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देवरानी: उह! बलदेव, एक दिन मुझे भी इस चित्र की तरह अपने गोद में उठाया खड़े-खड़े पेलना इस निगोड़ी बुर ने मुझे बहुत तड़पाया है...! ओह्ह! "बलदेव के लिंग का पानी कितना मज़ेदार था!"
चुत को मसलते हुए बिस्तर पर देवरानी आज की घटना को याद कर रही थी, कैसे उसे बलदेव ने रगड़ा था और उसका साथ दे कर देवरानी को आज एक अलग ही सुख का एहसास हो रहा था। आखिर में वह किसी भी तरह उस रात में सो जाती है।
बलदेव भी देवरानी पर खूब मेहनत कर अपना पानी गिरा कर हल्का हो गया था। बाप दुवारा पकड़े जाने से बचने की ख़ुशी भी थी उसे और वह चैन की नींद लेने लगता है।
राजपाल के मन में कहीं न कहीं शक पैदा हो गया था कि, इस घुसपैठ के पीछे कहीं देवरानी तो नहीं जुड़ी है और कहीं उसके देवरानी की ओर से ध्यान नहीं देने के कारण, किसी से सम्बंध तो नहीं बना लीये हैं देवरानी ने!
जीविका तो मन ही मन समझ गई थी घुसपैठ किसी अन्य ने नहीं बल्कि बलदेव ने ही की है, वह भी अपनी माँ के लिए और सृष्टि के मन में भी शंका पैदा हो गई थी, के हो ना हो ये चादर जो घुसपैठिये ने छोड़ दी थी वह देवरानी की ही है।
सुबह सब से पहले कमला उठती हैऔर घर का काम करने में लग जाती है। उसके बाद जीविका उठती है और टहलने के लिए बाग में चली जाती है। राजपाल भी सुबह जल्दी उठ जाता है और महल के बाहर टहलने लगता है।
सृष्टि स्नान घर से निकल कर आती है।
शुरुष्टि: कमला कहा हो तुम?
कमला: महारानी रसोई में हूँ।
शुरुष्टि रसोई की ओर आ कर...
"कमला मेरे कपड़े कुछ गंदे हो गए हैं थोड़ा देख लेना।"
"ठीक है महारानी मैं कर दूंगी साफ।"
कमला रसोई का काम ख़त्म कर के कपडे धोने के लिए सब जगह से कपडे इकठ्ठा करने लगती है।
कमला: हे भगवान सब उठ गये ये प्रेमी जोड़ा अब तक सो रहे है देखु ज़रा इनको।
कमला देवरानी की कक्षा में जाती है।
कमला: महरानी देवरानी हद्द हो गयी अब तक सो रही हो आप।
देवरानी एक अंगड़ाई ले कर उठती है।
"कमला कहो ना क्या बात है।"
"अब मैं क्या कहूँ महारानी उठ जाओ सुबह कब की हो गयी है।"
देवरानी उठ के बैठ जाती है।
"कमला मेरे बदन का नस-नस दुख हो रहा है।"
अपनी अधखुली आंखो से देवरानी कहती है।
share image "क्यू महारानी कल रात में कुवा खुदवा ली क्या?"
"हट पागल कमला!" शर्मा कर फिर लेट जाती है।
"अब कर लो बात! कुछ भी नहीं और रोम-रोम दर्द भी है! ऐसा नहीं हो सकता, कोई बात नहीं महारानी वर्षो बाद प्रेम का खेल रही हो, शरीर को धीरे-धीरे आदत हो जाएगी।"
"चुप करो कमला! जाओ अपना काम करो!"
"ठीक है महरानी सोती रहो! सब पूजापाठ, सुबह उठ कर स्नान करना भूल गई हो! , मैं जाती हूँ कपड़े धोने, तुम्हारा कुछ है धोने के लिए तो बताओ!"
देवरानी उल्टा लेती हुई अपना मुँह तकिये से दबाये बोलती है।
"हा स्नान गृह में देखो, अलगनी पर उतरे वस्त्र है सब धो दो!"
"ठीक है महारानी!"
कमला सब वस्त्र ले कर चली जाती है महल के एक कोने में जहाँ पर कुआ था और बड़ी-सी पक्की जगह थी वहाँ पर सिर्फ कपडे धोये जाते थे वहाँ पर जाकर कमला बारी-बारी से कपडे धोने लगती है।
कमला अब जैसे ही देवरानी की एक साडी धो कर फिर से बाल्टी में हाथ डालती है तो उसके हाथ में एक छोटी धोती नुमा कपड़ा आता है जिसे देख उसके मुँह से निकलता है।
"हाय राम ये तो इतना छोटी-सी धोती है वह भी रेशमी है ये महारानी कब से ऐसा वस्त्र पहनने लगी!"
"अच्छा रात का कार्यक्रम में यही धारण किया था महारानी ने!"
तभी उसके साथ का ब्लाउज भी निकलाती है बाल्टी से "ये देखो इतना छोटा-सा ब्लाउज पहना था और जिसके दूध पहाड़ जैसे हो उसे ये क्या छुपाएगा?"
अब कमला उस धोती को पकड़ के जैसे ही उस पर पानी मारने वाली थी वहाँ सामने से सृष्टि आ जाती है।
शुरुष्टि: कामला ये क्या समय व्यर्थ कर रही हो?
सृष्टि को देख कमला चौक जाती है पर संभाल कर बोलती है।
"क्या हुआ महारानी?"
"मैंने कहा था तुम्हें मेरा कपड़ा धोने के लिए पूरे राज्यके वस्त्र धोने के लिए तुम्हे नहीं बोला था।"
"ये किसके वस्त्र धो रही हो?"
"महारानी देवरानी का है ये।"
सृष्टि (मन में: ये पहनने से अच्छा है कि नग्न ही रह ले देवरानी।)
तभी सृष्टि की पैनी नजर देवरानी की उस धोती पर पड़ती जहाँ पर कुछ सफेद दाग लगा था।
सृष्टि: कामला ये क्या लगा कर धो रही हो इसको?
कमला: कुछ नहीं महारानी।
सृष्टि अपनी उंगली दिखा कर पूछती है।
"तो वह क्या है सफेद-सा जो वस्त्र पर चिपका हुआ है?"
कमला भी आचार्य चकित हो कर देखती है तो पाती है कुछ गाढ़ा-सा पदार्थ चिपका हुआ है देवरानी के कपडे पर!
"ये क्या लग गया अब!" कमला उसपर एक उंगली लगा कर घिसती है पर वह कड़ा हो गया था और अब ज़ोर लगाने से वह और फेल जाता है और फिर कमला की उंगली में सबसे चिपक जाता है।
शुरुष्टि: छी ये क्या चीज है?
कमला: लिसलिसा चिपचिपा लिस्सा जैसा है।
शुरष्टि (मन में: ये लिस्सा नहीं वीर्य है और इसके गाढ़ेपन से लग रहा है कि ये किसी पुरुष का है अगर देवरानी का होता तो उसके सामने की तरफ लगा होता पर ये पीछे लगा हुआ है।)
कमला: (मन में) ये देवरानी भी ना पता नहीं क्या लगा लिया? कहीं ये वीर्य तो नहीं पर अब सृष्टि को क्या बोलू!
कमला: महारानी सृष्टि वह कपड़ा मैंने सब कपडो के नीचे रखा था, सब वस्त्र इकठा करने के लिए तो कुछ लग गया होगा।
सृष्टि: अच्छा-अच्छा ठीक है। (मन में: देवरानी ये वस्त्र तो ना रात में पेहनी थी और ना ही कल तो ये गंदा कब हुआ और देवरानी ने इसे पेहना कब? कहीं इसके तार रात हुए घुसपैठ से तो नहीं मिलते...)
शुरष्टि: अच्छा कमला देवरानी अभी तक उठी नहीं क्या हुआ?
कमला: हाँ उनके बदन में थोड़ा दर्द है।
सृष्टि अंदर ही अंदर एक मुस्कान देती है और (मन मैं "अब मैं सब समझी अगर जो मैं सोच रही हूँ वह सही निकला तो मेरी प्यारी देवरानी तुम्हारे प्राण लेने का सही समय आ गया है।")
इधर देवरानी उठ कर स्नान घर में जाती है तो उसे अचानक कुछ याद आता है वह झट से बाहर जा कर कक्ष में देखती है फिर आकर अंदर ढूँढने लगती है।
"हे भगवान कमला भी ना ...मेरा वह वस्त्र भी ले गई। मैं तो भूल गई थी उस पर वह दाग भी था बलदेव के लंड के पानी का।"
"किसी ने देख लिया तो? अब क्या करू!"
फिर वह स्नान कर के आती है कपडे बदल के अपने कक्ष में रखे मंदिर के पास हाथ जोडे खड़ी होती है।
फिर दिया जलाती है मंदिर का और कुछ अगरबती जलाती है फिर मंत्रो को जाप शुरू कर देती है कुछ आधे घंटे तक पूजा करती रहती है फिर अपने मन में भगवान से प्रार्थना करने लगती है।
"भगवान मेरा कोई नहीं पर तू है, तू था और तू रहेगा। मेरे जीवन में बलदेव एक नई ख़ुशी ले कर आया है। भगवान हमारे प्यार को किसी की नज़र ना लगे।"
अपने आखे खोलती है तो सामने कमला खड़ी मुस्कुरा रही थी।
देवरानी पूजा की थाली ले कर कमला की तरफ से दिया और निकलते धुवे को कमला की तरफ हाथ करती है और उसे अपने हाथ से प्रसाद देती है।
"धन्यवाद महारानी।"
"कमला ये लो थाली और सबको प्रसाद बांट दो!"
"महारानी मुझे थाली प्रसाद दो, बाँट ही दूँगी पर उसके पहले!"
कमला थाली ले कर पास में वही रख देती है और देवरानी का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा कर
"महारानी आप को कुछ ऐसा धुलवाना था जो आप सब से छुपा कर पहनती हो तो मैं यही धो देती।"
"कमला मैं समझ रही हूँ तुम क्या कह रही हो। मैं नींद में थी दिमाग से वह उतर गया था। मुझे चिंता लग रही थी की ..."
"लग नहीं महारानी गड़बड़ हो गई है।"
"कैसे? कामला क्या हुआ है? बताओ!"
"महारानी वह आपकी धोती पर लगे आप के प्रेमी के पानी का दाग सृष्टि ने देख लिया है।"
"उफ़ अब क्या करूँ मैं?"
देवरानी परेशान हो कर बोली।
"हाँ वह तो शातिर है, उसे मैं आसानी से बेवकूफ भी नहीं बना सकती थी। मुझे लगता है कि वह समझ गई कि किसी पुरुष का वीर्य है।"
"हे भगवान कमला! कही वह ये बात महाराज को ना बता दे?"
"हाँ वह रात की बात भी समझ चुकी होगी। डरो मत महारानी आज नहीं तो कल पता तो चलना ही है।"
"हम्म वह तो है, मैं नहीं डरती किसी से! ज्यादा से ज्यादा मेरी जान ले लेंगे!"
"अरे छोड़ो उसे! अभी शक वह पैदा हुआ है ना । उसके पास क्या सबूत है?"
"कमला तुम तो बस चुप रहो, सब तुम्हारे कारण से हो रहा है। कल रात में घोड़े बेच कर सो गई थी । महाराज के आने का इशारा कर देती तो मैं बलदेव को ऐसे बाहर ना भेजती।"
"मेरा बलदेव बाल-बाल बच गया। नहीं तो पकड़ा जाता!"
"महारानी तुम ना भेजती बलदेव को बाहर, पर महाराज को अगर चलने की आवाज आ चुकी थी और वह कहीं आपका कक्ष खुलवा कर देखते और म दोनों को रंगे हाथ पकड़ लेते तो?"
"हम्म वह भी है कमला!"
"इसलिये कहती हूँ महारानी जो होता है अच्छे के लिए होता है मौज करो, डरो नहीं! मरना तो एक दिन है ही।"
"कमला तू इतना ज्ञान कहाँ से लाती है?"
"जैसा तुमने बलदेव का वीर्य अपने कपड़े पर लगा लिया वैसे ही मेरे पास ज्ञान आ गया।"
"चल हट कामिनी कहीं की। वह तो बस!"
"क्या बस महरानी!"
"महारानी तुम तो कहती हो कुछ नहीं हुआ पर तुम्हारे रोम-रोम में भी दर्द हो रहा था!"
"अरे कामिनी बस हम कोई जल्दीबाजी नहीं करना चाहते पर वह बलदेव ने जोश में आ कर पीछे से रगड़ के पानी छोड़ दिया!"
देवरानी शर्मा कर अपना मुंह फेर लेती है।
"महारानी है वह तुम्हारा पिछवाड़ा है ही ऐसा अच्छा! क्या खूब मसला बलदेव ने और महारानी इतना गाढ़ा वीर्य मैंने तो कभी नहीं देखा!"
"हम्म पता है कमला!"
(मन में: कमला अब तुम्हें क्या बताऊँ की मैंने मेरे प्यारे प्रेमी के वीर्य के अनमोल दानो को, मेरे बेटे के बीज को चखा भी है और जिसका स्वाद अब तक मेरे मुंह में है।
"क्या सोच रही हो महारानी बलदेव का ऐसा गाड़ा अमोघ वीर्य है कि किसी भी महिला को एक बच्चे नहीं दो बच्चे की माँ बना दे!"
"चुप कर कामिनी कमला! और जा प्रसाद बांट दे सबको!"
कमला: महारानी ध्यान से करना कहि बलदेव आपको ही जुड़वा बच्चे की माँ ना बना दे!
ये कह कर कमला प्रसाद की थाली ले कर जल्दबाजी में भागती है और हसती है।
देवरानी: कमला की बच्चीऔर उसके ऊपर हाथ उठाये उसके पीछे भागती है।
कमला तेजी से भाग जाती है और देवरानी ज़ोर से हस देती है और आखे बंद कर के...
"हे भगवान ये कमला भी ना।" और बलदेव द्वारा उसे गर्भआती कर देने वाली बात सोच कर उसका रोम-रोम सिहर जाता है फिर कुछ सोच कर।
"प्यार मेरा है, प्रेमी मेरा है, वह एक बच्चे से मुझे गर्भवती करे या जुड़वाँ से इससे इस कमला को क्या काम?"
उधर बलदेव भी अब उठ चुका था फिर व्यायाम कर के स्नान कर तैयार हो गया है और वैद द्वारा दिया चूरन खा लेता है उतने में कमला वहाँ आती है।
कमला: ये लो युवराज प्रसाद!
युवराज बलदेव कमला से प्रसाद ले कर श्रद्धा के साथ प्रसाद खा लेता है।
कमला: कब तक चूरन खाओगे प्रसाद खाओ।
बलदेव: कमला वह तो मैं बच गया रात में नहीं तो तुम तो मुझे मरवा ही देती।
कमला: अपनी माँ को ले कर सोना भी है और मजे भी करने है या डरते भी हो!
बलदेव: डरते तो हम अपने बाप से भी नहीं हैं!
