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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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♡ Family Introduction ♡ |
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Ye kya sach me Romesh Delhi chala jayega ya phir koi twist aane wali hai story me.# 19
पिटने वाले बटाला के आदमी थे और पीटने वाले बशीर के आदमी थे।
रोमेश ने अपनी चाल से इन दोनों गैंगों को भिड़वा दिया था। बटाला को अभी यह समझ नहीं आ रहा था कि बशीर के आदमी उसके आदमियों से क्यों भिड़ गये ?
"यह इत्तफाक भी हो सकता है।" मायादास ने कहा-
"तुम्हारे लोगों की गाड़ी उनसे टकरा गई। वह इलाका बशीर का था। इसलिये उसका पाला भी भारी था।"
"मेरे लोग बोलते हैं, नाके पर आते ही खुद उन लोगों ने टक्कर मारी थी।" बटाला बोला,
"फोन पे भी जब तक हम छुड़ाते, उनको पीटा पुलिस वालों ने।"
"काहे को पीटा, तुम किस मर्ज की दवा है ? साले का होटल बंद काहे नहीं करवा दिया? अपुन को अब बशीर से पिटना होगा क्या ? इस साले बशीर को ही खल्लास कर देने का।"
"अरे यार तुम तो हर वक्त खल्लास करने की सोचते हो। अभी नहीं करने का ना बटाला बाबा।"
"बशीर से बोलो, हमसे माफ़ी मांगे। नहीं तो हम गैंगवार छेड़ देगा।"
"हम बशीर से बात करेंगे।"
"अबी करो, अपुन के सामने।" बटाला अड़ गया,
"उधर घाट कोपर में साला हमारा थू-थू होता, अपुन का आदमी पिटेगा तो पूरी मुम्बई को खल्लास कर देगा अपुन।"
"अजीब अहमक है।" मायादास बड़बड़ाया। बटाला ने पास रखा फोन उठाया और मायादास के पास आ गया।
उसने फोन स्टूल पर रखकर बशीर का नंबर डायल किया। रिंग जाते ही उसने मायादास की तरफ सिर किया था।
"तुम्हारा आदमी पुलिस स्टेशन से तो छुड़वा ही दिया ना।" मायादास ने कहा। बटाला ने कोई उत्तर नहीं दिया। फिर फोन पर बोला,
"लाइन दो हाजी बशीर को।" कुछ रुककर बोला, "जे.एन. साहब के पी .ए. मायादास बोलते हैं इधर से।" फिर उसने फोन का रिसीवर मायादास को थमा दिया।
"बात करो इससे। बोलो इधर हमसे माफ़ी मांगेगा, नहीं तो आज वो मरेगा।" मायादास ने सिर हिलाया और बटाला को चुप रहने का इशारा किया।
"हाँ, हम मायादास।" मायादास ने कहा, "बटाला के लोगों से तुम्हारे लोगों का क्या लफड़ा हुआ भई?" मायादास ने पूछा।
"कुछ खास नहीं।" फोन पर बशीर ने कहा,
"इस किस्म के झगड़े तो इन लोगों में होते ही रहते हैं, सब दारु पिये हुए थे। मेरे को तो बाद में पता चला कि वह बटाला के लोग है, सॉरी भाई।"
"बटाला बहुत गुस्से में है।"
"क्या इधर ही बैठा है?"
"हाँ, इधर ही है।"
"उसको फोन दो, हम खुद उससे माफ़ी मांग लेते हैं।" मायादास ने फोन बटाला को दिया।
"अ…अपुन बटाला दादा बोलता, काहे को मारा तेरे लोगों ने ?"
"दारू पियेला वो लोग।"
"अगर हम दारु पी के तुम्हारा होटल पर आ गया तो ?"
"देखो बटाला, तुम्हारी हमसे तो कोई दुश्मनी है नहीं, यह जो हुआ उसके लिए तो हम माफ़ी मांग लेते है। मगर आगे तुमको भी एक बात का ख्याल रखना होगा।"
"किस बात का ख्याल ?"
"एडवोकेट रोमेश मेरा दोस्त है, उसके पीछे तेरे लोग क्यों पड़े हैं ?"
बटाला सुनकर ही चुप हो गया, उसने मायादास की तरफ देखा।
"जवाब नहीं मिला मुझे।"
"इस बारे में मायादास जी से बात करो। मगर याद रहे, ऐसा गलती फिर नहीं होने को मांगता।
तुम्हारे दोस्त का पंगा हमसे नहीं है। उसका पंगा जे.एन. साहब से है। बात करो मायादास जी से, वह बोलेगा तो अपुन वो काम नहीं करेगा।
" रिसीवर माया दास को दे दिया बटाला ने। "कनेक्शन रोमेश से अटैच है।" बटाला ने कहा।
"हाँ।" माया दास ने फोन पर कहा, "पूरा मामला बताओ बशीर मियां।"
"रोमेश मेरा दोस्त है, बटाला के आदमी उसकी चौकसी क्यों कर रहे हैं ?"
"अगर बात रोमेश की है बशीर, तो यूँ समझो कि तुम बटाला से नहीं हमसे पंगा ले रहे हो। लड़ना चाहते हो हमसे? यह मत सोच लेना कि जे.एन. चीफ मिनिस्टर नहीं है, सीट पर न होते हुए भी वे चीफ मिनिस्टर ही हैं और तीन चार महीने बाद फिर इसी सीट पर होंगे, हम तुम्हें बर्बाद कर देंगे।"
"मैं समझा यह मामला बटाला तक ही है।"
"नहीं, बटाला को हमने लगाया है काम पर।"
"मगर मैं भी तो उसकी हिफाजत का वादा कर चुका हूँ, फिर कैसे होगा?" बशीर बिना किसी दबाव के बोला।
"गैंगवार चाहते हो क्या?"
"मैं उसकी हिफाजत की बात कर रहा हूँ, गैंगवार की नहीं।
सेंट्रल मिनिस्टर पोद्दार से बात करा दूँ आपकी, अगर वो कहेंगे गैंगवार होनी है तो…!"
पोद्दार का नाम सुनकर माया दास कुछ नरम पड़ गया ।
"देखो हम तुम्हें एक गारंटी तो दे सकते हैं, रोमेश की जान को किसी तरह का खतरा तब तक नहीं है, जब तक वह खुद कोई गलत कदम नहीं उठाता। वह तुम्हारा दोस्त है तो उसको बोलो, जे.एन. साहब को फोन पर धमकाना बंद करे और अपने काम-से-काम रखे, वही उसकी हिफाजत की गारंटी है।"
"जे.एन. सा हब को क्या कहता है वह?"
"जान से मारने की धमकी देता है।"
"क्या बोलते हो माया दास जी ? वह तो वकील है, किसी बदमाश तक का मुकदमा तो लड़ता नहीं और आप कह रहे हैं।"
"हम बिलकुल सही बोल रहे हैं। उससे बोलो जे.एन. साहब को फोन न किया करे, बस उसे कुछ नहीं होने का।"
"ऐसा है तो फिर हम बोलेगा।"
"इसी शर्त पर हमारा तुम्हारा कॉम्प्रोमाइज हो सकता है, वरना गैंगवार की तैयारी करो।" इतना कहकर माया दास ने फोन काट दिया।
रोमेश के विरुद्ध अब जे.एन. की तरफ से नामजद रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी। उसी समय नौकर ने इंस्पेक्टर के आने की खबर दी।
"बुला लाओ अंदर।" मायादास ने कहा और फिर बटाला से बोला,
"बशीर के अगले फोन का इन्तजार करना होगा, उसके बाद सोचेंगे कि क्या करना है। अब मामला सीधा हमसे आ जुड़ा है, तुम भी गैंगवार की तैयारी शुरू कर दो।"
तभी विजय अंदर आया। बटाला को देखकर वह ठिठका।
"आओ इंस्पेक्टर विजय।" बटाला ने दांत चमकाते हुए कहा। अब मायादास चौंका और फिर स्थिति भांपकर बोला:-
"बटाला अब तुम जाओ।"
"बड़ा तीस-मार-खां दरोगा है यह मायादास जी ! एक प्राइवेट बिल्डिंग में अपुन की सारी रात ठुकाई करता रहा, अपुन को इससे भी हिसाब चुकाना है।"
"ऐ !" विजय ने अपना रूल उसके सीने पर रखते हुए ठकठकाया,
"तुमको अपनी चौड़ी छाती पर नाज है न, कल मैं तेरे बार में प्राइवेट कपड़े पहनके आऊँगा और अगर तू वहाँ भी हमसे पिट गया तो घाटकोपर ही नहीं, मुम्बई छोड़ देना। नहीं तो जीना हराम कर दूँगा तेरा और तू यह मत समझना कि तू जमानत करवाकर बच गया, तुझे फांसी तक ले जाऊँगा।"
"अरे यह क्या हो रहा है बटाला, निकलो यहाँ से।"
"कल रात अपने बार में मिलना।" बटाला का कंधा ठकठका कर विजय ने फिर से याद दिलाया।
"मिलेगा अपुन, जरूर मिलेगा।" बटाला गुर्राता हुआ बाहर निकल गया।
"यह बटाला ऐसे ही इधर आ गया था, तुम तो जानते ही हो इंस्पेक्टर चुनाव में ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती है, सबको फिट रखना पड़ता है। नेता बनने के लिए क्या नहीं करना पड़ता।"
"लीडर की परिभाषा समझाने की जरूरत नहीं। गांधी भी लीडर थे, सुभाष भी लीडर थे, इन लोगों से पूरी ब्रिटिश हुकूमत घबरा गई थी और उन्हें यह देश छोड़ना पड़ा। लेकिन मुझे यह तो बता दो कि इनके पास कितने गुंडे थे, कितने कातिल थे? खैर इस बात से कुछ हासिल नहीं होना, बटाला जैसे लोगों की मेरी निगाह में कोई अहमियत नहीं हुआ करती, मुझे सिर्फ अपनी ड्यूटी से मतलब है। आपने एफ़.आई.आर. में रोमेश सक्सेना को नामजद किया है?"
