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Adultery Son Of Collector-(Hindi,Incest,Group,Hidden Suspens)

Kyo bhai pasand aa gyi kahani ?


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(episode 3)

दूसरे दिन सुबह मा ने मुझे बता दिया की शाम को हवेली से न्योता आया है होली के महोत्सव के लिए।मतलब मीना सही बोल रही थी।पर मा कहि बाहर जा रही थी दादी के साथ।मैंने पूछा तो बोली यहां पास वाले मंदिर में जाके आती हु।

मैं:अकेले क्यो जा रही हो,सीता चाची को लेके जाओ।

मा:अरे नही उसको काम बताया है,ज्यादा दूर नही है,हम जाकर आ जाएंगे,शम्भू है हमारे साथ।

मैं:ठीक है,सम्भलके जाना।

मा दादी शम्भू को लेके निकल गए मंदिर में।मैं अपने कमरे में जाके कॉमिक्स पढ़ रहा था।क्योकि वैसे भी मुझे कोई और काम नही था।कम्प्यूटर में इंटरनेट कल लगने वाला था,क्योकि होली की वजह से कोई आने वाला नही था।

कुछ देर बाद सीता कमरे में आयी।

सीता:बाबूजी व्यस्त हो क्या?!?

मैं:नही बोलो चाची,कुछ मदद चाहिए थी क्या?!!!??

सीता:अरे वो कुछ बात करनी थी,कमरे में आ जाऊ क्या?

मैं:हा आजाओ!!!!!!

सीता अंदर आ जाती है।थोड़ा मुस्करहा देती है।

मैं:बोलो क्या बात है।

सीता:वो बाबूजी वो वो क्या है की!!

मैं:देखो ये वो वो वाली बातों से मेरा दिमाग खराब होता है,जो बात है साफ साफ बोलो।

सीता:कल मैंने आपको बोला था न शम्भू के बारे में!!!

मैं:कौनसी बात,मुझे कुछ याद नही आ रहा।

सीता:वो उसकी छूने वाली बात!?!?!

मैं:क्या छूने वाली बात,अरे साफ साफ बताओ,कुछ कर दिया क्या शम्भू ने।

(मुझे सच में वो बात याद नही थी।मेरा मन में सिर्फ मीना चाची घूम रही थी तो मैं भूल गया था।)

सीता:लगता है कल की बात आप भूल गए।

मैं:शायद!!फिर भी तुम बता दो,तुम्हे तो याद है न!!

सीता:बाबूजी वो कल शम्भू ने फिरसे मेरे उन अंगों को दबोचा।

मैं:कहा पे??

सीता अपने चुचे की तरफ इशारा करते हुए शरमाई।मुझे भी थोड़ा अजीब फील हुआ।क्योकि वैसे भी मेरी उम्र बहोत नही पर छोटी थी।मैं 16 साल का बच्चा और वो 35 से 40 साल गदराई हुई औरत।उसका अइसी बाते मेरे साथ करना इसके दो अर्थ बन रहे थे।यातो वो मुझ आकर्षित करना चाहती थी याफिर मुझे शहर का पढ़ा लिखा लड़का समझ मुझसे मदद मांग रही थी।पर मेरी परेशानी जरूर बढ़ रही थी।एक परेशानी ये की वो किस अर्थ से मुझसे ये सब कर रही थी और दूसरी ये की उसपे मैं रिएक्ट कैसे करू।

मैं:अच्छा याद आया कल का।उसमे क्या इतनी घबराने या चिढ़ने वाली बात,बेटा है तुम्हारा और नींद में किया होगा।इसलिए कल उसे पिट रही थी।

सीता:हा!!!अगर वो अपनी मा को अइसी नजर से देख रहा होगा,तो बाकी औरतो का क्या?अपने कल बोला इसलिए मारा नही और उसके बापू को मालूम हुआ तो उसकी जान ले लेंगे ओ।

मैं:मत बताना चाचा को।बड़ी कयामत आ जाएगी।और मार के कुछ मतलब नही।उसे अभी उसकी लत लग गयी है।मारके उसे खो दोगे आप।

सीता:पर अभी करू क्या।आपने बोला था की अगर नही सुधरा तो आप कुछ कर लेंगे।

मैं:ठीक है मैं देख लेता हु।वैसे कल हुआ क्या था विस्तार से बताएगी।

सीता शर्माके:जी अइसे कैसे,आपसे ये बाते।

मैं:मैं जानता हु आपकी उम्र और मेरी उम्र और हमारा रिश्ता इनके हिसाब से ये थोड़ा अजीब और गैर है।पर मा कहती है किसी बिगड़ी बात को सुधारना हो तो उसके मूल में जाके उसका फिरसे अनुभव करो।

सीता:मतलब नही समझी मैं,आप बड़े लोगो की भाषा हम गवार लोगो को नही मालूम पड़ेगी।

तभी बाहर से मा सीता को पुकारती है।वो दौड़ती हुई चली जाती है।मैं फिरसे अपनी कॉमिक्स में घुस जाता हु।

शाम 7 बजे

हम सारे लोग हवेली चले जाते है।पूरा राजमहल जैसा सजी हुई थी हवेली।आज रात को पूजा के बाद कल दिनभर रंगपंचमी होने वाली थी।

हम अंदर जाते ही मुझे मीना दिखाई देती है।पर सबके सामने वो मुझे नजरअंदाज कर देती है।वो मेरे पिताजी से।

मीना:कलेक्टर साब ठाकुर साब ने आपको ऊपर की तरफ बुलाया है।

हवेली 3 मंजिली थी। पहले मंजिले पर सब प्रमुख महमान जैसे पुलिस मंत्री और कई सरकारी मुलाजिम थे बस कमी मेरे पिताजि की ही थी।

हम ऊपरी मंजिल पे जाते ही एक हट्टाकट्टा आदमी हमारे सामन आ जाता है।

वो:नमश्कार कलेक्टर साब,धन्य भाग हमारे जो आप यह पधारे।शुक्रिया हमारी जुबानी का सन्मान रखने के लिए!!!