कमला: हाँ जानती हूँ इसलिए तुमने अपनी ही माँ को पटा लिया है और आधी रात माँ के साथ मजे ले कर उसके वह कक्ष में उसीके बिस्तर पर ही सो जाते हो।
बलदेव: हाँ कमला हमें कुछ न कुछ सोचना पड़ेगा! क्यू के हम और ज्यादा दिन तक ये छुपनछुपायी का खेल इस तरह से नहीं खेल सकते!
कमला: तो आपका युवराज से महाराज बन ने का इरादा है?
बलदेव: अब तुम्हारी महारानी मेरी हुई तो महाराज तो हो गया मैं।
कमला: पर आधे हुए ही अभी क्यूकी अभी ब्याह तो किया नहीं है।
बलदेव: विवाह हाहा! उसका पता नहीं पर मेरे प्रेम में दीवानी है तुम्हारी महारानी!
कमला: चलो अब प्रसाद खा लिया और अब मैं अपना काम करने जा रही हूँ और कक्ष से बाहर जाने लगती है।
बलदेव: अरे सुनो तो ये तो बताती जाओ मेरी रानी कहा है अभी?
कमला: तैयार हो कर बैठी है तुम्हारे लिए अपनी कक्षा में और जल्दबाजी में बाहर चली जाती है।
बलदेव (मन में अब मुझे अपना असली प्रसाद खाना चाहिए जो भगवान ने सिर्फ मेरे लिए बनाया है)
बलदेव: अरे कमला सुनो तो ये तो बताती जाओ मेरी रानी कहा है अभी?
कमला: तैयार हो कर बैठी है तुम्हारे लिए अपनी कक्षा में और जल्दबाजी में बाहर चली जाती है।
बलदेव (मन में अब मुझे अपना असली प्रसाद खाना चाहिए जो भगवान ने सिर्फ मेरे लिए बनाया है।)
बलदेव अपनी माँ से मिलने के लिए चल पड़ता है और उसकी कक्षा में जा कर देखता है, परंतु उसे देवरानी कही दिखाई नहीं देती। तो पुकारता है ।
"माँ कहा हो?"
अब तक देवरानी तय्यर होकर रसोई घर में आ जाती है और नाश्ता तैयार करने लगी थी।
जैसे ही उसके कानो में बलदे की आवाज़ पड़ती है । (मन में एक पल भी चैन नहीं मेरे पिया को)
"बेटा मैं रसोई में हूँ।"
और अपने काम में लग जाती है।
बलदेव भागता हुआ रसोई की तरफ आता है।
देवरानी खड़ी हुई काम कर रही थी और उसके हर बार हिलने से सुर में उसकी बड़ी गांड भी हिल रही थी। सुर में अपनी माँ की गांड को हिलते हुए देख।
"हाय माँ कब दोगी मुझे । इन्हें मारने के लिए कब से तरस रहा हूँ और तुमने अब तक मुझे मसलने भी नहीं दीया ।"
देवरानी आहट सुन कर
"आजाओ बलदेव! वहा क्यू खड़े हो?"
मन में: मेरी गांड को ही घुरता रहेगा हाँ...
"मां आज बहुत महक रही हो आप, क्या बात है।"
"सच में बलदेव"
"हाँ माँ कौन से साबुन से नहाई हो और कौन-सा इत्र लगाया है?"
और बलदेव देवरानी के करीब जाता है।
"ये तुम्हारे प्यार की ख़ुशबू है। बलदेव! तुमने ही तो मेरा अंग-अंग महकाया है।"
बलदेव देवरानी से चिपक जाता है।
"झूठी कहीं कि तुम्हारा बदन तो पहले से चंदन-सा महक रहा था।"
image upload बलदेव देवरानी के कमर को पकड़ कर घुमाता हुआ अपने से पकड़ लेता है। तो उसके पल्लू नीचे गिर जाते है। जिस से बड़े वक्ष सामने दिखाई देने लगते है। बलदेव अचानक उसपर अपने होठ रख कर चूम लेता है और देवरानी के कमर को मसलते हुए उसकी बड़ी गांड को अपने से चिपका लेता है।
"हम्म देवरानी! क्यू तड़पती हो?"
"आह राजा! जरा आराम से मेरे राजा1 सुबह-सुबह वह शुरू हो गए."
देवरानी अपने दूध पर बलदेव के होठ लगते ही सिहर जाती है।
"मेरी मर्जी! मैं कभी भी अपनी रानी को प्यार करू!"
"पर अभी सुबह का समय है। घर पर सब है।"
"रात में तो खूब रंग जमाया था तुमने और अभी डर रही हो!"
देवरानी अपना पल्लू उठा। कर फिर से अपने बड़े वक्ष को ढक लेती है।
"हा हा देखो कैसे छुपा रही हो" ये तुम्हारे छुपने से छुपने वाले नहीं महारानी जी! "
देवरानी लज्जा जाती है।
"अहा देखो कैसी शर्मा रही है। मेरी रानी"
"बलदेव..."
"हाँ माँ"
"कभी कभी मजाक से हट कर कुछ कर लिया करो"
"कहो ना माँ क्यू परेशान हो रही हो? आज लगता है, कुछ सोच रही हो क्या चिंता है?"
देवरानी अपना मुँह गिरा के
"बलदेव रात में तुम फसते-फसते बचे और आज सुबह मैं फंस गई"
"वो कैसे"
"बेटा वह कल तुमने अपना पानी छोड़ कर धोती ख़राब कर दी थी जिसे कमला धोने ले गई और तुम्हारी सृष्टि माँ ने देख लिया।"
"मां तो वह क्या समझ जाएगी वह इस बात से?"
"बेटा तुम नहीं समझते वह कितनी शातिर है। वह समझ गई होगी कि वीर्य पुरुष का है और वह मेरे पर नज़र रखने लगेगी।"
"मां तो तुमने वह वस्त्र कमला को क्यू बाहर ले जाने दिया?"
"बेटा मैं क्या करती तुम्हारी रात भर मस्ती की सुबह अंग-अंग टूट रहा था।"
"बस बस हमारा वह कुछ नहीं कर सकती । आप निश्चिंत रहे और ये सृष्टि को आपके ऊपर किये गए सब अत्याचारो का उत्तर देना होगा"
देवरानी अब जा कर थोड़ी चिंता से बाहर आती है।
बलदेव माहौल बदलने के लिए
"वैसे माँ कल तुमने बड़ा जल्दी वस्त्र बदल कर आगयी थी।"
देवरानी मुस्कुराती है।
"वैसे सती सावित्री अवतार में भी तुम कम कामुक नहीं लगती हो मेरी परी!"
"चुप कर बदमाश, सब हम पर शक कर रहे हैं और तू मुझे रसोई के बाहर खड़ा निहार रहा था। कोई देख लेता तो।"
बलदेव देवरानी केपैरो के नीचे बैठते हुए बलदेव बोला ...
"देवरानी ये तुम्हारे पहाड़ जैसे चूतड़ों ने मेरे नींद छै।न उड़ा दी है।"
"छी! गन्दे कहीं के."
"मां मैं इन्हे दबोच कर खूब मसलना चाहता हूँ पर मेरी रानी पर तुम नहीं आगे बढ़ने देती मुझे।"
और बलदेव बच्चे-सा मुँह बना लेता है।
बलदेव झुका कर देवरानी की गांड के पास अपना मुंह ले जा कर उसे सुंघ कर आँख बंद कर लिया था।
"ओह मेरा राजा रात में तो तुमने उसपे अपना वह रगड़ कर उसपे पानी भी गिरा तो दिया था।"
"माँ आज मुझे पहाड़ों को खोद देना है।"
"राजा तुम इस पहाड़ के मालिक हो तो अनुमति कैसी!"
बलदेव नीचे से अपने बड़े हाथो को माँ के दोनों चूतड़ों के करीब लाता है। मस्ती में और देवरानी अपना चूतड हल्का घुमाती है।
"माँ, इस पहाड़ की गुफा में घूमना चाहता हूँ।"
"ये गुफा बहुत छोटी है। बेटा कैसे घुमोगे"
"मां अपने घोड़े को घुमाऊंगा"
"पर अंदर अँधेरा है। घोड़ा डर नहीं जाएगा गहरी गुफा देख के"
"मेरा घोड़ा इसकी गहरी गुफा की जद तक नाप देगा माँ"
बलदेव अपना हाथ उसको चूत पर रख सहला देता है।
"आआआह बेटा उहह आआआआह बलदेव!"
"उफ़ माँ कितने मुलायम चुतर हैं। कितने मखमली हैं। ये दूध से भी चिकने और गद्देदार है ।"
और बलदेव उसके कमर पर चुम्बन दे देता है।
"आआआह बलदेव जान लोगे मेरी"
बलदेव अब हल्का-सा हाथ फेरते हुए दोनों हाथो से उसके चूतर को सहला रहा था।
"आह माँ इन चूतर ने मेरे दिल के कई टुकड़े किये हैं। इनसे तो मैं बदला लूँगा"
"आह बलदेव जान वह ले लोगे क्या इनकी।"
"मां इस चुतडी ने कई बार मेरी सांसे रोक दी है।"
देवरानी अपनी चूत को सहलाने भर से उत्साहित हो जाती है और बलदेव को पास वह बिस्तर पर गिरा देती है।
"आआह बलदेव इतना पसंद है। मेरे ये तुमको"
"हाँ माँ बहुत पसंद है उम्म क्या मुलायम है।"
"आह बलदेव"
"माँ तुम पहाड़ों को ले कर चल कैसे पाती हो? भारी नहीं लगता?"
"उफ़ हट बदमाश!"
देवरानी शर्मा जाती है और खड़ी हो जाती है।
"अरी मेरी रानी बुरा मान गई"
"मां दुनिया में तुम्हारे जैसे चूतड़ किसी के पास नहीं है ।"
"चल झूठा।"
"मां तुम्हें प्रेमी बना के मैं धनी हो गया।"
देवरानी समझ जाती है। बलदेव ने आज मस्ती का मन बाना लिया है।
"वो तो हू मैं पारस की सब से सुंदर लड़की थी मैं किसी जमाने में।"
"मां, आप अब भी सबसे सुंदर हो जब तुम चलती हो तो ये दोनों नितम्ब इस तरह से सुर में ऊपर नीचे होते हैं, जैसे झगड़ा कर रहे हो आपस में।"
"हाँ इसलिए तू इन्हें घूरता रहता है।"
बलदेव उठ कर खड़ा होता है।
"मां एक बार चल के दिखाओ ना।"
"क्यू बाबा अब तुम्हें मैं चल के क्यू दिखाउ? तुम्हारी पत्नी नहीं हूँ मैं।"
"मां एक बार चलो ना दो कदम मुझे इस बड़े मनमोह लेने वाले चूतडो की थिरकन देखनी है।"
देवरानी ये बात सुन कर शर्म और उत्तेज़ना से भर कर एक बार बलदेव की आँखों में देख के सोचती है। "ये तो अपने बाप से 10 कदम आगे है। अभी से इसकी अपेक्षा इतनी है । आगे ये क्या करेगा जब अभी ये मुझे आज दिन दिहाड़े पेलने पर तुला है।"
"माँ एक बार हिलाओ ना इन्हे"
"ठीक है। तो देखो अब तुम इनका कमाल है"
देवरानी अपना पल्लू सीधा कर अपनी गांड को बड़े अंदाज़ से गोल-गोल घुमाने लगती है और उसकी थिरकन बलदेव देखते रह जाता है।
"माँ मैं तो भूल गया था के तुम नृत्य कला में माहिर हो और तुम्हारे ये चूतड आह"
बलदेव झट से देवरानी को अपने बाहो में भर लेता है और उसके होठों को चूमने लगता है। फिर उसके कमर में हाथ लगा कर नाभि को भी चूमने लगता है।
"आआह बलदेव उहह आआआह!"
"उमाआ गैलप्पप्प गैलप्प! माँ मेरी जान!"
बलदेव देवरानी को अब अपनी बाहों में समेट लेता है। "माँ तुम्हारे ये चूतड को खूब मसलूगा ।"
"मसल दो बेटा ये चुतड कई सालो से बहुत तड़पी है, एक मजबूत हाथ के लिए. इसपे तुम्हारा ही हक है।"
"उफ़ माँ तुम्हारी गांड" एक ज़ोर का चपत देवरानी की एक गांड पर मारता है।
देवरानी का दोनों नितम्ब पट हिल जाते है।
"हे भगवान! ... उह बेटा आराम से!"
बलदेव अब अपना लंड जो खड़ा हो चुका था उसे देवरानी की चूत पर रगड़ता है।
"बलदेव तुम कितने गंदे हो गए हो तुमने अभी मेरे चूतड को क्या कहा"
"मां मैंने इन्हें गांड कहा तुम्हारे नितमब को"
"ये भाषा कोई भला कोई अपनी माँ के साथ प्रयोग करता है।" उह आआआह!
"हाँ ये तो नितम्ब नहीं ये गांड ही है और ज़ोरो से दोनों हाथो को ले जा कर देवरानी के उन्नत नितम्बो को मसलने लगता है।"
"आआआह मा कितने बड़े हैं। ये उफ्फ!"
"आआह बलदेव नहीं ना बलदेव! नहीं! निशान पड़ जाएगा । उफ़ नहीं! बलदेव आआआहह मेरे राजा!"
"ओह माँ निशान क्या! मैं तरबूज़ को तोड़ दूँगा।"
"बड़ा आया तोड़ने वाला उहह आआहह बलदेव! बलललदेवववव! ..."
देवरानी अब अपनी चूत बलदेव के लंड पर सहलाने लगती है और उसके सर को पकड़ कर बलदेव के बाल खिंचती है।
"उहह आआआह बलदेव! बस आआहह"
"इतनी जल्दी थी क गई मेरी रानी । क्या हुआ बड़ी महारानी बनती थी कहाँ गई?"
उम्म और खूब मसलने लगता है बलदेव।
"बेटा ऐसे तो कभी तेरे बाप ने नहीं मसला । उह्ह्ह आआह माँ उह्ह्ह आआह जैसा तूने मसला वैसा कभी नहीं मसला । हाआ मजा आआआआह रहा है।"
"पिता जी को इसका मुल्य का अंदाज़ा नहीं है। । उन्हें नहीं पता ये बहुमूल्ल्य है । बेशकीमती हैं पर ऐसे नितंब। तुम जैसी माल उन्हें दिया ले कर ढूँढने से नहीं मिलेगी।"
"उह माँ क्या गदर गांड है। आपकी!"
"आआह खा जाओ फिर इन्हें अगर ये तुम्हे इतना पसंद है। तो उहभ! हे भगवान! मैं मर गई. आआह! मेरे राजा ओह!"
"बलदेव: ओह्ह्ह! मेरी राणी तेरे गांड के दरार में अपना झंडा गाड़ दूंगा।"
देवरानी शर्मा कर अपना मुंह छुपा लेती है।
(मन में: मेरे राजा तुमने मेरे दिल में अपना झंडा गाड़ दिया है। अब तुम कहीं भी झंडा गाड़ दो मैं मना नहीं करूंगी।)
"बेटा मैं भी तुमसे अपने आप से ज़्यादा प्यार करती हूँ कभी धोखा मत देना।"
बलदेव देवरानी को जरूर चाहिए.
