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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 83
घटराष्ट्र पर हमला हुआ और बलदेव बच गया

घटराष्ट्र

घाटराष्ट्र का वह बहादुर सैनिक मरते दम तक अपने राष्ट्रहित में काम करते हुए घटराष्ट्र वासिओ को शाहजेब के आक्रमण की बात बताता है और पूरे घटराष्ट्र में हलचल मच जाती है। लोग बलदेव को भूल जाते हैं। सेनापति लोगों को भागते देख सभी को घटराष्ट्र के सैनिकों का साथ देने के लिए कहता है।



SENAPATI1

सेनापति: वृद्धो और बच्चो को कृपा कर के सुरक्षित स्थानो पर रखिये।

महाराज अब इस बलदेव का क्या करे।

राजपाल: पहले हमें शाहजेब से निपटना है । रही बात बलदेव की तो मेरे लिए यह शाहजेब के साथ ही अपनी तलवार से खतम कर दूंगा। तुम सब जाओ और महल के चारों ओर सैनिक को सुरक्षा के तैनात करो ।


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सेनापति: जैसी आपकी इच्छा महाराज।

सेनापति: इस सैनिक का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए. हम सबको शाहजेब को किसी भी हाल में रोकना है।

सैनिक अपने भाला तलवार और तीरंदाज़ अपने वॉश, वाणो और तीर के साथ महल के चारो ओर सुरक्षा का घेरा बना लेते हैं।

महारानी जीविका और शुरष्टि महल के अंदर जाती हैं ।




srushti
जीविका: बहु महल का हर दरवाजा और खिड़की बंद कर दो।

श्रुष्टि: जी माँ जी!

जीविका: ये सब देवरानी के पाप का फल है जो हमारे देश में आज ऐसी मुसीबत आयी है।

कमला: राधा तुम जा कर पीछे का द्वार बंद करो दी में खिड़कियाँ लगाती हूँ।

जीविका: ये बादशाह शाहजेब ने कई वर्ष पहले जब दिल्ली परआक्रमण किया था तो वहा की हर स्त्री को इनके सैनिकों ने उठा लिया था।

शुरुष्टि: माँ जी मुझे बहुत डर लग रहा है।



DADI1

जीविका: डरने की ज़रूरत नहीं हम उनसे युद्ध करेंगे और अगर कुछ ऐसा हुआ तो बहू हम तहखाने के गुप्त रास्ते से बाहर निकल जायेंगे।

शुरुष्टि: वो कहा है?

जीविका: मेरे कक्ष में है।

शुरष्टि: ठीक है, पर मुझे तो उसका पता नहीं था।

जीविका: बहु राजपाल के पिता ने इसे गुप्त रखा था । हम सब ज़मीन के अंदर ही अंदर इस रास्ते से सीधा घाटराष्ट्र की सीमा तक पहुँच सकते हैं ।

शुरष्टि: भगवान न करे ऐसा कुछ हो!

कमला, राधा और सृष्टि महल की हर खिड़की, दरवाजा बंद कर देती है।

बाहर का नजारा ऐसा था कि राजपाल और सोमनाथ सैनिको के साथ शाहजेब के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे और सब सैनिक युद्ध के लिए त्यार थे।

सोमनाथ: सैनिको सब तय्यर?



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सैनिक: हाँ हम तैयार हैं।

सोमनाथ: डरने की जरूरत नहीं मेरे बहादुर सैनिको आज तक हमारे देश पर कोई नहीं कब्ज़ा कर सका है । ये शाहजेब को भी खाली हाथ लौट कर दिल्ली जाना होगा।

राजपाल: सैनिको हमारी माँ घटराष्ट्र पर ये विदेशी ना कल कब्ज़ा कर पाएँ थे ना आज कर पाएंगे और शाहज़ेब इस बार दिल्ली ज़िंदा वापिस नहीं जाएगा।

सैनिक: हाँ शाहजेब जिंदा नहीं रहेगा!



BALDEV-TIED
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अब शांत माहौल था बलदेव ये सब देख रहा था उसकी हाथ पैर अब भी बंधे हुए थे।



BOUND

महल में कमला देवरानी के पास जाती है जो राजपाल के कक्ष में बंधी हुई थी। कमला देवरानी के मुंह में बंधे कपडे को खोलती है।

कमला: चुप रहो महारानी!

देवरानी: क्या चुप करु जब मेरे प्रेमी ने मेरे प्रेम में अपनी जान दे दी और फांसी पर लटक गया, तो मेरा जिंदा रहने का क्या फायदा? मुझे भी मार दो कमला ... गला घोट दो मेरा!





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देवरानी फफक-फफक कर रो पड़ती है।

कमला की आँखों में आसु आजाते है।
कमला: ऐसा नहीं कहते महारानी! भगवान बहुत बड़ा है उसने तुम्हारी सुन ली! बलदेव का फासी टल गयी है।

देवरानी ये सुनते हैं ही ऐसा महसूस करती है जैसे उसके शरीर से जो रूह निकल गई थी वह फिर से आ गई हो।

देवरानी: क्या तुम सच कह रही हो कमला?

कमला: हाँ पर बुरी खबर ये है कि दिल्ली के राजा हम पर किसी भी क्षण आक्रमण कर सकते हैं।

देवरानी: क्या...?



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कमला: जी महारानी और उसकी सेना जितनी क्रूरता करती है आप वह तो जानती ही हो । शाहजेब खुद जो राज्य लूटता है उस राज्य के रानियो को अपने हरम में रख लेता है।

देवरानी: अब हमें क्या करना चाहिए कमला?

कमला: मैं वही बताने आई हूँ। महारानी जीविका की कक्षा में एक रास्ता है जो हमें जमीन के भीतर से ही घाटराष्ट्र की सीमा तक पहुँचाएगा ।

देवरानी: समझ नहीं आता शाहजेब के हमले का धन्यवाद कहू या .. !

कमला: बस जो होता है अच्छे के लिए होता है।

देवरानी: तुमने देखा मेरे बलदेव को? वह कैसा है?

कमला: वह ठीक है, उस पर महाराज ने बहुत जुल्म किया है । ।आप दोनों को इतने बड़े संसार में कहीं और जा कर बस जाना चाहिए था।

देवरानी: हम भागने वालो में से नहीं हैं ।, अब मुझे मेरा हक चाहिए और यही घाटराष्ट्र में चाहिए.।मेरे और बलदेव का रिश्ता यहीं शुरू हुआ था। कमला हमारी यादे यहाँ से जुड़ी है हमें कहीं और नहीं जाना है ।

कमला: ये क्या बचपना है...खैर ये सब बाद की बात है पहले हमें बलदेव को छुड़ाना होगा।

देवरानी: पर कैसे?

कमला: वह मैं देख लुंगी बस अब आप रोना बंद कर दो और सही समय पर बलदेव के साथ यहाँ से निकल जाना ।

बाहर सेना शाहजेब की सेना की प्रतीक्षा में खड़ी थी और तभी हवा जो तेज चल रही थी उसमें धूल उड़ने लगी और घोड़ों के चलने की आवाज के साथ घोड़ों की आवाज आने लगी । सब की नजर सामने दूर दिल्ली के सैनिक घाटराष्ट्र की ओर बढ़ते हुए नजर आते हैं ।



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सोमनाथ: वह आ रहे है महाराज!

राजपाल: आने दो वापस नहीं जा पाएंगे!

राजपाल अपना तलवार रख कर तीर कमान उठा लेता है।

सोमनाथ: तीरन्दाज़ आगे हो जाओ.।घुड़सवार को पीछे तैयार रहना है।

जैसे जैसी शाहजेब की फौज आगे आ रही थी उनकी तादाद देख कर सैनिक आपस में बात करने लगते है।

सोमनाथ: चुप करो सैनिको! हिम्मत मत हारो...युद्ध सेना से नहीं हिम्मत से जीती जाती है और हम उनसे गिनती में कम हैं तो क्या हुआ, हमारा आरा एक उनके 10 के बराबर हैं...जय भवानी!

सैनिक: जय भवानी!

सोमनाथ आकार धीरे से राजपाल से पूछता है!

सोमनाथ: महाराज क्या हमें अभी कुबेरी से कोई मदद मिल सकती है?

राजपाल: चिंता नहीं करो भले ही राजा रतन सिंह यहाँ से गुस्से में गया है, फिर भी मुझे विश्वास है वह हमारी मदद करने के लिए सेना जरूर भेजेगा।

सोमनाथ: तो फिर हमें अपना दूत भेज देना चाहिए?

राजपाल: हमने पहले ही कुबेरी अपना दूत भेज दिया है।

सोमनाथ: वाह महाराज ये आपने अच्छा किया । जब तक हमें कुबेरी से मदद नहीं मिल जाती तब तक हम शाहजेब की सेना को हम संभाल लेंगे।



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शाहजेब अब ठीक महल के सामने आकर रुकता है।

शाहजेब: फौजियो अब हम इन्हे मसल के रख देंगे, सब हमला करने के लिए तैयार?

सैनिक: हम तैयार हैं।




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शाहजेब: यलगार हो!

शाहजेब के सैनिक आवाज करते हुए महल की ओर घोड़ों को भागते हैं।

इधर सोमनाथ !

"तीरन्दाज़ आक्रमण !"


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फिर शाहजेब की सेना की तीरो से खातिर कर दी जाती है जो शाहजेब के कई सिपाहियों को घोड़े से नीचे गिरा रहे थे ।

सोमनाथ: घुड़सवार आगे बढ़ो तीरंदाज़ हाथ में भाला उठाओ!


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दिल्ली की सेना सामने और महल की तरफ से घाटराष्ट्र की सेना दोनों अपने घोड़ों को तेजी से भगा रहे थे और कुछ और पलो में दोनों आपस में भिड़ जाते हैं और मार काट शुरू हो जाती है । दोनों तरफ से सैनिक एक दूसरे पर हमला कर रहे थे और मार रहे थे।

शाहजेब पीछे खड़ा देख रहा था, उसने बड़ी चतुराई से अपनी आधी सेना को लड़ाई के लिए पहले भेजा था । उसकी आधी सेना अब भी पीछे थी।


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शाहजेब: भाईओ अब ये आग के गोलो से महल के दीवाल को छलनी कर दो।

शाहजेब की सेना आग के गोलों को तोपो में लगा कर मारना शुरू कर देती है जो सीधे राजपाल के महल के बाहरी दीवारों पर जा कर गिर रहे थे।

सोमनाथ: हाँ क्या शाहजेब ने अपनी फौज पूरी नहीं भेजी थी?




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बलदेव अब भी बंधा हुआ खड़ा था । बलदेव के सब्र का बाँध टूट जाता है।

बलदेव: सोमनाथ वह शाहजेब है, उसको हराना आसान नहीं है । मुझे खोल दो नहीं तो तुम सब की नीति के कार्ब से पूरे घाटराष्ट्र को दुःख भोगना पड़ेगा।

राजपाल: सोमनाथ इसे कह दो आज इसका आखिरी दिन है और ये अपना पापी मुंह ना खोले।




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सोमनाथ: हमें हमारा काम करने दो बलदेव नहीं तो हमे मजबूरन तुम्हारे मुंह को भी बाँधना होगा।

सोमनाथ: सैनिकों शाहजेब के सैनिक पीछे भी हैं उनको मुंह तोड़ जवाब दो! गोले मारो उन पर।

तीरन्दाज अपने तीर कमान छोड तोपो में गोलो में आग लगा कर शाहजेब के खेमे में मारने लगते हैं अब आसमान में दिन में रात का दृश्य था ।महल के दीवारो पर जैसे वह आग के गोले लगते और बाहर सैनिकों के गोले मारने की आवाज सुनते, घाटराष्ट्र के घर-घर में, सब के शरीर कांप उठते थे ।

उधर शमशेरा भी शाहजेब की सेना के पीछे-पीछे महल तक आजाता है और महल के पास आकर अपना रास्ता बदल लेता है, क्यू के शमशेरा पहले भी घाटराष्ट्र आ चुका था और वह गली-गली जानता था और वह किसी भी तरह से घाटराष्ट्र के सैनिक के रूप में घाटराष्ट्र में घुस गया जाता है। शमशेरा को घाटराष्ट्र की गालिया कभी इतनी सूनी नहीं लगी थी जितनी आज थी। वह महल के करीब आकर अपने घोड़े को महल के पीछे बाँध देता है और अपने हाथ में तलवार लिए जहाँ पर युद्ध चल रही थी वहा जाता है। दरवाजे से उसे बलदेव बंधा हुआ दिखता है और देखता है निचे राजपाल और सोमनाथ अपने मंत्रियों के साथ युद्ध की राजनीति पर काम कर रहे हैं।

शमशेरा देखता है महल के सामने मैदान में तो सेनाओ की भिड़ंत हो रही है। शमशेरा मुस्कुराता हुआ मन में कहता है।



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शमशेरा: शाहजेब तो घाटराष्ट्र पर भारी पड़ रहा है। देखते हैं ये मजेदार होने वाला है।

शाहजेब ये कह कर अपना तलवार उठा कर भागते हुए राजपाल या सोमनाथ की ओर जाता है ।

"जय घटराष्ट्र जय भवानी!"

सोमनाथ देखता है कि ये कौन सैनिक था जो पीछे छूट गया था।

सोमनाथ... कौन हो? अब जा कर तुम्हें समझ आ रहा है कि हम पर आक्रमण हो गया है।

शमशेरा हुलिये से समझ जाता है कि यही सेनापति है और वह राजपाल है।

शमशेरा: सेनापति जी हम किसान हैं पर हमारे पिता एक योद्धा थे जो राजा राजपाल के पिता का साथ जीवन भर दिए. हम से रहा नहीं गया तो हम अपने पिता का तलवार उठायी और पोशाक पहन लेंगे...क्या हमने कुछ गलत किया?

शमशेरा बड़ी होशियारी से अपनी भाषा बदल कर सोमनाथ और राजपाल को चकमा दे देता है।

राजपाल: बस अब पूरी रामकहानी न सुनाओ सैनिको के साथ जुड़ जाओ।

सोमनाथ: सुनो तुम उन तीरन्दाज़ो के साथ रुको। जब हम कहे तो रण में जाना ।

शमशेरा हाथ जोड़ कर..!

"जो आज्ञा महाराज !"

शमशेरा की इस बात को बलदेव भी देख रहा था और शमशेरा सेना की ओर जाते हुए बलदेव को देख एक आँख मार देता है।

बलदेव (: मन मे) बहुरूपिया शमशेरा!

और उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है।

युद्ध शुरू था और शाहजेब की सेना घटराष्ट्र पर भारी पड़ रही थी । अब दोपहर हो गयी थी ।

सोमनाथ: महाराज अब हमारे सैनिक गिनती में बहुत काम है। अब हमें जाना होगा।

सोमनाथ: जितने सैनिक हैं कान खोल कर सुन लो, हम मर जाएंगे लेकिन शाहजेब को कभी घटराष्ट्र पर कब्ज़ा नहीं करने देंगे।

राजपाल और सोमनाथ बाकी सैनिकों को तय्यार कर घोड़ों पर सवार हो कर रण भूमि में जाने लगते हैं।

सोमनाथ: हम शाहजेब की सैनिकों की मौत के घाट उतार देंगे।


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सब सैनिक राजपाल और सोमनाथ के पीछे जाने लगते हैं और शमशेरा अपने घोड़े को राजपाल की सेना के साथ जोड़ता हैं या । जब शमशेर देखता हैं कि राजपाल और सोमनाथ ने युद्ध शुरू कर दिया हैं तो वह अपने घोड़े को छोड़ दौड़ कर बलदेव की ओर आता है।

राजपाल और सोमनाथ अपने तलवार कला का अच्छा प्रदर्शन करते हैं और शाहजेब की सेना में हड़कंप मच जाता है।

शाहजेब: पीछे मत हटो भाईओ!

शाहजेब की सेना अपने बादशाह की बात सुन कर राजपाल और सोमनाथ का सामना करने लगती है।

शाहजेब अब आगे आकर अपने आखिरी टुकड़ी के साथ राजपाल और सोमनाथ के सैनिको के साथ लड़ने लगते हैं।

कुछ देर में वही घटराष्ट्र की सेना बहुत कम हो जाती है और वह भगने लगती है तो शाहजेब की सेना उनको खदेड़ते हुए महल की ओर बढ़ने लगती है।

सैनिक: भागो हम सब मारे जायेंगे!

राजपाल: भागो मत सैनिको, अपनी आखिरी सांस तक लडो!

सोमनाथ: महाराज अब हमारा जीतना मुश्किल है, आप तहखाने के रास्ते से राज परिवार को बचा लीजिए । मैं इनको रोकता हूँ।

सोमनाथऔर राजपाल महल के आगे खड़े हो कर शाहजेब की सेना पर भारी पड़ रहे थे ।

सोमनाथ: महाराज आप अन्दर जाइये!

राजपाल की नज़र तभी सामने जाती और उसे बलदेव नहीं दिखता।

राजपाल: ये बलदेव कहाँ गायब हो गया?

****** (दरअसल हुआ ये था) ********



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शमशेरा फौज को छोड़ बलदेव के पास आता है और उसके हाथ की रस्सी को काट कर उसे आजाद करता है।

बलदेव, धन्यवाद भाई शमशेरा!

शमशेरा: तुम मेरे छोटे भाई हो! चलो अब हमें निकालना होगा। यही सही समय है शाहजेब की फौज इस तरफ आ रही है। उनके आने से पहले हमे निकल जाना चाहिए!

बलदेव: भाई! आप जा कर घोड़ा तैयार करो। मैं माँ को ले कर आता हूँ।)

********

सोमनाथ: आप अपनी जान बचाये महाराज!

राजपाल घोड़े से उतर कर भाग कर महल में जाता है पर तब तक शाहजेब भी महल तक पहुँच जाता है और सोमनाथ को चारो ओर से घेर लेता है।

शाहजेब भी अपने सैनिकों के साथ महल में घुस जाता है।

सोमनाथ अपने आप को घिरा पा कर घोड़े से कूद जाता है और महल की ओर भागता है । कुछ सैनिक उसके पीछे भागते हैं, सोमनाथ अपने पीछे मुड़कर बैठ कर उनके पैरों पर तलवार मारता है और महल में घुसता है उसके पीछे शाहजेब के सैनिक भी घुस जाते हैं।

बलदेव महल में आकर अपनी माँ को इधर से उधर हर कक्ष में देख रहा था, तभी उसके कान में हंगाममें का शोर सुनाई देता है । वह समझ जाता है कि महल में शाहजेब ने धाबाबोल दिया है । वह और भी शिद्दत से अपनी माँ को हर कक्ष में ढूँढता है।

इधर कमला और राधा जीविका के साथ उसके कक्ष में थी और उनके साथ वैध जी भी थे।

कमला: महारानी जीविका आप चले जाएँ सब महल में आ गए है ।

जीविका: तुम सब भी चलो, मेरे बेटा राजपाल कहा है उसे भी ले चलो, मैं अकेला जीवित रह कर क्या करूँगी?

कमला: आप बात मानिये आप जाये! एक काम कीजिये वैध जी, आप राजमाता को ले जाये। अगर वह सब इस कक्षा में आये तो कोई बच के निकल नहीं पायेगा! जल्दी कीजिये!

जीविका: शुरूष्टि कहा है उसे लाओ!



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जीविका ये कह कर तहखाने से उतरती है और अपनी वैशाखी ले कर उसका साथ देते हुए वैध जी भी उतरने लगते हैं, दोनों नीचे पाहुच कर गुफा के रास्ते पर चलने लगते हैं।

कमलाः महारानी श्रुष्टि कहा हो आप?

