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Adultery Son Of Collector-(Hindi,Incest,Group,Hidden Suspens)

Kyo bhai pasand aa gyi kahani ?


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Episode 8

सुबह दीदी जल्दी उठ गयी थी और तैयार भी हो गयी थी।

मैं:अरे वा कही घूमने जा रहे हो क्या?

मा:नही वीनू,दीदी वापस जा रही है,उसके क्लासेस चालू है न।दो दिन की छुटी मिली थी इसके लिए आई थी।

मैं:नही यार दीदी,मुझे आपसे बहोत बाते करनी है,मत जाओ।

दीदी:वीनू जिद मत करो।जाना जरूरी है मेरा।

दादी:वीनू उसे जाना है तो जाने दे,वैसे भी तू घर में कहा रहता है।वो भी बोर हो जाएगी।

मा सीता और दीदी हसने लगे।

मा:सही कहा।एकबार छूटी खत्म होने दो,सब घूमना फिरना बन्द।

नाश्ता करने के बाद दीदी पुलिस अंकल के साथ होस्टल निकल गयी।मैं तो सोच रहा था कच्ची कली फसी है,छुट्टी मजे में निकल जाएगी।रात दिन सिर्फ जलसा।पर खैर कोई बात नही कच्ची कली नही पर जलसा तो होता रहेगा।

हम सब गेट पर अलविदा कर पीछे लौट ही रहे थे की शम्भू भागते हुए आते देखा।मा और दादी अंदर चली गयी।

सीता:ओ शम्भू यहाँ क्या कर रहे हो ,ठाकुर ने देखा तो पिट देगा।

शम्भू:उन्ही के काम से आया हु।

सीता:किसके,ठाकुर के?

शम्भू:नही ठकुराइन के।

मैं:कौन,सांबा की पत्नी?

शम्भू:नही नही बल्लू जी की पत्नी।

सीता:कौन वो पार्वती।

शम्भू:अरे आहिस्ता बोलो,कोई सुन लेगा तो बवाल हो जाएगा।

सीता:सीधी साधी औरत है वो।उसका बाबूजी से क्या काम?

शम्भू:वो तो वही जाने।पर बहोत बवाल मच गया है हवेली पर।

सीता:कैसा बवाल?

शम्भू:बल्लू ठाकुर का वो कुत्ता है न?

सीता:कौन वो विष्णु?

शम्भू:हा मा वही,उसको किसीने कट्टे से ठोक दिया और उसके साथ पार्वती ठकुराइन के छोटे भाई को भी।

सीता:हाये दैया,किसने ठोका मालूम पड़ा।

शम्भू:मालूम पड़ा है,पर कुछ बोल नही रहे है,क्या मालूम क्या मांजला है?!!!

मैं:ठीक है।तुम चलो मैं आता हु।

शम्भू के वह से जाने के बाद जर मैं घर की ओर ममुड़ा तब सीता ने मुझे रुकाया और बोला;

सीता:बाबूजी,उस कुत्ते को आपने ही ठोका न कल।

मैं:शऊऊ आहिस्ता बोल,किसीने सुना तो भवंडर आ जाएगा।

सीता:माफ करना,पर हा आपने काम सही किया । साले को अइसी ही मौत मिलनी चाहिए थी।

मैं:एक काम करो चाची तुम घर जाओ और मा से कहना मैं बाहर गया हु खाने पर राह न देखे ,पर ये मत बताना की ठकुराइन के पास जा रहा हु,ठीक है।

सीता:ठीक है।सम्भलके जाना,और ध्यान रखो ,इन ठाकुरों पर कोई भरोसा नही।

मैं घर से सीधा फूलों के बगीचे/खेत की ओर निकल गया।गांव से काफी बाहर था।एक बाजुमे जंगल की ओर एक फार्म हाउस था।मैं वही चला गया।शम्भू उधर ही खड़ा था।ओ मुझे लेके ऊपर के कमरे में गया।

गाँव के हिसाब से ये फार्म हाउस एकदम वीआईपी की तरह था।नीचे सिर्फ लिविंग रूम था और एक साइड रूम और बाथरूम।और जहा मैं खड़ा था वो पूरा एक ही कमरा था और उसके साथ उसके सामने और एक कमरा था।उनके ऊपर टेरेस था।

जिस कमरे में मुझे लेके गया था शम्भू ,वहां एक बाजू सोफे थे और एक बड़ा राउंड वाला बेड जिसपे एकसाथ 4 लोग सो सके।एक साइड छोटा डाइनिंग और एक बाजू बाथरूम।एक बाजू बड़ी बालकनी और लंबी खिड़की होने से तूफानी हवा आ रही थी।

रूम में कोई नही था तो मैं फ्रेश होने बाथरूम गया।क्या बाथरूम था यार आधा कमरे इतना तो बाथरूम था।शावर,टब,कमोड।फार्म हाउस कम हवेली ज्यादा लग रहा था।

मैं फ्रेश होकर जैसे ही बाहर आया तो सामने एक औरत खड़ी थी।कपडो की शान से तो अंदाज हो गया की वो ठकुराइन ही है,नाम पार्वती,बल्लू की धर्मपत्नी।

मैं:माफ करना,वो बहोत दूर से चलके आया था तो पसीना बहोत था,इसलिए फ्रेश होने गया।

पार्वती:कोई बात नही।शम्भू तुम जाओ अपने काम पे और किसको मत आने देना यहाँ,जरूरी मीटिंग चल रही है बोल देना।

शम्भू:जी मालकिन(शम्भू दरवाजा बन्द कर चला गया।)

मै:कहिए ठकुराइन जी ,याद किया मुझे,कोई काम था क्या?

