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मैं आजकल उलझन में हूँ, तुम्हारा मेरे साथ अच्छा व्यवहार करना, मुझे देखकर मुस्कुराना, मुझसे ठीक से बात करना, इन सब बातों ने मुझे उलझन में डाल दिया है..
मैं उलझन से ज़्यादा डरी हुई हू... तुम्हारी मुस्कुराहट से... वो मुझे ऐसी उम्मीद देती है जो मैं नहीं चाहती...
हाल ही में मेरे चेकअप के दौरान डॉक्टर ने मुझे बताया है के मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है, कभी भी कुछ भी हो सकता है, मैं तुम्हारे बारे में सोचकर इतना रोई कि मैं तुम्हें फिर से खो दूंगी
मैं जीना चाहती हू अंश, मैं भविष्य की चिंता किए बिना खुशी से सास लेना चाहती हू, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती... हर दिन तुम्हें देखकर मुझे तुम्हारे साथ और जीने की इच्छा होती है..
लेकिन मैं तुम्हारे साथ ऐसा नहीं कर सकती... मैं तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकती, मैं चाहती हूँ कि तुम खुश रहो, चाहे मैं रहूँ या न रहूँ.. इसीलिए मैंने यह फ़ैसला लिया अंश
मुझे पता है कि तुम परेशान होगे और शायद मुझसे और भी नफ़रत करने लगोगे, लेकिन याद रखना कि मैं हमेशा तुमसे प्यार करूंगी..... अपनी आखिरी साँस तक सिर्फ़ तुमसे..
मैंने एक डिसीजन लिया है और मुझे उम्मीद है कि मैं शायद इसे पूरा कर पाऊंगी, आज जब मैंने तुम्हें देखा तो मैं तुम्हें देखती ही रह गई,
आज जब मैं उस पार्क के पास से गुजर रही थी जहा हम अक्सर मिला करते थे तो वही तुम मुझे वहा भी मिल गए, तुम मुझपर गुस्सा थे के में अंधेरे में सड़क पर अकेली चल रही थी लेकिन मैं खुश थी के एक बार और तुम्हे देख तो पाई, तुम्हारे साथ थोड़ा वक्त बिता पाई, मुझे नहीं पता आगे मैं तुम्हे कभी देख भी पाऊंगी या नही और शायद इसीलिए मैंने तुम्हे गले लगा लिया था, ये सोच कर के शायद अब हम दोबारा कभी ना मिले
मुझे माफ़ कर दो अंश , मुझे पता है कि ऐसा करके मैं तुम्हें और मेरे दोस्तों को दुख पहुंचा रही हु लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है
मै जा रही हु.....
बाय अंश...
आई लव यू
एकांश अक्षिता डायरी का आखिरी पन्ना पढ़ते हुए चुपचाप रो पड़ा उसे लगा कि उस समय उसके अंदर कितना कुछ चल रहा था, फिर भी वो अपनो के लिए मुस्कुरा रही थी एकांश मन में उथलपुथल लिए अक्षिता की उस डायरी को सीने से लगाकर वैसे ही सो गया..
******
अलार्म की आवाज़ सुनकर एकांश की नींद खुली, उसने अपना फ़ोन देखा और पाया कि वो रिमाइंडर अलार्म था, फिर उसे याद आया कि आज अक्षिता का डॉक्टर के पास चेकअप है,
वो अपने बिस्तर से उठकर जल्दी से तैयार हो गया और नीचे आकर दरवाजे के पास खड़ा हो उसका इंतजार करने लगा,
उसने अपनी घड़ी देखी और पाया कि सुबह के 10 बज चुके थे और अपॉइंटमेंट सुबह 11 बजे का था, इसलिए उन्हें वहाँ जल्दी पहुँचना था
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने दरवाजे के पास खड़े एकांश को देखकर पूछा
"उह...." एकांश समझ नहीं आया कि क्या कहे
"एकांश, क्या तुम कही बाहर जा रहे हो बेटा?" सरिताजी ने मुस्कुराते हुए एकांश से पूछा
"हा आंटी"
तभी अक्षिता अपना हैंडबैग लेकर अपनी मा को बाय कहती हुई बाहर आई
"I'll drop you.." एकांश ने अक्षिता ने कहा निस्पर वो थोड़ा ठिठकी
"उम्म... नहीं, मैं अकेले चली जाऊंगी।" अक्षिता ने एकांश की।और बगैर देखे कहा
"मैं सिटी साइड ही जा रहा हूँ मैं तुम्हें वहाँ तक छोड़ दूँगा" एकांश ने कहा
"मैंने कहा न नहीं" अक्षिता ने सख्ती से कहा और आगे बढ़ है
"मैंने कहा कि मैं तुम्हें ड्रॉप रहा हूँ और अब बात फाइनल हो गई" एकांश ने अक्षिता के आगे जाते हुए बात को आगे ना खींचते हुए कहा
"तुम मुझे इस तरह हुकुम नहीं दे सकते" अक्षिता गुस्से से उसकी ओर बढ़ते हुए चिल्लाई
"बिलकुल दे सकता हु अब चलो" उसने अपनी कार की ओर इशारा करते हुए कहा
" नहीं!"
" हाँ!"
" नहीं।"
" हाँ।"
"नहीं।"
"हाँ।"
"नहीं।"
"तुम्हें देर हो जाएगी अक्षिता अब बहस बंद करो और कार में बैठो"
"एकांश तुम मुझे इस तरह मजबूर नहीं कर सकते मैं तुम्हारे साथ नहीं आना चाहती और मैं नहीं आऊँगी"
"अक्षिता प्लीज, बहस करना बंद करो और जो मैं कहता हूँ वो करो" उसने गुस्से से कहा वही अक्षिता को उसकी आंखों चिंता नजर आ रही थी
और वो उसे चिंतित नहीं करना चाहती लेकिन वो उसे ये भी नहीं बता सकती कि वो कहां जा रही है
"अक्षु चली जाओ उसके साथ तुम्हें देर हो रही है और तुम्हें अंधेरा होने से पहले घर वापस भी आना है" दोनो के बीच बहस रुकती ना देख सरिताजी को ही बीच में बोलना पड़ा
"लेकिन माँ...." लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी ही नही करने दी
" अब चलो।" एकांश ने अपनी कार में बैठते हुए कहा
कुछ बुदबुदाते हुए अक्षिता गुस्से से कार में बैठ गई और एकांश सरिताजी को देखकर मुस्कुराया वही अक्षिता ये सोचकर चिंता में थी कि अब क्या होगा
अक्षिता के गाड़ी में बैठते एकांश ने राहत की सांस ली क्योंकि अब वो टाइम पर हॉस्पिटल पहुँच सकते थे, वो जानता था कि अक्षिता के चेहरे पर टेंशन क्यों था वो नही चाहती थी के एकांश को पता चले वो अस्पताल जा रही है, लेकिन एकांश उसे इस हालत में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में नही जाने दे सकता था
"तुम्हारी कार आज यहाँ क्यों है? रोज़ तुम्हारा ड्राइवर आकर तुम्हे पिक करता है ना?"
"वो इसीलिए के मैंने ड्राइवर से कहा था की वो कार यहीं छोड़कर चला जाए क्योंकि अब से मैं गाड़ी चलाऊंगा"
एकांश का जवाब सुन अक्षिता कुछ नही बोली और दोनो पूरे रास्ते चुप ही रहे, दोनो के ही दिमाग में अपने अपने खयाल चल रहे थे
******
वो लोग हॉस्पिटल के इलाके के दाखिल हो चुके थे और जैसे ही अक्षिता ने देखा वो लोग हॉस्पिटल पहुंचने ही वाले थे वो थोड़ा घबराई और उसने एकांश को एकदम गाड़ी रोकने कहा
"रुको रुको, मुझे यही उतरना है" अक्षिता ने अपनी बाईं ओर एक मॉल कीमोर इशारा किया
"यहाँ?"
"हाँ, वो... मुझे... थोड़ी शॉपिंग करनी थी" अक्षिता ने वापिस मॉल की ओर इशारा करते हुए कहा
अक्षिता क्या करने की कोशिश कर रही है ये एकांश समझ गया था और इस बात का उसे गुस्सा भी आया था लेकिन वो इस वक्त बहस नही करना चाहता था इसीलिए उसने तुरंत गाड़ी रोक दी और वो तुरंत नीचे उतर गई और उसके वहा से जाने का इंतज़ार करने लगी
एकांश बिना अक्षिता की ओर देखे और उससे कुछ भी कहे बिना वहां से तेजी से चला गया, उसे अक्षिता के झूठ बोलने पर बुरा लगा लेकिन उसके पास कोई और रास्ता नहीं था, अक्षिता तब तक वहीं रुकी रही जब तक एकांश की कार उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गई और फिर अस्पताल की ओर चल पड़ी जो सिर्फ़ 5 मिनट की दूरी पर था
इधर एकांश ने हॉस्पिटल की पार्किंग में अपनी कार रोकी और गुस्से में अपना हाथ स्टीयरिंग व्हील पर पटक दिया
'वो मुझे अन्दर क्यों नहीं आने दे सकती? क्यों सच नही बोल सकती? तब चीजे कितनी आसान हो जाएगी लेकिन इस बारे में इससे बात करू भी तो कैसे करू वो टेंशन में आ जाएगी इससे तबियत और बिगड़ जाएगी'
एकांश ने मन ही मन सोचा और अपनी आँखें बंद कर लीं और पार्किंग में उसका इंतज़ार करने लगा
इधर अक्षिता हॉस्पिटल में पहुंच कर अपनी बारी का इंतजार करने लगी और जैसे ही उसका नंबर आया वो डॉक्टर के केबिन में चली गईवह अस्पताल में गई
"हेलो डॉक्टर अवस्थी" उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा
"आओ अक्षिता, कैसी है आप?" डॉक्टर ने पूछा
"बढ़िया" अक्षिता ने कहा जिसके बाद डॉक्टर ने उसका रेगुलर चेकअप करना शुरू किया, आंखे, ब्लडप्रेशर यही सभी रेगुलर चेकअप वही अक्षिता थोड़ी डरी हुई दिख रही थी के डॉक्टर क्या कहेगा
"You're good" डॉक्टर ने कहा
"क्या?" अक्षिता को तो पहले यकीन ही नहीं हुआ
"अक्षिता, तुम्हारी सेहत में सुधार हो रहा है और ये साफ दिख रहा है, पिछले चेकअप के हिसाब से तुम अब बेटर लग रही हो, तुम्हारी स्किन का कलर भी पहले से कम पीला है, तुम्हारी आँखों के नीचे काले घेरे और बैग नहीं हैं, ब्लड प्रेशर भी नॉर्मल है..... इन सबका मतलब है कि तुम टेंशन फ्री हो जो एक बहुत अच्छा संकेत है और इसका तुम्हारे हेल्थ पर भी बहुत अच्छा असर पड़ेगा" डॉक्टर ने कहा
"थैंक यू डॉक्टर, शायद आपकी नई दवाइयां मुझ पर अच्छा असर दिखा रही हैं"
"हा ऐसा कह सकते है लेकिन अक्षिता, तुममें जो सुधार हुआ है, वह सिर्फ़ दवाइयों की वजह से नहीं है" डॉक्टर ने कहा
"आप कहना क्या चाहते है डॉक्टर?"
"पहले तुम्हारे कुछ टेस्ट कर लेते है फिर इस बारे में बात करेंगे" जिसके बाद उन्होंने अक्षिता के कुछ टेस्ट्स किए कुछ एक्स-रे और MRI के सत्र समाप्त होने के बाद, वो डॉक्टर के केबिन में वापस आ गए और कुछ ही समय में अक्षिता के रिपोर्ट्स भी उनके सामने थे
"See this is what I call improvement" डॉक्टर ने रिपोर्ट्स देखते हुए कहा वही अक्षिता अब भी थोड़ा डर रही थी लेकिन कुछ बोली नहीं तो डॉक्टर ने बोलना शुरू किया
"अक्षिता, अब शायद एक डॉक्टर के मुंह से ये बात सुन के तुम्हे अजीब लग सकता है, लेकिन इस दुनिया में दवाओं के अलावा भी ऐसी चीजे है जो आपको हिल कर सकती है, ऑफकोर्स दवाइयां जरूरी है लेकिन कुछ उससे भी ज्यादा जरूरी है"
"क्या?"
"प्यार..."
डॉक्टर के शब्द सुन अक्षिता सन्न रह गई
"प्यार घाव भर देता है, जिन लोगों से हम प्यार करते हैं उनसे मिलने वाला प्यार हमें यह भूला देता है कि हम क्या दुख झेल रहे हैं और जब हम उनके साथ होते हैं तो हम खुश होते है, जब आप अपने प्यार के साथ होते हैं तो आपको जो खुशी मिलती है वो आपके मन और आत्मा के सबसे गहरे घावों को भर देती है" डॉक्टर ने कहा और अक्षिता की ओर देखा जो उन्हें ही देख रही थी
"मैं किसी फिल्म की कहानी या किसी फेरी टेल की बात नहीं कर रहा हु ऐसा कई बार हुआ भी है, कभी-कभी आपको बस प्यार की जरूरत होती है..... सिर्फ प्यार की"
"जब आप अपने अपनो के साथ होते हैं तो आपको जो खुशी मिलती है, वह आपके शरीर में कुछ हार्मोन उत्पन्न करती है जो टेंशन को दूर करता है, अपने आप को ही देखो तुम टेंशन फ्री लग रही हो जो की हमारे ट्रीटमेंट के लिए काफी अच्छा है" डॉक्टर ने कहा
डॉक्टर की बातो पर अक्षिता ने गौर किया तो पाया कि आजकल वो बहुत खुश है, उसे बुरे सपने नहीं आते और सोते समय वो रोती नहीं थी उसे चक्कर या बेचैनी भी नहीं होती थी, उसे अब सिर दर्द नहीं होता था, वह उठकर डॉक्टर के केबिन में लगे आईने के पास गई, उसने आईने में अपने आप देखा और उसे देखकर पलकें झपकाई, उसका चेहरा पहले की तरह सामान्य था और उसकी आँखों के नीचे कोई झुर्रियाँ या काले घेरे नहीं थे।,फिर उसे एहसास हुआ कि आजकल वह रोज़ाना शांति से सो रही थी और उसके चेहरे पर मुस्कान थी उसकी आँखों और चेहरे पर चमक लौट आई थी..
