- 20,126
- 50,952
- 259
★ INDEX ★
☟
☟
♡ Family Introduction ♡ |
---|
Last edited:
♡ Family Introduction ♡ |
---|
Interest banaye rakho dost, aage aur bhi maja aayega thanks for your wonderful review and support ❣hint de diye ho yahic pe.....
dusra maamla niklega to aur mazza aayega....
for now it seems ki sab insurance ke paise ke liye ho raha hai.....par ek baat ye bhi hai ki jab Somu se accident hua tha uske baad Seth mawali ki tarah baat kar raha tha....
nice writing
itni jaldi pakda gaya.....
aage ki kahani mein kya hai phir....
aur bhhi cases aayengi....yaa wo jo banda marra hai usko lekar kuch hoga.....
interesting..
Vijay amitabh hai to romesh kanoon ka dhamenda hi mitraCousin
yaha alag hi game chal raha hai kya......
ek pareshan biwi.....5 saal se ek heere ki anguthi ke liye pareshan hai.....
Romy ko Chief Minister ke taraf se uska aadmi phone bhi kiya hai...
bahut kuch hai iss kahani mein to....
kaha apan Vijay ko Amitabh samajh ke baitha tha....
apan hi kharab ho gaya hai jo itna soch liya.....# 8
रोमेश घर पर ही था , शाम हो गयी थी। वह आज सीमा के साथ किसी अच्छे होटल
में डिनर के मूड में था, उसी समय फोन की घंटी बज उठी, फोन खुद रमेश ने उठाया।
''एडवोकेट रोमेश सक्सेना स्पीकिंग।''
''नमस्ते वकील साहब, हम माया दास बोल रहे हैं।''
''माया दास कौन?''
''आपकी श्रीमती ने कुछ बताया नहीं क्या, हम चीफ मिनिस्टर जे.एन.साहब के पी.ए. हैं।''
''कहिए कैसे कष्ट किया?''
"कष्ट की बात तो फोन पर बताना उचित नहीं होगा, मुलाकात का वक्त तय कर लिया
जाये, आज का डिनर हमारे साथ हो जाये, तो कैसा हो?"
"क्षमा कीजिए, आज तो मैं कहीं और बिजी हूँ।''
''तो फिर कल का वक़्त तय कर लें, शाम को आठ बजे होटल ताज में दो सौ पांच नंबर सीट हमारी ही है, बारह महीने हमारी ही होती है।''
रोमेश को भी जे.एन. में दिलचस्पी थी , उसे कैलाश वर्मा का काम भी निबटाना था , यही सोचकर उसने हाँ कर दी।
''ठीक है, कल आठ बजे।''
"सीट नंबर दो सौ पांच ! होटल ताज!'' माया दास ने इतना कहकर फोन कट कर दिया।
कुछ ही देर में सीमा तैयार होकर आ गई। बहुत दिनों बाद अपनी प्यारी पत्नी के साथ वह बाहर डिनर कर रहा था, वह सीमा को लेकर चल पड़ा। डिनर के बाद दोनों काफी देर तक जुहू पर घूमते रहे। रात के बारह बजे कहीं जा कर वापसी हो पायी।
अगले दिन वह माया दास से मिला।
माया दास खद्दर के कुर्ते पजामे में था, औसत कद का सांवले रंग का नौजवान था,
देखने से यू.पी. का लगता था, दोनों हाथों में चमकदार पत्थरों की 4 अंगूठियां पहने हुए था और गले में छोटे दाने के रुद्राक्ष डाले हुए था।
"हाँ , तो क्या पियेंगे? व्हिस्की, स्कॉच, शैम्पैन?''
"मैं काम के समय पीता नहीं हूँ, काम खत्म होने पर आपके साथ डिनर भी लेंगे, कानून की भाषा के अंतर्गत जो कुछ भी किया जाये, होशो -हवास में किया जाये, वरना कोई एग्रीमेंट वेलिड नहीं होता।"
"देखिये, हम आपसे एक केस पर काम करवाना चाहते हैं।" माया-दास ने केस की बात सीधे ही शुरू कर दी।
''किस किस्म का केस है?"
"कत्ल का।"
रोमेश सम्भलकर बैठ गया।
"वैसे तो सियासत में कत्लो-गारत कोई नई बात नहीं। ऐसे मामलों से हम लोग सीधे खुद ही निबट लेते हैं, मगर यह मामला कुछ दूसरे किस्म का है। इसमें वकील की जरूरत पड़ सकती है। वकील भी ऐसा, जो मुलजिम को हर रूप में बरी करवा दे।"
"और वह फन मेरे पास है।''
''बिल्कुल उचित, जो शख्स इकबाले जुर्म के मुलजिम को इतने नाटकीय ढंग से बरी करा सकता है, वह हमारे लिए काम का है। हमने तभी फैसला कर लिया था कि केस आपसे लड़वाना होगा।''
"मुलजिम कौन है? और वह किसके कत्ल का मामला है?"
''अभी कत्ल नहीं हुआ, नहीं कोई मुलजिम बना है।''
''क्या मतलब?" रोमेश दोबारा चौंका।
मायादास गहरी मुस्कान होंठों पर लाते हुए बोला,
"कुछ बोलने से पहले एक बात और
बतानी है। जो आप सुनेंगे, वह बस आप तक रहे। चाहे आप केस लड़े या न लड़े।"
''हमारे देश में हर केस गोपनीय रखा जाता है, केवल वकील ही जानता है कि उसका मुवक्किल दोषी है या निर्दोष, आप मेरे पेशे के नाते मुझ पर भरोसा कर सकते हैं।''
''तो यूं जान लो कि शहर में एक बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति का कत्ल जल्द ही होने जा रहा है, और यह भी कि उसे कत्ल करने वाला हमारा आदमी होगा। मरने वाले को भी पूर्वाभास है, कि हम उसे मरवा सकते हैं। इसलिये उसने अपने कत्ल के बाद का भी जुगाड़ जरूर किया होगा। उस वक्त हमें आपकी जरूरत पड़ेगी। अगर पुलिस कोई दबाव में आकर पंगा ले, तो कातिल अग्रिम जमानत पर बाहर होना चाहिये। अगर उस पर मर्डर
केस लगता है, तो वह बरी होना चाहिये। यह कानूनी सेवा हम आपसे लेंगे, और धन की सेवा जो आप कहोगे, हम करेंगे।''
"जे.एन. साहब ऐसा पंगा क्यों ले रहे हैं?"
"यह आपके सोचने की बात नहीं, सियासत में सब जायज होता है। एक लॉबी उसके खिलाफ है, जिससे उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का प्रपंच चलाया हुआ है।
''एम.पी . सावंत !"
माया-दास एकदम चुप हो गया,उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे, ललाट की रेखाए तन गई, परंतु फिर वह जल्दी ही सामान्य होता चला गया।
''पहले डील के लिए हाँ बोलो, केस लेना है? और रकम क्या लगेगी। बस फिर पत्ते खोले जायेंगे, फिर भी हम कत्ल से पहले यह नहीं बतायेंगे कि कौन मरने वाला है।''
माया दास ने कुर्ते की जेब में हाथ डाला और दस हज़ार की गड्डी निकालकर बीच मेज पर रख दी, ''एडवांस !''
"मान लो कि केस लड़ने की नौबत ही नहीं आती।"
"तो यह रकम तुम्हारी।"
"फिलहाल यह रकम आप अपने पास ही रखिये, मैं केस हो जाने के बाद ही केस की स्थिति देखकर फीस तय करता हूँ।"
"ठीक है, हमें कोई एतराज नहीं। अगले हफ्ते अखबारों में पढ़ लेना, न्यूज़ छपने के तुरंत बाद ही हम तुमसे संपर्क करेंगे।''
डिनर के समय माया दास ने इस संबंध में कोई बात नहीं की। वह समाज सेवा की बातें करता रहा, कभी-कभी जे.एन. की नेकी पर चार चांद लगाता रहा।
"कभी मिलाएंगे आपको सी.एम. से।"
"हूँ",
मिल लेंगे। कोई जल्दी भी नहीं है।"
रमेश साढ़े बारह बजे घर पहुँचा। जब वह घर पहुँचा, तो अच्छे मूड में था, उसके कुछ किए बिना ही सारा काम हो गया था। उसने माया दास की आवाज पॉकेट रिकॉर्डर में टेप कर ली थी, और कैलाश वर्मा के लिए इतना ही सबक पर्याप्त था। यह बात साफ हो गई कि सावंत के मर्डर का प्लान जे.एन. के यहाँ रचा जा रहा है। उसकी बाकी की पेमेंट खरी हो गई थी।
वह जब चाहे, यह रकम उठा सकता था। उसे इस बात की बेहद खुशी थी।
जब वह बेडरूम में पहुँचा, तो सीमा को नदारद पा कर उसे एक धक्का सा लगा। उसने नौकर को बुलाया।
''मेमसा हब कहाँ हैं?"
"वह तो साहब अभी तक क्लब से नहीं लौटी।''
"क्लब ! क्लब !! आखिर किसी चीज की हद होती है, कम से कम यह तो देखना चाहिये कि हमारी क्या आमदनी है।''
रोमेश ने सिगरेट सुलगा ली और काफी देर तक बड़बड़ाता रहा।
"कही सीमा , किसी और से?'' यह विचार भी उसके मन में घुमड़ रहा था, वह इस विचार को तुरंत दिमाग से बाहर निकाल फेंकता, परन्तु विचार पुनः घुमड़ आता और उसका सिर पकड़ लेता।
निसंदेह सीमा एक खूबसूरत औरत थी। उनकी मोहब्बत कॉलेज के जमाने से ही परवान चढ़ चुकी थी। सीमा उससे 2 साल जूनियर थी। बाद में सीमा ने एयरहोस्टेस की नौकरी कर ली और रोमेश ने वकालत। वकालत के पेशे में रोमेश ने शीघ्र ही अपना सिक्का जमा लिया। इस बीच सीमा से उसका फासला बना रहा, किन्तु उनका पत्र और टेलीफोन पर संपर्क बना रहता था।
रोमेश ने अंततः सीमा से विवाह कर लिया, और विवाह के साथ ही सीमा की नौकरी भी छूट गई। रमेश ने उसे सब सुख-सुविधा देने का वादा तो किया, परंतु पूरा ना कर सका। घर-गृहस्थी में कोई कमी नहीं थी, लेकिन सीमा के खर्चे दूसरे किस्म के थे। सीमा जब घर लौटी, तो रात का एक बज रहा था। रोमेश को पहली बार जिज्ञासा हुई कि देखे उसे छोड़ने कौन आया है? एक कंटेसा गाड़ी उसे ड्रॉप करके चली गई। उस कार में कौन था, वह नजर नहीं आया।
रोमेश चुपचाप बैड पर लेट गया।
सीमा के बैडरूम में घुसते ही शराब की बू ने भी अंदर प्रवेश किया। सीमा जरूरत से ज्यादा नशे में थी। उसने अपना पर्स एक तरफ फेंका और बिना कपड़े बदले ही बैड पर धराशाई हो गई।
''थोड़ी देर हो गई डियर।'' वह बुदबुदाई,
''सॉरी।''
रोमेश ने कोई उत्तर नहीं दिया।
सीमा करवट लेकर सो गई।
सुबह ही सुबह हाजी बशीर आ गया। हाजी बशीर एक बिल्डर था, लेकिन मुम्बई का बच्चा-बच्चा जानता था, कि हाजी का असली धंधा तस्करी है। वह फिल्मों में भी फाइनेंस करता था, और कभी-कभार जब गैंगवार होती थी, तो बशीर का नाम सुर्खियों में आ जाता था।
''मैं आपका काम नहीं कर सकता हाजी साहब।"
"पैसे बोलो ना भाई ! ऐसा कैसे धंधा चलाता है? अरे तुम्हारा काम लोगों को छुड़ाना है। वकील ऐसा बोलेगा, तो अपन लोगों का तो साला कारोबार ही बंद हो जायेगा।"
वह बात कहते हुए हाजी ने ब्रीफकेस खोल दिया।
''इसमें एक लाख रुपया है। जितना उठाना हो , उठा लो। पण अपुन का काम होने को मांगता है। करी-मुल्ला नशे में गोली चला दिया। अरे इधर मुम्बई में हमारे आदमी ने पहले कोई मर्डर नहीं किया। मगर करी-मुल्लाह हथियार सहित दबोच लिया गया वहीं के वहीं। और वह क्या है, गोरेगांव का थाना इंचार्ज सीधे बात नहीं करता। वरना अपुन इधर काहे को आता।''
''इंस्पेक्टर विजय रिश्वत नहीं लेता।"
''यही तो घपला है यार! देखो, हमको मालूम है कि तुम छुड़ा लेगा। चाहे साला कैसा ही मुकदमा हो।''
''हाजी साहब, मैं किसी मुजरिम को छुड़ाने का ठेका नहीं लेता, उसको अंदर करने का काम करता हूँ।"
"तुम पब्लिक प्रॉसिक्यूटर तो है नहीं।"
"आप मेरा वक्त खराब न करें, किसी और वकील का इंतजाम करें।"
"ये रख।"
उसने ब्री फकेस रोमेश की तरफ घुमाया।
रोमेश ने उसे फटाक से बंद किया,
''गेट आउट! आई से गेट आउट!!''
