अपने आप से उलझे हूँए मैं घर के छोटे मोटे कामो में व्यस्त था की माधुरी घर आई और चुपचाप अपने कमरे में जाने लगी मैं उसके पीछे गया शक्ल से बहूँत उदास लग रही थी जैसे की बरसो से बीमार हो
मैं-माधुरी क्या हूँआ परेशां हो
वो चुप रही
मैं-क्या हूँआ उन लोगो ने फिर कुछ कहा क्या
माधुरी चुपचाप मेरे सीने से लग गयी और फुट फुट के रोने लगी किसी अनिष्ट की आशंका से मेरा दिल धड़कने लगा ज़ोरो से
मैंने उसके आंसू पोंछे और उस से फिर पूछा
वो- आज कॉलेज में उन लोगो ने मुझे कहा की मान जा वर्ना उठा ले जायेंगे और फिर
मैं-फिर क्या
वो- फिर उसने मुझे जकड़ लिया और मेरे बदन को झिंझोड़ दिया , सबके सामने मेरी चुन्नी उतार दी
वो रोते हूँए मुझे सब बताती चली गयी उसकी आँखों से टपकते आंसू मेरे कलेजे को चीरते जा रहे थे मैंने देखा वो अब तक बिना दुप्पटे के थी
मुझे ऐसा लगा की जैसे किसी ने बीच राह मुझे नंगा कर दिया हो एक आग दिल में सुलगने लगी जी में आ रहा था की क्या कर जाऊ
पर ये सारी कमी तो मेरी थी मैंने उसे वादा दिया की मेरे रहते कोई उसको परेशान नहीं करेगा पर मैं फेल हो गया था मैंने उसको कहा अभी के अभी चल मेरे साथ
मैं देखना चाहता था की ऐसा कौन माई का लाल हो गया जो सरे आम एक लड़की की चुन्नी उतार दे मेरी आँखों में खून उत्तर आया था
मैं बस माधुरी के साथ घर से निकल ही रहा था की तभी सेठ का फोन आ गया अभी बुलाया था होटल पे और मैं चाह कर भी उसको मना नही कर पाया
मैंने माधुरी के सर पे हाथ रखा और बोला- मेरी बहन बस आज की माफ़ी दे दे तेरे हर आंसू का कतरा क़र्ज़ है मुझ पे आज तू रोई है
तेरे सर की कसम कल अगर तुझे रुलाने वालो की ज़िन्दगी को शमशान ना बना दिया तो तेरा ये भाई तुझे अपना चेहरा नहीं दिखायेगा
जितना तू आज रोई है उतना ही तू कल हँसेगी मेरी बहन बस आज की माफ़ी दे दे
ये बोलकर मैं होटल के लिए चला गया काम बहूँत था देर रात तक उधर ही रुकना पड़ा पर दिमाग में बस माधुरी घूम रही थी एक जवालामुखी जैसे फटने को तैयार था
इस ज़िंदगी में फिर से खुद को इतना बेब्स पा रहा था मैं माधुरी का आंसुओ से भरा चेहरा बार बार मेरी आँखों के सामने आ रहा था
कभी कभी ज़िंदगी ऐसे इम्तिहान लेती थी की क्या कहा जाए पर ये भी शुक्र था की उन लोगो ने माधुरी के साथ ...