डॉक्टर ने ये बातें इसलिए नहीं कही क्योंकि उन्हें पता था कि एकांश अक्षिता से प्यार करता है, बल्कि इसलिए कही क्योंकि उनके सामने सुधार साफ तौर पर दिख रहा था एकांश उन्हें खुश रख रहा था और साथ ही उसकी जिंदगी को टेंशन फ्री भी कर रहा था
अक्षिता ने आईने में अपने आप को देखा और फिर डॉक्टर को देखा और फिर उसके ध्यान में आया के ये बस एक इंसान की वजह से था... एकांश की वजह से...
एकांश के बारे में सोचते ही उसकी आंखे भरने लगी थी वो इन दिनों खुश थी क्योंकि वह उसे खुश कर रहा था, उसे रोज़ देखना, उससे बात करना, उससे लड़ना, उसे चिढ़ाना, उसके साथ सितारों को निहारना..... एकांश के वहा होने से अक्षिता ने उसके बारे में सोचना चिंता करना बंद कर दिया था, एकांश के साथ होने से वो वापिस जिंदा महसूस करने लगी थी
इन सभी भावनाओं के बीच, जो वो अभी महसूस कर रही थी एक और फीलिंग थी जिसे वो नजरंदाज नहीं कर सकती थी जो उसके दिल में उठ रही थी...
होप
अक्षिता अपनी दवाइयाँ खरीदने के बाद गहरी सोच में डूबी हुई हॉस्पिटल से बाहर निकली, वो सड़क पर इधर-उधर देखती हुई चल रही थी, लेकिन उसका मन कहीं और था
वो चलते चलते रुकी जब उसने देखा कि एकांश कार पर टिका हुआ उसकी ओर ही देख रहा था और वो ठीक उसी जगह खड़ा था जहा उसने मॉल के सामने उसे छोड़ा था
वो घबरा गई क्योंकि जब उसने तो एकांश बताया था कि वो शॉपिंग करने आई है तो अगर उसने पूछ लिया कि वो दूसरी दिशा से क्यों आ रही है फिर वो क्या जवाब देगी, और यही सब सोचते हुए वो एकांश के सामने आकर खड़ी हो गई
लेकिन एकांश ने कुछ नहीं कहा, उसने बस उसे कार में बैठने का इशारा किया, तभी उसका फोन बजने लगा, उसने कार का दरवाज़ा बंद किया और फोन पर बात करने लगा...
इस दौरान अक्षिता बस उसे देखती रही, वो क्या बात कर रहा था सुन तो नहीं पाई लेकिन उसने उसके हाव-भाव देखे, फ़ोन पर बात करते वक्त एकांश थोड़ा टेंशन में था लेकिन बीच-बीच में उसके चेहरे के भाव नरम पड़ गए और आखिरकार उसके चेहरे पर कुछ डिटरमिनेशन वाले भाव आ गए
अपनी बात खत्म करने के बाद एकांश चुपचाप कार में बैठ गया और गाड़ी चलाने लगा, एक तरफ अक्षिता घबराई हुई थी कि जब वो उससे पूछेगा कि वो कहाँ थी या उसने क्या खरीदा तो वो क्या कहेगी, दूसरी तरफ एकांश ऐसे शांत था जैसे वो कार में मौजूद ही न हो
गाड़ी खामोशी से चल रही थी जिसे एकांश के फोन की रिंगटोन ने तोड़ा एकांश ने अपने फोन की तरफ देखा, लेकिन जवाब देने की जहमत नहीं उठाई, लेकिन फिर से उसका फोन बज उठा, जिससे अक्षिता के माथे पर बल पड़ गए, क्योंकि इस बार एकांश ने फोन की तरफ देखा तक नहीं
जब तीसरी बार फोन बजा तो अक्षिता फोन पर नज़र डाली जो उसकी सीट के पास सॉकेट में रखा था उसने नाम देखा तो पाया के फोन एकांश को मां का था जिसे वो रिसीव नही कर रहा था वही अक्षिता उलझन में थी के वो अपनी मां का फोन क्यों नहीं उठा रहा है
"तुम्हारा फ़ोन बज रहा है" अक्षिता ने कहा
"पता है" एकांश ने रास्ते पर ध्यान देते हुए कहा
"तो फिर रिसीव करो"
एकांश ने एक नज़र अक्षिता को देखा और फिर रोड की ओर देखने लगा
"एकांश तुम्हारी मां का कॉल है" अक्षिता ने एकांश को देखते हुए कहा
"जानता हु" एकांश ने कहा
"तो फिर इसका जवाब क्यों नहीं देते?"
लेकिन एकांश चुप रहा
"एकांश ?"
"मैं गाड़ी चलाते समय बात नहीं करना चाहता, घर पहुंचने पर कॉल कर लूंगा"
एकांश ने कह तो दिया लेकिन अक्षिता समझ गई थी के कुछ तो गड़बड़ है, वो एकांश को अच्छी तरह जानती थी और ये भी जानती थी के वो अपनी मां से बहुत प्यार करता है और वो उनके बेहद करीब भी है और वो कही भी कार रोक कर उनसे बात कर सकता था लेकिन उसने ऐसा नही किया साफ समझ आ रहा था के वो अपनी मां के कॉल को अनदेखा कर रहा था
******
कार रुकी तो अक्षिता को अचानक अपनी सोच से बाहर आई, उसने इधर-उधर देखा और एकांश को देखने लगी जो कार से बाहर निकल रहा था, वह उसके पास आया और उसने उसकी तरफ का दरवाज़ा खोला
"आओ कुछ खा लेते है" एकांश ने अक्षिता से कहा जो कार में बैठी हुई उसे देख रही थी
"हम तो घर ही जा रहे हैं ना वही खा लेंगे" अक्षिता ने सामने के आलीशान रेस्टोरेंट को देखते हुए कहा
"मुझे बहुत भूख लगी है अक्षिता प्लीज आ जाओ" एकांश ने कहा
"ठीक है" कहते हुए अक्षिता भी कार से बाहर निकली
वे उस रेस्तरां में गए जो किसी 5 स्टार होटल से कम नहीं था
"मैंने इस जगह के हिसाब से कपड़े नहीं पहने हैं।" अक्षिता ने वहा मौजूद दूसरी लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा और एकांश ने चलते हुए रुककर रेस्टोरेंट में मौजूद दूसरी लड़कियों को देखा फिर उसने अक्षिता और उसकी ड्रेस को देखा
"क्यों क्या हुआ?" एकांश ने उलझन में पूछा
"यह ऐसे पॉश रेस्तरां के लिए ठीक नहीं है" अक्षिता ने धीमे से
"देखो अक्षिता..... कपड़ों को लेकर ऐसा कोई नियम नहीं है कि सिर्फ़ ऐसे ही कपड़े पहनने चाहिए, wearing revealing clothes doesn't make them posh or elegant it's one's attitude and decency that makes them look presentable" एकांश ने अक्षिता की आँखों में देखते हुए कहा वही अक्षिता कुछ नही बोली बस उसे देखती रही
"और मेरे लिए तो तुम एकदम... परफेक्ट हो।" एकांश ने अक्षिता को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा
वही अक्षिता अपने चेहरे पर आई शर्म छिपाने दूसरी तरफ देखने लगी लेकिन उसके चेहरे पर एक स्माइल दी जिसे देख एकांश के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई
वो अंदर जाने लगे और एकांश ने अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता हैरान होकर उसे देखती रही, जबकि वो चलते हुए बस आगे की ओर देख रहा था..
"गुड मॉर्निंग सर।" मैनेजर ने एकांश का स्वागत करते हुए कहा
"मॉर्निंग..... हमें पूल साइड में एक टेबल चाहिए" एकांश ने कहा
"श्योर सर..... मेरे साथ आइए।" उसने कहा और वे दोनो उसके पीछे चले गए
"तुमने पहले ही टेबल रिजर्व करा लिया है?" अक्षिता ने एकांश ने पूछा
"मुझे कोई रिजर्वेशन कराने की जरूरत नहीं है" एकांश ने कहा
"हा... बेशक... अमीर लोग" अक्षिता ने बुदबुदाते हुए कहा लेकिन एकांश ने सुन लिया
"मैंने सुना तुमने क्या कहा"
"अच्छा.." अक्षिता ने कहा और मासूमियत से उसकी ओर मुस्कुराई जिसके बाद एकांश कुछ नही बोला
मैनेजर ने उन्हें टेबल दिखाया और वे इधर-उधर देखने लगे एक वेटर वहा आया और उन्हें मेन्यू कार्ड थमा दिया अक्षिता को मेन्यू में लंबी लिस्ट देखकर समझ नहीं आया कि क्या ऑर्डर करें, इसलिए उसने अपनी पसंदीदा डिश ऑर्डर कर दी और एकांश ने भी वही डिश ऑर्डर की...
"पानी ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए..... नॉर्मल वाटर" एकांश ने वेटर से कहा
वेटर ने अपना सिर हिलाया और उनका ऑर्डर लाने चला गया
"बाहर बहुत गर्मी है, तुमने ठंडा पानी क्यों नहीं मंगवाया?" अक्षिता ने पूछा
"बस यूंही मुझे ठंडा पानी पीने की इच्छा नहीं थी इसीलिए "
अक्षिता पूल की ओर देख रही थी वही एकांश उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था
"You like it here?" एकांश ने पूछा
"Yeah..... It's beautiful" अक्षिता मुस्कुराते हुए कहा
जल्द ही उनका ऑर्डर आ गया और दोनो के दिमाग में इस वक्त कई खयाल चल रहे थे इसीलिए दोनो में से कोई ज्यादा बात नहीं कर रहा था और दोनो अभी खाना खा ही रहे थे के तभी
"हेलो मिस्टर रघुवंशी"
उन्होंने किसी की आवाज सुनी और ऊपर देखा तो स्कर्ट और टॉप पहने एक लड़की खड़ी थी जिसने अभी अभी एकांश को आवाज दी थी
"ओह! हेलो, मिस सक्सेना" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा
अक्षिता ने उस लड़की की तरफ देखा जो मुस्कुरा रही थी और एकांश को सेडेक्टिव नजरों से देख रही थी
"It's been a long time" उस लड़की ने कहा
"Yeah..."
"Why don't we hang out sometime?" उसने एकांश से पूछा और अक्षिता ने अपना जबड़ा कस लिया और उसे नहीं पता कि ये जलन थी या गुस्से की वजह से था लेकिन उसे अब ये एहसास हुआ कि अब उसका एकांश पर कोई अधिकार नहीं था और वह जिसके साथ चाहे रह सकता था और ये खयाल आया ही उसने अपनी नजरे प्लेट को और कर ली
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा जो चुपचाप अपनी प्लेट की ओर देख रही थी
"मिस सक्सेना... We'll talk later when we meet again.. अभी मैं थोड़ा व्यस्त हु" एकांश ने पूरी विनम्रता से कहने की कोशिश की क्युकी वो उसकी क्लाइंट भी थी
"ओह, वैसे ये कौन है?" उसने अक्षिता की ओर देखते हुए पूछा
अक्षिता ने चुपचाप उसकी ओर देखा और फिर एकांश की ओर
"मेरी गर्लफ्रेंड..." एकांश ने दोनों लड़कियों को चौंकाते हुए एकदम से कहा
अक्षिता बस उसे चकित नजरो से देखती रही, जबकि वो लड़की अविश्वास भरी नज़रों से पहले एकांश को और फिर अक्षिता को देख रही थी
"Oh we are on a date... Will you please excuse us?" एकांश ने पूछा
"Umm..... Yeah..... Of course" इतना कह कर वो लड़की वहा से निकल गई
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा जो उसकी ओर ही देख रही थी लेकिन उसने चुप रहना ही ठीक समझ
"एकांश ?"
"हम्म" एकांश ने खाना खाते हुए कहा
"तुमने अभी अभी क्या किया?"
"मैंने क्या किया? मैं तो बस खाना खा रहा हूँ" एकांश ने आराम से कहा
"नहीं, मेरा मतलब वही है जो तुमने अभी कहा?"
"किस बारे में?"
"तुमने उससे ये क्यों कहा कि मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूँ?" अक्षिता ने झल्लाकर पूछा
"म्म्म्म्म्म्म..... यहा का खाना काफी टेस्टी है यार" एकांश ने अक्षिता के सवाल को इग्नोर करते हुए कहा
"एकांश."
"क्या?"
