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नए जोड़े को वक्त देने के लिए वृषभ के माता पिता उनके लौटने से पहले ही गांव चले गए जहां वृषभ ने उनके लिए बहुत अच्छा घर बनवाया था। काली ने चंदा को अपने कमरे के बाहर बिस्तर लगाकर सोने को कहा।
चंदा रात को काफी देर तक अंदर से आती आहें सुन रही थी। चंदा ने सोचा की अगर औरत को इतना दर्द होता है तो जाहिर है कि मर्द गुलाम या रंडियां पसंद करते हैं।
सुबह वृषभ जल्दी बाहर चला गया और काली ने चंदा को अपने पास बुलाया। काली ने चंदा को पहले अच्छे से नहलाया और उसके बगलें और जवानी पर से बाल साफ कर दिए। चंदा अपने आप को कुर्बानी की बकरी महसूस कर रही थी।
काली ने चंदा के लिए नए कपड़े लाए और उन्हें पहनाया। चंदा ऐसे छोटे पारदर्शी कपड़ों को अपने बदन पर देख रोने लगी।
काली चंदा को संवारते हुए, “चंदा तुझे यकीन नहीं होगा पर मैं तेरा भला चाहती हूं। जब मैं मुंबई पहुंची तो मेरा बचना लगभग नामुमकिन था। मुझे डॉक्टर साहब ने न केवल रहने खाने और कपड़े की मदद की पर मुझे पढ़ाया लिखाया और काबिल बनाया। उन्होंने ही मेरी शादी भी करवा दी। आदमी अकेला है पर बहुत भला है। अगर वह तुझे अपनी गुलाम बनाने को तैयार हो गए तो वह तेरा खयाल रखेंगे और उनका अकेलापन भी दूर हो जाएगा।”
चंदा काली की बात समझ रही थी।
काली, “वृषभ भी डॉक्टर साहब की इज्जत करता है तो वह तुझे डॉक्टर साहब से नहीं मांगेगा। पर अगर डॉक्टर साहब को तू पसंद नही आई तो फिर वृषभ तुझे रिश्वत की तरह कभी इसके पास तो कभी उसके पास भेजेगा और वह लोग अच्छे नहीं।”
दूसरी तरफ वृषभ ने अमर को मिलकर बताया कि काली ने उसके लिए बंगाल से गुड़िया खरीदी है जो आज रात उसके घर पर उसका इंतजार कर रही होगी। अमर ने इसे कोई लोक कला समझकर वृषभ और काली को धन्यवाद कहा।
रात को काली दुल्हन जैसी सजी चंदा को अमर के बिस्तर पर बिठाकर जाते हुए उसके हाथ में कड़ा रुख कर, “डॉक्टर साहब को आंसू पसंद नही। लड़कियों का रोना पसंद नही। अगर तू आज जरा भी रोई या तेरे आंसू किसी भी वजह से बहे तो कल की सुबह तेरे लिए अच्छी नहीं होगी।”
चंदा का माथा चूमकर, “मैने तुम्हें दुल्हन का लिबास पहनाया है। इसी रात को अपनी सुहागरात समझो और डॉक्टर साहब को अपना सब कुछ दे दो।”
डॉक्टर साहब एक घंटे बाद आएंगे कह कर काली चंदा को छोड़ चली गई।
रात को दस बजे अमर अपने सुनसान घर लौटा तो उसे औरत का एहसास हुआ। कपड़े ठीक किए गए थे, टेबल साफ था और किचन में खाना लगा हुआ था। काली को मन ही मन दुआ देते हुए अमर अपने हाथ मुंह धोने बेडरूम की बाथरूम में जाने लगा।
अपनी बेड पर बैठी अप्सरा सी दुल्हन को देख अमर की चीख निकल गई और दोनों की नजरें मिली।
अमर, “कौन हो तुम? यहां कैसे?”
चंदा डरी हुई आवाज में, “मैं आप का तोहफा हूं। मुझे अपनी गुलाम बनाइए!”
अमर ने अपने सर पर हाथ रखा, “काली!…
देखो मुझे कोई गुलाम नहीं चाहिए!…
मैं तुम्हें काली के पास छोड़ आता हूं। तुम काली से कहना मेरा उस पर कोई एहसान नहीं है!”
चंदा ने अमर के पैर पकड़ लिए, “ऐसा गज़ब ना करें साहब! मैं वापस गई तो मुझे बेच कर रण्डी बना दिया जाएगा! मैं मर जाऊंगी साहब! मेरी जान बचाइए! मुझे अपनी गुलाम बनाइए!”
अमर ने इस लड़की को अपने पैरों में से उठाकर बिस्तर पर बिठाया। अमर को पिछले 3 सालों में हर रात औरत का साथ पाने की आदत हो गई थी और उसकी मर्दानगी अपने काम के लिए तयार हो गई।
अमर ने चंदा से दूर होने की कोशिश करते हुए, “क्यों न हम दोनों खाना खा लें? फिर बातें करेंगे।”
चंदा अमर का शर्ट पकड़ कर, “Please साहब, मुझे अपना बना लो! मैं आप को अपनी virginity देना चाहती हूं।”
अमर के संयम का धागा बुरी तरह खिंचने के बाद टूट गया और अमर मुस्कुराया।