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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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Last edited:
♡ Family Introduction ♡ |
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Ab kya hi kahe bhai? Aap late ho, pehle bolte to change kar dete,Here comes Mr. Bachchan
Vijay....
ye Daddy kya hota hai men......
feel nahi aa rahi isse.....
apan hi late aaya hai....daddy ke jagah pe Pita ji hota to jyada feel deta....
Wo Karun Patel seth ka aadmi hoga....
Going nice
Thanks brother for your amazing review, Waise bande ne dimag acha lagaya tha suicide karne mekhooni pahle chess mein checkmate deta hai....phir saamne goli maar deta hai
mast khooni hai ye.....
mauka deta hai logo ko.... Ab do taraf chal rahi hai kahani
ek Romesh ki taraf jaha usko kuch pata chala hai wahi dusri Vijay ki taraf jaha ek aur case mila hai.....
Nice
aise kaun bolta men....apan kar raha na khud se explore.....Thanks brother for your amazing review, Waise bande ne dimag acha lagaya tha suicide karne me
Okay brotheraise kaun bolta men....apan kar raha na khud se explore.....
Kaha apan Amitabh Bachchan aur Shatrughan Sinha pe laga hua hai...
ju suicide wagera bataye jaa rahe....
lemme explore
Raj_sharma galat kiye men ju ye....pahle nahi batana tha....# 4
अपना फ्रेन्ड जगाधरी बहुत अच्छा आदमी था नी , सण्डे का दिन हमारा छुट्टी का दिन होता , दोनों यार शतरंज खेलता और दारू पीता , हम शतरंज खेलता , कबी वो जीतता कबी हम जीतता , कबी __________हम जीतता कबी वो , शतरंज भी अजीब खेल है सांई! हम दोनों बिल्कुल बराबर का खिलाड़ी , एकदम बराबर का । कबी वोजीतता कबी … ।"
"मुझे तुम्हारी शतरंज की जीत हार से कुछ लेना-देना नहीं समझे ।" विजय ने बीच में उसे टोकते हुए कहा ,
"तुम आज यहाँ शतरंज खेलने आये थे? और तुमने यहाँ आकर दारू पी थी।"
"कसम खा के बोलता सांई, आज दारू नहीं पी , अरे पीता किसके साथ, जगाधरी तो रहा नहीं , आप दारू की बात करता ।
" हीरा लाल की आंखों में एका एक आँसू छलक आए, "हम दोनों हफ्ते में एक दिन पीता , बस एक दिन । अब तो हफ्ते में एक दिन क्या महीने में भी एक दिन पीना नहीं होयेगा सांई।"
"शटअप !"
हीरालाल इस प्रकार चुप हो गया , जैसे ब्रेक लग गया हो ।
"जो मैं पूछता हूँ, बस उतना ही जवाब देना , वरना अन्दर कर दूँगा ।"
हीरा लाल के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं ।
"आज तुम यहाँ शतरंज खेलने आये थे?"
"आज नहीं खेला , ठीक वक्त पर जब मैं आया , घंटी बजाया फ्लैट की , तभी अन्दर गोली चलने का आवाज हुआ, पहले मैं समझा कोई पटाखा छूटा होगा , हड़बड़ाहट में मैंने दरवाजे पर धक्का मारा , दरवाजा खुला था , जगाधरी को पुकारता हुआ उस कमरे के अन्दर घुसा तो देखा सांई ! बस जो देखा , कभी नहीं देखा पहले । मेरा यार राम को प्यारा हो गया नी।
मैं उसका हालत देखके भागा और सबसे पेले आपको फोन किया नी ।"
"क्या उस वक्त तक जगाधरी मर चुका था ?"
"देखने से यही लगता था , अबी जैसा देखने से लगता ।"
"तुम्हारे अलावा कमरे में और कोई नहीं गया ?"
"नहीं जी , मैं तो यहीं से फोन मिलाया , फिर दरवाजा बन्द करके बाहर बैठ गया , मैं सोचा के गोली चलाने वाला अन्दर ही कहीं छिप गया होयेगा , मैं दरवाजे पे डट गया सांई।
मेरे यार को मारके साला निकल के दिखाता बाहर, मैं ही उसका खोपड़ा तोड़ देता ।"
"कातिल को तुमने नहीं देखा?"
"देखता तो वो यहाँ लम्बा न पड़ा होता?"
"इस फ्लैट में जगाधरी के अलावा कौन रहता था ?"
"एक नौकर था बस, वो भी दो दिन से छुट्टी पे गया है । उसका यहाँ कोई नहीं था , यह बात जगाधरी ने मुझे बताया था सांई ।"
"सर यह झूठ बोलता है ।" बलदेव बोल उठा , "इसने फायर की आवाज सुनी । उसी वक्त अंदर भी आया और फिर दरवाजा बन्द करके बाहर जम गया । फिर गोली चलाने वाला कहाँ गया ?
मैंने सारा फ्लैट देख मारा है, इस दरवाजे के सिवा बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है, एक खिड़की है, जिस पर ग्रिल लगी है, सलामत है ग्रिल भी ।"
"यही तो मैं पूछता सांई, वो गोली चला के गया किधर ?"
"जगाधरी का पार्टनर कहाँ रहता है ?"
"मैं इतना नहीं जानता सांई, ना उसने कबी बताया । मैंने कभी उसके घर का लोग नहीं देखा , एक-दो बार पूछा, बता के नहीं देता था ।
छ: महीने पहले यह फ्लैट किराये पर लिया।"
"जगाधरी का क्या बिजनेस था ?"
"शेयर मार्केट में दलाली करता था , बस और हम कुछ नहीं जानता , हमारी दोस्ती शतरंज से शुरू हुई, दोनों एक क्लब में मिले, फिर पता लगा वो हमारा पड़ोसी है, उसके बाद यहीं जमने लगी , मगर आदमी बहुत अच्छा था सांई ! हफ्ते में एक दिन पीता था सण्डे को, और मैं भी उसी दिन पीता , कबी वो जीतता कबी मैं ।"
"कबी मैं जीतता कबी वो ।" विजय चीख पड़ा ।
"आपको कैसे मालूम जी ।" हीरालाल ने एक बार फिर चश्मा दुरुस्त किया ।
"अब तुम ड्राइंगरूम से बाहर बैठो , कहीं फूटना नहीं , तुम्हारे बयान होंगे ।" विजय ने हीरालाल को बाहर भेज दिया । विजय ने गहरी सांस ली और तफ्तीश शुरू कर दी । कुछ ही देर में फिंगर प्रिंट्स और फोटो वाले भी आ गये । पुलिस कंट्रोल रूम को मर्डर की सूचना दे दी गई थी । ……
उधर :
सण्डे था । सण्डे का दिन रोमेश अपनी पत्नी सीमा के लिए सुरक्षित रखता था , बाथरूम से नहा धो कर नौ बजे वह नाश्ते की टेबिल पर आ गया ।
"डार्लिंग, आज कहाँ का प्रोग्राम है ?"
"पूरे हफ्ते बाद याद आई मेरी ।" सीमा मेज पर नाश्ते की प्लेटें सजाती हुई बोली ।
"क्या करें डार्लिंग, तुम तो जानती ही हो कि कितना काम करना पड़ता है । दिन में कोर्ट, बाकी वक्त इन्वेस्टीगेशन, कई बार तो खतरों से भी जूझना पड़ता है, मुझे इन क्रिमिनल्स से सख्त नफरत है डार्लिंग ।"
"अब यह कोर्ट की बातें बन्द करिये, सण्डे है ।"
"हाँ भई, आज का दिन तुम्हारा होता है, आज के दिन हम जोरू के गुलाम,
किधर का प्रोग्राम बनाया जानेमन ?"
"बहुत दिनों से झावेरी ज्वैलर्स में शॉपिंग करने की सोच रही थी ।"
"झावेरी ज्वैलर्स ।"
रोमेश के हलक में जैसे कुछ फंस गया , "क… क्या खरीदना था ?"
"हीरे की एक अंगूठी , तुमने हनीमून पर वादा किया था कि मुझे हीरे की अंगूठी ला कर दोगे, वही जो झावेरी के शो रूम में लगी है और कुल पचास हजार की है ।"
"म…मारे गये, यह अंगूठी फिर टपक पड़ी ।" रोमेश बड़बड़ाया ।
"क्यों , कुछ फंस गया गले में, लो पानी पीलो ।" सीमा ने पानी का गिलास सामने कर दिया ।
रोमेश एक साँस में पूरा गिलास खाली कर गया । "डार्लिंग गिफ्ट देने का कोई शुभ अवसर भी तो होना चाहिये ना ।"
"पाँच साल हो गये हैं हमारी शादी हुए। इस बीच कम-से-कम पांच शुभ अवसर तो आये ही होंगे ।" सीमा ने व्यंगात्मक स्वर में कहा , "आपको याद है जब हमारे प्यार के शुरुआती दिन थे तो । "
"याद तो सब कुछ है, तुम्हें भी तो बंगला कार वगैरा से बहुत लगाव है।"
"किसको नहीं होता , आप अपने साथी वकीलों की माली हालत पर भी तो नजर डाल लिया कीजिए, उनके पास क्या नहीं है? और एक आप हैं कि आपकी मोटरसाइकिल तक रिटायर नहीं हो पाती ।"
"तल्खी खत्म हो तो बता देना ।" रोमेश उठकर फ्लैट की बालकनी में चला गया । तल्खी खत्म नहीं हुई थी कि फोन की घंटी बज उठी । रोमेश फोन की तरफ बढ़ गया ।
"रोमेश हेयर ।"
"मैं विजय ।" दूसरी तरफ से कहा गया ।
"इंस्पेक्टर, यह सुबह-सुबह कहाँ से बोल रहे हो ?"
