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पिछले दो दिन से एकांश अमृता के साथ अक्षिता को ढूंढने में लगा हुआ था, वो जरा भी नही चाहता था के अमृता उसके साथ रहे लेकिन उसकी मजबूरी थी, अगर उसे अक्षिता को जल्द से जल्द ढूंढना था तो अमृता को साथ रखना ही था..
वो अमृता के उसके बारे में उसकी लाइफ के बारे में अक्षिता के बारे में लगातार चलते सवालों से परेशान हो गया था , हालांकि उसने उनमें से कई सवालों का जवाब नही दिया था और उसे चुप कराने के लिए उसका बस गुस्से से घूरना ही काफी था
उन लोगो ने उस मेडिकल पर पूछताछ की थी तो उस मेडिकल वाले ने बताया था के उसने वो दवाइया बस एक स्पेशल ऑर्डर के लिए मंगवाई थी और जब उससे पूछा गया के वो दवाइया लेने कौन आया था तो उसने बताया था के एक लड़की आई थी और वो दवाइया लेकर गई थी,
एकांश ने अपने फोन में उस मेडिकल वाले को अक्षिता की तस्वीर दिखा कर पूछा था के ये ये वही थी जिसने दवाइया मंगवाई थी जिसपर उस मेडिकल वाले ने भी हा कहा था
एकांश ये जानकर अब बहुत ज्यादा खुश था के वो अक्षिता के आसपास ही था, एकांश के चेहरे पर अब एक स्माइल थी वही अमृता बस एकांश को स्माइल करता था अपने को उसने खोया हुआ सा महसूस कर रही थी
एकांश ने उस बंदे से आगे भी पूछताछ की के क्या वो अक्षिता को जानता है या उसका एड्रेस जानता है के वो कहा से आई थी लेकिन अफसोस उसे ज्यादा कुछ नही पता था, us बंदे ने कहा के वो अक्षिता के बारे में कुछ भी नही जानता था जिसे सुन एकांश थोड़ा निराश हो गया था
लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर स्माइल थी, उसका मन उससे कह रहा था के अक्षिता कही उसके आसपास ही थी और अब वो इसे जरूर ढूंढ लेगा
और बस तभी से एकांश और अमृता नए जोश के साथ अक्षितांको ढूंढने में लगे हुए थे..
पिछले दो दिन में एक और बात हुई थी, वो ये की अमृता के मन में एकांश के लिए फीलिंग बनने लगी थी, उसे एकांश पर क्रश तो पहले ही था लेकिन अब ये फीलिंग्स बढ़ रही थी, उसके पहले भी बॉयफ्रेंड थे, पुरुष मित्र थे लेकिन उसने कभी किसी के लिए ऐसा महसूस नही किया था जैसा एकांश के लिए करने लगी थी
उसे पहले भी कई लड़कों ने एप्रोच किया था लेकिन उसने किसी को घास तक नही डाली थी लेकिन यह एकांश के लिए उसकी फीलिंग्स ही अलग थी
इन दो दिनों में उसने एकांश को जाना था, ऑब्जर्व किया था, वो उन लड़कों जैसा नही था जिन्हे वो जानती थी, वो समझ गई थी एकांश अलग था, वो ये भी समझ गई थी के एकांश जैसा दिखता है वैसा था नही, वो भले ही ऊपर से रुड बनता लेकिन उसका दिल मोम जैसा था
वो एकांश को देखती थी जब वो एक फोटो को देख मुस्कुराता था, कैसे वो एकदून गौर से उस डायरी को पढ़ता था, कैसे वो उस डायरी और उस तस्वीर को अपने सीने से लगाता था, उसके चेहरे पर आते वो दर्द के भाव, हर पल किसी को तलाशती उसकी आंखे, अमृता सब नोटिस कर रही थी
वो नही जानती थी के अक्षिता कौन थी और ये लोग उसे क्यों ढूंढ रहे थे लेकिन वो इतना तो जान गई थी के अक्षिता एकांश के दिल के बहुत ज्यादा करीब थी
उसने एकांश से उसके बारे में उसकी जिंदगी के बारे में पसंद ना पसंद के बारे में बात करनी चाही लेकिन बदले में उसे बस कुछ छोटे जवाब मिले का थोड़े गुस्से से घूरती एकांश की आंखे जिससे वो चुप हो जाती थी...
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"एकांश बेटा..."
एकांश चलते चलते रुका लेकिन पलटा नही
"तुम कहा जा रहे हो?" उसकी मां ने उसे पूछा
लेकिन एकांश कुछ नही बोला
"एकांश, talk to me"
वो फिर भी चुप रहा
"एकांश प्लीज, I said I am sorry"
उन्होंने कहा लेकिन एकांश अब भी कुछ नही बोला, उसने अपनी आंखे बंद कर ली
"मैने तुम्हे इसीलिए नही बताया था क्युकी मैने उससे वादा किया था और मैंने तुम्हे तकलीफ में नही देखना चाहती थी बेटा" उन्होंने एकांश का हाथ पकड़ते हुए उससे कहा
एकांश पलटा और अपनी मां को देखा
"तो आपको क्या लगता है मां अभी मैं बहुत मजे में हु, आप नही जानती के इस वक्त मैं कैसा महसूस कर रहा हु कितनी तकलीफ में हु ये सोचते हुए के वो इतने समय मेरी आंखों के सामने थी लेकिन मैं उसे बचाने के लिए कुछ नही कर पाया, ये सोच के मेरा दिल जल रहा हैं के उसने कभी मुझसे प्यार करना बंद ही नही किया और मैं उसके लिए कुछ नही कर पाया, उसे अगर कुछ हो गया तो पता नही मैं क्या कर जाऊंगा" एकांश ने रोते हुए कहा
"बेटा मैं जानती हु वो बहुत अच्छी लड़की है और तुमसे बहुत प्यार करती है लेकिन वही नही चाहती थी के ये बात कभी तुम्हे पता चला और एक मां होने के नाते मैने भी वही किया जो मुझे तुम्हारे लिए सही लगा, प्लीज एकांश मुझे अपने से दूर मत करो, मैं तुम्हारी बेरुखी नही झेल पाऊंगी बेटा" उन्होंने रोते हुए कहा लेकिन एकांश कुछ नही बोला
"एकांश...."
"अगर आप मुझे पहले ही ये सब बता देती तो मैं उसे कभी अपने से दूर नही होने देता, शायद मैं उसे बचाने के लिए कुछ कर सकता या उस मुश्किल वक्त में उसका साथ ही दे सकता था" एकांश ने कहा और वहा से चला गया वही उसकी बार रोते हुए उसे जाता देखने लगी और फिर एकांश रुका और बोला
"मुझे आपसे कोई शिकायत नही है मां, मुझे बस अपने आप से चिढ़ है" और वहा से चला गया
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"मिस्टर रघुवंशी मुझे नही लगता के वो ठाणे में है, शायद उसने हमे गुमराह किया हो, हम सब जगह देख चुके है" अमृता ने पीछे की सीट की ओर देखते हुए एकांश से कहा जो अपने फोन में स्वरा को मैसेज कर रहा था
"उसे पता ही नही है के मैं उसे खोज रहा हु तो गुमराह करने का सवाल ही नहीं है" एकांश ने कहा
"आपको कैसे पता?" अमृता
"बस पता है"
"लेकिन मुझे लगता है के अब हमे...." लेकिन एकांश ने एकदम से उसकी बात काट दी
"I don't want your opinions" एकांश ने एकदम कहा
"मैं तो बस..."
"बस!"
और इसी के साथ अमृता चुप हो गई, वो अब भी ये नही समझ पाई थी के एकांश इतने डेस्परेटली अक्षिता को क्यू ढूंढ रहा था जैसे ये उसके जीने मरने का सवाल हो
वही एकांश इस बात पर फ्रस्ट्रेट हो रहा था के वो अभी तक अक्षिता को नही ढूंढ पाया था ऊपर से उसकी मां के साथ हुई उसकी बातचीत ने उसका गुस्सा और बढ़ा दिया था
वो अपनी मां को हर्ट नही करता चाहता था लेकिन वो उनसे नाराज भी था ऊपर ये डिटेक्टिव कंटिन्यू बोलती रहती थी जिससे अब उसका दिमाग भन्ना रहा था, उसने कुछ पल अपनी आंखे बंद की और दिमाग शांत किया और फिर उस डायरी को देखा
अंश आज मैने तुम्हे देखा..
तुम मेरे सामने मेरे ऑफिस में खड़े थे..
मैं जानती थी के हमारा नया बॉस आ रहा है लेकिन वो तुम होगे ये मैने नही सोचा था, मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था लग रहा था के मैं सपना देख रही हु ये मेरा वहम है क्युकी आजकल मैं तुम्हे मेरे आसपास ही महसूस कर रही हु लेकिन है सच था, तुम वहा थे
जब तुम अंदर आए मैं शॉक थी, मैं वहा कुछ देर किसी मूर्ति की तरह खड़ी थी जब तक रोहन ने मुझे होश में नहीं लाया, तुम सबसे मिल रहे थे और मैं वहा से निकलने की कोशिश कर रही थी लेकिन तभी बॉस ने मुझे बुला लिया
तुमने ऐसे जताया जैसे तुम मुझे जानते ही नहीं हो और मेरी तरफ देखा भी नहीं, हा थोड़ा दर्द हुआ पर मैं खुश हु के तुमसे मिली
पता है मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ किससे हुई? तुम्हारे की बदले हुए एटीट्यूड और रुड बर्ताव से जो की ना सिर्फ मेरे लिए था बल्कि सभी के लिए था, you used to be the sweetest person I know लेकिन शायद तुम बदल चुके हो और इसके लिए कही न कही मैं ही जिम्मेदार हु
आई एम सॉरी अंश, मैने तुम्हारे साथ गलत किया है, मैं तुमसे माफी मांगना चाहती थी, तुम्हे बताना चाहती थी के मैं आज भी तुमसे कितना प्यार करती हु, तुमसे बात करना चाहती थी कितना कुछ बताना है तुम्हे... लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती... दोबारा तुम्हे दर्द नही दे सकती....
मुझे रोज ये डर सताने लगा है के अपनी बीमारी को तुमसे जैसे छिपाऊंगी, तुम्हारे सामने ये कैसे बताऊंगी के तुम मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते, मुझे तो ये सोच सोच कर छोटे पैनिक अटैक आने लगे है के तुम्हे सच पता चला तो क्या होगा
कई महीनो में पहली बार इतनी अच्छी नींद आई है, मैने कभी नहीं सोचा था के तुम्हे दोबारा देख भी पाऊंगी लेकिन लगता है अब सब सही हो सकता है...
आई लव यू अंश
"आई लव यू" एकांश ने धीमे से कहा और बाहर की ओर देखने लगा जब उसने पाया के अमृता उसे ही देख रही है
"कौन है वो?" अमृता ने धीरे से पूछा
"क्या?"
"Who is she to you?" अमृता ने नीचे देखते हुए पूछा
"It's none of your business" एकांश ने थोड़े गुस्से में कहा वही अमृता थोड़ा हर्ट फील करते हुए बाहर की ओर देखने लगी
और तभी एकांश का फोन लगा उसने नाम देखा और फोन उठाया
"क्या है स्वरा" एकांश ने कहा
"वाह, हेलो कहने का क्या बढ़िया तरीका है"
"मुद्दे पे आओ"
"तुम कहा हो?"
"ठाणे पहुंच रहा हु"
"उसके बारे में कुछ पता चला?" स्वरा ने उम्मीद से पूछा
"अभी तक नही"
"एकांश.... You need to forgive your mom, उनकी इस सब में कोई गलती नही है" स्वरा ने कहा
"तुम पागल हो गई हो क्या? तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?" एकांश ने चिल्ला कर कहा जिससे अमृता भी थोड़ा चौकी
"एकांश...."
"स्वरा, उन्होंने मुझसे सच छिपाया है, पूरे डेढ़ साल तक, अगर मुझे पहले ही सब कुछ सच सच पता होता तो मैं उसे कभी अपने से दूर नही होने देता" एकांश ने चिल्ला कर कहा वही अमृता सब गौर से सुन रही थी
"जानती हु लेकिन वो और क्या करती? अपने बेटे को उसके प्यार को हर पल मारता देख तड़पने देती?" स्वरा ने भी गुस्से में कहा
"और आज मैं उस वक्त से ज्यादा तकलीफ में हु उसके बारे में सोच कर उसके ठिकाने के बारे में सोच कर, मैं अंदर से हर पल ये सोच कर मर रहा हु के शायद शायद मैं कुछ कर सकता था...." बोलते बोलते एकांश की आवाज कांपने लगी थी
अमृता को ज्यादा कुछ समझ नही आ रहा था लेकिन वो इतना तो जान गई थी के एकांश के लिया अक्षिता जितना उसने सोचा था उससे ज्यादा मायने रखती थी
"एकांश, आई एम सॉरी, देखी मैं सब जानती हू और समझती भी हु बस मैं नही चाहती थी के तुम अपनी मॉम को हर्ट करो... और शायद अक्षु भी यही चाहती" स्वरा ने आराम से कहा
"सॉरी तुम्हारे ऊपर इस तरह चिल्लाने के लिए" एकांश ने कहा वही अमृता ने चौक के उसे देखा क्युकी उसके लिया ये पार्टी किसी को सॉरी बोले ऐसी नही थी
" कोई न अब तो आदत है, पहली बार थोड़ी है" स्वरा ने कहा जिसे सुन एकांश भी मुस्कुरा दिया
"और कुछ?"
"हा.. वो तुम ठाणे ही जा रहे हो तो प्लीज उस डीलर से भी मिल लेना जिसके बारे में मैने कल बताया था" स्वरा ने कहा
"कौन सा वाला?"
"हमारे ठाणे के प्रोजेक्ट का, तुम्हे उससे एस्टीमेशन और टेंडर के बारे में बात करनी होगी ताकि आगे हम काम फाइनलाइज कर सके, अब वहा जा रहे हो तो मिल लो"
"नही नहीं मैने तुमसे कहा था जब तक मैं अक्षिता को ढूंढ नही लेता मैं कुछ नही करने वाला" एकांश ने कहा
"हा लेकिन इनसे प्लीज मिल हो, वो पहले ही कई बार तुम्हारे बारे में पूछ चुके है और मैं बात टाल चुकी हु, प्लीज एक बार मिल लो ताकि मैं बाकी बाते कर सकू" स्वरा मिन्नते करते हुए कहा
"ठीक है"
"और ये तुम्हारी कंपनी है यार कुछ काम तुम्ही को करने पड़ेंगे"
"हा हा ठीक है" और एकांश ने फोन काट दिया
एकांश ने देखा के अमृता उसे ही देख रही थी
"कोई प्राब्लम?" उसने पूछा
"नही" अमृता ने आगे देखते हुएं कहा
"आगे सर्च करने के पहले मुझे ठाणे में ही एक मीटिंग अटेंड करनी है" एकांश ने अमृता से कहा और अपना लैपटॉप खोला
"ओके"
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कुछ देर बाद वो लोग मीटिंग की जगह पहुंचे और एकांश अंदर गया वही अमृता कार के पास ही उसका इंतजार करने लगी और केस की बाकी डिटेल्स के बारे में सोचने लगी
कुछ देर बार एकांश डील फाइनल करके आया और वो आगे बढ़ गए और एक रेस्टोरेंट पर खाने के लिए रुके, कोई कुछ नही बोल रहा था, अमृता लंच करने चली गई वही एकांश बाहर ही था, उसका खाने का मन नही था वो गाड़ी में बैठ कर अभी हुई मीटिंग के मेल भेज रहा था
तभी एक गाड़ी के टायर घिसने की जोरदार आवाज आई उसने बाहर देखा जहा से आवाज आया था वहा अब भीड़ जम गई थी और हंगामा हो रहा था
चुकी ये सब रोड के दूसरी साइड हुआ था इसीलिए एकांश को कुछ दिख नही रहा था और तब तक ड्राइवर और अमृता भी आ गए थे और ड्राइवर हंगामे की वजह से कार रिवर्स ले रहा था वही एकांश अपने अपने फोन निकाला और वहा की।लोकेशन देखने लगा
एकांश ने फिर देखा के वो हंगामा क्लीयर हुआ है या नही और अब भीड़ छटने लगी थी और एकांश को सब साफ दिख रहा था और तभी एकांश की नजरे रुकी, उसे एक जानी पहचानी फिगर दिखी
एकांश झटके के साथ कार से नीचे उतरा और उस तरफ बढ़ गया कहा हंगामा हो रहा था, अपने बॉस को यू अचानक गाड़ी से उतरता देख ड्राइवर ने भी गाड़ी का इंजन बंद कर दिया और बाहर आकर एकांश के देखने लगा वही अमृता को भी समझ नही आ रहा था के अचानक क्या हुआ है और एकांश यू अचानक गाड़ी से क्यू उतरा इसीलिए वो भी कार से बाहर आकर एकांश के पास आई
अमृता ने एकांश को देखा जो किसी चीज को एकटक देखे जा रहा था और पलके झपकाए जा रहा था, अमृता ने एकांश को नजरो का पीछा किया तो उसे वहा कई सारे लोग दिखे लेकिन फिर उसकी नजरे भी उस एक शक्स पर जाकर रुकी जो सामने एक बच्ची के सामने घुटने टक्कर बैठी थी
अमृता ने अपने फोन निकाला और उसमे रेफरेंस के लिए सेव किया हुआ फोटो देखा और फिर उस लड़की को देखा और फिर एकांश को एक नजर देखा जो अब भी उसी लड़की को देख रहा था और वहा किसी पुतले जैसा खड़ा था जिसके अंदर भावनाओ का तूफान उमड़ रहा था
एकांश उस लड़की को गौर से देख रहा था जिसने हल्के पीले रंग का ड्रेस पहना हुआ था और बाल खुले छोड़ रखे थे और उसके चेहरे पर कुछ चिंता के भाव थे, एकांश बार बार अपनी पलके झपका कर उसे देख रहा था मानो कन्फर्म कर रहा हो के ये सही मे वही है और उसका भ्रम नहीं है
वो एक छोटी लड़की के सामने घुटने के बल बैठी थी और उसे चेक कर रही थी और तभी एकांश को वो दिखा, वो लॉकेट जो उसने उसे दिया था जिसे उसने अब तक अपने से लगा कर रखा था
ये वही थी, अक्षिता
आज एकांश की खोज पूरी हो गई थी उसने अक्षिता को ढूंढ लिया था, उसकी जिंदगी को ढूंढ लिया था
एकांश की तंद्री तब टूटी जब उसने देखा के अक्षिता उस लड़की के साथ एक घर मे जा रही थी और साथ ही कुछ और लोग भी थे
“ये वही है, हैना?” एकांश को पीछे से आवाज आई और एकांश आगे बढ़ते हुए रुका और उसने पीछे देखा तो वहा अमृता बस उसे ही देख रही थी, एकांश ने अपना गला साफ किया और बोलना शुरू किया
“हा” एकांश ने आराम से कहा
“बढ़िया! तो हमने उसे ढूंढ लिया है” अमृता की आवाज मे ये बोलते हुए थोड़े उदासी का पुट था क्युकी उसका काम यहा खतम हो गया था और अब वो एकांश से नहीं मिल पाएगी
“आप वापिस जा सकती है, मेरा ड्राइवर आपको जहा चाहो ड्रॉप कर देगा” एकांश ने कहा
“क्या? क्यू?” अमृता ने एकदम से पूछा
“शायद आप भूल रही है मिस अमृता आपका काम अक्षिता को ढूँढना था और अब हमने उसे ढूंढ लिया है तो आपका काम यहा खतम होता है” एकांश ने अपने बिजनस टोन मे कहा और जाने के लिए मूडा
“लेकिन आप कहा जा रहे है” अमृता ने पूछा
“None of your concern, आप जा सकती है” एकांश ने बगैर पलटे थोड़ा जोर से कहा
अमृता को समझ नहीं आ रहा था उसके साथ क्या हो रहा था, उसका काम था अक्षिता को ढूँढना लेकिन अब जब उसका काम पूरा हो गया था और उसे इसके लिए खुश होना चाहिए था लेकिन वो इस वक्त खुश होने के बजाय उदास सा महसूस कर रही थी, वो जाने के लिए पलटी ही थी के उसके दिमाग मे एक खयाल आया और वो अचानक रुक गई और उस ओर जाने लगी जिधर एकांश गया था...
