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Romance Three Idiot's

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
Update - 15
━━━━━━━━━━━━━━

"अब तो घंटा नहीं धोएगा अपन।" शालू के सामने अपनी इज्ज़त का कचरा होते देख मोहन गुस्से में चीख ही पड़ा____"तेरे को जो उखाड़ना है उखाड़ ले अपन का।"

मोहन की बात सुन कर जगन अभी उस पर झपट ही पड़ने वाला था कि संपत ने पकड़ लिया उसे। उधर इन तीनों का ये बवाल देख शालू बुरी तरह घबरा गई थी। पहले तो उसे हंसी आ रही थी तीनों की बातें सुन कर किंतु अब जब उसने देखा कि तीनों लड़ ही पड़ेंगे तो उसकी भी सांसें अटक गईं थी। संपत ने ऐन मौके पर माहौल की नज़ाकत को समझ लिया और उसने लड़ाई होने से बचा लिया। उसने नर्मी से समझा कर मोहन को बर्तन धोने के लिए मनाया और फिर वो जगन को ले दूर जा कर बैठ गया। उन दोनों के जाते ही मोहन ने एक नज़र शालू को देखा और फिर जल्दी जल्दी कनस्तर को मांजने लगा।



अब आगे....


"मालकिन मैं जा कर देखूं क्या उन लोगों को?" मंगू ने प्रीतो की तरफ देखते हुए कहा____"कहीं ऐसा न हो कि वो तीनों आपस में झगड़ा करने लगें। कमला की बेटी भी वहीं है, कहीं वो लोग उसको परेशान न करने लगें।"

"हां जा कर देखो तो।" प्रीतो ने कुछ सोचते हुए कहा____"वो दोनों भी अभी तक नहीं आए। पता नहीं क्या करने लगे हैं वो वहां पर?"

प्रीतो का इतना कहना था कि मंगू बंदूक से छूटी गोली की तरह ट्यूब वेल की तरफ भाग चला। पहले तो वो इसी सोच में डूबा हुआ था कि मोहन जाने कैसी कैसी हरकतें कर रहा होगा शालू के साथ और अब जब जगन और संपत भी लौट कर न आए तो उसकी बेचैनी बढ़ गई थी। ख़ैर जल्दी ही वो ट्यूब वेल के पास पहुंच गया। उसने देखा जगन और संपत आराम से एक जगह बैठे हुए थे जबकि मोहन और शालू बर्तन धो रहे थे। ये देख कर मंगू को गुस्सा भी आया और हैरानी भी हुई। हैरानी इस लिए कि हर दिन की अपेक्षा आज मोहन ने कुछ ज़्यादा ही समय लगा दिया था बर्तनों को धोने में। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी। उसने उसे बड़े ध्यान से देखा। शालू मोहन द्वारा मांजे हुए एक छोटे से कनस्तर को धोने में व्यस्त थी। उसके चेहरे पर उसे ऐसा बिल्कुल भी नज़र ना आया जिससे ये लगे कि वो किसी परेशानी में है।

"क्यों रे मोहन, तुमने आज इतना समय क्यों लगा दिया बर्तन धोने में?" मंगू मोहन के पास आ कर बोल पड़ा____"मालकिन कब से इंतज़ार कर रहीं हैं बर्तनों का।"

"अबे अपन लोग तो धो ही रेले थे।" मोहन ने जगन और संपत की तरफ इशारा करते हुए कहा____"पर लौड़ा ये लोग अपन लोग को धोने ही नहीं दे रेले थे।"

"ये क्या कह रहा है तू?" मंगू ने हैरानी से पूछा____ये लोग क्यों नहीं धोने दे रहे थे भला?"

"अबे ये लोग अपन से झगड़ रेले थे।" मोहन ने सफ़ेद झूठ बोला तो सामने बैठी शालू उसे आंखें फाड़ कर देखने लगी, इधर मोहन अपनी ही धुन में बोला____"बेटीचोद अपन को भी गुस्सा आ गएला था इस लिए बोल दिया कि अपन घंटा नहीं धोएगा अब।"

मंगू उसके मुख से गाली सुन कर चौंका। शालू के सामने इस तरह उसका धड़ल्ले से गाली देने से उसे उस पर बहुत गुस्सा आया किंतु इस वक्त समय बर्बाद करना ठीक नहीं समझा उसने।

"अच्छा ठीक है जल्दी से धो दे।" मंगू ने बेचैनी से कहा____"मालकिन बहुत गुस्सा कर रही हैं कि इतना टाइम क्यों लग गया?"

बर्तन लगभग धुल ही चुके थे। आख़िरी का एक बचा तो मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर उसे भी मांज दिया। अभी वो उसे शालू की तरफ बढ़ा ही देने वाला था कि उसने देखा शालू पहले से ही एक कनस्तर को धोने में लगी हुई थी इस लिए उसने उठ कर खुद ही उसे धोना शुरू कर दिया।

बर्तन धुल गए तो मंगू ने जगन और संपत को आवाज़ दे कर बुलाया और उन्हें बर्तन ले चलने को कहा। तीनों जब चले गए तो मोहन पानी की हऊदी से अपने हाथ पैर धोने लगा। दूसरी तरफ शालू भी चुपचाप अपने हाथ पैर धोने लगी थी।

"तुमने उससे झूठ क्यों बोला था कि वो दोनों तुमसे झगड़ रहे थे?" हाथ पांव धोने के बाद शालू ने अपने दुपट्टे को निकालते हुए मोहन से पूछा।

"अबे तू नहीं समझेगी।" मंगू ने इस तरह शान से मुस्कुराते हुए कहा जैसे वो उसे निहायत ही बेवकूफ़ समझता हो____"अपन ने झूठ इस लिए बोलेला था कि मंगू उन लोग को पेले पर लौड़ा उसका खून ही नहीं खौला।"

"अच्छा मतलब तुम अपने ही दोस्तों को मंगू से पिटवाना चाहते थे?" शालू ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर उसे देखा____"कितने ख़राब हो तुम।"

"अबे उन लोग से तो अपन अच्छा ही है।" मोहन ने एक बार फिर से झूठ बोलते हुए कहा____"उन लोग के तो भेजा ही नहीं है जबकि अपन पांचवीं पास है। अपन के भेजे में भारी दिमाग़ है।"

"हां हां पता चल गया है मुझे।" शालू ने उसे घूरते हुए कहा____"अच्छा तुमने ये तो बताया ही नहीं कि मेरी मां ने तुम्हें क्यों पिटवाया था?"

"अबे बहुत लंबी कहानी है ये।" मोहन ने अपने गमछे से अपना चेहरा पोंछते हुए कहा____"इस वक्त बताने का टाइम नहीं है अपन के पास। तुझे भी तो घर जाने का है न? अभी तू जा, अपन कल बताएगा तुझे।"

शालू उसे कुछ देर तक घूरती रही और फिर बुरा सा मुंह बना कर जाने लगी। उसे जाता देख मोहन एकदम से हड़बड़ा गया। वो तेज़ी से उसके पीछे लपका और फिर बोला____"अबे ये तो बता कि कल तू इधर आएगी कि नहीं?"

"मैं क्यों आऊं भला?" उसने पलट कर तिरछी नजरों से उसे देखा।
"अरे! क्या बोल रेली है तू?" मोहन एकदम से सकपकाते हुए बोला____"क्या तू बर्तन धोने में आज की तरह अपन की मदद करने नहीं आएगी?"

"वो तो मैं मालकिन के कहने पर आई थी।" शालू ने भोलेपन से आगे बढ़ते हुए कहा____"कल मालकिन नहीं कहेंगी तो क्यों आऊंगी भला?"

'बेटीचोद अब ये क्या लफड़ा है बे?' मोहन मन ही मन सोचते हुए बोल पड़ा____'कल अगर उस लौड़ी मालकिन ने इसको इधर आने को नहीं कहा तो अपन कैसे इसके साथ मज़ा कर सकेगा?'

"अरे! तो क्या तू अपनी मर्ज़ी से नहीं आ सकती क्या?" फिर मोहन ने अजीब सी शकल बना कर उससे कहा तो उसने फिर से उसे तिरछी नज़र से देखा और कहा____"आने को तो आ सकती हूं पर आऊंगी नहीं।"

"त...तू आ सकती है पर आएगी नहीं?" मोहन जैसे चकरा ही गया____"अबे ये क्या बोल रेली है तू?"

"हां तो मैं तुम्हारी गंदी बातें सुनने नहीं आऊंगी, समझे?" शालू ने फिर से आगे बढ़ते हुए कहा____"तुम्हें तो लड़की से बात करने की तमीज ही नहीं है। तुम्हें इतना भी नहीं पता कि किसके सामने क्या बोलना चाहिए?"

"माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन ने सहसा संजीदा हो कर उसे देखा____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग बचपन से ही ऐसेइच हैं। साला किसी ने बताया ही नहीं अपन लोग को कि किससे कैसे बात करने का है? तू अपन को सिखाएगी तो पक्का सीख जाएगा अपन।"

मोहन की बात सुन कर शालू के होठों पर सहसा मुस्कान उभर आई। कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद जाने क्या सोच कर उसने कहा____"ना बाबा ना मैं कुछ नहीं सिखा सकती। मां को पता चला तो बहुत मारेगी मुझे।"

"अबे तेरी मां ने अपन को कुटवाया था।" मोहन एकदम उसी के बराबर में आ कर चलते हुए बोला____"तो क्या तू अपन के लिए थोड़ा मार नहीं खा सकती? अपन तो अब तेरे को अपना पक्का दोस्त समझ रेला है।"

"हाय राम! ये क्या कह रहे हो तुम?" शालू बुरी तरह चौंकते हुए बोली____"नहीं नहीं, ये ग़लत है। तुम मुझसे ये मत बोलो। ना तो मैं तुम्हारी दोस्त हूं और ना ही मैं तुम्हें अपना दोस्त समझती हूं।"

"अबे क्यों अपन का दिल तोड़ रेली है?" मोहन ने जैसे हताश हो कर कहा____"अपन ने अक्खा लाइफ़ में किसी लड़की को दोस्त नहीं बनाएला है। साला अपन लोग के नसीब में कभी ऐसा टाइम‌इच नहीं आयला था। पहली बार अपन को किसी लड़की से बात करने का मौका मिलेला है। अम्मा क़सम अपन को तू बहुत अच्छी लग रेली है। तभी तो अपन तेरे को अपना दोस्त मान लियेला है।"

"पता नहीं तुम कैसी बातें बोल रहे हो।" शालू ने परेशान लहजे में कहा____"मुझे नहीं सुनना तुम्हारी ये बातें। जा रही हूं मैं।"

