Update 8.
दोपहर बाद जब मैं घर पहुंचा तो माॅम ने खाना लगाया । रीतु अपनी सहेली काजल से मिलने गयी थी । मैं अपने कमरे में गया । कुछ देर आराम करने करने के बाद पैराडाइज क्लब चला गया । आज कुलभूषण खन्ना नहीं आया था । वहां ड्यूटी देने के बाद मैंने कुलभूषण खन्ना के असिस्टेंट से एक दिन की छुट्टी लेकर घर आ गया । आठ बज गए थे लेकिन अभी तक रीतु आईं नहीं थी । माॅम से पूछा तो उन्होंने कहा वो नौ बजे तक लौटोगे । माॅम ने खाने के लिए पुछा तो मैंने रीतु के आने तक इन्तजार करने के लिए कहा ।
मैं अपने कमरे में गया । कपड़े बदले और छत पर टहलने लगा । तभी मुझे याद आया कि मैंने अपने ब्लेजर और पैंट तो लांड्रिंग में दिए हैं, वो तो मैं लाना ही भूल गया । मैंने रीतु को फोन लगाया और उससे पूछा वो अभी काजल के पास ही है या वहां से निकल गई है तो उसने कहा आधे घंटे में निकल रही है । मैंने उससे कहा कि आते समय रास्ते में ही जो लाउंड्री है और उससे मेरी बात करा देना और मेरी कपड़े लेती आना ।
पहले तो बड़ी आना कानी करी कि वो लांड्रिंग वाला उसके आते वक्त रास्ते में नहीं पड़ेगा , वो जगह दुर है , वो बस से नहीं आयेगी , बस से आने से कपड़े खराब हो जायेंगे , गर्मी से मेरी पोलिस उत्तर जायेगी , कैब से आयेगी , कैब के भाड़े के पैसे नहीं हैं , तब मैंने बड़ी मुश्किल से उसे कपड़े लेकर आने के लिए तैयार किया ।
रीतु को किसी बात के लिए convince कराना बड़ी टेड़ी खीर है । ये शर्तिया अपने हसबैंड को नाकों चने चबवा देगी । मैं जा कर अपने बेड पर लेट गया और पिछले दिनों के बारे में सोचने लगा ।
करीब एक आध घंटे बाद रीतु आईं और मेरे आयरन किए हुए कपड़े सलिके से बिस्तर पर रख दी । मैंने उसे देखा वो इस वक्त एक हरे रंग का सलवार सूट पहनी थी । उसके शरीर से आती वही जानी पहचानी खुशबू । हमेशा की तरह जगमग जगमग ।
" बस में तुम्हारी पालिश तो नही उतरी ।" मैंने कहा ।
" नहीं उतरी ।" वो खड़े खड़े ही बोली ।
" अंदेशा तो बहुत था तुम्हें ।"
" हां । अलबत्ता उससे ज्यादा बुरी बात हो गई ।"
" क्या ?" मैं सशंकित स्वर में बोला ।
" बस में कुछ लफंगे सवार थे ।"
" ओहो !" - मैं हमदर्दी भरे स्वर में बोला - " उन्होंने तुम्हें छेड़ा होगा , गन्दे इशारे किए होंगे , फब्तियां कसी होंगी ।"
" इससे भी बुरा किया कमीनों ने ।"
" अच्छा !" क्या किया उन्होंने ?"
" उन्होंने मुझे हर तरह से नजर अंदाज कर दिया , मेरी तरफ झांका भी नहीं , पीठ फेर ली मेरी तरफ से ।"
" यह तो वाकई बुरा किया कमीनों ने ।"
" हां न । आप यदि मुझे कैब से आने को बोले होते तो क्या होती मेरी इतनी बेइज्जती ।" " आप ..........."