वही दूसरी तरह एकांश उस घर के दरवाजे पर जाकर रुक गया जहा अक्षिता अंदर गई थी और वो वही से झाक कर अक्षिता को देखने लगा जो उस लड़की की चोट पर बैन्डिज कर रही थी वही आसपास के लोग बात कर रहे थे के वो लड़की और उसका बाप बाल बाल बचे थे और बाइक से गिरने से बस हल्की चोटे आई थी और बड़ा नुकसान नहीं हुआ था
एकांश को इन सब बातों से अभी कोई मतलब नहीं था उसकी नजरे तो बस उस एक लड़की पर तहरी हुई थी जिसे वो इतने दिनों से पागलों की तरह ढूंढ रहा था और आज उसकी तलाश खतम हुई थी
अक्षिता पहले से ज्यादा कमजोर लग रही थी लेकिन एकांश को वो आज भी उतनी ही खूबसूरत लगी जितनी अस वक्त लगती थी जब वो दोनों रीलैशनशिप मे थे, एकांश बगैर नजरे हटाए अक्षिता को देख रहा था मानो उसके पालक झपकते ही वो गायब हो जाएगी
अमृता भी वहा आ गई थी और वो साइड से एकांश को देख रही थी, उसे समझ ने मे जरा भी देर नहीं लगी के एकांश छिप कर अक्षिता को देख रहा था वही उससे भी ज्यादा उसे हैरान किया एकांश के चेहरे पर आते भावों ने...
अक्षिता को देखते हुए उसके चेहरे पर चिंता थी, लगाव था, उदासी थी, आकर्षण था, उसे अपने करीब लाने की कसक थी और इन सबके बीच अमृता ने एकांश की आँखों मे उस भावना को देखा महसूस किया जिसके बारे मे उसे लगा था के एकांश उसके लिए बना ही नहीं था...
प्यार....
वो बस वैसे ही खड़े खड़े एकांश को देखती रही वही एकांश की आँखों से आँसू बह रहे थे, अपने प्यार के इतने करीब होकर भी वो उसके पास नहीं जा पा रहा था.. एकांश ने अपने आँसुओ को छिपाने की जरा भी कोशिश नहीं की उसका ध्यान तो अभी बस इस शक्स पर था जो उसके लिए उसकी दुनिया थी...
जब अक्षिता अपनी जगह से उठी और उसने दरवाजे की ओर देखा तो एकांश ने अपने आप को छिपा लिया, अक्षिता को भी ऐसा लगा था के कोई उसे देख रहा है, उसका दिल भी जोरों से धड़कने लगा था, वही फीलिंग फिर से जागने लगी थी जब आप उस इंसान के करीब होते हो जिसे आप चाहते हो लेकिन अक्षिता ने इन खयालों को झटका और वहा से चली गई
एकांश को यू छिपते और अक्षिता को बाहर आते देख अमृता ने सोचा के इन दोनों को अकेला छोड़ना ही बेहतर होगा, बुझे मन से वो कार के पास आई और ड्राइवर को उसे उसके ऑफिस छोड़ने कहा
वही अक्षिता उस घर से बाहर आगे और आगे जाकर एक गली की ओर मूड गई वही एकांश चुप चाप उसका पीछा करने लगा, थोड़ी देर बार अक्षिता एक बिल्डिंग के सामने रुकी और अंदर चली गई वही एकांश भी रुक गया था, उसने अक्षिता को उस घर मे जाते और गेट बंद करते देखा और वो समझ गया था के यही वो घर था जहा वो रह रही थी।
वो बस वही गली के मोड पर उस घर को देखते हुए खड़ा था और अब आगे क्या करना है उसे समझ नहीं आ रहा था और बस इस उम्मीद मे वहा खड़ा था के वो शायद दोबारा उसे देख ले,
कुछ देर बार एकांश थोड़ी हिम्मत जुटा कर उस घर के पास पहुचा और इधर उधर देखने लगा और फिर एक चीज ने उसका ध्यान खिचा जिसे देख उसके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई
अब चाहे तुम मानो या ना मानो अक्षिता मैं एक मिनट के लिए भी तुम्हारा साथ नहीं छोड़ने वाला
एकांश ने मन ही मन सोचा
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एकांश ने अपने लिए एक कैब बुलाई और अपने ऑफिस की ओर बढ़ गया, उसने अपने पहले ये खबर अपने दोस्तों को बतानी थी और इसे सुन कर वो कितने खुश होने ये वो जानता था...
रास्ते मे ही एकांश ने अमर को भी कॉल करके अपने ऑफिस आने कहा था, ट्राफिक के चलते उसे ऑफिस पहुचते पहुचते शाम हो चुकी थी
एकांश दौड़ते हुए ऑफिस मे घुसा जिसने एक पल को तो सबको चौका दिया, एक तो आज सारे स्टाफ ने उसे कई दिनों बाद ऑफिस मे देखा था दूसरा वो दौड़ते हुए आया था ऐसे जैसे कोई उसके पीछे पड़ा हो तीसरा उसके चेहरे पर बड़ी सी स्माइल थी
हर कोई उसे देख के चौक गया था और एकांश को तो अभी कीसी और चीज की परवाह नहीं थी, वो जल्दी से सीढ़िया चढ़ते हुए ऊपर आया, उसने देखा के रोहन स्वरा और अमर एकदूसरे से बात कर रहे थे और जब उन्हे इस तरह हाफ़ता हुआ एकांश दिखा वो भी थोड़े चौके और इससे पहले के वो कुछ समझ पाते या बोल पाते एकांश ने हसते हुए उन्हे गले लगा लिया, स्वरा तो अमर और रोहन के बीच दब गई थी,
वही बाकी लोग इस नजारे को देख असमंजस मे थे, उनका बॉस अपने इम्प्लॉइस् को गले लगा रहा था,
“क्या हो गया है अब बताओ और पहले छोड़ो सास नहीं आ रही” स्वरा ने कहा और एकांश उन लोगों से अलग हुआ लेकिन उसकी मुस्कान बनी हुई थी वही बाकी लोग अब भी शॉक मे थे
“हमने उसे ढूंढ लिया है”
एकांश ने कहा, एक पल को तो उन लोगों ने कुछ नहीं बोला लेकिन फिर दिमाग मे एकांश की बात प्रोसेस होते ही स्वरा ने खुशी मे चिल्लाते हुए एकांश को गले लगा किया वही रोहन और अमर ने भी वही एकांश इसके लिए तयार नहीं था और उसका बैलन्स बिगड़ा, नतिजन वो चारों जमीन पर थे वही ऑफिस का बाकी का स्टाफ उन्हे ही देख रहा था...
एकांश को क्यू खुलके हसते देख ऑफिस के लोग पहले ही सदमे मे थे ऊपर से ये, खैर जब महोल शांत हुआ तब ये लोग एकांश के कैबिन मे बैठे थे और एकांश के पूरी बात बताने की राह देख रहे थे वही बाकी लोग अपने अपने काम मे लग चुके थे...
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“तुमको वो कहा मिली?”
“कैसी है वो?”
“सब कुछ शुरू से बताओ?”
जैसे ही वो तीनों खुर्ची पर बैठे वैसे ही तीनों ने सवाल पूछ डाले
“देखो ये कहा जा सकता है के आज किस्मत साथ थी, मैं और अमृता रोज के जैसे सर्च ऑपरेशन पर निकले और बीच मे ही स्वरा का कॉल आया के मैं एक मीटिंग अटेन्ड करू ठाणे मे, जो मैंने किया और जब तक मीटिंग खतम हुई लंच टाइम हो गया था तो मैंने अमृता और ड्राइवर को एक रेस्टोरेंट मे खाना खाने भेजा जो हमारे रास्ते मे ही था, जब वो वापिस आए और हम निकल ही रहे थे तभी रास्ते पर भीड़ इखट्टा हो गई थी क्युकी एक बाइक स्किड कर गई थी और उस भीड़ मे मुझे अक्षिता दिखी” एकांश ने कहा
“मैंने उसका पूछा किया तो जहा वो रह रही है उस घर का भी पता चल गया है” एकांश ने आगे बोल कर अपनी बात खतम की
“कैसी है वो” स्वरा ने चिंतित स्वर मे पूछा
“कमजोर है पर फिलहाल ठीक है”
“उसने तुम्हें देखा?” स्वरा ने आगे पूछा
“नहीं, मैंने अपने आप को छिपा लिया था”
“तो अब आगे क्या करना है?” रोहन ने सबसे अहम सवाल पूछा
“एक प्लान है” एकांश ने कहा
“क्या?” अमर
“जब मैं उस घर तक पहुचा जहा वो रह रही है वहा मुझे किरायेदार चाहिए का बोर्ड दिखा तो मैं उस जगह को रेंट पर ले रहा हु और वही उसी घर मे उसकी साथ रहूँगा” एकांश ने कहा
वही वो तीनों कुछ नहीं बोले
“पक्का?” अमर ने पूछा
“अरे एकदम पक्का 1000%” एकांश ने कहा
“लेकिन तुम ये करोगे कैसे?” रोहन ने पूछा
“हा क्युकी वो लोग तुम्हें अपने साथ थोड़ी रहने देंगे” स्वरा ने भी रोहन की बात मे आगे जोड़ा
“देखो मैं जानता हु मैं क्या कर रहा हु, मुझे पता है वो मुझे वहा नहीं रहने देंगे, उससे भी बड़ी बात अगर उनको पता चला के मैं हु तो शायद वो वापिस भाग जाएंगे, मैं इस सब के बारे मे सोच के ही बोल रहा हु, मैंने वहा बोर्ड पर नंबर देखा था संकेत अग्रवाल का, मैं उससे बात करके रेंट वगैरा का देख लूँगा”
तीनों मे से कोई कुछ नहीं बोला
“तुम जानते हो ना ये उतना आसान नहीं होने वाला जितना तुम कह रहे हो” रोहन ने कहा
“हा, तुमको बहुत ध्यान रखना पड़ेगा, तुम्हारे वहा रहने के रीज़न पर उन लोगों को भी भरोसा होन चाहिए” अमर ने कहा
“पता है, चिंता मत करो मैं जानता हु मैं क्या कर रहा हु” एकांश ने मुस्कराते हुए कहा
“क्या हम उसे देख सकते है?” स्वरा ने पूछा
“उसे देखने के बाद अपने आप को शांत रख पाओगी?” एकांश
“प्लीज.... मैं कोशिश करूंगी”
“नहीं.... अभी तो नहीं”
“प्लीज... एकांश”
“स्वरा हम अभी कोई रिस्क नहीं ले सकते... अगर उसे पता चला के हम उसका पता जानते है तो वो वहा से भी भाग जाएगी और मैं ऐसा नहीं चाहता, मैं चाहता ही वो बस अब अपनी जिंदगी आराम से जिए, ये भी है के कभी ना कभी उसे पता चलेगा ही के नया किरायेदार मैं हु लेकिन तब मैं उस सिचूऐशन को संभाल लूँगा, तुम लोगों को उससे मिलने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा” एकांश ने सीरीअस होकर कहा और स्वरा ने भी उसकी ये बात मान ली थी और फिर कुछ और बाते करके वो लोग अपने अपने घरों को चले गए और अपने बेड पर पड़े पड़े एकांश ने अक्षिता की डायरी खोली
अब तुम्हारे करीब होते हुए भी, तुम मेरी आँखों के सामने होते हुए भी तुमसे बात ना कर पान तुम्हें गले ना लगा पाना मेरे मीये मुश्किल हो रहा है
मैं समझ सकती हु के तुम मुझसे बहुत बहुत बहुत गुस्सा हो और शायद मुझसे नफरत भी करने लगे हो। जानते हो तुम्हारे साथ एक ही रूम मे रहना मेरे लिए कितना मुश्किल होता जा रहा है... तुम्हारे इतने करीब रहकर भी तुमसे दूरी बनानी पड रही है, मुझे पता है तुमने जानबुझ कर मुझे वो फाइल जमाने वाला काम दिया था, मैंने मा को कहा था के मेरी चिंता ना करे लेकिन फिर भी जब घर देरी से पहुची तो वो दरवाजे पर ही मेरा इंतजार कर रही थी, उसे लगा मुझे कुछ हो गया होगा
खैर मा हो तो मैंने समझ दिया लेकिन इस दिल को कैसे समझाउ जो वापिस तुम्हारी ओर खिचा जा रहा है, तुम्हारे खयालों की वजह से मुझे नींद नहीं आ रही है लेकिन मैं खुश हु, तुम्हारे करीब तो हु...
आइ लव यू
एकांश को एक पल उससे इतना काम करवाने का बुरा लगा लेकिन साथ ही वो खुश भी था, उसका अक्षिता पर वैसा ही असर होता था जैसा उसपर अक्षिता के करीब आने का होता था... आज सोते वक्त एकांश के चेहरे पर मुस्कुराहट थी, कल वो वापिस अक्षिता को देखने वाला था.....
अंश मुझे ना तुम्हें कुछ बताना है और अब मुझसे इंतजार नहीं हो रहा..
पता है मैंने ना आज कुछ नोटिस किया है, रोहन और स्वरा के बारे मे, उन दोनों के बीच कुछ तो है कोई स्पार्क है, जिस तरह रोहन स्वरा को देखता है और वो शरमाती है लेकिन फिर कुछ नहीं है ऐसा बताती है..
अगर ये दोनों कपल बन गए ना तो मुझे बड़ी खुशी होगी, आज ना मैंने दिनभर उन दोनों को ही अब्ज़र्व किया है और इतना तो कन्फर्म है के दोनों एकदूसरे को काफी पसंद करते है
मैंने ना रोहन को इस बारे मे चिढ़ाया भी लेकिन वो तो रोहन है उसने इस बात को सिरे से नकार दिया और स्वरा भी वैसे ही निकली ऐसा बता रही थी जैसे उसे कुछ पता ही ना हो, खैर समय आने पे सब पता चल ही जाएगा
मुझे ना शुरू से पता था के इनके बीच कुछ तो है खैर मुझे तो बस दोनों साथ मे खुश चाहिए और कुछ नहीं
काश मैं उन दोनों को एक होता देख पाउ......
आइ लव यू अंश...
एकांश डायरी को पढ़ते हुए सोचने लगता था के अक्षिता का नजरिया अपनी जिंदगी को लेकर कितना पाज़िटिव था.. जबकि किस पल क्या होगा कीसी को पता नहीं था... वही उसे इस बात से चिढ़ होती के उसका के पाज़िटिव माइन्ड्सेट बस औरों के लिए था वो उसे छोड़ कर चली गई थी..
एकांश ने अक्षिता के रोहन और स्वरा के लिए लिखे हुए नोट के बारे मे सोचा... ये सच था और ये बात वो भी समझ गया था के रोहन और स्वरा के बीच कुछ तो था लेकिन वो दोनों ही अपनी फीलिंग को बाहर नहीं आने दे रहे थे और अब उसे उन दोनों को मिलाना था ताकि अक्षिता की इच्छा पूरी कर सके..
बाहर अब भी अंधेरा था और एकांश को इस नई जगह नए महोल मे नींद नहीं आ रही थी... वो भी जानता था के यहा अजस्ट होने मे उसे थोड़ा समय लगने वाला था उसने एक आह भरी और डायरी का अगला पन्ना खोला
आज मैं तुम्हारे करीब थी... बहुत बहुत ज्यादा करीब...
हम एकदूसरे से टकरा गए थे और तुमने मुझे गिरने से पहले ही बचा लिया था, काफी लंबे समय बाद मैं तुम्हारे इतने करीब थी और उसने उन सभी भावनाओ को ऊपर ला दिया जिसे मैंने तुम्हारे सामने अपने अंदर दबा रखा था
पर मैं खुश हु, तुम्हारे स्पर्श से काफी समय बाद ऐसा लगा है जैसे मैं जिंदा हु....
पता है आज सुबह उठते साथ ही मेरा मूड काफी खराब था.. सर दर्द अब हद्द से ज्यादा बढ़ गया है और नींद कम हो गई है... डॉक्टर से कह कर नींद की गोली लेनी पड़ेगी ताकि चैन से सो पाउ
आज तो मूड इतना खराब था के मैंने अपने दोस्तों से भी ठीक से बात नहीं की, पता नहीं क्या हुआ मैं बस स्क्रीन को देखते हुए खो गई थी कुछ होश ही नहीं था वो तो रोहन ने आवाज डी तब मुझे होश आया तो पता चला के मैं रो रही थी, उसने बार बार पूछा भी के क्या हुआ है लेकिन मैंने उसे कुछ नहीं बताया, या मुझसे बताया ही नहीं गया लेकिन वो कहा मानने वाला था, मेरे चेहरे को देखते ही वो समझ गया था के सब ठीक नहीं है
अब मुझसे भी ईमोशन कंट्रोल नहीं हो रहे थे फिर क्या जब रोहन से मुझसे पूछा तो उसके गले लग के रो पड़ी और उसने मुझे समझाया, पता है वो काफी घबरा गया था मुझे ऐसे देख के लेकिन मैंने तबीयत ठीक नहीं का बहाना बनाया और स्वरा को कुछ ना बताने कहा
और सोने पे सुहाग ये के तुमको भी आज ही का दिन मिला मुझपर गुस्सा करके के लिए जो मुझे इतनी बार सीढ़ियों से ऊपर नीचे दौड़ाया, मुझे पता है तुमने ये जान बुझकर किया था ताकि मुझे तड़पा सको, काफी नफरत करने लगे हो ना मुझसे?
