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Erotica Dilwale - Written by FTK aka HalfbludPrince (Completed)

Incest

Supreme
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सोचने लगा की जब चाची को पता चलेगा की चाचा और बिमला में अवैध संबध है तो क्या होगा , बार बार मुझे ये सवाल बहुत परेशान करता था उस रात मैंने सोचा की मैं चाचा से बात करूँगा कल के कल और फिर भी बात न बनी तो बिमला को लाइन पे लाना होगा ये एक बहुत ही विकट समस्या थी जिसका समाधान इतना भी आसन नहीं था अपने को पहले चाहिए था सबूत ताकि वो लोग ऐन टाइम पर मना ना कर सके की हम तो जी पाक साफ़ है

अगले दिन सब लोग अपने अपने काम धंधे पर चले गए चाची अन्दर आराम कर रही थी मम्मी को कुछ काम था तो वो पिताजी के साथ शहर चली गयी थी मैं बिमला के घर गया और जाते ही उसको अपनी बाहों में भर लिया और चूमने लगा पर उसने मुझे परे कर दिया और बोली- हटो, अभी नहीं मुझे बहुत काम है
उसकी आँखे थोड़ी सूजी सूजी लग रही थी अब पूरी रात जो गांड मरवाए तो नींद कहा से पूरी हो
मैं- भाभी कितने दिन हुए आज करने दो

वो- कहा न अभी नहीं

बिमला से मुझे इतने कठोर व्यवहार की उम्मीद थी नहीं और मैं तो वैसे भी उसको जांच रहा था मैं अपने घर आ गया और बहार चबूतरे पर बैठ गया बिमला ने अपना किवाड़ बंद कर लिया मैंने सोचा साली एक बार सबूत का जुगाड़ कर लू फिर तेरी गांड तो ऐसी तोडूंगा याद रखेगी बस समय की बात है मैंने सोचा की कपडे ही धो लू तो मैंने चबूतरे पर लग गया मैं कपडे धो रहा था की मंजू दिखी सामने से आते हुए , मैंने कपड़ो पे ध्यान दिया मैं उसको नहीं देखना चाहता था

पर वो तो आई ही थी मेरे पास

मंजू- बात करनी है तुझसे

मैं- उस दिन कर तो ली थी

वो- तू तो मेरी बात का बुरा मान गया

मैं- ना बुरा किस लिए मान ना, तू अपनी जगह सही मैं अपनी जगह सही

वो- देख सच में कुछ बात करनी है

मैं- तो कर ले किसने रोका है

वो- यहाँ नहीं खुले में

मैं- अन्दर आ जा

चाची ऊपर थी तो मैं उसको मम्मी पापा के कमरे में ले आया और बोला= बता के कहना है

वो- मुझे तेरी दोस्ती मंजूर है

मैं- देख ले फिर शर्त लगाती फिरे गी

वो- ना वो तोमैं तुझे देख रही थी

मैं- देख लिया या कसर है

वो- अब कितनी शर्मिंदा करेगा

मैं- मंजू, देख ले सोच ले समझ ले , कल तो तू कहेगी ये मत कर वो मत कर वो मुझ से ना होगा

वो- सब सोच के तेरे पास आई हूँ

मैं – ठीक है फिर अब किस करू

वो-ना कोई आ जायेगा

मैं- आने दे फिर

वो- मैं अब चलती हूँ पर जल्दी ही मिलूंगी तुझसे

वो चलने को हुई तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और मंजू को बिस्तर पर गिरा दिया और चढ़ गया उसके ऊपर

वो- जाने देना

मैं- थोड़ी देर तो रुक जा

मैंने मंजू के होंठो को अपने होंठो मेंदबा दिया थोड़ी ना नुकुर के बाद वो मेरा साथ देने लगी काफ़ी दिन बाद मोका मिला था तो मुझसे कण्ट्रोल नहीं हो रहा था किस के बाद मैं उसकी छातियो को मसलने लगा मंजू गरम होने लगी मैंने उसकी सलवार के नाड़े में अपनी उंगलिया फसाईं तो उसने मुझे रोक दिया और बोली-अभी नहीं फिर कभी

मैंने उसकी चूत को कस के मसला और फिर उसको जाने दिया मन तो नहीं था पर क्या कर सकते थे

मैं- कब मिलोगे

वो- बता दूंगी मैंने फिर से उसको किस किआ वो शरमाते हुए भाग गयी

थोड़ी देर बाद चाची नीचे आ गयी और बोली- कोई आया था क्या

मैं- नहीं तो

वो- कुछ आवाजे आ रही थी

मैं- नहीं तो , मैं तो कपडे धो रहा था बस पानी पीने आया था

चाची- तेरी कॉपी मैंने वापिस रख दी है

मैं- आपको बिना पूछे दुसरे की चीज़ नहीं लेनी चाहिए

वो- तू दूसरा थोड़ी न है , वैसे नाम अच्छा है तेरी गर्लफ्रेंड का रति

मैं- वो मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है, वो मेरी कोई नहीं है कुछ नहीं लगती मेरी

चाची- झगडा हुआ क्या उस से

मैं- नहीं तो उस से और झगडा कभी नहीं

तो- मानते क्यों नहीं

मैं- कुछ बाते मानी नहीं जाती है

वो- दो लगाऊंगी तो सारा दर्शनशास्त्र बाहर निकल आएगा

मैं- छोड़ो, इस बात को वो कौन है क्या लगती है मेरी ये बात ऐसी है की आप समझ नहीं पाओगे मैं बता नहीं पाउँगा

वैसे आपको आराम करना चाहिए

वो- मैं ठीक हूँ अब ,चल अब बता रति के बारे में मेरा भी थोडा टाइम पास हो जायगा

मैं- वो कोई टाइम पास करने की चीज़ नहीं है वो बस एक अहसास है और मैं कुछ नहीं बताने वाला क्योंकि कुछ राज़ राज़ ही ठीक रहते है

वो- तो फिर ठीक है आने दे जीजी को , आज तेरे सारे राज़ वो ही उगाल्वएँगी

मैं- बस आप धमकी ही देते रहा करो कुछ भी पूछ लो पर रति के बारे में मत पूछो बस इतना ही कह सकता हूँ की किसी इबादत जैसे है मेरे लिए

वो- बेटा, तू कुनबे का नाम रोशन करेगा एक दिन

मैं- चाची, मैं आपसे एक वादा करता हूँ,की जिस दिन वाकाफ़ी में मेरे पास कुछ होगा ना मैं आपसे नहीं छिपाऊंगा आप मेरे लिए चाची कम दोस्त ज्यादा है , पर रति का नाम फिर से कभी अपनी जुबान पर ना लाना

वो हसने लगी मैं वापिस कपडे धोने लगा
५-६ दिन ऐसे ही गुजर गए चाचा बीच में बस एक दिन घर रहे थे बाकी फुल टाइम बिमला की चुदाई चालु थी बीच में मैंने एक बार फिर से बिमला को ट्राई किया था पर बंदी ने साफ़ मना कर दिया की आजकल उसे बहुत काम रहता है मैं समझ गया की उसका काम चाचा से चल रहा है तो वो मुझे घास क्यों डालेगी चलो कोई ना मैं हर मुमकिन कोशिश कर रहा था की कैसे उनके खिलाफ सबूत इकट्ठा करू पर किस्मत साथ नहीं दे रही थी , उस दोपहर को जब मैं खेत से घर आ रहा था तो मंजू खुद से दरवाजे पर खड़ी थी गली सुनसान पड़ी थी उसने मुझे इशारा किया तो मैं झट से घर में घुस गया



मंजू की साँसे बड़ी तेज चल रही थी मैंने पुछा- कोई नहीं है क्या


वो- नहीं है तभी तो तुमको बुलाया


मैं- कहा गए-

वो- बाबा दिल्ली गए है माँ भी


मैं- तेरा भाई

वो- दूकान पे है रात ही आएगा

मैं- तो क्या इरादा है

वो- तुझे ना पता क्या

मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और उसको किस करने लगा मंजू की चूत आज मिलने वाली थी मंजू बोली- यहाँ नहीं पीछे चल गोदाम में


हम दोनों वहा पर आ गए , काफ़ी देर तक उसको चूमने के बाद मैंने उसके कपडे उतारने शुरू किया जल्दी ही वो ब्रा- कच्छी में थी उफ्फ्फ साली ग़दर पीस थी मंजू तो मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया और चूची को दबाने लगा मंजू की गरम साँसे उबलने लगी , उसकी ३२” की चूचिया बहुत ही नरम थी धीरे से मैंने उसकी कच्छी को भी उतार दिया वो अपने हाथो से अपनी चूत को छुपाने लगी मैं भी नंगा हो गया मेरे लंड को देख कर वो बोली- बहुत मोटा है ये तो


मैं- तभी तो तुझे मजा आएगा मैंने मंजू को बोरी पर लिटा दिया और उसके अंग अंग को चूमने लगा मंजू अपनी आहो को रोकने की कोशिश करने लगी पर आज कहा उसकी आहे रुकने वाली थी आज तो आग लगने वाली थी उसके गोदाम में, मैंने उसकी चूत को जो चूमना शुरू किया मंजू की हालात पतली हो हो गयी उसके जबड़े भींच गए आँखे बंद होने लगी “ओह!मंजू क्या गरम चूत है तेरी” मेरी जीभ उसकी चूत के खट्टे पानी को पीकर तृप्त होने लगी मंजू अपनी टांगो को लगातार पटक रही थी मैं काफ़ी दिनों बाद आज चूत के रस को चख रहा था


मंजू-जल्दी से करलो ना

मैं- क्या हुआ

वो- आह कही कोई आ ना जाये

मैं ठीक है

मैंने लंड पर थूक लगाकर उसको अच्छे से चिकना किया और उसकी चूत की फानको पर रगड़ने लगा मंजू आहे भरने लगी , गीली चूत चिकना लंड मेरे पहले धक्के में ही आधा लंड उसकी चूत में चला गया मंजू ने एक आह सी भरी उसकी टाँगे खुलती चली गयी मैं समझ गया की ये भी सील्पैक ना मिली पपर ज्यादा ध्यान चूत मारने में था मैंने दो तीन झटके मार कर लंड को पूरा ठेल दिया अन्दर तक

मंजू- आह कितना मोटा है तुम्हारा , दर्द होने लगा है चीर ही डाला तुमने तो

मैं- बस अभी सेट हो जायेगा

मैं मंजू के ऊपर लेट गया वो मेरे बोझ से दबने लगी मैं थोड़ी देर बाद लंड को आगे पीछे करने लगा चूत में चिकनाई की कोई कमी नहीं थी तो जल्दी ही मंजू भी चुदाई का लुत्फ़ उठाने लगी उसने खुद अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए उसकी टांगो से रगड़ खाते हुए मैं उसको चोदने लगा उसका बदन हल्का हल्का सा कांप रहा था उसकी चूत में लंड मजे ले रहा था मैं काफ़ी दिन बाद चूत मार रहा था तो जोश भी ज्यादा चढ़ रहा था मंजू की टाँगे अपने आप ऊपर को होने लगी थी fuchcccccccc फुछ्ह्ह्हह्ह्ह्ह करते हुए चूत के पानी में सना हुआ मेरा लंड कोहराम मचाये हुए था



गोदाम में बहुत गर्मी थी पर चूत की गर्मी के आगे वो भी फीकी लग रही थी मैं मंजू के गले पर आये पसीने क चाट रहा था मंजू किसी नागिन की तरह बल खा रही थी aaahhhhhhhhhhhhh aahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh थोदाआआआआआआ धिरीईईईईईई धिरीईई आह मैं तूऊऊऊओ मरीईईईईईईईईईईईईईईईइ रीईईईईईईए अआः

aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa आः रे आह आह
करते हुए मंजू चुदाई के सागर में डुबकी पे डुबकी लगा रही थी मुझे साथ लिए लिए मैंने अब उसकी दोनों टांगो को अपने कंधो पर रखा और फिर से गप गप मंजू की लेने लगा जब जब मेरा लंड चूत में जाता मंजू की चूचिया हिलती पसीने में चूर हम दोनों अपने जिस्मो की आग को शांत करने में लगे हुए थे मंजू थोडा सा उठ सी गयी थी तो चूत और अच्छे तरीके से लंड पर कस गयी चुदाई में और मजा आने लगा हाय रे मंजू क्या मस्त माल है तू पहले क्यों नहीं चुदवा लिए तूने रीईईईईईईईईईईईए



मंजू के कुलहो को मजबूती से थामे हुए मैं अब तेजी से उसको चोदने लगा था मंजू की आँखे बंद हो गयी थी होठ कांप रहे थे चूत की फांके दो विपरीत कोनो पर अटकी पड़ी थी मंजू
की चूत से कामरस धीरे धीरे करके रिस रहा था मंजू-“ पैर दुखने लगे है , टाँगे नीचे कर दो ना आआहा ”


मैंने उसको नीचे किया और मंजू को थोड़ी से टेढ़ी कर दिया उसने अपनी टांग को ऊपर उठा लिया मैंने एक हाथ से उसकी चूची पकड़ी और अपने लंड को चूत के मुलायम दरवाजे लगा दिया मंजू ने अपने चुतद पीछे को कर लिए मैं उसके बोबे को मसलते हुए उसकी फिर से लेने लगा , मंजू मस्त होने लगी और मैं भी उसकी रसीली चूत को बड़े मजे से मैं चोद रहा रहा था uffffffffffffffff ये जिस्मो की गर्मी कितनी आग भरी होती है जिस्मो में कितना बुझाऊ मैं इसको ये बुझती ही नहीं


मंजू के कमर को कसके पकडे मैं ताबड़तोड़ लंड को चूत में घिस रहा था ,तभी मंजू ने एक गहरी ठंडी आह भरी और उसका बदन अकड गया उसका बदन धम्म से निढाल हो गया जैसे उसमे सांस ही ना बची हो मंजू स्खलित हो गयी थी वो लम्बी लम्बी सांस ले रही थी थोड़ी देर बाद वो धीमे से बोली- अब उठ भी जाओ ना
मैं- कैसे उठ जाऊ मेरा तो हुआ ही नहीं है

वो- नहीं हुआ है अभी तक ,मेरी तो जान निकलने आई है अब सहन नहीं हो रहा है

मैं- बीच ने मत छोड़ , बस कुछ देर कि तो बात है

मंजू की चूत जैसे सूख ही गयी पर मैं तो चोदुंगा ही जबतक मेरा काम ना हो, मंजू अपने पैर पटकने लगी अब कभी बालो को नोचे कभी अपने नाखूनों को मेरी पीठ पर रगड़े मंजू मेरे नीचे पड़ी पड़ी हुई बावरी पर उस दिन साला मुझे क्या हो गया था , मेरा पानी छुट ही न रहा था मंजू रोने को आई उसकी चूत में दर्द सा होने लगा था पर अपनी भी तो मज़बूरी थी ना, मंजू बोली- दो मिनट सांस तो लेने दे फिर कर लियो


मैंने लंड को बहार निकाल लिया और मंजू की चूची पीने लगा मैं फिर से उसको गरम करने की कोशिश करने लगा सुपुद सुपद करके मैं उसको अपनी गोदी में बिठाये हुए अपने लबो को उसकी चूचियो पर रगड़ने लगा जल्दी ही मंजू मेरे बालो में प्रेमपूर्वक हाथ फिराने लगी उसके बदन में फिर से वासना की तरंगे दोड़ने लगी थी , मैंने मंजू को घोड़ी बनाया और अपने मुह को उसके कुलहो में दे दिया


उसकी चूत मेरी जीभ को महसूस करते ही फिर से लपलपाने लगी , मंजू की गांड के छेद को अपनी ऊँगली से सहलाते हुए मैं उसकी रसीली चूत को पिए जा रहा था किसी मय के प्याले की तरह उसकी गांड में मैं अपनी ऊँगली घुसाने लगा तो मंजू आहे भरने लगी थोड़ी सी ऊँगली जो गांड में घुसी तो मंजू ने चुतड को भींच लिया और बोली वहा नहीं वहा नहीं उसकी चूत फिर से गीली हो गयी थी, तो मैंने उसे घोड़ी बनाये ही अपने लंड को चूत पर रख दिया और उसके कुलहो पर दोनों हाथ रख लिए और लगा दिया धक्का मंजू थोडा सा आगे को सरकी पर मैंने सरकने नहीं दिया

इस बार जैसे ही मेरा लंड चूत में घुसा करार ही आ गया मुझे तो चूत का छेद लंड की मोटाई के हिसाब से खुला हुआ था बहुत ही सुन्दर लग रहा था वो मैंने वाही पर थोडा सा थूक टपका दिया और चिकनाई हो गयी चुदाई में और मजा आने लगा मंजू तो जैसे मस्ती में बावली सी ही हो गयी थी , ओहा आः उह आः आआआअह्ह्ह की आवाजे गोदाम में चारो तरफ गूँज रही थी मंजू बार बार अपनी गांड को पीछे करके मेरा पूरा सहयोग कर रही थी उसकी पीठ कंधो पर पसीने को अपनी जीभ से चाटने लगा मैं और उसको चोद रहा था हाय रे मंजू तेरा बहुत बहुत धन्यवाद



आज तो तूने मेरा दिन ही बना दिया वह मेरी जानेमन जैसे जैसे मेरी स्पीड बढती जा रही थी मेरे शरीर में खून का दौरा बढ़ता जा रहा था मंजू के पैर जवाब दे गए थे वो वैसे ही औंधी बोरी पर गिर गयी थी पर मैं रुकने वाला नहीं था मुझे अब मेरे बदन में जैसे शोले भड़क गए हो , ऐसे लग रहा था बस अब कुछ ही पलो की बात थी अन्डकोशो से मेरा खून वीर्य बनकर बिखरने को चल पड़ा था बस थोड़ी देर और , और तभी मंजू फिर से झड़ने लगी उसके मुह से तरह तरह की अव्वाजे निकल रही थी और उसके झड़ते झड़ते ही मेरा वीर्य भी निकल गया उसकी चूत को भरने लगा दोनों का रस जो मिला मजा ही आ गया



करीब आधे घंटे तक उसको अपनी बाहों में लिए मैं पड़ा रहा वहा पर बार बार चूमा उसको मैं एक बार और मंजू को रगड़ना चाहता था पर उसने दी नहीं हमने अपने कपडे पहने और घर में आ गये, मंजू ने मुझे ठंडी पेप्सी पिलाई और वादा किया की जल्दी ही फिर देगी वो मुझे , फिर मैं अपने घर आ गया
बड़े दिनों बाद मैंने तबियत से चूत मारी थी तो शरीर जैसे निचुड़ ही गया था घर जाते ही मैं सो गया फिर शाम को ही उठा, उठते ही मम्मी ने बताया की पिताजी खेत में है तुझे बुलाया गया है पहूँच जल्दी से मैं पंहूँचा वहा पर पिताजी जैसे आज मुआयना कर रहे थे हर चीज़ का

मुझे देख कर उन्होंने पुछा- पानी क्यों नहीं दिया सब्जियों को टाइम से

मैं- पिताजी, मेरा कोई दोष नहीं , चाचा की जिम्मेदारी है ये वो ही रहते है खेत पर

मुझे तो मजा ही आ गया अपना पल्ला तो झड गया अब चाचा जाने , पर मेरी ख़ुशी जल्दी ही काफूर हो गयी पिताजी ने उनसे बस इतना ही कहा की थोडा ध्यान से काम किया करो, फसल का नुकसान अपना नुकसान है , कम से कम दो डांट तो मारनी ही थी ,

मैंने पुछा- चाचा, पानी क्यों नहीं दिया ध्यान कहा है आपका

वो हडबडा से गए और बोले- तू तेरे काम से काम रख

मैंने भी सोच लिया था की जल्दी ही इनकी गांड पे लात मारनी है कुछ भी करके पर क्या वो समझ नहीं आ रहा था बिमला भी आजकल कुछ ज्यादा ही खुश रहने लगी थी ऊपर से चाचा के बदले बदले व्यवहार को अब चाची भी समझने लगी थी , कभी कभी वो बहुत चिडचिडा महसोस करने लगती थी मैं उनके हाल को बहुत अच्छे से समझता था पर मैं चाह कर भी उन्हें कुछ बता नहीं सकता था उनकी हालात भी मुझसे देखि नहीं जाती थी उनकी उदासी की वजह से मैं भी बुझा बुझा सा रहने लगा था


पढाई में भी मन नहीं लगता था नीनू काफ़ी बार पूछती थी क्या परेशानी है पर मैं टाल जाता था तो भी मेरी वजह से दुखी थी , मंजू की चूत मिल जाती थी तो गुजरा हो रहा था पिस्ता भोसड़ी की जैसे मामा के यहाँ ही बस गयी थी दस दिन से ज्यादा हो गए थे उसको आई ही नहीं थी वर्ना उस से मदद ले लेता , पर वो कहते है ना की कोई ना कोई रास्ता जरुर मिलता है उस दिन नोटिस बोर्ड पे सुचना पढ़ी की एक स्कीम आई है जिसमे कोई भी स्टूडेंट अगर एक घंटे काम करेगा तो उसको पचास रूपये मिलेंगे बहुत कम लोगो ने नाम लिखवाया जिसमे मैं भी था पर लोग जल्दी ही उकता गयी पर मैं हर दिन सो का एक नोट कमाता था


उस दिन मैं और नीनू क्लास बंक करके बैठे थे तो उसने जिद करली की आज तो बताना ही पड़ेगा तो मैंने उसको पूरी बात बता दी पर उसे कोई भी उपाय ना सूझा और ये बात तो तय थी की चाची को जब पता चलेगा तो घर में कलेश मचना ही था , तो बहुत विचार किया , नीनू ने भी यही कहा की बात तब बने जब चाची उनको रंगे हाथ पकडे वर्ना क्या पता बिमला खुद को बचने के लिए चाचा पर भी जबरदस्ती करने का इल्जाम लगा दे बात में दम था पर क्या करू कुछ समझ नहीं आ रहा था


उस दिन शाम को करीब चार बज रहे थे आज मेरा काम मास्टरों के शोचालय को चमकाना था , उसकी सफाई करनी थी हाथ में झाड़ू पोंचा और फिनाइल की बोतल लेकर मैं पंहूँचा उधर कैंपस तक़रीबन इस समय तक खाली हो ही जाया करता था तो मैं पंहूँचा और सफाई करने लगा एक पोर्शन को चमकाने के बाद मैं महिला शोचालय में गया और सफाई करने लगा तभी मुझे लगा की परले कोने की तरफ से किसी औरत की आवाज आ रही है मेरे कान खड़े हो गए मैंने पोचा छोड़ा और दबे पाँव उधर गया तो देखा की एक बाथरूम में गणित के मास्टर ने शांति मैडम को घोड़ी बनाया हुआ था मैडम की सलवार घुटनों पर पड़ी थी और मास्टर मजे से चोद रहा था


मैंने कहा ओह मास्टर जी बस शो खत्म,

मुझे देख कर दोनों हक्के बक्के रह गए मास्टर ने अपनी पेंट सम्हाई और भाग गया रह गयी मैडम और मैं मैडम अपनी सलवार बाँधने लगी तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और बोला- मैडम, शर्म नहीं आती आपको ऐसे ये सब करते हुए

मैडम ने नजरे नीची कर ली और बोली- किसी ...... को किसी को कुछ बताना मत तुम जो चाहे वो मैं करुँगी मेरी बहुत बदनामी हो जाएगी

मैं- थोड़ी देर पहले तो आपको गोल्ड मैडल मिल रहा था ना

मैडम कुछ ना बोली-

मैं – मैं तो सबको बताऊंगा

वो- नहीं मैं तुम्हारे पाँव पड़ती हूँ , किसी को मत बताना तुम जो चाहो मेरे साथ कर लो,

मैं- मुझे कुछ नहीं करना

मैडम- प्लीज् मैं बदनाम हो जाउंगी, मेरी नोकरी चली जाएगी

मैं- ठीक है पर आपको मेरा एक छोटा सा काम करना पड़ेगा


मैडम- जो तुम चाहो,
मैं- ठीक है जी, मैं कल आपको बताऊंगा

मैडम ने अपने कपडे सही किये बाल वाल बनाये और निकल गयी मैं सफाई करने लगा और तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया आईडिया क्या आया बस समझो बात बन ही गयी मुझे खुद पर यकीन था पर ये एक रिस्क था जिसमे चाची का घर आँगन टूट जाना ही था , आग से खेलने वाली बात थी मैंने सोचा था की किसी को बताना तो है नहीं पर सबूत जरुर होना चाहिए क्या पता कब जरुरत हो जाये , मेरे एक तरफ चाचा की बेवफाई थी तो दूसरी तरफ चाची की दोस्ती थी उलझ कर रह गए थे बस अपने आप में

उस शाम चाचा और चाची में किसी बात को लेकर थोड़ी सी बहस हो रही थी तो मैंने अपने कान लगा दिए चाची कुछ गिले शिकवे कर रही थी पर मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था , पता नहीं मेरे कान काम की बात को सुन ही नहीं पाते थे क्यों , अब सीधा उनके कमरे में भी तो नहीं जा सकता था न तो क्या करे बस आईडिया ही लगा सकते थे की क्या बात है पर जल्दी ही उनकी आवाजे बंद हो गयी तो मैं भी नीचे चला गया थोड़ी देर टीवी देखा एक साला दूरदर्शन पर कभी कुछ आता नहीं था और केबल टीवी घर वाले लगवाते नहीं थे हम तो दुखी ही दुखी थे


फिर मैं खाना खाकर सीधा सोने ही चला गया , रेडियो सुनते सुनते कब नींद आई पता नहीं चला पर रात को मेरी आँख खुली तो मैं देखा रेडियो बज ही रहा है तो बंद किया उसको और पानी पीने के लिए बहार आया तो देखा की आज छत पर चाची खड़ी है , अक्सर तो वहा मैं पाया जाता था था पर आज वो थी , मुझे तो उनके दिल का हाल पता था ही मैं उनके पास गया और बोला- नींद नहीं आ रही क्या

वो- शायद तुम्हारी बीमारी लग गयी मुझे भी

मैं- क्या बात है

वो- कुछ नहीं

मैं- चाची, कभी कभी मुझे लगता है की आप और मैं एक ही कश्ती के सवार है आप भी बातो को छुपाती है मैं भी वैसे ना तो एक दोस्त होने के नाते ही बता दो, वैसे भी बताने से दिल का बोझ कुछ कम हो जाया करता है

वो- कुछ बाते तू अभी नहीं समझेगा

मुझे हँसी आ गयी

मैं- चाचा से झगडा हुआ उसी का टेंशन है ना

वो- ना वो सब तो चलता रहता है

मैं- वो ही तो बात है ,

वो- आजकल ये कुछ बदले बदले से लग रहे है

मैं- वो तो है

वो- न पहले की तरह बात करते है ना और कुछ बस ऑफिस से आते है खाना खाया और खेत में , पहले तो बहुत मन मार कर जाते थे पर आजकल बड़ा दिल लगने लगा है इनका खेत में कुछ समझ में नहीं आता मुझे , आज मैंने पूछ लिया तो झगडा कर बैठे


मैं- शायद काम का बोझ हो आप तो जीवन साथी हो उनको मुझसे बेहतर जानते हो

वो- बात तेरी शायद ठीक हो पर उन्हें भी तो इतना गुस्सा नहीं करना चाहिए था , कोई परेशानी हो तो बता भी सकते है

मैं- आप मिया-बीवी सुलझाओ अपने मामले को अपने को क्या है , रात बहुत हुई है सो जाओ

वो अपने कमरे में चली गयी मैं अपने कमरे में
अगले दिन मैंने सुबह सुबह ही शांति मैडम को पकड़ लिया और उनको अपना प्लान बताया की कैसे चाचा को वो अपने जाल में फ़साये और मैं उनकी मैडम को चोदते हुए तस्वीरे ले सकू , मैडम बहुत नखरे कर रही थी की मैं ना दूंगी पराये आदमी को ये हो जायेगा वो हो जायेगा तो मुझे थोडा गुस्सा आ गया मैंने कहा बहन की लोडी मास्टर जी से तो लपालप चुद रही थी और अब नखरे कर रही है , देख ले वैसे भी तू लंड की भूखी है तेरा काम भी हो जायेगा और मेरा भी , राज़ी हो जा वर्ना आज के आज सबको तेरी कहानी पता चल जाएगी


तो बुझे मन से शांति मैडम ने हां, कर दी मैंने उसको समझाया की तू चाचा के ऑफिस में जा एक फर्जी काम करवाने को और उनको फसा ले तू बेशक उनको चूत मत देना बस मैं तेरे साथ उनकी कुछ फोटो खीच लू तो भी काम चल जायेगा

शांन्ति\- पर उन तस्वीरों में मैं भी आउंगी

मैं- तुजे कौन जानता है , तेरा बस इतना ही रोल है और मेरी जबान है तुझे, मेरी इतनी मदद कर दे मैं तेरे राज़ को सीने में दबा लूँगा

तो आखिर मैडम मान ही गयी तो मैं उनको लेकर चाचा की ऑफिस में आया चाचा का नाम बताया और प्लान समझाया मैडम ऑफिस में चली गयी मैं बाहर ही रह गया

दस मिनट, बीस मिनट बाद बीत गयी, मेरी बेचैनी बढ़ी करीब आधे घंटे बाद वो आई हम वहा से निकले और साइड में बैठ गए

मैं- क्या हुआ ,

वो- मैंने उनको वो कहानी बताई जो तुमने कहा था , पहले तो वो माने ही नहीं पर फिर मैंने थोड़ी अदाए दिखाई तो वो बोले- की काम थोडा मुस्किल होगा आपको भी मदद करनी पड़ेगी मुझे एक घंटे बाद इस रेस्टोरेंट में बुलाया है

मैं- चाचा बड़ी जल्दी में है तुम टेंशन मत लेना और वो जो भी कहे तुम हा कर देना


हमने और थोडा समय काटा, मैंने देखा की करीब घंटे भर बाद चाचा ऑफिस से निकले और सामने वाले रेस्तौरेंट में घुस गए, थोड़ी देर बाद मैंने शान्ति को भी भेज दिया और इंतज़ार करने लगा ये इंतज़ार करना भी बड़ा कठिन काम होता है पर क्या करे करना ही था करीब एक घंटे बाद वो लोग वहा से बहार आये चाचा ऑफिस में चले गए मैडम मेरी तरफ आने लगी ,

मैं- क्या हुआ

वो- तुम्हारा कहना सही था, तेरा चाचा पूरा ठरकी है मैंने कल उसे अपने घर आने का बोल दिया है

मैं- इतनी भी क्या जल्दी थी , कही उन्हें शक ना हो जाये


वो- तू टेंशन मत लेना सब काम सेट कर दिया है बस तू कल रात टाइम से पहूँच जाना

मैंने अपना माथा पीट लिया और बोला- जे तो चाह रहा है की तुम्हारी गांड पर लात दू, मैं रात को कैसे आ पाउँगा और तुम्हारे घरवाले भी तो रहेंगे ना

शान्ति- मैं तो अकेली रहती हूँ इसलिए रात का बोला ताकि पूरा काम आराम से हो सके

मैं- चल कोई ना मैं करूँगा कुछ ना कुछ जुगाड़, पर रात को फोटू कैसे खीचूँगा कैमरा का फ़्लैश भी तो होगा
मैडम-मेरे पास नए ज़माने का डिजिटल कैमरा है वो फ़्लैश बंद करके भी ठीक फोटो खीच लेता है , देखो मैं तुम्हारे लिए इतना कर रही हूँ, तुम भी अपने वादे पर रहना

मैं- टेंशन ना लो मेरी तरफ से

रात को गाँव से शहर आना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल था बहुत सोचने के बाद मैने घर पे फ़ोन किया और कहा की कुछ काम से मैं कैंपस में ही रुकुंगा , मम्मी ने काफ़ी सवाल पूछे पर मैंने बस उतना ही कह के फ़ोन काट दिया और शान्ति के साथ उसके घर आ गया ,मैडम का दो कमरों का घर था मैडम ने मुझे बैठने को कहा और मेरे लिए पेप्सी ले आई

पिटे पीते मैं मैडम को पूरी बात समझाने लगा की कैसे क्या क्या करना है , अब मैंने मैडम पे थोडा गौर किया मैडम ३६-37 साल की तो होंगी रंग भी ठीक ठाक था थोड़ी पतली सी थी पर फिगेर मस्त था मैडम ने साड़ी पहनी हुई थी मुझे वैसे भी साडी वाली औरते बहुत पसंद थी मेरे मन में विचार आया की क्यों ना मैडम को ही चोद लिया जाए एक बार अब चूत की तलब किसे नहीं होती वैसे भी उस समय हम दोनों ही थे तो कोई परेशानी वाली बात नहीं थी


मैं- आपके परिवार में कौन कौन है

वो- मैं मेरे पति है और दो बचे है

मैं- यही रहते है

वो- नहीं पति दुसरे स्टेट में मास्टर है और बच्चे बोर्डिंग में है

मैं- आप ऐसे काम क्यों करती हो

वो- पता नहीं कैसे मुझे लत लगगई अब तो आदत हो चली है

मैं उनके पास गया और उनकी जांघ को सहलाने लगा मैडम भी समझ रही थी पर वो मुझ से दूर होने लगी मैं –“मैडम जी मुझे भी एक बार गोता लगा लेने दो आपकी झील में ”

वो- देखो तुम .............

