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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 90

शुभ विवाह!

शुरष्टि: चलिए सासु मां! देवरानी तुम जल्दी सो जाओ. फिर तुम्हारे उठने के बाद मैं तुम्हें तैयार करती हूँ।

श्रुष्टि जीविका को ले कर चली जाती है।


कमला: अब आप मत सोचिए कुछ, मेहंदी सुखने के बाद सो जाए. मैं भी जाती हूँ 4 बजे आउंगी फिर आपको तैयार करती हूँ।




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देवरानी बिस्तर पर पड़ जाती है।



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देवरानी लेट कर बलदेव के ख़याले में खो जाती है

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कमला चली गयी थी ।


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देवरानी अपनी आँखें खोले बिना महसूस कर सकती थी कि उसे नींद आ रही थी ।
वो बलदेव के बारे में सोच रही थी ।

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वो सोचने लगी अब आगे क्या क्या होने वाला है और बलदेव उसे कैसे प्यार करेगा।

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जो हुआ वो सब कमाल था ।



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भाग्य का पहिया आज कैसे घूम गया था ।

ये इतना मंत्रमुग्ध कर देने वाला था कि देवरानी अपनी पिछले दुखो के बारे में भूल गयी और आराम करने और आने वाले उन सुखद क्षणों को फिर से महसूस करना चाहती थी इसलिए उसका हाथ उसके स्तनों और गुप्तांगो पर चला गया ।
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देवरानी ने कल्पना की की बलदेव उसे चूम रहा है . फिर बलदेव ने देवरानी को बड़े प्यार से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया, लेटते ही उसक नज़र बलदेव के काले फंफनाते हुए बड़े कठोर और मूसल लंड पर गयी और उस कमरे में उस सुहाग की सेज पर आँखे बंद कर धीरे-धीरे लेटती गयी और जैसे-जैसे वो लेटती गयी बलदेव प्यार से उसे चूमते हुए देवरानी पर चढ़ गया "आह " की सिसकी के साथ दोनों लिपट गए और बलदेव का कठोर लंड चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। बलदेव का लन्ड देवरानी की प्यासी गीली और तंग चूत में घुस गया। एक प्यासी चूत फिर से मुसल लन्ड से भर गई। आखिर देवरानी की योनि खुलकर रिसने लगी और मेरे मुँह से एक हलकी सी सिसकारी निकल गयी।

फिर पता नहीं कब देवरानी ऐसे ही मीठे सपने देखती हुआ सो गयी ।





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शाम के 4 बज रहे थे बलदेव भी उठ कर तैयार हो रहा था कि देवरानी को भी कमला ने उठा दीया था । महल के बीचो बीच खाली जगह पर पंडित जी अपनी तैयारी में व्यस्थ थे।

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फिर वो स्नान करने गयी ।


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स्नान करने से पहले अपने सभी वस्त्र निकाल कर अपने बदन को देखने और सहलाने लगी ।

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कमला: जल्दी चलो महारानी हमारे पास तयारी के लिए केवल एक घंटा है।


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वो अपना एक एक अंग मल मल कर नहा रही थी ।

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आज देवरानी बहुत खुश थी ।





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इस दिन का इन्तजार वो पता नहीं कितने समय से कर रही थी ।


देवरानी: हम्म चलो।



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देवरानी कमला को ले जाने लगती है स्नान घर में तभी वह शुृष्टि आ जाती है।

शुरष्टि: मेरी बन्नो दुल्हन बनेगी तो गीत तो होगा ही।


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शुरष्टि: अरे ये क्या दुल्हन को क्या हम नहीं नहलायेंगे?



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सभी औरते अंदर आती है और मंगल गीत गाने लगती है।

" दुल्हन तोरा मरद बड़ा रसिया,
रात भर तोड़े है खटिया।
दुल्हन तोरा मरद जाने सब खेल,
ऐसा झटका मारे जैसे हो बेल।"



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कमला: महारानी तो दूध से भी गोरी लग रही है।

शुृष्टि: लगेगी क्यू ना? मेरे बेटे की पसंद जो है।

देवरानी फिर लज्जा जाती है।

देवरानी लज्जा कर अपनी आँख बंद कर लेती है,


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सभी औरते अंदर आती है और मंगल गीत गाने लगती है।

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देवरानी: धत्त!


शुरष्टि: पीछे देखो महारानी देवरानी!

देवरानी शुृष्टि के पीछे देखती है तो उसे औरतों का झुंड दिखाई देता है।


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देवरानी लज्जा कर अपना सर झुका लेती है।

शुरुआत: लज्जा तो ऐसे रह रही है जैसे इसे बलदेव बेटे की दुल्हन नहीं बनना है?

देवरानी झट से बोलती है।

देवरानी: बनना है।

और ये सुन कर कमला सहित सब हस पढ़ते हैं।

शुरुष्टि: चल अब हम तुम्हें तैयार करें।

सभी औरते अंदर आती है और मंगल गीत गाने लगती है।

" दुल्हन तोरा मरद बड़ा रसिया,
रात भर तोड़े है खटिया।
दुल्हन तोरा मरद जाने सब खेल,
ऐसा झटका मारे जैसे हो बेल।"

ये गाते हुए सब औरतें हस रही थीं और ये सुनते ही देवरानी लज्जा कर अपनी आँख बंद कर लेती है, कमला सब से पहले देवरानी के अंगो पर लगी हल्दी को पानी से धोती है फिर शुृष्टि केसर मिले दूध से देवरानी को नहलाती है।



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थोड़े देर में स्नान करा कर देवरानी बाहर आती है और उसे देख कर सब औरतें ताने मारने लगती है।

कमला: महारानी तो दूध से भी गोरी लग रही है।

शुृष्टि: लगेगी क्यू ना? मेरे बेटे की पसंद जो है।

देवरानी फिर लज्जा जाती है।

अब देवरानी ने एक पेटीकोट को अपने दूध तक चढ़ाया हुआ था तभी कमला देवरानी को ब्लाउज देती है।

कमला: महारानी इसे पहन लो!



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देवरानी: मेरे अन्दर से पहन कर आती हूँ मुझे यहाँ पर पहनने शर्म आती है।

कमला: बड़ी शर्मीली दुल्हन है।


देवरानी अपना वस्त्र ले कर स्नान घर में घुस जाती है और उसके अंदर आने का दूसरा कारण भी था उसे अंदर ब्रेज़ियर और जंघिया पहनना था ।

देवरानी सब से पहले अपने जंघिया को हाथ में लेती है और अपनी भारी भरकम पैरो को उठा कर जंघिये में दाल देती है फिर अपने हाथ नीचे ले जाकर हाथो से उसे ऊपर खिसकाने लगती है । जब जंघिया घुटने पर आ जाती है तो देवरानी अपने को ऊपर उठा कर पेटीकोट को ऊँचा उठा कर जंघिया को ऊपर से पकड़ के ऊपर खींचती है और अपनी मांसल चिकनी जांघो से खीचते हुए जनघिये को अपने भारी गांड में फसा लेती है।



देवरानी अपने पास से ब्रेज़ियर उठा के दोनों कंधो में लेते हुए घूमा के हुक लगाती है फिर दोनों छतियो के आकार को अपने भारी दूध के पास रखती है। एक हाथ से पेटीकोट को दूधो से नीचे करती है। फिर एक दूध से अलग करती हैऔर दोनों हाथ से अपने भारी दूध को ब्रेज़ियर मैं कैद करने की नाकाम कोशिश करती है । थोड़ी मेहनत के बाद दूध ब्रासिएर में आ जाते हैं पर फिर भी दोनों दूध इतने बड़े थे की दोनों बगल से मम्मे साफ दिख रहे थे और देवरानी के दूधो के बीच की गहरी खाई इतनी गहरी दिख रही थी कि कोई भी उसमे समा कर खो जाए । उसके जंघिया भी उसकी तरबूजे-सी गांड को संभाल नहीं पा रहे थे । देवरानी के जंघिया को ज्यादा ऊपर खींचने के लिए वजह से दोनों गांड की पट नितम्ब जंघिया से साफ देखी जा सकती थी और आगे भी जंघिया ने सिर्फ चूत के भाग को छुपाया था।

देवरानी: हाय ये जांघिए मेरे नितम्बो पर कितनी कस के बैठ गई है । मेरे यौवन के लिए ये जंघिया और ब्रेज़र बहुत छोटी है।


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देवरानी अब अपना ब्लाउज पहनती है फिर घाघरा पहनती है और नाडा बाँधने लगती है।

देवरानी: (मन मैं) ज़ोर से नहीं बांघूँगी नहीं तो बेटा बलदेव इसे खोल नहीं पाएगा।

फिर वह अपनी सोच पर एक तरफ जहाँ वह लज्जा जाती है वही दूसरी तरफ उसकी चूत में एक चींटी रेंगती है।

कमला: महारानी जल्दी बाहर आओ भी। सुहागरात अंदर ही नहीं मनानी है।

देवरानी बाहर आती है, सारी औरतें फिर से गीत शुरू कर देती हैं और देवरानी का शृंगार शुरू हो जाता है।

शुरष्टि: सोलह शृंगार कर के तो अप्सरा जैसी हो जाएगी मेरी बहू!

देवरानी: दीदी...!

देवरानी की आँखों में काजल लग जाता है फिर होठों पर लाली, बादाम के चुरे को देवरानी के चेहरे पर लगाया जाता है। कमला और बाकी औरतें हाथो और पैरो के नखुनो को भी लाल रंग से रंग देती हैं।

कमला: हाथ लाओ महारानी चूड़िया पहन दूं।

औरते दोनों तरफ से देवरानी के हाथो में चूड़िया पहना देती है।

उतने में देवरानी की कक्ष में जीविका आ जाती है । और सब औरते गीत गाना बंद कर देती हैं।

शुृष्टि: आइए माँजी और तुम लोग चुप क्यों हो गयी । जाती रहो। आज मेरी बन्नो का विवाह है।

जीविका चुप चाप खड़ी हो कर देखने लगती है।

देवरानी के ऊपर अब चमेली के तेल से चिढ़काव किया जाता है जिस से देवरानी के शरीर से खुशबू उठ कर पूरी कक्षा में फ़ैल जाती है।

कमला नीचे बैठ जाती है और बारी-बारी से देवरानी के पैरो में पायल पहनाती है।

और शुृष्टि उसके हाथो के चूडियो के साथ कंगन पहना रही थी ।

शुरष्टि: लाओ अब बन्नो को मैं हार पहना दूं।

शुरुआत सोने के हार से देवरानी के गले को भर देती है।

देवरानी: इतना सब!

शुरुआत: हाँ इसमें कुछ गेहने मेरे पिता जी ने दिये थे जो आज से तुम्हारे हुए।

शुरष्टि नथ निकाल कर देवरानी की नाक में डालती है।

देवरानी: उफ्फ्फ आह!


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कमला: नथ घुसने से आह निकल गई । महाराज बलदेव जब अपनी माँ की नथ उतारेंगे तो क्या होगा।?

ये सुन वहा पर खड़े सब औरते हसने लगती हैं।

शुरष्टि देवरानी को खड़ी करती है और देवरानी अपना पल्लू संभालती है।

शुरष्टि के हाथ में जो सोने का कमरबंद था देवरानी के कमर पर बाँध देती है ।

शुरष्टि: अब तुम्हारा कमर बंद हुआ इसे जो खोलेगा उसकी खैर नहीं, संभलना महारानी कोई खोले नहीं!

और शुरष्टि एक कातिल मुस्कान देती जिसे देख कर सब हस पड़ते हैं इस बार तो जीविका के चेहरे पर भी मुस्कान आती है।

जीविका: (मन में) आखिर इन दोनों ने अपनी जिद पूरी कर ली।


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देवरानी की नज़र जीविका पर पड़ती है और अपने होने वाली दादी सास को खुश देख कर उसे बहुत खुश होती है।

देवरानी अब ऊपर से नीचे तक तैयार थी।

शुरष्टि: इधर आयने के पास आओ महारानी।

देवरानी जा कर आयने के सामने बैठ जाती है।

शुरष्टि: अपने आप को देख कर कहो कि हम से कहि कोई कमी तो नहीं रह गई।

देवरानी अपनी आप को आईने में देखती है और खुद को देख उसे खुद विश्वास नहीं होता के वह इतनी सुंदर लग सकती है।

कमला: महारानी तो चाँद-सी खिल रही है।



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उधर बलदेव तैयार हो रहा था।

बलदेव: शमशेरा तुमने मेरे लिए ये सब लाए हो मुझे विश्वास नहीं हो रहा को तुम इतने जिम्मेदार हो।

शमशेरा: भाई मुझे जिम्मेदारी लेना आता है पर वह बात अलग है मुझे लेता नहीं हूँ।

शमशेरा बलदेव के लिए शादी का नया जोड़ा और जूती लाया था जिसे नहा धो कर महाराज बलदेव पहन लेता है।

शमशेरा: ये लो कस्तूरी!

बलदेव: ये क्या है।

शमशेरा: मल लो अच्छे से इसे । बीवी कभी तुमसे दूर नहीं भागेगी।

बलदेव: ऐसा है मेरी माँ नहीं भागे मुझे छोड़ कर बस। अच्छा लगा लेता हूँ।

बलदेव इत्र ले कर लगा लेता है और उसके जिस्म से फूलो की खुशबू आने लगती है।

शमशेरा: तैयार हो ना शादी करने के लिए!

बलदेव: हम अब पूरे तैयार है।

तभी वहा सोमनाथ आजाता है।

सोमनाथ: महाराज वह राजा राजपाल कारागार से भागने की कोशिश कर रहे थे।

बलदेव: उन्हें बाँध कर मेरे पास लाओ।

सोमनाथ: बाँध के?

शमशेरा: अरे हा! मुझे याद है ही नहीं रहा, कमला ने कहा था कि देवरानी खाला कह रही थी कि नियम अनुसार शादी में उन्हें छोड़ देना चाहिए.

बलदेव: देवरानी ने कहा ऐसा?

बलदेव: (मन में) ये नियम जरूर दादी जीविका ने बताया होगा।

सोमनाथ: महाराज ये बात भी है कि किसी भी कैदी को घाटराष्ट्र के किसी भी उत्सव या विवाह में हम कारागार से बाहर रखते हैं और घाटराष्ट्र में बहुत पहले से ऐसा ही होता आ रहा है।

बलदेव: पर अगर वह हाथो से निकल गया तो?

सोमनाथ: मुझे उसकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ मैं कहीं भागने न दूँगा।

बलदेव: नहीं, मेरा विवाह होने वाला है, मैं अब कतई विश्वास नहीं कर सकताउस तुच्छ व्यक्ति पर । तुम एक काम करो, उसके हाथ बाँध कर मेरे सामने लाओ।

सोमनाथ: महाराज वह आपके मित्रो को भी हमने खबर भेजवा दी है पर वह लोग शायद ही आज पहुँच पाए ।

बलदेव: कोई बात नहीं तुमंने अच्छा किया । अगर उन्हें देर भी हो जाए तो भी कल तक तो हमारा भंडारा कार्यक्रम चलता रहेगा।


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सोमनाथ: जो आज्ञा महाराज!

कह कर सोमनाथ चला जाता है।

शमशेरा: तुमने अपने मित्रो को क्यों नहीं बुलाया?

बलदेव: उनको आने में समय लगता और मेरे पास ज़्यादा समय नहीं था क्यूकी माँ का प्रिय भाई कभी भी यहाँ टपक (आ) सकता है।

शमशेरा, तो क्या उसने अपनी मंजूरी नहीं दी है?

बलदेव: भाई भला एक भाई अपनी बहन को कैसे कह दे, कर लो अपने बेटे से विवाह।

शमशेरा: हाँ वह भी है!

बलदेव: मैंने कहने की हिम्मत तो जुटाई थी पर उन्होंने मुझे उत्तर थप्पड़ से दिया था ।

शमशेरा: ठीक है वह सब भूल जाओ, अभी तुम खुश रहो और शादी करो!

शमशेरा: ठीक है वह सब भूल जाओ, अभी तुम खुश रहो और शादी करो!






बलदेव: तुम ठीक कहते हैं चलो!

शमशेरा और बलदेव नीचे आते हैं और सीढ़ियों से महल के बीचो बीच खाली जगह पर मंडप लगा हुआ था, जहाँ पंडित अपनी तयारी कर चुके थे और यज्ञ के लिए यज्ञ की वेदी में आग में घी डाल रहे थे।

पंडित: महाराज की जय हो!

पंडित बलदेव को देख उठ खड़ा होता है और हाथ जोड़ कर नमन करता है।

बलदेव: अरे पंडित जी आप बैठिये । कृपया आप अपना काम करें!

पंडित बैठ जाता हैऔर फिर अपने काम में लग जाता है।

तभी सोमनाथ राजपाल के हाथों को बाँधे हुए बलदेव के पास ले आता है।

बलदेव: सोमनाथ उसके मुंह पर पट्टी बाँधो।

पंडित अपने पिछले राजा को इस तरह बंधा हुआ देख भयभीत हो जाता है।

सोमनाथ झट से कपडे से राजपाल का मुंह बाँध देता है।

बलदेव: शमशेरा कोई मेरी कक्ष में तो नहीं है ना अभी?



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शमशेरा: नहीं पहले मैंने दासियों को सुहागरात का सेज सजाने भेजा था और मेंने खुद खड़ा रह कर काम करवाया है । अब वह सब बाहर भंडारा बना रहे हैं।

बलदेव: ठीक है ...सोमनाथ तुम इसे मेरे कक्ष के बगल के कक्ष में जो हमारे अतिथियो के लिए है, उसमें इसे ले जा कर कुर्सी पर रस्सी से बाँध दो।

राजपाल गुस्से से अपनेआँखे तरेरे बलदेव को देखता है।

बलदेव: गुस्सा आ रहा है हाहाहा! देखो सामने पंडित है अब मैं और माँ देवरानी विवाह के लिए मंडप में बैठ जाएंगे और फिर तुम ऊपर कक्ष में बंद रहोगे।

सोमनाथ झट से राजपाल को खीचता हुआ सीढ़ियों से ऊपर ले जाता है और बलदेव के बगल वाले कक्ष में कुर्सी पर बैठा के राजपाल को अच्छे से बाँध देता है।

सोमनाथ बाहर आकर कक्ष का दरवाजा बाहर से बंद कर देता है।

पंडित: आइए महाराज आकर बैठिए.

बलदेव: हम तो कब से बैठने को तैयार हैं।

वैध जी बाहर से अंदर आते हैं ।

वैध: बेटा बलदेव! दूल्हा बन के बहुत जच रहे हो ।

बलदेव; प्रणाम, धन्यवाद वैध जी.

पंडित: महाराज कन्या को बुलाए 5 बज गए।

बलदेव शमशेरा को इशारे से कहता है।

शमशेरा देवरानी की कक्षा के पास जा कर कमला को पुकारता है ।

शमशेरा: कमला जल्दी करो पंडित जी बुला रहे हैं।

कमला: रानी साहिबा! ये कौन है?

शुरष्टि: कमला! ये शमशेरा है बलदेव का मित्र।

कमला: मेरे बन्नो अब जाने का समय आ गया है।

शमशेरा कमला को आने के लिए बोल कर दरवाजे बंद पर कर वापस आ जाता है।

शुरष्टि और कमला नजर उतार कर देवरानी को पकड़ कर उठाती है। देवरानी घूंघट करती है।



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देवरानी अंदर ही अंदर कांप रही थी जिसे कमला भांप जाती है।

कमला: चलिए महारानी हिम्मत कीजिए!

देवरानी के मन में हजारो ख्याल आ रहे थे और वह धीरे-धीरे कदमो से शुरष्टि और कमला के साथ चल रही थी।



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देवरानी (मन में) : हाय! मुझे ऐसा क्यों लग रहा है के ये मेरा पहला विवाह है। आज से मेरा पति बलदेव होगा, जो मेरा बेटा भी है । सब क्या कहेंगे । हम कैसे एक दूसरे के साथ आगे का जीवन व्यतीत करेंगे, क्या मुझे बलदेव जीवन भर ऐसा ही प्रेम करेगा । लोग क्या कहेंगे? आज से रोज़ बलदेव के कक्ष में सोना होगा मुझे।

ये सोच कर देवरानी को एक सिहरन-सी होती है और एक क्षण के लिए अपनी आँख बंद कर लेती है।

कमला: महारानी हम सब आप के साथ हैं और वैसे भी आपका पति आपका बेटा है, तो आप घबराएँ नहीं सुहागरात अच्छी होगी ।

कमला परेशान देवरानी का ध्यान भटकाने के लिए कहती हैं जिसे सुन कर सब हस पढ़ते हैं।

देवरानी भी अब हल्का मेहसूस कर रही थी । उसके पीछे राधा और जीविका भी चल रही थी पर जीविका के चेहरे को देख कर कोई भी कह सकता था कि वह खुश नहीं है।

जीविका (मन में) : आखिर इन दोनों माँ बेटे ने अपने मन की कर ही ली ।

सब महल के बीचो बीच पहुचते है। तभी श्रुष्टि की नज़र सीढ़ियों से उतर रहे सोमनाथ पर पड़ती है और वह पूछती है ।

शुरुष्टि: शमशेरा ये सेनापति ऊपर से क्यू आ रहा है?

शमशेरा बात पलट कर के उत्तर देता है।

शुरष्टि: वो बलदेव ने किसी काम से भेजा था ...आप उसे छोडीए! ये शादी का वक्त है।

शुरुष्टि: हम्म!

कमला: पंडित जी कन्या को लाएँ क्या?

पंडित: हाँ जजमान जल्दी करो। अब और समय नहीं है।

बलदेव अब भी बैठा था वह पलट गया तो उसकी नज़र सोमनाथ पर पड़ती है और सोमनाथ इशारे से कहता है कि वह काम कर दिया। बलदेव फिर देवरानी को देखता है।

देवरानी को देखते हे बलदेव देवरानी की सुन्दरता में खो जाता है पल्लू किये हुई देवरानी का चेहरा चाँद-सा चमक रहा था।



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बलदेव: (मन में) मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो ऐसी सुंदर पत्नी मिली है मुझे, माँ देवरानी मैं तेरा धन्यवाद कैसे करु?

पंडित: महाराज देखते ही रहिएगा । या कन्या को बैठने के लिए जगह देंगे।

बलदेव चुपचाप खिसक जाता है और देवरानी का हाथ पकड़कर शुरष्टि बलदेव के पास बैठा देती है।

पंडित विवाह की पूजा के मंत्र पढ़ना शुरू कर देता है।

सोमनाथ, शुरष्टि, कमला, राधा, जीविका वैध जी सब खड़े रहे और कुछ औरतें जो देवरानी को सवारने आयी थे सब विवाह देख रहे थे । पंडित जी मंत्रो का उच्चारण तेजी से कर रहे थे। बलदेव और देवरानी की धड़कन भी उतनी ही तेजी से धक-धक कर रहे थे।

बलदेव: (मन में) माँ अंदर से घबराई हुई है। शायद उनको अजीब लग रहा होगा अपने बेटे से जो सात फेरे लेने वाली है, थोड़े दिन मान को इन सब की आदत हो जाएगी ।

बलदेव (मन में) : सच में ऐसी पतिव्रता पत्नी पर कर में धन्य हो गया । भगवान ने ऐसी माँ को मेरी पत्नी के रूप में दिया । उनका लाख-लाख धन्यवाद! जरूर मैंने पिछले जन्म में अच्छे कर्म किए होंगे।

बलदेव देवरानी को देखा है जो अपने हाथ को हाथ पर रख कर बैठी थी। देवरानी के हाथ को बलदेव देखता है तो उसके सुंदर मेहंदी लगे हुए हाथ के साथ उसकी नजर देवरानी के मखमली पेट पर जाती है।

बलदेव: (मन में) माँ आज तो कुछ ज्यादा ही खिल रही है।

पंडित: महाराज कन्या के हाथ से ये उठा कर प्रसाद चढ़ाये।

बलदेव: हं हं!