शुरष्टि अपनी कक्षा में ही थी जैसे ही शाहजेब के सैनिक महल में घुसे वह अपनी कक्ष से निकलने ही वह वाली थी कि शाहजेब के सैनिक उसकी तरफ आने लगे और ना चाहते हुए भी वह रुक कर अपने कक्ष का दरवाजा बंद कर लेती है।

कमला जीविका के कक्षा में सृष्टि का इंतजार कर रही थी क्यू के उसे देवरानी को भी बचाना था।

कमला जीविका जिस रास्ते से गई थी उसे कालीन से छुपा देती है और खुद देवरानी को बचाने के लिए निकल पड़ती है।

महल के बीचो बीच शाहजेबऔर राजपाल लड़ रहे थे या, वही उसके सैनिक सोमनाथ से लड़ रहे थे।

कमला बाहर निकलती है तो उसे बलदेव दिखता है।

बलदेव: कमला माँ कहाँ है?

कमला बलदेव को देख खुश हो जाती है।

कमला: वह राजपाल की कक्ष में है।

दोनों भाग कर राजपाल के कक्षा में आते हैं जहाँ शाहजेब के सैनिक भी उसे देख लेते हैं और उनके पीछे वह भी दौड़ने लगते हैं।

"पकड़ो उन्हें कोई बच नहीं पाये!"

"कमला जल्दी भागो।"

दोनों आते हैं और देवरानी को बंधा देख बलदेव का खून खौल जाता है।



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देवरानी आहट सुन कर आखे ऊपर करती है तो उसके आखो के सामने बलदेव था।

देवरानी मन में: भगवान धन्यवाद करती है । मैं इसके बदले में चारो धाम यात्रा करूंगी मेरे बलदेव की जान बचाने के लिए आपका बहुत धन्यवाद!

बलदेव: माँ!

बलदेवऔर कमला झट से देवरानी की रस्सी खोलते है।

देवरानी: बलदेव तुम ठीक तो हो ना?

बलदेव देवरानी को गले से लगा लेता है।

कमला जा कर कक्ष का दरवाज़ा लगा देती है।



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कमला: अभी सही समय नहीं है तुम दोनों जल्दी निकलो यहाँ से।

बलदेव: चलो देवरानी!

देवरानी: चलो राजा!

दरवाज़े पर अब शाहज़ेब के सैनिक आ जाते हैं और दरवाज़ा पीटने लगते हैं।

कमला: तुम दोनों खिड़की से चले जाओ।

देवरानी: पर तुम!

कमला: मेरी चिंता मत करो तुम लोग जाओ।


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बलदेव: धन्यवाद कमला फिर मिलेंगे।

कमला की आंखो में आसु आजाते हैं।

कमला: कमला इतनी जल्दी नहीं मरने वाली, तुम दोनों के बच्चे को देख के मरूँगी और कमला की आंखो से आसु छलक जाते हैं । बलदेव देवरानी को उठा कर खिड़की पर चढ़ा देता है और बारी-बारी से दोनों महल के दूसरे ओर कूद जाते हैं।

तभी कमला को ज़ोर का धक्का लगता है और दरवाज़ा टूट जाता है और सैनिक अंदर आता है।

एक सैनिक आकर कमला को पकड़ कर एक थप्पड़ मारता है।



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"हरामज़ादी कह गये वह लोग?"

कमला को थप्पड़ इतना ज़ोर से लगता है कि वह सीधा दूर जा कर गिरती है।

बलदेव देवरानी का हाथ पकड़े भाग रहा था।

तभी इन दोनों तरफ से सैनिक आते हैं तो बलदेव थोड़ा रुकता हैऔर अपने कमान के तीरों से बारी-बारी से दोनों सैनिकों को मार गिराता है, फ़िर देवरानी का हाथ पकड़ कर भागने लगता है।

देवरानी मुस्कुरा कर बलदेव को देखती है।



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इधर राजपाल के हाथ से तलवार छूट जाती है और सोमनाथ भी अपने हाथ खड़े कर देता है।

शाहजेब: पकड़ लो इन्हे...!

शाहजेब भाग कर हर कक्षा की तलाशी लेने लगता है।

शाहजेब अपने हाथ में तलवार लिए जैसे ही महारानी श्के श्रुष्टि के कक्ष पर धक्का देता है वह दरवाजा बंद पाता है।



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शाहजेब एक जोरदार धक्का मारता है 6 फिट से ऊपर लम्बाई वाला और जानवर जैसी ताकत रखने वाला शाहजेब दरवाजे को तोड़ गिरा देता है और अब वहाँ दरवाजे पर सिर्फ परदा ही लगा था ।

शाहजेब अपनी तलवार आगे बढ़ाता है उसे सामने महारानी श्रुष्टि दिखती है जिसके हाथ में तलवार थी।

शाहजेब: देख कर तो लगता है कि आप यहाँ की मल्लिका हो पर तलवार आपने सही से नहीं पकड़ा है

शुरष्टि एक कदम पीछे होते हुए बोलती है ।



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शुरष्टि: तुमने सही समझे शाहजेब हमें तलवार पकड़ना भी आता है और सर काटना भी।

शाहजेब: तो आप जानती हैं हमें!

शुरष्टि: तुझे जैसे नीच को तो सब जानते है कुत्ते!

शाहजेब गाली सुन कर गुस्से में आता है फिर सृष्टि को ऊपर से नीचे तक देखता है।

शाहजेब: कद के साथ आपका जहन भी छोटा है। महारानी आपको एक बादशाह से बात करने नहीं आती है ।

शुरष्टि आगे बढ़ कर तलवार चलाती है।

शाहजेब: हाहा उमर ढल गई लेकिन अब भी लड़ाकु हो महारानी!

शाहजेब आगे बढ़कर एक जोर का प्रहार करता है जिस से शुरष्टि के हाथ की तलवार गिर जाती है।

शाहजेब अपना तलवार आगे बढ़ा कर शुरष्टिकी गर्दन पर रख कहता है ।

"चीज़ तो बड़ी मस्त हो, पुरानी शराब हो तुम!"

शाहजेब एक हाथ से शुरष्टि की कमर पर हाथ रख कर सहलाता है और अपने तलवार फेक कर शुरष्टि को दबोच कर बाहो में ले लेता है।

"आह मेरी रानी आजतेरी जैसी माल को चोद कर मजा आएगा!"

"छोड दे मुझे शाहजेब अंजाम अच्छा नहीं होगा!"

शाहजेब आगे बढ़कर शुरष्टि के होंठ अपने होठों में भर लेता हैं और ओंठ चूस लेता है ।

इधर बलदेव और देवरानी महल से भागने में कामयाब हो जाते हैं और शमशेरा अपने साथ एक और घोड़ा लिए दोनों का इंतज़ार कर रहा था।

"जल्दी इस घोड़े पर बैठ मेरे पीछे आजाओ!"

ये कह कर शमशेरा अपने घोड़ों को भगाता है।



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बलदेव देवरानी को घोड़े पर बिठाता है फिर खुद कूद कर बैठ जाता है और शमशेरा के पीछे जाने लगता है।

डोनो तरफ से शमशेरा के पीछे शाहजेब के सैनिक थे। शमशेरा अपने दोनों हाथों में तलवार लिए सब को काट रहा था और बलदेव भी अपने हाथों में तलवार लिए उसके पास जो भी सैनिक हमला करने उसके पास आया उसे मार देता है।

कुछ दूर यू ही चलते हुए अब शमशेरा और बलदेव के पीछे कोई नहीं था।

बलदेव पीछे मुड़ कर देखता है।

बलदेव: शमशेरा अब हमारा पीछा कोई नहीं कर रहा।

शमशेरा: चलते रहो बलदेव ये शाहजेब बहुत हरामी है कहीं से भी टपक सकता है।

शमशेरा बलदेव देवरानी हवा में बात करते हुए घाटराष्ट्र की सीमा पार कर लेते हैं ।


जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

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बलदेव देवरानी और शमशेरा दोस्ती समझौते की राह
घटराष्ट्र सीमा पर

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बलदेव और देवरानी को शमशेरा बचा कर ले आता है उधर वैध जी के साथ महारानी जीविका भी गुफा के रास्ते से बच कर निकल जाती है। महल में राजपाल या महारानी श्रुष्टि फंस जाती है और उनके साथ राधा कमला और सेनापति सोमनाथ भी पकड़ा जाता है।

शमशेरा अपने सैनिकों को देखता है जो आराम कर रहे थे वह घोड़े से उतर कर बलदेव को बुलाता है ।

शमशेरा: आ जाओ बलदेव!



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बलदेव के घोड़े पर से पहले देवरानी उतरती है फिर बलदेव घोड़े की लगाम पकड़ कर चलते हुए आता है। उसे सेना देख हेरानी होती है।

बलदेव: ये इतने सैनिक यहाँ पर क्या कर रहे हैं?

शमशेरा: ये तो कम हो गए हैं आधी फौज तो हमने कुबेरी भेज दी है ।

बलदेव: परन्तु क्यों?



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शमशेरा: क्यू के हम कुबेरी लूटने आए हैं, बलदेव । इसलिए घाटराष्ट्र पर चढ़ाई किए बिना हम कुबेरी लूट नहीं सकते। हमे खबर मिली थी राजा रतन घटराष्ट्र में है पर राजा रतन दिखाई नहीं दिया।

देवरानी: वह महल में नहीं है । वह तो कब का अपने राज्य चला गया ।

शमशेरा: सब बात तो ठीक है पर बलदेव तुम्हें क्यू अपने ही राज्य में तुम्हारे पिता ने द्वारा बंदी बनाया गया था ।

बलदेव ये सुन कर देवरानी की ओर देखता है।



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देवरानी बलदेव को कहने का इशारा कर देती है।

बलदेव: ज़रा इस तरफ़ आओ!

शमशेरा: बोलो भी फौज हम से दूर है ...मुझे ये बात समझ नहीं आती कोई बाप आख़िर क्यू अपने बेटे को बंदी बनायेगा?

बलदेव वही रुक जाता है।

"इधर आओ शमशेरा!"

शमशेरा पीछे मुड़ कर बलदेव के पास आता है।

बलदेव: भाई बात कुछ ऐसी है कि मैंने एक ऐसा कदम उठा लिया जिसके कारण से ये सब हुआ है ।

शमशेरा: कैसा कदम बलदेव? ...अगर तुम मुझे नहीं बताना चाहते हो तो कोई बात नहीं!

देवरानी: नहीं बेटा तुमने तो अपनी जान पर खेलकर हमें बचाया हम तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलेंगे।

शमशेरा, देवरानी खाला कर दिया ना एक पल में पराया! वह तो हमें शक हुआ कि आप दोनों खतरे में हो और मैं तो महल में सिर्फ वहा फौज का जायजा लेने गया था कि शाहजेब की फौज और ताकत कितनी है पर वहा मुझे बलदेव बंधा हूया दिख गया।

बलदेव, धन्यवाद मेरे मित्र...बात ये है कि मैं इनसे प्रेम करता हूँ।

शमशेरा: अच्छा तो इसमें क्या नई बात है।

बलदेव: तुम समझ नहीं रहे हो मैं माँ को एक स्त्री के रूप में चाहता हूँ । हम एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते।

शमशेरा अपनी आंखे बड़ी करते हुए चौंक जाता है ।


शमशेरा: हम्म अगर मैं समझ पा रहा हूँ तो तुम अपनी माँ को चाहते हो, एक मर्द औरत जिस तरह इश्क़ करते हो वैसे इश्क करते हो तुम दोनो।



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देवरानी: हाँ बेटा हम कब एक दूसरे को चाहने लगे पता भी नहीं चला!

ये कह कर देवरानी अपना सर नीचे कर लेती है।



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शमशेरा: हाहाहाहाहाहा! शमशेरा हसता जा रहा था।

बलदेव: क्या हुआ ऐसे क्यू हस रह हो।

देवरानी: बेटा तुम्हें पसंद नहीं आई ये बात !

शमशेरा अपनी हंसी रोकते हुए कहता है ।

शमशेरा: मैं इसलिए हस रहा हूँ क्योंकि आप दोनों एक दूसरे को एक शौहर बीवी की तरह प्यार करते हैं तो फिर मैं आपको खाला कहता हूँ, तो बलदेव को क्या खालू कहू?



THAHAKA

और शमशेरा फिर से ठहाका लगा कर हंसता है।

बलदेव ये सुन कर शर्मा जाता है और देवरानी अपना सर नीचे किये रहती है।

शमशेरा: हाँ फिर ये भी हो सकता है के बलदेव मेरा छोटा भाई है तो आप मेरी भाभी हो गई. देवरानी खाला!


LOUD-LAUGH

और शमशेरा फिर से ठहाका लगा कर हंसता है।

देवरानी: चुप करो शमशेरा तुम शैतान की तरह हँसे जा रहे हो?

शमशेरा: माफ़ कर दो खाला जान नहीं-नहीं भाभी जान?


LAUGH-STOP

शमशेरा हंसी रोकते हुए कहता है।

शमशेरा: असली बात तो ये है कि मैं बहुत खुश हूँ ये बात सुन कर क्यूकी जैसे बलदेव तुम अपनी माँ से मुहब्बत करते हो वैसे दिल ही दिल में है मुझे भी मेरी अम्मी जान से मुहब्बत है।


STUNNED
बलदेव और देवरानी इस तरह से शमशेरा के मुंह से साफ सपाट सुन अपने प्रेम की बात सुन और उसकी हिम्मत को देख अपने आखे फाड़े शमशेरा को ही देख रहे थे।

STUNNED-1


देवरानी: तुम्हारी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी वैसे मुझे ये पहले से पता था!

इस बार देवरानी सबको चौंका देती है।



STUNNED-2
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अब बलदेव और शमशेरा देवरानी को अचंभित हो कर घूर रहे थे।

देवरानी: तुम दोनों उल्लू की तरह घूर रहे हो!

शमशेरा: पर खाला आपको ये कैसे पता? मैंने तो कभी किसी को नहीं बताया!

देवरानी: बाबू तुम मेरे सामने भले कितने भी जासूस बनो...पर मैंने पहले दिन ही तुम्हारी आँखों का पीछा करते हुए देख लीया थी के तुम किस निगाह से अपनी अम्मी को देखते हो।


SHOCKED2-A


बलदेव और शमशेरा देवरानी को ही भौचक हो देख रहे थे।

शमशेरा: आप तो बहुत तेज़ निकली! खैर अब मुझे लगता है ये मुमकिन है।

देवरानी: नामुमकिन...!

शमशेरा: पर क्यों?



PRINCE1

देवरानी: मैंने कोशिश की कि तुम्हारी अम्मी को दाना डालने की तो उन्होंने वह हमेशा ये कह कर ये बात नकार दी कि ये कितना बड़ा गुनाह है। जहाँ तक मैं समझ पायी हूँ हुरिया दीदी मर जाएगी पर तुम्हारे प्रेम को कभी स्वीकार नहीं करेगी।

शमशेरा: कोई बात नहीं खाला जान! अब आप दोनों को ही देख कर खुश रहूँगा।

शमशेर आखे नम करते हुए कहता हैं।

देवरानी: शमशेरा बेटा, तो तुम विवाह कर लेना अच्छी-सी लड़की देख कर!



PRINCE2
शमशेरा: नहीं खाला जान मेरे जिंदगी में उनके सिवा कोई और नहीं आ सकती।

देवरानी: इसलिए तुम हमेशा शादी के लिए मना कर देते हो...तो क्या जीवन भर कुवारे रहोगे?

शमशेरा: यादो के सहारे जिंदगी काट लूंगा!

बलदेव: देवरानी इसको बातों को क्या सुन रही हो ये बहुत बड़ा ठरकी है ।

शमशेरा ये देख के बलदेव अपनी माँ का नाम ले कर बुला रहा है अपने आखे बड़ी कर बलदेव को घूरता है ।

शमशेरा: झूटे मैं और ठरकी!

बलदेव: मुझे विश्वास नहीं होता तुम अपनी अम्मी को ऐसे नज़र से देखते हो!

शमशेरा अब मायुस हो जाता है।

शमशेरा: बलदेव तुम इसलिए कह रहे हो ना क्यूकी में कोठे पर जाता हूँ?


बलदेव:हां शमशेरा बुरा मत मानो तो हमे लगता है की प्रेमी कभी किसी दूसरे की तरफ आख उठा कर नहीं देखते हैं

शमशेरा:देखो भाई मुझे वो जब बहुत याद आती है तो अपनी महबूबा हुरिया के नाम का ज़ाम गटक लेता हूं

बलदेव:ज़ाम तक तो ठीक है पर तुम जो संबंध...!

देवरानी हल्का खांसती है

देवरानी: भूलो मत मैं भी यहीं पर हूं, तुम दोनों बात को कहां से कहां ले जा रहे हो

बलदेव और शमशेरा शर्मा जाते हैं

बलदेव: वाह माँ!

देवरानी: वैसे हुरिया के नाम का ज़ाम! ये अच्छा था शमशेरा

बलदेव:अपनी माँ को नाम से बुलाता है

शमशेरा,और तुमने अभी जो अपनी माँ को नाम से बुलाया उसका क्या?

ये सुन अब बलदेव और देवरानी शर्म से पानी-पानी हो जाते हैं

बलदेव: वो तो हम एक दूसरे को प्रेम करते हैं और हम दोनों को इस बात से कोई आपत्ति नहीं है

शमशेरा:तो जैसे तुम अपनी मां से प्यार करते हो तो नाम ले कर बुला सकते हो, वैसे मेरा प्यार एक तरफा है, ये सही है, मैं क्यू नहीं उनका नाम ले सकता ..तुम तो उनके सामने ले रहे हो. मैं पीछे भी नहीं ले सकता ?

बलदेव:अब तुम्हारी मर्जी तुम जैसे चाहो करो हमे कोई आपत्ति नहीं !


eyes-blinking
देवरानी:अब तुम दोनो झगड़ो मत!

शमशेरा:देखा ना आपने खाला ये जाम की , कोठे की, हर बात का पर्दाफ़ाश कर रहा है तो क्या ये गलत नहीं है


देवरानी: मुझे पता है शमशेरा पहले से वह तुम्हे खराब लत लगी हुई है, पर बलदेव को मेरे सामने तुम्हारी पोल इस तरह नहीं खोलनी चाहिए



LAUGH1

और देवरानी हसती है

शमशेरा:खाला वो मैं मजबूरी में कभी-कभी जाम लेता हूँ

देवरानी:इसलिये तो कहती हूं विवाह कर लो पत्नी आ जायेगी तो इधर उधर नहीं जाओगे..और तुम तो बलदेव को भी बिगाड़ रहे थे

शमशेरा:हां वो उस दिन.तब मुझे क्या पता था ये अपनी मां का मजनू है ..अगर पता होता तो इसे वहां ना ले जाता

बलदेव और देवरानी एक साथ कहते हैं

"कोई बात नहीं शमशेरा !"

तभी पीछे से आवाज आती है

"शहजादे! "

शमशेरा पीछे मुड़ कर देखता है तो सैनिक उसे बुला रहा था

तीनो चल कर सैनिको के पास पहुंचते है

घटराष्ट्र महल




PALACE
महल का दृश्य ऐसा था शाहजेब की सेना महल में घुस सब को कैद कर रही थी और उधर शुरष्टि को पकड़े बादशाह शाहजेब चूस रहा था



shr-int


शुरष्टि :छोडो मुझे!

और शुरष्टि शाहजेब को एक धक्का मारती है

शाहजेब शुरष्टि के सर को पकड़ के दीवार पर दे मारता है शुरष्टि बेहोश हो जाती है

तभी शाहजेब के सैनिक आ जाते हैं

शाहजेब:इस कमीनी को होश में लाओ, इसे हम दिल्ली ले कर जाएंगे. इसको हम अपने हरम में रखेंगे

सैनिक1:बादशाह सलामत आप का हुक्म हो तो हम भी कुछ मुर्ग मुसल्लम का इंतेज़ाम कर ले



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शाहजेब: हमारे जाने से पहले यहां की जितनी खूबसूरत औरतें हैं, उन्हें उठा लो!

सैनिक2:बादशाह सलामत तो हम कुबेरी कब जाएंगे?