पार्वती:आप बैठो सोफे पर बात करेंगे ,बहोत समय है अपने पास।

हम सोफे पर वो बेड के कोने पर अइसे हम आमने सामने बैठ गए

मैं:अच्छा अभी वो भी आपने ही तय कर लिया।आपको लगता होगा पर मुझे कही जाना है।आप काम की बात करो।

पार्वती:तुम सच में बत्तमीज हो या सिर्फ हमारे परिवार से अइसी बत्तमीजी करते हो?!!

मैं:चलो ये तो पता चला की ठाकुर के परिवार में कोई तो अक्लमंद है।आपने सही समझा। आपके परिवार से बहोत ज्यादा प्यार है तो निकल आता है सब।

पार्वती:तुम्हे मालूम तो होगा ही थोड़ा बहुत की यहां किस विषय पर चर्चा होने वाली है।

मैं:नही!!आपने बुलाया तो आ गया।मुझे क्या मालूम अपने क्यो बुलाया।

पार्वती मन में-बहोत टेढा है।अइसे तो ये मानने वाला है नही।

पार्वती:सब गाँव को नही पता पर कल तुमने जिनको बेहरहमी से मारा वो ठाकुर परिवार के खास लोग और उसमे से एक मेरा भाई भी था।

मैं: आप अभी भी उसको अपना भाई मानना वाजिब समझते हो एक स्त्री होकर!??

पार्वती इसपर कुछ बोल ही नही पाती क्योकि सही में उसका भाई गलत था।

पार्वती:तुम बात का रुख मत बदलो।कल तुमने जो किया वो सही किया अइसे लगता है तुम्हे!!!?

मैं:नही!!!!

पार्वती चौक कर:नही??मतलव??

मैं:कल सिर्फ दो ही को मारा मारना तो चारो को था।

पार्वती:क्या बक रहे हो!!??!!

मैं:कल सिर्फ विष्णु और आपका भाई मरा।आगे तो वो तीसरा आदमी और आपके पतिदेव की बारी है।

पार्वती:तुम क्या बोल रहे हो, कहा बोल रहे हो,किससे बोल रहे हो इसका कुछ इल्म रखो।

मैं:जो है वो बता दिया,मैं डरता किसीके बाप से भी नही,जो करना है कर लो।

पार्वती:जिन दोनो की बात कर रहे हो वो मेरे पति औऱ बड़े भाई है।तुम उन्हें नही मार सकते।

मैं:क्यो नही मार सकता?बड़े तोफ है क्या वो?!एक गोली काम तमाम।

पार्वती मेरे में दिख रहे क्रोध,गुस्से,बदले की आग को देख थोड़ी सहमी,डर सी गयी।उसे ये अहसास हुआ की मैं तो उसके पति और भाई को मौत के घाट उतारने वाला हु।

पार्वती:देखो बच्चे....

मै:वीनू,वीनू नाम है मेरा।और बच्चा तो कहो ही मत,दो लोगो का खून कर चुका हु।

पार्वती मेरे बर्ताव पे बौचक्का होकर:वही बोल रही थी,देखो वीनू,ये मार काट में दोनो घर का नुकसान है।तुम समझदार हो,हम कोई और रास्ता निकाल देते है।

मैं:देखो ठकुराइन जी रुबीना की शादी करना उसके भलाई के लिए था,उसमे अगर मेरे दुश्मनी हो भी गयी ठाकुरों से तो जो भी गुस्सा दुश्मनी हो मेरे साथ करने का था,मेरे घरवालों को बीच में क्यो लाया?अभी जान पे आई तो रास्ता निकाल रहे हो।विष्णु गया तो भड़वे ने आपको बकरा बनाया है लगता है।

पार्वती:वीनू मुह संभाल के बात करो तुम मेरे पति के बारे में बात कर रहे हो।

मैं:मुझे पूरा इल्म है की मैं उस भड़बे के बारे में ही बात कर रहा हु,साला खुद का खड़ा नही होता लगता है उसका,जब भी देखो किसी न किसी को खड़ा कर देता है।

पार्वती:जैसे तुम समझो,पर अभी मै किसी को खोना नही चाहती।ना मेरे पति को न मेरे भाई को।जिसके लिए मुझे जो करना पड़े।मैं यहाँ मांडवली करने आई हु,मुझे बहस में कोई रस नही।क्योकि मालूम है की गलती हमारे यहां से है।

मैं मन में:मुझे मालूम है की तुझे अपने पति से ज्यादा अपने भाई की चिंता है जो बालबाल बच गया था,नही तो आज तुम मुझसे मिलती ही नही।तेरे पति के बहोत आदमी है इसलिए तुझे फिक्र तेरे भाई की है जिसको तेरा पति प्यादे की तरह इस्तेमाल कर रहा है और तकलीफ ये है की तुम उसमें कुछ कर भी नहीं सकती।

मैं सोच में डूबा ही था की जोर के हवाओ से उसका पल्लु उड़ गया।हाये क्या कयामत थी दोस्तो।पूरा का पूरा हुस्न का दुकान।भरे हुए चुचे और उसके ऊपर तने हुए निप्पल्स साफ दिख रहे थे।सफेद गोरा पेट लचकाई कमर।ब्लाउज के बीच में आधे नंगे चुचो की गली।कसम से उसका पूरा हुस्न गदराई घोड़ी की तरह था।उन्होंने खुद को सम्भाल साड़ी सीधी की।

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पार्वती-बल्लू ठाकुर की धर्मपत्नी,हाउसवाइफ,गदराया हुआ बदन और सीधा साधा स्वभाव इनकी खासियत

मैं होश में आते हुए:चलो किसी न किसी ने गलती मान तो ली,अभी मांडवली करने में कोई हर्ज नही,कहिए क्या करेगगि आप।

पार्वती:तुमको कितना पैसा चाहिए बोलो मै दिलवा दूंगी।

मैं शैतानी वाली हसी में:ओ ठकुराइन जी हम की ठाकुर ही है,देशप्रेम है इसलिए सरकारी नौकरी कर रहे है।और जितना आपका है उससे दो गुना हम लोगो का हैं।पैसों की किसी ओर को दो।