उसकी बक बक शुरू हो गई थी और मैं चुपचाप उसे देखे जा रहा था । मैं जानता था कि वो कैब से ही आयी होगी लेकिन उसे तो मुझसे अपनी बक बक करनी थी । मुझे तो उसकी बक बक भी बहुत प्यारी और सेक्सी लगती थी । उसके बोलने का अंदाज , उसके लबों का हिलना, उसके हाथों का झटकना, बोलते वक्त उसके लटो का उसके गालों को चूमना । मैं तो जैसे कहीं खो गया था ।
" लगता है अभी तक आपने डीनर नहीं किया ।"
" क.. क्या कहा ? " मैं जैसे होश में आया ।
" मैंने कहा लगता है अभी तक आपने डीनर नहीं किया ।"
" कैसे जाना ?" मैं हकबकाया ।
" आंखों ही आंखों में मुझे निगल जाने की कोशिश जो कर रहे हो ।"
" सिर्फ कोशिश कर रहा हूं ।" - मैंने नकली आह भरी - " कोशिशें तो मैं और भी बहुत करता हूं लेकिन कामयाब कहां हो पाता हूं ।"
" कयी बार कोशिश में कामयाबी से ज्यादा मजा आता है ।"
" वो कैसे ?"
" कोशिश इनसान बार बार करता है । कामयाबी के बाद वो कहानी खतम हो जाती है ।"
" क्या बात है , आज तो बड़ी काबिलियत भरी बातें कर रही है ।"
" मैं अक्सर काबिलियत भरी बातें करती हूं , खास तौर से सूर्य अस्त होने के बाद ।"
" गुड । अब अपनी प्रवचन बन्द कर मुझे जोरों से भुख लगी है ।"
" तो मैंने आपको खाने से रोका है कब से खुद ही बक बक किये जा रहे हो ।" वो अपनी आंखें तरेरती हुई बोली ।
फिर खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ गया और आगरा जाने के लिए अपने बैग तैयार किया और फिर बिस्तर के हवाले हो गया ।
सुबह साढ़े आठ बजे होंगे जब मैं गाजियाबाद श्वेता दी के फ्लेट पहुंचा । जीजा अपने कमरे में आराम कर रहा था । श्वेता दी तैयार हो गई थी । उन्होंने पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी । बिना आस्तीन का ब्लाउज जिसमें उनके गोरी माशल भुजाएं काफी आकर्षित लग रही थी । ब्लाउज का गला v आकार का था जिसमें से उनकी cleavage कुछ हद तक नुमाइश हो रही थी । गले में मंगलसूत्र के अलावा बदन पर कुछ और भी गहने पहन रखी थी । उनका गदराया हुआ यौवन किसी भी इन्सान को घायल करने के लिए पर्याप्त था ।
मैंने नाश्ता वहीं किया फिर जीजा से इजाजत लेकर हम दोनों कार लेकर वहां से निकल गये । मैं ड्राइव कर रहा था और वो आगे वाली सीट पर मेरे बगल बैठी थी । कुछ दुर तक हम शान्त ही रहे । जब कार भीड़ भाड़ वाले एरिया से बाहर निकल मेन रोड पर आई तब श्वेता दी ने कहा ।
" अब बताओ क्या बात है "
" कैसी बात ? " मैंने नजरें स्क्रीन से हटाकर उनकी तरफ देखा ।
" जब तुम राजीव से प्रायवेट बात करने को बोल कर मुझे वहां से हटने के लिए बोले थे।"
" ओह ! वो । " मैं वापस नजरें स्क्रीन पर रखते हुए कहा - " " बता दुंगा , थोड़ी धीरज रखो ।"
" नहीं । अभी बताओ ।"
" वो काफी लम्बी कहानी है , इस वक्त कार ड्राइव करते हुए कैसे बोल सकता हूं । एक काम करते हैं वहां पहुंच कर बताता हूं । वहां अकेले में हमें काफी समय मिलेगा ।"
" ओके ।" बोलकर वो चुप हो गई । कुछ देर बाद वो एक्साइटेड हो कर बोली - " आज कितने दिनों के बाद न हम किसी पार्टी में शामिल हो रही हैं , कितना मजा आयेगा । है ना ।"
