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Adultery lusty family

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राज की समझ मे नही आ रहा था कि वो क्या करे.. उसका दिल कर रहा

था कि वो जल्दी से जल्दी इस कमरे से चला जाए वरना वो अपने आप

पर काबू नही रख पाएगा... उसने दूसरी बियर लेने की सोची और

किचन की ओर जाने के लिए उठ खड़ा हुआ......


जैसे ही वो खड़ा हुआ नेहा ने अपनी टाँगे पूरी तरह से फैला दी...

उसकी स्कर्ट जांघों के उपर चढ़ गयी थी और अब उसकी बिना बालों की

चूत सॉफ तौर पर दीखाई देने लगी... राज ने अपने आप पर काबू

किया और किचन की ओर बढ़ गया... राज की हालत देख नेहा ने

सोच लिया कि उसे अब पहल कर देनी चाहये... नेहा भी उसके पीछे

पीछे अपने लिए अपनी ड्रिंक बनाने चल दी..


नेहा और राज अपनी अपनी ड्रिंक लेकर वापस सोफे पर आकर बैठ

गये...


"राज में तुमसे कुछ पूछना चाहती हूँ.. अगर तुम बुरा नही मानो

तो.. क्या में पूछ सकती हूँ?" नेहा ने अपनी ड्रिंक का घूँट भरते

हुए कहा.


"वैसे में ये नही जानता की आप क्या पूछना चाहती हैं.. लेकिन फिर

भी पूछिए क्या जानना है?" राज ने जवाब दिया..


"में ये जानना चाहती हूँ कि तुम्हारा लंड कितना लंबा है?" नेहा

ने थोड़ा झिझकते हुए कहा.. "वो क्या है ना में अपने आपको पूछे

बिना रोक नही पाई.. तुम्हारा लंड इस कदर पॅंट मे तना हुआ था.. कि

दिल किया तुम्हे पूछ लूँ"


"आप भी चाची क्या पूछ रही है?" राज शर्मा गया..


"इसका मतलब तुम्हे नही पता कि तुम्हारा लंड कितना लंबा है?" नेहा

ने अपनी बात पर ज़ोर देते हुए कहा.


"वो क्या है ना चाची मुझे लोगों ने कहा है कि मेरा लंड बहुत

लंबा है.. लेकिन सच कहूँ तो मेने आज तक इसकी लंबाई मापी नही

है" राज ने जवाब दिया..


"अगर तुम्हे सही में नही पता.. तो.. में तुम्हारा लंड देख कर

बता सकती हूँ कि ये कितना लंबा है.." नेहा ने कहा... उत्तेजना मे

उसकी चूत गीली होने लग रही थी और वो खुश थी कि उसने यहाँ

तक की विजय प्राप्त कर ली थी...


राज तो चौंक पड़ा था.. उसकी समझ मे नही आया कि वो अपनी चाची

को क्या कहे.. वो रिश्ते मे अपनी बेहन को अपनी मा को और अपनी चाची

की दोनो बेटियों को चोद चुका था.. लेकिन चाची के साथ... "क्या

चाची में क्या कहूँ" उसने हकलाते हुए कहा..


"राज तुम तो ऐसे शर्मा रहे हो जैसे कि मेने कह दिया हो कि मैं

तुम्हारा लंड चूसुन्गि" नेहा ने कहा..


"लेकिन आप मेरी चाची है.. और में कैसे हां कर सकता हूँ" राज

ने कहा.


"में तुम्हारा लंड देखना चाहती हूँ.. और मुझे इस बात से कोई

फरक नही पड़ता कि तुम मेरे भतीजे हो कि कोई और" नेहा ने जवाब

दिया..


"अगर आप तय्यार हैं तो मुझे क्या फरक पड़ता है" कह कर राज अपनी

चाची के सामने खड़ा हो गया और अपनी पॅंट के बटन खोलने लगा..

लेकिन उसकी चाची ने उसका हाथ झटक दिया और खुद उसकी पॅंट के

बटन खोलने लगी.. और थोड़ी देर मे ही नेहा ने उसकी पॅंट के बटन

खोल उसकी पॅंट को उसके पैरों मे गिरा उसके लंड को आज़ाद कर दिया..


"ऑश राज तुम्हारा लंड तो बहुत ही लंबा और मोटा है.. मेने इतना

लंबा लंड अपनी जिंदगी मे कभी नही देखा" नेहा ने उसके लंड को

अपने हाथों से पकड़ते हुए कहा.


राज सिर्फ़ मुस्कुरा दिया.. उसने देखा की उसकी चाची अब उसके सामने

नीचे घुटनो के बाल बैठ गयी थी और उसके लंड को अपनी मुट्ठी मे

भर मसल रही थी और भींच रही थी.. फिर उसने अपने मुँह को

खोला और उसके लंड को अपने मुँह मे ले चूसने लगी..


लंड के मुँह मे जाते ही राज के मुँह से सिसकरी फुट पड़ी.. नेहा ने

अब अपने भतीजे को सोफे पर धकेल बिठा दिया और उसकी टाँगो के

बीच आ उसके लंड को अपने मुँह मे अच्छी तरह ले चूसने लगी..


राज ने अपना हाथ अपनी चाची के सिर पर रख अपनी उंगलियाँ उसके

बालों मे फिरा उसके चेहरे को अपने लंड पर दबाने लगा.. और दूसरे

हाथ से उसने अपनी चाची की चुचियों को पकड़ उसके निप्पल को

खींचने लगा.. नेहा सिसक पड़ी.. और वो ज़ोर ज़ोर से अपने भतीजे के

लंड को चूसने लगी..
 

