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"अब तो घंटा नहीं धोएगा अपन।" शालू के सामने अपनी इज्ज़त का कचरा होते देख मोहन गुस्से में चीख ही पड़ा____"तेरे को जो उखाड़ना है उखाड़ ले अपन का।"
मोहन की बात सुन कर जगन अभी उस पर झपट ही पड़ने वाला था कि संपत ने पकड़ लिया उसे। उधर इन तीनों का ये बवाल देख शालू बुरी तरह घबरा गई थी। पहले तो उसे हंसी आ रही थी तीनों की बातें सुन कर किंतु अब जब उसने देखा कि तीनों लड़ ही पड़ेंगे तो उसकी भी सांसें अटक गईं थी। संपत ने ऐन मौके पर माहौल की नज़ाकत को समझ लिया और उसने लड़ाई होने से बचा लिया। उसने नर्मी से समझा कर मोहन को बर्तन धोने के लिए मनाया और फिर वो जगन को ले दूर जा कर बैठ गया। उन दोनों के जाते ही मोहन ने एक नज़र शालू को देखा और फिर जल्दी जल्दी कनस्तर को मांजने लगा।
अब आगे....
"मालकिन मैं जा कर देखूं क्या उन लोगों को?" मंगू ने प्रीतो की तरफ देखते हुए कहा____"कहीं ऐसा न हो कि वो तीनों आपस में झगड़ा करने लगें। कमला की बेटी भी वहीं है, कहीं वो लोग उसको परेशान न करने लगें।"
"हां जा कर देखो तो।" प्रीतो ने कुछ सोचते हुए कहा____"वो दोनों भी अभी तक नहीं आए। पता नहीं क्या करने लगे हैं वो वहां पर?"
प्रीतो का इतना कहना था कि मंगू बंदूक से छूटी गोली की तरह ट्यूब वेल की तरफ भाग चला। पहले तो वो इसी सोच में डूबा हुआ था कि मोहन जाने कैसी कैसी हरकतें कर रहा होगा शालू के साथ और अब जब जगन और संपत भी लौट कर न आए तो उसकी बेचैनी बढ़ गई थी। ख़ैर जल्दी ही वो ट्यूब वेल के पास पहुंच गया। उसने देखा जगन और संपत आराम से एक जगह बैठे हुए थे जबकि मोहन और शालू बर्तन धो रहे थे। ये देख कर मंगू को गुस्सा भी आया और हैरानी भी हुई। हैरानी इस लिए कि हर दिन की अपेक्षा आज मोहन ने कुछ ज़्यादा ही समय लगा दिया था बर्तनों को धोने में। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी। उसने उसे बड़े ध्यान से देखा। शालू मोहन द्वारा मांजे हुए एक छोटे से कनस्तर को धोने में व्यस्त थी। उसके चेहरे पर उसे ऐसा बिल्कुल भी नज़र ना आया जिससे ये लगे कि वो किसी परेशानी में है।
"क्यों रे मोहन, तुमने आज इतना समय क्यों लगा दिया बर्तन धोने में?" मंगू मोहन के पास आ कर बोल पड़ा____"मालकिन कब से इंतज़ार कर रहीं हैं बर्तनों का।"
"अबे अपन लोग तो धो ही रेले थे।" मोहन ने जगन और संपत की तरफ इशारा करते हुए कहा____"पर लौड़ा ये लोग अपन लोग को धोने ही नहीं दे रेले थे।"
"ये क्या कह रहा है तू?" मंगू ने हैरानी से पूछा____ये लोग क्यों नहीं धोने दे रहे थे भला?"
"अबे ये लोग अपन से झगड़ रेले थे।" मोहन ने सफ़ेद झूठ बोला तो सामने बैठी शालू उसे आंखें फाड़ कर देखने लगी, इधर मोहन अपनी ही धुन में बोला____"बेटीचोद अपन को भी गुस्सा आ गएला था इस लिए बोल दिया कि अपन घंटा नहीं धोएगा अब।"
मंगू उसके मुख से गाली सुन कर चौंका। शालू के सामने इस तरह उसका धड़ल्ले से गाली देने से उसे उस पर बहुत गुस्सा आया किंतु इस वक्त समय बर्बाद करना ठीक नहीं समझा उसने।
"अच्छा ठीक है जल्दी से धो दे।" मंगू ने बेचैनी से कहा____"मालकिन बहुत गुस्सा कर रही हैं कि इतना टाइम क्यों लग गया?"
बर्तन लगभग धुल ही चुके थे। आख़िरी का एक बचा तो मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर उसे भी मांज दिया। अभी वो उसे शालू की तरफ बढ़ा ही देने वाला था कि उसने देखा शालू पहले से ही एक कनस्तर को धोने में लगी हुई थी इस लिए उसने उठ कर खुद ही उसे धोना शुरू कर दिया।
बर्तन धुल गए तो मंगू ने जगन और संपत को आवाज़ दे कर बुलाया और उन्हें बर्तन ले चलने को कहा। तीनों जब चले गए तो मोहन पानी की हऊदी से अपने हाथ पैर धोने लगा। दूसरी तरफ शालू भी चुपचाप अपने हाथ पैर धोने लगी थी।
"तुमने उससे झूठ क्यों बोला था कि वो दोनों तुमसे झगड़ रहे थे?" हाथ पांव धोने के बाद शालू ने अपने दुपट्टे को निकालते हुए मोहन से पूछा।
"अबे तू नहीं समझेगी।" मंगू ने इस तरह शान से मुस्कुराते हुए कहा जैसे वो उसे निहायत ही बेवकूफ़ समझता हो____"अपन ने झूठ इस लिए बोलेला था कि मंगू उन लोग को पेले पर लौड़ा उसका खून ही नहीं खौला।"
"अच्छा मतलब तुम अपने ही दोस्तों को मंगू से पिटवाना चाहते थे?" शालू ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर उसे देखा____"कितने ख़राब हो तुम।"
"अबे उन लोग से तो अपन अच्छा ही है।" मोहन ने एक बार फिर से झूठ बोलते हुए कहा____"उन लोग के तो भेजा ही नहीं है जबकि अपन पांचवीं पास है। अपन के भेजे में भारी दिमाग़ है।"
"हां हां पता चल गया है मुझे।" शालू ने उसे घूरते हुए कहा____"अच्छा तुमने ये तो बताया ही नहीं कि मेरी मां ने तुम्हें क्यों पिटवाया था?"
"अबे बहुत लंबी कहानी है ये।" मोहन ने अपने गमछे से अपना चेहरा पोंछते हुए कहा____"इस वक्त बताने का टाइम नहीं है अपन के पास। तुझे भी तो घर जाने का है न? अभी तू जा, अपन कल बताएगा तुझे।"
शालू उसे कुछ देर तक घूरती रही और फिर बुरा सा मुंह बना कर जाने लगी। उसे जाता देख मोहन एकदम से हड़बड़ा गया। वो तेज़ी से उसके पीछे लपका और फिर बोला____"अबे ये तो बता कि कल तू इधर आएगी कि नहीं?"
"मैं क्यों आऊं भला?" उसने पलट कर तिरछी नजरों से उसे देखा।
"अरे! क्या बोल रेली है तू?" मोहन एकदम से सकपकाते हुए बोला____"क्या तू बर्तन धोने में आज की तरह अपन की मदद करने नहीं आएगी?"
"वो तो मैं मालकिन के कहने पर आई थी।" शालू ने भोलेपन से आगे बढ़ते हुए कहा____"कल मालकिन नहीं कहेंगी तो क्यों आऊंगी भला?"
'बेटीचोद अब ये क्या लफड़ा है बे?' मोहन मन ही मन सोचते हुए बोल पड़ा____'कल अगर उस लौड़ी मालकिन ने इसको इधर आने को नहीं कहा तो अपन कैसे इसके साथ मज़ा कर सकेगा?'
"अरे! तो क्या तू अपनी मर्ज़ी से नहीं आ सकती क्या?" फिर मोहन ने अजीब सी शकल बना कर उससे कहा तो उसने फिर से उसे तिरछी नज़र से देखा और कहा____"आने को तो आ सकती हूं पर आऊंगी नहीं।"
"त...तू आ सकती है पर आएगी नहीं?" मोहन जैसे चकरा ही गया____"अबे ये क्या बोल रेली है तू?"
"हां तो मैं तुम्हारी गंदी बातें सुनने नहीं आऊंगी, समझे?" शालू ने फिर से आगे बढ़ते हुए कहा____"तुम्हें तो लड़की से बात करने की तमीज ही नहीं है। तुम्हें इतना भी नहीं पता कि किसके सामने क्या बोलना चाहिए?"
"माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन ने सहसा संजीदा हो कर उसे देखा____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग बचपन से ही ऐसेइच हैं। साला किसी ने बताया ही नहीं अपन लोग को कि किससे कैसे बात करने का है? तू अपन को सिखाएगी तो पक्का सीख जाएगा अपन।"
मोहन की बात सुन कर शालू के होठों पर सहसा मुस्कान उभर आई। कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद जाने क्या सोच कर उसने कहा____"ना बाबा ना मैं कुछ नहीं सिखा सकती। मां को पता चला तो बहुत मारेगी मुझे।"
"अबे तेरी मां ने अपन को कुटवाया था।" मोहन एकदम उसी के बराबर में आ कर चलते हुए बोला____"तो क्या तू अपन के लिए थोड़ा मार नहीं खा सकती? अपन तो अब तेरे को अपना पक्का दोस्त समझ रेला है।"
"हाय राम! ये क्या कह रहे हो तुम?" शालू बुरी तरह चौंकते हुए बोली____"नहीं नहीं, ये ग़लत है। तुम मुझसे ये मत बोलो। ना तो मैं तुम्हारी दोस्त हूं और ना ही मैं तुम्हें अपना दोस्त समझती हूं।"
"अबे क्यों अपन का दिल तोड़ रेली है?" मोहन ने जैसे हताश हो कर कहा____"अपन ने अक्खा लाइफ़ में किसी लड़की को दोस्त नहीं बनाएला है। साला अपन लोग के नसीब में कभी ऐसा टाइमइच नहीं आयला था। पहली बार अपन को किसी लड़की से बात करने का मौका मिलेला है। अम्मा क़सम अपन को तू बहुत अच्छी लग रेली है। तभी तो अपन तेरे को अपना दोस्त मान लियेला है।"
"पता नहीं तुम कैसी बातें बोल रहे हो।" शालू ने परेशान लहजे में कहा____"मुझे नहीं सुनना तुम्हारी ये बातें। जा रही हूं मैं।"
उसके बाद शालू उसकी कोई बात सुने बिना ही लगभग भागते हुए चली गई। इधर मोहन उसके ऐसे बर्ताव से बहुत निराश और उदास सा हो गया। मन में तरह तरह की बातें सोचते हुए वो तबेले में पहुंच गया।
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रात में तीनों नमूने खा पी कर एक कमरे में ज़मीन पर ही लेटे हुए थे। कुछ दिनों से एक बदलाव दिख रहा था तीनों के बीच। जहां जगन और संपत एक साथ ही रहते थे वहीं मोहन उन दोनों से थोड़ा दूर ही रहने लगा था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन की हरकतों की वजह से कई बार जगन और संपत की पेलाई हो चुकी थी जिसके लिए दोनों अक्सर ही मोहन पर नाराज़ रहते थे। इस वक्त भी मोहन उन दोनों से अलग कमरे के दूसरे कोने में लेटा हुआ था और शालू के साथ हुई अपनी बातों के बारे में सोच रहा था। वो अब भी शालू द्वारा कही गई उसकी आख़िरी बात के लिए मायूस और उदास था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर वो ऐसा क्या करे जिससे कि शालू उसे दोस्ती कर ले और ज़्यादातर उसके साथ ही रहने का उसे मौका मिले।
"अबे ओ पांचवीं फेल।" सहसा उसके कानों में संपत की आवाज़ पड़ी____"लौड़े आज तो बड़ा कमला की लौंडिया के साथ मज़ा कर रेला था तू। साला उसके चक्कर में अपन लोग को तो भूल ही गएला था।"
"अबे घंटा मज़ा नहीं कर रेला था ये।" जगन बोल पड़ा____"बेटीचोद ये तो अपने साथ साथ अपन लोग की भी कुटाई करवाने का प्रबंध कर रेला था। देखना जल्दी ही इसकी वजह से अपन लोग की गांड़ तुड़ाई होगी। बेटीचोद इस बार अगर इसकी वजह से अपन लोग पेले गए तो अपन इसको जान से मार देगा।"
"अबे उसके पहले अपन इसकी गांड़ मारेगा।" संपत मुस्कुराते हुए बोला____"बाद में तेरे को जो करने का हो कर देने का।"
"बेटीचोदो तुम लोग अपन की गांड़ के पीछे क्यों पड़े हो बे?" मोहन खिसिया कर एकदम से बोल पड़ा____"लौड़ा अपन की गांड़ की तरफ देखा भी तो आंख फोड़ देगा अपन।"
"अच्छा ये तो बता लौड़े कि कमला की उस लौंडिया के साथ क्या बातें कर रेला था तू?" संपत ने उठ कर मोहन के पास आते हुए पूछा____"बेटीचोद इतनी देर से तू उसके साथ था तो कोई तो कांड किया ही होएगा न?"
संपत की बात सुन कर मोहन के ज़हन में बिजली की तरह उसे नीचा दिखाने का और खुद को तीस मार खां दिखाने का उपाय आ गया। वो मन ही मन उस उपाय के बारे में सोचते हुए मुस्कुरा उठा।
"अबे मत पूछ।" फिर वो अपनी ख़ुशी को ज़ाहिर करते हुए बोला____"बेटीचोद आज तो मज़ा ही आ गएला है अपन को।"
"भोसड़ी के कौन सा मज़ा मिल गएला है तुझे?" जगन और संपत दोनों ही आंखें फाड़ कर उसे देखने लगे, उधर संपत ने आगे कहा____"लौड़े अपन को भी तो कुछ बता।"
"अबे अपन क्या क्या बताए तेरे को लौड़े?" मोहन गहरी मुस्कान के साथ बोला____"शालू डार्लिंग के साथ तो अपन का टांका ही भिड़ गएला है।"
"बेटीचोद ये क्या बोल रेला है बे?" संपत की आंखें और भी ज़्यादा फैल गईं____"लौड़े झूठ बोलेगा तो अपन गांड़ तोड़ देगा तेरी।"
"अबे अपन भारी सत्यवादी आदमी है।" मोहन ने गर्व से सीना चौड़ा करते हुए बोला____"बोले तो एकदम हरिश्चंद्र के माफिक। अम्मा बापू की क़सम आज तो अपन को मज़ा ही आ गया लौड़ा।"
मोहन की बात सुन कर जगन तो चकित था ही संपत भी आंखें फाड़े उसे देखे जा रहा था। उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि कमला की बेटी का मोहन के साथ टांका भिड़ सकता है। लेकिन मोहन के खुशी से चमकते चेहरे को देख उसे कहीं न कहीं ये लगने लगा था कि शायद वो सच बोल रहा है।
"भोसड़ी के तू तो छुपा रुस्तम निकला बे।" फिर उसने मोहन से कहा____"लौड़ा अपन को तो यकीन ही नहीं हो रेला है कि कमला की बेटी अपनी मां से भी ज़्यादा छिनाल होएगी।"
"बेटीचोद उसको छिनाल बोलेगा तो खोपड़ी फोड़ देगा तेरी।" मोहन एकदम से गुस्सा हो गया____"लौड़े अब वो भाभी है तेरी इस लिए इज्ज़त से बोलने का, समझा?"
