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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Tri2010

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भाग:–94





बॉब अपने माथे के पसीने को पोंछते बस दुआ ही कर रहा था। 2 मिनट गुजरे होंगे की आर्यमणि का शरीर जोड़ों का झटका लिया और वो एक बार आंख खोलकर मूंद लिया। वहीं ओशुन भी आंख खोलकर बैठ चुकी थी। ओशुन जागते ही हैरानी से चारो ओर देखने लगी।


"मै यहां कैसे पहुंची।….. आह्हहहहहहहह! ये पीड़ा"… ओशुन बॉब से सवाल करती हुई बेड से नीचे उतर रही थी लेकिन कमजोर इतना थी की वो लड़खड़ा कर आर्यमणि के ऊपर गिर गयी। गहरी श्वांस लेती ओशुन अब तक की सबसे मनमोहक खुसबू को दोबारा अपने श्वांस के द्वारा खुद में मेहसूस करती हुई मुस्कुरा दी। अपने चेहरे पर आये बाल को पीछे झटकती हुई अपना चेहरा उठाया और आर्यमणि को देखने लगी।


वो देखने में ऐसा गुम हुई की अपने टूट रहे शरीर का पूरा दर्द भूल गयी। आर्यमणि के होंठ चूमने के लिये होंठ जैसे फर फरा रहे हो। ओशुन खुद को रोक नहीं पायी और अपने होंठ आर्यमणि के होंठ से स्पर्श कर दी। जैसे ही ओशुन ने आर्यमणि के होंठ अपने होंठ से स्पर्श की वो चौंक कर पीछे हटी…

"बॉब यहां क्या हुआ था, आर्यमणि के होंठ इतने ठंडे और चेहरा इतना पिला क्यों पड़ा है? क्या तेज करंट की वायर घुसा दिये हो इसके अंदर?"..


"आर्यमणि के ऊपर से तुम हट जाओ, वो कुछ देर से जाग जाएगा। तुम ऊपर जाकर रेस्ट करो मै सब समझा दूंगा।"… बॉब रूही, अलबेली, ओजल और इवान को एंटीडोट का इंजेक्शन देते हुये कहने लगा। बॉब को जब इंजेक्शन लगाते देखी, तब ओशुन का ध्यान उस ओर गया जहां आर्यमणि का हाथ, पाऊं पकड़े आर्यमणि के शरीर से लगे अल्फा पैक बेड पर मूर्छित लेटे थे।


"बॉब ये चारो कौन है, और यहां आर्यमणि के साथ इनको भी क्या हुआ है?"… ओशुन फिर से सवाल पूछना शुरू कि..


बॉब:- तुम ऊपर जाकर रेस्ट करो, आर्यमणि जब जाग जाएगा तब सभी सवालों के जवाब भी मिल जाएंगे…


ओशुन:- शायद वो सोया ही मेरी किस्मत से है। जागते हुए मै उसका सामना नहीं कर पाऊंगी। मुझे लगता है मेरा पैक यहीं कहीं आसपास है। मै उनसे सब कुछ जान लूंगी। आर्यमणि जब जागे तो उससे कहना मै उसकी दुनिया नहीं हूं।


ओशुन अपनी बात जैसे ही समाप्त कि, बॉब ने उसे एक जोरदार थप्पड़ लगा दिया… "भाग जाओ यहां से वरना मै पहली बार किसी वेयरवुल्फ का शिकार करूंगा। तुम्हे यहां सब क्या नाटक लग रहा है। तुम्हे नींद से जगाने के लिए वो देख रही हो 4 लोगों को जो आर्यमणि के पैक है, उन्हें खुद को ऐसे मौत का इंजेक्शन लेना पड़ा, जो उनको पहले मिनिट से मौत दे रही है। पता नहीं उनके कितने सारे ऑर्गन अंदर से डैमेज हो चुके होंगे। मैं उन चारो के मुंह से निकले खून को पोंछते-पोंछते परेशान हो गया। आर्यमणि को अंदर कितने देर तक बिजली के झटके लगते रहे हैं, पता भी है तुम्हे? आर्यमणि द्वारा सालों से जमा किया हुआ टॉक्सिक गायब हो गया। उसके शरीर का खून लगभग गायब हो गया। यहां जितने भी वुल्फ है हर किसी से खून लिया गया और महज 2 मिनट में ही उनके शरीर का आधा खून गायब हो गया। तुम्हे बचाने के लिए इतने लोग लगे थे। और जब तुम जाग रही हो तो यहां से जाने की सोच रही। भागो यहां से इस से पहले की मै तुम्हे मार दूं, स्वार्थी।"..


ओशुन:- बॉब मेरी बात सुनो, आर्य जाग गया तो मै उसे छोड़कर नहीं जा पाऊंगी। और मै आर्य के साथ बंधकर रह नहीं सकती। प्यार तो बहुत है बॉब लेकिन मै आर्यमणि की दुनिया नहीं हूं।


आर्यमणि:- बेहतर होता ये बात तुम मुझसे कहती ओशुन। अब चुकी मै जाग चुका हूं तो क्यों ना तुम थोड़ी देर यहां आराम कर लो..


ओशुन एक कदम पीछे हटती… "नहीं रहने दो मुझे दर्द अच्छा लग रहा है।"..


आर्यमणि:- मै अभी इस हालत में नहीं की तुम तक भागकर पहुंच सकूं इसलिए आ जाओ।


ओशुन:- देखो आर्य, मुझे बस यहां से जाना है, समझे तुम।


आर्यमणि:- कहां जाना है। रोमानिया, कैलिफोर्निया, कैन्स, टेक्सास, लंदन, बार्सिलोना, टर्की.. ऐसी कौन सी जगह जहां का पता मेरी जानकारी मे ना हो। प्यार होता तो शायद जाने देता, लेकिन यहां बहुत कुछ दाव पर लग गया है। ऐसे कैसे जाने दूं ओशुन। बॉब क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो?


ओशुन:- अभी तुम्हारे पैक को तुम्हारी जरूरत है।


आर्यमणि:- मेरे पैक ने अपना काम कर दिया बाकी डिटेल जागने के बाद ले लूंगा। बॉब ने लगता है इन सबकी जान बचा ली है। सभी खतरे से बाहर हैं। थैंक्स बॉब।


आर्यमणि की बात सुनकर बॉब के चेहरे का रंग बदल गया। आर्यमणि को बात जितनी आसान लगती थी उतनी थी नही। लेकिन तभी दर्द भरी आह के साथ बॉब चिल्लाते…. "ये क्या है?"…. बॉब सोच में डूबा था कि आर्यमणि को कैस्टर के फूल की जानकारी कैसे दे। इतने में उसे थोड़ी पीड़ा हुई और सबका ध्यान नीचे बॉब के पाऊं में था। नीचे का भयानक नजारा देखकर सबकी आंखे फैल गयी।


दरसल जिस जगह सभी लोग खड़े थे वहां का फ्लोर मिट्टी का ही था और मिट्टी के नीचे से वही काली चमकीली मधुमक्खियां निकल रही थी, जो आर्यमणि को 2 दुनिया के बीच मिली थी। लाखों की तादात में वह बाहर निकली और देखते ही देखते वहां मौजूद हर किसी के पाऊं के नीचे उन मधुमक्खियों का ढेर लगा था। हर किसी के पाऊं में हल्का डंक लगने का एहसास हुआ और उसके बाद अपनी आंखों से देख रहे थे कि कैसे डंक मारने के बाद मधुमक्खी राख के समान ढेर होकर हवा में उड़ गयी। न केवल डंक मारने वाली मधुमक्खी बल्कि लाखो मधुमक्खियां एक साथ राख के कण समान हवा में उड़ने लगे। कुछ देर के लिये तो बंकर के नीचे बने इस खुफिया जगह हाल ऐसा हो गया जैसे बारूद विस्फोट के बाद चारो ओर का माहोल हो जाता है। वो तो भला हो टेक्नोलॉजी का जो उस जमीन के नीचे बने खुफिया जगह में इन मधुमक्खियों की राख को बाहर निकालने के लिये बड़े–बड़े पंखे लगे थे, वरना कुछ देर में सभी दम घुटने से मर जाते।


बॉब:– आर्य ये क्या था?


आर्यमणि:– बॉब तुम्हारे अंदर ये मधुमक्खी घुसी तो नही ?


बॉब:– क्या !!!! ये शरीर के अंदर घुस जाती है??


आर्यमणि:– हां मुझपर तो इन मधुमक्खियों ने ऐसे ही हमला किया था। पलक झपकते ही मेरे बदन के अंदर। उसके बाद जो अंदर से मेरे मांस को नोचना इन्होंने शुरू किया, क्या बताऊं मैं कितनी पीड़ा मेहसूस कर रहा था। फिर तो 12000 वोल्ट का करेंट मुझे ज्यादा आरामदायक लगा था।


बॉब:– शुक्र है मुझे ऐसी कोई पीड़ा नहीं हो रही। रुको फिर भी चेक करने दो...


बॉब अपना पाऊं ऊपर करके डंक लगने के स्थान को देखा। वहां की चमरी हल्की लाल थी लेकिन कुछ अंदर घुसा हो ऐसे कहीं कोई सबूत नहीं थे। बॉब पूरी तसल्ली के बाद.… "अब इन मधुमक्खी बारे में कुछ और डिटेल बताओगे?"


आर्यमणि:– मैं क्या वहां इन्ही पर रिसर्च करने गया था। जितना जानता था बता दिया।


बॉब कुछ सोचते.… "ये मधुमक्खियां बेवजह ही तुम्हारे अंदर नही घुसी थी। उसे दूसरी दुनिया से अपनी दुनिया में आने के लिये एक होस्ट चाहिए था, इसलिए तुम्हारे शरीर में घुसी थी। वहां तुम इसके होस्ट नही बन पाये, इसलिए मजबूरी में इन्हे सीधा ही अपने मधुमक्खी के स्वरूप में यहां के वातावरण में निकलना पड़ा। जिसका नतीजा तो तुम सबने देख ही लिया।


बॉब कह तो सही रहा था। एक बार आर्यमणि के शरीर पर उनका कब्जा हो जाता तब वो मधुमक्खियां सीधा आर्यमणि के शरीर को ही रूट बना लेती। आंख तो आर्यमणि खोलता लेकिन उसके अंदर लाखों मधुमक्खियां समा चुकी होती। परंतु ऐसा हो न सका। जब मधुमक्खी बिना किसी होस्ट मध्यम से बाहर निकली तब बाकी सारी मधुमक्खियां तो यहां के वातावरण में विलीन हो गयी, लेकिन जिस ओर इन सबका ध्यान नहीं गया वह थी, रानी मधुमक्खी जो जीवित थी और अपना होस्ट चुन चुकी थी। जिसका बारे में इन्हे भनक तक नहीं लगी।


बहरहाल छोटे से कौतूहल के बाद आर्यमणि ने अपने पैक को देखा और बॉब को घूरते.…. "बॉब इन मधुमक्खियों के कौतूहल के बीच जो रह गया उसका जबाव दो पहले। क्या मेरा पैक सुरक्षित है?


बॉब, संकोच में डूबता, बड़े धीमे से कहा…. "आर्य ये चारो कैस्टर ऑयल प्लांट के फ्लॉवर के संपर्क में साढ़े 5 घंटे से हैं। मैंने इन्हे स्ट्रॉन्ग एनेस्थीसिया दिया था और तुम्हारे जागने के कुछ वक़्त पहले एंटीडोट। थोड़ा सा हील होने के कारण मुंह से शायद खून नहीं निकल रहा वरना..


जैसे ही बॉब ने यह बात बताई आर्यमणि की आंख फटी की फटी रह गई। कैस्टर के फूल के बारे में आर्यमणि को भी पता था। एक ऐसा जहर जो पहले मिनट से मौत की वह भयावाह पीड़ा देता है कि इसके संपर्क में आये लोग अगले 5 मिनट में खुद की जान ले ले, जबकि पूर्ण रूप से मृत्यु तो 8 घंटे बाद होती है। आर्यमणि के दिमाग में सवाल तो बहुत थे लेकिन उसे पूछने के लिए वक़्त ना था।


आर्यमणि बिना वक्त गवाए ओजल और रूही के पेट पर अपना हाथ रखा और उसे हील करने लगा। कैस्टर के फूल का जहर शायद आर्यमणि पर काफी बुरा असर कर रहा था, ऊपर से कुछ देर पहले ही उसके शरीर ने बहुत कुछ झेला था। दोनो को हील करने में आर्यमणि को काफी तकलीफ हो रही थीं। दर्द इतना असहनीय था कि मुंह से उसके काले झाग निकलने लगे, लेकिन फिर भी आर्यमणि ने दोनो (ओजल और रूही) के बदन से अपना हाथ नहीं हटाया।


लगभग 15 मिनट बाद रूही और ओजल की सुकून भरी श्वांस आर्यमणि ने मेहसूस किया। रक्त संचार बिल्कुल सुचारू रूप से चल रहा था।… "बॉब शायद मै 12-13 घंटे ना जाग पाऊं, चारों को बता देना।"


इतना कहकर आर्यमणि एक 2 बेड के बीच में स्टूल लगा कर बैठ गया। अपने पास एक डस्टबिन का डब्बा लगा दिया। अपना चेहरा डस्टबिन में घुसाकर आर्यमणि आंखे मूंदा और अलबेली और इवान के बदन पर अपना हाथ रख दिया। आर्यमणि की बंद आंख जैसे फटने वाली हो। कान जैसे सुन पर चुके थे और हृदय मानो कह रहा हो, इतना जहर नहीं संभाल पाऊंगा।


वहीं आर्यमणि जिद पर अड़ा था कि मैंने सारे टॉक्सिक बाहर निकाल दिए, कुछ तो समेट लेने दो। आर्यमणि के लिए आज का दिन मुश्किलों भरा था, शायद सबसे ज्यादा दर्द वाला दिन कहना गलत नही होगा। उसके बंद आखों के किनारे से काली रक्त की एक धारा बह रही थी उसके नाक से काली रक्त की धार बह रही थी। दोनो कान का भी वही हाल था। मुंह में भी बेकार से स्वाद का वो काला रक्त भर रहा था, जिसे आर्यमणि लगातार डस्टबिन में थूक रहा था।


दर्द से वो केवल चिल्लाया नहीं लेकिन उसकी शरीर कि हर एक नब्ज जवाब दे गई थी। उसके मस्तिष्क का हर हिस्सा बिल्कुल फटने को तैयार था। धड़कन बिल्कुल धीमे होती… ध…क, ध……क"


उसकी हालत देखकर बॉब और ओशुन उसकी ओर हड़बड़ा कर आर्यमणि को रुकने के लिए कहा, लेकिन किसी तरह वो अपना दूसरा हाथ उठाता उन लोगों को अपनी जगह खड़े रहने का इशारा किया। इवान और अलबेली के हीलिंग में बिताया 15 मिनट आर्यमणि के हृदय की गति को लगभग शून्य कर चुकी थी।


जहां एक मिनट में उसका दिल 30-35 बार धड़कता था वहीं अब 1 मिनट में 5 बार भी बड़ी मुश्किल से धड़क रहा था। आखिरकार आर्यमणि को वो एहसास मिल ही गया, जिसके लिये वो कोशिश कर रहा था। जैसे ही इवान और अलबेली ने चैन की गहरी श्वांस ली, आर्यमणि धम्म से नीचे गिर गया.…


चारो ओर जगमग–जगमग रौशनी थी। पूरी दीवारों पर रंग–बिरंगी कई खूबसूरत पलों की तस्वीरें थी। उन तस्वीरों में मां जया, पापा केशव थे। भूमि दीदी थी। चित्रा और निशांत थे। निशांत की नई गर्लफ्रेंड सोहिनी थी। चित्रा और माधव के साथ की कई खूबसूरत तस्वीरें थी। भूमि दीदी के गोल मटोल बेबी की तस्वीर थी। चारो ओर दीवार पर कई खूबसूरत पलों की तस्वीरें ही तस्वीरें थी।


आर्यमणि ने आंखें खोली और आंखों के सामने जैसे उसकी भावनाओं को लगा दिया गया था। चेहरे कि भावना आंखों से बहने लगी थी। जब उसने गौड़ से देखा वो कैलिफोर्निया मे था। तेज़ी से भागकर बाहर आया। बाहर हॉल का नजारा भी जगमग–जगमग था। हॉल का माहोल पूरा भरा पूरा था। हॉल में आर्यमणि को देखने वालों की कमी नही थी। मैक्सिको की कैद से रिहा हुये कई वुल्फ, बॉब, लोस्की की पूरी टीम और ओशुन और वुल्फ हाउस से ताकत हासिल करके गये ओशुन के साथी वहां आर्यमणि के जागने का इंतजार कर रहे थे।


आर्यमणि जैसे ही कमरे से बाहर आया सब आर्यमणि को देख रहे थे। लेकिन आर्यमणि…… वो तो अपनी खुशी को देख रहा था। फिर उसके कदम ना रुके। दिल को ऐसा लग रहा था जैसे मुद्दातों हो गये तुमसे मिले। आर्यमणि के रास्ते में जो भी आया उसे किनारे करते आगे बढ़ा। ओजल, अलबेली, और इवान तीनों काफी खुशी से कुछ कहने के लिये आर्यमणि के करीब आये लेकिन आर्यमणि उन्हें अनसुना कर गया, वो लड़कड़ते, हड़बड़ाते आगे बढ़ रहा था।


झटके के साथ गले लगा और तेज श्वांस खींचकर तन की खुशबू को अपने जहन में बसाते.… "मुझे नहीं पता की तुम्हे देखकर कभी दिल धड़का भी हो, लेकिन बंकर में जब मै आंखें मूंद रहा था, तब एक ही इक्छा अंदर से उमड़ कर आ रही थी... अभी तुम्हारे साथ मुझे बहुत जीना है। इतना की ज़िन्दगी तंग होकर कह दे, अब बहुत हुआ साथ जीना, चैन से मर जा। फिर चेहरे पर एक सुकून होगा की हां तुम्हारे साथ पूरा जीने के बाद मैं मर रहा हूं। उस आखिरी मुकाम तक तुम्हारे साथ जीना है। मुझसे शादी करोगी रूही?"


जबसे आर्यमणि, रूही के गले लगकर अपनी भावना व्यक्त रहा था, सबको जैसे अचंभा सा हुआ था। आर्यमणि की भावना सुनकर रूही से खड़ा रह पाना मुश्किल हो गया। बेजान फिसलती वो अपने दोनो घुटनों पर बैठी थी। सर झुका था और रोने की सिसकियां हर किसी के कान में सुनाई दे रही थी। वो रोई तो भला उसके परिवार के आंखों में आंसू क्यूं न हो? इवान, अलबेली और ओजल तीनों साथ खड़े थे। तीनों ही रो पड़े। खुशी ऐसी थी कि संभाले ना संभाल रहा था।


आर्यमणि भी घुटनों पर आ गया। बालों के नीचे चेहरा छिपाकर रूही आंसू बहा रही थी। आर्यमणि भी बैठकर आंसू बहा रहा था। तभी रूही झटक कर अपने बाल ऊपर करती, रुआंसी आवाज में... "बॉस खड़े हो जाओ.. तुम.. तुम..."


कहना तो चाह रही थी कि "बॉस तुम घुटने पर कैसे हो सकते हो।" लेकिन हिचकियां और सिसकियां मे उसके शब्द उलझ गये। तीनों टीन वुल्फ उन्हें घेरकर बैठ गये। सभी एक दूसरे के कंधे पर हाथ डालकर बस एक दूसरे को देख रहे थे। चेहरे पर हंसी थी, आंखों में आंसू और दिल में उससे भी ज्यादा रोमांच।


ओशुन खामोश खड़ी बस देखती रही, और चुपचाप अपने साथियों को लेकर वहां से चली गई। लगभग घंटे भर तक पांचों बैठे रहे। हॉल में इंतजार कर रहे आर्यमणि के सभी सुभचिंतक अपने घुटनों पर बैठकर ही आर्यमणि को बधाई दे रहे थे। घंटे भर बाद पूरा हॉल खाली हो गया। सभी जब खड़े हुये तभी तीनों टीन चिल्लाते हुए... "किस्स, किस्स, किस्स, किस्स"


एक लड़की, उसमे भी भारतीय लड़की होने का एहसास पहली बार जाग रहा था। रूही शर्म से पानी पानी हो गयी। फिर वो रुक नहीं पायी और शर्माकर अपने कमरे मे भाग गयी।


अलबेली:- बॉस एक बात बतानी थी..

आर्यमणि:- हां बॉस बोलिये…

अलबेली:- अपने पैक मे एक लड़के कि शख्त जरूरत है..

आर्यमणि:- मतलब???


इवान:- मैं और अलबेली अब आप समझ जाओ। थोड़ी झिझक हो रही है हमे बताने मे। चलो स्वीटी हम लोग ड्राइव पर चलते है।


इवान और अलबेली कंधे पर हाथ डाले निकल गये। आर्यमणि हंसते हुए दोनों को जाते देख रहा था। फिर पास खड़ी ओजल पर नजर गयी। आर्यमणि उसे खुद मे समेटकर, उसका माथा चूमते... "हम सब मे सबसे समझदार। जब मै बाहर निकल कर रूही के पास जा रहा था, तब क्या कह रही थी।"


सवाल जैसे ही हुए, ओजल के आंखों में आंसू आ गये। रोती हुई... "बहुत शिकायत थी ज़िन्दगी से। सबसे दर्द तो ये बात देती रही कि हमारी आई कितनी तकलीफ और दर्द से गुजरी होंगी। लोग आइयाशी करके गये और उस गंदे से बीज को नतीजा हम थे, जिसे 15 साल तक एक बंद कमरा मिला। अब मुझसे बोला नहीं जायेगा। बस इस ज़िन्दगी के लिए दिल से धन्यवाद। आज मर भी जाऊं ना तो गम नहीं होगा।"


आर्यमणि, ओजल के आंखों के आंसू पोछते.… "मैं रूही से उसी धरती पर शादी करूंगा। बहुत भाग लिये अब नहीं। अब उनको उनके किये की सजा देनी है।"


ओजल:- प्लीज नहीं। नहीं.. नहीं लौटना वहां... यहीं अच्छे हैं। ऐसा लग रहा है अभी तो जिंदगी शुरू हुई है।


आर्यमणि:- चुप हो जाओ। पैक मे एक प्यारा सा लड़का ले आता हूं, फिर अपना ये पैक कंप्लीट हो जायेगा।


ओजल:- ऐसा मत करो। मुझे अभी जीना है। प्लीज मुझे मत बांधो। जब भी कोई पसंद आयेगा वो पैक में आ जायेगा। मुझे बांधो मत भैया। मुझे अभी खुलकर जीना है। सॉरी..


आर्यमणि:- अब ये सॉरी क्यों...


ओजल:- मुझे अपने दोस्तों को फुटबॉल सीखाने जाना था और मै लेट हो गई। बाद में मिलती हूं भैया.…


आर्यमणि सबकी हरकतों को समझ रहा था और अंदर से हंस भी रहा था। रूही के कान बाहर ही थे। जैसे ही ओजल बाहर गयी, रूही की धड़कने ऐसी ऊपर–नीचे हुई की बेचारी को श्वांस लेना दूभर हो गया। शेप कब शिफ्ट हुआ रूही को खुद पता नहीं, बावजूद इसके धड़कन थी कि बेकाबू हुई जा रही थी।
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भाग:–95





आर्यमणि सबकी हरकतों को समझ रहा था और अंदर से हंस भी रहा था। रूही के कान बाहर ही थे। जैसे ही ओजल बाहर गयी, रूही की धड़कने ऐसी ऊपर–नीचे हुई की बेचारी को श्वांस लेना दूभर हो गया। शेप कब शिफ्ट हुआ रूही को खुद पता नहीं, बावजूद इसके धड़कन थी कि बेकाबू हुई जा रही थी।


रूही इतनी तेज श्वांस खींच रही थी कि आवाज बाहर तक सुनी जा सकती थी। दरवाजा खुला और रूही अपना सर अपने घुटनों के बीच छिपा ली। तभी वहां एक जोरदार गरज हुई। रूही घुटनों के बीच से अपना गर्दन ऊपर की और ना मे सर हिलाने लगी।


आर्यमणि भी अपना शेप शिफ्ट कर चुका था। छलांग लगाकर सीधा रूही के आगे। रूही के सर को अपने हाथ से ऊपर करते.… "शर्माती हुई क्या प्यारी लगती हो"


दोनों कि नजरें एक दूसरे से मिल रही थी। चेहरे पर फैलती मुस्कान अलग ही खुशी बयां कर रही थी। रूही को अपने अरमान छिपाना उतना ही मुश्किल हो रहा था। नजरें बेईमान हो चुकी थी। रूही की इक्छा तो थी एक पूरी नजर आर्यमणि को देख लिया जाय। लेकिन पलकें साथ नहीं देती। नजर उठती और फिर नीचे बैठ जाती।


आर्यमणि रूही के चेहरे को थाम लिया। रूही आंखे बंद किये अपना चेहरा ऊपर कि। कुछ पल बीते होंगे जब रूही अपनी आंखें खोली। इस बार दोनों कि नजरें लड़ रही थी। आंखें एक दूसरे पर ठहर चुकी थी। मुस्कुराते हुए दोनों कि हंसी निकल आयी…. "बॉस ऐसे मत देखो, अंदर कुछ अजीब सा हो रहा है।"


आर्यमणि उसके गोद में सर रखकर सीधा लेटते…. "तुम्हारे साथ होना सुकून देता है। रूही क्या मैंने कोई जबरदस्ती की है?"


रूही:- मुझे इमोशनल नहीं होना। बॉस मेरी भी वही इक्छा है जो तुम्हारी थी। अंत तक साथ सफर करना। हां लेकिन अभी यहीं रहते है। कुछ वक्त दो भूलने के लिए। नागपुर का वो जंगल किसी बुरे सपने से कम नहीं था।


आर्यमणि:- रूही, ओशुन और उसका पैक यहां क्या कर रहा था।


रूही:- बॉब लेकर आया था। हम सब को लगा कि तुम उसी से लिपटोगे...