"कभी नहीं दूंगा । माँ तुम ही मेरी महारानी बनोगी।"
और एक हाथ से उसके पूरे चूतड़ों को पकड़ कर मसलते रहता है। उफ़ माँ क्या माल हो तुम!
देवरानी मन में: कमला सही कहती थी कि मेरे इतने बड़े नितम्ब किसी के हाथ में आएंगे तो वह बलदेव का ही हाथ है। "
"आआह मेरे राजा!"
देवरानी की गांड को दबा-दबा के भुर्जी कर देता है। बलदेव और उसे एक दर्द के साथ अलग ही, सुख की प्राप्ति होती है।
"बलदेव बसकरो! मेरे राजा अब और नहीं।"
बलदेव अपना मुँह गिरा लेता है।
"माँ तुम!"
"लो अब मुझसे गिरा लिया अभी ज्यादा थक गई तो दिन भर काम नहीं कर पाऊंगी"
बलदेव उसके चुतड छोड़ देता है।
"मां तुम्हें मेरा कल तुम्हारा वस्त्र खराब नहीं करना चाहिए था।"
"अरे बेटा ऐसा क्यू सोचते हो तुम।"
"वो मेरे वजह से...और तुम्हें अच्छा भी नहीं लगा ।"
"पागल मेरे राजा मुझे बहुत सुख मिला कल और तुम्हारे हर एक अंग से मुझे प्यार है। अगर मुझे बुरा लगता तो क्या मैं तुम्हारा वीर्य चाटती"
और शर्मा अपना सर नीचे कर लेती है। अपनी पैरो से ज़मीन खोदने लगती है।
"मां मेरे लिए तुम इतना करती हो बोलो तुम्हें मुझसे क्या चाहिए?"
"बेटा बस एक स्त्री को प्यार के अलावा कुछ नहीं चाहिए । तुम एक सच्चे प्रेमी की तरह रहना और ये भगवान के सामने प्रतिज्ञा लो के तुम मेरा हमेशा साथ दोगे। मेरे साथ कभी छल नहीं करोगे।"
बलदेव माँ की बात सुन कर "माँ मैं बलदेव यानी के घटराष्ट्र का महाराज अपनी रानी देवरानी के सामने भगवान को साक्षी मान कर ये प्रतिज्ञा लेता हूँ के तुम्हारा साथ जीवन भर दूंगा। कभी धोखा नहीं दूंगा!"
बलदेव और देवरानी दोनों हाथ जोड़ कर देवरानी की कक्षा में बने मंदिर के सामने अपना माथाटेकते हैं । थोड़ा उदास हुई देवरानी के पीछे लग कर बलदेव बोलता है।
"नहीं तो क्या करती । मैं कोई खेलने की चीज़ नहीं हूँ जो आज मेरे शरीर से खेल लो और कल किसी और के साथ रंगरसिया मनाओ. सब राजाओ का यही काम है।"
"पर माँ मैंने तुम्हारे सिवा ना देखा, किसी को ना देखूंगा और अच्छा हुआ मैंने ये प्रतिज्ञाकर ली । कल अगर मेरा दिल बेईमान होने लगा तो भी चाह कर ये पाप नहीं कर पायेगा।"
"जिस दिन तुम्हारा दिल बेईमान हुआ ना बलदेव उस दिन उसको चीर कर के निकल दूंगी।"
"अरी मेरी शेरनी तो क्रोधित हो गई!"
"बलदेव! मैंने अपना सब कुछ छोड़ कर सब कुछ तुम पर लगा दिया है। तुम्हारे लिए कर्म, धर्म, नियम को भूल अपने पति सहित पूरी दुनिया से लड़ने के लिए तैयार हूँ। अब अगर तुम कुछ गलत करोगे तो मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती अब मुझसे सिर्फ तुम्हारा साथ चाहिए"
"इतना प्यार करती हो देवरानी।"
"हद्द से ज्यादा!"
"मां मैं अपनी प्रतिज्ञा तोड़ने से पहले अपनी जान देना पसंद करूंगा"
देवरानी ये सुन कर बलदेव के होठों पर अपने हाथ रख देती है।
"दोबारा ऐसा नहीं कहना। मेरे राजा तुम्हें कुछ हो जाएगा तो मैं एक पल भी नहीं जी पाऊंगी।"
सुबह सुबह दुनिया से बेखबर दोनों माँ बेटे एक दूसरे के बाहो में खोये थे।
बलदेव देवरानी को गर्म करने लगा, देवरानी ने भी कोई विरोध नहीं किया, बलदेव ने देवरानी को अपनी बाँहों में कस लिया और उसके शरीर पर धीरे-धीरे हाथ चला कर पीछे से उसके शरीर के उभारों का अंदाज़ा लेने लगा, बलदेव बहुत हलके हाथो से उसको शरीर को कपड़ो के ऊपर से सहला रहा था, कभी-कभी हाथ उसके शरीर पर फेरते वक़्त मेरा हाथ ऊपर की चोली और नीची की साडी के बीच उसके नंगे शरीर को छू जाता तो उसका शरीर हलके से कांप उड़ता ।
बलदेव कुछ देर तक ऐसे ही करता रहा और फिर जब देवरानी हल्का-सा कसमसाई तो अपने होंठ उसके माथे पर रख दिये, होंठ उसके माथे पर रखते ही देवरानी का शरीर शांत-सा हो गया मानो वह भी ऐसा ही चाह रही हो, अपना होंठ उसके माथे पर रखे बलदेव अपने हाथ से उसके शरीर के हर एक अंग को महसूस करने की कोशिश कर रहा था और इधर देवरानी की साँसे भरी होने लगे थी ।
अब उसका भी आलिंगन बलदेव के शरीर पर हो चला था और उसकी छातियों के उभार बलदेब की छाती से चिपक चुकी थी, अब बलदेव का हाथ जो अब तक देवरानी की पीठ और कमर पर घूम रहा था उसको बलदेव देवरानी के कोमल उठी हुई चूतड़ों के ले जाकर नितम्बो पर ऊपर फिरना शुरू कर दिया था, जैसे-जैसे बलदेव का हाथ देवरानी के चूतड़ों पर घूम रहा था वैसे-वैसे देवरानी अपनी चूचियों को बलदेव की छाती में दबा रही थी।
"मां तुम्हें डरने या घबराने की चिंता नहीं है मैं तुम्हारे साथ कभी धोखा नहीं करूंगा।"
"मुझे तुम्हारे प्रेम पर पूर्ण विश्वास है मेरे भरोसे को कभी मत टूटने देना बलदेव।" देवरानी अपने तपते हुए ओंठ बलदेव के ओंठो पर लगाती है या बलदेव अपनी माँ रानी के होठों को अपने दोनों होठों के बीच ले लेता है "आह माँ!"
दोनों एक लम्बी चुम्बन करते रहते हैं जब तक उन दोनों के साँसें पूरी तरह से फूल नहीं जाती ।
"मां क्या हुआ सांसे फुल गई?"
देवरानी (मन में: तुझे मौका दे दीया तो तू तो मेरा पेट भी फुला देगा सांस क्या चीज है ।)
"हाँ मेरे राजा तू ऐसा चाहता है अपनी माँ के होठ लगाता है तो लगता है तू मेरे होठों को जड़ से काट लेगा ।"
देवरानी थोड़ा नखरा करते हुए दूर जाती है।
"माँ कहा जा रही हो?"
देवरानी अपने पल्लू संभालते हुए।
"यही हूँ मेरे लाल।"
"मां तुमने अपने खरबूजे जैसी नितमब का हक तो मुझे दे दिया पर मेरी पसंदीदा पपीतो का नजारा अभी तक नहीं करवाया है ।"
"चल हट बड़ा आया मैं तेरी पत्नी नहीं जो मुझसे रोज़-रोज़ नई मांग करता है।"
"नहीं हो तो बन जाओ ना माँ किसने रोका है।"
देवरानी शर्म से पानी-पानी हो जाती है।
"तुझे भगवान का कोई डर नहीं है । ये मंदिर है सामने भगवान तुझे देख रहे हैं ।"
"अरे भगवान कहाँ नहीं है और भगवान इस बात का साक्षी है कि मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूँ और तुम्हें तुम्हारी अंधियारे जीवन से निकाल कर तुम्हे कितना खुश कर रहा हूँ।"
"पर मेरे राजा बेटा भगवान ने तो कहा ये पाप है कोई बेटा अपने माँ से विवाह..." और शर्म से लाल हो जाती है ।
"मां अगर माँ को खुश रखना जो सालो साल अय्याश राजा की नाम की पत्नी रह कर अपनी आत्मा को दुख देती रही, अगर ऐसी स्त्री को खुश करना पाप है तो मुझे ये पाप अभी करना है।"
"तुम्हारे हाथ कितने मर्दाना है ऐसी मज़बूती तुम्हारे पिता में भी नहीं थी।"
"हम्म मेरी रानी!"
"बलदेव क्या तुम सब स्त्रीयो के शरीर पर नज़र रखते हो जो तुम कह रहे हो तुम्हे इतने बड़े वक्ष और नितम्ब नहीं देखे?"
"नहीं माँ तुम्हारे सिवा किसी को देखने का दिल नहीं करता।"
"तो फ़िर कैसे कहा तुमने के मेरे सबसे बड़े है ।"
"आआह हे भगवान धीरे!"
"अरे मेरी माँ मैं किसी को घूरता नहीं हूँ, वैसी नजर से जैसी नजर से तुमको देखता हूँ। पर सामने अगर स्त्री रहेगी तो दिख जाता है ।"
"अगर तुमने किसी को घूरा भी तो जान ले लुंगी।"
"घूरना क्या मेरी रानी कह दे मुझे, तो मैं आखो पर पट्टी बाँध लू और किसी भी स्त्री से बात नहीं करूं ।"
इस बात पर देवरानी खिलखिलाती है और बलदेव देवरानी को बाहो में भरे पास में बिस्तर पर ले कर बैठ जाता है उसकी गर्दन पर चूमते हुए अपने गोद में उसे लिए बैठा बलदेव, देवरानी की गहरी घाटी का नजारा कर रहा था।
"मां मुझे गहरी घाटी में भी अपना घोड़ा दौड़ाना है।"
"आआह उह बेटा दौड़ा लेना" और बलदेव को सहलाने लगती है ।
"बलदेव तुम्हारे जैसा बलिष्ठ शरीर का पुरुष मैंने भी कहीं नहीं देखा।"
बलदेव देवरानी की पीठ को एक हाथ से दूसरे हाथ से उसके कमर के मांस को दबाते हुए मजे से मसल रहा था।
"महारानी" हे महारानी! "
ये कमला की आवाज थी वह देवरानी के कक्ष में प्रवेश कर चुकी थी और देखती है कि बलदेव ने देवरानी के कमर को खूब जोर से पकड़ा हुआ है।
कमला: (मन में-देखो कैसे अपना कमर या पीठ को मसलव रही है जैसा उसकी धर्म पत्नी हो और वह भी दरवाजा खोल कर । कमला महारानी के कक्ष के दरवाजे के पास वह खड़ी हो जाती है और अंदर का नजारा देख कर दंग थी ।
कमला: महारानी!
देवरानी के कान में अब कमला की आवह सुनाई पड़ती है।
"बलदेव ये कमला मुझे बुला रही है क्या?"
"माँ! उह्म्म ऐसे ही रहो ।"
"मेरे राजा तुमने दरवाज़ा लगाया था ।"
"नहीं माँ" और अचानक से उसको ध्यान आता है ।
बलदेव झट आँखे खोल कर द्वार की तरफ देखता है और आख खुलते हे सामने दरवाज़े पर कमला खड़ी नज़र आती है। वह तुरंत समझ जाता है कि कमला ने उसे देवरानी की पीठ और कमर को मसलते देख लीया है ।
कमला अपने होठों पर एक कामुक मुस्कान के साथ खड़ी थी।
"माँ मैं पेशाब कर के आता हूँ" और स्नान घर में घुस जाता है ।
कमला मुस्कुराती हुई आती है और देवरानी के पास आकर "क्या नई नवेली दुल्हन की तरह सुबह शाम नहीं देखती हो दरवाजा खोल चालू हो जाती हो।"
देवरानी बलदेव को जाते हुए अपनी वेश भूषा और साडी को-को अस्थ व्यस्त पाकर शर्मा जाति है और अपनी साड़ी को ठीक करते हुए सीधा बैठने लगती है और बोलती है "आओ ना कमला" !
कमला (मन में-कैसे मसल-मसल के क्या हालत कर दी है बलदेव ने महारानी की..।.)
अपने अस्त व्यस्त कपड़ो को सम्भाल देवरानी बैठ जाती है और मुस्कुराती है ।
"नयी नवेली की बात नहीं, बस वह मैंने सोचा था कि बलदेव ने दरवाजा लगा दिया होगा और ख्याल ही नहीं रहा।"
"अक्सर ऐसा होता है इश्क़ में बेकार जाते हैं लोग।"
"मैं तो कहती हूँ महारानी खूब टूट कर प्यार करो और सच में तुम बहुत खिली-खिली लग रही हो।"
"धन्यवाद कमला मेरी बहन !"
"हाँ एक समय था जब तुम दुख और गम की सोच में मुरझाई रहती थी ।"
"हाँ कमला सब मेरे राजा बेटा बलदेव का अहसान है।"
"वो तो है मेरी महारानी जी।"
"वैसे तुम्हें ऐसी क्या आवश्यकता पड़ गई जो हमारे बीच में आ टपकी।"
" ओहो तो अब मैं दूल्हा दुल्हन के बीच में आ गई! वैसे में तो नहीं आती कोई और आता तो पता नहीं क्या होता। सोच लो! इसलिए मैंने सोचा और चली आयी । सोचा जांच लू के तुम लोग थोड़ा सचेत रह रहे हो या... ।
"या क्या कमला ?"