अक्षिता घूर के एकांश को देखने लगी
"ठीक है ठीक है..... मैंने उससे छुटकारा पाने के लिए ऐसा कहा था.. अब खुश"
वैसे तो अक्षिता इस जवाब से संतुष्ट नही थी लेकिन उसने फिलहाल इस बात को नजरअंदाज कर दिया
खाना खत्म करने के बाद उन्होंने बिल चुकाया और रेस्टोरेंट से बाहर चले गए दोनों कुछ देर तक चुपचाप बैठे रहे लेकिन अक्षिता के पास पूछने के लिए कई सवाल थे...
"एकांश "
"हा?"
"तुमने उसे क्यों रिजेक्ट कर दिया?" अक्षिता ने धीमे से पूछा
"रिजेक्ट? किसे?"
"उस दिन जो लड़की तुम्हारे पास आई थी और जिसने तुम्हें प्रपोज किया था...... तुमने उसे क्यों मना कर दिया?" अक्षिता ने पूछा
"क्योंकि मैं उसके लिए वैसा फील नहीं करता" एकांश ने सीरियस टोन में कहा
"क्यों?" इस बार अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए पूछा
एकांश ने स्टीयरिंग व्हील को कसकर पकड़ लिया और खुद को कंट्रोल करने की कोशिश करने लगा
"वो सुंदर है, इंडिपेंडेंट है और सबसे जरूरी बात यह है कि वह तुमसे प्यार करती है तुम्हें खुश होना चाहिए कि वह तुम्हें चाहती है" अक्षिता सभी बातो को जोड़ते हुए कहा
एकांश की आंखें नम हो गईं जब उसने अक्षिता की ओर देखा, ऐसा लग रहा था जैसे वह खुद की तुलना अमृता से कर रही हो
"हो सकता, लेकिन मुझे वह पसंद भी नहीं है" एकांश ने कहा।
" लेकिन..... "
"शशश......ज्यादा मत सोचो.. बस अपनी आँखें बंद करो और कुछ देर आराम करो" एकांश ने धीरे से कहा
अक्षिता अपनी आँखें बंद करके अपनी सीट पर पीछे झुक गई.. एकांश ने उसकी तरफ देखा और सोचा कि शायद अमृता वाली की घटना ने उसे उससे ज़्यादा प्रभावित किया है जितना उसने सोचा था क्योंकि वो अभी भी इसे नहीं भूली थी
कुछ ही देर में अक्षिता अपनी सीट पर सो गई और एकांश समय-समय पर उसे देखता रहा, वो घर पहुंचे और एकांश उसे उसके कमरे में ले गया, ताकि उसकी नींद में खलल न पड़े.. उसने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और उसके माथे को चूमा..
अक्षिता बहुत अच्छी थी, उसकी सेहत में भी सुधार हो रहा था, उसके चेहरे पर चमक लौट आई थी, उसके चेहरे पर उसकी खूबसूरत मुस्कान भी लौट आई थी
रीजन?
एकांश!
वो दोनो एक दूसरे की खुशी का कारण थे
एकांश ने जब अक्षिता की सुधरती हालत के बारे में डॉक्टर से बात की तो उन्होंने भी बताया के अक्षिता का खुश रहना कितना जरूरी है, इससे जबरदस्ती के स्ट्रेस से बचा जा सकता है जो अक्षिता की सेहत के लिए बिल्कुल भी सही नही था
अक्षिता के माता-पिता अपनी बेटी के मुस्कुराते चेहरे को देखकर बहुत खुश थे, वो अपनी बेटी को जानते थे वो जानते थे के अक्षिता भले की उनके सामने मुस्कुरा देती हो लेकिन उसकी वो मुस्कान फीकी थी, वो अपना दर्द छुपाने में माहिर थी
लेकिन अब हालत अलग थी उनकी बेटी खुश थी और मुस्कुरा रही थी और वो जानते थे कि ये सब एकांश की वजह से है, अक्षिता के खुश रहने के पीछे एकांश का वहा होना ही था
एकांश उसके सामने था, वो रोज उसे देख पा रही थी इसीलिए उसे अब रोज रोज एकांश को चिंता नहीं होती थी और इन्ही सब चीजों ने मानो अक्षिता के जीवन को तनावमुक्त बना दिया था जिसका उसकी तबियत पर पॉजिटिव असर हो रहा था, उसकी सेहत सुधर रही थी
******
"एकांश, तुम कितने चिड़चिड़े हो यार!" अक्षिता ने एकांश से कहा
"तुम मुझे मस्त नींद से जगाकर अपने साथ खेलने ले आई और मैं चिड़चिड़ भी न करू" एकांश ने झल्लाकर जवाब दिया
"बिल्कुल”
"मैं सोना चाहता हु अक्षिता" एकांश ने गिड़गिड़ाते हुए कहा
"नहीं क्युकी अभी हमे एक प्लेयर की जरूरत है"
"मैं खेलने के मूड में नहीं हूँ" एकांश कहा और आँखें बंद करके दीवार से टिक गया
"अरे चलो भी! आज तुम्हारी छुट्टी है"
" करेक्ट! आज मेरी छुट्टी है और मैं सोना चाहता हूँ"
"एकांश, प्लीज" अक्षिता ने प्यार से कहा और एकांश ने बस उसकी ओर देखा
"प्लीज़......" अक्षिता ने दोबारा प्यार से अपनी पलकें झपकाते हुए कहा
" उर्ग्घघ्ह्ह्हह्ह......."
"प्लीज......" और जब एकांश प्यार से नहीं माना तो अक्षिता ने इस बार हल्के गुस्से से कहा
“ठीक है...... चलो" और एकांश उसके साथ चला गया
खेलना भी क्या था अक्षिता को मोहल्ले के बच्चों के साथ टाइमपास करना था जिसके लिए वो एकांश को भी अपने साथ ले आई थी जिसमे एकांश का बिल्कुल इंटेरेस्ट नहीं था, वो पूरा टाइम अक्षिता को देखता रहा और उसे देखने के अलावा उसके कुछ नहीं किया, वो जब जीतती तो उसके चेहरे की हसी देख कर ही एकांश को सुकून मिल रहा था
कुल मिला कर अब हालत सुधर रहे थे अक्षिता की सेहत का सुधार देख सब खुश थे, डॉक्टर ने उन्हे बताया था के हाल ही के रेपोर्ट्स जो विदेशी डॉक्टर को बताए थे उनसे सलाह लेकर अक्षिता की दवाईया बदल दी गई थी जिससे उसकी सेहत को और फायदा होने वाला था
और सबसे ज्यादा एकांश इसीलिए खुश था के अक्षिता के उसे उसके वहा रहने पर परेशान करना बंद कर दिया था हालांकि ये बात वो जानता था के वो जानती है के वो वहा उसके लिए था लेकिन दोनों ही इस मामले मे चुप थे क्युकी यही सबके लिए अच्छा था
एकांश की नजरे इस वक्त अक्षिता पर टिकी हुई थी जो बच्चों के साथ खेल रही थी उन्हे चिढ़ा रही थी हास रही थी थी और उसके हसते देख एकांश के चेहरे पर भी मुस्कान थी साथ हाइ वो ऊपरवाले से प्रार्थना भी कर रहा था के अक्षिता की ये हसी कभी ना खोए
पिछले कुछ दिन वाकई बहुत अच्छे रहे थे, वो उसके लिए खाना लाती थी, उसके ऑफिस के काम में उसकी मदद करती थी दोनों काफी टाइम साथ रहते थे और एकांश समय-समय पर उसके डॉक्टर से संपर्क में रहता था ताकि वह उसके हेल्थ में हो रहे सुधार के बारे में जान सके
एकांश गेट के पास खड़ा होकर अक्षिता को बच्चों के साथ खेलते हुए देखता रहा, जब तक कि उसे एक जानी-पहचानी शख़्सियत अपनी ओर आती हुई नहीं दिखी, उसने याद करने की कोशिश की कि उसने उस शख़्स को कहा देखा था, लेकिन जब तक वो शख़्स उसके सामने नहीं आ गया, तब तक उसे समझ नहीं आया
" मिस्टर रघुवंशी"
उस शक्स ने कहा और अब एकांश ने उसे पहचान लिया था
"तुम यहा क्या कर रही हो?" एकांश ने हैरान होते हुए पूछा
"आपसे मिलने आई हु"
"क्यों? आपका पेमेंट सही नहीं हुआ था क्या" एकांश ने उससे पूछा
"वो बात नहीं है वो... दरअसल... क्या हम कहीं और जाकर अकेले में बात कर सकते हैं?"
एकांश को पहले तो कुछ समझ नहीं आया के वो क्या बोल रही है इसीलिए उसने वही बात करने का फैसला किया
"मेरी हिसाब से ये जगह ही सही है बताइए क्या कहना है आपको" एकांश ने कहा लेकिन वो शक्स कुछ नहीं बोली
"अब बोलो भी?" एकांश ने वापिस कहा
" I want you!"
एकांश ये सुनकर दंग रह गया था उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था
"क्या?" एकांश ने चौक कर पूछा
"Yes, I want you!" उसने कहा
"मिस अमृता, क्या आप पागल हो गई हैं?" एकांश ने गुस्से मे कहा
वो डिटेक्टिव अमृता थी जिसने अभी अभी एकांश को एक हिसाब से प्रपोज ही कर दिया था
"No, I am in Love" अमृता रुकी फिर आगे कहा "with you!"
एकांश तो उसकी बात सुन कर ही सुन्न हो गया था
अमृता ने उसके हाथ अपने हाथों में लिए और बोलना शुरू किया
"मुझे नहीं पता कि ये कैसे और कब हुआ, लेकिन यह हुआ, I was tired of guys and their ways around me but you were different, I know you were my client and trust me I am very professional to fall in love with my client but it happened हालांकि तुमने भले ही मेरी साथ हमेशा रुख ही व्यवहार किया लेकिन मैंने तुम्हारी आँखों में जो ईमोशनस् देखे थे बस उन्होंने ही मुझे तुम्हारी ओर खींचा, उस दिन तुमसे दूर जाना मेरे लिए काफी मुश्किल था और उसके बाद जब मैं घर गई तो मेरी दिमाग मे सिर्फ तुम ही थे, तभी मुझे ये एहसास हुआ कि मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ I am madly in love with you" अमृता ने एकांश की आँखों में गौर से देखते हुए सब कुछ कहा
अमृता ही बात सुन एकांश काफी ज्यादा शॉक था उसने उसकी तरफ देखा जो उम्मीद से उसे ही देख रही थी, सब कुछ शांत था और फिर अचानक एकांश को एहसास हुआ कि वो इस वक्त बाहर खड़ा था और उनके आसपास काफी लोग थे
उसने अपना सिर अक्षिता की ओर घुमाया जो वहीं खड़ी उसे और अमृता को ही देख रही थी जब उसने देखा कि अक्षिता चेहरे पर सूनापन लिए उसे देखते हुए ही घर के अंदर जा रही है तब वो थोड़ा घबराया और जल्दी से अमृता के हाथ से अपना हाथ छुड़ाया
" Leave!"
एकांश ने कहा लेकिन शायद अमृता को वो सुनाई ना दिया
"क्या?"
"Just Leave!" एकांश ने अपने दाँत पीसते हुए थोड़े गुस्से मे कहा, हालांकि उनका अमृता के लिए ये रवैया सही नहीं ठहराया जा सकता था लेकिन वो अक्षिता को लेके इस वक्त इतना पज़ेसिव था के सही गलत या अक्षिता के सामने कीसी और की फीलिंगस का उसके सामने इस वक्त तो कोई मोल नहीं था और जब उसके अक्षिता को उदास चेहरे के साथ घर मे जाते देखा तो अब उसका गुस्सा अमृता पर निकलने तयार था
"But I Love you" अमृता ने कहने की कोशिश की लेकिन एकांश ने गुस्से से अपना सिर उसकी ओर घुमाया जिससे थोड़ा डर कर वो पीछे हट गई
"तुम जानती भी हो कि प्यार क्या होता है?" एकांश ने पूछा
"Do you know what love does to you?"
"तुम जानती हो तुमने अभी अभी क्या किया है और तुम्हारे बिना सोचे समझे किए इस काम का क्या परिणाम हो सकता है?"
"उसकी जिंदगी पहले की तरह नॉर्मल बनाने मे कितना वक्त और मेहनत लगी है जानती हो?"
"हमारी जिंदगी की जरा भी भनक आपको होती मैडम डिटेक्टिव तो तुम यहा नहीं आती तुम जानती हो हम इस वक्त किस फेज से गुजर रहे है?"
"अपना हर पल बस इसी डर में जी रहे हैं कि आगे क्या होगा"
"जानती भी हो की मुझपर इस वक्त क्या बीत रही है यह जानते हुए कि कुछ ही समय में सब कुछ खत्म हो जाएगा?"