देवरानी पल्लू के अंदर से तिरछी नजर से बलदेव को देख रही थी।

देवरानी: (मन में) बेटा अपनी माँ से विवाह कर रहा है। आज से तेरी ही होने वाली हूँ फिर भी जब से आयी हूँ सब के सामने मुझे कैसे प्यार देख रहा है।

ये सोच कर की बलदेव उसे कितना चाहता है, देवरानी थोड़ा खुश हो जाती है और उसके चेहरे पर मुस्कान फेल जाती है।

देवरानी झट से प्रसाद उठा लेती है। बलदेव भी अपना हाथ बढ़ा कर देवरानी के हाथ को नीचे से पकड़ता है और दोनों प्रसाद चढ़ा देते हैं।

देवरानी अपने हाथ के पीछे ले जा रही थी कि बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ाता है तो देवरानी अपना हाथ रोक लेती है, फिर बलदेव अपना हाथ देवरानी के हाथ को ऊपर रख देता है।

देवरानी का हाथ हल्का कांप रहा था बलदेव उसके हाथ को पकड़कर बैठ जाता है।

पंडित कुछ देर तक मंत्र जप करते हुए कहता है ।

पंडित: अब कन्या को घूंघट से हटा दो और अग्नि के फेरे ले लो।

बलदेव पंडित की ओर देखता है।

शुरष्टि: क्या हुआ बलदेव कुछ पल की ही तो बात है और वैसे भी यहाँ पर पराया कौन है सब अपने हैं, चेहरा खोल दो देवरानी। घूंघट हटा दो ।

देवरानी भी नहीं चाह रही थी अपना चेहरा खोलना पर शुृष्टि की बातों से अपना मन बदल लेती है।

बलदेव अपने बाये हाथ से देवरानी का घूंघट ऊपर करता है और देवरानी अपना घूंघट ऊपर कर पल्लू सर पर रख लेती है और एक मुस्कान देती है जिससे वह घबराई हुई है ये किसी को पता ना चले।



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पंडित: वाह बेटी बड़ी सुंदर हो! महाराज अब आप दोनों अग्नि के फेरे ले लीजिए । बलदेव देवरानी का हाथ पकड़ कर खड़ा होता है और दोनों अग्नि के फेरे लेने लगते हैं ।

पंडित: विवाह के समय पति-पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूसरे को सात वचन देते हैं जिनका दांपत्य जीवन में काफी महत्त्व होता है। पंडित फेरो के समय मन्त्र बोलता जा आरहा था और साथ में बलदेव और देवरानी को मंत्रो का अर्थ और फेरो का महत्त्व समझा रहा था। कन्या अग्नि को साक्षी मान कर वर से वचन मांगती है ।



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पंडित पहले फेरे पर कहता है-प्रथम वचन-किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्यों की पूर्णता हेतु पति के साथ पत्नी का होना अनिवार्य माना गया है। पत्नी द्वारा इस वचन के माध्यम से धार्मिक कार्यों में पत्नी की सहभा‍गिता व महत्त्व को स्पष्ट किया गया है।

पंडित: (यहाँ कन्या वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कार्य आप करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।



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दुसरे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित: दूसरा वचन-यहाँ इस वचन के द्वारा कन्या की दूरदृष्टि का आभास होता है। उपर्युक्त वचन को ध्यान में रखते हूए वर को अपने ससुराल पक्ष के साथ सदव्यवहार के लिए अवश्य विचार करना चाहिए। (कन्या वर से दूसरा वचन मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।

तीसरे फेरे के समय पंडित कहता है ।


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पंडित: (तीसरे वचन में कन्या कहती है कि आप मुझे ये वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं (युवावस्था, प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था) में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।




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चौथे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित: चौथा वचन-इस वचन में कन्या वर को भविष्य में उसके उत्तरदायित्वों के प्रति ध्यान आकृष्ट करती है। इस वचन द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुत्र का विवाह तभी करना चाहिए, जब वह अपने पैरों पर खड़ा हो, पर्याप्त मात्रा में धनार्जन करने लगे।


(कन्या चौथा वचन ये मांगती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जब कि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दा‍यित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।


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सब बड़ी गंभीरता से फेरे देख रहे थे और पंडित की बात सुन रहे थे तभी कमला कहती है ।

कमला: अब पांचवा फेरा है । भगवान महाराज और महारानी को संतान का सुख दे। पंडित जी मंत्र जरा ढंग से पढ़िएगा। हा।

और सब हसने लगते हैं

देवरानी: (मन में) हे भगवान ये कमला भी ना मुँह बंद नहीं रख सकती अभी से मेरे बच्चे पैदा करवा रही है।

बलदेव: (मन में) माँ का मुँह उतर गया कमला की बात सुन कर और बलदेव हल्का मुस्कुरा देता है।

पांचवे फेरे के समय पंडित कहता है ।



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पंडित: पांचवा वचन-यह वचन पूरी तरह से पत्नी के अधिकारों को रेखांकित करता है। अब यदि किसी भी कार्य को करने से पूर्व पत्नी से मंत्रणा कर ली जाए तो इससे पत्नी का सम्मान तो बढ़ता ही है, साथ-साथ अपने अधिकारों के प्रति संतुष्टि का भी आभास होता है।

(इस वचन में कन्या कहती जो कहती है, वह आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्त्व रखता है। वह कहती है कि अपने घर के कार्यों में, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मंत्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।


f4

छठे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित-छठा वचन- (कन्या कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्‍त्रियों के बीच बैठी हूँ, तब आप वहाँ सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आपको दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।




f5

सांतवे फेरे के समय पंडित कहता है ।

पंडित-सातवा वचन- इस वचन के माध्यम से कन्या अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का प्रयास करती है।


(अंतिम वचन के रूप में कन्या ये वर मांगती है कि आप पराई स्त्रियों को माता के समान समझेंगे और पति-पत्नी के आपसी प्रेम के मध्य अन्य किसी को भागीदार न बनाएंगे। यदि आप यह वचन मुझे दें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूँ।)

बलदेव: मुझे स्वीकार है ।




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ऐसे ही 7 फेरे पूरे होते हैं पंडित जी इशारा करते हैं और दोनों बैठ जाते हैं।

पंडित कुछ देर बाद एक सिन्दूर की डिब्बी ले कर फ़िर मंत्र पढ़ने लगता है ।

पंडित: महाराज कन्या को सिन्दूर दान कीजिए!

देवरानी ये सुन कर सिहर जाती है।

बलदेव: (मन में) क्यू नहीं पंडित जी! इस समय के लिए मैं बहुत तड़पा हूँ। माँ की मांग अपने नाम के सिन्दूर से भरने के लिए मैं ततपर हूँ।

देवरानी: (मन में) मेरे बेटे बलदेव भर दो मेरी मांग । बना दो इस अभागन को सुहागन । मेरे बेटे बन जाऔ मेरे पतिदेव। मेरे स्वामी!

शुृष्टि पीछे से देवरानी के पल्लू को सरका कर उसकी मांग खोलती है । बलदेव डिब्बी से सिन्दूर ले कर देवरानी की मांग भर देता है तो देवरानी अपनी आख बंद कर लेती है।

देवरानी: धन्यवाद भगवान तूने इतना चाहने वाला पति दिया!



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बलदेव: (मन में) आज से माँ जीवन भर बस मेरे नाम का सिन्दूर लगाएगी ।

पंडित: महाराज अब कन्या को मंगलसूत्र पहनाइये।

बलदेव नीचे से मंगलसूत्र उठा कर देवरानी की तरफ बढ़ता है।

देवरानी उसे देख रही थी।

देवरानी (मन में) : मेरे राजा! कितना बेसबर हो रहा है।

देवरानी के गले में डाल कर मगल सूत्र बाँध देता है।

बलदेव: (मन में) मेरी माँ अब तुम मेरी पत्नी हो।

देवरानी: (मन में) पतिदेव तो आज शादी के जोड़े में, 30 वर्ष के पुरुष लग रहे हैं । कौन कहेगा ये 18 वर्ष का है... शरीर से घोड़े जैसा जो हो गया है मेरा बेटा।

।बलदेव: (मन में) माँ तो 34, 35 साल की बिलकुल नहीं लग रही, ऐसा लग रहा है जैसे कोई 17 साल की कुंवारी स्त्री हो।

पंडित: अब आप दोनों पति पत्नी है।

ये सुनते ही वह पर उपस्थित सब लोग दोनों पर फूलों की बारिश कर देते हैं।

पंडित: अब एक दूसरे को वरमाला पहनाएँ।

देवरानी बलदेव को वरमाला पहनती है फ़िर बलदेव भी देवरानी को वरमाला पहनाता है।


शुरष्टि सब से पहले आकर देवरानी से गले लगती है।

शुरष्टि: मेरी बन्नो बधाई हो!

शमशेरा आकार बलदेव से गले मिलता है।

शमशेरा: शादी मुबारक हो दोस्त!

देवरानी देखती है कमला की आंखो में आसु थे और वह दरवाजे पर खड़ी देख रही थी।

देवरानी: कमला...!

कमला दौड़ के आती है और देवरानी से लिपट जाती है।

देवरानी: तू रो क्यू रही है पगली?

कमला: ये तो खुशी की बात है महारानी बधाई हो! आप को। सदा खुश रहो सुहागन रहो।

शुरुष्टि: बलदेव क्या अपनी माँ से नहीं मिलोगे।

बलदेव आकर श्रुष्टि के चरण छूता है और देवरानी को इशारा करता है।

दोनों मिल कर शुरष्टि के चरण छूते है।

बलदेव: मां हमें आशीर्वाद दीजिये।

शुरष्टि: दूधो नहाओ पूतो फलो मेरे बच्चो!

वैध जी वही खड़े देख रहे थे बलदेव और देवरानी उनके भी चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं।

वैध: सदा सुहागन रहो देवरानी बिटिया!

राधा: महारानी शुभ विवाह!

वही पास में खड़ी जीविका को देख बलदेव या देवरानी जाते हैं और झुक कर उसके पैर छूते हैं।

बलदेव: हमें आशीर्वाद दीजिए दादी और खास कर अपनी पोती बहू को आशीर्वाद दीजिये क्यू के यही आपका वंश बढ़ाएगी ।

जीविका न चाहते हुए भी दोनों के सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देती है ।

जीविकाः सदा खुश रहो... दूधो नहाओ पूतो फलो !

सोमनाथ: महाराज बधाई हो!

बलदेव: धन्यवाद सोमनाथ... पूरे घाटराष्ट्र में भंडारा बटवा दो । कोई गरीब दुखी नहीं रहना चाहिए!

पंडित: इस ग़रीब को दक्षिणा तो दीजिए महाराज!

बलदेव: सोमनाथ इन्हें मुँह माँगा इनाम दे दो।

पंडित खुश हो कर सोमनाथ के साथ चला जाता है।

कमला देवरानी को देख इशारा करती है बलदेव के पैर छूने के लिए ।

बलदेव जैसे ही पलटता है देवरानी उसके कदमो में बैठ उसके पैर छू लेती है।

बलदेव: महारानी आपका स्थान मेरे हृदय में है।

और देवरानी को झट से अपने गोद में उठा लेता है।

बलदेव: कमला समय क्या हुआ?

कमला: सूर्यस्त हो गया 6 बज गए होंगे!

बलदेव: अगले 18 घंटे तक मेरे कक्ष के आस पास कोई नहीं आये।

कमला: मतलब?

बलदेव: कल 12 बजे दिन तक कोई ऊपर नहीं आना चाहिए और हमारा भोजन समय से ऊपर ला कर कक्ष के बाहर मेज पर रख देना।

बलदेव अपनी माँ के बारे में सोच मन में कहता है।

बलदेव (मन में) : इस जैसी माल की प्यास तो 18 घंटे क्या 18 साल तक बुझाऊंगा तो भी नहीं बुझेगी।

देवरानी (मन में) : हे भगवान इसे शर्म नहीं आ रही। मुझे सब के सामने ऐसे उठा कर क्या-क्या कह रहा है । बेटा अब पति की तरह हक जताने लगा है ।

ये सुन कर सब बलदेव को देख रहे थे और देवरानी शर्मा रही थी ।

देवरानी इस बात से अंजान थी कि ऊपर बलदेव के कक्ष के बगल में उसका पहला पति राजा राजपाल बंधा हुआ है।


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बलदेव धीरे-धीरे देवरानी को अपने गोद में उठाये सीढ़ियों से अपनी कक्ष की ओर जाने लगता है...।

जारी रहेगी ...
 
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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 91A

सुहागरात

घटराष्ट्र

शाम 6 बजे

बलदेव अपनी माँ देवरानी के साथ सात फेरे लेता है फिर अपनी माँ के मांग में सिन्दूर भर के और मंगलसूत्र डाल कर अपनी माँ को अपनी पत्नी बना लेता है। परिवार के सामने देवरानी अपने पति के चरण छूती है पर बलदेव अपनी माँ को अपनी बाहों में उठा लेता है। बलदेव सबको कहता है कि अगले 18 घंटे यानी कि अभी 6 बजे से ले कर कल दोपहर 12 बजे तक महल की पहली मंजिल जहाँ पर बलदेव की कक्षा थी कोई नहीं आए. बलदेव सिर्फ कमला को कह देता है कि वह समय से खाना पानी उनके कक्ष तक पहुचा दे।

बलदेव अपनी माँ को गोद में उठाये सीढिया चढ़नी शुरू करता है और उसकी दादी जीविका, बलदेव की सौतेली माँ या देवरानी की सौतन श्रुष्टि, कमला, वैध जी के साथ शमशेरा और सोमनाथ सब उन दोनों को जाते हुए देख रहे थे ।

कमला: (मन में) आज तो ये दोनों माँ बेटा ऐसे जा रहे हो जैसे सातो जन्म से पति पत्नी हो महारानी की तो आज खैर नहीं। उनकी चूत का कचुम्बर बना देगा उनका बेटा।

शुरुआत: (मन में) कितनी भाग्यशालि है देवरानी जो उसे इतना प्रेम करने वाला पति मिला और ये पता होते हुए भी के देवरानी का ये दूसरा विवाह है, बलदेव उसका साथ जीवन भर देने के लिए तैयार है, काश कोई गबरू जवान मुझे भी इतना प्यार करता।

सोमनाथ: (मन में) महाराज ने बड़ी चतुराई से जंग और महल जीतने के साथ-साथ अपनी माँ से भी विवाह कर के उनको पत्नी बना लिया। उनकी बूढी और वीरता को तो सबको मानना पड़ेगा।

जीविका: (मन मैं) घोर कलियुग! में समझती हूँ तुम दोनों की मजबूरी थी जिसमें तुम दोनों को प्रेम करना पड़ा पर इस तरह से सबको दिखा कर करोगे ये तो कभी सोचा नहीं था।

शमशेरा: (मन में) बलदेव बहुत नसीब वाला है जिसको अपनी मुहब्बत अपनी महबूबा मिल गयी और उसने अपनी माँ को बीवी बना लिया, मेरी तो नसीब ही खराब है।

वैध: (मन में) बधाईया! मेरी जड़ी बूटी का असर दोनों पर बहुत बढ़िया हुआ है। अगर आज लहू मुंह लग गया तो दोनों दिन रात एक कर एक दूसरे पर चढ़े रहेंगे।

वैध: कमला हे कमला!

सबका ध्यान बैध जी की तरफ गया।

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वैध: कहा खो गए सब के सब?

कमला: हाँ सही बात है अब हमे उन दोनों को अकेला छोड़ देना चाहिए । हमें तो अभी बहुत काम करने है।

वैध: वो सब छोडो । दूध तो दे आओ और साथ में वह जडी बूटी भी दे आना ।

कमला: हाँ-हाँ क्यू नहीं?

कमला झट से दूध ला कर उसे गर्म कर उसमें जड़ी बूटी मिलाने लगती है।

उधर बलदेव देवरानी को ले कर सीढ़ियों से ले कर ऊपर चढ़ रहा था । सीढिया चढ़ते समय बलदेव देवरानी को आंखो में देख रहा था और देवरानी भी बलदेव को देख जा रही थी।

देवरानी: संभल के महाराज कहि गिरा ना देना!

बलदेव: रानी माँ मैं जीवन भर तुम्हें उठा कर रख सकता हूँ और फिर भी मैं आपको गिरने नहीं दूंगा।

बलदेव अब ऊपर आ चूका था या एक धक्के के साथ अपना कक्ष का दरवाजा खोलता है और अपना काक्ष देख कर बलदेव बहुत खुश होता है बलदेव का पूरा कक्ष फूलो से सजा हुआ था। गुलाब और चमेली तथा गेंदो का फूल से पूरा बिस्तार सजा हुआ काक्षा में चारो तरफ कहीं दिया तो कहीं मोमबत्तियाँ जल रही थी।

देवरानी तो कक्ष देख कर इतनी खुश थी कि बिना पलक झपकाए देखे जा रही थी।

बलदेव: कैसा लगा रानी माँ?

देवरानी: हाँ या तो रानी कहो या तो माँ कहो!

बलदेव: क्यू दोनों क्यों नहीं हो सकता?

बलदेव पलंग के करीब आता है और देवरानी को पलंग पर बैठाता है तभी बाहर से आवाज आती है।

"महाराज...महारानी!"

देवरानी, देखिये न कमला लग रही है।

बलदेव: ठीक है पत्नी जी जो हुकम।

बलदेव दरवाज़े पर आता है तो देखता है कमला दो जग और एक गिलास में कुछ के कर द्वार पर थी।

कमला: क्षमा करे महाराज वह दूध रखना भूल गई थी।

बलदेव: अंदर तो पहले से खाने पीने का सब सामान है बहुत फल, मिठाईया भी रखे है काजू बादाम मेवे भी है।

कमला: महाराज ये वैध जी में विशेष दूध भिजवाया है समझने की कोशिश कीजिये और ये कुछ जड़ी बूटी जय जो खास कर महारानी के लिए हैं।

बलदेव बात को समझते हुए मुस्कुराता है।

बलदेव: धन्यवाद...पर तुम इसके बाद सिर्फ दो बार आना एक रात का खाना ले कर और कल सुबह का नाश्ता ले कर आना। बीच में मत आना चाहे कोई भी मर जाए, कुछ भी हो जाए । ठीक है!

कमला: जी महाराज जैसी आपकी आज्ञा!

बलदेव कमला के हाथ से वह थाली ले लेता है और दरवाजा बंद करके कुंडी लगा देता है और पास रखी मेज़ पर थाली रख देता है।

इधर कमला मुड कर सीढ़ियों से नीचे उतरने ही वाली थी की उसे किसी के हाफने की आवाज आती है।

कमला: (मन में) ऊपर तो बलदेव के सिवा कोई नहीं होता है फिर येआज इस समय कौन हांफ रहा है।

कमला उस आवाज का पीछा करते हुए आती है और देखती है बलदेव के कक्ष के बिल्कुल साथ सटे कक्षा में राजा राजपाल कुर्सी पर बंधा हुआ था । उसका हाथ और उसका मुंह बाँधा हुआ था और वह अपने आप को खोलने की कोशिश कर रहा है।

कमला कक्ष के पास पहुँचते ही हवा से उड़ रहे कक्ष के परदे के बीच से राजपाल को ऐसे बंधा हुआ देख कर चौंक जाती है।


कमला: (मन में) हे भगवान ये बलदेव के कक्ष की बिल्कुल बगल में है और बाहर से भी ये कक्ष बंद है। इसका मतलब बलदेव ने जान बुझ कर इनको यहाँ बाँधवाया है। ऐसे तो रात भर देवरानी की उह आह की आवाजे सुन कर भूखा प्यासा राजा राजपाल कहीं मर ही नहीं जाए! चलो ये इनके कर्मो की सजा है जो इन्हे मिल रही है ।

कमला ये सोचते हुए अपने कदम पीछे ले कर सीढ़ियों से उतर कर नीचे आ जाती है।

बलदेव जड़ी बूटी मिले दूध के जग और गिलास को मेज पर रख कर जैसा ही मुड़ता है तो देखता है उसकी माँ देवरानी बड़ा-सा घूंघट किए हुए पलंग के बीच में बैठी है। बलदेव अपनी माँ को देख मुस्कुराता है और अपनी मूंछो पर हाथ फेरते हुए ताव देता है और पलंग के पास जा कर कहता है ।




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बलदेव: अच्छा तो मेरी दुल्हन ने अब-अब घूंघट कर लीया है।

देवरानी कुछ नहीं बोलती है।

बलदेव सामने की मेज से जग से दूध को गिलास में डाल कर ले आता है और पलंग के कोने पर बैठ कर कहता है ।


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रानी माँ ये लो दूध पी लो"

देवरानी अब भी घूँघट किये बैठी थी देवरानी अपने हाथों को घुटने पर रखे हुए थी और घुटने मोड़ कर बैठी थी देवरानी अपने पैरो की उंगलियों से बिस्तर दबा रही थी।

देवरानी: (मन में) हे भगवान आपकी कृपा से अब मेरा बेटा मेरा पति बन गया है अब मेरा रोम-रोम कांप रहा है कैसे कर पाऊंगी सब। मदद करो मेरी भगवान्!

देवरानी की दशा वही थी जो किसी की भी माँ की होगी अगर वह अपने बेटे से विवाह कर के दुल्हन बन अपने बेटे के साथ बंद कमरे में सुहाग रात की सेज पर हो।

बलदेव दूध का गिलास पलंग के कोने पर रख देवरानी का हाथ जो हल्का-सा कांप रहा था उसे अपने हाथों में ले लेता है और या सहलाता है।

बलदेव: रानी माँ हमारी जिंदगी का ये दिन हमे बहुत पसंद है और ये आपकी प्रार्थना का वरदान है जो हमे मिला है। यदि आपको कोई संकोच है तो आज हम कुछ नहीं करेंगे।

ये सुनते हैं देवरानी अपने बेटे बलदेव की तरफ खिसक कर उसके सीने पर अपना सर रख कर अपने बेटे से जो अब उसका पति था उससे गले लग जाती है, बलदेव मुस्कुराता है और देवरानी को अपनी आगोश में ले लेता है फिर अपना हाथ देवरानी के सर पर रख कर सहलाते हुए कहता है ।

"अरी मेरी प्यारी दुल्हन क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि कोई इतनी सुंदर दुल्हन को सुहागरात में ऐसे ही छोड़ देगा!"

ये कह कर बलदेव हल्का-सा हस देता है।

देवरानी अपना हाथ उठा का मुक्का बना कर हल्का-हल्का बलदेव के चौड़े सीने पर मारती है।

बलदेव: अरे मेरी रानी अब शर्माओ मत अपना मुँह दिखाओ!

बलदेव ये कह कर देवरानी का घुंघट को पकड़ता है और घूँघट धीरे-धीरे ऊपर करता है जिससे देवरानी का चेहरा दिखने लगता है। देवरानी के शरीर में कम्पन बढ़ने लगती है आख़िरकार धीरे-धीरे बलदेव देवरानी का घुंघट उठा कर उसके सर पर रख देता है। देवरानी आँखे नीचे किये हुए बैठी थी ।




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बलदेव: मेरी रानी इतने सुंदर मुखरे को छुपाया नहीं जाता । अपने पति से बोलो देवरानी क्या चाहती है मुँह दिखाई में?

देवरानी अपनी पलकें ऊपर उठाती है और बलदेव को देखती है, फिर शर्मा आकर पलके नीचे कर लेती है । बलदेव जो उसके चेहरे को देख रहा था और अपनी सुंदर पत्नी पर गर्व महसूस कर रहा इतरा रहा था। देवरानी खुश होती है कि बलदेव अपनी पत्नी पर और उसकी सुंदरता पर इतना इतरा रहा है।

बलदेव: बोलो रानी माँ!

देवरानी सकुचाते हुए बोलती है ।

देवरानी: मुझे जीवन भर ऐसे ही प्यार करते रहना । मुझे आपसे और कुछ नहीं चाहिए।

ये कह कर बलदेव को देखती है जो आज दूल्हे के जोड़े में बहुत जच रहा था और उसके माथे के तिलक से बलदेव और अधिक सुंदर लग रहा था।

देवरानी अपने बेटे को देखते हुए अपने बेटे से गले फिर से लग जाती है।

देवरानी: बेटा मेरा साथ कभी नहीं छोड़ना।

बलदेव: मां अब मैं तेरे बेटे के साथ अब मैं पति भी हूँ। मैं एक रिश्ता छोड़ का भाग सकता था लेकिन इन दोनों रिश्तो को कभी नहीं छोड़ सकता।

देवरानी आगे बढ़कर बलदेव के हाथ अपने हाथ में ले कर कहती है ।

देवरानी: तो वादा करो कि तुम अन्य राजाओ की तरह दूसरा विवाह नहीं करोगे ।

बलदेव देवरानी के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए सहलाता है।

बलदेव: नहीं करूंगा।

देवरानी बलदेव के हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर बलदेव से कस के गले लग जाती है और उसके मोटे मम्मे बलदेव के सीने में धस जाते हैं।

देवरानी: मेरी राजा! वादा करो तुम किसी और स्त्री से सम्बंध भी नहीं रखोगे।

बलदेव: कभी नहीं मैं तुम्हें धोखा देने का सोच भी नहीं सकता देवरानी!

