कई मामलों में न्यूरो सर्जन को सलाह भी दिया करते थे। आखरी में था एनेस्थीसिया। मैने न्यूरो सर्जन के साथ उन तीनो को भी लपेट लिया। सभी डॉक्टर के कुछ देर पहले की यादें मिटा दी और मैं जाकर आराम से लेट गया।
उन डॉक्टर में से जिसकी आंख पहले खुली हो। उसने जाकर दरवाजा खोला। कई लोग अंदर पहुंचे। ऑपरेशन थिएटर को खाली करवाया गया और फिर मुझे लेकर एक प्राइवेट रूम में सुला दिया गया। उस दिन ऑपरेशन होने से रहा और अगली बार ऑपरेशन हो, ऐसा मौका मैने दिया ही नहीं। मेरे जितने भी टेस्ट हुये सबके परिणाम पोस्टिव आये। चूंकि मैं एक एक्सपेरिमेंट सब्जेक्ट था और मेडिकल काउंसिल के लोग मेरी रिपोर्ट्स देख रहे थे, इसलिए मुझे डिस्चार्ज करने के अलावा उनके पास और कोई ऑप्शन ही नही था।
हम फिर यूरोप भ्रमण के लिये निकले। हां लेकिन हमारे पास पैसों की काफी तंगी हो चुकी थी, इसलिए वुल्फ हाउस को लूटने के इरादे से हम दोनो सबसे पहले जर्मनी ही पहुंचे। बॉब, मैक्स और बाकी रेंजर को वुल्फ हाउस की दास्तान सुनाने निकल गया और मैं वुल्फ हाउस चला आया। दरवाजे पर ईडन के मांस का लोथड़ा तो नही था लेकिन खून के दाग वैसे ही लगे हुये थे। अंदर घुसते ही बड़ा सा हॉल अब भी लड़ाई की दास्तान सुना रहा था। लाशें एक भी नही थी, लेकिन खून के धब्बे और गंदी सी बदबू चारो ओर थी।
वुल्फ हाउस में मैने अपना काम शुरू कर दिया। पैसों का पता लगाते मैं ईडन के तहखाने पहुंच गया, जहां पर पैसों और बाउंड का भंडार छिपा था। कुल संपत्ति लगभग 50 मिलियन यूरो थी। मैने ईडन का पूरा लॉकर ही साफ कर दिया। पूरे पैसे, बैंक लॉकर की चाबियां, कुछ बॉन्ड्स और शेयर अपने बैग में समेटकर डाल लिया। मैं जब तक वापस हॉल में पहुंचा, बॉब कुछ लोगों को लेकर वुल्फ हाउस पहुंच चुका था। ब्लैक फॉरेस्ट का रेंजर मैक्स और उसकी बीवी थिया को देखकर मैं खुश हो गया। हां लेकिन थिया मुझे देखकर जरा भी खुश न थी। उसने भरी सभा में जोर से चिंखते हुये मुझे वेयरवोल्फ पुकार रही थी।
मामला ठन गया। थिया की बातों पर किसी को यकीन नही हुआ, लेकिन सभी शिकारियों की संतुष्टि के लिये मेरा टेस्ट लिया गया। पहला करेंट और दूसरा वोल्फबेन। मैं दोनो ही टेस्ट 100% मार्क के साथ पास कर गया। थिया को लेकिन जरा भी यकीन नहीं था और वो मुझे पूरी तरह से फसाने का ठान चुकी थी। उसे सेक्स टेस्ट चाहिए था। सबके सामने उसने कह दिया, यदि मैं वुल्फ नही तो किसी स्त्री के साथ सबके सामने संबंध बनाये।
मैं फंसा। थिया के चेहरे पर कुटिल मुस्कान और मैं चिंता में। सभी शिकारी हंसते हुये थिया को ही कपड़े उतारने कह दिये। मैक्स भी उनमें से एक था जो इस अजीब सी शर्त की मेजबानी थिया को करने ही कह दिया। कामिनी औरत मुझे पूरी तरह से फसा चुकी थी। वह उसी वक्त अपने ऊपर के कपड़े को फर्श पर गिराकर अंतः वस्त्र में खड़ी हो गयी और मेरे पास कोई रास्ता ही नही छोड़ी। बॉब ने मुख्य दरवाजा बंद किया और मैंने आतंक मचाने शुरू किया। बॉब के पास जानवरों को लिटाने वाले कई तरह के साधन थे। उन्ही साधनों को संसाधन में बदलकर सबको बेहोश किया और उनके जहन से मेरे वेयरवोल्फ होने की पूरी कहानी ही गायब करनी पड़ी।
उन्हे जब होश आया तब सभी अलग–अलग कमरों में लेटे थे। शाम के खाने की दावत पर सबको जगाया गया और पूरे रेंजर एक साथ जमा होकर बस ईडन के बारे में जानने के लिये उत्सुक थे। जब उन्हें पता चला की मैने अकेले ईडन का सफाया कर दिया और उसके साथ बाकी के अल्फा का भी, उनका चेहरा देखने लायक था। कुछ देर आश्चर्य से मौन रहे फिर जाम से जाम लहराते हूटिंग करने लगे। मैक्स ने मुझसे पूछा की आखिर मैं कैसे कामयाब रहा। तब मैने बॉब के बारे जिक्र करते कहा की बॉब ने माउंटेन ऐश और वुल्फ मारने का हथियार दिया। मैने उन सभी को ट्रैप करके मार डाला। और बचे हुये जो बीटा भागे उनका फिर पिछा नही किया।
दोबारा वो लोग हूटिंग करने लगे। मुझे कंधे पर बिठा लिया। मुझसे वहीं रुकने का आग्रह करने लगे और साथ में शिकार की कुछ ट्रेनिंग भी देने। खैर रुकने और ट्रेनिंग के लिये तो मैं राजी हुआ ही साथ में वुल्फ हाउस और ब्लैक फॉरेस्ट को पूरा मुक्त कराने का क्रेडिट भी शिकारियों को दे दिया। बदले में मैने उनसे वुल्फ हाउस का मालिकाना हक मांग लिया। मैं उस प्रॉपर्टी को नहीं छोड़ना चाहता था, जहां मेरे इवोल्यूशन की कहानी लिखी गयी थी। मैने तो अपना मांग लिया लेकिन बॉब मेरे पीछे अपनी काफी जमा पूंजी उड़ा चुका था, इसलिए उसने 1 लाख यूरो मांग लिया।
बॉब की ख्वाइश तो दुगनी पूरी हुई। शिकारियों ने उसे 2 लाख यूरो दे दिये। मेरे मांग में थोड़ी अर्चन आयी लेकिन मैक्स ने मेरी ख्वाइश पूरी कर दिया। हां लेकिन मुझे वुल्फ हाउस के लिये अलग से 1 लाख यूरो देने पड़े थे। वुल्फ हाउस की पूरी प्रॉपर्टी मेरी हुई। मैं वुल्फ हाउस छोड़ने से पहले अपनी यादें वहां छोड़ना चाहता था, इसलिए मैक्स के प्रस्ताव को मैने स्वीकार कर लिया।
वहां मैं और बॉब कुछ महीनो तक ठहरे। मुझे कुछ यादों को मूर्त रूप देना थे इसलिए जरूरी हो गया था कुछ लोगों की यादें चुराना। फालतू काम था, लेकिन मुझे करना पड़ा। जर्मनी के सबसे बढ़िया शिल्पकार का हमने पता लगाया। पता चला अपना देशी शिल्पकार ही था। राजस्थान का एक शिल्पकार परिवार पलायन करके जर्मनी में बसा था, जिसके पास ऐसा हुनर था कि किसी दुल्हन का घूंघट भी वह पत्थर को तराशकर बनाते थे जो अर्द्ध पारदर्शी होता और घूंघट के पीछे दुल्हन का चेहरा देखा जा सकता था। उसके अलावा मैं एक मेकअप आर्टिस्ट से भी मिला।
दोनो के हुनर मेरे पास थे और दोनो को उसके बदले मैने एक लाख यूरो दिया था। मुझे हुनर सीखाने की कीमत। मेरे और बॉब के बीच की बातें जारी रही साथ में वुल्फ हाउस की बहुत सी यादों को मैं मूर्त रूप दे रहा था। कुछ महीनो में मैने वहां 400 प्रतिमा बना दिया, जिसमे वुल्फ और इंसान दोनो की प्रतिमा थी। पूरी प्रॉपर्टी में प्रतिमा ही नजर आती। पहले दिन की खूनी रस्म से लेकर आखरी दिन की लड़ाई को मैने मूर्त रूप दे दिया था। इसी बीच अमेजन के जंगल की एक अल्फा हीलर फेहरीन के कारनामे की दास्तान बॉब ने शुरू कर दिया। बॉब चाहता था कुछ प्रतिमा जड़ों से ढका रहे। बॉब इकलौता ऐसा था जिसे फेहरीन के एक अप्रतिम कीर्तिमान का ज्ञान था। क्ला को जमीन में घुसाकर जमीन से जड़ों को निकाल देना।
थोड़े दिन की मेहनत और मैं भी फेहरीन की तरह कीर्तिमान स्थापित करने में कामयाब रहा था। कई पत्थरों पर मैने जड़ों को ऐसे फैलाया जैसे सच के कोई इंसान या जानवर खड़े थे। प्रतिमाओं को स्थापित करने के बाद उनके मेकअप का काम मैने शुरू किया। पूरे वुल्फ हाउस को मैने अपनी कल्पना दी थी। प्रतिमाओं के जरिये मैंने शेप शिफ्ट करने की पूरी प्रक्रिया को ही 5–6 प्रतिमाओं में दिखा दिया था। ईडन का बड़ा सा डायनिंग टेबल हॉल के मध्य में बनाया और 80 कुर्सियों पर इंसान और वेयरवॉल्फ को साथ बैठे दिखाया था। कुल मिलाकर मैं अपने इवोल्यूशन की कहानी वहां पूरा दर्शा गया। और अंदर के जंगल में देखने वाले मेहसूस करते की एक वेयरवोल्फ कितना दरिंदे हो सकते थे।
वुल्फ हाउस के दायरे में जितना जंगल पड़ता था, उसमे मैने अपने ऊपर के अत्याचार की कहानी लिखी थी। कई दरिंदे एक असहाय को नोचते हुये। वहां मैने छोटी सी प्रेम कहानी को भी कल्पना की मूर्त रूप दिया था। जिसके आगे मैने एक मतलबी लड़की की कहानी भी दर्शा दिया जिसने मेरे भावनाओं के साथ खेला था। और इन सब चक्र के अंत में मेरा आखरी इवोल्यूशन, एक श्वेत रंग का वेयरवॉल्फ, जो वहां के इंसान और वेयरवॉल्फ के बीच शांति स्थापित करने का कार्य किया था। 6 महीने से ऊपर लगे लेकिन जब मैने पहली बार वुल्फ हाउस का दरवाजा खोलकर लोगों को अंदर आने दिया और वुल्फ हाउस का पूरा प्रांगण घुमाया, तब वह जगह सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बन गया।
मैक्स और उसकी टीम को जब खबर लगी वो लोग भी पूरे जत्थे के साथ घूमने पहुंचे और वहां के प्रतिमाओं को देखकर कहने लगे... "जो सुपरनैचुरल दुनिया को नही जानते है, उनके लिये भी तुमने जीवंत उदाहरण छोड़ दिया है। वेयरवोल्फ के बदलाव से लेकर उनकी पूरी क्रूरता की कहानी। हां लेकिन एक प्रतिमा को तुमने मसीहा दिखाया है। क्या सुपरनैचुरल की दुनिया में भी अच्छे वुल्फ होते है।"… बस मैक्स का ये एक सवाल पूछना था और बॉब के पास तो वैसे भी कहानियों की कमी नही थी। और हर अच्छे वुल्फ के कहानी की शुरवात वो फेहरीन से ही करता था।
उस दिन जब मैक्स कई सैलानियों के साथ वुल्फ हाउस पहुंचा तब उसने मुझे एक बार और फसा दिया। जैसा ही उसने सबको बताया की ये कलाकृतियां मेरी है। कुछ लड़कियां मर मिटी। वो सामने से चूमने और बहुत कुछ करने को बेकरार थी। मैं उनकी भावना समझ तो रहा था लेकिन किसी स्त्री के साथ संभोग.. शायद इसके लिये मुझे बहुत इंतजार करना था। मेरी हालत पतली और कमीना बॉब मजे ले रहा था। किसी तरह जान बचाकर निकला।
वो जगह जंगल प्रबंधन ने मुझसे लीज पर ले लिया और सैलानियों के मनोरंजन के लिये उसे हमेशा के लिये खोल दिया गया था। मैं भी एक शर्त के साथ राजी हो गया की मुझे इस जगह का कोई लाभ नहीं चाहिए, बस ये संपत्ति हमेशा मेरी रहेगी। उन लोगों ने मेरी शर्त पर सहमति जता दी। जर्मन का काम खत्म करके एक बार फिर मैं और बॉब, बोरीयल, रशिया के जंगलों के ओर रुख कर चुके थे।
बॉब और फेहरीन। जैसे वो फेहरीन का भक्त था। बॉब से बातें करते वक़्त फिर वो पहला जिज्ञासा भी सामने आया जो मुझे नागपुर आने पर मजबूर किया था। बॉब अमेजन के जंगलों की ओर निकला था, क्योंकि गुयाना की एक वेयरवुल्फ अल्फा, नाम फेहरिन, हां तुम्हारी आई रूही उन्हीं की बात कर रहा हूं। बॉब उसी अल्फा हीलर से मिलने गया था। उसमे हील करने की अद्भुत क्षमता थी, शायद मेरे जितनी या मुझ से भी कहीं ज्यादा। लेकिन बॉब जबतक मिल पता, वहां शिकारियों का हमला हो गया। उसके पैक को खत्म कर दिया गया और उसे भारत के सबसे ख़तरनाक शिकारी पकड़कर नागपुर, ले आये थे।
बॉब की जानकारी को मैंने तब अपडेट नहीं किया। मैंने उसे नहीं बताया कि मै जानता हूं महान अल्फा हीलर फेहरीन को कौन शिकारी लेकर गये? मैं नागपुर लौटा क्योंकि मेरे मन में एक ऐसे अल्फा हीलर से मिलने की जिज्ञासा थी, जिसने अपना एक मुकाम हासिल किया था। जब भी बॉब तुम्हारी मां की बात करता ना वो बस यही कहता इंसानियत को ज़िंदा रखने का ज़ज़्बा किसी और मे हो नहीं सकता। एक नहीं फिर फेहरीन के हजार किस्से थे बॉब के पास, और हर बार फेहरीन से जुड़े नये किस्से ही होते। हां लेकिन तब ना तो बॉब को पता था और ना ही मुझे की शिकारी और सरदार खान ने मिलकर उसका क्या हाल किया। यदि उसके बचे 3 बच्चों (रूही, ओजल, इवान) के लिए मै कुछ कर रहा हूं तो ये मेरे लिए गर्व कि बात है।
वहीं मेरी दूसरी जिज्ञासा थी अनंत कीर्ति की किताब। बॉब के किताब संग्रह को मै देख रहा था। उसमें एक पुस्तक थी "रोचक तथ्य"। संस्कृत भाषा की इस पुस्तक में काफी रोचक घटनाएं लिखी हुई थी। जिसमे उल्लेखित कई घटनाएं उन सर्व शक्तिमान सुपरनैचुरल के बारे में थे, जो खुद को भगवान कि श्रेणी में मानते थे और कैसे उन तथा कथित भगवान का शिकार किया गया।
ज्यादातर उसमे बीस्ट अल्फा, इक्छाधरी नाग और विष कन्या का जिक्र था, जो किसी राजा के लिए कातिल का काम करते थे। उसी पुस्तक में वर्णित किया गया था तत्काल भारत में जब छुब्द मानसिकता के मजबूत इंसान, जैसे कि सेनापति, छोटे राज्य के मुखिया, लुटेरों का कबीला, सुपरनैचुरल के साथ मिलकर अपना वर्चस्व कायम करने में लगे थे। तब उन्हें रोका कैसे जाये, इस बात पर गहन चिंतन होने लगी।
रोचक तथ्य के लेखक बताते है कि पहली बार मुगलिया सल्तनत और अन्य राज्य जिन्होंने पुरानी सारी जानकारी की पुस्तक अपने पागलपन में मिटा दी थी, उनके पास इन सुपरनैचुरल को रोकने का कोई उपाय नहीं था और अपने कृत्य के लिए सभी अफ़सोस कर रहे थे। ना केवल भारत में बल्कि विकृति सुपरनैचुरल पूरे पृथ्वी पर कहर बरसा रहे थे। उन विकृति सुपरनैचुरल की पहचान करने और उन पर काबू करने के लिए देश विदेश की बड़ी–बड़ी ताकते एक साथ एक बार फिर नालंदा के ज्ञान भण्डार के ओर रुख कर चुकी थी। तकरीबन भारत के 30 राजा, और विदेश के 200 राजा इस सम्मेलन में हिस्सा लेने आये थे।
आचार्य श्रीयुत, अचार्य महानंदा के शिष्य थे और महानंदा शिष्य थे अचार्य श्री हरि महाराज के, जिन्होंने एक विकृति रीछ को विदर्व के क्षेत्र में बंधा था, जिसका उल्लेख उसी रोचक तथ्य के पुस्तक में था। पीढ़ी दर पीढ़ी पूर्ण सिक्षा को आगे बढ़ाने के क्रम में श्री हरि महाराज की सिद्धियां इस वक़्त अचार्य श्रीयुत के पास थी। आचार्य श्रेयुत सभी देशों के मुखिया से मिले और यह कहकर मदद करने से मना कर दिया कि….. "सत्ता और ताकत के नशे में चुड़ राजा खुद ही ऐसे दुर्लभ प्रजाति (सुपरनैचुरल) की मदद लेते है, अपने दुश्मनों के कत्ल के लिये। विषकन्या जैसी कातिलों को तैयार करते हैं। खुद का लगाया वृक्ष जब भूतिया निकल गया तो आज आप सब यहां सभा करने आये है। चले जाएं यहां से।"..
सभी राजा, महराजा, शहंशाह और बादशाह ने जब उनके कतल्ले आम की दास्तां बताई तब अचार्य श्रीयुत का हृदय पिघल गया और उन्होंने आये हुये राजाओं से उनके 10 बुद्धिमान सैनिक मांग लिये। श्रीयुत ने मदद के बदले कुछ शर्तें भी रखी उनके पास। आचार्य श्रीयुत नहीं चाहते कि भविष्य में फिर कोई ऐसी समस्या उत्पन्न हो इसके लिए उनकी शर्त थी….