एकांश ने अमृता पर एक के बाद एक सवाल दाग दिए वही अमृता उसके चेहरे पर आया दर्द और गुस्सा देख अचंभे मे थी
"देखो अमृता मैं नहीं जानता के तुमने मुझमे ऐसा क्या देखा या मैंने कभी भी तुम्हें कोई ऐसा हिंट नहीं दिया जिससे लगे के हमारा कुछ हो सकता है इसीलिए ये बात दिमाग मे डाल लो की मैं तुमसे प्यार नहीं करता और न कभी करूंगा, ये बात बोलने मे मैं थोड़ा तुम्हें रुड लगूँगा लेकिन यही सच है अब प्लीज यहां से चली जाओ और मुझसे दोबारा मुझसे मिलने की कोशिश ना करना" एकांश ने सख्ती से कहा और घर मे जाने के लिए मूडा
"तुम उससे प्यार करते हो, है न?" अमृता ने पूछा
"हाँ, मैं उससे और सिर्फ़ उससे ही प्यार करता हूँ और आखिरी साँस तक उसीसे करत रहूँगा" एकांश ने कहा और घर मे चला गया
अमृता वही वही खडी रही, उसके एकांश की आँखों मे प्यार देखा था लेकिन वो उसके लिए नहीं था और बस यही सोचते हुए उसकी आँख भरने लगी थी, उसे इस बात का भी अफसोस हो रहा था के उसे ये बात पहले ही समझ जानी चाहिए थे जब उसने एकांश को अक्षिता के लिए इतना व्याकुल देखा था, शायद वो समझ भी गई थी लेकिन शायद उसका दिल मानने को राजी नहीं था और इसीलिए शायद वो यहा आई थी अपने प्यार का इजहार करने जो शायद उसे कभी ना मिले और अब वहा रुकने का और कोई रीज़न नहीं था तो उसने एक बार जाते हुए एकांश को देखा और वहा से चली गई
इधर एकांश जब घर के अन्दर आया तो उसे अक्षिता कही दिखाई नहीं दी
"अक्षिता कहाँ है?" एकांश ने सरिताजी से पूछा
"वो अपने कमरे में है और और उसने खुद को अंदर से बंद कर लिया है, चिंता मत करो उसे अकेले रहना होता है तब वो ऐसा ही करती है" सरिताजी ने एकांश के चिंतित चेहरे को देखते हुए कहा
"ओह."
"एकांश कुछ हुआ है क्या बेटा?"
"नहीं कुछ नहीं... मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ आंटी आप प्लीज उसका ख्याल रखना" एकांश ने कहा
"हा बेटा.... लेकिन तुम ठीक तो हो?" उसने चिंतित होकर पूछा
"मैं ठीक हूँ" ये कहकर एकांश मुड़ा और अपने कमरे में चला गया
जैसे ही वो अपने कमरे में दाखिल हुआ, वो यह सोचकर घबरा गया कि अक्षिता क्या सोच रही होगी और क्या सब कुछ फिर से पहले जैसा हो जाएगा...
उसने भगवान से बस यही प्रार्थना की कि इसका असर उनकी सेहत पर न पड़े
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" हैलो?"
"....."
" हैलो?"
"....."
"कौन है?" रोहन ने पूछा
"हमारे उस बेवकूफ बॉस ने मुझे फोन किया है लेकिन कुछ बोल नहीं रहा"
"हैलो? एकांश?"
"हैलो."
"आह... फाइनली तुमने कुछ बोला हो” स्वरा ने झल्लाते हुए कहा
"स्वरा.... मैं...." एकांश को समझ नहीं आ रहा था के क्या कहे
"एकांश क्या हुआ है तुम काफी परेशान साउन्ड कर रहे हो?" स्वरा ने चिंतित होकर पूछा।
"मैंने गड़बड़ कर दी.... मैं.."
"एकांश प्लीज हमें बताओ कि क्या हुआ है ऐसे डराओ मत, सब ठीक है न? अक्षु ठीक है ना?
"सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन फिर.... आज अमृता यहाँ आई और उसने मुझसे प्रपोज कर दिया और अक्षिता ने सब सुन लिया और अब उसने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया है" एकांश ने उदास होकर कहा
"WTH! और ये अमृता कौन है?" स्वरा ने कन्फ्यूज़ टोन मे पूछा
"अमृता वो प्राइवेट डिटेक्टिव है जिसे अमर ने अक्षिता को को ढूँढने के लिए हायर किया था" एकांश ने रोहन को स्वरा को समझाते हुए सुना वही स्वरा अमर को उलट सीधा बोलने लगी
"अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ तो प्लीज कोई रास्ता हो तो बताओ" एकांश ने स्वरा के चुप होते हो कहा
" बस जाओ और उससे बात करने की कोशिश करो" स्वरा ने कहा
" ठीक है"
"और चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा"
"थैंक्स" इतना कह कर एकांश ने फोन काट दिया
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एकांश ने अपनी खिड़की से घर के अंदर झाँका लेकिन उसे अक्षिता कहीं नहीं दिखी वो अपने कमरे से बाहर आया और सीढ़ियों से नीचे चला गया जब उसने सीढ़ियों की आखिरी सीढ़ी पर बैठी अक्षिता को देखा तो वो रुक गया
जब उसने देखा कि यह अक्षिता थी तो उसने राहत की सास ली, अक्षिता अपना सिर दीवार पर टिकाए हुए थी और उसकी आँखें रात के आसमान में तारों को देख रही थीं
वो धीरे-धीरे उसके पास आया और उसके बगल में बैठ गया, एकांश अक्षिता को देख रहा जबकि अक्षिता आसमान को, उसने एकांश को अपने पास महसूस किया और ये भी महसूस किया कि वो उसे देख रहा था, लेकिन उसने उसकी तरफ़ नहीं देखा
बहुत दिनों बाद उन्हें अपने लिए वक्त मिला था..... अकेले, वो खुश थे कि वहाँ सिर्फ़ वो दोनों थे..... एकांश, अक्षिता और रात का आसमान
अक्षिता यही सोचकर मुस्कुराई और एकांश हैरान होकर उसकी ओर देखने लगा, वो जानना चाहता था कि वो क्या सोच रही थी
एकांश के सारे खयाल तब गायब हो गए जब उसने भी तारों से भरे आसमान को देखा जो एकदम शांत था और ऐसा सालों बाद हुआ था जब वो दोनों एक साथ बैठकर यू रात का आसमान निहार रहे थे और उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई
तभी हवा का एक झोंका उनके बीच से बहता हुआ उसके बालों को उड़ाता हुआ और उसके चेहरे पर मुस्कान लाता हुआ गया वहाँ सिर्फ़ वे ही थे..... सिर्फ वो दोनों और अभी के लिए एकांश बस यही चाहता था
उसने देखा के अक्षिता ने उसका एक हाथ पकड़ा हुआ था और वो उसकी ओर देख मुस्कुराई और उसने अपना सिर उसके कंधे पर टीका दिया...
दूसरी तरफ एकांश उसकी हरकतों को देखकर हैरान था हालाँकि उसे इससे कोई दिक्कत नहीं थी और वो अंदर ही अंदर वह खुशी से झूम रहा उसका दिल जोरों से धडक रहा था
उसने अपना हाथ उसके कंधे पर रखा और अपना सिर उसके सिर पर टिका दिया और दोनों एक साथ आकाश में तारों को देखने लगे, दोनों के ही चेहरों पर मुस्कान थी....
मैं आजकल उलझन में हूँ, तुम्हारा मेरे साथ अच्छा व्यवहार करना, मुझे देखकर मुस्कुराना, मुझसे ठीक से बात करना, इन सब बातों ने मुझे उलझन में डाल दिया है..
मैं उलझन से ज़्यादा डरी हुई हू... तुम्हारी मुस्कुराहट से... वो मुझे ऐसी उम्मीद देती है जो मैं नहीं चाहती...
हाल ही में मेरे चेकअप के दौरान डॉक्टर ने मुझे बताया है के मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है, कभी भी कुछ भी हो सकता है, मैं तुम्हारे बारे में सोचकर इतना रोई कि मैं तुम्हें फिर से खो दूंगी
मैं जीना चाहती हू अंश, मैं भविष्य की चिंता किए बिना खुशी से सास लेना चाहती हू, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती... हर दिन तुम्हें देखकर मुझे तुम्हारे साथ और जीने की इच्छा होती है..
लेकिन मैं तुम्हारे साथ ऐसा नहीं कर सकती... मैं तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकती, मैं चाहती हूँ कि तुम खुश रहो, चाहे मैं रहूँ या न रहूँ.. इसीलिए मैंने यह फ़ैसला लिया अंश
मुझे पता है कि तुम परेशान होगे और शायद मुझसे और भी नफ़रत करने लगोगे, लेकिन याद रखना कि मैं हमेशा तुमसे प्यार करूंगी..... अपनी आखिरी साँस तक सिर्फ़ तुमसे..
मैंने एक डिसीजन लिया है और मुझे उम्मीद है कि मैं शायद इसे पूरा कर पाऊंगी, आज जब मैंने तुम्हें देखा तो मैं तुम्हें देखती ही रह गई,
आज जब मैं उस पार्क के पास से गुजर रही थी जहा हम अक्सर मिला करते थे तो वही तुम मुझे वहा भी मिल गए, तुम मुझपर गुस्सा थे के में अंधेरे में सड़क पर अकेली चल रही थी लेकिन मैं खुश थी के एक बार और तुम्हे देख तो पाई, तुम्हारे साथ थोड़ा वक्त बिता पाई, मुझे नहीं पता आगे मैं तुम्हे कभी देख भी पाऊंगी या नही और शायद इसीलिए मैंने तुम्हे गले लगा लिया था, ये सोच कर के शायद अब हम दोबारा कभी ना मिले
मुझे माफ़ कर दो अंश , मुझे पता है कि ऐसा करके मैं तुम्हें और मेरे दोस्तों को दुख पहुंचा रही हु लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है
मै जा रही हु.....
बाय अंश...
आई लव यू
एकांश अक्षिता डायरी का आखिरी पन्ना पढ़ते हुए चुपचाप रो पड़ा उसे लगा कि उस समय उसके अंदर कितना कुछ चल रहा था, फिर भी वो अपनो के लिए मुस्कुरा रही थी एकांश मन में उथलपुथल लिए अक्षिता की उस डायरी को सीने से लगाकर वैसे ही सो गया..
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अलार्म की आवाज़ सुनकर एकांश की नींद खुली, उसने अपना फ़ोन देखा और पाया कि वो रिमाइंडर अलार्म था, फिर उसे याद आया कि आज अक्षिता का डॉक्टर के पास चेकअप है,
वो अपने बिस्तर से उठकर जल्दी से तैयार हो गया और नीचे आकर दरवाजे के पास खड़ा हो उसका इंतजार करने लगा,
उसने अपनी घड़ी देखी और पाया कि सुबह के 10 बज चुके थे और अपॉइंटमेंट सुबह 11 बजे का था, इसलिए उन्हें वहाँ जल्दी पहुँचना था
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने दरवाजे के पास खड़े एकांश को देखकर पूछा
"उह...." एकांश समझ नहीं आया कि क्या कहे
"एकांश, क्या तुम कही बाहर जा रहे हो बेटा?" सरिताजी ने मुस्कुराते हुए एकांश से पूछा
"हा आंटी"
तभी अक्षिता अपना हैंडबैग लेकर अपनी मा को बाय कहती हुई बाहर आई
"I'll drop you.." एकांश ने अक्षिता ने कहा निस्पर वो थोड़ा ठिठकी
"उम्म... नहीं, मैं अकेले चली जाऊंगी।" अक्षिता ने एकांश की।और बगैर देखे कहा
"मैं सिटी साइड ही जा रहा हूँ मैं तुम्हें वहाँ तक छोड़ दूँगा" एकांश ने कहा
"मैंने कहा न नहीं" अक्षिता ने सख्ती से कहा और आगे बढ़ है
"मैंने कहा कि मैं तुम्हें ड्रॉप रहा हूँ और अब बात फाइनल हो गई" एकांश ने अक्षिता के आगे जाते हुए बात को आगे ना खींचते हुए कहा
"तुम मुझे इस तरह हुकुम नहीं दे सकते" अक्षिता गुस्से से उसकी ओर बढ़ते हुए चिल्लाई
"बिलकुल दे सकता हु अब चलो" उसने अपनी कार की ओर इशारा करते हुए कहा
" नहीं!"
" हाँ!"
" नहीं।"
" हाँ।"
"नहीं।"
"हाँ।"
"नहीं।"
"तुम्हें देर हो जाएगी अक्षिता अब बहस बंद करो और कार में बैठो"
"एकांश तुम मुझे इस तरह मजबूर नहीं कर सकते मैं तुम्हारे साथ नहीं आना चाहती और मैं नहीं आऊँगी"
"अक्षिता प्लीज, बहस करना बंद करो और जो मैं कहता हूँ वो करो" उसने गुस्से से कहा वही अक्षिता को उसकी आंखों चिंता नजर आ रही थी
और वो उसे चिंतित नहीं करना चाहती लेकिन वो उसे ये भी नहीं बता सकती कि वो कहां जा रही है
"अक्षु चली जाओ उसके साथ तुम्हें देर हो रही है और तुम्हें अंधेरा होने से पहले घर वापस भी आना है" दोनो के बीच बहस रुकती ना देख सरिताजी को ही बीच में बोलना पड़ा
"लेकिन माँ...." लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी ही नही करने दी
" अब चलो।" एकांश ने अपनी कार में बैठते हुए कहा
कुछ बुदबुदाते हुए अक्षिता गुस्से से कार में बैठ गई और एकांश सरिताजी को देखकर मुस्कुराया वही अक्षिता ये सोचकर चिंता में थी कि अब क्या होगा
अक्षिता के गाड़ी में बैठते एकांश ने राहत की सांस ली क्योंकि अब वो टाइम पर हॉस्पिटल पहुँच सकते थे, वो जानता था कि अक्षिता के चेहरे पर टेंशन क्यों था वो नही चाहती थी के एकांश को पता चले वो अस्पताल जा रही है, लेकिन एकांश उसे इस हालत में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में नही जाने दे सकता था
"तुम्हारी कार आज यहाँ क्यों है? रोज़ तुम्हारा ड्राइवर आकर तुम्हे पिक करता है ना?"
