तभी फ़ोन की घंटी बजती है l
फ़ोन पे मानस का बॉस था, किसी जरुरी काम के लिए उसे ऑफिस जाना था l
मानस - सॉरी माया जाना होगा l
मानस माया को kiss कर bathroom की तरफ चला जाता है l
भाग 5
इसी तरह माया और मानस की दिनचर्या चलती रहती है l मानस रोज सुबह ऑफिस को चला जाता और माया अकेली घर पे रह जाती l आस पास पडोसी थे जिनसे कभी कभी माया बातें करती, उसका ज्यादातर टाइम घर की साफ़ सफाई और टीवी देखने में ब्यतीत होता था l
एक अच्छी बहु होने के नाते वो अपने परिवार, रिश्तेदारों से बातें करती l देखते हे देखते 2 महीने बीत गए, मानस ऑफिस के काम में ज्यादा busy हो गया हालाँकि दोनों की सेक्स लाइफ अभी भी रोमांच से भरी थी l जब भी कभी मौका मिलता दोनों सेक्स का मज़ा लेने से नहीं चूकते, अलग अलग पोजीशन और अलग अलग जगहों पे सेक्स करना दोनों को बहुत पसंद आता था, यूँ कह लें की दोनों के विचार सामान थे और एक दूसरे को भलीभांति समझते थे l
संडे का दिन था माया छत पे कपड़े डाल रही thi, दिल्ली के bheed bhad इलाके में मानस ने ये घर किराये पे लिया था l घर तो बहुत सुन्दर था डुप्लेक्स हाउस aur बड़ा सा छत l घर का मकान मालिक US mein करीब 6 साल se रहता था, बहुत कम आना जाना था इस वजह से पूरा घर माया और मानस ही देखते थे l माया सीढ़ियों से नीचे जाती है तो देखती है मानस अपने पापा से कुछ बात कर रहा था l
मानस - नहीं पापा आप खामों खां परेशान हो रहे हैं l
मैं कर लूँगा बात..... ओके... हाँ... हम्म्म अच्छा तो फिर आप यहाँ ही आ जाइयेl हाँ 1 हफ्ते से ज्यादा नहीं लगेगा l मैं टिकट भेजवा दूंगा l ok haan नमस्ते l
माया - क्या हुवा सब ठीक तो है ?
मानस - हाँ सब ठीक है, वो हमारा पुराना मकान है न गावं में उसे कुछ दबंग लोगों ने हड़प लिया है तो उसी सिलसिले में मेरा एक दोस्त जो वकील है मुझे कुछ सुझाव दिया था l मैं पापा से बोला तो वो बोल रहे थे की येभी try करते हैं शायद कुछ अच्छा हो l bas इसीलिए मैंने पापा को यहाँ बुलाया है l
दोस्त से मिलवा दूंगा और कुछ क़ानूनी कार्यवाही भी l
माया - ओके अच्छा किये आप l कब तक आएंगे l
मानस - मैं अभी फ्रेंड से बात करके टिकट भिजवाता हूँ कल सुबह tak आ जायेंगे l
दूसरे दिन मानस सुबह सुबह स्टेशन चला गया, माया भी जल्दी सारा काम ख़तम कर नाश्ता बनाने लगी l
माया एक पटियाला सूट सलवार पहनी हुई थी टाइट kurti में उसके दोनों बूब और भी बड़े लग रहे थे l
माया ने सोचा jabtak हस्बैंड और ससुर जी आएंगे वो नहा के फ्रेश हो जाएगी l टॉवल लिए वो बाथरूम की तरफ बढ़ी ही थी की door bell बजी towel रख वो तेज कदम से हॉल की तरफ गई, door खोली तो सामने मानस सामान लिए खड़ा था और उनके पीछे महेन्द्र सिंह मानस के पिता l
माया - नमस्ते बाबूजी l (माया झुक के पैर छुई )
महेन्द्र - खुश raho बेटी, कैसी हो ?
माया - ठीक हु बाबूजी, आपको आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई l
महेन्द्र - नहीं बेटा l
बैठिये पापा, माया जरा पानी देना l मानस माया से बोला
माया - जी
महेन्द्र - तो बेटा वकील से आगे कुछ बात हुई ?
