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Incest Sagar (Completed)

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Update 9 B.


" कपड़े तो चेंज कर लो ।" मैंने कहा ।

" नहीं । पहले बताओ राजीव से क्या बात हुई थी ।" श्वेता दी आराम से बिस्तर पर अपने को एडजस्ट करते हुए बोली ।

मैंने इमानदारी से पुरी बात बताई । वो राजीव के अनुष्का के साथ नाजायज संबंधों को सुनकर भड़क गई । मैंने बड़ी मुश्किल से उसे शान्त किया । मैंने उसे समझाया कि अनुष्का राजीव का पहला प्यार था और यदि वो राजी होती तो वो आज के तारीख में राजीव की पत्नी होती । और वैसे भी अनुष्का शादी शुदा है और वो अपने फिजूलखर्ची और लालची स्वभाव के कारण अपने पति को छोड़ने वाली नहीं है ।

वो आश्वस्त हुई । फिर बोली " एक और बात है ।"

" क्या?"

उसने चिंतित स्वर में कहा -" मुझे उस घर में सोने से डर लगता है । बाथरूम में जाती हूं तो ऐसा लगता है जैसे अमर अभी उठ कर खड़ा हो जाएगा और मुझे...."

मुझे उसकी बात जायज़ लगी । अमर की मौत कोई स्वाभाविक मौत तो थी नहीं । उसका कत्ल हुआ था । तो डरना वाजिब ही था । सोचते हुए मुझे एक आइडिया आया ।

मैंने कहा -" तुम लोग क्यों नहीं वो फ्लेट बेच देते हो ? और गाजियाबाद छोड़ कर दिल्ली में ही शिफ्ट हो जाओ ।"

" तुम्हें इतना आसान लगता है ? फ्लेट खरीदना अमूमन आसान होता है । लेकिन बेचना बहुत मुश्किल होता है । और गरजु हो कर बेचने में फ्लेट की कीमत भी सही नहीं मिलती है ।"

" इसका एक रास्ता हो सकता है ।"

" क्या ?"

" तुम लोग अमर के घर शिफ्ट हो जाओ । अमर के घर में उसके मां के अलावा और कोई भी नहीं है । वो बेचारी अकेली घर में अमर के यादों में डुबी रहती है । तुम लोगों के आने से उनका अकेलापन दूर हो जाएगा और उनका दिमाग भी दुसरी चीजों की तरफ केन्द्रित होगा । और फ्लेट की जब सही कीमत मिले तब बेच देना ।"

" बोल तो तुम सही रहे हो लेकिन क्या वो हमे अपने घर में रहने देगी ।"

" उसकी चिंता मत करो । तुम राजीव जीजू से बात करो फिर अपनी राय मुझे बता देना । और उनके लिए भी तो ये डिसीजन अच्छा ही होगा , वहां से उनकी आफिस काफी नजदीक हो जाएगी ।

श्वेता दी को ये मशवरा काफी अच्छा लगा । वो खुश हो कर बोली - ओके । चलो अब ताश खेलते हैं ।"

मैंने ताश अपने पैंट से निकाल कर उस के सामने रखा ।

" याद रखना मेरे पास हजार बारह सौ से ज्यादा रूपए नहीं है । वैसे खेलना क्या है ?"

" स्ट्रीप पोकर ।" श्वेता दी ने कहा ।

मैं चौंक गया । स्ट्रीप पोकर एक इरोटिक गेम है जिसे अमेरिका और यूरोप में अधिकतर खेला जाता है । इस गेम में पैसों की बाजी नहीं लगती है । इसमें प्रत्येक बाजी में हारने वाला अपने शरीर से एक कपड़े उतारता है । और अन्त में हारने वाले के शरीर से जब सभी कपड़े उतर जाते हैं मतलब हारने वाला जब पुरी तरह से नंगा हो जाता है तब जाकर ये गेम खतम होता है । इसे कार्ड या स्पाइन दि बोटल के द्वारा खेला जाता है ‌।

"तुम्हें स्ट्रीप पोकर के बारे में पता है न ।" मैं आश्चर्यचकित हो बोला ।

" हां पता है ।"

" केसे भाई "

" क्या सारी दुनिया का ज्ञान तुम्हारे ही पास है ? क्या इन्टरनेट तुम्हीं सर्च करते हो ।"

" तुम क्या जानती हो । ये तो बताओ ? " मैं अभी भी आश्वस्त नहीं था ।

" यहीं कि अगर मैं जीती तब तुम्हें अपने शरीर से एक वस्त्र निकालना पड़ेगा और यदि तुम जीते तो मैं अपने शरीर से एक वस्त्र निकालूंगी ।"

" और गेम शेष कब होगा ?"

" जब तक हारने वाले के शरीर से पुरी तरह कपड़े उतर नहीं जायेंगे ।"

" मतलब जब तक कोई एक पुरी तरह नंगा नहीं हो जाएगा ।" मैंने कहा ।

" हां ।"

मैंने उसे सर से पांव तक निहारा । वो अभी भी वहीं ब्लू कलर की साड़ी और ब्लाऊज़ पहने हुए थी । ब्लाउज में कैद उसके बड़े-बड़े वक्ष गर्व से सीना तान कर खड़ी थी । शरीर का कोई भी भाग खुला तो नहीं था लेकिन उसके गदराए हुए का प्रत्यक्ष प्रमाण पेश कर रही थी ।मेरा दिल तो बल्लियों उछलने लगा । उसके नंगे होने की कल्पना से ही मेरा लिंग उत्तेजित हो गया । मुझे सालों की मेहनत साकार होते हुए नजर आने लगी ।

" सपने देखना बंद करो । और मेरे सामने नंगे होने के लिए तैयार हो जाओ ।" उसने मेरे चेहरे के हाव-भाव को पढ़ते हुए कहा ।

मैं मुस्कराते हुए बोला -" जब मैं टेंथ स्टैंडर्ड में और तुम हायर सेकंडरी में थी तभी से तुम को नंगा देखने की लालसा जगी हुई थी । लगता है आज उपर वाले को दया आ ही गई ।"

" बड़ी शौक है ना अपनी बहन को नंगी देखने की । मगर अफसोस तुम्हारी इच्छा अधूरी ही रह जाएगी । वैसे भी आज तक ताश में मुझसे हारते ही आए हो ।"

" देखते है आज तुम्हें हारने से तुम्हारी किस्मत कितना बचाती है ।"- मैंने मुस्कराते हुए ताश को फेंटते हुए कहा -" अब जरा कपड़ों के बारे में बात कर ले । हम दोनों के वस्त्र ‌भी तो बराबर बराबर होनी चाहिए न । मेरे शरीर पर इस वक्त चार कपड़े है पैंट , शर्ट , गंजी और जांघिया । अब तुम अपने बताओ ।"

" मेरे पांच हैं ।"

" कौन कौन सा ?"

" साड़ी , ब्लाउज , पेटिकोट , ब्रा और पैंटी ।"

" ये तो गलत है । मेरी तरह तुम भी चार कपड़ों में हो जाओ ।"

" नहीं । तुम्हारे कलाई की घड़ी को पांचवां वस्त्र मान लेंगे ।"

" ओके ।" - मैं राजी हो गया ।

मैंने ताश फेटी और उसने ताश को बीच से काटा । असल में कार्ड फ्लश की तरह ही बांटे जाते हैं । तीन तीन करके । फ्लश की तरह जिसका कार्ड बड़ा होगा वो ही जीतेगा ।वो अपने कार्ड उठाई ।

मैंने अपना कार्ड देखा । मेरे पास हार्ट का 7 और स्प्रेड का 10 और किंग आया था । मैंने उसे अपने कार्ड देखाने को बोला ।

उसके पास डायमंड का क्विन , स्प्रेड का गुलाम और क्लब्स का 9 आया था । उसके कार्ड मेरे से बड़े थे । मैं पहला गेम हार गया था । मैंने अपनी घड़ी निकाल कर पलंग के बगल में रखे मेज पर रख दिया ।

वो जीती थी इस बार कार्ड उसने बांटे । मैंने अपनी कार्ड देखी । इस बार डायमंड का तीन , क्लब्स का छः और स्प्रेड का नौ आया था । मैं निराश हो गया । जब उसने अपने कार्ड दिखाया तो उसके पास हार्ट के आठ और क्लब्स के दो और स्प्रेड के आठ निकले । उसके पास आठ का पेयर था । मैं फिर हार गया ।

मैंने अपना शर्ट निकाल कर मेज पर रख दिया । उसने मेरे बदन पर एक सरसरी निगाह डाली ।

वो मुस्कुराती हुई कार्ड बांटी । वो फिर जीत गयी । उसने कलर से मुझे बीट कर दिया जबकि इस बार मेरे पास भी अच्छे पते आये थे । मेरे पास किंग का पेयर था ।

मैंने अपनी गंजी उतार दी और उसे भी बगल में रख दिया । अब मैं उपर से नंगा हो गया था । मेरे शरीर पर सिर्फ पैंट और जांघिया ही बचा था ।

नेक्स्ट राउंड में मेरी तकदीर खुली । उसके पास दो का पेयर आया था जबकि मेरे पास छः का पेयर आया था ।

श्वेता दी ने पलंग पर खड़े होकर अपनी सारी उतारी और उसे उसी मेज पर रख दिया जिस पर मेरा वस्त्र था । साड़ी उतरने के बाद उसकी कमर नंगी हो गई थी । ब्लाउज में कैद उसके बड़े-बड़े वक्ष प्रत्यक्ष रूप से सामने आ गये ।

अगला राउंड भी मैं ही जीता । उसके पास सबसे बड़ा कार्ड गुलाम था जबकि मेरे पास दो तीन , चार का सिक्वेंस आया था ।

उसनेे बैठे बैठे ही अपने ब्लाउज को निकाला और बगल मेज पर रख दिया ।

उसकी ब्रा उसके बड़े-बड़े गोलाईयों को ढकने में पुरी तरह से नाकाम थी । वो उसके पुरे वक्ष का चालीस प्रतिशत ही ढक पाई थी । साठ प्रतिशत वक्ष नंगे हो गए थे । गोरी त्वचा अधनंगी गोलाईया नंगा कमर और गहरी नाभि देखकर मैं होशो-हवास खो बैठा । मेरी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी ।

" कार्ड बांटो " - उसकी आवाज से मेरी तनदरा भंग हुई ।

अभी भी वो तीन वस्त्र पहने हुए थी जब की मैं दो । मैंने कार्ड बांटी । इस बार उसने मुझे हरा दिया । उसके पास तीन दहला आया था और मेरे पास तो सबसे बड़ा कार्ड ही नौ था ।