पार्वती:तो फिर किस बात पर मांडवली हो सकती है?तुम बताओ हम जरूर पूरा करेंगे ,बस ये खून खराबा यही खत्म कर दो।

मैं:उम्म वैसे मांगने के लिए कमी कुछ नही है मेरे पास पर जो मैं मांग सकता हु वो दे नही पाएंगे आप।

पार्वती:अइसी कौनसी चीज है जो हम दे नही पाएंगे,अपने मन में ही तय मत करो,तुम बोलो हम जरूर देंगे।

मैं:हा वो मांग लूंगा पर एक शर्त है,अभी मेरे निशाने पे आपके पति और आपके भाई है,और जो मैं मांगूंगा उसमे एक को बचाया जा सकता है।आप चुन लो किसे बचाना है।

पार्वती बिना सोचे:मेरे भाई को!!!अब बताओ क्या चाहिए तुम्हे???!

मैं:वाह भाई बहन का प्यार,अच्छा है।तो मुझे आपका ये हुस्न,गदराया बदन बहोत पसंद आया।इससे खेलना चाहता हु।

पार्वती चौक सी गयी,उसके कान ठंडे पड़ गए:क्या!!!!!?

मैं:मैं बोला मुझे आपका ये हुस्न,गदराया बदन बहोत पसंद आया।इससे खेलना चाहता हु।कोई आपत्ति??

पार्वती:तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पे है,तुम्हारे मा की उम्र की हु।इतने से हो औऱ क्या सोच है तुम्हारी।

मैं:अगर आप मेरे मा के उम्र की हो तो पति को बोल देती आपके हुस्न से खेलने को,उसने मेरी मा के ऊपर हाथ कैसे डाला।

पार्वती:देखो,उसके लिए मै तहे दिल से माफी चाहती हु।पर तुम जो मांग रहे हो उसे मैं...!मैं एक पतिव्रता हु।ये बात मुझे शोभा नही देगी।

मैं:पतिव्रता तो मेरी मा भी है और पतिव्रता हो आप तो पति को बचाना फर्ज होता है न,तो यहाँ तो आप भाई को बचा रही हो।

पार्वती अभी फस गयी थी।उसके मायके के परिवार में सिर्फ उसका भाई बचा था तो वो उसे खोना नही चाहती थी।उसके पतिव्रता में कोई खोट नही थी क्योकि उसे भलीभांति मालूम था की उसका पति खुद का बचाव कर लेगा पर कही उसके भाई को बकरा बना दिया उसने तो भाई मौत के घाट न उतर जाए।

पार्वती कुछ सोच कर उसने अपना पल्लु नीचे झटक दिया:ठीक है।मैं तैयार हु।

मैंने उसके पूरे बदन को हाथ से चेक किया।बिस्तर को चेक किया।आजु बाजू कोई हतियार या कैमेरा है या नही वो भी देखा।

पार्वती:तुम्हे मुझपे भरोसा नही है लगता है???!!

मैं:मैं अपने बाप पर भी जल्दी से भरोसा नही करता आप तो दुश्मन के घर से हो।

मेरी हाइट और पार्वती की हाइट मिलती जुलती थी।मैं जैसे ही उसके पास गया।मुझे अजीब सी गर्माहट महसूस हुई।और हालांकि वो औरतो में रहती है।उसका बदन थोड़ा थोड़ा कांप रहा था।उसके ओंठ थिरथीरा रहे थे।

मैंने जैसे ही उसके पास में आपना चेहरा लेके गया,हमारी सांसे एकदूसरे से टकराने लगी।उन्होंने अपनी आंखे बंद कर दी।मैंने करीब जा कर अपने ओंठ उनके ओंठो पर चीपका दिए।उनके अंदर से हाये जैसे निकल गयी।करन्ट लगने जैसा उनका शरीर सिहर गया कुछ क्षण के लिए।मैंने अभी उनको अपने बाहों के लपेट में ले लिया था।उनके ओंठो को चूमे जा रहा था।उनके ओंठ के दोनो लब्ज बारी बारी मुह में लेके चूसे जा रहा था।उनके यहां से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नही दिखी।उनकी गर्माहट उनके अंदर के काम वासना को प्रतीत कर रही थी थी पर वो मुक्त होकर साथ नही दे पा रही थी।मैंने पीछे की तरफ से नीचे तक हाथ ले जाके गांड को कस के दबाया

जैसे 440 का झटका लग जाए वैसे कुछ हुआ वो थोड़ी उछली।वो थोड़ी आगे की तरफ हुई तो उनके ओंठ सही तरीकेसे मेरे ओंठोंके कब्जे में आ गए।और झटके के नतीजन अभी उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया था।ज्यादा देर नही लगा उनको अपने अंदर के डर को बाहर फेकने को और हवस को छूट देने को।अभी उनका थोड़ा ही सही साथ आने लगा था।

क्या मिठास थी उस नाजुक कोमल गुलाब की पंखुड़ियों में।सच में दीदी की याद आ गयी।पूरा गुलाबजामुन का स्वाद था।मैंने उनके जीभ कोअपने मुह में लेके चुसना चालू किया।लग रहा था जिंदगी भर ये चुसाई का खेल अयसेही चलता रहे।कुछ समय में हम आझाद हो गये एकदूसरे की बाहों से।

मैं:बहोत दिनों बाद कुछ मीठा खाने को मिला।

पार्वती कुछ बोली नही पर उसके गाल लाल हो गए थे।नीचे सिर करके हो शर्माती हुई मुस्करा दी।ये हुस्नपरी अभी जाल में फस रही थी।

