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अमर ने चंदा को चूम कर अपने से दूर करते हुए, “मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं।”
चंदा ने अमर को बैग में से कुछ निकालते हुए देखा और वह चीज देख कर चुप हो गई। अमर के हाथ में एक हथकड़ी थी। अमर ने चंदा को देख कर मुस्कुराते हुए अपना शर्ट और बनियान उतार दिए।
अमर, “चंदा यह हथकड़ी तुम्हारे लिए है। पर पहनने के लिए नहीं बल्कि पहनाने के लिए।”
चंदा अमर की बात सुन चौंक गई तो अमर ने हथकड़ी चंदा के हाथ में थमा दी। अमर bed पर लेट गया और उसने अपनी हथेलियों को अपने सर के ऊपर रखा। चंदा को समझ में नहीं आ रहा था कि अमर क्या करना चाहता है।
चंदा ने आगे बढ़कर अमर के हाथ bed के सिरहरने से फंसा दिए।
अमर मुस्कुराकर, “चंदा, अब मैं तुम्हारा गुलाम हूं!… तुम मेरे साथ जो चाहे कर सकती हो और मैं कुछ भी नहीं कर सकता!”
चंदा को अचानक एहसास हुआ कि अमर की बात कितनी सच है। चंदा ने उत्तेजना और डर के साथ अपने हाथ को बढ़ाकर अमर के घने बालों से ढके सीने को छू लिया। अमर की सांसों से उठता गिरता सीना अपने अंदर से उत्तेजना की धड़कने सुना रहा था।
अमर का उसके प्रति विश्वास देख कर चंदा खुश हो गई। चंदा ने मुस्कुराकर शर्माते हुए अमर की पैंट खोल दी और उसे अमर के पैरों में से निकाला। अमर के बालों से ढके लंबे मोटे पैर फैलाकर अपने बीच का धड़कता फौलाद संभाले हुए थे। चंदा ने अपनी लंबी उंगलियों से अमर की जांघों को छू लिया और अमर ने उत्तेजना वश तेज सांस ली।
अमर की उत्तेजना को उसके कच्छे में से बाहर निकलने को बेताब देख चंदा को एक अजीब नशा सा महसूस होने लगा। यह था नियंत्रण की ताकत का नशा। चंदा इस बात को पहचान गई और मुस्कुराई।
चंदा ने अपने मालिक को तड़पाते हुए उसके लिंग को कच्छे में बंद रहने दिया और उसके बदन को सहलाने लगी। अमर की तेज सांसें और नैसर्गिक उत्तेजना के संकेतों को पहचानकर चंदा अमर को तड़पाते हुए उसके बदन को सीखने लगी।
अपने ऊपर आजमाए पैंतरों को अमर पर आजमाते हुए चंदा ने अमर के तगड़े सीने पर बनी छोटी चूचियों को चूमा। अमर की आह निकल गई और चंदा अमर की चूची पर मुस्कुराई।
अमर को पता भी नही था कि मर्द की चूची भी इतनी संवेदनशील होती होगी। पर चंदा की जीभ ने उसकी चूची की सहलाते हुए चूसा और अमर की आह निकल गई। चंदा ने अमर की चूची चूसते हुए उसके नोक को अपने दांतों में हल्के से दबाया और अमर की चीख निकल गई।
चंदा की उंगलियों ने पाया की अमर का लौड़ा कच्छा फाड़ कर बाहर निकलने की फिरात में है। चंदा ने अमर को उत्तेजित रखते हुए उसका कच्छा उतार दिया। अमर का मूसल अपनी गरम रसों की गुफा को तलाशता खड़ा हो गया।
अमर बेबस होकर, “चंदा!!…”
चंदा मालिक को अपना नाम लेकर तड़पता देख मुस्कुराई। चंदा ने मालिक को अचानक अकेला छोड़ कर उसे निराशा से कराहने पर मजबूर कर दिया।
अमर ने देखा की चंदा ने नहाने के बाद पहना नाइटगाउन उतार दिया और अब उसके सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में खड़ी थी।
चंदा, “क्या मालिक को मेरी कच्ची जवानी को लूटना है?