पिताजी:अरे सांबा जी,आपकी जहाँगीर के छोटे से मुलाजिम है हम ,आपके जुबानी की तौहीन करने की जुर्रत कैसे करेंगे।

सांबा:ये तो आपका बड्डपन है।

वो ठाकुर था,जिससे सारा गाँव नाम से ही काँपता था।मुझे दूसरा आदमी भी दिख गया जो रहीम चाचा को उस दिन मारके फेंक कर गया था।सांबा पिताजी को लेके अपने परिवार के पास आया।

साम्बा:ये मेरी पत्नी-कावेरी

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कावेरी-उम्र 45,ठकुराइन,साम्बा की पत्नी।

कावेरी ने सबको नमस्ते किया।

साम्बा:ये मेरा आखरी वाला भाई-कलेश्वर(कालिया) और ये उसकी पत्नी-कामिनी

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कामिनी-उम्र 40 कालिया की बिवि।

दोनो हमे नमस्ते करते है।हम भी उनका मुस्करके नमस्ते स्वीकार करते है।

साम्बा:ये मेरी बेटी-श्वेता मेरा बेटा-कबीर ,मेरे बीच वाले भाई की बीवी-पार्वती,और उनके ये दो बच्चे चीनू और मीनू और ये मेरी बहन दामिनी

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श्वेता-उम्र 21-कबीर से 6 साल छोटी।ग्रेजुएशन खत्म अभी हवेली के अंदर ही।

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पार्वती-उम्र 42,सांबा के 2 नंबर भाई की बीवी।

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दामिनी-उम्र 43,सांबा से 1 साल छोटी,पर लोग कहते है खूद के पति का कत्ल करके जेल से आने के बाद भाई के पास है।

हमने सबको नमस्ते किया।पिताजी ने भी हमारी पहचान करवाई।मा और दादी औरतो के बीच बैठी।पिताजी मर्द लगो के यह जाके बैठे।मैं अइसे ही खड़ा सब हवेली ताक रहा था।

श्वेता:हाय,माय नेम इज श्वेता!

मैं:मुझे अंग्रेज पसन्द नहीं।

श्वेता थोड़ी सहम कर:अच्छा!!नमस्ते मेरा नाम श्वेता है।आपका?

मैं:मुझे मेरा नाम नही मालूम।नामकरण के वक्त मैं पढ़ाई लिखाई नही किया था।

श्वेता:पर आपके पिताजी ने बोला आपका नाम विनय है।

मै:आपको मालूम है तो पूछा क्यो!!?

श्वेता गुस्सेल जाती है:अरे यार,कितने रूढ़ हो तुम।जाओ हमे बात नही करनी तुमसे।

मैं:अरे मैंने कहा जबरदस्ती की थी।बड़े अजीब नखरे है आपके।

श्वेता:देखो तुम देखके अच्छे लगे इस लिए दोस्ती करने आये यहाँ।वरना हमसे दोस्ती करना इतना आसान नही।लड़को की लाइन लग जाती है,रात रात जाग के मेरे फ्रेंडशिप के लिए राह ताकते है।और दूसरी बात हम ठाकुर के बेटी हु।थोड़ा तमीज से।

मै:मिस ठकुराइन जी देखके ही नही असलियत में भी हम अच्छे लड़के नही है,पिताजी के इज्जत के लिये ये सब मेंटेन करना पड़ता है।और राह ताकते रहना जैसी बाते करने वालो में से हम नही,और राह आपके लिए ताके ,वो भी हम,ये हरगिज मुमकिन नही।और तमीज खुद सिख लीजिए।दोस्ती करने आयी हो,और दो टेढ़े जवाब क्या दिए अपने रुदबे पे आ गयी।दोस्ती में कोई बड़ा कोई छोटा नही होता।नमस्ते!!!!

मैं वहाँ से निकल जाता हु।वो मुझसे करीब 6 साल बड़ी थी।कल सुबह के वाकिये से मेरा ठाकुरों पर से मन उठ गया था।पिताजी बोले इसलिए यहाँ आया था।नही तो मेरा कुछ मन नही था।श्वेता सिर्फ मुझे ताकती रह गयी।उसने सोचा भी नही होगा की उसको कोई अइसे भी जवाब दे सकता है वो भी उस जगह जहा हर एक पत्ता उसके पिताजी का गुलाम हो।

मैं मा को बोलके आया की मैं हवेली घूम कर आता हु।और मैं नीचे आया।घर में कोई नही था सब लोग हवेली के सामने वाले मैदान में थे।होली जलाने में बहुत समय था।शम्भू भी कहि दिखाई नही दे रहा था।मैं अकेला बहोत ऊब रहा था।

मैं हवेली घूमते हुए हवेली के पिछवाड़े चला गया।जहा नौकर लोगो के लिए जगह बनाई गयी थी।जैसे गेस्ट का गेस्ट रूम होता है वैसे।जिससे कभी नौकर नौकरानी को हवेली में रहना पड़ा या कुछ खाना नाश्ता करना है तो उसके लिए उसे वहाँ जाना पड़ता था।होस्टल की तरह 6 से 7 कमरे थे।मैं हर एक कमरे के बाहर से आंख फेरते हुए घूम रहा था।हर कमरे में एक बेड एक छोटी अलमारी और बाथरूम था।कमरे गोल सर्कल की तरह बंधे थे।जब मैंने तीसरे कमरे को पर करके चौथे कमरे के पास जाने वाला था तभी तीसरे कमरे से किसीने मुझे खींच लिया।मैं डर के चींख देने वाला था पर किसीने मुह दबाके चुप कराया।

वो:चुप रहो वीनू मैं हु।

डर से बन्द की आंखे खोली तो सामने मेरे देख सांस छोड़ दी।

मैं:अरे मीना चाची जान निकाल दी आपने।

मीना:तुम यहां क्या कर रहे हो।

मै:अरे शम्भू भी नही है,न कोई मेरे उम्र का बच्चा,ऊब गया हु अकेले,बस सोचा घूम इधर उधर।

मीना:शम्भू को ढूंढ़के कुछ फायदा नही,उन लोगो को यहाँ आना मन है बस हवेली के दरवाजे तक ही।

मैं:अइसा क्यो ?फिर आप!!!?

मीना:अरे मै नौकरानी हु।बाकी कोई गाँव का आदमी बिना ठाकुर के आज्ञा हवेली के आसपास भी नही आ सकता।क्योकि उससे ठाकुर के मान मर्यादा को ठेच पहोचती है।

मैं:वो सब ठीक है।वहा महोत्सव चल रहा है।आप यहाँ क्या कर रहे हो !!??

