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(episode 2)
दूसरे दिन सुबह मैं जल्दी उठ गया।वैसा नियम था की ज्यादा देर नही सोनेका,छूटी हो तब भी।फ्रेश होकर बाहर आया तो मा और सीता चाची किचन में थे।दादी पाठ पढ़ रही थी।और एक लड़का बाहर खेल रहा था।करीब मुझसे 2 से 3 साल छोटा रहेगा।उसके हाथ में गेंद थी।पर अचानक दीवार से दिशा चूक के दादी की ओर चली गयी और दादी के पोथी को टकराई।दादी तिलमिलाई।
दादी:अरे मूर्ख तुझे कुछ अक्ल है की नही,राम राम राम।ये क्या कर दिया।ये खेलने की जगह है क्या!!??
आवाज सुन के मा और सीता भी बाहर आयी।उनको को देख डरा हुआ ओ बच्चा सीता के पल्लु के पीछे छुप गया।तभी मुझे मालूम हुआ की वो सीता का बेटा है।दादी थी ही गुस्सेवाली।उनके सामने मा तो कुछ बोलेगी नही इसलिए मुझे ही बोलना पड़ा।
मैं:दादी,छोड़ो न,नही मालूम होगा उसको,तुम अपना पाठ क्यो भंग कर रहे हो,मैं उसे यह से लेके जाता हु ,ठीक है।
दादी:जाओ जाओ इस नासपीटे को लेके जाओ।
मैं उसे लेके बाहर आया।सीता भी बाहर तक आयी।
सीता:शुक्रिया बाबूजी,आपकी वजह से आज बच गया,और मेरी नौकरी भी।हम गरीब लोग है बाबूजी,कैसे वैसे गुजरा कर लेते है।
मैं:अरे नही नही चाची आप इतना मत घबराओ,आपकी नोकरी को कुछ नही होगा।दादी तो गुस्सेल ही है,बस उन्हें उल्टा जवाब नही देना,माफी मांगके निकल जाना,ओ शांत हो जाती है,ठीक है।
सीता:जी बाबूजी ठीक है।
मैं:आप जाओ आपका काम करो।मैं इसे लेके जाके थोड़ा गाँव घुमके आता हु।
सीता:पर बाबूजी आप अइसे अकेले।कैसे???
मैं:सीता चाची आप मत चिंता करो।बस मा को बोल देना।कुछ नही होगा,मैं संभाल लूंगा।
सीता:जैसा आप ठीक समझे।(अपने बेटे से)शम्भू बाबूजी गाँव में नए है।सम्भलके जाना,और किसी के फटे में तू टांग मत अडा।और बड़े लोगो से तो जरा भी नही।
शम्भू:ठीक है मा।
सविता अंदर चली जाती है।
मैं:तो जनाब शम्भू नाम है आपका।
शम्भू:जी बाबू जी।
मैं:देख बाबूजी मत बोल यातो वीनू बोल या भैया बोल।ठीक है,मुझे अइसे बाबूजी कहलवाना अच्छा नही लगता।
शम्भू:ठीक है भैया जैसा आप कहे।
मैं:तो चलो अपना गाँव दिखाओ मुझे।
हम दोनो खेत नदी से घूमते गए और मंदिर के पास आके बैठ गए।हम वहाँ ताजी हवा खा रहे थे ।हम कुछ देर बैठकर निकलने वाले थे की वहाँ पर किसीकी गाड़ी आयी।और हमारे आगे से निकल गयी।औऱ गाँव के आखिर में मंदिर के पास जाके रुकी।मुझे शम्भू ने पीछे खींचा।
मै:अरे क्या हुआ?
शम्भू:भैया थोड़ी देर रुक जाओ आपको अपनेआप ही मालूम हो जाएगा।
गाड़ी से तीन लोग बाहर आये।उन्होंने एक आदमी को गाड़ी से खींच के बाहर फेंक दिया।आदमी बहोत बुड्ढा था।पर उनके ऊपर के घाव देखके अइसे लग रहा था जैसे बहोत बेरहमी से मारा हो।
जैसे ही उसे घर के दरवाजे पे फेका वैसे ही कुछ बोल के वहाँ से गाड़ी निकल गयी।हमारे जैसे जो बाकी के लोग थे वो वहाँ से अपने रास्ते लगे।
मैं:अरे ये क्या बेहूदगी है?कितनी दरिंदगी है इन लोगो में।
शम्भू:आहिस्ता बोलो भैया,किसीने सुना तो आफत आ जाएगी।
मैं:पर ये मसला क्या है?ये है कौन?
