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Erotica Dilwale - Written by FTK aka HalfbludPrince (Completed)

Incest

Supreme
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मैं- पिस्ता ये माँ पिताजी का कमरा है पिस्ता ने उधर रौशनी की दीवारों पर उनकी तस्वीरे लगी थी मैंने उन पर लगी धुल को साफ़ किया ऐसा लगा की जैसे अभी बोल पड़ेंगी और मुझसे सवाल करेंगी की कहा चला गया था कितना इंतजार करवाया पर सच तो था की घर तो था पर घरवाले नहीं थे जी तो रोने को हो रहा था पर आंसुओ की भी कीमत होती है तो अपने अन्दर ही समेत लिया



पिस्ता- खाना खाओगे



मैं- हां भूख तो है



पिस्ता ने बैग से खाने के पैकेट निकाले और हम खाना खाने लगे बरसो बाद अपनी छत के निचे आया था ये शब्दों में बताने की बात ही नहीं है बस दी ही समझता है कुछ बाते बस दिल की ही होती है खाने के बाद नहाने की इच्छा थी पर रात बहुत हुई थी और अब नलके का भी पता नहीं था चलता है या नहीं ऊपर से सफ़र की थकन भी थी तो पिस्ता ने झाड पोंछ कर सोने का जुगाड़ किया और उसकी बाँहों में ही मैं नींद के आगोश में चला गया



सुबह आँख खुली तो पिस्ता साथ नहीं थी उबासी लेते हुए मैं बाहर आया तो देखा की वो सफाई करने में लगी हुई थी रस्ते से झाड़ियो को हटा रही थी



मैं- रहने दे मैं मजदुर बुला के करवा दूंगा वैसे भी घर की मरम्मत भी तो करवानी है



वो-हां पर थोडा आने जाने का रास्ता भी तो ठीक हो जाये



मैंने उसको मनाया और कहा की आजा नहा धोके आते है



वो- चल मेरे घर का ताला तो लेंगे



मैं- ना री, तेरे भाई को पता चलेगा तो हार्ट अटैक ही आ जायेगा



वो- क्या कुछ भी



मैं- यार गाँव है अपना किसी के भी घर नहा धो लेंगे



वो- तो मेरा घर क्या पराया है



मैं- तेरा मेरा किसने बता पगली चल बैग ले आ



और और हम लोग गली से मुड़े ही थे की मुझे राहुल मिल गया वो देखे मेरी और



मैं- ऐसे क्या देख रहा है मैं ही हु



वो भागकर मुझसे लिपट गया रोने लगा पागल



मैं- रोता क्यों है मैं आ गया हु



वो- घर चलो भाई



अब उनसे पारिवारिक सम्बन्ध थे तो मना कैसे करता और पहुच गए उनके घर उन लोगो को तो जैसे विश्वाश ही नहीं हुआ की इतने सालो बाद मैं यु अचानक वापिस आ गया हु पर सच तो यही था की मैं घर आ गया था पिस्ता नहाने चली गयी थी काकी ने तब तक खाने की तयारी कर दी थी रतिया काका के बारे में पुछा तो पता चला की वो किसी काम से बहार गये है रात तक ही वापिसी होगी बातो बातो में पता चला की राहुल की शादी हो गयी है , मंजू भी ससुराल चली गयी चलो सब बढ़ गए थे जिंदगी में आगे



नहा धोके एक दम तजा हो गया था फिर खाना वाना खाया उसके बाद मैंने राहुल से कहा की वो घर की थोड़ी सफाई करवानी है तो उसने कहा भाई आप ने कह दिया मैं अभी करवा देता हु और वो मजदुर लाने चला गया मैंने पिस्ता को आराम करने को कहा और मैं बिजली जुडवाने के लिए चला गया अपना परिचय दिया तो पता लगा की आज मैं फाइल भर दू कल तक तार लग जायेगा चलो लाइट का काम तो हुआ कुछ और काम करने थे वो किये बंक में गया अपने पुराने खातो की जानकारी ली पैसो को कोई दिक्कत नहीं थी पर वो दोलत मेरे माँ- बाप की थी तो देख रेख करना जरुरी था



आते आते शाम घिर आई थी जब मैं वापिस घर आया तो देखा की राहुल ने काफी हद तक सफाई करवा दी थी

राहुल- भाई कल तक पूरा साफ़ हो जायेगा पानी की सप्लाई चालू हो गयी है एक बार सफाई हो जाये फिर मरम्मत का काम चालू



मैं- बढ़िया



राहुल- कहा थे आप इतने दिन



तो मैंने उसको बता दिया बस कुछ खास बाते छुपा ली , तब तक पिस्ता चाय ले आई



मैं- यहाँ चाय



वो- हा अब इधर ही रहना है तो मैंने रसोई का सामान खरीद लिया और गैस अपने घर से उठा लायी



राहुल- मैं तो मन कर रहा था मेरा घर भी आपका ही है पर ये नहीं मानी



मैं- इसका ऐसा ही है

बातो बातो में रात घिर आई थी तो राहुल खाना लेने चला गया उसका तो मन था की उसके घर ही खाए पर मैं यहाँ ही रहना चाहता था करीब घंटे भर बाद वो आया तो रतिया काका भी उसके साथ थी मैंने काका के पैर छुए, उन्होंने मुझे गले से लगा लिया आँखों से आंसू गिरने लगे



काका- बड़ी देर लगाई बेटे आने में, हमने तो आस ही छोड़ दी थी दिल तो कहता था की तुम आओगे पर राह तकते तकते ये आँखे बूढी हो गयी



मैं- काका देर हो गयी पर अब मैं आ गया हु



मैं- काका गाँव के क्या हाल चाल है



वो- समय बदल गया है बेटा, बिमला से मिले



मैं-नहीं काका मिला नहीं और ना ही इच्छा है पर सुना है बाहुबली हो गयी है आजकल



वो- हां बेटा, अब सरपंच है गाँव की और बड़े लोगो से उठना बैठना है हमसे तो कोई सम्बन्ध रखा नहीं उसने नाहर पर ही कोठी बना ली है उधर ही रहती है



मैं- आती नहीं इधर



वो- उस हादसे के थोड़े दिन बाद ही यहाँ से चली गयी थी वो



मैं- और चाचा



वो- उसके साथ ही रहता था पहले फिर उसने किसी मास्टरनी से शादी कर ली अब सहर में ही रहता है वो भी नहीं आता कभी भी



मैं- चलो अच्छा है , आप सुनाओ



वो- बस बेटे जी रहे है दोनों बच्चो के हाथ पीले कर दिए राहुल मेरे साथ ही हाथ बाटता है काम में पहले दुकान थी अब फर्म हो गयी है



बातो बातो में रात काफी हो गयी थी तो काका बोले- अब चलता हु बेटा सुबह मिलूँगा पर जब तक यहाँ की मरम्मत नहीं हो जाती तुम उधर ही रह लेते वो भी तो तुहारा ही घर है



मैं- क्यों शरिंदा करते हो काका , जानता हु वो भी मेरा ही घर है पर अब इतने बरस बाद आया हु तो मन है



काका- मर्ज़ी है तुम्हारी



उनके जाने के बाद पिस्ता नहाने चली गयी मैं छत पर बिस्तर बिछाने लगा मच्छर बहुत थे तो मैंने मच्छरदानी लगा ली पिस्ता थोड़ी देर बाद आई पतली सी ड्रेस में भीगा बदन उसका बालो से टपकता पानी उसके यौवन को और नशीला बना रहा था मैंने पिस्ता को अपनी बाँहों में भर लिया



पिस्ता- छोड़ो ना



मैं- ना



वो- क्या इरादा है



मैं- तुम्हे नहीं पता क्या



वो- आह , मुझे तो अब पता है



मैं- तो रोक क्यों रही हो



वो- कहा रोक रही हु आह आराम से



मैंने उसकी ड्रेस खोल दी अन्दर उसने कुछ नहीं पहना था वो नंगी मेरी बाँहों में सिमटने लगी मेरे हाथ उसके उभारो पर चलने लगे चारो तरफ छाई शांति को पिस्ता की मादक आहे भंग करने लगी थी वो मेरे अगले हिस्से पर अपने कुलहो को रगड़ने लगी थी कुछ एर तक मैं उके उभारो से खेलता रहा अब वो एक दम टाइट हो चुके थे तभी पिस्ता पलती उकी छतिया मेरे सीने में चुभने लगी उसने अपने सुलगते होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और किस करने लगी मेरे हाथ उसके भारी गांड को मसलने लगी थी



वो किसी नागिन की तरह मुझ से लिपटे हुए मेरे होंठो की प्यास अपने होंठो से बुझा रही थी मैं उसके आगोश में पिघलने लगा था दस मिनट तक बस हमारी चूमा- चाटी चलती रही उसके बाद मैंने पिस्ता को बिस्स्तर पर लिटा दिया उसने अपनी टांगो को फैलाया और अपनी मंशा बताई मैं घुटनों के बल बैठ गया और उसकी बिना बालो की मक्खन सी चूत पर अपने होंठ रख दिया बिजली सी दौड़ गयी उसके बदन में किसी तार की ताराह बदन खीच गया



होंठो से मधुर आये निकल पड़ी आह उफ्फ्फ्फ़ ऐसे मत रगडो ना आआह्ह्ह काटो मत आराम से यार

पर उसकी कौन सुनने वाला था उसकी चूत के अंदरूनी हिस्से से रगड़ खाती मेरी जीभ नमकीन स्वाद को चख रही थी पिस्ता की टांगो में कम्पन शुरू हो गया था चूचियो के निप्पल तन गए थे मस्ती भरी लहरें उसके शरीर से बार बार टकरा रही थी बेकाबू पिस्ता ने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा लिया और कांपने लगी उसके बिखरे बाल लाल आँखे गरम चिकना बदन मेरा लंद्द काबू से बाहर हो रहा था इधर मैंने अपनी बीच वाली



ऊँगली उसकी चूत में डाल दी और उसके दाने को चुमते हुइ उसकी चूत में ऊँगली अन्दर बाहर कर रहा था

पिस्ता तो जैसे गीली हुई ही बैठी थी आज उसकी चूत से बहुत ज्यादा रस छुट रहा था इधर उत्तेजना मुझे भी उकसा रही थी पिस्ता में समा जाने को तो अब मैं वहा से हट गया पिस्ता ने अपनी टाँगे पलंग से निचे सरका ली और आधी बैठी सी हो गयी और मैंने बिना देर किये अपने उसल को थे दिया अनडर की तरफ पिस्ता ने मेरी बाहों को थाम लिया और हमारा खेल शुरू हो गया चिकनी चूत में मेरा लम्बा लंड आतंक मचाये हुए था



पिस्ता तो वैसे ही बीच तक आ चुकी थी तो वो पुरे जोश से अपनी गांड को ऊपर कर कर के चुदाई का मजा ले रही थी कुछ देर बाद मैंने पिस्ता को घोड़ी बना दिया उसके मोटे चूतडो को देखते ही बनता था क्या गजब था उसने अपनी गांड को मेरे लंड की तरफ सरकाया और मैंने भी उसको अपनी सही जगह पर पंहुचा दिया उसकी कमर पर हाथ डाला और अब चोदने लगा उसको पिस्ता ने अपनी दोनों जांधो को आपस में चिपका लिया था और चुदाई के मजे ले रही थी



७-8 मिनट तक हम दोनों वैसे ही चुदाई करते रहे फिर पिस्ता का कोटा पूरा हो गया और वो औंधे मुह बिस्तर पर गिर गयी मैंने भी उसके ऊपर लेट गया और उसको चोदने लगा वो अभी अभी झड़ी थी तो उसका बदन हिचकोले खा रहा था एक मीठा सा अहसास अभी भी उसके बदन में दौड़ रहा था उसके हाथो पर अपने हाथ रखे मैं उसी पोजीशन में उसपे चढ़ा रहा उसके नरम कुलहो का गद्देदार अहसास अब क्या बताऊ पिस्ता लम्बी लम्बी सांसे लेते हुए चुद रही थी



और थोड़ी देर बाद मैं भी फारिग हो गया और उसके बगल में लेट गया कब नींद आ गयी पता नहीं चला सुबह जब आँख खुली तो कुछ आवाजे आ रही थी तो मैंने देखा की घर के बाहर दो तीन जीप खड़ी थी और पिस्ता कुछ लोगो से उलझी पड़ी थी

मैने जल्दी से अपनी टी-शर्ट पहनी और निचे आया कुछ लठेत से थे पिस्ता बहस कर रही थी उनसे



मैं- क्या हुआ



पिस्ता- पता नहीं कौन लोग है घर से निकलने को कह रहे है



मैं- तुम्हारे बाप का घर है क्या



उनमे से एक- हमारी मालकिन का घर है



मैं- ओह ओह मालकिन ने ये नहीं बताया की उसका भी कोई मालिक है जा जाके कह दियोतेरी मालकिन से की इस घर का असली हक़दार आ गया है



वो- हमे नहीं पता आप लोग निकल जाओ यहाँ से वर्ना हमे निकालना पड़ेगा



मैं- जरा मैं भी तो देखू की किसकी इतनी हिमत हो गयी है



तभी रतिया काका और राहुल भी आ गए साथ ही कुछ गाँव वाले भी थे



काका-क्या हुआ बेटा



मैं- पता नहीं कौन लोग है फालतू का पंगा कर रहे है



उनको शायद काका जानते थे तो वो उनसे बोले- जाके कहना की देव वापिस आ गया है वो समझ जाएगी



उनमे से एक – पर .........



मैं- पर कुछ नहीं, अगर ५ मिनट में तुम यहाँ से नहीं निकले तो ६ति मिनट में तुम्स अब की लाश यहाँ पड़ी होगी और ये मेरा हुकम है जिसे तुम्हे मान न होगा और जाके अपनी मालकिन से कह्देना की सी घर का वारिस आ गया है मैं दहाडा



वो लोग खिसक लिए वहा से



मैं- बिमला की तो खबर लूँगा



काका- बेटा ये लोग थोड़े थोड़े दिन में इधर आते है देखने शायद तुमको जान नहीं पाए होंगे



मैं- जो भी हो



बात आई गयी हो गयी , राहुल आज और मजदुर ले आया था तो काम तेजी से हो रहा था मैं अन्दर गया और पिस्ता को बुलाया



मैं- ये गन ले और आगे से कोई भी ऐसी बात हो थो खाली हाथ मत उलझना ये तेरी हिफाजत करेगी और ज्यादा बात हो तो सीधा गोई चला देना बाकि मन देख लूँगा



वो- टेंशन मत लो तुम



फिर नीनू का फ़ोन आया तो उसे पूरी बात बताई आर्यन और माधुरी से भी बात की नीनू थोड़ी टेंशन में थी उसको समझाया की फ़िक्र न करे बात करने के बाद मैंने पिस्ता से कहा की मैं थोडा घूम फिरके आता हु चलेगी तो उसने मन करते हुए कहा की वो थोडा मरम्मत का काम देखेगी और थोड़ी सफाई करेगी तो मैं अकेला ही चल पड़ा तभी मुझे किसी की याद आई तो मैं उधर ही चल पड़ा जैसे ही उसके घर की तरफ पंहुचा वो आँगन में ही थी पशुओ को नहला रही थी मैंने उसे देखा गुजरे वक़्त के साथ उस पर कोई असर नहीं पड़ा था वो और खूबसूरत हो गयी थी निखर गयी थी





मैं अन्दर गया और बोला- और ताई कैसी हो



उसने पल भर के लिए मुझे देखा और फिर भागते हुए मेरे पास ई और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया बोली- तुम .....





मैं- हां मैं
 

Incest

Supreme
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वो- कहा चले गए थे



मैं- बस खो गया था कही पर अब आ गया हु



वो मुझे अन्दर ले गयी चाय पिलाई और बाते करने लगी



मैं- और मजे में हो



वो- हां, तुमने जो जमीं दी थी उसी पर खेती करती हु अच्छी फसल होती है तो मौज है तुम बताओ इतने दिन कहा थे



तो- मैंने उसे भी वो ही बात बता दी जो राहुल को बताई थी



ताई-अच्छा हुआ तुम आ गए हमने तो आस ही छोड़ दी थी



मैं- ताई तुम तो बिलकुल नहीं बदली आज भी उतनी ही गनडास हो



वो- क्या आते ही शुरू हो गया , अब वो बात कहा अब तो बुड्ढी हो गयी हु



मैं- तब भी ऐसा ही बोलती थी पर तब भी माल थी आज भी माल हो



मैं झूठ नहीं कह रहा था अब ताई की उम्र ४७-४८ होगी पर मजाल की कोई कहदे पहले से जिस्म भर गया था पर मेहनत के कारण सांचे में ढला हुआ था मेरा लंड पेंट में उछालने लगा पर ताई कहा भागी जा रही थी हमारी बाते हो रही थी की मैं पुछा- ताई , ताऊ कहा है दिख न रहा तो ताई थोड़ी भावुक हो गयी और उसने बताया की दो साल पहले ताऊ का देहांत हो गया





मैं- ये तो बुरा हुआ ताई



वो- होनी को कौन टाल सके बेटा , तू बैठ मैं तेरे लिए खाने पिने का इंतजाम करती हु



मैं- रहने दे ताई, पेट भरा है अभी खाके ही आया हु बस तेरी याद आ रही थी तो मिलने आ गया



वो- हां, मेरी याद तो आनी ही थी तुमको हस्ते हुए बोली वो



मैं- ताई अब तुम चीज़ ही ऐसी हो याद तो आनी ही थी खैर वो छोड़ो एक बात बताओ मेरे जाने के बाद बिमला ने कभी उस जमीन के बारे में कुछ कहा तुमसे



वो- हां,जब आइने खेती करनी शुरू की तो वो आई थी पर मैंने उसको बताया की तूमने वो जमीं मुझे सँभालने को दी है तो वो चली गयी फिर देखो सात बरस गुजर गए वो इधर एक बार भी न पलट के आई वैसे वो गाँव में आती भी बहुत कम है



मैं- कहा रहती है फिर



वो- तुम मिल लो भाभी है तुम्हारी



मैं- मिलूँगा जल्दी ही



ताई- कुवे पर जा रही हु चलोगे क्या



मैं- हाँ चलते है



ताई ने जलदी से घर का काम निपटाया फिर हम दोनों ताला लगा कर खेत की और चल पड़े रस्ते में मेरा पूरा ध्यान ताई की गोल मटोल थिरकती गांड पर थी जो वक़्त के साथ और भी निखर आई थी ताई ने तो दुनिया देखि थी उन्होंने मेरी नजरो को पकड़ लिया था इस लिए और मटक कर चल रही थी शायद वो भी जान गयी थी की आज वो चुदने वाली थी मोसम में हलकी हलकी धुप थी पर हवा भी ठंडी चल रही थी खेतो के बीच बनी पगडण्डी पर चलते हुए हम मेरे खेतो में आ गए थे



चारो तरफ खूब हरियाली फैली हुई थी गीता ने खूब अच्छे से जमीं को संभाला था कुछ जमीं पर पशुओ के चारे के लिए चरी बोई हुई थी और बाकी जमीं पर गन्ने बोये हुए थे ताई ने कुवे पर बना कमरा खोला और हम अन्दर आ गए , अन्दर आते ही मैंने ताई को पकड़ लिया और ताई के मदहोश कर देने वाले जिस्म से खेलने लगा





ताई- छोड़ो ना कोई आ जायेगा





मैं- किसकी हिम्मत





वो- मुझे पता था आज मेरी बजाने वाले हो





मैं- ओह मेरी ताई तू है ही इतनी मस्त जवान लडकिय भी तेरे आगे पानी भरे तेरे में जो रस है वो कही नहीं अब मुझे और मत रोक बस करने दे तेरे इस जिस्म को देखने दे मैंने ताई के ब्लौस को खोलना चाहां तो ताई बोली- यहाँ नहीं





मैं- तो कहा





वो- ये चारपाई उठा ओ और मेरे साथ आओ





मैंने खाट उठाई उअर ताई के पीछे पीछे चल पड़ा ताई गन्नो के बीच बनी पगडंडी पर चलते हुए मुझे जल्दी ही ऐसी जगह ले आई की मैं सोच भी नहीं सकता था खेतो के बीच ये 7*7 की खाली जगह थी मैंने वो खाट वहा पर बिछा दी ये ऐसी जगह थी की बस अगर कोई ऊपर से ही दिखे तो कोई देख पाए वर्ना खड़ी फसल हो तो कोई सोच भी न सके की ऐसा है





ताई- तेरे ताऊ ने बनायीं थी







मैं- अच्छा, तो ताऊ इधर ही चोदता था तुझे



व्- शर्म करलो





मैं- शर्म कैसी मेरी जान क्या नहीं चुदेगी तू अभी





वो- हां चुदुंगी तभी तो तुझे यहाँ लायी हु





मैं- तो देर किस बात की मैं तो मारा जा रहा हु तेरी चूत देखने को





वो- तो दूर क्यों खड़ा है आजा कर दे मुझे नंगी आज बरसो बाद तेरी बाहों में आने का सुख मिलेगा मुझे





मैंने ताई को अपने आगोश में लिया और ताई को चूमने लगा माथे पर गोरे गालो पर और रसीले होंठो पर ताई के चेहरे पर जगह जगह मेरा थूक लगा हुआ था ताई ने भी अपने होंठ मेरे लिए खोल दिए थे हमारी जीभ आपस में टकरा रही थी मैंने ताई के ब्लाउज को खोल दिया अन्दर ब्रा थी नहीं तो 37” की मस्त चूचिया मेरे सामने खुली पड़ी थी , जैसे ही मैंने उनको दबाया ताई सिसक पड़ी कुछ देर बाद मैंने इक चूची को मुह में ले लिया और चूसने लगा ताई मस्ताने लगी





ताई ने मेंरे पजामे को निचे कर दिया और मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में लेके भीचने लगी खेने लगी उस से मैंने ताई की घाघरे के नाड़े को खोल इया और वो निचे आ गिरा तभी ताई आगे को घूम गयी ताई की ४४” इंच की गांड मेरे लंड से रगड़ खाने लगी मैंने दोनों हाथो से बोबो को मसलते हुए ताई की गर्दन पर चूमने लगा ताई ने मेरे लंड को अपनी जांघो के बीच दबा लिया जहाँ चूत की गर्मी पाके वो और भी फूलने लगा





ताई- ओह देव तू कहा चला गया था मुझे तू तड़पती छोड़ गया





मैं- चिंता मत कर मेरी रानी, अब जी भरके तुझे चोदुंगा तेरी चूत की सारी तड़प मिटा दूंगा





मैंने ताई के कंधे में अपने दांत गदा दिए तो ताई दर्द से आह भरने लगी वो जानती थी की ये मजे का दर्द है ताई की चूत से टपकता रस लंड को भिगोने लगा था मैंने ताई की नंगी पीठ को चूमना शुरू किया गीता की हलकी हलकी आहे हवा में घुलने लगी थी मांसल पीठ पर मैंने जगह जगह काटा लाल हो गयी गोरी पीठ मैंने ताई को निचे को झुकाया तो उन्होंने खाट पर अपने हाथ रख लिए और अपनी ठोस गांड को मेरी तरफ उभर लिया ताई की इस मस्त गांड पर ही तो मैं हमेशा से फ़िदा था





“ओह! गीता रानी कितनी मस्त गांड है तेरी क्या चुतड है जी कर रहा है खा जाऊ इनको ”





ताई- तो किसने रोका है खा जा





मैंने ताई के चूतडो पर बटके मारने शुरू किये वो चुतड हिलाने लगी अब मैंने चूतडो की फंको को फैलाया तो ताई की गांड का भूरा छेद और रस से भरी चूत दिकने लगी मैंने अपने होंठो पर जीभ फेरी और और ताई की गांड और चूत दोनों पर अपनी जीभ फेरने लगा ताई का जिस्म मस्ती के मारे लहराने लगा गीता की चूत आज भी बिलकुल ताज़ी थी भीनी भीनी सी उठती सुंगंध और वो नमकीन स्वाद वो बार बार अपनी गांड को हिला रही थी





“ओह देव, थोडा प्यार से मेरे राजा , आउच ओह आह तो जान ही निकलेगी मेरी आराम से ” ताई की मादक सिसिकरिया मुझे भी अब मदहोश करने लगी थी मेरे दोनों होठ चूत के पानी से सन चुके थे अब मैंने ताई की गांड के भूरे छेद पर जीभ फेरनी शुरू की तो वो जैसे पागल ही हो गयी थी ताई की नशीली गांड उफ्फ्फ्फ़ काश मेरा बस चलता तो हर समय अपना लंड उसकी चूत में घुसाए ही रखता ताई का पूरा बदन उत्तेजना से कांप रहा था अब उनको लंड की सख्त जरुरत थी और मुझे चूत की मैंने ताई को खाट पर लिटाया ताई ने मुस्कुराते हुए अपनी जांघो को हल्का सा फैला लिया ऍम की शेप में मैं भी चढ़ गया खाट पे उअर अपने सुपाडे को ताई की चूत से सटा दिया





जैसे ही चूत ने लंड को महसूस किया वो रस बहाने लगी मैंने ताई की जांघो को पकड़ा और लंड को अन्दर की तरफ ठेल दिया ताई की चूत की फांके चोडी होने लगी और मेरा लंड अन्दर की तरफ जाने लगा





गीता- देव, आराम स घुसाओ, कई दिन में करवा रही हु थोडा सा आराम स

मैं- ताई तुझे देख के आराम हराम हो गया है





मैंने एक धक्का और लगाया और आधा लंड ताई की चूत में फस गया ताई ने अपनी टांगो को और ऊपर किया और अगले धक्के के साथ मैं ताई के ऊपर चढ़ गया गीता चूत मारने के लिए सच में में पहली पसंद थी उसकी चूत मारने में एक अलग सा ही मजा आया करता था जिसे मैं ही समझता था धीरे धीरे धक्कम पेल शुरू हो गयी ताई ने अपनी बाहों में भर लिया मुझे और अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया मेरी पीठ पर अपने नाख़ून रगड़ते हुए ताई चुदाई के सुख को अनुभव कर रही थी