मीना:अरे वो तो मैं महोत्सव की साड़ी बदलने आयी थी।

इतनी देर तक हम बातों में अटके रहे पर मुझे इस बात पे ध्यान नही गया की मीना चाची मेरे सामने ब्लाउज और पेटीकोट में ही थी।उसको देखते हुए बस मैं आंखे फाडे रह जाता हु।वो अचानक से दरवाजे की ओर जाके दरवाजे को बंद कर देती है और खिड़की भी।

मीना मेरे पास आके:तुझे किसीने देखा तो नही।

मैं:नही ,कोई नही था,जब मैई आया।क्यो?

मीना:खास नही अइसे ही पूछा।

मै:आप अइसे आधे कपड़ो में??

मीना:क्यो कभी किसी औरत को आधे कपड़ो में नही देखे हो।

मैं:देखा हु पर फ़ोटो में असलियत में नही देखा कभी।

मीना:सच में मतलब छुआ भी नही होगा।

मैं:अरे देखा ही पहली बार है,छूने का तो सवाल ही पैदा नही होता।

मीना:अगर छूने को मील गया तो पहले कहा छुओगे?

मैं सोचते हुए:मैं बोल देता पर आपके सामने कैसे बोलू ,आप बुरा मांन जाओगे।

मीना:अरे नही बुरा माने मेरी जुति।तुम एकदम बेझिझक बोलो।आज कुछ मैं तुमको सिखाऊंगी,कुछ तुम मुझको सिखाना।

मैं:मुझे बूब्स बहोत पसन्द है।

मीना:ये बूब्स क्या होता है।

मैं:अरे बूब्स मतलब जो आपके छाती पे गुब्बारे है वो।

मीना:अच्छा जी तुझे चुचे बोलना है क्या!!?

मैं:चुचे!!!??

मीना मेरा हाथ पकड़ के चुचो पे रखती है:यही तुम्हारे बूब्स

मैं सिहर के:आआह हा!!!

मीना:इसे गाँव में चूचा बोलते है।

मैं:अच्छा ओके।

मेरा हाथ अभी भी उसके चुचो पे था।ओ मेरे हाथ को ब्लाउज के ऊपर से चुचो पे घुमा रही थी।

मीना:और कुछ छूना है?

मैं सोच कर:हम्म एज(ass)को छूना है।अगर आप बुरा न मानो तो।

मीना:ये एज( ass )क्या होता है,मुझे नही मालूम तुम ही ढूंढ के हाथ लगा दो मुझे कोई एतराज नही।

मैंने अपने हाथ चुचो से निकाल कर दो हाथ इर्दगिर्द घुमा कर दोनो गांड को कस के दबोच लिया।

मीना"आआह हाये दैया मेरी गांड आछह आआह"

मैं:ओहो तो इसे गांड बोलते है।

मीना:हा इसे गांड बोलते है।बस इतनाही की और भी कुछ है।

मैं:मतलब मै नही समझा!!!!???

मीना:अरे बुड़बक चुत की प्यास नही तुझे।

मैं:ये चुत क्या होती है?और उसकी प्यास क्यो लगती है!!??

मीना को समझ आता है की गाँव के गंदे शब्द का ज्ञान मुझे नही है।इसलिए वो बेड पे बैठ कर पेंटी निकालती है और पेटीकोट कमर तक करके पैर फैला देती है:इसको बोलते है चुत,चुतये।(वो नटखट हस देती है)

मैं:आपका मतलब पुसी।ओके ओके।मुझे बहोत पसन्द है।पर इसपे बहोत बाल है।आपकी पुसी सॉरी चुत दिख नही रही।

मीना:तुम ही ढूंढ लो।आ जाओ।

मैं पास में जाके मीना के चुत में उंगलियां फेर देता हु,वो सिहर जाती है और मेरा हाथ पकड़ लेती है।पर हम आगे बढ़े उससे पहले दरवाजा खटखट करता है।सलवार कहि करके,साड़ी लपेटे वो दरवाजा खोलती है।मै दरवाजे के आड़े खड़ा हो जाता हु।

दूसरी नौकरानी:अरे रंडी अभी तक तैयार नही हुई,कहा गांड मरवा रही थी,चल जल्दी तैयार हो जा,होली जलाने की रस्मे चालू हो जाएगी।

मीना:तुम जाओ री छिनाल,मैं आरी है आबी जा।

वो नौकरानी जाने के बाद मैं भी वह से निकल के होली के पास जाता हु।सभी लोग वही मौजूद थे।

मा:अरे कहा गया था?

मैं:वो मा मैं.......

दादी:बहु जाने दो अभी आ गया ना,अभी एग्जाम मत ले।

मैंने दादी को आंख मारके थैंक्स बोला।मा भी चुप रही क्योकि दादी के सामने पिताजी की भी नही चलती।

होली दहन का कार्यक्रम चालू हुआ।करीब सब पूजा ,दहन विधि के बाद हम वहाँ से घर के लिए निकले।

Disclosure: कहानी में उपयोगित सभी चित्र (photo) एवम चलचित्र(gif or vids)इंटरनेट से संशोधित है।एडमिन और उसकी टीम चाहे तो हटा सकती है।पर बाकी कहानी के अंग रूपरेशा ©MRsexywebee के आधीन है।
 

Ankitshrivastava

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Good one....meena to randi hai...samjh aa gaya...

Dekhna ye hai ki thakur ke ghar kitne sareef hai...aur collector ke ghar bhi koi corrupt hai ya nhi....???

Abhi tak story samjh se pare hai...i mean..main goal....

Dekhte hai kb samjh aaygi.....

Keep rocking....
 

Yellow Flash

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Nice
 
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Ritu patel

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(episode 3)

दूसरे दिन सुबह मा ने मुझे बता दिया की शाम को हवेली से न्योता आया है होली के महोत्सव के लिए।मतलब मीना सही बोल रही थी।पर मा कहि बाहर जा रही थी दादी के साथ।मैंने पूछा तो बोली यहां पास वाले मंदिर में जाके आती हु।

मैं:अकेले क्यो जा रही हो,सीता चाची को लेके जाओ।

मा:अरे नही उसको काम बताया है,ज्यादा दूर नही है,हम जाकर आ जाएंगे,शम्भू है हमारे साथ।

मैं:ठीक है,सम्भलके जाना।

मा दादी शम्भू को लेके निकल गए मंदिर में।मैं अपने कमरे में जाके कॉमिक्स पढ़ रहा था।क्योकि वैसे भी मुझे कोई और काम नही था।कम्प्यूटर में इंटरनेट कल लगने वाला था,क्योकि होली की वजह से कोई आने वाला नही था।

कुछ देर बाद सीता कमरे में आयी।

सीता:बाबूजी व्यस्त हो क्या?!?