"हाँ, वही फोन पर धमकी देता था।"
"कोई सबूत है इसका?" विजय ने पूछा।
"हमारे लोगों ने उसे फोन करते देखा है और फिर हमारे पास उसकी आवाज भी टेप है। इसके अलावा उसने खुद कहा था कि वह रोमेश सक्सेना है।"
"टेप की आवा ज सबूत नहीं होती, कोई भी किसी की आवाज बना सकता है। फिल्मों में डबिंग आर्टिस्टों का कमाल तो आपने देखा सुना होगा।"
"यहाँ कोई फ़िल्म नहीं बन रही इंस्पेक्टर। यहाँ हमने किसी को नामजद किया है। इन्क्वारी तुम्हारे पास है, उसको गिरफ्तार करना तुम्हारी ड्यूटी है और उसे दस जनवरी तक जमानत पर न छूटने देना भी तुम्हारा काम है।"
"शायद आप यह भूल गये हैं कि वह एक चोटी का वकील है। वह ऐसा शख्स है, जो आज तक कोई मुकदमा नहीं हारा। उसे दुनिया की कोई पुलिस केवल शक के आधार पर अंदर नहीं रोक सकती। हम उसे अरेस्ट तो कर सकते हैं, मगर जमानत पर हमारा वश नहीं चलेगा और अरेस्ट करके भी मैं अपनी नौकरी खतरे में नहीं डाल सकता।"
"या तुम अपने दोस्त को गिरफ्तार नहीं करना चाहते ?"
"वर्दी पहनने के बाद मेरा कोई दोस्त नहीं होता। और यकीन मानिए, पुलिस कमिश्नर भी अगर खुद चाहें तो उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते। अगर यह साबित हो जाये कि उसने आपको फोन पर धमकी दी, तो भी नहीं।"
"आई.सी.! लेकिन आपने हमारे बचाव के लिए क्या व्यवस्था की है? केवल कमांडो या कुछ और भी ? हम यह चाहते हैं कि रोमेश सक्सेना उस दिन जे.एन. तक किसी कीमत पर न पहुंचने पाये, उसका क्या प्रबंध है ?"
"है, मैंने सोच लिया है। अगर वाकई इस शख्स से जे.एन. साहब को खतरा है, जबकि मैं समझता हूँ, उससे किसी को कोई खतरा हो ही नहीं सकता। वह खुद कानून का बड़ा आदर करता है।"
"उसके बावजूद भी हम चुप तो नहीं बैठेंगे।"
"हाँ, वही बता रहा हूँ। मैं उसे नौ तारीख को रात राजधानी से दिल्ली रवाना कर दूँगा। मेरे पास तगड़ा आधार है।"
"क्या? "
"सीमा भाभी इन दिनों दिल्ली में रह रही हैं। दस जनवरी को रोमेश की शादी की सालगिरह है। देखिये, वह इस वक्त बहुत टूटा हुआ है। लेकिन वह अपनी बीवी को बहुत प्यार करता है। मैं वह अंगूठी उसे दूँगा, जो वह अपनी पत्नी को शादी की सालगिरह पर देना चाहता है। मैं कहूँगा कि मैं सीमा भाभी से बात कर चुका हूँ और अंगूठी का उपहार पाते ही उनका गुस्सा ठन्डा हो जायेगा, रोमेश सब कुछ भूलकर दिल्ली चला जायेगा।"
"और दिल्ली में उसकी पत्नी से मुलाकात न हो पायी तो?"
"यह बाद की बात है, बहरहाल वह दस तारीख को दिल्ली पहुँचेगा। मैंने उसे जो जगह बताई है, वह एक क्लब है, जहाँ सीमा भाभी रात को दस बजे के आसपास पहुंचती हैं। रोमेश उसी क्लब में अपनी पत्नी का इन्तजार करेगा और मैं समझता हूँ, उसी समय उनका झगड़ा भी खत्म हो लेगा। वहाँ रात को जो भी हो, वह फिलहाल विषय नहीं है। विषय ये है कि रोमेश दस तारीख की रात यहाँ मुम्बई में नहीं होगा। जे.एन. साहब से कह दें कि वह चाहें तो स्वयं मुम्बई सेन्ट्रल पर नौ तारीख को पहुंचकर राजधानी से उसे जाते देख सकते हैं।"
"हम इस प्लान से सन्तुष्ट हैं इंस्पेक्टर !"
"वैसे हमारे चार कमाण्डो तो आपके साथ हैं ही।"
"ओ. के.! कुछ लेंगे ?"
"नो थैंक्यू।" वहाँ से विजय सीधा रोमेश के फ्लैट पर पहुँचा। रोमेश उस समय अपने फ्लैट पर ही था।
"मैंने तुम्हें कहा था कि ग्यारह जनवरी से पहले इधर मत आना। अगर तुम जे.एन. की नामजद रिपोर्ट पर कार्यवाही करने आये हो, तो मैं तुम्हें बता दूँ कि इस सिलसिले में मैं अग्रिम जमानत करवा चुका हूँ। अगर तुम पेपर देखना चाहते हो, तो देख सकते हो।"
"नहीं, मैं किसी सरकारी काम से नहीं आया। मैं कुछ देने आया हूँ।"
"क्या?"
"तुम्हें ध्यान होगा रोमेश, तुमने मुझे तीस हजार रुपये दिये थे, बदले में मैंने साठ हजार देने का वादा किया था।”
"मैं जानता हूँ, तुम ऐसा कोई धन्धा नहीं कर सकते, जहाँ रुपया एक महीने में दुगना हो जाता हो। तुम्हें जरूरत थी, मैंने दे दिया, क्या रुपया लौटाने आये हो?"
"नहीं, यह गिफ्ट देने आया हूँ।" विजय ने अंगूठी निकाली और रोमेश के हाथ में रख दी, रोमेश ने पैक खोलकर देखा।
"ओह, तो यह बात है। लेकिन विजय हम बहुत लेट हो चुके हैं, अब कोई फायदा नहीं।"
"कुछ लेट नहीं हुए, भाभी दिल्ली में हैं। मैंने पता निकाल लिया है। 10 जनवरी का दिन तुम्हारी जिन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। भाभी को पछतावा तो है पर वह आत्मसम्मान की वजह से लौट नहीं सकती। तुम जाओ रोमेश ! वह चित्रा क्लब में जाती हैं। वहाँ जब तुम्हें दस जनवरी की रात देखेगी, तो सारे गिले-शिकवे दूर हो जायेंगे। यह अंगूठी देना भाभी को और फिर सब ठीक हो जायेगा।”
"ऐसा तो नहीं हैं विजय, तुमने 10 जनवरी को मुझे बाहर भेजने का प्लान बना लिया हो?"
"नहीं, ऐसा मेरा कोई प्लान नहीं। मैं इसकी जरूरत भी नहीं समझता, क्यों कि मैं जानता हूँ कि तुम किसी का कत्ल नहीं कर सकते। मैं तो तुम्हारी जिन्दगी में एक बार फिर वही खुशियां लौटाना चाहता हूँ और ये रहा तुम्हारा रिजर्वेशन टिकट।" विजय ने राजधानी का टिकट रोमेश को पकड़ा दिया।
"नौ तारीख का है, दस जनवरी को तुम अपनी शादी की सालगिरह भाभी के साथ मनाओगे। विश यू गुडलक ! मैं तुम्हें नौ को मुम्बई सेन्ट्रल पर मिलूँगा।"
"अगर सचमुच ऐसा ही है, तो मैं जरूर जाऊंगा।" विजय ने हाथ मिलाया और बाहर आ गया।
विजय के दिमाग का बोझ अब काफी हल्का हो गया था। हालांकि उसने अपनी तरफ से जे.एन. को सुरक्षित कर दिया था, परन्तु वह खुद भी जे.एन. को कटघरे में खड़ा करने के लिए लालायित था। चाहकर भी वह सावंत मर्डर केस में अभी तक जे. एन. का वारंट हासिल नहीं कर पाया था। फिर उसे बटाला का ख्याल आया। वह बटाला का गुरुर तोड़ना चाहता था।
जे.एन. भले ही उसकी पकड़ से दूर था, परन्तु बटाला को उसकी बद्तमीजी का सबक वह पढ़ाना चाहता था। उसकी पुलिसिया जिन्दगी इन दिनों अजीब कशमकश से गुजर रही थी, एक तरफ तो वह जे.एन. की हिफाजत कर रहा था और दूसरी तरफ जे.एन. को सावंत मर्डर केस में बांधना चाहता था। सावंत के पक्ष में जो सियासी लोग पहले उसका साथ दे रहे थे, अचानक सब शांत हो गये थे।
जारी रहेगा…..![]()
Sala EX CM ko abhi bhi tension hai dhamki ki jabki usne khud hi Romesh ko jate huye dekha .... magar magar magar story me thrill bhi to hota hai kya pata aage kya hone wala hai?# 20
रोमेश ने सात जनवरी को पुन: जे.एन. को फोन किया।
"जनार्दन नागा रेड्डी, तुम्हें पता लग ही चुका होगा कि मैं दस तारीख को मुम्बई से बाहर रहूँगा। लेकिन तुम्हारे लिए यह कोई खुश होने की बात नहीं है। मैं चाहे दूर रहूँ या करीब, मौत तो तुम्हारी आनी ही है। दो दिन और काट लो, फिर सब खत्म हो जायेगा।"
"तेरे को मैं दस तारीख के बाद पागलखाने भिजवाऊंगा।" जे.एन. बोला,
"इतनी बकवास करने पर भी तू जिन्दा है, यह शुक्र कर।"
"तू सावंत का हत्यारा है।"
"तू सावंत का मामा लगता है या कोई रिश्ते नाते वाला ?"
"तूने और भी न जाने कितने लोगों को मरवाया होगा ?"
"तू बस अपनी खैर मना, अभी तो तू मुझे चेतावनी देता फिर रहा है, मैंने अगर आँख भी घुमा दी न तेरी तरफ, तो तू दुनिया में नहीं रहेगा। बस बहुत हो गया, अब मेरे को फोन मत करना, वरना मेरा पारा सिर से गुजर जायेगा।" जे.एन. ने फोन काट दिया।
"साला मुझे मारेगा, पागल हो गया है।" जे. एन. ने अपने चारों सरकारी कमाण्डो को बुलाया,
"यहाँ तुम चारों का क्या काम है?"