शाहजेब: हम शाम में निकलेंगे थोड़ा आराम कर लेते हैं. जाने से पहले घटराष्ट्र के हर मर्द को मारो. हर एक गावो मैं जाओ! राजपाल को फांसी दे दो. उसके खानदान का कोई नहीं बचना चाहिए



CAVE3
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इधर जीविका और वैध जी गुफा के रास्ते चलते जा रहे थे

वैध: महारानी आज हम इस गुफा से बाहर निकल नहीं पाएंगे

जीविका:वैध जी अब हम बस पहुँचने ही वाले हैं

घाटराष्ट्र के हर गांव में शाहजेब की सेना जा कर लूट पाट शुरू कर देती हैंऔर जो भी औरत उन्हें पसंद आती है उन्हें उठा लेते हैं

घाटराष्ट्र में लगभाग 30 गाँव थे और हर तीन चार गाँवों का एक चौधरी था, जो महाराजा के लिए काम करते थे. वो सब मिल कर एक सभा बुलाते है जिसमें कुछ सैनिक वो होते हैं, जो युद्ध से अपनी जान बचाकर भागे थे, और कुछ वो जो महल के पहरेदार थे . लड़ नहीं सकते थे वो भाग कर आकर चौधरी से बात करते है

सब मिल कर ये निर्णय करते हैं वो सब मिल कर घाटराष्ट्र की सीमा पर जो सुरंग का रास्ता है जो सीधा महल ले कर जाता है वहां जाएंगे

20 चौधरी 10 सैनिक और पहरेदार मिल कर घाटराष्ट्र की सीमा पर जाते हैं


घटराष्ट्र सीमा पर


CAVE

चौधरी 1:सैनिको तुम सही कह रहे हो ना महारानी जीविका महल में नहीं थी

सैनिक1:हा चौधरी साहब वो महल में नहीं थी

चौधरी2: ठीक है हम उस जंगल के समीप हैं जहां वो रास्ता खुलता है

तभी एक सैनिक पहाड़ पर नज़र घुमाता हैऔर वो सेना को देख कहता है

"हे भगवान इतनी सेना यहाँ क्या कर रही है?"

सब देखते हैं उसी तरफ वहा शमशेरा की सेना पुरे पहाड़ पर छाई हुई थी जिस से पहाड़ का रंग बदल गया था

चौधरी1: अब ये सेना किसकी है?

सैनिक: इस समय हम सबका वहा पर जाना ठीक नहीं आप सब यहीं रुके! मैं थोड़ा करीब जा कर देखता हूं

सैनिक:सेना का झंडा हरा है ये तो विदेशी सेना है

सैनिक अपने घोड़े को सेना की तरफ ले जाता है और कुछ दूर जाने के बाद वापस अपना घोड़ा मोड़ कर ले आता है

चौधरी1: क्या हुआ तुम वापस आ गए?

सैनिक:चौधरी साहब वो सेना पारस की है उसके झंडे से समझ गया और एक बात और देखि मैंने



ARMY2

सैनिक: उनके साथ युवराज बलदेव भी दिखा दिया!

चौधरी1:क्या?

चौधरी2: अच्छा इसका मतलब है देवरानी की मदद से ये फौज यहां खड़ी है

सैनिक2:इसके पीछे बात कुछ और ही लग रही है

चौधरी1:हमें महारानी जीविका को ढूंढना चाहिए, अभी बलदेव के पास जाना ठीक नहीं होगा

सब जीविका को लेने के लिए जंगल में पहुँचते हैं और सुरंग के रास्ते को खोलते हैं

जैसे ही अंदर से जीविका और वैध को रोशनी दिखती है , वो समझ जाते है उनको लेने कोई आ गया है



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जीविका और वैध जी उबड खाबड सीढियो पर पथ्थरो पर चढ़ने की कोशिश करते हैं पर चढ़ नहीं पा रहे थे

चौधरी1: शायद वो लोग ऊपर नहीं आ पा रहे , सैनिको रस्सी अंदर फेंको

सैनिक रस्सी ले आता है और रस्सी को सुरंग में फेंकता है जिसे पकड़ कर वैध जी और जीविका महारानी ऊपर आती है।

जीविका ऊपर आते ही थक कर लेट जाती है।

जीविका: पानी!

सैनिक तुरंत अपने बस्ते में से पानी निकाल कर देते हैंऔर जीविका पानी पी कर अपनी आंखें बंद किये लेटी रहती हैं।

चौधरी2: महारानी आप ठीक हैं ना?


VAIDH

वैध जा कर जंगल से कुछ जड़ी बूटी लेते हैं और जीविका को खिलाते हैं।

थोड़े देर बाद जीविका होश में आती है।

जीविका को सब पास में वह एक गुप्त गुफा में ले आते हैं।



JIVIKA-CRY
जीविका: मुझे यहाँ कहा ले आये...मेरा बेटा राजपाल: ।आआह! और फूट-फूट कर रो पड़ती है।

चौधरी2: महारानी आप रोये नहीं हम कुछ करते हैं।


जीविका: चौधरी साहब वह मेरे परिवार को मार डालेंगे ।

जीविका: सब लूट गया बर्बाद हो गया, हमारे राष्ट्र में अब विदेशियों ने कब्ज़ा कर लिया है ।

चौधरी2: आप ठीक कह रही हैं महारानी जीविका आज शाहजेब ने हमारे देश के हर गाँव हर घर में लूट पाट मचा रखी है और हमारी बहू बेटियों को भी उठा कर ले जा रहे हैं।

जीविका: सब का कारण में ही हू...हम आप सब को सुरक्षित नहीं रख सकेऔर खूब ज़ोर से रोने लगती है।



सैनिक1: महारानी हम महल से भाग आए और शाहजेब ने हुक्म दे दिया है कि महाराज राजपाल के परिवार में कोई जीवित नहीं रहे। महाराजा राजपाल भी बंदी बना लिया हैं और वह सब जाने से पहले सब को खत्म कर देंगे।

जीविका: नहीं मेरा लाल नहीं मर सकता है, हाय मेरा चिराग! नहीं...!

सैनिक2: महारानी अब हमारे पास और कोई रास्ता नहीं सिर्फ एक रास्ता बचा है

जीविका: क्या...मैं सब कुछ करूंगी अपने लाल को बचाने के लिए!

सैनिक2: हम युवराज बलदेव की मदद से बच सकते हैं।

जीविका: वो कैसे?

सैनिक2: महारानी वह अभी हजारो सैनिको के साथ घटराष्ट्र की सीमा पर है। शायद वह पारसी सैनिक है अगर ...!

चौधरी1: पर वह हमारा साथ क्यू देंगे, अभी तो महाराज बलदेव को फांसी देने ही वाले थे।

सैनिक2: पर हम उनसे बात कर के देख सकते हैं।



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जीविका: ठीक है उन्हें यहाँ बुला लो!

चौधरी2: हाँ अगर उसके दिल में घटराष्ट्र के लिए जरा भी जगह होगी तो वह जरूर साथ देगा।

सैनिक2: हमें जल्दी जाना होगा...हो सकता है पारसी सेना युवराज बलदेव को ले जाने के लिए ही यहाँ आई हो । वह लोग कभी भी पारस निकल सकते हैं।

जीविका: आप चौधरी साहब दो सैनिकों को ले कर जाएँ और उन्हें प्यार से ले कर आईये ।

एक चौधरी और दो सैनिक गुफा से निकल कर घोड़ों पर सवार हो कर जहाँ बलदेव था उस पहाड़ की ओर चल देते हैं ।

इधर बलदेव और देवरानी बैठ कर शमशेरा से गप्पे मार रहे थे। बलदेव और देवरानी शमशेरा को पूरी कहानी सुनाते हैं। कैसे उन्हें प्यार हो गया और फिर कैसे वह दोनों पकड़े गए.


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देवरानी: तो शमशेरा अब आगे क्या करना है?

शमशेरा: अब हम बिना शाहजेब को सबक सिखाएंगे तो जाएंगे नहीं। क्या आप दोनों हमारा साथ दोगे?

देवरानी: मैं चाहती हूँ मुझे मेरा हक मिले । घटराष्ट्र में, जिससे मुझे वंचित रखा गया, पर जबरदस्ती नहीं और युद्ध कर के भी नहीं।

शमशेरा: आप लोग चाहें तो रुक जाएँ, नहीं तो आप चाहें तो पारस जा कर रुक सकते हैं। मैं शाहजेब का काम तमाम कर के ही आऊंगा ।

बलदेव: माँ आज कल इन हालात में कोई आपके और मेरे बारे में नहीं सोचेगा!

इतने में बलदेव को सामने से तीन घुड़सावर आते दिखाई देते हैं और शमशेरा के सैनिक अपने तलवार निकाल लेते हैं ।

"रुक जाओ! कौन हो तुम लोग?"

चौधरी: भाई मैं चौधरी हूँ घटराष्ट्र का। युवराज बलदेव से बात करने आया हूँ।

ये सुन कर के घटराष्ट्र का कोई आया है, देवरानी अपना पल्लू नीचे कर अपना मुहं ढक लेती है।

बलदेव: अरे! चौधरी साहब आप?

चौधरी: युवराज आपको देख प्रसन्नता हुयी ।

बलदेव: चलो कोई तो है जिसे हम जीवित देखना पसंद करता है नहीं तो घटराष्ट्रा में तो सब यही चाहते हैं कि हम मर जाएँ।


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चौधरी : नहीं युवराज ऐसा नहीं है...!

बलदेव: कहिये क्या सेवा करे आपकी?

चौधरी देवरानी को देखाता है जो अपने पल्लू से अपना मुंह ढके खड़ी थी।

चौधरी: बहू रानी भी यहीं है क्या?

बलदेव: जी हाँ भगवान ने हम दोनों को बचाना था। इसलिए बच गए ।

चौधरी: वो आपको आपकी दादी महारानी जीविका याद है।

तभी देवरानी अपने एक हाथ से अपने पल्लू को खोस कर बोलती है।

देवरानी: इनकी कोई दादी वादी नहीं है। ना हमारा कोई परिवार है ।

बलदेव: जाने दो माँ ऐसा मत कहो।

चौधरी: हम समझ सकते हैं बहू रानी, ये जिस बहू का आवाज मैं आज पहली बार सुन रहा हूँ अगर वह ऐसा कह रही है तो उसके दिल में कितना दर्द होगा।

बलदेव: हमें नहीं मिना किसी से!

देवरानी को चौधरी बात पसंद आती है।

देवरानी: ठीक है हम चलते हैं पर हमारे साथ कुछ गलत नहीं होना चाहिए ।

चौधरी: मैं मर जाऊंगा पर आप दोनों को नुकसान नहीं पहुँचाएंगे।

वो तो जीविका जी ही यहीं आ जाती पर इतनी सेना देख हम यहाँ उन्हें खुद नहीं लाना चाहते थे।

ये सुन बलदेव मुस्कुरा देता है।



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शमशेरा: अगर इनको कुछ हुआ तो सोच लो।

चौधरी: आप लोग पारस निकालने वाले हैं क्या? ... जब तक युवराज बलदेव वापिस नहीं आते तब तक कृपया आप लोग रुक जाएँ!

ये सुन कर शमशेरा मुस्कुराता है।

शमशेरा मन में) इस बुड्ढे को क्या बताउ के हम शाहजेब को लिए बिना यहाँ से नहीं जाएंगे।

बलदेव और देवरानी चौधरी के साथ उसी गुफा में चल देते हैं जहाँ घाटराष्ट्र के कुछ सैनिक और अन्य चौधरी, जीविका और वैध जी के साथ रुके हुए थे।

थोड़े देर में वह सब उस गुफा तक पहुँचाते हैं, अंदर जाते हैं ही जैसे ही बलदेव की नजर जीविका पर पड़ती है उसकी आखे गुस्से से लाल हो जाती है।

देवरानी जीविका को देख अपना मुँह फेर कर एक कोने में चली जाती है।

वैध: आइये युवराज बलदेव! पधारिये!

बलदेव: जी वैध जी! आप ठीक तो हो ना।



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बलदेव अपनी दादी जीविका की तरफ देख भी नहीं रहा था।

चौधरी1: आइए आप लोग बैठिए!

सैनिक2: युवराज हमारे घटराष्ट्र का हाल अभी बहुत बुरा है। शाहजेब ने अति कर दी है।

चौधरी2: हाँ युवराज हमारी बहू बेटी कोई भी सुरक्षित नहीं है।

बलदेव: अब इसका कारण मैं तो नहीं हूँ?

सैनिक2: पर आप हमारी मदद कर सकते हैं।

चौधरी2: महारानी जीविका आप कहिए!

जीविका: बलदेव बेटा जो हुआ सो हुआ। अभी सिर्फ मेरे बेटे राजपाल की जान ही नहीं पूरे घटराष्ट्र वासियों की जान और इज्जत तुम्हारे हाथ में है। अगर तुम हमारी मदद करोगे तो...

बलदेव: जब मुझे मरता हुआ छोड़ दिया था तब तो कोई घटराष्ट्र वासी मेरी मदद के लिए नहीं आया अब मैं क्यों उनकी मदद करूँ।

जीविका: तुम हमारी मदद करो हम सब तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलेंगे।

बलदेव: महारानी जीविका हम ने भी आप से बहुत बार कहा की आप हम पर अहसान कर दें पर हमारी आपने एक नहीं सुनी।



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जीविका: देखो अभी बदला लेने का समय नहीं है। बोलो बदले में तुम्हें क्या चाहिए?

बलदेव कुछ सोचता है फिर कहता है।

बलदेव: बदले में मुझे घटराष्ट्र के राजा की गद्दी चाहिए और... !

चौधरी2: और क्या

जीविका भी बलदेव की ओर देख रही थी और सब एक टक बलदेव को देख जा रहे थे।

बलदेव: और देवरानी मुझे मेरी रानी के रूप में चाहिए. सब उसका महारानी की तरह आदर सत्कार करे...मुझे घाटराष्ट्र का महाराजा बनना है और मैं देवरानी को बनाऊंगा महारानी ! ...अगर मेरी मांगे पूरी हुई तो ही मैं तुम सब की मदद कर सकता हूँ।

ये सुन कर वहा पर जितने भी चौधरी और सैनिक थे, सबको सांप सूंघ गया और देवरानी अपने पल्लू को हल्का-सा ऊपर उठा कर बलदेव को देखती है। बलदेव मुस्कुरा रहा था और देवरानी भी ये देख मुस्कुरा दी।



FAINT
जीविका को ये सुन चक्कर-सा आ जाता है।

सन्नाटा छा जाता हैऔर सब लोग इस कशमकश में पड़ जाते हैं और सोचने लगते हैं आखिर क्या किया जाए... !

जारी रहेगी
 
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aamirhydkhan

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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 85

घटराष्ट्र की रक्षा का प्रण
घटराष्ट्र सीमा पर

CAVE2

बलदेव: और देवरानी मुझे मेरी रानी के रूप में चाहिए जिसका सब आदर सत्कार करे...मुझे बनना है घाटराष्ट्र का महाराजा और मैं देवरानी को बनाऊंगा महारानी...अगर मेरी मांगे पूरी हुई तो ही मैं तुम सब की मदद कर सकता हूँ।


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ये सुन कर वहा पर जितने चौधरी या सैनिक थे सबको सांप सूंघ गया ।


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देवरानी अपने पल्लू को हल्का-सा ऊपर उठाये बलदेव को देखती है जो मुस्कुरा रहा था उसे देख देवरानी भी मुस्कुरा दी।


FAINT

जीविका को ये सुनकर चक्कर-सा आ जाता है।

सन्नाटा छा जाता है या सब लोग इस कशमकश में पड़ जाते हैं या सोचने लगते हैं आखिर क्या किया जाए!

बलदेव: क्या हुआ सांप सूंघ गए सबको?

जीविका: नहीं ...तुम हम से ये मांग छोड़ कर कुछ और मांग लो । तुम चाहे तो महाराजा बन जाओ घटराष्ट्र का जो चाहे वह करो । तुम 10 विवाह कर लो पर मैं तुम्हे देवरानी से विवाह के लिए अनुमति दे नहीं सकती।


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चौधरी2: बलदेव आप महाराजा बन जाएँ तो हमें कोई आपत्ति नहीं पर अपनी माँ से विवाह करना तो पाप होगा । आप खुद सोचिए!

बलदेव: मैं जो सोच रहा हूँ वही बोल रहा हूँ और देवरानी भी इस बात से सहमत है।

जीविका: इस से पहले समय हाथ से निकल जाए तुम दोनों होश में आजाओ । तुम्हें पता है इस रिश्ते के कारण से हमारी कितनी बेइज्जती हुई है और तुम चाहते हो विवाह कर के दुनिया के सामने हमारी नाक कट जाए।

तभी देवरानी बोल पड़ती है।

देवरानी: माँ जी ये बात आप कह रही है? आपके बेटे ने मुझसे जीवन भर परायो-सा व्यवहार किया, तब आपकी नाक नहीं कटी?

आपके बेटे ने मुझे अपने मित्र रतन सिंह के बिस्तर पर भेजने के लिए जबरदस्ती की, क्या तब आप की नाक नहीं कटी?

आपका बेटा राजपाल पिछले 18 साल से वैश्यो के पास जाता है इससे आप की नाक नहीं कटी?



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वाह! घटराष्ट्र वासियो अगर तुम्हारे राजा के ये सब काम करने से और मेरा जीवन नरक बनाने के बाद भी आप सबकी नाक नहीं कटी । तो जिसे मैं सच्चा प्यार करती हूँ, उस बलदेव से विवाह करने पर अगर आपकी नात कटटी है तो भी मुझे इसकी कोई परवा नहीं।

ये सुन सब के सब मूरत बन देखते रह जाते हैं।

बलदेव: हमारे पास ज़्यादा समय नहीं है और दादी माँ आप चाहें ना चाहें, हम फिर भी विवाह जरूर करेंगे।



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बलदेव अपने कमर में लगे चाकू से अपने अंगुठे को लगाता है और चाकू की तेज धार से अंगूठा हल्का काट जाता है । बलदेव जा कर देवरानी के माथे पैर अपने अंगूठे के खून से देवरानी का माथा भर देता है ।


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देवरानी बलदेव को देखती रह जाती है।

बलदेव: बनोगी न मेरी जीवन साथी।

देवरानी झट से बलदेव के चरण स्पर्श करते हुए कहती है ।

देवरानी: बलदेव जी मैं हमेशा आपका साथ दूंगी चाहे दुख हो या सुख हो!