उसके बाद शालू उसकी कोई बात सुने बिना ही लगभग भागते हुए चली गई। इधर मोहन उसके ऐसे बर्ताव से बहुत निराश और उदास सा हो गया। मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए वो तबेले में पहुंच गया।

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रात में तीनों नमूने खा पी कर एक कमरे में ज़मीन पर ही लेटे हुए थे। कुछ दिनों से एक बदलाव दिख रहा था तीनों के बीच। जहां जगन और संपत एक साथ ही रहते थे वहीं मोहन उन दोनों से थोड़ा दूर ही रहने लगा था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन की हरकतों की वजह से कई बार जगन और संपत की पेलाई हो चुकी थी जिसके लिए दोनों अक्सर ही मोहन पर नाराज़ रहते थे। इस वक्त भी मोहन उन दोनों से अलग कमरे के दूसरे कोने में लेटा हुआ था और शालू के साथ हुई अपनी बातों के बारे में सोच रहा था। वो अब भी शालू द्वारा कही गई उसकी आख़िरी बात के लिए मायूस और उदास था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो ऐसा क्या करे जिससे कि शालू उसे दोस्ती कर ले और ज़्यादातर उसके साथ ही रहने का उसे मौका मिले।

"अबे ओ पांचवीं फेल।" सहसा उसके कानों में संपत की आवाज़ पड़ी____"लौड़े आज तो बड़ा कमला की लौंडिया के साथ मज़ा कर रेला था तू। साला उसके चक्कर में अपन लोग को तो भूल ही गएला था।"

"अबे घंटा मज़ा नहीं कर रेला था ये।" जगन बोल पड़ा____"बेटीचोद ये तो अपने साथ साथ अपन लोग की भी कुटाई करवाने का प्रबंध कर रेला था। देखना जल्दी ही इसकी वजह से अपन लोग की गांड़ तुड़ाई होगी। बेटीचोद इस बार अगर इसकी वजह से अपन लोग पेले गए तो अपन इसको जान से मार देगा।"

"अबे उसके पहले अपन इसकी गांड़ मारेगा।" संपत मुस्कुराते हुए बोला____"बाद में तेरे को जो करने का हो कर देने का।"

"बेटीचोदो तुम लोग अपन की गांड़ के पीछे क्यों पड़े हो बे?" मोहन खिसिया कर एकदम से बोल पड़ा____"लौड़ा अपन की गांड़ की तरफ देखा भी तो आंख फोड़ देगा अपन।"

"अच्छा ये तो बता लौड़े कि कमला की उस लौंडिया के साथ क्या बातें कर रेला था तू?" संपत ने उठ कर मोहन के पास आते हुए पूछा____"बेटीचोद इतनी देर से तू उसके साथ था तो कोई तो कांड किया ही होएगा न?"

संपत की बात सुन कर मोहन के ज़हन में बिजली की तरह उसे नीचा दिखाने का और खुद को तीस मार खां दिखाने का उपाय आ गया। वो मन ही मन उस उपाय के बारे में सोचते हुए मुस्कुरा उठा।

"अबे मत पूछ।" फिर वो अपनी ख़ुशी को ज़ाहिर करते हुए बोला____"बेटीचोद आज तो मज़ा ही आ गएला है अपन को।"

"भोसड़ी के कौन सा मज़ा मिल गएला है तुझे?" जगन और संपत दोनों ही आंखें फाड़ कर उसे देखने लगे, उधर संपत ने आगे कहा____"लौड़े अपन को भी तो कुछ बता।"

"अबे अपन क्या क्या बताए तेरे को लौड़े?" मोहन गहरी मुस्कान के साथ बोला____"शालू डार्लिंग के साथ तो अपन का टांका ही भिड़ गएला है।"

"बेटीचोद ये क्या बोल रेला है बे?" संपत की आंखें और भी ज़्यादा फैल गईं____"लौड़े झूठ बोलेगा तो अपन गांड़ तोड़ देगा तेरी।"

"अबे अपन भारी सत्यवादी आदमी है।" मोहन ने गर्व से सीना चौड़ा करते हुए बोला____"बोले तो एकदम हरिश्चंद्र के माफिक। अम्मा बापू की क़सम आज तो अपन को मज़ा ही आ गया लौड़ा।"

मोहन की बात सुन कर जगन तो चकित था ही संपत भी आंखें फाड़े उसे देखे जा रहा था। उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि कमला की बेटी का मोहन के साथ टांका भिड़ सकता है। लेकिन मोहन के खुशी से चमकते चेहरे को देख उसे कहीं न कहीं ये लगने लगा था कि शायद वो सच बोल रहा है।

"भोसड़ी के तू तो छुपा रुस्तम निकला बे।" फिर उसने मोहन से कहा____"लौड़ा अपन को तो यकीन ही नहीं हो रेला है कि कमला की बेटी अपनी मां से भी ज़्यादा छिनाल होएगी।"

"बेटीचोद उसको छिनाल बोलेगा तो खोपड़ी फोड़ देगा तेरी।" मोहन एकदम से गुस्सा हो गया____"लौड़े अब वो भाभी है तेरी इस लिए इज्ज़त से बोलने का, समझा?"

"भ...भाभी???" संपत के साथ साथ जगन भी उछल पड़ा, फिर हैरत से आंखें फाड़ कर संपत बोला____"भोसड़ी के ये कब हुआ? लौड़े सच में आज भांग का नशा कियेला है क्या बे?"

"झूठ बोल रेला है बेटीचोद।" जगन खिसियाए हुए लहजे से बोल पड़ा____"उस लौड़ी का घंटा इससे कोई टांका वांका नहीं भिड़ेला है। फेंक रेला है ये लौड़ा।"

"हाहाहाहा अबे तेरे को नहीं मानने का है तो मत मान लौड़े।" मोहन खुशी से ठहाका लगाते हुए बोल पड़ा____"तेरे ना मानने से अपन को घंटा फ़र्क नहीं पड़ता। सच तो यहिच है कि अपन का उससे मस्त टांका भिड़ गएला है और तो और उसने तो अपन को अपने दूधू भी दिखाए लौड़ा। अम्मा क़सम क्या मस्त दूधू थे अपन की शालू के।"

मोहन की बात सुन कर जगन भौचक्का सा देखता रह गया उसे। यही हाल संपत का भी था। दोनों के दिमाग़ का जैसे अचानक ही फ्यूज उड़ गया। इधर उन दोनों की ये हालत देख कर मोहन को बेहद खुशी हो रही थी। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो। इस वक्त वो गर्व और शान से इस तरह अकड़ गया था कि किसी के ज़ोर लगाने पर भी वो टस से मस नहीं हो सकता था।

"अबे क्या तू सच बोल रेला है?" संपत ने जैसे खुद को सम्हाल कर आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"अपन का मतलब है कि क्या सच में शालू ने तेरे को अपने दूधू दिखाए? और.....और क्या सच में उससे तेरा टांका भिड़ ग‌एला है?"

"लो कर लो बात।" मोहन जैसे उसका मज़ाक उड़ाते हुए बोला____"लौड़ा खुद को पांचवीं पास बोलता है और इतना भी नहीं समझ रेला है कि अपन को बर्तन धोने में इतना टाइम क्यों लग गएला था?"

"म...मतलब??" संपत बुरी तरह हैरान परेशान सा बोला____"अबे मतलब इसी लिए आज तेरे को इतना टाइम लग गएला था?"

"और नहीं तो क्या।" मोहन पलक झपकते ही सातवें आसमान में पहुंच गया____"अबे अपन दोनों लोग तो बहुत देर तक मस्ती ही कर रेले थे। बेटीचोद अपन तो भूल ही गएला था कि अपन को बर्तन भी धोने का है। वो तो अपन की शालू ने अपन को याद दिलाएला था।"

"अबे जगन सुन रेला है बे तू?" संपत आश्चर्य से जगन की तरफ घूमा। जगन पहले से ही चकरघिन्नी बना बैठा उसे देखे जा रहा था। संपत की बात से वो एकदम से चौंक पड़ा।

"अ...अबे क्या हुआ लौड़े?" फिर वो एकदम से बोल पड़ा।
"भोसड़ी के तू साले मंद बुद्धि ही बना बैठा रहेगा लौड़े।" संपत मानो चिढ़ कर बोला____"और इधर ये चिंदी चोर साला उस कमला की लौंडिया को अपन लोग की भाभी बना के रख दियेला है।"

"झ...झूठ बोल रेला है ये बेटीचोद।" जगन हाथ झटकते हुए बोला____"और तू भी लौड़े इसकी बात का खाली पीली भरोसा मत कर। देखना ये अपन लोग को फिर कुटवाएगा।"

"नहीं बे।" संपत ने कहा____"अपन को तो लग रेला है कि ये चिंदी चोर सच बोल रेला है। बेटीचोद इसी लिए ये लौड़ा कुछ दिनों से अपन लोग से कट के रह रेला था। तूने भी तो देखा ही था लौड़े कि कैसे ये उस लौंडिया के साथ मज़े से हंस बोल रेला था।"

"अबे तू भी क्या इस मंद बुद्धि को समझा रेला है बे लौड़े।" मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा___"अपन अगर इसकी आंखों के सामने भी शालू को पेलेगा तब भी ये लौड़ा यकीन नहीं करेगा।"

मोहन का इतना कहना था कि जगन झपट पड़ा उस पर। मोहन को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वो अचानक ही गुस्सा हो कर उस पर टूट पड़ेगा। जगन ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ा और ज़ोर से ठेलते हुए पीछे दीवार पर ले जा कर उसे भिड़ा दिया। पीठ पर ज़ोर से दीवार लगी तो मोहन के हलक से चीख निकल गई।

"भोसड़ी के आज कल बहुत बोल रेला है तू।" जगन उसको दबोचे गुस्से में गुर्राया____"आज तेरी ज़ुबान ही काट देगा अपन।"

"अबे छोड़ दे बे लौड़े।" मोहन उससे छूटने का प्रयास करते हुए चीखा____"आह...अबे तेरा नाखून अपन के गले में चुभ रेला है भोसड़ी के, छोड़ दे।"

"अबे ये क्या कर रेला है बे?" संपत जल्दी से आगे बढ़ जगन को अपनी तरफ खींचते हुए बोला____"छोड़ दे उसको लौड़े, मर जाएगा ये।"

"तू हट जा बे।" जगन गुस्से से चीखा____"आज अपन इसकी जान ले के रहेगा। बहुत बोलता है बेटीचोद।"

"अबे भगवान ने अपन को मुंह दिएला है तो बोलेगा ही न लौड़े।" संपत ने जैसे ही जगन को मोहन से अलग किया तो वो अपना गला सहलाते हुए बोल पड़ा____"अपन का शालू से टांका भिड़ गएला है तो अपन से जल रेला है बेटीचोद।"

"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"

मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।


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park

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Update - 15
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"अब तो घंटा नहीं धोएगा अपन।" शालू के सामने अपनी इज्ज़त का कचरा होते देख मोहन गुस्से में चीख ही पड़ा____"तेरे को जो उखाड़ना है उखाड़ ले अपन का।"

मोहन की बात सुन कर जगन अभी उस पर झपट ही पड़ने वाला था कि संपत ने पकड़ लिया उसे। उधर इन तीनों का ये बवाल देख शालू बुरी तरह घबरा गई थी। पहले तो उसे हंसी आ रही थी तीनों की बातें सुन कर किंतु अब जब उसने देखा कि तीनों लड़ ही पड़ेंगे तो उसकी भी सांसें अटक गईं थी। संपत ने ऐन मौके पर माहौल की नज़ाकत को समझ लिया और उसने लड़ाई होने से बचा लिया। उसने नर्मी से समझा कर मोहन को बर्तन धोने के लिए मनाया और फिर वो जगन को ले दूर जा कर बैठ गया। उन दोनों के जाते ही मोहन ने एक नज़र शालू को देखा और फिर जल्दी जल्दी कनस्तर को मांजने लगा।



अब आगे....