"दस तारीख की रात तक आपकी हिफाजत करना।" कमाण्डो में से एक बोला।
"हाँ , हिफाजत करना। मगर यह मत समझना कि सिर्फ तुम चार ही मेरी हिफाजत पर हो। तुम्हारे पीछे मेरे आदमी भी रहेंगे और अगर मुझे कुछ हो गया, तो मेरे आदमी तुम चारों को भूनकर रख देंगे, समझे कि नहीं ?"
"अपनी जान बचानी है, तो मैं सलामत रहूं। हमेशा साये की तरह मेरे साथ लगे रहना।"
"ओ.के. सर ! हमारे रहते परिन्दा भी आपको पर नहीं मार सकता।"
"हूँ।" जे.एन. आगे बढ़ गया और फिर सीधा अपने बैडरूम में चला गया। आठ तारीख को वह एकदम तरो ताजा था। चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उसके बैडरूम के बाहर दो कमाण्डो चौकसी करते रहे। सुबह सोने वाले पहरेदार उठ गये और रात वाले सो गये।
यूँ तो जे.एन. के बंगले में जबरदस्त सिक्योरिटी थी। उसके प्राइवेट गार्ड्स भी थे, बंगले में किसी का घुसना एकदम असम्भव था। फोन रोमेश ने आठ जनवरी को भी किया, लेकिन जे.एन. अब उसके फोनों को ज्यादा ध्यान नहीं देता था।
नौ तारीख को जरुर उसके दिमाग में हलचल थी, कहीं सचमुच उस वकील ने कोई प्लान तो नहीं बना रखा है।
"वह अपने हाथों से मेरा कत्ल करेगा। क्या यह सम्भव है?"अपने आपसे जे.एन. ने सवाल किया,
"वह भी तारीख बता कर, नामुमकिन। इतना बड़ा बेवकूफ तो नहीं था वो।"
"मगर वह तो नौ को ही दिल्ली जाने वाला है।" जे.एन. के मन ने उत्तर दिया। जनार्दन नागा रेड्डी ने फैसला किया कि वह रोमेश को मुम्बई से बाहर जाते हुए जरूर देखेगा।
अतः वह राजधानी के समय मुम्बई सेन्ट्रल पहुंच गया। राजधानी एक्सप्रेस कुल चार स्टेशनों पर रुकती थी। अठारह घंटे बाद वह दिल्ली पहुंच जाती थी। ग्यारह-बारह बजे दिल्ली पहुंचेगा, फिर रात को चित्रा क्लब में अपनी बीवी से मिलेगा। नामुमकिन! फिर वह मुम्बई कैसे पहुंच सकता था? और अगर वह मुम्बई में होगा भी, तो क्या बिगाड़ लेगा? जे.एन. खुद रिवॉल्वर रखता था और अच्छा निशानेबाज भी था।
रेलवे स्टेशन पर वैशाली और विजय, रोमेश को विदा करने आये थे। राजधानी प्लेटफार्म पर आ गई थी और यात्री चढ़ रहे थे। रोमेश भी अपनी सीट पर जा बैठा। रस्मी बातें होती रही।
"कुछ भी हो, मैं तुम दोनों की शादी में जरूर शामिल होऊंगा।" रोमेश काफी खुश था। दूर खड़ा जे.एन. यह सब देख रहा था । जे.एन. के पास ही माया दास भी खड़ा था और उनके गार्ड्स भी मौजूद थे। रोमेश की दृष्टि प्लेटफार्म पर दूर तक दौड़ती चली गई। फिर उसकी निगाह जे.एन. पर ठहर गई।
"अपना ख्याल रखना" ट्रेन का ग्रीन सिग्नल होते ही विजय ने कहा।
"हाँ , तुम भी मेरी बातों का ध्यान रखना। हमेशा एक ईमानदार होनहार पुलिस ऑफिसर की तरह काम करना। अगर कभी मुझे कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करना पड़े, तो संकोच मत करना। कर्तव्य के आगे रिश्ते नातों का कोई महत्व नहीं रहता।" रोमेश ने उस पर एक अजीब-सी मुस्कराहट डाली।
गाड़ी चल पड़ी। रोमेश ने हाथ हिलाया, गाड़ी सरकती हुई आहिस्ता-आहिस्ता उस तरफ बढ़ी, जिधर जे.एन. खड़ा था। रोमेश ने हाथ हिला कर उसे भी बाय किया और फिर ए.सी . डोर में दाखिल हो गया। गाड़ी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ती जा रही थी। विजय ने गहरी सांस ली और फिर सीधा जे.एन. के पास पहुँचा।
"सब ठीक है ?" विजय ने कहा।
"गुड !" जे.एन. की बजाय मायादास ने उत्तर दिया और फिर वह लोग मुड़ गये। राजधानी ने तब तक पूरी रफ्तार पकड़ ली थी।
“दस जनवरी, शनिवार का दिन।“
यह वह दिन था, जो बहुत से लोगों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण था। सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिन था जनार्दन नागा रेड्डी के लिए। जो सवेरे-सवेरे मन्दिर इसलिये गया था, ताकि उसके ऊपर जो शनि की ग्रह दशा चढ़ी हुई है, वह शांत रहे। शनि ने उसे अब तक कई झटके दे दिये थे, उसे मुख्यमंत्री पद से हटवाया था, सावंत की हत्या करवाई थी और अब एक शख्स ने उसे शनिवार को ही मार डालने का ऐलान कर दिया था।
जनार्दन नागा रेड्डी वैसे तो हर कार्य अपने तांत्रिक गुरु से पूछकर ही किया करता था। तांत्रिक गुरु स्वामी करुणानन्द ने ही उस पर शनि की दशा बताई थी और ग्रह को शांत करने के लिए उपाय भी बताए थे।
जे.एन. इन उपायों को निरंतर करता रहा था। इसके अतिरिक्त स्वयं तांत्रिक भी ग्रह शांत करने के लिए अनुष्ठान कर रहा था। मन्दिर से लौटते हुये भी जे.एन. के दिलो-दिमाग से यह बात नहीं निकल पा रही थी कि आज शनिवार का दिन है। घर पहुंच कर उसने माया-दास को बुलाया। मायादास तुरन्त हाजिर हो गया।
"मायादास जी, जरा देखना तो हमें आज किस-किससे मिलना है?" जे.एन. ने पूछा। माया-दास ने मिलने वालों की सूची बना दी।
"ऐसा करिये, सारी मुलाकातें कैंसिल कर दीजिये।" जे.एन. बोला।
"क्यों श्री मान जी? " मायादास ने हैरानी से पूछा।
"भई आपको कम से कम यह तो देख लेना चाहिये था कि आज शनिवार है।"
"तो शनिवार होने से क्या फर्क पड़ता है ?"
"क्या आपको मालूम नहीं कि हम पर शनि की दशा सवार है?"
"लेकि….न उससे इन मुलाकातों पर क्या असर पड़ता है, यह सारे लोग तो आपके पूर्व परिचित हैं। साथ में आपको फायदा भी पहुंचाने वाले हैं।"
"कुछ भी हो, हम आज किसी से नहीं मिलेंगे।"
"जैसी आपकी मर्जी।" मायादास ने कहा,
"वैसे आपकी तबियत तो ठीक है?"
"बैठो, यहाँ हमारे पास बैठो।" जे.एन. बोला। मायादास पास बैठ गया।
"देखो मायादास जी, तुम्हें याद है कि पिछले कई शनिवारों से हमें तगड़े झटके लगे हैं। जिस दिन सावन्त का चार्ज हमारे आदमी पर लगा, वह भी शनिवार का दिन था। जिस दिन मैंने सी .एम. की सीट छोड़ी, वह भी शनिवार का दिन था। और इस रोमेश के बच्चे ने भी मुझे मारने का दिन शनिवार ही चुना।"
"ओह, तो यह टेंशन है आपके दिमाग में। लेकिन मुझे यकीन है, यह टेंशन कल तक दूर हो जायेगी। अब आप चाहें तो दिन भर आराम कर सकते हैं। मैं आप तक किसी का टेलीफोन भी नहीं पहुंचने दूँगा। कोई खास फोन हुआ, तो बात अलग है। वरना मैं कोड वाले फोन भी नहीं पहुंचने दूँगा।"
"हाँ, ठीक है। मुझे आराम करना चाहिये।" जे.एन. अपने बैडरूम में चला गया, लेकिन आराम कहाँ ? बन्द कमरे में तो उसकी बैचेनी और बढ़ ही रही थी। बार-बार रोमेश की धमकी का ख्याल आता।
जारी रहेगा.......![]()
Ye hua kand...kya ye Romesh hai ya nahi kya koi mystery hai dekhte hain kya hota hai amazing update.# 21.
उधर दस जनवरी का दिन रोमेश के लिए भी महत्वपूर्ण था। उसको एक चैलेंजिग मर्डर करना था, लोग चाहे जो अनुमान लगायें, परन्तु रोमेश ने इस कत्ल का ठेका पच्चीस लाख में लिया था और उसने कत्ल की तारीख भी तय कर ली थी।
अगर वह कामयाब हो जाता, तो उसका भविष्य क्या होता? क्या उसे सीमा वापिस मिल जानी थी ? क्या वह कानून के प्रति इंसाफ कर रहा था ?
उधर इंस्पेक्टर विजय के लिए भी यह दिन महत्वपूर्ण था। उसे एक ऐसे शख्स की हिफाजत करनी थी, जो अपराधी था और जिसने बहुत से बेगुनाहों का कत्ल किया था। वह एक माफिया था और जो चीफ मिनिस्टर बन गया था।
वह इस शख्स को नहीं बचा पाता, तो उसकी सर्विस बुक में एक बैड एंट्री होनी थी और इतना ही नहीं उसे रोमेश को गिरफ्तार करने पर भी मजबूर होना पड़ता। हालांकि वह अब अधिक चिन्तित नहीं था। फिर भी यह दिन उसके लिए महत्वपूर्ण था और इसी दिन शंकर नागा रेड्डी के मुकद्दर का भी फैसला होने वाला था।
अखबार वालों को भी सुनगुन थी कि कहीं कोई जबरदस्त न्यूज तो नहीं मिलने वाली। शहर में बहुत-सी जगह यह चर्चाएं थी। पुलिस डिपार्टमेंट से लेकर आम लोगों तक।
दस जनवरी आने तक कुछ नहीं हुआ। विजय एक गश्त लगा कर चला गया। रात के नौ बजे मायादास ने जे.एन. से मुला कात की।
"मैडम माया तीन बार फोन कर चुकी हैं।" मायादास ने कहा,
"उन्हें क्या जवाब दिया जाये ?"