''गोरेगांव ईस्ट, संगीता अपार्टमेंट ।"
"किसी का मर्डर हो गया क्या ?"
"तुम्हें कैसे मालूम ।"
"फोन पर गंध आ रही है । संगीता अपार्टमेन्ट में न तो तुम्हारा कोई रिश्तेदार रहता है, न कोई गर्लफ्रेंड, न ही वहाँ कोई शराब का अड्डा चलता है। घड़ी जो समय बता रही है, उसके अनुसार तुम्हें इस वक्त थाने में होना चाहिये था । तुम अपने ही इलाके की किसी और लोकेशन से बोल रहे हो , जिसका साफ मतलब है कि तुम मौका-ए-वारदात पर हो । मुझे फोन किया , इसलिये साफ जाहिर है कत्ल का मामला होगा , चोर डकैतों की लिस्ट तो पुलिस के पास होती ही है । हाँ , हत्यारों की नहीं होती ।"
"गुरु फौरन आ जाओ, मेरी फंसी पड़ी है ।"
"गुरु मानते हो , इसलिये आना ही होगा , लेकिन यार आज सण्डे है ।" दूसरी तरफ से फोन कट चुका था ।
"इन पुलिस वालों की छुट्टी तो वैसे कभी होती ही नहीं ।"
"खासकर विजय की तो हो ही नहीं सकती ।" सीमा बोल पड़ी ,
"जैसे आप, वैसा विजय। आप किसी क्रिमिनल का केस नहीं लड़ते और वह किसी क्रिमिनल को रिश्वत लेकर नहीं छोड़ता ।"
"कोई फतवा हो तो बताओ, वरना मैं देख आऊं क्या मामला है ?"
"जाइये ।"
इतना कहकर सीमा बाथरूम में चली गई । जल्दी ही तैयार होकर रोमेश अपनी मोटरसाइकिल लेकर चल पड़ा । बांद्रा से अंधेरी , अंधेरी से गोरेगांव । रॉयल एनफील्ड की बुलेट गाड़ी को पुलिसिया अंदाज में दौड़ाता हुआ वह पंद्रह मिनट में मौका-ए-वारदात पर पहुंच गया । और फिर जगाधरी के फ्लैट में पहुँचा , जहाँ विजय उसका बेताबी से इन्तजार कर रहाथा ।
कुछ दूसरे सीनियर पुलिस ऑफिसर भी घटना स्थल पर आ चुके थे । उनमें से कुछेक ऐसे भी थे, जो रोमेश को पसन्द नहीं करते थे।
"मकतूल की लाश कहाँ है? " रोमेश ने विजय से पूछा । विजय, रोमेश को लाश वाले कमरे में ले गया ।
"जब तुम उस कमरे में दाखिल हुए, क्या सब इसी तरह था , कोई चेजिंग तो नहीं हुई है?" रोमेश ने कमरे में सरसरी नजर दौड़ाते हुए कहा ।
"सिर्फ एक चेंजिग है, रिवॉल्वर हमने अपने कब्जे में ले ली है ।"
"यानि कि जिस रिवॉल्वर से कत्ल हुआ ।"
"अभी यह कहना मुनासिब न होगा कि कत्ल उसी से हुआ, लेकिन वह यहाँ उसे नीचे पड़ी मिली ।"
"वह जहाँ से उठाई, वहीं रख दो ।" विजय ने बलदेव को संकेत किया , बलदेव ने रिवॉल्वर रख दी ।
"क्या रिवॉल्वर रखने से सिचुऐशन पर फर्क पड़ जायेगा ।" यह बात डी .एस.पी . केसरी नाथ ने कटाक्ष के तौर पर कही ।
"हंड्रेड परसेन्ट ।"
रोमेश बोला ,"धारा भी बदल सकती है ।"
"यानि कि मर्डर की धारा 302 की जगह कुछ और बनती है ।"
"सर प्लीज ।"
विजय ने केसरी नाथ को टिप्पणियां करने से रोका ।
"एनी वे ।"
केसरी नाथ ड्राइंगरूम में चला गया ,
"जो भी रिजल्ट निकले, मेरे को इन्फॉर्म करो ।"
"यह दरवा जा बन्द कर दो बलदेव ।" रोमेश ने कहा ।
बलदेव, रोमेश की जांबाजी से वाकिफ था, और यह भी जानता था कि विजय तभी रोमेश की मदद लेता है, जब मामला सचमुच पेचीदा हो । कत्ल के मामले सुलझाने में उसे मुम्बई पुलिस का मददगार शरलक होम्स कहा जाता था ।
रोमेश इस काम की कोई फीस नहीं लेता था । बतौर शौक, यही नहीं बल्कि गुत्थी सुलझाने में उसे इस बात का सुकून मिलता था कि कोई निर्दोष नहीं पकड़ा गया ।
दरवाजा बन्द होने के बाद एक बार फिर रोमेश ने कमरे का निरीक्षण शुरू कर दिया था। विजय सारी घटना पर प्रकाश डालता जा रहा था । जब वह सब बता चुका , तो बोला ,
"अब बताओ कातिल कोई हवा तो है नहीं कि निकल गया होगा । या तो हीरालाल गलत बयानी कर रहा है, या वह खुद ।"
"किसी ठोस निर्णय के बिना हीरालाल को लपेटना उचित नहीं होगा ।" रोमेश ने बीच में ही टोक दिया .
"ऐसा आमतौर पर होता नहीं है कि कातिल कत्ल के बाद खुद गले में फंदा डालने वाली परिस्थितियां बना दे ।"
"मगर दरवाजा एक ही है, और धमाके के समय हीरा लाल द्वार पर था , फिर वह यहाँ आया । ओह एक बात हो सकती है ।"
"क्या ?"
"कत्ल करने के बाद कातिल इस कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में या बाथरूम में छिपा , हीरालाल जैसे ही इसके अन्दर आया , वह बाहर निकल गया होगा । लेकिन उसने रिवॉल्वर यहाँ फेंक क्यों दी ? किसी मुसीबत से निपटने के लिए उसे रिवॉल्वर तो अपने पास रखनी चाहिये थी । ऐसे में जबकि हीरालाल दरवाजे पर था ।"
रोमेश ने रिवॉल्वर रूमाल से लपेटकर उठा ली । उसकी नाल सूंघी , गर्दन हिलाई । उसका चेम्बर चेक किया । चेम्बर में अभी भी पांच गोलियां थीं , एक ही चली थी । बारूद की गंध से पता चलता था कि गोली उसी से चली थी । फिर रोमेश का ध्यान दरवाजे पर लगी चंद कीलों पर पड़ा । उसने दरवाजे से सीधा लाश को देखा और फिर लाश के पास पहुंच गया । उसके बाद वह घुटने के बल बैठ गया और फर्श पर कुछ कुरेदता रहा । फिर रबड़ की एक डोरी उठा ते ही उसके होंठ गोल हो गये । वह सीधा खड़ा हो गया ।
"माई डियर पुलिस ऑफिसर । अब आप चाहें, तो शव को सील करके पोस्टमार्टम के लिए भेज सकते हैं ।"
इंस्पेक्टर विजय समझ गया कि जो गुत्थी वह नहीं सुलझा पा रहा था , वह सुलझ चुकी है ।
"हुआ क्या , लाश तो सील होगी ही । पंचनामा भी होगा , पोस्टमार्टम भी होगा । मगर बतौर कातिल मैं किसे गिरफ्तार करूं ? मैं जानने के लिए बेचैन हूँ, “रोमेश” आखिर कत्ल किसने किया? और कातिल कैसे निकल भागा ?"
"कातिल कहीं नहीं गया ।"
''क्या मतलब ?"
"माईडियर फ्रेन्ड, मकतूल भी यहीं है और कातिल भी , लेकिन अफसोस एक ही बात का है कि सारे सबूत उसके खिलाफ होते हुए भी तुम उसे गिरफ्तार न कर पाओगे ?"
जारी रहेगा...
hint de diye ho yahic pe.....# 5
"क्या बात कर रहे हो भाई, अपने मामले में मैं कितना सख्त हूँ, यह तो तुम भी जानते हो।"
"यही तो मुश्किल है कि इस बार तुम हर जगह से हारोगे, कातिल सामने होगा और तुम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकोगे ।"
"साफ-साफ बताओ यार, पहेली मत बुझाओ ।"
"तो सुनो , जो मकतूल है, वही कातिल भी है ।"
"क… क्या मतलब ? माई गॉड ! मगर कैसे ? वह यहाँ और रिवॉल्वर वहाँ ? हाउ इज इट पॉसिबल ?
आत्महत्या करने के बाद वह रिवॉल्वर इतनी दूर कैसे फेंक सकता है ? या तो उसके हाथ में होती या मेज पर ? नहीं तो ज्यादा-से-ज्यादा उसके पैरों के पास ।
कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते कि आत्महत्या के बाद किसी ने रिवॉल्वर उस तरफ फेंक दी होगी ।"
"यार तुम तो हजा रों सवाल किये जा रहे हो । कभी-कभी दिमाग के घोड़े भी दौड़ा लिया करो , तुमने वह दरवाजा देखा ।" दरवा जा बन्द था ।
"हाँ , देखा ।"
"इस किस्म के फ्लैटों में रहने वाले लोग क्या दरवाजों पर इस तरह कीलें ठोककर रखते हैं। कीलें तो झोंपड़पट्टी वाले भी अपने दरवाजों पर नहीं ठोकते ।" विजय ने उन कीलों को देखा ।
"मगर इससे क्या हल निकला ?"
