firefox420
Well-Known Member
- 3,371
- 13,856
- 143
कावेरी-उम्र 45,ठकुराइन,साम्बा की पत्नी।
कामिनी-उम्र 40 कालिया की बिवि।
श्वेता-उम्र 21-कबीर से 6 साल छोटी।ग्रेजुएशन खत्म अभी हवेली के अंदर ही।
पार्वती-उम्र 42,सांबा के 2 नंबर भाई की बीवी।
दामिनी-उम्र 43,सांबा से 1 साल छोटी,पर लोग कहते है खूद के पति का कत्ल करके जेल से आने के बाद भाई के पास है।
(episode 3)
दूसरे दिन सुबह मा ने मुझे बता दिया की शाम को हवेली से न्योता आया है होली के महोत्सव के लिए।मतलब मीना सही बोल रही थी।पर मा कहि बाहर जा रही थी दादी के साथ।मैंने पूछा तो बोली यहां पास वाले मंदिर में जाके आती हु।
मैं:अकेले क्यो जा रही हो,सीता चाची को लेके जाओ।
मा:अरे नही उसको काम बताया है,ज्यादा दूर नही है,हम जाकर आ जाएंगे,शम्भू है हमारे साथ।
मैं:ठीक है,सम्भलके जाना।
मा दादी शम्भू को लेके निकल गए मंदिर में।मैं अपने कमरे में जाके कॉमिक्स पढ़ रहा था।क्योकि वैसे भी मुझे कोई और काम नही था।कम्प्यूटर में इंटरनेट कल लगने वाला था,क्योकि होली की वजह से कोई आने वाला नही था।
कुछ देर बाद सीता कमरे में आयी।
सीता:बाबूजी व्यस्त हो क्या?!?
मैं:नही बोलो चाची,कुछ मदद चाहिए थी क्या?!!!??
सीता:अरे वो कुछ बात करनी थी,कमरे में आ जाऊ क्या?
मैं:हा आजाओ!!!!!!
सीता अंदर आ जाती है।थोड़ा मुस्करहा देती है।
मैं:बोलो क्या बात है।
सीता:वो बाबूजी वो वो क्या है की!!
मैं:देखो ये वो वो वाली बातों से मेरा दिमाग खराब होता है,जो बात है साफ साफ बोलो।
सीता:कल मैंने आपको बोला था न शम्भू के बारे में!!!
मैं:कौनसी बात,मुझे कुछ याद नही आ रहा।
सीता:वो उसकी छूने वाली बात!?!?!
मैं:क्या छूने वाली बात,अरे साफ साफ बताओ,कुछ कर दिया क्या शम्भू ने।
(मुझे सच में वो बात याद नही थी।मेरा मन में सिर्फ मीना चाची घूम रही थी तो मैं भूल गया था।)
सीता:लगता है कल की बात आप भूल गए।
मैं:शायद!!फिर भी तुम बता दो,तुम्हे तो याद है न!!
सीता:बाबूजी वो कल शम्भू ने फिरसे मेरे उन अंगों को दबोचा।
मैं:कहा पे??
सीता अपने चुचे की तरफ इशारा करते हुए शरमाई।मुझे भी थोड़ा अजीब फील हुआ।क्योकि वैसे भी मेरी उम्र बहोत नही पर छोटी थी।मैं 16 साल का बच्चा और वो 35 से 40 साल गदराई हुई औरत।उसका अइसी बाते मेरे साथ करना इसके दो अर्थ बन रहे थे।यातो वो मुझ आकर्षित करना चाहती थी याफिर मुझे शहर का पढ़ा लिखा लड़का समझ मुझसे मदद मांग रही थी।पर मेरी परेशानी जरूर बढ़ रही थी।एक परेशानी ये की वो किस अर्थ से मुझसे ये सब कर रही थी और दूसरी ये की उसपे मैं रिएक्ट कैसे करू।
मैं:अच्छा याद आया कल का।उसमे क्या इतनी घबराने या चिढ़ने वाली बात,बेटा है तुम्हारा और नींद में किया होगा।इसलिए कल उसे पिट रही थी।
