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Erotica Dilwale - Written by FTK aka HalfbludPrince (Completed)

Incest

Supreme
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अपने आप से उलझे हूँए मैं घर के छोटे मोटे कामो में व्यस्त था की माधुरी घर आई और चुपचाप अपने कमरे में जाने लगी मैं उसके पीछे गया शक्ल से बहूँत उदास लग रही थी जैसे की बरसो से बीमार हो



मैं-माधुरी क्या हूँआ परेशां हो



वो चुप रही



मैं-क्या हूँआ उन लोगो ने फिर कुछ कहा क्या



माधुरी चुपचाप मेरे सीने से लग गयी और फुट फुट के रोने लगी किसी अनिष्ट की आशंका से मेरा दिल धड़कने लगा ज़ोरो से



मैंने उसके आंसू पोंछे और उस से फिर पूछा



वो- आज कॉलेज में उन लोगो ने मुझे कहा की मान जा वर्ना उठा ले जायेंगे और फिर



मैं-फिर क्या



वो- फिर उसने मुझे जकड़ लिया और मेरे बदन को झिंझोड़ दिया , सबके सामने मेरी चुन्नी उतार दी



वो रोते हूँए मुझे सब बताती चली गयी उसकी आँखों से टपकते आंसू मेरे कलेजे को चीरते जा रहे थे मैंने देखा वो अब तक बिना दुप्पटे के थी



मुझे ऐसा लगा की जैसे किसी ने बीच राह मुझे नंगा कर दिया हो एक आग दिल में सुलगने लगी जी में आ रहा था की क्या कर जाऊ



पर ये सारी कमी तो मेरी थी मैंने उसे वादा दिया की मेरे रहते कोई उसको परेशान नहीं करेगा पर मैं फेल हो गया था मैंने उसको कहा अभी के अभी चल मेरे साथ



मैं देखना चाहता था की ऐसा कौन माई का लाल हो गया जो सरे आम एक लड़की की चुन्नी उतार दे मेरी आँखों में खून उत्तर आया था



मैं बस माधुरी के साथ घर से निकल ही रहा था की तभी सेठ का फोन आ गया अभी बुलाया था होटल पे और मैं चाह कर भी उसको मना नही कर पाया







मैंने माधुरी के सर पे हाथ रखा और बोला- मेरी बहन बस आज की माफ़ी दे दे तेरे हर आंसू का कतरा क़र्ज़ है मुझ पे आज तू रोई है



तेरे सर की कसम कल अगर तुझे रुलाने वालो की ज़िन्दगी को शमशान ना बना दिया तो तेरा ये भाई तुझे अपना चेहरा नहीं दिखायेगा



जितना तू आज रोई है उतना ही तू कल हँसेगी मेरी बहन बस आज की माफ़ी दे दे



ये बोलकर मैं होटल के लिए चला गया काम बहूँत था देर रात तक उधर ही रुकना पड़ा पर दिमाग में बस माधुरी घूम रही थी एक जवालामुखी जैसे फटने को तैयार था



इस ज़िंदगी में फिर से खुद को इतना बेब्स पा रहा था मैं माधुरी का आंसुओ से भरा चेहरा बार बार मेरी आँखों के सामने आ रहा था



कभी कभी ज़िंदगी ऐसे इम्तिहान लेती थी की क्या कहा जाए पर ये भी शुक्र था की उन लोगो ने माधुरी के साथ ...



ये सोच कर ही दिल डर सा गया पहली बार मेरे हाथ काम्पने लगे थे डर क्या होता है आज महसूस कर रहा था रात एक बार फिर से बेचैनी में कटने वाली थी



कभी कभी मैं अपने बारे में सोचता था की हालात के थपेड़ो को सहते हूँए मैं कहाँ से कहाँ पहूँच गया था वो गाँव की गलियाँ, वो सावन के झूले एक बेफिक्री सी रहती थी



वो खेतो में लहलहाती फसले जिसे चूमकर हवा जब चलती थी वो बरसात जो तन मन को भिगो दिया करती थी गाँव में जब मेला लगता था तो खूब चीज़ खाना मस्ती करना दोस्तों के साथ दूर निकल जाना



गर्मी की दोपहरों में बेर खाने जाना कभी कच्चे आम चुराना कभी खरबूजे तरबूज की बाड़ी में घुस जाना नंगे पाँव दौड़ लगाना घरवालो से छुप के नहर में नहाने जाना फिर मार भी पड़ती थी



वो मिर्च की चटनी मक्खन लगी रोटियों के साथ आज भी वो स्वाद मुह में घुल सा जाता है पता नहीं आज घर की बहूँत याद आ रही थी



ये घर भी अजीब होता है हम जैसे अकेले लोगो से पुछो की घर क्या होता है कई बार रात को नींद खुल जाती है लगता है माँ ने सर पे हाथ फेरा हो पिताजी की शर्ट से दस बीस रूपये चुरा लेना



कभी कभी वो नहाते तो मैं उनकी मालिश करता फिर उनके खटारा स्कूटर को चलाने की मिन्नतें टाइम बदल गया था अब कुछ नहीं था हाथ खाली थे आज मेरे



सब कुछ कांच की तरह टूट कर बिखर गया था वक़्त ने ऐसा सितम किया था की बस दर्द ही दर्द रह गया था कभी कभी इतनी घुटन होती थी की काश माँ होती तो उसकी गोद में सर



रख देता हर मुश्किल आसान होती बाप होता तो उसके सीने लग के रो सकता था लोग अक्सर कहते की जेब में पैसा होना चाहिए दुनिया कर सुख कदम चूमता है



मैं कहता हूँ ये सारी दौलत ले लो ये सोना चांदी ये रुपया पैसा सब बेमानी है कोई उस बाप की उंगली पकड़ा दे जिसे पकड़ के चलना सीखा था ये पैसा



कहाँ मुझे मेरी माँ का आँचल वापिस दे सकता था इस बाजार में तो हर चीज़ मिलती है तो बताओ कितना खर्च करू कौन सी दुकान है जहाँ



मैं वो ममता की छाँव खरीद सकु एक छोटा सा घर था चन्द खुशिया थी और क्या चाहिए था ज़िन्दगी में पर मैंने अपने ही हाथो से सब खो दिया था





घर की बहूँत याद आती है दिन तो साला कट जाया करता है पर ये रात ये भी मेरी तरह अधूरी है तनहा है सीने में जलन सी होने लगी थी



जब दर्द हद से ज्यादा हो गया तो बोतल खोल ली बस अब इसका ही सहारा था कुछ ही घूंट में आधी बोतल से ज्यादा गटक चुका था



आज दर्द कुछ ज्यादा था तो नशा भी ज्यादा चाहिए था एक के बाद एक बोतल खुलती गयी कदम डगमगाने लगे तो मैं सड़क पर निकल आया बरसात हो रही थी



ऐसा लगता था की मेरे दर्द से आसमान भी रो पड़ा था ये शहर अपना होकर भी बेगाना था आज किसी अपने से मिलने की जरूरत हो रही थी



पर अब तो आदत सी होने लगी थी इस तन्हाई की इस अकेलेपन की वैसे ज़िंदा तो तो बस नाम का ही था मैं बाकि बचा कुछ नही था



अपने आप से झूझते हूँए न जाने किन सड़को पर निकल आया था मैं बस चले जा रहा था अपने आप से बाते करता हूँआ कभी खुद को कोसता कभी अपने नसीब को आवारा कुत्तो सी ज़िन्दगी हो गयी थी अपनी



दिलवाले तो बस हम नाम के थे बाकि कुछ आनी जानी नहीं थी उस बोतल में अभी कुछ कतरे बाकी थे पर अब पीने की चाह नहीं थी





फेक मारा उस बोतल को रोड पर रोने लगा मैं जोर जोर से पर उस बरसात के शोर में मेरे दर्द का क्या मोल था और फिर हम जैसे लोगो के आंसुओ की कीमत भी तो क्या होती है



चलो माना की लाख आवारा थे , नाकारा थे पर सीने में कहीं एक मासूम सा दिल हमारे भी धड़कता था कभी तो हमारा भी मुस्कुराने का जी करता था



बेगानो में अपनों को ढूंढते ढूंढते अब थकने लगा था और ये दर्द साला इस दुनिया में इतने लोग है पर इसको बस मैं ही मिलता हूँ



ऐसा कौन सा पाप कर दिया था की उस के दरबार में अपनी कोई दुआ कभी कबूल ही नहीं होती थी क्यों ज़माने भर का दुःख था मुझे ही



साला सबके चेहरे पे मुस्कान लाते लाते हमारी मुस्कान खो गयी थी जोर जोर से चीखने लगा था मैं पर साला इतने बड़े सहर में कोई नहीं था





जो इस दर्द को बाँट लेता कहाँ जाऊं कोई ऐसा दर नहीं जहा सकूँ मिल सके इस दिलवाले को पता नहीं कितनी दूर निकल आया था चलते चलते



उस मोड़ पे ठोकर सी लगी कदम तो वैसे ही डगमगा रहे थे और होश था ही कहाँ हमे ठोकर से सम्भल भी ना पाये थे की सड़क



से आती उस गाडी से टकरा गए और फिर गिर पड़े चोट लगी या नहीं किसे परवाह थी गाड़ी का दरवाजा खुला और ड्राईवर ने उत्तर कर उठाया मुझे



पैर थे की साले साथ ही नहीं दे रहे थे और हम तो वैसे ही गिरे हूँए थे



कौन है रामदीन कौन आ गया गाडी के आगे गाड़ी में से कहा किसी ने



ड्राईवर-कोई नहीं मैडम एक शराबी है



उसने मुझे साइड किया दो चार बाते कही और फिर गाडी स्टार्ट करने लगा उस दो पल की रौशनी में पीछे बैठे चेहरे पर नजर पड़ी तो



जेसे सारा नशा फुर्ररर करके उड़ गया हे उपरवाले समझ नहीं आती तेरी लीला कभी कभी क्या ये सच था या फिर बस नशे में वहम मेरा



और वैसे भी अपनी तक़दीर यु हम पे मेहरबान हो जाये ऐसा होना मुमकिन नहीं था पर दिल की धड़कनो मे एक रवानी सी दौड़ गयी थी



चलो मान लिया हम तो झूठ बोलते है पर दिल तो सच्चा था हमारा ये बात और थी बरसो से धड़कनो का कहना माना नही था हमने



सुबह जब आँख खुली तो खुद को फुटपाथ के किनारे पे पड़ा पाया आँखों में रात का सुरूर अभी बाकी था पास की दूकान पे एक चाय पि और फिर ऑटो पकड़ के घर आया



तैयार हो चूका था पिस्ता मंदिर गयी हूँई थी पूजा का नास्ता थोडा लेट हो गया था तो उसकी कई कड़वी बाते सुननी पड़ी कभी कभी मैं सोचता था



की जिस दिन इसको मेरी असलियत पता चलेगी उस दिन क्या बीतेगी इस पर पूजा अपने कमरे में थी मैं भी जा रहा था की कृष्णा जी ने मना किया



माधुरी के कॉलेज का टाइम हो रहा था पर आज वो तैयार ना हूँई थी मैं उसके पास गया



मैं-आज मेरी बहना तैयार नहीं हूँई



वो- मैं कॉलेज नहीं जाउंगी मैंने सोचा है की पढाई छोड़ दूंगी



मैं-ऐसा नहीं बोलते पगली, क्या भरोसा नहीं अपने भाई पे



वो-मुझे डर लगता है



मैं- मेरी बहन तू शेरनी है फिर कुछ गीदड़ो से डर गयी



चल तैयार हो जा वर्ना लोगो को पता चलेगा की दिलवाले की बहन कुछ मामूली गुंडों से डर गयी तो शहर में तेरे भाई का क्या रुतबा रहेगा





वो-पर वो मामूली नहीं है उनकी चलती है पुरे शहर में



मैं- पर तू किसी कायर की बहन नहीं और अगर मैं तेरी रक्षा नहीं कर पाया तो धिक्कार है मुझ पे बस तू चल रही है कॉलेज तैयार हो जा मैं इंतज़ार कर रहा हूँ





पूजा थोड़ा टाइम पहले निकल गयी थी उसके पीछे पीछे मैं और माधुरी भी निकल गए

जैसे जैसे कॉलेज करीब आता जा रहा था माधुरी का चेहरा सफ़ेद होता जा रहा था डर हावी होते जा रहा था उसके हाथ पाँव जैसे काम्पने लगे थे



पर उसे उस ज्वालामुखी का आभास नही था जो एक भाई के कलेजे में सुलग रहा था कॉलेज के मेन गेट पे मैंने गाडी रोकी और हम उतरे



मैंने माधुरी का हाथ टाइट पकड़ा और कहा घबराना मत तुम आगे आगे चलो मैं तुम्हारे पीछे ही हु वो आगे बढ़ने लगी दो कॉरिडोर पार करके



वो अपनी क्लास की तरफ जा रही थी की ब्लाक के सामने 4-5लड़को ने उसे रोक लिया माधुरी थर थर कांपने लगी उनमे से एक बोला



अरे भाभी आ गयी जल्दी भाई को फोन कर लगता है आज भाई का मामला सेट होगा हह हा हां



माधुरी उनसे बचने के लिए कभी दाए हो कभी बाए पर वो लोग उसे रास्ता ही ना दे अब मैं आगे बढ़ा



मैं-ओये,क्यों तंग कर रहा है इसको



वो-चिरकुट तेरे को ज्यादा चर्बी चढ़ी है क्या जानता नहीं हम किसके आदमी है भाई की सेटिंग है ये भाई आते ही होंगे



मैं-भाई तो आएगा जब आएगा लड़की का रास्ता छोड़ वर्ना फिर तेरे लिए कोई रास्ता नहीं बचेगा



माहौल गर्म होने लगा था स्टूडेंट्स इकठ्ठा होने लगे थे वो लड़का मेरी तरफ बढ़ा और बोला- ज्यादा हीरो मत बन तू जानता नहीं हम कौन है क्यों इसके चक्कर में जान गंवाता है





मैं- तू नहीं जानता मैं कौन हु और बेहतरी है की तू ना जाने ये यहाँ पढ़ने आती है और मैं चाहता हु की ये अपनी पढाई आराम से करे



वो-और ना करे तो



मैं-ना का तो सवाल ही नहीं



तभी एक दूसरा लड़का हॉकी लेके मेरी तरफ बढ़ा और बोला-तू बहुत बोल रहा है क्या लगती है तेरी ये जो इसके पीछे मरने चला आया





मैं-बहन लगती है मेरी दिक्कत है



वो हँसने लगे फिर उनमे से एक बोला - अच्छा तो भाई खुद बहन को जीजाजी के पास छोड़ने आया है कल इसकी चुन्नी उतरी थी और आज इसकी सलवार यही उतरेगी और तू भी देखेगा





मेरी आँखे तपने लगी थी क्रोध से कुछ और साथी आ गए थे उनके पर आज इनको सबक सिखाना जरुरी था



मैं- तू उतरेगा इसकी सलवार, तू

मैं उसकी तरफ बढ़ने लगा माधुरी को मैंने साइड होने को कहा पर एक लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया और मेरा सब्र टूट गया



अगले ही पल जिस हाथ ने माधुरी को पकड़ा हुआ था वो जमीं पर कटा हुआ पड़ा था पल भर में ही चारो तरफ चीख पुकार मच गयी



मेरे हाथ में गंडासा था उन सालो को गाजर मूली की तरह काटने लगा मैं कुछ भागे पर आज किसी को नहीं भागना था आज तो तांडव देखना था मुझे अगले दस मिनट में



15-20 जमीं पर कटे पिटे पड़े थे बरसात होने लगी थी पर आज यहाँ खून की बरसात होनी थी जिसने सलवार उतरने की बात की थी



मैं उसको घसीट के लाया और बोला- उतार के दिखा सलवार



वो चीखते हुए बोला-तू नहीं जानता तूने क्या किया है आने दे भाई को फिर देखना
 

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मैंने साले को लात मारी और बोला-तेरे भाई का तो पता नहीं पर ये जिस भाई की बहन है उसका नाम दिलवाला है , गौर से देख मेरी बहन है ये



ये दहाड़ थी मेरी , सुनते ही डर से वो काम्पने लगा



मैं-क्या हुआ मूत निकल गया साले तेरी इतनी हिम्मत तू मेरी बहन की सलवार उतरेगा तू



मैंने वॉर किया और उसकी उंगलिया जमीं पर कटी पड़ी थी उसकी चीख कॉलेज में हर कोई सुन रहा था जब तक उसकी चीखे बंद ना हो गयी उसको काटता रहा मैं





उस बरसात के पानी को लाल कर दिया मैंने जितने थे सबका यही हाल किया मेरा ध्यान था नही मेरी पीठ पर लात लगी और मैं आगे को कीचड़ में जा गिरा





उठा और देखा तो सामने जो ईनसान था उसे देखते हो पुराणी खुन्नस याद आ गयी कसम से आज तो मजा ही आ गया मैने चेहरे की मिटटी साफ़ की



वो- तो तू है दिलवाला बड़े दिनों से तलाश थी आज मजा आएगा पता नहीं था तेरी बहन है ये वर्ना इसको तो नंगी ही भेजता पर कोई नहीं तूने जो हमसे दुश्मनी ली है अब ये भुगतेगी





मैं- दुश्मनी से याद आया, दिलवाला हर रिश्ता ईमानदारी से निभाता है काश मुझे पहले पता होता की वो तू है जिसने मेरी बहन से बदसलूकी की है तो गाज़ी तेरी मौत का मातम मना रहा होता





वो- जश्न होगा आज तो दादाजान को तेरी लाश का तोहफा जो दूँगा और कसम है तेरी साँसे निकलने से पहले तेरी बहन की इज्जत यही नोचूंगा





मैं चीखने लगा था - तो फिर तू हाथ ही लगा के दिखा आज तू देख की डर क्या होता है मैं तुझे समझाऊंगा कसम है हर उस आंसू की जो मेरी बहन की आँख से गिरा है



आज तेरे खून से ही मैं आज अभिषेक करूँगा



वो-मुझसे तो दूर पहले मेरे आदमियो से तो लड़ ले उनसे ही जीत





मैं-हिज़ड़े , आज तू चाहे पूरा शहर ले आ या पूरी दुनिया आज कोई नहीं बचेगा





मैंने गंडासे को कंधे पर रख लिया और चिल्लाते हुए बोला-कॉलेज का गेट बंद करो ताला मारो कही ये साला भागने ना पाये





आज रक्त स्नान करना था मुझे तो लोग अधिक थे पर आज हार नहीं माननी थी वर्ना इक बहन से किया वादा टूट जाता आज उसकी लाज बचानी थी हर हाल में





कभी मैं वार करता कभी उनके प्रहार लगते पर थकना नहीं थारुकना नहीं था गुरु गोविन्द सिंह जी की बात याद आ रही थी चिड़िया नाल बाज लाडवा



मैंने देखा पूजा माधुरी के पास खड़ी थी बरसात में भी लोगो के पसीने छुट चले थे ऐसा भीसन नरसंहार हो रहा था मेरा शारीर भी दर्द से चीख रहा था





