• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Erotica Satisfaction of lust

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
Satisfaction of lust
Peta-Jensen-01
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
421756E.gif
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
tumblr_nhk2kjBWGC1tjbeoao1_500.gif
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
Maa bete ki kahani-बेटा ये तेरी माँ की चूत है

मेरी उम्र 21 साल की है और मेरी प्यारी माँ 43 साल की है। घर पर मेरी माँ और में रहता हूँ। मेरी माँ एकदम सेक्सी है। उनकी बहुत मद मस्त जवानी है। उसके कूल्हे बहुत अच्छे लगते हैं। मैंने एक बार जब वो सोई हुई थी तो तब उसके कमरे में जाकर उसकी गांड देखी थी और बड़ा उत्तेजित हुआ था। मुझे उनकी गांड चाटने का बहुत मन होता था। लेकिन मौका नहीं मिलता था और भी हिम्मत नहीं होती थी। लेकिन एक दिन मौका भी मिला मुझे।

मेरी माँ भी मेरे खड़े हुए लंड को बार बार देखती थी। मैं सोने की एक्टिंग करता था और वो मेरे पास सो कर मेरे पीछे से मेरे लंड को पकड़ कर सहलाती थी और मैं आँखे बंद करके बहुत मज़ा लेता था। माँ अपनी छाती को मेरे हाथो से दबवाती थी और एक बार तो मेरा लंड चूस भी लिया था। में भी एक्टिंग करता था और माँ की गांड को मसलता रहता था।

एक बार मैंने बाथरूम खोला तो देखा की माँ आधी नंगी बैठ कर कपड़े धो रही थी और उसकी गांड का छेद साफ दिख रहा था। मैं चुपके से पीछे बैठ गया और माँ के गले लग गया। मेरा लंड खड़ा हो गया था पीछे से माँ के बदन को छू रहा था और माँ को अच्छा लग रहा था। मैंने धीरे से अपने हाथ माँ के कूल्हों पर रख दिया और उसे मसलने लगा। माँ तो अपने काम में मस्त थी और मजा ले रही थी।

कूल्हों को मसलते मसलते मेरी नज़र माँ के सिकुड़ते फैलते हुए गांड के छेद पर गई मेरे मन मैं आया की क्यों ना इसका स्वाद भी चखा जाए देखने से तो माँ की गांड वैसे भी काफ़ी खूबसूरत लग रही थी। जैसे गुलाब का फूल हो मैंने अपनी लपलपाती हुई जीभ को उसकी गांड के छेद पर लगा दी और धीरे-धीरे ऊपर ही ऊपर लपलपाते हुए चाटने लगा। गांड पर मेरी जीभ का स्पर्श पा कर माँ पूरी तरह से हिल उठी।
“ओह ये क्या कर रहा है ओह बहुत अच्छा लग रहा है, ये सब कहाँ से सीखा, तू तो बड़ा कलाकार है। हे राम देखो कैसे मेरी चूत को चाटने के बाद मेरी गांड को चाट रहा है। तुझे मेरी गांड इतनी अच्छी लग रही है, कि इसको भी चाट रहा है, ओह बेटा सच में गजब का मज़ा आ रहा है। चाट चाट ले अब पूरी गांड को चाट ले ओह ओह।

मैंने पूरी लगन के साथ गांड के छेद पर अपनी जीभ को लगा कर दोनो हाथो से दोनो कुल्हो को पकड़ कर छेद को फैलाया और अपनी नुकीली जीभ को उसमे डालने की कोशिश करने लगा। माँ को मेरे इस काम में बड़ी मस्ती आ रही थी और उसने खुद अपने हाथो को अपने कुल्हो पर ले जा कर गांड के छेद को फैला दियाऔर मुझे जीभ डालने के लिए उत्साहित करने लगी। ईईईईई डाल दे जीभ को जैसे मेरी चूत में डाला था वैसे ही गांड के छेद में भी डाल दे और चोद के खूब चाट मेरी गांड को मर गई रीईईई, ओह इतना मज़ा तो कभी नहीं आया था। ओह देखो कैसे गांड चोद रहा है,,,,,,,,सस्स्स्स्स्सीईई चाटो इसे चाटो और ज़ोर से चाटो।

मैं पूरी लगन से गांड चाट रहा था। मैंने देखा की चूत का गुलाबी छेद अपने रस को टपका रहा है, तो मैंने अपने होंठो को फिर से चूत के गुलाबी छेद पर लगा दिया और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा जैसे की कोकोकोला पी रहा हूँ। सारे रस को चूसने के बाद मैंने चूत के छेद में जीभ को डाल कर अपने होंठो के बीच में चूत के छेद को क़ैद कर लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया।

माँ के लिए अब बर्दाश्त करना शायद मुश्किल हो रहा था। उसने मेरे सिर को अपनी चूत से अलग करते हुए कहा फिर से चूस कर ही झाड़ देगा क्या? अब तो असली मज़ा लूटने का समय आ गया है। बेटा राजा अब चल मैं तुझे जन्नत की सैर कराती हूँ। अब अपनी माँ की चुदाई करने का मज़ा लूट मेरे राजा चल मुझे नीचे उतरने दे साले।

मैंने माँ की चूत पर से मुँह हटा लिया वो जल्दी से नीचे उतर कर लेट गई और अपने पैरो को घुटनो के पास से मोड़ कर अपनी दोनो जाँघो को फैला दिया और अपने दोनो हाथो को अपनी चूत के पास ले जा कर बोली “आ जा राजा जल्दी कर अब नहीं रहा जाता। जल्दी से अपने मूसल को मेरी ओखली में डाल कर कूट दे जल्दी कर बेटा डाल दे अपना लंड माँ की प्यासी चूत में, मैं उसके दोनो जाँघो के बीच में आ गया पर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करू। फिर भी मैंने अपने खड़े लंड को पकड़ा और माँ के ऊपर झुकते हुए उसकी चूत से अपने लंड को सटा दिया।

माँ ने लंड को चूत से सटाते ही कहा “हाँ अब मार धक्का और घुसा दे। अपने सांप जैसे लंड को माँ के बिल में। मैंने धक्का मार दिया पर ये क्या लंड तो फिसल कर चूत के बाहर ही रगड़ खा रहा था। मैंने दोबारा कोशिश की फिर वही नतीज़ा तीन धक्के मारे फिर लंड फिसल कर बाहर इस पर माँ ने कहा “रुक जा मेरे नासमझ खिलाड़ी, मुझे ध्यान रखना चाहिए था, तू तो पहली बार चुदाई कर रहा है, अभी तुझे मैं बताती हूँ, फिर अपने दोनो हाथो को चूत पर ले जाकर चूत के दोनो फांको को फैला दिया और चूत के अंदर का गुलाबी छेद नज़र आने लगा था। चूत एक दम पानी से भीगी हुई लग रही थी। चूत छोड़ी करके माँ बोली ले मैंने तेरे लिए अपनी चूत को फैला दिया है, अब आराम से अपने लंड को ठीक निशाने पर लगा कर चोद ले जितना चाहे उतना चोद।

मैंने अपने लंड को ठीक चूत के खुले हुए मुँह पर लगाया और धक्का मारा लंड थोड़ा सा अंदर तो घुसा पानी लगे होने के कारण लंड का मुहं अंदर चला गया था। माँ ने कहा “शाबाश ऐसे ही मुहं चला गया अब पूरा घुसा दे मार धक्का कस के और चोद डाल मेरी चूत को बहुत खुजली मची हुई है। मैंने अपनी गांड तक का ज़ोर लगा कर धक्का मार दिया, पर मेरा लंड में ओर दर्द की लहर उठी और मैंने चीखते हुए झट से लंड को बाहर निकाल लिया। माँ ने पूछा क्या हुआ चिल्लाता क्यों है।

ओह माँ लंड में बहुत दर्द हो रहा है। माँ उठ कर बैठ गई और मेरी तरफ देखते हुई बोली देखूं तो कहा दर्द है। मैंने लंड दिखाते हुए कहा देखो ना जैसे ही चूत में घुसाया था, वैसे ही दर्द करने लगा माँ कुछ देर तक देखती रही फिर हंसने लगी और बोली साले अनाड़ी चुदक्कड़, चला है माँ को चोदने, अभी तक तो तेरे लंड की चमड़ी ढंग से उतरी ही नहीं है, तो दर्द नहीं होगा तो और क्या होगा, चल कोई बात नहीं मुझे इस बात का ध्यान रखना चाहिए था, मेरी ग़लती है मैंने सोचा तूने खूब मूठ मारी होगी तो चमड़ी अपने आप उतरने लगी होगी, मगर तेरे इस गुलाबी सुपाड़े की शक्ल देख कर ही मुझे समझ जाना चाहिए था, कि तूने तो अभी तक ढंग से मूठ भी नहीं मारी, चल नीचे लेट, लगता है अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा।

मैंने तो अब तक यही सुना था की लड़का लडकी के ऊपर चड़ कर चोदता है। मगर जब माँ ने मुझे नीचे लेटने के लिए कहा तो मैं सोच में पड़ गया और माँ से पूछा नीचे क्यों लेटना है, माँ क्या अब चुदाई नहीं होगी। मुझे लग रहा था कि माँ फिर से मेरा मुठ मार देगी। माँ ने हँसते हुए कहा नहीं अनाड़ी चुदाई तो होगी, जितनी तुझे चोदने की आग लगी है मुझे भी चुदवाने की उतनी ही आग लगी है, चुदाई तो होगी ही, तुझे तो अभी रात भर मेरी चूत का बाजा बजाना है, मेरे राजा तू नीचे लेट अब उल्टी तरफ से चुदाई होगी। उल्टी तरफ से चुदाई होगी इसका क्या मतलब है। माँ बोली इसका मतलब तुझे लिटाके में खुद ही तेरे लंड से चुदवाउंगी, ये तो तू खुद ही थोड़ी देर के बाद देख लेना मगर फिलहाल तू नीचे लेट और अपना लंड खड़ा कर के रख फिर देख मैं कैसे तुझे मज़ा देती हूँ।

मैं नीचे लेट तो गया पर अब भी मैं सोच रहा था, कि माँ कैसे करेगी माँ ने जब मेरे चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव देखे तो वो मेरे गाल पर एक प्यार भरा तमाँचा लगते हुए बोली सोच क्या रहा है, तू अभी चुपचाप तमाशा देख फिर बताना की कैसा मज़ा आता है, कह कर माँ ने मेरे कमर के दोनो तरफ अपनी दोनो टाँगे कर दी और अपनी चूत को ठीक मेरे लंड के सामने ला कर मेरे लंड को एक हाथ से पकड़ा और लंड को सीधा अपनी चूत के गुलाबी मुँह पर लगा दिया।

लंड को चूत के गुलाबी मुँह पर लगा कर वो मेरे लंड को अपने हाथो से आगे पीछे कर के अपनी चूत की दरार पर रगड़ने लगी। उसकी चूत से निकला हुआ पानी मेरे लंड पर लग रहा था और मुझे बहुत मज़ा आ रहा था, मेरी साँसे उस अगले पल के इंतज़ार में रुकी हुई थी जब मेरा लंड उसकी चूत में घुसता।

मैं बहुत देर से इंतज़ार कर रहा था। तभी माँ ने अपनी चूत की फाँक को एक हाथ से फैलाया और मेरे लंड के मुहं को सीधा चूत के गुलाबी मुँह पर लगा कर उपर से हल्का सा ज़ोर लगाया। मेरे लंड का मुहं उसके चूत की फांको के बीच में समा गया। फिर माँ ने मेरी गांड पर अपने हाथो को जमाया और ऊपर से एक हल्का सा धक्का दिया मेरे लंड का थोड़ा सा और भाग उसकी चूत में समा गया था। उसके बाद माँ स्थिर हो गई और इतने से ही लंड को अपनी चूत में घुसा कर आगे पीछे करने लगी। थोरी देर तक ऐसा करने के बाद उसने फिर से एक धक्का मारा। इस बार धक्का थोड़ा ज्यादा ही जोरदार था और मेरे लंड का लगभग आधा से अधिक भाग उसकी चूत में समा गया। मेरे मुँह से एक ज़ोरदार चीख निकल गई।
क्योकि मेरे लंड के मुहं की चमड़ी एक दम से पीछे उलट गई थी। पर माँ ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और उतने ही जोर से लंड को आगे पीछे करते हुए धक्का मारते हुए बोली, बेटा चुदाई कोई आसान काम नहीं है, लड़की भी जब पहली बार चुदती है, तो उसको भी दर्द होता है और उसका दर्द तो तेरे दर्द के सामने कुछ भी नहीं है, जैसे उसकी चूत की सील टूटती है, वैसे ही तेरे लंड की भी आज सील टूटी है। थोड़ी देर तक आराम से लेटा रह फिर देख तुझे कैसा मज़ा आता है।

माँ अब उतने लंड को ही चूत में ले कर धीरे धीरे धक्के लगा रही थी। वो अपनी गांड को उछाल उछाल के धक्के पर धक्का मारे जा रही थी। थोड़ी देर में ही मेरा दर्द कम हो गया और मुझे गीलेपन का अहसास होने लगा था, माँ की चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था और उसकी चूत से निकलते पानी के कारण मेरे लंड का घुसना और निकलना भी आसान हो गया था, माँ अब और ज़ोर ज़ोर से अपनी गांड उछाल उछाल के धक्के लगा रही थी और मेरे वीर्य का ज्यादा से ज्यादा भाग उसकी चूत के अंदर घुसता जा रहा था।

माँ ने इस बार एक ज़ोरदार धक्का मारा और मेरे लंड का ज्यादातर भाग अपनी चूत में छुपा लिया और सिसकते हुए बोली ईईईइ दैयया, कितना तगड़ा लंड है, जैसे कि गरम लोहा हो एक दम सीधा चूत की दीवारो को रगड़ मार रहा है, मेरे जैसी चुदी हुई औरत की चूत में जब ये इतना कसा हुआ है। तो जवान लड़कियों की चूत तो फाड़ के रख देगा, मज़ा आ गया, ले साले और घुसा लंड और घुसा” कह कर तेज़ी से तीन चार धक्के और मार दिए।

माँ ने तेज़ी से लगाए गये इन धक्को से मेरा पूरा का पूरा लंड उसकी चूत के अंदर चला गया। माँ ने सिसकते हुए धक्के लगाना जारी रखा और अपने एक हाथ को चूत के मुहं के पास ले जाकर देखने लगी की पूरा लंड अंदर गया है की नहीं। जब उसने देखा की पूरा का पूरा लंड उसकी चूत में घुस चुका है। तब उसने अपनी गांड को उठाते हुए एक तेज धक्का मारा और मेरे हाथो का चुम्मा ले कर बोली कैसा लग रहा है। बेटा अब तो दर्द नहीं हो रहा है ना।
नहीं माँ अब दर्द नहीं हो रहा है, देखो ना मेरा पूरा लंड तुम्हारी चूत के अंदर चला गया है। हाँ बेटा अब दर्द नहीं होगा अब तो बस मज़ा ही मज़ा है। मेरी चूत के पानी के गीलेपन से तेरी चमड़ी उलटने में अब आसानी हो रही है। इसलिए तुझे अब दर्द नहीं हो रहा होगा बल्कि मज़ा आ रहा होगा। क्यों बेटा बोल ना मज़ा आ रहा है या नहीं, अपनी माँ की चूत में को चोदकर। अब तो तुझे पता चल रहा होगा की चुदाई क्या होती है, बेटा ले मज़े चुदाई का और बता कि तुझे कैसा लग रहा है, माँ की चूत में लंड घुसाने में। माँ सच में गजब का मज़ा आ रहा है, ओह माँ तुम्हारी चूत कितनी कसी हुई है। मेरा लंड तो इसमे बड़ी मुश्किल से घुसा है, जबकि मैंने सुना था की शादीशुदा औरतो की चूत ढीली हो जाती है।

माँ बोली “बेटा ये तेरी माँ की चूत है, ये ढीली होने वाली चूत नहीं है, कहकर माँ ने लंड को पूरा खींच कर बाहर निकाला और फिर ऊपर से गांड का ज़ोर लगा के एक ज़ोरदार धक्का मारा कि पूरा लंड एक ही बार में गप्प से अपनी चूत के अंदर चला गया। माँ अब तेज तेज धक्के लगा के पूरा का पूरा लंड अपनी चूत में एक ही बार में गप्प गप्प से लेती रही थी।

उसने मेरा उत्साह बड़ाते हुए कहा अबे साले नीचे क्या औरतो की तरह से पड़े रह कर चुदवा रहा है, अपनी गांड उछाल उछाल के तू भी धक्का मार साले चोद अपनी माँ को ऐसे पड़े रहने से थोड़े ही मज़ा आएगा, देख मेरी चूत कैसे तेरे सारे वीर्य को एक ही बार में निगल रही है, तेरा लंड मेरी चूत की दीवारो को कुचलता हुआ कैसे मेरी चूत के लास्ट तक ठोकर मार रहा है और तू भी नीचे से धक्का मार मेरे राजा और बता की कैसा लग रहा है, माँ की चुदाई करने में मज़ा आ रहा है या नहीं।

मैंने भी नीचे से गांड उछाल कर धक्का मारना शुरू कर दिया और माँ के कुल्हो को अपनी हथेलियों के बीच दबोच कर बोला, माँ बहुत मज़ा आ रहा है, सच में इतना मज़ा तो जिंदगी में कभी नहीं आया। ओह तुम्हारी चूत में मेरा लंड एकदम धीरे धीरे जा रहा है और ऐसा लगता है जैसे कि मैंने किसी गरम भट्टी में अपने लंड को डाल दिया है। ओह सस्सस्सस्सीईईईई कितना गरम है तेरी चूत माँ और ज़ोर से मरो धक्का और ले लो अपने बेटे का लंड अपनी चूत में ऊऊओह साली मज़ा आ गया कह कर मैंने अपनी एक उंगली को माँ की गांड की दरार पर लगा कर उसको हल्का सा उसकी गांड में डाल दिया।

माँ का जोश मेरी इस हरकत पर दुगुना हो गया और वो अपनी कुल्हो को और तेज़ी के साथ उछालने लगी और कहने लगी गांड में उंगली डालता है। तेरी माँ को चोद और ले मेरा चूत का धक्का तेरे लंड पर दूँगी मुँह क्या देख रहा है, चूची दबा साले मुँह में लेकर चूस और चुदाई का मज़ा ले। मुझे कितने वर्षो के बाद ऐसी चुदाई का आनंद मिल रहा है ।।

मैंने माँ के आदेश पर उसकी चूचियों को अपने हाथो में थाम लिया और उसकी चूची को खींच कर उसके निप्पल से अपने मुँह को सटा कर चूसते हुए दूसरी चुचि को खूब ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। माँ अब अपनी गांड को पूरा उछाल उछाल कर मेरे लंड को अपनी गरम चूत में डलवा रही थी। उसकी चूत एक दम अंगीठी की तरह से गरम हो चुकी थी और खूब पानी छोड़ रही थी मेरा लंड उसकी चूत के पानी से भीग कर सटा सट उसकी चूत के अंदर बाहर हो रहा था।

माँ के मुँह से गालियों की बौछार हो रही थी। वो बोल रही थी, चोद मेरी चूत को दम लगाके, कितना मज़ा आ रहा है, तेरे बाप से अब कुछ नहीं होता अब तो तू ही मेरी चूत की आग को ठंडी करना, मैं तुझे चुदाई का शहनशाह बना दूँगी, तेरे उस बाप को छूने भी नहीं दूँगी में अपनी चूत, तू ही चोदना मेरी चूत को और मेरी आग ठंडी करना, कहाँ था तू, अब तक तो मैं तेरे लंड का कितना पानी पी चुकी होती, चोद रे चोद अपनी गांड तक का ज़ोर लगा, चोदने में आज अगर तूने मुझे खुश कर दिया तो फिर मैं तेरी गुलाम हो जाउंगी।

मैं माँ की चूचियों को मसलते हुए अपनी गांड को नीचे से उछलता जा रहा था। मेरा लंड उसकी कसी चूत में गपागप…फ़च फ़च की आवाज़ करता हुआ अंदर बाहर हो रहा था, हम दोनो की साँसे तेज हो गई थी और कमरे में चुदाई की माँदक आवाज़ गूँज रही थी और दोनो के बदन से पसीना छूट रहा था और सांसो की गर्मी एक दूसरे के बदन को महका रही थी। माँ अब शायद थक चुकी थी। उसके धक्के मारने की रफ़्तार अब थोड़ी धीमी हो गई थी और अब वो हांफने भी लगी थी।

थोरी देर तक हाँफते हुए वो धक्का लगाती रही फिर अचानक से पस्त हो कर मेरे बदन के ऊपर गिर गई और बोली ओह मैं तो थक गई इतने में आम तौर पर मेरा पानी तो निकल जाता है। पर आज नये लंड के जोश में मेरा पानी भी नहीं निकल रहा। ओह मज़ा आ गया आज से पहले ऐसी चुदाई कभी नहीं हुई, अब तो तुझे मेरे ऊपर चढ़ कर धक्का मारना होगा। तभी चुदाई हो पाएगी साले, कह कर वो अपने पूरे शरीर का भार मेरे बदन पर दे कर लेट गई।

मेरी साँसे भी तेज चल रही थी मगर लंड अब भी खड़ा था। दिल में चुदाई की ललक थी और अब तो मैंने चुदाई भी सीख ली थी। मैंने धीरे से माँ के कुल्हो को पकड़ का नीचे से ही धक्का लगाने का प्रयास किया और दो तीन छोटे छोटे धक्के मारे मगर क्योंकी माँ थोड़ा थक गई थी, इसलिए वो उसी तरह से लेटी रही बिना हिले।

माँ के भारी शरीर के कारण मैं उतने ज़ोर के धक्के नहीं लगा पाया जितना लगा सकता था। मैंने माँ को बाँहो में भर लिया और उसके कान के पास अपने मुँह को ले जाकर फुसफुसाते हुए बोला, ओह माँ जल्दी करो ना और धक्का मारो ना अब नहीं रहा जा रहा है, जल्दी से मारो ना। माँ ने मेरे चेहरे को गौर से देखते हुए मेरे होंठो को चूम लिया और बोली थोड़ा दम तो लेने दे साले कितनी देर से तो चुदाई हो रही है। थकान तो होगी ही ना।
पर माँ मेरा तो लंड लगता है फट जाएगा मेरा जी कर रहा है कि खूब ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाऊं। तो मार ना, मैंने कब मना किया है, आजा मेरे ऊपर चड़ के खूब ज़ोर ज़ोर से चुदाई कर दे। माँ धीरे से मेरे ऊपर से उतर गई, उसके उतरने पर मेरा लंड भी फिसल के उसकी चूत से बाहर निकल गया था। लेकिन माँ ने कुछ नहीं कहा और बगल में लेट कर अपनी दोनो जाँघो को फैला दिया।

मेरा लंड एक दम रस से भीगा हुआ था और उसकी चूत लाल रंग की किसी पहाड़ी आलू के जैसे लग रही थी। मैंने अपने लंड को पकड़ा और सीधा अपनी माँ की जाँघो के बीच डाल दिया। उसकी जाँघो के बीच बैठ कर मैं उसकी चूत को गौर से देखने लगा। उसकी चूत पूरी पिचक रही थी और चूत का मुँह अभी थोड़ा सा फूला हुआ लग रहा था। चूत का गुलाबी छेद अंदर से झाँक रहा था और पानी से भीगा हुआ महसूस हो रहा था। मैं कुछ देर तक रुक कर उसकी चूत की सुंदरता को निहारता रहा।

माँ ने मुझे जब कुछ करने की बजाए केवल घूरते हुए देखा तो वो सिसकते हुए बोली “क्या कर रहा है। जल्दी से डाल ना चूत में वीर्य को, ऐसे खड़े खड़े खाली घूरता रहेगा क्या? कितना देखेगा चूत को, अबे उल्लू, देखने से ज्यादा मज़ा चोदने में है, जल्दी से अपना मूसल डाल दे मेरी चूत में अब नाटक मत कर। माँ ने इतना कहकर मेरे लंड को अपने हाथो में पकड़ लिया और बोली ठहर मैं लगाती हूँ। साले और मेरे लंड के मुहं को चूत के खुले छेद पर घिसने लगी और बोली चूत का पानी लग जाएगा और चिकना हो जाएगा समझा फिर आराम से चला जाएगा चूत मैं। माँ के ऊपर झुक गया और अपने आप को पूरी तरह से तैयार कर लिया अपने जीवन की पहली चुदाई के लिए।

माँ ने मेरे लंड को चूत को छेद पर लगा कर स्थिर कर दिया और बोली हाँ अब मारो धक्का और चोद दो चूत में मैंने अपनी ताक़त को समेटा और कस के एक ज़ोरदार धक्का लगा दिया मेरे लंड का मुहं तो पहले से भीगा हुआ था। इसलिए वो आराम से अंदर चला गया उसके साथ साथ मेरे लंड का आधा से अधिक भाग चूत की दीवारो को रगड़ता हुआ अंदर घुस गया। ये सब अचानक तो नहीं था मगर फिर भी माँ ने सोचा नहीं था कि मैं इतनी ज़ोर से धक्का लगा दूँगा, इसलिए वो चौंक गई और उसके मुँह से एक चीख निकल गई।