''कैसा वकील है यार तू।'' बशीर का साथी गुर्रा उठा, “बशीर भाई इतना तो किसी के आगे नहीं झुकते, अबे अगर हमको खुंदक आ गई तो।"
बशीर ने तुरंत उसको थप्पड़ मार दिया।
''किसी पुलिस वाले से और किसी वकील से कभी इस माफिक बात नहीं करने का। अपुन लोगों का धंधा इन्हीं से चलता है। समझा !'' हाजी ने ब्रीफकेस उठा लिया,
''रोमेश भाई, घर में आई दौलत कभी ठुकरानी नहीं चाहिये। पैसा सब कुछ होता है, हमारी नसीहत याद रखना।"
इतना कहकर हाजी बाहर निकल गया। उसके जाते ही सीमा, रोमेश के पास टपक पड़ी।
"एक लाख रुपये को फिर ठोकर मार दी तुमने रोमेश ! वह भी हाजी के।"
''दस लाख भी न लूँ।'' रोमेश ने सीमा की बात बीच में काटते हुए कहा ।
''तुम फिर अपने आदतों की दुहाई दोगे, वही कहोगे कि किसी अपराधी के लिए केस नहीं लड़ना। तलाशते रहो निर्दोषों को और करते रहो फाके।"
"हमारे घर में अकाल नहीं पड़ रहा है कोई। सब कुछ है खाने पहनने को। हाँ अगर कमी है, तो सिर्फ क्लबों में शराब पीने की।''
"तो तुम सीधा मुझ पर हमला कर रहे हो।''
"हमला नहीं नसीहत मैडम ! नसीहत! जो औरतें अपने पति की परवाह किए बिना रात एक-एक बजे तक क्लबों में शराब पीती रहेंगी, उनका फ्यूचर अच्छा नहीं होता । डार्कहोता है।"
"शराब तुम नहीं पीते क्या? क्या तुम होटलों में अपने दोस्तों के साथ गुलछर्रे नहीं उड़ाते? रात तो तुम ताज में थे। अगर तुम ताज में डिनर ले सकते हो, शराब पी सकते हो , तो फिर मुझे पाबंदी क्यों?"
"मैं कारोबार से गया था।"
"क्या कमाया वहाँ? वहाँ भी कोई अपराधी ही होगा। बहुत हो चुका रोमेश ! मैं अभी भी खत्म नहीं हो गई, मुझे फिर से नौकरी भी मिल सकती है।"
"याद रखो सीमा , आज के बाद तुम शराब नहीं पियोगी।''
"तुम भी नहीं पियोगे।"
"नहीं पियूँगा।"
''सिगरेट भी नहीं पियोगे।"
"नहीं , तुम जो कहोगी, वह करूंगा। मगर तुम शराब नहीं पियोगी और अगर किसी क्लब में जाना भी हो, तो मेरे साथ जाओगी। वो इसलिये कि नंबर एक, मैं तुमसे बेइन्तहा प्यार करता हूँ, और नंबर दो, तुम मेरी पत्नी हो।"
अगर उसी समय वैशाली न आ गई होती , तो हंगामा और भी बढ़ सकता था। वैशाली के आते ही दोनों चुप हो गये और हँसकर अपने-अपने कामों में लग गये।
वैशाली कोर्ट से लौटी , तो विजय से जा कर मिली । दोनों एक रेस्टोरेंट में बैठे थे ।
"शादी के बाद क्या ऐसा ही होता है विजय ?"
"ऐसा क्या ?"
"बीवी क्लबों में जाती हो। बिना हसबैंड के शराब पीती हो। और फिर झगड़ा, छोटी -छोटी बात पर झगड़ा। लाइफ में क्या पैसा इतना जरूरी है कि पति-पत्नी में दरार डाल दे?''
''पता नहीं तुम क्या बहकी-बहकी बातें कर रही हो?''
''दरअसल मैंने आज भैया-भाभी की सब बातें सुनली थीं । फ्लैट का दरवाजा खुला था , मैं अंदर आ गई थी, और मैंने उनकी सब बातें सुन लीं।''
''भैया -भाभी ?"
''रोमेश भैया की।"
''ओह ! क्या हुआ था?" विजय ने पूछा।
''हाजी बशीर एक लाख रुपये लेकर आया था, उसका कोई आदमी बंद हो गया है, रोमेश भैया बता रहे थे, तुम्हारे थाने का केस है।''
''अच्छा ! अच्छा !! करीमुल्ला की बात कर रहा होगा। रात उसने एक आदमी को नशे में गोली मार दी, हमें भी उसकी बहुत दिनों से तलाश थी, मगर यह बशीर वहाँ कैसे पहुंच गया?''
वैशाली ने सारी बातें बता डालीं ।
''ओह ! तो यह बात थी।'' विजय ने गहरी सांस ली।
''क्या हम लोग इसमें कुछ कर सकते हैं? कोई ऐसा काम जो रोमेश भैया और भाभी में झगड़ा ही ना हो।''
''एक काम हो सकता है।'' विजय ने कुछ सोचकर कहा, ''रोमेश की मैरिज एनिवर्सरी आने वाली है, इस मौके पर एक पार्टी की जाये और फिर रोमेश के हाथों एक गिफ्ट भाभी को दिलवाया जाये, गिफ्ट पाते ही सारा लफड़ा ही खत्म हो जायेगा।''
''ऐसा क्या ?''
''अरे जानेमन, कभी-कभी छोटी बात भी बड़ा रूप धारण कर लेती है, एक बार सीमा भाभी ने झावेरी वालों के यहाँ एक अंगूठी पसंद की थी, उस वक्त रोमेश के पास भुगतान के लिए पैसे न थे, और उसने वादा किया कि शादी की आने वाली सालगिरह पर एक अंगूठी ला देगा। यह अंगूठी रोमेश आज तक नहीं खरीद सका। कभी-कभार तो इस अंगूठी का किस्सा ही तकरार का कारण बन जाता है, अंगूठी मिलते ही भाभी खुश हो जायेगी और बस टेंशन खत्म।''
''मगर वह अंगूठी है कितने की ?''
''उस वक्त तो पचास हज़ार की थी, अब ज्यादा से ज्यादा साठ हज़ार की हो गई होगी।''
''इतने पैसे आएंगे कहाँ से ?"
"कोई चक्कर तो चलाना ही होगा।''
जारी रहेगा......
gehna girwi rakhega....# 9
अगले हफ्ते रोमेश से विजय की मुलाकात हुई ।
"गुरु ।'' विजय बोला, ''कुछ मदद करोगे।''
"तुम्हारा तो कोई-ना-कोई मरता ही रहता है,अब कौन मर गया?''
"कोई नहीं यार, बस कुछ रुपयों की जरूरत आ पड़ी।''
"रुपए और मेरे पास।'' रोमेश ने गर्दन झटकी।
''अबे यार, अर्जेंट मामला है। किसी की जिंदगी मौत का सवाल है। मुझे हर हालत में साठ हज़ार का इंतजाम करना है। तुम बताओ कितना कर सकते हो? एक महीने बाद तुम चाहे मुझसे साठ के साठ हज़ार ले लेना। ज्यादा भी ले लेना, चलेगा।''
रोमेश कुछ देर तक सोचता रहा, शादी की सालगिरह एक माह बाद आने वाली थी। कैलाश वर्मा ने उसे तीस हज़ार दिये थे, बाकी बाद में देने को कहा था। तीस हज़ार विजय के काम आ गये, तो उससे जरूरत पड़ने पर साठ ले सकता था, और साठ हज़ार में सीमा के लिए अंगूठी खरीदकर प्रेजेंट दे सकता था।
''तीस हज़ार में काम चल जा येगा ?''
''बेशक चलेगा, दौड़कर चलेगा।''
''ठीक है तीस दिये।'' विजय जानता था, रोमेश स्वाभिमानी व्यक्ति है। अगर विजय उसकी स्थिति को भांपते हुए तीस हज़ार की मदद की पेशकश करता, तो शायद रोमेश ऑफर ठुकरा देता। न ही वह किसी से उधार मांगने वाला था। लेकिन इस तरह से दाँव फेंककर विजय ने उसे चक्रव्यूह में फांस लि या था।
''साठ हज़ार खर्च करके मुझे एक लाख बीस हज़ार मिल जायेगा, जिसमें से साठ हज़ार तुम्हारा समझो, क्यों कि आधी रकम तुम्हारी है।''
"मैं तुमसे तुम्हारा बिजनेस नहीं पूछूंगा कि ऐसा कौन सा धंधा है? जाहिर है तुम कोई खोटा धंधा तो करोगे नहीं, मुझे एक महीने में रिटर्न कर देना। साठ ही लूँगा। और ध्यान रखना, मैं कभी किसी से उधार नहीं पकड़ता।''
"मुझे मालूम है।"
विजय ने यह पंगा ले तो लिया था, अब उसके सामने समस्या यह थी कि बाकी के तीस का इंतजाम कैसे करे? उसकी ऊपर की कोई कमाई तो थी नहीं। उसके सामने अब दो विकल्प थे। उसकी माँ ने बहू के लिए कुछ आभूषण बनवाए हुए थे। पिता का स्वर्गवास हुए तो चार साल गुजर चुके थे।
विजय का एक भाई और था, जो छोटा था और बड़ौदा में इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त कर रहा था। उसका भार भी विजय के कंधों पर हो ता था। माँ ने अपनी सारी कमाई से बस एक मकान बनाया था और बहू के लिए जेवर जोड़े थे। इन आभूषणों की स्वामिनी तो वैशाली थी।
माँ ने भी वैशाली को पसंद कर लिया था और जल्दी उसकी सगाई होने वाली थी। अड़चन सिर्फ यह थी कि वैशाली शादी से पहले कोई मुकदमा लड़कर जीतना चाहती थी।
वैशाली रोमेश की असिस्टेंट थी और रोमेश के मुकदमे को देखती थी। व्यक्तिगत रूप से अभी तक उसे कोई केस मिला भी नहीं था। आभूषणों को गिरवी रख तीस हज़ार का प्रबंध करना, यह एक तरीका था या फिर मकान के कागजात रखकर रकम मिल सकती थी।
वह सोचने लगा कि तीस हज़ार की रकम, वह साल भर में किसी तरह चुकता कर देगा और गिरवी रखी वस्तु वापस मिल जायेगी। अंत में उसने तय किया कि आभूषण रख देगा।
रोमेश की घरेलू जिंदगी में अब छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होने लगे थे। अगर इस वर्ष रोमेश अपनी पत्नी को अंगूठी प्रेजेंट कर न पाया, तो कोई तूफ़ान भी आ सकता था। सीमा ने अब क्लब जाना बंद कर दिया था। यह बात रोमेश ने उसे एक दिन बताई।
"जब वह एयरहोस्टेज रही होगी, तब उसे यह लत पड़ गई थी। उसके कुछ दोस्त भी होंगे, जो जाहिर है कि ऊंचे घरानों के होंगे। मैंने सोचा था वह खुद समझकर घरेलू जिंदगी में लौट आयेगी, मगर ऐसा नहीं हो पाया। जाहिर है, मैंने भी कभी उसके प्रोग्रामों में दखल नहीं दिया। मगर फिर हद होने लगी, मैं जो कमाऊँ वह उसे क्लबों में ठिकाने लगा देती थी। और फिर मैं उसके लिए अंगूठी तक नहीं खरीद सका।''
''अब क्या दिक्कत है, उस दिन के बाद भाभी ने क्लब छोड़ दिया, शराब छोड़ दी, अब तो तुम्हें शादी की सालगिरह पर जोरदार पार्टी दे देनी चाहिये।''
''उसके मन के अंधड़ को मैं समझता हूँ। वह मुझसे रुठ गई है यार, क्या करूं?"
"इस बार अंगूठी दे ही देना, क्या कीमत है उसकी?"
''अठावन हज़ार हो गई है।''
"साठ हज़ार मिलते ही अबकी बार मत चूकना चौहान। बस फिर सब गिले-शिकवे दूर हो जायेंगे।''
दस दिन बाद ही एक धमाका हुआ। सभी अखबार सावंत की सनसनी खेज हत्या की वारदात से रंगे हुए थे। टी.वी., रेडियो हर जगह एक ही प्रमुख समाचार था, एम.पी . सावंत की बर्बर हत्या कर दी गई। सावंत को स्टेनगन से शूट किया गया था और उसके शरीर में आठ गोलियां धंस गई थीं।
यह घटना गोरेगांव के एक क्रासिंग पर घटी थी। इंस्पेक्टर विजय तुरंत ही पूरी फोर्स के साथ घटना स्थल पर पहुंच गया। एम.पी . सावंत की जिस समय हत्या की गई, वह उस समय एक बुलेटप्रूफ कार में था। उसके साथ दो गनर भी मौजूद थे। दोनों गनर बुरी तरह घायल थे। घटना इस प्रकार बताई जाती थी- सावंत गाड़ी में बैठा था, अचानक इंजन की खराबी से गाड़ी रास्ते में रुक गई। गोरेगांव के इलाके में एक चौराहे के पास ड्राइवर और गनर ने धक्के देकर उसे किनारे लगाया।
उस समय सावंत को कहीं जल्दी जाना था। वह गाड़ी से उतरकर टैक्सी देखने लगा, तभी हादसा हुआ।
एक टैक्सी सावंत के पास रुकी। ठीक उसी तरह जैसे सवारी उतरती है, टैक्सी के पीछे का द्वार खुला और एक नकाबपोश प्रकट हुआ। इससे पहले कि सावंत कुछ कह पाता, नकाबपोश ने निहायत फिल्मी अंदाज में स्टेनगन से गोलियों की बौछार कर डाली। गनर फायरिंग सुनकर पलटे कि उन पर भी फायर खोल दिये गये, गनर गाड़ी के पीछे दुबक गये। एक के कंधे पर गोली लगी थी और दूसरे की टांग में दो गोलियां बताई गई।
ड्राइवर गाड़ी के पीछे छिप गया था। नकाबपोश जिस टैक्सी से उतरा था, उसी से फरार हो गया। पुलिस को टैक्सी की तलाशी शुरू करनी थी।
विजय इस घटना के कारण उन दिनों बहुत व्यस्त हो गया। उस इलाके के बहुत से बदमाशों की धरपकड़ की, चारों तरफ मुखबिर लगा दिये और फिर रोमेश ने तीन दिन बाद ही समाचार पत्र में पढ़ा कि सावंत के कत्ल के जुर्म में चंदन को आरोपित कर दिया गया है।
चंदन अंडर ग्राउंड था और पुलिस उसे तलाश कर रही थी। विजय ने दावा किया कि उसने मामला खोज दिया है, अब केवल हत्यारे की गिरफ्तारी होना बाकी है।
चंदन अभी तस्करी का धंधा करता था और कभी वह सावंत का पार्टनर हुआ करता था।
विजय की इस तफ्तीश से रोमेश को भारी कोफ्त हुई। उसने विजय को फोन पर तलाशना शुरू किया , करीब चार-पांच घंटे बाद शाम को खुद विजय का फोन आया।
"क्या बात है?तुम मुझे क्यों तलाश रहे हो? भई जरा बहुत व्यस्तता बढ़ी हुई है, पढ़ ही रहे होगे अखबारों में।"
''वह सब पढ़ने के बाद ही तो तुम्हारी तलाश शुरू की।''
"कोई खास बात?"