"रिवॉल्वर दरवाजे के पास गिरी हुई थी , लो पहले इसका चेम्बर खाली करके गोलियां अपने कब्जे में करो , फिर बताता हूँ ।"
विजय ने चेम्बर खाली कर दिया । खाली रिवॉल्वर की मूठ को रोमेश ने उन कीलों पर फिक्स किया , रिवॉल्वर कीलों पर अटक गया ।
''अब अगर इसकी नाल से गोली निकलती है, तो कहाँ पड़नी चाहिये ?" रोमेश ने पूछा ।
"ओ गॉड ! गोली सीधा उसी कुर्सी पर पड़ेगी , जहाँ मृतक मौजूद है ।"
"बिल्कुल ठीक ! यह भी कि गोली उसी जगह लगेगी , जहाँ इस शख्स के लगी हुई है । वह अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला । कुर्सी के पुश्ते से उसका सिर उसी पोजीशन में है । वह उसी स्थिति में मरा है ।
उसने रिवॉल्वर का ट्रिगर दबाया , गोली चली और सीधा उसके मस्तक को फोड़ती चली गई ।"
"लेकिन सवाल अब भी वही है, उसने रिवॉल्वर का ट्रिगर दबाया कैसे ?"
"रबड़ की इस डोरी से ।"
रोमेश में एकपतली डोरी दिखाई,
"यह डोरी इस मेज के नीचे पड़ी थी”
उसने डोरी का एक सिरा ट्रिगर पर मिलाया , दूसरा सिरा खुद पकड़कर धीरे-धीरे डोरी खींची । जैसे ही तनाव बढ़ा , डोरी ने ट्रिगर दबा दिया । गोली चलने पर रिवॉल्वर को झटका लगा । साथ ही डोरी का बंधन भी ट्रिगर से छूट गया , रिवॉल्वर नीचे गिर गई और मृतक के मरते ही डोरी का दूसरा सिरा उसके हाथ से भी निकल गया।धमाके की आवाज सुनकर तुरन्त ही हीरालाल अन्दर आया, और बाकी वही हुआ, जो वह कहता है ।"
"ओ रियली ! यू आर जीनियस मैन रोमेश ! इस सारे मामले ने मेरे तो छक्के ही छुड़ा दिये । मगर इस शख्स ने आत्महत्या की यह तरकीब क्यों सोची और यह बिसात पर बिछे मोहरे, दो गिलास, व्हिस्की की बोतल यह सब क्या है ?"
"मरने से पहले उसने यह कौशिश की, कि यह मामला कत्ल का बन जाये और शायद यह भी सोच लिया था कि हीरा लाल पकड़ा जायेगा ,
हीरा लाल ने डोर नॉक किया तो वह मरने के लिए तैयार बैठा था ।"
"मगर वजह क्या हो सकती है ?"
"वजह तुम तलाश करो , क्या सब कुछ मैं ही करता फिरूंगा । कुछ तुम भी तो करके दिखाओ माई डियर पुलिसमैन ।"
इतना कहकर रोमेश ने दरवाजा खोला और बाहर निकला चला गया । अगले दिन वजय का फोन रोमेश को मिला ।
"वही स्टोरी है, असल में उसे जबरदस्त घाटा हो चुका था उसकी लाइफ इंश्योरेंस की कुछ पॉलिसी थी, जगाधरी और उसकी पत्नी में कुछ सालों से अनबन थी , जगाधरी घर नहीं जाता था ।
उसकी फैमिली पूना में रहती है, और उसकी पत्नी वहाँ टीचर है । इसके दो बच्चे भी हैं, दोनों माँ के साथ रहते हैं, जगाधरी की कमाई का वह एक पैसा भी नहीं लेते थे, जगाधरी काफी मालदार व्यक्ति था , फिर वह शेयर के धंधों में सब कुछ गंवा बैठा और पूरी तरह कर्जदार भी हो गया , इसका सब कुछ बिक चुका था । बस उसकी इंश्योरेंस की पॉलिसियां थीं , इसलिये वह चाहता था कि उसकी मौत का नाटक कत्ल की वारदात में बदल जाये, तो पॉलिसी कैश हो जायेगी, और उसकी मौत के बाद एक मोटी रकम बीवी - बच्चों को मिल जायेगी ।"
"बड़ी ट्रेजिकल स्टोरी है, वह अपने बीवी -बच्चों को चाहता था ।" रोमेश बोला ।
"हाँ , ऐसा ही है ।"
"बहरहाल तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया, तुमने गुत्थी सुलझा दी , अगर मेरी जगह कोई और होता , तो शायद जो स्टोरी जगाधरी बनाना चाहता था , वह अखबारों में छपी होती ।"
"मैं कचहरी जा रहा हूँ, एक दिलचस्प मुकदमे की पैरवी करने । जरा आ जाना ।"
इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया ,
"सेम स्टोरी ।"
रोमश के होंठ गोल हो गये । वह कोर्ट जाने के लिए बिल्कुल तैयार खड़ा था, और कानून की एक मोटी किताब में कुछ मार्क कर रखा था । उसके बाद उसने दो-तीन लॉ बुक उठाई और फ्लैट से बाहर आ गया । श्यामू मोटर साइकिल साफ कर रहा था ।
"श्यामू तूने कभी अपना बीमा करवाया ?"
"नहीं तो साब, क्या करना बीमा करके, जो रुपया अपने काम न आये, वह किस काम का और फिर साब, मेरी अभी शादी ही कहाँ हुई ।"
"ओहो यह तो मैं भूल ही गया था , तेरी उम्र क्या है ?"
"उम्र मत पूछो साब, रोना आता है ।"
श्यामू, रोमेश का घरेलू नौकर था । जो उसे तनख्वाह मिलती थी , सब खर्च कर देता था। अच्छे कपड़े पहनना उसका शौक था, और एक फिल्म को कम-से-कम तीन बार तो देखता ही था । जो फिल्म केवल बालिगों के लिए होतीं , उन्हें तो वह दस-दस बार देखता था । रोमेश कोर्ट के लिए रवाना हो गया ।
रोमेश का संक्षिप्त नाम रोमी था, और रोमी के नाम से उसे सारा कोर्ट बुलाता था। कोर्ट के परिसर में उस समय जबरदस्त हलचल होती थी , जब रोमी का मुकद्दमा होता । उसकी बहस सुनने के लिए अन्य वकील भी आते थे और खासी भीड़ रहती थी ।
रोमी जब अपने चैम्बर में पहुँचा , तो वैशाली वहाँ उसकी प्रतीक्षा कर रही थी । वैशाली को नमस्ते का जवाब देने के बाद वह अपनी सीट पर बैठा, और फाइलें तलब करने लगा । असिस्टेंट उसे घेरे हुए थे ।
ग्यारह बजकर चालीस मिनट पर वह कोर्ट में पहुँचा । उस कोर्ट में आज एक अद्भुत मुकदमे की कार्यवाही होनी थी । कोर्ट में पेश हो रहा था इकबालिया मुलजिम सोमू उर्फ़ सोमदत्त ।
वैशाली वहाँ पहले ही पहुंच गयी थी, और इंस्पेक्टर विजय भी आ गया था, वो वैशाली के बराबर बैठा था । दोनों को बातें करता देख रोमी मुस्कराया ।
एक सीट पर राजदान बैठा था । रोमी को कोर्ट में आता देखकर वह चौंका । उसने बुरा - सा मुँह बनाया , दूसरे लोगों में भी काना फूसी होने लगी , क्या रोमी सोमदत्त की पैरवी पर आया है ?
"अगर उसने वकालतनामा भरा तो इस बार मुँह की खायेगा ।" राजदान किसी से कह रहा था ,
"मुलजिम अपने जुर्म का इकबाल कर चुका है ।"
उसी समय सोमू को अदालत में पेश किया गया । राजदान उठ खड़ा हुआ। न्यायाधीश ने मेज पर हथौड़ी की चोट की और अदालत की कार्यवा ही शुरू करने का हुक्म दिया ।
"इकबालिया मुलजिम सोमू के बारे में किसी प्रकार की बहस मुनासिब नहीं होगी , इकबाले जुर्म करने के बाद केवल खाना पूर्ति शेष रह जाती है । मेरे ख्याल से इस केस में कोई मुद्दा शेष नहीं रह गया है, अतः महामहिम के फैसले का इन्तजार है ।"
"आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर !"
रोमी उठ खड़ा हुआ और फिर उसने अपना वकालतनामा सोमू के पक्ष में पेश किया ,
"मुझे सोमू की पैरवी की इजाजत दी जाये ।"
"इजाजत का प्रश्न ही नहीं उठता , वह अपने जुर्म का इकबाल कर चुका है । अब उसमें पैरवी या बहस के मुद्दे कहाँ से आ पड़े ?"