ये सोच कर ही दिल डर सा गया पहली बार मेरे हाथ काम्पने लगे थे डर क्या होता है आज महसूस कर रहा था रात एक बार फिर से बेचैनी में कटने वाली थी
कभी कभी मैं अपने बारे में सोचता था की हालात के थपेड़ो को सहते हूँए मैं कहाँ से कहाँ पहूँच गया था वो गाँव की गलियाँ, वो सावन के झूले एक बेफिक्री सी रहती थी
वो खेतो में लहलहाती फसले जिसे चूमकर हवा जब चलती थी वो बरसात जो तन मन को भिगो दिया करती थी गाँव में जब मेला लगता था तो खूब चीज़ खाना मस्ती करना दोस्तों के साथ दूर निकल जाना
गर्मी की दोपहरों में बेर खाने जाना कभी कच्चे आम चुराना कभी खरबूजे तरबूज की बाड़ी में घुस जाना नंगे पाँव दौड़ लगाना घरवालो से छुप के नहर में नहाने जाना फिर मार भी पड़ती थी
वो मिर्च की चटनी मक्खन लगी रोटियों के साथ आज भी वो स्वाद मुह में घुल सा जाता है पता नहीं आज घर की बहूँत याद आ रही थी
ये घर भी अजीब होता है हम जैसे अकेले लोगो से पुछो की घर क्या होता है कई बार रात को नींद खुल जाती है लगता है माँ ने सर पे हाथ फेरा हो पिताजी की शर्ट से दस बीस रूपये चुरा लेना
कभी कभी वो नहाते तो मैं उनकी मालिश करता फिर उनके खटारा स्कूटर को चलाने की मिन्नतें टाइम बदल गया था अब कुछ नहीं था हाथ खाली थे आज मेरे
सब कुछ कांच की तरह टूट कर बिखर गया था वक़्त ने ऐसा सितम किया था की बस दर्द ही दर्द रह गया था कभी कभी इतनी घुटन होती थी की काश माँ होती तो उसकी गोद में सर
रख देता हर मुश्किल आसान होती बाप होता तो उसके सीने लग के रो सकता था लोग अक्सर कहते की जेब में पैसा होना चाहिए दुनिया कर सुख कदम चूमता है
मैं कहता हूँ ये सारी दौलत ले लो ये सोना चांदी ये रुपया पैसा सब बेमानी है कोई उस बाप की उंगली पकड़ा दे जिसे पकड़ के चलना सीखा था ये पैसा
कहाँ मुझे मेरी माँ का आँचल वापिस दे सकता था इस बाजार में तो हर चीज़ मिलती है तो बताओ कितना खर्च करू कौन सी दुकान है जहाँ
मैं वो ममता की छाँव खरीद सकु एक छोटा सा घर था चन्द खुशिया थी और क्या चाहिए था ज़िन्दगी में पर मैंने अपने ही हाथो से सब खो दिया था
घर की बहूँत याद आती है दिन तो साला कट जाया करता है पर ये रात ये भी मेरी तरह अधूरी है तनहा है सीने में जलन सी होने लगी थी
जब दर्द हद से ज्यादा हो गया तो बोतल खोल ली बस अब इसका ही सहारा था कुछ ही घूंट में आधी बोतल से ज्यादा गटक चुका था
आज दर्द कुछ ज्यादा था तो नशा भी ज्यादा चाहिए था एक के बाद एक बोतल खुलती गयी कदम डगमगाने लगे तो मैं सड़क पर निकल आया बरसात हो रही थी
ऐसा लगता था की मेरे दर्द से आसमान भी रो पड़ा था ये शहर अपना होकर भी बेगाना था आज किसी अपने से मिलने की जरूरत हो रही थी
पर अब तो आदत सी होने लगी थी इस तन्हाई की इस अकेलेपन की वैसे ज़िंदा तो तो बस नाम का ही था मैं बाकि बचा कुछ नही था