आर्यमणि:- हां मै बेवकूफ होता तो लिपट लेता। लेकिन मै रूही के इमोशन ना पढ़ पाऊं तो किसे पढ़ पाऊंगा...


रूही:- कुछ भी आर्य... ऐसा होगा, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था...


आर्यमणि:- सोचा तो मैंने भी नहीं था, मेरी आंखें खुलेगी और तुम मुझे इतनी खुशियां दोगी। थैंक्यू सो मच। इतनी सारी तस्वीरें कहां से कलेक्ट कर ली। भूमि दीदी का बेबी भी हो गया, बिल्कुल गोल मटोल...


रूही:- अरे नही …. इतनी बड़ी भूल कैसे हो सकती है..


आर्यमणि:- अब ये सब क्यों?


रूही:- अनंत कीर्ति की पुस्तक खुल चुकी है।


आर्यमणि, बिल्कुल हैरान होते.… "क्या?"


आर्यमणि जैसे ही हैरानी से "क्या" कहा, रूही बड़ी फुर्ती से उसके होंठ को अपने होंठ से स्पर्श करती, आर्यमणि के निचले होंठ को दतों तले दबा दी और उसे बाहर के ओर खिंचते हुए छोड़ दी... "आओओओओ जंगली"…


जैसे ही आर्यमणि अपनी प्रतिक्रिया देकर आगे बढ़ा, रूही खिलखिलाकर हंसती हुई, उसे रोकती... "बॉस, बॉस, बॉस.. मैं कहां भाग रही हूं... लेकिन जो भी कही सच कही। यहां जितनी भी तस्वीर है उसे अपस्यु ने लगाया है।


आर्यमणि:- छोटे (अपस्यु) यहां आया था और तुमने उसे रोका क्यूं नहीं?


आर्यमणि शिकायती लहजे में पूछने लगा। इस बार रूही जैसे ही शरारत मे आगे बढ़ी, आर्यमणि उतनी ही तेजी उसके गर्दन को दबोचकर होंठ से होंठ लगाकर काटना शुरू किया। रूही झटका देकर आर्यमणि को दूर करती... "आव्वववववव !!! ओये सकाहारी वूल्फ आज क्या अपनी ही होने वाली बीवी को काट खाओगे"…. कह तो दी रूही ने हक से, लेकिन आर्यमणि के सीने से लग कर उतना ही ज्यादा शर्मा भी गयी। हां शायद उसके लिये भी अपने अंदर के अनुभव को बायां कर पाना मुश्किल ही था। शायद पहली बार उसके अंदर एक लड़की होने की भावना जागी थी।


बेचारी शर्माकर अपना मुंह छिपाते... "बॉस आज मेरा कॉन्फिडेंस डॉउन लग रहा है।"


बावरी लड़की शर्माना को अपना डॉउन कॉन्फिडेंस बता रही थी। समझ तो वो भी रही थी लेकिन बातों से जाहिर नहीं करना चाहती थी। आर्यमणि भी एक हाथ उसके बालो मे फेरते दूसरा हाथ उसके पीठ पर ले जाकर ड्रेस की जीप को धीरे–धीरे नीचे करने लगा।


रूही अब भी अपना चेहरा आर्यमणि के सीने से लगायी थी। जैसे ही आर्यमणि के हाथ जीप को नीचे करने लगे, रूही की धड़कनों ने उसका साथ छोड़ दिया। पहली बार अपने प्रेमी के हाथ अनुभव वो अपने बदन पर कर रही थी। मारे लाज के अपना सर आर्यमणि के सीने में पूरा दबाती अपनी दोनों बांह उसके पेट से होकर पीठ पर लपेटती हुई भींच ली।


उसके बढ़ी धड़कन आर्यमणि कानो तक पहुंचने लगी... "रूही... रूही"…. उसके सपाट से पीठ पर पूरा हाथ फेरते हुए आर्यमणि उसे पुकारने लगा। रूही तो बस इस खोए से पल मे आर्यमणि को महसूस कर रही थी। एक लंबी खुमारी में थी शायद और आर्यमणि का बोलना उसे खटक रहा था। लचरती सी आवाज में... "बॉसससस"… ही बस कह पायी और आर्यमणि को और जोर से खुद मे भींच ली।


आर्यमणि अपना सर ऊपर किये, उसके पीठ पर हाथ फेरते हुए रूही के ड्रेस को कंधे से सरकाने लगा। यूं तो वो रूही की ड्रेस ना जाने कितनी बार कंधे सरका चुका था। नहीं तो खुद ना जाने कितनी बार रूही अपने ड्रेस को सरका चुकी थी। लेकिन आज जब आर्यमणि ने ड्रेस नीचे करना शुरू किया बेचारी बरी झिझक के साथ किसी तरह खुद को संभाल पायी थी।


आर्यमणि के सीने से हटने के क्रम में आर्यमणि ने रूही का वो शर्म से लाल चेहरा भी देखा, जो एक प्यारी भारतीय स्त्री का अपने प्रेम मिलाप मे समर्पित प्रेमी के साथ होता है। अंदर से पूरी व्याकुल और चेहरे पर पूरी झिझक। रूही थोड़ी शर्माती थोड़ी लज्जाती अपनी नजरों को शर्माकर कभी नीचे तो कभी ऊपर करती।


आर्यमणि, रूही को अपने ओर खींचकर अपने होंठ उसके गर्दन से लेकर कान तक चलाने लगा। रूही के बदन में जैसे अरमानों ने हिलकोर मारा हो। रोम–रोम कामुत्तेजना से सिहर गया। बदन पर रोएं खड़े हो गए। आर्यमणि, रूही को अपने गोद में उठाकर उसे बिस्तर पर लिटाया और खुद उसके ऊपर आकर बेहाताशा चूमने लगा। चूमते हुए वह अपने हाथों में रूही के दोनो वक्षों को समेटे उससे प्यार से मसल भी रहा था और उसके गोरे बदन को चूम भी रहा था।


रूही की श्वांस और भी ज्यादा गहरी होती जा रही थी। आर्यमणि जब अपने हाथों से वक्ष को धीरे–धीरे मसलता रूही अपने हाथ से चादर को पूरी तरह से भींच लेती। उसके योनि में सुरसुरी और मधुर स्त्राव को वो अनुभव करने लगी। शायद आज जितनी शर्मा रही थी अंदर से उतनी ज्यादा कामुक भी महसूस कर रही थी। खुद को पूर्ण रूप से आर्यमणि की होने का आभास उसे दीवाना बना रहा था। योनि में जैसे चिंगारी लगी हो। रूही अपने पीठ को ऊपर करने के साथ–साथ अपनी कमर को आर्यमणि की कमर से चिपकाकर उसे घिसने लगी।


आर्यमणि भी उतनी ही तेजी से अपना कपड़ा उतारकर जैसे ही रूही के ऊपर आया, आज पहली बार उसकी आंखें बंद थी। आर्यमणि आते के साथ ही रूही को होंठ को चूमते हुए उसके हाथ को ले जाकर लिंग के ऊपर रख दिया। रूही के बिलकुल ठंडे हाथ जब आर्यमणि के लिंग पर पड़े, वो अंदर से हिल गया। आज पहली बार रूही के हाथों का स्पर्श इतना सौम्य था की वो पूरे शरीर में झनझनाहट महसूस करने लगा। शायद अब दोनो के लिए बर्दास्त करना मुश्किल हो गया था। रूही बेसब्री बनती, लिंग को योनि के ऊपर जोड़–जोड़ से घिसने लगी और तभी जैसे रूही के बदन ने हिचकोले खाए हो और पूरा बदन में मस्ती दौर गयी।


एक ही झटके में पूरा लिंग योनि के अंदर था। और आर्यमणि बिलकुल मस्ती में झटके मारने लगा। रूही आज अलग ही मस्ती में चूर थी। अरमान बेकाबू थे और शर्म पूरी तरह से हावी थे। कितनी भी कोशिश करके देख ली लेकिन आर्यमणि के जोशीले झटके पर रूही के मुंह से दबी सी आवाज निकल ही जाती। आज अंदर से हार्मोन इतने बह रहे थे कि रूही कई बार बह चुकी थी, लेकिन आर्यमणि था कि रुकने का नाम ही नही ले रहा था। कसमसाती, मचलती, पसीने से तर रूही नीचे लेटी रही और आर्यमणि पूरे जोश से होश खोकर पूरे बिस्तर को हिचकोले खिलाने वाले झटके मारता रहा। चरम सीमा के पार जब वीर्य स्त्राव हुआ तब रूही, आर्यमणि से लिपटकर अपनी श्वांस सामान्य करने लगी।


दोनों असीम सुख के साथ एक दूसरे से लिपटे हुए थे। तभी एक–एक करके तीनों टीन वुल्फ हॉल में पहुंचकर उधम–चोकड़ी मचाने लगे। रूही सबकी आहट पाकर हड़बड़ा कर उठी। आर्यमणि इतने प्यारे से माहौल में खोया था कि उसे रूही का उठकर जाना पसंद नही आया और रूही का हाथ पकड़कर खींच लिया।


बेचारी जल्दी से अपने कपड़े पहनने कि कोशिश कर रही थी लकीन आर्यमणि ने ऐसा खींचा की फिर से उसके खुले वक्ष आर्यमणि के सीने में दबे थे। चेहरा गर्दन पर और रूही के पूरे बाल फैलकर आर्यमणि के चेहरे पर। तभी तेज आहट के साथ दरवाजा खुला और तीनों टीन वुल्फ "पार्टी–पार्टी" चिल्लाते हुये दरवाजे पर खड़े थे, बिना अंदर के माहौल की कुछ भी जानकारी लिये।


अब सीन कुछ ऐसे था की रूही की ड्रेस कमर तक थी, पीछे से सपाट खुली पीठ दिख रही थी। आर्यमणि अपने चौड़ी भुजाओं के बीच रूही के पीठ को दबोच रखा था, रूही का चेहरे आर्यमणि के सीने में छुपा था और रूही के बाल आर्यमणि के चेहरे पर फैले होने के कारण उसका चेहरा नहीं दिख रहा था।…


अंदर का नजारा देखकर.… "बॉस बाल हटाकर चेहरा तो दिखाओ, फेस का एक्सप्रेशन कैसा है?" अलबेली छेड़ती हुई कहने लगी...


"लगता है बॉस अभी खोये है। अपनी महबूबा को बाहों में लिये सोये है। बॉस हमारे लिए क्या आदेश है।"…. ओजल भी चुटकी लेने लगी.…


"बॉस हम जा रहे है। आप दोनों कंटिन्यू करो। ओह हां ये दरवाजा बंद कर लेना।"…. इवान भी सबके साथ मिलकर छड़ने लगा...


"बॉस कुछ तो बोलो"… अलबेली फिर से छेड़ी...


"ये फेविकोल का जोड़ है छूटेगा नहीं"… ओजल भी से फिर छेड़ी...


बाल के नीचे से ही तेज दहाड़ निकली। एक ब्लड पैक के मुखिया की आवाज जो अपने पैक को कंट्रोल करना चाह रहा था। उसके गरज सुनकर, तीनों ही हसने लगे।..…. "बॉस हमे कंट्रोल कम कर रहे हो और अपनी बेबसी का परिचय ज्यादा दे रहे हो। ठीक है हम जा रहे है।"… इवान सबको वहां से हटाकर दरवाजा तेज बंद करता गया..


जैसे ही दरवाजा बंद हुआ, शर्म से मरी जा रही रूही झटाक से उठी और फटाक से ड्रेस को कंधे के ऊपर चढ़ा ली।…. "बॉस उठो भी, मुझे उनको अकेले फेस नहीं किया जायेगा"… रूही मिन्नतें करती हुई कहने लगी। आर्यमणि मुस्कुराकर रूही को प्यार से देखा और बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया, रूही के सामने अपना सर ऐसे झुकाया जैसे कोई गुलाम हो... "बॉस तो आप ही होंगी मैम, हम तो खिदमतगार गुलाम ही कहलायेंगे।"….


रूही थोड़ा चिढ़कर, आर्यमणि को वॉर्डरोब के ओर धक्के देती... "अब बाहर जाओ भी आर्य। सब हॉल में हमारा इंतजार कर रहे है।"..


सबके जाने के कुछ देर बाद दोनों बाहर निकले। दोनों को बाहर आते देख, ओजल, इवान और अलबेली खड़ी होकर झूमते हुए सीटियां और तालियां बजाते.… "नया सफर मुबारक हो दोनों हमसफर को।"


तीनों टीन्स के चेहरे ऐसे थे मानो छोटे बच्चों की बड़ी सी ख्वाइश पूरी हो गयी हो। अलबेली अपना हाथ आर्यमणि के ओर आगे बढ़ायी और इधर गाना बजने लगा…


तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना
तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना
कैसे तूने अनकहा, तूने अनकहा सब सुना
तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना

तू दिन सा है, मैं रात आना दोनों मिल जाएँ शामों की तरह

मोह मोह के धागे तेरी उँगलियों से जा उलझे
ये मोह मोह के धागे तेरी उँगलियों से जा उलझे
कोई टोह टोह ना लागे किस तरह गिरह ये सुलझे
ये मोह मोह के धागे तेरी उँगलियों से जा उलझे


बैकग्राउंड से मोह मोह के धागे बजना शुरू हुआ। आर्यमणि पूरा खुलकर हंसते हुए अलबेली का हाथ थाम लिया। अलबेली अपनी दोनों हाथ आर्यमणि के कंधे पर रखी थी और आर्यमणि, अलबेली के कमर को थामकर दोनों धीरे-धीरे नाचने लगे।


जैसे ही बैकग्राउंड म्यूज़िक का दूसरा लाइन शुरू हुआ, इवान अपना हाथ रूही के ओर बढ़ा दिया। रूही भी हंसती हुई इवान के कंधे मे अपने दोनो हाथ फंसा दी। इवान रूही के साथ नाचना शुरू किया। सबके चेहरे पर हंसी थी। शायद सबने पहली बार परिवार की खुशी को महसूस किया। कमाल के होते ये आंसू भी, गम में तो बहते ही है, हां लेकिन जिस खुशी को जिंदगी भर तरसते रहे हो, वो मिल जाए तो फिर पता नहीं रुकते ही नहीं ये आंसू। खिले से चेहरे पर भी ये आंसू बहते रहते है...


यह एक पारिवारिक क्षण थे। एक छोटे से वूल्फ परिवार का हंसी खुशी का पारिवारिक क्षण जिसमे उस पैक के मुखिया आर्यमणि द्वारा लिये गये फैसले ने सबको चौंकाया तो था ही, साथ ही साथ सबकी भावनाओं के तार भी उतनी ही मजबूती से जोड़ दिया था। घर में पार्टी जैसा माहोल था जहां केवल और केवल परिवार के लोग थे। सब मिलकर पका भी रहे थे और हॉल में बड़े से डानिंग टेबल पर खाना सजा भी रहे थे।


आज एक परिवार कि तरह बैठ रहे थे, जहां आर्यमणि सभी से खुलकर बातें कर रहा था और वो सब भी उतने ही हंसते हुये सुन रहे थे। किसी की भी पुरानी कोई यादें थी नहीं जिसपर ये अपनी बचपन कि कहानी शुरू करते। क्यूंकि ट्विंस, ओजल और इवान ने तो उम्र भर केवल दीवारें ही देखी थी। वहीं रूही और अलबेली ने तो उस से भयंकर मंजर को सरदार खान के उस किले मे झेला था।


एक के पास ही बचपन कि प्यारी कहानी थी। चित्रा, निशांत और आर्यमणि। सभी खाने के टेबल पर पहले उनके बचपन कि छोटी–बड़ी कहानी सुने। फिर जो 3 बच्चों का बचपन लगभग साल भर से शुरू हुआ था, उनके झगड़े और खट्टे–मीठे, नोक–झोंक रूही और आर्यमणि सुन भी रहे थे और उतने ही दिल खोलकर हंस भी रहे थे।


बातों के दौरान ही पता चला की इवान भी आर्यमणि कि तरह एक्सपेरिमेंट कर रहा था जहां वो किसी सामान्य से इंसान के साथ संबंध बनाकर खुद को कंट्रोल करने कि ट्रेनिंग लेने वाला था और यही वजह थी कि इवान अलबेली को चाहता तो था, लेकिन वो चाह कर भी नहीं बता सकता था कि वो किसी गैर के साथ संबंध केवल अपने एक्सपेरिमेंट के लिये बनाना चाहता है।


आर्यमणि कैस्टर के फूल के ज़हर को खुद में सोखने के कारण लगभग महीने दिन तक बेहोश रहा था। उसी दौरान इवान को अपनी भावना और आंसू बहाने के लिये जब अलबेली का कंधा मिला, तभी वो अलबेली को खुद से दूर करने के वजह को बता दिया। यूं तो अलबेली भी रो रही थी, दिमाग जानता था कि आर्यमणि को कुछ नहीं हुआ था लेकिन दिल है कि मानता नहीं।


अलबेली भी दर्द और आंसुओं में थी। लेकिन जैसे ही इवान अपनी भावना व्यक्त किया, उफ्फफफ, इस लड़की का गुस्सा.. मार मारकर इवान को सुजा दी। रुक ही नहीं रही थी। किसी तरह इस लड़ाकू विमान पर रूही और ओजल ने मिलकर काबू किया था। उन दोनों के झगड़े का कारण जब पता चला तब गम के उस माहोल में रूही और ओजल क्या लोटपोट होकर हंसी थी।


अब भी जब ये वाक्या इवान बता रहा था, रूही और ओजल का हंसना शुरू हो चुका था। और उधर अलबेली का पारा वापस से चढ़ गया। अलबेली का कलेजा जैसे दोबारा जल गया हो और दिल में ऐसी फीलिंग सी आने लगी की ये कमीना इवान कहीं दिमाग में फिर से सेकंड थाउट तो नही पाल रखा की बॉस से अपने एक्सपेरिमेंट के बारे में बताने पर कहीं बॉस उसके एक्सपेरिमेंट को हरी झंडी न दे दे। फिर क्या था अलबेली पिल गयी मारने के लिये। एक लात तो जमा ही चुकी थी और इवान कई फीट जाकर गिरा था। हां लेकिन इतने मार से अलबेली का गुस्सा शांत हो तब ना। इवान को पटक–पटक कर मारने के लिये, दौड़ लगाकर छलांग लगा चुकी थी।


उसी वक्त फिर से रूही उसे जकड़ती हुई कहने लगी... "रुक जा अलबेली। तू खाती क्या है रे रुक जा। उसे मार देगी क्या?"


क्या झटकी थी अलबेली। रूही उसके दोनो बांह को जकड़कर अपनी बात बोल रही थी। अलबेली ने इतना तेज झटका की वो बेचारी दीवार से जाकर टकराई और धम्म से नीचे गिरी। ओजल, इवान को उठाई। अपने भाई के लूटी–पिटी हालत पर हंसे या रोये पता ही नहीं चल रहा था। इतने में ही पहले ओजल, रूही को हवा में उड़ते देखी और उसके तुरंत बाद अलबेली ने ओजल को इवान के आगे से, ऐसे झटके से किनारे की, कि बेचारी पहले तो अनियंत्रित होकर जमीन पर गिरी, फिर फिसलती हुई जाकर दीवार से टकरायी।


अलबेली, इवान का कॉलर पकड़कर उसे झटके खींच ली और उसके होंठ से होंठ लगाकर लंबा वाइल्ड किस्स करती अलग होती कह दी... "दोबारा मन में ऐसे फालतू के ख्याल आये तो हांथ पाऊं तोड़कर बिठा दूंगी।…. (फिर शर्माती हुई) बाकी जो भी और जैसा भी तुम्हे एक्सपेरिमेंट करना हो मेरे साथ करो, कभी कोई शिकायत ना रहेगी। जान निकाल लेना उफ्फ ना करूंगी लेकिन किसी दूसरी लड़की के साथ हुए तो जान निकाल लूंगी।"


क्या ही एक्शन मोमेंट था। इवान भी उतने ही पैशनेट होकर अलबेली को चूमा और तीनो (आर्यमणि, रूही और ओजल) के सामने से अलबेली को उठाकर बाहर ले जाते.… "हम जरा अपना झगड़ा शहर के एक चक्कर काटते हुये सुलझाते है, तब तक एक ग्रैंड पार्टी की प्लानिंग कर लो।" ओजल और रूही तो इनके प्यार और पागलपन को देखकर पहले भी हंसी से लोटपोट हो चुकी थी। आज पहली बार आर्यमणि देख रहा था और वह भी खुद को लोटपोट होने से रोक नहीं पाया।
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भाग:–96






क्या ही एक्शन मोमेंट था। इवान भी उतने ही पैशनेट होकर अलबेली को चूमा और तीनो (आर्यमणि, रूही और ओजल) के सामने से अलबेली को उठाकर बाहर ले जाते.… "हम जरा अपना झगड़ा शहर के एक चक्कर काटते हुये सुलझाते है, तब तक एक ग्रैंड पार्टी की प्लानिंग कर लो।" ओजल और रूही तो इनके प्यार और पागलपन को देखकर पहले भी हंसी से लोटपोट हो चुकी थी। आज पहली बार आर्यमणि देख रहा था और वह भी खुद को लोटपोट होने से रोक नहीं पाया।


आर्यमणि, रूही और ओजल हंस रही थी। अभी जितनी तेजी से दोनो (अलबेली और इवान) बाहर निकले थे, उतने ही तेजी से वापस आकर सबके बीच बैठते... "हमने सोचा हमारा मसला तो वैसे भी सुलझ गया है, फिर क्यों बाहर जाकर वक्त बर्बाद करे, जब सबके साथ इतना अच्छा वक्त गुजर रहा।"


हंसी की किलकारी फिर से गूंजने लगी। सभी पारिवारिक माहौल का आनंद ले रहे थे। हां लेकिन उस वक्त ओजल ने रूही की उस भावना का जिक्र कर दी, जो शायद रूही कभी आर्यमणि से नहीं कह सकती थी। बीते एक महीने में जब आर्यमणि गहरी नींद में अपने हर कोशिकाओं को हील कर रहा था, तब रूही हर पल खुद को आर्यमणि के लिये समर्पित किये जा रही थी। वह जब भी अकेली होती इस बात का दर्द जरूर छलक जाता की…. "दिल के करीब जो है इस बार उसे दूर मत करो, वरना मेरे लिये भी अब इस संसार में जीवित रहना कठिन हो जायेगा। जानती हूं वह मेरा नही लेकिन मेरे लिये तो वही पूरी दुनिया है।"


जब ये बात ओजल कह गयी, रूही अपना सर नीचे झुका ली। आंसुओं ने एक बार फिर से उसके आंखें भिगो दी थी और सिसकियां लेती अपनी विडंबना वह कह गयी…. "किस मुंह से इजहार कर देती अपनी भावना। कोई एक ऐसी बात तो हो जो मुझमें खास हो। राह चलता हर कोई जिसे नोच लेता था, उसकी हसरतों ने आर्यमणि के सपने देख लिये, वही बहुत बड़ी थी।"


अबकी बार ये रोतलू भावना किसी भी टीन वुल्फ को पसंद ना आयी। आर्यमणि भी अपनी आंख सिकोड़कर बस रूही को ही घुर रहा था, और रूही अपने सर को नीचे झुकाये बस सिसकियां ले रही थी। तभी अलबेली गुस्से में उठी और ग्रेवी से भरी बाउल को रूही के सर पर उड़ेलकर आर्यमणि के पीछे आ गयी।


ओ बेचारी रूही.… जली–कटी भावना मे रो रही थी और अलबेली ने मसालेदार होली खेल ली। हंस–हंस कर सब लोटपोट हुए जा रहे थे। हां रूही ने बदला लेने कि कोशिश जरूर की लेकिन अलबेली उसके हाथ ना आयी। इन लोगों की हंसी ठिठोली चलती रही। इसी बीच ज़िन्दगी में पहली बार आर्यमणि ने भी कॉमेडी ट्राई मारा था। बोले तो ओजल और इवान थे तो उसी मां फेहरीन के बच्चे, जिसकी संतान रूही थी।


आर्यमणि के साथ रूही बैठी थी तभी आर्यमणि कहने लगा... "कैसा बेशर्म है तुम्हारे भाई–बहन। जान बुझ कर तुम्हे वैसी हालत में देखते रहे (बिस्तर पर वाली घटना) और दरवाजे से हट ही ना रहे थे।"….


अब वोल्फ पैक था, ऊपर से आज तक कभी भी इन बातों का ध्यान ना गया होगा की ओजल और इवान भाई–बहन है। हां लेकिन आर्यमणि के इस मजाक पर रूही को आया गुस्सा, पड़ोस मे ही आर्यमणि था बैठा हुआ... फिर तो चल गया रूही का गुस्से से तमतमाया घुसा।


आव्व बेचारा आर्यमणि का जबड़ा…. लेफ्ट साइड से राईट साइड घूम गया। रूही अपनी गुस्से से फुफकारती लाल आंखों से घूरती हुई कहने लगी.… "दोबारा ऐसे बेहूदा मजाक किये ना तो सुली पर टांग दूंगी। ना तो बच्चो के इमोशन दिखी और ना ही उनकी खुशी, बस उतर आये छिछोरेपन पर।"..


बहरहाल, काफी मस्ती मजाक के बीच पूरी इनकी शाम गुजर रही थी। बात शुरू होते ही फिर चर्चा होने लगी उन तस्वीरों और अनंत कीर्ति के उस पुस्तक की जीसे अपस्यु ने खोल दिया था।


आर्यमणि, सबको शांत करते अपस्यु को कॉल लगा दिया.…


अपस्यु:– बड़े भाई को प्रणाम"..


आर्यमणि:–मैं कहां, तू कुछ ज्यादा बड़ा हो गया है। कहां है मियामी या फिर हवाले के पैसे के पीछे?