सीता:हा!!!अगर वो अपनी मा को अइसी नजर से देख रहा होगा,तो बाकी औरतो का क्या?अपने कल बोला इसलिए मारा नही और उसके बापू को मालूम हुआ तो उसकी जान ले लेंगे ओ।
मैं:मत बताना चाचा को।बड़ी कयामत आ जाएगी।और मार के कुछ मतलब नही।उसे अभी उसकी लत लग गयी है।मारके उसे खो दोगे आप।
सीता:पर अभी करू क्या।आपने बोला था की अगर नही सुधरा तो आप कुछ कर लेंगे।
मैं:ठीक है मैं देख लेता हु।वैसे कल हुआ क्या था विस्तार से बताएगी।
सीता शर्माके:जी अइसे कैसे,आपसे ये बाते।
मैं:मैं जानता हु आपकी उम्र और मेरी उम्र और हमारा रिश्ता इनके हिसाब से ये थोड़ा अजीब और गैर है।पर मा कहती है किसी बिगड़ी बात को सुधारना हो तो उसके मूल में जाके उसका फिरसे अनुभव करो।
सीता:मतलब नही समझी मैं,आप बड़े लोगो की भाषा हम गवार लोगो को नही मालूम पड़ेगी।
तभी बाहर से मा सीता को पुकारती है।वो दौड़ती हुई चली जाती है।मैं फिरसे अपनी कॉमिक्स में घुस जाता हु।
शाम 7 बजे
हम सारे लोग हवेली चले जाते है।पूरा राजमहल जैसा सजी हुई थी हवेली।आज रात को पूजा के बाद कल दिनभर रंगपंचमी होने वाली थी।
हम अंदर जाते ही मुझे मीना दिखाई देती है।पर सबके सामने वो मुझे नजरअंदाज कर देती है।वो मेरे पिताजी से।
मीना:कलेक्टर साब ठाकुर साब ने आपको ऊपर की तरफ बुलाया है।
हवेली 3 मंजिली थी। पहले मंजिले पर सब प्रमुख महमान जैसे पुलिस मंत्री और कई सरकारी मुलाजिम थे बस कमी मेरे पिताजि की ही थी।
हम ऊपरी मंजिल पे जाते ही एक हट्टाकट्टा आदमी हमारे सामन आ जाता है।
वो:नमश्कार कलेक्टर साब,धन्य भाग हमारे जो आप यह पधारे।शुक्रिया हमारी जुबानी का सन्मान रखने के लिए!!!
पिताजी:अरे सांबा जी,आपकी जहाँगीर के छोटे से मुलाजिम है हम ,आपके जुबानी की तौहीन करने की जुर्रत कैसे करेंगे।
सांबा:ये तो आपका बड्डपन है।
वो ठाकुर था,जिससे सारा गाँव नाम से ही काँपता था।मुझे दूसरा आदमी भी दिख गया जो रहीम चाचा को उस दिन मारके फेंक कर गया था।सांबा पिताजी को लेके अपने परिवार के पास आया।
साम्बा:ये मेरी पत्नी-कावेरी
कावेरी ने सबको नमस्ते किया।
साम्बा:ये मेरा आखरी वाला भाई-कलेश्वर(कालिया) और ये उसकी पत्नी-कामिनी
दोनो हमे नमस्ते करते है।हम भी उनका मुस्करके नमस्ते स्वीकार करते है।
साम्बा:ये मेरी बेटी-श्वेता मेरा बेटा-कबीर ,मेरे बीच वाले भाई की बीवी-पार्वती,और उनके ये दो बच्चे चीनू और मीनू और ये मेरी बहन दामिनी
हमने सबको नमस्ते किया।पिताजी ने भी हमारी पहचान करवाई।मा और दादी औरतो के बीच बैठी।पिताजी मर्द लगो के यह जाके बैठे।मैं अइसे ही खड़ा सब हवेली ताक रहा था।
श्वेता:हाय,माय नेम इज श्वेता!
मैं:मुझे अंग्रेज पसन्द नहीं।
श्वेता थोड़ी सहम कर:अच्छा!!नमस्ते मेरा नाम श्वेता है।आपका?
मैं:मुझे मेरा नाम नही मालूम।नामकरण के वक्त मैं पढ़ाई लिखाई नही किया था।
श्वेता:पर आपके पिताजी ने बोला आपका नाम विनय है।
मै:आपको मालूम है तो पूछा क्यो!!?