पर आज दर्द क्या होता है डर क्या होता है किसी की आँखों में देखना था ,लाशो की जैसे आज दिवार ही चुन दी थी जैसे जैसे मैं आगे बढ़ते जा रहा था किसी के चेहरे पे घबराहट दिखने लगी थी





वो शायद किसी को फ़ोन कर रहा था तो मैंने एक आदमी को फेक मारा उसपे वो उठके भागने लगा मैं भी भाग लिया और घसीट के लाया





मैं - ये शहर जागीर है तेरे बाप की,



वो-मुझे जाने दो





मैं-जाने दूंगा पर ऊपर

मैंने माधुरी को बुलाया वो आई



मैं-ये खड़ी हाथ लगा के दिखा इस हाथ से इसकी चुन्नी उतारी थी ना इस हाथ से



अगले हो पल उसकी दर्दनाक चीक गूंजने लगी हाथ तोड़ दिया था उसका





ना ना माफ़ी मत मांगियो बस दुआ कर की तेरी साँसों की डोर जल्दी टूट जाए





मैंने उसकी टांगो के बीच लात मारी वो गिर पड़ा



मैं-बहुत मर्द बनता है दिखा तो सही दम तू तो अभी से गिर गया



मैंने उसको नंगा किया और बेल्ट से मारने लगा साले को जब तक की उसकी पीठ ज़ख्मो से भर नहीं गयी



सब लोग दम साढे उस दृश्य को देख रहे थे अब मैंने गंडासा उठाया और उसका लण्ड काट दिया वो साला भी सख्त जान था जान निकल ही नही रही थी





मेरी बहन की इज्जत पे हाथ डालेगा तू उठ साले हाथ लगा लगाता क्यों नहीं मैं जैसे पागल ही हो गया था घसीट के ब्लाक की छत पे ले गया और साले को फेक दिया निचे





तरबूज की तरह फट गया था पर फिर से ले गया फिर फेका जंग का ऐलान हो गया था आज मैंने पूजा को कहा की बहार गाडी खड़ीहै घर जाओ



उनके जाते ही मैं बरस पड़ा स्टूडेंट्स और टीचर पर - ये तुम्हारी ही तरह स्टूडेंट थी यहाँ ये लोग पता नहीं कितने स्टूडेंट्स को परशान करते होंगे पर तुम सब चुप क्यों हो



कहाँ है तुम्हारी एकता आज जब तुम खुद की रक्षा नहीं कर सकते तो अपने परिवार की इस देश की क्या करोगे क्या फायदा इस पढाई का



एक रहो वो कितने आएंगे 100 200 तुम 1000 बनो अपने साथी के लिए आवाज उठाओ आज वो परशान है कल तुम होवोगे



आगे तुम जानो गाज़ी के पोते को मार दिया था अब बस ये देखना था की देर कितनी है इस शहर को सुलगने में पर ये तो होना ही था आज नहीं तो कल



मैंने सेठ के घर और होटल की सिक्योरिटी को अपने हिसाब से खूब मजबूत किया था मैं नहीं चाहता था कि उन लोगो पे कोई आंच आये



शहर में आग लगी हुई थी बाहुबली गाज़ी के पोते की हत्या हुई थी और मैं ये भी जानता था कि वो ज्यादा देर चुप नही बैठेगा पर मुझे उस से पहले कई उलझने सुलझानी थी





अपने हुलिए को दुरुस्त करके मैं सीधा सेठ के घर गया पर वहां कुछ भी सही नहीं था सब लोग ऐसे बैठे थे की जैसे मौत हो गयी हो



पूजा- देखो , भोले भाले दिलवाले जी आये है



मैं चुप चाप खड़ा रहा



पूजा- पापा, देखो तो सही इस इंसान को जिसे हम अपने घर में पाले हुए थे वो कितना बड़ा गुंडा है जिसने किसे मारा है पता है इसकी वजह से अब हम सब लोग मुसीबत में आ गए है मैंने तो पहले ही कहा था की इसको मत रखो





माधुरी की आँखों से आंसू गिर चले मैं आगे बढ़ा और उसके आंसू पोंछे



पूजा-ओह ओह देखो तो कितना अपना बन रहा है कलयुग का भाई



माधुरी-दीदी आप चुप रहो आपने तो देखा था न की भाई ने जो किया मेरी इज्जत बचाने के लिए किया



पूजा- और जो हम सब को इस मुसीबत में डाल दिया उसका क्या



माधुरी-कैसी मुसीबत दीदी, जानती हो मैं कितना डर डर के जी रही हु अगर वो गुंडे मुझे उठा के ले जाते आप लोग तब भी कुछ नहीं करते



पूजा-मुझे कुछ नहीं पता ,ये आदमी जिसे दुनिया दिलवाले भाई के नाम से जानती है मुझे अपने घर से बाहर चाहिए मैं किसी अपराधी को अपने घर में नही देखना चाहती

आज किसी को मारा है कल किसी को



कृष्णा का पति-पूजा ठीक कह रही है , माधुरी को बचाके अहसान किया है पर हम अपनी समस्या खुद सुलझा लेंगे पर अब इसको अपने घर रखना ठीक नहीं



माधुरी-भाई कही नहीं जाएगा, तुम लोग तो मेरे सगे भाई हो हर साल तुम्हारी कलाई पे राखी बांधी है मैंने पर तुम सब मुझे कभी समझ नहीं पाए , मेरी आँखों के आंसू कभी नही दिखे तुम लोगो को



पर ये इंसान जिसे तुम लोग जलील कर रहे हो मैं पूछती हु की क्या रिश्ता है इसका मुझ से मालकिन और नौकर का नहीं इसने समझा मेरे दर्द को मैं दिन भर रोती पर इस घर में किसी ने नहीं समझा





पर इसने इस परायी के लिए अपनी जान दांव पे लगादी भाई बहन का रिश्ता बस खून का ही नहीं होता क्या तुम्हारी तरह मैंने इसकी कलाई पे राखी बांधी , नहीं ना जो काम तुम



लोगो को करना चाहिए था वो इसने किया क्योंकि एक बहन की आत्मा की चीख एक भाई के कलेजे को ही छलनी करती है तुम जैसे लोगो को नहीं जिनकी आत्मा मर चुकी है





पूजा-तू अपनी बकवास बंद कर और जिसकी शान में तू कसीदे पढ़ रही है हम उसके बारे में जानते ही क्या है एक दिन बस आ गया कही से एक नोकर में ऐसा क्या है जिसे सबने इतना सर चढ़ा रखा है





मैं कहती हूं लात मारके निकालो इसको यहाँ इसके लिए कोई जगह नहीं आज बाहर क़त्ल किया है कल क्या पता हमे मार दे मुझे तो घिन्न आ रही है इस से





जुबान को लगाम दो पूजा, एक दहाड़ सी सुनी सबने और मैंने अपना माथा पीट लिया मैंने , सबकी नजरें उसकी तरफ घूम गयी



पिस्ता-पूजा जिस बारे में पता नही हो मुह नहीं खोलना चाहिए , जिसके बारे में तुम इतनी गालिया दे रही हो जिस से तुम्हे घिन्न आ रही है तुम जानती भी हो वो कौन है



सब लोग पिस्ता को ऐसे देख रहे थी मानो कोई अजूबा वो



पूजा- आप बीच में ना पडो भाभी, और वैसे भी मैं जानती हु आप इसकी इतनी फेवर क्यों करती हो



पिस्ता- चुप बस चुप, अगर अब तेरे मुह से एक शब्द और निकला तो मैं मर्यादा भूल जाउंगी और क्या कहा तूने फेवर करती हूं तो सुन, अगर इसकी असलियत तू जान जायेगी तो पाँव पकड़ लेगी इस इंसान के





पूजा-आप तो ऐसे बोल रही हो जैसे बरसो से जानती हो क्या रिश्ता है इस से



पिस्ता-मेरा रिश्ता हां हाँ हां ,मेरा रिश्ता नादान लड़की तू क्या समझेगी जैसे राधा श्याम का जैसे मीरा कृष्ण का जिस दिलवाले को तुम नोकर समझते हो जो दो कौड़ी का दिलवाला तुम्हारे आगे पीछे जी हजूरी करता है





तुम सब लोग उसकी धुल भी नहीं, जिस दौलत का तुम्हे घमण्ड है उतने रूपये तो ये किसी की झोली में डाल दिया करता है जिस बुंगले में तुम रहते हो पल भर में खरीद ले



पर तुम क्या समझोगे आँखों पे पट्टी जो बंधी है तुम्हारे

ये दिलवाला जो खुद किसी राजा से कम नही क्यों ऐसे रहता है तुम जानना चाहोगे मैंने पिस्ता को चुप करवाना चाहा पर वो किसकी सुनने वाली थी



पिस्ता उन्हें वो सब बताती चली गयी जो शायद नहीं बताना चाहिए था क्योंकि उसकी ग्रहस्थी पे अब तलवार लटक जानी थी



पर कभी ना कभी ये राज खुल ही जाना था पर वो तो बस वो थी शुक्र कभी उसने ये नहीं कहा था कि मोहब्बत है वर्ना वो क्या कर जाती



पिस्ता ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली-चलो यहाँ से ये फरेब भरी दुनिया कभी नहीं समझेगी ना तुम्हे ना मुझे



मैं-पिस्ता ये घर तुम्हारा है तुम यही रहोगी
 
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वो- नही, जहाँ तुम वही मैं बहुत नकाब ओढ़ लिया मैंने पर अब नही बहुत घुट लिए तुम अब नही। बहुत घुट लिए तुम अब नहीं बस चलो यहाँ से



मैं-नही पिस्ता मैं तुम्हारा जीवन बर्बाद नहीं कर सकता



वो-बर्बाद ,मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहती बस मेरे रहते तुम्हारी बेइज्जती कोई नही कर सकता



पिस्ता ने मेरा हाथ पकड़ा और उसी पल हम उस घर से निकल गए



पिस्ता और मैं बस्ती आ गए थे

मैं-तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था

वो-तू फ़िक्र मत कर वैसे भी तेरा मेरा किसने बांटा



मैं-तू जानती है ना किस राह पर चल रहा हु



वो-इस आग में तू अकेला नही चलेगा और कितना सहेगा बस कर अब



मैं-मेरी मंजिल कहा



वो-इतनी बड़ी दुनिया है कही भी शिफ्ट हो जायेंगे



मैं-घर की याद आती है



वो-तो फिर चलते क्यों नहीं गाँव



मैं- अब कोई नहीं उधर



वो- हैं सब है कहानी अभी खत्म नहीं हुई



मैं-वो तो है बस जितना टल जाए उतना सही



वो-कम से कम वहां के हाल तो पता कर लो



मैं- बस जल्दी ही जाऊंगा



वो- तुम बैठो मैं नहां के आती हु



मैं बिस्तर पे लेट गया ऐसा लगा की बरसो बाद पनाह मिली हो नींद सी आने लगी की पिस्ता आ गयी



मैं-यार तू मेरे साथ आ गयी मास्टर जी का क्या होगा



वो-अरे तू चिंता कर उसको कोई फर्क नही। पड़ेगा



मैं-वोक्यों



वो-सुन,मास्टर जी के भी अपने किस्से है उस दिन मैंने तुझसे झूठ बोल दिया था पर वो कम नहीं है उनके स्टाफ में कोई है उस से टांका भिड़ा रखा है



मैं- तूने पकड़ा नही उनको



वो-यार इस खेल में हम सब नंगे तो क्या टेंशन लेनी



मैं-तू नहीं सुधरेगी कभी



वो- पहले ठीक से बिगड़ने तो दे



पिस्ता पलँग पे चढ़ गई सीने से लग गयी पता नही मेरा और उसका कैसा नाता था जिसका कोई नाम नही था पर हम जानते थे इस अनोखे बंधन को



मेरे हाथ अपने आप उसके स्तनों पे पहुच गए थे नाइटी के अंदर ब्रा नही थी मुझे पता चल गया था मैं धीरे धीरे उसके स्तनों को दबाने लगा



वो शांत पड़ी रही कुछ देर स्तनों को दबाने के बाद मैंने उसकी मोटी मोटी जांघो को सहलाना शुरू किया उसकी नाइटी ऊपर सरकने लगी



कुछ देर मैं ऐसे ही मस्ती करता रहा फिर वो मेरी तरफ पलट गयी



पिस्ता-याद है हम गाँव में कितनी मस्ती किया करते थे वो भी क्या दिन थे



मैं-हां तब की बात ही अलग थी अब सब बदल गया है मैं तुम्हे चोरी छिपे देखता था जब तुम भैंसों को पानी पिलाने खेली पे आया करती थी



और कितनी जल्दी पट गयी थी जैसे कहने की ही देर थी



वो- अरे वो तो मैंने सोचा छोरा तडप रहा है निकाल दे गर्मी



मैं-अच्छा जी हम तो सोचे की आग बराबर लगी है



वो-आग की बात ना ही करो तो अच्छा है



मैं-तू कबसे ठंडी होने लगी



वो- कभी कभी मूड नहीं होता है



मैं-चल कोई ना



वो-गाँव कब चलोगे



मैं- यहाँ से निपट लू फिर चलते है कब तक यु भागता रहूँगा



वो-अच्छा ही है पर ये बता तूने शादी क्यों न की



मैं-तेरे बाद कोई मिली नहीं ,



वो-पर तेरा तो किसी और से चक्कर था न



मैं-हम्म ,सब नसीब की बात है उसका साथ ऐसा छूट गया कि बस अब हम ही है



पर अब तू साथ है तो ज़िन्दगी कट ही जायेगी ये सब छोड़ भूख लगी है यार सुबह से कुछ ना खाया गालियो के सिवा



वो-खाना बना दू



मैं-इधर कुछ नहीं है चल कही बाहर चलते है



वो-कपडे पहन लू



कुछ देर बाद हम लोग सड़क पर घूम रहे थे आज बरसात नहीं थी पर ठंडी हवा चल रही थी हाथो में हाथ थामे हम लोग बस घूम रहे थे एक जगह एक रेहड़ी देख कर वो रुक गयी



मैं-क्या हुआ



वो-छोले भटूरे



मैं-तुझे आज भी पसंद है



वो-बहुत



मैं-तो चल फिर देर कैसी



उसकी यही बाते तो मुझे बहुत पसंद थी चाहे हम कही चले जाए पर जड़ो से जुड़ा रहना बहुत जरुरी है जिसमें ये छोटी बाते बहुत मैटर करती है



सच कहूं तो उसको खाते देखकर ही भूख मिट गयी थी कोई इंसान इतना बेतकल्लुफ कैसे हो सकता है अपने जैसा बस वो एक ही पीस थी इस दुनिया में



उसके मोटे गालो पे जो वो बालो की लट आती थी किसी का भी दिल धड़का दे हमारी तो बिसात ही क्या थी बस ये धड़कने ही थी आजकल गुस्ताख़ होने लगी थी





आँखों से दो बूंदे चुपचाप गिर गयी जब उसने एक निवाला अपने हाथों से मुझे खिलाया ज़माना ही गुजर गया था वो भी क्या दिन थे पर अब बस यादे ही थी





सड़क किनारे बैठे हम दोनों वो अपने हाथों से मुझे खिला रही थी कौन था मैं और कौन थी वो ये कैसा बंधन था या संकेत था उस ऊपरवाले का जो इशारा कर रहा था किसी और



खाना खाके बस चले ही थे की हलकी हलकी बूनदे गिरने लगी ये सावन का मौसम भी अजीब होता है जब देखो झड़ी लग जाती है



मैंने छतरी खोल ली पर उसका मन भीगने का था पानी की बूंदों में उसकी पायल की छम छम मुझ पर जादू सा कर रही थी जी कर रहा था कि उसे अभी बाहों में भर लू



ईस बरसात से भी ना जाने कितनी यादे जुडी हुई थी पर ज़िन्दगी यादो के साहरे तो नहीं चलती इतना तो सीख लिया था मैंने



देर रात हम कमरे पे आये पिस्ता मेरे पास ही सोयी पड़ी थी पर इन आँखों में नींद नहीं थी ,थी तो बस एक बरसो पुराणी बेचैनी



मैंने पिस्ता को अपनी और खींचा और सोने की कोशिश करने लगा आँख खुली तो देखा आसमान पूरा काला हुआ पड़ा है घनघोर बरसात हो रही थी



पिस्ता कुर्सी पे बैठी थी मैं हाथ मुह धोके आया फिर बस्ती के एक लड़के को फ़ोन किया कुछ नाश्ता पानी भेजने के लिए हम बाते कर रहे थे की माधुरी का फ़ोन आ गया



वो मिलने आना चाहती थी पर मैने मना कर दिया उसकी सुरक्षा में कोई चूक नहीं चाहता था बहुत मुश्किल से रोका उसको



नाश्ता आ ही गया था मैं और पिस्ता नाश्ता करने बैठे थे की कुछ लड़के भागते हुए आये और बोले-पुलिस ,भाई पुलिस आयी है

कुछ लड़के भागते हुए आये और बोले-पुलिस ,भाई पुलिस आयी है



मैंने चाय का गिलास वापिस टेबल पर रखा और उठ खड़ा हुआ और बाहर चलने को हुआ तो पिस्ता ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली-नहीं मत जाओ



मैं-तू कबसे डरने लगी



वो-आज मेरा जी घबरा रहा है



मैं- हैंडल तो करना होगा ना



भाई हम आपको गिरफ्तार नहीं करने देंगे उनमे से एक लड़का बोला



मैं-मैं संभाल लूंगा



सीढिया उतर के मैं नीचे आया बस्ती का हर इंसान ही जैसे जमा हो गया था लोग अड़े खड़े थे पुलिस के आगे जबर्दस्त भीड़ हो रही थी



चाहे कुछ हो जाये भाई को नहीं ले जाने देंगे



मैं-शांत हो जाओ ऐसी कोई बात नहीं है देखने तो दो



मेरे कहते ही भीड़ साइड होने लगी और पुलिस आगे बढ़ने लगी एक पुलिस वाला बोला-चल मैडम बुला रही है



मैं-मैडम को ही बुला ले

वो-चल ना यार , नयी dsp आयी है हमारी क्यों मारने पे तुले हो



मुझे हंसी आ गयी



मैं-चल ले चल मैडम के पास



हम लोग गए मोहतरमा की पीठ मेरी तरफ थी वो साथ वालो को कुछ हिदायते दे रही थी



मैडम दिलवाला उनमे से एक सिपाही ने कहा तो वो मेरी तरफ पलटी और जैसे ही मेरी नजरो ने उसे ठीक से देखा मेरे पैरों तले जमीन ही खिसक गयी



वाह रे ऊपरवाले तेरी महिमा न्यारी, ये कैसे खेल खिलाता है तू उसने चश्मा उतारा आँखों से, कुछ पल के लिए सब कुछ रुक सा गया वर्दी में क्या कहूँ फब रही थी वो