उसके चुचो का उभार मुझे बहोत भा गया था।मैंने उसके दोनो चुचो को सामने से दबोचा और सहलाने लगा।पार्वती के मुह से आआह की सिसक निकल गयी,उसने ओंठ दांतो के नीचे दबा दिए।कुछ वक्त के लिए मैंने उसे अपनी बाहों में लिया।मेरा तना हुआ लंड उसके साड़ी के ऊपर से चुत पर घिस रहा था और चुचे छाती के बीच दब गए थे।एक बाजू से उसके कानो की पलिया मुह में चूसते हुए उसको गले से लगा रखा था।वो मुझे कस के पकड़ रही थी।इसका सीधा अर्थ था घोड़ी तैयार थी सवारी के लिए।

उनको वैसे ही लेकर बिस्तर पर पीठ के बल सुलाया।उनके बारी बारी सारे कपड़े उतारे।उनकी चुत गीली हो रखी थी।काफी साफ सुधरी थी।वो भी काम्प रही थी

मैंने अंडरवियर छोड़ सब कपड़े निकाल दिए थे।उनके ऊपर चढ़ के उनके पुरे बदन को चुम रहा था।उनकी चुचो को मसल रहा था।चुचे बारी बारी मुह में लेके चूस रहा था।जिस समय एक चुचा मुह में रहता उस समय दूसरे के निप्पल को नोच मसल रहा था।पार्वती सिर्फ सिसकिया छोड़ रही थी।काफी देर उसके हुस्न के साथ खेलने के बाद मैं बिस्तर पे सोया और अंडरवियर निकाल दी।

आझाद होते ही लंडदेव सलामी देने लगे।पार्वती बाजू में घोड़ी बनके झुक कर मेरे लण्ड को आंख फाड़ कर देख रही थी।

मैं:कभी लंड देखे नही क्या?!!

पार्वती:देखी हु पर इतना बड़ा!! कभी नही।इतनी उम्र में इतना!!!मुझसे हो पायेगा क्या?

मैं:उसकी चिंता मत करो वैसे भी फूली हुई चुत है मै संभाल लूंगा।

उनके हाथ को पकड़ कर मैंने मेरे लंड पे रख दिया।उनके मुह से सिसक निकल गयी।वो सिर्फ लंड को ताके जा रही थी।मैंने अपने हाथ को उनके हाथ पर रख लण्ड पर उपर नीचे करने लगा।जैसे ही उसने होश में आकर लय पकड़ी मैंने हाथ को उसके लटकते हुए चुचो पर रख चुचे दबोचने नोचने लगा।लंड काफी तन गया था।

मै:सिर्फ देखती रहोगे या चुसोगे भी।

पार्वती की चेहरे पर हा कम ना ज्यादा दिखने लगी तो जवाब आने से पहले ही उसके सिर को पकड़ के लण्ड पर दबोचा।पूरा लण्ड मुह में।थोड़ी देर रुक कर आहिस्ता आहिस्ता मुह ऊपर नीचे करने लगा।उसने बहोत कम समय में चुसने की लय पकड़ ली।मेरा लण्ड उसके मुह के अंदर तक जा रहा था।और मुझे सातवे आसमान पे पहुंचा रहा था।उसकी चुसमचुसाई से लंड इतना प्रभावित हुआ की उसके मुह में पिचकारी छोड़ दी।अचानक होने से कुछ वो निगल गयी बाकी पोंछ दी।

अभी उसको पीठ के बल सुलाकर मैंने उसके चुत को अपने मुह के कब्जे में किया।चुत पर जीभ घूमते ही वो सपकापा गयी और पलंग को कस के पकड़ा।चुत काफी फूली थी।उसके चुत के मलाई को खाने में मजा तो बहोत आ रहा था।उसकी लाल लाल ज्वालामुखी से निकलता हुआ ज्वाला मेरी हवस के लोहे को जला रहा था।अभी लोहा भी एकदम गर्म था।ज्वालामुखी में जाने को बेताब हुआ जा रहा था।

ज्यादा समय न गवाते हुए मैंने अपने लण्ड को उनकी चुत में लगाए और आहिस्ता से अंदर ठूसा।टोपा तो अंदर चला गया।मुझे मालूम था की छेद के हिसाब से वो झेल न पाएगी लंड को तो मैंने लंड को बाहर निकाला उंगली डालके चुत को खोदा फिर उसी मलाई को लण्ड पे रगड़ा और फिरसे टोपा घुसेड़ के धक्का दे मारा।धक्का काफी मजबूत था।

पार्वती:अय्यो मा मैं मर गयी भोसडीके लंड को आआह निकाल आआह आआह उम्म उफ्फ आआह निकाल लवड़े आआह फाड़ दि आआह।

मैं उनकी बात को नही सुन रहा था,उनकी गालियां के बदले मैंने उनकी चुचो पर चपेट जड़ दिए।काफी समय लगा पर साली चुप हो गयी।हुआ ये की लंड एक झटके में पूरा अंदर गया था फिसलते हुए।इसलिए ज्यादा दर्द हुआ।मैंने अपने धक्कों की बारिश चालू की।

पार्वती':आआह आआह भड़वे साले मेरे को रंडी बना आआह बना ही दिया आया आआह चोद आआह भोसडीके चोद और आआह आआह जोर से आआह म

वो चुदाई के खेल में अभी रंगने लगी थी।करीब 15 से 20 मिनिट तक चुदाई का खेल चलता रहा।जब मैं झड़ने के कगार में आया तो झट से लंड बाहर निकाला और लण्ड को उसके मुह में डाला और मुह चोदने लगा।मुझे उसके मुह में झड़ने में ज्यादा मजा आ रहा था।वो झड गयी थी और साथ में मैं आधा लण्ड खाली किया ही था की उसने लंड को बाहर निकाला जिससे उसके शरीर पे सब गिर गया।दोनो बिस्तर पर थक कर लेट गए।

शाम तक कई तरीको से उसके साथ अनेक आसनों में चुदवाई हुई।वो मुझमे काफी घुल मिल गयी थी।उनको अलविदा कह कर मै करीब शाम को घर की तरफ निकल गया।
 
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सुबह दीदी जल्दी उठ गयी थी और तैयार भी हो गयी थी।

मैं:अरे वा कही घूमने जा रहे हो क्या?

