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Romance Ummid Tumse Hai

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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अनुनय विनय

मेरी यह कहानी किसी धर्म, समुदाय, संप्रदाय या जातिगत भेदभाव पर आधारित नहीं हैं। बल्कि यह एक पारिवारिक स्नेह वा प्रेम, जीवन के उतर चढ़ाव और प्रेमी जोड़ों के परित्याग पर आधारित हैं। मैने कहानी में पण्डित, पंडिताई, पोथी पोटला और चौपाई के कुछ शब्द इस्तेमाल किया था। इन चौपाई के शब्द हटा दिया लेकिन बाकी बचे शब्दो को नहीं हटाऊंगा। क्योंकि पण्डित (सरनेम), पंडिताई (कर्म) और पोथी पोटला (कर्म करने वाले वस्तु रखने वाला झोला) जो की अमूमन सामान्य बोल चाल की भाषा में बोला जाता हैं। इसलिए किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चहिए फिर भी किसी को परेशानी होता हैं तो आप इन शब्दों को धारण करने वाले धारक के प्रवृति से भली भांति रूबरू हैं। मैं उनसे इतना ही बोलना चाहूंगा, मैं उनके प्रवृति से संबंध रखने वाले कोई भी दृश्य पेश नहीं करूंगा फिर भी किसी को चूल मचती हैं तो उनके लिए

सक्त चेतावनी


मधुमक्खी के छाते में ढील मरकर अपने लिए अपात न बुलाए....
 
Last edited:

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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प्रिय पाठकों सभी से निवेदन हैं अपडेट को पड़ने से पहले उपर दिए अनुनय विनय को पढ़ लिजिए

Update - 2

बदन का कोना कोना घिस घिस कर चमकाया गया। इतना घिसा गया बेदाग बदन पर लाल लाल निशान पड़ गया मानो राघव को अपने बदन से कोई खुन्नाश हो जिसे वो घिस घिस कर निकाल रहा हों। मल युद्ध खत्म हुआ भीगे बदन को तौलिए से सुखाकर राघव बाथरूम से निकला, अलमीरा से कपड़े निकाल पहना फिर शीशे के समने खड़े होकर हेयर ड्रायर से बालों को सुखाकर जेल लगाया फिर तरह तरह के हेयर स्टाइल बनाकर देखा संतुष्टि मिलते ही थोडा ओर टच ऑफ देकर डन कर दिया। डीईओ से खुद को महकाया और रूम फ्रेशनर से रूम को भी महका दिया जिससे लगे एक नए दिन की शुभारंभ हों चुका था लेकिन कितना शुभ होगा यह तो ऊपर बैठा जिसे लोग न जाने किस किस नाम से बुलाते हैं। वहीं जनता हैं।

राघव रूम फ्रेशनर स्प्रे कर ही रहा था। तभी तन्नू ने आकार जोर जोर से दरवाजा पीटते हुए धावा बोल दिया। इतने जोर जोर से दरवाजा पीटे जाने से राघव बोला " कौन हो भाई दरवाजा अच्छा नहीं लगा रहा जो पीट पीट कर तोड़ने पर तुली हों। एक मिनट रुको मैं आया।"

तन्नु " भईया जल्दी दरवाजा खोलो सुनामी आया। आप बह जाओगे।"

सुनामी सुनते ही अच्छे अच्छे पहलवान की गीली-पीली हों जाती हैं। राघव ठहरा साधारण इंसान, इसको डर और अचंभे ने ऐसा मर मार विचारे की दिमाग का फ्यूज ही उड़ गया। क्या करें समझ नहीं आया तो जाकर दरवाजा खोला, बाहर मुंडी निकलकर देखते हुए बोला " कहा आया सुनामी।"

तन्नु " ही ही ही …… भईया आपके कमरे में अपकी प्यारी बहनिया सुनामी बनकर आईं।"

एक गहरी श्वास लिया छीने पर हाथ रख राघव बोला " क्या यार तन्नु डरा दिया, मुझसे मिलने का तुझे कोई ओर तरीका नहीं सूझता।"

तन्नु " भईया आप जानते हों न जब भी मैं आपसे मिलने आती हूं,, मूझसे वेट नहीं होता इसलिए मैं तरह तरह के बहने बनाकर दरवाजा खुलवाती हूं।"

राघव "हां हां जनता हूं मेरी बहना प्यारी को, वो बहुत नटखट हैं। उसकी ये अदा मेरे दिन को सुहाना कर देता हैं।"

तन्नु " ही ही ही…. वो तो मैं हूं ही अब आप जल्दी चलो।"

राघव तन्नू का हाथ पकड़ चल देता जैसे ही दोनो डायनिंग हॉल में पहुंचे, वहां अटल जी बैठे प्रगति के साथ चाय पर चर्चा कर रहे थे। राघव को तन्नु के साथ आते देख टोंट करते हुए बोले "देखो तो ऐसे आ रहे हैं जैसे किसी रियासत का राजा हों। तनुश्री बेटा जिसका हाथ थामे दसी की तरह ला रहे हों ये निक्कमा किसी रियासत का राजा नहीं, डिग्री तो ले लिया जो इसके किसी काम का नहीं मेरे छीने पर मूंग डाले बैठा हैं और बोटी बोटी नोच रहा हैं।"

हो गई सुभारंभ दिल की खोली में अरमान लिए आया था चैन से बैठ कर दो रोटी खायेगा, रोटी तो मिली नहीं रोटी की जगह खाने को ताने मिला, हाथ झटककर छुड़ाया फिर चल दिया तन्नु तकती रह गई। तन्नु उसके पीछे जा ही रही थीं कि अटल जी बोले " कहा जा रहीं हों,जाने दो उसे वो इसी लायक हैं। तुम उसके पिछे गई तो अच्छा नहीं होगा। चुप चाप यहां बैठो और नाश्ता करों"