"खास बात यह है कि अगर तुमने चंदन को गिरफ्तार किया, तो मैं उसका मुकदमा फ्री लडूँगा। " इतना कहकर रोमेश ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया।
विजय हैलो-हैलो करता रह गया। रोमेश की इस चेतावनी के बाद विजय का अपने स्थान पर रुके रहना सम्भव न था। सारे जरूरी काम छोड़कर वह रोमेश की तरफ दौड़ पड़ा। रोमेश उसका ही इंतजार कर रहा था।
''तुम्हारे इस फैसले का क्या मतलब हुआ, क्या तुम्हें मेरी ईमानदारी के ऊपर शक है?"
"ईमानदारी पर नहीं, तफ्तीश पर।"
"क्या कहते हो यार, मेरे पास पुख्ता सबूत हैं, एक बार वह मेरे हाथ आ जाये। फिर देखना मैं कैसे अपने डिपार्टमेंट की नाक ऊंची करता हूँ। एस.एस.पी. कह रहे थे कि सी .एम. साहब खुद केस में दिलचस्पी रखते हैं, और केस सलझाने वाले को अवार्ड तक मिलने की उम्मीद है। उनका कहना है कि हत्यारा चाहे जितनी बड़ी हैसियत क्यों ना रखता हो, बख्शा न जाये।"
''और तुम बड़ी बहादुरी से चंदन के पीछे हाथ धो कर पड़ गये, यह चंदन का क्लू तुम्हें कहाँ से मिल गया?"
"एम.पी. के सिक्योरिटी डिपार्टमेंट से। एम.पी. ने इस संबंध में गुप्त रूप से डॉक्यूमेंट भी तैयार किए थे। उसे तो उसकी मौत के बाद ही खोला जाना था। वह मेरे पास हैं और उनमें सारा मामला दर्ज है।
एम.पी. सावंत के डॉक्यूमेंट को पढ़ने के बाद सारा मामला साफ हो जाता है। वह सारी फाइल एस.एस.पी . को पहुँचा दी है मैंने। एम.पी . ने खुद उसे तैयार किया था और इस मामले में किसी प्राइवेट एजेंसी से भी मदद ली गई, उस एजेंसी ने भी चंदन को दोषी ठहरा या था। ''
''क्या बकते हो ?''
''अरे यार मैं ठीक कह रहा हूँ, मगर तुम किस आधार पर चंदन का केस लड़ने की ताल ठोक रहे हो।''
''इसलिये कि चंदन उसका कातिल नहीं है।''
''चंदन के स्थान पर उसका कोई गुर्गा हो सकता है।''
''वह भी नहीं है, तुम्हारे डिपार्टमेंट की मैं मिट्टी पलीत कर के रख दूँगा, और तुम अवार्ड की बात कर रहे हो। तुम नीचे जाओगे, सब इंस्पेक्टर बन जाओगे, लाइन हाजिर मिलोगे।''
जारी रहेगा…..
ye Batla khooni jaisa nahi lag raha...wo aise baat nahi karte#10
विजय के तो छक्के छूट गये। रोमेश जिस आत्मविश्वास से कह रहा था, उससे साफ जाहिर था कि वह जो कह रहा है, वही होगा।
''तो फिर तुम ही बताओ, असली कातिल कौन है?"
"तुम्हारा सी.एम. ! जे.एन. है उसका कातिल।"
विजय उछल पड़ा। वह इधर-उधर इस प्रकार देखने लगा, जैसे कहीं किसी ने कुछ सुन तो नहीं लिया।
"एक मिनट।'' वह उठा और दरवाजा बंद करके आ गया।
''अब बोलो।'' वह फुसफुसाया।
''तुम इस केस से हाथ खींच लो।'' रोमेश ने भी फुसफुसा कर कहा।
''य...यह नहीं हो सकता।''
''तुम चीफ कमिश्नर को गिरफ्तार नहीं कर सकते। नौकरी चली जायेगी। इसलिये कहता हूँ, तुम इस तफ्तीश से हाथ खींच लोगे, तो जांच किसी और को दी जायेगी। वह
चंदन को ही पकड़ेगा और मैं चंदन को छुड़ा लूँगा। तुम्हारा ना कोई भला होगा, ना नुकसान।''
''यह हो ही नहीं सकता।'' विजय ने मेज पर घूंसा मारते हुए कहा।
''नहीं हो सकता तो वर्दी की लाज रखो, ट्रैक बदलो और सी एम को घेर लो। मैं तुम्हारासाथ दूँगा और सबूत भी। जैसे ही तुम ट्रैक बदलोगे, तुम पर आफतें टूटनी शुरू होंगी।
डिपार्टमेंटल दबाव भी पड़ सकता है और तुम्हारी नौकरी तक खतरे में पड़ सकती है।
परंतु शहीद होने वाला भले ही मर जाता है, लेकिन इतिहास उसे जिंदा रखता है और जो इतिहास बनाते हैं, वह कभी नहीं मरते। कई भ्रष्ट अधिकारी तुम्हारे मार्ग में रोड़ा बनेंगे,
जिनका नाम काले पन्नों पर होगा।"
''मैं वादा करता हूँ रोमेश ऐसा ही होगा। परंतु ट्रैक बदलने के लिए मेरे पास सबूत तो होना चाहिये।''
"सबूत मैं तुम्हें दूँगा।"
"ठीक है।" विजय ने हाथ मिलाया और उठ खड़ा हुआ।
रोमेश ने अगले दिन दिल्ली फोन मिलाया। कैलाश वर्मा को उसने रात भी फोन पर ट्राई किया था, मगर कैलाश से बात नहीं हो पायी। ग्यारह बजे ऑफिस में मिल गया।
"मैं रोमेश ! मुम्बई से।"
"हाँ बोलो। अरे हाँ, समझा।
मैं आज ही दस हज़ार का ड्राफ्ट लगा दूँगा। तुम्हारी पेमेंट बाकी है।''
"मैं उस बाबत कुछ नहीं बोल रहा। ''
"फिर खैरियत?"
"अखबार तो तुम पढ़ ही रहे होगे।"
''पुलिस की अपनी सोच है, हम क्या कर सकते हैं? जो हमारा काम था, हमने वही करना होता है, बेकार का लफड़ा नहीं करते।"
"लेकिन जो काम तुम्हारा था, वह नहीं हुआ।"
''तुम कहना क्या चाहते हो?"
"तुमने सावंत को …।"
"एक मिनट! शार्ट में नाम लो।
यह फोन है मिस्टर! सिर्फ एस. बोलो।"
"मिस्टर एस. को जो जानकारी तुमने दी, उसमें उसी का नाम है, जिस पर तर्क हो रहा है। तुमने असलियत को क्यों छुपाया? जो सबूत मैंने दिया, वही क्यों नहीं दिया, यह दोगली हरकत क्यों की तुमने?"
"मेरे ख्याल से इस किस्म के उल्टे सीधे सवाल न तो फोन पर होते हैं, न फोन पर उनका जवाब दिया जाता है। बाई द वे, अगर तुम दस की बजाय बीस बोलोगे, वो भेज दूँगा, मगर अच्छा यही होगा कि इस बाबत कोई पड़ताल न करो।"
"मुझे तो अब तुम्हारा दस हज़ार भी नहीं चाहिये और आइंदा मैं कभी तुम्हारे लिए काम भी नहीं करने का।"
"यार इतना सीरियस मत लो, दौलत बड़ी कुत्ती शै होती है। हम वैसे भी छोटे लोग हैं।
बड़ों की छाया में सूख जाने का डर होता है ना, इसलिये बड़े मगरमच्छों से पंगा लेना ठीक नहीं होता। तुम भी चुप हो जाना और मैं बीस हज़ार का ड्राफ्ट बना देता हूँ।"
''शटअप ! मुझे तुम्हारा एक पैसा भी नहीं चाहिये और मुझे भाषण मत दो।
तुमने जो किया, वह पेशे की ईमानदारी नहीं थी। आज से तुम्हारा मेरा कोई संबंध नहीं रहा।"
इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। करीब पन्द्रह मिनट बाद फोन की घंटी फिर बजी।रोमेश ने रिसीवर उठाया ।
''एडवोकेट रोमेश ''
''मायादास बोलते हैं जी। नमस्कार जी।"
"ओह मायादास जी , नमस्कार।"
"हम आपसे यह बताना चाहते थे कि फिलहाल जे.एन. साहब के लिए कोई केस नहीं
लड़ना है, प्रोग्राम कुछ बदल गया है।
हाँ , अगर फिर जरूरत पड़ी , तो आपको याद किया जायेगा। बुरा मत मानना ।"
''नहीं-नहीं । ऐसी कोई बात नहीं है।
वैसे बाई द वे जरूरत पड़ जाये, तो फोन नंबर आपके पास है ही ।''
"आहो जी ! आहो जी ! नमस्ते ।'' माया-दास ने फोन काट दिया ।
रोमेश जानता था कि दो-चार दिन में ही मायादास फिर संपर्क करेगा और रोमेश को अभी उससे एक मीटिंग और करनी थी, तभी जे.एन. घेरे में आ सकता था।
तीन दिन बाद विजय ने चंदन को चार्ज से हटा लिया और अखबारों में बयान दिया कि चंदन को शक के आधार पर तफ्तीश में लिया गया था किंतु बाद की जांच के मामले ने
दूसरा रूप ले लिया और इस कत्ल की वारदात के पीछे किसी बहुत बड़ी हस्ती का हाथ होने का संकेत दिया ।
सावंत कांड अभी भी समाचार पत्रों की सुर्खियों में था। विजय ने इसे एक बार फिर नया मोड़ दे दिया था।
उसी दिन शाम को मायादास का फोन आ गया।
''आपकी जरूरत आन पड़ी वकील साहब।"
"आता हूँ।"
"उसी जगह, वक्त भी आठ।“
"ठीक है ।"
रोमेश ठीक वक्त पर होटल जा पहुँचा। मायादास के अलावा उस समय वहाँ एक और आदमी था।
वह व्यक्ति चेहरे से खतरनाक दिखता था और उसके शरीर की बनावट भी
वेट-लिफ्टिंग चैंपियन जैसी थी। उसके बायें गाल पर तिल का निशान था और सामने के दो दांत सोने के बने थे। सांवले रंग का वह लंबा तगड़ा व्यक्ति गुजराती मालूम पड़ता था ,
उम्र होगी कोई चालीस वर्ष ।
"यह बटाला है।" मायादास ने उसका परिचय कराया ।
"वैसे तो इसका नाम बटाला है, लेकिन अख्तर बटाला के नाम से इसे कम ही लोग जानते हैं। पहले जब छोटे-मोटे हाथ मारा करता था, तो इसे बट्टू चोर के नाम से जाना जाता था। फिर यह मिस्टर बटाला बन गया और कत्ल के पेशे में आ गया, इसका निशाना सधा हुआ है। जितना कमांड इसका राइफल, स्टेनगन या पिस्टल पर है, उतना ही भरोसा रामपुरी पर है। जल्दी ही हज करने का इरादा रखता है, फि र तो हम इसे हाजी साहब कहा करेंगे ।''
बटाला जोर-जोर से हंस पड़ा ।
''अब जरा दांत बंद कर।" मायादास ने उसे जब डपटा, तो उसके मुंह पर तुरंत ब्रेक का जाम लग गया।
''वकील लोगों से कुछ छुपाने का नहीं मांगता।" वह बोला !
"और हम यह भी पसंद नहीं करते कि हमारा कोई आदमी तड़ी पार चला जाये । अगर बटाला को जुम्मे की नमाज जेल में पढ़नी पड़ गई, तो लानत है हम पर ।''
"पण जो अपुन को तड़ी पार करेगा, हम उसको भी खलास कर देगा" बटाला ने फटे बास की तरह घरघराती आवाज निकाली।"
"तेरे को कई बार कहा, सुबह-सुबह गरारे किया कर, वरना बोला मत कर।"
मायादास ने उसे घूरते हुए कहा । बटाला चुप हो गया।
''सावंत का कत्ल करते वक्त इस हरामी से कुछ मिस्टेक भी हो गयी। इसने जुम्मन की टैक्सी को इस काम के लिये इस्तेमाल किया और जुम्मन उसी दिन से लापता है। उसकी टैक्सी गैराज में खड़ी है। यह जुम्मन इसके गले में पट्टा डलवा सकता है।
मैंने कहा था- कोई चश्मदीद ऐसा ना हो, जो तुम्हें पहचानता हो। जुम्मन की थाने में हिस्ट्री शीट खुली हुई है और अगर वह पुलिस को बिना बताए गायब होता है, तो पुलिस उसे रगड़ देगी।
ऐसे में वह भी मुंह खोल सकता है। जुम्मन डबल क्रॉस भी कर सकता है, वह भरोसे का आदमी नहीं है।"
बटाला ने फिर कुछ बोलना चाहा, परंतु मायादास के घूरते ही केवल हिनहिना कर रह गया।
''तो सावंत का मुजरिम ये है।'' रोमेश बोला ।
''आपको इसे हर हालत में सेफ रखना है वकील साहब, बोलो क्या फीस मांगता ?"
"फीस में तब ले लूँगा, जब काम शुरू होगा। अभी तो कुछ है ही नहीं , पहले पुलिस को बटाला तक तो पहुंचने दो, फिर देखेंगे।"
जारी रहेगा……..
Mayadas....#:12
बटाला की गिरफ्तारी का समाचार ही सनसनी खेज था।
सावंत मर्डर केस ने अब एक नया मोड़ ले लिया था। इस नए मोड़ के सामने आते ही स्वयं मायादास एडवोकेट रोमेश के घर पर आ पहुँचा।
"बटाला से वह स्टेनगन भी बरामद कर ली गई है, जिससे मर्डर हुआ।" रोमेश ने कहा।
"तुम किस मर्ज की दवा हो, उसे फौरन जमानत पर बाहर करो भई।" मायादास ने कहा !