अपने आप से झूझते हूँए न जाने किन सड़को पर निकल आया था मैं बस चले जा रहा था अपने आप से बाते करता हूँआ कभी खुद को कोसता कभी अपने नसीब को आवारा कुत्तो सी ज़िन्दगी हो गयी थी अपनी
दिलवाले तो बस हम नाम के थे बाकि कुछ आनी जानी नहीं थी उस बोतल में अभी कुछ कतरे बाकी थे पर अब पीने की चाह नहीं थी
फेक मारा उस बोतल को रोड पर रोने लगा मैं जोर जोर से पर उस बरसात के शोर में मेरे दर्द का क्या मोल था और फिर हम जैसे लोगो के आंसुओ की कीमत भी तो क्या होती है
चलो माना की लाख आवारा थे , नाकारा थे पर सीने में कहीं एक मासूम सा दिल हमारे भी धड़कता था कभी तो हमारा भी मुस्कुराने का जी करता था
बेगानो में अपनों को ढूंढते ढूंढते अब थकने लगा था और ये दर्द साला इस दुनिया में इतने लोग है पर इसको बस मैं ही मिलता हूँ
ऐसा कौन सा पाप कर दिया था की उस के दरबार में अपनी कोई दुआ कभी कबूल ही नहीं होती थी क्यों ज़माने भर का दुःख था मुझे ही
साला सबके चेहरे पे मुस्कान लाते लाते हमारी मुस्कान खो गयी थी जोर जोर से चीखने लगा था मैं पर साला इतने बड़े सहर में कोई नहीं था
जो इस दर्द को बाँट लेता कहाँ जाऊं कोई ऐसा दर नहीं जहा सकूँ मिल सके इस दिलवाले को पता नहीं कितनी दूर निकल आया था चलते चलते
उस मोड़ पे ठोकर सी लगी कदम तो वैसे ही डगमगा रहे थे और होश था ही कहाँ हमे ठोकर से सम्भल भी ना पाये थे की सड़क
से आती उस गाडी से टकरा गए और फिर गिर पड़े चोट लगी या नहीं किसे परवाह थी गाड़ी का दरवाजा खुला और ड्राईवर ने उत्तर कर उठाया मुझे
पैर थे की साले साथ ही नहीं दे रहे थे और हम तो वैसे ही गिरे हूँए थे
कौन है रामदीन कौन आ गया गाडी के आगे गाड़ी में से कहा किसी ने
ड्राईवर-कोई नहीं मैडम एक शराबी है
उसने मुझे साइड किया दो चार बाते कही और फिर गाडी स्टार्ट करने लगा उस दो पल की रौशनी में पीछे बैठे चेहरे पर नजर पड़ी तो
जेसे सारा नशा फुर्ररर करके उड़ गया हे उपरवाले समझ नहीं आती तेरी लीला कभी कभी क्या ये सच था या फिर बस नशे में वहम मेरा
और वैसे भी अपनी तक़दीर यु हम पे मेहरबान हो जाये ऐसा होना मुमकिन नहीं था पर दिल की धड़कनो मे एक रवानी सी दौड़ गयी थी
चलो मान लिया हम तो झूठ बोलते है पर दिल तो सच्चा था हमारा ये बात और थी बरसो से धड़कनो का कहना माना नही था हमने
सुबह जब आँख खुली तो खुद को फुटपाथ के किनारे पे पड़ा पाया आँखों में रात का सुरूर अभी बाकी था पास की दूकान पे एक चाय पि और फिर ऑटो पकड़ के घर आया
तैयार हो चूका था पिस्ता मंदिर गयी हूँई थी पूजा का नास्ता थोडा लेट हो गया था तो उसकी कई कड़वी बाते सुननी पड़ी कभी कभी मैं सोचता था
की जिस दिन इसको मेरी असलियत पता चलेगी उस दिन क्या बीतेगी इस पर पूजा अपने कमरे में थी मैं भी जा रहा था की कृष्णा जी ने मना किया