तुम्म। बड़ी मुश्किल से उसके होंठो से निकला



अब मैं क्या कहता उस से , देखो तक़दीर ने मिलाया भी तो किस हाल में किस मोड़ पे उसकी वर्दी पे लगी नाम की प्लेट में जो लिखा था अब कोई गुंजाईश ही नहीं थी



मुझे देख पर एक पल के लिए जो रौनक सी आयी थी वो तुरंत ही द्वेष और घृणा में बदल गयी और वो गुस्से से साथी से बोली



तो क्या, कोई महात्मा आया है क्या , हत्कड़ी डाल इसके हाथो में और ले चल
 

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पता नहीं क्यों मुझे ऐसे लगा की शब्द उसके गले में जैसे अटक से गए हो



खैर, जैसे ही गिरफ्तारी की बात हुई बस्ती वाले अड़ गए कुछ लोग हाथो में डंडे जेली ले आये कुछ ने पत्थर उठा लिए चारो तरफ बस एक ही आवाज़ भाई को गिरफ्तार नहीं करने देंगे



dsp - एक मुजरिम का साथ दे रहे हो तुम सब भी नपोगे रही बात गिरफ्तारी की तो इसको ले ही जाउंगी जो बीच में पड़ेगा जान से जायेगा ,बाकी कोशिश करके देख लो



माहौल गर्म होने लगा था , दोनों तरफ तनाव बढ़ गया था बात संभालनी जरूरी थी और वैसे भी इस समय खून खच्चर ठीक नहीं था



मैं-अरे कुछ नहीं, मुझे जाने दो जल्दी ही लौट आऊंगा



बस्ती वालो को बड़ा समझाया और फिर बैठ लिए पुलिस की गाडी में सायरन बजाते गाडी दौड़ पड़ी कोतवाली की तरफ

साथ ही यादो की बारात भी चल पड़ी थी



जिस दुनिया को मैं छोड़ आया था वो अचानक से पिछले कुछ दिनों में फिर से मेरे सामने आके खड़ी हो गयी थी पहले इस अजनबी शहर में पिस्ता का यु मिल जाना और अब इसका



वक़्त ने एक बार फिर से ऐसी करवट ली थी की कुछ समझ ना आया ज़िन्दगी से पहले ही जूझ रहे थे अब तो ज़िन्दगी गांड मारने पे ही उतर आई थी



तबी गाडी के शीशे पे जो ड्राइवर के पास लगा होता है उसपर नजर पड़ी तो उसका चेहरा दिखाई दिया आँखों पे काला चश्मा लगा लिया था



पर आँखों से गिरी कुछ पानी की बूंदे उसके गालो पे निशान छोड़ ही गयी थी, बरसो से तम्मन्ना थी की उस से मिल पाउ ढूंढ लु उसको दुनिया की भीड़ में





और देखो दुआ कबूल हुई तो किस तरह से गाड़ी अपनी रफ्तार से चली जा रही थी बरसात की दिवार को चीरते हुए पर उन यादो का क्या जो बरसात की तरह ही इस दिल पर बरस रही थी



समझ नहीं आ रहा था कि ये सावन खुशि लाया था या गम पर चलो जो भी था अपना ही था दिल में दर्द सा होने लगा था पर हमने इतना जहर पिया था



की इस दर्द की क्या बिसात थी कोतवाली आते ही हमको बिठा दिया गया एक कुर्सी पे बिठा दिया गया 5 मिनट 10 करीब आधा घण्टा गुजर गया बैठे बैठे



फिर वो आयी बोली-क्या लोगे



मैं-पानी,



पानी पिलाया गया



मैं-नाश्ता अधूरा रह गया तो भूख लग आयी है व्यवस्था करवाओ



वो गुस्से से अपने हाथ को टेबल पे मारते हुए-शादी में आये हो क्या चुप करके बैठो



मैं-तुम्हे देख लिया दावत हो गयी वैसे ही



वो मैंने कहा न चुप रहो



मैं-चलो ये ही बता दो किस जुर्म की सजा देने लायी हो



वो- जुर्म बड़ा नादाँ है ये दिलवाला या याददास्त की प्रॉब्लम है ये लो स्टेटमेंट लिखो की कैसे तुमने पुलिस के अधिकारी और गाज़ी खान के पोते दोनों को दिन दिहाड़े क़त्ल किया



मैं-और ना लिखू तो



वो- ना सुनने की आदत नहीं मुझे जितनी जल्दी अपना जुर्म कबूल कर लोगे फायदे में राहोगे वार्ना पुलिस के पास और भी तरीके है



मैं-आज़मा लो हम भी देखे सौदाई का गुरूर कितना है



वो- जब दो डंडे पड़ेंगे न तो ये जो attitude है ना सब निकल जायेगा



मैं- हम तो तैयार है वक़्त ने तो आजमाँ लिया तुम भी अपनी कर लो हम तो इन्तजार में ही थे कब तुम मिलो कब जान जाए



वो- मेरा दिमाग खराब मत करो मैं बोल रही हु चुपचाप अपना जुर्म कबूल करलो





मैं- जुर्म तो उसी दिन कबूल लिया था जब इश्क़ का इज़हार किया था किसी से



वो- मुझे नहीं सुननी तुम्हारी बकवास



हम बात ही कर रहे थे की वकील आ पहुंचा था ना कोई fir थी ना कोई चार्जशीट हुई थी और वो सलाखें भी कहाँ बनी थी जो दिलवले को कैद कर सके



कोतवाली से तो निकल आये थे पर दिल वही रह गया था बस्ती आते ही पिस्ता मुझसे लिपट गई आज पहली बार उसके अंदर एक डर देखा था



उसकी आँखों में आंसू देखे थे पर उसे नहीं पता था कि मेरे सीने में एक आग जल रही थी कुछ समय पिस्ता के साथ बिता के मैं किसी काम से शहर से बाहर की तरफ आ गया





ये एक पुराना मंदिर था इतने लोग आते जाते नहीं थे पर फिर भी थे कुछ लोग हमारी तरह के करीब एक घंटे तक इंतजार करता रहा फिर एक गाडी आके रुकी



गाड़ी का दरवाजा खुला और नजरे उतरने वाले पे ठहर सी गयी हाथो में पूजा की थाली लिए वो उतरी हल्का नीले रंग का सूट क्या कहूँ। जँच रहा था मैं सीढियो पर ही बैठा था पर वो ऐसे निकल गयी



जैसे की पहचाना ही नहीं ,मैं वैसे ही बैठा रहा करीब आधे घंटे बाद उसकी आवाज सुनी-प्रसाद लो



मैंने प्रसाद लिया वो भी मेरे पास ही बैठ गई कुछ देर एक ख़ामोशी सी छाई रही ऐसा लग रहा था कि हम दोनों ही उस ख़ामोशी को तोड़ नहीं पा रहे थे



पर किसी को तो पहल करनी ही थी



मैं-कैसी हो



वो-जी रही हु



मैं-सभी जीते ही तो है



वो-हाँ पर मर मर के भी कोई जीना है



मैं-किसके लिए मरती हो



वो-था कोई अपना जो साथ छोड़ गया



मैं-ये चश्मा क्यों नहीं उतरती आँखों में कोई दिक्कत है क्या



वो-अच्छा लगता है ये



मैं-बहाना अछा है अपने दर्द को छुपाने का



वो-कैसा दर्द, भला मुझे कोई दर्द क्यों होगा देखो भली चंगी तो हु



मैं- खाओ मेरी कसम



वो-कसम क्या खानी



मैं- तो dsp हो गयी हो



वो-कुछ न कुछ काम तो करना ही था ना



मैं-चलो अच्छा हुआ ,तुम्हारा सपना था पुलिसवाली बनना बधाई हो



वो-सपना तो पूरा हो गया पर अपना छूट गया



मैं-तो फिर क्यों गयी थी छोड़के



वो-मैं थप्पड़ मार दूंगी,कौन गया था छोड़के



कितना परेशां थी मैं जानते हो कहाँ कहाँ नही ढूंढा तुम्हे फ़ोन करती थी कोई जवाब नहीं मिलता था फिर मैं गाँव आयी तो तुम्हारे घर गयी



तो फिर पता चला की क्या हुआ मुझे पता था कि उस समय तुम्हे मेरी बहुत जरूरत थी मैंने अपनी और से बहुत तलाश की पर तुम्हे कहीं नहीं पाया



यहाँ तक की तुम्हारे ननिहाल भी गयी पर बस इतना ही पता चला की तुम कुछ सामान लेने गए थे फिर उसके बाद कुछ खबर नहीं



समय बीतता गया , पर दिल में एक टीस फांस बनके मुझे घाव देती रही और देखो मुलाकात भी हुई तो किस मोड़ पर जैसे नदी के दो किनारे



वक़्त ने ये कैसा सितम किया है जानते हो आज का दिन कैसा गुजरा है मेरा ये चश्मा इसलिए नहीं उतारा की रोना नहीं चाहती मैं



दिल तड़प रहा है मेरा दर्द हो रहा है कभी सोचा नहीं था कि एक दिन तुम यु मिलोगे और हँसाने की जगह रुलाओगे



जानते हो क्या गुजरी होगी मुझ पे जब तुम्हारे हाथो में हतकड़ी डालनी पड़ी



मैं-वो तुम्हारा फ़र्ज़ था ड्यूटी सबसे पहले होनी चाहिए



वो-वो तो मैं निभाऊंगी ही पर एक कश्मकश है मन में की तुम्हारा और मेरा आमना सामना अब कैसे होगा और मैं क्या चुनूंगी





मैं-देखो बात बड़ी सिंपल सी है , हालात कुछ ऐसे है कि सामना तो होता रहेगा पर तुम कमजोर नहीं पढ़ोगी जब भी इस मुजरिम दिलवाले से तुम्हारा सामना हो बेहिचक गोली चला देना



वो कुछ पल मेरी तरफ देखती रही और फिर बोली-गोली चला दू किस पर तुम पे या खुद पे, जो गोली तुमपे चलेगी क्या वो मेरी जान ना ले जाएगी



बोलते बोलते उसकी आँखे डबडबा आयी आंसू गिरने लगे और एक पल भी मैंने उसको रोका नहीं रोने से क्योंकि जानता था कि अगर मैं कमजोर पड़ा तो फिर सब बर्बाद हो जायेगा



पर उसे रोता हुआ भी तो नहीं देख सकता था मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रखा और हल्का सा दबा दिया और वो मेरे सीने से आ लगी



बरसो बाद ऐसे लगा था कि जैसे बंजर जमीन पर सावन टूट कर बरस पड़ा हो जैसे बस अपने सीने से लगाये रखा उसको , हर एक आंसू मेरे कलेजे को चीर रहा था पर उसके दिल में जो गुबार इतने दिनों से रुका था



आज बह जाना ही चाहिए था कुछ शांत हुई तो उसे थोड़ा पानी पिलाया वो- तुम इतने दिन कहा थे



मैं-लंबी कहानी है



वो-मेरे इंतज़ार से लंबी तो नहीं



मैं- जब पूरा परिवार तबाह हो गया तो मेरे नाना मुझे अपने गाँव ले आये मेरा मन नही था बिलकुल भी पर मज़बूरी थी तो जाना पड़ा कोई और चारा भी नहीं था क्योंकि बिमला और चाचा का हाल तो तुम्हे पता ही था नाना नानी का बहुत स्नेह था तो मैं मन मारके उनके साथ रहने लगा हर पल घर की बहुत याद आती थी पर अब घर था ही कहाँ



जब भी तन्हाई घेर लेती तुम्हारी बहुत याद आती पर हर वो जरिया जिस से तुम्हे धू ढ़ सकू खत्म हो गया था पढाई फिर से चालू हुआ उस रोज मैं थोड़ा लेट हो गया तो कच्चे रस्ते से शॉर्टकट ले लिया





जाड़े के दिन थे अँधेरा जल्दी हो गया और उस अँधेरे ने लील लिया मुझे वो एक जानलेवा हमला था पर खुशकिस्मती से बच गया मैं ज़ख्म गहरे थे पर जी ही गया जैसे तैसे करके पर एक बात मैंने खूब गौर की ,की मेरे मामा का व्यवहार बहुत बदल गया था



हर पल उनकी आँखों में जैसे एक द्वेष देखता था मैं पर वो मुझे कुछ कहते नहीं थे और फिर एक दिन मैंने नाना और मामा को बहस करते सुना मैं समझ गया था कि वो अपने घर में मुझे नही रखना चाहते थे



पर मेरी कुछ मज़बूरी थी और कुछ दवाब था मेरे नाना का और फिर एक दिन आया उस दिन इंदु की सगाई थी नाना ने मुझे सख्त कहा था कि कुछ भी हो पर यही रहना है पर मामा ने मुझे बॉर्डर वाले ठेके पे दारू लाने भेजा





नीनू दम साधे मेरे प्रत्येक शब्द को सुन रही थी कुछ देर मैं चुप रहा



फिर बताने लगा - मुझे जाने की जल्दी थी मैंने दारू लोड की और गाड़ी भगाई पर कुछ किलोमीटर बाद गाडी बंद हो गयी सच कहूं मेरा माथा तो उसी पल ठनक गया था जब मामा ने मुझे कहा था जाने को
 

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पर मैंने ये सोच लिया की घर में कारन है सो काम होते है क्या हो जायेगा तो मैं चला गया मैं उस खराब गाडी को कोस रहा था कि एक काली गाडी मेरे सामने आके रुकी





इस से पहले की मैं कुछ समझता फायरिंग होने लगी एक गोली हिट कर गयी पर मैंने मुकाबला किया पर जीत नहीं पाया दो तीन को तो धर लिया पर मैं पहले हमले से ही नहीं उभरा था



और ये दूसरा और वो भी पूरी प्लानिंग से गोलिया जिस्म को छलनी कर गयी थी कुछ और हथियारों के घाव थे खून पानी की तरह बह रहा था सांसो की डोर बस टूटने को ही थी मैं सड़क किनारे पड़ा था कि





एक गाडी और आयी मैंने जैसे तैसे मदद के लिए कोशिस की वो कार आके मेरे पास रुकी शीशा उतरा और जो चेहरा मैंने देखा विश्वाश नहीं हुआ पर मदद की जगह उसने गन निकाली और कुछ



पल बाद कुछ और फायर की आवाज वातावरण में गूंजने लगी

जिसे मैंने उम्मीद समझा था वो तो मौत का हाथ था गाड़ी तेजी से चली गयी और मैं खून से लथपथ पता नहीं उस दर्द से जूझ रहा था या अपनी टूटती साँसों की डोर से



आँखों में आंसू भी थे पर वो अँधेरा भी छा रहा था जो शायद मुंझे लील जाता काल के मुह में पर फरिश्ते होते है नीनू फरिश्ते होते है



मौत और मुझमे जब कुछ ही पलों की दूरी थी तभी उसने आके मुझे थाम लिया और जब होश आया तो मैं संघर्ष कर रहा था ज़िन्दगी से



इतनी गोलिया लगने के बाद मैं कैसे बच गया ये तो बस वो ही जानता है मैंने आसमान की तरफ इशारा करते हुए कहा जानती हो एक टाइम था जब दवाई असर नहीं करती थी रातभर तड़पता था पर जीना था





देखना चाहोगी किस हद तक दर्द को सहा है मैंने ये कहके मैंने जैसे ही टीशर्ट उतारी नीनू मेरे सीने पे पेट पे उन ज़ख्मो के निशान देख कर फुट फुट के रोने लगी



मैं बस उसका सर पुचकारता रहा जब वो संयंत ही तो उसकी आँखों में एक ज्वाला थी वो अपने दांत पीसते हुए बोली-मैं उन लोगो को ज़िंदा जला दूंगी जिनकी वजह से हम सबकी लाइफ में जो दर्द आ गया है वो ब्याज सहित वापिस करुँगी मैं



मैं-हाँ करेंगे पर सही समय आने पे



वो- पर ये नहीं बताया कि तुम्हे बचाया किसने



मैं- वो अवंतिका थी



वो-पर कैसे उसे कैसे पता था



मैं-इस साजिश के बारे में मंजू को पता चल गया था कैसे ये मुझे भी नहीं पता था गाँव में अब हालात बदल चुके थे और मदद की सख्त जरूरत थी अब बिमला क्यों मदद करती तो बस एक अवंतिका ही थी जिस से आस की जा सकती थी और बस किस्मत ही थी



वो- पर तुम्हे नहीं लगता कि सबकुछ फ़िल्मी तरीके से हुआ मान लो की वो तैयार थी तुम्हे बचाने को पर गाँव में और जहाँ हमला हुआ दूरी बहुत है उसे पहुचने में टाइम लगना था और तुम्हारे पास टाइम था नहीं



दूसरी बात ये की , की क्या उन लोगो को शक नहीं हुआ होगा जब लाश नहीं मिली तुम्हारी और जब तुम गायब हुए तो मामा ने क्या बहाना बनाया होगा



मैं-पुलिसवाली हो ना आदत है शक करने की बताता हूं



देखो जब मंजू ने अवंतिका को फ़ोन किया तो वो इसी एरिया में थी



नीनू-हाऊ पॉसिबल



मैं- दरअसल इसी एरिया में अवंतिका का गाँव है माँ बाप की अकेली संतान है तो उनकी प्रॉपर्टी उसके ही नाम है फिर इधर फैक्ट्री एरिया डेवेलोप हो रहा था तो उसकी जमीं की डील थी


नीनू- देखो मुझे ये एक ट्रैप लगा



मैं-कैसे


वो- देखो बिमला बेकाबू हो चुकी थी बेशक अवंतिका सरपंच बन गयी थी पर उसका वैसा रुतबा नहीं था जो तुम्हारा था मतलब ये सरपंची वो कभी नही जीतती एक तरह से तूमने उसको दी थी


पर वो सरपंची कर नहीं सकती थी क्योंकि उसके हर कदम पर बिमला अड़ंगा लगाये खड़ी थी तो उसे चाहिए था एक हथियार और तुमसे बेहतर बिमला के खिलाफ कौन था और तुम्हारी काबिलियत वो चुनावो में देख ही चुकी थी


तो बस उसने ये प्लान बनाया और तुम्हारी सहानुभूति पा ली जो उसे चाहिए था मुझसे तुम्हारा कुछ नहीं छिपा जानते हो तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी क्या है, तुम्हारी भूख इस जिस्म की


क्या वो तुम नही थे जिसने बिमला को इस रास्ते पे लाया और वो डील तो याद होगी तुम्हे जो तुमने अवंतिका से की थी ये तुम्हारी हवस ही थी जो तुम्हारी दुश्मन बन गयी


दूसरी कमी ये की तुम लोगो पे विश्वास जल्दी कर लेते हो देखो क्या पैसे से मंजू को नहीं बहलाया जा सकता था उसका बाप बिस्टर पर था जब तक तुम्हारे पिता थे चिंता नहीं थी पर उनके बाद सोचो जरा

दूसरा तुमने कहा मांमाँ किसी से बात करता था जरुरी नहीं की बिमला से अवंतिका भी हो सकती है क्योंकि पैसा उसके पास भी कम नहीं और जैसा की वो उस दिन उसी एरिया में थी तो क्या वो डील तुम्हारे हमले की नहीं हो सकती क्या