"ओह, मुझे तो ध्यान नहीं रहा, आज शनिवार है।"
"तुम तो जानते ही हो मायादास ! मैं हर शनिवार डिनर उसके साथ उसी के फ्लैट पर लेता हूँ। वैसे भी यहाँ सुबह से दम-सा घुटा जा रहा है। उससे कहो कि हम आ रहे हैं, क्या हमारा जाना ठीक है ?"
"आप तो बेकार में टेंशन पा ले हुये हैं। आपको सब काम अपनी रुटीन के अनुसार करना चाहिये, अब तो शनि का प्रकोप भी खत्म हो गया। सारे ग्रह रात होते ही डूब जातेहैं। मेरा ख्याल है, वहाँ आप सारे तनाव से छुटकारा पा लेंगे। वैसे भी आपके साथ गार्ड तो रहेंगे ही। लोग कहेंगे कि आप बड़े डरपोक हैं। आपकी निडरता की साख है पूरे शहर में और आप हैं कि चूहे की तरह बिल में घुसे हुये हैं।"
"अरे नहीं हम किसी से नहीं डरने वाले। हम वहाँ जाकर आयेंगे। ड्राइवर से कहो कि गाड़ी तैयार रखे।"
"ठीक है, श्री मान जी !"
मायादास बाहर निकल गया, जे.एन. तैयार होने लगा। वह अब सब कुछ भूल चुका था और माया का हसीन फिगर उसके दिलों-दिमाग पर छाता जा रहा था।
माया ने एक बार और कौशिश की, कि जे.एन. से सम्पर्क हो जाये। वह आज रात के लिए जे. एन. को अपने यहाँ आने से रोकना चाहती थी, उसे ख्याल आया कि रोमेश ने उसे किसी कत्ल की चश्मदीद गवाह बनने के लिए कहा था और वह जान चुकी थी कि रोमेश ने जे.एन. को दस जनवरी को कत्ल करने की धमकी भी दी है।
"कहीं वह मेरे फ्लैट पर तो कुछ नहीं करने वाला ? यह ख्याल बार-बार उसके मन में आता और इसीलिये वह शाम से ही जे.एन. को फोन मिला रही थी।"
परन्तु जे.एन. से सम्पर्क नहीं हो पाया, तो उसने माया दास से संपर्क किया। उसने मायादास से ही कह दिया कि जे.एन. को वहाँ न आने दे किन्तु सवा नौ बजे मायादास का फोन आया।
"जे.एन. साहब आपके यहाँ आने वाले हैं।"
''मगर !"
"आप उस सबकी फिक्र न करे, जे.एन. साहब बड़े ही शेर दिल आदमी हैं। उन्हें इस तरह डरा देना भी ठीक बात नहीं प्लीज ! उनका वैसा ही वेलकम करें, जैसा करती हैं। तनाव मुक्त हो जायेंगे और ठीक से रात भी कट जा येगी।''
मायादास ने फोन काट दिया। करीब पांच मिनट बाद ही एक फोन और आया।
"हैलो ।"
"हम जसलोक से बोल रहे हैं, आपके अंकल मिस्टर जेठानी का एक्सी डेन्ट हो गया है। प्लीज कम इमी जियेटली !"
इस सूचना के बाद फोन कट गया।
"ओ माई गॉड, अंकल जेठानी का एक्सी डेन्ट।''
माया जल्द से तैयार हो गई। उसने अपनी नौकरानी से कहा,
''जे. एन. साहब भी आने वाले हैं। अगर कोई हॉस्पिटल से आये, तो उसे हैंडल कर लेना। कहना मैं हॉस्पिटल ही गई हूँ और जे.एन. साहब को भी समझा देना।"
माया फ्लैट से रवाना हो गई। वह अपनी कार दौड़ाती हुई हॉस्पिटल की तरफ बढ़ रही थी। उसके फ्लैट से निकलने के लगभग दस मिनट बाद बेल बजी। नौकरानी ने समझा या तो जे.एन. है, या कोई हॉस्पिटल से आया है, या खुद माया देवी ? नौकरानी ने तुरन्त द्वार खोल दिया।
जैसे ही नौकरानी ने द्वार खोला, उसके मुंह से हल्की-सी चीख निकली और तभी एक दस्ताने वाला हाथ उसके मुंह पर छा गया।
आने वाले ने दूसरे हाथ से फ्लैट का दरवाजा बन्द किया और नौकरानी को घसीटता हुआ स्टोर रूम में ले गया, भय से नौकरानी की आंखें फटी पड़ रही थीं।
शीघ्र ही उसके हाथ पाँव बाँध दिये गये और मारे भय के वह बेहोश हो गई। स्टोर बन्द करके वह शख्स बाहर आया, उसने फ्लैट का मुख्य द्वार का बोल्ट अन्दर से खोल दिया और चुपचाप फ्लैट के बैडरूम में पहुंचकर उसने दस्ताने उतारे, फिर फ्रिज खोला और फ्रिज से एक बियर और गिलास लेकर बैठ गया।
उसने गिलास में बियर डाली, और बियर पीने लगा। कुछ ही देर में माया बड़बड़ाती हुई अन्दर दाखिल हुई। वह नौकरानी को आवाज देती बड़बड़ा रही थी !
"पता नहीं किसने मूर्ख बनाया ? आज कोई फर्स्ट अप्रैल तो है नहीं ? मेरी भी मति मारी गई, यहाँ से अंकल के घर फोन किये बिना ही चल पड़ी हॉस्पिटल।"
बड़बड़ाती माया बैडरूम में पहुंची। बैडरूम में किसी की मौजूदगी देखते ही चीख पड़ी,
"तुम एडवोकेट रोमेश !"
वह शख्स एकदम माया देवी पर झपटा और उसने चाकू की नोंक माया की गर्दन पर रख दी।
''शोर मत मचाना, चलो इधर।"
वह माया को चाकू से कवर करता एक बार द्वार तक आया और फिर से फ्लैट का डोर अनबोल्ट किया। फिर द्वार का मुआयना किया और माया को खींचता हुआ बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया। उसने बैडरूम का शावर चला दिया और बाथरूम का दरवाजा भी बन्द कर दिया।
जारी रहेगा…..![]()
Ho gaya kaam magar ab bhi mystery hai kya khun sach me Romesh ne kiya hai ya kisi aur ne?# 22.
जनार्दन नागा रेड्डी की कार फ्लैट के पोर्च में रुकी। पीछे कमाण्डो की कार थी। वह कार बाहर सड़क के किनारे खड़ी हो गई। जे.एन. अपनी कार से उतरा।
"इन कमाण्डो से कहना, बाहर ही रहें।" उसने अपने ड्राइवर से कहा !!
''और तुम गाड़ी में रहना, ठीक?"
"जी साहब !" ड्राइवर ने कहा।
जे.एन. फ्लैट के द्वार पर पहुँचा। द्वार को आधा खुला देखकर जे.एन. मुस्कराया,
"शायद इंतजार करते-करते दरवाजा खोलकर ही सो गई।"
अन्दर दाखिल होकर जे.एन. ने द्वार बोल्ट किया और सीधा बैडरूम की तरफ बढ़ गया। बैडरूम में रोशनी थी और बाथरूम में शावर चलने की आवाज आ रही थी।
"ओह तो इसलिये दरवाजा खुला था, स्नान हो रहा है।"
"जी हाँ, आप बैठिए।"
बाथरुम से आवाज आई। जनार्दन नागा रेड्डी आराम से बैठ गया। फिर उसने फ्रीज खोला, एक बियर निकाल ली और उसके साथ ही एक गिलास भी। मेज पर पहले से एक गिलास और बियर की तीन चौथाई खाली बोतल रखी थी।
जे. एन. ने उस पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया। उसने अपनी बियर खोली और गिलास में डालने लगा, उसके बाद उसने गिलास होंठों की तरफ बढ़ाया। बाथरूम का दरवाजा खुलने की हल्की आवाज सुनाई दी। जे.एन. मुस्कराया। वह जानता था कि माया दबे कदम उसके करीब आयेगी और फिर पीछे से गले में बाँहें डाल देगी।
वह इन्तजार करता रहा। किसी ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा। जे.एन. को एका एक वह स्पर्श अजनबी लगा। उसका हाथ रुक गया, जाम लबों पर ही ठहर गया। फिर हाथ धीरे-धीरे नीचे आया और मेज के ऊपर ठहर गया।
"जनार्दन नागा रेड्डी !" किसी ने फुसफुसा कर कहा। जे.एन. का हाथ गिलास पर से छूट गया। उसका हाथ तेजी के साथ रिवॉल्वर की तरफ बढ़ा, परन्तु तब तक पीछे से जोरदार झटका लगा!
जे.एन. कुर्सी सहित घूम गया। एक क्षण के लिए उसे चाकू का ब्लेड चमकता दिखाई दिया। उसने चीखना चाहा। वह चीखा भी। परन्तु वह चीख घुटी-घुटी थी। तब तक चाकू उसके जिस्म में पैवस्त हो चुका था। उसकी आंख फटी-की-फटी रह गई। खून सना जिस्म कालीन पर लुढ़कता चला गया।
जनार्दन की चीख शायद बाहर तक पहुंच गई थी और बेल बजने लगी थी। फिर दरवाजा इस तरह बजने लगा, जैसे कोई उसे तोड़ने की कौशिश कर रहा हो। बैडरूम की रोशनी बुझ चुकी थी। वह शख्स पीछे खुलने वाली बालकनी पर पहुँचा। फिर उसने बालकनी पर डोरी बाँधी और फिर डोरी द्वारा तीव्रता के साथ नीचे जा कूदा। उस वक्त सबका ध्यान फ्लैट के मुख्य द्वार की तरफ था। फिर कि सीने चीखकर कहा:
"देखो वह कौ न कूदा है ?"