श्वेता गुस्सेल जाती है:अरे यार,कितने रूढ़ हो तुम।जाओ हमे बात नही करनी तुमसे।
मैं:अरे मैंने कहा जबरदस्ती की थी।बड़े अजीब नखरे है आपके।
श्वेता:देखो तुम देखके अच्छे लगे इस लिए दोस्ती करने आये यहाँ।वरना हमसे दोस्ती करना इतना आसान नही।लड़को की लाइन लग जाती है,रात रात जाग के मेरे फ्रेंडशिप के लिए राह ताकते है।और दूसरी बात हम ठाकुर के बेटी हु।थोड़ा तमीज से।
मै:मिस ठकुराइन जी देखके ही नही असलियत में भी हम अच्छे लड़के नही है,पिताजी के इज्जत के लिये ये सब मेंटेन करना पड़ता है।और राह ताकते रहना जैसी बाते करने वालो में से हम नही,और राह आपके लिए ताके ,वो भी हम,ये हरगिज मुमकिन नही।और तमीज खुद सिख लीजिए।दोस्ती करने आयी हो,और दो टेढ़े जवाब क्या दिए अपने रुदबे पे आ गयी।दोस्ती में कोई बड़ा कोई छोटा नही होता।नमस्ते!!!!
मैं वहाँ से निकल जाता हु।वो मुझसे करीब 6 साल बड़ी थी।कल सुबह के वाकिये से मेरा ठाकुरों पर से मन उठ गया था।पिताजी बोले इसलिए यहाँ आया था।नही तो मेरा कुछ मन नही था।श्वेता सिर्फ मुझे ताकती रह गयी।उसने सोचा भी नही होगा की उसको कोई अइसे भी जवाब दे सकता है वो भी उस जगह जहा हर एक पत्ता उसके पिताजी का गुलाम हो।
मैं मा को बोलके आया की मैं हवेली घूम कर आता हु।और मैं नीचे आया।घर में कोई नही था सब लोग हवेली के सामने वाले मैदान में थे।होली जलाने में बहुत समय था।शम्भू भी कहि दिखाई नही दे रहा था।मैं अकेला बहोत ऊब रहा था।
मैं हवेली घूमते हुए हवेली के पिछवाड़े चला गया।जहा नौकर लोगो के लिए जगह बनाई गयी थी।जैसे गेस्ट का गेस्ट रूम होता है वैसे।जिससे कभी नौकर नौकरानी को हवेली में रहना पड़ा या कुछ खाना नाश्ता करना है तो उसके लिए उसे वहाँ जाना पड़ता था।होस्टल की तरह 6 से 7 कमरे थे।मैं हर एक कमरे के बाहर से आंख फेरते हुए घूम रहा था।हर कमरे में एक बेड एक छोटी अलमारी और बाथरूम था।कमरे गोल सर्कल की तरह बंधे थे।जब मैंने तीसरे कमरे को पर करके चौथे कमरे के पास जाने वाला था तभी तीसरे कमरे से किसीने मुझे खींच लिया।मैं डर के चींख देने वाला था पर किसीने मुह दबाके चुप कराया।
वो:चुप रहो वीनू मैं हु।
डर से बन्द की आंखे खोली तो सामने मेरे देख सांस छोड़ दी।
मैं:अरे मीना चाची जान निकाल दी आपने।
मीना:तुम यहां क्या कर रहे हो।
मै:अरे शम्भू भी नही है,न कोई मेरे उम्र का बच्चा,ऊब गया हु अकेले,बस सोचा घूम इधर उधर।
मीना:शम्भू को ढूंढ़के कुछ फायदा नही,उन लोगो को यहाँ आना मन है बस हवेली के दरवाजे तक ही।
मैं:अइसा क्यो ?फिर आप!!!?
मीना:अरे मै नौकरानी हु।बाकी कोई गाँव का आदमी बिना ठाकुर के आज्ञा हवेली के आसपास भी नही आ सकता।क्योकि उससे ठाकुर के मान मर्यादा को ठेच पहोचती है।
मैं:वो सब ठीक है।वहा महोत्सव चल रहा है।आप यहाँ क्या कर रहे हो !!??
मीना:अरे वो तो मैं महोत्सव की साड़ी बदलने आयी थी।
इतनी देर तक हम बातों में अटके रहे पर मुझे इस बात पे ध्यान नही गया की मीना चाची मेरे सामने ब्लाउज और पेटीकोट में ही थी।उसको देखते हुए बस मैं आंखे फाडे रह जाता हु।वो अचानक से दरवाजे की ओर जाके दरवाजे को बंद कर देती है और खिड़की भी।
मीना मेरे पास आके:तुझे किसीने देखा तो नही।
मैं:नही ,कोई नही था,जब मैई आया।क्यो?
मीना:खास नही अइसे ही पूछा।
मै:आप अइसे आधे कपड़ो में??