तन्नु बाप के आज्ञा का निरादर नहीं कर सकता था इसलिए मुंह लटकाएं आंखो में पानी लिए चुप चाप बैठ गई। हल्की नमी प्रगति के आंखो ने भी बाह दिया लेकिन अटल जी बिलकुल अटल रहे न दिल पसीजा न ही जुबान लड़खड़ाया। चाय का काफ मेज पर रख प्रगति से मुखातिब हुए " ऐसे न देखो दिल के झरोखे में छाले पड़ जायेंगे, जाकर तनुश्री को नाश्ता दो।

प्रगति क्या बोलती पतिव्रता नारी हैं साथ फेरो के साथ वचनों से बंधी, आंखो में आई नमी को पोछकर दर्द जो दिल में उठा उसे दबाकर चल दिया। किचन में जाकर प्रगति खुद को ओर न रोक पाई और सुबक सुबक कर रोने लगीं, रोना शायद विधाता ने इसके किस्मत में लिखकर भेजा। तभी तो अंचल में मुंह छुपाए बीना आवाज किए रो रहीं थीं। आने में देर लागी तो फिर से अटल जी की वाणी का तीर छूटा " कितना देर लगाओगी इतनी देर में तो बाघ एक्सप्रेस काठगोदाम से हावड़ा पहुंच जाता। तुम भी इस बेरोजगार की तरह अलसी हों जब तक दो चार डोज न मिले हाथ पांव नहीं चलता।"

तन्नु नजरे उठाकर देखी जो अब तक झुकी हुई थीं। बाप के हाव भाव समझना चाही लेकिन बाप तो पत्थर की मूरत, जिसे न हवा पानी न ही धूप नुकसान पहुंचा पाए फिर करना किया था आराम से नजरे झुका लीं। प्रगति एक प्लेट में जो कुछ भी बनया था लेकर आई, मेज पर तन्नु के सामने रख दिया। तन्नु का मन नहीं था बेमन से खाने लगी, बेमन का भाव देखकर अटल जी बोले "खाना हैं तो मन से खाओ, खाने की बेअदगी मुझे बर्दास्त नहीं, नहीं मन हैं तो थाली छोड़कर उठ जाओ"

तन्नु क्या करती बाप की बातों से पेट का कोना कोना भर गया था लेकिन उसे बाप की उम्मीद पे खारा जो उतरना था इसलिए न चाहते हुए भी मन लगाकर खाने लगीं तन्नु को खाता देखकर अटल जी बोले " साबास बेटी इस घर में तुम ही एक हों जो मेरी उम्मीद के पुल पर चलती हों, बाकी तो सब मेरे उम्मीद पर पानी फेर देते हैं"

प्रगति इस तरह का टोंट बर्दास्त नहीं कर पाई इसलिए किचन की ओर जानें लगीं तब अटल जी बोले " कहा जा रहीं हों कमरे से मेरी पोथी का पोटला ले आओ मुझे एक जजमान से मिलने जाना हैं।"

प्रगति चुपचाप घूमकर कमरे में गई पोथी का पोटला उठाया फिर लेकर अटल जी को दे दिया। अटल जी जाते हुए बोले " दिवाली आने वाली हैं अपने बेटे से कहना घर की सफाई ढंग से करे मुझे कही कोई कमी नहीं दिखना चाहिए"

इस बार प्रगति साहस की कुछ बूंदे इकट्ठा कर बोली " राघव को रहने दो एक काम वाली को बुलाकर सफाई करवा लूंगी।"

बस फिर किया था अटल जी अटल मुद्रा धारण किया फिर बोले " पैसे पेड़ पर नहीं उगते, कमाने में सर का पसीना पाव में आ जाता। किसी काम वाली को बुलाने की जरूरत नहीं, बेरोजगारी की हदें पार कर घर बैठा हैं उसी से करवाना एवज में उसे कुछ खर्चा मिल जाएगा।"

इसके बाद तो प्रगति के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं था। शब्दों की तीर जो दिल को छलनी कर दे न जानें मां का दिल कितनी बार छलनी हुआ। छलनी होकर जार जार हो गई, फिर भी कुछ कह न पाई कई बार कोशिश किया हर बर मुंह की खानी पड़ी। क्योंकि अटल के अटल इरादे के सामने प्रगति न टिक पाई। अटल के जाते ही प्रगति दौड़ी, तन्नु खाने की थाली वैसे ही छोड़कर भागी दोनों पहुंचे जाकर राघव के कमरे, कमरे का दरवाजा खुला था राघव अदंर नही था। प्रगति और तन्नु एक दूसरे का मुंह ताके राघव गया तो गया कहा। राघव को न देखकर तन्नु रुवाशा होकर बोली " मम्मा भईया तो यह नहीं हैं कहा गए होंगे"

प्रगति को पता होता तो खुद न चाली जाती। तन्नु को सुनाकर प्रगति परेशान होकर बोली " पता नहीं कहा गई। इनको भी हमेशा चूल चढ़ी रहती हैं जो कहना हैं खाने के वक्त ही कहेंगे मेरे बेटे का जीना ही दुभर कर दिया हैं, न जानें किस जन्म का बदला ले रहे हैं।"

तन्नु " मम्मा बदला वादला छोड़ो चलो भईया को ढूंढते हैं।"

