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सुबह चंदा लड़खड़ाते कदमों से उठी और दीवार का सहारा लेकर अपनी वीर्य से लबालब गांड़ को धोने के लिए टॉयलेट में गई। अमर ने मुस्कुराकर अपनी करतूत पर गर्व महसूस किया। टॉयलेट में फ्लश की आवाज आई और फिर शावर चालू हो गया। अमर ने अपने लौड़े को खड़ा पाया और इसका इलाज करने वह भी बाथरूम में गया।
चंदा की आंखें बंद थी और उसके चेहरे पर शॉवर का पानी पड़ रहा था। अमर ने अपनी गुलाम को पीछे से पकड़ लिया और उसकी हल्की चीख निकल गई।
चंदा, “मालिक!!…”
अमर का बदन भीगने लगा और चंदा की जख्मी छिली हुई गांड़ पर अमर के सुपाड़े ने दस्तक दी।
चंदा न चाहते हुए भी गरमाने लगी और उसने अपने मालिक का झूठा विरोध करते हुए, “मालिक!!…”
अमर ने चंदा की हथेलियों को बाथरूम की दीवार पर दबाकर उसके कान में, “हां चंदा।…”
चंदा उत्तेजनावश अपनी कमर हिलाकर अपने घुटनों को फैलाते हुए, “दुखता है मालिक…”
अमर ने अपनी उंगलियों से चंदा के बाजू सहलाते हुए उसकी बगलों में गुदगुदी टालते हुए उसके मम्मे छेड़ते हुए, “यह तुम्हारी सजा है!”
चंदा चौंक कर पीछे अमर को देखते हुए, “किस बात की सजा?…”
अमर के होठों ने चंदा के शिकायती होठों पर कब्जा कर उसे ऐसे चूमा की चंदा की चूत में से झरना बह गया। चंदा ने मालिक का साथ देते हुए अपनी गांड़ को खोल कर सुपाड़े पर रख दिया।
सूखे लौड़े से छिली हुई गांड़ मराने की बात सोचकर ही चंदा को दर्द की चिंता सताने लगी पर वह अपने मालिक को कभी भी मना न करने का थान चुकी थी।
अमर चंदा के गाल पर, "मुझे ललचाने की…”
अमर ने बाएं हाथ से चंदा के मम्मे दबाने और चूचियों को निचोड़ना शुरू किया जिस से चंदा आहें भरने लगी। दाएं हाथ से अमर ने चुपके से होटल के साबुन के साथ रखा कंडीशनर खोला और अपनी हथेली पर वह चिपचिपा घोल लिया। अमर के बाएं हाथ ने चंदा के रसीले मम्मों को छोड़कर उसके गले को पकड़ लिया जब दाईं हथेली से लंबे मूसल को चिकनाहट से पोत दिया गया।
अमर के दाएं हाथ ने ऊपर उठकर चंदा के लंबे घने बालों को कस कर पकड़ लिया जिस से अब चंदा हील नही सकती थी। चंदा की गांड़ में सुपाड़ा दबने लगा।
चंदा की चीख अमर की बाईं हथेली से गले में दब गई और उसे अपनी गांड़ में हल्के जलन के साथ फैलने की अजीब अनुभूति हुई। अमर का लौड़ा बिना रुके पर धीरे धीरे चंदा की गांड़ में पूरी तरह समा गया।
चंदा की आह निकल गई, “उन्म्म्!!…
मालिक!!…
अन्ह्ह्ह!!…”
अमर ने अपने लौड़े को बाहर निकालने के लिए अपनी कमर पीछे ली। अमर के कद और चंदा की फैली टांगों की वजह से नीचे स्थित गांड़ में से निकलता सुपाड़ा गांड़ के अंदर से ही योनि की अंदरूनी सतह को रगड़ने लगा। चंदा इस अनोखे दर्द भरे उत्तेजना करते एहसास से सिहर उठी।
अमर ने अपने सुपाड़े से चंदा की गांड़ को आजाद किया और फिर दुबारा भेद दिया।
“उन्मम्…
उन्मम्म्म…
उन्ह्ह्ह्ह…
हम्म्म…
हनम्म…”
चंदा की आहों से गरमाते माहौल में अमर ने अपनी कमर को चंदा की गांड़ पर दबाया और चंदा सिसकते हुए अपने पैरों की उंगलियों के नोक पर खड़ी हो गई।
चंदा, “मां…
मां…
मालिक!!…”
चंदा सिर्फ गांड़ चुधने से झड़ने लगी और अमर के सब्र का धागा टूटा। अमर ने चंदा की गांड़ में तेज और लंबे चाप लगाते हुए उसकी चरमराकर फटती गांड़ पर अपना आधिपत्य स्थापित किया अपने उबलते वीर्य का झंडा आतों की गहराई में गाड़ दिया।
बुरी तरह पस्त प्रेमी एक दूसरे से लिपट कर शॉवर में ही बैठ गए।
चंदा, “मालिक, अगर आप चाहते हैं तो हम दो दिन बस इस कमरे में रह सकते हैं। आप जैसा प्रेमी मुझे नही लगता पुरे राजस्थान में होगा!”
अमर हंसकर, “अफसोस चंदारानी, मर्द की बंदूक से गोलियां ज्यादा नहीं होती। हमें अगले मजे से पहले कुछ इंतजार करना होगा।”
अगले 2 दिन चंदा अपने मालिक के साथ राजस्थान के कुछ प्रसिद्ध पर्यटन स्थल को देख कर खुश हो गई। चंदा के मन में बना बोझ हट गया था और अब वह अपनी जिंदगी को नए आयाम देना चाहती थी।