''लगता है, अन्दर कुछ गड़बड़ हो गई है।"
कूदने वाला बेतहाशा सड़क पर दौड़ता चला गया। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक गाड़ी के पीछे खड़ी मोटर साइकिल स्टार्ट हुई और फिर मोटर साइकिल सड़क पर दौड़ने लगी। कमाण्डो जे.एन. को छोड़कर नहीं जा सकते थे। जैसे ही कमांडो को पता चला कि जे.एन. का कत्ल हो गया है, वह सकपका गये।
''क्या करें ?" एक ने कहा।
"उसने कहा था कि अगर उसकी जान को कुछ हो गया, तो उसके आदमी हमें मार डालेंगे। जो कभी भी यहाँ आ सकते हैं।"
"मेरे ख्याल से भागने में ही भलाई है।"
"नौकरी चली जायेगी।" दूसरा बोला।
"नौकरी तो वैसे भी जानी है, जे.एन. तो मर गया। अब तो जान बचाओ।" पहले वाले ने कहा। चारों कार लेकर वहाँ से भाग खड़े हुए।
इंस्पेक्टर विजय के अतिरिक्त बहुत से वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटना स्थल पर पहुंच चुके थे। टेलीफोन वायरलेस, टेलेक्स, फैक्स न जाने कितने माध्यमों से यह न्यूज बाहर जा रही थी। सबसे पहले घटना स्थल पर पहुंचने वाला शख्स विजय ही था। माया रो रही थी। पास ही जे. एन. का ड्राइवर और नौकरानी खड़ी थी। बाहर कुछ लोग जमा थे, जिन्हें अन्दर नहीं जाने दिया जा रहा था। फ्लैट के दरवाजे पर भी सिपाही तैनात थे।
"कैसे हुआ ?"
"उसने पहले मुझे मेरे अंकल के एक्सीडेन्ट के फोन का धोखा दिया।" माया बताती जा रही थी। नौकरानी भी बीच-बीच में बोल रही थी।
"वही था, तुम अच्छी तरह पहचानती हो।"
"वही था, रोमेश सक्सेना एडवोकेट ! ओह गॉड ! उसने मुझे बैडरूम के बाथरूम में बांधकर डाल दिया। किसी तरह मैं घिसटती-2 बाहर तक आई, मगर तब तक जे.एन. साहब का कत्ल हो चुका था।
"उसने जाते-जाते मेरे हाथ खोले और बालकनी के रास्ते भाग गया। फिर मैंने मुँह का टेप हटाया और शोर मचाया। उसके बाद दरवाजा खोलकर पुलिस को फोन किया।"
"रोमेश, तुमने बहुत बुरा किया।"
विजय ने अपने मातहत को घटना स्थल पर तैनात किया। तब तक दूसरे अधिकारी भी आ चुके थे। कुछ ही देर में उसकी जीप रोमेश के फ्लैट की ओर भागी चली जा रही थी। वह एक हाथ से स्टेयरिंग कंट्रोल कर रहा था और उसके दूसरे हाथ में सर्विस रिवॉल्वर थी। रोमेश के फ्लैट पर पहुंचते ही उसकी जीप रुक गई।
फ्लैट के एक कमरे में रोशनी हो रही थी। विजय जीप से नीचे कूदा और जैसे ही उसने आगे बढ़ना चाहा, फ्लैट की खिड़की से एक फायर हुआ। गोली उसके करीब से सनसनाती गुजर गई, विजय ने तुरन्त जीप की आड़ ले ली थी।
"इंस्पेक्टर विजय।" रोमेश की आवाज सुनाई दी ।
"अभी ग्यारह जनवरी शुरू नहीं हुई है। मैंने कहा था कि तुम मुझे गिरफ्तार करने ग्यारह जनवरी को आना। इस वक्त मैं जल्दी में हूँ, अगर तुमने मुझ पर हाथ डालने की कौशिश की, तो मैं भूनकर रख दूँगा।"
"अपने आपको कानून के हवाले कर दो रोमेश।" विजय ने चेतावनी दी और साथ ही धीरे-धीरे आगे सरकना शुरू कर दिया।
विजय उस वक्त अकेला ही था। उसी क्षण फ्लैट की रोशनी गुल हो गई। इस अंधेरे का लाभ उठा कर विजय तेजी से आगे बढ़ा। वह रोमेश को भागने का अवसर नहीं देना चाहता था। वह फ्लैट के दरवाजे पर पहुँचा। उसे हैरानी हुई कि फ्लैट का दरवाजा अन्दर से खुला है। वह तेजी के साथ अंदर गया और जल्दी ही उस कमरे में पहुँचा, जिसकी खिड़की से उस पर फायर किया गया था।
वह उस फ्लैट के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था।
थोड़ी देर तक वह आहट लेता रहा कि कहीं रोमेश उस पर फायर न कर दे। तभी वह चौंका, उसने मोटर साइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनी। विजय ने कमरे की रोशनी जलाई, कमरा खाली था। वह तीव्रता के साथ खिड़की पर झपटा और फिर उसकी निगाह सड़क पर दौड़ती मोटर साइकिल पर पड़ी।
"रुक जाओ रोमेश !" वह चीखा। उसने मोटर साइकिल की तरफ एक फायर भी किया, परन्तु बेकार ! खिड़की पर बंधी रस्सी देखकर वह समझ गया कि अंधेरा इसलिये किया गया था, ताकि कोई उसे रस्सी से उतरते न देखे। संयोग से विजय उस समय फ्लैट के दरवाजे से अन्दर आ रहा था।
विजय तीव्रता के साथ बाहर आ गया। उसने अपनी जीप तक पहुंचने में अधिक देर नहीं की। उसके बाद जीप को टर्न किया और उसी दिशा में दौड़ा दी, जिधर मोटर साइकिल गई थी। रिवॉल्वर अब भी उसके हाथ में थी। काफी दौड़-भाग के बाद मोटर साइकिल एक पुल पर खड़ी मिली।
विजय ने वहीं से वायरलेस किया, शीघ्र ही एक कार वहाँ पहुंच गई। मोटर साइकिल कस्टडी में ले ली गई। रोमेश का कहीं पता न था।
"फरार हो कर जायेगा कहाँ ?" विजय बड़बड़ाया। एक बार फिर वह रोमेश के फ़्लैट पर जा पहुँचा।
जारी रहेगा…..![]()
Ab iska jabaab to abhi mere pas bhi nahi hai bhaiya, aage ke update me hi sayad kuch pata lag sake?Wow Sima ne 25 lakh rupees ki demand ki thi aur ab Shankar Reddy 25 rupees hi de raha hai CM ke murder ke liye kya koi connection hai Sima aur Shankar ke bich kuchh bhi possible ho sakta hai....let's see kya mere mann me jo doubt aaya hai sahi hoga ya galat?
Uper pahuchayega?? YessWowRomesh ki daring ki to apun fan ban gaya.
# Amazing kya sach me Romesh CM ko upar pahucha dega aur khud bach bhi jayega.... interesting
Oh god ye huyi na baat kya scene hai ek dost bhag raha hai aur dusra use pakad bhi nahi pa raha hai... super mind blowing Update.# 23
फ्लैट से जो वस्तुएं बरामद हुईं, वह सील कर दी गयीं । खून से सना ओवरकोट, पैंट, जूते, हैट, मफलर, कमीज, यह सारा सामान सील किया गया। रोमेश का फ्लैट भी सील कर दिया गया था। सुबह तक सारे शहर में हलचल मच चुकी थी। यह समाचार चारों तरफ फैल चुका था कि एडवोकेट रोमेश सक्सेना ने जे.एन. का मर्डर कर दिया है।
मीडिया अभी भी इस खबर की अधिक-से-अधिक गहराई तलाश करने में लग गया था। रोमेश से जे.एन. की शत्रुता के कारण भी अब खुल गये थे।
मीडिया साफ-साफ ऐसे पेश करता था कि सावंत का मर्डर जे.एन. ने करवाया था। कातिल होते हुए भी रोमेश हीरो बन गया था। घटना स्थल पर पुलिस ने मृतक के पेट में धंसा चाकू, मेज पर रखी दोनों बियर की बोतलें बरामद कर लीं। माया ने बताया था कि उनमें से एक बोतल रोमेश ने पी थी। फिंगर प्रिंट वालों ने सभी जगह की उंगलियों के निशान उठा लिए थे।
“रोमेश ने जिन तीन गवाहों को पहले ही तैयार किया था, वह खबर पाते ही खुद भागे- भागे पुलिस स्टेशन पहुंच गये।“
"मुझे बचा लो साहब ! मैंने कुछ नहीं किया बस कपड़े दिये थे, मुझे क्या पता था कि वह सचमुच कत्ल कर देगा। नहीं तो मैं उसे काले कपड़ों के बजाय सफेद कपड़े देता। कम-से-कम रात को दूर से चमक तो जाता।"
''अब जो कुछ कहना, अदालत में कहना।" विजय ने कहा।
"वो तो मेरे को याद है, क्या बोलना है। मगर मैंने कुछ नहीं किया।"
"हाँ-हाँ ! तुमने कुछ नहीं किया।"
राजा और कासिम का भी यही हाल था। कासिम तो रो रहा था कि उसे पहले ही पुलिस को बता देना चाहिये था कि रोमेश, जे.एन. का कत्ल करने वाला है।
उधर रोमेश फरार था। दिन प्रति दिन जे.एन. मर्डर कांड के बारे में तरह-तरह के समाचार छप रहे थे। इन समाचारों ने रोमेश को हीरो बना दिया था।
"ऐसा लगता है वैशाली, वह दिल्ली से फ्लाइट द्वारा यहाँ पहुंच गया था।" विजय ने वैशाली को बताया,
"और यह केस मैं ही इन्वेस्टीगेट कर रहा हूँ। हालांकि इसमें इन्वस्टीगेट को कुछ रहा नहीं, बस रोमेश को गिरफ्तार करना भर रह गया है।"
"क्या सचमुच उन्होंने…?"