दोनों घर से निकाल पड़ी राघव को ढूंढने बहार आते ही देखा राघव की बाइक वहीं खड़ी थी। जिसे प्रगति ने पिछले बर्थ डे में गिफ्ट किया था। प्रगति झूठ बोलकर अटल से पैसे लेकर राघव के लिए खुद जाकर बाइक पसंद किया था। साथ में तन्नु भी गई थी। बाइक के आते ही अटल जी अटल मुद्रा धारण किया और बवाल मांचा दिया उस दिन राघव का बर्थ डे था प्रगति नहीं चहती थी राघव का यह दिन खराब हो इसलिए प्रगति काम करके पैसे चुकाने की बात कहीं तो यह बात अटल को अहम पर चोट जैसी लगीं। तब जाकर अटल के तेवर में कमी आई।

बाइक देखकर तन्नु बोली " मम्मा बाइक तो यहां खड़ी हैं इससे जन पड़ता, भईया पैदल ही गए हैं।

तब प्रगति बोली " जाकर मेरा मोबाइल लेकर आ"

तन्नु भागी अंदर। अब देखते हैं राघव कहा गया। राघव बाप की खारी खोटी सुनकर सीधा घर से बाहर निकला बाहर आते आते उसके मन को जो ठेस पहुंचा था वो नीर बनकर अविरल बह निकला, राघव नीर बहते हुए बाइक को एक नजर देखा फिर पैदल ही चल दिया। घर से कुछ ही दूरी पर एक मैदान हैं। राघव वहा जाकर बैठ गया, बाप के बातो से उसे इतना चोट पहुंचा था। जिसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं था। राघव बीते दिनो को याद कर नीर बहाए जा रहा था। ऐसा नहीं की अटल हमेशा से राघव के साथ सौतेला व्यवहार करते थे। वो राघव से बहुत प्यार करते थे उनके व्यवहार में तब से परिवर्तन आने लगा जब राघव उनके इच्छा के विरुद्ध जाकर इलेक्ट्रिक इंजीनियर की पढ़ाई किया। राघव बैठे बैठें उन प्यार भरे पालो को याद करने लगा। यादों में इस कदर खोया था। उसे ध्यान ही नहीं रहा कोई उसके पास आकार खडा हुआ और उसे आवाज दे रहा था। आवाज देने वाले शख्स को प्रतिक्रिया न मिलने पर कंधा पकड़ हिलाया। दो तीन बार हिलाने पर राघव यादों की झरोखे से बाहर निकला पलटकर पिछे देखा। देखते ही राघव के लव जो अब तक भोजिल थे। खुला और उदास चहरे पर एक सुहानी मुस्कान आया फिर राघव बोला " सृष्टि तुम! कब आई ? कैसी हों?"

जी ये हैं राघव की सोनू मोनू बाबू सोना वाली गर्लफ्रेंड। ऐसा नहीं कहूंगा विश्व सुंदरी हैं। जरूरी तो नहीं सिर्फ विश्व सुंदरियों से प्रेम हों। हीरो अपना सुपर स्मार्ट लेकिन हीरोइन थोड़ी ढल हैं। नैन जिसके मद रस से भरी पीकर दीवाना हो जाइए बैरी बाबरी, गालों पे एक डिंपपल जो दिलकश चहरे को मन लुभावन का भाव दे। रस की भरमार होंटो के किया ही कहने। निचली होंठ के किनारे एक छोटा सा तिल दमकते चहरे के पहरेदारी में खडा मानो कह रहीं हो इधर न देखना नजरे उठा कर वरना पहरा लगा दूंगा नकाब का लबों पे रहती हैं हमेशा एक मीठी सी मुस्कान ये है अपनी हीरोइन की पहचान।

नाम सृष्टि बनर्जी हैं लेकिन इस धरा पर राघव के अलावा कोई ओर नहीं था अनाथ आलय में पली बड़ी हुई दोनों का प्रेम प्रसंग पिछले छ साल से चल रहा हैं दोनों एक फंक्शन मिले थे। राघव को उसके गालों पर पड़ने वाली डिम्पल और होटों के पहरेदारी में खड़ी तिल ने राघव के मन मोह लिया दोनों अलग अलग कॉलेज में पढ़े सृष्टि ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया था और इस वक्त एक अच्छी जॉब करती हैं। राघव के बेरोजगार होने से उसे कोई मतलब नहीं क्योंकि दोनों के प्रेम डोर दिल से जुड़े हैं न की जिस्म और परिस्थिती से जुड़ा हैं।


सृष्टि लबों पे मुस्कान लिए बोली " मैं तो अभी अभी आई हूं, तुम किस सोच में गुम थे कितनी आवाज दी सुना ही नहीं।"

राघव हाथ पकड़ सृष्टि को पास बिठाया उसके कंधे पर सर रखा। सर रखते ही राघव को अपर शांति की अनुभूति हुआ। शायद इसलिए कहते हैं जीवन में सच्चा प्रेम का होना बहुत जरूरी हैं। जो शांति सकून एक सच्चा प्रेमी या प्रेमिका दे सकता/ सकती वो ढोंगी प्रेमी नही दे सकता। प्रेम की अनुभूति अगर सच्चा हो तो दोनों प्रेमी खींचा चला आता। चाहे यह लोक हों या प्रलोक इसलिए तो विधाता ने मूलवान उपहार स्वरूप प्रेम का वरदान दिया । लेकिन यह वरदान हमेशा अभिशाप बनकर रह क्योंकि समाज के कायदे कानून प्रेम को तिरस्कार की दृष्टि से देखता, समझ नहीं आता ये कैसे कायदे कानून हैं जो सिर्फ़ प्रेमी जोड़े के लिए हैं। प्रेम की परिभाषा समझाने वाले की पूजा करते हैं लेकिन एक इंसान दूसरे इंसान से प्रेम करे तो इनके आंखो में खटकता हैं। जो प्रेमियों के राह में कटे बिछा देते, जो इनके लिए दुःख दाई , पीड़ा दाई ओर कष्टों से भरा होता हैं।