बलदेव अपना हाथ देवरानी के पीठ पर ले जा कर सहलाता है।

देवरानी अपने पति के सामने हाथ जोड़ कर कहती है।

देवरानी: मेरे पतिदेव बलदेव सिंह आज से मैं आपकी हुई आपका हर हुकम मैं मानूंगी आज से मेरा नाम देवरानी बलदेव सिंह हुआ।

बलदेव: बहुत तेज़ हो रानी माँ अभी से कब्ज़ा करने लगी।

देवरानी: क्यू ना करू लोगों को मेरा नाम सुन कर पता चलना चाहिए मैं किसकी पत्नी हूँ।

बलदेव हल्का पीछे हाथ कर देवरानी के माथे को चूम लेता है।

बलदेव: मैं हमेशा से ऐसी ही पत्नी चाहता था और भगवान ने भी मेरा विवाह तुम से करवा कर मेरा सपना पूरा कर दिया।

बलदेव पलंग पर अपने दोनों टाँगे सीधा करते हुए देवरानी का सर अपने कांधे पर रख आधा लेट जाता है देवरानी भी बलदेव से चिपक कर अपना एक दूध बलदेव के कंधे पर सता कर रखे हुए थी और उसने अपनी एक टांग बलदेव की टांग पर चढ़ा ली।

देवरानी: मैं भी राजपाल से विवाह से पहले ऐसा सोचती थी की मेरा एक मजबूत कद काठी और सुंदर पति हो पर राजपाल से विवाह होने के बाद जैसे मेरा ये सपना चकचूर हो गया था।

बलदेव देवरानी के बालो को लातो को अपने हाथो से सुलझाता हैं।

"तो माँ आज मुझे अपना पति बना कर आपको अच्छा लग रहा है ना, कहीं आपके सपने का राजकुमार मुझसे भी तो सुंदर नहीं।"

देवरानी हल्की-सी चपत बलदेव के मजबुत कंधे पर मारते हुए कहती है ।

"हट बदमाश! तुम से अच्छा पति मुझे सात जन्मों में नहीं मिल सकता। मेरे सपने के राजकुमार तुम हो!"

बलदेव ये सुनते हे देवरानी के पीठ से पकड़ कर अपनी ओर खीचता है और अपने ओंठ देवरानी के ओंठो पर रख कर पहले एक हल्का-सा चुंबन लेता है । फिर देवरानी के होठो को अपने होंठो में ले कर चूसने लगता है।

"गैल्पप्प गैलप्प्प्प गैल्प्प् उम्म्ह्ह्ह गैल्प्प् स्लुरप्प्ल गैल्प्प्प्प गैल्प्प सुमम्ह्ह!"

बलदेव देवरानी के होंठ चूस कर छोड़ता है।

देवरानी: बेटा मैं तो पूरे जीवन भर भगवान से यही प्रार्थना करूंगी मेरे सातो जन्म में तुम ही मेरे पति हो!

बलदेव देवरानी के कमर पर हाथ रख कर सहलाते हुए देवरानी के कान के नीचे चूमता है और अपनी जीभ बाहर निकल कर चाटने लगता है।

देवरानी: आह जी धीरे करो ना!

बलदेव देवरानी को देखता है उसके बड़े सुडौल स्तन और आगे की ओर नुकीले निपल बिल्कुल मोटे आम जैसे थे। उसकी सपाट कमर बहुत अच्छी तरह से मुड़ी हुई थी जिसके कारण उसके नितंब सुडौल थे।

बलदेव: माँ तुम्हारे जैसी माल मेरी पत्नी है भला मैं धीरे कैसे कर सकता हूँ।

कहते हुए बलदेव पुरा बिस्तर पर लेट जाता है और देवरानी को अपने बाहो में भरते हुए अपने ऊपर ले लेता है। देवरानी अब पुरा बलदेव के ऊपर लेटी हुई थी और उसका सर बलदेव के सीने पर था।

बलदेव: माँ मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि तुम मेरी पत्नी बन जाऊंगी और इस सब के लिए कमला ने भी हमारी बहुत मदद की।

देवरानी: वह मेरी बहन जैसी है । वही उस वक़्त में मेरा सहारा थी ।

देवरानी बलदेव के सीने पर अपना कान लगा कर कहती है ।

देवरानी: मैं भारी तो नहीं लग रही हूँ?

बलदेव देवरानी के कमर पर हाथ रख कर अपने से दबाता है।

बलदेव: बिलकुल नहीं मेरी रानी ।

देवरानी: हाँ तुम ठीक कह रहे हो कमला ने ही हम दोनों के बीच प्रेम का बीज बोया था।

बलदेव: पर हम दोनों भी तो एक दुसरे तो अंदर ही अंदर चाहते तो थे ही ।

देवरानी: हाँ तुम्हारी धड़कन भी यहीं कह रही है।

बलदेव: अच्छा तो अब तुम मेरी धड़कन की भाषा भी समझने लगी।

देवरानी: एक अच्छी पत्नी बनने के लिए पति की हर भाषा को समझनी पड़ती है ।

बलदेव अपने ऊपर लदी देवरानी की गांड पर हाथ ले जाता है जो बिल्कुल उसके लंड के ऊपर थी और अपने हाथ को गांड से दबाता है जिस से देवरानी की चूत पर बलदेव का खड़ा मूसल लंड छू जाता है।

बलदेव, और इसकी भाषा को?

ये कह कर देवरानी को देख मुस्कुराता है।

देवरानी: आह...!

देवरानी अपना मेहंदी लगे हुए हाथों से मुक्का बना कर बलदेव के सीने पर एक मुक्का मारती है।


"बदमाश! "

और अपना सर बलदेव के चौड़े सीने में शर्म से छुपा लेती है।

बलदेव: बोलो भी!

देवरानी एक बार अपना सर ऊपर उठाती है और बलदेव के चेहरे पर देख कर शर्माते हुए कहती है।

देवरानी: हाँ इसकी भाषा भी समझना पत्नी का धर्म है।

और वापस अपना सर बलदेव के सीने में छुपा लेती है।

बलदेव देवरानी मोटे खरबूजे जैसे अकार की गांड को सहलाते हुए पकड़ता है और नीचे से अपने खड़े लंड से ऊपर की तरफ अपनी माँ की चूत पर धक्का मारता है।

देवरानी: आआह!

बलदेव: तो समझो ना माँ इसकी भाषा!

बलदेव इस बार और ज़ोर से अपना लौड़ा देवरानी के बुर पर मारता है।

देवरानी की पैरो की पायल छन-छन बज रही थी। जब भी बलदेव अपनी माँ को दबा रहा था और पूरे काक्षा में दोनों प्रेमी जोड़े के अहसास महौल को गर्म बना रहे थे।

पर वही बगल के हे कक्ष में बंधे राजा राजपाल को पूरी बात तो नहीं सुन रही थी पर इन दोनों माँ बेटे (जो अब पति पत्नी थे) की खुसुर फुसुर की आवाज आ रही थी और राजपाल को समझने में देर नहीं लगी के अंदर उसकी पत्नी और उनका बेटा क्या गुल खिला रहे हैं तभी राजपाल को देवरानी की जोर की कराह "आआआह" " सुनाई दी और राजपाल अपना बंधा हुआ हाथ गुस्से में आकर खोलने की नाकाम कोशिश करने लगता है। उधर देवरानी इस बात से बिल्कुल अंजान थी कि उसका पहला पति राजपाल साथ वाले कक्ष में बंधा हुआ उसकी हर जोर की कराह सुन रहा था।

पलंग पर दोनों माँ बेटे एक दूसरे में सांप ो के जोड़े की तरह लिपटे हुए थे और बलदेव देवरानी की पीठ से ले कर गांड तक सहलाये जा रहा था।

देवरानी: कुछ सालो बाद मैं तो बूढ़ी हो जाऊंगी तो फिर अपने इस शेर के लिए तो दूसरी परी ढूँढ़ोगे ही!

देवरानी बलदेव के लौड़े पर निशाना मारते हुए कहती है।

बलदेव: माँ कौन कहता है तुम से कि तुम कुछ ही साल में बूढ़ी हो जाओगी? तुम्हारी उम्र अभी 34 साल ही तो है।

देवरानी: पर तुम तो 18 के हो।

बलदेव: माँ तुम 60 साल की हो जाओगी तो भी मैं तुमसे उतना प्यार करूँगा और किसी गैर स्त्री को देखूँगा नहीं।

देवरानी: देखते हैं वह तो समय बताएगा।

बलदेव देवरानी को पकड़ कर अपने बाहो में कस लेता है और पलट कर देवरानी के ऊपर आता है।

बलदेव देवरानी के दूध के बीच अपना मुंह रख कर अपना लौड़ा देवरानी की चूत के ऊपर रख कर दबाते हुए कहता है ।

"मां मेरा ये शेर तुम्हें कभी बूढ़ा नहीं होने देगा और वैसे भी शेर शेरनी कभी बूढ़े नहीं होते।"

"तो मेरे राजा तो तुम हमेशा मुझपे ऐसे ही चढ़े रहोगे।"

"हाँ माँ राजपाल ने तुम खोल तो दिया पर फेला नहीं पाया।"

"भक्क!"




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"सच्ची माँ इसलिए तुम गदरा गई पर फेली नहीं। मैं और मेरा शेर मिल के तुम्हारी सेवा कर के फैला देंगे, फिर देखना तुम्हारी जवानी कहर ढाएगी।"

"बड़ा आया देखेंगे सही में शेर है या चूहा।"

देवरानी बलदेव को अपनी बाहों में भर लेती है और बलदेव को अचानक से पलट कर उसके ऊपर आ जाती है।

"मां हम से ना जीत पाओगी, पत्नी हो इसलिए छोड़ रहा हूँ।"

देवरानी: चुप रहिए आप के अंदर अभी ताकत की जरूरत है दूध पी लीजिये ।

देवरानी पास रखे दूध का गिलास ले कर बलदेव को देती है बलदेव उठ कर बैठ जाता है और गिलास हाथ में ले लेता है ।

"माँ दूध तुम पियो जिससे हमारे आने वाले बच्चे को दूध की कमी ना हो।"

देवरानी बलदेव के साथ बैठ कर कहती है ।

"लो पियो दूध नखरे मत करो बलदेव जी!"

"सोच लो देवी जितना दूध पिलाओगी उतना मेरा सांप आपके बिल को खोदेगा ।"

देवरानी ये सुन कर लज्जा जाती है।

"पियो ! सब मर्द ऐसे ही कहते हैं।"

बलदेव देवरानी की नज़र एकर अपने एक हाथ से गिलास को पकड़ता है और देवरानी एक हाथ से गिलास पकड़ती है। बलदेव नीचे झुक कर दूध पीने लगता है।

"मां इस दूध में वह मजा नहीं जो वह दूध में है।"

बलदेव देवरानी के बड़े दूध की थैलियों की ओर इशारा करता है।

"माँ अब तुम भी पी लो!"

बलदेव दूध का ग्लास देवरानी की ओर बढ़ाता हैऔर देवरानी भी दूध पीने लगती है ऐसे वह बारी-बारी से दोनों दो ग्लास दूध पीते है ।

देवरानी: कहते हैं पति का झूठा पीने से प्यार बढ़ता है।

तभी बलदेव को कुछ ध्यान आता है या वह पलंग से उतर कर उस थाली में से कुछ जड़ी बूटी देवरानी को देते हुए कहता है ।

बलदेव: देवरानी जी ये कमला ने दी थी तुम्हें खिलाने लेने के लिए कहा था। क्या है ये?

देवरानी बलदेव से हाथ ले कर वह दूध के साथ गटक जाती है।

देवरानी: ये हम औरतो की बात है।

देवरानी पास रखा मोमबत्ती जो बुझ गयी थी फिर से जला देती है।



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देवरानी खडी हो कर गिलास और जग को वापस मेज़ पर रखने जाती है और बलदेव देवरानी के लचकती गांड, उसके हिलते पपीतो जैसे दूध, गोरी मखमली पेट, हाथो पैरो पर लगी मेहंदी, पायल की छन छन, देवरानी के माथे पर सिन्दूर और गले में बलदेव के नाम का मंगलसूत्र को देखता रह जाता है । देवरानी इस समय काम देवी से कम नहीं लग रही थी।

बलदेव खड़ा होता है और देवरानी के पीछे जा कर अपनी बाहों में भर लेता है।

"मां तुम कितनी सुंदर हो!"



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"आह राजा!"

"रानी माँ ऐसे बिजली बाहर मत गिराना, नहीं तो बूढ़ा भी अपने आप पर काबू नहीं कर पायेगा।"

बड़ेव अपना लौड़ा देवरानी के घाघरे के ऊपर से वह उसकी गांड में रगड़ता है।

"मां आज तुम कितनी मादक लग रही हो और महक रही हो! आह तुम्हआरी महक सूंघ कर मेरा शेर खड़ा हो गया है ।"

"आज राजा तुम भी आज इस शादी के जोड़े में किसी महाराज से कम नहीं लग रहे हो और तुम भी तो महक रहे हो।"

"तो आओ ना रानी आज तुम्हें अपना बना लूं।"

"मैंने कब मना किया है?"



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बलदेव देवरानी को घुमाता है और ज़ोर से गले लगा लेता है।

देवरानी बलदेव के पीठ को सहलाते हुए कहती है।

"आआह बेटा मेरे पति!"

बलदेव अपना हाथ ले जा कर पीछे से देवरानी की गांड पर लगाता है।, उसे ज़ोर से दबाता है ।

"आअअअअअअअआआह बेटा!"

देवरानी इतना जोर से चीखती है कि आवाज राजा राजपाल के कानों में पड़ती है। वह बेचैन हो जाता है ।

बलदेव देवरानी के आगे आकर देवरानी के मम्मो को पकड़ कर फिर पैरो को दबाते हुए बैठने लगता है।

"मां तुम्हारी जैसी सुंदर स्त्री पूरे संसार में नहीं है । मुझे आज्ञा दो माँ के आज बाद में आपका पति बन के पति धर्म निभा सकु।"



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"मां मुझे आशीर्वाद दो।"

"बेटा ये क्या कर रहे हो।"

देवरानी बलदेव को कंधे से पकड़ कर अपने से गले लगा लेती है।

"मां तुम कहती हो, माँ मैं तुम्हें रानी माँ क्यू कहता हूँ क्यू के मैं चाहता हूँ कि दुनिया वाले के सामने हम सिर्फ पति पत्नी रहेऔर हम जब हम अकेले में हों तो हम दोनों रिश्ते निभाएँ ।"

"बेटा आज से मैं तेरी पत्नी हूँ तू मेरा पैर ना छूना आज के बाद । इससे मुझे पाप लगेगा।"

"मां जब पारस में चाचा की बेटी से विवाह कर लेते हैं तो क्या उनका खून बदल जाता है। रहते तो वह दोनों विवाह के बाद भी भाई बहन ही है ना और उनके पिता जो आपस में भाई होते हैं वह समधी बन जाते हैं और फिर दोनों भाई वह दोनों रिश्ते निभाते हैं। अगर ये हो सकता है तो हम क्यू नहीं कर सकते ।"



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"तुम सच कह रहे हो, भाई भी अपने बच्चों की शादी कर के भाई-भाई समधी भी हो जाते हैं और जब वह दो रिश्ता रख कर जीवन आराम से काट सकते हैं तो हम क्यू नहीं कर सकते ।"

"माँ आज मुझे पत्नी को भी भोगना है और माँ को भी । तुम मेरी पत्नी माँ हो इसलिए मैं आज से तुम्हे रानी माँ कहूँगा।"

"ठीक है बेटा आज से तुम मेरे राजा बेटा और मैं तुम्हारी रानी भी माँ भी । खुश!"

"रानी माँ मुझे आपके संगेमरमरी शरीर को देखना है।"

"खुद देख लो!"

देवरानी का दिल ज़ोर से धड़कने लगता है बलदेव आगे बढ़ कर देवरानी का पल्लू को उसके भारी दूध से हटाता है।

"मां तुम्हारे हुस्न के चर्चे यहाँ से पारस तक है । मैं उस हुस्न का दिद्दार करना चाहता हूँ । मैं तुम्हें दिन रात प्यार करना चाहता हूँ।"



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बलदेव देवरानी के ब्लाउज को पीछे से निकाल कर अलग करते हुए कहता है ।

"मां तुम्हारे हाथों में ये चुड़िया कंगन बहुत जच रही है।"

"मैंने ये सब शृंगार अपने राजा बेटे के लिए ही किया है।"

"मां जब तुम चलती हो तो छन-छन तेरी पायल की झंकार से मेरा दिल घायल हो जाता है।"

बलदेव देवरानी का ब्लाउज़ निकल कर फेंक देता है और अलग बैठ कर देवरानी की सुंदर पैरो को देखता है देवरानी अपनी पैर के उंगली बिस्तर पर दबा रही थी बलदेव नीचे बैठ कर देवरानी के पैर को चूमता है।

"आह बेटा!"

"मां कितने ऊपर तक मेहंदी लगाई हो कहीं योनि भी तो नहीं रंग दिया।"

कहते हुए बलदेव जिभ निकल कर पैर को चाटने लगता हैं।

देवरानी ये सुन सिहर जाती है।

"हट पगले आह!"

बलदेव अब उठ कर अपनी माँ को बाहो में भर कर पलंग पर लिटा देता है और खुद देवरानी की पैरो की उंगली को मुँह में ले कर चुसने लगता है।

"आह बेटा उहह औउम्म्म्ह!"


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बलदेव धीरे-धीरे ऊपर आता है और अपनी माँ के मखमली पेट पर अपना मुंह लगा कर चाटने लगता है और कभी नाभि में अपना जिभ डाल कर चूसता है ...बलदेव अब देवरानी की टांगो को मोड़ देता है और अपनी माँ के मखमली पेट पर अपना मुंह लगा कर जाँघि के बीच रख कर जांघो को चुमता है।

"इश्ह्ह बेटा!"

"मां उफ़ तुम्हारी ये मांसल जांघ, उम्हा!"

"माँ तुम्हारा ये मखमली पेट!"

बलदेव अब देवरानी के हाथों को अपने दोनों हाथों में फसा कर ऊपर होते हुए देवरानी के हाथों को अपने दोनों हाथों के भर लेता है और चूसने लगता है।

"गैलप्पप गैलप्प गैलप स्लरप्प्प्प उम्म्म्ह गैल्प्प्गलप्प् गैल्प्प्प्प गैल्प्प गैल्प्प्प्प गैल्प्प गैल्प्प् गैल्प्प!"

देवरानी अपना जिभ निकाल कर बलदेव के मुंह में भर देती है और बलदेव देवरानी की जिभ को अपने जिभ से पकड़ लेता है और फिर अपने होठों से अपनी माँ की जिभ को पकड़ कर चूसता है।

देवरानी: आआअहह उम्म्म्म!

बलदेवः म्ह्ह्ह्म्म्म आह!

देवरानी अपने बेटे के सर को सहला रही थी बलदेव नीचे हाथ ले जा कर ब्रेज़ियर में क़ैद अपनी माँ के 38 के दोनों पपीतो को पकड़ लेता है और ज़ोर से दबा देता है।

देवरानी अपने होठ बलदेव से अलग कर के कराहती है ।



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देवरानी: आआआआआआ!

देवरानी ज़ोर से चिल्लाती जिसे राजपाल सुन लेता है।




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देवरानी: धीरे से मेरे राजा बेटा!

जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 91-B

सुहागरात -पहला सम्भोग


बलदेव: रानी माँ तुझे देख के अपने आपको रोकना मुश्किल हो जाता है।


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बलदेव फिर देवरानी के चेहरे को चूमने लगता है कभी उसके कान को चूमता तो कभी उसकी आँखों को तो कभी उसके माथे को । नीचे बलदेव के हाथ देवरानी के भारी मम्मो को बुरी तरह से पीस रहे थे और देवरानी सिस्की लेते हुए आँखे बंद किये हुए लेटी हुई थी।

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"आह राजा ऐसे हे मेरे पति!"

बलदेव नीचे हाथ बढ़ा कर देवरानी के लाल घाघरा के नाड़े को खोल देता है अब देवरानी सिर्फ एक गुलाबी ब्रेज़ियर और जांघिये में थी।




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"मां तुम इज ब्रेज़ियर और जांघिये में काम देवी से कम नहीं लग रही हो।"

"हाँ बेटा ये छोटा है।"

"मां ये छोटे नहीं आपका शरीर ज्यादा भारी है।"

बलदेव देवरानी को अपने बाहो में ले लेता है और उसको बेतहाशा चूमने लगता है।

बलदेव पलंग से उतर कर खड़ा होता है और देवरानी को अपनी बाहों में ले कर उठा लेता है।

"अरे राजा बेटा कह ले जा रहे हो।"

"मां मुझे तुम्हारी बुर को चाटना है।"

"धत्त!"

शर्मा जाती है देवरानी।

बलदेव देवरानी को उठा कर मखमली गद्देदार कुर्सी पर बैठा देता है और खुद नीचे लेट कर बोलता है ।

"माँ चूत खोलो मुझे चाटना है। "

"हट बदमाश कहीं कोई ऐसे बोलता है क्या?"

बलदेव अपनी जीभ बाहर निकाल कर देवरानी के जांघिये के ऊपर से देवरानी की जांघो को चाटता है और फिर अपनी जीभ जांघिये के ऊपर से पाव रोटी जैसी फूली हुई अपनी भारी भरकम माँ की मोटे होठों वाली चूत को अपने जीभ से छूता है।

"आह बेटा!"

बलदेव अपने आखे बंद किये जीभ से ऊपर से ही चाटने लगता है, देवरानी से रहा नहीं जाता है और वह अपने ब्रेज़ियर के ऊपर से अपने दूध को मसलने लगती है फिर हाथ नीचे ले जा कर अपनी जांघिये को खींचते हुए कहती है ।

"ले बेटा चाट ले अपनी माँ को!"

बलदेव अपनी माँ की चूत को देख पहले अपने होठों से उसको चूमता है फिर अपनी जीभ लगा कर चाटते हुये कहता है ।

"माँ पूरा कहो ना ! "

"आह हम्म उह क्या कहु?"

"क्या चाटु आपका?"

"आह राजा मेरी बुर चाट ले!"

बलदेव अपने जिभ की नोक बना कर चटने लगता है।




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देवरानी सीधी बैठती है और अपना उंगली बलदेव के मुंह में रख कर मुस्कुराती है ।

"बड़ा चटोरा है तू"

"तेरे चूत में इतना रस, है माँ, की मैं चटोरा बन गया।"

"अब बस चलो बिस्तर पर!"

देवरानी उठ खड़ी होती है बलदेव भी उठ कर बिस्तर पर लेट जाता है।

देवदानी उठ ते फिर से अपनी चूत को जांघिये से ढक लेती है।

"माँ क्यू ढक रही हो, निकल दो इसे अब!"

देवरानी एक अदा से अपनी जांघिया निकलती है।

"लो अब खुश मेरा राजा बेटा!"




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"मां तुम्हारी ये झटेदार चूत मुझे दीवाना बना रही है।"

"हैट पगले!"

या लज्जा कर अपना सार आला कर की खादी हो जाती है।

"मां खड़ी हे रहोगी क्या जरा अदा से चल कर आओ जैसे वस्त्र में अपनी भारी गांड या चूचे मटका के मुझे दीवानी की वैसी हे।"

देवरानी एक अदा से चल कर आने लगती है उसका भारी चूचे एक सुर में हिल रहे थे उसकी गांड की थिरकन या पेट देख बलदेव अपना वस्त्र निकाल कर फेकने लगता है।

"मां तुम्हारी यही चल ने मेरे लैंड को बहुत परेशान किया क्या है आज तेरी चाल खराब कर दूंगा ।"



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देवरानी देखती है बलदेव अपना पूरा वस्त्र निकाल दिया है या अपने लौड़े को हाथ से पकड़ लेता है।

बलदेव जैसा वह अपना हाथ लौड़े से हटाता है।

देवरानी आँख फाडे रुक जाती है।

देवरानी: यार मैं मर जाऊंगी आज लगता है कितना बड़ा है।

"क्या हुआ रानी माँ शेरनी बनती थी बहुत लो अब मेरा लौड़ा तो जानू कितनी बड़ी महारानी हो पारस की।"

देवरानी डर तो रही थी पर डरने का नाटक नहीं करती।

" मैं डरने वालो से नहीं। "

बलदेव ये सुन खड़ा हो जाता है।

"आजा मेरी रानी ।"

"क्या मैं ये सब नहीं कह सकता ।"

"मां नाटक ना करो कामसूत्र की पुस्तक में पढ़ी तो हो कैसे क्या जाता है।"

देवरानी मुझे सोच में थी क्या करे।

"माँ लो ना इसे मुँह में यहीं आज से आपका असली पति हूँ जो आपकी और आपकी चूत की सेवा करेगा।"

देवरानी शर्मा जाती है और धीरे से नीचे बैठ जाती है।

बलदेव आगे खिसक कर देवरानी के मुंह के पास अपना 9 इंच का हल्लाबी लौड़ा ले जाता है। देवरानी ने मुँह हल्का-सा खोला ही थी के बलदेव देवरानी का सर पकड़ कर लंड देवरानी के मुँह में ढकेल देता है।

"उह मम्म आह!"

"ले मेरी रानी अपने बेटे का लौड़ा ले!"

देवरानी अपने हाथ में जैसे तैसे लंड पकड़ मुँह में।


"गल्प" से ले कर चूसने लगती है।

मुँह में लेते ही उसे एक झटका लगता है।

"कितना गरम है राजा ये लोहे-सा है।"

"तुम्हारे जैसा मज़बूत माल के" लिये लोहे का लौड़ा ही चाहिए । मेरी रानी! मुँह में भर के चूसो इसे।"

"उम्म्ह माँ ऐसे ही हम्म्म्म!"