"हाँ, वैशाली ! उसने मुझ पर भी गोली चलाई थी।"
वैशाली केवल गहरी साँस लेकर रह गई। वह जानती थी कि विजय भी एक आदर्श पुलिस ऑफिसर है। वह कभी किसी निर्दोष को नहीं पकड़ता और अपराधी को पकड़ने के लिए वह अपनी नौकरी भी दांव पर लगा सकता है। रोमेश भी उसका आदर्श था। आदर्श है। परन्तु अब यह अजीब-सा टकराव दो आदर्शों में हो रहा था। रोमेश अब हत्यारा था और कानून उसका गिरेबान कसने को तैयार था।
वैशाली की स्थिति यह थी कि वह किसी के लिए साहस नहीं बटोर सकती थी। रोमेश की पत्नी के साथ होने वाले अत्याचारों का खुलासा भी अब समाचार पत्रों में हो चुका था। सबको जे.एन. से नफरत थी। परन्तु कानून जज्बात नहीं देखता, केवल अपराध और सबूत देखता है।
जे.एन ने क्या किया, यह कानून जानने की कौशिश नहीं करेगा। रोमेश अपराधी था, कानून सिर्फ उसे ही जानता था।
जे.एन. की मृत्यु के बाद मंत्री मंडल तक खलबली मच गई थी। परन्तु न जाने क्यो मायादास अण्डरग्राउण्ड हो गया था। शायद उसे अंदेशा था कि रोमेश उस पर भी वार कर सकता है या वह अखबार वालों के डर से छिप गया था।
बटाला भी फरार हो गया था। पुलिस को अब बटाला की भी तलाश थी। उस पर कई मामले थे। वह सारे केस उस पर विजय ने बनाये थे।
किन्तु अभी मुम्बई पुलिस का केन्द्र बिन्दु रोमेश बना हुआ था। हर जगह रोमेश की तलाश हो रही थी। विजय ने टेलीफोन रिसीव किया। वह इस समय अपनी ड्यूटी पर था।
"मैं रोमेश बोल रहा हूँ।"
दूसरी तरफ से रोमेश की आवाज सुनाई दी। आवाज पहचानते ही विजय उछल पड़ा,
"कहाँ से ?"
"रॉयल होटल से, तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए बहुत बेचैन हो ना। अब आ जाओ। मैं यहाँ तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ।"
विजय ने एकदम टेलीफोन कट किया और रॉयल होटल की तरफ दौड़ पड़ा। बारह मिनट के भीतर वह रॉयल होटल में था।
विजय दनदनाता हुआ होटल में दाखिल हुआ, सामने ही काउन्टर था और दूसरी तरफ डायनिंग हॉल।
"यहाँ मिस्टर रोमेश कहाँ हैं ?" विजय ने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा।
''ठहरिये।"
काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने कहा,
"आपका नाम इंस्पेक्टर विजय तो नहीं ? यह लिफाफा आपके नाम मिस्टर रोमेश छोड़ गये हैं, अभी दो मिनट पहले गये हैं।"
"ओह माई गॉड !" विजय ने लिफाफा थाम लिया। वह रोमेश की हस्तलिपि से वाकिफ था। उस पर लिखा था,
"मैं कोई हलवे की प्लेट नहीं हूँ, जिसे जो चाहे खाले। जरा मेहनत करके खाना सीखो। मुझे पकड़कर तो दिखाओ, इसी शहर में हूँ। कातिल कैसे छिपता है? पुलिस कैसे पकड़ती है? जरा इसका भी तो आनन्द लो रोमेश !"
विजय झल्ला कर रह गया। रोमेश शहर से फरार नहीं हुआ था, वह पुलिस से आंख-मिचौली खेल रहा था। विजय ने गहरी सांस ली और होटल से चलता बना।
सात दिन गुजर चुके थे, रोमेश गिरफ्तार नहीं हो पा रहा था। आठवें दिन भी रोमेश का फोन चर्चगेट से आया। यहाँ भी वह धता बता गया। अब स्थिति यह थी कि रोमेश रोज ही विजय को दौड़ा रहा था, दूसरे शब्दों में पुलिस को छका रहा था।
"कब तक दौड़ोगे तुम ?" विजय ने दसवें दिन फोन पर कहा,
"एक दिन तो तुम्हें कानून के हाथ आना ही पड़ेगा। कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं रोमेश ! उनसे आज तक कोई बच नहीं पाया।"
ग्यारहवें दिन पुलिस कमिश्नर ने विजय को तलब किया।
"जे.एन. का हत्यारा अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ?"
"सर, वह बहुत चालाक हत्यारा है। हम उसे हर तरफ तलाश कर रहे हैं।"
"तुम पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह तुम्हारा मित्र है। इसलिये तुम उसे गिरफ्तार करने की बजाय बचाने की कौशिश कर रहे हो।"
"ऐसा नहीं है सर ! ऐसा बिल्कुल गलत है, बेबुनियाद है।"
"लेकिन अखबार भी छापने लगे हैं यह बात।" कमिश्नर ने एक अखबार विजय के सामने रखा। विजय ने अखबार पढ़ा।
"यह अखबार वाले भी कभी-कभी बड़ी ओछी हरकत करते हैं सर ! आप यकीन मानिए, इस अखबार का रिपोर्टर मेरे थाने में कुछ कमाई करने आता रहा है। मेरे आने पर इसकी कमाई बन्द हो गई।"
"मैं यह सब नहीं सुनना चाहता। अगर तुम उसे अरेस्ट नहीं कर सकते, तो तुम यह केस छोड़ दो।"
"केस छोड़ने से बेहतर तो मैं इस्तीफा देना समझता हूँ। यकीन मानिए, मुझे एक सप्ताह की मोहलत और दीजिये। अगर मैं उसे गिरफ्तार न कर पाया, तो मैं इस्तीफा दे दूँगा।"
"ओ.के. ! तुम्हें एक सप्ताह का वक़्त और दिया जाता है।"
विजय वापिस अपनी ड्यूटी पर लौट आया। यह बात वैशाली को भी मालूम हुई।
''इतना गम्भीर होने की क्या जरूरत है ? ऐसे कहीं इस्तीफा दिया जाता है ?"
"मैं एक अपराधी को नहीं पकड़ पा रहा हूँ, तो फिर मेरा पुलिस में बने रहने का अधिकार ही क्या है ? अगर मैं यह केस छोड़ता हूँ, तब भी तो मेरा कैरियर चौपट होता है। यह मेरे लिए चैलेंजिंग मैटर है वैशाली।"
वैशाली के पास कोई तर्क नहीं था। वह विजय के आदर्श जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी और अभी तो वह विजय की मंगेतर ही तो थी, पत्नी तो नहीं !
पत्नी भी होती, तब भी वह पति की भावनाओं का आदर ही करती।
"नौकरी चली भी गई, तो क्या फर्क पड़ता है। मैं ग्रेजुएट हूँ। हट्टा-कट्टा हूँ। कोई भी काम कर सकता हूँ। तुम इस बात से निश्चिन्त रहो, मैं गृहस्थी चला लूँगा, पुलिस की नौकरी के बिना भी।"
"मैं यह कब कह रही हूँ विजय ! मेरे लिए आपका हर फैसला उचित है।"
"थैंक्यू वैशाली ! कम-से-कम तुम मेरी भावनाओं को तो समझ ही लेती हो।"
"काश ऐसी समझ सीमा भाभी में भी होती, तो यह सब क्यों होता ?"
"छोड़ो, इस टॉपिक को। रोमेश अब सिर्फ एक मुजरिम है। इसके अलावा हमारा उससे कोई रिश्ता नहीं। मैं उसे अरेस्ट कर ही लूँगा और कोर्ट में सजा करा कर ही दम लूँगा।"
विजय ने संभावित स्थानों पर ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए, परन्तु रोमेश हाथ नहीं आया। अब रोमेश के फोन आने भी बन्द हो गये थे। विजय ने टेलीफोन एक्सचेंज से मिलकर ऐसी व्यवस्था की हुई थी कि रोमेश अगर एक भी फोन करता, तो पुलिस वहाँ तुरन्त पहुँच जाती। इस मामले को लेकर पूरा कंट्रोल रूम और प्रत्येक थाना उसे अच्छी तरह सहयोग कर रहा था।
शायद रोमेश को भी इस बात की भनक लग गई थी कि उसे पकड़ने के लिए जबरदस्त जाल बिछा दिया गया है। इसलिये वह खामोश हो गया था।
जारी रहेगा…....![]()
Now that's a point raised by Rajdan I need twist in the procedure now let's see what happens amazing update.# 24.
एक सप्ताह बीत चुका था। विजय बैचैनी से चहलकदमी कर रहा था। एक सप्ताह की मोहलत मांगी थी उसने और आज मोहलत का अन्तिम दिन था। वह सोच रहा था कि यह सब क्या-से-क्या हो गया? अब उसे त्यागपत्र देना होगा, उसकी पुलिसिया जिन्दगी का आज आखिरी दिन था। उसने गहरी सांस ली और त्यागपत्र लिखने बैठ गया। अभी उसने लिखना शुरू ही किया था।
"ठहरो।"
अचानक उसे किसी की आवाज सुनाई दी।आवाज जानी -पहचानी थी। विजय ने सिर उठा कर देखा, तो देखते ही चौंक पड़ा। जो शख्स उसके सामने खड़ा था, हालांकि उसके चेहरे पर दाढ़ी मूंछ थी, परन्तु विजय उसे देखते ही पहचान गया था, वह रोमेश था।
"तुम !"
उसका हाथ रिवॉल्वर की तरफ सरक गया।
"इसकी जरूरत नहीं।"
रोमेश ने दाढ़ी मूंछ नोचते हुए कहा :
"जब मैं यहाँ तक आ ही गया हूँ, तो भागने के लिए तो नहीं आया होऊंगा। अपने आपको कानून के हवाले ही करने आया हूँ। तुम तो यार मेरे मामले में इतने सीरियस हो गये कि नौकरी ही दांव पर लगाने को तैयार हो गये। मुझे तुम्हारे लिये ही आना पड़ा यहाँ। चलो अब अपना कर्तव्य पूरा करो। लॉकअप मेरा इन्तजार कर रहा है।"
"रोमेश तुम, क्या यह सचमच तुम ही हो ?"
"मेरे दोस्त ज्यादा सोचो मत, बस अपना फर्ज अदा करो।" रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये,
"दोनों कलाइयां सामने हैं, जिस पर चाहे हथकड़ी डाल सकते हो। या दोनों पर भी डालना चाहते हो, तब भी हाजिर हूँ। अच्छा लगेगा।" विजय उठा और फिर उसने रोमेश को हथकड़ी पहना दी।
''मुझे तुम पर नाज है पुलिस ऑफिसर और हमेशा नाज रहेगा। तुम चाहते तो यह केस छोड़ सकते थे, लेकिन कानून की रक्षा करना कोई तुमसे सीखे।"
उधर थाने में जब पता चला कि रोमेश गिरफ्तार हो गया है, तो वहाँ भी हड़कम्प मच गया। वायरलेस टेलीफोन खटकने लगे। मीडिया में एक नई हलचल मच गई। रोमेश को पहले तो लॉकरूम में बन्द किया गया, फिर जब रोमेश को देखने के लिए भीड़ जमा होने लगी, तो उसे पुलिस को सेन्ट्रल कस्टडी में ट्रांसफर करना पड़ा। सेन्ट्रल कस्टडी में वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रोमेश से पूछताछ शुरू हो गई।
"तुमने जे.एन. का कत्ल किया ?"