कुछ ज्यादा ही फ्लो में बह गया था और लम्बा चौड़ा प्रवचन लिख डाला क्या करूं प्रेम पुजारी हुं लेकिन जिसकी प्रेम की पूजा करना चाहता हूं वो अभी तक नहीं मिला लगता हैं इधर का रस्ता ही भुल गई और किसी दूसरे प्लानेट पर लैंड कर गई। खैर गौर तलब मुद्दा ये हैं खोजबीन जारी हैं मिल गई तो मस्त स्माइल के साथ फोटो पोस्ट कर दूंगा लाईक और कोमेट कर देना।


अपडेट यहीं खत्म करता हूं। दोनों प्रेमी जोड़े का वर्तालब next Update में दूंगा जानें से पहले इतना कहूंगा उंगली करके लाईक ओर कॉमेंट छोड़ जाना बरना…… बरना क्या करूंगा कुछ नहीं कर सकता अपकी उंगली अपका मोबाइल, अपका लैपटॉप उंगली करे या न करें अपकी इच्छा मेरी इच्छा से थोड़ी न चलेंगे।
Awesome update
 

Lucky..

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Update - 3

राघव सृष्टि के कंधे पर सर रख नीर बहा रहा था और कांधे को भिगो रहा था। गीला पान चूबते ही सृष्टि ने राघव का सर उठाया उसके आशु पोछा फिर बोला " क्या हुआ राघव आज फिर से कहा सुनी हुई। मत रो तुम्हारे अंशु मेरे दिल को खचोट रहीं तुम ने रोना बन्द नहीं किया तो मैं भी रो दूंगी।


राघव सृष्टि की आंखो में देखकर उसके लवों को अपने लवों से मिलाया ये अदभूत क्षण कुछ ही सेकंड के लिए था। अलग होकर राघव बोला " रोऊ न तो और क्या करू पापा की तीखी बाते और सहन नहीं होता। मैं क्या करूं जो उनके दिल में पुरानी जगह बना पाऊं"


सृष्टि " करना कुछ नहीं हैं सिर्फ़ आंखे मूंदे सुनती रहो, जो कह रहे हैं एक कान से सुनो और दूसरे कान से निकाल दो तुमने उनके इच्छा के विरुद्ध जाकर काम किया तो गुंबार तो पनपना ही था। जिस दिन उन्हे अहसास होगा तुम सही थे देखना पुराना दुलार लौट आएगा।


राघव " न जानें कब लौटेगा, उम्मीद खो चुका हूं अब तो मन करता हैं….."


लवों पे उंगली रख सृष्टि कहती हैं " चुप बिलकुल कुछ भी उटपटांग न कहना।"


राघव मुस्कुराया लबों से उंगली हटाकर हाथ को चूमा फिर बोला " अच्छा नहीं कहता बाबा… मैं उटपटांग बोलूं या न बोलूं किसे फर्क पड़ता हैं।"


सृष्टि " आज कहा हैं दुबारा न कहना सब को फर्क पड़ता हैं, मैं हूं , आंटी हैं, तन्नु हैं, अंकल हैं।


राघव "hummm अंकल आंटी….


सृष्टि कान पकड़ भोली सूरत और मासूम अदा से बोली " सॉरी न babaaaa,


राघव " hummm ये ठीक हैं। इतनी भोली सूरत मासूम अदा से बोलोगी तो कौन माफ नहीं करेगा।


सृष्टि मन मोहिनी मुस्कान बिखेर बोली " माफ तो करना ही था। मुझसे इतना प्यार जो करते हों, मैं जो बोलती हूं वो सुनो अभी हमारी शादी नहीं हुई। इसलिए उन्हे अंकल आंटी बोल सकती हूं।


राघव " मोबइल दो जरा मां से पूछकर बताता हूं।


सृष्टि " न बाबा न उनसे न पुछना बहुत डाटेगी। मां से याद आया जल्दी घर जाओ मां टेंशन में हैं।


राघव " ओ तो मां ने तुम्हें मेरे यहां होने की ख़बर दी।


सृष्टि " मां ने सिर्फ इतना बताया पापा ने तुम्हें भला बुरा कहा और तुम घर से निकल आए।"


राघव " फिर तुम कैसे जान पाए मैं यहां हूं?"


सृष्टि " तुम न पुरे के पूरे झल्ले हों जानते सब हों जानकर भी अनजान बनते हो। जब भी तुम्हारा पापा से नोक झोंक होता हैं। तुम अपना ये क्यूट सा चहरा कद्दू जैसा बनाकर यहां आ जाते हों।


राघव " मेरा चहरा कद्दू जैसा तो क्या तुम्हारा चहरा फुल गोभी जैसा।"


सृष्टि " न न मेरा चहरा गोभी जैसा क्यों होगा। खिला हुआ गुलाब हैं जिसे देखकर तुम्हारे चहरे की क्यूटनेंस ओर बड़ जाती हैं।


राघव " न जाने कब ये खिला हुआ गुलाब मेरे अंगना आकार महकेगा।"


सृष्टि " वो दिन तो तब आएगा जब मम्मी पापा चाहेंगे।"


राघव " फिर तो वो दिन आने से रहीं क्योंकि नौकरी नहीं तो छोकरी नहीं ।"


सृष्टि मुस्कुराया पीट पे एक धाप दिया फिर बोला " नौकरी से याद आया एक जगह बात किया हैं तुम्हारे नाक पर मक्खी न बैठें तो जाकर देख आना।"


राघव " मेरे नाक पे भला मक्खी क्यों बैठेगा। बैठा तो उसे मसल न दू।"