मगर मैंने तभी दो तीन और ज़ोर के झटके लगा दिए और मेरा लंड पूरा का पूरा अंदर घुस गया। पूरा लंड घुसा कर जैसे ही मैं रुका तो माँ के मुँह से निकला पड़ा साले हरामी क्या समझ रखा है रे, कमीने ऐसे धक्का मारा जाता है क्या? सांड की तरह से घुसा दिया सीधा एक ही बार में, धीरे धीरे करना नहीं आता है तुझे, साले कमीने पूरी चूत हिल गई और एक तेरा बाप है कि घुसाना ही नहीं जनता और बेटा है कि घुसाता है तो ऐसे घुसाता है कि जैसे की मेरी चूत फाड़ने के लिए घुसा रहा हो हरामी कहीं का।

माफ़ कर देना माँ मगर मुझे नहीं पता था कि तुम्हे चोट लग जाएगी। तू तो जानती है ना कि ये मेरी पहली चुदाई है। फिर मैंने माँ की दोनो चुचियों को अपने हाथो में थाम लिया और उन्हे दबाते हुए एक चूची के निप्पल को चूसने लगा। कुछ देर तक ऐसे ही रहने के बाद शायद माँ का दर्द कुछ कम हो गया और वो भी अब नीचे से अपनी गांड उचकाने लगी और मेरे बालो में हाथ फेरते हुए मेरे सिर को चूमने लगी। मैंने पूरी तरह से स्थिर था और चुचि को चुसने और दबाने में लगा हुआ था। माँ ने कहा बेटा अब धक्का लगाओ और चोदना शुरू करो अब देर मत करो तेरी माँ की प्यासी चूत अब तेरे लंड का पानी पीना चाहती है।

मैंने दोनो चुचियों को थाम लिया और धीरे धीरे अपनी गांड उछालने लगा। मेरा वीर्य माँ की चूत के अंदर से बाहर निकलता और फिर घुस जाता था। माँ ने अब नीचे से अपने कुल्हो को उछालना शुरू कर दिया था। इस तरह झटके मारने के बाद ही चूत से ,,,फ़च फ़च की आवाज़े आनी शुरू हो गई थी। ये इस बात को बतला रहा था कि उसकी चूत अब पानी छोड़ने लगी है और अब उसे भी मज़ा आना शुरू हो गया है। माँ ने अपने पैरो को घुटनो के पास से मोड लिया था और अपनी टॅंगो की कैंची बना के मेरे कमर पर बाँध दिया था। मैं ज़ोर ज़ोर से धक्का मारते हुए उसके होंठो और गालो को चूमते हुए उसके चुचियों को दबा रहा था।

माँ के मुँह से सिसकारियों का दौर फिर से शुरू हो गया था और वो हांफते हुए बोलने लगी, मारो और ज़ोर से मारो राजा चोदो मेरी चूत को चोद चोद के बिगाड़ दो बेटा कैसा लग रहा है। बेटा चोदने में मज़ा आ रहा है या नहीं, मेरी चूत कैसी लगा रही है। मुझे बता ना राजा, पूरी जड़ तक लंड से चोद दो राजा और कस कस के धक्के मार के पक्के बन जाओ। बता ना राजा बेटा कैसा लग रहा है। माँ की चूत में वीर्य डालने में मैंने धक्का लगते हुए कहा, हाँ.. माँ बहुत मज़ा आ रहा है, बहुत कसी हुई है तुम्हारी चूत, मेरा लंड तो एक दम मस्त होकर जा रहा है तेरी चूत में, ऐसा लग रहा है जैसे किसी बोतल में लकड़ी का ढक्कन फँसा रहा हूँ। क्या सच में मेरा बापू तुझे चोदता नहीं था, या फिर तुम उसको चोदने नहीं देती थी।

इस पर माँ ने अपने पैरो का शिकंजा और कसा दाँत पीसते हुए कहा, साले तेरा बाप तो क्या चोदेगा मुझे उसने तो मुझे ना जाने कब से चोदना छोड़ा हुआ है, पर मैं किसी तरह से अपनी चूत की खुजली को अंदर ही दबा लेती थी। क्या करती किस से चुदवाती और फिर जिसके पास चुदवाने जाती वो कही मुझे संतुष्ट नहीं कर पता तो क्या होता। बदनामी अलग से होती और मज़ा भी नहीं आता। तेरा लंड जब देखा तो मुझे लग गया की तू ना केवल मुझे संतुष्ट कर पाएगा, बल्कि तुझसे चुदवाने से बदनामी भी नहीं होगी और तू भी मेरी चूत का प्यासा है। फिर अपने बेटे से चुदवाने का मज़ा ही कुछ और ही है। जब सोचने में इतना मज़ा आ रहा था, तो मैंने सोचा की क्यों ना चुदवा के देख ही लिया जाए।
माँ तो फिर कैसा लग रहा है अपने बेटे से चुदवाने में मज़ा आ रहा है ना मेरा लंड अपनी चूत में लेकर, बोलो मेरा लंड तुझे मज़ा दे रहा है या नहीं।

गजब का मज़ा आ रहा है राजा, तेरा लंड तो मेरी चूत के कोने तक टकरा रहा है और मेरी चूत के दीवारो को मसल रहा है और मेरी नाभि तक पहुँच रहा है। तू बहुत सुख दे रहा है अपनी माँ को मार कस के मार धक्का चोद ले अपनी माँ की चूत को और इसकी दो फाँक कर दे।
मेने कहा जब चुदवाने में इतना मज़ा आ रहा है तो फिर सोते वक्त इतना नाटक क्यों कर रही थी। जब मैं तुझे नंगा हो कर दिखाने को बोल रहा था।

अरे मेरे भोलू राम इतना भी नहीं समझता क्या? इसको कहते है नखरा, औरते दो तरह का नखरा दिखा सकती है या तो सीधे तेरा लंड पकड़ के कहती की चोद मुझे या फिर धीरे धीरे तुझे तडपा तडपा के एक एक चीज़ देखती और तब तुझसे चुद्वाती, मुझे सीधे चुदाई में मज़ा नहीं आता, मैं तो खूब खेल खेल के चुदवाना चाहती थी। चक्की जितनी धीरे चलती है उतना ही बारीक़ पीसती है। साले इसलिए मैंने थोड़ा सा नखरा दिखाया था, अब बाते चोदना बंद कर और लगा ज़ोर ज़ोर से धक्का और चोद मेरी चूत को लंड डाल चूत में।

ठीक है, अब तो मैं भी पूरा सीख गया हूँ। देख अब मैं कैसे चोदता हूँ। तेरी इस मस्तानी चूत को और कितना मज़ा देता हूँ तुझे, देख साली फिर ना बोलना की बेटे ने ठीक से नहीं चोदा। रंडी जितना तूने मुझे सिखाया है मैं उस से कही ज्यादा मज़ा दूँगा, साली मैं अब पूरे जोश के साथ धक्का मरने लगा था और मेरा पूरा लंड मुहं तक निकल कर बाहर आ जा रहा था। फिर सीधा सरकते हुए गच्च से अंदर माँ की चूत की गहराइयों में समा जा रहा था। लंड की चमड़ी तो अब शायद पूरी तरह से उलट चुकी थी और चुदाई में अब कोई दिक्कत नहीं आ रही थी। माँ की चूत एक दम से गरम भट्टी की तरह तप रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं जन्नत की सैर कर रहा हूँ।
मेरी गांड पर माँ का हाथ था और वो ऊपर से दबाते हुए मुझे अपनी चूत पर दबा रही थी और साथ में नीचे गांड उछाल कर मेरे वीर्य को अपनी चूत में ले रही थी। चूत के होंठो को मसलते हुए मेरा लंड सीधा चूत की दीवार से टकराता था और फिर उतनी ही तेज गति से बाहर आ कर फिर घुस जाता था। कमरे का माहौल फिर से गरम हो गया था और वातावरण में चुदाई की महक फैल गई थी। पूरे कमरे में गछ गछ फ़च फ़च की आवाज़ गूँज रही थी। हम दोनो की साँसे गर्म चल रही थी। दोनो के बदन से निकलता पसीना एक दूसरे को भिगो रहा था। लेकिन इसकी फ़िक्र किसे थी।
ऐसे ही धक्का मारे जा ऐसे ही चोद कर मुझे ठंडा कर दे, तेरे लंड से ही ठंडी होगी तेरी माँ, पंखे से ठंडे होनी वाली नहीं हूँ मैं, तेरी माँ को तो तेरा मोटा मूसल चाहिए जो की उसकी चूत की दो फांके कर के उसकी चूत के अंदर की ज्वाला को ठंडा कर दे।

ले साली और ले मेरे लंड को अपनी मस्तानी चूत में, ले खाजा मेरे लंड को अपनी चूत से, ओह मेरा तो जन्म सफल हो गया और कस कस के दे बेटा इसी लंड के लिए तो मैं इतनी प्यासी थी, ऐसे ही लंड से चुदवाने की चाहत को पाले हुए थी मैं, आज मेरी तमन्ना पूरी हो गई। अब तो बस आंधी आए या तूफान कोई भी हमे नहीं रोक सकता था। हम दोनो अब पूरे चरम पर पहुँच चुके थे और चुदाई की रफ़्तार में कोई कमी नहीं चाहते थे। माँ की सिसकारिया तेज हो गई थी और अब दोनो में से कोई भी एक दूसरे को छोड़ने वाला नहीं था। दोनो जी जान से एक दूसरे से चिपके हुए धक्के धक्के पर धक्का लगाए जा रहे थे।

माँ सिसकते हुए बोली राजा ऐसे ही मेरा निकालने वाला है। मारता रह धक्का धीरे मत कर। मेरा भी अब निकालने वाला था और मैं भी ज़ोर ज़ोर से धक्का लगाते हुए चोदने लगा और झड़ने लगा ओह साली मेरा भी निकल रहा है। मेरा वीर्य तो पूरा का पूरा चूत में निकल गया, कह कर मैं माँ के ऊपर लेट गया। हम दोनो की आँखे बंद थी और थकान के मारे दोनों एक दूसरे बदन से चिपके हुए थे।।
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
जब फँसा चूत में केला

यह एक ऐसी घटना है जिसकी याद दस साल बाद भी मुझे शर्म से पानी पानी कर देती है। लगता है धरती फट जाए और उसमें समा जाऊँ। अकेले में भी आइना देखने की हिम्मत नहीं होती। कोई सोच भी नहीं सकता किसी के साथ ऐसा भी घट सकता है ! ये एक केले का किस्सा है
उस घटना के बाद मैंने पापा से जिद करके जेएनयू ही छोड़ दिया। पता नहीं मेरी कितनी बदनामी हुई होगी। दस साल बाद आज भी किसी जेएनयू के विद्यार्थी के बारे में बात करते डर लगता है। कहीं वह सन 2000 के बैच का न निकले और सोशियोलॉजी विषय का न रहा हो। तब तो उसे जरूर मालूम होगा। खासकर हॉस्टल का रहनेवाला हो तब तो जरूर पहचान जाएगा।
गनीमत थी कि पापा को पता नहीं चला। उन्हें आश्चर्य ही होता रहा कि मैंने इतनी मेहनत से जेएनयू की प्रवेश परीक्षा पासकर उसमें छह महीने पढ़ लेने के बाद उसे छोड़ने का फैसला क्यों कर लिया। मुझे कुछ सूझा नहीं था, मैंने पिताजी से बहाना बना दिया कि मेरा मन सोशियोलॉजी पढ़ने का नहीं कर रहा और मैं मास कम्यूनिकेशन पढ़ना चाहती हूँ। छह महीने गुजर जाने के बाद अब नया एडमिशन तो अगले साल ही सम्भव था। चाहती थी अब वहाँ जाना ही न पड़े। संयोग से मेरी किस्मत ने साथ दिया और अगले साल मुझे बर्कले यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में छात्रवृत्ति मिल गई और मैं अमेरिका चली गई।
लेकिन विडम्बना ने मेरा पीछा वहाँ भी नहीं छोड़ा। यह छात्रवृत्ति हीना को भी मिली थी और वह अमरीका मेरे साथ गई। वही इस कारनामे की जड़ थी। उसी ने जेएनयू में मेरी यह दुर्गति कराई थी। उसने अपने साथ मुझसे भी छात्रवृत्ति के लिए प्रार्थनापत्र भिजवाया था और पापा ने भी उसका साथ होने के कारण मुझे अकेले अमेरिका जाने की इजाजत दी थी। लेकिन हीना की संगत ने मुझे अमेरिका में भी बेहद शर्मनाक वाकये में फँसाया, हालाँकि बाद में उसका मुझे फायदा मिला था। पर वह एक दूसरी कहानी है। हीना एक साथ मेरी जिन्दगी में बहुत बड़ा दुर्भाग्य और बहुत बड़ा सौभाग्य दोनों थी।
वो हीना ! जेएनयू के साबरमती हॉस्टल की लड़कियाँ की सरताज। जितनी सुंदर उससे बढ़कर तेजस्वी, बिल्लौरी आँखों में काजल की धार और बातों में प्रबुद्ध तर्क की धार, गोरापन लिये हुए छरहरा शरीर, किंचित ऊँची नासिका में चमकती हीरे की लौंग, चेहरे पर आत्मविश्वारस की चमक, बुध्दिमान और बेशर्म, न चेहरे, न चाल में संकोच या लाज की छाया, छातियाँ जैसे मांसलता की अपेक्षा गर्व से ही उठी रहतीं, उच्चवर्गीय खुले माहौल से आई तितली।
अन्य हॉस्टलों में भी उसके जैसी विलक्षण शायद ही कोई दिखी। मेरी रूममेट बनकर उसे जैसे एक टास्क मिल गया था कि किस तरह मेरी संकोची, शर्मीले स्वभाव को बदल डाले। मेरे पीछे पड़ी रहती। मुझे दकियानूसी बताकर मेरा मजाक उड़ाती रहती। उसकी तुर्शी-तेजी और पढ़ाई में असाधारण होने के कारण मेरे मन पर उसका हल्का आतंक भी रहता, हालाँकि मैं उससे अधिक सुंदर थी, उससे अधिक गोरी और मांसल लेकिन फालतू चर्बी से दूर, फिगर को लेकर मैं भी बड़ी सचेत थी, उसके साथ चलती तो लड़कों की नजर उससे ज्यादा मुझ पर गिरती, लेकिन उसका खुलापन बाजी मार ले जाता। मैं उसकी बातों का विरोध करती और एक शालीनता और सौम्यता के पर्दे के पीछे छिपकर अपना बचाव भी करती। जेएनयू का खुला माहौल भी उसकी बातों को बल प्रदान करता था। यहाँ लड़के लड़कियों के बीच भेदभाव नहीं था, दोनों बेहिचक मिलते थे। जो लड़कियाँ आरंभ में संकोची रही हों वे भी जल्दी जल्दी नए माहौल में ढल रही थीं। ऐसा नहीं कि मैं किसी पिछड़े माहौल से आई थी। मेरे पिता भी अफसर थे, तरक्कीपसंद नजरिये के थे और मैं खुद भी लड़के लड़कियों की दोस्ती के विरोध में नहीं थी। मगर मैं दोस्ती से सेक्स को दूर ही रखने की हिमायती थी
जबकि हीना ऐसी किसी बंदिश का विरोध करती थी। वह कहती शादी एक कमिटमेंट जरूर है मगर शादी के बाद ही, पहले नहीं। हम कुँआरी हैं, लड़कों के साथ दोस्ती को बढ़ते हुए अंतरंग होने की इच्छा स्वाभाविक है और अंतरंगता की चरम अभिव्यक्ति तो सेक्स में ही होती है। वह शरीर के सुख को काफी महत्व देती और उस पर खुलकर बात भी करती। मैं भारतीय संस्कृति की आड़ लेकर उसकी इन बातों का विरोध करती तो वह मदनोत्सव, कौमुदी महोत्सव और जाने कहाँ कहाँ से इतिहास से तर्क लाकर साबित कर देती कि सेक्स को लेकर प्रतिबन्ध हमारे प्राचीन समाज में था ही नहीं। मुझे चुप रहना पड़ता।
पर बातें चाहे जितनी कर खारिज दो मन में उत्सुकता तो जगाती ही हैं। वह औरतों के हस्तमैथुन, समलैंगिक संबंध के बारे में बात करती। शायद मुझसे ऐसा संबंध चाहती भी थी। मैं समझ रही थी, मगर ऊपर से बेरुखी दिखाती। मुझसे पूछती कभी तुमने खुद से किया है, तुम्हारी कभी इच्छा नहीं होती! भगवान ने जो खूबियाँ दी हैं उनको नकारते रहना क्या इसका सही मान है? जैसे पढ़ाई में अच्छा होना तुम्हारा गुण है, वैसे ही तुम्हारे शरीर का भी अच्छा होना क्या तुम्हारा गुण नहीं है? अगर उसकी इज्जत करना तुम्हें पसंद है तो तुम्हारे शरीर ……
“ओफ… भगवान के लिए चुप रहो। तुम कुछ और नहीं सोच सकती?” मैं उसे चुप कराने की कोशिश करती।
“सोचती हूँ, इसीलिये तो कहती हूँ।”
“सेक्स या शारीरिक सौंदर्य मेरा निजी मामला है।”
“तुम्हारी पढ़ाई, तुम्हारा नॉलेज भी तो तुम्हारी निजी चीज है?” उस दिन कुछ वह ज्यादा ही तीव्रता में थी।
केला अन्दर तक चला गया था..
“है, लेकिन यह मेरी अपनी योग्यता है, इसे मैंने अपनी मेहनत से, अपनी बुद्धि से अर्जित किया है।”
“और शरीर कुदरत ने तुम्हें दिया है इसलिए वह गलत है?”

