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Romance ISHQ MUBARAK ( romantic love story)

gauravrani

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कि वह क्यों अचानक उठकर कमरे में चली गयी। कमरे में पहुँचते ही उसने फोन उठाया और मीर का नम्बर मिला दिया। लम्बी कॉल बेल के बाद उधर से आवाज़ आयी- ‘‘हेलो... हू इज दिस?’’ मीर की आवाज़ सुनकर जैसे साहिबा के शरीर में करण्ट-सा दौड़ गया। उसकी आवात्रज जैसे थम-सी गयी। उसने बहुत धीरे से कहा- ‘‘साहिबा।’’ ‘‘अरे आप, मैं आपको मैसेज करने ही वाला था।’’ ‘‘मुझे अंदाज़ा लगा कि आप पहुँच गये होंगे तो ख़ुद ही फोन कर लिया।’’ ‘‘चलिए अच्छा किया... आपका नंबर आ गया।’’ ‘‘तो प्लीज सेव कर लीजिएगा इस नाचीज़ का’’ - साहिबा ने हँसते हुए कहा। ‘‘अरे ज़रूर... कैसी बात कर रही हैं आप।’’ ‘‘नहीं नहीं... आप सेलिब्रिटी हैं, न जाने कितने चाहने वाले हैं आपके, हर किसी का नम्बर थोड़ी
 
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सेव करते होंगे
आपका नम्बर कर लेते हैं पक्का।’’- मीर ने कहा। ‘‘थैंक यू सो मच... अच्छा अब आप घर पहुँचिए और आराम कीजिए और हाँ कुछ खा लीजिएगा।’’ - साहिबा ने कहा। ‘‘ओके मैडम साहिबा।’’- मीर ने हँसकर जवाब दिया। ‘‘हाँ चलो बाय...’’ ‘‘ओके... बाय... कल सुबह ग्यारह बजे मैं आपको फोन करूँगी’’। ‘‘याह... श्योर।’’ ‘पहला पहला प्यार है’’ सुबह आठ बजे फोन का अलार्म बजने से पहले ही साहिबा की आँख खुल गयी थी। सुबह के इंतज़ार में रात नींद भी ठीक से नहीं आयी थी। अक्सर ऐसा होता है जब मोहब्बत की पहली मुलाक़ातें बैचेन करती हैं... जब मुलाक़ात की तारीख़, वक़्त और जगह मुक़र्रर हो जाती है तो इंतज़ार मुश्किल हो जाता है। जब
 
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आप प्यार में होते हैं तो महबूब के इंतज़ार का एक-एक पल एक अरसे जितना महसूस होता है। साहिबा को सुबह के चार बजे ही नींद आयी थी। रात भर वह मीर से मिलने के बारे में ही सोचती रही। अब जब सुबह हुई तो उसकी आँखें खुलना नहीं चाहती थीं लेकिन वो कहते हैं न- महबूब के मिलन पर सब क़ुर्बान हो सकता है। साहिबा ने भी नींद की परवाह नहीं की और वह तौलिया लेकर सीधे बाथरूम में चली गयी। पति अपने ऑफिस के लिए तैयार हो रहे थे, बेटियाँ भी स्कूल जा रही थीं। सास बुटीक के लिए निकल ही रही थीं। ‘‘हम कुछ नये डिजाइन देखने साकेत जाएँगे’’- बाथरूम से ही साहिबा ने सास से कहा। ‘‘अच्छा ठीक है, वहाँ से सीधे बुटीक पर ही आ जाना।’’- सास ने जवाब दिया। ‘‘हाँ जी...’’ ‘‘तो हम आपको राजीव चौक छोड़ देते हैं?’’- पति ने साहिबा से पूछा। ‘‘नहीं नहीं आप निकल जाइए हमें अभी वक़्त लगेगा।’’ - साहिबा ने जवाब दिया।
 
