prasha_tam
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अमर जानता था कि वह लड़की बुरी तरह डरी हुई है। यह लड़की मजबूरी में अपनी इकलौती अमानत लुटाने को तयार हो गई है। अगर अमर ऐसी बेबस जवानी को लूटे तो वह नर्क की आग में जलेगा।
लेकिन फिलहाल अमर का फूला हुआ लौड़ा उसके दिमाग पर हावी हो गया था।
अमर ने लड़की का चेहरा उठाया तो वह सिहर उठी। लड़की बेहद खूबसूरत होने के साथ बिल्कुल मासूम थी।
अमर, “तुम्हारा नाम क्या है?”
चंदा, “च… चंदा…”
अमर, “चंदा, तुम्हारी उम्र क्या है?”
चंदा अटकते हुए, “अ… 18 साल…”
अमर, “मैं 35 साल का अकेला मर्द हूं। मैं दुबारा शादी नहीं करने वाला। क्या तुम अब भी मुझे अपनी इज्जत देना चाहती हो?”
चंदा ने जल्दी से अपने सर को हिलाकर हां कहा।
अमर, “जब तुमने मुझे अपनी virginity लेने को कहा तब तुम्हें पता है कि क्या होगा?”
चंदा, “मैंने 12वी कक्षा तक पढाई की है। Science में सिखाया गया था कि मर्द अपना अंग औरत के जिस्म में डाल कर अपने शुक्राणु छोड़ता है। इन्ही शुक्राणु से औरत को ग… गर्भधारणा होती है। (अमर को सहमी हुई आंखों से देख कर) मैं मां नहीं बन सकती! Please, मुझे मां मत बनाना!”
अमर, “तुम्हारा मासिक धर्म कब होना है? पता है?”
चंदा शर्माकर, “एक महीना होने को है तो कभी भी हो सकता है। एक या दो दिनों में।”
अमर मुस्कुराकर, “तो हमें डरने की कोई जरूरत नहीं।”
अमर ने चंदा के कंधे से उसकी पारदर्शी चुनरी को उठाया और चंदा की सहमी हुई आह का लुफ्त उठाया। चंदा के दोनों कंधों से चुनरी को उतारते हुए अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया और bed की एक ओर फेंक दिया।
चंदा डरकर तेज गहरी सांसे लेती अपनी चुनरी को देख रही थी। चंदा के गोरे कबूतर उसकी bra-blouse में फड़फड़ाते हुए अमर को ललचा रहे थे।
अमर ने चंदा का चेहरा अपनी ओर किया और उसके माथे पर चूमा। चंदा ने डर कर सिसक कर अपनी आवाज को दबाया।
अमर, “क्या तुमने किसी लड़के को बिना कपड़ों के देखा है?”
चंदा अपने आंसू रोकते हुए, “काली का छोटा भाई जब बहुत छोटा था तब।”
अमर, “किसी मर्द को देखा है?”
चंदा अपना रोना दबाते हुए अपना सर हिलाकर मना कर नीचे देखने लगी।
अमर, “आओ, अब मेरा शर्ट उतार कर देखो!”