ताई का निचला होंठ मेरे दांतों में दबा होने से थोडा सा कट गया था पर ताई को कहा परवाही थी वो तो इस समय अगर कोई जवान लड़की ताई को यु चुदते देख ले तो शर्म से पानी पानी हो जाये ताई की चूत का चालला लंड पर कसा हुआ था जैसे जैसे मस्ती बढती जा रही थी ताई का उन्माद भी बढ़ रहा था थोड़ी देर बाद पोजीशन चेंज हो गयी ताई अब मेरे ऊपर चढ़ गयी थी ताई थोडा झुकी और अपना एक बोबा मेरे मुह में दे दिया ताई की इन्ही अदाओ पर तो मैं मरता था





मेरे दोनों हाथ ताई के सुडौल कुलहो पर थे और मस्ती में चूर ताई गपागप मेरे लंड पर कूद रही थी अब ताई ने अपने दोनों हाथ मेरे सीने पर रखे और सहलाते हुए चुदने लगी पल पल ताई के धक्के तेज होते जा रहे थे और फिर कुछ पल बाद ताई मेरे ऊपर धडाम से गिर गयी चूत से निकले रस ने लंड को पूरी तरह नेहला दिया था , ताई स्खलित हो गयी थी पर आज मैं भी पुरे मूड में था तो मैंने ताई को अपने निचे लिया और अच् अच् ताई को चोदने लगा





ताई- छोड़ ना थोड़ी देर तो रुक



मैं- बस होने ही वाला है





वो- दो मिनट





मैं- बस बस





वो- मूत आ रहा है





मैं- इधर ही मूत दे





वो-छोड़ मुझे





मैं- ना





ताई का चेहरा एकदम लाल हो गया था उनका बदन टाइट हो गया था और इस बार जैसे ही मैंने अपने लंड को बाहर की तरफ खीचा ताई की चूत से पेशाब की मोटी धार निकल कर गिरने लगी सुर्र्र की आवाज आने लगी ताई का मूत निकल गया था , मूतने के बाद ताई बोली- हट नहीं सकता था क्या सारी खाट को गीला कर दिया





मैं- कोई ना मेरी जान धो लेंगे पर अभी मेरी आग को बुझाओ



ताई मुस्कुराई और खाट पर घोड़ी बन गयी और फिर से हमारी खेचातान शुरू हो गयी ताई की रसीली चूत में मेरा लंड घमासान मचा रहा था ताई की सिस्कारिया वातावरण को गरमा रही थी मेरे हाथ उनकी कमर से होकर उनके खरबूजों पर पहुच गए थे और मैं बेदर्दी से उनको दबाते हुए ताई की चूत मार रहा था ताई की चूत की चिकनाई फिर से बढ़ गयी थी और वो फिर से अपने उसी मादक अंदाज में आ चुकी थी मेरे अंडकोष बार बार ताई की मांसल जांघो से टकरा रहे थे







“ओह! ताई कितनी मस्त है तू आज तू ऐसी है तो जवानी के दिनों में तेरा क्या हाल होगा , काश ये वक़्त यही पर थम जाये काश मेरा जोर चलता तो उम्र भर तुझे चोदता रहता ”





“तुझे पता नहीं क्यों मैं इतनी पसंद हु इतना प्यार तो तेरे ताऊ ने भी नहीं किया कभी ”





“तेरी कदर वो क्या जाने मेरी प्यारी, तू तो गज़ब है तू तो अमृत का वो प्याला है की अगर नहीं चखा तो क्या फायदा फिर जीने का ”





ताई अपनी तारीफ सुन कर खुस हो गयी और बार बार अपनी गांड को आगे पीछे करते हुए चुदने लगी ताई ने तो आज जैसे मेरी बरसो की प्यास को बुझाने का काम कर दिया था ऐसे लग रहा था की जैसे सदियों बाद सूखी जमीन पर बारिश की कुछ बूंदे पड़ी हो आधे घंटे के घामासन के बाद ताई का किला एक बार फिर से ढह गया पर इस बार उसने मेरी दिवार को भी गिरा दिया था मेरा वीर्य ताई की चूत के रस से मिलने लगा जब कुछ शांति आई तो मैं ताई से अलग हुआ सांसे धोंकनी की तरह चल रही थी







कुछ देर हम दोनों एक दुसरे की बाँहों में लिपटे पड़े रहे फिर गीता उठी और खेत के किनारे पर जाके मुझे आने को कहा हम नंगे ही एक तरफ बढ़ गए कुछ दूर पर पानी की एक छोटी सी होदी थी गीता उसमे उतर गयी मैं भी उसके पीछे हो लिया पानी में घुसते ही कंपकंपी चढ़ गयी पानी बेहद ठंडा था मैंने ताई को अपने से लिपटा लिया तो उसके जिस्म की गर्मी से चैन आया मैं एक बार फिर से उसके होंठो को पीने लगा ताई ने मेरे लंड को अपने हाथ में ले लिया और उसको सहलाने लगी ताई की गर्मी पाते ही वो फिर से अपना सर उठाने लगा







होंठो के बाद गोरे गालो का नुम्बर था ताई ने अपने आप को मुझे सौंप दिया था उनके जिस्म के हर कतरे पर बस मेरा ही हक़ था सिर्फ मेरा थोड़ी देर की चूमा चाटी के बाद मैं होदी के किनारे पर बैठ गया और ताई झुक कर मेरे लंड को चूसने लगी उनकी लाल जीभ का रगडा जब मेरे लंड पर पड़ता तो पूरा बदन झनझना जाया करता था , गीता में सच में ही एक नशा सा था ताई की लम्बी जीभ मेरे पुरे लंड का अवलोकन कर रही थी मस्ती के मारे मेरी आँखे बंद होने लगी थी







करीब पांच मिनट बाद उसने लंड को मुह से बाहर निकला और अब मेरी गोलियों पर टूट पड़ी मुझ पर तो जैसे अफीम का नशा हो गया था दोनों गोलिया ताई के थूक से सन चुकी थी और ताई उन्हें बेतहाशा चूम रही थी चूस रही थी थोड़ी देर बाद उन्होंने अपना मुह वहा से हटा लिया मैंने पानी में ही ताई को अपने घुटनों पे झुकाया और ताई की गांड के छेद पर ढेर सारा थूक लगा दिया ताई ने अप्पने चूतडो को सिकोडा तो मैंने एक थाप लगायी तो उसने तुरंत ही कुलहो को ढीला छोड़ दिया







मैंने अच्छे से खूब थूक ताई की गांड पे लगाया और अपने लंड को छेद पर रगड़ने लगा ताई जैसे पिघलने लगी थी मैंने ताई के जिस्म को मजबूती से थामा और पूरी ताकत लगते हुए अपने औजार को अन्दर घुसाने लगा ताई की चीख निकल गयी बदन थरा गया पर एक बार जो छेद खुला तो फिर खुलता ही चला गया ताई को दर्द हो रहा था पर वो जानती थी की ये थोड़ी देर का दर्द है मैंने धक्के मारने शुरू किये वो मेरी बाहों में लरज़ने लगी







और जल्दी ही दर्द भरी आहे भरते हुए मेरा साथ देने लगी करीब पंद्रह मिनट तक ताई के चुतड मारने के बाद मैंने अपना पानी वही छोड़ दिया और थकान से चूर हम दोनों पानी में गिर गए उस दिन शाम तक बस मैं ताई के जिस्म का ही मजा लता रहा ताई ने अपने हुस्न को खोल दिया था मेरे लिए ताई का पुर्जा पुर्जा हिला दिया जब हल्का हल्का अँधेरा होने लगा तो हम लोग वापिस हुए



ताई को उसके घर छोड़ा और मैं अपने घर आ गया मजदूरो ने काफी काम कर दिया था जहाँ कल तक झाड झंखाड़ था अब वहा खुली जगह थी मैं घर के अंदर गया तो रौशनी थी मतलब बिजली लग गयी थी जैसे ही मैं बैठक में गया मैं मुस्कुरा पड़ा सामने दिवार पर मम्मी- पापा की तस्वीरे लगी हुई थी एक दम साफ़ कोई धुल मिटटी नहीं





“मैंने सोचा यहाँ लगा दू तुम्हे अच्छा लगेगा ” बोली पिस्ता





मैंने उसका माथा चूम लिया





वो- कहा थे पूरा दिन





मैं- बस ऐसे ही घूम रहा था





वो- अकेले रहना ठीक नहीं है





मैं- बस ऐसे ही गया था





वो- तुम्हारा ऐसे ही पूरा दिन है



वो- अकेले रहना ठीक नहीं है





मैं- बस ऐसे ही गया था





वो- तुम्हारा ऐसे ही पूरा दिन है





मैं- अब जाने भी दे बहुत भूख लगी है





वो-खाना लगाती हु





मैं- क्या बनाया है





वो- खुद ही देख लो





मैंने देखा आलू के परांठे बने थे उसने जानती थी की मुझे सबसे ज्यादा ये ही पसंद है मेरे होंठो पर मुस्कान आ गयी





वो- क्या हुआ





मैं- तूने जानके बनाये न ये





वो- हां ,सोचा इसी बहाने तुम खुश हो जाओगे





मैं- जब तू साथ है तो खुश ही हु





वो-पता है जब तू नहीं था बहुत याद आती थी तेरी, जी करता था की उड़ के तेरे पास पहुच जाऊ और तू निर्मोही क्या तुझे कभी याद ना आई





मैं- तुझे क्या लगता है





वो- तो फिर इतने साल दूर क्यों रहा





मैं- कहा ढूंढता तुझे , और फिर तू खुश तो थी अपनी जिंदगी में और मेरा हाल तो तुझे पता ही है





वो- हां, तभी तो अब तेरे साथ आई अब चाहे जान निकल जाये पर तेरा साथ ना छोडूंगी





मैं-दिन में और कुछ हुआ था क्या





वो-ना एक दो लोग आये थे तुझसे मिलने बस





मैं- राहुल आया था





वो- ना शाम को तो ना आया





मैं- काम हो गया होगा कुछ





वो- कल मैं सहर जाने का सोच रही हु,





मैं- हो आना





वो- तू भी चल





मैं- ठीक है , घर की मरामत हो जाये फिर थोड़ी पेंटिग करवा लेना अब रहने लगे है तो अच्छा दिखना चाहिए





वो- हो जायेगा वैसे मेरे मन में एक बात है कहे तो पूछ लू





मैं- पूछ





वो- तूने ये नहीं बताया की वो गाड़ी में कौन था





मैं- जाने दे, क्या करेगी पूछ के





वो- अब तू मुझसे भी छुपाने लगा है ,देख हम लोग गाँव तो आ गए है पर यहाँ किसी पर भी आँख मूँद कर भरोसा मत करना समझ रहा है न मैं क्या कह रही हु जब भी अपनो ने धोखा दिया था अब भी अपने ही है
 

Incest

Supreme
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मैं- तुझे क्या लगता है वैसे बिमला को खबर होने के बाद भी मिलने नहीं आई





वो-वो है ही नहीं गाँव में





मैं- कहा गयी





वो- बड़े बड़े लोग में उठती बैठती है आजकल सुना है देहरादून गयी है





मै- भाद में जाये अपने को क्या





वो- अब मैं क्या कह सकती हु , खाना ठंडा हो रहा है जल्दी से खालो, मैं दूध लाती हु



फिर कुछ देर बाद हम लोगो में कुछ बात चीत नहीं हुई वो बर्तन समेट कर चली गयी मैं सोचने लगा पर क्या सोच रहा था मैं पिस्ता का सवाल तो सही था पर मैं क्या बताता उसको की मैंने किसे देखा था पर कब तक छुपाता इस बात को कभी ना कभी तो बताना ही था , पूरा दिन गीता ताई के साथ कुश्ती की थी औ अब खाना थोडा ज्यादा खा लिया था तो आँखे भारी होने लगी थी ,बैठे बैठे ही मेरी आँख लग गयी एक झपकी सी आ गयी थी





पता नहीं कितनी देर की थी वो झपकी पर जब अचानक से मेरी आँख खुली तो लाइट नहीं थी मोमबती जल रही थी और मेरे सामने पिस्ता बैठी थी





मैं- सोयी नहीं





वो- तुम इधर ही सो गए थे तो मैंने जगाया नहीं





मैं- तू भी ना बावली ही है , चल आजा सोते है





हम ऊपर आये और पिस्ता मेरे पास आके लेट गयी मैंने उसको अपनी बाँहों में भर लिया वो मुझ से चिपक क्र सो गयी मुझे भी उसकी बाँहों में सुकून मिला पर शायद आज की रात नींद नसीब में थी ही नहीं एक सपना सा आ रहा था तभी पिस्ता ने जगा दिया





मैं- सोने दे न



वो- देव, उठो देखो बाहर कोई है





मैं तुरंत उठा, और सामने को और देखा दूर एक साया सा भागता दिखा





मैं- कौन था





वो- मुझे क्या पता





मैं- मेरा मतलब तुझे कैसे देखा





वो- सुसु करने जा रही थी तभी नीचेको नजर पड़ी तो लगा की कोई है





मैंने घडी में टाइम देखा सुबह के तीन बज रहे थे अगर चार से ऊपर होता तो मैं सोचता की कोई टट्टी-पेशाब वाला होगा पर तीन बजे और वो फिर उसका भागना





मैं- बैटरी ले आ , चल देखते है





और फिर हम लोग घर से बहार आ गए सुबह की ठण्ड वातावरण में घुली हुई थी मैं और पिस्ता उस तरफ बढे जहा वो साया खड़ा था कुछ दूरी पर हमे कदमो के निशान मिल गए





मैं- पिस्ता कोई औरत थी



वो- कैसे





मैं- देख पांवो के निसान जूतियो के है





वो- पर गाँव में कई मर्द भी जूतिया पहनते है





मैं- हो सकता है





वो- चल देखते है निशान कहा तक है





मैं- पर इस तरफ तो जंगल है कहा ढूंढें गे





वो- पर कोशिस तो करनी हो होगी अगर मिल गयी मुझे तो उसकी खाल ही उतार लुंगी साला दो दिन हुए नहीं हमे आये और लोगो की गांड में दर्द हो गया





मैं-कही कोई चोर हुआ तो





वो- अगर आदमी हुआ तो चोर वाली बात समझ आई पर लुगाई यु रिस्क न लेगी





मैं- बात तो सही है चल देखते है





तो उन पांवो के निशान को देखते देखते हम लोग आगे बढ़ चले पर जल्दी ही वो निशान धुंधले होने लगे और हम जंगल के मुहाने तक आ पहुचे थे





मैं- पिस्ता अब क्या





वो- देखते है





और तभी मुझे कुछ दिखा मैंने देखा तो एक हीरे का टुकड़ा था एक चैन में अब इस बियाबान जंगल में ये कहा से आया

पिस्ता- शायद उसी है है और इस से ये कन्फर्म होता है की वो औरत ही थी उसी का गिर गया होगा





मैं- गिरा नहीं है हमारे लिए छोड़ा है , क्योंकि गिरता तो टूटके पर ये टूटा हुआ है नहीं किसी ने जानके छोड़ा है हमारे लिए





वो- तो उसको घर पे मिलने में कोई तकलीफ थी खामखा परेड करवाई , घर पर ही दे देता





मैं- शायद कोई सुराग है हमारे लिए





वो- तुम ही जानो





घर आये तो साढ़े 4 बज गए थे फिर सोने का मतलब ही नहीं था फ्रेश वगैरा होकर आये तब तक पिस्ता ने कुछ खाने के लिए बना लिया था तो आज जल्दी ही नास्ता कर लिया मैं और पिस्ता बात कर रह थे की तभी मुझे कुछ सूझा और मैं बिमला वाले मकान में आया उसका हाल भी बुरा ही था जैसे बरसो से उसकी किसी ने सुध ना ली हो मैंने ताला तोडा और अन्दर आया और तलाशने लगा कुछ पर दो घंटो की कड़ी छानबीन के बाद भी कुछ नहीं मिला तो मैं वापिस आ गया

मजदूर लोग आ गए थे अपने समय पर उनके आने के बाद मैं और पिस्ता सहर के लिए निकल पड़े पिस्ता को कुछ कपडे खरीदने थे और कुछ सामान था हमे वही पर ही दोपहर हो गयी थी उसके बाद हमने लंच किया और घर के लिए निकल ही रहे थे की बाज़ार में एक शोरूम पर मेरी नजर पड़ी दरअसल उसके पोस्टर में बिलकुल वैसा ही हीरे वाली चैन थी जैसी की हमे मिली थी मैंने पिस्ता को इशारा किया और हम अन्दर घुस गए





काफी बड़ा शोरूम था हम अन्दर गए पिस्ता ने खुद को बिजी कर लिया मैंने दुकान का अवलोकन किया और जैसे ही मेरी नजर काउंटर पर गयी कुछ कुछ बात मेरी समज में आने लगी ,काउंटर पर मामी बैठी थी मैं उनकी तरफ बढा मुझे देख कर उनके चेहरे पर कोई रिएक्शन नहीं आया उन्होंने मुझे इशारा किया और मैं उनके पीछे एक केबिन में आ गया





मामी-- मुझे पता था तुम यहाँ जरुर आओगे





मैं- अच्छा तो वो लॉकेट आपने वहा पर छोड़ा था ,





वो- मुझे पता था तुम समझ जाओगे





मैं- क्या समझ जाऊंगा





वो- देव, तुम्हारी जान को खतरा है





मैं- इसमें नयी बात कहा है , वैसे तरक्की खूब कर ली है ये हीरे-जवाहरात का बिजनेस चलो अच्छा ही है





वो-क्यों शर्मिंदा कर रहे हो





मैं- ना, ना मैं कौन होता हु आपको शर्मिंदा करनेवाला





वो- मुझे माफ़ कर दो देव उसे मेरा कोई कसूर नहीं था





मैं- वो सब छोड़ो, ये बताओ तुम इस शहर में क्या कर रही हो मतलब की अपना बिजनेस तुमने अपने सहर में न शुरू कर यहाँ क्यों क्या





वो- तुम्हारे मामा के कारण





मैं- हम्म तो मेरा शक तब भी सही था आज भी सही है मामा ने उस दिन जानबूझ कर मुझे दारू लाने भेजा था ये सब पहले से तय था





वो-नहीं देव नहीं





मैं- तो फिर सच क्या है तुम बताओ मुझे





वो-तुम्हे तो पता ही है की तुम्हारे नाना और मामा में कभी नही बनती थी , दरअसल तुम्हारे मामा हमेशा ही अपनी कम कमाई की वजह से टेंशन में रहते थे और ऊपर से तुम्हारे नाना तुम्हे ले आये, तुम्हारे प्रति उनका स्नेह देख कर वो जलते थे इसी लिए वो तुमसे रुखा व्यव्हार करते थे और फिर तुम्हारा मुझसे नाता जुड़ गया एक दिन तुम्हारे मामा ने हम दोनों को देख लिया था ये बात मुझे बाद में पता चली वो एक आग जलने लगे थे देव, पर वो गलती मेरी थी जो मैंने उनके साथ बेवफाई की मैं बह गयी थी तुम्हारे साथ





मैं- तो अपनी वफ़ा साबित करने के लिए आपने मुझ पर गोलिया चलाई





मामी की आँखों से आंसू गिरने लगे थे “मैं मजबूर थी देव , मैं मजबूर थी ”





मैं- नहीं आप मजबूर नहीं थी बल्कि ये एक सोची समझी साजिश थी अब बता भी दो की कौन कौन शामिल था इसमें





वो- देव, मैं तुम्हारी कसम खाके कहती हु मैं मजबूर थी देव





मैं- चलो मान लिया तो वो कौन सी मज़बूरी थी





वो-मजबूरी थी देव बात अगर मेरी होती मैं अपनी जान दे देती पर बात मेरे पुरे परिवार की थी अगर मैं तुम पर गोली नहीं चलाती तो मेरे पुरे परिवार को मार दिया जाता





मैं- और ये सब तुमको मामा ने बताया होगा है ना



वो-हां,





मैं- और तुमने मान लिया





वो- उनके मुह से सुनके नहीं माना पर याद है वो जो फ़ोन उनको आते थे एक दिन मैंने उनकी बाते छुप कर सूनी तब मैंने जाना की वो झूठ नहीं कह रहे थे दरअसल तुम्हारे मामा को पैसो की बहुत जरुरत थी वो उन लोगो के जाल में फस चुके थे





मैं- इस कहानी में जरा भी दम नहीं है





वो- बेशक तुम चाहो तो इसे झूठ मान सकते हो





मैं- मैं बस इतना जानना चाहता हु की आखिर वो क्या वजह थी जो तुमने मुझ पर गोलिया चलायी





वो- देव, मैं बता चुकी हु



मैं- पर सच सुनना चाहता हु मैं





वो- देव, मैं तुम्हारी गुनेह्गार हु मैंने वो किया जो नहीं करना चाहिए था पर मैं मजबूर थी मैं जानती हु तुम मेरा विश्वाश नहीं करोगे , देव तुम्हारी हर सजा मंजूर है मुझे





मैं- मामा से मिलना चाहूँगा





वो- नहीं मिल सकते





मैं- क्यों





वो- क्योंकि वो अब इस दुनिया में नहीं है तुम पर हुए उस हमले के बाद उनको बड़ा सदमा लगा और दो महीने बाद उनकी मौत ह गयी

मेरा तो दिमाग ही जैसे फट गया था मामा भी मर गया था वो ही तो वो कड़ी था जो मुझे बता सकता था मेरे असली दुश्मन के बारे में





मामी- मरने से पहले एक दिन तुम्हारे मामा ने मुझे काफी सारे रूपये दिए उनकी मौत के गम में माँ-पिताजी भी ज्यादा दिन नहीं पकड पाए और रह गयी मैं अकेली घर बार बेच कर कुछ पोलिसी थी तो खूब पैसा हो गया था तो मैंने इधर दुकान खोल ली और बिजनेस अच्छा चल पड़ा





ये एक और वज्रपात था मुझ पर नाना नानी भी नहीं रहे थे ये तक़दीर कैसे ज़ख्म दे रही थी आँखों में पानी भर आया था पर मामी के आगे मैं कमज़ोर नहीं पड़ना चाहता था





मैं- मामी मैं लास्ट बार पूछ रहा हु की आखिर ऐसी कौन से मज़बूरी आन पड़ी थी





वो- देव, तुम कभी नहीं समझोगे





मैं- तो समझाती क्यों नहीं





वो- सुनना चाहते हो तो सुनो तुम्हारे नाना तुम्हे यहाँ सिर्फ इसलिए अपने साथ नहीं ले गए थे की उनकी बेटी की एक मात्र निशानी बस तुम ही ही थे बल्कि इसलिए की अब उस दौलत के तुम ही वारिस थे देव, हर चीज़ ऐसी नही होती जैसी दिखती है तुम्हारे नाना की हसरत थी की कुछ भी करके वो दौलत तुमसे हथिया ले देव, रिश्ते नातो में प्रेम , ईमानदारी का जमाना बहुत पहले ख़तम हो चूका है क्या तुमने कभी सोचा की मामी ऐसे ही पट गयी तुमसे, ऐसे ही अपनी इज्जत तुम्हे सौंप दी माना की तुम जिस्मो के खेल के बाद खिलाडी रहे हो पर हर औरत ऐसे ही अपना जिस्म किसी को भी नहीं सौंप देती है







ये सब तुम्हारे नाना के कहने पर किया मैं , मेरे और मेरे ससुर में अवैध सम्बन्ध थे ये बात तुम्हारे मामा को पता चल गयी थी और यही वजह थी जो उनकी अपने पिता से अनबन रहती थी देव कुछ सच ऐसे होते है जो बस छुपा लिए जाये तो बेहतर पर आज ये राज़ खुलना ही था तुम्हारे मामा का दोष बस इतना ही था की वो हालात की नजाकत को समझ नहीं पाए हां वो जलते थे तुमसे क्योंकि तुमने भी उसकी बीवी पर अधिकार कर लिया था , और फिर ना जाने कैसे तुम्हारे मामा को एक मोटी रकम का ऑफर मिला और बदले में बस इतना की उस दिन किसी तरह से तुमको घर से दूर उस जगह भेजा जाये

मैं- माना की तुम्हारी कही हर बात ठीक है पर मुझको सँभालने की जगह वो गोलिया तुमने चलायी थी मुझे इस बात का जवाब अभी तक नहीं मिला की क्यों ?