"वो इसीलिए के मैंने ड्राइवर से कहा था की वो कार यहीं छोड़कर चला जाए क्योंकि अब से मैं गाड़ी चलाऊंगा"
एकांश का जवाब सुन अक्षिता कुछ नही बोली और दोनो पूरे रास्ते चुप ही रहे, दोनो के ही दिमाग में अपने अपने खयाल चल रहे थे
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वो लोग हॉस्पिटल के इलाके के दाखिल हो चुके थे और जैसे ही अक्षिता ने देखा वो लोग हॉस्पिटल पहुंचने ही वाले थे वो थोड़ा घबराई और उसने एकांश को एकदम गाड़ी रोकने कहा
"रुको रुको, मुझे यही उतरना है" अक्षिता ने अपनी बाईं ओर एक मॉल कीमोर इशारा किया
"यहाँ?"
"हाँ, वो... मुझे... थोड़ी शॉपिंग करनी थी" अक्षिता ने वापिस मॉल की ओर इशारा करते हुए कहा
अक्षिता क्या करने की कोशिश कर रही है ये एकांश समझ गया था और इस बात का उसे गुस्सा भी आया था लेकिन वो इस वक्त बहस नही करना चाहता था इसीलिए उसने तुरंत गाड़ी रोक दी और वो तुरंत नीचे उतर गई और उसके वहा से जाने का इंतज़ार करने लगी
एकांश बिना अक्षिता की ओर देखे और उससे कुछ भी कहे बिना वहां से तेजी से चला गया, उसे अक्षिता के झूठ बोलने पर बुरा लगा लेकिन उसके पास कोई और रास्ता नहीं था, अक्षिता तब तक वहीं रुकी रही जब तक एकांश की कार उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गई और फिर अस्पताल की ओर चल पड़ी जो सिर्फ़ 5 मिनट की दूरी पर था
इधर एकांश ने हॉस्पिटल की पार्किंग में अपनी कार रोकी और गुस्से में अपना हाथ स्टीयरिंग व्हील पर पटक दिया
'वो मुझे अन्दर क्यों नहीं आने दे सकती? क्यों सच नही बोल सकती? तब चीजे कितनी आसान हो जाएगी लेकिन इस बारे में इससे बात करू भी तो कैसे करू वो टेंशन में आ जाएगी इससे तबियत और बिगड़ जाएगी'
एकांश ने मन ही मन सोचा और अपनी आँखें बंद कर लीं और पार्किंग में उसका इंतज़ार करने लगा
इधर अक्षिता हॉस्पिटल में पहुंच कर अपनी बारी का इंतजार करने लगी और जैसे ही उसका नंबर आया वो डॉक्टर के केबिन में चली गईवह अस्पताल में गई
"हेलो डॉक्टर अवस्थी" उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा
"आओ अक्षिता, कैसी है आप?" डॉक्टर ने पूछा
"बढ़िया" अक्षिता ने कहा जिसके बाद डॉक्टर ने उसका रेगुलर चेकअप करना शुरू किया, आंखे, ब्लडप्रेशर यही सभी रेगुलर चेकअप वही अक्षिता थोड़ी डरी हुई दिख रही थी के डॉक्टर क्या कहेगा
"You're good" डॉक्टर ने कहा
"क्या?" अक्षिता को तो पहले यकीन ही नहीं हुआ
"अक्षिता, तुम्हारी सेहत में सुधार हो रहा है और ये साफ दिख रहा है, पिछले चेकअप के हिसाब से तुम अब बेटर लग रही हो, तुम्हारी स्किन का कलर भी पहले से कम पीला है, तुम्हारी आँखों के नीचे काले घेरे और बैग नहीं हैं, ब्लड प्रेशर भी नॉर्मल है..... इन सबका मतलब है कि तुम टेंशन फ्री हो जो एक बहुत अच्छा संकेत है और इसका तुम्हारे हेल्थ पर भी बहुत अच्छा असर पड़ेगा" डॉक्टर ने कहा
"थैंक यू डॉक्टर, शायद आपकी नई दवाइयां मुझ पर अच्छा असर दिखा रही हैं"
"हा ऐसा कह सकते है लेकिन अक्षिता, तुममें जो सुधार हुआ है, वह सिर्फ़ दवाइयों की वजह से नहीं है" डॉक्टर ने कहा
"आप कहना क्या चाहते है डॉक्टर?"
"पहले तुम्हारे कुछ टेस्ट कर लेते है फिर इस बारे में बात करेंगे" जिसके बाद उन्होंने अक्षिता के कुछ टेस्ट्स किए कुछ एक्स-रे और MRI के सत्र समाप्त होने के बाद, वो डॉक्टर के केबिन में वापस आ गए और कुछ ही समय में अक्षिता के रिपोर्ट्स भी उनके सामने थे
"See this is what I call improvement" डॉक्टर ने रिपोर्ट्स देखते हुए कहा वही अक्षिता अब भी थोड़ा डर रही थी लेकिन कुछ बोली नहीं तो डॉक्टर ने बोलना शुरू किया
"अक्षिता, अब शायद एक डॉक्टर के मुंह से ये बात सुन के तुम्हे अजीब लग सकता है, लेकिन इस दुनिया में दवाओं के अलावा भी ऐसी चीजे है जो आपको हिल कर सकती है, ऑफकोर्स दवाइयां जरूरी है लेकिन कुछ उससे भी ज्यादा जरूरी है"
"क्या?"
"प्यार..."
डॉक्टर के शब्द सुन अक्षिता सन्न रह गई
"प्यार घाव भर देता है, जिन लोगों से हम प्यार करते हैं उनसे मिलने वाला प्यार हमें यह भूला देता है कि हम क्या दुख झेल रहे हैं और जब हम उनके साथ होते हैं तो हम खुश होते है, जब आप अपने प्यार के साथ होते हैं तो आपको जो खुशी मिलती है वो आपके मन और आत्मा के सबसे गहरे घावों को भर देती है" डॉक्टर ने कहा और अक्षिता की ओर देखा जो उन्हें ही देख रही थी
"मैं किसी फिल्म की कहानी या किसी फेरी टेल की बात नहीं कर रहा हु ऐसा कई बार हुआ भी है, कभी-कभी आपको बस प्यार की जरूरत होती है..... सिर्फ प्यार की"
"जब आप अपने अपनो के साथ होते हैं तो आपको जो खुशी मिलती है, वह आपके शरीर में कुछ हार्मोन उत्पन्न करती है जो टेंशन को दूर करता है, अपने आप को ही देखो तुम टेंशन फ्री लग रही हो जो की हमारे ट्रीटमेंट के लिए काफी अच्छा है" डॉक्टर ने कहा
डॉक्टर की बातो पर अक्षिता ने गौर किया तो पाया कि आजकल वो बहुत खुश है, उसे बुरे सपने नहीं आते और सोते समय वो रोती नहीं थी उसे चक्कर या बेचैनी भी नहीं होती थी, उसे अब सिर दर्द नहीं होता था, वह उठकर डॉक्टर के केबिन में लगे आईने के पास गई, उसने आईने में अपने आप देखा और उसे देखकर पलकें झपकाई, उसका चेहरा पहले की तरह सामान्य था और उसकी आँखों के नीचे कोई झुर्रियाँ या काले घेरे नहीं थे।,फिर उसे एहसास हुआ कि आजकल वह रोज़ाना शांति से सो रही थी और उसके चेहरे पर मुस्कान थी उसकी आँखों और चेहरे पर चमक लौट आई थी..
डॉक्टर ने ये बातें इसलिए नहीं कही क्योंकि उन्हें पता था कि एकांश अक्षिता से प्यार करता है, बल्कि इसलिए कही क्योंकि उनके सामने सुधार साफ तौर पर दिख रहा था एकांश उन्हें खुश रख रहा था और साथ ही उसकी जिंदगी को टेंशन फ्री भी कर रहा था
अक्षिता ने आईने में अपने आप को देखा और फिर डॉक्टर को देखा और फिर उसके ध्यान में आया के ये बस एक इंसान की वजह से था... एकांश की वजह से...
एकांश के बारे में सोचते ही उसकी आंखे भरने लगी थी वो इन दिनों खुश थी क्योंकि वह उसे खुश कर रहा था, उसे रोज़ देखना, उससे बात करना, उससे लड़ना, उसे चिढ़ाना, उसके साथ सितारों को निहारना..... एकांश के वहा होने से अक्षिता ने उसके बारे में सोचना चिंता करना बंद कर दिया था, एकांश के साथ होने से वो वापिस जिंदा महसूस करने लगी थी
इन सभी भावनाओं के बीच, जो वो अभी महसूस कर रही थी एक और फीलिंग थी जिसे वो नजरंदाज नहीं कर सकती थी जो उसके दिल में उठ रही थी...
होप
अक्षिता अपनी दवाइयाँ खरीदने के बाद गहरी सोच में डूबी हुई हॉस्पिटल से बाहर निकली, वो सड़क पर इधर-उधर देखती हुई चल रही थी, लेकिन उसका मन कहीं और था
वो चलते चलते रुकी जब उसने देखा कि एकांश कार पर टिका हुआ उसकी ओर ही देख रहा था और वो ठीक उसी जगह खड़ा था जहा उसने मॉल के सामने उसे छोड़ा था
वो घबरा गई क्योंकि जब उसने तो एकांश बताया था कि वो शॉपिंग करने आई है तो अगर उसने पूछ लिया कि वो दूसरी दिशा से क्यों आ रही है फिर वो क्या जवाब देगी, और यही सब सोचते हुए वो एकांश के सामने आकर खड़ी हो गई
लेकिन एकांश ने कुछ नहीं कहा, उसने बस उसे कार में बैठने का इशारा किया, तभी उसका फोन बजने लगा, उसने कार का दरवाज़ा बंद किया और फोन पर बात करने लगा...
इस दौरान अक्षिता बस उसे देखती रही, वो क्या बात कर रहा था सुन तो नहीं पाई लेकिन उसने उसके हाव-भाव देखे, फ़ोन पर बात करते वक्त एकांश थोड़ा टेंशन में था लेकिन बीच-बीच में उसके चेहरे के भाव नरम पड़ गए और आखिरकार उसके चेहरे पर कुछ डिटरमिनेशन वाले भाव आ गए
अपनी बात खत्म करने के बाद एकांश चुपचाप कार में बैठ गया और गाड़ी चलाने लगा, एक तरफ अक्षिता घबराई हुई थी कि जब वो उससे पूछेगा कि वो कहाँ थी या उसने क्या खरीदा तो वो क्या कहेगी, दूसरी तरफ एकांश ऐसे शांत था जैसे वो कार में मौजूद ही न हो
गाड़ी खामोशी से चल रही थी जिसे एकांश के फोन की रिंगटोन ने तोड़ा एकांश ने अपने फोन की तरफ देखा, लेकिन जवाब देने की जहमत नहीं उठाई, लेकिन फिर से उसका फोन बज उठा, जिससे अक्षिता के माथे पर बल पड़ गए, क्योंकि इस बार एकांश ने फोन की तरफ देखा तक नहीं
जब तीसरी बार फोन बजा तो अक्षिता फोन पर नज़र डाली जो उसकी सीट के पास सॉकेट में रखा था उसने नाम देखा तो पाया के फोन एकांश को मां का था जिसे वो रिसीव नही कर रहा था वही अक्षिता उलझन में थी के वो अपनी मां का फोन क्यों नहीं उठा रहा है
"तुम्हारा फ़ोन बज रहा है" अक्षिता ने कहा
"पता है" एकांश ने रास्ते पर ध्यान देते हुए कहा
"तो फिर रिसीव करो"
एकांश ने एक नज़र अक्षिता को देखा और फिर रोड की ओर देखने लगा
"एकांश तुम्हारी मां का कॉल है" अक्षिता ने एकांश को देखते हुए कहा
"जानता हु" एकांश ने कहा
"तो फिर इसका जवाब क्यों नहीं देते?"
लेकिन एकांश चुप रहा
"एकांश ?"