"हाँ , किया।"
"क्यों किया ?"
"मेरी उससे जाति दुश्मनी थी, उसकी वजह से मेरा घर तबाह हो गया। मेरी बीवी मुझे छोड़ कर चली गई। मेरे हरे-भरे संसार में आग लगाई थी उसने। उसके इशारे पर काम करने वाले गुर्गों को भी मैं नहीं छोड़ने वाला। मेरा बस चलता, तो उन्हें भी ठिकाने लगा देता। लेकिन मैं समझता हूँ कि मोहरों की इतनी औकात नहीं होती। मोहरे चलाने वाला असली होता है, मैंने मोहरों को छोड़कर इसीलिये जे. एन. को कत्ल किया।"
"तुम्हारे इस प्लान में और कौन-कौन शामिल था ?"
"कोई भी नहीं। मैं अकेला था। मैंने उससे फोन पर ही डेट तय कर ली थी, मुझे दस जनवरी को हर हाल में उसका कत्ल करना था।"
"तुम राजधानी से 9 तारीख को दिल्ली गये थे।"
"जी हाँ और दिल्ली से फ्लाइट पकड़कर मुम्बई आ गया था। मैं शाम को 9 बजे मुम्बई पहुंच गया था, फिर मैंने बाकी काम भी कर डाला। मैं जानता था कि जे.एन. हर शनिवार को माया के फ्लैट पर रात बिताता है, इसलिये मैंने उसी जगह जाल फैलाया था। मैंने माया को फर्जी फोन करके वहाँ से हटाया और फ्लैट में दाखिल हो गया, उसके बाद माया को भी बंधक बनाया और जे.एन. को मार डाला।" रोमेश बेधड़क हो कर यह सब बता रहा था।
"क्या तुम अदालत में भी यही बयान दोगे ?"
"ऑफकोर्स।"
"मिस्टर रोमेश सक्सेना, तुम एक वकील हो। तुमने अपने बचाव के लिए अवश्य ही कोई तैयारी की होगी।"
"इससे क्या फर्क पड़ता है, आप देखिये। चाकू की मूठ पर मेरी उंगलियों के ही निशान होंगे। बियर की एक बोतल और गिलास पर भी मिलेंगे निशान। आपके पास इतने ठोस गवाह हैं, फिर आप मेरी तरफ से क्यों परेशान हैं ?"
पुलिस ने अपनी तरफ से मुकदमे में कोई कोताही नहीं बरती, मुकदमे के चार मुख्य गवाह थे चंदू, राजा, कासिम, माया देवी। इसके अलावा और भी गवाह थे। अखबारों ने अगले दिन समाचार छाप दिया।
रोमेश को जब अदालत में पेश किया गया, तो भारी भीड़ उसे देखने आई थी। अदालत ने रोमेश को रिमाण्ड पर जेल भेज दिया। रोमेश ने अपनी जमानत के लिए कोई दरख्वास्त नहीं दी। पत्रकार उससे अनेक तरह के सवाल करते रहे, वह हर किसी का उत्तर हँसकर संतुलित ढंग से देता रहा। हर एक को उसने यही बताया कि कत्ल उसी ने किया है।
"क्या आपको सजा होगी ?" एक ने पूछा।
''क्यों ?"
"एक गूढ़ प्रश्न है, जाहिर है कि इस मुकदमे में आप पैरवी खुद करेंगे और आपका रिकार्ड है कि आप कोई मुकदमा हारे ही नहीं।"
"वक्त बतायेगा।"
इतना कहकर रोमेश ने प्रश्न टाल दिया। वैशाली दूर खड़ी इस तमाशे को देख रही थी। बहुत से वकील रोमेश का केस लड़ना चाहते थे, उसकी जमानत करवाना चाहते थे। परन्तु रोमेश ने इन्कार कर दिया।
रोमेश को जेल भेज दिया गया। रोमेश की तरफ से जेल में एक ही कौशिश की गई कि मुकदमे का प्रस्ताव जल्द से जल्द रखा जाये। उसकी यह कौशिश सफल हो गई, केवल दो माह के थोड़े से समय में केस ट्रायल पर आ गया और अदालत की तारीख लग गई।
पुलिस ने केस की पूरी तैयारी कर ली थी। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मुकदमा था, एक संगीन अपराध का सनसनीखेज मुकदमा। चुनौती और कत्ल का मुकदमा, जिस पर न सिर्फ कानून के दिग्गजों की निगाह ठहरी हुई थी बल्कि शहर की हर गली में यही चर्चा थी।
"क्राइम नम्बर 343, मुलजिम रोमेश सक्सेना को तुरंत अदालत में हाजिर किया जाये।"
जज ने आदेश दिया और कुछ ही देर बाद पुलिस कस्टडी में रोमेश को अदालत में पेश किया गया। उसे कटघरे में खड़ा कर दिया गया। अदालत खचाखच भरी थी।
"क्राइम नम्बर 343 मुलजिम रोमेश सक्सेना, भारतीय दण्ड विधान की धारा जेरे दफा 302 के तहत मुकदमे की कार्यवा ही प्रारम्भ करने की इजाजत दी जाती है।"
न्यायाधीश की इस घोषणा के बाद मुकदमे की कार्यवाही प्रारम्भ हो गई। राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी, वह सबूत पक्ष की तरफ से अपनी सीट छोड़कर उठ खड़ा हआ। लोगों की दृष्टि राजदान की तरफ मुड़ गई।
"योर ऑनर, यह एक ऐसा मुकदमा है, जो शायद कानून के इतिहास में पहले कभी नहीं लड़ा गया होगा। एक ऐसा संगीन मुकदमा, कोल्ड ब्लडेड मर्डर, इस अदालत में पेश है जिसका मुलजिम एक जाना माना वकील है।
ऐसा वकील जिसकी ईमानदारी, आदर्शो, न्यायप्रियता का डंका पिछले एक दशक से बजता रहा है।
“जिसके बारे में कहा जाता था कि वह अपराधियों के केस ही नहीं लड़ता था, वकालत का पेशा करने वाले ऐसे शख्स ने देश के एक गणमान्य, समाज के प्रतिष्ठित शख्स का बेरहमी से कत्ल कर डाला। कत्ल भी ऐसा योर ऑनर कि मरने वाले को फोन पर टॉर्चर किया जाता रहा, खुलेआम, सरेआम कत्ल, जिसके एक नहीं हजारों लोग गवाह हैं। मेरी अदालत से दरख्वास्त है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना को जेरे दफा 302 के तहत जितनी भी बड़ी सजा हो सके, दी जाये और वह सजा केवल मृत्यु होनी चाहिये। कानून की रक्षा करने वाला अगर कत्ल करता है, तो इससे बड़ा अपराध कोई हो ही नहीं सकता ।"
कुछ रुककर राजदान, रोमेश की तरफ पलटा !
"दस जनवरी की रात साढ़े दस बजे इस शख्स ने जनार्दन नागा रेड्डी की बेरहमी से हत्या कर दी । दैट्स ऑल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना, क्या आप अपने जुर्म का इकबाल करते हैं ?" अदालत ने पूछा।
रोमेश के सामने गीता रखी गई। "आप जो कहिये, इस पर हाथ रखकर कहिये।"
"जी, मुझे मालूम है।" रोमेश ने गीता पर हाथ रखकर कसम खाई। कसम खाने के बाद रोमेश ने खचाखच भरी अदालत को देखा, एक-एक चेहरे से उसकी दृष्टि गुजरती चली गई।
इंस्पेक्टर विजय, वैशाली, सीनियर-जूनियर वकील, पत्रकार, कुछ सियासी लोग, अदालत में उस समय सन्नाटा छा गया था।
"योर ऑनर!"
रोमेश जज की तरफ मुखातिब हुआ,
"मैं रोमेश सक्सेना अपने जुर्म का इकबाल करता हूँ, क्यों कि यही हकीकत भी है कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल मैंने ही किया है। सारा शहर इस बात को जानता है, मैं अपना अपराध कबूल करता हूँ और इस पक्ष को कतई स्पष्ट नहीं करना चाहता कि यह कत्ल मैंने क्यों किया है। दैट्स आल योर ऑनर।"
अदालत में फुसफुसा हट शरू हो गई, किसी को यकीन नहीं था कि रोमेश अपना जुर्म स्वीकार कर लेगा। लोगों का अनुमान था कि रोमेश यह मुकदमा स्वयं लड़ेगा और अपने दौर का यह मुकदमा जबरदस्त होगा।
"फिर भी योर ऑनर।" राजदान उठ खड़ा हुआ,
"अदालत के बहुत से मुकदमों में मेरी मुलजिम से बहस होती रही है। एक बार इन्होंने एक इकबाली मुलजिम का केस लड़ा था और कानून की धाराओं का उल्लेख करते हुए अदालत को बताया कि जब तक पुलिस किसी इकबाली मुलजिम पर जुर्म साबित नहीं कर देती, तब तक उसे सजा नहीं दी जा सकती।
हो सकता है कि मेरे काबिल दोस्त बाद में उसी धारा का सहारा लेकर अदालत की कार्यवाही में कोई अड़चन डाल दें।"
जारी रहेगा.....……![]()
Oh no no no kya karne wala hai Romesh agle update me ye bada hi interesting hone wali hai kyonki Shankar Reddy ne Romesh se kaha tha ki tumhe saja nahi honi chahiye ab dekhna interesting hoga ki Romesh apni baat ko sahi sabit kaise kar pata hai aur kaise case se bahar aata hai?# 25.