मामी- हम्म,, देव, मेरे दोनों बच्चो का किडनैप कर लिया गया था मुझे बस एक फ़ोन आया था जिसमे ये बात इंदु की सगाई से कुछ दिन पहले की ही थी , दोनों बच्चे फंक्शन के लिए चलने वाले थे सुबह ही उन्होंने फ़ोन करके मुझे बताया था की शाम तक वो आ जायेंगे , पर दोपहर को एक फ़ोन आया बस इतना कहा गया की अपने बच्चो की सलामती चाहती हो तो हमारा ये काम करना होगा मैं चिल्लाई उस पर मुझे लगा कोई मजाक कर रहा है पर जब मैंने अपने बच्चो की चीखे सूनी तो मैं घबरा गयी उन्होंने साफ़ कहा था की अगर किसी को जिक्र भी किया तो अपने बच्चो को कभी दुबारा नहीं देख पाओगी मैं बुरी तरह डर गयी थी , पूरा दिन बस गुमसुम पड़ी रही याद है जब तुमने आके मेरा हाल पुछा था ये उस दिन की बात है अब मैं तुम्हे क्या बताती की क्या कीमत मांगी गयी है अपनी औलाद की सलामती की







मैं रोती रही बिलखती रही जूझती रही अपने मन में उठ रहे उस तूफ़ान से और फिर अगले दिन फिर से उनका फ़ोन आया की अगर तुमने देव को नहीं मारा तो तुम्हारे बच्चो की लाश भी देखने को नसीब नहीं होगी बताओ मैं क्या करती एक माँ की ममता के आगे तुम्हारी मामी हार गयी देव तुम्हारी मामी हार गयी , और फिर वो दिन आया उस शाम् मुझे फ़ोन आया की सोच लो देव चाहिए या बच्चे मैं मजबूर थी तो क्या कहती और जब मैं वहा पहुची तो देखा तुम खून से लथपथ तड़प रहे थे आधे बेहोश थे तुम और दिल पर पत्थर रख कर मैंने गोलिया दाग दी





मैं तुम्हारी गुनेहगार हु देव, तुम जो चाहे सजा दो हर सजा मंजूर है मुझे ये कह कर वो फफक कर रो पड़ी मैंने कोई कोशिश नहीं की उन्हें चुप करवाने की





मामी- देव, वो गोलिया मैंने तुम पर नहीं बल्कि अपने आप पर चलाई थी उस दिन से आज तक हर पल मैं मरती आई हु अपनी आत्मा पे लिए इस बोझ को कैसे जी रही हु बस मैं ही जानती हु तुम्हारे मामा चले गए सब ख़तम हो गया तो मैंने ये मुखोटा ओढ़ लिया





मैं- तो वो फ़ोन करने वाले कौन थे





वो- तुम्हारी कसम देव मैं बिलकुल नहीं जानती





मैं-तो बात घूम फिर कर वही पर आ गयी





वो- सच देव, मुझे इस बारेमे कुछ नहीं पता





मैं- आदमी ने फ़ोन किया था या औरत ने



वो-औरत ने



मैंने एक गहरी सांस ली और वहा रखे जग से थोडा पानी पिया



मैं- चाचा से शादी कब की तुमने





मामी- तुम्हे पता चल गया
 

Incest

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मैं- हां



वो- तुम्हारे जाने के एक साल बाद , तुम्हारे चाचा को तुम्हारे हमले से बड़ा दुःख पंहुचा था इस खबर से जैसे टूट गए थे वो , हर हफ्ते वो आते सबसे पूछते, सुराग ढूंढते और ऐसे ही हम लोग एक दुसरे के नजदीक आ गए ऐसा नहीं था की मुझे सहारे की जरुरत थी पर एक जवान औरत का अकेला जीना बड़ा मुश्किल होता है देव तो कुछ सोच कर हमने साथ रहने का फैसला ले लिया





मैं- अच्छा किया





वो- मिलोगे नहीं अपने चाचा से





मैं- वो मेरे कुछ नहीं लगते





उसके बाद मैं खड़ा हुआ और वहा से निकल आया पिस्ता मेरा इंतजार कर रही थी

वो-कहा चले गए थे तुम





मैं- बस ऐसे ही तुमने पसन् किया कुछ





वो- नहीं , वैसे भी हम यहाँ कुछ खरीदने नहीं आये थे है ना





मैं हल्का सा मुस्कुरा दिया , हम लोग गाँव के लिए चल पड़े पर मेरे सीने में दर्द उठने लगा था सर भारी हो रहा था मैंने अपनी आँखे बंद कर ली दर्द से ध्यान भटकने की पूरी कोशिश की पर ऐसा होते रहता था मेरे साथ बड़ी मुस्किल से वो सफ़र पूरा किया डगमगाते हुए कदमो से घर की और बढ़ रहा था पसीने से तर हो गया था शरीर जैसे ही घर के बाहर चबूतरे तक पंहुचा मैं वही गिर गया आँखे जैसे दर्द से फटने को हो गयी थी मैंने अपनी शर्ट फाड़ डाली और अपनी छाती की मसलने लगा





पिस्ता ने मुझे अपनी गोदी में लिया और मेरे सीने को सहलाने लगी मुझे तड़पता देख कर उसकी रुलाई छुट पड़ी उसके आंसू मेरे चेहरे को भिगोने लगे धीरे धीरे सब धुंधला होने लगा अँधेरा छा गया , पता नहीं उसके बाद कब होस आया देखा तो मैं अन्दर लेटा हुआ हु कुछ लोग मेरे पास बैठे थे मेरे होश में आते ही पिस्ता मुझ से लिपट गयी और जोर जोर इ रोने लगी

मैं- कुछ नहीं हुआ पगली, ऐसा दर्द होता रहता है ये जो ज़ख्म है सब इनकी मेहरबानी है





पिस्ता- तुम्हे कुछ हो जाता तो





मैं- कुछ नहीं होगा पगली





मैंने उसे अपने से अलग किया और देखा की रतिया काका, राहुल , काकी सब वही थे सब के चेहरे पर टेंशन थी जब मैंने उन्हें बताया की कुछ पुराने ज़ख्मो की वजह से अक्सर ये दर्द उठता है तो उनकी फिकर थोड़ी कम हुई फिर पिस्ता ने मुझे शाम तक बिस्तर से उठने नहीं दिया वो दिन बस ऐसे ही गुजर गया अगले दिन ताई गीता मिलने आई थी उसको शायद मालूम हो गया था पिस्ता को देख कर वो चौंकी और उन्होंने पूछ ही लिया की ये मेरे साथ क्या कर रही है और मैंने भी सीधा बता दिया की ये मेरी पत्नी है ताई को बड़ा. आश्चर्य हुआ पर वो फिर बात टाल गयी





ताई दोपहर तक रही हमारे साथ फिर वो चली गयी उसके बाद मैंने और पिस्ता ने लंच किया उसके बाद हम लोग खेतो की तरफ घुमने चल दिये पिस्ता भी बोर हो रही थी तो हम बाते करते हुए हम पहुचे





मैं-याद है ये मेरा कुआ था और वो थोड़ी दूर तेरा और अपनी मुलाकात भी तो यही हुई थी





वो- मैं कैसे भूल सकती हु हां बस अब इतना है की ये खेत अब मेरा नहीं रहा भाई ने इसको किसी और को दे दिया है बस हर फसल के आधे पैसे ले लेता है





मैं- उदास क्यों होती है ये सब तेरा ही तो है तू कहे तो अभी खाली करवा लू ये खेत



वो- ना रहने दे बस तुम हो अब किसी चीज़ की आस नहीं तुम्हे पाकर मैं पूरी हो गयी हु





मैं- वो भी क्या दिन थे ना, याद है इसी जगह मैं बिस्तर लगाके रेडियो सुना करता था कैसे हम मिला करते थे ये धरती गवाह है हमारे प्यार की





वो- हां



पिस्ता- देव तुमने मुझमे ऐसा क्या देखा था



मैं- अब इन बातो का क्या मतलब जो देखा था तुम्हे भी पता है मुझे भी क्या इतना काफी नहीं है तुम हो तो मैं हु मैं हु तो तुम हो



वो- बाते बड़ी अच्छी करते हो



मैं- देखो वक़्त कितना बदल गया है जब चोरी चोरी मिलते थे आज देखो हक़ से तुम्हारा हाथ थामे खड़ा हु पर वो भी क्या दिन थे याद है एक बार लकड़ी काटने के बहाने से हम जंगल में मिले थे सच कहू तुम्हारा वो दिलेर अंदाज ही मेरे मन को भा गया था आज जो जी रहे है वो क्या ख़ाक जिंदगी है



वो- अब जैसे भी है जीना तो पड़े ही गा



मैं-वो तो है



पिस्ता- देव, तुमने बहुत कुछ सहा है, मैं बस इतना चाहती हु की अब तुम आराम से जिओ,



मैं- तुम साथ हो तो आराम ही है



वो- हां, पर ये जो अनजाना दुश्मन है ना जाने कब क्या वार कर दे , बिमला के आते ही तुम बात करो उस से



मैं- कोशिश करूँगा



वो- देव, हम पहले ही सब कुछ खो चुके है जल्दी ही आर्यन भी यहाँ होगा हम हमेशा तो उसको यहाँ से दूर नहीं रख पाएंगे और फिर जब तुमने अब सोच ही लिया है की गाँव में रहोगे तो सुरक्षा एक बहुत बड़ा मुद्दा है



मैं- पिस्ता, देखो मैं बहुत थक गया हु , ऐसा नहीं है की मैंने इन सब बातो के बारे में विचार नहीं किया है पर मैं सच में थका हु , थक गया हु इ जिंदगी से थोडा आराम करना चाहता हु थोड़ी देर तुम्हारे आँचल तले सोना चाहता हु



मैंने पिस्ता की गोदी में अपना सर रखा और आँखों को मूँद लिया वो धीरे धीरे मेरे बालो में हाथ फेरती रही क्या मैंने झूठ कहा था आजतक अगर मुझे कही सुकून मिला था तो बस पिस्ता के पास ही , उसमे ही मुझे रब दीखता था वो ना जाने किस मिटटी की बनी थी मेरी खातिर उसने खुद को दांव पर लगा रखा था , कुछ देर मैं लेता रहा , ठंडी हवा चल रही थी तो मूड रोमांटिक सा होने लगा था पर पिस्ता ने ये कह कर टाल दिया की उसका महिना आ गया है



तो क्या किया जा सकता था , एक बार फिर से हमारी बाते चालू हो गयी और मैंने पिस्ता कोक आखिर बता ही दिया कीमेरे और मामी के बीच क्या बात हुई थी और मामी ने चाचा से शादी भी कर ली थी , सारी बात सुनकर पिस्ता ने अपना माथा पीट लिया और बोली- तभी क्यों नहीं बताया मुझे, देखो साफ़ है वो दोनों साथ है तो कुछ तो बात होगी ही मैं दो मारती उसकी गांड पे तो सब बता देती वो





मैं- पर तुमने इस बात पे ध्यान नहीं दिया की चाचा ने बिमला को छोड़ दिया



वो- मैं भी यही कहने वाली थी



मतलब-अजीब नहीं लगता जिस बिमला के लिए वो पुरे परिवार से ख़राब हो गए उस बिमला को छोड़ दिया



मैं- या फिर शायद बिला ने उनको



वो- हो भी सकता है , वैसे हमे बिमला को धर लेना चाहिए उसकी वजह से ही ये सब शुरू हुआ था वो ही बताएगी



मैं- उसकी वजह से नहीं बल्कि मेरी वजह से सब शुरू हुआ था ये मत भूलो की उसको बहकाने वाला मैं ही था



वो- कब तक इस बात का मलाल करते रहोगे, वो क्या नासमझ थी उसे क्या पता नहीं था की इस रस्ते पर अंजाम क्या होगा और क्या तुमने चाचा से चुदने को कहा था उसको , उसको भी सब पता था की वो किस आग से खेल रही है, अब मुझे ही देखो क्या मैंने आजतक जो भी किया वो अनजाने में हुआ नहीं ना, मुझे हर पल पता था तो ये बात को समझो जरा





मैं- तो फिर ठीक है बिमला के आते ही मिलूँगा उस से



वो- घर चलते है, सांझ घिर आई है



पैदल ही घूमते हुए हम लोग घर की तरफ बढ़ रहे थे रस्ते में देखा की ताई के मकान पे ताला लगा है शायद गयी होगी कही पे रस्ते में कुछ और लोगो से दुआ-सलाम हुई और हम लोग घर आ गए मजदूर लोग भी जाने की तयारी कर ही रहे थे अन्दर जाकर हाथ-पाँव धोये पिस्ता कुछ काम करने लगी मैं कुछ पुराने कमरों में देखने लगा बस ऐसे ही देख रहा था शायद कुछ ऐसा मिल जाये कोई पुरानी याद या फिर ऐसा चारो तरफ बस पुराना सामान ही बिखरा हुआ था और तभी मुझे एक डायरी मिली हालात थोड़ी खस्ता थी पर क्या लिखा था पढ़ा जा सकता था





लिखाई को मैं देखते ही पहचान गया था वो पिताजी की लिखाई थी, शायद किसी तरह का हिसाब था पैसो के लेनदेन का रकम तो लिखी हुई थी पर लेनदारो या देनदारो के नाम की जगह शायद कुछ अजीब सा लिखा हुआ था मैंने कुछ और पन्नो को पलटा एक बात तो साफ़ थी की रकम बहुत बड़ी थी मैं वो डायरी लेकर वापिस आया और पिस्ता को दिखाया उसने कई देर तक सब देखा फिर बोली- “देव, तुमने इस बात पे गौर नहीं किया की रकम बहुत बड़ी है इतना पैसा आया कहा से होगा ”





मैं- शायद पार्टनरशिप रही हो किसी तरह की





वो- पर किस से , चलो मान भी लिया जाए की पार्टनरशिप थी तो भी ये रकम बहुत बड़ी होती है माना की तुम्हारा परिवार अमीर था घर में नोकरिया भी थी और जमीं जायदाद भी खूब थी , ज़मीन इतना पैसा दे सकती है अगर उसको बेचा जाये पर मुझे नहीं लगता की तुम्हारी कोई जमीन बेचीं गयी हो





मैं- और जो भी नकद पैसा था वो बैंक में जमा है पाई पाई का हिसाब है पिस्ता मुझे लगता है इस रकम का कुछ तो झोल है



वो- हो सकता है , अगर ये नाम स्पस्ट होते तो अभी काम बन जाना था



मैं- एक मिनट, एक अंदाजा है की रकम कहा से आई होगी



वो- बताओ



मैं- देखो, हमेशा से ही गाँव की सरपंची हमारे पास रही है मुझे तो याद ही नहीं आता की कबसे और गाँव के विकास का पैसा सरकार की तरफ से खूब आता था अब उस ज़माने में किसकी हिम्मत थी की सरपंच से हिसाब मांगे , कम से कम गाँव वालो की तो नहीं तो क्या पता ये बरसो से गबन की गयी रकम हो





पिस्ता- देव, मुझे ये बात थोड़ी कम जंचती है क्योंकि तुम्हारे परिवार ने गाँव वालो के लिए बहुत कुछ किया है और मत भूलो की अगर तुमने चाल नहीं चली होती तो बिमला को गाँव ने जीता ही दिया था





मैं- मानता हु पर कई बार चीज़े ऐसी भी नहीं होती जैसी की दिखती है चलो मान लिया की मेरा अंदाजा गलत है पर अब कुछ तो लेनदेन है तभी लिखा गया है

पिस्ता –मैं कहा इस बात को नकार रही हु लेनदेन तो है और जब इतनी बड़ी रकम है तो क्या पता वो सब साजिश इसके लिए ही हुए हो





पिस्ता की इस बात में दम था पर अगर इस बात को मान लू तो अब तक जो भी हुआ था जो भी समझा था जाना था उस से बात एक अलग दिशा में घूम जाती थी जहाँ मैं आजतक इसे पारिवारिक दुश्मनी मान रहा था अब बात दूसरी हो जाती थी कुछ भी हो खेलने वाले ने खेल बहुत ही तगड़ा खेला था पर कौन हो सकता था इन सब के पीछे सवाल लाख टके का था





पिस्ता- अगर किसी गाँव वाले का इस से ताल्लुक है तो हम कल ही जांच-पड़ताल करेंगे की बीते समय में किस किस ने अस्चार्य्जनक रूप से तरक्की की है





मैं- हां,





पिस्ता- ये काम मैं करुँगी , वैसे देखो हमेशा से ही गाँव में दो ही परिवार ऐसे थे जिनका रसूख था तुम्हारा और अवंतिका का तो तुम्हारे आलावा मैं किसी तीसरे से शुरू करुँगी





मैं- सही है बिलकुल



वो-तो सबसे पहले किसको पकडू



मैं- तू जाने



वो- कल गाँव में कुछ जानकारी इकठ्ठा करती हु तभी कुछ बात बनेगी पर कल तुम एक काम करो पटवारी से मिलके तुम्हारी पूरी जमीं के रकबे की जानकारी लो इस से हमे वास्तव में पता चलेगा की जमीन है कितनी हो सकता है की कोई ऐसी जमीन हो जिसका हम लोगो को पता ही ना हो मतलब कोई और जमीन खरीदी गयी हो



मैं- हां, कल सुबह ही पटवारी से मिलता हु



वो- हा, मैं एक काम और करवाना चाहती हु



मैं- बताओ



वो- देखो ये घर सड़क से काफी अन्दर को है तो मैं चाहती हु की सडक से लेके घर के चारो तरफ ऊंची चारदीवारी करवा लू कुछ ही दिनों में बाकि लोग भी आ जायेंगे तो सुरक्षा चाहिए होगी खासकर आर्यन की क्योंकि हमारे दुश्मनों को जैसे ही पता चलेगा की आर्यन वारिस है वो कुछ न कुछ तो जरुर करेंगे



मैं- हां ये बात मैंने भी सोची थी तुम कल से ही चारदीवारी का काम शुरू करो मजदूर बढ़ा दो पर ये काम उनलोगों के आने से पहले ही होना चाहिये



पिस्ता- कल से ही सुरु करवाती हु हां, एक बात और कल कुछ पैसे ले आना जरुरत है





मैं- ठीक है





तो अगले दिन मैं पटवारी से मिला और मेरे परिवार की हर जमीं के आंकड़े मांगे साथ ही गाँव के उन सभी लोगो की जानकारी भी मांगी जिन्होंने पिछले कुछ सालो में जमीने खरीदी थी अब ये काम थोडा लम्बा था तो पटवारी ने दो दिन की मोहलत मांगी उसके बाद मैं बैंक गया कुछ पैसे निकाले उसके बाद एक गाड़ी खरीदनी थी अब कब तक पैदल ही घूमना होता तो उसकी कार्यवाई होते होते शाम ही हो चली थी बस घर ही जाना था तो सोचा थोड़ी मिठाई खरीद लू खरीदारी के बाद मैं टेम्पो स्टैंड आया और इंतजार करने लगा







कुछ मिनट बाद एक कार आई और मेरे पास रुक गयी शीशा उतरा तो मैंने देखा ये तो अवंतिका थी वो गाडी से उतरी





वो- देव, तुम देव ही हो ना





मैं- हां अवंतिका





वो खुश हो गयी बोली- तुम, इतने समय बाद कब आये





मैं- कुछ दिन हुए





वो-चलो मेरे साथ





मैं गाड़ी में बैठ गया रस्ते भर बाते होती रही उसने बताया की वो किसी काम से बाहर गयी हुई थी





वो- ये तुमने बहुत सही किया जो वापिस आ गए अपना घर तो अपना ही होता है अब आराम से रहो मेरे लायक जो भी सेवा हो वो बताना





मैं- तुमसे मुलाकात हो गयी बहुत है





वो- तुम अचानक से गायब हो गए कम से कम मुझे तो बता सकते थे





मैं- छोड़ो पुरानी बातो को ये बताओ क्या चल रहा है





वो- बस टाइमपास हो रहा है पतिदेव की तबियत कुछ ठीक रहती नहीं तो घर की जिम्मेवारी मुझ पर ही है देवर अपना हिस्सा लेकर अलग हो गया तो घर और कारोबार मुझे ही देखना पड़ता है





मैं- दिखाया नहीं किसी अच्छे डॉक्टर को





वो- इलाज चल रहा है





मैं- हो जायेगा ठीक





वो- कल आती हु मिलने



बातो बातो में गाँव कब आ गया पता ही नहीं चला उसने मुझे उतारा और अपने रस्ते बढ़ गयी मैं घर की तरफ चल पड़ा पिस्ता ने चारदीवारी का काम शुरू करवा दिया था वो घर के बाहर ही कुर्सी डाले बैठी थी किसी सोच में डूबी थी मुझे आता देख वो अन्दर गयी पानी ले आई मैंने सामान उसको पकडाया वो एक कुर्सी और ले आई




वो- शाम ही करदी आते आते





मैं- हां देर हो गयी एक गाड़ी खरीदी है तो उसकी चक्कर में ही देर वो गयी





वो-काम बना , मैं हां पटवारी दो दिन में पूरी डिटेल दे देगा तुम बताओ





वो- मैंने पता किया गाँव में देवलोपमेंट तो हुआ है पर लोगो ने अपनी जमीने फक्ट्रियो को बेचीं है उसकी वजह से





मैं- मतलब लोगो ने खरीदी कम की है





वो- देखो जिनमे जमीन खरीदी है उनमे बिमला, रतिया काका और अवंतिका ही मेन है बाकि जिन लोगो ने ५-७ एकड़ जमीं खरीदी है उनको मैंने लिस्ट से आउट कर दिया है





मैं- इन तीनो को भी आउट कर दे





वो- मेरी बात सुन तो सही





मैं-तेरा शक गलत है , ये तीनो ही मजबूत पोजीशन वाले है





वो- सुन तो ले मैं क्या कह रही हु





मैं-बता





वो- जिस जमीं पर रतिया काका ने अपनी फर्म का गोदाम बनाया है वो जमींन और उसके साथ की करीब अस्सी बीघा जमीन पर बिमला का और रतिया काका का पंगा चल रहा है





मैं- पर क्यों





वो- मुझे नहीं पता चला लोग कम ही बात करते है इनके बारे में





मैं- ठीक है कल रतिया काका से ही पूछ लुंगा





वो – उनसे पूछने की जगह पहले तुम खुद पड़ताल क्यों नहीं करते





मैं- मतलब





वो- तुम गाँव में ये अफवाह फैला दो की तुम बस अपनी सारी जायदाद बेचने आये वो इस तरीके से उनसे बात करो फिर देखो वो कैसे रियेक्ट करते है





मैं- ओके





वो- एक बात का और पता चला है की बिमला सिर्फ उसी जमीन पर खेती या फिर अपने काम करती है जो बंटवारे में उनको मिली थी उसके अलावा जब गीता ताई ने तुम्हारी जमीन पर खेती की तो उसने पुछा था पर जब पता चला तो उसने गीता को खेती करने दिया क्योंकि तुमने गीता को वो जमीन इस्तेमाल करने दी पर उसका रतिया काका से पंगा चल रहा है इसका मतलब ये की रतिया काका ने वो जमीन कुछ तिकड़म करके हथियाई है , अगर उसे लालच होता तो वो गीता से भी जमीन छीन लेती आखिर फसल से भी मोटी कमाई होती है और पैसा किसे बुरा लगता है





मैं- बात में दम तो है और गीता ने भी यही कहा की बस एक बार ही वो आई थी उसके बाद भूले से भी नही देखा इधर

वो- तो कहानी घूम फिर कर वही आ जाती है की असली बात क्या है



मैं- हो न हो इस जमीन का कुछ तो पंगा है एक बार पटवारी से सारा डाटा मिल जाये फिर कोई बात बने





वो- तुम्हे क्या लगता है मतलब देखो रतिया काका साहूकार आदमी है पैसो की कोई कमी ना आज है न पहले थी बल्कि जब बिमला चुनावो के खड़ी थी तो भी उन्होंने पैसा लगाया था ये बात और थी की एक्सीडेंट के बाद वो बिस्तर पर पड़ गए थे





मैं- बात तो सही है तुम्हारी पर मामी वाले एंगल को नजरो से दूर मत करो देखो वो चाचा के साथ है अब उसने जो कहानी सुनाई है वो झूठ भी हो सकती है हो सकता है की चाचा के साथ उसने प्लान बनाया हो और मेरे बाद मामा नाना नानी को उसी ने मार दिया हो और अब मुझे यु देख कर अबला बन रही है





पिस्ता- मुझे शक है पर तुम्हारी वजह से चुप हु वर्ना कभी का धर लेती उसको बल्कि मैं तो कहती हु उठा लाते है उसको और मैं अपने तरीके से पूछती हु





मैं- देखो, उसको मैंने जानके छोड़ा है अगर वो झूठ बोल रही थी तो जल्दी ही वो कुछ वैसा ही करने की कोशिश करेगी





वो- और तुम इंतजार कर रहे हो वैसा ही कुछ होने का बिलकुल पागल हो गए हो तुम





मैं- मुझे किसकी फिकर, मेरी ढाल जो तुम हो
 

kamdev99008

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दोस्तो एक और नई कहानी पेशेखिदमत है ये कहानी मेरी नहीं है इसको फ़ौजी भई aka HalfbludPrince ने लिखा था Xossip पर जिसे मैं यहाँ Xforum पर पोस्ट कर फाहा हूँ । जिन रीडर्ज़ को पढ़ने में दिक़्क़त हो रही faujiभई की कहानी वो यहाँ पढ़ सकते है।
भाई! बेशक ये कहानी xossip पर लिखी गई थी लेकिन जब लेखक यहाँ खुद मौजूद है तो उनसे इजाजत भी ले लेना....