"वो अपने 12 शिष्यों को दुर्लभ प्रजाति और इंसनो के बीच का द्वारपाल यानी प्रहरी बनाएंगे, जो दोनो दुनिया के बीच में संतुलन स्थापित कर सके।"
"जहां कहीं भी विकृति मानसिकता वाले मनुष्य, विकृति दुर्लभ प्रजाति के साथ मिलकर लोक हानि करेंगे, तो उसे सजा देने मेरे शिष्य या उसके अनुयाई जाएंगे। पहले अनुयाई वो सैनिक होंगे जो आपसे हमने मांगे है। प्रहरी पहुंचेंगे और फिर चाहे दोषी कोई राजा ही क्यों ना हो आप सब को मिलकर उसे सजा देनी होगी।"
"हमारे शिष्य और उसके अनुयाई किसी के भी राज्य में कभी भी छानबीन करने जा सकते है, जिन्हे आपकी राजनीतिक और आर्थिक राज्य नीति में कोई दिलचस्पी नहीं होगी। वह उस राज्य में दुर्लभ प्रजाति की स्तिथि और विकृति मानसिकता के लोगों का उनके प्रति रुझान देखने जाएंगे। जिसके लिये आप सभी को करार करना होगा की उनकी सुरक्षा, और काम में बाधा ना आने की जिम्मेदारी उस राज्य के शासक की होगी।"
"यदि आप सभी ये प्रस्ताव मंजूर है तो ही मै पहले आपके लोगो को प्रशिक्षित करूंगा, फिर अपने 12 सदस्य शिष्यों को तैयार करूंगा।"
आचार्य श्रीयुत की बात पर सभी शासक काफी तर्क करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि उनकी शर्त जायज है, और भविष्य नीति के तहत एक सुदृढ़ कदम भी। हर राजा ने करार पर हस्ताक्षर करके अपनी मुहर लगा दी। उसके बाद तकरीबन 1 साल तक आचार्य श्रीयूत ने अपने गुरु की पुस्तक "अनंत कीर्ति" के 5 अध्याय का प्रशिक्षण उन सभी को 1 वर्ष तक करवाया और प्रशिक्षण पूर्ण होने के उपरांत उन्होंने सबको वापस भेज दिया।
उसके बाद आचार्य श्रीयूत ने अपने 12 प्रमुख शिष्यों को अनंत कीर्ति के 10 अध्याय तक का प्रशिक्षण दिया। उन्हें लगभग 3 साल तक प्रशिक्षित किया गया और जब उनकी प्रशिक्षण पूर्ण हुई, तत्पश्चात अचार्य श्रीयूत ने उन 12 सदस्य में से वैधायन भारद्वाज को सबका मुखिया बाना दिया, और उन्हें राजाओं द्वारा मिली धन, स्वर्ण मुद्रा और आवंटित जमीन के करार सौंप कर उन्हें दो दुनिया का द्वारपाल बनाकर लोकहित कल्याण के लिए संसार के विभिन्न हिस्सों में जाने और अपने अनुयायि बनाने की अनुमति दे दी।
3 वर्ष बाद ही आचार्य श्रीयूत की अकाल मृत हो गयी। उनकी मृत के पश्चात उनके मुख्य शिष्य वैधायन को उनके अनंत पुस्तक का वारिस बनाया गया। हालांकि अनंत कीर्ति की पुस्तक एक अलौकिक पुस्तक थी, जिसमें 25 अध्याय लिखे गये थे। इस पुस्तक को संरक्षित करने का तो वारिस मिल गया, किन्तु उस पुस्तक को पढ़ने की विधि आचार्य श्रीयूत किसी को बताकर नहीं जा सके।
मना जाता था कि अनंत कीर्ति की पुस्तक में काफी हैरतअंगेज जानकारियां थी, जो पिछले कई हजार वर्षों से आचार्य अपने शिष्यों में आगे बढ़ाते हुये जा रहे थे, जिसका सिलसिला आचार्य श्रीयुत की मौत से टूट गया। पुस्तक को खोलने की एक विधि जो प्रचलित है…
"यदि कोई भी व्यक्ति 25 प्रशिक्षित लोगो से एक साथ 25 तरह के हथियार के विरूद्ध लड़े, और बिना अपने रक्त का एक कतरा बहाये यदि वह ये लड़ाई जीत जाता है, तो वो व्यक्ति उस अनंत कीर्ति की पुस्तक को खोल सकता है।"… इसी के साथ रोचक तथ्य का यह अध्याय समाप्त हो गया और मेरे मन की जिज्ञासा शुरू।
मजे की बात यह थी कि रोचक तथ्य में वर्णित इतिहास सच–झूठ का एक अनोखा संगम था, जिसे तत्काल प्रहरी समुदाय के फैलाये झूठ के आधार पर तांत्रिक अध्यात द्वारा लिखा गया था। यही वो किताब जरिया बनी फिर महाजनिका की आजादी का। बहरहाल मुझे उस वक्त भी उस पुस्तक पर पूरा यकीन नही था क्योंकि 25 तरह के हथियार से लड़ने की व्याख्या ही पूरी तरह से गलत थी। हां लेकिन रीछ समुदाय का इतिहास मेरे जहन में था और प्रहरी को तो मैं शुरू से जनता था। इसलिए मेरी दूसरी जिज्ञासा उस अनंत कीर्ति की पुस्तक को देखने की हुई। जिसे खोल तो नही सकता था लेकिन कम से कम देख तो लेता।
मै बॉब से हंसकर विदा ले रहा था और साथ ही ये कहता चला कि अब भविष्य में उससे दोबारा फिर कभी नहीं मिलूंगा। बॉब से विदा भी ले चुका था एक सामान्य जीवन की पूर्ण इक्छा भी थी, क्योंकि मुझे पहचानने वाला कोई नहीं था। एक गलती करके बुरा फंसा था, वो था सुहोत्र लोपचे की जान बचाना। यदि मर जाने दिया होता तो मेरी सामान्य सी जिंदगी होती। इसी को आधार मानकर मै ये भी तय कर चुका था कि भार में गया मदद करना। मैं भी उस भीड़ का हिस्सा हूं जो पूर्ण जीवन काल में बिना एक भी दुश्मनी किये, बिना किसी लड़ाई झगड़े के जीवन बिता देते है। लेकिन ये इंसानों के जानने की जिज्ञासा... मेरे मन की जिज्ञासा में 2 सवाल घर कर गये थे..
एक सुपर हीलर अल्फा फेहरीन को अमेजन के जंगल से नागपुर क्यों लाया गया? वो अनंत कीर्ति की पुस्तक दिखती कैसी होगी? उसपर हाथ रखने का एहसास क्या होगा और क्या जब मै उसपर अपने हाथ रखूंगा तो अपने बारे में कुछ कहानी बयान करेगी?
मेरे लिए बस 2 छोटे से सवाल थे जिसका जवाब मै जनता था कि कहां है, किंतु मुझे तनिक भी एहसास नहीं था कि इन दोनों सवाल के जवाब ढूंढ़ने के क्रम में इतनी समस्या आ जायेगी... सवाल के जवाब तो कोसो दूर थे उल्टा मै खुद ही कई उलझनों में फंस गया। ये थी एक पूरे दौड़ कि कहानी जब मै गायब हुआ था।
आर्यमणि पहली बार अपनी दिल की भावना और अपने साथ हुए घटना को किसी के साथ साझा कर रहा था। रूही को अपने मां के बारे में जितनी जानकारी नहीं थी, उससे कहीं अधिक जानकारी तो आर्यमणि और बॉब के पास थी। हां लेकिन एक बात जो इस वक़्त रूही के अंदर चल रही थी उसके दुष्परिणाम से जल्द ही आर्यमणि अवगत होने वाला था।
आर्यमणि पहली बार अपनी दिल की भावना और अपने साथ हुए घटना को किसी के साथ साझा कर रहा था। रूही को अपने मां के बारे में जितनी जानकारी नहीं थी, उससे कहीं अधिक जानकारी तो आर्यमणि और बॉब के पास थी। हां लेकिन एक बात जो इस वक़्त रूही के अंदर चल रही थी उसके दुष्परिणाम से जल्द ही आर्यमणि अवगत होने वाला था।
आर्यमणि और रूही दोनो ही लगभग खोये से थे, तभी उस माहौल में ताली बजनी शुरू हो जाती है। बॉब उन दोनों का ध्यान अपनी ओर खिंचते… "आर्य सर ने किसी से लगातार 4-5 घाटों तक बातचीत की। सॉरी बातचीत कहां, लगातार अपनी बात कहता रहा, कमाल है।"
रूही बॉब की बात पर हंसती, आर्य के गाल को चूमती हुई कहने लगी… "बड़ी मुश्किल से मेरा दोस्त सुधरा है बॉब, नजर मत लगाओ। वैसे भी इसकी जिंदगी में भूचाल लाने का श्रेय तुम्हे ही जाता है। वरना ये तो नॉर्मल सी लाइफ जीने गया था नागपुर, जहां इसके 2 प्यारे दोस्त और इसकी सब से क्लोज भूमि दीदी रहती है।"..
बॉब:- क्या वाकई में ये अपने सवालों के कारण फसा है। मुझे नहीं लगता की ऐसा कुछ हुआ होगा। सवालों के जवाब ढूंढ़ने के लिए इसे ज्यादा अंदर तक घुसने कि जरूरत भी नहीं पड़ती, क्यों आर्य?
आर्य:- हां रूही, बॉब सही कह रहा है। मै तो नागपुर बस जिज्ञासावश और अपने लोगों के पास गया था। लेकिन कोई मुझे पहले से निशाने पर लिया था। कुछ लोग नहीं चाहते थे कि मै नागपुर में रहूं, इसलिए तो मेरे नागपुर पहुंचने के दूसरे दिन से ही पागलों कि तरह भगाने में लग गये थे।
रूही:- हां और तुम भी जब भागे तो उन लोगों को पूरा उंगली करके भागे।
आर्य:- हाहाहाहा.. हां तो जैसा किया वैसा भोगे। लेकिन इन सबमें तुम लोग मेरे साथ हो, वही मेरे लिये खुशी की बात है। फेहरिन, जिसने ना जाने अपने हीलिंग एबिलिटी से कितनो कि जान बचाई। मदद करना जिसके स्वभाव में था, उसके 3 बच्चों की मदद मै कर रहा हूं। तुम समझ नहीं सकती ये बात मुझे कितना सुकून दे रही है...
बॉब:- और इसी चक्कर मे खतरनाक टीनएजर अल्फा पैक लिए घूम रहे हो आर्य। हां, लेकिन तीनों ही बहुत प्यारे है। काफी बढ़िया प्रशिक्षण दिया है तुमने। अब जरा काम की बात कर ले।
आर्य:- हां बॉब..
रूही:- बॉब रुको तुम। इससे पहले कि एक बार और इस बकड़ी की शक्ल वाली लड़की ओशुन को बचाने के लिये आर्य आगे बढ़े, उस से पहले मैं कौन बनेगा करोड़पति खेलना चाहूंगी... बॉस रेडी...
आर्यमणि के उतरे चेहरे पर बहुत देर के बाद हंसी थी और वो हंसते हुए रूही के गर्दन को दबोचकर उसके गाल को काटते हुए... "हां पूछो"..
रूही:- अव्वववव ! बॉस दूध पीती बच्ची की तरह ट्रीट मत करो। सवाल दागुं पहली…
आर्यमणि:- जी..
रूही:– यूरोप से लौटकर नागपुर किन २ सवालों को लेकर पहुंचे थे?
आर्यमणि:– बता तो चुका हूं...
रूही:– एक बार और
आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक कैसी दिखती है और एक ट्रू अल्फा हीलर फेहरीन के लिये...
रूही:– तुम्हे क्या लगता है बॉस अनंत कीर्ति की पुस्तक उन ढोंगी प्रहरी के हाथ कैसे लगी होगी?
आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक की कहानी इतनी सी है कि उसे कोई अपेक्स सुपरनैचुरल.…
रूही:- बॉस आता हे ( मतलब अब ये) अपेक्स सुपरनैचुरल…
एलियन को एपेक्स सुपरनैचुरल कहना थोड़ा खटक गया इसलिए रूही बीच में ही आर्यमणि को टोक दी।
आर्यमणि:- मान लो ना अभी के लिये की किताब के बारे में जिसने भ्रम फैलाया उसे अपेक्स सुपरनैचुरल कहते है। वरना मैं कैसे समझाउंगा। बॉब के सामने वो शब्द का इस्तमाल नही कर सकता...
(दरअसल बात एलियन कहने की हो रही थी और आर्यमणि ये बात सबके सामने नहीं जाहिर होने देना चाहता था)
रूही:- सॉरी बॉस..
बॉब:– तुम अपने गुरु से बात छिपा रहे। अच्छा ही होता जो तुम्हे काली खाल में रहने देता ..
आर्यमणि, कुछ सोचकर बात को घुमाने के इरादे से... "बॉब मैं नही चाहता की तुम्हे वो सच पता लगे"..
बॉब:– अब इतना सस्पेंस न क्रिएट करो। मैं यदि सस्पेंस क्रिएट करता फिर तुम्हारा क्या होता आर्य...
आर्यमणि:– ठीक है बॉब, मैं बताता हूं, लेकिन तुम खुद को संभालना... फेहरीन को मारने वाले यही एपेक्स सुपरनैचुरल थे। अब चूंकि रूही उसकी बेटी है और उसके मां यानी फेहरीन के कातिलों को एपेक्स कहना उसे अच्छा नहीं लग रहा...
बॉब, आश्चर्य से आंखें बड़ी करते... "क्या तुम्हे फेहरीन के कातिलों के बारे में पता था, और तुमने मुझे बताया नही?"
रूही, बॉब के कंधे पर हाथ रखती.… "बॉब, प्लीज पैनिक न हो। आर्यमणि बस तुम्हे दुखी नही देखना चाहता था। वैसे भी हम तो उनसे हिसाब लेंगे ही, लेकिन अभी हम उन सुपरनैचुरल को पूरी तरह से जानते नही, इसलिए खुद को सक्षम बना रहे।"…
बॉब:– ओह इसलिए आर्य अल्फा पैक लिये घूम रहा और तुम सबको प्रशिक्षण दे रहा।
रूही:– हां बॉब.. अब बॉस को बात पूरी करने दो। चलो एपेक्स सुपरनैचुरल की बात मान ली, आगे...
आर्यमणि:- हां तो अनंत कीर्ति की पुस्तक की सच्चाई इतनी है कि उसके संरक्षक को मारकर वो पुस्तक अपेक्स सुपरनैचुरल के पास पहुंच गयी। उन अपेक्स सुपरनैचुरल ने पूरे प्रहरी सिस्टम को कुछ ऐसे करप्ट किया है, जिनसे वहां काम करने वाले बहुत से अच्छे प्रहरी को लगता है कि वो समाज को सुपरनैचुरल के प्रकोप से बचा रहे है। जबकि सच्चाई ये है कि वो अपेक्स सुपरनैचुरल उनको झांसा देकर अपना निजी मकसद साधने मे लगा है।
रूही:- ओह तो ये बात है। लेकिन बॉस कुछ तो मिसमैच है। आप कुछ और समीक्षा छिपा रहे हो ना... मुझे रोचक तथ्य किताब की बात खटक रही है..
आर्यमणि एक बार फिर मुस्कुराते... "मेरे दादा जी कहते थे कि एक पुस्तक की सच्चाई इस बात पर निर्भर नहीं करती की उसे कितने वर्ष पूर्व लिखा गया है, क्योंकि लिखने वाला कोई ना कोई इंसान ही होता है। आप का बौद्धिक विचार, कल्पना और उस समय के घटनाक्रम की सारी स्थिति को पूर्ण अवलोकन के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।"
"सभी आकलन के बाद आपका बौद्धिक विकास एक थेओरी को जन्म देता है और वो थियोरी यदि पूर्ण रूप से उस किताब से मैच कर जाये तो वो किताब आपके लिए तथ्य पूर्ण है। और हां कभी भी उस दौर के मौखिक कथा को नजरंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि बहुत सी अंदरुनी बाते एक बाप अपने बेटे को बताता है और बेटा अपने बेटे को लेकिन वो सभी गुप्त बातें उस पुस्तक में नहीं मिलती..."
रूही:- बॉस मैं इंजिनियरिंग की स्टूडेंट थी, फिलॉस्फी की नहीं। और ना ही मेरा मूड है सोने का। सीधा वो रोचक तथ्य के बारे में बताओ।
आर्यमणि:- "इसलिए मैं किसी से बात नहीं करना चाहता मूर्खों। रोचक तथ्य मेरे हिसाब से एक भरमाने वाली किताब थी। श्रेयुत महाराज एक बड़ा नाम होगा उस दौड़ का, इसलिए उस नाम का या तो इस्तमाल हुआ है या फिर उसकी पूरी पहचान ही चुराकर किताब में अपने हिसाब का प्रहरी समाज लॉन्च किया गया था। जहां मदद मांगने आये हर राजा से कहा गया था कि प्रहरी को उसके शहर का बड़ा व्यावसायिक बनाया जाय, ताकि इनके पास धन की कोई कमी ना रहे।"
"जहां तक मुझे लगता है उस रोचक तथ्य मे इस्तमाल होने वाला नाम ही केवल सच था और कुछ भी नहीं। सरदार खान 400 वर्ष पूर्व का था। वो जिस आचार्य के पास गया वो पहले से सिद्धि वाला था। यानी वो प्रहरी का कोई सिद्ध पुरुष सेवक था या फिर अनंत कीर्ति किताब के मालिक का वंसज। वंसज इसलिए कहा क्योंकि अनंत कीर्ति की पुस्तक 1000 सालों से भी पुरानी है और उसका पहला संरक्षक बैधायन भारद्वाज भी उसी दौड़ का होगा।"
"जब कोई रक्षा संस्था बनता है तो वहां क्षत्रिय को रक्षक चुना जाता है। ये प्रहरी मे केवल विशुद्ध ब्राहमण का कॉन्सेप्ट कहां से आ गया। ये सारे लोचे लापाचे उस रोचक तथ्य के ही फैलाए हुये है। वरना भारतीय इतिहास गवाह है कि ज्ञान किसके जिम्मे था और रक्षा करना किसके जिम्मे। इसलिए शुरू से मुझे पता था कि रोचक तथ्य एक भरमाने की किताब थी। बस संन्यासी शिवम से मिलने से पहले मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ये किताब किस उद्देश्य से लिखी गयी है। वैसे एक बात बताओ की इतने सारे सवाल रोचक तथ्य के किताब से ही क्यों? जबकि सतपुरा में ही मैने तुम्हे बताया था कि रोचक तथ्य की पुस्तक में सच झूठ का मिश्रण था।"
रूही:– सत्य... बिलकुल सत्य, लेकिन आपके हर सत्य के बीच एक झूठ शुरू से उजागर हो रहा है? बिलकुल उस रोचक तथ्य के पुस्तक की तरह। कहीं तुम्हे झूठ बोलने का ज्ञान रोचक तथ्य के किताब से तो नहीं मिला।
आर्यमणि:– कौन सा झूठ?
रूही:– "बार–बार इस बात पर जोर देना की तुम केवल 2 छोटे सवाल लेकर नागपुर पहुंचे। मुझे एक बात तुम समझा दो बॉस, जिस किताब रोचक तथ्य पर यकीन ही नहीं था, फिर उसके अंदर की कही हर बात इतने डिटेल में कैसे पता? क्या मात्र 2 जिज्ञासा ही थी, फिर वो रीछ स्त्री का जहां अनुष्ठान हो रहा था वहां कैसे पहुंचे?"