मा:नही वीनू,दीदी वापस जा रही है,उसके क्लासेस चालू है न।दो दिन की छुटी मिली थी इसके लिए आई थी।

मैं:नही यार दीदी,मुझे आपसे बहोत बाते करनी है,मत जाओ।

दीदी:वीनू जिद मत करो।जाना जरूरी है मेरा।

दादी:वीनू उसे जाना है तो जाने दे,वैसे भी तू घर में कहा रहता है।वो भी बोर हो जाएगी।

मा सीता और दीदी हसने लगे।

मा:सही कहा।एकबार छूटी खत्म होने दो,सब घूमना फिरना बन्द।

नाश्ता करने के बाद दीदी पुलिस अंकल के साथ होस्टल निकल गयी।मैं तो सोच रहा था कच्ची कली फसी है,छुट्टी मजे में निकल जाएगी।रात दिन सिर्फ जलसा।पर खैर कोई बात नही कच्ची कली नही पर जलसा तो होता रहेगा।

हम सब गेट पर अलविदा कर पीछे लौट ही रहे थे की शम्भू भागते हुए आते देखा।मा और दादी अंदर चली गयी।

सीता:ओ शम्भू यहाँ क्या कर रहे हो ,ठाकुर ने देखा तो पिट देगा।

शम्भू:उन्ही के काम से आया हु।

सीता:किसके,ठाकुर के?

शम्भू:नही ठकुराइन के।

मैं:कौन,सांबा की पत्नी?

शम्भू:नही नही बल्लू जी की पत्नी।

सीता:कौन वो पार्वती।

शम्भू:अरे आहिस्ता बोलो,कोई सुन लेगा तो बवाल हो जाएगा।

सीता:सीधी साधी औरत है वो।उसका बाबूजी से क्या काम?

शम्भू:वो तो वही जाने।पर बहोत बवाल मच गया है हवेली पर।

सीता:कैसा बवाल?

शम्भू:बल्लू ठाकुर का वो कुत्ता है न?

सीता:कौन वो विष्णु?

शम्भू:हा मा वही,उसको किसीने कट्टे से ठोक दिया और उसके साथ पार्वती ठकुराइन के छोटे भाई को भी।

सीता:हाये दैया,किसने ठोका मालूम पड़ा।

शम्भू:मालूम पड़ा है,पर कुछ बोल नही रहे है,क्या मालूम क्या मांजला है?!!!

मैं:ठीक है।तुम चलो मैं आता हु।

शम्भू के वह से जाने के बाद जर मैं घर की ओर ममुड़ा तब सीता ने मुझे रुकाया और बोला;

सीता:बाबूजी,उस कुत्ते को आपने ही ठोका न कल।

मैं:शऊऊ आहिस्ता बोल,किसीने सुना तो भवंडर आ जाएगा।

सीता:माफ करना,पर हा आपने काम सही किया । साले को अइसी ही मौत मिलनी चाहिए थी।

मैं:एक काम करो चाची तुम घर जाओ और मा से कहना मैं बाहर गया हु खाने पर राह न देखे ,पर ये मत बताना की ठकुराइन के पास जा रहा हु,ठीक है।

सीता:ठीक है।सम्भलके जाना,और ध्यान रखो ,इन ठाकुरों पर कोई भरोसा नही।

मैं घर से सीधा फूलों के बगीचे/खेत की ओर निकल गया।गांव से काफी बाहर था।एक बाजुमे जंगल की ओर एक फार्म हाउस था।मैं वही चला गया।शम्भू उधर ही खड़ा था।ओ मुझे लेके ऊपर के कमरे में गया।

गाँव के हिसाब से ये फार्म हाउस एकदम वीआईपी की तरह था।नीचे सिर्फ लिविंग रूम था और एक साइड रूम और बाथरूम।और जहा मैं खड़ा था वो पूरा एक ही कमरा था और उसके साथ उसके सामने और एक कमरा था।उनके ऊपर टेरेस था।

जिस कमरे में मुझे लेके गया था शम्भू ,वहां एक बाजू सोफे थे और एक बड़ा राउंड वाला बेड जिसपे एकसाथ 4 लोग सो सके।एक साइड छोटा डाइनिंग और एक बाजू बाथरूम।एक बाजू बड़ी बालकनी और लंबी खिड़की होने से तूफानी हवा आ रही थी।

रूम में कोई नही था तो मैं फ्रेश होने बाथरूम गया।क्या बाथरूम था यार आधा कमरे इतना तो बाथरूम था।शावर,टब,कमोड।फार्म हाउस कम हवेली ज्यादा लग रहा था।

मैं फ्रेश होकर जैसे ही बाहर आया तो सामने एक औरत खड़ी थी।कपडो की शान से तो अंदाज हो गया की वो ठकुराइन ही है,नाम पार्वती,बल्लू की धर्मपत्नी।

मैं:माफ करना,वो बहोत दूर से चलके आया था तो पसीना बहोत था,इसलिए फ्रेश होने गया।

पार्वती:कोई बात नही।शम्भू तुम जाओ अपने काम पे और किसको मत आने देना यहाँ,जरूरी मीटिंग चल रही है बोल देना।

शम्भू:जी मालकिन(शम्भू दरवाजा बन्द कर चला गया।)

मै:कहिए ठकुराइन जी ,याद किया मुझे,कोई काम था क्या?

पार्वती:आप बैठो सोफे पर बात करेंगे ,बहोत समय है अपने पास।

हम सोफे पर वो बेड के कोने पर अइसे हम आमने सामने बैठ गए

मैं:अच्छा अभी वो भी आपने ही तय कर लिया।आपको लगता होगा पर मुझे कही जाना है।आप काम की बात करो।

पार्वती:तुम सच में बत्तमीज हो या सिर्फ हमारे परिवार से अइसी बत्तमीजी करते हो?!!