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ठीक है फिर कैब कर लेना मैं निकल रहा हूँ।’’ ‘‘ओके... टेक केयर।’’- साहिबा ने कहा। घड़ी में ग्यारह बज गये थे लेकिन साहिबा को मीर की तरफ़ से कोई मैसेज या कॉल नहीं आया था। साहिबा, मीर से मिलने को तैयार हो चुकी थी। उसने आज अपना फ़ेवरेट ब्लैक आउटफ़िट पहना था। ब्लैक टॉप-ब्लैक लैगिंग और उस पर ग्रे कलर के लॉन्ग विंटर कोट में वो किसी फ़िल्मी अदाकारा से कम नहीं लग रहाr थी। दमकते गोरे चेहरे पर हलका सा मेकअप, गुलाबी होठों पर हलके गुलाबी रंग की लिप्स्टिक और मैच करता नेलपेंट उसकी ख़ूबसूरती को कई गुना बढ़ा रहा था। घर का दरवाज़ा लॉक करते हुए उसने मीर को फोन मिलाया। तक़रीबन पाँच-छह रिंग के बाद मीर ने फोन उठाया। ‘‘हम्म ... कौन?’’ ‘‘अरे... मतलब आपने हमारा नम्बर तक सेव नहीं किया!’’- साहिबा ने कहा। ‘‘मैडम साहिबा आप... अरे नम्बर तो सेव है पर आँखें नहीं खुलीं।’’
 
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आप सो रहे हैं अब तक और हम आपसे मिलने के लिये निकल रहे हैं।’’ ‘‘हाँ बस में रेडी हो रहा हूँ।’’ ‘‘नहीं अब आप रहने दीजिए; हम जल्दी उठे, तैयार हुए कि हम मिलने वाले हैं आज और एक आप हैं जिन्हें कोई परवाह नहीं है।’’ ‘‘ऐसा नहीं है साहिबा।’’ ‘‘ऐसा ही है सर... अगर नहीं मिलना तो ठीक है हम नहीं आ रहे हैं अब।’’ ‘‘अरे कैसी बातें कर रहे हैं आप ऐसा कुछ नहीं है, मिलना चाहते हैं हम... आप सलेक्ट सिटी वॉक मॉल आइए मैं आपके आने से पहले पहुँच जाऊँगा।’’ ‘‘ठीक है आ रही हूँ मैं लेकिन आप पहले पहुँचिए।’’ ‘‘ओके मैडम... फोन रखते हैं अब और रेडी होते हैं।’’ ‘‘हाँ जल्दी कीजिए।’’ * * * तीस से चालीस मिनट मेट्रो में सवारी करने के बाद साहिबा सलेक्ट सिटी वॉक मॉल पहुँच गयी थी
 
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मीर ने उसे तीसरी मंज़िल पर बरिस्ता कॉफी पर आने का मैसेज कर दिया था। साहिबा के पहुँचने से पहले मीर पहुँच गया था। साहिबा जैसे ही बरिस्ता पहुँची तो ब्लैक कलर की शर्ट के साथ रॉयल ब्लू कलर की डेनिम पहने मीर बैठा था। साहिबा ने उसे पीछे से देखा था। हाथ में सिल्वर कलर की चेन की घड़ी जो काफी महँगी लग रही थी और आँखों पर काफी क़ीमती चश्मा था। साहिबा ने पीछे से जाकर इधर-उधर देख रहे मीर के कंधे पर थपकी दी और बोली- ‘‘मीर साहब... आप तो हमसे भी जल्दी आ गये।’’ साहिबा की आवाज़ सुनकर और कंधे पर थपकी पाकर उसने अपना चेहरा पीछे की तरफ घुमाया और चश्मा उतारते हुए वह खड़ा हुआ। एक- दूसरे से हाथ मिलाने के बाद एक ही सोफ़े पर बैठे और उसमें धँस गये। मीर अभी नींद में था। उसकी आँखें काफी नशीली महसूस हो रही थीं और साहिबा उसकी तरफ़ घूमकर बैठी थी। साहिबा ने एक नज़र उसकी आँखों में देखा तो वह सिहर गयी। ‘‘क्या था ये... मीर की आँखों में ये कैसा नशा था जिसने उसके भीतर ये सिहरन पैदा की।’’- साहिबा के दिमाग़ में अचानक ये चलने लगा।
 