मैं मैडम की छाती पर हाथ लगाते हुए- मैडम जो आपको तो मजे लेने की आदत है तो कर्लोना मेरे साथ भी
मैडम बस मुस्कुराने लगी

मैंने उसकी साडी का पल्लू हटाया और उसके बोबो को दबाने लगा मैं धीरे धीरे चूचियो से खेलने लगा तो मैडम भी जल्दी ही अपने रंग में आने लगी मैंने ऊनके ब्लाउज के हूँक खोलने शुरू किये और उसको उतार दिया मैडम ने सफ़ेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी मैंने उसे भी उतार दिया मैडम ने एक आह भरी मीठी सी मैंने उसकी पीठ पर एक चुम्बन अंकित किया वो मेरे आगे खड़ी थी मैं धीरे धीरे उसकी गेंदों से खेलने लगा मेरा लंड उनकी गांड से लगातार रगड खा रहा था

बोबो को सहलाते सहलाते मैं उनकी साडी को उतारने लगा फिर मैंने धीरे से उनके पेटीकोट ने नाड़े को खीच दिया नीली कच्छी मैडम की कसी हुई टांगो पर खूब फब रही थी मैंने उनकी जांघो पर अपना हाथ फेरा और मैडम को गोद में उठा कर उनके बेड की तरफ ले चला उन्होंने अपनी बाहे मेरे गले में डाल दी मैंने अब उनको पटका बेड पर अपने कपडे उतारने लगा जल्दी ही मेरा लंड खुली हवा में झूल रहा था मैडम की आँखे मेरे लंड पर जैसे जम सी गयी थी उन्होंने खुद ही अपनी कच्छी उतार दी और मुझे बोली- जरा मेरा पर्स ले आओ
मैं- दोड़ कर गया और दोड़ कर वापिस आया
 

Incest

Supreme
432
859
64
मैडम ने पर्स से निरोध का पैकेट निकला और मेरे लंड पर लगा दिया, मैडम ने थोडा सा थूक अपनी चूत पर लगाया और टाँगे फैला ली उनकी ट्रिम बालो से झांकती चूत मेरे लंड को आमंत्रण दे रही थी , मैंने अपने लंड को चूत से भिड़ाया और पहले ही झटके में मेरा लंड चूत म, नहीं भोसड़े में घुसता चला गया मैडम की चूत बहुत ही खुली खुली सी थी पर अपने को मिल रही थी वो ही बहुत था मैंने उनकी जांघो पर अपने हाथ रखे और करदी कार्यवाही शुरू



मैडम की ताल से ताल मिलाते हुए मैंने चुदाई शुरू की मैडम एक नंबर की चुदासी औरत थी और चुदाई के हर लटके झटके में माहिर थी , मैं उनको चोदते चोदते उनकी चूची के काले निप्पल को अपने दांतों में दबा के शरारत करने लगा तो मेरी इस हरकत से मैडम को अपने जवान होने का अहसास होने लगा , मैडम के गले से स्वर फूटने लगे, वो नीचे से अपनी गांड को उठा उठा कर पटक रही थी मजा आ रहा था , उनकी निपल्स उत्तेजना के कारण ऊपर को तन गए थे मैडम और मैं लगातार एक दुसरे को तौलते जा रहे थे जैसे ही मैंने तेज तेज धक्का मारता मैडम भी अपने चुतड उठा उठा कर मजे ले रही है


अब मैंने चूची से मुह हटाया और उनके लिप्स की तरफ हो गया मैडम ने अपनी टांगो को ऊपर की तरफ उठा लिया लापा लापा ठप्प ठप्प करते हुए मेरी गोलिया उनके चुतड से टकरा रहा था मधुर ध्वनी के साथ मैडम की हर सांस मेरे मुह में जाकर कही खो रही थी, मैडम की सांस और मेरी सांस एक साथ चुदाई के संगीत पर थिरक रही थी उनकी चूत की चिकनी घाटी में लंड महाराज विध्वंस मचाये हुए थे, मैडम की आहे जल्दी ही पुरे कमरे में गूँज रही थी , मैं अब बेड से नीचे उतर गया और मैडम को किनारे पर खीच लिया और रख लिया दोनों टांगो को कन्धो पर नब्बे डिग्री का कौन बनाते हुए


मैडम तो मस्ती से दोहरी ही हो गयी थी इस पोज में मैडम ने अपनी आँखों को कर लिया बंद और अपने बोबो को खुद दबाते हुए चुदने लगी मैं अब दांत भींचे धडा धड उनको चोदने लगा अगले कुछ मिनट तक मैं बस तेज तेज उनको चोद्ता रहा मैडम की हिलती छातीया उनकी मनोदशा को बयान कर रही थी मैं अब झड़ने वाला था तो मैं अब उनके ऊपर लेट गया और जल्दी जल्दी धक्के मारने लगा करीब ५ मिनट बाद मैंने मैडम को अपनी बाहों में कस के दबा लिया और झड़ने लगा मेरा सारा वीर्य निरोध में इक्कठा होने लगा थोड़ी देर बाद मैं शान्ति के ऊपर से उतरा और बगल में लेट गया .

मैडम उठी और बाथरूम में चली गयी मैंने भी अपने कपडे पहन लिए मैडम ने उसके बाद चाय बनायीं और मुझे बढ़िया सा नाश्ता करवाया , शाम होने वाली थी तो अब हम लोगो को तैयारिया करनी थी मैडम ने मुझे बता दिया था की डिजिटल कैमरा को बिना फ़्लैश के कैसे यूज़ करते है

मैडम- पर तुम छुपोगे कहा पर

मैं- वाही सोच रहा हूँ

मैडम- परदे के पीछे

मैं- ना

वो- तो मैं सोचने दो


मैडम रसोई में बिजी हो गयी मैं गहन सोच में डूब गया की कैसे होगा क्या , बस यही पहला और आखिरी मौका था , मैंने ऊपर वाले से दुआ मांगी की सब सही निपट गया तो ग्यारह रूपये का प्रसाद चढाऊंगा , टाइम साला परीक्षा लेने पे आतुर हो गया पर मैंने भी सोच लिया था की चाहे कुछ भी हो शान्ति मैडम जब अपना जलवा दिखाएगी तो चाचा जैसा ठरकी जल्दी ही पिघल जाएगा ,


मैडम ने खाना लगा दिया था मैंने वाही पे खाया और फिर करीब घंटे भर बाद चाचा भी आ गए, मैं अलमारी के पीछे छुप गया, चाचा अन्दर आये तो उनके हाथ में दो पैकेट थे, उन्होंने वो शान्ति को दिए और अन्दर आ गए मैडम ने उन्हें सोफे पे बिठाया और थोडा पानी वाणी दिया मैडम भी फिर उनके पास ही बैठ गयी और उनकी बाते शुरू हो गयी

मैडम- सर मेरा काम हो तो जाये गा ना

चाचा- देखिये, भाभीजी काम बड़ा मुश्किल है वैसे भी आप दुसरे स्टेट की है तो यहाँ का मूल निवास ऐसे तो बन नहीं सकता ना

मैडम- तो फिर मेरे लिए मुश्किल होगी, आप दोपहर में तो बोल रहे थे की काम हो जायेगा

चाचा- मैंने कहा मुश्किल है , नामुमकिन नहीं

मैडम- तो कर दीजिये ना

चाचा- भाभीजी, आप को पता तो है ही की ऐसे पेचीदा कामो के लिए थोडा बहुत एडजस्ट करना तो पड़ता है ना
मैडम- वो तो मैं आपको बता ही चुकी हूँ नाऔर मैडम ने उनकी और कातिल स्माइल फेकी

चाचा मुस्कुराया , मैडम सरक कर चाचा के पास बैठ गयी और अपने आँचल को थोडा सा सरका दिया चाचा की नजर उन पर पड़ी तो आँखे लाल होने लगी, मैडम अपने होंठो पर जीभ फेरते हुए बोली- तो क्या एडजस्ट करना चाहोगे क्लर्क बाबु

चाचा- आपको तो पता ही है मुझे क्या चाहिए

चाचा ने मैडम का हाथ अपने हाथ में लेकर दबा दिया मैडम थोडा सा और सरक गयी उनकी टाँगे आपस में रगड़ने लगी, मैडम मादक अंगड़ाई लेते हुए, मेरा काम जल्दी ही करना होगा और उन्होंने चाचा के लंड को पेंट के ऊपर से ही सहला दिया शान्ति बड़ी मस्त अदाकारी कर रही थी , चाचा ने मैडम के बोबो को मसल दिया तो मैडम अदा दिखाते हुए बोली- ऐसे क्यों करते हो, प्यार करने की चीज़ है प्यार कीजिए आराम से
चाचा मैडम को किस करने ही वाले थे की मैडम उठ कर रसोई में चली गयी और फिर थोड़ी देर में शराब की बोतल जो चाचा लाया था वो कुछ स्नैक और बरफ ले आई , चाचा सोच रहा होगा की आज तो ऐसे ही बिना बात के चूत का जुगाड़ हो गया पर उसको ये पता नहीं था की उसकी गांड टूटने का पक्का जुगाड़ कर रहा था मैं , मैडम ने गिलास में बरफ डाली और थोड़ी सी शराब पर चाचा ने पटियाला पेग ही बनवाया और दो पेग गटक गया फटाफट से और फिर मैडम को बिठा लिया अपनी गोदी में


मैडम- आह क्या करते हो आप

चाचा- भाभी जी, अभी कहा कुछ किया मैंने

चाचा ने मैडम के गाल चूमने शुरू किया शान्ति भी चुदक्कड औरत थी उसको तो बस लंड से मतलब था मैं सोचने लगा की ये साली बहक गयी तो प्लान की माँ चुद जाएगी , पर चाचा को मैडम के रूप-रंग में घोटना भी बेहद जरुरी था चाचा ने मैडम के ब्लाउज और ब्रा को उतार दिया था और बोबो के मसलते हुए बोला- “वह,भाभी जी वाह क्या मस्त करारी चूचिया है आपकी, मैं तो अभी से दीवाना हो गया हूँ आपका ”

मैडम- सब आप के लिए ही है जी भर कर लीजिये मजा आपकी खिदमत में हूँ मैं तो

चाचा खुश हो गया , उसने मैडम को अपनी गोदी में लिटा सा लिया था और मैडम के बोबो को चूमने लगा मैडम मचलने लगी, उनकी नजर मुझ पर पड़ी तो मैंने इशारा किया की इसको अऔर पिलाओ थोड़ी और कपडे उतारो , मैडम झट से उठी और बोतल को उठाते हुए बोली- पहले इसे तो ख़तम कर लो फिर जी भर के मुझे प्यार करना

चाचा- भाभीजी, इसमें वो नशा कहा जो आप में है, चाचा ने बोतल को सीधा ही अपने मुह में लगया और गतागत कुछ घूँट खीच गया , नशे और वासना से उनकी आँखे लाल होने लगी थी, मैं सोचने लगा की घर पे इनको देख कर कोई सोच भी नहीं सकता की ये इंसान इतना गिरा हुआ है


चाचा ने कुछ दारु मैडम के ऊपर टपका दी और उसको चाटने लगा , मैडम को घिन्न सी आने लगी थी पर वो करवा रही थी मैंने मन ही मन उनका बहुत धन्यावाद किया और कैमरा निकाल लिया चाचा मैडम के बोबे चूस रहे थे मैंने दो चार फोटो उतार लिए काफ़ी देर तक वो बोबो को निचोड़ता रहा मैडम भी धीरे धीरे से गरम होने लगी थी वो चाचा की बाहों में मचलने लगी उनके बोबे फूलने लगे थे फिर चाचा ने मैडम की साड़ी को हटा दिया मैडम के शरीर पर बस एक छोटी सी कच्छी थी, गुलाबी रंग की जिसने बस नाम मात्र के हिस्से को ही ढक रखा था चाचा ने मैडम की चूत को मुट्टी में भर के मसला तो मैडम कामुकता से मचलने लगी कमरे का वातावरण बहुत गरम हो गया था , खुद मेरा लंड मचल रहा था


चाचा ने धीरे से अपनी ऊँगली कच्छी में सरका दी और मैडम की चूत से खेलने लगा मैडम पर भी पूरी मस्ती चढ़ चुकी थी,मैडम ने अपनी बाहे चाचा के गले में डाल दी और उनको किस करने लगी साथ ही साथ उन्होंने चाचा की शर्ट भी खोल दी चाचा ने अपनी पेंट जल्दी से उतार दी दोनों नंगे हो गए थे चाचा का लंड तन के उनकी जांघो के मध्य में झूल रहा था, थोड़ी देर किस करने के बाद मैडम ने अपनी चालाकी दिखाई और दारू की बोतल उठा कर बोली- आज मैं आपको ऐसे पिलाऊंगी की आप हमेशा याद करेंगे की किसके साथ समय बिताया था

उन्होंने खुद पे शराब उदेलनी शुरू कर दी चाचा उनके बदन से नीचे टपकती बूंदों को चाटने लगे हूँस्न और शराब जब मिल जाये तो फिर इंसान कहा खुद पर काबू रख पता है मैडम अब सोफे पर बैठ गयी और अपने पेट पर शराब टपकाने लगी चाचा उनकी नाभि को चूसने लगे, बोतल इसी कशमकश ने आधी से थोड़ी ज्यादा हो गयी थी ऊपर से नीट चल रही थी तो नशा जल्दी ही उन्हें अपनी गिरफ्त में लेने वाला था और हुआ भी ऐसा ही ऊपर से मैडम ने गजब कर दिया वो चाचा का लंड चूसने लगी चाचा तो वासना में बह ही गया था उस समय में वो मैडम के मुह में लंड को आगे पीछे करने लगा वो एंगल एक दम सही था मैं तस्वीरे खीचने लगा फटाफट से


मैंने मैडम को इशारे से कहा की पोज़ दे कुछ तो मैडम ने लंड को मुह में से बहार निकाला और उनको किस करने लगी अब बनी ना बात, उसके बाद वो उनकी गोद में चढ़ गयी चाचा ने गोदी में उठा कर ही चुदाई शुरू की मैडम उनके लंड पर झूलने लगी , दोनों पूरी मस्ती में डूब चुके थे चाचा पूरी तरह नशे में उनको चोद रहे थे बडबडा रहे थे कुछ आधी अधूरी बाते , नसे से बोझिल वो मैडम पे चढ़े हुए थे, कबी मैडम को ऊपर ले कभी नीचे और मैडम भी हर बार ऐसा एंगल बना रही थी की जिसमे वो साफ़ साफ चोदते हुए दिखे, पर मैडम के शरीर की भी हदे थी जब मस्ती चढ़ी उनके सर पर तो वो सब कुछ भूल कर चुदने लगी अब उनको भी क्या कह सकता था मैं उनको तो हमेशा लंड की जरुरत रहती थी


तो दोस्तों करीब पन्द्रह बीस मिनट तक दोनों ने घमासान चुदाई मचाई, दोनों चोदु थे तो चुदाई धांसू होनी थी थी फिर चाचा मैडम पे पसर गए मैं अब अलमारी की आड़ में अच्छे से चुप गया , मैडम सोफे पर ही पड़ी थी चाचा उठे और एक पेग बनाया और पीने लगे,

मैडम- इतनी मत पियो, कही पीने के चक्कर में मुझे भूल ही जाओ

तो चाचा बोले- इसका नशा तेरे आगे कुछ नहीं बस दो पेग में अभी इसको ख़तम कर देता हूँ, दारू के साथ चूत मारने में बड़ा मजा आता है मुझे और मोका भी कम मिलता है तो आज अपने जी की करूँगा चाचा ने जल्दी ही बोतल को बिठा दिया और मैडम पर टूट पड़े, पूरी रात उन्होंने मैडम को दबा के बजाय डाला, मैडम तो मजे में ही उडती रही पूरी रात और मैंने अपना काम कर लिया सुबह करीब पांच बजे चाचा सो गया मैडम मेरे पास आई और बोली- काम हो गया ना


मैं- हां बहुत तस्वीरे हो गयी है पर अभी एक काम और करो आप , वो क्या

मैं- वो सोया पड़ा है अब आप पोस दो कुछ बेह्त्ररिन फोटू तो अभी लूँगा तो मैडम भी बिस्तर पर चढ़ गयी और किसी मस्त हेरोइन की तरह अदाए दिखने लगी, अपना काम हो गया था

मैं- ठीक है अब मैं चलता हूँ, और अब इनको मुह मत लगाना

वो- कभी कभी तो मिल सकती हूँ

मैं- देखो वो आपका रिस्क होगा , मैं न पडूंगा उसमे

मैंने कहा – कैमरा बाद में दे दूंगा ,

वो- जब भी मर्ज़ी हो दे देना

मैं उनके घर से निकल आया , अब करना भी तो क्या था उधर
बहार आके मैंने एक दूकान पे सुबह सुबह ही चाय मट्ठी का नास्ता किया और कॉलेज की तरफ निकल गया अब सुबह सुबह का टाइम था आँखे नींद की वजह से झुलस रही थी पर मेरे लिए एक समस्या और थी की फोटो धुल्वायेंगे कहा , किसी स्टूडियो में या लैब में तो करवा न सकू क्योंकि अश्लील माल था इसमें , सोच विचार में बहुत टाइम निकल गया ये नयी समसया था , दोपहर में मैंने नीनू को सारी बात बता दी तो वो बहुत हैरान हुई और बोली- देखो , तुम ये जो भी कर रहे हो उसका अंजाम तो सोचो तो सही


मैं- उसी से तो डरता हूँ मैं

वो- तो फिर सब कुछ हालात पर छोड़ दो ना , जब चाची को पता चलेगा तो वो टूट जाएगी, कोई भी औरत पति की बेवफाई को सह नहीं पाती, उनकी गृहस्ती टूट जाएगी

मैं- नीनू, सब पता है मुझे पर तू ही कोई रास्ता दिखा

वो- देखो तुम चाचा से बात करो तस्सल्ली से, थोड़ी मुस्किल होगी पर बात करो और रही बात उस बिमला की उसके साथ तुम सख्ती कर सकते हो पर वो भी तुम्हारे काबू में जब आएगी जब ऐसा ही सबूत उसका भी हो

मैं- बात तो सही है पर एक समस्या और है

वो- क्या

मैं- इन तस्वीरों कहा धुलवाऊंगा

वो- तुम ना एक दम लल्लू लाल हो , डिजिटल है ये इनकी प्रिंटिंग होती है

मैं- हां पर वो भी लैब में होगी ना बता कैसे करवाऊंगा

नीनू- मैं क्या जानू

मैं- तो बात वाही आ गयी घूम कर के

वो- एक काम हो सकता है,

मैं- क्या .....................
मैं- क्या

वो- सुनेगा तो बताउंगी ना

मैं- जल्दी बता

वो- देख तू शाम को काम करता है तो हर डिपार्टमेंट में जाता है ना

मैं- हां

वो- तो कंप्यूटर लैब में भी जाता है ना

मैं- हां पर उस से क्या

वो- घडेदी, तो लैब में रंगीन प्रिंटर है उधर प्रिंट ले ले ना

मैं- पागल हुई है क्या , कितना रिस्की काम है यार, ऊपर से वो इंस्ट्रक्टर उधर ही पड़ा रहता है बता कैसे होगा

वो- उसको हटाना पड़ेगा ना

मैं- देख तस्वीरे बहुत है , मुझे कम से कम घंटा भर तो चाहिए गा ना

वो- तब तो समस्या जटिल है

मैं- वो तो मुझे भी पता है उपाय बता ना तू कोई

वो- कुछ सोचने तो दे यार

मेरा एक तो दिमाग ख़राब हो रहा था ऊपर से मुझे नींद आ रही थी रात को जागा जो था ,अब फोटू है तो प्रिन्ट कहा करू यार , तभी मैंने कुछ सोचा

मैं- नीनू, मैं इंस्ट्रक्टर को किसी अहने से अगर उलझा लू तो तू ये प्रिंट निकाल लेगी

वो- हां, जिंदगी में बस ये ही देखना बाकी रहा है मेरे लिए , शर्म ना आ रही तुझे कहते हुए

मैं- यार कर ना मदद

वो- देख, यु कर प्रिंटर चुरा ले , मेरे घर पे भाई का कंप्यूटर बंद पड़ा है मैं उसपे निकाल दूंगी

मैं- थारो, दिमाग चल पड़ा है , कैसे चुराऊंगा प्रिंटर और दूसरी बात उसे कोई जेब में लेके थोड़ी न जा सकू
वो- देख रिस्क तो लेना पड़ेगा ना , कुछ ऐसा कर की लैब खाली मिल जाए ज्यादा ना थोड़ी देर के लिए ताकि कुछ तस्वीरे तो हाथ में आये

मैं- बात तो सही है , तो ऐसा कर तू रुक जा और दे चोकिदारी मैं करता हूँ कुछ

वो- तू मरवाएगा मुझे एक दिन

मैं- दोस्त का साथ न देगी तू

वो- भाड़ में जाये तेरी दोस्ती

मैं- तो सुन एक मस्त आईडिया आया है जिस से अपना काम हो सकता है

वो- क्या

मैं- अगर मैं प्रिंसिपल ऑफिस और रिकॉर्ड रूम के कंप्यूटर में कुछ गडबड कर दू दो इंस्ट्रक्टर उधर सही करने तो जायेगा उतनी देर में अपना थोडा बहुत काम कर लेंगे

वो- एक बात बता जरा, तू कोई फ़िल्मी हीरो है रिकॉर्ड रूम में आदमी रहते और प्रिंसिपल ऑफिस भी खाली नहीं रहता बता कैसे करेगा तू

मैं- तो फेर के करू कुछ तो बता

वो- मुझे ना पता लैब में ही ट्राई कर ले कुछ हो सके तो , बाहर तो फोटो लेनी फुल खतरा है


मैं- नीनुड़ी, नया प्रिंटर कितने का आएगा

वो- महंगा ही आता होगा

मैं- चल लैब में चलते है

वो- ना मैं ना जाती तू ही जा

मैं- ठीक है

मैं वहा से चला लैब की तरफ रास्ते में ही मुझे मंजू मिल गयी मैंने उसको इशारे से अपने पास बुलाया और बोला- मंजू एक मदद चाहिए करेगी क्या

वो- क्लास है मेरी बाद में कर दूंगी

मैं- छोड़ ना क्लास को और मेरी बात सुन

मैंने पूरी बात उसको बताई तो वो बोली- मैं ना कर सकू तेरी मदद कोई कुछ गड़बड़ हो गयी तो मैं तो गयी तूने क्या ठेका ले रखा है मुझे बदनाम करवाने का

मैं- भोसड़ी की, जैसे बहुत लहर चल रही है तेरी इज्जत की चल मेरे साथ चुप चाप

मैं उसको अपने साथ ले आया लैब में और एक कंप्यूटर पर बिठाया उसको , लैब खाली पड़ी थी उस समय
मंजू- जल्दी ही निपटा ले अपना काम कही फास ना जाए

मैं बस कैमरा को कंप्यूटर से जोड़ने ही वाला था की मेरी नजर लैब के कोने में पड़ी, वहा पर सामन रखा था कुछ मैं उधर गया तो देखा की लैब का सामान जैसे, की बोर्ड, डेस्कटाप, उनके पार्ट्स पड़े थे मेरी निगाह एक बॉक्स में गयी तो उधर प्रिंटिंग की कलर श्याई के कार्तिज़ थे, मेरे मन में एक विचार आया मैंने दो डिब्बे निकाले और मंजू के बैग में रख दिए


वो- क्या कर रहा है मरवाएगा क्या

मैं- साली चुप रह ना तू

वो- क्या चुप रहू चोरी कर रहा है तू

मैं- चुप रह जा और सुन किसी को कुछ पता नहीं चलने वाला

हम बात कर ही रहे थे की इंस्ट्रक्टर आ गया तो थोड़ी देर बाद हम वहा से खिसक लिए और मिले नीनू से
मंजू- तू तो मरवाएगा मुझे

नीनू- इसको भी पता है क्या

मैं- सुन, मैंने कलर, कार्त्रेज़ चुरा ली है

नीनू- तू क्या करना चाहता है, हमे तो प्रिंटर चाहिए ना

मंजू- पर तू प्रिंट क्या करेगा वो तो बता

मैं- बाद में बताऊंगा तू जा क्लास में

वो- अब कहे की क्लास अब तो मैं घर ही जाउंगी

मैं- ठीक है

नीनू- क्या सोच लिया

मैं- शांति मैडम के घर मैंने कंप्यूटर देखा था प्रिंटर होगा तो काम बन जायेगा वर्ना तक़दीर अपनी

वो- ट्राई करले

मैं- तू चलेगी

वो-ना तू ही जा

तो मैंने ली अपनी साइकिल और मोड़ दी मैडम के घर की तरफ , दो तीन बार घंटी बजायी तब मैडम आई सो रही थी शायद

वो- तुम यहाँ

मैं- और कहा जाऊंगा

अन्दर आके मैंने मैडम को प्लान बताया तो उन्होंने बताया की उनके पास प्रिंटर नहीं है मेरी तो सारी आस टूट गयी अब क्या करू मैं सारे रास्ते बंद जो हो गए थे ,

मैं- मैडम जी कोई तो उपाय करो

वो- कालिज की लैब में करले ना कोई मन नहीं करेगा

मैं- इंस्ट्रक्टर से क्या कहूँगा की नंगी फोटू का प्रिंट लेना है

मैडम मेरी गोदी में आ गयी और बोली- अगर मैं ये काम करवा दू तो

मैं- मैडम मेहर होगी आपकी , आपकी वजह से ही तो सबूत मिला है मुझे

मैडम- मेरे लंड पर अपनी गांड घिसते हुए- तो फिर ठीक है , जाके सुरेश जी को मेरा नाम ले दियो की शान्ति मैडम ने कहा है की लैब इस्तेमाल करने दू बिना रोक टोक के , और हां इतना ध्यान रखना की फोटो में मेरी शकल न आये, तुम्हारे सामने तो नंगी हो ही चुकी हूँ पर फिर भी ........