मैंने अपना पैंट निकाल कर रख दिया । अब मैं सिर्फ जांघिया पहने हुए था । मैंने महसूस किया कि वो मेरे बदन को चोरी छिपे निहार रही है । कभी उनकी नजर मेरे चौड़ी सीने पर जाती तो कभी मेरे माशल जांघों पर और कभी मेरे जांघिया में कैद उठे हुए उभारों पर । मैंने अपने शरीर पर काफी मेहनत की थी । मैंने जिन लड़कियों से संभोग क्रिया था वो सभी मेरे गठिले शरीर की कदरदान थी ‌।

" अब अपने आखिरी वस्त्र को निकालने और हारने के लिए तैयार हो जाओ ।" श्वेता दी ने मुस्कुराते हुए कहा ।

" देखते है । जब तक सांस तब तक आस ।"

उसने कार्ड बांटे । इस बार मैं जीता । मेरे कार्ड तो बहुत छोटे थे लेकिन उसके कार्ड मुझसे भी छोटे थे । मेरे पास छः , नौ और ग़ुलाम था जबकि उसके पास छः , आठ और दस था । अबकी बारी श्वेता दी को कपड़े उतारने की थी ।

" क्या उतारोगी ?" मैं तो चाहता था कि वो अपने ब्रा निकाल दे ताकि मैं उसके नंगे चुचियों का दिदार कर सकूं ।

लेकिन उसने अपना पेटीकोट उतारा । उसकी मोटी मोटी जांघें ‌जो दुध के समान गोरी थी मेरे आंखों के सामने साक्षात थी । वो अब पैन्टी में थी । पैन्टी उसकी चुत से चिपका हुआ था और वो उसके चुत के रस से भीगी हुई थी ।

मैं 'आह ' भर कर रह गया ।

" पत्ते बांटो । इस बार तो बच गए । लेकिन इस बार नहीं छोडूंगी ।"

मैं इतना भी अहमक नहीं था । कुछ कुछ समझ में आ रहा था लेकिन सगे संबंधियों के सामने मती काम करना भुल जाती है । मैंने पत्ते बांटे । धड़कते दिल से पत्ते उठाया और जैसे ही मैंने पत्तों पर नजर डाली मैं खुश हो गया । मेरे पास ग़ुलाम , बेगम , बादशाह का स्टेट सिक्वेंस था ।

श्वेता दी के पास स्प्रेड का कलर था । वो ये गेम हार गयी थी । मैं सोच रहा था अब वो क्या करेंगी । अपनी ब्रा उतारेगी या अपनी पैंटी । जो भी उतारें मुझे तो मजा ही आयेगा ।

श्वेता दी ने मुझे अपने नशीली आंखों से देखा और अपने जीभ को अपने होंठों पर फिराया । मैं उसके गुलाबी होंठ और रसीली जीभ को देख कर आहें भरता रह गया । कितना मज़ा आएगा इन को चुसने में । एक बार चुसने को मिल जाए तो फिर कयामत तक चुसता रहुं ।

वो मेरी आंखों में देखते हुए अपनी हाथ पिछे की तरफ ले गई और ब्रा को खोल कर नजाकत से मेरी गोद में फेंक दिया । और अपने सीने को अपने हाथों से ढक लिया ।

" ये ग़लत है । वहां से अपने हाथ हटाओ ।" मैंने कहा ।

" कपड़े उतारने की शर्त थी वो तो की ना मैंने ।"

" नहीं । अपने बदन को ढकना गेम के रूल में नहीं है ।"

" नहीं । मैं नहीं हटाउगी ।"

" ठीक है तब गेम बंद करते हैं ।"

" तुम एक नम्बर के बदमाश हो । नखरे करते हुए उसने अपने हाथ अपने वक्ष पर से हटा लिये ।

उसकी दुधिया कलर की बड़ी बड़ी चुचिया नग्न हो गई । उसकी चुची के निप्पल मध्यम आकार के थे । निप्पल का areola सांवला रंग का था । उसकी चुची गोलाकार और ठोस थी । शायद 38 D होगी ।

मेरी ‌नजर चुचियों पर से हटती ही नहीं थी । थोड़ी देर बाद मेरी नज़र चुचियों से निचे की तरफ गई तो उसके नंगे कमर और गहरी नाभि पर फ्रिज हो गई । अगर वो नहीं टोकती तो मैं घंटों उसके सुंदर और सेक्सी बदन को देखते ही रहता ।

" कार्ड बांटो ।" इस बार उसके आवाज में कामुकता और थोड़ी शरमाहटपन थी ।

मैंने मन ही मन उपर वाले को धन्यवाद दिया और कार्ड बांटी ।

अब हम दोनों के बदन पर सिर्फ़ एक एक ही वस्त्र था । वो सिर्फ पैंटी में थी और मैं सिर्फ जांघिया में । हम दोनों बिस्तर पर थोड़ी सी ही फासले पर बैठे थे।

मैंने सहुलियत के लिए अपने पांव थोड़ा फैला लिया था । मैं अपने पत्ते उठाते हुए उसकी तरफ देखा तो उसे मैंने अपने दोनों जांघों के बीच देखते हुए पाया । मैंने देखा मेरा लन्ड जांघिया को फाड़ कर बाहर निकलने के लिए फड़फड़ा रहा था ।

उसने अपनी पलकें उपर की ओर की । हमारी नजरें मिली । दोनों की आंखों में वासना चरम पर थी । उसने मेरी आंखों में देखते हुए बड़े ही इरोटिक ढंग से कार्ड को अपने पैन्टी के अन्दर किया और उसे अपने चुत से रगड़ कर बाहर निकाला फिर सेक्सी आवाज़ में बोली -

" इस बार मैं ही जीतूंगी । अपने पत्ते दिखाओ ।"

मेरा कलेजा मुंह पर आ गया । मुझे तो लगता था कि बिना कुछ किए मेरा लन्ड पानी फेंक देगा ।मैंने भी अपने लन्ड को जांघिया के उपर से मसलते हुए कहा - " दिखा रहा हूं जाने मन । पहले अपनी तो दिखाओ ।"

उसने अपने पत्ते दिखाए । मेरी आंखें उन पत्तों को देख कर फटी की फटी रह गई । उसके पत्ते उसके चुत के रस से भीगी हुई थी । मैं तो पागल सा हो गया ।

मैंने उसके पत्ते उठाये और उसकी आंखों में देखते हुए पत्तों को जीभ से चाटने लगा । वो ये देखकर काफी उत्तेजित हो गई । मैं उसके नमकीन पानी को चाट कर पत्ते से पुरी तरह साफ कर दिया । फिर उसके पत्तों पर देखा ।

उसके पास बहुत ही अच्छा कार्ड आया था । उसके पास तीन बेगम आई थी । मैं गेम हारने वाला था । मुझे उसकी चुत को देख ने की लालसा धूमिल होते हुए दिखाई देने लगी ।

" तुम्हारे कार्ड में देखूंगी ।" बोलकर उसने मेरे कार्ड उठा लिए ।

मैं धड़कते दिल से उसे देखा कि शायद मेरे पास उससे भी अच्छा कार्ड आ जाय और मैं उसकी चुत को देख सकूं ।

उसने मुझे देखा और निराशा भरे स्वर में कहा - " तुम्हारी किस्मत आज अच्छी है । तुम जीत गए ।"

मैं आश्चर्य और खुशी से मन ही मन झुम गया । मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने करोड़ों रुपए की लाटरी की बमपर प्राइज जीत ली हो । मैं मछली के आंख की तरह उसके पैन्टी पर नजर टिका दी ।

श्वेता दी ने बड़ी ही कामुकता पूर्वक अपनी उंगलियों को अपने पैन्टी पर रखा और धीरे-धीरे नीचे की तरफ खिसकाने लगी । पैन्टी को उतार कर मेरे मुंह पर फेंक दिया । मैंने जल्दी से उसे लपका और उसकी नंगी चुत को देखने का प्रयास करने लगा ।

श्वेता दी फिर से अपने सुखे होंठों पर जीभ फिराई और मेरी नज़रों में देखते हुए आंखों से नीचे की तरफ देखने की इशारा करते हुए अपनी दोनों टांगें फैला दी ।

मेरी नजर उसकी दोनों टांगों के बीच पर गयी ।

मेरी आंखों के सामने उसकी चुत थी ।

एक दम चिकनी , डबल पावरोटी के समान फुली फुली , चुत के बीचों-बीच लम्बी दरार और मोटे मोटे ओंठ । उसके दरारों से रिसता हुआ पानी जो उसके जांघों तक आ पहुंचा था ।

" कैसी है ?"

मेरा ध्यान उसके बोलने से टुटा । मैं वासना से लथपथ उसकी तरफ प्रश्न भरी नजरों से देखते हुए कहा -" क.. क्या ?"


" ये ." - उसने अपनी चुत की तरफ इशारा करते हुए कहा ।


" क्या ये ?" - मैंने उसे दिखा कर अपना लौड़ा मसलते हुए कहा ।


वो थोड़ी सी मेरे तरफ़ घिसकी और मेरे जांघों के उपर अपने पांव रखते हुए फुसफुसा कर बोली - " तुम्हारी बहन की बुर ।"
Very erotic update bro zabardast
 
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Game888

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Update 9 B. Continue.