मैं:चलो ये तो पता चला की ठाकुर के परिवार में कोई तो अक्लमंद है।आपने सही समझा। आपके परिवार से बहोत ज्यादा प्यार है तो निकल आता है सब।

पार्वती:तुम्हे मालूम तो होगा ही थोड़ा बहुत की यहां किस विषय पर चर्चा होने वाली है।

मैं:नही!!आपने बुलाया तो आ गया।मुझे क्या मालूम अपने क्यो बुलाया।

पार्वती मन में-बहोत टेढा है।अइसे तो ये मानने वाला है नही।

पार्वती:सब गाँव को नही पता पर कल तुमने जिनको बेहरहमी से मारा वो ठाकुर परिवार के खास लोग और उसमे से एक मेरा भाई भी था।

मैं: आप अभी भी उसको अपना भाई मानना वाजिब समझते हो एक स्त्री होकर!??

पार्वती इसपर कुछ बोल ही नही पाती क्योकि सही में उसका भाई गलत था।

पार्वती:तुम बात का रुख मत बदलो।कल तुमने जो किया वो सही किया अइसे लगता है तुम्हे!!!?

मैं:नही!!!!

पार्वती चौक कर:नही??मतलव??

मैं:कल सिर्फ दो ही को मारा मारना तो चारो को था।

पार्वती:क्या बक रहे हो!!??!!

मैं:कल सिर्फ विष्णु और आपका भाई मरा।आगे तो वो तीसरा आदमी और आपके पतिदेव की बारी है।

पार्वती:तुम क्या बोल रहे हो, कहा बोल रहे हो,किससे बोल रहे हो इसका कुछ इल्म रखो।

मैं:जो है वो बता दिया,मैं डरता किसीके बाप से भी नही,जो करना है कर लो।

पार्वती:जिन दोनो की बात कर रहे हो वो मेरे पति औऱ बड़े भाई है।तुम उन्हें नही मार सकते।

मैं:क्यो नही मार सकता?बड़े तोफ है क्या वो?!एक गोली काम तमाम।

पार्वती मेरे में दिख रहे क्रोध,गुस्से,बदले की आग को देख थोड़ी सहमी,डर सी गयी।उसे ये अहसास हुआ की मैं तो उसके पति और भाई को मौत के घाट उतारने वाला हु।

पार्वती:देखो बच्चे....

मै:वीनू,वीनू नाम है मेरा।और बच्चा तो कहो ही मत,दो लोगो का खून कर चुका हु।

पार्वती मेरे बर्ताव पे बौचक्का होकर:वही बोल रही थी,देखो वीनू,ये मार काट में दोनो घर का नुकसान है।तुम समझदार हो,हम कोई और रास्ता निकाल देते है।

मैं:देखो ठकुराइन जी रुबीना की शादी करना उसके भलाई के लिए था,उसमे अगर मेरे दुश्मनी हो भी गयी ठाकुरों से तो जो भी गुस्सा दुश्मनी हो मेरे साथ करने का था,मेरे घरवालों को बीच में क्यो लाया?अभी जान पे आई तो रास्ता निकाल रहे हो।विष्णु गया तो भड़वे ने आपको बकरा बनाया है लगता है।

पार्वती:वीनू मुह संभाल के बात करो तुम मेरे पति के बारे में बात कर रहे हो।

मैं:मुझे पूरा इल्म है की मैं उस भड़बे के बारे में ही बात कर रहा हु,साला खुद का खड़ा नही होता लगता है उसका,जब भी देखो किसी न किसी को खड़ा कर देता है।

पार्वती:जैसे तुम समझो,पर अभी मै किसी को खोना नही चाहती।ना मेरे पति को न मेरे भाई को।जिसके लिए मुझे जो करना पड़े।मैं यहाँ मांडवली करने आई हु,मुझे बहस में कोई रस नही।क्योकि मालूम है की गलती हमारे यहां से है।

मैं मन में:मुझे मालूम है की तुझे अपने पति से ज्यादा अपने भाई की चिंता है जो बालबाल बच गया था,नही तो आज तुम मुझसे मिलती ही नही।तेरे पति के बहोत आदमी है इसलिए तुझे फिक्र तेरे भाई की है जिसको तेरा पति प्यादे की तरह इस्तेमाल कर रहा है और तकलीफ ये है की तुम उसमें कुछ कर भी नहीं सकती।

मैं सोच में डूबा ही था की जोर के हवाओ से उसका पल्लु उड़ गया।हाये क्या कयामत थी दोस्तो।पूरा का पूरा हुस्न का दुकान।भरे हुए चुचे और उसके ऊपर तने हुए निप्पल्स साफ दिख रहे थे।सफेद गोरा पेट लचकाई कमर।ब्लाउज के बीच में आधे नंगे चुचो की गली।कसम से उसका पूरा हुस्न गदराई घोड़ी की तरह था।उन्होंने खुद को सम्भाल साड़ी सीधी की।


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पार्वती-बल्लू ठाकुर की धर्मपत्नी,हाउसवाइफ,गदराया हुआ बदन और सीधा साधा स्वभाव इनकी खासियत

मैं होश में आते हुए:चलो किसी न किसी ने गलती मान तो ली,अभी मांडवली करने में कोई हर्ज नही,कहिए क्या करेगगि आप।

पार्वती:तुमको कितना पैसा चाहिए बोलो मै दिलवा दूंगी।

मैं शैतानी वाली हसी में:ओ ठकुराइन जी हम की ठाकुर ही है,देशप्रेम है इसलिए सरकारी नौकरी कर रहे है।और जितना आपका है उससे दो गुना हम लोगो का हैं।पैसों की किसी ओर को दो।

पार्वती:तो फिर किस बात पर मांडवली हो सकती है?तुम बताओ हम जरूर पूरा करेंगे ,बस ये खून खराबा यही खत्म कर दो।

मैं:उम्म वैसे मांगने के लिए कमी कुछ नही है मेरे पास पर जो मैं मांग सकता हु वो दे नही पाएंगे आप।

पार्वती:अइसी कौनसी चीज है जो हम दे नही पाएंगे,अपने मन में ही तय मत करो,तुम बोलो हम जरूर देंगे।

मैं:हा वो मांग लूंगा पर एक शर्त है,अभी मेरे निशाने पे आपके पति और आपके भाई है,और जो मैं मांगूंगा उसमे एक को बचाया जा सकता है।आप चुन लो किसे बचाना है।

पार्वती बिना सोचे:मेरे भाई को!!!अब बताओ क्या चाहिए तुम्हे???!

