prasha_tam
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Bhdiya20
अगली सुबह काली अपने मालिक को सोते हुए छोड़ कर तयार होने के लिए बाथरूम में गई। काली प्रातःविधि कर गरम पानी के नीचे खड़ी हो गई तो उसे पीछे से मालिक की आहट हुई।
अमर ने नंगी भीगी काली का मतवाला बदन पानी के नीचे इठलाता पाया और गुर्राया। अमर ने अपने मूसल पर काबू करने के बजाय उसे अपने आप को काबू करने दिया।
अमर ने पीछे से काली को पकड़ कर अपने सीने पर खींचा। काली अपने मालिक के तेवरों को आदि हो कर पानी के नीचे मुस्कुराई। अमर ने अपनी गुलाम को अपने बदन पर रगड़ते हुए उसके भरे हुए मम्मे दबाए। काली अपनी चुचियों के दबने से उत्तेजनावश कराह उठी।
अमर ने काली को अपने सीने से लगाते हुए उसके पैरों को फैलाया। काली की भीगी चूत में से यौन रसों की चिकनी धारा बह रही थी। अमर की उंगलियों ने उस रस में डुबकी लगाई और दो उंगलियों से अपनी प्रेमिका को चोदते हुए चीखने पर मजबूर किया।
काली की योनि में से रसों का सैलाब अमर की उंगलियों पर झड़ते हुए बह आया। काली ने अमर को अपने रस से भीगी उंगलियों को सूंघ कर चाटते हुए देखा और वह उत्तेजना से व्याकुल हो गई।
अमर ने काली की झड़कर कांपती जवानी में अपना मूसल एक वार में म्यान कर दिया। काली ने अपने हाथों को ऊपर उठा कर पीछे करते हुए अपने मालिक को उसके बालों से पकड़ लिया।
आज काली को मालिक का लौड़ा ज्यादा जोर से ज्यादा गहराई में जाकर ज्यादा ठूसता हुआ महसूस हो रहा था। अमर ने काली की भड़की जवानी को स्खलन तक ताबड़तोड़ चोदते हुए उत्तेजित किया।
जैसे ही काली झड़ने लगी तो उसकी गांड़ ढीली हो गई। अमर ने इसका फायदा उठाकर काली को अपनी उंगलियों से सहलाकर झड़ते हुए रख कर अपने लिंग को काली के पिछवाड़े की गहराई में पेल दिया।
काली अपने मालिक की होशियार उंगलियों से चुधती उसके जानलेवा लौड़े पर अपनी गांड़ मराने लगी। अमर ने काली को जम कर चोदते हुए उसके बदन को तबियत से लूटा। अमर ने काली की गांड़ पूरे 12 मिनट मारी और फिर उसकी आतों को रंगते हुए झड़ गया।
काली हमेशा की तरह मालिक की बाहों में झड़ने का हिसाब भूल चुकी थी। दोनों शॉवर के नीचे थक कर बैठे अपनी सांसों को गिनने लगे।
काली, “मालिक…
उन्मम!!…”
अमर ने काली के माथे पर चूमा पर कुछ नहीं कहा।
काली 10 मिनट बाद मालिक को उसे देरी कराने के लिए डांटते हुए चली गई। अमर ने काली को अफसोस भरी आंखों से देखा पर कुछ नहीं कहा।
काली अपने दुकान पर पहुंची तो उसने वृषभ को स्टूल पर खड़े होकर शटर खोलता पाया।
काली चौंक कर, “क्या हो रहा है?”
वृषभ चौंक कर घूम गया तो वह स्टूल पर से गिरने लगा। काली मदद करने आगे बढ़ी पर वृषभ के भरी शरीर के नीचे दब गई। अगर वृषभ ने आखरी पल में पलटी मारी नहीं होती तो काली स्टूल पर से गिरते वृषभ से जरूर चोट खाती।
वृषभ ने आखरी पल में पलटी मारते हुए काली को अपने ऊपर लिया पर खुद को बचा नहीं पाया। वृषभ की आंखों के सामने तारे चमक रहे थे तो काली ने उसे बैठने में मदद की।
वृषभ, “बाबा ने बोला की शटर भारी हो गया है तो अंदर की स्प्रिंग पर ग्रीस लगा रहा था।”
काली वृषभ को पानी देते हुए, “आप इंजीनियर हैं पर मुझे नहीं लगता कि आप को यह काम सिखाया गया है।”
वृषभ काली के ताने से हंसकर, “जरा यह बात मां को भी बताना!!”
दोनों कुछ देर के लिए बातें करते हुए दुकान में बैठे रहे और फिर वृषभ अपने घर लौटा। ऐसी मुलाकातें हर दिन होने लगी जब वृषभ ने बगल की दुकान में अपना ऑफिस बनाया। वृषभ का ऑफिस बस नाम का था क्योंकि उसका सारा धंधा फोन से होता था।
वृषभ ने सोमालिया के कबीले के लोगों को किसी खास मुश्किल में मदद की थी। इस लिए वह लोग वृषभ पर भरोसा करते थे और वहां का कच्चा माल पाने के लिए लोग दुनिया भर से वृषभ को ढूंढते हुए आते।
तीन महीने पलक झपकते बीत गए और एक दोपहर काली रोते हुए घर लौटी। काली खाना खाने आए अमर को बताने से इंकार कर रही थी पर उसका रोना बंद नहीं हो रहा था। अमर ने आखिर में काली को आदेश दिया और काली को सच्चाई बतानी पड़ी।
आज दोपहर को वृषभ ने उससे शादी की बात की थी। काली अपनी सच्चाई से मजबूर कोई जवाब दिए बगैर घर भाग आई।
अमर, “तुम ने वृषभ को कोई जवाब दिए बगैर दुकान को खुला छोड़ कर भागना सही समझा?”