मैं:नही बोलो चाची,कुछ मदद चाहिए थी क्या?!!!??

सीता:अरे वो कुछ बात करनी थी,कमरे में आ जाऊ क्या?

मैं:हा आजाओ!!!!!!

सीता अंदर आ जाती है।थोड़ा मुस्करहा देती है।

मैं:बोलो क्या बात है।

सीता:वो बाबूजी वो वो क्या है की!!

मैं:देखो ये वो वो वाली बातों से मेरा दिमाग खराब होता है,जो बात है साफ साफ बोलो।

सीता:कल मैंने आपको बोला था न शम्भू के बारे में!!!

मैं:कौनसी बात,मुझे कुछ याद नही आ रहा।

सीता:वो उसकी छूने वाली बात!?!?!

मैं:क्या छूने वाली बात,अरे साफ साफ बताओ,कुछ कर दिया क्या शम्भू ने।

(मुझे सच में वो बात याद नही थी।मेरा मन में सिर्फ मीना चाची घूम रही थी तो मैं भूल गया था।)

सीता:लगता है कल की बात आप भूल गए।

मैं:शायद!!फिर भी तुम बता दो,तुम्हे तो याद है न!!

सीता:बाबूजी वो कल शम्भू ने फिरसे मेरे उन अंगों को दबोचा।

मैं:कहा पे??

सीता अपने चुचे की तरफ इशारा करते हुए शरमाई।मुझे भी थोड़ा अजीब फील हुआ।क्योकि वैसे भी मेरी उम्र बहोत नही पर छोटी थी।मैं 16 साल का बच्चा और वो 35 से 40 साल गदराई हुई औरत।उसका अइसी बाते मेरे साथ करना इसके दो अर्थ बन रहे थे।यातो वो मुझ आकर्षित करना चाहती थी याफिर मुझे शहर का पढ़ा लिखा लड़का समझ मुझसे मदद मांग रही थी।पर मेरी परेशानी जरूर बढ़ रही थी।एक परेशानी ये की वो किस अर्थ से मुझसे ये सब कर रही थी और दूसरी ये की उसपे मैं रिएक्ट कैसे करू।

मैं:अच्छा याद आया कल का।उसमे क्या इतनी घबराने या चिढ़ने वाली बात,बेटा है तुम्हारा और नींद में किया होगा।इसलिए कल उसे पिट रही थी।

सीता:हा!!!अगर वो अपनी मा को अइसी नजर से देख रहा होगा,तो बाकी औरतो का क्या?अपने कल बोला इसलिए मारा नही और उसके बापू को मालूम हुआ तो उसकी जान ले लेंगे ओ।

मैं:मत बताना चाचा को।बड़ी कयामत आ जाएगी।और मार के कुछ मतलब नही।उसे अभी उसकी लत लग गयी है।मारके उसे खो दोगे आप।

सीता:पर अभी करू क्या।आपने बोला था की अगर नही सुधरा तो आप कुछ कर लेंगे।

मैं:ठीक है मैं देख लेता हु।वैसे कल हुआ क्या था विस्तार से बताएगी।

सीता शर्माके:जी अइसे कैसे,आपसे ये बाते।

मैं:मैं जानता हु आपकी उम्र और मेरी उम्र और हमारा रिश्ता इनके हिसाब से ये थोड़ा अजीब और गैर है।पर मा कहती है किसी बिगड़ी बात को सुधारना हो तो उसके मूल में जाके उसका फिरसे अनुभव करो।

सीता:मतलब नही समझी मैं,आप बड़े लोगो की भाषा हम गवार लोगो को नही मालूम पड़ेगी।

तभी बाहर से मा सीता को पुकारती है।वो दौड़ती हुई चली जाती है।मैं फिरसे अपनी कॉमिक्स में घुस जाता हु।

शाम 7 बजे

हम सारे लोग हवेली चले जाते है।पूरा राजमहल जैसा सजी हुई थी हवेली।आज रात को पूजा के बाद कल दिनभर रंगपंचमी होने वाली थी।

हम अंदर जाते ही मुझे मीना दिखाई देती है।पर सबके सामने वो मुझे नजरअंदाज कर देती है।वो मेरे पिताजी से।

मीना:कलेक्टर साब ठाकुर साब ने आपको ऊपर की तरफ बुलाया है।

हवेली 3 मंजिली थी। पहले मंजिले पर सब प्रमुख महमान जैसे पुलिस मंत्री और कई सरकारी मुलाजिम थे बस कमी मेरे पिताजि की ही थी।

हम ऊपरी मंजिल पे जाते ही एक हट्टाकट्टा आदमी हमारे सामन आ जाता है।

वो:नमश्कार कलेक्टर साब,धन्य भाग हमारे जो आप यह पधारे।शुक्रिया हमारी जुबानी का सन्मान रखने के लिए!!!

पिताजी:अरे सांबा जी,आपकी जहाँगीर के छोटे से मुलाजिम है हम ,आपके जुबानी की तौहीन करने की जुर्रत कैसे करेंगे।

सांबा:ये तो आपका बड्डपन है।

वो ठाकुर था,जिससे सारा गाँव नाम से ही काँपता था।मुझे दूसरा आदमी भी दिख गया जो रहीम चाचा को उस दिन मारके फेंक कर गया था।सांबा पिताजी को लेके अपने परिवार के पास आया।

साम्बा:ये मेरी पत्नी-कावेरी

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कावेरी ने सबको नमस्ते किया।

साम्बा:ये मेरा आखरी वाला भाई-कलेश्वर(कालिया) और ये उसकी पत्नी-कामिनी

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दोनो हमे नमस्ते करते है।हम भी उनका मुस्करके नमस्ते स्वीकार करते है।

साम्बा:ये मेरी बेटी-श्वेता मेरा बेटा-कबीर ,मेरे बीच वाले भाई की बीवी-पार्वती,और उनके ये दो बच्चे चीनू और मीनू और ये मेरी बहन दामिनी

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हमने सबको नमस्ते किया।पिताजी ने भी हमारी पहचान करवाई।मा और दादी औरतो के बीच बैठी।पिताजी मर्द लगो के यह जाके बैठे।मैं अइसे ही खड़ा सब हवेली ताक रहा था।

श्वेता:हाय,माय नेम इज श्वेता!