उसके लफ्ज़ सुनकर मेरे कानों से धुआं निकलने लगा । मेरे शरीर का सारा खून मेरे लन्ड पर पर एकत्रित हो गया । धड़कने तेज हो गई । मैं उसके आंखों में देखते हुए अपनी जांघिया को पकड़ कर नीचे खिसका दिया । जांघिया के हटते ही लन्ड स्प्रिंग की तरह उछल पड़ा ।

श्वेता दी की नजर मेरे लन्ड पर पड़ी । उसकी आंखें वहीं अटक गई ।

वो मेरा लन्ड देख रही थी और मैं उसकी चुत देख रहा था ।


" अद्भुत , अनुपम , अदि्वतीय , अव्वल " मैं फुसफुसाया ।

" क्या ।"

" तेरी बुर ।"

" शरम नहीं आती है ।"

" किसलिए ।"

" अपनी बहन की बुर की बड़ाई करते हुए ।"

" जब देखते हुए और ' बुर ' बोलते हुए शर्म नहीं आती है तो बड़ाई करने में शरम क्यों आयेगी ।"

" हमम "....." मेरी कच्छी दो ।"

" क्यों ।"

देखते नहीं कितनी पानी छोड़ रही है ।" -उसने अपनी टांगें फैला कर अपने चुत में ऊंगली डाल कर चोदने लगी और रस से सराबोर अपनी ऊंगली मुझे दिखाते हुए बोली ।

मैंने तेजी से अपना जांघिया निकाल फर्श पर फेंक दिया । हम दोनों पुरी तरह मादरजात नंगें हो गये थे ।

हम दोनों अपने अपने गुप्तांगों को एक दुसरे को दिखा कर मसलने लगे ।

" तुम्हारी कछी गन्दी हो जाएगी । "- मैं कभी उसकी चुत तो कभी उसकी रस से भरी हुई ऊंगली को देखते हुए कहा -" इससे अच्छा है मैं चाट कर साफ कर देता हूं ।"

" मेरी बुर चाट कर साफ करोगे ।"

" हमम ।"

" कहीं तुम्हारे जीजा को पता चल गया तो ।"

" क्या ।"

" की उनकी बीवी की बुर को उसका छोटा भाई चाट चाट कर साफ़ करता है ।"

अब वो तेजी से अपनी चुत को उंगलियों से चोद रही थी और मैं उसके सामने बैठा मुठ मारे जा रहा था ।

" जीजा को कैसे पता चलेगा कि उसकी बीवी अपने भाई से अपनी बुर चुसवा रही है । जीजा को कैसे पता चलेगा कि उसकी बीवी अपने भाई से चोदवा रही है ।"

' अच्छा चोदवा भी रही है " - वो सरक कर मेरे गोद में बैठ गई ।

" हां " कहकर मैंने उसकी चूचियों को दबोच लिया ।

" उसे पता चल जाएगा ।"

" कैसे ।"

वो मेरा लन्ड पकड़ कर मसलते हुए बोली -" बुर फट जायेगी । तुम्हारा लौड़ा बहुत बड़ा जो है ।"

मैंने उसकी चुत में अपनी ऊंगली डाल दी और ऊंगली से चोदते हुए कहा -" बुर तो फटने के लिए ही होती है । लन्ड जितना बड़ा होगा बुर को उतनी ही ज्यादा मजा आयेगा ।"

" अच्छा ! और उसे पता नहीं चल जाएगा कि उसकी बीवी की बुर अपने भाई के मोटे लन्ड से चुद चुद कर ज्यादा ढीली हो गई है ।" वो मेरे लन्ड को मुठ मारते हुए बोली ।

" उसे तो ये भी पता नहीं चल पाएगा कि उसके होने वाले बच्चों का बाप वो नहीं बल्कि उसके बीबी का भाई होगा ....उसे ये भी पता नहीं चलेगा कि उसकी बीवी उसी के बगल में लेट कर अपने भाई से अपनी रसीली चुत कुटवायेगी ।"

वो काफी उत्तेजित हो गई ।

" अच्छा ? ...तो शुरू करो ।"

" क्या ।"

" चोदन पर्व .... तभी न बहनचोद बनोगे ।"

" हां और तुम्हारे होने वाले बच्चों का मामा और बाप ।"

अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था । उसने मुझे धक्का दिया । मैं बिस्तर पर पीठ के बल गिर पड़ा । वो मुझ पर झुकी । अपनी चूची को मेरे सीने पर रगड़ी और अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दी ।

मैंने उसे अपने बाहों में कस कर दबोच लिया । वो अपने बाहों को हार मेरे गले में डाल कर मुझ पर पसर गई । उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां मेरे चौड़े सीने से दब गई ।

हम दोनों का गहरा चुम्बन शुरू हो गया था । मैं उसके निचले होंठ को अपने होंठों में दबा कर चूसने लगा । वो मेरा उपर वाले होंठ चुस रही थी । थोड़ी देर बाद उसने मेरे निचले होंठ को अपने होंठों में दबा लिया और बुरी तरह चूसने लगी । मैं उसके ऊपर वाले होंठ चूसने लगा ।

मैं उसकी चूचियों को दबाना चाहता था लेकिन वो मुझसे जोंक की तरह चिपकी हुई थी अतः मैंने उसके बड़े बड़े गांड़ को हाथों से सहलाने और मसलने लगा । क्या गांड़ थी उसकी । एक दम बड़े बड़े और मांस से भरपूर । वो उत्तेजित हो कर मेरे होंठों को बुरी तरह चूसने लगी । हम दोनों इतनी बुरी तरह एक दूसरे को चूम रहे थे कि ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे मुंह में अपनी मुंह घुसाए जा रही थी और मैं उसके मुंह में । दोनों के थुक लार मिल कर एक हो गए थे । मै उसके थूक अपने गले से निगल रहा था और वो मेरी थूक निगल रही थी ।

हमारी सांसें फूलने लगी थी । उसने अपना मुंह उपर किया तब जाकर हमारी सांसें व्यवस्थित हुई । हम दोनों एक-दूसरे के आंखों में देखते जा रहे थे । मैंने उसकी आंखों में देखते हुए अपनी ऊंगली उसके गांड़ के छेद में डाल कर कुरेदने लगा । उसकी आंखें वासना से लाल हो गई थी । उसने मेरी आंखों में देखते हुए अपनी रसीली जीभ को बाहर निकाला तो मैंने भी अपनी जीभ निकाल ली । वो फिर मेरे होंठों पर झुकी और अपने जीभ से मेरी जीभ को लड़ाने लगी । एक-दूसरे के जीभ से कुछ देर खेलने के बाद वो मेरे जीभ को अपने मुंह में ले कर चूसने लगी । थोड़ी देर बाद मैंने उसे पलट कर अपने नीचे लिटा दिया और मैं उसके ऊपर चढ़ गया और उसके चुत से लन्ड को रगड़ते हुए उसकी जीभ को अपने मुंह में लिया और उसे चुसने लगा । मन कर रहा था उसके जीभ को चुसता रहुं चुसता रहुं और चुसता ही रहुं । वो बेचैन हो कर अपने हाथोंको बीच में डाल कर मेरे लन्ड को पकड़ लिया और उसे जोर जोर से मरोड़ने लगी ।

हम दोनों एक दूसरे के चुमाई चटाई से थक ही नहीं रहे थे । मैं उसके दोनों चूचियों को अपने हथेलियों में भर कर दबाने लगा । उसकी चुची में कुंवारी लड़कियों जैसी कड़ापन था ।करीब आधे घंटे तक दोनों ने एक दूसरे के जीभ और होठों को चूमा । चूसा । फिर मैं धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ने लगा और उसके पुरे चुचियों को दबा दबा कर चूसने लगा काटने लगा ।

" लगता है " वो दर्द से कराही ।

लेकिन मैं तो बावला हो गया था । मैंने उसकी चूचियों को हाथों से दबोचते हुए निप्पल को अपने मुंह में ले कर चूसने लगा ।

अब उसे मज़ा आने लगा ।

वो अपनी सीने को उठा कर निप्पल को मुंह में ठूंसते हुए कामुक हो कर बोली -

" मेरे भैया को भुख लगी है...दुधु पियेगा.... अपनी दीदी की चूची का दूध पियेगा....।"

" Ssrrrruuuupppp.....Ssssrrruuuuppp...qqquuuummm..... ssrrrruuuupppp."- मैं उसके निप्पल को होंठों से दबोच दबोच कर चुसने लगा ।

" aaaahhhh....aaahhhhh.....ooohhhh."- वो बस सिसकारियां भर रही थी और " आह ' ' ओह' कर रही थी । और मेरे लन्ड को पकड़ कर मुठ मारने लगी । और अपनी गांड़ उठा कर झटके पर झटके देते हुए झर गई ।

मैं बदल बदल कर उसके दोनों निप्पलों को चूसना शुरु कर दिया । काफी देर तक उनको चूसा । जब मैं उसके चुचियों पर से हटा तब देखा कि उसकी पुरी चुचिया लाल हो गई थी । मैं धीरे धीरे नीचे की तरफ जाने लगा । उसके नंगे पेट को जीभ से चाटते हुए उसकी नाभि पर पहुंचा । मैंने अपने जीभ का नोक बना कर उसके नाभि में प्रवेश करा दिया । वो मेरे सर के बालों को सहलाये जा रही थी ।

उसके नाभि को गीला करने के बाद मैं उसके उसके चुत के ऊपरी हिस्से पर जीभ फिराने लगा ।

थोड़ी देर बाद मैं उठा और उसके दोनों पांवों के बीच बैठ गया । मैंने उसकी तरफ नजर फेराई । वो मुझे ही देख रही थी । मैं मुस्कराया तो वो भी मुस्कुरा दी । मैं झुक कर उसके मोटे मोटे जांघों पर अपने होंठ रख दिए । उसकी जांघें भी उसके चुत रस से भीगी हुई थी । मैंने उन्हें चाट लिया । अब मैं शीघ्र उसके चुत के पास जाना चाहता था ।

मैंने जांघों को चाटते चाटते उसके दोनों पैरों को पकड़ा और उसे विपरीत दिशा में फैला दिया । उसके डबल पावरोटी के समान फुली हुई चुत मेरे आंखों के समकक्ष आ गयी । उसकी चुत उसके कामरस से भीगी हुई थी । वो थोड़ी देर पहले झड़ी थी इसलिए उसके चुत के साथ साथ बिस्तर भी गीली हो गई थी । ताश के सारे पत्ते बिखरे पड़े थे । पत्ते मुड़ गई थी और बिस्तर के के चारों तरफ फैल गए थे। तभी मेरी नजर एक जगह रखें ताश के उन
तीन पत्तों पर पड़ी जो शायद मेरे थे और जीतने का कारण बने थे । वे पत्ते उस के गांड़ के नीचे दबे हुए थे । मैंने उन पत्तों को उसके गांड़ के नीचे से निकाला तो देखा उन पत्तों में एक स्प्रेड का छः , एक डायमंड का गुलाम और एक हार्ट का सात आया था । मैं आश्चर्यचकित हो गया । लास्ट गेम मैं नहीं श्वेता दी जीती थी और उसने कहा था कि मैं जीता हूं । उसने मुझे झुठ बोला था । वो मेरे सामने नंगी होना चाहती थी ।

मैंने उन पत्तों को उठाया और श्वेता दी को वहीं से दिखाया । श्वेता दी उन पत्तों को देख कर मुस्कराई । मेरे दिल में उसके लिए बहुत प्यार आया । मैंने झुक कर उनके होंठों को चुम लिया। मैं वापस उनके पैरों के बीच बैठा और उनके पांवों को उठा कर उनके सीने पर कर दिया जिससे उनकी चुत फैल गई । मैंने उनकी चुत को जी भर के देखा फिर अपने होंठों को चुत से सटा दिया ।