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दोनो उत्तेजना मे चूर थे.. और एक दूसरे को मसल रहे थे.. नेहा

की हालत तो बहुत खराब थी उसकी चूत से पानी बह रहा था और

अंगार लगी हुई थी...


नेहा ने राज के लंड को अपने मुँह से निकाला और पूछा..


"क्या में इसे अपनी चूत मे ले सकती हूँ.. मुझसे तो अब रहा नही

जाता" कहकर वो खड़ी हुई और उसने अपना स्कर्ट खोल दिया.. फिर उसकी

टाँगो के अगल बगल अपनी टाँगे लगा उसने राज के लंड को अपनी चूत

से लगाया और बैठ कर उसके लंड को अपनी चूत मे लेने लगी..


"ऑश राज कितना मस्त लंड है तुम्हारा ऑश ऐसा लग रहा है कि ये

मेरी चूत की गहराइयों को चीर कर रख देगा.. ऑश बहुत अच्छा लग

रहा है.." नेहा उसके लंड पर उपर नीचे होते हुए बोल पड़ी..


राज भी अपनी कमर को उपर उठा अपनी चाची के हर धक्के के साथ

देने लगा और उसकी ताल से ताल मिलाने लगा...


"ऑश राज हाआँ आऐसे ही चोदो श तुम्हारा लंड जब मेरी चूत की

दाने को रगड़ते हुए जड़ तक घुसता है तो बहुत अच्छा लगता है श

हां चोदो और तेज़ी से चोदो.." नेहा और तेज़ी से अपने भतीजे के

लंड पर उछलते हुए सिसक पड़ी..


"हाआँ चाची आपकी चूत भी कमाल की है.. श ऐसा लग रहा है

कि जैसे किसी ने मेरे लंड को जाकड़ रखा है.. श चाची मेरा तो

छूटने वाला है.. "


"हां राज भर दो मेरी चूत को अपने रस से मेरा खुद छूटने वाला

है.. श हाँ अंदर तक घुसा कर चोदो.. " नेहा ज़ोर ज़ोर से उछल

उछल कर बोली..


राज ने अपनी कमर की रफ़्तार तेज कर दी और उसके लंड ने अपनी चाची

की चूत की गहराइयों मे अपना वीर्य छोड़ दिया और तभी नेहा की

चूत ने भी पानी छोड़ दिया...


दोनो थक कर अभी सुस्त हुए ही थे कि उन्हे घर के बाहर गाड़ी रुकने

की आवाज़ सुनाई पड़ी.. नेहा उछल कर अपने भतीजे की गोद से उठी और

अपने कपड़े ले अपने बेडरूम मे भाग गयी.. राज ने भी अपने कपड़े उपर

कर पहन लिए.. तभी शमा ने घर मे कदम रखा..


"हाई राज तुम्हे ज़्यादा देर तो नही हुई ना?" शमा ने अपने चचेरे

भाई से पूछा.


"नही कोई जयदा देर नही हुई" राज ने जबाब दिया.


"सॉरी राज" कहकर शमा राज के पास आई और उसे अपनी बाहों मे भर

अपने होठों को उसके होठों पर रख चूसने लगी...


शमा ने देखा कि साइड टेबल पर बियर की बॉटल रखी हुई थी.. "राज

तुम एक बियर और पियो तब तक में कपड़े चेंज कर के आती हूँ."

शमा ने उससे कहा और अपने कमरे मे चली गयी..


"ठीक है" राज ने कहा और सोफे पर बैठ टीवी ऑन कर दिया..

क्रमशः..............
 

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थोड़ी देर बाद उसने देखा कि उसकी चाची नेहा सबसे पहले हॉल मे

आई और उसे अपनी बाहों मे भर उसके होठों को चूमने लगी और साथ

ही पॅंट के उपर से उसके लंड को मसल्ने लगी..


"थॅंक यू राज... आज तुमने मुझे बहुत मज़ा दिया... "


"हां चाची आप भी किसी जवान लौंडिया से कम नही हो..मुझे भी

बहुत अच्छा लगा.. " राज ने अपनी चाची की चुचियों को मसल्ते हुए

कहा.


"हो सका तो हम फिर से ये मज़ा लेंगे" नेहा ने अपने भतीजे से कहा.


"हां चाची मुझे भी इंतेज़ार रहेगा"


"चलो राज में तय्यार हूँ" शमा ने हॉल मे आते हुए कहा..


"हां चलो.. ठीक चाची फिर मिलेंगे" राज ने अपनी चाची से विदा

ली और शमा के साथ घर के बाहर आ गया..


शमा और राज रात भर पब मे डॅन्स करते रहे और पार्टी मनाते

रहे...


घर लौटते वक्त शमा गाड़ी के अंदर आगे की सीट पर बैठे हुए

राज की तरफ झुक गयी और उसकी पॅंट की ज़िप खोल उसने उसके लंड को

बाहर निकाल लिया.. और अपने होठों मे ले चूसने लगी.... राज को

गाड़ी चलाने मे दिक्कत हो रही थी इसलिए उसने गाड़ी को एक सुनसान

सड़क के किनारे खड़ी कर दिया..


गाड़ी के रुकते ही शमा ने अपनी जीन्स और पॅंटी उतार दी.. राज ने

गाड़ी की सीट को पीछे कर उसे रिलॅक्स कर दिया... अब शमा अच्छी तरह

झुक उसके लंड को चूसने लगी..


राज ने शमा को उठा गाड़ी की पिछली सीट पर लिटा दिया और खुद

उसकी टाँगो के बीच आ अपने लंड को अच्छी तरह उसके मुँह मे दे

दिया...


