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,,, शाम होते ही किशन पशुशाला मे चला जाता है,, और अब इंतेजार करता है कि कब उसकी माँ को नींद आएगी और वह तारावती से मिलने बाग में जायगा,, किशन के मन में अब एक नई जिगियासा ने जन्म ले लिया था,,, न चाहते हूए भी उसके मन में औरतो के शरीर के अंग् के बारे में जानने की बड़ी ही तमन्ना हो रही थी, और ये चिंगारी उसके मन में उस कामसूत्र पुस्तक ने जलाई थी,,,।।
रामो देवी,, अपनी सोच मे डूबी हुई चारपाई पर लेटी हुई थी और अपने पति रघुवीर के बारे में सोच रही थी,,, रघुवीर के साथ सम्भोग किये रामो देवी को कई वर्ष बीत गया था,, और रघुवीर या रामो देवी इस प्रकार की किसी भी ब्रति पर ध्यान नहीं देते थे,,, काफी रात बीत चुकी थी रामो देवी को भी नींद नहीं आ रही थी,,, की अचनाक् उसके कानों में दरवाजा खुलने की आहत होती है,,,
।। रामो देवी धीरे कदमो से अपने बिस्तर में से उठती है,, और वह देखती है कि किशन चुपके चुपके बाहर जा रहा है,,, रामो देवी चुप चाप किशन का पीछे लग जाती है,,, लेकिन घर के बाहर निकलकर उसे किशन दिखाई नहीं देता और वह दरबाजे पर खड़ी इधर उधर देखती रह जाती है,,
,, रामो देवी मन में,,, कहाँ गया होगा इतनी रात को ये लड़का बाप के मरने के बाद तो इस का,,,,,,,
।। और कुछ देर सोचने के बाद हिम्मत जुटाते हूए अपने सर पर कपडा रखकर किशन की तलाश में लग जाती है,,,
।,, इधर किशन बाग में पहुँच कर तारावती को ढूंढता है,, तारावती एक पेड़ के नीचे खड़ी किशन का ही इंतेजार कर रही थी और किशन को देखते ही,,, उसको अपनी बाहों में भर लेती है,, किशन की कैद काठि के सामने तारावती एक बच्चे के समान ही थी,,, वह चाहती तो किशन के लवो को चूमना मगर उसके चेहरे तक पहुँच नहीं पाती,, और किशन को अपनी बाहों में भरकर उसकी छाती को चूमने लगती है।।।
किशन: काकी मुझे गुद गुदी हो रही है,,,
तारावती: अरे अभी तो तुझे उपर से ही चुमा है,, जब तेरा केला मुह में लेकर चुन्सुंगी तब तेरा क्या होगा,,,।।
,, तारावती आज जादा समय नहीं गबाना चाहती थी। क्योकी उसकी योनि में हो रही, बेचैनी ने उसे बिवश कर दिया था, जिसकी वजह से वो बहुत जल्दी मे थी और अपने एक हाथ से किशन के लिंग को पकड़ लेती है, किशन का लिंग अभी आधा मुरझाया हुआ था।।
किशन: काकी सी जब तुम ऐसे पकड़ती हो तो बड़ा सुकून मिलता है,,,
तारावती: आज तेरी सारी बेचैनी दूर कर दूँगी मेरे लाल,,,
,,, और किशन के लिंग को उसके पाजामे से बाहर निकाल लेती है,, लिंग तारावती की नजरो में आते ही उसकी आँखो में चमक आ जाती है और वह धीरे धीरे किशन के लिंग को सहलाते हूए उसकी आँखो में देखकर,,
तारावती: किस कदर जबानी रोक कर रखी है तूने,, किशन,,,
किशन को जैसे जन्नत मिल गई थी एक औरत के नरम नरम हाथो का स्पर्श अपने लिंग पर उसे असीम सुख की प्राप्ति करा रहा था,,,।।