मैंने सबसे पहले चुत के मोटे ओंठ पर अपनी जीभ फिराई फिर उन को अपने होंठों से भर कर चूसने लगा । वो दुबारा गरम हो गई थी ।चुत रस से भींगने लगा था । वो अपना काम रस छोड़ने लगी थी जिसे मैं चुस चुस कर पी रहा था । मैंने अपनी ऊंगली चुत के छेद में डाल दिया और भगनासे को होंठों से दबा कर चुसने लगा । वो हाय हाय कर उठी । अपने कमर उठा कर मेरे मुंह पर फेंकने लगी । उसकी चुत में पानी का सैलाब आ गया । मैं उस पानी का एक कतरा भी जाया नहीं होने देना चाहता था । मैंने अपने होंठ को उसके चुत से चिपका कर उसके छेद में अपनी जीभ डाल दिया । वो मलाई छोडती रही और मैं उसे चाट चाट कर गले से निगलता रहा ।

श्वेता दी की उत्तेजना चरम पर थी । वो मेरे बालों को कस कर पकड़ ली और अपनी चुत की तरफ खिंचने लगी । ऐसी प्रतित हो रहा था जैसे वो मुझे अपने चूत में ही घुसेड़ लेगी । और मैं तैयार था उनके चुत में घुसने के लिए । मुझे उनके चुत की महक ने पागल सा कर दिया था । अपने नाक से चुत की महक को सुंघते हुए तेजी से छेद के अंदर जीभ को डालने लगा और निकालने लगा । वो अपने गांड़ को उपर की तरफ धकेलती हुई बोली -

" म...मेरा निकलने वाला है ।"

मैं चुत को चाटते चाटते ही बोला - " निकलने दो लेकिन सब मेरे मुंह के अंदर ही छोड़ना । सारी मलाई पीनी है मुझे ।"

वो पूर्ववत अपने गांड़ उछालते हुए बोली -" मुझे भी पीना है ।"

मैंने उसके चुत से मुंह उपर करते हुए बोला -" तुम कैसे पियोगी ।"

वो मुझे धकेलते हुए बोली -" बेवकूफ मैं इसकी बात कर रही हूं "- बोलकर मेरे लन्ड को पकड़ लिया ।

वो मेरा लन्ड के पानी के लिए बोल रही थी । मैं उसके ऊपर से उठा और बिस्तर पर लेट गया और उसे मेरे उपर आने का इशारा किया । वो मेरे सिर की तरफ अपनी पांव करके मेरे उपर लेट गई । हम 69 पोजीशन में आ गये थे ।

वो मेरे लन्ड को हाथों से पकड़ते हुए बोली -" कितना लम्बा है । मोटा भी बहुत है ।"

" क्यों जीजू का नहीं है ?"

" है पर इतना ज्यादा नहीं ।"

" तुम्हे कैसा लगा ।"

" वो तो तुमसे पहले ही बोल चुकी हूं । बहुत सुंदर ।"

" क्यों नहीं होगा । आखिर है किसका ।" मैंने मजाक किया ।

" मेरे छोटे भाई का जो अब मेरा भतार बन गया है ।" बोलकर मेरे लन्ड के सूपाडे पर अपनी जीभ लड़ाने लगी । मैंने भी उसके पांवों को अलग कर के उसके चुत पर अपना मुंह रख दिया । धीरे धीरे उसने लन्ड को अपने मुंह में डालने का प्रयास किया । थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन अंततः उसे अपने मुंह में ले ही ली और चुसने लगी । कभी सुपाड़ा के छिद्र पर जीभ रगडती कभी मुंह उपर नीचे करके पुरे लन्ड को चूसने लगती ।

मैं उत्तेजित तो पहले से ही था अब ऐसा लग रहा था कि मैं एक दो मिनट में ही झड़ जाऊंगा । मैं अपने कमर उठा उठा कर लन्ड को उसके मुंह में पेलने लगा । साथ ही उसके चुत के भी चूमता चाटता रहा । बड़ी मुश्किल से पांच मिनट तक कन्ट्रोल किया ।

" मेरा होने वाला है "- मैंने चुत से मुंह हटा कर बोला ।

" मेरा भी "- वो जोर जोर से लन्ड चूसती हुई बोली ।

मैं वापस अपने मुंह उसके चुत से सटा दिया । तभी मेरे लन्ड ने जोर की पिचकारी मारी और उसके मुंह में झड़ने लगा । उसी वक्त उसने भी अपने चुत से अमृत रस की बौछार शुरू कर दी । उसके चुत की मलाई मेरे गले से होते हुए पेट में जाने लगी । वो झड़ती रही और मैं पीता रहा उसी तरह मैं झड़ता रहा और वो पीती रहीं । दोनों का जबरदस्त इजेकुलेशन हुआ था । झड़ने के बाद काफी देर तक हम वैसे ही पड़े रहे ।

कुछ देर बाद वो उठी और बाथरूम चली गई । उसके आने के बाद मैं बाथरूम गया और फ्रेश होकर बाहर आया। वो नंगे बदन बिस्तर पर लेटी थी । रूम की लाइट पहले की ही तरह जल रही थी । मैं जा कर उसके बगल में लेट गया । फिर मैंने करवट ली और उसे अपने बाहों में भर लिया । वो मुझ से लिपट गई ।

मेरे होंठों पर एक चुम्बन दे कर बोली -" इतना मजा मुझे आज तक नहीं आया था ।"

" जीजू के साथ भी नहीं ।" मैंने उसकी चूची को सहलाते हुए कहा ।

" नहीं । " कहकर उसने थोड़ी जगह बनाई जिससे मैं उसके चुचियों को प्यार कर पाता ।

" इसकी वजह बताऊं ।"

" हमम ।"

" हम दोनों भाई बहन हैं ना इसलिए । सगे संबंधियों में सेक्स करने से उत्तेजना अधिक आती है ।"

" हम्मम...सच में मैं इतनी उत्तेजित कभी नहीं हुई थी और अपनी जिंदगी में इतने गन्दे शब्द कभी नहीं बोले हैं । लेकिन तुम्हारे साथ न जाने कैसे ये सब बोलती गयी । उनके साथ तो कभी भी नहीं बोली ।"

" ऐसा ही होता है गुल बदन । अपने भाई से चोदवाओगी तो इससे भी ज्यादा गन्दे शब्द निकलेंगें "- बोलकर मैंने उसकी चुत को हथेलियों से मसल दिया ।

वो मेरे लन्ड को पकड़ कर सहलाने लगी और बोली -"लेकिन तुम्हें मेरी कसम जो इसके बारे में किसी को कहा तो ।"

" पागल हूं जो ये सब किसी से कहुंगा । और कहुंगा भी क्या कि मैं अपनी दीदी को चोदता हूं । क्या तुम किसी से कहोगी मेरा भाई मुझे रोज पुरी नंगी कर के मेरी बुर में अपना मोटा लौड़ा डाल कर चोदता है ।"

वो लन्ड को जोर जोर से मुठ मारते हुए उत्तेजित हो कर बोली -" कितनी गंदी बात करते हैं ना हम ।"

मैंने उसके चुत के दरारों में ऊंगली डालते हुए कहा -" मैं नहीं तुम ।"

" गन्दे भाई की गन्दी बहन ।" वो मेरे शरीर पर चढ़ गयी ।

उसके पुरे शरीर को सहलाते हुए कहा -" गन्दे भाई की सबसे प्यारी चहेती बहन ।"

हम दोनों उत्तेजित हो गये थे । एक दुसरे के शरीर को सहलाते दबाते गुत्थम गुत्थी हुए ऊपर नीचे होने लगे । मैंने उसे पेट के बल लिटा दिया और उसके पांवों को पकड़ कर उसकी कमर उपर उठा दी । वो चौपाया जानवर की तरह अपनी गांड़ को उठा दी । उसके गांड़ को चूमता चाटता हुआ मैंने अपनी जीभ उसके गांड़ के छेद में डाल दी और उसे जीभ से चाटने लगा । वो सिहर गई और अपनी गांड़ मेरे मुंह पर पटकने लगी । गांड़ को चाटते चाटते उसकी चुत को मुंह में भर लिया और उससे टपकते रसों को पीने लगा । वो बेचैन हो कर बोली -

" क..करो । बर्दाश्त नहीं हो रहा है ।"

मैंने उसे पीठ के बल लिटा दिया और उसके उपर चढ़ गया । मैंने लन्ड को उसके चुत से रगड़ते हुए कहा -" क्या करूं ।"

" साले कमीने अपनी दीदी के बुर के छेद में लन्ड लगा के बोलता है क्या करूं । चोद मुझे बहन चोद ।"

मैंने उत्तेजित हो कर धक्का दिया । लन्ड का सुपारा उसके चुत में घुस गया । वो दर्द से कराही ।

" धीरे से कर ना ।"

" अब धीरे से नही तेरी बुर को जोर जोर से चोदूंगा मेरी जान ।" कहकर मैंने जोर का धक्का दिया और आधा लन्ड उसके चुत में समा गया ।

वो जोर से चिल्लाई ।

" धीरे से नही कर सकता है ।" वो कराहती हुई बोली ।

मैंने अपने होंठ उसके होठों पर रख कर एक और प्रहार किया । लन्ड उसकी चुत में पुरी तरह से घुस गया । उसके आंख के कोने से आंसू छलक पड़े । मैं थोड़ी देर वैसे ही पड़ा रहा। फिर कुछ देर बाद उसके चुचियों को प्यार से दबाया फिर उसके निप्पल को मुंह में ले कर चूसने लगा । थोड़ी देर में वो नोर्मल हुई । मैंने हल्के हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिया । उसकी दर्द अब कम हो गयी थी । उसकी चुत अब गीली होने लगी थी । थोड़ी देर में ही उसने अपने कुल्हे उठाने लगी ।

मैंने धक्के तेज कर दिए । वो भी नीचे से ऊपर की ओर अपनी चुत को ढकेलने लगी । मेरा लन्ड उसके चुत में तेजी से घुसने और निकलने लगा । चोदाई फुल स्पीड में चालु हो गई थी । हम दोनों ताल से ताल मिला कर कमर उपर नीचे कर रहे थे । उसकी चुत काफी गीली हो गई थी । जिससे ' फच ' ' फच ' की आवाज आने लगी । मैं उसके होंठों को चूसने लगा। उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी । मैं उसके जीभ को चुसते हुए कमर उठा उठा कर धक्के मारने लगा । वो अपने पांवों को मेरे कमर से लिपटा कर मेरे गांड़ को अपने हाथों से दबाने लगी ।