"भ...भाभी???" संपत के साथ साथ जगन भी उछल पड़ा, फिर हैरत से आंखें फाड़ कर संपत बोला____"भोसड़ी के ये कब हुआ? लौड़े सच में आज भांग का नशा कियेला है क्या बे?"
"झूठ बोल रेला है बेटीचोद।" जगन खिसियाए हुए लहजे से बोल पड़ा____"उस लौड़ी का घंटा इससे कोई टांका वांका नहीं भिड़ेला है। फेंक रेला है ये लौड़ा।"
"हाहाहाहा अबे तेरे को नहीं मानने का है तो मत मान लौड़े।" मोहन खुशी से ठहाका लगाते हुए बोल पड़ा____"तेरे ना मानने से अपन को घंटा फ़र्क नहीं पड़ता। सच तो यहिच है कि अपन का उससे मस्त टांका भिड़ गएला है और तो और उसने तो अपन को अपने दूधू भी दिखाए लौड़ा। अम्मा क़सम क्या मस्त दूधू थे अपन की शालू के।"
मोहन की बात सुन कर जगन भौचक्का सा देखता रह गया उसे। यही हाल संपत का भी था। दोनों के दिमाग़ का जैसे अचानक ही फ्यूज उड़ गया। इधर उन दोनों की ये हालत देख कर मोहन को बेहद खुशी हो रही थी। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो। इस वक्त वो गर्व और शान से इस तरह अकड़ गया था कि किसी के ज़ोर लगाने पर भी वो टस से मस नहीं हो सकता था।
"अबे क्या तू सच बोल रेला है?" संपत ने जैसे खुद को सम्हाल कर आश्चर्य से उसकी तरफ देखते हुए पूछा____"अपन का मतलब है कि क्या सच में शालू ने तेरे को अपने दूधू दिखाए? और.....और क्या सच में उससे तेरा टांका भिड़ गएला है?"
"लो कर लो बात।" मोहन जैसे उसका मज़ाक उड़ाते हुए बोला____"लौड़ा खुद को पांचवीं पास बोलता है और इतना भी नहीं समझ रेला है कि अपन को बर्तन धोने में इतना टाइम क्यों लग गएला था?"
"म...मतलब??" संपत बुरी तरह हैरान परेशान सा बोला____"अबे मतलब इसी लिए आज तेरे को इतना टाइम लग गएला था?"
"और नहीं तो क्या।" मोहन पलक झपकते ही सातवें आसमान में पहुंच गया____"अबे अपन दोनों लोग तो बहुत देर तक मस्ती ही कर रेले थे। बेटीचोद अपन तो भूल ही गएला था कि अपन को बर्तन भी धोने का है। वो तो अपन की शालू ने अपन को याद दिलाएला था।"
"अबे जगन सुन रेला है बे तू?" संपत आश्चर्य से जगन की तरफ घूमा। जगन पहले से ही चकरघिन्नी बना बैठा उसे देखे जा रहा था। संपत की बात से वो एकदम से चौंक पड़ा।
"अ...अबे क्या हुआ लौड़े?" फिर वो एकदम से बोल पड़ा।
"भोसड़ी के तू साले मंद बुद्धि ही बना बैठा रहेगा लौड़े।" संपत मानो चिढ़ कर बोला____"और इधर ये चिंदी चोर साला उस कमला की लौंडिया को अपन लोग की भाभी बना के रख दियेला है।"
"झ...झूठ बोल रेला है ये बेटीचोद।" जगन हाथ झटकते हुए बोला____"और तू भी लौड़े इसकी बात का खाली पीली भरोसा मत कर। देखना ये अपन लोग को फिर कुटवाएगा।"
"नहीं बे।" संपत ने कहा____"अपन को तो लग रेला है कि ये चिंदी चोर सच बोल रेला है। बेटीचोद इसी लिए ये लौड़ा कुछ दिनों से अपन लोग से कट के रह रेला था। तूने भी तो देखा ही था लौड़े कि कैसे ये उस लौंडिया के साथ मज़े से हंस बोल रेला था।"
"अबे तू भी क्या इस मंद बुद्धि को समझा रेला है बे लौड़े।" मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा___"अपन अगर इसकी आंखों के सामने भी शालू को पेलेगा तब भी ये लौड़ा यकीन नहीं करेगा।"
मोहन का इतना कहना था कि जगन झपट पड़ा उस पर। मोहन को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि वो अचानक ही गुस्सा हो कर उस पर टूट पड़ेगा। जगन ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ा और ज़ोर से ठेलते हुए पीछे दीवार पर ले जा कर उसे भिड़ा दिया। पीठ पर ज़ोर से दीवार लगी तो मोहन के हलक से चीख निकल गई।
"भोसड़ी के आज कल बहुत बोल रेला है तू।" जगन उसको दबोचे गुस्से में गुर्राया____"आज तेरी ज़ुबान ही काट देगा अपन।"
"अबे छोड़ दे बे लौड़े।" मोहन उससे छूटने का प्रयास करते हुए चीखा____"आह...अबे तेरा नाखून अपन के गले में चुभ रेला है भोसड़ी के, छोड़ दे।"
"अबे ये क्या कर रेला है बे?" संपत जल्दी से आगे बढ़ जगन को अपनी तरफ खींचते हुए बोला____"छोड़ दे उसको लौड़े, मर जाएगा ये।"
"तू हट जा बे।" जगन गुस्से से चीखा____"आज अपन इसकी जान ले के रहेगा। बहुत बोलता है बेटीचोद।"
"अबे भगवान ने अपन को मुंह दिएला है तो बोलेगा ही न लौड़े।" संपत ने जैसे ही जगन को मोहन से अलग किया तो वो अपना गला सहलाते हुए बोल पड़ा____"अपन का शालू से टांका भिड़ गएला है तो अपन से जल रेला है बेटीचोद।"
"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"
मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।
Dono hi updates ekdum jhakkass he The_InnoCent Shubham Bhai
Ek baat to tay he ki Mohan ka dimag schemes banane me ekdum fast he................bhali hi aage chalkar wo schemes ki vajah se tino ki thukaai hoti he
Dono hi updates ekdum jhakkass he The_InnoCent Shubham Bhai
Ek baat to tay he ki Mohan ka dimag schemes banane me ekdum fast he................bhali hi aage chalkar wo schemes ki vajah se tino ki thukaai hoti he
"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"
मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।
अब आगे....
अगली सुबह हुई।
आज भी तबेले में जोगिंदर नज़र नहीं आया। प्रीतो के न रहने से उसने घर का जो कबाड़ा किया था उसको चमाचम करने में लगा हुआ था वो। घर की सफाई के बाद अब घर में पोताई का काम शुरू करवा दिया था उसने। प्रीतो ने अच्छे से समझा दिया था कि घर के किस किस हिस्से में कौन कौन सा रंग पोता जाएगा। जोगिंदर प्रीतो को खुश करने के लिए बिना कोई विरोध किए सब कुछ करवाने में लगा हुआ था। पुताई के लिए उसने दो मजदूर लगवा दिए थे। प्रीतो का कहना था कि जब तक वो उसका घर चमाचम नहीं करवा देता तब तक वो तबेले में नहीं आ सकता और ना ही अपने किसी काम से कहीं बाहर जा सकता है। बाहर सिर्फ वो दूध बेचने ही जा सकता है।
तबेले में सुबह मवेशियों को चारा भूसा डालने के बाद उनका दूध निकालने का काम शुरू हो चुका था। मवेशियों का दूध निकालने के लिए प्रीतो के साथ मंगू और बबलू ही थे। बिरजू अभी वापस नहीं आया था। दूसरी तरफ जगन और संपत आस पास की सफाई में लगे हुए थे जबकि मोहन को खुद प्रीतो ने दूध के कनस्तर धोने के लिए ट्यूब वेल में भेज दिया था।
मोहन ट्यूब वेल में बर्तनों को धोने में लगा हुआ था। हालाकि अकेले बर्तन धोने में आज उसे मज़ा नहीं आ रहा था। रह रह कर उसे शालू की याद आ जाती थी और साथ ही कल शाम को उसके साथ बिताया हुआ पल भी। जिसके बारे में सोच सोच कर कभी वो खुश होता तो कभी मायूस हो जाता। आख़िर किसी तरह उसने बर्तन धुले और फिर उन बर्तनों को जगन और संपत की मदद से तबेले में पहुंचा दिया।
जोगिंदर दूध बेचने के लिए क़रीब दस बजे शहर जाता था। इस लिए जब सारा दूध कनस्तर में भर कर उसके छोटे से टेंपो में रख दिया गया तो वो टेंपो ले कर शहर चला गया। वहीं दूसरी तरफ उसके घर में शालू और रवि सबके लिए खाना बनाने में लगे हुए थे। सभी कामों से फुर्सत होने के बाद प्रीतो के कहने पर सब नहाने धोने के लिए ट्यूब वेल में चले गए।
दोपहर को खाना पीना हुआ और फिर तीनों नमूने कमरे में आराम करने के लिए आ गए। प्रीतो के आने से इतना ज़रूर हुआ था कि उन तीनों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी और ना ही उन्हें किसी की बातें सुननी पड़ती थी। इस बात से तीनों ही खुश थे किंतु मोहन की खुशी थोड़ा फीकी सी थी। ज़ाहिर है उसके दिलो दिमाग़ में कमला की बेटी शालू छाई हुई थी।
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दूसरी तरफ कमला को भी रवि के द्वारा पता चल चुका था कि जोगिंदर की बीवी आ चुकी है। जोगिंदर ने तो उसे यही बताया था कि अब शायद ही वो कभी आएगी और यही सोच कर दोनों अपनी मर्ज़ी से ऐश कर रहे थे किंतु अब जैसे हर चीज़ में विराम सा लग जाने वाला था। कमला ने जोगिंदर को जान बूझ कर अपने जिस्म को भोगने का निमंत्रण दिया था। उसे पता था कि जोगिंदर अकेला है और उसकी हर ज़रूरत को पूरा कर सकता है। अपने शराबी पति से उसे कोई उम्मीद नहीं थी। कुछ समय बाद उसकी बेटी ब्याह करने लायक हो जाती तो वो भला कैसे उसका ब्याह कर पाती? यही सब सोच कर उसने जोगिंदर को फांसा था, ताकि उससे वो अपनी ज़रूरत की हर चीज़ प्राप्त कर सके।
प्रीतो के आने से उसके मंसूबों पर एक तरह से पानी फिर गया था। कमला इस बात से बेहद परेशान हो गई थी। इसके पहले उसने तस्वीर में ही प्रीतो को देखा था जोकि उसके कहने पर जोगिंदर ने ही उसे दिखाया था किंतु सामना अभी तक न हुआ था उसका। वो जानती थी कि अब उसका सामना भी होगा क्योंकि ठीक होने के बाद उसे काम करने के लिए तबेले में तो जाना ही पड़ेगा। कमला सोच रही थी कि क्या प्रीतो को उसके पति के साथ उसके संबंधों का पता होगा? इसका जवाब उसे कहीं न कहीं पता ही था। वो जानती थी कि तबेले में काम करने वाले जोगिंदर के मुलाजिमों ने ज़रूर प्रीतो के कान में ऐसी बात पहुंचा दी होगी। उसे याद आया कि एक बार मंगू को उसने बहुत कुछ सुना दिया था तो ज़ाहिर है कि मंगू उसके बारे में प्रीतो को बता ही सकता है।
कमला अब पहले से ठीक थी। माथे पर लगी चोट में अभी भी पट्टी लगी हुई थी किंतु अब वो घर के छोटे मोटे काम खुद ही कर लेती थी। उसकी जेठानी निर्मला हर रोज़ उसके घर आ कर उसका हाल चाल लेती थी और उसके बड़े बड़े काम भी कर देती थी। ऐसे ही आलम में उसे एहसास हुआ था कि उसकी जेठानी कितनी भली औरत है और उसने अब तक कितना ग़लत किया था उसके साथ। उधर उसके पति ने भी उस दिन के बाद से कोई तमाशा नहीं किया था। ये अलग बात है कि वो अब भी पी के ही आता था।
कमला रवि और शालू से रोज़ जोगिंदर के यहां का हाल चाल पूछती थी। वो भली भांति समझ लेना चाहती थी कि उधर का हाल कैसा है आज कल ताकि ठीक होने के बाद जब वो दुबारा वहां काम करने जाए तो उसे किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। उसके अंदर घबराहट तो थी ही किंतु बेचैनी भी थी। जोगिंदर के साथ हमबिस्तर हो कर मज़ा करने की बेचैनी। पिछले एक साल से वो जोगिंदर के साथ उसकी बीवी की ही तरह रह कर मज़ा कर रही थी और अब तक वो इसकी आदी भी हो चुकी थी। उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि कल वो जोगिंदर के तबेले में ज़रूर जाएगी।
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जगन और संपत तो सो गए थे लेकिन मोहन की आंखों में नींद का नामो निशान न था। उसे शाम होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार था। बड़ी मुश्किल से करवटें बदलते हुए उसका समय गुज़रा। जैसे ही चार बजे वो झट से उठ गया और फिर जगन और संपत को जगाए बिना ही चुपचाप दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गया।
तबेले में आ कर उसने देखा मंगू और बबलू बीड़ी पीते हुए मवेशियों के खाने के लिए चारा भूसा डाल रहे थे। मोहन को आया देख दोनों पहले तो हल्के से चौंके फिर सहसा मुस्कुरा उठे।
"क्यों बे आज बड़ा जल्दी उठ कर आ गया यहां?" मंगू ने मुस्कुराते हुए पूछा____"तेरी इस ज़ल्दबाज़ी का राज़ क्या है? हमें भी बता दे भाई।"
"अबे ऐसा कुछ नहीं है।" मोहन सकपकाते हुए अपने ही अंदाज़ में बोला____"लौड़ा अपन को नींद ही नहीं आ रेली थी तो अपन चला आया इधर।"
"क्या हुआ तेरी नींद को?" बबलू ने उसके लिए फिक्रमंद हो जाने का नाटक किया____"तेरी तबीयत तो ठीक है ना?"
"अबे घंटा ठीक होगी।" मोहन से पहले मंगू बोल पड़ा____"इसके अंदर तो कमला की लौंडिया का भूत समा गया है। ऐसे में भला कैसे इसकी तबीयत ठीक हो सकती है? मैं सही कह रहा हूं ना मोहन?"
"हां...न....न नहीं तो।" मोहन एकदम से हड़बड़ा गया, फिर सम्भल कर बोला____"अपन तो एकदम ठीक है, बोले तो झक्कास।"
"चल ठीक है फिर।" बबलू ने मुस्कुराते हुए कहा____"आज अगर शालू आएगी तो मैं मालकिन से कह दूंगा कि वो शालू को बर्तन धोने में तेरी मदद करने के लिए न भेजे।"
"अरे! अबे य...ये क्या बोल रेले हो तुम?" मोहन एकदम से गड़बड़ा गया, उसकी धड़कनें थम गई सी प्रतीत हुईं थी, बोला____"अपन का मतलब है कि अगर वो अपन की मदद करने को उसको भेजना चाह रेली है तो तुमको क्या पिरोब्लम है?"