'हां अब अच्छा लग रहा है.. हां अब मेरे मुँह को अपने लंड से भर

दो.. " कहकर शमा अपने चचेरे भाई के लंड को चूसने लगी.. उसे

ये नही पता था कि थोड़ी देर पहले इसी लंड को उसकी मा नेहा ने

बड़े प्यार से चूसा था..


राज के लंड को चूस्ते हुए शमा अपनी चूत से खेलने लगी.. थोड़ी ही

देर मे उसकी चूत गीली हो लंड के लिए तय्यार हो गयी..


"अब नही रुका जाता राज चोदो मुझे अपने इस मोटे लंड से" शमा ने

राज को नीचे खिसकाते हुए कहा..


राज ने अपनी बेहन की टाँगो को फैलाया और अपना लंड उसकी चूत के

मुँह से लगा एक ही धक्के मे पूरा लंड अंदर तक घुसा दिया..


'ऑश हाआँ और अंदर तक घुसा चोदो बहुत अच्छा लग रहा है..

श हां और चोदो थोड़ा तेज़ी से लंड को अंदर बाहर करो.. " शमा

सिसक पड़ी..


राज तेज़ी से अपने लंड को शमा की चूत के अंदर बाहर करने लगा...

थोड़ी ही देर मे शमा की चूत ने पानी छोड़ दिया..


"राज अब मेरे मुँह को अपने इस रस से भर दो में तुम्हारा पानी पीना

चाहती हूँ" शमा ने एक बार फिर उसके लंड को अपने मुँह मे लेते हुए

कहा.
 

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राज ने अपना लंड फिर उसके मुँहे मे दिया जिसे शमा गले तक लेकर

चूसने लगी... और राज के लंड ने वीर्य की पिचकारी छोड़ी जिसे

शमा बड़े प्यार से गटाकने लगी.. दोनो थक कर शांत हो गये..


"थॅंक्स राज तुम बहुत अच्छे हो अब हम घर जा सकते है" शमा ने

कहा..


वसुंधरा, बलदेव, प्रीति और राज एरपोर्ट के वेटिंग लाउंज मे

आपने आने वाले रिश्तेदारों का इंतेज़ार कर रहे थे... वासू आज

बहुत खुश थी काफ़ी दीनो बाद वो अपने भाई और भाभी एवम बच्चो

से मिलने वाली थी... वहीं प्रीति और राज भी उत्सुक थे अपने ममेरे

भाइयों और बेहन से मिलने के लिए..


जैसे ही वो सब गेट के बाहर आए तो प्रीति काफ़ी खुश हो गयी....

रवि बहुत ही हॅंडसम हो गया था.. लंबा कद.. चौड़ी छाती..

उसके बॉल किसी मिलिटरी मॅन की तरह छोटे छोटे कटे हुए थे.. उसकी

निगाह तुरंत ही अपने ममरे भाई की जाँघो के बीच जाकर ठहर

गयी और सोचने लगी कि क्या उसका लंड भी उसके भाई राज की तरह ही

होगा कि नही... लेकिन उसे विवेक कही नही दीखाई दिया


"ममाजी क्या विवेक नही आया" प्रीति ने अपने मामा आस्विन से पूछा.


"हां प्रीति बेटी वो क्या है लास्ट वक्त मे उसकी एक बहुत ही अच्छी जॉब

लग गयी इसलिए वो नही आ सका" अश्विन ने अपनी भांजी को जवाब दिया.


जहाँ प्रीति की निगाहें रवि और विवेक पर टीकी हुई थी वहीं राज

अपनी ममेरी बेहन सोनिया की बदन को निरख रहा था.. सोनिया दीखने

मे काफ़ी सुंदर लग रही थी.. गोल चेहरा... करीब 5'6 का कद..

कंधे तक झूलते बॉल और और सुडौल बदन.. सोनिया ने टाइट जीन्स

पहन रखी थी जो उसकी लंबी टाँगो..पर चिपकी हुई थी.. और उसके

कुल्हों का उभार सॉफ दीखाई दे रहा था... उसकी चुचिया प्रीति से

छोटी लेकिन स्वीटी से बड़ी थी और काफ़ी भारी भारी लग रही थी..

राज के तो उसकी चुचियों की गोलैईयों को देख मुँह मे पानी आ गया..


सभी एक दूसरे से गले मिल रहे थे और हालचाल पूछ रहे थे....

कहने को तो प्रीति ने अपने भाई को स्वभाविक रूप से गले लगाया

लेकिन अपनी छाती को उसकी छाती से रगड़ दिया और वहीं राज ने अपनी

बेहन सोनिया को गले लगा उसकी चुचियों का एहसास किया... उसे लगा जैसे

की सोनिया की चुचियाँ फूल रही है तो उसने उसे तुरंत छोड़ दिया..


गाड़ी मे घर लौटते वक्त सब आपस मे बातें कर रहे थे और सोनिया

अपने इपॉड पर गाने सुन रही थी.. प्रीति को ये देख खुशी हुई कि

सोनिया की आदतें उसे मिलती जुलती थी. और उसे लगने लगा कि एक

महीना सोनिया के साथ एक ही कमरे मे रहना उसे आखरेगा नही. बल्कि हो

सकता है कि मज़ा आए...


रात के खाने बाद सभी हाल मे बैठे बातें कर रहे थे..राज रवि से बातें कर रहा था तो प्रीति और सोनिया प्रीति के कमरे मे

थी.. प्रीति उसका समान खोल उसके कपड़ों को अलमारी मे लगाने मे उसकी

मदद कर रही थी..