दोनों सेक्सी भरी आवाज निकालते हुए घमासान चुदाई में लगे हुए थे । उसकी चुत की गर्मी से मुझे लगता नहीं था कि अब मैं ज्यादा देर तक टिक पाऊंगा ।

चोदाई के दौरान उसने मुझे नीचे पलट दिया और वो मेरे उपर आ गयी । अब मैं नीचे था और वो उपर । वो उछल उछल कर मुझे चोदने लगी और मैं नीचे से ऊपर की तरफ धक्का मारने लगा । उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां जोरों से हील रही थी ।

" हाय.... कितना मज़ा आ रहा है बहन को चोदते हुए ।"

" कुछ बोलो मत " - वो अपनी गांड़ जोर जोर से पटकते हुए बोली - " अब हम नहीं सिर्फ उन्हें बात करने दो ।"

मैंने उसे पलट कर अपने नीचे किया और उसकी चुत में तेजी से धक्का देते हुए कहा -" किन्हें बात करने दो ।"

" उन्हें " - वो नीचे की तरफ इशारा करते हुए बोली -" फच फच की आवाज नहीं सुन रहे हो ।"

हम दोनों के घमासान चुदाई से जो ' फच ' ' फच ' की आवाज आ रही थी वो उसकी बात कर रही थी ।

" सही कह रही हो । अब सिर्फ तुम्हारी बुर और मेरी लन्ड को बात करने दो ।"

करीब पौन घंटे की चुदाई के बाद वो हांफते हुए बोली -" मैं झडने वाली हूं ।"

" मैं भी ... दोनों एक साथ झडते है ।"

अचानक उसका शरीर अकड़ा और वो झटके दे दे कर अपनी गरम पानी मेरे लन्ड पर छोड़ने लगी । उसकी गर्मी से मैं भी बच ना सका । मैं भी अपना वीर्य उसके चुत में तेजी से छोड़ने लगा । ज्योंहि मेरे विर्य को उसने अपने अन्दर महसूस किया वो मेरे होंठों को अपने होंठों से दबा कर चूसने लगी । दोनों ने काफी पानी फेंका था । हम एक-दूसरे से जोंक की तरह लिपटें हुए काफी देर तक पड़े रहे ।

हमारा चोदन पर्व अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच कर शेष हुआ ।
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" क्या टाईम हुआ है ?"

चाची के पहलू में लेटा कुछ देर पहले हुई अभिसार सुखों के कल्पनाओं में खोया हुआ था कि चाची के आवाज ने मुझे चेतना में ला दिया । मैंने लेटे लेटे ही टाईम देखने के लिए अपनी मोबाइल ढुंढने के लिए हाथ अगल बगल दौड़ाया । तभी मुझे याद आया कि मोबाइल तो मेरे पैंट में हैं । मैं हड़बड़ा कर बिस्तर से उठा ।

" क्या हुआ ?" - चाची मुझे इस तरह हड़बड़ा कर उठते हुए देख कर बोली ।

" मेरा मोबाइल तो पैंट में हैं.... कहीं पानी में भीगने से खराब न हो गया हो "- मैं नंगे बदन ही उठा और पैंट से मोबाइल निकालते हुए कहा ।

मैंने वहीं बगल में पड़े हुए एक सुखे कपड़े से मोबाइल पोंछा । शुक्र था कि मोबाइल खराब नहीं हुआ था । मगर उसमें माॅम के पांच , रीतु के दो और रमणीक लाल के दो मिस काॅल थे । इतने मिस काॅल देखकर मैं चौंका । मैं मोबाइल लेकर वापस बिस्तर पर आकर बैठ गया ।

" मोबाइल ठीक है ना ?"- चाची उठ कर मेरे बगल में बैठते हुए बोली ।

हम दोनों के शरीर पर अभी भी कपड़े का नामोनिशान तक नहीं था ।

" हां । मोबाइल तो ठीक है लेकिन माॅम , रीतु के ‌कई मिस काॅल है ।"

" क्या बात है ?"- वो मेरे लिंग को अपने हाथों से पकड़ कर सहलाते हुए बोली ।

" पता नहीं । फोन करता हूं " - मैंने भी उनकी बड़ी बड़ी चूचियों को दबाते हुए कहा ।

मैंने माॅम को फोन लगाया ।

" अरे कहां पर है ? कब से फोन कर रही हूं , फोन क्यों नहीं उठाता ?" - रिंग होते ही माॅम गुस्से से बोली ।

" कैसे फोन उठाऊं ? देख नहीं रही हो कितनी जोर से बारिश हो रही है ।"

" तो बारिश होने से फोन उठाने या नहीं उठाने का क्या मतलब है ?"

" बारिश से फोन भींग कर खराब नहीं हो जायेगी ?"

" वाह ! क्या सुन्दर जबाव दे रहा है । यदि बारिश हो तो फोन का इस्तेमाल ही नहीं करना चाहिए । कहीं उस कमीनी ज्योत्सना के साथ तो नहीं है ?"

अब उन्हें क्या बताऊं कि मैं ज्योत्सना के साथ नहीं बल्कि चाची के साथ नंग धडंग बैठा उनसे बातें कर रहा हूं ।

" अरे नहीं माॅम मैं ज्योत्सना के साथ नहीं हूं । मैं कहीं और ही जगह पर हूं । एक्चुअल में मेरी बाइक भी तो खराब हो गई है ।"

" क्या ? बाइक खराब हो गई है ?" - अब वो पहले के अपेक्षाकृत नरम स्वर में बोली ।

" हां । पहले ये बताओ ना कि फोन किसलिए किया था ?"

" रीतु के लिए ।"

" रीतु के लिए ?" - मैं घबड़ाते हुए बोला - " क्या हुआ रीतु को ?"

" अरे कुछ नहीं हुआ है । वो कल काजल के साथ उसके शहर जाने के लिए बोल रही है । काजल की कजन सिस्टर की शादी है तो वो रीतु को साथ ले जाने के लिए बोल रही है ।"

" क्या ?" - मैं आश्चर्यचकित हुआ ।

लेकिन काजल ने तो मुझे कहा था कि सिर्फ उसके मां बाप जाने वाले हैं और वो यही रहेगी । और उसके मां बाप के जाने के बाद कल पुरा दिन और पुरी रात मेरे साथ पलंग कबड्डी खेलेंगी ।

मैंने माॅम से कहा -" और रीतु क्या बोल रही है ? क्या वो जाना चाहती है ?"

" हां । उसकी भी इच्छा है जाने के लिए ।"

" वो घर पर ही है ?

" नहीं , काजल के घर गई है ।"

" ठीक है । मैं रीतु से बात करता हूं ।"

" लेकिन तु है कहां अभी ? और कब तक आयेगा ?"

" मैने बताया न मैं कहीं और जगह पर फंसा हुआ हूं । मैं आधे घंटे में आ रहा हूं ।"

" और मुझे लगा तु उस कलमूही के साथ होगा ।"

" यही तो गलती कर दिया जो उसके पास नहीं गया । अभी में घर आता हूं फिर वहां से उस कलमूही के घर जाता हूं ।"

चाची मुझे हैरत से देख रही थी । उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि मैंने उनकी सहेली ज्योत्सना को भी पटा रखा है ।

" उससे पहले मैं तेरी पांव तोड़ दुंगी " - माॅम गुस्से से बोली ।

मैंने हंसते हुए फोन काट दिया ।

चाची मेरे लन्ड को दबाते हुए बोली -" ये ज्योत्सना वाला क्या चक्कर है ?"

" जैसा तुम्हारे साथ वाला चक्कर है " - कहते हुए मैंने उनकी चूत में अपनी उंगली पेल दी ।

" तुम सच में बहुत नालायक हो । बड़ी बड़ी उमर की औरतों के पीछे पड़ रहते हो । ये सब तुम्हारी गन्दी गन्दी किताबें पढ़ने का नतीजा है " - वो मेरे लन्ड को पकड़ कर मूठ मारते हुए बोली ।

मैं चौंका ।

इसका मतलब मेरी अलमारी से जो किताबें गायब हो रही थी , वो चाची कर रही थी ।

" मैंने उनकी चूची की बड़ी निप्पल को उंगलियों से मसलते हुए कहा - " आपको कैसे पता कि मैं गन्दी गन्दी किताबें पढ़ता हूं ।"

" अपने आलमारी में जो किताबें छुपा कर रखा है क्या वो तेरे बाप का है ?"

" है तो मेरा ही लेकिन आप को कैसे पता ?"

" बस पता है ।"

" कहीं वो आप ही नहीं तो जो मेरे आलमारी से किताबें गायब करती थी ?"

" तुझे मालूम था कि वहां से कोई कोई किताब गायब हो जाती थी ?"

" क्यों नहीं पता होगा ? आखिर मेरा किताब था तो कोई किताब न होने से मालूम पड़ ही जायेगा । अब आप बताओ वो किताबें आप ही निकालती थी न ?"

" मैं नहीं , तेरी मम्मी निकालती थी ।"

" क्या ?"