माधुरी के कॉलेज का टाइम हो रहा था पर आज वो तैयार ना हूँई थी मैं उसके पास गया
मैं-आज मेरी बहना तैयार नहीं हूँई
वो- मैं कॉलेज नहीं जाउंगी मैंने सोचा है की पढाई छोड़ दूंगी
मैं-ऐसा नहीं बोलते पगली, क्या भरोसा नहीं अपने भाई पे
वो-मुझे डर लगता है
मैं- मेरी बहन तू शेरनी है फिर कुछ गीदड़ो से डर गयी
चल तैयार हो जा वर्ना लोगो को पता चलेगा की दिलवाले की बहन कुछ मामूली गुंडों से डर गयी तो शहर में तेरे भाई का क्या रुतबा रहेगा
वो-पर वो मामूली नहीं है उनकी चलती है पुरे शहर में
मैं- पर तू किसी कायर की बहन नहीं और अगर मैं तेरी रक्षा नहीं कर पाया तो धिक्कार है मुझ पे बस तू चल रही है कॉलेज तैयार हो जा मैं इंतज़ार कर रहा हूँ
पूजा थोड़ा टाइम पहले निकल गयी थी उसके पीछे पीछे मैं और माधुरी भी निकल गए
जैसे जैसे कॉलेज करीब आता जा रहा था माधुरी का चेहरा सफ़ेद होता जा रहा था डर हावी होते जा रहा था उसके हाथ पाँव जैसे काम्पने लगे थे
पर उसे उस ज्वालामुखी का आभास नही था जो एक भाई के कलेजे में सुलग रहा था कॉलेज के मेन गेट पे मैंने गाडी रोकी और हम उतरे
मैंने माधुरी का हाथ टाइट पकड़ा और कहा घबराना मत तुम आगे आगे चलो मैं तुम्हारे पीछे ही हु वो आगे बढ़ने लगी दो कॉरिडोर पार करके
वो अपनी क्लास की तरफ जा रही थी की ब्लाक के सामने 4-5लड़को ने उसे रोक लिया माधुरी थर थर कांपने लगी उनमे से एक बोला
अरे भाभी आ गयी जल्दी भाई को फोन कर लगता है आज भाई का मामला सेट होगा हह हा हां
माधुरी उनसे बचने के लिए कभी दाए हो कभी बाए पर वो लोग उसे रास्ता ही ना दे अब मैं आगे बढ़ा
मैं-ओये,क्यों तंग कर रहा है इसको
वो-चिरकुट तेरे को ज्यादा चर्बी चढ़ी है क्या जानता नहीं हम किसके आदमी है भाई की सेटिंग है ये भाई आते ही होंगे
मैं-भाई तो आएगा जब आएगा लड़की का रास्ता छोड़ वर्ना फिर तेरे लिए कोई रास्ता नहीं बचेगा
माहौल गर्म होने लगा था स्टूडेंट्स इकठ्ठा होने लगे थे वो लड़का मेरी तरफ बढ़ा और बोला- ज्यादा हीरो मत बन तू जानता नहीं हम कौन है क्यों इसके चक्कर में जान गंवाता है
मैं- तू नहीं जानता मैं कौन हु और बेहतरी है की तू ना जाने ये यहाँ पढ़ने आती है और मैं चाहता हु की ये अपनी पढाई आराम से करे
वो-और ना करे तो
मैं-ना का तो सवाल ही नहीं
तभी एक दूसरा लड़का हॉकी लेके मेरी तरफ बढ़ा और बोला-तू बहुत बोल रहा है क्या लगती है तेरी ये जो इसके पीछे मरने चला आया
मैं-बहन लगती है मेरी दिक्कत है
वो हँसने लगे फिर उनमे से एक बोला - अच्छा तो भाई खुद बहन को जीजाजी के पास छोड़ने आया है कल इसकी चुन्नी उतरी थी और आज इसकी सलवार यही उतरेगी और तू भी देखेगा
मेरी आँखे तपने लगी थी क्रोध से कुछ और साथी आ गए थे उनके पर आज इनको सबक सिखाना जरुरी था
मैं- तू उतरेगा इसकी सलवार, तू