मैं- आप टेंशन मत लो , मेरा विश्वास रखो पहले तो मेरा इरादा कुछ और था पर आपने मेरी जो मदद की है वो बहुत बड़ी बात है , आपका त ओ एहसान हो गया है मुझे पर


मैडम- वो सब छोड़ो अभी क्या इरादा है वो बातो, मैडम मेरे सीने पर अपन हाथ फिराने लगी

मैं- मैडम जी अभी मैं लैब जाता हूँ , एक बार प्रिंट हाथ में आ जाये फिर तसल्ली हो जाएगी उसके बाद आप को भी खुश कर दूंगा

मैडम का मन तो तभी चुदवाने का था पर मैं अपनी उलझनों में उलझा पड़ा था तो मैंने फिर से अपनी खटारा साइकिल उठाई और पहूँच गया वापिस , और इंस्ट्रक्टर को बताया की शान्ति मैडम ने कहा है की लैब के कंप्यूटर को उसे कर लू ,

इंस्ट्रक्टर- मैडम जी न कहा है तो ठीक है वैसे तो कॉलेज बंद हो गया है एक काम करो ये लो चाबी, तुम्हारा काम हो जाये तो चाबी मेरे रूम में दे जाना , और ध्यान रखना कोई नुक्सान न होने पाए

मैं- बेफिक्र रहे सर

उसके जाते ही मैंने लैब को बंद किया और कैमरा को जोड़ दिया कंप्यूटर में तो फोटू मस्त दीख रहे थे पर प्रिंट इतना मस्त नहीं आ रहा था ऊपर से मैं कोई प्रोफेशनल तो था नहीं , जैसे तक्से करके छाप ली सारी के सारी , हां इतना था की देख के कोई भी पहचान सकता था अपना काम इतने में से भी हो सकता था , शाम को करीब ६ बजे मैं गाँव के लिए चला आधा घंटा और लग गया घर गया तो हाल बुरा था


मम्मी – आ गया नालायक तू, कहा रह गया था और कल क्यों नहीं आया

मैं- मैंने बहाना मार दिया पर उनको कोई विश्वास था नहीं मेरी बात पर मैं अपना बैग लेके ऊपर कमरे में चला गया, तो चाची मिली

वो- कल कहा थे तुम

मैं- कॉलेज में कुछ काम हो गयाथा तो रुकना पड़ा

वो—अजीब बात है तुम्हारे चाचा को भी कल ऑफिस में ही रुकना पड़ा

मैं- अच्छा , हो गया होगा कुछ काम

चाची मेरे पीछे पीछे कमरे में आ गयी और बोली- मुझे ना कुछ बात करनी है तुझसे , मुझे आजकल न एक अजीब सी फीलिंग हो रही है

मैं जानता था की उनको भी चाचा के व्यवहार से परेशानी हो रही है , पर मैं अभी मूड में नहीं था तो मैंने मना कर दिया और कपडे बदल कर घर से बहार चला गया

मैं दूकान की तरफ जा रहा था तो मुझे रस्ते में पिस्ता मिल गयी मैं उसे देख कर खुश हो गया उसने बस इतना कहा- रात को खेत पर मिलियो वाही बात करेंगे
हम पर तो जुलम ही हो गया बीच बाजार , पिस्ता आ गयी और आते ही न्योता भी दे गयी पर हमारी राशी में शनिदेव चाचा जी करे तो क्या करे, मैं वही से वापिस मुड गया और सीधा गया चाची के पास वो रसोई में सब्जी बना रही थी मैं जाके बोला – जी बात ऐसी है , आपकी मदद चाहिए अर्जेंट में

वो- क्या हुआ पैसे वैसे चाहिए क्या

मैं- ना , आज खेत में मैं जाना चाहता तू तो आप चाचा को मन लेना

वो- मेरी आजकल सुनते कहा है वो , ऐसे लगता है जैसे की बदल गए है

मैं- चाची बात ऐसी है की , मुझे आज अर्जेंट काम है किसी से और चाचा जी रहेंगे कुएँ पर तो मेरी परेशानी बढ़ेगी तो आप उन्हें माना लेना

वो- ऐसा क्या क्या काम है तेरा ,

मैं- फिर कभी बताऊंगा

वो- मैं कोशिश करुँगी

पर हमारी किस्मत में कहा सुख लिखा था साहेबान, चूत के नशे में डूबा इंसान कहा किसी की सुनता है मैंने बार बार कहा की आज मैं जाऊंगा खेत में पर चाचा ने पाना रॉब झाडा मुझ पर और चलने लगा घर से बाहर , मैंने फिर से कहा की मैं चला जाऊंगा तो वो गुस्से से बोले- के आग लग री साईं तेरे जो खेत में ही बुझेगी पढाई तो होती ना क़ानून दुनिया भर की

मैं मन ही मन में- आग तो जो तेरे है वो मेरे है , चाचू तो तेरी गांड एक मिनट में तोड़ दू , पर ये साली जुबान थी जो टाइम पे कभी खुलती नहीं थी मैं पैर पटकते हुए अन्दर जा ही रहा था की बिमला आ गयी

बिमला- क्या बात है देवर जी खफा खफा लग रहे हो

मैं- तू तेरा काम कर ना

वो क्या बात हुई

मैं- कुछ ना मेरा दिमाग थोडा खराब है

मेरा मन तो कर रहा था की अभी क अभी इसकी गांड पे दू साली तेरे मजे के चक्कर में हमारी लग गयी थी हमारा सुख स्वाहा हुए जा रहा था , पर हम भी पुरे रसिया थे ज़माने का कहा हमपे कोई जोर था पिस्ता से तो मिलना ही था कैद होती तो उसे भी तोड़ देता मैं , मुझे पता था टेंशन की तो कोई बात है नहीं , चाचा पहूँचे गा बिमला के घर ही , तो बस इंतज़ार था सबके सोने का , काम- धाम निपटा कर चाहि भी ऊपर आ गयी ,

और बोली- क्या बोल रहे थे तेरे चाचा

मैं- कुछ नहीं आजकल खेत में बड़ा मन लग रहा है उनका , पहले तो कभी जाते ना थे

वो- क्या कहना चाहता है

मैं- मुझे घर मन नहीं लग रहा था तो मैं सोचा की खेत में ही टाइमपास कर लूँगा

चाची- मैं सब समझती हूँ तेरे इरादे , चल सच बता क्या प्रोग्राम है तेरा

मैं- अब तो बस सोना है

वो- बाते ना बना , मुझे दोस्त समझता है ना तो बता किसलिए जाना था खेत में

मैं- बस ऐसे ही

वो- बता दे नहीं तो मैं बात नहीं करुँगी तुझसे , वैसे भी तेरी कितनी बात पता है मुझे क्या मैंने कही किसी से
मैं- मेरा ना चक्कर चल रहा है किसी से , तो बस उस से ही मिलने जन था पर आपके पतिदेव ने सारे प्लान की ऐसी तैसी कर दी , अब उनका तो इंटरेस्ट है ना आप में , तो दुसरो की जिंदगी भी परेशान कर रहे है वो
चाची मेरा कान मरोड़ते हुए- तुझे बहुत पता है इंटरेस्ट का , एक नंबर का कमीना हो गया है तू

मैं- छोड़ो चाची दर्द हो रहा है, मैं तो ऐसे ही बोल रहा था मुझे नींद आ रही है मैं सोऊंगा

पर मेरी बात सुके वो कही ना कही गंभीर हो गयी थी मैं तो अहेशा एक अनसुलझी पहेली में उलझा रहता था अपनों में मैं बेगाना रहता था , सब कुछ था मेरा पास पर फिर भी मेरे सीने में जो एक तूफ़ान धधकता रहता था , मेरी धडकनों में जो जोश था वो हर दम मुझसे कुछ ना कुछ कहता रहता था पर मैं उन इशारों को कभी समझ नहीं पाता था , मेरी धड़कने जिस से गुफ्तुफु करना चाहती थी वो इंसान मेरे पास नहीं था मैं कही टुकडो में जी रहा था वो कही जी रही थी, पता नहीं ऐसा क्यों होता था मेरे साथ जिस की भी मुझे चाह होती थी वो मिलता नहीं था , बस मैं था और मेरे दिल में सुलगते हुए मेरे अरमान थे, उन अरमानो का धुआ याद बनकर असमान में बादलो का रूप ले रहा था पर ये बादल कभी मोहब्बत की बारिश में मुझे भिगोते भी तो नहीं थे


करीब घंटे भर का इंतज़ार करने के बाद मैं चुपके से उठा और बहार आया, चाची के कमरे का लट्टू अब भी जल रहा था मतलब वो जाग रही थी , मैं जनता था की वो मुझसे हज़ार सवाल पूछेंगी जब उन्हें पता चलेगा की एक बार फिर से रात को मैं गहर से लापता था पर मैं भी अपने आप में उलझा था पिस्ता से मिलना भी तो बहुत जरुरी था मुझे , वो बस मेरे जिस्म की आग ही नहीं बुझाती थी बल्कि मुझसे जुडी हुई थी दिल का एक हिस्सा उसके लिए रिज़र्व था घर से निकल कर मैं चला सूनी गलियों में किसी चोर की तरह अँधेरे को चीरता हुआ खेत की तरफ

मैं अपने खेत पर गया पर कुएँ पर लगा था ताला, मतलब चाचा होगा बिमला के घर मने उस तरफ ज्यादा ध्यान दिया नहीं और अपने खेत को पार करके पिस्ता के खेत की तरफ चला , जल्दी ही वो मुझे दिख गयी पानी दे रही थी वो सलवार को घुटनों तक ऊपर किये हुए, उसकी गोरी पिंडलिया बड़ी मस्त लग रही थी , उसके मांसल जिस्म पर टाइट फिटिंग का सूट एक दम मस्त लग रहा था चुन्नी को सर पर किसी पगड़ी की तरह बाँधा हुआ था उसने , उसने मुझे अपनी तरफ आने का इशारा किया मैं दोड़ ते हुए गया और पिस्ता को अपनी बाहों में भर लिया और बिना कुछ कहे उसको किस करने लगा

मेरे उस चुम्बन में वना का कोई नामो निशाँ नहीं था बस वो एक ऐसी भावना था जिसे या वो समझती थी या मैं समझता था , थोड़ी देर बाद मैंने उसके शरबती होंठो से खुद को अलग किया और बोला- कितना टाइम लगाया तूने, मैं तो सोचा की वाही बस गयी है तू

वो- अब मैं तेरी तरह ठाली तो हूँ नहीं, तुझे पता है मेरी माँ कितना शक करती मुझे अकेली छोडती ही नहीं तो क्या करती मेरा जी जानता है कितनी मुस्किल से आई हूँ बस तेरे लिए

मैं- मैं भी तो पल पल तेरे लिए तदपा हूँ यार, हर पल मैं जो जी रहा हूँ मुझे ही पता है जब तू मुझे नहीं दिखती तो कसम से बहुत अजीब सा लगता है

पिस्ता ने मेरा हाथ थाम लिया
पिस्ता में मेरा हाथ थाम लिया अपने हाथ में आँखे आँखों से टकराई, ऐसे लगा की जैसे दिल के सितार के सारे तारो को किसी मधुर तान ने छेड़ दिया हो, एक ठंडी हवा का झोंका मेरे बदन से टकराता हुआ मुझे कुछ यु छुकर निकल गया की उसकी कंपकपी को आज भी महसूस करता हूँ मैं, वो मुझे देखे मैं उसे देखू चांदनी रात में खेत की गीली मिटटी पर हम दोनों धीरे धीरे से सुलगने लगे थे मेरी आँख से एक बूँद आंसू की निकल कर गिर पड़ी जिसे उस अँधेरे माहौल में भी पिस्ता की कजरारी आँखों ने देख लिया था

वो- क्या बात है कुछ परेशान लगते हो

मैं- नहीं ऐसी कोई बात नहीं

वो- अब मुझसे भी छुपाओगे तुम

मैं- यार, कभी कभी ऐसा लगता है की जैसे थक सा गया हूँ मैं, हर पल कुछ ना होते हुए भी ऐसा लगता है की जैसे मेरा सब कुछ छीन लिया हो किसी ने, पल पल हर पल खुद को अकेलेपन की इन्तहा तक अकेला महसूस करता हूँ मैं, पता नहीं मेरे मन में ऐसी कौन सी बात है जिसके बोझ से हर पल दबा रहता हूँ मैं, कभी अकेले में गुनगुनाने का मन करता है कभी जोर जोर से दहाड़े मार के रोने का मन करता है तू ही बता करू तो क्या करू

वो- देख, हर चीज़ को ना अपने ऊपर मत लिया कर, जो होता है होने दे तेरे कुछ चाहने ना चाहने से कोई फरक नहीं पड़ना , हर इंसान का जिंदगी को देखने का अपना नजरिया होता है कोई जहा खाए वो मरे तू मस्ती से जी जिंदगी बहुत लम्बी है अभी से थक जाओगे तो कैसे पार पड़ेगी, मेरे राजा जी


मैं- तो क्या करू

वो- करना है है मुझसे बाते करो, थोडा प्यार करो वो हसने लगी

मैं- तो चल फिर कुएँ पे

वो – ऐसे ना चलूंगी गोद में उठा के ले चल

मैंने पिस्ता को उठा लिया और ले चला कुएँ पर बने कमरे की तरफ आज फिर से हम दोनों अपनी हसरतो को परवान चढाने वाले थे , मैंने सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाना शुर किया तो पिस्ता बोली- आह कस के मसल इसको बहुत दिन से प्यासी पड़ी हूँ , आज इसकी सारी खुजली मिटानी है

पिस्ता ने अपनी कच्छी और सलवार उतार कर साइड पे पटक दी और दिवार का सहारा लेकर अपनी मोटी गांड मेरी तरफ करके खड़ी हो गयी , मैं अपने कपडे उतारते हुए पिस्ता की गांड को देखने लगा

uffffffffffffffff कितनी प्यारी लग रही थी वो नंगा होते ही मैं उस से चिपक गया और पाने लंड को पिस्ता की गांड पर रगड़ने लगा पिस्ता ने मेरा हाथ अपनी छाती पर रख दिया और उसको दबाने लगी, आज पूरी तरह से चुदने को वो सुलग रही थी मैं उसके बोबो को दबा कर उनमे हवा भरने लगा


पिस्ता ने मेरे लंड के अगले हिस्से को अपनी मुट्ठी में लिया और उस पर अपनी उन्लियो से छेड़खानी करने लगी, मुझे मजा आने के साथ गुदगुदी भी होने लगी, पिस्ता ने अपनी आँखे बंद कर ली और मेरी मुट्ठी मारने लगी मैं भी हौले हौले से सिसकने लगा था मैंने अपना हाथ उसकी जांघो के बीच से लिया और उसकी चूत को दबाने लगा पिस्ता हूँस्न के बोझ से दबी पड़ी थी तो चूत हद से ज्यादा गीली हो गयी थी कामुकता धीरे धीरे अपना नशा चला रही थी हम पर मैं अब उसकी गांड की दरार को सहलाते हुए उसकी गांड के छेद पर आ गया था काम रस में सनी अपनी ऊँगली को मैं उसकी गांड के छेद पर रगड़ने लगा तो पिस्ता आहे भरने लगी


uffffffffffffffff कितनी गरम हो रही थी ये लड़की मैंने अपनी ऊँगली उसकी गांड में घुसना चालू किया तो पिस्ता अपने चुतड टाइट करने लगी पर मैंने जोर लगाते हुए थोड़ी सी ऊँगली अन्दर घुसा ही दी पिस्ता दर्द से उछल पड़ी और मेरी तरफ घूम गयी तभी मैंने उसके होंठो को चूम लिया और लग्भग आधी ऊँगली उसकी गांड में डाल दी पिस्ता दर्द से उछलने लगी मलाई दार होंठो को चूसते चूसते मैं उसकी गांड से छेड़खानी करने लगा था पिस्ता का पूरा चेहरा लाल सुर्ख हो गया था , मेरा लिंग उसकी जांघो से रगड खा रहा था मस्ती में चूर पिस्ता ने उसको अपनी चूत की घाटी पर रगड़ना शुरू कर दिया


गरम चूत की जानी पहचानी रगड पाकर लंड का सुपाडा खुश हो गया पिस्ता तेजी से मेरे सुपाडे को चूत की तरफ धकेलने लगी उसकी हर सांस मेरे मुह में घुल रही थी एक तो आज रात उमस भरी थी ऊपर से पिस्ता की गरम जवानी ने इस कमरे में आग लगा रक्खी थी, आज फिर हमे इस आग में जलकर वासना के दरिया को पार करना था , फिर से पिस्ता के लेराते जोबन का स्वाद चखना था मुझे ,अबकी बार उसने जैसे ही मेरे लिंग को अपनी चूत पर रगडा मैंने थोडा सा जोर लगाया और मेरा लंड चूत में घुसने लगा पिस्ता की जांघे अपने आप खुलने लगी उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया


पिस्ता के एक छेद में लंड था दुसरे में मेरी ऊँगली उसकी आँखे कामभावना से बोझिल हो चुकी थी ऊपर से वो काफ़ी दिन में चुद रही तो वैसे ही शरीर में फीलिंग कुछ ज्यादा थी मैं और वो खड़े खड़े चुदाई कर रहे थे पिस्ता की चूत के दोनों छेद खीच रहे थे उसकी गांड में खासकर दर्द हो रहा था

“आह, निकाल लो ना ऊँगली दुखता है , दर्द हो raaahhhhhhh आआअ aaahhhhhhhhhhhhh ”
पर मैंने उसको अनसुना कर दिया पिस्ता कौन सी कम थी जोर आजमाइश करने लगी वो उसने मेरे कंधे पर जोर से काट लिया और मुझसे अलग हो गयी ,

मैं- क्या हुआ

वो- क्या सोच रखा है तुमने

मैं- कुछ नहीं बीच में बकवास मत कर जो कहना है बाद में आ पास आ जरा

पिस्ता पास में पड़ी खाट पर पसर गयी और टांगो को चौड़ा कर लिया और मेरी तरफ आँख मारी , मैंने अपने चिकने लंड पर और थूक लगाया और खाट पर चढ़ गया पिस्ता की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ाया और अपने लंड को गीली चूत की रस से भीगी पंखुडियो पर रगड़ने लगा पिस्ता के बदन में जो ज्वाला भड़क रही थी वो उसकी चूत से गाढे रस के रूप में बह रही थी , मैंने अपने हाथो से खाट की बाई को पकड़ लिया और पिस्ता की चूत पर फिर से धक्को की बोछार करने लगा

पिस्ता मेरे सीने को अपने हाथो से सहलाने लगी उसकी इस हरकत से मेरे शरीर में और भी उत्तेजना बढ़ने लगी मेरे लंड में और ज्यादा तनाव आने लगा , पिस्ता चुदते हुए अपने होंठो पर जीभ फेरने लगी अब मैंने उसकी फूली हुई छातियो को कस कस के दबाते हुए चुदाई की रफ़्तार तेज कर दी पिस्ता और मेरे संयुक्त रूप से लगाये गए धक्को से पुरानी खाट बुरी तरह से चरमराने लगी थी , चुदाई का आलम बहुत जबरदस्त था लंड बड़ी शान से उसकी चूत के छेद को बार बार फैलता , हुआ अन्दर बाहर हो रहा था

उसने अब अपनी बाहे मेरे कमर पे कस दी और मेरे चेहरे को चूमते हुए तेजी से अपनी गांड को ऊपर की तरफ उचकाने लगी पिस्ता तेजी से अपने स्खलन की तरफ बढ़ रही थी चुदते चुदते उसने बड़ी जोर से मेरे गाल पर काट लिया बड़ा दर्द हुआ मुझे तो मैंने उसकी चूची के निप्पल को मरोड़ दिया पर उसने गाल को नहीं छोड़ा, चुदाई के आलम और ये छेड़खानी , हाय रे, क्या मजा आ रहा था मेरे गाल में बहुत तेज दर्द हो रहा था पर पिस्ता साली छोड़ ही नहीं रही थी उसका पूरा बदन टाइट हुआ पड़ा था आँखे फ़ैल गयी थी और फिर धडाम से निढाल होकर वो बिस्तर पर गिर पड़ी

“aaahhhhhhhhhhhhh अआः बस अब निकाल भी लो बाहर , बस हो गया ना ” बोली वो
मैं- क्या हो गया अभी नहीं हुआ हा

वो मेरे बाल नोचते हुए- सांस तो लेने दे जरा कितना भारी है तू उठ मेरे ऊपर से सांस नहीं आ रही है

मैं उसको चोदते हुए- पड़ी रह ना थोड़ी देर और, वैसे तो कहती है की पूरी रात चोदले पर अभी खुद का होते ही नखरे करने लगी है , पड़ी रह चुप चाप

पिस्ता की चूत सूखने सी लगी थी तो उसको अब थोड़ी जलन सी हो रही थी तो वो मिन्नतें करने लगी रुकने की तो मैं उतर गया उसके ऊपर से


मैं खाट पर बैठा था पिस्ता उठी और कोढ़ी होकर मेरे लंड को चूसने लगी मैं उसकी गांड पर अपने हाथ फिराने लगा पिस्ता अपनी चूत के पानी से सने हुए मेरे लंड को जोर जोर से चूस रही थी मैं उसके चुतड सहलाते हुए उसकी गांड के छेद को सहलाने लगा तो पिस्ता बोली- आज तो मेरी गांड के पीछे ही पड़ गया है इरादा क्या है तेरा

मैं- गांड लूँगा तेरी अभी

वो- पगला गया है क्या चूत देती हूँ वो क्या कम है गांड मारेगा, मुझे क्या मरना है इस मोटे लोडे को गांड में डलवा के

मैं- चूत में भी तो डलवाती है गांड भी दे दे

पिस्ता- मेरी जान भी लेले

मैं- दे दे फिर

मैंने पिस्ता को खाट पर औंधी लिटा दिया वो मान ही नहीं रही थी तो मैंने अपनी कसम दे दी तो वो तैयार हो गयी मैं उसकी गांड के छेद पर ढेर सारा थूक लगा के उसको चिकना करने लगा उसके चुतड हलके हलके सेहिल रहे थे थूक लगा के मैंने कहा हाथो से गांड को छोड़ा कर तो उसने अपने कुलहो को फैला लिया और मैंने अपने लंड को टाइट गांड के छेद को खोलने के लिए पूरा तैयार कर लिया


चूत तो काफ़ी बार मार चूका था गांड आज मारने जा रहा था दिल में अजीब सी खुशी हो रही थी मैंने थोडा सा थूक और लगा लिया और पिस्ता की गांड पर लंड को रगड़ना शुरू किया पिस्ता का बदन पता नही क्यों कुछ कांप सा रहा था मैंने पूरा जोर लगा के धक्का मारा तो मेरा सुपाडा उसकी गांड को फाड़ते हुए अन्दर घुस गया और उसी के साथ पिस्ता की तेज चीख से वो पूरा कमरा गूँज उठा “आह आः

आआआआआआआआआआआआआ फाड़ दी रे मेरी तो दुश्मान आह निकाल ले रे बहार मैं तो मरीईईईईईईईईईईईईईईई


aaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh aaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh पिस्ता का पूरा बदन अकड़ गया था दर्द के मारे वो तेजी से रोने लगी मैं उसको चुप करवाने लगा पर जिसकी गांड फट रही हो वो क्या रोये भी ना मैंने एक झटका और मारा और आधे लंड को अन्दर पंहूँचा दिया अब चूत की अपेक्षा गांड बहुत ही टाइट थी मुझे लगा की मेरा लंड छिल गया है पर गांड तो लेनी ही थी आज मुझे


पिस्ता दर्द के मार बुरी तरफ रो रही थी पर मुझ पर ना जाने कैसा जूनून चढ़ गया था उसकी तकलीफ को नजर अंदाज करते हुए मैंने पूरा लंड उसकी गांड में उतार दिया और कुछ देर के लिए शांत पड़ गया पर पिस्ता की सुबकिया कम नहीं हुई कुछ देर बाद मैं धीरे धीरे करके लंड को आगे पीछे करने लगा पर पिस्ता को बहुत दर्द हो रहा था मेरे लंड में भी जलन सी हो रही थी पर जब तक उत्तेजना हो कुछ महसूस होता नहीं कैसे ही कुछ मिनट और निकल गए


मैंने अब धीमे धीमे से धक्के लगाने शुरू कर दिए पिस्ता मेरे नीचे दबी हुई अपनी रुलाई को थामने की पूरी कोशिश कर रही थी, एक तरफ पिस्ता को देख कर मुझे दर्द सा भी हो रहा था और गांड मारने की ख़ुशी भी हो रही थी उसकी गांड वास्तव में ही बहुत टाइट थी तो मैं तेजी से धक्के भी नहीं लगा पा रहा था पिस्ता तो ऐसे अधमरी सी होकर पड़ी थी जैसे की प्राण निकल लिए हो , इधर मैं भी जल्दी से फारिग हो जाना चाहता था तो मैं पूरा दम लगा की उसको चोदने लगा

तभी पिस्ता बोली- छोड़ मुझे छोड़

मैं- छोड़ दूंगा थोड़ी देर में

वो- अरे छोड़ दे कुत्ते

मैं- ना छोड़ूगा

वो- टट्टी निकलने वाली है कमीने छोड़ दे मुझे पिस्ता ने अपनी टाँगे पटकते हुए कहा मैं थोडा सा ढीला पड़ा और वो उठ के भागी बाहर खेत की तरफ

ना जाने क्यों मुझे हँसी आ गयी तेजी से

- अरी, डिब्बा तो लेजा पिस्ता नंगी ही भाग गयी थी

मैंने अपने लंड को देखा उस पर खून लगा हुआ था पिस्ता की गांड सच में ही फट गयी थी कुछ टट्टी भी लगी हुई थी मैंने पानी से उसको धोया और फिर एक डिब्बा लेकर पिस्ता को देने चला गया , करीब दस मिनट बाद हम जब वापिस आये तो पिस्ता लंगड़ा लंगड़ा कर चल रही थी

मैं- क्या हुआ

वो- तेरी गांड में बेलन डलवा ले फिर पूछना क्या हुआ, मेरी गांड फाड़ दी तूने

मैं- एक बार में तो दर्द होता ही है अब सब सही हो जायेगा

वो- भाड़ में जा तू

मैं- जाऊंगा, तुझे लेके

पिस्ता अपने पिछवाड़े पर उन्लिया फेर फेर कर जायजा ले रही थी मैं उसे पुचकारने लगा थोडा समय लग गया उसको मानाने में हम दोनों अब जमीं पर ही लेट गयी एक चादर बिछा के पिस्ता ने अपना सर मेरे सीने पर रख दिया मैं उसके बालो को सहलाने लगा पिस्ता मेरे लंड को अपने हाथ में लेकर मसलने लगी धीरे धीरे से हम दोनों कुछ बोल नहीं रहे थे बस ऐसे ही लेटे हुए थे मेरी रांड मेरी बाहों में सिमटी पड़ी थी

मैं- तेरी नानी ठीक हुई

वो- अब तो वो बस ऊपर को ही निकलेगी

मैं- हम्म्म ज्यादा बीमार है क्या

वो- 80 की हो गयी है अब क्या जादा क्या थोडा

मैं- और तेरे भाई की सगाई कब है

वो- इस इतवार को गोद भरने जायेंगे

मै- तू कब गोद भरवाएगी

वो- तू भर दे , कर दे प्रेग्नेंट अपने आप भर जाएगी

मैं- कोई पूछेगा तो क्या कहेगी

वो- कहना क्या है बता दूंगी तेरा है

मैं- सच में

वो- झूट समझ ले , तू खुश रह

मैं- तेरी भाई के बाद बस तेरा ही नंबर है फिर तेरा ब्याह भी कर देंगे

वो- तो क्या तेरे लिए कुंवारी ही रहू सदा

मैं- ना ना तेरा जब जी करे करवा ले ब्याह किसने रोका है

वो- मेरी माँ तो कह रही थी की कोई लड़का मिल जाये तो दो भाई-बहन को फ्री कर दे

मैं- तेरी माँ को बड़ी पंचायत है

वो- अब कब तक मेरा बोझ उठाएगी वो

मैं- तो तू चली जाएगी मुझे छोड़ के

वो- तो क्या कभी आउंगी नहीं आया करुँगी जब तेरे लिए जन्नत का दरवाजा खोल दूंगी मेरे प्यारे

उसके सहलाने से मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया था मैंने कहा – अब देगी

वो- चूत मारले, पीछे दर्द हो रहा है फिर कभी कर लिए उधर


तो एक बार उसने तबियत से अपनी चूत दी मुझे और रात को करीब ढाई बजे मैं घर की तरफ चल पड़ा

बुरी तरह से निचोड़ा था मुझे पिस्ता ने बदन के हर तार को हिला कर रख दिया था घर आया मैं चुपचाप तीन चार गिलास पानी पीने के बाद मैं अपने कमरे में आया तो देखा की चाची श्री मेरे पलंग पर सोयी पड़ी है , देखो लोगो को खुद के कमरे है फिर भी गरीबो का बिस्तर पसंद है , इसका मतलब उनको भान था की मैं घर से बाहर हूँ, पर उनसे अब इतना भी डर नहीं लगता था मुझे तो मैंने उनको जगाया और अपने कमरे में जाने को कहा पर उन्होंने इग्नोर करते हुए मुझ पर सवालों की बोछार कर दी

वो- कहा थे तुम

मैं- इधर ही था

वो- झूट मत बोलो

मैं- एक दोस्त के साथ था

वो- ऐसे कौन से दोस्त है तुम्हारे जो बस रात के अंधेरो में मिला करते है

चुप रहा

वो- मुझे क्या उल्लू समझ रखा है तुमने , अनपढ़ गंवार हूँ क्या मैं सब समझती हूँ

मैं- आप कुछ नहीं समझती हो , आप अपने कमरे में जाओ मुझे सोने दो

वो- बिमला के घर पे थे ना तुम

अब इनको क्या हुआ, चाची ने ये कैसा बम फोड़ा था जिसमे से जरा भी चिंगारी नहीं निकलने वाली थी मुझे हँसी आ गयी

वो- लाइट चली गयी थी तो मैं बहार सोने को आई थी सोचा तुम्हे भी जगा दू पर तुम कमरे में थे नहीं तभी मैंने बिमला की छत पर दो लोगो को देखा, अब उसके घर में वो ही अकेली औरत है तो वो ही थी अँधेरे के कारण आदमी को मैं देख नहीं पाई , और जाहिर है की तुम भी घर नहीं थे उसी समय तो ये जो खिचड़ी तुमने पकाई है ना वो सब बता दो अभी मुझे


चाची बड़े गुस्से में लग रही थी , वो मेरे पास आई और बोली- ये तुम्हारे गाल पर कैसा निशाँ है

मैं- कुछ भी तो नहीं है

वो- बेटा, जिस रास्ते पर तुम चल रहे हो ना वो रस्ते बहुत पहले ख़तम हो गए हमारे गुजरने से , तो तुम कबूल कर रहे हो की तुम बिमला के साथ थे

मैं- आपको जो समझना है आप समझो अभी मुझे सोने दो नींद बहुत आ रही है

तडाक से एक थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा , मैं संभालता उस से पहले ही इक थप्पड़ और पड़ गया चाची- मैंने सोचा की बराबर के हो गए हो , तो बेटा न समझ कर दोस्त मान ने लगी पर तुम हो की झूठ पे झूठ बस यही सिखाया क्या इस परिवार ने तुम्हे , इतने बेगैरत ह गए हो की अपनी भाभी को ही फसा लिया तुमने, इतनी गन्दी सोच हो गयी तुम्हारी घर में मैं हूँ तुम्हारी मम्मी है कल को हम पे भी डोरे डाल लो, कल क्यों जब तुम अपनी भाभी के साथ रात गुजार कर आये हो तो चाची के साथ भी गुजार लो उतारू कपडे

चाची का पूरा मुह गुस्से से लाल हो गया था वो किसी नागिन की तरह बिफर रही थी तो बात ये थी की चाची ने छत पर देखा अपने पति को पर चूँकि मैं भी अनुपस्थित था तो उन्होंने समझ लिया की मैं बिमला के साथ हूँ

वो- बिमला को तो मैं अपने हिसाब से हैंडल कर लुंगी पर पहले तुम कबूल कर लो की तुम ही थे ना उसकी छत पर

मैं- मुझे कुछ नहीं कहना

वो- कह दो वर्ना मैं अभी तुम्हारे माँ- पिताजी को बुला रही हूँ

मैं अब उनको क्या कहता की वो मैं नहीं था वो थे उनके प्रानपति उनके भरतार मुझे उनकी नजरो से गिरने का कोई दुख नहीं था बल्कि मैं तो पूरी कोशिश कर रहा था की उनकी गृहस्थी को बचा सकू, मुझे पता था की चाचा की बेवफाई से वो टूट कर बिखर जायेंगी , और फिर घर में जो मनहूसियत फैलेगी वो अलग , गुस्सा मुझे भी बहुत था पर अब अपनी इज्जत नीलम होने से उनका घर बचे तो क्या बुराई है

चाची- तुम ही थे ना

मैं- हां मैं ही था मेरा और बिमला का काफ़ी दिन से फुल चक्कर चल रहा है

वो- बेशरम, लड़के दूर हो जा मेरी नजरो से

मैं- तो जाओ ना अपने कमरे में मुझ से क्या उम्मीद है

वो- उस बिमला की तो मैं ऐसी रेल बनाती हूँ की याद रखेगी हमारे लड़के को बिगाड़ने चली है तुझे तो मैं बाद में देखूंगी पहले उसकी चोटी पादुंगी

चाची बहुत गुस्से में थी वो बिमला के घर जाने को कमरे से बहार निकलने लगी , मैंने उसको रोका और कहा अगर आपने इस बात का जीकर किसी से भी किया ना तो मैं अभी सल्फाज़ खा लूँगा

चाची जैसे पत्थर की बन गयी वो ध्हम से कुर्सी पर बैठ गयी उनकी आँखों से आंसू टपकने लगे इधर मेरा भी दिमाग खराब हो गया कमरे में जैसे अभी तूफ्फान आकर गुजरा था मेरे पास बहुत कुछ था कहने को पर मेरी एक चुप्पी की बहुत अहमियत थी उस पल में , चाची को समझ में नहीं आ रहा था की वो क्या कहे गुस्से में कांप रही थी वो इधर वो विवश थी पर उसके बाद उन्होंने कुछ नहीं बोला सुबह तक वो कुर्सी पर बैठी रही मैं पलंग पर न उन्होंने मेरी तरफ देखा ना मैंने उनकी तरफ देखा


उस दिन मैं मैं पढने भी नहीं गया बस दोपहर को खाना खाने नीचे आया ही था की बिमला घर पर आ गयी मम्मी भी घर पर थी बिमला को देखते ही चाची ने बड़ी मुस्किल से खुद पर काबू किया पर उनकी जलती आँखों की तपिश पूरी तरह से मैं ही देख रहा था

बिमला- देवर जी कल ना मुझे शहर से कुछ सामान लाना है आपको चलना पड़ेगा मेरे साथ

मम्मी- हां चला जायेगा इसमें कहने की क्या बात है

चाची- नहीं ये नहीं जायेगा , इसको और भी काम है ऊपर से पढाई का भी काम है तुम अकेले ही जाना
बिमला- पर चाची मैं अकेले नहीं जा पाऊँगी