मैं आश्चर्य से मूंह फाड़े उनको देखता रहा ।

वो मुझे आश्चर्यचकित होते देखकर मुस्कराई और मुझे अपने ऊपर खींच ली । और मेरे लन्ड को पकड़ कर अपने चूत के छिद्र पर रख कर नीचे से धक्का दी जिससे मेरा लन्ड का सुपाड़ा उनके चूत में घुस गया ।

" चाची , सच सच बताओ ? क्या माॅम वहां से किताबें निकालती थी ?" मैं अभी भी श्योर नहीं था ।

" हां । तेरी माॅम ही तेरे रूम के आलमारी से किताबें गायब करती थी और हम दोनों बारी बारी से उसे पढ़ती थी । क्या करें ! आखिर हम भी तो हाड़ मांस की ही बनी है । हमारी भी इच्छा होती है कि कोई हमें भी रगड़ कर प्यार करे । तेरे डैड ने तेरी मम्मी के साथ और तेरे चाचा ने मेरे साथ करीब आठ दस सालों से सेक्स करना ही छोड़ दिया है । उनका खड़ा ही नहीं होता । हम दोनों बरसों से प्यासी है । एक दिन तेरी माॅम तेरी कमरे की सफाई कर रही थी । सफाई करते हुए तेरी बिस्तर के नीचे से उन्हें आलमारी की चाबी मिली । उन्होंने सोचा क्यों न आलमारी भी साफ करके उसके अंदर की सामान सजा दूं , तभी उन्हें तेरी ये गन्दी गन्दी किताबें दिखाई पड़ी । पहले तो वो बहुत गुस्सा हुई । तुम्हें उसी वक्त डांटना चाहती थी । और संयोग से उस दिन मैं भी वहां पहुंच गई । उन्होंने मुझे दिखाया । मुझे भी खराब लगा । लेकिन संयोगवश उसी दिन तुम अपने दोस्तों के साथ बंगलूरू घुमने चले गए । तुम पुरे छः दिन बाद आए थे तब तक यहां की कहानी कुछ और ही हो गई थी । इन छः दिनों में हमने सारी किताबें पढ़ ली और वो भी एक बार नहीं बल्कि कई बार और फिर अब तुम्हें क्या फटकारें हम दोनों खूद ही उन गन्दी कहानियों के दिवाने बन चुके थे । हमारी दबी हुई लालशा फिर परवान चढ़ने लगी । हमारी सेक्स की भुख पहले से भी ज्यादा बढ़ गई । लेकिन परिवार के मान सम्मान हमारी मजबूरी , संस्कृति हमारी पांव में बेड़ियां डाले पहले ही की तरह जकड़ी रही ।

मेरा तो आश्चर्य के मारे बूरा हाल था । माॅम किताबें मेरे रूम से गायब करती थी और उसे पहले खुद पढ़ती थी फिर चाची को पढ़ाती थी और जब फिर पढ़ने के बाद मेरे आलमारी में रख देती थी ।

वो सारी गन्दी गन्दी किताबें जिसमें मां बेटे , बाप बेटी , भाई बहन , चाची भतीजा , देवर भाभी की चुदाई की कहानियां भरी पड़ी थी । ये सोचकर मेरा लन्ड खुशी के मारे उछलने लगा जिसे चाची अपने चूत में साफ महसूस कर रही थी ।

मैं पुरी तरह से उत्तेजित हो गया और चाची को हुमच हुमच कर चोदने लगा । वो भी मेरा भरपूर साथ देने लगी ।

थोड़ी देर बाद वो अपने कपड़े पहनने लगी । मेरा पैंट शर्ट गंजी जांघिया अभी भी भींगा हुआ ही था । फिर भी मैंने सारे भींगे हुए कपड़े दुबारा पहन लिये ।

कपड़े पहनने के बाद मैने रीतु को फोन किया ।

उसके हैलो कहते ही मैंने कहा - " किसलिए फोन कर रही थी ?"

" भाई , मैं काजल के साथ उसकी कजन की शादी में जाना चाहती हूं । क्या जाऊं ?"- उधर से रीतु बहुत ही मीठे स्वर में बोली ।

" अरे , तु क्या करेगी शादी में जाकर ? उनलोगो का अपना समाज होगा , अपना माहौल होगा । तु वहां जाकर परेशान ही होगी ।"

" कोई परेशानी नहीं होगी । शादी जयपुर में है । वहां उन्होंने होटल बूक किया हुआ है । शादी के बहाने जयपुर भी घुम लुंगी ।"

" कितने दिन का ट्रिप है ?"

" चार दिनों का ।"

" लेकिन मैंने तो सुना था कि सिर्फ काजल के मम्मी पापा ही जा रहे हैं । काजल के जाने का प्लान नहीं था ।"

" पहले काजल के जाने का प्लान नहीं था लेकिन उसकी कजन उसके न आने की खबर सुनकर बहुत नाराज़ हूई ।उस ने जोर देकर उसे आने को कहा । और फिर काजल के मम्मी डैडी ने भी फोर्स किया तो फिर तैयार हो गई ।"

" ओह ?"

" वैसे आपको कैसे पता कि काजल नहीं जाने वाली थी । मैंने तो आपको कभी कहा नहीं " - वो मजाक करते हुए बोली ।

मैं हड़बड़ाया ।

" अरे वो... वो... वो काजल एक दिन रास्ते में मिल गई थी , तभी कहा था उसने ।"

" कहीं कुछ छुपा तो नहीं रहे हो मुझसे ? कोई चक्कर वक्कर तों नहीं है ?" - वो शरारती अंदाज में बोली ।

" अरे बकवास मत कर । ऐसा कुछ नहीं है ।"

" तो फिर बताओ मैं क्या करूं ? शादी में जाऊं या नहीं ?"

" तु श्योर जाना चाहती है ?"

" हम्म ।"

" तो एक काम कर , राहुल को भी अपने साथ ले जा । तेरे साथ एक मर्द रहेगा तो अच्छा होगा ।"

" क्या ?"

" हां । अब तु काजल और उसके मम्मी डैडी से पुछ ले । अगर तुझे जाना है तो राहुल भी तेरे साथ जायेगा ।"

" ओके । राहुल हमारे साथ जायेगा ।"

" अरे , पहले पुछ तो ले ।"

" काजल बगल में ही है । मैंने उससे पुछ लिया है । वो राजी है ।"

" ठीक है फिर । वैसे कल निकलना कैसे हैं ?

" सुबह सात बजे के बस से निकलना है । अंकल जा रहे हैं टिकट बूक करने ।"

" बस से ?"

" अरे भाई , शानदार बस है । उसका भाड़ा ए सी ट्रेन से भी ज्यादा है ।"

" ठीक है फिर । तु शाम को कब तक घर आयेगी ?

" छः बजे आ जाऊंगी । तैयारी भी तो करनी है ।"

" जल्दी आना । यदि कोई सामान वगैरह लाना होगा तो खरिदने के लिए समय चाहिए न ।"

" मैं पक्का छः बजे तक आ जाऊंगी ।"

मैंने फोन काट दिया । चाची को सारी बातें बताया । और राहुल को जयपुर जाने के लिए और उसके कपड़े वगैरह भी तैयार रखने को कहा ।

फिर वहां से अपने घर चला आया ।

जब घर पहुंचा तो दरवाजा खुला हुआ पाया । मैंने सोचा कहीं डैड तो नहीं आ गए हैं । मैं घर में प्रवेश कर के मेन दरवाजा बंद किया और माॅम को आवाज लगाई ।

माॅम चिल्ला कर बोली कि वो किचन में है तो मैं ये कहते हुए अपने कमरे की तरफ चला गया कि मैं नहा कर , फ्रेश होकर नीचे आता हूं ।

मैं अपने कमरे में गया । सारे भींगे हुए कपड़े उतार कर बाथरूम में घुस गया । नहा धो कर जब मैं अपनी गंजी और जांघिया पहनने के लिए ढुढने लगा तो देखा कि वो भी पुरी तरह से भीगी हुई है । सुबह से बरसात होने के कारण वो सुख नहीं पाई थी ।

मैं अपने कमरे में आलमारी से एक तौलिया निकाल कर लपेट लिया । और उपर एक शर्ट पहन लिया । और फिर नीचे हाॅल में आ गया । माॅम शायद अभी भी किचन में ही थी ।

मैं किचन में गया । और माॅम को देखकर बुरी तरह से चौंक गया ।

नेक्स्ट कल रात तक.....
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" क्या टाईम हुआ है ?"

चाची के पहलू में लेटा कुछ देर पहले हुई अभिसार सुखों के कल्पनाओं में खोया हुआ था कि चाची के आवाज ने मुझे चेतना में ला दिया । मैंने लेटे लेटे ही टाईम देखने के लिए अपनी मोबाइल ढुंढने के लिए हाथ अगल बगल दौड़ाया । तभी मुझे याद आया कि मोबाइल तो मेरे पैंट में हैं । मैं हड़बड़ा कर बिस्तर से उठा ।

" क्या हुआ ?" - चाची मुझे इस तरह हड़बड़ा कर उठते हुए देख कर बोली ।

" मेरा मोबाइल तो पैंट में हैं.... कहीं पानी में भीगने से खराब न हो गया हो "- मैं नंगे बदन ही उठा और पैंट से मोबाइल निकालते हुए कहा ।

मैंने वहीं बगल में पड़े हुए एक सुखे कपड़े से मोबाइल पोंछा । शुक्र था कि मोबाइल खराब नहीं हुआ था । मगर उसमें माॅम के पांच , रीतु के दो और रमणीक लाल के दो मिस काॅल थे । इतने मिस काॅल देखकर मैं चौंका । मैं मोबाइल लेकर वापस बिस्तर पर आकर बैठ गया ।

" मोबाइल ठीक है ना ?"- चाची उठ कर मेरे बगल में बैठते हुए बोली ।

हम दोनों के शरीर पर अभी भी कपड़े का नामोनिशान तक नहीं था ।

" हां । मोबाइल तो ठीक है लेकिन माॅम , रीतु के ‌कई मिस काॅल है ।"

" क्या बात है ?"- वो मेरे लिंग को अपने हाथों से पकड़ कर सहलाते हुए बोली ।

" पता नहीं । फोन करता हूं " - मैंने भी उनकी बड़ी बड़ी चूचियों को दबाते हुए कहा ।

मैंने माॅम को फोन लगाया ।

" अरे कहां पर है ? कब से फोन कर रही हूं , फोन क्यों नहीं उठाता ?" - रिंग होते ही माॅम गुस्से से बोली ।

" कैसे फोन उठाऊं ? देख नहीं रही हो कितनी जोर से बारिश हो रही है ।"

" तो बारिश होने से फोन उठाने या नहीं उठाने का क्या मतलब है ?"

" बारिश से फोन भींग कर खराब नहीं हो जायेगी ?"

" वाह ! क्या सुन्दर जबाव दे रहा है । यदि बारिश हो तो फोन का इस्तेमाल ही नहीं करना चाहिए । कहीं उस कमीनी ज्योत्सना के साथ तो नहीं है ?"

अब उन्हें क्या बताऊं कि मैं ज्योत्सना के साथ नहीं बल्कि चाची के साथ नंग धडंग बैठा उनसे बातें कर रहा हूं ।

" अरे नहीं माॅम मैं ज्योत्सना के साथ नहीं हूं । मैं कहीं और ही जगह पर हूं । एक्चुअल में मेरी बाइक भी तो खराब हो गई है ।"

" क्या ? बाइक खराब हो गई है ?" - अब वो पहले के अपेक्षाकृत नरम स्वर में बोली ।

" हां । पहले ये बताओ ना कि फोन किसलिए किया था ?"