बाकी .....कहानी फिर से पढ़ने को मिलेगी, हमें भी खुशी है
 

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पिस्ता मुस्कुरा पड़ी रात बहुत बीत गयी थी तो फिर बाते करते करते हम सो गए सुबह जब जागा तो पिस्ता बिस्तर पर नहीं थी घर में भी नहीं थी मैंने इधर उधर तलाश किया उसको कुछ देर बाद देखा वो पानी का मटका लिए आ रही थी



मैं- कहा चली गयी थी



वो- सोचा, की मंदिर से घड़ा भर लाऊ, पुरानी याद ताज़ा हो जाएगी



मैं- ऐसे अकेले ना जाया करो



वो- मुझे किसका डर



मैं- भूख लग आई है



वो- चूरमा खाओगे



मैं- दाल के साथ



वो- तो फिर इंतजार करो



मैं भी उसके पीछे पीछे रसोई में चला गया और बस उसको देखता रहा खाना खाने के बाद मैं रतिया काका के घर गया तो पता चला की वो फर्म गए है तो मैं वही चला गया कारोबार को काफी विस्तार दे दिया था उन्होंने हमारी कुछ बाते हुई और बातो बातो में मैंने मैंने जिक्र कर दिया की मैं गाँव का घर और सारी जमीन बेच कर जाना चाहता हु

काका- बेटे, पर हमने तो सोचा था की तुम अब साथ ही रहोगे हमे बड़ी खुशी होती अगर तुम गाँव में ही रहते पर चलो तुम्हारी जो इच्छा



मैं- अब ये आपकी जिमीदारी है इस घर और जमीन को बिकवाने की



काका- देखता हु बेटा क्या हो सकता है



काका के हाव भाव से कुछ गलत लगा नहीं था पर मैंने पिस्ता के कहे अनुसार अपना दांव खेल दिया था अब बस इंतजार था की कब पटवारी से सारी जानकारी मिले सवाल कई थे मेरे मन में और जवाब देने वाला कोई नहीं था मेरा दिमाग बुरी तरह से हिला हुआ था की ये माजरा क्या है मामी से भी कोई सुराख़ नहीं मिला था और एक बात और भी थी की जब चाचा और बिमला पुरे परिवार से लड़ गए थे तो फिर वो अलग क्यों हुए तभी मेरे दिमाग में वो आया जो शायद बहुत पहले आ जाना चाहिए था बिमला के पति का खयाल मेरे भाई का ध्यान मुझे आज तक क्यों नहीं आया





मैं वही से सीधे गीता ताई के घर गया और उनसे कवर के बारे में पुछा

ताई- हां, वो एक बार आया तो था तो उसको यहाँ की बात पता चली वो गुस्से में था की इतनी बड़ी बात हो गयी पर उसको बताया नहीं उसके बाद उसे बिमला की कारस्तानियो के बारे में पता चल गया था तो फिर चाचा का और उसका झगडा हुआ पर फिर सुनने में आया की वो वापिस दुबई चला गया था और उसके बाद फिर कभी लौट के ना आया पर मुझे ये बाद कुछ हजम नहीं हुई कुछ और बातो के बाद मैं वापीस घर आ गया





कुछ सोच के हमने फिर से घर की तलाशी लेनी शुरू की हर एक कागज़-पत्री की बड़ी बारीकी से जांच करनी थी पता नहीं क्यों मुझे लग रहा था की अगर मामला पैसो का है तो घर में जरुर कुछ न कुछ मिलेगा रात बहुत बीत गयी थी पर हम लोग अभी भी तलाश कर रहे थे और फिर मुझे कुछ ऐसा मिला जिसको शायद यहाँ नहीं होना चाहिए था ये एक फाइल थी हालत काफी खस्ता हो चुकी थी कुछ कागज़ बस नाम के ही बचे थे पर उसका कवर उर्दू में था

बस यही बात अजीब थी हमारे घर में उर्दू का क्या काम और तभी जैसे मेरे दिमाग में सब समझ आ गया उर्दू का सम्बन्ध था कंवर से क्योंकि वो दुबई गया था कमाने और





अगर वो दुबई था तो उसके कागज़ यहाँ क्या कर रहे थे मैंने फाइल खोली और उसकी चेन में मुझे कंवर का पासपोर्ट मिला , और मैं सारी कहानी समझ गया आँखों से कुछ आंसू निकल आये





पिस्ता- क्या हुआ





मैं- कंवर हमारे बीच नहीं रहा पिस्ता





वो- कैसे





मैं- देखो अगर वो दुबई गया होता तो उसका पासपोर्ट यहाँ नहीं होता





पिस्ता- दिल छोटा मत करो ये भी तो हो सकता है की उसको कैद करके रखा गया हो



मैं- हो सकता है हां, शायद यही हुआ होगा





पर मेरा दिल नहीं मान रहा था क्योंकि जब मुझे जानसे मारने की साज़िश हो सकती है तो फिर कंवर को क्यों नहीं मारा जा सकता मैं तो उन लोगो के नजर में मर गया था या लापता जो भी था और कंवर के बाद पूरी आज़ादी थी लोगो को पर समयसा ये थी की एक कड़ी भी दूसरी से जुड़ नहीं रही थी लाख कोशिश के बाद भी





पिस्ता- देव, क्या पता की कुछ कारणों से कंवर ने पासपोर्ट बदलवाया हो जैसे की डुप्लीकेट



मैं- हो सकता है कुछ परिस्थियों में होता है एक काम करता हु इस पासपोर्ट का स्टेटस पता करता हु अगर डुप्लीकेट होगा तो पता चल जायेगा



मैंने तभी ata को फ़ोन लगाया और अपना परिचय देते हुए पासपोर्ट के जानकारी मांगी तो जल्दी ही पता चल गया की डुप्लीकेट नहीं लिया गया और उस पासपोर्ट से लास्ट यात्रा दुबई से इंडिया की ही थी उसके बाद उसका उपयोग नहीं किया गया , तो मतलब साफ था की कंवर आया था पर वापिस गया नहीं अब दो ही बाते थी या तो उसको कैद करके रखा गया है या फिर उसको मार दिया गया है

दिमाग का दही हो गया था मैं गाँव आया था की अपनी उलझने सुलझा सकू पर यहा तो कहानी ही अलग थी अब करे तो क्या करे कुछ समझ आये न सवाल पे सवाल थे पर जवाब कुछ नहीं मिल रहा था गाँव वालो से भी कुछ मदद नहीं मिल रही थी बल्कि उनकी नाराजगी झेलनी पड़ रही थी क्योंकि पिस्ता मेरी पत्नी बनके रह रही थी और गाँव की लड़की को बस बहन-बेटी ही समझा जाता है तो कई लोगो ने ऐतराज़ किया था और इस बात को लेके पंचायत करने की बात कही थी अब सामने तो कोई बोलता नहीं था पर पीछे से लोग चर्चा करते थे पर उन को कौन समझाता की हम किन हालातो से गुजर रहे है





ये और एक मुसीबत आन पड़ी थी खैर भाड़ में जाये पंचायत पर ये कहना आसान था गावं के भी अपने कायदे कानून थे तो इंतजार था कब सरपंच आये और पंचायत लगे पर मेरे लिए उस से ज्यादा जरुरी था की उस बात का पता करू की आखिर ऐसी कौन सी वजह थी जिसकी वजह से मेरे पुरे परिवार को तबाह कर दिया गया आखिर कौन था मेरा वो दुश्मन खैर इनसब के बीच एक दिन पटवारी का फ़ोन आया तो उसने बताया की मेरा काम हो गया है एक बार मिल लू उस से तो मैं मिलने चला गया उसने पूरी जमीं का नक्शा दिया मुझे और बारीकी से हर बात बताई







कितनी मेरी पुश्तैनी जमीन थी कितनी हमने खरीदी थी हर एक बात की डिटेल थी अब मेरे पास हां एक बात और साफ हो गयी थी की जो जमीन रतिया काका अपनी फर्म बनाके यूज़ कर रहे थे वो हमारी ही थी , तो बिमला उनसे जायज ही मांग कर रही थी उसके आलावा जंगल की परली तरफ करीब 100 एकड़ बंजर जमीन थी जिसे पिताजी ने इसलिए ख़रीदा था की उसे खेती लायक बना लिया जाये तो वो खूब फलती मैं और पिस्ता उन जमीनों के बारे में ही चर्चा कर रहे थे





मैं- पिस्ता, एक बात तो पक्की है की ये जो भी जमीन खरीदी गयी उतना पैसा हमारे पास कभी भी नहीं था मतलब की अमीर थे पर इतने भी नहीं पिताजी और चाचा सरकारी नौकरी में थे ताऊ फ़ौज से रिटायर ऊपर से कितनी ही पीढियों से सरपंची हमारे पास थी पैसा था पर मैं फिर से कहता हु की इतना नहीं था पिताजी हमेशा सादगी पसंद थे सोच समझ कर चलते थे





पिस्ता- देव, देखो मैं ये नहीं कह रही की ऐसा ही है पर सरपंची में गाँव का जो पैसा आता है उसमे थोडा बहुत तो सब सरपंच खाते है तो क्या पता .........





मैं- पिस्ता, हो सकता है पर उस ज़माने में सरपंचो को मिलता ही कितना होगा





पिस्ता- यही भूल कर रहे हो देव, तुम आज भी कई रईस है जो बस ऐसे ही पुराने पैसे को दबाये हुए है कई बार होता कुछ और है और दीखता कुछ और है





मैं- तो फिर ठीक है कल एक काम करते है तुम ग्राम पंचायत के कार्यालय जाओ और पिछले 20 साल का गाँव में जो जो काम हुए कितना पैसा लगा गाँव में रिकॉर्ड लाओ और हां, साथ ही कितना रुपया अलोट हुआ था सब की डिटेल लाओ कोई चु चा करे तो मेरा परिचय देना मैं कल कचेहरी जाता हु जब जमीं खरीदी है घर वालो ने तो कोई बेचने वाला भी होगा उसको रकम कैसे दी गयी वो भी पता चल जायेगा





पिसता- ठीक है कल जाती हु वैसे देव एक बात पे गौर की तुमने जब कागजों में इतनी जमीं है तो उनकी रजिस्ट्री कहा है मेरे ख्याल से हमने पुरे घर को चेक किया है कुछ डोक्युमेंट मिले है पर रजिस्ट्री नहीं मिली





पिस्ता की इस बात ने मेरे दिमाग में धमाका कर दिया था क्या बात पकड़ी थी अब कागज कहा गए चलो खेतो के और घर के कागज़ बिमला और गीता ताई के पास थे पर ये जो जमीन खरीदी गयी थी इनके कागज़ कहा थे दिमाग घूम गया खैर कल कुछ तो पता चल ही जाना था इस बीच नीनू का फ़ोन आ गया था वो कल आ रही थी चलो ये भी अच्छी बात थी उसके आने से मुझे सहारा ही मिलना था खैर, कुछ सोच के मैंने बिमला के घर जाने का सोचा क्या पता आ गयी हो तो मिल लूँगा आज नहीं तो कल मिलना ही





मैं कोठी पे पंहुचा तो पता चला की वो नहीं आई है तो चला वहां से , मैंने गौर किया कोठी नहीं वो तो एक आलीशान बंगला था साला दुनिया ने ही तरक्की कर ली थी हम ही थे जो आज भी लकीर के फ़क़ीर बन के रह गए थे , सोचा की थोडा पैक शेक लगा लू तो गाडी को ठेके की तरफ मोड़ दिया , मैंने अपना सामान लिया और चलने लगा तो मुझे वहा पर राहुल मिल गया फिर हम वही बैठ गए बातो बातो में उसने मेरी ज़मीनों का जिक्र कर दिया की भाई अगर बेचनी है तो हमे दे दो





मैं- सोचता हु यार,





वो- भाई इसमें सोचना क्या है जब अपने सोच लिया है की बेचना है तो किसी और को क्यों हम तो घर के ही है और वैसे भी आप्के न होने पर हम ही तो देख रहे थे





मैं- तू टेंशन ना ले मैं पहले तेरा ही ध्यान रखूँगा





वो- भाई एक बात और बतानी थी आपको



मैं- बता





वो- वो उस गीता को ज्यादा सर चढ़ा रखा है आपने





मैं- क्या किया उसने





वो-भाई आप तो जानते ही हो की वो अपने दुश्मनों की ज्यादा करीबी है आपने उसे जमीन भी दे दी वो विश्वाश के लायक नहीं है





मैं- तुझे ऐसा क्यों लगता है





वो- भाई उसकी अवंतिका के परिवार से ज्यादा पट टी है वोटो में भी वो अपने से खिलाफ रहती है अपने भाईचारे में भी नहीं मिलके रहती वो पिछली बार जब बिमला सरपंच बनी जब वोटो में भी गीता ने खूब पंगा किया था





मैं- बता ज़रा





वो- पता नहीं वोटो से करीब महीने पहले की बात है गाँव में किसी के यहाँ शादी थी तो वहा पर दोनों का पंगा हो गया था बिमला ने उसको धमकी दी थी उसके करीब हफ्ते भर बाद ही हरिया काका की मौत हो गयी थी तो गीता ने बिमला पे आरोप लगाया पुलिस तक बात गयी पर कोई सबूत नहीं मिला





मैं- उसके बाद





वो-फिर वोटो में गीता ने किसी और के वोट डाल दिए फर्जी तरीके से तो बिमला ने धर दिए उसके दो तीन तब से कुछ ज्यादा ही पंगा चल रहा है





मैं- कोई ना वोटो में ऐसा तो होता रहता है और फिर उसकी मर्ज़ी वो अपना वोट किसे भी दे कोई जबरदस्ती तो है नहीं





वो- वो तो है भाई , पर मैं कह रहा हु वो ठीक औरत नहीं है उसे इतना मुह मत लगाओ





मैं- ध्यान रखूँगा आगे से , कल तू फ्री हो तो मेरे साथ चलना





वो- भाई कल कही नहीं चल सकता कल के लिए माफ़ी दो





मैं- क्या हुआ कल





वो- मंजू को लेने उसके ससुराल जाना है कल





मैं- कोई बात नहीं





उसके बाद कई देर तक यहाँ वहा की बाते करते हुए हम दारू पीते रहे उसके बाद मैं चलने ही वाला था की मुझे ध्यान आया की कल घरवाले आने वाले है तो क्यों न कुछ मिठाई और दूसरा सामान ले लिया जाए तो मैंने गाड़ी शहर की तरफ मोड़ दी बाज़ार बंद होने को ही था पर कुछ दुकाने मिल ही गयी खरीदारी करके मैं गाँव की तरफ आ रहा था , बस कोई २ किलोमीटर का ही फासला रहा होगा की अचानक से दो गाड़िया मेरी गाड़ी के आगे लग गयी



और अगले ही पल मेरे हाथ में मेरी गन थी बस इसका ही तो इंतज़ार था मुझे दो पल के लिए मैं शांत बैठा रहा वो लोग भी उतरे मैंने दरवाजे को हल्का सा खोला और उसकी आड़ लेते हुए उतर ही रहा था की उन लोगो ने फायरिंग शुरू कर दी तो मज़बूरी में मुझे अन्दर होना पड़ा वो लोग अंधाधुंध गोलिया बरसा रहे थे गाड़ी का शीशा टूट गया अब ऐसे तो कोई न कोई गोली लग ही जानी थी तो मैंने काउन्टर फायरिंग शुरू की बात बस यही थी की या तो खुद मरो या दुश्मन को मार दो





और यही करना था मुझे अब देव ऐसे हमलो की चपेट में नहीं आने वाला था और जल्दी ही कुछ लोग धरती पर पड़े थे मेरा दारू का नशा कब का गायब हो गया था कुछ लोग घायल थे और कुछ निकल लिए थे ऊपर को मैंने सबसे पहले पुलिस को फ़ोन किया और एक एम्बुलेंस के लिए भी कहा क्योंकि अब ये लोग ही बताने वाले थे की मुझपर हमला क्यों किया , तभी मुझे ख्याल आया मैंने पिस्ता को फ़ोन लगाया और बोला की घर के हर दरवाजे खिड़की को बंद कर ले ,





और पूरी तरह मुस्तैद हो जाये वो भी तो अकेली थी मैंने फिर अवंतिका को फ़ोन किया पिस्ता की हिफाज़त के लिए बोला तो उसने कहा की दस मिनट में वो और उसके आदमी घर पहुच जायेंगे , पुलिस मेरी उम्मीद से ज्यादा जल्दी आ पहुची थी मैंने बाकि की कार्यवाई की उसके बाद गाँव के लिए चल पड़ा पिस्ता को सकुशल देख के मुझे चैन की साँस आई अवंतिका ने पुछा तो मैंने तसली से पूरी बात बताई वो भी तेनिओं में आ गयी थी हाँ पर एक बात तो पक्का थी की हमला सुनियोजित था किसी ने मुझे फॉलो किया था अब मैं उस टाइम शहर जा रहा हु ये बात मैंने ठेके पे राहुल को बताई थी





तो शक की सुई उसकी तरफ घूम गयी थी अब दो बाते थी या तो राहुल ने ये काण्ड किया था या फिर कोई सच में ही मेरी पल पल की जानकारी ले रहा था मुझे हद से ज्यादा निगरानी में रख रहा था , पिस्ता का दिमाग घुमा हुआ था उसने उसी टाइम राहुल को धरने का कहा पर मैंने उसको रोका ,अवंतिका ने भी राहुल से पूछने का कहा पर मेरे दिमाग में कुछ और चल रहा था अब समय था दुश्मन से दो कदम आगे रहने का , मैंने अवंतिका से कहा की कुछ आदमियों का इंतजाम करो जो हर समय मेरे घर की सुरख्षा करे क्योंकि परिवार आने वाला था और मैं हर समय उनके साथ रह नहीं सकता था







मैंने अपनी योजना बना ली थी बस अब इस शतरंज के खेल में मुझे अपनी चाल चलनी थी हमारी बातो बातो में रात बहुत हो गयी थी अवंतिका को घर जाना जरुरी था तो मैंने उसे कहा की कल उसे मेरे साथ चलना होगा कही तो उसने मना कर दिया दरअसल उसको किसी काम से कही जाना था दो तीन दिन बाद के लिए उसने हां कहा , अवंतिका के जाने के बाद मैं और पिस्ता बाते करते करते सो गए थे , सुबह ही मुझे पुलिस स्टेशन से फ़ोन आ गया था तो मुझे जाना पड़ा कुछ कार्यवाई थी उन्होंने पुछा किसपे शक है तो मैं किसका नाम लेता पर उन्होंने मुझे आश्वस्त किया की हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होते ही उन गुंडों को रिमांड पे लिया जायेगा





मुझे अपने दुश्मन से मिलने की बड़ी बेकरारी हो रही थी मैं बस ख़तम करना चाहता था सब कुछ पर साला कुछ पता ही नहीं चल रहा था की ये हो क्या रहा है , तो मैंने मामी को एक बार फिर से टटोलने की सोची , मैंने फ़ोन मिलाया तीन चार घंटी के बाद उन्होंने फ़ोन उठाया





मैं- मामी, मिलना चाहता हु



वो- ठीक है बताओ कब



मैं- अभी



वो- ठीक है बताओ कहा मैं आ रही हु



मैं- गाँव की परली पार जो खेत और जमीन चाचा की है वहा पर





वो- ठीक है घंटे भर में पहुच जाउंगी





उसके बाद मैंने पिस्ता को फ़ोन किया की मैं एक जरुरी काम से जा रहा हु आने में थोड़ी देर हो जाएगी तुम सुरक्षा का ध्यान रखना मेरा जी तो नहीं चाहता तुम्हे अकेले छोड़ने का पर मज़बूरी है





पिस्ता- तुम अपना काम करो मेरी फिकर मत करो





मैं- खयाल रखना





शाम घिरने लगी थी , मैं भी अब ठिकाने की तरफ चल पड़ा था पता नहीं क्यों मामी ही मुझे उस भवर से पार लगाये गी ऐसा लग रहा था मुझे मैं वहा पंहुचा तो मैंने देखा की खेत खलिहान अब बंजर हो रखे थे ऐसा लगता था की जैसे पता नहीं कबसे खेती नहीं की गयी सब उजाड़ सा पड़ा था जगह जगह झाडिया उग आई थी कुछ पेड़ थे कुल मिला की अब कुछ नहीं बचा था यहाँ पे , मैंने आस पास का पूरा जायजा लिया फिर कुवे पर गया यहाँ पर दो कमरे बने हुए थे पर देखने से ही पता चलता था की बीते बरसो में शायद ही यहाँ किसी के कदम पड़े हो





मैं कुवे की तरफ गया और झाँक कर देखा पानी झिलमिला रहा था अन्दर कुछ कबूतरों ने अपना आशियाना बना लिया था मेरे दिमाग में सवाल आने शुरू हो गए खेती से हमारी खूब कमाई होती थी मान लो की चाचा का इंटरेस्ट नहीं था तो भी जमीन किसी को किराये पर दे सकता था अब आदमी आमदनी को क्यों ठुकराए गा वो नोकरी भी छोड़ चूका था ठीक है बिजनेस था पर उसके लिए कौन सा कुबेर का खजाना ढूंढ लिया था उसने ये
 

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सवाल किसी दीमक की तरह मुझे खोखला कर रहा था की आखिर मेरे परिवार के पास छप्पर फाड़ के धन कहा से आ गया था जो उन्होंने हद से ज्यादा जमीन खरीद ली थी







चाचा ने जमीन का एक इंच का टुकड़ा भी नहीं बेचा था फिर भी उसने गहनों का व्यापर शुरू किया मैं अपने सवालों मे गुम था की दूर से धुल उडाती एक कार आती दिखी जो जल्दी ही मेरी तरफ आके रुक गयी मामी उतरी और मेरी तरफ बढ़ने लगी काली साडी में गजब लग रही थी एक पल को मेरे मन में चोदने का विचार आ गया , वो आके मेरे गले लग गयी उनकी छातियो ने मेरे सीने पर दवाब बनाया





वो- देव, यहाँ क्यों बुलाया हम कही और भी तो मिल सकते थे





मैं- इसी बहाने खेतो को भी देख लिया , मुद्दतो बाद इस तरफ आना हुआ





वो- सब तुम्हारा ही तो है



मैं- वो तो है



वो- किसलिए बुलाया



मैं-मिलने के लिए कुछ बात भी करनी थी



वो- बताओ



मैं- मुझे लगता है की इस सब के पीछे चाचा का हाथ है



वो-ऐसा नहीं है देव, इस बात को अपने दिमाग से निकाल दो तुम्हारे जाने की खबर जब उनको मिली तब से ही टूट के बिखर गए है वो नोकरी छोड़ दी , बिमला से अलग हो गए जी तो रहे है पर मर मर के जब मैंने उनको बताया की तुम वापिस आ गए हो तो कितने दिनों बाद मैंने उन्हें मुस्कुराते देखा, खुश देखा, जानते हो जिस दिन से मैंने उन्हें बताया है की तुम वापिस घर आ गए हो शराब को टच भी नहीं किया उन्होंने





मैं- तो फिर मुझसे मिलने क्यों नहीं आये वो





वो- शर्मिंदी के कारण

मैं- शर्मिंदी कैसी अपने बच्चो से मिलने की





वो- वो अपराध बोध से ग्रस्त है उनको लगता है की अगर वो बिमला से अनैतिक रिश्ता ना जोड़ते तो शायद कुछ गलत नहीं होता





मैं- ऐसा भी तो हो सकता है की बिमला ने उनकी गांड पे भी लात दी हो जिस से उन्हें सदमा लग गया





वो- देव, तुम जो चाहे समझ सकते हो सबकी अपनी अपनी सोच होती है वो तुम्हारे चाचा है उनका और तुम्हारा एक ही खून है वो तुम्हरा बुरा कभी नहीं सोचते हम सब इंसान है गलतियों के पुतले अतीत में हम सबने कुछ ऐसी गलति की है जिनकी भरपाई करना मुश्किल है पर हम मिलके एक दुसरे के ज़ख्मो पर मरहम भी तो लगा सकते है





मैं- मरहम, जख्म भी तो अपनों ने ही दिए है





वो- देव, मैं माफ़ी के लायक नहीं जानती हु पर मुझसे नफरत ना करो





मैं- तो अब क्या कहू चाची या मामी





वो- जो मर्ज़ी आये





मैं- कभी तो दिलरुबा भी बनी थी





वो- तो दिलरुबा मान लो मुझे अपना लो देव





मैं- वो छोड़ो मैंने किसी और काम के लिए बुलाया था आपको





वो- मुझे ख़ुशी होगी अगर मैं तुम्हारे काम आ सकी तो





मैं- मुझे मेरे दुश्मन का नाम चाइये





वो- बस तुम्हारे इस सवाल का जवाब नहीं है मेरे पास





मैं-पता है कल रात भी हमला हुआ मुझ पर





मामी हैरत से भर गयी , उनकी आँखों में डर की झलक देखि मैंने





मामी- देव, तुम यहाँ से चले जाओ, दूर रहोगे तो सेफ रहोगे आखिर कब तक् यु मौत से आँख मिचोली चलेगी हमने तो सब्र किये हुए था और कर लेंगे कम से कम तुम जिंदा तो रहोगे





मैं- अब नहीं जाना कही, और कब तक भागूँगा मैं, पंछी भी शाम को अपने बसेरे में लौट आता है फिर ये तो मेरा अपना गाँव है मेरा घर है मेरे लोग है मैं कहा जाऊ बताओ, भागना इस समस्या का हल नहीं है , और आप है की मेरी मदद कर रही नहीं है





मामी- देव, अब मैं कैसे विश्वास दिलाऊ तुम्हे मैं सच में उन लोगो के बारे में नहीं जानती जो काम उन्होंने करवाया वो मुझे ब्लैकमेल करके करवाया अँधेरा होने लगा था अँधेरे में सब कुछ अजीब सा लग रहा था मुझे प्यास लग आई थी गाड़ी में देखा पानी की बोतल नहीं थी तभी मुझे बाल्टी और रस्सी दिखी मैंने उसे कुवे में डाला और थोडा पानी निकाला पानी पीके जान में जान आई ,





मामी- मिटटी से आज भी लगाव है तुम्हे





मैं- ये मिटटी ही मेरा अस्तित्व है ये तो आप सब लोग है जो बदल गए है देव का तो आज भी दो रोटी से गुजारा हो जाता है





मामी में मुझे अपने गले से लगा लिया और मैंने भी मामी को अपनी बाँहों में कस लिया मेरे हाथ अपने आप उनके मदमस्त कुलहो पर पहुच गए थी मामी की गांड को दबाते हुए मैं मामी की गर्दन को चूमने लगा





मामी- ओह देव!