मैं उसकी तरफ बढ़ने लगा माधुरी को मैंने साइड होने को कहा पर एक लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया और मेरा सब्र टूट गया
अगले ही पल जिस हाथ ने माधुरी को पकड़ा हुआ था वो जमीं पर कटा हुआ पड़ा था पल भर में ही चारो तरफ चीख पुकार मच गयी
मेरे हाथ में गंडासा था उन सालो को गाजर मूली की तरह काटने लगा मैं कुछ भागे पर आज किसी को नहीं भागना था आज तो तांडव देखना था मुझे अगले दस मिनट में
15-20 जमीं पर कटे पिटे पड़े थे बरसात होने लगी थी पर आज यहाँ खून की बरसात होनी थी जिसने सलवार उतरने की बात की थी
मैं उसको घसीट के लाया और बोला- उतार के दिखा सलवार
वो चीखते हुए बोला-तू नहीं जानता तूने क्या किया है आने दे भाई को फिर देखना
मैं-माधुरी क्या हूँआ परेशां हो
वो चुप रही
मैं-क्या हूँआ उन लोगो ने फिर कुछ कहा क्या
माधुरी चुपचाप मेरे सीने से लग गयी और फुट फुट के रोने लगी किसी अनिष्ट की आशंका से मेरा दिल धड़कने लगा ज़ोरो से
मैंने उसके आंसू पोंछे और उस से फिर पूछा
वो- आज कॉलेज में उन लोगो ने मुझे कहा की मान जा वर्ना उठा ले जायेंगे और फिर
मैं-फिर क्या
वो- फिर उसने मुझे जकड़ लिया और मेरे बदन को झिंझोड़ दिया , सबके सामने मेरी चुन्नी उतार दी
वो रोते हूँए मुझे सब बताती चली गयी उसकी आँखों से टपकते आंसू मेरे कलेजे को चीरते जा रहे थे मैंने देखा वो अब तक बिना दुप्पटे के थी
मुझे ऐसा लगा की जैसे किसी ने बीच राह मुझे नंगा कर दिया हो एक आग दिल में सुलगने लगी जी में आ रहा था की क्या कर जाऊ
पर ये सारी कमी तो मेरी थी मैंने उसे वादा दिया की मेरे रहते कोई उसको परेशान नहीं करेगा पर मैं फेल हो गया था मैंने उसको कहा अभी के अभी चल मेरे साथ
मैं देखना चाहता था की ऐसा कौन माई का लाल हो गया जो सरे आम एक लड़की की चुन्नी उतार दे मेरी आँखों में खून उत्तर आया था
मैं बस माधुरी के साथ घर से निकल ही रहा था की तभी सेठ का फोन आ गया अभी बुलाया था होटल पे और मैं चाह कर भी उसको मना नही कर पाया
मैंने माधुरी के सर पे हाथ रखा और बोला- मेरी बहन बस आज की माफ़ी दे दे तेरे हर आंसू का कतरा क़र्ज़ है मुझ पे आज तू रोई है
तेरे सर की कसम कल अगर तुझे रुलाने वालो की ज़िन्दगी को शमशान ना बना दिया तो तेरा ये भाई तुझे अपना चेहरा नहीं दिखायेगा
जितना तू आज रोई है उतना ही तू कल हँसेगी मेरी बहन बस आज की माफ़ी दे दे
ये बोलकर मैं होटल के लिए चला गया काम बहूँत था देर रात तक उधर ही रुकना पड़ा पर दिमाग में बस माधुरी घूम रही थी एक जवालामुखी जैसे फटने को तैयार था
इस ज़िंदगी में फिर से खुद को इतना बेब्स पा रहा था मैं माधुरी का आंसुओ से भरा चेहरा बार बार मेरी आँखों के सामने आ रहा था
कभी कभी ज़िंदगी ऐसे इम्तिहान लेती थी की क्या कहा जाए पर ये भी शुक्र था की उन लोगो ने माधुरी के साथ ...