अपस्यु:– बातों से मेरे लिये शिकायत और आंखों में किसी के लिये प्यार। बड़े कुछ बदले–बदले लग रहे हो।


आर्यमणि:– तू हाथ लग जा फिर कितना बदल गया हूं वो बताता हूं। एक मिनट सर्विलेंस लगाया है क्या यहां, जो मेरे प्यार के विषय में बात कर रहा?


अपस्यु:– नही बड़े, ओजल ने न जाने कबसे वीडियो कांफ्रेंसिंग कर रखा था। अब परिवार में खुशी का माहोल था, तो थोड़ा हम भी खुश हो गये।


आर्यमणि:– ए पागल इतना मायूस क्यों होता है। दिल छोटा न कर। ये बता तू यहां रुका क्यों नही?


अपस्यु:– बड़े मैं रुकता वहां, लेकिन भाभी (रूही) की भावना और आपके पुराने प्यार को देखकर मैं चिढ़ सा गया था। मुझे लगा की कहीं जागने के बाद तुमने अपने पुराने प्यार (ओशुन) को चुन लिया, फिर शायद भाभी के अंदर जो वियोग उठता, मैं उसका सामना नहीं करना चाहता था। और शायद अलबेली, इवान और ओजल भी उस पल का सामना न कर पाते। पर बड़े तुमने तो हम सबको चौंका दिया।


आर्यमणि:– तुम सबकी जिसमे खुशी होगी, वही तो मेरी खुशी है। मेरे शादी की पूरी तैयारी तुझे ही करनी होगी।


अपस्यु:– मैं सात्विक आश्रम के केंद्र गांव जा रहा हूं। पुनर्स्थापित पत्थर को गांव में एक बार स्थापित कर दूं फिर वह गांव पूर्ण हो जायेगा। गुरु ओमकार नारायण की देख–रेख़ में एक बार फिर से वहां गुरकुल की स्थापना की जायेगी। उसके बाद ही आपकी शादी में आ पाऊंगा। यदि मुझे ज्यादा देर हो जाये तो आप लोग शादी कर लेना, मैं पीछे से बधाई देने पहुंचूंगा...


आर्यमणि:– ये तो अच्छी खबर है। ठीक है तू उधर का काम खत्म करले पहले फिर शादी की बात होगी। और ये निशांत किधर है, उसकी 4 महीने की शिक्षा समाप्त न हुई?


अपस्यु:– वह एक कदम आगे निकल गये है। वह पूर्ण तप में लिन है। पहले तो उन्हे संन्यासी बनना था लेकिन ब्रह्मचर्य भंग होने की वजह से ऐसा संभव नहीं था इसलिए अब मात्र ज्ञान ले रहे है। तप से अपनी साधना साध रहे। पता न अपनी साधना से कब वाह उठे कह नही सकता।


आर्यमणि:– हम्म्म… चलो कोई न उसे अपना ज्ञान लेने दो। सबसे मिलने की अब इच्छा सी हो रही। तुम्हे बता नही सकता उन तस्वीरों को आंखों के सामने देखकर मैं कैसा महसूस कर रहा था। खैर यहां क्या सिर्फ मुझसे ही मिलने आये थे, या बात कुछ और थी।


अपस्यु:– बड़े, शंका से क्यों पूछ रहे हो?


आर्यमणि:– नही, अनंत कीर्ति की पुस्तक खोलकर गये न इसलिए पूछ रहा हूं?


अपस्यु:– "क्या बड़े तुम भी सबकी बातों में आ गये। मैं शुद्ध रूप से तुमसे ही मिलने आया था। मन में अजीब सा बेचैनी होने लगा था और रह–रह कर तुम्हारा ही ध्यान आ रहा था, इसलिए मिलने चला आया। जब मैं कैलिफोर्निया पहुंचा तब यहां कोई नही था। मन और बेचैन सा होने लगा। एक–एक करके सबको कॉल भी लगाया लेकिन कोई कॉल नही उठा रहा था। लागातार जब मैं कॉल लगाते रह गया तब भाभी (रूही) का फोन किसी ने उठाया और सीधा कह दिया की सभी मर गये।"

"मैं सुनकर अवाक। फिर संन्यासी शिवम से मैने संपर्क किया। जितनी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी मैं पोर्ट होकर मैक्सिको के उस जंगल में पहुंचा। लेकिन जब तुम्हारे पास पहुंचा तब तुम ही केवल लेटे थे बाकी चारो जाग रहे थे। तुमने कौन सा वो जहर खुद में लिया था, तुम्हारे शरीर का एक अंग नही बल्कि तुम्हारे पूरे शरीर की जितने भी अनगिनत कोशिकाएं थी वही मरी जा रही थी। 4 दिन तक मैने सेल रिप्लेसमेंट थेरेपी दिया तब जाकर तुम्हारे शरीर के सभी कोशिकाएं स्टेबल हुई थी और ढंग से तुम्हारी हीलिंग प्रोसेस शुरू हुई।


आर्यमणि:– मतलब तूने मेरी जान बचाई...


अपास्यु:– नही उस से भी ज्यादा किया है। बड़े तुम मर नही रहे थे बल्कि तुम्हारी कोसिकाएं रिकवर हो रही थी। यदि मैंने सपोर्ट न दिया होता तो एक महीने के बदले शायद 5 साल में पूरा रिकवर होते, या 7 साल में या 10 साल में, कौन जाने...


आर्यमणि:– ओह ऐसा है क्या। हां चल ठीक है इसके लिये मैं तुम्हे मिलकर धन्यवाद भी कह देता लेकिन तूने अनंत कीर्ति की पुस्तक खोली क्यों?


अपस्यु:– तुम्हारा पूरा पैक झूठा है। नींद में तुमने ही "विप्रयुज् विद्या" के मंत्र पढ़े थे मैने तो बस मेहसूस किया की किताब खुल चुका है। मुझे तो पता भी नही था की "विप्रयुज् विद्या" के मंत्र से पुस्तक खुलती है।


आर्यमणि:– तू मुझे चूरन दे रहा है ना...


अपस्यु:– तुमने अभी तक दिमाग के अंदर घुसना नही सीखा है, लेकिन मैं यहीं से तुम्हारे दिमाग घुसकर पूरा प्रूफ कर दूंगा। या नहीं तो अपने दिमाग में क्ला डालो और अचेत मन की यादें देख लो।


आर्यमणि:– अच्छा चल ठीक है मान लिया तेरी बात। चल अब ये बता किताब में ऐसा क्या लिखा है, जिसके लिये ये एलियन पागल बने हुये है?


अपस्यु:– बड़े मैं जो जवाब दूंगा उसके बाद शायद मुझे एक घंटे तक समझाना होगा।


आर्यमणि:– पढ़ने से ज्यादा सुनने में मजा आयेगा। तू सुना छोटे, मैं एक घंटे तक सुन लूंगा।


अपस्यु:– बड़े, इसे परेशान करना कहते हैं। किताब पास में ही तो है।


आर्यमणि:– मुझे फिर भी तुझे सुनना है।


अपस्यु:– पहले किताब को तो देख लो की वो है क्या? मेरे बताने के बाद तुम पहली बार किताब देखने का रहस्यमयी मजा खो दोगे।


आर्यमणि:– बकवास बंद और सुनाना शुरू कर।


आर्यमणि:– ठीक है तो सुनो, उस किताब को न तो पढ़ा जा सकता है और न ही उसमे कुछ लिखा जा सकता है। हां लेकिन "विद्या विमुक्त्ये" मंत्र का जाप करोगे तो उसमे जो भी लिखा है, पढ़ सकते हो। बहुत ज्यादा नहीं बस दिमाग चकराने वाले वाक्यों से सजे डेढ़ करोड़ पन्नो को पढ़ने के बाद सही आकलन कर सकते हो की अनंत कीर्ति की पुस्तक के लिये एलियन क्यों पागल है।


आर्यमणि:– छोटे मजाक तो नही कर रहे। डेढ़ करोड़ पन्ने भी है क्या उसमे?


अपस्यु:– इसलिए मैं कह रहा था कि खुद ही देख लो।


आर्यमणि:– ठीक है तू जल्दी से पूरी बात बता। मैं आज की शाम किताब को देखने और अध्यात्म में तो नही गुजार सकता।


अपस्यु:– "ठीक है ध्यान से सुनो। कंचनजंगा का वह गांव शक्ति का एक केंद्र माना जाता था जहां सात्त्विक आश्रम से ज्ञान लेकर कई गुरु, रक्षक, आचार्य, ऋषि, मुनि और महर्षि निकले थे। सात्विक आश्रम का इतिहास प्रहरी इतिहास से कयी हजार वर्ष पूर्व का है। किसी वक्त एक भीषण लड़ाई हुई थी जहां विपरीत दुनिया का एक सुपरनैचुरल (सुर्पमारीच) ने बहुत ज्यादा तबाही मचाई थी। उसे बांधने और उसके जीवन लीला समाप्त करने के बाद उस वक्त के तात्कालिक गुरु वशिष्ठ ने एक संगठन बनाया था। यहीं से शुरवात हुई थी प्रहरी समुदाय की और पहला प्रहरी मुखिया वैधायन थे। अब वह भारद्वाज थे या सिंह ऐसा कोई उल्लेख नहीं है किताब में।"


"प्रहरी पूर्ण रूप से स्वशासी संगठन (autonomus body) थी, जिसका देख–रेख सात्त्विक आश्रम के गुरु करते थे। उन्होंने सभी चुनिंदा रक्षक को प्रशिक्षण दिया और 2 दुनिया के बीच शांति बनाना तथा जो 2 दुनिया के बीच के विकृत मनुष्य या जीव थे, उन्हें अंजाम तक पहुंचाने के लिए नियुक्त किया गया था। उस वक्त उन्हें एक किताब शौंपी गई थी, जिसे आज अनंत कीर्ति कहते है। दरअसल उस समय में ऐसा कोई नाम नहीं दिया गया था। इसे विशेष तथा विकृत जीव या इंसान की जानकारी और उनके विनाश के कहानी की किताब का नाम दे सकते हो।"


"इस किताब का उद्देश्य सिर्फ इतना था कि जब भी प्रहरी को कोई विशेष प्रकार का जीव से मिले या प्रहरी किसी विकृत मनुष्य, जीव या सुपरनेचुरल का विनाश करे तो उसकी पूरी कहानी का वर्णन इस किताब में हो। वर्णन जिसे कोई प्रहरी इस किताब में लिखता नही बल्कि यह किताब स्वयं पूरी व्याख्यान लिखती थी। लिखने के लिये किताब न सिर्फ प्रहरी के दिमाग से डेटा लेती थी बल्कि चारो ओर के वातावरण, विशेष जीव या विकृत जो भी इसके संपर्क में आता था, उसे अनुभव करने के बाद किताब स्वयं पूरी कहानी लिख देती थी।"


कहानी भी स्वयं किताब किस प्रकार से लिखती थी... यदि कोई विशेष जीव मिला तो उस जीव की उत्पत्ति स्थान। उसके समुदाय का विवरण, उनके पास किस प्रकार की शक्तियां है और यदि वह जीव किसी दूसरों के लिये प्राणघाती होता है तब उसे रोकने के उपाय।"


"वहीं विकृत मनुष्य, जीव या सुपरनैचुरल के बारे में लिखना हो तो... उसकी उत्पत्ति स्थान यदि पता कर सके तो। वह विकृत विनाश का खेल शुरू करने से पहले अपने या किसी गैर समुदाय के साथ कैसे पहचान छिपा कर रहता था। किस तरह की ताकते उनके पास थी। उन्हें कैसे मारा गया और जिस स्थान पर वह मारा गया, उसके कुछ सालों का सर्वे, जहां यह सुनिश्चित करना था कि उस विकृत ने जाने से पहले किसी दूसरे को तो अपने जैसा नही बनाकर गया। या जिनके बीच पहचान छिपाकर रहता था उनमें से कोई ऐसा राजदार तो नही जो या तो खुद उस जैसा विकृत बन जाये या मरे हुये विकृत की शक्ति अथवा उसे ही इस संसार में वापस लाने की कोई विधि जनता हो।"


"प्रहरी को कुछ भी उस किताब के अंदर नही लिखना था बल्कि वह सिर्फ अपने प्रशिक्षण और तय नीति के हिसाब से काम करते वक्त किताब को साथ लिये घूमते थे। अनंत कीर्ति की पुस्तक की जानकारी उस तात्कालिक समय की हुई घटनाओं के आधार पर होती थी। हो सकता था भविष्य में आने वाले उसी प्रजाति के कुछ विकृत, आनुवंशिक गुण मे बदलाव के साथ दोबारा टकरा जाये। इसलिए जो भी जानकारी थी उसे बस एक आधार माना जाता था, बाकी हर बार जब एक ही समुदाय के विकृत आएंगे तो कोई ना कोई बदलाव जरूर देखने मिलेगा।"


कुछ बातें किताब को लेकर काफी प्रचलित हुई थी, जो अनंत कीर्ति की पुस्तक को पाने के लिये किसी भी विकृत का आकर्षण बढ़ा देती थी...

1) प्रहरी किसी छिपे हुये विकृत की पहचान कैसे कर पाते है?

2) विकृत को जाल में कैसे फसाया गया था?

3) उन्हें कैद कैसे किया गया था?

4) उन्हें कैसे मारा गया था?


"यही उस पुस्तक की 4 बातें थी जिसकी जानकारी किसी विकृत के पास पहुंच जाये तो उसे न केवल प्रहरी के काम करने का मूल तरीका मालूम होगा, बल्कि सभी विकृत की पहचान कर उसे अपने साथ काम करने पर मजबूर भी कर सकता था। इसलिए किताब पर मंत्र का प्रयोग किया गया था। इस मंत्र की वजह से वो किताब अपना एक संरक्षक खुद चुन लेती थी। यह किताब नजर और धड़कने पहचानती है। किसी की मनसा साफ ना हो या मन के अंदर उस किताब को लेकर किसी भी प्रकार कि आशाएं हो, फिर वो पुस्तक नहीं खुलेगी।"


"कई तरह के मंत्र से संरक्षित इस किताब को खोलकर कोई पढ़ नही सकता। किसी भी वातावरण मे जाए या कोई ऐसा माहौल हो, जिसकी अच्छी या बुरी घटना को इस किताब ने कभी महसूस किया था, तब ये किताब खुद व खुद इशारा कर देती है और जैसे ही किताब खोलते हैं, सीधा उस घटना का पूरा विवरण पढ़ने मिलेगा।"


"मन में जब कोई दुवधा होगी और किसी प्रकार का बुरे होने की आशंका, तब वो किताब मन के अंदर की उस दुविधा या आशंका को भांपकर उस से मिलते जुलते सारे तथ्य (facts) सामने रख देगी। और सबसे आखिर में जितने भी जीव, विकृत मनुष्य, सुपरनैचुरल या फिर वर्णित जितने भी सजीव इस किताब में लिखे गये है, जब वह आप–पास होंगे तो उनकी पूरी जानकारी किताब खोलने के साथ ही मिलेगी। किताब की जितनी भी जानकारी थी, वो मैंने दे दी। कुछ विशेष तुम्हे पता चले बड़े तब मुझसे साझा करना।"


आर्यमणि और उसका पूरा पैक पूरी बात ध्यान लगाकर सुन रहे थे। पूरी बात सुनने के बाद आर्यमणि.… "छोटे ये बता जब तूने किताब पढ़ने के लिये मंत्र मुक्त किया, तो क्या डेढ़ करोड़ पन्ने में से पहले पन्ने पर ये पूरी डिटेल लिखी हुई थी?"…


अपस्यु:– एक बार मंत्र मुक्त करके खुद भी पढ़ने की कोशिश तो करो। ये किताब हमे भी पागल बना सकती है। पहला पन्ना जब मैने पढ़ना शुरू किया तब तुम विश्वास नहीं करोगे वहां पहला लाइन क्या लिखा था...


आर्यमणि:– तू बता छोटे मैं विश्वास कर लूंगा, क्योंकि किताब मेरे ही पास है...


अपस्यु:– सुनो बड़े पहला लाइन ऐसा लिखा था.… प्रहरी मकड़ी हाथ खुफिया मछली जंगल उड़ते तीर और भाला मारा गया।


आर्यमणि:– ये क्या था उस वक्त के गुरु वशिष्ठ का कोई खुफिया संदेश था?
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Tri2010

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भाग:–97




आर्यमणि:– ये क्या था उस वक्त के गुरु वशिष्ठ का कोई खुफिया संदेश था?


अपस्यु:– जी नही... किताब में लिखे गये किसी वाक्य से "प्रहरी" शब्द लिया गया था। किसी दूसरे वाक्य से "खुफिया" शब्द लिया गया था। मछली, जंगल, उड़ते तीर और भला, मारा गया, ये सभी शब्द अलग–अलग वाक्य से लिए गये थे। कई वाक्यों के शब्द को उठाकर एक वाक्य बना दिया गया था। मंत्र मुक्त करने के बाद यह किताब पढ़ने गया तो ये किताब कहीं के भी शब्द उठाकर एक वाक्य बना दिया और ढीठ की तरह जैसे मुझसे कह रहा हो "पढ़कर दिखाओ"


आर्यमणि:– तो फिर किताब के बारे में इतनी जानकारी...


अपस्यु:– उस किताब को दोबारा मंत्रो से बांधकर फिर मैने सीधा खोल दिया। अनंत कीर्ति की किताब ने वहां के माहौल और गुरु के होने के एहसास को मेहसूस किया और गुरु की जानकारी वाला पूरा भाग मेरे आंखों के सामने था। बड़े इसका मतलब समझ रहे हो की वो किताब उन एलियन को क्यों चाहिए...


आर्यमणि:– हां समझ रहा हूं... प्रहरी का गाज उन एलियन पर भी गिर चुका है। उसकी पूरी जानकारी इसके अंदर है। इसलिए वो लोग इस किताब को सिद्ध पुरुष से दूर रखने के लिये पागल बने हैं। और यदि कहीं मेरा अंदाजा सही है तो आचार्य श्रृयुत ने इस किताब की विशेषता जरूर उन एलियन प्रहरी को बताया होगा की अनंत कीर्ति के अंदर किस प्रकार की जानकारी है। उन गधों को उन्होंने किताब के बारे में उतना थोड़े ना बताया होगा, जितना तुमने मुझे बताया। आधी जानकारी ने एलियन के मन में जिज्ञासा जगा दिया होगा की यदि उसको पृथ्वी के समस्त विकृत, जीव अथवा सुपरनैचुरल के पहचान करने और उन्हें फसाने का तरीका मिल जाये फिर पूरे पृथ्वी पर उनका ही एकाधिकार होगा। इसलिए तो किताब खोलकर पढ़ने के लिये भी पागल थे।


अपस्यु:– तुम्हारे इस अंदाज में एक बड़ा सा प्रश्न चिह्न है...


आर्यमणि:– हां मैं जानता हूं। यदि प्रहरी पहले इन एलियन से भीड़ चुके थे, तब आचार्य श्रेयुत को किताब ने कैसा आगाह नही किया? और यदि किताब ने आगाह किया तब आचार्य श्रीयुत फंस कैसे गये?


अपस्यु:–उस से भी बड़ी बात... कैलाश मठ की एक पुस्तक में आचार्य श्रीयुत की जानकारी तो है, लेकिन वो सात्त्विक आश्रम से नही थे बल्कि वैदिक आश्रम से थे। फिर ये अनंत कीर्ति की पुस्तक उनके पास कैसे आयी? हां लेकिन बहुत से सवालों का जवाब आसानी से मिल सकता है..


आर्यमणि:– हां मैं भी वही सोच रहा हूं। किताब को उन एलियन के संपर्क में ले जाऊं, तब अपने आप सारे जवाब मिल जायेंगे। जितने भी झूठ का भ्रमित जाल फैला रखा है, सबका जवाब एक साथ।


अपस्यु:– बिलकुल सही। बड़े अब मैं फोन रखता हूं। तुम सबके लिये कुछ भेंट लाया था, अपने गराज से मेरा उपहार उठा लेना।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है, हम सबके लिये गिफ्ट.…. गिफ्ट देखने की लालसा जाग उठी है छोटे, इसलिए मैं भी जा रहा हूं। अपना ख्याल रखना छोटे।


एक बड़े से वार्तालाप के बाद आर्यमणि ने फोन रखा और उधर 15–20 मिनट से बिलकुल खामोश घर में फिर से जैसे उधम–चौकड़ी शुरू हो चुकी थी। आर्यमणि को इस बात का बड़ा गर्व हुआ की उसका पूरा पैक कितना अनुशासित है। हां लेकिन जबतक आर्यमणि अपनी इस छोटे से ख्याल से बाहर निकलता, तब तक तो तीनो टीन वोल्फ गराज पहुंच भी गये और अपस्यु द्वारा भेजे गये बड़े–बड़े बॉक्स को उठा भी लाये।


उन बॉक्स को देखने के बाद आर्यमणि हैरानी से रूही और तीनो टीन वुल्फ के ओर देखते... "पिछले एक महीने से तुम तीनो गराज नही गये क्या?"


रूही:– तुम गहरी नींद में थे आर्य। भला तुम्हे छोड़कर हम कहां जाते...


आर्यमणि:– तो क्या एक महीने से जरूरी सामान लाने भी कही नही गये।


अलबेली:– बॉस आपसे ज्यादा जरूरी तो कुछ भी नही। बाकी एक फोन कॉल और सारा सामान घर छोड़कर जाते थे।


इवान:– बॉस ये सब छोड़ो। गिफ्ट देखते है ना...


सभी हामी भरते हुये हॉल में बॉक्स को बिछा दिये। बॉक्स मतलब उसे छोटा बॉक्स कतई नहीं समझिए। बड़े–बड़े 5 बॉक्स थे और हर बॉक्स पर नंबरिंग किया हुआ था। पहले नंबर का बॉक्स खोला गया ऊपर ही एक लेटर…. "5 लोगों के लिए 5 शिकारियों के कपड़े। ये इतने स्ट्रेचेबल है कि शेप शिफ्ट होने के बाद भी फटेगा नहीं। बुलेट प्रूफ और वैपन प्रूफ कुछ हद तक।"


हर किसी के नाम से कपड़े के पैकेट रखे हुये थे। अलग–अलग मौकों के लिये 5–6 प्रकार के कपड़े थे।
सभी ने कपड़े को जैसे लूट लिया हो। अलग–अलग फेब्रिक के काफी कुल ड्रेस थे। जितने सुरक्षित उतने ही आरामदायक वस्त्र थे। फिर आया दूसरे नंबर के बॉक्स की बारी जिसके अंदर का समान देखकर सबका चेहरा उतर गया। बॉक्स देखकर भेजनेवाले के लिए मुंह से गालियां नीकल रही थी। उस बॉक्स मे तकरीबन 50 से ऊपर किताब थी। साथ मे एक हार्डडिस्क भी था, जिसके ऊपर लिखा था... "फॉर बुक लवर्स (for book lovers)"


आर्यमणि का चेहरा वाकई मे खिल गया था। तीसरा बॉक्स खोला गया, जिसे देखकर सबकी आंखें चौंधिया गयी। आकर्षक मेटालिक वैपन थे। जैसे कि एक फीट वाली छोटी कुल्हाड़ी। कई तरह के चमचमाते खंजर, साई वैपन (sai weapon) की कई जोड़ें, 3 फीट के ढेर सारे स्टील और आयरन रॉड। उन्ही सब हथियारों के साथ था, नया लेटेस्ट ट्रैप वायर (trap wire). खास तरह के ट्रैप वायर जो बिल्कुल पतले और उतने ही मजबूत। थर्मोडायनेमिक हिट उत्पन्न करने वाले ये वायर इतने घातक थे कि इस वायर के ट्रैप में उलझे फिर शरीर मक्खन की तरह कट जाये।


3 बॉक्स ही खुले और सभी खुशी से एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे। चौथा बॉक्स खोला गया जिसमे वैपन रखने के लाइसेंस से लेकर कई तरह के लेटेस्ट पिस्तौल और स्निपर राइफल थी। साथ में एक चिट्ठी था जिसमें लिखा था, जंगली क्षेत्र में रहने के कारण कुछ घातक हथियार रखने के लाइसेंस मिले है। उसी बॉक्स में एक छोटा सा जार भी था जिसमे बीज रखे थे। आर्यमणि समझ गया ये माउंटेन ऐश पौधों के बीज है। सबसे आखरी बॉक्स में एक लैपटॉप था। उसके नीचे छोटे–बड़े डिवाइस और उन सब डिवाइस के साथ उनका मैनुअल।


सभी लेटेस्ट सिक्यूरिटी ब्रिज डिवाइस थे जो एक दूसरे से एक सुरक्षित संपर्क प्रणाली (secure communication channel) के साथ–साथ आस पास के इलाकों में कोई घुसपैठ से लेकर, वहां की आंतरिक सुरक्षा के मध्यनजर ये सभी डिवाइस भेजी गयी थी। सबसे आखरी मे अपने लोगों से बात करने के लिये सेटेलाइट फोन था। जिसे ट्रेस नही किया जा सकता था। और ऐसा ही फोन भारत में भी आर्यमणि के सभी प्रियजनों के पास था।


अपस्यु का उपहार देख कर तो पूरा अल्फा पैक खुश हो गया।…. "आज की शाम, अल्फा पैक के खुशियों के नाम। क्या शानदार गिफ्ट भेजा है अपस्यु ने।"… अलबेली अपनी बात कहती सेटेलाइट फोन हाथ में ली और सीधा भूमि दीदी का नंबर डायल कर दी...


आर्यमणि:– किसे कॉल लगा दी..


अलबेली, बिना कोई जवाब दिये फोन आर्यमणि को ही थमा दी। आर्यमणि, अलबेली को सवालिया नजरों से देखते फोन कान में लगाया और दूसरी ओर से आवाज आयी.… "आर्य तू है क्या?"


आर्यमणि:– दीदी...


दोनो पक्ष से २ शब्दों की बात और खुशी का एक छोटा सा विराम...


आर्यमणि:– तुम कैसी हो दीदी...


भूमि:– बस तुझे ही मिस कर रही हूं वरना तेरे छोटे भाई के साथ पूरा दिन मस्त और पूरा दिन व्यस्त...


