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अगली सुबह अमर की आंखें एक कामुक स्वप्न में खोई थी।
अमर को लग रहा था कि काली अपनी कच्ची कुंवारी चूत से उसके फूले हुए लौड़े को निचोड़ रही थी। अमर ने मुस्कुराते हुए ठान लिया कि वह इस सपने से नहीं जागेगा।
अमर को अचानक लगा की उसके लौड़े पर किसी तेज चीज से खरोंच आ गई। अमर की आंखें खुल गईं और उसने अपने लंबे मोटे लिंग को काली के गीले गरम मुंह में पाया।
अमर कराह उठा, “काली!!…”
काली ने मुस्कुराकर अपने मालिक की आंखों में देखते हुए गहरी सांस ली और अपने सर को दबाया। अमर का लौड़ा काली के गले तक गया और काली को उल्टी जैसा एहसास होने लगा।
लौड़ा अब भी होठों से 2 इंच बाहर था। काली पूरी हिम्मत से अपने मालिक के कल रात का एहसान चुका रही थी। अमर भी अब काली को इस्तमाल करने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा था।
काली ने अमर के लौड़े को गले तक लेते हुए अपने गालों से चूसा और अमर को ऐसा लगा कि उसका लौड़ा किसी वैक्यूम क्लीनर में फंस गया हो। अमर ने आह भरी और काली ने अपने मालिक का लिंग तेजी से चूसना जारी रखा।
अमर का स्खलन नजदीक था पर अब वह काली का मुंह पूरी तरह इस्तमाल करना चाहता था। अमर ने अपने दोनों पंजों को काली के सर के पीछे रखा। जब काली ने अमर के लौड़े को गले तक लेते हुए चूसा तब अमर ने अपनी चाल चली।
अमर ने काली के सर को अपने लौड़े पर दबाते हुए उसके गले को पर किया। काली के गले ने इस अतिक्रमण का जितना विरोध किया उतना ही अमर का सुपाड़ा गले की मांसपेशियों से निचोड़ा गया। काली सांस नहीं ले पा रही थी और अचानक उसकी उत्तेजना से वह झड़ने लगी।
काली को झड़ते देख अमर के संयम का बांध टूट। अमर ने काली के गले में से बाहर निकलते हुए उसके मुंह को अपने गाढ़े वीर्य से लबालब भर दिया।
काली ने अपने होठों को बंद रखा पर समझ नही पा रही थी कि वह इस खारे घोल के साथ क्या करे। अमर ने काली के होठों पर अपनी उंगली रख कर उसे होंठ नही खोलने का संकेत दिया।
अमर, “मालिक की दी चीज को बरबाद नहीं करते! पी जाओ!!…”
काली ने अपने मालिक की आंखों में देखते हुए वह गाढ़ा घोल गटक लिया। काली को बड़ा नटखट महसूस हो रहा था मानो उसने कोई गलत काम करके सजा से बच निकली हो।
काली शर्माकर बाहर भाग गई और अमर ने अपनी किस्मत के बारे में सोचा।
जब अमर नहाकर बाहर आया तब काली नाश्ता बना चुकी थी और अपने नहाने की तयारी कर रही थी। अमर ने काली को पूछा की उसका मासिक धर्म शुरू हो गया है या नहीं।
काली ने शर्माकर कहा की रात में ही मासिक धर्म शुरू हो गया था। अमर ने फिर काली की सलवार उतार दी और पैंटी के अंदर भरी हुई सैनिटरी नैपकिन की पट्टी देखी। अमर ने काली को नहाने के बाद नया सैनिटरी नैपकिन लगाने को कहा।
काली डरकर, “मालिक, इस से तो बहुत खर्चा होगा!”
अमर मुस्कुराकर, “तुम तंदुरुस्त रही तो कीमत मैं तुम्हारे बदन से वसूल कर लूंगा।”
वसूली कैसे होगी सोच कर काली का पूरा बदन शर्म से लाल हो गया और अमर हंसते हुए हॉस्पिटल चला गया।