चाची- एक बार कह दिया ना की ये नहीं जायेगा कह कर वो ऊपर चली गयी

मम्मी ने मुझे घूर कर देखा पर कहा कुछ नहीं थोड़ी देर बाद बिमला चली गयी तो मम्मी बोली – क्या हुआ
मैं- चाची थोड़ी सी अपसेट है तो झुंझला गयी आजकल चाचा और उनके बीच कुछ प्रॉब्लम है उसी का स्ट्रेस है शायद

मम्मी- हू , लगता है दोनों से खुल के बात करनी पड़ेगी


करीब दस दिन गुजर गए इस बीच पिस्ता के भाई का रोका भी हो गया था, और वो ड्यूटी भी चला गया था पिस्ता ने काफ़ी बार मिलने को कहा था पर मैं हद से ज्यादा परेशान था तो मैंने मना कर दिया अब ये परेशानी मैंने नीनू को भी नहीं बताई बस घुट रहा था खुद चाची मुझसे बात करती ही नहीं थी बल्कि हर वक्त बस नजर रखने का पूरा प्रयास होता था उनका और इन सब का फायदा मिल रहा था चोदु चाचा को जब भी बिमला कुछ काम करवाने आती तो चाची चाचा को कह देती की बिमला का फलाना काम आप करदो वो सोचती थी की ऐसा करके वो मुझे बिमला से दूर रख लेगी,जबकि उसे पता नहीं था की वो आग के ढेर पर बैठ कर माचिस जला रही है


चोदु चाचा तो पुरे मजे ले रहा था उधर शान्ति मैडम ने अपना रिश्ता जोड़ लिया था इधर बिमला चाची तो थी ही तीन तीन चूत मारके मस्त जिन्दगी के मजे ले रहा था वो , रात को चाची काफ़ी बार उठ कर चेक करती की मैं घर पे हूँ या निकल लिया बिमला से बोलचाल भी बंद कर दी थी उन्होंने , मैं मन में सोचता की मेरी चोकिदारी से क्या होगा भोसड़ी की अपने पति जो संभाल जो तुझे चोदने के बजाय बहार मुह मारता फिर रहा है पर अपना क्या था अभी तो बस नजरो से गिरे थे इज्जत सारे बाजार तो उतरनी बाकी थी
 

Incest

Supreme
432
859
64
उस दिन करीब 11बज रहे होंगे मैं बाहर चबूतरे पर कपडे धो रहा था की रेडियो सुनते सुनते घर पे कोई था नहीं सुबह से मम्मी आज बाजार गयी हुई थी खरीदारी करने को , मस्ती में सर्फ़ लगाके कपड़ो को चमका रहा था मैं की मन्जुडी निकल आई हमारे घर की तरफ, वो भी साली भटक रही थी लंड के लिए मैं छोटा सा कच्छा पहने हुए कपडे धो रहा था , वो उसको देख कर मेरा लंड साला हिचकोले खाने लगा उसको भी काफ़ी दिनों से खुराक मिली थी नहीं ऊपर से साली सफ़ेद सूट में एक दम पटाखा लग रही थी

मंजू मेरे पास आके बोली- क्या कर रहा है

मैं- कपडे धो रहा हूँ तू बता आज हमारी तरफ निकल आई कैसे

वो- बिमला के घर जा रही हूँ, कुछ पैसे लेने थे दूकान के

मैं- अभी नहीं है वो घर

वो- कहा गयी

मैं- वो छोड़ ये बता इतने दिन हो गए देती क्यों नहीं

वो- मैं तो कबसे तैयार हूँ , पर तू मेरी तरफ अब देखता ही नहीं

मैं- अभी देगी

वो- ना घर जाना है

मैं- ५ मिनट तो लगेगी

वो- तुम काफ़ी देर लेते हो

मैं- जल्दी से करलूँगा घर पे कोई नहीं है

वो- ठीक है पर जल्दी से कर लेना

मैं- आ तो सही

मैं और मंजू दोनों घर के अन्दर आ गए मैंने मेन गेट बंद किया और मंजू को अपनी गोदी में उठा लिया और मंजू में समा जाने की पूरी तयारी करने लगा मंजू ने झट से अपनी सलवार को नीचे किया

मैं- नंगी होजा घर में कोई नहीं है

वो- कही कोई आ जाये

मैं- बेफिक्र रह और मस्त होके चुद आज

मंजू शरमाते हुए नंगी होने लगी मैंने भी कच्छे को उतार कर फेक दिया मेरा लंड तो मंजू को देखते ही तन गया था मंजू और मैं एक दुसरे को देखने लगे मैंने अपने लंड को सहलाते हुए मंजू जो नीचे बैठने को कहा मंजू समझ गयी की मेरी चाहत क्या है तो वो मेरी टांगो के बीच घुटनों के बल बैठ गयी और मेरे लिंग को अपने होठो से लगा लिया , किसी लड़की की गरम सांसे जब जब लंड की खाल पर पड़ती है तो बड़ी ही मस्त फीलिंग आती है मैंने बड़े ही प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा तो मंजू ने अपना मुह खोल कर मेरे लंड के अगले हिस्से को मुह में ले लिया

मस्ती ऐसी आई की मेरी तो टाँगे ही काप गयी मंजू बड़े प्यार से मेरे लंड को चूसने लगी मजाल क्या जो थूक की एक बूँद भी नीचे गिर जाये, थोड़ी देर बाद उसने अपनी टाँगे चोडी कर ली और अपनी योनी को हाथ से मसलने लगी और जोर जोर से अपने मुह को लंड पर ऊपर नीचे करने लगी उफ्फ्फ्फफ्फफ्फ्फ़ क्या सॉलिड मस्ती छाई हुई थी फुल मजा आ रहा था मन ही मन मैंने सोच लिया था की आज मंजू को दो बार तो पेलूँगा ही पेलूँगा मंजू की आँखों में आधी बोतल का नशा उतर चूका था मेरे लंड को उसने अब अपने गले के अन्दर तक उतार लिया था और एक सेकंड भी बह़ार नहीं निकाल रही थी

पर अब चूत मारने का टाइम हो गया था मैंने मंजू को उठाया और उसकी गांड को भीचते हुए उसके गाल चूमने लगा उसका बदन बहुत गरम हो रहा था मंजू के कुल्हे बहुत ही ज्यादा सुडौल और मुलायम थे मंजू की पतली पतली टाँगे मेरी टांगो से रगड खा रही थी धीरे से मैं उसके लबो की तरह आ गया था मंजू न अपनी आँखों को मूँद लिए और किस करने लगी दो चार पप्पियो के बाद मैंने उसको सोफे पर पटक दिया और उसकी टांगो को फैला दिया


हलके हलके रेशमी बालो से ढकी हुई उसकी चूत बड़ी सुन्दर लग रही थी मंजू मेरी तरफ देखने लगी मैं मुस्कुरा दिया और सोफे पर चढ़ गया उसकी टांगो को सेट किया और मेरा लंड उसकी योनी को चूमने लगा लंड का स्पर्श पाते ही मंजू बहकने लगी , वो अपने आप अपने बोबो को दबाने लगी , बड़ी कामातुर हो रही थी वो चुदने के लिए और कुछ ऐसा ही हाल मेरा था मैंने उसकी एक टांग को अब अपने कंधे पर रखा और चढ़ गया उसपे लंड चूत की फांको को फैलाते हुए अन्दर को घुसने लगा मंजू ने आह भरी और अपने जिस्म को टाइट करने लगी मैंने उसकी जांघ को पकड़ लिया और उसको सहलाते हुए चुदाई शुरू कर दी

मंजू की चूत न लंड को अपनी कैद में कर लिया था

मंजू- जल्दी से कर ले अब, घर जाने में देर हो गयी तो माँ काफ़ी बात कहेगी

मैं- कर तो रहा हूँ मेरे कोई बस का है होगा जब होगा

मंजू- तुझे तो देनी ही नहीं चाहिए

मैं- तो क्यों देने आई

मंजू कुछ ना बोली मैंने उसकी ऊपर वाली टांग को सोफे से नीचे लटका दिया और उसके ऊपर लेट कर चूत मारने लगा उसके बोबे मेरे सीने के नीचे भींचने लगे मंजू को अब चुदाई की मस्ती चढ़ने लगी मेरा लंड किसी पिस्टन की तरह चूत को चोद रहा था जल्दी जल्दी करने का रोना जो रो रही थी मंजू , पर अब जब लंड की मर्ज़ी हो तभी वो झाडे , मंजू की चूत में लंड जल्दी ही सेट हो गया था तो अब मंजू भी उछलने लगी थी मैंने उसको अब अपने लंड पर बिठा लिया और वो लगी कूदने इस पोजीशन में पूरा लंड चूत में धाड़ धाड़ करके टिक रहा था मैं उसकी नंगी पीठ को चूमने लगा , कभी वहा दांत लगता तो कभी उसकी गांड पर चिकोटी काटता

मंजू की चूत से बहती रसधार मेरे अन्डकोशो को गीला कर रही थी , मंजू अपनी उफनती हुई साँसों को समेट कर चूत चुदवा रही थी , गर्मी के उस दोपहर में जब की लाइट भी नहीं आ रही थी हमारी पसीने से सराबोर चुदाई चालु थी धक्के पे धक्के पड़ रहे थे हम दोनों शारीरक सुख को भोग रहे थे पर जल्दी ही मंजू थकने लगी तो मैंने उसको वाही सोफे पर घोड़ी बना दिया उसकी चोटी को किया साइड में और बोबो को बेरहमी से मसलते हुए दे दनादन चोदने लगा उसको मंजू की हिलती गांड इस बात का सबूत थी की कितने मजे में है वो उस पल ठप्प थापा ठप्प मेरा लंड चूत के सुराख़ को और खोले जा रहा था


मस्ती में चूत मैं और मंजू चुदाई में खोये हुए अपने अपने स्खलन को तलाश कर रहे थे की तभी........


हरामखोरो ,नीचो ये क्या हो रहा है “

जैसे ही ये आवाज हमारे कानो में पड़ी फट के हाथ में आ गयी, मैं मंजू को सोफे पर घोड़ी बनाये हुए था दरवाजे पर चाची श्री खड़ी थी, रंगे हाथ पकडे गया था मैं आज समझ ही गम हो गयी मैं उतरा मंजू के ऊपर से आज तो माजना ही पिट गया था बीच बाजार में अब कुछ नहो सकता था


“गन्दी, औलादों ये सब नीच हरकते, करते हुए शर्म नहीं आई , चिल्लाई वो


दरअसल वो घर पर ही थी ऊपर पर मुझसे चूक हो गयी थी मैंने समझ लिया था की वो घर पर है नहीं तो प्लान बना लिया था , अब बिमला वाली बात से चाची वैसे ही किलसी पड़ी थी , मंजू ने फ़ौरन अपनी सलवार सम्हाई और सूट को पहन ने लगी मैं भी अपने कच्छे को ढूंढ ने लगा पर वो साला पता नहीं किस साइड गिर गया था तो और फजीहत हो गयी

चाची – आज तो ऐसा हाल करुँगी की सारी जवानी निकल जाएगी मंजू बोली- मैं तो मर गयी आज
मुझे कुछ ना सूझे मंजू ने तो जैसे तैसे अपने कपडे उलझा लिए थे मैं नंगा करू तो क्या करू मैं बेड की चादर उठा ही रहा था की तभी पीठ पर एक लट्ठ आ पड़ा, भील गया मैं तो एक में ही एक पड़ा मंजू पर मंजू भागी दरवाजे की तरफ तो एक और टिका चाची चिल्लाते हुए बोली- तेरी तो खबर तेरी माँ लेगी आ रही हूँ तेरे घर मंजू बिना कुछ सुने भागी बहार को


मैं अब कहा जाऊ दे दाना दान ७-8 लट्ठ टिक गए शरीर पर चादर निकली हाथ से वो अलग आज तो लुट गए रे हम तो , मैं बचने के लिए भागने लगा वो सीढियों पर वो मेरे पीछे आई मैं सीढिय चढ़ ही रहा था की तभी मेरे पाँव पर लट्ठ पड़ा और मेरा बैलेंस बिगड़ गया

अब हमारी जो सीढिया थी ना उन पर ग्रिल न लगवाई हुई थी हालाँकि उसके लिए लोहे के खुस्से छोड़े हुए थे मैं नीचे लगा गिरने तो वो खुस्सा मेरी बगल में फास गया और काट ता हुआ नीचे तक आ गया दर्द से मैं चीखा बुरी तरह , आँखों के आगे जैसे अँधेरा सा छा गया मेरे , गिरते हुए बस कुछ याद नहीं आया फिर मुझे बस इतना जरुर महसूस हुआ की किसी चीज़ से मेरा सर टकराया हो आँखे मुंदती चली गयी दर्द के आलम में मैं डूबता चला गया क्या हुआ कुछ पता नहीं फिर


आँख खुली तो दर्द की लहर ने मेरे होश में आने पर स्वागत किया, धुंधलाते हुए मेरी आँखे खुली तो दखा की मम्मी, चाची, बिमला, पिताजी सब लोग मेरे पास ही बैठे हुए है मैंने उठने की कोशिश की तो मम्मी ने मुझे लेटे ही रहने को कहा मुझे बहुत दर्द हो रहा था

मैं- कहा हूँ

पिताजी- हस्पताल में

मैं- आह, दर्द हो रहा है

मम्मी- ठीक हो जाओगे

परिस्तिथि का भान किया तो देखा मेरे सर पर पट्टी बंधी है और साइड में भी मैं जरा सा हिल्ला तो बदन दर्द से कांप गया , अब ये क्या हुआ मैं सोचने लगा तो पूरी बात समझ में आई, तो पता चला की काफ़ी देर में होश आया था सर पर गहरी चोट लगी थी और बगल में गहरा घाव था ,


डॉक्टर ने आके कुछ सुई लगायी दवाई दी और चला गया थोड़ी देर बाद माँ- पिताजी भी बहार चले गए, बिमला भी घर जाने का कह गयी बचे मैं और चाची , मैंने देखा उनकी आँखों में आंसू थे, उन्होंने मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया और रोने लगी , हालंकि मुझे बहुत दर्द हो रहा था पर वो दर्द जो उनकी गीली आँखों में था उसके अन्दर दर्द ज्यादा था



काफ़ी देर तक उनकी आँखों से आंसू झरते रहे,

मैं- मैं ठीक हूँ अब, थोडा सा मुस्कुरा दिया

वो- मुझे माफ़ करना बेटा, सब मेरी वजह से हुआ है

- कुछ नहीं हुआ आपकी वजह से मेरी ही गलती थी

वो- बेटे, मुझे कठोर नहीं होना चाहिए था

मैं- छोड़ो जो हुआ घर कब जाना होगा

वो- जब ठीक हो जाओगे

चाची ने मुझे जूस का गिलास दिया मैंने थोडा बहुत गटका कमजोरी की वजह से नींद आ गयी , जब मैं उठा तो शायद रात का वक़्त था , बल्ब जल रहा था मुझे सुसु आई थी चाची पास में रखे स्टूल पर ही सोयी पड़ी थी मेरी हरकत से वो जाग गयी ,

वो-क्या हुआ

मैं- सुसु आई है मम्मी को बुला दो

वो- मम्मी अभी सोयी है तुम यही कर लो

मैं- यहाँ नहीं कर पाउँगा

वो- रुको जरा,

उन्होंने बेड के नीचे से एक डिब्बा सा निकाला और बोली- अभी तुम्हारी हालात बेड से उतरने की नहीं है इस में कर लो मैं बहार फेक दूंगी

मैं- पर आपके सामने कैसे कर पाउँगा

चाची- मेरे सामने जब इतना कर चुके हो तो सुसु में क्या दिक्कत है

उन्होंने मेरे पायजामे को सरकाया और मेरे लंड को अपने हाथ में लेकर डिब्बे की तरफ करते हुए बोली- चलो जल्दी से करलो

अब अपनी भी मज़बूरी थी मूतना भी जरुरी था ऊपर से उनके नरम हाथो के सपर्श से लंड गरम होने लगा उन्होंने भी उसमे उत्तेजना महसूस की पर कुछ कहा नहीं जल्दी ही मैंने मूत लिया उन्होंने लंड को पायजामे में डाल दिया और डिब्बे को लेकर बहार चली गयी , थोड़ी देर बाद वो आई

मैं- माफ़ करना चाची, आपको मेरी वजह से तकलीफ हुई

वो- शर्मिंदा तो मैं हूँ, मेरी वजह से तुम्हारी ये हालात हुई

मैं कुछ नहीं बोला

वो- बेटे, हम सब तुम्हारी भलाई चाहते है तुम जो भी कर रहे हो उसके लिए अभी टाइम है एब बार तुम्हारी पढाई पूरी हो जाये फिर तुम्हारी शादी कर देंगे , तुम्हे ऐसे किस के साथ भी मुह मारने की जरुरत नहीं है , मैं जानती हूँ ये जो भी बात हम कर रहे है बहुत ही असामान्य है पर तुम जवानी की दहलीज पर फिसल रहे हो पहले अपनी भाभी के साथ फिर मोहल्ले की लड़की के साथ, हमे नहीं पता की हमारी परवरिश में क्या कमी रह गयी जो तुम ऐसे हो गए


मैं बस सुनता रहा , मैं जानता था की मेरी ख़ामोशी ही मेरी कमजोरी है पर ख़ामोशी जरुरी थी , वो भी जब हालत बिलकुल ठीक नहीं थी पूरा बदन दर्द से दोहरा हुआ पड़ा था दर्द निवारक दवाई होने के बावजूद भी दर्द को सहना मुश्किल हो रहा था , वो एक हफ्ता बड़ा ही खोफ्नाक सा था चाची को आत्मग्लानी सी हो रही थी तो वो थोड़ी कटी कटी सी रहती थी मेरे जो भी काम थे पानी- पेशाब की वो ही करवाती थी जैसे की वो प्रायश्चित करना चाहती हो पर मुझे चिंता उनकी ना थी ना अपनी थी घर पर चाचा रहते थे और बच्चो का बहाना करके बिमला तो उनकी पूरी मौज आई हुई थी


उनको हमसे क्या लेना देना था उनकी चुदाई तो बदस्तूर जारी थी दाना दन करके, इस बीच पिताजी जिन्हें मैं हमेशा खडूस समझता था उनका एक अलग पहलु भी जाना मैंने, एक कठोर पिता के सीने में भी मासूम दिल होता है जाना मैंने, पिताजी उस एक हफ्ते में जैसे टूट ही गए थे, उनके चेहरे पर एक मुर्झाहत सी आ गयी थी बहुत देर तक वो मेरे पास बैठ ते थे पर कुछ बोलते नहीं थे, बस मेरे बालो पर हाथ फेर देते, एक बाप की विवशता को महसूस किया मैंने ,

मम्मी तो रो कर सुबक कर फिर भी अपने दुःख को जता दिया करती थी पर पिताजी की चश्मे में छुपी आँखों में आये पानी को बस मैं महसोस कर पता था , दो करीब दस कठोर दिन हस्पताल में निकाल कर मैं घर आ गया चल फिर तो मैं लेता था पर कमजोरी थी ही, घर आने के बाद भी ज्यादातर समय बिस्तर पर ही कटता था , इधर मैं परेशान था उधर चाचा और चाची के बीच कुछ भी ठीक नहीं लग रहा था , लगभग उनमे हर रोज ही झगडा होता था किसी ना किसी बात को लेकर


इधर मैं कशमकश में था की चाची को बता दू या नहीं , हलाकि आज नहीं तो कल उन्हें पता चल ही जाना था पर उनका रिएक्शन क्या होगा वो सोच कर मैं उलझा पड़ा था कलेश तो होना तय था ही देखो कितने दिन टलता है


चाची आजकल कुछ खोई खोई सी लगने लगी थी, जैसे उनका खुद पर ध्यान हो ही ना, आज दिन में भी उनका चाचा के साथ कुछ रोल्ला रप्पा हुआ था , उस रात को वो मेरे पास ही बैठी हुई थी पर हम बात नहीं कर रहे थे मुझे सुसु आई तो मैं उठने लगा

वो- कहा जा रहे हो

मैं- जी सुसु करने

- रुको मैं डिब्बा लाती हूँ
मैं- नहीं मैं कर आऊंगा वैसे भी अब मैं बाथरूम में ही करता हूँ

पर उन्होंने जोर दिया और बोली की डिब्बे में ही कर लो

एक बार फिर उन्होंने मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ा हुआ था पर आज मुझे लगा की वो जैसे उसका जायजा ले रही हो एक दो बार उन्होंने उसे दबा कर भी देखा , और जब पेशाब कर रहा था तब भी उन्होंने अपना हाथ उस पर से नहीं हटाया बल्कि पेशाब करने के बाद भी थोड़ी देर तक उसको अपने हाथ में ही रखा पर जब उसमे थोडा सा उत्तेजना का सुरूर होने लगा तो उन्होंने हाथ हटा लिया और पास में बैठ गयी


कुछ देर बाद उन्होंने पुछा- तुम्हे बिमला अच्छी लगी या मंजू

मैं एक दम से इस सवाल से सकपका गया

वो- अब इतने भी शर्मीले नहीं हो तुम बताओ मुझे

मैं- बिमला का पता नहीं पर मंजू ठीक ठाक है

वो- अच्छा लगता है तुम्हे वो सब करना

मैं- क्या करना

वो- सेक्स करना

मैं- किसे अच्छा नहीं लगता , पर आप की पूछ रही है

वो- बस ऐसे ही तुम्हारे विचारो को जानने की कोशिश कर रही हूँ

मैं- तो सच ये है की ना मुझे बिमला अच्छी लगती है ना मंजू

वो- पर फिर भी तुम उनके साथ ............

मैं- अब आप खुल ही रही है तो बताता हूँ की मंजू के साथ वो बस ऐसे ही हो गया बस दूसरी बार तह की हम पकडे गए

चाची- इस से पहले भी तुम कर चुके हो

मैं- आपको क्या पंचायत है आज, मुझसे ऐसी बात न करो मुझे कुछ कुछ होता है

वो- क्या होता है

मैं- जानना जरुरी है आपके लिए

वो- दोस्त बोलते हो तो दोस्त को नहीं बताओगे

मैं- दोस्त के कोई लट्ठ भी नहीं मारता

वो- कितनी बार शर्मिंदा करोगे मुझे , और वैसे भी दोस्त के साथ तुम्हारी चाची भी हूँ मैं

मैं- तभी तो नहीं बता रहा

वो- दोस्त को भी नहीं बताओगे

मैं- पहले आप बताओ आजकल उदास क्यों रहती हो क्या बात है , क्यों झगडा होता है आजकल चाचा के साथ जबकि पहले तो कभी नहीं होता है

वो-अभी तुम छोटे हो समझ नहीं पाओगे

मैं- आप बताओगे तो समझ लूँगा वैसे भी कब तक अपने आप से भागोगे आप

वो- पिछले महीने भर से मुझे लगता है की तुम्हारे चाचा बदल से गए है

मैं- मतलब

वो- मतलब की वो मुझसे पहले की तरह बात नहीं करते, मेरे साथ वक़्त नहीं बिताते, मैं अपनी तरफ से कोशिस करती हूँ तो मुझे झिड़क देते है और कल तो मुझे उनकी जेब से कंडोम भी मिले जबकि मेरे साथ वो कभी ..............

तभी उनको अंदाजा हुआ की वो कुछ ज्यादा ही बोल गयी है तो उन्होंने बात को घुमानी चाही पर मैं समझ गया था

मैं- की कभी आपके साथ उन्होंने कंडोम यूज़ नहीं किया


चाची बुरी तरह से शर्मा गयी थी उनका चेहरा लाल हो गया था नजरे झुक गयी थी

मैं- तो आपको क्या लगता है की वो कही बेवफा तो नहीं हो गए

वो- नहीं नहीं मुझे उन पर पूरा विशवास है अपने आप से भी ज्यादा पर आजकल चूंकि वो बदले से लग रहे है तो मेरा कलेजा कांपता है

मैं- चिंता ना करो सब ठीक हो जायेगा

वो- और एक बात और की पहले वो कभी कभार मन मारके ही खेत में जाते थे पर आजकल तो लगभग हर रात ही खेत पर गुजरती है और थोड़े दिन पहले जब मैं बिमला के घर चावल देने गयी तो मैंने देखा तुम्हारे चाचा वहा बैठे हुए थे , और बिमला उनसे हस के बात कर रही थी

मैं- तो उसमे क्या गलत है कुछ पूछने गए होंगे

वो- हां, पर बिमला जिस तरीके से हस हस के बात कर रही थी मुझे ठीक नहीं लगा

मैं- तो आप शक कर रही हो

वो- शक नहीं है पर जब बिमला तुम्हारे साथ कर सकती है तो उनके साथ भी ............................... बस डर सा लगता है

मैं- आप इतनी सुन्दर हो फिर भी चाचा

चाची शर्मा गयी, बोली- अब मैं कहा सुन्दर हूँ कितनी मोटी हो गयी हूँ

मैं- तभी चाचा आजकल बाहर है

चाची- तेरे धरु क्या दो चार

मैं- चाची, मर्द का क्या पता कब बहक जाये , ध्यान रखो अपने पति का और अगर आपको बिमला के बारे में शक है तो पड़ताल करो या उस से बात करो

वो- देख कहते हुए अच्छा तो नहीं लगता पर जब वो तेरे साथ कर सकती है तो तेरे चाचा को ना फसा ले कही
मैं- मुझे क्यों बीच में लाती हो

वो- तुझे तो देखा था मैंने उसके साथ

मैं- देखो घुमा फिरा के मैं नहीं कहूँगा , इस रोज रोज के घुटने से तो अच्छा है की आप अपने शक को दूर कर लो आप भी फ्री और वो भी रोज रोज पति पत्नी में कलेश ठीक नहीं,

मैं तो पुरजोर कोशिश करता था की किसी तरह वो राज़ ढका रहे मुझ पर बिल फट गया था वो ठीक था , पर बात वही पर रहनी चाहिए थी हर हाल में उनके मूड को खुश करने के लिए मैंने बातो को दूसरी तरफ मोड़ दिया और बोला

मैं- उस दिन आग दो चार मिनट बाद भी आज जाती तो आपका क्या घिसना था

वो- जल्दी आ गयी तो क्या हुआ

मैं- सब होते होते रह गया

वो- शर्म करलो चाची हूँ

मैं- पहले आप पक्का कर लो की दोस्त की हसियत से बात कर रही हो या चाची की

वो चल ठीक है

मैं- तो मंजू से मिलने जाता था तू रात को

मैं- ना, बताया ना आपको की बस दूसरी बार ही कर रहे थे हम की आपने पकड़ लिया अब तो वो कभी देगी भी नहीं

चाची को बड़ा मजा आ रहा था मुझसे डबल मीनिंग बात करके

वो हस्ते हुए बोली- क्या नहीं देगी

मैं- कुछ नहीं

वो- बता ना

मैं- आपको पता तो है

वो- तू बता दे फिर भी

मैं- बोलूँगा तो फिर मारोगी

वो- नहीं मारूंगी

मैं- चूत

वो अपने मुह पर हाथ रखते हुए कमीने कुत्ते, तू नहीं सुधरेगा

मैं- आपने ही तो कहा था तो बोल दिया

चाची के गाल गुलाबी हो गए थे फिर उन्होंने कोई बात नहीं की बल्कि लाइट बंद की और सो गयी कमरे में अँधेरा हो गया था मुझे पता नहीं था की वो जाग रही है या सो गयी है पर उनकी बातो से मेरा लंड खड़ा हो गया था तो मैं उसे सहलाने लगा , मेरी आँखों के सामने चाची का चेहरा घूमने लगा तो मैं उन्हें सोच कर लंड हिलाने लगा और कच्छे को गीला करके सो गया


जरा देर से आँख खुली पता चला की पिताजी और मम्मी गए है मामा के नानी की तबियत कुछ नासाज थी तो घर पर मैं चाचा और चाची थे , थोडा नाश्ता पानी करके दवाई लेके मैं नीचे आ गया तो देखा की घर में कोई दिख रहा नहीं था स्कूटर भी खड़ा था चाचा का तो मतलब है तो इधर ही फिर मेरे मन में खुराफात आई की क्या पता चोदु चाचा बिमला को पेल रहा हो कही पर तो मैं बिमला के घर की तरफ पहूँच लिया कमजोरी तो थी पर ठरक भी थी तो पहूँच लिया मैं वहा पर

घर खुल्ला पड़ा था पर कोई दिखा नहीं अन्दर जाके भी देखा पर कोई नहीं था अब ये साली घर खुल्ला छोड़ के कहा मर गयी , वैसे अब मेरा बिमला पर इतना मन था नहीं मैं तो चाहता था की बस उसकी गांड तोड़ी जाये पर कोई मौका भी मिल रहा नहीं था मैंने बिमला का मेन गेट बंद किया और वापिस हुआ तो सोचा की मूत ही लेता हूँ तो मैं हमारे घर के पीछे की तरफ चला गया इधर हम लोग कटी हुई लकडिया गोबर के उपले जमा करके रखा करते थे , मैं बस मूतने वाला ही था की मैंने देखा बिमला ईंधन काट रही है और चोदु चाचा भी वही पर खड़ा है

दोनों में कुछ गहन बाते चल रही थी पर मैं थोडा सा दूर था तो समझ नही आ रहा था की क्या कह रहे है पर उनके हाव भाव से ऐसे लगता था की कुछ खिचड़ी पक रही है अलग सी तो मैं एक साइड में कबाड़ पड़ा था उधर छुप के देखने लगा तो मैंने देखा की चाचा ने अपनी जेब से कुछ निकाल कर बिमला को दिया तो वो बहुत खुश हो गयी , हम्म्म उसके बाद इधर उधर देख कर चचा ने बिमला की गांड को दबा दिया और उसके कान में कुछ कहके वहा से चल दिया मैं छुप गया ताकि मुझे वो देख ना सके पर तभी उन्होंने अपनी जेब से कुछ निकाल कर जमीं पर फेक दिया और घर में घुस गए

मैं गया और उस कागज को देखा , किसी सुनार की पर्ची थी मेरी आँखे चमक गयी तो चाचा ने एक सोने की चैन बनवाई थी बिमला रानी के लिए , मेरे कान खड़े हो गए भोसड़ी के चाचा चोदु मल अपनी लुगाई को तो मुह से दो बोल ना बोले जा रहे , और दुसरो की लुगाई के वास्ते टूम बनवा रहा है मेरा दिमाग सटक गया पर मैं कर भी तो क्या सकता था हमारे ही घर में बेवफाई की नयी इबारत लिखी जा रही थी मैं वही चबूतरे पर बैठ कर सोच विचार में डूबा था की चाची घास लेकर आई और बोली – इधर क्या कर रहा है

- बस वैसे ही जी न लग रहा था तो इधर बैठ गया

वो भी मेरे पास ही बैठ गयी और बोली- क्या बात है कुछ उदास लगती हो

मैं- बस आपके ही बारे में सोच रहा था

वो- क्या सोचा

- आज घर पे कोई नहीं है मैं बहार जा रहा हूँ आप और चाचा घर पे अकेले है तो करलो कोशिश
चाची अपनी आखो को गोल गोल घुमाते हुए आजकल तुम कुछ ज्यादा ही बोलने लगे हो

मैंने चाची का हाथ पकड़ा और बोला- आपको दोस्त समझता हूँ , आपको दुखी नहीं देख सकता मैं सच में कभी कभी डर सा लगता है मुझे

वो-किस बात का डर

मैं- की आपके चेहरे की ये मुस्कान कही गुम ना हो जाये

वो- क्या बात है आज कुछ टेंशन में लगते हो

मैं- नहीं ऐसा तो कुछ नहीं है

वो- तो फिर कैसा है

- आप थोडा टाइम चाचा के साथ बिताओ घर पर कोई नहीं है क्या पता ये थोडा टाइम आपको कुछ खुशिया दे सके