कमला एक हाथ में अपना पत्र लिये खड़ी थी ।
"ये पत्र मुझे पारस के दूत दिया है कहा है ये शमशेरा ने भेजा है।"
देवरानी शमशेरा समझ जाती है ये तो वही है जो जासूसी करने आया था और उसके भाई का संदेश भी दिया था।
देवरानी झट से वह पत्र खोल के पढ़ने लगती है।
प्रिया बहन देवरानी ।
मैं तुम्हारा अभागा भाई देवराज हूँ आशा करता हूँ के तुम कुशल मंगल हो मैं ये पत्र शमशेरा के दूत के माध्यम से भेज रहा हूँ, मुझे शमशेरा ने बताया के मेरी बहन देवरानी कितना अपना परिवार, अपने भाई से मिलने के लिए तड़प रही है और एक मैं हूँ जिसने भी वर्षो से अपनी बहन को देखा नहीं।
मुझे क्षमा कर दो देवरानी मेरी बहन तुम्हे तुम्हारे विवाह के बाद तुम्हारे मायके आने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ । हम युद्ध में व्यस्त थे और पिता जी भी अब नहीं रहे पर उनके बदले में हूँ तुम्हारा पिता और तुम्हारा भाई, दोनो।
कृपा कर के तुम हमारे यहाँ पारस आओ! हम तुम्हारी सेवा करना चाहते हैं और अपने पति यानी मेरे जीजा जी राजपाल को प्रणाम कहना । यदि संभव हो तो उन्हें भी साथ ले कर आना, मैं अपनी बहन और जीजा से मिल्ने के लिए व्याकुल हूँ।
"बलदेव ! जाने दो ना क्यू गुस्सा होते हो कमला पर । इसके मुँह में जो आता है बक देती है।"
"हम्म माँ! "
"बेटा मैं बहुत खुश हूं जिसका 18 वर्ष से प्रतीक्षा की वो घड़ी आ गई है मुझे मेरा राज्य जो मेरा जन्म स्थान है वहां जाने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला है। "
"मां आप को इतना खुश देख कर मुझे भी बहुत खुशी हो रही है। लगता है भगवान ने आपकी प्रार्थना सुन ली है।"
कमला: भगवान तो अब महारानी के ही सुनते हैं। जो मांग रही हैं वो सब मिल रहा है आज कल।
"महारानी आपके लिए मैं भी खुश हूं आप अपने देश जाओ और खूब घूम आओ। "
"मां और क्या लिखा है मामा देवराज ने पत्र में। "
"उन्हें कहा है कि जीजा जी को प्रणाम कह दू और उनको भी साथ लें आओ !"
देवरानी ये कह कर थोड़ा मायुस हो जाती है।
कमला:अरे ! अब काहे मायुस हो रही हो महरानी?
देवरानी: कमला वो।
कमला: अरे समधी है देवराज मामा का प्रणाम बलदेव को कह दो ! क्यू के असल जीजा जी तो देवराज जी के यही है । राजपाल तो नाम के ही है।
बलदेव झट से कमला को पकड़ने के लिए झपटता है।गुस्से में कहता है।
"कमला तुम्हारा प्राण ले लेंगे हम! "
कमला अपना जान बचाए जल्दबाजी में भाग जाती है।
दोनों को ऐसे चूहा बिली की तरह लड़ते देख देवरानी मुस्कुरा रही थी और सोचती है।
"कमला ने सही तो कहा है देवराज का जीजा तो बलदेव ने कहा है राजपाल तो नाम का ही है।"
और खुद अपनी सोच पर झेप जाती है।
"बलदेव तुम कहा जा रहे हो। कमला के पीछे! छोड़ो उसको! वो मुंहफट है और उसकी ज़बान ख़राब है। "
बलदेव अपनी माँ की बात सुन कर रुक जाता है।
"मां मैं उसे छोड़ूंगा नहीं। "
"बलदेव बेटा ये बात याद रखना आज हमारे मिलन या प्रेम का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो कामला ही है। "
"हां मां इस बात को भली चंगी तरह से जानता हूं इसलिए तो कमला को हमेशा माफ़ कर देता हूं।"
"हां कमला बहुत अच्छे दिल की है। बेटा! "
"वो सब छोड़ो ! आप बताओ आगे क्या करना है? पारस कब जाना है? "
"बेटा अभी भी शत्रु के आक्रमण का डर है और तुम्हारे मामा देवराज ने तुम्हारे पिता राजपाल को भी निमंत्रण भेजा है।"
"तो क्या करना है माँ? हम चलते हैं पिता जी से बात कर के!"
"बेटा ये इतना आसान नहीं है, ऐसे समय में अपने राष्ट्र को छोड़ना सही नहीं होता है, पर फिर भी हम राजपाल से पूछेंगे कि क्या किया जा सकता है? "
दोनों पत्र को ले कर राजपाल के कक्ष की ओर जाते हैं जहां राजपाल बैठा है अपने सेनापति से बात कर रहा है।
बलदेव:पिता जी!
राजपाल: आओ पुत्र कहो क्या बात है?
बलदेव: क्या आप व्यस्त हैं? वो माता देवरानी बाहर खड़ी हैं आपसे कुछ बात करना चाहती हैं।
राजपाल: सेनापति तुम जाओ ! और मैंने जैसा कहा है सैनिकों द्वारा वैसे दो नियमो का पालन हो!
सेनापति: जो आज्ञा महाराज!
सेनापति अपना हाथ जोड़ कर झुक कर आज्ञा ले कर कक्ष के बाहर दरवाजे के पीछे खड़ी देवरानी को देखते हुए बाहर चला जाता है।
सेनापति: (बूढ़ी हो गई है पर आज भी मुंह छुपाती है देवरानी "अपने मन में फुसफुसाता है। )
ये बात बलदेव अपने तेज कान से सुन लेता है।
बलदेव अपने पिता के सामने खड़े हो कर पुकारता है ।
"मां आजाओ अंदर सेनापति चला गया! "
देवरानी दरवाजे की आड़ से बाहर आती है और जो परदा उसने सेनापति को देख कर लीया था उसे उठा लेती है।
देवरानी एक अंदाज़ से मुस्कुराती हुई अंदर प्रवेश करती है ।
बलदेव;( मन में- गधे सेनापति अच्छा हुआ तूने परदा के उठने के बाद का दृश्य नहीं देखा । नहीं तो देवरानी की जवानी की गर्मी से जल कर राख हो जाता ! मेरी मां तो अब जा कर जवान हुई है इसे मैं अभी और जवान करूंगा।
"महाराज देवराज भैया का पारस से पत्र आया है। "
राजपाल अपने आसन से उठ खड़ा होता है।
"अच्छा साले साहब ने क्या लिखा है पत्र में? "
देवरानी पत्र खोल कर -"आपको प्रणाम कहा है और मेरे साथ आपको पारस आने का निमंत्रण दिया है।"
"देवरानी तुम्हें तो पता है ना मैं पिछले 18 साल में पारस नहीं गया क्यू के हमारे शत्रु बहुत हैं।"
"महाराज पता है पर. आप ये पत्र पढ़ें"
राजपाल पत्र पढ़ कर-"हां इसमें तो उसने अनुरोध तो किया है मिलने के लिए पर ये पत्र शमशेरा के दूत से आया है। इसका तुम्हे कुछ मतलब समझ में आता हो देवरानी? "
"नहीं महाराज !"
"हम कह नहीं सकते पर सूत्रों से पता चला है के पारस पर अब शमशेरा के पिता सुल्तान मीर वाहिद का राज है और उनकी नज़र में कुबेरी का खजाना है। "
"महाराज इस से तो वो राजा रतन सिंह का दुश्मन हो जाएगा ।"
"देवरानी पूरी दुनिया राजा रतन और मेरी मित्रता से परिचित है। संभावना है कि कुबेरी को प्राप्त करने के लिए हमरे घटराष्ट्र पर भी आक्रमण किया जा सकता है।"
परन्तु महाराज मुझे वर्ष हो गए मेरे परिवार से मिले । "
"देवरानी वो बात है अपनी जगह पर सही है कि शमशेरा हम पर हमला करेगा या नहीं हमे नहीं पता , पर दिल्ली के बादशाह शाहजेब ने तो तयारी भी शुरू कर दी है घाटराष्ट्र और कुबेरी पर हमला करने के लिए और कुछ सैनिक इस ओर आ रहे हैं। "
"ऐसे समय में देवरानी हमारा जाना खतरे से खाली नहीं होगा हमारे राष्ट्र पर कभी भी कोई आक्रमण कर सकता है और अगर हम पश्चिम की ओर जाते हैं तो इस हमले की सम्भावना बढ़ जायेगी । "
ये सब बात सुन कर देवरानी का खुश चेहरा मुर्झा जाता है और अपने पास बलदेव और उसका साथ अपने पास महसुस कर उससे भी आज रहा नहीं जाता।
"महाराज आपने पिछले मुझे 18 वर्ष से हमले के डर के कारण ही मेरे परिवार से दूर रखा है और आज भी…"
गुस्से में ये शब्द देवरानी के मुँह से फूट पड़ते है।
राजपाल अपना दया हाथ देवरानी को मारने के लिए उठाता है।
राजपाल: देवरानी अपनी मर्यादा में रहो, हम से ऊंची स्वर में बात करने का परिणाम जानती हो !
"बलदेव पुत्र अपनी माँ से कहो हम से तर्क वितरक ना करे नहीं तो हम से बुरा कोई नहीं होगा!"
देवरानी के ऊपर जैसे वह राजपाल हाथ ऊँचा कर उसे डांटता है वो उसका दुख से गला भर जाता है और उसकी आंखों में आंसू गिर जाते हैं।
freaky dice game "महाराज आपने हाथ उठाया है तो मार लो मैं मना नहीं करूंगी!"
"मां होश में आओ हम इस पर कुछ सोचेंगे!"
"चुप कर तू मेरे पिता ने कभी मेरे ऊपर हाथ नहीं उठाया, ना कभी पहले गुस्सा हुए । कभी मैं रानी थी पारस की। पर यहाँ आ कर बस नौकरानी बना दी गयी । मेरी चाहत के बारे में कोई नहीं सोचता! "
"चुप हो जाओ देवरानी तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है ना। "
देवरानी रोती हुई बोली -"नहीं होना चुप मुझे! मैं बहुत चुप रह ली । जब तुम रजाओ में इतना दम नहीं होता, जब सबकी इच्छा का सम्मान नहीं कर सकते, तो 10 विवाह क्यू करते हो ? "
"देवराआआआआआआआआआआआअनी! अगर मेरे हाथ में तलवार होती तो अभी मैं तुम्हारा सर धड से अलग कर देता! "
"बलदेव इस पागल को ले जाओ यहां से इसको बुढ़ापे के साथ इसका दिमाग भी काम करना बंद हो गया है ।" ले जाओ इसे बलदेव ! नहीं तो मैं धक्के मार कर भगाऊंगा इसे। "
बलदेव झट से अपनी माँ को अपनी बाहो में पकड़ लेता है।
"चलो माँ ! "
देवरानी सिसकते हुए बलदेव के कंधों पर अपना सर रखती है और बलदेव देवरानी को उसके कक्ष में ले जाता है।
राजपाल वापस आसन पर बैठ कर-"आआआहहहह देवराअअअअअअणि " और एक जोरदार चीख से साथ अपने हाथ गद्दे पर मारता है और अपने गुस्से पर काबू करने का प्रयास करता है ।
बलदेव इधर अपनी मां को ला कर बिस्तर पर बैठाता है फिर अपने हाथो पर थोड़ा गुलाब जल ले कर मां का चेहरा जो आंसू से भरा था उसे धोता है और फिर कपड़े से पूंछता है।
बलदेव: माँ रोना बंद करो!
देवरानी: तुमने सुना ना कैसे मुझे अपमानित कर के भगाया उसने!
बलदेव अपनी माँ की आँखों पर हाथ फेरते हुए कहता है -"रोते नहीं मेरी रानी चुप हो जाओ! "
"अगर तुम सच में मेरे साथ प्रेम करती हो तो चुप हो जाओ, अब मैं नहीं कहूँगा चुप हो जाऊँगा ।"
ये सुन कर देवरानी बलदेव से गले लग जाती है और थोड़ी देर आखे बंद कर दोनों एक दूसरे के दिल की धड़कन सुनते रहते हैं।
कुछ देर बाद बलदेव चुप्पी तोड़ता है।
बलदेव: माँ तुम चिंता मत करो तुम्हारे हर अपमान का बदला लिया जाएगा।
देवरानी:मुझसे अब और सहन नहीं होता! बलदेव बहुत सह लीया ! देखा ना तुमने कैसे बात कर रहा था । वो मुझसे कह रहा है "इसे भगा दूंगा! " सृष्टि को आप कहता हैं "उनको" कहता है। जैसे वो बहुत बुद्धिमान हो।
बलदेव: आपको सम्मान राजपाल जैसे व्यक्ति से लेने की जरूरत नहीं, मैं आपका सम्मान करता हूं । एक दिन आपका हर कोई सम्मान करेगा। किसी की भी हिम्मत नहीं होगी वो आपको "तुम" कह दे। इसको, उसको उनको नहीं कहेगा । और अपमान करना तो बहुत दूर की बात है बस आप थोड़ा धैर्य रखो ।
देवरानी: बलदेव अब क्या करे हम?
बलदेव: माँ आप आराम करो! मैं कुछ सोचता हूं और प्रयास करता हूं। दोपहर के भोजन के बाद मैं राजपाल और सृष्टि दोनों से मिलूंगा ।
दोपहर के भोजन पर देवरानी और बलदेव गुमसुम हो भोजन कर के उठ जाते है और बलदेव कुछ सोच कर अपने पिता के कक्ष में जाता है।
बलदेव:पिता जी!
राजपाल: आओ बलदेव!
थोड़ा धीरे से उठ कर कहता है।
"पिता जी बात ये है कि मेरे पास एक सुझाव है इस समस्या का। "
"क्या सुझाव है बलदेव! "
"देखिये आप के हिसाब से शत्रु आप पर आक्रमण कर सकता है पर शत्रु मुझे या माँ को तो नहीं जानता। "
"तुम्हारे कहने का अर्थ क्या है? "
"यही पिता जी आप अगर नहीं जाते हैं पारस और माँ के साथ मैं जाऊं तो। "
"अभी तुम बालक हो मैंने ये पहले सोचा था कि पर शत्रु हम से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। वो तुम दोनों को अगवा भी कर सकते हो या तुम दोनों की प्राण भी ले सकते हैं । "
बलदेव (मन मैं - ये बालक अब इतना बड़ा हो गया है कि तुम्हारी पत्नी को संभाल सकता है और तुम्हारे हाथ में जब पत्नी मेरा बालक देगी तब देखूंगा क्या कहते हो। )
राजपाल:तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो जाओ अब सीमा पर और मैंने जो सेनापति को बताया था और देखो की उस पर कितना काम हो रहा है । हमारे देश की सुरक्षा का प्रबंध करो । जाओ दिन रात अपनी बूढ़ी मां की बातों पर दिमाग मत लगाओ।
बलदेव: जो आज्ञा पिता जी !
बलदेव अपना सर झुकाता है।
मन में : महाराज राजपाल तुमने अपनी कुल्हाडी खुद अपने पैरो और दिमाग पर मारी है और देवरानी और बूढ़ी! हाहा! सठिया तुम गए हो वो नहीं।
बलदेव को सीमा पार भेज कर राजपाल अपने कक्ष में जा कर आज की हुई घटना के बारे में सोचता है और देवरानी की बढ़ती हुई हिम्मत राजपाल को गहरी सोच में डूबो देती है।
इधर बलदेव अपने घोड़े पर बैठ के जाता है और सोच रहा था। के क्या युक्ति निकली जाए जिस से माँ को मैं पारस ले जा सकूँ। बलदेव कुछ समय सोचने के बाद अपना घोड़ा फिर महल की ओर घुमा देता है।
बलदेव मन में: मेरे पिता राजपाल अपने ऊपर या राष्ट्र पर हमले के डर से पारस जाना नहीं चाहते अगर मुझे बड़ी माँ सृष्टि के कानो में ये बात डाल दू की माँ पारस जाना चाहती है और अकेली जाने को भी त्यार है तो-तो वह पक्की चाहेगी के अपने जान जोखिम में डाल कर देवरानी पारस जाए क्यू के हमें पारस जाने के लिए दिल्ली के रास्ते से जाना होगा जहाँ हमारा दुश्मन बादशाह शाहजेब है।
यहीं सब बातें सोचते हुए बलदेव महल में आता है और सीधे अपनी बड़ी माँ को ढूँढने लगता है।
"बड़ी माँ...बड़ी माँ कहा हो आप?"