मानस - हाँ दोपहर को मिलने बुलाया है, पास में ही घर है l
माया पानी देती है, महेन्द्र थैंक्स बोल मानस से बात करते हैं आगे l
काफी देर तक बात होती है इस बीच माया भी कई बार बातचीत का हिस्सा बनती है घर के बाकी लोगों के बारे में भी बात होती है l
सभी dining टेबल पे बैठ खाना खाते हैं, एक बार फिर दोनों वकील के घर को चले जाते हैं l
दोपहर के 2 बज रहे होते hain, माया नहा के फ्रेश हो जाती है कपबोर्ड से एक कुर्ती और लेग्गीन निकाल के पहनती है और बेड पे लेटे मोबाइल में खो जाती है l दिन भर की थकान से उसे नींद की आगोश में ले लेती है l
शाम को नींद khulne पे वो मानस को कॉल करती है तो मानस बताता है की दोनों को आने में देर lagegi और वो खाना बाहर ही खा लेंगे l
माया relax हो कर टीवी देखने लगती है, उसके दिमाग में puraani सारी बातें घूमने लगती हैं l बाबूजी पहले से कितना चेंज हो गए हैं, कितनी प्यारी बातें करते हैं l और आज तो unhone मेरे खाने की भी बहुत तारीफ की l
माया के हाथ में एक bracelet watch थी जो बाबूजी ने उसे dophar mein दिया था l जिसे वो अभी भी पहनी थी l हलकी हल्की मुस्कान लिए वो सारी बातें अपने मन में दोहराती है l
काफी देर बाद उसे ऑटो की आवाज़ sunaayi देती है, वो door खोलती hai तो सामने बाबूजी खड़े थे, उनकी नज़र सीधा बिना दुपट्टा के टाइट कुर्ती में फूली माया की बूब पे पड़ती है l माया का थोड़ा सा क्लीवेज भी दिखाई देता है l महेन्द्र बहु की उभार देख नज़रें नीचे करता है मगर उनकी नज़र चोरी से दुबारा माया की गोलाई नापने लगती हैं l माया उनका ध्यान तोड़ते पूछती है l
माया - काम हुवा बाबूजी ? मानस कहाँ हैं ?
बाबूजी - (dhayn भंग होते ही) हाँ बहु....मानस बेटा किसी पडोसी से बात कर रहा है l
महेन्द्र अंदर आ के सोफे पे बैठता है तो उसे एक और shock लगता है,
मानस का वेट करते हुवे माया door पे ही खड़ी थी l घड़े के अकार की उसकी गांड टाइट लेग्गिंग और कुर्ती से ढँक भी ना पा रही थी l
महेन्द्र मन mein.... ओह बहु आज लेग्गिंग पहनी है uff... बहु का पीछे का भाग कितना बड़ा और उभरा हुवा है, मैंने तो कभी ध्यान ही नहीं दिया l
मानस को तो बहुत मज़ा आता होगा, सोचते हुवे महेन्द्र अपनी बहु की गांड देर तक निहारता है, इसका असर सीधे उसके लंड पे होता है l महेन्द्र का लंड pant के अंदर ही बड़ा होने लगता है l सोचते सोचते उसके मन में विचार आता है, काश ऐसी उभरी गांड पे एक बार हाथ फेरने को मिल जाता l
महेन्द्र इस haseen mauke को खोना नहीं चाहता उसकी नजरें भर भर के बहु की गांड निहार रही थी l छण भर के लिए वो सारे रिश्ते भूल बस उस उत्तेजक पल का आनंद लेना चाहता था l उसके लंड की नसों में दबाव badhta जा रहा था l वासना में डूबा कभी वो बहु की गांड पे हाथ फेरने की ख्व्हिश भरता तो कभी नीचे बैठ किस करते हुवे अपना पूरा फेस बहु की गांड में रगड़ने की सोचता l
महेंद्र पे तो जैसे आज किस्मत भी मेहरबान थी, अभी वो खाव्हिशों के सपने में गोते लगा ही रहा था की हल्की सी आती हवा ने माया की कुर्ती को उसके घड़े जैसे नितम्ब से उड़ा दी l एक सेकंड के लिए महेन्द्र को बहु के पुरे गांड के दर्शन हो गए l एक पल के लिए तो बहु टाइट लेग्गीन में नंगी ही प्रतीत हो रही थी l
जवान बहु की मादक गांड देख महेंद्र का तो जैसे वीर्य छलकने वाला हो l वो pant के ऊपर से हे लंड को कस के पकड़ लेता है l लंड को नीचे दबाते वो अपना वीर्य रोकना चाहता tha, लेकिन जैसे ही वो हाथ हटाता है तो जैसे गोंद के tube से gum बाहर आ जाता हो waise ही शायद लंड ने भी गाढ़ी रिसाव कर दिया था l
महेंद्र को बहुत आत्मग्लानि सी होती है वो ठंडी सांस लिए टीवी की तरफ देखता है, लेकिन नज़रें तो जैसे आज काबू में ही ना हों l
वो मन में बस अंतिम बार एक झलक देखना चाहता था, जैसे पता नहीं ऐसा कभी मौका मिले न मिले l इससे पहले की वो इस उधेड़बुन से निकल पाता माया तबतक पलट चुकी थी, महेन्द्र तड़प के रह गया l इतना की कमरे में बैठा वो अपनी जगह से जरा सा भी नहीं हिला, वो लगातार कोशिश करता की बहु की गांड देख सके l लेकिन ऐसा हुवा नहीं जब बहु सामने होती तो मानस भी वहीँ होता महेन्द्र में इतनी बेशर्मी नहीं थी की वो बेटे के सामने अपनी बहु के जिस्म को निहारे l बीच बीच में उसे अपने आप पे गुस्सा भी आ रहा था l
समय बीतता जा रहा था, आखिरकार बहु और मनीष बैडरूम में जा चुके थे l महेन्द्र की बाकी उम्मीद भी टूट गई l वो निराश मन से अपने कमरे में आ गया l