अतीत के पन्नो पे निगाह डालो देखो अवंतिका ने सबसे पहले किसे भेजा अपना संदेसा


मैं-गीता ताई को


वो-उसी को क्यों गौर किया तुमने

बात में दम था उसकी


नीनू- देखो पिस्ता हद से ज्यादा खास थी तुम्हारी अगर पिस्ता तुम्से कुछ मांगटी तो तुम कभी मना नहीं करते। फिर उसने गीता को क्यों कहा


मैं- क्योंकि गीता उसकी सहेली थी



वो-हम्म ,क्योंकि गीता तुम्हारे साथ सो रही थी जो की उसने अवंतिका को भी बताया होगा ये तुम्हारी कमजोर कड़ी थी तुम्हारी भूख इसलिए तुमने उस से पैसो के बजय किसी और चीज़ की मांग की और उसने मान ली


क्योंकि उसे पता था तुम्हारी दिलफेंक फितरत के बारे में


नीनू की एक एक बात मेरे सर पे पत्थरो की तरह गिर रही थी उसका हर सवाल जायज था पर एक पेंच और था वो चेहरा जिसने मुझ पर गोलियां चलाइ थी

बस उसी बात का नीनू के पास कोई सवाल नहीं था कुछ सोच के वो बोली- पैसा हो सकता है उसको पैसा से खरीदा गया हो

मैं-सब सवालो के जवाब गाँव में मिलेंगे

वो- कब चलना होगा

मैं-इधर के काम निपटा लू

वो-इधर के क्या काम क्या सोच रहे हो


मैं-कुछ नहीं


वो-देखो मैं तुम्हारी कुछ नहीं चलने दूंगी शहर में तुमने गाज़ी के पोते को मारा है वो चुप रहेगा नहीं और तुम दोनों के बीच मैं शहर को जलने नहीं दूंगी


मैं-बीच में ना आना


वो-ये जो दिलवाले बने फिरते हो ना 5 मिनट में सर से उतार दुनंगी मेरे रहते शहर को झुलसने नहीं दूंगी


मैं-तुम अपना फर्ज निभाना


वो- पर हार भी तो मेरी होगी ना


मैं- एक मुजरिम और पुलिस का याराना नहीं होता मैडम गोली चला देना बे हिचक पर निशाना बस दिल ही होना चाहिए



रात हो चली थी जी भर के उसे देखा और फिर मैं आगे को बढ़ चला कुछ आंसू उसकी आँखों से गिर गए कुछ मेरी से बात बस इतनी सी नही थी इस वक़्त ने पैरो में मजबूरियों की बेड़िया डाल दी थी बात उसकी भी सही थी और हमारी भी हमारा ईगो भी कुछ ज्यादा सा था नीनू ने सही कहा था ये सारा रायता तो हमने ही फैलाया था



जो अब समेट नहीं पा रहे थे उसको मैं जानता था और ये भी सामझ रहा था कि मेरे हर कदम पर उसकी जलती नजरो का सामना करना पड़ेगा पता नहीं क्या खेल वो हम कठपुतलियों से खेल रहा था


इस खेल में जीत भी अपनी थी और हार भी पर हम जरा दूजे वाले थे गुस्ताखी तो खून में दौड़ती थी एक जूनून सा था हद से गुजर जाने का ये शोक तो नहीं था पर फिर भी उड़ते रहने की आदत सी हो गयी थी और आवारा तो हम जवान होने से पहले ही थे


दिल साला कही लग नहीं रहा था तो एक बोतल ले ली रस्ते में पर हमारा गुमान था या कंपनियों ने नशा कम करके बेचना शुरू कर दिया था बोतल में कितनी पि कितनी बाकी थी अब होश नहीं था


बस एक जंग थी एक जिद्द थी अपने आप से जूझने की पता नहीं दिलो दिमाग में क्या चल रहा था पर जब कुछ सूझा नहीं तो गाडी घुमा दी कोतवाली की तरफ अब कम हम भी नही थे
 

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गाडी से उतरा कुछ पुलिसवाले जो नाईट ड्यूटी पे थे उनमें से कुछ बाहर थे उनमें से एक की कुर्सी खींची और बोला- बुला रे dsp मैडम को बोल दिलवाला आया है गिरफ्तारी देने



वो पुलिसिया मेरे मुह की तरफ देखने लगा फिर धीरे से बोला- भाई क्यों हमारी क्लास लेते हो कोई गलती हुई तो बताओ छोटी मोटी बाते तो होती रहती है कोई खता हुई तो हम हाथ जोड़ते है





मैं-ना रे साली खता तो हमसे हुई तुम यार गिरफ्तार करो हमको लगाओ कोई धारा तगड़ी वाली



वो- भाई क्यों चुस्की लेते हो खाव्ब में भी आपको गिरफ्तार करने का सोचा तो भाभी जी आ जाएँगी फिर उनसे कौन सुलटेगा



मैं-कौन भाभीजी बे जरा हमसे भी मिलवा कभी



वो-क्या भाई आप भी , आप तो रोज ही मिलते हो आपके साथ ही तो है



मैं-पर मैं तो अकेला हु



वो-भाई आपको चढ़ गई है आप समझ नहीं रहे



मैं- तू समझा फिर



वो- जो उस दिन जमानत के कागज़ लायी थी



मैं-याद नही एक काम कर फिर अरेस्ट कर ले अब आएगी तो मिल लेंगे



वो- हमे माफ़ करो प्रभु, dsp मैडम सुबह आएँगी आप तब गिरफ्तारी दे देना अभी आप जाओ



मैं-अबे ऐसी तैसी तुम्हारी मैडम की फोन करो बुलाओ अभी के अभी



कोतवाली न हुई गली का नुक्कड़ हो गयी तमाशा पूरा हो रहा था मैडम आये ना हम जाए ना प्यास सी लग आयी थी पानी पिने का सोच रहे थे की जेब में पड़ा फ़ोन बज उठा



कान पे लगाया पिस्ता थी-कहाँ हो तुम



मैं-कोतवाली में



वो- क्या हुआ मैं आती हु



मैं- ना रे मैं आता हूं थोड़ी देर में



मैं पुलिसिये से - चल भाई चलता हूं बाद में मिलूंगा



ऐसा लगा की पिस्ता से बात करते ही नशा कम सा हो गया था आते ही उसने खाना परोसा पहला निवाला खाते ही समझ गया खाना पिस्ता ने बनाया होगा



वो भी समझ गयी बोली-आज बाजार गयी थी काफी सामान खरीदी की



मैं- हाँ पर अकेले ना जाया करो



वो- ओके



हमेशा से ही मुझे उसके हाथों का बना खाना बहुत पसंद था गाँव में लालमिर्च की बाटी हुई चटनी और गर्म रोटियां मजा ही आ जाया करता था



खाने के बाद मैं बिस्तर पे लेट गया और नीनू की कही बात पर विचार करने लगा थोड़ी देर बाद पिस्ता भी आ गयी तो मैंने उस को बताई



वो-वो भी सके है पर आज अगर अवंतिका की पोजीशन पे गौर करु तो देखो आज गाँव पे बिमला का राज़ है वो सरपंच है और बाहुबली सरपंच है और फिर अवंतिका तो बस इसलिए जीती थी की तुमने हेल्प की



पर इस बात पे गौर करो की अपनी सरपंची में वो लोगो का दिल क्यों ना जीत पायी



वो- क्योंकि सरपंच की ज़िम्मेदारी है गाँव का विकास करना और वो उसे बिमला ने करने ना दिया



मैं-पर तुम भूल रही हो की परिवार के बिना बिमला थी क्या जबकि अवंतिका के पास हर तरह का सपोर्ट था



वो- इसका मतलब ये की कोई है जिसने बिमला को फुल सपोर्ट किया



मैं-पर कौन



वो- इसका जवाब तो गाँव में ही मिलेगा



मैं-तू गाँव कब जायेगी



वो-मैं क्यों जाउंगी



मैं- घर नहीं तेरा



वो- अब बंद पड़ा है माँ गुजर गयी भाई भाभी अपनी ड्यूटी की जगह रहते है



मैं- हम्म्म्म, कुल मिला के गाँव जाके ही पता चले



वो-पता नहीं वो पल कब आएगा



मैं- पिस्ता आ सोते है और नाइटी खोल दे



उसने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और बिस्तर पर आ गयी मैने उसे अपनी और खींचा और उसके बदन को सहलाने लगा धीरे धीरे वो गर्म होने लगी धीरे से मैंने उसकी ब्रा को उतार दिया



मैंने अपने सुलगते होंठ उसकी चूची के निप्पल पे रखा तो पिस्ता ने खुद अपनी चूची मेरे मुह में डाल दी मैंने उसको चूसना शुरू किया वो मेरे बालो में हाथ फिराने लगी



कुछ देर बाद मैं दूसरे बॉबे को चूसने लगा



जल्दी ही वो भी फॉर्म में आ गयी अब मैं उसके पेट को चूम रहा था उसकी नाभि से अठखेलिया करते हुए अपनी जीभ् से चाट रहा था उसकी पैंटी गीली होने लगी थी



और फिर वो लम्हा भी आ गया जब उस को हटा दिया गया पर तभी पिस्ता उठ बैठी और मेरे लण्ड को सहलाने लगी उसके स्पर्श से ही मैं सिसक उठा था पिस्ता ने सुपाड़े की खाल को नीचे किया और फिर झट से उसे अपने मुह में ले लिया



और चूसने लगी मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया और उसके बालो को सहलाने लगा पिस्ता कभी जोर से तो कभी आहिस्ता से पूरे जोश में आके लण्ड चूस रही थी


पिस्ता के पीठ पर चलते मेरे हाथ उफ्फ्फ कितनी मुलायम खाल थी उसकी अब मैंने उसको अपनी गोद में बिठलाया और बस उसके होंठो से अपने होंठ चिपका लिए जैसे ही चुम्बन शुरू हुआ



मेरे हाथ अपने आप उसके नितंबो पर पहुच गए पिस्ता ने मेरे लण्ड को सही जगह पर लगाया और उस पर बैठती चली गयी हम दोनों धीरे धीरे एक दूसरे के होंटो को चूस रहे थे चाट रहे थे



चूत में लण्ड जाते ही उसके चूतड़ अपने आप हिलने लगे थे मैंने तकिये का सहारा लिया और लेट गया पिस्ता ने अपने दोनों हाथ मेरे सीने पे रखे और धमाधम कूदने लगी वोकभी कभी उसमे इतना जोश आ जाता की वो मेरे सीने को कस के दबाती




कुछ देर बाद वो नीचे थी मैं ऊपर उसकी चूत बहुत गीली हो गयी थी जिस से और मजा आ रहा था धीरे धीरे उसकी पकड़ कुछ टाइट होने लगी थी बार बार वो अपने जिस्म को अकड़ती



पिस्ता शायद झड़ने वाली थी उसके इशारे तो ये ही बता रहे थे तो मैं जोरो से उसकी चुदाई करने लगा मेरा लण्ड जैसे पिघल ही जाना था और फिर उसने मुझे कस लिया अपनी बाहों में



और उसके झड़ ते ही मैं भी झड़ गय



सुबह जरा देर हो गयी उठने में हाथ मुह धोके नीचे आया तो देखा की नीनू आयी हुई थी वो और पिस्ता बाते कर रहे थे मुझे देख पिस्ता चाय लाने चली गयी



मैं-कब आयी तुम



वो-मुझे तो आना ही था कोतवाली में हंगामा जो किया तुमने



मैं-कल मेरा दिमाग खराब हो गया था


उसने बस मुझे घूर के देखा कहा कुछ नहीं तबताक पिस्ता चाय ले आयी थी


मैं-पिस्ता ये नीलम है कभी हम दोस्त हुआ करते थे


वो-जानती हूं


मैं-कैसे


वो-जब तुम गाँव में नहीं थे ये आयी थी और मुझसे मिली थी तबसे ही जानती हूं


साला इस दुनिया में क्या हो रहा था क्या कहे ये भी आपस में दोस्त है ये तो हद हो गयी



मैं-मुझसे क्यों छुपाया


वो-तुम थे ही कहाँ तब


नीनू-ये सब छोड़ो देखो मैंने पहले भी तुमसे कहा था कि अपनी हरकते सुधार लो जिस दिन मेरा दिमाग घूम गया ना मैं सच में सड़ा दूंगी हवालात में


पिस्ता को हंसी आ गयी


नीनू-इसको समझाने की जगह हंस रही हो


वो-यार तुम दोनो थोड़े टाइम के लिए कही घूम आओ काफी टाइम बाद मिले हो न तो तुम समझ नहीं पा रहे हो


मैं- वो सब छोड़ो मुझे तुम दोनों से कुछ बात करनी है


नीनू-किस बारे में


मैं-सब्र करो ,



मैंने एक गहरी सांस ली और बताने लगा -मैं गाँव जा रहा हु


नीनू-नहीं तुम नहीं जाओगे


मैं-कब तक भटकता रहूँगा



वो-पर ये सेफ नहीं होगा वो भी जब बात आलरेडी इतनी बिगड़ी हुई है



मैं-बिगड़ी बात को सही तो करना होगा ना


पिस्ता-पर कौन दुश्मन है कौन दोस्त अब कुछ कहाँ नहीं जा सकता और फिर तुम आरोप क्या लगाओगे सबको पता है कि परिवार असीक्सीडेंट में खत्म हुआ था और पुलिस रिपोर्ट में भी ऐसा ही आया था


मैं-रिपोर्ट बनवाई भी जा सकती है



नीनू ने घूर के मेरी और देखा



मैं- देखो बात को समझो आज बिमला की जो पोजिशन है उतना स्ट्रांग तो हम थे ही नहीं आज वो बाहुबली है वहां की जब गाँव में हमारी रेस्पेक्ट थी अब डर है लोगो में उसका अब ऐसा क्या हुआ की वो इतना ग्रोथ कर गयी


मतलब कोई ऐसा तो होगा जिसने हद से ज्यादा उसको सपोर्ट किया मना की पैसा तो खूब था बिमला के पास पर फिर भी इतनी तरक्की की वो और जमीने खरीद ले शहर में होटल और फैक्टरियां


नीनू- तुम एक बात भूल रहे हो


मैं-क्या


पिस्ता-उसके पास जिस्म की ताकत थी और उसकी भूख भी कुछ कम नहीं थी


पिस्ता ने नीनू की बात पूरी की और मुझे लगा की उसने मुझे ताना मारा हो


मैं-हाँ पर किसने उसकी मदद की ये बात कौन बताये
 

Incest

Supreme
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859
64
नीनू-देखो ये सब शुरू हुआ अवंतिका की जीत से सब यही मानते है पर ये भी हो सकता है कि कोई पुराणी दुश्मनी हो ऐसा कोई हो जो मोके पे चौका मार गया हो







मैं- नीनू अब मेरे आगे तो कोई ऐसी बात थी नहीं और न ही कभी घर में कुछ ज़िक्र हुआ







पिस्ता-बिमला, चाचा और मामा हम सारी बात इनपे ही लेके चल रहे है मुद्दे वाली बात ये भी है के मामा कब जुड़ा इनसे







नीनू- छोड़ो कियो सर खपाते हो वैसे भी जब गाँव जाएंगे तो देख लेंगे







मैं-हां







नीनू-देखो मुझे अपने सोर्सेज से पता चला है कि गाज़ी की हवेली में कुछ ज्यादा मूवमेंट हो रही है शायद वो तुमसे बदला लेने का विचार कर रहा है तो थोड़ा सावधान रहना







मैं-वो मुझ पे हुम्ला नहीं करेगा बल्कि वो माधुरी या पिस्ता इनमे से किसी पे अट्रैक करेगा माधुरी का तो सबको पता है और पिस्ता मेरी खास है







खास, सुनकर ऐसे लगा जैसे नीनू को टीस हुई हो पर वो खास ही तो थी







मैं-नीनू हो सके तो माधुरी की फैमिली को प्रोटेक्शन







वो-मैं देख लुंगी पर तुम बीच में नहीं पड़ोगे







मैं-पहल मेरी तरफ से नहीं होगी







नीनू-शांत रहना मैं नहीं चाहती की कुछ ऐसा करो जिस से तुम्हे और मुझे दोनों को परेशानी हो







और दूसरी बात आज तुम दोनों मेरे घर खाने पे आ रहे हो







उसके जाने के बाद मैं और पिस्ता कुछ सोचने लगे







मैं-ये सोच रही हो की तुम्हारी सिक्योरिटी के लिए ना कहा







वो-छोटी बात ना किया करो , बहन की सुरक्षा ज्यादा जरुरी है मेरा क्या और वैसे भी गाज़ी मेरा क्या करेगा वो मुझे लेजाके पुराने डायलॉग मारेगा इज्जत लूट लूंगा हा हा हा











मैं-डर नहीं लगेगा







वो-डर किसलिए मैं तो नाड़ा ख़ौल दूंगी ले करले अपने को क्या फर्क पड जाना है











मैं-तू नहीं सुधरेगी चल आजा करते है







वो-अब पहले वाली बात ना रही एक बार में ही काम हो जाता है अपना रात को करना







मैं-तू साथ है तो क्या दिन क्या रात







वो- पर दूंगी रात को ही







मैं-तेरी मर्ज़ी







मैने उसे कहा कि शाम को मिलते है और बाहर आ गया एक दो बेहद जरुरी फोन किये सोचा की नीनू के लिए कुछ तोहफे खरीद लू तो बाजार चला गया तोहफे खरीद के गाड़ी के पास आया था कि पूजा मिल गयी







मैं-तुम यहाँ







वो-कुछ काम स आयी थी तुम्हारी गाडी देखि तो रुक गयी







मैं-आओ घर छोड़ देता हूं







वो-कुछ बात करनी थी







मैं-हाँ कहो







वो-यहाँ नहीं







मैं- चलो कॉफी पीते है







हम दोनों शॉप में आ गए







वो-आईएम सॉरी







मैं-इतस ओके







इतस ओके







वो- मैं बहुत शर्मिंदा हु मुझे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था







मैं-जो बीत गया वो भूल जाओ







वो- मुझे कुछ कहना है







मैं-हाँ











हम बात कर रहे थे की मेरा फ़ोन बजा कृष्णा जी का फ़ोन था मैंने पिक किया







हां-







वो-मिलने का मूड हो रहा है







मैं-आज तो नहीं मिल पाउँगा







वो-बड़ी याद आ रही है







मैं-आज बहुत बिजी हु कल पक्का







वो-ठीक है मेरी दोस्त का फ्लैट है एड्रेस लिखो



मैं-ठीक है







पूजा मेरी और ही देख रही थी वो कुछ कहना चाहती थी पर मुझे कुछ याद आया







मैं-पूजा अभी जाना होगा मैं फिर मिलता हु आपसे







वो बोलते बोलते रह गयी पर मुझे जाना ही था काम इम्पोर्टेन्ट था











रात को हम लोग नीनू के सरकारी घर में पहुंचे आज भी वो अपनी सादगी से ही जी रही थी ये बात अंदर जाते ही पता चलती थी उसने हमारा स्वागत किया