"मालकिन मैं जा कर देखूं क्या उन लोगों को?" मंगू ने प्रीतो की तरफ देखते हुए कहा____"कहीं ऐसा न हो कि वो तीनों आपस में झगड़ा करने लगें। कमला की बेटी भी वहीं है, कहीं वो लोग उसको परेशान न करने लगें।"

"हां जा कर देखो तो।" प्रीतो ने कुछ सोचते हुए कहा____"वो दोनों भी अभी तक नहीं आए। पता नहीं क्या करने लगे हैं वो वहां पर?"

प्रीतो का इतना कहना था कि मंगू बंदूक से छूटी गोली की तरह ट्यूब वेल की तरफ भाग चला। पहले तो वो इसी सोच में डूबा हुआ था कि मोहन जाने कैसी कैसी हरकतें कर रहा होगा शालू के साथ और अब जब जगन और संपत भी लौट कर न आए तो उसकी बेचैनी बढ़ गई थी। ख़ैर जल्दी ही वो ट्यूब वेल के पास पहुंच गया। उसने देखा जगन और संपत आराम से एक जगह बैठे हुए थे जबकि मोहन और शालू बर्तन धो रहे थे। ये देख कर मंगू को गुस्सा भी आया और हैरानी भी हुई। हैरानी इस लिए कि हर दिन की अपेक्षा आज मोहन ने कुछ ज़्यादा ही समय लगा दिया था बर्तनों को धोने में। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी। उसने उसे बड़े ध्यान से देखा। शालू मोहन द्वारा मांजे हुए एक छोटे से कनस्तर को धोने में व्यस्त थी। उसके चेहरे पर उसे ऐसा बिल्कुल भी नज़र ना आया जिससे ये लगे कि वो किसी परेशानी में है।

"क्यों रे मोहन, तुमने आज इतना समय क्यों लगा दिया बर्तन धोने में?" मंगू मोहन के पास आ कर बोल पड़ा____"मालकिन कब से इंतज़ार कर रहीं हैं बर्तनों का।"

"अबे अपन लोग तो धो ही रेले थे।" मोहन ने जगन और संपत की तरफ इशारा करते हुए कहा____"पर लौड़ा ये लोग अपन लोग को धोने ही नहीं दे रेले थे।"

"ये क्या कह रहा है तू?" मंगू ने हैरानी से पूछा____ये लोग क्यों नहीं धोने दे रहे थे भला?"

"अबे ये लोग अपन से झगड़ रेले थे।" मोहन ने सफ़ेद झूठ बोला तो सामने बैठी शालू उसे आंखें फाड़ कर देखने लगी, इधर मोहन अपनी ही धुन में बोला____"बेटीचोद अपन को भी गुस्सा आ गएला था इस लिए बोल दिया कि अपन घंटा नहीं धोएगा अब।"

मंगू उसके मुख से गाली सुन कर चौंका। शालू के सामने इस तरह उसका धड़ल्ले से गाली देने से उसे उस पर बहुत गुस्सा आया किंतु इस वक्त समय बर्बाद करना ठीक नहीं समझा उसने।

"अच्छा ठीक है जल्दी से धो दे।" मंगू ने बेचैनी से कहा____"मालकिन बहुत गुस्सा कर रही हैं कि इतना टाइम क्यों लग गया?"

बर्तन लगभग धुल ही चुके थे। आख़िरी का एक बचा तो मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर उसे भी मांज दिया। अभी वो उसे शालू की तरफ बढ़ा ही देने वाला था कि उसने देखा शालू पहले से ही एक कनस्तर को धोने में लगी हुई थी इस लिए उसने उठ कर खुद ही उसे धोना शुरू कर दिया।

बर्तन धुल गए तो मंगू ने जगन और संपत को आवाज़ दे कर बुलाया और उन्हें बर्तन ले चलने को कहा। तीनों जब चले गए तो मोहन पानी की हऊदी से अपने हाथ पैर धोने लगा। दूसरी तरफ शालू भी चुपचाप अपने हाथ पैर धोने लगी थी।

"तुमने उससे झूठ क्यों बोला था कि वो दोनों तुमसे झगड़ रहे थे?" हाथ पांव धोने के बाद शालू ने अपने दुपट्टे को निकालते हुए मोहन से पूछा।

"अबे तू नहीं समझेगी।" मंगू ने इस तरह शान से मुस्कुराते हुए कहा जैसे वो उसे निहायत ही बेवकूफ़ समझता हो____"अपन ने झूठ इस लिए बोलेला था कि मंगू उन लोग को पेले पर लौड़ा उसका खून ही नहीं खौला।"

"अच्छा मतलब तुम अपने ही दोस्तों को मंगू से पिटवाना चाहते थे?" शालू ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर उसे देखा____"कितने ख़राब हो तुम।"

"अबे उन लोग से तो अपन अच्छा ही है।" मोहन ने एक बार फिर से झूठ बोलते हुए कहा____"उन लोग के तो भेजा ही नहीं है जबकि अपन पांचवीं पास है। अपन के भेजे में भारी दिमाग़ है।"

"हां हां पता चल गया है मुझे।" शालू ने उसे घूरते हुए कहा____"अच्छा तुमने ये तो बताया ही नहीं कि मेरी मां ने तुम्हें क्यों पिटवाया था?"

"अबे बहुत लंबी कहानी है ये।" मोहन ने अपने गमछे से अपना चेहरा पोंछते हुए कहा____"इस वक्त बताने का टाइम नहीं है अपन के पास। तुझे भी तो घर जाने का है न? अभी तू जा, अपन कल बताएगा तुझे।"

शालू उसे कुछ देर तक घूरती रही और फिर बुरा सा मुंह बना कर जाने लगी। उसे जाता देख मोहन एकदम से हड़बड़ा गया। वो तेज़ी से उसके पीछे लपका और फिर बोला____"अबे ये तो बता कि कल तू इधर आएगी कि नहीं?"

"मैं क्यों आऊं भला?" उसने पलट कर तिरछी नजरों से उसे देखा।
"अरे! क्या बोल रेली है तू?" मोहन एकदम से सकपकाते हुए बोला____"क्या तू बर्तन धोने में आज की तरह अपन की मदद करने नहीं आएगी?"

"वो तो मैं मालकिन के कहने पर आई थी।" शालू ने भोलेपन से आगे बढ़ते हुए कहा____"कल मालकिन नहीं कहेंगी तो क्यों आऊंगी भला?"

'बेटीचोद अब ये क्या लफड़ा है बे?' मोहन मन ही मन सोचते हुए बोल पड़ा____'कल अगर उस लौड़ी मालकिन ने इसको इधर आने को नहीं कहा तो अपन कैसे इसके साथ मज़ा कर सकेगा?'

"अरे! तो क्या तू अपनी मर्ज़ी से नहीं आ सकती क्या?" फिर मोहन ने अजीब सी शकल बना कर उससे कहा तो उसने फिर से उसे तिरछी नज़र से देखा और कहा____"आने को तो आ सकती हूं पर आऊंगी नहीं।"

"त...तू आ सकती है पर आएगी नहीं?" मोहन जैसे चकरा ही गया____"अबे ये क्या बोल रेली है तू?"

"हां तो मैं तुम्हारी गंदी बातें सुनने नहीं आऊंगी, समझे?" शालू ने फिर से आगे बढ़ते हुए कहा____"तुम्हें तो लड़की से बात करने की तमीज ही नहीं है। तुम्हें इतना भी नहीं पता कि किसके सामने क्या बोलना चाहिए?"

"माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन ने सहसा संजीदा हो कर उसे देखा____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग बचपन से ही ऐसेइच हैं। साला किसी ने बताया ही नहीं अपन लोग को कि किससे कैसे बात करने का है? तू अपन को सिखाएगी तो पक्का सीख जाएगा अपन।"

मोहन की बात सुन कर शालू के होठों पर सहसा मुस्कान उभर आई। कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद जाने क्या सोच कर उसने कहा____"ना बाबा ना मैं कुछ नहीं सिखा सकती। मां को पता चला तो बहुत मारेगी मुझे।"

"अबे तेरी मां ने अपन को कुटवाया था।" मोहन एकदम उसी के बराबर में आ कर चलते हुए बोला____"तो क्या तू अपन के लिए थोड़ा मार नहीं खा सकती? अपन तो अब तेरे को अपना पक्का दोस्त समझ रेला है।"

"हाय राम! ये क्या कह रहे हो तुम?" शालू बुरी तरह चौंकते हुए बोली____"नहीं नहीं, ये ग़लत है। तुम मुझसे ये मत बोलो। ना तो मैं तुम्हारी दोस्त हूं और ना ही मैं तुम्हें अपना दोस्त समझती हूं।"

"अबे क्यों अपन का दिल तोड़ रेली है?" मोहन ने जैसे हताश हो कर कहा____"अपन ने अक्खा लाइफ़ में किसी लड़की को दोस्त नहीं बनाएला है। साला अपन लोग के नसीब में कभी ऐसा टाइम‌इच नहीं आयला था। पहली बार अपन को किसी लड़की से बात करने का मौका मिलेला है। अम्मा क़सम अपन को तू बहुत अच्छी लग रेली है। तभी तो अपन तेरे को अपना दोस्त मान लियेला है।"

"पता नहीं तुम कैसी बातें बोल रहे हो।" शालू ने परेशान लहजे में कहा____"मुझे नहीं सुनना तुम्हारी ये बातें। जा रही हूं मैं।"

उसके बाद शालू उसकी कोई बात सुने बिना ही लगभग भागते हुए चली गई। इधर मोहन उसके ऐसे बर्ताव से बहुत निराश और उदास सा हो गया। मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए वो तबेले में पहुंच गया।