चाची ने बस हल्का सा मुस्कुराया मेरी तरफ और घर में चली गयी मैं कहा जाऊ अब तो ना चाहते हुए भी बिमला के घर की तरफ चला गया बिमला अपने आँगन में बैठी थी उसने मुझे देखा उअर फिर अपने काम में लग गयी

मैं- क्या बात है भाभी आजकल बात नहीं करती हो

वो- कुछ होता है तो करती हूँ, बाकि फ़ालतू का टाइम नहीं है मेरे पास

मैं- पहले तो बड़ा टाइम होता था जब देखो मेरा रास्ता रोक लिया करती थी

वो- तो क्या, देख हम देवर भाभी है हमे मर्यादा में रहना चाहिए अब गलती हो गयी तो बार बार नहीं करनी चाहिए

मैं- बात तो सही है पर जब नाता जोड़ा था तब इस बात का एहसास ना हुआ

वो- अब हो गया तो बस

मैं- ना भाभी मुझे नहीं पता आज तो देनी पड़ेगी

बिमला- क्यों देनी पड़ेगी , ज्यादा आग लगी है तो ब्याह करवाले

मैं- आप तो शादीशुदा होके भी चुदती हो

वो- कहा ना हो गयी गलती , अब मुझसे नहीं होगा

मैं- कोई और मिल गया क्या

वो थोडा सा सकपकाते हुए- कोई और ............. कोई और से क्या मतलब तेरा

मैं- तुम्हे भी पता है आजकल क्या खेल खेल रही हो तुम

पर बिमला ने कोई खास रिएक्शन दिया नहीं और बोली- तुम अभी इसी वक़्त यहाँ से ना निकले तो मैं शोर मचा दूंगी की तुमने मुझे पकड़ लिया और जबरदस्ती करने की कोशिश की

मैं- बहन की लौड़ी , दिन भूल गयी क्या तू, तू मुझे पकड़ वाएगी साली जी तो करता है की अभी तेरी गांड पे दू पर तू भी क्या याद करेगी, तुझ से दुश्मनी पूरी निभाऊंगा मैं उलटे दिन गिन ने शुरू कर दे आज से तू साली तेरा वो हाल होगा की तू ना इधर की रहेगी और ना उधर की

बिमला- पहले तो तू इधर से निकल , और जो कर सके तू कर ले मैं क्या तुझसे डरती हूँ वैसे भी तेरे पास कोई सबूत है नहीं

मैं- उछल मत ज्यादा, तेरा नया यार भी कुछ ना कर पायेगा , वैसे सोने की चैन कहा से लायी तू बड़ी चमक रही है तेरे पति ने तो अभी एक रुपया ना भेजा है

बिमला अब थोड़ी से सकपका गयी उसने थूक गटका और बोली- तुझे क्या लेना देना , कही से भी लाऊ
मैं- नए यार ने दी है ना

वो- तेरा मुह तोड़ दूंगी अभी ना गया तो

मैं- अब तो गहने भी आ गये, कल को पता नहीं क्या दे देगा कहा से बनवाई है

वो- तू निकल जा मैं बोल रही हूँ

मैं- अच्छा कितनी के आई इतना तो बता दे

वो- सात हज़ार की

मैं- भोसड़ी की, रसीद पे तो नो हज़ार लिखा है देख

मैंने उसको वो रसीद दिखाई तो बिमला के चेहरे का रंग उड़ गया

मैं- अब बता भी दे हर रात किसका लंड ले रही है जो हमारी याद ना आती

बिमला चुप रही
मैं- तो ठीक है ये सुनार जिसकी रसीद है वो बता देगा कौन तेरा यार है जो तुझे इतना चाहता है

मैं जान बुझ कर चाचा का नाम नहीं ले रहा था क्योंकि मैं उसके मुह से सुनना चाहता था बेशक बिमला घबरा गयी थी पर उसने मुझे कुछ न बताया और इतना कहा की सुनार से ही पता कर लिए
मैं- रांड, उलटे दिन गिन ले लग गए है तेरे ये दुश्मनी लम्बी जाएगी ध्यान रखियो
कहकर मैं उसके घर से आ गया बिमला को सारी टेंशन देके

पर ये अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का था क्योंकि बिमला तो हर बात चाचा को बता देने वाली ही थी और मेरे लिए और परेशानी होने वाली थी मैं घर के अन्दर गया तो सब कुछ नार्मल सा ही लग रहा था तो मैं नीचे ही बैठ गया घर में एक सन्नाटा सा था जो मुझे अच्छा नहीं लग रहा था , मैंने सोचा सो जाता हूँ थोड़ी देर के लिए पर तभी ऊपर से आवाजे आने लगी तो मैं ऊपर गया तो देखा की दोनों लोग फिर से झगड़ रहे है चाचा भन्नाए से लग रहे थे मैं कुछ कहता उस से पहले ही चाचा ने चाची को तीन चार थप्पड़ लगा दिए, मेरा खून खौल उठा चाची बिस्तर पर गिर गयी और रोने लगी


मैं तेजी से अन्दर गया और बीच बचाव करने लगा पर एक तो मेरी कमज़ोर हालात तो गुस्से गुस्से में भी उन्होंने मुझे भी पेलना शुरू कर दिया चाचा का मुक्का मेरी बगल वाली चोट पर पड़ा तो मेरा बैलेंस बिगड़ गया और मैं ड्रेसिंग से जा टकराया चाची मुझे बचाने लगी पर वो उनको और मारने लगे चाची के होठ से खून निकलने लगा मुझे भी गुस्सा चढ़ गया पर मेरी हालात उस टाइम ऐसी थी नहीं की मैं प्रतिकार कर सकू , तो और मार खाई मैं दर्द से कराह रहा था चाची रो रही थी चाचा हमे पेल कर चला गया
 

Incest

Supreme
432
859
64
मेरा घाव कच्चा था तो उसमे से खून सा निकलने लगा चाची ने मुझे अपनी गोद में लिटा लिया और मेरे जख्म को देखने लगी उनकी आँखों से आंसू टपक कर मेरे चेहरे पर गिरने लगे, बहुत डर तक हम दोनों रोते रहे दर्द हो रहा था वो अलग , पता नहीं वो बेहोशी थी या फिर मार का असर जब मुझे होश आया तो मैं चाची के कमरे में ही लेटा हुआ था चाची मेरे पास ही बैठी हुई थी सर से पल्लू गिरा हुआ था आँखे सूजी सी हुई थी गालो पर सूखे हुए आंसू के निशान उसके दर्द को बयाँ कर रहे थे



मैं- पानी ईईईईईईई

उन्होंने थोडा सा पानी दिया और बोली- तुझे ऊपर नहीं आना चाहिए था हमारा आपस का मामला है और अब तो ये रोज की ही बात है कौन सा आज पहली बार हाथ उठाया है मुझ पर

- तो क्यों सहती हो

वो- ब्याह के आई हूँ ख़राब टाइम है बेत ही जायेगा दुःख के बाद सुख भी आएगा कभी

- चाची आप भी ना

वो- लेटा रह

मैं- पर झगडा हुआ क्यों

वो – हम बात कर रहे थे की पता नहीं किस का फ़ोन आया तो बात करने के बाद इनको बहुत गुस्सा चढ़ गया था मैंने पुछा तो बस झगडा शुरू कर दिया और फिर मारने लगे

मैं- चाची पानी सरसे ऊपर चला गया गया है आपको ऐसे पिटता नहीं देखूंगा

वो- हम अपने मसले सुलझा लेंगे

मैं- अब नहीं सुलझ पाएंगे

वो- तुम आराम करो मैं तुम्हारे लिए कुछ लाती हूँ

वो चलने लगी तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और बोला- चाची, आप मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो आपके साथ ऐसा अत्याचार मैं नहीं सहूंगा आप अभी मम्मी को फ़ोन करके बुलालो

पर उन्होंने मना कर दिया

मैं-तो ठीक है अब जिगर मजबूत कर लेना आप

वो- साफ़ साफ़ कहना

मैं- बस रात तक रुको

मैं उठा हालाँकि दर्द बहुत हो रहा था पर फिर भी मैं उसको सहते हुए बिमला के घर गया और जाते ही उसको दो तीन थप्पड़ मारे और बोला- साली वो फ़ोन तूने ही किया था ना चाचा को

बिमला ये सुन कर सन्न रह गयी और जैसे बुत बन गयी हो मैंने अपनी बेल्ट निकाली और उसको मारने ही जा रहा था की मेरा हाथ रुक गया

मैं- जा साली , कभी तुझे चाहा था जा और कह दिए जो कहना चाहे चाचा से छुट है तेरी

बिमला चुपचाप रही मैं वहा से आ ही रहा था की मैंने देखा चाची बिमला के मेन गेट तक आ गयी तो मेरे पीछे पीछे

मैं- चलो यहाँ से

वो- तू यहाँ क्या करने आया था

मैं- चलो तो सही

वो- बता मुझे

मैं गुस्से से चलो यहाँ से अभी

तो वो सहम गयी और मेरे साथ घर आ गयी दोपहर से शाम हो गयी बस बैठे बैठे चाची का हाथ मैंने अपने हाथ में ले रखा था चाचा अभी तक वापिस आया नहीं था कुछ समझ आ रहा था नहीं की किया क्या जाए, मुझे इतना तो पता था की बिमला मोका मिलते ही चाचा से बात जरुर करेगी अब बस देखना ये था की चाचा करता क्या है , सांझ भी ढलने लगी थी अँधेरा होने लगा था हल्का हल्का सा चाची ने उठ कर हाथ मुह धोये और घर के कामो में लग गयी , मैं एक गहरी सोच में डूबा था की तभी चाचा घर में आया

चाचा- बात करनी है तुझसे

मैं- पर मुझे कोई बात नहीं करनी

उन्होंने जेब से एक गड्डी निकाली सौ सौ के नोटों की मुझे बोले- रख ले

मैं- ना चाहिए

वो- देख तुझे जो चाहिए मैं दूंगा रूपये, नया बैट घर में भी कोई तेरे साथ कोई रोक टोक नहीं करेगा पर तू अपना मुह बंद रखना

मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की चाचा ऐसे सीधे सीधे ही मुद्दे पर आ जायेगा

मैं—पर आपको ये सब शोभा नहीं देता

वो- तू अपना काम कर मुझे सब बता दिया है बिमला ने की कैसे तूने भी उसके साथ गुल्ल्छार्रे उडाये है बहुत भोला मत मेरे आगे

मैं- मुझे कोई बात नहीं करनी है

वो- अच्छा, अब बात नहीं करनी है थोडा मजा हमने कर लिया तो बुरा लग गया खुद करो वो सही है

मैं- मुझमे और आप में फरक है

वो- कुछ फरक नहीं देख अगर मुझ पर मुसीबत आई या बिमला को किसी भी घरवाले ने कुछ कहा तो तेरा भी हाल तू सोच लेना

मैं उठा और बोला- चाचा बात ऐसी है की अपनी धमकी को रख लो अपनी जेब में वो तो मेरी हालात ठीक नहीं है वर्ना आप तो क्या मार लेते , बाकि रही बात बिमला की तो उस से अपना पर्सनल पंगा है , उसके तो उलटे लग गए है उसका तो वो हाल होगा की बस .........

चाचा ने मेरा कालर पकड़ लिया और बोले- तेरी गांड में दम है ना उतना जोर लगा ले, बिमला मेरी और मैं उसका ऐसी कोई दिवार नहीं जो हमारे बीच आ सके ,

मैं- और चाची का क्या उसके दिल पे क्या गुजरेगी

चाचा- माँ चुदाये साली, उसमे अब बचा ही क्या है उसको रहना है तो रहे वर्ना निकल जाए मेरे घर से
मैं समझ गया था की इनके सर पर भूत सवार है पर मैं ना जाने किस बात से डरता था , भाड़ में जाए ये और वो अपने को क्या पर फिर दिल साला चाची को लेकर इमोशनल हो ही जाता था , पर उस शाम मैंने सोच ही लिया था की आज कुछ भी हो जाये मैं चाची को वो सब दिखा ही दूंगा फिर जो होगा देखा जायेगा चाची जाने और चाचा जाने बिमला की गांड तो मैं मार ही लूँगा .

उस रात हमारे घर में खाना नहीं बना था चाची बिलकुल खामोश बैठी थी मैं भी गुमसुम था चाचा का कुछ अता-पता नहीं था, मुझे मन ही मन ये आभास हो रहा था की ये ख़ामोशी आज ऐसा तूफ़ान लाने वाली है जिसमे इस घर की नींव हिल जाएगी अपनी मजबूरियों पर मुझे बहुत रोना आ रहा था जिंदगी में इतना बेबस खुद को कभी महसूस नहीं किया था मैंने

मैं चाची के पास गया और बोला-कब तक ऐसे ही बैठे रहोगे

वो- तुझे कुछ ऐसा पता है ना जो तू मुझे नहीं बताना चाह रहा

मैं नहीं , ऐसी हो कोई बात है नहीं

वो- मैं आप जो सोच रहे हो वो बात नहीं है दरअसल मेरा और बिमला का कुछ पंगा सा हो गया है तो मैं बस उसे बताने गया था की घरवालो को ना बताये

वो- तो फिर तुम्हारे चाचा क्या कर रहे थे उसके साथ

मैं- कब

वो- मैं आज खेत में गयी थी घास लेने तो बिमला और उनको मैंने देखा वहा पर

मैं- तो क्या हुआ , बिमला नहीं जा सकती क्या खेत पर

वो- जा सकती है पर मुझे ऐसा लगता है की कोई बात है जो तुम, बिमला और तुम्हारे चाचा जानते है पर मैं नहीं जानती और शायद उसी बात का असर मुझ पर पड़ रहा है

मैं- चाची आप फ़ालतू बातो को बहुत सोचने लगे हो

चाची मेरे पास आई और मेरे हाथ को अपने सर पर रखते हुए बोली- खा, कसम मेरी और बता की कोई खिचड़ी नहीं पक रही है

अब मैं तो फास गया , मैंने हाथ हटा लिया और अपना मुह परे को कर लिया

आज की रात क़यामत की रात होने वाली थी आज अपने हाथो से अपनी प्यारी चाची के घरेलु जीवन में आग जो लगाने वाला था मैं

चाची- क्या हुआ , क्यों नहीं पकड़ी कसम मतलब तुझे पता है

मैं- रात बहुत हो गयी है सो जाओ

वो- देख अगर तूने मुझे आज सब सच सच नहीं बताया की क्या हो रहा है तो तू मेरा मरा मुह देखेगा

मैंने उनके मुह पर हाथ रखा और बोला- आप ऐसा ना कहो

- तो फिर बताते क्यों नहीं मेरे सर की नस फटने लगी है अब

- चाची सब ख़तम हो जायेगा

—बता जरा

- पहले कसम खाओ की चाहे कुछ भी हो जाय आप मुझसे, हम सब से दूर नहीं जाएगी

वो- बता मुझे

मैं चाची बात ऐसी है की आपके पति

वो- क्या मेरे पति क्या

मैं- थारे पति जो है न वो एक नुम्बर के रंडी बाज़ है ,

ये सुनते ही चाची ने ४-5 थप्पड़ जड़ दिए मुझे और गुस्से से बोली- माना की हमारा रिश्ता सही नहीं चल्ररहा अहि पर वो इतना कच्चा भी नहीं है की कोई भी दो झूठी बातो से उसको तोड़ दे

मैं- अब यही सच है चाची बिमला और थारे पति का चक्कर चल रहा है

चाची- चुप हो जा हरामखोर तू मुझसे बदला लेने को ये सब बोल रहा है

मैं- एक काम करो थारे पति तो इस समय कुएँ पे होते है तो जाओ मिल आओ वाही पर उनसे और सच क्या है पूछ लेना

वो – हा जाउंगी , सब पुचुंगी


चाची घर से निकल गयी दनदनाते हुए मुझे तो पता ही था की कुए पर उसको बस लोडा मिला नहीं मैं अपने कमरे में ही बैठ गया , करीब घंटे भर बाद चाची बदहवास ही आई आँखों में भरे आंसू जैसे किसी भी पल रुलाई में बदल जायेंगे

मैं – क्या हुआ

वो रोने लगी मेरे गले लग कर मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सका फूट फूट कर वो रोटी रही मैंने कोई कोशिस नहीं की चुप करवाने की फिर वो बोली- क्या वो बिमला के घर है

मैं- वाही होंगे,

वो- तो उस रात मैंने तेरे चाचा को देखा था

मैं- हां

वो- तो तुमने झूठ क्यों बोला उस पापी का पाप अपने सर क्यों लिया

मैं आपकी खातिर

चाची मेरे सीने से लग गयी उस कमरे में भावनाओ का एक तेज ज्वार आया हुआ था क्या मैंने उनको बता कर सही किआ था बिलकुल नहीं पर ये पाप हो ही गया था मुझसे,

चाची- ना जाने मेरा दिल अभी भी मानने को तैयार नहीं है

मैं- देख पाओगी अपने हक़ को किसी दुसरे के बिस्तर में बिखरते हुए

वो- खामोश रही

मैं- आओ आपको जिंदगी की कडवी हकीकत से आज सामना ही करवा देता हूँ

मैं- पायल उतार दो अपनी

वो- किसलिए

मैं- उतारो तो सही

उन्होंने पायल उतारी मैं- चाची- आपको मेरी कसम है की आप बिलकुल भी वहा पर गुस्सा नहीं करोगे, और ना ही कोई बवाल बस एक दम चुप रहोगे पर पहले आप कुछ और देखो

मैंने अपनी अलमारी खोली और वो तमाम तस्वीरे चाची के सामने बिखेर दी जिनमे चाचा शांति मैडम के साथ उस रात गुल खिला रहा था , असल में तो मैं और चाची ही नंगे हो गए थे, हमारे घर का सच आज हमारे सामने था ये एक ऐसी सच्चाई थी जिस से हम मुह मोड़ नहीं सकते थे, चाची उन तस्वीरों को देख कर सुन्न हो गयी थी पर अभी तो एक बिजली और गिरनी थी उन पर


मैंने उनका हाथ पकड़ा और उनको बिमला की छत की तरफ ले आया मैंने उनको इशारा किया और हम चुपचाप से नीचे उतर गए, मैंने उनकी पायल उतरवाई ही इसलिए थी की कही कोई आवाज ना हो , धीरे से हम दोनों सीढियों से नीचे उतरे , साली किस्मत की बात देखो की आज वो दोनों बैठक में लगे हुए थे तेज आवाज करता हुआ कूलर चल रहा था बिमला नंगी होकर चाचा की गोदी में बैठी हुई अपने बोबो को भिच्वा रही थी, जंगले की दिवार से सटे चाची और मैं हम दोनों उस नज़ारे को देखने लगे पर चाची को गुस्सा चढ़ा हुआ था वो अन्दर जाने ही वाली थी की मैंने उनके मुह पर हाथ रखा और कहा चुप चाप देखो अभी कोई पंगा मत करो


चाची बिलकुल मेरे आगे खड़ी हुई थी तो उनकी गांड का अहसास पाकर मेरा लंड उस टेन्स सिचुएशन में भी गरम होकर उनकी गांड पर सलामी देने लगा , अन्दर कमरे में लाइव चुदाई चल रही थी इधर हम दोनों एक दुसरे से स्टे हुए उसे देख रहे थे , मैं अपना हाथ उसकी कमर पर रखे हुए था सब कुछ मिला जुला हो रहा था अन्दर चुदाई जोरो पर चालू थी मैंने धीरे से अपना हाथ चाची की चूची पर रख दिया पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा नीचे मेरा लंड उनकी गांड में घुसे जा रहा था चाची बस बिमला और चाचा को ही घूरे जा रही थी
मेन बात तो कही पर खो गयी थी बस कुछ और ही चल रहा था मस्ती में मेरे से उनकी चूची कुछ जोर से दब गयी तो उन्होंने घूर कर मुझे देखा और फिर वो सीढिया चढ़ने लगी मैं भी उनके पीछे आया , हमारे घर आ गए थे मैंने उनको थोडा सा पानी दिया उन्होंने एक सांस में ही आधी बोतल खाली कर दी फिर बोली- मैं ये घर छोड़ कर जा रही हूँ मुझे नहीं रहना इस नीच इंसान के साथ

मैं- चाची मैं आपके बिना नहीं रह पाउँगा

वो- चुप रह तू , तू मुझे दोस्त बोलता है और तुझे सब पता होने के बाद भी मुझे धोखे में रखा तू भी उनके बराबर ही गुनेहगार है

मैं – आप कुछ भी कह लो पर जाना नहीं

वो- मैं अब उस नीच इंसान के साथ नहीं रह सकती

मैं- मत रहो आप अलग कमरा ले लेना पर जाना नहीं

वो- अब ये मुमकिन नहीं

चाची ने अपना सारा दर्द जैसे छुपा लिया था अपने अन्दर , बल्कि सच तो ये था की उनके दर्द के कतरे कतरे को मैं अपने अन्दर मह्सोश करने लगा था , वो रात बड़ी बोझिल थी चाची बस चुपचाप कुर्सी पर बैठी थी एक तो मेरी साली ख़राब तबियत ऊपर से आँखों में नींद चढ़ने लगी थी , मैं बहुत कोशिश कर रहा था की नींद न आये पर रत के कुछ आखिरी पहरों में मैं सो ही गया

सुबह मैं उठा करीब 11 बजे आँखे मलते हुए मैंने कमरे का नजारा देखा तो सब कुछ अस्त व्यस्त पड़ा था मैं बाहर आया तो देखा की पूरा घर खुल्ला पड़ा था था कोई भी था नहीं , चाचा का स्कूटर भी नहीं था चाची भी दिख नहीं रही थी , अब कहा गए , मेरी नींद का अल्सयापन टूटा तो पूरा किस्सा याद आया पड़ोसियों से पता चला की चाची तो सुबह ही एक सूटकेस लेकर कही चली गयी है , मेरा दिमाग सटक गया बुरी तरह से मैंने तुरंत अपने मामा के घर फ़ोन मिलाया और मम्मी को पूरी बात बता दी


शाम होते होते मम्मी और पिताजी घर आ गए अब मेरे पास कोई बहाना भी नहीं था मैंने पूरी बात उनको बता दी पिताजी को अपने भाई पर बहुत भरोसा था उनको इस बात से बहुत आघात पंहूँचा , रात को चाचा आये पिताजी ने उनसे बात की तो वो झूठ बोलने लगे पर शांति मैडम के साथ उनकी तस्वीरे सबूत थी तो उनके लिए बेहतर था की अपनी गलती मान ले , पिताजी ने बिमला के सास ससुर को फ़ोन करके चंडीगढ़ से तुरंत गाँव आने को कहा , इधर बिमला को भी मम्मी ने बुलाया और खूब धमकाया वो रोते हुए अपने रिश्ते की दुहाई देने लगी

बात बहुत ही गंभीर थी अगर घर से बाहर जाये तो गाँव बस्ती में परिवार की इज्जत तो जानी ही थी लोग बाते करते वो अलग मम्मी ने चाची के गाँव फोन किया तो पता चला की वो उधर ही है


उस दिन भी घर चूल्हा नहीं जला ऐसा लग रहा था की जैसे किसी की मौत हो गयी हो घर में बड़ी ही अजीब सी सिचुएशन हो गयी थी किसी की समझ में कुछ आ रहा था नहीं अगले दिन तक बिमला के सास ससुर भी आ गए थे, घर में हुआ बवाल बिमला की सास ने खूब खरी खोटी सुनाई उसको , चाचा को भी लताड़ा गया बिमला के ससुर ने निर्णय लिया की वो जल्दी ही रिटायरमेंट ले लेंगे और गाँव में ही रहेंगे,अब जो हो गया था उसकी भरपाई तो हो नहीं सकती थी पर आगे भविष्य का इंतजाम तो कर ही सकते थे, अगले कुछ दिन बस ऐसे ही गुजरे पिताजी को इस बात से बहुत धक्का लगा था बस वो ऑफिस से आते ही अपने कमरे में चले जाते खाना भी उधर ही खाते

चाची को मानाने की बहुत कोशिश की गयी माँ- पिताजी खुद उनके घर गए पर उन्होंने वापिस आने से साफ़ मना कर दिया , अब ये घर घर रहा नहीं था इन सब चीजों का मुझ पर बहुत गहरे असर हुआ था हर पल चाची के जाने का मैं खुद को दोषी मानता था बिमला पर हर समय घरवालो की नजरे गडी रहती थी , घर में जैसे मुर्दानगी सी छा गयी थी पर अन्दर ही अन्दर मैं टूट रहा था कुछ भी अच्छा नहीं लगता था रोज सुबह मैं घर से निकल जाता था शहर की और शाम होने पर जब कोई बहाना बचता नहीं तो घर का रुख करता था मैं


नीनू को मैंने अपने दिल की हर बात बता दी थी पर वो भी क्या कर सकती थी अब वो मेरे घर के मामलो में थोड़ी ना कुछ कर सकती थी , बस इस दिलवाले को अपने दिल के इस बोझ को ढोना था , आंसू भी अपने थे अंक भी अपनी थी करीब एक महिना गुजर गया था उन बातो को पर चाची के बिना घर , घर लगता नहीं था उस दिन मैंने मम्मी से पूछा लिया की

मैं- मम्मी, चाची कब आएँगी

वो- मुझे नही पता

मैं- आप कोशिश क्यों नहीं करती उनको वापस लाने की

वो- तुझे क्या लगता है हमने कोशिश की नहीं मैं रोज बात करती हूँ पर कुछ चीज़े हमे समय पर छोड़ देनी चाहिए

मैं- पर घर में उनकी कमी है क्या आप महसूस नहीं करते हो

वो- मेरे बच्चे, उसको कभी अपनी देवरानी नहीं समझा, सदा अपनी बेटी समझा है पर मुझे ऐसे लगता है की कुछ समय देना चाहिए

मैं- आप कहो तो मैं चला जाऊ उनको लेने क्या पता वो मान जाए

मम्मी- तू भी कोशिश करके देख ले, कल चले जाना वैसे भी घर का माहोल ठीक नहीं है तेरे ऊपर भी इन बातो का असर पड़ रहा है , क्या पता सुनीता तेरी बात मान ले

मैं- ठीक है मैं कल सुबह ही चला जाऊंगा

अपने कमर में आके मैंने थोडा बहुत सोच विचार किया मुझे बस एक सवाल खाए जा रहा था की चाची ने चाचा को कुछ क्यों नही कहा , चुप चाप घर से क्यों चली गयी जबकि उनकी इनसब में कोई गलती थी नहीं तो फिर क्यों गयी वो जबकि गुनेहगार तो अब भी खुल्ला ही घूम रहा था उसको क्या फरक पड़ा बिमला नहीं तो कोई और मिल जाएगी उसको मेरा दिल बहुत ज्यादा दुखी होने लगा तो मैं घर से बाहर आ गया ,


मुझे एक सहारे की जरुरत भी एक दोस्त की जरुरत थी जिस से मैं अपने मन की बात कह सकू पर आज देखो तक़दीर कोई मेरे पास था ही नहीं, पिस्ता को मैं चाह कर भी ये बात बता नहीं सकता था घर की बदनामी होने का डर तो कुछ समझ आये नहीं ,खेत में बाजरे की बुवाई करनी थी बस कुछ दिनों में तो मैंने सोचा की खेत को जोत ही आता हूँ वर्ना फिर कोई न कोई अपना गुस्सा काम के बहाने स उतारे गा तो मैं ट्रेक्टर लेके खेत में पहूँच गया वहा जाके देखा की बिमला घास काट रही है मैंने वैसे भी उसको अनदेखा करना सीख लिया था


मैंने सोचा थोडा पानी पि लू फिर जुताई का काम शुरू करूँगा पानी पि रहा था की बिमला मेरे पास आ गयी और बोली

“मिल गया तुझे चैन, मेरे जीवन में आग लगा के ”

मैं- और तेरी वजह से चाची का जो हाल हुआ है उसका क्या

वो- तो चलने देता न जो चल रहा था

मैं- शर्म ना आ रही अभी भी जा जाके चाचा का लोडा चूस ले अभी भी

वो- चूस लुंगी मुझे कौन रोकेगा पर मेरी बददुआ लगेगी तुझे

मैं- चल अपना काम कर तेरी जैसी रंडियों से बात करता नहीं मैं

वो- साले, मुझे रंडी बनाया किसने , किसने बहकाया मुझे याद है या याद करवाऊ मैं

बिमला की बात धाड़ से मेरे सीने में आके लगी, सच ही तो कहा था उसने उसे रंडी बनाया किसने , वो मैं ही तो था जिसने उसे बहकाया था , वो मैं ही तो था जिसने उसको ये रास्ता दिखाया था अगर मैं अपनी हवस की आग में उसको ना झोंकता तो आज इतनी जिन्दगिया यु रिस्तो की आंच में ना झुलसती सब से बड़ा गुनेहगार तो मैं ही था

बिमला- मैं तो अपनी ग्रहस्थी जैसे तैसे करके फिर से जमा लुंगी , और हां चौड़े में ऐलान करती हूँ की चाचा का साथ न छोडूंगी चाहे पूरा कुनबा फांसी लगा ले, रही बात तेरी तो तू देखेगा की जब एक ज़ख़्मी औरत दुश्मनी पे आती है तो वो किस हद तक जा सकती है तेरी मेरी दुश्मनी की आग में पूरा कुनबा झुलसेगा
मैं- साली, मेरा दिमाग ख़राब मत कर वर्ना इधर ही पटक कर चोद दूंगा, तू निभाएगी दुश्मनी तू, तेरी गांड को रोज देख लिया कर जिसे मैंने मारी थी तुझे मेरी याद आती रहेगी बहन की लौड़ी, कान खोल के सुन तू चाचा से चुद या चाचा के चाचा से मुझे कोई लेना देना नहीं , माँ चुदा तेरी पर इतना जरुर है की तेरा रास्ता हर कदम पे मैं काटूँगा तू और तेरे जितने भी यार हो मेरा बाल उखाड़ के दिखा देना


मेरा दिमाग हद से ज्यादा खराब हो रहा था तो फिर मैं वापिस घर ही आ गया पर बिमला की कही बात मेरे दिल को किसी छुरी की तरह चीर रही थी उसका कहना सही था मैंने ही तो उसको अपने पति से बेवफाई करवाई थी वो मैं ही तो था जिसे उसकी चूत मारनी थी मुहे था सा डर सा लगने लगा की बिमला की बद्दुआ कही सच में लग गयी तो, ........................