पर सच कहू, मुझे फर्क नहीं पड़ता क्युकी मैं जानती हु मैंने तुम्हारे साथ क्या किया है और शायद कही न कही मैं इस सजा की हकदार थी...
आइ लव यू अंश....
“आइ लव यू टू” एकांश ने धीमे से कहा
वो भी रो रहा था जिसका एहसास उसे तब हुआ जब उसके आँसू की बूंद ने डायरी के कागज को भिगोया, उस दिन के बारे मे सोच कर एकांश को वापिस अपने आप पर गुस्सा आ रहा था, उसे उस दिन रोहन से जलन हुई थी क्युकी उसने अक्षिता को लगे लगाया था जिसकी वजह से एकांश ने अक्षिता को ऊपर नीचे दौड़ाया, उसने गुस्से मे दीवार पर हाथ दे मारा...
“मैं तुमसे नफरत नहीं करता अक्षु, कभी कर ही नहीं पाया... ब्रेक अप के बाद भी... मैंने तुमसे नफरत करने की बहुत कोशिश की लेकिन बदले से तुम्हरे प्यार से और डूबता गया..... और हा तुम इस सब की हकदार बिल्कुल नहीं थी... जरा भी नहीं.... ना ही उस दर्द और तकलीफ की जिससे तुम गुजर रही हो... मेरा वादा है तुमसे तुम एकदम ठीक हो जाओगी मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा” एकांश ने दीवार से टिक कर डायरी की ओर देखते हुए कहा
उसे कब नींद लगी उसे पता ही नहीं चला और बाहर से आती कुछ आवाजों से उसकी नींद टूटी, वो उठा और अपनी आंखे मसल कर अपने आजू बाजू देखा, पहले तो वो थोड़ा ठिठका लेकिन फिर उसके ध्यान मे आया के ये उसका नया घर था...
वो रात को वैसे ही रोते हुए सो गया था लेकिन ये आजकल उसके लिए नया नहीं था, वो उठा और खिड़की के पास गया और वहा से देखने लगा जब उसे और कुछ आवाजे सुनाई दी
जो एकांश ने देखा जो उसके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काफी था और वो और गौर से उस सीन को देखने लगा
बाहर वो थी... अक्षिता... पौधों को पानी डालते हुए... छोटे छोटे कुंडों मे कुछ पौधे लगाये हुए थे जो काफी खूबसूरत थे...
सुबह सुबह उठ कर उसके खूबसूरत चेहरे का दीदार होने से एकांश के दिल को सुकून मिला था और वो अब रोज ऐसी ही सुबह की कामना कर रहा था...
एकांश बस चुपचाप उसे देख रहा था... सूरज की रोशनी मे चमकते उसके चेहरे को.... हल्की की हवा से उड़ते उसके बालों को... उसके होंठों की उस मुस्कुराहट को....
एकांश ने उसे इस तरफ थोड़ा खुश देखने को बहुत ज्यादा मिस किया था, वो अभी जाकर उसे गले लगाना चाहता था, चूमना चाहता था लेकिन वो ऐसा नहीं कर सकता था... उसे अपने आप पर कंट्रोल रखना था.. उसे तो ये भी नहीं पता था के नया किरायेदार एकांश था जो उनके साथ रह रहा था...
एकांश के खयाल उसे उस दिन मे ले गए जब वो यह के मालिक से मिला था... संकेत अग्रवाल... उसने संकेत को बताया था के उसे एक घर की जरूरत है जो उसके ऑफिस के पास हो और जहा से वो काम को सूपर्वाइज़ कर सके, संकेत ने उसे और उसके महंगे कपड़ों को देखा बड़ी गाड़ी को देखा जिसके चलते उसे उसे ये यकीन करना मुश्किल हो रहा था के क्या सही मे इसको जरूरत है... या ये झूठ का चोरी का नया तरीका तो नहीं...
एकांश ने उसे अपना बिजनस कार्ड दिखाया और बताया के उसे सही मे रूम किराये पर चाहिए... बस कुछ दिनों के लिए... उसका काम होते ही वो चला जाएगा... तब जाकर वो माना और उसने एकांश को ऊपर वाला कमरा दिखाया साथ ही ये भी बताया के यह उसकी बहन और उसका परिवार रहता है...
अच्छी किस्मत कह लो या कुछ और एकांश का अब तक अक्षिता या उसके परिवार से आमना सामना नहीं हुआ था... एकांश ने कमरे का डिपाज़ट और रेंट पे किया और कमरा किराये पर ले लिया... उसने ये भी नहीं देखा के कमरा कैसा था कितना छोटा था, अभी बस उसके लिए अक्षिता के पास रहना ज्यादा जरूरी था....
वो कल रात ही अपने सामान के साथ यहा शिफ्ट हो गया था और सामान भी क्या था बस उसके कपड़े और कुछ जरूरी चीजे थी.. वो इतनी जल्दी मे था के उसने सब सही से पैक भी नहीं किया था
अमर रोहन और स्वरा तो बस देखते ही रहे जब उसने अपना सामान बैग मे फेक पर ठूसा था और कमरे से निकल गया था... उसने अपने पेरेंट्स को भी कुछ इक्स्प्लैन नहीं किया था और अमर से उन्हे बताने कहा था के उन्हे कहे वो जब तक एक प्रोजेक्ट पूरा नहीं होता होटल मे रहेगा और अमर ने भी वैसा ही किया था
लेकिन शायद एकांश की मा समझ गई थी... एकांश के चेहरे की लौटी रौनक उनसे छिपी हुई नहीं थी वो बस अब इतना चाहती थी के एकांश खुश रहे और ठीक रहे...
यही सब बाते दिमाग मे लिए एकांश अपने प्यार को देख रहा था जो उससे कुछ फुट दूर थी... एकांश अक्षिता को निहार ही रहा था के उसने देखा अक्षिता काम करते हुए अचानक रुकी और उसने ऊपर की ओर देखा और वैसे ही एकांश झुक गया और अपने आप को छिपाया, ये सब बहुत जल्दी मे हुआ और एकांश बस अब दुआ कर रहा था के अक्षिता ने उसे देखा न हो...
उसने राहत की सास ली जब देखा के अक्षिता वापिस घर मे जा रही थी... वो जल्दी जल्दी तयार हुआ और इससे पहले की कोई उसे देखे बाहर चला गया... सड़क के मोड पर ड्राइवर उसका कार के साथ इंतजार कर रहा था.. वो कार मे बैठा और साइट इन्स्पेक्शन करने चला गया, उसका नया प्रोजेक्ट शुरू होने वाला था....
वही दूसरी तरफ अक्षिता पक चुकी थी.. उसका एक टिपिकल रूटीन बन गया था सुबह उठो, दवा लो, कुछ छोटे काम करो खाओ और सो जाओ और अब अक्षिता इस स्केजूल से बोर हो गई थी, वो अपने काम को अपने दोस्तों को मिस कर रही थी, उसके साथ बाहर जाना मिस कर रही थी, घूमना मिस कर रही थी, और सबसे ज्यादा मिस कर रही थी एकांश को, उसके गुस्से से घूरने को, उसके साथ बहस करने को लड़ने को... उसकी खुशबू उसके एहसास को...
कुल मिला कर वो सबसे ज्यादा एकांश को ही मिस कर रही थी..
यहा इस जगह पर उसके पास ज्यादा करने को कुछ नहीं था, वो बाहर नहीं जा सकती थी, उसके पेरेंट्स उसे नया काम ढूँढने नहीं दे रहे थे और सबसे बड़ी बाद वो अक्षिता के अपनी डॉक्टर की अपॉइन्ट्मन्ट छोड़ने को लेकर काफी गुस्सा थे और वो उन्हे और दुखी नहीं करना चाहती थी इसीलिए वो ज्यादातर समय घर पर ही रहती थी..
वो बस एक बार ही चेकअप के लिए गई थी वो भी बिना बताए या डॉक्टर से बगैर पूछे वो भी तब हर उसका सर दर्द हद्द से ज्यादा बढ़ गया था और काफी चक्कर आ रहे थे... डॉक्टर भी उसे देख काफी हैरान था और उसने उसे कुछ पुरानी और कुछ नई दवैया लिख कर दी थी और डॉक्टर उसे वहा रोकने की कोशिश कर रहा था लेकिन अक्षिता को वो काफी अजीब लगा और वो ज्यादा समय नहीं रुक सकती थी उसे शाम होने से पहले घर पहुचना था
अक्षिता जब दवा लेने हमेशा वाले मेडिकल पर पहुची तब उसके पैर रुक गए, उसके रोहन और स्वरा को वहा आते हुए देखा... वो उसी पल जाकर उन दोनों को गले लगाना चाहती थी लेकिन वो ऐसा नहीं कर सकती थी क्युकी वो उसे फिर कही जाने नहीं देते
अपने दोस्तों को देख अक्षिता की आंखे भर आई थी वही वो इस सोच मे भी पड गई के वो लोग यहा अस्पताल मे क्या कर रहे थे लेकिन इसके बारे मे सोचने के लिए उसके पास वक्त नहीं था और इससे पहले के वो लोग उसे देख पाते उसने स्कार्फ से अपना मुह छिपाया और हॉस्पिटल के दूसरे दरवाजे से बाहर चली गई...
अक्षिता अगले दिन अपने घर के पास वाले मेडिकल पर गई लेकिन वहा उसे वो दवाईया नहीं मिली लेकिन उस मेडिकल वाले ने उसे कहा के वो उन दवाइयों को ऑर्डर कर देगा जिसपर अक्षिता ने भी हामी भरी और कुछ अड्वान्स पैसे देकर वापिस आ गई
दवाईया मिलने के पास अक्षिता का रूटीन वापिस से वैसा ही हो गया था सिवाय कल तक जब उसे अपने अंदर कुछ महसूस हुआ.. एक बहुत ही जाना पहचाना एहसास...
उसे ऐसा लगने लगा था जैसे एकांश उसके आसपास ही है और वो अभी इस फीलिंग को समझ नहीं पा रही थी और आज सुबह भी उसे ऐसा लगा था जैसे कोई उसे देख रहा है लेकिन वहा कूई नहीं था
अक्षिता ने अपने सभी खयालों को झटका और अपनी सुबह की दवाई ली, आजकल को काफी चीजे भूलने लगी थी, कभी कभी उसे करने वाले काम तक वो भूलने लगी थी, ये शायद इन दवाइयों का ही असर था ऐसा उसने सोचा, वो अपनी डायरी भी अपने घर भूल आई थी और इस बात ने ही उसे कई दिनों तक उदास रखा था
वो बस रोज भगवान से प्रार्थना करती थी थे वो आगे आने वाली हर बात से लड़ने की उसे शक्ति दे और एकांश को खुश रखे
वो जानती थी के उसके यू अचानक गायब होने को एकांश ने पाज़िटिव तरीके से नहीं लिया होगा और अब तो शायद वो उसके नाम से भी नफरत करने लगा होगा लेकिन उसे ये भी पता था के एकांश को उसकी चिंता भी होगी
वो अभी अपने घर मे बाहर घूम रही थी और उसने ऊपर के कमरे की ओर देखा जहा नया किरायेदार आ चुका था और कमरा अभी अंधेरे मे डूबा हुआ था, उसने एक पल को उस नए बंदे के बारे मे सोच जो वहा आया था लेकिन फिर सभी खयाल झटक कर अंदर चली गई
वही दूसरी तरफ शाम ढल चुकी थी, एकांश गली के मोड पर अपनी कार से उतरा और ड्राइवर को अगले दिन आने का कहा, एकांश ने अपनी घड़ी में वक्त देखा तो घड़ी 9 बजने की ओर इशारा कर रही थी.. वो घर को ओर बढ़ गया लेकिन रास्ते में उसे आजू बाजू वालो की नजरो का सामना करना पड़ा जो उसे कौतूहल से देख रहे थे और सोच रहे थे के ये कौनसा नया मेहमान है जो इस वक्त वहा बिजनेस सूट पहन कर आया था..
एकांश घर के पास आ गया था और उसने दरवाजे से झक कर अंदर की ओर देखा के कोई है तो नहीं और जब उसे वहा कोई नहीं दिखा तब उसने राहत की सास ली और जाली जल्दी सीढ़िया चढ़ते हुए अपने कमरे मे आ गया... सीढ़िया घर के बाहर से ही ऊपर की ओर जाती थी इसीलिए इसमे ज्यादा समस्या नहीं थी
एकांश ने जल्दी से अपने कपड़े बदले और पलंग पर लेट गया और अब उसे एहसास हुआ के उसे काफी ज्यादा भूख लगी थी और वो खाने के लिए लाना भूल चुका था और अब क्या करे उसे समझ नहीं आ रहा था, इसको बोलते है रईस और बेवकूफ का परफेक्ट काम्बनैशन, अब समस्या ये थी के वो वापिस बाहर भी नहीं जा सकता था क्युकी कोई उसे देख सकता था और वो अभी ये रिस्क नहीं लेना चाहता था, उसने अपना बैग देखा जिसमे स्वरा ने कुछ फ्रूट्स रखे थे और उसने उन्ही से काम चलाया
एकांश ने सोचा के अगर उसके दोस्तों को पता चला के वो ठीक ने कहा पी नहीं रहा तब उसकी सहमत आनी तय थी और उसने मन ही मन अपनी दिनचर्या का प्लान बनाया
एकांश दूसरी तरफ की खिड़की के पास आया जहा से वो घर के अंदर की ओर देख सकता था और वहा उसने उसे देखा जो सोफ़े पर बैठी टीवी देख रही थी
अक्षिता ऐसी लग रही थी जैसे उसे शरीर से प्राण सोख लिए गए हो उसके चेहरे की चमक जा चुकी थी
और एकांश को अपनी पहले वाली अक्षिता वापिस चाहिए थी और यही एकांश ने मन ही मन सोचा और वही खिड़की के पास बैठे बैठे उसको देखते हुए सो गया....
एक दो दिन ऐसे ही बीत गए, एकांश बिना किसी शक के घर में आता-जाता रहा और साथ ही अक्षिता पर नज़र भी रखता रहा उसके मन मे अब भी यही डर था के अगर अक्षिता उसे देख लेगी तो वापिस कही भाग जाएगी और ऐसा वो हरगिज नहीं चाहता था इसीलिए अक्षिता के सामने जाने की हिम्मत उसमे नहीं थी, हालांकि ये सब काफी बचकाना था पर यही था..
वहीं अक्षिता को नए किराएदार के बारे में थोड़ा डाउट होने लगा था क्योंकि उसने और उसके पेरेंट्स ने उसे कभी नहीं देखा था, उसने अपने मामा से इस बारे में पूछा भी तो उन्होंने बताया था कि उनका किराएदार एक बहुत ही बिजी आदमी है और अपने मामा की बात सुनकर उसने इसे एक बार कोअनदेखा कर दिया था...
वही दूसरी तरफ एकांश भी उसके साथ एक ही छत के नीचे रहकर बहुत खुश था, खाने को लेकर उसे दिककते आ रही थी लेकिन उसने मैनेज कर लिया था, पिछले कुछ दिनों में उसने अक्षिता को अपने मा बाप से बात करते, कुछ बच्चों के साथ खेलते और घर के कुछ काम करते हुए खुशी-खुशी देखा... वो जब भी वहा होता उसकी नजरे बस अक्षिता को तलाशती रहती थी..
जब भी वो उसकी मां को उससे पूछते हुए सुनता कि वो दवाइयां ले रही है या नहीं तो उसे उसकी सेहत के बारे में सोचकर दुख होता था लेकिन उसे अपना ख्याल रखते हुए देखकर राहत भी मिलती..
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एकांश ने बाहर से कीसी की हसने की आवाज सुनीं, वो अपने कमरे से बाहर निकला और उसने नीचे देखा, उसने देखा कि अक्षिता और कुछ लड़कियाँ घर दरवाज़े के सामने सीढ़ियों पर बैठी थीं
वैसे भी एकांश आज ऑफिस नहीं गया था, जब तक जरूरी न हो वो घर से काम करता था और ज़्यादातर समय अपने दोस्तों से फ़ोन पर बात करते हुए अक्षिता के बारे में जानकारी देता था और फोन पर स्वरा ने उस पर इतने सारे सवाल दागे कि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसके सवालों का जवाब देते-देते रात हो गई थी...
एकांश को अब यहा का माहौल पसंद आने लगा था यहाँ के लोग अपना काम करके अपना बाकी समय अपने परिवार के साथ बिताते थे.. कोई ज्यादा तनाव नहीं, कोई चिंता नहीं, कोई इधर-उधर भागना नहीं, कोई परेशानी नहीं उसे इस जगह शांति का एहसास होने लगा था...
उसने नीचे की ओर देखा और अक्षिता के सामने खेल रहे बच्चों को देखा जो रात के आसमान को निहार रहे थे उसने भी ऊपर देखा जहा सितारों से जगमगाता आसमान था...
वो अक्षिता के साथ आसमान को निहारने की अपनी यादों को याद करके मुस्कुराया, उसने अक्षिता की तरफ देखा और पाया कि वो भी मुस्कुरा रही है, उसे लगा कि शायद वो भी यही सोच रही होगी...
तभी एक छोटी लड़की आई और अक्षिता के पास बैठ गई और उसे देखने लगी...
"दीदी, तुम आसमान की ओर क्यों देख रही हो?" उस लड़की ने अक्षिता से पूछा और एकांश ने मुस्कुराते हुए उनकी ओर देखा
"क्योंकि मुझे रात के आकाश में तारों को निहारना पसंद है" अक्षिता ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया
"दीदी, मैंने सुना है कि जब कोई मरता है तो वो सितारा बन जाता है क्या ये सच है?" उस छोटी लड़की ने मासूमियत से पूछा..
उसका सवाल सुन अक्षिता की मुस्कान गायब हो गई और एकांश की मुस्कान भी फीकी पड़ गई थी, दोनों ही इस वक्त एक ही बात सोच रहे थे
"शायद..." अक्षिता ने नीचे देखते हुए धीमे से कहा
वो लड़की आसमान की ओर देख रही थी जबकि एकांश बस अक्षिता को देखता रहा..