“बिल्कुल नहीं, मैं मेकअप करती हूँ, इसे सजा-धजाकर अच्छे से संवार कर रखती हूँ।”
“लेकिन इससे मज़ा करना गलत समझती हो? या फिर खुद करो तो ठीक, दूसरा करे तो गलत, है ना?”
“अब तुम्हें कैसे समझाऊँ।”
वह आकर मेरे सामने बैठ गई, “माई डियर, मुझे मत समझाओ, खुद समझने की कोशिश करो।”
मैंने साँस छोड़ी, “तुम चाहती क्या हो? सबको अपना शरीर दिखाती फिरूँ?”
“बिल्कुल नहीं, लेकिन इसको दीवार नहीं बनाओ, सहज रूप से आने दो।” वह मेरी आँखों में आँखें डाले मुझे देख रही थी। वही बाँध देनेवाली नजर, जिससे बचकर दूसरी तरफ देखना मुश्किल होता। मेरे पास अभी उसके कुतर्कों के जवाब होते, मगर बोलने की इच्छा कमजोर पड़ जाती।
फिर भी मैंने कोशिश की, “मैं यहाँ पढ़ने आई हूँ, प्रेम-व्रेम के चक्कर में फँसने नहीं।”
“प्रेम में न पड़ो, दोस्ती से तो इनकार नहीं? वही करो, शरीर को साथ लेकर।”
मैं उसे देखती रह जाती। क्या चीज है यह लड़की ! कोई शील संकोच नहीं? यहाँ से पहले माँ-बाप के पास भी क्या ऐसे ही रहती थी ! उसने छह महीने में ही कई ब्वायफ्रेंड बना लिये थे, उनके बीच तितली-सी फुदकती रहती। हॉस्टल के कमरे में कम ही रहती। जब देखो तो लाइब्रेरी में, या दोस्तों के साथ, या फिर हॉस्टल के कार्यक्रमों में। मुझे उत्सुकता होती वह लड़कों के साथ भी पढ़ाई की बातें करती है या इश्क और सेक्स की बातें?
मुझे उसके दोस्तों को देखकर उत्सुकता तो होती पर मैं उनसे दूर ही रहती। शायद हीना की बातों और व्यवहार की प्रतिक्रिया में मेरा लड़कों से दूरी बरतना कुछ ज्यादा था। वह नहीं होती तो शायद मैं उनसे अधिक मिलती-जुलती। उसके जो दोस्त आते वे उससे ज्यादा मुझे ही बहाने से देखने की कोशिश में रहते। मुझे अच्छा लगता- कहीं पर तो उससे बीस हूँ। हीना उनके साथ बातचीत में मुझे भी शामिल करने की कोशिश करती। मैं औपचारिकतावश थोड़ी बात कर लेती लेकिन हीना को सख्ती से हिदायत दे रखी थी कि अपने दोस्तों के साथ मेरे बारे में कोई गंदी बात ना करे। अगर करेगी तो मैं कमरा बदलने के किए प्रार्थनापत्र दे दूंगी।
वह डर-सी गई लेकिन उसने मुझे चुनौती भी देते हुए कहा था, “मैं तो कुछ नहीं करूँगी, लेकिन देखूँगी तुम कब तक लक्ष्मण रेखा के भीतर रहती हो? अगर कभी मेरे हाथ आई तो, जानेमन, देख लेना, निराश नहीं करूंगी, वो मजा दूंगी कि जिन्दगीभर याद रखोगी।”
उस दिन मैं अनुमान भी नहीं लगा पाई थी उसकी बातों में कैसी रोंगटे खड़े कर देनेवाली मंशा छिपी थी। लेकिन अकेले में मेरे साथ उसके रवैये में कोई फर्क नहीं था। दोस्ती की मदद के साथ साथ एक अंतनिर्हित रस्साकशी भी। नोट्स का आदान-प्रदान, किताबों, विषयों पर साधिकार बहस और साथ में उतने ही अधिकार से सेक्स संबंधी चर्चा। अपने सेक्स के, हस्तमैथुन के भी प्रसंगों का वर्णन करती, समलैंगिक अनुभव के लिए उत्सुकता जाहिर करती जिसमें अप्रत्यक्ष रूप से मेरी तरफ इशारा होता। कोई सुंदर गोरी लड़की मिले तो… तुम्हारी जैसी… शायद मेरे प्रति मन में कमजोरी उसे मुझे खुलकर बोलने से रोकती। वह अशालीन भी नहीं थी। उसकी तमाम बातों में चालूपन से ऊपर एक परिष्कार का स्तर बना रहता। वह विरोध के लायक थी पर फटकार के लायक नहीं। वह मुझे हस्तमैथुन के लिए ज्यादा प्रेरित करती। कहती इसमें तो कोई आपत्ति नहीं है न। इसमें तो कोई दूसरा तुम्हें देखेगा, छुएगा नहीं?
वह रात देर तक पढ़ाई करती, सुबह देर से उठती। उसका नाश्ता अक्सर मुझे कमरे में लाकर रखना पड़ता। कभी कभी मैं भी अपना नाश्ता साथ ले आती। उस दिन जरूर संभावना रहती कि वह नाश्ते के फलों को दिखाकर कुछ बोलेगी। जैसे, ‘असली’ केला खाकर देखो, बड़ा मजा आएगा।’ वैसे तो खीरे, ककड़ियों के टुकड़ों पर भी चुटकी लेती, ‘खीरा भी बुरा नहीं है, मगर वह शुरू करने के लिए थोड़ा सख्त है।’ केले को दिखाकर कहती, “इससे शुरूआत करो, इसकी साइज, लम्बाई मोटाई चिकनाई सब ‘उससे’ मिलते है, यह ‘इसके’ (उंगली से योनिस्थल की ओर इशारा) के सबसे ज्यादा अनुकूल है। एक बार उसने कहा, “छिलके को पहले मत उतारो, इन्फेक्शन का डर रहेगा। बस एक तरफ से थोड़ा-सा छिलका हटाओ और गूदे को उसके मुँह पर लगाओ, फिर धीरे धीरे ठेलो। छिलका उतरता जाएगा और एकदम फ्रेश चीज अंदर जाती जाएगी। नो इन्फेक्शकन।”
मुझे हँसी आ रही थी। वह कूदकर मेरे बिस्तर पर आ गई और बोली, “बाई गॉड, एक बार करके तो देखो, बहुत मजा आएगा।”
एक-दो सेकंड तक इंतजार करने के बाद बोली,”बोलो तो मैं मदद करूँ? अभी ! तुम्हें खा तो नहीं जाऊँगी।”
“क्या पता खा भी जाओ, तुम्हारा कोई भरोसा नहीं।” मैं बात को मजाक में रखना चाह रही थी।
“हुम्म….” कुछ हँसती, कुछ दाँत पीसती हुई-सी बोली,”तो जानेमन, सावधान रहना, तुम जैसी परी को अकेले नहीं खाऊँगी, सबको खिलाऊँगी।”
“सबको खिलाने से क्या मतलब है?” मुझे उसकी हँसी के बावजूद डर लगा।
उस दिन कोई व्रत का दिन था। वह सुबह-सुबह नहाकर मंदिर गई थी। लौटने में देर होनी थी इसलिए मैंने उसका नाश्ता लाकर रख दिया था। आज हमें बस फलाहार करना था। अकेले कमरे में प्लेट में रखे केले को देखकर उसकी बात याद आ रही थी,”इसका आकार, लम्बाई मोटाई चिकनाई सब ‘उससे’ मिलते हैं।”
मैं केले को उठाकर देखने लगी, पीला, मोटा और लम्बा। हल्का-सा टेढ़ा मानो इतरा रहा हो और मेरी हँसी उड़ाती नजर का बुरा मान रहा हो। असली लिंग को तो देखा नहीं था, मगर हीना ने कहा था शुरू में वह भी मुँह में केले जैसा ही लगता है। मैंने कौतूहल से उसके मुँह पर से छिलके को थोड़ा अलगाया और उसे होठों पर छुलाया। नरम-सी मिठास, साथ में हल्के कसैलेपन का एहसास भी।
क्या ‘वह’ भी ऐसा ही लगता है?
मैं कुछ देर उसे होंठों और जीभ पर फिराती रही फिर अलग कर लिया। थूक का एक महीन तार उसके साथ खिंचकर चला आया।
लगा, जैसे योनि के रस से गीला होकर लिंग निकला हो ! (एक ब्लू फिल्म का दृश्*य)।
धत्त ! मुझे शर्म आई, मैंने केले को मेज पर रख दिया।
मुझे लगा, मेरी योनि में भी गीलापन आने लगा है।
साढ़े आठ बज रहे थे। हीना अब आती ही होगी। क्लास के लिए तैयार होने के लिए काफी समय था। केला मेज पर रखा था। उसे खाऊँ या रहने दूँ। मैंने उसे फिर उठाकर देखा। सिरे पर अलगाए छिलके के भीतर से गूदे का गोल मुँह झाँक रहा था। मैंने शरारत से ही उसके मुँह पर नाखून से एक चीरे का पिहून बना दिया। अब वह और वास्तविक लिंग-जैसा लगने लगा। मन में एक खयाल गुजर गया- जरा इसको अपनी ‘उस’ में भी लगाकर देखूँ?
पर इस खयाल को दिमाग से झटक दिया।
लेकिन केला सामने रखा था। छिलके के नीचे से झाँकते उसके नाखून से खुदे मुँह पर बार-बार नजर जाती थी। मुझे अजीब लग रहा था, हँसी भी आ रही थी और कौतुहल भी। एकांत छोटी भावनाओं को भी जैसे बड़ा कर देता है। सोचा, कौन देखेगा, जरा करके देखते हैं। हीना डींग मारती है कि सच बोलती है पता तो चलेगा।
मैंने उठकर दरवाजा लगा दिया।
हीना का खयाल कहीं दूर से आता लगा। जैसे वह मुझ पर हँस रही हो।
मध्यम आकार का केला। ज्यादा लम्बा नहीं। अभी थोड़ा अधपका। मोटा और स्वस्थ।
मैं बिस्तर पर बैठ गई और नाइटी को उठा लिया। कभी अपने नंगेपन को चाहकर नहीं देखा था। इस बार मैंने सिर झुकाकर देखा। बालों के झुरमुट के अंदर गुलाबी गहराई।
मैंने हाथ से महसूस किया- चिकना, गीला, गरम… मैंने खुद पर हँसते हुए ही केले को अपने मुँह से लगाकर गीला किया और उसके लार से चमक गए मुँह को देखकर चुटकी ली, ‘जरूर खुश होओ बेटा, ऐसी जबरदस्त किस्मत दोबारा नहीं होगी।’
योनि के होठों को उंगलियों से फैलाया और अंदर की फाँक में केले को लगा दिया। कुछ खास तो नहीं महसूस हुआ, पर हाँ, छुआते समय एक हल्की सिहरन सी जरूर आई। उस कोमल जगह में जरा सा भी स्पर्श ज्यादा महसूस होता है। मैंने केले को हल्के से दबाया लेकिन योनि का मुँह बिस्तर में दबा था।
मैं पीछे लेट गई। सिर के नीचे अपने तकिए के ऊपर हीना का भी तकिया खींचकर लगा लिया। पैरों को मोड़कर घुटने फैला लिये। मुँह खुलते ही केले ने दरार के अंदर बैठने की जगह पाई। योनि के छेद पर उसका मुँह टिक गया, पर अंदर ठेलने की हिम्मत नहीं हुई। उसे कटाव के अंदर ही रगड़ते हुए ऊपर ले आई। भगनासा की घुण्डी से नीचे ही, क्योंकि वहाँ मैं बहुत संवेदनशील हूँ। नीचे गुदा की छेद और ऊपर भगनासा से बचाते हुए मैंने उसकी ऊपर नीचे कई बार सैर कराई। जब कभी वह होठों के बीच से अलग होता, एक गीली ‘चट’ की आवाज होती। मैंने कौतुकवश ही उसे उठा-उठाकर ‘चट’ ‘चट’ की आवाज को मजे लेने के लिए सुना।
हँसी और कौतुक के बीच उत्तेजना का मीठा संगीत भी शरीर में बजने लगा था। केला जैसे अधीर हो रहा था भगनासा का शिवलिंग-स्पर्श करने को।
‘कर लो भक्त !’ मैंने केले को बोलकर कहा और उसे भगनासा की घुण्डी के ऊपर दबा दिया।
दबाव के नीचे वह लचीली कली बिछली और रोमांचित होकर खिंच गई। उसके खिंचे मुँह पर केले को फिराते और रगड़ते मेरे मुँह से पहली ‘आह’ निकली। मैंने हीना को मन ही मन गाली दी- साली !
बगल के कमरे से कुछ आवाज सी आई। हाथ तत्क्षण रुक गया। नजर अपने आप किवाड़ की कुण्डी पर उठ गई। कुण्डी चढ़ी हुई थी। फिर भी गौर से देखकर तसल्ली की। रोंगटे खड़े हो गए। कोई देख ले तो !
नाइटी पेट से ऊपर, पाँव फैले हुए, उनके बीच होंठों को फैलाए बायाँ हाथ, दाहिने हाथ में केला।
कितनी अश्लील मुद्रा में थी मैं !!
मेरे पैर किवाड़ की ही तरफ थे। बदन में सिहरन-सी दौड़ गई। केले को देखा। वह भी जैसे बालों के बीच मुँह घुसाकर छिपने की कोशिश कर रहा था लेकिन बालों की घनी कालिमा के बीच उसका पीला शरीर एकदम प्रकट दिख रहा था। डर के बीच भी उस दृश्य को देखकर मुझे हँसी आ गई, हालाँकि मन में डर ही व्याप्त था।
लेकिन यौनांगों से उठती पुकार सम्मोहनकारी थी। मैंने बायाँ हाथ डर में ही हटा लिया था। केवल दाहिना हाथ चला रही थी। केला बंद होठों को अपनी मोटाई से ही फैलाता अंदर के कोमल मांस को ऊपर से नीचे तक मालिश कर रहा था। भगनासा के अत्यधिक संवेदनशील स्नायुकेन्द्र पर उसकी रगड़ से चारों ओर के बाल रोमांचित होकर खड़े हो गए थे। स्त्रीत्व के कोमलतम केन्द्र पर केले के नरम कठोर गूदे का टकराव बड़ा मोहक लग रहा था।
कोई निर्जीव वस्तु भी इतने प्यार से प्यार कर सकती है ! आश्चर्य हुआ।
हीना ठीक कहती है, केले का जोड़ नहीं होगा।
मैंने योनि के छेद पर उंगली फिराई। थोड़ा-सा गूदा घिसकर उसमें जमा हो गया था। ‘तुम्हें भी केले का स्वाद लग गया है !’ मैंने उससे हँसी की।
मैंने उस जमे गूदे को उंगली से योनि के अंदर ठेल दिया। थोड़ी सी जो उंगली पर लगी थी उसको उठाकर मुँह में चख भी लिया। एक क्षण को हिचक हुई, लेकिन सोचा नहा-धोकर साफ तो हूँ। वही परिचित मीठा, थोड़ा कसैला स्वाद, लेकिन उसके साथ मिली एक और गंध- योनि के अंदर की मुसाई गंध।
मैंने केले को उठाकर देखा, छिलके के अन्दर मुँह घिस गया था। मैंने छिलका अलग कर फिर से गूदे में नाखून से खोद दिया। देखकर मन में एक मौज-सी आई और मैंने योनि में उंगली घुसाकर कई बार कसकर रगड़ दिया।
उस घर्षण ने मुझे थरथरा दिया और बदन में बिजली की लहरें दौड़ गईं। हूबहू मोटे लिंग-से दिखते उस केले के मुँह को मैंने पुचकार कर चूम लिया।
और उसी क्षण लगा, मन से सारी चिंता निकल गई है, कोई डर या संकोच नहीं।
मैंने बेफिक्र होकर केले को योनि के मुँह पर लगा दिया और उसे रगड़ने लगी। दूसरे हाथ की तर्जनी अपने आप भगांकुर पर घूमने लगी। आनन्द की लहरों में नौका बहने लगी, साँसें तेज होने लगीं। मैंने खुद अपने यौवन कपोतों को तेज तेज उठते बैठते देख मैंने उन्हें एक बार मसल दिया।
मेरा छिद्र एक बड़े घूमते भँवर की तरह केले को अदंर लेने की कोशिश कर रहा था। मैंने केले को थपथपाया, ‘अब और इंतजार की जरूरत नहीं। जाओ ऐश करो।’
मैंने उसे अन्दर दबा दिया। उसका मुँह द्वार को फैलाकर अन्दर उतरने लगा। डर लगा, लेकिन दबाव बनाए रही। उतरते हुए केले के साथ हल्का सा दर्द होने लगा था लेकिन यह दर्द उस मजे में मिलकर उसे और स्वादिष्ट बना रहा था। दर्द ज्यादा लगता तो केले को थोड़ा ऊपर लाती और फिर उसे वापस अन्दर ठेल देती।
धीरे धीरे मुझमें विश्वास आने लगा- कर लूँगी।
जब केला कुछ आश्वस्त होने लायक अन्दर घुस गया तब मैं रुकी, केले का छिलका योनि के ऊपर पत्ते की तरह फैला हुआ था। मेरी देह पसीने-पसीने हो रही थी।
अब और अन्दर नहीं लूँगी, मैंने सोचा। लेकिन पहली बार का रोमांच और योनि का प्रथम फैलाव उतने कम प्रवेश से मानना नहीं चाह रहे थे।
थोड़ा-सा और अन्दर जा सकता है !
अगर ज्यादा अन्दर चला गया तो?
मैं उतने ही पर संतोष करके केले को पिस्टन की तरह चलाने लगी।
आधे अधूरे कौर से मुँह नही भरता, उल्टे चिढ़ होती है। मैंने सोचा, थोड़ा सा और… !
सुरक्षित रखते हुए मैंने गहराई बढ़ाई और फिर उतने ही तक से अन्दर बाहर करने लगी। ऊपर बायाँ हाथ लगातार भग-मर्दन कर रहा था। शरीर में दौड़ते करंट की तीव्रता और बढ़ गई। पहले कभी इस तरह से किया नहीं था। केवल उंगली अन्दर डाली थी, उसमें वो संतोष नहीं हुआ था।
अब समझ में आ रहा था औरत के शरीर की खूबी क्या होती है, हीना क्यों इसके पीछे पागल रहती है। जब केले से इतना अच्छा लग रहा था तो वास्तविक सम्भोग कितना अच्छा लगता होगा !?!
मेरे चेहरे पर खुशी थी। पहली बार यह चिकना-चिकना घर्षण एक नया ही एहसास था, उंगली की रगड़ से अलग, बेकार ही मैं इससे डर रही थी।
मुझे केले के भाग्य से ईर्ष्या होने लगी थी, केला निश्चिंत अन्दर-बाहर हो रहा था। अब उसे योनि से बिछड़ने का डर नहीं था। मैं उसके आवागमन का मजा ले रही थी। केले के बाहर निकलते समय योनि भिंचकर अन्दर खींचने की कोशिश करती। मैं योनि को ढीला कर उसे पुन: अन्दर ठेलती। इन दो विरोधी कोशिशों के बीच केला आराम से आनन्द के झोंके लगा रहा था। मैं धीरे-धीरे सावधानी से उसे थोड़ा थोड़ा और अन्दर उतार रही थी। आनन्द की लहरें ऊँची होती जा रही थीं, भगांकुर पर उंगलियों की हरकत बढ़ रही थी, सनसनाहट बढ़ रही थी और अब किसी अंजाम तक पहुँचने की इच्छा सर उठाने लगी थी।
बहुत अच्छा लग रहा था। जी करता था केले को चूम लूँ। एक बार उसे निकालकर चूम भी लिया और पुन: छेद पर लगा दिया। अन्दर जाते ही शांति मिली। योनि जोर जोर से भिंच रही थी। मैंने अपने कमर की उचक भी महसूस की।
धीरे धीरे करके मैंने आधे से भी अधिक अन्दर उतार दिया। डर लग रहा था, कहीं टूट न जाए। हालाँकि केले में पर्याप्त सख्ती थी। मैं उसे ठीक से पकड़े थी। योनि भिंच-भिंचकर उसे और अन्दर खींचना चाह रही थी। केला भी जैसे पूरा अन्दर जाने के लिए जोर लगा रहा था। मैं भरसक नियंत्रण रखते ही अन्दर बाहर करने की गति बढ़ा रही थी। योनि की कसी चिकनी दीवारों पर आगे पीछे सरकता केला बड़ा ही सुखद अनुभव दे रहा था।
कितना अच्छा लग रहा था !! एक अलग दुनिया में खो रही थी मैं ! एक लय में मेरा हाथ और सांसें और धड़कनें चल रही थीं, तीनों धीरे धीरे तेज हो रहे थे। मैं धरती से मानो ऊपर उठ रही थी। वातावरण में मेरी आह आह की फुसफुसाहटों का संगीत गूंज रहा था। कोई मीठी सी धुन दिमाग में बज रही थी…..
“आज मदहोश हुआ जाए रे मेरा मन, मेरा मन
शरारत करने को ललचाए रे मेरा मन, मेरा मन ….
धीरे धीरे दाहिने हाथ ने स्वत: ही अन्दर-बाहर करने की गति सम्हाल ली। मैं नियंत्रण छोड़कर उसके उसके बहाव में बहने लगी। मैंने बाएँ हाथ से अपने स्तनों को मसलना शुरू कर दिया। उसकी नोकों पर नाइटी के ऊपर से ही उंगलियाँ गड़ाने, उन्हें चुटकी में पकड़कर दबाने की कोशिश करने लगी। योनि में कम्पन सा महसूस होने लगा। गति निरंतर बढ़ रही थी – अन्दर-बाहर, अन्दर-बाहर… सनसनी की ऊँची होती तरंगें …. ‘चट’ ‘चट’ की उत्तेजक आवाज… सुखद घर्षण.. भगनासा पर चोट से उत्पन्न बिजली की लहरें… चरम बिन्दु का क्षितिज कहीं पास दिख रहा था। मैंने उस तक पहुँचने के लिए और जोर लगा दिया …..
कोई लहर आ रही है… कोई मुझे बाँहों में कस ले, मुझे चूर दे…………… ओह……
कि तभी ‘खट : खट : खट’…..
मेरी साँस रुक गई। योनि एकदम से भिंची, झटके से हाथ खींच लिया….
खट खट खट…..
हाथ में केवल डंठल और छिलका था। मैं बदहवास हो गई। अब क्या करूँ?
“पिहू, दरवाजा खोलो !”…. खट खट खट…
मैंने तुरंत नाइटी खींची और उठ खड़ी हुई। केला अन्दर महसूस हो रहा था। चलकर दरवाजे के पास पहुँची और चिटकनी खोल दी।
हीना मेरे उड़े चेहरे को देखकर चौंक पड़ी- क्या बात है?
मैं ठक ! मुँह में बोल नहीं थे।
“क्या हुआ, बोलो ना?”
क्या बोलती? केला अन्दर गड़ रहा था। मैंने सिर झुका लिया। आँखें डबडबा आईं।
हीना घबराई, कुछ गड़बड़ है, कमरे में खोजने लगी। केले का छिलका बिस्तर पर पड़ा था। नाश्ते की दोनों प्लेटें एक साथ स्टडी टेबल पर रखी थीं।
“क्या बात है? कुछ बोलती क्यों नहीं?”
मेरा घबराया चेहरा देखकर संयमित हुई,”आओ, पहले बैठो, घबराओ नहीं।”
मेरा कंधा पकड़कर लाई और बिस्तर पर बिठा दिया। मैं किंचित जांघें फैलाए चल रही थी और फैलाए ही बैठी।
“अब बोलो, क्या बात है?”
मैंने भगवान से अत्यंत आर्त प्रार्थना की- प्रभो ….. बचा लो।
अचानक उसके दिमाग में कुछ कौंधा। उसने मेरी चाल और बैठने के तरीके में कुछ फर्क महसूस किया था। केले का छिलका उठाकर बोली, “क्या मामला है?”
मैं एकदम शर्म से गड़ गई, सिर एकदम झुका लिया, आँसू की बूंदें नाइटी पर टपक पड़ी।
“अन्दर रह गया है?”
मैंने हथेलियों में चेहरा छिपा लिया। बदन को संभालने की ताकत नहीं रही। बिस्तर पर गिर पड़ी।
हीना ठठाकर हँस पड़ी।
“मिस पिहू, आपसे तो ऐसी उम्मीद नहीं थी। आप तो बड़ी सुशील, मर्यादित और सो कॉल्ड क्या क्या हैं?” उसकी हँसी बढ़ने लगी।
मुझे गुस्सा आ गया- बेदर्द लड़की ! मैं इतनी बड़ी मुश्किल में हूँ और तुम हँस रही हो?
“हँसूं न तो क्या करूँ? मुझसे तो बड़ी बड़ी बातें कहती हो, खुद ऐसा कैसे कर लिया?”
मैंने शर्म और गुस्से से मुँह फेर लिया।