मैं:वाह भाई बहन का प्यार,अच्छा है।तो मुझे आपका ये हुस्न,गदराया बदन बहोत पसंद आया।इससे खेलना चाहता हु।

पार्वती चौक सी गयी,उसके कान ठंडे पड़ गए:क्या!!!!!?

मैं:मैं बोला मुझे आपका ये हुस्न,गदराया बदन बहोत पसंद आया।इससे खेलना चाहता हु।कोई आपत्ति??

पार्वती:तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पे है,तुम्हारे मा की उम्र की हु।इतने से हो औऱ क्या सोच है तुम्हारी।

मैं:अगर आप मेरे मा के उम्र की हो तो पति को बोल देती आपके हुस्न से खेलने को,उसने मेरी मा के ऊपर हाथ कैसे डाला।

पार्वती:देखो,उसके लिए मै तहे दिल से माफी चाहती हु।पर तुम जो मांग रहे हो उसे मैं...!मैं एक पतिव्रता हु।ये बात मुझे शोभा नही देगी।

मैं:पतिव्रता तो मेरी मा भी है और पतिव्रता हो आप तो पति को बचाना फर्ज होता है न,तो यहाँ तो आप भाई को बचा रही हो।

पार्वती अभी फस गयी थी।उसके मायके के परिवार में सिर्फ उसका भाई बचा था तो वो उसे खोना नही चाहती थी।उसके पतिव्रता में कोई खोट नही थी क्योकि उसे भलीभांति मालूम था की उसका पति खुद का बचाव कर लेगा पर कही उसके भाई को बकरा बना दिया उसने तो भाई मौत के घाट न उतर जाए।

पार्वती कुछ सोच कर उसने अपना पल्लु नीचे झटक दिया:ठीक है।मैं तैयार हु।

मैंने उसके पूरे बदन को हाथ से चेक किया।बिस्तर को चेक किया।आजु बाजू कोई हतियार या कैमेरा है या नही वो भी देखा।

पार्वती:तुम्हे मुझपे भरोसा नही है लगता है???!!

मैं:मैं अपने बाप पर भी जल्दी से भरोसा नही करता आप तो दुश्मन के घर से हो।

मेरी हाइट और पार्वती की हाइट मिलती जुलती थी।मैं जैसे ही उसके पास गया।मुझे अजीब सी गर्माहट महसूस हुई।और हालांकि वो औरतो में रहती है।उसका बदन थोड़ा थोड़ा कांप रहा था।उसके ओंठ थिरथीरा रहे थे।

मैंने जैसे ही उसके पास में आपना चेहरा लेके गया,हमारी सांसे एकदूसरे से टकराने लगी।उन्होंने अपनी आंखे बंद कर दी।मैंने करीब जा कर अपने ओंठ उनके ओंठो पर चीपका दिए।उनके अंदर से हाये जैसे निकल गयी।करन्ट लगने जैसा उनका शरीर सिहर गया कुछ क्षण के लिए।मैंने अभी उनको अपने बाहों के लपेट में ले लिया था।उनके ओंठो को चूमे जा रहा था।उनके ओंठ के दोनो लब्ज बारी बारी मुह में लेके चूसे जा रहा था।उनके यहां से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नही दिखी।उनकी गर्माहट उनके अंदर के काम वासना को प्रतीत कर रही थी थी पर वो मुक्त होकर साथ नही दे पा रही थी।मैंने पीछे की तरफ से नीचे तक हाथ ले जाके गांड को कस के दबाया

जैसे 440 का झटका लग जाए वैसे कुछ हुआ वो थोड़ी उछली।वो थोड़ी आगे की तरफ हुई तो उनके ओंठ सही तरीकेसे मेरे ओंठोंके कब्जे में आ गए।और झटके के नतीजन अभी उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया था।ज्यादा देर नही लगा उनको अपने अंदर के डर को बाहर फेकने को और हवस को छूट देने को।अभी उनका थोड़ा ही सही साथ आने लगा था।

क्या मिठास थी उस नाजुक कोमल गुलाब की पंखुड़ियों में।सच में दीदी की याद आ गयी।पूरा गुलाबजामुन का स्वाद था।मैंने उनके जीभ कोअपने मुह में लेके चुसना चालू किया।लग रहा था जिंदगी भर ये चुसाई का खेल अयसेही चलता रहे।कुछ समय में हम आझाद हो गये एकदूसरे की बाहों से।

मैं:बहोत दिनों बाद कुछ मीठा खाने को मिला।

पार्वती कुछ बोली नही पर उसके गाल लाल हो गए थे।नीचे सिर करके हो शर्माती हुई मुस्करा दी।ये हुस्नपरी अभी जाल में फस रही थी।