"जब मात्र जिज्ञासा वश पहुंचे, फिर तुम हर बार प्रहरी से एक कदम आगे कैसे रहते थे? तुम तो प्योर अल्फा हो न फिर तुम्हे कैसे पता था कि प्रहरी तुम्हे वेयरवॉल्फ ही समझेंगे, कोई जादूगर अथवा सिद्ध पुरुष नही? तुम्हे पता था कि तुम क्या करने वाले हो और उसका नतीजा क्या होगा इसलिए सेक्स के वक्त भी तुम्हे पूर्ण नियंत्रण चाहिए था ताकि थिया के जैसे न मामला फंस जाये?
अनंत कीर्ति के किताब के बारे में भी तुम्हे पहले से पता थी कि कहां रखी है, वरना सीधा सुकेश के घर में घुसकर चोरी करने की न सोचते। बल्कि पहले पता लगाते की अनंत कीर्ति की किताब रखी कहां है? तुम्हे नागपुर में किसी के बारे में कुछ भी पता करने की जरूरत नहीं थी, तुम सब पहले से पता लगाकर आये थे। बॉस मात्र २ छोटे से जिज्ञासा के लिये इतना होमवर्क कैसे कर गये?"
"स्वामी का ऊस रात तुम्हारे पास पहुंचाना और झोली में सुकेश के घर का सारा माल डाल देना महज इत्तफाक नहीं हो सकता। आर्म्स एंड एम्यूनेशन का प्रोजेक्ट हवा में नही आया, उसकी पूरी प्लानिंग यूरोप से करके आये थे। किसी के दिमाग की पूरी उपज और उसका प्रोजेक्ट चुराया तुमने।"
"जादूगर का दंश जो सुकेश के घर से गायब हुआ था, वो मुझे कहीं दिख नही रहा, बड़ी सफाई से तुमने उसे कहीं गायब कर दिया। और न ही अपने घर से गायब होने और लौटकर वापस के आने के बीच का लगभग 18 महीना मिल रहा है? क्योंकि जर्मनी पहुंचने से लेकर बॉब के पास से विदा लेने में तुम्हारे 18 महीने लग गये होंगे, जबकि तुम घर से 36 महीने के लिये गायब हुये थे।"
"7–8 साल की उम्र में जो बच्चे ढंग से सुसु – पोट्टी टॉयलेट में नही करने जा सकते, उस उम्र में तुम्हे सच्चा वाला लव हो गया था। अरे लगाव कह लेते तो भी समझ में आता, सीधा सच्चा वाला लव वो भी जंगल में पेड़ के नीचे बैठ कर गोद में सर रखा करते थे। तुम्हे नही लगता की तुम्हारी ये कहानी बहुत ही बचकाना थी, जिसे हजम करना मुश्किल हो सकता है?"
"तुम्हारा पासपोर्ट यूएसए ट्रैवल कर रहा था और तुम वुल्फ हाउस में थे। उस दौड़ में ताजा तरीन मैत्री का केस हुआ था, तब भी तुम किसी को वुल्फ हाउस में नही मिले? एक पिता जो बेटे के लिये तड़प रहा था। भूमि देसाई जो इतनी बड़ी शिकारी थी, और जिसके इतने कनेक्शन, वो सब तुम्हे ढूंढ नही पायी? जबकि मैं होती तो वुल्फ हाउस के पूरे इलाके को ही पहले छान मरती। ये इतनी सी बात मुझे समझ में आ गयी लेकिन तुम्हे ढूंढने वालों को समझ में नहीं आयी? क्या यह जवाब बचकाना नही था कि तुम्हारे घर के लोग तुम्हे ढूंढना नही चाहते थे? किसके घर का 16–17 साल का लड़का किसी लड़की के वियोग में भाग जाये और उसके घर के लोग ढूंढना नही चाहते हो?
"वापस लौटकर सीधा गंगटोक गये और पारीयान की भ्रमित अंगूठी और पुनर्स्थापित पत्थर उठा लाये। तुम्हारा इसपर जवाब था कि जिस दौड़ मे गायब हुय तब तुम्हे पता चला की बहुत से लोग इन समान के पीछे है, लेकिन आज जब तुम कहानी सुना रहे थे तब तो एक आदमी भी इन समान के पीछे नही दिखा।"
"हम दोनो को पता था कि वो डॉक्टर और उसकी पत्नी हमसे झूठ बोल रही है, फिर भी हम दोनो यहां आये। मुझे पक्के से यकीन है कि तुम पहले से ही यहां आने का मन बना चुके थे। तुम्हे पता था कि तुम यहां क्या तलाश करने आ रहे हो बॉस। नाना मैं ओशुन कि बात नही कर रही। ओशुन की जगह यहां कोई भी लड़की लेटी हो सकती थी। लेकिन वो लड़की जिस हालत में लेटी है वो हालात आपके लिये नया नही है। ये किसी प्रकार का अनुष्ठान ही है ना, जिसका ताल्लुक कहीं न कहीं नागपुर से ही है?
"क्या अदाकारी थी। बॉब को फेहरीन के कातिलों के बारे में नही बताना चाहते थे, लेकिन बॉब जो फेहरीन का भक्त था, उसे ये बात जानकर बहुत ज्यादा आश्चर्य नही हुआ। ऐसा लगा जैसे बस खाना पूर्ति हो रही है। बॉस एक बात सच कहूं, मुझे अब आप पर यकीन ही नहीं। तुम्हारा नागपुर आना और बाद में नागपुर से भागना मुझे सब सुनियोजित योजना लगती है लेकिन तुम थोड़े ना कुछ बताओगे? बस गोल–गोल घुमाते रहो। बॉब अब तुम अपने काम में लग सकते हो।"
रूही अपनी बात समाप्त कर वहां से उठ गयी। आर्यमणि, उसका हाथ थामकर….. "ठहरो रूही"...
रूही:– क्या हुआ, फिर कोई नई कहानी दिमाग में है क्या?
आर्यमणि:– इतना धैर्य क्यों खो रही हो। तुम्हारे इतने लंबे चौड़े सवालों की सूची का आधार केवल एक ही है, मैं नागपुर किस उद्देश्य से पहुंचा था? इसी सवाल के जवाब में मैं फिसला और तुम्हारे इतने सारे सवाल खड़े हो गये। ठीक है तो ध्यान से सुनो मैं नागपुर क्यों पहुंचा था.…
मुझे पता लगाना था कि सात्विक आश्रम के तत्काल गुरु निशी ने मुझे तीन बिंदु क्यों दिखाए.. अनंत कीर्ति की किताब, रीछ स्त्री का नागपुर में होना और पलक सात्विक आश्रम में क्या कर रही थी? इसके अलावा मेरी अपनी समीक्षा थी कि एक महान अल्फा हिलर फेहरीन को नागपुर लाने वाला प्रहरी कैसे एक अच्छा संस्था हो सकती है। गंदे और घटिया लोगों की संस्था है ये प्रहरी जिसका मुखौटा मुझे हटाना था। बस यही सब सवाल लेकर मैं नागपुर पहुंचा था।
रूही:– वाह बॉस वाह !!! अब अचानक से कहानी में सात्विक आश्रम भी आ गया। तो फिर उस दिन क्या सब नाटक नाटक खेल रहे थे जब अपस्यु से आपकी मुलाकात हुई थी?
आर्यमणि:– इसलिए तो नागपुर आने की सच्ची कहानी किसी को नही बता सकता था। यह अपने आप में एक बेहद उलझी कहानी थी जिसके तार अतीत से जुड़े थे। मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी से जुड़े। मैं बहुत से सवाल लेकर नागपुर पहुंचा था। अब किस सवाल को मुख्य बता दूं और किस सवाल को साधारण मुझे नही पता, हां लेकिन उन सबका केंद्र एक ही था प्रहरी। और जब केंद्र प्रहरी था फिर मेरे लिये सब बराबर थे, फिर चाहे प्रहरी में भूमि दीदी ही क्यों न हो।
रूही:– बॉस तुम फिर गोल–गोल घुमाने लगे। नागपुर क्यों आये क्या ये बताना इतना मुश्किल है या तुम बताना ही नही चाहते। बताओ नई–नई बात पता चल रही है। आश्रम का एक गुरु ने तुम्हे तीन बिंदु दिखाए थे...
आर्यमणि:– अब जब सच कह रहा हूं तो भी यकीन नही। तुम ही बताओ की कैसे तुम्हे एक्सप्लेन करूं...
रूही:– पहले अपने भागने को लेकर ही कहानी बता दो। क्या यूरोप में तुम्हारे परिवार ने तुम्हे नही ढूंढा या बात कुछ और थी?
आर्यमणि:– "कभी–कभी न जानना या सच को दूर रखना, शायद जान बचाने का एक मात्र तरीका बचता है। तुम जो सुनना चाहती हो वो मैं स्वीकार करता हूं। मैंने अपनो के दिमाग के साथ छेड़–छाड़ किया था। हां भूमि दीदी मुझे यूरोप में मिली थी, लेकिन उनके यादों से भी खेला, क्योंकि मैं अपने परिवार को ठीक वैसा ही दिखाना चाहता था जैसा तुम लोग के दिमाग में है। बेटा भाग गया और कोई चिंता ही नही। जबकि सच्चाई तो यह थी कि मैं लगातार अपने मां–पिताजी से बातें करता था लेकिन अपने पीछे आने से मना करता रहा।
बात शुरू ही हुई थी कि ओजल इवान और अलबेली भी वहां पहुंच चुके थे। कुछ पल की खामोशी के बाद आर्यमणि ने फिर बोलना शुरू किया...
"मैत्री और मेरे बीच का लगाव कहो या प्रेम, सब सच था। उसमे कोई दो राय नहीं थी। यदि हम दोनो के बीच कोई अटूट बंधन नहीं होता तो फिर वो मुझसे मिलने भारत आती ही नहीं। बस मैंने अपनी कहानी को फैंटेसी बनाने के लिये थोड़ा बढ़ा कर कह दिया था। जिस वक्त मैं गायब हुआ था, मैं कहां हूं या क्या कर रहा हूं, इस बात से प्रहरी को क्या फर्क पड़ता था। हां मेरे मां–पिताजी और भूमि दीदी को पता था कि मैं कहां हूं।"
"पहली बार जब मैं मैक्स के घर पहुंचा था, तभी मेरी बात सभी लोगों से हुई थी, केवल चित्रा और निशांत को छोड़कर। मां–पिताजी नही चाहते थे कि राकेश नाईक को मेरी कोई भी खबर मिले। इसके बाद जब मैं भारत पहुंचा तब मैने उनकी याद को अपने इच्छा अनुसार बदल दिया। बदलने के पीछे एक साधारण सा कारण यह था कि वो जीतना जानते है, उतना ही सच होगा। और मैं चाहता था कि प्रहरी यह न जाने की जब मैं गायब हुआ था, तब मेरे मां–पिताजी या भूमि दीदी किसी ने भी मुझसे संपर्क किया था।"
"हां लेकिन इस बार जब नागपुर छोड़ने की योजना बनी और जो सच्चाई मेरे घर के लोग या मेरे दोस्त जानते थे, उसे मैंने नही बदला। क्योंकि मुझे आश्रम और संन्यासी शिवम पर यकीन था। उनके लोग मेरे सभी प्रियजनों की रक्षा कर रहे, इसलिए यादों के साथ छेड़–छाड़ करने की जरूरत नहीं थी। ये एक पक्ष की सच्चाई जहां मैंने अपनो के यादों के साथ छेड़–छाड़ किया था। तुम लोगों के दिमाग में कोई सवाल।"..
अलबेली:– हां मेरा एक सवाल है। क्या आपने अपने दिमाग से कभी छेड़–छाड़ करने की कोशिश की है? यदि आप अपने दिमाग का फ्यूज खुद उड़ा लेंगे तो क्या वो अपने आप ठीक हो जायेगा?
ओजल:– बॉस पहले क्ला घुसाकर इस अलबेली का ही फ्यूज उड़ाओ।
इवान:– नाना बॉस अभी वो बच्ची है, कैजुअली पूछी थी।
इस से पहले की कोई और कुछ कहता रूही इतना तेज दहाड़ लगाई की वहां मौजूद तीनो टीन वुल्फ ही नहीं बल्कि उस जगह मौजूद सभी वुल्फ सहमे से अपनी जगह पर दुबक गये। अलबेली, ओजल और इवान तो इतने सहम गये की तीनो आर्यमणि में जाकर दुबक गये। आर्यमणि तीनो के सर पर हाथ फेरते... "कोई सवाल रूही"..
रूही:– अभी तो दिमाग में नही आ रहा लेकिन जब आयेगा तब पूछ लूंगी। चलो ये समझ में आ गया की तुम नही चाहते थे कि तुम्हारे मम्मी–पापा और भूमि दीदी किसी से झूठ कहे और कोई उनका झूठ पकड़ ले, इसलिए उनकी यादों से छेड़–छाड़ कर दिये। तो इसका मतलब ये मान लूं की तुम पूरे योजना के साथ, सभी प्रकार के रिस्क कैलकुलेट करने के बाद नागपुर पहुंचे और नागपुर कब तक छोड़ देना है, ये भी तुम पहले से योजना बनाकर आये थे।
आर्यमणि:– मैं नागपुर छोड़ने के इरादे से तो नहीं पहुंचा था लेकिन कुछ वक्त बिताने के बाद मैं समझ चुका था कि मुझे नागपुर छोड़ना होगा। हां मुझे कब नागपुर छोड़ना है यह मुझे पता था। इस बार मेरे घर के लोग मेरी तलाश में नही आये इसलिए मैंने ही उनके दिमाग ने यह डाला था कि मुझे कहीं बाहर भेज दे, नागपुर में रहा तो मारा जाऊंगा।
रूही:– हम्मम… अब लगे हाथ नागपुर आने का बचा हुआ सच भी बता दो...
आर्यमणि:– कहां से सुनना पसंद करोगी... नागपुर आने के पीछे की मनसा और उसकी पूरी प्लानिंग से, या फिर तुम्हारे सवालों के जवाब देते जाऊं, जिसने सब कवर हो जायेगा।
रूही:– नही मुझे शुरू से सुनना है। अब जो तुम कहोगे उसे मैं याद रखना चाहूंगी...
आर्यमणि…..
"आश्रम, एलियन और मेरी कहानी उस दिन शुरू हुई थी जिस दिन मैंने न्यूरो सर्जन का पूरा ज्ञान अपने अंदर समाहित किया था। मुझे ज्ञान हुआ की भूली यादें दिमाग के किस हिस्से में रहती है। ओशुन मेरे अरमान के साथ खेल चुकी थी और मैत्री जो केवल मेरे लिये मर गयी उसकी तस्वीर मेरे दिमाग से ओझल हो रही थी। मैत्री की बहुत पुरानी यादें थी और मैं देखना चाहता था कि हम पहली बार कैसे मिले थे?"