शम्भू:भैया ये हवेली के ठाकुर साहब के आदमी है,और जिसे वो फेंक कर गए वो रहीम चाचा।
हम उस बात पे आगे बढ़ने ही वाले थे की उस रहीम चाचा को उठाने दो औरते आयी।
मैं:ये लोग!!!!!!????
शम्भू:एक उनकी बीवी है शबीना चाची और दूसरी उनकी बहु रुबीना भाभी।
मैं:भाभी!!!मतलब रहीम चाचा का बेटा भी है क्या?
शम्भू:था!!हवेली पर कुछ हुआ एक दिन और कुछ दिनों बाद नदी पर उसकी लाश मिली थी।हम लोगो ने ही स्कूल से आते हुए देखी थी और गाँव में बताया था।
मैं:पर ये हवेली वाले इन लोगो को परेशान क्यो कर रहे है।एक विधवा और दो बुड्ढे मा बाप को उसके।
शम्भू:क्या मालूम जिस समय से सलीम भैया की लाश मिली उसके बाद उन्होंने कुछ दिनों के बाद इनको उठा के ले गए तबसे इनको कहि दफा मार के घर छोड़ जाते है और दो दिन में फिरसे आ जाएंगे इनको लेने।
मैं:ये तो सरासर जुल्म हो रहा है!
(मन में-सच कहा था पिताजिने बहोत कुछ होगा इस गाँव में।क्योकि पिताजी ठहरे स्वाभिमानी ,क्रांतिकारी टाइप के तो इन सब बातों के जायजे के बाद तो यह पर बहोत कुछ तमाशा होगा।खैर मुझे क्या मेरी उम्र भी कम है।)
मामला बहोत गम्भीर से लगने लगा।वातावरण में मायूसी थी।मैं उस घर को दूर से ताकने लगा।तभी शम्भू बोला।
शम्भू:बाबूजी आप मेरी बस्ती देखोगे!!!??
मैं:क्यो नही।जरूर देखूंगां।
हम वहाँ से निकले और बस्ती की ओर आये।ये बस्ती नदी के किनारे को लगके ही थी।पत्रेके घर थे।काफी छोटी थी।12 से 13झोपड़ी होंगी।
मैं:अरे शम्भू तुम लोग अभी भी अइसे पत्रे के घरों में रहते हो।पक्के क्यो नही बनवाते।
शभु:भैया पहले हमारे घर पक्के ही थे।बाढ़ में बह गए।अभी कोई ध्यान ही नही देता।खुद जितना बन पाया लोगो ने किया।
मुझे देख आसपास के सारे लोग जमा हुए।मुझे ताकने लगे।मै शहर में रहकर आया था तो गोरा रंग सफसुदरे कपड़े और सेंट की महक।
एक आदमी:क्यों रे शम्भू कौन है ये।
शम्भू:भिवा चाचा कलेक्टर साब जी के बेटे है।मैं गाँव घुमा रहा था।
दूसरा आदमी:जरा ध्यान से शम्भू हवेली वालो के नजर में मत आना।
शम्भू:किसन चाचा आप कतई चिंता न करो मै उसका ख्याल रखूंगा।
भिवा:अरे तू रखेगा मालूम है पर बाबूजी नए है अगर हवेली के सांडों की नजर पड़ गयी तो कयामत आ जाएगी।
शम्भू:अरे चाचा क्यो डरा रहे हो।चलो हम निकलते है भैया।चलो चाचा राम राम!!!