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रात में तीनों नमूने खा पी कर एक कमरे में ज़मीन पर ही लेटे हुए थे। कुछ दिनों से एक बदलाव दिख रहा था तीनों के बीच। जहां जगन और संपत एक साथ ही रहते थे वहीं मोहन उन दोनों से थोड़ा दूर ही रहने लगा था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन की हरकतों की वजह से कई बार जगन और संपत की पेलाई हो चुकी थी जिसके लिए दोनों अक्सर ही मोहन पर नाराज़ रहते थे। इस वक्त भी मोहन उन दोनों से अलग कमरे के दूसरे कोने में लेटा हुआ था और शालू के साथ हुई अपनी बातों के बारे में सोच रहा था। वो अब भी शालू द्वारा कही गई उसकी आख़िरी बात के लिए मायूस और उदास था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो ऐसा क्या करे जिससे कि शालू उसे दोस्ती कर ले और ज़्यादातर उसके साथ ही रहने का उसे मौका मिले।

"अबे ओ पांचवीं फेल।" सहसा उसके कानों में संपत की आवाज़ पड़ी____"लौड़े आज तो बड़ा कमला की लौंडिया के साथ मज़ा कर रेला था तू। साला उसके चक्कर में अपन लोग को तो भूल ही गएला था।"

"अबे घंटा मज़ा नहीं कर रेला था ये।" जगन बोल पड़ा____"बेटीचोद ये तो अपने साथ साथ अपन लोग की भी कुटाई करवाने का प्रबंध कर रेला था। देखना जल्दी ही इसकी वजह से अपन लोग की गांड़ तुड़ाई होगी। बेटीचोद इस बार अगर इसकी वजह से अपन लोग पेले गए तो अपन इसको जान से मार देगा।"

"अबे उसके पहले अपन इसकी गांड़ मारेगा।" संपत मुस्कुराते हुए बोला____"बाद में तेरे को जो करने का हो कर देने का।"

"बेटीचोदो तुम लोग अपन की गांड़ के पीछे क्यों पड़े हो बे?" मोहन खिसिया कर एकदम से बोल पड़ा____"लौड़ा अपन की गांड़ की तरफ देखा भी तो आंख फोड़ देगा अपन।"

"अच्छा ये तो बता लौड़े कि कमला की उस लौंडिया के साथ क्या बातें कर रेला था तू?" संपत ने उठ कर मोहन के पास आते हुए पूछा____"बेटीचोद इतनी देर से तू उसके साथ था तो कोई तो कांड किया ही होएगा न?"

संपत की बात सुन कर मोहन के ज़हन में बिजली की तरह उसे नीचा दिखाने का और खुद को तीस मार खां दिखाने का उपाय आ गया। वो मन ही मन उस उपाय के बारे में सोचते हुए मुस्कुरा उठा।

"अबे मत पूछ।" फिर वो अपनी ख़ुशी को ज़ाहिर करते हुए बोला____"बेटीचोद आज तो मज़ा ही आ गएला है अपन को।"

"भोसड़ी के कौन सा मज़ा मिल गएला है तुझे?" जगन और संपत दोनों ही आंखें फाड़ कर उसे देखने लगे, उधर संपत ने आगे कहा____"लौड़े अपन को भी तो कुछ बता।"

"अबे अपन क्या क्या बताए तेरे को लौड़े?" मोहन गहरी मुस्कान के साथ बोला____"शालू डार्लिंग के साथ तो अपन का टांका ही भिड़ गएला है।"

"बेटीचोद ये क्या बोल रेला है बे?" संपत की आंखें और भी ज़्यादा फैल गईं____"लौड़े झूठ बोलेगा तो अपन गांड़ तोड़ देगा तेरी।"

"अबे अपन भारी सत्यवादी आदमी है।" मोहन ने गर्व से सीना चौड़ा करते हुए बोला____"बोले तो एकदम हरिश्चंद्र के माफिक। अम्मा बापू की क़सम आज तो अपन को मज़ा ही आ गया लौड़ा।"

मोहन की बात सुन कर जगन तो चकित था ही संपत भी आंखें फाड़े उसे देखे जा रहा था। उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि कमला की बेटी का मोहन के साथ टांका भिड़ सकता है। लेकिन मोहन के खुशी से चमकते चेहरे को देख उसे कहीं न कहीं ये लगने लगा था कि शायद वो सच बोल रहा है।

"भोसड़ी के तू तो छुपा रुस्तम निकला बे।" फिर उसने मोहन से कहा____"लौड़ा अपन को तो यकीन ही नहीं हो रेला है कि कमला की बेटी अपनी मां से भी ज़्यादा छिनाल होएगी।"

"बेटीचोद उसको छिनाल बोलेगा तो खोपड़ी फोड़ देगा तेरी।" मोहन एकदम से गुस्सा हो गया____"लौड़े अब वो भाभी है तेरी इस लिए इज्ज़त से बोलने का, समझा?"

"भ...भाभी???" संपत के साथ साथ जगन भी उछल पड़ा, फिर हैरत से आंखें फाड़ कर संपत बोला____"भोसड़ी के ये कब हुआ? लौड़े सच में आज भांग का नशा कियेला है क्या बे?"

"झूठ बोल रेला है बेटीचोद।" जगन खिसियाए हुए लहजे से बोल पड़ा____"उस लौड़ी का घंटा इससे कोई टांका वांका नहीं भिड़ेला है। फेंक रेला है ये लौड़ा।"

"हाहाहाहा अबे तेरे को नहीं मानने का है तो मत मान लौड़े।" मोहन खुशी से ठहाका लगाते हुए बोल पड़ा____"तेरे ना मानने से अपन को घंटा फ़र्क नहीं पड़ता। सच तो यहिच है कि अपन का उससे मस्त टांका भिड़ गएला है और तो और उसने तो अपन को अपने दूधू भी दिखाए लौड़ा। अम्मा क़सम क्या मस्त दूधू थे अपन की शालू के।"

मोहन की बात सुन कर जगन भौचक्का सा देखता रह गया उसे। यही हाल संपत का भी था। दोनों के दिमाग़ का जैसे अचानक ही फ्यूज उड़ गया। इधर उन दोनों की ये हालत देख कर मोहन को बेहद खुशी हो रही थी। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो। इस वक्त वो गर्व और शान से इस तरह अकड़ गया था कि किसी के ज़ोर लगाने पर भी वो टस से मस नहीं हो सकता था।

"अबे क्या तू सच बोल रेला है?" संपत ने जैसे खुद को सम्हाल कर आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"अपन का मतलब है कि क्या सच में शालू ने तेरे को अपने दूधू दिखाए? और.....और क्या सच में उससे तेरा टांका भिड़ ग‌एला है?"

"लो कर लो बात।" मोहन जैसे उसका मज़ाक उड़ाते हुए बोला____"लौड़ा खुद को पांचवीं पास बोलता है और इतना भी नहीं समझ रेला है कि अपन को बर्तन धोने में इतना टाइम क्यों लग गएला था?"

"म...मतलब??" संपत बुरी तरह हैरान परेशान सा बोला____"अबे मतलब इसी लिए आज तेरे को इतना टाइम लग गएला था?"

"और नहीं तो क्या।" मोहन पलक झपकते ही सातवें आसमान में पहुंच गया____"अबे अपन दोनों लोग तो बहुत देर तक मस्ती ही कर रेले थे। बेटीचोद अपन तो भूल ही गएला था कि अपन को बर्तन भी धोने का है। वो तो अपन की शालू ने अपन को याद दिलाएला था।"

"अबे जगन सुन रेला है बे तू?" संपत आश्चर्य से जगन की तरफ घूमा। जगन पहले से ही चकरघिन्नी बना बैठा उसे देखे जा रहा था। संपत की बात से वो एकदम से चौंक पड़ा।

"अ...अबे क्या हुआ लौड़े?" फिर वो एकदम से बोल पड़ा।
"भोसड़ी के तू साले मंद बुद्धि ही बना बैठा रहेगा लौड़े।" संपत मानो चिढ़ कर बोला____"और इधर ये चिंदी चोर साला उस कमला की लौंडिया को अपन लोग की भाभी बना के रख दियेला है।"

"झ...झूठ बोल रेला है ये बेटीचोद।" जगन हाथ झटकते हुए बोला____"और तू भी लौड़े इसकी बात का खाली पीली भरोसा मत कर। देखना ये अपन लोग को फिर कुटवाएगा।"

"नहीं बे।" संपत ने कहा____"अपन को तो लग रेला है कि ये चिंदी चोर सच बोल रेला है। बेटीचोद इसी लिए ये लौड़ा कुछ दिनों से अपन लोग से कट के रह रेला था। तूने भी तो देखा ही था लौड़े कि कैसे ये उस लौंडिया के साथ मज़े से हंस बोल रेला था।"

"अबे तू भी क्या इस मंद बुद्धि को समझा रेला है बे लौड़े।" मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा___"अपन अगर इसकी आंखों के सामने भी शालू को पेलेगा तब भी ये लौड़ा यकीन नहीं करेगा।"

मोहन का इतना कहना था कि जगन झपट पड़ा उस पर। मोहन को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वो अचानक ही गुस्सा हो कर उस पर टूट पड़ेगा। जगन ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ा और ज़ोर से ठेलते हुए पीछे दीवार पर ले जा कर उसे भिड़ा दिया। पीठ पर ज़ोर से दीवार लगी तो मोहन के हलक से चीख निकल गई।

"भोसड़ी के आज कल बहुत बोल रेला है तू।" जगन उसको दबोचे गुस्से में गुर्राया____"आज तेरी ज़ुबान ही काट देगा अपन।"

"अबे छोड़ दे बे लौड़े।" मोहन उससे छूटने का प्रयास करते हुए चीखा____"आह...अबे तेरा नाखून अपन के गले में चुभ रेला है भोसड़ी के, छोड़ दे।"

"अबे ये क्या कर रेला है बे?" संपत जल्दी से आगे बढ़ जगन को अपनी तरफ खींचते हुए बोला____"छोड़ दे उसको लौड़े, मर जाएगा ये।"

"तू हट जा बे।" जगन गुस्से से चीखा____"आज अपन इसकी जान ले के रहेगा। बहुत बोलता है बेटीचोद।"

"अबे भगवान ने अपन को मुंह दिएला है तो बोलेगा ही न लौड़े।" संपत ने जैसे ही जगन को मोहन से अलग किया तो वो अपना गला सहलाते हुए बोल पड़ा____"अपन का शालू से टांका भिड़ गएला है तो अपन से जल रेला है बेटीचोद।"

"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"

मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।



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Nice and superb update....
 