मैं:मुझे अंग्रेज पसन्द नहीं।

श्वेता थोड़ी सहम कर:अच्छा!!नमस्ते मेरा नाम श्वेता है।आपका?

मैं:मुझे मेरा नाम नही मालूम।नामकरण के वक्त मैं पढ़ाई लिखाई नही किया था।

श्वेता:पर आपके पिताजी ने बोला आपका नाम विनय है।

मै:आपको मालूम है तो पूछा क्यो!!?

श्वेता गुस्सेल जाती है:अरे यार,कितने रूढ़ हो तुम।जाओ हमे बात नही करनी तुमसे।

मैं:अरे मैंने कहा जबरदस्ती की थी।बड़े अजीब नखरे है आपके।

श्वेता:देखो तुम देखके अच्छे लगे इस लिए दोस्ती करने आये यहाँ।वरना हमसे दोस्ती करना इतना आसान नही।लड़को की लाइन लग जाती है,रात रात जाग के मेरे फ्रेंडशिप के लिए राह ताकते है।और दूसरी बात हम ठाकुर के बेटी हु।थोड़ा तमीज से।

मै:मिस ठकुराइन जी देखके ही नही असलियत में भी हम अच्छे लड़के नही है,पिताजी के इज्जत के लिये ये सब मेंटेन करना पड़ता है।और राह ताकते रहना जैसी बाते करने वालो में से हम नही,और राह आपके लिए ताके ,वो भी हम,ये हरगिज मुमकिन नही।और तमीज खुद सिख लीजिए।दोस्ती करने आयी हो,और दो टेढ़े जवाब क्या दिए अपने रुदबे पे आ गयी।दोस्ती में कोई बड़ा कोई छोटा नही होता।नमस्ते!!!!

मैं वहाँ से निकल जाता हु।वो मुझसे करीब 6 साल बड़ी थी।कल सुबह के वाकिये से मेरा ठाकुरों पर से मन उठ गया था।पिताजी बोले इसलिए यहाँ आया था।नही तो मेरा कुछ मन नही था।श्वेता सिर्फ मुझे ताकती रह गयी।उसने सोचा भी नही होगा की उसको कोई अइसे भी जवाब दे सकता है वो भी उस जगह जहा हर एक पत्ता उसके पिताजी का गुलाम हो।

मैं मा को बोलके आया की मैं हवेली घूम कर आता हु।और मैं नीचे आया।घर में कोई नही था सब लोग हवेली के सामने वाले मैदान में थे।होली जलाने में बहुत समय था।शम्भू भी कहि दिखाई नही दे रहा था।मैं अकेला बहोत ऊब रहा था।

मैं हवेली घूमते हुए हवेली के पिछवाड़े चला गया।जहा नौकर लोगो के लिए जगह बनाई गयी थी।जैसे गेस्ट का गेस्ट रूम होता है वैसे।जिससे कभी नौकर नौकरानी को हवेली में रहना पड़ा या कुछ खाना नाश्ता करना है तो उसके लिए उसे वहाँ जाना पड़ता था।होस्टल की तरह 6 से 7 कमरे थे।मैं हर एक कमरे के बाहर से आंख फेरते हुए घूम रहा था।हर कमरे में एक बेड एक छोटी अलमारी और बाथरूम था।कमरे गोल सर्कल की तरह बंधे थे।जब मैंने तीसरे कमरे को पर करके चौथे कमरे के पास जाने वाला था तभी तीसरे कमरे से किसीने मुझे खींच लिया।मैं डर के चींख देने वाला था पर किसीने मुह दबाके चुप कराया।

वो:चुप रहो वीनू मैं हु।

डर से बन्द की आंखे खोली तो सामने मेरे देख सांस छोड़ दी।

मैं:अरे मीना चाची जान निकाल दी आपने।

मीना:तुम यहां क्या कर रहे हो।

मै:अरे शम्भू भी नही है,न कोई मेरे उम्र का बच्चा,ऊब गया हु अकेले,बस सोचा घूम इधर उधर।

मीना:शम्भू को ढूंढ़के कुछ फायदा नही,उन लोगो को यहाँ आना मन है बस हवेली के दरवाजे तक ही।

मैं:अइसा क्यो ?फिर आप!!!?

मीना:अरे मै नौकरानी हु।बाकी कोई गाँव का आदमी बिना ठाकुर के आज्ञा हवेली के आसपास भी नही आ सकता।क्योकि उससे ठाकुर के मान मर्यादा को ठेच पहोचती है।

मैं:वो सब ठीक है।वहा महोत्सव चल रहा है।आप यहाँ क्या कर रहे हो !!??

मीना:अरे वो तो मैं महोत्सव की साड़ी बदलने आयी थी।

इतनी देर तक हम बातों में अटके रहे पर मुझे इस बात पे ध्यान नही गया की मीना चाची मेरे सामने ब्लाउज और पेटीकोट में ही थी।उसको देखते हुए बस मैं आंखे फाडे रह जाता हु।वो अचानक से दरवाजे की ओर जाके दरवाजे को बंद कर देती है और खिड़की भी।

मीना मेरे पास आके:तुझे किसीने देखा तो नही।

मैं:नही ,कोई नही था,जब मैई आया।क्यो?

मीना:खास नही अइसे ही पूछा।

मै:आप अइसे आधे कपड़ो में??

मीना:क्यो कभी किसी औरत को आधे कपड़ो में नही देखे हो।

मैं:देखा हु पर फ़ोटो में असलियत में नही देखा कभी।

मीना:सच में मतलब छुआ भी नही होगा।

मैं:अरे देखा ही पहली बार है,छूने का तो सवाल ही पैदा नही होता।

मीना:अगर छूने को मील गया तो पहले कहा छुओगे?

मैं सोचते हुए:मैं बोल देता पर आपके सामने कैसे बोलू ,आप बुरा मांन जाओगे।

मीना:अरे नही बुरा माने मेरी जुति।तुम एकदम बेझिझक बोलो।आज कुछ मैं तुमको सिखाऊंगी,कुछ तुम मुझको सिखाना।

मैं:मुझे बूब्स बहोत पसन्द है।

मीना:ये बूब्स क्या होता है।

मैं:अरे बूब्स मतलब जो आपके छाती पे गुब्बारे है वो।

मीना:अच्छा जी तुझे चुचे बोलना है क्या!!?