राघव के नाक पकड़ हिलाते हुए सृष्टि बोली " कभी कभी इगो आड़े आ जाती हैं अहम को चोट न पहुंचे इसलिए ऐसे प्रस्ताव को ठुकरा दिया जाता हैं।


राघव " मेरा अहम कभी आड़े नहीं आया। तूम जो कुछ भी मेरे लिए करती उससे मुझे खुशी मिलता हैं। तुम्हारी जैसी गर्लफ्रेंड बहुत नसीब वालो को मिलाता हैं। शायद किसी जनम में बहुत पुण्य काम किया होगा जिसके फलस्वरूप तुम मुझे मिली।"


सृष्टि " ये कैसी बाते कर रहें हों नसीब वाली तो मैं हु जो तुम मुझे मिले। तुम्हारे लिए नहीं करूंगी तो ओर किसके लिए करूंगी तुम्हारे अलावा मेरा कौन हैं।"


राघव " haumnnn……


सृष्टि " रूको रुको फुन आई बात कर लू फिर जो बोलना हैं बोल लेना।"


सृष्टि बात करती हैं फिर राघव को बोलती हैं " बहुत देर हों गई अब हमे चलना चहिए। तुम भी जाओ मां वहा टेंशन के मारे फिर से फेरे लेने पे तुली हैं।"


राघव एक छोटा सा kiss 😘 कर चल देता हैं तब सृष्टि राघव को रोक कर बोलती हैं " एड्रेस तो लिया नहीं बिना एड्रेस के जॉब की इंटरव्यू देने कैसे जाओगे।


सृष्टि राघव को एड्रेस बता देती हैं। राघव चलने लगता हैं तब सृष्टि पिछे से बोलती हैं " कल याद से मिल लेना और शाम को मुझे good news देना।"


राघव मुंडी hannn में हिलाया, सृष्टि मुस्कुराते हुए चल दिया। राघव भी मस्त मौला चल दिए। चाल से जान पड़ता, बहुत खुश होकर जा रहा था। कौन कहेगा कुछ देर पहले राघव को बाप ने तीखी मिर्ची वाली चटनी चटाई। बस लवर के होटों का मिठास चाट लिया और सारा तीखापन भूल गया। ये कैसा प्यार है कुछ पल्ले न पड़ा। ऐसी प्रेमिका सब की लाइफ में आ जाए तो बल्ले बल्ले डिस्को भांगड़ा तिनक धीन ताना नाचू मैं टांग उठाके।


राघव सभी बाते भुलाकर मन मौजी नाचते हुए घर पहुंचा। वहां तन्नु और प्रगति डायनिग टेबल पर कोहनी टिकाए दोनों गालों को पकड़े सोच की मुद्रा में बैठी थीं। नाश्ते की प्लेट दोनों के सामने रखा था। तन्नु की पेट की खोली पहले से थोडा सा भरा था। इसलिए खाएं न खाए कुछ फर्क नहीं पड़ता लेकिन प्रगति के सामने रखी प्लेट में से एक भी निवाला खाया नहीं गया। प्रगति बीच बीच में सर को हिला रहीं थीं। ये देखकर राघव की हंसी छूट गया। राघव khiii..khiii...khiii… कर हसने लगा। हसी कि आवाज कानों में पड़ते ही दोनों का ध्यान भंग हुआ। राघव को देखकर प्रगति राघव के पास गईं और बोली " तुझे मज़ा आ रहा हैं यहां हमारी टेंशन के मारे दो चार किलो वजन कम हों गया। नाराज होकर कहा गया था। तेरे बाप को ना जाने कौन-सा खुन्नस चढ़ा हुआ हैं। जो मन में आता बोल देता किसी को नहीं बकस्ता। तू भी ऐसा करेगा तो देख लेना किसी दिन मैं कुछ कर बैठूंगी।


मां की बात सुनाकर राघव की सारी हसी गायब हों गया। राघव कान पकड़ कर " soryyy.. soryyy..soryyy….. आगे से ऐसा नहीं करूंगा।


तन्नु " कोई सॉरी बोरी नहीं चलेगी मेरी जान हलक में आ गई थी और अपको khiii..khiii... सूझ रहीं थीं।


तन्नु फुल्के की तरह मुंह फुलाकर खड़ी हों गईं। राघव सोचे मनाए तो किसे मनाए मां अलग रूठी हैं, तन्नु अलग रूठी हैं। कुछ समझ न आया करे तो क्या करें फिर अचानक करेंट का फ्लो तेज हुआ दिमाग की ट्यूब लाईट जली चाट से एक चुटकी बजाई और जाकर डयानिग टेबल पर बैठ गई और तन्नु की झुटी प्लेट से चाटा... चाट…, चाटा….. चाट…. चपाती खाने लगा। हपसी की तरह खाते देख प्रगति और तन्नु का चेहरा खिल उठा और हसी छूट गई। हंसते हुऐ तन्नु बोली "देखो भुक्कड़ को हपसी की तरह खाए जा रहा हैं। हम रूठे हैं माने के बजाय गपागप गपागप खाए जा रहा हैं"


राघव के मुंह में निवाला था। पानी पीकर निवाला गटका फिर बोला " वो क्या है न मुझे बड़ी जोरो की भूख लगा था मेरी प्यारी बहनिया की झूठी प्लेट देखा तब भूख ओर बड़ गया। सोचा पेट को शांत कर लूं फिर दोनों को माना लूंगा।"


प्रगति हंस दिया तन्नु मोटी मोटी आंखे बनाकर राघव की ओर दौड़ी गला दबाने का ढोंग करते हुए बोली " मन कर रहा हैं अपका गला दबा दूं।"