अब क्या करूँ? बेहद डर लग रहा था। देखना चाहती थी कितना अन्दर फँसा हुआ है, निकल सकता है कि नहीं। कहीं डॉक्टर बुलाना पड़ गया तो? सोचकर ही रोंगटे खड़े हो गए। कैसी किरकिरी होगी !
मैंने आँख पोछी और हिम्मत करके कमरे से बाहर निकली। कोशिश करके सामान्य चाल से चली, गलियारे में कोई देखे तो शक न करे। बाथरूम में आकर दरवाजा बंद किया और नाइटी उठाकर बैठकर नीचे देखा। दिख नहीं रहा था। काश, आइना लेकर आती। हाथ से महसूस किया। केले का सिरा हाथ से टकरा रहा था। बेहद चिकना। नाखून गड़ाकर खींचना चाहा तो गूदा खुदकर बाहर चला आया।
और खोदा।
उसके बाद उंगली से टकराने लगा और नाखून गड़ाने पर भीतर धँसने लगा।
मैंने उछल कर देखा, शायद झटके से गिर जाए। डर भी लग रहा था कि कहीं कोई पकड़ न ले।
कई बार कूदी। बैठे बैठे और खड़े होकर भी। कोई फायदा नहीं। कूदने से कुछ होने की उम्मीद करना आकाश कुसुम था।
फँस गई। कैसे निकलेगा? कुछ देर किंकर्तव्यविमूढ़ बैठी रही। फिर निकलना पड़ा। चलना और कठिन लग रहा था। यही केला कुछ क्षणों पहले अन्दर कितना सुखद लग रहा था !
कमरे के अन्दर आते ही हीना ने सवाल किया,”निकला?”
मैंने सिर हिलाया। हमारे बीच चुप्पी छाई रही। परिस्थिति भयावह थी।
“मैं देखूँ?”
हे भगवान, यह अवस्था ! मेरी दुर्दशा की शुरुआत हो चुकी थी। मैं बिस्तर पर बैठ गई।
हीना ने मुझे पीछे तकिए पर झुकाया और मेरे पाँवों के पास बैठ गई। मेरी नाइटी उठाकर मेरे घुटनों को मोड़ी और उन्हें धीरे धीरे फैला दी। बालों की चमचमाती काली फसल………. पहली बार उस पर बाहर की नजर पड़ रही थी। हीना ने होंठों को फैलाकर अन्दर देखा।
हे भगवान कोई रास्ता निकल आए !
उसने उंगलियों से होंठों के अन्दर, अगल बगल टटोला, महसूस किया। बाएँ दाएँ, ऊपर नीचे। नाखून से खींचने की असफल कोशिश की, भगांकुर को सहलाया। ये क्यों? मन में सवाल उठा, क्या यह अभी भी तनी अवस्था में है? हीना ने गुदा में भी उंगली कोंची, दो गाँठ अन्दर भी घुसा दी। घुसाकर दाएं बाएँ घुमाया भी।
मैं कुनमुनाई। यह क्या कर रही है?
पलकों की झिरी से उसे देखा, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी। कहीं वह मुझसे खेल तो नहीं रही है?
“ओ गॉड, यह तो भीतर घुस गया है।” उसके स्वर में वास्तविक चिंता थी, “क्या करोगी?”
“डॉक्टर को बुलाओगी? वार्डन को बोलना पड़ेगा। हॉस्टल सुपरिंटेंडेंट जानेगी, फिर सारी टीचर्स, … ना ना…. बात सब जगह फैल जाएगी।”
“ना ना ना…. ” मैंने उसी की बात प्रतिध्वनित की।
कुछ देर हम सोचते रहे। समय नहीं है, जल्दी करना पड़ेगा, इन्फेक्शंन का खतरा है।
…………. मैं क्या कहूँ।
“एक बात कहूँ, इफ यू डोंट माइंड?”
“………….” मैं कुछ सोच नहीं पा रही।
“करण को बुलाऊँ? एमबीबीएस कर रहा है। कोई राह निकाल सकता है। सबके जानने से तो बेहतर है एक आदमी जानेगा।”
बाप रे ! एक लड़का। वह भी सीधे मेरी टांगों के बीच ! ना ना….
“पिहू, और कोई रास्ता नहीं है। थिंक इट। यही एक संभावना है।”
कैसे हाँ बोलूँ। अब तक किसी ने मेरे शरीर को देखा भी नहीं था। यह तो उससे भी आगे……. मैं चुप रही।
“जल्दी बोलो पिहू। यू आर इन डैंजर। अन्दर बॉडी हीट से सड़ने लगेगा। फिर तो निकालने के बाद भी डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा। लोगों को पता चल जाएगा।”
इतना असहाय जिंदगी में मैंने कभी नहीं महसूस किया था,”ओके ….”
“तुम चिंता न करो। ही इज ए वेरी गुड फ्रेड ऑव मी (वह मेरा बहुत ही अच्छा दोस्त है।)” उसने आँख मारी, “हर तरह की मदद करता है।”
गजब है यह लड़की। इस अवस्था में भी मुझसे मजाक कर रही है।
उसने करण को फोन लगाया, “करण, क्या कर रहे हो….. नाश्ता कर लिया?… नहीं?… तुम्हारे लिए यहाँ बहुत अच्छा नाश्ता है। खाना चाहोगे? सोच लो… इटस ए लाइफटाइम चांस… नाश्ते से अधिक उसकी प्लेट मजेदार … नहीं बताऊँगी…. अब मजाक छोड़ती हूँ। तुम तुरंत आ जाओ। माइ रूममेट इज इन अ बिग प्राब्लम। मुझे लगता है तुम कुछ मदद कर सकते हो… नहीं नहीं.. फोन पर नहीं कह सकती। इट्स अर्जेंट… बस तुरंत आ जाओ।”
मुझे गुस्सा आ रहा था। “ये नाश्ता-वाश्ता क्या बक रही थी?”
“गलत बोल रही थी?”
उसे कुछ ध्यान आया, उसने दुबारा फोन लगाया, “करण , प्लीज अपना शेविंग सेट ले लेना। मुझे लगता है उसकी जरूरत पड़ेगी।”
शेविंग सेट! क्या बोल रही है?….. अचानक मेरे दिमाग में एकदम से साफ हो गया … क्या वहाँ के बाल मूंडेगी? हाय राम!!!
कुछ ही देर में दरवाजे पर दस्तक हुई।
“हाय पिहू ! ” करण ने भीतर आकर मुझे विश किया और समय में मैं बस एक ठंडी ‘हाय’ कर देती थी, इस वक्त मुस्कुराना पड़ा।
“क्या प्राब्लम है?”
हीना ने मेरी ओर देखा, मैं कुछ नहीं बोली।
“इसने केला खाया है।”
“तो?”
“वो इसके गले में अटक गया है।”
उसके चेहरे पर उलझन के भाव उभरे,”ऐसा कैसे हो सकता है?”
“मुँह खोलो !”
हीना हँसी रोकती हुई बोली, “उस मुँह में नहीं….. बुद्धू…. दूसरे में… उसमें।” उसने उंगली से नीचे की ओर इशारा किया।
करण के चेहरे पर हैरानी, फिर हँसी ! फिर गंभीरता…..
हे भगवान, धरती फट जाए, मैं समा जाऊँ।
“यह देखो”, हीना ने उसे छिलका दिखाया, “टूटकर अन्दर रह गया है।”
“यह तो सीरियस है।” करण सोचता हुआ बोला।
“बहुत कोशिश की, नहीं निकल रहा। तुम कुछ उपाय कर सकते हो?”
करण विचारमग्न था। बोला, “देखना पड़ेगा।”
मैंने स्वाचालित-सा पैरों को आपस में दबा लिया।
“पिहू….”
मैं कुछ नहीं सुन पा रही थी, कुछ नहीं समझ पा रही थी। कानों में यंत्रवत आवाज आ रही थी, “पिहू… बी ब्रेव…! यह सिर्फ हम तीनों के बीच रहेगा…..!”
मेरी आँखों के आगे अंधेरा छाया हुआ है। मुझे पीछे ठेलकर तकिए पर लिटा रही है। मेरी नाइटी ऊपर खिंच रही है…. मेरे पैर, घुटने, जांघें… पेड़ू…. कमर….प्रकट हो रहे हैं। मेरी आत्मा पर से भी खाल खींचकर कोई मुझे नंगा कर रहा है। पैरों को घुटनों से मोड़ा जा रहा है……. दोनों घुटनों को फैलाया जा रहा है। मेरा बेबस, असहाय, असफल विरोध…. मर्म के अन्दर तक छेद करती पराई नजरें … स्त्री की अंतरंगता के चिथड़े चिथड़े करती….
जांघों पर, पेड़ू पर घूमते हाथ …. बीच के बालों को सरकाते हुए… होंठों को अलग करने का खिंचाव…।
“साफ से देख नहीं पा रहा, जरा उठाओ।”
मेरे सिर के नीचे से एक तकिया खींचा है। मेरे नितंबों के नीचे हाथ डालकर उठाकर तकिया लगाया जा रहा है…. मेरे पैरों को उठाकर घुटनों को छाती तक लाकर फैला दिया गया है… सब कुछ उनके सामने खुल गया है। गुदा पर ठंडी हवा का स्पर्श महसूस हो रहा है…
ॐ भूर्भुव: ………………………… धीमहि ….. पता नहीं क्यों गायत्री मंत्र का स्मरण हो रहा है। माता रक्षा करो…
केले की ऊपरी सतह दिख रही है। योनि के छेद को फैलाए हुए। काले बालों के के फ्रेम में लाल गुलाबी फाँक … बीच में गोल सफेदी… उसमें नाखून के गड्ढे…
कुछ देर की जांच-परख के बाद मेरा पैर बिस्तर पर रख दिया जाता है। मैं नाइटी खींचकर ढकना चाहती हूँ, पर….
“एक कोशिश कर सकती है।”
“क्या?”
“मास्टरबेट (हस्तेमैथुन) करके देखे। हो सकता है ऑर्गेज्म(स्खलन) के झटके और रिलीज(रस छूटने) की चिकनाई से बाहर निकल जाए।”
हीना सोचती है।
“पिहू!”
मैं कुछ नहीं बोलती। उन लोगों के सामने हस्तमैथुन करना ! स्खलित भी होना!!! ओ माँ !
“पिहू”, इस बार हीना का स्वर कठोर है,”बोलो…..”
क्या बोलूँ मैं। मेरी जुबान नहीं खुलती।
“खुद करोगी या मुझे करना पड़ेगा?”
वह मेरा हाथ खींचकर वहाँ पर लगा देती है,”करो।”
मेरा हाथ पड़ा रहता है।
“डू इट यार !”
मैं कोई हरकत नहीं करती, मर जाना बेहतर है।
“लेट अस डू इट फॉर हर (चलो हम इसका करते हैं)।”
मैं हल्के से बाँह उठाकर पलकों को झिरी से देखती हूँ। करण सकुचाता हुआ खड़ा है। बस मेरे उस स्थल को देख रहा है।
हीना की हँसी,”सुंदर है ना?”
शर्म की एक लहर आग-सी जलाती मेरे ऊपर से नीचे निकल जाती है, बेशर्म लड़की…!
“क्या सोच रहे हो?”
करण दुविधा में है, इजाजत के बगैर किसी लड़की का जननांग छूना ! भलामानुस है।
तनाव के क्षण में हीना का हँसी-मजाक का कीड़ा जाग जाता है,”जिस चीज की झलक भर पाने के लिए ऋषि-मुनि तरसते हैं, वह तुम्हें यूँ ही मिल रही है, क्या किस्मत है तुम्हारी !”
मैं पलकें भींच लेती हूँ। साँस रोके इंतजार कर रही हूँ ! टांगें खोले।
“कम ऑन, लेट्स डू इट…”
बिस्तर पर मेरे दोनों तरफ वजन पड़ता है, एक कोमल और एक कठोर हाथ मेरे उभार पर आ बैठते हैं, बालों पर उंगलियाँ फेरने से गुदगुदी लग रही है, कोमल उंगलियाँ मेरे होंठों को खोलती हैं अन्दर का जायजा लेती हैं, भगनासा का कोमल पिंड तनाव में आ जाता है, छू जाने से ही बगावत करता है, कभी कोमल, कभी कठोर उंगलियाँ उसे पीड़ित करती हैं, उसके सिर को कुचलती, मसलती हैं, गुस्से में वह चिनगारियाँ सी छोड़ता है। मेरी जांघें थरथराती हैं, हिलना-डुलना चाहती हैं, पर दोनों तरफ से एक एक हाथ उन्हें पकड़े है, न तो परिस्थिति, न ही शरीर मेरे वश में है।
“यस … ऐसे ही…” हीना मेरा हाथ थपथपाती है तब मुझे पता चलता है कि वह मेरे स्तनों पर घूम रहा था। शर्म से भरकर हाथ खींच लेती हूँ।
हीना हँसती है,”अब यह भी हमीं करें? ओके…”
दो असमान हथेलियाँ मेरे स्तनों पर घूमने लगती हैं। नाइटी के ऊपर से। मेरी छातियाँ परेशान दाएं-बाएँ, ऊपर-नीचे लचककर हमले से बचना चाह रही हैं पर उनकी कुछ नहीं चलती। जल्दी भी उन पर से बचाव का, कुछ नहीं-सा, झीना परदा भी खींच लिया जाता है, घोंसला उजाड़कर निकाल लिए गए दो सहमे कबूतर … डरे हुए ! उनका गला दबाया जाता है, उन्हें दबा दबाकर उनके मांस को मुलायम बनाया जा रहा है- मजे लेकर खाए जाने के लिए शायद।
उनकी चोंचें एक साथ इतनी जोर खींची जाती है कि दर्द करती हैं, कभी दोनों को एक साथ इतनी जोर से मसला जाता है कि कराह निकल जाती है। मैं अपनी ही तेज तेज साँसों की आवाज सुन रही हूँ। नीचे टांगों के केन्द्र में लगातार घर्षण, लगातार प्रहार, कोमल उंगलियों की नाखून की चुभन… कठोर उंगलियों की ताकतवर रगड़ ! कोमल कली कुचलकर लुंज-पुंज हो गई है।
सारे मोर्चों पर एक साथ हमला… सब कुछ एक साथ… ! ओह… ओह… साँस तो लेने दो…
“हाँ… लगता है अब गर्म हो गई है।” एक उंगली मेरी गुदा की टोह ले रही है।
मैं अकबका कर उन्हें अपने पर से हटाना चाहती हूँ, दोनों मेरे हाथ पकड़ लेते हैं, उसके साथ ही मेरे दोनों चूचुकों पर दो होंठ कस जाते हैं, एक साथ उन्हें चूसते हैं !
मेरे कबूतर बेचारे !जैसे बिल्ली मुँह में उनका सिर दबाए कुचल रही हो। दोनों चोंचें उठाकर उनके मुख में घुसे जा रहे हैं।
हरकतें तेज हो जाती हैं।
“यह बहुत अकड़ती थी। आज भगवान ने खुद ही इसे मुझे गिफ्ट कर दिया।” हीना की आवाज…. मीठी… जहर बुझी….
“तुम इसके साथ?”
“मैं कब से इसका सपना देख रही थी।”
“क्या कहती हो?”
“बहुत सुन्दर है ना यह !” कहती हुई वह मेरे स्तनों को मसलती है, उन्हें चूसती है। मैं अपने हाँफते साँसों की आवाज खुद सुन रही हूँ। कोई बड़ी लहर मरोड़ती सी आ रही है….
“पिहू, जोर लगाओ, अन्दर से ठेलो।” करण की आवाज में पहली बार मेरा नाम… हीना की आवाज के साथ मिली। गुदा के मुँह पर उंगली अन्दर घुसने के लिए जोर लगाती है।
यह उंगली किसकी है?
मैं कसमसा रही हूँ, दोनों ने मेरे हाथ-पैर जकड़ रखे हैं,”जोर से …. ठेलो।”
मैं जोर लगाती हूँ। कोई चीज मेरे अन्दर से रह रहकर गोली की तरह छूट रही है……. रस से चिकनी उंगली सट से गुदा के अन्दर दाखिल हो जाती है। मथानी की तरह दाएँ-बाएँ घूमती है।
आआआआह………. आआआआह………. आआआआह……….
“यस यस, डू इट…….!” हीना की प्रेरित करती आवाज, करण भी कह रहा है। दोनों की हरकतें तेज हो जाती हैं, गुदा के अन्दर उंगली की भी। भगनासा पर आनन्द उठाती मसलन दर्द की हद तक बढ़ जाती है।
ओ ओ ओ ओ ओ ह…………… खुद को शर्म में भिगोती एक बड़ी लहर, रोशनी के अनार की फुलझड़ी ……….. आह..
एक चौंधभरे अंधेरे में चेतना गुम हो जाती है।
“यह तो नहीं हुआ? वैसे ही अन्दर है !”… मेरी चेतना लौट रही है, “अब क्या करोगी?”
कुछ देर की चुप्पी ! निराशा और भयावहता से मैं रो रही हूँ।
“रोओ मत !” करण मुझे सहला रहा है, इतनी क्रिया के बाद वह भी थोड़ा-थोड़ा मुझ पर अधिकार समझने लगा है, वह मेरे आँसू पोंछता है,”इतनी जल्दी निराश मत होओ।” उसकी सहानुभूति बुरी नहीं लगती। कुछ देर सोचकर वह एक आइडिया निकालता है। उसे लगता है उससे सफलता मिल जाएगी।
“तुम मजाक तो नहीं कर रहे, आर यू सीरियस?” हीना संदेह करती है।
“देखो, वेजीना और एनस के छिद्र अगल-बगल हैं, दोनों के बीच पतली-सी दीवार है। जब मैंने इसकी गुदा में उंगली घुसाई तो वह केले के दवाब से बहुत कसी लग रही थी।”
अब मुझे पता चला कि वह उंगली करण की थी। मैं उसे हीना की शरारत समझ रही थी।
“तुम बुद्धिमान हो।” हीना हँसती है, “मैंने तुम्हें बुलाकर गलती नहीं की।”
तो यह बहाने से मेरी ‘वो’ मारना चाह रहा है। गंदा लड़का। मुझे एक ब्लू फिल्म में देखा गुदा मैथुन का दृश्य याद हो आया। वह मुझे बड़ा गंदा लेकिन रोमांचक भी लगा था- गुदा के छेद में तनाव। कहीं करण ने मेरी यह कमजोरी तो नहीं पकड़ ली? ओ गॉड।
“एक और बात है !” करण हीना की तारीफ से खुश होकर बोल रहा था,”शी इज सेंसिटिव देयर। जब मैंने उसमें उंगली की तो यह जल्दी ही झड़ गई।”
उफ !! मेरे बारे में इस तरह से बात कर रहे हैं जैसे कसाई मुर्गे के बारे में बात कर रहा हो।
“तो तुम्हें लगता है शी विल इंजॉय इट।”
“उसी से पूछ लो।”
हीना खिलखिला पड़ी,”पिहू, बोलो, तुम्हें मजा आएगा?”
वह मेरी हँसी उड़ाने का मौका छोड़ने वाली नहीं थी। पर वही मेरी सबसे बड़ी मददगार भी थी।
चुप्पी के आवरण में मैं अपनी शर्म बचा रही थी। लेकिन केला मुझे विवश किए था। मुझे सहायता की जरूरत थी। मेरा हस्तमैथुन करके उन दोनों की हिम्मत बढ़ गई थी। आश्चर्य था मैंने उसे अपने साथ होने दिया। अब तो मेरी गाण्ड मारने की ही बात हो रही थी।
मुझे तुरंत ग्लानि हुई ! छी: ! मैंने कितने गंदे शब्द सोचे। मैं कितनी जल्दी कितनी बेशर्म हो गई थी !
“पिहू, मजाक की बात नहीं। बी सीरियस।” हीना ने अचानक मूड बदल कर मुझे चेतावनी दी। उसका हाथ मेरे योनि पर आया और एक उंगली गुदा के छेद पर आकर ठहर गई।
“तुम इसके लिए तैयार हो ना?”
मेरी चुप्पी से परेशान होकर उसने कहा,”चुप रहने से काम नहीं चलेगा, यह छोटी बात नहीं है। तुम्हें बताना होगा तैयार हो कि नहीं। अगर तुम्हें आपत्ति्जनक लगता है तो फिर हम छोड़ देते हैं ! बोलो?”
मेरी चुप्पी यथावत् थी।
हीना ने करण से पूछा- बोलो क्या करें? यह तो बोलती ही नहीं।
“क्या कहेगी बेचारी ! बुरी तरह फँसी हुई है। शी इज टू मच इम्बैरेस्ड !” कुछ रुककर वह फिर बोला,”लेकिन अब जो करना है उसमें पड़े रहने से काम नहीं चलेगा। उठकर सहयोग करना होगा।”
“पिहू, सुन रही हो ना। अगर मना करना है तो अभी करो।”
“पिहू, तुम…. मैं नहीं चाहता, लेकिन इसमें तुम पर… कुछ जबरदस्ती करनी पड़ेगी, तुम्हें सहना भी होगा।” करण की आवाज में हमदर्दी थी। या पता नहीं मतलब निकालने की चतुराई।
कुछ देर तक दोनों ने इंतजार किया,”चलो इसे सोचने देते हैं। लेकिन जितनी देर होगी, उतना ही खतरा बढ़ता जाएगा।”
सोचने को क्या बाकी था ! मेरे सामने कोई और उपाय था क्या?
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
मेरी खुली टांगों के बीच योनिप्रदेश काले बालों की समस्त गरिमा के साथ उनके सामने लहरा रहा था।
मैंने हीना के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया- जो सही समझो, करो !
“लेकिन मुझे सही नहीं लग रहा।” करण ने बम जैसे फोड़ा,”मुझे लग रहा है, पिहू समझ रही है कि मैं इसकी मजबूरी का नाजायज फायदा उठा रहा हूँ।”
बात तो सच थी मगर मैं इसे स्वीकार करने की स्थिति में नहीं थी। वे मेरी मजबूरी का फायदा तो उठा ही रहे थे।
“खतरा पिहू को है। उसे इसके लिए प्रार्थना करनी चाहिए। पर यहाँ तो उल्टे हम इसकी मिन्नतें कर रहे हैं। जैसे मदद की जरूरत उसे नहीं हमें है।”
उसका पुरुष अहं जाग गया था। मैं तो समझ रही थी वह मुझे भोगने के लिए बेकरार है, मेरा सिर्फ विरोध न करना ही काफी है। मगर यह तो अब …..
“मगर यह तो सहमति दे रही है !”, हीना ने मेरे पेड़ू पर दबे उसके हाथ को दबाए मेरे हाथ की ओर इशारा किया। उसे आश्चर्य हो रहा था।
“मैं क्यों मदद करूँ? मुझे क्या मिलेगा?”
सुनकर हीना एक क्षण तो अवाक रही फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी,”वाह, क्या बात है !”
करण इतनी सुंदर लड़की को न केवल मुफ्त में ही भोगने को पा रहा था, बल्कि वह इस ‘एहसान’ के लिए ऊपर से कुछ मांग भी रहा था। मेरी ना-नुकुर पर यह उसका जोरदार दहला था।
“सही बात है।” हीना ने समर्थन किया।
“देखो, मुझे नहीं लगता यह मुझसे चाहती है। इसे किसी और को ही दिखा लो।”
मैं घबराई। इतना करा लेने के बाद अब और किसके पास जाऊँगी। करण चला गया तो अब किसका सहारा था?
“मेरा एक डॉक्टर दोस्त है। उसको बोल देता हूँ।” उसने परिस्थिति को और अपने पक्ष में मोड़ते हुए कहा।
मैं एकदम असहाय, पंखकटी चिड़िया की तरह छटपटा उठी। कहाँ जाऊँ? अन्दर रुलाई की तेज लहर उठी, मैंने उसे किसी तरह दबाया। अब तक नग्नता मेरी विवशता थी पर अब इससे आगे रोना-धोना अपमानजनक था।
मैं उठकर बैठ गई। केले का दबाव अन्दर महसूस हुआ। मैंने कहना चाहा,”तुम्हें क्या चाहिए?”
पर भावुकता की तीव्रता में मेरी आवाज भर्रा गई।
हीना ने मुझे थपथपाकर ढांढस दिया और करण को डाँटा,”तुम्हें दया नहीं आती?”
मुझे हीना की हमदर्दी पर विश्वास नहीं हुआ। वह निश्चय ही मेरी दुर्दशा का आनन्द ले रही थी।
“मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए।”
“क्या लोगे?”
करण ने कुछ क्षणों की प्रतीक्षा कराई और बात को नाटकीय बनाने के लिए ठहर ठहरकर स्पष्ट उच्चारण में कहा,”जो इज्जत इन्होंने केले को बख्शी है वह मुझे भी मिले।”
मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। अब क्या रहेगा मेरे पास? योनि का कौमार्य बचे रहने की एक जो आखिरी उम्मीद बनी हुई थी वह जाती रही। मेरे कानों में उसके शब्द सुनाई पड़े, “और वह मुझे प्यार और सहयोग से मिले, न कि अनिच्छा और जबरदस्ती से।”
पता नहीं क्यों मुझे करण की अपेक्षा हीना से घोर वितृष्णा हुई। इससे पहले कि वह मुझे कुछ कहती मैंने करण को हामी भर दी।
मुझे कुछ याद नहीं, उसके बाद क्या कैसे हुआ। मेरे कानों में शब्द असंबद्ध-से पड़ रहे थे जिनका सिलसिला जोड़ने की मुझमें ताकत नहीं थी। मैं समझने की क्षमता से दूर उनकी
हरकतों को किसी विचारशून्य गुड़िया की तरह देख रही थी, उनमें साथ दे रही थी। अब नंगापन एक छोटी सी बात थी, जिससे मैं काफी आगे निकल गई थी।
‘कैंची’, ‘रेजर’, ‘क्रीम’, ‘ऐसे करो’, ‘ऐसे पकड़ो’, ‘ये है’, ‘ये रहा’, ‘वहाँ बीच में’, ‘कितने गीले’, ‘सम्हाल के’, ‘लोशन’, ‘सपना-सा है’…………… वगैरह वगैरह स्त्री-पुरुष की
मिली-जुली आवाजें, मिले-जुले स्पर्श।
बस इतना समझ पाई थी कि वे दोनों बड़ी तालमेल और प्रसन्नता से काम कर रहे थे। मैं बीच बीच में मन में उठनेवाले प्रश्नों को ‘पूर्ण सहमति दी है’ के रोडरोलर के नीचे रौंदती चली गई। पूछा नहीं कि वे वैसा क्यों कर रहे थे, मुझे वहाँ पर मूँडने की क्या आवश्यकता थी।
लोशन के उपरांत की जलन के बाद ही मैंने देखा वहाँ क्या हुआ है। शंख की पीठ-सी उभरी गोरी चिकनी सतह ऊपर ट्यूब्लाइट की रोशनी में चमक रही थी। हीना ने जब एक उजला टिशू पेपर मेरे होंठों के बीच दबाकर उसका गीलापन दिखाया तब मैंने समझा कि मैं किस स्तर तक गिर चुकी हूँ। एक अजीब सी गंध, मेरे बदन की, मेरी उत्तेजना की, एक नशा, आवेश, बदन में गर्मी का एहसास… बीच बीच में होश और सजगता के आते द्वीप।
जब हीना ने मेरे सामने लहराती उस चीज की दिखाते हुए कहा, ‘इसे मुँह में लो !’ तब मुझे एहसास हुआ कि मैं उस चीज को जीवन में पहली बार देख रही हूँ। साँवलेपन की तनी छाया, मोटी, लंबी, क्रोधित ललाट-सी नसें, सिलवटों की घुंघचनों के अन्दर से आधा झाँकता मुलायम गोल गुलाबी मुख- शर्माता, पूरे लम्बाई की कठोरता के प्रति विद्रोह-सा करता। मैं हीना के चेहरे को देखती रह गई। यह मुझे क्या कह रही है!
“इसे गीला करो, नहीं तो अन्दर कैसे जाएगा।” हीना ने मेरा हाथ पकड़कर उसे पकड़ा दिया।
“पिहू, यू हैव प्रॉमिस्ड।”
मेरा हाथ अपने आप उस पर सरकने लगा। आगे-पीछे, आगे-पीछे।
“हाँ, ऐसे ही।” मैं उस चीज को देख रही थी। उसका मुझसे परिचय बढ़ रहा था।
“अब मुँह में लो।”
मुझे अजीब लग रहा था। गंदा भी……….. ।
“हिचको मत। साफ है। सुबह ही नहाया है।” हीना की मजाक करने की कोशिश……..।
मेरे हाथ यंत्रवत हरकत करते रहे।
“लो ना !” हीना ने पकड़कर उसे मेरे मुँह की ओर बढ़ाया। मैंने मुँह पीछे कर लिया।
“इसमें कुछ मुश्किल नहीं है। मैं दिखाऊँ?”
हीना ने उसे पहले उसकी नोक पर एक चुम्बन दिया और फिर उसे मुँह के अन्दर खींच लिया। करण के मुँह से साँस निकली। उसका हाथ हीना के सिर के पीछे जा लगा। वह उसे चूसने लगी। जब उसने मुँह निकाला तो वह थूक में चमक रहा था। मैं आश्चर्य में थी कि सदमे में, पता नहीं।
हीना ने अपने थूक को पोंछा भी नहीं, मेरी ओर बढ़ा दिया- यह लो।
“लो ना…….!” उसने उसे पकड़कर मेरी ओर बढ़ाया। करण ने पीछे से मेरा सिर दबाकर आगे की ओर ठेला। लिंग मेरे होंठों से टकराया। मेरे होंठों पर एक मुलायम, गुदगुदा एहसास। मैं दुविधा में थी कि मुँह खोलूँ या हटाऊँ कि “पिहू, यू हैव प्रॉमिस्ड” की आवाज आई।
मैंने मुँह खोल दिया।
मेरे मुँह में इस तरह की कोई चीज का पहला एहसास था। चिकनी, उबले अंडे जैसी गुदगुदी, पर उससे कठोर, खीरे जैसी सख्त, पर उससे मुलायम, केले जैसी। हाँ, मुझे याद आया। सचमुच इसके सबसे नजदीक केला ही लग रहा था। कसैलेपन के साथ। एक विचित्र-सी गंध, कह नहीं सकती कि अच्छी लग रही थी या बुरी। जीभ पर सरकता हुआ जाकर गले से सट जा रहा था। हीना मेरा सिर पीछे से ठेल रही थी। गला रुंध जा रहा था और भीतर से उबकाई का वेग उभर रहा था।
“हाँ, ऐसे ही ! जल्दी ही सीख जाओगी।”
मेरे मुँह से लार चू रहा था, तार-सा खिंचता। मैं कितनी गंदी, घिनौनी, अपमानित, गिरी हुई लग रही हूँगी।
करण आह ओह करता सिसकारियाँ भर रहा था।
फिर उसने लिंग मेरे मुँह से खींच लिया। “ओह अब छोड़ दो, नहीं तो मुँह में ही………”
मेरे मुँह से उसके निकलने की ‘प्लॉप’ की आवाज निकलने के बाद मुझे एहसास हुआ मैं उसे कितनी जोर से चूस रही थी। वह साँप-सा फन उठाए मुझे चुनौती दे रहा था।
उन दोनों ने मुझे पेट के बल लिटा दिया। पेड़ू के नीचे तकिए डाल डालकर मेरे नितम्बों को उठा दिया। मेरे चूतड़ों को फैलाकर उनके बीच कई लोंदे वैसलीन लगा दिया।
कुर्बानी का क्षण ! गर्दन पर छूरा चलने से पहले की तैयारी।
“पहले कोई पतली चीज से !”
हीना मोमबत्ती का पैकेट ले आई। हमने नया ही खरीदा था। पैकेट फाड़कर एक मोमबत्ती निकाली। कुछ ही क्षणों में गुदा के मुँह पर उसकी नोक गड़ी। हीना मेरे चूतड़ फैलाए थी। नाखून चुभ रहे थे। करण मोमबत्ती को पेंच की तरह बाएँ दाएँ घुमाते हुए अन्दर ठेल रहा था। मेरी गुदा की पेशियाँ सख्त होकर उसके प्रवेश का विरोध कर रही थीं। वहाँ पर अजीब सी गुदगुदी लग रही थी।
जल्दी ही मोम और वैसलीन के चिकनेपन ने असर दिखाया और नोक अन्दर घुस गई। फिर उसे धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा।
मुझसे कहा जा रहा था,”रिलैक्सन… रिलैक्सव… टाइट मत करो… ढीला छोड़ो… रिलैक्स … रिलैक्स…..”
मैं रिलैक्स करने, ढीला छोड़ने की कोशिश कर रही थी।
कुछ देर के बाद उन्होंने मोमबत्ती निकाल ली। गुदा में गुदगुदी और सुरसुरी उसके बाद भी बने रहे।
कितना अजीब लग रहा था यह सब ! शर्म नाम की चिड़िया उड़कर बहुत दूर जा चुकी थी।
“अब असली चीज !” उसके पहले करण ने उंगली घुसाकर छेद को खींचकर फैलाने की कोशिश की, “रिलैक्स … रिलैक्स .. रिलैक्स…..”
जब ‘असली चीज’ गड़ी तो मुझे उसके मोटेपन से मैं डर गई। कहाँ मोमबत्ती का नुकीलापन और कहाँ ये भोथरा मुँह। दुखने लगा। करण ने मेरी पीठ को दोनों हाथों से थाम लिया। हीना ने दोनों तरफ मेरे हाथ पकड़ लिए, गुदा के मुँह पर कसकर जोर पड़ा, उन्होंने एक-एक करके मेरे घुटनों को मोड़कर सामने पेट के नीचे घुसा दिया गया। मेरे नितम्ब हवा में उठ गए। मैं आगे से दबी, पीछे से उठी। असुरक्षित। उसने हाथ घुसाकर मेरे पेट को घेरा …
अन्दर ठेलता जबर्दस्तब दबाव…
ओ माँ.ऽऽऽऽऽऽऽ…
पहला प्यार, पहला प्रवेश, पहली पीड़ा, पहली अंतरंगता, पहली नग्नता… क्या-क्या सोचा था। यहाँ कोई चुम्बन नहीं था, न प्यार भरी कोई सहलाहट, न आपस की अंतरंगता जो वस्त्रनहीनता को स्वादिष्ट और शोभनीय बनाती है। सिर्फ रिलैक्स… रिलैक्स .. रिलैक्सप का यंत्रगान…..
मोमबत्ती की अभ्*यस्त* गुदा पर वार अंतत: सफल रहा- लिंग गिरह तक दाखिल हो गया। धीरे धीरे अन्दर सरकने लगा। अब योनि में भी तड़तड़ाहट होने लगी। उसमें ठुँसा केला दर्द करने लगा।
“हाँ हाँ हाँ, लगता है निकल रहा है !” हीना मेरे नितम्बों के अन्दर झाँक रही थी।
“मुँह पर आ गया है… मगर कैसे खींचूं?”
लिंग अन्दर घुसता जा रहा था। धीरे धीरे पूरा घुस गया और लटकते फोते ने केले को ढक दिया।
“बड़ी मुश्किल है।” हीना की आवाज में निराशा थी।
“दम धरो !” करण ने मेरे पेट के नीचे से तकिए निकाले और मेरे ऊपर लम्बा होकर लेट गया। एक हाथ से मुझे बांधकर अन्दर लिंग घुसाए घुसाए वह पलटा और मुझे ऊपर करता हुआ मेरे नीचे आ गया। इस दौरान मेरे घुटने पहले की तरह मुड़े रहे।
मैं उसके पेट के ऊपर पीठ के बल लेटी हो गई और मेरा पेट, मेरा योनिप्रदेश सब ऊपर सामने खुल गए।
हीना उसकी इस योजना से प्रशंसा से भर गई,”यू आर सो क्लैवर !”
उसने मेरे घुटने पकड़ लिए। मैं खिसक नहीं सकती थी। नीचे कील में ठुकी हुई थी।
मेरी योनि और केला उसके सामने परोसे हुए थे। हीना उन पर झुक गई।
‘ओह…’ न चाहते हुए भी मेरी साँस निकल गई। हीना के होठों और जीभ का मुलायम, गीला, गुलगुला… गुदगुदाता स्पर्श। होंठों और उनके बीच केले को चूमना चूसना… वह जीभ के अग्रभाग से उपर के दाने और खुले माँस को कुरेद कुरेदकर जगा रही थी। गुदगुदी लग रही थी और पूरे बदन में सिहरनें दौड़ रही थीं। गुदा में घुसे लिंग की तड़तड़ाहट,योनि में केले का कसाव, ऊपर हीना की जीभ की रगड़… दर्द और उत्तेजना का गाढ़ा घोल…
मेरा एक हाथ हीना के सिर पर चला गया। दूसरा हाथ बिस्तर पर टिका था, संतुलन बनाने के लिए।
करण ने लिंग को किंचित बाहर खींचा और पुन: मेरे अन्दर धक्का दिया। हीना को पुकारा, “अब तुम खींचो…..”
हीना के होंठ मेरी पूरी योनि को अपने घेरे में लेते हुए जमकर बैठ गए। उसने जोर से चूसा। मेरे अन्दर से केला सरका….
एक टुकड़ा उसके दाँतों से कटकर होंठों पर आ गया। पतले लिसलिसे द्रव में लिपटा। हीना ने उसे मुँह के अन्दर खींच लिया और “उमऽऽऽ, कितना स्वादिष्ट है !” करती हुई चबाकर खा गई।
मैं देखती रह गई, कैसी गंदी लड़की है !
मेरी चूत मस्त गरम हो चुकी थी
मेरे सिर के नीचे करण के जोर से हँसने की आवाज आई। उसने उत्साठहित होकर गुदा में दो धक्के और जड़ दिये।
हीना पुन: चूसकर एक स्लाइस निकाली।
करण पुकारा,”मुझे दो।”
पर हीना ने उसे मेरे मुँह में डाल दिया, “लो, तुम चखो।”
वही मुसाई-सी गंध मिली केले की मिठास। बुरा नहीं लगा। अब समझ में आया क्यों लड़के योनि को इतना रस लेकर चाटते चूसते हैं। अब तक मुझे यह सोचकर ही कितना गंदा लगता था पर इस समय वह स्वाभाविक, बल्कि करने लायक लगा। मैं उसे चबाकर निगल गई।
हीना ने मेरा कंधा थपथपाया,”गुड….. स्वादिष्ट है ना?”
वह फिर मुझ पर झुक गई। कम से कम आधा केला अभी अन्दर ही था।
“खट खट खट” …………. दरवाजे पर दस्तक हुई।को इतना रस लेकर चाटते चूसते हैं। अब तक मुझे यह सोचकर ही कितना गंदा लगता था पर इस समय वह स्वाभाविक, बल्कि करने लायक लगा। मैं उसे चबाकर निगल गई।
हीना ने मेरा कंधा थपथपाया,”गुड….. स्वादिष्ट है ना?”
वह फिर मुझ पर झुक गई। कम से कम आधा केला अभी अन्दर ही था।
“खट खट खट” …………. दरवाजे पर दस्तक हुई।
मैं सन्न। वे दोनों भी सन्न। यह क्या हुआ?
“खट खट खट” ….. “करण, दरवाजा खोलो।”
पियूष उसके हॉस्टल से आया था। उसको मालूम था कि करण यहाँ है।
किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। लड़कियों के कमरे में लड़का घुसा हुआ और दरवाजा बंद? क्या कर रहे हैं वे !!
“खट खट खट…. क्या कर रहे हो तुम लोग?”
जल्दी खोलना जरूरी था। हीना बोली, “मैं देखती हूँ।” करण ने रोकना चाहा पर समय नहीं था। हीना ने अपने बिस्तर की बेडशीट खींचकर मेरे उपर डाली और दरवाजे की ओर बढ़ गई। पियूष हीना की मित्र मंडली में काफी करीब था।
किवाड़ खोलते ही “बंद क्यों है?” कहता पियूष अन्दर आ गया। हीना ने उसे दरवाजे पर ही रोककर बात करने की कोशिश की मगर वह “करण बता रहा था पिहू को कुछ परेशानी है?” कहता हुआ भीतर घुस गया।
मुझे गुस्सा आया कि हीना ने किवाड़ खोल क्यों दिया, बंद दरवाजे के पीछे से ही बात करके उसे टालने की कोशिश क्यों नहीं की।
उसकी नजर चादर के अन्दर मेरी बेढब ऊँची-नीची आकृति पर पड़ी।
“यह क्या है?”उसने चादर खींच दी। सब कुछ नंगा, खुल गया….. चादर को पकड़कर रोक भी नहीं पाई। उसकी आँखें फैल गर्इं।
मुझे काटो तो खून नहीं। कोई कुछ नहीं बोला। न हीना, न मेरे नीचे दबा करण, न मैं।
पियूष ढिठाई से हँसा, “तो यह परेशानी है पिहू को… इसे तो मैं भी दूर कर सकता था।” वह करण की तरह जेंटलमैन नहीं था।
‘नहीं, यह परेशानी नहीं है !’ हीना ने आगे बढ़कर टोका।
“तो फिर?”
“इसके अन्दर केला फँस गया है। देखते नहीं?”
करण मेरे नीचे दुबका था। मेरे दोनों पाँव सहारे के लिए करण की जांघों के दोनों तरफ बिस्तर पर जमे थे। टांगें समेटते ही गिर जाती। पियूष बिना संकोच के कुछ देर वहाँ पर देखा। फिर उसने नजर उठाकर मुझे, फिर पिहू को देखा। हम दोनों के मुँह पर केला लगा हुआ था। मुझे लग गया कि वह समझ गया है। व्यंग्य भरी हँसी से बोला, “तो केले का भोज चल रहा है!!” उंगली बढ़ाकर उसने मेरे मुँह पर लगे केले को पोछा और मेरी योनि की ओर इशारा करके बोला, “इसमें पककर तो और स्वादिष्ट हो गया होगा?”
हममें से कौन भला क्या कहता?
“मुझे भी खिलाओ।” वह हमारे हवाइयाँ उड़ते चेहरे का मजा ले रहा था।
“नहीं खिलाना चाहते? ठीक है, मैं चला जाता हूँ।”
रक्त शरीर से उठकर मेरे माथे में चला आया। बाहर जाकर यह बात फैला देगा। पता नही मैंने क्या कहा या किया कि हीना ने पियूष को पकड़कर रोक लिया। वह बिस्तर पर चढ़ी, मेरे पैरों को फैलाकर मेरी योनि में मुँह लगाकर चूसकर एक टुकड़ा काट ली। पियूष ने उसे टोका, ‘मुँह में ही रखो, मैं वहीं से खाऊँगा।’ उसने हीना का चेहरा अपनी ओर घुमा लिया।
दोनों के मुँह जुड़ गए।
यह सब क्या हो रहा था? मेरी आंखों के सामने दोनों एक-दूसरे के चेहरे को पकड़कर चूम चूस रहे थे। हीना उसे खिला रही थी, वह खा रहा था।
पियूष मुँह अलग कर बोला, “आहाहा, क्या स्वाद है। दिव्य, सोमरस में डूबा, आहाहा, आहाहा… दो दो जगहों का।” फिर मुँह जोड़ दिया।
दो दो जगहों का? हाँ, मेरी योनि और हीना के मुख का। सोमरस। मेरी योनि की मुसाई गंध के सिवा उसमें हीना के मुँह की ताजी गंध भी होगी। कैसा स्वाद होगा? छि: ! मैंने अपनी बेशर्मी के लिए खुद को डाँटा।
“अब मुझे सीधे प्याले से ही खाने दो।”
हीना हट गई। पियूष उसकी जगह आ गया। मैंने न जाने कौन सेी हिम्मत जुटा ली थी। जब सब कुछ हो ही गया था तो अब लजाने के लिए क्या बाकी रहा था। मैंने उसे अपने मन की करने दिया। अंतिम छोटा-सा ही टुकड़ा अन्दर बचा था। अंतिम कौर।
“मेरे लिए भी रहने देना।” मेरे नीचे से करण ने आवाज लगाई। अब तक उसमें हिम्मत आ गई थी।
“तुम कैसे खाओगे? तुम तो फँसे हुए हो।” पियूष ने कहकहा लगाया, “फँसे नहीं, धँसे हुए…..”
हीना ने बड़े अभिभावक की तरह हस्तक्षेप किया, “पियूष, तुम करण की जगह लो। करण को फ्री करो।”
क्या ????
हैरानी से मेरा मुँह इतना बड़ा खुल गया। हीना यह क्या कर रही है?
पियूष ने झुककर मेरे खुले मुँह पर चुंबन लगाया, “अब शोर मत करो।”
उसने जल्दी से बेल्ट की बकल खोली, पैंट उतारी। चड़ढी सामने बुरी तरह उभरी तनी हुई थी। उभरी जगह पर गीला दाग।
वह मेरे देखने को देखता हुआ मुसकुराया, “अच्छी तरह देख लो।” उसने चड्डी नीचे सरका दी। “यह रहा, कैसा है?”
इस बार डर और आश्चर्य से मेरा मुँह खुला रह गया।
वह बिस्तर पर चढ़ गया और मेरे खुले मुँह के सामने ले आया,”लो, चखो।”
मैंने मुँह घुमाना चाहा पर उसने पकड़ लिया,”मैंने तुम्हारा वाला तो स्वाद लेकर खाया, तुम मेरा चखने से भी डरती हो?”
मेरी स्थिति विकट थी, क्या करूँ, लाचार मैंने हीना की ओर देखा, वह बोली, “चिंता न करो। गो अहेड, अभी सब नहाए धोए हैं।”
मुझे हिचकिचाते देखकर उसने मेरा माथा पकड़ा और उसके लिंग की ओर बढ़ा दिया।
पियूष का लिंग करण की अपेक्षा सख्त और मोटा था। उसके स्वभाव के अनुसार। मुँह में पहले स्पर्श में ही लिसलिसा नमकीन स्वाद भर गया। अधिक मात्रा में रिसा हुआ रस। मुझे वह अजीब तो नहीं लगा, क्योंकि करण के बाद यह स्वाद और गंध अजनबी नहीं रह गए थे लेकिन अपनी असहायता और दुर्गति पर बेहद क्षोभ हो रहा था। मोटा लिंग मुँह में भर गया था। पियूष उसे ढिठाई से मेरे गले के अन्दर ठेल रहा था। मुझे बार बार उबकाई आती। दम घुटने लगता। पर कमजोर नहीं दिखने की कोशिश में किए जा रही थी। हीना प्यार से मेरे माथे पर हाथ फेर रही थी लेकिन साथ-साथ मेरी विवशता का आनन्द भी ले रही थी। जब जब पियूष अन्दर ठेलता वह मेरे सिर को पीछे से रोककर सहारा देती। दोनों के चेहरे पर खुशी थी। हीना हँस रही थी। मैं समझ रही थी उसने मुझे फँसाया है।
अंतत: पियूष ने दया की। बाहर निकाला। आसन बदले जाने लगे। मुझे जिस तरह से तीनों किसी गुड़िया की तरह उठा उठाकर सेट करने लगे उससे मुझे बुरा लगा। मैंने विरोध करते हुए पियूष को गुदा के अन्दर लेने से मना कर दिया,”मार ही डालोगे क्या?”
मुझे करण की ही वजह से अन्दर काफी दुख रहा था। पियूष के से तो फट ही जाती। और मैं उस ढीठ को अन्दर लेकर पुरस्कृत भी नहीं करना चाहती थी।
केला इतनी देर में अन्दर ढीला भी हो गया था। जितना बचा था वह आसानी से करण के मुँह में खिंच गया। वह स्वाद लेकर केले को खा रहा था। उसके चेहरे पर बच्चे की सी प्रसन्नता थी।
उसने हीना की तरह मुझे फँसाया नहीं था, न ही पियूष की तरह ढीठ बनकर मुझे भोगने की कोशिश की थी। उसने तो बल्कि आफर भी किया था कि मैं नहीं चाहती हूँ तो वह चला जाएगा। पहली बार वह मुझे तीनों में भला लगा। योनि खाली हुई लेकिन सिर्फ थोड़ी देर के लिए। उसकी अगली परीक्षाएँ बाकी थीं। करण को दिया वादा दिमाग में हथौड़े की तरह बज रहा था,‘जो इज्जत केले को मिली है वह मुझे भी मिले।’
समस्या की सिर्फ जड़ खत्म हुई थी, डालियाँ-पत्ते नहीं।
काश, यह सब सिर्फ एक दु:स्वप्न निकले। मां संतोषी !
लेकिन दु:स्वप्न किसी न समाप्त होने वाली हॉरर फिल्म की तरह चलता जा रहा था। मैं उसकी दर्शक नहीं, किरदार बनी सब कुछ भुगत रही थी। मेरी उत्तेजना की खुराक बढ़ाई जा रही थी। करण मेरी केले से खाली हुई योनि को पागल-सा चूम, चाट, चूस रहा था। उसकी दरार में जीभ घुसा-घुसाकर ढूँढ रहा था। गुदगुदी, सनसनाहट की सीटी कानों में फिर बजनी शुरू हो गई। होश कमजोर होने लगे।
क्या, क्यों, कैसे हो रहा है….. पता नहीं। नशे में मुंदती आँखों से मैंने देखा कि मेरी बाईं तरफ पियूष, दार्इं तरफ हीना लम्बे होकर लेट रहे हैं।
उन्होंने मेरे दोनों हाथों को अपने शरीरों के नीचे दबा लिया है और मेरे पैरों को अपने पैरों के अन्दर समेट लिया है। मेरे माथे के नीचे तकिया ठीक से सेट किया जा रहा है और ….. स्तनों पर उनके हाथों का खेल। वे उन्हें सहला, दबा, मसल रहे हैं, उन्हें अलग अलग आकृतियों में मिट्टी की तरह गूंध रहे हैं। चूचुकों को चुटकियों में पकड़कर मसल रहे हैं, उनकी नोकों में उंगलियाँ गड़ा रहे हैं।
दर्द होता है, नहीं दर्द नहीं, उससे ठीक पहले का सुख, नहीं सुख नहीं, दर्द। दर्द और सुख दोनों ही।
वे चूचुकों को ऐसे खींच रहे हैं मानों स्तनों से उखाड़ लेंगे। खिंचाव से दोनों स्तन उल्टे शंकु के आकार में तन जाते हैं। नीचे मेरी योनि शर्म से आँखें भींचे है। करण उसकी पलकों पर प्यार से ऊपर से नीचे जीभ से काजल लगा रहा है। उसकी पलकों को खोलकर अन्दर से रिसते आँसुओं को चूस चाट रहा है। पता नहीं उसे उसमें कौन-सा अद़भुत स्वाद मिल रहा है। मैं टांगें बंद करना चाहती हूँ लेकिन वे दोनों तरफ से दबी हैं।
विवश, असहाय। कोई रास्ता नहीं। इसलिए कोई दुविधा भी नहीं।
जो कुछ आ रहा है उसका सीधा सीधा बिना किसी बाधा के भोग कर रही हूँ। लाचार समर्पण। और मुझे एहसास होता है- इस निपट लाचारी, बेइज्जंती, नंगेपन, उत्तेजना, जबरदस्ती भोग के भीतर एक गाढ़ा स्वाद है, जिसको पाकर ही समझ में आता है।
शर्म और उत्तेजना के गहरे समुद्र में उतरकर ही देख पा रही हूँ आनन्दानुभव के चमकते मोती। चारों तरफ से आनन्द का दबाव। चूचुकों, योनि, भगनासा, गुदा का मुख, स्तनों का पूरा उभार, बगलें… सब तरफ से बाढ़ की लहरों पर लहरों की तरह उत्तेकजना का शोर।
पूरी देह ही मछली की तरह बिछल रही है। मैं आह आह कर कर रही हूँ वे उन आहों में मेरी छोड़ी जा रही सुगंधित साँस को अपनी साँस में खीच रहे हैं। मेरे खुलते बंद होते मुँह को चूम रहे हैं।
पियूष, हीना, करण…. चेहरे आँखों के सामने गड्डमड हो रहे हैं, वे चूस रहे हैं, चूम रहे हैं, सहला रहे हैं,… नाभि, पेट,, नितंब, कमर, बांहें, गाल, सभी… एक साथ..। प्यार? वह तो कोई दूसरी चीज है- दो व्यक्तियों का बंधन, प्रतिबद्धता। यह तो शुद्ध सुख है, स्वतंत्र, चरम, अपने आप में पूरा। कोई खोने का डर नहीं, कोई पाने का लालच नहीं। शुद्ध शारीरिक, प्राकृतिक, ईश्वर के रचे शरीर का सबसे सुंदर उपहार।
ह: ह: ह: तीनों की हँसी गूंजती है। वे आनन्दमग्न हैं। मेरा पेट पर्दे की तरह ऊपर नीचे हो रहा है, कंठ से मेरी ही अनपहचानी आवाजें निकल रही हैं।
मैं आँखें खोलती हूँ, सीधी योनि पर नजर पड़ती है और उठकर करण के चेहरे पर चली जाती है, जो उसे दीवाने सा सहला, पुचकार रहा है। उससे नजर मिलती है और झुक जाती है। आश्चर्य है इस अवस्था में भी मुझे शर्म आती है।
वह झुककर मेरी पलकों को चूमता है। हीना हँसती है। पियूष, वह बेशर्म, कठोर मेरी बाईं चुचूक में दाँत काट लेता है। दर्द से भरकर मैं उठना चाहती हूँ। पर उनके भार से दबी हूँ। हीना मेरे होंठ चूस रही है।
करण कह रहा है,”अब मैं वह इज्जत लेने जा रहा हूँ जो तुमने केले को दी।”
मैं उसके चेहरे को देखती हूँ, एक अबोध की तरह, जैसे वह क्या करने वाला है मुझे नहीं मालूम।
हीना मुझे चिकोटी काटती है,”डार्लिंग, तैयार हो जाओ, इज्जत देने के लिए। तुम्हारा पहला अनुभव। प्रथम संभोग, हर लड़की का संजोया सपना।”
करण अपना लिंग मेरी योनि पर लगाता है, होंठों के बीच धँसाकर ऊपर नीचे रगड़ता है।
हीना अधीर है,”अब और कितनी तैयारी करोगे? लाओ मुझे दो।”
उठकर करण के लिंग को खींचकर अपने मुँह में ले लेती है।
मैं ऐसी जगह पहुँच गई हूँ जहाँ उसे यह करते देखकर गुस्सा भी नही आ रहा।
हीना कुछ देर तक लिंग को चूसकर पूछती है,”अब तैयार हो ना? करो !”
पियूष बेसब्र होकर होकर करण को कहता है,”तुम हटो, मैं करके दिखाता हूँ।”
मैं अपनी बाँह से पकड़कर उसे रोकती हूँ। वह मुझे थोड़ा आश्चर्य से देखता है।
हीना झुककर मेरे योनि के होंठों को खोलती है। पियूष मेरा बायाँ पैर अपनी तरफ खींचकर दबा देता है, ताकि विरोध न कर सकूँ।
मैं विरोध करूंगी भी नहीं, अब विरोध में क्या रखा है, मैं अब परिणाम चाहती हूँ।
करण छेद के मुँह पर लिंग टिकाता है, दबाव देता है। मैं साँस रोक लेती हूँ, मेरी नजर उसी बिन्दु पर टिकी है। केले से दुगुना मोटा और लम्बा।
छेद के मुँह पर पहली खिंचाव से दर्द होता है, मैं उसे महत्व नहीं देती।
करण फिर से ठेलता है, थोड़ा और दर्द। वह समझ जाता है मुझे तोड़ने में श्रम करना होगा।
हीना को अंदाजा हो रहा है, वह उसका चेहरा देख रही है। वह उसे हमेशा पियूष की अपेक्षा अधिक तरजीह देती है। मुझे यह बात अच्छी लगती है। पियूष जबर्दस्ती घुस आया है।
हीना पूछती है,”वैसलीन लाऊँ?” पर इसकी जरूरत नहीं, चूमने चाटने से पहले से ही काफी गीली है।
करण बोलता है,”इसको ठीक से पकड़ो।”
दोनों मुझे कसकर पकड़ लेते हैं। करण, एक भद्रपुरुष अब एक जानवर की तरह जोर लगाता है, मेरे अन्दर लकड़ी-सी घुसती है, चीख निकल जाती है मेरी।
मैं हटाने के लिए जोर लगाती हूँ, पर बेबस।
करण बाहर निकालता है, लेकिन थोड़ा ही। लिंग का लाल डरावना माथा अन्दर ही है। मेरा पेट जोर जोर से ऊपर नीचे हो रहा है।
मेरी सिसकियाँ सुनकर हीना दिलासा दे रही है,”बस पहली बार ही…… ”
पियूष- असभ्य जानवर क्रूर खुशी से हँस रहा है, कहता है,”बस, अबकी बार इसे फाड़ दे।”
हीना उसे डाँटती है।
ललकार सुनकर करण की आँखों में खून उतर आया है।
मुझे मर्दों से डर लगता है, कितने भी सभ्य हों, कब वहशी बन जाएँ, ठिकाना नहीं।
हीना करण को टोकती है,”धीरे से !”
मगर करण के मुँह से ‘हुम्म’ की-सी आवाज निकलती है और एक भीषण वार होता है।
मेरी आँखों के आगे तारे नाच जाते हैं, पियूष और हीना मुँह बंद कर मेरी चीख दबा देते हैं।
कुछ देर के लिए चेतना लुप्त हो जाती है…
मेरी आँखें खुलती हैं, नजर सीधी वहीं पर जाती है। करण का पेडू मेरे पेडू से मिला हुआ है। लिंग अदृश्य है। मेरे ताजे मुंडे हुए पेडू में उसके पेड़ू के छोटे छोटे बालों की खूंटियाँ गड़ रही हैं।