ये सोच कर ही दिल डर सा गया पहली बार मेरे हाथ काम्पने लगे थे डर क्या होता है आज महसूस कर रहा था रात एक बार फिर से बेचैनी में कटने वाली थी
कभी कभी मैं अपने बारे में सोचता था की हालात के थपेड़ो को सहते हूँए मैं कहाँ से कहाँ पहूँच गया था वो गाँव की गलियाँ, वो सावन के झूले एक बेफिक्री सी रहती थी
वो खेतो में लहलहाती फसले जिसे चूमकर हवा जब चलती थी वो बरसात जो तन मन को भिगो दिया करती थी गाँव में जब मेला लगता था तो खूब चीज़ खाना मस्ती करना दोस्तों के साथ दूर निकल जाना
गर्मी की दोपहरों में बेर खाने जाना कभी कच्चे आम चुराना कभी खरबूजे तरबूज की बाड़ी में घुस जाना नंगे पाँव दौड़ लगाना घरवालो से छुप के नहर में नहाने जाना फिर मार भी पड़ती थी
वो मिर्च की चटनी मक्खन लगी रोटियों के साथ आज भी वो स्वाद मुह में घुल सा जाता है पता नहीं आज घर की बहूँत याद आ रही थी
ये घर भी अजीब होता है हम जैसे अकेले लोगो से पुछो की घर क्या होता है कई बार रात को नींद खुल जाती है लगता है माँ ने सर पे हाथ फेरा हो पिताजी की शर्ट से दस बीस रूपये चुरा लेना
कभी कभी वो नहाते तो मैं उनकी मालिश करता फिर उनके खटारा स्कूटर को चलाने की मिन्नतें टाइम बदल गया था अब कुछ नहीं था हाथ खाली थे आज मेरे
सब कुछ कांच की तरह टूट कर बिखर गया था वक़्त ने ऐसा सितम किया था की बस दर्द ही दर्द रह गया था कभी कभी इतनी घुटन होती थी की काश माँ होती तो उसकी गोद में सर
रख देता हर मुश्किल आसान होती बाप होता तो उसके सीने लग के रो सकता था लोग अक्सर कहते की जेब में पैसा होना चाहिए दुनिया कर सुख कदम चूमता है
मैं कहता हूँ ये सारी दौलत ले लो ये सोना चांदी ये रुपया पैसा सब बेमानी है कोई उस बाप की उंगली पकड़ा दे जिसे पकड़ के चलना सीखा था ये पैसा
कहाँ मुझे मेरी माँ का आँचल वापिस दे सकता था इस बाजार में तो हर चीज़ मिलती है तो बताओ कितना खर्च करू कौन सी दुकान है जहाँ
मैं वो ममता की छाँव खरीद सकु एक छोटा सा घर था चन्द खुशिया थी और क्या चाहिए था ज़िन्दगी में पर मैंने अपने ही हाथो से सब खो दिया था
घर की बहूँत याद आती है दिन तो साला कट जाया करता है पर ये रात ये भी मेरी तरह अधूरी है तनहा है सीने में जलन सी होने लगी थी
जब दर्द हद से ज्यादा हो गया तो बोतल खोल ली बस अब इसका ही सहारा था कुछ ही घूंट में आधी बोतल से ज्यादा गटक चुका था
आज दर्द कुछ ज्यादा था तो नशा भी ज्यादा चाहिए था एक के बाद एक बोतल खुलती गयी कदम डगमगाने लगे तो मैं सड़क पर निकल आया बरसात हो रही थी
ऐसा लगता था की मेरे दर्द से आसमान भी रो पड़ा था ये शहर अपना होकर भी बेगाना था आज किसी अपने से मिलने की जरूरत हो रही थी
पर अब तो आदत सी होने लगी थी इस तन्हाई की इस अकेलेपन की वैसे ज़िंदा तो तो बस नाम का ही था मैं बाकि बचा कुछ नही था
अपने आप से झूझते हूँए न जाने किन सड़को पर निकल आया था मैं बस चले जा रहा था अपने आप से बाते करता हूँआ कभी खुद को कोसता कभी अपने नसीब को आवारा कुत्तो सी ज़िन्दगी हो गयी थी अपनी