"शायद मेरे अजीज दोस्त राजदान को नहीं मालूम, किसी व्यक्ति के जुर्मस्वीकार कर लेने से ही जुर्म साबित नहीं हो जाता । इकबाले जुर्म के बाद भी पुलिस को उसे साबित करना होता है और पुलिस ने ऐसी कोई कार्यवाही नहीं की है । यदि मुलजिम जुर्म का इकबाल करता है, तो उसे दोषी नहीं माना जा सकता , ठीक उसी तरह जैसे इकबाले-जुर्म न करने पर उसे निर्दोष नहीं माना जाता।"
रोमी ने अपनी लॉ बुक से न्यायाधीश को एक धारा दिखाते हुए कहा ,
"अगर आवश्यकता हो , तो आप इसका अध्ययन कर लें ।"
अदालत में सनसनी फैल गई । यह पहला अवसर था , जब रोमी ने ऐसा केस हाथ में लिया था , जिसका मुलजिम अपने जुर्म का इक़बाल कर चुका था ।
"इजाजत दी जाती है ।"
न्यायाधीश ने कहा । न्यायाधीश ने रोमी का वकालतनामा स्वीकार कर लिया ।
"सबूत पक्ष को आदेश दिया जाता है कि वह मुलजिम सोमू पर जुर्म साबित करने की कार्यवाही मुकम्मल करे और एडवोकेट रोमेश सक्सेना को डिफेन्स का पूरा अधिकार दिया जाता है ।"
न्यायाधीश ने यह आदेश पारित करके एक सप्ताह बाद की तारीख कर दी ।
"इस बार मात होनी तय है, रोमी साहब ।"
राजदान ने बाहर निकलते हुए कहा ।
"हम साबित भी कर देंगे ।"
"मात किसकी होनी है, यह आप अच्छी तरह जानते हैं राजदान साहब। आपकी जिन्दगी में अदालत में जब-जब मेरा सामना होगा , तब शिकस्त ही आपका मुकद्दर होगी ।
मैं इस मुकदमे को लम्बा नहीं जाने दूँगा , तुम एक दो तारीख से ज्यादा नहीं खींच पाओगे और वह बरी हो जायेगा ।"
रोमेश ने विजय और वैशाली को अपने चैम्बर में आने के लिए कहा । दोनों चैम्बर में आ गये ।
"क्या तुम लोग एक-दूसरे से परिचित हो ?" रोमी ने पूछा ।
"हाँ , हम बड़ौदा में एक साथ पढ़े हैं ।" विजय बोला ।
"और आपसे मदद लेने की सलाह इन्होंने ही दी थी ।" वैशाली बोली ।
"भई वाह, यह तुमने पहले क्यों नहीं बताया ।"
"क्यों कि इन्होंने यह भी कहा था कि आपके मामले में कोई सिफारिश जोर नहीं मारती।"
"वैशाली लॉ कर रही है और तुम्हारी सरपरस्ती में कुछ बनना चाहती है ।"
"ओह बात यहाँ तक है ।" रोमी मुस्कुराया ।
"बात तो इससे भी आगे तक है ।" विजय हँसकर बोला ।
"अच्छा , यह बातें तो होती रहेंगी । मैंने तुम्हें आज इसलिये बुलाया था कि इस मामले में तुम्हारी मदद ले सकूं ।"
"ओह श्योर, क्या करना है हुक्म करो।"
"मुझे करुण पटेल चाहिये हर सूरत में ।"
"वह शख्स जिसने एक लाख रुपया दिया था ।"
"हाँ वही , वैशाली ने उसका जो पता मुझे बताया था , वह फर्जी पता है, और मेरी अपनी इन्वेस्टीगेशन के अनुसार यह कोई जरायमपेशा व्यक्ति भी नहीं है, न ही वह सोमू का परिचित है ।
जेल में मेरा एक आदमी सोमू को काफी टटोल चुका है, हमने इस मामले में एक कैदी से मदद ली थी और कैदी द्वारा जिन बातों का पता चला , उसी को ध्यान में रखकर मैंने मुकदमा हाथ में लिया है । फिलहाल मुझे करुण पटेल की जरूरत है ।
सेठ कमलनाथ के विश्वासपात्र लोगों में यह शख्स तुम्हें मिल जायेगा , उसे दबोचने के मामले में तुम पुलिसिया डंडा भी फेर सकते हो । बस यह बात ध्यान रखने की है कि वह सेठ कमलनाथ का कोई विश्वास पात्र होगा , हुलिया तुम्हें वैशाली से पता चल जायेगा ।"
"चिन्ता न करो , मैं उसे हर हालत में खोज निकालूंगा और जैसे ही वह मेरे हत्थे चढ़ेगा , तुम्हें फोन कर दूँगा ।"
विजय ने बड़ी जल्दी सफलता प्राप्त कर ली , तीसरे दिन ही करुण पटेल हाथ आ गया। विजय ने रोमेश को थाने बुला लिया । रोमी जब थाने पहुँचा , तो करुण पटेल हवालात में बंद था ।
"मुझे पकड़ा क्यों गया , क्या किया है मैंने ?"
करुण पटेल गिड़गिड़ा रहा था ,
"मेरा कसूर तो बता दो इंस्पेक्टर साहब ।"
"इसका नाम करुण पटेल नहीं बेंकट करुण है ।" विजय बोला ।
"क्या वैशाली ने इसकी पुष्टि कर ली ।"
"हाँ , उसने दूर से देखकर इसे पहचाना और मैंने धर दबोचा । यह सेठ कमलनाथ का बहनोई लगता है।"
"बस काम बन गया ।"
"लेकिन तुम्हें यह अन्देशा कैसे था कि यह शख्स कमलनाथ का कोई विश्वास पात्र होना चाहिये, आखिर लूटी गई रकम उसके विश्वासपात्र के पास कैसे सोमू रखेगा ?"
"तस्वीर का दूसरा रुख सामने आते ही सब तुम्हारी समझ में आ जायेगा , अब तुम्हें एक काम और करना है ।"
जारी रहेगा....✍
hint de diye ho yahic pe.....# 5
"क्या बात कर रहे हो भाई, अपने मामले में मैं कितना सख्त हूँ, यह तो तुम भी जानते हो।"
"यही तो मुश्किल है कि इस बार तुम हर जगह से हारोगे, कातिल सामने होगा और तुम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकोगे ।"
"साफ-साफ बताओ यार, पहेली मत बुझाओ ।"
"तो सुनो , जो मकतूल है, वही कातिल भी है ।"
"क… क्या मतलब ? माई गॉड ! मगर कैसे ? वह यहाँ और रिवॉल्वर वहाँ ? हाउ इज इट पॉसिबल ?
आत्महत्या करने के बाद वह रिवॉल्वर इतनी दूर कैसे फेंक सकता है ? या तो उसके हाथ में होती या मेज पर ? नहीं तो ज्यादा-से-ज्यादा उसके पैरों के पास ।
कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते कि आत्महत्या के बाद किसी ने रिवॉल्वर उस तरफ फेंक दी होगी ।"
"यार तुम तो हजा रों सवाल किये जा रहे हो । कभी-कभी दिमाग के घोड़े भी दौड़ा लिया करो , तुमने वह दरवाजा देखा ।" दरवा जा बन्द था ।
"हाँ , देखा ।"
"इस किस्म के फ्लैटों में रहने वाले लोग क्या दरवाजों पर इस तरह कीलें ठोककर रखते हैं। कीलें तो झोंपड़पट्टी वाले भी अपने दरवाजों पर नहीं ठोकते ।" विजय ने उन कीलों को देखा ।
"मगर इससे क्या हल निकला ?"
"रिवॉल्वर दरवाजे के पास गिरी हुई थी , लो पहले इसका चेम्बर खाली करके गोलियां अपने कब्जे में करो , फिर बताता हूँ ।"
विजय ने चेम्बर खाली कर दिया । खाली रिवॉल्वर की मूठ को रोमेश ने उन कीलों पर फिक्स किया , रिवॉल्वर कीलों पर अटक गया ।
''अब अगर इसकी नाल से गोली निकलती है, तो कहाँ पड़नी चाहिये ?" रोमेश ने पूछा ।
"ओ गॉड ! गोली सीधा उसी कुर्सी पर पड़ेगी , जहाँ मृतक मौजूद है ।"
"बिल्कुल ठीक ! यह भी कि गोली उसी जगह लगेगी , जहाँ इस शख्स के लगी हुई है । वह अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला । कुर्सी के पुश्ते से उसका सिर उसी पोजीशन में है । वह उसी स्थिति में मरा है ।
उसने रिवॉल्वर का ट्रिगर दबाया , गोली चली और सीधा उसके मस्तक को फोड़ती चली गई ।"
"लेकिन सवाल अब भी वही है, उसने रिवॉल्वर का ट्रिगर दबाया कैसे ?"
"रबड़ की इस डोरी से ।"
रोमेश में एकपतली डोरी दिखाई,
"यह डोरी इस मेज के नीचे पड़ी थी”
उसने डोरी का एक सिरा ट्रिगर पर मिलाया , दूसरा सिरा खुद पकड़कर धीरे-धीरे डोरी खींची । जैसे ही तनाव बढ़ा , डोरी ने ट्रिगर दबा दिया । गोली चलने पर रिवॉल्वर को झटका लगा । साथ ही डोरी का बंधन भी ट्रिगर से छूट गया , रिवॉल्वर नीचे गिर गई और मृतक के मरते ही डोरी का दूसरा सिरा उसके हाथ से भी निकल गया।धमाके की आवाज सुनकर तुरन्त ही हीरालाल अन्दर आया, और बाकी वही हुआ, जो वह कहता है ।"
"ओ रियली ! यू आर जीनियस मैन रोमेश ! इस सारे मामले ने मेरे तो छक्के ही छुड़ा दिये । मगर इस शख्स ने आत्महत्या की यह तरकीब क्यों सोची और यह बिसात पर बिछे मोहरे, दो गिलास, व्हिस्की की बोतल यह सब क्या है ?"
"मरने से पहले उसने यह कौशिश की, कि यह मामला कत्ल का बन जाये और शायद यह भी सोच लिया था कि हीरा लाल पकड़ा जायेगा ,
हीरा लाल ने डोर नॉक किया तो वह मरने के लिए तैयार बैठा था ।"
"मगर वजह क्या हो सकती है ?"