बलदेव: ये क्या मेरे चरण मत छूओ।

बलदेव देवरानी को पकड़ कर उठाता है।



BLESS-MARY
देवरानी: पति भगवान समान होता है और अपने भगवान की चरण छूना गलत नहीं है ।

ये सब देख कर गुफा में मौजुद जीविकाऔर जितने चौधरी थे और सैनिक सब स्थिर हो जाते हैं।

चौधरी2: महारानी जीविका आप अनुमति दे ना दे, ये तो वही करेंगे जो ये चाहते हैं। इसकी वजह से घटराष्ट्र को खोना ठीक नहीं होगा।

जीविका: तुम्हारे कहने का अर्थ क्या है कि मैं इन्हे विवाह करने की अनुमति दे, एक माँ बेटे को, तुम पागल तो नहीं हो गए हो ।

चौधरी2: पागल हम नहीं महारानी आपका पुत्र राजा राजपाल है, जिसने इस बेचारी को जीवन भर दुख दिये जिसकी सजा तुम सब भोग रहे हो।

चौधरी1 माफ़ करना महारानी पर आप अपने घर की इज्जत बचाने के लिए पूरे घाटराष्ट्र की बहू बेटियों की इज्जत की कोई चिंता नहीं कर रही हो।

चौधरी1: हम सब पूरे गृहराष्ट्र के गाँवों के मुखिया हैं और सालों से घटराष्ट्र के पालन पोषण में हमारा योगदान रह रहा है।

चौधरी2: महारानी जीविका अगर हम ये नहीं करेंगे तो सब बर्बाद हो जाएगा। वह शाहजेब दिल्ली की तरह यहाँ भी कब्ज़ा कर लेगा याऔर हमारी बहू बेटियों को वह उठा कर ले जाएगा।

चौधरी1: हमारा राज्य हम से छीन जाएगा और हमें यहाँ से भागना होगा या फिर शाहजेब के हाथो मरना होगा।

इन सबको अपने प्रस्ताव से असहमत देख बलदेव और देवरानी एक दूसरे की बाहो में बाहे डाल गुफ़ा की बहार निकलने लगे ।

चौधरी2: महारानी अपने परिवार के मान सम्मान के खातिर आप पूरे घटराष्ट्र के मान सम्मान को खो दोगी। आप बलदेव को हाँ कह दीजिए अन्यथा घटराष्ट्र की प्रजा को जब पता चलेगा कि आप सबको बचा सकती थी पर आप ने नहीं बचाया तो वह आपको कभी मुआफ नहीं करेगी ।

जीविका: (मन में) हे भगवान! अब मैं क्या करु एक तरफ पूरे घटराष्ट्र के लोग है दूसरी तरफ मेरे बेटे की पत्नी को मैं किसी और को कैसे दे दू... { (दूसरा मन) देवरानी ने भी तो बहुत तकलीफ उठाई है और वैसे भीवो दूसरा आदमी मेरा पोता बलदेव ही है।}

पूरी गुफा में जितने भी सैनिक और चौधरी थे, अब सब ज़ोर-ज़ोर से बातें करने लगते हैं और जीविका को ग़लत बताने लगते हैं, तभी एक ज़ोर की आवाज़ आती है जिसे सुन सब चुप हो जाते हैं।

"रुक जाओ बलदेव!"



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जीविका जाते हुए बलदेव या देवरानी को रोकती हैं तो बलदेव और देवरानी पीछे घूम कर देखते हैं।

जीविका: हमें तुम्हारी मांगे मंजूर है।

ये सुन कर तो जैसे बलदेव और देवरानी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। देवरानी की आंखो में खुशी की आसु छलक जाते है और वह बलदेव के सीने पर सर रख कहती है ।

देवरानी: आख़िर हमारी प्रेम कहानी रंग लाई!

बलदेव: प्रेम अगर सच्चे मन से करो तो आज ना कल जीत होती ही है।

बलदेव और देवरानी वापस आते हैं।

बलदेव: धन्यवाद दादी!

जीविका अपना मुंह फेर लेती है।

बलदेव: दादी आप अपने पोते की होने वाली पत्नी को अपनी पॉट पोतबहू को आशीर्वाद नहीं दोगी?

ये सून देवरानी लज्जा जाती है। बलदेव उसे देख कहता है ।

बलदेव: पैर छूओ दादी के भी!

देवरानी मुस्कुराती हुई जीविका के चरण छू लेती है पर जीविका अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लेती है।

जीविका: चलो अब काम की बात करो। आज शाम में शाहजेब जा रहा है, अगर वह निकल गया यहाँ से तो...!

बलदेव: दादी मैं शाहजेब को यहाँ से किसी भी एक स्त्री को ले कर जाने नहीं दूंगा।आवश्श्यकता पड़ी तो चाहे मैं अपनी प्राण दे दूंगा और घटराष्ट्र पर जैसे ही हम वापस अपना झंडा लहराएंगे मैं देवरानी से विवाह करूंगा।

चौधरी2: बेटा चलो हमारे पास समय बहुत कम है।

बलदेव: चौधरी साहब आप चिंता मत कीजिए मुझे पता है शाहजेब अपने कुछ सैनिकों के साथ कुबेरी की तरफ जाएगा ोरव अपने आधे से ज्यादा सैनिकों को यहीं लूट मार करने के लिए रखेगा...पर ये उसकी ऐसी मंशा है जो मैं कभी पूरी नहीं होने दूंगा।

चौधरी2: हम सबको बेटा तुम से यही उम्मीद थी।

बलदेव: चौधरी जी घटराष्ट्र की हर स्त्री मेरी माँ बहन है उनके हुए हर एक अपमान का बदला मैं शाहजेब से लूंगा।

ये सुन कर वहा पर सब बलदेव को गौर से देखने लग जाते हैं।

बलदेव अपना हाथ आगे उठा कर प्रण लेता है।

"मैं बलदेव सिंह यानी के घटराष्ट्र का महाराजा आज प्रण लेना हुँ को शाहजेब को सज़ा मिलेगी और इसका बदला हम उससे दिल्ली छीन कर लेंगे।"

सब आशाचार्यचकित हो कर बलदेव की ओर देखते हैं...!

कुबेरी

इधर कुबेरी में महल में आराम कर रहा राजा रतन सिंह के साथ उसकी पत्नी एलिजा थी, जो उसे मदिरापान करवा रही थी। रतन सिंह इस बात से अंजान था कि उसके राज्य में दो अलग-अलग सेना आक्रमण करने के लिए लगभाग पाहुच चुकी है। एक दिल्ली की सेना और उसके पीछे सुल्तान की सेना जिसका साथ देवराज दे रहा था।



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रतन: और पिलाओ एलिजा! इस देवरानी के रूप ने मुझे पागल कर दिया है।


BLONDE1

एलिज़ा रत्न सिंह को ग्लास भर के मदिरा मदीरा देती है और वह मदिरा पीने लगता है।

शाहजेब की सेना कुबेरी को पश्चिम दिशा से आक्रमण करने की तैयारी कर रही थी और सुल्तान तथा देवराज अपनी सेना के साथ उत्तर दिशा से आक्रमण करने की तयारी में थे।

जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

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बात बन गयी


::::: कुबेरी ::::

कुबेरी के महल के उत्तर से आक्रमण की तयारी में सुल्तान या देवराज अपनी सेना के लिए खड़े थे, वही कुबेरी के महल के पश्चिम से शाहजेब की सेना धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। कुबेरी की सीमा पर आकर सुल्तान अपना हाथ उठा कर इशारा करते हैं और सब रुक जाते हैं।


SULTAN0

सुलतान: फौजियो हमें एक नहीं दो गुटों के साथ लड़ना है शाहजेब की 15000 फौज है और हमें पता है कि कुबेरी की ताकत क्या है, इसलिए युद्ध शुरू होने से पहले आप सब अपने साथ, जो कुछ लाए हो वह खा पी लो।

सुल्तान देखता है देवराज गहरी सोच में डूबा हुआ है सुल्तान अपने घोड़े में लटके बस्ते में से कुछ लड्डू निकाल कर देवराज को देते हुए कहते हैं ।

सुलतान: ये लो देवराज खाओ!



DEVRAJ
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देवराज: नहीं सुल्तान अभी इच्छा नहीं है।

सुल्तान: खाओ भी, हमें पता नहीं की अभी कितने दिन तक जंग हो।

देवराज सुल्तान से एक लड्डू ले कर खाने लगता है, सुल्तान देवराज को पास से सैनिको से दूर ले जाता है

सुलतान: देवराज जी! आप इतने परेशान हैं और जब आप पारस से निकले हों तो आप कुछ ज्यादा परेशान लग रहे हों।

देवराज: नहीं सुल्तान ऐसा नहीं है।

सुल्तान: तो वह मुझे वह देवराज क्यों नहीं दिख रहा, जो हमेशा जंग में दिखता था। ऐसे सोच में डूबे रहोगे तो जंग कैसे लड़ पाएंगे हम।

देवराज: आप चिंता ना करें सुल्तान।

सुलतान: आप हमारे सालो पुराने दोस्त हैं। आप हमसे ना छुपाए, अगर आपको देवरानी की बात खाए जा रही है तो हमे बताएँ?

देवराज को जैसा झटका लगता है।

सुल्तान: देवराज! मैं ये नहीं कहना चाहता था।क्योंकि मुझे लगता था शायद आपको ये लगे की मैं आपका अपमान कर रहा हूँ, पर आप को ऐसे दुखी देख मुझसे रहा नहीं गया।

देवराज: आप क्या कहना चाह रहे हैं, सुलतान?

सुल्तान: देखिये देवराज जी हम जानते हैं, आप कितने अच्छे और इज्जतदार हैं। अगर आपकी बहन ने कोई गलत फैसला ले लिया तो उसके लिए हमारी आखो के सामने आपकी इज्जत कभी कम नहीं होगी।

देवराज की आँखे फटी रह जाती है और वह ये बात सुन चौक जाता है।

सुल्तान: चौकिए मत देवराज जी! पारस से निकलने से पहले जब हम तैयारी कर रहे थे तो हमारी बेगम हुरिया ने मुझे सब बता दिया था।

सुल्तान आगे बढ़ कर देवराज का हाथ पकड़ कर कहते है ।



DEVRAJ-SHERA
सुलतान: आप फ़िक्र नहीं कीजिए देवराज जी! आप हमें ये जंग जीत करहमे कुबेरी का खजाना दीजिए आपको हम एक नायाब तोहफा देंगे।

सुलतान ने ये बात कह कर जैसे देवराज की दुखती नस पर हाथ रख दिया था।

देवराज: सुल्तान कैसे भूल जाऊ मैं भला कि मेरी बहन मेरे भांजे के साथ एक ऐसा रिश्ता बनाया है, जिससे मेरी आत्मा तक हिल गयी है।

देवराज का मुँह एक दम रोने जैसा हो जाता है।

सुल्तान उसको झट से गले लगा कर कहते हैं ।

सुल्तान: देवराज मेरे दोस्त तुम मेरे छोटे भाई जैसा हो, तुम किसी और की, वजह से अपना दिल मत दुखाओ!

सुल्तान गले लग कर देवराज के कंधे पर थपकी देते हुए उसे छोड़ता है ।

सुलतान: शेर कभी दुखी नहीं होते डट कर सामना करते हैं।

देवराज: हम्म सुल्तान पर अधर्मियों को पता नहीं वह कितना बड़ा पाप कर रहे हैं! ये भगवान को क्या मुंह दिखायेंगे?

सुल्तान: उनका गुनाह उनके साथ है। वैसे भी ऐसा होता ही रहा है पिछले जमाने में भी ऐसे रिश्ते कायम होते थे ।

देवराज: क्या बात कर रहे हो आप?

सुल्तान: सही कह रहा हूँ । हमारे अरब में बाप के मरने के बाद बाप की जगह के साथ उसके बेटे को उसकी माँ भी मिलती थी।

ये कह कर सुल्तान मुस्कुराता है जिसे देख देवराज का भी दिल थोड़ा हल्का होता है।

सुलतान: इतना वह नहीं मिश्र मैं तो कितने राजाओं ने अपनी बहन और अपने खानदान में शादीया की है ताकि अपनी सल्तनत किसी अन्य के हाथ में ना जाये ।

देवराज: पुराने जमाने की बात कुछ और थी पर अब तो हम समझदार हो गए हैं ना।

सुल्तान: हाहाहाहा क्या समझदार! इंसान तो इंसान ही रहेगा भायी, और वैसे भी मेरी बात का बुरा ना माने तो कहू!

देवराज: जी कहिए.



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सुल्तान: हुरिया कह रही थी कि देवरानी ने बहुत दुःख उठाया है। उसके साथ बहुत बुरा बरताव किया गया था फिर सुल्तान देवराज को वह हर बात बता देता है जो देवरानी ने हुरिया को बताई थी। देवराज ध्यान से सुलतान की पूरी बात सुनता है।

सुल्तान: हमने ये भी पता किया है अपने घाटराष्ट्र के नुमाइंदों से की राजपाल ने तुम्हारी बहन देवरानी को राजा रतन सिंह के साथ हमबिस्तर के लिए मजबूरकरने की कोशिश की ।

ये बात सुन कर देवराज का गुस्से से आख लाल हो जाती है।



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सुल्तान: हाँ देवराज जी! अब बेचारी देवरानी ने इतनी परेशानी उठाई हे जिंदगी भर, तो उससे अब नफ़रत क्या करना।

देवराज: राजा रतन की इतनी हिम्मत मेरी बहन के ऊपर आख उठाई. अब मैं उसे जिंदा जला दूंगा।

सुल्तान: ये हुई ना बात देवराज जी । ये जंग हमें कैसे भी जीतनी है । आप अपनी बहन के ऊपर गंदी नजर रखने वाले को अपने हाथों से सजा दो।

देवराज: सुलतान! अब उसका खून मेरी इस तलवार पर लगने से पहले मेरी तलवार नहीं रुकेगी।

सुल्तान: और बुरा ना मानो तो तुम्हें राजपाल जैसे बूढ़े से देवरानी की शादी नहीं करवानी चाहिए थी।

देवराज: तब सिर्फ पिता जी निर्णय लेते थे। मेरी आयु कम थी इसलिए चाह कर भी हम कुछ ना कर सका और पिता जी इस कमीने राजा रतन के बहकावे में आ गए थे।

सुल्तान: राजा देवराज अपनी बहन पर तुम्हे जो गुस्सा है उसे थूक दो। वैसे भी उसका कोई नहीं है तुम्हारे सिवा।

ये सुन कर देवराज खामोश हो जाता है।

देवराज: सैनिक!

सैनिक भाग कर आता है।

देवराज: पानी लाओ और तुम सब अब जल्दी तैयार हो जाओ, सूर्य ढलने वाला है। आक्रमण करने का समय आ गया है ।

उधर कुबेरी महल में आराम से मदीरा पी कर सो रहा था राजा रतन सिंह।


:::: घटराष्ट्र की सीमा पर ::::




इधर बलदेव और देवरानी गुफा में जीविका और गाँव के चौधरीयो के साथ उनके साथ कुछ सैनिक भी थे।

बलदेव: अब हमें चलना चाहिए!



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देवरानी: ठीक है।

चौधरी2: भगवान तुम्हें विजयी बनायें!

सैनिक2: हम भी आपके साथ जायेंगे युद्ध में।

बलदेव: हमारे पास बहुत बड़ी सेना है, आप अपनी तरफ से जो सहायता कर सकते हैं कर देना, पर अभी मुझे आपकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी । आप लोगों की सुरक्षा पर ध्यान दो ।

बलदेव जीविका के पास जा कर उसकी पैर छूता है।

"दादी मुझे आशीर्वाद तो अपने राष्ट्र की सुरक्षा करने के लिए जा रहा हूँ।"

जीविका न चाहती हुई भी उसके सर पर हाथ फेरती है।

बलदेव देवरानी को ले कर गुफा से बाहर आता है और अपने घोड़े पर बैठ दोनों शमशेरा के पास आते हैं।



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शमशेरा: आ गये तुम लोग । क्या हुआ? क्यू बुलाया था?

बलदेव: भाई एक ख़ुशख़बरी है।

शमशेरा: क्या बताओ?

बलदेव: ऐसे नहीं सुनो...मुझे दादी ने बुलाया था और हमारे गाँव के सब मुखिया जो चौधरी कहलाते है । उन सब को लगा के तुम मुझे घटराष्ट्र से वापस पारस ले जाने के लिए आये हो।

शमशेरा: अच्छा! फ़िर?

बलदेव: फिर क्या, वह कहने लगे कि उनका राज्य खतरे में है। सबको कैदी बना लिया है शाहजेब ने और उसकी फ़ौज ने लूट पाट मचा रखी है अगर हम उसकी मदद कर सकें तो...!

शमशेरा: तो फिर तुमने क्या कहा?

बलदेव: मैंने कहा कि अगर मेरी मांग पूरी हुई तो मैं पारसी फौज की मदद से शाहजेब की फौज को हरा सकता हूँ।

शमशेरा: तुमने क्या मांगा?

बलदेव: मैंने देवरानी को पत्नी के रूप में माँगा और घटराष्ट्र की गद्दी भी मांगी । तो वह थोड़ी सोच और चौधरियो के कहने के बाद वह मान गई

बलदेव झट से शमशेरा के गले लग जाता है जिसे देख देवरानी मुस्कुराने लगती है।

शमशेरा: बस भी करो...आखिर तुमने अपनी माँ को जीत ही लिया।

शमशेरा बलदेव के गले से अलग होता है



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शमशेरा: तो अब तुम दोनों कहीं नहीं जाओगे, बल्कि हमारे साथ जंग में शरीक हो रहे हो...हमें सूरज ढलते ही शाहजेब को धूल चटा देनी है।

जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

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युद्ध



शमशेरा के पास बलदेव और देवरानी पहुच जाते हैं । वह उसे पूरी बात बता देते हैं कि कैसे उसकी दादी जीविका घाटराष्ट्र को बचाने के लिए मान गई और बलदेव और देवरानी के विवाह के लिए सहमत हो गयी ।


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शमशेरा: चलो ठीक है अब तुम दोनों हमारा साथ दोगे।

बलदेव: हाँ हम कहीं नहीं जाएंगे। अब ये राज्य को और अपनी माँ को जीत कर ही सांस लूंगा।

शमशेरा: सही है तुम्हें तो जोरू मिलेगी और मेरे अब्बू सुल्तान को जो उनका ख्वाब था कुबेरी का खजान मिलेगा । मुझे क्या?



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ये कह कर शमशेरा मायुस हो जाता है जिसे देख कर देवरानी को बुरा लगता है।

देवरानी: सब समय पर छोड़ दो और अपने दिल की सुनो। अपना प्यार कम मत होने दो। क्या पता कब कहीं कोई चमत्कार हो जाए और तुम्हें भी ...!

शमशेरा बात काटते हुए कहता है।

शमशेरा: आह छोडो भी! ऐसा ख्वाब क्या देखना जो पूरा होना नामुमकिन हो देवरानी खाला । आप तो जानती है ही हो अम्मी कितनी पाक साफ़ है और उन्हें कितना खुदा का खौफ है।




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देवरानी: शमशेरा! प्यार करना गलत नहीं हैं । आगे भविष्य की गॉड में क्या छिपा है किसको पता है! अगर सच्चे दिल से चाहते हो तो वही खुदा न सिर्फ उनके दिल में नरमीयत डालेगा बल्कि तुम्हारा आगे का रास्ता भी बनाएगा । बुरा मत मानना, जहाँ तक मैं समझ पाई हूँ दीदी हुरिया छुपाती है, उनको भी पति का प्यार पूरा नहीं मिल पाता।

शमशेरा: अब खुदा जाने आगे क्या है...छोड़िए. अब मैं जा रहा हूँ फौजियो को बता दूं कैसे जंग की शुरुआत करनी है।

शमशेरा ये कह कर वहाँ से अपनी फौजियों के पास चला जाता है।



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बलदेव देवरानी को देख रहा था और बिना पलक झपके ऊपर से नीचे तक निहारता है।

देवरानी: इतना ज्यादा मत देखो!





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बलदेव: क्यू ना देखु अब तो तुम मेरी हो, सिर्फ मेरी!

देवरानी मुस्कुरा देती है ।

"शादी के लड्डू अभी से मन में फूटने लगे!"

बलदेव: अभी तो लड्डू है फूटे है, कल जब हम विवाहित पति पत्नी होंगे। तब तुम्हारे क्या-क्या टूटेंगे तुम्हें पता नहीं है क्या?



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देवरानी नखरा दिखाती है ।

देवरानी: अगर मैं ना कहूँ तो?

बलदेव: तब भी तुझे उठा के ले जाऊंगा मां! तब तक छोड़ूंगा नहीं जब तक चार बच्चे ना पैदा कर दूं।

देवरानी: हह बड़ा आया!

कह कर देवरानी घूम के जाने लगती है।


SAREE-HIPS
nine smileys

बलदेव: देवरानी कहा?