बस बैठकर बाते ही कर रहे थे की एक 7-8 साल का लड़का आके उस से लिपट गया







नीनू-अरे मैं इस से मिलवाना तो भूल ही गयी मेरा बेटा आर्यन







शायद एक झटका सा लगा था पर सम्भलना भी जरुरी था पिस्ता ने आर्यन को विश किया फिर मैंने भी विश किया







मैं-तुमने शादी करली







नीनू-तभी तो बेटा हुआ







मैं मुस्कुरा कर रह गया पता नहीं क्यों मेरी नजर आर्यन की आँखों पे अटैक सी गयी ऐसा लगा की कहीं ना कहीं ऐसी आँखे देखि होंगी बड़ा ही प्यारा था वो पर अफ़सोस मेरे पास उसको देने को कुछ नहीं था







तभी मुझे कुछ ध्यान आया मैंने अपने गले से लॉकेट उतारा और आर्यन को देते हुए बोला- बेटे इसे कभी अपने से अलग मत होने देना ये सदा तुम्हारी रक्षा करेगा







नीनू-ये तो वोही लॉकेट है ना







मैं-हां







खाना खाते हुए मन भटक सा रहा था







मैं- नीनू तुम्हारे पतिदेव कहा है







वो-वो हमारे साथ नहीं रहते पर ठीक है







पता नहीं क्यों वो बेगानी सी लगने लगी थी बड़ी ख़ामोशी से खाना खाया जी कर रहा था कि रो लू पर मर्द ठहरा जब इतना जहर पिया था तो ये भी झेल ही लेना था और वैसे भी ख़ुशी कहा रास आया करती थी हमे







आते समय रास्ते भर एक ख़ामोशी थी पिस्ता ने शायद मेरे मन को समझ लिया था कभी कभी लगता था कि साला मर ही जाए तो चैन पाये







घर आते ही मैं बिस्तर पर पड़ गया और सोने की कोशिश करने लगा पर नींद कोसो दूर थी पिस्ता मेरी बगल में लेट गयी कुछ देर बाद बोली सो गए क्या







मैं-नींद ना आरी







वो-देखो कभी ना कभी तो उसे अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ना ही था भला कब तक इंतजार करती वो







मैं-पर मेरा क्या दोष







वो-नसीब का तो है पर तुम्हे खुश होना चाहिए उसके लिए











मैं-खुश हूं







वो-तो सो जाओ







पिस्ता मुझसे चिपक गयी और मुझे सुलाने लगी पर साला हमे नींद कहा आये इधर गाज़ी की गांड जल रही थी पर नीनू ने सख्त रवैया अपनाया हुआ था पर मैं जानता था कि ये बस तूफ़ान से पहले का सन्नाटा है







सुबह कृष्णा जी का फ़ोन आ चुका था कि वो ठीक टाइम पे मिलेंगी वैसे देखा जाये तो नीनू ने सही कहा था ये मेरी भूख ही तो थी बीते सालों में मैने इस पर काबू पा लिया था पर पिस्ता के फिर से आने से मैं बेकाबू होने लगा था











और कभी कभी बात सही भी लगती थी वो मैं ही तो था जिसकी वजह से सब बर्बाद हो गया था और ये ही वो वजह थी की मैं गाँव नहीं जाना चाहता था







ये मेरी आग ही थी मेरी हवस ही थी मैं ही बिमला की लेना चाहता था मैंने ही उसको उकसाया था अपने साथ सम्बन्ध बनाने को और फिर एक के बाद एक औरते आती गयी और आज भी देखो कृष्णा जी से मिलने जा रहा था







सच कहूं तो ये एक लत लग चुकी थी मुंझे बस भागते ही जा रहा था पता नहीं कहा जाके रुकना था खैर मैं दिए एड्रेस पे पंहुचा कृष्णा जी ने मुस्कुरा के मेरा स्वागत किया







हम दोनों कमरे में पहुचे , कृष्ना की आँखों में एक चमक साफ़ दिख रही थी ऊपर से उसका हुस्न भी तो जोरदार था मैं उसके पीछे जाखड़ा हुआ और उसको अपनी और खींच लिया







उसका पिछवाड़ा मेरे अगले हिस्से से चिपका हुआ था मैं कपड़ो के ऊपर से ही उसके बदन को सहलाने लगा वो पिघलने लगी सांसे भारी होने लगी उसकी गांड बिलकुल मेरे लण्ड के अगले भाग से चिपकी हुई थी







मैंने अब उसकी सलवार का नाड़ा खोला और सलवार उसके पांवो में आ गिरी उसने खुद अपनी कुर्ती को उतार दिया कछी और ब्रा में वो मेरी बाहों में झूलने लगी







मैं ब्रा के उपर से ही उसकी छातियों से खेलने लगा कृष्णा सिसकने लगी ब्रा खुल के नीचे गिर चुकी थी छातियों को बड़े प्यार से दबाते हुए मैं कृष्णा के कान को चबाने लगा वो पागल होने लगी थी







जिस्मो की भूख भड़क रही थी कृष्णा में वो भूख तो थी ही पर एक अलग सी नजाकत भी थी जैसे जैसे मैं उसकी गर्दन के पिछले हिस्से को चूम रहा था कृष्णा का हाथ पीछे मेरे लण्ड पर पहुच गया था







उसने मेरी पेंट की चेन खोली और उसको बाहर निकाल लिया अपनी मुट्ठी में दबाने लगी जबकि मैं उसकी छातियों को फुला रहा था कुछ देर बाद मैंने उसको पलटा और अपनी और किया उसके ब्राउन लिपस्टिक में लिपटे होंठ मुझे आमंत्रण दे रहे थे







कृष्णा ने अपनी जीभ् होंठो पर फेरी मैंने उसे अपने स जोड़ लिया होंठो से होंठ जुड़ते चले गए लिपस्टिक का स्वाद मेरे मुह में घुलने लगा मेरे हाथ उसकी चौड़ी गांड पर कस्ते चले गए उफ्फ्फ कितनी मांसल गांड थी कृष्णा की







लबो से लब टकराये तो फिर छोड़ने को जी न किया मैं अपनी जीभ् उसके मुह में फिरा रहा था उसकी पैंटी घुटनो तक सरक चुकी थी मेरी उंगलिया उसकी गांड के छेद को टटोल रही थी जबकि मेरा लण्ड उसकी चूत में घुसने को बेताब हो रहा था











जब तक साँसे काबू से बाहर ना हो गयी चूमा चाटी चलती रही किस्स टूटते ही मैंने उसकी चूची को मुह में भर लिया कृष्णा का बदन तपने लगा था चुत का गीलापन इतना बढ़ गया था कि जांघो का कुछ हिस्सा भी गीला हो गया था







वो मेरे सुपाड़े को चुत के दाने पे रगड़ रही थी उत्तेजना से वशिभूत मैंने अपनी एक ऊँगली चूतड़ो में घुसा दी वो कराही औऔर अपने चूतड़ो को भींच लिया पर मैंने उ गली ना निकाली बस धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगा कृष्णा उत्तेजना की लहर पर सवार थी







कृष्ना अब मेरे पांवो के पास बैठ गयी मैंने पेंट उत्तर दी उसने लण्ड को पकड़ा और गप्प से अपने मुह में ले लिया उसकी गीली जीभ और मेरा गर्म लण्ड आग लगने लगे मेरा बदन कांपने सा लगा था







कृष्णा जी की लंबी जीभ् मेरे लण्ड पे गोल गोल घूम रही थी कुछ देर लण्ड चूसने के बाद अब उसने अंडकोषों को मुह मेंलेलिया और अपना थूक उनपर उड़ेलने लगी











मेरा तन बदन मस्ती में भर चूका था मैंने उसे हटने को कहा वो बेड पर लेट गयी और अपनी टाँगे फैला के लेट गयी



कृष्णा ने अपनी टांगो को फैला लिया और उसकी लपलपाती चूत मेरे लण्ड को बुला रही थी वैसे भी अब देर करना कहा जायज थी मैंने उसकी टांगो को अपनी टांगो पे चढ़ाया और कृष्णा में समाता चला गया लण्ड अंदर और अंदर सरकता जा रहा था मेरी हथेलियां उसकी हथेलियों को जकड़ने लगी थी बदन से बदन टकराने लगा था उसकी साँसे मेरे गालो को जैसे चुम रही थी लण्ड उसकी बच्चेदानी से टकरा रहा था







मैंने उसको वापिस किनारे तक खींच लिया और फिर से झटके से घुसा दिया ऐसा तीन चार बार किया कृष्णा की चूत झर झर के रस टपका रही थी चिकनी चूत को चोदने का मजा भी अलग ही होता था कृष्णा ने अपनी बाहो में मुझे भर लिया और मैं अब धक्के लगाने लगा जैसे जैसे चुदाई आगे बढ़ने लगी उत्तेजना बेकाबू होने लगी थी







कृष्णा की दोनों टाँगे हवा में उठी हुई थी मैं उसके पैर के अंगूठे को चूसते हुए चोद रहा था कृष्णा की आहो ने पूरे कमरे को सर पे उठाया हुआ था मेरी पकड़ उसकी जांघो पर मजबूत होती जा रही थी उसका सुडौल बदन झटके पे झटके खा रहा था कृष्णा की नशीली आँखे कभी खुलती कभी बंद होती अब मैंने उसको पलट दिया







सुडौल चूतड़ मेरी आँखों के सामने थे और चूत से बहता वो रस जिसका नशा ही अलग था ऊपर से उसकी गांड मैंने आज सोच लिया था कि वहाँ भी लण्ड डाल के रहूँगा वो कसमसाने लगी थी तो मैंने फिर से लण्ड को अंदर धकेल दिया और ताबड़तोड़ तरीके से उसको रगड़ने लगा मैं चाहता था कि वो जल्दी से झड़ जाए एक के बाद एक करारे प्रहार उसकी चूत पे होने लगे
 

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उसकी चूचियो को बेरहमी से दबाते हुए मैं उसे मंजिल की और ले जा रहा था 5-7 मिनट तक उसको ऐसे ही तेज तेज चोदा कृष्ना निढाल होम लगी थी उसकी टाँगे थरथरा रही थी और फिर एक तेज आअह भरते हुए वो झड़ने लगी मैं तेज धक्के लगाते हुए उसके मजे को बढाने लगा उसके झडते ही मैंने अपने लण्ड को चूत से बाहर निकाल लिया











और उसको औंधी लिटा दिया और उसकी गांड पर थूक लगाने लगा







कृष्ना- क्या कर रहे हो







मैं- गांड मारने की तैयारी







वो-आराम से करना फाड़ मत डालना घर भी जाना है







मैं-हम्म



मैंने थोड़ा सा थूक अपने लण्ड पर भी लगाया और उसे टिका दिया कृष्णा की गांड पर थोड़ा खींच के जोर लगाया तो मेरा सुपाडा उसके छल्ले में फंस गया और उसको फ़ैलाने लगा उसका बदन टाइट होने लगा और होंठो से दर्द भरी कराह फुट पड़ी इस दर्द के मजे का भी उसको पता था मैंने अपने पैरों को एडजस्ट किया और अब पूरा दवाब उसकी गांड पे डालने लगा







छेद खुलने लगा और लण्ड अंदर को सरकने लगा कृष्णा के माथे पे पसीना छलकने लगा और मेरा आधा लण्ड अंदर पहुच चूका था वैसे भी जो औरते रेगुलर गांड मरवाती है उनकी बात ही अलग होती है थोड़ा थोड़ा करके मैंने पूरा लण्ड घुस ही दिया







कुछ देर मैं उसके ऊपर ही पड़ा रहा गांड के छल्ले ने बुरी तरह से लण्ड को कसा हुआ था काफी प्रेसर पड़ रहा था मैंने धीरे धीरे अपनी कमर को हिलाना शुरू किया कुछ देर तो वो कराहती रही फिर उसकी सिसकिया मस्ती भरी आहो में बदल गयी मुलायम चूतडो से रगड़ खाता मेरा लण्ड जन्नत के मजे ले रहा था



कृष्ना ऊई ऊई कर रही थी मैं धक्के मारता रहा करीब5 मिनट बाद शरीर में सुरसुराहट होने लगी तो मैंने लण्ड निकाला और उसके मुह में दे दिया वो जोर जोर से अपना मुह चलाने लगी साथ ही गोलियों को भी दबाने लगी मैं तो जैसे बस काम से गया







मेरा गर्म पानी उसके मुह में गिरने लगा जिसे वो अपने गले से नीचे उतारने लगी एक के बाद एक धार गिरती गयी जब उसने एक एक बूँद को निचोड़ लिया तो उसने उसे मुह से निकाला और फिर पास में ही लेट गयी हम दोनो कुछ देर के लिए लेट गए







कृष्ना-दर्द कर दिया अब तो चला भी नहीं जायेगा







मैं-थोड़ी देर में सही हो जायेगा और वैसे भी इतनी मस्त गांड में लण्ड नहीं डाला तो क्या फायदा







उसने अपना हाथ लण्ड पे रखा और उसे फिर से तैयार करने लगी की तभी घंटी बज उठी फ्लैट की कृष्णा बोली कौन हो सकता है मैं देखती हूं उसने अपने कपडे पहने और की होल से देखा तो उसकी गांड फट गयी बाहर पूजा खड़ी थी







कृष्ना थर थर कांपने लगी पूजा घण्टी बजाए जा रही थी इधर कृष्ना की फटी पड़ी थी और कोई रास्ता भी नहीं था जिस से वो निकल जाए तो मैंने भी कपडे पहने और दरवाजा खोल दिया वो अंदर आयी अब वो कोई नादान तो थी नहीं







पूजा-ओह तो यहाँ ये मीटिंग हो रही है



मैं- पूजा मेरी बात सुनो







वो- मैं तो बस छोटी भाभी को ही ऐसी समझती थी बड़ी भाभी भी वाह क्या बात है







कृष्णा-पूजा इस बात को अपने तक ही रखना मेरी लाइफ बर्बाद हो जायेगी अगर किसी को पता चला तो







पूजा- आप घर जाओ मुझे इस से कुछ बात करनी है







मैने कृष्ना को इशारा किया तो वो फ्लैट से निकल गयी बचे मैं और पूजा







मैं-देखो पूजा मैं कुछ छुपाने की कोशिश नहीं करूँगा पर मैं चाहता हु की ये बात बस यही रहे







वो- ठीक है पर मेरी एक शर्त है







मैं-क्या



वो- मुझे भी तुम्हारे साथ करना है



मैं-पागल हुई हो क्या



वो-हाँ पागल हुई हु मुझे बस करना है तुम्हारे साथ और इस राज़ की इतनी कीमत घाटे का सौदा तो नहीं है ना और थोड़ा मजा मुझे भी दो हमारा भी नमक खाया है तुमने







मैं सोच में पड गया उसकी बात माननी ही होगी वर्ना वो घर जाके हंगामा करेगी जो कृष्णा की सेहत के लिए ठीक नहीं होगा करे तो क्या करे दिलवाला







पूजा ने अपनी चाल चल दी थी अब बारी मेरी थी ना करने की हालत मेरी नहीं थी क्योंकि कृष्णा का सवाल था तो सोचा की चूत मिल रही है मार लेता हूं पर इसके नखरे को भी झाड़ना है आज



पूजा अपनी होंठो पर जीभ् फेरते हुए मेरी और देख रही थी उसको मेरे जवाब का इंतज़ार था



मैं-कैसे चुदना पसंद करोगी तुम



वो- जैसे तुम चोद सको



वो मेरी आँखों में देखने लगी मैं आगे बढ़ा और उसको अपनी और खींच लिया बिना कुछ कहे उसको किस्स करने लगा उसके सुतवां होंठ मेरे होंठो से चिपकने लगे मैंने एक हाथ उसकी कमर में डाला पूजा मुझसे चिपक गयी अब मैं फुर्सत से उसके होंठो का रसपान करने लगा







साथ ही मेरे हाथ उसकी स्कर्ट में घुस चुके थे और कछी के ऊपर से उसके मीडियम साइज के कूल्हों को मसल रहे थे मैंने उसके निचले होनट को अपने दांतों में दबा लिया और फिर चबाने लगा तो वहां से खून निकल आया







"आह, वो चिल्लाई होंठ जो कट गया था पर ये तो बस शुरुआत थी बड़ी मैडम बनी फिरती थी आज उसकी हेकड़ी निकालनी थी मुझे होंठ से जो एक पतली धार फुट चली थी खून की मैं उसको चूसने लगा पूजा के तन में एक अलग सा नशा चढ़ने लगा







उधर होंठो का रस निचुड़ रहा था इधर मैं उसके चूतड़ो से खेल रहा था उसके हाथ मुझे जकड़ रहे थे जब तक उसके होंठ सूज ना गए मैं चूसता ही रहा उसकी छातिया ऊपर नीचे हो रही थी मेरे सीने से रगड़ खाते हुए







अब मैं उस से अलग हुआ और उसके टॉप को उतार दिया ब्रा और स्कर्ट में एक दम टँच लग रही थी मैंने अपने कपडे उतारने शुरू किये पूजा बड़ी बारीकी से मेरे जिस्म का निरीक्षण कर रही थी और फिर उसकी नजरे मेरे लण्ड पर आकर रुक गयी जो की फिर से उत्तेजित हो चूका था



मैंने पूजा का हाथ अपने लण्ड पर रख दिया जैसे ही उसने अपनी मुट्ठी उसपे कसी वो फड़फड़ा गया ब्रा के ऊपर से ही मैंने अपने दांत उसकी छाती पे लगा दिए तो वो एकदम से सिसक उठी "आह, आई











पर मैं कहा मानने वाला था ब्रा को हटा के मैंने उसकी एक चूची को मुह में ले लिया और दूसरी को दाबने लगा पूजा मस्ती से भर गयी और आहे भरने लगी आअह सीई मत काटो ना ओप्फ







वो मेरे लण्ड को हिलाने लगी थी और मैं उसके बोबो को फुलाने में मस्त था उसकी आँखे लाल हो गयी थी सांस फूली हुई मेरे चूसने से छातियों पे निशान हो गए थे मैं उसे आज हद से ज्यादा तड़पाना चाहता था मैं उसकी निप्पल्स को दांतों से काटने लगा वो दर्द से तड़पने लगी







जब उसके बर्दास्त से बाहर हो गयी तो मैंने वहां से अपना मुह हटा लिया उसने एक नजर अपने बोबो पे डाली और बोली-जुल्मी हो



उसने खुद ही अपनी स्कर्ट और कच्छी उतार दी क्या शानदार नजारा था गोरी गोरी टांगो के बीच एक छोटी सी हलके काले रंग की बिना बालो की चूत मैंने खड़े खड़े ही उसकी टांगो को चौड़ा किया और उसके पांवो के बीच बैठ गया







उसकी जांघो पर अपने हाथ जमाये और अपनी लंबी जीभ् से उसकी चुत को छूने लगा खुरदरी जीभ् के अहसास से ही पूजा सिहर उठी उसके पैर कांप गए चूतड़ थिरक उठे होंठो से मस्तीभरी आह फुट पड़ी मैंने ऊपर से नीचे तक चुत पर जीभ् को फेरा