मैंने मामी के कान को अपने दांतों से चबाया मामी किसी सूखे पत्ते की तरह कांपने लगी मेरा तना हुआ लंड उनकी चूत वाले हिस्से पर अपना दवाब डालने लगा मामी की पकड़ मेरी पीठ पर कस गयी मामी के गोरे गाल टमाटर की तरह ललाल हो गए थे अगले ही पल मैंने मामी को गर्दन से पकड़ के पीछे की तारा किया और मामी के सुर्ख होंठो को अपने मुह में दबा लिया, डार्क चोकलेट फ्लेवर लिपस्टिक की खुशबू मेरे मुह में कैद हो गयी मामी के होंठो को बेदर्दी से चूसना शुरू किया मैंने कुछ डर बाद मैंने उनके निचले होंठ पर अपने दांत लगा दिए तो मामी सिसक उठी उत्तेजना से भर गयी वो







इधर मैं उनके होंठो का रसपान कर रहा था इधर मामी पेंट के ऊपर से ही मेरे लंड को मसलने लगी थी मामी मुझे तब भी बेहद पसंद थी और आज भी उनको देख कर मेरा मन डोल गया था सच ही तो कहती थी नीनू ये मेरी भूख ही थी जिसने आज मुझे इस मोड़ पर ला खड़ा किया था खैर, होंठो के बाद मैं गालो पर आ चूका था मामी की कामुकता भड़क रही थी धीरे धीरे मैं मामी को कार तक लाया और उनको कार के बोनट पर बिठा दिया मामी के पैरो को खोला और उनकी कच्छी को उतार दिया मेरे हाथो ने मामी की चिकनी जांघो को मसला उनके पैर अपने आप फैलते गए





मैंने अपने चेहरे को उनकी टांगो के बीच झुकाया चूत से उठती एक भीनी भीनी खुशबु मेरे फेफड़ो में समाती चली गयी मैंने उनके झांटो पर जीभ फेरी मामी का पूरा बदन हिल गया और अगले ही पल मैंने मामी की फूली हुई चूत को अपने मुह में भर लिया किसी गोलगप्पे की तरह मामी अब अपनी आहो को होंठो में कैद नहीं रख पायी मामी की चुतड थरथराने लगे मैंने चूत को अपनी जीभ से चाटना शुरू किया मामी की आहे चारो तरफ गूंजने लगी





“ओह अआह देव, आह आउच ”





मामी की चूत बहुत गीली हो गयी थी मेरे दोनों होंठो पर चूत का पानी लगा हुआ था मैं जैसे उस चूत में खो गया था दीं दुनिया से बेखबर होकर मैं मामी की चूत में घुसा हुआ था मामी मेरी तेजी को ज्यादा नहीं सह पाई और पांच मिनट में ही ढेर हो गए चूत से टपकते नमकीन पानी को मैंने अपने गले में उतार लिया मामी ढीली हो गयी थी गहरी साँसे ले रही थी पर मैं बस चूत को चाटे जा रहा था मामी की हालात अब हुई ख़राब





“देव, हट जाओ सुसु आ रहा है ”





“तो कर दो ”





“हटो ना ”





मामी ने मुझे जबरदस्ती वहा से हटाया और मेरे हटते ही चूत से मूत कीधार बह चली surrrrrrrrrrrrrrr की तेज आवाज मेरे कानो में गूंजने लगी मामी को मूत के चैन मिला





“बहुत ही शरारती हो तुम ”





मैंने अपनी पेंट और कच्छा उतार कर कार पर ही रख दिया तना हुआ लंड हवा में झूलने लगा मैंने मामी को नंगा करना शुरू किया पर वो झिझक रही थी





“”देव, खुले में कपडे मत उतारो कोई आ जायेगा “





“अपनी जमीन है, और वैसे भी इतने दिनों से यहाँ कोई नहीं आया तो अब कोई क्या आएगा वैसे भी चारो तरफ घना अँधेरा है ”

कुछ ही देर में हम दोनों पुरे नंगे खड़े थे मैंने मामी के हाथ गाड़ी के बोनट पर रखे और उनको झुकाया मामी के ऐसा होते ही उनकी गजब गांड मेरी तरफ हो गए मैं उनके पीछे आया और अपने लंड को सुडौल कूल्हों पर रगड़ने लगा



मामी ने अपने कुलहो को हिलाया मैंने उनकी कमर में हाथ डाला और लंड को आगे को सरकाया वो मामी की चूत को फैलाते हुए अन्दर घुसने लगा मामी ने आह भरी और अगले धक्के से साथ आधा लंड अन्दर पहुँच गया मैंने कमर को दबाया और मामी की चुदाई शुरू की जल्दी ही वो भी अपनी गांड हिला हिला के चुदाई का मजा ले रही थी चूत ने मेरे लंड को अपने अन्दर समा लिया था मस्ती में हम दोनों चूर, मेरे हाथ अब उनकी चूचियो तक पहुच गए थे चूचिया जो समय अनुसार थोड़ी सी ढीली हो गयी थी पर फिर भी मजा आ रहा था उनको दबाने में





मैं उनके स्तनों को कठोरता से दबा रहा था तो वो भी वाइल्ड होने लगी थी बार बार खड़ी होके पीछे को हो रही थी अब मैंने मामी को अपने सामने खड़ी किया मामी ने अपने एक पैर को मेरी कमर पर लपेट लिया मैंने उनको अपने से सटा लिया और उनके होंठो को चूमते हुए चोदने लगा मस्ती हम दोनों के सर चढ़ के बोल रही थी मैं धक्के पे धक्के लगाये जा रहा था हम दोनों के बदन में कंपकंपाहट होने लगी थी जो की संकेत था की बस काम होने ही वाला है





और फिर करीब पाच सात मिनट बाद हम दोनों करीब करीब साथ ही झड़ गए मैंने अपना पानी चूत के अन्दर ही गिरा दिया कुछ पल अपनी साँसों को सँभालने के बाद हम दोनों कार की पिछली सीट पर आके लेट गए मामी मेरे सीने को अपने हाथो से सहलाने लगी





मैं- आज मेरे साथ ही रुको





वो-ठीक है तुम्हारे चाचा को बता देती हु





मामी ने चाचा को फोन करके बताया की वो मेरे साथ आई है किसी काम से और सुबह तक ही आ पायेगी उसके बाद वो मेरी गोद में लेट गयी मैंने उनकी चूचियो से खेलने लगा मामी का जिस्म मुझे गर्मी देने लगा और फिर कुछ देर बाद वो मेरा लंड चूस रही थी मामी की जीभ मेरे लंड के चारो और घूम रही थी कभी कभी वो लंड को अपने गले तक अंदर ले लेती ऊऊ करते हुए वो मेरे लंड को पुरे जोश में चूस रही थी कुछ समय बाद थूक से सने हुए लंड को बाहर निकाला





और फिर मेरे अन्डकोशो को चाटने लगी उनपर थूकती फिर उस थूक को चाटती मामी के प्रयास फलसवरूप मैं जल्दी ही फिर से उत्तेजित हो गया था मैं सीट पर लेट गया और मामी को ऊपर चढ़ने को बोला , मामी मेरे ऊपर आ गयी और मेरे लंड को पकड कर अपनी चूत पर हौले हौले से रगड़ने लगी फिर वो धीरे धीरे उसपे बैठ गयी और अपनी गांड हिलाने लगी वो पूरी तरह से मुझ पर झुक गयी थी छातिया मेरे मुह पर झूल रही थी मैंने उनकी पीठ को सहलाना शुरू कर दिया और वो लंड पर धक्के लगाने लगी





मैंने अपनी आँखों को बंद कर लिया और खुद को मामी को सौंप दिया कभी मामी मेरे गालो को चूमती कभी होंठो को कुछ देर कूदने के बाद वो रुक जाती फिर मैं निचे से धक्के लगाता मामी के मुह से जोश जोश में अजीब आवाजे निकल रही थी अब उन्होंने मेरे मुह में अपनी चूची दे दी जिसे मैं पिने लगा तो वो और उत्तेजित होने लगी पर इंसान जितना उत्तेजित होता है उतनी ही जल्दी वो झाड़ता है मामी का भी हाल कुछ ऐसा ही था जल्दी ही वो झड के मेरे ऊपर पड़ी थी उनकी हालात आधी बेहोशी जैसी हो गयी थी कुछ देर मामी मेरे ऊपर पड़ी रही





फिर मैंने उनको सीट पर औंधी लिटाया और चूतडो केछेद पर थूक लगा कर उसको चिकना करने लगा काफी सारा थूक लगाने ले बाद मैंने अपने लंड को मामी की गांड पर टिकाया और अनदर डालने लगा मामी को दर्द हो रहा था पर वो भी जानती थी की थोड़ी देर की बात है जैसे जैसे लंड अन्दर जा रहा था उनका जिस्म अकड रहा था धीरे धीरे मैंने लंड को आगे पीछे करना चालू किया वो दर्द भरी सिसकिय ले रही थी मैं मामी के कंधे को चूमते हुए उनकी गांड मारने लगा





जल्दी ही उनके चुतड मेरे लंड से ताल मिलाने लगे तो मुझे बहुत मजा आने लगा मेरे बदन का तार टार हिल रहा था पर गांड मारने में पूरा मजा आ रहा था और थोड़ी देर में मैं भी ढेर हो गया मैंने अपने लंड को निकाला तो छेद से से मेरा वीर्य भी बाहर निकलने लगा मामी उठी और बाहर निकल गयी सायद मूतने गयी थी मैं सीट पर ही लेट गया थोड़ी देर बाद वो भी मेरे पास ही लेट गयी खुमारी में कब नींद आ गयी तो पता नहीं चला थकान ऐसी थी की फिर सीधा सुबह ही आँख खुली मैंने घडी में टाइम देखा 8 बज रहे थे





गाड़ी के दोनों दरवाजे खुले पड़े थे और हम नंगे पड़े थे मैंने मामी को जगाया तो उसने सबसे पहले अपने कपडे पहने और मैंने भी हाथ मुह धोये तो फिर मैंने मामी को कहा की शाम को मैं उनके घर आ रहा हु उसके बाद हम लोग अपने अपने घर चले गए , जाते ही मैंने थोडा बहुत खाया पिया पिस्ता ने सवाल जवाब किये जिनको मैंने टाल दिया मैं नहाने के लिए चल पड़ा तो बाथरूम अन्दर से बंद था मैं वापिस आया और पुछा





पिस्ता- माधुरी नहा रही होगी





मैं- कब आये ये लोग नीनू कहा है





वो- कल शाम को ही आ गए थे ,नीनू ठाणे गइ है दोपहर तक आने को कह गयी है



मैं- तो बताना चाहिए था न





वो- फ़ोन नहीं किया था क्या मैने पर तुमने सुनी ही नहीं मेरी वैसे रात को तुम थे कहा पर





मैं- वो जाने दे, ये बता रिकॉर्ड लायी





वो- हां, मुझे कुछ भी संदेहास्पद नहीं लगा कुछ खर्च ऊपर निचे है पर इतना चलता है ऐसा कुछ नहीं है की कोई मोटी रकम का ही झोल हो
 

Incest

Supreme
432
859
64
मैं- ठीक है



वो- तुम कचेहरी गए





मैं- ना, अब तो कल ही जाऊंगा आज शाम को एक काम और करना है



वो-क्या



मैं- बता दूंगा पर तुम ये बताओ की घर का काम पूरा कब होगा





पिस्ता- टाइम लगेगा अभी बस एक साइड की ही दिवार पूरी हुई है उसके आलावा घर के ऊपर वाले हिस्से की मरम्मत भी बाकि है ऊपर का काम होगा तब तक निचे पेंट करवा लेते है तुम पसंद के कलर बताओ





मैं- यार, तुम सब को जो पसंद हो करवा लो हां मजदुर बढाओ मैं चाहता हु की काम जल्द ख़तम हो





वो- हो जायेगा आओ तुम्हे कुछ दिखाती हु





वो मुझे बैठक में ले गयी सामने दिवार पर रति की एक बड़ी सी तस्वीर लगी थी पिस्ता ने बड़ी बनवा ली थी





वो- पसंद आई





मैं- कब किया





वो- सफाई में तुम्हारा पुराना सामान मिला उसमे थी मैंने सोचा हो ना हो ये रति की ही होंगी तो उनमे से एक को बड़ा बनवा लिया





मैं- ये अच्छा किया तुमने

अचानक से मेरे दिमाग में पुरानी बाते ताज़ा होने लगी ये सच था की रति किसी ठन्डे झोंकी की तरह मेरी जिंदगी में आई थी माना की हमारा कोई रिश्ता नहीं था उस अजनबी ने मुझे अपने घर में जगह दी थी पता नहीं कब किस पल हम दोनों एक दुसरे के इतने करीब आ गए थे दस दिन, वो दस दिन मेरी पूरी जिंदगी मिला के भी इतना सकूँ नहीं है जितना उन दस दिनों में मिला था , कौन थी वो मेरी एक दोस्त, एक प्रेमिका मेरे बच्चे के माँ, रति खुद तो चली गयी थी पर मुझे अपनी निशानी दे गयी थी वो दूर कही से आज भी हमे देख रही थी





वो आज भी मेरे अन्दर कही जिंदा थी जी थोडा ख़राब सा होने लगा था पर आंसुओ को थाम लिया था अब साला रोये तो कितना रोये जिंदगी ही रोने में गुजर गयी थी जब देखो जिंदगी गांड पे लात देती थी कुछ देर रति की तस्वीर को निहारने के बाद मैं घर से बाहर आ गया चल रहे काम को देखने लगा थोड़ी देर बाद मुझे मंजू आती दिखी तब मुझे ध्यान आया की राहुल कह रहा था की मंजू को लेने जा रहा है आते ही मंजू मुझसे लिपट गयी कुछ गिले शिकवे हुए





बाते हुयी , पता चला कुछ दिन रहेगी वो इधर अब मंजू और पिस्ता का तो बरसो से 36 का आंकड़ा था दोनों को एक दूसरी फूटी आँख नहीं सुहाती थी तो मैंने दोनों को समझाया की अब हम सब जिंदगी में आगे बढ़ गए है अब क्या बचपना कुछ देर बाद नीनू भी आ गयी दोपहर हो चुकी थी माधुरी ने लंच के लिए कहा तो मैंने कहा आज सब साथ ही खायेंगे, ऐसा लग रहा था की जैसे पुराना जमाना फिर से लौट आया है आज बरसो बाद दिल खोल कर हंस रहा था मैं





माधुरी समझ नहीं पा रही थी की हो क्या रहा है तो मैंने उसको बताया की कभी हमारी ऐसी चोरी-छिपे वाली दोस्ती होती थी नीनू भी हैरान थी पर शायद उसने समझौता कर लिया था की वो मेरी आवारगी पे ध्यान नहीं देगी शाम को मंजू वापिस चली गयी पिस्ता मजदूरो का हिसाब कर रही थी मैंने नीनू को आने को कहा





वो- क्या हुआ





मैं- आओ थोडा घुमने चलते है





वो- चलो





हम दोनों घर के पीछे उस तरफ आ गए जहा पहले हम लकडिया वगैरा रखते थे





मैं- उदास सी लगती हो





वो- कुछ नहीं





मैं- तुम कबसे छिपाने लगी





वो- कुछ नहीं आज परिवार को देखा तो घर की याद आ गयी





मैं- तो हो आओ तुम्हारा गाँव कौन सा दूर है





वो- नहीं जा सकती घर छोड़ दिया मैंने तुम्हारा साथ क्या किया मैं भी फ़क़ीर हो गयी





मैं- क्या हुआ





वो- तुम्हारी अमानत का ख्याल रखना था उस बात को लेकर मेरे घरवालो और मेरा थोडा पंगा हो गया था वो समझने को तैयार ही नहीं थे मेरी बात तो फिर हार कर मैंने उनसे नाता तोड़ लिया





मैं- नीनू, तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया है मेरे लिए पर अब तो तुम्हारे पास घर जाने की वजह है कल हम तुम्हारे घर चलते है

अब नीनू क्या कहती, उसने बहुत सक्रिफ़ाइज किया था मेरे लिए तो मुझे उसके घरवालो से बात तो करनी ही थी उनको मानना था जो भी अपने रूठे थे उनको मानना था मैंने उसके हाथ को अपने हाथ में लिया





मैं- देखो, नीनू हम सब वक़्त के मारे है पर हम सब साथ है हर मुश्किल को पार कर लेंगे , मैं जानता हु तुमने और मैंने कई सपने देखे थे पर वक़्त ने ऐसा खेल खेला की हमारा हर सपना बिखर गया मैं जानता हु की मैंने बहुत गलति की है पर मैं जानता हु की इस दुनिया में अगर मेरे दिल को किसी ने पढ़ा है तो बस तुमने तुमसे कुछ नहीं छुपा है और ना मैंने छुपाया है सब तुम्हारा है और बीते वक्त में हम सब अलग अलग हालात से गुजरे है हमे एक दुसरे के सहारे की जरुरत है



नीनू कुछ नहीं बोली बस मेरे कंधे पर सर टिका लिया और आँखों को बंद कर लिया उसकी धडकनों ने मेरे दिल को उसका हाल बता दिया था बहुत देर तक हम लोग वहा खामोश बैठे रहे बस दिल की बाते दिल से दिल करता रहा सच कहू तो कुछ बाते बस दिल समझ लेता है अपने आप ये दिल की बाते वो ही समझता है दिल और धड़कन में क्या बात हुई ये तो वो ही जाने नीनू ने बताया की हफ्ते भर बाद वो कुछ दिन की छुट्टी लेगी एक अरसे से उसने छुट्टी नहीं ली थी पर मैंने कहा तुम बस कल पे ध्यान रखो हम कल तुम्हारे घर चलेंगे उसके बाद टहलते टहलते हम घर आ गए





तो मुझे कुछ याद आया मैंने सब को तैयार होने के लिए कहा और आधे घंटे बाद हम लोग सहर के लिए निकल पड़े मंजिल थी चाचा का घर हम वहा पहुचे , जैसा की मैंने मामी को पहले ही बता दिया था चाचा को मैंने अरसे बाद देखा था थोड़े पतले हो गए थे बाल भी सफ़ेद हो गए थे कुछ कुछ मुझे देखते ही उन्होंने कुछ नहीं कहा बस मुझे अपने सीने से लगा लिया और रोने लगे खून तड़प उठा था खून के लिए बहुत देर तक वो रोते ही रहे फिर बोले- कहा चला गया तू मुझे छोडके , एक बार भी नहीं सोचा की हमारा क्या होगा माना की गलतिया हो जाती है पर अपन को माफ़ भी किया जाता है





मेरा दिल भी पसीजने लगा था पर वक़्त की मार ने बहुत कुछ सिखा दिया था ये एक जाल भी हो सकता था पर ना जाने क्यों मैंने मामी पे विश्वाश कर लिया था चाचा मेरा हाथ पकड़ के बैठे रहे ना वो कुछ बोले न मैं कुछ बोला पिस्ता तो वही पे गुस्सा करने लगी थी गुस्से से भडक गयी थी वो आज पहली बार वो मामी से मिली थी वो तो उन दोनों में मार-पिटाई हो जाती अगर मैंने और नीनू ने उसको शांत नहीं किया होता बड़ी मुश्किल से संभाला उसको





कुछ देर बाद चाचा बोला- मेरे, बच्चो तुम सब का गुस्सा जायज है और तुम जो भी सजा देना चाहो मंजूर है मैं मानता हु हमसे वो गलती हुई जो नहीं होनी चाहिए देखो मुझ बदनसीब को मैंने तो अपने हाथो से हस्ते खेलते घर संसार को फूक दिया मेरे बच्चो अब पता नहीं कितनी उम्र बची है तबियत ठीक नहीं रहती आप सब से गुजारिश है मुझे अपना लो ये कहकर वो फूट फूट कर रो पड़े

नीनू ने मुझे इशारा किया तो मैंने चाचा को चुप करवाया तभी पिस्ता बोल पड़ी – पर हम ये कैसे मान ले की आप सच कह रहे है ये कोई चाल नहीं है आप हमे कम से कम एक वजह तो दीजिये विश्वास करने की





मामी- पिस्ता, हम सच में ही शर्मिंदा है





पिस्ता- आप तो मुझसे बात ही ना करो , हां तो चाचा जी कुछ सवाल है हमारे उम्मीद है आप सब सच सच जवाब देंगे वैसे भी देव आपका खून है उस से क्या छुपाना





पिस्ता ने सीधे सीधे ही अपना पासा फेक दिया था

पिस्ता- सबसे पहले ये बताओ की ऐसा क्या हुआ जो बिमला और आपका साथ छुट गया जिस बिमला के लिए आपने घरवालो को छोड़ दिया उसका साथ क्यों छोड़ा आपने



चाचा- वक़्त के साथ उसकी भूख बढ़ गयी थी सरपंची में हुई उसकी हार उसको पच नहीं रही थी उसके दिमाग में बस एक बात थी हारी तो कैसे हारी उसको जैसे एक जूनून था, औ फिर उसको कही से पता चल गया था की उसकी हार के जिम्मेदार तुम थे, बिमला जैसे उड़ना चाहती थी दिन दिन वो बदलने लगी थी जुगाड़ तुगाड़ करके उसने विधायक जी से संपर्क बना लिया था बिमला अब दबंग हो गयी थी बाहुबली बनने लगी थी



विधायक की मदद से उसने ठेकेदारी का काम शुरू किया टेंडर पे टेंडर मिलते गए वो ऊपर चढ़ती गयी पर इन सब के बीच मैं कही रह गया था वो घर आती तो भी मुझपे ध्यान ना देती और फिर एक दिन कंवर आ गया

अब गुनेहगार तो हम उसके भी थे उस रात काफी देर तक झगडा हुआ पर बिमला अब किसकी सुनती गुस्से में कंवर पैर पटकते हुए बाहर चला गया उसकी कही हर बात से मुझे ग्लानी होने लगी थी , और एक दिन मैंने विधायक जी और बिमला की बाँहों में देखा बस मेरा मन खट्टा हो गया जिस औरत के लिए मैंने सबको छोड़ दिया वो किसी और की बाहों में थी बस उसी पल मैंने उसका साथ छोड़ दिया





उस दिन मुझे पता चला की मैंने क्या पाप कर डाला था पर इस करम की सजा तो मुझे मिलनी ही थी , उसके बाद मैंने तुम्हारी खोज करनी शुरू की तो तुम्हारी मामी और मैं दोनों एक ही कश्ती के सवार थे , दोनों का हाल एक जैसा था कुछ सोच कर हमने शादी करली मैंने नौकरी छोड़ दी बिजनेस शुरू किया



मैं- गाँव में अपने हिस्से की जमीन को क्यों छोड़ा



चाचा- देव, मन खट्टा हो गया था गाँव से तो फिर उधर जाना मुनासिब नहीं समझा



पिस्ता- चाचाजी, कहानी कुछ जम नहीं रही है , पर चूँकि बिमला ने असाधारण तरीके से तरक्की की है तो आपकी बात मान लेती हु



चाचा- मेरा विश्वास करो मैं सच ही कह रहा हु



मैं- कंवर का क्या हुआ फिर



चाचा- उस रात के बाद मैंने उसे देखा नहीं बस सुनने में आया की वो वापिस चला गया है



मैं- वो वापिस नहीं गया उसका पासपोर्ट मिला मुझे



चाचा- मुझे कुछ नहीं पता उसके बारे में



नीनू- ठीक है हम आपकी हर बात को मानते है पर आपको हमे विश्वास दिलाने के लिए एक करना होगा



चाचा- क्या



नीनू- आपको आपकी जमीन और पूरा बिजनेस देव के नाम करना होगा



चाचा- बेटी, बस इतनी सी बात ये सब कुछ देव का ही तो है मैं भला कितने दिन जिऊंगा तुम जब कहोगी मैं ऐसा कर दूंगा देव मेरा वारिस है अगर जायदाद उसके नाम करने से ही तुम्हारा विस्वास जागेगा तो मैं कल ही वकील को बुला के पावर ऑफ़ अटोर्नी देव के नाम करवा देता हु



मेरे मन में उथल पुथल चल रही थी तभी मेरे मोबाइल पे sms आया नीनू ने लिखा था की अभी कोई निर्णय मत लेना उसके बाद ज्यादा कुछ बात नहीं हुई बाद में मिलने का बोल के हम लोग वापिस हो लिए रस्ते में हमने होटल में खाना खाया और फिर घर आ गए सब सोने की तैयारी करने लगे बाहर चार दिवारी होने से आँगन सा बन गया था तो सबने अपनी अपनी चारपाई उधर ही लगा ली थी बातो का दौर शुरू हो गया था पिस्ता रसोई में चली गयी





नीनू—बात इतनी भी सीढ़ी नहीं है देव



मैं- हाँ नीनू, कुछ तो है जो छुपाया गया है



नेनू- देखो, अगर उस रात झगडा हुआ था तो किसी गाँव वाले ने तो कुछ सुना होगा और किसी ने तो कंवर को आते या जाते देखा होगा



मैं- बिमला गाँव में नहीं रहती है , उस रात जो भी हुआ वो बिमला की कोठी में हुआ



नीनू- कोठी कहा है



मैं- नहर के परली पार



तभी पिस्ता आ गयी उसने हम सबको दूध का गिलास दिया और बोली- क्या कहा तुमने अभी



मैं- नहर के परली पार



और जैसे ही मैंने ये कहा मैं कुछ कुछ समझ गया



मैं- और नहर के परली पार ही तो चाचा की वो जमीन है जो अब बंजर पड़ी है और शायद कंवर के गायब होने में और उस जमीन की खेती बंद होने में साथ साथ का ही समय है