SHAKE

देवरानी को चलते हुए देख बलदेव का लंड खड़ा हो जाता है । देवरानी को हिलते हुए बड़े दूध एक सुर में थिरकते जा रहे थे।

अपनी मतवाली माँ की चाल देख कर बलदेव फ़ौरन अपना जिभ निकल कर अपने होठ पर फेरता है ।



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"गजगामिनी" (हाथी के समान मंद गति से चलने वाली नायिका।)

बलदेव: (मन में) : "गजगामिनी" (हाथी के समान मंद गति से चलने वाली नायिका।) 34 साल की है पर लगती तो 20 की भी नहीं है। इतनी सुंदर त्वचा है और गदराये चिकने बदन की है।


TURN-SMILE

थोड़े दूर चलने पर पलट कर देवरानी मुस्कुराती है।

देवरानी: देखते रहोगे...इधर आओ!

देवरानी एक बड़े पत्थर के पीछे जाती है।

बलदेव तेजी से अपनी माँ के पीछे भागता है।

जैसे हे बलदेव पत्थर के पीछे जाता है देवरानी बलदेव को जोर से गले लगा लेती है और उसके गले पर चूमने लगती है।



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देवरानी: बलदेव मेरे पति मेरी जान!

बलदेव: देवरानी मेरी जान मेरी पत्नी!


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देवरानी: आज मैं बहुत खुश हूँ बलदेव, काश आज मेरे माता पिता जीवित होते ।

बलदेव: तो क्या वह हमारे रिश्ते को मन लेते? तुम ये सोचो अपने भाई का क्या करोगी?

देवरानी: आआह मुझे उनसे कुछ लेना देना नहीं है । अब हम बस जल्दी से बंधन में बंध जाते हैं।


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बलदेव देवरानी को बेटाहाशा चूमने लगता है।

"गैलप्पप गैलप्प-गैलप्प उम अह्म्म्म गैलप्प-गैलप्प गैलप्प !"


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देवरानी" आह!



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बलदेव देवरानी के होठ को अपने होठ में भर देवरानी के मधुर रस को चूस कर मजा ले रहा था और अपने हाथ को आगे बढ़ा कर एक दूध को जोर से पकड़ कर जोर से दबाता है।


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देवरानी: आउच...!

बलदेव: क्या हुआ?

देवरानी: ऐसे भी कोई दबाता है क्या?

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तभी शमशेरा की आवाज़ आती है।

"बलदेव बलदेव!" "देवरानी खाला!"

देवरानी: चलो शमशेरा बुला रहा है।

बलदेव: नहीं ना।



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बलदेव दूध एक हाथ से दबाते हुए दूसरा हाथ देवरानी की गांड पर रख देता है और उसे सहलाते हुए उसे चूमता है ।


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"उम्म्म्म क्या माल हो माँ तुम। मुझे ये खजाना चाहिए!"

देवरानी बलदेव की बात समझ कर बलदेव का हाथ अपनी गांड से हटा कर उसके चुंबन का जवाब देती है ।



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"यहाँ जाना शुभ माना जाता है । अभी इस खजाने का मत सोचो दूल्हे राजा । जल्द ही किले में प्रवेश करने का अवसर मिलेगा बस कुछ देर धैर्य रखो!"

"मुझे नहीं पता है क्या शुभ अशुभ है । मुझे चाहिए तो चाहिए!"

बलदेव देवरानी की गांड की दरार में अपना हाथ घुमाता है।


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stark county library

देवरानी: हट बदमाश!

देवरानी अपना होठ पर लगा बलदेव का थूक साफ करती है और अपना ब्लाउज और पल्लू ठीक कर के पत्थर के पीछे से निकलती है।

देवरानी: हाँ शमशेरा बोलो!

शमशेरा: कहा हो तुम दोनों? हमारे पास समय नहीं है, हम अब महल की ओर कूच करेंगे।

तभी बलदेव मुस्कुराता हुआ पत्थर के पीछे से निकलता है, जिसे देख शमशेरा समझ जाता है कि क्या चल रहा था।

शमशेरा: बलदेव थोड़ा तो सबर कर लो । थोड़ा आराम करने दो भाभी को । बस ये जंग जीत जाए फिर जो करना है दिन रात करते रहना।



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ये सुन कर देवरानी का शर्म से बुरा हाल हो जाता है और वह अपने सर को नीचे कर लेती है और उसका चेहरा लज्जा के मारे लाल हो जाता है।

शमशेरा देवरानी और बलदेव अपनी सेना को ले कर शाहजेब जिसने पहले से घाटराष्ट्र पर कब्ज़ा कर लिया था और सबको बंदी बना लिया था, उससे युद्ध करने के लिए निकल जाते हैं।

::::कुबेरी::::

वही पड़ोस के राज्य कुबेरी में राजा रतन सिंह आराम कर रहे थे और उसके राज्य के खजाने में लालच में एक तरफ शाहजेब की फौज खड़ी थी या दूसरी तरफ सुल्तान और देवराज अपनी फौज के साथ खड़े थे ।

देवराज: सुल्तान अब सब बात करना ख़तम करे । शाहजेब की सेना के लिए रुकने से अच्छा है, हम पहले ही धावा बोल दे और पहले ही राजा रतन की सेना को धूल चटा देते हैं। फिर शाहजेब की सेना को देख लेंगे।

सुल्तान: जैसी आपकी मर्जी देवराज जी!

शाहजेब के सैनिक सूर्य ढलने का इंतजार कर रहे थे और इस बात से अंजान थे कि दिल्ली की सेना को सिर्फ कुबेरी की सेना से नहीं पारसी सेना से भी लड़ना है।

देवराज: सैनिकों तैयार! हम सूर्य ढलने का इंतजार नहीं करेंगे, हम शाहजेब की सेना से कुबेरी पर पहले हमला कर देंगे ।



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सुलतान: देवराज जी ठीक कह रहे हैं। सब तैयार?

सैनिक: तैयार तय्यर!



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25000 फ़ौजी एक साथ बोलते हैं जैसे पूरी फ़िज़ा में आवाज़ गूंजती है ।



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सुल्तान: यलगार हो!

देवराज: आक्रमण!

सुल्तान और देवराज अपने सैनिकों के साथ कुबेरी की सीमा में घुसते हैं ।उन सभी की घोड़े तेजी से भाग रहे थे। सीमा पार करते हुए कुबेरी के अनेको सैनिक आकर पारसी सेना को रोकने का प्रयास करते हैं, पर पारसी सेना कहा रुकने वाली थी वह सब को कुचलते हुए आगे बढ़ रही थी।



RATAN-ELIJA
महल में राजा रतन अपनी पत्नी रुक्मणी सुखमनी और एलिजा के साथ था।

सैनिक: महाराज पारस के सुल्तान ने आक्रमण कर दिया है।


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रतन सिंह के हाथ में मदीरा का ग्लास था वह गिलास फेकता है और अपने हाथ के तलवार ले कर आदेश देता है ।

रतन: सेना तय्यार करो और तोपो से भुन दो इन पारसियो को।

रुक्मणी: महाराज आप नशे में हैं।

रतन: चुप करो । बिलकुल होश में हूँ ।


RATAN-3Q

सुखमनी: क्या एलिज़ा ने हम दोनों के जीवन को बर्बाद कर के रख दिया है । क्यों पिलायी तुमने महाराज को इतनी मदिरा?

एलीज़ा जो अंगेज़ मूल की महिला, थी जिसे राजा रतन ने जंग में जीत कर लाया था पर उसकी दो अन्य पत्नी थी रुक्मणी या सुखमनी, जो दो बहनें थी।

एलिजा: महाराज को पीना था तो मैं क्या करती?

सुखमनी: (मन में) इस चुडैल वैश्या ने हम दोनों बहनों का जीवन खराब कर दिया। जब से आई है महाराज को वैश्यऔ और शराब के अलावा कुछ नहीं सूझता।

रुक्मणी: (मन में) जब से ये एलिजा आई है तब से कुबेरी बरबाद होते जा रहा है। इसके दिल में जरूर खोट है। ये जरूर अंग्रेजों की दलाली कर के हमारे खज़ाने लूटने आई है ।

एलिज़ा: बहुत सोच रही हो तुम दोनों?


ये सुनते हैं रुक्मणी या सुखमनी एलिज़ा को देखते हैं।

एलिजा: फिक्र करने की बात नहीं है हम राजा के लिए कभी बुरा नहीं सोचेंगे।

रुक्मणी: चुप कर अंग्रेज़ की बच्ची। बुरा ही बुरा हो रहा है। हम सब मरने वाले हैं, सुल्तान ए जहाँ मीर वाहिद ने हमला किया है हममें से कोई नहीं बचेगा।

रतन: चुप करो तुम सब, नहीं तो सुल्तान से पहले मैं ही तुम सब का सर काट दूंगा।

सुखमनी: काट दो अब या क्या बाकी रह गया है या एलिजा का क्यू कटोगे हम दोनों को मार दो ।

रुक्मणि या सुखमनी इस मुसीबत से घबरा जाती हैं और अपने कक्ष में जा कर एक दूसरे से बात करने लगती हैं कि कैसे अपनी जान बचाए!

एलिजा (मन में) : यहीं अच्छा मौका है इस राजा से छूटकारा पाने का। उधर राजा लडने जाएगा इधर में यहाँ से निकल बंगाल की खाडी पहुँच जाऊंगी । जहाँ से ईस्ट इंडियन कंपनी के जहाज पर अपने देश ब्रिटेन चली जाउंगी।

ये सोवह एलिज़ा मुस्कुराती है।

राजा रतन: जितने सैनिक आस पास सीमा पार तैन्नत है सबको इकट्ठा करो।


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सैनिक भाग कर पूरे कुबेरी में जा कर ढिंढोरा पीटवा देता है और धीरे-धीरे कुबेरी के सैनिक चारो ओर से महल को घेर लेते हैं ।

रतन: सैनिक कुबेरी के खजाने के लिए में हमपे हमला करने आये उस पारसी के बच्चे को ऐसा हाल करो कि उसके मरने के बाद उसकी आत्मा भी खजाना भूल जाए!

इधर उत्तरी छोर से कुबेरी सीमा को लांघते हुए सुल्तान की सेना आगे बढ़ रही थी । सूर्य का हल्का प्रकाश अब भी फेला हुआ था ।

अपने तलवार को चलाते हुए सामने आने वाले हर कुबेरी सैनिक को मौत के घाट उतारते हुए पारसी सेना महल के उत्तरी छोर पर पाहुच जाती है। किले के ऊपर भाग पर खड़ा रतन सिंह सब देख रहा था ।




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रतन: सुल्तान तुम से यही उम्मीद थी कि तुम कायरो की तरह रात में ही हमला कर सकते हो ।

देवराज आमने अपने घोड़े पर बैठा ललकारते हुए कहता है।

देवराज: राजा रतन सिंह हम कुबेरी पर हमला नहीं करने आये हैं।

ये सुन कर कुबेरी के सैनिक या पारसी सेना भी अचंभित हो जाती है।

रतन: तो क्या यहाँ तीर्थ यात्रा पर आये हो देवराज और तुम्हारे सुल्तान की जबान नहीं है क्या?

देवराज: हम हमला करने नहीं...हम कुबेरी जीतने आए हैं...आक्रमण!

ये कहते ही पारसी सेना महल की ओर भाग कर हमला करती है।



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रतन: सैनिको जाओ इन पारसियो के खून का मजा ही अलग है ।

कुबेरी के सैनिक आगे बढ़ते इस से पहले उनके ऊपर पीछे से तीरों की बौछार हो जाती है।





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फिर कई सैनिक घायल हो कर गिरने लगते है।

रतन: ये पीछे से अपने ही सैनिको को कौन मार रहा है?

सैनिक: महाराज वह देखिए पश्चिम से एक और सेना आ रही है।

रतन: अब ये कौन है?

रत्न सिंह झल्लाते हुए कहता हैं।



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सैनिक: महाराज इनके झंडे से लगता है कि ये दिल्ली की सेना है।

रतन: हरामी शाहजेब को भी आज ही आना था।

रतन: सैनिको शाहजेब की सेना पर गोले दागो और उन्हें जला कर राख कर दो और मेरे साथ उत्तर की ओर तुम सब चलो । क्योंकि शाहजेब अभी हम से दूर है।

राजा रतन अपने घोड़े पर बैठ अपने सैनिकों के साथ जो अच्छी खासी सेना थी उन्हें उतर की और चलने को कहता है । फिर रत्न सिंह अपनी सेना में से लगभाग 20000 सेना को लिए देवराज की ओर बढ़ता है।

रतन: आक्रमण वीरो!


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सुल्तान: यलगार हो!

दोनों तरफ की सेना आपसे में भिड़ती और सब एक दूसरे को मारने लगते है । फिर एक भारी युद्ध शुरू हो जाता है । उधर पश्चिम ओर से आ रहे शाहजेब के सैनिकों को आग के गोलो से कुबरी के सैनिक उन्हें महल के पास आने से रोक रहे थे । जवाबी हमले मैं दिल्ली की सेना तीरो की बौछार कुबेरी की सेना पर कर रही थी।

राजा रतन सिंह की अंग्रेजी मूल की पत्नी एलिज़ा इस मौक़े का फ़ायदा उठाती है और अपने साथ महल के ख़ज़ाने में से जितना हो सकता है उठा कर घोड़े पर रख भागने लगती है।



अंदर कक्ष में रुक्मणी सुखमनी आपस में विचार विमर्श कर रही थी की अब क्या किया जाए और बाहर कुबेरी की सेना अपने राज्य और कीमती खज़ाने को बचाने के लिए युद्ध कर रही थी । धीरे-धीरे अँधेरा होता है पर पूरे चांद की रोशनी में भी दोनों सेनाये रुकने का नाम नहीं ले रही थी।

:::: घटराष्ट्र ::::

उधर घाटराष्ट्र में शाहजेब अपनी सेना को इकठ्ठा करता है।

शाहजेब: फौजियों जितनी औरतें और खजाना मिला है उसे उठा लीजिए । ले चलो इन्हे । अब तक हमारी फौज ने कुबेरी पर हमला कर दिया होगा। हमने घाटराष्ट्र को जीत कर राजा रतन की कमर तोड़ दी हैं, अब हमें जल्द ही कुबेरी जाना होगा।


शमशेरा बलदेव अपनी सेना के साथ चांद की रोशनी में आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रहे थे ।

शमशेरा: हम शाहजेब की फौज को कुबेरी नहीं जाने देंगे उन्हें यहीं रोके रखेंगे।




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बलदेव: शमशेरा तुम शाहजेब का पीछा करो, मुझे शाहजेब द्वारा क़ैद की गयी महिलाओ को बचाना है।

शाहजेब अपने रथ में महारानी शुरष्टि को बंधवा कर रखवा देता है।

शुरष्टि: मुझे कहा ले जा रहे हो?

शाहजेब: हरामज़ादी का मुँह पर पट्टी लगाओ।

शुरष्टि: देखो मैं कह रही हूँ मुझे मत ले जाओ. तुम्हारे साथ अच्छा नहीं होगा...मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूँ।

शाहजेब: उस राजा राजपाल का गला काट दो और उसके सेनापति का भी।



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शाहजेब के सैनिक राजपाल या सोमनाथ जहाँ पर बंधे थे उनको मारने लगता है तभी तीरो की बौछार आती है जिस से कुछ समय के लिए चांद की रोशनी भी छुप जाती है । इससे शाहजेब के काफी सैनिक मारे जाते हैं और काफी घायल हो गिर जाते हैं। ।

शाहजेब: ये कौन कम्बख्त है?

सैनिक: जी ये पारसी फौज है सुल्तान मीर वाहिद की।

शाहजेब देखता हैऔर 25000 सेना देख कर चौंक जाता है ।







war12

शाहजेब: ये तो फौज की समुंदर है।

शाहजेब रथ छोड़ कर अपने घोड़े पर बैठ जाता है।

शाहजेब: पुराना हिसाब भी चुकाना है इस सुल्तान मीर वाहिद से।

शाहजेब: हम कुबेरी नहीं जा रहे हैं पहले हम इनसे निपटेंगे।

तभी एक सैनिक भागते हुए आता है।

शाहजेब: क्या हुआ?

सैनिक: बादशाह सलामत! सुल्तान की फौज ने कुबेरी पर भी हमला कर दिया है। वहाँ भी हमारी फौज खतरे में आ सकती है।

शाहजेब: आआआह मतलब ये के सुल्तान जानता था हम दोनों राज्य पर हमला करने वाले हैं।

war13

शाहजेब: जाओ, लड़ो हम पारसियों से नहीं डरते!

बलदेव अपनी माँ देवरानी के साथ घोड़े से शाहजेब के सैनिकों को मारते हुए उस तरफ जाता है जहाँ पर घाटराष्ट्र की महिलाओ को बंदी बना कर शाहजेब की सेना ले जा रही थी ।

बलदेव: माँ तुम उन सब महिलाओं को आज़ाद करो। मैं बाकी सब को देखता हूँ।

बलदेव अपने दोनों हाथों में तलवार लिए घुमाने लगता है।

बलदेव: जय घटराष्ट्र जय राजपूताना!

देवरानी: जय राजपूताना!


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बलदेव के पास शाहजेब के सैनिक आते हैं और बलदेव अपने युद्ध कौशल और सैनिक कला से सबको गाजर मुली की तरह काट रहा था।

बलदेव: आआआह ये ले!

: खचाक खट! कट! खच्च! "

की अव्वज के साथ दिल्ली के सैनिको का गला कट जाता है।

उधर शमशेरा शाहजेब की ओर बढ़ता है।

शमशेरा: यलगार हो! जीत हमारी है!



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सैनिक: जीत हमारी है!

शमशेरा की सेना शाहजेब की सेना से भिड़ जाती है और युद्ध शुरू हो जाता है।

इस तरह दोनों राज्यो एक ही समय पर युद्ध चल रहा था । घटराष्ट्र में जहाँ शाहजेब और शमशेरा की सेना एक दूसरे से लड़ रही थी, वही कुबरी में रतन सिंह की सेना शाहजेब और सुल्तान और देवराज की सेना के साथ दोनों और से युद्ध कर रही थी।

::::कुबेरी ::::

आधी रात हो रही थी । युद्ध अब भी चल रहा था । सुल्तान मीर वाहिद और देवराज सैनिको की मदद से युद्ध के मैदान से बाहर आते हैं।

सुल्तान: देवराज हम पर तीरों से भी हमला हो रहा है और फौज भी ज़मीन पर लड़ रही है।




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देवराज: हाँ हम चाह कर भी आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं और उधर शाहजेब की फौज को भी रतन सिंह संभाल ले जा रहे हैं । उसकी युद्ध नीति अच्छी है।

सुल्तान: इसका क्या तोड़ है ऐसे तो हम रात दिन लड़े तो भी हम...!