(अमर कराहते हुए, “हां!!…”) क्या मालिक का गरम फौलाद अपना रस मेरी गर्मी में उड़ेलना चाहता है?
(अमर कराहते हुए, “हां!!…”) क्या मालिक इसके लिए कीमत चुकाने को तयार हैं?
(अमर कराहते हुए, “हां!!…”) तो पहले कीमत चुकाओ!!”
चंदा ने अपनी कमर पर हाथ रखे और अपने अंगूठों से अपनी पैंटी फंसाकर अपनी गीली पैंटी उतारी। चंदा ने अपनी छोटी पैंटी को कमर के हिस्से में मोड़ कर पट्टी जैसा बनाया और उससे अमर की आंखें ढक दी। अमर की नाक पर चंदा की जवानी की महक छा गई और अनजाने में अमर की जीभ उस मधुर रस की चाहत में बाहर आ गई।
अमर को बेड पर हलचल महसूस हुई। इस से पहले कि अमर कुछ कर पता अमर को अपने होठों पर चंदा की जवानी का स्त्रोत महसूस हुआ। अमर की प्यासी जीभ चंदा के रस पीने के लिए लपलपाई जब चंदा ने bed के सिरहाने को पकड़ कर अपनी कमर नीचे की।
अमर के होठों ने चंदा के यौन होठों को चूमा। चंदा के बदन में बिजली दौड़ गई।
चंदा, “आह!!…”
चंदा की मीठी आह से अमर मुस्कुराया। अमर ने चंदा की बरसती जवानी को चूम कर पीते हुए अपनी जीभ बढ़ाई और चंदा की चूत को 4 दिन बाद भेद दिया।
चंदा ने कांपते हुए अमर को पुकारा और उसे अपने रसों की बौछार में भिगो दिया। चंदा का झड़ना कुछ कम हुआ तो वह अमर के ऊपर से नीचे सरकने लगी। चंदा की भीगी झड़ती जवानी अमर के बदन पर अपने रसों का लेप लगाने लगी।
अमर के लौड़े पर अपनी चूत को रगड़कर उसे तड़पाते हुए चंदा, “अभी गोलियां लेकर सिर्फ 4 दिन हुए हैं। अगर आप का रस मेरे अंदर समा गया तो मैं पेट से हो सकती हूं!”
चंदा के फूले हुए पेट में अपने बच्चे को महसूस करने के बारे में सोचकर अमर कुछ डर गया पर उसके अंदर का नर गुर्राया।
चंदा अमर के कान में, “मैं इतने जल्दी मां नहीं बनना चाहती इस लिए आप का रस मैं अपनी कोख में नहीं ले सकती। (अमर ने निराशा से हां करते हुए सर हिलाया पर नर अब भी चंदा को भरने को उतावला हो रहा था) काली ने मुझे दूसरा तरीका भी बताया है!”
अमर की आह निकल गई और नर दहाड़ा। अमर का लौड़ा जैसे उबलते लोहे से भर गया। चंदा ने अपनी चूत के रसों से पोते गए लौड़े को अपनी कसी हुई कुंवारी बुंड पर लगाया। अमर ने उत्तेजना में bed के सिरहाने को पकड़ लिया।
चंदा ने अपनी गांड़ पर अमर का सुपाड़ा लगाकर, “क्या आप मेरी गांड़ मारना चाहते हैं?
(अमर कराहते हुए, “हां!!…”) क्या आप मेरी आखरी कच्ची कली को लूटना चाहते हैं?
(अमर कराहते हुए, “हां!!…”) क्या आप मेरी गहराइयों को अपनी गर्मी से भरना चाहते हैं?
(अमर कराहते हुए, “हां!!…”)
(चंदा की आंखों में अजीब चमक थी) क्या आप इसके बदले मुझे एक वादा देंगे?