आर्यमणि:– लड्डू–गोपाल (भूमि का बेबी) की तस्वीर मैने भी देखी... गोल मटोल बिलकुल तुम पर गया है...


भूमि:– हां काफी प्यारा है। एक बात बता ये जो नए तरह का फोन तूने भिजवाया है, उस से कोई तुम्हारी लोकेशन तो ट्रेस नही करेगा न...


आर्यमणि:– बिलकुल नहीं... कुछ दिन रुक जाओ फिर तो हम सब नागपुर लौट ही रहे है।


भूमि:– तुम्हारी जब इच्छा हो वापस आ जाना। लेकिन इतने दिन बाद बात हो रही जल्दी–जल्दी अब तक के सफर के बारे में बता...


आर्यमणि भूमि दीदी की बात पर हंसने लगा। वह सोचने लगा कुछ देर पहले उसने जो अपस्यु के साथ किया अभी भूमि दीदी उसके साथ कर रही। कोई चारा था नही इसलिए पूरी कहानी सुनाने लगा। भूमि के साथ बातों का लंबा दौड़ चलता रहा। इतना लंबा बात चली की पूरा अल्फा पैक सारे गिफ्ट को बांट चुके थे। सबने अपने गिफ्ट जब रख लिये फिर पैक की दूसरी मुखिया ने सोचा जब तक उसके होने वाले फोन पर लगे है तब तक टीन वुल्फ के साथ शॉपिंग का मजा लिया जाये। आखिर महीने दिन से कोई घूमने भी नही गया।


रूही कार निकाली और तीनो सवार हो गये।… "बॉस को ऐसे छोड़कर नही आना चाहिए था।"… इवान थोड़ा मायूस होते कहने लगा।


रूही:– आर्य को आराम से बार कर लेने दो, जबतक हम शहर का एक चक्कर लगा आये।

ओजल:– चक्कर लगा आये या अपने होने वाले पति को गिफ्ट देना चाहती हो इसलिए आ गयी।

अलबेली:– क्या सच में... फिर तो मैं भी इवान के लिये एक गिफ्ट ले लेती हू।

रूही:– तू इवान के लिये क्यों गिफ्ट लेगी। इवान तुझे गिफ्ट देगा न?

इवान:– ये क्या तुक हुआ। तुम बॉस के लिये गिफ्ट लेने जा रही और जानू मुझे गिफ्ट दे ये तुमसे बर्दास्त न हो रहा।

अलबेली:– गलती हो गई जानू, हमे अपनी गाड़ी में आना चाहिए था।

रूही:– ओय ये जानू कबसे पुकारने लगे लिलिपुटियन।

ओजल:– दोनो पागल हो गये है। बेशर्मों बड़ी बहन है कुछ तो लिहाज कर ले...

रूही, अपनी घूरती नजरों से ओजल को देखते..... "तू तो कुछ अलग ही एंगल लगा दी।

तभी तीनों जोर से चिल्लाए। रूही सामने देखी, लाइट रेड हो चुका था और लोग सड़क पार करने लगे थे। तेजी के साथ उसने गाड़ी को किनारे मोड़कर ब्रेक लगाई लेकिन किस्मत सबको बचाने के चक्कर में रूही ने पुलिस कार को ही ठोक दिया। ड्राइविंग लाइसेंस जब्त और पुलिस चारो को उठाकर थाने ले गयी। घंटे भर तक पुलिस वालों ने बिठाए रखा। इरादा तो उन चारो को जज के सामने पेश करने का था लेकिन रूही तिकरम लगाकर एक पुलिस अधिकारी को पटाई। उसे 2000 डॉलर का घुस दी। तब जाकर उस अधिकारी ने 500 का फाइन और एक वार्निंग के साथ छोड़ दिया।

चारो जैसे ही बाहर निकले.… "लॉक उप में बंद उस वुल्फ को देखा क्या? वह हमे ही घूर रहा था।"… अलबेली हड़बड़ में बोलने लगी। रूही आंखों से सबको चुप रहने का इशारा करती निकली। बहुत दूर जब निकल आयी... "अलबेली तेरा मैं क्या करूं। उस वुल्फ ने जरूर तुम्हारी बातें सुनी होगी।"

इवान:– सुनकर कर भी क्या लेगा?

रूही:– इतने घमंड में न रहो। मुझे लगता है इलाके को लेकर कहीं झड़प न हो। कुछ भी हो जाये तुम तीनो वादा करो की शांत रहोगे और मामला बातों से निपटाने की कोशिश करोगे...

ओजल:– और बातों से मामला न सुलझे तो...

रूही:– वहां से भाग जाना लेकिन कोई झगड़ा नहीं। पूरा पैक मिलकर ये मामला देखेंगे न की तुम तीनो..

अलबेली:– क्यों हम तीनो से ही झगड़ा हो सकता है? तुमसे या बॉस से झड़प नही हो सकती क्या?

रूही:– हम भी तुम्हे साथ लिये बिना कोई कदम न उठाएंगे... अब तुम तीनो कहो...

अलबेली:– जलकुकरी एक्शन होने से पहले आग लगाने वाली। ठीक है मैं भी वही करूंगी।

रूही:– और तुम दोनो (ओजल और इवान)

दोनो ने भी हामी भर दी। फिर चारो ने अपना शॉपिंग समाप्त किया और वापस लौट आये। रूही ने सोचा था कि आर्यमणि की बात समाप्त हो जायेगी तब वह पीछे से ज्वाइन कर लेगा लेकिन शॉपिंग समाप्त करके वह घर पहुंचने वाले थे लेकिन आर्यमणि का कॉल नही आया।


इधर आर्यमणि की इतनी लंबी बातें की इनका शॉपिंग समाप्त हो गया। और जैसे ही आर्यमणि ने अपने पैक को देखा, उन्हे चौंकते हुये कहने लगा.… "तैयारी शुरू कर दो, जल्द ही हम सब शिकार पर चलेंगे.… एलियन के शिकार पर।"


एक्शन का नाम सुनकर ही तीनो टीन वुल्फ "वुहू–वुहू" करते, अपने–अपने कमरे में चले गये। वहीं रूही आर्यमणि का हाथ थामकर उसे अपने पास बिठाती.… "बॉस बात क्या है? भारत से कोई अप्रिय खबर?"


आर्यमणि:– हां, हमारे लोगों की सुरक्षा कर रहे एक संन्यासी रक्तांक्ष को उन एलियन ने जान से मार दिया। किसी प्रकार का तिलिस्मी हमला मेरे मां–पिताजी पर किया गया था, जिसकी चपेट में संन्यासी रक्तांक्ष आ गया। अचानक ही 4 दिन तक वह गायब रहा और पांचवे दिन उसकी लाश मिली...


रूही:– क्या??? अब ये सीधा हमला करने लगे है। इनको अच्छा सबक सिखाना होगा?


आर्यमणि:– हां सही कही... वो एलियन नित्या अपने जैसे 21 शिकारी के साथ मेरी तलाश में यूरोप पहुंच चुकी है। ये पुरानी पापिन बहुत सारे मामलों में मेरे परिवार की दोषी रही है। और इसी ने रिचा को भी मारा था। पहला नंबर इसी का आयेगा।


रूही, चुटकी लेते... "पुराने प्यार का बदला लेने का तड़प जाग गया क्या?"


आर्यमणि:– हां तड़प जागा तो है। अब इस बात से मैं इनकार नहीं कर सकता की रिचा के लिये इमोशन नही थे। बस मेरी तैयारी नही थी जो मैं नित्या को सजा दे पता पर दिल की कुछ खुन्नस तो निकाल आया था और पुरानी दबी सी आग को अब चिंगारी देने का वक्त आ गया है।


रूही:– हां तो फिर युद्ध का बिगुल फूंक दो…


आर्यमणि:– बस एक को कॉल लगाकर युद्ध का ही बिगुल फूलने वाला हूं।


रूही:– किसे...


आर्यमणि कुटिल मुस्कान अपने चेहरे पर लाते... "वही एलियन जिसे रानी होने का लॉलीपॉप दिया था, पलक"…


रूही:– तो देर किस बात की... चलो बिगुल फूंक ही दो...


आर्यमणि, रूही के होंठ को चूमते.… "तुम्हे तकलीफ नही होगी"..


रूही:– तकलीफ वाली बात करोगे होने वाले पतिदेव, तब तो फिर हम दोनो को तकलीफ होगी न। बराबर के भागीदार... अब चलो भी टाइम पास बंद करो और कॉल लगाओ...


आर्यमणि ने कॉल लगाया लेकिन पलक का नंबर बंद आ रहा था। २–३ कोशिशों के बाद भी जब कॉल नहीं लगा तब आर्यमणि ने अक्षरा को कॉल लगा दिया...


अक्षरा:– हेल्लो कौन?


आर्यमणि:– मेरी न हो पाने वाली सासु मां मैं आर्यमणि..


कुछ पल दोनो ओर की खामोशी, फिर उधर से अक्षरा की हुंकार.… "साल भर से कहां मुंह छिपाकर घूम रहा है हरमखोर, एक बार सामने तो आ...


आर्यमणि:– अपने चेलों चपाटी को फोन दिखाना बंद करो, ये नंबर ट्रेस नही कर पाओगे... यदि वाकई जानना है कि मैं कहां हूं तो पलक से मेरी बात करवाओ.. उसी से मैं बात करूंगा...


अक्षरा:– एक बाप की औलाद है तो तू पता बता देना, लिख पलक का नंबर...


अक्षरा ने उसे पलक का नंबर दे दिया। नंबर देखकर आर्यमणि हंसते हुये... "ये तो पहले से यूरोप पहुंची हुई है।"..


रूही:– यूरोप में कहां है?

आर्यमणि:– स्वीडन में ह।


रूही:– वहां क्या करने गयी है... किसी अच्छे वुल्फ के पैक के खत्म करके उसे दरिंदों की किसी बस्ती में फेकने..


आर्यमणि:– अब मुझे क्या पता... चलो बात करके पूछ ही लेते हैं?


आर्यमणि ने कॉल मिलाया। कॉल होटल के रिसेप्शन में गया और वहां से पलक के रूम में... उधर से किसी लड़के ने कॉल उठाया... "हेल्लो"..


आर्यमणि:– पलक की आवाज लड़के जैसी कैसे हो गयी? मैने तो सुना था वह अकेली स्वीडन गयी है।


लड़का:– तू है कौन बे?


आर्यमणि:– सच में जानना चाहता है क्या? पलक से कहना उसके एक्स ब्वॉयफ्रेंड का कॉल है...


लड़का:– क्या बोला बे?


आर्यमणि:– तू बहरा है क्या? पलक को बोल इसके एक्स ब्वॉयफ्रेंड का कॉल है।



लड़का:– भोंसड़ी के, तू है कौन मदरचोद...


"किसे गालियां दे रहे हो एकलाफ"… पीछे से पलक की आवाज आयी...


वह लड़का एकलाफ... "पता न कोई मदरचोद तुम्हारी इंक्वायरी कर रहा है?"


पलक:– तो ये तुम्हारे बात करने का तरीका है..


एकलाफ:– बदतमीज खुद को तुम्हारा एक्स ब्वॉयफ्रेंड कहता है? गाली अपने आप निकल गयी...


पलक हड़बड़ा कर फोन उसके हाथ से लेती... "क्या ये तुम हो"…


आर्यमणि:– क्या बात है, एक झटके में पहचान गयी। (पलक कुछ बोलने को हुई लेकिन बीच में ही आर्यमणि उसे रोकते).... तुम्हारा नया ब्वॉयफ्रेंड पहले ही बहुत बदतमीजी कर चुका है। सीधे मुद्दे पर आता हूं। मुझसे मिलना हो तो 8 मार्च को जर्मनी चली आना... और हां अपने उस ब्वॉयफ्रेंड को भी साथ ले आना... क्या है फोन पर भौककर तो कोई भी गाली दे सकता है, औकाद तो तब मानू जब मुंह पर गाली दे सके... मुझसे मिलना हो तो उसे भी साथ ले आना। मुझसे मिलने की यही एकमात्र शर्त है। मेरा हो गया अब तुम अपने क्लोजिंग स्टेटमेंट देकर कॉल रख सकती हो। थोड़ा छोटे में देना डिटेल मैं तुमसे जर्मनी में सुन लूंगा मेरी रानी...


पलक:– रानी मत बोल मुझे, किसी गाली की तरह लगती है। रही बात एकलाफ़ के औकाद की तो वो तुझे मुंह पर गाली देगा ही और यही तेरी औकात है। लेकिन मेरी बात कहीं भूल गया तू, तो तुझे याद दिला दूं... मुझसे मिलने के बाद फिर तू किसी से मिल न पायेगा क्योंकि मैं तेरा दिल चिड़कर निकाल लूंगी...


आर्यमणि:– बेस्ट ऑफ़ लक...


आर्यमणि ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। रूही मुस्कुराती हुई कहने लगी..... "लगता है जर्मनी में मजा आने वाला है बॉस"…. आर्यमणि, भी हंसते हुये… "हां एक्शन के साथ तमीज सीखने वाला प्रवचन भी चलेगा। चलो तैयारी करते है।"…
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Tri2010

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143
भाग:–98




पलक से बात समाप्त करने के बाद आर्यमणि और रूही कुछ बात शुरू ही करते उस से पहले ही चिल्लाते हुये तीनो टीन वुल्फ आंखों के सामने। शादी, एक्शन, शादी, एक्शन... वुहू.. हिप–हिप हुर्रे"… शादी और एक्शन का नाम पर तीनो झूमने और नाचने लगे। पहले रूही से शादी का प्रपोजल फिर 2 महीने बाद के एक्शन डेट कन्फर्मेशन। खुशियों ने जब दस्तक देना शुरू किया फिर तो एक के बाद एक झोली मे खुशियां आती चली गई।


अगली सुबह सभी एक्सरसाइज करके आने के बाद जैसे ही हॉल में पहुंचे, अलबेली और इवान का बहस शुरू हो गया। इवान कह रहा था "नहीं"… अलबेली कह रही थी "हां".. बस केवल हां और ना ही कह रहे थे और झगड़े जा रहे थे। देखते ही देखते बात उठम पटका तक पहुंच गई।


आर्यमणि गुस्से में दोनों को घूरा, दोनों एक दूसरे को छोड़कर अलग हुए। अलबेली को रूही अपने पास बिठायी और इवान, आर्यमणि के पास आकर बैठा…


आर्यमणि:- क्या चाहते हो, दोनों की टांगे तोड़ दूं..


ओजल:- बॉस आप से कुछ ना होगा..


रूही:- ओजल शांत... अब क्या हुआ दोनों मे..


इवान:- मुझसे क्या पूछ रही हो, उसी से पूछो जो हां–हां कर रही थी।


अलबेली:- हां और तुम्हारा मुंह तो खाली चुम्मा लेने के लिए खुलेगा ना। वैसे तो कुछ पूछ लो जनाब से तो बस बॉस जैसे बनने का भूत सवार रहता है। गाल के दोनों किनारे मिठाई दबाकर बैठ जाते हो और "हां, हूं, नहीं" …. और इन सबसे गंदी तुम्हारी वो श्वांस कि फुफकार जो किसी भी बात के जवाब मे निकलती है। लल्लू कहीं का।


अलबेली एक श्वांस मे अपनी बात बोलकर मुंह छिपाकर हसने लगी। उसकी बात सुनकर आर्यमणि अपने मुंह पर हाथ रखकर हंस रहा था। ओजल को इतनी तेज हंसी आयी की वो बेचारी हंसते–हंसते कुर्सी से ही गिड़ गयी। गिरने के क्रम में खुद को बचाने के लिए रूही को पकड़ी, लेकिन बचने के बदले रूही को लेकर ही गिड़ी। दोनों नीचे गिरकर बस 2-3 सेकंड खामोश होकर एक दूसरे का मुंह ताके और वापस से दोनों कि हंसी फूट गई। दोनों नीचे लेटे हुए ही हंसने लगी...


आर्यमणि, अलबेली का गला दबोचते... "शैतान कि नानी, तुम अपने बॉयफ्रेंड को सुना रही थी या मुझे ताने दे रही थी।"…


अलबेली:- बॉस ये ऐसे पैक वाला प्यार जता रहे हो या फिर इवान आप का साला हुआ और मै उसकी होने वाली बीवी, इस नाते से मुझसे चिपक रहे...


आज सुबह के समाचार में तो बस अलबेली ही अलबेली थी। हंस–हंस कर सब लोटपोट हुए जा रहे थे। आर्यमणि उसे छोड़ा और हंसते हुए कहने लगा... "तुम तीनों को स्कूल नहीं जाना है क्या? तुम्हारे स्कूल से 4 बार फोन आ चुका है।"


ओजल हड़बड़ी में सबको बताती... "अरे यार.. 10 दिनों में हाई स्कूल फुटबॉल टूर्नामेंट होना है। अलबेली, इवान जल्दी से तैयार होकर आओ।"


तीनों भागते दौड़ते पहुंचे स्कूल। जैसे ही स्कूल के अंदर गये, सभी गुस्साए फुटबॉल खिलाड़ियों ने उसे घेर लिया। तीनों को ऐसे घुर रहे थे मानो खा जायेंगे.… ओजल सबको शांत करवाती... "दोस्तों हाई स्कूल चैंपियनशिप की तैयारी हम बचे समय में करवा देंगे। लेकिन उस से पहले तुम सब के लिए एक गुड न्यूज है"….


ओजल जैसे ही गुड न्यूज कहने लगी, उसकी नजर भीड़ के पीछे 3-4 लड़के–लड़कियों पर गयी। एक पूरी नजर उन्हे देखने के बाद वापस से सबके ऊपर ध्यान देते... दोस्तों एक गुड न्यूज़ है। मेरी बहन कि शादी तय हो गयी है शादी की तारीख पक्की होते ही सबको खबर भेज दूंगी।"…


माहोल पूरा हूटिंग भरा। हर कोई "वुहु.. पार्टी, पार्टी, पार्टी.. वूहू.. पार्टी, पार्टी, पार्टी" करते लड़के–लड़कियां चिल्लाने लगे। अलबेली और इवान किनारे बैठकर, एक दूसरे के गले में हाथ डाले प्यार जता रहे थे और मुस्कुराकर ओजल को देख रहे थे। ओजल सबके बीच खड़ी हंसती हुई सबको कह रही थी... "हां बाबा आज शाम पार्टी होगी।" इसी हंसी खुशी के माहोल में एक बार फिर नजर पीछे के ओर गयी।


जिन लड़के–लकड़ियों पर पहले नजर गई थी, अब वो बड़े ग्रुप के साथ थे। वो सभी भीड़ लगाकर आये और ओजल के नजरों के सामने से ही ब्लेड निकालकर अलबेली और इवान की पीठ पर ऊपर से लेकर नीचे तक ब्लेड मार दिये। ओजल भागकर वहां पहुंची। सभी दोस्त चूंकि आगे देख रहे थे इसी बीच ओजल का भागना समझ में नहीं आया।


ओजल अपने भाई का खून देखकर चिल्लाती हुई उन पूरे ग्रुप को पुकारने लगी। शायद वो लोग यही चाहते थे। ओजल की आवाज पर एक लड़का बड़ी तेजी से आया और ओजल का सीधे गला दबोचकर, अपनी बड़ी आंखों को लगभग उसके आंख में घुसाते।।.… "क्या हुआ जानेमन"..


यह वही लड़का था जो कल पुलिस लॉकअप में दिखा था। अलबेली कर इवान गुस्से में उठने वाले थे, लेकिन ओजल ने दोनो को "ना" में रुकने का इशारा करने लगी। दोनों ही गुस्से को काबू करते रुके। इसी बीच सभी स्टूडेंट लगभग उनसे भीख मांगते... "लुकस प्लीज जाने दो। ये लोग नए है।"


लड़के–लड़कियां गिड़गिड़ाते रहे, कहते रहे, फिर भी वो लड़का लूकस ओजल का गला पकड़े रहा। उसके पीछे 20-30 स्टूडेंट्स की भीड़ थी और सभी घेरे खड़े थे। तभी उधर से स्कूल मैनेजमेंट के आने कि खबर मिली और लूकस एक नजर तीनो को देखते.… "मेरे नजरों के सामने मत आना वरना जीना मुश्किल कर दूंगा।" अपनी बात कहकर लूकस, ओजल को एक झन्नाटेदार थप्पड़ लगाया और अपने ग्रुप को लेकर वहां से निकल गया। गला छूटते ही ओजल बड़ी ही बेचैनी से दोनों (अलबेली और इवान) के पीठ पर लगे ब्लेड के निशान देखने लगी।


लेथारिया वुलपिना शरीर में होने के कारण इन लोगों के घाव नहीं भड़ना था। ओजल अपने बैग से फर्स्ट एड किट निकलकर दोनों के खून को साफ करके उसपर एंटीसेप्टिक और पट्टी चिपका भी रही थी और लूकस की गैंग को घुर भी रही थी।


अलबेली:- किसी को पसंद कर रही है क्या, जो ऐसे उन्हे घुर रही। छोड़ ना रे बाबा वो गुंडे और हम आम से लोग क्या समझी..


ओजल के स्कूल का एक दोस्त मारकस... "अलबेली ठीक कह रही है ओजल, जाने दो उन्हे। 4-5 दिन तक स्कूल में इनका तमाशा चलेगा फिर डिटेंशन पर चले जाएंगे।"


इवान:- ओजल तू अपने दोस्तों को फुटबॉल मे हेल्प करने आयी है ना... उधर ध्यान दे… थैंक्स दोस्तो, हमे लगा हम अकेले है पर सब साथ आये देखकर अच्छा लगा...


फुटबाल का एक खिलाड़ी एंडी… "सॉरी हम चाहकर भी उनसे नहीं उलझ सकते। हमे अफसोस है हमारे इतने लोगों के बीच वो ये सब करके चला गया।


अलबेली:- अभी हो गया न। क्या करना है एंडी, चलकर हम अपना काम देखते हैं। उनको उनका काम करने देते है।


पूरी सभा वहां से उठकर ग्राउंड में चली आयी। उधर कोच अलग ही भड़के हुए। कुछ दिनों में प्रतियोगिता शुरू होने वाली थी और तीनों वादा करके गायब हो गये थे। हालांकि कोच बहुत सी बातों को छिपा ले गया, जो की धीरे–धीरे इनके प्रेक्टिस मे दिखा। तीनो टीन वुल्फ द्वारा सिखाया गया पैंतरा जैसे सब पूरे जोश से सिख कर आये हो। खैर लड़के और लड़की टीम के दोनो कोच अंतिम निर्णय लेते हुये तीनो (ओजल, इवान और अलबेली) को गर्ल्स और बॉयज टीम में बांट चुके थे।


एक महीने से ऊपर तीनो टीन वुल्फ जो गायब रहे थे, उसमे या तो अगले साल भी उसी क्लास में रहो या ग्रेड ठीक करने के लिये हाई स्कूल टीम से खेलो। चारा ही क्या था सिवाय हां कहने के। तीनो ने हामी तो भर दी लेकिन यह भी साफ कर दिया की तीनो एक्स्ट्रा में रहेंगे। यदि कोई चोटिल या घायल होता है तभी वो लोग खेल में आयेंगे। कुछ बात कोच की तो एक बात इन तीनों की भी मान लिया सबने।


आज प्रैक्टिस के बाद एक वर्सेस मैच खेला गया जहां, अलबेली, इवान के साथ एक टीम और ओजल के साथ दूसरी। आपस में एक दूसरे के विरुद्ध खेलकर प्रैक्टिस कर रही थी। हां कुछ और बदलाव भी किये गये थे, जैसे कि एक टीम को आधे बॉय और आधे गर्ल कि फाइनल टीम के साथ मिश्रित टीम बनाया गया था। ठीक ऐसा ही विपक्ष का टीम भी था।


इन तीनों का काम वही था मैदान के बीच में अपने–अपने टीम को कॉर्डिनेट करना। मैच इतना उम्दा सा हो गया था कि दोनों कोच अपने दांतों तले उंगलियां दबा रहे थे। इस खेल में तीनों ने ही अपनी भागीदारी केवल एक कॉर्डिनेटर के तौर पर ही रखा था और खेल के दौरान भूमिका भी वैसे ही थी, मात्र बॉल पास करना और उन्ही लोगों से पूरा खेल करवाना।


मैच इतना टशन वाला था कि पूरा ग्राउंड दर्शक से भर चुका था। हर कोई इस हाई वोल्टेज मैच का लुफ्त उठा रहा था। आखरी पलों में स्कोरिंग को जब आगे ले जाना था, तब अलबेली चीटिंग करती हुई कमान संभाल ली और ओजल की नजरों मे धूल झोंकती अपने स्कोर बोर्ड को आगे बढ़ा दी।


फिर क्या था। मैच खत्म हो गया सभी खिलाड़ी कोच के पास थे। दर्शक स्टूडेंट्स सीढ़ियों पर बैठकर हूटिंग कर रहे थे। ओजल गुस्से में अलबेली के पास पहुंची और खींचकर एक घुसा मुंह पर जड़ दी... "कमिनी इसे चीटिंग कहते है।"


अलबेली भी दी एक घुमाकर, ओजल का जबड़ा हिलाती... "एक गोल की बात थी ना, और सामने तो तू थी ही। चीटिंग क्या रोक लेती। वैसे भी बिना नतीजे वाले मैच में मज़ा ना आता।"


ओजल:- इवान समझा अपनी उड़ती फिरती चुलबली चिड़िया को, ज्यादा मुझ से होशियारी ना करे।


इवान:- ओजल सही ही तो कह रही है अलबेली…


अलबेली गुस्से में एक घुमाकर बाएं से देती... "पक्ष तो अपने खून का ही लोगे ना। हटो, अब तो तुमसे बात भी नही करनी।"..


अलबेली बाएं साइड से जबड़ा हिलाकर निकल गयी। इवान अपना जबड़ा पकड़े खड़ा मायूसी से ओजल को देखते... "अपनी टीम को जिताने के लिये एक गोल ही तो की थी।"..