"अरे! प्रोब्लम तो होगी ही न बे।" बबलू ने कहा____"तू साले अपन के दोस्त बिरजू के माल पर लाइन मार रहा है तो प्रोब्लम तो होगी ना हम लोगों को?"
"अबे अपन कहां उसको लाइन मार रेला है बे?" मोहन हैरत से आंखें फाड़ कर बोला____"लौड़ा वो तो अपन को देखती भी नहीं है बेटीचोद।"
"भोसड़ी के हमें चूतिया समझता है क्या?" मंगू ने आंखें दिखाते हुए कहा____"हमें सब पता है कि तू उसके साथ कौन सा गुल खिलाना चाहता है। बेटा अभी भी वक्त है सुधर जा, वरना बिरजू के द्वारा तेरी ऐसी गांड़ तुड़ाई होगी कि हगते नहीं बनेगा तुझसे।"
"अबे तुम लोग क्यों अपन को खाली पीली डरा रेले हो?" मोहन ने लापरवाही से कहा____"लौड़ा तुम लोग को पताइच नहीं है कि बिरजू अपन का गुरु है। गुरु ने अपन को बोलेला था कि वो अपन को भी शालू की मलाई खिलाएगा।"
मोहन की बात सुन कर मंगू और बबलू दंग रह गए। किंतु जल्दी ही सम्हले और फिर एक दूसरे को देखने लगे। जैसे एक दूसरे से पूछ रहे हों कि क्या तुम्हें कुछ समझ आया?
अभी उनमें से कोई कुछ बोलने ही वाला था कि तभी प्रीतो तबेले में दाखिल होती नज़र आई जिसे देख दोनों चुपचाप काम में लग गए। प्रीतो ने काले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था जो उसके गोरे बदन पर काफी खूबसूरत लग रहा था। मंगू और बबलू तो काम में लग गए थे किंतु मोहन ने जब प्रीतो को देखा तो उसकी नज़र जैसे उस पर ही चिपक कर रह गई।
"ये बक्चोद पिटेगा आज देखना।" मंगू की नज़र मोहन पर पड़ी तो वो धीमें स्वर में बबलू से बोला।
"उस्ताद की बीवी को आंखें फाड़े ऐसे देख रहा है जैसे खा ही जाएगा उसे।" बबलू ने भी धीमें से कहा____"वैसे आज ये पिट जाए तो मज़ा ही आ जाए। बहुत उड़ रहा है ये।"
"तुम अभी तक यहीं हो?" मोहन पर नज़र पड़ते ही प्रीतो थोड़े सख़्त भाव से बोली तो मोहन बुरी तरह उछल पड़ा, उधर प्रीतो ने कहा____"बर्तन समेटो और धोने ले जाओ उन्हें। आज अगर धुलने में तुमने ज़्यादा समय लगाया तो अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए, समझ गए?"
मोहन ने झट से हां में सिर हिला दिया। उसके मन में एकाएक ही मंथन सा चलने लगा था। वो प्रीतो से शालू के बारे में पूछना चाहता था किंतु डर रहा था कि कहीं प्रीतो उसके पूंछने पर गुस्सा ना हो जाए। तबेले के एक तरफ दूध के सारे कनस्तर रखे हुए थे इस लिए वो आगे बढ़ा और दो कनस्तर को ले कर ट्यूब वेल की तरफ जाने लगा।
कुछ ही देर में मोहन कनस्तर रख कर बाकी के कनस्तर लेने के लिए वापस आया तो देखा उसके दोनों साथी बाकी के कनस्तर लिए आ रहे थे। उन्हें देख मोहन अभी मायूस ही हुआ था कि तभी उसकी नज़र तबेले से अभी अभी निकली शालू पर पड़ी। उसे देखते ही मोहन के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई। उधर शालू अपने हाथ में एक छोटा सा कनस्तर लिए इधर ही चली आ रही थी। मोहन बिजली की सी तेज़ी आगे बढ़ चला। शालू की नज़र जैसे ही मोहन पर पड़ी तो उसने बुरा सा मुंह बना कर उससे नज़रें हटा ली। ये देख कर मोहन को घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ा बल्कि वो जल्दी ही तबेले में पहुंचा और बाकी जो कनस्तर बचे थे उन्हें ले कर फ़ौरन ही ट्यूब वेल की तरफ बढ़ चला।
"अबे मोहन।" ट्यूब वेल में जैसे ही मोहन कनस्तर ले कर पहुंचा तो संपत ने मुस्कुराते हुए उससे कहा____"अपन लोग को भी तो भाभी से मिलवा दे लौड़े।"
संपत की बात सुन कर शालू बुरी तरह चौंकी और फिर एकदम से घूम कर मोहन की तरफ आश्चर्य से देखने लगी। इधर संपत की बात सुन कर मोहन की सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई। उसने घबरा कर शालू की तरफ देखा। जब उसे अपनी तरफ घूरता देखा तो उसने जल्दी ही अपना सिर झुका लिया।
"अबे चुप क्यों हो गया बे लौड़े?" संपत ने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"अपन लोग को भाभी से मिलवा क्यों नहीं रेला है तू?"
"अ...अबे ये क्या बोल रेला है बे?" मोहन बड़ी मुश्किल से संपत को देखते हुए बोला____"अपन किसी भाभी वाभी को नहीं जानता, समझा?"
"भोसड़ी के कल रात को तो तू अपन लोग से बोल रेला था कि ये अपन लोग की भाभी है?" जगन ने मोहन की तरफ घूरते हुए कहा____"और अब बोल रेला है कि तू किसी भाभी वाभी को नहीं जानता? बेटीचोद सच सच बता अपन को वरना यहीं खोपड़ी तोड़ देगा अपन।"
बेचारा मोहन। जगन की बातों से उसकी ऐसी हालत हो गई जैसे अभी रो देगा। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसके दोनों साथी शालू के सामने एकदम से ऐसा बोलने लगेंगे। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी तो उसे अपनी तरफ गुस्से से देखता पाया। ये देख वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसके ज़हन में बस एक ही ख़याल आया कि____"बेटीचोद गांड़ मार ली इन दोनों लोग ने अपन की।"
"अबे सड़ी सी शकल क्यों बना ली है लौड़े?" संपत ने कुछ सोचते हुए कहा____"अबे अपन लोग तो मज़ाक कर रेले थे। चल बे जगन तू भी लौड़े क्या क्या बोल देता है इस चिंदी चोर से।"
संपत की बात सुन कर जगन अभी कुछ बोलने ही वाला था कि संपत ने उसे आंखें दिखाई और फिर घसीटता हुआ ले गया। इधर उन दोनों के जाने से और संपत की बातों से मोहन को ऐसा लगा जैसे जान में जान आ गई है। उसने एक बार फिर से शालू की तरफ देखा। शालू अभी भी गुस्से से उसे घूरे जा रही थी।
"अबे तू अपन को ऐसे क्यों घूर रेली है?" संपत खुद को सम्हाल कर एकदम अपने ही अंदाज़ में बोल पड़ा____"बर्तनों की धुलाई भी करने का है अपन लोग को। आज मालकिन ने अपन को बोलेला है कि अगर देर हुई तो अपन के साथ अच्छा नहीं होएगा।"
"पहले तुम ये बताओ कि तुम्हारे वो दोनों साथी क्या बोल रहे थे?" शालू का गुस्सा जैसे अभी भी शांत नहीं हुआ था____"तुमने मेरे बारे में क्या बोला है उन लोगों से?"
"अबे अपन ने ऐसा कुछ भी नहीं बोलेला है, अम्मा क़सम।" मोहन अपनी मां की झूठी क़सम खाने में देरी नहीं की, बोला____"वो लोग तो बेटीचोद झूठ बोल रेले थे। तूने भी तो सुना न कि संपत अभी क्या बोल के गया इधर से।"
"अगर तुमने मेरे बारे में उनसे उल्टा सीधा बोला तो देख लेना, ठीक नहीं होगा तुम्हारे लिए।" शालू ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"जैसे तुम गंदे हो उसी तरह तुम्हारे वो दोनों दोस्त भी गंदे हैं। उनको भी तमीज नहीं है कि किसी लड़की के सामने क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं।"
"अबे क्यों खाली पीली तू अपना मूड बिगाड़ रेली है?" मोहन ने कहा____"वो दोनों बेटीचोद तो ऐसे ही हैं।"
"हां और तुम तो जैसे बहुत शरीफ़ हो, है ना?" शालू ने उसे घूर कर देखा____"कल देखा था मैंने तुम्हारी शराफ़त और तमीज को। कैसे तुम मेरे ग़लत जगह को देख रहे थे और फिर गंदा गंदा बोल रहे थे।"
"अच्छा माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन एक कनस्तर को ले कर बैठते हुए बोला____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग को कभी किसी ने तमीज नहीं सिखायला है। इसी लिए तो अपन तेरे को बोल रेला था कि तू अपन को सब कुछ सिखा दे।"
"मुझे कुछ नहीं सिखना।" शालू ने हाथ झटकते हुए कहा____"अब चुपचाप बर्तन मांजो वरना मालकिन से जा के शिकायत कर दूंगी तुम्हारी।"
"आइला गुस्से में तो तू और भी ज़्यादा सुंदर लग रेली है बे।" मोहन शालू को खुश करने के इरादे से मुस्कुराते हुए बोल पड़ा____"लौड़ा तेरे को देख के अपन के अंदर कुछ कुछ हो रेला है, अम्मा क़सम।"
"छी फिर तुमने गंदा शब्द बोला।" शालू बुरा सा मुंह बना कर बोल पड़ी____"देखो मैं तुमसे आख़िरी बार बोल रही हूं। इस बार से अगर तुमने कुछ भी गंदा बोला तो मैं मालकिन के पास तुम्हारी शिकायत करने चली जाऊंगी।"
"बेटीचोद अपन को तो पताइच नहीं चला कि कब अपन के मुंह से गंदा शब्द निकल गएला है?" मोहन हैरत से मुंह फाड़ कर बोला____"बस इस बार माफ़ कर दे अपन को। अम्मा क़सम अपन अब से ऐसा कुछ नहीं बोलेगा।"
शालू उसकी बात सुन कर कुछ देर तक घूरती रही फिर बोली____"अगर तुम चाहते हो कि मैं बर्तन धोने में तुम्हारी मदद करूं तो तुम अब से कुछ भी नहीं बोलोगे। अगर मंज़ूर हो तो बोलो वरना अभी चली जाऊंगी मैं।"
"ठीक है, अपन को मंज़ूर है।" मोहन मरता क्या न करता वाली हालत में था____"अब अपन कुछ बोलेगा ही नहीं। अपन ने तेरे को अपना दोस्त मान लिएला था। कितना खुश था अपन कि तू अपन को तमीज से बात करना सिखाएगी पर ठीक है कोई न। साला अपन की तो किस्मत ही झंड है।"
कहने के साथ ही मोहन दुखी सी शकल बना कर जल्दी जल्दी बर्तन को मांजने लगा। उसकी बात सुन कर शालू ख़ामोशी से उसे देखती रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? ऐसा नहीं था कि उसे मोहन से कोई बैर था या फिर कोई नफ़रत थी किंतु उसकी बातें ही ऐसी थीं जिसके चलते वो बहुत ज़्यादा असहज हो जाती थी। मोहन के द्वारा ही उसे इतना तो पता चल ही गया था कि वो तीनों शुरू से ही ऐसे हैं। वो कभी ऐसी जगह या ऐसे लोगों के बीच रहे ही नहीं जिससे कि उन्हें किसी से बात करने का तरीका आ सके।
मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर जल्दी ही एक कनस्तर को मांज कर शालू की तरफ बढ़ा दिया। उसने एक नज़र शालू को देखा और फिर बिना कुछ कहे दूसरा कनस्तर उठा कर उसे भी मांजना शुरू कर दिया। अभी भी उसकी शकल पर दुखी वाले भाव नुमायां हो रहे थे। शालू के मन में ख़याल उभरा कि अगर वो उसे बात करने का तरीका सिखाए तो शायद उसको बोलने की तमीज आ जाए। शालू ने सोचा कि अगर हर रोज़ ही उसे उसके साथ बर्तन धोने के लिए रहना पड़ा तो दोनों के बीच कोई न कोई बात तो होगी ही इस लिए इससे अच्छा यही है कि उसे थोड़ा बहुत बोलने का तरीका सिखाया जाए।
"क्या तुम सच में बात करने का तरीका सीखना चाहते हो?" फिर उसने मोहन से झिझकते हुए पूछा।
"अगर तेरा दिल करे तो सीखा दे।" मोहन ने सपाट भाव से कहा____"तेरा एहसान होएगा अपन पर। अपन भी अख्खा लाइफ में याद करेगा कि अपन की एक सुंदर दोस्त थी जिसने अपन को बात करने की तमीज सिखाएली थी।"
"तुम बार बार मुझे सुंदर क्यों बोलते हो?" शालू ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं तो काली कलूटी हूं।"
"अबे तेरे को क्या पता कि तू कितनी सुंदर है?" मोहन एकदम से बोल पड़ा____"अपन की आंख से देख, तेरे को पता चल जाएगा कि अपन झूठ नहीं बोल रेला है।"
शालू को पहली बार उसकी ये बात सुन कर अच्छा महसूस हुआ। उसके अंदर खुशी की एक लहर सी दौड़ गई। होठों पर उभर आई मुस्कान को उसने जल्दी ही दबा लिया और फिर मोहन की तरफ देखा।
"कितने झूठे हो तुम।" फिर उसने जैसे इतराते हुए कहा____"कोई दूसरे की आंख से कैसे देख सकता है भला?"
"अबे....अपन का मतलब है कि अरे ऐसा अपन ने फिलम में हीरो के मुख से सुनेला है।" मोहन ने कहा____"वो हीरोइन को ऐसेइच बोलता है। फिलम का हीरो झूठ थोड़े ना बोलता होएगा।"
"मतलब तुमने जो फिल्म में हीरो के मुख से सुना उसी को सच मान लिया?" शालू ने कनस्तर को धोते हुए कहा।
"हां तो अपन तो मानेगा ही।" मोहन ने बड़े शान से कहा____"अपन के हीरो मिथुन चक्रवर्ती ने बोलेला है और वो कभी झूठ नहीं बोलता, समझी क्या?"
"हां तो वो हीरोइन को बोलता है ना।" शालू ने जैसे तर्क किया____"मैने भी देखा है, फिल्म की हीरोइनें तो सच में सुंदर होती हैं। अब सुंदर को सुंदर तो बोलेगा ही न हीरो।"
"अबे तू यहिच समझ ले कि तू अपन की हिरोइन है और अपन तेरा हीरो।" मोहन जैसे हार नहीं मानने वाला था____"अब अपन बोल रेला है कि तू बहुत सुंदर लग रेली है तो मतलब सच में लग रेली है, समझी?"