राघव "चल हट पगली पहले खाने दे फिर शौक से गला दवा लेना।"


तन्नु आंखे मलते हुए uaammm.. uaammm… करने लागी। राघव तन्नु को रोने की एक्टिंग करते देखकर खडा हुआ और बोला

"तन्नु तू रो क्यों रहीं"


तन्नु प्रगति की ओर उंगली दिखते हुए बोली "मम्मा"


राघव प्रगति की ओर देखकर बोला " मां अपने कुछ कहा"


प्रगति " मैने कहां कुछ कहा, कहता तो तुझे सुनाई नहीं देता। ये ढोंगी, ढोंग करना बंद कर जब देखो नौटंकी करती रहेंगी।"


तन्नु किया करती उसकी भांडा तो फुट गया। मुस्कुराते हुए आंखों से हाथ हटा लिया और भोली सुरत बना लिया। भोली सुरत देखकर राघव मुस्कुराया और फिर से खाने बैठ गया।


(' ये हापसी कितना खायेगा पेट हैं की कुंआ '

राघव " चुप चाप स्टोरी लिख, ज्यादा भूख लागी हैं तो आ जा जली हुई चपाती के साथ मोमो वाली थिखी चटनी चाट के निकल जाना"

"ये हलकट चुप रह")


राघव को दुबारा खान खाते देखकर प्रगति सर पर हाथ मरते हुए बोला " हे _____ कैसा चिराग दिया। मां भूखा है पूछने के बजाय खुद खाने बैठ गया। राघव तू कैसा बेटा हैं मां को पुछ तो लेता।"


राघव " पुछना किया अपने हाथ से खिलाता हूं।"


कहकर प्लेट हाथ में लिया मां के पास गया एक छोटा निवाला बनाकर हाथ आगे बढाया तो प्रगति ने सर हिलाकर मना कर दिया तब राघव बोला " आले ले ले मेरा सोना मम्मा नलाज हो गया। चलो मुंह खोलो छोटे बच्चे की तरह जिद्द नहीं करते।"


प्रगति भाव विहीन होकर राघव को देखने लगीं। उसकी पलके भोजील हुईं तो आंख मिच लिया। आंख मिचते ही दो बूंद नीर बह निकला, आंखे पोछा मुंह खोला और निवाला लपक लिया। आंख पोछते देखकर राघव पूछा " मां किया हुआ आप रो क्यों रहे हों?"


प्रगति " कुछ नही रे बचपन में तू न खाने की जिद्द करता तो मैं तुझे ऐसे ही मनाया करती थीं। वो पल याद आ गया इसलिए आंखे नम हों गईं।


तन्नु " अच्छा तो फिर अपने मुझे भी खिलाया था।"


प्रगति " हां दोनों को खिलाया था। तू तो सबसे ज्यादा जिद्द करती थी और मेरे हाथों से खाती ही नहीं थी राघव खिलाता तो झट से खां लेती थीं।"


तन्नु " वो मैं आज भी खाती हूं भईया की प्यारी बहनिया जो हूं। क्यों सही कहा न भईया।"


राघव " तूने कभी गलत बोला हैं जो अब बोलेगी तू तो मेरी चुनूं सी, मुन्नू सी बहना प्यारी हैं।"


राघव बोलते हुए मुंह ही इस तरीके से बनया था। सब के चहरे पर हसी छा गईं फिर प्रगति बोली "चलो बहुत हुआ हसी मजाक अब आराम से बैठ कर नाश्ता करते हैं।"


डायनिंग टेबल पर जाकर तीनों नाश्ता करने बैठ गए। क्या मनोरम दृश्य था। तीनों मां, बेटी, बेटा एक ही थाली से खां रहे थे और एक दुसरे को खिला रहे थे। इनकी खुशी की झलकी देखकर कोई कह नहीं पाएगा जैसे अभी अभी कुछ देर पहले कुछ हुआ था। तन्नु ठहरी चुलबुली बच्ची उसके मस्तिष्क के खोचे में चूल मची रहती तो फिर किया चूल मची और बोल बैठी " वैसे तो आप उदास चहरा , रोतढू सकल के साथ गए थे। भाभी ने ऐसा किया चखा दिया जो खिलखिलाते हुए आए।"


राघव कुछ बोलता उससे पहले प्रगति बोल पड़ी " चुप कर बड़बोला कही का जब देखो बक बक करती रहेंगी साथ ही मेरे बेटे को परेशान करती रहेंगी।"


फिर किया था तन्नु की एक्टिंग शुरू इसे अगर एक्टिंग की कंपीटीशन में भेजा जाए तो जज का भेजा खाके फर्स्ट प्राइज लेकर आएगी। रोतढू सकल बनके दोनों आंखे मलते हुए बोली "uaammm.. uaammm… भईया मम्मा डाट रहीं हैं।"


राघव " मां अपने डांटा क्यों, तू चुप कर कोई नहीं डांटेगा।"


तन्नु " sachiiii"


राघव " mucchiiii"


तन्नु " तो फिर बोलो न भईया भाभी ने किया किया?"


