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अगले 2 दिन काली की जिंदगी के बेहद यादगार दिन बने। काली को पता चला की औरत मर्द न केवल दिन दहाड़े चुधाई कर सकते हैं पर आधी रात को या नहाते हुए या खुले में पेड़ों की छांव में भी।
काली और अमर सोमवार सुबह घर लौटे तो अमर काली के साथ नहाकर उसकी गांड़ में अपनी मलाई भर कर हॉस्पिटल चला गया। काली ने अपने आप को याद दिलाया की वह पत्नी नही गुलाम है और उसे अपनी औकात भूलने का कोई हक नहीं।
सोमवार दोपहर को अमर ने काली को इस बात की याद दिलाते हुए खाना खाने के बाद पढ़ाई के बारे में पूछा। काली का दसवीं कक्षा के इम्तहान में नाम दर्ज कराया गया था। काली ने अपनी पढ़ाई ठीक से करते हुए मालिक को शिकायत का कोई मौका नहीं दिया।
तीन महीने बाद जब काली ने दसवीं कक्षा का इम्तहान दिया तो अमर ने काली से उसके नंबर आने की उम्मीद पूछी। अच्छे नंबर की उम्मीद जान कर अमर ने काली के लिए नए कपड़े खरीद कर तोहफा देना चाहा।
काली, “फिर से नए कपड़े क्यों? यह कपड़े अब भी अच्छे हैं!”
अमर मुस्कुराकर, “काली, पिछले कुछ महीनों में तुम्हारा बदन सही पोषण और कसरत से भर गया है। अब देखो तुम्हारा कड़ा भी हाथ से नहीं निकलता!”
अपनी गुलामी की निशानी को ऐसे अपने साथ जुड़ा हुआ देख कर काली ने गहरी सांस ली और मुस्कुराई।
काली, “मैं जानती हूं की यह कपड़े काफी तंग हो गए हैं। पर इतना खर्चा करने की मेरी हिम्मत नही। क्या आप मेरे लिए कपड़ा ला सकते हैं? मैं अपने कपड़े खुद सी लूंगी।”
अमर जानता था कि काली अपने कपड़ों को खुद ढीला कर इस्तमाल कर रही थी तो वह मान गया। अगले शनिवार अमर काली को कपड़ा मार्केट ले गया। काली को किसी छोटी बच्ची की तरह खुश होकर इधर उधर दौड़ते हुए देख कर अमर देखता ही रह गया।
काली ने कई तरह के कपड़े और lace लिए ताकि वह अच्छे कपड़े बना पाए। अमर ने काली को दसवीं कक्षा के तोहफे में एक सिलाई मशीन भी दी।
काली को पता भी नही चला कब उसने अमर के कहने पर बारहवीं कक्षा भी पास कर टेलर का कोर्स कर लिया।
अमर से मिलने के ढाई साल बाद जब काली को अचानक पता चला कि उसकी पढ़ाई पूरी हो चुकी है तो वह दंग रह गई।
अमर ने काली को अपनी गोद में बिठा कर उस से उसके भविष्य की बात की।
काली की आंखों में आंसू भर आए, “आप मुझे छोड़ रहे हो?”
अमर, “काली, तुम मेरे लिए कभी गुलाम नहीं थी! पर मैं तुम्हारे लिए बहुत बूढ़ा हूं। तुम्हें अपनी उम्र के लोगों की जरूरत है। मुझे डर है कि अगर तुम घर में अकेली रहती हो यह कोई जान गया तो वह तुम्हारा फायदा उठा सकता है। अब तक तुम पढ़ाई में व्यस्त थी तो मुझे डर नहीं था।”
काली गुस्से में, “आप को लगता है कि मैं किसी के बहकावे में आ कर भाग जाऊंगी?”
अमर मुस्कुराकर काली को शांत करते हुए, “काली, लोग बहुत खराब हैं। अगर किसी ने तुम्हें बहकाया तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हो सकता है। लेकिन अगर तुम बाहर लोगों में रहो तो कोई तुम्हारे साथ ऐसी हरकत नहीं कर सकता।”
काली आखिर कार मान गई पर उसे पता नहीं था कि वह क्या करे। अमर ने काली को कपड़ों की दुकान शुरू करने का सुझाव दिया। काली ने जब लागत के बारे में सुना तो वह डर गई।
काली सहमी हुई आंखों से, “मालिक, इस दुकान को शुरू करने में 2 लाख रुपए लगेंगे! इतना पैसा… कैसे?”
अमर मुस्कुराकर, “मैं तुम्हें उधार देता हूं। दुकान चलेगी तो तुम मेरा पैसा लौटा देना!”