इवान मायूसी के साथ बड़े धीमे और उतने ही मासूमियत से कहा। लेकिन बेरहम ओजल को अपने भाई पर दया ना आयी। दायां जबड़ा हिलाकर वो भी निकल गयी। एक कंधे पर मारकस और दूसरी कंधे से नताली लटक कर अपना चेहरा इवान के बराबर लाती…

मारकस:- अलबेली तुम्हारी गर्लफ्रेंड और ओजल तुम्हारी बहन है इवान..


इवान, थोड़ा चिढ़कर... "हां"


नताली हंसती हुई इवान का गाल चूमती... "डार्लिंग यही होता है जब बहन के दोस्त को पटा लो। ड्रामा एंज्वाय करते रहो..."


दोनों अपनी बात कहकर हंसते हुए वहां से निकल गये और इवान वहीं खड़ा अपना जबड़ा पकड़े रह गया।….. "लगता है बहन और गर्लफ्रेंड के बीच ज़िन्दगी पीसने वाली है।"


सोचकर ही इवान का बदन कांप गया। ग्राउंड से निकलते वक्त इवान खुद से ही बातें करते... "परिवार के नखरे तो उठा लेंगे, लेकिन जरा उनसे भी मिल लूं जो आज मेरे ही सामने मेरे परिवार को तंग करके चला गया।"…


इवान समझ चुका था लूकस नाम का प्राणी जो ये हरकत करके गया था, वो भी किसी वूल्फ पैक का हिस्सा था। बर्कले, कैलिफोर्निया के वूल्फ पैक जो बाहर के वूल्फ को देखकर पूरे गुस्से में था और उसे अपने क्षेत्र से किसी तरह निकालना चाहता था। इसे मूलभूत एनिमल बिहेभियर (basic animal behaviour) भी कहा जा सकता है जो अपने क्षेत्र मे अपने जैसे जानवरों के घुसपैठ को बर्दाश्त नहीं कर सकता।


इवान अकेले निकल चुका था समझाने। कार लेकर वो उनके क्षेत्र में दाखिल हुआ। उनकी गंध पहचानते हुए इवान जंगल के शुरुवाती इलाके में था। कार पार्क करके वो पैदल ही उनके जंगली क्षेत्र में निकलता। वो अपनी कार पार्क कर ही रहा था, पीछे से अलबेली और ओजल भी पहुंची...


इवान, दोनों को देखते... "स्कूल में तो दोनों शांत थी फिर यहां क्या कर रही हो?"


ओजल खींचकर वापस से एक घुमा कर देती... "हम उसके पीछे नहीं आये डफर, तेरे पीछे आये हैं। तू चीजों को छोड़ता क्यूं नहीं। हम उनके क्षेत्र में है, और उन्हे ये बात पसंद नहीं आयी। बॉस को भेज देते बात करने।


इवान, अलबेली को देखते... "आओ तुम भी रख दो एक घुसा। रुकी क्यों हो?"


अलबेली, इवान के कॉलर को खींचकर खुद से चिपकाती... "अभी तुम्हे देखकर चूमने का दिल कर रहा है। हाय इतने मासूमियत से तुम कुछ कहो और मैं घुसा चला दूं। ना जानू, ऐसे दिलकश चेहरे को देखकर होंठ खुलते है।"…


अलबेली अपनी बात कहकर, अपनी आंखें मूंदकर मध्यम-मध्यम श्वांस लेने लगी। इवान, अलबेली के चेहरे पर प्यार से हाथ फेरते उसके मासूमियत को अपने सीने में उतारने लगा। "आह्हहहहह !!! कितनी प्यारी है"…. कि कसक दिल में उतरी थी और कुछ पल खामोशी से वो अलबेली का चेहरा देखता रहा।


अलबेली चुम्बन के इंतजार मे अपनी पलकें बोझिल की हुई थी। एहसास दिल में कुलबुलाहट कर रही थी, लेकिन जब किस्स ना हुआ तब अलबेली अपनी आंखें खोलती इवान को देखी। इवान को अपनी ओर यूं प्यार से देखते, अलबेली की नजर नीचे झुक गयी। चेहरे पर आती वो हल्की शर्म की छाया, उसके खुले कर्ली बाल के बीच फैले प्यारे से चेहरे को और भी दिलकश बना रहा था, जो इवान के आंखों के जरिये दिल में उतरते जा रही थी।


"इवान, ऐसे नहीं देखो प्लीज। पता नहीं मुझे क्या होता है।"… अलबेली लचरती हुई, बिल्कुल श्वांस चलने मात्र की धीमी आवाज मे अपनी बात कही। अलबेली की धीमी लचरती आवाज सुनकर ही दिल में टीस सी पैदा हो गयी। इवान के चेहरे पर मुस्कान छाई और होंठ अपनी मसूका के नरम से होंठ को चूमने के लिये आगे बढ़ गये। एक बार फिर से बोझिल आंखें थी। होंठ इतने करीब की चेहरे पर टकराती श्वांस, धड़कनों को अनियंत्रित कर रही थी। नरम मुलायम स्पर्श वो होंठ से होंठ का और मस्ती जैसे पूरे तन बदन मे फैल गयी।


एक दूसरे को बेहतशा चूमने के लिये दोनों बेकरारी मे आगे बढ़े। इतना प्यार और खोया सा माहौल था लेकिन ओजल ने पूरे माहौल में आग लगा दिया। दोनों अपने प्यारे से चुम्बन को पूरा करते, उस से पहले ही इरिटेट कर देने वाला साउंड वहां गूंजने लगा। क्या हो जब आप बड़े ध्यान से किसी काम में पूरे खोए हों, खासकर ऐसे प्यार से होंठ को चूमने के काम में। ऐसे काम में खोए हुए हो और पीछे से लोहे कि चादर पर किसी नुकीले लोहे से घिसकर वो अंदर से झुंझलाहट पैदा करने वाला साउंड पैदा कर दिया हो।


ओजल भी वही कर रही थी। एक लोहे के बोर्ड को अपने मजबूत नाखूनों से खुरचना शुरू कर चुकी थी। मेंटल के घिसने का साउंड इतना इरिटेटिंग था कि इवान और अलबेली के सीने में आग लग गयी। दोनों इस से पहले की पहुंचकर ओजल से कुछ कहते, ओजल वुल्फ पैक को चैलेंज देने वाला निशान बनाकर जंगल के अंदर भाग गयी। अलबेली और इवान, उस निशान को देखकर ही स्तब्ध (shocked) हो गये।


उस लोहे के चादर पर अल्फा पैक का निशान बना था और उस निशान को गोल घेरकर बीच में खून का मोहर। यह 2 पैक के बीच किसी क्षेत्र में वर्चस्व (Supremacy) की लड़ाई के लिये, एक पैक द्वारा दूसरे पैक को दी गई चुनौती थी। हारने वाला वो क्षेत्र हारेगा और शायद जितने वाले ने दया ना दिखाया तो ज़िन्दगी भी हार सकते है, वरना उनका कहा तो वैसे भी मानना ही होगा।


ओजल वो निशान बनाकर अंदर जंगलों के ओर निकल गयी। इधर अलबेली और इवान वो निशान देखने के बाद पीछे से चिल्लाने लगे। लेकिन ओजल कहां रुकने वाली थी। आंधी कि गति और पेड़ों पर लड़ाई के निशान बनाती चली... अलबेली भी उसके पीछे भागती... "हद है ये ओजल। खुद ही लड़ाई ना करने के पक्ष में शुरू से रहती है और आज ये आगे बढ़कर लड़ने का न्योता दे रही।"…


इवान भी उसके साथ भागता.… "अरे यार कम से कम किस्स तो पूरा हो जाने देती... उफ्फ तुम्हारे मुलायम होंठ बिल्कुल बटर कि तरह थे और मेरे होंठों बस उन्हे छूने ही वाले थे।"


अलबेली अपनी दौड़ को उसी क्षण रोकती इवान को खींची और होंठ से होंठ लगाकर भींगे होंठों का एक जानदार चुम्बन लेने लगी। इवान के लिये तो पहले चौकाने और बाद में मदहोश करने वाला क्षण था। चुम्बन शुरू होने के अगले ही पल इवान चुम्बन मे पूरा खोते हुए, अपने होंठ खोलकर एक दूसरे को पूरा वाइल्ड किस्स करने लगा।


लगातार दोनों एक दूसरे के होंठ से होंठ का रस निचोड़ते, चूमते चले जा रहे थे। तेज धड़कनों की आवाज दोनों साफ सुन सकते थे। गर्म चलती श्वांस चेहरे से टकरा रही थी। दोनों पूरी तरह एक दूसरे को भींचकर किस्स कर रहे थे। दोनों के हाथ एक दूसरे के पीठ पर पूरा रेंग रहे थे। अलबेली के वक्ष पूरी तरह से इवान के सीने में धंसे थे जो अलग ही गुदगुदा कामुक एहसास दे रहे थे। इवान का हाथ रेंगते हुये कब पीछे से अलबेली के जीन्स के अंदर घुसे, होश नहीं। उत्सुकता और उत्तेजना मे इवान ने दोनों नितम्बों को अपने पंजे मे इस कदर जकड़ा की अलबेली उसके होंठ को छोड़कर गहरी श्वांस खींचती अलग हुई और बढ़ी धड़कनों को काबू करने लगी।


इवान को अब भी होश नहीं था वो अलबेली के ऊपर हावी होने के लिये फिर से बेकरार था। अलबेली एक हाथ की दूरी से ही उसके सीने पर हाथ रखती.… "बस करो। हर बार सेक्स के लिये कितने एक्साइटेड हो जाते हो"…

"क्या तुम नहीं हो?"…..

"इतनी आग लगाओगे तो मै क्या अपने अरमान बुझाए बैठी हूं, लेकिन जानू हर किस्स के वक्त एक्साइटेड होना अच्छा नहीं।"..

"10-15 साल बाद उसपर भी सोच लेंगे जब 4-5 छोटी अलबेली पापा–पापा कहते घेरे रहेगी।"…

"ओह हो पापा !!.. ओ मेरे जूनियर अलबेली और जूनियर इवान के पापा, पहले खुद को पूरा मर्द तो बना लो। अंडरऐज पुअर टीनएजर"

"अभी मुझे इतना नहीं सुनना। एक फटाक–झटाक वाला सेशन यहीं शुरू करने का मूड है। रोककर तो दिखाओ"…


"आग तो तूफानी है जानू पर मज़ा बिस्तर ही देगा। आराम से एक मैराथन सेशन के बाद वो मुलायम सी बिस्तर। फिर एक दूसरे से चिपक कर सोने का जो मज़ा है ना, वो यहां नहीं मिलेगा। आग को और भड़कने दो।"…. अलबेली खिलखिलाती हंसी के साथ अपनी बात पूरी कि, और आंख मारती अपना हाथ सीने से हटाई।
Beautiful update
 

Tri2010

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भाग:–99





"आग तो तूफानी है जानू पर मज़ा बिस्तर ही देगा। आराम से एक मैराथन सेशन के बाद वो मुलायम सी बिस्तर। फिर एक दूसरे से चिपक कर सोने का जो मज़ा है ना, वो यहां नहीं मिलेगा। आग को और भड़कने दो।"…. अलबेली खिलखिलाती हंसी के साथ अपनी बात पूरी कि, और आंख मारती अपना हाथ सीने से हटाई।


इवान, झटके से अलबेली का हाथ खींचकर होंठ से होंठ लगाकर छोटा सा चुम्बन लेते... "अब तुम्हारी इस शरारत पर तो जी करता है दिल चिड़कर निकाल दूं। तुम्हारा प्लान ज्यादा मजेदार है। अभी चलें उस पागल को देखने। आज पक्का बॉस से डांट खिलवाएगी।"


दोनों वापस से दौड़ लगा चुके थे। हां लेकिन इस बार दोनों हाथ में हाथ डाले दौर रहे थे और बीच बीच में होटों पर छोटा, किन्तु प्यार चुम्बन लेते–देते भी चल रहे थे। जंगल के बीच एक बड़ा सा मैदान था। मैदान के एक किनारे बैठने के लिए एक ऊंचा पत्थर रखा हुआ था, उसी के ऊपर ओजल बैठी थी और ठीक नीचे पैक का निशान।


अलबेली और इवान जैसे ही वहां पहुंचे, दोनों गुस्से से घुरकर देखने लगे। ओजल दोनों को एक नजर देखती.… "दोनो को शर्म तो नहीं आती ना। हमेशा मेरे सामने चिपके रहते हो।"


अलबेली और इवान, ओजल को बीच में लेकर कंधे पर हाथ डालते... इवान, ओजल के गाल को चूमते…. "क्या हुआ मेरी ट्विन सिस को? आज उखड़ी क्यों है?"


इधर दूसरे किनारे से अलबेली ओजल के गाल को चूमती... "क्या हुआ मेरी लफ्ते जिगर मित्रा को? सच मे इतनी उखड़ी क्यों है?"


ओजल:- फीलिंग बैड... तुम दोनो जब एक साथ होते हो तो मुझे इग्नोर करते हो। मुझे अच्छा नहीं लगता। दिल जलता है।


इवान, ओजल के गाल को खिंचते… "प्लीज ऐसे मायूस ना हो, दिल में दर्द होता है।"


ओजल:- छोड़ ना... झूठा प्यार मत दिखा... हम पैक मे नहीं होते तो तू मुझे छोड़कर जा चुका होता.… तहखाने मे बंद थे तब भी उतना फील नहीं होता था। इवान अब तो तू मेरे पास भी नहीं बैठता।


अलबेली को जब परिस्थिति का कुछ आभास हुआ तब वो ओजल के पास से हट गयी। उन दोनों को थोड़ा स्पेस देना ही बेहतर समझी। इधर इवान, ओजल के सर को सीने से लगाकर उसके गाल को थप–थपाते…. "याद है आई … सॉरी भूमि दीदी क्या कहती थी? तुम्हारे आर्य भैया आएंगे तब हो सकता है ये कैद ना रहे। वो तुम्हे इतना घुमाएंगे की एक दिन तुम खुद थक कर कह दोगी चलो घर वापस चलते है। जो भी तुम्हारा बचपन खोया है, जितनी भी तकलीफें तुमने यहां झेली है, महज कुछ दिनों में सारे गीले दूर हो जाएंगे।"…


ओजल, इवान को झटक कर सीधी होकर बैठती... "हां तो भूमि दीदी ने क्या ग़लत कहा था। बॉस के बारे में सही ही तो कह रही थी। ओह समझी तू तभी तक साथ था जब तक हम उस तहखाने मे थे, उसके बाद तेरी मेरी दुनिया अलग। यही ना..."


इवान, ओजल का सर ठोकते... "मूर्ख कहीं की.. तुम लड़कियों के अक्ल पर पर्दा ही पड़ा रहेगा।"..


ओजल:- हां तू ही समझदार है ना... जा ना फिर अपनी गर्लफ्रेंड के पास...


वो लूकस नामक प्राणी और 30 वोल्फ के साथ उनके तरफ ही आ रहा था। अलबेली कुछ दूर आगे चली आयी थी, लेकिन इनके कान काफी लंबी दूरी तक सुन सकने में सक्षम थे। ओजल भावनाओं मे बिल्कुल गुम थी। सामने क्या चल रहा है वो देख और समझ रही थी लेकिन अंदर की भावना आज इस प्रकार से फूटी थी कि ओजल बस उसी में गमगीन थी। खुद को लगातार इग्नोर किये जाने की वजह से उसका कलेजा जैसे फट गया था।


अलबेली पीछे मुड़कर इवान को देखी। चेहरे कि मुस्कुराहट इतना ही बयां कर रही थी... "तुम ओजल पर ध्यान दो, मैं इन्हे देखती हूं।"



वो लूकस अपने साथियों को काफी पीछे छोड़ काफी तेजी से आया और सीधा अलबेली का गला पकड़ने के लिये हाथ आगे बढ़ाया ही था कि अलबेली खींच कर उसे एक झन्नाटेदार थप्पड़ लगाती हुई, अल्फा की दहाड़ अंदर से निकाली। पूरी कि पूरी भीड़ सन्न और अपनी जगह पर रुकने को विवश।


"कितना चिल्ला रही हो स्वीटी थोड़ा धीमे आवाज करो ना, हम बात कर रहे है।"… इवान अलबेली से थोड़े ऊंचे सुर मे कहा। अलबेली प्यारा सा अफसोस भरा चेहरा इवान को दिखती धीमे से सॉरी कही।


ओजल:- छोड़ ना ज्यादा प्यार ना दिखा...


इवान:- मैं कोई सफाई ही नहीं दूंगा अब माफ कर दे मेरी ग़लती है।


ओजल:- इवानननननननन


ओजल:- नहीं इतना छोटा नहीं। कुछ तो ऐसा बोल जो दिल को सुकून मिले। बात खत्म मत कर..


इवान:- नहीं, तू जो सोचे वो सही। मै नहीं चाहता कि मुझे सुनकर तू कुछ अफसोस करे। तुझे लगे की नहीं मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए था। एक बात जो नहीं बदलेगी वो ये की मैंने तुम्हे मायूस किया। थोड़ा बुरा लग रहा है...


ओजल:- इवानननननननन


इवान:- मै बस तुझे खुलकर जीने के लिए छोड़ दिया था। तुम्हारी अपनी मर्जी की जिंदगी जिसके अंदर तेरे अच्छे और बुरे दोनो ही फैसले मे मैं तुम्हारे साथ खड़ा मिलूंगा। बस यही वजह थी। पहले तू मेरी दुनिया हुई, फिर उसमें बॉस आया। वहां से रूही दीदी और अलबेली मिली। खुलकर जी रहे हैं और क्या चाहिए। तू खुश थी, और क्या चाहिए। हां अभी थोड़ा दर्द हो रहा है। मुझे तेरे साथ बैठना चाहिए था, पर क्या करूं शायद पहली बार किसी से प्यार हुआ है ना इसलिए अलबेली को भी खोने का डर लगा रहता है। वैसे भी पहले ही मैंने अपने रिश्ते की शुरवात कुछ अच्छी नहीं कि।


ओजल, इवान का चेहरा दोनों हाथ से थामकर, उसके आंसू पोंछती… "आह्हहह, सुकून सा मिला तेरी बात सुनकर। क्या करूं भाई दिमाग सब समझता है लेकिन दिल बिना पूरी बात सुने मानता ही नहीं है। अलबेली बहुत प्यारी है। बस मुझे तुम दोनो को देखकर डर लगता है। कहीं एक दूसरे को छोड़कर किसी और को ना पसंद कर लो.."


इवान:- पागल... हम जानवर नहीं है समझी। हम विशेष इंसान है। हां थोड़ा खुला कल्चर एडॉप्ट किया है, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारी पूर्व की जिंदगी ने ही हमारे हर खुशी के साथ बेईमानी कर लिया इसलिए अब खुलकर जीते है और एक दूसरे के इमोशंस के साथ बेईमानी नहीं करते...


ओजल:- अब ऐसे हर बात पर रोया मत कर। मुझे रोना अच्छा नहीं लगता।


इवान:- तुझे ही पूरी बात सुननी थी ना। अब मुझे रोना आ रहा है थी तू क्यूं रो रही। तुझे रोने के लिये कहा क्या?


ओजल:- मै नहीं रोती तू ही रुलाता है। चुप हो जा वो देख इनका अल्फा आ गया। मै बात करूंगी इनके अल्फा से, तुम दोनो इनके बिटा को कंट्रोल करो।


ओजल और इवान अपने मिलाप में मशगूल थे जबतक विपक्षी वुल्फ पैक के सभी सदस्य लंबी कतार में अलबेली के ठीक सामने खड़े हो चुके थे। उनका मुखिया भी सामने आ कर खड़ी हो गयी। ओजल, इवान को कह ही रही थी कि मैं बात करूंगी, तभी उस माहौल में भीषण आवाज शुरू हो गई। अलबेली अपने वुल्फ साउंड से अकेली ही अपनी पहचान बताने लगी। उसके बाद जो आवाज निकली वो तो मिलो तक सुनाई दे। अल्फा पैक के 3 टीन अल्फा ने एक साथ वुल्फ साउंड लगाया। सबसे आगे अलबेली खड़ी थी और उसके ठीक पीछे दाएं और बाएं से ओजल और इवान खड़े थे।


सामने से चली आ रही विपक्षी पैक की मुखिया ने जवाबी वुल्फ साउंड दिया। क्या दहाड़ थी उस मुखिया की। तीनो टीन वुल्फ की दहाड़ पर वो अकेला भारी। अपने मुखिया की दहाड़ पर विपक्षी वुल्फ पैक के सभी वुल्फ हमला करने की मुद्रा अपना चुके थे। एक ओर 3 टीन अल्फा और दूसरे ओर लगभग 42–45 वुल्फ का झुंड। दोनो ग्रुप आमने–सामने एक दूसरे को देखकर आंखों से अंगारे बरसा रहे थे। तभी सामने के पैक के मुखिया ने एक और दहाड़ लगाई। ये लड़ाई को शुरवात करने का संकेत था। एक साथ सभी वुल्फ दौड़ पड़े। 42–45 के इस वुल्फ पैक में 1 अल्फा नही था बल्कि मुखिया को छोड़कर 8 अल्फा थे, और खुद मुखिया एक फर्स्ट अल्फा।


अल्फा पैक, विपक्षी पैक के मुखिया की दहाड़ को सुनकर समझ चुके थे कि उनका सामना एक फर्स्ट अल्फा के पैक से हुआ है। वैसे फर्स्ट अल्फा के पैक की जानकारी होने के बाद जितने तीनो टीन वुल्फ हैरान थे उस से कहीं ज्यादा वह फर्स्ट अल्फा हैरान थी। क्योंकि फर्स्ट अल्फा की पहली दहाड़ अपने पैक में जोश भरने के साथ–साथ सामने खड़े 3 टीन अल्फा को अपनी आवाज से घुटने पर लाना भी था। किंतु अल्फा पैक के वोल्फ को घुटने पर लाना इतना आसान था क्या? जब तीनो घुटने पर नही आये तब फर्स्ट अल्फा ने दूसरी दहाड़ के साथ युद्ध का बिगुल फूंक दिया। इवान विपक्षी पैक को अपने ओर बढ़ते देख.… "ऐसा नहीं लग रहा की हमने गलत पंगा ले लिया"।


अलबेली, इवान का हाथ थमती.… "अब तो पंगे ले लिया जानेमन। देखते हैं किसमे कितना है दम।"


दूसरी ओर से ओजल, इवान का हाथ थामती.… "हम प्रशिक्षित है और ये केवल भीड़। अपना स्किल लगा दो। इतने दिन टॉक्सिक क्यों जमा किया है। पंजों में सारा जहर उतार लो और कितनो को मारे उसकी गिनती मत भूलना। आज तो हाई स्कोर मेरा ही होगा।


अलबेली और इवान दोनो ओजल को घूरते.… "ऐसा क्या.."


ओजल ने लड़ाई का तरीका बताया और दहारती हुई खुद सबसे आगे निकली। उसे आगे निकलता देख पीछे से इवान और अलबेली भी दहारते हुए लड़ाई के मैदान में कूद गये। तीनों के ही पंजे बिलकुल काले दिख रहे थे। कई धमनियों के रक्त प्रवाह हथेली के ओर ही बह रही थी।


देखते ही देखते 2 अल्फा के साथ कई सारे बीटा, तीनो पर एक साथ कूद गये। ऐसा लगा जैसे बंदरों का झुंड हवा में है। बचे हुये अल्फा–बीटा तेजी से फैलकर तीनो को घेर लिये और झुंड में उन्हें नोचने के लिये तेजी से बढ़े। ऊपर आकाश वुल्फ से ढका, नीचे जमीन वुल्फ से घिरा। अपना अल्फा पैक भी कहां कमजोर थी। प्रशिक्षण ने तो जैसे इन्हे वेयरवोल्फ समुदाय के बीच का सुपरनेचुरल वेयरवोल्फ बना डाला था।


ओजल तुरंत अपना शेप शिफ्ट करके 2 कदम पीछे ली और 2 कदम के छोटे से दौर पर थोड़ा ऊंचा छलांग लगा चुकी थी। जो ही हवा में उसने धाएं–धाएं अपना किक चलाया... नीचे आने से पहले वह हवा में 2 किक और 3 घुसे चला चुकी थी। जिन 2 उड़ते वुल्फ को किक पड़ी वो तो हवा में इस प्रकार उड़े, जैसे किसी फुटबॉल को किक किया हो। नीचे जमीन पर दौड़ रहे वुल्फ की झुंड अपने जगह पर रुक कर, सर के ऊपर से वोल्फ को हवा में उड़ते देख रहे थे। वहीं जिन्हे घुसे पड़े वह अपने छाती, जबड़ा और शरीर का वह अंग पकड़े नीचे गिड़े जहां ओजल का घुसा पड़ा था।


अब ओजल 5 की गिनती पर थी तो इवान भी कहां पीछे रहने वाला था। एक ओर से ओजल ने उड़ती भीड़ साफ किया तो दूसरी ओर से इवान ने। जो वुल्फ खड़े होकर हवा में उड़ते वुल्फ का नजारा ले रहे थे उनके लिये तो आज डबल मजा था। क्योंकि ठीक दूसरी दिशा से भी वुल्फ उड़ते हुये नजर आ रहे थे। इवान ने भी 2 को किक और 3 को घुसे मारकर उनकी हड्डी पसली तोड़ डाली।


अलबेली गुस्से से नाक सिकोड़ती.… "कमीनो.. दोनो–भाई बहन ने मिलकर आगे और पीछे का भीड़ साफ कर दिया। हे भगवान मेरे लिये बस २… इन दोनो भाई–बहन की तो ऐसी की तैसी..."