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बहुत ख़ूबसूरत लग रही हैं आप...’’- मीर ने कहा तो साहिबा ने फिर उसकी आँखों में देखा। ‘‘थैंक्यू...’’- उसने सिर हिलाते हुए कहा और मुस्कुरा दी। ‘‘ब्लैक कलर सूट करता है आप पर।’’ ‘‘अच्छा... पता है मुझे।’’- साहिबा ने ज़ोर से हँसकर ये बात बोली तो मीर को समझने में थोड़ा वक्त लगा कि ये उसका बात करने का अंदाज़ ही है। ‘‘हाँ... और आपके कानों के झुमके भी खिल रहे हैं इस लुक पर।’’- मीर ने मुस्कुराते हुए कहा। ‘‘शुक्रिया जनाब... आप पर भी ये ब्लैक शर्ट काफी अच्छी लग रही है।’’- साहिबा ने कहा। ‘‘लेकिन मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा है कि हम दोनों ने मैचिंग कलर कैसे पहन लिया, इस बारे में हमारी कोई बात भी नहीं हुई थी।’’ ‘‘अरे हाँ हमने इस पर ध्यान ही नहीं दिया।’’ ‘‘चलिए कोई नहीं... अब कुछ ऑर्डर कर लेते हैं।’’
 
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साहिबा ने अपने लिए Brrista Frappe मँगाया तो मीर ने Espresso ऑर्डर किया। कुछ ही देर में वेटर दोनों के लिए कॉफ़ी ले आया। ये कॉफ़ी शॉप वाले भी कमाल के होते हैं, दो जवान लड़के-लड़कियाँ जैसे ही इनके यहाँ पहुँचते हैं और सोफ़े पर थोड़ा क़रीब बैठते हैं, ये लपककर आ जाते हैं ऑर्डर लेने... आप इन्हें ऑर्डर दोतो इनके चेहरे पर गज भर लम्बी मुस्कुराहट होती है; आप कहो या न कहो ये आपके कॉफी मग में दिल ज़रूर बना देते हैं। ठीक उसी तरह जब एक जवान लड़का-लड़की ऑटो की सवारी करते हैं तो वह न जाने कहाँ से ढूँढ़कर पुराने रोमांटिक गाने बजाना शुरू कर देता है। ऐसी हालत में आप चाहकर भी मना नहीं कर पाते हैं बस एक दूसरे से ‘‘कैसे गाने चला रहा है’’ कहकर शांत हो जाते हैं। मीर और साहिबा की कॉफ़ी के ऊपर भी बहुत प्यारा-सा दिल बना हुआ था। दोनों की नज़रें दिल पर पड़ी तो एक-दूसरे की तरफ़ देखकर दोनों मुस्कुराये और फिर ज़ोर से हँसे। कॉफ़ी के सिप के साथ बातों का सिलसिला शुरू हो चुका था। एक-दूसरे के बारे में बातें हुईं और फिर बातें मीर के परिवार के बारे में होने लगीं। वो बातें जो अब तक साहिबा ने मीर के बारे में छपी ख़बरों में पढ़ी थीं।
दोनों को बैठे हुए दो घण्टे गुज़र चुके थे। बातों में से नयी बातें निकल रही थीं और दोनों एक-दूसरे की कम्पनी ख़ूब एन्जॉय कर रहे थे। साहिबा एक और कॉफ़ी मँगा चुकी थी। निकाह के बाद ऐसा पहली बार हुआ था कि वह किसी से इस तरह मिलने आयी हो। घर पराया हुआ तो एक झटके में इच्छाएँ भी परायी हो गयीं और कुछ महीनों में दम भी तोड़ गयीं। न जाने कितने दिनों बाद वह यूँ खिलखिलाकर हँसी थी, न जाने कितने दिनों बाद वह ये आज़ादी महसूस कर रही थी। उसे न घर का ख़याल आ रहा था और न ये विचार कि उसे कुछ देर बाद अपनी उसी ज़िन्दगी में वापस जाना होगा जिससे वह लगभग बोर हो चुकी है। मीर ने उसे बताया कि जबसे एलबम हिट हुआ है तो मुम्बई के कार्यक्रम ज़्यादा मिलने लगे हैं। अगले दो तीन महीनों में वह मुम्बई ही रहने लगेगा। मीर की इन बातों ने साहिबा को कुछ परेशान कर दिया। उसे लगा कि जिस दोस्ती की शुरूआत अभी पूरी तरह हुई भी नहीं है वो दो-तीन महीने में मीर के दूर जाते ही ख़त्म हो जाएगी और फिर वह उसी बोरिंग ज़िन्दगी के चंगुल में फँस जाएगी।
 