और फिर उंगलियों की सहायता से चुत की फांको को खोल दिया अंदर का लालिमा लिए हिस्सा दिखने लगा मैं वहां जीभ फिराने लगा पूजा ने अपने हाथ मेरे कंधो पे टिका दिए और गहरी सांस लेने लगी बदन की आग अब लपटों में जलने लगी थी



पूजा के बदन की बढ़ती कंपकंपी उसे पागल कर रही थी चुत से टपकता रस मेरे होंठो से होकर मुह में जा रहा था अब मैं उसे और तड़पाते हुए तेजी से जीभ् को उसके दाने पे रगड़ने लगा पूजा के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था थिरकती गांड और होंठो से फूटती सिसकारियां उसकी हालत को बयां कर रही थी







उसके हाथ मेरे कंधो से होते हुए मेरे बालो पर पहुच गए थे उसकी उंगलियां मेरे बालो में कंघी कर रही थी बार बार मैं उसकी चुत को दांतों से काटता तो वो मस्ती भरे उस दर्द को महसूस करती पूजा मेरी इन शरारतों को ज्यादा देर नहीं झेल पायी और 5 मिनट के अंदर ही मेरे मुह में झड गयी



पूजा पूरी तरह से पसीने में नाहा गयी थी इस से पहले वो अपनी उखड़ी साँसों को संभाल पाती मैंने उसे उसी बेड पे पटक दिया जहाँ थोड़ी देर पहले कृष्णा चुद रही थी पूजा जस्ट झड़ी थी तो अभी लंड लेने को तैयार नहीं थी पर यही तो सही मौका था







मैंने सुपाड़े पे थूक लगाया और चूत पे रख दिया इस से पहले वो कुछ कहता मेरा लण्ड चुत को चीरते हुए उसके अंदर घुस गया सूखी पड़ी चुत जलन के मारे सिसक पड़ी और पूजा तड़पने लगी आह थोड़ी देर तो रुको ओह मम्मी मरी रे







पर इन चीखो को ही तो सुनना था मुझे वो मुझे अपने ऊपर से हटाना चाहती थी मैंने उसके हाथों को पकड़ लिया और चोदने लगा उसने मेरे हाथ पे दांत गड़ा दिए तो मैंने एक थपड़ दिया साली के मुह पे और उसके टमाटर से लाल गालो को अपने मुह में भर लिया







मेरे दांतो के निशान उसके गालो पे पड़ने लगे



पूजा- काटो मत निशान लग जायेंगे प्लीज़



पर उसकी कौन सुनने वाला था इधर उसकी चुत गीली होने लगी थी तो वो शांत पड़ने लगी थी पर मेरी हरकते बढ़ती जा रही थी उसके गाल गरदन सीना हर जगह मेरे होंठो के निशान पड़ गए थे







हुस्न की आग में जलते दो बदन अब हर हद को पार करने को आतुर हो चले थे मैंने उसको टेढ़ी किया और उसके पीछे आ गया उसके बदन से उठती पसीने की स्मेल मुझे मदहोश कर रही थी एक टांग को ऊपर किया और फिर से लण्ड को पंहुचा दिया अंदर







हम दोनों के जिस्म धाड़ धाड़ करके टकरा रहे थे जितने तेज धक्के मैं लगा रहा था उतना ही जोर से वो चीख़ रही थी उसकी आँखे तकरीबन बंद हो चुकी थी मस्ती के मारे मैंने पलटी खायी और फिर से उसके ऊपर आ गया उसके होंठो को चूसते हुए मैं बस धक्के पे धक्का लगा रहा था







पूजा का जिस्म मेरी बाहों में पल पल पिघल रहा था पता नहीं कितनी देर से वो चुद रही थी कितनी बार झडी थी पर मेरा पानी छूट नहीं रहा था तो बिना उसकी परवाह किये बस मैं रगड़ रहा था उसको वो छटपटाते हुए कभी मेरे कंधे पे काटती तो कभी मुझे अपने ऊपर से हटाने की कोशिश करती







पर आज उसका पाला सही आदमी से पड़ा था वो एक बार फिर से झड़ रही थी और इसी के साथ वो निढाल होकर गिर गयी मैं बस किनारे पे ही था और कुछ देर बाद मैं अपने पानी से उसके खेत को सींचने लगा







उस लड़की ने मुझे भी तोड़ दिया था जान ही निकाल दी थी कुछ देर पड़े रहने के बाद उसने अपनी आँखे खोली वो उठी और नंगी ही बाथरूम की तरफ जाने लगी प्यास से मेरा गला सुख रहा था मैंने उसे पानी लाने को कहा कुछ देर बाद वो पानी लायी गटागट मैं आधे से ज्यादा बोतल पी गया पानी पीकर मैं उठने को ही था कि मेरे पैर कांप गए आँखों के आगे अँधेरा छा गया कुछ समझ पाता उस से पहले ही बेहोशी ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया



आँखे जब खुली तो अजीब से हालात थे ये वो कमरा नहीं था जहाँ मैं और पूजा थे ये कोई और जगह थी हलकी सी रौशनी थी मैंने खुद को एक कुर्सी पे बंधे पाया और ताज्जुब की बात बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था उठने की कोशिश की पर उठ ना पाया सर भारी सा हो रहा था


ये तो अजीब समस्या हुई जल्दी ही मैं समझ गया था कि मामला तो गड़बड़ है पूजा ने मारली थी हमारी वो भी बुरी तरह से पर अब किया क्या जाए यहाँ से निकलना बहुत जरुरी था खेल शुरू हो गया था पर निकलू कैसे पूरा जायजा लिया पर कोई दिखा नहीं रस्सी भी मजबूत बंधी थी खींचा तानी में हाथ और छिल गया

चूतिया कट गया था वो भी बड़ा वाला मैं सोचने लगा की कैसे अब निपटा जाए वैसे ऐसा लग नहीं रहा था कि मेरे अलावा और कोई भी है वहां पे कई देर सोचा की ये मीठी गोली किसने चूसा दी पूजा को मुझसे खुंदक तो थी पर ये पक्का था कि इसमें कोई और भी मिला हुआ है

पर कोई दिख ही न रहा था यहाँ पर सब कुछ शांत पड़ा हुआ था तक़रीबन दो घंटे बाद किसी के आने की आहट हुई तो मैं चौकन्ना हो गया ये पूजा ही थी वो आकार पास पड़ी कुर्सी पे बैठ गयी

मैं- पूजा ये सब क्या है और हम लोग यहाँ कैसे आये

पूजा-बात बहुत करते हो तुम अब तक तुम्हे समझ जाना चाहिए था कि अपहरण हो गया है तुम्हारा

मुझे हंसी आ गयी- मैं पर क्यों मेरे पास तो ऐसी कोई धन माया भी नहीं ना मैं सेठ साहूकार

पूजा-बस्ती के कागज़ कहाँ है

मैं-ओह तो अब समझा वैसे तुम्हारी जगह ये सवाल किसी और को पूछना चाहिए था

वो-पहले मुझ से तो बात कर लो

मैं- कागजात को भूल जा तू

वो- देखो सीधे से कागजात दे दो वार्ना हम बहुत कुछ कर सकते है तुम यहाँ कैद हो और अगर एक घंटे के अंदर तुमने कागजात न दिए तो तुम्हारी जान पिस्ता के साथ कुछ भी हो सकता है

मैं-जुबान को लगाम दे पूजा

वो-दुखती रग पे हाथ रखा तो तड़प उठा सोच जब पिस्ता की चीखें सुनेगा तो क्या हाल होगा तेरा

मैं-कितने में बिकी,

वो- तू क्या जानेगा मेरी कीमत

मैं-सही कहा तेरी जैसी रांड की क्या कीमत होगी


पूजा को गुस्सा आ गया उसने एक लात मारी मेरे पेट में बड़ी जोर से लगी

वो-डॉक्यूमेंट कहा है

मैं-तेरी गांड में है

पूजा को और गुस्सा आया एक मुक्का पड़ा मुह पर इस बार मुझे अपनी फ़िक्र नहीं थी पर पिस्ता की परवाह थी और मैं ये भी जानता था कि ये लोग कुछ भी कर सकते है पर कागजात भी तो नहीं दे सकता था

कुछ देर एक शांति छाई रही फिर मैंने कहा - एक फ़ोन करना है

वो-ना

मैं-फिर डॉक्यूमेंट कैसे दूंगा

वो-तुम बस बता दो मैं अपने आप मंगवा लुंगी

मैं- डॉक्यूमेंट चाहिए तो फ़ोन करने दे

पूजा-देख मेरे पास टाइम नहीं है तेरी बकवास सुनने का लगता है तुझे हकीकत समझाँनी पड़ेगी उसने फ़ोन मिलाया और मेरे कान पे लगा दिया अगले ही पल मैंने पिस्ता की चीख सुनी

मेरी आँखों में लहू उतरने लगा गुस्से से नथुने फूलने लगे , अगर पिस्ता को कुछ भी हुआ तो ध्यान रखना उसका हर एक ज़ख्म का हिसाब तुझे देना होगा

वो- बोल तुझे क्या चाहिए तेरी रांड या फिर वो कागज़ सोच ले और जल्दी बता

मैं- गाज़ी से मिलना है मुझे अभी

वो-इतनी भी क्या जल्दी मौत के दीदार करने की चिंता मत कर मरने से पहले तू जरूर मिलेगा पर लगता है

तुझे पिस्ता की कोई परवाह नहीं है

मैं-ठीक है कागजात तुम्हे मिल जायेंगे

वो-जल्दी पता बता

मैं- कागजात अभी मिल जायेंगे पर तुझे एक काम करना होगा

वो-क्या

मैं-एक बार देनी होगी तेरी मारने में मजा आया बहुत तो फिर से दिल कर रहा है

वो-क्या समझा है तुझे क्या लगता है इस बहाने से मैं तुझे खोल दूंगी
 

Incest

Supreme
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859
64
मैं- मत खोल बस ऐसे में मेरी गोद में चढ़के चुद लेना अब फैसला तेरा है रही बात पिस्ता की तो कल मरती आज मरे मुझे क्या और अगर तू सोचे की उसको मार पीट के डाक्यूमेंट्स ले लेगी तो तुझे पता ही है


पूजा- ठीक है पर इस हाथ ले इस हाथ दे

मैं- ठीक है तो मेरे साथ चल

वो-तुझे आज़ाद करने का रिस्क मैं नहीं ले सकती

मैं-रिस्क कैसा पिस्ता तुम्हारी कैद में है ही तुम्हे भी पता है मुझे तो झुकना पड़ेगा ही अब सारे फैसले तुम्हारे है चाहे जो चुन लो

वो- ठीक है पर चलने से पहले मैं यही करुँगी तुम्हारी कैद की हालत में ही वो क्या हैं ना जबसे तुमसे करवाया है साला चैन ही नहीं मिल रहा हैं अब मैंने जाना की मेरी दोनों भाभिया तुम्हारी दीवानी क्यों हैं

मैं – ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी

पूजा ने अपने कपडे उतारे उसका मस्ताना बदन मेरी आँखों के आगे घुमने लगा पर इस समय मेरा दिमाग सेक्स से ज्यादा कहीं और घूम रहा था मैं कुछ भी करके इस कैद से आज़ाद होना चाहता था क्योंकि अब मुझे वो करना था जिसे करने मैं यहां आया था पूजा अपने होंठो को काटते हुए मेरे लंड की तरफ देख रही थी जो उसकी नशीली गांड को देख कर खड़ा होने लगा था इठलाती हुए वो मेरे पास आई उसने मेरे गाल पे हलके से चूमा उसकी महकती साँसे किसी को भी मदहोश कर सकती थी जल्दी ही पूजा अपने घुटनों के बल फर्श पर बैठी हुई थी और मेरे लंड से खेल रही थी

खेल की खिलाडी बेशक वो थी इस समय पर खेल को ख़तम मुझे करना था पूजा मेरे लंड को अपने मुह में गोल गोल घुमा रही थी मेरे बदन में सनसनाहट फ़ैल रही थी मेरे सुपाडे पर उसकी जीभ का जादू चलने लगा था कुछ पलो के लिए मैं उन्माद में खोता चला गया “ओह पूजा हाय आः आह्ह्ह ” उसे पता था की मैं तड़प ने लगा हु तो वो और जोर से लंड चूसने लगी पर येसमय इस चीज़ के लिए नहीं था

मैं- पूजा जल्दी करो

पूजा ने अपनी चूत पर थूक लगाया और मेरे लंड पे बैठने लगी अब सिचुएशन चाहे जो भी हो चुदाई तो चुदाई ही होती है एक बार जो उसकी गरम चूत का मजा मिला मैं अपनी सुध बुध खोलने लगा पूजा के मुह से आहे निकल रही थी और जल्दी ही वो जोर जोर से कूदने लगी कुर्सी के पाए चरमराने लगे थे वो हमारे बोझ से कराहने लगी थी पर पूजा सेक्स की खुमारी में डूब चुकी थी वो अपने दोनों हाथ मेरे कंधो पर रखे अपने चूतडो का पूरा जोर लगाते हुए धक्के लगा रही थी कुर्सी के पाए अब जैसे उस फर्श पर कांप रहे थे और वो कमजोर कुर्सी जैसे तैसे करके हमारे बोझ को थामे हुए थी वो ज्यादा देर झेल नहीं पाई और धडाम से हम दोनों निचे फर्श पर गिर पड़े

निचे गिरते ही कुर्सी टूट गयी और मेरे बंधन आज़ाद हो गयी पूजा इस से पहले कुछ समझ पाती मैंने मेरे हाथ से बंधे कुर्सी के हत्थे से उस पर वार किया पूजा लहरा कर गिरी और बेहोश होती चली गयी अब मुझे यहाँ से निकलना था पर मैं नंगा था तो कैसे मैं दुसरे कमरे में आया तो मुझे कपडे मिल गए फिर मैंने बेहोश पूजा को गाड़ी में लादा और वहां से निकल गया मैंने गाडी को पूरी रफ़्तार से दौड़ा दिया मेरे दिमाग में सिर्फ और सिर्फ पिस्ता ही घूम रही थी और उसके लिए मैं कुछ भी कर सकता था


मैंने पूजा के फ़ोन से नीनू को फ़ोन किया तो वो घबराई सी थी पूछने पर पता चला की आर्यन का किडनैप हो गया है ये खबर किसी शोक से कम नहीं थी अब आर्यन को कोई क्यों किडनैप करेगा मैंने नीनू को समझाया की वो घबराये ना मैं कुछ ही देर में कोतवाली पहुच जाऊंगा फिर देखते है पिस्ता के बाद आर्यन कोई तो बात थी खेल शुरू हो गया था बस इस खेल में ट्रोफियो की जगह जिन्दगिया दांव पे लगी थी तभी मेरे दिमाग के कुछ आया और मैंने माधुरी के फ़ोन पर घंटी लगाई पर ताज्जुब की बात उसने भी फ़ोन नहीं उठाया


मेरा दिमाग सुन्न होने लगा था सामने वाले ने अपनी चाल चल दी थी मेरे मन में विचारो का मेला लगा था मैं सच से भागता आया था पर आज सच से सामना करना ही था और अब मुझे कमजोर नहीं पड़ना था अपनों की जिंदगी दांव पर जो लगी थी रस्ते में एक जगह मैंने गाडी रोकी कुछ जरुरी फ़ोन किये उधर से कुछ जवाब लिए और अब ये दिलवाला तैयार था मैंने गाडी कोतवाली की तरफ मोड़ दी थोड़ी देर बाद chrrrrrrrrrrrrrrr करके गाड़ी ने ब्रेक मारे और मैं उतरते ही भगा अन्दर की और


पुलिसवालों के हाथ अपने आप सलूट मारने को उठ रहे थे पर मुझे उनकी कोई परवाह नहीं थी मैंने दो कोरिडोर पार किये और फिर सीधे अन्दर पहुच गया मुझे यु वर्दी में देख कर चौंक गयी उसका ही क्या वहां मोजूद हर पुलिसवाले का यही हाल था एक तो आर्यन की वजह से नीनू बेहद परेशान थी ऊपर से मैंने उसको 440 वाल्ट का झटका दे दिया था , कुछ देर वो भोचक्की सी मुझे देखती रही और फिर मेरे सीने से आ लगी रोने लगी वो. बोली- वो लोग आर्यन को उठा के ले गए

मैं- फिकर मत करो गाजी का समय पूरा हो गया है , फाॅर्स को आर्डर दो तैयार करो सबको मुझे सब लोग दस मिनट में चाहिए

नीनु- यस सर,

नेनू ने मुझे अजीब सी नजरो से देखा और फिर तेजी से बाहर चली गयी आर्यन को किडनैप करना नहीं चाहिये था उसको माना पिस्ता वाला लॉजिक समझ आता था पर आर्यन को क्यों शायद गाजी को मेरे और नीनू के अतीत का पता चल गया हो किसी तरह से पर इक बात और थी की पिस्ता को किडनैप करते ही उन्होंने मुझे बता दिया था फिर आर्यन का जीकर क्यों नहीं किया कुछ तो गड़बड़ थी कोई तो बात थी ही जिसे मेरा पुलिसिया दिमाग समझ नहीं पा रहा था समय बड़ी तेजी से भाग रहा था पर मुझे कुछ सूख नहीं रहा था क्या इस बारे में नेनू से बात करनी चाहिए थी शायद हाँ शायद ना


जब कुछ नहीं सुझा तो मैंने इस खायाल को अपने जेहन से झटक दिया और बहार आ गया मेरी टीम अपने नए एस पी के लिए तैयार थी अब इस सहर में बदनाम दिलवाला था वो एस पी के रूप में बात कुछ जमने वाली तो थी नहीं और मेरे पास इतनी फुर्सत नहीं थी की बता सकू हाँ पर आज इतना जरुर था की इस सहर से कुछ लोगो का नाम जरुर मिट जाना था जल्दी ही पालिक की कई गाडिया गाजी की हवेली की और दौड़ रही थी नीनू मेरे पास ही बैठी थी थी

मैं- घबराओ मत, आर्यन को कुछ नहीं होगा

वो- जानती हु

उसके माथे से पसीना टपक रहां था ऐसा लग रहा था की अन्दर से बहुत घबराई सी सी थी वो मैं उसके दिल का हाल समझ सकता था था जिसका बेटा मुसीबत में हो उस माँ को कैसे चैन मिल सकता है कुछ देर गाडी में एक चुप्पी छाई रही फिर नीनू बोली- एक बात बोलनी थी

मैं- हाँ कहो

वो- वो , वो ..............................