(अमर कराहते हुए अपने सर को हिलाकर, “हां!!… हां!!… हां!!…”) तो ये लो!!…”
चंदा ने अपनी दाहिनी मुट्ठी में अमर का लौड़ा पकड़ कर सीधे रखा और अपनी कमर को दबाया। अमर का सुपाड़ा चंदा के रसों की चिकनाहट से भी बड़ी मुश्किल से वह संकरी गली भेद पाया।
चंदा की गांड़ फट गई और अमर का सुपाड़ा चंदा की गांड़ में दाखिल हो गया। अमर से यौन उत्तेजना सही नहीं गई और कसी हुई संकरी गांड़ में भी अमर फट पड़ा।
चंदा इस अनोखे दर्द भरी गर्माहट को महसूस करती अपने मालिक का सुपाड़ा अपनी गांड़ में लिए निश्चल रही। काली की बताई बातों को याद करते हुए चंदा ने अपनी दाईं तर्जनी से अपनी जलती जवानी को सहलाना शुरू किया।
चंदा की जवानी में से रसों का बहाव होने लगा और उसकी गांड़ का दर्द वह भूलने लगी। चंदा ने अपनी कमर को अपनी उंगली के साथ हिलाते हुए अपने मालिक के लौड़े से अपनी कोरी गांड़ फाड़ने लगी। चंदा को उम्मीद से काफी कम दिक्कत हुई अमर के लौड़े से अपनी गांड़ मरवाने में। अपनी गांड़ में फैली चिकनाहट से चंदा आसानी से अमर के लौड़े पर हिलने लगी।
अमर का बदन पसीने से भीगा तेज सांस लेते हुए उत्तेजना वश जल रहा था। चंदा मालिक की हालत देख खुद जल रही थी।
चंदा ने अपनी दो उंगलियों को अपनी जवानी में डाल कर चुधवाना शुरू करते हुए अपने अंगूठे से अपनी जवानी के होती को सहलाया और अपनी कमर उठाकर अमर के सुपाड़े तक अपनी गांड़ को खाली कर दिया।
चंदा ने फिर उत्तेजना से जलती आंखों से अपने प्रेमी की आंखों में देखा और अपने घुटनों को अचानक मोड़ दिया। अमर का पूरा लौड़ा चंदा की गांड़ में ठूस दिया गया और चंदा की ऊंचे स्वर में चीख निकल गई।
चंदा ने अपनी चूत को सहलाते हुए कुछ पलों तक अपनी गांड़ में अपने मालिक के लिंग को सेंका। अमर ने चंदा को आवाज दी और वह उसके करीब आई।
अमर ने उठकर चंदा को कस कर चूम लिया और चंदा ने उसका साथ देते हुए अपने दाएं हाथ की उंगलियों को चलाया। चंदा अपने मालिक को चूमते हुए झड़ने लगी और उसकी गांड़ कस गई। चंदा की गांड़ ने झड़ते हुए अमर के लौड़े को कस कर निचोड़ लिया।
अमर का वीर्य फूट कर लौड़े की जड़ पर जमा हो गया। चंदा की झड़ती गांड़ ने अमर का वीर्य रोक दिया और अमर इस अनोखे मज़े का अनुभव करते हुए मुस्कुराया।
चंदा झड़ कर बेसुध हो गई पर अमर ने अपनी कमर हिलाते हुए उसकी गांड़ मारना जारी रखा। बेचारी मासूम गांड़ अब भी अपने मालिक के इशारे पर नाचते हुए चुध रही थी।
अमर ने अपनी कलाइयों को घुमाकर हथकड़ियों में बने छुपे हुए बटन को दबाया जिस से वह खुल गईं। अमर ने फिर अपनी गुलाम को सहलाते हुए बड़े प्यार से रात भर चोदकर उसकी गांड़ को चुधाई के लिए तयार किया।
सबेरे जब अमर थक कर सो गया तब तक वह चंदा की गांड़ 4 बार भर चुका था और चंदा के झड़ने का कोई हिसाब नहीं था।