पिस्ता- इसका मतलब



मैं- इसका मतलब हमे वहा तलाशी लेनी होगी खुदाई करनी होगी पूरी जमीन की



नीनू- देव, एक बात ये भी है की अगर वो कंवर की लाश को वहा दबाते और खेती करते रहते तो उनके बचने की ज्यादा सम्भावना रहती अब इतनी बड़ी जमीन में किसी की लाश गाद भी दे तो क्या पता चलता पर वो ऐसे क्लू नहीं छोड़ेंगे वो सब बस एक छलावा है धोखा देने के लिए



मैं- फिर भी हमे जांच करनी होगी



वो- हां, देखते है



पिस्ता- देखो अनुमान से शायद ऐसा हुआ होगा की उस रात तगड़ा झगडा हुआ होगा उसके बाद दोनों ने मिलके कंवर की हत्या की और जमीन में लाश को गाड दिया होगा



नेनू- बिलकुल हुआ होगा, पर जमीन कही और है



मैं- तुम्हे ऐसा क्यों लगता है



वो- क्योंकि शातिर मुजरिम जितना हो सकेगा बरगलाने की कोशिश करेगा वो ऐसी सम्भावना क्यों छोड़ेगा की लाश चाचा की जमीन से मिले मान लो की चाचा मिला हुआ है तो वो इतना बड़ा रिस्क क्यों लेगा जबकि उसको पता है अगर उसके खेत से लाश मिली तो सबसे पहले वो ही निपेगा



मैं- सही कहा पर फिर भी हमे चांस लेना चाहिए



नीनू- देव, एक बार हमे तुम्हारे मामा के घर भी चलना चाहिए क्या पता कोई बात बन जाये



मैं- वहा से सब मिटा दिया होगा नीनू



नीनू- दोनों को उठा लेती हु मार मार के सच उग्लावालुंगी



मैं- नहीं , वकील ले लेंगे उल्टा हमे जवाब देना पड़ेगा



पिस्ता- बात घूम फिर के वही आके रुक जाती है



मैं- इसलिए की हम अब तक गलत दिशा में सोच रहे है हमे ये सोचना चाहिए की इतनी रकम कहा से आई की सबकी पौ बारह हो गयी



नीनू- कौन सी रकम



मैंने नीनू को पूरी बात बताई तो उसका भी दिमाग घूम गया वो भी सोच में पड़ गयी जबकि मुझे कही ना कही ये लगने लगा था की ये जोभी हुआ था बस पैसो का ही लेनदेन था



क्योंकि जिस हिसाब से इन सब लोगो ने तरक्की की थी वो तब ही मुमकिन था जब इनके हाथ कोई कुबेर का खजाना आ जाता



माधुरी जो बहुत देर से बस सुन रही थी वो बोली- भाई , सरपंची के पैसो का गबन किया होगा इस बात हो शक के दायरे से हटा दो क्योंकि ऐसा होता तो बिमला का उस से कुछ लेना देना नहीं क्योंकि घर में बाकि लोग सरपंच पहले थे और बिमला जब सरपंच बनी तो घर था ही नहीं और वैसे भी जिस समय बिमला ने असाधारण रूप से तरक्की की उस समय अवंतिका सरपंच थी



बात में दम था और वैसे भी पिस्ता के लाये रिकॉर्ड से ये बात साबित हो चुकी थी और एक बात फिर से बात घूम फिर कर वही आ गयी थी हमेशा की तरह



जब कुछ नहीं सूझा तो फिर हार कर नींद की गोद में शरण ली आँख जब खुली तो मैं ही था बस माधुरी पास में घूम रही थी पता चला नीनू थाने निकल गयी थी पिस्ता दुकान तक गयी थी मैंने हाथ मुह धोये आज उठने में थोड़ी देर हो गयी थी कुछ ही देर बाद काम वाले आ गए मैं तैयार हुआ नाश्ते के बाद मैंने माधुरी से कहा की तुम पिस्ता के साथ जाके अपने खेत-खलिहान देख आना गाँव में घूम फिर लेना शाम तक टीवी लगवा दूंगा बल्कि बाज़ार जाके अपनी पसंद से ले आना वो मन करने आगी पर बहन की हर सुविधा का ख्याल रखना था





तभी पिस्ता आ गयी हाथो में सब्जी का थैला था मैंने उसे सब बताया और फिर मैं घर से बाहर आ गया घूमते घूमते मैं रतिया काका के घर चला गया घर पे बस मंजू और राहुल की पत्नी ही थे मंजू से बाते होने लगी





मैं- और बता





वो- बस कट रही है





मैं- आजा घुमने चले





वो- ना,





मैं- सुन तो सही ,





वो- चल फिर पर जल्दी ही आएंगे





मैं- आजा





दरअसल मैं उस जमीन को देखना चाहता था जिसका जिक्र पटवारी ने किया था मैं जाना तो अवंतिका के साथ था वहा पर वो व्यस्त थी पर अब मंजू के साथ जाना चाहता था थोड़ी बाते भी हो जाती अब मंजू मुहफट थी तो शायद कुछ बक दे

आधे घंटे में हम वहा पहुच गए पथरीली सी जमीन थी आस पास खैर थ, बड्बेरी थी एक तरफ कई सारे नीम के पेड़ लगे हुए थे अब जमीन भी दूर तक फैली हुई थी हम घूमने लगे चारो तरफ सन्नाटा पसरा पड़ा था





मंजू- ये कहा ले आया मुझे कही मारके गाड़ने का तो इरादा नहीं है





मैं- ये मेरी जमीन है बस देखने आ गया





वो- और कही क्या कमी थी जो इस उजाड़ में आ या





मैं- पहले तो बस जमीन ही देखनी थी पर तू है तो थोड़ी मस्ती भी कर लेंगे

ये कहकर मैंने उसके चुतर को मसल दिया





मंजू- देख देव, शादी के बाद मैंने अब ये काम छोड़ दिए है





मैं- राहुल तो कह रहा था तू अब भी उस से चुदती है





वो- देव, ये बात मत बोला कर मुझे शर्म आती है





मैं- भाई का लंड ले सकती अहि पर हमारे से नाराजगी जा मंजू देख ली तेरी यारी तू भी बादल गयी औरो की तरह





वो- ऐसी बात नहीं है देव, पर मैंने सोचा की तू मुझे यहाँ किसी और मकसद से लाया है





मैं- तो सुन ये जमीन जहा दूर दूर तक करीब 125 बीघा तक कभी मेरे परिवार ने खरीदी थी और मुझे समझ नहीं आ रहा की क्यों ली और इतना पैसा कैसे आया उनके पास जहाँ तक मैं समझता हु इतनी जमीन और ऐसी ही और जमीनों के लिए उस समय भी बहुत मोती रकम चाहिए थी कुछ दिन पहले ही मुझे ये सब पता चला है तो दिमाग उल्झा है तुजे यहाँ इसलिए लाया की तेरी मदद की जरुरत है





मैं जानता हु अब जो कहूँगा तुझे अजीब लगेगा पर मंजू अब तू ही इस जन्झाल से निकाल सकती है जब जब मदद के लिए मैं तेरे पास आया तूने कभी निराश नहीं किया उम्मीद है अब भी नहीं करेगी मंजू मैं बहुत थक गया हु भागते भागते इस जिन्दगी से बस अब कुछ पल अपनों क साथ जीना चाहता हु तू मदद कर मेरी



वो- पर देव, मैं क्या कर सकती हु

मैं- सुन

उसके बाद मैंने मंजू को पूरी बात बता दी की मुझे उसके बापू और भाई पर शक है और इन इन कारण से





मंजू कुछ देर चुप रही और फिर बोली- देव, तुम जानते हो बापू और ताउजी में सगे भाइयो से भी ज्यादा गहरा नाता रहा है दोनों परिवार एक जिस्म एक जान है जब बापू का एक्सीडेंट हुआ तो ताउजी ने हमारी कितनी मदद की थी और जब तुम चले गए थे रात रात भर बापू सोते नहीं थे आज तक बस तुम्हारा ही ख्याल है उनको और तुम ऐसा सोच रहे हो देव, क्या तुमने सबको पराया कर दिया





मैं- मंजू, मुझे गलत मत समझ यही तो मेरी उलझन है जो सुलझ नहीं रही अब तू ही बता मैं क्या करू हर अपने ने मुह मोड़ लिया सब जान के दुश्मन बने पड़े है आस करू तो भी किससे





मंजू- देव, तुमसे नाता रहा है मेरा, तो मैं जितना बन सकेगा उतना करुँगी मैं 10-15 दिन हु यहाँ तो देखो मैं क्या कर सकती हु

मैं- अहसान है तेरा





उसके बाद हम लोग घुमने लगे और आगे बढ़ गए इस तरफ काफी गहरे पेड़ थे हल्का हल्का सा अँधेरा था ठंडक थी यहाँ पर बरगद के पेड़ ही पेड़ थे





मंजू- डर सा लग रहा है





मैं- डर किस बात का





वो- वैसे, घरवालो ने ये ही जमीन क्यों खरीदी देखो बंजर पड़ी है खेती वाली मिट्ठी तो है नहीं पहाड़ के पास होने से पथरीली जमीन है अब इसका क्या उपयोग होगा





मैं- यही बात तो हमे पता करनी है की आखिर क्यों खरीदी





वो- शायद इसिलिय की कभी भविष्य में बेच दे तो कुछ मुनाफा हो जाये





मैं- मंजू पर देख जमीन की चारदीवारी भी नहीं करवाई गयी न ही कोई बाड वगैरह





वो- शायद हो पर अब काफी दूर तक फैली है तो हमे बाड़ मिली ना हो





अपने अपने विचार व्यक्त करते हुए हम और आगे बढ़ने लगे हवा में एक गंध सी आने लगी थी जैसे की कोई सीलन हो और थोड़ी दूरी पर एक नाला सा बह रहा था मैंने देखा पानी तो तजा था शायद कोई स्त्रोत रहा हो आस पास मैंने पानी पिया गला तर किया और इधर उधर घूमने लगे एक तरफ एक साथ तीन बरगद के पेड़ थे खूब विशाल और बीच वाले पेड़ के निचे एक चबूतरा बना हुआ था देखने में अजीब बात थी मान लो तीनो पेड़ एक साथ लगे थे मेरा मतलब एक जड़ से उत्पन्न जैसे की कोई त्रिवेणी हो

अपने आप में सुंदर सा द्रश्य था वो मैं और मंजू उसी चबूतरे पर जाके बैठ गए कभी तो सुंदर रहा होगा वो वक़्त की मार से हालत ठीक नहीं थी पर फिर भी काफी मजबूट था वो ,





मैं-मंजू एक बात समझ नहीं आई की यहाँ ये चबूतरा किसीने क्यों बनवाया होगा





वो- पुराने समय में शायद लोगो के आने जाने का रास्ता हो ये तो शायद घडी दो घडी आराम के लिए बनवाया हो पहले के टाइम में लोग अक्सर पानी की टंकी ऐसे चबूतरे या तिबारे बनवाते थे





मैं- हो सकता है पर देख तीनो पेड़ साथ है तो फिर बीच वाले पर ही को सारो पे क्यों नहीं बनवाया

मंजू- शायद इसलिए की बीच में बनाने से इसकी सुन्दरता बढ गयी है अब एक अलग सा इम्पैक्ट है इसमें मुझे लगता है की बनाने वाले को भी ऐसा ही लगा होगा



मैं- हो सकता है छोड़ अपने को क्या ये बता चूत देगी



वो- हाय राम कुछ तो शर्म करो अब भी ऐसे ही बोलते हो



मैं- गलत क्या कहा चूत को चूत ही तो कहते है



वो- तुम कभी नहीं सुधरोगे



मैं- देगी क्या
 

Incest

Supreme
432
859
64
वो- यहाँ कैसे

मैं- उजाड़ ही तो है और इधर अँधेरा सा भी है और फिर देर भी तो कितनी लगनी है

वो- ठीक है पर कपडे ना उतरूंगी

मैं- कितनी समय बाद अपन दोनों मिले है अब नंगी न हुई तो क्या मजा

वो- कोई आ गया तो

मैं- मैं हु ना तू टेंशन मत ले

वो- तू एक दिन जान लेगा मेरी

मैं- अभी तो चूत से ही काम चल जायेगा जान फिर कभी लूँगा

मंजू ने अपनी सलवार उतारी धीरे धीरे करके अपने सारे कपडे उतार दिए और पूरी नंगी हो गयी
मैं अपने कपडे उतारते हुए- मंजू तू तो पहले से भी गंडास हो गयी है निखर आई है

वो- कहा दो औलाद पैदा कर दी मेरा पति तो कहता रहता है की ढीली हो गयी

मैं हंस पड़ा, मैंने उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसके गालो को चूमने लगा मंजू बोली जल्दी कर ले मैंने हां कहा वो मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में भर के हिलाने लगी मैं उसको किस करने लगा हमारी जीभ एक दुसरे से लड़ने लगी थी कुछ देर बाद मैं मंजू की चूचियो को पीते हुए उसकी गांड को दबा रहा मंजू गरम होने लगी थी और बार बार अपनी चूचियो को मेरे मुह में डाल रही थी मैं जब तक उसकी चूचियो को चूसता रहा तब तक उसके निप्पल को बहार को ना निकल आये

उसकी चूत गीली हो चुकी थी वो मेरे लंड को चूत पर तेज तेज रगड़ रही थी मैंने उसको पंजो के बल झुकाया और उसकी कमर पकड़ते हुए अपने लंड को चूत में डाल दिया जल्दी ही हमारे जिस्म एक दुसरे से टकरा रहे थे मंजू बार बार अपनी गांड को आगे पीछे कर रही थी धीरे धीरे मैं उसकी चूचिया मसलने लगा तो वो और उत्तेजित होने लगी थप्प ठप्प करते हुए हम दोनों की टाँगे आपस में टकरा रही थी और ५ मिनट में ही मंजू झड गयी

अब उसके लिए मुझे झेलना मुश्किल हो रहा था तो वो हटने लगी मैंने कहा दो मिनट और मैं भी झड गया मुझसे अलग होते ही वो निचे बैठके मूतने लगी मैं चबूतरे पर ही बैठ गया और तभी मेरी नजर सामने कीकर के झुरमुट पर पड़ी तो मुझे लगा की कोई औरत है मैं नंगा ही उधर भागा पर ताज्जुब अब वहा कोई नहीं था मैंने आस पास की तरफ देखा अब एक तो पेड़ इतने थे यहाँ पर और फिर झुरमुट की वजह से परेशानी हो रही थी पर मैं पक्के विश्वास से कह सकता था की कोई औरत ही थी

जब तक मैं वापिस आया मंजू कपडे पहन चुकी थी मैंने उसको बताया की कोई औरत थी मैंने अपने कपडे पहने

मंजू- मैंने पहले ही कहा था की कोई आ जायेगा

मैं- चुप रह और मेरी बात सुन कोई हमारे पीछे है

मंजू थोडा डर गयी पर मैंने ध्यान नहीं दिया , उसके बाद मैं और मंजू दोनों उस तरफ चलने लगे जिस तरफ से वो औरत गयी थी मैंने पिस्ता को फ़ोन किया की वो नीनू को लेके फलानी फलानी जगह पर पहुचे जितना जल्दी ही सके वहा हमारी गाड़ी खड़ी है तो उसकी सीढ़ी दिशा में करीब किलोमीटर अन्दर को आये जहा वो बरगद की त्रिवेणी है , उसके बाद मैं और मंजू आगे बढ़ गए कुछ दूर हमे एक कच्चा रास्ता दिखा जिस पर आराम से चला जा सकता था तो हम लोग उधर ही चलने लगे


मैंने इशारे से मंजू को चेता दिया की हम किसी की नजरो में हो सकते है इसलिए चोकन्नी रहे करीब पन्द्रह मिनुत बाद हमे गाड़ी के निशान में मतलब आगे साधन जा सकता था , जो भी था वो गाड़ी लाया था और अब जा चूका था पर हम उन टायरो के निशानों को देखते हुए चलते रहे करीब दो किलोमीटर चले हम फिर एक चोराहा आ गया अब चारो तरफ कच्चे रस्ते थे पास से नहर गुजर रही थी और हैरत की बात यहाँ से दो रास्तो पर गाड़ी के निशान जा रहे थे तो निशान वाली थ्योरी फेल हो गयी थी

मंजू- अब किस तरफ

मैं- पता नहीं , एक काम कर तू एक रास्ता ले मैं दूसरा लेता हु देखते है कहा जाते है

मंजू- देव, मुझे डर लग रहा है मैं नहीं कर पाऊँगी कही कई रस्ते में न पेल दे

बात तो सही थी उसकी तो हम लोग वापिस हो लिए करीब घंटे भर बाद हम लोग जब पहुचे तो सब लोग चबूतरे पर ही बैठे थे

नीनू- कहा चले गए थे

मैंने उसको सब बताया बस चुदाई वाली बात छुपा ली मैंने उन लोगो को उस पूरी जमीन का एक राउंड लेने को कहा और खुद चबूतरे पर लेट गया अब मैंने सब सही ही बताया था उनको पर कहानी जैसे जम नहीं रही थी नीनू ने उस पुरे इलाके का जायजा लिया खूब ढूँढा पर कुछ नहीं मिला एक तरफ पहाड़ था घनी झाडिया थी कुल मिला के बहुत ही अजीब सी जगह थी


पिस्ता- ये जमीन वैसे क्या सोच कर खरीदी गयी हो गी

मैं- मुझे नहीं पता

वो- कोई तो खास बात होगी ही

माधुरी- भाई मैंने एक किताब में पढ़ा था था की अक्सर ऐसी जमीनों पर लोग पहले अपना खजाना छुपाते थे लॉजिक भी यही कहता है की ये जमीन हमेशा से ही उजाड़ पड़ी है और इस तरफ आबादी बिलकुल नहीं है बेशक कोई चरवाहा आ जाये अपने जानवरों को चराने वो भी कभी कभार एक अजीब सा डर है यहाँ जैसे ये जगह भुतहा हो

मैं- हकीकत किस्से-कहानियो से अलग होती है
“”माधुरी की बात सच भी तो हो सकती है देव, “” नीनू ने हमारी ओर आते हुए कहा

“देव, मुझे भी लगता है की इस जमीन का उस हादसे से कोई ना कोई ताल्लुक तो है वर्ना कोई इस जमीन को क्यों खरीदेगा खेती इसमें हो नहीं सकती , अब ये भी मान ले की भविष्य में फायदा दे जाये तो भी इस जमीन का कोई ख़ास मोल नहीं है ”

मैं- तो फिर पिताजी ने ये जमीन क्यों खरीदी

पिस्ता - ये ही तो हम भी जानना चाहते है

मैं- और ये ही तो नहीं पता मुझे अब क्यों खरीदी ये तो इसे बेचने वाला ही बताएगा कल पता करता हु कुछ तो पता जरुर चलेगा

नीनू- वैसे मैंने इस इलाके का मुआयना कर लिया है कुछ भी अजीब नहीं है सिवाय

मैं- क्या


वो- दो चीजों के करीब 2 कोस दूर एक मंदिर है छोटा सा पहले पूजा वगैरा होती होगी पर अब हालत बुरी है शायद वक़्त ने भुला दिया है उसको और लोगो ने भी और दूसरा ये चबूतरा

मैं- मुझे भी ऐसा ही लगा था इस उजाड़ में कोई क्यों बनवाये गा और मान लो अगर मुझे इसे बनवाना होता तो मैं तीनो पेड़ो के निचे बनवाता ताकि बैठने को और जगह हो और सुन्दर भी लगे, वैसे इन तीन पेड़ो के में बीच वाले पेड़ पर ही क्यों बनाया गया , शायद इसलिए की अलग सा दिखने के कारण ये लोगो का ध्यान खीच सके नहीं बेसिक तो यही लगता है की शायद इसी लिए बनवाया होगा की कोई रही बैठ जाए सुस्ता ले ,

पिस्ता- देव, तुम्हारी बात सही है पर देखो लोग धर्मार्थ के लिए अगर इसको बनवाते तो अमूमन वो ऐसे चबूतरे के साथ पानी की टंकी भी बनवाते है ताकि रही की प्यास भी बुझ सके

मैं- सिंपल सी बात है इधर पानी का कोई जुगाड़ नहीं होगा तो नहीं बनवाई होगी और फिर बीते समय में तो आवा जाहि होती ही होगी

माधुरी- भाई, हमे इस चबूतरे को खोद के देखना चाहिए क्या पता इसके निचे कोई खजाना निकल आये

नीनू- कैसी बाते करती हो खजाने बस किस्से कहानियो में होते है शायद हम लोग हम इस चबूतरे को लेकर ज्यादा ही सीरियस हो रहे

है वैसे भी दोपहर हो गयी है हमे चलना चाहिए

मैं- हाँ पर
पिस्ता – पर

मैं- कुछ नहीं चलो चलते है

करीब पोने घंटे बाद हम लोग घर आये सब लोग थके थके से लग रहे थे माधुरी ने सब के लिए चाय बनाई पिस्ता और नीनू मजदूरों के साथ बात चीत कर रहे थे मैं चाय की चुसकिया लेते हुए अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहा था कुछ सोच कर मैंने चाचा को फ़ोन मिलाय

मैं- आपसे एक बात पूछनी थी

चाचा- हां

मैं- जब हमने एक इंच भी जमीन बेचीं नहीं तो आपके पास इतना पैसा कहा से आ गया की आपने ज्वेल्लरी का कारोबार खड़ा कर लिया

चाचा कुछ देर खामोश रहे , फिर बोले- बेटे मुझे भाईसाहब ने काफी पैसे दिए थे

मैं- पिताजी ने
वो- हां,
मैं- कब

वो- बंटवारे के कुछ दिन बाद की बात है एक रात उन्होंने मुझे फ़ोन किया और कही बुलाया उन्होंने जल्दी आने को कहा था तो मैं घबराया की कही कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी थी मैं जब पंहुचा तो उन्होंने मुझे दो बैग दिए मैंने खोल के देखा तो दोनों में नोटों की गड्डी भरी थी मैंने पुछा भाईसाहब इतनी रकम कहा से आई तो उन्होंने कहा की तू रख ले और किसी से जीकर मत करना
मैं- ऐसा कहा उन्होंने
वो- हां,

मैं- उसके बाद

वो-उसके बाद मैं पैसे लेकर घर आ गया पूरी रात मैंने पैसे गिने सारे नोट असली थे जैसे जैसे पैसो की गिनती बढती जा रही थी मेरी हालात ख़राब होती जा रही थी कई बार तो मुझे लगा की कोई सपना देख रहा हु पर फिर मेरे मन में ख्याल आया की भाई साहिब के पास इतनी रकम आई कहा से

मैं- उसके बाद

वो- उसके बाद मैंने उनसे पुछा तो उन्होंने बस इतना ही कहा की समझ ले तेरे भाई की तरफ से तोहफा है फिर मैं समझ गया था की वो बताएँगे नहीं

मैं- वैसे कितने रूपये दिए थे उन्होंने आपको

वो- करीब डेढ़ करोड़ रूपये

ये सुनते ही मेरे कदमो के तले जैसे जमीन ही खिसक गयी हो ऐसा लगा मुझे डेढ़ करोड़ रूपये वो भी आज से करीब ७-8 साल पहले

मैं- पक्का

वो- हां बेटे भला मैं तुमसे झूट क्यों बोलूँगा

मैं- इसके आलावा कोई और बात जो आपके ध्यान में हो

चाचा- बेटा और कुछ खास तो नहीं था ऐसा पर हां घर में हुए हादसे के बाद जब तुम भी चले गए थे तब एक दिन मुझे घर में एक मटकी मिली उसमे कुछ आभूषण और सोने के बिस्कुट मिले थे

मैं- अब कहा है वो

चाचा- बेटे गहने तो मैंने ये सोच कर की वो शायद भाभी के हो बैंक में रख दिए और वो बिस्कुट मैंने गला लिए

मैं- चाचा मेरा एक काम करोगे

वो- ये भी कोई कहने की बात है


मैं- मुझे वो गहने देखने है बस देखते ही मैं वापिस लौटा दूंगा

वो- बेटे तूने ये बात कह के मुझे पराया कर दिया है सब कुछ तेरा ही तो है बैंक बंद होने में अभी समय है मैं अभी जाता हु और वो गहने लेकर जल्दी ही आता हु

मैं- जैसा आप ठीक समझे

तो यहाँ पर कहानी और उलझ गयी थी सच कहो तो मेरे सर में दर्द होने लगा था उसके बाद मैं मैंने माधुरी को एक चाय और लाने को कहा मैंने नीनू और पिस्ता को ऊपर के कमरे में आने के लिए कहा

मैं- एक बात बताओ कोई तुमको पैसे दे की देव को मार दो तो तुम मार दो


दोनों एक साथ- दिमाग ख़राब हुआ है क्या

मैं- ना बस पूछ रहा हु


पिस्ता- देख तेरा मेरा जो नाता है अब उसका ढोल पीटने की कोई जरुरत है ना, और रही बात पैसो की तो उसके बारे में मैंने कभी सोचा नहीं कोई और बात है तो बता वर्ना मैं जाती हु काम करवाना है

मैं- दो मिनट बैठ


मैं- नीनू मैं तुमको अगर कुछ लाख रूपये दू तो क्या तुम मुझसे धोखा कर दोगी


नीनू- क्या बकवास कर रहे हो तुम

मैं- अगर करोड़ दू तो

नेनू-मैं सर फोड़ दूंगी तुम्हारा


मैं- ढाई करोड़ के लिए तो कोई किसी को क्या पुरे परिवार को भी ख़तम कर सकता है की नहीं


नीनू- कोई कर सकता होगा पर हम नहीं

मैं- तो क्या चाचा ढाई करोड़ के लिए परिवार को रस्ते से हटा सकता है

ढाई करोड़ ये सुनते ही सबका दिमाग ख़राब हो गया माधुरी चाय ले आई थी उसके बाद मैंने चाय की चुसकिया लेटे हुए सबको चाचा से हुई बात बता दी