"मैं यादों की अतीत में खोता चला गया और वहां मेरी याद तब की थी, जब मैं अपनी मां के गर्भ में सातवे महीने का था। मेरी मां की आंखें मेरी आंखें थी। उनकी खुशी मेरी खुशी थी, उनका गम मेरा गम था और उनकी शिक्षा मेरी शिक्षा थी। मेरे दादा जी घंटों मेरी मां के पास बैठकर उन्हे मंत्र सुनाया करते थे। आज भी वो सारे मंत्र जैसे मेरे कान में गूंज रहे है। मेरे जन्म के करीब 45 दिन पूर्व वो लोग यात्रा पर निकले थे। मेरी मां, मेरे पापा, दादाजी, उनके मित्र गुरु निशी और गुरु निशी कुछ अनुयाई। वो सभी हिमालय के किसी विशेष कंदराओं में घुसे थे, जिसके अंदर एक पूरा गांव था। अलौकिक गांव था, जहां कोई रहता नही था।"
"गुरु निशी और मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी ने मिलकर वहां गुरु, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराधना करते हुये, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार का कोई अनुष्ठान कर रहे थे। 45 दिन बाद मेरा जन्म था और मेरी मां उस अनुष्ठान की एक साधिका थी। आज से कई हजार वर्ष पूर्व दिव्य नक्षत्र में जन्म ली एक महान साधिका ने इस गांव का कायाकल्प किया था। उसके बाद यह गांव कई दिव्य आत्मा और ज्ञानियों के जन्म का साक्ष्य बना था। न जाने कितने सदियों बाद यहां किसी का जन्म होने वाला था, वो भी सभी नौ ग्रह के अति–शुभ विलोम योग में। मेरे दादा और गुरु निशी दोनो बेहद ही खुश थे, और चूंकि नक्षत्र के हिसाब से सभी नौ ग्रहों की स्थिति विलोम थी इसलिए इन्होंने भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार को ही साधना का केंद्र बनाया था।"
"लागातार 45 दिन तक हवन होते रहे। एक पल के लिये भी मंत्र जाप बंद नही हुआ। भगवान नरसिंह की पूजा चलती रही। ठीक 45 दिन बाद मेरा जन्म हुआ। जन्म के बाद की यादें काफी ओझल थी। जन्म के बाद जब मैं अपनी आंख से दुनिया देखा, तब कुछ दिनों तक कुछ भी नही दिखा था। जैसे–जैसे दिन बीते तब मेरे दृष्टि साफ होती गयी। 7 वर्ष की आयु तक मुझे उसी गांव में रखा गया था। मेरी मां, दादाजी, कुछ ऋषि, संत और महात्मा वहां रहते थे। सबकी अपनी कुटिया थी और मुझे उन सब के बीच हर अनुष्ठान, सिद्धि और आयोजन में रखा जाता था।"
"7 वर्ष की आयु के बाद सब उस गांव से यह कहते बाहर निकल रहे थे कि पूर्ण योजन हो चुका है। बालक की शिक्षा–दीक्षा पूर्ण हो चुकी है, अब केवल इसे सही मार्गदर्शन की जरूरत होगी। दादा जी और मां सबसे हाथ जोड़कर विदा लिये और हम गंगटोक चले आये। मेरी सबसे पहली मुलाकात भूमि दीदी से हुई थी। वह मेरी मां से झगड़ा कर रही थी। उन्हे इस बात का मलाल था कि वो मां के डिलीवरी के वक्त गंगटोक अकेली पहुंची, लेकिन यहां तो कोई था ही नही। उन्हे मुझे देखना था लेकिन उसी समकालीन 2 और मेरे करीबी ने जन्म लिया था, भूमि दीदी उन्हे देखने चली गयी, निशांत और चित्रा।"
"तब राकेश नाईक की ताजा पोस्टिंग नॉर्थ सिक्किम में हुई थी। मां, भूमि दीदी को अकेले में ले गयी और मेरे जन्म को लेकर कुछ समझाया हो, उसके बाद से वो यही रट्टा मरती रही की जन्म के बाद मैने सबसे पहले उन्ही की उंगली पकड़ी थी। उस वक्त मेरे मासी के घर से केवल भूमि दीदी ही आना–जाना करती थी। वहीं मैत्री से मेरी पहली मुलाकात 4 दिन बाद मेरे स्कूल के पहले दिन हुई थी। मैं बीच से ज्वाइन किया था और एकमात्र मैत्री की जगह ऐसी थी, जो खाली थी। बाकी सभी बेंच पर 3–4 बच्चे बैठे थे। सुहोत्र ने उस क्लास के सभी बच्चों को डरा रखा था, इसलिए मैत्री के साथ कोई बैठता नही था। आह कितनी प्यारी थी वो। उस दिन जो मैं उसके साथ बैठा फिर कभी हमने एक दूसरे का साथ ही नहीं छोड़ा।"
"ये वाकया मैं भूल चुका था। उसके बाद मेरी यादों में बस मैत्री ही थी। कुछ यादें अपने परिवार की और एक परिवर्तन जो देखने मिला, वो था राकेश नाईक का अचानक हमारे पड़ोस में आ जाना। चूंकि मेरी मां और निलाजना आंटी काफी ज्यादा परिचित और एक दूसरे के दोस्त भी थे, इसलिए मेरा उनके घर और उनका मेरे घर आना जाना लगा रहता था। तब मैं, चित्रा और निशांत बस दोस्त थे और मैत्री मेरी पूरी दुनिया। आगे बढ़ने से पहले मैं उस घटना को प्रकाशित कर दूं जिस वजह से मेरे परिवार को गंगटोक आना पड़ा था।"
"गंगटोक मे लोपचे परिवार का अपना इतिहास रहा था जिसके विख्यात होने का कारण पारीयान लोपचे था। जिसे लोपचे का भटकता मुसाफिर भी कहते थे। इस परिवार का संन्यासियों और सिद्ध पुरुषों के करीबी होने के कारण मेरे दादाजी और लोपचे परिवार के बीच गहरी मित्रता थी। मैत्री के दादा जी मिकु लोपचे और उसकी अर्धांगनी जावरी लोपचे, मेरे दादा जी काफी करीबी लोग थे। उस दौड़ में वर्धराज कुलकर्णी और मीकु लोपचे पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में उसी गांव को पुर्नस्थापित करने में जुटे हुये थे, जहां मेरा जन्म हुआ था। उसी सिलसिले में गंगटोक के २ शक्तिशाली महान अल्फा वुल्फ मेरे दादा वर्धराज से मिलने नागपुर पहुंचे थे। प्रहरी ने उन्हें भटका हुआ वुल्फ घोषित कर दिया जो अपने क्षेत्र से हजारों किलोमीटर दूर विकृत मानसिकता से पहुंचा था। लोपचे दंपत्ति लगभग मर ही गये होते लेकिन बीच में दादाजी आ गया। बीच में भी किसके आये तो नित्या के।"
"मेरे दादा जी और नित्या के बीच द्वंद छिड़ा था। उस द्वंद में क्या हुआ और कैसे मेरे दादा जी ने नित्या को परस्त किया, उसकी मुझे जानकारी नही। लेकिन नित्या एक अलग प्रकार की सुपरनैचुरल थी, जिसे मेरे दादा जी पकड़कर प्रहरी मुख्यालय जांच के लिये लाये थे। उसके एक, दो दिन बाद नित्या भाग गयी और उसे वेयरवॉल्फ घोषित कर दिया गया। नित्या को भगाने का इल्ज़ाम भी मेरे दादा जी पर ही आया, जिसे मेरे दादा जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके उपरांत पूरे कुलकर्णी परिवार को महाराष्ट्र से बेज्जती करके बाहर निकाल दिया गया। किंतु वर्धराज कुलकर्णी को इसका कोई गम नही था। क्योंकि पूर्वी हिमालय में गांव बसाने का काम अब वो बिना किसी पाबंदी के कर सकते थे, इसलिए मेरे दादा जी आकर पूर्वी हिमालय के क्षेत्र गंगटोक मे अपना निवास बनाया जहां के जंगलों में लोपचे का पैक बसता था।"
"मेरा और मैत्री का साथ अभूतपूर्व था, किंतु लोपचे और हमारे परिवार के बीच उतनी ही गहरी दुश्मनी सी हो गयी थी। मेरे जन्म के दौरान मेरे दादा जी अलौकिक गांव में थे। इसका बात फायदा उठाकर प्रहरी ने मीकू और जावेरी लोपचे का शिकर कर लिया और कारण वर्धराज कुलकर्णी बताया गया। दुश्मनी का बीज बोया जा चुका था, और इसी दुश्मनी की वजह से मैं हमेशा लोपचे की आंखों में चढ़ा रहता था। लगभग डेढ़ साल बाद की बात होगी। मेरा साढ़े 8 वर्ष का हो चुका था, उसी दौरान मेरे और सुहोत्र लोपचे का लफरा हो गया। उस छोटी उम्र में मैने एक बीटा को मारकर उसकी टांगे तोड़ डाली। इस कारनामे के बाद मैं उन एलियन प्रहरी की नजरों में आ चुका था। तेजस और भूमि दीदी दोनो वहीं थे जब मैने सुहोत्र की टांग तोड़ी थी।"
"तेजस ने जब यह नजारा अपनी आंखों से देखा तब उसे शक सा हो गया की वर्धरज कुलकर्णी जरूर हिमालय में बैठकर कुछ कर रहा है। सिद्ध पुरुष तो मेरे दादा जी थे ही। यह बात नित्या के पकड़ में आते ही सिद्ध हो चुकी थी। ऊपर से राकेश का सर्विलेंस जो पिछले 7 साल से मेरे दादा जी को कहीं गायब बता रहा था। राकेश शायद चाह कर भी पता न लगा पाया होगा की दादाजी कहां थे, वरना वो एलियन प्रहरी उस गांव पर हमला कर चुके होते। मेरे दादा जी को जिंदा छोड़ने के पीछे का कारण भी बिलकुल सीधा था, वर्धराज का परिवार आंखों के सामने है, जायेगा कहां? उसके साथ और कितने सिद्ध पुरुष है या वह सिर्फ अकेला है, इस बात का पता लगाने में सब जुटे थे। मेरे दादा जी का 7 साल तक गायब रहना एलियन प्रहरी के शक को यकीन में बदल चुका था कि मेरे दादा जी के साथ और भी कई सिद्ध पुरुष है।"
"वहीं दूसरी ओर गुरु निशी पूर्वी हिमालय से कोषों दूर, दक्षिणी हिमालय के पास बसे नैनीताल में अपना गुरुकुल चला रहे थे। उन्होंने भी भरमाने के लिये अपने 4 बैच के शिष्यों को किसी भी प्रकार की सिद्धि का ज्ञान नही दिया था। गुरु निशी को भी पता था कि कोई तो है जो आश्रम को पनपने नही देता और उसकी नजर हर आश्रम पर बनी रहती है। इसलिए पहले 4 बैच को केवल आध्यात्म और वाचक बनने का ही ज्ञान दिये थे। पांचवे बैच से गुरु निशी ने कुछ शिष्यों का प्रशिक्षण शुरू किया था। लेकिन सब के सब इतने कच्चे थे कि गुरु निशी अपने हिसाब से उन्हे ढाल न सके। लेकिन कोशिश जारी रही और उनका पहला शिष्य संन्यासी शिवम गुरु निशी की कोशिशों का ही नतीजा था। संन्यासी शिवम अपनी मेहनत से कई सैकड़ों वर्ष बाद पोर्टल खोलने में कामयाब रहे। और गुरु निशी का आखरी शिष्य अपस्यु था, जो उनके सभी शिष्यों में श्रेष्ठ और छोटी सी उम्र में अपनी मेहनत से सबको प्रभावित करने वाला।"
"गुरु निशी कोषों दूर दक्षिणी हिमालय के क्षेत्र में थे। मेरे दादा जी पूर्वी हिमालय के क्षेत्र में। दोनो में किसी तरह लिंक ढूंढना लगभग नामुमकिन था। परंतु वह तांत्रिक आध्यात था, जिसने गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी के बीच का राज खोल दिया था, जिसकी सूत्रधार वह पुस्तक रोचक तथ्य बनी थी। आध्यत को तनिक भी उम्मीद नहीं थी कि आश्रम का कोई गुरु सिद्धि प्राप्त भी हो सकता है। प्रहरी के तरह आध्यत को भी यही लगता था कि गुरु निशी आध्यात्म और वेद–पुराण के पाठ करने वाले कोई गुरु है।"
"गुरु निशी के हाथ वह रोचक तथ्य की पुस्तक लगी थी और तब उन्हें अनंत कीर्ति पुस्तक की वर्तमान स्थान तथा एक विकृत रीछ स्त्री के विषय में भी ज्ञात हुआ था। उन्होंने मात्र 2 दिन में ही विदर्भ क्षेत्र का पूर्ण भ्रमण करने के बाद रीछ स्त्री के शरीर को ढूंढ निकाला था। हालांकि नागपुर में वह केवल एक खोज के लिये नही पहुंचे थे, बल्कि अनंत कीर्ति की किताब को ढूंढने भी आये थे। यह किताब भी सात्विक आश्रम की ही थी जो आचार्य श्रीयूत के बाद कहां गयी किसी को भी नही पता था।"
"आध्यत को जैसे ही यह ज्ञात हुआ की सात्विक आश्रम के गुरु ने रीछ स्त्री को ढूंढ निकाला, उसके होश उड़ गये थे। वह आध्यत ही था जिसने फिर एलियन प्रहरी तक यह संदेश पहुंचाया था कि गुरु निशी वाकई एक सिद्धि प्राप्त सात्विक आश्रम के गुरु है, जो अनंत कीर्ति की पुस्तक के पीछे है और वर्धराज कुलकर्णी भी इसी गुरु निशी का अनुयाई है। बात खुल चुकी थी और अब किसी को भी जिंदा रखने का कोई मतलब नहीं था। हां लेकिन गुरु निशी और मेरे दादा जी दोनो इस बात से बेखबर थे कि आश्रम के दुश्मनों तक उनकी खबर पहुंच चुकी थी।"
"एलियन प्रहरी मेरे दादा जी के नजरों में एक अलग प्रकार के सुपरनैचुरल थे, जो अपनी असलियत छिपा कर रहते थे। उन्हे जरा भी अंदाजा नहीं था कि ये वही लोग थे जो सदियों से सिद्ध पुरुष का शिकार करते आये है। नित्या को भी सतपुरा के जंगल में रहने की सजा इसी वजह से मिली थी। उसके कारण एलियन का भेद लगभग खुलने ही वाला था।"
"एक ही वक्त में थोड़ा आगे पीछे चारो ओर से इतनी कहानियां चल रही थी। जब मैंने सुहोत्र लोपचे का पाऊं तोड़ा तब वह हील नही हुआ। एक साढ़े 8 साल के लड़के ने 12–13 साल के टीनएजर वुल्फ को मारकर घायल कर दिया, फिर ये एलियन प्रहरी के नजर में आना ही था। उन्हे शक हो गया था कि 7 सालों में मेरे दादा ने मुझे कोई सुद्ध ज्ञान दिया गया है। शुद्ध ज्ञान एक प्रकार का विशेष ज्ञान होता है, जिसे गर्भ में पल रहे शिशु को दिया जाता है। मैं एलियन के शक के घेरे में आ गया और राकेश नाईक इन सब विषय की जानकारी देने में विफल रहा था, इसलिए जाल बुना गया। प्रहरियों का जाल।"
"उसी रात लोपचे कॉटेज को आग लगा दिया गया और लोपचे से सुरक्षा के नाम पर तेजस हमारे साथ करीब 2 महीने रुक था। जिस दिन तेजस गंगटोक छोड़कर गया, ऊसके तीसरे दिन मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु हो गयी। चूंकि मुझे शुद्ध ज्ञान दिया गया था इसलिए जब गुरु निशी मरे तब जाते–जाते मेरे लिये कुछ छोड़ गये थे, जो मुझे उस वक्त मिला जब मैं खुद के दिमाग में झांक रहा था। अतीत की गड़ी यादों ने मुझे झकझोर दिया। शायद दादा जी की तरह मेरे लिये भी एलियन प्रहरी कोई अलग प्रकार सुपरनेचुरल ही रहता। किंतु गुरु निशी अपने मृत्यु के पूर्व के महीने दिन की स्मृति मुझे भेज चुके थे, और उन स्मृति में मुझे एक चेहरा दिख गया, जो काफी चौकाने वाला था। वहां गुरु निशी के आश्रम में पलक थी।"
"न्यूरो सर्जन के दिमाग ने जैसे मेरे दिमाग के परदे खोल दिये थे। बॉब से विदा लेने के बाद मैं सीधा भारत ही आया था। लेकिन जिन डेढ़ साल का हिसाब तुम्हे नही मिला, उस अवधि में मैं अपने स्किल को निखारता रहा और अपने अंदर टॉक्सिक को भरता रहा। मैने बचे डेढ़ साल में तकरीबन रोजाना 150 से 200 पेड़ों को हील करता था। मेरे लिये पेड़ कम न पड़ जाये इसलिए मैं पूर्वी भारत के घने जंगलों में अपना अभ्यास करता रहा। मेरे पास कुछ घातक स्किल थे और मैं अपने उन सभी स्किल को पूरी ऊंचाई देने में लगा हुआ था। एक ड्रग देकर बॉब मेरा शेप शिफ्ट करवा चुका था, इसलिए खुद पर न जाने मैने कितने ड्रग के टेस्ट किये थे और उनसे पार पाना सीखा था।"
बीते वक्त की सबसे बड़ी सच्चाई तो यह भी थी कि नागपुर पहुंचने से पहले मेरे पास कोई भी डेटा नही था। मुझे नही पता था कि मेरे दादा जी की अकस्मात मृत्यु एक कत्ल थी। मुझे नही पता था कि गुरु निशी के कत्ल में प्रहरी का हाथ था। मुझे तांत्रिक आध्यत और उसके साजिसों के बारे में भी नही पता था। मुझे पता था तो बस मेरा पूरा परिवार किन कारणों से नागपुर छोड़ा। फेहरीन के पैक को खत्म करके ले जाने वाले कभी अच्छे समुदाय नही हो सकते। एक अज्ञात प्रकार का सुपरनैचुरल के नागपुर में होने की संभावना थी, इसलिए मैंने अपने स्किल को नई ऊंचाई दी थी। और जो मैं सही में पता लगाने आया था वह था गुरु निशी की स्मृति में पलक का दिखना, विकृत रीछ स्त्री का स्थान और दादा जी के साथ गुरु निशी का अनंत कीर्ति पुस्तक पर चर्चा करते हुये यह बताना की पुस्तक सुकेश के घर पर है।"
"मेरे लिये सबसे पहला टारगेट पलक ही थी। मैं उस से बस जानना चाह रहा था की आखिर वो गुरु निशी के आश्रम में कर क्या रही थी? मुझे कॉलेज के रैगिंग के दौरान यह पता करने का मौका भी मिला, जब पलक अकेले में मुझसे रैगिंग को लेकर बात करने पहुंची। मैने बॉब की ही ट्रिक को अपनाया और ड्रग को हवा में उड़ा दिया। लेकिन मेरे लिये यह घोर आश्चर्य का विषय हो गया, जब पलक पर उस ड्रग का असर ही नही हुआ। और भेद खुल न जाये इसलिए मैं बेहोश हो गया।"
"नागपुर मेरे लिये किसी उलझे पहली जैसा था, जहां मेरे पहला ट्रिक इतनी बुरी तरह से विफल रहा की मुझे सोचने पर मजबूर कर गया... "यहां चल क्या रहा है।" खैर चलते रैगिंग को मैने छेड़–छाड़ नही किया और उसे चलने दिया, क्योंकि मुझे दूसरा मौका चाहिए था। मैं पलक और अपने दोस्तों के आस पास रहना छोड़कर सहानुभूति बटोरने लगा। मेरे लिये आश्चर्य का सबब यह भी था कि पलक खुद मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही थी। खैर मेरे लिये इस सवाल का जवाब जरूरी नहीं था कि पलक नजदीकियां क्यों बढ़ा रही, क्योंकि आज न कल तो मैं पता लगा ही लेता। लेकिन जरूरी था यह पता लगाना की वह आश्रम में क्या कर रही थी? और मेरे पास पता लगाने का अपना ही तरीका था।"
"सुरक्षित तरीके से पलक के गले में मुझे क्ला घुसाने का मौका भी मिला। और जब मैने उसके गले में क्ला घुसाया फिर पता चला की मेरे दादा जी जिस सुपरनैचुरल नित्या को पकड़े थे, प्रहरी समुदाय में उन जैसों की भरमार थी। पलक के गर्दन में क्ला घुसाते ही ऐसा लगा जैसे मैं किसी करेंट सप्लाई के अंदर अपने क्ला को घुसा दिया, जो मेरे नाखून तक में करंट प्रवाह कर रहे थे। दरअसल वो करेंट प्रवाह हाई न्यूरो ट्रामिशन का नतीजा था, जो किसी विंडो फायर वॉल की तरह काम करते हुये पलक के दिमाग का एक भी डेटा नही लेने दे रहा था। जो तकनीकी और मेडिकल की भाषा नही जानते उनके लिये बस इतना ही की मैं पलक के दिमाग में नही झांक सकता था। मुझे पता चल चुका था कि पलक एक सुपरनैचुरल है, लेकिन उसके जैसे और कितने थे, ये पता लगाने में मुझे कोई देर न लगी।"
"ये इन एलियन का ब्रेन मोटर फंक्शन ही था जो इनके शरीर के गंध को मार रहा था। इनकी भावनाओ को पढ़ने से रोक रहा था। और एक बार जब इस बात खुलासा हुआ फिर तो मुझे एलियन को छांटने में कोई परेशानी ही नही हुई। रैगिंग के मामले से मुझे कोई फायदा नही मिला और मुझे पूरी बात का पता लगाने के लिये एलियन प्रहरी के बीच रहना अत्यंत आवश्यक हो चुका था, इसलिए बिना देर किये मैने पलक को प्रपोज कर दिया। मैं जानता था कि जिस हिसाब से पलक मुझसे नजदीकियां बढ़ा रही है वह भी मेरे प्रस्ताव को नही ठुकराती। मेरा तीर निशाने पर लग चुका था।"
"किंतु केवल पलक की नजदीकियों के वजह से मुझे सभी सवालों का जवाब नही मिलता इसलिए मैं बस मौके की तलाश में था। खैर, केवल नागपुर में एक ही काम तो नही था इसलिए मैंने सभी कामों पर अपना ध्यान लगाया। न सिर्फ अनंत कीर्ति की पुस्तक तक पहुंचना बल्कि रीछ स्त्री का भी पता लगाना। एक बात जो कोई नही जानता वो मैं बता दूं, मेरे क्ला ही काफी है जमीन में दफन किसी भी चीज का पता लगाने के लिये।"
"फिर रीछ स्त्री का जब मामला उठा तब इस एक मामले के कारण मैं प्रहरी में इतना अंदर घुसा की इन एलियन की करतूत छिपी नही रही। मैं न सिर्फ प्रहरी मुख्यालय पहुंच चुका था बल्कि सुकेश के सीक्रेट चेंबर में भी घुस चुका था। फिर मुझे पता लगाने के लिये न तो किसी कमरे का दरवाजा तोड़ना था और न ही प्रहरी मुख्यालय में चोरी से घुसने की जरूरत पड़ी। मुझे जगह का ज्ञान हो गया और वहां पर क्या सब रखा है वह मुझे जड़ों की रेशों से पता चल गया। हां सही सुना... मैं जो रेशे फैलता हूं वह जिस चीज को भी छूते है उन्हे मैं देख सकता हूं।"
"एक के बाद एक सभी राज पर से पर्दा उठता चला गया और रही सही कसर स्वामी के लूट ने कर दिया। तुमने सही थी रूही। स्वामी का मेरे पास आना कोई संयोग नहीं था बल्कि उसके दिमाग से मैने ही छेड़–छाड़ की थी। एक बार नही बल्कि कई बार। पहले मैंने ही स्वामी के दिमाग के अंदर यह ख्याल डाले की यदि अनंत कीर्ति किताब गायब तो सुकेश खत्म। वहीं मैने दूसरा ख्याल भी डाल दिया की अनंत कीर्ति की किताब के सबसे ज्यादा करीबी आर्यमणि ही है। मुझे लगा अनंत कीर्ति की किताब तो स्वामी को मिलेगी नही इसलिए स्वामी, सुकेश के सीक्रेट चेंबर की दूसरी रखी किताब जरूर चोरी करेगा। दूसरी किताबे चोरी करने के बाद स्वामी अनंत कीर्ति की किताब का पता लगाने मेरे पास जरूर पहुंचेगा और वहीं से मैं सुकेश के सीक्रेट चेंबर के सारे किताब ले उडूंगा।"
"सुकेश के सीक्रेट चेंबर में किताब का होना ही मुझे खटक रहा था क्योंकि बाहर एक बड़ा सा लाइब्रेरी होने के बावजूद उन किताबों को छिपाकर क्यों रखा था? मन में जिज्ञासा तो जाग ही चुकी थी और मुझे सभी किताब को इत्मीनान से पढ़ना था। लेकिन स्वामी ने तो जैसे कुबेर का खजाना ही लूट लिया था। प्रहरी के बारे में बहुत कुछ मैं पता कर चुका था, रही सही कसर तब मिट गई जब मैं इनकी क्लासिफिकेशन की किताब देख रहा था। मुझे तभी समझ में आ गया की ये लोग पृथ्वी के कोई सुपरनेचुरल नही बल्कि किसी दूसरे ग्रह के इंसान है।"
"लूट के 2 समान जादूगर का दंश और एक पतला अनोखा चेन को मैने कॉटेज के पीछे वाले जंगल में जमीन के अंदर दफन करके रखा है। उसपर हम साथ मिलकर अभ्यास करेंगे। अभी मैं बस उन दोनो वस्तुओं को पूर्ण रूप से समझने की कोशिश कर रहा हूं। पलक के दिमाग में जिस दिन क्ला घुसाया था उसी दिन मैने सोच लिया की मुझे क्या करना है? अभी ये एलियन सुपरनैचुरल मेरे लिये टेढ़ी खीर थे। मुझे जिस दुश्मन के बारे में पता ही नही उस से मैं लडूंगा कैसे? इसलिए मैं सोच चुका था कुछ बड़ा डंडा करके निकलूंगा ताकि ये लोग मेरे पीछे आने पर मजबूर हो जाये। वर्धराज के पोते को मारने का उतावलापन देखकर इनकी बुद्धि तो समझ में आ चुकी थी, अब बस इनकी शक्तियों का पता लगाना था।"
"मैं अपने कैलिफोर्निया पहुंचने तक का प्लान पहले से बना चुका था। मैने हर पॉइंट पर इतने जाल फैलाये थे की मुझे पता है कि इन एलियन की टीम मेरी जानकारी जुटाने कहां–कहां पहुंच रहे होंगे। मैने उनके चोरी के समान को भी एक जाल के तहत गायब किया था। बस थोड़ा इंतजार करो फिर हम वहां चलेंगे जहां ये हमारा पता लगाने पहुंचे होंगे। वहीं इन एलियन की छोटी–छोटी टुकड़ी से भिरकर उनके शक्तियों का पता लगाएंगे।"
"तो ये थी नागपुर की पूरी कहानी। अब मैं किसको क्या बताता की मैं नागपुर क्यों पहुंचा? ये मेरे लिये काफी उलझाने वाला सवाल था। क्योंकि गुरु निशी ने मुझे 3 हिंट दिये थे। पूरी बात बताने का मतलब होता की पहले अपने क्ला की शक्ति बताओ। उस शक्ति से मैने खुद के दिमाग में झांका और अतीत के पन्नो से गुरु निशी और वर्धराज कुलकर्णी को ढूंढ निकाला ये बताता। फिर मुझे गुरु निशी की तीन यादें बतानी होती जो मरने से पहले उन्होंने मेरे दिमाग तक पहुंचाया था। उन तीन यादों के तहत मैंने इंसानियत और आश्रम के बहुत पुराने दोषी एक एलियन प्रहरी को ढूंढ निकाला। नागपुर आने की सच्चाई मैं किसी को चाहकर भी एक्सप्लेन नही कर सकता था इसलिए बस टालने के इरादे से झूठ बोलता था, और कोई बड़ी वजह नही थी। उम्मीद है तुम्हे सब समझ में आ गया होगा।"
रूही:– उफ्फ क्या मकड़जाल में तुम खुद ही उलझे थे बॉस। खैर कहानी तो पूरी समझ में आ गयी बस घटना क्रमबद्ध नही था इसलिए थोड़ी उलझन है। तो बॉस तुम ये कहना चाह रहे हो की तुम वाकई कुछ सवालों के साथ आये थे, लेकिन वह सभी सवाल प्रहरी से जुड़े थे। नागपुर आने से पहले तुम्हारे नजरों में प्रहरी एक करप्ट संस्था थी, बस इतना ज्ञान था?