किशन: काकी सी,,, सी,,, की,,,, बस ऐसे ही कर दो,,,, इसे,,,
तारावती: नही मेरे लाल हाथ से नहीं,,, इसकी जो जगह है,,, इसे उसमे ही सकूँ मिलेगा,,,,
,,, और अपना पेटीकोट उपर कर जल्दी से किशन के लिंग को अपनी यानि पर रखती है,, लेकिन किशन की लम्बाई जियादा होने की वजह से ये मुमकिन नहीं था,,, तो तारावती निराश होकर किशन से कहती है,,,
तारावती:,किशन बेटा मुझे अपनी गोद में उठा ले ना,,,,
,, किशन तारावती की बात सुनकर उसे अपनी गोद में उठा लेता है,, और जैसे ही किशन तारावती को अपनी गोद में उठा ता है तारावती अपनी दोनों टागो को उसकी कमर में लपेट देती है और उसके गले में हाथ डालकर उसकी आँखो में देखते हुए,,
तारावती: क्या तूने कभी किसी औरत के होठों को चूसा है,,।।
किशन: नही,, काकी,,, मैने,,,,
तारावती: अरे शर्मा क्यू रहा है,, अच्छा मेरे होठों को पियेगा तु,,, शराब से भी ज्यादा नशा होता है,, औरत के होठों मे,,, और किशन के होंठों को देखते हुए,,
अपने होंठ पर जीभ फिरती है,,,
,,, ले पी ले ना इन का रस्,,,, किशन,, और किशन के होठों पर अपने होंठ रख देती है,,, किशन को जैसे एक बिजली का झटका लगता है,,, उसे अपने मुह के अंदर तारावती के होठ बहुत अच्छे लग रहे थे,,, वह बड़े ही चाब से तारावती के होठों को चुस् रहा था,,, किशन के होठों की गर्मी से तारावती का बुरा हाल था,, जिसकी वजह से उसकी योनि में चिटिया रेगने लगती है,, तारावती से अब वरदासत् करना मुस्किल था और वह अपना एक हाथ नीचे लाकर किशन के लिंग को पकड़ लेती है और उसके उपर के हिस्से को अपनी, पानी छोड़ रही योनि पर लगती है,,,,
तारावती:,, किशन,,,,, अब ठोक दे इसे मेरी औखली मे,,, चड़ा दे मेरी बच्चे दानि तक,,,
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,,, और अपना बजन् लिंग पर डालती है,,, जैसे ही किशन को योनि की गर्मी का एहसास होता है,, वह नीचे से एक तेज धक्का लगा देता है,, किशन के धक्का लगाने के बाद उसके लिंग का मोटा सुपाडा योनि की आस् पास की हड्डी को चतकता हुआ अंदर घुस जाता है,, सुपडा अंदर जाते ही तारावती की आँखे फैल जाति है उसे ऐसा लगता है की जैसे किसी ने उसकी योनि में खुटा ठोक दिया हो,,,, और वह किशन से तुरंत अपने होंठ अजाद कर लेती है,,
तारावती: हाय,,,, माँ मुहु छोड़ दे,,,, मुझे,,, किशन,,,
किशन तारावती को अपनी गोद में और तेजी से जकड़ लेता है और,,, तारावती के पर को रोकने की कोसिस करता है जो की बहुत तेज तेज कांप रहे थे,,, किशन को तो ये बहुत अच्छा लगता है,,,,
किशन: बस काकी थोड़ी देर और,,,, रुक,,,,
तारावती:,,,,, झटके से उतने की कोसिस करती है जिसकी वजह से किशन का लिंग उसकी योनि से निकल जाता है और लिंग के निकलते ही तारावती की योनि से पेशाब की एक तेज धार निकलती है,,, जिसे देख तारावती के पर कांप रहे थे और वह,,,
तारावती: नही मैं नहीं झेल सकती तेरा इसे तो तेरी माँ जैसी औरत ही,,, जेल सकती है,,,