काली का दिल टूट रहा था पर वह वृषभ को अपनी सच्चाई बता कर उसकी नजरों में गिरना नहीं चाहती थी। अमर ने काली की हैरान आंखों के सामने वृषभ को उसके माता पिता के साथ घर पर बुलाया।
काली अमर के पैर पकड़ कर रोने लगी की उसे इन लोगों के सामने जलील न करे पर अमर पत्थर जैसा अडिग रहा। वृषभ अपने माता पिता के साथ आया तो अमर ने उनके सामने काली को बेडरूम में बंद कर दिया।
अमर, “आप सब काली को पसंद करते हैं। वृषभ तुमने कहा कि तुम काली से प्यार करते हो। पर क्या आप सब का यह प्यार सच्चाई को बोझ संभाल पाएगा?”
सारे महमान एक दूसरे को देखने लगे।
अमर, “मैं काली को गुलामों की मंडी में मिला था। वहां की लड़कियां बिक कर रंडीखाने में पहुंचती हैं। मैं गुलाम खरीदना नही चाहता था पर नसीब की बात है कि मैंने काली को खरीद लिया। मैंने कभी काली को गुलाम की तरह नहीं माना।”
वृषभ और उसके माता पिता हैरानी से सुनते रहे।
अमर, “काली का स्वभाव आप जान चुके हैं। काली को आप आज वह जैसी है पसंद करते हैं। पर शादी पूरी जिंदगी का रिश्ता है और यहां किसी भी तरह का धोखा बहुत दर्दनाक होता है। आप काली को अपने घर की बहु बना लें इस से पहले मेरी एक शर्त पूरी करनी होगी।”
वृषभ ने अपना सर हिलाकर हां कहा तो अमर मुस्कुराया।
अमर, “अब आप सच्चाई जानते हो तो आगे कभी उसकी बीती हुई जिंदगी के बारे में नहीं पूछोगे! काली बेहद खुद्दार और वफादार इंसान है। मैं नहीं चाहता कि उसे अपनी पूरी जिंदगी सच के डर से घुट घुट कर जीना पड़े। आप लोग आपस में बात कर तय कीजिए की आप के लिए क्या ज्यादा मायने रखता है। आज की काली या उसका दुख भरा अतीत?”
वृषभ अपने माता पिता के साथ अपने घर लौटा और काली किसी जख्मी जानवर की तरह बेडरूम में रोती रही। शाम को अमर ने काली को फोन कर आदेश दिया कि वह सज संवर कर तयार रहे क्योंकि वह उसे कुछ खास लोगों से मिलवाने वाला है।
काली पूरी तरह टूट चुकी थी और उसने अपनी अगली नीलामी के लिए खुद को संवारा।
रात के 10 बजे अमर अपने साथ वृषभ और उसके माता पिता को लाया। काली सब को दुबारा देख कर चौंक गई पर सब उसे देख कर मुस्कुरा रहे थे।
वृषभ काली के सामने एक घुटने को नीचे रख खड़ा हो गया।
वृषभ, “काली मैं तुमसे प्यार करता हूं। तुम जैसी हो वैसी ही मेरी, हमारी पसंद हो! (अपनी जेब में से एक हीरे की अंगूठी निकालकर) क्या तुम मेरे साथ शादी कर मेरा प्यार बनना चाहती हो?”
काली ने अमर की ओर देखा तो वह मुस्कुराया।
अमर, “पहले उसे जवाब दो और फिर मेरे और तुम्हारे होने वाले सास ससुर के पैर छू कर आशीर्वाद लो!”
काली ने शर्माते हुए हां कहा और वृषभ से अंगूठी अपने बाएं हाथ की उंगली पर पहना ली। काली का हर वह सपना आज पूरा हो रहा था जिसे देखने तक कि हिम्मत उस में नहीं थी।
शादी की बात हो गई तो अमर ने काली को अपने से दूर करते हुए हॉल में सोने को कहा। काली ने अपने मालिक को मन ही मन दुआएं देते हुए अपने जाने की तयारी कर ली।
शादी के बाद इस भले आदमी को काली की जगह पर दूसरी नौकरानी मिलने तक वृषभ की मां खाना भेजने वाली थी पर काली को अपने मालिक की फिक्र हो रही थी। वृषभ बताने को तैयार नहीं था कि वह काली को शादी के बाद कहां घुमाने ले जा रहा है पर उसे पता था कि उसे अपनी दुकान 1 महीने तक चलाने के लिए किसी लड़की की जरूरत थी।
किस्मत की बात थी की एक लड़की उसी दिन उस के पास नौकरी मांगने आई। प्रिया काली से एक साल छोटी थी और खुद जल्द ही शादी करने घर से भाग आई थी। दोनों लड़कियों में जल्द ही दोस्ती हो गई।
प्रिया की चित्रकला और फैशन की समझ उसे काली क्रिएशन में काम करने के लिए बेहतरीन बनाती थी। प्रिया अगर अपने चिराग के प्यार में नहीं जलती तो काली उसे अपने मालिक अमर से जरूर मिलवाती। प्रिया को कुछ दिनों में दुकान चलाने की बारीकियां बता कर काली अपनी शादी का जोड़ा लेकर हवा में तैरती हुई शादी को तयार हो गई।
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