" रीतु के लिए ।"

" रीतु के लिए ?" - मैं घबड़ाते हुए बोला - " क्या हुआ रीतु को ?"

" अरे कुछ नहीं हुआ है । वो कल काजल के साथ उसके शहर जाने के लिए बोल रही है । काजल की कजन सिस्टर की शादी है तो वो रीतु को साथ ले जाने के लिए बोल रही है ।"

" क्या ?" - मैं आश्चर्यचकित हुआ ।

लेकिन काजल ने तो मुझे कहा था कि सिर्फ उसके मां बाप जाने वाले हैं और वो यही रहेगी । और उसके मां बाप के जाने के बाद कल पुरा दिन और पुरी रात मेरे साथ पलंग कबड्डी खेलेंगी ।

मैंने माॅम से कहा -" और रीतु क्या बोल रही है ? क्या वो जाना चाहती है ?"

" हां । उसकी भी इच्छा है जाने के लिए ।"

" वो घर पर ही है ?

" नहीं , काजल के घर गई है ।"

" ठीक है । मैं रीतु से बात करता हूं ।"

" लेकिन तु है कहां अभी ? और कब तक आयेगा ?"

" मैने बताया न मैं कहीं और जगह पर फंसा हुआ हूं । मैं आधे घंटे में आ रहा हूं ।"

" और मुझे लगा तु उस कलमूही के साथ होगा ।"

" यही तो गलती कर दिया जो उसके पास नहीं गया । अभी में घर आता हूं फिर वहां से उस कलमूही के घर जाता हूं ।"

चाची मुझे हैरत से देख रही थी । उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि मैंने उनकी सहेली ज्योत्सना को भी पटा रखा है ।

" उससे पहले मैं तेरी पांव तोड़ दुंगी " - माॅम गुस्से से बोली ।

मैंने हंसते हुए फोन काट दिया ।

चाची मेरे लन्ड को दबाते हुए बोली -" ये ज्योत्सना वाला क्या चक्कर है ?"

" जैसा तुम्हारे साथ वाला चक्कर है " - कहते हुए मैंने उनकी चूत में अपनी उंगली पेल दी ।

" तुम सच में बहुत नालायक हो । बड़ी बड़ी उमर की औरतों के पीछे पड़ रहते हो । ये सब तुम्हारी गन्दी गन्दी किताबें पढ़ने का नतीजा है " - वो मेरे लन्ड को पकड़ कर मूठ मारते हुए बोली ।

मैं चौंका ।

इसका मतलब मेरी अलमारी से जो किताबें गायब हो रही थी , वो चाची कर रही थी ।

" मैंने उनकी चूची की बड़ी निप्पल को उंगलियों से मसलते हुए कहा - " आपको कैसे पता कि मैं गन्दी गन्दी किताबें पढ़ता हूं ।"

" अपने आलमारी में जो किताबें छुपा कर रखा है क्या वो तेरे बाप का है ?"

" है तो मेरा ही लेकिन आप को कैसे पता ?"

" बस पता है ।"

" कहीं वो आप ही नहीं तो जो मेरे आलमारी से किताबें गायब करती थी ?"

" तुझे मालूम था कि वहां से कोई कोई किताब गायब हो जाती थी ?"

" क्यों नहीं पता होगा ? आखिर मेरा किताब था तो कोई किताब न होने से मालूम पड़ ही जायेगा । अब आप बताओ वो किताबें आप ही निकालती थी न ?"

" मैं नहीं , तेरी मम्मी निकालती थी ।"

" क्या ?"

मैं आश्चर्य से मूंह फाड़े उनको देखता रहा ।

वो मुझे आश्चर्यचकित होते देखकर मुस्कराई और मुझे अपने ऊपर खींच ली । और मेरे लन्ड को पकड़ कर अपने चूत के छिद्र पर रख कर नीचे से धक्का दी जिससे मेरा लन्ड का सुपाड़ा उनके चूत में घुस गया ।

" चाची , सच सच बताओ ? क्या माॅम वहां से किताबें निकालती थी ?" मैं अभी भी श्योर नहीं था ।

" हां । तेरी माॅम ही तेरे रूम के आलमारी से किताबें गायब करती थी और हम दोनों बारी बारी से उसे पढ़ती थी । क्या करें ! आखिर हम भी तो हाड़ मांस की ही बनी है । हमारी भी इच्छा होती है कि कोई हमें भी रगड़ कर प्यार करे । तेरे डैड ने तेरी मम्मी के साथ और तेरे चाचा ने मेरे साथ करीब आठ दस सालों से सेक्स करना ही छोड़ दिया है । उनका खड़ा ही नहीं होता । हम दोनों बरसों से प्यासी है । एक दिन तेरी माॅम तेरी कमरे की सफाई कर रही थी । सफाई करते हुए तेरी बिस्तर के नीचे से उन्हें आलमारी की चाबी मिली । उन्होंने सोचा क्यों न आलमारी भी साफ करके उसके अंदर की सामान सजा दूं , तभी उन्हें तेरी ये गन्दी गन्दी किताबें दिखाई पड़ी । पहले तो वो बहुत गुस्सा हुई । तुम्हें उसी वक्त डांटना चाहती थी । और संयोग से उस दिन मैं भी वहां पहुंच गई । उन्होंने मुझे दिखाया । मुझे भी खराब लगा । लेकिन संयोगवश उसी दिन तुम अपने दोस्तों के साथ बंगलूरू घुमने चले गए । तुम पुरे छः दिन बाद आए थे तब तक यहां की कहानी कुछ और ही हो गई थी । इन छः दिनों में हमने सारी किताबें पढ़ ली और वो भी एक बार नहीं बल्कि कई बार और फिर अब तुम्हें क्या फटकारें हम दोनों खूद ही उन गन्दी कहानियों के दिवाने बन चुके थे । हमारी दबी हुई लालशा फिर परवान चढ़ने लगी । हमारी सेक्स की भुख पहले से भी ज्यादा बढ़ गई । लेकिन परिवार के मान सम्मान हमारी मजबूरी , संस्कृति हमारी पांव में बेड़ियां डाले पहले ही की तरह जकड़ी रही ।

मेरा तो आश्चर्य के मारे बूरा हाल था । माॅम किताबें मेरे रूम से गायब करती थी और उसे पहले खुद पढ़ती थी फिर चाची को पढ़ाती थी और जब फिर पढ़ने के बाद मेरे आलमारी में रख देती थी ।

वो सारी गन्दी गन्दी किताबें जिसमें मां बेटे , बाप बेटी , भाई बहन , चाची भतीजा , देवर भाभी की चुदाई की कहानियां भरी पड़ी थी । ये सोचकर मेरा लन्ड खुशी के मारे उछलने लगा जिसे चाची अपने चूत में साफ महसूस कर रही थी ।

मैं पुरी तरह से उत्तेजित हो गया और चाची को हुमच हुमच कर चोदने लगा । वो भी मेरा भरपूर साथ देने लगी ।

थोड़ी देर बाद वो अपने कपड़े पहनने लगी । मेरा पैंट शर्ट गंजी जांघिया अभी भी भींगा हुआ ही था । फिर भी मैंने सारे भींगे हुए कपड़े दुबारा पहन लिये ।

कपड़े पहनने के बाद मैने रीतु को फोन किया ।

उसके हैलो कहते ही मैंने कहा - " किसलिए फोन कर रही थी ?"

" भाई , मैं काजल के साथ उसकी कजन की शादी में जाना चाहती हूं । क्या जाऊं ?"- उधर से रीतु बहुत ही मीठे स्वर में बोली ।

" अरे , तु क्या करेगी शादी में जाकर ? उनलोगो का अपना समाज होगा , अपना माहौल होगा । तु वहां जाकर परेशान ही होगी ।"

" कोई परेशानी नहीं होगी । शादी जयपुर में है । वहां उन्होंने होटल बूक किया हुआ है । शादी के बहाने जयपुर भी घुम लुंगी ।"

" कितने दिन का ट्रिप है ?"

" चार दिनों का ।"

" लेकिन मैंने तो सुना था कि सिर्फ काजल के मम्मी पापा ही जा रहे हैं । काजल के जाने का प्लान नहीं था ।"

" पहले काजल के जाने का प्लान नहीं था लेकिन उसकी कजन उसके न आने की खबर सुनकर बहुत नाराज़ हूई ।उस ने जोर देकर उसे आने को कहा । और फिर काजल के मम्मी डैडी ने भी फोर्स किया तो फिर तैयार हो गई ।"

" ओह ?"

" वैसे आपको कैसे पता कि काजल नहीं जाने वाली थी । मैंने तो आपको कभी कहा नहीं " - वो मजाक करते हुए बोली ।

मैं हड़बड़ाया ।

" अरे वो... वो... वो काजल एक दिन रास्ते में मिल गई थी , तभी कहा था उसने ।"

" कहीं कुछ छुपा तो नहीं रहे हो मुझसे ? कोई चक्कर वक्कर तों नहीं है ?" - वो शरारती अंदाज में बोली ।

" अरे बकवास मत कर । ऐसा कुछ नहीं है ।"

" तो फिर बताओ मैं क्या करूं ? शादी में जाऊं या नहीं ?"

" तु श्योर जाना चाहती है ?"

" हम्म ।"

" तो एक काम कर , राहुल को भी अपने साथ ले जा । तेरे साथ एक मर्द रहेगा तो अच्छा होगा ।"

" क्या ?"

" हां । अब तु काजल और उसके मम्मी डैडी से पुछ ले । अगर तुझे जाना है तो राहुल भी तेरे साथ जायेगा ।"

" ओके । राहुल हमारे साथ जायेगा ।"

" अरे , पहले पुछ तो ले ।"

" काजल बगल में ही है । मैंने उससे पुछ लिया है । वो राजी है ।"

" ठीक है फिर । वैसे कल निकलना कैसे हैं ?

" सुबह सात बजे के बस से निकलना है । अंकल जा रहे हैं टिकट बूक करने ।"

" बस से ?"

" अरे भाई , शानदार बस है । उसका भाड़ा ए सी ट्रेन से भी ज्यादा है ।"

" ठीक है फिर । तु शाम को कब तक घर आयेगी ?