चंदा के कांपते हुए हाथों ने आगे बढ़कर अमर के शर्ट को छू लिया। चंदा को डर कर ऐसा लगा मानो उसकी उंगलियां जल गई। अमर ने मुस्कुराकर दुबारा कोशिश करने को कहा तो चंदा ने अमर के शर्ट का पहला बटन खोला। अमर ने चंदा को आगे बढ़ने को कहा और चंदा ने डरते हुए एक एक कर सारे बटन खोल दिए।
अमर ने पिछले 2 महीनों में हिलाया नहीं था क्योंकि उसे औरत के मचलते बदन की जगह अपनीही हथेली की सुखी गर्मी पसंद नही आई। अब अमर ने ठान लिया था की वह पहली फायरिंग इस कच्ची जवानी को चीर कर करेगा।
अमर का शर्ट उतारते हुए चंदा की उभरी हुई गोरी नरम चूचियां अमर के सक्त सीने पर दब गई और दोनों की आह निकल गई। अमर की उत्तेजना से तो चंदा की मासूमियत भरी कुतुहुल से।
अमर ने अपनी शर्ट को चंदा की चुनरी के साथ फेंक दिया और चंदा को अपने पैंट की बेल्ट उतारने को कहा। चंदा ने शर्माते हुए डरते हुए अमर की बेल्ट को खोल कर उतारा। अमर ने चंदा के सामने खड़े होकर अपनी पैंट की ओर इशारा करते हुए मुस्कुराया।
चंदा शर्म से लाल हो गई और उसकी कांपती उंगलियों ने दो बार हिचकिचाकर अमर की पैंट को खोल दिया। अमर की पैंट नीचे गिर गई और अमर ने उसे भी बाकी कपड़ों के साथ उड़ाया।
अब अमर चंदा की उफनती जवानी के सामने बस कच्छा और बनियान में खड़ा था। अमर ने अपना बनियान उतार दिया और चंदा को अपने कच्छे को उतारने का आदेश दिया।
चंदा ने घबराकर मना किया तो अमर ने जबरदस्ती उसकी हथेलियों को पकड़ कर अपनी कमर पर लगाया। चंदा की उंगलियों में कच्छे की इलास्टिक अटक गई तो अमर ने अपने हाथों से दबाकर चंदा के जरिए अपने आप को नंगा कर दिया।
चंदा ने अपने मुंह को फेर लिया था पर मचलती जवानी अमर का मूसल छुपकर देखने को मजबूर हो गई थी। अमर का लंबा मोटा मूसल देख कर चंदा हल्के से चीख पड़ी।
अमर, “क्या हुआ चंदा? डरी क्यों हो?”
चंदा, “म… मैं… मैंने पढ़ा…. की… की…”
अमर मुस्कुराकर, “की…?”
चंदा अपने पैरों को दबाकर, “मर्द का ये अंग औरत के अंदर जाकर बच्चा बनाने का काम करता है। मैंने छोटे बच्चों का नहाते हुए देखा था पर… ये…”
अमर, “पर… क्या?”
चंदा, “ये… ये बड़ा… बहुत बड़ा है! मेरे अंदर इतनी जगह नहीं है! मैं मर जाऊंगी!… मैं… (चंदा को याद आया की काली ने उसे रोने से मना किया था) आप कु… कुछ… और… कुछ और… करेंगे?”
अमर नटखट मुस्कान से, “देख चंदा, तेरे किताब में यह लिखा नही था पर मर्द अपना अंग औरत में डालता है तो अपना रस निकालकर उसे अच्छा लगता है। अब अगर तुझे मेरी खुशी चाहिए तो तुझे कुछ ऐसा करना होगा जिस से मेरा रस निकल जाए।”
चंदा डरकर, “क… कैसे?”
अमर, “आसान है। अगर मैं तेरे बदन को छूकर तुझे झड़ते हुए देख लूं तो शायद मैं भी उत्तेजना में झड़ जाऊं! पर उसके लिए यह जरूरी है कि तुम पहले अपने आप को खुशी महसूस करने दो!”
चंदा, “मतलब?”
अमर ने चंदा को अपनी बाहों में लेकर उसके माथे को चूमते हुए, “मैं जो करूं उसे बस महसूस करो और कुछ सोचना नहीं!”