शालू उसकी बात सुन कर खिलखिला कर हंसने लगी। उसे हंसता देख मोहन को बड़ा अच्छा लगा। ये पहली बार था जब शालू को उसकी किसी बात से हंसी आई थी। उसे हंसता देख वो कनस्तर को मांजना ही भूल गया।
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो?" शालू अपनी हंसी रोकते हुए बोली____"जल्दी जल्दी बर्तन मांजो वरना अगर देर हो गई तो पता है ना कि क्या होगा?"
"बेटीचोद अपन तो तेरे को देखने में ही खो गएला था।" मोहन झेंपते हुए बोला____"अम्मा क़सम तू जब हंस रेली थी तो और भी सुंदर लग रेली थी। तभी तो अपन बर्तन मांजना भूल के तुझे देखने में खो गएला था।"
शालू ने इस बार मोहन की गाली को नज़रअंदाज़ कर दिया। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन उसकी तारीफ़ कर रहा था जिसके चलते उसे बहुत अच्छा लग रहा था। उसके होठों पर इस बार बहुत ही गहरी मुस्कान उभर आई थी। चेहरे पर लाज की हल्की सुर्खी भी दिखने लगी थी।
"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"
मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।
अब आगे....
अगली सुबह हुई।
आज भी तबेले में जोगिंदर नज़र नहीं आया। प्रीतो के न रहने से उसने घर का जो कबाड़ा किया था उसको चमाचम करने में लगा हुआ था वो। घर की सफाई के बाद अब घर में पोताई का काम शुरू करवा दिया था उसने। प्रीतो ने अच्छे से समझा दिया था कि घर के किस किस हिस्से में कौन कौन सा रंग पोता जाएगा। जोगिंदर प्रीतो को खुश करने के लिए बिना कोई विरोध किए सब कुछ करवाने में लगा हुआ था। पुताई के लिए उसने दो मजदूर लगवा दिए थे। प्रीतो का कहना था कि जब तक वो उसका घर चमाचम नहीं करवा देता तब तक वो तबेले में नहीं आ सकता और ना ही अपने किसी काम से कहीं बाहर जा सकता है। बाहर सिर्फ वो दूध बेचने ही जा सकता है।
तबेले में सुबह मवेशियों को चारा भूसा डालने के बाद उनका दूध निकालने का काम शुरू हो चुका था। मवेशियों का दूध निकालने के लिए प्रीतो के साथ मंगू और बबलू ही थे। बिरजू अभी वापस नहीं आया था। दूसरी तरफ जगन और संपत आस पास की सफाई में लगे हुए थे जबकि मोहन को खुद प्रीतो ने दूध के कनस्तर धोने के लिए ट्यूब वेल में भेज दिया था।
मोहन ट्यूब वेल में बर्तनों को धोने में लगा हुआ था। हालाकि अकेले बर्तन धोने में आज उसे मज़ा नहीं आ रहा था। रह रह कर उसे शालू की याद आ जाती थी और साथ ही कल शाम को उसके साथ बिताया हुआ पल भी। जिसके बारे में सोच सोच कर कभी वो खुश होता तो कभी मायूस हो जाता। आख़िर किसी तरह उसने बर्तन धुले और फिर उन बर्तनों को जगन और संपत की मदद से तबेले में पहुंचा दिया।
जोगिंदर दूध बेचने के लिए क़रीब दस बजे शहर जाता था। इस लिए जब सारा दूध कनस्तर में भर कर उसके छोटे से टेंपो में रख दिया गया तो वो टेंपो ले कर शहर चला गया। वहीं दूसरी तरफ उसके घर में शालू और रवि सबके लिए खाना बनाने में लगे हुए थे। सभी कामों से फुर्सत होने के बाद प्रीतो के कहने पर सब नहाने धोने के लिए ट्यूब वेल में चले गए।
दोपहर को खाना पीना हुआ और फिर तीनों नमूने कमरे में आराम करने के लिए आ गए। प्रीतो के आने से इतना ज़रूर हुआ था कि उन तीनों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी और ना ही उन्हें किसी की बातें सुननी पड़ती थी। इस बात से तीनों ही खुश थे किंतु मोहन की खुशी थोड़ा फीकी सी थी। ज़ाहिर है उसके दिलो दिमाग़ में कमला की बेटी शालू छाई हुई थी।
[][][][][]
दूसरी तरफ कमला को भी रवि के द्वारा पता चल चुका था कि जोगिंदर की बीवी आ चुकी है। जोगिंदर ने तो उसे यही बताया था कि अब शायद ही वो कभी आएगी और यही सोच कर दोनों अपनी मर्ज़ी से ऐश कर रहे थे किंतु अब जैसे हर चीज़ में विराम सा लग जाने वाला था। कमला ने जोगिंदर को जान बूझ कर अपने जिस्म को भोगने का निमंत्रण दिया था। उसे पता था कि जोगिंदर अकेला है और उसकी हर ज़रूरत को पूरा कर सकता है। अपने शराबी पति से उसे कोई उम्मीद नहीं थी। कुछ समय बाद उसकी बेटी ब्याह करने लायक हो जाती तो वो भला कैसे उसका ब्याह कर पाती? यही सब सोच कर उसने जोगिंदर को फांसा था, ताकि उससे वो अपनी ज़रूरत की हर चीज़ प्राप्त कर सके।
प्रीतो के आने से उसके मंसूबों पर एक तरह से पानी फिर गया था। कमला इस बात से बेहद परेशान हो गई थी। इसके पहले उसने तस्वीर में ही प्रीतो को देखा था जोकि उसके कहने पर जोगिंदर ने ही उसे दिखाया था किंतु सामना अभी तक न हुआ था उसका। वो जानती थी कि अब उसका सामना भी होगा क्योंकि ठीक होने के बाद उसे काम करने के लिए तबेले में तो जाना ही पड़ेगा। कमला सोच रही थी कि क्या प्रीतो को उसके पति के साथ उसके संबंधों का पता होगा? इसका जवाब उसे कहीं न कहीं पता ही था। वो जानती थी कि तबेले में काम करने वाले जोगिंदर के मुलाजिमों ने ज़रूर प्रीतो के कान में ऐसी बात पहुंचा दी होगी। उसे याद आया कि एक बार मंगू को उसने बहुत कुछ सुना दिया था तो ज़ाहिर है कि मंगू उसके बारे में प्रीतो को बता ही सकता है।
कमला अब पहले से ठीक थी। माथे पर लगी चोट में अभी भी पट्टी लगी हुई थी किंतु अब वो घर के छोटे मोटे काम खुद ही कर लेती थी। उसकी जेठानी निर्मला हर रोज़ उसके घर आ कर उसका हाल चाल लेती थी और उसके बड़े बड़े काम भी कर देती थी। ऐसे ही आलम में उसे एहसास हुआ था कि उसकी जेठानी कितनी भली औरत है और उसने अब तक कितना ग़लत किया था उसके साथ। उधर उसके पति ने भी उस दिन के बाद से कोई तमाशा नहीं किया था। ये अलग बात है कि वो अब भी पी के ही आता था।
कमला रवि और शालू से रोज़ जोगिंदर के यहां का हाल चाल पूछती थी। वो भली भांति समझ लेना चाहती थी कि उधर का हाल कैसा है आज कल ताकि ठीक होने के बाद जब वो दुबारा वहां काम करने जाए तो उसे किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। उसके अंदर घबराहट तो थी ही किंतु बेचैनी भी थी। जोगिंदर के साथ हमबिस्तर हो कर मज़ा करने की बेचैनी। पिछले एक साल से वो जोगिंदर के साथ उसकी बीवी की ही तरह रह कर मज़ा कर रही थी और अब तक वो इसकी आदी भी हो चुकी थी। उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि कल वो जोगिंदर के तबेले में ज़रूर जाएगी।
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जगन और संपत तो सो गए थे लेकिन मोहन की आंखों में नींद का नामो निशान न था। उसे शाम होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार था। बड़ी मुश्किल से करवटें बदलते हुए उसका समय गुज़रा। जैसे ही चार बजे वो झट से उठ गया और फिर जगन और संपत को जगाए बिना ही चुपचाप दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गया।
तबेले में आ कर उसने देखा मंगू और बबलू बीड़ी पीते हुए मवेशियों के खाने के लिए चारा भूसा डाल रहे थे। मोहन को आया देख दोनों पहले तो हल्के से चौंके फिर सहसा मुस्कुरा उठे।
"क्यों बे आज बड़ा जल्दी उठ कर आ गया यहां?" मंगू ने मुस्कुराते हुए पूछा____"तेरी इस ज़ल्दबाज़ी का राज़ क्या है? हमें भी बता दे भाई।"
"अबे ऐसा कुछ नहीं है।" मोहन सकपकाते हुए अपने ही अंदाज़ में बोला____"लौड़ा अपन को नींद ही नहीं आ रेली थी तो अपन चला आया इधर।"
"क्या हुआ तेरी नींद को?" बबलू ने उसके लिए फिक्रमंद हो जाने का नाटक किया____"तेरी तबीयत तो ठीक है ना?"
"अबे घंटा ठीक होगी।" मोहन से पहले मंगू बोल पड़ा____"इसके अंदर तो कमला की लौंडिया का भूत समा गया है। ऐसे में भला कैसे इसकी तबीयत ठीक हो सकती है? मैं सही कह रहा हूं ना मोहन?"
"हां...न....न नहीं तो।" मोहन एकदम से हड़बड़ा गया, फिर सम्भल कर बोला____"अपन तो एकदम ठीक है, बोले तो झक्कास।"
"चल ठीक है फिर।" बबलू ने मुस्कुराते हुए कहा____"आज अगर शालू आएगी तो मैं मालकिन से कह दूंगा कि वो शालू को बर्तन धोने में तेरी मदद करने के लिए न भेजे।"
"अरे! अबे य...ये क्या बोल रेले हो तुम?" मोहन एकदम से गड़बड़ा गया, उसकी धड़कनें थम गई सी प्रतीत हुईं थी, बोला____"अपन का मतलब है कि अगर वो अपन की मदद करने को उसको भेजना चाह रेली है तो तुमको क्या पिरोब्लम है?"
"अरे! प्रोब्लम तो होगी ही न बे।" बबलू ने कहा____"तू साले अपन के दोस्त बिरजू के माल पर लाइन मार रहा है तो प्रोब्लम तो होगी ना हम लोगों को?"
"अबे अपन कहां उसको लाइन मार रेला है बे?" मोहन हैरत से आंखें फाड़ कर बोला____"लौड़ा वो तो अपन को देखती भी नहीं है बेटीचोद।"
"भोसड़ी के हमें चूतिया समझता है क्या?" मंगू ने आंखें दिखाते हुए कहा____"हमें सब पता है कि तू उसके साथ कौन सा गुल खिलाना चाहता है। बेटा अभी भी वक्त है सुधर जा, वरना बिरजू के द्वारा तेरी ऐसी गांड़ तुड़ाई होगी कि हगते नहीं बनेगा तुझसे।"
"अबे तुम लोग क्यों अपन को खाली पीली डरा रेले हो?" मोहन ने लापरवाही से कहा____"लौड़ा तुम लोग को पताइच नहीं है कि बिरजू अपन का गुरु है। गुरु ने अपन को बोलेला था कि वो अपन को भी शालू की मलाई खिलाएगा।"
मोहन की बात सुन कर मंगू और बबलू दंग रह गए। किंतु जल्दी ही सम्हले और फिर एक दूसरे को देखने लगे। जैसे एक दूसरे से पूछ रहे हों कि क्या तुम्हें कुछ समझ आया?
अभी उनमें से कोई कुछ बोलने ही वाला था कि तभी प्रीतो तबेले में दाखिल होती नज़र आई जिसे देख दोनों चुपचाप काम में लग गए। प्रीतो ने काले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था जो उसके गोरे बदन पर काफी खूबसूरत लग रहा था। मंगू और बबलू तो काम में लग गए थे किंतु मोहन ने जब प्रीतो को देखा तो उसकी नज़र जैसे उस पर ही चिपक कर रह गई।
"ये बक्चोद पिटेगा आज देखना।" मंगू की नज़र मोहन पर पड़ी तो वो धीमें स्वर में बबलू से बोला।
"उस्ताद की बीवी को आंखें फाड़े ऐसे देख रहा है जैसे खा ही जाएगा उसे।" बबलू ने भी धीमें से कहा____"वैसे आज ये पिट जाए तो मज़ा ही आ जाए। बहुत उड़ रहा है ये।"
"तुम अभी तक यहीं हो?" मोहन पर नज़र पड़ते ही प्रीतो थोड़े सख़्त भाव से बोली तो मोहन बुरी तरह उछल पड़ा, उधर प्रीतो ने कहा____"बर्तन समेटो और धोने ले जाओ उन्हें। आज अगर धुलने में तुमने ज़्यादा समय लगाया तो अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए, समझ गए?"
मोहन ने झट से हां में सिर हिला दिया। उसके मन में एकाएक ही मंथन सा चलने लगा था। वो प्रीतो से शालू के बारे में पूछना चाहता था किंतु डर रहा था कि कहीं प्रीतो उसके पूंछने पर गुस्सा ना हो जाए। तबेले के एक तरफ दूध के सारे कनस्तर रखे हुए थे इस लिए वो आगे बढ़ा और दो कनस्तर को ले कर ट्यूब वेल की तरफ जाने लगा।
कुछ ही देर में मोहन कनस्तर रख कर बाकी के कनस्तर लेने के लिए वापस आया तो देखा उसके दोनों साथी बाकी के कनस्तर लिए आ रहे थे। उन्हें देख मोहन अभी मायूस ही हुआ था कि तभी उसकी नज़र तबेले से अभी अभी निकली शालू पर पड़ी। उसे देखते ही मोहन के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई। उधर शालू अपने हाथ में एक छोटा सा कनस्तर लिए इधर ही चली आ रही थी। मोहन बिजली की सी तेज़ी आगे बढ़ चला। शालू की नज़र जैसे ही मोहन पर पड़ी तो उसने बुरा सा मुंह बना कर उससे नज़रें हटा ली। ये देख कर मोहन को घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ा बल्कि वो जल्दी ही तबेले में पहुंचा और बाकी जो कनस्तर बचे थे उन्हें ले कर फ़ौरन ही ट्यूब वेल की तरफ बढ़ चला।
"अबे मोहन।" ट्यूब वेल में जैसे ही मोहन कनस्तर ले कर पहुंचा तो संपत ने मुस्कुराते हुए उससे कहा____"अपन लोग को भी तो भाभी से मिलवा दे लौड़े।"
संपत की बात सुन कर शालू बुरी तरह चौंकी और फिर एकदम से घूम कर मोहन की तरफ आश्चर्य से देखने लगी। इधर संपत की बात सुन कर मोहन की सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई। उसने घबरा कर शालू की तरफ देखा। जब उसे अपनी तरफ घूरता देखा तो उसने जल्दी ही अपना सिर झुका लिया।
"अबे चुप क्यों हो गया बे लौड़े?" संपत ने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"अपन लोग को भाभी से मिलवा क्यों नहीं रेला है तू?"