"अपनी फीस बोलो, लेके आया हूँ।" उसने अपना ब्रीफकेस रोमेश की तरफ सरकाते हुए कहा।
"मायादास जी, बेशक आप माया में खेलते रहते हैं। लेकिन आपकी जानकारी के लिए मैं सिर्फ इतना बता देना काफी समझता हूँ कि मैंने अपनी आज तक की वकालत की जिन्दगी में किसी मुजरिम का केस नहीं लड़ा, जिसके बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल उसी ने किया, अलबत्ता उसे मैं फाँसी के तख्ते पर पहुंचाने में तो मदद कर सकता हूँ, मगर उसका केस लड़ने की तो सोच भी नहीं सकता।"
"मेरा ख्याल है कि तुम नशे में नहीं हो।"
"आपका ख्याल दुरुस्त है मायादास जी, मैं नशे में नहीं हूँ।"
"मगर तुमने तो कहा था, तुम केस लड़ोगे।"
"उस वक्त मैं नशे में रहा होऊंगा।"
"आई सी! नशे में न हम हैं न आप। मैं आपसे केस लड़वाने आया हूँ और आप उसे फाँसी चढ़ाने की सोच बैठे हैं।"
"दूसरे वकील बहुत हैं।"
"नहीं, मिस्टर रोमेश सक्सेना ! वकील सिर्फ तुम ही हो, हम जे.एन. साहब के पी.ए. हैं, और जे.एन. साहब जो कहते हैं, वो ही होना होता है।" मायादास ने फोन का रुख अपनी तरफ किया। जब तक वह नम्बर डायल करता रहा, तब तक सन्नाटा छाया रहा। नम्बर मिलते ही मायादास ने कहा,
"सी.एम. साहब से बात कराओ हम मायादास।" कुछ पल बाद।
"हाँ सर, हम मायादास बोल रहे हैं सर, आपने जिस वकील को पसन्द किया था, उसका नाम रोमेश सक्सेना ही है ना ?"
"हाँ , रोमेश ही है, क्यों ?" दूसरी तरफ से पूछा गया।
"वो केस लड़ने से इंकार करता है। वो वकील कहता है, बटाला को फाँसी पर चढ़ना होगा।"
"उसको फोन दो।" मायादास ने रोमेश की तरफ घूरकर देखा और फिर रिसीवर रोमेश को थमा दिया।
"लो तुम खुद बात कर लो, सी .एम. बोलते हैं।"
रोमेश ने रिसीवर लिया और क्रेडिल पर रखकर कनेक्शन काट दिया।
"बहुत गड़बड़ हो गई मिस्टर वकील।" मायादास उठ खड़ा हुआ,
"तुम जे.एन. साहब को नहीं जानते, इसका मतलब तो वह बताएंगे कि बटाला को पकड़वाने मैं तुम्हारा भी हाथ हो सकता है, क्यों कि इंस्पेक्टर विजय तुम्हारा मित्र भी है।"
"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
"ठीक है, हम चलते हैं।" जाते-जाते ड्राइंग रूम में खड़ी सीमा पर मायादास ने नजर डाली। उसकी आँखों में एक शैतानी चमक आई, फिर वह मुस्कराया और रोमेश के फ्लैट से बाहर निकल गया।
"तुमने उसे नाराज करके अच्छा नहीं किया रोमेश।" सीमा बोली ,
"कम से कम ये तो सोच लिया होता कि वह मुख्यमंत्री का पी .ए. है। जनार्दन नागा रेड्डी अगर चाहे, तो जज तक को उसका कहा मानना पड़ेगा, तुम तो मामूली से वकील हो।"
"मैं मामूली वकील नहीं हूँ मैडम ! इस गलतफहमी में मत रहना, यह मेरा बिजनेस है। आप इसमें दखल न दें, तो बहुत मेहरबानी होगी। बटाला ने एक एम.पी. का मर्डर किया है। एम.पी. का। जो जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है, उसने लाखों लोगों का मर्डर किया है, किसी एक का नहीं, समझी आप।"
"मैं तो सिर्फ़ इतना समझती हूँ कि हमें चीफ मिनिस्टर से दुश्मनी नहीं लेनी चाहिये।" इतना कहकर सीमा अन्दर चली गई। उसी दिन रात को रोमेश ने एक फोन रिसीव किया।
"हैल्लो रोमेश सक्सेना स्पीकिंग।" दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर खामोशी टूटी।
"हम जे.एन. बोल रहे हैं, जनार्दन नागा रेड्डी , चीफ मिनिस्टर।"
"कहिये ।"
"कल कोर्ट में हमारा आदमी पेश किया जायेगा, तुम उसके लिए कल वकालत नामा पेश करोगे और उसे तुरन्त जमानत पर रिहा कराओगे, यह हमारा हुक्म है। हम बड़े जिद्दी हैं, हमने भी तय कर लिया है कि तुम ही यह केस लड़ोगे और तुम ही बटाला को रिहा करवाओगे, पसन्द आई हमारी जिद।" इससे पहले कि रोमेश कुछ बोलता , दूसरी तरफ से फोन कट गया।
"गो टू हेल।" रोमेश ने रिसीवर पटक दिया। सुबह वह नित्यक्रम के अनुसार ठीक समय पर कोर्ट के लिए रवाना हो गया। कोई खास बात नहीं थी, इससे पहले भी कई लोग उसे धमकी दे चुके थे, परन्तु उसका मन कभी विचलि त नहीं हुआ था। न जाने आज क्यों उसे बेचैनी-सी लग रही थी। मुम्बई की समुद्री हवा भी उसे अजनबी सी लग रही थी। कोर्ट में उसका मन नहीं लगा। बटाला को पेश किया गया था कोर्ट में, किसी वकील ने उसकी पैरवी नहीं की। अगले तीन दिन की तारीख लगा दी। रोमेश को यह अजीब-सा लगा कि बटाला की पैरवी के लिए कोई वकील नहीं किया गया था। न जाने क्यों उसका दिल असमान्य रूप से धड़कने लगा। शाम को वह घर के लिए रवाना हुआ। वह अपने फ्लैट पर पहुंचा, उसने बेल बजाई। दरवाजा कुछ पल बाद खुला, लेकिन दरवाजा खोलने वाला न तो उसका नौकर था, न सीमा।
एक अजनबी सा फटा-फटा चेहरा नजर आया, जो दरवाजे के बीच खड़ा था। अजीब-सा लम्बा तगड़ा व्यक्ति जो काली जैकेट और पतलून पहने था।
"सॉरी।" रोमेश ने समझा, उसने किसी और के फ्लैट की बेल बजा दी है, "
मैंने अपना फ्लैट समझा था।"
"फ्लैट आपका ही है ।" उस व्यक्ति ने रास्ता दिया, "आइये, आइये।" रोमेश सकपका गया,
"त… तुम।"
"हम तो थोड़ी देर के लिए आपके मेहमान हैं।" रोमेश ने धड़कते दिल से अन्दर कदम रखा, फ्लैट की हालत उसे असामान्य सी लग रही थी, बड़ा अजीब-सा सन्नाटा छाया था। उस शख्स ने रोमेश के अन्दर दाखिल होते ही दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया और रोमेश के पीछे चलने लगा।
"म… मगर…!" रोमेश पलटा।
"बैडरूम में।" उस व्यक्ति ने पीले दाँत चमकाते हुए कहा। रोमेश तेजी के साथ बैडरूम में झपट पड़ा। वहाँ पहुंचते-पहुंचते उसकी साँसें तेज चलने लगी थीं और फिर बैडरूम का दृश्य देखते ही उसकी आँख फट पड़ी, वह जोर से चीखा- "सीमा !"
तभी रिवॉल्वर की नाल उसकी गुद्दी से चिपक गई।
"अब मत चिल्लाना।"
यह उस शख्स की आवाज थी, जिसने दरवाजा खोला था। उसके हाथ में अब रिवॉल्वर था। उसने रोमेश को एक कुर्सी पर धकेल दिया। एक शख्स खिड़की के पास पर्दा डाले खड़ा था। उसके हाथ में जाम था। वह धीरे- धीरे पलटा, जैसे ही उसका चेहरा सामने आया, रोमेश एक बार फिर तिलमिला उठा।
"हरामी ! साले !! मायादास !!!"
बाकी के शब्द मायादास ने पूरे किये,
"बाँध दो इसे।"
कमरे में दो बदमाश और मौजूद थे। उन्हों ने फ़ौरन रोमेश की मुश्कें कसनी शुरू कर दी। रोमेश को इस बीच में एक झापड़ भी पड़ गया था, जिसमें उसका होंठ फट गया। मायादास ने जाम रोमेश के चेहरे पर फेंका ।
"अभी हमने सिर्फ तुम्हारी बीवी के कपड़े उतारे हैं, इसके साथ ऐसा कुछ नहीं किया, जो या तो यह मर जाये या तुम आत्महत्या कर लो। हम तो तुम्हें सिर्फ नमूना दिखाने आये थे, तुम चाहो तो बान्द्रा पुलिस को फोन कर सकते हो, वहाँ से भी कोई मदद नहीं मिलने वाली।"
मायादास घूमकर सीमा के पास पहुँचा। सीमा का मुंह टेप से बन्द किया हुआ था, उसके हाथ पाँव बैड पर बंधे थे और उसके तन पर एक भी कपड़ा नहीं था।
"डियर स्वीट बेबी, तुम अभी भी बहुत हसीन लग रही हो, दिल तो हमारा बहुत मचल रहा है, मगर सी .एम. साहब का हुक्म है कि हम दिल को सम्भालकर रखें, क्यों कि आगे का काम करने का शौक उन्हीं का है।"
''हरामजादे।" रोमेश चीखा। रोमेश के एक थप्पड़ और पड़ा।
"साले अपने आपको हरिश्चन्द्र समझता है।" मायादास गुर्राया,
"अभी तेरे को हम तीन दिन की मोहलत देने आये हैं। जे.एन. साहब की जिद यही है कि तू ही बटाला को छुड़ायेगा। तीन दिन बाद तेरी बीवी के साथ जे.एन. साहब के नाजायज सम्बन्ध बन जायेंगे, इसके बाद इसे हम सबके हवाले कर दिया जायेगा। तेरा नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है, पानी छिड़क देना , होश आजायेगा।"
मायादास उस समय सिगरेट पी रहा था। उसने सिगरेट सीमा के सीने पर रखकर बुझाई। सीमा केवल तड़पती रह गई, मुँह बन्द होने के कारण चीख भी न सकी। मायादास ने कहा और बाहर निकल गया। उन सबके जाते ही रोमेश हाँफता हुआ जल्दी से उठा। उसकी आँखों में आँसू आ गये थे। उसकी प्यारी पत्नी को इस रूप में देखकर ही रोमेश काँप गया था। उसने सीमा के बन्धन खोले, उसके मुंह से टेप हटाया।
"म… मुझे माफ कर दो डार्लिंग ! मैं बेबस था।"
"शटअप !"
सीमा इतनी जोर से चीखी कि उसे खांसी आ गई, "
"आज के बाद तुम्हारा मेरा कोई वास्ता नहीं रहा, क्यों कि तीन दिन बाद मेरी जो गत बनने वाली है, वह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती।"
सीमा रोती हुई वार्डरोब की तरफ भागी, टॉवल लपेटा और सीधे बाथरूम में चली गई।
"सीमा प्लीज।" वह बाथरूम से ही चीख रही थी,
"आज के बाद हमारा कोई रिश्ता नहीं रहा राजा हरिश्चन्द। मैं अब तुम जैसे कंगले वकील के पास एक पल भी नहीं रहूँगी समझे ?"
"सीमा, मेरी बात तो सुनो, मैं अभी पुलिस को फोन करता हूँ।"
रोमेश ड्राइंगरूम में पहुंचा, पुलिस को फोन मिलाया। बान्द्रा थाने का इंचार्ज अपनी ड्यूटी पर मौजूद था।
"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ।"
"यही कहना है ना कि आपके फ्लैट पर मायादास जी कुछ गुण्डों के साथ आये और आपकी बीवी को नंगा कर दिया।"
"त… तुम्हें कैसे मालूम ?"
"वकील साहब, जब तक रेप केस न हो जाये, पुलिस को तंग मत करना, मामूली छेड़छाड़ के मुकदमे हम दर्ज नहीं करते। सॉरी … ।"
फोन कट गया। सीमा अपनी तैयारियों में लग चुकी थी। उसने अपने कपड़े एक सूटकेस में डाले और रोमेश उसे लाख समझाता रहा, मगर सीमा ने एक न सुनी।
"मुझे एक मौका और दो प्लीज।" रोमेश गिड़गिड़ाया।
"एक मौका !" वह बिफरी शेरनी की तरह पलटी,
"तो सुनो, जिस दिन तुम मेरे अकाउंट में पच्चीस लाख रुपया जमा कर दोगे, उस दिन मेरे पास आना, शायद तुम्हें तुम्हारी पत्नी वापिस मिल जाये।"
"पच्चीस लाख? पच्चीस लाख मैं कहाँ से लाऊंगा ? मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं जी सकता।"
"चोरी करो, डाका डालो, कत्ल करो, चाहे जो करो, पच्चीस लाख मेरे खाते में दिखा दो, सीमा तुम्हें मिल जायेगी, वरना कभी मेरी ओर रुख मत करना, कभी नहीं।"
"क… कब तक ? "
"सिर्फ एक महीना।"
"प्लीज ऐसा न करो, दस जनवरी को तो हमारी शादी की वर्षगांठ है। प्लीज मैं तुम्हें वह अंगूठी ला दूँगा।"
"नहीं चाहिये मुझे अंगूठी।" रोमेश ने बहुत कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी और उसे छोड़कर चली गई। फ्लैट से बाहर रोमेश ने टैक्सी को रोकने की भी कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी। रोमेश हताश सा वापिस फ्लैट में पहुँचा।
रोमेश को ध्यान आया कि नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है। उसने तुरन्त नौकर पर पानी छिड़का। उसे होश आ गया।
"तू जा कर पीछा कर, देख तो सीमा कहाँ गई है ?"
"क… क्या हो गया मालकिन को साहब ?"