थोड़ी देर लौड़ा चूसने के बाद!

"राजा बेटा बस!"


"आज सुहाग रात है हमारी आज बस नहीं!"
बलदेव देवरानी को उठा के बिस्तार पर पटक देता है।

"ओह्ह माँ! तुम्हारे ये भारी मम्मे! हाथ में लो अपने मम्मे!"

देवरानी अपने हाथों में अपने दूध ले लेती है।




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"आओ चूसो इसे मेरे राजा!"

"मां इनकी थिरकन ने मुझे बहुत सताया है।"



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बलदेव डोनो मम्मो को बारी-बारी से खूब दबा-दबा के चूसता है फ़िर देवरानी को पलटा कर देवरानी की गांड पर दो थप्पड ज़ोर से मारता है।

"आआआआ बेटा नहीं!"

देवरानी अचानक अपने नितम्बो पर ऐसे थप्पड़ मारे जाने से जोर से चिल्ला उठती है और उसकी आवाज फिर से उसके पहले पति राजपाल के कानो में गूंजती है।

बलदेव देवरानी की गांड को बेरहमी से दबाने लगता है।

"माँ इस गांड को इतना मटकती हो तुम कभी लिया है कि नहीं इसमें लौड़ा।"

देवरानी बलदेव के सीने से लग जाती है।

"पति देव जी नहीं लिया कभी । ऐसी गंदी बाते ना करो ना मुझे शर्म आती है।"

बलदेव अपना लौड़ा देवरानी की चूत पर घिसता है और अपने एक हाथ से देवरानी की बुरी गांड को पकड़ कर मसल रहा था और दूसरे हाथ से एक दूध को मसल रहा था । देवरानी के होठों को अपने होठों में लिए बलदेव चूस रहा था।

"तुम्हारा अंग-अंग मुझे पागल कर रहा है मेरी रानी!"

"आह बलदेव तुमने मेरा शरीर तोड़ कर रख दिया । चारो ओर से सब कुछ मसल रहे हो । मैं भी ऐसे मसलवाने के लिए मैं बहुत तरसी हूँ।"

"अभी तक तुम्हें कोई मर्द नहीं मिला था। माँ आज तुम्हें पता चलेगा मर्द क्या होता है ।"

"हन रज्जजाआह आह कमला सही कहती थी मेरे जैसे भारी भरकम स्त्री के लिए कोई तगदा मर्द हे चाहिए, जो अंग-अंग निचोड़ दे जैसे तुम निचोड़ रहे हो।"

बलदेव देवरानी को बिस्तर पटक देता है।

"देवरानी अभी तुम्हें पता चल जाएगा ये तुम्हारा बेटा चूहा है या शेर।"

देवरानी को लिटा कर बलदेव अपना खड़ा लौड़ा देवरानी के बड़े मम्मो के बीच रख देता है और आगे पीछे कर पेलने लगता है।

"ये लो मेरी रानी इसे अपने बड़े दूध में बहुत कूदते हैं ये ना ये।"

"आआह बेटा आह!"

"अपना मुँह खोल मेरी रानी।"

देवरानी अपना मुँह खोलती है।

बलदेव एक दो घस्से दोनों पपीतो के बीच लगाता है।

और फ़िर बलदेव अपना भारी हल्लाबी लौड़ा देवरानी के खुल्ले मुँह में भर देता है।

"लो इसे चूसो!"

"उन्ह अम्म्म्म आआआह उह्म्म्म!"

देवरानी चस्का ले कर लंड चुसने लगती है।

बलदेव का लौड़ा परिकम का हल्का पानी छोड़ रहा था जिसे देवरानी चाट लेती है बलदेव अब सीधा लेट जाता है और देवरानी बैठ कर फिर से बलदेव का लौड़ा पकड़ लेती है।

देवरानी बलदेव के लौड़ा को पकड़ कर ऊपर नीचे करते हुए मुंह से चूसे लगाने लगती है।

"आआह माँ ऐसे ही।"

"बेटा मुझे यकीन नहीं होता इतना बड़ा हो सकता है ये।"

"आह आ माँ ऐसे ही हिलाओ।"

देवरानी झुक कर "गप" से मुहं में अपने बेटे का पूरा लौड़ा भर लेती है और उसे चूसने लगती है।

"आआआह मा जीभ से चाटो हा आआह ऐसे ही चाटती रहो ।"

बलदेव अब उठ गया फिर से देवरानी को सीधा लिटा की चूत को देख कर कहता है ।

"माँ ये वही चूत है जिसके सपनों ने मेरे काई राते ख़राब की है।"

"आह तो देख ले इसे जितना देखना है।"

"सिर्फ देखूंगा नहीं...!"

बलदेव अपनी बीच की उंगली चूत में डाल देता है।

" आह राजा! हे भगवान देवरानी अपनई आँख बंद कर लेती है और बलदेव उंगली आगे पीछे करने लगता है। थोड़ी देर उंगली करते हुए बलदेव नीचे झुक कर देवरानी की चूत के दाने को चाटता है और दो उंगली चूत में घुसा देता है।

"आआह राजा आआआह हाय! उफ्फ्फ हे भगवान!"

बलदेव देवरानी की चूत में अपनी जीभ से देवरानी की चूत को खुरच रहा था देवरानी की चूत पानी छोड़ने लगती है।

देवरानी को बलदेव खीचता है और अपना लौड़ा हाथ में ले कर देवरानी की चूत पर लगाता है और अपने लैंड से चूत के चारो ओर सहलाता है।

देवरानी आख बंद किये पड़ी थी।

देवरानी: (मन में) हे भगवान बच्चा लेना।

"रानी माँ डाल दू।"

"हाँ राजा!"

"देवरानी! आखे तो खोलो मेरी जान।"

"नहीं मैं नहीं देख सकती।"

"कुछ नहीं होगा रानी डरो मत! नहीं तो मैं नहीं डालूंगा!"

देवरानी ये सुनते हैं वह अपने आखे खोल देती है।

"राजा बेटा ना तड़पाओ ना! अब करो।"

"क्या करु माँ?"

"आह राजा जिसका तुम दिन रात सपना देखा करते थे । वह करो! मुझे पूरी तरह से अपनी पत्नी बना लो ।"

"क्या करु महारानी देवरानी?"

"कमीने...तो सुनो! अपना लिंग को मेरे योनि में प्रवेश कराओ! देवरानी को ये चाहिए!"

"मां मुझे आपके शब्दों का अर्थ समझ नहीं आया" बलदेव शैतानी के साह मुस्कुराता है ।

"राजा बेटा अपनी माँ को पत्नी बना लो । अपना मोटा लौड़ा मेरे चूत में डालो।"

ये कहते हुए देवरानी अपना हाथ ले जा कर लौड़ा अपने हाथो से पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर रख लेती है और अपनी आँख बंद करके प्रार्थना करने लगती है।

बलदेव मुस्कुरा कर अपने बहुत पर हाथ फेरता है या देवरानी के संगेमरमरी शरीर को ऊपर से नीचे तक देख कर एक जोरदार धक्का मारता है।


"" खच्च्ह्ह" की आवाज से लौड़ा देवरानी की चूत में घुस जाता है और देवरानी चिल्ला पड़ती है ।

बलदेव: आआह माँ!

बलदेव भी आखे बंद कर लेता है।

देवरानी: आआआआआआआआह हाये मैं मर गयी।

देवरानी की पनियाई चूत में खच से लौड़ा अंदर घुस जाता है।

बलदेव आख बंद किये थे और देवरानी भी आख बंद किये चिल्लाये जा रही थी।

बलदेव बिना रुके धीरे-धीरे धक्के मार रहा था।

देवरानी आअह्ह्ह मर गयी बलदेव आईईईईईईईई दर्द उउउउइईईईईई दारद्दड़ड़ड़ड़ हो रहा है और देवरानी की चीख से बलदेव और मदहोश हो गया और देवरानी की हथेलियों को अपनी हथेली से दबाते हुए उसकी की चूत पर एक ज़ोर का शॉट मारा और उसका लंड 2 इंच अंदर घुस गया। अब दर्द से दोहरी देवरानी मा मा कहकर चीखने लगी और छटपटाने लगी थी। फिर बलदेव ने उसकी चीखों की परवाह किए बिना एक ज़ोर का धक्का और मारा तो उसका फनफनाता हुआ लंड उसकी चूत को फाड़ता हुआ 5 इंच अंदर घुस गया।

अब वह मा कहकर ज़ोर से चिल्लाने लगी थी और चीखने लगी थी, मुझे मार डाला जालिम है, मार डाला मुझे आआईईईईई रे प्लीज़ अपनी मुझ पर रहम कर, पूरी लोहे की रोड घुसा दी है, में मर जाउंगी, आआई आईईईई। मर गयी!

देवरानी: निकाआलो निकाआआलो।

ये आवाज़ इतने ज़ोर से थी कि राजपाल का सर दुखने लगता है और उसकी आँखों में आसु आते हैं।

बलदेव ने अपना लंड 2 इंच बाहर निकालकर फिर से एक ज़ोर का शॉट मारा तो लंड उसकी चूत को चीरता हुआ चूत की जड़ में समा गया। फिर जो वह चीखी, तो पॉर्रा महल हिल गया, लेकिन बलदेव उसे चोदता रहा, चोदता रहा।

बलदेव अपनी आंखें खोलता है और चूत की तरफ देखता है तो उसने देखा कि देवरानी की चूत से खून निकल रहा था ।

देवरानी अपने पैर बलदेव के सीने पर रख धक्का देती है और खुद पीछे हो जाती है।

" पच्च की आवाज से चूत से लौड़ा निकल जाता है जैसे बोतल का धक्का खुला हो।

देवरानी दर्द से कराह रही थी उसकी आँखों में आसु थे।

बलदेव झट से पास पड़ा कपड़ा उठाता है और पहले अपने लौड़े पर लगा खुन साफ किया फिर अपनी माँ के पास जा कर उसका चूत साफ कर के अपनी माँ को बाहो में ले कर उसके ऊपर आजाता है।

"मां इतने सालो बाद ले रही हो थोड़ा तो दुखेगा।"

देवरानी के होठों को चूमते हुए देवरानी के कान को चुम कर कहता है।

"रानी माँ आज ना कल तो लेना है आपको आपने कभी इतना बड़ा नहीं लिया और ऊपर से 17 18 बरस बाद आप सम्भोग कर रही हो।"

देवरानी हिम्मत कर के बलदेव के पीठ पर हाथ फेरते हुए।

"मुझे क्षमा कर दो मेरे राजा ये तो मेरा पत्नी धर्म है और इस दिन के लिए तो मैं सालो से तड़पी हूँ। अब, मैं पीछे कैसे हट सकती हूँ।"

बलदेव देवरानी के बाल को पीछे करते हुए उसे चूमता है ।

"मेरी रानी सिर्फ एक बार जगह बन जाने दो । कई बरसों का वीरान है ये जगह, हम दोनों को ही इसे हरा भरा करने के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत करनी है।"

"आह मेरे राजा आजा चोद अपनी माँ के अच्छे से! चोदो मेरे राजा मुझे चोदो, अपनी माँ चोदो!"

अपनी माँ का जोश देख कर बलदेव फिर से अपने लौड़े को चूत के मुँह पर लगाता है और धीरे से चूत के गहराई में डालता है।

देवरानी: आआह उह्म्म!

बलदेव आगे बढ़ कर देवरानी के होठों को अपने होठों से पकड़ कर मसलता हैऔर एक हाथ से देवरानी के भारी मम्मे को पकड़ कर मसलता है।

देवरानी दर्द को सहते हुए अपना हाथ बलदेव के कमर में लपेट लेती है और अपनी टांगो को मोड़ कर बलदेव के पैरो में फंसा लेती है।

बलदेव ने आधा लौड़ा अंदर डाल दिया था थोड़े देर रुकने के बाद जैसे ही उसने देखा है कि देवरानी अब धीरे-धीरे सांस ले रही है, तो वह एक दोऔर तगड़े झटके मारता है और देवरानी के मुंह से सिर्फ "उजम्म्म आप" की आवाज आती है और बलदेव फिर से उसके होंठ चूसने लगते हैं देवरानी की चूत अब बलदेव के पूरे लौड़े को गटक गई थी।

बलदेव: (मन में) मैं अगर अभी निर्दय नहीं हुआ तो साली जल्दी हाथ नहीं आने वाली और फिर ज़ोर ज़ोर से झटके मारने लगता है। बलदेव का लौड़ा देवरानी की चूत से निकलता है तो सकी चूत के पानी से भीग रहा था।

देवरानी को हर धक्के के साथ बहुत दर्द हो रहा था और उसकी हर चीख अब घुट कर रह रही थी और । देवरानी को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई उसके पेट में भाला घुसा रहा है उसके आखो से आसू दोनों तरफ बह रहे थे पर बलदेव अपने धक्को में कोई कमी नहीं करता । वह उसे लगातार चोदता रहता है। कुछ 10 मिनट बाद देवरानी को अब उतना दर्द नहीं हो रहा था और वह समान रूप से लौड़े के झटके को महसूस कर के मजे लेने । लगती है। बलदेव उसके होठों को छोड़ दोनों हाथों से उसके बड़े दूध को मसलते हुए धक्के लगाता है।

देवरानी बलदेव को धक्के लगाते हुए देखते हुए उसे चूम कर कहती है ।

"आखिर आपने किले पर कब्ज़ा कर ही लिया।"

"महारानी अभी तो किले पर क़ब्ज़ा ही किया है अभी तो ख़ज़ाना लूटना बाकी है।"

ये कह कर बलदेव अपना एक हाथ देवरानी की गांड पर मारता है।

"आह नहीं राजा वह खज़ाने के पास भी नहीं फटका है कोई. उसे लूटने की सोचना भी मत।"

बलदेव धक्के पर धक्का लगा रहा था।

"मेरी पत्नी हो महारानी। अब किला भी हमारा और खजाना भी।"

"आआआह आह जान ले लोगे मेरी।"

बलदेव ये सुन कर देवरानी को ऊपर झुक जाता है और देवरानी के होठों को चूसते हुए लगता है ।

"जान तुम्हारी गई, तो मैं कहाँ जिंदा रहूंगा, मेरी प्रेमिका, मेरी मां, मेरी धरम पत्नी मेरी सब कुछ तो तुम हो।"

फच्च फच्च की आवाज पूरे कक्ष में गूंज रही थी उसके साथ वह देवरानी की चूडियो की खनक और पायल की छनक से पूरा महौल को मादक बना रही थी ।

"आआह माँ मैं मर गई । ऐसे ही करो । चोदो! आह इतना बड़ा है तुम्हारा लिंग। तुम्हारे पिता राजा राजपाल तो नपुंसक थे आआह।"

"राजपाल का धन्यवाद जिसकी गलती के कारण से मुझे ऐसी शानदार चूत मिली।"

"आज मुझे इतना मोटा और बड़ा लिंग मिला है, आह मेरा जीवन सफल हो गया राजा, आह! ऐसे ही करते रहो!"

"इतने ज़ोर से धक्के मार रहे हो। राजा बेटा की लग रहा है मेरे पेट में मेरी योनि में, लिंग नहीं तलवार डाल रहे हो । आआह उम्म्म! मेरे राजा आज सही मानो में मेरी सुहागरात हुई है। आह"

घप्प घप्प-घप्प घप्प कि आआज़ पूरे कक्ष में गूंज रही थी ।

"रानी माँ मेरी पत्नी तुम्हारी जैसी माल को पाना ही मेरा लक्ष्य था। बहुत तड़पाया तुमने ये लो!"

फ्टच फ्टच की आवाज के साथ बलदेव पूरी ताकत से धक्के लगा रहा था।

"हाय मर गयी मैं! हे भगवान1 आआआह आह ऊ आआआह ऊऊ आआह!"

"ये ले मेरा मुसल अपनी चूत में। मेरी रानी अब तो पंडित जी ने भी कह दिया है दूधो नहाओ पूतो फलो । तुझे तो मैं चोद-चोद के हर साल बच्चे पेदा करूंगा।"

"आह मैं कोई गाये नहीं जो हर साल आआह बच्चे ओह दूँ! आआह ऐसे ही करते रहो!"

फिर बलदेव ने देवरानी की जमकर धुनाई करते हुई चुदाई की।

"तुम मेरी रांड हो आह!"
हाँ क्यू नहीं कहोगेमुझे रंडी वैश्यों के पास गए तो थे पारस में। आह रेशमा के पास आहा हन! ऐसे ही करते रहो! "

फच्च फच्च घप्प-घप्प घप बलदेव पेले जा रहा था।

"मेरी रानी तुम्हें बहुत बुरा लगा था, मैं कोठे पर गया था तो, आह हाँ ये ले!"

देवरानी: मेरे राजा मैं अब तुम्हारी पत्नी हूँ इतना प्यार दूंगी तुम्हे की तुम किसी और को देखोगे भी नहीं।

ये कह कर बलदेव को लिटा देती है और खुद अपने पैर दोनों तरफ कर के बैठ जाती है और बलदेव ले लंड पर कूदने लगती है।

"आह मेरे राजा मैं अपने पति को अपने बेटे से एक वैश्या की तरह चोदवा लुंगी पर अपने पति को कभी कहीं और मुंह नहीं मारने दूंगी।"

थप थप-थप की आवाज गूंज रही थी।

देवरानी अपनी भारी भरकम गांड के लिए ऊपर नीचे हो रही थी । बलदेव का लंड देवरानी की चूत के जड़ तक ऐठ कर अंदर बाहर हो रहा था। देवरानी ही दर्द और मजे में आखे बंद हो रही थी ।

"आआह राजा आआआह मैं गई आआह नहीं आआआआआआआआआआआआआआ ओह्ह्ह!"

बलदेव देवरानी का कमर पकड़ कर ज़ोर से धक्का देता है। दो तीन घस्सो के बाद देवरानी की चूत रस का फव्वारा निकल आता है।

देवरानी लेट कर अपनी चूत पर हाथ फिराते हुए कहती है ।

"आआआह बेटा! हे भगवान ना जाने कितने वर्ष बाद ऐसे झड़ी हु! आ आआह मजा आ गया!"

बलदेव देवरानी को कमर से पकड़ता है।

"देवरानी इधर आ मेरी माँ, मेरा अभी नहीं हुआ है ।"

घप्प कर झुका के देवरानी की चूत में लंड पेल देता है।

"आआहह राजा धीरे से नहीं डालोगे क्या!"

बलदेव अपनी माँ के दोनों हाथो को पीछे से पकड़ कर तगड़े झटके मारने लगता हैं।

"अब बोलो रानी माँ कौन शेर है?"

"आआआह आआआ नहीं आआह!"

"ये ले मेरी रानी और ले।"

"आआह ना हा उम्म्म्म आआआह ओह्ह्ह उफ़ राजा बेटा आआआह!"

देवरानी को झुका कर बलदेव झटके पर झटके मार रहा था। जोरदार झटके को देवरानी सह नहीं पाती और उसकी आँखों में फिर से आसू आते है।

"आआह माँ अब इधर आओ! आआह मेरी पत्नी ये हमारा पहला है । हम दोनों जीवन भर को याद रहेगा।"

बलदेव देवरानी को अपने गोद में बिठा लेता है और हल्के धक्के मारते हुए झड़ने लगता है।

"मेरी रानी माँ आपकी चूत में जादू है आआह आआ आह!"

बलदेव आँखे बंद क्या झड़ रहा था। देवरानी अपनी चूत धीरे-धीरे बलदेव के लंड पर ऊपर नीचे कर के घिस रही थी।

"आह राजा!"

"आह माँ रानी!"

बलदेव और देवरानी दोनों एक दूसरे बाहो में ले लेते हैं और मस्कुराते हैं।

"कैसा लगा हमारा पहला मिलन मां? आज तुम मेरी पत्नी के रूप में पा कर मैं धन्य हो गया।"

"अति सुखमयी अति आनंदमयी मेरी आत्मा संतुष्ट हो गई. मेरे पति देव आप जरूर पिछले जन्म में मेरे पति रहेंगे और इस जन्म में बेटे के रूप में आए हो।"

"ओह्ह! देवरानी मेरी पत्नी!"

बलदेव ने अपना लंड अभी भी देवरानी की चूत डाला हुआ था और दोनों एक दूसरे को अपने अंदर तक महसुस करते हैं...।


जारी रहेगी ...

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महारानी देवरानी

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पहले मिलन की अति सुखमयी घडिया


"अति सुखमयी अति आनंदमयी मेरी आत्मा संतुष्ट हो गई मेरे पति देव आप जरूर पिछले जन्म में मेरे पति रहेंगे और इस जन्म में बेटे के रूप में आए हो।"

"ओह्ह्ह देवरानी मेरी पत्नी! मेरी रानी!"



ANK-D-SR-1
बलदेव ने अपना लंड अभी भी देवरानी की चूत डाले रखा था और दोनों एक दूसरे को अपने अंदर महसुस करते हैं।

बलदेव देवरानी को अपने गोद में बिठाया हुआ था और अपने लंड हल्के से धक्के मार रहा था, जवाब में देवरानी भी ऊपर नीचे हो कर अपने बेटे के लौड़े से खेल रही थी और लौड़े का पानी झड़ रहा था।

देवरानी देखती है आला चूत से पानी बह रहा है वह बलदेव को बहो में जकड़ लेती है या पीठ के बल लेट जाती है।


ANK-D-SR-2

"आह माँ !"

"आजा बेटा मेरे ऊपर तेरे वीर्य की एक बूँद भी नीचे नहीं गिरने देना ।"

बलदेव अपना लौड़ा पूरा जड़ तक चूत में ठेल देता है और देवरानी के मुँह से हिचकी निकलती है।


ANK-D-SR-3


"क्या हुआ माँ ठीक तो हो ना?"

"हाँ बेटा ठीक है वह तुम्हारा इतना बड़ा है जब वह पूरा अंदर जाता है तो ऐसा लगता है किसी ने पेट में भाला घुसा दिया हो ! आह! "



LICK
"रानी माँ आपकी चूत भी बहुत अच्छी है और तंग है । अभी जैसी-जैसी ढीली होगी आप मेरा लौड़ा आसानी से लेने लगोगी।"


SR-AD-19

"उह्म्म आह मेरी पूरी योनि भर गई है ऐसा लग रहा है बहुत पानी से आगया है मेरे अंदर।"

"हाँ ये मेरा पहला सम्भोग था इसलिए ज्यादा पानी गिरना ही था । इतना पानी इतनी बंजर जमीन को हरा भरा करने के लिए भी तो जरूरी था।"




ANK-D-SR-5
"हाँ ऐसा लग रहा है जैसे बरसो बाद वर्षा ऋतु आई है।"

"मैं तुम्हें हर रात ऐसे ही भोगना चाहता हूँ। मेरी रानी!"

बलदेव ये कह कर देवरानी के भारी भरकम बदन पर पूरा लेट जाता है और देवरानी के गले को चूमने लगता है।




ANK-D-SR-6


"आह आहा बेटा मुझे विश्वास नहीं हुआ की मुझे इतना प्यार करने वाला पति मिल गया है । मेरा रोम-रोम मस्ती में अंगड़ाई ले रहा है । मेरे शरीर का अंग-अंग ऐसे टूट रहा है जैसे मैंने पहली बार संभोग किया हो"
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CUM00

वीर्य के स्खलन के कुछ देर बाद बलदेव का लौड़ा अब देवरानी की चुत में ढीला हो जाता है पर देवरानी की चुत की गरमी झड़े हुए लौड़े को भी हल्का कड़ा बनाये रखे हुई थी । बलदेव का लौड़ा मुरझाने के बाद भी 6 इंच का हो गया था और उसका मोटा लंड जो अभी तब आधा कड़ा था अभी भी चुत में फंसा हुआ था।


"माँ अब मैं पूरा झड़ गया ।"

"हाँ बेटा तुम्हारा वह छोटा भी हो गया।"




ANK-D-SR-11
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"मां फिर से बड़ा हो जाएगा अपने असल पति के लौड़े को प्यार करो ।"

देवरानी मुस्कुराती हुई अपनी चूत के दोनों मुहाने को दबाती है जिस से बलदेव का लौड़ा दब जाता है ।

"आआह मेरी रानी तुम्हारी चूत में दम है ।"


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"हट इसीलिये तुमने पहले बार मैं ही इसकी मरम्मत कर दी।"

"अभी कहा कुछ किया । मेरी धर्म पत्नी देवरानी! ये तो सिर्फ शुरुआत मात्र है । अभी तो पूरी रात बाकी है।"



DEVR0
"कितना समय हो गया । पिछले एक घंटे से तो मेरे ऊपर चढ़े हुए हो। मन नहीं भरा?"