"किसी दिन मैं भी स्टार बनूंगी और अपने चाहने वालों को नीचे देखूंगी" अक्षिता ने आंसुओं के साथ मुस्कुराते हुए धीमे से कहा
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एकांश इधर उधर देखते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था देख रहा था कि कोई है या नहीं तभी गेट पर खड़ी अक्षिता को देखकर वो जल्दी से दीवार के पीछे छिप गया
उसने खुद को थोड़ा छिपाते हुए झाँका और देखा कि अक्षिता बिना हिले-डुले वहीं खड़ी थी, एकांश ने सोचा के इस वक्त वो वहा क्या कर रही है
अचानक अक्षिता ने अपने सिर को अपने हाथों से पकड़ लिया था और एकांश को क्या हो रहा था समझ नहीं आ रहा था उसने अक्षिता को देखा जो अब बेहोश होने के करीब थी और इसलिए वो उसके पास पहुचा और उसने उसे ज़मीन पर गिरने से पहले ही पकड़ लिया और उसकी तरफ़ देखा, अक्षिता बेहोश हो चुकी थी...
एकांश ने उसके गाल थपथपाते हुए उसे कई बार पुकारा लेकिन वो नहीं जागी
एकांश उसे गोद में उठाकर उठ खड़ा हुआ और सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ अपने कमरे में ले गया और उसे अपने बिस्तर पर लिटा दिया
घबराहट में उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे.... उसने अपना फोन निकाला और किसी को फोन किया
"हैलो?"
"डॉक्टर अवस्थी"
"मिस्टर रघुवंशी, क्या हुआ?" डॉक्टर ने चिंतित होकर पूछा
"अक्षिता बेहोश हो गई है मुझे... मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा डॉक्टर?" उसने अक्षिता चेहरे को देखते हुए पूछा
"क्षांत हो जाइए और मुझे बताइए ये कैसे हुआ?" डॉक्टर ने जल्दी से पूछा
"वो दरवाजे के पास खड़ी थी और उसके सर मे शायद दर्द शुरू हुआ और उसने अपना सिर पकड़ लिया और अगले ही मिनट वो बेहोश हो गई"
" ओह...."
"डॉक्टर, उसे क्या हुआ? वो बेहोश क्यों हो गई? क्या कुछ गंभीर बात है? क्या मैं उसे वहाँ ले आऊ? या किसी पास के डॉक्टर के पास जाऊ? अब क्या करू बताओ डॉक्टर?" एकांश ने डरते हुए कई सवाल कर डाले
"मिस्टर रघुवंशी शांत हो जाइए क्या आपके पास वो ईमर्जन्सी वाली दवा है जो मैंने आपको दी थी?" डॉक्टर ने शांति से पूछा
"हाँ!" एकांश ने कहा.
"तो वो उसे दे दो, वो ठीक हो जाएगी" डॉक्टर ने कहा
"वो बेहोश है उसे दवा कैसे दूँ?" एकांश
"पहले उसके चेहरे पर थोड़ा पानी छिड़को" डॉक्टर भी अब इस मैटर को आराम से हँडल करना सीख गया था वो जानता था एकांश अक्षिता के मामले मे काफी पज़ेसिव था
"ठीक है" उसने कहा और अक्षिता चेहरे पर धीरे से पानी छिड़का
"अब आगे"
"क्या वो हिली?" डॉक्टर ने पूछा
"नहीं." एकांश फुसफुसाया.
"तो उस दवा को ले लो और इसे थोड़े पानी में घोलो और उसे पिलाओ" डॉक्टर ने आगे कहा
"ठीक है" यह कहकर एकांश ने वही करना शुरू कर दिया जो डॉक्टर ने कहा था
एकांश धीरे से अक्षिता सिर उठाया और दवा उसके मुँह में डाल दी, चूँकि दवा तरल रूप में थी, इसलिए दवा अपने आप उसके गले से नीचे उतर गई
"हो गया डॉक्टर, दवा दे दी है, मैं उसे अस्पताल ले आऊ? कही कुछ और ना हो?" एकांश ने कहा
"नहीं नहीं इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, इस बीमारी मे ऐसा कई बार होता है अगर आप उसे यहाँ लाते तो मैं भी वही दवा देता, बस इंजेक्शन लगा देता अब वो ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है" डॉक्टर ने शांति से कहा
"ठीक है, तो वो कब तक जागेगी?" एकांश ने चिंतित होकर पूछा
"ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे में, और अगर दोबारा कुछ लगे तो मुझे कॉल कर लीजिएगा" डॉक्टर ने कहा
"थैंक यू सो मच डॉक्टर" एकांश ने कहा और फोन काटा
एकांश ने राहत की सांस ली और अक्षिता की तरफ देखा जो अभी ऐसी लग रही थी जैसे आराम से सो रही हो, एकांश वही बेड के पास घुटनों के बल बैठ गया और धीरे से अक्षिता के बालों को सहलाने लगा
"काश मैं तुम्हारा दर्द दूर कर पाता अक्षु" एकांश ने धीमे से कहा और उसकी आँखों से आँसू की एक बूंद टपकी
उसने आगे झुक कर अक्षिता के माथे को चूम लिया जो की अपने में ही एक अलग एहसास था, एकांश अब शांत हो गया था अक्षिता अब ठीक थी और उसके साथ थी इसी बात से उसे राहत महसूस हुई थी
अक्षिता की आंखों के चारों ओर काले घेरे और उसकी कमज़ोरी देखकर उसका दिल बैठ रहा था उसने उसका हाथ पकड़ा और उसके हाथ को चूमा
"मैं तुम्हें बचाने मे कोई कसर नहीं छोड़ूँगा अक्षु, मैं वादा करता हु तुम्हें कही नहीं जाने दूंगा" एकांश ने धीमे से अक्षिता का हाथ अपने दिल के पास पकड़ते हुए कहा
(पर बचाएगा कैसे जब खुद उसके सामने ही नही जा रहा)
"लेकिन वो चाहती है के तुम उसे जाने को बेटे"
अचानक आई इस आवाज का स्त्रोत जानने के लिए एकांश ने अपना सिर दरवाजे की ओर घुमाया जहा अक्षिता की माँ आँखों में आँसू लिए खड़ी थी एकांश ने एक नजर अक्षिता को देखा और फिर उठ कर खड़ा हुआ
"जानता हु लेकिन मैं उसे जाने नहीं दे सकता, कम से कम अब तो नहीं जब वो मुझे मिल गई है" एकांश ने दृढ़तापूर्वक कहा
अक्षिता की मा बस उसे देखकर मुस्कुरायी.
"तुम्हें सब कुछ पता है, है न?" उन्होंने उदासी से नीचे देखते हुए उससे पूछा
"हाँ" एकांश ने कहा और वो दोनों की कुछ पल शांत खड़े रहे
"मुझे पता है कि तुम यहाँ रहने वाले किरायेदार हो" उसकी माँ ने कहा
"उम्म... मैं... मैं... वो...." एकांश को अब क्या बोले समझ नहीं आ रहा था क्युकी ये सामना ऐसे होगा ऐसा उसने नही नहीं सोचा था
"मुझे उसी दिन ही शक हो गया था जब मैंने देखा कि कुछ लोग तुम्हारे कमरे में बिस्तर लेकर आए थे और मैंने देखा कि एक आदमी सूट पहने हुए कमरे में आया था, मुझे शक था कि यह तुम ही हो क्योंकि यहाँ कोई भी बिजनेस सूट नहीं पहनता" उसकी माँ ने कहा
"मैंने भी यही सोचा था के शायद यहा नॉर्मल कपड़े ज्यादा ठीक रहेंगे लेकिन देर हो गई" एकांश ने पकड़े जाने पर हल्के से मुसकुराते हुए कहा
"और मैंने एक बार तुम्हें चुपके से अंदर आते हुए भी देखा था, तभी मुझे समझ में आया कि तुम ही यहां रहने आए हो"
एकांश कुछ नहीं बोला
"लेकिन तुम छिप क्यू रहे हो?" उन्होंने उससे पूछा.
"अगर अक्षिता को पता चल गया कि मैं यहा हूँ तो वो फिर से भाग सकती है और मैं नहीं चाहता कि वो अपनी ज़िंदगी इस डर में जिए कि कहीं मैं सच न जान जाऊँ और बार-बार मुझसे दूर भागती रहे, मैं तो बस यही चाहता हु कि वो अपनी जिंदगी शांति से जिए" एकांश ने कहा और अक्षिता की मा ने बस एक स्माइल दी
“तुम अच्छे लड़के को एकांश और मैं ऐसा इसीलिए नहीं कह रही के तुम अमीर हो इसके बावजूद यह इस छोटी सी जगह मे रह रहे हो या और कुछ बल्कि इसीलिए क्युकी मैंने तुम्हें देखा है के कैसे तुमने अभी अभी अक्षिता को संभाला उसकी देखभाल की” अक्षिता की मा ने कहा
"ऐसा कितनी बार होता है?" एकांश अक्षिता की ओर इशारा करते हुए पूछा।
"दवाओं की वजह से उसे थोड़ा चक्कर आता है, लेकिन वो बेहोश नहीं होती वो तब बेहोश होती है जब वो बहुत ज्यादा स्ट्रेस में होती है" उसकी माँ दुखी होकर कहा
"वो स्ट्रेस में है? क्यों?"
लेकिन अक्षिता की मा ने कुछ नहीं कहा
"आंटी प्लीज बताइए वो किस बात से परेशान है?" एकांश ने बिनती करते हुए पूछा
"तुम्हारी वजह से”
"मेरी वजह से?" अब एकांश थोड़ा चौका
" हाँ।"
"लेकिन क्यों?"
"उसे तुम्हारी चिंता है एकांश, कल भी वो मुझसे पूछ रही थी कि तुम ठीक होगे या नहीं, वो जानती है कि उसके गायब होने से तुम पर बहुत बुरा असर पड़ेगा वो सोचती है कि तुम उससे और ज्यादा नफरत करोगे लेकिन वो ये भी कहती है कि तुम उससे नफरत करने से ज्यादा उसकी चिंता करोगे उसने हाल ही में मीडिया में भी तुम्हारे बारे में कुछ नहीं सुना था जिससे वो सोचने लगी कि तुम कैसे हो सकते हो और तुम्हारे सच जानने का डर उसे खाए जा रहा है इन सभी खयालों और चिंताओं ने उसे स्ट्रेस में डाल दिया और वो शायद इसी वजह से बेहोश हो गई होगी।" उसकी माँ ने कहा
एकांश कुछ नहीं बोला बस अक्षिता को देखता रहा और फिर उसने उसकी मा से कहा
"आंटी क्या आप मेरा एक काम कर सकती हैं?"
"क्या?"
"मैं यहा रह रहा हु ये बात आप प्लीज अक्षिता को मत बताना"
"लेकिन क्यों? "
"उसे ये पसंद नहीं आएगा और हो सकता है कि वो फिर से मुझसे दूर भागने का प्लान बना ले"
"लेकिन तुम जानते हो ना ये बात उसे वैसे भी पता चल ही जाएगी उसे पहले ही थोड़ा डाउट हो गया है" उन्होंने कहा
"जानता हु लेकिन कोई दूसरा रास्ता नहीं है आप प्लीज उसे कुछ मत बताना, उसे खुद पता चले तो अलग बात है जब उसे पता चलेगा, तो मैं पहले की तरह उससे बेरुखी से पेश आ जाऊंगा मेरे लिए भी ये आसान हो जाएगा और उसे यह भी नहीं पता होना चाहिए कि मैं उसे यहाँ लाया हूँ और दवा दी है"
अक्षिता की मा को पहले तो एकांश की बात समझ नहीं आई लेकिन फिर भी उन्होंने उसने हामी भर दी
"वैसे इससे पहले कि वो जाग जाए तुम उसे उसके कमरे मे छोड़ दो तो बेहतर रहेगा" अक्षिता की मा ने कहा जिसपर एकांश ने बस हा मे गर्दन हिलाई और वो थोड़ा नीचे झुका और अक्षिता को अपनी बाहों में उठा लिया उसकी माँ कुछ देर तक उन्हें ऐसे ही देखती रही जब एकांश ने उनसे पूछा कि क्या हुआ तो उसने कहा कि कुछ नहीं हुआ और नीचे चली गई
एकांश उनके पीछे पीछे घर के अंदर चला गया अक्षिता की माँ ने उसे अक्षिता का बेडरूम दिखाया और वो अंदर गया और उसने अक्षिता को देखा जो उसकी बाहों में शांति से सो रही थी
अक्षिता की माँ भी अंदर आई और उन्होंने देखा कि एकांश ने अक्षिता को कितने प्यार से बिस्तर पर लिटाया और उसे रजाई से ढक दिया उसने उसके चेहरे से बाल हटाए और उसके माथे पर चूमा..
एकांश खड़ा हुआ और उसने कमरे मे इधर-उधर देखा और वो थोड़ा चौका दीवारों पर उसकी बहुत सी तस्वीरें लगी थीं कुछ तो उसकी खूबसूरत यादों की थीं, लेकिन बाकी सब सिर्फ उसकी तस्वीरें थीं...
"वो जहाँ भी रहती है, अपना कमरा हमेशा तुम्हारी तस्वीरों से सजाती है" अक्षिता की माँ ने एकांश हैरान चेहरे को देखते हुए कहा
एकांश के मुँह शब्द नहीं निकल रहे थे वो बस आँसूओ के साथ तस्वीरों को देख रहा था
"वो कहती है कि उसके पास अब सिर्फ यादें ही तो बची हैं" सरिता जी ने अपनी बेटी के बालों को सहलाते हुए कहा
एकांश की आँखों से आँसू बह निकले और इस बार उसने उन्हें छिपाने की ज़हमत नहीं उठाई
वो उसके कमरे से बाहर चला गया, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे खुश होना चाहिए या दुखी......
जबसे एकांश के वहा होने का अक्षिता की मा को पता चला था तबसे चीज़े थोड़ी आसान हो गई थी, वो एकांश की सबकी नजरों से बच के घर मे आने जाने मे भी मदद करती थी और सबसे बढ़िया बात ये हुई थी के एकांश की खाने की टेंशन कम हो गई थी क्युकी उसके आने से पहले ही सरिता जी एकांश का खाना उसके कमरे मे रख आती थी... वैसे तो एकांश ने पहले इसका विरोध किया था लेकिन उन्होंने उसकी एक नहीं सुनी थी वही एकांश भी इस प्यार से अभिभूत था और अब उसे अपनी मा की भी याद आ रही थी जिससे ठीक से बात किए हुए भी एकांश को काफी वक्त हो गया था
कुल मिला कर एकांश के लिए अब चीजे आसान हो रही थी क्युकी उसकी मदद के लिए अब वहा कोई था
एकांश इस वक्त आराम से अपने बेड पर सो रहा था, दोपहर का वक्त हो रहा था और एकांश अभी भी गहरी नींद मे था, उसे सुबह के खाने की भी परवाह नहीं रही थी
काफी लंबे समय बाद एकांश को इतनी अच्छी नींद आई थी, वो काफी महीनों से ठीक से सोया नहीं था और उसमे भी पिछले कुछ दिन तो उसके लिए काफी भारी थे दिमाग मे सतत चल रहे खयाल उसे ठीक से सोने ही नहीं देते थे
आज उसने काम से छुट्टी लेकर आराम करने के बारे में सोचा था क्योंकि उसकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं लग रही थी और आज ही ऐसा हुआ था के सरिता जी उसे लंच देने नहीं आ सकी थी क्योंकि अक्षिता बाहर ही थी उसकी तबियत भी ठीक थी और वो बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रही थी, एकांश के थोड़ा निश्चिंत होने का एक कारण ये भी था के वो अक्षिता की तबियत में हल्का सा सुधार देख रहा था, लेकिन ऐसा कब तक रहेगा कोई नही जानता था
सरिता जी को एकांश की चिंता हो रही थी क्योंकि वो सुबह से एक बार भी अपने कमरे से बाहर नहीं आया था और उसने दोपहर का खाना भी नहीं खाया था लेकिन वो भी कुछ नही कर सकती थी एकांश ने ही उन्हें कसम दे रखी थी के उसके वहा होने का अक्षिता को पता ना चले
एकांश इस वक्त अपने सपनों की दुनिया में था, जिसमें वो और अक्षिता हाथों मे हाथ डाले लगातार बातें करते और हंसते हुए चल रहे थे, वो अपनी नींद से उठना नहीं चाहता था क्योंकि वो सपना उसे इतना वास्तविक लग रहा था इतना सच था के एकांश उससे बाहर ही नहीं आना चाहता था...
जब अक्षिता सपने में उसके होंठों के करीब झुकी हुई थी उस वक्त एकांश के चेहरे पर मुस्कान खेल रही थी, उनके होंठ मिलने ही वाले थे के तभी कोई चीज तेजी से आकर उससे टकराई जिसने एकांश को अपने सपनों की दुनिया से बाहर आने को मजबूर कर दिया
वो दर्द से कराह उठा और अपना सिर पकड़कर अचानक उठ बैठा और चारों ओर देखने लगा तभी उसकी नजर अपने कमरे की टूटी हुई खिड़की के कांच पर पर गई और फिर जमीन पर पड़ी क्रिकेट बॉल पर, वो पहले ही सिरदर्द से परेशान था और अब उसके सिर पर बॉल और लग गई...
वो खड़ा हुआ तो उसे थोड़ा चक्कर आने लगा उसने खुद को संभाला और खिड़की से बाहर देखने के लिए मुड़ा ताकि बॉल किसने मारी है देख सके, एकांश अभी खिड़की के पास पहुंचा ही था के तभी उसने अपने कमरे का दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुलने की आवाज़ सुनी और सोचा कि शायद किसी बच्चे ने उसे बॉल मारी होगी और वही बॉल लेने आया होगा, एकांश तेज़ी से उस बच्चे को डांटने के लिए मुड़ा लेकिन उसने जो देखा उससे वो जहा था वही खड़ा रह गया
अक्षिता अपने किराएदार से बच्चों की खातिर खिड़की तोड़ने की माफी मांगने और बॉल लेने आई थी लेकिन जब उसने दरवाज़ा खोला और अंदर झाँका तो उसे एक आदमी की पीठ दिखाई दी...
वो उस आदमी को अच्छी तरह देखने के लिए आगे बढ़ी, क्योंकि उस बंदे की पीठ, उसका शरीर, उसकी ऊंचाई, उसके बाल, सब कुछ उसे बहुत जाना पहचाना लग रहा था और उस कमरे मे मौजूद उस बंदे के सेन्ट की हल्की खुशबू को वो अच्छी तरह पहचानती थी
जब वो पलटा, तो उस बंदे को देख अक्षिता भी शॉक थी...
अक्षिता को यकीन ही नहीं हो रहा था के जो वो देख रही थी वो सच था उसने कसके अपनी आंखे बंद करके अपने आप को शांत किया ये सोच कर के जब वो आंखे खोलेगी तब नजारा अलग होगा और फिर अक्षिता ने अपनी आंखे खोली तब भी एकांश तो वही था
"अंश..."