"मैं गाड़ी चलाते समय बात नहीं करना चाहता, घर पहुंचने पर कॉल कर लूंगा"
एकांश ने कह तो दिया लेकिन अक्षिता समझ गई थी के कुछ तो गड़बड़ है, वो एकांश को अच्छी तरह जानती थी और ये भी जानती थी के वो अपनी मां से बहुत प्यार करता है और वो उनके बेहद करीब भी है और वो कही भी कार रोक कर उनसे बात कर सकता था लेकिन उसने ऐसा नही किया साफ समझ आ रहा था के वो अपनी मां के कॉल को अनदेखा कर रहा था
******
कार रुकी तो अक्षिता को अचानक अपनी सोच से बाहर आई, उसने इधर-उधर देखा और एकांश को देखने लगी जो कार से बाहर निकल रहा था, वह उसके पास आया और उसने उसकी तरफ का दरवाज़ा खोला
"आओ कुछ खा लेते है" एकांश ने अक्षिता से कहा जो कार में बैठी हुई उसे देख रही थी
"हम तो घर ही जा रहे हैं ना वही खा लेंगे" अक्षिता ने सामने के आलीशान रेस्टोरेंट को देखते हुए कहा
"मुझे बहुत भूख लगी है अक्षिता प्लीज आ जाओ" एकांश ने कहा
"ठीक है" कहते हुए अक्षिता भी कार से बाहर निकली
वे उस रेस्तरां में गए जो किसी 5 स्टार होटल से कम नहीं था
"मैंने इस जगह के हिसाब से कपड़े नहीं पहने हैं।" अक्षिता ने वहा मौजूद दूसरी लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा और एकांश ने चलते हुए रुककर रेस्टोरेंट में मौजूद दूसरी लड़कियों को देखा फिर उसने अक्षिता और उसकी ड्रेस को देखा
"क्यों क्या हुआ?" एकांश ने उलझन में पूछा
"यह ऐसे पॉश रेस्तरां के लिए ठीक नहीं है" अक्षिता ने धीमे से
"देखो अक्षिता..... कपड़ों को लेकर ऐसा कोई नियम नहीं है कि सिर्फ़ ऐसे ही कपड़े पहनने चाहिए, wearing revealing clothes doesn't make them posh or elegant it's one's attitude and decency that makes them look presentable" एकांश ने अक्षिता की आँखों में देखते हुए कहा वही अक्षिता कुछ नही बोली बस उसे देखती रही
"और मेरे लिए तो तुम एकदम... परफेक्ट हो।" एकांश ने अक्षिता को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा
वही अक्षिता अपने चेहरे पर आई शर्म छिपाने दूसरी तरफ देखने लगी लेकिन उसके चेहरे पर एक स्माइल दी जिसे देख एकांश के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई
वो अंदर जाने लगे और एकांश ने अक्षिता का हाथ पकड़ा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता हैरान होकर उसे देखती रही, जबकि वो चलते हुए बस आगे की ओर देख रहा था..
"गुड मॉर्निंग सर।" मैनेजर ने एकांश का स्वागत करते हुए कहा
"मॉर्निंग..... हमें पूल साइड में एक टेबल चाहिए" एकांश ने कहा
"श्योर सर..... मेरे साथ आइए।" उसने कहा और वे दोनो उसके पीछे चले गए
"तुमने पहले ही टेबल रिजर्व करा लिया है?" अक्षिता ने एकांश ने पूछा
"मुझे कोई रिजर्वेशन कराने की जरूरत नहीं है" एकांश ने कहा
"हा... बेशक... अमीर लोग" अक्षिता ने बुदबुदाते हुए कहा लेकिन एकांश ने सुन लिया
"मैंने सुना तुमने क्या कहा"
"अच्छा.." अक्षिता ने कहा और मासूमियत से उसकी ओर मुस्कुराई जिसके बाद एकांश कुछ नही बोला
मैनेजर ने उन्हें टेबल दिखाया और वे इधर-उधर देखने लगे एक वेटर वहा आया और उन्हें मेन्यू कार्ड थमा दिया अक्षिता को मेन्यू में लंबी लिस्ट देखकर समझ नहीं आया कि क्या ऑर्डर करें, इसलिए उसने अपनी पसंदीदा डिश ऑर्डर कर दी और एकांश ने भी वही डिश ऑर्डर की...
"पानी ज्यादा ठंडा नहीं होना चाहिए..... नॉर्मल वाटर" एकांश ने वेटर से कहा
वेटर ने अपना सिर हिलाया और उनका ऑर्डर लाने चला गया
"बाहर बहुत गर्मी है, तुमने ठंडा पानी क्यों नहीं मंगवाया?" अक्षिता ने पूछा
"बस यूंही मुझे ठंडा पानी पीने की इच्छा नहीं थी इसीलिए "
अक्षिता पूल की ओर देख रही थी वही एकांश उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था
"You like it here?" एकांश ने पूछा
"Yeah..... It's beautiful" अक्षिता मुस्कुराते हुए कहा
जल्द ही उनका ऑर्डर आ गया और दोनो के दिमाग में इस वक्त कई खयाल चल रहे थे इसीलिए दोनो में से कोई ज्यादा बात नहीं कर रहा था और दोनो अभी खाना खा ही रहे थे के तभी
"हेलो मिस्टर रघुवंशी"
उन्होंने किसी की आवाज सुनी और ऊपर देखा तो स्कर्ट और टॉप पहने एक लड़की खड़ी थी जिसने अभी अभी एकांश को आवाज दी थी
"ओह! हेलो, मिस सक्सेना" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा
अक्षिता ने उस लड़की की तरफ देखा जो मुस्कुरा रही थी और एकांश को सेडेक्टिव नजरों से देख रही थी
"It's been a long time" उस लड़की ने कहा
"Yeah..."
"Why don't we hang out sometime?" उसने एकांश से पूछा और अक्षिता ने अपना जबड़ा कस लिया और उसे नहीं पता कि ये जलन थी या गुस्से की वजह से था लेकिन उसे अब ये एहसास हुआ कि अब उसका एकांश पर कोई अधिकार नहीं था और वह जिसके साथ चाहे रह सकता था और ये खयाल आया ही उसने अपनी नजरे प्लेट को और कर ली
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा जो चुपचाप अपनी प्लेट की ओर देख रही थी
"मिस सक्सेना... We'll talk later when we meet again.. अभी मैं थोड़ा व्यस्त हु" एकांश ने पूरी विनम्रता से कहने की कोशिश की क्युकी वो उसकी क्लाइंट भी थी
"ओह, वैसे ये कौन है?" उसने अक्षिता की ओर देखते हुए पूछा
अक्षिता ने चुपचाप उसकी ओर देखा और फिर एकांश की ओर
"मेरी गर्लफ्रेंड..." एकांश ने दोनों लड़कियों को चौंकाते हुए एकदम से कहा
अक्षिता बस उसे चकित नजरो से देखती रही, जबकि वो लड़की अविश्वास भरी नज़रों से पहले एकांश को और फिर अक्षिता को देख रही थी
"Oh we are on a date... Will you please excuse us?" एकांश ने पूछा
"Umm..... Yeah..... Of course" इतना कह कर वो लड़की वहा से निकल गई
एकांश ने अक्षिता की ओर देखा जो उसकी ओर ही देख रही थी लेकिन उसने चुप रहना ही ठीक समझ
"एकांश ?"
"हम्म" एकांश ने खाना खाते हुए कहा
"तुमने अभी अभी क्या किया?"
"मैंने क्या किया? मैं तो बस खाना खा रहा हूँ" एकांश ने आराम से कहा
"नहीं, मेरा मतलब वही है जो तुमने अभी कहा?"
"किस बारे में?"
"तुमने उससे ये क्यों कहा कि मैं तुम्हारी गर्लफ्रेंड हूँ?" अक्षिता ने झल्लाकर पूछा
"म्म्म्म्म्म्म..... यहा का खाना काफी टेस्टी है यार" एकांश ने अक्षिता के सवाल को इग्नोर करते हुए कहा
"एकांश."
"क्या?"
अक्षिता घूर के एकांश को देखने लगी
"ठीक है ठीक है..... मैंने उससे छुटकारा पाने के लिए ऐसा कहा था.. अब खुश"
वैसे तो अक्षिता इस जवाब से संतुष्ट नही थी लेकिन उसने फिलहाल इस बात को नजरअंदाज कर दिया
खाना खत्म करने के बाद उन्होंने बिल चुकाया और रेस्टोरेंट से बाहर चले गए दोनों कुछ देर तक चुपचाप बैठे रहे लेकिन अक्षिता के पास पूछने के लिए कई सवाल थे...
"एकांश "
"हा?"
"तुमने उसे क्यों रिजेक्ट कर दिया?" अक्षिता ने धीमे से पूछा
"रिजेक्ट? किसे?"
"उस दिन जो लड़की तुम्हारे पास आई थी और जिसने तुम्हें प्रपोज किया था...... तुमने उसे क्यों मना कर दिया?" अक्षिता ने पूछा
"क्योंकि मैं उसके लिए वैसा फील नहीं करता" एकांश ने सीरियस टोन में कहा
"क्यों?" इस बार अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए पूछा
एकांश ने स्टीयरिंग व्हील को कसकर पकड़ लिया और खुद को कंट्रोल करने की कोशिश करने लगा
"वो सुंदर है, इंडिपेंडेंट है और सबसे जरूरी बात यह है कि वह तुमसे प्यार करती है तुम्हें खुश होना चाहिए कि वह तुम्हें चाहती है" अक्षिता सभी बातो को जोड़ते हुए कहा
एकांश की आंखें नम हो गईं जब उसने अक्षिता की ओर देखा, ऐसा लग रहा था जैसे वह खुद की तुलना अमृता से कर रही हो
"हो सकता, लेकिन मुझे वह पसंद भी नहीं है" एकांश ने कहा।
" लेकिन..... "
"शशश......ज्यादा मत सोचो.. बस अपनी आँखें बंद करो और कुछ देर आराम करो" एकांश ने धीरे से कहा
अक्षिता अपनी आँखें बंद करके अपनी सीट पर पीछे झुक गई.. एकांश ने उसकी तरफ देखा और सोचा कि शायद अमृता वाली की घटना ने उसे उससे ज़्यादा प्रभावित किया है जितना उसने सोचा था क्योंकि वो अभी भी इसे नहीं भूली थी
कुछ ही देर में अक्षिता अपनी सीट पर सो गई और एकांश समय-समय पर उसे देखता रहा, वो घर पहुंचे और एकांश उसे उसके कमरे में ले गया, ताकि उसकी नींद में खलल न पड़े.. उसने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और उसके माथे को चूमा..
मैं तुमसे बहुत प्यार करती ही अंश, बहुत बहुत ज्यादा प्यार, इतना के मैं तुमसे दूर होने को भी तयार हू, मैं ये भी जानती हु के जो भी मैने किया उसके लिए तुम मुझसे नफरत कर रहे होगे लेकिन मुझे यही सबसे अच्छा तरीका लगा तुम्हे मुझसे और मेरी मौत से बचाने का..
एक महीने पहले कोई अगर मुझे बताता के मैं तुमसे प्यार नही करती या हम कभी मिल नही सकते और मैं एक दिन तुम्हारा दिल तोड़ दूंगी तो मुझे इस बात पर कभी विश्वास नही होता और ऐसी बात बोलने के लिए मैं उस इंसान को थप्पड़ मार देती लेकिन अब....
मुझे कुछ दिनों पहले ही मेरी जानलेवा बीमारी के बारे में पता चला है जिसमे मेरी दुनिया ही उलट के रख दी है, तुमसे, मम्मी पापा से दूर जाने का खयाल ही असहनीय है और यही सोच सोच के मुझे रोना आ रहा है
लेकिन..
मुझे अपने आप को संभालना होगा, मेरे बीमारी की वजह से मैं तुम्हे तड़पता नही देख सकती, मुझे अपने आप को संभालना होगा तुम्हारे सामने बुरा बनना होगा मुझे तुम्हे अपने से दूर करना होगा, मैं जानती हु तुम्हे मेरे बर्ताव से बहुत तकलीफ हुई है लेकिन अंश तुम जितने दर्द में मैं उससे हजार गुना ज्यादा दर्द महसूस कर रही हु..
मैं अपने आप से वादा किया था के तुम्हे कभी कोई तकलीफ नही होने दूंगी लेकिन मैं ये नही जानती थी के एक ना एक दिन मैं ही तुम्हारे दर्द का कारण बनूंगी
मैने ये जिंदगी तुम्हारे साथ बिताने का वादा तोड़ा है अंश होसके तो मुझे माफ करना
आई एम सॉरी अंश
तुम हमेशा मेरे दिल में मेरे करीब रहोगे, एक तुम ही हो जिसे मैं आखरी सास तक चाहूंगी..
मैने बस तुमसे प्यार किया था, करती ही और करती रहूंगी....
डायरी पढ़ते हुए एकांश रोने लगा था, अक्षिता ने ये उस वक्त लिखा था जब वो दोनो अलग हुए थे और उसका दर्द इन लिखे हुए पन्नो से बयान हो रहा था, डायरी के उस पन्ने पर आंसुओ की बूंदे भी एकांश को दिख रही थी जो अब सुख गई थी
सारा गिल्ट सारी गलतफहमियां सब एक के बाद एक एकांश के दिमाग में आ रही थी और अब एकांश से ये दर्द बर्दाश्त नही हो रहा था, अपनी भावनाओं पर उसका नियंत्रण नही था और इस सब में वो ये भी भूल गया था के वो क्या कर रहा था..