जाहिर सी बात थी सोचने की गति गुरुत्वाकर्षण की गति से ज्यादा थी। अलबेली ने कोई स्टेप नही लिया बल्कि सर के ऊपर से २ वुल्फ नीचे लैंड कर रहे थे। दोनो अपना पंजा फैलाए अलबेली को पंजा मारने के लिये बेकरार। अलबेली अपने हाथ फैलाकर दोनो के पंजे में अपना पंजा फसायी और दौड़ लगा दी। ठीक उसी प्रकार जैसे कटी पतंग के जमीन पर गिड़ने से पहले उसकी डोर को पकड़ कर बच्चे पतंग को लेकर दौड़ते है, ठीक उसी प्रकार दोनो वुल्फ के हाथ को जकड़कर दौड़ रही थी।


अब दोनो वुल्फ पतंग तो थे नहीं जो हवा में उड़ते ही रहते। अलबेली ने पंजा फसाया और दौड़ लगा दी। झटके से उन दोनो वुल्फ का हाथ खींच गया और जमीन पर घिसटाते जा रहे थे। अलबेली 4 कदम दौड़ लगायी। 4 कदम झुंड बनाकर घेर रहे वुल्फ ने दौड़ लगाया। दोनो ही आमने–सामने और अलबेली ने दोनो वुल्फ को उठा–उठा कर ढेर पेठ दूसरे वुल्फ के ऊपर पटकने लगी। अलबेली इतनी आसानी से उन वजनी वोल्फ के हाथ को पकड़ कर दूसरे वुल्फ पर पटक रही थी जैसे उसने हाथों से डंडा पकड़ रखी थी।


शुरू से माहोल को देखा जाये तो लूकस के पैक ने लड़ाई का बिगुल फूंककर हमला बोल दिया। कई वोल्फ हवा में छलांग लगाकर तीनो के ऊपर खतरनाक पंजे का वार करने वाले थे। वहीं बचे वुल्फ तीनो को चारो ओर से घेरकर झुंड बनाकर मारने के इरादे से दौड़ लगा दिये। जवाबी हमले में तीनो भी फुर्ती दिखाते हमला कर दिये। क्षण भर समय अंतराल में पहले ओजल फिर इवान और अंत में अलबेली ने तेजी से हमला शुरु कर दिया। ओजल और इवान हवा में हमला करने के बाद जबतक दौड़कर सामने पहुंचते, पूरी भीड़ पर अकेली अलबेली भारी पड़ गयी।


दोनो हाथ में एक क्विंटल से ज्यादा वजनी वोल्फ को किसी डंडे की तरह इस्तमाल करते, दूसरे वोल्फ के ऊपर उतनी ही तेजी से पटक रही थी जितनी तेजी से भिड़ पर डंडे बरसाए जा सकते थे। पूरी भिड़ घायल होकर मैदान में बड़ी तेजी से बिछ रही थी। ओजल को लग गया की अलबेली अब पूरा मैदान अकेली ही साफ कर देगी, तब उसने कर्राह रहे लूकस को बिछे घायल वुल्फ की भीड़ से निकाला। उसके गर्दन को दबोचकर हवा में उठाई... "क्यों भाई आ गया स्वाद। बताओ लौंडों की लड़ाई में अपने बुजुर्ग वोल्फ तक को मार खिला रहे। शर्म से डूब मर।"


इतना कहकर ओजल अपना हाथ झटक कर लूकस को मुंह के बल ही मिट्टी पर गिड़ा दी। पीठ के ऊपर से कपड़े को फाड़कर लूकस के पीठ पर वुल्फ पैक के निशान को बनाती.… "अगली बार पिछवाड़े में कीड़े कुलबुलाए तो पीछे पीठ पर ये निशान देख लेना। साले तेरे इलाके में नही घुसे फिर भी तुझे अपने पैक का इतना घमंड की मेरे भाई और दोस्त के पीठ पर ब्लेड चलाए"…


अपनी गुस्से से भरी प्रतिक्रिया देने के बाद ओजल ने उसके पिछवाड़े पर जमाकर एक लात मारी और इवान के पास आकर खड़ी हो गयी। पीछे से भिड़ साफ करके अलबेली भी उनके साथ खड़ी होती... "हां तो दोनो बईमान स्कोर क्या हुआ है?"


इवान और ओजल दोनो अपने हाथ जोड़ते.… "बजरंगबली की स्त्री अवतार तुम्हारा स्कोर सबसे आगे।"


अलबेली चिल्लाती हुई.… "हां भाई विपक्षी, लड़ने के लिये कोई बचा है क्या?"..
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भाग:–100





अलबेली चिल्लाती हुई.… "हां भाई विपक्षी, लड़ने के लिये कोई बचा है क्या?"..


उस पैक के 8 अल्फा 35–36 बीटा सभी जमीन पर घायल अवस्था में फैले कर्राह रहे थे। किसी में बोलने तक की हिम्मत नही थी, हमला करने की सोचना तो दूर की बात थी। तभी फिजाओं में एक खौफनाक दहाड़ गूंजने लगी। तीनो ने पहले एक दूसरे को देखा फिर जब सामने नजर गयी तब कुछ मीटर की दूरी पर 6 फिट ऊंची 4 पाऊं पर खड़ी हीरे सी मजबूत चमरी वाली एक फर्स्ट अल्फा दहाड़ रही थी।


उसके दहाड़ने के साथ ही नीचे फैले घायल वुल्फ वियोग की दहाड़ निकालते, अपने फर्स्ट अल्फा से खुद पर हुये हमले का प्रतिशोध लेने कह रहे थे। आंखों में अंगार उतारे वह फर्स्ट अल्फा दौड़ लगा दी। इधर फर्स्ट अल्फा ने दौड़ लगाया और ऊधर तीनो टीन वुल्फ कतार लगाकर नीचे बैठ गये और क्ला को जमीन में घुसा दिया। पूरे जमीन से सरसराने की आवाज आने लगी। वह फर्स्ट अल्फा दौड़ती हुई जमीन के उस कंपन को मेहसूस की और समझ चुकी थी आगे क्या होगा।


जबतक जमीन के जड़ों की रेशे उसके पाऊं में लगते तब तक वह फर्स्ट अल्फा एक लंबी और ऊंची छलांग लगा चुकी थी। तीनो टीन वुल्फ ने ध्यान बस उड़ते हुये फर्स्ट अल्फा पर लगाया। तीनो जमीन के अंदर क्ला को घुसाकर बड़े ध्यान से उस फर्स्ट अल्फा को ऊंचाई से नीचे आते देख रहे थे। फर्स्ट अल्फा अपने पंजे फैलाए इतनी नजदीक पहुंच चुकी थी कि गर्दन पर अपने पंजे एक वार से सर को धर से अलग कर डाले। तीनो ही अंत तक बस एक टक लगाये उस फर्स्ट अल्फा को ही देखते रहे। ना तो हमले के परिणाम की परवाह थी और न ही उस फर्स्ट अल्फा का डर।


तभी जड़ों की रेशों ने इतनी ऊंचाई ली की पंजा जब इवान की गर्दन से कुछ फिट की दूरी पर था, फर्स्ट अल्फा हवा में ही जकड़ी जा चुकी थी। जड़ों की रेशें लहराते हुये हवा में लगभग 10 फिट ऊंचा गये और फर्स्ट अल्फा को पूरा पैक करके जमीन पर ले आये। फर्स्ट अल्फा ने दिमाग लगाया और वह तुरंत अपना शेप शिफ्ट करके रेशों के बीच से निकलने की कोशिश करने लगी। लेकिन बेचारी को पता नही था कि जड़ों के रेशे भी अपना शेप शिफ्ट करके पूरा शिकुड़ चुकी थी।


ओजल उस फर्स्ट अल्फा के कंधे पर अपना एसिड वाला पंजा टिकाती.… "हमे तुम्हारी ताकत पता है लेकिन तुम्हे ये नही पता की हमे सिवाय हमारे बॉस के कोई कंट्रोल नही कर सकता। और इस भ्रम में मत रहना की तुम्हारी चमड़ी को हम भेद नहीं सकते।"…


फर्स्ट अल्फा:– बच्चे तुमने हमारे इलाके में आकर गलत पंगे लिया है। हां लेकिन इतनी जुर्रत किसके वजह से है वो मुझे पता है। चलो अब हमें इन जड़ों से आजाद करो वरना मैं भूल जाऊंगी की तुम फेहरीन के बच्चे हो।


अलबेली:– मैं न हूं महान अल्फा हीलर फेहरीन की बेटी। मैं तो बस अपनी मां की बेटी हूं।


इवान:– मेरी मां को तो सब जानते थे। इसका ये मतलब नही की हम तुम्हे छोड़ दे।


अभी ओजल भी अपना डायलॉग चिपकाने ही वाली थी, लेकिन उस से पहले ही जमीन से बाहर निकली जड़ें वापस जमीन में घुस गयी। आर्यमणि की नियात्रित लेकिन सभी वुल्फ को सहमा देने वाली आवाज चारो ओर गूंजने लगी। आर्यमणि की आवाज ने जानवर नियंत्रण की वह क्षमता को हासिल किया था कि विपक्षी पैक की मुखिया फर्स्ट अल्फा तक अपना सर झुकाकर घुटनों पर आ चुकी थी और उसके दिमाग में बस भय चल रहा था।


ओशुन को दो दुनिया के बीच से छुड़ाने के क्रम में जब आर्यमणि ने अपने 4 गुणा भय को हराया तभी उसने अपने अंदर ऐसी क्षमता को विकसित कर चुका था जिस से समस्त ब्रह्माण्ड के दिमागी नियंत्रण तकनीक आर्यमणि के आगे घुटने टेक दे। क्योंकि जिस जगह आर्यमणि की आत्मा फसी थी, वहां केवल दिमाग की ही परीक्षा होती है और आर्यमणि उस जगह पर अपने मानसिक शक्ति का प्रदर्शन कर चुका था।


शायद आर्यमणि ही वो पहला और एकमात्र आत्मा थी जिसने भय का वो मंजर पार कर किसी को दो दुनिया के बीच से छुड़ाया था। वरना दो दुनिया के बीच की जो भी चाभी बने, उसकी आत्मा को विपरीत दुनिया वालों ने सालों तक टुकड़ों में खाया था। शायद २ दुनिया के बीच दरवाजा खोलने की कीमत वही होती हो।


बहरहाल लड़ाई के मैदान में क्षेत्र को लेकर जो वर्चस्व की लड़ाई थी, उसे आर्यमणि की एक दहाड़ ने पूर्ण विराम लगा दिया था। विपक्ष पैक की फर्स्ट अल्फा घुटनों पर थी और आर्यमणि तीनो टीन वुल्फ को घूर रहा था।


इवान:– बॉस इनके साथी लूकस ने पहले झगड़ा शुरू किया। हम तो बस जवाबी प्रतिक्रिया दे रहे थे।


इवान की बात का ओजल और अलबेली ने भी समर्थन की और दोनो ही लूकस से अपना बदला चाहती थी। रूही उन तीनो को शांत करवाती, आर्यमणि के पास आकर खड़ी हुई। इससे पहले की आर्यमणि या रूही प्रतिद्वंदी वुल्फ पैक से कोई सवाल पूछते, एक ओर से बॉब और ओशुन चले आ रहे थे।


यूं तो आर्यमणि अब पूरा रूही का ही था, लेकिन न जाने क्यों ओशुन को देखकर रूही कुछ असहज महसूस कर रही थी। आर्यमणि, रूही के चेहरे पर आई भावना को पढ़कर मुस्कुराने लगा। रूही का हाथ थामकर आर्यमणि रूही से नजरें मिलाते….. "इतना इनसिक्योर ना फील करो। अभी चल क्या रहा है उसपर ध्यान दो"…


रूही फुसफुसाती सी आवाज में.… "वो इतनी हॉट और परफेक्ट दिख रही। तुम्हे उससे प्यार भी था। इनसिक्योर होना तो लाजमी है जान"…


आर्यमणि:– तुम खुद को इतना कम क्यों आंक रही। जो कातिलाना और दिलकश लुक तुम्हारा है, वो इस संसार में किसी स्त्री की नही हो सकती।


रूही:– क्यों झूठ बोल रहे आर्य। तुम्हारी भावना बस मुझसे जुड़ी हैं। हम ब्लड पैक में है इसलिए तुम मुझे महसूस कर सकते हो। जैसे मै तुम्हे महसूस कर सकती हूं, कि तुम्हे मुझसे प्यार नही, बस मेरी चाहत को तुमने मेहसूस किया है।


आर्यमणि:– जब मेरी भावना तुमसे जुड़ चुकी है। जब मैं तुम्हारे उदासीनता को मृत्यु समान निद्रा में भी मेहसूस कर सकता हूं। जब ओशुन को मैक्सिको में मरने की हालत में देखा तो दिल वियोग में चला गया था। लेकिन जब मेरी आत्मा २ दुनिया के बीच फसी थी और ख्याल तुम सबके मरने का आया, फिर वहां मेरे अंदर क्या चल रहा था वो मैं बता नही सकता। किंतु वो ख्याल ही इतना भयावाह था कि आज भी रात को नींद नहीं आती। तुम्हे प्यार मेहसूस हो की नही लेकिन भावना तुमसे ऐसी जुड़ी है कि तुम्हारे साथ ही बस जीने की इच्छा है।


"तुम दोनो के बीच क्या खुसुर फुसुर चल रही है?"…. बॉब उनके करीब आते पूछा...


रूही:– कुछ नही बस पारिवारिक डिस्कशन। तुम कहो बॉब यहां कैसे आना हुआ।


ओशुन:– शायद तुमलोग हमारे पैक को चैलेंज कर गये। अब अल्फा पैक से पंगे कौन ले, इसलिए बॉब को बीच में सामिल करना पड़ा।


रूही:– तो बॉब तुम्हारे साथ काम कर रहा था..


बॉब:– नही मैं एक महान अल्फा हीलर नेरमिन के साथ काम कर रहा था, जो की दुनिया की सर्वश्रेष्ठ अल्फा हीलर फेहरिन की बहन है। वैसे ओशुन भी उसी नेरमिन की बेटी है।


आर्यमणि गहरी शवांस लेते मुस्कुराया.… "बॉब इतनी बड़ी सच्चाई गोल कर गये। ये दुनिया भी कितनी छोटी है बॉब...


आर्यमणि अपनी बात समाप्त करके सभी वुल्फ पर से अपना नियंत्रण हटाया। आर्यमणि और रूही की नजरों के बीच कुछ इशारे हुये और दोनो ने अपने क्ला भूमि में डाल दिया। एक बार फिर रेशों की जकड़ में सभी वुल्फ थे। लेकिन केवल वह वोल्फ जो घायल थे। बाकी सभी अद्भुत परिकल्पना वाले दृश्य को अपनी आंखों से होते देख रहे थे। आर्यमणि और रूही के हाथ जमीन में थे और नब्जो में टॉक्सिक समा रहा था। देखते ही देखते घायल वुल्फ हील होने लगे। जो भी वुल्फ पूरा हील हो जाते वह श्वतः ही जड़ों की रेशों से मुक्त हो जाते। अदभुत और अकल्पनीय कार्य जो आर्यमणि और रूही कर चुके थे।


विपक्षी फर्स्ट अल्फा नेरमिन के साथ उसका पूरा पैक कतार लगाकर अपने घुटनों पर था। सभी ने आर्यमणि और रूही के सम्मान में अपना सर झुका लिये। फेहरीन, आर्यमणि और रूही के समीप पहुंचकर उन्हें एक बार स्पर्श करती.…..


"पहली बार तुमसे मिलना हो रहा है, लेकिन तुम्हारे बारे में ओशुन से बहुत कुछ सुन रखा था। आज देख भी ली। तुम वाकई में अलग हो आर्यमणि।"


नेरमिन अपनी बात कहकर आगे बढ़ गयी। एक नजर रूही, ओजल और इवान के चेहरे पर देखकर, एक–एक करके तीनो के चेहरे पर हाथ फेरती.… "तुम तीनो में मेरी बहन फेहरीन की झलक नजर आती है। और मानना पड़ेगा आर्यमणि, जैसा की मेरी बहन कहा करती थी, हम प्रकृति की सेवा करे तो प्रकृति भी हमे खुद से जोड़ लेती थी। तुम्हारे पैक को देखकर आज फेहरीन खुश हो जाती।"


आर्यमणि:– नेरमिन बात आगे बढ़ाने से पहले मैं एक बात सुनिश्चित कर लूं, क्या हमारा पैक यहां शांति से रह सकता है, या फिर पूरा बर्कले, कैलिफोर्निया को ही अपने पैक का क्षेत्र मान रखी हो?


नेरमिन:– क्षेत्र को लेकर हम वुल्फ की अपनी ही कहानी होती है। मैं क्या कोई भी वुल्फ पैक अपने क्षेत्र में घुसपैठ नही बर्दास्त करेगा। लेकिन चूंकि तुम हम में से एक हो इसलिए तुमपर सीमा प्रतिबंध नही लागू होगा।


आर्यमणि:– तुम्हारी बातों से क्षेत्र के ऊपर एकाधिकार की बु आती है। उमान परिवार की एक वुल्फ अपने शादी के बाद गुयाना में बस गयी। वह गुयाना में बसने के बाद अमेजन के जंगल की सेवा में जुटी रही और हर वेयरवोल्फ का वो स्वागत किया करती थी। उसी फेहरीन की तुम बहन हो न...


फेहरीन:– हर किसी का स्वभाव एक जैसा नही होता और न ही मुझे उसकी तरह अच्छी वोल्फ का तमगा लेकर घूमना है। मैं, मैं हूं और जो हूं मैं अपने दम पर हूं।


आर्यमणि:– मैं भी मैं ही हूं लेकिन जो भी हूं वो कुछ अच्छे लोगों की वजह से हूं। तुम पहले ही अपना क्षेत्र हार चुकी हो। अब...


दोनो के बीच में ओशुन आती.… "हमने अपने ही जैसे एक वुल्फ ईडेन का कहर देखा था। मेरी मां जब यहां भागकर आयी थी तब यहां पहले से बसे वुल्फ का कहर देखा था। हर कोई तुम्हारी तरह नही होता आर्यमणि इसलिए यह सोचना बंद करो की अच्छा वुल्फ यहां होता तो हम उनका क्या करते? दूसरे के क्षेत्र में घुसे वुल्फ तभी तक अच्छे होते है, जब तक उनके पास ताकत नहीं आ जाति। खैर, तुम पर तो वुल्फ के नियम भी लागू नहीं होते क्योंकि तुम इंसानों की बस्ती में रहते हो और उन्ही की तरह जीते हो। अब क्या माहौल सामान्य हुआ या अब भी कुछ कहना है?"


रूही:– नही हो गया... अब हमें कुछ नही कहना...


नेरमिन पूरे मुद्दे को ही बदलती.… आर्यमणि, मैने सुना है तुम रूही से शादी करने वाले हो?


पूरा अल्फा पैक एक साथ.… "हां सही सुना है।"


नेरमिन:– तब तो रूही की शादी उमान परिवार के रीति–रिवाज और उसकी जमीन पर होनी चाहिए। वैसे भी फेहरीन का गम हम सबको है। ऐसे में उसकी बेटी की शादी हम सबके लिये खुशी का एक मौका लेकर आयेगी। इसी बहाने रूही और दोनो जुड़वा अपने परिवार से भी मिल लेंगे...


आर्यमणि:– प्रस्ताव अच्छा है। मुझे पसंद आया..


रूही, ओजल और इवान तीनो एक साथ.… "लेकिन बॉस"…


आर्यमणि:– जो मैंने कहा वही फाइनल है। फेहरीन शादी की तारीख तय होते ही हम सूचित कर देंगे, अब हम चलते है। अरे हां इन सब बातों में उस लड़के से तो मिलना रह ही गया... वो लूकस कहां है?


पीछे खड़ा लूकस उनके सामने आते.… "मुझसे गलती हो गयी। मुझे माफ कर दो सर....


आर्यमणि लूकस के गाल को थपथपाते.… "बेटे जाकर पहले ठीक से गुंडई की ट्रेनिंग ले लेना। क्योंकि हर तुच्चे गुंडे के पता होता है कि उसका बाप कौन है। और बाप से पंगे नही लिये जाते।


आर्यमणि अपनी बात कहा और वहां से अपने पैक को लेकर चलते बना। सभी घर पहुंचे और आर्यमणि ने तीनो को कतार में खड़ा कर दिया। हाथ में पतली सी छड़ी और तीनो के हाथ बिलकुल सामने। आर्यमणि तीनो के हाथ पर बारी–बारी से छड़ी मारते...… "तुम तीनो की इतनी हिम्मत जो फर्स्ट अल्फा के पैक से अकेले भिड़ गये।"…


यूं तो जवाब देने के लिये तीनो ही उत्सुक थे लेकिन ओजल दोनो के मुंह पर हाथ रखती.… "बॉस अलबेली जब पहली बार दहाड़ी तभी आप दोनो जंगल के लिये निकल चुके होंगे। क्योंकि हमारी फाइट शुरू होने के पहले ही आप दोनो पहुंच चुके थे और दूर से बैठकर फाइट का मजा ले रहे थे। वो सब छोड़ो.... वो बीती बात हो गयी। आपके हाथ में छड़ी को देखकर याद आया, वो जादूगर का दंश और पतली सी चेन कहां है। उनके दर्शन तो करवाओ?
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भाग:–101





यूं तो जवाब देने के लिये तीनो ही उत्सुक थे लेकिन ओजल दोनो के मुंह पर हाथ रखती.… "बॉस अलबेली जब पहली बार दहाड़ी तभी आप दोनो जंगल के लिये निकल चुके होंगे। क्योंकि हमारी फाइट शुरू होने के पहले ही आप दोनो पहुंच चुके थे और दूर से बैठकर फाइट का मजा ले रहे थे। वो सब छोड़ो.... वो बीती बात हो गयी। आपके हाथ में छड़ी को देखकर याद आया, वो जादूगर का दंश और पतली सी चेन कहां है। उनके दर्शन तो करवाओ?


आर्यमणि:– ये बात अभी क्यों?


ओजल:– अनंत कीर्ति की किताब खुल चुकी है और वह किताब भी उसी जगह थी जहां जादूगर का दंश और वह चेन रखा था। देखो तो उस दंश और चेन के बारे में किताब ने क्या मेहसूस किया था और दूसरों के पास की कितनी जानकारी है?.


आर्यमणि:– हम्मम!!! ये सही सोचा है तुमने... जरा देखे तो उन दोनो वस्तु के बारे में किताब का क्या कहना है।


अनंत कीर्ति की पुस्तक को लेकर सभी जंगल में घुसे। कॉटेज से कुछ दूर चलने के बाद आर्यमणि रुक गया और किताब खोला। किताब खोलते ही उसमे लिखे हुये पन्ने दिखने लगे। ओजल पन्ने पर लिखे शब्द को हैरानी से पढ़ती... "बॉस ये किताब तो कमाल की है। लेकिन इसमें केवल चेन के बारे में क्यों लिखा है?"


आर्यमणि:– क्योंकि मैं चेन के बारे में सोच रहा था।


तकरीबन 20 पन्ने की संक्षिप्त जानकारी थी। 2 फिट लंबे इस चेन में प्रिज्म आकर के 18 चमकीले काले पत्थर लगे हुये थे। सभी पत्थर रंग, रूप, आकार और वजन में एक समान ही थे जिसकी लंबाई 1 इंच थी। इस पत्थर के इतिहास से लेकर भूगोल की लगभग जानकारी थी। इसका उद्गम स्थान हिंद महासागर के मध्य, किसी स्थान को बताया जा रहा था। यह चेन सतयुग के भी पूर्व तीन विलुप्त सभ्यता में से एक सभ्यता की थी। जिस स्थान पर यह चेन बनी थी, उसकी तत्कालिक भौगोलिक स्थिति हिंद महासागर के मध्य में कहीं थी।


विज्ञान की एक उत्कृष्ट रचना। सभी 18 पत्थर को तराशकर उसके दोनो किनारे इतनी बारीकी से छेद किया गया था कि उन पत्थर में किसी प्रकार का निशान नहीं पड़े थे। ऐसा लग रहा था दोनो किनारों का छेद जैसे पत्थर में प्राकृतिक रूप से पहले से मौजूद थे। दो पत्थर को मेटल के पतले वायर जोड़ा गया था और क्या इंजीनियरिंग का मिशाल पेश किया था। मेटल पर कहीं भी जोड़ के निशान नही थे। शायद 2 पत्थरों के बीच में किसी प्रकार का कंडक्टर वायर लगा हुआ था।


सभी 18 पत्थर मिलकर एक एनर्जी पावर हाउस बनाते थे, जिनसे एक पूरे देश में देने लायक बिजली पैदा की जा सकती थी। इसका प्रयोग शहर को रौशन करने से लेकर उन्हें तबाह तक करने लिये किया जा सकता था। चेन को किसी मंत्र से बांधा गया था, जिसे आर्यमणि खोल तो सकता था, लेकिन अभी पांचों गहरी सोच में डूबे थे। नीचे जमीन पर चेन को सीधा फैला दिया गया और पांचों झुक कर उसे देख रहे थे।….


आर्यमणि:– क्या करना चाहिए?


रूही:– मैं क्या सोच रही थी, इस बवाल चीज को जमीन में ही दफन कर देते है। पांच बार इस चेन के दोनो सिरों को जोड़ा गया और पांचों बार पूरा भू–भाग ही विलुप्त हो गया।


अलबेली सोचने की मुद्रा में आती, एक लंबा सा "हूंनननननन" करती.… "सोचने वाली बात ये है कि ये फेकू किताब बढ़ा–चढ़ा कर बोल रहा है। जब 5 बार पूरा एक देश जितना भाग विलुप्त हो गया तब क्या ये किताब इस चेन के पड़ोस में बैठकर चने खा रहा था।"


इवान:– हां जानू की बात में गहराई है। जब ये चेन उस युग की है जिस युग के बारे में लोग कल्पना में भी नही सोचते, फिर उस युग के वस्तु के बारे में इस किताब को कैसे पता?"


ओजल:– बॉस चेन को घूरने से वो अपने बारे में डिटेल थोड़े ना बतायेगा। इसका क्या करना है वो बताओ?