"सुनो लगता है। बलदेव आ गया है।"
"तुम जाओ यहाँ से"
बलदेव जैसा कक्ष में प्रवेश करता है तो देखता है। की महारानी रहृष्टि किसी पुरुष से बात कर रही थी और उसके आते ही वह चुप हो गई.
"बड़ी माँ आप यहाँ हो।"
"आओ बलदेव क्या हुआ बेटा?"
बलदेव जाते हुए पुरुष को ऊपर से नीचे तक देखता है।
"बड़ी माँ ये कौन था। इसे घटराष्ट्र में आज से पहले कभी नहीं देखा।"
"बलदेव ये हमारे घटराष्ट्र के पुराने गुप्तचर है।"
"अच्छा बड़ी माँ आपसे कुछ बात करनी थी।"
"तो कहो क्या बात है।"
"बड़ी माँ वह मामा देवराज ने हमें पत्र लिख कर न्योता दिया है, पारस आने का और मुझे भी बुलाया है । मेरा भी ननिहाल देखने का जी चाह रहा था।"
"तो समस्या क्या है, बलदेव?"
"वो बड़ी माँ आप ही हैं। जो मेरी मदद कर सकती हो।"
"वो कैसे बलदेव?"
"बड़ी माँ पिता जी पारस नहीं जाना चाहते क्यू के उनको डर है कोई हम पर या उनकी अनुपस्थिति में राष्ट्र पर हमला ना कर दे, क्यू के दिल्ली से बादशाह शाहजेब सैनिकों को उत्तर की ओर आने की सूचना मिली है।"
"पर बड़ी माँ मैं चाहता हूँ कि आप पिता जी को मनाएँ और वह कम से कम मुझे और माँ को जाने की आज्ञा दे-दे ।"
"अच्छा तो बलदेव ये बात है।"
शुरष्टि (मन में-में तो मनाऊंगी राजपाल को इस के लिए की वह तुम दोनों को जाने की आज्ञा दे ताकि जब तुम दोनों घटराष्ट्र से बाहर जाओ और तुम दोनों पारस पहुँचने से पहले स्वर्ग लोक पहुँच जाओ । ")
"बड़ी माँ कृपा कर के मेरे लिए इतना कर दीजिये"
बलदेव (मन में-महारानी सृष्टि तुम यही सोच रही हो ना की हम बहार जाए और शत्रु हम पर हमला कर दे और हम रास्ते में ही मर जाए.")
"ठीक है बलदेव। सिर्फ तुम्हारे लिए मैं महराज से बात करती हूँ क्यू के तुम मेरे सब से दुलारे पुत्र हो।"
सृष्टि मन में अगर मेरा शक ठीक है और उस दिन जो घुसपैठिया चादर छौड कर भागा था, वह चादर देवरानी की ही थी। तो बेटा बलदेव देवरानी का इतनी बरस बाद खुशी और हंसी का राज तुम हो।)
सृष्टि मुस्कुराति है। और बलदेव को देखती है। और ये सोच कर मन में कहती है।
"देवरानी तुम्हें भी अपनी आग बुझाने के लिए अपना बेटा ही मिला । तुम दोनों जाओ तो सही, पारस से वापस लौट के नहीं आओगे।"
"बलदेव अब तुम जाओ खड़े क्यू हो मैं तुम्हारा काम करवा दूंगी।"
बलदेव: "जी बड़ी माँ आप बहुत अच्छी हैं ।"
बलदेव (मन में-बड़ी माँ तुम्हारी मनो कामना कभी पूरी नहीं होगी कभी। मैं मेरी माँ के ऊपर, आंच भी नहीं आने दूंगा।)
बलदेव प्रणाम कर उसके कक्ष से निकल जाता है।
शुरष्टि जाते हुए बलदेव को देख मन में
"देवरानी आखिर कैसे ना अपने पुत्र पर मोहित होती, इतने लंबे चौड़े कद काठी का जो है। ऊपर से महाराज ने पिछले 17 साल से देवरानी को छुए भी नहीं है।"
और हसती है। हाहाहा देवरानी तुम्हें तो मैं तड़पा-तड़पा के मारूंगी, अगर तुम्हें घातराष्ट्र के शत्रु नहीं मार पाएंगे तो मैं मारूंगी। "
इधर बलदेव कक्ष से निकल कर जा रहा था। की उसे कुछ याद आता है और वह वापस अपनी बड़ी माँ सृष्टि के कक्ष की ओर आता है और उसकी हंसी सुन कर वही छिप कर सब देखने लगता है।
जल्दबाजी में सृष्टि पास रखी एक पेटारी को खोलती है और हमसे सांप निकाल कर बोलती है ।
"ये सांप तुम्हारे जीवन का अंत करेगा देवरानी, महल में तो इसके उपयोग करने से लोग तुम्हें बचा लेते पर अब ये तुम्हारे समान के साथ पारस जाएगा और रास्ते में तुम्हें ये डसेगा और वहाँ पर तुम्हें बचाने वाला कोई नहीं होगा ना कोई वैध ना कोई जड़ी।"
बलदेव तो ये देख और सृष्टि की बात सुन कर हैरान और परेशान हो जाता है और उसके माथे पर पसीना आने लगता है।
शुरष्टि: "पिछली काई बार तू बच गई है। इस बार मैं तेरे प्राण ले कर रहूंगी देवरानी।"
बलदेव दबे पाँव वहाँ से खिसक जाता है।
सृष्टि वापस से सांप को पेटारे में रख कर मुस्कुराती है।
"बेचारी देवरानी जीवन में खुशियाँ ढूँढने लगी हुई थी और बलदेव के साथ रंगरेलियाँ भी मनाने लगी थी, तुम्हे जीवन भर तड़पने का मेरा सपना पूरा हुआ और अब तुम्हें मरना होगा देवरानी, तुम्हारी हर एक हंसी हर खुशी मेरे जिस्म पर कांटे की तरह चुभती है। मैं नहीं चाहती कि तुम एक पल भी खुशी से जियो और जब तुम ने अपनी खुशी खोज निकली है बलदेव में तो अब तुम्हें मरना होगा और साथ में मैं बलदेव को भी नहीं छोड़ूंगी।"
ये सब सोचते हुए शुरू हुई महाराज राजपाल की कक्षा में आती है।
"आओ महारानी आप को ही याद कर रहा था।"
"महाराज आप की याद में हम यहाँ आये पर आप हमारी याद में हम कभी हमारी कक्ष में नहीं आते।"
"कहो महारानी श्रुष्टि आप की हम क्या सेवा कर सकते हैं?"
"महाराज हमने सुना है के देवराज का पत्र आया है।"
"हाँ महारानी हमारे साले साहब का पत्र आया है और उन्होंने हमें और देवरानी को पारस आने के लिए अमंत्रित किया है। पर हम ऐसी स्थिति में नहीं जा पाएंगे ।"
शुरष्टि (मन में आपका साला नहीं देवराज अब बलदेव का साला हो गया है। ") और एक मुस्कान के साथ-" महाराज हम समझ सकते हैं कि युद्ध कभी भी हो सकता है और आप अगर जाएंगे तो आप पर हमारे शत्रु से आक्रमण का भी खतरा है। "
"आप बिलकुल ठीक समझी महारानी"
"पर महाराज आप ना जा कर बलदेव और देवरानी को भेज सकते हैं ना।"
ये सब बात अपना कान लगाए बलदेव सुन रहा था। क्यू के वह अपनी माँ के ऊपर हमले के योजना जानना चाहता था और वह सृष्टि का पीछा करते हुए आ गया था।
"पर महारानी हमारे पास पहले ही कम सैनिक है। ये दोनों गए तो हम इनकी सुरक्षा के लिए इन्हें सैनिक कहाँ से देंगे?"
"बिना सैनिक के भी जा सकते हैं वह दोनों तो ।"
"पर महारानी उनकी जान को खतरा हो सकता है।"
"महाराज अब उन्हें अपनी जान जोखिम में डालनी है तो हमें क्या और वैसे भी आपको उनकी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।"
सृष्टि ये बोल कर राजपाल के पास आती है और उससे चिपक कर गले लग जाती है।
"महाराज अगर वह दोनों मर भी जाये तो ठीक होगा झंझट ख़तम हो जाएगा ।"
राजपाल सृष्टि के गले लग कर "आह! महारानी आप का शरीर कितना गरम है।"
"हाँ मरने दो माँ बेटे को! अगर आप यही चाहती हो महारानी तो मैं उनको जाने की आज्ञा दे देता हूं"
शुरष्टि राजपाल को जकड़ते हुए
"धन्यवाद महाराज शरीर गरम है तो आप इसे ठण्डा कर दो ना।"
"कर दूंगा महारानी आज रात।"
शुरष्टि थोडा उदास चेहरा बना की सोचती है। " महाराज आप लग्भाग 60 के हो गए आप से कैसे ये उम्मीद करू के आप मेरी जवानी की आग आप शांत कर दोगे, कमीनी देवरानी तो अपने बेटे से फिर शांत करवा लेती होगी।)
बलदेव अपने पिता और अपनी बड़ी माँ की बात सुन कर समझ जाता है के यहाँ सब उसकी माँ और उसके शत्रु है। कोई मित्र नहीं और वह अपनी बड़ी माँ और पिता की बात सुन कर बाहर आकर घोड़े पर बैठ सीमा की ओर चल देता है।
बलदेव (मन में-आज पिता जी मेरी नजर से और ज्यादा गिर गए. उनके मुंह से ये बात कैसे निकली कि हम मर जाएंगे तो मरे । मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं खुश होऊँ या दुखी, क्यू के आने वाले दिनों में और कठिनायियो का सामना करना होगा और वह भी दूसरे से नहीं बल्कि हमारे अपनों से। "
सीमा पर पहुच कर बलदेव घोड़े से उतरता है।
सेनापति: आइये युवराज आज बहुत दिनों बाद सीमा पर आये हैं।
बलदेव: हन सेनापति थोडे व्यस्त थे हम ।
सेनापति: आप तो महल हे थे तो घर में ऐसा क्या काम कर रहे थे जो व्यस्त रहते थे
बलदेव: अब तुम्हें हर कारण बताना जरूरी नहीं है सेनापति सोमनाथ।
सेनापति सोमनाथ: क्या युवराज आप तो नाराज हो गए हैं। हम तो बस यहीं जानना चाहते थे कि कहीं कोई दुविधा तो नहीं हमारे युवराज को । अगर हम आपके काम आ सके तू ये हमारे सौभाग्य होगा ।
बलदेव: ठीक है। वह सब छोड़ो! ये बताओ क्या कुछ संकेत मिला है शाहजेब की आगामी चाल का
सेनापति सोमनाथ: नहीं युवराज अब तक बस ये पता चला है। दिल्ली से सैनिको की एक टुकड़ी उत्तर की ओर चली है। जिसके कम से कम 2 हजार सैनिक बल है और टुकड़ी के पास 5 सैनिको के बराबर हथियार और अनाज भी है। इनके पास।
बलदेव: सेनापति ये अपनी जरुरत से ज्यादा हथियारो का क्या करेंगे और अनाज की क्या आवश्कयता है ।
सेनापति: महाराज हम ये विश्वास से तो कह नहीं सकते कि उनके मन में क्या चल रहा है, पर मेरे अनुमान से इस बार बादशाह शाहजेब सिर्फ कुबेरी पर नहीं पूरे उत्तर भारत को अपना बनाने की मंशा बना रहा होगा।
बलदेव: इससे तो हमारे घटराष्ट्र पर उसका हमला होना तो लगभग तय है।
सेनापति: युवराज बलदेव आज तकहमारे घृतराष्ट्र पर किसी ने हमला नहीं किया है, क्यू के हम सदियों से शांति प्रिय थे और दूसरा कारण ये था कि हमारा राज्य पहाड़ों से घिरा है और घाटराष्ट्र तक कितने राजाओ ने पहुँचने का प्रयास किया पर कोई पहुँच नहीं पाया ।
बलदेव: तो सेनापति सोमनाथ ऐसे परिस्तिथि क्यू आ गयी जो हम पर अब सब आक्रमण करना चाहते हैं। हमारे शत्रु क्यों बढ़ रहे हैं।
सेनापति: अब युवराज अगर आपको बुरा ना लगे तो मैं इसका उत्तर दे सकता हूँ।
बलदेव: निस्संकोच कहो मुझे जानना है।
सेनापति: बात ये है। के आपके दादा चाहते थे कि के घटरास्ट्र संसार का ऐसा राष्ट्र हो जहाँ पर युद्ध नहीं सिर्फ प्रेम हो और कोई किसी का शत्रु नहीं हो इसलिए उन्होंने अपने जीवन भर किसी के साथ युद्ध नहीं किया और वह मानते थे उन्हें युद्ध में किसी का साथ नहीं देना चाहिए जिस वजह से हमारे शत्रु भी हम से मित्रता का हाथ बढ़ाते थे परन्तु
राजपाल: परंतु क्या सोमनाथ?
सोमनाथ: परन्तु आपके पिता ने घटराष्ट्र की मर्यादा का उल्लंघन कर अपने पिता की छवि खराब कर दी और अनेक युद्धों में राजा रतन का साथ दिया जिस वजह से हमारे शत्रु बढ़ते गए.
बलदेव: तो ये बात है, ठीक है। जो हुआ तो हुआ पर तुम्हें अपना काम पर ध्यान देना चाहिए क्यू के घटराष्ट्र को बचाना ही हमारा धर्म है।
सेनापति: जी आवश्य महाराज!
सेनापति सोमनाथ (मन में-महाराज के कारण से मैं सालो साल युद्ध करता रहा और आज तक राज्य में कोई सम्मान नहीं है। इसका बदला तो मैं लूंगा। वह भी घटराष्ट्र का महाराज बन के.)
ऐसे वह संध्या हो जाती है और बलदेव सीमा से महल वापस आता है।
बलदेव मन में ठान लेता है। के वह अपनी माँ के विरुद्ध चल रहे हैं षड्यंत्र के बारे में माँ को नहीं बताएँगा नहीं तो वह दुखी हो सकती है। वह अपनी माँ देवरानी को पुकारता है ।
देवरानी स्नान कर की अभी निकली थी और अपने बालों को सुखा रही थी।
"मां जल्दी तैयार हो कर बाहर आओ"
बलदेव अपनी माँ के हल्का भीगा बदन, बाल और उठी चुची देख अपने छोटे बलदेव को मसलता है।
जिसे देवरानी तिरछी नजर से देख लेती है।
"बदमाश!"