मैं:चुचे!!!??

मीना मेरा हाथ पकड़ के चुचो पे रखती है:यही तुम्हारे बूब्स

मैं सिहर के:आआह हा!!!

मीना:इसे गाँव में चूचा बोलते है।

मैं:अच्छा ओके।

मेरा हाथ अभी भी उसके चुचो पे था।ओ मेरे हाथ को ब्लाउज के ऊपर से चुचो पे घुमा रही थी।

मीना:और कुछ छूना है?

मैं सोच कर:हम्म एज(ass)को छूना है।अगर आप बुरा न मानो तो।

मीना:ये एज( ass )क्या होता है,मुझे नही मालूम तुम ही ढूंढ के हाथ लगा दो मुझे कोई एतराज नही।

मैंने अपने हाथ चुचो से निकाल कर दो हाथ इर्दगिर्द घुमा कर दोनो गांड को कस के दबोच लिया।

मीना"आआह हाये दैया मेरी गांड आछह आआह"

मैं:ओहो तो इसे गांड बोलते है।

मीना:हा इसे गांड बोलते है।बस इतनाही की और भी कुछ है।

मैं:मतलब मै नही समझा!!!!???

मीना:अरे बुड़बक चुत की प्यास नही तुझे।

मैं:ये चुत क्या होती है?और उसकी प्यास क्यो लगती है!!??

मीना को समझ आता है की गाँव के गंदे शब्द का ज्ञान मुझे नही है।इसलिए वो बेड पे बैठ कर पेंटी निकालती है और पेटीकोट कमर तक करके पैर फैला देती है:इसको बोलते है चुत,चुतये।(वो नटखट हस देती है)

मैं:आपका मतलब पुसी।ओके ओके।मुझे बहोत पसन्द है।पर इसपे बहोत बाल है।आपकी पुसी सॉरी चुत दिख नही रही।

मीना:तुम ही ढूंढ लो।आ जाओ।

मैं पास में जाके मीना के चुत में उंगलियां फेर देता हु,वो सिहर जाती है और मेरा हाथ पकड़ लेती है।पर हम आगे बढ़े उससे पहले दरवाजा खटखट करता है।सलवार कहि करके,साड़ी लपेटे वो दरवाजा खोलती है।मै दरवाजे के आड़े खड़ा हो जाता हु।

दूसरी नौकरानी:अरे रंडी अभी तक तैयार नही हुई,कहा गांड मरवा रही थी,चल जल्दी तैयार हो जा,होली जलाने की रस्मे चालू हो जाएगी।

मीना:तुम जाओ री छिनाल,मैं आरी है आबी जा।

वो नौकरानी जाने के बाद मैं भी वह से निकल के होली के पास जाता हु।सभी लोग वही मौजूद थे।

मा:अरे कहा गया था?

मैं:वो मा मैं.......

दादी:बहु जाने दो अभी आ गया ना,अभी एग्जाम मत ले।

मैंने दादी को आंख मारके थैंक्स बोला।मा भी चुप रही क्योकि दादी के सामने पिताजी की भी नही चलती।

होली दहन का कार्यक्रम चालू हुआ।करीब सब पूजा ,दहन विधि के बाद हम वहाँ से घर के लिए निकले।

Disclosure: कहानी में उपयोगित सभी चित्र (photo) एवम चलचित्र(gif or vids)इंटरनेट से संशोधित है।एडमिन और उसकी टीम चाहे तो हटा सकती है।पर बाकी कहानी के अंग रूपरेशा ©MRsexywebee के आधीन है।

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(Episode 4)

रात भर जगने के कारण रात को मै सुबह देरी से उठा।ज्यादा देरी नही 9 बजे उठता था आज 1 घंटा देरी हो गयी।ब्रश करके फ्रेश हुआ और चाय के लिए बाहर आया।तो मालूम पड़ा की मा दादी को लेके शहर गयी है डॉक्टर के पास।मैं तो भूल ही गया था की दादी को जोड़ो का दर्द है।हर महीने में एक बार उनको डॉक्टर के पास लेके जाना रहता है।

घर में सीता थी और शम्भू।मुझे चाय दी और सीता चाची वही खड़ी रही।मैंने एक दो बार उनकी तरफ देखा तो अहसास हुआ की ओ मेरे तरफ ही देख रही है।अइसे और एक दो बार हुआ।मैंने चाय खत्म की और आखिर में पूछ ही लिया।

मैं:सीता चाची क्या हुआ?!कुछ बोलना है क्या?!

सीता:वो वही बाबूजी कल वाला।

मैं थोड़ा सोचने लगा।क्योकि मेरे साथ हर रोज बहोतसी चीजे होती रहती है।मुझे सोचते हुए देख उसने समझा की मैं फिरसे वो बात भूल गया हु हलाखी मैं भुलक्कड़ नही था बस मुझे जिसमे ज्यादा लेना देना नही उसको मैं दिमाग में नही रखता था।

सीता:बाबूजी लगता है आपके ध्यान में नही आ रहा।कल हम लोगो की बात हुई थी शम्भू के बारे में,वो गलत तरीकेसे बदन को छूता है।

मैं:हां चाची सब याद है बस कहा से शुरू करू ये समझ नही आ रहा।

सीता:मतलब मैं समझी नही!!?!

मैं:समझा दूंगा सब समझा दूंगा,थोड़ा रुको।

मैं थोड़ा सोच रहा था।सीता पैर की उंगलियां खरौद रही थी जमीन में।हाथो की उंगलियां मोड़ रही थी।लगता है उसे बहोत चिंता सी होने लगी थी।

मैं:चाची आप इतनी भी चिंता मत करो।मुझे नही लगता की ये इतनी बड़ी बात है।बस समझदारी से सुलझाना पड़ेगा।

सीता:आप को इतनी कम उम्र में इतना कुछ ज्ञान है,पर ये....

मैं:चाची अभी छोटा है,मन भटक गया है किसी जगह पर।अगर अभी भी उसे काबू कर पाए तो ठीक है नही तो कोई न कोई उपाय जरूर निकलेगा।

सीता:बाबूजी मेरे लिए उसके विचार गंदे हो गए हो तो मा होने के नाते मैं सहन कर लुंगी।पर अगर इसने कहि बाहर मुह मरना शुरू किया तो बदनामी होगी वो बात अलग पर ठाकुर को मालूम हुआ तो इसकी खैर नही।

मैं:वो बाहर मुह नही मारेगा,इसकी मै आपको तस्सली देता हु।उसकी हरकते देख के तो ये पूरा साफ पता चलता है की आपके लिए उसकि नियत बिगड़ गयी है।पर क्या आपकी भी नियत उसके लिए....?!?!