जब सोनिया का समान लग गया तो प्रीति ने उसे कुरेदने की सोची...


"सोनिया तुम्हारा भाई तो काफ़ी हॅंडसम है क्या उसके दोस्त भी उतने ही

हॅंडसम है?" प्रीति ने सोनिया से पूछा.


"हो सकते है.. सच कहूँ तो प्रीति में उसके दोस्तों की तरफ ध्यान

ही नही देती" सोनिया ने कहा. "पता नही क्यों मुझे मर्द अच्छे नही

लगते"


"क्या कह रही हो? तो इसका मतलब हुआ कि तुम्हे लड़कियों का साथ

पसंद है?" प्रीति ने पूछा..


"हां" सोनिया ने जवाब दिया.. "मेरी बात सुन तुम्हे बुरा तो नही लग

रहा ना?"
 

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"नही सोनिया मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगा.. " प्रीति ने अपने

नीचले होठों पर अपनी ज़ुबान फिराते हुए कहा, "वो क्या है लड़की के

साथ मज़ा लेने मे कोई बुराई नही है.. कभी कभी इसका भी मज़ा

लेना चाहिए"


"अच्छा सच सच बताना सोनिया क्या तुम्हे सिर्फ़ लड़कियाँ पसंद है या

फिर कभी कभी लड़कों के साथ भी मज़ा लेती हो?" प्रीति ने उसे और

कुरेदते हुए पूछा.


"सच कहूँ प्रीति तो मेने दो चार लड़कों से चुदवाया लेकिन उतना

मज़ा नही आया जो मुझे किसी लड़की की चुचि और चूत से मिलता

है.. हां अगर भविश्य मे ऐसा लड़का मिला जो मुझे खुश कर सके

तो बात अलग है" सोनिया ने जवाब दिया. "तुम बताओ तुम्हारा क्या चल

रहा है"


"अपना भी हाल कुछ ऐसा ही है.. ना तो कोई पर्मनॅंट लड़की मिली और

ना ही ऐसा लड़का मिला जिसे मैं पर्मनॅंट बना सकूँ.. हां

भविय्श्य का किसी को पता नही" प्रीति ने कहा..


"तुम सच कहती हो प्रीति भविश्य किसने देखा है.. " सोनिया ने

अपना आखरी कपड़ा अलमारी मे रखते हुए कहा.



आगले दिन रात के खाने के वक्त वसुंधरा ने अपने पति से कहा..


"देव तुम मोहन को फोन क्यों नही करते कि इस साप्ताह के एंड मे हम

उनके साथ बिताएँ.. इस तरह से मेरे भाई और भाभी का उनसे मिलना

भी हो जाएगा और मस्ती भी खूब होगी"


"दीदी वैसे तुम बात तो सही कर रही हो.. मुझे भी मोहन से मिले

काफ़ी वक्त हो गया है" अश्विन ने कहा.. "वैसे जीजाजी आपके भाई के

क्या हाल चाल है आज कल"


"हाल चाल तो बहुत अच्छे है साले साहब.. मोहन का बिजनेस अच्छा

चल रहा है और लड़कियाँ भी जवान हो गयी है" देव ने जवाब

दिया.. वो आगे कुछ कहता कि फोन की घंटी बजी और प्रीति ने दौड़

कर फोन उठा लिया..


"मम्मी स्वीटी का फोन है वो चाहती है कि आज की रात मैं उसके

साथ रहूं.. उससे मुझसे कुछ काम है" प्रीति ने अपनी मम्मी से

पूछा..


"बेटा मुझे तो कोई ऐतराज़ नही है लेकिन सोनिया हमारी मेहमान है

उससे पूछो कहीं उसे ये ना लगे कि तुमने उसे अकेला छोड़ दिया"

वसुंधरा ने अपनी बेटी से कहा..


"तुम जाओ प्रीति मुझे बुरा नही लगेगा.. मुझे वैसे भी अकेले

रहने की आदत है" सोनिया ने जवाब दिया.


"ठीक है फिर में आ रही हूँ" प्रीति ने फोन पर स्वीटी से

कहा.


"प्रीति ज़रा स्वीटी से कहना कि मुझे मोहन से बात करनी है" देव

ने अपनी बेटी से कहा..


प्रीति ने फोन अपने पिताजी को पकड़ा दिया और देव मोहन से साप्ताह के

आख़िर मे उसके घर आने के विषय मे बात करने लगा.....


"मोहन से बात हो गयी है और हम सब वीक एंड के लिए उसके घर

जा रहे है" देव ने फोन रखते हुए कहा..


रात मे प्रीति अपनी चचेरी बेहन के कमरे मे थी.. उसकी चूत मे

आग लगी हुई थी.. कई दिनो से वो चुदवा नही पाई थी और उसका दिल

कर रहा था कि आज वो अपनी बेहन से अपनी चूत चटवाए और उसकी

चूत को चूसे....


स्वीटी के कमरे के बाहर मोहन दबे पाँव छुपे खड़ा था इस उमीद मे

कि क्या प्रीति और उसकी बेटी सेक्स का खेल खेलते है... नेहा अपनी

सहेली के यहाँ गयी हुई थी और वो प्रीति द्वारा लिखी गयी कहानी

को अपनी आँखों से देखना चाहता था... इस ख्याल से ही उसका लंड

तन कर खड़ा था..


पलंग पर दोनो नंगी लेटी हुई थी और प्रीति उसके निपल को अपनी

जीब की नोक से छेड़ते हुए उसने अपनी जीब स्वीटी के मुँह मे दे दी..