" छः बजे आ जाऊंगी । तैयारी भी तो करनी है ।"

" जल्दी आना । यदि कोई सामान वगैरह लाना होगा तो खरिदने के लिए समय चाहिए न ।"

" मैं पक्का छः बजे तक आ जाऊंगी ।"

मैंने फोन काट दिया । चाची को सारी बातें बताया । और राहुल को जयपुर जाने के लिए और उसके कपड़े वगैरह भी तैयार रखने को कहा ।

फिर वहां से अपने घर चला आया ।

जब घर पहुंचा तो दरवाजा खुला हुआ पाया । मैंने सोचा कहीं डैड तो नहीं आ गए हैं । मैं घर में प्रवेश कर के मेन दरवाजा बंद किया और माॅम को आवाज लगाई ।

माॅम चिल्ला कर बोली कि वो किचन में है तो मैं ये कहते हुए अपने कमरे की तरफ चला गया कि मैं नहा कर , फ्रेश होकर नीचे आता हूं ।

मैं अपने कमरे में गया । सारे भींगे हुए कपड़े उतार कर बाथरूम में घुस गया । नहा धो कर जब मैं अपनी गंजी और जांघिया पहनने के लिए ढुढने लगा तो देखा कि वो भी पुरी तरह से भीगी हुई है । सुबह से बरसात होने के कारण वो सुख नहीं पाई थी ।

मैं अपने कमरे में आलमारी से एक तौलिया निकाल कर लपेट लिया । और उपर एक शर्ट पहन लिया । और फिर नीचे हाॅल में आ गया । माॅम शायद अभी भी किचन में ही थी ।

मैं किचन में गया । और माॅम को देखकर बुरी तरह से चौंक गया ।

नेक्स्ट कल रात तक.....
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Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Update 28.

मैं उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ और अपने कांपते हाथों से एक सिगरेट सुलगाने लगा ।

तब कोठारी का रिवाल्वर वाला हाथ नीचे झुका ।

" मैंने इसे वार्न किया था " - कोठारी बोला -" लेकिन यह मेरे पर गोली चलाने को पुरी तरह से आमादा था ।"

" आप यहां कैसे पहुच गए ? " - मैं फंसे स्वर में बोला ।

" अपने आपको खुशकिस्मत समझो कि मैं यहां पहुंच गया ।"

" लेकिन कैसे ?"

" तुम्हारी ही वजह से । सुबह मनीष जैन के कमरे से बाहर निकल कर जब तुमने अपनी बहन से बातें की थीं तब सारी बातें मैंने सुन ली थी । जिस तरह से तुम खंजर वाली बात की लिपापोती कर रहे थे तो मुझे तुम पर डाउट हो गया था । जब तुम वहां से निकले तभी मैंने तुम्हारे पीछे एक आदमी लगा दिया था । वो तुम्हारे पीछे शुरू से लगा हुआ था । जब उसने मुझे बताया कि तुम रमाकांत के फ्लैट में चले गए हो तो मुझे यह बात बुरी तरह खटकी । लिहाजा मैं सब काम छोड़कर सीधा यहां पहुंच गया जो कि मैंने बहुत अच्छा किया ।"

" आपने कुछ सुना ?"

" हां , सुना । मैं बाहर की होल से कान सटाए रहा था जब तक की तुम्हें बाहर को मार्च करने का हुक्म नहीं मिला ।"

" ओह ! कोठारी सर , मेरी जान बचाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।"

वह मुस्कराया । वह संतुष्ट था कि इतना बड़ा केस हल हो गया था ।

" खंजर और तस्वीर कहां है ?"

मैंने तत्काल खंजर और तस्वीर उसे सौंप दी ।

" अब तुम यहां से निकलो । यहां अब पुलिस का काम है ।"

मैंने तत्काल आदेश का पालन किया ।

जानकी देवी को धोखाधड़ी में शरीक होने , नाजायज और गैरकानूनी तरीके से अपने पति की मौत के बाद किसी और शख्स को अपना पति बनाकर और ट्रस्ट के साथ लगातार फ्राड करते रहने और अमर एवं मनीष जैन के हत्या में रमाकांत का साथ देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया ।

जानकी देवी ने जेल जाने के बाद एक अच्छा काम किया । उसने अपनी सारी चल और अचल संपत्ति वीणा के नाम कर दिया । बाद में जेल में उससे मिलने वीणा और अनुष्का गई थी जो कि मुझे वीणा से पता चला ।

तीन दिन बाद ----

रीतु जयपुर से वापस आ गई थी । उसके साथ काजल भी अपने फेमिली के साथ आ गई थी ।

दोपहर का समय था । मैं अपने कमरे में आराम कर रहा था कि माॅम ने कहा कि कोई कुरियर वाला आया है । मैं नीचे गया । कुरियर वाले ने एक लिफाफा दिया । लिफाफा मेरे नाम पर था । एक दिन पहले के डेट में केदारनाथ से भेजा गया था । मैं अपने कमरे में चला आया और लिफाफा खोला । लिफाफे के अन्दर एक चिट्ठी थी जिसे अमर की मां ने मुझे भेजा था ।

मैंने पढ़ना शुरू किया ।

सागर बेटा !
भगवान तुम्हें सदैव खुश रखें और लम्बी उम्र दें ।
मैं ये चिट्ठी यहां के एक धर्मशाला में बैठकर लिख रही हूं । अभी दो घंटे पहले मुझे अखबार से पता चला कि मेरे बेटे अमर का क़ातिल अपने गुनाहों का फल पा चुका है । मैंने इस की तस्दीक वहां के वकील सोहन लाल भार्गव से भी कर ली है । अब जाकर मेरे दिल को चैन मिला । अब कहीं जाकर मेरे बेटे अमर के आत्मा को शांति मिली होगी ।
मुझे तुम पर नाज है बेटा । तुमने मेरे बेटे के क़ातिल को ढूंढने के लिए बहुत मेहनत की । तुम्हारे चलते ही मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिला है । भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे । बाबा केदारनाथ मेरी उम्र भी तुझे दे दें ।
मुझे ये भी पता चला कि अमर के जीवन में एक लड़की थी । वो वीणा नाम की एक लड़की से प्यार करता था । पागल कहीं का ! अगर मुझे बताता कि वो उससे शादी करना चाहता है कि क्या मैं उसकी शादी नहीं करवाती ? उसे अपनी बेटी बनाकर रखती । क्या हुआ जो वो क्लब में नाचती थी । मैं उसे अपने माथे पर बिठाए रखती । इसी लड़की के लिए उसने उस रमाकांत से दुश्मनी कर ली थी । शायद उसे उस लड़की का कष्ट नहीं देखा गया । वो जो कुछ किया उस लड़की के दुखों को देखकर किया । वो दिल का बुरा लड़का नहीं था । ये तुमसे अच्छा कौन जान सकता है । वो तो तुम्हारा सबसे करीबी दोस्त था न ! क्या तुम्हें लगता है कि वो ये सब पैसों के लिए किया होगा ? तुम तो जानते हो कि उसे रूपए पैसों की कभी भी तंगी नहीं थी ।
बेटा ! एक आखिरी बात कहनी थी क्योंकि थोड़ी देर बाद मैं भी अपने बेटे अमर के पास पहुंच चुकी होंगी । अपने बेटे के अस्थि कलश को लिए गंगा मैया में समाधी ले लुंगी । क्या करूंगी जीकर ! किसके लिए जिऊं ! मैं तो अब तक अपनी सांसें इसीलिए ढो रही थी कि उस हत्यारे को फांसी पर चढ़ते देख सकुं । मेरा बेटा वहां अकेले हैं ! वो मुझे पुकार रहा है ! वो मेरे बगैर कहीं भी रहा ही नहीं !
बेटा ! उसके पापा मरे थे तो वो पांच साल का था ! बहुत छोटा सा ! हमेशा मेरी पल्लू से ही बंधा रहता था ! तब से लेकर हमेशा ऐसा ही रहा ! दो महिने पहले तक भी वो कुछ नहीं करता था । सब कुछ मैं ही करती थी । बेटा.... बेटा.. वो अकेले कैसे करेगा ? मुझे जाना ही होगा । मुझे पता है वो बहुत परेशान हैं । वो जैसा बचपन में था वैसा ही आज भी है । मैं जा रही हूं अपने जिगर के टुकड़े के पास । "

मैं घुटनों के बल बैठ गया और फुट फुट कर रोने लगा ।



दो साल बाद ।

वीणा आज मेरी पत्नी है । अच्छी खासी नौकरी भी है ।
माॅम के लिए जो बुरे खयालात थे उससे मैंने कब का तौबा कर लिया ।
रीतु तो मेरी जान है । वो अभी भी वैसे ही अपने हरकतों से मुझे कभी हंसाती है तो कभी मेरी फजीहत कर देती है ।
काजल से अभी भी उसी तरह बातें करते रहता हूं । लेकिन सिर्फ बातें ही होती है ।
श्वेता दी और जीजू ने अपने फ्लैट को बेचकर दिल्ली में ही एक जगह फ्लैट खरीद लिया ।
श्वेता दी से भी सेक्सुअल सम्बन्ध खतम हो गया है । वो अपने फेमिली में व्यस्त हो गई है ।
अनुष्का और उसके हसबैंड की लाइफ भी ठीक ही चल रही है ।

संजय जी से एक बार बातों के दौरान पता चला कि आगरा में उन्हीं के कर्मचारी ने उन्हें मारने की कोशिश की थी । वो फिलहाल जेल में हैं । कुछ मालिक नौकर का प्रोब्लम था ।
मधुमिता की भी शादी हो गई है और वो बहुत खुश है ।


समाप्त ।

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माफ कीजिएगा । ये कहानी यहीं समाप्त हो रही है ।
कुछ कमी है मुझमें जो मैं समय का मैनेजमेंट नहीं कर पा रहा ।
मुझे बहुत खुशी है कि एक ऐसे आदमी की कहानी को पसंद किया गया जिसने कभी कोई कविता तक नहीं लिखा हो ।
मैं उन सभी लोगों को शुक्रिया कहता हूं जिन्होंने मुझे इतना बर्दाश्त किया ।
और खास तौर पर फ़ायरफ़ॉक्स भाई का । यदि ये नहीं होते तो मैं शायद बहुत पहले लिखना छोड़ देता ।

थोड़ा सा इमोशनल हूं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं स्टोरी पढ़ना छोडूंगा या कमेंट नहीं करूंगा ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।
Superb story bro, one of the best story i have ever read.
 
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उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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गजब लिखा है SANJU ( V. R. ) भैया आपने।

एक अच्छा पाठक एक बेहतरीन लेखक होता है, और आप वही हो।

और लिखो भैया, खूब लिखो और जरूर लिखो।
 
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vinay k

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लेखक से दुआ है ऐसी ही कहानी लिखते रहे, बहुत ही मजा आ रहा है, पानी पानी हो गई मैं
 
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