"पता नहीं वह हमें छोड़कर चली गई, जा देख। बाहर देख, टैक्सी कर, कुछ भी कर, उसे बुलाकर ला।"
नौकर नंगे पाँव ही बाहर दौड़ पड़ा। रोमेश के कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करे, क्या न करे? उसका होंठ सूखा हुआ था। बायीं आंख के नीचे भी नील का निशान और सूजन आ गई थी, लेकिन इस सबकी तरफ तो उसका ध्यान ही न था। वह सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था और उसकी अक्ल जैसे जाम हो कर रह गई थी। फिर उसने विजय का नम्बर मिलाया। विजय फोन पर मिल गया।
"विजय बटाला को छोड़ दे, फ़ौरन छोड़ दे उसे।" रोमेश पागलों की तरह बोल रहा था,
"नहीं छोड़ेगा, तो मैं छुड़ा लूँगा उसे। और सुन, तेरे पास पच्चीस लाख रुपया है?" फोन पर बातचीत से ही विजय ने समझ लिया, दाल में काला है।
"मैं आ रहा हूँ।" विजय ने कहा।
''हाँ जल्दी आना, पच्चीस लाख लेकर आना।"
पन्द्रह मिनट बाद ही विजय और वैशाली रोमेश के फ्लैट पर थे। नौकर तब तक खाली हाथ लौट आया था। दरवाजे पर ही उसने विजय को सारी बात समझा दी। अब विजय और वैशाली का काम था, रोमेश को ढांढस बंधाना।
"पुलिस में रिपोट दर्ज करो उसकी।" विजय बोला।
"न…नहीं। नहीं वह कह रहा था, जब तक रेप नहीं होता, कोई मुकदमा नहीं बनता।"
"प्लीज, आपको क्या हो गया सर?" वैशाली के तो आँखों में आंसू आ गये।
"लीव मी अलोन।"
अचानक रोमेश हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पड़ा,
"वह मुझे छोड़कर चली गई, तो चली जाये, चली जाये।"
रोमेश बैडरूम में घुसा और उसने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।
"मेरे ख्याल से वैशाली, तुम यहीं रहो। भाभी के इस तरह जाने से रोमेश की दिमागी हालत ठीक नहीं है, मैं जरा बान्द्रा थाने होकर जाता हूँ। देखता हूँ कि कौन थाना इंचार्ज है, जो रेप से नीचे बात ही नहीं करता।"
जारी रहेगा.....
Cousin hai kya ye....#.13
दो दिन बाद रोमेश बैडरूम से बाहर निकला। इस बीच उसने कुछ खाया पिया न था।
उसने पुलिस से मदद लेने से भी इन्कार कर दिया। वैशाली इन दो दिनों उसी फ्लैट पर थी और कौशिश कर रही थी कि रोमेश अपनी रूटीन की जिन्दगी में लौट आये। इस बीच रोमेश बराबर शराब पीता रहा था।
वैशाली अन्तत: अपनी कौशिश में कामयाब हुई।
रोमेश ने स्नान किया और नाश्ते की टेबिल पर आ गया।
"सीमा का कोई फोन तो नहीं आया?" रोमेश ने पूछा।
"आप धीरज रखिये, हम सीमा भाभी को मना कर ले ही आयेंगे, वह भी तो आपको बहुत चाहती हैं। दो चार दिन में गुस्सा उतर जायेगा, आ जायेंगी।"
"और किसी का फोन मैसेज वगैरा?"
"कोई शंकर नागा रेड्डी है, तीन-चार बार उसका फोन आया था। वह आपसे मुलाकात का वक्त तय करना चाहता है।"
"शंकर नागा रेड्डी, मैंने तो यह नाम पहली बार सुना, हाँ जनार्दन नागा रेड्डी का नाम जरूर जेहन से चिपक सा गया है।"
"जनार्दन नहीं शंकर नागा रेड्डी।"
"क्यों मिलना चाहता है?"
"किसी केस के सम्बन्ध में।"
"केस क्या है?"
"यह तो उसने नहीं बताया, उसका फोन फिर आयेगा। आप समय तय कर लें, तो मैं उसे बता दूँ।"
"ठीक है, आज शाम सात बजे का समय तय कर लेना। मैं घर पर ही हूँ, कहीं नहीं जाऊंगा। फिलहाल कोर्ट के मैटर तुम देख लेना।"
"वह तो मैं देख ही रही हूँ सर, उसकी तरफ से आप चिन्ता न करें।"
दोपहर एक बजे शंकर का फोन फिर आया। वैशाली ने मुलाकात का समय तय कर दिया। दिन भर रोमेश, वैशाली के साथ शतरंज खेलता रहा। विजय भी एक चक्कर लगा गया था, उसने भी एक बाजी खेली, सब सामान्य देखकर उसने वैशाली की पीठ
थपथपायी।
"पुलिस में मामला मत उठाना।" रोमेश बोला, "वैसे तो मैं खुद बाद में यह मामला उठा सकता था। मगर इससे मेरी बदनामी होगी, कैसे कहूँगा कि मेरी बीवी …।"
"ठीक है, मैं समझ गया।"
"जिनके साथ बलात्कार होता है, पता नहीं वह महिला और उसके अभिवावकों पर क्या गुजरती होगी, जब वह कानूनी प्रक्रिया से गुजरते होंगे। कल बटाला को पेश किया जाना है ना?"
"हाँ, मुझे उम्मीद है रिमाण्ड मिल जायेगा और उसकी जमानत नहीं होगी। एम.पी . सावन्त की पत्नी भी सक्रिय है, वह बटाला की किसी कीमत पर जमानत नहीं होने देंगे।
मुझे उम्मीद है जब मैं जे.एन. को __________लपेटूंगा, तो पूरी लाठी मेरे हाथ होगी और कोई ताज्जुब नहीं कि कोई आन्दोलन खड़ा हो जाये।"
"तुम काम करते रहो।" रोमेश ने कहा।
सात बजे शंकर नागा रेड्डी उससे मिलने आया। रोमेश सोच रहा था कि वह शख्स अधेड़ आयु का होगा किन्तु शंकर एकदम जवान पट्ठा था। रंगत सांवली जरूर थी किन्तु व्यक्तित्व आकर्षक था। लम्बा छरहरा बदन और चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी थी।
"मुझे शंकर नागा रेड्डी कहते हैं।"
"हैल्लो !" रोमेश ने हाथ मिलाया और शंकर को बैठने का संकेत किया।शंकर बैठ गया।
फ्लैट का एक कमरा रोमेश का दफ्तर होता था। दायें बायें अलमारियों में कानून की किताबें भरी हुई थीं। मेज की टॉप पर इन्साफ की देवी का एक छोटा बुत रखा हुआ था, बायीं तरफ टाइपराइटर था।
"कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?"
"मेरा एक केस है, मैं वह केस आपको देना चाहता हूँ ? "
"केस क्या है ?"
"कत्ल का मुकदमा।"
"ओह, क्या आप मेरे बारे में कुछ जानकारी रखते हैं ?"
"जी हाँ, कुछ नहीं काफी जानकारी रखता हूँ। मसलन आप एक ईमानदार वकील हैं। किसी अपराधी का केस नहीं लड़ते। आप पहले केस को इन्वेस्टीगेट करके खुद पता करते हैं कि जिसकी आप पैरवी करने जा रहे हैं, वह निर्दोष है या नहीं।"
"बस-बस इतनी जानकारी पर्याप्त है। अब बताइये कि किसका मर्डर हुआ और किसने किया ?"
"मर्डर अभी नहीं हुआ और जब मर्डर हुआ ही नहीं, तो हत्यारा भी अभी कोई नहीं है।"
"क्या मतलब ?"
"पहले तो आप यह जान लीजिये कि मैं आपसे केस किस तरह का लड़वाना चाहताहूँ, मुझे मर्डर से पहले इस बात की गारंटी चाहिये कि मर्डर में जो भी अरेस्ट होगा,वह बरी होगा और यह गारंटी मुझे एक ही सूरत में मिल सकती है।"
"वह सूरत क्या है ?"
"यह कि मर्डर आप खुद करें।"
"व्हाट नॉनसेंस।" रोमेश उछल पड़ा, "तुम यहाँ एक वकील से बात करने आए हो या किसी पेशेवर कातिल से।"
"मैं जानता हूँ कि जब आप खुद किसी का कत्ल करेंगे, तो दुनिया की कोई अदालत आपको सजा नहीं दे पायेगी, यही एक गारन्टी है।"
"बस अब तुम जा सकते हो।"
"रास्ता मुझे मालूम है वकील साहब, लेकिन जाने से पहले मैं दो बातें और करूंगा !!
पहली बात तो यह कि मैं उस केस की आपको कुल मिला कर जो रकम दूँगा, वह पच्चीस लाख रुपया होगा।"
"प…पच्चीस लाख ! तुम बेवकूफ हो क्या, अरे किसी पेशेवर कातिल से मिलो , हद से हद तुम्हारा काम लाख दो लाख में हो जायेगा, फिर पच्चीस लाख।"
रोमेश को एकदम ध्यान आया कि सीमा ने इतनी ही रकम मांगी थी,
"प…पच्चीस लाख ही क्यों ?
"पच्चीस लाख क्यों ? अच्छा सवाल है। बिना शक कोई पेशेवर कातिल बहुत सस्ते में यह काम कर देगा, लेकिन उस हालत में देर-सवेर फंदा मेरे गले में ही आकर गिरेगा और आपके लिए मैंने यह रकम इसलिये लगाई है, क्यों कि मैं जानता हूँ, इससे कम में आप
शायद ऐसा डिफिकल्ट केस नहीं लेंगे।"
रोमेश ने उसे घूरकर देखा।
"दूसरी बात क्या थी ?"
"आपने यह तो पूछा ही नहीं, कत्ल किसका करना है। दूसरी बात यह है, हो सकता है कि कत्ल होने वाले का नाम सुनकर आप तैयार हो जायें, उसका नाम है जनार्दन
नागा रेड्डी। "
"ज…जनार्दन…?"
"हाँ वही, चीफ मिनिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी यानि जे.एन.। मैं जानता हूँ कि जब आप यह कत्ल करोगे, तो अदालत आपको रिहा भी करेगी और मुझ तक पुलिस कभी न पहुंच सकेगी।"
"नेवर, यह नहीं होगा, यह हो ही नहीं सकता।"
"यह रहा मेरा कार्ड, इसमें मेरा फोन नम्बर लिखा है। अगर तैयार हो, तो फोन कर देना, मैं आपको दस लाख एडवांस भिजवा दूँगा। बाकी काम होने के बाद।"
"अपना विजिटिंग कार्ड टेबिल पर रखकर शंकर नागा रेड्डी गुडबाय करता हुआ बाहर निकल गया।
रोमेश ने कार्ड उठाया और उसके टुकड़े-टुकड़े करके डस्टबिन में फेंक दिया।
"कैसे-कैसे लोग मेरे पास आने लगे हैं।"
अगले दिन रोमेश को पता चला कि पर्याप्त सबूतों के अभाव के कारण बटाला को जमानत हो गई, विजय उसकी रिमाण्ड नहीं ले सका। उसके आधे घण्टे बाद मायादास का फोन आया।
"देखा हमारा कमाल, वह अगली तारीख तक बरी भी हो जायेगा। तुम जैसे वकीलों की औकात क्या है, तुमसे ऊपर जज होता है साले ! अब हम उस दरोगा की वर्दी उतरायेंगे।
तू उसकी वर्दी बचाने के लिए पैरवी करना, जरूर करना और तब तुझे पता चलेगा कि मुकदमा तू भी हार सकता है। क्यों कि तू उसकी वर्दी नहीं बचा पायेगा, जे.एन. से टक्कर लेने का अंजाम तो मालूम होना ही चाहिये।"
रोमेश कुछ नहीं बोला। फोन कट गया।
जारी रहेगा.....
Kya plan banaya hai ye.....# 14
उस रात तेज बारिश हो रही थी, रोमेश बरसती घटाओं को देख रहा था। बिजली चमकती, बादल गरजते, वह बे-मौसम की बरसात थी। वह खिड़की पर खड़ा सोच रहा
था कि क्या सीमा अब कभी उसकी जिन्दगी में नहीं लौटेगी? उसकी दुनिया में यह अचानक कैसी आग लग गई ?ञवह शराब पीता रहा। जनार्दन नागा रेड्डी इस तबाही का एकमात्र जिम्मेदार था।
ऐसे लोगों के सामने कानून बेबस खड़ा होता है, कानून की किताब रद्दी का कागज बन जाती है। पुलिस ऐसे लोगों की रक्षक बनकर खड़ी हो जाती है, तो फिर कानून किसके लिए है? किसके लिए वकील लड़ता है? यहाँ तो जज भी बिकते हैं। ऐसे लोगों को सजा नहीं मिलती? क्यों? क्यों है यह विधान?
"आज मेरे साथ हुआ, कल विजय के साथ होगा। हो सकता है कि वैशाली के साथ भी वैसा ही हादसा हो? आने वाले कल में वह विजय की पत्नी है। मेरे और विजय के
करीब रहने वाले हर शख्स को खतरा है।"
उसे लगा, जैसे दूर खड़ी सीमा उसे बुला रही है। लेकिन वह जा नहीं पा रहा है। उसके पैरों में बेड़ियाँ पड़ी हैं और वह बेड़ियाँ एक ही सूरत से कट सकती है, पच्चीस लाख !
पच्चीस लाख !! पच्चीस लाख !!!
पच्चीस लाख मिल सकता है। शर्त सिर्फ एक ही है, जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल। कानून की आन भी यही कहती है कि ऐसे अपराधी को सजा मिलनी ही चाहिये ।
क्या फर्क पड़ता है, उसे फांसी पर जल्लाद लटकाए या वह खुद ? कानून की आन रखनेके लिए अगर वह जल्लाद बन भी जाता है, तो हर्ज क्या है? क्या पुलिस, बदमाशों को मुठभेड़ में नहीं मार गिराती ?
मैं यह कत्ल करूंगा, जनार्दन नागा रेड्डी अब तुझे कोई नहीं बचा सकता।
सुबह रोमेश डस्टबिन से विजि टिंग कार्ड के टुकड़े तलाश कर रहा था, संयोग से डस्टबिन साफ नहीं हुआ था और कार्ड के टुकड़े मिल गये। रोमेश उन टुकड़ों को जोड़कर फोन नम्बर उतारने लगा।
शंकर का फोन नम्बर अब उसके सामने था। उसने फोन पर नम्बर डायल करना शुरू कर दिया।
शंकर दस लाख लेकर आ गया। उसने ब्रीफकेस रोमेश की तरफ खिसका दिया।
"गिन लीजिये, दस लाख हैं।"
"मुझे यकीन है कि दस लाख ही होंगे।" रोमेश ने कहा और ब्रीफकेस उठा कर एक तरफ रख दिया ।
"साथ में मेरी ओर से बधाई।"
"बधाई किस बात की ?"