"रानी माँ अभी तो सिर्फ 8 ही बजे हैं।"

"पता ही नहीं चला 2 घंटे निकल गए ।"

"हाँ माँ और आप जैसी पत्नी से भला कैसे मन भर सकता है। अगर आप का मन भर गया है तो बोलो।"




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देवरानी बलदेव के सर पर हाथ फेरते हुए कहती है ।

"अले ले मेरा राजा बेटा बुरा मान गया। मैं इतने बरसों की प्यासी हूँ, तुम्हें तो पता है ना।"

और बलदेव को पकड़ कर बलदेव के कान को चूमने लगती है और उसके गले पर अपने गुलाबी होठों से चूमने लगती है।





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बलदेव देवरानी के दोनों हाथो को पकड़ कर कहता है ।

"वो तो मुझे पता है इतना मजबूत माल इतने जल्दी संतुष्ट नहीं हो सकती, तुम्हारी आग को बुझाने के लिए दिन रात तुम्हें पेलना होगा मेरी रानी!"



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बलदेव आगे बढ़कर देवरानी के होठों को जकड़ लेता है और अपने होठों को उसके होंठो को चूसने लगता है।

"गलप्प गैलप्प-गैलप्प गैलप्प गैलप्प स्लुरप्प गैलप्प-गैलप्प गैलप्प स्लुरप्प गैलप्प स्लुरप्प गैलप्प-गैलप्प स्लुरप्प !"



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देवरानी: उह्म्म आआह राजा आआह!

बलदेव देवरानी को बाहो में भर कर अपनी माँ के भारी मामो को अपने हाथों से दबाते हुए खूब जोर से मसलने लगता है।




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देवरानी: उह आआआआअम आह राजा!

बलदेव अब देवरानी की पीठ के पीछे हाथ लगा कर देवरानी को पलट देता है और खुद नीचे आता है और ऐसे करते हैं बलदेव इस बात का ध्यान रखता है कि उसका लंड देवरानी की चूत से नहीं निकले देवरानी के मेहंदी लगे हाथो की चूड़ियाँ जोर से खनक रही थी और पैरो में पायल छम-छम बज रही थी ।



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देवरानी: आह-आह आराम से।

"कितनी भारी हो माँ तुम!"

"तो तुम कौन हल्के हो कब से मेरे ऊपर पड़े थे।"

ये सुन कर बलदेव मुस्कुरा देता है।और फिर आगे बढ़कर देवरानी की दोनों नितम्बो पर हाथ रख कर सहलाता है और देवरानी को अपना पास ऊपर करने का प्रयास करता है फिर उसके दूध को अपने मुंह में भर लेता है।



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देवरानी: आआह!

बलदेव देवरानी के बड़े दूध को अपने दहिने हाथ से पकड़े हुए था फिर वह पूरा घुंडी को अपने मुंह में ले कर चूसता है अचानक से बलदेव अपने दांत से देवरानी के बड़े मम्मे की घुंडी जो हल्के गुलाबी रंग की थी दांत में दबा देता है।




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"आआआह उफ़ ना करो!"

देवरानी अपने हाथ से अपनी चुची पकड़ लेती है दर्द से कराहने लगती है ।

"खा जाओ रोज़ तुम्हें चाहिए तो काटो मत!"


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बलदेव: उह्म्म आअह्म्म!

देवरानी: आह-आह ऐसे ही चूसो।

देवरानी बलदेव को बेटाहाशा चूमने लगती है और बलदेव अब देवरानी के दोनों मम्मो को बारी-बारी से चूसने लगता है।




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"आआह राजा आराम से करो आअहह!"

देवरानी अपने बेटे के सर को सहला रही थी और बीच-बीच में अपनी चुत पर जोर देती जिसका असर देवरानी की चुत में फंसे हुए बलदेव के लौड़े पर हो रहा था । दोनों फिर से गरम होने लगते हैं देवरानी की फिर से अपनी चुत की गर्मी से आखे बंद होने लगती है और उसके जिस्म से आग के शोले भड़क उठते हैं। बलदेव भी अब गरम हो चूका और उसका लौड़ा धीरे-धीरे अब विकराल रूप ले कर फिर पूरी तरह खड़ा हो कर देवरानी बचे दानी तक पहुँच गया था।


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राजा अपना वह अंदर डाल कर ही रखोगे क्या? "

"आह रानी मेरा लौड़ा आज रात भर तेरी चूत में ही रहेगा।"
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बलदेव अपने ऊपर लेटी हुई देवरानी के चूतड़ पर थप्पड मारता है और भारी तरबूज़ से गोल चूतडो पर बलदेव के लोहे से हाथ पड़ते ही ह कमरे में "खट्ट खट्ट" की आवाज़ ऐसे आती है जैसे कोई लोहा पीट रहा हो।

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"उठो माँ!"

बलदेव सीधा होते हुए अपनी माँ को उठाता है । देवरानी जैसे ही ऊपर होती है बलदेव का लंड धीरे-धीरे देवरानी की चूत से बाहर निकल रहा था। बलदेव का लंड का पानी सुख चुका था और बलदेव के लंड पर हल्के खुन के धब्बे भी थे जिसे देवरानी देख डर जाती है।

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"हे भगवान कितना खौफनाक लग रहा है ये । ऐसा लग रहा है जैसा लिंग ना हो युद्ध में लड़ी खून से सनी हुई तलवार हो"

"रानी माँ इसी तलवार से ही तो मैं आपकी चूत पर फतेह पाया हूँ, अगर ये इतना बड़ा नहीं होता तो शायद तुम भी मुझे नहीं अपनाती।"


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देवरानी उठती है पर बलदेव के लंड का टोपा अब भी देवरानी की चूत में ही था । देवरानी उठने की कोशिश कर रही थी पर बलदेव के लंड का टोपा देवरानी की चूत के मुहाने से बड़ा था, जो दोनों के काम रस से भीग कर देवरानी की चूत में चिपक गया था।

"बलदेव खीचो, ये इसमें फंस गया है।"

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बलदेव को शरारत सूझती है।

"किसे खीचू माँ?"

"अपने हल्लाबी लौड़े को खींचो, ये मेरी चूत से ऐसे चिपक गया है जैसे कि इसे जीवन भर यहीं रहना है।"

"ओह माँ जब बेचारे का घर तो वही है । तो रहेगा और कहा?"

ये कहते हुए बलदेव देवरानी जो बलदेव के ऊपर थी या उठ रही थी उसके जांघों को पकड़ कर अपना लौड़ा देवरानी की चूत में ढकेलता है।

"आआआहह! बदमाश! निकलना है अन्दर मत डालो!"

बलदेव: ओह! माँ मैंने कुछ नहीं किया । आप जानती हो ये चिपक गया था इसलिए जब लगा की बाहर जा रहा है तो चूत ने भी उसका सुपारा अन्दर खींच लिया। लगता है दोनों अब अलग होने को त्यार नहीं हैं... ।

"हट्ट! बदमाश निकालो!"

बलदेव फिर अपना लौड़ा बाहर की ओर खीचता है "पक्क" की आवाज से लौड़ा देवरानी की चूत से बाहर निकलता है।

देवरानी बलदेव के बगल में बैठ कर बलदेव के लौड़े को ऊपर से नीचे तक देखने लगती है । उसके रूप को देख उसकी लम्बाई और मोटाई देख अपने आखो से एक पलक देखने जा रही थी ।



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देवरानी: (मन में) हाय माँ! क्या इतना बड़ा लौड़ा भी इंसान को होता है। अब इतना मोटा इतना लंबा लौड़ा मेरे अंदर था तो तकलीफ तो होनी ही थी।


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"माँ क्या सोच रही हो मुँह में लो ना ।"

"चल हट! देख मेरे इस मुनिया का क्या हाल हो गया है।"

देवरानी अपनी चूत पर इशारे करती हुई कहती हैं।



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बलदेव देखता है देवरानी की चूत लाल हो गई थी या उसमें से चूत के कोने से हल्के-हल्के उसका वीर्य पानी रिस रहा था जो खून लगने से लाल हो चुका था ।

"रानी क्या सुंदर लग रही है ये!"


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"हाँ इसके सुंदर बनने का श्रेया आपको ही जाता है । हुह!"

देवरानी तुनक कर पलंग से उतरती है। फिर से कपड़ा उठा कर अपनी चूत साफ करने लगती है और ये सब बलदेव बड़े चाव से देख रहा था।

"मां अपना तो साफ कर लिया मेरा कौन करेगा?"




ANK-D-SR-7

"ठीक है!"

देवरानी एक मगरूर हसीना की अदा से पलंग पर अपने हिलते दूध के साथ बैठ जाती है और खड़े लंड को कपड़े से साफ करने लगती है।

"रानी माँ ये दृश्य कितना अच्छा है आप मेरी पत्नी हो और जिस लौड़े ने आपकी चूत के परखचे उड़ा दिए उसको आप साफ कर रही हो ताकि वह फिर से चोदने के लिए त्यार हो जाए ।"

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देवरानी एक कातिल मुस्कान देते हुए ।

"अब ये हथियार मेरा है तो इसकी साफ सफाई भी तो मुझे ही करनी है।"

"रानी तुम्हारे ये हाथो चूड़ियों की खनक से मेरे दिल में एक अलग ही जोश आ रहा है।"

देवरानी लौड़ा साफ कर के कपडे को फिर से मेज़ पर ले जा कर रख देती है और जग ग्लास ला कर पूछती है ।


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"बोलिये पति देव दूध पियेंगे या पानी।"

"देवरानी आपकी चूत का पानी पीना है।"

"धत्त बोलो ना।"

"पहले दूध दो फिर पानी पीऊंगा ।"


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देवरानी एक गिलास दूध देती है बलदेव को, फिर एक गिलास पानी पिला कर खुद एक गिलास पानी पीती है।

"मां आपको प्यास लगी थी तो आप पहले पी लेतीं। मुझे आप बाद में दे देती!"

"राजा मेरा पत्नी धर्म है । पहले आपकी सेवा फिर बाद में अपने लिए कुछ!"

"आज से ही पतिव्रता पत्नी बन गई हो रानी!"

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"आज से नहीं बनूंगी तो मेरा ये शेर कहीं कोई और गुफा ना देख ले।"

ये कह कर देवरानी बलदेव के लौड़े को अपने हाथों से कस लेती है और अपनी पायल की खनकाती हुई पलंग पर चढ़ती है। फिर अपनी चूडियो को खनकाते हुए फिर अपने हाथों से बलदेव को लौड़े को ऊपर से नीचे हिलाने लगती है और उसकी चूड़ियो की खन-खन का मधुर संगीत पूरे कक्ष में गूंजने लगता है।

"आआह माँ!"


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"बड़ा कथोर है रे ये!"

"माँ मुँह में लो ना।"

देवरानी अपने पति का बात मानते हुए नीचे झुक कर पहले बलदेव के सुपारे को मुंह में भर लेती है और अपने होथ गोल कर के रसगुल्ले की तरह चूसती है।

देवरानी: उम्म् आमम्म् आह उम्म्म्म!

गैलप्प गैलप्प-गैलप्प गैलप्प गैलप्प!

बलदेव: आहह माँ आआआह ओह्ह्ह ऐसे ही!

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देवरानी: गल्पप हल्पप हुम्म्म्म उम्म्मममह ह्म्म्म गैलप्प गैलप्पप्प गैलप्प गैलप्प!

देवरानी पूरा झुक जाती है और बलदेव के पूरे लौड़े को मुँह में लेने की कोशिश करती है पर बलदेव का आधा लौड़ा भी देवरानी के मुंह में समा नहीं पा रहा था।

बलदेव: अहम्म्म्म्म आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआह देवरानी!



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बलदेव का लौड़ा लोहे की तरह देवरानी की लंड चूसाई से गरम और कड़क हो जाता है । बलदेव देवदानी के सर पर हाथ फेरने लगता है। फिर जोश में आकार देवरानी के सर को दोनों हाथ में पकड़ कर एक ज़ोर का धक्का मारता है और अपना पूरा लौड़ा देवरानी के मुँह में डाल देता है।

देवरानी: आअहह आहह आह!

देवरानी के हलक में बलदेव के लंड का टोपा जा कर फ़स जाता है और देवरानी चाह के भी कुछ बोल नहीं पा रही थी । वह अपना हाथ से इशारा करते हुए बलदेव को कहती है लंड मुँह से बाहर निकलने के लिए l

बलदेव देवरानी को देखता है तो पाटा है कि देवरानी के मुँह से लार टपक रही थी या उसकी आखे ऊपर हो गई थी और उनमे आसु भर गए थे।

बलदेव आगे बढ़ कर "आआआह" करता है देवरानी के सर पर हाथ रख कर सहलाते हुए लौड़ा धीरे-धीरे पीछे खींचता है। बलदेव का लौड़ा किसी तरह से देवरानी के हलक से निकल जाता है और देवरानी के मुँह में रुक जाता है।

बलदेव आगे बढ़ कर देवरानी के सर पर हाथ फेरते हुए कहता है ।

"चुसो फिर से देवरानी!"

देवरानी बलदेव के मोटे लौड़े के जड़ को अपने हाथ में थामे फिर लौड़े को चूसने लगती है।

कुछ देर लंड चुसाई के बाद बलदेव पलंग से नीचे उतरता है और देवरानी को खींच कर पलंग के कोने पर खड़ा हो जाता है । वह खुद आला खड़ा हो जाता है बलदेव देवरानी की टांगो और पैरो को फेलाता है या दोनों टांगो के बीच खड़ा हो कर पूछता है ।

"रानी माँ आपकी आज्ञा हो तो आरंभ करे आपकी चुदाईl"



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देवरानी की चूत भी रस से भीग रही थी और उसका शरीर भी तप रहा था ।

देवरानी ये सुन कर उसका बेटा उसे चोदने की अनुमति मांग रहा है वह बस मुस्कुरा देती है।

बलदेव देवरानी का इशारा समझते हुए आगे बढ़कर देवरानी की चुत पर अपने लंड के सुपारे को रगड़ता है। देवरानी आखे बंद कर लेती है बलदेव हल्का-सा लंड का टोपा चुत पर अंदर करता है।

देवरानी आगे वाले पल के इंतज़ार में अपने हाथ और पैरो को कड़ा कर लेती है।


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"मां आराम से रहो ना । इतना कड़ा हो जाओगी तो आपके लिए अंदर लेना और मुश्किल हो जाएगा।"

"मां अपना बदन ढीला रखो!"

देवरानी अपने नितम्ब आवर छाती हिला कर अपना बदन ढीला करती है।

बलदेव अपने हाथ में हल्का थूक लेता है और अपने सुपाड़े पर मलता है। फिर नीचे झुक कर हल्का थूक देवरानी की चूत के मुँह पर मलता है।

फ़िर बलदेव अपने लौड़े को पकड़ कर एक दो बार देवरानी की चूत पर ऐसे मारता है जैसे छड़ी से मार रहा हो । फिर अपना लौड़ा चूत के मुँह पर रख हल्का अंदर को दबा कर धक्का देता है।

देवरानी: आआह!


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बलदेव: आआआह माँ अंदर कितना गरम है।

बलदेव अंदर घुसाने लगता है। थोड़ा जोर लगाना जारी रखता है और इससे उसका आधे से ज्यादा लंड चुत में प्रवेश कर चूका था।

देवरानी: आई राजा मार डाला रे!

बलदेव: उफ़ माँ तुम्हारी चूत गर्मी से भट्टी-सी धधक रही है ।

देवरानी: आआह राजा तो बुझा दे ना ये आग।

बलदेव अपनी कमर पीछे लेता है और एक जोरदार झटका मारता है।

देवरानी: आआआआआआआह राजा!

ज़ोर से चीखती है।


ENTR

बलदेव अब एक या झटका मारता है या देवरानी फिर से चीख मारती है। अब बलदेव देवरानी की चीखो की परवाह किये झटके पर झटके मारने लगता है जिससे पूरे कक्ष और ऊपरी मंजीत में-में पच पच की आवाज गूंज रही थी। देवरानी की कराहो के साथ उसकी चूडियो और पायल की आवाज एक मधुर संगीत का निर्माण कर रही थी।

बलदेव तीर की तेजी से अपने लौड़े को आगे पीछे कर रहा था और देवरानी की गीली चूत में जैसे ही लौड़ा अंदर बाहर जाता "पछ पछ" की आवाज गूंजती और साथ में बलदेव का जाँघे जैसी ही देवरानी की गांड पर लगती तो "फ़ट्ट फ़ट्ट" आवाज़ आ रही थी।

बलदेव: आह मेरी रानी माँ क्या कसी हुई चूत है।

देवरानी: उह आह या ज़ोर से आआह बेटा।

बलदेव: ये ले आह उह अम्म्म!

बलदेव "घप्प घप्प घप्प" पेले जा रहा था देवरानी को।

बलदेव देवरानी के दोनों पैरो को खीचता है और दोनों टांगो को उठा देता है जिससे देवरानी की चूत ऊपर हो जाती है। ान लंड आवर गहरा जा रहा था और देवरानी के गर्भाशय की जड़ से टकरा रहा अतः। फिर बलदेव खूब जोर से पेलने लगता है या पछ-पछ फहच फच-फच के ध्वनि के साथ देवरानी चुद रही थी। आवाज इतने जोर की थी के अगर महल के पहली मंजिल पर अगर कोई भी होता तो वह साफ-साफ सुन पता के कोई किसी को चोद रहा है। पर बलदेव के निर्देशों के अनुसार सब नीचे रहते हैं। सिर्फ बलदेव ही ऊपर रहता था, ऊपरी मंजीत पर केवल बलदेव और देवरानी ही थे जो अपनी सुहागरात में जोरदार चुदाई में व्यस्त थे, पर एक व्यक्ति और था जो ये सब सुन रहा था। वह था बलदेव का बाप राजपाल जिसको बलदेव ने खुद जान बुझ कर अपने कक्ष की बगल में सेनापति सोमनाथ दुवारा बंधवाया था।

इस जोर की चीख और इन दोनों की छन छम्म। ठप्प अह्ह्ह कराहो, चीखो की आवाजों को साथ के कमरे में बंधा हुआ राजपाल सुन रहा था और तडप रहा था। उसे लग रहा था जैसे वह साक्षात इन दोनों की चुदाई को देख सुन रहा था। वह जोर-जोर से सर, हाथ पैर और बदन हिला-हिला कर खुद को छुड़ाने का प्रयास कर रहा था।

कुछ देर खड़े-खड़े देवरानी को पेलने के बाद बलदेव के घुटने दुखने लगते हैं और देवरानी भी अपनी दोनों टांगो को उठाये हुए थक जाती है।

"आजाओ माँ!" कर बलदेव अपना लिंग निकालता है।

बलदेव के पास रखे सोफ़े पर बैठ जाता है ोे अपना लौड़ा सहलाते हुए पलंग पर लेती हुई अपनी माँ जो अब उसकी पत्नी, उसकी रानी थी उसको बुलाता है।

देवरानी देखती है इस बार उसकी चूत से बड़े आसानी से लौड़ा निकल गया है। देवरानी अपने बेटे के पास आकर उसके लौड़े को देखती है।

"माँ आओ अब इसपे बैठो!।"

फिर बलदेव ने देवरानी को कहा-"अब तुम मेरे ऊपर आ जाओ और मेरे लण्ड पर अपनी चूत रखकर बैठ जाओl" उसने अपने नाजुक हाथ से बलदेव का लौड़ा पकड़ा और अपनी चूत के मुंह पर लगा दियाl

देवरानी मुस्कुराती हुई बैठती है और बलदेव का लंड अपने हाथ में लिए हुए धीरे-धीरे अपनी चूत को नीचे करती है।

"बैठो माँ!"



HARD3
देवरानी लौड़े के टोपे को अपनी चूत के मुहाने पर रख कर हल्का-सा बैठती है और लौड़ा "पच्च" से अंदर घुसता है। देवरानी आख बंद कर लेती है।

बलदेव: आह माँ!

देवरानी: आह उह आआह उह!

देवरानी अब दोनों हाथ अपने घुटनों पर रख नीचे बैठने लगती है।

देवरानी: उह आआआह हम्म!

देवरानी ने चूत को और हल्का-सा दबाया। बलदेव तो इसी माके की इंतजार में था। जैसी ही देवरानी ने अपनी चूत को लण्ड पर दबाया, बलदेव ने नीचे से जोर का धक्का मारा।

देखते ही देखते पूरा लौड़ा देवरानी की चूत में घुस जाता है।

देवरानी को शायद इसकी उम्मीद नहीं थी, इसलिए उसने एक जार की चौख मारी-"उईईई मर गईl" बलदेव ने उसकी कमर को कस के पकड़ रखा था। वह उठ नहीं पाई। एक मिनट तक लण्ड पूरा उसकी चूत में घुसा रहा।

"मां आखे खोलो ना पूरा चला गया।"

देवरानी आखे खोल कर देखती है तो शर्मा जाती है।

"मां तुमने बहुत जल्दी ले लिया"

"चुप कर कमीने!"

लज्जित होते हुए कहती हैं।

बलदेव अब नीचे से ऊपर को धक्का मारता हैl

फिर बलदेव ने उसकी गाण्ड के नीचे हाथ रखकर उसको ऊपर उठाया और कहा-" अब मेरे लौड़े पर उछल-उछलकर इसको अपनी चूत में अंदर-बाहर करती रहोll

"मां अब ऊपर नीचे हो।"

देवरानी ने हल्के-हल्के ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया।

बलदेव ने देवरानी से कहा-"अब पूर्रा अंदर लो हर बार और अगर हर बार में पूरा लण्ड अंदर नहीं लिया तो मेरी रानी मैं नीचे से फिर धक्का मारूंगाl"

सुनते ही देवरानी ने कहा-"नहीं नहीं आप मत करनाl"

देवरानी धीरे-धीरे पूरा अंदर लेने लगीl

धीरे धीरे देवरानी को मजा आने लगा तो वह देवरानी थोड़ा गति बढ़ाते हुए तेजी से पूरा अंदर लेती हुई ऊपर नीचे होने लगी और बलदेव को अब मजा आ रहा था। वह अब नीचे से अपना लंड भी उठा रहा था।

देवरानी ऊपर होने लगती है और बलदेव देवरानी की चूत में लंड तीर की गति से अंदर बाहर कर रहा था। फिर बलदेव देवरानी के नीचे और देवरानी बलदेव के ऊपर थी। बलदेव ने भी अपने चूतड़ उठा कर देवरानी का साथ दियाl. जब देवरानी नीचे को होती तो बलदेव का लंड देवरानी की चूत के अंदर पूरा समां जाता था और फिर दोनों की आह निकलती थी l


देवरानी ने अपनी आँखों को बंद कर लि और उसके चेहरा पर स्माइल दिखने लगी। 5 मिनट ऐसे ही चलता रहा। फिर 10 मिनट की बेरहम चुदाई के बाद जब उसकी चीखे कम हुई और सिसकारी में बदलने लगी तो बलदेव ने अपना लंड आधा बाहर कर लिया और अंदर बाहर करने लगा।

देवरानी कुछ देर ऐसे वह ऊपर नीचे होते हुए थक कर धीरे हो जाती है जिसे बलदेव समझ जाता है और उठ कर देवरानी को घुमाता है और अपनी बाहों में भर कर गोद में उठा लेता है और खड़े-खड़े अपना लौड़ा देवरानी की चूत में डाल देता है।

देवरानी: उह आह राजा गिर जाउंगी

बलदेव: देवरानी तुम बलदेव की बाहो में हो मैं तुम्हे गिरने नहीं दूंगा मेरी रानी!

बलदेव देवरानी के नितम्बो के निचे हाथ ले जाकर पकड़ कर उसे ऊपर उठाता है और नीचे से एक और धक्का लगाता है

देवदानी बलदेव की गर्दन में अपनी बाहे फसाए हुए थी ।

बलदेव: तुम व काम सूत्र के पुस्तक में देखती थी ना ये आसन, जिसमे एक पुरुष स्त्री को गोद में उठाये खड़े-खड़े चोदता है ।

देवरानी: आह हा! राजा उसमे एक चित्र ऐसा भी मैंने देखा था, मुझे क्या पता था कि ऐसा सच में भी हो सकता है।

बलदेव: खुद देख लो।

बलदेव देवरानी को उठाएँ आयने के सामने ले जाता ही तो देवरानी अपना सर घुमा कर देखती है तो पाती है कि जैसा उसने उस चित्र में देखा था वैसे ही बलदेव का लंड उसकी पूरी चूत में घुसा हुआ है और उसका भारी गांड लंड पर ऐसे टीकी हुई है जैसे देवरानी लंड पर बैठी हो।

ये देखते ही देवरानी अपना सर वापिस बलदेव की ओर मोड़ लेती है और शर्मा कर अपना सर बलदेव के कंधे से छुपाती है।

बलदेव देवरानी को पकड़ कर अपना तरफ खीचता है और उसकी चूत में लौड़ा पूरा चला जाता है । फिर देवरानी के जांघ पकड़े हुए गांड को उठाता और उसे फिर लंड पर लाता है ।

देवरानी आंखे बंद किये सिस्की ले रही थी। बलदेव अब यही प्रक्रिया तेजी से करने लगा और देवरानी को उठा-उठा के चोदने लगा।

देवरानी: आआआह आऐई-आऐई माआ आआह हे भगवान!