जिसे स्वीटी ने अपनी जीब से मिलाया और दोनो एक दूसरे की जीब को

चूसने लगी.. प्रीति साथ ही अब स्वीटी की चुचियों को मसल रही

थी...


फिर मोहन ने अपनी भतीजी की उंगलियों को अपनी बेटी की टाँगो के बीच

फिसलते देखा... स्वीटी ने अपनी टाँगे फैला दी थी और प्रीति अब

उसकी चूत को सहला रही थी... फिर उसने अपनी उंगली उसकी चूत मे

घुसा दी.. स्वीटी के मुँह से एक सिसकरी निकल गयी..


मोहन वहाँ से हट जाना चाहता था. इस तरह अपनी ही बेटी की

कर्तूते देखने मे उसे शरम सी आ रही थी कि तभी उसे कमरे के

अंदर से सिसकने की आवाज़ आई...


"ऑश हां प्रीति ऑश हां अपनी उंगली और तेज़ी से चूत के अंदर

बाहर करो.. श हां बहुत अच्छा लग रहा है ऑश आआआः"


सिसकियाँ सुन मोहन के लंड ने ज़ोर की फूँकार भरी और वो और तन कर

उसके पयज़ामे के अंदर उछलने लगा... वो वापस घूम अपनी बेटी के

कमरे मे झाँकने लगा..

क्रमशः..............
 

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प्रीति अब नीचे खिसक स्वीटी की टाँगो के बीच आ गयी थी और

उसकी चूत को फैलाए अपनी जीब से उसे चाट रही थी.. चूस रही

थी... और थोड़ी ही देर मे स्वीटी की चूत ने पानी छोड़ दिया....


"प्रीति अब तुम लेट जाओ और में तुम्हारी चूत का पानी छुड़ा देती

हूँ" स्वीटी ने अपनी चचेरी बेहन से कहा.


स्वीटी ने अपना मुँह प्रीति की टाँगो के बीच दे दिया जो उसकी जगह

लेट गयी थी.. और अब वो स्वीटी की जीब का मज़ा अपनी चूत पर ले

रही थी... थोड़ी देर बाद प्रीति की चूत ने भी पानी छोड़ा और

दोनो बहने निढाल हो सो गयी...


लेकिन प्रीति की आँखों मे नींद कहाँ थी. उसके ख़यालों मे तो उसके

चाच्चा मोहन का लंड बसा हुआ था.. वो सोच रही थी कि किस तरह

पिछली बार उसने अपने चाच्चा मोहन से चुदवाया था.... उसने पलट

कर स्वीटी की तरफ देखा जो गहरी नींद मे सो चुकी थी.. उसने

बदन पर सिर्फ़ टी-शर्ट डाली और दबे पाँव कमरे से बाहर आ अपने

चाच्चा की स्टडी रूम की तरफ चल दी. उसे उमीद थी कि उसके चाच्चा

हर बार की तरह कंप्यूटर पर बैठे अपने लंड को मसल रहे होंगे..


"क्या चाचा जी अकेले ही लंड से खेल रहे हो?" प्रीति ने अपनी टी-

शर्ट उतार स्टडी रूम मे आते हुए कहा...


"और क्या करता.. जब तुम्हारी कहानी पढ़ी तो में आज स्वीटी के

कमरे के बाहर खड़ा चुप कर तुम दोनो को देख रहा था और सुन

रहा था..


"अच्छा तब क्या देखा और सुना आपने?" प्रीति ने अपने चाच्चा के लंड

को अपने हाथों पकड़ते हुए पूछा..


"मेने देखा कि ठीक तुम्हारी कहानी की तरह स्वीटी अंदर सिसक

रही थी और बड़बड़ा रही थी.. " मोहन ने जवाब दिया..


"हां वो में उसकी चूत को अपनी जीब से तेज़ी से चोद रही थी"

प्रीति ने मोहन के लंड को मसल्ते हुए जवाब दिया.. "क्या ये सब देख

आप उत्तेजित हो गये थे.." प्रीति ने अपनी एक उंगली उसके मुँह मे दे

दी.. "क्या आपको अपनी बेटी की चूत के पानी का स्वाद मेरी उंगलियों पर

नही आ रहा?"


मोहन ने कोई जवाब नही दिया और उसकी उंगली को अच्छी तरह चूस वो

झुका और अपनी भतीजी की चुचियो को अपने मुँह मे ले चूसने

लगा...


प्रीति ने अपने चाच्चा का हाथ पकड़ा और उसे उठा कर खड़ा कर दिया

और फिर खुद उसकी जगह कुर्सी पर बैठ गयी उर अपनी टाँगे फैला

दी...


"अब आप अपनी जीब को वहीं घुसा दीजिए जहाँ थोड़ी देर पहले स्वीटी

ने घुसाइ थी.. मेरी चूत को खूब चूस चूस कर एक बार फिर झाड़ा

दीजिए...


मोहन अपनी भतीजी की टाँगो के बीच बैठ गया और अपनी जीब से

उसकी चूत को चाटने लगा.. मुँह मे भर चूसने लगा..


"ऑश हाां ऐसी ही चूसिए ऑश हाआँ अपनी जीब को अंदर तक

घुसैए.. " प्रीति ने अपने चाच्चा के सिर पर हाथ रखा अपनी चूत

पर दबा दिया और सिसकने लगी.. थोड़ी ही देर मे उसकी चूत ने एक

बार फिर पानी छोड़ दिया..



