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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 77

मुसीबतो का पहाड़

सुबह सवेरे अपने साथ ऐसी हरकत किये जाने से देवरानी उदास हो जाती है और भाग कर अपने कक्ष का दरवाजा बंद कर बिस्तर पर लेट कर रोने लगती है।


sleep-cry

देवरानी: (मन में) इस टुच्चे रतन सिंह की हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की, मैं बलदेव को कहूंगी... नहीं अगर उसे पता चल गया तो वह महाभारत खड़ा कर देगा।

कुछ सोच कर देवरानी उठती है और अपनी पुस्तकों में अपने बेटे द्वार लिखे गए प्रेम पत्र ढूँढती है पर उसे कुछ नहीं मिलता है।



worried
santa fe public library

देवरानी के माथे पर पसीना आ जाता है।

"हे भगवान ये पत्र कहाँ चले गए यहीं तो रखे थे उफ़!"

देवरानी अपने कक्ष में राखी मेज़ पर रखे हर सामान को फेकने लगती है वह पूरे कक्ष का कोना-कोना देखती है पर उसे प्रेम पत्र नहीं मिलते है।

देवरानी (मन में: कही रतन सिंह ने तो ये पत्र देख नहीं लिया हो इसलिए वह मुझे भोगने की कोशिश कर रहा है...हाय! अब मैं क्या करु। अब किसी को भी मिला हो पर वह तो अब मेरे और बलदेव की फांसी का कारण बन सकता है। ये मेरी ही गलती का परिणाम है, मैं इन्हे इतनी लापरवाही से कैसे रख सकती हूँ?



sweating
पसीना पसीना हुयी देवरानी थक कर के अपने नम आखे लिए बिस्तर पर लेट जाती है और उसकी आँख लग जाती है । उसे पता नहीं चलता और तेजी से समय निकल रहा था । अब तक सब सो कर उठ गए थे । बद्री और श्याम जाने की तय्यारी कर के निकलने वाले थे पर उनको याद आया कि वह देवरानी मौसी से नहीं मिले है ।

राजपाल: अरे क्या हुआ रुक क्यू गए बच्चो?

बद्री: महाराज वह मौसी से नहीं मिले!



frnd
कमला: वह तो सो रही है अभी तक।

बलदेव: ऐसा करो चलो अंदर ही जा कर उनसे मिल लो।

बद्री और श्याम देवरानी के कक्ष में आते हैं।

बद्री और श्याम खड़े हैं बलदेव देवरानी, जिसकी अख लग गई थी उसके बगल में पलंग पर बैठ कहता है ।

बलदेव: देवरानी! अजी उठ भी जाओ कब तक सोती रहोगी?

देवरानी झट से उठती है और सामने बलदेव को देखती हैऔर दरवाजे पर बद्री और श्याम को खड़े देख शर्मा जाती है।




Z03
glendive medical center
बद्री: क्या हुआ भाभी माँ आप ठीक नहीं लग रही हो ।

देवरानी: नहीं देवर जी व्यायाम करने के बाद थोड़ा आराम करने लगी तो बस यू ही अख लग गई थी।

बद्री: हम लोग जा रहे हैं आशीर्वाद दीजिए!

बद्री और श्याम दोनों के चरण स्पर्श करते हैं ।

देवरानी दोनों के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देती है।

बलदेव: अब तो भाभी कहे जाने से चिढ़ नहीं रही हो, देवरानी! ऐसा क्या सीखा दिया अपनी भाभी को बद्री !

बद्री: वह हम आपको नहीं बताएंगे बलदेव भैया, ये वह हमारे देवर भाभी की बात है।




FRIEND2
rocking horse center
बलदेव: तो बात यहाँ तक पहुँच चुकी है।

फिर बद्री और श्याम मुस्कुराते हुए विदा ले कर बाहर निकलते हैं और अपने घोड़ों पर बैठते हैं।

बलदेव: अपना ख्याल रखना मित्रो!

श्याम: तुम भी और उनका भी।

बलदेव बात समझ कर मुस्कुरा देता है। दोनों घोड़ों को दौड़ा कर थोड़ी देर में वह आंखो से ओझल हो जाते है।



HORSE-FAST
दोपहर के भोजन के बाद राजा रतन और राजा राजपाल मदीरा पीने बैठते है।



ratan
रतन: राजपाल आज मुझे घटराष्ट्र की कोई चीज पसंद आ गई है ।

राजपाल: कहो क्या पसंद है अभी वह आपके कदमों में होगा राजा रतन सिंह?



RAJPAL1

रतन: भाई देखो मुझे एक महिला पसंद आ गई है जिसे मुझे भोगना है । जब तुमने मेरी पत्नी एलिज़ा के साथ अपनी रात रंगीन की थी तब तुमने मुझे बचन दिया था तुम्हे तुम्हारे वचन याद हैं ना?


ELIZA3
राजपाल: रतन जी! जो मजा मुझे तुम्हारी पत्नी एलिज़ा ने दिया था उसे हम ऐसे कैसे भूल सकते हैं।

रतन: तो समझो अब तुम्हारा अपना वचन पूरा करने का समय आ गया है।

राजपाल: आर्य आप कहो पूरे घटराष्ट्र की कन्याएँ तुम्हारे साथ होंगी।

रतन: मुझे शुद्ध राष्ट्र की नहीं चाहिए पर इस महल की...!

राजपाल अब थोड़ा भयभीत हो जाता है।

राजपाल: मैं महल का मतलब समझा नहीं, मित्र!

रतन: देखो मतलब सीधा है। राजा राजपाल मुझे तुम्हारी छोटी पत्नी का उभरा हुआ शरीर पसंद आया है।

राजपाल का मुंह खुला रह जाता है।



Z4
राजपाल: मतलब देवरानी?

रतन: तुम सही समझे! मुझे रानी देवरानी को भोगना है। मेरे ख्याल से इसमें तुम्हें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

राजपाल: पर राजा रतन जी!

रतन सिंह अब गुस्से से लाल हो जाता है।

रतन: पर वॉर कुछ नहीं! दिखा दी ना अपनी औकात! याद रखो तुम सिंह हो। अपना वचन मत भूलो । जब मेरी पत्नी को रात भर चुदाई की तब तो तुम्हे शरम नहीं आई? अब अपनी पत्नी देने में जिभा हलक में अटक गई है!

राजा राजपाल इस बात को सही से समझाते हुए बोलता है ।

राजपाल: महाराज मैं कोशिश कर सकता हूँ पर देवरानी नहीं मानी तो...?

रतन: मुझे कुछ नहीं पता तुम्हें अपना वचन पूरा करना होगा । तुम कैसे करोगे तुम समझो।

राजपाल: ठीक है मैं कोशिश करूंगा।

रतन: देखो अगर मुझे देवरानी नहीं मिली तो कल के कल घटराष्ट्र पर हमला कर इसे अपना राज्य बना लूंगा और तुम्हारा कच्चा चिट्ठा तुम्हारे राज्य के सामने रख दूंगा, जिससे तुम्हारी प्रतिष्ठा और तुम्हारा राज्य दोनों तुम्हारे हाथ से दोनों जाएगा तो देवरानी को उठा के ले जाने में मुझे समय नहीं लगेगा।

राजपाल: नहीं ऐसा कुछ मत करना महाराज!

रतन: तुम मेरी शक्ति से परिचित हो, इसलिए मुझे कुछ भी ऐसा करने पर मजबूर न करो, जिसका पछतावा मुझे भी हो और तुम्हें भी हो!

राजपाल: नहीं, देवरानी आपको मिल जाएगी पर मेरा राज्य मेरा ही रहे।

रतन: चतुर हो अपनी पत्नी दे कर सत्ता में बने रह सकते हो तुम।

उसके बाद राजपाल और रतन सिंह फिर मदीरा पीते रहे।



Z02
इधर देवरानी अपने कक्ष में बैठ सोच रही थी ।

देवरानी: (मन में) अब ये पत्र जिसने भी चुराया है वह हमारी जान के दुश्मन ही होंगे!

देवरानी: कमला ओ कमला!




KAMLA-MAID

कमला भाग कर आती है।

देवरानी उसे पूरी बात बताती है।

कमला: महारानी मैंने तो, इन दिनों यहाँ किसी को आते हुए नहीं देखा और भला मैं क्या करूंगी उन प्रेम पत्रो को अपने पास रख कर।

देवरानी: कमला क्या करु मुझे समझ नहीं आ रहा । बलदेव को बुलाओ।

कमला तुरंत जा कर बलदेव को साथ ले कर आती है।



bal2
बलदेव: माँ क्या हुआ इतनी घबराहट क्यों है?

देवरानी: (मन में-मेरे राजा कैसे बताऊ की राजा रतन ने मेरी इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश की है, अभी प्रेम पत्र की गुत्थी तो सुलझे ये साड़ी मुसीबते एक साथ ही आनी थी।)

बलदेव: कहो माँ क्या सोच रही हो?

देवरानी: वह तुम्हारे लिखे हुए सब प्रेम पत्र गायब है।







shocked
बलदेव: क्या?

बलदेव अचंभित हो कर कहता है।

देवरानी: मुझे बहुत डर लग रहा है बलदेव! अब क्या होगा?

कमला: महारानी मेरा शक तो महारानी शुरष्टि पर है।



cry-emb

देवरानी रोते हुए आकर बलदेव के गले लग जाती है।


q-wed
rocking horse center
बलदेव: संयम रखो मां। हम डरेंगे नहीं तो कुछ नहीं होगा।

कमला: हिम्मत से काम लो तुम दोनों! ये अग्नि परीक्षा हो सकती है, इसे पार कर लो जीवन संवर जाएगा।



cry1
hype athletics

देवरानी: रोते हुए पर वह पत्र अगर शुरष्टि के हाथ कैसे लग गए वह हमें फाँसी के पंखे तक जरूर पहुँचाएगी और हम कुछ नहीं कर पाएंगे।


बलदेव: कमला तुम माँ को संभालो मैं कुछ उपाय सोचता हूँ।


worry-walk

बलदेव बाहर आकर उद्यान में इधर से उधर घूमने लगता है।

बलदेव (मन में: अब क्या करु? अब ऐसे मैं तो हम दोनों मारे जायेंगे। हमारे पास अब अपने आप को सही साबित करने का कोई रास्ता नहीं है।

तभी राजपाल बलदेव को देख उधर आता है ।

राजपाल: अरे पुत्र क्या हुआ इतने चिंतित क्यू हो?

बलदेव मुस्कुरा कर कहता है।

बलदेव: नहीं पिता जी कुछ नहीं! बस बद्री और श्याम चले गए तो उनकी याद आ रही है।

राजपाल: ओह तुम्हारी माँ कहा है?

बलदेव अपनी आखे बड़ी कर के कहता है ।

बलदेव: वो कक्ष में ही थी।

राजपाल: (मन में) अगर ये बात बलदेव को पता चली के में उसकी माँ को किसी और के साथ सोने के लिए मनाने जा रहा हूँ तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगा?

ऐसे ही शाम हो जाती है, घाटराष्ट्र के महल में हर ओर दीयो की रोशनी जगमगा रही थी।

राजपाल देवरानी के कक्ष की ओर जा कर पुकारता है ।

"देवरानी क्या आप अन्दर हो?"

देवरानी: आइये महाराज!

राजपाल अन्दर आता है।

राजपाल: क्या हुआ देवरानी जब से आई आप अंदर ही हो।




raja-rani
देवरानी: (मन में) कही पत्र महाराज तक पहुच तो नहीं गया, जो आज इतने समय के बाद महाराज यहाँ आये हैं ।

ये सोच कर देवरानी कांपने लगती है।

राजपाल कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद कहता है ।

राजपाल: देवरानी! आपसे एक महत्तवपूर्ण बात करनी थी ।

देवरानी: कहिये महाराज!



RAJA1
देवरानी कांप रही थी कि कहीं महाराज पत्र को लेकर उनसे कोई सवाल ना पूछ ले ।

राजपाल भी सोच रहे थे कि रतन सिंह के साथ रात बीतने वाली बात पर देवरानी पता नहीं क्या प्रतिकिर्या देगी।

राजपाल: बात ये है राजा रतन सिंह बहुत नीच व्यक्ति है।

देवरानी: हाँ, क्या हुआ महाराज?

राजपाल अपनी आँखों में झूठे आसु ला कर मासूमियत से कहता है ।

राजपाल: वो कहता है कि हमारे राज्य पर आक्रमण कर देगा और हम सबको बंदी बना लेगा अगर हमने उसकी बात नहीं मानी ।

देवरानी: कौन-सी बात है महाराज?

राजपाल: मुझे तो ये सोच कर भी बहुत लज्जा आ रही है। पर मैं तुमसे अनुरोध करना चाहूंगा की देवरानी तुम ही हो जो हम सब की जान को बचा सकती हो।

देवरानी: पर कैसे महाराज?

राजपाल अपना सर झुका कर नाटक करता है ।

राजपाल: देवरानी तुम्हें रतन सिंह पसंद करता है उसे तुम्हारे सतह एक रात गुजारनी है ।

ये सुनते हैं देवरानी की आंखों से आसु की गंगा बहने लगती है।

देवरानी: महाराज जब उसने आपसे ऐसी मांग की तो आपने उसे कुछ नहीं कहा?

राजपाल: वो...!

देवरानी: धिक्कार है आपके जैसे राजा पर, जिस से कोई उसकी पत्नी की एक रात मांगता है और वह ये चुप चाप सुन कर अपनी पत्नी को ऐसे नीच कर्म के लिए मनाने आजाता है... छी महाराज! मुझे घिन्न आती है आप पर! कोई और राजा होता तो अपनी पत्नी के लिए ऐसा सुन कर उसी समय उसका सर काट देता।

राजपाल: वह हमसे बहुत शक्तिशाली है।

देवरानी: आपको अपनी सत्ता, अपनी राजशाही प्यारी है ना? उसके बदले में अपनी पत्नी को क्या किसी और को सौप दोगे महाराज?



crying-kajal

देवरानी अब फ़ुट-फ़ुट कर रोने लगती है।

देवरानी: आज तक तो आपने मुझे पत्नी का हक भी नहीं दिया और आज आपने ऐसी मांग कर के बता दिया कि आपने सात फेरे भी नाम के लिए लिये थे ...मैंने आज तक उफ तक नहीं कि आज तक नहीं की । मैं आपकी पत्नी बन कर शर्मिंदा हूँ । ऐसे नामर्द राजा पर मुझे ... ।




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राजपाल: चुप करो! अब तुम बहुत ज़्यादा, ही बोल रही हो।



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देवरानी: वाह उल्टा चोर कोतवाल को डांटे! अपने काले चरित्र को छुपाने के लिए अपनी पत्नी का सहारा ले रहे हो उसके शरीर का सौदा कर के अपने सत्ता बचा रहे हो ।

राजपाल: सुनो तुम! ऐसे नहीं मानने वाली, तो सुनो, हाँ मुझे मेरा राज्य चाहिए! मुझे नहीं चाहिए कि मेरे देश पर कोई और राज करे और अपनी राजशाही, अपनी संपत्ति, अपने महल के लिए, मैं तुम क्या तुम्हारी जैसी 10 देवरानीयो को रतन के नीचे लिटवा सकता हूँ ।



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देवरानी: चुप हो जाओ राजपाल नहीं तो एक राजपूतनी की हाए! तुझे कहीं का नहीं छोड़ेगी और भले से नाम के ही हो, अगर तुम मेरे पति नहीं होते, तो मैं अभी तुम्हारे सर में धढ़ से अलग कर देती।

राजपाल: वीरता का प्रमाण किसी ओर को देना और दो दिन के अंदर अपने आप को तैयार करना, नहीं तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेगी ।

ये कह कर गरजते हुए राजपाल बाहर चला जाता है।

देवरानी गुस्से में आकर अपने घर का सामान उठा कर फेकने लगती है। वह पूरे कक्ष के सामान को बिखेर देती है।

" कुत्ते राजपाल क्यू तुम मेरे जीवन में आये और सामने रखे फल के बर्तन को उठा कर आईने पर दे मरती है, जिससे आयना टूट जाता है और पूरे कक्ष में बिखर जाता है।

इतना शोर सुन कर कमला आती है।



KMLA
riddle memorial hospital
कमला: महारानी क्या हुआ आपने क्या हाल बना दिया है अपने ही कक्ष का?