प्रगति " tannuuuuu"


तन्नु " भईया देखो फिर से"


प्रगति " भईया की बच्ची रुक तुझे बताती हूं।"


प्रगति जैसे ही अपने जगह से उठी तन्नु जीव दिखाकर fhurrr से भागी जाकर कमरे में रूकी और दरवाजा बन्द कर लिया। प्रगति पहुंची दरवाजा पीटते रह गई दरवजा नहीं खुला। इन मां बेटी की tom and jerry सो देखकर राघव के पेट में गुदगुदी मची और जी भर के हंसा। प्रगति थक हर के वापस आईं। राघव को हंसता देखकर बोली " तुझे क्या हुआ भांग बांग पी लिया जो वाबलो की तरह हासे जा रहा हैं।


राघव " आप दोनों के tom and jerry वाला सो देख के खुद को रोक नहीं पाया और बावला बनके हंसने लगा।"


प्रगति "ऐसे ही हंसती रहा कर। ये जो कुछ भी हों रहीं है सब तेरी कारिस्तानी है। तेरी वजह से ही इतनी सर चढ़ी हुई हैं।"


राघव "अरे मां करने दो न जो करती है। अभी उसे उसकी मन की करने दो शादी के बाद न जानें कैसा ससुराल मिलेगा क्या पाता शादी के बाद ऐसे मस्ती ही न कर पाए।"


प्रगति " तू कहता है तो करने देती हूं। तेरे सामने तो कुछ कह नहीं पाऊंगी तेरे पिछे उसकी ढोलक दवाके बजूंगी।



फिल्म का पॉज बटन यहां दबाता हूं। अब प्ले बटन तब दवेगा जब आप मस्त मस्त रेवो के संग लाईक ठोकोगे। तो भाऊ और भाऊ लोगों आज के लिए विदा लेते हूं सास रही तो फिर मिलूंगा।
Sandaar update Bhai
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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राघव को देखकर अटल जी बोलते हैं "ओ तो तू है, कामचोर काम नहीं हैं तो इसका मतलब रात भर बाहर घूमता रहेगा और ये तेरे हाथ में किया हैं।"
LOL :rofl:
 

Naina

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ye bhi sahi hai.... agar daat fatkar se aulad apne pero pe khada ho jaaye... kamayi karne lag jaaye... pita na jo kar paaye apne jivan mein,wo aulad karke dikha de , to ek pita ke liye isse khushi ki baat kya ho sakti hai...aur isme burayi hi kya hai...

actually.... Apne bachho ko pyar karne ka ye bhi ek alag tarika.... koi laad pyar karta hai, galtiyo pe parda daalta hai... koi pyar bhi karta aur waqt aane par galti karne par daat fatkar bhi lagate hai aur pitayi bhi karte hai.... lekin atal ji ka pyar apne bete ke liye sabse harkar hai... wo nahi chaahtein ki uska beta bekabu hoke hawa mein ude..... Kyuki girne par ch hot bhi lag sakti hai...

for example.... aaj agar naukri milne ki khushi mein uski tarif kar deta to definitely raghav hawa mein udne lagta... ushe lagta ki chalo ab bala tali... ab se uske pita ushe taane nahi maarenge.... isse kya hota ki wo befikra hoke apni mann marzi karta.... waise freedom achhi baat hai... lekin kabhi kabhi ye had paar kar jaati hai.... jo sabke liye hanikaarak hai....
isliye atal ji chaahate hai ki unka beta udan bhare... safalta ke shikhar tak jaaye.... lekin ek control mein reh ke.... atal ji nahi chaahate ki kal kuch aisa ho jaaye raghav ke sath jisko lekar jindagi bhar ushe pachtava ho....kyun lagam na lagane par ghora bhi bidak jaaye... isliye usko taane maarne ke bahane thodi bahot apne control mein rakhte hai... jab tak ki wo is swaarthi bahri duniya puri tarah se samajh na le...
chaahe iske liye khud kyun na bura ban jaaye sabki nazar mein par apne bete ko kabhi kisi ki nazar mein girne nahi denge wo.....

Shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi...

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
443
998
93
ye bhi sahi hai.... agar daat fatkar se aulad apne pero pe khada ho jaaye... kamayi karne lag jaaye... pita na jo kar paaye apne jivan mein,wo aulad karke dikha de , to ek pita ke liye isse khushi ki baat kya ho sakti hai...aur isme burayi hi kya hai...

actually.... Apne bachho ko pyar karne ka ye bhi ek alag tarika.... koi laad pyar karta hai, galtiyo pe parda daalta hai... koi pyar bhi karta aur waqt aane par galti karne par daat fatkar bhi lagate hai aur pitayi bhi karte hai.... lekin atal ji ka pyar apne bete ke liye sabse harkar hai... wo nahi chaahtein ki uska beta bekabu hoke hawa mein ude..... Kyuki girne par ch hot bhi lag sakti hai...

for example.... aaj agar naukri milne ki khushi mein uski tarif kar deta to definitely raghav hawa mein udne lagta... ushe lagta ki chalo ab bala tali... ab se uske pita ushe taane nahi maarenge.... isse kya hota ki wo befikra hoke apni mann marzi karta.... waise freedom achhi baat hai... lekin kabhi kabhi ye had paar kar jaati hai.... jo sabke liye hanikaarak hai....
isliye atal ji chaahate hai ki unka beta udan bhare... safalta ke shikhar tak jaaye.... lekin ek control mein reh ke.... atal ji nahi chaahate ki kal kuch aisa ho jaaye raghav ke sath jisko lekar jindagi bhar ushe pachtava ho....kyun lagam na lagane par ghora bhi bidak jaaye... isliye usko taane maarne ke bahane thodi bahot apne control mein rakhte hai... jab tak ki wo is swaarthi bahri duniya puri tarah se samajh na le...
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बहुत बहुत धन्यवाद naina जी अपके इस रेवो का काउंटर रिप्लाई देना मेरा बस में नहीं हैं इसलिए सिर्फ :thankyou::thankyou: बोल कर खुद को तसल्ली दे रहा हूं।
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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Update - 8