"वजह तुम तलाश करो , क्या सब कुछ मैं ही करता फिरूंगा । कुछ तुम भी तो करके दिखाओ माई डियर पुलिसमैन ।"
इतना कहकर रोमेश ने दरवाजा खोला और बाहर निकला चला गया । अगले दिन वजय का फोन रोमेश को मिला ।
"वही स्टोरी है, असल में उसे जबरदस्त घाटा हो चुका था उसकी लाइफ इंश्योरेंस की कुछ पॉलिसी थी, जगाधरी और उसकी पत्नी में कुछ सालों से अनबन थी , जगाधरी घर नहीं जाता था ।
उसकी फैमिली पूना में रहती है, और उसकी पत्नी वहाँ टीचर है । इसके दो बच्चे भी हैं, दोनों माँ के साथ रहते हैं, जगाधरी की कमाई का वह एक पैसा भी नहीं लेते थे, जगाधरी काफी मालदार व्यक्ति था , फिर वह शेयर के धंधों में सब कुछ गंवा बैठा और पूरी तरह कर्जदार भी हो गया , इसका सब कुछ बिक चुका था । बस उसकी इंश्योरेंस की पॉलिसियां थीं , इसलिये वह चाहता था कि उसकी मौत का नाटक कत्ल की वारदात में बदल जाये, तो पॉलिसी कैश हो जायेगी, और उसकी मौत के बाद एक मोटी रकम बीवी - बच्चों को मिल जायेगी ।"
"बड़ी ट्रेजिकल स्टोरी है, वह अपने बीवी -बच्चों को चाहता था ।" रोमेश बोला ।
"हाँ , ऐसा ही है ।"
"बहरहाल तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया, तुमने गुत्थी सुलझा दी , अगर मेरी जगह कोई और होता , तो शायद जो स्टोरी जगाधरी बनाना चाहता था , वह अखबारों में छपी होती ।"
"मैं कचहरी जा रहा हूँ, एक दिलचस्प मुकदमे की पैरवी करने । जरा आ जाना ।"
इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया ,
"सेम स्टोरी ।"
रोमश के होंठ गोल हो गये । वह कोर्ट जाने के लिए बिल्कुल तैयार खड़ा था, और कानून की एक मोटी किताब में कुछ मार्क कर रखा था । उसके बाद उसने दो-तीन लॉ बुक उठाई और फ्लैट से बाहर आ गया । श्यामू मोटर साइकिल साफ कर रहा था ।
"श्यामू तूने कभी अपना बीमा करवाया ?"
"नहीं तो साब, क्या करना बीमा करके, जो रुपया अपने काम न आये, वह किस काम का और फिर साब, मेरी अभी शादी ही कहाँ हुई ।"
"ओहो यह तो मैं भूल ही गया था , तेरी उम्र क्या है ?"
"उम्र मत पूछो साब, रोना आता है ।"
श्यामू, रोमेश का घरेलू नौकर था । जो उसे तनख्वाह मिलती थी , सब खर्च कर देता था। अच्छे कपड़े पहनना उसका शौक था, और एक फिल्म को कम-से-कम तीन बार तो देखता ही था । जो फिल्म केवल बालिगों के लिए होतीं , उन्हें तो वह दस-दस बार देखता था । रोमेश कोर्ट के लिए रवाना हो गया ।
रोमेश का संक्षिप्त नाम रोमी था, और रोमी के नाम से उसे सारा कोर्ट बुलाता था। कोर्ट के परिसर में उस समय जबरदस्त हलचल होती थी , जब रोमी का मुकद्दमा होता । उसकी बहस सुनने के लिए अन्य वकील भी आते थे और खासी भीड़ रहती थी ।
रोमी जब अपने चैम्बर में पहुँचा , तो वैशाली वहाँ उसकी प्रतीक्षा कर रही थी । वैशाली को नमस्ते का जवाब देने के बाद वह अपनी सीट पर बैठा, और फाइलें तलब करने लगा । असिस्टेंट उसे घेरे हुए थे ।
ग्यारह बजकर चालीस मिनट पर वह कोर्ट में पहुँचा । उस कोर्ट में आज एक अद्भुत मुकदमे की कार्यवाही होनी थी । कोर्ट में पेश हो रहा था इकबालिया मुलजिम सोमू उर्फ़ सोमदत्त ।
वैशाली वहाँ पहले ही पहुंच गयी थी, और इंस्पेक्टर विजय भी आ गया था, वो वैशाली के बराबर बैठा था । दोनों को बातें करता देख रोमी मुस्कराया ।
एक सीट पर राजदान बैठा था । रोमी को कोर्ट में आता देखकर वह चौंका । उसने बुरा - सा मुँह बनाया , दूसरे लोगों में भी काना फूसी होने लगी , क्या रोमी सोमदत्त की पैरवी पर आया है ?
"अगर उसने वकालतनामा भरा तो इस बार मुँह की खायेगा ।" राजदान किसी से कह रहा था ,
"मुलजिम अपने जुर्म का इकबाल कर चुका है ।"
उसी समय सोमू को अदालत में पेश किया गया । राजदान उठ खड़ा हुआ। न्यायाधीश ने मेज पर हथौड़ी की चोट की और अदालत की कार्यवा ही शुरू करने का हुक्म दिया ।
"इकबालिया मुलजिम सोमू के बारे में किसी प्रकार की बहस मुनासिब नहीं होगी , इकबाले जुर्म करने के बाद केवल खाना पूर्ति शेष रह जाती है । मेरे ख्याल से इस केस में कोई मुद्दा शेष नहीं रह गया है, अतः महामहिम के फैसले का इन्तजार है ।"
"आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर !"
रोमी उठ खड़ा हुआ और फिर उसने अपना वकालतनामा सोमू के पक्ष में पेश किया ,
"मुझे सोमू की पैरवी की इजाजत दी जाये ।"
"इजाजत का प्रश्न ही नहीं उठता , वह अपने जुर्म का इकबाल कर चुका है । अब उसमें पैरवी या बहस के मुद्दे कहाँ से आ पड़े ?"
"शायद मेरे अजीज दोस्त राजदान को नहीं मालूम, किसी व्यक्ति के जुर्मस्वीकार कर लेने से ही जुर्म साबित नहीं हो जाता । इकबाले जुर्म के बाद भी पुलिस को उसे साबित करना होता है और पुलिस ने ऐसी कोई कार्यवाही नहीं की है । यदि मुलजिम जुर्म का इकबाल करता है, तो उसे दोषी नहीं माना जा सकता , ठीक उसी तरह जैसे इकबाले-जुर्म न करने पर उसे निर्दोष नहीं माना जाता।"
रोमी ने अपनी लॉ बुक से न्यायाधीश को एक धारा दिखाते हुए कहा ,
"अगर आवश्यकता हो , तो आप इसका अध्ययन कर लें ।"
अदालत में सनसनी फैल गई । यह पहला अवसर था , जब रोमी ने ऐसा केस हाथ में लिया था , जिसका मुलजिम अपने जुर्म का इक़बाल कर चुका था ।
"इजाजत दी जाती है ।"
न्यायाधीश ने कहा । न्यायाधीश ने रोमी का वकालतनामा स्वीकार कर लिया ।
"सबूत पक्ष को आदेश दिया जाता है कि वह मुलजिम सोमू पर जुर्म साबित करने की कार्यवाही मुकम्मल करे और एडवोकेट रोमेश सक्सेना को डिफेन्स का पूरा अधिकार दिया जाता है ।"
न्यायाधीश ने यह आदेश पारित करके एक सप्ताह बाद की तारीख कर दी ।
"इस बार मात होनी तय है, रोमी साहब ।"
राजदान ने बाहर निकलते हुए कहा ।
"हम साबित भी कर देंगे ।"
"मात किसकी होनी है, यह आप अच्छी तरह जानते हैं राजदान साहब। आपकी जिन्दगी में अदालत में जब-जब मेरा सामना होगा , तब शिकस्त ही आपका मुकद्दर होगी ।
मैं इस मुकदमे को लम्बा नहीं जाने दूँगा , तुम एक दो तारीख से ज्यादा नहीं खींच पाओगे और वह बरी हो जायेगा ।"
रोमेश ने विजय और वैशाली को अपने चैम्बर में आने के लिए कहा । दोनों चैम्बर में आ गये ।
"क्या तुम लोग एक-दूसरे से परिचित हो ?" रोमी ने पूछा ।
"हाँ , हम बड़ौदा में एक साथ पढ़े हैं ।" विजय बोला ।
"और आपसे मदद लेने की सलाह इन्होंने ही दी थी ।" वैशाली बोली ।
"भई वाह, यह तुमने पहले क्यों नहीं बताया ।"
"क्यों कि इन्होंने यह भी कहा था कि आपके मामले में कोई सिफारिश जोर नहीं मारती।"
"वैशाली लॉ कर रही है और तुम्हारी सरपरस्ती में कुछ बनना चाहती है ।"
"ओह बात यहाँ तक है ।" रोमी मुस्कुराया ।
"बात तो इससे भी आगे तक है ।" विजय हँसकर बोला ।
"अच्छा , यह बातें तो होती रहेंगी । मैंने तुम्हें आज इसलिये बुलाया था कि इस मामले में तुम्हारी मदद ले सकूं ।"
"ओह श्योर, क्या करना है हुक्म करो।"
"मुझे करुण पटेल चाहिये हर सूरत में ।"
"वह शख्स जिसने एक लाख रुपया दिया था ।"
"हाँ वही , वैशाली ने उसका जो पता मुझे बताया था , वह फर्जी पता है, और मेरी अपनी इन्वेस्टीगेशन के अनुसार यह कोई जरायमपेशा व्यक्ति भी नहीं है, न ही वह सोमू का परिचित है ।
जेल में मेरा एक आदमी सोमू को काफी टटोल चुका है, हमने इस मामले में एक कैदी से मदद ली थी और कैदी द्वारा जिन बातों का पता चला , उसी को ध्यान में रखकर मैंने मुकदमा हाथ में लिया है । फिलहाल मुझे करुण पटेल की जरूरत है ।
सेठ कमलनाथ के विश्वासपात्र लोगों में यह शख्स तुम्हें मिल जायेगा , उसे दबोचने के मामले में तुम पुलिसिया डंडा भी फेर सकते हो । बस यह बात ध्यान रखने की है कि वह सेठ कमलनाथ का कोई विश्वास पात्र होगा , हुलिया तुम्हें वैशाली से पता चल जायेगा ।"
"चिन्ता न करो , मैं उसे हर हालत में खोज निकालूंगा और जैसे ही वह मेरे हत्थे चढ़ेगा , तुम्हें फोन कर दूँगा ।"
विजय ने बड़ी जल्दी सफलता प्राप्त कर ली , तीसरे दिन ही करुण पटेल हाथ आ गया। विजय ने रोमेश को थाने बुला लिया । रोमी जब थाने पहुँचा , तो करुण पटेल हवालात में बंद था ।
"मुझे पकड़ा क्यों गया , क्या किया है मैंने ?"