देवराज: सुल्तान जी एक रास्ता है हमारे पास। हमे अपने कुछ सैनिकों को कैसे भी महल में प्रवेश करवाना होगा। उनको तीरंदाजों को हटाने के लिए हमे महल पर आक्रमण करना ही होगा । वहाँ से तीरो का हमला रुकने के बाद ही हम आगे बढ़ सकते हैं।

सुल्तान: पर ये हम पर उल्टा भी पड़ सकता है।

देवराज: हमारे पास और कोई चारा नहीं है। एक बार हम महल की के दीवारों के अंदर चले गए तो हमारी सेना चुटकियों में उनकी सेना को ख़तम कर देगी।




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देवराज कुछ सैनिकों को पूर्व की ओर भेज कर महल में जाने के लिए कहता है। सैनिक आगे बढ़ कर पूर्व की दिशा में जा कर फिर महल की ओर आकर, महल के ऊपर रस्सी फेक एक-एक कर सब ऊपर चढ़ते हैं । देखते ही देखते सैनिक तीरंदाजों तक पहुँच जाते हैं।






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सैनिक: तीनदाज़ो अब महल पर बैठ के लड़ने का वक़्त नहीं है ।

तीरन्दाज़ी रुकते ही रतन सिंह बौखला जाता है।

सैनिक: महाराज सुल्तान की सेना ने हमारे महल में प्रवेश कर लिया है।

राजा रतन सिंह अपने तलवार लिए महल के दीवारों पर चढ़ने लगता है और सुल्तान के सैनिकों को मार गिराता है।

उधर तीरंदाजी बंद होते ही महल की दोनों और से सैनिक महल में घुस जाते हैं। एक तरफ से शाहजेब के सैनिक दूसरे तरफ से सुल्तान के सैनिक हमला कर देते हैं । कुबरी की सेना दोनों तरफ से आक्रमण देख घबरा जाती है और भगदड़ मच जाती है।

अब शाहजेब की सेना सुल्तान की सेना आपस में युद्ध में लग जाती हैं और कुबेरी की सेना अपनी जान बचाने के लिए यहाँ से वहाँ भागने लगती हैं।

रतन: भागो मत कायरो! इनके एक लाख के बराबर तुम एक हो! डरो मत इन हरामियो से।

राजा रतन देखता है सुल्तान एक सैनिक के साथ तलवारबाजी कर रहा था और डोनो लड़ रहे थे। रतन अपना तीर कमान निकलता है और निशाना लगा कर सुल्तान मीर वाहिद की पीठ पर मारता है।



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सुलतान: आआआह...नामर्द पीठ पर हमला करता है।

सुल्तान का गिरना था कि सुलतान की सेना में हड़कंप मच जाता है।

पारसी सैनिक: महाराज देवराआआअज।! ...सुल्ताआंन को तीर लग गया है ।

देवराज भाग कर आता है और सुल्तान मीर वाहिद के सामने खड़े दो सैनिकों को मार गिराता है और सुल्तान को उठा कर एक कोने में जा कर बिठाता है।

पारसी सैनिक: सबको को जहन्नम में पहुँचा दो, सुल्तान को मार दिया।

"पारस जिंदाबाद...पारस जिंदाबाद!"



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पारसी सैनिक अपने सुल्तान को तीर लगाने का सुनते ही आग बबूला हो जाते हैं और जोरदार तलवार की कला दिखाते हुए, शाहजेब की सेना पर हमला कर रहे थे । शाहजेब की सेना धीरे-धीरे युद्ध कर रही थी ।

देवराज: सुल्तान आप ठीक हैं ना!

सुलतान: ये नामर्द रतन सिंह पीठ पर वह हमला कर सकता है। तुम जाओ उसे छोड़ना नहीं।

देवराज सुलतान को सैनिको के हवाले करराजा रतन के पीछे जाता है। राजा रतन देवराज को अपने पीछे आता हुआ अपने महल में घुसता है।

रतन: रुक्मणी सुखमणि एलिज़ा! भागो हमें जाना होगा।

देवराज अंदर आते हुए कहता है।

देवराज: जहाँ जाना है हम तुम पहुँचा देंगे।

रतन सिंह अपने तलवार को घुमा कर देवराज पर जोर से हमला करता है। देवराज अपने कवच को आगे कर रतन के पेट पर एक लात मारता है तो राजा रतन के पीछे जा कर गिरता है।

रतन वापस उठ कर आता है और तलवार से देवराज से लडने लगता है । अंदर कक्ष में रुक्मणी सुखमणि कक्ष का दरवाजा बंद कर लेती है।


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रतन: मुझे जाने दो देवराज मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?

देवराज तलवार ले कर आगे बढ़ता है और तलवार की नोक इस बार रतन के सीने पर चिपक जाती है।

रतन: तू ऐसा नहीं मानेगा देवराज!

रतन इस बार नीचे झुक कर देवराज के पीछे जाता है और देवराज की पीठ पर तलवार का वार करता है। देवराज अपने आप को बचाता है पर तब तक उसकी तलवार क्षति पहुचा चूकी थी ।

देवराज भड़क जाता है और अपनी तलवार से रतन सिंह से तलवार के साथ युद्ध करने लगता है और तेजी से उस की तलवार पर वार करता है जिस से रतन सिंह की तलवार उसके हाथ से छूट जाती है और रतन नीचे गिर जाता है।

रतन: मुझे जाने दो इसके बदले में तुम मेरा सारा खजाना ले लो।


देवराज: रतन सिंह बात खजाने की होती तो तुझे छोड़ देता, पर बात सम्मान की और प्रतिष्ठा की है।

देवराज रतन सिंह को एक लात मरता है।

रतन: तुम क्या बके क जा रहे हो?

देवराज: हरामी रतन सिंह तू मेरी जाति में कैसे पैदा हो गया। एक नीच जो एक स्त्री के साथ जबरदस्ती करे।

रतन सिंह हंसने लगता है।

देवराज: पागल हो गया है क्या तू रतन सिंह। मेरी बहन देवरानी पर गंदी नजर रख कर ।तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी ।

देवराज रतन सिंह को एक और लात मारता है और इस बार रतन सीधा जा कर दीवार पर टकराता है पर हसना बंद नहीं करता।

रतन: तुम्हारी बहन देवरानी...हाहाहाहा

देवराज: तुमने उससे जबरदस्ती करने की कोशिश की?


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देवराज इस बार अपने तलवार को तेजी से चलाता है और रतन सिंह का एक हाथ काट देता है।

रतन: आआआआआआआआआआआआआआआआहहहहह!

देवराज: इतनी वैश्यों के साथ तो तेरा मन नहीं भरा, जो अपनी बेटी जैसी मेरी बहन पर बुरी नज़र डालता है।

रतन: देवराज तुम मुझे ये सब कह रहे हो हाहाहा! जिसकी बहन देवरानी हाहाहा तुम्हें जब इतना क्रोध है तो यह बात का क्या?

"तुम्हारी बहन देवरानी को तो तुम्हारा भांजा बलदेव पेलता है?" क्या पर क्या कहोगे देवराज हाहाहा?

देवराज रतन सिंह के मुँह पर अपना पैर रख देता है।

रतन सिंह: हम्म मेरा मुंह रोक दोगे, पर दुनिया का कैसे रोकोगे और ये मत कहना कि तुम्हें ये बात पता नहीं है ।

देवराज अपना पैर ज़ोर से रतन के मुँह पर मारता है।

रतन: मारो मुझे ...हाहाहाहा! तुम्हें तो तुम्हारी भांजे और बहन करतूत पाप नहीं लगेगी, पुण्य लगी होगी हाहाहा!

देवराज इस बार तलवार उठा कर वार से रतन सिंह का दूसरा हाथ कट देता है।

देवराज: हरामी! तेरे ही कहने पर पिता जी ने मेरी बहन का विवाह करवा दिया और तुम ही वह सांप थे जिसकी वजह से हमारे राज्य पर मंगोलो ने तबाही मचाई।

रतन: अच्छा तो तुम्हें ये पता चल गया। तो सुनो तुम्हारे पिता को मरवाने में मैंने हे मंगोलो की मदद की थी । मैंने ही राजपाल से जान बुझ कर तुम्हारी कमसिन बहन का विवाह करवाया हाहाहाहा!

देवराज नीचे बैठ जाता है और रतन सिंह की गर्दन अपने हाथ में ले लेता है।

देवराज: क्यू किया तूने ऐसा ? क्यू खेला हमारे जीवन से?

देवराज रतन सिंह की गर्दन को ज़ोर से दबाये जा रहा था । रतन सिंह छतपटा रहा था । कुछ देर बाद सैनिक आता है।

सैनिक: महाराज ये मर गया!

देवराज को होश आता है और रतन सिंह को छोड देता है ।

देवराज: इसका क्रियाकर्म करवा दो।

सैनिक: महराज! हमने कुबेरी फतेह कर लिया है पर सुल्तान की हालत बिगडती जा रही है।

इस युद्ध में-में हजारो सैनिक मारे जाते हैं और शाहजेब की फौज और कुबेरी की फौज तितर-बितर हो कर भाग जाती है।

सुल्तान के सैनिक कुबेरी के महल पर अपना पारसी झंडा लगा देते हैं।

सुल्तान को लिटा कर सैनिक उनके तीर को निकल रहे थे और हकीम की मदद कर रहे थे।


hakim

देवराज जाता है देखता है सुल्तान आख बंद किये हुए लेटे हुए थे।

देवराज: वैध जी इनका उपचार कीजिए!

हकीम: बेटा हमारा काम यहीं है, पर इन्हे जो तीर लगा है वह काफी जहरीला था । उसमे जहर लगा हुआ था ।


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सुल्तान आख बंद किये अपना हाथ उठाते हैं जिसे समझ कर देवराज उनके पास जा कर बैठ बोलता है ।

देवराज: जी सुल्तान!

सुल्तान: मेरा ख्वाब पूरा हुआ...मुझे कुबेरी का खजाना दिखा दो एक बार।

देवराज: आप हिम्मत रखो सुल्तान आपको कुछ नहीं होगा...!


इधर घटराष्ट्र में बलदेव और देवरानी बंदियो को छुटाने में कामयाब होते हैंऔर फिर वह शाहजेब की सेना से लड़ रहे थे...!


जारी रहेगी
 
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deeppreeti

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महारानी देवरानी

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जो जीता वो महाराजा


::::कुबेरी::::

आधी रात बीत गई थी सुल्तान की सेना ने आसान से रतन सिंह की सेना को हरा कर कुबेरी में अपना झंडा गाड़ दिया था। वही शाहजेब की सेना का बिना शाहजेब का हौसला पस्त हो गया था इसलिए जब पारसियों ने उन पर आक्रमण किया तो वह भागने लगे, पूरे कुबेरी में भागदड का माहौल है और सब सुल्तान को हमलावर और खूनी दरिंदा कह रहे थे, कुबेरी वासी जानते थे की सुल्तान ने खज़ाने की लोभ में आकर कुबेरी पर हमला किया है जिससे आज हजारो सैनिको को अपनी जान गवानी पड़ी थी ।

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पूरे कुबेरी में कुबेरी और दिल्ली के सैनिको के लाशें बिछी हुई थी । सड़को पर, कुबेरी की सीमा से ले कर महल के अंदर तक लाशें-लाशें नजर आ रही थी । एक तरफ महल में राजा रतन सिंह की लाश भी पड़ी हुई थी, जिसे देवराज ने बड़े बेरहमी से मारा था। रतन की फिरंगी पत्नी एलिज़ा भाग गयी थी पर उसकी दो अन्य पत्निया जो की दोनों बहनें थी, रुक्मणी और सुखमनी नहीं भागी थी और अपने कक्ष में बंद थीं।


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पारस से वह सेना के साथ आया हकीम सुल्तान का इलाज कर रहा था। और देवराज सुलतान से कहता है ।

देवराज: हिम्मत मत हारिए सुल्तान आप जहाँ पनाह है आपको ये तीर नहीं मार सकते ।

सुल्तान दर्द में धीरे-धीरे कहते हैं।


VAIDH

सुल्तान: नहीं देवराज मुझे लगता है खुदा का बुलावा आ गया है।

देवराज: हकीम जी इनका उपचार कीजिए!

हकीम: जनाब हम सब पूरी कोशिश कर रहे हैं पर इस जहर का तोड़ अभी हमारे पास नहीं है।

देवराज: आपको जो भी चाहिए वह बोलो।

हकीम: कुछ जड़ी बूटीयो की जरूरत है...शायद उनसे काम बन जाए!

देवराज: सैनिको आकाश पाताल एक कर दो पर सुल्तान को कुछ होना नहीं चाहिए!

सैनिक: महाराज ठीक है...पर पूरे कुबेरी में भगदड मच गई है। सब कुबेरी छोड के भाग रहे हैं।

देवराज: वह डर रहे हैं। यहाँ के राज परिवार और यहाँ की प्रजा के लिए ढिंढोरा पीटवा के कह दो, हम उनके साथ कुछ दुव्याहार नहीं करेंगे । हमारी शत्रुता रतन सिंह से थी उनकी प्रजा से नहीं।




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देवराज सुल्तान जिस कक्ष में उपचार करा रहा था वहाँ से बाहर आता है तो देखता है एक बंद कक्ष से दरवाजा खोल बाहर निकल, रुक्मणी सुखमनी भागने की कोशिश कर रही थी।

देवराज: सुनिये!



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दोनों पलट कर देखती है।

रुक्मणी: मेरे करीब भी मत आना नहीं तो ...!

देवराज: आप लोग डरे नहीं हमसे, आप सुरक्षित हैं।

सुखमनी: हमारे राज्य को लूट कर तुमने हमारे लोगों को मारा है हम तुम पर कैसे विश्वास का ले ?

देवराज: मेरा धर्म ये नहीं सीखाता है और की किसी की बेटी बहू या पत्नी को गंदी नजर से देखो। मैं आप दोनों की जिम्मेदारी लेता हूँ। जब तक आप इस महल में हैं आप सुरक्षित हैं और वैसी भी आधी रात में आप दोनों कहा जाओगे।



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सुखमनी: देखते हैं आप अपनी बात पर कितने खरे उतरते हैं।

देवराज: देवी! ये राजपूत का वचन है। अगर आप दोनों को किसी भी चीज़ की ज़रूरत है तो आप मुझे कहें!

तभी देवराज के पीछे दीवार के एक कोने में रुक्मणी को एक लाश दिखती है।

रुक्मणी: वो देखो!


सुखमनी: आआआह महाराज!

रुक्मणी सुखमणी एक दूसरे को पकड़ लेती है और रोने लगती है।

देवराज पीछे मुड़ कर देखता है और वह समझ जाता है।

देवराज: सैनिको लाशो को ले जा के उनका क्रिया कर्म करदो।

देवराज: आप दोनों अंदर जाइये, बाहर का दृश्य इस से भी ज्यादा बुरा है।

रुक्मणी सुखमणी दोनों हाथ कटे हुए मरे हुये रतन को देख हिल जाती है। फिर दोनों अंदर जा कर रोते हुए अपना दरवाजा बंद कर लेती है।

कुछ देर में सैनिक जडी बुटिया लाते है और हाकिम सुल्तान का उपचार शुरू करते है।

देवराज: आपको और कुछ चाहिए हकीम जी?

हकीम देवराज जी अब सुल्तान खतरे से बाहर है पर इन्हें कुछ दिनों तक निगरानी में रखा जाएगा।

देवराज: सैनिको कुबेरी की सीमा पर तैनाती बढ़ाओ और महल को चारो ओर से घेर लो। हम एक दो दिन रुक कर जायेंगे । जैसे ही सुल्तान ठीक होते हैं हम तब तक यहीं रुकेंगे ।


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::::घटराष्ट्र::::

बलदेव और शमशेरा मिल कर शाहजेब की सेना का डट कर मुकाबला कर रहे थे और देवरानी रथोमें बंधी घटराष्ट्र की महिलाओ की रस्सीया खोल कर उन्हें आजाद कर रही थी।

बलदेव: माँ सब महिलाएँ बच गयीं ना!

तभी सामने से तेज तीर बलदेव की ओर आता है । बलदेव अपने कवच से उस तीर को रोकता है और अपना घोड़ा उस तरफ ले जाता है। फिर अपनी तलवार को कस कर घुमाता है और उस तीरंदाज का सर नीचे गिर जाता है।

देवरानी: बस बेटा एक रथ बाकी है इन्होने तो हजारो महिलाओं को बंदी बना कर ले जाने की तयारी कर ली थी।

तभी देवरानी के सामने दो सैनिक आते हैं।

देवरानी: आजाओ तुम भी मजा चखौ।


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देवरानी दोनों से बारी-बारी तलवार से लड़ रही थी, कभी देवरानी उन पर भारी पड़ती तो कभी वह दोनों देवरानी को अपनी तलवार से पीछे कर देते हैं ।

"अरे तुम औरतो के ये काम नहीं आएगा जंग लड़ने का काम हम मर्दो का है ।"

"तुम्हें शर्म नहीं आती, एक स्त्री से दोनों मिल कर लड़ रहे हो और उसे कम बता रहे हो।"

देवरानी इस बार तलवार अपने पीछे से ऊपर ले कर, अपनी तलवार जोर से ऊपर कूदते हुए एक सैनिक की तलवार पर मारती है जिससे उस सैनिक की तलवार को आधा काट देती है।

देवरानी कहती है

"देख लिया तुम्हारी तलवार में वह दम नहीं जो राजपूताना तलवार में है। नामर्द!"

"भाई ये तो इतनी भारी भरकम है, फिर भी उड़ रही है, कूद रही है।"

ये कहते हैं वह सैनिक चिल्लाया।

"आआआआआआह!"

और गिर जाता है। देवरानी झट से दूसरे सैनिक की गर्दन पर तलवार रख कर खाच से घुमा देती है और ऊपर देखती है तो बलदेव ने उस सैनिक को अपने तीर से गिरा दिया था।

देवरानी: धन्यवाद मेरा राजा!



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बलदेव आँख मारता है।

बलदेव: रानी जल्दी करो और घोड़े पर आजो । तुम्हारा नीचे रहना खतरे से खाली नहीं है ।

देवरानी झट से आखिरी रथ जो शाहजेब का था उसे देख उसमे जाती है और देखती है उसमे एक महिला बंधी हुई थी जो रोये जा रही थी।

देवरानी जा कर उसके कंधे पर हाथ रखती है।

वो महिला जैसे ही पलटती है देवरानी के होश उड़ जाते हैं।

देवरानी: सृष्टि तुम!

देवरानी: (मन में) जिसने मेरा जीवन नरक बना दिया मेरा पति मुझसे छीन लिया उसे मैं नहीं बचाऊंगी।

फिर जैसे ही देवरानी रथ से उतर कर जाने लगती है, वैसे ही सृष्टि जोर-जोर से रोने लगती है। उसके आसु थम नहीं रहे थे।

सृष्टि का मुह बंधा हुआ और रस्सी से उसके हाथ पैरो को भी शाहजेब ने बाँधा हुआ था।

देवरानी मुड़ कर देखती है सृष्टि को



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देवरानी: (मन में) मैं भी कभी ऐसी ही बेबस थी, एयर तब तूने मेरे जीवन की हर ख़ुशी छीन ली थी और आज तक मेरे से ईर्ष्या करती रही, मेरा अपमान करती रही, जब मैं अपनी बेबसी से बाहर निकलने लगी तो मेरी और मेरे या बेटे की जान के पीछे पड़ी रही ।

सृष्टि देवरानी को सामने कड़ी देख उसे अपनी पलकों से इशारा कर कहती है कि वह उसे खोल दे और रोने लगती है सुरिष्टि की ऐसी हालत देख देवरानी को दया आ जाती है ।

देवरानी: (मन में) खोल देती हूँ । मारने वाले से हमेशा बचाने वाला बड़ा होता है । इसका बदले में भगवान मुझे पुण्य देगा । अगर मैं भी इसके रास्ते पर चली तो इसमें और मुझमें कोई अंतर नहीं होगा। मैं इसे बहन मानती थी और दीदी कहती थी इसलिए खोल देती हूँ इसे।

देवरानी आगे बढ कर शुरष्टि की रस्सी को खोलती है, फिर उसके मुंह पर बंधे कपडे को भी खोलती है शुरष्टि शाहजेब दुवारा जानवरो की तरह मसले जाने और घंटो से बंधे रहने से एक दम ढीली हो गई थी।




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शुरष्टि: देवरानी मेरी बहन! धन्यवाद!

देवरानी श्रुष्टि को देखती है और रथ से उतर कर अपना घोड़े पर बैठती है और बलदेव की ओर आती है।

शाहजेब अपनी फौजियों की अलग-अलग टुकड़ियों को भेजताऔर शमशेरा बड़ी ही आक्रमणता और युद्ध कौशल दिखाते हुए उनके हर दाव पर भारी पड़ जाता है ।

शाहजेब: फौजियो अब हमारे फौज बहुत कम लग रही है । हमें यहाँ से बाहर निकालो।

सैनिक: बादशाह सलामत! आपकी छमिया रानी श्रुष्टि के साथ आपका रथ तैयार है ।

शाहजेब: ठीक है उस रानी को साथ ले कर जाना है, कुछ सैनिक हमारे रथ के पास चलो!