वो रात बस उधेड़बुन में ही कट गयी मैं समझ पाया नहीं की बिमला क्या गुल खिलाने वाली थी पर जिस विश्वास से उसने कहा था की उसका और चाचा का नाता अब नहीं टूटेगा उस से मुझे अंदाजा हो गया था की इनपे चाहे लाख पहरे बिठा लो ये कोई ना कोई मौका ढूंढ ही लेंगे पर अपने को उस से ज्यादा फिकर चाची को घर लाने की थी मैंने अपना बैग पैक किया और चाची के गाँव की तरफ निकल लिया दिल में एक आस लिए की उनको अपने साथ लेकर ही आऊंगा , उबड़ खाबड़ रास्तो पर चलती बस अपनी रफ़्तार मुझे मंजिल की तरफ ले जा रही थी


शाम को करीब 6 बजे मैं चाची के घर पंहूँचा, शाम का समय था तो वो दरवाजे पर ही बैठी थी गुमसुम सी मुझे देखते ही वो थोड़ी आश्चर्यचकित हो गयी , उनके सूखे पड़ गए होंठो पर एक मुस्कान सी फ़ैल गयी
वो- अरे तुम, अचानक यहाँ पर , कैसे

मैं- बस आपसे मिलने आ गया

वो मुस्कुराई और मुझे अन्दर ले गयी, घर पे उनके आलावा बस नाना- नानी ही थे मैंने उनको अभिवादन किया चाची के भाई भाभी नोकरी के सिलसिले में बाहर रहते थे , थोड़ी बहुत बाते होने लगी थोड़ी देर में चाची चाय- नाश्ता ले आई , उसके बाद नानी मुझे घर के बारे में पूछने लगी अब मैं क्या कहता बस हां हूँ ही करता रहा मुझे पता था की नानी भी अपनी बेटी की वजह से दुखी थी पर मैं तैयार था उनकी कडवी बाते सुन ने के लिए थोड़ी देर बाद नाना घर से बाहर चले गए तो चाची मुझे अपने साथ ऊपर कमरे में ले आई

वो- तू क्यों आया यहाँ पर

मैं- आपको लेने

वो- अब मैं उस घर में नहीं जाउंगी

मैं- चाचा के साथ मत रहना पर मेरे घर तो चलो

वो- चाचा भी तो तेरा ही है

मैं- आप भी तो मेरी हो

वो- अब मैं ना चल पाऊँगी

मैं- मेरे लिए भी ना चलोगी

वो- जो अपना के ले गया था उसने तो धोखा दे दिया

मैं- अपने दोस्त का घर समझ कर चलो

चाची थोड़ी सी इमोशनल हो गयी थी वो बेड पर बैठ गयी, उनकी आँखों से आंसू बहने लगे मैं और भी परशान होने लगा मैं उनके आंसू पौंछने लगा तो वो मेरे सीने से लग के रोने लगी काफ़ी देर तक वो रोते ही रही मैं बस हौले हौले से उनकी पीठ सहलाता रहा , उनके दर्द से जो जुड़ा था मैं मेरे मन में मिली जुली फीलिंग्स आ रही थी फिर चाची मुझसे अलग होते हुए बोली-“थक गया होगा तू, थोड़ी देर आराम कर ले तब तक मैं खाना बना लेती हूँ ”
 

Incest

Supreme
432
859
64
मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया पूरा दिन सफ़र किया था तो थकान से बुरा हाल था नहाके चैन मिला मुझे रात घिर आई थी खाना वाना खाके मैं और चाची छत पर बैठे थे बाते कर रहे थे

मैं- चाची , काफ़ी दिन हो गए कल मेरे साथ चलो घर

वो- तू समझता क्यों नहीं , अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा

मैं- सब ठीक हो जायगा, आज बुरा समय है तो अच्छा भी आएगा

वो- मैं वहा कैसे रहूंगी, रोज मुझे तेरे चाचा की बेवफाई मिलेगी

मैं- तो आप भी बेवफा हो जाना , आप भी अपने तरीके से उनसे बदला लेना वहा रह कर उनको जलाओ उनको दिखाओ की आप उनके बिना भी जी सकते हो आप उनके लिए दुःख की चादर क्यों ओढ़ते हो जब उनको आपकी फ़िक्र नहीं है तो आप भी मत करो , पर घर में और भी लोग है जिनको आपकी जरुरत है , एक चाचा से ही तो आपका नाता नहीं है मम्मी है , मैं हूँ मुझे कुछ नहीं पता मुझे मेरा खुशहाल घर वापिस चाहिए

वो- मुझे सोचने दे

मैं- सोचना घर चल के ही आपके बिना सूना सूना घर मुझे अच्छा नहीं लगता है मुझे कुछ नहीं सुनना बस आपको चलना ही होगा मेरे साथ , जो भी मसले है वो घर चलके ही सुलझाएंगे

रात बहुत हो गयी थी पर हमारी बाते बदस्तूर जारी थी , चाची उठी और सीढियों के दरवाजे की कुण्डी लगा आई और बोली- मेरे पास ही सो जाओ तुम

हम दोनों एक फोल्डिंग पर लेट गए और बाते करने लगे चाची ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोली- तुझे क्या लगता है मुझमे ऐसी क्या कमी है जो तेरे चाचा पराई लुगाई की तरफ चले गए

मैं- अब मैं क्या जानू,

वो- क्या बिमला में मुझसे ज्यादा मादकता है

- ये आप कैसी बाते करने लगे हो

वो- तू मेरा दोस्त है ना तो तू ही बता

मैं- चाची हर मर्द को दुसरे की लुगाई अपने वाली से ज्यादा सुन्दर और माल दिखती है तो बस वो ही बात है
वो- तूने भी किया था ना बिमला के साथ

मैं- क्या किया था

वो- भोला मत बन, हमारे बीच सब कुछ खुल चूका है शर्म तो कभी की खो गयी है तो बता ही दे

मैं- हा, किया था

वो- कैसा लगा

मैं- अच्छा लगता है सबको

चाची ने अपनी उंगलिया मेरी उंगलिया में फसा ली और थोडा सा मेरी तरफ सरक गयी कुछ देर रुक के बोली- तुझे कौन ज्यादा अच्छा लगता है बिमला या मैं

मैं- ये कैसी बात हुई, आप अच्छी लगती हो

चाची- मैं ऐसे नहीं पूछ रही , उस नजर से बता

मैं- किस नजर से

वो- उस भूख की नजर से , जिस से हर मर्द एक औरत को देख ता है

मैं- चाची आपका दिमाग तो ठीक है ना मैं आपको उस नजर से कैसे देख सकता हूँ

चाची- जब तेरा चाचा अपनी बहूँ के साथ सो सकता है तो तू भी उनका ही खून है तू मेरे साथ नहीं सो सकता क्या

चाची ने मेरा हाथ अपनी छाती पर रख दिया और बोली- देख दबा कर इन्हें बिमला से तो बड़े है

मैंने अपना हाथ हटा लिया और बोला- शर्मिंदा कर रही हो चाची

चाची मेरे हाथ से अपने बोबे को मसलवाने लगी , मेरे बदन में भी सुरसुराहट होने लगी पर मैं उलझ गया था वो ये कैसा व्यवहार कर रही थी,

चाची- देख मेरे होंठो को क्या ये कम रसीले है बिमला से

मैं- आपका दिमाग तो ठीक है ना, क्या कर रहे हो ये

वो अब अपनी साडी को जांघो तक उठाते हुए – देख मेरे यौवन को और बता क्या कमी है मुज्मे

मैं- कुछ कमी नहीं है सब बस टाइम टाइम की बात है

वो- मेरे चेहरे के करीब आते हुए, तो फिर क्यों तेरा चाचा उसके पल्लू में जाके बैठ गया , देखा था ना तूने कैसे बिमला उसकी गोदी में उछल रही थी

मैं चुप रहा आखिर मेरे पास था भी तो नहीं कुछ कहने को बस मैं उनके दर्द को अपने दिल के किसी कोने में महसूस कर सकता था , कुछ बाते ऐसी थी की मैं चाहकर भी उनको सुलझा सकता नहीं था रात पता नहीं कितनी बीत गयी थी पर उस फोल्डिंग पर हम दोनों हालात से जूझ रहे थे, अब तक तो मैं बस बचपने में बिना फिकर के जी रहा था पर मेरी इस गलती ने पुरे घर को हिला कर रख दिया था

मैं- चाची, मुझे माफ़ करना ये जो हुआ मेरी वजह से हुआ

मैंने अपना सर चाची की गोद में रख दिया वो प्यार से मेरे बालो को सहलाने लगे, बड़े दिनों बाद सुकून सा मिला ऐसा लगा की जैसे बरसो धुप में झुलसने के बाद चीत पर एक तेज बारिश की बौछार आ पड़ी हो , ऐसा मुझे बस रति की बाहों में ही फील हुआ था , मेरे अकेलेपन को जैसे मंजिल मिल गयी हो आहिस्ता आहिस्ता मेरी आँखे बंद होने लगी नींद ने अपनी बाहों में थाम लिया मुझे

सुबह मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की छत पर धुप खिली हुई है मेरा पूरा बदन पसीने से चिपचिप कर रहा है जम्हाई लेते हुए मैं उठा बिस्तर समेटा और कमरे में आया तो देखा की चाची अपने गीले बालो को झटक रही थी शायद शैम्पू किया था कमरे में एक अलग सी खुसबू फैली हुई थी, उन्होंने मुझे देखा एक गहरी मुस्कान के साथ और बोली-“उठ गए तुम,”

मैं-जी, थोडा लेट हो गया

वो- कोई बात नहीं वैसे भी तुम जल्दी कहा उठते हो , फ्रेश हो जाओ मैं बस तैयार होक नास्ता लगाती हूँ तुम्हारे लिए

चाची ने एक हलकी सी पारदर्शी मैक्सी पहनी हुई थी , उनका गुलाबी रूप बड़ा कयामत लग रहा था उसमे, मुझे पता नहीं चला की कब मेरा लंड तन गया , चाची के चेहरे पर पानी की बूंदे ऐसे लग रही थी की जैसे सुबह सुबह किसी ताजे खिलते गुलाब पर ओस की बूंदे बिखरी पड़ी हो ,

वो- ऐसे घूर कर क्या देख रहे हो

मैं- आप बहुत सुन्दर हो

वो- हां, तभी अरमान मचल रहे है उन्होंने मेरी पेंट की तरफ इशारा करते हुए कहा

कसम से , शर्म से गड गया मैं तो

मैं थोडा सा उनकी और बाधा और उनकी जुल्फों की खुसबू को सूंघते हुए बोला- आज पता चला की खूबसूरती असल में होती है क्या

वो- चाची पे लाइन मार रहे हो

मैं उनके थोडा और पास जाते हुए- नहीं बस अपनी दोस्त की थोड़ी सी तारीफ़ कर रहां था

मैं चाची के पीछे हो गया और उनके दोनों कंधो पर हाथ रखते हुए बोला- चाची, इस दोस्त से थोड़ी गुस्ताखी कर लू क्या

चाची अपनी गांड को मेरे अगले हिस्से पर घिसते हुए- क्या गुस्ताखी करोगी

मैंने अपने दोनों हाथ उनके पेट पर रख दिए और बोला- गुस्ताखी क्या बता के होती है , बस हो जाया करती है

चाची की सुराहीदार गर्दन पर पड़ी पानी की बूंदों को चाटने से मैं खुद को रोक नहीं पाया मेरी लिजलिजी जीभ का अहसास पाते ही चाची सिसक उठी और मेरे से दूर हो गयी

वो- “क्यार कर रहे हो”

मै- अपनी दोस्त से थोडा प्यार

वो- थोडा थोडा करके बहुत कुछ करने लगे हो आजकल , चलो अब जाओ मुझे तैयार होने दो फिर साथ ही नाश्ता करते है

कभी कभी तो मन करता था की चाची को चोद ही दू, पर ये कैसा रिश्ता पनप रहा था उनके साथ आजकल मेरा मेरा रब्ब मुझे किस रह पर चलने को कह रहा था मैं खुद नहीं जानता था बस मेरा दिल था और बेकाबू धड़कने थी जो एक इशारा कर रही थी मुझे, ये और बात थी की इशारे कभी मैं समझ पता था नहीं


जल्दी से नहा धोकर मैं तैयार होक नीचे पहूँच गया जहा गर्म गर्म परांठो के साथ चाची मेरा इंतज़ार कर रही थी नानी कही दिख रही थी नहीं तो हम लोगो ने अपना नाश्ता किया पर मेरा ध्यान परांठो से ज्यादा चाची के बार बार लाल हो रहे चेहरे पर था , नाश्ते के बाद वो रसोई में चली गयी मैं बैठक में बैठ गया की तभी नानी भी आ गयी

मैं- नानी, आप कहो ना चाची को की मेरे साथ वापिस घर जाये

वो- बेटा, जवाई जी आ जाते तो बात और थी , सुनीता का भाई आजकल में आ जायेगा फिर देखो क्या होता है, हम तो चैन से रह रहे थे की औलाद खुश है अपनी अपनी ग्राहस्ती में , पर न जाने किसकी नजर लग गयी मेरी बच्ची को , तू आया तो थोड़ी से खिली है वर्ना महिना होने को आया हम तो तरस गए इसके चेहरे पर ख़ुशी देख ने को

मैं- नानी जी, घर पर भी सबका ऐसा ही हाल है , चाची के बिना कुछ भी अच्छा लगता नहीं है मैं हाथ जोड़ता हूँ आप इनको समझाओ

नानी कुछ नहीं बोली

चाची का भाई आने वाला था मतलब की बात और बिगडनी थी बड़ा मुश्किल टाइम था पर जोर भी तो नहीं चलता था अपना क्या किया जाये

नानी को आज घुटनों के डॉक्टर को दिखाना था तो वो नाना के साथ शहर चली गयी घर पर हम लोग ही थे

मै- चाची चलो ना

वो- अब मैं कैसे समझाऊ तुझे

मैं- क्या वो घर एक मिनट में पराया हो गया

वो- देख, तुझसे झूठ बोलना नहीं चाहती मैं, मैंने तलाक लेने का सोचा है

मैं- ले लो, पर रहो तो घर पर ही आप मेरे कमरे में रह लेना आपको चाचा ऊँगली भी कर दे तो मैं गारंटी देता हूँ

चाची- मेरे बुद्धू बेटे, तू समझता क्यों नहीं

मैंने चाची को अपने पास बिठा लिया और बोला- अगर आप मेरे साथ नहीं चली तो आपकी कसम उस घर में पैर नहीं रखूँगा

वो- काश, इतना प्यार तेरा चाचा भी करता मुझे

- चाची, प्लीज् चलो, हमे आपकी जरुरत है

वो- ये मुमकिन नहीं

मैं- तो क्या बस उस घर से आपका कोई साथ नहीं था , मानता हूँ की आपके साथ गलत हुआ है पर इसमें हम सब का क्या दोष, आपके ना रहने से चाचा को तो छुट मिल जाएगी किसी के साथ भी रंग रेलिया मना सकता है किसी की जिंदगी पर क्या फरक पड़ेगा इधर आप अपने आप में घुट घुट कर जीओगे , एक आदमी की गलती की सजा पुरे कुनबे को देना क्या उचीत है ,

चाची खामोश रही काफ़ी देर फिर बोली- तुझे क्या लगता है की ये सब मेरे लिया आसन है

मैं- मैं आपके दिल का हाल समझता हूँ पर हम भी तो आपके अपने ही है

वो- मेरे पांवो में बेडिया मत डालो

मैं- और जो आपने मेरे मन में उमंग जगा दी है

वो- क्या कहा तूने

मैं- कुछ नहीं

वो- देख मैं उस घर में नहीं जा सकती इसको छोड़ के तू कुछ भी कहेगा मैं करुँगी

मैं- मैं कौन होता हूँ कुछ कहने वाला,

वो- नाराज हो गया क्या

मैं- नाराज होने वाली बात तो करती हो , दोस्त बोलती हो बस मानती नहीं हो

वो- ऐसा क्यों कहते हो भला

मैं- सही तो कहता हूँ , अपना समझती थो इतनी मनुहार नहीं करवाती

- अच्छा चलो कोई और बात करो

मैं- मुझे बात ही नहीं करनी

वो- चल ये बता, मंजू से फिर मिला के नहीं

मैं- आपने मिलने लायक छोड़ा ही कहा

वो- क्या हुआ

मैं- मंजू अब बात भी नहीं करती

वो- क्या नहीं करती

मैं- वो उस दिन आपने हमे पकड़ जो लिया था

वो- अच्छा, जी तो क्या आप लोगो को ऐसे काम छुप के नहीं करना चाहिए थे

मैं- अब मुझे क्या पता था की आप हो घर पर

वो- वैसे तुम कब बड़े हो गए हमे पता ही नहीं चला पुरे छुपे रुस्तम हो बिमला, मंजू दोनों पे हाथ साफ कर दिया

मैं- हाथ साफ़ नहीं क्या उन दोनों की भी मर्ज़ी थी

वो- तो मैं क्या करती ऐसे तुम दोनों को नंगे होकर करते देख कर किसी भी घर वाले को गुस्सा तो आना ही था

- क्या करते देख कर

वो- बेशरम, तुझे पता तो है

मैं- नहीं, आप बताओ

वो- जाने भी दे

मैं- बताओ ना

वो- चुदाई

जैसे ही चाची ने चुदाई कहा उनके गोरे गाल शर्म से बुरी तरह लाल हो गए आँखे नीचे हो गयी चेहरे पर हया का रंग देखते ही बनता था

मैं- आप दो चार मिनट लेट आती तो बस काम हो ही जाना था

वो- अच्छा जी, चलो छोड़ो इन बातो को अब तुम आराम करो मुझे कुछ काम करने है मिलती हूँ थोड़ी देर बाद में टाइम पास करने को कुछ था नहीं तो मैं सो गया
 

Incest

Supreme
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दूर दूर तक बस रेत ही दिख रही थी शाम ढल रही थी उस कुएँ में पानी तो था पर मैं उधर तक पहूँच पा रहा था नहीं तो उन कीकर के दो चार पेड़ जो की पता नहीं कैसे अपने वजूद को बचाए हुए थे उस रेगिस्तान में मैं उधर ही बैठ गया और सोचने लगा की तभी किसी की जानी पहचानी आवाज मेरे कानो में टकराई “प्यास लगी है क्या “

नजर घुमा कर जो मैंने देखा तो बंजारों के वेश में रति खड़ी थी हाथो में पानी का मटका लिए क्या खूब लग रही थी वो

मैं- तुम यहाँ कैसे

वो- जहा तुम हो वहा मैं भी तो हूँ

मैं मुस्कुरा पड़ा

रति- पानी पि लो प्यास लगी है तुम्हे

मैं- तुम्हे देख लिया करार आ गया हर प्यास बुझ गयी

वो- और जो मेरे मन के करार को लूट के ले गए उसका क्या

मैं और रति उस ठंडी रेत पर बैठ गए और बाते करने लगे

मैं- रति , तुम हो मैं हूँ और ये मेरे लबो पर जो बात है

वो- जो बात लबो तक आ जाये उसे कह देना ही बेहतर होता है

मैं- हां, पर जो बात तुमने पहले ही पढ़ ली है , जो बात तुम जानती हो , जो बात हमे पता है तुम्हे पता है उस बात को दोहराना भी नहीं चाहिए ना

रति मेरी गोद में सर रख कर लेट गयी मैं उसकी उलझी जुल्फे सुलझाने लगा उसकी चोली में कैद उभारो का कातिलाना कटाव मेरे मन को भटकाने लगा जैसे सागर की लहरे किनारों से टकरा कर लौट जाती है वैसी ही जुस्तुजू में बंधा हुआ था मैं , दिल की वो अनकही बात मेरे होंठो पर आकर रुक सी जाया करती थी उसको बताना चाहता था की कितना प्यार उस से मैं करता था , उसे बताना चाहता था की दिल दीवानगी की किस हद तक उसको चाहता था , कितना टूटकर उसकी बाहों में बिखरना चाहता था मैं

रति- किसी बारिश से भरे उमड़ते हुए बादल की तरह मेरे आगोश में अठखेलिया करते हूँवे- कह भी दो ना उस बात को जिसे सुनने के लिए ना जाने कब से मैं तरस रही हूँ

मैं- दिल की बात को दिल को ही समझने दो ना

वो- इज़हार क्यों नहीं करते हो

मैं-इनकार भी तो नहीं किया है ना

वो- तो इकरार भी कहा किया है

मैं- तेरी मेरी ये छोटी सी कहानी , ये मोसम ये रुत मस्तानी, अब क्या इकरार करे क्या इज़हार करे मेरे दिल का हाल तुम जानो तुम्हारी धडकनों के हर एक साज़ को मैं अपने दिल का गीत बना लू, बस तुम हो बस मैं हूँ और ये झूमती हवा है जो मेरे प्यार की सदा को तुम्हारी सांसो में भरके महका रही है

ये डूबते सूरज की जो हलकी सी तपिश है ना , ये जो केसरिया घटा लिपटी है उस तपते सूरज के चारो और ये मेरे प्यार का रंग है जिसमे तुम किसी उजली किरण की तरह रंग गयी हो , प्यार तो बस नाम है उस रूमानी लम्हे का जिसमे हम तुम एक दूजे के हो गए , पर तुम और मैं , हमारा रिश्ता प्यार ही नहीं एक अहसास है , हमारा रिश्ता वो महक है जो साँसों में बस गयी है, तेरा मेरा साथ कुछ ऐसा है की मेरी मुस्कान तुम्हारे लबो पर सजी है तेरे हर दर्द को मैं अपने होंठो पर गीत की तरह सजा लूँगा, मैं कोई मजनू नहीं, मैं कोई फरहाद नहीं ना मैं कोई आवारा आशिक मैं तो बस तुम हो , तुम तो बस मैं हूँ इतनी सी है तेरी मेरी कहानी , इतना है तेरा मेरा फ़साना

जब जब तुम्हारा आँचल मुझे छु जाता है लगता है की जैसे बारिश से पहले बादलो की गडगडाहट से प्यासी धरती का दिल धड़क उठा हो, रति, जिस पल तुम्हे पहली बार देखा था जिस पल तेरी जुल्फों को संवारा था उसी पल से बस तेरा हो गया था मैं

रति उठ कर मेरे गले लग गयी उसकी धड़कने मेरी धडकनों से टकराई, वो मेरी बाहों में थी मैं उसके आगोश में निगाहें निगाहों से कुछ कह रही थी मेरे हाथ उसकी पीठ पर थे उसकी चोली की डोरियो में उलझे, मेरे जन्मो से प्यासे लब अपनी प्यास बुझाने को रति के रसीले होठो की तरफ बढे ही थे , बस एक पल की ही दूरी थी की बस दूरी ही रह गयी थी, मुझे ऐसे लगा की किसी ने मुझे झिंझोड़ दिया हो आँख खुली तो पाया की कुछ नहीं था सिवाय मेरी उखड़ी हुई साँसों के और मेरे सूखे गले के प्यास पड़ी तेज लगी थी बदन पसीने से नहाया हुआ था


मैंने अपने होशो हवास संभाले तो मेरी नजरो के सामने चाची को पाया ,जो कुछ भी मैं जी रहा था वो बस एक छलावा था जिसे हकीकत ने आइना दिखा दिया था अपनी उखड़ी हुई सासों को सँभालते हुए मैंने पानी माँगा कुछ घूँट इस बेस्वाद तरल की में न जाने क्या बात है , प्यास कितनी भी हो ये बुझा ही देता है
चाची- क्या हुआ क्या बडबडा रहे थे कोई सपना देखा क्या

मैं- ना कुछ नहीं

मैं चुपचाप तौलिया उठा कर बाहर जाने लगा तो उन्होंने मुझे रोक लिया और बोली- कौन है वो जिसने मेरे बेटे की नींद इस तरह उड़ा रखी है , तुम्हे छुपाने की कुछ जरुरत नहीं है तुम्हारी इन बढ़ी हुई धडकनों ने बता दिया है की मेरा बेटा अब मेरा नहीं रहा

मैं- चाची, बस एक सपना था आँख खुलते ही टूट गया इसमें क्या छुपाना क्या बताना
मैं बाथरूम में घुस गया पर रति का जो मुझ पर असर था उस सपने की एक एक बात जैसे मेरे सामने ऐसे ही घूम रही थी मन विचलित सा होने लगा , हम जैसे खुद से जुदा से होने लगे थे हर पल लोगो में बेगाने होने लगे थे , ये प्यार तो नहीं था क्योंकि वो जो हो नहीं सकता मेरा उसके बारे में सोचना ही नहीं, बस एक ख्वाब की तरह उसको वक़्त की रेत में खो जाना ही सही था , पर रति से खुद जो जुदा कर भी तो नहीं प् रहा था ये जानते हुए भी की वो बस एक मोड़ था जो गुजर गया रास्ता लम्बा है बहुत मंजिल का कोई पता नहीं इस मुसाफिर को बस तलाश थी किसी सराय की

अपने आवारा दिल को समझा कर मैं नीचे आया चाची मेरा ही इंतज़ार कर रही थी उन्होंने चाय के लिए पुछा तो मैंने मना कर दिया तो वो बोली- चलो तुम्हे आज कुछ ऐसा दिखा कर लाती हूँ जो तुमने पहले नहीं देखा फिर हम लोग घर से निकल पड़े ..

घर से निकल कर हम दोनों साथ साथ ही चलने लगे

मैं- चाची , हम कहा जा रहे है

वो- चल तो सही वहा पहूँच के अच्छा लगेगा तुझे

फिर कुछ नहीं पुछा मैंने दरअसल मेरी निघाहे चाची से हट नहीं रही थी, हलके गुलाबी रंग के कुर्ती- सल्वार में बहुत ही गजब माल लग रही थी वो जो कोई भी उन्हें देखता एक बार तो अरमान मचल ही जाते उसके मन में , उस ड्रेस का कपडा भी ऐसा नहीं था की उनके जोबन का भार उठा सके, उनकी अन्दर पहनी हुई सफ़ेद ब्रा बिलकुल साफ़ दिख रही थी मुझे , मेरा लंड गुस्ताख होने लगा पर अपना जोर अब हर चीज़ पर तो चलता था नहीं

चाची अपने जोबन के बोझ तले दबी थी मैं अपनी हसरतो के बोझ तले, असल में हम दोनों बस सुलग रहे थे अपने आप में करीब बीस मिनट तक खेतो के बीच चलने के बाद हम एक ऐसी जगह पर पहूँचे जहा की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी , वो नानाजी का आमो का बाग़ था दूर दूर तक अब जहा मेरी नजर पड़े बस आम ही आम कुछ आदमी औरते वहा काम कर रहे थे वो लोग चाची को जानते थे तो दुआ सलाम हुए चाची ने उनसे बस इतना ही कहा की हम लोग जरा बाग़ घूमके आते है और मुझे लेकर आगे को बढ़ गयी


थोड़ी दूर जाने के बाद वातावरण में बस ख़ामोशी थी , जो हौले हौले से हवा चल रही थी वो पेड़ो को जैसे चूम कर जा रही थी कुछ सूखे पत्ते जमीं पर पड़े थे हमारे कदमो के नीचे आने से वो च्र्र्र चर्र कर रहे थे हम लोग थोडा सा आगे और बढे तो मैं बोला- चाची, आपने पहले कभी बताया नहीं की आपका बाग़ है आम का
वो- मैंने सोचा की तुम्हे देख कर अच्छा लगेगा तो सीधा ले ही आई

मैं उनकी मोटी छातियो को निहारते हुए- आम तो खिलाया नहीं

वो हस्ते हुए- आम भी खिला दूंगी पहले बाग़ तो देख लो अच्छे से चलो तुम्हे कुछ दिखाती हूँ जब मैं छोटी थी तो उधर बहुत जाया करती थी

मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा था की ये बाग़ है कितना बड़ा मैं चुपचाप उनके पीछे पीछे चलता गया उनकी लचकती गांड को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए ,पेड़ औ घने होते जा रह थे अँधेरा बढ़ रहा था करीब दस मिनट बाद जो मैंने देखा वो नजारा पहले कभी नहीं देखा था ये एक बहुत ही सुन्दर सा बगीचा था काफ़ी तरह के फूल खिले थे ऐसा लग रहा था की जैसे हजारो रंगों की चादर फैली हो मेरे आस पास आँखे मंत्रमुग्ध होने लगी मेरी मुझे विश्वाश नहीं था की बाग़ के इस तरफ इतना सुन्दर बगीचा होगा

चाची- इसे कभी मैंने अपने हाथो से बनाया था पिताजी आज भी मेरी याद समझ कर इसकी देखभाल करते है

मैं मुस्कुरा दिया


मेरे कानो में ऐसी आवाज आ रही थी की जैसे पानी बह रहा हो पूछने पर पता चला की बगीचे से थोड़ी दूर ही नदी है तो मेरी उत्सुकता बढ़ी उधर जाने की पर आगे कंटीले तारो से बाड़ की हुई थी तो इधर से जाना मुमकिन ना था ,

मैं- चाची नदी में नहाने का जी कर रहा है

वो- अभी तो मुमकिन नहीं हो पायेगा ऊपर से सांझ ढल गयी है तो अँधेरा हो जायगा सेफ नहीं है , कल मैं तुम्हारे साथ नदी पे चलूंगी

मैं खुश हो गया

काफ़ी देर तक उधर बैठने के बाद हम लोग वापिस हो लिए तो चाची बोली- आम खायेगा

- हां, उधर वो ताजे आम रखे थे उधर से घर ले चलेंगे फिर खायेंगे आराम से

वो- अरे पगले, देख इन पेड़ो पर कितने रसीले आम झूल रहे है , और वैसे भी जो मजा पेड़ से आम तोड़कर खाने में है वो और कहा

- बात तो सही है पर मुझे पेड़ पर चढ़ना आता नहीं है

चाची-बुद्धू, चढ़ने की क्या जरुरत है आस पास कोई पत्थर देख उस से तोड़ ले

मैंने कोशिस की पर कोई बड़ा पत्थर नहीं मिला

तो चाची बोली- मायूस क्यों होते हो , देखो वो सामने वाला पेड़ थोडा सा छोटा है औरो से आम भी नीचे लगे है उधर चलते है

मैंने उछल कर तोड़ने की कोशिश की पर हाथ आ नहीं रहे थे आम

चाची हसने लगी और बोली- क्या हुआ

मैं- हाथ नहीं आ रहे है और आपको हंसी आ रही है

वो- अच्छा, बाबा, नहीं हस्ती, एक काम कर मुझे उठा कर ऊपर कर मैं तोडके देती हूँ

मैं- इतनी भारी को मुझसे ना उठाया जायेगा

वो- अच्छा जी, मंजू को तो झट से गोद में उठा लेता है चल बहाने मत बना आम खाना है तो उठा मुझे
आज उनकी आँखों में , उनकी बातो में एक अलग सी बेतकल्लुफी लग रही थी जैसे रति की उस सादगी ने मेरा दिल धड़का दिया था वैसे ही कुछ कुछ फील हो रहा था मुझे, मैं चाची को अपनी बाहों में उठाने लगा तो मेरे हाथ उनकी मक्खन सी चिकनी जांघो पर कुछ ज्यादा ही जोर से कस गए तो वो सीत्कार उठी और बोली- आराम से उठा ना क्या करता है

मैं फिर से उठाने लगा उनको जांघो स थाम के ऊपर किया तो जल्दी ही उनके दोनों चूतड़ मेरे हाथो में आ गए मैंने उन्हें वहा से थाम लिया वो ऊपर को उचकने लगी आम तोड़ने को , बेखुदी सा अहसास होने लगा था मुझे , बड़े प्यार से मैंने उनकी गोल मटोल गांड को मसल दिया तो वो कसमसा गयी चाची आम तोड़ने लगी अब जिस तरह से मैंने उन्हें ऊपर किया हुआ था तो उनका पेट मेरे मुह पर सटा हुआ था उनके बदन से आती मनमोहक खुसबू मुझ पर अपना जादू चलाने लगी , मैं बेकाबू सा होने लगा मेरा लंड कपड़ो की कैद में मचलने लगा

वो- हाथ पहूँच पा नहीं रहा है थोडा सा और उठा जरा

मैंने जितना हो सके उतना ऊपर किया और मेरे इस प्रयास के साथ अब सिचुएशन ये बनी की उनकी चूत वाला हिस्सा बिलकुल मेरे होंठो पर सटा हुआ था वहा से निकलती गर्मी मुझे साफ़ साफ़ अपनी नाक और चेहरे पर महसूस हो रही थी , एक बड़ी ही अच्छी खुशबू आ रही थी , बिना कुछ सोचे समझे मैं अपनी नाक को उस फूली हुई जगह पर रगड़ने लगा चाची मेरी इस हरकत से सकते में आ गयी तो वो मचलते हुए बोली-“क्या करते हो आराम से पकड़ो मुझे कही मैं गिर ना जाऊ ”