आर्यमणि:– नही एक खास प्रकार का सुपरनेचुरल भी मिलेगा नागपुर में, यह बात भी दिमाग में थी। सच्चाई पता लगने के बाद कड़ियां जुड़ती चली गयी। फिर अतीत से लेकर वर्तमान की हर कड़ी जैसे मेरे नजरों के सामने थी।
रूही:– मतलब वो मैत्री के दादा मिकू लोपचे और उसकी पत्नी का कत्ल जिसमे दोषी प्रहरी थे, वो भी तुम्हे नागपुर आने के बाद पता चला...
आर्यमणि:– हां बिलकुल सही...
रूही:– फिर पलक जो गुरु निशी के आश्रम में थी, क्या वो अपस्यु के बारे में जानती थी, या अपस्यु उसके बारे में?
आर्यमणि:– नही पलक छोटी थी, यानी जब अपस्यु आश्रम पहुंचा होगा तब पलक गुरु निशी के बारे में पता करके निकल चुकी होगी। प्रहरी पर शक न हो इसलिए पलक के निकलने के कई साल बाद गुरु निशी को मारा गया था।
रूही:– सात्विक आश्रम के लोग तुम्हारे पीछे आये, ये महज इत्तीफाक था या उसमे भी तुम्हारी करस्तनी है।
आर्यमणि:– सात्विक आश्रम का मेरे साथ होना बस किस्मत की बात थी जो रीछ स्त्री के पीछे जाने से मेरी उनसे मुलाकात हो गयी। वह आश्रम तो खुद टूटा था और जोड़ने की यात्रा में उनकी पूरी टीम लगी थी। बस यात्रा के दौरान ही हम बिछड़े मिले। इसमें मेरा कोई योगदान नहीं।
रूही:– सारी बातों में आर्म्स फैक्ट्री की बात कहां गोल कर गये? वो भी बता दो.…
आर्यमणि:– वो तो बॉब ही बतायेगा...
बॉब:– मुझे मत घसीटो... तुम ही कह दो तो ज्यादा अच्छा रहेगा। वैसे भी कुछ तो किस्मत तुम लेकर आये हो आर्य.…
आर्यमणि:– अच्छा... लेकिन ये न कबूल करो की बोरियाल, रसिया का जंगल में कई गैर कानूनी काम होते है। और उन्ही गैर कानूनी काम में से एक था इलीगल वेपन फैक्ट्री, जिसे एक होनहार क्रिमिनल चला रहा था। हम कुछ नया ट्राई करते हुये अपनी जगह से काफी दूर निकल आये थे और वेपन फैक्ट्री में काम कर रहे क्रिमिनल ने हमे घर दबोचा था। बस फिर क्या होना था, पूरी फैक्ट्री किसी भूतिया लताओं में फंस गयी और सारे क्रिमिनल्स आर्मी के हत्थे चढ़ गये। हां लेकिन इस बीच मैंने उनका सारा प्रोजेक्ट चुरा लिया।
रूही:– चलो, सच्चाई जानकर अब कुछ अच्छा लग रहा है। वाकई नागपुर क्यों पहुंचे उसका जवाब देना तुम्हारे लिये काफी मुश्किल होता बॉस। खैर, बॉस हमारा एक्शन टाइम कब आयेगा? कब हम उन एलियन प्रहरी के टीम के पीछे जायेंगे?
आर्यमणि:– बहुत जल्द... उसके लिये ज्यादा इंतजार नही करना पड़ेगा.…
रूही:– और बॉस आपके और बॉब के बीच क्या चल रहा है? इतने दिनो बाद मिल रहे थे और कोई गर्मजोशी नही।
बॉब:– "आर्यमणि मुझसे मिल चुका है। हम दोनो मिलने की गर्म जोशी भी दिखा चुके। तुम्हारा कहना सही था कि ये जगह आर्यमणि लिये नया नही था। जिस विकृत रीछ स्त्री के आत्मा को विपरीत दुनिया से मूल दुनिया में लाया गया था उसके द्वार यहीं से खोले गये थे। करीब 3 महीने पहले ही आर्यमणि से जब मेरी बात हुई थी तभी उसने मुझे इस जगह का कॉर्डिनेट्स भेजा था। इसके क्ला क्या–क्या कारनामे कर सकते है, शायद ही कोई जानता हो।"
"वहां की मिट्टी में क्ला डालकर आर्यमणि ने इस जगह का कनेक्शन ढूंढा था। इसी जगह से विपरीत दुनिया का द्वार खोलकर महाजनिका के आत्मा को खींचा गया था। 3 महीने के परिश्रम के बाद मैं अंदर तक घुसा और यहां ओशुन को देखकर काफी हैरान रह गया। मैने आर्य को ओशुन के बारे में नही बताया। यहां आने की प्लानिंग भी हो चुकी थी। उस रात तुम दोनो यूं ही नहीं रात में घूमने निकले थे बल्कि उस डॉक्टर के प्राण बचाने की योजना के कारण ही घूमने निकले थे। सामने जो ओशुन पड़ी हुई है, उसके जिम्मेदार भी कहीं ना कहीं वही प्रहरी है... अब मै ओशुन को लेकर तुमसे कुछ बोल सकता हूं आर्य...
आर्यमणि:- हां बॉब...
बॉब:- ओशुन भी तुम्हे चाहने लगी थी बस वो तुम्हे कैसे फेस करती जब वो अपनी सच्चाई तुम्हे बताती। इसलिए वो तुमसे नहीं मिली। प्लीज उसे माफ कर दो।
आर्य:- मै उसकी परेशानी समझ सकता हूं। खैर छोड़ो भी इस बात को, और ओशुन को जगाया कैसे जाए उसपर बात करते है।
बॉब:- ये कोई ब्लैक मैजिक है आर्य। ये बात तो अब तक तुम्हे भी पता चल चुका होगा। जबतक तुम उस जगह नहीं पहुंच जाते जहां ओशुन की आत्मा दो दुनिया के बीच कैद है, इसे जगाया नहीं जा सकता।
आर्यमणि:- इसके लिए मुझे क्या करना होगा?
बॉब:- ओशुन की तरह तुम्हे भी मरना होगा और उसकी आत्मा जहां फसी है वहां से उसे खींचकर लाना होगा। बाकी अंदर वहां क्या चल रहा है और किन हालातों से सामना होता है, वो वहां पहुंचने पर ही पता चलेगा।
रूही:- ये कैसी बहकी–बहकी बातें कर रहे हो बॉब।
आर्यमणि:- मुझे कुछ नहीं होगा रूही, तुम चिंता मत करो। मुझे यहां कुछ दिन वक़्त लग जाएगा इसलिए तुम अलबेली और ट्विंस को लेकर निकल जाओ। बाकी यहां बॉब और लॉस्की (लॉस्की पहला मिला वो वेयरवुल्फ जो मैक्सिको में इस फार्म में शिकारियों के साथ था) रुक रहे है।
रूही:- और यहां के फंसे वेयरवुल्फ?
आर्यमणि:- रूही तुम लॉस्की को बोलो सभी फंसे वेयरवुल्फ को सुरक्षित वापस भेज दे। यहां मै और बॉब पहले कुछ दिनों तक किताब की खाक छान कर देखेंगे और सोचेंगे की ओशुन को कैसे जगाया जाये।
बॉब:- मैंने पहले ही सारी पुस्तक अलग कर ली है। तुम इन सब को देखना शुरू करो, जबतक मै तुम्हारे पैक को वापस भेजता हूं।
आर्यमणि:- रुको बॉब अभी नहीं। क्या तुम हम दोनों (रूही और आर्यमणि) को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दोगे, हमे कुछ बातें करनी है।
बॉब मुस्कुराकर वहां से चला गया। उसके जाते ही आर्यमणि रूही का हाथ थामते… "मुझे माफ़ कर दो, तुम्हारी आई के बारे में बहुत कुछ पता होते हुए भी मैंने तुमसे छिपाया। नागपुर की पूरी सच्चाई नही बताई।"
रूही:- जबसे तुमसे मिली हूं ना आर्य, बीते दिनों का दर्द और गुस्सा दिल से कहीं गायब हो गया है। बस तुम यहां अपना ध्यान रखना और जल्दी लौटने कि कोशिश करना। वैसे भी जल्द से जल्द एक्शन करने के लिये बेकरार हूं।
आर्यमणि:- अभी ही कर लो, इतनी भी बेकरारी क्यों?
रूही:- तुम तो घर के माल हो बॉस, तुम्हारे साथ तो कभी भी एक्शन कर सकती हूं, फिलहाल तो तड़प उन एलियन के लिये है। चलो अब मै चलती हूं। तुम यहां पुरा फोकस करो जब तक मै उन मुसीबतों को संभालती हूं।
रूही आर्यमणि से खुशी-खुशी विदा ली। बॉब और लॉस्की ने उनका वापस पहुंचने का इंतजाम कर दिया था और कुछ ही घंटो में ये लोग बर्कले, कार्लीफिर्निया में थे। और इधर आर्यमणि ओशुन को छुड़ाने के काम में लग गया।
रूही आर्यमणि से खुशी-खुशी विदा ली। बॉब और लॉस्की ने उनका वापस पहुंचने का इंतजाम कर दिया था और कुछ ही घंटो में ये लोग बर्कले, कार्लीफिर्निया में थे। जैसे ही सभी पहुंचे रूही को छोड़कर तीनों टीन वुल्फ एक कमरे में। ओजल, अपने भाई को घूरती हुई… "ये तेरे और अलबेली के बीच क्या चल रहा है?"..
"ये बच्चो के जानने की बातें नहीं है, इसे मै हैंडल करूंगी, अपने तरीके से"… अलबेली, ओजल को आंख मारती हुई कहने लगी। बेचारी ओजल वहां से नीचे आने में अपनी भलाई समझी। वो दोनो को घूरती हुई नीचे लिविंग रूम में आकर रूही के पास बैठ गई।
रूही:- तुझे क्या हुआ, ऐसे मुंह क्यों उतरा हुआ है।
ओजल:- दीदी, तुम्हे नहीं लगता अपने पैक में एक लड़के कि कमी है। बॉस को बोलो ना एक पैक में एक लड़का लेले।
रूही, बड़ी सी आंखें करके उसकी ओर देखती हुई… "मतलब ऊपर वो दोनो।" रूही इतना ही कह पायी फिर कुछ सोचती हुई… "तुम्हारा कोई ब्वॉयफ्रैंड है क्या?"
"छोड़ो, कहीं घूम कर आते है.."… ओजल के चेहरे पर मायूसी साफ देखी जा सकती थी।
रूही:- क्या हुआ, मुझसे नहीं बताएगी तो तुम्हारी समस्या का समाधान कैसे मिलेगा।
ओजल:- मुझे ना एक लड़का पसंद है।..
रूही:- हां ठीक है तू थोड़ी मायूस है, थोड़ी झिझक भी हो रही है। एक काम कर आंख मूंद और सारी बातें कह दे।
ओजल:- हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते है। वो उसने मुझे किस्स भी किया था, और मुझे काफी अच्छा भी लगा था। फिर..
रूही:- हां अब इतना बता दिया तो आगे भी तो बोल..
ओजल:- फिर क्या, मेरे नाखून उसके कमर से घुसते घुसते रह गए। धड़कन इतनी बढ़ी थी कि मैं वुल्फ में शिफ्ट कर रही थी। और जब खुद को काबू की तो सब मज़ा ही खत्म हो गया। उन दोनों के पास तो ऑप्शन है इसलिए आपस में लग गये। मैं क्या बिना लड़के के ही रह जाऊंगी? क्या मेरा कभी कोई बॉयफ्रेंड नहीं होगा? मेरी भी फीलिंग्स है। मेरा भी कोई ब्वॉयफ्रैंड हो उसके साथ घूमना चाहती हूं, किस्स करना चाहती हूं। और अपनी वर्जिनिटी भी लूज करना चाहती हूं। लेकिन ये शापित जीवन। मैंने कहा था क्या किसी को ऐसा जीवन देने।
रूही, ओजल सर अपने सीने से लगाकर उसके सर पर हाथ फेरती… "समस्या बता दिया ना, अब तुम्हे समाधान भी आराम से मिल जायेगा। शांत रह जरा और अपने जीवन को क्यों कोसती है?"..
ओज़ल:- बोलना आसान है दीदी लेकिन सच्चाई आपको भी पता है। क्या आपके साथ नहीं हुई कभी ये समस्याएं…
रूही:- नही मेरे साथ ऐसी समस्या नही हुई थी क्योंकि मुझे नोचने वाले भेड़ियों की कमी नही था। खैर, मेरी छोड़ और बाकी शेप शिफ्ट पर कंट्रोल किया जा सकता है। प्रैक्टिस मैक्स ए वुमन परफेक्ट।
"प्रैक्टिस मेक्स अ वूमेन परफेक्ट... मुझे भी ये प्रैक्टिस करवा दो ना दीदी।"… मजाकिया अंदाज में ओजल अपनी बात कहकर जोड़-जोड़ से हसने लगी।
रूही उसके सर पर हाथ मारती… "पागल कहीं की, क्या प्रैक्टिस करेगी।"..
"वही जिसकी प्रेक्टिस करके आप परफेक्ट हो गई, सेक्स"… ओजल आंख मारती हुई अपनी बात कही और खी खी करके हंसने लगी।
रूही:- ओय बेशर्म, बी एन इंडियन गर्ल, शादी से पहले नो सेक्स..