अब सबके दिमाग के फ्यूज उड़ चुके थे देखो हुआ ऐसा होगा की पिताजी ने चाचा को पैसे दिए तो उसने बिमला को बताया होगा दोनों के मन में लालच आया उन्होंने प्लान बना कर पुरे परिवार को रस्ते से हटा दिया उसके बाद अगर घर में पैसा था तो वो उनका था और पैसा मिला भी होगा क्योंकि जब घर में गहने और सोने की मटकी हो सकती थी तो और कुछ भी होगा जुरूर मैंने अपनी बात ख़तम की

नीनू- इस बात से हमे चाह्चा को गिरफ्तार करने का कारण मिल जाता है

मैं- नहीं, हमे उस से और बाते भी उग्लावानी है

पिस्ता- अगर ऐसा हुआ है तो उसके बाद ऐसा हुआ होगा की बिमला के मन में धन को देख कर लालच आया होगा उसकी बिगड़ी चाचा से और उसने चाचा को लात मारके अलग कर दिया

मैं- देखो इस से एक बात तो साफ हो जाती है की मेरे परिवार की एक्सीडेंट में मौत नहीं हुई थी किसी ने शातिराना प्लान बना कर ये काम किया था



पिस्ता- देव, शायद बिमला को भी पता था इस बारे में याद है जब हम आये थे तो उसके आदमियों ने कैसे झगडा किया था मतलब घर में कुछ तो राज़ है


मैं- देखो यहाँ से दो बाते है एक ये की शायद घर पे कोई कब्ज़ा न करे या बस देखभाल के लिए उसके आदमी आते रहते हो क्योंकि उसके बाद उसके आदमी इधर नहीं आये और वो बात भी की गीता ताई से बस बिमला ने एक बार ही जमीन का पुछा था फिर वो आजतक उधर नहीं गयी और दूसरा ये की तुम्हारी बात सही है घर में कोई राज़ है



पर तुम्हारी बात गलत भी है क्योंकि हम लोग तक़रीबन चीजों को देख चुके है हमे वैसा कुछ नहीं मिला



नीनू- शायद इसलिए की तुम कुछ और ढूंढ रहे थे उस समय तुम्हारा पूरा फोकस कंवर पर था हमे घर की फिर से तलाशी लेनी चाहिए हर एक चीज़ की



मैं- ठीक है आज रात हम लोग ये काम करेंगे



सबने हां भरी उसके बाद हम निचे आ गए ढाई करोड़ की रकम किसी ज़माने में भी छोटी नहीं होती और सबसे बड़ा सवाल तो ये था की पिताजी के पास इतना रुपया आया कहा ये तो ऐसा हुआ की किसी को कोई खजाना ही मिल गया हो , खजाने से मुझे माधुरी की बात याद आई और मेरे दिमाग के एक खटका सा हुआ की क्या पता उस जगह उस चबूतरे के निचे शायद कुछ धन छुपाया गया हो और पहचान रखने के लिए चबूतरा बनाया गया हो हालाँकि ये बस मेरा ख्याल ही था पर दिमाग में हुडक चढ़ गयी थी अब दिमाग में सारी बाते घर कर गयी थी हर बात का अलग अलग मतलब निकल रहा था





सर भारी होने लगा था तो मैं लेट गया घर के बाहर जो पेड़ था उसके निचे ही चारपाई बिछा के बस आँख बंद ही की थी की गाँव का एक आदमी आ गया उसने बताया की कल पंचायत होगी तुम्हे और पिस्ता को आना है मैंने बस समय पुछा उअर उसके बाद उसको जाने को कहा अब ये भी एक मुसीबत थी , कल पंचायत लगनी थी उसका मतलब बिमला वापिस आ गयी थी तो उसको पता चल गया हो गा की मैं वापिस आ गया हु और फिर भी मिलने ना आई मिलने कैसे आएगी ये सब उसका ही तो किया धरा है





मैंने फिर से आँखे बंद कर ली और सोने की कोशिश करने लगा कोई दस पन्द्रह मिनट बीते पर शायद आज नसीब में सोना लिखा ही नहीं था गाड़ी के शोर से मेरी आँख खुल गयी तो देखा की एक काले रंग की गाड़ी घर के सामने आके रुकी , मैं उठ बैठा और उसमे से जो उतरा वो मुझे जैसे विश्वास ही नहीं हुआ, वो बिमला थी गाड़ी से उतारते ही उसकी नजर मुझ पर पड़ी और वो भागते हुए मेरे सीने से लग गयी इस से पहले मैं कुछ कहता उसकी आँखों से मोटे मोटे आंसू गिरने लगे





“ओह!देव, तुम मुझे छोड़कर कहा चले गए थे इतने बरस बीत गए ना कोई खोज न कोई खबर क्या तुम्हे एक पल भी मेरी याद नहीं आई ”



मैं- याद अपनों को किया जाता है गैरो को नहीं



वो- देव्, तुम अब तक पुरानी बातो को सीने में दबाये बैठे हो देव तुम्हारे सिवाय मेरा है ही कौन कम से कम तुम तो कडवा मत बोलो



मैं- मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है तुम यहाँ से चली जाओ



वो- नहीं जाउंगी, कही नहीं जाउंगी ये मेरा भी घर है



मैं- घर समझा होता तो इसको छोडके और कही नहीं गयी होती



वो- तुम भी तो चले गए थे



मैं- मैं चला गया था तुम्हे तो पता ही होगा की इन बीते बरसो में मेरे साथ क्या हुआ है आखिर तुमने ही तो मुझ पर हमला करवाया था



वो- ये सुनने से पहले ये धरती फट क्यों नहीं गयी देव मुझे मार ही डालते ये कहने से पहले



मैं- मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी है , जी औरत की वजह से मेरा पूरा परिवार ख़तम हो गया वो मेरी कोई नहीं लगती



वो- तो तुम भी उस हादसे का कारण मुझे समझते हो देव ये मत भूलो की जो लोग उस हादसे में मरे वो मेरे भी कुछ लगते थे



मैं- वो हादसा नहीं था वो खून था खून जो तुमने किया



वो- मन की मैं बेगैरत ही सही पर इतनी तो शर्म थी की मैं अपने बच्चो को ना मारती गड़े मुर्दे मत उखाड़ो देव, कुछ गलती तुमसे हुई कुछ मुझसे हुई पर हम परिवार ही तो है और परिवार साथ रहे तो ताकत रहती है मैं जानती हु की तुम्हे हज़ार भडकाने वाले मिलेंगे पर मेरा विशवास करो घरवालो को तुमने ही नहीं मैंने भी खोया है



बिमला जोर जोर से चीख रही थी रो रही थी पर मैं एक दम शांत खड़ा था



वो- मैं सोचा था की मेरा देवर बरसो बाद आया है चलो कमसे कम कोई तो अपना है जिसके पीछे जिन्दगी काट लुंगी जो मैं जी रही हु मैं ही जानती हु देव दिन तो कट जाता है पर रात होते ही अकेलापन खाने को दौड़ता है जैसे ही मुझे पता चला तुम आ गए हो सबसे पहले तुम्हारे पास ही आई अगर तुम्हे अपना नहीं मानती तो क्यों आती मैं यहाँ



तमाशा सा हो गया था सब लोग जमा हो गए थे अब फजीहत ही होनी थी अब किया भी क्या जा सकता था

बिमला- देव चाहे आज तुम मेरा यकीन करो या न करो पर एक दिन आएगा जब तुम्हे मेरा यकीन करना ही पड़ेगा पर देव अपनों को समझने में देर भी ना कर देना अब मुझे तो जाना ही पड़ेगा अफ़सोस की तुम आजतक पिछली बातो को सीने से लगाके बैठे हो



बिमला चली गयी थी पर मैं वही बैठा रहा साला क्या सच है क्या झूठ है कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कौन अपना कौन पराया अब जब सब ही अपने थे तो हमारी गांड में ऊँगली कौन कर रहा था सोचने वाली बात थी

शाम होने लगी थी मजदूरो का आज का काम पूरा हो गया था मैं बस चारो तरफ घूम कर काम देख रहा था की तभी चाचा आ गया





चाचा- लो बेटे देख लो मैं ले आया हु





मैंने वो गहने देखे , सोना ऐसे दमक रहा था जैसे की कोई लपट हो मैंने पहले भी सोना देखा था पर ये एक दम अलग सा था



चाचा- प्योर गोल्ड है एक प्रेसेंट भी मिलावट नहीं



मैं- प्योर गोल्ड मिलता भी है



चाचा- मैं तो खुद हैरान हु



उन गहनों कर डिजाईन काफी पुराने टाइप का था पर गहनों को देख कर पता नहीं लगा पा रहे थे की कितने पुराने है वो तो ऐसे दमक रहे थे की जैसे आज ही बनवाये हो उसके बाद मैंने एक दो बात और पूछी पर हाल वही धाक के तीन पात



मैं- चाचा क्या आप आज के लिए ये गहने यहाँ छोड़ सकते है कल सुबह मैं आपको लौटा दूंगा



वो- बेटे तुम्हारे ही है जब तक चाहो रखो आगे तुम्हारे ही तो काम आने है अरे हां, वो नहर वाली जमीन तुमाहरे नाम कर दी ये उसके कागज़





कुछ और बातो के बाद चाचा चला गया मैंने वो गहनों का थैला लिया और गाँव के सुनार के पास चला गया पिताजी अक्सर गहनों काम उस से ही करवाते थे दुआ सलाम के बाद मैंने उस से पुछा की क्या ये गहने उसने बनाये थे पर उसने मना कर दिया बल्कि खरा सोना देख कर वो खुद चकित था खैर, वापिस घर आया खाना खाया उसके बाद मैंने पिस्ता और माधुरी को काम पे लगाया की वो फिर से घर की तलाशी ले उसके बाद मैंने नीनू को अपनी साथ लिया





वो- कहा जा रहे है



मैं- बैठो तो सही



मैंने गाडी में कुछ खोदने के औज़ार रखे और फिर हम बढ़ गए हमारी मंजिल की और रस्ते में मैं पूरी तरह सोच में डूबा रहा हम फिर से अपनी जमीन पर आ गए थे



नीनू- इतनी रात गए हम यहाँ क्यों आये है



मैं- वो चबूतरा



वो- क्या तुम्हे सच में लगता है उसके निचे खजाना है माधुरी की बात को सीरियस ले लिया रात का टाइम है कही कोई साप बिच्छु निकल आया तो





मैं- नीनू सुबह से ही ये चबूतरा मुझे खटक रहा है जैसे मेरी सिक्स सेन्स कोई संकेत दे रही है थोड़ी मेहनत करने में क्या जा रहा है देखो अब जमीन अपनी है और पूरी जमीन में बस ये ही तो अजीब है बात खजाने की नहीं पर ये मत भूलो की घरवालो को छप्पर फाड़ के रकम मिली थी तो एक बार देख लेते है





नीनू- चलो अब आ गए है तो ये भी कर लेते है





हमने बैटरी जलाई और थोड़ी देर में उस चबूतरे पर पहुच गए चारो तरफ एक अजीब सा सन्नाटा फैला था जब हवा से पेड़ हिलते तो डर लगता पर हमे हमारा काम करना था तो मैंने उसे तोडना शुरू किया थोड़ी मदद नीनू भी करने लगी कड़ी मेहनत के बाद हमने उस पुरे चबूतरे को तोड़ दिया पर क्या मिलना था कुछ भी तो नहीं था वहा पर







पसीने से भीगी नीनू- हो गयी तस्सली खामखा तुम्हारे इन अजीब खयालो के कारण रात ख़राब हो गयी





मैं- अभी काम पूरा नहीं हुआ अभी और खोदेंगे



फावड़ा लिया और अब जमीन को खोदने लगा मुझ पर जैसे जूनून सा छा गया था करीब तीन फीट खोद चुके थे पर कुछ नहीं नीनू घर चलने के लिए बोल रही थी मैंने कहा बस थोडा सा और मैं खोदे जा रहा था पर अब मेरा भी होंसला टूटने लगा था और फिर करीब 5 फीट के बाद मेरी कस्सी किसी चीज़ से टकराई मैंने नीनू को बैटरी इधर दिखाने को कहा और जैसे ही रौशनी गड्ढे में पड़ी मेरी रूह खुश्क हो गयी गला सूख गया भय के मारे बदन में कम्पन सा होने लगा





दरअसल वहा एक कंकाल था जिस से मेरी कस्सी जा टकराई थी नीनू तो जैसे चीख ही पड़ी थी मैं ऊपर आया और जमीन पर ही बैठ गया नेनू मेरे पास खड़ी हो गयी मैंने बैग से पानी की बोतल निकाली और कुछ ही घूँट में उसको खाली कर दिया





नीनू-ये कंकाल यहाँ





मैं- नीनू , ये कंकाल कंवर का है ये कहते हुए मैं रो पडा





कारण साफ़ था कंवर घर से तो चला था पर दुबई नहीं पंहुचा था उसका पासपोर्ट और और सामान भी हमे मिल चूका था मतलब साफ था की किसी ने उसे मार कर यहाँ गाड दिया था





नीनू- देखो, अभी अनुमान मत लगाओ अब ये बरसो से खाली जमीन पड़ी है कोई भी किसी को मारके गाड सकता है और देखो इसे जमीन के इतनी अन्दर दफनाया गया है कातिल चाहता तो बस दफना के चला जाता किसी को कुछ पता नहीं चलता उसने यहाँ ऊपर चबूतरा क्यों बनवाया





मैं – शायद सुराग





वो- किसलिए छोड़ेगा सुराग, की आओ मैंने यहाँ लाश दबाई है





बात में बहुत ज्यादा दम था लोग बातो को छुपाते है अब सर जैसे फटने को हो गया था कुछ सोच के मैंने वापिस गड्ढे को भरना चालू किया नीनू भी मेरी मदद करने लगी





मैं- कल कुछ मजदुर भेज कर इस चबूतरे को फिर से बनवा देना



वो- ठीक है



मैंने गड्ढे को अच्छे से भर दिया था मेरा दिल कह रहा था की ये कंकाल कंवर का ही है शायद ये अपनों के लिए अपनों की आवाज थी मैंने घडी देखि टाइम ढाई से ऊपर हो रहा था अब यहाँ कुछ नहीं करना था तो हम चलने को हुए मैं औजार वगैरा इकठ्ठा कर अरह तह की नीनू बोली वो अभी आई सुसु करके





करीब पांच मिनट बाद वो आई और बोली- देखो देव, मुझे क्या मिला है





मैंने बैटरी की रौशनी में देखा पार्ले जी बिस्कुट के जैसा लगा मुझे मैंने उल्ट पुलट के देखा और तभी मेरे दिमाग में चाचा की कही बात आई मैंने बैग से पानी निकाला और उसको धोने लगा और थोड़ी देर बाद मुझे जो मिला यकीन नहीं हुआ वो एक सोने का बिस्कुट था निखालिस सोने का चाचा ने भी यही बात बताई थी की उनको उस मटकी में बिस्कुट मिले थे मतलब इस जगह में कुछ तो बात थी कुछ तो लेना देना था बस क्या था वो ही पता चलाना था

नीनू की आँखे फटी पड़ी थी मैं- ये तुमको कहा मिला





वो- उधर झाड़ियो के पीछे जब मैं गयी तो मैंने ऐसे ही पत्थर उठा लिया पर ये अजीब सा था मेरा मतलब पत्थर ऐसे नहीं होते ना तो थोडा सा मैंने ऐसे ही अटखेली करते हुए इसको कुरेदा तो चाँद की रौशनी में अलग सा लगा तभी मैं इसे लेके आई



मैं- नीनू तुमने अनजाने में ही बहुत बड़ी मदद कर दी है



भावनाओ में आकर मैंने नीनू को चूम लिया तो वो शर्मा कर मुझसे अलग हो गयी इस सोने के बिस्कुट का यहाँ मिलना ये साबित करता था की कुछ तो जुड़ा है इस जगह से पर इस घनघोर अँधेरे में कुछ भी तलाश करना ना मुमकिन सा ही था तो ये तय हुआ की दिन के उजाले में ही खोज की जाए फिर मैं और नीनू वापिस हुए, थोड़ी बहुत नींद ली आज पंचायत बैठनी थी तय समय पर हम लोग गाँव की चौपाल की तरफ चले





जिस गाँव में कभी हम फैसला सुनाया करते थे उसी गाँव में आज हमारा फैसला होना था वाह रे ऊपर वाले तेरे अजीब खेल खैर, जब हम पहुचे तो लगभग पूरा गाँव वहा पर था अवंतिका भी थी , बिमला एक कुर्सी पर बैठी थी हमारे आते ही कार्यवाई शुरू हुई



बिमला- आदरनीय, पंचो और समस्त गाँव वालो मैं एक बात कहना चाहती हु की देव मेरा देवर है पंचायत का जो भी फैसला हो अगर वो देव के पक्ष में जाये तो आप लोगो को लगेगा की सरपंच तो इसकी भाभी है इसलिए इसके पक्ष में फैसला दिया इसलिए मैं खुद को इस कार्यवाई से अलग कर रही हु और पंचो पर मामला छोडती हु, जो भी उनका फैसला होगा वो ही मेरा फैसला होगा

वैसे देखा जाए तो बिमला का वैसला अपनी जगह एक दम सही था तो पंचायत शुरू हुई





पंच- देव, तुमने गाँव की लड़की से ब्याह करके गाँव के भाई चारे को खराब किया है गाँव में हर लड़की को अपनी बहन बराबर मान दिया जाता है तो तुमने पिस्ता से क्यों ब्याह रचाया





पिस्ता- ओये, पंच तू अपना काम कर दिमाग मत सटका ये मेरी मर्ज़ी है मैं जिस से चाहू उसके साथ रहू तेरी के दिक्कत है

मैंने पिस्ता को चुप रहने के लिए कहा पर वो गुस्से में आ गयी थी वो नहीं मानी





पिस्ता- के कहा तुमने, की गाँव की हर लड़की भाई बहन होवे है अगर मैं अब भी नाडा खोल दू तो जो लोग ये संत बनने का नाटक कर रहे है ये भी चढ़ने को तैयार हो जायेंगे बस आग लग गयी इनके पिछवाड़े में , अरे काहे की पंचायत और कहे के ये दो कौड़ी के पंच ये रोहताश आज पंच बना फिर रहा है अरे इसने तो अपनी भाभी को नहीं छोड़ा, जो अपने घर में ऐसे काम कर सकता है वो बाहर की औरतो लडकियों के बारे में क्या सोचता हो गा, मुझे न झांट बराबर फरक नहीं पड़ता इस पंचायत से





और सुनो रही बात फैसले की तो उसकी ना बत्ती बनाके अपनी गांड में डाल लो क्या कहा तुमने की गाँव की हर बेटी को अपनी बहन समझना चाहिए ये ताऊ हरचंद याद है इसने एक बार मुझे अपने छप्पर में आने को कहा था तब ना थी मैं बेटी





मैं- पिस्ता चुप होजा





वो- ना देव, इन दो कौड़ी के लोगो को आज इनकी औकात दिखानी है साले ठेकेदार बने फिरते है अरे सोचो हमारे क्या हालत है किस परेशानी से जूझ रहे है हम वो तो किसी ने न पूची आ गए पंचायत करने





पंच- देव, इसको समझाओ





मैं- पंच साहिब, मेरी बात सुनिए





उसके बाद मैंने पूरी बात सबको बताई की कैसे क्या हालात थे और साथ ही ये भी बता दिया की अब मेरी दो पत्नि है नीनू का इशारा करके





मेरी बात सुनके सब चुप हो गए ,





मैं- मैंने अपना पक्ष रख दिया है





पंच- देव, तुम्हारे बाप दादा ने सदा इस गाँव की मदद की है हमारी तुमसे भी कोई परेशानी नहीं पर देखो समाज की भी बात है तुम्हारी देखा देखि कल गाँव में और लड़के लड़की ने ऐसा कदम उठाया तो .....
 

Incest

Supreme
432
859
64
मैं- पंच साहिब, अब भविष में क्या हो किसको पता है





पंच- पर समाज के कुछ नियम होते है अब तुम ही बताओ इस लड़की को हम बेटी कहेंगे या बहु सोचो जरा





पिस्ता- तू माँ कह दिए , चलो हो ली तुम्हारी पंचायत ख़तम तमाशा हम लोग तो इधर ही रहेंगे इसी गाँव में किसी में दम हो तो हाथ लगा के दिखाए





मैंने कहा था उसको चुप रहने को पर उसने बात बिगड़ दी थी अब संभालना मुस्किल हो रहा था गाँव से टक्कर ली ही नहीं जा सकती थी मैंने नीनू को कहा तो उसने पिस्ता को शांत किया और अपने पास बिठा लिया





पंच- देव, अबकी बार ये लड़की बोली तो हुक्का पानी बंद





मैं- कौन करेगा





वो- पंचायत की ना सुनोगे





मैं- आप लोग मेरी नहीं सुन रहे है मैं कहना नहीं चाहता था पर कहना पड़ रहा है मैं पुलिस में sp , मेरी घरवाली नीनू dsp अगर मैं बिगड़ा ना तो पांच मिनट में ना पंच रहेंगे न पंचायत पर मैं इसलिए चुप हु की मैं गाँव का सम्मान करता हु आखिर ये गाँव घर है मेरा और आप सब मेरे घरवाले मैं बहुत भटका हु अब घर आया हु आपसे हाथ जोड़ के विनती है की हमे अपनाइए रहने को तो हम कही भी रह लेंगे आज से पहले भी रह रहे थे ना पर यहाँ मेरे लोग है इसलीये तो आया हु , पिस्ता को ब्याहना कोई गलती नहीं है बल्कि आप जरा सोचो हमारी हालात की बारे में की कैसे लम्हे गुजारे है हमने







पंची भी शाम को अपने घर आते है जानवर भी अपने बच्चो को प्प्यर करते है तो आप लोग अपने बच्चो के प्रति कठोरता मत दिखाइए मेरे बाप दादा ने अपना खून पसीना लगाया गाँव के लिए बीते समय में मेरे साथ जो भी हुआ अब मेरा ये कहना है की मैं तो इस गाँव में ही रहूँगा





मैंने अपने बाद रख दी थी अब पंचो के फैसले की बारी थी मैंने तो सोच लिया था की अगर कोई यहाँ पंगा करेगा तो फिर देख लेंगे काफ़ि देर तक पंचो ने आपस में बात की फिर बिमला को अपनी बात चित में शामिल किया अब आयी फैसले की घडी





बिमला- तो गाँव वालो पंचो ने निर्णय ले लिया है उनका निर्णय मैं आपको सुना रही हु, देव के साथ जो भी हुआ और उन सभी हालातो को मद्देनजर रखते हुए की कैसे उसे पिस्ता का साथ करना पड़ा और साथ ये भी देखते हुए की उन्होंने गाँव के भाई चारे के नियम को भी तोडा है तो पंचायत ने फैसला किया है की चूँकि अब वो पिस्ता को छोड़ नहीं सकता क्योंकि हालात ही ऐसे है देव अपनी दोनों पत्नियों के साथ गाँव में रह सकेगा और उसका हुक्का पानी भी बंद नहीं किया जाता पर चूँकि गलती की है तो उसका प्रायश्चित भी करना होगा

बिमला- और उनकी सजा ये है की गाँव में बन रहे बाबा के मंदिर का आधा खर्चा देव को देना होगा और साथ ही पिस्ता को ये हिदायत दी जाती है की वो अपनी भाषा पे कण्ट्रोल करे बहुत गन्दा बोलती है वो अपने से बड़ो का सम्मान करे और इसी के साथ ही ये पंचायत ख़तम होती है







मैंने उनका फैसला मान लिया था बिमला मुझे मेरी तरफ आते हुए दिखी पर वो पास से गुजर गयी और मुझे ऐसा लगा की जैसे उसकी आँखों में आंसू हो खैर, चलो एक तो टेंशन ख़तम हुई उसके बाद मैंने पंचो से खर्चे का पुछा और हम फिर घर आ गए खाना वाना खाया सब लोगो की आराम की इच्छा थी तो मैंने डिस्टर्ब नहीं किया मैं घर से बाहर आया और रतिया काका के घर की तरफ चल दिया मैंने आवाज लगाई पर कोई दिखा नहीं तो मैं वापिस मुड़ा ही था की किसी ने आवाज लगायी







मैंने देखा राहुल की पत्नी ममता थी – घर पे कोई नहीं है जेठजी







मैं- कोई बात नहीं काका आये तो कहना देव आया था वैसे मंजू कहा गयी है







ममता- मुम्मी जी के साथ खेत में







मैं- अच्छा मैं चलता हु







वो- रुकिए कम से कम चाय तो पीके जाइए







मैं बैठ गया थोड़ी देर में ममता चाय ले आई मैंने उसे शुक्रिया कहा और चाय पिने लगा







वो- घर में सब आपकी ही बाते करते रहते है









मैं- क्यों







वो- अप इतने दिन बाद जो आये







मैं- हाँ कई समय हुआ अब तो हर चीज़ ही बदल गयी है







वो- हां, दीदी ने काफी कुछ बताया आपके बारे में



मैं- क्या बताया







वो- यही की आप कभी जिंदादिल हुआ करते थे







मैं- अच्छा







वो – हां बस आपके ही चर्चे है घर में







मैं- चाय के लिए शुक्रिया अच्छी बनायीं है



ममता कप उठाने के लिए थोडा सा झुकी तो उसका पल्लू सरक गया और मेरी नजर उसकी ब्लाउज से बाहर आने को बेक़रार छातियो पर पड़ गयी मैंने जल्दी से नजर बदल ली और तभी तभी मुझे उसके हाथ के पिछले हिस्से पर कुछ दिखा जिसे देख कर मेरी आँखे फ़ैल गयी अगले ही पल मैंने उसको पकड कर दीवार से सटा दिया और बोला- तो उस दिन झाड़ियो में तुम ही थी ना