उसने आँसू भरी आँखों से उसकी ओर देखते हुए एकदम धीमे से कहा
अपना नाम सुनते ही एकांश भी अपनी तंद्री से बाहर आया और उसने अक्षिता को देखा जिसके चेहरे पर आश्चर्य था, डर था और उसके लिए प्यार था
एकांश को अब डर लग रहा था के पता नहीं अक्षिता कैसे रिएक्ट करेगी और वो उससे क्या कहेगा, उसने दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे.....
"तुम यहा क्या......."
लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी नहीं करने दी और जो भी बात दिमाग में आई, उसे बोल दिया
"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" एकांश ने थोड़ा जोर से पूछा
उसने अपना चेहरा थोड़ा गुस्से से भरा रखने की कोशिश की
"यही तो मैं तुमसे जानना चाहती हु" अक्षिता ने भी उसी टोन मे कहा
"तुम मेरे कमरे मे हो इसलिए मेरा पूछना ज्यादा सेन्स बनाता है" एकांश ने कहा
"और ये कमरा मेरे घर का हिस्सा है" अक्षिता ने चिढ़ कर कहा
"ये तुम्हारा घर है?" उसने आश्चर्य और उलझन का दिखावा करते हुए पूछा
"हाँ! अब बताओ तुम यहाँ क्या कर रहे हो?"
"मैं यहा का किरायेदार हु, मिल गया जवाब, अब जाओ"
एकांश ये दिखाने की बहुत कोशिश कर रहा था कि उसे उसकी कोई परवाह नहीं है, लेकिन वही ये भी इतना ही सच था के अंदर ही अंदर वो उसे गले लगाने के लिए तड़प रहा था
"तुम नए किरायेदार हो?" अक्षिता ने चौक कर पूछा
"हाँ" एकांश ने एक हाथ से अपने माथे को सहलाते हुए कहा जहा उसे बॉल लगी थी
“नहीं ये नहीं हो सकता” अक्षिता ने एकदम धीमे से खुद से कहा
“क्या कहा?”
“सच सच बताओ तुम यहा क्या कर रहे हो” अक्षिता ने एकांश से पूछा
अक्षिता अपनी भोहे सिकोड़ कर एकांश को एकटक शक के साथ देख रही थी और एकांश उसकी इस शकी नजर का सामना नहीं कर पा रहा था, वो जानता था के वो ज्याददेर तक झूठ नही बोल पाएगा, क्युकी अक्षिता अक्सर उसका झूठ पकड़ लिया करती थी...
"मैं यहा क्यू हु क्या कर रहा हु इसका तुमसे कोई लेना देना नहीं है, I am not answerable to you, now get out!" एकांश ने चिढ़कर कहा इस उम्मीद मे कि वो वहा से चली जाएगी लेकिन अक्षिता एकांश की बात मान ले, हो ही नही सकता
"तुम मुझे मेरे ही घर से बाहर जाने को कह रहे हो?" अब अक्षिता को भी गुस्सा आने लगा था वही एकांश को आगे क्या करे समझ नहीं आ रहा था, उसे अपने इतनी जल्दी पकड़े जाने की उम्मीद नहीं तो ऊपर से सरदर्द और बॉल लगना उसका दिमाग बधिर किए हुए था
"ऐसा है मिस पांडे मैंने इस कमरे का किराया दिया है और ये मेरा कमरा है तो तुम यहा से जा सकती हो" एकांश ने गुस्सा जताने की भरपूर कोशिश करते हुए कहा
एकांश की जिद्द अक्षिता जानती थी लेकिन वो इस गुस्से के सामने नही पिघलने वाली थी
"मैं यहा से तब तक नहीं जाऊंगी जब तक मुझे मेरे जवाब नहीं मिल जाते" अक्षिता ने एकांश को घूरते हुए कहा
लेकिन एकांश ने अक्षिता को पूरी तरह इग्नोर कर दिया और अपने कमरे में रखे मिनी फ्रिज से बर्फ के टुकड़े निकले और उन्हे अपने माथे पर बने उस उभार पर रगड़ा जहाँ उसे चोट लगी थी..
एकांश का यू अपने माथे पर बर्फ मलना पहले तो अक्षिता को समझ नहीं आया लेकिन फिर उसे उसके वहा आने का कारण समझ आया और उनसे टूटी खिड़की और वहा पड़ी बॉल को देखा और फिर एकांश को तो उसे समझते देर नहीं लगी के बॉल एकांश के सर पर लगी थी और वहा अब एक टेंगुल उभर आया था वो झट से एकांश के पास पहुची
"बहुत जोर से लगी क्या... " वो उसके पास जाकर बोली, “लाओ मैं कर देती हु”
"मैं देख लूँगा तुम जाओ यहा से" एकांश ने एक बार फिर अक्षिता को वहा से भेजने की कोशिश की लेकिन वो कही नहीं गई बल्कि एकांश की चोट को देखने लगी वही एकांश उसे बार बार जाने का कहने लगा तो चिढ़ कर अक्षिता को उसपर चिल्लाना पड़ा
"शट अप एण्ड सीट, मैं फर्स्ट ऐड बॉक्स लेकर आती हु” बस फिर क्या था एकांश बाबू चुपचाप बेड पर बैठ गए और जब अक्षिता फर्स्ट ऐड बॉक्स लाने गई तक उसके चेहरे पर एक स्माइल थी, अक्षिता ने फिर उसकी दवा पट्टी की
अक्षिता उसके बालों को एक तरफ़ करके जहा लगी थी वहा दवा लगा रही थी और इससे एकांश के पूरे शरीर में झुनझुनी होने लगी थी अक्षिता को अपने इतने करीब पाकर उसका मन उसके काबू मे नहीं था और यही हाल अक्षिता का भी था...
एकांश अपने बिस्तर से उठा और उसने टेबल पर से कुछ फाइलें उठा लीं।
"तुम क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने पूछा
लेकिन एकांश ने कोई जवाब नही दिया..
"ज्यादा दर्द हो रहा हो तो आराम कर लो थोड़ी देर" अक्षिता ने कहा जिसके बाद एकांश पल रुका और फिर धीमे से बोला
"मेरा दर्द कभी ठीक नहीं हो सकता"
एकांश की पीठ अब भी अक्षिता की ओर थी, वो उससे नजरे नही मिलना चाहता था वही वो भी समझ गई थी कि उसका क्या मतलब था और वो है भी जानती था कि वही उसके दर्द के लिए जिम्मेदार भी है
दोनों कुछ देर तक चुप खड़े रहे
"तुम अभी तक यही हो" एकांश ने जब कुछ देर तक अक्षिता को वहा से जाते नही देखा तब पूछा
"मैंने तुमसे कहा है कि मुझे जवाब चाहिए"
"देखो, मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं है मुझे काम करना था और मैं पहले ही बहुत समय बर्बाद कर चुका हु" एकांश ने थोड़े रूखे स्वर में कहा।
अक्षिता को अब इसपर क्या बोले समझ नही आ रहा था, एक तो एकांश का वहा होना उसे अब तक हैरान किया हुआ था, उसका एक मन कहता के एकांश बस उसी के लिए वहा आया था और उसे सब पता चल गया था वही अभी का एकांश का बर्ताव देखते हुए ये खयाल भी आता के शायद उसकी सोच गलत हो
"जब तक तुम ये नही बता देते की तुम यहा क्या कर रहे हो मैं कही नही जाऊंगी" अक्षिता ने कहा और एकांश ने मूड कर उसे देखा..
"तो ठीक है फिर अगर यही तुम चाहती हो तो" एकांश ने एक कदम अक्षिता की ओर बढ़ाते हुए कहा और एकांश को अपनी ओर आता देख अक्षिता भी पीछे सरकने लगी
"तुम सीधे सीधे जवाब नही दे सकते ना?" अक्षिता ने एकांश की आंखो के देखते हुए वापिस पूछा
"और तुम सवाल पूछना बंद नही कर सकती ना?"
"नही!!"
"तो मेरे कमरे से बाहर निकलो"
"नही!!" दोनो ही जिद्दी थे कोई पीछे नही हटने वाला था लेकिन इस सब में एक बात ये हुई की अब दोनो एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे इतने के अक्षिता अगर अपना चेहरा जरा भी हिलाती तो दोनो की नाक एकदूसरे से छू जाती
पीछे हटते हुए अक्षिता दीवार से जा भिड़ी थी और एकांश उसके ठीक सामने खड़ा था दोनो को नजरे आपस में मिली हुई थी और एकांश ने अपने दोनो हाथ अक्षिता ने आजूबाजू दीवार से टीका दिए थे ताकि वो कही हिल ना पाए, एकांश के इतने करीब होने से अक्षिता का दिल जोरो से धड़क रहा था ,वो उसकी आंखो में और नही देखना चाहती थी, वही एकांश की भी हालत वैसी ही थी लेकिन वो उसके सामने कुछ जाहिर नही होने देना चाहता था
"तो तुम मेरे साथ मेरे कमरे में रहना चाहती हो?" एकांश ने अक्षिता को देखते हुए मुस्कुरा कर पूछा
"मैंने ऐसा कब कहा?"
"अभी-अभी तुमने ही तो कहा के तुम बाहर नहीं जाना चाहती, इसका मतलब तो यही हुआ के तुम मेरे साथ रहना चाहती हो" एकांश ने अक्षिता के चेहरे के करीब झुकते हुए कहा
"मैं... मेरा ऐसा मतलब नहीं था" अक्षिता ने उसकी आंखो मे देखते हुए बोला
"तो फिर तुम्हारा क्या मतलब था?" एकांश ने आराम से अक्षिता के बालो को उसके कान के पीछे करते हुए पूछा
"मैं.... मेरा मतलब है..... तुम..... यहाँ....." एकांश को अपने इतने करीब पाकर अक्षिता कुछ बोल नहीं पा रही थी
"मैं क्या?"
"कुछ नहीं..... हटो" उसने नज़रें चुराते हुए कहा
"नहीं."
"एकांश?" अक्षिता ने धीमे से कहा, वही एकांश मानो अक्षिता की आंखो में खो गया था, वो ये भी भूल गया था के उसे तो उसपर गुस्सा करना था
"हम्म"
"तुम यहाँ क्यों हो?" अक्षिता ने वापिस अपना सवाल पूछा
और इस सवाल ने एकांश को वापिस होश में ला दिया था, ये वो सवाल था जिसका अभी तो वो जवाब नही देना चाहता था इसीलिए उसने सोचा कि अभी उसके सवाल को टालना ही बेहतर है
"तुम जा सकती हो" एकांश अक्षिता से दूर जाते हुए बोला
"लेकिन...."
"आउट!"
और एकांश वापिस अपनी फाइल्स देखने लगा वही अक्षिता कुछ देर वहीं खड़ी रही लेकिन एकांश ने दोबारा उसकी तरफ नही देखा और फिर वो भी वहा से चली गई और फिर उसका उदास चेहरा याद करते हुए एकांश उसी के बारे में सोचने लगा
'मुझे माफ़ कर दो अक्षिता, लेकिन तुम वापिस मुझसे दूर भागो ये मैं नहीं चाहता' एकांश ने अपने आप से कहा
अक्षिता वहां से गुस्से में चली आई थी, अपने आप पर वो भी नियंत्रण खो गई थी और वो जानती थी कि अगर वो उसके साथ एक मिनट और रुकी तो वो सब कुछ भूलकर उसके पास जाकर उसके गले लग जाएगी
वही एकांश बस थकहारकर दरवाजे की ओर देखता रहा
एकांश अपने ख्यालों में ही खोया हुआ था के दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी विचार-धारा भंग हुई, उसने दरवाजे की ओर देखा तो अक्षिता की माँ चिंतित मुद्रा में खड़ी थी
"क्या तुम ठीक हो बेटा?" उन्होंने उसके घाव को देखते हुए पूछा
"हा आंटी बस हल्की की चोट है" एकांश ने मुस्कुराते हुए कहा
"दर्द हो रहा है क्या?" उन्होंने टूटी खिड़की और उसके घाव की जांच करते हुए पूछा।
"हाँ थोड़ा सा" एकांश अपने माथे पर हाथ रखे नीचे देखते हुए फुसफुसाया
"किसी न किसी दिन उसे पता चल ही जाना था कि तुम ही यहाँ रह रहे हो" सरिता जी ने कहा
"जानता हु..."
"काश मैं इसमें कुछ कर पाती" उन्होंने धीमे से कहा
"आप बस मेरी एक मदद करो"
"क्या?"
"बस इस बार उसे मुझसे भागने न देना" एकांश ने विनती भरे स्वर में कहा
"ठीक है" उन्होंने भी मुस्कुराकर जवाब दिया, "अब चलो, पहले खाना खा लो, तुम फिर से खाने पीने का ध्यान नही रख रहे हो"
"सॉरी आंटी वो मैं सो गया था तो टाइम का पता ही नही चला"
बदले में उन्होंने मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया और उसे वो खाना दिया जो वो उसके लिए लाई थी और एकांश ने भी भूख के मारे जल्दी से खाना शुरू कर दिया क्योंकि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि उसे भूख लगी था जब तक उसने खाना नहीं देखा था और
फिर कंट्रोल नही हुआ
सरिता जी इस वक्त एकांश के देख रही थी जो खाना खाते समय उनके खाने की तारीफ कर रहा था और वो उसकी बकबक पर हस रही थी और मन ही मन एकांश को अक्षिता के लिए प्रार्थना कर रही थी
"न न न मेरा इससे पूरा लेना देना है तो चुप चाप मेरे सवाल का जवाब दो"
एकांश अपने ऑफिस जाने की कोशिश कर रहा था जबकि अक्षिता उसके रास्ते में खड़ी थी और तब तक हटने के मूड में नहीं थी जब तक एकांश उसके सवालों के जवाब नहीं दे देता, वह सीढ़ियों पर अड़ी हुई उसका रास्ता रोके खड़ी थी
"हटो यार" एकांश उसे अपने रास्ते से बाजू हटने की कोशिश करते हुए कहा लेकिन उसका अक्षिता पर कोई असर नही हुआ
"नहीं" अक्षिता ने कहा
"अक्षिता देखो अगर तुम अभी नहीं हिली, तो मैं कुछ ऐसा करूँगा जो तुम्हें पसंद नहीं आएगा"
"हुह, तुम मेरे घर में हो तो मुझे धमकाओ मत" अक्षिता ने भी उसी टोन में जवाब दिया
और फिर एकांश ने वो किया जो अक्षिता ने सोचा भी नही था, एकांश ने अक्षिता को किसी बोरी की तरह अपने कंधे पर उठा लिया, अब अक्षिता का वजन वैसे ही पहले से थोड़ा कम हो चुका था इसीलिए उसे खास तकलीफ भी नही हुई और वो वैसे ही सीढ़िया उतरने लगा वही अक्षिता उसकी पीठ पर मारते हुए एकांश पर चिल्लाने लगी
"मुझे नीचे उतारो!" अक्षिता ने चिल्लाकर कहा एकांश की पीठ पर मुक्के मारते हुए कहा
"जब तक मैं सीढ़ियों से नीचे नहीं उतर जाता, तब तक नहीं" एकांश ने उतनी ही शांति से जवाब दिया
"मुझे अभी के अभी नीचे उतारो!"
इसका एकांश कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि मुस्कुराया और नीचे उतरने लगा वही अक्षिता उसके हाथ से छूटने के लिए छटपटाने लगी
"हिलना बंद करो वरना यही पटक दूंगा" एकांश ने वापिस धमकाया और इस बार इसका अक्षिता पर असर भी हुआ और उसने हिलना बंद कर दिया..
और जैसे ही अक्षिता ने अपने हाथ पाव चलाना छोड़े एकांश पे चेहरे पर एक हल्की सी स्माइल आ गई, दोनो एकदूसरे का चेहरा नही देख पा रहे थे लेकिन अक्षिता एकांश के हावभाव समझ गई और आखिरकार जब वे गेट के पास पहुंचे तो उसने उसे नीचे उतार दिया, अक्षिता का थोड़ा सर घुमा लेकिन उसने अपने आप को संभाला और एकांश को गुस्से से देखने लगी
"ये क्या हरकत थी एकांश" उसने अपना सिर पकड़े हुए कहा
"तुमने मुझे मजबूर किया तुम हट जाती तो मैं ऐसा नही करता" एकांश ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा और वहा से जाने के लिए मुड़ा
अक्षिता कुछ देर जाते हुए देखता एकांश के देखती वही खडी रही और फिर होठों पर मुस्कान लिए अपने घर के अंदर चली गई।
"तुम ऐसे मुस्कुरा क्यों रही हो?" अक्षिता जब चेहरे पर स्माइल लिए घर में दाखिल हुई तो उसकी मां ने उसे पूछा
"कुछ.. कुछ नही बस ऐसे ही" अक्षिता ने इधर उधर देखते हुए कहा
"मैंने अभी अभी देखा है तुम दोनो को" सरिताजी बोलते हुए रुकी, उन्होंने अक्षिता को देखा फिर आगे कहा, "और वो अच्छा लड़का है, और मुझे पसंद भी है" सरीताजी ने मुस्कुराते हुए कहा
"माँ! प्लीज़!"
"क्या?? वो मेरी बेटी को खुश रखता है, और हर माँ अपनी बेटी के लिए ऐसा दामाद चाहती है जो इतना सुन्दर हो और जिसका दिल भी सोने जैसा हो" सरीता जी ने कहा
अक्षिता अपनी मां की बात सुन हस पड़ी, शायद वो अपनी बेटी की शादी उसके पसंदीदा लड़के एकांश से होने का सपना देख रही थी और है सोचते ही अक्षिता का चेहरा अचानक उतर गया और वह अपनी किस्मत पर उदास होकर मुस्कुराने लगी, वो कभी भी अपनी और अपनी मां की ये इच्छा पूरी नहीं कर सकती थी,
"हंसो मत अक्षु, मैं सीरियस हु" सरिता जी बात करने के साथ साथ घर के काम भी कर रही थी
"मां आप जानती है मेरी किस्मत में ये खुशी नही है" अक्षिता ने धीमी आवाज़ में कहा और अपनी मां को अपनी ओर देखने पर मजबूर कर दिया
"तुम भी खुश रहने की हकदार हो अक्षिता" सरिता जी ने कहा
"वापिस वही बता मत शुरू करो मां आप मेरी जिंदगी का सच जानती है इसीलिए प्लीज मेरी शादी के बारे में सपने मत देखो मैं अपनी कुछ पल को खुशी के लिए किसी की जिंदगी खराब नही करूंगी, खासकर एकांश की।" अक्षिता ने सख्ती से कहा
" लेकिन....."