उन दोनों को राम राम करके हम वहां से अंदर बस्ती की तरफ अंदर घुसे।मुझे शम्भू बस्ती दिखा रहा था।तभी शम्भू को किसीने पुकारा।
वो:अरे शम्भू कहा जा रहे हो,इधर आओ।
आवाज किसी औरत की थी।हम पिछे देखा तो वो दरवाजे से कंगी करते हुए बाहर आ रही थी।35 से 40 साल की औरत।उसे देख शादीशुदा लग रही थी पर न जेवर थे न मंगलसूत्र।न बिंदिया न कोई टिका।लगता है विधवा थी।
शम्भू:बोलो मीना चाची कुछ काम था।
अच्छा तो मीना नाम था उनका।काफी भरे शरीर की थी।गांड भी काफी बड़ी थी और चुचे भी ।मैं 16 साल का जरूर था पर शहर से था तो सेक्स संबंधित सारी जानकारी थी।शहर में जिस लड़को के साथ मै रहता था ओ तो टीचर्स की गांड को घूरते थे उसपे कमेंट करते थे,मैरी भी इच्छा होती थी पर घर के डर से मैं उसमे नही ज्यादा घुसता था।
मीना:अरे शम्भू आज आये नही तुम,सुबह से राह देख रही हु।
शम्भू:वो नए कलेक्टर साब आये है,मा उधर लेके गयी थी मुझे,कुछ मदत हो जाए जाए इसलिए।
मीना:तो बोलके नही जा सकता था।तुझे मालूम है न मुझे तुमसे मालिष करवाती हु।चल अंदर आ बहोत दर्द हो रहा है बदन में।
शम्भू:पर अभी मै(शम्भू मेरी तरफ देखता है।)
मीना:अरे ये नया बच्चा कौन है।नया है गाँव में।
शम्भू:ये कलेक्टर साब का बेटा है।इनहे बस्ती दिखाने लाया था।
मीना:क्यो बेटा पसन्द आयी बस्ती हमारी।थोड़ी गंदगी है,संभाल लेना आप लोगो को आदत नही होगी उसकि।
मैं:नही मुझे आदत है इन चीजो की पिताजी के साथ घुमा हु अइसी जगहों पे।शुक्रिया आपमे चिंता जाहिर की इसलिए।बहोत कम अच्छे और खूबसूरत लोग मिलते है बस्तियों में।नही तो सरकारी आदमी और उसका परिवार देख कर लोग कींचड़ फेकते है।
मेरे जवाब से मीना थोड़ी सहम सी गयी।उसकी हसि बता रही थी की मेरा प्यारभरा पलटवार अच्छा लगा उसको।
शम्भू:फिर चाची निकलू मै??!!
मीना:अरे किधर जा रहा है इधर आ अंदर मालिश करवा दे।बहोत दुख रहा है।
शम्भू ने मेरे ओर देखा,वो क्या करे क्या न करे इस उलझन में फंस गया।
मीना मुझसे:क्यो बेटा क्या नाम है आपका !??
मैं:जी विनय,पर प्यार से वीनू बोलते है लोग।
मीना:तो वीनू बेटा शम्भू थोड़ी देरमेरी मालिश करेगा तो आपको कोई एतराज तो नही न!??!
मैं:नही चाची,कोई बात नही,मुझे कोई एतराज नही।
मीना:चलो अंदर चलते है।अभी धूप पड़ आएगी।
हम मीना के घर में गए।कोई नही था ।एक 10 ×10 का झोपड़ा,एक बाजू चूल्हा बर्तन एक छोटी खटिया और कुछ सामान भरा पड़ा था।।एक दीवार पर तीन फ़ोटो तंगी थी।
मैं:चाची ये?
मुझे फ़ोटो को ताकते देख वो मुस्करके बोली:वो सास ससुर और वो मेरे पति,अभी इस दुनिया में नही है।
मै:अच्छा माफ करना!!!
मैं खटिये के बाजू में रखे गद्दे पे बैठा था।मीना चाची साड़ी निकाल के खटिये पर पेट के बल सो गयी।मैं ठीक उनके सामने उनकी तरफ मुह कर बैठा था।हमारे बीच में 1हाथ जितना अंतर रहेगा क्योकि झोपड़ा भी छोटा था।शम्भू उनके दोनो तरफ पैर डालके तेल लगाके रगड़ रहा था।मीना चाची सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थी।
मीना:हाये जरा जोर से रगड़ शम्भू,काम करके बहोत दर्द जमा होता है बदन में।
शम्भू उनकी पीठ को रगड़ रहा था।मीना चाची का ब्लाउज तेल से भीग गया था।और शम्भू को भी अभी उनके बाजुओं को रगड़ना था।वो कुछ बोलता उससे पहले ही उन्होंने अपने ब्लाउज के बटन खोले।और उनके ब्लाउज के बटन खोलते ही शम्भू ने खींच कर ब्लूज निकाल दिया।मीना चाची ब्लाउज खींचते वक्त थोड़ी ऊपर हो गयी।उनके चुचे मेरे सामने थे।बहोत बड़े गुब्बारे।मै अभीतक सिर्फ दोस्तों से ही सुना था पर असलियत में आज ही देखा था ,किसी औरत के चुचे।मेरा मुह खुला का खुला रह गया।मेरे उस अवस्था पर मीना चाची मुस्काई।
मीना:क्यो वीनू बेटा कभी औरत के नंगे चुचे नही देखे क्या?
मैं थोड़ा शर्मा गया:माफ करना चाची वो!!!?