देवरानी रोते हुए जमीन पर बैठ जाती है।

"कमला मेरे जीवन का हाल भी ऐसा ही हो गया है इस कक्ष के बुरे हाल से क्या करूं?"

कमला देवरानी को पकड़ कर संभालती है ।

महारानी कांच के टुकड़े हैं नीचे, आप ऊपर पलंग पर आ जाओ और मुझे बताएँ आखिर हुआ क्या? "

"कमला भला कौन अपनी पत्नी का सौदा करता है?"



CRY3
देवरानी रोते हुए कहती है।

"महारानी कौन? क्या आप? रोये नहीं पूरी बात बताओ !"

"सुबह सुबह मेरी इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश राजा रतन सिंह ने की !"

"क्या कह रही हो महारानी!"

"हाँ कमला और अभी मेरे नाम के पति, मुझे कहने आए थे की तुम्हें रतन सिंह के साथ सोना है, तैयारी कर लो!"

"हे भगवान क्या कलियुग आ गया है उसे शर्म नहीं आएगी?"

"आपने बलदेव को क्यू नहीं बताई ये बात महारानी?"



KAMLA-RANI
"कमला तुम तो जानती हो, बलदेव कच्ची उम्र का है। जोश में आकर कुछ उल्टा सीधा कर दिया तो! और वैसे भी हमारे प्रेम पत्र भी गायब है, अगर बलदेव ने रतन सिंह के विरुद्ध कुछ किया तो कहीं शुरिष्टि या जिसके भी पास है वह इन्हे निकाल कर हमारे विरुद्ध इस्तेमाल करे तो क्या होगा?"

ये कह कहते-कहते देवरानी रोने लगती है।

"महारानी चुप करो! मेरी बहन ऐसे पति पर धिक्कार है । खुद वैश्यों के चक्क्र में पड़े रहे राजा रतन सिंह का वह बदला चुकाना चाह रहे हैं। मैं सब समझती हूँ।"

"कमला पूरे जीवन भर, मुझे सब ने दुख दिया है । अब मैं बलदेव के साथ कुछ सुख के पल जीना सीख रही हूँ तो ये सब हो रहा है ।"

"हिम्मत करो देवरानी और बलदेव को बताओ, अब तुम दोनों को मिल कर ये युद्ध लड़ना है।"

कमला कक्ष को साफ सफाई करने लगती है और देवरानी अपने जीवन को शुरू से सोच कर आंसू बहाने लगती है।

इधर सृष्टि अपने हाथ के पत्र छुपा के राजपाल से मिलने के लिए आती है।

सुरिष्टि मन में) आज महाराज को पत्र दे देती हूँ तो कल तक इन दोनों माँ बेटे को फांसी की सजा हो जाएगी और मस्कुराते हुए राजपाल की कक्ष के पास आकर कहती है।


shristi1

श्रुष्टि: महाराज!

राजपाल और रतन सिंह अंदर बैठे बात कर रहे थे।

राजपाल: हाँ! महारानी श्रुष्टि कहिये, हम अभी महाराजा रतन जी के साथ हैं।

शुरष्टि: (मन में) ये रतन जब से आया है राजपाल को छोड़ता ही नहीं है ।

सुरिष्टि दरवाजे पर पड़े परदे के पीछे खड़ी हो कर कहती है ।

शुरष्टि: महाराज मुझे आप से कुछ आवश्यक बात करनी थी । जब आप दोनों की बात पूरी हो जाए आप मेरे कक्ष में आजाए!

और शुरष्टि वापस चली जाती है।

अन्दर बैठा रतन सिंह राजपाल से पूछता है ।




1B
रतन: क्या हुआ भाई देवरानी मानी के नहीं?

राजपाल: अभी तक तो नहीं, पर मानेगी।

रतन: माननी ही चाहिए नहीं तो...!

राजपाल: अरे मित्र आप मदीरा पिजिए! महाराज आप चिंता ना करें, मैं आपके लिए कुछ भी कर सकता हूँ । मैं आप को देवरानी को भोगने का अवसरअवश्य दूंगा ।

रात का भोजन कर के सब सोने की तैयारी कर रहे थे।

बलदेव चुपके से अपनी माँ के कमरे में आता है।

बलदेव: मां आपने खाना खाया?

देवरानी: नहीं बस इच्छा नहीं थी।

बलदेव: मेरी रानी ऐसे तो कमज़ोर हो जाओगी।

देवरानी दौड़ के आकर बलदेव के गले लग जाती है।



emb1
बलदेव: देवरानी क्या हुआ? क्यू इतनी डरी हुई हो?

देवरानी रोने लगती है।

बलदेव: रो मत देवरानी!

देवरानी: बलदेव! आज सुबह सवेरे जब मैं बगीचे से टहल कर आ रही थी तो धूर्त राजा रतन सिंह ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझसे गंदी बात कही।

बलदेव देवरानी को छोड़ अपना तलवार उठा लेता है ।




bal-1
बलदेव: उसे हरामी की इतनी हिम्मत! अभी उसका सर काट कर तुम्हारे कदमों में दाल देता हूँ ।

देवरानी रोते हुए कहती है ।
"तुम्हें मेरी कसम अभी तुम कुछ भी नहीं करोगे! मेरे लाल !"

"मां तुम कसम वापस लो, मुझे मजबूर ना करो, मैं राजा रतन सिंह का ऐसा हाल करूंगा की उसकी माँ भी उसे पहचान नहीं पाएगी।"

"बेटा समझो! अभी हमारे हालात ऐसे हैं कि हमारे पत्र को हमारे शत्रु हथियर बना कर हम पर पलटवार कर सकते हैं। संयम से काम लो बेटा और इस अपमान का बदला तुम जरूर लेना पर अभी नहीं!"

बलदेव तलवार को दूर फेंकता है और देवरानी को अपनी बाहों में भर लेता है ।

"जो मेरी रानी को आख भी उठा कर देखेगा मैं उसकी आँखे ...!"

"पूरी बात तो सुनो मेरे राजा!"

"हाँ कहो मेरी जान।"

"वो राजपाल आया था और हमसे उसने कहा है कि रतन सिंह हमारे घटराष्ट्र पर कब्ज़ा कर लेगा अगर उसकी इच्छा पूरी ना हुई और उसने मुझे रतन के साथ एक रात गुज़ारने...!"

बलदेव अपना हाथ देवरानी के मुँह पर रख उसे रोक देता है ।

"बस एक और शब्द नहीं, देवरानी! हरमियो को सिर्फ स्त्री को भोगना आता है, उसका सम्मान करना नहीं आता।"

"हाँ मैं कैसी भाग्यहीन हूँ जो ऐसे मनुष्य से मुझे ब्याह दिया गया है ।"

"वो तुम्हारा पति नहीं है देवरानी! में हूँ तुम्हारा पति, वह कुत्ते राजपाल को राजशाही की लालसा और स्त्री और वैश्यो से रंगरेलियो का, सब का उत्तर मिलेगा, अब मैं इन्हें सिर्फ मारूंगा नहीं, तड़पा-तड़पा के मारूंगा!"



emb1
आधी रात में देवरानी और बलदेव एक दूसरे के बाहो में अपने दुख दर्द बांट रहे थे।


वही शुृष्टि महाराज को देवरानी और बलदेव के प्रेम पत्र दिखाने के प्रयास में लगी हुई थी।


SOCH

राजा रतन सिंह अपनी प्यास देवरानी से कैसे बुझाएँ ये सोच रहा था।

अपने कक्ष में लेटा हुआ राजपाल अपनी पत्नी देवरानी रतन सिंह के साथ रात गुजारने के लिए को कैसे मनाएँ यही सोच रहा था।


जारी रहेगी
 
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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 78


बेवस प्रेमी अब क्या करे


आधी रात को महल में सब अपने-अपने सपने सजा रहे थे वही बलदेव और देवरानी एक दूसरे के बाहो के इस दुख भरी घडी में एक दूसरे का सहारा बने लिपटे हुए थे।


hug-tight

बलदेव (: मन में-मैं यानी के बलदेव सिंह घटराष्ट्र के होने वाला महाराज वचन लेता हूँ के इस राज्य की महारानी का ताज महारानी शुरिष्टि से ले कर इसके सही हकदार मेरे होने वाली पत्नी महारानी देवरानी के सर पर सजया जाएगा ।)

emb-bed


कुछ देर बाद बलदेव और देवरानी लेट जाते हैं । फिर देवरानी की आख लग जाती है। बलदेव उसके मासूम चेहरे को देख देवरानी का आखे बंद किये हुए आर्म करते हुए चेहरे के साथ उसका सर अपने हाथ पर रखे, गहरी सांसे ले कर आखे बंद करता है। बलदेव की आंखो में आग की लहर के साथ-साथ बदले की भावना और अपने पिता और राजा रतन सिंह के खिलाफ खिलाफत भड़क गई थी।

sleep1


फिर बलदेव और देवरानी दोनों इकट्ठे सो जते है। सुबह सवेरे देवरानी की आख खुलती है और वह अपने आपको बलदेव के बाहो में पाकर खुश हो जाती है । उसे चूमती है और उठ कर रोज की तरह नहा धो कर तैयार हो कर पूजा करने लगती है।


prayers-gif
देवरानी: (मन में-भगवान अब मैं क्या करु? मैं हम दोनों के प्रेम की सुचना जिस दिन भी महाराज तक पहुँचेगी वह दिन हम दोनों का आखिरी दिन होगा। हे प्रभु हमारी रक्षा करना!)

तभी देवरानी के मन में कुछ बात आती है।



1B

देवरानी: (मन में-हाँ अगर हम घटराष्ट्र को छोड़ कर दूर चले जाएँ तो राजपाल हमारा चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएगा...पर ऐसा करने पर मेरे महारानी बनने का सपना जो मैंने बचपन से सजाया था उसका क्या होगा? ...और बलदेव भी कभी अपनी पीठ दिखा कर और इन पापियो से बिना बदला लिया दूर जाएगा नहीं...पर अगर अपनी जान बचानी है अभी तो कुछ तो ...!)

सुबह सवेरे कमला भी अपने गाँव से महल को आ जाती है और सबसे पहले देवरानी के कक्ष के पास आकर पुकारती है ।



KAMLA-MAID
"महारानी!"

देवरानी दरवाजा खोलती है।

"सुष! धीरे बोलो बलदेव की नींद ना टूट जाये।"



KAMLA-DEV
"महारानी क्या सोचा है आपने?"

"कमला मैंने निर्णय ले लिया है हम घटराष्ट्र छोड़ देंगे।"

"ये क्या महारानी? पर आप लोग कहा जाओगे?"

"संसार इतना बड़ा है हम कहीं भी गुजारा कर लेंगे, मैं नहीं चाहती बलदेव इन कुत्तो के चुंगल में फंसे और उसे कुछ हो जाए।"



MAID12
planned parenthood montclair
"महारानी अगर आप ये सोच रही हो तो जल्दी से जल्दी निकल जाना ही बेहतर होगा, क्यू के आज तो किसी भी हाल में वह रतन तुमसे जबरदस्ती करने की कोशिश जरूर करेगा और वह शुरिष्टि भी वह पत्र महाराज को दे सकती है, तुम दोनों तरफ से मुसीबत में फसने वाली हो।"

"बहन ऐसा करती हूँ, मैं अभी निकल जाती हूँ। तुम सबको कह देना मैं सो रही हूँ और बलदेव जैसे ही उठेगा, तुम उसे भी नदी तट पर घोड़े के साथ भेज देना।"

"हान महारानी और वैसे भी बलदेव के साथ अगर तुम निकलोगी तो सब शक करेंगे ।"



maal7m
"ठीक है मैं कुछ सामान और अपने भगवान की मूर्ति भी अपने साथ ले लेती हूँ। मेरी मदद करो!"

"पर बलदेव ज़िद्दी है।"

"कमला तुम उसे कुछ मत बताना, उसे बीएस इतना कहना मैंने उसे नदी के किनारे बुलाया है, फिर बलदेव को मैं मना लूंगी।, नहीं तो वह सृष्टि हम दोनों की जान लिए बिना मानेगी नहीं ।"

कमला देवरानी की मदद करती है । देवरानी एक चादर ओढ़ लेती है, जिससे जाते समय उसे कोई पहचान न सके और कुछ जरूरी समान की गठरी बाँध लेती है।

कमला: महारानी! आप पीछे के दरवाजे से निकल जाओ!

देवरानी: धन्यवाद मेरी बहन! मेरा हर कदम पर साथ देने के लिए तुम्हारा धन्यवाद!



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देवरानी कमला के गले लग जाती है।

कमला: आप मेरी छोटी बहन हो, महारानी! आप अपना ख्याल रखना, कभी हिम्मत नहीं हारना!

कमला के आखो में आसु थे।

"ज़िंदा रहे तो ज़रूर मिलेंगे!"

कमला को देख देवरानी की भी आखे नाम हो जाती हैं।

"चलो कमला पता नहीं अब फिर कभी मिले ना मिले...!"

"ऐसी बात ना कहो महारानी बलदेव सब ठीक कर देगा! उसके रहते हुए तुम्हें कुछ नहीं हो सकता!"


LETTER1
देवरानी अपने पुस्तकों के बीच से कलम निकाल कर एक कोरे कागज़ पर कुछ लिखने लगती है और फ़िर वह कागज कमला को दे देती है ।

"महारानी ये आपने क्या लिख कर दिया" ?

देवरानी: जब बलदेव उस कक्ष से बाहर निकल जाएगा तो ये मेरे तकिए पर रख देना, इसमें साफ़-साफ़ लिखा है कि मैं अपने प्रेमी बलदेव के साथ घर छोड़ रही हूँ... ये पत्र राजपाल के जख्म पर नमक की तरह काम करेगा ।

कमला: पर महारानी इस से तो पूरे महल और पूरे घटराष्ट्र में पता चल जाएगा कि तुमको तुम्हारा बेटा ही भगा के ले गया है ।


Z9E

देवरानी मुस्कुराती है।

"अब मुझे इस समाज की कोई परवाह नहीं है ।"



56-DEV

ये कह कर देवरानी पीछे के रास्ते से अपनी चादर से अपने आधे मुँह को ढकेते हुए सुबह सवेरे नदी तट पर निकल जाती है।

कमला आ कर अपने काम में लग जाती है परन्तु उसका ध्यान बलदेव पर है कि वह कब उठेगा, करीब एक घंटे बाद बलदेव उठता है।


baldev
"माँ कहाँ हो?"

ये सुनते ही दौड़ कर कमला बलदेव के पास जाती है।

"युवराज आप उठ गए!"

"हाँ कमला में नहा धो कर तैयार भी हो गया, ये रतन सिंह कहाँ है। आज उसे कहीं दूर ले जा कर उसके पाप का दंड दूंगा।"


MAID13
"युवराज आप जो चाहे कर लेना पर अभी माँ ने आपको घोड़ा ले कर अति शीघ्र नदी तट पर बुलाया है।"

बलदेव जानता था कि इस समय कभी भी उसका राज खुल सकता है तो वह अपने हाथ में तलवार लेता है और बाहर जाने लगता है।

बाहर उसे उसकी दादी जीविका मिलती है।



JIVIKA1

जीविका: अरे! बलदेव बेटा कहा जा रहे हो?

बलदेव: दादी। सीमा पर थोड़ा काम है ।

बलदेव बाहर निकल कर अपने घोड़े की तरफ बढ़ता है तो उसे वैध जी दातुन करते हुए नज़र आते हैं।



datun

वैध: शुभ प्रभात युवराज!