"कत्ल करने और उसके जुर्म में बरी होने के लिए। आप जैसे काबिल आदमी की इस देश में जरूरत ही क्या है, मैं आपको अमेरिका में स्टैब्लिश कर सकता हूँ।"
"वह मेरा पर्सनल मैटर है कि मैं कहाँ रहूंगा, अभी हम केस पर ही बात करेंगे। पहले मुझे यह बताओ कि तुम यह कत्ल क्यों करवाना चाहते हो और तुम्हारा बैकग्राउण्ड क्या है, क्या तुम उसके कोई नाते रिश्तेदार हो ?"
"नागा रेड्डी तो हजारों हो सकते हैं, फिलहाल मैं इस सवाल का जवाब नहीं दे पाऊंगा। हाँ, जब मुकदमा खत्म हो जायेगा, तब आप मुझसे इस सवाल का जवाब भी पा लेंगे।"
"तुमने यह भी कहा था कि कोई पेशेवर कातिल इस काम को करेगा, तो तुम पकड़े जाओगे।"
"हाँ, यह सही है। इसलिये मैं यह चाहता हूँ कि इस कत्ल को कोई पेशेवर न करे। आपको यह बात अच्छी तरह जाननी होगी कि कत्ल आपके ही हाथों होना हैं और बरी भी आपको होना है। यही दो बातें इस सौदे में हैं।"
"ठीक है, काम हो जायेगा।"
"मैं जानता हूँ, शत प्रतिशत हो जायेगा। एक बार फिर आपको मुबारकबाद देना चाहूँगा। मैं अखबार, रेडियो और टी .वी . पर यह खबर सुनने के लिए बेताब रहूँगा। जैसे ही यह खबर मुझे मिलेगी, मैं बाकी रकम लेकर आपके पास चला आऊँगा।"
दोनों ने हाथ मिलाया और शंकर लौट गया।
अब रोमेश ने एक नयी विचारधारा के तहत सोचना शुरू कर दिया।
"मुझे यह रकम बहुत जल्दी खत्म कर देनी चाहिये।" रोमेश ने घूंसा मेज पर मारते हुए कहा,
"यह मुकदमा सचमुच ऐतिहासिक होगा।"
कुछ देर बाद ही रोमेश कोर्ट पहुँचा। उसने अपनी मोटरसाइकिल सर्विस के लिए दे दी और चैम्बर में पहुंचते ही उसने आवश्यक कागजात देखे और कुछ फाइलें देखीं और फिर अपने केबिन में वैशाली को बुलाया।
"आज मैं तुम्हें एक विशेष दर्जा देना चाहता हूँ।" रोमेश ने कहा।
"क्या सर ?"
"आज के बाद यह जितने भी केस पेंडिंग पड़े हैं और जितनी भी पैरवी मैं कर रहा हूँ, वह सब तुम करोगी।"
"मगर...। "
"पहले मेरी बात पूरी सुनो। ध्यान से सुनो। गौर से सुनो। आज के बाद मैं इस
चैम्बर में नहीं आऊँगा, इसकी उत्तराधिकारी तुम हो। मैं पूरे पेपर साइन करके इसकी ऑनरशिप तुम्हें दे रहा हूं, क्यों कि मैं एक संगीन मुकदमे से दो चार होने जा रहा हूँ। एक ऐसा मुकदमा, जो कभी किसी वकील ने नहीं लड़ा होगा। यह मुकदमा अदालत से बाहर लड़ा जाना है। हाँ, इसका अन्त अदालत में ही होगा।"
"मैं कुछ समझी नहीं सर।"
"मैंने जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल कर देने का फैसला किया है, कातिल बनने के बाद मुझे इस चैम्बर में आने का हक नहीं रह जायेगा, मेरी वकालत की दुनिया का यह आखिरी मुकदमा होगा।"
"आप क्या कह रहे हैं?" वैशाली का दिल बैठने लगा।
"हाँ, मैं सच कह रहा हूँ। इसलिये ध्यान से सुनो, आज के बाद तुम मेरे फ्लैट पर भी कदम नहीं रखोगी। तुम्हें अपने जीवन में मेरी पहचान बनना है। यह बात विजय को भी समझा देना कि वह मुझसे दूर रहे। मैंने आज अपने घरेलू नौकर को भी हटा देना है।"
"सर, मैं आपके लिए कुछ मंगाऊं?"
"नहीं, अभी इतनी खुश्की नहीं आई कि पानी पीना पड़े। चैम्बर का चार्ज सम्भालो और लगन से अपने काम पर जुट जाओ। अगर तुम कभी सरकारी वकील भी बनो, तब
भी एक बात का ध्यान रखना कि कभी भी किसी निर्दोष को सजा न होने पाये। यह तुम्हारा उसूल रहेगा। अपने पति को इतना प्यार देना, जितना कभी किसी पत्नी ने न दिया हो। जीवन में सिर्फ आदर्शों का महत्व होता है, पैसे का नहीं होता। विजय भी मेरी तरह का शख्स है, कभी उसे चोट न पहुँचे। यह लो, ये वह फाइल है, जिसमें तुम्हें इस चैम्बर की ऑनरशिप दी जाती है।"
वैशाली की आंखें डबडबा आयीं। वह कुछ बोली नहीं।
रोमेश उसका कंधा थपथपाता हुआ बाहर निकल गया। जाते जाते उसने कहा,
"कभी मेरे घर की तरफ मत आना। यह मत सोचना कि मैं मानसिक रूप से अस्वस्थ हूँ। मैं ठीक हूँ, बिल्कुल ठीक। और मेरा फैसला भी ठीक ही है।" रोमेश बाहर निकल गया।
रोमेश ने काम शुरू कर दिया। सबसे पहले जे.एन. के बारे में जानकारियां प्राप्त करने का काम था।
उसकी पिछली जिन्दगी की जानकारी, उसकी दिनचर्या क्या है? कौन उसके करीब हैं? उसे क्या-क्या शौक हैं ?
रोमेश ने तीन दिन में ही काफी कुछ जानकारियां प्राप्त कर लीं। सबसे उल्लेखनीय जानकारी यह थी कि जनार्दन नागा रेड्डी की माया नाम की एक रखैल थी, जिसके लिए उसने एक फ्लैट बांद्रा में खरीदा हुआ था। माया के पास वह बिना नागा हर शनिवार की रात गुजरता था, चाहे कहीं हो, उस जगह अवश्य पहुंच जाता था। वह भी गोपनीय तरीके से।
उस समय उसके पास सरकारी गार्ड या पुलिस प्रोटेक्शन भी नहीं रहता था। उसके दो प्राइवेट गार्ड रहते थे, जो रात भर उस फ्लैट पर रहते थे।
जे.एन. यहाँ वी .आई.पी . गाड़ी से नहीं आता था बल्कि साधारण गाड़ी से आता था । यह उसकी प्राइवेट लाइफ का एक हिस्सा था। सियासत से पहले जे.एन. एक माफिया था, और उसने एक जेबकतरे से अपनी जिन्दगी शुरू की थी। वह दो बार सजा भी काट चुका था। किन्तु अब सरकारी तौर पर जे.एन. का कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं मिलता था।
इसके अतिरिक्त एक कोड का पता चला, फ़ोन पर यह कोड बोलने से सीधा जे.एन. ही कॉल सुनता था। यह कोड बहुत ही खास आदमी प्रयोग करते थे। यह कोड
माया भी प्रयोग करती थी। रोमेश के पास काफी जानकारियां थी।
एक जानकारी यह भी थी कि किसी आंदोलन के डर से जे.एन. की पार्टी के लोग ही उसे मुख्यमन्त्री पद से हटाने
के लिए अन्दर-अन्दर मुहिम छेड़े हुए हैं। वह जानते हैं कि सांवत मर्डर केस कभी भी रंग पकड़ सकता है।
अगर जे.एन. मुख्यमन्त्री बना रहता है, तो पार्टी की छवि खराब हो जायेगी। हो सकता था कि एक दो दिन में ही जे.एन. को मुख्यमन्त्री पद छोड़ना पड़े।
जे.एन. को केन्द्रीय मन्त्री के रूप में लिया जाना तय हो चुका था, किन्तु कुछ दिन उसे पार्टी ठंडे बस्ते में रखना चाहती थी।
इकत्तीस दिसम्बर की सुबह ही टी.वी. में यह खबर आ गयी थी कि जे.एन. मुख्यमन्त्री पद से हटा दिये गये हैं। समाचार यह भी था कि शीघ्र ही जे.एन. को केन्द्रीय मन्त्री पद मिल जायेगा। टी .वी . पर जे.एन. का इण्टरव्यू भी था। उसका यही कहना था कि पार्टी का जो कहना होगा, वह उसे स्वीकार है। चाहे वह मन्त्री न भी रहे, तब भी जनता की सेवा तो करता ही रहेगा ।
एक्स चीफ मिनिस्टर जे.एन. अब भी अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ति था।
इकत्तीस दिसम्बर की रात जश्न की रात होती है। नया साल शुरू होने वाला था।
रोमेश एक मन्दिर में गया, उसने देवी माँ के चरण की रज ली और प्रार्थना की, कि आने वाले साल में वह जिस काम से निकल रहा है, उसे सम्भव बना दे। वह जे.एन. को
कत्ल करने के लिए मन्नत मांग रहा था।
उसके बाद उसने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और मुम्बई की सड़कों पर निकल गया। एक डिपार्टमेंटल स्टोर के सामने उसने मोटरसाइकिल रोक दी। स्टोर में दाखिल हो गया, रेडीमेड गारमेंट्स के काउण्टर पर पहुँचा।
"वह जो बाहर शोकेस में काला ओवरकोट टंगा है, उसे देखकर मैं आपकी शॉप में चला आया हूँ।"
"अभी मंगाते हैं।" सेल्समैन ने कहा। शीघ्र ही काउण्टर पर ओवरकोट आ गया।
"क्या प्राइस है?"
"अभी आप पसन्द कर लीजिये, प्राइस भी लग जायेगी और क्या दें, पैंट शर्ट ?"
"इससे मैच करती एक काली पैंट।"
सेल्समैन ने कुछ काली पैंटे सामने रख दी और पैंटों की तारीफ करने लगा। रोमेश ने एक पैंट पसन्द की।
"काली शर्ट ?" रोमेश बोला।
"जी।" सेल्समैन ने सिर हिला या।
अब काउंटर पर काली शर्टों का नम्बर था। रोमेश ने उसमें से एक पसन्द की।
"एक काला स्कार्फ या मफलर होगा।" रोमेश बोला। मफलर भी आ गया।
"काले दस्ताने।"
"ज… जी !" सेल्समैन ने दस्ताने भी ला दिये,
"काले जुराब, काला चश्मा, काले जूते।"
"तुम आदमी समझदार हो, वैसे काले जूते मेरे पास हैं।" रोमेश ने अपने जूतों की तरफ इशारा किया।
"चश्मा इसी स्टोर के दूसरे काउण्टर पर है।" सेल्समैन बोला,
"यहीं मंगा दूँ ?"
चश्मे का सेल्समैन भी वहाँ आ गया। उसने कुछ चश्मे सामने रखे, रोमेश ने एक पसन्द कर लिया।
"अब एक काला फेल्ट हैट।"
"हूँ!"
सेल्समैन ने सीटी बजाने के अन्दाज में होंठ गोल किये, "मैं भी कितना अहमक हूँ, असली चीज तो भूल ही गया था। काला हैट !"
काला हैट भी आ गया।
"क्यों साहब किसी फैंसी शो में जाना है क्या ?" सेल्समैन ने पूछा।
"जरा मैं यह सब पहनकर देख लूं, फिर बताऊंगा।"
सेल्समैन ने एक केबिन की तरफ इशारा किया। रोमेश सारा सामान लेकर उसमें चला गया।
"अपुन को लगता है, कोई फिल्म का आदमी है, उसके वास्ते ड्रेस ले रहा होगा , नहीं तो मुम्बई के अन्दर कोट कौन पहनेगा ?"
"मेरे को लगता है फैंसी शो होगा।"
दोनों किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाये, तभी रोमेश सारी कॉ स्ट्यू म पहनकर बाहर आया।
"हैलो जेंटलमैन !" रोमेश बोला।
"ऐ बड़ा जमता है यार।" एक सेल्समैन ने दूसरे से कहा,
"फिल्म का विलेन लगता है कि नहीं।"
"अब एक रसीद बनाना, बिल पर हमारा नाम लिखो , रोमेश सक्सेना।"
"उसकी कोई जरूरत नहीं साहब, बिना नाम के बिल कट जायेगा।"
"नहीं , नाम जरूर।"
"ठीक है आपकी मर्ज़ी, लिख देंगे नाम भी।"
"रोमेश सक्सेना ।" रोमेश ने याद दिलाया।
बिल काटने के बाद रोमेश ने पेमेंट दी और फिर बोला, "हाँ तो तुम पूछ रहे थे कि साहब किसी फैन्सी शो में जाना है क्या ?"
"वही तो।" सेल्समैन बोला,
"हम तो वैसे ही आइडिया मार रहे थे।"
"मैं बताता हूँ । इन कपड़ों को पहनकर मुझे एक आदमी का खून करना है।"
"ख… खून।" सेल्समैन चौंका।
"हाँ , खून !"
जारी रहेगा.....
khud ko paagal sabit karke baccha jaa sakta hai....# 15
"मैं समझ गया साहब, अपना दूसरा वाला सेल्समैन ठीक बोलता था, आप फिल्म का आदमी है।
साहब वैसे एक्टिंग मैं भी अच्छी कर लेता हूँ, दिखाऊं।"
"नहीं , तुम गलत समझ रहे हो। मैं कोई फ़िल्मी आदमी नहीं हूँ। मुझे सचमुच इस लिबास को पहनकर किसी का कत्ल करना है और मैंने बिल में अपना नाम-पता इसलिये लिखवाया है, क्यों कि बिल की डुप्लीकेट कॉपी तुम्हारे पास रहेगी।
यह कपड़े पुलिस बरामद करेगी, इन पर खून लगा होगा, तहकीकात करते-करते पुलिस यहाँ तक पहुंचेगी, क्यों कि इन कपड़ों की खरीददारी का यह बिल उस वक्त ओवरकोट की जेब में होगा।"
सेल्समन हैरत से रोमेश को देख रहा था।
"फिर… फिर क्या होगा साहब?" उसने हकलाए स्वर में पूछा।
"पुलिस यहाँ पहुंचेगी, बिल देखने के बाद तुम्हें याद आ जायेगा कि यहाँ इन कपड़ों को मैं खरीदने आया था। तुम उन्हें बताओगे कि मैंने कपड़ों को पहनकर खून करने के लिए कहा था और इसीलिये यह कपड़े खरीदे थे।"
"ठीक है फिर।"
"फिर यह होगा कि पुलिस तुम्हें गवाह बनायेगी।" रोमेश ने उसका कंधा थपथपा कर कहा,
"अदालत में तुम्हें पेश किया जायेगा, मैं वहाँ कटघरे में मुलजिम बनकर खड़ा होऊंगा। मुझे देखते ही तुम चीख-चीखकर कहना, योर ऑनर यही वह शख्स है, जो 31 दिसम्बर को हमारी दुकान पर आया और यह कपड़े जो सामने रखे हैं, इसने खून करने के लिए खरीदे थे। मुझसे कहा था।" कुछ रुककर रोमेश बोला,
"क्या कहा था ?"