"नही.. मैं अपने बारे में बता नही सकता लेकिन एक रास्ता है जिस से सब कुछ दिखा सकता हूं।"….. वोहह्ह्ह्ह्ह एक चेन से निकली आवाज और पूरा अल्फा पैक चौंककर आवक रह गये। अलबेली, ओजल और इवान, तीनो डर के मारे भूत, भूत करके चिल्लाने लगे। आर्यमणि और रूही की आंखें फटकर बाहर आने को बेकरार हो गयी। भूत के नाम से तो रूही की भी फटी थी और थोड़ा डरा तो आर्यमणि भी था। बस दोनो दिखा ना रहे थे। चेन जमीन पर जैसे तरह–तरह के आकार बनाकर खुद को एक्सप्रेस करने की कोशिश कर रहा हो... "अरे डरो मत.. चिल्लाना बंद करो... डरो मत... मत डरो"…


चेन जितना ज्यादा बोलती उतना ही तेज–तेज तीनो टीन वुल्फ चिल्लाते। आर्यमणि की एक तेज दहाड़ और सभी वुल्फ शांत होकर आर्यमणि के पीछे दुबक गये। आर्यमणि हैरानी से उस चेन को देखते... "तू.. तू.. तुम उनमें से किसी एक की आत्मा बोल रहे हो, जिसने इस चेन का प्रयोग करना चाहा।"…


चेन:– भाई मैं पत्थर के अंदर लगा एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बोल रहा हूं। मैं सही आदमी से संपर्क कर सकता हूं। और बच्चे तुम (आर्यमणि) मुझे सही आदमी लगे।


आर्यमणि, थोड़ा खुश होते... "हां तो तुम कुछ दिखाने की बात कर रहे थे।"


चेन:– तुम्हारे पास जादूगर महान का दंश है। उसे मेरे ऊपर रख दो। वह जादुई दंश किसी टीवी की तरह काम करेगा। मैं कैसे काम करता हूं और अब तक जो भी मैंने कैप्चर किया है, उसका विजुअल तुम सब देख सकते हो।


रूही, उस बोलते चेन को घूरती.… "तुम्हे जादूगर की दंश ही क्यों चाहिए। एआई (AI) हो तो किसी भी टीवी से कनेक्ट हो जाओ.... आर्य ये चेन मुझे झोलर लग रहा है। जो बात इसने हमसे कही है, वह बात ये सुकेश से भी तो कर सकता था।"


चेन:– अच्छे लोग और बुरे लोग का प्रोटोकॉल समझती हो की नही.…


अलबेली:– बॉस मुझे तो ये अब भी भूत लग रहा है। जब लोगों की जान फसी तो ऐसे ही अच्छे लोग, बुरे लोग की बात करता है।


आर्यमणि:– सोचो हम एक ऐसे युग के दृश्य देखने जा रहे है, जिसके बारे में आज तक कभी किसी ने सुना ही नहीं। हम इतिहास को एक्सप्लोर करने जा रहे हैं।


ओजल:– कहीं ये हमे एक्सोलोड न कर दे...


चेन:– पागल हो क्या, मैं जब मंत्र के कैद में हूं तब एक्सप्लॉड करना तो दूर की बात है, मैं इतना एनर्जी भी उत्पन्न नही कर सकता, जिस से किसी पेड़ का पोषण कर सकूं। आर्यमणि जिस दिन तुमने मुझे यहां दफनाया था मैंने यहां के कई पेड़ों को कुपोषित और क्षतिग्रस्त पाया। अंदर से आंसू आ गये। मुझमें इतना समर्थ नहीं था कि मैं ऊर्जा से उन्हे पोषण दे सकूं या फिर उनके अंदरूनी क्षति को ठीक कर सकूं...


आर्यमणि:– क्या वाकई में.. तुम पेड़ को हील कर सकते हो और उन्हे पोषण भी दे सकते हो...


अलबेली:– बॉस ये आपकी रुचि में अपनी रूचि दिखाकर आपको झांसे में ले रहा है।


रूही:– हां मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। मुझे तो ये समझ में नहीं आ रहा की एक आत्मा से हम बात ही क्यों कर रहे। ये कोई एआई (AI) नही बल्कि कोई चालक आत्मा है। जरूर ये जादूगर की दंश से कोई माया करेगा।


चेन:– आत्मा मंत्र से बंधे एक चेन में से कैसे बात कर सकती है डफर। मुझे अब किसी से बात ही नही करनी। दफना दो मुझे...


इवान:– बॉस अब तो इसने खुद को दफनाने भी कह दिया। दफना डालो अभी...


चेन जैसे अपना सर पीट रहा हो.… "अरे कमबख्तों मुझे भी कहां तुमसे बात करने की सूझी। ओ जाहिल मैं गुस्सा दिखा रहा था।"


इतना सुनना था कि अलबेली पिल गयी। चेन के एक सिरे को पाऊं से दबोची और दूसरा सिरा हाथ में लेकर खींचती हुई.… “तेरी इतनी हिम्मत हमसे गुस्सा करे। साले बोलने वाले चेन आज तुझे उखाड़ ही दूंगी"…


इवान और ओजल दोनो अलबेली को पकड़कर उसे चेन से दूर करते.… "बस कर तू उस बोलते वस्तु से कैसे उलझ गयी।"


अलबेली:– छोड़ मुझे... साले तेरे 18 टुकड़ों को जोड़ने वाले ये पतले मेटल है मजबूर टूटा ही नही, वरना आज तेरे 18 टुकड़े कर देती बोलते चेन...


आर्यमणि:– मुझे कुछ समझ में न आ रहा क्या करूं? तुम सब मिलकर इस चेन का फैसला कर दो।


रूही, अलबेली, इवान और ओजल सभी आर्यमणि को देखने लगे। लगभग सभी एक साथ आगे और पीछे … "बॉस हमसे न होगा।"…


चेन:– मुझे दफना ही दो। किसी दूसरे समझदार और सही आदमी का इंतजार रहेगा।


काफी मंथन और थोड़ा वक्त लेने के बाद यह फैसला हुआ की चेन को वापस से जमीन में दफन करने के बाद जादूगर महान की दंश निकाला जायेगा। फिर बाद में देखते है की चेन क्या करना है। सबकी सहमति होते ही जादूगर महान की दंश को जमीन से निकाला गया। काफी अनोखा रत्न जरित यह दंश था, जो किसी वक्त के एक महान जादूगर, "जादूगर महान" की दंश थी।


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जादूगर महान की दंश किताब से कुछ दूरी पर था और जब किताब खोला गया तब उसमे दंश के बारे में लिखा भी था.… "एक शक्तिशाली दंश जो केवल अपनी मालिक की सुनती है। ऊपरी सिरे पर नाग मणि जरा हुआ है। नागमणि की उत्पत्ति सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी (सूर्य ग्रहण) के मिलन पर हुआ था। वहीं इसके नीचे की लकड़ी 5000 साल पुराने एक वट वृक्ष से लिया गया है। वट वृक्ष की जिस सखा पर बिजली गिड़ी थी, उसी शाखा के बीच की लकड़ी को उपयोग में लिया गया था।


दंश के बारे में लिखे मात्र एक पैराग्राफ को सभी ने एक साथ पढ़ा। पढ़ने के बाद फिर से सभी चिंतन में। अलबेली गुस्से में अपने हाथ–पाऊं पटकती... "ये किताब है या कन्फ्यूजिंग मशीन। जो जादूगर इस किताब की रचना के बाद आया, उसकी छड़ी के बारे केवल एक पैराग्राफ और जिस युग का नाम न सुना, उस वक्त की वस्तु के बारे मे कई पन्ने। फर्जी किताब है ये।"


आर्यमणि:– हमेशा गलत निष्कर्ष। दंश के बारे में किताब ने अपना केवल नजरिया दिया है। उसने जो अभी मेहसूस किया उसे दिखा दिया। यदि दंश लिये उसका मालिक जादूगर महान खड़ा होता तब यह किताब जादूगर महान के पूरे सोच को यहां लिख देती।


ओजल:– लेकिन जादूगर महान के बारे में भी तो कुछ नही लिखा।


आर्यमणि:– अब ये तो किताब से पूछना होगा की क्यों जादूगर महान के बारे में एक भी डेटा नही? बाकी यह दंश केवल शक्तिशाली है। इसका अर्थ है, इस दंश के सहारे बड़े से बड़ा जादू किया जा सकता है। लेकिन हर जादूगर इस दंश से छोटा सा जादू भी नहीं कर सकता क्योंकि इसका मालिक केवल एक ही था जादूगर महान और यह दंश उसी की केवल सुनती है।


रूही:– तो फिर वो पत्थर का भूत इस दंश से क्यों चिपकना चाहता है।


इवान:– हो सकता है इस दंश के ऊपर लगा मणि से सच में वह उस युग के विजुअल दिखा सके।


आर्यमणि:– नही ऐसा नहीं है। किताब के अनुसार इस दंश का कोई एक मालिक हो सकता है और वह चेन इस दंश से चिपकना चाहता है, इसका मतलब साफ है कि उस पत्थर में जादूगर महान का ही भूत है।


रूही:– कुछ भी बॉस... और क्या करेगा बिजली का इतना तेज झटका देगा की पूरे भू –भाग के साथ अपने दंश को भी नष्ट कर देगा। कुछ भी कहते हो बॉस...

इवान:– बॉस आप न ज्यादा सोचने लगे हो। जादूगर महान की आत्मा जैसे तात्या (फिल्म झपटेलाला का एक किरदार) की आत्मा हो, जो मरते वक्त पास पड़े उस रेयर आइटम में समा गयी। उसे घुसना भी पड़ता तो किसी इंसान में ही घुसता न ताकि अपने दंश को उठाने के लिये उसे किसी के सामने गिड़गिड़ाना न पड़ता...


अलबेली:– क्या है बॉस.. मानकी बोलते चेन को देखकर हम सब थोड़े डर गये थे, लेकिन इसका ये मतलब थोड़े ना की कोई भी लॉजिक घुसेड़ दो।


आर्यमणि:– तो तुम सब क्या चाहते हो?


चारो एक साथ.… "हम उस युग को देखना चाहेंगे जो आज हिंद महासागर की गहराइयों में विलुप्त हो गया है। देखे तो उस जमाने में ये दुनिया कितना एडवांस्ड थी।"


आर्यमणि:– जैसा तुम्हारी मर्जी... चलो फिर सब साथ में देखते है।


आर्यमणि ने चेन और किताब पकड़ा। जादूगर महान की दंश बारी–बारी से सभी हाथ में लेकर पागलों की तरह फिल्मों में बोले जाने वाले हर जादुई मंत्र को बोल रहे थे और छड़ी को सामने कर देते... जादू करने की कोशिश तो हो रही थी किंतु सब नाकाम।


सभी लिविंग रूम में आराम से बैठे। एक मेज पर जादूगर के दंश और चेन को रखा गया। आर्यमणि चेन को ध्यान से देखते.… "क्यों भाई मिलन करवा दे।"..



चेन:– खुद को पूर्ण करने के लिये न जाने कैसे पागल बना हूं। बॉस लेकिन एक बात, मेरी ऊर्जा का प्रयोग कैसे करते है इस बात की जानकारी लेने के बाद मेरा प्रयोग केवल शुद्ध ऊर्जा उत्पन्न करने की लिये करना। इस पत्थर का इतिहास रहा है कि जिसने भी गलत मनसा से इसका प्रयोग करना चाहा था, वो खुद को भी तबाह होने से नही बचा पाये।


रूही:– वैसे अब तक कितनो ने खुद को तबाह किया है?


चेन:– मेलोडी खाओ खुद जान जाओ..


पूरा अल्फा पैक एक साथ... "मतलब"


चेन:– मतलब मुझे दंश से चिपका दो। उसके मणि की रौशनी में तुम सब को पूरा दृश्य दिख जायेगा।


आर्यमणि हामी भरते हुये चेन को उठा लिया। आर्यमणि ने जैसे ही चेन को उठाया, तभी अलबेली हड़बड़ा कर आर्यमणि का हाथ पकड़ती.… "एक मिनिट बॉस, मुझे चेन से कुछ जानना है?"


चेन:– मैं मिलन के लिये जा रहा था बीच में ही रोक दिये... पूछिए यहां की सबसे समझदार लड़की जी...


अलबेली:– ओ भाई चेन, तुम जो वीडियो चलाने वाले हो उसमें फास्ट फॉरवर्ड या टाइम जंप का विकल्प होगा की नही? पता चला १०० साल जितनी लंबी वीडियो चला दिये हो...


चेन:– हां मुझे आपसे ऐसे ही समझदारी की उम्मीद थी। चिंता मत करो, पहले मिनट से तुम पूरा वीडियो समझ जाओगी और मैं ज्यादा वक्त न लेते हुये कम से कम समय लूंगा। बस मेरे बारे में जानने के बाद मेरा गलत इस्तमाल मत करना। जब मैं जिंदगी संजोता हूं तब मुझे लगता है कि मैं अपने पिताजी को श्रद्धांजलि दे रहा...


अलबेली:– तुम्हारे पिता....


चेन:– हां मुझे आवाज और दिमाग देने वाले मेरे पिता। साइंटिस्ट "वियोरे मलते" जिन्होंने मेरी रचना की। अभी उनसे सबको मिलवाता हूं...


आर्यमणि:– तो ये लो फिर हो गया चलो अब मिलवओ...


अपनी बात कहते आर्यमणि ने दंश और चेन का मिलन करवा दिया। पांचों कुछ दूर पीछे सोफा पर बैठकर ध्यान से दंश और चेन को देख रहे थे। पहला एक मिनिट कोई हलचल न हुआ। और दूसरे मिनट में ऐसा लगा जैसे दंश और चेन दोनो को मिर्गी आ गयी थी। पहले तो दोनो हवा में ऊंचा गये, उसके बाद तो जैसे दंश और चेन के बीच युद्ध छिड़ गया हो। दंश चेन को बाएं ओर खींचती तो कभी चेन दंश को दाएं ओर। दोनो के आपसी खींचातानी में कभी दंश चेन को लिये तेजी से बाएं चली जाती तो कभी चेन उसे दाएं खींच लेता। ऐसा लग रहा था दोनो पूरा घर में उठम पटका कर रहे हो।


जैसे किसी बेवा की मांग उजड़ती है ठीक वैसे ही दंश और चेन ने मिलकर लिविंग रूम का हाल कर दिया था। लिविंग रूम का हर समान टूटा और बिखड़ा पड़ा था, सिवाय उन सोफे के जिसपर वुल्फ पैक बैठे थे। तकरीबन 5 मिनिट के बाद दंश पर चेन पूरी तरह से लिपट चुकी थी और हवा में अल्फा पैक के नजरों के ठीक सामने थी। माहोल पूरा शांत और हर कोई विजुअल देखने को तैयार। चेन भी ज्यादा वक्त न लेते हुए कहानी को शुरू किया...


"बाय –बाय मूर्खों। मेरी आत्मा को मेरे शरीर से मिलाने का धन्यवाद। आर्यमणि तुम सही थे मैं ही जादूगर महान हूं जिसे तुमने उसकी छड़ी से मिला दिया।।"


तेज रौशनी के साथ इस कमरे में जादूगर महान की आवाज गूंजी और चेन लिपटा वह दंश बिजली की तेजी से ऊपर हवा में गया और कोट्टेज के छत को फाड़कर निकल गया। आर्यमणि गर्दन ऊंचा करके एक बार तो छत के उस छेद के देखा उसके बाद पूरे अल्फा पैक को घूरने लगा। और इधर चारो अपने मुंह पर हाथ रखे, छत पर हुये छेद को देखते.… "बीसी (BC) झूठ बोलने वाला भूत, हमारी काट कर भाग गया।"
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Tri2010

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भाग:–102





तेज रौशनी के साथ इस कमरे में जादूगर महान की आवाज गूंजी और चेन लिपटा वह दंश बिजली की तेजी से ऊपर हवा में गया। जादूगर कोट्टेज के छत को फाड़कर निकल गया। आर्यमणि गर्दन ऊंचा करके एक बार छत के उस छेद के देखा उसके बाद पूरे अल्फा पैक को घूरने लगा। और इधर चारो अपने मुंह पर हाथ रखे, छत पर हुये छेद को देखते.… "बीसी (BC) झूठ बोलने वाला भूत, हमारी काट लिया।"


सभी छत को घूर रहे थे और आर्यमानी गुस्से से फुफकारते.… "जबतक उस जादूगर को पकड़ न लेते, तबतक चारो बाहर ही रहोगे।"


रूही:– और तुम क्या घर पर बैठकर रोटियां बनाओगे। बाहर जाकर तुम जादूगर को पकड़ो आर्य। ये तुम्हारा काम है।


आर्यमणि:– अच्छा ये मेरा काम है। जब मैं कह रहा था कि किताब के हिसाब से.…


रूही, आर्य के बात को बीच से काटती.… "किताब का हिसाब किताब तुम देखो। ये फालतू की तिलिस्मी चीजें तुम लेकर आये थे।"


आर्यमणि:– हां तो जब मना कर रहा था तब माने क्यों नही। कह तो रहा था न, चेन में जादूगर की आत्मा है।


रूही:– उस मक्कार भोस्डीवाले जादूगर का नाम मत लो। झूठा साला.. दिखा तो ऐसे रहा था जैसे वह एनर्जी पावर हाउस वाले उस चेन में बसने वाला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो, लेकिन मदरचोद निकला जादूगर का भूत, उसकी मां की चू...


आर्यमणि:– बच्चों के सामने ये कैसी भाषा का प्रयोग कर रही हो।


रूही:– शुद्ध देशी भाषा का प्रयोग कर रही हूं और जो मदरचोद मरने के के बाद भी झूठ बोले, उसकी मां का भोसड़ा, बेंचोद दो कौड़ी का घटिया...


आर्यमणि:– रूही बहुत हुआ..


रूही:– कम ही कह रही हूं। अमेरिका आ गयी इसका मतलब ये नही की सरदार खान के बस्ती की अच्छी बातों को भूल जाऊं। तू कुछ बोल क्यों नही रही अलबेली... अलबेली.… ओ तेरी जादूगर... अ, अ, आप कब आये जादूगर और इन्हे बांध क्यों रखा है?


हुआ यूं की आर्यमणि और रूही अपनी तीखी बहस में व्यस्त थे। उधर जिस तेजी से जादूगर महान बाहर भागा था, उसी रफ्तार से वापस भी आ गया। अब ये दोनो तो व्यस्त थे और जब तीनो टीन वुल्फ ने रूही को रोकना चाहा तब जादूगर महान तीनो को जादू से बांध चुका था। तीनो टीन वोल्फ ना तो हिल सकते थे और न ही कुछ बोल सकते थे।


जादूगर, रूही की बातों पर तंज कसते.… "जब तुम मुझे आशीर्वाद देना शुरू की थी तभी आया। ये तीनों तुम्हे बीच में ही रोकने वाले थे, इसलिए बांध दिया।


रूही:– ओह तो सब सुन लिया। फिर क्यों मैं इतनी घबरा रही की कहीं कुछ सुन तो न लिया। वैसे बुरा मत मानना, पीठ पीछे दी हुई गाली लगती नही।


जादूगर:– हां लेकिन अभी–अभी गये मेहमान के जाने के ठीक बाद कभी गाली नहीं देते। हो सकता है किसी कारणवश वह लौट आये।


आर्यमणि:– जादूगर इतनी गलियां खाने के बाद भी इतने संयम में हो और दिल की भड़ास भी बड़े प्यार से निकाल रहे। अब बात क्या है वो सीधा बताओ, वरना मैं मोक्ष मंत्र पढ़ना शुरू करूं।


जादूगर:– मैं तो चला रे बाबा। ये तो मुझे जान से मारने की धमकी दे रहा। मुझे जो भी कहना होगा तुम्हे छोड़कर बाकी सबको कह दूंगा।


जादूगर आया... सबकी बातें सुनी और जैसे ही आर्यमणि ने मोक्ष मंत्र का केवल चर्चा किया, जादूगर वैसे ही भाग गया। उसके आने और जाने के बीच एक ही अच्छी बात हुई, आर्यमणि और रूही के बीच की बहस रुक गयी। एक बार फिर पांचों ऊपर की ओर देख रहे थे जहां से वह जादूगर भागा था।


आर्यमणि:– ये सर दर्द देने वाला है। मैं तुम लोगों की बातों में क्यों आ गया।


रूही कुछ जवाब देती उस से पहले ही ओजल कहने लगी.… "तैयार आप भी थे बॉस। इच्छा आपकी भी थी, तभी ऐसा संभव हुआ। दोष हम सब का है। हम सब उस जादूगर की बात में फसे। जादूगर की आत्मा अपने दंश से किसके वजह से जुड़ी, इसपर चर्चा करने से केवल एक दूसरे पर आरोप ही लगना है। ये सोचिए की उसे रोका कैसे जाये। भूलिए मत वह चेन खुद एक विध्वंशक हथियार है उसके ऊपर शक्तिशाली दंश। और एक ऐसा दुश्मन ने दस्तक दिया है जिसे हम मार भी नही सकते।


आर्यमणि:– हम्मम!!! ठीक है मैं आश्रम के लोगों से संपर्क करता हूं, तब तक तुम सब भी कुछ सोचो।


अलबेली:– सॉरी बॉस... कल से इंटर स्कूल फुटबॉल टूर्नामेंट शुरू हो रहा है और हमें अपने टीम के बारे में सोचना है।


अलबेली अपनी बात कह कर वहां से निकल गयी। ओजल और इवान भी उसके पीछे गये। इधर आर्यमणि भी आश्रम के लोगों से संपर्क करने लगा। अगली सुबह तीनो टीन वोल्फ सीधा स्कूल निकल गये। स्कूल जाते समय तीनो ने आर्यमणि और रूही को लिविंग रूम में गुमसुम पाया, इसलिए हिचक से कह भी नही सके की आज हमारे पहले गेम में आना।


चुकी इनका हाईस्कूल होम टीम थी, इसलिए तैयारी की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की ही थी। सुबह के 11 बजे पहला मैच होम टीम बर्कले हाई स्कूल और सन डायगोस हाई स्कूल के बीच खेला जाना था। दोनो ही टीम का जोश अपने उफान पर था। खिलाड़ियों के बीच एक दूसरे पर छींटाकशी बदस्तूर जारी था। सन डिएगो स्कूल पिछले वर्ष की रनर अप टीम में से थी और बर्कले हाई स्कूल अंतिम 8 में भी दूर–दूर तक नही।


और सब वर्ष की बात और थी। जबसे टीम में ओजल, इवान और अलबेली ने दस्तक दिया था, तबसे इस टीम का मनोबल भी पूरा ऊंचा था, और इस वर्ष यह टीम मात्र सुनकर चुप नही रहने वाली थी। लड़कों का मैच था और कोच के साथ इवान अपनी टीम की रणनीति बनाने में लगा हुआ था। दर्शक के रॉ में ओजल और पूरी गर्ल टीम बैठी हुई थी। मैच शुरू होने में कुछ देर थे तभी स्टैंड में तीनो टीन वुल्फ के मेंटर आर्यमणि और रूही भी पहुंच चुके थे। उनको दर्शकों के बीच देखकर तीनो टीन वुल्फ का उत्साह और भी ज्यादा बढ़ गया।


सभी खिलाड़ी और रेफरी मैदान पर। दोनो टीम के अतरिक्त खिलाड़ी अपने–अपने बेंच पर। उनमें से एक इवान भी था जो अतरिक्त खिलाड़ी के रूप में मैदान पर था और कोच के साथ ही खड़ा था। मैदान के केंद्र में दोनो टीम के 11 खिलाड़ी अपने–अपने पाले में। अब क्रिकेट होता या फिर हॉकी या फुटबॉल तब तो मैच का पूरा हाइलाइट बताना उचित होता, लोग चटकारा लगाकर इनकी लिखी कमेंट्री भी पढ़ सकते थे। किंतु अमेरिकन फुटबॉल, इसकी कमेंट्री लिखना तो दूर की बात है, टेक्निकल बातें भी लिख दिया जाये तो लोग थू–थू करते हुये लिख दे, "ये क्या बकवास लिखा है।" ज्यादातर लोग तो इसे रग्बी भी समझते है, किंतु दोनो अलग खेल है।


सीधी भाषा में लिखा जाये तो 1 घंटे में 4 क्वार्टर का खेल होता है। दोनो टीम को बराबर अटैक और डिफेंस करने का मौका मिलता है। बर्कले की टीम ने पहले डिफेंस चुना और सबके उम्मीद को पस्त करते हुये उन्होंने ऐसा डिफेंस का नजारा पेश किया की विपक्षी टीम नाकों तले चने चबाने पर मजबूर थी। वहीं जब बर्कले हाई स्कूल का अटैक शुरू हुआ तब तो विपक्षी को आंखे फटी की फटी रह गयी। पहले हाफ पूरा होने पर स्कोर कुछ इस प्रकार था... बर्कले 22 पॉइंट पर और सन डिएगो स्कूल मात्र ३ अंक पर थी।


फिर शुरू हुआ खेल अगले हाफ का। पहले हाफ में मैदान पर अनहोनी होते सबने देखा था। बर्कले हाई स्कूल वह टीम थी, जिसके लिये अंतिम 4 में जगह बनाना मुश्किल था। लेकिन बर्कले हाई स्कूल का खेल देखकर सभी हैरान थे। हां वो अलग बात थी की दूसरा हाफ और भी ज्यादा हैरान करने वाला था। बर्कले की टीम डिफेंस पर थी और जैसे ही बॉल विपक्ष के क्वार्टर बैक खिलाड़ी के हाथ में पहुंचा, बर्कले की पूरी टीम विपक्षी को रोकेगी क्या, वह तो जमीन पर ऐसे गिर रहे थे जैसे पेड़ से सूखे पत्ते।


पहले हाफ में जहां होम टीम ने अपने खेल में सबको हैरान कर दिया था। वहीं दूसरे हाफ में बर्कले की टीम हंसी की पात्र बनी हुई थी। इवान को समझ में आ चुका था कि यहां क्या हो रहा है। अपनी रोनी सी सूरत बनाकर वह आर्यमणि के ओर देखने लगा। आर्यमणि अपने हाथों के इशारे उसे धीरज रखने कहकर.… "रूही ये जादूगर तो सर दर्द हो गया है।"


रूही:– उस से भी कहीं ज्यादा सरदर्द ये मैच दे रहा। ऐसे लड़–भिड़ रहे हैं, जैसे शांढ की लड़ाई चल रही हो।


आर्यमणि:– हम्म, चलो चलते है। पता तो चले की यह जादूगर चाहता क्या है?