इस से पहले कि चंदा पूछ पाती की सोचना कैसे बंद हो सकता है अमर के होठों ने उसकी आंखों को चूमा। चंदा ने डरकर अपनी आंखें बंद कर ली। चंदा को अमर की गरम सांसे अपने माथे पर झुलसती महसूस हो रही थीं। अमर के होठों ने चंदा की आंखों को चूमने के बाद उसकी लम्बी सीधी पतली नाल को छू कर चूमना शुरू किया।
चंदा ने गांव की फिल्म में देखा था कैसे रणजीत ने लड़की को जोर से चूमते हुए उसे नीचे गिराया था। फिर लड़की की चोली को फाड़ कर फेंकते हुए उसका घाघरा उठाया था। फिल्म में लड़की बस चीखते हुए अपने नंगे पैरों को झटक रही थी। रणजीत लड़की के ऊपर लेट कर हिलते हुए उसके हाथों को पकड़े हुए था।
लड़की की चीखें, कपड़े को पकड़कर कांपती मुट्ठियां और खून लगे पैर उसकी जख्मी दर्दनाक हालत बता रहे थे पर गांव के मर्द तो वह देखते हुए खुश हो रहे थे। चंदा उस दिन से मर्दों से डरती थी।
चंदा को लगा कि अब मालिक उसे रणजीत की तरह लूटना शुरू कर देगा पर अमर ने चंदा के होठों को चूमने के बजाय उसके तपे हुए गाल को चूमा। चंदा की आह निकल गई और अमर उसके गाल पर अपने होंठ चिपका कर मुस्कुराया।
अमर ने चंदा की पीठ को सहलाते हुए उसे चूमना जारी रखा। चंदा की मासूम जवानी न चाहते हुए भी अनजाने में गरमाने लगी। चंदा अमर की चुम्मियों और सहलाने से मचलने लगी। अमर ने चंदा के जबड़े की किनार को चूमते हुए उसकी की ठोड़ी को चूस लिया।
चंदा उत्तेजना से चौंक कर, “आह!!!…”
अमर ने चंदा की पीठ को सहलाते हुए अपने बाएं हाथ को उसकी गर्दन के पीछे लाया और चंदा को हिलने से रोका। चंदा के ठोड़ी से नीचे उतरते हुए अमर के होठों ने उसके लंबे गले को चूमते हुए हल्के से जीभ बढ़ाकर चाटा। चंदा इन अनोखी संवेदनाओं से जैसे नशे में आने लगी।
अमर ने चंदा की गले में तेजी से धड़कती नब्ज़ को छू लिया और उसे चूमते हुए अपने दांतों में हल्के से दबाया। इस जगह के दर्द से चंदा के अंदर का जानवर डर गया। यह वही जगह है जहां शेर हिरन को दबोच कर मारता है।
चंदा ने अनजाने में अमर को अपना शिकारी मान लिया और उसके बालों को अपनी मुट्ठियों में पकड़ लिया। अमर ने काली की नब्ज को चूमा, चूसा और हल्के से दांतों में दबाए रखा जब तक चंदा का विरोध टूटा नहीं।
चंदा ने अपने शिकारी से हार मान ली तो अमर ने उसे बक्शीश के तौर से आजाद करते हुए अपने होठों को उसके होठों पर लाया। रणजीत को याद कर चंदा सहम गई पर अमर रुका रहा।
उत्तेजनावश असहाय हो कर चंदा के मुंह से आह निकल गई। अमर ने चंदा की आह को चूमते हुए उसके होठों पर अपने होंठ लगाए। चंदा सिहर उठी और उसने अनजाने में अपने होठों को खोला।
अमर ने चंदा को चूमते हुए अपने बाएं हाथ से उसकी गर्दन को सहारा दिया और दाहिने हाथ से चंदा के बाएं हाथ को सहलाते हुए उसके तेजी से उछलते सीने की ओर सरकाया। अमर की हथेली ने हल्के से चंदा के जवान मम्मे को bra – blouse के ऊपर से छू लिया और चंदा उत्तेजना और डर से कांपने लगी।
अमर की हथेली चंदा के बाएं मम्मे की बाईं ओर से उसकी कमर की बाईं ओर से घागरे की नाडे को छेड़ते हुए उसे सहला रही थी।
चंदा की उत्तेजना से बंद आंखें चौंक कर खुल गई और उसके मुंह से चीख निकल गई जब अमर की तर्जनी उंगली से चंदा के घागरे का नाडा खुल गया। अमर ने चंदा की चीख का फायदा उठाकर अपनी जीभ से उसकी जीभ को भिड़ा दिया। चंदा के बदन में जैसे बिजली दौड़ गई।
चंदा उत्तेजनावश अमर से चिपक कर उसे चूमते हुए जवानी की भोर का अनुभव कर रही थी जब अमर चंदा की पीठ और कमर को सहलाते हुए चंदा को अपनी गोद में लिए हुए था। चंदा को अपनी जांघों के नीचे कुछ गरम और गीला महसूस हुआ तो चंदा ने अमर के चुम्बन से पीछे हो कर नीचे देखा।
शर्म से नीचे देखते हुए चंदा को चौंक कर एहसास हुआ कि उसका घाघरा उतर कर कोने में पड़ा था। चंदा ने अपनी जांघ के नीचे धड़कता मोटा अंग पाया किसके मोटे लाल बैंगनी छोर पर पारदर्शी द्रव निकल आया था।
चंदा की नजर को भांप कर अमर, “क्या तुम उसे छूना चाहती हो?”