बलदेव बाहर चला जाता है। थोड़े देर बाद तैयार हो कर देवरानी बाहर आती है।
बलदेव खड़ा अपनी माँ का इंतज़ार कर रहा था। वह उसको देख
"क्या हुआ बलदेव बाहर क्यू बुलाया तुमने"
"मां तुम्हारे लिए खुश खबरी है।"
बलदेव माँ को पकड़कर पास खींच लेता है।
"क्या ख़ुशख़बरी है बेटा?"
बलदेव जो पहले से अपना लैंड खड़ा किये हुए था। देवरानी को देख के वह अपना लंड देवरानी के बड़े निताम्बो से रगड़ कर एक हल्का धक्का मारता है।
अचानक इस धक्के को देवरानी सह नहीं पाती और चीख पड़ती है ।
"आआआआआह!"
"बलदेव क्या कर रहे हो हम महल के बीचो बीच है।"
देवरानी फ़ुसफुसाति है।
बलदेव अब देवरानी का हाथ पकड़े अपने पिता की कक्षा की ओर ले जाता है।
"पिता जी आप कहाँ हैं।"
"आजाओ बलदेव"
देवरानी और बलदेव अंदर आते हैं। देवरानी का गुस्सा अब बी उसके दिल में था। वह दरवाज़े पर रुक जाती है।
सृष्टि उसे खड़े देख (मन में: बडी सती सावित्री बने खड़ी है। सबसे छुपा कर छोटे-छोटे वस्त्र पहनती है और अपने बेटे से रासलीला खेलती हैं।
और बलदेव देखता है और उसके पिता लेटे हुए हैं और उसके पास ही में महारानी सृष्टि बैठी हुई है।
बलदेव सृष्टि की तरफ देखता है और सृष्टि अपनी दोनों को आखो को बंद कर के बलदेव को अपने पिता से बात करने का इशारा देती है।
बलदेव समझ जाता है के अब उसे महाराज से बात करनी चाहिए.
"पिता जी अगर आपकी आज्ञा हो मैं बिना सैनिको के माँ को उनका मायका घुमा के ले आउँ ।"
राजपाल सृष्टि की ओर देख कर कहता है
"बेटा हमें तुम्हारे जाने से कोई आपत्ति नहीं पर अकेले कैसे जाओगे? ..."
"पिता जी मुझे किसी सैनिक की आवश्यकता नहीं है, मुझे भी राज्य को ज्यादा चिंता है। मैं अपने मित्रो बद्री और श्याम को बुला लूँगा और इसी बहाने वह भी पारस देश घूम लेंगे और हम..."
"बस बस बलदेव हम समझ गए तुम्हारी बात को! तुम अपने मित्रो को ले कर जा सकते हो । जाओ अपनी माँ को उसके मायके घुमा लाओ."
"देवरानी तुम जाओ हम आज्ञा दे रहे हैं। देवराज को कह देना उसे जीजा की तबीयत खराब है, इसी लिए साथ नहीं आए."
देवरानी मन में: कमीने राजपाल तू मेरे भाई का जीजा नहीं है। जो असली जीजा है। वह साथ जा ही रहा है। चिंता मत कर।
देवरानी: जरूर महाराज, धन्यवाद महाराज!
देवरानी मन में अभी भी अपने अपमन की आग जल रही थी।
बलदेव अपनी माँ के मन को टटोल लेता है और कहता है।
"मां आप जाएँ! हम आपसे मिल कर बताते हैं कि हमें कैसी तयारी करनी है।"
शुरष्टि: वैसे अभी देवरानी कक्ष में आने से पहले चीखी क्यू थी?
राजपाल: हाँ भाई. हमने भी उसकी चीख सुनी थी! क्या हुआ था
बलदेव: वह माँ को ठेस लग गई थी किसी चीज़ से।
सृष्टि (मन में ठेस लगी थी बलदेव से । बेटा अपनी माँ को परेशान कर रहा था।)
राजपाल: हाँ इसे बेटा अपनी माँ से कहो देख कर चला करे, अपनी माँ का कुछ ध्यान रखा करो अब तो मैं बूढ़ा हो गया हूँ । अब तो तुमही ले कर आया जाया करो अपनी माँ को। क्यू महारानी सृष्टि?
शुरुआत: हाँ अब तो बलदेव अपनी माँ को संभालने लायक हो गया है ।
बलदेव: मां को संभाल भी लूंगा और उनको सब कुछ सीखa भी दूंगा पिता जी और मैं इतनी मेहनत करूंगा के एक दिन आप देखना माँ को मैं बदल दूंगा।
ये सुन कर देवरानी लज्जा के साथ अपनी पैरो के अंगूठो से अपनी उंगली फसा नीचे देखने लगती है।
देवरानी: मैं जा रही हूँ, इस ख़ुशी के मौके पर मुझे पूजा भी करनी है और रसोई को भी संभालना है।
राजपाल: ठीक है। जाओ!
देवरानी बलदेव की ओर देख
"आ जाना!"
"भूलूंगा नहीं आज मुझे सब खाना है।"
बलदेव की बात सुन कर मुस्कुराते हुए देवरानी अपना घूंघट ठीक कर के बाहर जाने लगती है।
शुरष्टि मन में "बड़ी छिनाल है। अरे तू देवरानी अपने पति के सामने अपने ही अपने नए यार अपने बेटे को आने का निमन्त्रण दे रही है और बेटा भी बेशर्मी से माँ को खाने की बात कर रहा है।"
देवरानी के जाने के बाद कुछ देर तक राजपाल और बलदेव बात करते रहे। राजपाल हर रास्ता समझा देता है और बलदेव अपने मित्रो को पत्र लिख कर भेजवा देता है।
बलदेव: पिता जी आप लोग चिंता मत कीजिए हम ठीक ठाक वापस आ जाएंगे।
शुरुआत: (मन में अगर मैं आने दूंगी वापस तब आओगे बलदेव)
बलदेव कक्ष से निकल कर अपनी माँ के कक्ष में जाता है। जहाँ पर देवरानी भगवान की आराधना में लीन थी।
"हे भगवान आज से और अभी मैं अपने सच्चे मन से बलदेव को अपना पति मानता हूँ। मुझे शक्ति देना!"
देवरानी को पूजा करते देख बलदेव मन में सोचता है ।
" कितनी भोली है। मेरी मां, इनलोगो को पता नहीं कि मैंने माँ को कब पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है और कोई मेरी प्रेमिका मेरी पत्नी देवरानी पर हमला तो दूर अगर ऊंचे स्वर में भी बात करेगा तो मैं उसका सर उसकी धड से अलग कर दूंगा, राजपाल की इस गलती की सजा उसे जरूर मिलेगी। '
तभी देवरानी अपनी पूजा ख़तम कर के आती है और बैठे बलदेव को बोलती है ।
"ये लो प्रसाद बेटा आख़िर कर तुमने अपने मामा से मिलने के लिए अपने पिता को मना ही लिया ।"
देवरानी नीचे झुक कर बलदेव के पैरो में झुक जाती है और अपने हाथ बलदेव के पैरो की तरफ बढ़ाती है। बलदेव अपने पैर पीछे खीचता है। पर देवरानी अपने हाथ से बलदेव के पैरो को सहलाती हुई उन्हें छूती है और (मन मैं "मेरे पति परमेश्वर!")
बलदेव: हाँ कैसे ना हम पारस जाते आखिर देवराज मामा को उनके नये जीजा से भी तो मिलवाना था।
ये सुन कर देवरानी खड़ी होती है और थाली में रखा रंग बलदेव के मुँह पर मारती है।
"बड़ा आयामेरे भाई का जीजा बनने वाला।"
"अरी माँ मामा ने लिखा था ना जीजा को साथ लाने के लिए तो उनका जीजा भी तैयार है जाने के लिए!"
देवरानी: पहले उसकी बहन को पत्नी तो बना लो बाद में उसे साला बनाना।
बलदेव लेट जाता है और अपनी माँ को अपने पास खीचता हैं ... और उसके बालो में हाथ लगा कर बोलता है ।
बलदेव: तुम साथ देती रहो मैं राज्य का महाराजा बनूँगा और तुम मेरी महारानी बनोगी।
बलदेव अपनी माँ के चेहरे को अपनी तरफ झुकाए जा रहा था।
तभी देवरानी झट से उठती है और भाग कर बाहर जाने लगती है।
"माँ रुको तो!"
बलदेव ( मन में "अगर हाथ आ गई ना मेरी प्यारी देवरानी तो ये तरबूज़ो को फोड़ दूँगा")
देवरानी के भागने से उसके बड़े नितम्ब खूब हिल रहे थे।
कमला: बलदेव भी कोई ऐसा वैसा नहीं है। वह तो बस एक बार उसका ले लो फिर बार-बार लोगी, मैंने देखा है महारानी बहुत बड़ा है उसका।
देवरानी थोडा चिंतित होते हुए
"कमला क्या बक रही हो तुम कब देखा कैसे देखा?"
देवरानी को हल्का गुस्सा देख- "बड़ा जल्दी गुस्सा हो गई महारानी! मैंने कोई युवराज का नंगा लिंग नहीं देखा है वह तो बस आपको देख उसका लिंग तन का सांप बन कर उठा था, जिस दिन मैंने युवराज को रंगे हाथो पकड़ा था।"
देवरानी समझ जाती है कि उसने उस दिन देखा था जब वह स्नान कर के निकली थी और कमला देवरानी की कामसूत्र पुस्तक पढ़ रही थी।
"बस सफ़ाई देने की ज़रूरत नहीं। हाँ एक बात याद रखना कमला मेरे अलावा कोई मेरे बेटे को देखे, ये मैं नहीं सह सकती।"
"मेरे बेटे के हर अंग पर सिर्फ मेरा हक है कभी भी बलदेव के उसपे ध्यान मत देना।"
"अब लो कर लो बात मेंने कब कहा मैं उसे लिंग निहारती रहती रहु। वह तो बस उस दिन अचानक से नज़र पड़ गई थी। वैसे भी बलदेव मेरे बेटा जैसा है बचपन से उसकी मालिश की है, नहलाया, खिलाया और पिलाया है। मैं उसपर गंदी नज़र नहीं रख सकती।"
"या वैसे भी महारानी बलदेव को सिर्फ तुम देख सकती हो और किसी के बस की बात नहीं है।" और हसने लगती है।
देवरानी ये बात सुन कर शर्मा जाती है।
"चल हट कमला की बच्ची!"
"वैसे देवरानी आपके पारस जाने का क्या हुआ?"
"देवरानी पहले तो महाराज नहीं मान रहे थे फिर बलदेव ने उन्हें मनाया!"
फिर देवरानी पूरी बात कमला को बता देती है।
"महारानी मेरी बहन तुमने सही मर्द चुना है जिसके पास मजबूत शरीर के साथ दिमाग भी है।"
"मेरी पसंद ही ऐसी है कमला।"
और मुस्कुराते हुए अपने ऊपर गर्व करती है
"हाँ इसलिए तो अभी से बेचारे बलदेव पति की दायित्व समझना शुरू कर दिया है और अपने प्रेमीका के लिए सब कुछ कर रहा है।"
"हाँ करेगा ही! आखिर मेरा बलदेव ही तो मेरा सब कुछ है।"
दोनों बात करते हुए खाने की तयारी कर देती हैं।
धीरे-धीरे सब खाने के लिए आसन पर आ कर बैठने लगते हैं देवरानी राधा तथा कमला के साथ खाना लगाने लगती हैं।
जीविका: देवरानी से पूछो और किसको पता होगा वह कहा है?
और अपना मुँह टेढ़ा करती है।
राजपाल: देवरानी! तुम्हें बता कर गया था क्या बलदेव?
देवरानी: नहीं मैंने नहीं देखा उसे बाहर जाते हुए।
राधा: महाराज मैंने देखा था युवराज को कुछ समय पहले बाहर जाते हुए।
राजपाल: इस गधे को कब अक्ल आएगी सृष्टि!
कमला (मन में-उस गधे का लंड जब तेरी पत्नी लेगी तो चीखेगी तब ")
देवरानी (मन में-जिसे तुम गधा कह रहे हो राजपाल वह घोड़ा है जिसने मेरा दिल चुरा लिया हैऔर मैं कुछ दिनों में इस घोड़े की सवारी भी करूंगी पर तुम्हें ये बात समझ नहीं आएगी राजपाल क्यू के असली गधे तुम ही हो। ")
सृष्टि: महाराज हम खाना शुरू करते हैं वह जब आएगा तो खा लेगा
और फिर सृष्टि खाना शुरू करती है और अपने मन में सोचती है "(महाराज राजपाल बलदेव गधा नहीं है दरअसल वह चतुर सियार है जिसने तुम्हारे आँखों के नीचे से तुम्हारी पत्नी को उठा लिया है।")
तभी बलदेव भागता हुआ आ पहुचता है।
"क्षमा कीजिए मुझे आने में देर हो गई."
राजपाल: ये क्या बलदेव तुम इतनी रात में कहा आवारागर्दी कर रहे हो? तुम्हें नियामो से दोबारा अवगत करवाना पड़ेगा।
बलदेव: क्षमा करे पिता जी वह मुझे कोई आवश्यक काम था।
राजपाल: हमें मत सिखाओ!
थोड़ा गुस्सा होते हुए
बलदेव ये सुन कर चुप चाप खड़ा हो जाता है।
जीविका (मन मैं-बेटा राजपाल मैं तुम्हें कैसे बताऊँ कि ये बलदेव बाहर नहीं घर में ही आवारागर्दी कर रहा है और वह भी तुम्हारी पत्नी के साथ।)
बलदेव के ऊपर गुस्सा होते देख देवरानी का दिल ज़ोर से धड़क रहा था और उससे रहा नहीं गया।
राजपाल: अरे! अब तुम हमें सिखायोगी की क्या करना चाहिए क्या नहीं?
शुरष्टि: बस कीजिए महाराज, आप को वैध जी ने कहा है गुस्सा नहीं करना। आपके हृदय रोग के संकेत मिले हैं आप सब खाना खाओ।
सृष्टि (मन में-अपने यार के ऊपर गुस्सा होते हुए महराज को देख ये देवरानी को बड़ा जल्दी बुरा लगा।, कुछ दिन की बात है फिर तुम दोनों स्वर्ग लोक में प्रेम करना।)
बड़ी माँ सृष्टि की बात सुन कर सब शांत हो जाते है और बलदेव भी बैठ कर खाने लगता है।
शुरष्टि: और बेटा बलदेव तयारी हुई कि नहीं जाने की।
जीविका: बहु कहा जाने की तैयारी।
शुरष्टि: वो बलदेव अपनी-अपनी माँ को ले कर ननिहाल जा रहा है।
जीविका: मतलब पारस जा रे ये दोनो, बस ये दोनो? राजपाल?