सब मेरा चेहरा देख रहे हैं। हीना से नजर मिलने पर वह मुसकुराती है। करण धीरे धीरे लिंग निकालता है। लिंग का माथा लाल खून में चमक रहा है। मुझे खून देखकर डर लगता है। आँसू निकल जाते हैं, यह मेरा क्या कर डाला।
लेकिन हीना प्रफुल्लित है, वह ‘बधाई हो’ कहकर मेरा गाल थपथपाती है।
पियूष ताली बजाता है,”क्या बात है यार, एकदम फाड़ डाला !”
करण मानों सिर झुकाकर प्रशंसा स्वीकार करता है।
सभी मुस्कुरा रहे हैं, मैं सिर घुमा लेती हूँ।
पियूष बढ़ता है और मेरी योनि से रिस रहे रक्त को उंगली पर उठाता है और उसे चाट जाता है,”आइ लाइक ब्ल्ड” (मुझे खून पसंद है।)
हीना उसे देखती रह जाती है, कैसा आदमी है !
पियूष उत्साह में है,”तगड़ा माल तोड़ा है तूने याऽऽऽऽर…… ”
बार-बार बहते खून को देख रहा है।
करण आवेश में है, खून और पियूष की उकसाहटें उसे भी जानवर बना देती हैं। वह फिर से लिंग को मेरी योनि पर लगाता है और एक ही धक्के में पूरा अन्दर भेज देता है। मैं विरोध नहीं करती, हालाँकि अब मेरे हाथ पैर छोड़ दिए गए हैं, पर अब बचाने को क्या बचा है?
हीना भी उत्साहित है,”अब मालूम हो रहा होगा इसको असली सेक्स का स्वाद। इतने दिन से मेरे सामने सती माता बनी हुई थी। आज इसका घमण्ड टूटा। जब से इसे देखा था तभी से मैं इस क्षण का इंतजार कर रही थी।”
पियूष भी साथ देता है।
रक्त और चिकने रसों की फिसलन से ही लिंग बार बार घुस जा रहा है, नहीं तो रास्ता बहुत तंग है और इतना खिंचाव होता है कि दर्द करता है। केले से दुगुना लम्बा और मोटा होगा। मैं सह रही हूँ। योनि को ढीला छोड़ने की कोशिश कर रही हूँ ताकि दर्द कम हो।
करण मेरे ऊपर लेट गया है और मुझमें हाथ घुसाकर लपेट लिया है, मुझे चूम रहा है, कोंच रहा है कि उसके चुम्बनों का जवाब दूँ।
मेरी इच्छा नहीं है लेकिन….।
वह जितना हो सकता है मुझमें धँसे हुए ही ऊपर-नीचे कर रहा है। मुझे छूटने, साँस लेने, योनि को राहत देने का मौका ही नहीं मिलता।
इससे अच्छा तो है यह जल्दी खत्म हो।
मैं उसके चुम्बनों का जवाब देती हूँ।
मेरी जांघों पर उसकी जांघें सरक रही हैं, मेरे हाथ उसकी पीठ के पसीने पर फिसल रहे हैं। मेरी गुदा के अगल बगल नितम्बों पर जांघें टकरा रही हैं- थप थप थप थप।
रह-रहकर गुदा के मुँह पर फोते की गोली चोट कर जाती है। उससे गुदा में मीठी गुदगुदी होती है। पियूष और हीना मेरे स्तन चूस रहे हैं, मेरे पेट को, नितम्बों को सहला रहे हैं।
अचानक गति बढ़ जाती है, शायद करण कगार पर है, जोर जोर की चोट पड़ने लगी है, योनि में चल रहा घर्षण मुझे कुछ सोचने ही नहीं दे रहा, हाँफ रही हूँ, हर तरफ चोट, हर तरफ से वार।
दिमाग में बिजलियाँ चमक रही हैं।
“अब मेरा झड़ने वाला है।”
“देखो, यह भी पीक पर आ गई है।”
“अन्दर ही कर रहा हूँ।”
“तुम केला निकालने आए हो या इसे प्रेग्नेंट करने?”
“याऽऽर… अन्दर ही कर दे। मजा आएगा।”
पियूष उसे निकालने से रोक रहा है। “साली की मासिक रुक गई तब तो और मजा आ जाएगा।”
“आह, आह, आह” मेरे अन्दर झटके पड़ रहे हैं।
“गुड, गुड, गुड, हीना, तुम इसकी क्लिेटोरिस सहलाओ। इसको भी साथ फॉल कराओ।”
एक हाथ मेरे अन्दर रेंग जाता है। करण मुझ पर लम्बा हो गया है। मुझे कसकर जकड़ लेता है। जैसे हड़डी तोड़ देगा। भगनासा बुरी तरह कुचल रही है। ओऽऽऽह… ओऽऽऽह… ओऽऽऽह…..
गुदा के अन्दर कोई चीज झटके से दाखिल हो जाती है।
मैं खत्म हूँ ………
मैं खत्म हूँ ………
मैं खत्म हूँ ………
जिंदगी वापस लौटती है। हीना सीधे मेरी आँखों में देख रही है, चेहरे पर विजयभरी मुस्कान, बड़ी ममता से मेरी ललाट का पसीना पोछती है, होंठों के एक किनारे से मेरी निकल आई लार को जीभ पर उठा लेती है। लगता है वह सचमुच वह मुझे प्यार करती है? बहुत तकलीफ होती है मुझे इस बात से।
वह रुमाल से मेरी योनि, मेरी गुदा पोंछ रही है। मेरा सारा लाज-शर्म लुट चुका है। फिर भी पाँव समेटना चाहती हूँ। हीना रुमाल उठाकर दिखाती है। उसमें खून और वीर्य के भीगे धब्बे हैं।
वह उसे करण को दे देती है,”तुम्हारी यादगार।”
मैं उठने का उपक्रम करती हूँ, पियूष मुझे रोकता है,”रुको, अभी मेरी बारी है।”
“तुम्हारी बारी क्यों?” हीना आपत्ति करती है।
“क्यों? मैं इसे नहीं लूँगा?”
“तुमने क्या इसे वेश्या समझ रखा है?” हीना की आवाज अप्रत्याशित रूप से तेज हो जाती है।
‘क्यों ? फिर करण ने कैसे लिया?”
“उसने तो उसे समस्या से निकाला। तुमने क्या किया?”
पियूष नहीं मानता। “नहीं मैं करूँगा।”
करण कपड़े पहन रहा है। उसका हमदर्दी दोस्त के प्रति है। कमीज के बटन लगाते हुए कहता है,”करने दो ना इसे भी।”
हीना गुस्से में आ जाती है, “तुम लोग लड़की को क्या समझते हो? खिलौना?” हीना मुझे बिस्तर से खींचकर खड़ी कर देती है,”तुम कपड़े पहनो।”
फिर वह उन दोनों की ओर पलट कर बोलती है,”लगता है तुम लोगों ने मेरे व्यवहार का गलत मतलब निकाला है। सुनो पियूष, जितना तुम्हें मिल गया वही तुम्हारा बहुत बड़ा भाग्य है। अब यहीं से लौट जाओ। तुम मेरे दोस्त हो। मैं नहीं चाहती मुझे तुम्हा*रे खिलाफ कुछ करना पड़े।
पियूष कहता है,”यह तो अन्याय है। एक दोस्त* को फेवर करती हो एक को नहीं।”
हीना,”तुम मुझे न्याय सिखा रहे हो? जबरदस्ती घुस आए और …..”
पियूष,”करण को तो बुलाकर दिलवाया, मैं खुद आया तब भी नहीं? यह क्या तुम्हारा यार लगता है?”
हीना की तेज आवाज गूंजी,”तुम मुझे गाली दे रहे हो?”
करण को भी उसके ताने से से क्रोध आ जाता है,”पियूष, छोड़ो इसे।”
“चुप रह बे ! तू क्या हीना का भड़ुआ है? एक लड़की चुदवा दी तो बड़ा पक्ष लेने लगा।”
पानी सिर से ऊपर गुजर जाता है। दोनों की एक साथ ‘खबरदार’ गूंज जाती है, मारने के लिए दौड़े करण को हीना रोकती है।
पियूष पर उसकी उंगली तन जाती है,”खबरदार एक लफ्ज भी आगे बोले, चुपचाप यहाँ से निकल जाओ। मत भूलो कि लड़कियों के हॉस्टल में एक लड़की के कमरे में खड़े हो। यहीं खड़े खड़े अरेस्ट हो जाओगे।”
मैं जल्दी-जल्दी कपड़े पहन रही हूँ।
कमरे की चिल्लाहटें बाहर चली जाती हैं, दस्तक होने लगती है,”क्या़ बात है हीना, दरवाजा खोलो !”
अब मामला पियूष के हाथ से निकल चुका है, वह कुंठा में अपने मुक्के में मुक्का मारता है।
मैं सुरक्षित हूँ। मेरा खून चखने वाले उसे राक्षस को एक लात जमाने की इच्छा होती है !
दुर्घटना से उबर चुकी हूँ। लेकिन स्थाई जख्म के साथ।
हीना निर्देश देती है,”कोई कुछ नहीं बोलेगा। सब कोई एकदम सामान्य सा व्य़वहार करेंगे।”
हीना दरवाजा खोलकर साथियों से बात कर रही है,’हाय अल्का, हाय प्रीति…. कुछ नहीं, हम लोग ऐसे ही सेलीब्रेट कर रहे थे। एक खास बाजी जीतने की।”
मेरा कलेजा मुँह को आ जाता है, कहीं बता न दे। पर हीना को गेंद गोल तक ले जाने फिर वहाँ से वापस लौटा लाने में मजा आता है। ऐसे सामान्य ढंग से बात कर रही है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। बड़ी अभिनय-कुशल है।
उस दिन हीना ने अपने करीबी दोस्त* पियूष को खो दिया- मेरी खातिर। उस वहशी से मेरी रक्षा की। एक से बाद एक अपमान के दौर में एक जगह मेरे छोटे से सम्मान को बचाया।उसने मुझे केले के गहरे संकट से निकाला। कितना बड़ा एहसान किया उसने मुझपर !
लेकिन किस कीमत पर? मेरे मन और आत्मा में जो घाव लगा, मैं किसी तरह मान नहीं पाती कि उसके लिए हीना जिम्मेदार नहीं थी। बल्कि उसी ने मेरी दुर्दशा कराई। उसी के उकसावे पर मैंने केले को आजमाया था। मेरी उस छोटी सी गलती को हीना ने पतन की हर इंतिहा से आगे पहुँचा दिया।
फिर भी पहला दोष तो मेरा ही था। मैंने हीना से दोस्ती तोड़ देनी चाही- बेहद अप्रत्यक्ष तरीके से, ताकि अहसान फरामोश नहीं दिखूँ।