दिलवाले तो बस हम नाम के थे बाकि कुछ आनी जानी नहीं थी उस बोतल में अभी कुछ कतरे बाकी थे पर अब पीने की चाह नहीं थी
फेक मारा उस बोतल को रोड पर रोने लगा मैं जोर जोर से पर उस बरसात के शोर में मेरे दर्द का क्या मोल था और फिर हम जैसे लोगो के आंसुओ की कीमत भी तो क्या होती है
चलो माना की लाख आवारा थे , नाकारा थे पर सीने में कहीं एक मासूम सा दिल हमारे भी धड़कता था कभी तो हमारा भी मुस्कुराने का जी करता था
बेगानो में अपनों को ढूंढते ढूंढते अब थकने लगा था और ये दर्द साला इस दुनिया में इतने लोग है पर इसको बस मैं ही मिलता हूँ
ऐसा कौन सा पाप कर दिया था की उस के दरबार में अपनी कोई दुआ कभी कबूल ही नहीं होती थी क्यों ज़माने भर का दुःख था मुझे ही
साला सबके चेहरे पे मुस्कान लाते लाते हमारी मुस्कान खो गयी थी जोर जोर से चीखने लगा था मैं पर साला इतने बड़े सहर में कोई नहीं था
जो इस दर्द को बाँट लेता कहाँ जाऊं कोई ऐसा दर नहीं जहा सकूँ मिल सके इस दिलवाले को पता नहीं कितनी दूर निकल आया था चलते चलते
उस मोड़ पे ठोकर सी लगी कदम तो वैसे ही डगमगा रहे थे और होश था ही कहाँ हमे ठोकर से सम्भल भी ना पाये थे की सड़क
से आती उस गाडी से टकरा गए और फिर गिर पड़े चोट लगी या नहीं किसे परवाह थी गाड़ी का दरवाजा खुला और ड्राईवर ने उत्तर कर उठाया मुझे
पैर थे की साले साथ ही नहीं दे रहे थे और हम तो वैसे ही गिरे हूँए थे
कौन है रामदीन कौन आ गया गाडी के आगे गाड़ी में से कहा किसी ने
ड्राईवर-कोई नहीं मैडम एक शराबी है
उसने मुझे साइड किया दो चार बाते कही और फिर गाडी स्टार्ट करने लगा उस दो पल की रौशनी में पीछे बैठे चेहरे पर नजर पड़ी तो
जेसे सारा नशा फुर्ररर करके उड़ गया हे उपरवाले समझ नहीं आती तेरी लीला कभी कभी क्या ये सच था या फिर बस नशे में वहम मेरा
और वैसे भी अपनी तक़दीर यु हम पे मेहरबान हो जाये ऐसा होना मुमकिन नहीं था पर दिल की धड़कनो मे एक रवानी सी दौड़ गयी थी
चलो मान लिया हम तो झूठ बोलते है पर दिल तो सच्चा था हमारा ये बात और थी बरसो से धड़कनो का कहना माना नही था हमने
सुबह जब आँख खुली तो खुद को फुटपाथ के किनारे पे पड़ा पाया आँखों में रात का सुरूर अभी बाकी था पास की दूकान पे एक चाय पि और फिर ऑटो पकड़ के घर आया
तैयार हो चूका था पिस्ता मंदिर गयी हूँई थी पूजा का नास्ता थोडा लेट हो गया था तो उसकी कई कड़वी बाते सुननी पड़ी कभी कभी मैं सोचता था
की जिस दिन इसको मेरी असलियत पता चलेगी उस दिन क्या बीतेगी इस पर पूजा अपने कमरे में थी मैं भी जा रहा था की कृष्णा जी ने मना किया
माधुरी के कॉलेज का टाइम हो रहा था पर आज वो तैयार ना हूँई थी मैं उसके पास गया
मैं-आज मेरी बहना तैयार नहीं हूँई
वो- मैं कॉलेज नहीं जाउंगी मैंने सोचा है की पढाई छोड़ दूंगी
मैं-ऐसा नहीं बोलते पगली, क्या भरोसा नहीं अपने भाई पे
वो-मुझे डर लगता है
मैं- मेरी बहन तू शेरनी है फिर कुछ गीदड़ो से डर गयी
चल तैयार हो जा वर्ना लोगो को पता चलेगा की दिलवाले की बहन कुछ मामूली गुंडों से डर गयी तो शहर में तेरे भाई का क्या रुतबा रहेगा