"घप्प घप्प घप्प" ही आवाज गूँज रही थी । पर इस बारे इस आवाज में पायल की खनक और चूडियो की छन्न-छन्न भी शामिल हो गयी थी ।

बलदेव: ये ले आह ये ले माँ!

"घप घप्प-घप्प घप्प खनन-खनन चन्नणछन्न घप्प घप्प, फट-फट खनन खनन चन्नणछन्न!" ।

"

देवरानी बलदेव के गले पर चूमने लगती है। बलदेव जोर से धक्के मारने लगता है, बलदेव देवरानी को खड़े-खड़े पेल रहा था, देवरानी बलदेव के गले को अपने होठों से चूमने लगती है और फिर अपने हाथों से बलदेव के पीठ पर अपने नाखुन से छील रही थी पर बलदेव बिना कोई परवा किए देवरानी को पेले जा रहा था।

कुछ देर खड़े-खड़े पेलने के बाद बलदेव देवरानी को ले कर फिर से बिस्तर पर आ जाता है और बिस्तर पर पटक कर देवरानी के पीछे आ जाता है और लौड़े को पीछे से एक टांग उठा कर देवरानी को लेटे-लेटे ही पेलने लगता है।

"आआह राजा धीरे।"

"घप्प घप्प-घप्प के ध्वनि के साथ फिर से लौड़ा अन्दर बाहर हो रहा था । बलदेव एक टांग उठाये अपनी रानी, अपनी माँ को पेले जा रहा था ।"

बलदेब आगे बढ़ कर देवरानी के भारी मम्मे को हाथ में ले कर दबाता है और अपने होठ देवरानी की गर्दन पर रख कर चूमने लगता है।

"आआआह राजा आह ऐसे ही आह राजा।"

"आह माँ तुम कितनी सुंदर हो। ओह्ह! मेरी पत्नी"

"आह राजा मेरी सब सुन्दरता सिर्फ तुम्हारे लिए ही तो है ।"

बलदेव देवरानी के गले पर अपने दांत गड़ाने लगते हैं और फिर चाटने लगता हैं।

और फिर एक हाथ से देवरानी की भारी गांड पर थप्पड मारता है। "चट चट!"

"आह राजा!"

बलदेव अब देवरानी को पकड़कर झुका देता है और खुद घुटने के लिए बल बैठ जाता है

"आह राजा मर गयी!"

ऐसा कहते हुए कांपती हुई देवरानी झड़ गई। अभी दो तीन धक्के और मारे थे की देवरानी की चूत पानी छोड़ देती है और गाढ़ा सफ़ेद पानी बलदेव के लंड को भीगा देती है।

देवरानी: आह-आह राजा मेरा पति आह!

अपने आखे बंद किये स्खलित हो जाती है।

पर बलदेव जैसे ही देखता है उसकी माँ सख्त हो गई है वह और तेज़ धक्के मारने लगता है और चूत पानी-पानी होने से लौड़ा और तेज़ी से अंदर बाहर जाने लगता है।

"आह आह राजा आआह आह आह!"

घप घप घपड़ कर बलदेव पेले जा रहा था । झुकी हुई देवरानी की चूत से रस गिर रहा था और बिस्तर को गीला कर रहा था।

"घप्प घप्प घप्प" और तेज-तेज पेले जा रहा था बलदेव।

"ये ले मेरा लौड़ा तेरी चूत की सब खुजली नहीं मिटा दी तो मेरा नाम बलदेव नहीं।"

इधर रसोई में काम कर रही है कमला की नजर घड़ी पर जाती है 9 बज गए थे वह जल्दी से देवरानी और बलदेव का खाना थाली में रख सीढियो से चढ़ कर बलदेव के कक्ष के पास पहुँचती है जहाँ दोनों सुहाग रात मना रहे थे । जैसी ही उसके कानों में उसके कानों में देवरानी की आवाज आती है।

"आआह आह आआआह राजा आह या ज़ोर से आआह आह!"

"आआह नहीं आआआह वू मेरे राजा आह!" करते रो मेरे राजा!

" फट्ट-फट्ट पच्छ की आवाज गूंज रही थी।

"ये ले देवरानी जी मेरी पत्नी जी, ये लो"

फट्ट फट्ट पच्छ चन्नण छन्न!

कमला: (मन में) ये सुनते ही "हाय ये दोनों तो उफान पर है। 6 बजे से लगे हुए हैं । कैसे बुलाउन कहीं बुरा मान गए तो! यहाँ तक मुझे आवाज आ रही है तो अंदर बंधा हुया राजपाल भी 6 बजे से सब सुन रहा होगा? हाय उसका क्या हाल होगा?"

कमला: (मन में) खैर छोड़ो हमें क्या? ये राजा रानी समझे । हम दसियों से क्या लेना?

कमला हिम्मत कर के पुकारती है ।

"महारानी!"

"महारानी!"

अंदर बलदेव देवरानी को झुकाये हुए लगातार पेले जा रहा था।

"आह राजा आह नहीं धीरे आह!"

"ये ले या ले मेरा लंड!"

देवरानी: सुनिए ना जी!

बलदेव: घप्प-घप्प ये ले पेले जा रहा था।

देवरानी: सुनिए तो जी!

बलदेव: बोलो देवरानी!

देवरानी: किसी की आवाज आई!

कमला: महारानी जी!

बलदेव रुक जाता हुई कमला की आवाज दोनों सुन लेते हैं।

बलदेव: कौन होगा?

देवरानी: आवाज़ तो कमला की लग रही है। ।भुल्लकड राजा जी तुमने ही उसे कहा था समय पर भोजन पहुँचाने के लिए ।



HARD1
बलदेव अपना लौड़ा झुकी हुई देवरानी की चूत में रखे हुए अपना कमर अब भी आगे पीछे कर रहा था।

देवरानी: अब जाओ और भोजन ले लो

बलदेव: उसे कहा था बाहर रख देना भोजन पर ये कमला भी ...

ये कह कर सट से बलदेव अपना लौड़ा खीचता है और लौड़ा फच की आवाज के साथ चूत से बाहर आता है और लंड अब भी खड़ा था।

देवरानी बलदेव के लौड़े को देख कर कहती है ।

"गुस्से हो गये महाराज!"

"देवरानी में कैसे जाऊ तुम ही जाओ"

"हाँ तुम जाओ भी मत । ऐसे हालात में तुम्हारे शेर को देख डर न जाए कहीं कमला!"

और जल्दी हुए पास के मेज़ से कपडा उठा कर अपनी चूत पूंछने लगती है।



KIS-F
कमला: देवरानी! महारानी!

देवरानी: आयी कमला! तनिक रुको!

देवरानी: जी क्या पह्नु?

बलदेव तुरंत एक चादर उठा कर बिस्तर पर लेट जाता है और ओढ़ लेता है । चादर के अंदर बलदेव का लौड़ा बीचो बीच खड़ा साफ दिख रहा था।

"मां में नहीं जानता कैसे जाओगी?"

"बुद्धू करवट कर लेटो। दरवाजे से तुम्हारा शेर दिख जाएगा, चादर में भी पूरा तना हुआ साफ़ दिख रहा है।"

देवरानी कुछ सोचती हुई एक साडी लपेट लेती है।

"यही पहनती हूँ कमला ही तो है कौन-सा कोई मर्द है।"

देवरानी गांड को लचकते हुए जा कर दरवाजे पर जाती है, उसे जाते हुए बलदेव बड़े ध्यान से देख रहा था ।



देवरानी जा कर कुंडी खोलती है तो सामने कमला को पाती है।

कमला देवरानी को ऊपर से नीचे देखती है या देवरानी का हाल देख कर कोई अंधा भी कह सकता है कि उसकी जबरदस्त चुदाई हुई है। उसके आखो के नीचे हल्के घेरे पड़ रहे हैं पूरे चेहरे पर और बगीचे पर कटने के निशान थे । ओंठो की लाली फेल गयी थी, महेन्दी लगाये, चूड़ी और पायल खनकाती देवरानी के दोनों भारी उरोज बिना ब्लाउज हिलते हुए साफ पता चल रहे थे। वही हाल उसकी गांड का था जो बिना पेटीकोट के था।

देवरानी का चेहरा देख कमला कहती है ।

"महारानी कब से बुला रही हूँ"

"हाँ वह तुम्हारी आवाज़ मैंने अभी सुनी!"

"लगता है आप अपने नये पति के प्यार में ज्यादा व्यस्त थी इसलिए आपने कुछ सुना नहीं।"

"ऐसा नहीं है...बोलो ना... खाना लाई हो ना!"

"बड़ी जल्दी है वापस जाने की महारानी।"

देवरानी अंदर ही अंदर लज्जा जाती है पर देवरानी बिना कुछ कहे उसके हाथ से थाली ले लेती है।

कमला: जैसा मैंने कहा था वैसे वही खातिर हो रही है ना, कोई कमी तो नहीं हुई?

देवरानी: उससे भी ज्यादा खातिर हो रही है, चल जा अब सुबह में आना

और फिर शर्मा कर अपने आखे नीचे कर लेती है।

देवरानी अपने एक हाथ से दरवाजा बंद करती है।

कमला: (मन में) अभी महारानी को कहना ये ठीक नहीं था कि उनका पहला पति उनकी सब कराहे और चीखे सुन रहा है नहीं तो महारानी बलदेव से झगड़ा कर लेंगी और इनकी सुहागरात खराब हो जायेगी ।



KIS-EMB


देवरानी दरवाजा बंद करके थाली को मेज पर रखती है।

बलदेव कमला की आधी लिपटी साडी में उसके बड़े दूध को देख रहा था...देवरानी की नज़र बलदेव से मिलती है।

कमला पलट कर वापस आ कर रसोई में काम में लग जाती है।


जारी रहेगी
 
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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 93

सुहागरात में भोजन

सुहागरात 9 बजे

देवरानी दरवाजा बंद करके थाली को मेज पर रखती है।

आधी साडी में लिपटी हुई देवरानी बलदेव को बहुत कामुक लग रही थी, बलदेव उसके बड़े दूध को देख रहा था...देवरानी की नज़र बलदेव से मिलती है तो देवरानी मुस्कुरा देती है।

देवरानी: अब बास मुझे ताड़ना बंद करो 9 बज गए हैं खाना खा लेते हैं।

कहते हुए देवरानी थाली जो कपड़े से ढकी हुई थी उस कपड़े से खोल कर देखती है।

बलदेव पलंग पर लेटा था अब उसने अपने ऊपर रखी चादर का हटा दी तो उसका लौड़ा नजर आने लगा जो अब भी आसमान की ओर देख रहा था।

बलदेव अपनी मुछे पर हाथ फेरते हुए।

बलदेव: रानी माँ मुझे तो तुम्हें खाना है, आज बस और किसी चीज़ की भूख नहीं है।

देवरानी थाली खोल कर देखते हैं तो उसमें काई प्रकार के व्यंजन थे या उसके सुगंध मात्र से देवरानी खुश हो जाती है देवरानी जैसी पलट कर देखती है कि बलदेव उसकी ओर देख अपने लौड़े को हाथ में ले कर अपने दुसरे हाथ से अपने मुछो पर ताव दे रहा है।

देवरानी लज्जा कर पानी-पानी हो जाती है।

देवरानी: बदमाश जाओ हाथ धो कर आओ और पहले खाना खाओ उसके बाद कुछ और अगर सिर्फ मुझे खाते रहोगे और खाना नहीं खाओगे तो कमज़ोर हो जाओगे।

बलदेव: माँ तुम्हें खा कर तो बूढ़ा भी जवान हो जायेगा।



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देवरानी: उह हो! जाईये ना पति देव! मुझे तो खाना है, पिछले तीन घंटे से थका दिया है आपने।

बलदेव: रानी माँ इतने प्यार से बोलोगी तो तुम्हारा पति जान भी दे देगा!

बलदेव उठ कर स्नान गृह में घुस जाता है और मुँह हाथ धो कर वापस आता है।

देवरानी बलदेव के बाद स्नानघर में जाती है और अपने हाथो को और अपने चेहरे को अच्छे से धोती है फिर बाहर आती है।

बलदेव, देवरानी हम कुर्सी पर बैठ के खाएंगे नीचे नहीं।

देवरानी: पर आप तो हमेशा नीचे बैठ कर खाते थे ना!

बलदेव: अब विवाह तुम से किया है देवरानी तो। ससुराल वाले ने मुझे जो दहेज दिया है हम उसका इस्तेमाल करेंगे।

देवरानी चिढ़ जाती है और मेज पर खाना लगाने लगती है।

देवरानी: दहेज़ चाहिए तो कहो अपने साले देवराज से...अब भी मांग लो तो देखती हूँ आपकी हिम्मत।

बलदेव: अरे रानी माँ! उसकी बहन को इधर पिछले तीन घंटे से रगड़ रहा हूँ। उसे यहीं खबर नहीं होगी। वह साला देवराज! दहेज क्या देगा?

देवरानी: चुप करो मेरे भाई को गाली ना दो। वह तो बस हमारे रिश्ते को मान ही नहीं रहे। नहीं तो तुम्हें दुनिया की हर वह चीज देते जो तुम्हें चाहिए। अपनी बहन को इतना चाहते है वो।

बलदेव: ओह हो! मेरी रानी को गुस्सा आया उसके भाई के बारे में कुछ कहा तो।

बलदेव और देवरानी एक कुर्सी पर बैठ जाते हैं।

बलदेव: मेरा पनीर की सब्जी कहाँ है?

देवरानी: चुप रहो और ये खीर और बादाम का हलवा खाओ!

बलदेव खीर खाने लगता है और देवरानी बलदेव को देखती रहती है।

बलदेव का जैसी ही देवरानी की तरफ ध्यान जाता है तो देखता है देवरानी उसे गुस्से से देख रही है।

बलदेव: अरे माँ मुझ तो ध्यान ही नहीं रहा इधर आओ मेरी जान तुम्हें भी खिला दूँ।

देवरानी: मुझे नहीं खाना मैं खुद से खा लुंगी।

बलदेव देवरानी का हाथ पकड़ कर अपना ओर खीचता है।



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"आह इधर आओ मेरी महारानी।"

देवरानी अब बलदेव से सट कर खड़ी हो जाती है।

बलदेव एक निवाला देवरानी को ऊपर करते हुए बैठे-बैठे उसकी तरफ बढ़ता है।

देवरानी अपना मुँह फेर लेती है।

देवरानी: मुझे नहीं खाना है।

बलदेव देवरानी के हाथ पकड़ कर नीचे खीचता है और एक हाथ कमर में रख कर देवरानी को नीचे कर अपने दहिने जाँघ पर बिठा देता है।

"बोलो ना माँ गुस्सा हो गयी क्या।"

"बलदेव में समझ सकती हूँ तुम्हारे भी अरमान होंगे, ससुराल वाले से और बहुत सारी अपेक्षा भी होंगी जिसको तुम मुझसे विवाह कर के पूरी नहीं कर पाए।"

बलदेव अब देवरानी को अपने ऊपर चढ़ाते हुए छेड़ता है।





WOT1

"हट पगली मुझे तुम चाहिए थी और आज तुम मेरी हो गई, अब मुझे किसी और की परवा नहीं है, यहाँ तक कि मामा देवराज की भी नहीं।"

बलदेव देवरानी को अपने गोद बिठाए बाहो में कसते हुए कहता हैं।

"मुझे ऐसे बिठाए रहे तो तुम्हारी टाँगे थक जाएगी, मैं मोटी हूँ।"

और फिर देवरानी उठती है।

"तुम तो गदरया हुआ माल हो, तुम्हारे साथ तो अभी तक मेरा लौड़ा भी नहीं थका। देखो, तो भला मैं क्या थकूंगा।"

बलदेव अपने खड़े लंड पर इशारा करता है।

बलदेव उस समय नंगा था और देवरानी सिर्फ एक साडी लपेटे हुए थी।





M2

देवरानी अपने पति बन चुके अपने बेटे के लंड को देख शर्मा कर अपना मुँह घुमा लेती है।

"सुनिए अगर आपके साले साहब को पता चल जाएगा कि हमने विवाह करने के बाद सुहागरात भी मना ली तो वह बहुत क्रोधित होंगे।"

"होंगे तो मेरे लंड से, होते रहे, मुझे क्या! मैं तो गया था उनसे उनकी बहन का हाथ मांगने, बदले में उन्होंने मुझे थप्पड़ मारा। अब अपनी बहन चुदाए साला देवराज!"

"ऐसा नहीं कहते जी जैसा भी है, है तो वह आपका साला और मेरे भाई हैं। वह अपनी बहन किसी और को क्यू देंगे?"

"किसी या से क्यू चुदवाएँगे अपनी बहन। जब मैं हूँ उनकी हसीन और माल बहन की चूत को रगड़ने वाला। ठीक हैं ना मेरी रानी!"

देवरानी प्यार से एक हल्की चपत बलदेव के गाल पर मारती है।




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"हट! बदमाश!"

बलदेव फिर से खीर उठाता है और देवरानी की ओर बढ़ता है इस बार देवरानी मुंह खोल कर खाने लगती है, फिर देवरानी अपने हाथ से बलदेव को खिलाने लगती है और बलदेव देवरानी को खिलाने लगता है।

बलदेव ने अब देवरानी को गोद में पूरी तरह से अपने लौड़े पर बैठा लिया था जिस से उसका लौड़ा देवरानी के गरम गांड से स्पर्श करने के बाद खड़ा हो जाता है।

देवरानी: पहले मुझे खाना खा लेने दो और तब तक संभालो अपने शेर को!

बलदेव: अब शेर गुफा करीब हो तो वह बिना घुसे कहाँ मानेगा।

देवरानी ये सुन कर हल्का उठने को होती है बलदेव कमर में हाथ डाल कर उसे अपने लौड़े पर बिठा लेता है।

खाना तो खा ले मेरी रानी अपनी राजा के साथ में। कहाँ जा रही हो? "


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ये कह कर बलदेव देवरानी की साडी दी को खीच कर निकाल देता है और देवरानी फिर से पूरी नंगी हो जाती है।

"बलदेव अन्न के सामने ये सब नहीं! पाप लगेगा।"

बलदेव अब देवरानी को एक हाथ से पकड़ के हल्का-सा उठाता है या दूसरे हाथ से अपना लौड़ा पकड़ के देवरानी की चूत के मुंह पर रखता है।

"अच्छा ठीक है! अब बैठो मेरी रानी माँ।"

"आज राजा!"

देवरानी चूत पर लैंड लगते ही गरम हो जाती है और धीरे से बैठने लगती है। बलदेव नीचे से हल्का धक्का मारता है और लैंड एक बार में ही आधा घुस जाता है

"आआह राजा।"

"आह रानी थोड़ा और नीचे!"

"उम्म्म्म आह दर्द हो रहा है!"

बलदेव अब देवरानी के कंधे को पकड़ता है और आला ढकेलता है और नीचे से अपना लौड़ा ऊपर पेलता है तो देवरानी की चूत में "खच्छ" से पूरा लौड़ा घुस जाता है और देवरानी अपने आखे बंद कर के।



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"आआआह"

कर बलदेव के गोद में बैठी बलदेव की गर्दन में हाथ डाल देती है।

"आह मार डाला रे!"

"माँ हलवा खाओगी?"

"हम्म खाउंगी पर रुको तुम्हारा हाथ गंदा हो गया है।"

देवरानी आगे बढ़ कर हलवा कभी खुद खाती हैं और कभी बलदेव के मुँह में डाल उसे खिलाती है ।

"साली बहुत नखरे करती है, लंड छुआ तो मेरे हाथ गंदे हो गए और खुद पूरा लौड़ा अपनी चूत के लिए बैठी है।"

"आह चुप करो और जल्दी से खाऔ! "

बलदेव एक धक्का नीचे से लगाता है।

"आआआह! पहले हलवा खा ले बेटा।"

"मां तुम तो हलवा के साथ मेरा केला भी खा रही हो।"


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ऐसे हो ही देवरानी बलदेव का लंड अपनी चूत में फंसाए कुर्सी पर बैठी खाना खत्म करती है, फिर गिलास में दूध ढाल कर पहले अपने बेटे को पिलाती है फिर खुद पीती है।

"मां अब सब कुछ हो गया तो चले!"

"राजा हाथ तो धो लो।"

बलदेव सामने कपड़ा उठा लेता है फिर अपनी माँ के और अपने हाथ पूँछ कर साफ़ कर लेता है।

बलदेव माँ की चूत में लंड घुसाये हुए देवरानी को उठा कर अपनी कर बिस्तर पर लाकर पटक देता है और खुद खड़ा हो कर देवरानी की चूत में घस्से मारने लगता है।

"आह आराम से राजा!"

फच फछ की आवाज पूरी तरह से फिर से गूंज रही थी, साथ में देवरानी की पायल की छन-छन की आवाज आ रही थी। देवरानी अपने दांत को पीसते हुए बलदेव के धक्के से पीछे न हो जाए इसलिए अपने दोनों हाथ से बिस्तर की चादर को पकडे हुए थी ।


mis2


"आह माँ!"

फच्च कर फिर पूरा लौड़ा अंदर उतार देता है। थप्प की आवाज से बलदेव की जंघ देवरानी की चूत पर टकराती है । देवरानी के बड़े पपीतो की घुंडी कड़क हो गई थी । वह हर धक्के के साथ आगे पीछे हो रहे थे । हर धक्के से उन्हें ऐसे हिलते देख उन्हें बलदेव घूर रहा था।

देवरानी: उम्म-उम्म आह!

बलदेव: ये ले।

इधर महल में कमला देवरानी को खाना दे कर नीचे आ जाती हैर रसोई में अपना काम निपटाती है फिर बार-बार सब को बुला कर खाने के लिए बुलाती है।

उतने में वैध जी के साथ शमशेरा और सेनापति भी आते हैं।

कमला: अरे आप लोग कह रह गए आज भोजन करना है के नहीं?

शमशेरा: वो बाहर बहुत ज्यादा लोग थे उनको खाना बंटवाटे-बंटवाटे काफी वक्त लग गया।

वैध: हाँ ऐसा लग रहा था कि पूरा घटराष्ट्र दरबार में आ गया हो!

कमला: चलो पूरा तो गया ना । सबको मिल गया कम तो नहीं हुआ?


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उतने में श्रुष्टि आती है।

शुरष्टि: घटराष्ट्र के महाराज की विवाह का भोज पूरे राज्य के बच्चे-बच्चे को मिलना चाहिए।

शमशेरा: रानी साहिबा हम से जितना हो सके हमने बंटवा दिया है एक दिन में तो सबको नहीं बटवाया जा सकता है। दो चार दिन तक लोग आते रहेंगे।

कमला: वो सब छोड़िये । बाटता रहेगा! रानी शुरष्टि आप लोग भी खाना खा लीजिये।

शुरष्टि: ठीक है तुम माँ जी को बुला लो।

कमला: हाँ सेनापति जी और वैध जी आप लोग भी आज महल में भोजन कर लीजिए।

सोमनाथ: हाँ भाई हमें भी महल का खाना चाहिए सेनागृह का खाना खा कर थक चुके।

सोमनाथ शुरष्टि को देख कर मुस्कुरा कर बोलता है।



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थोड़ी देर में सब आसन पर बैठ जाते हैं कमला और राधा खाना लगाने लगती हैं।

शुरष्टि: कमला हम सब तो बैठ गए दूल्हे दुल्हन को कुछ खिलाओगी या नहीं?

जीविका: उन्हें भूख लगेगी तो खुद आवाज़ देंगे ऊपर से।

शुरष्टि: माँ जी आज उनका विवाह हुआ है आज वह दुल्हन कैसे भला रसोई में आकर खाना लेंगी।

कमला: बस भी कीजिए आप दोनों कमला कोई बेवकूफ़ नहीं, सबसे पहले मैंने दूल्हा दुल्हन का खाना बनाया, उसने तयार कर के उनके कक्ष में पहुँचा दिया है।



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सोमनाथ: वाह कमला तू तो बहुत चतुर है।

और सब हसने लगते हैं।

वैध: अब जरा चतुराई से थोड़ी खीर और दे दो

कमला आगे बढ़ कर वैध जी को खीर देती है ऐसे ही सब खाना खाने लगते हैं।

उधर ऊपर अपनी कक्ष में देवरानी को लिटाये अब बलदेव देवरानी की दोनों टाँगे उठा कर उसे पेलने लगता है।

"आह राजा!"

कुछ धक्को के बाद बलदेव "पक्क" की आवाज से अपना लौड़ा बाहर खिंचता है।

"देवरानी अब घोड़ी बन जा, अब तेरा घोड़ा तुझे झुका कर पेलेगा।"

देवरानी उठ कर घोड़ी बनने लगती है।


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जिसे देख बलदेव का लौड़ा और तन जाता है देवरानी की बड़ी गांड खुल के और बड़ी हो जाती हैं ।

बलदेव आगे बढ़ के देवरानी के दोनों गांड के पटो पर बारी-बारी दो थप्पड मारता है।

"पट्ट पट्ट!"