चंदा ने डर कर सर हिलाकर मना किया पर अमर ने चंदा की हथेली को पकड़कर अपने लौड़े पर दबाया। चंदा की हथेली काली की तरह मेहनत से खुरतरी नहीं था। चंदा तो अमर का मोटा अंग पकड़ कर ऐसे चिहुंक उठी जैसे उसे जलता कोयला थमा दिया गया हो।
अमर ने चंदा के गले को चूमते हुए उसकी हथेली को पकड़कर उससे अपना लौड़ा हिलाया। चंदा की उत्तेजना मिश्रित डर की आहें अमर की उकसाते हुए अपने लौड़े पर थामे रखती थी। चंदा की मासूमियत न ही अमर को स्खलित करती और ना ठंडा पड़ने देती।
अमर ने चंदा को अपने लौड़े को हिलाने का काम देखर उसका बदन सहलाना जारी रखा। चंदा की आंखें दुबारा बंद हो गई और वह अमर के लौड़े को हिलाते हुए अपने गले पर उसके होठों की गर्मी का मजा लेने लगी।
अमर के होंठ नीचे सरकते हुए चंदा की दाहिनी ओर की हड्डी को चूम कर नीचे सरका। चंदा को मन ही मन लगा कि अब उसके भरे हुए अनछुए मम्मे पर हमला होगा इसलिए चंदा की दाहिनी हथेली अमर को रोकने के लिए उठी।
अमर ने चंदा की लज्जतदार मम्मों को नजरंदाज करते हुए बीच की हड्डी को चूमते हुए नीचे सरका। चंदा को आह निकल गई जब उसे पता चला की उसे सहलाते हुए उसका bra-blouse खुल चुका था। अमर ने ब्रा के निशान को चूमते हुए कभी दाएं तो कभी बाएं मम्मे की ओर मुड़कर चंदा को तड़पाया।
चंदा ने अमर को अपने सीने पर दबाते हुए अपनी पीठ उसकी ओर मोड़ दी। अमर ने चंदा को चूमते हुए उसके ऊपर आकर उसे धीरे से अपने नीचे लिया। चंदा के सर का पिछला हिस्सा तकिए पर दब गया और उसे पता चला कि अब वह अमर के नीचे पहुंच चुकी है।
चंदा का बदन जल उठा था और वह बस इस अनजान भूख से आजादी चाहती थी। अमर ने चंदा के बाएं मम्मे को चूमते हुए उसकी पैंटी को नीचे से सहलाया। उत्तेजना वश चंदा का बदन कमान की तरह उठ कर अमर के लिए तयार हो गया।
अमर ने चंदा की पैंटी को सहलाते हुए उसके मम्मे को चूमते हुए जवानी की आग भड़काई। अमर ने अपने हमले को तेज करते हुए चंदा की बाईं चूची को अपने होठों में पकड़ कर चूस लिया। चंदा चीख पड़ी और उसका बदन उठकर कांपने लगा। चंदा को पता भी नही चला कब उसकी गीली पैंटी उसके घुटनों में से उतर कर अलग हो गई।
अमर ने इस मचलती जवानी के लिए मन ही मन काली को शुक्रिया अदा किया और अपनी लंबी उंगलियों से चंदा की जांघों को अंदर से सहलाने लगा। चंदा ने सिरहाने के तकिए को अपनी मुट्ठियों में पकड़ कर तड़पते हुए अपने सर को हिलाया।