नेहा ने एकांश से पूरी डायरी चेक करने कहा के कही से कुछ पता चले लेकिन उसमे भी कोई क्लू नही था
वो सभी लोग अक्षिता के घर से खाली हाथ लौट आए थे लेकिन एकांश ने उसके घर को चाबी और वो डायरी अपने पास रख ली थी वो इस डायरी को अच्छे से पढ़ना चाहता था, अक्षिता की भावनाओ को समझना चाहता था,
ये डायरी उन दिनो को गवाह थी जहा अक्षिता अकेली थी और अपनी बीमारी से जूझ रही थी साथ ही इस गम में जी रही थी के उसने एकांश का दिल दुखाया है,
**
एक और दिन बीत गया था और उन्हें अक्षिता के बारे में कुछ पता नहीं चला था, समय रेत की भांति फिसल रहा था और अब एकांश का मन और भी ज्यादा व्याकुल होने लगा था, एक के बाद एक दिन बीत रहे थे और आखिर वो दिन भी आ गया जब अक्षिता की डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट थी, एकांश अमर स्वरा और रोहन सुबह से ही हॉस्पिटल पहुंच गए थे के जैसे ही अक्षिता दिखे उसे मिले उससे यू अचानक जाने का जवाब मांगे,
आज अक्षिता से मुलाकात होगी बस इसी खयाल से एकांश रातभर सो भी नही पाया था लेकिन वो नहीं आई
वो लोग बस इंतजार करते रहे लेकिन वो नहीं आई, खुद के चेकअप के लिए भी नही आई
अब सभी लोगो को हिम्मत टूटने लगी थी, खास तौर पर एकांश की, उसने डॉक्टर से अक्षिता के आते ही उन्हें इनफॉर्म करने कहा और फिर वापिस अपनी खोज में लग गए
और फिर अगले दिन एकांश का फोन बजा, उसने अपनी गाड़ी साइड में लगाई और फोन देखा तो अनजान नंबर से कॉल आ रहा था जिसे एकांश से रिसीव किया
"हेलो?"
"हेलो मिस्टर रघुवंशी मैं डॉक्टर सुरेश बात कर रहा हु"
एकांश एकदम सचेत हो गया
"हा डॉक्टर बोलिए, कोई खबर?"
"हा, मैने वही बताने के लिए कॉल किया है, वो आज चेक अप के लिए आई थी" डॉक्टर ने कहा
एकांश एकदम शॉक था, अक्षिता हॉस्पिटल में थी यही सोच के उसकी सारी एनर्जी लौट आए थी, मालिन होती आशा में उम्मीद का दिया वापिस जलने लगा था
"मैं... मैं अभी.. अभी आ रहा हु डॉक्टर, आप उसे रोक के रखिए, उसे कही जाने मत दीजिएगा" एकांश ने जल्दी जल्दी कहा और गाड़ी शुरू करने लगा
"वो अभी यह नही है मिस्टर रघुवंशी, वो अभी अभी यह से गई है" डॉक्टर ने कहा
"क्या??? ये जानते हुए भी के हम उसे ढूंढने में लगे हुए है आप उसे ऐसे कैसे जाने दे सकते है??" एकांश गुस्से में चिल्लाया
"शांत हो जाइए मिस्टर रघुवंशी, मैं इसमें कुछ नही कर सकता था आज उसका अपॉइंटमेंट नही था वो अचानक आई थी और मैं उसके सामने आपको कैसे बताता?" डॉक्टर बोला
"आपके पास उसे रोकने के और भी रास्ते थे डॉक्टर, आपको उसे रोके रखना चाहिए था" एकांश ने वापिस गुस्से में कहा
"वो मेरी पेशेंट है मिस्टर रघुवंशी और उसे हालत को देखते हुए मैं उससे इंतजार नही करवा सकता था, आपको क्या लगता है मैंने कोशिश नही की है या आप मेरे कोई दुश्मन है, मैने उसे रोकने को बहुत कोशिश की है लेकिन वो बहुत जल्दी में थी और मेरे हाथ में कुछ नही था" डॉक्टर ने कहा
एक बार फिर एकांश को निराशा ने घेर लिया था
"वो अभी अभी यहा से गई है, ज्यादा दूर नही गई होगी अगर आप जल्द से जल्द आ जाए तो शायद आप उसे पकड़ सकते है" डॉक्टर ने आगे कहा
"ठीक है, मैं बस कुछ ही देर में पहुंच रहा हु" एकांश ने कहा और फोन काट दिया
फिर एकांश ने रोहन और अमर को भी बता दिया और जल्द से जल्द आने को कहा, स्वरा रोहन के साथ ही थी और कुछ हॉस्पिटल की ओर निकल गया
कुछ ही मिनटों में वो हॉस्पिटल में था और वो वहा का हर तरफ अक्षिता को ढूंढने लगा, हॉस्पिटल उसके आसपास का सब इलाका लेकिन अक्षिता उसे कही नही दिखी,
उसने हॉस्पिटल के अंदर भी हर तरफ चेक किया, आने जाने वाले सभी को देखा, जहा मरीजों के टेस्ट्स होते है वहा भी देखा लेकिन कोई फायदा नही हुआ
थोड़े समय बात रोहन स्वरा और अमर भी एकांश के पास पहुंच गए थे हो हाफ रहा था और दौड़ने की वजह से पूरा पसीने से तरबतर था
"एकांश सर आप ठीक हो?" स्वरा ने उसे देखते हुए पूछा
"भाई.." अमर ने एकांश के कंधे पर हाथ रखा, एकांश ने इन लोगो को बस जल्दी आने कहा था इस उम्मीद में के ज्यादा लोग होंगे तो अक्षिता को जल्दी खोजा जा सकता था लेकिन उसके पास पूरी बात बताने का वक्त नहीं था और अब शायद देर हो चुकी थी, वो वापिस जा चुकी थी
"वो चली गई, वापिस चली गई" एकांश हताश होते हुए वहा रखी एक बेंच पर बैठते हुए बोला वो अपने आप को एकदम ही हारा हुआ सा महसूस कर रहा था और उसकी टूटती हिम्मत देख बाकी लोग भी परेशान हो रहे थे
"एकांश उठो, हम ढूंढ लेंगे उसे" रोहन ने कहा, उसने एक दोस्त जैसे एकांश से कहा, अब वो बॉस एम्प्लॉय नही थे,
"हा, कमसे कम इतना तो पता ही चला के वो इसी शहर में है" स्वरा ने कहा
"चलो पहले डॉक्टर से मिलते है" अमर बोला और वो चारो डॉक्टर के केबिन को ओर गए
डॉक्टर ने एकांश को देखा, उसकी आंखे लाल हो गई थी और थोड़ी सूज गई थी
"क्या हुआ? बात बनी?" डॉक्टर ने अपनी जगह से उठते हुए पूछा
"हम उसे नही ढूंढ पाए" रोहन ने बताया
डॉक्टर ने एकांश को कुर्सी पर बैठने कहा और पानी का ग्लास उसकी ओर बढ़ाया
"लो पानी पियो"
एकांश ने वो ग्लास लिया और चुप चाप पानी पीने लगा, उसका यू शांत रहना बाकी लोगों को डरा रहा था
"आपको हमे तब ही कॉल कर देना चाहिए था जब वो यहां थी, तब शायद हम उसे पकड़ सकते थे" स्वरा ने डॉक्टर से कहा, एकांश ने जब उन्हें केबिन को ओर आते हुए पूरी बात बताई थी तभी से वो भी थोड़े गुस्से में थी
"मैडम मैं आपकी भावनाओं को कद्र करता हु लेकिन मैं एक डॉक्टर हु और मेरे लिए मेरे पेशेंट की जान ज्यादा इंपोर्टेंट है, मैने उसे कुछ टेस्ट्स करने का बोल कर चेकअप के बाद रोकने की कोशिश की थी लेकिन वो अचानक उठ कर चली गई अब इसमें मैं क्या कर सकता था बताइए" डॉक्टर अपना बचाव करते हुए बोला
"कैसी है वो?" इतनी देर से शांत एकांश ने पूछा और सबका ध्यान उसकी ओर गया
"वो.. वो ठीक है" डॉक्टर ने कहा लेकिन एकांश को इसपर यकीन नही हुआ
"बताओ डॉक्टर, उसकी कंडीशन कैसी है अब" एकांश ने डॉक्टर की ओर देखते हुए पूछा, उसकी आंखे से झलकता सर्द डॉक्टर भी महसूस कर सकता था, डॉक्टर कुछ नही बोला,
"बोलो डॉक्टर" एकांश ने दिए एक बार पूछा
"ना ज्यादा अच्छी है ना बहुत बुरी है, एक तरह से वो बीच में झूल रही है, कभी भी कुछ भी हो सकता है" डॉक्टर ने कहा
एकांश की आंखो से आंसू की एक बूंद गिरी लेकिन उसने डॉक्टर पर से अपनी नजरे नही हटाई और डॉक्टर से आगे बोलने कहा
"हमने बहुत से अलग स्पेशलिस्ट से भी कंसल्ट किया है और इस बार मैंने कुछ अलग दवाइया दी है जो ज्यादा एडवांस और पावरफुल है, देखिए मिस्टर रघुवंशी मैं झूठी उम्मीद नहीं दूंगा जो है सब आपको मैंने बता दिया है, मैने उससे कहा है के उसे कुछ भी लगे जरा भी तकलीफ हो तुरंत हॉस्पिटल आए ताकि हम आगे देख सके" डॉक्टर ने कहा
"अगली बार अगर वो आए तो प्लीज हमे छिप कर मैसेज कर दीजिएगा" स्वरा ने कहा
"ठीक है, और इस बार जब तक आपलोग नही आ जाते उसे रोकने को कोशिश भी करूंगा"
जिसके बाद वो सभी लोग वहा से निकल गए, एकांश सीधा अपने घर गया और उसने वापिस अपने आप को अपने कमरे में बंद कर लिया और बेड पर लेट गया तभी उसकी नज़र डायरी पर पड़ी, उसने उसे उठाया और पढ़ने लगा
मुझे नही पता था तुमसे दूर जाना मेरे लिए इतना मुश्किल होगा के मैं तुमसे दूरी का दर्द ही बर्दाश्त न कर पाऊं.
तुम्हे पता है जब मैने तुमसे ब्रेक अप किया और घर आई तो मैंने सोचा था के मैने तुम्हे मुझसे से बचा लिया था और इस बात से मुझे खुश होना चाहिए था लेकिन नही... तुमसे दूर रहना, तुमसे बात ना कर पाना, तुम्हे ना देख पाना दिन ब दिन मुझे पागल कर रहा है
मैने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया है, सभी दरवाजे खिड़कियां सब बंद हैं और अब अंधेरे में ही दिन बीत रहे है
मैं शायद डिप्रेशन की शिकार हो गई ही ऐसा लगता है बस सोई रहु और कभी उठू ही ना, मेरी बीमारी, ये डिप्रेशन और ये अंधेरा सब मुझे पागल कर रहा है, समय से पहले ही मौत को मैंने तो स्वीकार कर लिया था लेकिन शायद मम्मी पापा नही कर पाए और उन्होंने मुझे बचा लिया, डॉक्टर्स और थेरेपिस्ट यहा कामियाब हो गए
मैने बंद कमरे और अंधेरे में इतना रह चुकी हु के अब वो अंधेरा और बर्दाश्त नही होता, पता चला है के अब मुझे claustrophobia भी है, जब भी अंधेरी बंद जगह में रहती हु सारा दर्द आंसू सबकुछ हावी होने लगता इतना ही सास भी नही ले पाती हु
मैने सोच लिया है अब मेरी वजह से मेरे मम्मी पापा को और तकलीफ नही होगी, वो पहले ही मेरी वजह से काफी कुछ सहन कर रहे है अब और नही,
मैं थेरेपी ले रही हु, डिप्रेशन से बाहर आ रही हु, थेरेपिस्ट ने कहा है के जिन्हे मैं किसी से कह नही सकती वो बाते लिख लिया करू, जो मैं फील करती ही लिख लिया करू बस इसीलिए ये डायरी लिख रही हु
शायद में मेरे भीतर छिपा दर्द बाहर ले आए
आई लव यू, अंश...
अब एकांश को उसके claustrophobia का रीजन समझ आया था और उसने एक बार फिर खुद को उससे उस दिन ज्यादा काम करवाने के लिए कोसा...
***
दो दिन और बीत गए लेकिन अक्षिता का कुछ पता नहीं चला ना ही उन्हें कही से कोई नई इनफॉर्मेशन मिल रही थी, एकांश जहा जहा ढूंढ सकता था हर जगह ढूंढ लिया था और एक बार फिर उसके हाथ में अक्षिता की डायरी थी
अंश! एक बहुत अच्छी खबर है, मुझे नौकरी मिल गई है!
बहुत सारी मिन्नतों और रोने धोने के बाद मम्मी पापा मेरी जॉब के लिए मान गए है और अब मैं बहुत ज्यादा एक्साइटेड हु
सारा दिन घर पर बस बीमारी के खयाल आते थे, में वापिस डिप्रेस्ड फील करने लगी थी तो डॉक्टर से कंसल्ट करने के बाद मैंने अपने आप को बीजी रखने जॉब करने का फैसला किया है
और मैं तुम्हे बहुत बहुत ज्यादा मिस कर रही हु
मैने तुम्हे एक मैगजीन के कवर पर देखा, तुम्हे अपने पापा को कंपनी को टेकओवर कर लिया है और मुझे इस बात की बहुत खुशी है फोटो में काफी हैंडसम दिख रहे हो लेकिन तुम्हारे चेहरे का दर्द वो फोटो भी नही छिपा पाया, मैं जानती हु तुम्हारी उन सुनी आंखो के लिए मैं ही जिम्मेदार हु
आई एम सॉरी
एंड
आई लव यू...
"आई लव यू टू" एकांश ने कहा और अपने पास के अक्षिता के फोटोंको चूम लिया और उसकी तस्वीर को देखते हुए ही नींद के आगोश में समा गया
एकांश की नींद उसके फोन के बजने से टूटी उसने नींद में देखा तो कोई नया नंबर था, एक पल को खयाल आया के शायद अक्षिता का फोन हो और उसने जल्दी से रिसीव किया
"हेलो?"