मैं- पकड़ तो रखा है आप आम तोड़ो तो सही

वो- तोड़ तो रही हूँ , देखना कही गिरा मत देना

मैं- खुद गिर जाऊंगा पर आपको नहीं गिरने दूंगा

मेरे हाथ उनकी जांघो के पिछले हिस्से पर किसी सांप की तरह रेंग रहे थी जबकि मेरी नाक उनकी चूत में घुसने को मरी जा रही थी उफ़ ये दिल्लगी कैसा इम्तिहान ले रही थी , मुझसे रहा नहीं गया मैंने अपने दांतों से हलके से उनकी चूत वाले फूले हिस्से पर काट लिया , चाची के बदन में आई हलकी सी कम्पन को मैंने किसी भूचाल की तरह महसूस किया उनका बैलेंस बिगड़ा और वो गिरने को हुई पर मैंने अपनी बाहों में उनको थाम लिया , आँखे आँखों से टकराई दो पल में ही आँखे ना जाने आँखों स क्या कह गयी उस एक पल में जैसे दिल ने उनके दिल को कोई संदेसा भेज दिया हो

बड़ी नजाकत से वो अपनी गांड को मेरे खड़े लंड से रगड़ते हुए उतरी उनकी साँसे जैसे कुछ ज्यादा तेज चल पड़ी थी हवा कही थम सी गयी थी पसीना कान के पीछे से बह चला था वो मेरी बाहों से उतरी और आगे तो चलने लगी की तभी मैंने उनके हाथ को थाम लिया और उनको खीच लिया अपने आगोश में साख से टूटी किसी डाली की तरह वो आ लगी मेरे सीने से

वो धीरे से फुसफुसाते हुए- क्या कर रहे हो

मैं उनके लबो पर ऊँगली रखते हुए- shhhhhhhhhhhhhhhhhhhh

मैंने अपना हाथ उनकी कमर पर कसा और अपने चेहरे को उनके सुर्ख हो गए चेहरे पर झुका दिया , हम दोनों के होठ इतने पास थे की एक दुसरे की गरम साँसे आपस में उलझने लगी थी उनके होठ हलके हलके से कांपने लगे थे गुलाबी होंठो पर सजा हुआ काला तिल देख कर मेरा मन ललचाने लगा चाची की तेज हो गयी धड़कने उस वीराने में जैसे गूँज रही थी , मेरे होठ बस उनके सुर्ख लबो को छु ही पाए थे की किसी के आने का आभास हुआ तो हम अलग हो गए , उन दो चार पलो में बहुत कुछ हो गया था चाची के माथे पर पसीना छलक आया था उन्होंने अपनी चुन्नी से पौंछा और बड़ी गौर से मेरी तरफ देखने लगी , तभी एक नीलगाय कुछ दूरी से निकल गयी तो ये थी जिसके आने की आवाज सुनाई दी थी

मैं- चाची

वो- देर हो रही है चलते है

फिर वो कुछ नहीं बोली ना मैं कुछ बोला , बाग़ की इस साइड पर आकर हमे हाथ पाँव धोये पानी वगैरा पिया चाची यहाँ पर नार्मल व्यवहार कर रही थी एक झोले में उन्होंने कुछ आम रख लिए और फिर हम घर के लिए निकल पड़े ,घर पर नाना नानी भी आ चुके थे तो नानी का हाल पूछा मैंने और बाते करने लगा चाची अन्दर चली गयी अगले कुछ घंटे ऐसे ही गुजर गए खाना पीना खाकर करीब रात को दस बजे मैं और चाची ने छत पर डेरा जमा दिया

मैं- चाची, कल चलोगे मेरे साथ

वो- इतनी जल्दी क्या है

मैं- मुझे जल्दी है

- मुझे लगता है इस बारे में हम बात कर चुके है

- क्या बात कर चुके है आपका अपना घर है कब तक सचाई से भागोगे

वो- सच से नहीं आने वाले कल से भागती हूँ

मैं- क्या है आने वाला कल मुझे भी बताओ

वो- मुझे डर लगता है

मैं- आप चाचा की बिलकुल फिकर मत करो वो आपको हाथ भी नहीं लगा पायेगा

वो- उस से नहीं , खुद से डर लगता है

मैं- मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है

वो- तुम्हे यहाँ नहीं आना चाहिए था

मैं- तो आप भी मुझे अपना नहीं समझती ,

वो- अपना मानती हूँ तभी तो कह रही हूँ

मैं- तो फिर चलो ना घर ,

वो- मुझे सच में बहुत अजीब लगता है देखो मेरा अभी अभी इक रिश्ता टूटा है , उम्मीद टूटी है और तुम भी हो जिसे देख कर ऐसा लगता है की पता नहीं कब से जुडी हुई हूँ तुमसे

मैं- अपनी दोस्ती है ही ऐसी

वो- तुम भी जानते हो वो दोस्ती नहीं है , वो प्यास है नजरो की प्यास है रिश्तो की ये भूख है जिस्मो की और मुझमे इतनी हिम्मत नहीं है की मैं अपने इस रिश्ते को कलंकित करू उनकी तरह , मेरे कोई औलाद नहीं हुई जब से उस घर में ब्याहता बनके गयी , सगे बेटे से भी ज्यादा तुमको चाहा मैंने, पता नहीं चला की कब तुम इतने बड़े हो गए और पिछले कुछ दिनों में तो मैं तुम्हारे इतना करीब आ गयी हूँ जितना तुम्हारे चाचा से कभी ना आ सकी

बेटे , पर मुझे लगता है की कही मैं बहक ना जाऊ , पल पल मैं तुम्हे ................

वो खामोश हो गयी
 

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मैं- चाची, आप सही कहती हो जब से आप घर आई आपने ही मेरी देख रेख की है कब मुझे भूख लगी कब प्यास लगी हर चीज़ का आपने ध्यान रखा और मेरा रब गवाह है की मैंने भी आपको कभी माँ से नीचे का दर्जा नहीं दिया पर उसके साथ साथ आप मेरी दोस्त है और अपने दोस्त का इस मुश्किल घडी में मैं हाथ नहीं छोड़ सकता

वो- पर बेटे, इस रिश्ते का हाल भी बिमला और तेरे चाचा जैसा ही है , दोस्ती ठीक है पर अपनी माँ को कैसे प्रेमिका बना पाओगे तुम , क्या ये पाप नहीं होगा

मैं- आपने भी मुझे औरो की तरह समझा नहीं, क्या बस जिस्म की प्यास ही सब कुछ होती है नहीं , कुछ रिश्ते ऐसे होते है की उनको कोई नाम नहीं दे सकते पर उनकी अहमियत नाम वाले रिश्तो से बहुत ज्यादा होती है , आपका और मेरा रिश्ता भी ऐसा ही है जैसे चंदा और चकोर का , जैसे प्यासी धरती और बरसते बादल का, अब आप ही बताओ कैसे छोड़ूगा आप को , आप चाहे इसे मेरी प्यास समझो, मेरी हवस जानो या जो आप को लगे वो समझो पर सच ये है की जहा आप हो वहा मैं हूँ, अगर आप नहीं आई तो आपकी कसम खाके कहता हूँ की उस घर में मैं कभी पैर नहीं रखूँगा

चाची- ये क्या कह दिया तूने , घर नहीं जायेगा तो कहा जायेगा

मैं- जहा आप रहोगे वही रह लूँगा, दो रोटी ही तो चाहिए आप दे देना

चाची- तू सच में बड़ा हो गया है रे

मैं- तो अपना लो न मुझे और उस घर को भी

वो- मुझे सोचने दे कुछ

चाची और मैं इमोशनल हो गए थे उनकी आँखों में पानी बस घटा बनकर बरसने ही लगा था

वो- पर उस घर में मेरा जी लगेगा नहीं

मैं- भरोसा रखो इतनी खुशिया डाल दूंगा आपके आँचल में की समेट नहीं पाओगे

वो- तू समझता क्यों नहीं मेरी मुस्किल

मैं- आप मेरे प्रेम को क्यों नहीं समझती

वो- प्रेम और मुझसे

मैं- क्यों नहीं हो सकता आप से

वो- इतनी देर से क्या समझा रही थी तुझे मैं

मैं- मुझे कुछ नहीं पता बस इतना पता है की बस थक गया हूँ मैं परेशान हूँ बहुत अपना लो मुझे अपनी बाहों में सहारा दे दो ना

चाची की आँखे हलकी सी डबडबा आई कुछ आंसू झर आये वो मेरे सीने से लग गयी मैंने उनको बाहो में भर लिया उन्होंने अपने चेहरे को ऊपर किया और मेरी आँखों में देखने लगी , मैंने बिना कुछ कहे हौले से अपने सूखे लबो को उनके गीले लबो पर रख दिया उनके होठ मेरे होठो से जुड़ते चले गए ये उनका और मेरा पहला चुम्बन था पर ये सब कुछ अलग सा था , इसमें कोई वासना नहीं थी, कोई हवास नहीं थी, बस कुछ था तो एक भरोसा , कुछ था तो एक आस

धीमे धीमे मैंने उनके होंठो को अपने मुह में भर लिया था इस किस में जो त्रीवता थी ऐसी मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी अपनी तेज हो गयी साँसों को संभालते हुए चाची मुझसे अलग हुई, और अपनी छाती पर हाथ रख कर सांस लेने लगी मैं वाही खड़ा रहा , वो चांदनी रात गवाह थी उस रिश्ते की जो अभी अभी जुड़ा था जिसका कोई नाम नहीं था पर वजूद बहुत बड़ा था


कुछ देर तक हम लोग ऐसे ही एक दुसरे को निहार ते रहे शर्म हया से उनके चेहरे पर एक नूर सा आ गया था मैंने फिर से उनको अपनी बाहों में भर लिया और चूमने लगा चाची मेरी बाहों में मचलने लगी ऐसे मीठे होठ मैंने कभी भी नहीं चखे थे पहले जैसे किसी ने चासनी ही मेरे मुह में घोल दी हो उनका थूक मैं गटकने लगा पर तभी उन्होंने मुझे अपने से अलग कर दिया

मैं कुछ नहीं बोला बिस्तर पर जाकर लेट गया थोड़ी देर बाद वो भी मेरे पास लेट गयी मैं उनके मुलायम पेट पर हाथ फिराने लगा अपनी ऊँगली उनकी नाभि में डालने लगा तो वो बोली- शैतानी मत करो चुप चाप सो जाओ आराम से

मैं कुछ कहने ही वाला था की तभी लाइट चली गयी तो नाना- नानी भी ऊपर आ गए फिर कुछ बात कर नहीं पाया चाची से मैं , अब नाना नानी भी थे तो बस झक मारके सोना ही था रात थी कट ही गयी किसी तरह से सुबह हुई काफ़ी दिनों बाद मैंने चाची को फिर से पहले की तरह मुस्कुराते हुए देखा मैं बात करना चाहता था उनसे पर नाना नानी के रहते मौका कुछ मिल रहा नहीं था अब किया क्या जाये ऐसे ही उधेड़बुन में दोपहर हो गयी तो मैंने चाची से कहा की मैं नदी में नहाना चाहता हूँ तो व् बोली- चलते है फिर और हम वापिस बाग़ की तरफ हो लिए


वक़्त बड़ी तेजी से करवट बदलता हुआ मुझे उस राह पर ले चल पड़ा था जिसकी कभी मैंने कल्पना भी नहीं की थी ऐसे लगता था की जैसे पता नहीं कितने जन्मो से मैं चाची से जुडा हुआ हूँ , अगर थोड़ी देर भी उनको ना देखता तो लगता की जैसे कुछ छुट रहा हो, बाते करते हुए खट्टी मिट्ठी हम लोग बगीचे में पहूँच गए पर कल की अपेक्षा आज यहाँ पर बस एक दो औरते ही काम कर रही थी , पूछने पर पता चला की आज आम की खेप आसपास की शेहरो में भेजी गयी है थोडा वक़्त उधर गुजार कर मैं और चाची एक लम्बा चक्कर लगा कर नदी की तरफ हो लिए

दिल में नदी में नहाने को लेकर अजीब सा कोतुहल सा छाया हुआ था नहर में तो काफ़ी बार नहाया था पर हमारे गाँव में नदी थी नहीं तो मौका मिला नहीं था कभी ऐसा , जल्दी ही हम नदी के उस साइड पे पहूँच गए इधर एक तरफ जंगल शुरू हो रहा था तो दूसरी तरफ पहाड़ थे, फिर थोडा सा साइड में बाग़ का पिछला हिस्सा था ,इस तरफ पेड़ ज्यादा होने की वजह से धुप पूरी आ नहीं रही थी तो ठण्ड भी थी और उजाला भी कम कम ही था , पर नजारा बड़ा ही मस्त था मेरा तो मन ही मोह लिया उस नज़ारे ने शांत पानी में सूरज की छाया क्या खूब फब रही थी


चाची एक पेड़ की छाया में बैठ गयी और बोली- जाओ नहा लो पर थोडा ध्यान रखना नदी की गहराई कुछ जगह पर उम्मीद से ज्यादा भी हो सकती है

मैं- क्या इस नदी में मगरमच्छ या और जानवर भी है

वो- ना कभी सुना तो नहीं , पर मछलिया तो होंगी

मैं-चलो कोई नहीं

मैंने जल्दी से अपने कपडे उतारे और छपाक से पानी में कूद गया , ठन्डे पानी में जो गोता खाया मजा ही आ गया काफ़ी एर तक मैं नहाता ही रहा फिर मेरी नजर चाची पर गयी तो मैंने इशारे से उनको भी पानी के अन्दर आने को बोला पर उन्होंने हाथ हिला कर मना कर दिया , तो मैं पानी से निकला सफ़ेद रंग के कच्छे में मेरा कला लंड बड़ा खतरनाक दिख रहा था और पता नहीं क्यों थोडा सा फूल भी गया था मैं चाची के पास गया और बोला

मैं- चाची, आप भी आजाओ ना मजा आएगा

वो- ना रे, मेरा मन नहीं है और वैसे भी इधर खुले में मैं कैसे नहा सकती हूँ

मैं- खुला कहा है चाची, वैसे भी अभी इधर सुनसान में कौन आएगा भरी दोपहर में

वो- तू समझा कर मैं ऐसे नहीं नहा सकती

- ठीक है अगर आप नहीं आ रही तो मैं भी नहीं जा रहा पानी में मैं मुह फुला कर बैठ गया

चाची- आजकल बहुत जिद्दी हो गया है तु, लगता है तेरे कान खीचने पड़ेंगे

मैं- कान खीच लेना पर चलो न मेरे साथ नदी में

चाची- अच्छा, बाबा ठीक है मैं भी आती हूँ पर मैं तो दुसरे कपडे लाई ही नहीं तो नहाके क्या पहनूंगी
मैं-यही कपडे पहन लेना

वो- पर ये तो गीले हो जायेंगे

मैं- तो बिना कपड़ो के नहाने आ जाओ इधर कौन है वैसे भी मेरे सिवा

वो- बड़ा बदमाश हो गया है तू आजकल शर्म नहीं आयेगी तुझे अपनी चाची को बिना कपड़ो के देखते हुए
मैं- चाची को देखूंगा तो शर्म आयेगी पर दोस्त को तो देख सकता हूँ ना

वो- तेरी दोस्ती एक दिन मेरी जान लेके छोड़ेगी

उनके पास आते हुए- आपकी जान में ही तो मेरी जान है बस अब बाते न करो जल्दी से चलो पानी में
वो- तू चल मैं थोड़ी देर में आती हूँ

चाची ने पास में रखा तौलिया उठाया और उसी पेड़ के पीछे चली गयी

मैं वापिस पानी में आ गया , थोड़ी देर बाद जब चाची शर्माती हुई सी पेड़ के पीछे से निकली तो क्या बताऊ पानी के अंदर मेरा लंड कब झटके खाने लगा पता ही नहीं चला मेरी नजरे बस उन पर ही जम गयी चाची ने अपने बदन पर वो छोटा सा तौलिया ही लपेटा हुआ था जो बस नाममात्र को ही उनके यौवन को छुपा पा रहा था चाची ने उसे अपने उभारो से लेकर कुलहो तक किसी तरह से लपेट रखा था , बाकि तो सब कुछ खुल्ला पड़ा था उनकी जांघे पूरी की पूरी धुप में चमक रही थी , चाची शर्मो हया से लाल हुई धीरे धीरे अपने कदमो को मेरी और बढ़ा रही थी उनकी हिलती चूचिया जैसे मुझे निमंत्रण दे रही थी की आज इसी नदी किनारे जी भर कर मसल डालू उनको


खरबूजे सी बड़ी बड़ी चूचिया जो उस तौलिये की कैद को तोड़ने को बेसब्र हो रही थी, मेरा लंड पानी में आग लगाने को मचलने लगा बुरी तरह से चाची आकर किनारे पर खड़ी हो गयी और मेरी और देखने लगी , मैंने उन्हें अन्दर आने का इशारा किया उन्होंने अपना पाँव आगे को बढ़ाया पानी की मस्तानी लहरों ने जैसे ही उनके पांवो को चूमा चाची उस ठन्डे चुम्बन से हलकी सी कांप गयी , अपनी पायल को खनकाती हुई वो पानी में उतरने लगी वो मेरी और आने लगी

जल्दी ही हम दोनों एक दुसरे के सामने कंधे तक पानी में डूबे हुए खड़े थे
नदी का पानी बहुत शांत था ऊपर से पर आग लगी हुई थी ये बस मैं ही जानता था , मेरा दिल बड़ी जोरो से धडकने लगा था मैं अपनी अंजुली में पानी लिया और चाची के चेहरे पर डालने लगा वो बोली- “क्या करते हो ”

मैं- चाची अब आपके साथ ही अठखेलिया करूँगा ना

वो भी मेरी तरफ पानी बिखेरने लगी कुछ देर तक ऐसे ही चलता रहा फिर मैं साबुन ले आया और पास की चट्टान पर बैठ के साबुन लगाने लगा मैंने गौर किया की चाची की निगाहें बार बार मेरे लंड पर ही जा रही थी चूँकि मैंने सफ़ेद कच्छा पहना हुआ था तो गीला होने से अन्दर का सामन पूरी तरह से दिख रहा था रगड़ रगड कर साबुन लगाने के बाद मैंने कहा चाची आप भी साबुन लगा लो तो वो भी चट्टान पर आ गयी मैं पानी में डुबकी लगाने लगा

चाची ने जो तौलिया लपेटा हुआ था वो पूरी तरह से भीगा हुआ उनसे लिपटा पड़ा था चाची के चुचक साफ़ साफ़ नुमाया हो रहे थे, मैंने पानी में ही अपने लंड को कच्छे से बाहर निकाल लिया और धीरे धीरे से अपना हाथ उस पर फिराने लगा , चाची चट्टान पर अपनी एडिया घिसने लगी तो उनके पैर थोड़े से खुल गए और उनकी हलके हलके बालो से भरी गहरे गुलाबी रंग की योनी मुझे दिखने लगी, मेरा हाल बुरा होने लगा, गला सूखने लगा मेरी मुट्ठी में कैद मेरा लंड और गरम होकर खूंखार तरीके से लहराने लगा मेरा दिल तो कर रहा था की चाची की चूत में घुसा ही दू इसको


मेरी निगाह जैसे उनकी योनी पर जब सी गयी थी अब चाची ने अपने हाथो पर साबुन लगाना शुरू किया फिर अपने पेट पर उनके मखमली पेट पर नरम साबुन फिसल रहा था अब उन्होंने अपने घुटनों को थोडा सा मोड़ा और साबुन लगाने लगी मेरे लिए तो और मौज हो गयी अब मैं उनकी योनी को और अच्छे से निहार सकता था ,कभी कभी आँखों को भी सुख देना चाहिए ना, फिर चाची ने अपनी बगलों पर साबुन लगाना शुरू किया उनकी बगलों में हलके हलके से बाल थे मैं वो देख कर रोमांचीत होने लगा मेरे मन का प्रत्येक तार झन झन करने लगा था


अब चाची ने अपने गीले बालो को साबुन लगाना शुरू किया मेरा हाथ पानी की अन्दर लंड पर तेजी से चल रहा था की तभी चाची भी पानी में उतर गयी और गोता लगाने लगी , इस बार जैसे ही चाची ने डुबकी लगाई तौलिया खुल गया और इस से पहले की वो संभलती वो बहाव में बह गया मैंने मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया

चाची- हाय रे, अब मैं पानी से बहार कैसे निकलूंगी

मैं- चाची, टेंशन मत लो वैसे भी इधर अपन दोनों तो है ही इसी बहाने से मैं आपके दीदार कर लूँगा

चाची- तुझे तो बस बहाना चाहिए, आखिर तुझे मुझमे क्या दीखता है ऐसा

मैं- कभी मेरी नजर से खुद को देखो जान जाओगी

वो मेरे पास आई और बोली- ऐसी किस नजर से देखता है मुझे तू

मैं-बस नजर है अपनी अपनी

वो- चल बहुत देर हो गयी है फटाफट से नाहाले फिर घर भी तो चलना है

मैं- चाची अभी कैसे नहा लू , अभी तो आपने ठीक से साबुन भी नहीं लगाई है

वो- लगा तो ली ,

मैं- कहो तो मैं लगा दू आपको साबुन

वो- तू क्या क्या सोचता रहता है , आजकल तेरी डिमांड कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी है

पर मैंने चाची की बात को अनसुना कर दिया और उनको घुमा दिया अब उनकी पीठ मेरी तरफ थी मैंने अपने हाथ में साबुन लिया और पानी के अन्दर से ही उसको चाची के पेट पर रगड़ने लगा उत्तेजना से मेरे हाथ बुरी तरह से कांप रहे थे जब मैंने अपनी ऊँगली उनकी नाभि में घुसाईं तो चाची सिसक सी उठी और थोडा सा पीछे को हुई और तभी मेरा तन तनया हुआ लंड उनके मुलायम कुलहो से जा टकराया चाची जल्दी से आगे हुई तो मैंने उनकी कमर को पकड़ा और वापिस से उनको खुद से सटा दिया

चाची- ये मेरे पीछे क्या चुभ रहा है

मैं- पता नहीं आप ही देख लो ना

मेरा लंड उनकी गांड की दरार पर लगातार रगड़ खा रहा था पर चाची सबकुछ जानते हुए भी अंजान बन रही थी मैंने अब अपने हाथ को ऊपर की तरफ किया और चाची के उभारो पर रख दिया और हल्का सा दबा दिया , चाची ने एक मीठी सी आह भरी और अपनी गर्दन मेरी तरफ घुमाते हुए बोली-“आह, बहुत गुसाखिया करने लगे हो तुम आजकल, ये शरारते ठीक नहीं है तुम्हारी ”

मैं उनके बोबो को मसलते हुए-ओफ्फ, अब क्या अपनी दोस्त पर इतना हक़ भी नहीं है मेरा

चाची अपने मोटे मोटे चुतड को मेरे लंड पर घिसते हुए बोली- ये दोस्ती महंगी पड़ने वाली है मुझे

मैं- shhhhhhhhhhhhhhhhhhhhs चाची , कुछ मत बोलो बस मुझे महसूस करने दो

नदी के बहते पानी में हमारे दो जवान गरम जिस्म अपनी आग में झुलस रहे थे दिल रह रह कर मचल रहा था मैं हौले हौले से चाची की दोनों छातियो को दबा रहा था दोनों छाती पूरी तरफ से फूल कर गुब्बारा हो गई थी मैं काफ़ी देर से अपने लंड को उनकी गांड पर घिस रहा था तो चाची ने अपनी टाँगे थोड़ी सी खोली और मेरे लंड को अपनी जांघो के बीच में दबा लिया उनकी गरम जांघो की गरमी से ही मैं तो होश भूलने लगा ,

मैं- कैसा लग रहा है

वो- उम्फ्ह, ठीक लग रहा है

मैंने अब थोडा सा और आगे को बढ़ने को सोचा और चाची की चूत पर हाथ रख दिया और चूत को सहलाने लगा तो चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- कुछ तो बाकी रहने दे, अभी कुछ गैरत बाकी है मुझमे

मैं- चाची, करने दो न मुझे प्यार, मैंने वादा जो किया है आपको हर ख़ुशी देने का

चाची- पर मुझमे अभी भी कुछ संकोच है , मुझे थोडा समय चाहिए सबकुछ इतना जल्दी हो रहा है की मुझे लगता है बस यही पर रुक जाना चाहिए

मैं अपने दुसरे हाथ से उनकी कोमल चूची को मसलते हुए- ठीक है चाची पर मुझे एक किस करना है है

वो- ठीक है

वो मेरी तरफ घूमी और अपने चेहरे को मेरे मुह पर झुकाने लगी तो मैंने उनको रोक दिया और बोला- यहाँ नहीं

तो वो बोली- फिर कहा

मैं- नीचे वाली जगह पर

मेरी ये बात सुनते ही चाची बुरी तरह से शर्मा गयी, उनका पूरा मुह लाल हो गया पानी में होने के बावजूद भी उनके माथे से पसीने की बूंदे चूने लगी ,

वो- ये तू क्या बोल रहा है

मैं उनकी आँखों में आँखे डालता हुआ- चाची, मेरा बहुत मन है उसको देखने का प्लीज बस एक चुम्बन करने दो वहा पर ,

वो कुछ नहीं बोली चुपचाप खड़ी रही तो मैंने उनको खीचा और चट्टान की तरफ ले आया इधर पानी कम था थो चाची कमर तक नंगी दिख रही थी मैंने देखा की मेरे हाथो की रगड़ से उनके बोबो पर लाल निशाँ हो गए थे

चाची- ये तेरी उलजलूल हरकते

मैंने अपनी ऊँगली उनके होंठो पर रख दी और उनको पानी से बाहर निकाल दिया वो अब पूर्ण रूप से नंगी मेरी आँखों के सामने खड़ी थी उन्होंने एक हाथ अपनी योनी पर रख लिया और छुपाने की कोशिश करने लगा इधर मैं भी पानी से बाहर निकल आया चाची की नजर मेरे खड़े लंड पर पड़ी जो चूत के लिए बड़ा लालायित हो रहा था

मैं- ऐसे क्या देख रही हो

ये सुनकर चाची झेप गयी
 

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मैंने उनको चट्टान पर बिठा दिया और उनकी जांघो को चौड़ा कर दिया कामरस में डूबा हुआ उनका योनी प्रदेश मेरी आँखों के सामने खुल्ला पड़ा था मैंने अपने होठो पर जीभ फेरी और अपने सर को चाची की जांघो के मध्य घुसा दिया मेरी गरम साँसों को अपनी योनी पर महसूस करते ही चाची के बदन में हलचल मचने लगी, uffffffffffffffff क्या खुशबु आ रही थी उनकी योनी में से वो जो हलकी सी गुलाबी रंगत थी ना कसम से मन मोह गयी थी मेरा मैं अपनी नाक चूत की दरार पर रगड़ने लगा तो चाची के चुतड हिलने लगे
मैंने उनकी दोनों जांघो को अपने हाथो से थामा और अब अपनी जीभ को बह़ार निकाल कर चाची की

बस मैं चाची की योनी को छूने ही वाला था की तभी ........