राजपाल: जी माँ मेरे अनुमति से ये ही दोनों जा रहे हैं।
जीविका (मन में-बेटा राजपाल ये दोनों अकेले क्यों जा रहे हैं अब तुम्हें कैसे बताउ! हे भगवान क्या अनर्थ हो जाएगा। ")
बलदेव: दादी वह यहाँ पर सैनिकों की ज्यादा आवश्यकता है इसलिए मैं अपने मित्रो श्याम या बद्री को साथ ले का रहा हूँ।
जीविका हाँ! और बलदेव को एक तीखी नज़र से देखती है।
जीविका की नज़र देवरानी पर पड़ती है वह मुस्कुरा रही थी।
देवरानी (मन में-"सांसु माँ ये तो मेरे प्रतिशोध की सिर्फ एक झलक है।")
जीविका (मन में-कामिनी रंडी मुस्कुरा रही है बेशरम बेहया।)
देवरानी: अरे रे सांसू माँ आपका तो पसीना छूट रहा है, लगता है मिर्ची लग गयी
को आप कहो तो पंखा झाल दू कमला! सासु माँ को मीठा दो ।।
जीविका चुप रहती है और कमला मीठा परोसती है ।
देवरानी: राधा कमला महारानी जीविका मेरी प्यारी सांसु माँ की ओर तेजी से पंखा झलो।
जीविका अपने बेबसी पर रोने जैसी हो जाती है या अपना सर नीचे कर खाने लगती है।
जिसे देख देवरानी एक कातिल मुस्कान देती है।
बलदेव: मेरा खाना तो हो गया।
बलदेव देखता है उसके थाली में केला रखा हुआ है। उसको शरारत सूझती है।
बलदेव: माँ ये मेरा केला आप ले लो मेरा खाना हो गया।
देवरानी बलदेव को देखती है जो मुस्कुरा रहा था और वह समझ जाती है।
देवरानी बलदेव को देखती है जो मुस्कुरा रहा था और वह समझ जाती है।
बलदेव: ले लो ना मेरा केला मेरी माता।
राजपाल: ले लो देवरानी! अगर वह इतना ज्यादा कह रहा है तो। देवरानी ये सुन कर शर्मा जाती है और फिर उसके मुँह से हंसी छूट जाती है।
देवरानी: जब इतना कह रहे हो तो लाओ इधर दो केला! मैं ले लेती हूँ।
राजपाल: देवरानी को हसते देख सृष्टि के कान में "देखो ना देवरानी को बिना बात के हस्ती है आज कल, उसका दिमाग ठिकाने पर नहीं है।"
शुरष्टि: ह्म्म (मन मैं-'घोचू राजपाल तुम नहीं समझोगे। ये किस तरह की बात हो रही है।')
बलदेव: माँ लीजिये और आपको बहुत पसंद है इसलिए तो ज़िद कर रहा हूँ।
देवरानी: ठीक है लाओ! मैं खा लूगी तुम्हारा केला।
देवरानी झुक कर अपना पल्लू गिराती है और बलदेव की थाली से केला उठा लेती है।
बलदेव: पर बदले में अपना पपीता दो मुझे खाने के लिए और सबसे छुपा कर उसे एक आख मारता है।
देवरानी: पपीते अभी पके नहीं हैं दो दिन और लगेंगे।
बलदेव: देख के तो नहीं लगता, पपीता कच्चा होगा बहुत बड़ा है।
देवरानी: बेटा बड़े है इसीलिए जल्दी तोड़ लिया गया था इन्हे और पपीते के आकार के अनुसार गर्मी नहीं मिलने पर कच्चा रह गया, इसे भूसा में डाल पका दूंगी।
बलदेव: माँ ठीक है मुझे इसे ऐसे ही खाना है दे दो।
देवरानी: तो ले लो मना किसने किया है।
देवरानी अपने पल्लू से अपने वक्षो को अच्छे से ढक लेती है और बलदेव को देख रही थी प्यार से।
जीविका तथा शुरष्टि को सब समझ आ रहा था कि ये दोनों क्या गुल खिला रहे हैं।
सब खाना खा कर उठ जाते हैं फिर देवरानी खाना खाती है । बलदेव अपने हाथों में दो पपीतो को ले कर अपने कक्ष से रख कर आता है।
अब माँ रसोई में सामान लगा रही थी और बलदेव इधर उधर टहल रहा था।
बलदेव (मन में "ये माँ भी ना बहुत समय लगती है।")
देवरानी रसोई से बाहर देखती है कि बलदेव उतावला हुआ घूम रहा था उससे मिलने के लिए।
देवरानी: (मन मैं-बहुत बेचैन हो रहा है मुझसे मिलने के लिए मेरा प्रेमी! जल्दी काम निपट लेती हूँ।)
देवरानी: "हाँ आज बलदेव को दही खिलाती हूँ उसके स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।"
देवरानी रसोई के कोने पर लटके हुए शिखर से जो रस्सी बंधी हुई थी उसपे रखी मटकी में दही उतारने के लिए जाती है पहले अपने बाल बाँधती है या फिर हल्का-सा कूद कर रस्सी को पकड़ती है।
देवरानी के भारी तरबूज़ जैसा स्तन एक अंदाज़ से कूदते है।
बलदेव जैसे ही रसोई की ओर देखता है उसका हलक सुख जाता है उसके माँ दो तीन बार कूदती है पर शिखर की रस्सी ऊपर होने के कारण से उसके हाथ में नहीं आ रही थी।
बलदेव: (मन में-कितने बड़े स्तन है माँ के इन्हे तो मैं आज दबा के रहूंगा ठीक वैसे जैसे आज सुबह उन चूतड़ों को मसला था मेरी रानी।
जैसे हे देवरानी की नज़र बलदेव पर पड़ती है वह खड़ी हो जाती है क्यू के बलदेव उसके बड़े वक्षो को खा जाने वाली नज़र से देख रहा था।
देवरानी देखती है बलदेव उसके स्तनों को देखे ही जा रहा है तो वह लज्जा के बलदेव से नज़र हटा कर नीचे देखने लगती है।
बलदेव एक नशे में डूब गया था।
बलदेव रसोई में घुसता है जिसे जीविका देख लेती है, जो अभी-अभी अपनी कक्ष से बाहर घूमने निकलने के लिए निकली थी।
बलदेव अपनी माँ के वक्षो को देखते हुए उसके पास जाता है
"मां मेरी रानी तुम्हें काम करने की ज़रूरत नहीं है।"
देवरानी की भारी गांड को दबोच के बलदेव अपनी माँ को अपनी गोद में उठा लेता है।
"मां मुझे तुमसे प्यार करना है।"
देवरानी की गांड पर जैसे बड़े मजबूत हाथ पड़ते हैं वह सिहर जाति है और उत्तज़ना से अपने आँखे बंद कर लेती है।
बलदेव की रसोई में जाते देख जीविका बड़ी सावधानियों से छुप जाती है और अब उसके बाहर आने का इंतजार कर रही थी।
तभी बलदेव अपनी माँ को गोद में उठाये बहार लाया और बलदेव का हाथ देवरानी की गांड पर था उसका मुंह देवरानी के वक्ष स्थल के बीच था।
जीविका: "हे भगवान मैं ये सब देखने से पहले मैं मर गई क्यू नहीं गई." और फिर जीविका अपनी आंखे बंद कर लेती है।
बलदेव गोद में उठे देवरानी की कक्षा में घुसता है।
बलदेव: देवरानी पहले दरवाजा बंद करो...!
बलदेव दरवाजा के बंद रखता है और देवरानी कुंडी लगा लेती है।
"बेटा उतारो ना अब नीचे।"
"मुझे नहीं उतारना मेरी जान को।"
"तुम्हारे हाथ दुख जायेगा मेरे प्रेमी।"
"तुम्हें तो मैं जिंदगी भर उठा सकता हूँ मेरी रानी।"
"इतना प्रेम करते हो हमसे बलदेव?"
"हाँ मैं तुम्हारा घोड़ा हूँ देवरानी तुम जीवन भर मेरी सवारी करो मैं उफ़ तक नहीं करुंगा।"
"बलदेव उतारो ना!"
बलदेव देवरानी की गांड को खूब मसलते हुए उतार देता है।
देवरानी: आओ अब मेरे साथ मेरे राजा!
देवरानी चल रही थी धीरे से या उसके पीछे बलदेव उसके हिलते हुए बड़े चुतड को निहारतेऔर वक्षो की थिरकन देखते हुए लंड मसलते हुए चले जा रहा था।
इधर जीविका अपने बहू या पोते की हरकत देख कर गुस्से से आग बबूला हो जाती है और वह सीधा राजपाल की कक्षा में जाती है।
जीविका: आज इस रंडी की पोल खोल दूंगी।
जीविका देखती है राजपाल चैन की नींद सोया हुआ था और जीविका वही खड़ी राजपाल को थोड़ी देर देखती रहती है।
जीविका (मन में-राजपाल बेटा तू सोता रह गया और तेरा सब कुछ कोई लूट रहा है)
जीविका रोने जैसी हो जाती है और देवरानी के बंद दरवाजे को देख अपने कक्ष में जाने लगती है।
इधर बलदेव अपनी माँ को खूब ज़ोर से भीचता हुआ गले लग जाता है।
और देवरानी के कमर में हाथ डाल कर उसके रसीले होठ को चूमता है।
मेरे राजा अह्ह्ह! "गलप्पप्प गैलप्प-गैलप्प उम स्लर्प गैलप्प-गैलप्प गैलप्प!"
पूरे कक्ष में चुमबन की आवाज गूंज रही थी। रात के सन्नाटे में दोनों माँ बेटे के पुच-पुच की आवाज से कोई भी माँ बेटे की खुशियाँ का अंदाज़ा लगा सकता था और आसानी से समझ सकता था के अंदर क्या हो रहा है।
"गलप्प उम्म्म्हा गलप्पप स्लरप्प उम आह!"
देवरानी बलदेव को धक्का दे पलंग पर लिटा देती है "आह! मेरे राजा को बहुत जल्दी है आज।"
देवरानी बलदेव की छाती से ले कर चेहरे तक सहलते हुए अपने अधनंगे दूधो को हल्का बलदेव से रगड़ती है।
"मां तुम्हें देखने के बाद मुझे होश नहीं रहता।"
तभी बलदेव की नज़र देवरानी के पहने मंगलसूत्र पर पड़ती है।
बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके मंगलसूत्र खींचता है और उसे तोड़ देता है। एक झटके में देवरानी का मंगलसूत्र बिखर जाता है।
देवरानी जब तक समझती तब तक देर हो चुकी थी।
"बलदेव ये क्या किया तुमने?"
"मां तुम अब राजपाल का या दी हुआ मंगलसूत्र नहीं पहनोगी। जो तुम्हारी रत्ती भर सम्मान नहीं करता और जिसने तुम्हें आज इतना रुलाया है तुम उसके नाम का मंगल सूत्र नहीं पहनोगी।"
"पर बेटा...किसी ने बिना मंगलसूत्र के देख लिया तो"
"उसका समाधान है मेरे पास तुरंट बलदेव अपने कुर्ते से एक सोने का मंगलसूत्र निकलता है।"
"जिसे देख देवरानी की आखे नम हो जाती है"
"ये मेरी प्यारी प्रेमिका देवरानी के लिए है अब उस नाकारा बूढ़े का मंगलसूत्र कभी नहीं पहचानेगी तुम!"
मंगलसूत्र की सुंदरता देख देवरानी की आंखें फटी रह जाती हैं।
"अब जब ले आया है तो पहना भी दे" देवरानी पलंग से उठ कर खड़ी होती है और अपने कक्ष में बने मंदिर की ओर देख अपने मन में कहती है। धन्यवाद भगवान!
बलदेव उठ कर देवरानी के गले में मंगल सूत्र पहना रहा था और देवरानी
अपना हाथ जोड़े बलदेव को देख रही थी।
"बलदेव अब आप मेरे लिए पूजनीय हो मेरे जीवनसाथी हो।"
"कैसा लगा मंगलसूत्र मेरी रानी?"
"बहुत सुन्दर है मेरे राजा! तुम तो बहुत जल्दी सीख गये खरीददारी करना।"
"मां वैसे आज सीधा तू या तुम से मुझे आप कह रही हो।"
"क्यू के बलदेव अब हमारा रिश्ता बदल रहा है जिसमें तुम मेरे साथ रहोगे और मैं तुम्हारी दासी रहूंगी।"
"कभी ऐसा न सोचना मां। तुम मेरी रानी हो कभी दासी नहीं समझना खुद को। आपको क्या पता मैं आपको बचपन से किसी भगवान से ऊपर रख कर मानता हूँ, लेकिन अब आपकी पूजा भी करूंगा और आपको भोग लगाऊंगा।"
"कही वह राजपाल ना देख ले बदला हुआ मंगल सूत्र।"
"जो करना होगा कर लेगा वो। मैं नहीं डरता उस बूढ़े से।"
"तुम उसे बार-बार बूढ़ा कह रहे थे, वह मुझे कैसे बूढ़ी कह रहा था और कह रहा था कि मेरा दिमाग सठिया गया है।"
" माँ मुझे याद मत दिलाओ मुझे उस क्षण मेरी जी चाह रहा था कि मैं उस पापी
राजपाल का वध कर दू। पर मैं सही समय की प्रतीक्षा करूंगा"
"और रही उसकी बात के वह तुम्हें बूढ़ी कहा, तो सुनो तुम्हारे शरीर को कोई पागल भी देख ले तो वह भी अपने होश खो बैठे। वह तो तुम अपना पल्लू ओढ़े रहती हो सबके सामने इसलिए किसी को असलियत का पता नहीं चलता।"
"सच्ची मैं इतनी जवान हूँ अब भीऔर तुम क्या चाहते हो के जैसे मैं तुम्हारे सामने कोई भी वस्त्र में अजाती हूँ वैसे ही बाहर भी रहु?"
"कदापि नहीं मैं कभी नहीं चाहूँगा कि मेरी जान की जवानी को कोई अपनी आँख से देखे और तुम सच में जवान हो, 35 साल में कोई बूढ़ा नहीं होता और तुम तो 25 से भी कम की लगती हो।"
बलदेव (मन में-मां जब तक प्रेमीका हो तब तक ठीक है जिस दिन मैंने तुम्हें अपने बंधन में बंद कर लिया, उस दिन के बाद तो मैं किसी को आपके चेहरे की झलक भी नहीं लेने दूंगा)
"मां तुम किसी परी से कम नहीं हो।"
उम्माहा! देवरानी की साडी को उसके मखमली पेट से बलदेव अपने दांतों से खीचता है।
आह बेटा! "
बलदेव खड़ा हो कर एक बार फिर अपनी भारी गदरायी माँ को अपनी बाहो में समेट लेता है।
"उम्म्हा गलप्प।"
माँ तुम्हारी जवानी मुझे पागल कर देगी। "
देवरानी को खीच कर अपनी बाहों में ले लेता है या उसके बड़े-बड़े वक्षो की निचली हिससे को अपने मजबुत हाथ से दब्बते हुए उठाता है।
"आआआह बलदेव!"
"माँ इतने बड़े वक्ष आपको भारी नहीं लगते चलते।"
"उफ्फ्फ बलदेव आआह हे भगवान ये लड़का भी ना।"
बलदेव अपनी हाथो से अपनी माँ के बड़े दूध पर खूब सहला रहा था।
"आह बेटा!"
बलदेव अब अपनी माँ की मखमली पेट को सहलाते हुए देवरानी के कान के नीचे चाटने लगता है।
"आआह बेटा मेरे प्रेमी उफ़ हम्म!"