"अ...अबे ये क्या बोल रेला है बे?" मोहन बड़ी मुश्किल से संपत को देखते हुए बोला____"अपन किसी भाभी वाभी को नहीं जानता, समझा?"
"भोसड़ी के कल रात को तो तू अपन लोग से बोल रेला था कि ये अपन लोग की भाभी है?" जगन ने मोहन की तरफ घूरते हुए कहा____"और अब बोल रेला है कि तू किसी भाभी वाभी को नहीं जानता? बेटीचोद सच सच बता अपन को वरना यहीं खोपड़ी तोड़ देगा अपन।"
बेचारा मोहन। जगन की बातों से उसकी ऐसी हालत हो गई जैसे अभी रो देगा। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसके दोनों साथी शालू के सामने एकदम से ऐसा बोलने लगेंगे। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी तो उसे अपनी तरफ गुस्से से देखता पाया। ये देख वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसके ज़हन में बस एक ही ख़याल आया कि____"बेटीचोद गांड़ मार ली इन दोनों लोग ने अपन की।"
"अबे सड़ी सी शकल क्यों बना ली है लौड़े?" संपत ने कुछ सोचते हुए कहा____"अबे अपन लोग तो मज़ाक कर रेले थे। चल बे जगन तू भी लौड़े क्या क्या बोल देता है इस चिंदी चोर से।"
संपत की बात सुन कर जगन अभी कुछ बोलने ही वाला था कि संपत ने उसे आंखें दिखाई और फिर घसीटता हुआ ले गया। इधर उन दोनों के जाने से और संपत की बातों से मोहन को ऐसा लगा जैसे जान में जान आ गई है। उसने एक बार फिर से शालू की तरफ देखा। शालू अभी भी गुस्से से उसे घूरे जा रही थी।
"अबे तू अपन को ऐसे क्यों घूर रेली है?" संपत खुद को सम्हाल कर एकदम अपने ही अंदाज़ में बोल पड़ा____"बर्तनों की धुलाई भी करने का है अपन लोग को। आज मालकिन ने अपन को बोलेला है कि अगर देर हुई तो अपन के साथ अच्छा नहीं होएगा।"
"पहले तुम ये बताओ कि तुम्हारे वो दोनों साथी क्या बोल रहे थे?" शालू का गुस्सा जैसे अभी भी शांत नहीं हुआ था____"तुमने मेरे बारे में क्या बोला है उन लोगों से?"
"अबे अपन ने ऐसा कुछ भी नहीं बोलेला है, अम्मा क़सम।" मोहन अपनी मां की झूठी क़सम खाने में देरी नहीं की, बोला____"वो लोग तो बेटीचोद झूठ बोल रेले थे। तूने भी तो सुना न कि संपत अभी क्या बोल के गया इधर से।"
"अगर तुमने मेरे बारे में उनसे उल्टा सीधा बोला तो देख लेना, ठीक नहीं होगा तुम्हारे लिए।" शालू ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"जैसे तुम गंदे हो उसी तरह तुम्हारे वो दोनों दोस्त भी गंदे हैं। उनको भी तमीज नहीं है कि किसी लड़की के सामने क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं।"
"अबे क्यों खाली पीली तू अपना मूड बिगाड़ रेली है?" मोहन ने कहा____"वो दोनों बेटीचोद तो ऐसे ही हैं।"
"हां और तुम तो जैसे बहुत शरीफ़ हो, है ना?" शालू ने उसे घूर कर देखा____"कल देखा था मैंने तुम्हारी शराफ़त और तमीज को। कैसे तुम मेरे ग़लत जगह को देख रहे थे और फिर गंदा गंदा बोल रहे थे।"
"अच्छा माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन एक कनस्तर को ले कर बैठते हुए बोला____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग को कभी किसी ने तमीज नहीं सिखायला है। इसी लिए तो अपन तेरे को बोल रेला था कि तू अपन को सब कुछ सिखा दे।"
"मुझे कुछ नहीं सिखना।" शालू ने हाथ झटकते हुए कहा____"अब चुपचाप बर्तन मांजो वरना मालकिन से जा के शिकायत कर दूंगी तुम्हारी।"
"आइला गुस्से में तो तू और भी ज़्यादा सुंदर लग रेली है बे।" मोहन शालू को खुश करने के इरादे से मुस्कुराते हुए बोल पड़ा____"लौड़ा तेरे को देख के अपन के अंदर कुछ कुछ हो रेला है, अम्मा क़सम।"
"छी फिर तुमने गंदा शब्द बोला।" शालू बुरा सा मुंह बना कर बोल पड़ी____"देखो मैं तुमसे आख़िरी बार बोल रही हूं। इस बार से अगर तुमने कुछ भी गंदा बोला तो मैं मालकिन के पास तुम्हारी शिकायत करने चली जाऊंगी।"
"बेटीचोद अपन को तो पताइच नहीं चला कि कब अपन के मुंह से गंदा शब्द निकल गएला है?" मोहन हैरत से मुंह फाड़ कर बोला____"बस इस बार माफ़ कर दे अपन को। अम्मा क़सम अपन अब से ऐसा कुछ नहीं बोलेगा।"
शालू उसकी बात सुन कर कुछ देर तक घूरती रही फिर बोली____"अगर तुम चाहते हो कि मैं बर्तन धोने में तुम्हारी मदद करूं तो तुम अब से कुछ भी नहीं बोलोगे। अगर मंज़ूर हो तो बोलो वरना अभी चली जाऊंगी मैं।"
"ठीक है, अपन को मंज़ूर है।" मोहन मरता क्या न करता वाली हालत में था____"अब अपन कुछ बोलेगा ही नहीं। अपन ने तेरे को अपना दोस्त मान लिएला था। कितना खुश था अपन कि तू अपन को तमीज से बात करना सिखाएगी पर ठीक है कोई न। साला अपन की तो किस्मत ही झंड है।"
कहने के साथ ही मोहन दुखी सी शकल बना कर जल्दी जल्दी बर्तन को मांजने लगा। उसकी बात सुन कर शालू ख़ामोशी से उसे देखती रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? ऐसा नहीं था कि उसे मोहन से कोई बैर था या फिर कोई नफ़रत थी किंतु उसकी बातें ही ऐसी थीं जिसके चलते वो बहुत ज़्यादा असहज हो जाती थी। मोहन के द्वारा ही उसे इतना तो पता चल ही गया था कि वो तीनों शुरू से ही ऐसे हैं। वो कभी ऐसी जगह या ऐसे लोगों के बीच रहे ही नहीं जिससे कि उन्हें किसी से बात करने का तरीका आ सके।
मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर जल्दी ही एक कनस्तर को मांज कर शालू की तरफ बढ़ा दिया। उसने एक नज़र शालू को देखा और फिर बिना कुछ कहे दूसरा कनस्तर उठा कर उसे भी मांजना शुरू कर दिया। अभी भी उसकी शकल पर दुखी वाले भाव नुमायां हो रहे थे। शालू के मन में ख़याल उभरा कि अगर वो उसे बात करने का तरीका सिखाए तो शायद उसको बोलने की तमीज आ जाए। शालू ने सोचा कि अगर हर रोज़ ही उसे उसके साथ बर्तन धोने के लिए रहना पड़ा तो दोनों के बीच कोई न कोई बात तो होगी ही इस लिए इससे अच्छा यही है कि उसे थोड़ा बहुत बोलने का तरीका सिखाया जाए।
"क्या तुम सच में बात करने का तरीका सीखना चाहते हो?" फिर उसने मोहन से झिझकते हुए पूछा।
"अगर तेरा दिल करे तो सीखा दे।" मोहन ने सपाट भाव से कहा____"तेरा एहसान होएगा अपन पर। अपन भी अख्खा लाइफ में याद करेगा कि अपन की एक सुंदर दोस्त थी जिसने अपन को बात करने की तमीज सिखाएली थी।"
"तुम बार बार मुझे सुंदर क्यों बोलते हो?" शालू ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं तो काली कलूटी हूं।"
"अबे तेरे को क्या पता कि तू कितनी सुंदर है?" मोहन एकदम से बोल पड़ा____"अपन की आंख से देख, तेरे को पता चल जाएगा कि अपन झूठ नहीं बोल रेला है।"
शालू को पहली बार उसकी ये बात सुन कर अच्छा महसूस हुआ। उसके अंदर खुशी की एक लहर सी दौड़ गई। होठों पर उभर आई मुस्कान को उसने जल्दी ही दबा लिया और फिर मोहन की तरफ देखा।
"कितने झूठे हो तुम।" फिर उसने जैसे इतराते हुए कहा____"कोई दूसरे की आंख से कैसे देख सकता है भला?"
"अबे....अपन का मतलब है कि अरे ऐसा अपन ने फिलम में हीरो के मुख से सुनेला है।" मोहन ने कहा____"वो हीरोइन को ऐसेइच बोलता है। फिलम का हीरो झूठ थोड़े ना बोलता होएगा।"
"मतलब तुमने जो फिल्म में हीरो के मुख से सुना उसी को सच मान लिया?" शालू ने कनस्तर को धोते हुए कहा।
"हां तो अपन तो मानेगा ही।" मोहन ने बड़े शान से कहा____"अपन के हीरो मिथुन चक्रवर्ती ने बोलेला है और वो कभी झूठ नहीं बोलता, समझी क्या?"
"हां तो वो हीरोइन को बोलता है ना।" शालू ने जैसे तर्क किया____"मैने भी देखा है, फिल्म की हीरोइनें तो सच में सुंदर होती हैं। अब सुंदर को सुंदर तो बोलेगा ही न हीरो।"
"अबे तू यहिच समझ ले कि तू अपन की हिरोइन है और अपन तेरा हीरो।" मोहन जैसे हार नहीं मानने वाला था____"अब अपन बोल रेला है कि तू बहुत सुंदर लग रेली है तो मतलब सच में लग रेली है, समझी?"
शालू उसकी बात सुन कर खिलखिला कर हंसने लगी। उसे हंसता देख मोहन को बड़ा अच्छा लगा। ये पहली बार था जब शालू को उसकी किसी बात से हंसी आई थी। उसे हंसता देख वो कनस्तर को मांजना ही भूल गया।
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो?" शालू अपनी हंसी रोकते हुए बोली____"जल्दी जल्दी बर्तन मांजो वरना अगर देर हो गई तो पता है ना कि क्या होगा?"
"बेटीचोद अपन तो तेरे को देखने में ही खो गएला था।" मोहन झेंपते हुए बोला____"अम्मा क़सम तू जब हंस रेली थी तो और भी सुंदर लग रेली थी। तभी तो अपन बर्तन मांजना भूल के तुझे देखने में खो गएला था।"
शालू ने इस बार मोहन की गाली को नज़रअंदाज़ कर दिया। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन उसकी तारीफ़ कर रहा था जिसके चलते उसे बहुत अच्छा लग रहा था। उसके होठों पर इस बार बहुत ही गहरी मुस्कान उभर आई थी। चेहरे पर लाज की हल्की सुर्खी भी दिखने लगी थी।
"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"
मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।
अब आगे....
अगली सुबह हुई।
आज भी तबेले में जोगिंदर नज़र नहीं आया। प्रीतो के न रहने से उसने घर का जो कबाड़ा किया था उसको चमाचम करने में लगा हुआ था वो। घर की सफाई के बाद अब घर में पोताई का काम शुरू करवा दिया था उसने। प्रीतो ने अच्छे से समझा दिया था कि घर के किस किस हिस्से में कौन कौन सा रंग पोता जाएगा। जोगिंदर प्रीतो को खुश करने के लिए बिना कोई विरोध किए सब कुछ करवाने में लगा हुआ था। पुताई के लिए उसने दो मजदूर लगवा दिए थे। प्रीतो का कहना था कि जब तक वो उसका घर चमाचम नहीं करवा देता तब तक वो तबेले में नहीं आ सकता और ना ही अपने किसी काम से कहीं बाहर जा सकता है। बाहर सिर्फ वो दूध बेचने ही जा सकता है।
तबेले में सुबह मवेशियों को चारा भूसा डालने के बाद उनका दूध निकालने का काम शुरू हो चुका था। मवेशियों का दूध निकालने के लिए प्रीतो के साथ मंगू और बबलू ही थे। बिरजू अभी वापस नहीं आया था। दूसरी तरफ जगन और संपत आस पास की सफाई में लगे हुए थे जबकि मोहन को खुद प्रीतो ने दूध के कनस्तर धोने के लिए ट्यूब वेल में भेज दिया था।
मोहन ट्यूब वेल में बर्तनों को धोने में लगा हुआ था। हालाकि अकेले बर्तन धोने में आज उसे मज़ा नहीं आ रहा था। रह रह कर उसे शालू की याद आ जाती थी और साथ ही कल शाम को उसके साथ बिताया हुआ पल भी। जिसके बारे में सोच सोच कर कभी वो खुश होता तो कभी मायूस हो जाता। आख़िर किसी तरह उसने बर्तन धुले और फिर उन बर्तनों को जगन और संपत की मदद से तबेले में पहुंचा दिया।
जोगिंदर दूध बेचने के लिए क़रीब दस बजे शहर जाता था। इस लिए जब सारा दूध कनस्तर में भर कर उसके छोटे से टेंपो में रख दिया गया तो वो टेंपो ले कर शहर चला गया। वहीं दूसरी तरफ उसके घर में शालू और रवि सबके लिए खाना बनाने में लगे हुए थे। सभी कामों से फुर्सत होने के बाद प्रीतो के कहने पर सब नहाने धोने के लिए ट्यूब वेल में चले गए।
दोपहर को खाना पीना हुआ और फिर तीनों नमूने कमरे में आराम करने के लिए आ गए। प्रीतो के आने से इतना ज़रूर हुआ था कि उन तीनों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी और ना ही उन्हें किसी की बातें सुननी पड़ती थी। इस बात से तीनों ही खुश थे किंतु मोहन की खुशी थोड़ा फीकी सी थी। ज़ाहिर है उसके दिलो दिमाग़ में कमला की बेटी शालू छाई हुई थी।
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दूसरी तरफ कमला को भी रवि के द्वारा पता चल चुका था कि जोगिंदर की बीवी आ चुकी है। जोगिंदर ने तो उसे यही बताया था कि अब शायद ही वो कभी आएगी और यही सोच कर दोनों अपनी मर्ज़ी से ऐश कर रहे थे किंतु अब जैसे हर चीज़ में विराम सा लग जाने वाला था। कमला ने जोगिंदर को जान बूझ कर अपने जिस्म को भोगने का निमंत्रण दिया था। उसे पता था कि जोगिंदर अकेला है और उसकी हर ज़रूरत को पूरा कर सकता है। अपने शराबी पति से उसे कोई उम्मीद नहीं थी। कुछ समय बाद उसकी बेटी ब्याह करने लायक हो जाती तो वो भला कैसे उसका ब्याह कर पाती? यही सब सोच कर उसने जोगिंदर को फांसा था, ताकि उससे वो अपनी ज़रूरत की हर चीज़ प्राप्त कर सके।
प्रीतो के आने से उसके मंसूबों पर एक तरह से पानी फिर गया था। कमला इस बात से बेहद परेशान हो गई थी। इसके पहले उसने तस्वीर में ही प्रीतो को देखा था जोकि उसके कहने पर जोगिंदर ने ही उसे दिखाया था किंतु सामना अभी तक न हुआ था उसका। वो जानती थी कि अब उसका सामना भी होगा क्योंकि ठीक होने के बाद उसे काम करने के लिए तबेले में तो जाना ही पड़ेगा। कमला सोच रही थी कि क्या प्रीतो को उसके पति के साथ उसके संबंधों का पता होगा? इसका जवाब उसे कहीं न कहीं पता ही था। वो जानती थी कि तबेले में काम करने वाले जोगिंदर के मुलाजिमों ने ज़रूर प्रीतो के कान में ऐसी बात पहुंचा दी होगी। उसे याद आया कि एक बार मंगू को उसने बहुत कुछ सुना दिया था तो ज़ाहिर है कि मंगू उसके बारे में प्रीतो को बता ही सकता है।
कमला अब पहले से ठीक थी। माथे पर लगी चोट में अभी भी पट्टी लगी हुई थी किंतु अब वो घर के छोटे मोटे काम खुद ही कर लेती थी। उसकी जेठानी निर्मला हर रोज़ उसके घर आ कर उसका हाल चाल लेती थी और उसके बड़े बड़े काम भी कर देती थी। ऐसे ही आलम में उसे एहसास हुआ था कि उसकी जेठानी कितनी भली औरत है और उसने अब तक कितना ग़लत किया था उसके साथ। उधर उसके पति ने भी उस दिन के बाद से कोई तमाशा नहीं किया था। ये अलग बात है कि वो अब भी पी के ही आता था।
कमला रवि और शालू से रोज़ जोगिंदर के यहां का हाल चाल पूछती थी। वो भली भांति समझ लेना चाहती थी कि उधर का हाल कैसा है आज कल ताकि ठीक होने के बाद जब वो दुबारा वहां काम करने जाए तो उसे किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। उसके अंदर घबराहट तो थी ही किंतु बेचैनी भी थी। जोगिंदर के साथ हमबिस्तर हो कर मज़ा करने की बेचैनी। पिछले एक साल से वो जोगिंदर के साथ उसकी बीवी की ही तरह रह कर मज़ा कर रही थी और अब तक वो इसकी आदी भी हो चुकी थी। उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि कल वो जोगिंदर के तबेले में ज़रूर जाएगी।
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जगन और संपत तो सो गए थे लेकिन मोहन की आंखों में नींद का नामो निशान न था। उसे शाम होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार था। बड़ी मुश्किल से करवटें बदलते हुए उसका समय गुज़रा। जैसे ही चार बजे वो झट से उठ गया और फिर जगन और संपत को जगाए बिना ही चुपचाप दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गया।
तबेले में आ कर उसने देखा मंगू और बबलू बीड़ी पीते हुए मवेशियों के खाने के लिए चारा भूसा डाल रहे थे। मोहन को आया देख दोनों पहले तो हल्के से चौंके फिर सहसा मुस्कुरा उठे।
"क्यों बे आज बड़ा जल्दी उठ कर आ गया यहां?" मंगू ने मुस्कुराते हुए पूछा____"तेरी इस ज़ल्दबाज़ी का राज़ क्या है? हमें भी बता दे भाई।"
"अबे ऐसा कुछ नहीं है।" मोहन सकपकाते हुए अपने ही अंदाज़ में बोला____"लौड़ा अपन को नींद ही नहीं आ रेली थी तो अपन चला आया इधर।"
"क्या हुआ तेरी नींद को?" बबलू ने उसके लिए फिक्रमंद हो जाने का नाटक किया____"तेरी तबीयत तो ठीक है ना?"