काली अपने मालिक को मना नही कर सकती थी इस लिए पूरी मेहनत से काम में जुट गई। अमर ने नए दुकान के तोहफे के तौर पर काली के दुकान का बोर्ड बनवाया।
“KAALI CREATIONS ”
काली की दुकान किराए की थी जिसके मालिक एक बुजुर्ग जोड़ा था। आदमी पहले छोटा मोटा धंधा चलता था पर पैसा ज्यादा नहीं कमाता था। जोड़े का इकलौता बेटा वृषभ बहुत होशियार और मेहनती था।
वृषभ ने इंजीनियरिंग करते ही अफ्रीका में बड़ी नौकरी पकड़ ली। वहां रहकर उसने अपने माता पिता को हर महीने पैसा भेज कर उन्हें मदद की। पिछले 2 साल से वृषभ ने वहां से import export का कारोबार शुरू कर दिया था जिस से वह सब अचानक से अमीर हो गए थे।
काली अक्सर बूढ़ा बूढ़ी से बातें करते हुए अपनी दुकान चलाती पर उसे बुढ़िया की चाल समझ नहीं आई। अमर ने जब काली से यह बातें सुनी तो वह समझ गया कि बुढ़िया काली को अपनी बहु बनाने की फिरात में है।
काली की मीठी जुबान, उसूलों से काम, मेहनत और लगन जल्द ही रंग लाई। काली के नाम का चर्चा इलाके में हो गया और काली के दुकान में लोगों की भरमार हो गई।
इसी तरह एक दिन काली ने उसके दुकान में एक जवान लड़के को उलझन में खड़ा पाया। लड़कियों के कपड़ों में घिरा वह लंबा चौड़ा जवान कुछ शरमाया सा दिख रहा था।
काली, “क्या मैं आप की कोई सहायता कर सकती हूं?”
लड़का काली को कुछ पल देखता रह गया और फिर बुदबुदाया, “नहीं… मैं बस… वो… आप कौन?”
काली हंस पड़ी और लड़के का चेहरा लाल हो गया।
काली, “मैं, Kaali creations की काली! बताइए मैं आप की क्या सहायता कर सकती हूं?”
लड़का चक्राकार काली के पीछे टंगे हुए ब्रा पैंटी से नजर मोड लेता तो शादी का जोड़ा दिखता। वहां से नजर चुराता तो काली की नटखट मुस्कान में खो जाता। लड़के ने अपनी कॉलर को सही करते हुए काली को देखा और काली हंस पड़ी।
काली आंख मार कर, “यहां किसी ने मिलने को कहा है?”
लड़का, “नहीं!!… (बुदबुदाते हुए)मतलब हां… पर वैसे नहीं!”
काली मुस्कुराकर, “बहन ने किसी बात का बदला लेना है? या गर्लफ्रेंड को मनाना है?”
लड़का, “मेरी कोई गर्लफ्रेंड या बहन नहीं! मैं तो मां…”
काली मुस्कुराकर, “मां के लिए undergarments लेना बेटे के लिए सच में मुश्किल होता है। उनकी कोई फोटो है?”
लड़के ने चैन की सांस लेकर अपने वॉलेट में से दुकान मालिक की तस्वीर निकाली।
काली को तस्वीर दिखाते हुए, “मैं वृषभ, आज ही मोगादिशु से लौटा हूं। मां ने मुझे दुकान में बुलाया था पर बताया नही की इसे किराए पर दिया है।”
काली की आंखें चमक उठी।
काली, “ओह!! आप हैं वृषभ! मैने आप के बारे में काफी सुना है! मांजी आप ही की बातें करती हैं। उनकी बातों को सुनकर आप कभी शरारती लड़के लगते थे तो कभी अफ्रीकी शेरों से कुश्ती करते Tarzan। आप बैठ जाइए मांजी किसी काम से बाहर गई हैं, जल्द ही लौट आएंगी।”
वृषभ लड़कियों के कपड़ों के इस दुकान में छोटे गुलाबी स्टूल पर बैठा गुड़िया के खेल में फंसा हुआ लड़का दिख रहा था। काली आंखों के कोनों से वृषभ को ताड़ रही थी।
वृषभ 26 वर्ष का सुडौल नौजवान था। उसके भरे हुए गठीले बदन पर तना हुआ शर्ट मेहनत का सबूत था तो उसके चौड़े माथे पर सरक कर आते घने काले बाल उसके चेहरे से उसकी होशियारी छुपा नहीं रहे थे। काली वृषभ के कपड़ों को देख समझ गई कि यह आदमी शर्मिला नहीं है पर इस तरह चौंकाए जाने से उलझन में है।
काली ने मांजी को फोन किया पर हमेशा की तरह वह फोन घर पर भूल गई थी। काली को वृषभ पर तरस आया और उसने वृषभ से बातें करते हुए काम करना शुरू किया।
वृषभ भी अब काली को अच्छी तरह ताड़ चुका था। वृषभ सोमालिया की अराजकता में 3 साल बिता कर लौटा था। उसके लिए ना गोरी चमड़ी मायने रखती थी और ना ही झूठे वादे। काली की सांवली त्वचा में भी उसका आत्मविश्वास वृषभ पर अपनी अनोखी छाप छोड़ रहा था। काली के एक हाथ में दो चूड़ियां खनक रही थीं तो दूसरे में एक कड़ा चमक रहा था। काली को पता भी नहीं था कि उसकी हर अदा, हर कदम, हर मुस्कान कितनी मादक है।
वृषभ को दो सालों बाद किसी लड़की को देख इतना असर हुआ था। वृषभ ने चुपके से अपनी हैंडबैग को अपनी गोद में रखा और अपने माथे से पसीना पोंछने का नाटक करते हुए अपनी आंखें बंद कर अफ्रीका में बिताया पहला साल याद कर अपने आप पर काबू पाने की नाकाम कोशिश करने लगा।
काली, “आप अफ्रीका से लौटे हो फिर भी यहां सर्दी में पसीने छूट रहे हैं? आप की तबियत तो ठीक है?”