"ऐं !" सेल्समैन जैसे सोते से जागा। "क्या कहा था ?"
"ख… खून करूंगा, कपड़े पहनकर।"
"शाबास।" रोमेश ने भुगतान किया और सेल्समैन को स्तब्ध छोड़कर बाहर निकल गया।
"साला क्या सस्पेंस वाली स्टोरी सुना गया।" रोमेश के जाने के बाद सेल्समैन को जैसे होश आया,
"फिल्म सुपर हिट हो के रहेगा, जब मुझको सांप सूंघ गया, तो पब्लिक का क्या होगा ? क्या स्टोरी है यार, खून करने वाला गवाह भी पहले खुद तैयार करता फिर रहाहै। पुलिस की पूरी मदद करता है।"
"अपुन को पता था, वह फिल्म का आदमी है, तेरे को काम मांगना था यार चंदूलाल।"
"मैं जरा डायलॉग ठीक से याद कर लूं।" चंदू एक्शन में आया,
"देख सामने अदालत… कुर्सी पर बैठा जज, कैमरा इधर से टर्न हो रहा है, कोर्ट का पूरा सीन दिखाता है और फिर मुझ पर ठहरता है… बोल एक्शन।"
"एक्शन!" दूसरे सेल्समैन ने कहा।
"योर ऑनर।" चन्दू ने शॉट बनाया,
"यह शख्स जो कटघरे में खड़ा है, इसका नाम है रोमेश सक्सेना, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल इसी ने किया है और यह कपड़े, यह कपड़े योर ऑनर।"
"कट।" दूसरे सेल्समैन ने सीन काट दिया।
"क्या हो रहा है यह सब?" अचानक डिपार्टमेन्टल स्टोर का मालिक राउण्ड पर आगया।
दोनों सेल्समैन सकपका कर बगलें झांकने लगे। फिर उन्होंने धीरे-धीरे सारी बात मालिक को बता दी। मालिक भी जोर से हँसने लगा। साला हमारा दुकान का पब्लिसिटी होयेंगा फ्री में। सेल्समैन भी मालिक के साथ हँसने लगे। बारह बजते ही पटाखे छूटने लगे। नया साल शुरू हो गया था, आतिशबाजी और पटाखों के साथ युवक-युवतियों के झुंड सड़कों पर आ गये थे, रोमेश ने जू बीच से मोटर साइकिल स्टार्ट की, वह अब भी उसी गेटअप में था। एक टेलीफोन बूथ के सामने उसने मोटर साइकिल रोकी। बूथ में घुस गया और जनार्दन नागा रेड्डी का फोन नम्बर डायल किया। फोन बजते ही उसने कोड बोला। कुछ क्षण बाद ही जे.एन. फोन पर था।
"हैलो, जे.एन. स्पीकिंग ! कौन बोल रहा है ?"
"नया साल मुबारक।" "तुमको भी मुबारक।" जे.एन. ने उत्तर दिया,
"आवाज पहचानने में नहीं आ रही है, कौन हो भई ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल।"
"क्या बोला ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल।" दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर जे.एन. बोला,
"मजाक छोड़ो भाई, अभी बहुत से लोगों की बधाई आ रही है, उनका भी तो फोन सुनना है।"
"मैं ज्यादा वक्त नहीं लूंगा एक्स चीफ मिनिस्टर ! मैं यकीनी तौर पर तुम्हारा होने वाला कातिल ही बोल रहा हूँ। जल्दी ही मैं तुम्हें तुम्हारी मौत की तारीख भी बता दूँगा। अभी मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए पोशाक खरीदी है, बस यही इत्तला देनी थी।" उसके बाद रोमेश ने फोन काट दिया। उसके बाद वह तेजी से अपने फ्लैट की तरफ रवाना हो गया। नया साल शुरू हो गया था।
रोमेश अब अपने फ्लैट पर तन्हा रहता था, वह अपने परिचितों में से किसी का फोन नहीं सुनता था। सुबह ही निकल जाता था और देर रात तक घर लौटता था। रोमेश ने फिर वही लिबास पहना और मोटर साइकिल लेकर सड़कों पर घूमने लगा। जहाँ वह रुकता, लोग हैरत से देखते, रास्ते में उससे परिचित भी टकरा जाते थे।
मुम्बई में दिन तो गरम होता ही है, उस पर कोई ओवरकोट पहनकर निकले तो अजूबा ही होगा। रोमेश अजूबा ही बनता जा रहा था। दो जनवरी को वह विक्टोरिया टर्मिनल पर घूम रहा था। घूमते-घूमते वह फुटपाथ पर चाकू छुरी बेचने वाले की एक दुकान पर रुका।
"ले लो भई, ले लो। रामपुरी से लेकर छप्पनछुरी तक सब माल मिलता है।" चाकू छुरी बेचने वाला आवाज लगा रहा था।
"ऐ !" रोमेश ने उसे आवाज़ दी।
"आओ साहब, बोलो क्या मांगता? किचन की छुरी या चाकू, छोटा बड़ा सब मिलेगा।"
"रामपुरी बड़ा, तेरह इंच से ऊपर।"
"समझा साहब।" छुरी बेचने वाले ने पास खड़े एक लड़के को बुलाया,
"करीम भाई के जाने का, बोलो राजा ने बढ़िया वाला रामपुरी मंगाया, भाग के जाना।" लड़का भागकर गया और पांच मिनट से पहले आ गया, उसने एक थैला छुरी बेचने वाले को थमा दिया।
"बड़ा चाकू, असली रामपुरी ! यह देखो, पसन्द कर लो।" रोमेश ने एक रामपुरी पसन्द किया।
"यह ठीक है, कितने का है ?"
"पच्चहत्तर का साहब ! सेवन्टी फाइव ओनली ! कम ज्यादा कुछ नहीं , एक दाम।"
"ठीक है, एक बिल बनाओ। उस पर हमारा नाम पता लिखो, रोमेश सक्सेना।"
"अरे साहब, हम फुटपाथ का धन्धा करने वाला आदमी। अपुन के पास बिल कहाँ साब, बिल तो बड़ी दुकान पर बनता है।"
"देखो राजा, राजा है ना तुम्हारा नाम।"
"बरोबर साहब।"
"हम तुमको सौ रुपया देगा, चाहे सादा कागज पर डुप्लीकेट बनाओ, कार्बन लगा के। कार्बन कॉपी तुम अपने पास रखना, उस पर लिखो राजा फुटपाथ वाले ने सेवण्टी फाईव में चाकू रोमेश को आज की तारीख में बेचा। मैं पच्चीस रुपया फालतू दूंगा।"
"ये बात है साहब, तो हम बना देगा। मगर कोई लफड़ा तो नहीं होगा साहब।"
"नहीं ।" अब राजा कागज और कार्बन ले आया। जो रोमेश सक्सेना बोलता रहा , वह लिखता रहा , फिर कार्बन कॉपी अपने पास रखकर बिल रोमेश को दे दिया।
"एक बात समझ में नहीं आया साहब।" सौ का नोट लेने के बाद राजा बोला।
"क्या ?"
"कच्चा बिल लेने के लिए आपने पच्चीस रुपया खर्च किया, ऐसा तो आप खुद बना सकता था ।"
"हाँ , मगर उस सूरत में गवाही देने कौन आता।"
"गवाही, कैसा गवाही ?"
"देखो राजा, तुम्हारा यह रामपुरी बहुत खुशनसीब है। क्यों कि इससे एक वी.आई.पी. का मर्डर होने वाला है।"
"क्यों मजाक करता साहब, मेरे को डराता है क्या ? इधर गुण्डे-मवाली लोग भी चाकू खरीदते हैं, लेकिन इस तरह मर्डर की बात कोई नहीं बोलता।"
"वह गुण्डे-मवाली होंगे, जो कत्ल की वारदात करके छुपाते हैं। लेकिन मैं उस तरह का गुण्डा नहीं हूँ, वैसे भी मुझे बस एक ही खून करना है और वह खून इस रामपुरी से होगा।" रोमेश ने रामपुरी खोलते हुए कहा,
"इसी लिये मैंने बिल लिखवाया है, रामपुरी बरामद करने के साथ पुलिस को यह बिल भी मिल जायेगा। तब उसे पता चलेगा कि रामपुरी तुम्हारे यहाँ से खरीदा गया।" राजा के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं।
"अदा लत में यह रामपुरी तुझे दिखाया जायेगा, उस वक्त मैं कटघरे में खड़ा रहूँगा। तुम कहोगे, हाँ योर ऑनर, मैं इसे जानता हूँ, यह मशहूर वकील रोमेश सक्सेना है।" आसपास कुछ लोग जमा हो गये थे।
"अरे यह तो मशहूर वकील रोमेश है।" जमा होते लोगों में से कोई बोला। राजा के तो छक्के छूट रहे थे।
"मेरे को पसीना मत दिलाओ साहब, कभी किसी वकील ने किसी का कत्ल किया है क्या? यह तो फिल्म की स्टोरी है।"
"नहीं, मैं तुम्हें अपने जुर्म का गवाह बनाने आया हूँ। दुकान छोड़कर भागेगा, तब भी पुलिस तुझे तलाश कर लेगी।"
"पर मैंने किया क्या है ?"
"तूने वह चाकू मुझे बेचा है, जिससे मैं खून करूंगा। लेकिन तुझे कोई पनिशमेन्ट नहीं मिलेगा, तू सिर्फ गवाह बनकर अदालत में आयेगा।"
"मुझे रामपुरी वापिस दे दो माई बाप, सौ के डेढ़ सौ ले लो।"
राजा गिड़गिड़ाने लगा। "नहीं, इससे ही मुझे खून करना है।" रोमेश ने जोर से कहा,
"तुम सब लोग भी सुन लो, मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना इस रामपुरी से कत्ल करने जा रहा हूँ।"
"पागल हो गया, रास्ता छोड़ो भाई।" भीड़ में से कोई बोला।
"ओ आजू बाजू हो जाओ, कहीं तुममें से ही यह किसी का खून न कर दे।" रोमेश ने चाकू बन्द करके जेब में रखा, मोटर साइकिल पर किक लगा दी और फर्राटे के साथ आगे बढ़ गया। शाम ढल रही थी और फिर मुम्बई रात की बाहों में झिलमिलाने लगी। रोमेश घूमता रहा।
जारी रहेगा…
Romi bole to Vinod Khanna lag raha hai ab....# 16
फिर एक टेलीफोन बूथ से रोमेश ने जे.एन. को फ़ोन लगाया। कोड दोहराते ही उसका सीधे जे.एन.से सम्पर्क हो गया।
"हैलो !” जे.एन. की आवाज़ आयी, "कौन बोल रहे हो ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल।" रोमेश ने हल्का-सा कहकहा लगाते हुए कहा।
"तू जो कोई भी है, सामने आ। मर्द का बच्चा है, तो सामने आकर दिखा। तब मैं तुझे बताऊंगा कि कत्ल कैसे होता है? फोन पर मुझे डराता है साले।"
"आज मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए चाकू भी खरीद लिया है। अब तुम्हें जल्द ही तारीख भी पता लग जायेगी। मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैं तुम्हें किस दिन मारने वाला हूँ । तुम्हारी मौत के दिन बहुत करीब आते जा रहे हैं मिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी, ठहरो ! शायद तुमने यह जानने का भी प्रबन्ध किया है कि फोन कहाँ से आता है? मैं तुम्हें खुद बता देता हूँ, मैं दादर स्टेशन के बाहर टेलीफोन बूथ से बोल रहा हूँ, अब करो अपनी पावर का इस्तेमाल और पकड़ लो मुझे।" रोमेश ने कहकहा लगाते हुए फोन काट दिया।
फिर वह बड़े आराम से बूथ से बाहर निकला और घर चल पड़ा। उसने अपना काम कर दिया था। उसके बाद सारी रात वह सुकून से सोता रहा था। उसकी सेवा के लिए फ्लैट में न तो पत्नी थी न नौकर, नौकर को निकालने का उसे रंज अवश्य था। वह एक वफादार नौकर था। पता नहीं उसे कोई रोजगार मिला भी होगा या नहीं ? जाते-जाते वह यही कह रहा था कि वह गाँव चला जायेगा। रोमेश ने एक शिकायती पत्र पुलिस कमिश्नर के नाम टाइप किया, जिसमें उसने जे.एन. को अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार के लिए आरोपित किया था और यह भी शिकायत की थी कि बान्द्रा पुलिस ने उसकी शिकायत पर किस तरह अमल किया था। उसकी प्रतिलिपि उसने एक अखबार को भी प्रसारित कर दी। उसे मालूम था कि अखबार वाले यह समाचार तब तक नहीं छापेंगे, जब तक जे.एन. पर मुकदमा कायम नहीं हो जाता।
जे. एन. भले ही चीफ मिनिस्टर न रहा हो , लेकिन वह शक्तिशाली लीडर तो था ही और उसे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में लिए जाने की चर्चा गरम थी। परन्तु एक बात रोमेश अच्छी तरह जानता था कि जनार्दन नागा रेड्डी की हत्या के बाद यह कहानी अवश्य प्रकाशित होगी।
वह यह भी जानता था कि पुलिस कमिश्नर मुकदमा कायम नहीं होने देगा और मुकदमा रोमेश कायम करना भी नहीं चाहता था।
तीन जनवरी ! शनिवार का दिन था। रोमेश उस दिन एक ऐसी दुकान पर रुका, जहाँ बर्तनों पर नाम गोदे जाते थे या नक्काशी होती थी। जिस समय रोमेश दुकान में प्रविष्ट हुआ, उसकी नजर वैशाली पर पड़ गई। वह ठिठका। परन्तु वैशाली ने भी उसे देख लिया था।
"नमस्ते सर आइए।" वैशाली ने रोमेश का वेलकम किया। वैशाली एक प्रेशर कुकर पर कुछ लिखवा रही थी । कुछ और बर्तन भी थे, हर किसी पर वी.वी. लिखा जा रहा था।
"यानि विजय-वैशाली, यही हुआ न वी.वी. का मतलब?" रोमेश ने पूछा।
"जी ।" वैशाली शरमा गयी।
"मुबारक हो, शादी कब हो रही है ?"