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dhparikh

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Update - 15
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"अब तो घंटा नहीं धोएगा अपन।" शालू के सामने अपनी इज्ज़त का कचरा होते देख मोहन गुस्से में चीख ही पड़ा____"तेरे को जो उखाड़ना है उखाड़ ले अपन का।"

मोहन की बात सुन कर जगन अभी उस पर झपट ही पड़ने वाला था कि संपत ने पकड़ लिया उसे। उधर इन तीनों का ये बवाल देख शालू बुरी तरह घबरा गई थी। पहले तो उसे हंसी आ रही थी तीनों की बातें सुन कर किंतु अब जब उसने देखा कि तीनों लड़ ही पड़ेंगे तो उसकी भी सांसें अटक गईं थी। संपत ने ऐन मौके पर माहौल की नज़ाकत को समझ लिया और उसने लड़ाई होने से बचा लिया। उसने नर्मी से समझा कर मोहन को बर्तन धोने के लिए मनाया और फिर वो जगन को ले दूर जा कर बैठ गया। उन दोनों के जाते ही मोहन ने एक नज़र शालू को देखा और फिर जल्दी जल्दी कनस्तर को मांजने लगा।



अब आगे....


"मालकिन मैं जा कर देखूं क्या उन लोगों को?" मंगू ने प्रीतो की तरफ देखते हुए कहा____"कहीं ऐसा न हो कि वो तीनों आपस में झगड़ा करने लगें। कमला की बेटी भी वहीं है, कहीं वो लोग उसको परेशान न करने लगें।"

"हां जा कर देखो तो।" प्रीतो ने कुछ सोचते हुए कहा____"वो दोनों भी अभी तक नहीं आए। पता नहीं क्या करने लगे हैं वो वहां पर?"

प्रीतो का इतना कहना था कि मंगू बंदूक से छूटी गोली की तरह ट्यूब वेल की तरफ भाग चला। पहले तो वो इसी सोच में डूबा हुआ था कि मोहन जाने कैसी कैसी हरकतें कर रहा होगा शालू के साथ और अब जब जगन और संपत भी लौट कर न आए तो उसकी बेचैनी बढ़ गई थी। ख़ैर जल्दी ही वो ट्यूब वेल के पास पहुंच गया। उसने देखा जगन और संपत आराम से एक जगह बैठे हुए थे जबकि मोहन और शालू बर्तन धो रहे थे। ये देख कर मंगू को गुस्सा भी आया और हैरानी भी हुई। हैरानी इस लिए कि हर दिन की अपेक्षा आज मोहन ने कुछ ज़्यादा ही समय लगा दिया था बर्तनों को धोने में। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी। उसने उसे बड़े ध्यान से देखा। शालू मोहन द्वारा मांजे हुए एक छोटे से कनस्तर को धोने में व्यस्त थी। उसके चेहरे पर उसे ऐसा बिल्कुल भी नज़र ना आया जिससे ये लगे कि वो किसी परेशानी में है।

"क्यों रे मोहन, तुमने आज इतना समय क्यों लगा दिया बर्तन धोने में?" मंगू मोहन के पास आ कर बोल पड़ा____"मालकिन कब से इंतज़ार कर रहीं हैं बर्तनों का।"

"अबे अपन लोग तो धो ही रेले थे।" मोहन ने जगन और संपत की तरफ इशारा करते हुए कहा____"पर लौड़ा ये लोग अपन लोग को धोने ही नहीं दे रेले थे।"

"ये क्या कह रहा है तू?" मंगू ने हैरानी से पूछा____ये लोग क्यों नहीं धोने दे रहे थे भला?"

"अबे ये लोग अपन से झगड़ रेले थे।" मोहन ने सफ़ेद झूठ बोला तो सामने बैठी शालू उसे आंखें फाड़ कर देखने लगी, इधर मोहन अपनी ही धुन में बोला____"बेटीचोद अपन को भी गुस्सा आ गएला था इस लिए बोल दिया कि अपन घंटा नहीं धोएगा अब।"

मंगू उसके मुख से गाली सुन कर चौंका। शालू के सामने इस तरह उसका धड़ल्ले से गाली देने से उसे उस पर बहुत गुस्सा आया किंतु इस वक्त समय बर्बाद करना ठीक नहीं समझा उसने।

"अच्छा ठीक है जल्दी से धो दे।" मंगू ने बेचैनी से कहा____"मालकिन बहुत गुस्सा कर रही हैं कि इतना टाइम क्यों लग गया?"

बर्तन लगभग धुल ही चुके थे। आख़िरी का एक बचा तो मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर उसे भी मांज दिया। अभी वो उसे शालू की तरफ बढ़ा ही देने वाला था कि उसने देखा शालू पहले से ही एक कनस्तर को धोने में लगी हुई थी इस लिए उसने उठ कर खुद ही उसे धोना शुरू कर दिया।

बर्तन धुल गए तो मंगू ने जगन और संपत को आवाज़ दे कर बुलाया और उन्हें बर्तन ले चलने को कहा। तीनों जब चले गए तो मोहन पानी की हऊदी से अपने हाथ पैर धोने लगा। दूसरी तरफ शालू भी चुपचाप अपने हाथ पैर धोने लगी थी।

"तुमने उससे झूठ क्यों बोला था कि वो दोनों तुमसे झगड़ रहे थे?" हाथ पांव धोने के बाद शालू ने अपने दुपट्टे को निकालते हुए मोहन से पूछा।

"अबे तू नहीं समझेगी।" मंगू ने इस तरह शान से मुस्कुराते हुए कहा जैसे वो उसे निहायत ही बेवकूफ़ समझता हो____"अपन ने झूठ इस लिए बोलेला था कि मंगू उन लोग को पेले पर लौड़ा उसका खून ही नहीं खौला।"

"अच्छा मतलब तुम अपने ही दोस्तों को मंगू से पिटवाना चाहते थे?" शालू ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर उसे देखा____"कितने ख़राब हो तुम।"

"अबे उन लोग से तो अपन अच्छा ही है।" मोहन ने एक बार फिर से झूठ बोलते हुए कहा____"उन लोग के तो भेजा ही नहीं है जबकि अपन पांचवीं पास है। अपन के भेजे में भारी दिमाग़ है।"

"हां हां पता चल गया है मुझे।" शालू ने उसे घूरते हुए कहा____"अच्छा तुमने ये तो बताया ही नहीं कि मेरी मां ने तुम्हें क्यों पिटवाया था?"

"अबे बहुत लंबी कहानी है ये।" मोहन ने अपने गमछे से अपना चेहरा पोंछते हुए कहा____"इस वक्त बताने का टाइम नहीं है अपन के पास। तुझे भी तो घर जाने का है न? अभी तू जा, अपन कल बताएगा तुझे।"

शालू उसे कुछ देर तक घूरती रही और फिर बुरा सा मुंह बना कर जाने लगी। उसे जाता देख मोहन एकदम से हड़बड़ा गया। वो तेज़ी से उसके पीछे लपका और फिर बोला____"अबे ये तो बता कि कल तू इधर आएगी कि नहीं?"

"मैं क्यों आऊं भला?" उसने पलट कर तिरछी नजरों से उसे देखा।
"अरे! क्या बोल रेली है तू?" मोहन एकदम से सकपकाते हुए बोला____"क्या तू बर्तन धोने में आज की तरह अपन की मदद करने नहीं आएगी?"

"वो तो मैं मालकिन के कहने पर आई थी।" शालू ने भोलेपन से आगे बढ़ते हुए कहा____"कल मालकिन नहीं कहेंगी तो क्यों आऊंगी भला?"

'बेटीचोद अब ये क्या लफड़ा है बे?' मोहन मन ही मन सोचते हुए बोल पड़ा____'कल अगर उस लौड़ी मालकिन ने इसको इधर आने को नहीं कहा तो अपन कैसे इसके साथ मज़ा कर सकेगा?'

"अरे! तो क्या तू अपनी मर्ज़ी से नहीं आ सकती क्या?" फिर मोहन ने अजीब सी शकल बना कर उससे कहा तो उसने फिर से उसे तिरछी नज़र से देखा और कहा____"आने को तो आ सकती हूं पर आऊंगी नहीं।"

"त...तू आ सकती है पर आएगी नहीं?" मोहन जैसे चकरा ही गया____"अबे ये क्या बोल रेली है तू?"

"हां तो मैं तुम्हारी गंदी बातें सुनने नहीं आऊंगी, समझे?" शालू ने फिर से आगे बढ़ते हुए कहा____"तुम्हें तो लड़की से बात करने की तमीज ही नहीं है। तुम्हें इतना भी नहीं पता कि किसके सामने क्या बोलना चाहिए?"

"माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन ने सहसा संजीदा हो कर उसे देखा____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग बचपन से ही ऐसेइच हैं। साला किसी ने बताया ही नहीं अपन लोग को कि किससे कैसे बात करने का है? तू अपन को सिखाएगी तो पक्का सीख जाएगा अपन।"

मोहन की बात सुन कर शालू के होठों पर सहसा मुस्कान उभर आई। कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद जाने क्या सोच कर उसने कहा____"ना बाबा ना मैं कुछ नहीं सिखा सकती। मां को पता चला तो बहुत मारेगी मुझे।"

"अबे तेरी मां ने अपन को कुटवाया था।" मोहन एकदम उसी के बराबर में आ कर चलते हुए बोला____"तो क्या तू अपन के लिए थोड़ा मार नहीं खा सकती? अपन तो अब तेरे को अपना पक्का दोस्त समझ रेला है।"

"हाय राम! ये क्या कह रहे हो तुम?" शालू बुरी तरह चौंकते हुए बोली____"नहीं नहीं, ये ग़लत है। तुम मुझसे ये मत बोलो। ना तो मैं तुम्हारी दोस्त हूं और ना ही मैं तुम्हें अपना दोस्त समझती हूं।"

"अबे क्यों अपन का दिल तोड़ रेली है?" मोहन ने जैसे हताश हो कर कहा____"अपन ने अक्खा लाइफ़ में किसी लड़की को दोस्त नहीं बनाएला है। साला अपन लोग के नसीब में कभी ऐसा टाइम‌इच नहीं आयला था। पहली बार अपन को किसी लड़की से बात करने का मौका मिलेला है। अम्मा क़सम अपन को तू बहुत अच्छी लग रेली है। तभी तो अपन तेरे को अपना दोस्त मान लियेला है।"

"पता नहीं तुम कैसी बातें बोल रहे हो।" शालू ने परेशान लहजे में कहा____"मुझे नहीं सुनना तुम्हारी ये बातें। जा रही हूं मैं।"

उसके बाद शालू उसकी कोई बात सुने बिना ही लगभग भागते हुए चली गई। इधर मोहन उसके ऐसे बर्ताव से बहुत निराश और उदास सा हो गया। मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए वो तबेले में पहुंच गया।

