वासू ने नज़रे उठा अपनी आँखे अपनी बेटी से मिली जिसमे काम अग्नि की
चमक साफ देख रही थी. वो अब स्वीटी की चूत पर अपनी जीब घुमा
चाटने लगी.. स्वीटी के बदन मे सिरहन सी दौड़ गयी..
"ऑश आंटी ओह क्या जीब की गर्मी है. श हां बहुत अच्छा लग
रहा है.. हाआँ ओह" अपनी चुचि को प्रीति के मुँह मे और
घुसेड़ते हुए स्वीटी सिसक पड़ी..
प्रीति अपनी बेहन के बगल से हट गयी और पलंग पर पड़ा हरे रंग
का डिल्डो उसने अपनी मा को पकड़ा दिया..
'मम्मी इसकी चूत को इस नकली लंड से आज फाड़ दो.. बहुत फुदकती
रहती है इसकी चूत हरदम"
वासू ने वो नकली लंड अपनी बेटी के हाथ से लिया और पहले कुछ देर
तो उसे स्वीटी की छूत पर घिसती रही फिर उसे अपने मुँह मे किसी
छीनाल की तरह ले चूसने लगी.. फिर उसे उसकी चूत पर रख उसे
अंदर घुसाने लगी.. प्रीति भी अपनी मा के नज़दीक आ गया और उसने
अपनी दो उंलगी रब्बर के लंड के साथ उसकी चूत मे घुसा अंदर बाहर
करने लगी...
"ऑश हाआँ ऑश बहो अच्छा लग रहा है..श हाआँ आंटी और अंदर
तक घुसा के मुझे चोदो श हाआँ और थोडा ज़ोर से" स्वीटी उत्तेजना
मे सिसकने लगी..
वासू अब और तेज़ी से उस लंड को आनी भतीजी की चूत के अंदर बाहर
करने लगी..
'प्रीति यहाँ मेरे पास आकर मेरे चेहरे पर बैठ जाओ और मुझे
तुम्हारी चूत चूसने दो" स्वीटी ने अपनी बेहन से कहा.
प्रीति उठ कर अपनी बेहन के चेहरे पर बैठ गयी और अपनी मा को
देखने लगी... स्वीटी ने अपनी जीब उसकी चूत के अंदर तक घुसा दी
और चाटने लगी.. प्रीति अपनी चूत को उसके होंठो पर रगड़ने लगी
और तभी स्वीटी की चूत ने पानी छोड़ दिया..
"प्रीति क्या तुम अपने उस खिलोने को इस्तेमाल करना चाहोगी?" वासू ने
उस दो मुँही लंड वाले डिल्डो को दीखाते हुए अपनी बेटी से पूछा. "या
फिर में तुम्हे इस्तेमाल करना सिखाऊ?"
लेकिन प्रीति को तो होश कहाँ था.. वो तो उत्तेजना मे पागल अपनी
चूत को अपनी चचेरी बेहन के मुँह पर दबा रही थी.. स्वीटी की
जीब बड़ी तेज़ी से किसी फिरकनी की तरह उसकी चूत के अंदर बाहर हो
रही थी और प्रीति अपनी चूत को उसके मुँह पर दबाए जा रही
थी.... आख़िर उसने थके हुए स्वर मे कहा, "मम्मी आप ही मुझे बता
दें कि इसे कैसे इस्तेमाल करते है"