"आपको पता चल ही जायेगा, अभी तो एंगेजमेन्ट हो रही है सर। आपने तो आना-जाना ही बन्द कर दिया, फोन भी नहीं सुनते।" कुछ कहते-कहते वैशाली रुक गई। उसे महसूस हुआ कि वह पब्लिक प्लेस पर खड़ी है,
"सॉरी सर, मैं तो शिकायत लेकर बैठ गई। आपका दुकान में कैसे आना हुआ ? कुछ काम था?"
"हाँ ।"
"अरे पहले साहब का काम देखो, मेरा बाद में कर लेना।" वैशाली ने नाम गोदने वाले से कहा। नाम गोदने वाला एक दिल बना कर उसके बीच में वी .वी . लिख रहा था, वह बहुत खूबसूरत नक्काशी कर रहा था।
"हाँ साहब।" उसने काम रोककर रोमेश की तरफ देखा। रोमेश ने जेब से रामपुरी निकाला और उसका फल खोल डाला। रामपुरी देखकर पहले तो नाम गोदने वाला सकपका गया।
"क्या नाम है तुम्हारा?" रोमेश ने पूछा।
"कासिम खान, साहब।" वह बोला।
"इस पर लिखना है।" रोमेश के कुछ कहने से पहले ही वैशाली बोल पड़ी,
"रोमेश सक्सेना ! सर का नाम रोमेश सक्सेना है, चलो मैं स्पेलिंग बताती हूँ।"
"हाँ मेमसाहब, बताओ।" उसने कागज पेन सम्भाल लिया। वैशाली उस नाम की स्पेलिंग बताने लगी। स्पेलिंग लिखने के बाद उसने वैशाली को दिखा दी।
"हाँ ठीक है, यही है।" "किधर लिखूं साहब ?"
"ठहरो, इस पर दो नाम लिखे जायेंगे। दूसरा नाम भी लिखो।"
"द…दो नाम !" कासिम चौंका। वैशाली भी हैरानी से कुछ परेशानी के आलम में रोमेश को देखने लगी। पहले तो वह रामपुरी देखकर ही चौंक पड़ी थी।
"हाँ , दूसरा नाम है जना र्दन नागा रेड्डी ! ब्रैकेट में जे.एन. लिखो।" रोमेश ने खुद कागज पर वह नाम लिख डाला। यह नाम सुनकर वैशाली की धड़कनें भी तेज हो गयीं।
"आप यह क्या …?" वैशाली ने दबी जुबान में कुछ कहना चाहा, परन्तु रोमेश ने तुरन्त उसे रोक दिया।
"प्लीज मुझे मेरा काम करने दो।" फिर रोमेश, कासिम से मुखातिब हुआ,
"यह जो दूसरा नाम है, वह चाकू के ब्लेड पर लिखा जायेगा। चाकू की मूठ पर मेरा नाम । ठीक है? समझ में आया या नहीं ?"
"बरोबर आया साहब ! पण अपुन को यह तो बताइए साहब, इन दो नामों में मिस्टर कौन है और मिसेज कौन ?" कासिम ने शरारतपूर्ण अन्दाज में कहा।
"इसमें न तो कोई मिस्टर है और न मिसेज, इसमें एक नाम मकतूल का है और दूसरा कातिल का। जिसका नाम चाकू के फल पर लिखा जा रहा है, वह मकतूल का नाम है यानि कि मरने वाले का। और जिसका नाम मूठ पर है, वह कातिल का नाम है, यानि मारने वाले का।"
"ज…जी।" वह झोंक में बोला और फिर उछल पड़ा, "जी क्या कहा, मकतूल और कातिल?"
"हाँ, इस चाकू से मैं जे.एन. का कत्ल करने वाला हूँ, अखबार में पढ़ लेना।" कासिम खां हैरत से मुंह फाड़े रोमेश को देखने लगा।
"घबराओ नहीं, मैं तुम्हारा कत्ल करने नहीं जा रहा हूँ, अब जरा यह नाम फटा फट लिख दो।" कासिम खान ने जल्दी-जल्दी दोनों नाम लिखे और फिर चाकू रोमेश को थमा दिया। रोमेश ने पेमेन्ट से पहले बिल बनाने के लिए कहा।
"बिल!" चौंका कासिम।
"हाँ भई ! मैं कोई दो नम्बर का आदमी नहीं हूँ, सब कुछ एकाउण्ट में लिखा जाता है। बिल पर मेरा नाम लिखना न भूलना।"
"जल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू।" मन ही मन बड़बड़ा ते हुए कासिम ने बिल बना कर उसे दे दिया और उस पर नाम भी लिख दिया,
"लीजिये।" रोमेश ने पेमेंट करना चाहा, तो वैशाली बोली,
"मैं कर दूँगी।"
"नहीं, यह खाता मेरा अपना है।" रोमेश ने पेमेंट देते हुए कहा,
"हाँ तो कासिम खान, अब जरा ख़ुदा को हाजिर नाजिर जानकर एक बात और सुन लीजिये।"
"ज…जी फरमाइए।"
"आपको जल्दी ही कोर्ट में गवाही के लिए तलब किया जायेगा। कटघरे में मैं खड़ा होऊंगा, क्यों कि मैंने इस चाकू से जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल किया होगा। उस वक्त आपको खुद को हाजिर नाजिर जानकर कहना है, हुजूर यही वह आदमी है, जो मेरी दुकान पर इसी चाकू पर नाम गुदवाने आया था और इसने कहा था कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल इसी चाकू से करेगा, इस पर मैंने ही दोनों नाम लिखे थे हुजूर।" इतना कहकर रोमेश मुड़ा और फिर वैशाली की तरफ घूमा,
"किसी वजह से अगर मैं शादी में शरीक न हो सका, तो बुरा मत मानना। मेरी तरफ से एडवांस में बधाई ! अच्छा गुडबाय।"
उसने हैट उठा कर हल्के से सिर झुकाया। फिर हैट सिर पर रखी और दुकान से बाहर निकल आया। एक बार फिर उसकी मोटर साइकिल मुम्बई की सड़कों पर घूम रही थी। रात के ग्यारह बजे उसने टेलीफोन बूथ से फिर एक नम्बर डायल किया। इस बार फोन पर दूसरी तरफ से किसी नारी का स्वर सुनाई दिया ।
"हैल्लो , कौन मांगता ?"
"माया।" रोमेश ने मुस्करा कर कहा।
"हाँ , मैं माया बोलती।"
"जे.एन. को फोन दो, बोलो कि खास आदमी का फोन है।"
"मगर आप हैं कौन ?"
"सुअर की बच्ची, मैं कहता हूँ जे.एन. को फोन दे, वह भारी मुसीबत में पड़ने वाला है।"
"कौन बोलता ?" इस बार जे.एन. का भारी स्वर सुनाई दिया। उसके स्वर से ही पता चल जाता था कि वह नशे में है, रोमेश ने उसकी आवाज पहचानकर हल्का सा कहकहा लगाया।
"नहीं पहचाना, वही तुम्हारा होने वाला कातिल।"
"सुअर के बच्चे, तू यहाँ भी मर गया। मैं तुझे गोली मार दूँगा, तू हैं कौन हरामजादे ? तेरी इतनी हिम्मत, मैं तेरी बोटी-बोटी नोंचकर कुत्तों को खिला दूँगा।"
"अगर मैं तुम्हारे हाथ आ गया, तो तुम ऐसा ही करोगे। क्यों कि तुमने पहले भी कईयों के साथ ऐसा ही सलूक किया होगा। सुन मेरे प्यारे मकतूल, मैं अब तुझे तेरी मौत की तारीख बताना चाहता हूँ। दस जनवरी की रात तेरी जिन्दगी की आखिरी रात होगी। मैं तुझे दस जनवरी की रात सरेआम कत्ल कर दूँगा।"
"सरेआम ! मैं समझा नहीं ।"
"कुल सात दिन बाकी रह गये हैं तेरी जिन्दगी के। ऐश कर ले। यह घड़ी फिर नहीं आयेगी।"
इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। सुबह-सुबह विजय उसके फ्लैट पर आ धमका।
"कहिये कैसे आना हुआ इंस्पेक्टर साहब ?"
"कुछ दिन से तो आपको भी फुर्सत नहीं मिल रही थी और कुछ हम भी व्यस्त थे। इसलिये चंद दिनों से आपकी हमारी मुलाकात नहीं हो पा रही थी और आजकल टेली फोन डिपार्टमेंट भी कुछ नाकारा हो गया लगता है, आपका फोन मिलता ही नहीं।"
"शायद आपको पता ही होगा कि मैं फ़िलहाल न तो किसी से मिलने के मूड में हूँ, न किसी की कॉल सुनना चाहता हूँ।"
"कब तक? " विजय ने पूछा।
"ग्यारह जनवरी के बाद सब रूटीन में आ जायेगा।"
"और, यानि दस जनवरी को तो आपकी मैरिज एनिवर्सरी है। क्या भाभी लौट रही हैं?"
"नहीं, अपनी शादी की यह सालगिरह मैं कुछ दूसरे ही अंदाज में मनाने जा रहा हूँ।"
"वह किस तरह, जरा हम भी तो सुनें।"
"इंस्पेक्टर विजय, तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं जे.एन. का कत्ल करने जा रहा हूँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि वैशाली ने तुम्हें न बताया हो। हाँ, उसने डेट नहीं बताई होगी।
“मैं जे.एन. का कत्ल 10 जनवरी की रात करूंगा, ठीक उस वक्त जब मैंने सुहागरात मनाई थी।"
"ओह, तो शहर में जो चर्चायें हो रही है कि एक वकील पागल हो गया है, वह कहाँ तक ठीक है?"
"पागल मैं नहीं, पागल तो जे.एन. होगा, दस तारीख की रात तक। वह जहाँ भी रहेगा, मैं भी वहीं उसे फोन करता रहूँगा और वह यह सोचकर पागल हो जायेगा कि दुनिया के किसी भी कोने में वह सुरक्षित नहीं है। फिर दस जनवरी की रात मैं उसे जहाँ ले जाना चाहूँगा, वह वहीं पहुंचेगा और मैं उसका कत्ल कर दूँगा। मेरा यह काम खत्म होने के बाद पुलिस का काम शुरू होना है, इसलिए कहता हूँ दोस्त कि 11 जनवरी को यहाँ आना, यहाँ सब ठीक मिलेगा।"
"जहाँ तक पुलिस की तरफ से आने का प्रश्न है, मैं पहले भी आ सकता हूँ । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं इतना बता दूँ कि जे.एन. ने रिपोर्ट दर्ज करा दी है, उसने कमिश्नर से सीधा सम्पर्क किया है और पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से मुझे दो काम सौंपे गये हैं। एक तो मुझे होने वाले कातिल से जे.एन. की हिफाजत करनी है, दूसरे उस होने वाले कातिल का पता लगा कर उसे सलाखों के पीछे पहुँचाना है।"
"वंडरफुल यह तो तुम्हारी बहुत बड़ी तरक्की हुई। सावंत के हत्यारे को पकड़ तो न सके, उल्टे उसकी हिफाजत करने चले हो।"
"यह कानूनी प्रक्रिया है, ऐसा नहीं है कि मैं जे.एन. के खिलाफ सबूत नहीं जुटा रहा हूँ और मैंने यह चैप्टर क्लोज कर दिया है, लेकिन यह मेरी सिर्फ डिपार्टमेंटल ड्यूटी है, किसी कातिल को इस तरह कत्ल करने की छूट पुलिस नहीं देती, चाहे वह डाकू ही क्यों न हो। जे.एन. पर वैसे भी कोई जिन्दा या मुर्दा का इनाम नहीं है और न ही वह वांटेड है, अभी भी वह वी .आई.पी . ही है। "
"ठीक है, तो तुम अपना कर्तव्य निभाओ, अगर तुम्हारा इरादा मुझे गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुचाने का है, तो शायद तुम यह भूल रहे हो कि मैं कानून का ज्ञाता भी हूँ। किसी को धमकी देने के जुर्म में तुम मुझे कितनी देर अन्दर रख सकोगे, यह तुम खुद जान सकते हो।"
"रोमेश प्लीज, मेरी बात मानो।" विजय का अन्दाज बदल गया,
"मैं जानता हूँ कि तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, क्यों कि तुम तो खुद कानून के रक्षक हो, आदर्श वकील हो। फिर यह सब पागलपन वाली हरकतें कहाँ तक अच्छी लगती हैं। देखो, मैं यकीन से कहता हूँ कि जे.एन. एक दिन पकड़ा जायेगा और फिर उसे कानून सजा देगा। "
"मर गया तुम्हारा वह कानून जो उसे सजा दे सकता है। अरे तुम उसके चमचे बटाला को ही सजा करके दिखा दो, तो जानूं। विजय मुझे नसीहत देने की कौशिश मत करो, मैं जो कर रहा हूँ, ठीक कर रहा हूँ। जे.एन. के मामले में एक बात ध्यान से सुनो विजय। कानून और कानून की किताबें भूल जाओ, अपनी यह वर्दी भी भूल जाओ। अब जे.एन. का मुकदमा मेरी अदालत में है, इस अदालत का ज्यूरी भी मैं हूँ और जज भी मैं हूँ और जल्लाद भी मैं हूँ। अब तुम जा सकते हो।"
"भगवान तुम्हें सबुद्धि दे।" विजय सिर झटककर बाहर निकल गया।
जारी रहेगा….✍