करुण पटेल गिड़गिड़ा रहा था ,
"मेरा कसूर तो बता दो इंस्पेक्टर साहब ।"
"इसका नाम करुण पटेल नहीं बेंकट करुण है ।" विजय बोला ।
"क्या वैशाली ने इसकी पुष्टि कर ली ।"
"हाँ , उसने दूर से देखकर इसे पहचाना और मैंने धर दबोचा । यह सेठ कमलनाथ का बहनोई लगता है।"
"बस काम बन गया ।"
"लेकिन तुम्हें यह अन्देशा कैसे था कि यह शख्स कमलनाथ का कोई विश्वास पात्र होना चाहिये, आखिर लूटी गई रकम उसके विश्वासपात्र के पास कैसे सोमू रखेगा ?"
"तस्वीर का दूसरा रुख सामने आते ही सब तुम्हारी समझ में आ जायेगा , अब तुम्हें एक काम और करना है ।"
जारी रहेगा....✍
itni jaldi pakda gaya.....# 6
अगली तारीख पर अदालत खचा-खच भरी हुई थी ।
पुलिस ने जो गवाह पेश किये, वह सब रटे रटाये तोते की तरह बयान दे रहे थे । रोमी ने इनमें से किसी से भी खास क्वेश्चन नहीं कि या, न ही चश्मदीद गवाह से यह पूछा कि वह सुनसान हाईवे पर आधी रात को क्या कर रहा था ?
"मेरे अजीज दोस्त रोमेश सक्सेना ने बिना वजह अदालत का समय जाया किया है मीलार्ड”।
“इनका तो मनो बल इतना टूटा हुआ है कि किसी गवाह से सवाल जवाब करने से ही कतरा रहे हैं ।"
"फर्जी गवाहों से सवाल जवाब करना मैं अपनी तौहीन समझता हूँ, और न ही इस किस्म के क्रिया कलापों में समय नष्ट करता हूँ । मैं अपने काबिल दोस्त से जानना चाहूँगा कि सारे गवाह पेश करने के बावजूद भी पुलिस वह रकम क्यों बरामद नहीं कर पायी , जो सोमू ने लूट ली थी। यह प्वाइन्ट नोट किया जाये योर ऑनर, कि जिस रकम के पीछे कत्ल हो गया , वह रकम सोमू के पास से बरामद नहीं हुई ।"
"इस रकम की बरामदगी न होने से केस की मजबूती पर कोई असर नहीं पड़ता योर ऑनर !
पुलिस सोमू से रकम बरामद न कर सकी, इससे केस के हालात नहीं बदल जाते । सोमू पहले ही अपने जुर्म का इकबा ल कर चुका है।" राजदान ने पुरजोर असर डालते हुए कहा ,
"यह बात मुलजिम ही बेहतर जानता होगा , उसने रकम कहाँ छिपायी थी। पुलिस ने उस पर थर्ड डिग्री प्रयोग की होती, तो शायद रकम भी बरामद हो जाती । लेकिन उसने पुलिस को चकमा देकर अदालत में समर्पण किया, और उसे रिमाण्ड पर नहीं लिया जा सका । पुलिस ने रिमाण्ड की जरूरत इसलिये भी नहीं समझी, कि वह अपना जुर्म कबूल करने के लिए तैयार था । दैट्स आल योर ऑनर ।"
"योर ऑनर मेरे काबिल दोस्त की सारी दलीलें अभी फर्जी साबित हो जाएंगी, मैं वह रकम पेश करने की इजाजत चाहता हूँ ।"
"आप रकम पेश करेंगे ?" राजदान चिल्लाया ।
"क्या हर्ज है ? पुलिस का अधूरा काम कोई भी शरीफ शहरी पूरा कर दे, तो उसमें हर्ज क्या है। क्या मुझे कानून की मदद करने का अधिकार नहीं? और फिर यह रकम कोई मैं अपने पल्ले से दे नहीं रहा। न ही उसमें मेरा कोई कमीशन है ।" अदालत में बैठे लोग हँस पड़े ।
"आर्डर !आर्डर !!" जज ने मेज पर हथौड़ी पीटी ।अदालत शांत हो गई ।
"एडवोकेट रोमेश सक्सेना , रकम पेश कीजिए ।"
इंस्पेक्टर विजय उठकर बाहर गया और कुछ क्षण में ही एक व्यक्ति को पेश किया गया ! वह हाथ में ब्रीफकेस लिए हुए था । यह शख्स और कोई नहीं बेंकट करुण था । कमलनाथ का बहनोई। अदालत की रस्मी कार्यवाही के अनुसार गी.. पर हाथ रख कसम लेने के बाद उसके बयान शुरू हो गये ।
"आपका नाम ?" रोमेश ने पूछा ।
"बेंकट करुण ।"
"बाप का नाम ।"
"अंकेश करुण ।"
"क्या आप वह रकम लेकर आये हैं, जिसका मालिक सोमू है ?" रोमेश ने पूछा ।
"जी हाँ , ये रही ।"
"यह फर्जी ड्रामा कर रहे हैं योर ऑनर।" राजदान चीखा ,
"पता नहीं क्या गुल खिलाना चाहते हैं?"
"मैं कोई गुल नहीं खिलाना चाहता गुले गुलजार, मैं तो आपकी मदद कर रहा हूँ । केस को और मजबूत कर रहा हूँ ।"
"योर ऑनर, मेरे काबिल दोस्त से कहें कि गवाह का बयान पूरा होने के बाद ही गुल खिलायें ।"
पब्लिक एक बार फिर हँस पड़ी । न्यायाधीश को एक बार फिर मेज बजानी पड़ी। कार्यवाही आगे बढ़ी ।
"ब्रीफकेस खोलो ।" रोमेश ने कहा ।
ब्रीफकेस में सौ-सौ के नोटों की दस गड्डियां थीं । रोमेश ने रकम न्यायाधीश की मेज पर रखी ।
"गिन लीजिये योर ऑनर ! पूरे एक लाख ही हैं, और यह रकम कोई मैं अपनी जेब से दान नहीं कर रहा हूँ, यह वही रकम है जिसकी खातिर यह सब घटना यें प्रकाश में आई ।"
"ठीक है, आगे कहिए ।" न्यायाधीश ने अत्यन्त क्षीण दिलचस्पी से कहा । अदालत में बैठी जनता में खुसुर-फुसुर हो रही थी ।
"यह उसकी पैरवी कर रहा है या फाँसी पर लटकवाना चाहता है, सब उसके खिलाफ जा रहा है ।"
राजदान ने पीछे बैठे व्यक्ति की टिप्पणी सुन ली थी, वह मुस्करा तो दिया, परन्तु अन्दर ही अन्दर उसका मन किसी आशंका से काँप रहा था ।
"बेंकट करुण, अदालत को बताओ कि यह रकम किसने तुम्हें दी, और किस शर्त पर तुमने इसे सोमू के घर तक पहुंचाया ?"