रूही:– हां लेकिन तब तक तो वो जादूगर पूरा मैच बिगाड़ देगा।


आर्यमणि:– इसलिए तो जादूगर को साथ लिये चलेंगे। ताकि वो मैच न बिगाड़े।


आर्यमणि ने धीमा अपना संदेश दिया। यह संदेश तीनो टीन वुल्फ तक पहुंचा और तीनो ही सबसे नजरें बचाकर अपने घर को निकले। एक–एक करके सभी घर में इकट्ठा हो गये। आर्यमणि लिविंग हॉल से चिल्लाते... "जादूगर महान कहां हो तुम। आ जाओ हम तुम्हे सुनेगे।"


आर्यमणि तेज चिल्लाया और ऊपर छत को देखने लगा। बाकी के चारो भी छत को घूरने लगे। ज्यादा इंतजार न करवाते हुये जादूगर उसी रास्ते से आया जिस रस्ते से गया था। जादूगर आते ही.… "मुझे समय देने के लिये तुम्हारा धन्यवाद"…


आर्यमणि चिढ़ते हुये.… "बात करने के लिये इन बच्चों के गेम क्यों खराब कर दिये? जी तो करता है अभी मोक्ष मंत्र पढ़ दूं। लेकिन फायदा क्या, फिर तुम भाग जाओगे और पता न उसके बाद क्या गुल खिलाओगे.…


जादूगर:– मोक्ष मंत्र, हाहाहा… मैं नही भागूंगा। चलो पहले तुम अपने मंत्र ही आजमा लो। वैसे इस पृथ्वी पर वह ऋषि या महर्षि बचे नही जिन्हे मोक्ष के 22 मंत्रो का ज्ञान हो। दिमाग तेज हो तो सीधा सुनो या फिर तुम महर्षि गुरु वशिष्ठ की वह किताब ले आओ और उसके सामने मैं सारे मंत्र बोलता हूं। पहले मेरी आत्मा को इस संसार से मुक्त करके दिखाओ।


आर्यमणि:– मोक्ष के २२ मंत्र आप मुझे सिखाएंगे?


जादूगर:– क्यों मुझसे सीखने से छोटे हो जाओगे...


आर्यमणि:– नही मुझे खुशी होगी। आप मंत्र बोलना शुरू करो, किताब तो यहीं है। मंत्र बोलने के बाद मुझे समझाना की आप अनंत कीर्ति की पुस्तक को कैसे जानते हो?


जादूगर:– अनंत कीर्ति... अनंत कीर्ति.. क्या बकवास नाम दिया है उन बदजातो ने। बच्चे यह एक अलौकिक ग्रंथ है। कोई पुरस्कार अथवा वाह–वाही का जरिया नहीं जिसे पाकर तुम कह सको की मैने अनंत कीर्ति की पुस्तक पायी। खैर मंत्र सुनो...


जादूगर ने मोक्ष के २२ मंत्र बता दिये। आर्यमणि सभी मंत्रो को बड़े ध्यान से सुन रहा था। मंत्र जब समाप्त हुये तब आर्यमणि ने किताब खोला। किंतु किताब में एक भी मोक्ष के मंत्र नही लिखे मिले। आर्यमणि हैरानी से कभी किताब को तो कभी दंश को देख रहा था।


जादूगर:– क्या हुआ किताब का ऑटोमेटिक मोड काम नही कर रहा क्या?


आर्यमणि:– जैसा इस किताब के बारे में कहा गया था, आस–पास के माहोल को मेहसूस कर यह किताब श्वतः ही सारी जानकारी दे देगी, लेकिन ऐसा नहीं है। किताब खोलो तो केवल दंश और चेन के बारे में लिखा है।


जादूगर:– कहा था न अलौकिक ग्रंथ है। चलो एक काम और कर देता हूं। तुम्हे मै ये सीखता हूं कि कैसे किताब को ऑटोमेटिक मोड से मैनुअल मोड पर पढ़ सकते हैं। विधा विमुक्तये से किताब के पन्नो को मंत्रो की कैद मुक्त करने के बाद, बड़े ही ध्यान और एकाग्रता के साथ अपनी इच्छा रखो और ज्ञान विमुक्त्य का मंत्र ३ बार पढ़ना...


जैसा जादूगर ने बताया आर्यमणि ने ठीक वैसा ही किया। किताब से जो जानकारी चाहिए थी, वह आंखों के सामने थी। आर्यमणि समझ चुका था कि जादूगर पर मोक्ष मंत्र काम न करेगा, इसलिए उसने जादूगर महान को ही किताब में ढूंढने की कोशिश किया और पहचान के लिये उसके दंश का स्मरण करने लगा। जादूगर महान के बारे में १०० पन्ने लिखे गये थे। उसके कुकर्मों की गिनती का कोई अंत नहीं था। प्रहरी और तीन आश्रम, सात्त्विक, वैदिक और सनातनी आश्रम का एक भगोड़ा जिसे किताब लापता बता रही थी।


लगभग ३ घंटे तक आर्यमणि एक–एक घटना को पढ़ता रहा। इस बीच वुल्फ पैक के साथ वह जादूगर घुल–मिल रहा था। आर्यमणि जब उसकी जीवनी पढ़कर सामने आया, जादूगर जोड़–जोड़ से हंसते हुये.… "क्या हुआ ३ आश्रम मिलकर भी मुझे रोक न सके, चेहरे पर उसी की हैरानी है क्या?"


आर्यमणि:– मुझमें इतनी शक्ति तो है कि तुम्हे दंश से अलग कर दूं और फिर बाद में सोचूं की इस चेन का करना क्या है? या फिर मैं तुम्हे दंश से अलग करने के बाद, इस दंश को ही नष्ट कर दूं?


जादूगर:– ख्याल बुरा नही है। लेकिन एक कमीने को दूसरा कमीना ही मार सकता है। मुझे तुम्हारे हर दुश्मन के बारे में पता है। जिस जादूगर को 3 आश्रम के योगी, गुरु, ऋषि, महर्षि आदि अपने दिव्य दृष्टि से देख नही पाये। प्रहरी के सभी प्रशिक्षित को केवल इतना आदेश था कि मेरा पता लगाये, लेकिन कोई मुझसे उलझे न। मैने तुम्हारे दुश्मन उन एलियन समुदाय के लोगों को हराया था। काश ये बात तब पता होती की वो साले एलियन थे। उन एलियन का क्या करोगे, जिसकी शक्ति तुम्हे हर बार चौका देगी? तांत्रिक सभा के तांत्रिक अध्यात का क्या करोगे, जिसका ज्ञान तो तुम जैसे से कहीं आगे है और तांत्रिक की पूरी सभा उन एलियन के साथ गठजोड़ किये है? और क्या करोगे तब, जब उनकी आराध्या महाजनीका दूसरी दुनिया से वापस लौटेगी?
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Tri2010

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143
भाग:–103




जादूगर:– उन एलियन का क्या करोगे, जिसकी शक्ति तुम्हे हर बार चौका देगी? तांत्रिक सभा के तांत्रिक अध्यात का क्या करोगे, जिसका ज्ञान तो तुम जैसे से कहीं आगे है और तांत्रिक की पूरी सभा उन एलियन के साथ गठजोड़ किये है? और क्या करोगे तब, जब उनकी आराध्या महाजनीका दूसरी दुनिया से वापस लौटेगी?


आर्यमणि:– तुम्हारे पास इतनी जानकारी कैसे?


जादूगर:– कहीं तुमने मुझे आज कल के जादूगर की तरह तो नही समझ लिया न। तमाशा दिखाने वाले नल्ले... २२ साल की उम्र तक अघोड़ियों की छाया में पला हूं। उनसे शिक्षा लेने के बाद १० साल तक सभी ग्रंथों के मंत्र को सिद्ध करता रहा। उसके बाद 8 साल तप करके मैंने मोक्ष को साधा था। और आखरी में मैने 5 साल तक अपने गुरु जादूगर वियोरे मलते se शिक्षा प्राप्त किया। जैसे यह अलौकिक पुस्तक है मैं भी ठीक वैसा ही हूं। हम दोनो में कोई अंतर नही। बस फर्क सिर्फ इतना था कि यह पुस्तक एक वक्त में अपने आसपास के सभी चीजों को मेहसूस कर सकती थी। यह वातावरण में हुये छोटे से बदलाव को भी दर्ज करती है। इसका मतलब तुम समझते हो। किसी के होने की मौजूदगी, यह किताब केवल वातारण को मेहसूस करके पता लगा सकती है, भले ही कोई खुद को कितना भी छिपाने में महारत क्यों न हासिल कर चुका हो। फिर चाहे वो कोई आत्मा की पहचान हो या फिर किसी तिलिस्मी वस्तु की पहचान हो। संसार में जितनी भी सजीव अथवा निर्जीव को इस किताब ने मेहसूस किया है, सबका वर्णन मिल जायेगा।


आर्यमणि:– जानकारी के तो भंडार हो आप। लेकिन 45 साल केवल शिक्षा लेने वाला इंसान केवल अपने कुख्यती के लिये शिक्षा ले रहा था?


जादूगर:– जो तुम्हे कुख्यात लग रहा है वह मेरे हिसाब से मजेदार काम था। मैने पहल नहीं किया था। मैने कुछ ऐसा गलत नही किया था, सिवाय मेरे गुरु जादूगर वियोरे मलते को मारने आये २००० सैनिकों को हमने गहरी नींद सुला दी थी। अघोरियो के साथ रहा था फिर भी मैं किसी को मारना नही चाहता था और न ही मेरे गुरु वियोरे मलते ने किसी को परेशान किया था। हम तो जादू सीखते थे और इलाज के लिये पहुंचे लोगों का इलाज करते थे। पर हमारा जादू करना वहां के शासन–प्रशासन को पसंद नही आया। मेरे गुरु ने जगह छोड़ने से इंकार किया तो उसे सीधा जान से मारने पहुंच गये।


आर्यमणि:– तुम्हे ऐसा क्यों लगता है कि मैने यदि तुम्हारे कहे पर विद्या विमुक्तये और ज्ञान विमुक्तये मंत्र का प्रयोग किया है, तो उसके बाद मै सम्पूर्ण भ्रम समाप्ति मंत्र नही प्रयोग करूंगा। तुम जैसे लोग से बार बार उल्लू बन जाऊं, इतना भी कच्चा नही। जो व्यक्ति किताब के बारे में इतना जानता हो उसके लिये किताब के अंदर के शब्दों से छेड़–छाड़ करना कोई बड़ी बात नही होगी। पहले बिना भ्रम समाप्ति के पढ़ा। कुछ पन्ने पढ़ने के बाद मैने फिर भ्रम समाप्ति मंत्र का प्रयोग किया और दोबारा पढ़ना शुरू किया। भगवान, आप कितने पहुंचे जादूगर जो उस पुस्तक के शब्दों से छेड़–छाड़ कर गये। अब जादूगर जी अपनी चिकनी चुपड़ी बातें रहने ही दो। आप सम्पूर्ण विकृत इंसान थे और मैं समझ गया हूं कि किताब आपको क्यों नही ढूंढ पायी।


रूही:– क्यों नहीं ढूंढ पायी?


आर्यमणि:– क्योंकि इसकी आत्म एक ऐसे चेन में घुसा दिया गया था, जो पहले से सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र से बंधी थी। जिसके अंदर के किसी भी प्रकार की शक्ति को कोई इस्तमाल नही कर सकता था। बेचारा जादूगर एक नॉन–ट्रेसबल चेन में कैद हुआ था। जिस वजह से इसके चेले भी इसे ढूंढ नही पाये और न ही किताब ने चेन के अंदर क्या है उसे बताया।


रूही:– हां लेकिन आर्य किताब को तो बताना चाहिए था न...


जादूगर:– कच्ची खिलाड़ी.… सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र के अंदर क्या है, यदि ये बात इतनी आसानी से पता चल जाये तो फिर इस मंत्र का फायदा क्या हुआ। तुमने वाकई मुझे चौंका दिया गुरु भेड़िए।


रूही:– हम मात्र भेड़िए होते तो क्या तुम हमसे बात कर रहे होते। जादूगर अपनी जुबान संभाल कर...


जादूगर:– तुम्हारा मुखिया मुझे आप कहता है और तुम मुझे बेइज्जत कर रही। खैर जब तुम्हे सब पता ही है गुरु भेड़िए तो टाइम पास करने से क्या फायदा है...


रूही:– मुझे सभी बातें पता न है... पहले उसपर बात होगी आर्य... जादूगर की बात सुनकर पजल मीटिंग मत करो।


ओजल:– आप लोग अपना सेशन जारी रखो, हम चलें।हमारे मैच का समय हो रहा है।


कुछ देर बाद गर्ल टीम का मैच शुरू होने वाला था इसलिए तीनो निकल गये। वहीं रूही अपनी शंका रखती... "मुझे सारी बातें पता नही है। इस जादूगर पर मोक्ष मंत्र का असर क्यों नही हुआ?


आर्यमणि:– क्योंकि ये मरा नही है। इसकी आत्म चेन में कैद है और शरीर को अब तक जिंदा रखा गया है।


जादूगर:– तुम कमाल का परिचय दे रहे आर्यमणि। ठीक है मैं सीधा मुद्दे पर आता हूं। मुझे अनंत वर्षों तक किसी घिनौने रूप में जिंदा रहने का कोई शौक नहीं। बेशक तुम मेरे शरीर को जलाकर मोक्ष मंत्र पढ़ देना लेकिन उस से पहले मैं अपने दुश्मन को मरता देखना चाहता हूं।


आर्यमणि:– वो तो अब तुम खुद भी कर सकते हो। दंश तुम्हारे पास है।


जादूगर:– कमाल है ज्ञानी भेड़िया। तुम्हे भीं पता है कि यह चेन किताब के सुरक्षा मंत्र से घिरा है। मैं किताब से ज्यादा दूर नहीं जा सकता। या तो तुम सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र हटा दो, फिर तो इस चेन के जरिए मैं चुटकी बजाकर बदला ले लूंगा। लेकिन मैं जानता हूं कि सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र तुम हटाओगे नही, इसलिए तुम मुझे उन एलियन के पास ले चलो। हम दोनो मिलकर उन्हें जमीन के नीचे गाड़ देंगे।


आर्यमणि:– जादूगर तुम कुछ ज्यादा ही उम्मीद न लगा लिये। तुमने ही तो उन एलियन की शक्ति से मुझे अवगत करवाया है। तुम क्या चाहते हो तुम जैसे भूत के कहने पर उनसे सामने की लड़ाई करूं और मारा जाऊं।


जादूगर:– मैं तुम्हे जादूगरी की हर वो चीज सीखा सकता हूं। यहां तक की टेलीपोर्ट होना भी।


आर्यमणि:– कैसे??? नर बलि या पशु बलि लेकर मुझे विद्या सिखाओगे?


जादूगर:– तुम चाहते क्या हो भेड़िया वही बता दो?


आर्यमणि:– तुम अपने बारे में बखान गा चुके। तुमने एलियन का भी गुणगान कर लिया। और सबसे कमाल की बात यह रही की तुम दोनो के शक्तियों के आगे मैं धूल के बराबर भी नहीं। तो महान जादूगर अपनी कहानी ही बता दो की तुम इस तिलिस्म में फसे कैसे?


जादूगर:– "जो बोया था वही पाया। जिस वक्त मैं था उस दौड़ में केवल मैं ही था और मेरे विपक्ष में सभी शक्तिशाली समुदाय। फिर चाहे वो अच्छे लोगों के समुदाय हो या बुरे। सभी शक्तिशाली आश्रम, तांत्रिक महासभा, एलियन समुदाय, किरकिनी समुदाय या फिर कोई अन्य समुदाय हो। हां शुरवात में मैं कुछ ज्यादा ही पागल था। जिस किसी से लड़ता केवल मारने के लिये ही लड़ता। इसी वजह से जितने भी विकृत समुदाय थे जैसे तांत्रिक महासभा, एलियन समुदाय या जादूगरों की किरकीन समुदाय, उन सबके बीच मैं तुरंत ही लोकप्रिय हो गया।"

"बाद में ख्याल आया की ये जितने भी बुरे समुदाय थे, साले मुझे चने के झाड़ पर चढ़ाकर मात्र एक हथियार की तरह उपयोग में ला रहे है। जिस दिन मेरे भेजे की बत्ती खुली थी, उसी दिन मैं जादूगरों की महासभा किरकीनी के सभी अनुयाई को मौत की नींद सुला दिया था। तांत्रिक महासभा को लगभग समाप्त कर दिया था और एलियन समुदाय में मैं जितने को जनता था, सबको साफ कर दिया। हालांकि कुछ दिन पहले तक मुझे यह पता नही था की एलियन का वह समुदाय था। 5 दिन के अंदर अलग–अलग समुदाय के लगभग 800 विकृत को मैं मार चुका था। किंतु दुश्मन तो आश्रम वालों को कहते है। एक भी आश्रम वाला मेरे इस कार्य की सराहना करने नही आया। मैं उनकी नजर में पहले जैसा ही विकृत था।"

"एक साथ सभी समुदाय मेरे जान के दुश्मन बने हुये थे। जिंदगी ने जैसे मेरे मजे के रास्ते खोल दिये हो। रोज किसी न किसी को धूल चटाने में बड़ा मजा आता था। हां लेकिन मैं पहले जैसा नही रह गया था। जो मुझे मारने आते उन्हे मैं मारता और जो मुझे कैद करने आते मैं उन्हे कैद कर लेता। वो अलग बात थी कि मेरी कैद मौत से भी ज्यादा खौफनाक होती। लौटकर जब मैं किसी कैदी से मिलता, तब उसका गिड़गिड़ाना देखकर कलेजे को जो सुकून मिलता था, उसकी कोई सीमा नहीं थी। और यही वजह थी कि बाद में मैने सबको मारना छोड़कर केवल कैद करता था।"

"उन्ही कैदियों में से किसी कैदी की हाय लगी होगी। सबकुछ अचानक से हो गया। तांत्रिक महासभा का महागुरु तांत्रिक मिंडरीक्ष और मेरी दुश्मनी अपने चरम पर थी। हालांकि तांत्रिक महासभा को मैने ऐसा डशा था कि मिंडरीक्ष मुझे मारने के लिये बौखलाया हुआ था। छिपकर उसने मुझे कई बार चोट भी दिये, लेकिन कभी मार नही पाया और न ही कभी सामने से लड़ने आया था।"

"तांत्रिक मिंडरीक्ष के दिये घाव इतने नशूर थे कि मैं उसे मौत से बदतर सजा देने के लिये तड़प रहा था। उन्ही दिनों मुझे तांत्रिक मिंडरीक्ष के छिपे ठिकाने का पता चला। उसके छिपे ठिकाने की खबर मिलते ही मैं बिना वक्त गवाए उसके ठिकाने पर पहुंचा। हम दोनो आमने सामने थे और मैने बिना कोई वक्त गवाए मिंडरीक्ष पर हमला बोल दिया। मैने अमोघ अस्त्र चलाया। मिंडरीक्ष के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन मेरा अस्त्र वो एलियन नागासुर ने अपने ऊपर ले लिया। मेरे लिये यह चौकाने वाला क्षण था। मेरी आंखें बड़ी हो गयी। मेरे अस्त्र और मिंडरीक्ष के बीच में आने वाले व्यक्ति पर मेरे अस्त्र का कोई असर नहीं हुआ।"

"तब मुझे लगा था कि वह कोई इच्छाधारी जानवर है। तुम्हे तो पता ही होगा आर्यमणि, मंत्र की सिद्धि जानवरों पर काम नही आती। मुझे लगा ये कोई इक्छाधारी जानवर ही है। एक मौका चुका तो क्या हुआ, फिर मैंने बाहर की वस्तुओं से आक्रमण किया। एक असरदार उपाय। जब आपके सिद्ध मंत्र किसी इक्छाधारी जानवर के लिये काम न आये तो उसपर बाहर के वस्तुओं से हमला करना चाहिए, और मैंने भी वही किया। बादल, बिजली इन सब से हमला शुरु कर दिया। मेरे लिये नागासुर कोई नया नाम या चेहरा नहीं था। मैने उसके समुदाय के लोगों को पहले भी मारा था, लेकिन ये कुछ नया था।"

"मुझे समझ में आ चुका था कि नागासुर और उसके जैसे लोग खुद को छिपाकर, अपने समुदाय के नाम पर इंसानों को ही आगे रखते है, ताकि इनकी सही पहचान छिपी रह सके। विश्वास मानो आर्यमणि, मुझे तनिक भी भनक होती की वो नागासुर किसी अन्य ग्रह का प्राणी है जो बिजली के हमले को अपने अंदर समाकर अट्टहास भरी हंसी से सामने वाले का उपहास करता है, तब मैं शायद किसी अलग रणनीति से जाता। खैर चूक तो हो चुकी थी और सजा भी मिली। तकरीबन 500 साल के कैद की सजा। उस एलियन ने कौन सा मंत्र पढ़ा अथवा कौन सी वस्तु का प्रयोग किया मुझे नही पता, लेकिन पलक झपकते ही मेरी आत्मा मेरा शरीर छोड़ने को तैयार हो गयी।"

"वो लोग जीत चुके थे लेकिन एक भूल उनसे भी हो गयी। वह भूल चुके थे कि मैं जादूगर महान हूं। वह भूल चुके थे कि मैने मोक्ष पर सिद्धि प्राप्त किया था। मैने आत्मा विस्थापित मंत्र का जाप किया और खुद को उस चेन में समा लिया। वरना पता न वो मेरे आत्मा को किस चीज में कैद करते और लगातार प्रताड़ना के बाद शायद मैं उनकी गुलामी स्वीकार कर लेता। पर उनके मंसूबों पर भी तब पानी फिर गया जब उनकी मनचाही कैद के बदले मैं सीधा चेन में कैद हो गया। वह चेन जो पहले से उस अलौकिक ग्रंथ से बंधी थी और उस अलौकिक ग्रंथ को जब मुझ जैसा सिद्धि प्राप्त खोल नही पाया, फिर उन एलियन या फिर तांत्रिक महासभा के तांत्रिकों की क्या औकाद थी।"

"मुझसे बात कर पाना तभी संभव था जब वह किताब खुलती। और मुझे पता था जब कभी यह किताब खुलेगी तो उसे सात्विक आश्रम का कोई गुरु ही खोल सकता है। मेरे शरीर को आज भी वो एलियन सुरक्षित रखे है, ताकि मेरी आत्मा कभी मुक्त न हो। उन लोगों ने किताब खोलने की बहुत कोशिश की, लेकिन उनकी सभी कोशिश नाकाम रही। सात्विक आश्रम से मदद ले नही सकते थे वरना वह किताब उन एलियन की पोल खोल देती। साथ ही साथ उस किताब को वो एलियन न जाने कितने वर्षों से अपने साथ रखे है, महाग्रंथ में अब तक तो उन एलियन की पूरी जीवनी छप चुकी होगी।


आर्यमणि:– नही ऐसा नहीं हुआ होगा, क्योंकि उन एलियन के कोई इमोशन ही नहीं जिसे, किताब मेहसूस कर सके। खैर वो तो जब एलियन के संपर्क में यह किताब आयेगी तब पता चल ही जायेगा। लेकिन इस वक्त का बड़ा सवाल यह है कि क्या अनंत कीर्ति की पुस्तक तुम्हारे जरिए उनको मिली?


जादूगर:– "हां बिलकुल... हिंद महासागर की गहराई से जब मैं चेन लेकर लौट रहा था तभी मेरा सामना प्रहरी के मुखिया हिंदलाल से हो गया। समुद्र तट पर ही वह मेरा इंतजार कर रहा था। हिंदलाल के साथ वैदिक आश्रम के तत्काल गुरु रामनरेश भी थे। जब मैं चेन का प्रयोग करना चाहा तभी गुरु रामनरेश ने उस चेन को सम्पूर्ण सुरक्षा चक्र में बांध दिया ताकि मैं उस चेन का इस्तमाल न कर सकूं। गुस्से में मैने वहां मौजूद सभी को हिंद महासागर एक वीरान टापू पर टेलीपोर्ट करके उस पूरे टापू को ही बांध दिया। निर्जन भटकते जीवन के लिये उन्हे वहां पर छोड़कर मैं वह अलौकिक किताब लेकर भाग गया।"

"जब किताब मेरे हाथ लगी उसके 6 महीने तक मैं कहीं गया ही नहीं। यूं तो सुरक्षा मंत्र चक्र को हटाना मेरे लिये कोई मुश्किल कार्य नही था किंतु किताब खोले बिना मंत्र को निष्क्रिय नही किया जा सकता था। महर्षि गुरु वशिष्ठ को उन 6 महीनो तक नमन करता रहा। किताब की सारी बातें जान गया लेकिन विद्या विमुक्तये का कितना भी प्रयोग किया वह किताब खुली नही। मेरे लिये यह किताब किसी चुनौती से कम नही थी। हर वक्त उसे अपने साथ लिये घूमता और किताब कैसे खोला जाये उसी पर विचार करता।"

जब मैं खुद को चेन के अंदर बांध लिया तब भी किताब मेरे ही पास थी। मेरी आत्मा चेन में बंधी थी और मेरे आंखों के सामने तांत्रिक महासभा के बचे तांत्रिक और उनका गुरु मिंडरीक्ष किताब को पाने के लिये उन एलियन से जंग छेड़ चुका था। पर तांत्रिक महासभा को क्या पता कि जो हथियार वो लोग मेरी आत्मा को कैद करने लाये थे, उसी हथियार से एलियन ने पूरे तांत्रिक महासभा को नाप दिया। वो तो मिंडरीक्ष टेलीपोर्ट कर गया, वरना वो भी चला जाता।
Lovely update
 
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