——-समाप्त——
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
माँ की चुदास और बेटी की प्यास

मेरा नाम डॉली है.. मैं 18 साल की हूँ। यह बात उन दिनों की है.. जब मैं स्कूल में पढ़ती थी। मेरी माँ कोमल एक प्राइवेट स्कूल में इंग्लिश की टीचर हैं और मेरे पापा दुबई की एक कंपनी में हैं। वह साल दो साल में इंडिया आया करते हैं और 25-30 दिनों के लिए ही आते हैं। जब वे घर आते थे.. तब माँ बहुत खुश रहती थीं.. लेकिन उनके जाने के बाद माँ बहुत उदास हो जाती थीं।
हमारा घर शहर की आबादी से दूर था, हम किराये के मकान में रहते थे, यह घर पापा के दोस्त जय अंकल का था। जय अंकल पापा के दोस्त थे। यही वजह थी कि वह हम लोगों से किराया नहीं लिया करते थे। जय अंकल हमारे घर अक्सर आया करते थे। उनके आने पर माँ बहुत खुश रहती थीं। उनके आने से माँ का अकेलापन दूर हो जाता था।
कभी-कभी हम लोग जय अंकल के साथ बाहर उनकी कार से आउटिंग पर भी जाते थे। धीरे-धीरे वह हमारे साथ बेहद घुल-मिल गए थे।
एक दिन मैं स्कूल से घर आई तो देखा कि मेरे पापा के दोस्त जय अंकल आए हुए हैं।
माँ दोपहर का खाना बना रही थीं। मैंने अपना स्कूल बैग कमरे में रखा और किचन की तरफ बढ़ गई.. लेकिन अन्दर का नज़ारा देख कर मेरे पाँव ठिठक गए थे।
मैंने चुपके से किचन में झांक कर देखा.. जय अंकल ने माँ को अपने आगोश में लिया हुआ था। वह अपने हाथों को माँ के बदन पर घुमा रहे थे। माँ अंकल की कमर पर हाथ फिरा रही थीं.. फिर गर्दन पर.. और फिर सर पर.. उधर अंकल माँ के होंठों को छोड़ कर उनके गालों को चूमने लगे और फिर गर्दन पर अपने होंठ फिराने लगे।
माँ लगातार उनका साथ दे रही थीं और अंकल भी उनके गुदाज स्तन लगातार दबा रहे थे। अंकल ने माँ का जालीदार सफ़ेद कुरता ऊपर उठा दिया था। माँ ने नीले रंग की ब्रा पहनी थी। जय अंकल अब अपने होंठों को उनकी गर्दन पर लेकर आए और फिर उनके कंधों पर चूमने लगे।
यह सब देख कर मैं पागल हुए जा रही थी, मैंने ऐसा पहली बार देखा था। मेरे जिस्म में आग सी लग गई थी। मैं यह समझ चुकी थी कि एक शादीशुदा औरत को पूरे-पूरे साल बिना शौहर के रहना बेहद मुश्किल होता है। पेट की भूख तो खाने से मिटाई जा सकती है.. लेकिन जिस्म की भूख का क्या?
यही वजह थी कि माँ ने अपना जिस्म जय अंकल को सौप दिया था।
वैसे भी मेरी माँ एक कॉलेज में टीचर थीं। वह खुले विचारों वाली महिला थीं। लेकिन मुझे फिर भी अपनी माँ से यह उम्मीद नहीं थी कि जय अंकल माँ को चोदेंगे।
किशोरावस्था में होने के कारण मेरी इसमें दिलचस्पी और बढ़ गई थी, मैं न चाहते हुए भी उन दोनों को देखे जा रही थी।

अभी कॉलेज से आकर मैंने अपना ड्रेस भी नहीं बदला था। मैं अपनी चूचियों को शर्ट के ऊपर से ही मसलने लगी। अंकल और माँ को बड़ा मजा आ रहा था।
माँ ने अंकल की पैंट में अपना हाथ डाला हुआ था। वह अंकल के लण्ड को सहलाने लगीं.. जिससे अंकल का लण्ड खड़ा होकर 6 इंच का हो चुका था।
अंकल ने अपना एक हाथ माँ की सलवार में डाल दिया.. शायद उनकी चूत गीली हो चुकी थी और थोड़ा-थोड़ा चिपचिपा पानी निकल रहा था।
अंकल ने माँ की सलवार का इज़ारबंद खोलना चाहा.. तो माँ ने हाथ पकड़ कर रोक दिया- अभी नहीं, डॉली आ गई है स्कूल से.. रात को..
माँ अपने कपड़े सम्हालते हुए किचन से बाहर आ गई थी। उन्होंने खाना लगाया और मुझे आवाज़ दी। हम तीनों ने मिलकर लंच किया।
फिर मैं टीवी देखने लगी माँ और अंकल आराम करने लगे। मैं यह समझ चुकी थी कि आज रात को मेरी माँ जय अंकल से चुदवायेंगी।
मैं यही सोच-सोच कर खुश हो रही थी कि आज मुझे अंकल-माँ की चुदाई देखने को मिलेगी।
फिर रात को जय अंकल माँ और मैं खाना खाकर रात साढ़े दस बजे सोने लगे, मुझे नींद तो आ नहीं रही थी।
तकरीबन दो घंटे ऐसे ही बीत गए। मेरी आँख हल्की सी लगने लगी थी। तकरीबन 15 मिनट बाद मेरे कानों में चूड़ियों के खनकने की आवाज सुनाई पड़ी। मेरी नींद खुल चुकी थी.. मैंने धीरे से अपने कमरे की खिड़की खोली.. जो कि माँ के कमरे की तरफ खुलती थी।
जय अंकल मेरी माँ के बदन पर अपना हाथ फेर रहे थे, वो शरमा रही थीं, अंकल ने उनका सफ़ेद दुपट्टा निकल कर अलग कर दिया था और उनके कन्धे पर हाथ रख दिया।
वो वहाँ से उठकर जाने लगीं.. अंकल ने माँ को पीछे से कस कर पकड़ कर अपने होंठ उनकी गर्दन पर रख दिए।
वो थोड़ा छूटने के लिए कसमसाईं.. उनके चहरे पर एक घबराहट सी थी- जय.. है तो यह गलत ना..
कुछ गलत नहीं है कोमल.. तुम्हारे शौहर मेरे दोस्त हैं.. और फिर तुम्हारी भी तो कुछ ज़रूरतें हैं।
जय अंकल ने माँ की गर्दन पर अपने होंठ फिराते हुए कहा।
माँ ने एक लम्बी सी सांस लेते हुए आँखें बंद कर ली थीं- मुझे डर लगता है.. किसी को मालूम पड़ गया तो?
माँ थोड़ा झिझक रही थीं.. लेकिन फिर धीरे-धीरे उनका विरोध कम हो गया और माँ ने खुद को ढीला छोड़ दिया।
अंकल ने उन्हें अपने पास खींचा और माँ के गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
वो थोड़ा ना-नुकर करते हुए बोलीं- तुम्हें नहीं लगता कि हम जो कर रहे हैं, ये सब गलत है.. मुझे अपने शौहर को धोखा नहीं देना चाहिए।
अंकल ने कहा- कोमल.. हम दोनों जो कर रहे हैं.. वो दो जिस्मों की जरुरत है.. तुम्हारे शौहर रंगीला मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं.. दुबई जाने से पहले उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं आपका और आपकी बेटी डॉली का ख्याल रखूँ.. यदि तुम्हारा शौहर तुम्हारी इस जरूरत को पूरा करता है.. तो तुम बेशक जा सकती हो.. इस उम्र में ये सब सामान्य बात है। इसे धोखा नहीं कहते हैं.. यह तुम्हारी ज़रूरत है।
जय अंकल ने अपनी बात को जोर देते हुए माँ को समझाया था।
माँ मन ही मन में अंकल साथ देना चाहती थीं.. पर सीधा कह न सकीं। अंकल भी उसके मन की बात समझ गए और उसे चूमने लगा। धीरे-धीरे माँ ने खुद को समर्पित कर दिया था और अब उनका विरोध समाप्त हो चुका था।
मैं खिड़की से झांकते हुए अपनी माँ को अपने पापा के दोस्त से चुदते हुए देख रही थी।
उन दोनों ने तकरीबन दस मिनट तक किस किया। अब माँ की शर्म खत्म हो गई थी.. वह भी खुल गई थीं और अंकल का भरपूर साथ दे रही थीं।
अंकल उनके गाल के बाद उनके वक्ष स्थल पर चुम्बन करने लगे, इससे वो उत्तेजित हो गईं। वह उनके स्तनों को सहला रहे थे.. और उनके चूचुकों को अपनी उँगलियों से दबा कर मसल रहे थे.. माँ पूरी तरह गर्म हो गई थीं।
यह सब देख कर मेरे दिल में एक अजीब सी बेचैनी होने लगी थी। मेरा हाथ खिड़की पर खड़े हुए ही अपनी सलवार के अन्दर न चाहते हुए भी चला गया था।
उधर अंकल ने अपना हाथ माँ के पेट के ऊपर से सहलाते हुए उनकी सलवार में सरका दिया था.. शायद उनका हाथ माँ की चूत पर था।
‘आह्ह्ह.. जय..’
माँ मचल उठी थीं.. फिर अंकल माँ को अपनी गोद में उठाकर बिस्तर पर ले गए। उनको बिस्तर पर लेटा कर पीछे से उनकी कुर्ती की डोरियाँ खोलने लगे।
माँ ने फिर से थोड़ी ना-नुकुर की..
पर अंकल ने कहा- अब मुझे मत रोको.. जब भी मैं तुम्हारे जिस्म को मज़ा देता हूँ, हर बार तुम ऐसे करती हो कि जैसे मैं पहली बार तुम्हारे साथ ऐसा कर रहा होऊँ? हर बार तुम ना नुकुर करती हो?
प्यासी माँ की चूत पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी.. इसलिए जय अंकल को भी कोई दिक्कत नहीं हुई। पाँच मिनट बाद जय अंकल बिस्तर पर माँ के ऊपर जा पहुँचे और माँ के पीठ की चुम्मियाँ लेने लगे।
मैं यह सब देख रही थी.. लेकिन मैंने अपनी खिड़की अधखुली कर रखी थी इसलिए माँ.. अंकल को कोई शंका नहीं हुई।
जय अंकल धीरे माँ के दूध दबाने लगे.. माँ के मुँह से आवाजें निकलनी शुरू हो गई थीं। जय अंकल ने धीरे से माँ की गुलाबी सलवार का इजारबंद खोल दिया और धीरे से कुर्ती भी ऊपर सरका दी। माँ अब अधनंगी हो चुकी थीं। उन्होंने अपनी कमर पर एक काली डोरी बांधी हुई थी। जय अंकल के द्वारा माँ की चुदाई को देख कर मैं पागल हो रही थी।
जय अंकल ने इतनी जोर से माँ के दूध दबाए और चूसे कि माँ ‘आ.. आहा.. अआ.. हह्हा..आआह्ह.. धीरे से..’ करने लगीं।
जय अंकल ने धीरे-धीरे माँ की सलवार घुटनों तक सरका दी और उनकी काली चड्डी के ऊपर से ही माँ के चूतड़ दबाने और चूमने लगे। माँ ने करवट बदली और खुद ही अपने जम्पर को उतार कर फेंक दिया। माँ अब ब्रा और पैंटी में थीं।
मैंने आज पहली बार अपनी माँ का गोरा जिस्म देखा था। ब्रा-पैंटी में वो मुझे उस समय बहुत ही कामुक.. सुन्दर और मासूम लग रही थीं, वे 34 साल की होने के बावजूद इस वक़्त जवान लड़की लग रही थीं।
अंकल माँ को अपनी बाँहों में लेकर.. उनके होंठों को चूसने लगे, अब वो भी अंकल का साथ दे रही थीं।
मेरे लिए यह अनुभव जन्नत से कम नहीं था। जय अंकल ने उठकर माँ के पाँव सहलाने शुरू कर दिए और उसमें गुदगुदी करने लगे। माँ अपना पाँव हटाने लगीं।
वह दोनों किसी प्रेमी जोड़े की तरह एक-दूसरे से खेल रहे थे, उनके अन्दर कोई जल्दबाजी नहीं थी, दोनों एक-दूसरे को प्यार कर रहे थे।
जय अंकल उनकी पायल को चूमने लगे और हाथ से पाँव पर मालिश करने लगे। जय अंकल धीरे से माँ की पैंटी की तरफ पहुँचे और उसे उतार कर किनारे रख दी।
उनका लण्ड जो इतना खड़ा हो चुका था कि चड्डी फाड़ रहा था। अंकल पूरे नंगे हुए और माँ की टांगें ऊपर करके अपना सात इंच का लण्ड माँ की फूली हुई चूत में डाल दिया।
माँ सिसकार उठीं- अअह आआ.. आआह.. अहह..हाहा आआहह्ह..हा जय धीरे-धीरे.. डॉली उठ जाएगी.. अहह्ह..सिइइइ..
माँ ने मेरे जाग जाने के डर से अपनी आवाजें बंद कर लीं। जय अंकल धीरे-धीरे चुदाई की गति तेज करने लगे। माँ की चूड़ियाँ खन-खन कर रहीं थीं।
अंकल उनको तेज-तेज चोदने लगे।
माँ भी अंकल के कंधे को पकड़ कर अपनी तरफ खींच रही थीं.. वैसे ही जय अंकल भी तेज स्पीड में उनकी चूत में धक्के लगा रहे थे। उनका सात इंच का लण्ड माँ की चूत में पूरा पेवस्त हो रहा था। माँ अपनी टांगें ऊपर किए हुए बिस्तर पर पड़ी लम्बी-लम्बी साँसें भर रहीं थीं।
तकरीबन आधे घंटे तक जय अंकल माँ को लण्ड डालकर चोदते रहे.. उसके बाद वे दोनों शांत हो गए। इसी के साथ उनकी पायलों की ‘छुन-छुन’ भी बंद हो गई थी। शायद जय अंकल झड़ चुके थे।
वह दोनों काफ़ी देर बिस्तर पर नंगे ही पड़े रहे.. उसके बाद फिर वो दूसरी बार के लिए तैयार हुए।
कुछ देर बाद उन्होंने माँ को फिर से चूमना-चाटना शुरू कर दिया। माँ ने भी जय अंकल के लण्ड को मुँह में लेकर उनके लौड़े को चूसना शुरू किया। पहली ठोकर के सारे वीर्य साफ़ को किया।
जय अंकल माँ को फिर से प्यार करने लगे। उनके दूध दबाने शुरू कर दिए। अब जय अंकल का लौड़ा फिर से हाहाकारी हो गया था। इस बार उन्होंने माँ को उल्टा किया.. मतलब अंकल ने माँ को कुतिया बना दिया।
‘ऐसे पीछे नहीं जय…’
‘तुम जानती हो मुझे कुतिया बना कर तुम्हारी गाण्ड मारना बहुत अच्छा लगता है.. कोमल..’
जय अंकल ने अपना मूसल माँ की गाण्ड के छेद में लगाया और उनके चूतड़ों पर एक थपकी दी।
मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मेरी माँ आज पूरी रंडी बनी हुई थीं।
माँ समझ गईं कि अब ये थपकी देने का मतलब है कि उनकी गाण्ड में लौड़े की शंटिंग शुरू होने वाली है। उन्होंने खुद को गाण्ड मराने के लिए तैयार कर लिया था।
जय अंकल ने माँ की गाण्ड में शॉट मारा.. ‘आआह्ह्ह.. धीरे-धीरे जय..’
‘बस बस कोमल.. हो गया..’
माँ के हलक से एक घुटी सी चीख निकली.. जय अंकल का हाहाकारी लण्ड माँ की मुनिया की सहेली उनकी गाण्ड में पूरा घुस चुका था।
कोमल- प्लीज जय.. धीरे-धीरे दर्द हो रहा है..
माँ के चेहरे पर दर्द साफ़ झलक रहा था।
‘क्यों.. क्या रंगीला तुम्हारी गाण्ड नहीं मारता था?’
‘नहीं.. वह गाण्ड मारने के शौक़ीन नहीं हैं.. मुझे इन्हीं धक्कों का और तुम्हारे लण्ड का बड़ी बेसब्री से इन्तजार था। मुझे नहीं मालूम था जय कि तुम्हारा लौड़ा इतना बड़ा है.. आह्ह.. चोदो मुझे और जोर से चोदो..’
जय अंकल माँ के ऊपर कुत्ते जैसे चढ़े थे.. माँ की गाण्ड पर जैसे ही चोट पड़ती.. उनके दोनों चूचे बड़ी तेजी से हिलते। जय अंकल ने उनके हिलते हुए दुद्धुओं को अपने हाथों से पकड़ लिया.. जैसे जय अंकल ने माँ की चूचियों का भुरता बनाने की ठान ली हो।
उनकी गाण्ड को करीब दस मिनट तक ठोकने के बाद वे माँ की पीठ से उतरे और फिर उन्होंने माँ को चित्त लेटा दिया। अब उन्होंने माँ की कमर के नीचे तकिया लगाया और उनके पैर फैला कर उनकी चूत में अपने मूसल जैसे लौड़े को घुसेड़ दिया।
माँ भी नीचे से अपनी कमर उठा कर थाप दे रही थीं, माँ के मुँह से अजीब सी आवाजें निकलने लगीं थीं- चो..द.. जय.. और..ज्जोर.. स्से..धक्के.. मारर.. मेरेरेरे.. राज्ज्ज्ज..जा !
और फिर वो अचानक शिथिल पड़ गईं.. माँ झड़ चुकी थीं।
जय अंकल ने भी तूफानी गति से धक्के मारते हुए उनकी चूत में अपने लण्ड का लावा छोड़ दिया।
उन दोनों की चुदाई देखकर मेरी भी चूत गीली हो गई थी.. मैंने अपनी उंगली से अपनी चूत को सहलाना शुरू कर दिया था।
मुझे मालूम था कि आज जय अंकल माँ को देर तक चोदेंगे.. मैंने महसूस किया था कि जब चुदाई होती है.. तो फिर उन दोनों को.. मेरी तो जैसे सुध ही नहीं रहती है।
जय अंकल का इंजन अभी माँ की चूत में शंटिंग कर रहा था। मेरी आँखें मुंदने लगी थीं.. कुछ देर बाद मैं सो गई।
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
अब तो अंकल और माँ के बीच के सभी परदे मेरे सामने खुल चुके थे.. माँ भी अपनी पूरी मस्ती से अपनी चूत कि चीथड़े उड़वाने में लग चुकी थीं।
जय अंकल माँ को जब चाहते तब चोदते थे। धीरे-धीरे वह दोनों मेरे सामने ही एक कमरे में चले जाते और कई-कई घंटे बाद निकलते थे। मैं भी हमेशा माँ और अंकल की चुदास लीला देखती थी रात को जाग जाग कर…
एक दिन मैं जब सुबह उठी.. तो देखा कि जय अंकल मेरे साथ ही लेटे थे। वह मुझे पूरी तरह से चिपटाए हुए थे।
मैंने अंकल से पूछा- माँ कहाँ हैं?
अंकल- वह तो अपने कॉलेज चली गईं।
‘ठीक है.. मैं आपके लिए चाय बना दूँ?’
अंकल ने सिगरेट सुलगाते हुए ‘हाँ’ में सिर हिला दिया था। थोड़ी देर बाद मैं चाय लेकर आ गई थी। अंकल में मुझे पास में बैठने के लिए इशारा किया।
मैं वहीं उनके पास बैठ गई।
‘कल रात को तुम सो रहीं थी या जाग रही थीं?’ अंकल ने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए सवाल किया।
अचानक इस तरह के सवाल से मैं सकपका गई थी। अंकल को शायद ये मालूम पड़ गया था कि माँ और उनकी चुदाई का मैंने पूरा नजारा देखा है।
‘देखो डॉली.. मैं तुम्हारा अंकल हूँ.. तुम्हारी माँ का ख्याल रखना मेरा फ़र्ज़ है.. तुम बड़ी हो गई हो.. समझदार हो.. इस बात को समझ सकती हो।’
मैंने बिना कोई जवाब दिए अपना सिर शर्म से नीचे झुका लिया था।
‘वैसे कितने साल की हो गई हो तुम?’
‘पिछले महीने में 18 साल की..’ मैंने धीरे से शरमाते हुए जवाब दिया था।
अंकल ने मुझे अपने सीने से लगा लिया- बड़ी हो गई है मेरी बच्ची.. तू फ़िक्र मत कर.. तेरे लिए मैं तेरी माँ से बात करता हूँ..
अंकल ने मुझे गले लगाये हुए ही मेरी पीठ पर सहलाते हुए कहा था। मैं किसी मासूम बच्चे की तरह उनसे चिपकी हुई थी।
अंकल ने मुझे अपनी ओर खींचा और अपनी गोद में झटके से खींच लिया.. हम दोनों बिस्तर पर गिर गए।
मैं बुरी तरह घबरा गई.. मैं हल्की सी आवाज में बोली- अंकल प्लीज मुझे जाने दो..
‘कुछ नहीं होगा तुझे मेरी गुड़िया रानी..’
अंकल मेरे कंधों पर किस करने लगे.. मुझे अच्छा लग रहा था.. परन्तु शर्म भी आ रही थी.. क्यूंकि वे मेरे अंकल थे।
मैं छूटने की कोशिश करने लगी.. परन्तु अंकल ने मुझे पीछे से जकड़ रखा था।
अचानक उनका हाथ मुझे अपनी टांगों के बीच महसूस हुआ। अंकल मेरी नन्हीं सी मासूम योनि को मसल रहे थे। मुझे अच्छा लग रहा था.. परन्तु थोड़ा अजीब भी.. क्यूंकि यह सब मेरे साथ पहली बार हो रहा था।