तभी मेरे कानो में गायो की आवाज आई, शायद कोई चरवाहा पशुओ को पानी पिलाने नदी की तरफ आ रहा था चाची भी भांप गयी थी वो नंगी ही उस पेड़ की तारफ भागी जहा उनके कपडे रखे थे मैं भी दोड़ लिया ,

चाची उस पेड़ के पीछे जल्दी से सलवार पहनते हुए बोली-“ देखा मैंने पहले ही कहा था की कोई ना कोई आ निकलेगा पर तुम तो सुनते ही कहा हो मेरी ”

जल्दबाजी में चाची अपनी ब्रा और कच्छी पहननी भूल गयी थी तो वो मैंने उठा कर अपनी जेब में रख ली अब गीले बदन पर कपडे और अन्दर कुछ नहीं पहना तो चाची और भी मस्त लगने लगी मैंने उनकी गांड को मसल दिया तो वो मुझे घूरने लगी फिर हमने एक चक्कर लगाया और बाग़ में घुस गए

चाची-आज तो बच गयी वर्ना नंगी हालात में कोई न कोई देख लेता

मैं- आप खामखा फिकर कर रहे हो कुछ नहीं होता

वो- सबको तुम्हारी तरह समझा है क्या मत भूलो मेरा गाँव है

मैं- मुझे तो इतना याद है की आप मेरी हो इसके सिवा कुछ और याद करने की मुझे जरुरत नहीं
बाग़ का ये हिस्सा थोडा सा अजीब सा था इधर आम का एक भी पेड़ नहीं था बल्कि सफेदे के, नीम के पेड़ लगे हुए थे शायद इस हिस्से को लकडियो के लिए छोड़ा गया होगा, मैं और चाची वही थोड़ी देर के लिए बैठ गए

मैं- चाची , जो काम नदी में ना हुआ इधर कर लू क्या

वो- पागल हुआ है क्या

मैं- बस एक किस की ही तो बात है

वो- समझा कर

मैं- बस एक किस

वो- चल होंठो पर कर ले

मैं- ना नीचे ही करूँगा

वो- तू जान लेकर रहेगा मेरी

मैं- चाची देखो इधर कितने घने पेड़ है सुनसान पड़ा है ऐसे लगता है जैसे मुद्दतो से कोई नहीं आया इधर मान भी जाओ ना

चाची- कहा ना नहीं देख वैसे भी देर बहुत हो गयी है मेरे भैया भी आज आनेवाले है तो अभी घर चलते है
अब मैं क्या कर सकता था तो मन मार कर घर आ आना पड़ा , फिर दोपहर का खाना खाकर मैं सो गया तो फिर शाम को ही उठा , मैंने देखा की मामाजी आ गए थे घर में थोडा टेंशन का माहौल सा था और होना भी चाहिए था एक भाई को फिकर जो थी अपनी बहन की , मैं बस उन लोगो की बाते सुनता रहा अपना मुह चुप रखना ही उचीत समझा मैंने मामाजी ने फ़ोन पर एक लम्बी बात की पिताजी के साथ मैंने अपने कान खड़े कर रखे थे मुझे इतना अंदाजा तो हो गया था की कल मामाजी और चाची गाँव चलेगे ,


रात के खाने के बाद मामाजी ने भी अपना बिस्तर हमारे साथ छत पर ही लगा लिया मैंने सोचा था की रात को क्या पता चाची को पेलने का मौका मिलेगा पर मामाजी ने सब गुड-गोबर कर दिया था , अब हर चीज़ पर अपना बस भी तो कहा चलता था मैंने चाची को कहा की मामा को बोल दो नीचे सो जाये पर वो बोली की मैं कैसे कह सकती हूँ तो बस पूरी रात मेरा दिमाग ख़राब सा ही रहा सुबह हुई चाची ने मुझे चाय देते हुए बता दिया था की आज हम लोग गाँव चलेंगे मेरे मन में ख़ुशी थी की चाची वापिस घर चल रही है पर दुःख भी था की कही वहा जाकर बात बिगड़ न जाये मामाजी और नाना जी भी चल रहे थे साथ जो ,



तो करीब दस बजे हम सब लोग मामा जी की कार में हमारे गाँव के लिए निकल पड़े मामाजी और नाना आगे बैठे थे मैं और चाची पीछे, मैं नजरे बचा कर उनसे छेड़खानी कर रहा था वो अपनी आँखे तरेर कर मुझे मना कर रही थी, ऐसे ही हम शाम तक घर पहूँच गए , मम्मी तो चाची को देख कर ही खुश हो गयी दौड़ कर गले मिली उनसे पिताजी उस टाइम घर पर ही थे, मामाजी भी शांत स्वाभाव से ही बात चीत कर रहे थे मम्मी चाची को अन्दर ले गयी बाकि हम सब लोग बैठक में बैठ गए , पिताजी ने चाचा को भी बुलवा लिया


अब तक तो बात घर में ही थी अगर बाहर फैलती तो परिवार की समाज में नाक काटनी तय थी, दूसरा नाना जी चाहते थे की जो हुआ सो हुआ पर अगर जवाई जी माफ़ी मांगे और भविष्य में कोई गलती ना करे तो बात बन सकती थी पर चाचा पर तो पराई नार का जूनून चढ़ा हुआ था ,गरमा गर्मी होने लगी , तो टेंशन के मारे मेरी धड़कने बढ़ने लगी, अब क्या किया जाये चाचा ने तो साफ़ कह दिया था की सुनीता रहे तो रहे और ना रहे तो मत रहे


पर तभी मम्मी ने स्टैंड लिया वो बोली- सुनीता मेरी बेटी की तरह है वो इस घर में ही रहेगी देवर जी का रास्ता अलग पर सुनीता हमारे साथ रहेगी , इस घर में उसका भी उतना ही हिस्सा है जितना की मेरा है
तो पिताजी ने कहा की कुछ दिन सुनीता को यही रहने दो , फिर उसकी जो मर्ज़ी होगी, जो उसका फैसला होगा हमे मान्य होगा मामाजी ने भी कहा ठीक है जो सुनीता की मर्ज़ी वो ही हमारी मर्ज़ी बिमला के ससुर भी आ गए थे बेचारे बहुत ही परेशान थे, शर्मिंदा थे अब नजरे मिलाये भी तो कैसे खैर रात हुई खाना वना खाने के बाद पिताजी मामा और नाना के साथ गहन चर्चा में डूबे थे मम्मी रसोई ने व्यस्त थी मैं अपने कमरे में आया तो देखा की चाची वही पर बैठी थी

चाची- आज से मैं इधर ही रहूंगी

मैं- जैसी आपकी मर्ज़ी, पूरा घर ही आपका है जहा जी करे वहा रहो

चाची- क्या बाते हो रही है नीचे

मैं- सबको आपके फैसले का इंतज़ार है

वो- फैसला तो हो गया हैं ना, जब उन्होंने ठुकरा दिया तो अब क्या

मैं- ऐसी तैसी करवाए वो , क्या जिंदगी उसके पीछे ही चलेगी, अपने बारे में सोचो घर में और भी लोग है उनके बारे में सोचो

वो- तू मेरी बात को समझ

मैं- चाची, अगर आप इस घर को छोड़ के गए तो मैं भी सदा के लिए यहाँ से दूर चला जाऊंगा आपको रुकना ही होगा मेरी खातिर , आपको मेरी कसम है

चाची की आँखों में कुछ आंसू थे उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बोली- ठीक है बस तेरे लिए मैं यही रहूंगी वो रात बस ख्यालो में ही कट गयी अगले दिन पिताजी ने चाचा को स्पस्ट रूप से समझा दिया की चाची को घर में कोई परीशानी नहीं होनी चाहिए, अब चाचा चाहे लाख नालायक था पर भाई के आगे जुबान नहीं खुलती थी उसकी , मामा और नाना अपने घर चले गए मुझे कही ना कही ऐसा लगने लगा था की जैसे पिताजी अन्दर अन्दर टूट से रहे हो मैंने उनसे बात करने का फैसला किया

मैं पिताजी के कमरे में गया तो देखा वो कोई किताब पढ़ रहे थे उन्होंने मुझे देखा और बैठने को कहा

पिताजी- कोई काम था , पैसे वैसे चाहिए

मैं- आपसे बात करने का मन हो रहा था

वो- हां, बताओ क्या बात है

मैं- मुझे लगा की आप कुछ परेशान से दीखते है

वो- अरे, नहीं वो ऑफिस के काम का बोझ है तो थोड़ी थकान हो जाती है बस तू ये छोड़ और बता पढाई कैसी चल रही है

मैं-पिताजी आपका ही बेटा हूँ सब समझता हूँ मैं, घर के हालात की वजह से परेशान है ना आप

पिताजी- तू क्यों फिकर करता है तेरा काम है पढना उसी पे ध्यान दे

मैं- पहले मैं हमेशा सोचता था की जो पापा लोग होते है ना वो बहुत खडूस टाइप के होते है जो बस औलाद को हर समय परेशान करते है पर पिताजी, आज मैं जान गया हूँ की जो बाप होता है न , वो अपने कंधो पर कितना बोझ लाद कर चलता है , पिताजी आप किसी से कुछ कहते नहीं पर जो कसक है उसे भली भांति महसूस कर गया हूँ मैं हम सब को खुश रखने के लिए आप कितने जतन करते हो,

पिताजी- आज तुझे क्या हुआ है कैसी बाते कर रहा है

मैं- बस एक पिता को समझने की कोशिश कर रहा हूँ

पिताजी- इस बात को तू नहीं समझेगा अभी , तेरे खेलने के दिन है बस वही कर चल अब जा और तेरी मम्मी को एक चाय के लिए बोल देना

मैं कमरे से निकला पर मैंने कनखियों से पिताजी को अपनी आँखों को पोंछते हुए देख लिया था
 

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चाय का बोलके मैं घर से बाहर निकला तो गली में मुझे मंजू मिल गयी

मैं – मंजू आज इधर कैसे

वो- बस ऐसे ही

मैं- कितने दिन हुए मंजू मेरा काम कब करेगी

वो- भाड़ में जाए तेरा काम, उस दिन तो मरवा ही दिया था तूने शुकर है तेरी चाची ने किसी को कहा नहीं वर्ना मैं तो मर ही गयी थी

मैं- मंजू ,अब हर बार थोड़े ना पकडे जायेंगे फिर तेरे सिवा मेरा कौन सहारा है दे देना एक बार

मंजू- देख अभी तो मुश्किल है

मैं- तेरे लिए कुछ मुश्किल नहीं और फिर थोड़ी देर तो लगनी है

मंजू- पर जगह भी तो चाहिए ना , अब ऐसे रोड पर तो लेट नहीं सकती ना

मैं- अब जगह का कहा से जुगाड़ करू मैं

वो- तभी तो बोल रही हूँ मुश्किल है

मैं- तेरे घर

वो- मेरी माँ है

मैं- यार मंजू, तू कर ना कुछ जुगाड़ तेरे बिना देख कितना बुरा हाल हो रहा है मेरा

मंजू- तो मैं कहा मना कर रही हूँ तुझे देने को पर तू मेरी भी मुश्किल समझ

मैं- एक काम हो सकता है

वो- क्या

मैं- देख वो जो सामने छप्पर है न उधर कोई आता जाता नहीं

वो- ना मैं रिस्क न लुंगी

मैं- मान जा ना

वो- ना उस दिन ही चाची ने पकड़ लिया था मेरी तो जान अटक गयी थी

मैं- अब हर बार थोड़ी न पकडे जायेंगे वैसे भी कोई नहीं आने वाला मैं जाता हूँ उधर तू मोका देख के आ जइयो

मंजू- इस से तो अच्छा यही पर ले ले मेरी

मैं हँसा और छप्पर की तरफ सरक लिया

छप्पर तो क्या था पहले पुराने ज़माने का कच्चा मकान था अब वो लोग और कही रहने लगे थे तो ये बेचारा समय की मार झेल रहा था , अन्दर जाके मैं एक अँधेरे कोने में खड़ा हो गया थोड़ी देर बाद मंजू भी आ गयी मैंने बिना देर किये मंजू को अपनी बाहों में भर लिया

मंजू-देख मरवा मत दियो और जल्दी से कर ले

मैं- बस तू साथ दे अभी काम हो जायेगा

मैं तो काफ़ी दिन से चुदाई के लिए मरे जा रहा था मंजू की गोल मटोल गांड को दबाते हुए मैं उसके होठ चूसने लगा जल्दी ही उसकी सलवार उसके पांवो में पड़ी थी

मंजू- नंगी ना होउंगी

मैं- मत हो बस सलवार उतार

मंजू – तू तो बाहर निकाल

मैंने तुरंत अपने लंड को बाहर निकाल लिया मंजू उसको अपने हाथ से हिलाने लगी मैं उसके होठो को पीने लगा मंजू भी चुदासी लड़की थी , तो जल्दी ही गरम होने लगी उसने अपनी एक टांग को उठाया और मेरे लंड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी , अब इतने दिनों बाद लंड ने चूत की महक ली थी तो वो फुफकारने लगा मैंने अपने दोनों हाथो से मंजू के चुत्तड को थामा हुआ था मंजू मेरे होठो को ऐसे चूस रही थी जैसे आज बस लास्ट टाइम है उसका नीचे लगातार रगड़ने से मेरा लंड उसकी चूत के पानी से गीला हो चूका था हम दोनों को अब एक चुदाई की सख्त चुदाई की जरुरत थी

मैंने अब देर करना उचीत नहीं समझा और अपना लंड के सुपाडे पर काफी थूक मला और खड़े खड़े ही मंजू की चूत में झटका मार दिया मंजू ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और अपने बदन को मेरी हवाले कर दिया , जैसे जैसे उसकी चूत में लंड सरकता जा रहा था मंजू के चेहरे पर करार आता जा रहा था , मंजू ने अपनी कुर्ती को ऊपर करके अपने बोबो को बाहर निकाल दिया था , उसके ३२ साइज़ के बोबो को देख कर मेरा मन ललचाने लगा तो मैंने अपने मुह को उसकी छातियो पर झुका दिया और बोबो को चूसते हुए उसको चोदने लगा

मंजू के बदन में गर्मी एक दम से बढ़ गयी मेरी बाहों में झूलते हुए चुदाई का पूरा मजा लेने लगी वो
आः अआह्ह थोडा जोर से करो वो बोली

मैंने मंजू की चूत से लंड को निकाल लिया और उसको घुटनों पे हाथ रखवा के झुका दिया , मुझे उसकी गोल गांड बहुत पसंद थी , उसकी गांड देखते ही मैं मचल जाता था मैंने उसके कुलहो को फैलाया और अपना मुह उसकी जांघो में दे दिया , मंजू की छोटी सी चूत से बहते उस खट्टे, खारी पानी को जैसे ही मैंने चखा मजा ही आ गया मंजू के पैर कांपने लगे, एक तो गर्मी बहुत थी वहा पर पसीना पड़ रहा था तो मिलाजुला स्वाद मेरे मुह में घुलने लगा

मंजू – “ओफ्फ्फ्फ़ , इतना टाइम नहीं नहीं मेरे पास अभी तो जल्दी से कर ले टाइम निकाल के जी भर के दूंगी तुझे ”

मैं- ओह जानेमन, टाइम गया तेल लेने, इतनी करारी चूत को कैसे चखे बिना छोड़ दू

वो- मान भी जा ना

मैं- अब दे रही है तो ख़ुशी से दे ना, या फिर रहने दे ऐसे जल्दबाजी में मुझसे ना ली जाएगी
मंजू- इमोशनल मत कर कमीने अच्छा पर ज्यादा देर मत चुसियो , अब मुझसे रहा नहीं जा रहा है
मैं मुस्कुराया और मंजू की कुलहो को फैला कर उसकी चूत को चाटने लगा मंजू ने खुद को और नीचे को झुका लिया जिस से उसके चुतड ऊपर को उठ गए और मुझे आसानी होने लगी मंजू अपने दोनों हाथ घुटनों पर रखे अपनी गांड को हिला हिला कर मुझे चूत का स्वाद चखा रही थी , उसकी मखमली चूत को मैं अपने दांतों से काट ता तो वो वो धीमी धीमी आवाज में सी सी कर रही थी पर वक़्त का भान मुझे भी था और उसे भी थोड़ी देर बाद मैं अपना मुह उसकी योनी पर से हटा लिया


मैंने अब मंजू को पास की दिवार से सटा दिया और खड़े खड़े ही उसको चोदने लगा एक बार जो लंड चूत में गया मंजू अपना आपा खोने लगी पसीने में चूर हमारे चरीर चुदाई की ताल पर थिरकने लगे थे मैं उसके गालो को चूमने लगा पर छप्पर की कच्ची दिवार उसकी गांड पर रगड़ हो रही थी तो मंजू उधर से हट गयी
मैं- क्या हुआ

वो- चुतड लाल हो गये है

मैं- तो कैसे चुदेगी

- तू घास पे लेट जा मैं ऊपर चढू गी ,

मैं- तू लेट जा न

वो- ना घास चुभेगी

मैं- कोई ना

तो मैं लेट गया और मंजुबाला अब चढ़ गयी मेरे ऊपर घच से मेरे लंड पर बैठ कर उसको गटक गयी वो मैंने उसके चूतडो को थाम लिया मंजू जोर जोर से सांस लेते हुए मेरे लंड पर कूदने लगी, उसने अपने बदन को मुझ पर झुका दिया तो मैंने उसके बोबे को मुह में ले लिया अब लड़की की चूत में लंड हो और बोबा मुह में तो फिर जो गर्मी चढ़ती है उसको की सब कुछ भूल जाती है वो


मंजू अब तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी , रही सही कसर मैं नीचे से धक्के लगा कर पूरी कर रहा था चुदाई जोरो पर चल रही थी मजा ही मजा आ रहा था पर तभी मंजू ने एक लम्बी सांस ली और धम्म से मेरे ऊपर ढेर हो गयी , उसका तो काम निपट गया था मैंने फ़ौरन उसके कुलहो को थामा और तेजी से नीचे से धक्के पे धक्के लगाना शुरू कर दिया मंजू की आँखे बंद थी शरीर निढाल पड़ा था पर चूत अभी अभी फड़क रही थी

आह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह कितना चोदेगा, अब छोड़ भी दे ना

मैं- बस थोड़ी देर की बात है बस दो चार मिनट और रुक जा

मंजू-अब दर्द होने लगा है छोड़ दे ना

मैं- बस बस होने ही वाला हाऐईईईईईई

मैंने पलटी खाई और मंजू को नीचे ले लिया , घास चुभने से वो गुस्सा कर रही थी पर मेरा काम होने ही वाला था तो अब कौन उसकी बात सुनता हूँमच हूँमच कर बीस पचीस धक्के और मारे मैंने अपना वीर्य उसकी चूत में ही छोड़ दिया और उसके ऊपर से पड़ गया
मंजू अपनी सलवार बाँधने लगी मैंने उसको चूमा और कहा फिर कब मिलोगी

वो- देखूंगी

मैं- जल्दी देखना

फिर वहा से नजर बचा कर हमने अपना अपना रास्ता लिया और मैं अपने घर के बाहर चबूतरे पर आकर बैठ गया चूत मारने से शरीर तो थोडा हल्का हो गया था पर दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था , कुछ बाते थी जो मुझे बड़ा परेशान कर रही थी , तभी मैंने देखा की बिमला घास लेकर आई और मुझे देख कर हस्ते हुए चली गयी, मुझे गुस्सा तो बड़ा आया पर कर भी क्या सकते थे, इतना तो मैं समझता था की कुछ ना कुछ तो खुराफात चल रही है जरुर पर क्या वो पता नहीं चल रहा था

शाम का सा टाइम हो रहा था तो मैं ऐसे ही निकल गया तफरी मारने को गाँव के स्कूल में कुछ लड़के क्रिकेट खेल रहे थे तो उनको देखने लगा , उन्होंने कहा भी खेलने को पर जबसे चाचा ने मेरा बैट तोडा था बस दिल करता नहीं था क्रिकेट खेलने को , आजकल जिंदगी में सोच विचार भी बहुत ज्यादा चल रहा था थोड़ी देर उधर बैठने के बाद मैं प्लाट में गया पशुओ का काम करते करते अँधेरा ढले घर आया मैं , तो देखा की पिताजी किसी से बात कर रहे थे मैंने मम्मी से पूछा तो पता चला की कोई वकील है ,

अब हमारे घर में वकील का क्या काम, कुछ तो गड़बड़ है पर मेरा इतना साहस नहीं की पिताजी से पूछ सकू, मम्मी ने भी कुछ नहीं बताया मैंने चाची को ऊपर आने का इशारा किया उअर अपने कमरे में आ गया , थोड़ी देर बाद चाची भी आ गयी और बोली- क्या हुआ क्यों बुलाया

मैं उनको अपनी बाहों में भरते हुए- बस ऐसे ही

वो छुटने की कोशिश करते हुए- ऐसे ही का क्या मतलब जाने दे मुझे रसोई में बहुत काम है

मैं- एक किस तो दे दो

वो- अभी नहीं ,अभी जाने दे

ये चाची का भी अजीब सिस्टम था, पर चलो अब जो था वो सही मैंने रेडियो चलाया और बिस्तर पर लेट गया एक गाना था कुछ ऐसा की वोह लम्हे वो बाते कोई ना जाने , गाने का सुरूर चढ़ सा गया था दिमाग पर तो दिल आवारा होने लगा ,अपने जिस खालीपन से मैं भागता फिरता था वो फिर से मुझ पर छाने लगा तो मैं नीचे आ गया खाना तैयार था तो खा लिया पिताजी ने कहा की आज खेत पर चले जाना , अब साला ये तो दिक्कत थी मैंने सोचा था की रात को चाची की चूत का जुगाड़ हो जाये क्या पता पर बाप का कहना भी करना था तो चल पड़ा खेत की तरफ


पर अभी टाइम भी ज्यादा हुआ नहीं था तो मैं मंजू के बाप की दूकान पर बैठ गया टाइमपास करने को पर अपना टाइम साला अजीब ही था पास होता ही नहीं था खेत पर भी बस जाके सोना ही था तो बैठा रहा दूकान पर , धीरे धीरे लोग अपने घर जाने लगे जो भी नुक्कड़ पर बैठे थे , मैं भी बस जा ही रहा था की मैंने देखा मोहल्ले की गीता ताई दूकान पर आई और मंजू के बाप से कुछ बात करने लगी , कुछ पैसो का मामला था मैंने अपने कान लगा दिए तो पता चला की गीता ताई ने मंजू के बाप से कुछ पैसे लिए थे जिसे वो समय पर चूका नहीं पा रही थी तो और टाइम चाहती थी पर मंजू का बाप ना नुकुर कर रहा था


थोड़ी देर बाद वो हताश होकर अपने घर को चल पड़ी तो मैं भी खेत की तरफ जा रहा था की पता नहीं क्यों मैं गीता ताई के पास गया और बोला- रामराम ताई जी

वो-जीता रह बेटा

मैं- ताईजी मैंने देखा की दूकान पर आप कुछ परेशान दिख रही थी, कोई समस्या है क्या

वो- नहीं बेटा, कोई परेशानी नहीं है ,

मैं- अच्छा, वो मुझे लगा तो पूछ लिया चलो कोई बात नहीं वैसे आप रात को दूकान पर ताऊ नहीं है क्या घर पर

वो- बेटा, उसका तो सब को पता है पीकर पड़ा होगा कही पर

मैं- कोई ना , अच्छा ताईजी चलता हूँ

फिर रामरमी करके मैं खेत पर चला गया , करने को कुछ था नहीं तो अपना बिस्तर बिछाया और लेट गया पर नींद आ नहीं रही थी की मेरा ध्यान गीता ताई की तरफ चला गया , गीता कोई 42-43 साल की औरत थी , फिगर भी अच्छा था मोटे मोटे बोबे और चोडी गांड , पता नहीं क्यों मैं ऐसे ही अपने ख्यालो में उसके बारे में सोचने लगा की उसकी चूत मिल जाये तो मजा आ जाये , अब ख्यालो पर किसका बस चलता है सरकार मैं सोचने लगा की दिखती भी अच्छी है , चोदने में सच में ही मजा आ जायेगा

बस ऐसे ही ताई के बारे में गलत गलत सोचते हुए मेरा लंड खड़ा हो गया और मैं ताई के बारे में सोच कर मुठ मारने लगा , मजा ही आ गया तो मैंने उसी समय सोच लिया की कोशिश करके देखूंगा क्या पता दाल गल जाये हालाँकि मुश्किल बड़ा था , अगली सुबह मैं जल्दी ही उठ गया था आज पढने जाना था मुझे काफ़ी दिनों से छुट्टी पे चल रहा था तो नाश्ता करके अपना बैग लेकर मैं पहूँच गया शहर , नीनू मुझे देखते ही आग बबूला हो गयी और काफ़ी देर तक चिल्लाती रही तो उसको समझाने में बहुत समय चला गया


तो मैंने पिछले दिनों का पूरा घटनाक्रम विस्तार से बताया , की कैसे क्या क्या हुआ नीनू गहरी सोच में डूबी थी फिर उसने कहा की हो न हो पिताजी ने वकील को बटवारे के लिए ही बुलाया होगा,

मैं- क्या बात कर रही है यार, बंटवारा और वो भी मेरे घर का हो ही नहीं सकता

नीनू- मान चाहे मत मान पर ऐसा ही होगा तू देख लियो
 

Incest

Supreme
432
859
64
नीनू की बात सुनकर मैं सन्न रह गया क्या चल रहा था पिताजी के मन में, मैंने और नीनू ने इस गूढ़ विषय पर लम्बी चर्चा की, बातो बातो में उसने मुझे बताया की वो अर्धवार्षिकी के पेपर देते ही देहली चली जाएगी और कोचिंग करेगी ये सुनकर मेरा तो दिमाग ख़राब हो गया

मैं- तू चली जाएगी तो मेरा क्या होगा

वो- पर जाना भी तो जरुरी है ना, अब हम लोग तुम्हारी तरह तो है नहीं तो नौकरी मिल जाएगी तो लाइफ ठीक से कट जाएगी

मैं- मुझे भी तो नौकरी करनी है

वो- तो तू भी कोचिंग लेने चल

मैं- सोच के बताऊंगा

वो- तेरी मर्ज़ी है मैंने तो प्रिंसिपल से बात कर ली है , पुलिस की नोकरी की इच्छा है मेरी लग जाऊ तो मजा आ जाये

मैं- अच्छी बात है

वो- देख, हमे अपने भविष्य के बारे में सोचना तो होगा ही ना, आज नहीं तो कल

मैं- तेरी बात सही है

वो- चल छोड़ ये बता चाची क्या बोली

मैं- अभी तो कुछ कह नहीं सकता की क्या करेंगी वो अभी ताजा ताजा मामला है तो तू समझ ही सकती है

वो- और बिमला का क्या ,

मैं- उसका क्या होना है यार, मेरी ताई चोबीस घंटे नजर रखती है उस पर

वो- हम्म्म,

मैं- पर यार बिमला मेरे को धमकी दे रही थी

वो- वो तो देगी ही तेरी वजह से उसकी ऐसी तैसी जो हो गयी है

मैं- नीनू तू सच में जा रही है देहली

वो- मजाक लगा क्या

मैं- वहा जाके मुझे भूल तो नहीं जाएगी

वो- डेल्ही जा रही हूँ, जिंदगी से ना जा रही फिर हम अपनी अपनी क्लास में चले गये
जबसे नीनू ने देहली जाने का कहा था पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लग रहा था , मन अजीब सा हो रहा था घर आके खाना खाया चाची खेत में थी तो मैंने सोचा की चलो चला जाये , मैं जा रहा था की मंजू मिल गयी रस्ते में


मैं- कहा गयी थी मेरी कट्टो

वो- गीता ताई के यहाँ तक गयी थी

मैं- क्यों

वो- बापू, से उसने कर्जा लिया था अब दे नहीं रही तो तकाजा करने गयी थी

मैं- तू कब देगी

वो- कल तो दी थी , अब कोई मौका आएगा तभी दूंगी

मैं- कितना कर्जा है ताई पे

वो- तू क्यों पूछ रहा है तुझे देना है क्या

मैं- मैं क्यों दूंगा , बस ऐसे ही पूछ रहा था

वो- 8 हज़ार है ब्याज अलग से

मैं- कोई ना दे देगी लेट शेट होता रहता है

वो- बापू का कहना तो करना पड़ता है

मैं- आजा कुएँ पे चले

वो- ना, घर जाउंगी

मैं- चल ठीक है

रस्ते में सोचते हुए मैं कुए की तरफ जाने लगा मेरे मन में विचार आया की अगर गीता को मैं पैसे दे दू तो क्या पता चूत मिल जाये , पर मैं गरीब आदमी मेरे पास कहा से आये पैसे, वो भी इतनी बड़ी रकम इसके लिए तो चोरी ही करनी पड़े , सोचते सोचते मैं कुए पर पहूँच गया जमीन का एक टुकड़ा खाली पड़ा था पिताजी ने कहा था की उसमे सब्जी की नयी खेप लगनी है तो जुताई कर दू, जबकि मेरा ये ख्याल् था की बाजारा बो दिया जाये , अब बाप की ना मानो तो गांड टूटने का खतरा , पर मूड नहीं था तो जाने दिया चाची नीम के नीचे बैठी थी मैं उनके पास गया और बोला- आज खेत में कैसे

वो- बस ऐसे ही खुद को काम में लगा रही हूँ तो मन नहीं भटकेगा

मैं- अच्छा है

मैं- एक चुम्मी मिलेगी क्या

वो- तुम्हारी मम्मी इधर ही है, चुम्मी का तो पता नहीं पर जूते जरुर पड़ेंगे

अपनी तो किस्मत ही गधे के लंड से लिखी गयी लगती थी, चाची पास होकर भी दूर थी तो मन को मारकर कुए पे काम निपटाया और फिर हम लोग साथ साथ ही घर पर आ गए, पिताजी भी ऑफिस से आ चुके थे करीब घंटे भर बाद वो वकील भी अपना स्कूटर लेके आ गया तो पिताजी ने पुरे कुनबे को इकठ्ठा कर लिया और बोले की- मुझे लगता है की अब वक़्त आ गया है की मैं सबको अपना अपना हिसा दे दू

मैं- कैसा हिस्सा पिताजी

पिताजी ने घूर कर मेरी तरफ देखा तो मैंने नजर नीची कर ली

पिताजी- परिवार सदा ही हमारी ताकत रहा है , बाप दादा सदा एक छत के नीचे रहते आये थे हम भाइयो ने भी उसी बात का अनुसरण किया पर जमाना बदल रहा है और फिर पिछले कुछ दिनों से घर के हालात भी ठीक नहीं है तो मुझे लगता है की अब समय आ गया है की हम सब चाहे तो जिंदगी को स्वतंत्र रूप से जी सके


सब लोग पिताजी की बात गौर से सुन रहे थे , मैं कुछ कहना चाहता था पर चुप रहने की मज़बूरी थी
पिताजी ने वकील से कुछ पेपर्स लिए और कहा की मैंने पूरी जायदाद को तीन हिस्सों में बाट दिया है , बिमला वाला मकान और नहर वाली खेती बिमला के ससुर को दे दी , कुए वाली आधी जमीं चाचा को और आधे घर में हिस्सा

वकील- और तीसरा हिस्सा इन्होने सुनीता जी को दे दिया है जिनमे इस घर में आधा हिस्सा और ५ एकड़ जमीं है साथ ही एक प्लाट भी

वकील – इन्होने अपने लिए कुछ नहीं लिया बस एक कमरे में

सभी पिताजी को देखने लगे

ताउजी- पर भाई ये कैसा बंटवारा

पिताजी- भाई, मैंने बहुत सोचकर ये फैसला लिया है , तुम दोनों भाइयो का तो हक़ है इस जायदाद पर रही बात सुनीता की तो मैंने उसे सदा अपनी बेटी समझा है तो एक जेठ नहीं बल्कि बाप होने के हक़ से मैं अपना हिस्सा उसे दे रहा हूँ, मेरी कोई ज्यादा जरूरते है नहीं, और जो है मेरी नौकरी से पूरा हो जाएँगी , रही बात बेटे की तो मुझे पूरा भरोसा है उस पर वो अपने लिए कुछ न कुछ कर ही लेगा

मैं कभी नहीं चाहता था की कुनबा ऐसे टूटे पर चलो जो तक़दीर में लिखा
.
चाची ने साफ़ मन कर दिया पर मम्मी ने कहा की जो फैसला लिया है वो सोच समझ कर लिया है , पिताजी बंटवारे के बाद अपने कमरे में चले गए , मैं उनके पीछे गया तो पता चला की कुण्डी बंद है अन्दर से , सच कहू तो मैं कभी पिताजी को समझ ही नहीं पाया था , एक पिता अपने परिवार को पालने के लिए क्या क्या जतन करता है, दिमाग खराब सा होने लगा था मैं छत पर आकर बैठ गया थोड़ी देर बाद मम्मी भी मेरे पास आ गयी और बोली-

मम्मी- तूने दूध नहीं पिया आज

मैं- ध्यान नहीं रहा

वो- बंटवारे के बारे में सोच रहा है न तू, तुझे लग रहा होगा की माँ—बाप में तेरे लिए कुछ नहीं छोड़ा
मैं- मम्मी, आप भी कैसी बाते करने लगे हो , और फिर मुझे इन चीजों का लालच कबसे होने लगा आपने मेहनत करना सिखाया है

मम्मी- मेरा समझदार बेटा, मैंने और तुम्हारे पिताजी ने बहुत विचार करके ये फैसला लिया है सुनीता इस समय बहुत कष्ट से गुजर रही है , जिंदगी में काफ़ी बार हालात पर कोई जोर नहीं होता तो कम से कम हम उसके लिए इतना तो कर ही सकते है ना

मैं- आप जो चाहे

अब बाप का फरमान था तो आज की रात भी कुए पर ही गुजरनी थी तो अपना ताम-झाम लेके मैं चल दिया कुएँ पर की मैंने देखा दूकान पर मंजू बैठी थी

मैं- आज तू इस समय,

वो- घर पर फूफाजी आये है तो

मैं- मंजू एक मदद कर देगी

वो- बोल

मैं- कुछ पैसे उधार दे दे

वो- कितने

मैं- दस हज़ार

मंजू ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैंने पता नहीं क्या मांग लिया

वो- दिमाग ठिकाने पे है

हज़ार पांच सो की बात हो तो करू भी रकम मांग ली

मैं- तेरा बाप आसामी है ,

वो –बाप से मांग ले फिर वैसे तुझे इतने पैसे किस काम में चाहिए

मैं- छोड़, गांड मारा तेरी, भोसड़ी की कभी काम नहीं आती तू

मंजू- बता तो सही

मैं- जाने दे एक ठंडा पिला दे पैसे बाद में दे दूंगा

वो- ठन्डे पैसे नहीं लुंगी तुझसे

एक थम्स अप पीकर मैं खेत में आ गया बिस्तर बिछा ही रहा था की देखा मेरी दिलरुबा, मेरी जाने बहार मेरी सबसे
अच्छी दोस्त पिस्ता चलते हुए मेरी तरफ आ रही थी इतराते हुए वो मेरी तरफ आ रही थी उसको देखते ही मेरे होंठो पर एक मुस्कान आ गयी

मैं- अरे कामिनी कहा मर गयी थी तू, तेरे बिना क्या हाल मेरा

वो- यार नानी मर गयी

मैं- कब

वो- चार पांच दिन हुए

मैं- ओह! ये तो ठीक न हुआ

वो- अच्छा हुआ चली गयी , इस उम्र तो हर कोई जाए

मैं- कब आई तू

वो- आज ही आये है

मैं- आते ही इधर

वो- अब इतने दिन हुए तुझे देखा नहीं बात करने का मूड था

मैं- मुझे भी तेरी मदद की जरुरत थी यार

वो- हां बता चूत छोडके क्या दू तुझे ,

मैं- चूत तो चाहिए ही

वो- ना दे सकती
 
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