अमर ने चंदा के दूधिया मम्मे को चूमकर उसकी रसीली लाल चूची को चूसते हुए जांघों को सहलाकर खोला। अमर की उंगलियों ने चंदा की जवानी की कली को कस कर बंद पाया और अमर चंदा की चूची पर मुस्कुराया।
अमर चंदा की फैली हुई जांघों के बीच में घुटनों के बल आ गया जब वह कोहनियों पर वजन देकर चंदा की कच्ची दूदू की आजमाइश करता रहा। चंदा अमर से बेखबर अपनी जवानी की आग में झुलस कर आहें भर रही थी।
अमर की दाहिनी तर्जनी और छोटी उंगली ने चंदा की मासूम कली को जबरन खोला, बीच की उंगली ने गरम झरने के स्त्रोत को ढूंढते हुए अंगूठे को जगह दी और अंगूठे से पहली बार उत्तेजना से उठकर बाहर झांकते यौन दाने को सहलाया।
चंदा के बदन में जैसे बिजली दौड़ गई। उसका पूरा शरीर थरथराकर अकड़ गया और उसकी चीख निकल गई। अमर ने चंदा की चूची को अकेला छोड़ा और नीचे सरकने लगा।
चंदा की जलती जवानी ने विरोध प्रदर्शन करते हुए आह भरी। अमर ने चंदा की जवानी की आग को भड़काते हुए उसके कसे हुए पेट को चूमते हुए नीचे सरका। चंदा की जवानी के ऊपर का फूला हुआ उभार छूते ही चंदा सिसक उठी।
काली ने झाटों के जंगल में दबे इस टीले को आज सुबह ही साफ किया था और अब चंदा को एहसास हो रहा था कि वह इलाका कितना संवेदनशील है। अमर ने अपने होठों से चंदा के इस संवेदनशील टीले को चूमते हुए उसकी जवानी को अपनी उंगलियों से तड़पाया।
चंदा को लगा कि उसके बदन में बिजली दौड़ कर उसे जला रही है। एक ऐसी आग उसकी नाभी के नीचे जल रही थी जिसे बुझाने का कोई हल नहीं।
चंदा ने अपनी इस आग को बुझाने के लिए अमर से मदद मांगी चाही पर उसके गले से बस बकरी की तरह मैं!!… की आवाज निकली।
अमर मुस्कुराकर, “क्या तुम्हें तकलीफ हो रही हैं? (चंदा ने अपने सर को हिलाकर हां कहा) क्या मैं इसका इलाज करूं? ( दुबारा जोर से सर झटकर हां कहा) दर्द हुआ तो?”
जलकर खाक होती चंदा, “करो!!…”
अमर ने चंदा के ऊपर लेट कर उसके दाएं मम्मे को चूमते हुए अपने सुपाड़े से चंदा की गीली आग को सहलाना शुरू किया। चंदा आते हुए खतरे से बेखबर अमर को अपनी चूची पर खींच लाई।
अमर ने अपने सुपाड़े से चंदा के यौन मोती को सहलाया और चंदा चीखते हुए कांपने लगी। चंदा की सांसे अटक गई और उसकी बंद कोरी जवानी में से सैलाब उमड़ पड़ा।
चंदा अपनी मासूम जवानी के पहले और आखरी स्खलन से झड़कर बेसुध होकर बिस्तर पर गिर गई। अमर ने यौन उत्तेजना में जलकर लाल हुए बदन को अपने नीचे देखा और मुस्कुराया।
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