''यह रकम सेठ कमलनाथ ने मुझे दी थी, मैं उनका बहनोई हूँ ।"
उसके इतना कहते ही अदालत में एकदम खलबली मच गयी ।
"शर्त यह थी कि जब सोमू कत्ल के जुर्म का इकबाल कर लेगा, तो रकम उनके घर पहुँचा दी जायेगी और उसके ऐसा करते ही हमने रकम पहुँचा दी ।"
"यह झूठा प्रपंच है ।" राजदान चीखा ,
"भला कमलनाथ क्यों देगा, कमलनाथ तो मर चुका था योर ऑनर ! सफाई पक्ष का वकील तो इस तरह कह रहा है, जैसे वह अभी चुर्रर-मुर्रर करेगा और कमलनाथ को जिन्दा कर लेगा ।"
"यही होने जा रहा है मिस्टर राजदान।"
ठीक उसी समय हथकड़ियों में जकड़ा कमलनाथ अदालत में आ गया।
"देखो,वो रहा कमलनाथ! गौर से देखो और चाहे जैसे शिनाख्त कर लो और खुद अदालत को बतादो कि जो शख्स मरा ही नहीं, उसके कत्ल के जुर्म में क्या किसी मुलजिम को सजा दी जा सकती है? हाउ कैन इट पॉसिबल?, चाहे उसने जुर्म का इकबाल ही क्यों न किया हो ।"
राजदान के तो छक्के छूट गये। पसीना-पसीना हो गया वह। सेठ कमलनाथ सचमुच अदालत में प्रकट हो गया था। अदालत में खलबली शांत हुई, तो कमलनाथ को कटघरे में लाया गया, और कमलनाथ को भी..कसम दिलाई गई ।
"सेठ कमलनाथ, उचित होगा कि आप स्वयं अदालत को सब कुछ बता दें, क्यों कि अब आपका खेल खत्म हो गया है।"
"मैं दिवालिया हो गया था ।" कमलनाथ ने बोलना शुरू किया,
"तीन महीने से मेरी फैक्ट्री में ताला पड़ा था। स्टाफ को वेतन नहीं दे पा रहा था, और वह लोग मुझे कोर्ट में घसीटने की धमकियां दे रहे थे। ट्रेड यूनियन्स उनकी पीठ पर आ खड़ी हुई थी। उनको मेरी हालत का अन्दाजा भी न था, कि मेरी सारी प्रॉपर्टी गिरवी पड़ी है। उस रात मैं बहुत परेशान था और अचानक वह हादसा हो गया, कोई शख्स आत्महत्या के इरादे से रात के अन्धेरे में सड़क के किनारे खड़ा शायद किसी वाहन की प्रतीक्षा कर रहा था, और अचानक हमारी कार के आगे कूद गया, उसकी मौत हो गई ।" इतना कहकर वह कुछ क्षण के लिए रुका ।
"संयोग से उसकी कद-काठी मेरे जैसी थी। मेरे दिमाग में तुरन्त एक ख्याल आया, अगर मेरी मौत इस तरह हो जाती, तो मुझे पचास लाख रुपया मिल सकता था। यह रकम मुझे इंश्योरेंस से मिल सकती थी। उधर सोमू को अपनी बहन की शादी के लिए एक लाख रुपये की जरूरत थी। मैंने पहले तो लाश को अपने कपड़े वगैरा पहनवाये, फिर सोमू से सौदा कर लिया कि उसे क्या करना है । अगर मैं खाली एक्सीडेन्ट दिखाता हूँ, तो तफ्तीश में शायद यह भेद खुल जाता। इसलिये मैंने उसे कत्ल का नाटक बनाकर पेश कर दिया और सोमू मुलजिम बनने को तैयार हो गया। उसके इकबाले-जुर्म करने से पुलिस भी अधिक झंझट में नहीं पड़ी और इंश्योरेंस की रकम भी मुझे मिल गई। मैं कुछ दिन के लिए मुम्बई से बाहर अपने बहनोई के गाँव वाले मकान में रहने चला गया, और काम होने पर रकम सोमू के घर पहुंचाने का निर्देश भी दे दिया था। लेकिन बेंकट करुण पकड़ा गया और फिर मेरा सारा भांडा फूट गया।"
"दैट्स आल योर ऑनर ! यह है असली वाकया, आप चाहें तो सेठ कमलनाथ की शिनाख्त करवा सकते हैं। कहीं मेरे वकील दोस्त राजदान, कमलनाथ को भी फर्जी न कह बैठे।"
अदालत में बैठे लोगों ने तालियां बजा कर उसका उत्साह-वर्धन किया। अगले दिन अखबारों में रोमी सुर्खियों में था।
जारी रहेगा….
Cousin#7
इस मुकदमे के बाद रोमेश को एक सप्ताह के लिए दिल्ली जाना पड़ गया। दिल्ली में उसका एक मित्र था , कैलाश वर्मा। कैलाश वर्मा एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी चलाता था,
और किसी इन्वेस्टीगेशन के मामले में उसने रोमेश की मदद मांगी थी ।
कैलाश वर्मा के पास एक दिलचस्प केस आ गया था ।
"सावंत राव को जानते हो?"
कैलाश ने रोमेश से बातचीत शुरू की।
"एम.पी ., जो पहले स्मगलर हुआ करता था । उसी की बात कर रहे हो?"
"हाँ ।"
कैलाश ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा ,
"कत्ल की गुत्थियाँ सुलझाने के मामले में आज न तो तुमसे बेहतर वकील है, और न इंस्पेक्टर।
वैसे तो मेरी एजेंसी से एक से एक
काबिल आदमी जुड़े हुए हैं, मगर यह केस मैंने तुम्हारे लिए रखा है।"
"पर केस है क्या ?"
"एम.पी . सावंत का मामला है ।"
"जहाँ तक मेरी जानकारी है, मैंने उसके मर्डर की न्यूज कहीं नहीं पढ़ी।"
"वह मरा नहीं है, मारे जाने वाला है।"
"तुम कहना क्या चाहते हो?"
"सावंत राव के पास सरकारी सिक्यूरिटी की कोई कमी नहीं है। उसके बाद भी उसे यकीन है कि उसका कत्ल हो के रहेगा।"
"तब तो उसे यह भी पता होगा कि कत्ल कौन करेगा ?"
"अगर उसे यह पता लग जाये, तो वह बच जायेगा।" वर्मा ने कहा।
"कैसे ? क्या उसे वारदात से पहले अन्दर करवा देगा ?" रोमेश मुस्कराया।
"नहीं , बल्कि सावंत उसे खुद ठिकाने लगा देगा। बहरहाल यह हमारा मामला नहीं है, हमें सिर्फ यह पता लगाना है कि उसका मर्डर कौन करना चाहता है, और इसके प्रमाण भी उपलब्ध करने हैं। बस और कुछ नहीं। उसके बाद वह क्या करता है, यह उसका केस है।"
"हूँ” !
केस दिलचस्प है, क्या वह पुलिस या अन्य किसी सरकारी महकमे से जांच नहीं करवा सकता ?"
"उसे यकीन है कि इन महकमों की जांच सही नहीं होगी। अलबत्ता मर्डर करने वाले से भी यह लोग जा मिलेंगे और फिर उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं बचा पायेगी।
वी .आई.पी . सर्किल में हमारी एजेंसी की खासी गुडविल है, और हम भरोसेमंद लोगों में गिने जाते हैं, और यह भी जानते हैं कि हम हर फील्ड में बेहतरीन टीम रखते हैं, और सिर्फ अपने ही मुल्क में नहीं बाहरी देशों में भी हमारी पकड़ है।
मैं तुम्हें यह जानकारी एकत्रित करने का मेहनताना पचास हजार रुपया दूँगा ।"
"तुमने क्या तय किया ?"
"कुल एक लाख रुपया तय है ।"
रोमेश को उस अंगूठी का ध्यान आया, जो उसकी पत्नी को पसन्द थी। इस एक डील मेंणअंगूठी खरीदी जा सकती थी, और वह सीमा को खुश कर सकता था। यूँ भी उनकी
एनिवर्सरी आ रही थी और वह इसी मौके पर यह तगादानि बटा देना चाहता था ।
"मंजूर है । अब जरा मुझे यह भी बताओ कि क्या सावंत को किसी पर शक है ? या तुम वहाँ तक पहुंचे हो?"
"हमारे सामने तीन नाम हैं, उनमें से ही कोई एक है, पहला नाम चन्दन दादा भाई का है।
यह सावंत के पुराने धंधों का प्रतिद्वन्द्वी है, पहले सावंत का पार्टनर भी रहा है, फिर प्रतिद्वन्द्वी ! इनकी आपस में पहले भी कुछ झड़पें हो चुकी हैं, तुम्हें बसंत पोलिया मर्डर
कांड तो याद होगा।"
"हाँ , शायद पोलिया चन्दन का सिपहसालार था ।"
"सावंत ने उसे मरवाया था। क्यों कि पोलिया पहले सावंत का सिपहसालार रह चुका था, और सावंत से गद्दारी करके चन्दन से जा मिला था। बाद में सावंत ने राजनीति में कदम रखा और एम.पी. बन गया। एम.पी . बनने के बाद उसका धंधा भी बन्द हो गया और अब उसकी छत्रछाया में बाकायदा एक बड़ा सिंडीकेट काम कर रहा था। सबसे अधिक खतरा चन्दन को है, इसलिये चन्दन उसका जानी दुश्मन है।"
"ठीक । " रोमेश सब बातें एक डायरी में नोट करने लगा।
"दो नम्बर पर है ।" वह आगे बोला , "मेधा रानी ।"
"मेधा-रानी , हीरोइन ?"
"हाँ , तमिल हीरोइन मेधा -रानी ! जो अब हिन्दी फिल्मों की जबरदस्त अदाकारा बनी हुई है। मेधा- रानी सावंत का क्यों कत्ल करना चाहेगी यह वजह सावंत ने हमें नहीं बताई।"
"तुमने जानी भी नहीं ?"
"नहीं , अभी हमने उस पर काम नहीं किया। शायद सावंत ने इसलिये नहीं बताया ,
क्यों कि यह मैटर उसकी प्राइवेट लाइफ से अटैच हो सकता है।"
"चलो , आगे ।"
"तीसरा नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जनार्दन नागा रेड्डी । यानी जे.एन.।"
"यानि कि चीफ मिनिस्टर जे.एन.?" रोमेश उछल पड़ा।
"हाँ , वही ।
सावंत का सबसे प्रबल राजनैतिक प्रतिदन्द्वी। यह तीन हस्तियां हमारे सामने हैं, और तीनो ही अपने-अपने क्षेत्र की महत्वपूर्ण हस्तियां हैं। सावंत की मौत का रास्ता इन तीन गलियारों में से किसी एक से गुजरता है, और यह पता लगाना तुम्हारा काम है। बोलो।"
"तुम रकम का इन्तजाम करो और समझो काम हो गया।"
"ये लो दस हजार।" कैलाश ने नोटों की एक गड्डी निकालते हुए कहा, "बाकी चालीस काम होने के बाद।"
रोमेश ने रकम पकड़ ली।
जब वह वापिस मुम्बई पहुँचा, तो उसके सामने सीमा ने कुछ बिल रख दिये।
"सात हजार रुपए स्वयं का बिल।" रोमेश चौंका,
"डार्लिंग ! कम से कम मेरी माली
हालत का तो ध्यान रखा करो।"
"भुगतान नहीं कर सकते, तो कोई बात नहीं। मैं अपने कजन से कह दूंगी, वह भर देगा।"
"तुम्हारा कजन आखिर है कौन? मैंने तो कभी उसकी शक्ल नहीं देखी, बार-बार तुम उसका नाम लेती रहती हो।"
"तुम जानते हो रोमी ! वह पहले भी कई मौकों पर हमारी मदद कर चुका है, कभी मौका आएगा तो मिला भी दूंगी।"
"ये लो , सबके बिल चुकता कर दो।" रोमेश ने दस हजार की रकम सीमा को थमा दी।
"क्या तुमने उस मुकदमे की फीस नहीं ली, वह लड़की वैशाली कई बार चक्कर लगा चुकी है। पहले तो उसने फोन किया, मैंने कहा नहीं है, फिर खुद आई। शायद सोच रही होगी कि मैंने झूठ कह दिया होगा।"
"ऐसा वह क्यों सोचेगी?"