"नहीं मां, क्या आप भूल गई कि हम शहर से क्यों भागे थे? हम इसलिए भागे क्योंकि मैं एकांश की ज़िंदगी बर्बाद नहीं करना चाहती और उसे सच्चाई पता नहीं चलनी चाहिए, लेकिन फिर वो अचानक यहा क्या कर रहा है? वो यहा क्यों आया? उसके जैसा अमीर आदमी इतनी छोटी जगह में क्यों रह रहा है? मेरे लिए? क्या उसे सच्चाई पता है? नही ये नही हो सकता" बोलते बोलते अक्षिता घबराने लगी थी उसका आवाज भी ऊंचा हो गया था वही अब सरिताजी को डर लग रहा था के कही अक्षिता को पैनिक अटैक ना आ जाए
"अक्षिता, बच्चे शांत हो जाओ! मैंने उससे पूछा है कि वो यहा क्यों रह रहा है, उसने बस इतना कहा कि वह यहा इसलिए रुका है क्योंकि उसे अपने किसी प्रोजेक्ट के लिए साइट के पास रहना था और यह प्रोजेक्ट कंपनी के लिए बहुत बड़ी बात है इसलिए उसने ये जगह किराए पर ली क्योंकि ये उसके ऑफिस और साइट के बहुत पास है" सरिता जी ने उसे पैनिक अटैक से बचाने के लिए शांति से समझाया
"ओह" अक्षिता ने कहा लेकिन अभी भी उसे इस बारे में थोडा डाउट था, लेकिन फिलहाल उसने इस बता को यही छोड़ देने का फैसला किया
******
ऑफिस में एकांश ने जब रोहन और स्वरा के बताया के उसके अक्षिता के घर रहने का भेद खुल गया है तो ये जान कर स्वरा थोड़ी खुश हुई क्युकी वो एकांश की इस बात से थोड़ी खफा थी के वो छुप रहा था साथ ही उसने अक्षिता से मिलने को जिद पकड ली थी और एकांश को ये कह कर समझाना पडा के अक्षिता अभी उसके वहा रहने को पचा नहीं पाई है ऐसे में इन लोगो को वहा देख वो डेफिनेटली भाग जायेगी जिससे obviously स्वरा खुश नही थी लेकिन एकांश की बात मानने के अलावा उसके पास फिलहाल कुछ नही था उसकी उसकी नजर में एकांश को ये हरकते बिलकुल ही बेवकूफाना थी जो की कुछ हद तक सही भी था,
शाम को एकांश हमेशा को तरह गली के मोड पे अपनी कार से उतरा और ड्राइवर से अगले दिन जल्दी आने कहा और वो आराम से घर की ओर चल पड़ा, उसके दिमाग में कई बातें घूम रही थीं की कैसे कुछ ही दिनों में उसकी जिंदगी एकदम बदल गई थी, ऐसा नहीं था कि उसे इससे कोई परेशानी है, लेकिन वो आने वाले कल को लेकर डर रहा है
अपने ख्यालों से एकांश ने नेगेटिव ख्यालों को किनारे किया, वो घर पहुंच गया था और ऊपर जाते समय उसने शोर या यू कहें कि एक आवाज़ सुनी, उसने इधर-उधर देखा तो उसे एक लड़की दिखी जो शायद अभी भी कॉलेज में पढ़ रही होगी और सामने की बिल्डिंग की छत पर खड़ी होकर उसे देख हाथ हिला रही थी
एकांश ने अपने पीछे की ओर देखा कि कोई है या नहीं, लेकिन वहा कोई नहीं था, उसने फिर से उलझन में उसकी ओर देखा और देखा कि वह मुस्कुराते हुए उसकी ओर ही हाथ हिला रही थी, एकांश समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे और इसलिए उसने वही किया जो एक अच्छा पड़ोसी करता है, उसने भी उस लड़की को देख हाथ हिला दिया..
और बस... एकांश का रिस्पॉन्स देख वो लड़की खुशी से उछल पड़ी और उसे एक फ्लाइंग किस दे डाली
और जब उस लड़की की ये हरकत देख एकांश एकदम स्तब्ध हो गया, उसे समझ ही नहीं आराहा था के अभी अभी ये हुआ क्या, उसने थोड़ी झुंझलाहट में अपना सिर हिलाया और अपने कमरे की ओर मुड़ा ,लेकिन आश्चर्य से उसकी पलकें तब झपकी जब उसने अपने सामने क्योंकि अक्षिता को खड़ा देखा जो अपने हाथों को कमर पर रखे और चेहरे पर हल्का गुस्सा लिए उसे देख रही थी
एकांश ने अपने चेहरे पर बगैर कोई भाव लाए नजर भर के अक्षिता को देखा और फिर उसके घूरने को इग्नोर करते हुए उसे हल्का सा धक्का देकर अपने कमरे के अंदर चला गया
"तुम क्या कर रहे थे?" अक्षिता ने एकांश के पीछे कमरे में आते हुए पूछा
"क्या?"
"तुमने उस लड़की की ओर हाथ क्यों हिलाया?" अक्षिता ने अपने दाँत पीसते हुए पूछा
"पहले तो उसने मेरी ओर हाथ हिलाया और फिर मैंने उसकी ओर, क्योंकि मुझे लगा कि कोई अगर मुझे ग्रीट कर रहा है और मैं ना करू तो ठीक नही लगेगा" एकांश ने कहा और अपनी फाइल्स और लैपटॉप टेबल पर रखने लगा
"वो तुम्हें ग्रीट नहीं कर रही थी!" अक्षिता झल्लाकर कहा
"हं?"
"वो तुमपे लाइन मार रही थी"
एकांश ने पहले तो अक्षिता को देखा लेकिन फिर उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गई
"ओह.. अच्छा... ओके... तो.. तुम्हें इससे क्या लेना-देना है?" एकांश ने पूछा लेकिन अक्षिता कुछ पलों तक कुछ नही बोली फिर फिर
"देखो.. वैसे तो मुझे कुछ फर्क नही पड़ता लेकिन तुमने उसे देखकर हाथ हिलाया और अब वो सोच रही होगी कि तुम्हें उसमें दिलचस्पी है" अक्षिता ने कहा
"तो सोचने दो.. maybe I am interested" एकांश ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा वही अक्षिता इसे शॉक होकर देखने लगी
"वैसे मेरे आने से पहले तुम यहा क्या कर रही थीं?" एकांश ने पूछा
"एकांश तुम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो? तुमने अपना कमरा क्यों नहीं बंद किया?"
एकांश कभी अपना कमरा बंद नही करता था क्युकी सरिता जी रोज उसके कमरे में आती थी और उसके आने से पहले ही वो उसका खाना कमरे में रख जाति थी, उन्हें आने जाने में आसानी ही इसीलिए एकांश कमरे को खुला छोड़ जाता था
"मैंने ताला नहीं लगाया क्योंकि मैं जानता हूं कि कुछ नहीं होगा।" एकांश ने आराम से कहा
"और अगर तुम्हारा कुछ सामान खो गया तो?"
"मेरे पास अब खोने को कुछ नहीं बचा है" एकांश ने धीमे से फुसफुसाकर कहा लेकिन अक्षिता ने सुन लिया
अक्षिता कुछ नही बोली वही एकांश बस उसे देखता रहा और फिर आगे बोला
"कुछ नही खोने वाला तुम भी यही हो और तुम्हारे पेरेंट्स भी इसलिए कोई भी अंदर आकर लूट तो नहीं सकता ना और मुझे तुम लोगों पर भरोसा है" एकांश ने कहा और मुड़ गया
और इससे पहले कि वह कुछ कह पाती, एकांश ने अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए, जिससे अक्षिता एकदम चौकी
"तुम क्या कर रहे हो? "
"चेंज कर रहा हु"
"मेरे सामने? "
एकांश कुछ नही बोला उसके अपने शर्ट के बटन खोले और बस पलट गया, उसकी वेल मेंटेंड बॉडी अक्षिता के सामने थी और वो उसे ऐसे देखकर थोड़ा लेकिन अक्षिता की नजरे भी उसपर से नही हट रही थी
"मुझे चेकआउट करके हो गया?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा
"मैं तुम्हें नहीं देख रही थी"
"Yeah" एकांश ने कहा और अपनी बेल्ट खोलना शुरू कर दिया
"रुको!" अक्षिता चिल्लाई.
"क्या?" उसने चिढ़कर पूछा
एकांश थका होने की वजह से बस आराम करना चाहता था और अभी अक्षिता को अपने सामने देख उसे गले लगाने के लिए उसका मन मचल रहा था और वो इस समय बस अपने आप को कंट्रोल कर रहा था
"मैं अभी भी तुम्हारे सामने हू, कुछ तो शर्म करो?" अक्षिता ने कहा
"यह मेरा कमरा है"
"पता है!"
"तो जाओ फिर निकलो यहा से" एकांश ने कहा
"और अगर मैं ऐसा न करू तो?"
" तब..... "
यह कहते हुए एकांश ने अपनी शर्ट पूरी तरह से उतारनी शुरू कर दी
"नही नही..." यह कह कर अक्षिता वहा से निकल गई
एकांश ये समझ गया था के अक्षिता को उस लड़की से जरूर जलन हुई थी और इसलिए वो यू उससे लड़ने खड़ी थी और यही सोच एकांश के चेहरे पर मुस्कान आ गई
उधर अक्षिता का दिल तेज़ी से धड़क रहा था उसके दिमाग में बस एकांश छाया हुआ था वही एकांश को देख हाथ हिलाने वाली लड़की का खयाल आते ही उसके चेहरे पर गुस्से के भाव आ गए थे उसने मन ही मन उस लड़की को ढेरो गालियां दी, एक नजर एकांश के कमरे की ओर देखा और फिर अपने घर में चली गई..
"माँ, आप ये खाना कहाँ ले जा रही हैं?" अक्षिता ने अपनी माँ के हाथों में खाने की थाली देख पूछा।
"एकांश के लिए" सरिता जी ने भी आराम से जवाब दिया लेकिन बदले मे अक्षिता बस उन्हे देखती रही
" क्यों?"
"क्युकी वो लड़का अपना बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखता यहाँ है और यहा आने के बाद से तो वो और दुबला-पतला हो गया है इसीलिए मैंने उससे कहा है कि अब से मैं उसके खाने का ध्यान रखूँगी" और वो एकांश के लिए खाना ले जाने लगी
" लेकिन......"
"अब ये मत कहना के तुम नाही चाहती के मैं उसे खाना देने जाऊ" सरिता जी ने कहा
"ऐसी बात नहीं है माँ.... बस डर लग रहा है के अब वापस उसमे उलझ ना जाए क्युकी अब हम उससे दूर हुए तो वो सह नहीं पाएगा"
"उलझे या नहीं लेकिन हम इस बार कहीं नहीं जा रहे हैं" सरिता जी ने सख्ती से कहा।
"माँ लेकिन...."
"कोई लेकिन वेकीन नहीं अक्षिता, भागना बंद करो और इसका सामना करो, कल क्या होगा ये सोचने मे तुम पहले काफी समय गाव चुकी हो अब अपनी जिंदगी इस सब मे मत लगाओ बेटा" सरिता जी ने थोड़ा सख्ती से कहा वही अक्षिता बस उन्हे देखती ही रही
"अब तुम्हें ये पसंद हो या ना हो लेकिन हम अब कही नहीं जाएंगे अक्षिता” सरिताजी ने आगे कहा वही अक्षिता की आंखों में आंसू आ गए
"यह सच है अक्षिता तुम्हारे जीवन का सच, तुम दोनों को इससे भागने के बजाय इसका सामना करना होगा, तुमने उससे कितना भी दूर भागने की कोशिश की हो, किस्मत ने फिर से तुम दोनों को एक साथ ला दिया है, इसलिए कल के बारे में सोचना बंद करो और अपने आप को संजोना सीखो, तुमसे बेहतर जिंदगी की कीमत कौन जान सकता है?" सरिता जी ने अक्षिता को प्यार से आराम से समझाते हुए कहा...
"तुमने उससे सच छुपाकर गलती की है अक्षु वो तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा है, बल्कि तुम्हारी पूरी जिंदगी का, उसे सच जानने का हक है, बार-बार उसे दूर धकेलकर वही गलती मत दोहराओ" सरिता जी ने अक्षिता के आँसू पोंछते हुए कहा
सरिता जी की बातों ने अक्षिता को सोच मे डाल दिया था
"समझ आया?” सरिता जी ने मुसकुराते हुए पूछा और अक्षिता ने बस हा मे सर हिला दिया
"चलो अच्छा है अब कल क्या होने वाला है ये सोचना छोड़ो और आज मे जियो” जिसपर वापिस अक्षिता ने हा मे गर्दन हिला दी
“अच्छा अब तुम्हारे ये सवाल जवाब हो गए हो तो मैं जाऊ मुझे मेरी होने वाले दामाद को खाना देने जान है” सरिता जी ने मुसकुराते हुए कहा वही अक्षिता बस उन्हे शॉक मे देखती रही
सरिता जी तो वहा से चली गई लेकीन उनकी कही बाते अभी भी अक्षिता के दिमाग मे गूंज रही थी और वो उन्ही बातों के बारे मे सोच रही थी
******
" अक्षिता! "
" हा मा! "
"जाओ और जरा ये कॉफ़ी एकांश को दे आओ"
"क्या? मैं नहीं जा रही तुम ही रखो उसका खयाल" अक्षिता ने कहा
"प्लीज अक्षु, मुझे और भी काम है" सरिता जी ने कहा और अक्षिता ने उनके साथ से कॉफी का कप लिया और मन ही मन बड़बड़ाते हुए एकांश के कमरे की ओर बढ़ गई
अक्षिता ने दरवाज़ा खटखटाया जो की हमेशा की तरह खुला था और अंदर से कोई आवाज नहीं आ रहा था और इसीलिए अक्षिता कमरे के अंदर चली गई और उसने कॉफी टेबल पर रखी और जैसे ही जाने के लिए मुड़ी तो उसने देखा के एकांश उसके सामने खड़ा था जिसे देख वो वही जाम गई थी
एकांश कमर पर सिर्फ तौलिया लपेटे खड़ा था और अक्षिता ने एकांश को आजतक इस पोजीशन मे तो नहीं देखा था इसीलिए अब क्या बोले या करे उसके समझ नहीं आ रहा था वही एकांश से नजर भी नहीं हट रही थी वही एकांश भी पहले तो उसे अपने कमरे मे देख चौका था लेकिन लेकिन कुछ बोला नहीं
दोनों एक दूसरे को घूरते हुए खड़े थे अक्षिता नजरे हटाना चाहती थी लेकिन उससे वो हो नहीं आ रहा था और आगे फिर कभी मौका मिले ना मिले इसीलिए अक्षिता ने अब अपनी फीलिंगस को ना छुपने का मन बना लिया था
दोनों के बीच सेक्शुअल टेंशन साफ था और न केवल अब से बल्कि जिन दिन ऑफिस मे वो दोबारा मिले थे तब से जिसे अक्षिता ने तब नजरंदाज कर दिया था क्युकी वो खुद एकांश से दूर जाना चाहती थी वही एकांश ने अपनी फीलिंग के ऊपर नफरत की चादर ओढ़ रखी थी, उसके रीलैशनशिप के दौरान भी हालत कुछ ऐसे ही थे दोनों एकदूसरे के साथ होकर एकदूसरे का स्पर्श पाकर खुश थे
बेशक उन्होंने किस करने के अलावा कुछ नहीं किया था लेकिन ये तनाव हमेशा बना रहा जैसे वे सिर्फ़ किस करने से ज़्यादा बहुत कुछ चाहते थे लेकिन अक्षिता अपनी सीमाएँ जानती थी और एकांश ने कभी अपनी सीमाएँ नहीं लांघीं...
इसलिए सालों का जो सेक्शुअल टेंशन दबा हुआ था उसी का ये असर हुआ के एकांश धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा और वो वहीं खड़ी उसे देखती रही
"तुम यहा क्या कर रही हो?" एकांश ने अक्षिता सामने खड़े होकर धीरे से पूछा
"मैं... बस...." अक्षिता के मुह से शब्द नहीं निकल रही थे साथ ही एकांश के इतने करीब होने से उसे कुछ होने लगा था
"तुम क्या?" एकांश उसके इतने करीब था के अक्षिता उसके साँसे अपने चेहरे पर महसूस कर सकती थी
"क... कॉफी...." वह पीछे हटते हुए फुसफुसायी
अक्षिता को पीछे सरकता देख एकांश ने अपनी हाथों से उसकी कमर पकड़े उसे अपने पास खिचा, दोनों के शरीर एकदूसरे से लगभग चिपक गए थे, सारी दूरिया समाप्त होने लगी थी एकांश ने हल्के से अक्षिता के माथे, उसके गालों को चूमा... उसके चेहरे पर हर जगह चूमा सिवाय उसके होंठों के, अक्षिता की आंखे बंद थी वो बस इस पल को जीना चाहती थी आज वो एकांश को नहीं रोकने वाली थी एकांश अक्षिता के होंठों पर किस करने झुका, उनके होंठ मिलने की वाले थे के तभी एकांश का फोन जोर से ब्याज उठा और उनके इस रोमांटिक मोमेंट मे खलल पड गया, अक्षिता एकदम से एकांश से दूर हटी वही एकांश मन ही मन गाली देते हुए फोन की ओर लपका
फोन स्वरा का था जिसे एकांश नेकाट दिया और अक्षिता की तरफ़ देखा जो नीचे की ओर देख रही दोनों की एकदूसरे से नजरे नहीं मिला रहे थे एकांश कुछ कहने ही वाला था के तभी उसका फोन फिर से बजा और इसबार उसके कॉल उठाया
"अब क्या मुसीबत आ गई स्वरा?" एकांश फोन उठाते ही चिल्लाया वही अक्षिता ने जब स्वरा का नाम सुना तो उत्सुकता से एकांश को देखने लाही
"आह... ये बंद हमेशा इतने सड़े हुए मूड मे क्यों रहता है?" स्वरा ने कहा
"बकवास बंद करो और फोन क्यू किया बताओ" एकांश ने चिढ़कर कहा
"चिढ़ो मत मैंने तुम्हें मीटिंग के लिए याद दिलाने के लिए फोन किया था जो आधे घंटे में है बस" स्वरा ने कहा और तब जाकर एकांश ने घड़ी की ओर देखा
"ओह शिट!"
"yeah… it happens" स्वरा ने कहा
"शट अप... मुझे लेट हो रहा मैं तुमसे बाद में बात करूंगा" और ये कहते हुए एकांश ने फोन काट दिया और स्वरा जो अक्षिता के बारे में पूछने ही वाली थी उसकी बात अधूरी रह गई
एकांश ने झट से अपना सूट निकाला और पहनने लगा
"अरे! मैं अभी भी यहीं हूँ!" एकांश अपना तौलिया निकालने ही वाला था के अक्षिता बोल पड़ी
"जानता हु और मुझे पता है कि तुम इस सीन का मजा का ले रही हो" एकांश ने अक्षिता को देख आँख मारते हुए कहा
"शट अप!" अक्षिता ने बुदबुदाते हुए कहा और दरवाजे की ओर जाने लगी और जाते जाते अचानक रुकी और पलट कर एकांश को देखा और पूछा
"वे लोग कैसे है?”