ओजल:- हां तो मेरी शादी करवा दो।
रूही:- पागल कहीं की, छोड़ ये सब बॉस नहीं है तो 4-5 दिन नॉन भेज पार्टी हो जाए।
ओजल:- वूहू.. ये हुई ना बात। छोड़ो ये मन को भरमाने वाले टॉपिक। मस्त आज बटर चिकेन और नान खाएंगे।
रूही:- अलबेली बटर चिकन अच्छा पकाती है, उसी को कहती हूं।
ओजल:- रहने दो अभी तो दोनो के बीच इजहार चल रहा होगा। कमिटमेंट चल रहा होगा। कसमे होंगे, वादे होंगे। फिर नजरे मिलेंगी और किस्स होगा। फिर दोनो मुसकुराते हुए बाहर आएंगे और बाहों में बाहें डालकर घूमने निकल जाएंगे। पता ना मेरे लिए कोई लड़का है भी या नहीं… छोड़ो उन नए पंछियों को दीदी, खाना किसी इंडियन रेस्त्रां से मंगवा लेते है।
रूही:- मंगवा क्या लेंगे, चलते है उधर ही। इसी बहाने कुछ लड़के भी ताड़ लेंगे और खाने का आर्डर भी दे देंगे।
दोनो अभी बात कर रही थी कि तेज दरवाजा टूटने की आवाज आयी और फिर नीचे कांच के टेबल के ऊपर इवान आकर गिरा। कांच भी तेज आवाज के साथ टूटा और इवान फ्लोर पर कर्राहते हुए, हाथ हिलाकर रूही और ओजल को हाई कहने लगा।
उसकी हालत देखकर दोनो को हंसी आ गई। तभी ऊपर से अलबेली चिल्लाई.. "मेरे आस पास भी दिखाई दिए ना इवान तो मै तुम्हारा खून पीकर डबल अल्फा बन जाऊंगी। शक्ल मत दिखना अपना।"…. "भाड़ में जाओ अलबेली तुम। दुनिया में लड़की की कमी है क्या?"
रूही अपना हाथ दे कर उसे ऊपर खींचती… "दोनो तो अंदर रोमांस कर रहे थे ना फिर ये एक्शन कहां से चालू हो गया।"..
इवान कुछ नहीं कहा चुपचाप वहां से अपने कमरे में चला गया। रूही और ओजल दोनो उसे देखकर हंस भी रही थी और सोच भी रही थी कि ऐसा हुआ क्या होगा? दोनो नीचे से ही चिंख्ती हुई अलबेली को बुलाने लगी… "क्या है दोनो गला क्यों फाड़ रही हो।"
रूही:- दरवाजा गया, यहां का टेबल गया। मैंने सुना दोनो प्यार करते हो, फिर इतना सीरियस एक्शन क्यों।
अलबेली कुछ देर ख़ामोश रहकर रूही और ओजल को घूरती रही, फिर हाथ के इशारे से पास आने कहीं। सबने जब अपने कान लगा दिए… "बिना मेहनत के मिल गई तो कहता है कि बस मुझे रोक–टोक मत करना। बस फिर क्या था दे दी घूमाकर एक लात। प्यार भी करना और इसे दूसरे लड़कियों को भी ताड़ना है। भगा दिया उसे। जाये करते रहे अपनी मनमानी।"..
ओजल:- ओह मतलब इजहार होने से पहले ही ब्रेकअप हो गया..
अलबेली:- ब्रेकअप हो गया क्या मेरा? अरे यार ये क्या हो गया.. रुको अभी आयी इवान को मानाकर।
रूही आंख दिखती… "झल्ली कहीं की वो लड़का है, वो आयेगा मानाने।"
अलबेली:- रूही बड़ा क्यूट लड़का है, नहीं आया मानाने तो?
रूही:- वो बाद में देखेंगे, तुम बस स्ट्रिक्ट रहना। वरना यदि इन लड़को के पीछे तुम गई तो ज्यादा भाव खाएंगे।
अलबेली:- ये इंडिया थोड़े ना है। यहां अभी ब्रेकअप हुआ और अगले सेकंड नया रिश्ता बन जाता है। तुम लोग के चक्कर में अच्छा लड़का ना हाथ से निकल जाय।
रूही और ओजल दोनों उसे घूरते… "शुरू से प्रकाश डाल जरा कहानी पर, फिर बटर चिकन और नान।"
अलबेली:- "वाउ !!! बताती हूं.. पहली बार, जब इवान तहखाने में था तब ऊपर सबकी बाते हो रही थी और नीचे हम दोनों की नजरें मिल रही थी। फ्लाइट में जब आ रहे थे तब हम दोनों नजरे मिला रहे थे। ऐसे नजरो का खेल बहुत दिनों से चल रहा था। उसके बाद कनाडा की कहानी तो तुम दोनो को ही पता है।"
"लौटकर आये तो कुछ दिन इसी ख्याल ने गुजर गये की कंट्रोल न होने की वजह से फसते–फंसते बचे। लेकिन कब तक इन ख्यालों के कारण न मिल पाते। थोड़ा उसका मन डोला। थोड़ा मेरा मन डोला। थोड़ा वो करीब आया, थोड़ा मैं करीब आयी। ऐसे ही करीब–करीब खेलते कब हम दोनो के होंठ करीब आकर एक दूसरे से चिपक गये पता ही नही चला। किस्स जब खत्म हुई तो वो भी मुस्कुराया मै भी मुस्कुराई। ना वो कुछ कह पाया ना मै कुछ कह पायि। फिर ट्रेनिंग और स्कूल में उलझ गई जिंदगी, लेकिन तब भी हमे किस्स करने के मौके कभी-कभी मिल ही जाते.."
रूही:- और वो कभी कभी कितने दिन में आता था।
अलबेली:- यही हर 2-3 घंटे में।
रूही:- और वो भी हुआ कि नहीं अब तक...
अलबेली अपनी आंखें छोटी करके दोनों को घुरी। फिर एक आंख मारती हुई कहने लगी.… "लड़की ही हो ना। इतने किस्स के बाद कोई आगे बढ़ेगा तो… खैर दोबारा मत पूछना ऐसे सवाल अब चुपचाप सुनो। फिर एक दिन इस इवान के बच्चे ने अपनी कुत्यापा दिखा दिया।"
"इवान किसी लड़की को पूरा सिद्दत से चूम रहा था। ऐसा लगा जाकर उस लड़की का मुंह नोच लूं। मेरे माल पर नजर डाल रही थी। अब क्या बताऊं जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को क्या कहना। हां लेकिन किस्स करते वक़्त अचानक इवान के क्ला निकल आये, और मै जोड़ से चिल्ला दी।"
"अकडू कहीं का, भड़क गया और कहने लगा कि ऐक्सिडेंटली हमारे बीच कुछ अट्रैक्शन हुआ, इसका मतलब ये नहीं तुम मेरी पर्सनल लाइफ में दखल दो। मेरा मुंह छोटा हो गया। रोने जाने से पहले मैं उसे बताती गयी, वो शेप शिफ्ट कर रहा था इसलिए रोकना पड़ा। बस हो गया, उसके बाद ना तो उसने कभी मुझसे उस पर कोई बात की ना कभी सॉरी कहा।"
"उस रात जंगल में अचानक मुझसे इवान ने आई लव यू कह दिया। आह मै खुशी से झूम गई। वो सॉरी क्यों नहीं कहा, क्यों मुझसे बात करना बंद कर दिया, ये सब गम मिट गये। यहां आयी तो सोची वो मुझे प्यार से गले लगाकर अपनी बात रखेगा। हालांकि शुरवात तो प्यार से ही किया था, लेकिन बाद में कहने लगा कि मै उसे रोका टोका ना करूं। पता नहीं मुझे क्या हो गया, ऐसा लगा कि वो कहना चाह रहा हो किसी को भी वो किस्स करे, मै ना टोकुं। बस गुस्सा आ गया और दे दी एक लात घुमाकर।"
ओजल:- हां ठीक तो की। कोई जरूरत नहीं उसके पास जाने की। एक तो इतनी प्यारी लड़की उसे मिलेगी नहीं और गोरी मेम पर लट्टू है कमिना। कर लेने दे उसे अपने मन कि, जब अक्ल ठिकाने आयेगी ना तब तू भी उसे ठेंगा दिखा देना।
अलबेली:- पूरी बात ये सब सुनने के लिए नहीं बतायी। उस अकडू की अकड़ तो मै निकाल दूंगी, उसकी चिंता क्यों करती हो। चलो अब बटर चिकेन और नान कहां है वो बताओ?
रूही:- उसके लिए तो हमे बाहर जाना होगा ना। या तुझे बनना है तो बता दे मै चिकेन मंगवा लेती हूं।
अलबेली:- घर पर ही बना लेते है। आज पेट भर खाने के बाद सीधा बिस्तर की याद आएगी। मुझसे तो रेस्त्रां से लौटा ना जाएगा। ऊपर से बिल भी तो सोचो। जितने में उनका 4 प्लेट आएगा हम यहां आराम से 10-20 चिकेन तो खा ही सकते है।
आर्यमणि के ना रहने पर कुछ और नहीं तो कम से कम खाने की तो पूरी आज़ादी थी ही। अगले दिन स्कूल में जैसे ही ओजल का आगमन हुआ, कुछ लड़के-लड़कियां उसे देखकर घेर लिया। अलबेली और इवान दोनो ही अपनी कार पार्क करके आ रहे थे। स्वाभाविक था इवान और अलबेली दोनों एक दूसरे से कटे हुए थे। लेकिन सामने ओजल का जलवा देखकर दोनो आखें फाड़े थे। कब एक दूसरे के नजदीक पहुंचे उन्हें भी पता नहीं चला। अचानक ही एक दूसरे पर नजर गई और दोनो मुंह फेर कर अपने-अपने क्लास में।
इधर ओजल से शिकायती लहजे में मरकस उसके 3 दिनो तक गायब होने का कारण पूछने लगा। ओजल भी तबियत खराब का बहाना बना दिया। सभी लोग एक साथ मिन्नते करते हुए कहने लगे… "हाई स्कूल चैंपियनशिप में आज तक स्कूल का नाम टॉप 5 में नहीं रहा। प्लीज हमे ज्वाइन कर लो।"..
ओजल:- अगर स्किल सीखना है तो मै एक क्लास खत्म करके आती हूं, वरना स्कूल छोड़ दूंगी।
सभी लड़के लड़कियां छोटा सा मुंह बनाकर… "ठीक है हम इंतजार करेंगे।"..
अलबेली और इवान के क्लास भी साथ में खत्म हुआ था। दोनो को म्यूज़िक क्लास जाना था लेकिन ओजल की अचानक से बढ़ी लोकप्रियता देखकर वो दोनो उसके पीछे चल दिए किन्तु अलग-अलग। ओजल ग्राउंड पर पहुंच चुकी थी और सामने से 30 खिलाड़ी… 15 लड़के और 15 लड़कियां… सबकी नजर ओजल पर…
"ऐसे मत घूरो दोस्तो, मै नर्वस हो जाऊंगी। अच्छा मै जो बताने वाली हूं वो शायद गेम से हटकर अलग स्किल है, मै चाहती हम तुम सब ध्यान दो। जबतक कोई एक काम करो वहां बाहर बैठे मेरे भाई और उसकी गर्लफ्रेंड को यहां बुला लाओ।".. ओजल सबको कहने लगी...
ओजल बाहर बैठे अलबेली और इवान के ओर इशारा करके बुलाने के लिए कह दी। इधर जबतक वो, नजर और बॉडी लैंग्वेज, की सही परिभाषा को सीखाने लगी। कोई किस दिशा में कोई व्यक्ति भागेगा वो उसकी नजर और पाऊं के एक्शन से पता चलता है। इस पर ओजल ने 2 वॉलंटियर को बुलाया और बाहर खड़े लोगों को दूर से बताते रही… जो खिलाड़ी बॉल पकड़े रहते है, वो किस ओर भागने वाला है और एक परफेक्ट थ्रो के लिए एक खिलाड़ी के थ्रो के ठीक पहले, बॉडी लैंग्वेज क्या होती है, इन सब विषयों पर बात करने लगी।
इतने में अलबेली और इवान भी आ गए… "क्या हुआ, हमे क्यों बुलाया।".. दोनो लगभग आगे पीछे करके पूछा और एक दूसरे को देखकर गुस्से का इजहार करते इधर-उधर मुंह फेर लिया।
ओजल:- ऑफ ओ दोनो बाद में गुस्सा कर लेना। अभी अपने स्कूल की इज्जत दाव पर लगी है।
इवान:- मुझे क्या करना होगा?
ओजल:- कोई अपने घर में ना घुस पाए ऐसे स्किल सिखाओ हमारे फुटबाल टीम के डिफेंस को। अलबेली तुम 4 लड़के और चार लड़की को पकड़ो जो लोग थ्रो कर सके, इस पार से उस पार। और एक आदमी जब 4 लोगो से घिरे रहे तब भी सेफली अपना बॉल कैसे कलेक्ट कर सकते है वो सिखाओ। बाकी अटैक लाइन वाले मेरे साथ आईये, हम अटैक करना सीखेंगे।
तीनों को पहली बार कुछ इंट्रेस्टिंग सा काम मिल गया था, ट्रेंड करना। तीनों हू बहू आर्यमणि की बॉडी लैंग्वेज और समझाने का तरीका भी ठीक उसी तरह से, जिस तरह से आर्यमणि प्यार से सिखाया करता था, वो भी बिना इरिटेट हुए।
इधर करीब 3 दिन तक कई सारे किताब को पलटने के बाद आर्यमणि तैयार था अपने दिमाग को कोमा में ले जाने के लिये। ठीक ओशुन के पास ही उसका बेड भी लगा दिया गया। ओशुन के हाथ को आर्यमणि ने थाम लिया। बॉब ने पूरी प्रक्रिया शुरू की और आर्यमणि के दिमाग को धीरे-धीरे माइनस 5⁰ तक ले गया। उसका पूरा शरीर कांप रहा था और फिर अंत मै वो गहरी नींद में सो गया।
जैसे ही आर्यमणि ने अपनी आंखें खोली चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। ऐसा लग रहा था उस जगह को कभी ना खत्म होने वाले अंधेरे ने घेर रखा हो। चारो ओर अजीब सी बदबू आ रही थी और कहीं दूर से सिसकने की आवाज.… "संभवतः वहां आपकी आत्मा को अपने सबसे बड़े खौफ से सामना करना पड़ेगा और उस खौफ को हराने में आप को कई दशक लग सकते है या फिर आप अपनी जिंदगी वहां हारकर आ सकते है।"…
आर्यमणि पुस्तक "उलझी पहेली" के उन शब्दों को याद कर रहा था कि क्या होता है जब एक हील होती हुई बॉडी के मस्तिष्क को मरने लायक ठंड में रखा जाता है। शरीर की हीलिंग पॉवर दिमाग को मरने नहीं देती और गहरे अंधेरे में उलझी आत्मा वापस शरीर में नही लौटती। उस अंधेरे में आपको जो नजर आने वाला है, वो है आपका सबसे बड़ा खौफ।
अभी तक तो आर्यमणि के दिमाग में केवल किताब की बातें ही थी, लेकिन जो भी लिखा था सत्य लिखा था और जो दिख रहा था वो था आर्यमणि का डर, जो हाल के कुछ सालो के ख्यालों से जन्म लिया था। 4 फर्स्ट अल्फा या यूं कह लें कि 4 बीस्ट वुल्फ ने आर्यमणि को चारो ओर से घेर रखा था।
बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।
बड़े-बड़े 4 दैत्याकार वुल्फ, बिल्कुल काले बाल और गहरी लाल रंग की आंख, जिनके आंखों की चमक एक अलग ही डर का माहोल पैदा कर दे। गस्त लगाते जब वो आर्यमणि के चारो ओर घूम रहे थे, आर्यमणि चौंककर कभी इधर पलटकर तो कभी उधर पलटकर देख रहा था। तभी उस पर हमला हुआ और उसके ऊपर एक बीस्ट वुल्फ बैठ गयी। वह बीस्ट अपने पंजे आर्यमणि के चेहरे पर चला रही है। चेहरा बिलकुल गायब हो गया था और अगले ही पल आंखें बड़ी थी, जीभ बाहर निकल आया था और आर्यमणि का गला उसके धर से अलग हो गया।
रात के लगभग 2 बज रहे होंगे, ब्लड पैक से जुड़ा हर वुल्फ की नींद खुल चुकी थी। सभी पसीने में तर चौंककर उठे। हर किसी के माथे पर पसीना था और कुछ भयावह घटने का आभास। सभी अपने कमरे से बाहर आकर हॉल में इकट्ठा हुए। पूरा अल्फा पैक वियोग से कर्राहते, अपना शेप शिफ्ट किये हुये थे और हर किसी के आंख से आंसू की धार रिस रही थी।
रूही से तीनों ही लिपट गये। लगभग 5 मिनट बाद सभी सामान्य हुये। रूही ने तुरंत बॉब को वीडियो कॉल लगा दिया। कई घंटियां जाने के बाद भी बॉब कॉल नहीं उठा रहा था और इधर इन सबों का पुरा पारा चढ़ा जा रहा था। आखिरकार बॉब ने कॉल उठा ही लिया…
रूही:- बॉब मुझे आर्य को देखना है अभी..
बॉब उसे आर्य को दिखाते…. "वो अभी कोमा में है, आराम से लेटा हुआ"..
रूही:- फोन को उसके सीने पर रखो..
बॉब ने वैसा ही किया। रूही को जब धड़कन की आवाज सुनाई देने लगी तब सबने राहत की श्वांस ली… "आर्यमणि और ओशुन कोमा में पड़े है, और वहां सभी लोग सो रहे हो। ये तो गैर जिम्मेदाराना हरकत है बॉब।"… रूही चिढ़ती हुई कहने लगी..
बॉब:- यहां नीचे पूर्ण सुरक्षित है। और इसके ऊपर बंकर का दरवाजा भी है।
रूही:- 1000 यूएसडी की जॉब 2 लोगो को दो, जो बंकर के ऊपर खड़े रहकर केवल मेरा फोन उठाने के लिये हर समय मौजूद रहे। मै एक घंटी करूं और वो फोन उठा ले और हमे आर्य को दिखा दे।
बॉब:- हम्मम ! ठीक है समझ गया। मै लोगो को हायर करके उनका नंबर भेजता हूं। आर्यमणि के दिमाग के अंदर कोई अप्रिय घटना हुई है, उसी का गहरा असर पड़ा होगा। जाओ सो जाओ तुम सभी।
अलबेली:- बॉस को वहां रुकने की जरूरत ही क्या थी, चलो चलते है हम सब भी वहीं।
ओजल और इवान भी "हां वहीं चलते है" कहने लगे…
रूही:- सब बावरे ना होने लगो, आर्य अभी खोज पर निकला है, वो जल्द ही हमारे साथ होगा।
चारो बेमन से सोने चले गये। आज सुबह जब सब जागे तब किसी का भी मन नहीं लग रहा था। आर्यमणि के लौटने पर यदि उसे पता चलता की उसके गैर हाजरी में अल्फा पैक ने अभ्यास नहीं किया तो उसे बुरा लगता, इसलिए बेमन ही सही लेकिन सबने पुरा-पुरा अभ्यास किया।
वहीं आज सुबह नाश्ते में सबके प्लेट पर नॉन वेज परोसी गई, लेकिन एक निवाला किसी के गले से नीचे नहीं उतरा। हर किसी के कान में आर्यमणि की बात गूंजती रही, ऐसे खाने हमारे प्रवृति को आक्रमक बनाते है। तीनो टीन वुल्फ के स्कूल का भी वही हाल था और रूही तो पूरा दिन चिंता में निकाल दी। चारो बेमन ही पूरा दिन मायूस सा चेहरा लेकर घूमते रहे। हर कोई बस खामोशी से ही बैठा था और अपनी ही सोच में डूबा हुआ था, "आखिर क्यों आर्यमणि ने ऐसी मुसीबत मोल ले ली।"
फिर से रात के 2 बजे के आसपास वही सदमा सबने मेहसूस किया। हर किसी की बेचैनी और व्याकुलता पिछली रात जैसी ही थी, बल्कि आज की रात तो चारो के अंदर एक और घबराहट ने जन्म ले लीया, आखिर आर्यमणि वहां किस दौड़ से गुजर रहा था?