बलदेव: शुभ प्रभात गुरु जी! मैं अभी आया थोड़ा काम से मुझे जाना है ।




horse2
बलदेव अपने घोड़े पर बैठ नदी के तट पर चल देता है इधर अपनी आँखों में आसु के लिए कमला बलदेव को जाते हुए देख रही थी। वह झट से अंदर आकर देवरानी का दिया हुआ पत्र उसके तकिये पर रख देती है।


फिर कमला चुप चाप अपने काम में लग जाती है।

धीरे-धीरे महल के सब लोग जगने लगते हैं और महारानी श्रुष्टि भी जगती है।


srushti
शुरष्टि: (मन में-ये महाराज भी कल रात आए ही नहीं, नहीं तो आज दोनों की फांसी की सजा हो गई होती! उफ, मेरा मन नहीं मान रहा। किस तरह जल्दी से ये पत्र महाराज को दू?)

थोड़ी देर में महाराज राजपाल उठते हैं ।



rajpal
"अरे मुझे तो कल रात सृष्टि ने बुलाया था।"

राजपाल तैयार हो कर महारानी श्रुष्टि के कक्ष की और जाने लगता है।

कमला रसोई में काम कर रही थी और उसे दिखायी पड़ता है कि महाराज राजपाल श्रुष्टि के कक्ष की ओर जा रहे हैं।


rajpal1
राजपाल: महारानी श्रुष्टि!


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शुरुष्टि नहा धो कर तैयार हो गयी थी।


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"आइए महाराज!"

राजपाल अन्दर आता है।



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"आज तो बहुत सुन्दर लग रही हो महारानी!"

"धन्यवाद महाराज!"

"आप कुछ कहने वाली थी ना महारानी?"


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"महाराज आप के रहते हुए हम्मारे राज्य में कोई इतना घिनोना अपराध कैसे कर सकता हैं, जिससे हमारी पूरी देश दुनिया में बदनामी हो!"

"महारानी पहेलिया न बुझाओ, साफ़-साफ़ कहो क्या बात है?"

"मैं कहूंगी तो आपको झूठ लगेगा आप खुद ही देख लीजिये।"

सृष्टि अपने तकिये के नीचे से पत्र को उठा कर राजपाल को देती है।

"ये क्या है?"

"ये तुम्हारे लाडले पुत्र बलदेव और तुम्हारी पत्नी की प्रेम कहानी का कच्चा चिट्ठा है महाराज!"

"क्या बक रही हो तुम?"

"मैं बक नहीं रह रही आप खुद देखो!"

राजपाल तेजी से एक पत्र ले कर पढ़ने लगता है।


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********************************************

प्रिया शेर सिंह उर्फ बलदेव जी.

आशा करती हूँ आप अभी मेरा पत्र देख मुस्कुरा रहे होगे, मैं आपको हमेशा ऐसे ही मुस्कुराता हुआ देखना चाहती हूँ और उसके लिए अगर मैं अपने प्राण भी त्यागने पड़े तो मुझे इसकी कोई परवा नहीं होगी।


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बलदेव मैने हर एक बात कमला के द्वारा जान ली है ओर ऍम मुझे ज्ञात है कि तुम्हारे हर निर्णय की वजह सिर्फ मैं हूँ और मेरा दुख है, में ही पागल थी जो तुम्हें एक हवसी समझी थी और मैंने तुम्हे मेरे मान सम्मान की परवाह ना करने वाला समझ लिया क्यू के मुझे पाने के लिए तुम्हे शेर सिंह का भेस अपनाया था, जिसकी वजह से मुझे लगा तुम मेरे जिस्म को पाने के लिए किसी हद तक गिर सकते थे पर मैं गलत थी।

तुमने मुझे पाने के लिए कमला से मदद ली जिससे मुझे लगा तुम मेरी मान मर्यादा को दुनिया के सामने उजागर कर के मुझे बदनाम कर दोगे पर यहाँ भी मैं ही गलत थी।

कमला ने बताया कैसे तुमने मेरे लिए किसी शेर सिंह नामक व्यक्ति के चयन कर लिया था अगर मैं उस दिन घोड़े पर बैठ जाती थी तुम मुझे उसके पास छोड़ देने वाले थे।

अब मुझे पता लग गया है कि तुम मेरी ख़ुशी के लिए इतना बड़ा बलिदान देने जा रहे हो।

मैंने जीवन में किसी से पहले प्रेम नहीं किया । विवाह तो मेरे पिता जी ने जबरदस्त करवा दीया था ।

मेरा पहला प्रेम शेर सिंह ही है या शायद बलदेव तुम हो । मुझे नहीं पता था पर तुम दोनों के लिए मेरे दिल में प्रेम के जज्बात थे और अब जब ये बात ही ख़त्म हो जाती है के में किसका चुनाव करू।

मेरे दिल ने पहली बार किसी के सपने सजाये थे, वह था शेर सिंह ।और किसी ने अपनी प्यारी बातो और मेरा ख्याल रख कर मेरे दिल को लूभाया था तो वह था बलदेव।

बलदेव उर्फ शेर सिंह जी मेरा जीवन अब आपका नाम है । बस ये दिल कभी मत तोड़ना क्यू के एक औरत जब हर मर्यादा नियम या धर्म के विरुद्ध जा कर फैसला लेती है, तो उसके साथ कुछ गलत हो तो वह दोबारा अपने जीवन में वापस नहीं जा सकती।



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आपकी देवरानी ।।

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राजपाल: अधर्मी देवरानी!


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शुरुष्टि: महाराज आप! आपके बेटे की करतूत भी पढ़ें।

शुरुष्टि एक और पत्र निकल कर राजपाल को देती है।

राजपाल गुस्से से लाल हुए दूसरा पत्र पढ़ता है जो बलदेव ने अपनी माँ को लिखा था।

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प्रिया माँ


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मैं आपका बलदेव हूँ और सदा आपका ही रहूंगा, अपनी माँ का बलदेव, जितना सम्मान कल करता था उतना आज भी करता हूँ और वह सम्मान कल भी उतना ही रहेगा चाहे प्रतिष्ठा कैसी भी हो।

मेरी माँ की मान मर्यादा इज्जत का रखवाला, जितना बचपन से था उतना ही आज भी हूँ और मैं कल भी नहीं बदलूंगा और हमेशा आपकी मान मर्यादा की रक्षा करूंगा।

मां अगर मेरे लिए कोई भी बात से आपके दिल को कोई तकलीफ पहुँची है तो मैं उसके लिए क्षमा मांगता हूँ । आप माफ़ कर दो मुझे!

जीवन में मैं कल तक बहुत अकेला महसूस करता था, जब तक मैं अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाया और जैसेही मेरी नजर आप पर गई तो मैं तब से आपके लिए पागल हो गया था, कहीं ना कहीं मेरा दिल तुमने उसी दिन चुरा लिया पर इस बात को मानने में मुझे समय लगा।

सिर्फ नहीं कि मुझे सिर्फ तुम्हारा दुख देख कर तुम्हारा दिल पसंद आया पर सही कहूँ तो तुम्हारी खूबसूरती भी बहुत बड़ी वजह थी, जिसने मेरे दिल को बेबस कर दिया अपनी ही माँ के प्यार में पड़ने के लिए।

मां मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे साथ अपनी सारी जिंदगी बिताना चाहता हूँ और मैं तुम्हारे साथ हूँ, जो तुमने जीवन में देखा है सब पर मरहम की तरह लगना चाहता हूँ, जिस से तुम्हारे दिल का दर्द मिट जाए और तुम जीवन का सही आनंद ले सको।

मैंने बहुत सोचा समाज के बारे में पर आख़िरकार मेरे दिल नहीं माना और मेरा दिल अपनी हसरते पूरा कर के रहेंगा और अब मेरी सबसे बड़ी हसरत है तुम्हें जीवन भर की ख़ुशी देना, उसके लिए मुझे ज़माने से लड़ने या मरने का गम नहीं होगा । अब बस जीने की ख़ुशी है।

बोलो जियोगी मेरे साथ?

तो आज रात भोजन के बाद नदी किनारे आजाना।

तुम्हारा प्रेमी,




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बलदेव उर्फ़ शेर सिंह ।

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राजपाल गुस्से से लाल हो जात है और अपना तलवार निकाल कर..!

"सेनापति सोमनाआआथ !"


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शुरष्टि: इन्हें ऐसे मत मारना सबके सामने फासी देना महाराज !

"तुम चुप करो! महारानी!"

सेनापति सोमनाथ महाराज की आवाज सुन कर दौड़ कर महल में आता है।

सेनापति: जी महाराज!



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राजपाल: आज दो फांसी के फंदो का प्रबंध करो, आज ही फांसी दी जाएगी।

सेनापति: पर किसको महाराज?

राजपाल: आओ मेरे साथ!

राजपाल सबसे पहले बलदेव के कक्ष में जाता है पर उसे नहीं पा कर गुस्से में लाल पीला हो जाता है ।



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शुरष्टि खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी।



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शुरष्टि: वो दोनों देवरानी के कक्ष में होंगे महाराज!

राजपाल और सोमनाथ देवरानी के कक्ष का दरवाज़ा जैसे ही खोलते हैंतो उसे वहा भी वह दोनों नहीं मिलते हैं।

राजपाल: सेनापति सैनिको को बुलाओ!

सोमनाथ को बुलाने पर बाहर खड़े सैनिक खूब तेजी से भाला लिए हुए महल में घुसने लगे।

देवरानी की कक्ष में सब सैनिक आ गए तो एक सैनिक ने पुछा।

"क्या हुआ सेनापति जी?"

राजपाल: सैनिकों महल में कहीं भी बलदेव और देवरानी हो तो उन्हें बुला कर लाओ ।

तभी सेनापति की नज़र तकिये पर रखे कागज़ पर जाती है ।

सेनापति: महाराज ये क्या है?


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अब तक कमला और श्रुष्टि के साथ राधा भी देवरानी के कक्ष के द्वार पर खड़ी हो गई थी।

सेनापति आगे बढ़कर देवरानी के रखे पत्र को उठा कर देखता है।

सेनापति: महाराज इसपे तो रानी देवरानी का नाम है।

तूरंत सेनापति के हाथ से पत्र छीन कर राजपाल पढने लगता है।

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राजपाल उम्मीद करती हैं कि तुम इस समय मेरे और बलदेव की सच्चाई जान गए होगे और अब तुम मुझे जान से मरने की इच्छा से मेरे कक्ष में आए हो, जैसा दर्द तुम अभी महसूस कर रहे हो वैसे दर्द मैं जीवन भर महसूस करती रही हूँ । आखिरकार मुझे अपना प्रेमी बलदेव मुझे मिल गया और अब मैं उसके साथ घटराष्ट्र छोड़ कर जा रही हूँ।

थू है तुम्हारे जैसा पति पर जो अपनी पत्नी किसी अन्य को भेट देना चाह रहा था।

बलदेव की पत्नी.



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देवरानी !!

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तभी एक सैनिक पूरा महल घूम कर आता है और कहता है

"महाराज पूरे महल में वह दोनों कहीं नहीं है, वह दोनों आस पास भी नहीं हैं ।"

राजपाल अपने नंगी तलवार को गुस्से से घुमाता है और उस सैनिक के सर को धढ़ से अलग कर देता है।

सेनापति जो राजपाल के पास खड़ा था और पत्र पढ़ कर उसे सब समझ आ गया था।

सेनापति: महाराज ये आपने क्या किया अपने ही सैनिक को आपने बेकार में मार दिया। उसका कोई कसूर नहीं था । आप अपने क्रोध पर काबू रखें।

राजपाल: ये कमिनी, अधर्मी, देवरानी अपने बेटे के साथ भाग गई।


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ये सुन कर सृष्टि और राधा की आँखें बड़ी हो जाती हैं।

शुरुष्टि: (मन में: ये क्या लगता है कमिनी उसकी जान को खतरा है ये भाप गई थी और भाग गई.)


शुरुष्टि: सेनापति सुनो वह लोग सुबह महल में ही थे वे अभी उन्हें घटराष्ट पार कर के नहीं गए होंगे ।

ये सब शोर और महल में सैनिको को देख महारानी जीविका की माँ, राजपाल की माँ बाहर आ जाती है।

जीविका: क्या हुआ राजपाल ये सब क्या हो रहा है?

सृष्टि: और होगा क्या? आपका लाडला पोता आपकी बहू अपनी माँ देवरानी को ले कर भाग गया है ।



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जीविका सुनते ही चौंक कर कहती है ।

"क्या श्रुष्टि...हे भगवान!"

"जी माँ जी बलदेव देवरानी को ले कर भाग गया और देवरानी ने पत्र भी छोड़ दिया है।"

जीविका अपना सर पर हाथ रख कर चक्कर खा कर गिर जाती है और बेहोश हो जाती है।

राजपाल और सृष्टि दौड़ कर आते हैं।

राजपाल: माँ!

श्रुष्टि: माँ जी!

राजपाल अपनी माँ को उठाने के लिए अपने खून से सनी तलवार को फेंकता है और वह सृष्टि और सेनापति की मदद से अपनी माँ को उसके कक्ष में ले जाता है।

सेनापति: सैनिको वैधजी को बुलाओ!

इधर बलदेव नदी तट पर पहुँच जाता है और अपनी माँ को सामान के साथ खड़ी पा कर चौंक जाता है ।


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देवरानी: बेटा देर कर दी आने में।

"मां क्या हुआ आपने यहाँ क्यू बुलाया है?"

"बेटा मैंने फैसला कर लिया है अगर हमे उनसे-उनसे बचना है तो हमें अभी घटराष्ट्र छोड़ना होगा।"

"मां मैं कायर नहीं हूँ अगर हम समाज के खिलाफ गए हैं तो वह कौन से कहीं के पुजारी है। सब हमारा साथ देंगे। मैं सब से अकेला लड़ सकता हूँ।"

"मेरे बच्चे आज चलो इनसे हम फिर कभी और बदला ले लेंगे।"

"माँ पर हम जायेंगे कहा?"

इधर महल में .. !

राजपाल: सेनापति घटराष्ट्र का चप्पा-चप्पा छान मारो और उन दोनों अधर्मियों को मेरे सामने लाओ । मैं इन्हें मृत्यु दंड की घोषणा कर्ता हूँ।

सेनापति: जो हुकम महाराज!

राजपाल: चलो सैनिको!

सेनापति: आप भी चल रहे हैं महाराज ।

राजपाल: हाँ! सैनिको को हर दिशा पूर्व पश्चिम दक्षिण की दिशा में भेजो और सैनिको हर गाव हर घर छाण मारो।

सेनापति राजपाल को कहे अनुसर सेना को हर दिशा में भेजता है ।

राजपाल: अब हम नदी के उस पार पारस की दिशा की ओर चलते हैं।

कुछ देर में राजपाल अपने सैनिको के साथ नदी तट पर पहुँच जाता है ।


महारानी देवरानी अब भी बलदेव से बहस कर रही थी पर बलदेव मानने को तैयार नहीं था ।




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आखिरकार देवरानी बलदेव के गले लग जाती है।

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"बेटा तुम्हें तुम्हारे प्यार की कसम चलो हम दूर चले!"

"मा कसम क्यू. पर जाए कहा?"

सामने से राजपाल आ रहा था, उसे नदी तट पर बलदेव का घोड़ा दिखता है।

राजपाल: सैनिको! वह देखो बलदेव का घोड़ा । वह आसपास ही होंगे।

सेनापति: वो देखो उस वृक्ष के पास।


जैसे जैसे राजपाल करीब आता है। तो वह देखता है दोनों एक दूसरे के गले लगे हुए थे ।



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राजपाल इशारे से सैनिकों को उन्हें घेरने के लिए कहता हैं।

बलदेव देवरानी को अपने लगा कर खड़ा था इस बात से परइ तरह से अंजान था कि उसका घेराव हो चुका है।

बलदेव: ठीक है चलते है मेरी रानी।




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बलदेव आगे बढ़ कर अपने होठ देवरानी के गले पर रख उसे चूमता है और अपने हाथों को देवरानी की कमर पर रख सहलाता है।

ये दृश्य देख राजा राजपाल का धैर्य टूट जाता है।

राजपाल: आक्रमण!