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रात में तीनों नमूने खा पी कर एक कमरे में ज़मीन पर ही लेटे हुए थे। कुछ दिनों से एक बदलाव दिख रहा था तीनों के बीच। जहां जगन और संपत एक साथ ही रहते थे वहीं मोहन उन दोनों से थोड़ा दूर ही रहने लगा था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन की हरकतों की वजह से कई बार जगन और संपत की पेलाई हो चुकी थी जिसके लिए दोनों अक्सर ही मोहन पर नाराज़ रहते थे। इस वक्त भी मोहन उन दोनों से अलग कमरे के दूसरे कोने में लेटा हुआ था और शालू के साथ हुई अपनी बातों के बारे में सोच रहा था। वो अब भी शालू द्वारा कही गई उसकी आख़िरी बात के लिए मायूस और उदास था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो ऐसा क्या करे जिससे कि शालू उसे दोस्ती कर ले और ज़्यादातर उसके साथ ही रहने का उसे मौका मिले।

"अबे ओ पांचवीं फेल।" सहसा उसके कानों में संपत की आवाज़ पड़ी____"लौड़े आज तो बड़ा कमला की लौंडिया के साथ मज़ा कर रेला था तू। साला उसके चक्कर में अपन लोग को तो भूल ही गएला था।"

"अबे घंटा मज़ा नहीं कर रेला था ये।" जगन बोल पड़ा____"बेटीचोद ये तो अपने साथ साथ अपन लोग की भी कुटाई करवाने का प्रबंध कर रेला था। देखना जल्दी ही इसकी वजह से अपन लोग की गांड़ तुड़ाई होगी। बेटीचोद इस बार अगर इसकी वजह से अपन लोग पेले गए तो अपन इसको जान से मार देगा।"

"अबे उसके पहले अपन इसकी गांड़ मारेगा।" संपत मुस्कुराते हुए बोला____"बाद में तेरे को जो करने का हो कर देने का।"

"बेटीचोदो तुम लोग अपन की गांड़ के पीछे क्यों पड़े हो बे?" मोहन खिसिया कर एकदम से बोल पड़ा____"लौड़ा अपन की गांड़ की तरफ देखा भी तो आंख फोड़ देगा अपन।"

"अच्छा ये तो बता लौड़े कि कमला की उस लौंडिया के साथ क्या बातें कर रेला था तू?" संपत ने उठ कर मोहन के पास आते हुए पूछा____"बेटीचोद इतनी देर से तू उसके साथ था तो कोई तो कांड किया ही होएगा न?"

संपत की बात सुन कर मोहन के ज़हन में बिजली की तरह उसे नीचा दिखाने का और खुद को तीस मार खां दिखाने का उपाय आ गया। वो मन ही मन उस उपाय के बारे में सोचते हुए मुस्कुरा उठा।

"अबे मत पूछ।" फिर वो अपनी ख़ुशी को ज़ाहिर करते हुए बोला____"बेटीचोद आज तो मज़ा ही आ गएला है अपन को।"

"भोसड़ी के कौन सा मज़ा मिल गएला है तुझे?" जगन और संपत दोनों ही आंखें फाड़ कर उसे देखने लगे, उधर संपत ने आगे कहा____"लौड़े अपन को भी तो कुछ बता।"

"अबे अपन क्या क्या बताए तेरे को लौड़े?" मोहन गहरी मुस्कान के साथ बोला____"शालू डार्लिंग के साथ तो अपन का टांका ही भिड़ गएला है।"

"बेटीचोद ये क्या बोल रेला है बे?" संपत की आंखें और भी ज़्यादा फैल गईं____"लौड़े झूठ बोलेगा तो अपन गांड़ तोड़ देगा तेरी।"

"अबे अपन भारी सत्यवादी आदमी है।" मोहन ने गर्व से सीना चौड़ा करते हुए बोला____"बोले तो एकदम हरिश्चंद्र के माफिक। अम्मा बापू की क़सम आज तो अपन को मज़ा ही आ गया लौड़ा।"

मोहन की बात सुन कर जगन तो चकित था ही संपत भी आंखें फाड़े उसे देखे जा रहा था। उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि कमला की बेटी का मोहन के साथ टांका भिड़ सकता है। लेकिन मोहन के खुशी से चमकते चेहरे को देख उसे कहीं न कहीं ये लगने लगा था कि शायद वो सच बोल रहा है।

"भोसड़ी के तू तो छुपा रुस्तम निकला बे।" फिर उसने मोहन से कहा____"लौड़ा अपन को तो यकीन ही नहीं हो रेला है कि कमला की बेटी अपनी मां से भी ज़्यादा छिनाल होएगी।"

"बेटीचोद उसको छिनाल बोलेगा तो खोपड़ी फोड़ देगा तेरी।" मोहन एकदम से गुस्सा हो गया____"लौड़े अब वो भाभी है तेरी इस लिए इज्ज़त से बोलने का, समझा?"

"भ...भाभी???" संपत के साथ साथ जगन भी उछल पड़ा, फिर हैरत से आंखें फाड़ कर संपत बोला____"भोसड़ी के ये कब हुआ? लौड़े सच में आज भांग का नशा कियेला है क्या बे?"

"झूठ बोल रेला है बेटीचोद।" जगन खिसियाए हुए लहजे से बोल पड़ा____"उस लौड़ी का घंटा इससे कोई टांका वांका नहीं भिड़ेला है। फेंक रेला है ये लौड़ा।"

"हाहाहाहा अबे तेरे को नहीं मानने का है तो मत मान लौड़े।" मोहन खुशी से ठहाका लगाते हुए बोल पड़ा____"तेरे ना मानने से अपन को घंटा फ़र्क नहीं पड़ता। सच तो यहिच है कि अपन का उससे मस्त टांका भिड़ गएला है और तो और उसने तो अपन को अपने दूधू भी दिखाए लौड़ा। अम्मा क़सम क्या मस्त दूधू थे अपन की शालू के।"

मोहन की बात सुन कर जगन भौचक्का सा देखता रह गया उसे। यही हाल संपत का भी था। दोनों के दिमाग़ का जैसे अचानक ही फ्यूज उड़ गया। इधर उन दोनों की ये हालत देख कर मोहन को बेहद खुशी हो रही थी। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो। इस वक्त वो गर्व और शान से इस तरह अकड़ गया था कि किसी के ज़ोर लगाने पर भी वो टस से मस नहीं हो सकता था।

"अबे क्या तू सच बोल रेला है?" संपत ने जैसे खुद को सम्हाल कर आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"अपन का मतलब है कि क्या सच में शालू ने तेरे को अपने दूधू दिखाए? और.....और क्या सच में उससे तेरा टांका भिड़ ग‌एला है?"

"लो कर लो बात।" मोहन जैसे उसका मज़ाक उड़ाते हुए बोला____"लौड़ा खुद को पांचवीं पास बोलता है और इतना भी नहीं समझ रेला है कि अपन को बर्तन धोने में इतना टाइम क्यों लग गएला था?"

"म...मतलब??" संपत बुरी तरह हैरान परेशान सा बोला____"अबे मतलब इसी लिए आज तेरे को इतना टाइम लग गएला था?"

"और नहीं तो क्या।" मोहन पलक झपकते ही सातवें आसमान में पहुंच गया____"अबे अपन दोनों लोग तो बहुत देर तक मस्ती ही कर रेले थे। बेटीचोद अपन तो भूल ही गएला था कि अपन को बर्तन भी धोने का है। वो तो अपन की शालू ने अपन को याद दिलाएला था।"

"अबे जगन सुन रेला है बे तू?" संपत आश्चर्य से जगन की तरफ घूमा। जगन पहले से ही चकरघिन्नी बना बैठा उसे देखे जा रहा था। संपत की बात से वो एकदम से चौंक पड़ा।

"अ...अबे क्या हुआ लौड़े?" फिर वो एकदम से बोल पड़ा।
"भोसड़ी के तू साले मंद बुद्धि ही बना बैठा रहेगा लौड़े।" संपत मानो चिढ़ कर बोला____"और इधर ये चिंदी चोर साला उस कमला की लौंडिया को अपन लोग की भाभी बना के रख दियेला है।"

"झ...झूठ बोल रेला है ये बेटीचोद।" जगन हाथ झटकते हुए बोला____"और तू भी लौड़े इसकी बात का खाली पीली भरोसा मत कर। देखना ये अपन लोग को फिर कुटवाएगा।"

"नहीं बे।" संपत ने कहा____"अपन को तो लग रेला है कि ये चिंदी चोर सच बोल रेला है। बेटीचोद इसी लिए ये लौड़ा कुछ दिनों से अपन लोग से कट के रह रेला था। तूने भी तो देखा ही था लौड़े कि कैसे ये उस लौंडिया के साथ मज़े से हंस बोल रेला था।"

"अबे तू भी क्या इस मंद बुद्धि को समझा रेला है बे लौड़े।" मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा___"अपन अगर इसकी आंखों के सामने भी शालू को पेलेगा तब भी ये लौड़ा यकीन नहीं करेगा।"

मोहन का इतना कहना था कि जगन झपट पड़ा उस पर। मोहन को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वो अचानक ही गुस्सा हो कर उस पर टूट पड़ेगा। जगन ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ा और ज़ोर से ठेलते हुए पीछे दीवार पर ले जा कर उसे भिड़ा दिया। पीठ पर ज़ोर से दीवार लगी तो मोहन के हलक से चीख निकल गई।

"भोसड़ी के आज कल बहुत बोल रेला है तू।" जगन उसको दबोचे गुस्से में गुर्राया____"आज तेरी ज़ुबान ही काट देगा अपन।"

"अबे छोड़ दे बे लौड़े।" मोहन उससे छूटने का प्रयास करते हुए चीखा____"आह...अबे तेरा नाखून अपन के गले में चुभ रेला है भोसड़ी के, छोड़ दे।"

"अबे ये क्या कर रेला है बे?" संपत जल्दी से आगे बढ़ जगन को अपनी तरफ खींचते हुए बोला____"छोड़ दे उसको लौड़े, मर जाएगा ये।"

"तू हट जा बे।" जगन गुस्से से चीखा____"आज अपन इसकी जान ले के रहेगा। बहुत बोलता है बेटीचोद।"

"अबे भगवान ने अपन को मुंह दिएला है तो बोलेगा ही न लौड़े।" संपत ने जैसे ही जगन को मोहन से अलग किया तो वो अपना गला सहलाते हुए बोल पड़ा____"अपन का शालू से टांका भिड़ गएला है तो अपन से जल रेला है बेटीचोद।"

"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"

मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।



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Nice update....
 