आधी रात को स्वीटी की आँख खुली तो उसने अपने आप को बिस्तर पर

अकेले पाया... वो सोच मे पड़ गयी की प्रीति कहाँ गयी होगी... उसे

लगा कि प्रीति शायद टाय्लेट गयी होगी.. पर जब देर काफ़ी होने लगी

तो उसे चिंता होने लगी की आख़िर प्रीति है कहाँ... आख़िर हार

कर वो पलंग से नीचे उतरी और अपनी पेंटी पहन उसपर टी-शर्ट

पहन ली.


कमरे से बाहर आकर उसने देखा कि उसके पिताजी की स्टडी रूम की

लाइट जल रही थी... उसे तो लगा था कि शायद किचन मे कुछ लेने

के लिए गयी होगी.. लेकिन स्टडी रूम की लाइट जलते देख उसे थोड़ा

शक़ हुआ.. वो दबे पाँव स्टडी रूम की ओर बढ़ गयी,,,,
 

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प्रीति स्टडी रूम मे अपने चाच्चा मोहन की गोद मे बैठी थी और उनके

कंधे पकड़ उछल उछल मोहन के लंड को अपनी चूत मे अंदर तक ले

रही थी... मोहन का सिर झुका हुआ अपनी ही भतीजी की चुचियों के

निपल को मुँहे मे ले चूसने मे मस्त था...


स्वीटी बड़ी मुश्किल से अपनी आँखों मे बसी नींद को दूर करने की

कोशिश कर रही थी.. जो उसे दीखाई दे रहा था उसे उस पर विश्वास

नही हो रहा था.. वो अपनी आँखों को मसल्ते हुए दरवाज़े के पीछे

चुप चाप खड़ी अंदर का नज़ारा देखने लगी...


प्रीति की नज़र अचानक अपनी बेहन पर पड़ी... पर वो तो पूरी

उत्तेजना मे थी और रुकना नही चाहती थी.. इसलिए वो और जोरों से

अपने चाच्चा के खड़े लंड पर उछल उछल कर चोद्ने लगी...


स्वीटी का दिल तो किया कि अंदर के नज़ारे के देख जोरों से चिल्ला

पड़े.. पूरे घर को सिर पर उठा ले.. प्रीति की इतनी हिम्मत कैसे

हुई कि वो उसी के पापा से चुदवाये.. लेकिन वो ये भी जानती थी कि

पिछली रात को ही उसने प्रीति की चूत का स्वाद चखा था... और

आज से पहले वो प्रीति के साथ उसी के भाई राज से चुदवा चुकी

थी... और साथ ही अपनी ताई यानी कि प्रीति की मम्मी के साथ भी सेक्स

का खेल खेल चुकी थी.. और आज का नज़ारा देख तो उसे पक्का यकीन

हो चुका था कि प्रीति अपने बाप यानी कि उसके ताऊ देव से भी चुदवा

चुकी है... और साथ ही वो इस बात को भी महसूस कर रही थी कि

अंदर के नज़ारे को देख उसकी चूत मे हलचल मच रही थी.. उसके

निपल तन कर खड़े हो रहे थे...


स्वीटी की इस तरह उनकी चुदाई देखते प्रीति तो और उत्तेजित हो गयी

और वो अपने चाच्चा के लंड से उछल उनके सामने नीचे बैठ गयी और

मोहन के लंड को अपने मुँह मे ले ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी... थोड़ी ही

देर मे मोहन के लंड ने उसके मुँह मे अपना मदन रस उगल दिया जिसे

प्रीति चटकारे ले ले कर पी गयी... उसने नज़र घुमा दरवाज़े की

ओर देखा तो स्वीटी वहाँ से जा चुकी थी.. उसने अपने चाच्चा से

विदा ली और वापस स्वीटी के कमरे मे आ गयी..


"प्लीज़ स्वीटी मुझे माफ़ कर देना.. मुझसे ग़लती हो गयी" प्रीति ने

अपनी चचेरी बेहन स्वीटी से कमरे मे आते हुए कहा.


"दिल तो कर रहा है कि अभी इसी वक्त तुम्हे ज़मीन पर सुलाऊ और

फिर कभी अपने पास और मेरी चूत के नज़दीक नही आने दूं..."

स्वीटी ने अपना गुस्सा जताते हुए कहा.. "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये

घ्रिनत काम करने की?"


"दिल कर रहा है?" प्रीति ने पलट कर पूछा.


"हां लेकिन में ऐसा कर नही सकती.. क्यों कि ये तुम भी जानती हो

कि में तुमसे दूर नही रह सकती.. फिर भी में ये ज़रूर जानना

चाहूँगी कि कब से मेरे पापा से चुदवा रही हो... और इस सब की

शुरुआत कैसे हुई?" स्वीटी ने पूछा.


स्वीटी की मासूमियत भरी बात सुन प्रीति तो जैसे खुश हो गयी...

उसने अपने होठों को उसके होठों पर रखा और अपनी जीब उसके मुँह मे

डाल दी. और उसे जोरों से चूमने के बाद बोली, "सही मे स्वीटी में

बहुत बड़ी छीनाल हूँ.. पर में क्या करूँ में अपनी काम अग्नि को

कंट्रोल नही कर पाती.. अब तुम्ही देखो ना मैने अपने ही परिवार के

हर सदस्य के साथ खुल कर सेक्स किया है..." फिर वो स्वीटी को अपने

और अपने चाच्चा मोहन के बारे मे बताने लगी कि किस तरह उसने अपने

चाच्चा को अपनी स्टडी रूम मे मूठ मारते हुए और सेक्सी कहानी लिखते

हुए पकड़ लिया था.. फिर किस तरह उसने उस कहानी को अपनी ईमेल पर

भेज इस कहानी को आगे बढ़ाया और आख़िर वो अपने चाच्चा से चुदवाने

मे कामयाब हो गयी...