"अबे घंटा ठीक होगी।" मोहन से पहले मंगू बोल पड़ा____"इसके अंदर तो कमला की लौंडिया का भूत समा गया है। ऐसे में भला कैसे इसकी तबीयत ठीक हो सकती है? मैं सही कह रहा हूं ना मोहन?"
"हां...न....न नहीं तो।" मोहन एकदम से हड़बड़ा गया, फिर सम्भल कर बोला____"अपन तो एकदम ठीक है, बोले तो झक्कास।"
"चल ठीक है फिर।" बबलू ने मुस्कुराते हुए कहा____"आज अगर शालू आएगी तो मैं मालकिन से कह दूंगा कि वो शालू को बर्तन धोने में तेरी मदद करने के लिए न भेजे।"
"अरे! अबे य...ये क्या बोल रेले हो तुम?" मोहन एकदम से गड़बड़ा गया, उसकी धड़कनें थम गई सी प्रतीत हुईं थी, बोला____"अपन का मतलब है कि अगर वो अपन की मदद करने को उसको भेजना चाह रेली है तो तुमको क्या पिरोब्लम है?"
"अरे! प्रोब्लम तो होगी ही न बे।" बबलू ने कहा____"तू साले अपन के दोस्त बिरजू के माल पर लाइन मार रहा है तो प्रोब्लम तो होगी ना हम लोगों को?"
"अबे अपन कहां उसको लाइन मार रेला है बे?" मोहन हैरत से आंखें फाड़ कर बोला____"लौड़ा वो तो अपन को देखती भी नहीं है बेटीचोद।"
"भोसड़ी के हमें चूतिया समझता है क्या?" मंगू ने आंखें दिखाते हुए कहा____"हमें सब पता है कि तू उसके साथ कौन सा गुल खिलाना चाहता है। बेटा अभी भी वक्त है सुधर जा, वरना बिरजू के द्वारा तेरी ऐसी गांड़ तुड़ाई होगी कि हगते नहीं बनेगा तुझसे।"
"अबे तुम लोग क्यों अपन को खाली पीली डरा रेले हो?" मोहन ने लापरवाही से कहा____"लौड़ा तुम लोग को पताइच नहीं है कि बिरजू अपन का गुरु है। गुरु ने अपन को बोलेला था कि वो अपन को भी शालू की मलाई खिलाएगा।"
मोहन की बात सुन कर मंगू और बबलू दंग रह गए। किंतु जल्दी ही सम्हले और फिर एक दूसरे को देखने लगे। जैसे एक दूसरे से पूछ रहे हों कि क्या तुम्हें कुछ समझ आया?
अभी उनमें से कोई कुछ बोलने ही वाला था कि तभी प्रीतो तबेले में दाखिल होती नज़र आई जिसे देख दोनों चुपचाप काम में लग गए। प्रीतो ने काले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था जो उसके गोरे बदन पर काफी खूबसूरत लग रहा था। मंगू और बबलू तो काम में लग गए थे किंतु मोहन ने जब प्रीतो को देखा तो उसकी नज़र जैसे उस पर ही चिपक कर रह गई।
"ये बक्चोद पिटेगा आज देखना।" मंगू की नज़र मोहन पर पड़ी तो वो धीमें स्वर में बबलू से बोला।
"उस्ताद की बीवी को आंखें फाड़े ऐसे देख रहा है जैसे खा ही जाएगा उसे।" बबलू ने भी धीमें से कहा____"वैसे आज ये पिट जाए तो मज़ा ही आ जाए। बहुत उड़ रहा है ये।"
"तुम अभी तक यहीं हो?" मोहन पर नज़र पड़ते ही प्रीतो थोड़े सख़्त भाव से बोली तो मोहन बुरी तरह उछल पड़ा, उधर प्रीतो ने कहा____"बर्तन समेटो और धोने ले जाओ उन्हें। आज अगर धुलने में तुमने ज़्यादा समय लगाया तो अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए, समझ गए?"
मोहन ने झट से हां में सिर हिला दिया। उसके मन में एकाएक ही मंथन सा चलने लगा था। वो प्रीतो से शालू के बारे में पूछना चाहता था किंतु डर रहा था कि कहीं प्रीतो उसके पूंछने पर गुस्सा ना हो जाए। तबेले के एक तरफ दूध के सारे कनस्तर रखे हुए थे इस लिए वो आगे बढ़ा और दो कनस्तर को ले कर ट्यूब वेल की तरफ जाने लगा।
कुछ ही देर में मोहन कनस्तर रख कर बाकी के कनस्तर लेने के लिए वापस आया तो देखा उसके दोनों साथी बाकी के कनस्तर लिए आ रहे थे। उन्हें देख मोहन अभी मायूस ही हुआ था कि तभी उसकी नज़र तबेले से अभी अभी निकली शालू पर पड़ी। उसे देखते ही मोहन के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई। उधर शालू अपने हाथ में एक छोटा सा कनस्तर लिए इधर ही चली आ रही थी। मोहन बिजली की सी तेज़ी आगे बढ़ चला। शालू की नज़र जैसे ही मोहन पर पड़ी तो उसने बुरा सा मुंह बना कर उससे नज़रें हटा ली। ये देख कर मोहन को घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ा बल्कि वो जल्दी ही तबेले में पहुंचा और बाकी जो कनस्तर बचे थे उन्हें ले कर फ़ौरन ही ट्यूब वेल की तरफ बढ़ चला।
"अबे मोहन।" ट्यूब वेल में जैसे ही मोहन कनस्तर ले कर पहुंचा तो संपत ने मुस्कुराते हुए उससे कहा____"अपन लोग को भी तो भाभी से मिलवा दे लौड़े।"
संपत की बात सुन कर शालू बुरी तरह चौंकी और फिर एकदम से घूम कर मोहन की तरफ आश्चर्य से देखने लगी। इधर संपत की बात सुन कर मोहन की सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई। उसने घबरा कर शालू की तरफ देखा। जब उसे अपनी तरफ घूरता देखा तो उसने जल्दी ही अपना सिर झुका लिया।
"अबे चुप क्यों हो गया बे लौड़े?" संपत ने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"अपन लोग को भाभी से मिलवा क्यों नहीं रेला है तू?"
"अ...अबे ये क्या बोल रेला है बे?" मोहन बड़ी मुश्किल से संपत को देखते हुए बोला____"अपन किसी भाभी वाभी को नहीं जानता, समझा?"
"भोसड़ी के कल रात को तो तू अपन लोग से बोल रेला था कि ये अपन लोग की भाभी है?" जगन ने मोहन की तरफ घूरते हुए कहा____"और अब बोल रेला है कि तू किसी भाभी वाभी को नहीं जानता? बेटीचोद सच सच बता अपन को वरना यहीं खोपड़ी तोड़ देगा अपन।"
बेचारा मोहन। जगन की बातों से उसकी ऐसी हालत हो गई जैसे अभी रो देगा। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसके दोनों साथी शालू के सामने एकदम से ऐसा बोलने लगेंगे। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी तो उसे अपनी तरफ गुस्से से देखता पाया। ये देख वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसके ज़हन में बस एक ही ख़याल आया कि____"बेटीचोद गांड़ मार ली इन दोनों लोग ने अपन की।"
"अबे सड़ी सी शकल क्यों बना ली है लौड़े?" संपत ने कुछ सोचते हुए कहा____"अबे अपन लोग तो मज़ाक कर रेले थे। चल बे जगन तू भी लौड़े क्या क्या बोल देता है इस चिंदी चोर से।"
संपत की बात सुन कर जगन अभी कुछ बोलने ही वाला था कि संपत ने उसे आंखें दिखाई और फिर घसीटता हुआ ले गया। इधर उन दोनों के जाने से और संपत की बातों से मोहन को ऐसा लगा जैसे जान में जान आ गई है। उसने एक बार फिर से शालू की तरफ देखा। शालू अभी भी गुस्से से उसे घूरे जा रही थी।
"अबे तू अपन को ऐसे क्यों घूर रेली है?" संपत खुद को सम्हाल कर एकदम अपने ही अंदाज़ में बोल पड़ा____"बर्तनों की धुलाई भी करने का है अपन लोग को। आज मालकिन ने अपन को बोलेला है कि अगर देर हुई तो अपन के साथ अच्छा नहीं होएगा।"
"पहले तुम ये बताओ कि तुम्हारे वो दोनों साथी क्या बोल रहे थे?" शालू का गुस्सा जैसे अभी भी शांत नहीं हुआ था____"तुमने मेरे बारे में क्या बोला है उन लोगों से?"
"अबे अपन ने ऐसा कुछ भी नहीं बोलेला है, अम्मा क़सम।" मोहन अपनी मां की झूठी क़सम खाने में देरी नहीं की, बोला____"वो लोग तो बेटीचोद झूठ बोल रेले थे। तूने भी तो सुना न कि संपत अभी क्या बोल के गया इधर से।"
"अगर तुमने मेरे बारे में उनसे उल्टा सीधा बोला तो देख लेना, ठीक नहीं होगा तुम्हारे लिए।" शालू ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"जैसे तुम गंदे हो उसी तरह तुम्हारे वो दोनों दोस्त भी गंदे हैं। उनको भी तमीज नहीं है कि किसी लड़की के सामने क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं।"
"अबे क्यों खाली पीली तू अपना मूड बिगाड़ रेली है?" मोहन ने कहा____"वो दोनों बेटीचोद तो ऐसे ही हैं।"
"हां और तुम तो जैसे बहुत शरीफ़ हो, है ना?" शालू ने उसे घूर कर देखा____"कल देखा था मैंने तुम्हारी शराफ़त और तमीज को। कैसे तुम मेरे ग़लत जगह को देख रहे थे और फिर गंदा गंदा बोल रहे थे।"
"अच्छा माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन एक कनस्तर को ले कर बैठते हुए बोला____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग को कभी किसी ने तमीज नहीं सिखायला है। इसी लिए तो अपन तेरे को बोल रेला था कि तू अपन को सब कुछ सिखा दे।"
"मुझे कुछ नहीं सिखना।" शालू ने हाथ झटकते हुए कहा____"अब चुपचाप बर्तन मांजो वरना मालकिन से जा के शिकायत कर दूंगी तुम्हारी।"
"आइला गुस्से में तो तू और भी ज़्यादा सुंदर लग रेली है बे।" मोहन शालू को खुश करने के इरादे से मुस्कुराते हुए बोल पड़ा____"लौड़ा तेरे को देख के अपन के अंदर कुछ कुछ हो रेला है, अम्मा क़सम।"
"छी फिर तुमने गंदा शब्द बोला।" शालू बुरा सा मुंह बना कर बोल पड़ी____"देखो मैं तुमसे आख़िरी बार बोल रही हूं। इस बार से अगर तुमने कुछ भी गंदा बोला तो मैं मालकिन के पास तुम्हारी शिकायत करने चली जाऊंगी।"
"बेटीचोद अपन को तो पताइच नहीं चला कि कब अपन के मुंह से गंदा शब्द निकल गएला है?" मोहन हैरत से मुंह फाड़ कर बोला____"बस इस बार माफ़ कर दे अपन को। अम्मा क़सम अपन अब से ऐसा कुछ नहीं बोलेगा।"
शालू उसकी बात सुन कर कुछ देर तक घूरती रही फिर बोली____"अगर तुम चाहते हो कि मैं बर्तन धोने में तुम्हारी मदद करूं तो तुम अब से कुछ भी नहीं बोलोगे। अगर मंज़ूर हो तो बोलो वरना अभी चली जाऊंगी मैं।"
"ठीक है, अपन को मंज़ूर है।" मोहन मरता क्या न करता वाली हालत में था____"अब अपन कुछ बोलेगा ही नहीं। अपन ने तेरे को अपना दोस्त मान लिएला था। कितना खुश था अपन कि तू अपन को तमीज से बात करना सिखाएगी पर ठीक है कोई न। साला अपन की तो किस्मत ही झंड है।"
कहने के साथ ही मोहन दुखी सी शकल बना कर जल्दी जल्दी बर्तन को मांजने लगा। उसकी बात सुन कर शालू ख़ामोशी से उसे देखती रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? ऐसा नहीं था कि उसे मोहन से कोई बैर था या फिर कोई नफ़रत थी किंतु उसकी बातें ही ऐसी थीं जिसके चलते वो बहुत ज़्यादा असहज हो जाती थी। मोहन के द्वारा ही उसे इतना तो पता चल ही गया था कि वो तीनों शुरू से ही ऐसे हैं। वो कभी ऐसी जगह या ऐसे लोगों के बीच रहे ही नहीं जिससे कि उन्हें किसी से बात करने का तरीका आ सके।
मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर जल्दी ही एक कनस्तर को मांज कर शालू की तरफ बढ़ा दिया। उसने एक नज़र शालू को देखा और फिर बिना कुछ कहे दूसरा कनस्तर उठा कर उसे भी मांजना शुरू कर दिया। अभी भी उसकी शकल पर दुखी वाले भाव नुमायां हो रहे थे। शालू के मन में ख़याल उभरा कि अगर वो उसे बात करने का तरीका सिखाए तो शायद उसको बोलने की तमीज आ जाए। शालू ने सोचा कि अगर हर रोज़ ही उसे उसके साथ बर्तन धोने के लिए रहना पड़ा तो दोनों के बीच कोई न कोई बात तो होगी ही इस लिए इससे अच्छा यही है कि उसे थोड़ा बहुत बोलने का तरीका सिखाया जाए।
"क्या तुम सच में बात करने का तरीका सीखना चाहते हो?" फिर उसने मोहन से झिझकते हुए पूछा।
"अगर तेरा दिल करे तो सीखा दे।" मोहन ने सपाट भाव से कहा____"तेरा एहसान होएगा अपन पर। अपन भी अख्खा लाइफ में याद करेगा कि अपन की एक सुंदर दोस्त थी जिसने अपन को बात करने की तमीज सिखाएली थी।"
"तुम बार बार मुझे सुंदर क्यों बोलते हो?" शालू ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं तो काली कलूटी हूं।"
"अबे तेरे को क्या पता कि तू कितनी सुंदर है?" मोहन एकदम से बोल पड़ा____"अपन की आंख से देख, तेरे को पता चल जाएगा कि अपन झूठ नहीं बोल रेला है।"
शालू को पहली बार उसकी ये बात सुन कर अच्छा महसूस हुआ। उसके अंदर खुशी की एक लहर सी दौड़ गई। होठों पर उभर आई मुस्कान को उसने जल्दी ही दबा लिया और फिर मोहन की तरफ देखा।
"कितने झूठे हो तुम।" फिर उसने जैसे इतराते हुए कहा____"कोई दूसरे की आंख से कैसे देख सकता है भला?"