मीना:अरे मैं डांट नही रही।तुम डरो नही।मुझे लगा तुम शहर से हो ।इन बातों को बहोत बखूबी जानते होंगे।
मैं:नही चाची,घर में बहोत कठोर शाशन है।अइसी चीजो में ध्यान जाने का कोई सवाल ही नही आता।
मीना:मतलब इस उम्र तक किसी औरत को छुआ भी नही तुमने।और ये एक है हमारा शम्भू रोज मेरे को ऊपर से नीचे तक रगड़ता है।क्यो शम्भू तूने कितनी बार औरत को नंगा देखा है।
शम्भू अपने आप में मगन था।उसको पुकारते ही वो थोड़ा सहम जाता है।
मीना:देखा,अभी उसको आदत हो गयी औरतो की।उम्र छोटी है पर बहोत कुछ सिख लिया है।तुम भी आये हो तुम्हे भी सीखा देंगे।
मै:मैं कुछ समझा नही।
मीना:तुमको कल समझा दूंगी आज हवेली जाना है जल्दी।कल रात को आ जाना।
शम्भू:पर कल तो होली है।
मीना:अरे इसी लिए तो बोली,सब गाँव हवेली जाएगा रात को जश्न मनाने।वहाँ नए कलेक्टर को भी बुलाएंगे।तुम इसे यहाँ लेके आ जाना।
हम मीना चाची को अलविदा कर के वहां से घर की तरफ निकले।दोपहर हो गयी थी।घर के गेट पर ही सीता चाची दिखी।
सीता:क्यो रे शम्भू इतनी देर कहा थे!??
शम्भू से पहले मैं ही बोल दिया:वो आपके बस्ती में गए थे वो मीना चाची मिली थी...!!
मैं उसके आगे कुछ बोलता उससे पहले सो झांपड शम्भू के गाल पर पड़ गे।मै चौक गया।शम्भू डर कर मेरे पीछे आ के छुप गया।
मैं:अरे आप उसको क्यो मार रहे हो,उसकी क्या गलती।
सीता:बाबूजी उसे बोला था की उस छिनाल से दूर रहना फिर भी ये वह गया।आज इसीलिए उसको यहां लाई थी।फिर भी।
मैं:क्या!!!आप क्या बोल रही है,कुछ समझ नही आ रहा।
सीता:माफ करना बाबूजी!!वो मीना बहोत चलाख औरत है,हवेली में काम करती है।और क्या क्या काम करती है वो मैं आपको नही बता सकती।उसकी नजर बहोत दिनों से इसके ऊपर है।
मैं:अरे वो इतनी भी बुरी नही है।मुझसे अच्छे से पेश आयी।आपको कुछ गलतफहमी हुई होगी।
सीता:वो उस तरह बुरी नही है।मैं आपको कैसे समझाऊ।
मैं:अरे शम्भू तो छोटा है उसको वो क्या करेगी।बच्चे से वो क्या करने वाली है।
सीता:वो कुछ भी कर सकती है।जबसे ये उसके घर जाने लगा है तबसे बडी अजीब और घटिया हरकते करने लगा है।
मैं:कुछ समझ नही पा रहा हु।ये तो भोला है बिल्कुल।
सीता:मैं आपको कैसे बताऊ।वो मुझे कहि पर भी छूता है।बेशर्म कही का।
मैं:अरे आपका ही बेटा है।आपके गोद में खेलेगा न।
सीता ने मुझे गेट के अंदर लिया और एक कोने में करके मुझे धीमे से इशारा करते गए।
सीता चुचो को इशारा करते हुए:अरे रात को चुचो को रगड़ता है कभी (गांड की तरफ इशारा) इधर को रगड़ता है।
मैंने शम्भू को थोड़ा घूर के देखा।पर मैंभी नादान बनके बोला।
मैं:चाची बच्चा है ,उसको समझोगे तो समझ जाएगा।पिताजी कहते है हिंसा किसी मसले का हल नही होता।
सीता:आप बोलते हो तो देखती हु समझा के।पर नही समझा तो।
मैं:चाची नही समझा तो मुझे बता देन मैं कुछ हल निकलवाता हु।
सीता:जी जैसा आप ठीक समझे।आप जाओ खाना तैयार है।मैं रात को आ जाऊंगी।
मैं उन दोनो को अलविदा बोल कर वहाँसे घर में आ गया।वो लोग अपने रास्ते निकल गए।
गाँव का पहला दिन बहोत अच्छा गया अइसे नही बोल सकता पर अगर सुबह वाला वाकिया हटा दिया जाए तो काफी हद तक मुझे मजा आया।