ये सुनते हैं बलदेव और देवरानी एक दूसरे को छोडते हैं और चारो तरफ देखते है तो अपने आप को सैनिकों से घिरा हुआ पाते हैं और सहम जाते हैं...!


जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 79

क्या करें, कहाँ जाएँ ?

बलदेव और देवरानी अपने आप को सैनिकों से घिरे हुए पाते हैं तो देवरानी डर के बलदेव से चिपक जाती है।

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राजपाल: पकड़ लो इन अधर्मियो को।

दो सैनिक बलदेव की ओर तेजी से घोड़े को दौड़ाते हैं।

देवरानी इशारे से बलदेव को भागने के लिए कहती है



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बलदेव नदी के तट पर रेत के अंदर अपना एक पैर घुसाता है और एक झटके से सैनिकों के ऊपर दे मारता है जिस से पूरे आकाश में धूल-धूल हो जाती है और सैनिकों की आख में धूल जाने से वह कुछ देख नहीं पाते।


मौक़े का फ़ायदा उठा कर बलदेव जल्दी से देवरानी को उसके समान सहित गोद में उठा के घोड़े पर बिठाता है और फिर खुद छलांग मार के घोड़े पर चढ़ कर घोड़े तो तेज भगाता है।



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जब तक धुल छट पाती और सैनिक को कुछ सूझता बलदेव और देवरानी घोड़े से निकल जाते हैं।

राजपाल: वह भाग रहे हैं पश्चिम की दिशा चलो।

सेनापति और सैनिक बलदेव और देवरानी के पीछे अपना घोड़ा भगाने लगते हैं। कुछ दूरी पर बलदेव देवरानी को अपने गोद में लिए घोड़े को तेजी से भगा रहा था।

राजपाल: रुक जाओ नहीं तो तुम दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा।



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देवरानी: रुकना नहीं बेटा ले चलो मुझे ये सब से दूर, खास कर ये राजपाल से दूर ले चलो!

बलदेव घोड़े को भागते-भागते जंगल की ओर मोड लेता है और उसके पीछे-पीछे राजपाल भी अपने घोड़े को जंगल की ओर मोड लेता है

बलदेव घने जंगल में घोड़े को झाड़ियों के अंदर कभी दाये मोड़ता तो कभी बाय मोड़ता है और राजपाल भी उनका पीछा करना छोड़ नहीं रहा था...बलदेव के आगे एक छोटा-सा पहाड़ आता है वह घोड़े के लगाम को खींचता है, घोड़ा समझता हुए हिनहिनाता हुआ पहाड़ के ऊपर तेजी से चढ़ने लगता है और फिर-फिर तेजी से दूसरी तरफ उतरता है पर राजपाल और सेनापति का घोड़ा बहुत धीमी गति से चढ़ता है और जब वह पहाड़ पर पहुँचता है तब तक बलदेव घने जंगल में घोड़े को घुसा देता है और उनकी नजरो से ओझल हो जाता है ।



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spoon smileys
राजपाल: ये हमारे हाथ से फिर निकल गए

सेनापति: चिंता ना कीजिए महाराज, मैं इन्हें सीमा से बाहर जाने नहीं दूंगा।

राजपाल: ठीक है तुम सैनिकों को ये खबर पहुँचा दो।

सेनापति: ठीक है महाराज ।

राजपाल: चलो अब वापस महल चलें!

राजपाल और सेनापति वापस महल की ओर चल देते हैं।

महल पहुच कर राजपाल देखता है कि अब तक उसकी माँ जीविका होश में आ गई है और उसकी आंखो में आसु थे और लगभाग घर का हर व्यक्ति आज उदास था।


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जीविका: आ गया बेटा हम सब तेरी ही राह देख रहे थे।

राजपाल अपने सर का पगड़ी को फेकते हुए बैठ जाता हैं।

राजपाल: तुम सब के घर में रहते हुए ऐसा कैसे हो गया । मुझे इस बात की खबर क्यू नहीं मिली... कैसे मेरे नाक के नीचे ये दोनों ऐसा करते रहे और आज बलदेव अपनी माँ को भगा ले गया पर मुझे भनक तक नहीं हुई क्यू? आआआख़िर क्यू? मुझे उत्तर चाहिए इसका।




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शुरष्टि: महाराज जैसे ही मुझे शक हुआ इनपर और मैंने उनके कक्ष की तलाशी ली और मुझे ये प्रेम पत्र मिले ।



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राजपाल: माँ क्या आपको भी इन दोनों के लक्षण से नहीं लगा की, ये दोनों क्या गुल खिला रहे हैं?

जीविका: बेटा तुम इतनी चिंता मत करो, वह अधर्मी थे, । वह तुम्हारे लायक ही नहीं थी । देवरानी जैसी भ्रष्ट महिला और बलदेव जैसा अधर्मी पुत्र मैंने नहीं देखा ।

राजपाल: चिंता कैसे ना करू मां! आज पूरे महल में ये बात सबको पता चल गई है।

उतने में राजा रतन सिंह अपनी कक्ष से निकलता है ।



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रतन: राजपाल तुम सही में नामर्द ही निकले! तुम्हारे सामने से तुम्हारी रानी को, तुम्हारी पत्नी को कोई भगा के ले गया और तुम कुछ नहीं कर पाये।

राजपाल: हमने कोशिश की उन्हें पकड़ने की लेकिन ...!

रतन: लेकिन पकड़ तो नहीं पाए ना और उनके प्रेम पूजा तुम्हें इतने दिनों से नहीं दिखी, अब हाथ मल के कुछ नहीं होगा । एक स्त्री को संभाल नहीं सके तुम!

राजपाल रतन सिंह के गुस्से को समझ कर चुप था।

रतन: मैं ऐसे अधर्मी परिवार के साथ एक क्षण नहीं रुक सकता और रही बात मेरी ख्वाहिश की वह मैं जानता हूँ की मुझे कैसे पूरी करनी है।

राजपाल: अरे रुको तो अभी कहा जाओगे?

रतन: अपने राज्य राजपाल। बस तुम सब अपना ख्याल रखो और उन्हें ढूँढ सको तो ढूँढ लो और अपनी रानी को अपने बेटे के चुंगल से छूडा लो ।

रतन सिंह ये कह कर बाहर आता है और अपने घोड़े पर सवार हो कुबेरी की ओर चल देता है।

राजपाल अपने आखे बंद कर कहता है ।

राजपाल: ये माँ बेते की वजह से मुझे कितनी बेइज्जती सहनी पड़ रही है।

राजपाल: कमला राधा वैध जी क्या आप लोगों को भी इन दोनों में जो कुछ चल रहा था वह महसूस नहीं हुआ?

सब ने नकार दिया और कहा उनको इस बात की कोई खबर नहीं थी।



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राजपाल: कमला तुम सच-सच बताओ, मुझे क्यू लगता है तुम्हें सब पता था?

कमला: नहीं महाराज मुझे अगर ऐसे अधर्म होने की जरा-सी भी भनक लगती, तो सबसे पहले मैं ही उन्हें घर में बेइज्जत कर देती ।

राजपाल: जाओ तुम सब अपने-अपने कक्ष में । मुझे अकेला छोड़ दो!

सब जाने लगते हैं और फिर राजपाल अपने कक्ष में जा कर लेट जाता है।

थोड़ी देर में शुरष्टि आ जाती है ।




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श्रुष्टि: महाराज!

राजपाल: हाँ! महारानी!

शुरष्टि: आप इनके बारे में सोच कर अपनी सेहत खराब ना करे। इन दोनों ने जो किया उन्हें उसका फल अवश्य मिलेगा।

राजपाल के पास बैठ कर सृष्टि राजपाल का सर दबाने लगती है।

इधर बलदेव और देवरानी जंगल को चीरते हुए तेजी से घटराष्ट्र की सीमा तक पहुँच जाते हैं । बलदेव अपने तलवार निकाल कर घोड़ा तेजी से भगाने लगता है।


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सीमा पर सैनिक कैसे ही बलदेव का घोडा देखता तो वह इनका पीछा करने लगता है।

तभी बलदेव अपना तलवार ज़ोर से गोल-गोल घुमा कर कहता है ।

"सैनिको हमें जाने दो, नहीं तो तुम सब जानते हो ये तलवार, एक ही साथ तुम सब का खून पी सकती है।"

बलदेव की आंखो में जलते अंगारे देख सैनिक पीछे हट जाते हैं और बलदेव घोड़े को आगे बढ़ाते हुए घटराष्ट्र की सीमा को पार कर लेता हैं।


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बलदेव अब घोड़े को धीरे करते हुए रोक कर कहता है ।

बलदेव: अब कहा जाये हम माँ?

देवरानी: हम भैया से बात करेंगे।

बलदेव: पर मामा जी क्या हमारा रिश्ता स्वीकार करेंगे?

देवरानी: हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। सेनापति और राजपाल हमें कहीं ना कहीं से ढूँढ निकालेंगे और राजा रतन भी हमे ढूँढने का प्रयास अवश्य करेगा ।

बलदेव: पर माँ?

देवरानी: जान प्रेम किया है तो अब परीक्षा भी देनी पड़ेगी । बलदेव अब समय आ गया है, तुम मेरा हाथ मांगो मेरे भैया से।

बलदेव: अगर नहीं माने तो!

देवरानी: तो भी मैं तुम्हारी ही रहूंगी।



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दोनों पारस की ओर घोड़े को मोड़ते हैं।

थोड़ी दूर जाने के बाद देवरानी को दूर एक बाज़ार नज़र आता है और अब लगभाग रात हो गई थी।

देवरानी: मुझे भूख लग गई सुबह से कुछ नहीं खाया है, तुमने। तुम भी चलो कुछ खा ले!

दोनों बाज़ार में जा कर लड्डू वाले के पास जा कर घोड़े से उतरते हैं, देवरानी सावधानी से अपनी चादर को अपने मुंह पर ओढ़ लेती है, जिससे कोई उसे पहचान ना ले ।

बलदेव: भैया लड्डू कैसे दिये?

लड्डूवाला: भैया 30 सिक्के के एक सेर है।

बलदेव सिक्के निकाल के देता है।



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लड्डूवाला: अरे ये तो घटराष्ट्र के सिक्के हैं।

बलदेव: हा!

लड्डुवाला: आप दोनों घटराष्ट्र से हो क्या?

बलदेव: नहीं हम कुबेरी से हैं हम राजा रतन सिंह के राज्य से सैनिक हैं।

लड्डूवाला: और फिर ये आपकी पत्नी हैं ।





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बलदेव: जी हाँ मेरी पत्नी हैं

लड्डूवाला: लगता है इनकी तबीयत ठीक नहीं और इन्हे कुछ ज्यादा, ठंड लग रही है।

बलदेव: आप पहले हमें लड्डू दो।

लड्डूवाला: काहे छुपा रहे हो ...घटराष्ट्र से याद आया, आज एक सैनिक आया था वहाँ आज एक अद्भुत घटना घटी है।

बलदेव: क्या घटना घटी है? "

देवरानी भी अब ध्यान से लड्डू वाले हलवाई की बात सुनने लगी।

लड्डूवाला हंसता हुआ कहता है।

"भैया कलियुग आ गया है, घाटराष्ट्र की रानी और उनके पुत्र का प्रेम प्रसंग चल रहा है और आज राजा राजपाल का पुत्र अपनी माँ या फिर ये कहिए राजपाल की छोटी रानी को भगा ले गया।"


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ये सुनते हैं देवरानी डर से कांप जाती है और अचरज से लड्डूवाले को देखने लगती है।

बलदेव: भैया हमें क्या पता इस बारे में, मैं खुद छुट्टी पर हूँ... क्या आपने उस युवराज को देखा है जो अपनी माँ को ले के भाग गया है ।

लड्डूवाला: देखा तो नहीं है और हमे देखना भी नहीं है ऐसे अधर्मी व्यक्ति को...आप ये सब छोडीए! आप लड्डू खाएँ!


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बलदेव अपने हाथ में लड्डू ले और देवरानी के साथ एक वृक्ष के नीचे बैठकर लड्डू खाने लगा । वही पर बैठे कुछ लोग आपस में बाते कर रहे थे । सब के मुंह पर सिर्फ बलदेव या देवरानी की बात थी।

बलदेव और देवरानी वहा से जल्दी निकलते हैं और उन्हें वहाँ रात में रुकना भी ठीक नहीं लगता फिर वह पारस की ओर तेजी से घोड़ा भगाने लगता हैं।

रात भर घोड़ा भगाने के बाद देवरानी नींद के मारे थक जाती है । बलदेव के गोद में वह सो जाती है और बलदेव बस घोड़े के लगाम को संभालते हुए पारस की ओर बढ़ रहा था।

... सुबह घटराष्ट्र महल में ...

राजपाल अपनी तलवार लगा कर पूरी तयारी ऐसे कर के जैसे युद्ध में जा रहा हो महल से बाहर निकलता है।

राजपाल: सेनापति सोमनाथ!


सेनापति: जी महाराज!

राजपाल: उनका कुछ पता चला?


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तभी महल से सृष्टि बाहर आती है।

शुरष्टि: महाराज आप ने कल से कुछ नहीं खाया है । कुछ खा लीजिये ।

राजपाल: मैं तब तक नहीं खाऊंगा जब तक वह दोनों मेरे सामने नहीं आ जाते ।

राजपाल: सेनापति तुम हर पड़ोसी राज्य में ये खबर फेला दो की उन दोनों को पकड़ने में जो हमारी मदद करेगा हम उसे मुंह माँगा इनाम देंगे।

सेनापति: पर महाराज ऐसे तो ये-ये बात आग की तरह पूरी दुनिया में फैल जाएगी।



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राजपाल: मुझे कुछ नहीं पता, मुझे बलदेव और देवरानी चाहिए, जिंदा या मुर्दा और अभी घटरास्ट्र के जितने भी गाँव हैं और उनके जितने भी चौधरी हैं इन गाँवों में, उन सबको बुला कर कह दो हमने इन दोनों को फांसी की सजा सुना दी है । इन दोनों को पता चलना चाहिए की दोनों कितना बड़ा पाप किया है।

सेनापति: जो आज्ञा महाराज 1

सेनापति हर गाँव के मुखिया और चौधरीयो को अपात बैठक में बुलाता है, उन्हें सारी बात बताते हुए कहते हैं महाराज ने अपनी छोटी रानी और बेटे को मौत की सजा सुना दी है । सब हैरान और परेशान थे ये सुन कर, सब आपस में इतनी बुरी हरकत पर बलदेव और देवरानी को कोस रहे थे ।

पारस

शाम हो जाती है और बलदेव और देवरानी पारस पाहुच ही जाते हैं। महल के बाहर सैनिक उन्हें देख समझ जाते हैं की ये तो वही लोग हैं जो कुछ दिन पहले मेहमान बन के आए थे।




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बलदेव और देवरानी पारस के महल पहुच कर सैनिक से पूछते हैं कि देवराज कहा है । फिर सीधा देवराज के पास पहुच जाते हैं जो उस समय अपने कक्ष में थे।

देवराज: अरे मेरी बहन देवरानी तुम! अरे भांजे! तुम दोनों बहुत जल्दी आ गए और ये क्या हाल बना लिया है तुम दोनों ने।

बलदेव और देवरानी देवराज के चरण छू उसे प्रणाम करते है।

देवरानी: भैया आप मेरे पिता समान हैं। आप से एक अनुरोध है।



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देवराज: कहो मेरी बच्ची!

बलदेव: बात ये है मामा जी । की हमें देश निकाला का हुक्म दिया गया है।

देवराज: किसने?

देवरानी: राजपाल ने।

देवराज अचंभित हो कर पूछता है ।

देवराज: पर ऐसा क्या अपराध किया तुमने?

बलदेव: अपराध? प्रेम का!