मीना:क्यो कभी किसी औरत को आधे कपड़ो में नही देखे हो।
मैं:देखा हु पर फ़ोटो में असलियत में नही देखा कभी।
मीना:सच में मतलब छुआ भी नही होगा।
मैं:अरे देखा ही पहली बार है,छूने का तो सवाल ही पैदा नही होता।
मीना:अगर छूने को मील गया तो पहले कहा छुओगे?
मैं सोचते हुए:मैं बोल देता पर आपके सामने कैसे बोलू ,आप बुरा मांन जाओगे।
मीना:अरे नही बुरा माने मेरी जुति।तुम एकदम बेझिझक बोलो।आज कुछ मैं तुमको सिखाऊंगी,कुछ तुम मुझको सिखाना।
मैं:मुझे बूब्स बहोत पसन्द है।
मीना:ये बूब्स क्या होता है।
मैं:अरे बूब्स मतलब जो आपके छाती पे गुब्बारे है वो।
मीना:अच्छा जी तुझे चुचे बोलना है क्या!!?
मैं:चुचे!!!??
मीना मेरा हाथ पकड़ के चुचो पे रखती है:यही तुम्हारे बूब्स
मैं सिहर के:आआह हा!!!
मीना:इसे गाँव में चूचा बोलते है।
मैं:अच्छा ओके।
मेरा हाथ अभी भी उसके चुचो पे था।ओ मेरे हाथ को ब्लाउज के ऊपर से चुचो पे घुमा रही थी।
मीना:और कुछ छूना है?
मैं सोच कर:हम्म एज(ass)को छूना है।अगर आप बुरा न मानो तो।
मीना:ये एज( ass )क्या होता है,मुझे नही मालूम तुम ही ढूंढ के हाथ लगा दो मुझे कोई एतराज नही।
मैंने अपने हाथ चुचो से निकाल कर दो हाथ इर्दगिर्द घुमा कर दोनो गांड को कस के दबोच लिया।
मीना"आआह हाये दैया मेरी गांड आछह आआह"
मैं:ओहो तो इसे गांड बोलते है।
मीना:हा इसे गांड बोलते है।बस इतनाही की और भी कुछ है।
मैं:मतलब मै नही समझा!!!!???
मीना:अरे बुड़बक चुत की प्यास नही तुझे।
मैं:ये चुत क्या होती है?और उसकी प्यास क्यो लगती है!!??
मीना को समझ आता है की गाँव के गंदे शब्द का ज्ञान मुझे नही है।इसलिए वो बेड पे बैठ कर पेंटी निकालती है और पेटीकोट कमर तक करके पैर फैला देती है:इसको बोलते है चुत,चुतये।(वो नटखट हस देती है)
मैं:आपका मतलब पुसी।ओके ओके।मुझे बहोत पसन्द है।पर इसपे बहोत बाल है।आपकी पुसी सॉरी चुत दिख नही रही।
मीना:तुम ही ढूंढ लो।आ जाओ।
मैं पास में जाके मीना के चुत में उंगलियां फेर देता हु,वो सिहर जाती है और मेरा हाथ पकड़ लेती है।पर हम आगे बढ़े उससे पहले दरवाजा खटखट करता है।सलवार कहि करके,साड़ी लपेटे वो दरवाजा खोलती है।मै दरवाजे के आड़े खड़ा हो जाता हु।
दूसरी नौकरानी:अरे रंडी अभी तक तैयार नही हुई,कहा गांड मरवा रही थी,चल जल्दी तैयार हो जा,होली जलाने की रस्मे चालू हो जाएगी।
मीना:तुम जाओ री छिनाल,मैं आरी है आबी जा।
वो नौकरानी जाने के बाद मैं भी वह से निकल के होली के पास जाता हु।सभी लोग वही मौजूद थे।
मा:अरे कहा गया था?
मैं:वो मा मैं.......
दादी:बहु जाने दो अभी आ गया ना,अभी एग्जाम मत ले।
मैंने दादी को आंख मारके थैंक्स बोला।मा भी चुप रही क्योकि दादी के सामने पिताजी की भी नही चलती।
होली दहन का कार्यक्रम चालू हुआ।करीब सब पूजा ,दहन विधि के बाद हम वहाँ से घर के लिए निकले।
Disclosure: कहानी में उपयोगित सभी चित्र (photo) एवम चलचित्र(gif or vids)इंटरनेट से संशोधित है।एडमिन और उसकी टीम चाहे तो हटा सकती है।पर बाकी कहानी के अंग रूपरेशा ©MRsexywebee के आधीन है।
[/QUOTE
Keep writing