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क्या तुम सच में चले जाओगे मीर...’’- साहिबा ने थोड़ा गम्भीर होते हुए धीमी आवाज़ में कहा था। ‘‘क्या हुआ साहिबा तुम इतने सीरियस क्यों हो गये।’’ ‘‘कुछ नहीं... ऐसे ही... पागल हैं न हम थोड़े।’’ ‘‘साहिबा... क्या हुआ प्लीज बताइए न।’’ ‘‘कुछ नहीं मीर... तुम उभरते हुए स्टार हो और करियर बहुत इम्पोर्टेण्ट है, मुम्बई चले जाओ तुम।’’ ‘‘अरे बाबा अभी थोड़ी जा रहा हूँ, अभी तो ठीक से सोचा भी नहीं है।’’ ‘‘तो सोच लो न... वैसे भी सितारों की चमक तो मुम्बई में ही रहती है, दिल्ली तो पॉलिटिशियंस के लिए है।’’ ‘‘साहिबा मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ और हाँ आपके चेहरे पर साफ़-साफ़ लिखा है कि आप हमें जाने देना नहीं चाहती हैं।’’ मीर के इतना कहते ही साहिबा के चेहरे की हवाइयाँ उड़ गयी हों। वह मीर से जो बात छुपा रही थी
 
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वही उसने पकड़ ली थी। साहिबा कुछ झेंपी और बोली- ‘‘ऐसा तो बिलकुल नहीं है, भला हम कौन होते हैं रोकने वाले।’’ ‘‘आप... आप दोस्त हैं न हमारे।’’ ‘‘अभी तो नदी में डुबकी लगायी भी नहीं कि पानी ही सूख गया।’’- साहिबा ने कुछ फुसफुसाया। ‘‘ये धीरे- से क्या कह दिया तुमने?’’- मीर ने पूछा। ‘‘कुछ भी तो नहीं हमने कहाँ कुछ कहा।’’- साहिबा ने यह कहते हुए चेहरा मीर की तरफ़ से हटा लिया और सीधे बैठ गयी। ‘‘साहिबा मैडम आप हमसे कुछ नहीं छुपा सकती हैं, हम समझ गये हैं कि आप नहीं चाहती हैं कि हम कहीं जाएँ, सच है न ये बात!’’- मीर ने साहिबा का एक हाथ अपने हाथ में लेकर पूछा। मीर की छुअन जैसे ही साहिबा को महसूस हुई उसकी सिहरन बढ़ गयी और आँखें ख़ुद-ब-ख़ुद बंद हो गयीं। साहिबा की साँसें भी कुछ सामान्य से तेज हो गयीं। कुछ पल के लिए दोनों के बीच खामोशी छा गयी। साहिबा किसी संगमरमर की मूरत की तरह बिना किसी
 
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