वो- छोडिये हमे ,







मैं- तू ही थी ना जो मुझे और मंजू को देख रही थी







वो- हाँ मैं ही थी पर अभी हम आपको कुछ नहीं बता सकते कल आप हमे हमारे खेत पर मिलना







मैंने उसे छोड़ा उसने मुझे टाइम बताया और फिर मैं वहा से आ गया अब ये साली ममता वहा क्या गांड मरवा रहि थी और उसको क्या पता क्या वो रतिया काका की तरफ से जासूसी कर रही थी साला एक नयी मुसीबत और तैयार हो गयी थी टाइम पास करने को मैं गीता ताई के घर चला गया अन्दर गया तो ताई हाथ में तौलिया लिए खड़ी थी







मैं- नहाने जा रही हो क्या







वो- हाँ पर अब तू आ गया बाद में ही नहा लुंगी







मैं- चलो साथ नहाते है







ताई मुस्कुराई, मैंने घर का दरवाजा बंद किया और अपने कपडे उतार के नंगा हो गया ताई ने अपना ब्लाउज खोला और फिर घागरे को भी उतार दिया एक मस्त माल बिलकुल नंगा मेरी आँखों के सामने खड़ा था जैसे ही मैं गीता की तरफ बाधा वो बाथरूम में घुस गयी मैं भी उसके पीछे पीछे अन्दर जाते ही ताई ने फव्वारा चला दिया और पानी उसके बदन को भिगोने लगा मैंने ताई को अपने आगोश में ले लिया और ताई के गुलाबी होंठो को चाटने लगा ताई ने मेरे लंड को पकड़ लिया और उस से खेलने लगी







ताई- मैं सोच ही रही थी की आया नहीं







मैं- उलझा था कुछ कामो में बाद में बताऊंगा पहले जरा आपको थोडा प्यार कर लू







ताई- तुझे पता नहीं मैं क्या अच्छी लगती हु जो हमेशा मेरी लेने के पीछे पड़ा रहता है







मैं- ओह मेरी प्यारी ताई, मेरी जानेमन, तू चीज़ ही इतनी गरम है तेरे आगे तो साली जवान लड़की भी पानी भरे ये तो मेरी बदनसीबी है जो मैं तुझे पहले प्यार नहीं कर पाया पर तू सच में ही जबर्दश्त है तेरी चूत इतनी टाइट है की कुंवारी लड़की को टक्कर देती है







ताई अपनी तारीफ सुनकर खुश हो गयी मैंने उसकी चूची पर मुह लगा दिया और ताई के बोबो को चूसने लगा ताई मस्ताने लगी उनका हाथ मरे लंड पर और टाइट हो गया ऊपर से हमारे जिस्मो पर पड़ता पानी जिस्मो की आग को और भड़काने लगा था चूचियो के गहरे काले निप्पल पर मेरी जीभ गोल गोल घूम रही थी ताई की सांसे भारी होने लगी थी और फिर ताई अपने घुटनों के बल बैठ गयी और मेरे लंड को अपने गुलाबी होंठो पर रगड़ने लगी







और जैसे ही उनकी जीभ ने मेरे सुपाडे को टच किया मेरे पैरो में कम्पन होने लगा ताई ने जल्दी ही अपनी जीभ से मेरे सुपाडे को ढक लिया और उस पर अपनी जीभ का असर दिखाने लगी मैंने ताई के सर को पकड़ लिया वो अहिस्ता अहिस्ता से मेरे लंड को चूसने लगी साथ ही अपने हाथ से मेरी गोलियों से खेलने लगी ताई की बात ही निराली थी जैसे जैसे उत्तेजना बढती जा रही थी और इसी उतेजना से वशिभुष मेरा लंड जल्दी ही ताई के गले तक जा रहा था







ताई तो गजब औरत भी एक हाथ से अपनि चूत में ऊँगली कर कर रही थी और ऊपर मेरा लंड चूस रही थी मैंने देखा ताई ने तीन उंगलिया चूत में घुसेड रक्खी थी और मजे से मेरा लंड चूस रही थी पर अब जरुरत थी चूत की तो मैंने ताई के मुह से लंड निकाल लिया वो अपने पंजो पर झुक गयी ताई की 44 इंची कुल्हे मेरी आखो के सामने थे मैंने उनको थपथपाया और फिर अपने नड को चूत के द्वार से लगा दिया एक जोर का धक्का मारा और ताई आगे को सरक गयी पर जल्दी ही वापिस पोजीशन में आ गयी







जल्दी ही ताई अपनी भारी गांड को आगे पीछे करने लगी ताई की आहो का शोर फव्वारे के शोर में दबने लगा पर चूत पूरी तरह गरम थी ताई की चूत के चिकने रस में सना मेरा लंड ताई की चूत को फैलाये हुए था मेरा लंड ताई की बच्चेदानी तक टक्कर दे रहा था उसी तरह मैंने ताई को करीब पंद्रह बीस मिनट तक चोदा फिर हम साथ साथ ही झड गए

उसके बाद हम लोग नहाये फिर मैंने ताई को अपनी गोद में उठा कर अन्दर कमरे में ले आया







ताई- पानी तो पोंछने दे







मैं- तू कितनी रसीली है मेरी रानी







ताई- मस्का मत लगा







मैं- मस्का क्या लगाना माल तो तू अपना ही है चल जल्दी से तैयार होजा एक बार और करते है







ताई- बूढी हो गयी हु अब इतना दम नहीं रहा







मैं- देनी नहीं तो सीधे सीधे बोल ना







वो- मना करुँगी तब भी कौनसा मानेगा जब तुझे लेनी है तो देनी ही पड़ेगी ना







मैं- ताई ये तूने अच्छा किया झांट कट कर लिए







वो- कुछ दिनों से खुजली ज्यादा हो रही थी तो







मैं- देख तेरी चूत कितनी प्यारी लग रही है







ताई बुरी तरह से शर्मा गयी मैंने अपने लंड को सहलाने लगा ताई पलंग पर लेट गयी और अपने मांसल टांगो को फैला लिया ताई जितनी गोरी थी उसकी चूत उतनी ही काली थी इसलिए वो मुझे पसंद थी मैंने बिना देर किये अपना मुह ताई की टांगो के बीच घुसा दिया और अपने होंठो को ताई की फूल सी नाजुक चूत पर रख दिए और उस रस से भरी कटोरी का रसस्वादन करने लगा ताई के होंठो से सिस्कारिया निकालते हुए छत से जा टकराने लगी







उसकी टाँगे अपने आप ऊपर को उठने लगी और ताई क दोनों हाथ मेरे सर पर पहुच गए ताई मेरे सर को अपनी चूत पर दबाने लगी मैंने अपनी सपनीली जीभ निकाली और ताई की चूत के भाग्नसे पर रगड़ने लगा मेरी इस अदा से ताई जैसे आसमान में पहुच गयी और उसकी आँखे मस्ती के मारे बंद होने लगी जैसे किसी स्प्रिंकलर से पानी की ड्राप पड़ती है ऐसे ताई की चूत से रस छूट रहा था मैंने अपनी उंगलियों से ताई की चूत को फैलाया और और अन्दर के लाल हिस्से पर अपनी जीभ रगड़ने लगा







ताई हुई मस्तानी जिस्म अकड़ने लगा और तभी ताई ने मुझे अपने ऊपर से परे धकेल दिया मैंने तुरंत ताई को अपनी और खीचा और ताई की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया और ताई की चूत पर अपने हथियार को रख दिया ,ताई ने अपने चुतड ऊपर को उठाये और तभी मेरा सुपाडा चूत को चीरते हुए अन्दर को जाने लगा ताई की चूत एक बार फिर से मेर लंड के अनुपात में फैलने लगी और फिर शुरू हुई हमारी धक्कमपेल ताई अपनी गांड उठा उठा कर चुद रही थी







अब मैंने गीता की छाती को मसलना शुरू किया अपने संवदेनशील अंगो पर मेरा स्पर्श पाकर ताई और बहकने लगी ताबड़तोड़ चुदाई चालू थी थोड़ी देर बाद मैंने ताई को घोड़ी बना दिया दरअसल इस तरह जब ताई के चूतडो को मैं देखता था तो मुझे एक सुकून सा पहुचता था ताई की गीली चूत में मेरा लंड अन्दर बाहर हो रहा था ताई भी अपनी गांड को आगे पीछे करते हुए पूरा मजा ले रही थी करीब 20-२५ मिनट तक हमने बिस्तर पर खूब घमासान मचाया

थक हार कर मैं बिस्तर पर पड़ा था ताई ने मुझे गरम दूध पिलाया फिर मैं घर के लिए चल पड़ा घर पंहुचा तो मैंने देखा सब लोग उस बिस्कुट को ही निहार रहे थे







मैं- और क्या चल रहा है







नेनू- मैंने चाचा से तस्दीक कर लिया है पिताजी ने जो बिस्कुट उनको दिए थे वो बिलकुल ऐसे ही थे उसके आलावा कल इन दोनों को घर में कुल नब्बे लाख नकद और करीब 5 किलो सोना मिला है







मेरी आँखे हैरत से फटी रह गयी







मैं- जरा फिर से कहना







नीनू ने अपनी बात को दोहराया







मैं- दिखाओ







पिस्ता वो सामान ले आई कुछ गहने थे काफी अलग से मतलब वजन काफी था उसके आलावा बहुत से बिस्कुट और कुछ बर्तन भी







मैंने सारा सामान उल्ट पुलट के देखा और फिर पिस्ता को कहा की इसको हिफाजत से रख दे ,







मैं- देखो, इक बात सामने आ गयी है की परिवार के साथ जो भी हुआ वो इसलीये हुआ है असली पंगा इस सोने का और इन रुपयों का है







माधुरी- भाई पर बात वही आकर रुक गयी है की ये सब आया कहा से







मैं- वो ही तो नहीं पता एक काम करो नब्बे के हिसाब से तुम अपना तीस तीस ले लेना







नीनू- आजकल हमे पैसे से बहुत तोलने लगे हो तुम और वैसे भी ये अब तुमहरा है







मैं- नहीं रे पगली, ये मेरा नहीं है और बस तुम तीस तीस रखलो ऐसा समझ लो की मैं अपनी तरफ से दे रहा हु पर एक बात बताओ ये मिला कहा से







पिस्ता- पिताजी के कमरे में बेड के निचे से , मैं पूरी तरह से चेक कर रही थी मैंने बेड सरकाया उसके बाद मैं झाड़ू निकाल रही थी एक जगह मेरा पर पड़ा तो मुझे थोथ सी लगी तो मैंने थोडा तोड़ फोड़ किया और ये मिला







मैंने उसके बाद वो पूरा फर्श देखा पर कही भी खोखला नहीं लगा मतलब बस यहाँ ही था जो भी उसके आलावा मम्मी की अलमारी के लाकर से पिस्ता को जमीनों की सारी रजिस्ट्री भी मिल गयी थी शाम हो गयी थी बातो बातो में मैं घर से बाहर टहलने लगा की मंजू आ गयी उसकी शकल देख कर ही लग रहा था की वो थोड़ी परेशान टाइप है



मैं- क्या हुआ चेहरे पे हवाइया क्यों उडी हुई है







वो- देव, बात ही कुछ ऐसी है







मैं- क्या हुआ







वो- तू सुनेगा तो तू विश्वास नहीं करेगा देख तुझे बता रही हु पर बात तेरे मेरे बीच रहनी चाहिए







मैं- आजतक तेरी कोई बात फैली क्या







उसके बाद मंजू ने मुझे बताना शुरू किया तो उसकी हर बात जैसे मुझे और परेशान करने लगी

मैं- जरा फिर से बता





वो- थोड़ी देर पहले घर पर कोई नहीं था तो मैंने पिताजी की तिजोरी खोली, तुझे तो पता ही है कभी कभी मैं हाथ साफ कर लिया करती हु, तो मैंने तिजोरी खोली कुछ रूपये निकाले तो मैंने देखा की वहा पर एक एक चाबियों का गुच्छा रखा हुआ था जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था तो मैंने उसे देखा कुछ तो खास बात होगी पर वो किस चीज़ की चाबिया हो सकती है फिर मुझे ध्यान आया की पिताजी ने अपने कमरे में भी अंडरग्राउंड तिजोरी बनवा राखी है





तो मैं वहा गयी और किस्मत से एक चाबी लग गयी और देव जैसे ही मैंने तिजोरी खोली मेरी तो आँख और गांड दोनों ही फट गयी देव तू विश्वास नहीं करेगा उस तिजोरी में एक रुपया नहीं था अगर कुछ था तो बस सोना हो सोना गहने, बर्तन सोने के बिस्कुट पारले जी जैसे और हाँ सोने की इट भी थी देव कम से कम तीस किलो का माल तो होगा ही तिजोरी ठसा ठस भरी थी मुझे तो चक्कर से आ गए देख के बड़ी मुस्किल से होश संभाले बस सीधा तेरे पास आयी हु





मंजू हमेशा से मुर्ख टाइप थी और उसने अपनी उसी मुर्खता में आज मेरे लिए एक बहुत बड़ा काम कर दिया था



मैं- मंजू इस बात का जिक्र किसी से मत करना और मेरे साथ आ





घर जाते ही मैंने पिस्ता से वो सामान लाने को कहा मंजू ने देखते ही कहा की देव बिलकुल ऐसा ही है वहा

मैंने अपना माथा पीट लिया ये साला हो क्या रहा था दिमाग में हज़ार तरह की बाते थी पर मंजू के आगे करना उचित नहीं था थोड़ी बात चित के बाद वो चली गयी





नेनू- तो देव,मामला साफ़ है पिताजी और काका के हाथ कही से ये खजाना ही लग गया दोनों ने आधा आधा किया होगा फिर रतिया काका को आया लालच और बाकि के सोने को हडपने के लिए उन्होंने ये काण्ड कर डाला हमे काका को धरना होगा



मैं- ना काका का इस मामले से कुछ लेना देना नहीं है



वो- कैसे



मैं- क्योंकि जब परिवार के साथ वो हादसा हुआ तब काका तो खुद बिस्तर पर पड़े थे थोड़े दिन पहले ही तो उनका एक्सीडेंट हुआ था

नीनू काका की जान बच गयी बहुत बड़ी बात थी मान लो काका ने रिस्क लिया तो ये बहुत बड़ा रिस्क था उस टाइम मैं खुद हॉस्पिटल में ही था काका की जान बहुत मुश्किल से बची थी





तो कहानी एक बार फिर से उलझ गयी थी इस बार तो हद से ज्यादा पर इतना तो जरुर साफ था की पिताजी और काका को कही से वो सोना मिल गया था और ढेर सारे रूपये भी पर कैसे मिला काका को जरुर कुछ तो पता था और वो आज मुझे जानना था मैंने काका को फ़ोन मिलाया और कहा की मुझे अभी आपको मिलना है कुछ भी हो तुरंत मिलना है काका ने काका ही मैं फर्म में हु तुम वही आ जाओ दोनों औरते साथ चलना चाहती थी पर मैंने मना किया और गाडी को दौड़ा दिया फर्म की तरफ आधे घंटे में पंहुचा

काका ने मुझे देखा और फिर आने का इशारा किया हम दोनों पैअल चलते हुए फर्म से काफी दूर आ गये थे फिर काका एक पत्थर पर बैठ गए और बोले- बताओ बेटा क्या बात है





मैंने जेब से वो बिस्कुट निकाला उनके हाथ पे रख दिया काका ने एक गहरी सांस ली फिर बोले- तो तुम्हे पता चल गया



मैं- हां, पर बस इतना ही की कोई खजाना है



काका- मुझे मालूम था तुम ढूंढ लोगे



मैं- ये सब क्या है काका



वो- बेटे कुछ गलतिया उम्मीद है तुम अपने इस बूढ़े काका को समझ पाओगे हमे माफ़ कर पाओगे



मैं- काका कुछ तो बताओ मेरा सर फटने को है



वो- बेटा, जैसे की तुम्हारे पिता और मैं बचपन के लंगोटिया यार थे एक दुसरे के बिना एक मिनट भी नहीं रहते थे बचपन से ही हमारी दोस्ती पुरे गाँव में मशहूर थी समय बीता अपने अपने परिवार हो गए पर दोस्ती उतनी ही मजबूत होती गयी तुम्हे तो याद होगा की अक्सर मैं और तुम्हारे पिताजी दूर दूर तक घुमने चले जाया करते थे बचपन से ही हमारी ऐसी आदत थी उस दिन भी हम लोग घूमते घूमते गाँव से बहुत दूर पहाड़ के पीछे जो जंगल सा बना है उधर चले गए



मैं- फिर



काका- नीम दोपहर का समय था हम लोग भटक रहे थे ऐसे ही यहाँ से वहा जंगल में काफी आगे निकल आये थे हम लोग मुझे बड़ी प्यास लगी हुई थी और किस्मत की बात हमे वहा पर एक पानी का धोर्रा मिल गया



बिलकुल सही था, पानी मुझे भी मिला था



काका- पानी पिने की बादहम बाते करते हुए और आगे बढ़ गए और फिर करीब कोस भर बाद हमे एक कोटडा सा दिखा अब इस उजाड़ बियाबान में वो कमरा सा अजीब बात थी और ऊपर से वो चारो तरफ कीकर से घिरा हुआ था अब हम लोग जिज्ञासु तो थे ही हमने उस कमरे की खोज बिन करी तो पता चला की वो देवी का मंदिर था कोई पुराना हमने माफ़ी मांगी और वहा से निकल लिए



बस चले ही थे की तुम्हारे पिताजी का पाँव जमीन में फस गया जैसे जमीन खिसक गयी हो , हमने देखा तो कोई पट्टी टूटी थी शायद कोई कुवा सा था तुम्हारे पिताजी ने अपने पाँव को जैसे तैसे करके निकाला





और जैसे ही अब उस जगह धुप पड़ी हमारी आँखों में एक चमक सी पड़ी निचे कुछ तो था हम दोनों ने उस जगह को साफ किया मेहनत से पट्टी को खिसकाया तो देखा की एक छोटा कुवा सा था जो की पूरी तरह से सोने से भरा हुआ था ढेरो क्या हजारो जेवर, अशरफिया और सोने की बिस्कुट उस उजाड़ बियाबान जंगल में जहा इंसान तो क्या दूर दूर तक जानवरों का भी नमो निशान नहीं था वहा पर हम दोनों पसीने से भीगे हुए खड़े थे डर सा चढ़ आया था काफी देर सोच विचार किया हम समझ तो गए थे की ये माता का खजाना है पर जिस तरह से वो हमे मिल गया था हमने माता की हाथ जोड़ कर समझ लिया की शायद उनका ही आशीर्वाद है





अब बेटे बस किस्से कहानियो में ही खजाने के बारे में पढ़ा सुना था उस दिन आँखों के सामने था हमारे अब हम ठहरे नींच इन्सान लालच आ गया लालच को माता के आशीर्वाद का नाम दे दिया जबकि होना ये चाहिए था की पराई अमानत को हाथ नहीं लगाना था हमने थोडा बहुत वहा से लिया और जमीन को पहले जैसे की तरह कर दिया और वापिस घर आ गये



अब रात को नींद आये न दिन को करार आँखों में बस कुछ था तो वो खजाना , कुछ दिन बीते और फिर मैंने और तुम्हारे पिता ने ये सोचा को हो ना हो वो खजाना हमारे लिए ही है तो हम लोगो ने करीब आधा वहा से निकाल लिया और आधा आधा कर लिया अब हमारा तो भाइयो जैसा प्यार था तो धोके या औरकोई बात तो थी ही नहीं

मैं- फिर



काका- बेटा उसके बाद कुछ दिन बीते हमने पता किया की वो जमीन किसकी है कोई पुराना जमींदार था उसकी औलाद सहर में बस गयी थी तो अब जमीन बस खाली थी तो लोगो से उनका पता लिया और हम गए शहर तुम्हारे पिताजी ने वो जमीन खरीद ली तारबंदी करवाई कब्ज़ा ले लिया पैसा आया तो फिर हमारे पाँव जमीन पर टिक नहीं रहे थे और कुछ दिनों में तुम्हारे घर में उठा पटक शुरू हो गयी



मैं समझ गया वो किस बारे में बात कर रहे थे



काका-उसके बाद तुम्हारे पिता थोड़ी टेंशन में रहने लगे थे कुछ दिनों बाद मैंने जिक्र किया की बाकि खजाना भी वहा से निकाल लिया जाये मुझे डर था की कही किसी को पता चल गया तो कोई हाथ साफ़ न कर दे, पर तुम्हारे पिताजी ने कहा की वो एक बार घर के हालात सुलझा ले उसके बाद वो काम करेंगे तो बात आई गयी हो गयी पर हमे पैसा पच नहीं रहा था अब देव, हम भी इंसान ही थे कुछ गलत कामो में हमने प खर्च किया सब ठीक ही चल रहा था पर कुछ चीजों को लेकर हमारी परेशानिया बढ़ने लगी थी





ऊपर से चुनाव आ गया तुम्हारे पिता ने सोचा की बिमला अगर सरपंच बन जाये तो उसका दिमाग बाहर उलझा रहे गा और घर की समाश्या कुछ हद तक काबू में आएगी तो बिमला हमारी कैंडिडेट हो गयी उसके बाद सब ठीक ही था पर एक दिन मेरा एक्सीडेंट हो गया तुम्हे तो पता ही है बड़ी मुस्किल से जान बची ,कुछ समय बाद तुम्हारे परिवार का भी एक्सीडेंट हो गया और फिर तुम भी गायब हो गए सब तबाह हो गया था मैं बेबस बिस्तर पर पड़ा था तुम्हारे पिता के जाने के बाद जैसे मेरा तो एक बाजु ही टूट गया था





जैसे तैसे करके मैं खड़ा हुआ पर मुझे पल तुम्हारा ख्याल था आखिर मेरे दोस्त की बची निशानी तुम ही तो थे मैंने पूरा जोर लगाया पर तुम्हारा कुछ नहीं पता चला तो मैंने किस्मत से समझौता कर लिया इस बीच मुझे खजाने का ध्यान आया तो मैं वहा गया पर जो देखा मैं तो बेहोश हो गया था जब होश आया तो रोने लगा मैं जैसे लुट गया हु कुवा खाली पड़ा था कोई हाथ साफ़ कर गया था अब क्या किआ जा सकता था किसी ने ठग लिया था पर फिर जो था उस से ही सब्र कर लिया





मैं- काका आपको किसी पे शक





काका- कोई नहीं बेटा





मैं- काका आपकी या पिताजी की किसी से कोई दुश्मनी



वो- नहीं



मैं- काका ऐसी कोई बात जो शायद आप छुपा रहे हो





काका- बेटा, मैंने कहा न अक्सर लोगो से गलति हो जाती है मुझे लगता है जितना भी मुझे पता था तुम्हे बता चूका हु



मैं- काका क्या आपको वहा पर नोट भी मिले थे



काका- नहीं, खाजाना बहुत पुराने समय का होगा तो नोट कैसे होते



अब एक सवाल ये भी खड़ा हो गया था की पिताजी ने चाचा को नोट दिए थे अब कैश कहा से आया मैंने अपनी तरफ से पूरा जोर दिया पर काका ने उसके बाद सख्ती से उस बारे में बात करने को मन कर दिया तो हार के मुझे वापिस आना पड़ा तभी मुझे ख्याल



आया और मैंने गाड़ी को बिमला की कोठी की तरफ मोड़ थी अन्दर गया घर शानदार बनाया था मुझे देखते ही वो खुश हो गयी

मैंने वो बिस्कुट उसको दिया और पुछा क्या जानती हो इसके बारे में



वो- बस इतना की चाचा जी ने मुझे रकम और काफी सोना दिया था



मैं- कितनी रकम



वो- करीब दो करोड़



बिमला- देव, जो भी मेरे पास है उसका आधा तुम्हारा है तुम कभी भी अपना हिस्सा ले सकते हो



मैं- मुझे नहीं चाहिए जब पिताजी ने आपको दिया तो आप ही रखो मैं बस ये चाहता हु की अगर इसके बारे में कुछ पता है तो बता दो



वो- बस इतनाही पता है



अब सोचने वाली बात ये थी की जब पिताजी ने सबका बंटवारा उस खजाने से किया थातो मेरा हिस्सा भी कही रखा होगा



मैं- रतिया काका क बारे में क्या ख्याल है



वो- घटिया इंसान है एक नंबर का लुम्पत हरामी है अपनी जमीन दबा राखी है उसने , उसके आलावा एक नंबर का रसिया है गाँव की कई औरतो का शोषण कर चूका है पैसे के जोर पे देव, वो मीठी छुरी है उस से दूर रहो



मैं- मैं किसी पर विस्वास नहीं करता किसी पर नहीं तुम पर भी नहीं



वो- मत करो पर तुम मेरा परिवार हो मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करुँगी



उसके बाद मैं वहा से आ गया दिमाग का धी हुआ पड़ा था पर इन सब के बीच एक बात ठीक हुई थी की कम से कम ये तो पता चल गया था की सोने का राज़ क्या है पर एक बात और थी की सोने के आलावा पिताजी ने बिमला और चाचा को मोटी रकम दी थी अब वो कहा से आई अब यहाँ से दो बाते थी या तो पिताजी ने सोना बेचा था या फिर ऐसे ही कहीं से पैसो का भी कुछ लोचा था , सोना बेचना वो भी मेरे छोटे से सहर में उन दिनों वो भी करोडो का बात हजम होने वाली थी नहीं बाकि होने को तो कुछ भी हो सकता था
 
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