"आआह" "आह! "

"क्या कर रहे हो राजा?"

"मां तुम्हारी ये गांड तबले से कम नहीं है ।"

अब देवरानी की गांड पकड़ कर अपना लौड़ा चूत के मुहाने पर टिकाए एक दो बार थपकी मारता है फिर से एक बार में ही लंड पेल देता है अंदर तक तो देवरानी कराह उठती है ।

"आआआआह मैं मर गयी!"


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बलदेव आखे बंद किये मजे से कराहता है ।

"आह माँ! "

बलदेव को लगता है जैसा उसने किसी गरम भट्टी में अपना लंड डाल दिया हो । अंदर देवरानी की चूत आग उगल रही थी और बलदेव के लौड़े पर ऐसा लगता है जैसे लावा फूट कर उसके लौड़े को चटका देगा । देवरानी की चूत का पानी इतना गरम था कि लावे जैसा लग रहा था । बलदेव ने घस्से लगाने जारी रखे ।

"घप्प घप्प घप्प!"

कर के बलदेव अपना लौड़ा पेलने लगता है और देवरानी जोर से चिल्लाने लगती है ।

"आह राजा आह धीरे आआह्ह्हह्ह्ह्ह! अरररररर!"




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: रानी तेरी चूत अभी भी आग उगल रही है और रानी तेरी जैसी माल की चूत धीरे से चोदने से कभी ठंडी नहीं होगी। "

"आह मैं मर जाउंगी इतना ज़ोर से पेल रहे हो!"

"ज़ोर से पेलने से ही तुम जैसी माल ठंडी होती है।"

"आआह आआह ऐसे ही पेलो फिर मेरे राजा बेटा, इसे आज तक किसी ने ऐसा नहीं पेला है! आआह! जोर से करो!"

"ये ले माँ आज के बाद ही तुझे समझ आएगा कि असली चुदाई किसे कहते है।"

"आह राजा तुम्हारा लौड़ा मेरे पेट तक मेहसूस हो रहा है आह।"

"देवरानी तेरे पहले पति का लौड़ा कैसा था या फिर वह था ही नहीं?"



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बलदेव घप्प के आवाज से हमच के फिर से अपना लंड डाल देता है।

"आह राजा हमें उस नपुंसक की याद न दिलाओ. उसका लौड़ा नहीं वह तो लुल्ली थी जो 3 इंच की होगी पर तुम्हारे तो उससे तीन गुना बड़ा है। आआह उसकी लुल्ली तो मेरी चूत के मुँह पर वह ख़त्म हो जाती थी । "

"आह माँ मेरा लौड़ा कहाँ तक ख़तम हो रहा है।"

"आह राजा तेरा लौड़ा मेरे बच्चेदानी से टकरा रहा है ।"

इन दोनों की ये बाते और साथ में "ठप्प ठप्प और छन्न छन्न" सुन साथ के कमरे में बंधा हुआ राजपाल पानी-पानी हुआ जा रहा था ।

बलदेव सटा सटऔर ज़ोर से अपना लौड़ा देवरानी को झुकाये हुए घोड़ी बना कर पेले जा रहा था और साथ में उसकी चिकनी गोल गांड पर हाथ फेर कर बीच-बीच में उसे चपत मार रहा था ।


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"आह बेटा ऐसे ही आह बेटा मेरा घुटना दुखने लगा!"

बलदेव देवरानी के कमर को पकड़ कर खुद लेट जाता है और देवरानी को अपने ऊपर ले लेता अब तक लंड उसकी चूत में फंसा हुआ था।

"मां अब खुद सवारी करो अपने घोड़े की।"

देवरानी की पीठ बलदेव के मुंह की तरफ थी जिस से देवरानी की बड़ी गांड दिख रही थी । देवरानी धीरे-धीरे ऊपर नीचे कर रही थी और बलदेव उसकी चूत का छेद को बंद और खुलते हुए देखता है। उत्तेजना के मारे देवरानी अपने ओंठ खुद के दांत से काट रही थी । पछ-पछ की आवाज से देवरानी बलदेव के लंड के ऊपर नीचे हो रही थी। कमरे में तेज पछ पच की आवाज गूँज रही थी जिसे साथ के कमरे में बंधा हुआ राजपाल सुन रहा था ।

बलदेव अब देवरानी के कमर पर हाथ रख नीचे से धक्के लगाने लगा।

"मां ज़ोर से उछलो, मेरे लौड़े पर तेजी से उठक बैठक करो! "

बलदेव के बात सुन देवरानी खूब तेजी से अपने गांड ऊपर कर रही थी और नीचे से बलदेव भी झटके मार रहा था । पूरे कक्ष में एक सुंदर संगीत सुनने को मिल रहा था जो काम के सुंदर ध्वनि पैदा कर रहा था, फछ-फछ थप थप-थप खान खान छन-छन देवरानी की चूत के साथ चूड़ी या पायल भी बज रहे थे सब मिल कर चुदाई का मधुर संगीत पहली मंजिल पर बज रहा था ।




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अब बलदेव उठ खड़ा होता है और देवरानी को पलंग से उतार कर खड़ा कर देता है फिर एक टांग को ऊपर उठा कर अपना लौड़ा देवरानी की चूत पर लगा देता है।

"आह राजा! "

"रानी पैर थोडा और उठाओ! नीचे नहीं आने चाहिए ।"

"आह राजा ऐसा कौन करता है भला! "



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"ऐसे मैं करता हूँ। हम करते हैं और रोज़ करेंगे । आह माँ आपकी चूत रस से भर गई है।"

घप्प घप्प बलदेव एक हाथ से देवरानी के कमर पर हाथ रखे या दूसरे हाथ से देवरानी को एक टांग को ऊपर आसमान की तरफ उठाएँ हल्का टेढ़ा हो कर अपना लैंड पेले जा रहा था देवरानी भी अपने मजे के सागर में डूबी हुई चुदवा रही थी । उसने बलदेव को कुछ भी करने पूरी आज़ादी दे थी इसलिए बलदेव भी अपनी माँ को घपाघप चोदे जा रहा था।

"आआह आह राजा मेरे अंदर सुर सूरी मची है अब मेरा हो जाएगा आआह।"



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बलदेव इतना सुनना था कि उसकी माँ अब पानी छोड़ने वाली है अपनी माँ की गांड पर एक थप्पड़ मारता है या आगे बढ़कर देवरानी के मम्मो को दबा लेता है।

"घप्प घप्प" ज़ोर से धक्के मारते हुए उसकी चुदाई जारी रखता है ।

बलदेव आगे बढ़ कर देवरानी के होठ अपने होठ में ले लेता है और चूसने लगता है।


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"चुम्म्म चममम गलप्प गैलप्प उह्म्म आआह गैलप्प-गैलप्प गैलप्प गैलप्प।"



देवरानी की टांग को नीचे कर देवरानी को दीवार से सटाता है। फिर हल्का-सा झुक कर देवरानी अपने दोनों हाथो को दीवार पर रख अपनी गांड को बाहर निकालती है, बलदेव का लंड अब भी देवरानी की चूत में था और वह फिर से घपा घप देवरानी के बचे दानी तक अपना लंड पेलने लगता है।

दो चार झटके उसने दिए थे के देवरानी अपने आखे बंद कर झड़ती है।

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"आह आआह राजा मैं गई उह्म्म्म आह!"

बलदेव धक्के और तेजी से मारने लगता है।

"आह राजा उन्म्म ऐसे ही पेलो आह!"

बलदेव ज़ोरो से देवरानी को पेल रहा अगले दस मिनट तक देवरानी झड़ती रही।

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झड़ने के बाद पीछे देखती है कि बलदेव उसकी कमर पकड़ कर ज़ोरो से उसे पेले जा रहा था।

देवरानी और बलदेव की आंखे मिलती है तो देवरानी मुस्कुरा देती है ।

बलदेव आगे बढ़कर देवरानी के होठ अपने होठ में ले लेता है।

"ऐसे ना मुस्कुराओ मेरी जान नहीं तो अगले दस दिन तक नहीं छोड़ूंगा ।"


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बलदेव फच्च से लौड़ा पेले जा रहा था। कुछ देर और पेलने के बाद बलदेव को लगता है जैसा उसका निकलने वाला है, फिर उसे कुछ सूझता है और वह खच से अपना लौड़ा निकाल कर कहता है ।

"देवरानी नीचे बैठो!"

देवरानी नीचे बैठ जाती है।

बलदेव देवरानी के खूबसूरत चेहरे को पकड़ता है फिर अपना लौड़ा उसको मुंह की तरफ करता है और देवरानी की ठोड़ी पकड़ कर उसका मुंह खोल लंड अपनी माँ के मुंह में डाल देता है।

देवरानी: ह्म्म् ऑप अम्म!

बलदेव अपना लौड़ा जड़ तक घुसा देता है और ऊपर नीचे होता है जिस तरह से देवरानी लंड पर अपने सिर को घुमा कर अपनी जीभ घुमा-घुमा कर चूस रही थी उससे बलदेव के लंड का अग्रभाग लंडमुंड बेहद संवेदनशील हो गया।

फिर बलदेव के लंड उसके मुँह में धँसने और फूलने लगा और फिर अचानक ही लंड ने पिचकारी मार दी और उसके लंड से एक तेज़ धार निकलती है। मोटे, अकड़े हुए लंड ने वीर्य को इतने वेग से निकाल दिया गया की वीर्य सीधा देवरानी के गले पर पहुँच गया। वीर्य की धार गले में जा लगी पहली धार से उबरने की कोशिश करते समय उसे घुटन और खांसी हो गई और इसके कारण बलदेव का वीर्य उसकी नाक से बाहर आ गया। यह बिलकुल नाक से पानी निकलने जैसा था।

वह पहले उत्सर्जन से उबर पाती इससे पहले ही लंड ने अगली धार मार दी और ये पहली से भी जोरदार थी।

इसी तरह, देवरानी ने पिचकारी की अगली 2-3 शॉट को अपने मुँह ने लिया लेकिन यह अंतहीन लग रहा था। वह अपने हाथो से लंड को ज़ोर जोर से हिला रही थी। बलदेव बस उसके मुँह में वीर्य डाल रहा था।

देवरानी को आखिरकार एहसास हुआ कि वह अब वीर्य निगलने लगी है। उसे वीर्य निगलने से कोई समस्या नहीं थी लेकिन यहाँ बलदेव का वीर्य इतना गाढ़ा और इतना ज़्यादा था कि उसे निगलना उसके लिए लगभग असंभव था। आखिरकार उसने नली को टटोलते हुए अपने सिर को इस तरह से मोड़ा की उसके मुँह से लंड की नली जहाँ खुलती है वह उसके मुँह से बाहर हो गया और फिर बलदेव ने तीन चार शॉट और मारे, पहला उसकी आँख में सीधे गया उसके छींटे गाल पर पड़े और मेरा वीर्य उसकी आँखों नाक बालो और गालो पर फ़ैल गया।


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बलदेव ने एक बार फिर देवरानी का सर पकड़ लिया तो उसने एक सेकंड के लिए सोचा बलदेव उसका सर लंड से हटाने वाला है। लेकिन बलदेव ने लंड फिर से देवरानी के मुँह में डाला आवर आगे धक्का दे दिया । लंड सीधा गले तक गया और-और देवरानी की हलक से नीचे बलदेव के लंड का रस सीधा देवरानी के पेट में गिरने लगता है।

बलदेव अपने आखे बंद किये था । देवरानी बलदेव के कमर को ऊपर से नीचे तक सहला रही थी।

बलदेव अब अपना लौड़ा देवरानी के मुंह से खींचता है और अपने लौड़े को आगे पीछे करता है और पिचकारी की धार अपनी माँ के सुंदर चेहरे पर गिराता है।

देवरानी के मुंह में भी बलदेव का वीर्य था अब देवरानी के चेहरे पर बलदेव अपने लौड़े के पानी से उसको भीगाने लगता है। देवरानी अपना मुंह खोलकर जीभ बाहर कर रही थी और वीर्य को चूसने की कोशिश कर रही थी जिस से सारा वीर्य उसके मुंह में आ जाए।

कुछ देर झड़ने के बाद बलदेव एक आह के साथ अपना लौड़ा बार निकाल छोड़ देता है पर देवरानी को देख वह मुस्कुरा देता है । देवरानी का आख नाक गाल होठ माथा जहाँ पर सिन्दूर था सब भीग गया था और देवरानी अपने जीभ से अपने होठ पर लगे पानी अदर ले कर गटक रही थी।

"रानी माँ कैसा लगा अपने बेटे के लंड का पानी।"

"मेरे बेटे नहीं मेरे पति, तुम्हार वीर्य बहुत स्वादिष्ट नमकीन है ।"

ये कह कर देवरानी शर्मा जाती है और अपना सर नीचे करती है। वह घुटनो के बल बैठी थी।

देवरानी के चेहरे पर लगा बलदेव का वीर्य बह कर चेहरे से लटक कर गिरने लगता है।

बलदेव देखता है उसकी माँ लज्जा कर चेहरा ऊपर से नीचे कीये हुए थी और उसके चेहरे पर फैला हुआ वीर्य टपकने लगा थे और बलदेव मुस्कुरा देता है।


जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

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सुहागरात

रात 12 बजे


बलदेव देवरानी की सुहागरात और शमशेरा की नींद उड़ गयी


देवरानी के चेहरे को अपने लंड के पानी से नहला कर बलदेव देवरानी को मुस्कुरा कर देखता है और देवरानी तुनक कर कपड़ा उठा कर अपना मुंह पूछती है उसकी नजर घड़ी पर पड़ती है।


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देवरानी: हे भगवान 12 बज गए! "

ये कहते हुए किसी जिंदा लाश की तरह पलंग पर गिरती है जैसे उसके अंदर अब जान ही ना बची हो।

बलदेव अपना लौड़ा उसी कपड़े से पूछ कर बिस्तर पर देवरानी के बगल में जा कर लेट जाता है।

"रानी अभी से 12 बज गए और आज तो पहली रात है।"


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"राजाजी 12 बजे हैं, समय देखो, वह सामने घड़ी में देखो।"

"अच्छा तो आओ एक बारी फिर से करते हैं।"

बलदेव ये कह कर देवरानी को अपनी बाहो में कसता है।

"नहीं राजा मेरi नस-नस दुख रहi है पिछली 6 घंटो से लगतर किये जा रहे हो।"


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"तुम कहना क्या चाहती हो देवरानी...प्यार तो मैं कर रहा हूँ, सोचो मेरा क्या हाल होगा?"

"तुम तो घोड़े हो थकने का नाम नहीं लेते मैं तो थक गई बुरी तरह!"

"तो बड़ी शेरनी बनी फिरती थी अभी कहा गई वह शेरनी जो हमेशा मेरे लौड़े को भड़काती थी और चुनौती देती थी।"


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बलदेव ये कहते हुए देवरानी की गांड पर हाथ रख कर अपनी तरफ खींचता है और देवरानी की चूत पर अपने लंड को, जो अभी सोया हुआ था रगड़ता है। देवरानी समझ जाती है बलदेव नहीं मानने वाला । फिर कुछ सोचते हुए देवरानी बलदेव को अपनi बाहो में कस कर उसके कान के नीचे चूमते हुए कहती है।




"आह राजा मैंने कब मना किया है आपको करने के लिए बस थोड़ा आराम करने दीजिए ना। फिर आपके लिंग की सेवा करेगी आपकी पत्नी । मेरे राजा बेटा!"

ये सुन कर बलदेव को भी अपनी माँ पर तरस आता है।

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बलदेव मुस्कुराते हुए देवरानी के कमर पर हाथ रख उसे सहलाना जारी रखता है।

"आह राजा आराम से! मेरा अंग-अंग बहुत दुख रहा है।"

"ठीक है अब मैं आपकी सेवा करता हूँ।"

बलदेव उठ कर जाता है या मुझ पर रखे सरसों तेल को उठा लेता है।



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"ये क्या कर रहा है बेटा?"

"मां आपकी मालिश!"

"नहीं, नहीं आप मेरे पति हो! ये तो मेरा काम है आप मत कीजिए मुझे पाप लगेगा ।"

"रानी माँ अपनी पत्नी की सेवा करना कहीं से पाप नहीं है। ये तो पुरुषो एक झूठी धारना को फेलाया है और अपनी पत्नी से सेवा करवाते हैं।"


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"तुम कितना समझदार हो राजा बेटा।"

"और वैसे भी माँ अगर तुम मेरे लिए अपना सब कुछ त्याग सकती हो तो मैं क्या इतना भी नहीं कर सकता । बेटा तो माँ की सेवा कर ही सकता है।"

ये सुनते हैं देवरानी खुश हो जाती है या अपनी लंबी केले जैसी टाँगे फेला देती है और चित लेट जाती है।

"आजा कर ले अपनी माँ की सेवा।"



MASSAGE1

बलदेव देखता है उसकी माँ दोनों टाँगे फेलाए लेटी हुई थी और उसकी टांगो के बीच उसकी चूत के मुहाने खुले थे, जिसमे लगातार पेलने के वजह रास्ता बन गया था और चूत की पंखुडिया बंद होने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी चूत में हल्का पानी का रिसाव भी हो रहा था।

बलदेव तेल की मालिश के लिए बैठ जाता है और दोनों हाथ में तेल लगा कर देवरानी के पैरो की उंगलियों से ले कर घुटनो तक तेल लगाने लगता है।




MALISH9

देवरानी अपनी आंखे बंद कर लेती है और या मालिश से उसे एक अलग ही मजा आ रहा था।

"महारानी कैसा लग रहा है? मालिश कमला से तो अच्छी नहीं होगी।"

"आह बेटा मर्द की बात ही कुछ और होती है। तुम्हारे हाथ की मालिश से मजा आ रहा है! थोड़ा और ऊपर आओ!"


MALISH8

MALISH7

"आह आआह राजा!"

देवरानी की नाभि में तेल डाल, एक उंगली, उसकी गहरी नाभि घुसा देता है। फिर अपनी उंगली गोल घुमाते हुए अपनी उंगली नीचे की ओर लाता है और अपने दूसरे हाथ से तेल देवरानी की चूत पर गिराता है।

"आह राजा उम्म्ह!"

बलदेव एक उंगली घुमते हुए नीचे आता है और चूत के चारो और ऐसे उंगली फेरने लगता है जैसे चूत पर अपना नाम लिख रहा हो।

MALISH6


बलदेव ऊपर बढ़ कर घुटनो से ले कर पूरी जांघो की मालिश करने लगता है और फिर तेल लेकर देवरानी के नाभि में गिराता है।

कुछ देर ऐसे वह सहलाते हुए पूरी चूत को तेल से भीगा कर अपने पूरे हाथ से चुत को पकड़ कर दबा लेता है।

"आआआह राजा"

बलदेव अब तेल से पूरी चूत की मालिश करने लगता है फिर ऊपर बढ़ता है और देवरानी के बड़े पपीतो जैसे स्तनों पर तेल गिराता है और दोनों हाथों से दोनों मम्मो को दबा देता है।


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"राजाआ धीरे!"

बलदेव दोनों मम्मो को खूब जम के मालिश करता है फिर ऐसे ही देवरानी के हाथ, पैर, टांगो चूत दूध सब पर बिना रुके मालिश करने लगता है।

दूसरी तरफ रात ज्यादा हो गई थो तो महल में सब खाना खा कर अपने-अपने कक्ष में सोने चले जाते हैं।

शमशेरा भी नीचे एक कक्ष में लेटा हुआ था पर उसकी आँखों से नींद कोसो दूर थी और उसके मन में हजार तरह का ख्याल आ रहे थे।



MALISH4


शमशेरा: (मन में) बलदेव की चांदी है। ऊपर अपने कक्ष में अपनी माँ को पेल रहा होगा। ...मेरे से छोटा है फिर भी अपनी माँ को पटा कर शादी भी कर ली और खूब मजे से सुहागरात मना रहा है। एक मैं हू जो इतने सालों से सिर्फ सोच रहा हु, पर कुछ नहीं कर पाया।

शमशेरा: (मन में) बलदेव की माँ की तो सिर्फ एक सौतन थी और मेरी माँ की तो तीन सौतन है और अब्बू के हरम में तो 500 से ज्यादा लौंडिया है जिनसे वह जिस्मानी रिश्ता रखते हैं...देवरानी खाला ने तो सिर्फ एक सौतन से परेशान हो कर अपने बेटे को अपना यार बना लीया। क्या अम्मी हुरिया को बुरा नहीं लगता होगा, उनके शौहर की 4 बीवीया है और साथ ही हजारो औरतों से हमबिस्तर होने का शौक ...! क्या अम्मी हुरिया का मन नहीं करता होगा की कोई उनसे भी सच्चा प्यार करे और सिर्फ उनका ही हो के रहे?


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सब सोचते हुए शमशेरा सो तो नहीं पा रहा था और उसे आज कल अलग-अलग वैश्यों के साथ रासलीला करने की आदत हो गई थी जिन्हे वह अपनी अम्मी हुरिया समझ कर रौंदता था, पर जंग के दिनों में वह किसी वैश्य के पास भी नहीं जा पा रहा था।

शमशेरा अपना बिस्तर से उठ कर कुछ सोचते हुए अपनी कक्ष से बाहर निकलता है तो देखता है कि महल में किसी की आवाज नहीं आ रही थी और सब सो रहे थे।


MALISH2


शमशेरा टहलने लगता है। इस बीच उसके दिमाग में कभी दिन की तो कभी अपनी माँ हुरिया की तस्वीर चल रही थी।



MALISH1

इधर रानी शुरूष्टि जो हल्की नींद में थी कदमो की आवाज सुन कर अपनी आंखे खोलती है।

"इतनी रात कौन है जो महल में चल रहा है।"


शुरूष्टि उठ कर अपने कक्ष में लालटेन को जलाती है और लालटेन को लिए बाहर आती है तो देखती है कि अँधेरे में कोई लंबा चौड़ा पुरुष टहल रहा है।

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शुरष्टि: कौन है वहा ...?

शमशेरा पीछे मुड़ता है तो देखता है की शुरूष्टि लालटेन लिए खड़ी हुई थी। शुरूष्टि उस समय वह बेहद कम और हल्के वस्त्र पहने हुए थी जो वह सोते समय पहनती थी। उन अंतरंग हल्के वस्त्रो में वह बहुत कामुक लग रही थी। उसके लटके हुए बड़े दूध उसकी सांवले पेट और उसके छोटे कद के कारण शमशेरा उसे झुक कर देखता है।





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"रानी शुरष्टि आप चौकीदारी कब से करने लगी।"

रानी शुरूष्टि साढ़े 6 फीट के आदमी के सामने अपना सर उठा कर कहती है।

"जब घर में अतिथि के रूप में जासूस आये हुए हो तो चौकीदारी भी करनी पड़ती है, राजकुमार!"

शुरूष्टि साढ़े 5 फीट से भी कम थी पर फिर भी थी तो रानी ही, इसलिए खूब कड़े अंदाज में शमशेरा को जवाब देती है ।

"लगता है रानी अब भी आप हमें जासूस ही समझती हो" !

"तो और क्या समझे! पहली बार जब आप आए थे तो अँधेरे में, अब भी आधी रातमें टहल रहे हो । ऐसे तो कोई भी चोर ही समझेगा।"

शमशेरा अब मायुस होते हुए कहता है।

"रानी साहिबा वह बस नींद नहीं आ रही है, पर आप अभी तक नहीं सोई।"

"मैं सो गई थी फिर तुम्हारे कदमों की आवाज ने उठा दिया । वैसे किसकी याद आ रही है जो आपको सोने नहीं दे रही है ।"

"अम्मी की...!"

शमशेरा की मुँह से निकल जाता है और वह अंदर से घबरा जाता है।

"मुझे समझ नहीं आता युवराज को अम्मी की याद ...!"

"वो रानी साहिबा घर से दूर हूँ ना तो घर की याद आ रही है, अम्मी अब्बू सब की याद आ रही है।"

शुरूष्टि: "मेरे से तो खड़ा नहीं हुआ जा रहा । दिन भर काम कर के थक गई हूँ । शादी का काम आसान नहीं होता है। युवराज अगर दिल भारी लग रहा है तो आईये। हमारे कक्ष में बैठ कर बात कर लेते हैं ।"

"ठीक है रानी साहिबा!"