सीता:छि छि बाबूजी अइसा कुछ नही है।

मैं:देखो कुछ होगा तो छुपाके कुछ मतलब नही है।वो जब आपको हाथ लगाता है तब आपके बदन में कुछ नही होता।कोई रोमांच नही उठता।

सीता सोचके:नही!!!!!अइसा कुछ महसूस.....!!!!!!

मैं:आप सोच रही हो मतलब कुछ तो है।रुको हम आमने सामने ही सब दूध का दूध और पानी का पानी कर देते है।

मैंने शम्भू को बाहर से बुला लिया।

शम्भू:जी भैयाजी कुछ काम था!??!

मैं:शम्भू तुम्हारी मा क्या कह रही है।तुम उनको रात में गलत जगह छूते हो।

शम्भू:नही.......!!!

मै:नही बोलने से पहले 100 बार सोच लो,मुझे झूट बोलने वालों से सख्त नफरत है।आखरी बार पूछ रहा हु।तुम मा को गलत नजर से देखते हो।

शम्भू सर नीचे करके हा में गर्दन हिलाता है।सीता अपने मुह पे हाथ रख कर चौक जाती है।शम्भू के पैर कांपने लगते है।

मैं:शम्भू डर मत,तुझे कोई कुछ नही करने वाला।(सीता चाची से)चाची इसके इलाज के लिए मुझे लगता हैं तुम्हे ही कुछ करना है,मेरे पास उसका उपाय है पर मुझे नही लगता की वो तुम कर पाओगी।

सीता:आप बोलो तो बाबूजी,मेरे बच्चे के भविष्य का सवाल है।

मैं:इसका वो वाला(शम्भू के लन्ड की तरफ इशारा करके)हिस्सा आपके लिए रोमांचित हो रहा है।और उसके शादी तक उसके उसको शांत नही किया तो वो नपुंसक भी बन सकता है।

सीता:नही !!अइसा नही होने दूंगी मैं।मुझे क्या करना होगा!??

मैं:अरे इसमे पूछना क्या है?मुझसे बड़ी हो और इस बारे में ज्यादा समझदार और अनुभवी हो।उसके हवस को शांत करो बस।घर की बात घर में रह जाएगी।

सीता कुछ सोच रही थी।तभी मैं शम्भू को बोला।

मैं:क्यो शम्भू तुझे मा का बदन बहोत अच्छा लगता है न

शम्भू मुस्करके हा में मुंडी हिलाता है।

मैं:सिता चाची अभी ये समय सोचने का नही है।बस जो मैं बोलू वो करती जाओ।मेरा कुछ नही फायदा तुम्हारा है।

तभी मुझे मा का कॉल आता है।वो शाम तक आने वाली थी।दोपहर का खाना खा के लेने बोली थी।उनको डॉक्टर के बाद दवाइया और बाकी शॉपिंग में समय लगने वाला था इसलिए।

मैं:सीता चाची अभी भी सोच रही हो,तुम्हे ही फिक्र नही अपने बच्चे की तो मुझसे क्यो मेहनत करवा रही हो!!?!!!

सीता:नही बाबूजी ठीक है,मैं तैयार हु।पर मेहबानी करके किसीको बताना मत।

मैं:मुझे किसी कुत्ते ने काटा है क्या!?पिताजी को मालूम पड़ेगा तो मेरी खैर नही।वैसे तुम्हारे बेटे कि उम्र क्या होगी।

सीता:पिछले महीना 20 खत्म हुआ उसका।

(मैं मन में-क्या !?मैं इसको छोटा समझ रहा था पर येतो उम्र से मुझसे करीब 2 साल बड़ा है।)

मैं:और पढ़ाई???

सीता:वो कब की छोड़ दी।इतना खर्चा किसको जमेगा।!?आप बोलो क्या करना पड़ेगा मुझे!!?

मैं शम्भू से:शम्भू तुम्हे मा के बदन के कौनसे हिस्से ज्यादा पसन्द है।

शम्भू हाथो से इशारा कर रहा था,पर शर्म की वजह से वो ज्यादा देर इशारा न करते हुए हाथ नीचे कर देता।

मैं:ठीक है मैं बताऊंगा ओ हिस्सा छूने का मन करता है या नही उतना बोल दो।

सीता ने मेरे तरफ देख आंखे चौड़ी कर ली।पर मैं अइसे पेश आया जैसे की कुछ हुआ ही नही।और उसके पास चला गया।मुझे इतना गंभीर देख वो भी कुछ नही बोली।

मैं उसके पास गया और पल्लु के नीचे हाथ डाल के उसके चुचे को दबाया।वो सिहर गयी।

मैं:देख शम्भू ये तुम्हे पसन्द है?

शम्भू ने शरमाते हुए हा में गर्दन हिलाई।

मैंने चाची को पीछे की तरफ घुमाया ,उनकी गांड पे हाथ रख कर:ये भी पसंद है।

उसने फिरसे मुस्कराकर हा में गर्दन हिलाई।

मैं:साड़ी से लिप्त?!?!?!

उसने मुह थोड़ा टेढा किया,मै समझ गया की उसे खुली गांड पसन्द है।

मैंने सीता चाची को मेज पर झुकने बोला।और पीछे से साड़ी उठा दी।सबसे चौकने वाली बात ये थी की अंदर पेंटी नही थी।गाँव इतना भी पिछड़ा नही था की ये पेंटी न पहन सके,और ये कलेक्टर के घर काम करती है मतलब उतना पैसा तो उसके पास है।पर खैर वो मसला उस समय जरूरी नही था।मैंने उसको पास में बुलाया।

मैं:ले छू ले,मसल ले।

वो मेरे तरफ देखता रहा।सीता की आंखे बंद थी।मैंने ज्यादा देर न गवाते हुए उसके हाथ को पकड़ा और गांड पर रख दिया।दोनो मा बेटे के मुह से सिसक निकल गयी।

मैं:और कुछ इच्छा बाकी है तो बोल,आज का दिन तुम्हारा है।

शम्भू सोचते हुए लन्ड पे हाथ घुमाने लगा।

मैं:क्या!!??तू अपनी मा के साथ सेक्स करेगा?!!!!सही में!!!