"अबे....अपन का मतलब है कि अरे ऐसा अपन ने फिलम में हीरो के मुख से सुनेला है।" मोहन ने कहा____"वो हीरोइन को ऐसेइच बोलता है। फिलम का हीरो झूठ थोड़े ना बोलता होएगा।"
"मतलब तुमने जो फिल्म में हीरो के मुख से सुना उसी को सच मान लिया?" शालू ने कनस्तर को धोते हुए कहा।
"हां तो अपन तो मानेगा ही।" मोहन ने बड़े शान से कहा____"अपन के हीरो मिथुन चक्रवर्ती ने बोलेला है और वो कभी झूठ नहीं बोलता, समझी क्या?"
"हां तो वो हीरोइन को बोलता है ना।" शालू ने जैसे तर्क किया____"मैने भी देखा है, फिल्म की हीरोइनें तो सच में सुंदर होती हैं। अब सुंदर को सुंदर तो बोलेगा ही न हीरो।"
"अबे तू यहिच समझ ले कि तू अपन की हिरोइन है और अपन तेरा हीरो।" मोहन जैसे हार नहीं मानने वाला था____"अब अपन बोल रेला है कि तू बहुत सुंदर लग रेली है तो मतलब सच में लग रेली है, समझी?"
शालू उसकी बात सुन कर खिलखिला कर हंसने लगी। उसे हंसता देख मोहन को बड़ा अच्छा लगा। ये पहली बार था जब शालू को उसकी किसी बात से हंसी आई थी। उसे हंसता देख वो कनस्तर को मांजना ही भूल गया।
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो?" शालू अपनी हंसी रोकते हुए बोली____"जल्दी जल्दी बर्तन मांजो वरना अगर देर हो गई तो पता है ना कि क्या होगा?"
"बेटीचोद अपन तो तेरे को देखने में ही खो गएला था।" मोहन झेंपते हुए बोला____"अम्मा क़सम तू जब हंस रेली थी तो और भी सुंदर लग रेली थी। तभी तो अपन बर्तन मांजना भूल के तुझे देखने में खो गएला था।"
शालू ने इस बार मोहन की गाली को नज़रअंदाज़ कर दिया। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन उसकी तारीफ़ कर रहा था जिसके चलते उसे बहुत अच्छा लग रहा था। उसके होठों पर इस बार बहुत ही गहरी मुस्कान उभर आई थी। चेहरे पर लाज की हल्की सुर्खी भी दिखने लगी थी।
"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"
मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।
अब आगे....
अगली सुबह हुई।
आज भी तबेले में जोगिंदर नज़र नहीं आया। प्रीतो के न रहने से उसने घर का जो कबाड़ा किया था उसको चमाचम करने में लगा हुआ था वो। घर की सफाई के बाद अब घर में पोताई का काम शुरू करवा दिया था उसने। प्रीतो ने अच्छे से समझा दिया था कि घर के किस किस हिस्से में कौन कौन सा रंग पोता जाएगा। जोगिंदर प्रीतो को खुश करने के लिए बिना कोई विरोध किए सब कुछ करवाने में लगा हुआ था। पुताई के लिए उसने दो मजदूर लगवा दिए थे। प्रीतो का कहना था कि जब तक वो उसका घर चमाचम नहीं करवा देता तब तक वो तबेले में नहीं आ सकता और ना ही अपने किसी काम से कहीं बाहर जा सकता है। बाहर सिर्फ वो दूध बेचने ही जा सकता है।
तबेले में सुबह मवेशियों को चारा भूसा डालने के बाद उनका दूध निकालने का काम शुरू हो चुका था। मवेशियों का दूध निकालने के लिए प्रीतो के साथ मंगू और बबलू ही थे। बिरजू अभी वापस नहीं आया था। दूसरी तरफ जगन और संपत आस पास की सफाई में लगे हुए थे जबकि मोहन को खुद प्रीतो ने दूध के कनस्तर धोने के लिए ट्यूब वेल में भेज दिया था।
मोहन ट्यूब वेल में बर्तनों को धोने में लगा हुआ था। हालाकि अकेले बर्तन धोने में आज उसे मज़ा नहीं आ रहा था। रह रह कर उसे शालू की याद आ जाती थी और साथ ही कल शाम को उसके साथ बिताया हुआ पल भी। जिसके बारे में सोच सोच कर कभी वो खुश होता तो कभी मायूस हो जाता। आख़िर किसी तरह उसने बर्तन धुले और फिर उन बर्तनों को जगन और संपत की मदद से तबेले में पहुंचा दिया।
जोगिंदर दूध बेचने के लिए क़रीब दस बजे शहर जाता था। इस लिए जब सारा दूध कनस्तर में भर कर उसके छोटे से टेंपो में रख दिया गया तो वो टेंपो ले कर शहर चला गया। वहीं दूसरी तरफ उसके घर में शालू और रवि सबके लिए खाना बनाने में लगे हुए थे। सभी कामों से फुर्सत होने के बाद प्रीतो के कहने पर सब नहाने धोने के लिए ट्यूब वेल में चले गए।
दोपहर को खाना पीना हुआ और फिर तीनों नमूने कमरे में आराम करने के लिए आ गए। प्रीतो के आने से इतना ज़रूर हुआ था कि उन तीनों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी और ना ही उन्हें किसी की बातें सुननी पड़ती थी। इस बात से तीनों ही खुश थे किंतु मोहन की खुशी थोड़ा फीकी सी थी। ज़ाहिर है उसके दिलो दिमाग़ में कमला की बेटी शालू छाई हुई थी।
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दूसरी तरफ कमला को भी रवि के द्वारा पता चल चुका था कि जोगिंदर की बीवी आ चुकी है। जोगिंदर ने तो उसे यही बताया था कि अब शायद ही वो कभी आएगी और यही सोच कर दोनों अपनी मर्ज़ी से ऐश कर रहे थे किंतु अब जैसे हर चीज़ में विराम सा लग जाने वाला था। कमला ने जोगिंदर को जान बूझ कर अपने जिस्म को भोगने का निमंत्रण दिया था। उसे पता था कि जोगिंदर अकेला है और उसकी हर ज़रूरत को पूरा कर सकता है। अपने शराबी पति से उसे कोई उम्मीद नहीं थी। कुछ समय बाद उसकी बेटी ब्याह करने लायक हो जाती तो वो भला कैसे उसका ब्याह कर पाती? यही सब सोच कर उसने जोगिंदर को फांसा था, ताकि उससे वो अपनी ज़रूरत की हर चीज़ प्राप्त कर सके।
प्रीतो के आने से उसके मंसूबों पर एक तरह से पानी फिर गया था। कमला इस बात से बेहद परेशान हो गई थी। इसके पहले उसने तस्वीर में ही प्रीतो को देखा था जोकि उसके कहने पर जोगिंदर ने ही उसे दिखाया था किंतु सामना अभी तक न हुआ था उसका। वो जानती थी कि अब उसका सामना भी होगा क्योंकि ठीक होने के बाद उसे काम करने के लिए तबेले में तो जाना ही पड़ेगा। कमला सोच रही थी कि क्या प्रीतो को उसके पति के साथ उसके संबंधों का पता होगा? इसका जवाब उसे कहीं न कहीं पता ही था। वो जानती थी कि तबेले में काम करने वाले जोगिंदर के मुलाजिमों ने ज़रूर प्रीतो के कान में ऐसी बात पहुंचा दी होगी। उसे याद आया कि एक बार मंगू को उसने बहुत कुछ सुना दिया था तो ज़ाहिर है कि मंगू उसके बारे में प्रीतो को बता ही सकता है।
कमला अब पहले से ठीक थी। माथे पर लगी चोट में अभी भी पट्टी लगी हुई थी किंतु अब वो घर के छोटे मोटे काम खुद ही कर लेती थी। उसकी जेठानी निर्मला हर रोज़ उसके घर आ कर उसका हाल चाल लेती थी और उसके बड़े बड़े काम भी कर देती थी। ऐसे ही आलम में उसे एहसास हुआ था कि उसकी जेठानी कितनी भली औरत है और उसने अब तक कितना ग़लत किया था उसके साथ। उधर उसके पति ने भी उस दिन के बाद से कोई तमाशा नहीं किया था। ये अलग बात है कि वो अब भी पी के ही आता था।
कमला रवि और शालू से रोज़ जोगिंदर के यहां का हाल चाल पूछती थी। वो भली भांति समझ लेना चाहती थी कि उधर का हाल कैसा है आज कल ताकि ठीक होने के बाद जब वो दुबारा वहां काम करने जाए तो उसे किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। उसके अंदर घबराहट तो थी ही किंतु बेचैनी भी थी। जोगिंदर के साथ हमबिस्तर हो कर मज़ा करने की बेचैनी। पिछले एक साल से वो जोगिंदर के साथ उसकी बीवी की ही तरह रह कर मज़ा कर रही थी और अब तक वो इसकी आदी भी हो चुकी थी। उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि कल वो जोगिंदर के तबेले में ज़रूर जाएगी।
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जगन और संपत तो सो गए थे लेकिन मोहन की आंखों में नींद का नामो निशान न था। उसे शाम होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार था। बड़ी मुश्किल से करवटें बदलते हुए उसका समय गुज़रा। जैसे ही चार बजे वो झट से उठ गया और फिर जगन और संपत को जगाए बिना ही चुपचाप दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गया।
तबेले में आ कर उसने देखा मंगू और बबलू बीड़ी पीते हुए मवेशियों के खाने के लिए चारा भूसा डाल रहे थे। मोहन को आया देख दोनों पहले तो हल्के से चौंके फिर सहसा मुस्कुरा उठे।
"क्यों बे आज बड़ा जल्दी उठ कर आ गया यहां?" मंगू ने मुस्कुराते हुए पूछा____"तेरी इस ज़ल्दबाज़ी का राज़ क्या है? हमें भी बता दे भाई।"
"अबे ऐसा कुछ नहीं है।" मोहन सकपकाते हुए अपने ही अंदाज़ में बोला____"लौड़ा अपन को नींद ही नहीं आ रेली थी तो अपन चला आया इधर।"
"क्या हुआ तेरी नींद को?" बबलू ने उसके लिए फिक्रमंद हो जाने का नाटक किया____"तेरी तबीयत तो ठीक है ना?"
"अबे घंटा ठीक होगी।" मोहन से पहले मंगू बोल पड़ा____"इसके अंदर तो कमला की लौंडिया का भूत समा गया है। ऐसे में भला कैसे इसकी तबीयत ठीक हो सकती है? मैं सही कह रहा हूं ना मोहन?"
"हां...न....न नहीं तो।" मोहन एकदम से हड़बड़ा गया, फिर सम्भल कर बोला____"अपन तो एकदम ठीक है, बोले तो झक्कास।"
"चल ठीक है फिर।" बबलू ने मुस्कुराते हुए कहा____"आज अगर शालू आएगी तो मैं मालकिन से कह दूंगा कि वो शालू को बर्तन धोने में तेरी मदद करने के लिए न भेजे।"
"अरे! अबे य...ये क्या बोल रेले हो तुम?" मोहन एकदम से गड़बड़ा गया, उसकी धड़कनें थम गई सी प्रतीत हुईं थी, बोला____"अपन का मतलब है कि अगर वो अपन की मदद करने को उसको भेजना चाह रेली है तो तुमको क्या पिरोब्लम है?"
"अरे! प्रोब्लम तो होगी ही न बे।" बबलू ने कहा____"तू साले अपन के दोस्त बिरजू के माल पर लाइन मार रहा है तो प्रोब्लम तो होगी ना हम लोगों को?"