आज की रात लेकिन कल रात जैसा वाकया नहीं हुआ। फोन एक कॉल में उठ गया और दिल की धड़कने भी जल्द ही सबको सुनाई देने लगी। आर्यमणि की धड़कन तो सामान्य रूप से चल रही थी किन्तु इन लोगो की धड़कने असमन्या हो चुकी थी।
लगातर 4 रातों तक सब सदमा झेलने के बाद आखिरकार उन लोगो ने फैसला कर लिया कि अब वो सब आर्यमणि के पास ही जाकर रुकेंगे और पुरा मामला सुलझाकर ही आएंगे। चारो एक बार फिर मैक्सिको के लिए निकल गये। अल्फा पैक को मैक्सिको आकर भी बहुत ज्यादा फायदा हुआ नहीं, सिवाय इसके की आर्यमणि उनकी नजरों के सामने था।
हर रोज रात के 2 बजे के आसपास वही सब घटना होता और चारो गहरे सदमे से चौंककर जागते। 15 दिन बीत चुके थे और किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। यहां की कहानी जैसे उलझ सी गई हो। रूही अंदर ही अंदर आर्य पर काफी चिढी भी हुई थी।…
"इसकी फालतू की नाक घुसेड़ना और जान बचाने की आदत पहले मैक्सिको लेकर आयी और फिर यहां आकर ये सब कांड हो गया। हर बार इसे सामान्य जिंदगी चाहिए लेकिन आदत से मजबूर बिना मतलब के खुद मुसीबत मोल लेते रहता है। ऐसा ही कुछ किया था इसने नागपुर में भी। इसे तो खुद से सब पता लगाना है। कुछ पता लगा नहीं उल्टा सबसे दुश्मनी मोल लेकर चला आया।"
"वैसे इतनी कहानी की शुरवात ही ना होती अगर ये मैत्री के बाप को थप्पड़ मारने की ख्वाहिश ना रखता। पहले ये ना हुआ कि जाकर भूमि का ही गला दबा दे और पूछ लेता वो मैत्री को क्यों मरवाई? लेकिन इसे तो पहले जर्मनी ही आना था। फिर यहां आकर ब्लैक फॉरेस्ट में बस 2 घंटे रोजाना कि जिंदगी।.. एक मिनट.. 2 घंटे रोजाना ब्लैक फॉरेस्ट मे भी.. और यहां भी, एक ही वक्त मे मरना।"…
ख्यालों में ही रूही को कुछ बातो में समानता दिखी। जब रूही चिढ़कर अपनी भड़ास निकाल रही थी तब उसे आर्यमणि का एक चक्र याद आया। ब्लैक फॉरेस्ट मे जब आर्यमणि फंसा था तब भी वह रोजाना एक ही वक्त में जागता था। और यहां भी आर्यमणि रोज एक ही वक्त में अपने मरने का वियोग दे रहा था। दोनो ही जगहों में वक्त की समानता थी। तो ये भी हो सकता था कि ब्लैक फॉरेस्ट की तरह आर्यमणि यहां भी पूरा एक दिन सोने के बाद एक ही वक्त पर जागता हो। जब जागने के बाद सीधा लड़ेगा तब रणनीति कहां से सोचेगा। रूही के दिमाग में यह बात घूमने लगी और वो उठकर बॉब के पास पहुंचते… "बॉब, अंदर जो हो रहा है इसके दिमाग में क्या वो हम चारो मेहसूस कर रहे है?"
बॉब:- हां शायद, ब्लड पैक से जुड़े हो न इसलिए तुम लोगो को मेहसूस हो रहा हो कि अंदर क्या चल रहा है। मुझे एक बात बताओ वैसे तुम्हे क्या मेहसूस होता है।
रूही:- आर्य मर गया, बस ऐसा ही मेहसूस होता है। अब वो छोड़ो मुझे बताओ यदि मै उसे मेहसूस कर सकती हूं, तो क्या वो भी हमे मेहसूस कर सकता है, क्यों?
बॉब:- हां कर तो सकता है..
रूही:- कर तो सकता है का क्या मतलब, करना ही होगा। अच्छा एक बात बताओ कोई ऐसी दवा है जो हमें धीरे–धीरे 10 घंटे में मौत की ओर ले जाय, लेकिन हम मरे 10 घंटे बाद और प्राण निकलने कि फीलिंग पहले मिनट से आना शुरू हो जाये?
बॉब:- तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है?
रूही:- जो भी चल रहा हो बॉब लेकिन यदि आर्यमणि के वजह से मै मरी ना, तो मै तुम तीनो का (आर्यमणि, ओशुन और बॉब) खून पी जाऊंगी। अब जैसा मैंने पूछा है, क्या वैसा हो सकता है?
बॉब:- हां बिल्कुल संभव है और इसकी जानकारी मुझे तुम्हारे बॉस ने ही दी थी। कस्टर ऑयल प्लांट के फूल। इसके रस को ब्लड में इंजेक्ट करो तो ये ब्लड फ्लो के साथ ट्रैवल तो नहीं करता लेकिन ये इंटरनल सेल को कंप्लीट डैमेज करते हुए धीरे-धीरे शरीर में फैलता है। बहुत दर्दनाक और खतरनाक, जो पल-पल मौत देते बढ़ता है, लेकिन मरने से पहले मरने वाला कई मौत मर जाता है। कई लोग तो उस दर्द को बर्दास्त नहीं कर पाते और 5 मिनट बाद ही सुसाइड कर लेते है।
रूही:- गुड, यहां सिल्वर चेन होगा, उससे हम चारो को बांधो और ये जहर इंजेक्ट कर दो।
बॉब:- लेकिन इसमें खतरा है? अगर जिंदा बच भी गये तो शरीर कि खराब कोसिका पुनर्जीवित नहीं होगी।
रूही:- दुनिया का सबसे बड़ा हीलर लेटा है बॉब, बस हमारी स्वांस चलनी चाहिए। बाकी तो वो है ही। बस प्रार्थना करना की हमारे मरने से पहले आर्य जाग जाये।
बॉब:- एक दिन का वक्त दो। ऐतिहातन मुझे, तुम्हे कुछ मेडिसिन देने होंगे, ताकि तुम सबके शरीर को कुछ तो सपोर्ट मिले, फिर वो इंजेक्शन तुम्हे दूंगा...
रूही, ओजल, इवान और अलबेली ने एक और दर्द भरी रात बिताई। फिर से वैसा ही मरने का एहसास। अगली सुबह तकरीबन 6 बजे रूही ने प्रक्रिया शुरू किया, आर्यमणि के दिमाग को 2 बजे रात के बाद किसी अन्य समय में सक्रिय करने की प्रक्रिया। ये ठीक उसी प्रकार की प्रक्रिया थी जैसे कि ओशुन ने ब्लैक फॉरेस्ट में आर्यमणि के 2 घंटे के जागने के चक्र को तोड़ा था।
साथ मे रूही उसे यह भी एहसास करवाना चाहती थी कि उसका पूरा पैक मर रहा है। चारो का बेड इस प्रकार लगाया गया की आर्यमणि के बदन का कोई ना कोई हिस्सा चारो छु रहे थे। चारो को दर्द मेहसूस ना हो और मानसिक उत्पीड़न से कहीं मर ना जाए, इसके लिए बॉब ने चारो को पूरी गहरी नींद में सुला दिया। उसके बाद ना चाहते हुए भी उसने कैस्टर ऑयल प्लांट के फूल का इंजेक्शन उन चारो के नशों में दे दिया गया।
कोमा के स्तिथि में हर रात आर्यमणि के साथ मौत का खेल चल रहा था। गस्त लगाते 4 बीस्ट वुल्फ और हमले के 15 सेकंड में उसका सर धर से अलग। जैसी ही आर्यमणि को उन चारो के मरने का एहसास हुआ वैसे ही रोज रात के 2 बजे आर्यमणि के जागने का चक्र भी टूट गया। अपने पैक के वियोग में आर्यमणि सुबह के 6 बजे ही जाग चुका था।
एक बार फिर आर्यमणि की आखें खुली। उसे पता नहीं था कि कौन सा वक़्त था। बस अंदर से कर्राहने की आवाज निकल रही थी और एक अप्रिय एहसास.… उसके पैक के तिल-तिल मरने का एहसास। उसे अब किसी भी हालत दिमाग के इस भ्रम जाल से निकलना था। चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा। उसकी वुल्फ की हाईली इंफ्रारेड वाली आखें भी इस अंधेरे को चिर नहीं पा रही थी। सीने में अजीब सी पीड़ा एक लय में उठ रही थी जो कम् होने के बदले धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी।
"जब बेचैनी बढ़ने लगी तो, तो पहले खुद पर काबू करना चाहिए आर्य। तभी तो समस्या को समझ पाओगे, नहीं तो बेकार में ही सारा दिन इधर-उधर भटकोगे। समय और ऊर्जा दोनो व्यर्थ होगी और बड़ी मुश्किल से काम होगा, या नहीं भी हो पाएगा। इसलिए आराम से पहले खुद पर काबू करो फिर समस्या पर काबू पाने की सोचना।"…
दादा जी के बचपन कि सिखाई हुई बात जब वो एक घायल मोर को देखकर घबरा गया था, और उसकी हालत पर आर्यमणि को रोना आ गया था। दादा जी की बात दिमाग में आते ही वो अपनी जगह खड़ा हो गया। गहरी श्वास लेकर पहले तो खुद पर काबू किया फिर अपने आंख मूंदकर सोचने लगा कि वो यहां क्यों आया था?
जैसे ही मन में उसके ये विचार आया उसी के साथ फिर से आर्यमणि को ओशुन की वहीं सिसकती आवाज़ सुनाई देने लगी जो उसे पहले दिन तो सुनाई दी थी। लेकिन उसके बाद फिर कभी आर्यमणि, ओशुन की आवाज सुन नहीं पाया। कुछ देर और खड़ा होकर वो वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया, वो यहां क्यों आया था, और क्यों इतना अंधेरा है?
पुस्तक "उलझी पहेली" का किस्सा दिमाग में आने लगा। फिर आर्यमणि कितनी मौत मरा उसकी यादें ताजा हो गयी। आर्यमणि कुछ भी कर रहा था लेकिन अपने जगह से एक कदम भी हिल नही रहा था, क्योंकि उसे पता था वो जैसे ही आवाज़ के ओर कदम बढ़ाएगा उसपर हमला हो जाएगा। बिना अपने डर को हराए वो ओशुन की मदद भी नहीं कर सकता और ना ही अपने असहनीय पीड़ा का कोई इलाज ढूंढ सकता है। असहनीय पीड़ा जो पल-पल ये एहसास करवा रहा था कि उसके पूरे पैक को मरने के लिए छोड़ दिया गया है।
"वो वास्तविक दुनिया है लेकिन ये भ्रम जाल। मै यहां मरकर भी जिंदा हूं वो (अल्फा पैक) वहां मरे तो लौटकर नहीं आएंगे। मै खुद में इतना असहाय कभी मेहसूस नहीं किया। शायद रूही की मां फेहरीन को भी पूरे पैक के मरने के संकट का सामना करना पड़ा होगा, जिसके चलते वो प्रहरी और सरदार खान से जंग में घुटने टेक चुकी थी। और अब उसके तीनों बच्चे ना जाने किस मुसीबत में है। कैसे आखिर कैसे मै रोकूं इन 4 बीस्ट अल्फा को।"..
अंतर्मन की उधेड़बुन चल रही थी तभी उसे कुछ ख्याल आया हो और वो मुस्कुराकर आगे बढ़ा। अपनी पीड़ा को दिल में दबाए, अपने पैक और ओशुन के लिए वो आगे बढ़ा। जैसे ही उसने 2 कदम आगे बढ़ाया, फिर से वही मंजर था।
चारो ओर से हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो लाल नजरें और दैत्याकार 4 जानवर, जो आर्यमणि के चारो ओर गस्त लगा रहे थे। आर्यमणि भी उसके हमले के इंतजार में अपना पंजा खोल चुका था। रक्त का काला बहाव पंजे के ओर बढ़ रहा था जिसकी गवाही उसकी उभरी हुई नसें दे रही थी। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने आज तक के हील किये हुए टॉक्सिक को अपने पंजे में उतार रहा था।
चारो ओर से हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो लाल नजरें और दैत्याकार 4 जानवर, जो आर्यमणि के चारो ओर गस्त लगा रहे थे। आर्यमणि भी उसके हमले के इंतजार में अपना पंजा खोल चुका था। रक्त का काला बहाव पंजे के ओर बढ़ रहा था जिसकी गवाही उसकी उभरी हुई नसें दे रही थी। ऐसा लग रहा था आर्यमणि ने आज तक के हील किये हुए टॉक्सिक को अपने पंजे में उतार रहा था।
हर बार यही लगता था कि ईडन पहला हमला कर रही थी। वहीं आर्यमणि के एक कदम आगे बढ़ाते ही बीस्ट अल्फा एक बार फिर से हवा में थी, लेकिन इस बार आर्यमणि भी तैयार था। इस बार यह सोचकर नहीं खड़ा था कि जब मरना ही है तो मरने से पहले एक द्वंद हो जाए, बल्कि दिमाग में यह चल रहा था कि अपने पैक को बचाना है तो इन्हे अब मौत के घाट उतार ही दिया जाए।
बीस्ट अल्फा ने लगा दी थी छलांग, लेकिन इस बार अपना लड़का भी था तैयार। आर्यमणि कि नजरें घूम रही थी चारो ओर और उसे नजर आ रही थी सभी की हरकतें। एक ही वक्त पर एक साथ 4 दिशा से चारों बीस्ट वुल्फ हमला कर चुके थे। एक बीस्ट वूल्फ बिल्कुल सामने से हवा में कूदा। 3 बीस्ट वूल्फ, दाएं, बाएं और पीछे से दौड़ लगा चुके थे। चारो बीस्ट वूल्फ का मकसद आर्यमणि को नीचे गिराना। और जब वो नीचे गिर जाए तो उसे नोच डालना।
उड़ती–फिरती सामने से आ रही बीस्ट वूल्फ शायद खुद को बीस्ट वूल्फ ना समझकर, खुद को समझ रही थी ड्रैगन। जे मायला खुद को हवा में ही रखकर आर्यमणि के मुंह पर पंजा मारकर गंजा करने को बेकरार। आर्यमणि यहां का सुपरस्टार हलवा समझा था क्या? लड़के के नब्ज मे दौड़ रही थी पेड़, पौधों और जानवरों के हील की हुई टॉक्सिक। उतार लिया पंजे मे सारा जहर।
सामने से आ रही बीस्ट वुल्फ की हवा से स्लो मोशन लैंडिंग हो रही थी। बीस्ट वूल्फ के आगे का एक पंजा धीरे-धीरे फैल रहा था। ज्यादा सोचने का नहीं रे बाबा। अब बीस्ट वूल्फ इंसानी शेप तो होते नहीं ना जो 180⁰ पर हाथ तेज़ी से फैला दे। बोले तो दोनो हाथ बिलकुल सीधा फैला दे। थे तो वो पूरा चौपया जानवर। बिल्कुल बाहुबली के ओपनिंग सीन वाले मोटे तगड़े, वी.एफ.एक्स. एनिमेटेड हस्ट-पुस्ट सांढ की तरह। वुल्फ को साइज थोड़ा बड़ा ही मान लेने का। फैंटेसी मे वैसे भी छोटे कि कल्पना करना अब मज़ा ना देगा रे…
तो अब वो बलिष्ठ, हास्ट-पुस्ट बीस्ट वूल्फ आगे के एक पाऊं को तैयार कर रहा था पंजा मारने के लिए। इसलिए उसने अपने उस पंजे को बाएं ओर जितना फैला सकता था फैलाया। हां लेकिन सच मे ये बीस्ट वूल्फ थे बैल बुद्धि रे बबा। अब क्या कह दूं… पाऊं फैलाकर कितना ही फैला ले, हाथ वाली तेज़ी थोड़े ना आयेगी रे बाबा। अपना सुपरस्टार आर्यमणि खड़ा तैयार। बीस्ट अपना पंजा फैलाकर स्लो मोशन लैंड कर रहा। इसी बीच आर्यमणि हुआ थोड़ा तेज। अब अपनी जगह खड़ा रहकर थोड़े ना कहेगा आ जा और पंजा मार कर गंजा कर दे। बस इसलिए 2 कदम आगे आया और अपने सर के ऊपर दिख रहे बीस्ट वुल्फ के पाऊं को अपने टॉक्सिक हथेली में जकड़ लिया।
ना मज़ा नहीं आया टॉक्सिक हथेली कहने में वो फील ना आया। हां एसिड का पंजा। एसिड मतलब मामूली एसिड नहीं थी, बल्कि यदि हीरा जैसा कठोर धातु के १०० फिट मोटा दीवार पर वो पंजा पड़े तो वह हिस्सा गल जाये, ऐसा एसिड था उन पंजों में। अब कोई दर्शक ज्यादा मच मच नहीं करेगा की आर्यमणि कि नशें मे दौड़ती ये एसिड उसे कायको नहीं गला रही। उल्लुओं कभी वायर को देखा है करंट लगते। बस ये एसिड के पंजे का वैसा ही कॉन्सेप्ट था।
चले अब चलते है फाइट पर। एसिड का पंजा तैयार। आर्यमणि ने दबोच लिया अपने एसिड के पंजे में उसका पाऊं। पाऊं के बाल और जिंदा चमरे के जलने कि गंदी सी बदबू आने लगी। छटपटाहट और जिंदा जलने जैसा फीलिंग उस उड़ते बीस्ट अल्फा को होने लगी। आर्यमणि बिना ध्यान भटकाये उसके उसके पूरे शरीर को ही खींचकर सीधा पीछे से आ रहे बीस्ट वूल्फ पर पटक दिया।
एक तो सामने से हमला कर रहे बीस्ट वुल्फ की हवा में तेज गति कि छलांग थी और उस तेज़ गति को और बढाते हुए आर्यमणि ने बीस्ट वूल्फ को धराम से पीछे वाले बीस्ट पर पटक दिया। जब आर्यमणि सामने से आ रहे बीस्ट वोल्फ को पकड़ रहा था तब पीछे वाला बीस्ट खड़ा थोड़े ना था, वो भी काफी तेज दौड़ लगाकर आर्यमणि को टक्कर मारने के लिये छलांग लगा रहा था। दोनों कि टक्कर किसी विस्फोट से कम नहीं थी। इधर आगे और पीछे वाले बीस्ट वुल्फ की विफोटक टक्कर हो रही थी उधर आर्यमणि के पंजों की जकड़ में सामने वाले बीस्ट वुल्फ के पाऊं के नीचे का वो पूरा हिस्सा आ गया, जिसे वह अपनी हथेली से जकड़ रखा था।