शमशेरा को शुरूष्टि लालटेन लिए हुए अपने कक्षा की ओर ले जाती है और शमशेरा शुरूष्टि के पीछे-पीछे चल रहा था।

शमशेरा देखता है शुरूष्टि की गांड जो गोल गुब्बारे जैसी थी और उसके आभुषण में मटक रही गांड बहुत आकर्षक लग रही थी।

शमशेरा मन में: अरे वाह! क्या गांड है इतनी छोटी-सी रानी के इतने मोटे बड़े गांड । आज इस कपड़े में तो कहर ढा रही है रानी शुरष्टि।

शुरष्टि अपने कक्ष में घुस कर कुछ दिये जला देती है जिस से कक्षा में रोशनी फेल हो जाती है।

"आजाओ युवराज बैठ जाओ. लगता है तुम अपने परिवार को बहुत याद कर रहे हो।"

"हाँ रानी साहिबा खास कर अम्मी को।"

शमशेरा पास रखे सोफ़े पर बैठ जाता है और शुरष्टि दूर बिस्तर पर बैठ जाती है।

"अच्छा तो अम्मी के लाडले हो। ये तो बताओ कैसी है तुम्हारी अम्मी?"

"मतलब अच्छी है।"

"मेरे उमर की है या बड़ी है।"

"अब मुझे क्या पता आपकी उमर क्या है!"

"अरे ऐसे ही अंदाज़न बताओ।"

"आपकी उम्र कितनी है रानी साहिबा!"

"स्त्री से उसकी आयु नहीं पूछते कुमार!"

"तो फिर कैसे बताओ कि मेरी अम्मी जान आप से उम्र में छोटी है या बड़ी!"

"कितनी आयु है उनकी?"

"अम्मी जान लगभाग 44 की है।"

"फिर तो युवराज वह हम से छोटे हैं।"

"आप उनसे बड़ी हो। लगती तो नहीं हो रानी साहिबा।"

"हाँ अब मुझे ताड़ पर मत चढ़ाओ!"

"वैसे रानी साहिबा आपने आज बहुत मेहनत की है, थक गई होगी।"

"हाँ बाबा! अब विवाह की तयारी करना मामुली काम नहीं है।"

"हाँ आज वह बहुत खुश लग रहे थे।"

"युवराज उनको ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है । उन्होंने मेरी इज़्ज़त लूटने से बचाई है।"

"ओह तो क्या हम यहाँ गिल्ली डंडा खेलने आये थे।"

"हाँ आप सब नहीं आते युवराज, तो शाहजेब हम सारी महिलाओं की बाँध दिल्ली ले गया होता अपने साथ ...!"

"आप चुप क्यू हो गयी रानी साहिबा?"

"अब कैसे बोलू इतनी घटिया बात।"

"रानी साहिबा अपना दोस्त समझ कर आप कहिये।"

"वो हरामी शाहजेब ने मुझे यहाँ, वहा हाथ लगाया, मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की और वैसे बच्चू आप मेरे मित्र कब से बन गए. अगर मेरा कोई पुत्र होता तो तुम्हारे जितना ही बड़ा होता।"

"तो क्या हुआ हम दोस्त नहीं हो सकते और शाहजेब तो रंडीबाज़ है ही । जल्द ही उसके हाथ से दिल्ली निकल जाएगी।"

"छी! ऐसे शब्दो का प्रयोग ना करो युवराज।"

"एक बात कहू रानी साहिबा अगर आप बुरा ना माने तो।"

"बोलिये ना युवराज आप अब हमारे घर वाले जैसे हैं।"

"रानी जी आप हो इतनी खुबसूरत कि किसी का भी दिल आ जाए और वह बादशाह शाहजेब तो वैसे भी हरामी है।"

अपने बेटे के उमर के मर्द से ये बात सुन कर ही शुरष्टि शर्म से लाल हो गई।

"चुप करो युवराज जो मन में आजाता है बोल देते हो।"

"ठीक है रानी सृष्टि में जाता हूँ सोने वैसे भी आप दिन भर की थकी हो तो आराम कीजिये।"

ये कहते हुए शमशेरा उठता है पर वैसे ही शुरुष्टि कहती है।

"अरे रुको शमशेरा लगता है आपको बुरा लग गया।"

शमशेरा: (मन में) हथौड़ा सही जगह लगा है अब काम बन सकता है।

"नहीं रानी साहिबा इतनी-सी बात का बुरा क्या मानना। आप दोस्त जैसी हो हमारी।"

"अच्छा तो बैठो । अगर मित्र समझते हो तो नहीं समझूंगी, बुरा मान जाओगे।"

शमशेरा वापस बैठ जाता है।

"रानी साहिबा आपकी दोस्ती के लिए कुछ भी ।"

"क्या सच में सुंदर हूँ शमशेरा?"

शमशेरा अपने जगह से उठता है और बिस्तर पर आकर शुरुष्टि की बगल में बैठ जाता है।

"रानी जी आप सुंदर नहीं अति सुंदर हो और ये बात तो मुझसे तब से जानता हूँ जब मैं पहली बार आपके कक्ष में गलती से घुस गया था और आपके हुस्न का दीदार हो गया था।"

ये शमशेरा शुरष्टि की आंखो में देख कर कह रहा है शुरुष्टि सर नीचे कर के मुस्कुराए हुए शर्मा रही थी और उस लम्हे को याद कर रही थी जिसने जब उसे शमशेरा ने नंगा देख लिया था।

शुरष्टि सर निचे कीये बोलती है।

"मुझे क्या पता था तुम अचानक से अंदर आओगे। अगर पता होता तो स्नान कर के बाहर नहीं निकलती।"

शमशेरा शुरष्टि के पास खिसक जाता है और शुरष्टि का एक हाथ अपने हाथ में ले कर कहता है ।

"रानी साहिबा अगर आप उस दिन खुले बदन नहा कर बाहर नहीं निकलते तो आप का हुस्न मुझे दीवाना कैसे बनाता!"

शुरष्टिये सुनते हे लंबी-लंबी सांस लेने लगती है और अपना हाथ शमशेरा के हाथ में देख कहती है ।


"बेशरम !"

और अपना हाथ शमशेरा के हाथ से छुड़ाती है।

"तुम पारसियों को मैं जानती हूँ । चिकनी चुपड़ी बाते, तुम अच्छी कर लेते हो।"

"अहा रानी साहिबा मैं तो बीएस अपने दिल का हाल बता रहा हूँ।"

"अम्मी को कहो युवराज की अच्छी-सी दुल्हन ला दे।"

"रानी शुरष्टि अब आप जैसी मिलने से रही।"

"हट !"

कह कर शुरष्टि उठने लगती है।

शमशेरा हाथ पकड़ लेता है और खड़ा हो जाता है।

"मैं सच कह रहा हूँ शुरष्टि जी ।"

"पागल में अब बूढ़ी हो गई हूँ ।"

शमशेरा शुरष्टि के दोनों हाथों को अपने हाथो में ले कर कहता है।

"कौन कमबख्त कहता है तुम बूढ़ी हो । आप अब भी जवान हो रानी साहिबा!"

"छोडो मुझे!"

"रानी जी अब तो आपके पति राजपाल को जिंदगी भर सजा काटनी है, तो क्या आप ऐसे ही अपनी इस खूबसूरत जवानी को बरबाद करोगी?"

ये कह कर शमशेरा अपने हाथों से शुरष्टि की कमर को खींच कर अपनी तरफ लाता है।

"उसकी चिंता तुम ना करो शमशेरा!"

शुरष्टि सांस ज़ोर-ज़ोर से लेते हुए कहती है । कहीं ना कहीं अपनी तारीफ़ सुन और अपने आपको एक जवान मर्द के बाहो में पाकर शुरष्टि भी बहक गई थी और उसकी चूत में चिटिया रेंग रही थी।

शमशेरा झुक कर अपने होठ शुरष्टि के कान पर ले जाता है।

"जब से हमने आपको फुदकते नंगे दो कबूतरों को देखा है कोई ऐसा दिन नहीं जो इन्हें याद नहीं किया ।"

शुरष्टि के पास कहने को कुछ नहीं था । क्यू के उसके भारी मम्मो को शमशेरा ने पहले ही देख लिया था।

"रानी साहिबा क्या सोच रही हो? हाय आजाओ मेरो आगोश में 1 आपको जन्नत का सफर करवा दूंगा।"

शमशेर ये कह कर शुरष्टि के गले लग जाता है ।

"ये गलत है शमशेरा!"

"ऊपर बलदेव अपनी माँ के साथ सुहागरात मना रहा है। क्या वह सही है।"

"पर शमशेरा!"

"अगर मैं आपको पसंद नहीं रानी शुरष्टि तो कह दीजिए।"

"शमशेरा मैंने ऐसा तो नहीं कहा।"

ये सुनना था कि शमशेरा समझ गया की ये मोहतरमा और उसकी चूत भी अब उसका मूसल लेने के लिए तैयार है पर अभी भी डर रही है।

शमशेरा ने अपने दोनों हाथों से कमर में हाथ डाल कर शुरष्टि को अपने से चिपका लिया।

"रानी साहिबा आप खिदमत करने का मौका दीजिए वह बूढ़े राजपाल ने तो कुछ नहीं किया होगा।"

शुरुष्टि उखड़ी संसो के साथ शमशेरा से चिपकी खड़ी थी। शुरुष्टि की लम्बाई शमशेरा से कम होने के कारण उसका सर शमशेरा के पेट तक ही आ रहा था ।

शुरुष्टि: (मन में) वैसे मुझे भी एक मर्द चाहिए । राजपाल तो जीवन भर करवास में ही रहेगा और उस सेनापति से भी मुझे अपनी जान छुड़ानी है और शमशेरा ही है जो इस काम में मेरी मदद कर सकता है।

ये सोच कर शुरुष्टि निर्णय ले लेती है और अपनी बाहो में शमशेरा को दबा कर लपेट लेती है।

"आह जानेमन शुरुष्टि ये दबाने का मकसद मुझसे छूटना है या तुम्हें अच्छा लग रहा है?"

"शमशेरा में तुम्हें देख भी नहीं पा रही हूँ तुम इतने ऊंचे हो।"

ये सुनते हे शमशेरा की गर्दन में बाहे डाल कर लटक जाती है और किसी बच्चे की तरह सृष्टि को नीचे से पकड़ कर ऊपर उठाता है और उसकी चूत शमशेरा के लंड से चिपकी हुई थी। शमशेरा भी पीछे से शुरुष्टि की गांड को दबाये जा रहा था।

"आआह हाय !"

"रानी अब आ गई ना मेरे बराबर में।"

"आह हाये हाथ हटाओ!"

"कहा से रानी शुरष्टि।"

"मेरे पीछे से।"

शमशेरा अपने दोनों हाथ को पीछे ले जा कर ज़ोर से दबा रहा था।

"रानी शुरष्टि अभी गांड के हिलने से तो मेरा लंड खड़ा हो गया था।"

"छी कैसी बात कर रहे हो।"

"लगता है राजपाल ने कभी आपके साथ नहीं किया ।"

शमशेरा अपना हाथ देवरानी की चूत पर लगता है और उसे गरम पाकर ... !

"रानी जी अब आपकी चूत गरम हो चुकी है आपको तो अब पता होगा कि अब हमें ऐसी बात ही करनी होगी और मेरा लौड़ा आपकी चूत से बात करेगा तब जाकर ये ठंडी होगी।"

शुरुष्टि आखे बंद कर के शमशेरा के नंगे कंधे पर दांत लगा कर ज़ोर से काटती है।

"आआआह रानी !"



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शमशेरा शुरुष्टि को पकड़ कर आगे करता है और उसके चेहरे को देखते हुए पहले पास जल रहे दियो को फूक मार कर बुझाता है फिर शुरुआत को गोद में ले पलंग पर ज़ोर से पटक देता है।

"आआह!"

शुरुष्टि गिरते हुए अपनी आँखें खोलती है और अपने कक्ष में अँधेरा देख कहती है ।

"शमशेरा ये तुमने सब दिये क्यू बुझा दिये ।"

"अंधेरे में आपको प्यार करना है । अगर आप चाहे तो मुझे फिर से जला दो।"

"नहीं रहने दो।"

शमशेरा बिस्तर पर चढ़ शुरुष्टि को बाहो में भर लेता है और उसके होठों पर अपने होठ रख उसके ओंठ चुसने लगता है।

"गैलप्प गैलप्प-गैलप्प गैलप्प गैलप्प-गैलप्प गैलप्प गैलप्प!"

"आह शमशेरा !"

शमशेरा एक हाथ से उसकी धोती जैसी पतले अत्तारया उत्तरया वस्त्र को खींच देता है और सुरुष्टि पूर्ण नंगी हो जाती है।

शुरष्टि शर्मा कर तुरंत अपने दूध पर अपने हाथ रखती है।

"रानी शर्मा क्यू रही हो? इन्हे मैंने पहले भी देखा है। "

शमशेरा आगे से शुरष्टि के हाथ हटा देता है और उसके मम्मो को हाथ में पकड़ने लगता है।

"शमशेरा आहा ये बात किसी को पता नहीं चले!"

"रानी जी कभी नहीं चलेगा किसी को पता । बस आप लंड का मजा चखे।"

ये सुनते हे शुरष्टि की चुत रिसॉव करने लगती है।

शमशेरा शुरष्टि को मम्मो को ज़ोर से दबाता है फिर झुक कर अपने मुँह में भर कर बारी-बारी से चूसने लगता है।



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शमशेरा अब अपने कपड़े निकालता है या शुरष्टि को एक हाथ से खींचकर अपना ओर लाता है।

"ये मुँह में लो रानी!"

शुरष्टि लंड को देख वही रुक जाती है।

"नहीं शमशेरा ये बहुत बड़ा है।"

"लो बोला ना।"

शुरष्टि ने पहली बार ऐसा लंड देखा था । वह नीचे झुकती है और अपने हाथ में ले कर सोचती है ।

शुरष्टि (मन में) ये तो सोमनाथ के लिंग से भी बड़ा लिंग है । बाप रे! सोमनाथ से चुदना मेरे लिए मुश्किल होता था ये कैसे लुंगी!

"रानी शुरष्टि आप घबराइए मत सब चला जाएगा आप इसे मुँह में लो पहले!"

शमशेरा ने मानो शुरष्टि के मन को पढ़ लिया हो ।

शुरष्टि से सुन हड़बड़ा जाती है और अपना छोटे से हाथ में 9 इंच का हुल्लबी लौड़ा लिए हाथ आगे पीछे करती है और फिर नीचे झुक कर अपने छोटे से होठ के बीच लैंड के सुपारे को रखती है। शमशेरा के लौड़े का सुपाड़ा भी शुरष्टि के खुले मुंह में जा नहीं पा रहा था क्यू के शुरष्टि के मुंह खोलने के बाद भी शमशेरा ले लंड का सुपारा उसके मुंह के गोलाई से दो गुना मोटा था ।

शुरुष्टि: ये नहीं जाएगा । युवराज!

"जाएगा कैसी नहीं रानी।"

शमशेरा शुरष्टि के जबड़े को पकड़ के ज़ोर से दबाता है जिस से शुरुष्टि का मुँह और खुल जाता है । फिर शमशेरा एक ज़ोर का धक्का देता है या "पच्च" से पूरा सुपारा शुरष्टि के मुँह में घुस जाता है।

शुरुष्टि: आह अम्म उम्म!

शमशेरा एक और धक्का देता है और इस के बाद आधा लौड़ा अंदर घुस जाता है और शुरुआत का मुंह पूरा भर जाता है और उसे लग रहा था अब उसके गाल चिर जाएंगे।

शमशेरा देखता है कि रानी शुरष्टि का मुँह पूरा लौड़ा डालने लायक नहीं है और वह आधा लौड़ा ही शुरष्टि के मुंह में डाल आगे पीछे कर रहा था और शुरष्टि की आंखों में आसु साफ देखे जा सकते थे ।

थोड़ी देर में शमशेरा का लंड और सख्त हो जाता है । वह फच्च कर अपना लौड़ा निकलता है। शुरष्टि "आआह" कर एक लंबी सांस लेती है।

शमशेरा शुरष्टि को पकड़ के लिटा देता है या दोनों टांगो को खींच उसकी चूत को अपने लौड़े के पास लाता है।

"आह शमशेरा आराम से करो!"

शमशेरा चूत को देखता है।

"रानी तुम्हारी चूत तो किसी छोटी बच्ची जैसी है।"

"आह हम्म!"

शमशेरा अपना सुपारा चुत पर घिस रहा था और शुरष्टि आखे बंद कर सांस ले रही थी। शुरष्टि की चुत अब पानी छोड़ रही थी। शमशेरा अपनी एक उंगली अंदर डालता है और चुत में अंदर बाहर करने लगता है। थोड़ी देर बाद जब चुत का रास्ता चिकना हो जाता है। शमशेरा शुरष्टि को अपनी ओर से खींचा उसे दोनों टांगो को ऊपर उठाता है और शुरष्टि की गांड के नीचे तकिया लगा देता है । वह फिर अपना लौड़ा चूत पर लगा कर शुरष्टि को देखता है जो आखे बंद किये हुए सिसक रही थी।

"रानी शुरष्टि आपकी इजाज़त हो तो अंदर दाखिल कर दू।"

"आह शमशेरा कृपा कर के जल्दी करे।"

शमशेरा अपने एक हाथ से चूत के मुँह को फेलाता है और एक हाथ से अपना लौड़ा चूत पर रख हल्का-सा धक्का देता है जिससे सुपाड़ा आधा अंदर चला जाता है और सृष्टि कराह उठती ।

"आआआह!"

"अरे अभी गया भी नहीं रानी!"

शमशेरा झुक कर शुरष्टि के दोनों हाथो को पकड़ लेता है और जांघो से शुरष्टि की टांगो को दबा कर एक धक्का मारता है।

"पच्च कर के" आधा लौड़ा शुरष्टि के चूत में घुस जाता है।

श्रुष्टि: आआआआआआआह!



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शुरष्टि और ज़ोर से चिल्लाती । उससे पहले शमशेरा उसके होठों को अपने होठों में दबा लेता है और चूसने लगता है।

"रानी साहिबा शोर ना करे तो बदनामी आपकी ही होनी है।"

शमशेरा फिर से अपनी ओंठो से शुरष्टि के ओंठ पकड़ते हुए चूसने लगता है। शुरष्टि की सांसे जब काबू में आई तो शमशेरा एक या करारा धक्का मारता है और उसका 9 इंच का लंड पूरा चूत में घुस जाता है।

शुरष्टि घू-घू कर रह गयी । वह खूब जोर से चिल्लाना चाह रही थी पर अपने मुंह बंद होने के कारण से उसकी चीख घुट कर रह गई और उसके आंखो से आसुओ की धार निकलने लगी।

शुरष्टि अपने हाथों को शमशेरा की छाती पर रख के पीछे होने का इशारा करती है।

शमशेरा हल्का-सा अपना लौड़ा बाहर निकालता है और शुरष्टि के होठ छोड़ कर मुस्कुराता है ।

"रानी जी लो थोड़ा पीछे खींच लिया।"

"दुष्ट थोड़ा ही पीछे गया है तुम्हारा लिंग। अब भी मेरे बच्चे दानी से लग रहा है।"

कहते हुए शुरष्टि अपने आख बंद कर लेती है और उसकी आँखों से आसु बहने लगते है।

शमशेरा फिर धक्के मारता है और लौड़ा पूरा ना अंदर डाल कर आगे पीछे होने लगता है और शुरष्टि अपने दोनों हाथो से अपने बगल में रखे तकिया को पकड़े आह आहा की आवाज निकाले जा रही थी।

कुछ देर में उसके आसु रुक जाते हैं और वह धक्के के साथ हिल जाती है और बड़े मम्मे जो लटक गए थे पर वह भी हिलते जा रहे थे।

"रानी साहिबा अब कैसा लग रहा है?"

पछ पछ फच्च-फच्च की आवाज पूरे कक्ष में गूंज रही थी।

"आआह अच्छा धीरे शमशेरा आह!"

"रानी साहिबा अगर राजा राजपाल का लंड भी आपके बचे दानी तक पहुँचता तो शायद आप आज बहुत से बच्चे होते।"

घप्प कर शमशेरा ज़ोर का धक्का मारता है।

"आआआह धीरे!"

अब सुर में शमशेरा बिना रुके धक्के पेले जा रहा था और शुरष्टि कराहती जा रही थी।

"रानी आपकी जितनी कसी चूतमने आज तक नहीं मारी।"

"आह लगता है बहुत स्त्री को रिझा चुके हो अपने बातोसे और तुम्हारा इतना बड़ा है जो मेरी छोटी-सी योनि के सामने । तो तुम्हें मेरी कसी हुई ही लगेगी।"

शमशेरा: आह मजा आ गया!

"आआआह आह शमशेरा नहीं आआआह।"

शमशेरा ये सुन कर घपा घप पेले जा रहा था।

"आह ऐसे ही, आह मजा आ गया, मैंने सोचा नहीं था, कभी इतना मजा आता है चुदाई में, आआह शमशेरा!"

"चुदाई इसे ही कहते है रानी मुंगफली जैसे लंड से चुदोगी तो क्या मजा आएगा चुदाई का!"

"आआआआह मैं गई आआआह ओह आआआह!"

शमशेरा बैठ कर धक्के मारने लगता है और "आह मजा आ गया" , शुरष्टि झड़ने लगती है । कुछ देर ऐसे ही धक्के मारने के बाद शमशेरा भी झड़ने वाला था।

"शमशेरा निकालो इसे । तुम्हारा हो गया अपना पानी अंदर नहीं निकालो अन्यथा तुम मुझे माँ बना दोगे। निकालो इसे!"

शमशेरा होश में आते हुए सट से अपना सांप जैसा लौड़ा बाहर खीचता है और हाथ में लिए मुठियाने लगता है । फिर वह अपना पानी शुरष्टि के पेट पर गिराने लगता है।

"शमशेरा तुम तो अंदर ही पानी छोड़ देते आज!"

"तो क्या होता रानी मेरे बच्चे की माँ बन जाती।"

"या लोग क्या कहते हैं पति करवास में बंद है और पत्नी बच्चे जन्म रही है।"

शुरष्टि उठ कर अपना बदन साफ़ करती है या अपनी चूत की हालत को देख अफ़सोस करती है।

शमशेरा अपने कपड़े पहन कर शुरष्टि को पकड़ लेता है ।

"क्या हुआ रानी मजा नहीं आया?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है । शमशेरा!"

"तो बोलिए आपको इनाम में क्या चाहिए रानी शुरष्टि!"

रानी शुरष्टि मौके पर चौका मार कर सोमनाथ के बारे में पूरी बात शमशेरा को कह देती है ।

"देखो शमशेरा मुझे भूतकाल में अवश्य बलदेव और देवरानी को पसंद नहीं थे । पर जब से तुम सब ने मुझे शाहजेब की चुंगल से बचाया मैं उन्हें सच्चे दिल से अपना मानती हूँ पर ये सोमनाथ ने मेरे बेबसी का फ़ायदा उठाया और मेरे ऊपर अब भी बुरी नज़र गड़ाए रहता है।"

ये कहते हुए रानी शुरष्टि रोने लगी।

शमशेरा उसको गले लगा कर कहता है ।

"रानी साहिबा हम इसका हल निकालेंगे"

"धन्यवाद शमशेरा जी अब आप जाइए!"

ये कह कर रानी शुरष्टि शमशेरा से दूर हट जाती है।

"अरे अचानक आपको क्या हुआ?"

"जाओ शमशेरा किसी ने देख लिया तो मैं मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी।"

"ठीक है रानी जी!"

"कृपया आप अपने कक्ष में अति शीघ्र चले जाए ।"

शमशेरा उठ कर चला जाता है और आप अपने कक्ष में। रानी शुरष्टि अपने बिस्तर पर लेट जाती है और थकने के कारण से नींद की आगोश में चली जाती है । उधर शमशेरा भी अपने कक्ष में चूत मार के थक कर जा कर सो जाता है।

सुबह 1 बजे

ऊपर कक्ष में अब भी दोनों माँ बेटे, प्रेमी जोडे जो नए-नए पति पत्नी बने थे सोये नहीं थे।

देवरानी: कितना मालिश करोगे जी? थक जाओगे 1 घंटे से मालिश कर रहे हो आप।

"रानी माँ आपके संगेमरमर शरीर को मैं जीवन भर मालिश करूँ तो भी नहीं थकू।"

"आह राजा इतनी पसंद हूँ मैं।"

"रानी माँ अब कुछ दर्द कम हुआ।"

"बहुत कम हुआ दर्द। ऐसा लग रहा है पूरा अंग-अंग खुल गया ।"

"तो अब करे शुरू!"

"बलदेव जी आप तो मार डालोगे।"

"मां देखो ना मेरे लंड को। आपकी मालिश कर क्या हुआ हाल इसका।"

ये देख तेल में सनी देवरानी उठती है और आगे बढ़ कर बलदेव का लंड हाथ में ले लेती है।

"इसको तो कुछ काम नहीं है बस रह-रह कर मेरी मुनिया पर बुरा नज़र लगाये खड़ा हो जाता है।"

देवरानी बलदेव को लिटा देती है और अपने हाथ में तेल ले कर बलदेव के लौड़े को अपने हाथ में ले कर ऊपर नीचे कर लौड़े की मालिश करने लगती है।

"आआह माँ उआह!"

"कितना बड़ा है ये तेल लगने पर और भी भयानक लग रहा है।"

जारी रहेगी ...!
 
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