"प्रीति अब एक बात सच सच बताना क्या तुमने ताऊ जी यानी तुम्हारे

पापा से भी चुदवाया है?" स्वीटी ने पूछा.


"म्‍म्म्मम"


"हे भगवान मुझे तो लग रहा था कि में ही छीनाल रंडी हूँ

लेकिन तुम तो मुझसे भी दो कदम आगे.. हो अब तो मुझे लगता है कि

हमारे परिवार मे सिर्फ़ तुम्हारी चाची यानी कि मेरी मा और शमा ही

बचे है जिनके साथ तुमने सेक्स नही किया है" स्वीटी ने कहा.


"अच्छा प्रीति ये बताओ मेरे पापा का लंड कैसा है? तुम्हे मज़ा तो

बहुत आया होगा?" स्वीटी ने प्रीति की खड़े निपल को छूते हुए

पूछा.
 

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"क्यों? क्या तुम्हारा भी उनसे चुदवाने को दिल कर रहा है" प्रीति ने

हंसते हुए पूछा.


"यार प्रीति ज़िंदगी का कुछ पता नही... वैसे तो में तुमसे कम

छीनाल नही हूँ.... और मेरी भी चूत मे हमेशा आग लगी रहती

है... और तुम्हारा भाई है कि उसे मेरी चूत की ज़रा भी परवाह

नही है... इसलिए क्या पता कभी में भी तुम्हारी तरह अपने पापा

को पता उनसे चुदवा लूँ... " स्वीटी ने कहा.


दोनो लड़कियाँ खिल खिला कर हँसने लगी और फिर एक दूसरे के साथ

छेड़ छड़ करते हुए दोनो सो गयी...


आज घर पर कोई नही था.. प्रीति कहीं बाहर गयी हुई थी और

सभी मेहमान घूमने फिरने गये हुए थे.. इसलिए राज ने मौके का

लाभ उठाते हुए अपने कॅमरा को बाथरूम मे सेट कर दिया और उसके तार

अपने कंप्यूटर से जोड़ दिए... और अब उसे इंतेज़ार था अपनी ममेरी

बेहन सोनिया का बाथरूम मे आकर नहाने का.....


अगले दिन शाम को राज यूनिवर्सिटी से जल्दी घर आ गया और अपने

कंप्यूटर पर बैठ कर कमेरे से रेकॉर्डेड तस्वीरों को देखने

लगा.... उसने स्क्रीन पर देखा कि सोनिया ने बाथरूम मे कदम रखा

और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया.... फिर वो धीरे धीरे अपने

कपड़े उतारने लगी... राज की नज़रे तो जैसे उसके नंगे बदन पर

चिपक गयी...


सोनिया एक बहुत ही जानदार लड़की थी... बड़ी और भारी भारी

चुचियाँ... प्रीति जितनी बड़ी तो नही थी लेकिन फिर भी किसी पके

आम से कम नही थी.... उसके निपल खड़े तो नही थे लेकिन उनकी

साइज़ काफ़ी बड़ी थी.. सोनिया ने अपनी चूत पर झांतो को बड़ी अच्छी

तरह तराश रखा था जिससे चूत का आकार काफ़ी उभर आया था और

गुलाबी चूत काफ़ी प्यारी लग रही थी..इस नज़ारे को देख राज का लंड

झटके खा खड़ा होने लगा..


राज ने अपने लंड को अपनी शॉर्ट से बाहर निकाला और उससे खेलने लगा

और साथ ही कंप्यूटर मे रेकॉर्ड तस्वीरों को काट छाँट कर उसकी वीडियो

फिल्म बनाने लगा जिससे वो बाद मे उसे प्रीति को दीखा सके... थोड़ी

ही देर मे सोनिया नाहकार बाथरूम से निकली और उसकी जगह अब उसकी

मामी ने बाथरूम मे कदम रखा....


राज अपनी मामी के नंगे बदन को देख तो और जोश मे भर गया...

उसकी मामी नीता इस उमर मे भी बहुत जवान और सेक्सी लग रही थी.. वो

और ज़ोर ज़ोर से अपना हाथ अपने लंड पर चलाने लगा.... और जब उसके

लंड ने पानी छोड़ा तो उसने कंप्यूटर बंद कर दिया.


आख़िर शनिवार आया और सुबह से ही सब जोश मे भर मोहन और नेहा

के घर जाने के तय्यारी करने लगे..... अपना थोड़ा समान पॅक कर

सभी गाड़ी मे बैठ स्वीटी के घर की ओर रवाना हो गये...


मोहन नेहा, स्वीटी और शमा ने मिलकर अपने मेहमानो का स्वागत किया..

लिविंग रूम मे सभी इकट्ठा हो गये... सभी मिलकर ड्रिंक्स ले रहे

थे... बड़ों ने जहाँ विस्की के ग्लास पकड़ रखे थे तो बच्चो ने

अपनी अपनी पसंद के ड्रिंक ग्लासो मे भर रखी थी.

क्रमशः..............
 

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दिन मस्ती मे गुज़रता गया... प्रीति ने तो कुछ ज़्यादा ही ड्रिंक ले ली

थी.. उसे थोड़ा नशा चढ़ गया था और उसकी चूत मे जोरों की

खुजली मच रही थी... जब उसे ये एहसास होता कि कोई उसकी तरफ नही

देख रहा है तो वो अपने गरम बदन को या तो राज के बदन से रगड़

मसल्ति या फिर स्वीटी के बदन से मसल देती. एक बार तो उसने सभी

से नज़रे बचा अपने चाच्चा के लंड को उनकी शॉर्ट्स के उपर से पकड़

मसल दिया... इससे उसकी चूत मे तो तेज़ी से चिंतियाँ रेगञे लगी...