देवरानी अब बलदेव को अपनी जगह देती है थोड़ी देर ठहर जाओ मैं कर के आती हूँ।
देवरानी उठ कर चली जाती है। स्नानगगर में या सबसे पहले अपना पेटीकोट उठा कर एक सीटी की आवाज़ से एक तेज़ धार उसकी बुर से छूटती है।
"ये माँ इतने ज़ोर से सीटी बजा रही है।" और ज़ोर से अपना कड़ा लंड मसलने लगता है।
शौच करने के बाद देवरानी अपना पेटीकोट निकालती है। ब्लाउज़ निकालती है फिर अपना हाथ अपनी चूत पर ले जाती है।
"हे भगवान ये कितना रस छोड़ रही है।"
अपने पेटीकोट से पोछ कर एक धोती पहन लेती है।
एक छोटे से वस्त्र से अपने बड़े स्तनों को कस लेती है।
"अब देखना मेरे राजा मेरा जलवा!"
देवरानी वस्त्र बदल कर अपने आपको सवारती हैं। अपने बाल को बाँधती है। अपने होठों पर लाली लगाती है। अपने बेटे को रिझाने के लिए देवरानी अपने पास रखे शृंगार का हर सामान आज इस्तेमाल कर लेना चाहती थी ।
"माँ कहा रह गई"
"आइ बेटा"
तभी बलदेव को सामने शोचलाय में से सजी संवरी देवरानी आती हुई दिखाई देती है। जिसे देख बलदेव बस देखते ही रह जाता है।
बलदेव देखता है। उसके माँ के सुंदर वक्ष एक तंग वस्त्र में बंधे हुए है। उनका पूरा आकार दिखाई पड़ रहा था ।
बलदेव (मन में-माँ के ये वक्ष तो पूरे में गोल आकार के पपीतो से दिख रहे हैं। माँ ही जाने की वह इन्हे कैसे माँ अपनी चोली में छुपाती है।)
देवरानी अपने आप को यू देखे जाने से थोड़ा शरणाती हुई धीरे चल रही थी ।
बलदेव अब देवरानी के निचले हिस्से को देखता है। जहाँ पर देवरानी ने अपनी जांघों तक की ही धोती पहनी थी।
बलदेव (मन में-उफ़ माँ! तुम्हारी गांड के बड़े आकार के तरबूज़ गजब लग रहे हैं और तुम्हारी जंघे कितनी चिकनी और कसी हुई है।
बलदेव अपना संयम खोने लगता है। जिसको देवरानी भी समझ रही थी।
"हाय देवरानी! मेरी रानी! मेरी जान! इस अवस्था में अगर तुम राज महल के बाहर चली गई तो तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।"
"क्यू नहीं पहचान पाएगा?"
"क्यू के माँ तुम इस समय तुम स्वर्ग की अप्सरा से कम नहीं लग रही हो!"
"वैसे माँ अगर ऐसे तुम्हें राजपाल देख ले तो उसे समझ आएगा कि कौन बूढ़ा है। कौन नहीं?" और फिर बलदेव एक गहरी मुस्कान देता है।
"माँ तुम सच में माल हो"
देवरानी अपनी पीठ बलदेव की ओर कर अपने वक्ष को छुपाने की कोशिश करती है।
"बेटा बलदेव हमें राजपाल ने कभी मौका नहीं दिया । मुझे सजने का । मेरे सब अरमान मेरे हृदय में ही रह गए उस पापी के वजह से।"
"मां चिंता करने की बात नहीं। उस पापी को मैं दंडित करूंगा और तुम जिस खुशी से जीवन भर वंचित रही, वह हर एक खुशी में तुम्हे दूंगा।"
देवरानी अभी भी बलदेव की ओर अपनी पीठ किये हुए खड़ी थी
"मां तुम इतना साज शृंगार कर मुझे दिखाने आई हो या किसी और को?"
"बेटा मैं सिर्फ तेरी हूँ। मेरा सजना संवरना सब तेरे लिए ही होता है।"
"मां, तुम अपने संगेमरमर शरीर को छुपाने की कोशिश करती हो, लेकिन फिर भी छुपा नहीं पाती हो, तुम पीछे घूम कर भी मुझे, मेरा पसंदीदा नितम्ब दिखा रही हो।"
देवरानी अपनी बेवकूफी पर लजा जाती है।
"मेरा नितांब तब से देख रहा है। इतना पसंद है?"
"मां इन्हें तो मैंने खूब मसला हूँ सुबह। मुझे समझ नहीं आया की ये दोनों तरबूज मेरे लिए ही है और मुझे ये कितने प्यारे हैं।"
"अच्छा बलदेव जी"
या अपना सर निचे कर लेती है।
"मां अब आपके बड़े पपीतो जैसे स्तनों की बारी है। , मुझे उनसे प्यार करना है।"
"करते तो हो ही उनको और मैंने कब मना किया है।"
"बस छुआ ही है ना अच्छे से पकड़ा ना मसला ही है"
"तो आ जाओ मेरे राजा! अपनी ये भी इच्छा भी आज ही पूरी कर लो!"
बलदेव के पीछे से आकर देवरानी से चिपक कर अपना खड़ा लंड उसके तरबूज़ पर लगा देता है।
"आह माँ तुम्हारे ये नितमब कितने मुलायम हैं।"
देवरानी अपनी प्रशंसा सुन कर मुस्कुरा रही थी।
"उम्म्ह आह! बलदेव आराम से! मैं कहीं भागी नहीं जा रही।"
बलदेव अपना लंड दोनों बड़े ठोस गांड पर रगड़ता हुआ गाड़ की दरार ढूँढने की कोशिश कर रहा था । फिर बलदेव थोड़ा पीछे होता है। फिर झुक कर अपना लंड देवरानी की गांड के सबसे निचले हिस्से पर रख धीरे-धीरे ऊपर होने लगता है।
ज्यो ज्यो देवरानी की गांड में बलदेव का बड़ा लम्बा लौड़ा ऊपर की तरफ जा रहा है देवरानी की वह चूतडो में फसता जाता है।
"आआह बलदेव उह्म्म्म्म! हे भगवान!"
देवरानी अपने होठ चबाती हुई अपना आख बंद कर लेती है।
"आह माँ क्या राजपाल ने कभी ऐसा प्यार किया?"
"जैसा मेरा बेटा कर रहा है वैसे वह नामर्द क्या प्यार करेगा मुझे? आआह बेटा!"
बलदेव अब देवरानी के पीठ पर चूमने लगता है... देवरानी की नंगी पीठ पर अपनी गरम-गरम ओंठ रख कर गर्म चुमिया की बरसात कर देता है।
"आआह मेरे राजा!"
"हाँ मेरी रानी!"
"मेरी रानी आओ ना मेरी गोद में बैठो ना! मुझे आपके ये बड़े वक्ष मसलने हैं।" देवरानी की गांड के दरार में लंड पेलते हुए बलदेव कहता है।
"नहीं बैठना तुम्हारे गोद में तुम्हारी वह चुभता है।"
तभी बलदेव की नज़र अपनी माँ के बजती हुई पायल पर जाती है। उसे दिखता है कि देवरानी ने मेहंदी लगाई हुई है।
"माँ ये मेहंदी कब लगाई?"
"ये मेहंदी तब लगाई जब मेरा प्रेमी मेरे लिए मंगल सूत्र लेने बाज़ार गया था ।"
"मां तुम्हारे मेहंदी लगे हुए पैर अति सुंदर दिख रहे हैं।"
"ये सब शृंगार मेरे प्रेमी राजा बलदेव के लिए हैं।"
माँ को अपने आलिंगन में भींच कर--
"मां मुझसे अब या सहा नहीं जाता मुझे विवाह करना है।"
देवरानी झट से बलदेव से दूर हो जाती है। "कुत्ते कमीने तूने ऐसा सोचा भी कि तू विवाह करेगा!"
"माँ सुनो तो!"
"मुझे नहीं सुनना जिस दिन अगर तूने विवाह कर लिया तो मैं तेरी ही तलवार तेरे पेट में घोप दूंगी देवरानी नाम है मेरा।"
बलदेव मुस्कुराते हुए देवरानी को फिर से पकड़ता है।
"मां मुझे आपका सम्पूर्ण रूप से पाना है।" और माँ आपमेरी पूरी बात तो सुनलो फिर चाहे मेरा सर काट लेना अपने हाथो से। "
"मां मुझे आपको अपनी दुल्हन बनाना है।"
ये सुन कर देवरानी अपना आख बंद कर लेती है।
"आपने सही सुना माँ! मुझे आप से विवाह करना है। आप क्या समझा कि मैं किसी और से विवाह करने की बात कर रहा हूँ?"
देवरानी अपनी गलती पर शर्मा जाती है।
"तू किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता बलदेव। जिस दिन तूने ऐसा किया उस दिन मेरा मरा हुआ मुँह देखेगा।"
"मां मेरे जिंदगी में बस तुम थी, हो और तुम ही रहोगी, मेरी रानी! मुझे अपनी सब हद पार कर देना है। मुझे आपकी शरीर से आत्मा तक को अपना बनाना है।"
देवरानी थोडा चिंतित होते हुए
"पर बलदेव बिना विवाह के हम दोनों में उस स्थिति तक नहीं पहुँच सकते, बिना विवाह मैं तुम्हे कैसे अपना सब कुछ सौप दू?"
"मां, मैं इस बात से परिचित हूँ कि आप कितनी धार्मिक हैं और आपके माँ बाप ने आपको किस प्रकार के संस्कार दिए हैं। इसलिए मैंने कहा हमें विवाह कर लेना चाहिए"
"पर बेटा ये कैसे मुमकिन है।"
"मां मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं होता। आप तैयार हो जाओ मैं दुनिया से लड़ लूंगा।"
"बेटा इतना प्यार करता है अपनी माँ को?"
"जान से भी ज़्यादा!"
देवरानी अपनी उंगली अपने बेटे के होठों पर रख बोलती है ।
"इतना मत करना के देवरानी इस आग में जल जाये।"
"मैं जल मिटने के लिए तैयार हूँ।"
देवरानी अपना होठ बलदेव के होठो पर रख अपना जीभ बलदेव के मुँह में रख चुसने लगती है।
"उम्हाह्ह्ह्ह आह्ह बेटा!"
"आआआह माँ उम्म्म्म ह्म्म्म स्लरप्प! गैलप्प्प-गैलप्प्प गैलप्पप्प!" दोनों एकदूसरे को बेतहाशा चूम रहे थे और एक दुसरे के ओंठ और जीभ को चूस रहे थे ।
देवरानी अब अपना पूरी जीभ बाहर निकाल कर बलदेव की जीभ से लड़ाने लगती है।
"उह्म्म आआह गलप्पप-गलप्पप गलप्पप!"
बलदेव से रहा नहीं जाता और देवरानी के ऐसे कामुक होने से वह उसके नीचे
के ओंठ को अपने दोनों होती में फसा कर चूसने लगता है।
"गल्लप्पप गैलप्पप स्लुरप्पप हम्म्म!"
देवरानी के बाल पर हाथ फेरते हुए बलदेव देवरानी के हर ओंठ को चूस कर पी रहा था । देवरानी भी उसका भरपूर साथ दे रही थी।
बलदेव अब देवरानी को अपना आगे लेता है।
"मेरी रानी! उह मम्म!"
"आह मेरे राजा!"
बलदेव: माँ मुझे तुम्हारे ये दो बड़े आम चूसने हैं।
बलदेव अपने हाथों को बड़े वक्षो को सहलाता है।
"आआआह उफ्फ्फ बेटा!"
"माँ कितने बड़े और गोलाकर है। ये मैं खा लू!"
"हम्म्म्म बेटा आह!"
"मां जब ये तुम्हारे चलने से हिलते थे तो मेरा दिल हिल जाता था लेकिन यकीन नहीं होता अब ये मेरे हाथो में है।"
देवरानी बलदेव से छूट कर उसके सामने जाती है।
"अभी तुम्हारा दिल फिर से हिला देती हूँ"
हसती हुई कहती है।
देवरानी खड़ी हो कर अपने बड़े वक्षो को हिलाती है।
"आजा राजा पी लो, रस की गगरी!"
बलदेव झट से फिर से देवरानी को दबाता है।
"माँ अपने दूध को क्या हिलाती हो तुम? इस गागरी का सारा रस तो मैं पीऊँगा।"
बलदेव देवरानी की गर्दन पर चूमने लगता है।
बलदेव अब देवरानी को बाहो में ले पलंग पर बैठ जाता है और देवरानी की बड़ी गांड को अपने लौड़े पर रख चुम कर बोलता है ।
"बैठ जा मेरे गोद में मेरी रानी!"
बलदेव का लौड़ा "खच्च" से देवरानी के दरार में फिर से उतर जाता है।
"हाय दैया धोती में तलवार रखी है। क्या रे बलदेव!"
देवरानी मारे उत्तेजना के बलदेव को पलट देती है बिस्तर पर और खुद उसके ऊपर आ जाती है।
अपने बड़े स्तन को उसके सीने में खूब दबाती है।
बलदेव अपने हाथ अपनी रानी की बड़ी गांड पर ले जा कर सहलाता है।
"माँ तुम्हारे ये मंसल जाँघ और बड़ी गांड का दीवाना हूँ मैं।"
बलदेव अपने दोनों हाथों को पूरी गांड को पकड़ कर ज़ोर से दबाने लगता है।
इधर एक बुरे सपने की वजह से सृष्टि की नींद टूट जाती है। वह उठ कर ज़ोर-ज़ोर से साँस लेने लगती है और पास में रखे गिलास को उठाती है। पानी पीने के लिये वह गिलास खाली था। फिर वह जग में देखती है। कहीं पानी नहीं मिलता वह उठ कर अपनी कक्ष से बाहर आती है।
सृष्टि आधी नींद में ही रसोई में जा कर पानी पीती है और फ़िर वापस अपने कक्ष की ओर चलने लगती है। तभी उसके कानों में हल्की कराहो "उम्म्ह आआह" उम्म्म्म हा आआआह नहीं" की आवाज सुनाई देती है।
कराहे सुन सृष्टि की जैसी पूरी नींद टूट जाती है और वह आवाज का पीछा करती है। तो वह आवाज देवरानी के कक्ष से गूंज रही थी ।
सृष्टि दबे पाव चलते हुए देवरानी की खिड़की के पास आकर खड़ी होती है।
इधर बलदेव बुरी तरह से अपनी माँ के दूध का मंथन करने में लगा हुआ था।
"आह मेरी रानी देवरानी।"
"आह मेरा राजा ऐसे ही।"
सृष्टि कान लगा कर सुन रही थी
"देवरानी! मेरी जान! मेरी गोद में बैठ कर अपना वक्ष मसलवाने में कैसा लग रहा है।"
"आह! मेरे राजा ऐसे ही! आह ऐसे ही मत पूछो कितना अच्छा लग रहा है।"
सृष्टि का तो मानो काटो तो खून नहीं वाला हाल हो जाता है। माँ और बेटे के संवाद और कराहे सुन के