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parkas

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"अब तो घंटा नहीं धोएगा अपन।" शालू के सामने अपनी इज्ज़त का कचरा होते देख मोहन गुस्से में चीख ही पड़ा____"तेरे को जो उखाड़ना है उखाड़ ले अपन का।"

मोहन की बात सुन कर जगन अभी उस पर झपट ही पड़ने वाला था कि संपत ने पकड़ लिया उसे। उधर इन तीनों का ये बवाल देख शालू बुरी तरह घबरा गई थी। पहले तो उसे हंसी आ रही थी तीनों की बातें सुन कर किंतु अब जब उसने देखा कि तीनों लड़ ही पड़ेंगे तो उसकी भी सांसें अटक गईं थी। संपत ने ऐन मौके पर माहौल की नज़ाकत को समझ लिया और उसने लड़ाई होने से बचा लिया। उसने नर्मी से समझा कर मोहन को बर्तन धोने के लिए मनाया और फिर वो जगन को ले दूर जा कर बैठ गया। उन दोनों के जाते ही मोहन ने एक नज़र शालू को देखा और फिर जल्दी जल्दी कनस्तर को मांजने लगा।



अब आगे....


"मालकिन मैं जा कर देखूं क्या उन लोगों को?" मंगू ने प्रीतो की तरफ देखते हुए कहा____"कहीं ऐसा न हो कि वो तीनों आपस में झगड़ा करने लगें। कमला की बेटी भी वहीं है, कहीं वो लोग उसको परेशान न करने लगें।"

"हां जा कर देखो तो।" प्रीतो ने कुछ सोचते हुए कहा____"वो दोनों भी अभी तक नहीं आए। पता नहीं क्या करने लगे हैं वो वहां पर?"

प्रीतो का इतना कहना था कि मंगू बंदूक से छूटी गोली की तरह ट्यूब वेल की तरफ भाग चला। पहले तो वो इसी सोच में डूबा हुआ था कि मोहन जाने कैसी कैसी हरकतें कर रहा होगा शालू के साथ और अब जब जगन और संपत भी लौट कर न आए तो उसकी बेचैनी बढ़ गई थी। ख़ैर जल्दी ही वो ट्यूब वेल के पास पहुंच गया। उसने देखा जगन और संपत आराम से एक जगह बैठे हुए थे जबकि मोहन और शालू बर्तन धो रहे थे। ये देख कर मंगू को गुस्सा भी आया और हैरानी भी हुई। हैरानी इस लिए कि हर दिन की अपेक्षा आज मोहन ने कुछ ज़्यादा ही समय लगा दिया था बर्तनों को धोने में। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी। उसने उसे बड़े ध्यान से देखा। शालू मोहन द्वारा मांजे हुए एक छोटे से कनस्तर को धोने में व्यस्त थी। उसके चेहरे पर उसे ऐसा बिल्कुल भी नज़र ना आया जिससे ये लगे कि वो किसी परेशानी में है।

"क्यों रे मोहन, तुमने आज इतना समय क्यों लगा दिया बर्तन धोने में?" मंगू मोहन के पास आ कर बोल पड़ा____"मालकिन कब से इंतज़ार कर रहीं हैं बर्तनों का।"

"अबे अपन लोग तो धो ही रेले थे।" मोहन ने जगन और संपत की तरफ इशारा करते हुए कहा____"पर लौड़ा ये लोग अपन लोग को धोने ही नहीं दे रेले थे।"

"ये क्या कह रहा है तू?" मंगू ने हैरानी से पूछा____ये लोग क्यों नहीं धोने दे रहे थे भला?"

"अबे ये लोग अपन से झगड़ रेले थे।" मोहन ने सफ़ेद झूठ बोला तो सामने बैठी शालू उसे आंखें फाड़ कर देखने लगी, इधर मोहन अपनी ही धुन में बोला____"बेटीचोद अपन को भी गुस्सा आ गएला था इस लिए बोल दिया कि अपन घंटा नहीं धोएगा अब।"

मंगू उसके मुख से गाली सुन कर चौंका। शालू के सामने इस तरह उसका धड़ल्ले से गाली देने से उसे उस पर बहुत गुस्सा आया किंतु इस वक्त समय बर्बाद करना ठीक नहीं समझा उसने।

"अच्छा ठीक है जल्दी से धो दे।" मंगू ने बेचैनी से कहा____"मालकिन बहुत गुस्सा कर रही हैं कि इतना टाइम क्यों लग गया?"

बर्तन लगभग धुल ही चुके थे। आख़िरी का एक बचा तो मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर उसे भी मांज दिया। अभी वो उसे शालू की तरफ बढ़ा ही देने वाला था कि उसने देखा शालू पहले से ही एक कनस्तर को धोने में लगी हुई थी इस लिए उसने उठ कर खुद ही उसे धोना शुरू कर दिया।

बर्तन धुल गए तो मंगू ने जगन और संपत को आवाज़ दे कर बुलाया और उन्हें बर्तन ले चलने को कहा। तीनों जब चले गए तो मोहन पानी की हऊदी से अपने हाथ पैर धोने लगा। दूसरी तरफ शालू भी चुपचाप अपने हाथ पैर धोने लगी थी।

"तुमने उससे झूठ क्यों बोला था कि वो दोनों तुमसे झगड़ रहे थे?" हाथ पांव धोने के बाद शालू ने अपने दुपट्टे को निकालते हुए मोहन से पूछा।

"अबे तू नहीं समझेगी।" मंगू ने इस तरह शान से मुस्कुराते हुए कहा जैसे वो उसे निहायत ही बेवकूफ़ समझता हो____"अपन ने झूठ इस लिए बोलेला था कि मंगू उन लोग को पेले पर लौड़ा उसका खून ही नहीं खौला।"

"अच्छा मतलब तुम अपने ही दोस्तों को मंगू से पिटवाना चाहते थे?" शालू ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर उसे देखा____"कितने ख़राब हो तुम।"

"अबे उन लोग से तो अपन अच्छा ही है।" मोहन ने एक बार फिर से झूठ बोलते हुए कहा____"उन लोग के तो भेजा ही नहीं है जबकि अपन पांचवीं पास है। अपन के भेजे में भारी दिमाग़ है।"

"हां हां पता चल गया है मुझे।" शालू ने उसे घूरते हुए कहा____"अच्छा तुमने ये तो बताया ही नहीं कि मेरी मां ने तुम्हें क्यों पिटवाया था?"

"अबे बहुत लंबी कहानी है ये।" मोहन ने अपने गमछे से अपना चेहरा पोंछते हुए कहा____"इस वक्त बताने का टाइम नहीं है अपन के पास। तुझे भी तो घर जाने का है न? अभी तू जा, अपन कल बताएगा तुझे।"

शालू उसे कुछ देर तक घूरती रही और फिर बुरा सा मुंह बना कर जाने लगी। उसे जाता देख मोहन एकदम से हड़बड़ा गया। वो तेज़ी से उसके पीछे लपका और फिर बोला____"अबे ये तो बता कि कल तू इधर आएगी कि नहीं?"

"मैं क्यों आऊं भला?" उसने पलट कर तिरछी नजरों से उसे देखा।
"अरे! क्या बोल रेली है तू?" मोहन एकदम से सकपकाते हुए बोला____"क्या तू बर्तन धोने में आज की तरह अपन की मदद करने नहीं आएगी?"

"वो तो मैं मालकिन के कहने पर आई थी।" शालू ने भोलेपन से आगे बढ़ते हुए कहा____"कल मालकिन नहीं कहेंगी तो क्यों आऊंगी भला?"

'बेटीचोद अब ये क्या लफड़ा है बे?' मोहन मन ही मन सोचते हुए बोल पड़ा____'कल अगर उस लौड़ी मालकिन ने इसको इधर आने को नहीं कहा तो अपन कैसे इसके साथ मज़ा कर सकेगा?'

"अरे! तो क्या तू अपनी मर्ज़ी से नहीं आ सकती क्या?" फिर मोहन ने अजीब सी शकल बना कर उससे कहा तो उसने फिर से उसे तिरछी नज़र से देखा और कहा____"आने को तो आ सकती हूं पर आऊंगी नहीं।"

"त...तू आ सकती है पर आएगी नहीं?" मोहन जैसे चकरा ही गया____"अबे ये क्या बोल रेली है तू?"

"हां तो मैं तुम्हारी गंदी बातें सुनने नहीं आऊंगी, समझे?" शालू ने फिर से आगे बढ़ते हुए कहा____"तुम्हें तो लड़की से बात करने की तमीज ही नहीं है। तुम्हें इतना भी नहीं पता कि किसके सामने क्या बोलना चाहिए?"

"माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन ने सहसा संजीदा हो कर उसे देखा____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग बचपन से ही ऐसेइच हैं। साला किसी ने बताया ही नहीं अपन लोग को कि किससे कैसे बात करने का है? तू अपन को सिखाएगी तो पक्का सीख जाएगा अपन।"

मोहन की बात सुन कर शालू के होठों पर सहसा मुस्कान उभर आई। कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद जाने क्या सोच कर उसने कहा____"ना बाबा ना मैं कुछ नहीं सिखा सकती। मां को पता चला तो बहुत मारेगी मुझे।"

"अबे तेरी मां ने अपन को कुटवाया था।" मोहन एकदम उसी के बराबर में आ कर चलते हुए बोला____"तो क्या तू अपन के लिए थोड़ा मार नहीं खा सकती? अपन तो अब तेरे को अपना पक्का दोस्त समझ रेला है।"

"हाय राम! ये क्या कह रहे हो तुम?" शालू बुरी तरह चौंकते हुए बोली____"नहीं नहीं, ये ग़लत है। तुम मुझसे ये मत बोलो। ना तो मैं तुम्हारी दोस्त हूं और ना ही मैं तुम्हें अपना दोस्त समझती हूं।"

"अबे क्यों अपन का दिल तोड़ रेली है?" मोहन ने जैसे हताश हो कर कहा____"अपन ने अक्खा लाइफ़ में किसी लड़की को दोस्त नहीं बनाएला है। साला अपन लोग के नसीब में कभी ऐसा टाइम‌इच नहीं आयला था। पहली बार अपन को किसी लड़की से बात करने का मौका मिलेला है। अम्मा क़सम अपन को तू बहुत अच्छी लग रेली है। तभी तो अपन तेरे को अपना दोस्त मान लियेला है।"

"पता नहीं तुम कैसी बातें बोल रहे हो।" शालू ने परेशान लहजे में कहा____"मुझे नहीं सुनना तुम्हारी ये बातें। जा रही हूं मैं।"

उसके बाद शालू उसकी कोई बात सुने बिना ही लगभग भागते हुए चली गई। इधर मोहन उसके ऐसे बर्ताव से बहुत निराश और उदास सा हो गया। मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए वो तबेले में पहुंच गया।