"कौन?"
" रोहन और स्वरा"
"ठीक हैं" एकांश ने अपनी फाइल और लपटॉप बैग मे रखते हुए कहा
"ओके" और अक्षिता वहा से जाने लगी के तभी एकांश ने उसे रोका
"अरे! हमने जो शुरू किया था, उसे पूरा कौन करेगा?" एकांश ने कहा जिसपर अक्षिता शरमा गई और वप उसे देख मुस्कुराया।
"जाओ काम करो जाकर” अक्षिता ने कहा और वहा से चली गई
******
शाम के वक्त जब एकांश ऑफिस से आया तब उसी वक्त अक्षिता ने भी बाहर वाक पर जाने का मन बनाया था और एक बार फिर दोनों दरवाले पर एकदूसरे के आमने सामने खड़े थे और कोई भी दूसरे को अंदर जाने का रास्ता नहीं दे रहा था नतिजन दोनों की दरवाजे पर खड़े बच्चों की तरह लड़ने लगी जिसे बाहर से आते अक्षिता के पिताजी को रोकना पड़ा, और जब वो घर के अंदर चले गए तब अक्षिता को एकांश अपनी की इस बेवकूफी पर हसने लगे,
हालत सुधर रहे थे अक्षिता की तबीयत भी अब कुछ ठीक थी लेकिन सबकी के मन मे एक डर था, कभी भी कुछ भी हो सकता था, एकांश डॉक्टर अवस्थी से बराबर टच मे था उन्हे अक्षिता के बारे मे हर खबर देते रहता था और उनके हाथ मे जितना था वो सब कर रहे थे, अक्षिता की रेपोर्ट्स भी दुनिया के बड़े बड़े डॉक्टरस को बताई जा रही थी, अक्षिता के बचने का 1% भी चांस क्यू न हो एकांश को चांस लेने तरह था लेकिन कई डॉक्टरस ने वही कहा जो डॉक्टर अवस्थी ने बताया था, इसीलिए जितना भी समय बचा था एकांश ने अब वो सब अक्षिता के साथ बिताने का फैसला किया था, उसका तो ऑफिस मे भी मन नहीं लगता था जिसके चलते रोहन और स्वरा पर काम का बोझ बढ़ रहा था लेकिन वो भी एकांश की हालत जानते थे, अक्षिता ने भी अपनी मा की बात सुन आगे हो होन होगा हो जाएगा सोच आज मे जीने का फैसला किया था और एकांश के साथ अब जीतने भी पल जिने मिले वो उन सब को जीना चाहती थी
दोनों इस वक्त घर के दरवाजे पर खड़े हास रही थे वही अक्षिता के माता-पिता उन दोनों के हंसते हुए चेहरों को देखकर मुस्कुरा रहे थे उन्होंने अपनी बेटी को कई महीनों बाद आज इस तरह खुल कर हंसते हुए देखा था, उन्हें नहीं पता कि भविष्य में क्या होगा, लेकिन उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि वे उन दोनों को खुश रखे....
अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था
"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा
"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा
"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा
"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा
"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा
"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा
"बस करो तुम दोनों।"
उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला
"I am calling a cab"
"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।
"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"
"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा
"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा
"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी
"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"
और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी
"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा
"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा
एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया
"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा
एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं
"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले
"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा
"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका
"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी
"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा
“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया
"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"
"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा
"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"
"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा
"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा
"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला
अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी
लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था
एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया
"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा
"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था
"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी
एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।
"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था
"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी
एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे
बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए
कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया
"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा
"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"
अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया
अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया
"क्या?"
"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा
एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा
जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है
एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था
अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी
एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था
"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा
एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली
"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"
"थैंक्स"
"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा
"रुको! तुम जाओगी कैसे?"
"जैसे अभी आए है, बस से"
तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive )
"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”
"क्या? क्यों?"
"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा
"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा
"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा
“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया
"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा
"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा
"ओके सर"
"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी
लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा
"नहीं."
"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा
"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा
"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला
"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी
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मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था
घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की
"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया
"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा
"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"
"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा
"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी
"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया
वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी
"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे
अक्षिता बहुत अच्छी थी, उसकी सेहत में भी सुधार हो रहा था, उसके चेहरे पर चमक लौट आई थी, उसके चेहरे पर उसकी खूबसूरत मुस्कान भी लौट आई थी
रीजन?
एकांश!
वो दोनो एक दूसरे की खुशी का कारण थे
एकांश ने जब अक्षिता की सुधरती हालत के बारे में डॉक्टर से बात की तो उन्होंने भी बताया के अक्षिता का खुश रहना कितना जरूरी है, इससे जबरदस्ती के स्ट्रेस से बचा जा सकता है जो अक्षिता की सेहत के लिए बिल्कुल भी सही नही था
अक्षिता के माता-पिता अपनी बेटी के मुस्कुराते चेहरे को देखकर बहुत खुश थे, वो अपनी बेटी को जानते थे वो जानते थे के अक्षिता भले की उनके सामने मुस्कुरा देती हो लेकिन उसकी वो मुस्कान फीकी थी, वो अपना दर्द छुपाने में माहिर थी
लेकिन अब हालत अलग थी उनकी बेटी खुश थी और मुस्कुरा रही थी और वो जानते थे कि ये सब एकांश की वजह से है, अक्षिता के खुश रहने के पीछे एकांश का वहा होना ही था
एकांश उसके सामने था, वो रोज उसे देख पा रही थी इसीलिए उसे अब रोज रोज एकांश को चिंता नहीं होती थी और इन्ही सब चीजों ने मानो अक्षिता के जीवन को तनावमुक्त बना दिया था जिसका उसकी तबियत पर पॉजिटिव असर हो रहा था, उसकी सेहत सुधर रही थी
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"एकांश, तुम कितने चिड़चिड़े हो यार!" अक्षिता ने एकांश से कहा
"तुम मुझे मस्त नींद से जगाकर अपने साथ खेलने ले आई और मैं चिड़चिड़ भी न करू" एकांश ने झल्लाकर जवाब दिया
"बिल्कुल”
"मैं सोना चाहता हु अक्षिता" एकांश ने गिड़गिड़ाते हुए कहा
"नहीं क्युकी अभी हमे एक प्लेयर की जरूरत है"
"मैं खेलने के मूड में नहीं हूँ" एकांश कहा और आँखें बंद करके दीवार से टिक गया
"अरे चलो भी! आज तुम्हारी छुट्टी है"
" करेक्ट! आज मेरी छुट्टी है और मैं सोना चाहता हूँ"
"एकांश, प्लीज" अक्षिता ने प्यार से कहा और एकांश ने बस उसकी ओर देखा
"प्लीज़......" अक्षिता ने दोबारा प्यार से अपनी पलकें झपकाते हुए कहा
" उर्ग्घघ्ह्ह्हह्ह......."
"प्लीज......" और जब एकांश प्यार से नहीं माना तो अक्षिता ने इस बार हल्के गुस्से से कहा
“ठीक है...... चलो" और एकांश उसके साथ चला गया
खेलना भी क्या था अक्षिता को मोहल्ले के बच्चों के साथ टाइमपास करना था जिसके लिए वो एकांश को भी अपने साथ ले आई थी जिसमे एकांश का बिल्कुल इंटेरेस्ट नहीं था, वो पूरा टाइम अक्षिता को देखता रहा और उसे देखने के अलावा उसके कुछ नहीं किया, वो जब जीतती तो उसके चेहरे की हसी देख कर ही एकांश को सुकून मिल रहा था
कुल मिला कर अब हालत सुधर रहे थे अक्षिता की सेहत का सुधार देख सब खुश थे, डॉक्टर ने उन्हे बताया था के हाल ही के रेपोर्ट्स जो विदेशी डॉक्टर को बताए थे उनसे सलाह लेकर अक्षिता की दवाईया बदल दी गई थी जिससे उसकी सेहत को और फायदा होने वाला था
और सबसे ज्यादा एकांश इसीलिए खुश था के अक्षिता के उसे उसके वहा रहने पर परेशान करना बंद कर दिया था हालांकि ये बात वो जानता था के वो जानती है के वो वहा उसके लिए था लेकिन दोनों ही इस मामले मे चुप थे क्युकी यही सबके लिए अच्छा था
एकांश की नजरे इस वक्त अक्षिता पर टिकी हुई थी जो बच्चों के साथ खेल रही थी उन्हे चिढ़ा रही थी हास रही थी थी और उसके हसते देख एकांश के चेहरे पर भी मुस्कान थी साथ हाइ वो ऊपरवाले से प्रार्थना भी कर रहा था के अक्षिता की ये हसी कभी ना खोए
पिछले कुछ दिन वाकई बहुत अच्छे रहे थे, वो उसके लिए खाना लाती थी, उसके ऑफिस के काम में उसकी मदद करती थी दोनों काफी टाइम साथ रहते थे और एकांश समय-समय पर उसके डॉक्टर से संपर्क में रहता था ताकि वह उसके हेल्थ में हो रहे सुधार के बारे में जान सके
एकांश गेट के पास खड़ा होकर अक्षिता को बच्चों के साथ खेलते हुए देखता रहा, जब तक कि उसे एक जानी-पहचानी शख़्सियत अपनी ओर आती हुई नहीं दिखी, उसने याद करने की कोशिश की कि उसने उस शख़्स को कहा देखा था, लेकिन जब तक वो शख़्स उसके सामने नहीं आ गया, तब तक उसे समझ नहीं आया
" मिस्टर रघुवंशी"
उस शक्स ने कहा और अब एकांश ने उसे पहचान लिया था
"तुम यहा क्या कर रही हो?" एकांश ने हैरान होते हुए पूछा
"आपसे मिलने आई हु"
"क्यों? आपका पेमेंट सही नहीं हुआ था क्या" एकांश ने उससे पूछा
"वो बात नहीं है वो... दरअसल... क्या हम कहीं और जाकर अकेले में बात कर सकते हैं?"
एकांश को पहले तो कुछ समझ नहीं आया के वो क्या बोल रही है इसीलिए उसने वही बात करने का फैसला किया
"मेरी हिसाब से ये जगह ही सही है बताइए क्या कहना है आपको" एकांश ने कहा लेकिन वो शक्स कुछ नहीं बोली
"अब बोलो भी?" एकांश ने वापिस कहा
" I want you!"
एकांश ये सुनकर दंग रह गया था उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था
"क्या?" एकांश ने चौक कर पूछा
"Yes, I want you!" उसने कहा
"मिस अमृता, क्या आप पागल हो गई हैं?" एकांश ने गुस्से मे कहा
वो डिटेक्टिव अमृता थी जिसने अभी अभी एकांश को एक हिसाब से प्रपोज ही कर दिया था
"No, I am in Love" अमृता रुकी फिर आगे कहा "with you!"
एकांश तो उसकी बात सुन कर ही सुन्न हो गया था
अमृता ने उसके हाथ अपने हाथों में लिए और बोलना शुरू किया
"मुझे नहीं पता कि ये कैसे और कब हुआ, लेकिन यह हुआ, I was tired of guys and their ways around me but you were different, I know you were my client and trust me I am very professional to fall in love with my client but it happened हालांकि तुमने भले ही मेरी साथ हमेशा रुख ही व्यवहार किया लेकिन मैंने तुम्हारी आँखों में जो ईमोशनस् देखे थे बस उन्होंने ही मुझे तुम्हारी ओर खींचा, उस दिन तुमसे दूर जाना मेरे लिए काफी मुश्किल था और उसके बाद जब मैं घर गई तो मेरी दिमाग मे सिर्फ तुम ही थे, तभी मुझे ये एहसास हुआ कि मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ I am madly in love with you" अमृता ने एकांश की आँखों में गौर से देखते हुए सब कुछ कहा
अमृता ही बात सुन एकांश काफी ज्यादा शॉक था उसने उसकी तरफ देखा जो उम्मीद से उसे ही देख रही थी, सब कुछ शांत था और फिर अचानक एकांश को एहसास हुआ कि वो इस वक्त बाहर खड़ा था और उनके आसपास काफी लोग थे
उसने अपना सिर अक्षिता की ओर घुमाया जो वहीं खड़ी उसे और अमृता को ही देख रही थी जब उसने देखा कि अक्षिता चेहरे पर सूनापन लिए उसे देखते हुए ही घर के अंदर जा रही है तब वो थोड़ा घबराया और जल्दी से अमृता के हाथ से अपना हाथ छुड़ाया
" Leave!"
एकांश ने कहा लेकिन शायद अमृता को वो सुनाई ना दिया
"क्या?"
"Just Leave!" एकांश ने अपने दाँत पीसते हुए थोड़े गुस्से मे कहा, हालांकि उनका अमृता के लिए ये रवैया सही नहीं ठहराया जा सकता था लेकिन वो अक्षिता को लेके इस वक्त इतना पज़ेसिव था के सही गलत या अक्षिता के सामने कीसी और की फीलिंगस का उसके सामने इस वक्त तो कोई मोल नहीं था और जब उसके अक्षिता को उदास चेहरे के साथ घर मे जाते देखा तो अब उसका गुस्सा अमृता पर निकलने तयार था
"But I Love you" अमृता ने कहने की कोशिश की लेकिन एकांश ने गुस्से से अपना सिर उसकी ओर घुमाया जिससे थोड़ा डर कर वो पीछे हट गई
"तुम जानती भी हो कि प्यार क्या होता है?" एकांश ने पूछा
"Do you know what love does to you?"
"तुम जानती हो तुमने अभी अभी क्या किया है और तुम्हारे बिना सोचे समझे किए इस काम का क्या परिणाम हो सकता है?"
"उसकी जिंदगी पहले की तरह नॉर्मल बनाने मे कितना वक्त और मेहनत लगी है जानती हो?"
"हमारी जिंदगी की जरा भी भनक आपको होती मैडम डिटेक्टिव तो तुम यहा नहीं आती तुम जानती हो हम इस वक्त किस फेज से गुजर रहे है?"
"अपना हर पल बस इसी डर में जी रहे हैं कि आगे क्या होगा"
"जानती भी हो की मुझपर इस वक्त क्या बीत रही है यह जानते हुए कि कुछ ही समय में सब कुछ खत्म हो जाएगा?"
एकांश ने अमृता पर एक के बाद एक सवाल दाग दिए वही अमृता उसके चेहरे पर आया दर्द और गुस्सा देख अचंभे मे थी
"देखो अमृता मैं नहीं जानता के तुमने मुझमे ऐसा क्या देखा या मैंने कभी भी तुम्हें कोई ऐसा हिंट नहीं दिया जिससे लगे के हमारा कुछ हो सकता है इसीलिए ये बात दिमाग मे डाल लो की मैं तुमसे प्यार नहीं करता और न कभी करूंगा, ये बात बोलने मे मैं थोड़ा तुम्हें रुड लगूँगा लेकिन यही सच है अब प्लीज यहां से चली जाओ और मुझसे दोबारा मुझसे मिलने की कोशिश ना करना" एकांश ने सख्ती से कहा और घर मे जाने के लिए मूडा
"तुम उससे प्यार करते हो, है न?" अमृता ने पूछा
"हाँ, मैं उससे और सिर्फ़ उससे ही प्यार करता हूँ और आखिरी साँस तक उसीसे करत रहूँगा" एकांश ने कहा और घर मे चला गया
अमृता वही वही खडी रही, उसके एकांश की आँखों मे प्यार देखा था लेकिन वो उसके लिए नहीं था और बस यही सोचते हुए उसकी आँख भरने लगी थी, उसे इस बात का भी अफसोस हो रहा था के उसे ये बात पहले ही समझ जानी चाहिए थे जब उसने एकांश को अक्षिता के लिए इतना व्याकुल देखा था, शायद वो समझ भी गई थी लेकिन शायद उसका दिल मानने को राजी नहीं था और इसीलिए शायद वो यहा आई थी अपने प्यार का इजहार करने जो शायद उसे कभी ना मिले और अब वहा रुकने का और कोई रीज़न नहीं था तो उसने एक बार जाते हुए एकांश को देखा और वहा से चली गई
इधर एकांश जब घर के अन्दर आया तो उसे अक्षिता कही दिखाई नहीं दी
"अक्षिता कहाँ है?" एकांश ने सरिताजी से पूछा
"वो अपने कमरे में है और और उसने खुद को अंदर से बंद कर लिया है, चिंता मत करो उसे अकेले रहना होता है तब वो ऐसा ही करती है" सरिताजी ने एकांश के चिंतित चेहरे को देखते हुए कहा
"ओह."
"एकांश कुछ हुआ है क्या बेटा?"
"नहीं कुछ नहीं... मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ आंटी आप प्लीज उसका ख्याल रखना" एकांश ने कहा
"हा बेटा.... लेकिन तुम ठीक तो हो?" उसने चिंतित होकर पूछा
"मैं ठीक हूँ" ये कहकर एकांश मुड़ा और अपने कमरे में चला गया
जैसे ही वो अपने कमरे में दाखिल हुआ, वो यह सोचकर घबरा गया कि अक्षिता क्या सोच रही होगी और क्या सब कुछ फिर से पहले जैसा हो जाएगा...
उसने भगवान से बस यही प्रार्थना की कि इसका असर उनकी सेहत पर न पड़े
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" हैलो?"
"....."
" हैलो?"
"....."
"कौन है?" रोहन ने पूछा
"हमारे उस बेवकूफ बॉस ने मुझे फोन किया है लेकिन कुछ बोल नहीं रहा"
"हैलो? एकांश?"
"हैलो."
"आह... फाइनली तुमने कुछ बोला हो” स्वरा ने झल्लाते हुए कहा
"स्वरा.... मैं...." एकांश को समझ नहीं आ रहा था के क्या कहे
"एकांश क्या हुआ है तुम काफी परेशान साउन्ड कर रहे हो?" स्वरा ने चिंतित होकर पूछा।
"मैंने गड़बड़ कर दी.... मैं.."
"एकांश प्लीज हमें बताओ कि क्या हुआ है ऐसे डराओ मत, सब ठीक है न? अक्षु ठीक है ना?
"सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन फिर.... आज अमृता यहाँ आई और उसने मुझसे प्रपोज कर दिया और अक्षिता ने सब सुन लिया और अब उसने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया है" एकांश ने उदास होकर कहा
"WTH! और ये अमृता कौन है?" स्वरा ने कन्फ्यूज़ टोन मे पूछा
"अमृता वो प्राइवेट डिटेक्टिव है जिसे अमर ने अक्षिता को को ढूँढने के लिए हायर किया था" एकांश ने रोहन को स्वरा को समझाते हुए सुना वही स्वरा अमर को उलट सीधा बोलने लगी
"अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ तो प्लीज कोई रास्ता हो तो बताओ" एकांश ने स्वरा के चुप होते हो कहा
" बस जाओ और उससे बात करने की कोशिश करो" स्वरा ने कहा
" ठीक है"
"और चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा"
"थैंक्स" इतना कह कर एकांश ने फोन काट दिया
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एकांश ने अपनी खिड़की से घर के अंदर झाँका लेकिन उसे अक्षिता कहीं नहीं दिखी वो अपने कमरे से बाहर आया और सीढ़ियों से नीचे चला गया जब उसने सीढ़ियों की आखिरी सीढ़ी पर बैठी अक्षिता को देखा तो वो रुक गया
जब उसने देखा कि यह अक्षिता थी तो उसने राहत की सास ली, अक्षिता अपना सिर दीवार पर टिकाए हुए थी और उसकी आँखें रात के आसमान में तारों को देख रही थीं
वो धीरे-धीरे उसके पास आया और उसके बगल में बैठ गया, एकांश अक्षिता को देख रहा जबकि अक्षिता आसमान को, उसने एकांश को अपने पास महसूस किया और ये भी महसूस किया कि वो उसे देख रहा था, लेकिन उसने उसकी तरफ़ नहीं देखा
बहुत दिनों बाद उन्हें अपने लिए वक्त मिला था..... अकेले, वो खुश थे कि वहाँ सिर्फ़ वो दोनों थे..... एकांश, अक्षिता और रात का आसमान
अक्षिता यही सोचकर मुस्कुराई और एकांश हैरान होकर उसकी ओर देखने लगा, वो जानना चाहता था कि वो क्या सोच रही थी
एकांश के सारे खयाल तब गायब हो गए जब उसने भी तारों से भरे आसमान को देखा जो एकदम शांत था और ऐसा सालों बाद हुआ था जब वो दोनों एक साथ बैठकर यू रात का आसमान निहार रहे थे और उसके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई
तभी हवा का एक झोंका उनके बीच से बहता हुआ उसके बालों को उड़ाता हुआ और उसके चेहरे पर मुस्कान लाता हुआ गया वहाँ सिर्फ़ वे ही थे..... सिर्फ वो दोनों और अभी के लिए एकांश बस यही चाहता था
उसने देखा के अक्षिता ने उसका एक हाथ पकड़ा हुआ था और वो उसकी ओर देख मुस्कुराई और उसने अपना सिर उसके कंधे पर टीका दिया...
दूसरी तरफ एकांश उसकी हरकतों को देखकर हैरान था हालाँकि उसे इससे कोई दिक्कत नहीं थी और वो अंदर ही अंदर वह खुशी से झूम रहा उसका दिल जोरों से धडक रहा था
उसने अपना हाथ उसके कंधे पर रखा और अपना सिर उसके सिर पर टिका दिया और दोनों एक साथ आकाश में तारों को देखने लगे, दोनों के ही चेहरों पर मुस्कान थी....
मैं आजकल उलझन में हूँ, तुम्हारा मेरे साथ अच्छा व्यवहार करना, मुझे देखकर मुस्कुराना, मुझसे ठीक से बात करना, इन सब बातों ने मुझे उलझन में डाल दिया है..
मैं उलझन से ज़्यादा डरी हुई हू... तुम्हारी मुस्कुराहट से... वो मुझे ऐसी उम्मीद देती है जो मैं नहीं चाहती...
हाल ही में मेरे चेकअप के दौरान डॉक्टर ने मुझे बताया है के मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है, कभी भी कुछ भी हो सकता है, मैं तुम्हारे बारे में सोचकर इतना रोई कि मैं तुम्हें फिर से खो दूंगी
मैं जीना चाहती हू अंश, मैं भविष्य की चिंता किए बिना खुशी से सास लेना चाहती हू, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती... हर दिन तुम्हें देखकर मुझे तुम्हारे साथ और जीने की इच्छा होती है..
लेकिन मैं तुम्हारे साथ ऐसा नहीं कर सकती... मैं तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकती, मैं चाहती हूँ कि तुम खुश रहो, चाहे मैं रहूँ या न रहूँ.. इसीलिए मैंने यह फ़ैसला लिया अंश
मुझे पता है कि तुम परेशान होगे और शायद मुझसे और भी नफ़रत करने लगोगे, लेकिन याद रखना कि मैं हमेशा तुमसे प्यार करूंगी..... अपनी आखिरी साँस तक सिर्फ़ तुमसे..
मैंने एक डिसीजन लिया है और मुझे उम्मीद है कि मैं शायद इसे पूरा कर पाऊंगी, आज जब मैंने तुम्हें देखा तो मैं तुम्हें देखती ही रह गई,
आज जब मैं उस पार्क के पास से गुजर रही थी जहा हम अक्सर मिला करते थे तो वही तुम मुझे वहा भी मिल गए, तुम मुझपर गुस्सा थे के में अंधेरे में सड़क पर अकेली चल रही थी लेकिन मैं खुश थी के एक बार और तुम्हे देख तो पाई, तुम्हारे साथ थोड़ा वक्त बिता पाई, मुझे नहीं पता आगे मैं तुम्हे कभी देख भी पाऊंगी या नही और शायद इसीलिए मैंने तुम्हे गले लगा लिया था, ये सोच कर के शायद अब हम दोबारा कभी ना मिले
मुझे माफ़ कर दो अंश , मुझे पता है कि ऐसा करके मैं तुम्हें और मेरे दोस्तों को दुख पहुंचा रही हु लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है
मै जा रही हु.....
बाय अंश...
आई लव यू
एकांश अक्षिता डायरी का आखिरी पन्ना पढ़ते हुए चुपचाप रो पड़ा उसे लगा कि उस समय उसके अंदर कितना कुछ चल रहा था, फिर भी वो अपनो के लिए मुस्कुरा रही थी एकांश मन में उथलपुथल लिए अक्षिता की उस डायरी को सीने से लगाकर वैसे ही सो गया..
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अलार्म की आवाज़ सुनकर एकांश की नींद खुली, उसने अपना फ़ोन देखा और पाया कि वो रिमाइंडर अलार्म था, फिर उसे याद आया कि आज अक्षिता का डॉक्टर के पास चेकअप है,
वो अपने बिस्तर से उठकर जल्दी से तैयार हो गया और नीचे आकर दरवाजे के पास खड़ा हो उसका इंतजार करने लगा,
उसने अपनी घड़ी देखी और पाया कि सुबह के 10 बज चुके थे और अपॉइंटमेंट सुबह 11 बजे का था, इसलिए उन्हें वहाँ जल्दी पहुँचना था
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" अक्षिता ने दरवाजे के पास खड़े एकांश को देखकर पूछा
"उह...." एकांश समझ नहीं आया कि क्या कहे
"एकांश, क्या तुम कही बाहर जा रहे हो बेटा?" सरिताजी ने मुस्कुराते हुए एकांश से पूछा
"हा आंटी"
तभी अक्षिता अपना हैंडबैग लेकर अपनी मा को बाय कहती हुई बाहर आई
"I'll drop you.." एकांश ने अक्षिता ने कहा निस्पर वो थोड़ा ठिठकी
"उम्म... नहीं, मैं अकेले चली जाऊंगी।" अक्षिता ने एकांश की।और बगैर देखे कहा
"मैं सिटी साइड ही जा रहा हूँ मैं तुम्हें वहाँ तक छोड़ दूँगा" एकांश ने कहा
"मैंने कहा न नहीं" अक्षिता ने सख्ती से कहा और आगे बढ़ है
"मैंने कहा कि मैं तुम्हें ड्रॉप रहा हूँ और अब बात फाइनल हो गई" एकांश ने अक्षिता के आगे जाते हुए बात को आगे ना खींचते हुए कहा
"तुम मुझे इस तरह हुकुम नहीं दे सकते" अक्षिता गुस्से से उसकी ओर बढ़ते हुए चिल्लाई
"बिलकुल दे सकता हु अब चलो" उसने अपनी कार की ओर इशारा करते हुए कहा
" नहीं!"
" हाँ!"
" नहीं।"
" हाँ।"
"नहीं।"
"हाँ।"
"नहीं।"
"तुम्हें देर हो जाएगी अक्षिता अब बहस बंद करो और कार में बैठो"
"एकांश तुम मुझे इस तरह मजबूर नहीं कर सकते मैं तुम्हारे साथ नहीं आना चाहती और मैं नहीं आऊँगी"
"अक्षिता प्लीज, बहस करना बंद करो और जो मैं कहता हूँ वो करो" उसने गुस्से से कहा वही अक्षिता को उसकी आंखों चिंता नजर आ रही थी
और वो उसे चिंतित नहीं करना चाहती लेकिन वो उसे ये भी नहीं बता सकती कि वो कहां जा रही है
"अक्षु चली जाओ उसके साथ तुम्हें देर हो रही है और तुम्हें अंधेरा होने से पहले घर वापस भी आना है" दोनो के बीच बहस रुकती ना देख सरिताजी को ही बीच में बोलना पड़ा
"लेकिन माँ...." लेकिन एकांश ने अक्षिता को उसकी बात पूरी ही नही करने दी
" अब चलो।" एकांश ने अपनी कार में बैठते हुए कहा
कुछ बुदबुदाते हुए अक्षिता गुस्से से कार में बैठ गई और एकांश सरिताजी को देखकर मुस्कुराया वही अक्षिता ये सोचकर चिंता में थी कि अब क्या होगा
अक्षिता के गाड़ी में बैठते एकांश ने राहत की सांस ली क्योंकि अब वो टाइम पर हॉस्पिटल पहुँच सकते थे, वो जानता था कि अक्षिता के चेहरे पर टेंशन क्यों था वो नही चाहती थी के एकांश को पता चले वो अस्पताल जा रही है, लेकिन एकांश उसे इस हालत में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में नही जाने दे सकता था
"तुम्हारी कार आज यहाँ क्यों है? रोज़ तुम्हारा ड्राइवर आकर तुम्हे पिक करता है ना?"
"वो इसीलिए के मैंने ड्राइवर से कहा था की वो कार यहीं छोड़कर चला जाए क्योंकि अब से मैं गाड़ी चलाऊंगा"
एकांश का जवाब सुन अक्षिता कुछ नही बोली और दोनो पूरे रास्ते चुप ही रहे, दोनो के ही दिमाग में अपने अपने खयाल चल रहे थे
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वो लोग हॉस्पिटल के इलाके के दाखिल हो चुके थे और जैसे ही अक्षिता ने देखा वो लोग हॉस्पिटल पहुंचने ही वाले थे वो थोड़ा घबराई और उसने एकांश को एकदम गाड़ी रोकने कहा
"रुको रुको, मुझे यही उतरना है" अक्षिता ने अपनी बाईं ओर एक मॉल कीमोर इशारा किया
"यहाँ?"
"हाँ, वो... मुझे... थोड़ी शॉपिंग करनी थी" अक्षिता ने वापिस मॉल की ओर इशारा करते हुए कहा
अक्षिता क्या करने की कोशिश कर रही है ये एकांश समझ गया था और इस बात का उसे गुस्सा भी आया था लेकिन वो इस वक्त बहस नही करना चाहता था इसीलिए उसने तुरंत गाड़ी रोक दी और वो तुरंत नीचे उतर गई और उसके वहा से जाने का इंतज़ार करने लगी
एकांश बिना अक्षिता की ओर देखे और उससे कुछ भी कहे बिना वहां से तेजी से चला गया, उसे अक्षिता के झूठ बोलने पर बुरा लगा लेकिन उसके पास कोई और रास्ता नहीं था, अक्षिता तब तक वहीं रुकी रही जब तक एकांश की कार उसकी नज़रों से ओझल नहीं हो गई और फिर अस्पताल की ओर चल पड़ी जो सिर्फ़ 5 मिनट की दूरी पर था
इधर एकांश ने हॉस्पिटल की पार्किंग में अपनी कार रोकी और गुस्से में अपना हाथ स्टीयरिंग व्हील पर पटक दिया
'वो मुझे अन्दर क्यों नहीं आने दे सकती? क्यों सच नही बोल सकती? तब चीजे कितनी आसान हो जाएगी लेकिन इस बारे में इससे बात करू भी तो कैसे करू वो टेंशन में आ जाएगी इससे तबियत और बिगड़ जाएगी'
एकांश ने मन ही मन सोचा और अपनी आँखें बंद कर लीं और पार्किंग में उसका इंतज़ार करने लगा
इधर अक्षिता हॉस्पिटल में पहुंच कर अपनी बारी का इंतजार करने लगी और जैसे ही उसका नंबर आया वो डॉक्टर के केबिन में चली गईवह अस्पताल में गई
"हेलो डॉक्टर अवस्थी" उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा
"आओ अक्षिता, कैसी है आप?" डॉक्टर ने पूछा
"बढ़िया" अक्षिता ने कहा जिसके बाद डॉक्टर ने उसका रेगुलर चेकअप करना शुरू किया, आंखे, ब्लडप्रेशर यही सभी रेगुलर चेकअप वही अक्षिता थोड़ी डरी हुई दिख रही थी के डॉक्टर क्या कहेगा
"You're good" डॉक्टर ने कहा
"क्या?" अक्षिता को तो पहले यकीन ही नहीं हुआ
"अक्षिता, तुम्हारी सेहत में सुधार हो रहा है और ये साफ दिख रहा है, पिछले चेकअप के हिसाब से तुम अब बेटर लग रही हो, तुम्हारी स्किन का कलर भी पहले से कम पीला है, तुम्हारी आँखों के नीचे काले घेरे और बैग नहीं हैं, ब्लड प्रेशर भी नॉर्मल है..... इन सबका मतलब है कि तुम टेंशन फ्री हो जो एक बहुत अच्छा संकेत है और इसका तुम्हारे हेल्थ पर भी बहुत अच्छा असर पड़ेगा" डॉक्टर ने कहा
"थैंक यू डॉक्टर, शायद आपकी नई दवाइयां मुझ पर अच्छा असर दिखा रही हैं"
"हा ऐसा कह सकते है लेकिन अक्षिता, तुममें जो सुधार हुआ है, वह सिर्फ़ दवाइयों की वजह से नहीं है" डॉक्टर ने कहा
"आप कहना क्या चाहते है डॉक्टर?"
"पहले तुम्हारे कुछ टेस्ट कर लेते है फिर इस बारे में बात करेंगे" जिसके बाद उन्होंने अक्षिता के कुछ टेस्ट्स किए कुछ एक्स-रे और MRI के सत्र समाप्त होने के बाद, वो डॉक्टर के केबिन में वापस आ गए और कुछ ही समय में अक्षिता के रिपोर्ट्स भी उनके सामने थे
"See this is what I call improvement" डॉक्टर ने रिपोर्ट्स देखते हुए कहा वही अक्षिता अब भी थोड़ा डर रही थी लेकिन कुछ बोली नहीं तो डॉक्टर ने बोलना शुरू किया
"अक्षिता, अब शायद एक डॉक्टर के मुंह से ये बात सुन के तुम्हे अजीब लग सकता है, लेकिन इस दुनिया में दवाओं के अलावा भी ऐसी चीजे है जो आपको हिल कर सकती है, ऑफकोर्स दवाइयां जरूरी है लेकिन कुछ उससे भी ज्यादा जरूरी है"
"क्या?"
"प्यार..."
डॉक्टर के शब्द सुन अक्षिता सन्न रह गई
"प्यार घाव भर देता है, जिन लोगों से हम प्यार करते हैं उनसे मिलने वाला प्यार हमें यह भूला देता है कि हम क्या दुख झेल रहे हैं और जब हम उनके साथ होते हैं तो हम खुश होते है, जब आप अपने प्यार के साथ होते हैं तो आपको जो खुशी मिलती है वो आपके मन और आत्मा के सबसे गहरे घावों को भर देती है" डॉक्टर ने कहा और अक्षिता की ओर देखा जो उन्हें ही देख रही थी
"मैं किसी फिल्म की कहानी या किसी फेरी टेल की बात नहीं कर रहा हु ऐसा कई बार हुआ भी है, कभी-कभी आपको बस प्यार की जरूरत होती है..... सिर्फ प्यार की"
"जब आप अपने अपनो के साथ होते हैं तो आपको जो खुशी मिलती है, वह आपके शरीर में कुछ हार्मोन उत्पन्न करती है जो टेंशन को दूर करता है, अपने आप को ही देखो तुम टेंशन फ्री लग रही हो जो की हमारे ट्रीटमेंट के लिए काफी अच्छा है" डॉक्टर ने कहा
डॉक्टर की बातो पर अक्षिता ने गौर किया तो पाया कि आजकल वो बहुत खुश है, उसे बुरे सपने नहीं आते और सोते समय वो रोती नहीं थी उसे चक्कर या बेचैनी भी नहीं होती थी, उसे अब सिर दर्द नहीं होता था, वह उठकर डॉक्टर के केबिन में लगे आईने के पास गई, उसने आईने में अपने आप देखा और उसे देखकर पलकें झपकाई, उसका चेहरा पहले की तरह सामान्य था और उसकी आँखों के नीचे कोई झुर्रियाँ या काले घेरे नहीं थे।,फिर उसे एहसास हुआ कि आजकल वह रोज़ाना शांति से सो रही थी और उसके चेहरे पर मुस्कान थी उसकी आँखों और चेहरे पर चमक लौट आई थी..
डॉक्टर ने ये बातें इसलिए नहीं कही क्योंकि उन्हें पता था कि एकांश अक्षिता से प्यार करता है, बल्कि इसलिए कही क्योंकि उनके सामने सुधार साफ तौर पर दिख रहा था एकांश उन्हें खुश रख रहा था और साथ ही उसकी जिंदगी को टेंशन फ्री भी कर रहा था
अक्षिता ने आईने में अपने आप को देखा और फिर डॉक्टर को देखा और फिर उसके ध्यान में आया के ये बस एक इंसान की वजह से था... एकांश की वजह से...
एकांश के बारे में सोचते ही उसकी आंखे भरने लगी थी वो इन दिनों खुश थी क्योंकि वह उसे खुश कर रहा था, उसे रोज़ देखना, उससे बात करना, उससे लड़ना, उसे चिढ़ाना, उसके साथ सितारों को निहारना..... एकांश के वहा होने से अक्षिता ने उसके बारे में सोचना चिंता करना बंद कर दिया था, एकांश के साथ होने से वो वापिस जिंदा महसूस करने लगी थी
इन सभी भावनाओं के बीच, जो वो अभी महसूस कर रही थी एक और फीलिंग थी जिसे वो नजरंदाज नहीं कर सकती थी जो उसके दिल में उठ रही थी...
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