मैं- वो क्या

वो- आर्यन को कुछ नहीं होना चाहिये चाहे कुछ भी हो जाये

मैं- जान देके भी उसकी हिफाज़त करूँगा तुम्हारा बेटा मेरा भी बेटे जैसा ही हुआ ना तुम टेंशन मत लो जिगर मजबूत रखो

वो- बस उसको कुछ नहीं होना चाहिए

मैं- कुछ नहीं होगा

वो- वो अमानत है तुम्हारी ये बोलके वो खामोश हो गयी

मैं उसके चेहरे को देखने लगा एक टक , क्या कहा तुमने

वो- जो तुमने सुना , आर्यन मेरा बेटा नहीं है वो अमानत है तुम्हारी जिसे मैं सहेज रही थी

मैं- मेरा बेटा, पर कैसे

वो- कभी उसकी आँखे देखि गौर से तुमने मैंने सोचा था उसको देखते ही समझ जाओगे तुम
अब मेरा कलेजा कामपा , वो आँखे जब पहली बार आर्यन को देखा था तो लगा तो था मुझे जैसे की कोई जान पहचान हो उन आँखों से इस से पहले की मैं कुछ कह पाता
इस से पहले की मैं कुछ कह पाता नीनू मेरे सीने से लग गयी और फूट फूट के रोने लगी ना जाने क्यों मैंने उसको चुप नहीं करवाया पर वर्दी वाली को यु आंसू बहाना भी ठीक नहीं था पर ये हालात ही कुछ ऐसे हो गए थे अन्दर से मैं टूट रहा था पर फ़र्ज़ की बेडियो ने पाँवो को बाँध रखा था अपने द्वन्द से तो बाद में झुझता पहले गाजी की खबर लेनी थी अपने को संभालना ही था पर आसां नहीं था जिंदगी के एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ा हुआ था मैं की दिमाग के जैसे टुकड़े टुकड़े हो गए थे

तो एक बार फिर मैंने खुद पे फर्ज़ को तवज्जो दी, जिस काम के लिए इस शहर में आया था वक़्त आ गया था उसे मुक्कमल करने का पर शायद मेरे पैर कांप रहे थे ऐसा लग रहा था की जैसे किसी ने मुझे टुकडो में बाँट लिया हो साला जिंदगी में जो मिला वो ऐसा ही मिला कभी दो घडी सुख की साँस ना मिली सच कहू तो जी तो मैं माँ-बाप के राज में ही लिया था अब तो बस टाइमपास ही हो रहा था विचारो का चक्रवात मेरे सीने को ऐसे मथ रहा था जैसे की कभी समुद्मंथान हुआ था

पता ही नहीं चला की कब शहर को पीछे छोड़ कर हम लोग गाजी की हवेली के पास आ पहुचे थे , गाड़ी से उतरते ही एक पुलिसवाला मुझ पर हावी होने लगा गाजी की हवेली सहर से बाहर की तरफ थी सच कहू तो वो बड़ा ही दिलकश सा नजारा था एक तरफ पहाड़ थे दूसरी तरफ घने जंगल और साथ बहती एक नदी और उनके बीच बड़ी शान से अकदते हुए वो विशाल हवेली पर जल्दी ही मैंने अपना ध्यान काम पे लगाया अब ऐसा तो था नहीं की गाजी को हमारे आने की खबर न हो उसने भी अपनी पूरी तयारी की होगी

इस से पहले की मैं अपनी टीम के साथ आगे बढ़ पता हवेली की छत से माइक की आवाज आई –“sp,सबकी सलामती चाहता है तो अकेला अन्दर आजा 5 मिनट का समय है अगर तू अकेला अन्दर नहीं आया तो सबसे पहले तेरी प्यारी बहन माधुरी की चीखे सुनेगा तु”

मेरा तो दिमाग ही घूम गया माधुरी को भी इन्होने अगवा कर लिया था , ओह तो तभी उसने मेरा फ़ोन नहीं उठाया था गाजी ने बड़ी तगड़ी चोट मारी थी नीनू भी टेंशन में आ गयी थी पर माधुरी को तो सिक्यूरिटी थी मेरी फिर कैसे ? ये भगवन आज तो फंसा दिया तूने जिन जिन की अहमियत थी मेरे लिए वो सब तो गाजी के कब्ज़े में थे इस से पहले की मैं कुछ सोचता माइक पर माधुरी की चीख गूंजी “”भाई” अआह्ह बचाओ

ये बंधन सबसे बढ़के था मेरे लिए इसकी आन तो रखनी ही थी , मैंने नीनू को कुछ समझाया और चल पड़ा हवेली की ओर गीदड़ो ने शेर को फंसने के लिए जाल बिछा लिया था हवेली में दाखिल होते ही मैंने देखा हर तरफ बस उसके ही आदमी थे चप्पे चप्पे पर जैसे की कोई छावनी ही बना दिया हो उस जगह को मैं धीमे कदमो से बढ़ते हुए अन्दर मैंदान तक गया और वाही पर किसी राजा की तरह बैठा था वो ठेठ राजस्थानी लिबास में उम्र कोई ५५-६० लम्बा तंदरुस्त गंजा सर हाथो में चांदी के कड़े , हमारी नजरे मिली उसकी आँखों में बरफ सी ठंडक देखि मैंने

गाजी- आओ, दिलवाले, आओ, बड़ा इंतजार करवाया तुमने आँखे तरस गयी दीदार को

मैं- गाजी, मामला हम दोनों के बीच का है इनका इसमें कोई लेना देना नहीं इनको जाने दे

वो- लेना देना कैसे नहीं , एक तेरी रखैल, एक तेरा बेटा और एक तेरी बहन , बहन जिसके लिए तूने हमारे दिल के टुकड़े का कतल कर दिया खून के आंसू रुलाया हमको

मैं- गलती तेरे पोते की थी तू भी जानता है

वो- क्या गलती थी दिल ही तो आया था क्या होता थोडा मजा कर लेता

मैं- जुबान को लगाम दे गाजी

वो- ओह ओह , गुस्सा उफ्फ्फ ये गुस्सा ही तो तेरा देखना था अभी तो बस बोला ही और तू बिफर उठा जरा सोच मुझे कितना सुकून पहुचेगा जब मेरे ये पालतू कुत्ते तेरी आँखों के सामने इस लड़की को नोच खायेंगे आज तुझे पता चलेगा की गाजी का कहर जब टूटता है तो क्या होता है इसके लिए तूने हमसे दुश्मनी मोल ली आज देख तेरी बहन की इज्जत कैसे तार तार होती है ,लाओ रे लोंडिया को उसका हुकम होते ही कुछ लोग माधुरी को वही ली आये रो रोकर उसका बुरा हाल था

मैं- गाजी,तूने बहुत गलत किया है मैं अब भी कहता हु इनको जाने दे वर्ना तुझे आज अफ़सोस होगा जितने आंसू मेरी बहन की आँखों से गिरेंगे उतने ही टुकड़े तेरे करूँगा

वो- यार, फिल्मे बहुत देखता है य तो , जरा खातिर दारी तो करो मेहमान की और हां याद रखना अगर तूने हाथ उठाया तो इनकी जिन्दगी का क्या होगा फैसला कर ले

मैं उसकी चाल में बुरी तरह फंसा हुआ था मज़बूरी थी तो मार खाने लगा कोहनी छिल गयी होंठ कट गया नकसीर निकल आई पर पिटता रहा जब घुटने जवाब देने लग तो गाजी ने उनको रोक दिया मैं जमीं पर गिर गया

गाजी- अरे, तू तो अभी से गिर गया , खेल तो शुरू भी ना हुआ , खेला तो अब शुरू होगा जरा हम भी तो देखे की जिस लड़की के लिए हमारा जिगर का टुकड़ा मारा गया वो हुस्न कैसा है गाजी माधुरी की तरफ बढ़ने लगा

माधुरी जोरो से चीखने लगी पुकारे मुझ को , गाजी ने उसका दुपट्टा खीचा और सूट को फाड़ दिया मेरी आँखों से आंसू छलकने लगे माधुरी उसकी बाहों में तदप रही थी

गाजी- देखो रे भैया जी तो धरती चाट रहे है , पानी डालो रे इस पर कही बेहोश न हो जाये इसको होश में रखना है इसको दिखाना है की दर्द असल में होता क्या है

तुरंत ही उसके हुक्म की तामिल हुई और इसी के साथ उसने माधुरी की ब्रा को फाड़ दिया मेरी आँखों में सामने मेरी बहन अधनंगी खड़ी रो रही थी मेरा कलेजा चिर गया और उसी पल मैंने फैसला कर लिया मैं उठ खड़ा हुआ और पलक झपकते ही मेरे पास खड़े गुंडे की गन मेरे हाथ में थी इस से पहले की वहा लोगो को कुछ समझ आता लोगो की लाशे गिरने लगी चारो तारा फायरिंग की आवाज गूंजने लगी गाजी की आँखे फटी रह गयी और वो कुछ करता इस से पहले ही वो मैदान धुए से भर गया नीनू ने अपना काम कर दिया था

स्मोक बम का धुआ पूरी हवेली में घुल गया था इस से मुझे पूरा फायदा मिला मैं भगा गाजी की तरफ पर वो जैसे गायब ही हो गया था मैंने माधुरी को संभाला अपनी शर्ट से उसके बदन को ढका इधर नीनू ने मोर्चा संभाल लिया था फ़ोर्स के साथ और फायरिंग के बीच से बचते हुए मैं गाजी को ढूंढने लगा रस्ते में आते गुंडों को बिछाता हुआ मैं हवेली की उपरी मंजिल पर पहुच गया था यहाँ से मुझे पूरा नजारा दिख रहा था धुआ अब छांटने लगा था जबरदस्त फायरिंग चल रही थी गाजी ने भी जैसे गुंडों की फौज हो बना राखी थी पर आज बस यहाँ लाशो के ढेर लगने वाले थे

चारो तरफ धुंआ फैला हुआ था गोलियों का शोर था इन सब के बीच मैं यहाँ से वहाँ ऊपर के फ्लोर को छान रहा था पर गाज़ी पता नहीं कहाँ गायब ही हो गया था जमीं खा गयी या आसमान निगल गया आपा धापी में मैं नीचे आया नीनू ने बताया कि पिस्ता को रेस्क़ु कर लिया गया है पर आर्यन का कोई पता नहीं चल रहा है , ये हमारे लिए बहुत ही चिंताजनक था नीनू की हालत बहुत खस्ता हो गयी थी बुरी तरह थक सी गयी थी पर आँखों में फ़िक्र थी मैं उसे दिलासा दे रहा था कि तभी जैसे जमीं फट पड़ी
बम सा ही फुट पड़ा था हम लोग पीछे को फिंके गए आँखों के आगे अँधेरी छा गयी जैसे तैसे करके मैंने अपने होश काबू किये तो देखा नीनू मेरे पास ही बेहोश पड़ी थी मेरा जी घबराया दौड़ के उसके पास गया थपथपाया पर होश नहीं आया इधर एक के बाद एक धमाके हुए जा रहे थे हवेली के कई हिस्से मलबे के ढेर में तब्दील होते जा रहे थे इधर नीनू बेहोश पड़ी थी मैंने एक ऑफिसर को नीनू को सँभालने को कहा और स्तिथि का आकलन करने लगा अब अपने जवानों की सुरक्षा भी मेरी जिम्मेदारी थी

तो संभाला मोर्चा, आर्यन दिमाग में था और जब तक वो गाज़ी के पास था उसका पलड़ा तो मजबूत था ही पर अभी तक मुझे पता नहीं था कि वो क्या करने वाला है क्या चल रहा है उसके मन में और साला दिख भी तो नहीं रहा था कही पर , धीरे धीरे करके उसके गुंडों की संख्या कम होती जा रही थी तो सिचुएशन काबू में लग रही थी की तभी जैसे जलजला सा आ गया

बड़े ही हैरतंगेज़ ढंग से हवेली का आँगन जैसे दो टुकड़ों में बंट गया और उसकी जगह एक तालाब सा उभर आया आज से पहले ऐसा बस फिल्मो में ही देखा था गाज़ी के जलवे भी जबरदस्त थे पर अगले ही पल जो देखा रीढ़ की हड्डी में कंपन चालू हो गया पसीना बह चला कनपटियों से उस तालाब में ढेरों मगरमछ तैर रहे थे उनकी आवाजे जैसे कानो को ही फोड़ डालती

पर जिस चीज़ पर मेरी नजर नहीं गयी थी वो था वो खंबा जो तालाब के बीचों बीच था और आर्यन को उसी पर बांध दिया गया था और पल पल वो खंबा धीरे धीरे नीचे जमीं में धंस रहा था , मतलब साफ था कि एक समय वो पूरी तरह से धंस जाना था और आर्यन का काम तमाम कर देते मगरमच्छ ये बहुत बड़ी समस्या हो गयी थी आर्यन के मुह पर टेप चिपकी थी वो बेचारा तो चिल्ला भी नहीं सकता था खंबा पल पल नीचे हो रहा था पर आर्यन की जान इतनी भी सस्ती नहीं थी

पिस्ता मेरे पास आई हालात की गंभीरता को समझ रही थी उसने मेरा हाथ टाइट पकड़ा और बोली-कुछ करो
 

Incest

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मैं अब क्या कहता कुछ सूझ ही नहीं रहा था और तभी मैंने देखा की एक रस्सी उस खंबे के बुर्ज पर आकर अटैक गयी थी वो माधुरी थी उसने उस रस्सी को अपनी तरफ बाँधा मैं पल में ही उसकी योजना को समझ गया था वाह क्या दिमाग लड़ाया था उसने इस से पहले मैं कुछ करता पिस्ता तेजी से भागी दूसरी तरफ और उसने भी वैसा ही किया जैसा माधुरी ने किया था इस से खंबा धंसने से रोकने का थोड़ा समय मिल गया था अब इसी समय में आर्यन को बचाने के लिए कुछ करना था




गाज़ी ये देखकर बौरा गया और उन रस्सियों की तरफ भगा मैं भी लपका उसकी तरफ इधर माधुरी उस रस्सी पर लटक चुकी थी और आर्यन की तरफ बढ़ रही थी ये तो सरासर ख़ुदकुशी थी मैंने चिल्ला कर उसको मना किया तो पिस्ता बोली गाज़ी को पकड़ो मैं फिर से दौड़ा गाज़ी रस्सी को काटने की कोशिश कर रहा था मुझे देख कर वो रुक गया बोला- तू लाख कोशिश कर ले उसको नहीं बचा पायेगा खून का बदला खून ही होगा जब तेरा बच्चा तेरी आँखों के सामने दम तोड़ेगा तब तू जानेगा की पीड़ा क्या होती है

मैं- गाज़ी तेरे पोते ने गलती की , और उसका कातिल मैं नहीं तू खुद है काश तूने उसको अच्छा इंसान बनने की तालीम दी होती
गाज़ी- वो सब मुझे नही पता बस खून का बदला खून

मैं- आर्यन के लिए मौत से भी लड़ जाऊंगा

गाज़ी- तो आजा फिर अब हम में से एक की मौत ही उसकी जिंदगी का फैसला करेगी

मैं- आजा फिर देखते है

दो पागल सांड एक दूसरे के सामने आ डटे थे मुकाबला सीधा था या तो इस पर या उस पार मेरे लिए तो वैसे भी गाज़ी को उलझाये रखना बेहद जरुरी था ताकि माधुरी अपनी कोशिश कर सके , इधर उलझ गए थे हम दोनों और उसका एक हाथ पड़ते ही मैं जान गया था कि उस से पार पाना मुश्किल होगी वो एक दमदार पठान था मैंने अपना वार किया पर वो बचा गया और नीचे झुकते हुई मुझे उठा कर पटका ऐसा लगा की किसी छोटे ट्रक ने टक्कर मार दी हो हड्डिया तड़तड़ा गयी

एक पल को चक्कर सा आ गया इस से पहले मैं संभाल पता एक लात जो मारी उसने पसलियों में तो मैं घिसटता चला गया खांसी उठ गयी

उठ साले बोला वो

मैं उठा आँखों को साफ़ किया वो लपका मेरी तरफ पर इस बार मैं चौकन्ना था उसका ही दांव लगा मारा गाज़ी पास पड़े मलबे पर जा गिरा पर जल्दी ही खड़ा हो गया उसने पास पड़ी लकड़ी उठाई और मेरे पैरों पे दे मारी मैं गिरा मेरे गिरते ही वो चढ़ गया मुझ पर और मेरी गर्दन को अपने हाथों में जकड लिया उसकी लोहे जैसी उंगलियों ने अपना दवाब बढ़ाया मेरी सांसे रुकने लगी दम फूलने लगा जितना मैं छटपटाता उतना ही वो जोर लागए मैं पूरी कोशिश कर रहा था पर जोर चल नहीं रहा था

सांसे बगावत पर ही उत्तर आयी थी और मैंने अपनी सारी शक्ति को इकठ्ठा किया और गाज़ी को लिए लिए ही उठ गया और लड़खड़ाते हुए कदमो से जा टकराया दिवार पे गाज़ी की पकड़ खुल गयी, और मैंने मारी एक लात उसके घुटने पर वो बिलबिलाया और उसी पल मैंने उसके मुह पर मुक्का मारा पर वो भी कम नहीं था जोर आजमाइश चल रही थी और इसी में मैं रेलिंग से जा टकराया और बाहर जो मैंने देखा टेंशन और बढ़ गयी

मैंने देखा की माधुरी खम्बे तक पहुच गयी है और आर्यन को खोलने की कोशिश कर रही है किसी नागिन की तरह वो रस्सी से लिपटी हुई अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रही थी पर अगर एक चुक भी हुई तो आर्यन और वो दोनों को सिर्फ मौत मिलती अब कुछ बस ऊपर वाले के रहमो करम पर था , इधर मैं और गाजी अब लड़ते लड़ते रेलिंग पर आ गए थे मैं जल्दी से जल्दी गाजी को रस्ते से हटाना चाहता था पर वो एक बड़ी मुसीबत बना हुआ था और मैं चारो तरफ से उलझा हुआ था

दो पल के लिए ही मेरा ध्यान माधुरी पर गया और गाजी ने एक ईंट दे मारी सर पे , सर फूट गया खून रिसने लगा मैंने टटोल का देखा ज़ख्म गहरा नहीं था पर दर्द बहुत हो रहा था मैंने वो ही ईंट वापिस फेकी उसकी और पर वो वार बचा गया वो दोडा मेरी और मैं पीछे को सरका गाजी जैसे ही मेरी और लपका मैंने एक दम से उसके रस्ते से हट गया और गाजी रेलिंग से होते हुए निचे को गिरा उसके गिरते ही मैं भी भागते हुए निचे आया गाजी में अभी भी जान बाकी थी मैंने साथी पुलिस वालो को कहा की मर गया तो ठीक नहीं तो मार देना साले को नीनू होश में आ चुकी थी कुछ साथी लोग भी मदद कर रहे थे

सबकी सांसे रुकी हुई थी , निगाहे बस माधुरी की और ही लगी थी मैं आगे आया निचे सारे मगरमच्छ जैसे इंतजार ही कर रहे थे की कब कोई चूक हो और कब उनको नाश्ता मिले जैसे ही माधुरी ने आर्यन को वहां से हटाया मैंने चिल्ला के उसको बताया की बुर्ज की रस्सी को खोल दे मैं जानता था की दो का बोझ माधुरी नहीं उठा पायेगी पर रस्से खुलते ही वो प्रेशर से उस तालाब की हद से दूर हो जाएगी हलाकि मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं था की मेरा आईडिया काम करेगा ही पर ये रिस्क तो लेना ही था क्योंकि माधुरी दोनों का बोझ नहीं संभाल पाती