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रात में तीनों नमूने खा पी कर एक कमरे में ज़मीन पर ही लेटे हुए थे। कुछ दिनों से एक बदलाव दिख रहा था तीनों के बीच। जहां जगन और संपत एक साथ ही रहते थे वहीं मोहन उन दोनों से थोड़ा दूर ही रहने लगा था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन की हरकतों की वजह से कई बार जगन और संपत की पेलाई हो चुकी थी जिसके लिए दोनों अक्सर ही मोहन पर नाराज़ रहते थे। इस वक्त भी मोहन उन दोनों से अलग कमरे के दूसरे कोने में लेटा हुआ था और शालू के साथ हुई अपनी बातों के बारे में सोच रहा था। वो अब भी शालू द्वारा कही गई उसकी आख़िरी बात के लिए मायूस और उदास था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो ऐसा क्या करे जिससे कि शालू उसे दोस्ती कर ले और ज़्यादातर उसके साथ ही रहने का उसे मौका मिले।

"अबे ओ पांचवीं फेल।" सहसा उसके कानों में संपत की आवाज़ पड़ी____"लौड़े आज तो बड़ा कमला की लौंडिया के साथ मज़ा कर रेला था तू। साला उसके चक्कर में अपन लोग को तो भूल ही गएला था।"

"अबे घंटा मज़ा नहीं कर रेला था ये।" जगन बोल पड़ा____"बेटीचोद ये तो अपने साथ साथ अपन लोग की भी कुटाई करवाने का प्रबंध कर रेला था। देखना जल्दी ही इसकी वजह से अपन लोग की गांड़ तुड़ाई होगी। बेटीचोद इस बार अगर इसकी वजह से अपन लोग पेले गए तो अपन इसको जान से मार देगा।"

"अबे उसके पहले अपन इसकी गांड़ मारेगा।" संपत मुस्कुराते हुए बोला____"बाद में तेरे को जो करने का हो कर देने का।"

"बेटीचोदो तुम लोग अपन की गांड़ के पीछे क्यों पड़े हो बे?" मोहन खिसिया कर एकदम से बोल पड़ा____"लौड़ा अपन की गांड़ की तरफ देखा भी तो आंख फोड़ देगा अपन।"

"अच्छा ये तो बता लौड़े कि कमला की उस लौंडिया के साथ क्या बातें कर रेला था तू?" संपत ने उठ कर मोहन के पास आते हुए पूछा____"बेटीचोद इतनी देर से तू उसके साथ था तो कोई तो कांड किया ही होएगा न?"

संपत की बात सुन कर मोहन के ज़हन में बिजली की तरह उसे नीचा दिखाने का और खुद को तीस मार खां दिखाने का उपाय आ गया। वो मन ही मन उस उपाय के बारे में सोचते हुए मुस्कुरा उठा।

"अबे मत पूछ।" फिर वो अपनी ख़ुशी को ज़ाहिर करते हुए बोला____"बेटीचोद आज तो मज़ा ही आ गएला है अपन को।"

"भोसड़ी के कौन सा मज़ा मिल गएला है तुझे?" जगन और संपत दोनों ही आंखें फाड़ कर उसे देखने लगे, उधर संपत ने आगे कहा____"लौड़े अपन को भी तो कुछ बता।"

"अबे अपन क्या क्या बताए तेरे को लौड़े?" मोहन गहरी मुस्कान के साथ बोला____"शालू डार्लिंग के साथ तो अपन का टांका ही भिड़ गएला है।"

"बेटीचोद ये क्या बोल रेला है बे?" संपत की आंखें और भी ज़्यादा फैल गईं____"लौड़े झूठ बोलेगा तो अपन गांड़ तोड़ देगा तेरी।"

"अबे अपन भारी सत्यवादी आदमी है।" मोहन ने गर्व से सीना चौड़ा करते हुए बोला____"बोले तो एकदम हरिश्चंद्र के माफिक। अम्मा बापू की क़सम आज तो अपन को मज़ा ही आ गया लौड़ा।"

मोहन की बात सुन कर जगन तो चकित था ही संपत भी आंखें फाड़े उसे देखे जा रहा था। उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि कमला की बेटी का मोहन के साथ टांका भिड़ सकता है। लेकिन मोहन के खुशी से चमकते चेहरे को देख उसे कहीं न कहीं ये लगने लगा था कि शायद वो सच बोल रहा है।

"भोसड़ी के तू तो छुपा रुस्तम निकला बे।" फिर उसने मोहन से कहा____"लौड़ा अपन को तो यकीन ही नहीं हो रेला है कि कमला की बेटी अपनी मां से भी ज़्यादा छिनाल होएगी।"

"बेटीचोद उसको छिनाल बोलेगा तो खोपड़ी फोड़ देगा तेरी।" मोहन एकदम से गुस्सा हो गया____"लौड़े अब वो भाभी है तेरी इस लिए इज्ज़त से बोलने का, समझा?"

"भ...भाभी???" संपत के साथ साथ जगन भी उछल पड़ा, फिर हैरत से आंखें फाड़ कर संपत बोला____"भोसड़ी के ये कब हुआ? लौड़े सच में आज भांग का नशा कियेला है क्या बे?"

"झूठ बोल रेला है बेटीचोद।" जगन खिसियाए हुए लहजे से बोल पड़ा____"उस लौड़ी का घंटा इससे कोई टांका वांका नहीं भिड़ेला है। फेंक रेला है ये लौड़ा।"

"हाहाहाहा अबे तेरे को नहीं मानने का है तो मत मान लौड़े।" मोहन खुशी से ठहाका लगाते हुए बोल पड़ा____"तेरे ना मानने से अपन को घंटा फ़र्क नहीं पड़ता। सच तो यहिच है कि अपन का उससे मस्त टांका भिड़ गएला है और तो और उसने तो अपन को अपने दूधू भी दिखाए लौड़ा। अम्मा क़सम क्या मस्त दूधू थे अपन की शालू के।"

मोहन की बात सुन कर जगन भौचक्का सा देखता रह गया उसे। यही हाल संपत का भी था। दोनों के दिमाग़ का जैसे अचानक ही फ्यूज उड़ गया। इधर उन दोनों की ये हालत देख कर मोहन को बेहद खुशी हो रही थी। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो। इस वक्त वो गर्व और शान से इस तरह अकड़ गया था कि किसी के ज़ोर लगाने पर भी वो टस से मस नहीं हो सकता था।

"अबे क्या तू सच बोल रेला है?" संपत ने जैसे खुद को सम्हाल कर आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"अपन का मतलब है कि क्या सच में शालू ने तेरे को अपने दूधू दिखाए? और.....और क्या सच में उससे तेरा टांका भिड़ ग‌एला है?"

"लो कर लो बात।" मोहन जैसे उसका मज़ाक उड़ाते हुए बोला____"लौड़ा खुद को पांचवीं पास बोलता है और इतना भी नहीं समझ रेला है कि अपन को बर्तन धोने में इतना टाइम क्यों लग गएला था?"

"म...मतलब??" संपत बुरी तरह हैरान परेशान सा बोला____"अबे मतलब इसी लिए आज तेरे को इतना टाइम लग गएला था?"

"और नहीं तो क्या।" मोहन पलक झपकते ही सातवें आसमान में पहुंच गया____"अबे अपन दोनों लोग तो बहुत देर तक मस्ती ही कर रेले थे। बेटीचोद अपन तो भूल ही गएला था कि अपन को बर्तन भी धोने का है। वो तो अपन की शालू ने अपन को याद दिलाएला था।"

"अबे जगन सुन रेला है बे तू?" संपत आश्चर्य से जगन की तरफ घूमा। जगन पहले से ही चकरघिन्नी बना बैठा उसे देखे जा रहा था। संपत की बात से वो एकदम से चौंक पड़ा।

"अ...अबे क्या हुआ लौड़े?" फिर वो एकदम से बोल पड़ा।
"भोसड़ी के तू साले मंद बुद्धि ही बना बैठा रहेगा लौड़े।" संपत मानो चिढ़ कर बोला____"और इधर ये चिंदी चोर साला उस कमला की लौंडिया को अपन लोग की भाभी बना के रख दियेला है।"

"झ...झूठ बोल रेला है ये बेटीचोद।" जगन हाथ झटकते हुए बोला____"और तू भी लौड़े इसकी बात का खाली पीली भरोसा मत कर। देखना ये अपन लोग को फिर कुटवाएगा।"

"नहीं बे।" संपत ने कहा____"अपन को तो लग रेला है कि ये चिंदी चोर सच बोल रेला है। बेटीचोद इसी लिए ये लौड़ा कुछ दिनों से अपन लोग से कट के रह रेला था। तूने भी तो देखा ही था लौड़े कि कैसे ये उस लौंडिया के साथ मज़े से हंस बोल रेला था।"

"अबे तू भी क्या इस मंद बुद्धि को समझा रेला है बे लौड़े।" मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा___"अपन अगर इसकी आंखों के सामने भी शालू को पेलेगा तब भी ये लौड़ा यकीन नहीं करेगा।"

मोहन का इतना कहना था कि जगन झपट पड़ा उस पर। मोहन को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वो अचानक ही गुस्सा हो कर उस पर टूट पड़ेगा। जगन ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ा और ज़ोर से ठेलते हुए पीछे दीवार पर ले जा कर उसे भिड़ा दिया। पीठ पर ज़ोर से दीवार लगी तो मोहन के हलक से चीख निकल गई।

"भोसड़ी के आज कल बहुत बोल रेला है तू।" जगन उसको दबोचे गुस्से में गुर्राया____"आज तेरी ज़ुबान ही काट देगा अपन।"

"अबे छोड़ दे बे लौड़े।" मोहन उससे छूटने का प्रयास करते हुए चीखा____"आह...अबे तेरा नाखून अपन के गले में चुभ रेला है भोसड़ी के, छोड़ दे।"

"अबे ये क्या कर रेला है बे?" संपत जल्दी से आगे बढ़ जगन को अपनी तरफ खींचते हुए बोला____"छोड़ दे उसको लौड़े, मर जाएगा ये।"

"तू हट जा बे।" जगन गुस्से से चीखा____"आज अपन इसकी जान ले के रहेगा। बहुत बोलता है बेटीचोद।"

"अबे भगवान ने अपन को मुंह दिएला है तो बोलेगा ही न लौड़े।" संपत ने जैसे ही जगन को मोहन से अलग किया तो वो अपना गला सहलाते हुए बोल पड़ा____"अपन का शालू से टांका भिड़ गएला है तो अपन से जल रेला है बेटीचोद।"

"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"

मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।



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Bahut hi badhiya update diya hai The_InnoCent bhai....
Nice and beautiful update...
 
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