शमशेरा देखता है शाहजेब भगने की कोशिश कर रहा है।

शमशेरा: दोस्तो शाहजेब भागने ना पाए.।फतेह हमारी है!

सैनिक शाहजेब की तरफ हल्ला बोल देते हैं और शाहजेब की तरफ से उनके सैनिक आने लगते हैं।

शमशेरा अपने हाथ में तलवार लेकर चलते हुए लाशों का अंबार लगा देता है।

शमशेरा: आआ ये ले! शमशेरा की शमशीर से मुकाबला करना बच्चों का काम नहीं है।

खच कर के शमशेर सैनिको की गरदन उड़ा देता है । खून के छीटो से शमशेरा का बदन भर जाता है।

शाहजेब अपने रथ के पास भाग रहा था, उधर से बलदेव और देवरानी आते दिखते हैं ।

शाहज़ेब: ये सब एक साथ कैसे आ गए?

बलदेव और देवरानी भी शाहजेब के सैनिको को मारते हुए शाहजेब के पास आ रहे थे।

शाहजेब: फौजियो जितने भी रथ हैं उन सब में आग लगा दो अगर हम औरतों को नहीं ले जा रहे तो इनका जीने का हक नहीं है।

शाहज़ेब अपने घोड़ा दूसरी ओर मोड़ते हुए कहता है ।

सैनिक: बादशाह सलामत हम अपने रथ से नहीं जा रहे हैं?



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शाहजेब: जो कहा है करो और मेरे पीछे इन्हें मत आने दो। चलो सैनिको!

शाहजेब कुछ सैनिकों के साथ भागने लगता है । इधर शाहजेब की सेना हर रथ में आग लगा देती है और उन रथो पर आग के गोले की बारिश कर देती है।

शमशेरा: शाहजेब का पीछा करो बलदेव!

बलदेव और शमशेरा दोनों अपना घोड़ा शाहजेब के पीछे मोड़ते हैं। उतने में जलते हुए रथ को शाहजेब की सेना के बीच में ले आती है । बलदेव और शमशेरा को मजबूरन अपना घोड़ा रोकना पड़ता है तभी देवरानी पीछे से आती है।

देवरानी: छोडो उस भगोडे को । जाने दो।

बलदेव: घटराष्ट्र वासियो! हम जीत गए. हमने भगा दिया शाहजेब को।

बलदेव और शमशेरा अपने घोड़ों से उतरते हैं और बचे खुचे शाहजेब की सैनिकों को मारने लगते हैं।

शमशेरा: आ तुझे जन्नत भेज दू।




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शमशेरा ये बोलता हुआ खच कर के सैनिको की गरदन काट देता है।

कुछ देर में वहा अब सिर्फ पारसी सेना और घाटराष्ट्र की सेना, जो थोड़े बहुत थे वह मौजुद थी । दिल्ली की अधिकांश सेना मर गई थी और कुछ सिआणीक जान बचा कर भाग गए, कुछ शाहजेब के साथ वापस दिल्ली भाग गये थे ।

देवरानी भी घोड़े से उतरती है।

बलदेव: धन्यवाद शमशेरा आज मेरी नज़र में तुम्हारा सम्मान और बढ़ गया है। मित्र तुम एक अच्छे इंसान के साथ एक अच्छे योद्धा भी हो।

शमशेरा: और तुम भी कम नहीं हो मेरे दोस्त! तुम्हारी उम्र में तो मैं जंग क्या है, ये जानता भी नहीं था तुमने 18 साल की उम्र में इतनी बड़ी जीत हासिल कर ली है।

देवरानी: धन्यवाद बेटा! अगर तुम ना होते तो शायद ही हम दोनों जीवित होते और हम युद्ध भी तुम्हारे कारण से ही जीत सके हैं ।

शमशेरा: अब ये तो मेरा फर्ज था देवरानी खाला। खाला तो माँ के दर्जे की होती है उसके लिए कुछ भी करना जरूरी है और वैसे भी मैं अगर मेरे भाई बलदेव का साथ नहीं दूंगा तो फिर किसका दूंगा।

बलदेव: बड़े भाई अंजाने में तुम्हें बुरा समझ बैठा था, मुझे क्या पता था इतना निर्दय दिखने वाले शख्स शमशेरा का हृदय इतना नरम हो सकता है । उसमे इतना प्रेम हो सकता है।

शमशेरा: अब चुप करो बलदेव ये सब कह कर अहसान जता रहे हो या उतार रहे हो।

देवरानी: शैतान तुम नहीं सुधरोगे।

तभी सामने से घोड़े पर चौधरी के साथ कुछ सैनिक और महारानी जीविका आती है।

महारानी जीविका का हाथ पकड़कर सैनिक घोड़े से उतारते हैं।

देवरानी देख कर।

"बलदेव आजाओ तुम्हारे दादी के पास।"

बलदेव: आप वही रुके हम आते हैं।

तीनो जीविका के पास जाते हैं।

जीविका: बधाई हो बलदेव देवरानी तुमने कर दिखाया, हमारा घटराष्ट्र इन राक्षसों से छुड़ा लिया।

बलदेव और देवरानी दोनों झुक कर महारानी जीविका के पैर छूते हैं।

बलदेव: ये सब आपके कारण से हुआ दादी । अब मैं चाहता हूँ आप भी अपना वचन निभाएँ।

चौधरी2: हमने हर गाँव में पंचायत रख कर लोगों को समझा दिया है।

चौधरी1: हाँ बेटा या घटराष्ट्र का हर व्यक्ति अब तुम दोनों को बुरा नहीं कह सकता

बलदेव: क्या ये सच है चौधरी साहब?

देवरानी अब फिर से अपने पल्लू को नीचे कर अपना मुँह ढक खड़ी थी।

चूधरी2: हाँ बेटा अब तुमने काम किया अब हमारी वचन निभाने की बारी है।

चौधरी1: तुमने हमारी माँ बहनो की इज्जत बचाकर हम पर बहुत बड़ा उपकार किया है।

बलदेव: चौधरी साहब क्या वह सब मेरी माँ बहन नहीं थी और वैसे भी सब स्त्रियों को बचाने का श्रेय देवरानी जी को जाना चाहिए.

देवरानी ये सुन कर शर्मा जाती है और अपने आप पर गर्व करती है।

चौधरी2: ऐसी बहू हमें कहाँ मिलेगी जो रण भूमि में शत्रु का मुकाबला भी करे और फिर राष्ट्र की संस्कृति पर चल कर सब के सामने सत्कार करे। घूंघट करे।

चौधरी1: राजमाता हमें बलदेव के लिए महारानी देवरानी जैसी बहु कहीं भी नहीं मिलती । क्यू चौधरी जी?

चौधरी 1: हाँ और तो और बलदेव और बहू की जोड़ी जचती भी है।

देवरानी ये सुन कर गद-गद हो जाती है और झुक कर दोनों चौधरीयो के चरण छूती है।

चौधरी2: बेटी क्या कर रही हो । आप महारानी हो!

देवरानी: आप लोग पहले हमारे पिता समान हैं। बाद में मैं यहाँ की रानी या महारानी हूँ।

चौधरी 1: वाह! क्या सुंदर विचार है।

बलदेव: चौधरी साहब कुछ घंटों में ही सुबह हो जाएगी मैं चाहता हूँ। मैं आज सुबह ही सिंघासन पर बैठ जाऊँ।

चौधरी2: जाओ आराम करो सुबह होते हे सभा लग जाएगी । आपको नये महाराजा के रूप में शपथ लेना होगी ।

जीविका: मेरा बेटा राजपाल कहा है?

बलदेव: मैंने सैनिकों को भेज दिया है वह जाकर उनको फांसी घर से ले आएंगे।

तीनो महल में आते हैं और बलदेव अपनी कक्ष में शमशेरा को ले कर जाता है और देवरानी अपने कक्ष में जा कर स्नान कर लेती है और उसे नींद आती है।

शमशेरा और बलदेव भी अपने वस्त्र बदल कर स्नान करते हैं और सो जाते हैं।

सुबह का लगभाग 4 बज रहे थे और चाँद की अच्छी खासी रोशनी ज़मीन पर थी जिस से रात-रात जैसी नहीं दिन जैसा था लग रहा था ।महल के चारो ओर सैनिको ने अपना काम शुरू कर दिया और मारे गए सैनिको का अंतिम संस्कार करने लगे थे ।

जीविका के पास सृष्टि आती है तभी एक सैनिक राजपाल और सेनापति सोमनाथ को छुड़ा कर ले आता है।

सैनिक: महारानी जीविका!

जीविका अपने गले से एक सोने का हार निकाल कर उस सैनिक को इनाम देती है और वह सैनिक जो राजपाल को बचा कर लाया था धन्यवाद कह कर चला जाता है।

जीविका: मेरा बच्चा राजपाल!

राजपाल अपनी माँ के गले लग जाता है या शुृष्टि भी रोने लगती है। थोड़े देर मेल मिलाप चलता है।

सोमनाथ: महारानी जी! लेकिन अचानक से शाहजेब को कौन मार कर हरा सकता है।

जीविका: बलदेव!

ये सुन कर सब आश्चर्यचकित हो गए थे

शुरष्टि: माँ जी ठीक कह रही है। महाराज!

सब भौचक रह जाते हैं।

जीविका: जाओ तुम सब आराम करो इस पर हम सुबह सभा में बात करेंगे।

सोमनाथ सोचते हुए सेना गृह की ओर जाता है और जीविका के साथ राजपाल और सृष्टि महल के अंदर आकर अपने-अपने कक्षों में घुस जाते हैं और फिर गहरी नींद में डूब जाते हैं।

घटराष्ट्र में एक नई सुबह होती है।

घटराष्ट्र में चारो ओर ढिंढोरा पीटा जाता है कि शाहजेब वापस दिल्ली भाग गया और घटराष्ट्र अब सुरक्षित है । फिर सबको आज सभा में अमंत्रित किया जाता है।

सुबह 9 बजे के करीब देवरानी उठती है और जैसे ही वह आने वाले पल का सोचती है उसका दिल प्रसन्न हो जाता है।

देवरानी: (मन में) हे भगवान मैं और बलदेव अब विवाह करेंगे, हम घटराष्ट्र के महाराजा और महारानी बनेंगे।

देवरानी: (मन में) क्या कहेंगे सब? ...हेहे! कहने दो, पर फिर मैं बलदेव की पत्नी बन जाऊंगी फिर वह बच्चे की भी मांग करेगा।

ये सोच कर देवरानी उल्टा लेट जाती है और अपना सर तकिये मैं छुपा कर मुस्कुरा रही थी आगे क्या होगा ये सोच पर देवरानी का अंग-अंग लज्जित हो गया था ।

देवरानी (मन में) : कमला कहती थी मुझे अच्छे से रगड़ के कोई पेल कर नस-नस ढीली कर सकता है तो वह बलदेव है । क्या सच में वह ऐसा करेगा?

उधर शमशेरा उठता है तो देखता है बलदेव अब भी सो रहा था ।

शमशेरा: बलदेव भाई उठो...अरे महाराजा साहब उठो आज तो तुम शादी का भी फैसला सुनाने वाले हो। उठ जाओ भाई ।

बलदेव की नींद टूटती है।

बलदेव: मेरा बदन दुख रहा है मुझे और सोना है।

शमशेरा: भाई बाहर सभा लग गई होगी! अब चलो!

दोनों जल्दी से तैयार हो कर सभा में पहुचते हैं जहाँ पर जीविका के साथ सोमनाथ और शुृष्टि सब बैठे हुए थे।

शमशेरा और बलदेव जा कर बैठते है । हजारों की संख्या में प्रजा भी मौजुद थी तभी देवरानी भी पहुँचती है।

एक सैनिक खड़ा हो कर बलदेव और देवरानी का जय जयकार करता है और सब फुलो से स्वागत करते हैं।

जीविका: बैठो देवरानी!

जीविका: घटराष्ट्र वासियों जैसा कि आपको पता है हमारे राष्ट्र में कुछ ठीक नहीं चल रहा था फिर दिल्ली के बादशाह शाहजेब ने आक्रमण किया और बलदेव ने हमारा राज्य जो उसने हमसे छीन लिया था उसे हरा कर वह वापस ले लिया।

इस पूरे युद्ध में सुलतान और उनके शहजादे शमशेरा कर उनकी सेना ने भी हमार पूरा साथ दिया है । उनके बिना हम ये युद्ध नहीं जीत पाते । हम उनका भी धन्यवाद करते हैं और उन्हें कुछ तोहफे भेंट करता है।.


पूरी प्रजा बलदेव की जय-जय कार करने लगती है।

मंत्री: बधाई हो पहला युद्ध जीता आपने!

राजपाल अपना सर झुकाए बैठा हुआ था । बलदेव और देवरानी राजपाल को देख कर मुस्कुरा देते हैं

जीविका: घटराष्ट्र वासिओ जैसा कि आप सबको पता है और चौधरी जी ने आपको बता दिया होगा की आप सब की जान और आप सब की बहू बेटी के सम्मान के खातिर मैंने वचन दिया था बलदेव को।

चौधरी2: महारानी अब हमने हर गांव-गांव पंचायत कर के सबको बता दिया है ।

जीविका: वैसे हमारे परम्पराओ के अनुसर महाराजा के मृत्यु के पहले कोई दूसरा महाराज नहीं बन सकता पर मैं अपने वचन को निभाते हुए आज से अभी से बलदेव को घटराष्ट्र का महाराजा चुनती हूँ।

पुरा सभा ताली की गडग़ड़ाहट से गूंज उठती है ।

जीविका: महाराजा बलदेव का ताज लाया जाए!

राजपाल ये सुन कर अपना आखे बंद कर देता है उसे हर एक बात सुई की तरह चुभ रही थी और वह मजबूरन अपनी गद्दी से उठ कर खड़ा हो जाता है।

तभी एक दासी ताज़ ले कर आती है।

जीविका: आओ बलदेव!

बलदेव जा कर जीविका के पास घुटनो के बल बैठ जाता है।

जीविका अपने हाथों से मुकुट को बलदेव के सर पर रख देती है।

सोमनाथ: महाराजा बलदेव की जय!

चौधरी2: महाराजा बलदेव सिंह की जय!

पूरी प्रजा जय-जय करने लगती है। बलदेव जा कर महाराजा की राजगद्दी पर बैठ जाता है। ये सब अपनी आंखों में नमी लिए प्रसन्नचित हो देवरानी देख रही थी।

देवरानी: (मन में) कितना सुंदर लग रहा है इस ताज में मेरा बलदेव!

दूर खड़ी राधा और कमला भी सब देख रही थी । कमला की आँखों में भी आसु आते हैं।

मंत्री: महाराज बलदेव अब आप शपथ ले लीजिये।

बलदेव: जरूर मंत्री जी!

बलदेव: में बलदेव सिंह यानी के घटराष्ट्र का महाराज ये शपथ लेता हूँ मैं अपने पूरे जीवन घाटराष्ट्र की सेवा में बिताऊंगा । अपने धर्म अपने राष्ट्र के लिए जब कभी प्राण भी त्यागने पड़ेंगे तो पीछे नहीं हटूंगा। मैं बलदेव सिंह संकल्प लेता हूँ घटराष्ट्र के हर नागरिक के दुख में या सुख में उनके साथ खड़े रहूंगा और अपने नागरिको के सम्मान और उनके अच्छे भविष्य के लिए हर प्रयास करूंगा। मैं महाराजा बलदेव मेरी हर बात पत्थर की लकीर!

शपथ लेते वह सब चारो तरफ से फुल बरसाने लगते हैं और पूरा घाटराष्ट्र की प्रजा खुशी मनाने लगती है।

महाराजा बलदेव: घटराष्ट्र वासी इस सभा जो मेरी पहली सभा है उसमें मुझे एक महत्त्व पूर्ण निर्णय लेना है।

ये कह कर बलदेव जीविका की ओर देखता है जीविका उसे हाँ का इशारा करती है।




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बलदेव: आप सबको पता है मेरी दो मांगे थी एक तो पूरी हो गई है । दूसरी मांग थी मेरी देवरानी जिससे मैं विवाह करना चाहता था। संभव है ये आप सब को अजीब लग रहा होगा पर कुछ दिन ही लगेगा फिर आप सब अपनी कामो में लग जाओगे और सब भूल जाओगे।

चौधरी2: हाँ हमें याद है कि आप को विवाह करना है।

बलदेव: इससे पहले मैं ये कहूँ कि हम और देवरानी कब विवाह करेंगे, उससे पहले मैं किसी को उसके कर्मो के लिए सजा देना चाहता हूँ।

सब सोच में पड़ जाते हैं।

बलदेव: देवरानी कहो तुम्हारे साथ क्या हुआ था?

देवरानी अपना पल्लू थोड़ा उठाती है और कहना शुरू करती है।

देवरानी: महाराज बलदेव मेरे साथ राजा रतन सिंह ने जबरदस्ती करने की कोशिश की थी जिसका श्रेय राजपाल को जाता है।

पुरा घटराष्ट्र में हाहाकार मच जाता है।

बलदेव राजपाल की ओर देख कर कहता है ।

बलदेव: क्या ये सही है?

राजपाल: हाँ सही है।




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अपना सर झुका कर अपना जुर्म मान लेता है।

जीविका: ये क्या बलदेव तुम विवाह करो करना है तो ये क्या है ।

बलदेव: दादी महाराजा बनने के बाद ये मेरा ऐतिहासिक फैसला होगा।

बलदेव: तो घटराष्ट्र वासीयो स्त्री के साथ ऐसा करने वाले को क्या सजा होती है?

"मौत मौत फाँसी फाँसी!"

सब प्रजा एक साथ बोलती है।

बलदेव: मैंने प्रेम किया तो मुझे इतना सज़ा मिली । जो एक स्त्री को किसी अन्य के साथ मिल कर उस स्त्री के साथ जबर्दस्ती करने की कोशिश करे तो उसे क्या सज़ा मिलनी चाहिए?

"हाँ मिलनी चाहिए कड़ी सजा मिलनी चाहिए!"

पूरी प्रजा एक साथ बोलती है।

जितने मंत्री थे और चौधरी थे सब हैरान थे।

बलदेव: घबराए नहीं, मैं फांसी नहीं दूंगा, मैं तो तड़पा-तड़पा के मारूंगा । सोमनाथ इस अपराधी को बंदी बना लो । हम इसे आजेवन कारावास की सजा सुनाते हैं।

ये सुनते हैं सोमनाथ इशारा करता है और सैनिक राजपाल को हिरासत में ले लेता है।

बलदेव: रुको सोमनाथ! इस तुछ व्यक्ति को कारागार में डालने से पहले मैं एक और बात घाटराष्ट्र की प्रजा को बता दूं और ये भी कान खोल कर सुन ले।

बलदेव: घटराष्ट्र वासी हम आज सूर्याष्ट से पहले ही माँ रानी देवरानी से विवाह करेंगे और आप सबको घटराष्ट्र वापस मिलने का, हमारे विवाह का उपहार, एक साथ मिलेगा...आप लोग जाइये आराम कीजिए संध्या में विवाह होगा ।



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देवरानी गदगद हो कर मुस्कुराती है । उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे ।

देवरानी (मन में) : भगवान् आपका कोटो कोटि धन्यवाद । आपने मेरे मन की मुराद सुन ली।

ये सुनते ही राजपाल का खून खौलता है।

राजपाल: माँ ये क्या है? मेरे गद्दी लेने तक ठीक है । मुझे सजा दी जाए वह भी मंजूर है। पर माँ बेटे का विवाह?

जीविका खड़ी होती है और राजपाल के पास आकर कहती है ।

जीविका: मैं नहीं चाहती थी बेटा पर घटराष्ट्र की हजारो बहू बेटियों की इज्जत बचाना मेरी प्रथमिकता थी।



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राजपाल: माँ हमारे मान मर्यादा का तो ख्याल किया होता है।

जीविका: जब जान ही नहीं होती हम सब की, तो मेरे लाल तुम्हारी मान सम्मान प्रतिष्ठा का क्या करते?