काली के हाथों से ठंडे पानी का ग्लास लेकर अपने आप को उसकी खुशबू सूंघते हुए पाकर वृषभ चौंक गया। पानी गलत रास्ते चला गया और बेचारा वृषभ जोरों से खांसने लगा। काली ने वृषभ की पीठ को जोर से थपथपाया और वृषभ ढेर हो गया।
वृषभ अपने आप को काबू करते हुए, “आप अकेली… आप के पति…?”
काली को ऐसे सवालों की आदत हो गई थी पर आज उसने अपने कड़े को पकड़ कर, “नहीं। कोई पति नही।”
वृषभ, “कैसे?”
काली चौंककर, “मतलब? दुकान चलाने के लिए पति जरूरी है क्या? या मेरी उम्र इतनी ज्यादा दिखती है?”
वृषभ काली के सवालों से डर गया और काली उसका चेहरा देख कर हंस पड़ी। मधुर संगीत की घंटियों की खनक की तरह वह हंसी सुनकर वृषभ भी दो सालों बाद मुस्कुराया।
वृषभ, “मेरा मतलब आप जैसी खूबसूरत, (दुकान की ओर इशारा कर) कामियाब और (designs की ओर इशारा कर) होशियार लड़की को अभी तक किसी ने छोड़ा कैसे? क्या मेरे जाने के बाद भारत में लड़के अंधे हो गए?”
काली फिर से हंस पड़ी, “क्या आप मेरे साथ flirt कर रहे हैं? अफ्रीका में कोई छुपाई नहीं है?”
वृषभ, “अफ्रीका में कबीले की औरतों को देखना मतलब मौत को दावत देना! वैसे भी वहां बीमारियों की कमी नहीं। नही, अब घर भी यहीं और कारोबार भी!”
काली मुस्कुराकर, “आप के लिए मांजी ने जरूर कोई लड़की देख रखी होगी। आप जैसे गोरे और अच्छे लड़के को कई गोरी और सुंदर लड़कियां पसंद करेंगी!”
दरवाजा खुला और काली ने मुस्कुराते हुए उधर देखा।
वृषभ चुपके से, “सुंदरता गोरी चमड़ी से नहीं होती।”
मांजी ने अपने बेटे को शादी के जोड़े के नीचे ब्रा के सामने बैठा देखा और दौड़ते हुए अंदर आ गई।
मांजी, “विशी तू इतने जल्दी कैसे आ गया? ट्रेन तो कितने घंटे देर से आती है!”
वृषभ मां को गले लगाकर, “मां मैं हवाई जहाज से आया हूं! वह इतनी देरी से नहीं आता। आप अपना फोन भी घर पर भूल गई थी!”
मांजी, “भला हो तेरा काली जो तूने इस निखट्टू को आसरा दिया। धूप में काला हो जाता तो इसकी शादी कैसे होती?”
काली मांजी के ताने पर हंस पड़ी और वह अपने बेटे को 3 साल बाद लौटने के लिए डांटते हुए अपने घर ले गई।
आज काली को कुछ अजीब लग रहा था। उसे उसका कड़ा भारी लग रहा था। काली ने अपने काम में मन लगाया और शाम को हमेशा की तरह घर लौटी।
रात को सोते हुए काली ने मालिक की गर्मी अपनी कोख में लेकर अपना सर उसके कंधे पर रखा। काली ने अपने मालिक को वृषभ के आने का मजेदार किस्सा सुनाया और अमर हंस पड़ा। वृषभ के बारे में बताते हुए काली की आवाज में आता बदलाव सुन अमर ने छत को देखा और आते हुए अंत की तयारी करने का मन बनाया।