टक्कड़ के साथ ही 2 बीस्ट वुल्फ का काम वहीं तमाम हो गया। हां लेकिन जब ये सीन चल रहा था, ठीक उसी वक्त दाएं और बाएं वाले टक्कर पहलवान बने बीस्ट वूल्फ भी उतने ही तेज़ी से आर्यमणि को टक्कर मार चुका था। ये टक्कर भी कमजोर नहीं थी। दोनों किनारों से आर्यमणि के पसलियां चटका दी दोनों बीस्ट वूल्फ ने।
घटना कुछ यूं तेजी सी हुई की किसी के पास कोई मौका नहीं था। 4 वुल्फ 4 दिशा से तेजी में दौड़ लगाये। आर्यमणि तेजी से अपना 2 कदम बढ़ाते सामने से कूद रहे बीस्ट वुल्फ के एक पाऊं को पकड़ा और खींचकर पीछे से छलांग लगा रहे बीस्ट वुल्फ पर दे मारा। जबतक आर्यमणि इतना किया तब तक उसे दाएं और बाएं से दौड़ लगा रहे वुल्फ ने सीधा टक्कर मार दिया।
मोटी बुद्धि टक्कर पहलवान बीस्ट वूल्फ थोड़ा भी अलग वक्त पर टक्कर मारता, तब ना वो आर्यमणि को नीचे गिड़ा पाते। बेंचो पागल एक साथ ही, एक वक्त मे, दाएं और बाएं से टक्कर मार दिया और रह गया अपना हीरो खड़ा। दोनों टक्कर पहलवान बेवकूफ सरीखे फिर से 100 कदम पीछे लेकर दौड़ लगाया। क्या स्पीड थी रे बाबा। बीस्ट वूल्फ की कोई ओलंपिक होते तो दोनों पहले नंबर पर होते। भगवान ने लगता है दोनो के दौड़ने कि स्पीड फिक्स कर दिये थे।
बहरहाल बैल सा शरीर और बैल बुद्धि दोनों बीस्ट अल्फा की। दोनों ओर से टक्कर मारने फिर दौड़ लगा चुके थे। वाह क्या स्टाइल से आर्यमणि ने दाएं और बाएं पूरा हाथ फैलाकर अपने पंजे खोला। किसी ट्रैफिक पुलिस वाले की आत्मा आर्यमणि के अंदर और दाएं और बाएं से आ रहे बीस्ट वुल्फ को हाथ दिखाते... "सालो ओवर स्पीड मे आ रहे। रुक अभी तेरी मां दे नाल आज सिकायत करवांगे"…
नहीं रुके बैल बुद्धि कितना भी आर्यमणि ने पूरा पंजा खोलकर दिखाया। भाई ने भी तय कर लिया अभी तेरी बुद्धि ठिकाने लगता हूं। बीस्ट वुल्फ को समझ में नहीं आया की ओवर स्पीड खतरनाक होता है। तेजी से दोनो दौड़ते हुए पहुंचे और आर्यमणि दोनो के पूरी गति को अपने हाथ से ही नियंत्रित किया। न तो वह हिला और न ही तेजी से दौड़ते हुये वुल्फ को जब आर्यमणि ने अपने हाथ से रोका तो पड़ने वाले दवाब में उसका हाथ कहीं से टूटा हो। यूं समझिए की 200 किलो वजनी 2 जानवर अनियंत्रित गति से दौड़ते हुये आर्यमणि के करीब पहुंचे और आर्यमणि ने बिना किसी परेशानी के उसे अपने भुजाओं के बल पर रोक दिया।
आर्यमणि के दोनों हाथ के पंजे दोनों बीस्ट वुल्फ के माथे से टिका था। मेहसूस कर लीजिए एसिड वाले पंजे के कारण जलने की आवाज और वैसे ही बाल सहित चमरी जलने कि बदबू। बिलकुल जलने की धीमी आवाज और चमरे जलने की गंदी बदबू आ रही थी। साले सच मे ये बीस्ट वुल्फ बहूते बड़े वाला बैल बुद्धि थे। अबे कभी ट्रैफिक रूल्स ना तोड़े थे क्या रे बीस्ट वूल्फ। ट्रैफिक वाले चालान काटने आए तो जितनी तेज हो सके उसके रास्ते से कट लेते हैं पागल। तू तो ट्रैफिक पुलिस से ही जा भिड़ा। आर्यमणि साहेब भी दोनों के बुद्धि ठिकाने पर लाते, पूरा एसिड का पंजा ही घुसेड़ डाले दिमाग के अंदर और दिमाग के अंदर कौन-कौन से पुर्जे होते हैं गूगल करके नाम पढ़ लेने का। उस अपने हाथ से मथ-माथ कर सब बराबर कर दिया। बीस्ट वूल्फ के सारे डर को आर्यमणि ने लौ.. लगा दिया। निकम्मों कुछ और मत सोच लेना "लॉ" मतलब एसिड की लॉ अंग्रेजी मे जिसे एसिडिक फ्लेम कहते हैं, वो लगा दिया।
आर्यमणि अपने डर को जैसे ही दूर किया वहां चारो ओर रौशनी का संचार होने लगा और कहीं दूर कोने में ओशुन सिसकती हुई नजर आ रही थी। ओशुन का दायां हाथ जमीन के नीचे था और हाथ का ऊपरी हिस्सा पुरा काला पर चुका था। ओशुन अपने बाएं हाथ से दाएं हाथ को खींचने की नाकाम कोशिश कर रही थी, लेकिन गड्ढे में फंसा उसका दायां हाथ बाहर नहीं आ रहा था।
आर्यमणि जब वहां पहुंचा तब पाया की 6 इंच की गोलाई वाले गड्ढे के बीच में ओशुन का हाथ फसा था, जिसे वह चाहकर भी उस गड्ढे से नही निकाल पा रही थी। आर्यमणि थोड़ा और करीब पहुंचा तो पाया की 6 इंच की गोलाई वाला वह गड्ढा तो नीचे काफी गहरा था। गोलाई इतनी प्रयाप्त तो थी की ओशुन आसानी से अपने फसे हाथ को निकाल सकती थी।
आर्यमणि, ओशुन के करीब जैसे ही पहुंचा, ओशुन उसे ऊपर से नीचे तक देखती… "कौन हो तुम और मुझे ऐसे क्यों फसाये हुए हो। मुझे मार दो या इस तिलिस्म से आजाद कर दो।"
आर्यमणि इस वक़्त काफी हैरान सा था, क्योंकि ओशुन उसे नहीं पहचान पा रही थी। आर्यमणि समझ चुका था की ओशुन के साथ क्या हुआ था। किताब "मीथ लैंड" जो की विदेशी लेखक ने भारत और कई देशों की धरती पर किये अपने सफ़र का अनुभव साझा करते हुए लिखा था। जिसमे सफर के दौरान हुई सुपरनैचुरल और सिद्ध प्राप्त विशेषज्ञों (जादूगर) से मुलाकात और बातचीत का पूरा जिक्र था।
"मिथ लैंड" पुस्तक के हिसाब से मिस्र (इजिप्ट) की पुरानी सभ्यता के कुछ सिद्ध प्राप्त इंसान जिसे जादूगर कहते थे, वो जादूगर खास इंसानों को ढूंढा करते थे जो एक दुनिया से दूसरे दुनिया का दरवाजा खोल सके। यह एक खास साधना होती थी जो एक सुनिश्चित स्थान और निश्चित वक़्त पर ही अंजाम दिया जा सकता था, तभी 2 दुनिया का दरवाजा खुलेगा। ऐसा ही कुछ भारतीय जादूगर भी करते थे बस फर्क सिर्फ इतना था भारत में दोनों प्रथाएं प्रचलित थी, दरवाजा खोलने के लिये किसी खास इंसान की बलि लेना अथवा खास इंसान को 2 दुनिया के बीच किसी चाभी की तरह फसाकर छोड़ देना। जबकि मिस्त्र में केवल खास इंसान को चाबी की तरह फसा दिया जाता था, वहीं अफ्रीका में इसका एक और अलग प्रारूप देखने मिलता था। वहां खास इंसान को नहीं ढूंढा जाता था, बल्कि जो मिला उसकी बली चढ़ाते रहो, जबतक बली कबूल नहीं होती।
हां लेकिन इस काले जादू को एक ही मकसद साधने के लिए किया जाता था, दूसरी दुनिया का दरवाजा खुला रहे और मनचाही काली शक्ति को निकालकर अपने अधीन किया जा सके। मात्र कुछ इंच के इस दरवाजे को खोलने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती थी और एक बार सावधानी हटी तब फिर से पूरी प्रक्रिया शुरू से करनी पड़ती थी।
एक समानता जो तीन अलग-अलग सभ्यता के जादूगरों मे समान थी, वह थी ग्रहों कि निश्चित दिशा और काम शुरू करने के लिये ग्रहों के प्रभाव वाला खास स्थान। तीनों ही जगह के सिद्ध प्राप्त इंसान (जादूगर) इसका विशेष ख्याल रखते थे। एक बार दरवाजा खुला फिर वो शक्ति तो मिलेगी ही जिसके लिये दरवाजा खोला गया था। किंतु दरवाजे ज्यादा देर तक खुला रह गया तो अन्य काली शक्ति भी इस दुनिया में आने का रुख करती थी। ये किसी भी जादूगर के लिए मनचाही शक्ति के अलावा एडिशनल शक्ति को जगाने जैसा होता था। दूसरी अनचाही शक्तियां जो एक दुनिया से दूसरी दुनिया के ओर रुख करती है, उसकी पूरी जानकारी सिद्ध प्राप्त इंसानों (जादूगरों) को कभी नहीं होती, इसलिए यदि वो शक्ति काबू नहीं हुई, फिर या तो जादूगरों को भागना पड़ता था या जान गवानी पड़ती थी, और एक बेलगाम शक्ति चारो ओर घुमा करती थी।
आर्यमणि समझ चुका था कि ओशुन इस वक़्त 2 दुनिया के बीच किसी चाभी की तरह फसी थी। पहले पूरा खुला गड्ढा भरना होगा ताकि ओशुन का हाथ किसी ताले के छेद में घुसा हुआ नजर आये, ताकि ओशुन के हाथ से वो ताला बंद करके, चाबी वापस बाहर खींचा जा सके।
आर्यमणि अपने पंजे को गड्ढे में डाला लेकिन उसे इतना तेज करंट का झटका मेहसूस हुआ, मानो किसी ने 12000 वोल्ट का करंट दे दिया हो। झटका खाकर वो दूर जाकर गिरा। झटका लगते ही आर्यमणि समझ चुका था कि 3 महीने से खुले इस दरवाजे से कोई भी दूसरी शक्ति क्यों नही निकल पायी। गहरे गड्ढे को बांध दिया गया था, जिसे अनजाने में आर्यमणि ने हाथ लगाकर एक पल के लिये खोल दिया था। फिर तो आर्यमणि ने वो भयावाह नजारा भी देखा जब लाखों कली मधुमक्खियों का झुंड स्त्री के आकार में खड़ी भिनभिना रही थी। बिल्कुल चमकीली काली मधुमक्खियां, लाखों की झुंड में किसी जवान लड़की के कर्व में दिख रही थी, एक बी-वूमन (bee-woman)।
आर्यमणि को इन मधुमक्खियों के बारे में जारा भी ज्ञान नहीं था, और ना ही किसी पुस्तक में वर्णित। 6 फिट की किसी महिला जितनी हाइट, पाऊं से लेकर पूरे बदन तक का शेप वैसा ही। ऐसा लग रहा था काली चुड़ैल भिनभिनाते उसके ओर चली आ रही थी, जिसके आकषर्क स्त्री आकर को देख तो सकते थे लेकिन कोई शक्ल नहीं थी केवल काली मधुमक्खियां ही मधुमकखियां।
आर्यमणि तेजी से दौड़ते हुए उसपर हमला कर दिया। बी-वूमन (bee-woman) के शरीर को बीच से फाड़ते हुए वह निकल गया। कुछ मधुमक्खियां जो पंजे में फसी थी वो मुट्ठियों के बंद होते ही कुरमुरे आवाज़ के साथ चटनी बन गई। लेकिन 5–6 मधुमक्खीयां जो आर्यमणि के बदन से चिपकी, पलक झपकते ही सीधा उसके शरीर के अंदर घुसकर अब वो आर्यमणि के बदन को कुरमुरा रही थी।
वहीं एक मुसीबत को आर्यमणि समझने कि कोशिश कर रहा था, तभी बी–वुमन (bee–woman) का नया रूप भी सामने आ गया। आर्यमणि पीछे मुड़कर जब बी-वूमन (bee-woman) के शरीर को देखा जिसके बीच से वह कूदा था, तो वहां विभाजन के बाद एक के बदले 2 बी-वूमन (bee-woman) खड़ी थी। और ये सब सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि आर्यमणि उसे बीच से चिड़ते हुए निकल गया था। दोनों बी–वुमन काली शक्ल धारण किये, बिल्कुल किसी सेक्सी स्त्री का कर्व बनाकर भिनभिनाते हुई आर्यमणि के ओर बढ़ने लगी।
वहीं एक कड़वा अनुभव आर्यमणि के बदन के अंदर हो रहा था। बीच से कूदने के दौरान जो 5-6 मधुमक्खियां उसके शरीर से चिपकी वह शरीर के अंदर घुसकर मांस को बड़ी तेजी से काटते हुए पेट के ओर बढ़ रही थी। आर्यमणि दर्द से बेहाल था और अब तो उसके पूरे बदन से लिपटने के लिए मधुमक्खीयों का 2 शरीर आगे बढ़ रहा था। दोनों सेक्सी कर्व वाली बी-वूमन अपना प्यार बरसाने के लिए आर्यमणि से लिपटने आ रही थी।
ये पीड़ा अशहनिय थी। आर्यमणि असहनीय दर्द को अनुभव करते सोच चुका था कि इस पीड़ा के कारण वो बिजली के झटके सह सकता है। उसने तुरंत ही कुछ मंत्र उच्चारण करते अपना पंजा गड्ढे में डाला। बिजली का झटका इतना तेज था कि ऐसा लग रहा था मानो करंट उसके पूरे शरीर में दौड़ रहा हो, लेकिन मधुमक्खी द्वारा दिए जा रहे दर्द के मुकाबले बिजली के झटके का दर्द सुकून दे रहा था।
आर्यमणि बी–वुमन के साथ लड़कर दोबारा मरना नहीं चाहता था। इसलिए जब आर्यमणि बिजली के झटके पर अपना हाथ बनाये रखने मे कामयाब हुआ, उसकी नजरें टिकी थी ताला बंद करके ओशुन का हाथ बाहर निकालना और पूरे तिलिस्म को तोड़ने में। ताकि बिना लड़े वापस लौटा जा सके। बाकी आर्यमणि ने बी–वुमन को खुद से लिपटने–चिपटने की खुली छूट दे रखी थी। आर्यमणि अपने हथेली के टॉक्सिक से गड्ढा भरना शुरू कर दिया। इधर बिजली के तेज करंट प्रवाह से आर्यमणि को फायदा ही हुआ। शरीर के अंदर की मधुमक्खियां बाहर निकल गयी और जाकर बी-वूमन से चिपक गई। 2 बी-वूमन आर्यमणि के ठीक ऊपर मंडरा रही थी, लेकिन उस से जाकर लिपट नही रही थी। आर्यमणि अपने शरीर में जानलेवा करंट के प्रवाह को मेहसूस कर रहा था, लेकिन वो भी अपना हाथ नहीं हटाया। गड्ढे के अंदर काले रंग की रस्सीनुमा लतायें नीचे से ऊपर तक फैलती उस गड्ढे को भरने लगी।
बाहरी दुनिया में दिन के 11 बज चुके थे। अल्फा पैक को जहर दिये लगभग 5 घंटे हो गये थे, बॉब बस यही कामना कर रहा था कि रूही, अलबेली, ओजल और इवान को दिये जहर का असर पुरा फैलने से पहले आर्यमणि जाग जाये। सुबह 11 बजे का माहौल कुछ ऐसा था कि बॉब की आखें फैल चुकी थी।
बॉब खुली आंखों से हैरतंगेज नजारा देख रहा था। आर्यमणि की हथेली की चमरी बिल्कुल काले रक्त के प्रवाह से फूल चुकी थी। उसका पूरा हथेली तकरीबन 3 इंच तक फुल गया था जिसमें केवल और केवल टॉक्सिक भरा हुआ था, जो लगातार गायब हो रहे था। टॉक्सिक हथेली से जैसे ही गायब होते वैसे ही हथेली सामान्य स्थिति में दिखती और अगले ही पल खून का स्राव (बहाव) हथेली के ओर होता और वापस से दोनो हथेली फुल जाती।
बॉब के लिए समझना मुस्किल नहीं था कि अंदर दो दुनिया के बीच फसी ओशुन को बाहर लाने का तरीका आर्यमणि ढूंढा चुका था। बॉब को यकीन हो गया था कि आर्यमणि अंदर जीत की राह पर है, इसलिए फ्रिज किये हुए दिमाग का हेलमेट तुरंत निकाल दिया, ताकि दिमाग में पूर्ण रक्त संचार हो सके।
आर्यमणि के शरीर का सारा टॉक्सिक गड्ढे को ढकने में लग चुका था। धीरे-धीरे उसका खून उन गड्ढों को भरने लगा। काली लतायें अब बिल्कुल किसी लाल रंग की लातायें दिखने लगी थी। जैसे-जैसे वो गड्ढे को भर रही थी आर्यमणि की आखें बंद होती जा रही थी। बाहर बॉब साफ देख सकता था 3 इंच गाढ़े काला दिखने वाला पंजा अब खून कि तरह लाल दिख रहा था, और धीरे धीरे नब्ज से होकर रक्त लगातार उसकी हथेली के ओर बढ़ रहे थे और गायब हो रहे थे।
बॉब, आर्यमणि के चेहरे का रंग पीला पड़ते देख रहा था।… "ओह माय गॉड, इसे तो करंट के झटके लग रहे है।"… बॉब आर्यमणि कि हालत पर सहम गया। बॉब ने तुरंत कुछ वुल्फ को वहां बुलाया और आर्यमणि की हथेली को कसकर थामने कह दिया। ऐसा लग रहा था आर्यमणि खून को चूस रहा था। 2 वुल्फ के शरीर से आधा खून खींच गया और पता भी नहीं चला की वो आर्यमणि कि हथेली से होकर कहां गायब हुये।
2 के जाते ही फिर अगले 2 वुल्फ को बुलाया गया। फिर 2, लगातार वुल्फ आ रहे थे और उनकी ब्लड खींचती देर नहीं लग रही थी। अब तो वहां मौजूद वुल्फ भी खत्म होने को आए थे। 20 वुल्फ का खून लिया जा चुका था। मात्र 4 वुल्फ और बचे थे। जल्द ही वो भी अपना खून देकर हांफते हुए अलग हुये।
बॉब अपने माथे के पसीने को पोंछते बस दुआ ही कर रहा था। 2 मिनट गुजरे होंगे की आर्यमणि का शरीर जोड़ों का झटका लिया और वो एक बार आंख खोलकर मूंद लिया। वहीं ओशुन भी आंख खोलकर बैठ चुकी थी। ओशुन जागते ही हैरानी से चारो ओर देखने लगी।