तभी प्रीति को जोरों से पेशाब लगी तो वो बेडरूम मे बने बाथरूम

की ओर बढ़ी तो देखा कि राज बाथरूम से बाहर निकल रहा है.. उसने

उसकी छाती पर धक्का मार उसे वापस बाथरूम मे धकेला और खुद

अंदर आकर बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लिया.... फिर उसके सामने

घुटनो के बल बैठ गयी और राज से कहा कि वो अपने लंड को अपनी

शॉर्ट्स से बाहर निकाले....


राज ने भी ललचाई नज़रों से अपनी बेहन को देखा और अपने लंड को

शॉर्ट्स की क़ैद से आज़ाद कर दिया... प्रीति किसी भूके बच्चे की

तरह उसके लंड पर टूट पड़ी और उसे अपने मुँह मे पूरा निगलते हुए

चूसने लगी...


"प्रीति खड़ी हो जाओ" राज ने अपने बेहन से कहा... प्रीति खड़ी हुई

तो राज ने उसे दरवाज़े के सहारे झुका दिया.. प्रीति भी दरवाज़े पर

अपने हाथ रख झुक गयी.. राज ने उसकी बिकनी की साइड से हटा दिया..

और अपने लंड को पीछे से उसकी चूत पर घिसने लगा... प्रीति ने

अपनी टाँगे फैला उसके लंड के लिए जगह बनाई... और राज ने अपने

लंड को अपनी बेहन की चूत मे घुसा दिया...


"ऑश आअहह हाआँ राज चोदो मुझे कस कस के चोदो ऑश हाआँ कितने

दिन हो गये तुम्हारा लंड चूत मे लिए... ओह में तो तड़प गयी

तुम्हारे लंड के बिना हाां और अंदर तक घुसा के चूओडूओ. हाआँ

ऐसे ही फाड़ के रख दो मेरी चूत को" प्रीति अपने कुल्हों को पीछे

कर बड़बड़ाने लगी..


तभी प्रीति ने अपने एक हाथ को नीचे से अपनी चूत के करीब किया

और चूत के अंदर बाहर लंड को सहलाने लगी.. फिर उसने अपनी दो

उंगलियाँ राज के लंड के साथ अपनी चूत मे डाल उन्हे अपनी चूत मे

बहते रस से गीला किया और फिर अपनी गंद के छेद मे घुसा अंदर

बाहर करने लगी... तभी दरवाज़े पर किसी ने दस्तक डी...


"क्या कोई अंदर है?" स्वीटी ने बाहर से दरवाज़े को खाट . हुए

पूछा.


"कम्बख़्त को भी इसी वक्त आना था" प्रीति ने अपनी उंगलियाँ गंद मे

से निकाली और राज के लंड को अपनी चूत से बाहर निकाल खड़ी हो

गयी..


"दो मिनिट रूको स्वीटी" प्रीति ने अपनी बिकनी को ठीक करते हुए

कहा. जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला तो स्वीटी उन दोनो को देख हँसने

लगी...


"भगवान का शुक्रा मनाओ कि ये तो में थी वरना अगर कोई और होता

तो आज तुम दोनो ज़रूर पकड़े जाते" स्वीटी ने कहा.


"पकड़े जाते तब देखी जाती.. में क्या करती मेरी चूत मे आग लगी

हुई थी और जब में यहाँ पेशाब करने के लिए आई तो देखा कि राज

यहीं है तो बस मेने इसके लंड को अपनी चूत मे लेने का मन बना

लिया" प्रीति ने जवाब दिया..


"ठीक है अब तुम आराम से पेशाब करो" राज ने कहा, "और इसके पहले

कि यहाँ और कोई आए में यहाँ से जाता हूँ"


"क्या तुम थोड़ी देर रुक कर अपने लंड को शांत नही करना चाहोगे"

स्वीटी ने उसकी शॉर्ट्स मे उसके तने लंड की ओर देख हंसते हुए कहा.


"हां शायद मे किचन मे जाकर इंतेज़ार करता हूँ वरना तुम दोनो

लड़कियाँ के रहते तो ये शांत होने से रहा" राज ने दोनो लड़कियों के

एक एक चुचि को पकड़ मसल्ते हुए वहाँ से चला गया..


राज किचन मे आकर अपने लिए ग्लास मे बियर भर रहा था कि तभी

उसकी चाची नेहा वहाँ किसी काम से आ गयी....


"क्यों राज एंजाय कर रहे हो ना?" नेहा ने अपने भतीजे के खड़े लंड

पर निगाह जमाते हुए कहा.


"हां बहुत अच्छा लग रहा है... बहुत कम ऐसे मौके आते है जब

पूरा परिवार एक साथ इकट्ठा होता है.. बहुत अच्छा लग रहा

है.. "राज ने अपनी निगाह अपनी चाची के पतले गाउन से छलकती

चुचियों पर गढ़ाते हुए कहा.


"पर कभी कभी एकांत और तन्हाई भी अच्छी लगती है" नेहा ने राज के

करीब आते हुए धीरे से कहा, और फिर उसकी शॉर्ट्स के उपर से उसके

लंड को पकड़ मसल्ने लगी.. राज का लंड एक बार फिर पूरी तरह तन

कर खड़ा हो गया.."काश आज एकांत और तन्हाई होती तो में यहीं

फ्रिड्ज के सहारे झुक जाती और तुम्हे मेरी चूत चोद्ने को कहती... "
 
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