सीता चौक गयी बोली:ये सेक्स क्या होता है बाबू जी।

मैं:वो अपना वो तुम्हारे उसमे डालना चाहता है।

सीता:क्या !!?!ये मुझे चोदेगा!!?(वो पलट गयी)

सीता की साड़ी कमर तक ऊपर थी तो पलटते ही उसकी चुत सामने आ गयी।हम दोनो आंखे फाड़ के देखने लगे।पूरी पानिया गयी थी।वो चुत को छुपाने लगी।

मै:क्यो चाची आप बोली की आपको कुछ महसूस नही होता अपने बेटे से।

सीता :वो तो आप ने.....!!!

मैं बात को तोड़ते हुए:शम्भू देख तेरी मा ने तेरे लिए चुत खुली कर दी।पर तूने कभी सेक्स किया है या नही किसीको।

शम्भू कुछ सुन ही नही रहा था।उसने पेंट निकाल ली।हाये दैया लंड देखके तो मुझे मेरे किये कराए पर पानी फेर गया अइसे लग रहा था।पर सीता कुछ अलग ही दिशा में थी।

सीता:बाबूजी ये कैसे मुमकिन है।अपने बेटे से कैसे चुदावू।

मैं:आपके इसी नखरों की वजह से जितना उसके लन्ड को बड़ा होना था उतना नही हुआ।

सीता:मतलब मै समझी नही।

मैं:मेरी उम्र 18 है और इसकी 20,सही है।

सीता:हा बाबूजी सही है।

मैने अपनी पेंट नीचे कर के लन्ड हाथ में पकड़ के।

मैं:अभी मुझे बताओ जितना मेरी उम्र में मेरा इतना है पर मेरे से 2साल बडे होकर भी उसका लन्ड मेरे से दो इंच छोटा है।(मै हस्थमैथुन करके लण्ड को मेंटेन किया था।और दादी भी बचपन में तेल लगा के अच्छे से मालिश कर देती थी।)

सीता आंखे फाड़ के हमारे लन्ड को ताड रही थी:वो तो है।

शम्भू अचानक से आगे होकर अपनी मा के ब्लाउज को खोल के कस के चुचे दबाने लगता है।सीता चाची कसमासके उसको दूर धकेल देती हैऔर साथ में एक झांपड भी जड़ देती है।गाल को सहलाते हुए शम्भू दूर हो जाता है।

सीता:शम्भू तमीज भूल गए हो क्या,मा हु तुम्हारी,रंडी नही!!

मैं मन में-साला गवार का गवार ही रहेगा भोसड़ीका।किये कराए पे पानी फेर देगा लगता है।मुझे ही कुछ करना होगा।

मैं:सीता चाची गुस्सा मत हो ,अरे इतनी खूबसूरत औरत नंगी खड़ी हो तो कोई भी मर्द अपना आपा खो देगा ही।शम्भू यहां आओ।चाची तुम मेरे बिस्तर पे सो जाओ(मैंने अपने कपड़े पहन लिए।

सीता चाची चुपचाप बेड पे सो जाती है।

मैं:देख शम्भू मा है वो जो भी इच्छा है धीरे और तमीज के साथ पूरी कर।

हा में गर्दन हिला कर शम्भू अपनी मा के ऊपर चढ़ जाता है।और लन्ड को चुत पे रख कर धककल देता है।

सीता:आआह आआह आउच्च।

मैं मन में-क्या!??इतना से लन्ड से इसकी चुत दर्द कर रही है।मतलब ये बहोत दिन से चुदी नही है।

शम्भू ने अपने मा के चुचे कस के पकड़े और धक्के देना चालू रखा।

सीता:आआह आआह आआह।

काफी देर तक दोनो का ये खेल चलता रहा।पर शम्भू जितना तगड़ा दिख रहा था उतना उसका न लण्ड था न उसके अंदर स्टैमिना।वो जैसे ही अकड़ गया वैसे ही सीता ने उसको साइड किया।शम्भू ने अपना सारा पानी मेरे बिस्तर पे गिरा दिया।दोनो मा बेटे मेरे बिस्तर पे लेटे थे।दोनो हांफ रहे थे।मैंने उनको वैसे ही छोड़ा और किचन में जाके खाना खाने बैठ गया।जब खाना खा रहा था उसी बीच सीता कपड़े पहनके मेरी चद्दर लेके बाहर आयी।और बाहर जहा कपड़े धोते है वहाँ चली गयी।

मैंने खाना खत्म करके बर्तन किचन में रखने गया।मेरे पीछे सीता चाची भी आ गयी।

सीता:अरे बाबूजी खाना खा लिए।दो मैं बर्तन साफ कर देती हु।

मैंने बर्तन उसे दे हाथ धोने लगा।

सीता:माफ करना बाबूजी आपका बिस्तर खराब हो गया।पर मैंने धो दिया है।

मैं:कोई बात नही,अपने साफ किया न।

मैं जैसे ही बाहर जाने के लिए पलटा।सीता ने मुझे पुकारा।

सीता:बाबूजी एक बात कहु तो बुरा नही मानोगे!???

मैं:नही चाची बोलो।

सीता:वो आपका बहोत बड़ा और मस्त है(इतना बोल वो शर्मा गयी।)

मैं जान भुज कर:क्या वो!!!????

सीता:क्या बाबूजी आप भी(वो नटखट में हस दी।)

मै:अरे मै क्या!?सच में मुझे नही समझ आया।

सीता:वो....!...!आपका लन्द बहोत मजबूत है...!!!!...!!!

मैं:क्या सच में...!!..मुझे नही लगता...!..पर आप कह रही हो तो सही होगा।कभी इस्तेमाल नही किया न!!!

सिता:मतलब!!!अभी तक किसी औरत को नही चोदा!???!?!

मैं:नही!!!!

तभी इंटरनेट वाला बंदा आ गया।मैं वहां से निकल कर कमरे में आया,और उस इन्टर्नेटवाले को सब समझाने लगा।
 
Last edited:

Ankitshrivastava

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Good one....

Maa ko bete se chudwa kar sharm hi khatm kar di...ab to wo hero ke saamne hi taang kholegi....pyaasi jo rah gai...

Well....intzaar hai sahi story ka...abhi tak kuch aisa saamne nhi aaya...baki sex to chalta hi rahega.....

Keep rocking......
 
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