देवराज: मुझे समझ नहीं आया।


कहानी जारी रहेगी
 
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Rekha15

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Reading the story. Unable to close down. Fantastic. What happened to shrushti. Atleast she could have married senapati. Keep writing.amazing.
 

deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 80

संकट में प्रेमी

पारस

persia-ancient

देवराज: मुझे समझ नहीं आया!


devraj2

देवराज असमंजस से देखता है!

देवराज: तुम्हारा अर्थ क्या है? माँ से प्रेम करना कोसे अपराध हो गया?

बलदेव: मामा जी! मैं आपकी बहन देवरानी का हाथ आपसे मांगता हूँ। हम दोनों एक दूसरे से प्रेम करते हैं और मैं जीवन भर आपकी बहन की रक्षा करूंगा।

देवराज: क्या बक रहे हो बलदेव?



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देवरानी: ये सही कह रहा है भैया! हम दोनों एक दूसरे के बिना जी नहीं सकते।

बलदेव: मांमा मैं आपकी बहन देवरानी से-से विवाह करना चाहता हूँ ।उनको अपनी माँ से अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ। मैं इनसे दूरी अब और नहीं सह सकता।

देवराज ये सुन कर आग बबूला हो जाता है और इससे पहले वह कुछ या सुने एक "थप्पड़" बलदेव के गाल पर रख देता है।

देवराज: हरामजादे!

बलदेव अपने गाल पर हाथ रख कहता है ।

बलदेव: इस थप्पड़ की कीमत आपको चुकानी पड़ सकती है मामा !

ये सब सुनते ही हुरिया वहाँ आ जाती हैं!

देवराज: निकल जा यहाँ से अधर्मियो!


DEVRANI

देवरानी: आपके जीजा राजपाल ने मेरे शरीर का सौदा किया है भैया । आपके जीजा राजपाल ने मुझे जीवन भर सताया है ओर अब वह हमें मारना चाहता है।

ये कह कर देवरानी रोने लगती है।

देवराज: मुझे तुम से घृणा हो रही है देवरानी! तुम्हारी जैसी बहन मर जाती तो अच्छा होता । तुम जो अपना मुंह अपने बेटे से काला करवा रही है और तुम बेटे के साथ अपना ससुराल छोड़ यहाँ भाग आई हो ।

देवरानी: भैया!

देवराज: अगर तुम मेरी बहन ना होती, जिसे मैंने बचपन से अपनी बेटी की तरह पाला है तो भगवान कसम आज तुम दोनों की लाशें बिछा देता ।

बलदेव: चलो माँ हमारी यहाँ कोई नहीं सुनने वाला।

देवरानी: तो भैया क्या आप ये गवारा हैं कि वह राजपाल आपकी बहन को बेच दे? पर बहन ने अगर अपने बेटे से प्रेम कर लीया तो ये आपके लिए अधर्म हो गया...भैया अगर ये अधर्म है तो हाँ मैं अधर्मी हूँ और आप सब अपने ऐसे धर्म पर चलते रहें। ।


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बलदेव देवरानी को सहारा देते हुए बाहर ले कर आने लगता है । तो देखता है उनके रास्ते में हुरिया खड़ी थी।

हुरिया: क्या हुआ?

देवरानी और बलदेव कुछ न बोल कर चुप चाप महल से बाहर निकल कर अपने घोड़े पर सवार हो कर चले जाते हैं।

देवराज: सुल्तान ने तो नहीं सुना ये सब?



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हुरिया: वह सो रहे हैं और शमशेरा शिकार पर गया है तुम्हें और उन्हें इस तरह नहीं करना चाहिए था।

देवराज शर्म के मारे अपना सर पकड़ के बैठ जाता है।

देवराज: और क्या करता मल्लिका ए जहाँ! ऐसे अधर्मियों को शाबाशी देता? इन्हें मेरा नाक काट दी ।

हुरिया: अरे तुम टूटो मत देवराज जी!

देवराज को वहीँ छोड़ कर हुरिया बाहर आ जाती है।


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हुरिया: (मन में) क्या करु देवरानी तो बात भी कर रही पर वह मुसीबत में है कैसे उनकी मदद करु?

बलदेव घोड़ा तेजी से भगाते हुए पारस से निकल रहा था।

बलदेव: माँ तुम चुप हो जाओ रोने से कुछ नहीं होगा और ये भूल जाओ कि हमारी कोई मदद करेगा या हमें शरण देगा।

देवरानी: तुमने ठीक कहा बलदेव अब हमें खुद ही लड़ना होगा।

बलदेव: ये हुई ना बात । वैसे भी मैं हूँ ना तुम्हारे साथ!

देवरानी: मुझे कुछ और नहीं चाहिए. बस आप हमेशा मुझसे ऐसे ही प्रेम करते रहना ।

बलदेव: देवरानी अब हमें घटराष्ट्र में ही जगह बनानी होगी और वैसे भी तुम्हारा भी तो सपना था महारानी बनने का।

देवरानी: हाँ! लेकिन क्या ये मुमकिन है?

बलदेव: सब मुमकिन है मेरी जान!

देवरानी मुस्कुरा देती है और दोनों तेजी से पारस से निकल रहे थे।


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तभी सामने से एक रस्सी बलदेव की ओर आती है जो एक फंदा था, उसे देखते ही बलदेव अपना सर हटा कर बचता है और देवरानी पीछे मुड़ कर देखती है तो कुछ घुड़सावर उनका पीछे कर रहे थे।

वही जंगल में शमशेरा शिकार कर रहा था और वह देखता है कि कुछ घुड़सावर किसी का पीछा कर रहे है। शमशेरा ने अभी जंगल में अपने घोड़े को दूर बाँधा हुआ था।

शमशेरा: देखु तो कौन है ये लोग?

शमशेरा अपने घोड़े की ओर जाता है।


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इधर बलदेव के ऊपर फिर से दोनों तरफ से घुड़सावर रस्सी फेंकते हैं और बलदेव को कुछ देर में रस्सी से लपेट लिया जाता है। फिर वह घुड़सवार बलदेव को रस्सी से खींच कर घोड़े से गिरा देते हैं।

बलदेव; देवरानी तुम सुरक्षित स्थान पर चली जाओ मेरी चिंता न करो।

देवरानी घोड़े को भगाने लगती है और कुछ दूर भगाते हुए वह पीछे मुड़कर देखती है । अब घुड़सावर नहीं थे तभी वह देखती है उसके सामने अपने हाथों में तलवार के लिए कुछ नकाबपोश खड़े थे।

"ए उतरो घोड़े से और चुप चाप हमारे साथ चलो । चलाकी करने की कोशिश की तो बलदेव का बुरा हाल कर देंगे हम। वह अब हमारे चुंगल में हैं।"


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"एक मर्द को तुम सब ने मिल के धोखे से पकड़ा है । ध्यान रखना बलदेव शेर है। कहीं कुछ उल्टा ना पड़ जाये।"

देवरानी ये कह कर घोड़े से उतरती है ।

एक सैनिक देवरानी का हाथ पकड़ता है ।

देवरानी: मेरा हाथ मत छूना एक राजपूतनी को छूने की कीमत जानता हो ना?

वो नकाब पॉश जो देवरानी को बाँधने आया था पीछे हट जाता है।

देवरानी: चलो मैं तुम के साथ जाने को तैयार हूँ, बलदेव मेरी जान । है वह तुम्हारे साथ है उसके लिए मैं भी खुशी-खुशी मर सकती हूँ।

तभी कुछ और सैनिक और नकाबपोश वहा पर बलदेव को चारो ओर से मोटी तीरस्सी से जकड़े ले आते हैं। एक सैनिक उसको अपने साथ घोड़े पर बैठा लेता है।

सैनिक: ठीक है हम तुम्हें नहीं छूयेगे। चलो आ जाऔ घोड़े पे।

देवरानी: मैं तुझ जैसा तुच्छ के साथ सात कर घोड़े पर नहीं बैठूंगी । तुमने अपनी सूरत देखी है आयने में!

ये सुन कर अन्य सैनिक भी हंसने लगते हैं।


देवरानी: मुझे एक घोड़ा दो।

देवरानी को एक घोड़ा दिया जाता है और वह सब चल देते हैं।



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इधर शमशेरा अपने घोड़े के पास पहुँचता है और जब तक वह इनके पास आता है ये लोग वहाँ से निकल जाते हैं।

शमशेरा: ये लोग तो बहुत जल्दी गायब हो गए । कौन थे ये लोग?

शमशेरा अपना घोड़ा पारस की ओर घुमा कर अपने महल की तरफ जाता है।

शमशेरा: सलाम अम्मी!

हुरिया: सलाम बेटा, बहुत देर तक आने में, जंगल में इतने अँधेरे में शिकार मत किया करो। मुझे तुम्हारे लिए डर लगा रहता है।


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शमशेरा: अम्मी जान ऐसी कोई चीज ही नहीं बनी जो शमशेरा को नुक्सान पहुँचा दे।

हुरिया: हाँ बड़ी बाते ना करो। जाओ मुंह हाथ धो लो मेरे लिए तुम्हारे लिए कबाब बनवाए हैं।

शमशेरा: आज तो मजा आएगा!

शमशेरा: मां आज जंगल के रास्ते कुछ लोगों को देखा जो किसी का पीछा कर रहे थे और वह पहनावे से पारसी नहीं लग रहे थे ।


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हुरिया: (मन में) कही वह बलदेव या देवरानी तो नहीं और उनके दुश्मन उनका पीछा करते हुए यहाँ तक तो नहीं आ गए, पर शमशेरा को कैसे बताउन, कि वह दोनों आपस में प्यार करते हैं। नहीं। नहीं मैं ।देवराज से बात करती हूँ।

शमशेरा माँ को निहार रहा था।

शमशेरा: कितनी ख़ूबसूरत हो ।


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हुरिया होश में आते हुए चौंक कर कहती है ।

हुरिया: क्या शमशेरा?

शमशेरा: वो माँ! मैं ये नये कालीन की बात कर रहा था।

हुरिया: अच्छा बेटा और मुस्कुरा कर बावर्ची खाने की तरफ जाने लगती है।

शमशेरा उसे खा जाने वाली नज़र से देख रहा था और उसकी मटकती हुई गांड हिजाब के ऊपर से कमाल ढा रही थी ।

घटराष्ट्र



GHAT
सेनापति: महाराज अब तक हमारे सैनिक उनका पीछा करते हुए पारस की सीमा तक पहुँच गए होंगे ।

राजपाल: इन अधर्मियो की मदद देवराज कभी नहीं करेगा। वह दोनों ये सोच कर पारस गए है कि जा कर पारस में बस जाएंगे । पर ऐसा होगा नहीं! हाहाहा!

सेनापति: हाँ हो सकता है।

राजपाल: मुझे हंसी आती है और क्रोध भी आ रहा है। भला किसी व्यक्ति के पास उसका भांजा जाए और ये कहे कि मुझे अपनी माँ चाहिए, मैं उसे भगा के ले आया हूँ। तो क्या वह व्यक्ति अपने भांजे और बहन का साथ देंगा?

सेनापति: (मन में मैं) येमहाराज पागल तो नहीं हो गए है, गुस्सा हो रहा है और हस रहा है । समझ नहीं आ रहा है। जब से इसकी पत्नी भागी है साला पागल हो गया है।


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राजपाल: बोलो सेनापति?

राजपाल मदीरा पीते हुए पूछता है।

सेनापति: नहीं महाराज कोई भी व्यक्ति अपनी बहन और भांजे की जोड़ी को सहमती नहीं दे सकता।

राजपाल: हम उन दोनों की चमड़ी उधेड़ देंगे। बस वह एक बार हमारे हाथ लग जायें।

सेनापति: हमारे सैनिक उन्हें जरूर पकड़ लेंगे। वह दिन रात काम कर रहे हैं। आप सो जाएँ अब रात हो गई है। मैं भी जाता हूँ।

सेनापति राजपाल को उसके कक्ष में छोड़ कर बाहर जाने लगता है। तभी रानी श्रुष्टि अपने कक्ष का द्वार खोल कर बाहर आती है।


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सोमनाथ: अरे इतनी रात में कहा जा रही महारानी?

शुरष्टि: तुमसे मतलब और मैं अपने घर में हूँ । अपने महल में हूँ। बाहर नहीं जा रही । अभी तुम बाहर म जाओ. अभी!



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सोमनाथ: नहीं, इतनी बन ठन कर निकली हो, महाराज के पास तो नहीं...!

और सोमनाथ शुरष्टि को आँख मारता है।

शुरष्टि: कमीने तुम्हे अपनी नीच जाति की नीच हरकत दिखा ही दी।



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सोमनाथ को गुस्सा आजाता है और वह रानी श्रुष्टि को पकड़ कर उसके ही कमरे में घुस जाता है, फिर फटाक से दरवाजा बंद कर महारानी श्रुष्टि को दीवार से लगा कर उसके बदन से चिपक जाता है।

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शुरुष्टि: छोड मुझे कमीने कुत्ते!

सोमनाथ सब अनसुना क्या हुए श्रुष्टि की गर्दन पर चूमते हुए अपना-अपना हाथ घाघरा के ऊपर महारानी की गांड को मसल कर अपना लंड श्रुष्टि की चूत पर रगड़ने लगता हैं।

शुरुष्टि: कमीने छोड़ नहीं तो, तेरा सारा कलम करवा दूंगी।


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सोमनाथ झट से अपना धोती नीचे करता है और अपना लौड़ा अपने हाथ में ले कर हिलाता है और सृष्टि का एक हाथ पकड़ कर अपना लौड़ा उसके हाथ में देता है।

शुरुष्टि: नीच!



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सोमनाथ: ये नीच का लोहे जैसा लौड़ा है। ऐसे लौड़े से आज तक किसी राजा ने तुम्हें चोदा नहीं होगा।

ये बात सुन कर शुरुष्टि शर्मा जाती है।




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सोमनाथ आगे बढ़ कर ब्लाउज़ के ऊपर से उसके दूध पकड़ कर मसलते हुए कहता है ।



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"अब देखिये महारानी कैसे ये नीच का लौड़ा आपकी चूत में घुस कर आपको कितना मजा देता है।"

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शुरष्टि अपना हाथ लंड से थिरक कर एक झटके के साथ छोड़ देती है। सोमनाथ अपना हाथ नीचे ले जा कर उसके घाघरे को उठाता है फिर शुरष्टि के घाघरे को कमर तक उठा के घाघरे के कोने को अपने मुंह में दांत से पकड़ लेता है और अपने दोनों हाथो से शुरष्टि को उठाता है अपने लौड़े की तरफ खींच कर एक पैर को उठा कर अपने लंड को एक हाथ से पकड़ कर उसकी चूत पर लगाता है और फिर एक करारा धक्का मारता है।

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"उहह आआह नहीं सोमनाथ आह ओह!"

"ले मेरा लैंड महारानी बहुत गांड मटका-मटका के. अपने गेंदों को हिलाते हुए जा रही थी। अपने महाराजा के पास । ले पहले मेरा लैंड तो ले-ले रानी!"

"कुत्ते आराम से कर! मैं महारानी हूँ कोई वैश्या नहीं ।"

सोमनाथ खड़े-खड़े रानी को पेलने लगता है।


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"हाआआआआ मैं मर गयी!"

"ये ले मेरी महारानी लोहार का लंड!"

सोमनाथ अब धक्के पर धक्के लगा रहा था।


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पूरे कक्ष में "फच फच" की आवाज गूंज रही थी। अब तक रानी श्रुष्टि की चूत भी पानी छोड़ने लगी थी और अब सोमनाथ श्रुष्टि के ब्लाउज को ऊपर कर उसकी कमर को अपने हाथो में जोर से दबाता है।

"आहहहा धीरे!"

सोमनाथ अब खड़े-खड़े 48 वर्ष की भारी महिला जो सिर्फ 5.5 की थी। उसे अपने लंड पर टांग कर दरवाजे के पीछे ही पेले जा रहा था।

पहले कुछ देर श्रुष्टि की आखों में आंसू आते हैं और फिर वह अपना भार पूरा सोमनाथ के ऊपर दे कर अपनी आंखे बंद कर झटके सहने लगती है।



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"उह आआह!"