राजदान ने आगे कहा,
"इसलिये मैं मुलजिम पर जुर्म साबित करने की इजाजत चाहूँगा।" राजदान के होंठों पर व्यंगात्मक मुस्कान थी।
"इजाजत है।"
न्यायाधीश ने कहा। राजदान, रोमेश के पास पहुंचा,
"हर बार तुम मुझसे मुकदमा जीतते रहे, आज बारी मेरी है और मैं कानून की कोई प्रक्रिया नहीं तोड़ने वाला मिस्टर एडवोकेट रोमेश सक्सेना। इस बार मैं तुमसे जरूर जीतूँगा , डेम श्योर।"
"अदालत के फैसले से पहले जीत-हार का अनुमान लगाना मूर्खता होगी।" रोमेश ने कहा,
"बहरहाल मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं।"
''योर ऑनर ! मैं गवाह पेश करने की इजाजत चाहता हूँ।"
अदालत ने गवाह पेश करने की अगली तारीख दे दी। अदालत की अगली तारीख। फिर वही दृश्य, खचाखच भरी अदालत। रोमेश सक्सेना को अदालत में पेश किया गया। रोमेश को कटघरे में पहुंचाया गया। राजदान आज पुलिस की तरफ से सबूत पेश करने वाला था। लोगों में और भी उत्सुकता थी।
"योर ऑनर।" राजदान ने अदालत में सीलबन्द चाकू खोलकर कहा,
"यह वह हथियार है, जिससे मुलजिम रोमेश सक्सेना ने दस जनवरी की रात जनार्दन नागा रेड्डी का बेरहमी से कत्ल कर डाला।" राजदान ने चाकू न्यायाधीश की मेज पर निरीक्षण हेतु रखा।
"इस पर मौजूद फिंगर प्रिंटस रोमेश सक्सेना के हैं। उंगलियों के निशानों से साफ जाहिर होता है कि रोमेश सक्सेना ने इस चाकू का इस्तेमाल किया और बाकायदा योजना बद्ध तरीके से जनार्दन नागा रेड्डी को इस हथियार से मार डाला।"
न्यायाधीश ने चाकू को उलट-पलटकर देखा और फिर यथा स्थान रख दिया।
"एनी क्वेश्चन।" न्यायाधीश ने रोमेश से पूछा।
"नो मीलार्ड।" रोमेश ने उत्तर दिया।
"मेरे काबिल दोस्त के पास अब सिवाय नो मीलार्ड कहने के कोई चारा भी नहीं है।" राजदान ने व्यंगात्मक मुस्कान के साथ कहा। राजदान के साथ-साथ बहुत से लोगों के होंठों पर भी मुस्कान आ गई।
राजदान ने सबूत पक्ष की ओर से सीलबन्द लिबास निकाला। काला ओवरकोट, काली पैन्ट शर्ट, मफलर, बेल्ट।
"बिल्कुल फिल्मी अंदाज है योर ऑनर ! जरा इस गेटअप पर गौर फरमाये। इस पर पड़े खून के छींटों का निरीक्षण करने पर पता चला कि यह छींटे उसी ब्लड ग्रुप के हैं, जो चाकू पर पाया गया और यह ग्रुप जनार्दन नागा रेड्डी का था। यह रही एग्जामिन रिपोर्ट।"
राजदान ने रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट पढ़ने के बाद न्यायाधीश ने रोमेश की तरफ देखा।
"आई रिपीट नो मीलार्ड।"
इस बार रोमेश ने मुस्करा कर कहा, तो अदालत में बैठे लोग हँस पड़े। अदालत में वैशाली भी मौजूद थी,जो खामोश गम्भीर थी। वह सरकारी वकीलों की बेंच पर बैठी थी और राजदान के साथ वाली सीट पर ही थी।
"मिस वैशाली, प्लीज गिव मी पोस्टमार्टम रिपोर्ट।" राजदान ने कहा। वैशाली ने एक फाइल उठा कर राजदान को दे दी।
"यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट।"
राजदान ने रिपोर्ट न्यायाधीश के सामने रखी,
"रिपोर्ट से पता चलता है कि कत्ल 10 जनवरी की रात दस से ग्यारह के बीच हुआ और किसी धारदार शस्त्र से चार वार किये गये, चारों वार पेट की आंतों पर किये गये। आंतें कटने से तेज रक्तस्त्राव हुआ, जिससे मकतूल मौका-ए-वारदात पर ही खत्म हो गया और योर ऑनर इसका ग्रुप चाकू पर लगे खून का ग्रुप, कपड़ों पर लगे खून एक ही वर्ग का है।"
उसके बाद अदालत में बियर की दो बोतलें पेश की गई, जिनमें से एक पर जे.एन. की उंगलियों के निशान थे, दूसरी पर रोमेश की उंगलियों के। रोमेश का हर बार एक ही उत्तर होता।
"नो क्वेश्चन मीलार्ड।"
"अब मैं जिन्दा गवाह पेश करने की इजाजत चाहता हूँ योर ऑनर।" राजदान ने कहा।
"इजाजत है।"
"मेरा पहला गवाह है चंदूलाल चन्द्राकर।"
"चंदूलाल चंद्राकर हाजिर हो।" चपरासी ने आवाज लगाई। डिपार्टमेन्टल स्टोर का सेल्समैन चंदू तैयार ही था। वह चलता हुआ, विटनेस बाक्स में जा पहुँचा। इससे पहले कि उसके हाथ में गीता रखी जाती, कटघरे में पहुंचते ही उसने रोमेश को देखा, मुस्कराया और बिना किसी लाग लपेट के शुरू हो गया।
"योर ऑनर, मैं गीता, रामायण, बाइबिल, कुरान की कसम खा कर कहता हूँ, जो कुछ कहूँगा, वही कहूँगा, जो मैं कई दिन से तोते की तरह रट रहा हूँ, कह दूँ।"
लोग ठहाका मारकर हँस पड़े। राजदान ने उसे रोका,
"मिस्टर चंदूलाल चन्द्राकर, जरा रुकिये। मेरे कहने के बाद ही कुछ शुरू करना।"
"यह मुझसे नहीं कहा गया था कि आपके पूछने पर शुरू करना है,क्यों मिस्टर?" उसने रोमेश की तरफ घूरा,
"ऐसा ही है क्या ?"
रोमेश ने सिर हिला कर हामी भरी।
"चलो ऐसे ही सही ।"
अब सरकारी वकील ने गीता की कसम खिलाई।
"जो मैं कहूँ, वही दोहराते रहना। उसके बाद गव ही देना।"
"ठीक है-ठीक है।" चंदू ने कहा और फिर अदालत की कसम खाने वाली रस्म पूरी की। इस रस्म के बाद राजदान ने पूछा :
"तुम्हारा नाम ?"
"चन्दूलाल चन्द्राकर।" चन्दू ने कहा ।
"क्या करते हो ?"
"डिपार्टमेन्टल स्टोर में रेडीमेड शॉप का सेल्समैन हूँ।"
''यह कपड़े तुम्हारे स्टोर से खरीदे गये थे।"
"जी हाँ।"
"अब सारी बात अदालत को बताओ।" चंदू ने तनिक गला खंखार कर ठीक किया और फिर बोला ,
"योर ऑनर ! यह शख्स जो कटघरे में मुलजिम की हैसियत से खड़ा है, इसका नाम है रोमेश सक्सेना। योर ऑनर 31 दिसम्बर की शाम यह शख्स मेरी दुकान पर आया और इसने मेरी दुकान से इन कपड़ों को खरीदा, जो खून से सने हुए आपके सामने रखे हैं। इसने मुझसे कहा कि मैं इन कपड़ों को पहनकर एक आदमी का कत्ल करूंगा और इसने सचमुच ऐसा कर दिखाया।"
"मुलजिम को यदि इस गवाह से कोई सवाल करना हो, तो कर सकता है योर ऑनर।" राजदान ने कहा।
"नो क्वेश्चन।" मुलजिम रोमेश ने कहा। अदालत ने गवाह चंदू की गवाही दर्ज कर ली। सबूत पक्ष का दूसरा गवाह राजा था।
"चाकू छुरी बेचना मेरा धंधा है माई बाप ! मैं इस शख्स को अच्छी तरह जानता हूँ, यह एडवोकेट रोमेश सक्सेना है। जिस चाकू से इसने कत्ल किया, वह इसने मेरी दुकान से खरीदा था और सरेआम कहा था कि इस चाकू से वह मर्डर करने वाला है। किसी को यकीन ही नहीं आया। सब लोग इसे पागल कह रहे थे, भला ऐसा कहाँ होता है कि कोई आदमी इस तरह कत्ल का ऐलान करे। मगर रोमेश सक्सेना ने वैसा ही किया, जैसा कहा था।
"तीसरा गवाह नाम गोदने वाला कासिम था। "
आमतौर पर मेरे यहाँ बर्तनों पर नाम लिखे जाते हैं और ज्यादातर मियां बीवी के नाम होते हैं। जबसे मैंने होश संभाला और धंधा कर रहा हूँ, तबसे मेरी जिन्दगी में ऐसा कोई शख्स नहीं आया, जो मियां बीवी की बजाय मकतूल और कातिल का नाम खुदवाये ! कटघरे में खड़े मुलजिम रोमेश सक्सेना ने दो नाम मुझसे लिखवाये। एक उसका जिसका कत्ल होना था जनार्दन नागा रेड्डी। यह नाम चाकू की ब्लैड पर लिखवाया गया, दूसरा नाम मूठ पर लिखवाया गया। यह नाम खुद रोमेश सक्सेना का था। इन्होंने मुझसे कहा कि इस चाकू से वह जनार्दन नागा रेड्डी का ही कत्ल करेगा।"
"क्या यही वह चाकू है ?"
राजदान ने चाकू दिखाते हुए कहा, "जिस पर दो नाम गुदे थे।"
"जी हाँ, यही चाकू है।"
"योर ऑनर मेरा चौथा और आखरी गवाह है माया देवी ! वह औरत, जिसकी आँखों के सामने कत्ल किया गया। इस वारदात की चश्मदीद गवाह।"
"नो क्वेश्चन।" रोमेश ने पहले ही कहा, रोमेश के होंठों पर मुस्कराहट थी। लोग हँस पड़े।
जारी रहेगा...........![]()
Ek ke baad ek hint sabko khud hi Romesh bata raha hai karne kya wala hai Romesh sala apun ki dimag ki watt laga ke rakhi hai.
Aur kya romesh babu ko halke me nahi lena bhaiya,Date bhi fix ho gaya kya Romesh murder kar payega EX CM ka ya phir koi alag hi story samne aayegi thrill to know.