"अबे अपन कहां उसको लाइन मार रेला है बे?" मोहन हैरत से आंखें फाड़ कर बोला____"लौड़ा वो तो अपन को देखती भी नहीं है बेटीचोद।"
"भोसड़ी के हमें चूतिया समझता है क्या?" मंगू ने आंखें दिखाते हुए कहा____"हमें सब पता है कि तू उसके साथ कौन सा गुल खिलाना चाहता है। बेटा अभी भी वक्त है सुधर जा, वरना बिरजू के द्वारा तेरी ऐसी गांड़ तुड़ाई होगी कि हगते नहीं बनेगा तुझसे।"
"अबे तुम लोग क्यों अपन को खाली पीली डरा रेले हो?" मोहन ने लापरवाही से कहा____"लौड़ा तुम लोग को पताइच नहीं है कि बिरजू अपन का गुरु है। गुरु ने अपन को बोलेला था कि वो अपन को भी शालू की मलाई खिलाएगा।"
मोहन की बात सुन कर मंगू और बबलू दंग रह गए। किंतु जल्दी ही सम्हले और फिर एक दूसरे को देखने लगे। जैसे एक दूसरे से पूछ रहे हों कि क्या तुम्हें कुछ समझ आया?
अभी उनमें से कोई कुछ बोलने ही वाला था कि तभी प्रीतो तबेले में दाखिल होती नज़र आई जिसे देख दोनों चुपचाप काम में लग गए। प्रीतो ने काले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था जो उसके गोरे बदन पर काफी खूबसूरत लग रहा था। मंगू और बबलू तो काम में लग गए थे किंतु मोहन ने जब प्रीतो को देखा तो उसकी नज़र जैसे उस पर ही चिपक कर रह गई।
"ये बक्चोद पिटेगा आज देखना।" मंगू की नज़र मोहन पर पड़ी तो वो धीमें स्वर में बबलू से बोला।
"उस्ताद की बीवी को आंखें फाड़े ऐसे देख रहा है जैसे खा ही जाएगा उसे।" बबलू ने भी धीमें से कहा____"वैसे आज ये पिट जाए तो मज़ा ही आ जाए। बहुत उड़ रहा है ये।"
"तुम अभी तक यहीं हो?" मोहन पर नज़र पड़ते ही प्रीतो थोड़े सख़्त भाव से बोली तो मोहन बुरी तरह उछल पड़ा, उधर प्रीतो ने कहा____"बर्तन समेटो और धोने ले जाओ उन्हें। आज अगर धुलने में तुमने ज़्यादा समय लगाया तो अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए, समझ गए?"
मोहन ने झट से हां में सिर हिला दिया। उसके मन में एकाएक ही मंथन सा चलने लगा था। वो प्रीतो से शालू के बारे में पूछना चाहता था किंतु डर रहा था कि कहीं प्रीतो उसके पूंछने पर गुस्सा ना हो जाए। तबेले के एक तरफ दूध के सारे कनस्तर रखे हुए थे इस लिए वो आगे बढ़ा और दो कनस्तर को ले कर ट्यूब वेल की तरफ जाने लगा।
कुछ ही देर में मोहन कनस्तर रख कर बाकी के कनस्तर लेने के लिए वापस आया तो देखा उसके दोनों साथी बाकी के कनस्तर लिए आ रहे थे। उन्हें देख मोहन अभी मायूस ही हुआ था कि तभी उसकी नज़र तबेले से अभी अभी निकली शालू पर पड़ी। उसे देखते ही मोहन के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई। उधर शालू अपने हाथ में एक छोटा सा कनस्तर लिए इधर ही चली आ रही थी। मोहन बिजली की सी तेज़ी आगे बढ़ चला। शालू की नज़र जैसे ही मोहन पर पड़ी तो उसने बुरा सा मुंह बना कर उससे नज़रें हटा ली। ये देख कर मोहन को घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ा बल्कि वो जल्दी ही तबेले में पहुंचा और बाकी जो कनस्तर बचे थे उन्हें ले कर फ़ौरन ही ट्यूब वेल की तरफ बढ़ चला।
"अबे मोहन।" ट्यूब वेल में जैसे ही मोहन कनस्तर ले कर पहुंचा तो संपत ने मुस्कुराते हुए उससे कहा____"अपन लोग को भी तो भाभी से मिलवा दे लौड़े।"
संपत की बात सुन कर शालू बुरी तरह चौंकी और फिर एकदम से घूम कर मोहन की तरफ आश्चर्य से देखने लगी। इधर संपत की बात सुन कर मोहन की सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई। उसने घबरा कर शालू की तरफ देखा। जब उसे अपनी तरफ घूरता देखा तो उसने जल्दी ही अपना सिर झुका लिया।
"अबे चुप क्यों हो गया बे लौड़े?" संपत ने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"अपन लोग को भाभी से मिलवा क्यों नहीं रेला है तू?"
"अ...अबे ये क्या बोल रेला है बे?" मोहन बड़ी मुश्किल से संपत को देखते हुए बोला____"अपन किसी भाभी वाभी को नहीं जानता, समझा?"
"भोसड़ी के कल रात को तो तू अपन लोग से बोल रेला था कि ये अपन लोग की भाभी है?" जगन ने मोहन की तरफ घूरते हुए कहा____"और अब बोल रेला है कि तू किसी भाभी वाभी को नहीं जानता? बेटीचोद सच सच बता अपन को वरना यहीं खोपड़ी तोड़ देगा अपन।"
बेचारा मोहन। जगन की बातों से उसकी ऐसी हालत हो गई जैसे अभी रो देगा। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसके दोनों साथी शालू के सामने एकदम से ऐसा बोलने लगेंगे। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी तो उसे अपनी तरफ गुस्से से देखता पाया। ये देख वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसके ज़हन में बस एक ही ख़याल आया कि____"बेटीचोद गांड़ मार ली इन दोनों लोग ने अपन की।"
"अबे सड़ी सी शकल क्यों बना ली है लौड़े?" संपत ने कुछ सोचते हुए कहा____"अबे अपन लोग तो मज़ाक कर रेले थे। चल बे जगन तू भी लौड़े क्या क्या बोल देता है इस चिंदी चोर से।"
संपत की बात सुन कर जगन अभी कुछ बोलने ही वाला था कि संपत ने उसे आंखें दिखाई और फिर घसीटता हुआ ले गया। इधर उन दोनों के जाने से और संपत की बातों से मोहन को ऐसा लगा जैसे जान में जान आ गई है। उसने एक बार फिर से शालू की तरफ देखा। शालू अभी भी गुस्से से उसे घूरे जा रही थी।
"अबे तू अपन को ऐसे क्यों घूर रेली है?" संपत खुद को सम्हाल कर एकदम अपने ही अंदाज़ में बोल पड़ा____"बर्तनों की धुलाई भी करने का है अपन लोग को। आज मालकिन ने अपन को बोलेला है कि अगर देर हुई तो अपन के साथ अच्छा नहीं होएगा।"
"पहले तुम ये बताओ कि तुम्हारे वो दोनों साथी क्या बोल रहे थे?" शालू का गुस्सा जैसे अभी भी शांत नहीं हुआ था____"तुमने मेरे बारे में क्या बोला है उन लोगों से?"
"अबे अपन ने ऐसा कुछ भी नहीं बोलेला है, अम्मा क़सम।" मोहन अपनी मां की झूठी क़सम खाने में देरी नहीं की, बोला____"वो लोग तो बेटीचोद झूठ बोल रेले थे। तूने भी तो सुना न कि संपत अभी क्या बोल के गया इधर से।"
"अगर तुमने मेरे बारे में उनसे उल्टा सीधा बोला तो देख लेना, ठीक नहीं होगा तुम्हारे लिए।" शालू ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"जैसे तुम गंदे हो उसी तरह तुम्हारे वो दोनों दोस्त भी गंदे हैं। उनको भी तमीज नहीं है कि किसी लड़की के सामने क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं।"
"अबे क्यों खाली पीली तू अपना मूड बिगाड़ रेली है?" मोहन ने कहा____"वो दोनों बेटीचोद तो ऐसे ही हैं।"
"हां और तुम तो जैसे बहुत शरीफ़ हो, है ना?" शालू ने उसे घूर कर देखा____"कल देखा था मैंने तुम्हारी शराफ़त और तमीज को। कैसे तुम मेरे ग़लत जगह को देख रहे थे और फिर गंदा गंदा बोल रहे थे।"
"अच्छा माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन एक कनस्तर को ले कर बैठते हुए बोला____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग को कभी किसी ने तमीज नहीं सिखायला है। इसी लिए तो अपन तेरे को बोल रेला था कि तू अपन को सब कुछ सिखा दे।"
"मुझे कुछ नहीं सिखना।" शालू ने हाथ झटकते हुए कहा____"अब चुपचाप बर्तन मांजो वरना मालकिन से जा के शिकायत कर दूंगी तुम्हारी।"
"आइला गुस्से में तो तू और भी ज़्यादा सुंदर लग रेली है बे।" मोहन शालू को खुश करने के इरादे से मुस्कुराते हुए बोल पड़ा____"लौड़ा तेरे को देख के अपन के अंदर कुछ कुछ हो रेला है, अम्मा क़सम।"
"छी फिर तुमने गंदा शब्द बोला।" शालू बुरा सा मुंह बना कर बोल पड़ी____"देखो मैं तुमसे आख़िरी बार बोल रही हूं। इस बार से अगर तुमने कुछ भी गंदा बोला तो मैं मालकिन के पास तुम्हारी शिकायत करने चली जाऊंगी।"
"बेटीचोद अपन को तो पताइच नहीं चला कि कब अपन के मुंह से गंदा शब्द निकल गएला है?" मोहन हैरत से मुंह फाड़ कर बोला____"बस इस बार माफ़ कर दे अपन को। अम्मा क़सम अपन अब से ऐसा कुछ नहीं बोलेगा।"
शालू उसकी बात सुन कर कुछ देर तक घूरती रही फिर बोली____"अगर तुम चाहते हो कि मैं बर्तन धोने में तुम्हारी मदद करूं तो तुम अब से कुछ भी नहीं बोलोगे। अगर मंज़ूर हो तो बोलो वरना अभी चली जाऊंगी मैं।"
"ठीक है, अपन को मंज़ूर है।" मोहन मरता क्या न करता वाली हालत में था____"अब अपन कुछ बोलेगा ही नहीं। अपन ने तेरे को अपना दोस्त मान लिएला था। कितना खुश था अपन कि तू अपन को तमीज से बात करना सिखाएगी पर ठीक है कोई न। साला अपन की तो किस्मत ही झंड है।"
कहने के साथ ही मोहन दुखी सी शकल बना कर जल्दी जल्दी बर्तन को मांजने लगा। उसकी बात सुन कर शालू ख़ामोशी से उसे देखती रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? ऐसा नहीं था कि उसे मोहन से कोई बैर था या फिर कोई नफ़रत थी किंतु उसकी बातें ही ऐसी थीं जिसके चलते वो बहुत ज़्यादा असहज हो जाती थी। मोहन के द्वारा ही उसे इतना तो पता चल ही गया था कि वो तीनों शुरू से ही ऐसे हैं। वो कभी ऐसी जगह या ऐसे लोगों के बीच रहे ही नहीं जिससे कि उन्हें किसी से बात करने का तरीका आ सके।
मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर जल्दी ही एक कनस्तर को मांज कर शालू की तरफ बढ़ा दिया। उसने एक नज़र शालू को देखा और फिर बिना कुछ कहे दूसरा कनस्तर उठा कर उसे भी मांजना शुरू कर दिया। अभी भी उसकी शकल पर दुखी वाले भाव नुमायां हो रहे थे। शालू के मन में ख़याल उभरा कि अगर वो उसे बात करने का तरीका सिखाए तो शायद उसको बोलने की तमीज आ जाए। शालू ने सोचा कि अगर हर रोज़ ही उसे उसके साथ बर्तन धोने के लिए रहना पड़ा तो दोनों के बीच कोई न कोई बात तो होगी ही इस लिए इससे अच्छा यही है कि उसे थोड़ा बहुत बोलने का तरीका सिखाया जाए।
"क्या तुम सच में बात करने का तरीका सीखना चाहते हो?" फिर उसने मोहन से झिझकते हुए पूछा।
"अगर तेरा दिल करे तो सीखा दे।" मोहन ने सपाट भाव से कहा____"तेरा एहसान होएगा अपन पर। अपन भी अख्खा लाइफ में याद करेगा कि अपन की एक सुंदर दोस्त थी जिसने अपन को बात करने की तमीज सिखाएली थी।"
"तुम बार बार मुझे सुंदर क्यों बोलते हो?" शालू ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं तो काली कलूटी हूं।"
"अबे तेरे को क्या पता कि तू कितनी सुंदर है?" मोहन एकदम से बोल पड़ा____"अपन की आंख से देख, तेरे को पता चल जाएगा कि अपन झूठ नहीं बोल रेला है।"
शालू को पहली बार उसकी ये बात सुन कर अच्छा महसूस हुआ। उसके अंदर खुशी की एक लहर सी दौड़ गई। होठों पर उभर आई मुस्कान को उसने जल्दी ही दबा लिया और फिर मोहन की तरफ देखा।
"कितने झूठे हो तुम।" फिर उसने जैसे इतराते हुए कहा____"कोई दूसरे की आंख से कैसे देख सकता है भला?"
"अबे....अपन का मतलब है कि अरे ऐसा अपन ने फिलम में हीरो के मुख से सुनेला है।" मोहन ने कहा____"वो हीरोइन को ऐसेइच बोलता है। फिलम का हीरो झूठ थोड़े ना बोलता होएगा।"
"मतलब तुमने जो फिल्म में हीरो के मुख से सुना उसी को सच मान लिया?" शालू ने कनस्तर को धोते हुए कहा।
"हां तो अपन तो मानेगा ही।" मोहन ने बड़े शान से कहा____"अपन के हीरो मिथुन चक्रवर्ती ने बोलेला है और वो कभी झूठ नहीं बोलता, समझी क्या?"
"हां तो वो हीरोइन को बोलता है ना।" शालू ने जैसे तर्क किया____"मैने भी देखा है, फिल्म की हीरोइनें तो सच में सुंदर होती हैं। अब सुंदर को सुंदर तो बोलेगा ही न हीरो।"
"अबे तू यहिच समझ ले कि तू अपन की हिरोइन है और अपन तेरा हीरो।" मोहन जैसे हार नहीं मानने वाला था____"अब अपन बोल रेला है कि तू बहुत सुंदर लग रेली है तो मतलब सच में लग रेली है, समझी?"
शालू उसकी बात सुन कर खिलखिला कर हंसने लगी। उसे हंसता देख मोहन को बड़ा अच्छा लगा। ये पहली बार था जब शालू को उसकी किसी बात से हंसी आई थी। उसे हंसता देख वो कनस्तर को मांजना ही भूल गया।
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो?" शालू अपनी हंसी रोकते हुए बोली____"जल्दी जल्दी बर्तन मांजो वरना अगर देर हो गई तो पता है ना कि क्या होगा?"
"बेटीचोद अपन तो तेरे को देखने में ही खो गएला था।" मोहन झेंपते हुए बोला____"अम्मा क़सम तू जब हंस रेली थी तो और भी सुंदर लग रेली थी। तभी तो अपन बर्तन मांजना भूल के तुझे देखने में खो गएला था।"
शालू ने इस बार मोहन की गाली को नज़रअंदाज़ कर दिया। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन उसकी तारीफ़ कर रहा था जिसके चलते उसे बहुत अच्छा लग रहा था। उसके होठों पर इस बार बहुत ही गहरी मुस्कान उभर आई थी। चेहरे पर लाज की हल्की सुर्खी भी दिखने लगी थी।