उसके चुचो का उभार मुझे बहोत भा गया था।मैंने उसके दोनो चुचो को सामने से दबोचा और सहलाने लगा।पार्वती के मुह से आआह की सिसक निकल गयी,उसने ओंठ दांतो के नीचे दबा दिए।कुछ वक्त के लिए मैंने उसे अपनी बाहों में लिया।मेरा तना हुआ लंड उसके साड़ी के ऊपर से चुत पर घिस रहा था और चुचे छाती के बीच दब गए थे।एक बाजू से उसके कानो की पलिया मुह में चूसते हुए उसको गले से लगा रखा था।वो मुझे कस के पकड़ रही थी।इसका सीधा अर्थ था घोड़ी तैयार थी सवारी के लिए।

उनको वैसे ही लेकर बिस्तर पर पीठ के बल सुलाया।उनके बारी बारी सारे कपड़े उतारे।उनकी चुत गीली हो रखी थी।काफी साफ सुधरी थी।वो भी काम्प रही थी

मैंने अंडरवियर छोड़ सब कपड़े निकाल दिए थे।उनके ऊपर चढ़ के उनके पुरे बदन को चुम रहा था।उनकी चुचो को मसल रहा था।चुचे बारी बारी मुह में लेके चूस रहा था।जिस समय एक चुचा मुह में रहता उस समय दूसरे के निप्पल को नोच मसल रहा था।पार्वती सिर्फ सिसकिया छोड़ रही थी।काफी देर उसके हुस्न के साथ खेलने के बाद मैं बिस्तर पे सोया और अंडरवियर निकाल दी।

आझाद होते ही लंडदेव सलामी देने लगे।पार्वती बाजू में घोड़ी बनके झुक कर मेरे लण्ड को आंख फाड़ कर देख रही थी।

मैं:कभी लंड देखे नही क्या?!!

पार्वती:देखी हु पर इतना बड़ा!! कभी नही।इतनी उम्र में इतना!!!मुझसे हो पायेगा क्या?

मैं:उसकी चिंता मत करो वैसे भी फूली हुई चुत है मै संभाल लूंगा।

उनके हाथ को पकड़ कर मैंने मेरे लंड पे रख दिया।उनके मुह से सिसक निकल गयी।वो सिर्फ लंड को ताके जा रही थी।मैंने अपने हाथ को उनके हाथ पर रख लण्ड पर उपर नीचे करने लगा।जैसे ही उसने होश में आकर लय पकड़ी मैंने हाथ को उसके लटकते हुए चुचो पर रख चुचे दबोचने नोचने लगा।लंड काफी तन गया था।

मै:सिर्फ देखती रहोगे या चुसोगे भी।

पार्वती की चेहरे पर हा कम ना ज्यादा दिखने लगी तो जवाब आने से पहले ही उसके सिर को पकड़ के लण्ड पर दबोचा।पूरा लण्ड मुह में।थोड़ी देर रुक कर आहिस्ता आहिस्ता मुह ऊपर नीचे करने लगा।उसने बहोत कम समय में चुसने की लय पकड़ ली।मेरा लण्ड उसके मुह के अंदर तक जा रहा था।और मुझे सातवे आसमान पे पहुंचा रहा था।उसकी चुसमचुसाई से लंड इतना प्रभावित हुआ की उसके मुह में पिचकारी छोड़ दी।अचानक होने से कुछ वो निगल गयी बाकी पोंछ दी।

अभी उसको पीठ के बल सुलाकर मैंने उसके चुत को अपने मुह के कब्जे में किया।चुत पर जीभ घूमते ही वो सपकापा गयी और पलंग को कस के पकड़ा।चुत काफी फूली थी।उसके चुत के मलाई को खाने में मजा तो बहोत आ रहा था।उसकी लाल लाल ज्वालामुखी से निकलता हुआ ज्वाला मेरी हवस के लोहे को जला रहा था।अभी लोहा भी एकदम गर्म था।ज्वालामुखी में जाने को बेताब हुआ जा रहा था।

ज्यादा समय न गवाते हुए मैंने अपने लण्ड को उनकी चुत में लगाए और आहिस्ता से अंदर ठूसा।टोपा तो अंदर चला गया।मुझे मालूम था की छेद के हिसाब से वो झेल न पाएगी लंड को तो मैंने लंड को बाहर निकाला उंगली डालके चुत को खोदा फिर उसी मलाई को लण्ड पे रगड़ा और फिरसे टोपा घुसेड़ के धक्का दे मारा।धक्का काफी मजबूत था।

पार्वती:अय्यो मा मैं मर गयी भोसडीके लंड को आआह निकाल आआह आआह उम्म उफ्फ आआह निकाल लवड़े आआह फाड़ दि आआह।

मैं उनकी बात को नही सुन रहा था,उनकी गालियां के बदले मैंने उनकी चुचो पर चपेट जड़ दिए।काफी समय लगा पर साली चुप हो गयी।हुआ ये की लंड एक झटके में पूरा अंदर गया था फिसलते हुए।इसलिए ज्यादा दर्द हुआ।मैंने अपने धक्कों की बारिश चालू की।

पार्वती':आआह आआह भड़वे साले मेरे को रंडी बना आआह बना ही दिया आया आआह चोद आआह भोसडीके चोद और आआह आआह जोर से आआह म

वो चुदाई के खेल में अभी रंगने लगी थी।करीब 15 से 20 मिनिट तक चुदाई का खेल चलता रहा।जब मैं झड़ने के कगार में आया तो झट से लंड बाहर निकाला और लण्ड को उसके मुह में डाला और मुह चोदने लगा।मुझे उसके मुह में झड़ने में ज्यादा मजा आ रहा था।वो झड गयी थी और साथ में मैं आधा लण्ड खाली किया ही था की उसने लंड को बाहर निकाला जिससे उसके शरीर पे सब गिर गया।दोनो बिस्तर पर थक कर लेट गए।


शाम तक कई तरीको से उसके साथ अनेक आसनों में चुदवाई हुई।वो मुझमे काफी घुल मिल गयी थी।उनको अलविदा कह कर मै करीब शाम को घर की तरफ निकल गया।
Wow mast update Thakur ke ghar ka pehla shikar
 

Rocky2602

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