" हां । तुम्हारे शादी के बाद पहली बार ।" - मैंने मुस्कराते हुए कहा ।
" हां । जब हम छोटे थे कितने मस्ती करते थे , कितने झगड़ते थे । "- वो कहीं खोई खोई सी बोली । - " और अब जैसे लगता है मैं अपना बचपन भुल गयी हूं ।"
" अच्छा तो है , अब शादी शुदा जिंदगी की लुत्फ उठा रही हो । इतना अच्छा प्यार करने वाला पति मिला है । वैसे भी जिन्दगी का चक्र तो हमेशा बदलते रहता है ।"
" हां । " वो चुपचाप सी हो गई ।
" सब ठीक है ना ? "
" हां । सब ठीक ठाक है ।" - वो अचानक से अलग रंग में आते हुए बोली - " छोड़ो वो सब , कोई गाना वाना लगाओ । किशोर कुमार के मस्त गाने ।"
करीब एक घंटे बाद वो गाने से बोर होने लगी तो मैंने कहा अगर नींद आ रही हो तो सो जाओ । मगर उसनेे मना कर दिया । और खुद ही तरन्नुम में शायरी करने लगी -
" फिर मुझे दीदा - ए - तर याद आया ,
दिल जिगर तश्रना ए फरियाद आया ,
दम लिया था ना कयामत ने हनोज ,
फिर तेरा वक्त ए सफ़र याद आया । "
" वाह ! वाह । शायरी की तुकबंदी तो बहुत अच्छी है लेकिन मुझे समझ नहीं आया ।" मैंने उनको शाबाशी देते हुए कहा ।
वो हंसते हुए बोली - " मुझे उर्वशी ने सुनाया था पर सच कहूं तो मुझे भी इसका अर्थ नही पता ।"
" उर्वशी ऐसी भी शायरी करती है मगर मुझे तो ..." मैं अचरज से बोला ।
" क्या मुझे तो ? " वो प्रश्न सूचक दृष्टि डाली ।
" नहीं , कुछ नहीं ।"
" तुम कुछ छुपा रहे हो , मेरी कसम बोलो ।"
" मुझे तो बड़ी सिम्पल और अच्छी अच्छी शायरी भेजती हैं ।" मैंने धीरे से कहा ।
" क्या मतलब ? - वो अचरज से बोली - " उर्वशी तुम्हें शायरी मैसेज करती है ।"
" हां । इसमें अचरज की बात क्या है , तुम्हीं ने तो कराई थी हमारी जान पहचान , भुल गयी ? "
" नहीं ।" वो अभी भी शंकित नजरों से मुझे घुर रही थी - " वैसे वो क्या क्या मैसेज करती थी ? "
" अरे यार ! क्यों हलकान होती है , वहीं सिम्पल साधारण सी मैसेज ।"
" मुझे दिखाओ ।" मुझे घुरते हुए बोली ।
" ठीक है बाबा ! आगरा चल के देख लेना ।"
वो आश्वस्त नहीं हुई ।
" क्या अब भी , मेरा मतलब शादी के बाद भी मैसेज करती है ? "
" हां । अभी भी करती है । परसों ही तो किया था ।" - मैंने उसे और छेड़ते हुए कहा ।
" और तुम ? क्या तुम भी करते हो ? "
" मैं भी करता हूं ।"
अब श्वेता दी के मन मन्दिर में उथल-पुथल मच गई थी । वो काफी देर तक चुप रही फिर बोली -
" अच्छा परसों वो क्या मैसेज की थी ? "
" अरे यार ! कितनी शकी हो । मैंने कहा न आगरे में बता दुंगा ।"
" नहीं । परसो वाली मैसेज बताओ बाकी वहां बता देना ।" उसने जीद पकड़ ली ।
मैं सोचता हुआ बोला - " मुझे पुरी तरह से याद नहीं आ रहा है ।"
" कुछ तो याद होगा वहीं बताओ ।"
" ठीक है , मुझे सोचने दो ।"
वो बैठे बैठे ही पहलु बदल रही थी और मैं ड्राइव करते हुए थोड़ी सोचने की मुद्रा में आ गया ।
" अभी याद नहीं आ रहा है ।" मैंने ललाट सहलाते हुए कहा ।
" चुपचाप सीधी तरह से बताओ नहीं तो अभी गाड़ी से ढकेल दुंगी ।" वो आंखें तरेरते हुए बोली ।