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"उह ओह आआआह !"

"फच्च फच्च!"

" आहहह अह्ह्ह ओह्ह्ह!"


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सोमनाथ: ये लीजिए महारानी मेरा लोहे का लंड!

कुछ देर पेलने के बाद सोमनाथ झड़ने वाला था।

सोमनाथ: अरे! रानी! तुम तो अब विरोध भी नहीं कर रही हो । लंड लेने में मजा आ रहा है महारानी?


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शुरष्टि सीधी होती है और सोमनाथ शुरष्टि के होठों को अपने होठों में भर कर चूस कर, दो तीन तगड़े झटके मार के अपना वीर्य महारानी शुरष्टि के चूत में छोड़ देता है।
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"आआह महारानी! चूस लो अपने सेनापति के लौड़े का पानी।"
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"आआह सेनापति सोमनाथ! तुम ओह!"

दोनों एक साथ झड़ते हैं।

सोमनाथ अपना लौड़ा निकाल कर अपनी धोती पहनता है।

सोमनाथ: महारानी अब आप जा सकती हैं महाराज राजपाल के पास!

सृष्टि अपना ब्लाउज पहनती है और अपने पलंग के पास जा कर एक कपड़ा उठा कर अपना घाघरा उठा कर, चूत पर रख, वीर्य को साफ कर देती है।


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"सोमनाथ! तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर के सही नहीं कर रहे हो!"

"महारानी अब झूठ ना कहो, अभी तुम कैसे मस्ती में चुद रही थी और अब ये नाटक नहीं करो!"



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इस बात का सृष्टि के पास कोई जवाब नहीं था। फिर सोमनाथ अपना मुंह पूँछ कर बाहर निकलता है। तो देखता है की दोनों दरबान, जो महल के मुख्य द्वार पर पहरेदारी करते हैं, बैठ कर आपस में बात कर रहे थे।

सैनिक: अरे यार हमारे राज्य में ये पहली घटना हुई है जिसमे एक माँ बेटा आपस में प्रेम करते हो।

दूसरा सैनिक: हाँ भाई ये तो सोच से परे है अपनी माँ से एक बेटा कैसा प्रेम कर सकता है और माँ भी अपने बेटे को कैसे एक प्रेमी के रूप में स्वीकार कर सकती है। ये बलदेव ने तो बहुत मजे किये होंगे रानी देवरानी के साथ।

सैनिक: इसलिये तो आज कल ज्यादा ही खिल रही थी, रानी देवरानी और मुझे लगता है ये दोनों पारस भी अपनी प्यास बुझाने ही गए थे। पूरे राष्ट्र में राज परिवार की थू-थू हो रही है।

ये सब सुन रहा सोमनाथ उनसे कड़क आवाज में पूछता है ।

"क्या चल रहा ये सब?"

दोनों सैनिक खड़े हो जाते हैं।

सैनिक: जी सेनापति जी!

सेनापति: तुम दोनों को यहाँ पर काम करने के लिए रखा गया है के गप्पे मारने के लिए?

सैनिक: हमें क्षमा कर दीजिये!

सेनापति: ठीक है खड़े हो महल की निगरानी करो।

सोमनाथ अपने सेनागृह, जो महल के आगे है, वहा अपने कक्ष में जा कर सो जाता है, वह सृष्टि को चोद कर थक चुका था और उसे जल्द ही नींद आजाती है।

सुबह होती है और घटराष्ट्र में हंगामा हो रहा था। सेनापति की नींद खुलती है और वह बाहर आकर देखता है।


HORSE-DEV

कुछ सैनिक बलदेव को रस्सी से बाँधे हुए घोड़े पर लादे ला रहे थे और साथ ही देवरानी एक अन्य घोड़े पर बैठी थी।

सोमनाथ ये देख मस्कुरा देता है ।

"शाबाश सैनिको..."

जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 81

प्रेमियों का दुश्मन राजा

**घाटराष्ट्र**

GHAT2

कुछ सैनिक बलदेव को रस्सी से बाँधे हुए घोड़े पर लादे ला रहे थे और साथ ही देवरानी एक अन्य घोड़े पर बैठी थी।

DEV-HORSE

सोमनाथ ये देख मस्कुरा देता है।

सोमनाथ: शाबाश सैनिको!

सैनिक घोड़े पर बंधे बलदेव को नीचे उतारता है।


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सोमनाथ: कोई जाकर महाराज को ये समाचार दे दो!

फिर सोमनाथ मुस्कुराते हुए बलदेव को देखता है।

सोमनाथ: (मन में) ये तो मेरे से भी कमीना निकला अपनी माँ को फंसा कर ले भागा था पर हमारे चुंगल से बलदेव कहाँ तक बच पाओगे?


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सैनिक: सेनापति जी बलदेव की रस्सी खोल दे क्या?

सोमनाथ: पागल हो गए हो क्या तुम जानते नहीं, वह बलदेव सिंह है, अगर उसके हाथ खुल गए तो तुम सब बच नहीं पाओगे!

देवरानी अपने घोड़े से उतर कर अपने घूंघट को खींच कर अपना मुंह पूरा ढक लेती है।



GOGHT

सोमनाथ: (मन में मैं) साली मुंह ढक कर बड़ी देवी बनने का नाटक कर रही है।

सोमनाथ: तुमने सिर्फ बलदेव को हे क्यू बाँधा है सैनिको!

सैनिक: महाराज वह हमें छूने नहीं दें रही थी, तो ऐसे में हम इन्हे बाँधते कैसे?

देवरानी: सेनापति...मत भूलो के मैं भी अब रानी हूँ और तुम बलदेव को युवराज न कह कर गलती कर रहे हो!


देवरानी अपने पल्लू को हल्का-सा उठा कर हाथ से पल्लू पकड़ती है।



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महल के अंदर सैनिक दौड़ कर जाता है।

राजपाल: अरे तुम इतने सारे सैनिक महल में भागे क्यू आ रहे हो?

सैनिक: 'वो महाराज वह युवराज बलदेव!'

राजपाल अपनी आंखे बड़ी करते हैं।



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राजपाल: क्या तुम सच कह रहे हो, क्या वह दोनों पकड़े गए?

सैनिक: जी महाराज!

राजपाल अपने गले में एक मोती की हार को उतार कर उस सैनिक को देता है।

राजपाल: ये रहा तेरा इनाम।

राजपाल जल्दीबाजी में महल के बाहर आता है। जहाँ सेनापति और सेना के बीचो बीच बंधा हुआ बलदेव घुटनो के बल बैठा हुआ था।


BAL-TIED

बलदेव अपना सर झुकाए बैठा था, उसके पूरे शरीर पर मोटी रस्सी के निशान पड़ गए थे।

बलदेव: पानी!

देवरानी: कोई पानी लाओ! मेरे जिगर के लिये पानी लाओ मेरे लाल के लिये पानी लाओ!

सैनिक: ले आता हू अभी।

तभी राजपाल आ जाता है।

राजपाल: रुक जाओ!

सब आवाज़ की तरफ नज़र घूमते है और राजपाल अपनी आँखों को बड़ी कर गुस्से में कहता है ।

राजपाल: पानी तो इस कुत्ते को मैं पिलाऊंगा।


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देवरानी: तुम सब की मानवता कहा मर गई? क्या यही धर्म सीखा है तुम लोगों ने?

ये सुन कर के बलदेव या देवरानी पकड़े गए हैं, धीरे-धीरे लोग इकठा हो जाते हैं ।

देवरानी से देखा नहीं जाता है, वह पानी लाने के लिए भागती है।

राजपाल: क्या बलदेव को सीधा कर के बाँध दो और ये या अधर्मी देवरानी को खुला क्यू छोड़ा है?

इस कुतिया को मैं देखता हूँ!

सेनापति: महाराज इन्हे सैनिको ने हमारे डर के मारे नहीं बाँधा!

राजपाल: क्यू री देवरानी अपने पल्लू से मुंह ढक के अब क्या साबित करना चाहती हो?

देवरानी: सुनो सब कान खोल सुन लो । तुम सब कायर हो। मैं चाहती तो तुम्हारे सैनिकों का खात्मा कर देती लेकिन मुझे अपने बलदेव पर पूरा भरोसा है। दम है तो उससे मुकाबला करो...और मैं अपने पल्लू से मुंह ढक कर ये साबित कर रही हूँ कि मैंने मजबूरन कोई कदम उठाया है पर अभी भी तुझ से ज्यादा शर्म है मेरे अंदर।

राजपाल: बदतमीज़ अधर्मी!

देवरानी: प्रजाजनों क्या जो अपनी पत्नी को दूसरे के बिस्तर पर भेजन चाहता है, वह क्या धार्मिक होता है?



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वहा पर चारो ओर खड़े लोग ये सुन कर चौंक जाते हैं और सबका मन उदास हो जाता है।

देवरानी: घटराष्ट्र की प्रजा आप लोग एक बार सोचना जरूर, जो स्त्री अपने मान मर्यादा का इतना ख्याल रखती है, क्या वह ऐसा कदम उठा सकती है। तो शायद तुम सबको उत्तर मिल जाए।

देवरानी की बात सुन पूरी प्रजा में हाहाकार मच जाता है । सब आपस में बात करने लगते हैं।

'ये तो ठीक कह रही है, इसका मुंह हमने कभी नहीं देखा, इसके साथ जरूर कुछ गलत हुआ है।'

देवरानी: प्रजा जनो! सिर्फ एक बात समझ लो! ये राजाओ से एक पत्नी भी संभलती नहीं है तो ये एक से ज्यादा विवाह क्यों करते है?


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हंगामा और शोर सुन अंदर से जीविका और शुरुषटी भी महल से बाहर आ जाती है।

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राजपाल देखता है कि लोग देवरानी की बात से सहमत दिख रहे हैं।

राजपाल: गौर से सुन लो सब! मैंने बलदेव को पहले ही फांसी की सजा सुना दी है और कल सूर्य उदय से पहले इसको फांसी दी जाएगी।

देवरानी: फांसी मुझे भी दो, सिर्फ बलदेव को ही क्यू?

राजपाल: हसते हुये कहता है।


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" तुझे तो जीवन भर तड़पा-तड़पा के मारुंगा और कान खोल कर सुन लो सब, हम देवरानी को आजीवन करवास की सजा सुनाते हैं ।

देवरानी: नामर्द हो तुम राजपाल!

राजपाल गुस्से से लाल हो जाता है और देवरानी को पकड़ कर खींचते हुए महल में ले जाने लगता है।

राजपाल: चल कुतिया तेरी गर्मी निकलता हूँ।

महल के द्वार पर खडी राजमाता जीविका सब कुछ देख रही थी । राजपाल अंदर देवरानी को लाकर गुस्से में कहता है।



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राजपाल: बहुत गर्मी थी ना तेरे में । सब निकलता हूँ आज।

देवरानी: राजपाल! तुम से बस यही उम्मीद थी ।

राजपाल गुस्से से लाल हो जाता है और अपना हाथ देवरानी के गले में डाल कर उसका गला दबा कर पकड़ लेता है।

देवरानी: आह छोड दो मुझे!


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जीविका अंदर आती है।

जीविका: राजपाल बस करो!

राजपाल: क्या हुआ मां?

जीविका: तुम एक राजपूत हो । स्त्री को यू पीडा देते हो, कैसे राजा हो तुम?

जीविका की बात सुन कर राजपाल अपना हाथ देवरानी की गर्दन से हटाता है।

राजपाल: माँ इसने जो गलती की है उसके लिए ये सजा कुछ भी नहीं है ।

जीविका: मैं समझती हूँ, पर तुमने इन्हें सजा सुना दी है, इस अधर्मी को मार कर अपना हाथ गंदा न करो। तुम शायद नहीं जानते इसने तुम पर जो आरोप लगाए हैं उनसे प्रजा में क्या संदेश जाएगा?

राजपाल झट से एक रस्सी निकाल कर देवरानी को बाँध देता है और जीविका के साथ बाहर आ जाता है।


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बाहर देखता है कि कमला पानी लिए बलदेव के पास खड़ी थी या उसे पानी पिला रही थी।

राजपाल जैसे वह कमला को रोकने के लिए जाता है तो जीविका उसके हाथ से इशारा करती है। वह रुक जाता है।

सेनापति अब बलदेव के दोनों हाथों को बाँध उसे खड़ा कर देता है।

राजपाल: क्यू प्रेमी बलदेव बहुत प्रेम पत्र लिखते थे। क्या हुआ प्रेम का भूत निकल गया या नहीं?

बलदेव पसीना-पसीना था और अपना सर उठा के घूर कर राजपाल को देखता है ।

राजपाल: सेनापति कोड़ा लाऔ!

राजपाल: अभी उतार देते हैं इसका प्रेम का भूत!

राजपाल के हाथ में कोड़ा आते ही बलदेव की नंगे पीठ पर राजपाल कोड़े की बारिश कर देता है।


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"चटक" चटाक! "

की आवाज़ फ़िज़ा में गूंज रही थी।

बलदेव: आह!

अपनी आखे बंद कर अपने पिता राजपाल के हर कोड़े की मार बर्दाश्त कर रहा था।

राजपाल: माफ़ी मांग लो! मैं तुम्हे मारना छोड़ दूंगा।

कमला से देखा नहीं जाता है।


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कमला: माफ़ी फी मांग लो, युवराज बलदेव!

बलदेव शेर की तरह हुंकार मारता है। उसके जिस्म पर हर जगह लाल निशान पड़ चुके थे ।

बलदेव: कमला माफ़ी क्यू मांगू! मैने कोई गलती नहीं की है, प्रेम किया है।

राजपाल: ये ले!

चटाक! "

कमला: माफ़ी मांग लो कुमार! शायद महाराज आपकी जान बख्श दे!

और कमला रोने लगती है।

राजपाल: हा माफ़ी मांगो!

बलदेव: कमला मैंने अय्याशी नहीं, देवरानी से प्रेम किया है!

राजपाल: तेरा इतना दुःसाहस! ये ले!


"चटाक"

बलदेव: मैं आपसे उस बात का क्षमा नहीं मांग सकता जिसमें मैंने कुछ गलत नहीं किया है ।

कुछ देर कोड़े मारने के बाद राजपाल थक जाता है।

राजपाल: सेनापति इसे ले जाओ और कारागार में डाल दो! हमने इसके अपराध के लिए इसे मृत्युदंड दिया है। कल की फांसी की तयारी की जाए!

ये सुन कर पूरा घटराष्ट्र हिल जाता है, क्यू के घटराष्ट्र का एकलौता राजकुमार, जो आगे जा कर घटराष्ट्र को संभालता, वह आज फांसी के लिए बंधा हुआ खड़ा था।


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श्रुष्टि खड़ी हुई ये सब देख कर खूब मजे ले रही थी।

शुरुष्टि: ये दृश्य देख के मज़ा तो बहुत आया ये सोचते हुए शुरुष्टि हल्का-सा मुस्कुराती है।

बलदेव को सैनिक सेनागृह के पास कारागार में ले जा कर बंद करते हैं और फांसी की तैयारी करते हैं।

राजपाल आकर अपने कक्ष में बैठ कर सोचने लगता है कि कैसे उसके जीवन में ये सब हुआ।

तभी सृष्टि वहाँ आ जाती है और उसके निर्णय को सही बता कर राजपाल को स समझाती है।

**पारस**



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हुरिया परेशान थी और अपने बेटे को नहीं बता कर वह इस मसले पर देवराज से बात करने का फैसला करती है।


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हुरिया अपनी दासी से कह कर देवराज को बुलावाती है।

देवराज: जी मल्लिका ई जहाँ आपने याद किया!

हुरिया: आइये देवराज जी!


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देवराज: कहिये!

हुरिया: आपसे एक गुजारिश थी।

देवराज: ऐसी क्या बात है मल्लिका, जिसके लिए आधे जहाँ की मालकिन को हमसे गुजारिश करनी पड़े!