"मैंने पूछा था काम क्या है, कुछ बताया नहीं। कहीं केस का पेमेन्ट देने तो नहीं आई थी?"
"उस बेचारी के पास मेरी फीस देने का इन्तजाम नहीं है।"
"अखबार में तो छपा था कि उसके घर एक लाख रुपया पहुंच गया था, और इसी रकम से तुमने इन्वेस्टीगेशन शुरू की थी।"
"वह रकम कोर्ट कस्टडी में है, और उसे मिलनी भी नहीं है। वह रकम कमलनाथ की है, और कमलनाथ को तब तक नहीं मिलेगी, जब तक वह बरी नहीं होगा।"
"तो तुमने फ्री काम किया।"
"नहीं जितनी मेरी फीस थी , वह मुझे मिल गयी थी।"
"कितनी फीस ?"
"इस केस में मेरी सफलता ही मेरी सबसे बड़ी फीस है, तुम तो जानती ही हो। चुनौती भरा केस था।"
"तुम्हें तो वकील की बजाय समाज सेवी होना चाहिये, अरे हाँ याद आया, माया दास के भी दो तीन फोन आ चुके हैं।"
"मायादास कौन?"
"मिस्टर माया दास, चीफ मिनिस्टर जे.एन.साहब के सेकेट्री हैं।"
रोमेश उछल पड़ा।
"क्या मैसेज था माया दास का?"
"कहा जैसे ही आप आएं, एक फोन नम्बर पर उनसे बात कर लें। नम्बर छोड़ दिया है अपना।"
इतना कहकर सीमा ने एक टेलीफोन नम्बर बता दिया। रोमेश ने फोन नम्बर अपनी डायरी में नोट कर लिया।
"यह माया दास का भला हमसे क्या काम पड़ सकता है ?"
"आप वकील हैं। हो सकता है कि कोई केस हैण्डओवर करना हो।"
"इस किस्म के लोगों के लिए अदालतों या कानून की कोई वैल्यू नहीं होती। तब भला इन्हें वकीलों की जरूरत कैसे पेश आयेगी?"
"आप खुद ही किसी रिजल्ट पर पहुंचने के लिए बेकार ही माथा पच्ची कर रहे हैं, एक फोन करो और मालूम कर लो न डियर एडवोकेट सर।"
"शाम को फुर्सत से करूंगा, अभी तो मुझे कुछ काम निबटाने हैं, लगता है अब हमारे दिन फिरने वाले हैं। अच्छे कामों के भी अच्छे पैसे मिल सकते हैं, वह दिल्ली में मेरा एक दोस्त है ना जो डिटेक्टिव एजेंसी चलाता है।"
"कैलाश वर्मा?"
"हाँ , वही । उसने एक केस दिया है, मेरे लिए वह काम मुश्किल से एक हफ्ते का है, दस हजार रुपया उसी सिलसिले में एडवांस मिला था, डार्लिंग इस बार मैं अपना …।"
तभी डोरबेल बजी ।
"देखो तो कौन है?" रोमेश ने नौकर से पूछा।
नौकर दरवाजे पर गया, कुछ पल में वापिस आकर बताया, "इंस्पेक्टर साहब हैं। साथ में वह लड़की भी है, जो पहले भी आई थी।"
"अच्छा उन्हें अन्दर बुलाओ।" रोमेश आकर ड्राइंगरूम में बैठ गया।
"हैल्लो रोमेश।" विजय, वैशाली के साथ अन्दर आया।
"तुमको कैसे पता चला, मैं दिल्ली से लौट आया।" रोमेश ने हाथ मिलाते हुए कहा।
"भले ही तुम दिग्गज सही, मगर पुलिस वाले तो हम भी हैं। हमने मालूम कर लिया था, कि जनाब का रिजर्वेशन राजधानी से है, और फिर हमें मुम्बई सेन्ट्रल स्टेशन के पुलिस
इंचार्ज ने भी फोन कर दिया था।"
"ऐसी घोर विपत्ति क्या थी? क्या वैशाली पर फिर कोई मुसीबत आयी है?"
"नहीं भई! हम तो जॉली मूड में हैं। हाँ, काम कुछ वैशाली का ही है।"
"क्या तुम्हारे भाई ने फिर कुछ कर लिया ?"
"नहीं उसने तो कुछ नहीं किया , सिवाय प्रायश्चित करने के। असल में बात यह है कि वैशाली तुम्हारी सरपरस्ती में प्रैक्टिस शुरू करना चाहती है, इसके आदर्श तो तुम बन गये हो रोमेश।"
"ओह तो यह बात थी।"
"यानि अभी यह होगा कि तुम मुलजिम पकड़ा करोगे और यह छुड़ाया करेगी। चित्त भी अपनी और पट भी।"
उसी समय सीमा ने ड्राइंगरूम में कदम रखा।
''नमस्ते भाभी।" दोनों ने सीमा का अभिवादन किया।
"इस मामले में तुम जरा अपनी भाभी की भी परमीशन ले लो।" रोमेश बोला , “तो पूरी ग्रीन लाइट हो जायेगी।"
"भाभी जरा इधर आना तो।" विजय उठ खड़ा हुआ, "आपसे जरा प्राइवेट बात करनी है।"
विजय अब सीमा को एक कमरे में ले गया।
"बात ये है भाभी कि वैशाली अपनी मंगेतर है, और उसने एक जिद ठान ली है, कि जब तक वकील नहीं बनेगी, शादी नहीं करेगी। वकील भी ऐसा वैसा नहीं, रोमेश जैसा।"
"अरे तो इसमें मैं क्या कर सकती हूँ, एक बात और सुन लो विजय।"
"क्या भाभी ?"
"मेरी सलाह मानो, तो उसे सिलाई बुनाई का कोर्स करवा दो। कम से कम घर बैठे कुछ तो कमा के देगी। इन जैसी वकील बन गई, तो सारी जिन्दगी रोता रहेगा।"
"मुझे उससे कुछ अर्निंग थोड़े करवानी है। बस उसका शौक पूरा हो जाये।"
"सिर पकड़कर आधी-आधी रात तक रोती रहती हूँ मैं। तू भी ऐसे ही रोएगा।"
"क… क्यों ?"
"अब तुझसे अपनी कंगाली छिपी है क्या?"
"भाभी वैसे तो घर ठीक-ठाक चलता ही है। हाँ , ऐशो आराम की चीज में जरूर कुछ कमी है, मगर मेरे साथ ऐसा कोई लफड़ा नहीं होने का।"
"तुम्हारे साथ तो और भी होगा।"
"कैसे ?"
"तू मुजरिम पकड़ेगा, यह छुड़ा देगी। फिर होगी तेरे सर्विस बुक में बैड एंट्री! मुजरिम बरी होने के बाद इस्तगासे करेंगे, मानहानि का दावा करेंगे, फिर तू आधी रात क्या सारी -सारी रात रोएगा। मैं कहती हूँ कि उसे कोई स्कूल खुलवा दो या फिर ब्यूटी पार्लर।"
"ओह नो भाभी ! मुझे तो उसे वकील ही बनाना है।"
"बनाना है तो बना, बाद में रोने मेरे पास नहीं आना।"
"अब तुम जरा रोमेश से तो कह दो, उस जैसा तो वही बना सकता है।"
"सबके सब पागल हैं, यही थी प्राइवेट बात। मैं कह दूंगी, बस।"
थोड़ी देर में दोनों ड्राइंग रूम में आ गये। उस वक्त रोमेश कानून की बुनियादी परिभाषा वैशाली को समझा रहा था।
''कानून की देवी की आँखों पर पट्टी इसलिये पड़ी होती है, क्यों कि वहाँ जज्बात, भावनायें नहीं सुनी जाती। कई बार देखा भी गलत हो सकता है, बस जरूरत होती है सिर्फ सबूतों की।"
''लो इन्होंने तो पाठ भी पढाना शुरू कर दिया।'' सीमा ने कहा ,
"चल वैशाली , जरा मेरे साथ किचन तो देख ले, यह किचन भी बड़े काम की चीज है। यहाँ भी जज्बात काम नहीं करते, प्याज टमाटर काम करते हैं।"
सब एक साथ हँस पड़े। और सीमा के साथ वैशाली किचन में चली गई।
जारी रहेगा...
Yahi to is kahani ka asal maja hai man, sabkuch open hoke bhi suspense Thank you very much for your wonderful review bhaiRaj_sharma galat kiye men ju ye....pahle nahi batana tha....
Romesh detective bhi hai.....
apan ko laga Amitabh Vijay hai....par yaha to ab kahani hi badalti nazar aa rahi hai...
aage hint nahi dene ka....
dene ka bhi galat dene ka.....
Sabkuch samne hi to hai bhai? Bas samasya ye hi ki logo ko ye wiswas nahi ho raha ki ye sab hoga kaise, or yahi is kahani ki khasiyat hsi, ekdu. Simple but gajab ka thrillhint de diye ho yahic pe.....
dusra maamla niklega to aur mazza aayega....
for now it seems ki sab insurance ke paise ke liye ho raha hai.....par ek baat ye bhi hai ki jab Somu se accident hua tha uske baad Seth mawali ki tarah baat kar raha tha....
nice writing