अंकल ने मुझे मुँह के बल बिस्तर पर लिटा लिया और मेरे ऊपर लेट कर मेरी पीली जालीदार कुर्ती की ज़िप खोल कर मेरी पीठ पर चुम्बन करने लगे। मैं चुपचाप सिसकारियाँ भर रही थी।
अंकल ने मेरे अधखिले उभार मसलने शुरू कर दिए.. मेरे पीछे उभारों पर मुझे उनके लौड़ा का दबाव साफ़ महसूस हो रहा था। नीचे मेरी योनि में कुलबुलाहट सी होने लगी थी। योनि को और साथ में भगांकुर को मसलवाने को मन कर रहा था।
फिर अंकल ने मेरी काली चूड़ीदार पजामी नीचे खिसका दी और मेरी गुलाबी रंग की चड्डी की एक झटके में नीचे खिसका लिया। मुझे शर्म सी महसूस हो रही थी परन्तु आनन्द भरी सनसनाहट में लिपटी.. मैं चुपचाप लम्बी-लम्बी सांसें ले रही थी। मुझे लग रहा था कि मेरी योनि कुछ रीतापन है.. उसे भरने के लिए मैं कुछ अन्दर लेने को मचल रही थी।
मुझे सीधा करके अंकल की अब उंगली आसानी से मेरी गुलाबी चूत में जा रही थी। मैं बहुत जोर से सिसकारियाँ ले रही थी ‘उन्नन्नह्हह.. आअह्हह.. ऊऊह्ह. आहन्न.. आहऊर चूसो..’
फिर जय अंकल ने मेरे छोटे-छोटे चूचों को चूसना छोड़ कर होंठों का किस लेना शुरू कर दिया- तू तो मेरी गुड़िया रही है डॉली.. मैं तो कब से तेरे पकने का इंतज़ार कर रहा था.. मूआआह्ह्ह..
अंकल ने मुझे चूमते हुए ख़ुशी ज़ाहिर की।
कुछ देर के बाद मैं पूरी तरह से गर्म हो गई। फिर अंकल ने अपना लोअर खोला और अपना लण्ड मेरे हाथ में थमा दिया। उनका लण्ड अब तन कर पूरा 90 डिग्री का हो गया था।
मैं पहले तो शरमाई.. लेकिन कुछ देर के बाद जब उन्होंने फिर से लण्ड पकड़ाया.. तो मैं थोड़ा खुल गई।
अंकल ने बोला- इसे सहलाओ और आगे-पीछे करो।
मैं वैसा ही करने लगी।
अंकल ने फिर मेरी नन्हीं सी मासूम चूत में एक उंगली डाल दी। मैं जोर से ‘आह्ह्ह..’ करके सिस्कार उठी। कुछ देर के बाद मैंने अपनी चूड़ीदार पजामी खुद उतार दी।
‘वाह.. क्या नन्हीं सी पिंक.. बिना बाल की चूत है.. आज तो मैं तुझे कली से फूल बनाऊंगा.. मेरी गुड़िया रानी..’
अंकल ने हाँफते हुए कहा।
मेरी चूत पूरी भीगी हुई थी। मेरी चूत पर एक भी बाल नहीं था.. हल्का सा रोंया ही अब तक आया था। मेरी चूत पूरी पावरोटी की तरह फूली हुई थी।

फिर अंकल ने मुझे अपना लण्ड चूसने के लिए बोला.. मैंने मना कर दिया।
अंकल ने बोला- कुछ नहीं होता..
मैं बोलने लगी- नहीं.. मुझे घिन आ रही है..
‘देखो इस तरह से चूसो..’
यह कहते हुए जय अंकल ने मेरी चूत को चूसना शुरू कर दिया।
मैं चिल्लाने लगी- आह्हह्हह्हह.. अंकल नहीं.. बस करो..
अंकल अपनी जीभ से मुझे चोद रहे थे.. मेरे मुँह से सिसकारियाँ फूट रही थीं ‘अंकल आह्ह.. मेरी चूत में आग लग रही है.. अहह्ह्ह.. कुछ करो..’
वे लगातार मेरी चूत को चूसते रहे।
मैं जोर से चिल्ला रही थी- और जोर से.. आह्ह..
मैं अपने हाथ से उनके सिर को अपनी चूत के ऊपर खींच रही थी। अपने पैरों को कभी ऊपर तो कभी दोनों जांघों को जोर से दबा रही थी.. कभी-कभी मेरी साँसें फूल जाती थीं।
कुछ देर के बाद मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया.. अंकल ने सारा का सारा पानी पी लिया।
मैं बिस्तर पर नंगी निढाल पड़ी थी। वो मेरे गोर दुबले-पतले नाज़ुक जिस्म को देख रहे थे। मैं जोर से हाँफ़ रही थी.. जैसे कोई कई मील से दौड़ कर आई होऊँ।
‘डरती है मेरी गुड़िया रानी.. अंकल से डरती है? कुछ हुआ मेरी बेबी.. मज़ा आया ना?’
अंकल ने मुझे सीधे लिटा कर प्यार से कहा।
मैंने हाँ में सिर हिलाया।
अब अंकल का मुँह मेरे सामने था.. उनका चेहरा लाल हो चुका था। वो मेरे चेहरे की तरफ देख भी नहीं रहे थे। उन्होंने अपने इनर को उठाया.. लोअर नीचे सरका कर अपने लौड़े को बाहर निकाला।
उस वक्त तो मुझे पता नहीं था कि मेरा यौनांग कुछ छोटा था।
मुझे थोड़ा अजीब जरूर लग रहा था.. पर कामोत्तेजना बहुत हो रही थी। अंकल ने मेरी टांगें फैला दीं और खुद टांगों के बीचों-बीच आ गए।
उन्होंने लौड़े पर थूक लगाया और योनिद्वार के ठीक बीचों-बीच मुझे उनका लौड़ा महसूस हुआ। उन्होंने मेरे दोनों घुटनों को अपने हाथों से थामा और जोर का एक धक्का लगाया ‘आआआ.. ईईई आश्स्श्श्श.. माँ….
मेरी तो जैसे जान ही निकल गई.. मैं छूटने के लिए तड़पने लगी। नीचे मेरी चूत में जलन सी हो रही थी।
‘धीरे से.. धीरे से.. कुछ नहीं होगा मेरी गुड़िया रानी को..’
यह कहते हुए अंकल मेरे मासूम नन्हें अधखिले वक्ष-उभार मसलने लगे और मुझे चूमने लगे।
पहली बार मेरी चूत में कोई लण्ड गया था। कॉलेज में मुझे कई सारे लड़के मुझे लाइन मारते थे.. लेकिन मैंने सोचा नहीं था कि यह सौभाग्य जय अंकल को मिलेगा।
लगभग 5 मिनट में मेरा दर्द कुछ कम हुआ.. तो मुझे अच्छा लगने लगा और मैं खुद ही कमर हिलाने लगी और कूल्हे उठाने लगी।
अंकल ने मेरी कमर के नीचे तकिया लगाया और हल्के-हल्के धक्के लगाने शुरू कर दिए और लगभग दो मिनट में उनकी रफ्तार बहुत तेज हो गई।
अब मुझे भी बहुत मजा आ रहा था.. मेरी योनि में मीठी सी चुभन मुझे आनन्द भरी टीस दे रही थी।
लगभग 7-8 मिनट तक धक्के लगाने के बाद मुझे चरमोत्कर्ष प्राप्त होने लगा और मुझे योनि के अन्दर संकुचन सा महसूस हुआ। मुझे योनि के अन्दर कुछ रिसता हुआ सा महसूस हुआ.. अंकल ने लौड़ा झटके से बाहर निकाला और सारा वीर्य मेरे योनि मुख और मेरे पेट पर गिरा दिया.. और मेरे ऊपर गिर गए।
वे झड़ चुके थे और लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगे।
मुझे चूत में दर्द महसूस हो रहा था.. मेरी चूत खून से लथपथ हो गई थी.. मैं डर गई थी।
तब अंकल ने बताया- पहली बार में ऐसा होता है..
मैंने चड्डी चूत पर चढ़ा ली।
कुछ देर बाद अंकल मेरे छोटे-छोटे चूतड़ों को मसलने लगे और फिर से मेरी चड्डी को कमर तक खिसका दिया। मैं आँखें बंद करके चुपचाप लेटी हुई थी।
अंकल मेरे ऊपर छा गए थे। उनका लौड़ा मेरी चूत में दुबारा घुस गया था.. मैं एकदम से थक कर चूर हो गई थी। ऐसा लग रहा था कि न जाने कितनी दूर से दौड़ लगा कर आई होऊँ।
कुछ देर अंकल का लण्ड मेरी चूत में ही पड़ा रहा.. अंकल ने अपनी आँखें खोलीं और मेरे सुनहरे घने बालों में अपना दुलार भरा हाथ फिराया। हम दोनों एक-दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे।
उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत से बाहर खींचा..
फिर अंकल ने लोअर पहना और बाथरूम में घुस गए..
मैं चुपचाप हल्की सी आँख खोलकर उनको देख रही थी.. जैसे ही वो अन्दर घुसे.. मैंने जल्दी-जल्दी अपनी पजामी ऊपर खींची.. कपड़े और बाल ठीक-ठाक किए और जल्दी से वहाँ से बाहर निकल आई.. क्यूंकि मेरा मन अंकल से नजर मिलाने को नहीं हो रहा था।
मेरे ख्याल से इस सारे प्रकरण में अंकल का कोई दोष नहीं था। मैं जानती थी कि मेरी माँ कोमल जो 34 साल की जवान और खूबसूरत औरत हैं.. उनके साथ जो हो रहा था.. वह मेरे साथ भी कभी भी हो सकता है.. लेकिन आज ही के दिन यह सब हो जाएगा.. मैं नहीं जानती थी।
कुछ देर बाद जय अंकल मेरे नजदीक आए और उन्होंने मेरे गालों पर एक ज़ोरदार पप्पी ली और 2 दिन बाद वापस आने का वादा करके चले गए।
फिर एक दिन वह हुआ.. जिसकी मैंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी। शाम के 9 बज रहे थे.. जय अंकल की कार दरवाजे पर आकर रुकी थी। अंकल का रात को इस तरह आना.. कोई नई बात नहीं थी.. लेकिन मैंने दरवाजे पर जाकर देखा कि आज अंकल के साथ एक और आदमी भी था।
 