और जैसे ही उसे पता चला सामने अक्षिता नही है उसका चेहरा उतर गया
"हेलो सर"
"कौन बात कर रहा है"
"सर, मुझे मिस्टर अमर ने अपना नंबर दिया है ताकि मैं सीधा आपसे बात कर सकू" सामने से एक लड़की ने कहा
"हम्म्म बोलो"
"सर, मैं डिटेक्टिव मंदिरा बोल रही हु, क्या मैं आपने एक मिनट बात कर सकती हु?"
"हा"
"सर मुझे आपसे मिस अक्षिता के केस के सिलसिले में कुछ बात करनी है" उसने कहा और अब एकांश का दिमाग चमका
अच्छा भाग है, अक्षिता की डायरी से उसके बारे मे कुछ कुछ पता चल रहा है किन्तु अभी तक तो इस डायरी से कोई काम की बात पता नहीं चल पाई है देखते है अब डिटेक्टिव क्या कहती है
"अगर उसे लेट ही आना था तो उसने हमे इतना अर्जेंटली क्यू बुलाया"
"स्वरा रिलैक्स, वो ट्राफिक में फस गया होगा"
"कैसे रिलैक्स करू रोहन, कितने काम है अभी घंटे भर में ऑफिस में इंपोर्टेंट मीटिंग है, अक्षु का कुछ पता नहीं चल रहा, हमारा बॉस ऑफिस से गायब है और क्यों है इसकी ऑफिस वालो को खबर भी नही है और हम भी नही रहे तो नुकसान तगड़ा हो जायेगा"
"स्वरा हम एकांश को दोष नही दे सकते वो किस कंडीशन में है हम जानते है"
"इसीलिए तो सब मैनेज कर रहे है" स्वरा ने कहा
"खैर उसने हमे बुलाया है तो जरूर कुछ न कुछ बहुत ही जरूरी बात होगी लेट्स वेट"
ये लोग बात कर ही रहे थे वही कैफे में इन्ही के टेबल के पास एक लड़की बैठी थी जो बस इन लोगो को ही देखे जा रही थी,
एक पल को उसकी और स्वरा की नजरे भी मिली लेकिन स्वरा ने उसे इग्नोर कर दिया लेकिन उसने अपनी नजरे उनपर बनाए रखी
थोड़े ही समय के बाद एकांश भी वहा पहुंच गया और उनलोगो के सामने वाली कुर्सी पर जाकर बैठा था,
स्वरा टेबल तब सर टिकाए बैठी और एकांश के आने की आवाज सुन वो सीधी बैठ गई वही रोहन भी एकांश को देखने लगा
एकांश कुछ नही बोल रहा था वो बस अपने फोन में लगा हुआ था और किसी को बार बार कॉल लगा रहा था लेकिन सामने वाला जवाब नही दे रहा था
जब कुछ समय तक एकांश कुछ नही बोला तो स्वरा ने पूछा
"एकांश क्या हुआ है ? क्या अर्जेंट बात है? अक्षू के बारे में कुछ पता चला?" स्वरा ने पूछा बदले में एकांश ने बस हा में सर हिलाया
"एकांश प्लीज बताओगे बात क्या है, देखो हमे ऑफिस पहुंचना है तुम नही हो ऐसे में वहा का काम भी बिखरा हुआ है"
"मैं जानता हूं रोहन, बस एक बार अक्षिता मिले सब सही हो जायेगा, अरे यार ये फोन क्यों नही उठा रही??" एकांश ने थोड़ा जोर से कहा
"कौन?" रोहन और स्वरा ने एकसाथ पूछा
"मैं"
सबने ये आवाज सुनी और उसकी ओर देखा जिसने 'मैं' कहा था , ये वही लड़की थी जो उन्हे देख रही थी
"क्या?" स्वरा ने सवालिया नजरो से पूछा
"मैं ही वो हु जिसका आपलोग इंतजार कर रहे थे" उस लड़की ने कहा,
स्वरा और रोहन को कुछ समझ नही आ रहा था क्युकी उन्हें पूरी बात बता ही नही थी एकांश ने तो उनसे बस वहा आने कहा था लेकिन एकांश उसे पहचान गया और उसने उसे बैठने कहा
"तो आप है डिटेक्टिव अमृता?" एकांश ने उस लड़की को देखते हुए या यू कर एक उसका एक्सरे करते हुए कहा
वैसे वो लड़की भी एक पल को एकांश की आंखो में खो गई थी, वो रियल में ज्यादा अच्छा दिखता था
"जी हा" उसने कहा
"रोहन, स्वरा ये वो डिटेक्टिव है जिन्हे हमने अक्षु को ढूंढने हायर किया था और मिस अमृता ये मेरे दोस्त है" एकांश ने फॉर्मल इंट्रोडक्शन कराया स्वरा और रोहन ने भी अमृता से हाथ मिलाया
"अब अहम बात पर आते है, मिस अमृता आपने कहा था आपको अक्षिता के बारे में कोई लीड मिली है, क्या पता चला?" एकांश ने कहा
"क्या?" स्वरा ने कहा
"क्या पता चला?" रोहन ने भी जल्दी पूछ लिया
"बताती हु, एक्चुअली उसे ट्रेस करना बहुत ही मुश्किल है क्युकी उसने अपने आप को बहुत बढ़िया तरीके से छिपाया हुआ है, she is keeping a very low profile, वो ना तो अपना पुराना फोन या न्यूज यूज कर रही है ना ही पुराना कोई भी कार्ड जिससे उस तक पहुंचा जाए" अमृता ने कहा
"ये मुझे पुलिस भी बता चुकी है, आगे?" एकांश ने कहा
"देखिए मैने अमर सर से उसके बारे में और डिटेल्स जानी उसके फैमिली के बारे में पता किया और अमर सर ने भी उन्हें जो जो पता था सब बताया, जो सब भी जो आपलोगों ने पता किया था, एड्रेस और जहा ट्रीटमेंट चल रहा है सब और फिर मैंने खोज शुरू की, मैने उसने पड़ोसियों से पूछा लेकिन जैसी उम्मीद थी उन्हें कुछ नही पता था बस इतना पता चला के अक्षिता के पिता एक रिटायर्ड गवर्मेंट ऑफिशियल है, मैने फिर उनके बारे में भी पता करना चाहा लेकिन वो लोग बहुत ही कम लोगो से कॉन्टैक्ट रखे हुए थे और बस आपस में ही खुश थे किसिसे या किसी बात में ज्यादा इन्वॉल्व नही होते थे और इसीलिए उन्हें ढूंढना ज्यादा मुश्किल काम है, मैने ये भी पता करने की कोशिश की के शायद ही सकता हो उनकी कोई दूसरी प्रॉपर्टी को जहा वो गए हो या किसी दूसरे शहर में कुछ हो लेकिन ऐसा भी कुछ पता नहीं चल पाया तो मिलाजुलाकार बस हॉस्पिटल और उसका घर ही था जहा से कुछ पता चल सकता था, वो घर नही आने वाले थे मुझे पता था इसीलिए मैं हॉस्पिटल पर अपनी नजरे बनाए हुए थे और जब अमर सर ने मुझे बताया के वो हॉस्पिटल में चेकअप के लिए आई थी तब मैं वही पास में ही थी और जब तक मैं वहा पहुंची तब तक या तो वो जा चुकी थी या फिर उसने अपने आप को कवर कर लिया था ताकि कोई उसे ना पहचाने या हो सकता है सब क्लीयर होने तक कही छिप गई हो, खैर मुझे लगता है उसे शक तो है के कोई पीछा कर सकता है इसीलिए वो चेकअप के बाद बगैर दवाइया लिए वहा से चली गई थी, उसने हॉस्पिटल ले मेडिकल से दवाइया नही ली थी जहा से वो हर बार लेती थी" अमृता बोलते बोलते रुकी और उसने उन लोगो को देखा जो उसकी बात ध्यान से सुन रहे थे
"तुम्हे हॉस्पिटल वाली बात कैसे पता?" रोहन ने पूछा
"अमर सर ने बताया था आप लोग डॉक्टर से मिले थे और शायद डॉक्टर ने आपको prescription की कॉपी भी दी थी मैंने उन्हें वाली कॉपी मांगी और उसी से आगे को छानबीन की, सबसे पहले तो मैंने हॉस्पिटल के ही मेडिकल हॉल में। इंक्वायरी की, उन्होंने बताया के अक्षिता नाम को पेशेंट हर महीने उन्हीं के पास से दवाइया लेती है लेकिन इस बार उसने वहा से दवाइया नही ली थी इसीलिए फिर मैने हॉस्पिटल के आसपास के भी सभी मेडिकल्स में पूछा और मेरे कॉन्टैक्ट के थ्रू मुझे ऐसी जगह का पता चला जहा से शहर के कई मेडिकल में दवाइया जाति थी, वहा से मुझे पता चला के एक छोटे से मेडिकल ने अभी रिसेंटली ही यही दवाइया ऑर्डर की थी और जब मैने चेक किया तो पाया के ये वो एक्जैक्ट दवाइया थी जो उस प्रिस्क्रिप्शन में थी" अमृता ने बात खतम की
"तो तुम्हारा मतलब है के वो अक्षिता ही है जिसने ये दवाइया मंगवाई है" स्वरा ने पूछा
"हा, क्युकी कोई भी दूसरा पेशेंट एक्जैक्ट सेम प्रिस्क्रिप्शन ऑर्डर नही कर सकता था"
"सही है" रोहन ने कहा
वहा एकांश इस पूरे वाकए में एकदम ही शांत था, पहले तो वो खुश हुआ के कुछ तो पता चला है लेकिन फिर उसके मन में ये डर भी था के कही से सब गलत ना हो
"वो मेडिकल कहा है?" एकांश ने पूछा
"वो ये छोटा सा मेडिकल है ठाणे में" अमृता ने कहा
"ठीक है तुम दोनो ऑफिस के लिए निकलो मैं वहा उस मेडिकल पर जाकर देखता हु वहा आसपास देखता हु" एकांश ने वहा से उठते हुए रोहन और स्वरा से कहा
"क्या? हम तुमको अकेला नही जाने देंगे" स्वरा ने कहा
"हा हम भी साथ चलेंगे" रोहन ने भी स्वरा की बात में हामी भरी
"अगर तुम लोग साथ चलोगे तो ऑफिस कौन संभालेगा?" एकांश ने कहा
"लेकिन...."
"बस मैं जा रहा हु और कोई बहस नही"
"एक मिनट मिस्टर रघुवंशी, मैं भी आपके साथ चलती हु" अमृता ने भी अपना पर्स उठते हुए कहा
"नही मैं अकेला ही जाऊंगा आप बस मुझे उस मेडिकल का एड्रेस बताए" एकांश ने कहा
"देखिए हो सकता है उसने वही से दवाइया ली हो लेकिन ये जरूरी नहीं के वो वही उसी इलाके में रहती हो, मैं उस एरिया को जानती हू और मेरे पास कुछ लोकेशन है जहा हम उसे ढूंढ सकते है, मेरे साथ रहने से आपको उसे ढूंढने में आसानी होगी" अमृता ने कहा
एकांश ने एक पल सोचा और फिर बोला
"ठीक है"
जिसके बाद एकांश और अमृता निकल गए, अमृता बस इस बात से खुश थी के वो एकांश के साथ थी, उसने उसकी तस्वीर एक बिजनेस मैगजीन में देखी थी तभी से उसे उसपर क्रश था और याहा साथ साथ उसका काम भी हो रहा था
वो लोग एकांश की कार के पास आए, एकांश ने उसे आगे ड्राइवर के बाजू में पैसेंजर सीट पे बैठने कहा और खुद पीछे बैठ गया, एकांश अब जहा भी जाता ड्राइवर साथ होता था जो की अमर ने कहा था क्युकी इस डिप्रेस्ड हालत में वो एकांश की ड्राइविंग पर भरोसा नहीं कर सकते थे
अमृता ने ड्राइवर को एड्रेस बताया और कार चल पड़ी, अमृता ने पीछे देखा तो पाया के एकांश की पढ़ रहा था, एक डायरी..
मुझे इस जगह से प्यार हो गया है
क्या सही जगह है यार, ये ऑफिस यहा का वातावरण, यहा के लोग सबकुछ अच्छा है, यहा तक की बॉस भी फ्रेंडली है
आज मैं दो अमेजिंग लोगो से मिली, रोहन और स्वरा, हमने साथ में ही आज ऑफिस ज्वाइन किया है बढ़िया लोग है, लगता है हम अच्छे दोस्त बन सकते है
मुझे लगता है ये लोग, ये ऑफिस ये माहोल कुछ वक्त के लिए ही सही मुझे मेरे दर्द से निकलने में बहुत मदद करेगा
और इस सब में भी मैं तुम्हे बहुत मिस करती ही अंश
आई लव यू
एकांश ने डायरी बंद की और अपनी आंखों से निकलती आंसू की बूंद साफ की और खिड़की के बाहर देखने लगा, अमृता अपना फोन चलाते हुए बीच बीच में एकांश को देख रही थी, उसने तो खबर भी नही थी के एकांश के मन में क्या चल रहा था
कुछ समय बाद एकांश वापिस डायरी के कुछ पन्ने पढ़ने लगा जिसमे अक्षिता के नए दोस्तो के बारे में लिखा हुआ है जिसे पढ़कर उसे भी हसी आई क्युकी स्वरा और रोहन थे भी वैसे, पक्के दोस्त लेकिन हर पन्ने में एक बार कॉमन थी, अक्षिता का उसे लिखा आई लव यू