और तभी मुझे एक आईडिया आया मैंने सभी से कहा की गाजी के गुंडों की लाशो को इकठ्ठा करो और तालाब के दूसरी और ले चलो दरअसल मैं मगर्मछो का ध्यान उस और करना चाहता था और किस्मत से ऐसा ही हुआ अब भोजन को कैसे छोड़ते वो तो वो लोग एक के बाद एक लाशे अन्दर फेकने लगे हमारी वाला हिस्सा खाली हुआ और जैसे ही रस्सी खुली माधुरी और आर्यन गिरने लगे पर उम्मीद जितना प्रेशर नहीं बना वो लोग पानी में ही गिरे पर इतना काफी था मैं अन्दर घुसा और उनको सही सलामत खीच लाया

कुछ देर उधर ही पड़ा रहा फिर उन दोनों को बाँहों में भर लिया अब जाके करार आया मेरे मन को सब लोग राजी ख़ुशी थे गाजी का चैप्टर हुआ क्लोज फिर मैंने रिपोर्ट ली हमारे भी कुछ साथी घायल हुए थे पर गनीमत थी की किसी पुलिसवाले की जान नहीं गयी थी घायलों के लिए अम्बुलेंस मंगवा ली गयी थी बची खुची लाशो को इकठा किया गया नीनू कभी आर्यन को गले लगाये कभी मुझे सारी कार्यवाही करते करते रात हो गयी थी उसके बाद मैं हॉस्पिटल गया अपने घायल साथियो का हाल चल पुछा अपनी मरहम पट्टी करवाई घाव गहरा नहीं था तो टाँके लगवाने की नोबत नहीं आई

पता नहीं कितने बजे थे जब मैं नीनू के बंगले पे आया पर अब भी सब लोग जाग ही रहे थे थका हारा मैं सोफे पर पड़ गया पिस्ता मेरे लिए चाय ले आई आर्यन के बारे में पुछा तो नीनू ने बताया की वो सो रहा है अभी भी सदमे में है सब लोग मेरे आस पास ही बैठ गए थे कुछ सवाल मेरे मन में थे कुछ उन लोगो के कुछ पलो के लिए शांति रही फिर पिस्ता बोली- ये सब क्या चक्कर है कभी दिलवाला कभी पुलिसवाला ये क्या खेल खेल रहे हो तुम हमारे साथ

मैं- कोई खेल नहीं है , सच यही है की मैं पुलिसवाला हु और गाजी को ख़तम करने के लिए ही इस शहर में पोस्टिंग मिली थी

नीनू- पर तुम कब आये पुलिस में

मैं- लम्बी कहानी है , तुम्हे ये तो बता ही दिया था की अवंतिका ने मुझे बचाया था उसने मेरे रहने का भी इंतजाम किया था पर उसके पति को शक हो गया था की वो कुछ तो गड़बड़ कर रही है तो एक दिन दिन मैं गयाब हो गया और आ गया इलाहाबाद सबसे पहले शरीर को ठीक करना था उसके बाद मैंने बड़ी मेहनत की अपने शरीर में जान लाने की पढाई का एक ही साल बचा था तो फिर प्रायवेट से ग्रेजुएशन कर ली याद है

नीनू, तुम हमेशा कहती थी की पुलिस की नोकरी करोगे तो मैं भी कहता था की मैं भी पुलिस बनूँगा बस मैंने भी कोशिश की और शायद उस ऊपर वाले का भी यही मन था फर्स्ट चांस में ही काम बन गया
बस इतनी सी ही बात है , अब जीने के लिए कुछ तो करना था तो ये काम ही कर लिया पर अब तुम मुझे बताओ की आर्यन का क्या रोल है

नीनू- आर्यन तुम्हारा और रति का बेटा है क्या तुमने उसकी आँखों को देखा बिल्क्कुल रति जैसी ही तो है

मैं-हाँ उसे देखते ही मुझे भी कुछ ऐसा ही लगा था पर रति कहा है और वो आर्यन के साथ क्यों नहीं है

वो- रति अब इस दुनिया में नहीं है

मरे ऊपर एक बिजली सी गिरी , रति इस दुनिया में नहीं है क्या हुआ उसको क्या अनहोनी हुई

नीनू- अब ऐसे मत देखो मर गयी वो और उसकी मौत के ज़िम्मेदार तुम हो तुम्हारी ये हवस है बर्बाद कर दी तुमने उसकी जिंदगी नीनू गुस्से से बोली

मै चुप रहा सब लोगो का ध्यान बस हमारी बातो पर ही था

नीनू- काश उसकी जिंदगी में तुम ना आते, जानते हो उसके साथ क्या हुआ तुम्हारे आने के बाद , तुमने उसकी जिंदगी में फूल नहीं बल्कि जलते हुए अंगार पिरो दिए थे जो पल तुम दोनों ने साथ बिताये थे वो ही उसकी खता बन गए थे तुम्हारे आने के बाद रति ने जिंदगी को जीने की सोची थोड़े दिन बाद वो अपने पति के पास चली गयी उस टाइम वो गर्भवती थी उसके पेट में तुम्हारा अंश पल रहा था

उसको उल्टइया लागि थी ख़राब तबियत देख कर उसके पति ने डॉक्टर बुलाया तो पता चला की रति माँ बनने वाली है पर उसके पति ने तो उसको कभी उस नजर से देखा ही नहीं था तो रति कैसे प्रेग्नेंग हो सकती थी उसने उसी समय रति का साथ छोड़ दिया वो बेचारी वापस लौट आई घुटती रही अपने आप में वो चाहती तो बच्चे को गिरा सकती थी पर कही न कही वो भी तुम्हे चाह ने लगी थी तो उसने तुमाहरे अंश क जन्म देने का सोचा

पर उसकी तबियत बस बिगडती रही मैं अक्सर उस से फ़ोन पर बात करती रहती थी पर उसने कभी मुझे कुछ नहीं बताया और फिर एक दिन उसका फ़ोन आया उसने मुझे तुरंत जोधपुर आने को कहा था वो घबराई सी थी अगले ही रोज मैं निकल पड़ी जोधपुर के लिए और तभ मुझे पता चला की तुमने क्या पाप कर डाला है मैं थोड़े दिन उसके पास ही रही ये प्रायश्चित तो नहीं था पर शायद वो भी मेरी कुछ लगती थी और फिर वो दिन आया मैं उसके साथ हॉस्पिटल में गयी

रति को बेटा हुआ था पर कुछ ही घंटो बाद रति की तबियत हद से ज्यादा बिगड़ गयी और वो इस दुनिया को छोड़ गयी और मुझे सौंप गयी तुम्हारी इस अमानत को इस वादे के साथ की इसको मैं माँ- बाप का प्यार दूंगी , वो चली गयी थी पर अपने साथ मेरी आत्मा का एक हिस्सा भी ले गयी थी

नीनू-जानते हो कितने मुस्किल पल थे मेरे लिए पर साथ ही मुझे यकीन था की एक दिन तुम जरुर आओगे और फिर मैंने अपने गोदी में कैद इस नन्ही जान को देखा जो तुम्हारी और रति की छाया था तो कैसे न संभालती इसको अपने घर वालो से लड़ कर दुनिया से लड़ कर पला मैंने इसको

ये क्या हो गया था यार , रति मर गयी थी मैंने बस अपने हाथ जोड़ लिए नीनू के आगे और आर्यन के पास आया उसके माथे पर हाथफेरा दिल को सुकून मिला उसके हाथ को अपने हाथ में लिया तो ऐसा लगा की जैसे रति ने छु लिया हो मुझको बरसो बाद उस जाने पहचाने अहसास को महसूस किया था मैं वो अपना जो थोडा सा हिस्सा मैं जोधपुर में छोड़ आया था आज आर्यन के रूप में वापिस मिल गया था मुझ को आँखों से पानी की बूंदे गिरने लगी थी जिन्हें जानबूझ कर मैंने रोका नहीं शायद इसी बहाने से थोडा जी हल्का हो जाना था कुछ देर उधर ही बैठने के बाद मैं बाहर आ गया

कुछ देर अकेले रहना ठीक रहता पर नीनू मेरे पास आ गयी हम दोनों लॉन में लगे झूले पर बैठ गए उसने मुझे चाय का कप पकडाया और बोली- तो जैसा की अब सब बाते खुल गयी है क्या सोचा तुमने

मैं- क्या सोचना है

वो- जो ये सब बिखरा पड़ा है इसे कैसे समेटना है

मैं- क्या लगता है ये सिमट जायेगा

वो- कोशिश तो करनी होगी न

मैं- तुम सब जानती हो कैसे करू कोशिश ये तुम ही बतादो

वो- तुम आखिर कब समझोगे

मैं- पता नहीं

वो- ये बहाने नहीं बना सकते तुम , तुम्हारे पीछे कितनी जिन्दगिया उलझी पड़ी है सुलझाते क्यों नहीं ये उलझाने

मैं- देखो मैं बहुत थक गया हु सहारा चाहिए मुझे , अपना परिवार चाहिए बहुत रह लिया अकेला अब अपनों का साथ चाहिये

वो- मैं भी तो इतनी देर से यही कह रही हु

मैं- पर इसमें मुश्किल है

वो- पिस्ता की बात कर रहे हो

मैं- हाँ

वो- अब तुमने इतना रायता फैलाया है तो साफ करना ही होगा , वो भी हमारे परिवार का ही हिस्सा है तो हमारे साथ ही रहेगी और क्या

मैं- नीनू मैं झूठ नहीं बोलूँगा मैंने मोहब्बत बस तुमसे की पर वो भी मेरा हिस्सा है उसने अपनी ग्रहस्थी छोड़ दी मेरे लिए

वो- और मेरा क्या कभी सोचा तुमने

मैं- तुम्हारा गुनेह्गार हु अं जो सजा दो मंजूर है मुझे

वो- शादी करोगे मुझसे

मैं- हां

वो- ये अहसान है तुमपे, वैसे देखा जाये तो हम सब की तक़दीर अपसा में ही जुडी है वैसे भी बहुत भाग लिए सब अब ठहर जाते है कम से कम् कुछ पल तो मिले सुकून के

मैं- हां

वो- मैं पिस्ता को बुलाती हु

कुछ देर बाद वो आ गए माधुरी भी उनके साथ ही थी तो मैंने अपने मन की बात उन को बताई तो पिस्ता बोली- मुझे लगता है की तुम नीनू से शादी करो और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो

मैं- पागल हुई है क्या देख बात खाली पति-पत्नी के रिश्ते की नहीं है हम सब एक परिवार ही तो है और फिर तुम सब लोगो के सिवा मेरा है ही कौन दुःख तो बहुत झेल लिया अब कुछ लम्हे सुख के भी जी लेते है बोलो क्या कहते हो

पिस्ता- ठीक है जब तुम ने निर्णय ले ही लिया है तो फिर ये ही सही

माधुरी- और मेरा क्या

मैं- तुम अपने घर जाओगी सुबह होते ही

वो- तो आपने मुझे पराया कर दिया

मैं- पागल हुई है क्या पर कोई भाई अपनी बहन को पराया कर सकता है क्या पर तुम्हारी मंजिल अपने परिवार में ही है

वो- तो क्या मैं इस परिवार का हिस्सा नहीं

मैं- ऐसा किसने कहा

वो- फिर जाने को क्यों कहते हो

मैं- अब क्या कहू तुझे

वो- मुझे नहीं पता कुछ भी मैं भी आप लोगो के साथ ही रहूंगी

मैं- तेरी मर्ज़ी

तो दोस्तों, वो रात बस ऐसे ही बाते करते करते गुजर गयी एक छोटा सा परिवार फिर स जुड़ गया था मेरा जिसमे सब एक से बढ़कर एक थे मैं एक आवारा , एक हद से ज्यादा बढ़कर साथ देने वाली दोस्त पिस्ता, एक फूल सा बेटा आर्यन, एक अनकही मोहबत नेनू और एक प्यारी सी बहन माधुरी जीने के लिए और क्या चाहिए था पर अभी कुछ सवाल और रह गए थी जिनके जवाबो की तलाश थी दिल पर एक बोझ पड़ा था उसको भी हटाना था


अगला पूरा दिन कुछ कार्यवाहियों में बीता था नीनू पूजा को रिमांड पे लेना चाहती थी पर मैंने मना किया और उसको इस मामले से आउट करने को कहा हालाँकि नेनू का पूरा मूड था पूजा की बैंड बजाने का पर जाने दिया उसके बाद कुछ अधिकारियो से मिला कुछ मीटिंग सी थी फिर मीडिया वाले भी थे तो शाम तक हाल बुरा हो गया था रात को खाने की टेबल पर सब बैठे थे तो मैंने कहा की गाँव जाने का विचार है अबमुझे लगता है की टाइम आ गया है घर जाने का



नीनू- ऐसे ही प्लान बना लिया कम से कम बता तो देते ताकि हम लोग भी अपनी तैयारिया कर लेते



मैं- तुम्हारी वहा पोस्टिंग का जुगाड़ करवा दिया है थोडा टाइम लगेगा पर काम हो जायेगा



वो- हम्म



मैं- पर तब तक तुम्हे यही रहना होगा और आर्यन भी तुम्हारे साथ रहेगा उसकी सेफ्टी बहुत जरुरी है और माधुरी तुम अपने एग्जाम तक नीनू केसाथ ही रहोगी आर्यन का ख्याल रखना तुम्हारे पेपर होने में ज्यादा समय नहीं है तब तक नीनू की पोस्टिंग भी हो जायगी फिर तुम गाँव आ जाना फ़िलहाल मैं और पिस्ता जा रहे है



पिस्ता- देखो नेनू की बात सही है हमे अपनी पूरी तयारी से जाना चाहिए क्योंकि अब वहा क्या हालात है इसका हमे बस अंदाजा है एक समय था जब वहा पर अपना था सब कुछ पर अब वहां कुछ नहीं



मैं- अपना जो रह गया था वो ही लेने तो जा रहे है



नीनू- क्या तुमने तबादला करवा लिया है वहां



मैं- नहीं छुट्टी ली है



वो- तो कब जाने का सोचा है



मैं- जब तुम परमिशन दोगी



नीनू की हंसी छुट गयी पर मै जानता था की अन्दर ही अन्दर वो थोडा घबरा गयी है पर यही तो जिन्दगी थी कुछ पुराने हिसाब थे जो चुकाने का वक़्त हो चला था तो ये तय हुआ की दो दिन बाद मैं और पिस्ता गाँव के लिए निकल जायेगे मैं अपने कमरे में गया तो देखा की नीनू पहले से ही वहा थी



मैं- सोयी नहीं अभी तक



वो-नींद नहीं आ रही



मैं- कोई ना, बैठो इधर ही



वो- जब मैं तुमसे दूर थी तो तुमने मुझे याद किया



मैं- क्या तुम्हे कभी हिचकिया नहीं आई



वो मुस्कुरा कर रह गयी ,



मैं- नीनू वो हालात ही कुछ ऐसे थे तुम ही बताओ क्या करता मैं , जानती हो रोज जीता था रोज मरता था पर दिल में एक आस थी की कभी न कभी किसी ना किसी मोड़ पर तुम जरुर मिलोगी, तुम कहती हो की कभी याद आई एक मिनट रुको



मैंने अपना पुराना संदूक खोला और उसमे से वो खातो का ढेर निकाला जो बस नीनू के लिए लिखे थे वो बात और थी की पोस्ट करने के लिए पता नहीं था



मैं- पढो इनको जान जाओगी



नीनू की आँखों से आंसू निकल आये और वो बिना कुछ बोले मेरे सीने से लग गयी मैंने भर लिया उसको अपनी बाँहों में

दो दिन बाद हम निकल पड़े उस रस्ते पर जो मेरे घर जाता था ये घर भी पता नहीं क्या चीज़ होता है पूरी दुनिया घूम आओ पर सुकून घर आके ही प्राप्त होता है सफ़र लम्बा था कुछ बातो से काट लिया कुछ सो कर गुजार लिया जब गाँव की देहलीज पर पहुंचे तो अँधेरा हो चूका था कुछ घरो में बल्ब जल रहे थे मैंने गाँव की मिटटी को चूमा एक जानी पहचानी महक मेरी सांसो में घुलती चली गयी टेढ़ी मेढ़ी गलियों को पार करते हम आगे बढ़ रहे थे समय के साथ गाँव भी बदल गया था



कुछ कच्चे मकान हुआ करते थे उनकी जगह अब कोठिया खड़ी थी , जैसे जैसे कदम आगे बढ़ रहे थे यहाँ बिताया हर पल याद आ रहा था इन गलियों में कितनी होली-दिवाली की यादे थी एक उमर ही तो जी थी मैंने यहाँ , दिल थोडा सा नरम सा हो गया था रस्ते में मंजू का घर आया किवाड़ बंद थे एक नजर के बाद मैं आगे बढ़ गया बस अब थोडा सा आगे चलके एक मोड़ ही तो मुड़ना था और फिर मेरा घर आ जाना था मैं तेजी से चलने लगा सच कहू तो दोड़ने ही लगा था



पिस्ता थोड़ी पीछे रह गयी थी और फिर मेरा घर मेरी आँखों के सामने था उस अँधेरे में वो किस खंडहर जैसा लग रहा था और लगे भी क्यों न वक़्त ने जैसे उसे भुला सा ही दिया था अब तो जाने का रास्ता भी नहीं बचा था चारो तरफ झाड-झंखाड़ खड़ा था घास थी ऊँची ऊँची और होती भी क्यों न बरसो से किसी ने इसकी सुध भी नहीं ली थी एक ज़माने में ये भी आबाद था हसी गूंजा करती थी मेरे घरवालो की यहाँ पर



पिस्ता- एक काम करते है मेरे घर चलते है सुबह आते है



मैं- वो घर भी तो बंद पड़ा है तो इधर ही देखते है



वो भी समझ रही थी मेरे जजबातों को जैसे तैसे करके हमने थोडा सा रास्ता बनाया और पहुच गए मुख्य दरवाजे तक दरवाजा जगह जगह से जंग खा गया था एक ताला लटका हुआ था मेरी नजर उस चबूतरे पर पड़ी जहा बैठ के मैं कपडे धोया करता था पिस्ता कही से एक बड़ा सा पत्थर उठा लायी थी हमने ताला तोडा और अन्दर आ गए सीलन सी भरी थी हर जगह पर हालात खस्ता थी पुरे घर की पिस्ता ने मोमबत्तिया जला ली थी बिजली थी नहीं किसी के न रहने से मीटर हटा लिया होगा बिजली वालो ने अन्दर हर कमरे पर ताला लगा था मैंने एक कमरे का ताला तोडा



ये मेरे मम्मी पापा का कमरा था अन्दर के सामान को इस तरह से पैक किया गया था की उसको कोई नुकसान नहीं पहुचे पर फिर भी धुल मिटटी तो थी ही
 
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