  • Like
Reactions: xxxlove

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
जय अंकल- हाय कोमल कैसी हो? इससे मिलो, यह मेरा दोस्त राज है!
माँ ने धीरे से ‘हाय’ करके अपना हाथ आगे बढ़ाया था।
‘और राज यह है मेरी प्यारी सी नन्हीं सी भतीजी डॉली..’
जय अंकल ने मेरे गाल खींचते हुए.. राज को मेरी तरफ इशारा किया।
राज ने ललचाई हुई नज़रों से मुझे नीचे से ऊपर तक देखा था.. उस वक़्त मैंने रेड स्कर्ट और ब्लैक टॉप पहना हुआ था। मैं बिना जवाब दिए अपने कमरे में चली गई थी।
मैं अपने कमरे में चली गई थी और खिड़की से उनकी बातें सुनने लगी थी।
जय अंकल माँ को कमरे में ले कर गए थे.. राज बरामदे में ही रुका था।
‘कोमल यह मेरा दोस्त राज है.. आज रात यह हमारे साथ रुकेगा..।’
अंकल माँ को समझा-बुझा रहे थे.. लेकिन माँ मानने को तैयार नहीं थीं।
‘अरे.. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.. बस मैं तुम और राज.. एक रात की तो बात है..’
मैं समझ चुकी थी कि जय अंकल माँ को राज से चुदवाने के लिए राजी कर रहे थे।
कोमल- तुम्हारी बात अलग है जय.. तुम मेरे शौहर के दोस्त हो.. लेकिन एक गैर मर्द के साथ मैं नहीं कर सकती।
माँ परेशानी से अपना सिर पकड़े सोफे पर बैठी थीं।
जय अंकल- मैं और राज बचपन के दोस्त हैं.. यहाँ तक कि मैंने उसकी पत्नी की भी ली है.. अब अगर वह कुछ माँगता है.. तो मैं कैसे मना कर दूँ.. और फिर यह बात इस कमरे से बाहर थोड़े ही जाने वाली है? मैंने राज को बोला है कि तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त रंगीला की बीवी हो।
‘तुमने मुझसे पूछ कर बोला था क्या..? मैं ऐसा नहीं कर सकती जय..’
जय अंकल ने माँ के गालों को अपने दोनों हाथों में लेते हुए अपनी बात पर जोर देकर कहा।
‘लेकिन घर में मेरी बेटी डॉली भी है.. वह क्या सोचेगी.. अब वह छोटी नहीं रही है..?’
माँ ने अपनी शंका ज़ाहिर करते हुए जवाब दिया था.. जबकि राज अंकल बाहर बरामदे में बैठे सिगरेट पी रहे थे।
‘हाँ मुझे बहुत अच्छी तरह से मालूम है कि वो ‘बड़ी’ हो गई है.. उसकी तुम फ़िक्र मत करो.. मैं उसको सम्हाल लूँगा।
फिर माँ धीरे-धीरे राजी हो गई थीं। जय अंकल माँ को अपनी गोद में लिए हुए थे और उनके कुरते में हाथ डाल कर उनके चूचों को मसल रहे थे। जिससे उनका विरोध अब कम हो गया था।
रात होने को थी.. मेरा दिल धड़कने लगा था.. मुझे बहुत ही अजीब लग रहा था कि मेरी माँ मेरे सामने ही दो-दो मर्दों से चुदेगीं.. कैसे चुदेगीं.. आह्ह्ह चाचा का और उनके दोस्त का कड़क लण्ड भला अन्दर कैसे घुसेगा..? यह सोच कर तो मेरी चूत में भी पानी उतारने लगा था।
रात को माँ मेरे कमरे में आईं और मुझे ठीक से सुला दिया और चादर ओढ़ा कर लाईट बन्द करके कमरे बन्द करके चली गईं।
मैंने धीरे से चादर हटा दी और उछल कर खिड़की पर आ गई।
राज अंकल शायद शराब पी रहे थे.. उसका यह रूप भी मेरे सामने आने लगा था। अपना लण्ड मसलते हुए वो धीरे-धीरे शराब पी रहे थे।
‘उसे चादर उढ़ा दी है.. वो गहरी नींद में सो गई है..’
यह सुनते ही जय अंकल ने माँ को अपनी बाँहों में भरते हुए चूम लिया।
मुझे उनके कमरे से अब राज अंकल की भी आवाज सुनाई दे रही थी..
मेरा दिल धड़क रहा था कि माँ की आज दो मर्दों से चुदाई होगी।
जय ने माँ को राज के पास जाने को कहा।
माँ धीरे-धीरे शरमाते हुए अंकल की तरफ़ बढ़ रही थीं.. उनके पास आकर वो रुक गईं.. और अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से उन्हें निहारने लगीं।
तभी माँ मेरे सामने मुँह करके आ गईं.. मैंने देखा कि उन्होंने आज बेहद ही कीमती ड्रेस पहना हुआ था.. छोटी सी ब्लैक रंग की बैकलेस कुर्ती और उसके साथ लाल रंग की जालीदार सलवार.. यह ड्रेस शायद राज अंकल माँ के लिए लाए थे।
मैं सोचने लगी कि अरे.. वाह माँ ऐसी ड्रेस में..
मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा था, ये दोनों हरामजादे आज रात को मेरी माँ की चुदाई करेंगे।
माँ का तराशा हुआ गुदाज गोरा जिस्म.. ट्यूबलाईट की रोशनी में जैसे चांदी की तरह चमक उठा। उनकी ताजी शेव की हुई चूत की फ़ांकें.. सच में किसी धारदार हथियार से कम नहीं थीं। कैसी सुन्दर सी दरार थी.. चिकनी शेव की हुई रसीली चूत।
‘उफ़्फ़्फ़.. कोमल.. आप भी ना.. अभी किसी मॉडल से कम नहीं हो।’ राज अंकल ने माँ के गोरे सफ़ेद जिस्म को चूमते हुए कहा था।
‘हा.. हा.. हा.. अच्छा जी.. जय भाईजान की मेहरबानी है.. यह जो तुम्हारे सामने हूँ।’
माँ उनसे लिपट कर बातें कर रही थीं। कभी तो वो मेरी नजरों के सामने आ जातीं.. और कभी आँखों से ओझल हो जाती थीं।
तभी राज अंकल ने माँ का हाथ पकड़ कर अपने सामने सामने खींच लिया और कुर्ती के ऊपर से ही उनके सुडौल चूतड़ों को दबाने लगे। माँ की लम्बाई चाचा के बराबर ही थी..
उफ़्फ़.. माँ ने गजब कर दिया.. उन्होंने राज अंकल की जीन्स की ज़िप धीरे से खोल दी।
‘क्यूं आपको.. मेरे सामने शर्म आ रही है क्या? अपने लण्ड को क्यूं छुपा रखा है.. जानेमन?’
तभी मेरी धड़कन तेज हो गईं.. अंकल ने माँ की सलवार के नीचे से माँ की गाण्ड को दबा दिया। माँ ने अपनी टांग कुर्सी पर रख दी.. ओह्ह्ह तो जनाब ने माँ की गाण्ड में उंगली ही घुसेड़ दी है।
वो अपनी उंगली गाण्ड में घुमाने लगा.. माँ भी अपनी गाण्ड घुमा-घुमा कर आनन्द लेने लगीं।
कमरबंद खींचते ही माँ की सलवार उनके शरीर से खिसक कर सरसराती हुई नीचे फ़र्श पर आ गिरी। माँ की सफ़ेद दूधिया माँसल टांगें नंगी हो चुकी थीं।
‘कोमल.. तुम कितनी सुन्दर हो..’
माँ ने मुस्कुराते हुए नजर नीची कर ली.. अंकल ने आगे बढ़ कर माँ को प्यार से गले लगा लिया। उनका दुपट्टा अलग करके उनके होंठों पर अपने होंठ लगा दिए थे, माँ तो जैसे उनसे चिपट सी गई थीं, दोनों के लब एक-दूसरे से मिल गए।
गहरे चुम्बनों का आदान-प्रदान होने लगा। अब राज अंकल माँ के नंगे भारी-भारी चूतड़ों को चीर कर उनकी गुदा द्वार में उंगली डाल रहे थे।
‘आउच…’
माँ के मुख से एक प्यारी सी ‘आह’ निकल पड़ी। पजामे में से अंकल का लण्ड उभर कर बाहर निकलने हो रहा था। माँ ने एक बार नीचे उनके लण्ड को देखा और अपनी चड्डी से ढकी चूत उनके लण्ड से टकरा दी। अब वो अपनी चूत वाला भाग लण्ड पर दबा रही थीं।
अंकल ने अपने दोनों हाथों से माँ की चूचियों को सहला कर दबा दिया.. तो माँ सिमट सी गईं।
‘कोमल.. मेरे लण्ड को भी प्यार करो..न..?’
अंकल ने माँ की गर्दन को चूमते हुए कहा।
मुस्कुराते हुए माँ धीरे से नीचे बैठ गईं और उनकी जीन्स को नीचे खिसका दिया.. फिर उसे धीरे से नीचे उतार दिया। अंकल का सात इंच का लण्ड बाहर आ गया.. उनका सुपाड़ा पहले से ही खुला हुआ था.. माँ ने मुस्करा कर ऊपर देखा और लण्ड को अपने मुख में डाल लिया। अंकल ने मस्ती में अपनी आंखें बन्द कर ली।
अब राज अंकल के हाथ माँ की ब्रा को खोलने में लगे थे.. माँ ने उनका लण्ड चूसना छोड़ कर पहले अपनी ब्रा को उतार दिया..
हाय रे… माँ के उरोज तो सच में बहुत सधे हुए थे.. हल्का सा झुकाव लिए.. चिकने और अति सुन्दर..
माँ ने फिर से उनका लण्ड अपने मुख में ले लिया और चूसने लगीं। अंकल के हाथ माँ के बालों में चल रहे थे.. उनके बाल खुल गए थे।
अब उन्होंने माँ को उठा कर खड़ा कर लिया- कोमल.. मुझे भी आप अपनी चूत को प्यार करने की इजाजत देंगी?’
राज की इस बात पर पहले तो माँ शरमा गईं.. फिर वो बिस्तर पर चित्त लेट गईं और उन्होंने अपनी दोनों टांगें ऊपर को खोलते हुए अपनी चूत पसार ली।
‘हाय.. कोमल.. इतनी चिकनी.. इतनी प्यारी.. लण्ड लगते ही भीतर फ़िसल जाए.. 34 साल की होकर भी तुम किसी कुंवारी लड़की से कम नहीं हो।’
‘ऐसे मत बोलो.. मेरी जान.. बस इसे चूम लो.. फिर चाहे जो करो.. भले ही उसमें अपना अन्दर उतार दो..’
राज- थैंक्स यार जय.. तेरे दोस्त की बीवी तो मस्त माल है.. मैं तो कहता हूँ कि परमानेंट बदल ले इसे मेरी बीवी से.. तू मेरी बीवी आयशा को जब चाहे.. जहाँ चाहे.. ले जाया कर.. और जैसे चाहे चोदा कर।
‘अरे यार.. तू भी कोमल को जब चाहे ले जा सकता है.. अब कोमल हम दोनों की दोस्त है।’
जय अंकल ने राज की इस बात का हँस कर जवाब दिया था।
‘अच्छा जी थोड़ा कम मस्का लगाओ..’
माँ को चुदने की बहुत लग रही थी.. इस पर अंकल ने अपना मुँह माँ की चूत पर लगा दिया.. और उनके दाने को उनके होंठों ने मसल दिया।
‘सीईईए..’ करते हुए माँ ने आँखें बंद कर लीं और अपनी चूत उछालने लगीं।
मेरी चूत में भी यह देख कर पानी उतर आया.. इधर मैं अपनी चूत को दबाने लगी।
माँ तो खुशी के मारे जैसे उछल रही थीं.. पर अंकल चूत से चिपके हुए उसका रस चूसने में लगे थे।
‘अब तड़पाओ मत.. जैसा मैं कहूँ वैसा करो..’
‘कोमल.. पीछे घूम कर कुतिया बन जाओ.. पहले तुम्हारी चिकनी गाण्ड मारूंगा..’
‘ओह.. तुम्हें भी गाण्ड मारना अच्छा लगता है.. कोई बात नहीं.. मेरे दोनों तरफ़ छेद हैं.. किसी को भी चोद दो.. पर पहले अपना ये लण्ड मुझे मुँह से चूसने दो ना..’
‘ओह.. जैसी कोमल जी की इच्छा..’
राज अंकल ने एक बार फिर बिस्तर पर बैठ गए और माँ को मुँह में अपना लण्ड दे दिया। माँ के मुँह से बीच-बीच में सिसकारी भी निकल जाती थी। वो अपने कठोर लण्ड को माँ के मुँह में मारते रहे और माँ ने अपनी चूत घिसवाना चालू कर दिया।
मुँह से लौड़ा चुसवाते हुए जैसे ही अंकल का वीर्य छलका.. माँ के मुँह से भी सीत्कार निकल पड़ी। माँ अंकल का सारा वीर्य गटक गई थीं.. और अब वे उनके लण्ड को चाट-चाट कर साफ़ करने लगी थीं।
‘इसमें आपको बहुत मजा आता है ना?’
‘हाँ’ कहते हुए उनके लण्ड को माँ ने हिलाया.. फिर माँ ने अंकल के लौड़े को अपने चिकने बोबे से लगा दिया और उसे अपनी छाती पर घिसने लगी।
माँ अब बिस्तर पर बैठ गईं और अपनी चिकनी चूत को उंगली से पहले सहलाने लगीं.. फिर चूत की फांक को मसलने सी लगीं। फिर माँ ने अपना दाना उभार कर देखा और उसे मसलने लगीं.. उन्होंने अपनी गीली चूत में अपनी उंगली घुसा ली और ‘आह’ भरते हुए हस्तमैथुन करने लगीं।
माँ जल्दी ही झड़ गईं.. वो शायद पहले से ही बहुत उत्तेजित थीं।
माँ के झड़ते ही राज अंकल माँ की चूत का रस चूसने लगे.. माँ ने उन्हें सिसकारी लेते हुए अपनी जांघों के बीच दबा लिया।
‘अब देखो.. मैं फ़िर तैयार हूँ.. अब मैं तुम्हारी जम कर गाण्ड चोदूँगा.. मजा आ जाएगा..’
माँ ने घोड़ी बन कर अपनी सुडौल गाण्ड पीछे की और उभार दी.. राज अंकल को गाण्ड मारने का शौक था, उन्होंने धीरे से लण्ड गाण्ड में डाल दिया और माँ मस्त हो गईं..
ये सब देखने में मुझे बहुत आनन्द आ रहा था।
माँ की गाण्ड को अंकल ने बहुत देर तक बजाया, माँ भी अंकल के स्खलित होने तक गाण्ड चुदाती रहीं।
माँ की गाण्ड मार कर अंकल सुस्ताने लगे।
‘जूस पियोगे या दूध लाऊँ?’
‘अभी तो दूध ही पियूँगा.. फिर जूस..’
‘ही ही ही..’
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
माँ जैसे ही दूध लाने के लिए उठीं.. अंकल ने उन्हें फिर से गोदी में खींच लिया और उनकी चूचियों को अपने मुँह से दबा लिया।
‘कोमल.. मेरी जान कहाँ जा रही हो.. अपने दूध नहीं पिलाओगी क्या?’
अंकल माँ को गुदगुदाते हुए दूध पीने लगे।
‘हुंह..’
मैं अपनी चूत में उंगली करते हुए सोच रही थी कि अंकल माँ के दूध तो खूब चूस-चूस कर पी रहे हैं.. मेरे तो चूसते ही नहीं हैं..
माँ गुदगुदी के मारे सिसकारियाँ भरने लगीं।
‘बहुत प्यारे हो तुम दोनों.. कैसी-कैसी शरारतें करते हो..’
दोनों नंगे ही एक-दूसरे के साथ खेल रहे थे.. खेलते हुए उन दोनों में फिर से आग भरने लगी थी। जय अंकल का लण्ड फुंफकारने लगा था।
‘अब देरी किस बात की है..’ माँ ने चुदासे स्वर में कहा।
‘नहीं मुझे अभी दूध पीने दो.. न..’
‘पहले बस एक बार.. मेरे ऊपर चढ़ जाओ.. मुझे शांत कर दो..’
माँ ने अपनी दोनों खूबसूरत सी टांगें उठा लीं.. अंकल उन टांगों के बीच में समा गए। कुछ ही पलों में अंकल का मोटा लण्ड माँ की चूत को चूम रहा था। चाचा का लण्ड माँ की चूत में घुसता चला गया।
माँ आनन्द से झूम उठी थीं।
इधर मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया.. मुझे भी एक मीठी सी गुदगुदी हुई।
मेरी माँ अपनी टांगें ऊपर उठा कर उछल-उछल कर चुदवा रही थीं और राज अंकल का लण्ड चूस रही थीं।
मेरा हाल इधर खराब होता जा रहा थ, माँ की मधुर चीखें मेरे कानों में रस घोल रही थीं।
दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए थे.. कभी अंकल ऊपर तो कभी माँ ऊपर..! खूब जम कर चुदाई हो रही थी।
माँ को इस रूप में मैंने पहली बार देखा था.. वो एकदम रांड बनी हुई थीं। लगता था जिन्दगी भर की चुदाई वो तीनों आज ही कर डालेंगे।
तभी तीनों का जोश ठण्डा पड़ता दिखाई देने लगा..
अरे..!
क्या दोनों झड़ चुके थे?
सफ़र की इति हो चुकी थी.. हाँ सच में वो दोनों झड़ चुके थे।
राज अंकल ने मुस्करा कर माँ कर चूचे अपने मुँह में भर लिए और ‘पुच्च.. पुच्च..’ करके चूसने लगे।
माँ धीरे से नीचे बैठ गईं और राज का लण्ड पकड़ कर सहलाने लगीं, उसका लण्ड अपने मुँह में लेकर उसे चूसने लगीं।
राज कभी तो माँ की जांघें चूमता और कभी उनके बालों को सहलाता- जोर से चूसो कोमल डार्लिंग.. उफ़्फ़ बहुत मजा आ रहा है.. और कस कर जरा..
अब माँ जोर-जोर से ‘पुच्च.. पुच्च..’ की आवाजें निकालने लग गई थीं, राज की तड़प साफ़ नजर आने लगी थी।
फिर माँ ने गजब कर डाला.. माँ ने अपनी एक टांग उसके दायें और एक टांग राज के बायें डाल दी। राज का सख्त लण्ड सीधा खड़ा हुआ था, दोनों प्यार से एक-दूसरे को निहार रहे थे।
माँ उसके तने हुए लण्ड पर बैठने ही वाली थीं.. मेरे दिल से एक ‘आह..’ निकल पड़ी ‘माँ प्लीज ये मत करो.. प्लीज नहीं ना..’
पर माँ तो बेशर्मी से किसी रंडी की तरह उसके लण्ड पर बैठ गईं।
‘माँ घुस जायेगा ना.. ओह्हो समझती ही नहीं है..’
पर मैं उनके लण्ड को किसी खूँटा की तरह माँ की चूत में घुसता हुआ देखती ही रह गई.. कैसा चीरता हुआ माँ की चूत में घुसता ही जा रहा था।
फिर माँ के मुँह से एक आनन्द भरी चीख निकल गई।
‘उफ़्फ़्फ़.. कहा था ना जड़ तक घुस जाएगा.. पर ये क्या..? माँ तो राज से जोर से अपनी चूत का पूरा जोर लगा कर उससे लिपट गईं और अपनी चूत में लण्ड घुसवा कर ऊपर-नीचे हिलने लगीं।
अह्ह्ह.. खुदा वो तो मस्त चुद रही थीं.. सामने से राज माँ की गोल-गोल कठोर चूचियाँ मसल-मसल कर दबा रहा था। उसका लण्ड बाहर आता हुआ और फिर ‘सररर..’ करके अन्दर घुसता हुआ मेरे दिल को भी चीरने लगा था।
मेरी चूत का पानी निकल कर मेरी टांगों पर बहने लगा था। पूरी रात जय अंकल और उनके दोस्त राज ने मेरी माँ को किसी रांड की तरह चोदा था।
मुझे अपनी बारी का इंतज़ार था.. जो कि जल्द ही आने वाली थी।
मैं अपने बिस्तर पर आ गई और चूत में उंगली डाल कर अन्दर-बाहर करने लगी।
संयोग से एक रात को माँ को चुदवाते हुए देखकर मैं अपनी चूत में उंगली कर रही थी कि मेरे मुँह से सीत्कार निकल गई जिसको माँ ने सुन लिया। मैं जान नहीं पाई कि क्या हुआ लेकिन अगले दिन माँ का व्यवहार कुछ बदला-बदला सा था।
मुझसे रहा नहीं गया.. मैंने माँ से पूछा- क्या बात है माँ.. आज बहुत उदास हो?
माँ ने कहा- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।
कुछ देर के बाद माँ ने मुझे अकेले में बुलाया और बोलीं- कल रात..
इतना सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए.. मेरा चेहरा लाल हो गया।
तब माँ ने कहा- देखो बेटी मेरी उम्र इस वक़्त 32 साल है.. और तुम जानती हो कि तुम्हारे पापा बाहर रहते हैं.. उनको दुबई गए हुए दो साल से ऊपर हो गया।
ये सब कहते हुए माँ का गला भर आया.. उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े। मैंने माँ को दिलासा दिया और कहा- मैं समझती हूँ.. कोई बात नहीं है माँ।
मेरी इस बात से उनका दिल कुछ हल्का हुआ और वो बोलीं- बेटी तुम नाराज़ नहीं हो न मुझसे?
मैंने कहा- नहीं माँ.. इसमें नाराज़ होने वाली कौन सी बात है.. ऐसा तो सबके साथ होता होगा?
माँ के चहरे पर कुछ मुस्कान आई।
मैं उस वक़्त कुछ और नहीं बोली।
उस दिन के बाद मैं तीन रातों तक माँ के चुदने का इंतज़ार करती रही लेकिन जय अंकल नहीं आए, उनकी चुदाई नहीं हुई।
अब मैं माँ की हमराज़ हो ही गई थी, मैंने माँ से पूछा- क्यों माँ.. आजकल अंकल रात को क्यों नहीं आ रहे हैं?
माँ ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा- तुमको क्या दिक्कत हो रही है?
इधर मेरा भी तो जय के बिना बुरा हाल था, मुझे भी अंकल से चुदे कई दिन हो चुके थे। माँ के साथ-साथ मेरी चूत को भी लण्ड की ज़रूरत सताने लगी थी।
जिसका नतीजा यह हुआ कि मैंने बेअदबी के साथ माँ से कह दिया- माँ मुझे भी वही चाहिए.. जो तुम रोजाना रात को अपनी चूत में डलवाती हो।
माँ तो बिल्कुल सन्न रह गईं, उन्हें मुझसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी- देखो डॉली, तुम अभी बच्ची हो।
‘माँ मैंने आपको बताया नहीं.. जय अंकल मेरे साथ भी वो सब कर चुके हैं।’
‘क्या..???’
मेरे जवाब से माँ के पैरों तले जैसे ज़मीन खिसक गई थी।
‘माँ प्लीज़..’ मैंने माँ के गले लगते हुए कहा।
मेरी जिद के आगे माँ मजबूर हो गई थीं, उन्होंने कहा- ठीक है.. तुम्हारी चूत में भी लण्ड पेलवा दूँगी.. लेकिन ध्यान रहे पापा को ये सब बातें मालूम नहीं होनी चाहिए।
मैंने ख़ुशी से उछलते हुए कहा- ओके माँ.. तुम कितनी अच्छी हो।

दोस्तो.. जब मेरी माँ ने मुझसे कहा कि वे मेरी चूत में लण्ड पेलवा देंगी.. तो मैं बहुत खुश हुई कि मैंने माँ को मजबूर कर दिया था।
वैसे तो जय अंकल मुझे कई बार चोद चुके थे.. लेकिन अब मैं यह सब बिना डरे करना चाहती थी।
उसी दिन जब मैं नहाने जा रही थी तो माँ बाथरूम में आ गईं और दरवाजा बंद कर लिया।
वे बोलीं- अपने कपड़े उतारो।
मैंने माँ से कहा- माँ.. मुझे शर्म आएगी।
माँ ने मुझे डांटते हुए कहा- छिनाल कहीं की.. चूत और लण्ड का खेल देखकर पेलवाने की तुम्हारी हवस जाग उठी.. लेकिन यह नहीं जानती हो कि मर्द को क्या पसंद आता है? मर्द को चिकनी चूत चाहिए.. देखूं तुम्हारी झांटें साफ़ हैं या नहीं?
इसी के साथ माँ ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और पूरी तरह नंगी हो गईं, उनकी चूत के बाल एकदम साफ़ थे।
सच में क्या शानदार चूत थी माँ की.. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं इसी चूत के रास्ते बाहर निकली हूँ।
मैं भी फटाफट अपनी सलवार कुर्ती उतार कर नंगी हो गई। माँ ने मेरी चूत को सहलाया और बोली- आज तुम्हारे अंकल इसमें अपना लण्ड पेलकर बहुत खुश होंगे। एक बात बता दूँ.. उन्होंने मुझसे एक बार कहा था कि कोमल.. एकाध नए माल का इंतज़ाम करो.. पैसों की फ़िक्र मत करना।
माँ ने मुझे रगड़-रगड़ कर अच्छी तरह नहलाया.. मेरी चूत के बाल साफ़ किए और तब बोलीं- अब तुम्हारी चूत लण्ड लेने के लिए एकदम तैयार है।
शाम को राज अंकल आए तो मैं उनको निहारती रह गई। क्या बलिष्ठ गठा हुआ बदन पाया था अंकल ने..! मैं समझी कि माँ जय अंकल की बात कर रहीं हैं लेकिन मेरी चुदाई का प्रोग्राम राज अंकल के साथ था।
हम लोग खाना खाकर लेटने की तैयारी करने लगे। आज हम तीन लोग एक ही कमरे में एक ही बिस्तर पर आ गए।
माँ ने अंकल से कहा- क्यों जी.. आप किसी नए माल के बारे में कह रहे थे.. आज मैं अपनी मासूम बच्ची को आपके हवाले कर रही हूँ.. लेकिन ध्यान रखिएगा.. कि बेचारी की चूत एकदम कोरी है बहुत आराम से पेलिएगा..
‘फ़िक्र मत करो कोमल.. बस तुम देखो कैसे आज मैं तुम्हारी इस बच्ची को मासूम कच्ची कली से पूरी औरत बनाता हूँ।’
‘हम्म..’
अंकल बोले- कोमल.. तुम भी तो साथ ही रहोगी.. जब मैं इसकी चूत में अपना डंडा पेलूँगा.. तो तुम देखती रहना।
माँ ने कहा- हाँ मेरा रहना ज़रूरी है.. क्या पता तुम क्या हाल करोगे मेरी बच्ची का..
माँ ने हँसते हुए जवाब दिया।
मैं बोली- माँ मैं बच्ची नहीं हूँ.. आप ऐसे ही डर रही हो..
इस दौरान माँ ने कुर्ती और सलवार निकाल दी, मेरी चूत को सहलाकर अंकल को दिखाकर बोलीं- देखो जी कितनी चिकनी गुलाबी चूत है.. मेरी रानी बिटिया की..
मैंने अंकल के पजामे पर हाथ फ़ेरते हुए कहा- अंकल इस उम्र में भी आपका लण्ड भी कोई कम नहीं है..
माँ ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए, अंकल भी अपने कपड़े उतार चुके थे, अब हम तीनों मादरजाद नंगे थे। अंकल मेरे होंठों को चूसते हुए एक हाथ से मेरी चूत को सहला रहे थे.. तथा दूसरे हाथ से माँ की गाण्ड सहला रहे थे।
मैं तो गर्म होने लगी.. लेकिन माँ अभी गरम नहीं हुई थीं।
माँ ने मुझसे पूछा- क्यों बेटी.. लण्ड चूसोगी?
मैंने कहा- आप लोग जैसा आदेश करें.. मैं तो अनाड़ी हूँ.. मुझे आप लोगों की निगाहबानी में ही चूत चुदवानी है।
माँ बोलीं- तब ठीक है..मैं जैसा कहती हूँ.. तुम वैसा करो।
हम तीनों ऐसी पोजीशन में हो गए कि मैं राज अंकल का लण्ड चूस रही थी। माँ मेरी चूत चाट रही थीं और अंकल माँ की चूत चाट रहे थे.. अर्थात तीनों लोगों ने एक सर्किल बना रखा था।
मैं तो माँ द्वारा चूत की चटाई से ही एक बार झड़ गई।
थोड़ी देर बाद मैंने माँ से कहा- माँ.. मेरी चूत में जल्दी लण्ड डलवा दो नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगी।
माँ ने कहा- अच्छा.. अपनी टांगें फैलाकर पीठ के बल लेट जाओ.. मैं वैसलीन की शीशी लाती हूँ।
माँ ने मेरी चूत के अन्दर वैसलीन लगा दी और अंकल से बोलीं- मेरी रानी बिटिया की कुंवारी चूत को अपने लम्बे लण्ड से आबाद कीजिए।
माँ ने अंकल के सुपाड़े पर भी वैसलीन लगा दी। अंकल ने मेरी टांगों को फैलाकर लण्ड को मेरी प्यासी चूत के मुहाने पर रखा और मेरी माँ ने अंकल के पीछे से मेरी चूत को फैला रखा था।
अंकल ने धक्का लगाया लेकिन निशाना चूक गया।
मेरी चूत लौड़े के लिए तड़प रही थी.. कि जल्दी से उसमें लण्ड घुसे, मैं लगभग रोते हुए बोली- माँ.. पेलवा दो न.. क्यों देरी हो रही है?
माँ ने कहा- इस बार घुस जाएगा बेटी.. घबराओ मत.. मैं भी तो लगी हूँ इसी कोशिश में.. पेलिए जी मेरी बेटी को.. देखो बेचारी तड़प रही है।
जब इस बार अंकल ने अपना सुपाड़ा घुसा दिया तो मुझे लगा कि मेरी जान निकल जाएगी.. लेकिन मैंने अपने दांत भींच लिए।
‘आईईए.. माँ.. दर्द हो रहा है..’
मैंने सोचा नहीं था कि राज अंकल का लण्ड जय अंकल से मोटा और लम्बा भी है।
‘बस.. बस.. धीरे धीरे.. राज.. अभी ये कमसिन कुंवारी है..’
माँ मेरी चूत को पीछे से सहला रही थीं ताकि दर्द न हो।
अंकल ने थोड़ा और घुसाया तो मुझे लगा कि अब पूरा हो गया.. लेकिन जब मैंने अंकल से कहा- अब धक्का लगाइए.. तो उनके बोलने से पहले माँ ने बाहर निकले हुए लण्ड को नापकर कहा- बस बेटी 5 इंच लण्ड अभी बाहर है.. 3 इंच तो तुमने निगल लिया है।
यह सुनकर मेरी तो हालत खराब हो गई.. खैर अंकल ने थोड़ा और जोर लगाया.. तो दो बार में पूरा लण्ड जड़ तक घुस गया। अंकल ने स्पीड तेज़ की तो धीरे-धीरे मुझे मज़ा आने लगा।
मैं बोलने लगी ‘आह्ह्ह्ह ऊह..ह उह.. पेल दो अंकल.. फाड़ दो मेरी चूत को.. उफ़..’
थोड़ी देर के बाद ‘फच.. फच..’ की आवाज़ आने लगीं।
 

IMUNISH

जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा ..
10,060
8,540
229
मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.. अंकल ने मेरी छोटी-छोटी कच्ची गुलाबी चूचियों के निप्पल को दबा-दबा कर लाल कर दिया था।
उधर माँ मेरी चूत को सहला रही थीं.. बीच-बीच में वह मेरी चूत और उसमें फंसे हुए लण्ड को चाटने भी लगती थीं।
माँ सिर्फ कॉलेज में ही नहीं बल्कि बिस्तर पर भी एक अच्छी टीचर थीं।
tumblr_noz3f7pAbN1u814h2o1_250.gif
कुछ देर के बाद मुझे ऐसा लगा कि मैं आसामान में उड़ रही हूँ। अंकल ने मेरे छोटे से दुबले-पतले जिस्म को अपने कसरती शरीर में खूब जोर से भींच लिया था।
3.jpg
मैं अपनी गाण्ड इस क़दर उचकाने लगी कि लण्ड खूब गहराई तक घुस जाए।
Lovely-blonde-in-amazing-butt-sex-hardcore-animated-picture.gif
अब मेरा काम-तमाम होने वाला था। मैं बड़बड़ाने लगी- अह.. मेरे राजा उन्ह.. आह औउच.. ओह.. मैं आ गई.. आह..ह ह हह ओह.. ओहोहोह..
hot-anal-sex.gif
मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया.. लेकिन अंकल रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। माँ ने मुझसे पूछा- क्यों बेटी मज़ा आया? कहो तो अब मैं भी चुदवा लूँ..
37130
तुम्हें चुदवाते देखकर मेरी चूत भी पनिया गई है।
tumblr_on9vgzIiLV1vnyt2qo1_500.gif
अंकल ने अपना 8 इंच का लपलपाता हुआ लण्ड बाहर निकाल लिया। माँ को इतना जोश चढ़ चुका था कि अंकल ज्यों ही पीठ के बल लेटे, माँ ने उनके खड़े लण्ड को अपनी चूत में फंसा दिया और धक्का मारने लगीं।
16802498.gif
मैं माँ के पीछे जाकर उनकी चिरी हुई चूत में अंकल के फंसे हुए लण्ड को देखने लगी।
4083-sexandkittens-mr-feelgood-stuff-mr-feelgood-stuff-take.gif
क्या गज़ब का नजारा था। मैं चूत लण्ड के संधिस्थल को चाटने लगी।
055788B.gif
anal-oral-sex_60c118b9cd743.gif
मेरी चूत फिर से पनियाने लगी थी। माँ ने उछल-उछल कर खूब चुदवाया। अब माँ पीठ के बल लेट गईं और अंकल ने सामने से अपना लण्ड घुसा दिया
3610297-photo.gif
और जोर-जोर से चोदने लगे।
tumblr_o92f3wo7Xm1vs9l7go1_250.gif
थोड़ी देर बाद उनका पानी निकल गया।
-2XuQOf_F3SkNno3UHoqJ1Qx5hJGrzhlrHN3lxy2_YTjVxkHgde9nDPVwDANZXEeR04DeFRl0oQyDeSUkH5vqvq819Hcr6b5uBY0roxPrhFE_fwhKzUzhoi-J1fXzArg12v3YxB6
उस रात को अंकल ने मुझे तीन बार और माँ ने जबरन दो बार चूत चुदवाई।रात के तीन बजे हम लोग सो गए।फिर धीरे-धीरे हम चारों एक साथ इस खेल को खेलने लगे थे। माँ के कहने पर राज ने इस गैंग-बैंग में अपनी पत्नी आयशा को भी शामिल कर लिया था, वो आयशा को अपने साथ हमारे घर लाते और तीन गर्म बदनों के साथ खेलते।समाप्त
 
  • Like
Reactions: xxxlove
Top