हुरिया: देखिए देवराज जी मुझे नहीं पता कि आप उस रे दिन के बाद देवरानी को देखना चाहते हैं या नहीं और मुझे लगता है कोई भी भाई अपनी बहन की ऐसी हरकत पर ऐसा ही करेगा।

ये बात सुन कर देवराज शर्म से अपना सर नीचे झुका लेता है।

देवराज: जी वह शायद दिमाग से पागल है।

हुरिया: जो भी है वह तो है आपकी बहन ही । शमशेरा कह रहा था कि उसने जंगल में कुछ लोगों को किसी का पीछा करते हुए देखा था और मुझे पूरा यकीन है कि उस दिन बलदेव और देवरानी पर ही हमला हुआ है और वह खतरे में है।

देवराज: वह मेरे लिए मर गई है।


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हुरिया: देवराज जी भले से वह आप के लिए मर गई है पर उसके गुनाहों की सजा उसकी जान तो नहीं है ।

देवराज चुप चाप खामोशी से सुनता रहता है।

हुरिया: उसकी जान चली जाएगी तो क्या हम सबको अच्छा लगेगा...मैं चाहती हूँ कि आप सुल्तान के साथ जाएँ और उसकी जान की हिफाजत करे।

देवराज: मल्लिका जहाँ ये आप कह रही है । जिन्हे पूरे जहाँ में मजहबी और हर गुनाह हर पाप से महफूज स्त्री मना जाता है । आप तो उपदेश देती हो सबको । तो क्या जो देवरानी ने किया वह सही था?

हुरिया: मैं उनका हरगिज़ साथ नहीं दे रही हूँ, जो उन्होंने किया है वह गलत है पर उसकी जान लेने वाले हम कौन होते हैं। बेशक़ वह दोनों जहन्नम की आग में जलेंगे पर इसका फैसला हम नहीं खुदा करेंगे।

देवराज: ठीक है तो आप क्या चाहती हैं?


sultan

तभी सामने से सुल्तान मीर वाहिद अंदर आते हैं।

सुल्तान: आपने बुलाया मल्लिका ए जहाँ और हम चले आएँ।

हुरिया मस्कुराते हुए!

"आइए मेरे सरताज़, मेरे सुल्तान !"

सुलतान: क्या बात चल रही है?

हुरिया: सुल्तान बलदेव और देवरानी खतरे में है और मुझे लगता है कि आपको कुबेरी का खजाना दिलवाने में बलदेव ही मदद कर सकता है।

सुल्तान: हम्म सही कह रही हो, कही वह दिल्ली के बादशाह शाहजेब ना हम से पहले उस खजाने पर हाथ ना मार ले!

हुरिया: जहाँ तक मैंने सुना है । शाहजेब घाटराष्ट्र की सीमा तक पहुँच गया है।

सुल्तान मस्कुराते हुए कहता है।

"आपको बहुत खबर होने लगी है दुनिया की, अब आपने जासूसी भी शुरू कर दी है क्या मोहतरमा?"

हुरिया: जी नहीं सुल्तान! (मुस्कुरा के) जिसका बेटा शमशेरा जैसा उम्दा जासूस हो, उसे ये बात जानने के लिए जासूसी नहीं करनी पड़ती।

सुल्तान: आप तो बूत बने खड़े हैं, देवराज जी आपका क्या कहना है?

देवराज: वो...!

हुरिया: सुल्तान वह तैयार है।

सुल्तान: तो फिर हम आज ही निकलेंगे कल सुबह तक हम घटराष्ट्र होंगे!

देवराज: अवश्य सुल्तान शमशेरा आजाये फ़िर आप कूच करे!

सुल्तान: अरे मेरा बेटा कभी जंग के लिए ना नहीं कहेगा> हम चले भी गए तो वह ये सुनते ही की उसके अब्बू जंग पर गए हैं वह भी आएगा ही ।

हुरिया: वह भी आपकी ही पैदाइश है। जिंदगी भर आपने जंग लड़ी है और वह भी यहीं करेगा।

देवराज: ठीक है सुल्तान ठीक है मल्लिका! इजाज़त चाहता हूँ।

देवराज सुलतान और मलिका को सलाम कर घटराष्ट्र निकलने की तैय्यारी करने जाता है ।

कुछ देर में शमशेरा भी आ जाता है और वह इस बात से खुश हो जाता है कि वह जंग पर जा रहा है।

कुछ देर में सेना को इकट्ठा करने के बाद सुल्तान शमशेरा और देवराज इकट्ठे होते हैं।

सुलतान: हमारी फ़ौज की तादाद क्या है?



DEVRAJ
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देवराज: हम पचास हजार (50, 000) सैनिको के साथ आक्रमण करेंगे।

सुल्तान: हम्म कोई कमी हो तो बताएँ, हम अरब से बुला लेंगे।


ARMY2

देवराज: नहीं सुल्तान हमारे कुछ सैनिक देवगढ़ में भी जुड़ेंगे, यहाँ से हम देवगढ़ होते हुए जाएंगे।

शमशेरा: हमें किसी भी हाल में कुबेरी को लूटना है। चाहे इसके लिए हमें लाखो की फौज ले जानी पड़े।

देवराज: हाँ युवराज हम फ़ौज को दो टुकड़ों में बाटेंगे । फ़ौज का एक टुकड़ा घाटराष्ट्र पर हमला करेगा और फ़ौज की दूसरी टुकड़ी कुबेरी पर, एक साथ हमले के कारण से ये दोनों एक दूसरे को समर्थन करने लायक नहीं रहेंगे और कोई गठबंधन नहीं बन पाएगा और वह कोई षड्यंत्र कर हम से युद्ध नहीं जीत पाएंगे ।



SHAMSHERA

शमशेरा: वाह!

देवराज: जीत हमें तब मिलती है जब शत्रु षड्यंत्र करना छोड़ दे और उसका युद्ध लड़ने का हौसला पस्त हो जाए।

सुल्तान: तुम सही हो, बहुत एक काबिल सिपहसालार (यौद्धा) हो । राजा देवराज जी!

शमशेरा: पर अब्बू हम घटराष्ट्र पर हमला क्यू करें? और फिर दिल्ली के बादशाह शाहजेब घटराष्ट्र हमला करने वाला है वह सीमा तक पहुँच गया है।

देवराज और सुल्तान हसते है।

सुल्तान: बेटा तुमने जासुसी तो सीख ली है पर जंग लडना देवराज से सीखनी होगी ।

देवराज: युवराज शमशेरा हम घटराष्ट्र वासियों पर हमला नहीं करेंगे, उनके सैनिको और वहा पहले से मौजुद शाहजेब की सेना पर हमला करेंगे।

शमशेरा: ओह मैंने ये तो सोचा ही नहीं तो इसलिए हम दो टुकड़ियों में दो तरफ से हमला करेंगे।

सुल्तान: हाँ बेटा कुबेरी का खजाना मेरा ख्वाब है और मैं नहीं चाहता कोई तीसरा हमारी जंग का फ़ायदा उठा कर ये ख़ज़ाना लूट कर चले जाए।

तीनो दोपहर का खाना खा कर सैनिकों को जमा कर अपने घोड़े पर सवार हो जाते हैं।



H5

हुरिया: आप सब को खुदा सलामत रखे!

देवराज: हम जल्दी लौटेंगे!

शमशेरा: सलाम अम्मी जान अपना ख्याल रखे!

सुल्तान: जान बाकी रहेंगी तो फिर मिलेंगे मल्लिका!

हुरिया: खुदा करे मेरी उमर आपको लग जाए!

हुरिया: देवराज जी मेरी इल्तिजा है अपनी बहन से नर्मियत से पेश आये, उसने शादी के बाद बस दुख देखे है, शायद वह आपसे कभी नहीं कह पायी ।

सब घोड़ो को देवगढ़ की तरफ घुमाते हैं।

देवराज: चलो सैनिको!

एक सैनिक ज़ोर से पारस के झंडे को लहराते हुए नारा लगता है और सब धीरे-धीरे अपने घोड़े के साथ आगे बढ़ते हैं।


**घटराष्ट्र**


GHAT
शाम हो गई थी या कल सुबह बलदेव को फांसी देने जाने की तयारी हो रही थी, वही घाटराष्ट्र की सीमा पर सोमनाथ ने अच्छी खासी सेना पहरेदारी की रखी हुई थी जो रात भर सीमा पर रहती थी ।

घटराष्ट्र सीमा पर दो सैनिक टहल रहे थे।

सैनिक 1: भाई ये हमारी रातो की नींद हमने ख़राब की है पर ये बादशाह शाहजेब का कोई अता पता नहीं है ।


सैनिक2: मुझे नहीं लगता कि इतना बड़ा राजा हमारे राज्य पर हमला करेगा, खजाना तो कुबेरी में है। यहाँ क्या है?

सैनिक1: हाँ शायद तुम ठीक कहते हो हमारे राजा और युवराज तो माँ बेटा की प्रेम कहानी में अलग ही उलझे हुए हैं।

और दोनों हसने लगते है।

ये दोनों इस बात से अनजान थे की ठीक इनके पीछे रात के नधेरे में घाटराष्ट्र के पहाड़ो पर बादशाह शाहजेब अपनी सेना को ले कर खड़ा था।

शाहजेब: भाईयो हम घाटराष्ट्र की सीमा पर हैं और हम उस पहाड़ के सामने खड़े हैं जिसे पार कर हम घाटराष्ट्र को हरा पाएंगे, कई बादशाह इस पहाड़ को पार नहीं कर सके हैं?

सैनिक: हम करेंगे...हम करेंगे...!



ARMY1

शाहजेब: आप सब का जोश ए जज्बा को सलाम! दोस्तो हम 25000 हैं, हम घाटराष्ट्र को रौंद कर रख देंगे । सुना है राजा रतन यहीं हैं। हम उसे भी कुबेरी लेते हुए चलेंगे...तो चलो कल सुबह हम घाटराष्ट्र फतेह करें!

सभी सैनिक हुंकार भरते हैं।



ARMY
बादशाह शाहजेब इस बात से अनजान था कि राजा रतन वापस कुबरी चला गया है।

दिल्ली की बादशाह अपनी सेना के साथ पहाड़ पर चढ़ाई करने लगता है और सुबह सवेरे घटराष्ट्र पर हमला करने को तैयार था।

घटराष्ट्र के महल में सन्नाटा छाया हुआ था।

रात का भोजन बना कर कमला जाने लगती है पर उसका दिल नहीं मानता या वह वैध जी के यहाँ रुक जाती है।

जीविका एक थाली ले कर राजपाल के कक्ष में जाती है, जहाँ देवरानी बंधी हुए थी वह उसका हाथ पैर खोल कर उसको खाना देती है।

जीविका: ये ले खा ले!


SEMI3
देवरानी: रहने दीजिए माँ जी! मेरे बलदेव को कल सुबह फांसी है और मैं कैसे खा लू।

जीविका: फासी वह भी तेरे कारण, अगर तू समझदारी दीखाती तो ऐसी नौबत नहीं आती ।

देवरानी: समझदारी दिखाती तो कभी राजपाल जैसे व्यक्ति से विवाह नहीं करती । आप स्त्री हो कर नहीं समझती तो राजपाल क्या समझेगा!

तभी सृष्टि और राजपाल वहाँ आ जाते हैं।

शुरष्टि: इसको समझने से कोई फ़ायदा नहीं माँजी! ये चरित्रहीन हमारी बातों को, राज घराने की इज़्ज़त कभी नहीं समझ पाई।

राजपाल: माँ आप अपने कक्ष में जाओ!

राजपाल: सृष्टि आप भी जाओ आराम करो! सुबह से आप लोगों ने आराम नहीं किया है।

राजपाल जा कर कक्ष का दरवाजा बंद कर देता है।

राजपाल: देखो देवरानी मैं तुम्हें एक आखिरी मौका देता हूँ । अगर तुमने मेरी बात मान ली तो तुम्हारा बलदेव फांसी पर लटकने से बच जाएगा।



DEVRANI-TIED
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देवरानी: क्या चाहते हो तुम?

देवरानी थोड़ा सोच कर कहती है।

राजपाल: तुम्हें रतन को खुश करना पड़ेगा और क्षमा मांगनी पड़ेगी हम सब से, औरआज के बाद तुम बलदेव से जीवन भर बात नहीं करोगी।

देवरानी आव देखती है ना ताव और राजा राजपाल का गिरेबां पकड़ कर राजपाल के मुंह पर थूक देती है।

देवरानी: थू है तेरे जीवन पर राजपाल! कैसे पति हो अपनी पत्नी का सौदा करते हुए तुम्हे जरा भी शर्म नहीं आई । मैं रतन सिंह के पास जाने से मरना ज्यादा पसंद करूंगी।

राजपाल: जब अपने बेटे के साथ मुँह काला किया तब तुम शर्म नहीं आई?

देवरानी: बलदेव मेरा प्यार है, तुमने कब मुझे एक पत्नी का सम्मान या प्यार दिया राजा राजपाल? तुम्हें तो चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।

राजपाल: तुझमें इतनी गर्मी थी तो किसी और से निकालवा लेती। अभी तेरी गर्मी शांत करता हूँ।

राजपाल आगे बढ़कर देवरानी को दबोचने की कोशिश करते हैं।

देवरानी: मुझे छूना मत राजपाल!

राजपाल देवरानी के जाँघ पर हाथ रखता है।

देवरानी उसे धक्का देती है।

देवरानी: कमीने... कहा ना मुझे छूना मत। मुझ पर सिर्फ मेरे बलदेव का हक है...!

राजपाल गुस्से से उसका हाथ मरोड़ देता है ।

राजपाल: तेरी तो गर्मी ऐसी निकालूंगा की याद रखेगी बस सुबह बलदेव को फांसी हो जाए!

देवरानी: मैं जान दे दूंगी अगर किसी ने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की।

राजपाल फिर से देवरानी को उसी रस्सी से लपेट कर जोर से बाँधता है।

राजपाल: अब इधर बंधी बैठी रह तेरे प्रेमी की चमड़ी उधेड़ कर आता हू।

राजपाल महल से निकल कर आता है। रात में शांत महल में आज कुछ ज्यादा शांति थी पर पूरा घाटराष्ट्र आज सो नहीं पा रहा था।

राजपाल कारागार में जाता है जहाँ बलदेव बंधा हुआ था।

राजपाल सैनिक को आज्ञा देता है ।

"मेरा कोड़ा लाओ! आज इसे अहसास दिलाऊ की ऐसा अपराध करने का अंजाम क्या होता है?"

सैनिक राजपाल को कोड़ा ला कर देता है और चला जाता है कारागर में सिर्फ बलदेव और राजपाल थे ।कोडो की मार खा कर बलदेव के शरीर को थकन महसुस हुई और उसकी आँख आखिरी लग गयी थी ।

राजपाल एक कोड़ा सोते हुए बलदेव को मारता है।

बलदेव: आआआआह!

राजपाल: कमीने हम सब की नींद हराम कर तू सो रहा है।

राजपाल लगतार कोड़े बरसाने लगता है।

राजपाल: तेरी हिम्मत कैसी हुई ये कदम उठाने की?

बलदेव से अब रहा नहीं जाता है।

बलदेव: जब प्रेम होता है तो कोई घबराता नहीं है ।

राजपाल: कमीने मैने तुझे पैदा कर के बहुत बड़ी गलती कर दी ।

बलदेव: सही किया नहीं तो मैं मेरी प्यारी प्रेमिका देवरानी के जीवन कैसे ठीक कर पाता।

राजपाल: तुम्हारी ये हिम्मत!

राजपाल और तेजी से कोड़े बरसाने लगता है।

बलदेव: आआह हिम्मत की बात क्या बताऊ! देवरानी जैसी स्त्री को तुम छोड़ के, इधर उधर मुँह मारते हो। हाहाहा !