सोमनाथ राजपाल के हाथ में बेड़िया बाँध कर ले जाता है।

शुृष्टि उठ कर देवरानी के पास आती है।

शुरुआत: मुझे क्षमा कर दो बहन अगर तुम्हें मुझे कोई भी सजा देनी है तो मुझे मंजूर है।

ये कह कर शुृष्टि देवरानी की पैर पड़ने लगती है।

देवरानी उठ कर शुृष्टि को पकड़ लेती है।

देवरानी: ये आप क्या कर रही हैं?

शुरष्टि: आप को मैंने बहुत कष्ट दिया और रोने लगती है।

देवरानी: बस हमने आपको क्षमा कर दिया है ।शुृष्टि देवरानी का हाथ पकड़ कर बलदेव के बगल में रखी महारानी की कुर्सी पर देवरानी को बिठाती हैं।

देवरानी देखती है पूरा घटराष्ट्र उल्लास मना रहा है।

बलदेव: बैठ जाओ महारानी!

शुृष्टि: तुम्हारे जैसे बड़े दिल वाली ही इस गद्दी पर बैठने का हकदार है, वैसे आज शाम में विवाह के बाद तुम महारानी बन भी जाओगी।

शुरष्टि: महारानी देवरानी की जय!

ज़ोर से बोलती है।

बलदेव अपने सर से मुकुट उतार कर देवरानी के सर पर रखता है।



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बलदेव: विवाह होने के बाद महारानी का मुकुट आपके सर पर होगा।

देवरानी ये सुन कर गदगद हो जाती है। ख़ुशी की मारे वह रो देती है और उसका चेहरा लाल पड़ जाता है, जिसे बलदेव गौर से देखता है।

देवरानी ये देख अपनी सुन्दरता पर इतराती है।

बलदेव: महारानी देवरानी की जय!

जिसका उत्तर में सभी मंत्री चौधरी और घटराष्ट्र की पूरी प्रजा जय-जय करने लगती है।

दूर खड़ी कमला अपने हाथ से अपने आसु पूछती है।

कमला: (मन में) कमीनी! आख़िर मेरी बहन ने अपने मन की मुराद पूरी कर ली, महारानी बन गई अब मुश्तंडे पति से विवाह कर उसका मुश्तंडा लौड़ा भी लेगी।

ये सोच कर कमला हस देती है।

कमला: (मन में) ये बलदेव ने भी तो इतनी-सी उमर में इतने बड़े बड़े काम कर दिए, माँ को पटा भी लिया, विवाह भी कर रहा है, इतना बड़ा युद्ध भी जीत लिया।

पास खड़े वैध जी कमला को देखते हैं।

वैध: अरे तुम क्यू रो रही हो कमला?

कमला: हट बूढे! ये तो खुशी की बात है।

सभा खतम होती है बलदेव देवरानी का हाथ अपने हाथ में लिए महल में आता है जीविका अपने किए पर ग्लानी मेहसूस कर रही थी और फिर अपने कक्षा में चली जाती है।

बलदेव देवरानी को महल में ले आता है।

कमला उन दोनों को देख आगे आकर दोनों की बलाए लेनी लगती है।



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देवरानी: क्या कर रही हो कमला?

कमला: जुग-जुग जियो! जोड़ी सलामत रहे तुम्हारी!

बलदेव: कहा थी तुम कमला?

कमला: वह मुझे, राधा को, सेनापति और राजपाल के साथ बाँधा था! खैर छोडो!

बलदेव: क्षमा कर दो हम युद्ध से थक गए थे। तुम्हें मिल नहीं पाएँ।

तभी शुृष्टि आ जाती है और शमशेरा भी आ जाता है ।

शमशेरा: भाई सब कुछ कह रहे हैं मुझे तो कोई भाव ही नहीं दे रहा है ।

शुरुष्टि: हम घटराष्ट्र वासी जासुसो को भाव नहीं देते ।



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बलदेव: महारानी इस पूरे युद्ध में शहजादे शमशेरा और आपकी सेना ने भी हमारा पूरा साथ दिया है। दोस्त आपके के बिना हम ये युद्ध नहीं जीत पाते। हम आपका अपने देल की गहराईयो से धन्यवाद करते हैं ।

शमशेरा: लगता है इस जासूस ने किसी की बहुत बिश्किमती चीज़ की जासूसी कर ली है ।

ये सुन कर शुरुआत समझ जाती है शमशेरा क्या कहना चाह रहा है ।

शुरुआत: (मन में) इसने तो मुझे पूरी नग्न अवस्था में देख लिया था । ये जरूर वही बात कर रहा है।

और फिर ये उस बारे में सोच शर्मा जाती है।

शमशेरा: शायद आप हमें भूल गई रानी शुरष्टि!

शुरुआत: चोरो की तरह महल में घुसने वाले को हम नहीं भूलते।

ये सुन कर बलदेव और देवरानी भी परेशान हो जाते हैं।



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कमला: जब चोर घुस गया था तो चोरी तो हो गई होगी।

शमशेरा: नहीं चोर कोई बिश्किमती चीज बिना मालिक को इल्तिलाह किए नहीं चुराता। ये उस चोर की खासियत है।

ये सुन कर शुृष्टि शमशेरा को देख मुस्कुराती है ।

शुरष्टि: अच्छा जी इतना शरीफ चोर!



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और शुरष्टि मुस्कुराती है।

बलदेव: भाई अब मैं सोने चला तुम सब तयारी करो!

कमला: हाँ सो जाओ आज के बाद महारानी देवरानी कहा सोने देगी!

और सब हसते हैं।

बलदेव: शमशेरा सेनापति से कह कर पंडित का और पूरे घटराष्ट्र की प्रजा, मेहमाओ और सुल्तान की फ़ौज के भोजन प्रबंध करवाओ और कमला तुम मेरी दुल्हन सजा दो । मुझे शाम 4 बजे से पहले मत उठाना । 5 बजे हम फेरे ले लेंगे।

कमला: ठीक है महाराज आपकी महारानी आपको एक दम दूध की धुली मिलेगी।

शमशेरा: फिकर ना करो छोटे भाई हम कोई कमी नहीं छोड़ेंगे।

फ़िर बलदेव जाने लगता है।

थोड़ी दूर जा कर खड़ा हो जाता है और देवरानी को इशारे से बुलाता है पर देवरानी शुरष्टि से बात कर रही थी।



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देवरानी: शुरिष्टि दीदी आज क्या पह्नु?

कमला देखती है बलदेव खड़ा हुआ था।

कमला अपनी कोहनी हल्की-सी देवरानी के हाथ पर मारती है। देवरानी पलटती है तो देखती है बलदेव खड़ा इशारे कर रहा था।

देवरानी: अभी आई दीदी!

देवरानी बलदेव के पीछे आती है।

बलदेव देवरानी के कक्ष में जाता है और देवरानी जैसे ही आती है उसका हाथ पकड़कर खींच लेता है।

"आआह बलदेव क्या है?"

"देवरानी इधर आओ ना!"



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बलदेव देवरानी को पकड़ कर चूम लेता है।

KIS0

"दूल्हे राजा थोड़ा सब्र करो आज शाम को हमे विवाह करना है।"


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"मुझ से रहा नहीं जाता मेरी रानी!"



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बलदेव: अब नींद आएगी मुझे।

देवरानी: ठीक है जाओ सो जाओ।

बलदेव: तुम भी तो आराम कर लो । मैं रात भर सोने नहीं दूंगा ।

देवरानी शर्मा कर सर नीचे कर लेती हैं।

"ठीक है बलदेव!"

देवरानी बाहर आती है और बलदेव सीढ़ियों से चढ़ कर अपने कक्ष में सोनो चला जाता है ।



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शुरुष्टि: क्या हुआ? क्यू बुलाया था बलदेव ने?

कमला: क्यू बुलाएगा? एक पल चेन नहीं है दोनों को।

सब देखते हैं और देवरानी कमला को घूरती है।

कमला और शुरष्टि देवरानी को तैयार करने ले जाती है और शमशेरा बाहर की तयारी में जुट जाता है।


जारी रहेगी
 
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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 89

विवाह की तयारी

सुबह 9 बजे

घाटराष्ट्र

बलदेव अपने कक्ष में जा कर सो जाता है क्यूकी रात भर युद्ध कर के वह थक गया था । शमशेरा अपने मित्र बलदेव के लिए पंडित और अन्य कामो का ब्यौरा निकाल कर उनको निपटाता है।

देवरानी को ले कर कमला और श्रुष्टि उसके कक्ष में जाती है।



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कमला: चलो पहले महारानी को मेहंदी लगा दू ।

शुरष्टि: नहीं कमला पहले हल्दी लगती है।

देवरानी: बाबा ऐसा करो हाथो और पैरो पर श्रुष्टि दीदी मेहंदी लगा देगी और तब तक तुम हल्दी लगाओ।

श्रुष्टि: देखो कितनी जल्दी है बन्नो को । वैसे मुझे दीदी कह रही हो पर आज से तो तुम मेरे बेटे बलदेव की पत्नी बनने जा रही हो...देवरानी बहू!

श्रुष्टि के ये बोलते ही जहाँ कमला खिल खिलाती है वही देवरानी लज्जा जाती है।



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देवरानी: दीदी...!

देवरानी तुनक कर मनी करती है, इशारे से कहती है ऐसा ना कहो!

श्रुष्टि: भाई बात तो सही है अब हम सौतन नहीं रही अब तो तुम इस घर की बहू बंनने वाली हो!

देवरानी अपना सर निचे कर के अपनी अपने आप पर गर्व करती है।

श्रुष्टि पहले देवरानी की पैरो पर मेहंदी लगाती है और कमला मेहंदी वाला हिस्सा छोड़ कर देवरानी के अंग-अंग में हल्दी और चंदन की मालिश करने लगती है।

देवरानी: धीरे कमला!



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कमला: ओह! अब मेरा छूना क्यू पसंद आएगा । जब दूल्हा जो मिल रहा है।

देवरानी: री चुप कर, एक बात भूल गई.

कमला: क्या महारानी?

देवरानी: इनके मित्र तो ही नहीं और उनको भी याद नहीं रह रहा उन्हें बुलाना!

कमला: ओह हो! उनके! किन्के मित्र?





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ये कह कर आत्म ग्लानि से श्रुष्टि का चेहरा उतर जाता है।

देवरानी: छोडीये दीदी । सुबह का भुला शाम को वापस आ जाए तो उसे भुला नहीं कहते।

श्रुष्टि भी अब देवरानी को दो पत्तों को मदद से हल्दी लगाती है

श्रुष्टि: ठीक है अब तुम मेहंदी को सुखा देना फिर सोना, मैं जा कर बद्री और श्याम को निमंत्रण भेजवा देती हूँ।

कमला: रानी श्रुष्टि फेरे आज 5 बजे ही होंगे ना?



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श्रुष्टि: हाँ बाबा 4 बजे बन्नो को उठा देना!

कमला अब श्रुष्टि को महारानी नहीं बुला रही थी जिसे सुन श्रुष्टि को अटपटा लगता है पर वह बदलते समय का भाव समझ रही थी।

देवरानी: आप भी आराम कर लीजिये दीदी!


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श्रुष्टि: अब मुझे कहाँ आराम मिलेगा, जिसके बेटे का विवाह हो वह आराम नहीं कर सकती ।


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इतने में जीविका वहाँ आती है।

कमला: आइए महारानी जीविका!



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देवरानी: आइये माँजी!

देवरानी अपना पल्लू ठीक करती हुई कहती है।



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जीविका के पास वह रखे एक आसन पर बैठ जाती है और एक लंबी सांस लेते हुए कहती है ।

जीविका: तुम सबको निमंत्रण दे रही हो और मेरे बेटा वहा कारावास में बंद है।



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शुरष्टि: माँ जी आपको पता है बलदेव के निर्णय के विरुद्ध कोई नहीं जा सकता है ।

जीविका: परंतु घर में बेटे का विवाह है और बाप करवास में रहे, क्या ये ठीक लगेगा और वैसे भी उसे फांसी की सजा तो नहीं सुनायी है।



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ये कह कर जीविका की आँखे नम हो जाती है।

कमला: ये बात तो है महाराज राजपाल परिवार के सदस्‍य हे । अगर वह विवाह का समय नहीं होंगे तो बुरा तो लगेगा ही ।



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देवरानी: माँ जी आप रोये नहीं, मैं महाराज बलदेव से बात करती हूँ, मुझे विश्वास है मेरा राजा बेटा मान जायेगा।

जीविका: तुम्हारी मानेगा क्यों नहीं जब उसकी माँ इतने महीने से उसे पत्नी का सुख दे रही है। तुम दोनों को विवाह की ऐसी भी क्या पड़ी थी । वैसे भी कर सब कुछ कर ही रहे हो।





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देवरानी: महारानी जीविका...ये आपकी गलतफहमी है । मैं ऐसी नारी नहीं की प्रेम के भाव में आकर बहक जाऊँ । मैंने बलदेव को कभी सीमा से आगे नहीं बढ़ने दीया क्यूकी हमेशा मेरा दिल भगवान को साक्षी माने बिना विवाह से पहले के सम्बंध या सहवास करने से डरता रहा। पर अब लगता है कि मैं गलत थी । जब ऐसे अरोप मुझ पर लग ही रहे हैं तो मुझे लग रहा है मुझे बलदेव को रोकना नहीं चाहिए था।

शुरष्टि: माँ जी रहने दीजिए ना । आप दोनों बाद में लड़ लीजिएगा । आज इनका विवाह है। देवरानी बुरा मत मानो इनकी बात का । हमें पता है तुम कितनी पवित्रा हो।




कमल: महारानी देवरानी! दुनिया वाले कुछ भी बोले पर हमें पता है ना आप अपनी मान मर्यादा का कितना पालन करती रही हैं।

शुरष्टि: चलिए सासु मां! देवरानी तुम जल्दी सो जाओ. फिर तुम्हारे उठने के बाद मैं तुम्हें तैयार करती हूँ।

श्रुष्टि जीविका को ले कर चली जाती है।

कमला: अब आप मत सोचिए कुछ, मेहंदी सुखने के बाद सो जाए. मैं भी जाती हूँ 4 बजे आउंगी फिर आपको तैयार करती हूँ।

देवरानी: कमला सुनो ना "धन्यवाद!"

कमला: क्या महारानी?

देवरानी: आज जो ख़ुशी मुझे और बलदेव को मिलने जा रही है । या जो भी सुख औअर ख़ुशी अब तक मिली है वह सब तुम्हारे कारण ही है और तुम ही उस कठिन समय में मेरा सहारा थी ।

कमला: छोडो भी महारानी! तुम्हारे मदक शरीर और सुंदर मुखरे ने ही बलदेव को लुभाया है और फिर हस देती है।


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देवरानी: कामिनी! जाओ यहाँ से।

कमला चली जाती है देवरानी हल्दी लगाने से और खिल रही थी । साथ ही उसके हाथो और पैरो पर मेहंदी बहुत जच रही थी।

देवरानी, देखती है कि मेहंदी का रंग कैसा आ रहा है।



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बाहर शमशेरा सैनिकों से कह कर पंडित और भंडारे का इंतेज़ाम करवा रहा था।

देवरानी जैसी ही देखती है उसके हाथों की मेहंदी अब सुखने लगी तो वह बिस्तर पर पड़ जाती है।

देवरानी: तो अब मैं जाति हूँ । बेटा बलदेव आज अपनी माँ को पत्नी बना कर थका तो देगा ही ।

ये सोच कर देवरानी मुस्कुरा कर सो जाती है।

महल को फूलो से सजाया जाता है । चारो तरफ मंडप लगाया जाता है जहाँ पर भंडारा होगा । शमशेरा बाज़ार से फूलो के साथ हजारो दिये ले आता है और सेवको को आज्ञा देता है कि जैसे ही पूरे महल में अँधेरा हो है हज़ारो दियो को जला कर महल को जगमगा दिया जाए ।

शाम 4 बजे

"बलदेव उठ जाओ"

ये शमशेरा था जो बलदेव को उठा रहा था

बलदेव: अभी-अभी तो सोया था भाई!

शमशेरा: भाई! देखो आज तुम्हारी शादी है, अगर नहीं करनी है तो सोते रहो।

ये सुनते हे बलदेव झट से दोनों पैरो पर उठ खड़ा होता है।




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बलदेव: सब तैयारी हो गयी?

शमशेरा: भाई तुम्हारी माँ तुमसे शादी करने के लिए तैयार है, बाकी कुछ त्यार हो ना हो क्या फर्क पड़ता है?

बलदेव: जलो मत, बड़े भाई! ।बोलो ना पंडित भंडारे सब की तयारी हो गयी?

शमशेरा: हाँ बस तुम माँ बेटे के लिए सुहागरात की सेज सजानी है । इसलिए उठो और जाओ यहाँ से।

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शमशेरा: वैसे सुहागरात तुम्हारी माँ के होज़रे में मनाओगे या बाप के?

बलदेव: भाई हम नया रिश्ता शुरू कर रहे हैं और मैं नहीं चाहता कि मेरी माँ को कुछ पुराने बुरे दिन याद भी रहें, मैं उनके साथ अपने कक्ष में ही सुहागरात मनाऊंगा।

उधर देवरानी अंगड़ाई ले कर उठती है और उसी समय ही कमला देवरानी के कक्ष में घुसती है।

देवरानी: आगयी तुम कमला क्या समय हो गया?

कमला: अंगड़ाई ले रही हो...घबराओ नहीं महारानी अभी 1 घंटा और बाकी है। फिर तुम्हारी रात भर कुटाई होगी ...वैसे नींद पूरी हुई की नहीं?

देवरानी: सुबह से तो सो रही हूँ नींद तो पूरी होगी ही ना।

कमला: हाँ भाई, कोई बात नहीं आज रात भर जगना जो है।

देवरानी: चुप कर बेशरम...पंडित जी आये के नहीं?

कमला: हाँ वह हवन कुंड लगा कर अपनी तयारी कर रहे हैं ।

देवरानी: मुझे राजपाल के लिए बलदेव से बात करने थी ।


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कमला: तुम क्यू उस बूढ़ी के दर्द को समझ रही हो, जब वह कभी तुम्हारी तकलीफ तुम्हें नहीं समझी ।

देवरानी: कमला में आज एक नया रिश्ता बनाने जा रही हूँ। अब वह मेरी सांस नहीं मेरे बेटे मेरे पति की दादी है और मुझे सब को जोड़ना है, तोड़ना नहीं है। एक परिवार बनाना है।

कमला: कितने सुंदर विचार हैं आपके महारानी, पर अब आपको हल्दी लग गई है। अभी आप सुहागरात से पहले अपना चेहरा बलदेव को नहीं दिखा सकते।



KAMLA-DEV
देवरानी: तो क्या करूँ...अगर माँ जीविका चाहती है, की एक दिन के लिए ही सही, राजपाल को घर में रखा जाए तो क्या उन्हें कारागार से निकाल लेना ठीक होगा?

कमला: अब मैं कैसे कहू पर अगर वह आकर इस विवाह में कुछ बाधा बने तो?

देवरानी: ऐसा नहीं होगा कमला क्यूकी अब मेरा बेटा महाराज है । उसके निर्णय को सबको मानना पड़ेगा।

कमला: तो ऐसा करो युवराज शमशेरा से बुला कर बलदेव से बात करने के लिए उसे कह दो ।

देवरानी: नहीं देवरानी, मैं इस हाल में बलदेव को छोड़ के किसी गैर मर्द से नहीं मिल सकती। ऐसा करो तुम शमशेरा को कह दो वह समझ जाएगा मैं क्या चाहती हूँ। फिर वह बात कर लेगा बलदेव से।

कमला: ठीक है मैं कह दूंगी चलो अभी आपको स्नान कराना है तैयार भी करना है। समय कम है...

जारी रहेगी ...
 
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