" हद है यार । ठीक है याद करने की कोशिश करता हूं ।" - थोड़ी देर बाद बोला - " हां , कुछ कुछ याद आया , बोलता हूं ।"
" सुनो ।"
वो मुझे अपलक देखती रही ।
" तेरी बु...."( मैं यहां बु बोलकर अटक गया जैसे कि मैं भुल गया हूं )
वो चौंकी ।
" तेरी बुटदार चु...." ( मैं अब चु पर अटक गया )
वो इस बार अपनी आंखें फैलाई । ये देख मैं जल्दी से बोला -
" तेरी बुटदार चुनर को देख कर मेरा झां....( अब मैं झां पर अटक गया )
अब उसके चेहरे के रंग बदलने लगे थे । उसके गुस्सा होने से पहले मैंने वाक्य पुरी की -
" तेरी बुटदार चुनर को देख कर मेरा झांझर सा दिल डोल उठा ।"
अब वो थोड़ी नोर्मल हुई तो फिर आगे का लाईन बोलना शुरू किया ।
" तेरी बुटदार चुनर को देख कर मेरा झांझर सा दिल डोल उठा ।
तेरी चु....( अब फिर मैं चु पर अटक गया और याद करने का नाटक करने लगा )
वो मुझे बिना पलक झुकाए मुझे देख रही थी । मैंने उसे देखा फिर आगे का लाईन बोलना शुरू किया -
" तेरी चुन-चुन करती पायल ने मेरा लन्ड....." ( इस बार मैं लन्ड पर अटक गया )
उसके चेहरे के हाव-भाव से लग रहा था कि अब ज्वालामुखी फटने ही वाला है इसलिए मैंने जल्दी से अगले लाईन को भी पुरा किया -
" मेरा लंडन जाना रोक दिया ।" - बोलकर मैंने उसे देखा और उसे शायराना अंदाज़ में पुरी शायरी एकसाथ कहा ।
" तेरी बुटदार चुनर को देख कर , मेरा झांझर सा दिल डोल उठा ।
तेरी चुन-चुन करती पायल ने , मेरा लंडन जाना रोक दिया । "
वो मुझे गुस्से से अपनी आंखें बड़ी बड़ी करके अपलक देखे जा रही थी ।
मैंने कहा - " ऐसे क्या देख रही हो ? मैंने तो पहले ही कहा था मुझे याद नहीं आ रहा है ।...... वैसे शायरी अच्छी थी न ? "
उसने एक जोरदार का पंच मेरे बांह पर मारा ।
" अरे ! क्या करती हो ? एक्सीडेंट हो जाएगा ।" - मैंने अपने हाथ सहलाते हुए कहा ।
" मैं सब समझती हूं । तुम न ! तुम्हे ना मैं वहां जाके आगरा के पागलखाने में भर्ती करवा दुंगी । तुम पहले पहुंचो वहां ।" - उसने मुझे घुरते हुए कहा ।
" मुझे एक और याद आ गया । सुनाऊं ? " मैंने उसे छेड़ते हुए कहा ।
" जरुरत नहीं है । चुपचाप गाड़ी चलाओ । - मुझे घुरते हुए ही बोली - " और रास्ते में कहीं होटल के सामने रुकना "
" क्यों ? भुख लगी है क्या ? अरे ! कितना खाती हो यार दो ढाई घंटे पहले ही तो खाया था, मोटी हो जाओगी । जानती हो , मोटापा न अपने आप में एक गम्भीर बिमारी है । तुम्हारी ये छरहरी काया ..."
" चुप रहो " - मुझे बीच में टोकते हुए बोली - " बकवास बंद करो । मुझे बाथरूम जाना है ।"
" बाथरूम ! ... बाथरूम क्यों ? घर में नहाई नहीं थी क्या या सिर्फ हाथ मुंह धोना है ।"
" तुम ! " - वो गुस्से से देखी - " टायलेट जाना है । अब ये मत पूछना कि टायलेट क्यों जाना है ।"
" ठीक है नहीं पूछूंगा । वैसे एक बात कहूं ? "
" क्या ?"
" मैं पुछने वाला था ।"
" तुम एक नम्बर के कमीने हो ।" - कहकर फिर मेरे बगल में घुसा मारा ।
कुछ दुर जाने के पश्चात एक होटल जो ठीक ठाक ही था मिला । हम कार से उतर कर होटल की तरफ चल दिए ।