राजपाल और कोड़े बरसता है।

बलदेव: मार लो मुझे पर जो मैंने तुम्हारी पत्नी के साथ मजे किये है उन्हें ।क्या बताउ, वाह क्या माल है। रात भर मेरे गोद में सोती थी। आह! उसका वह गद्देदार जिस्म बिना वस्त्र के! वाह वह तो अप्सरा है।

राजपाल ये सुन और गुस्सा होता है और बलदेव को तेज-तेज कोड़े से मारता रहता हैं।

बलदेव: महाराज थक गए क्या और मारो...पर देवरानी के भारी मांसल शरीर को मसलने में जो मजा है वह किसी और में नहीं है। तुम्हारी पत्नी देवरानी भी सुबह तक मेरे गोद में ही बैठी रहती थी। अब क्या-क्या बताउ!

राजपाल बलदेव की बात सुन कर बुरी तरह शर्मा जाता है क्यूकी बलदेव था तो आख़िर उसका बेटा ही।

वो कोडा को फेंक देता है।

राजपाल: कर लिया कम्बख्त तुझे जो करना था, अब सुबह नरक में पहुँचें के लिए तैयार रहो।

बलदेव मुस्कुराता है।

उसके बाद राजपाल वापस महल आ जाता है ।

ऐसे में वह गहमागहमी में रात बीत रही थी और आने वाले सवेरे का सोच कर घटराष्ट्र के हर एक नागरिक का दिल दहला जा रहा था और घाटराष्ट्र आज पहली बार पूरी रात जाग रहा था।

जारी रहेगी
 
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घटराष्ट्र पर संकट

**घटराष्ट्र**

GHAT2

अंधेरा धीरे-धीरे छट रहा था और पहली बार घटराष्ट्र पर किसी का आकर्मण होने वाला था। जिस धरती पर आज तक कोई नहीं पहुँच पाया और जो राष्ट्र शांति का प्रतीक था वह आज संकट में था।

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बादशाह शाहजेब ने अपने सैनिकों के साथ पहाड़ पर चढ़ाई की और आधी रात को वह पहाड़ के चोटी पर चढ़ गया था । शाहजेब ने बड़ी चतुराई से अपने 25000 सैनिकों में से 15000 सैनिकों को अपने मंत्री के साथ कुबेरी रवाना कर दिया था ।

अभी पूरी तरह से अँधेरा छटा नहीं था और शाहजेब के सब सैनिक चुपचाप घटराष्ट्र की सीमा में प्रवेश कर चुके थे।



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शाहजेब: सब यहाँ ठहर जाओ। हम अब घटराष्ट्र देश की सीमा में ।हैं यहाँ से हमें समझ बुझ से आगे बढ़ना है, आज शाम तक हम इस राजपाल को सबक सिखा कर साथ में हमारे लस्कर जो कुबेरी पर हमला करने गयी है उसने भी कुबेरी पर फतेह कर ली होगी। फिर हम वहा जा कर कुबेरी को लूटेंगे! ...सब तैयार?

सैनिक: हम तैयार हैं जहांपनाह!

तभी सबका ध्यान एक पेड़ की ओर जाता है जिसकी डाली हिल रही थी जैसे ही शाहजेब उधर देखता है उसमें से एक सैनिक कूद कर भाग कर घोड़े पर बैठ जाता है।

शाहजेब: तीरो से छलनी कर दो उसे । वह घटराष्ट्र का जासूस है।



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तीरन्दाज़ अपने तीर की बौछार करते हैं, उस घुड़सावर को काई तीर उसके पीठ पर लगते हैं पर वह रुकता नहीं और महल की तरफ जाता रहता है।

शाहजेब: चलो ये जा कर खबर राजा राजपाल को पंहुचा देगा, के हम आएँ है। हाहाहाहा!

ये सब पहाड़ की चोटी पर पहुँच चुके शमशेरा और सुल्तान के साथ देवराज भी सुन रहे थे । बादशाह शाहजेब इस बात से अंजान था कि ठीक उसके पीछे सुल्तान मीर वाहिद पारस की सेना को साथ लिए खड़े हैं।

शमशेरा आहिस्ता से कहता है ।

शमशेरा: इश्ह्ह कोई आवाज़ नहीं करेगा, सब अपने घोड़ों को पीछे ले चलो बिना आवाज़ किये । हमारे दुश्मन हमारे नीचे है।

शाहजेब नीचे खड़ा अपने सैनिकों को बताता है कि घटराष्ट्र और कुबेरी को जीतना उसके लिए कितना अहम है । थोड़ी देर में सब घटराष्ट्र पर हमला करने के लिए तैयार हो जाते हैं ।

शाहजेब: फतेह हमारी है।

सब सैनिक: फतेह हमारी है।


ARMY
शाहजेब अपने 10, 000 सैनिकों को ले कर घटराष्ट्र के महल की ओर अपने सैनिकों के साथ जाने लगता है।

इधर अपनी सेना को रोके सुल्तान मीर वाहिद खड़े थे


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सुल्तान: हमसे एक भूल हो गई देवराज!

देवराज: क्या भूल सुल्तान! हम तो समय पर पहुँच गए हैं और हम जब चाहें आक्रमण कर सकते हैं।

सुल्तान, देवराज जी शायद आपने शाहजेब की फौज को नहीं देखा हमे खबर मिली थी कि वह 25000 की फौज ले कर आ रहे हैं पर ये तो उसका आधा भी नहीं था।

देवराज: आपने सही कहा सुल्तान इस बात पर मेरा ध्यान नहीं गया।

सुल्तान, देवराज जी ये बात साफ है बादशाह शाहजेब ने अपनी आधी से ज्यादा फौज को कुबेरी लूटने के लिए कुबेरी भेज दीया है।

देवराज: क्या?



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सुलतान: हा! देवराज!

शमशेरा: पर अब्बा हुजूर ऐसे में तो हम कुबेरी का खजाना खो देंगे, यहाँ का काम कर के जब तक हम कुबेरी पहुँचेगे वह जब तक कुबेरी को लूट के दिल्ली खजाना ले गए होंगे।

सुल्तान: हाँ, बेटा!

देवराज: घबराए नहीं सुल्तान, अब हमें दो फौज से नहीं चार फौजो से एक साथ समय लड़ना होगा।

सुल्तान: पर कैसे देवराज जी?

देवराज: सैनिको अब धीरे-धीरे नीचे उतरो...सुल्तान जी हम भी अपने आधे सैनिक कुबेरी भेज देंगे। जिस से बादशाह के लश्कर कुबेरी राज्य को लूट के भाग ना सके.

सुल्तान: पर वह तो निकल गए हैं, अब तक शाहजेब की फौज पीटीआई नहीं कहाँ तक पहुँच गयी होगी।

देवराज: सुल्तान हमारे पास उनकी फौज का मुकाबला दो गुना ज्यादा फ़ौज है तो भी अगर वह हम से पहले कुबेरी को लूट भी ले फिर तो भी हम उन्हें कुबरी से बाहर जाने नहीं देंगे।

सुल्तान: पर बलदेव और देवरानी का भी कुछ अता पता नहीं है, की वह कहाँ है? हूरिया ने कहा था कि शमशेरा ने उसक घुड़सवारों को उनका पीछे करते हुए देखा था ।

शमशेरा: मैंने देखा तो कुछ लोगों को एक घोड़े का पीछा करते हुए पर में ये नहीं देख पाया की वह कौन था, मुझे पक्का नहीं पता है कि वह बलदेव ही था?



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सुल्तान: हाँ बलदेव और बहन देवरानी पारस आये थे ।

शमशेरा: क्या? पर वह चले क्यू गए जब आये थे तो रुके क्यों नहीं?

देवराज: इसे छोडो युवराज। अभी हमें क्या करना है ये सोचते हैं।

देवराज अपनी बहन और भांजे का जिक्र सुन झन्ना जाता है।

देवराज: हममें से किसी को सेना के साथ कुबरी जाना होगा।

शमशेरा: मैं तो ये कहूंगा अब्बा हुजूर के आप राजा देवराज के साथ कुबेरी चले जाएँ क्यू के कुबेरी लूटना हमारे लिए ज्यादा जरूरी है।

सुल्तान: पर शहजादे आप अकेले कैसे सामना करेंगे शाहजेब का वह जंग जीतने ने के लिए भी हद तक जा सकता है।

शमशेरा: आप भरोसा रखिये फतेह हमारी ही होगी।

देवराज: ठीक कह रहे हो युवराज सुल्तान को हम अकेले ना तो घटराष्ट्र में रख सकते हैं ना अकेले वहा

ही भेज सकते हैं।

सुलतान: हाँ देवराज आज कल हमारी तबीयत खराब रहती है और उसके अलावा कभी-कभी भूलने भी लगा हूँ पर आज भी हमारी तलवार में धार वही है।

देवराज: जी सुलतान आप अब भी 100 के बराबर है। सुल्तान पर हम कोई खतरा नहीं ले सकते, आप हमारे साथ कुबेरी चलिए.

शमशेरा: आप लोग जाएँ और ये जंग मुझ पर छोड़ दीजिए हम दिल्ली के इस शाहजेब को संभाल लेंगे।

देवराज: सैनिको क्यू के बादशाह शाहजेब ने अपने आधे से ज्यादा लश्कर को कुबेरी भेज दिया है, इसलिए हम अपने आधे सैनिको को यहीं रखेंगे या आधे मेरे और सुल्तान के साथ कुबेरी जाएंगे।

कुछ देर में ही सैनिक बंट जाते हैं और सब अब तक पहाड़ से नीचे आ चुके थे।

देवराज: यहाँ की कमान शहजादे शमशेरा संभालेंगे, साथियो घबराना नहीं शाहजेब इस बार बच के नहीं जाना चाहिए.


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शमशेरा: देवराज जी आपका दुश्मन हमारा दुश्मन है। आप फिक्र ना करें बादशाह शाहजेब इस बार मेरे हाथो से बचेगा नहीं।

देवराज: ठीक है युवराज आप के भरोसे मैं अपना शत्रु छोड़ रहा हूँ।

सुल्तान और देवराज 25000 फौज ले कर कुबेरी की ओर चल देते हैं और शमशेरा अपने 25000 फौज के साथ वही रुक जाता है ।

शमशेरा: साथियो अभी हम हमला नहीं करेंगे।

सैनिक 1: क्यों शहजादे हमें इनके पीछे से जा कर इन्हे सबक सिखाना चाहिए ।

शमशेरा: अब ये जा रहे हैं और घटराष्ट्र के सैनिकों से लड़ेंगे और जैसे ही ये शाहजेब घटराष्ट्र में अपना झंडा लहराएंगे हम आक्रमण कर देंगे। सार्थियो सब लोग थोड़ा आराम कर लो!

सैनिक2: पर शहजादे सुल्तान ने तो कुछ और ही कहा था।

शमशेरा: उफ़! अब आराम करने का कह रहा है बादशाह का शहज़ादा तो ये भी मंजूर नहीं...सब अपने घोड़ों से उतर कर बैठ जाओ या खाओ पियो आराम करो।

सब सैनिक हसने लगते हैं और अपने घोड़े से उतर कर बैठ जाते हैं। कोई-कोई सैनिक लेट जाता है।

शमशेरा भी पास के एक पत्थर पर जा कर बैठ जाता है और सोचने लगता है।

शमशेरा: (मन में) अगर अम्मी की बात ठीक थी तो ये लोग कौन थे जो इनको पकड़ना चाहते थे और देवराज क्यू अपनी बहन के ससुराल पर हमला करने के लिए हमारे साथ नहीं आया और ना ही उसने कहा के उनके परिवार को नुक्सान ना किआ जाए और मेरे बलदेव कहने पर वह बात पलट को रहे थे...इसका मतलब है या तो वह लोग राज्य में नहीं हैं, या देवराज जी उनके खिलाफ हो गए हैं ।

ये सब सोचते हुए शमशेरा झट से उठता है।

शमशेरा: (मन में) चलो एक बार फिर से घटराष्ट्र की जासूसी की जाए ।

शमशेरा: ऐ इधर आओ

शमशेरा अपना मुकुट उतारता है

"सुनो मुझे पगड़ी बाँधने में मदद करो।"




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सैनिक: पर क्यू शहजादे आप जंग में है पगड़ी से हिफाजत नहीं हो पाएगी ।

शमशेरा: बड़े भोले हो और मुझे समझा हो...मैंने मुकुट इसलिए उतारा है ताकि मुझे कोई पहचान न पाए मैं घटराष्ट्र हो कर और ज्याजा ले कर आता हूँ।

सैनिक: पर आपका अकेला जाना खतरे से खाली नहीं होगा । शहजादे ये जसुसी का वक्त नहीं है आप मैदान ए जंग में हैं।

शमशेरा: शमशेरा को तलवार कोई छू ले ऐसा हो नहीं सकता।

शमशेरा अपना घोड़े पर बैठता है ।

शमशेरा: मेरे आने तक कोई हिलना नहीं, भले से पीछे हो जाना पर आगे नहीं आना ।

सैनिक मुँह देखते रहते हैं और शमशेरा घोड़ा दौड़ा के हवा से बाते करने लग जाता है।

सूर्य की पहली किरण खिल रही थी और रात भर के गमे महौल के बाद सुबह शांत थी, घटराष्ट्र में पूरी रात कोई भी सो नहीं सका था ।

सुबह राजा राजपाल महल से बाहर आता है तो देखता है सैनिक फांसी की तयारी कर रहे थे, । कुछ देर में पूरा घाटराष्ट्र धीरे-धीरे फांसी देने वाले स्थान पर इकट्ठा हो जाता है।

सेनापति: सैनिको जाओ बलदेव को ले आओ.

सैनिक जा कर बलदेव को ले आते हैं और फासी के तख्त पर खड़ा कर के बाँध देते हैं।


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महल से जीविका और सृष्टि आ जाती है । साथ ही साथ रात भर कमला जो वैध जी के यहाँ जाग रही थी वह भी रोते हुए आती है


पूरे समाज के सामने बलदेव को फांसी देने की तयारी चालू थी और सब के आंखो में आसु थे । जो घटराष्ट्र का भविष्य था, आज वह हमेशा के लिए खत्म होने वाला था।



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अंदर देवरानी जो रस्सी से बंधी थी, उसने अपना हाल रो-रो कर खराब कर लिया था । रोती हुई देवरानी रात भर अपने आखे बंद कर भगवान से प्रार्थना कर रही थी।



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देवरानी: (मन में) भगवान अगर आज मेरे बलदेव को कुछ हो जाएगा तो मेरा तुझ से विश्वास उठ जाएगा और मैं तेरा नाम अपने जीवन में कभी नहीं लुंगी, भगवान मेरे बलदेव को बचा ले, भले तू मेरी बली ले ले।

राजपाल के दोनों आखो की लाली बता रही थी कि वह आज अपने बेटे को फांसी पर चढ़ाने के लिए आतुर था।

सेनापति: महाराज अब सूर्य उदय होने वाला है...आपकी आज्ञा हो तो फांसी दी जाए.

राजपाल: हा...!

जैसा वह हाँ कहता है लोग हाहाकार मचा देते हैं और लोगों के शोर गुल में एक घोड़े के आने की आहट आती है और उस घोड़े पर से एक सैनिक गिरता है जिसके पूरे बदन पर तीर लगे हुए थे ।

सैनिक: महाराज...!

सेनापति और राजपाल दौड़ कर उस घायल सैनिक के पास जाते हैं ।

सेनापति: बोलो किसने तुम्हारे साथ ऐसा किया?

सैनिक: महाराज...वो दिल्ली का बादशाह शाहजेब घटराष्ट्र में घुस आया है और कभी भी हमला कर सकता है। ये कह कर सैनिक अपना दम तोड़ देता है।

राजपाल: सेनापति जल्दी सैनिकों को एकत्रित करो घटराष्ट्र खतरे में है।

सेनापति: सैनिको... घाटराष्ट्र में हमारे शत्रु दिल्ली के बादशाह शाहज़ेब कभी भी हमला कर सकते हैं... घाटराष्ट्र के लोग आप सब से अनुरोध है के आप सब हमारा सहयोग करे ।

जारी रहेगी
 
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