वो-पर वो मामूली नहीं है उनकी चलती है पुरे शहर में
मैं- पर तू किसी कायर की बहन नहीं और अगर मैं तेरी रक्षा नहीं कर पाया तो धिक्कार है मुझ पे बस तू चल रही है कॉलेज तैयार हो जा मैं इंतज़ार कर रहा हूँ
पूजा थोड़ा टाइम पहले निकल गयी थी उसके पीछे पीछे मैं और माधुरी भी निकल गए
जैसे जैसे कॉलेज करीब आता जा रहा था माधुरी का चेहरा सफ़ेद होता जा रहा था डर हावी होते जा रहा था उसके हाथ पाँव जैसे काम्पने लगे थे
पर उसे उस ज्वालामुखी का आभास नही था जो एक भाई के कलेजे में सुलग रहा था कॉलेज के मेन गेट पे मैंने गाडी रोकी और हम उतरे
मैंने माधुरी का हाथ टाइट पकड़ा और कहा घबराना मत तुम आगे आगे चलो मैं तुम्हारे पीछे ही हु वो आगे बढ़ने लगी दो कॉरिडोर पार करके
वो अपनी क्लास की तरफ जा रही थी की ब्लाक के सामने 4-5लड़को ने उसे रोक लिया माधुरी थर थर कांपने लगी उनमे से एक बोला
अरे भाभी आ गयी जल्दी भाई को फोन कर लगता है आज भाई का मामला सेट होगा हह हा हां
माधुरी उनसे बचने के लिए कभी दाए हो कभी बाए पर वो लोग उसे रास्ता ही ना दे अब मैं आगे बढ़ा
मैं-ओये,क्यों तंग कर रहा है इसको
वो-चिरकुट तेरे को ज्यादा चर्बी चढ़ी है क्या जानता नहीं हम किसके आदमी है भाई की सेटिंग है ये भाई आते ही होंगे
मैं-भाई तो आएगा जब आएगा लड़की का रास्ता छोड़ वर्ना फिर तेरे लिए कोई रास्ता नहीं बचेगा
माहौल गर्म होने लगा था स्टूडेंट्स इकठ्ठा होने लगे थे वो लड़का मेरी तरफ बढ़ा और बोला- ज्यादा हीरो मत बन तू जानता नहीं हम कौन है क्यों इसके चक्कर में जान गंवाता है
मैं- तू नहीं जानता मैं कौन हु और बेहतरी है की तू ना जाने ये यहाँ पढ़ने आती है और मैं चाहता हु की ये अपनी पढाई आराम से करे
वो-और ना करे तो
मैं-ना का तो सवाल ही नहीं
तभी एक दूसरा लड़का हॉकी लेके मेरी तरफ बढ़ा और बोला-तू बहुत बोल रहा है क्या लगती है तेरी ये जो इसके पीछे मरने चला आया
मैं-बहन लगती है मेरी दिक्कत है
वो हँसने लगे फिर उनमे से एक बोला - अच्छा तो भाई खुद बहन को जीजाजी के पास छोड़ने आया है कल इसकी चुन्नी उतरी थी और आज इसकी सलवार यही उतरेगी और तू भी देखेगा
मेरी आँखे तपने लगी थी क्रोध से कुछ और साथी आ गए थे उनके पर आज इनको सबक सिखाना जरुरी था
मैं- तू उतरेगा इसकी सलवार, तू
मैं उसकी तरफ बढ़ने लगा माधुरी को मैंने साइड होने को कहा पर एक लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया और मेरा सब्र टूट गया
अगले ही पल जिस हाथ ने माधुरी को पकड़ा हुआ था वो जमीं पर कटा हुआ पड़ा था पल भर में ही चारो तरफ चीख पुकार मच गयी
मेरे हाथ में गंडासा था उन सालो को गाजर मूली की तरह काटने लगा मैं कुछ भागे पर आज किसी को नहीं भागना था आज तो तांडव देखना था मुझे अगले दस मिनट में
15-20 जमीं पर कटे पिटे पड़े थे बरसात होने लगी थी पर आज यहाँ खून की बरसात होनी थी जिसने सलवार उतरने की बात की थी
मैं उसको घसीट के लाया और बोला- उतार के दिखा सलवार
वो चीखते हुए बोला-तू नहीं जानता तूने क्या किया है आने दे भाई को फिर देखना