तीनों नहा धोकर बिल्कुल चकाचक चमकने लगे। घर के धूल के साथ साथ बदन में जमी धूल जो साफ कर लिया था। थकान से बदन चूर हों रहा था लेकिन अभी विश्राम करने का वक्त नहीं था। आज धन के पहरेदार की पूजा जो थी। रिवाज अनुसार आज खरीददारी करना शुभ मना जाता हैं। इसलिए प्रगति राघव को खरीददारी करने साथ चलने को कहा लेकिन राघव आलस की मारी थकान की बीमारी से पीड़ित था। आराम कर थकान नामक बीमारी से निजात पाना चहता था इसलिए आनाकानी करने लगा तो प्रगति खीज कर बोला "थका सिर्फ़ तू ही नहीं, मैं भी थका गई हूं, फिर भी मैं चल रही हूं, तू चल मेरे साथ नहीं तो तेरे बाप को कॉल करती हूं।"

बाप का नाम सुनते ही बाप के ताने याद आ गया थका शरीर फिर से तरो ताजा हों गया प्रफुलित होकर राघव बोला "जैसी अपकी आज्ञा माते, आप चलिए मेरे साथ, खरीद लाते हैं सारा बाजार आज।"

प्रगति कुछ न बोली बस एक मोहिनी मुस्कान बिखेर दी और चल दिया राघव के साथ तभी आ टपकी चुलबुली बाला भोंहे हिलाते हुए बोली "किधर को चल दी मां बेटे की टोली, मुझे भी साथ लेकर चलो, क्यो रहूं मैं घर पर अकेली।"

राघव प्रगति दोनों हंस दिए फिर प्रगति समझते हुए बोली "तू घर पर रह बाजार में बहुत भीड़ होगी खरीददारी करने में समय लगेगी। दुकान दुकान घूमना पड़ेगा तू हमारे साथ कहा कहा टक्कर खाती फिरेगी।"

तन्नु "umhnnnnn मुझे लोलोपॉप दे रहीं हों बच्ची समझी हों क्या मैं तो जाऊंगी।"

दोनों मां बेटी में तर्क वितर्क का युद्ध छिड़ गया। प्रगति तर्क दे तो चुलबुली तन्नु के भेजे में वितर्क उपज आए और अपने अंदाज में कह सुनाए। तर्क वितर्क का युद्ध कुछ लंबा चला तब जाकर कहीं तन्नु मानी तो प्रगति ने चैन की सांस लिया और तन्नु को एक और लॉलीपॉप दिया "तन्नु बेटा बता तुझे क्या खाना हैं जो बोलेगी लेकर आऊंगी।"

मां की बात सुनाकर राघव सर पर हाथ मारा और मन ही मन बोला क्या जरूरत थीं शान्त पानी में पत्थर मार लहर लाने की, इसी लहर में आप भी बहोगी साथ में मुझे भी खींच ले जाओगी।"

क्या खाना हैं? सुनते ही तन्नु की बांछे खिल गई। लिस्ट इतनी लंबी चौड़ी बता दिया। इतना लंबा मेनू तो रेस्टोरेंट और होटलों में भी नहीं होता होगा। न जाने कौन कौन से नाम गिना दिए इस धरा की थी ही, दूसरे धारा की भी समेट कर लिस्ट में छप दिया। इतने सारे नाम सुनाकर प्रगति सोच में पड गई और खुद को कोसने लागी "क्या जरूरत थीं इस भुक्कड़ को छेड़ने की अच्छा खासा मन गई थी अब ढूंढते रहना इसकी लिस्ट हाथ में लिए।" फिर प्रगति मुस्कुराकर बोली "सभी ले तो आऊ तू खा पाएगी क्या?"

तन्नु किया बोले, बोलने को कुछ था ही नहीं इसलिए सिर्फ मुस्कुरा दिया। राघव समझ गया मामला सुलट गया अब कट लेना ही बेहतर हैं। मां का हाथ पकड़ा और बाहर खींच ले गया। बाईक निकाला और चल दिया खरीददारी करने।

बाजार मे भिड़ खचाखच थीं। सभी खरीददारी करने जो आए थे। दुकानों की सजावट देख लगा दिवाली आज यहीं मन जायेगा। दुकान ओर बाहर सजी तरह तरह के समान देख दोनों मां बेटे की आंखे चौंधिया गया क्या खरीदे क्या न खरीदे असमंजस मे पड़ गए। दुकान दुकान घूमे पर पसंद कुछ न आए। अब थकान भी अपना करतब दिखाने लगा राघव की आंखे बोझिल होने लगा तक हर कर राघव बोला "मां कितना घुमाओगे अब तो मेरे पैर भी दाम तोड़ने लगा, जल्दी से जो खरीदना हैं खरीद लो नही तो मैं घर को चला।"

प्रगति "रुक न बाबा पहले पसंद तो कर लू फिर खरीद लूंगी।"

राघव आगे कुछ नहीं कहा क्यो आया मां के साथ घर पर रहता तो अच्छा होता ये पापा भी न आज उनके कारण ही मेरी ऐसी दशा हैं। मन में कहते हुए मां के पीछे पीछे घूमने लगा। घूमते घूमते प्रगति को उसके पसंद का समान मिल गया। उसे खरीदने के लिए दुकान में घूस गई। भाव पता किया तो दाम कुछ जांचा नहीं फिर शुरू हुआ तोल मोल का विचित्र खेल दुकान दर कुछ कहें प्रगति कुछ और कहें, भाव दोनों को पाटे नहीं तोड़ी देर ओर मोल भाव चला अंत में दुकान दर ने हार मान ही लिया। तब प्रगति ने अपने पसंद का समान अपने भाव से खरीद लिया। ऐसे ही मोल भाव करके कुछ और जरूरी समान को खरीदा गया। खरीददारी के समापन होने पर खाने पीने की कुछ चीजे खरीदा और चल दिया घर।

घर पहुंचते ही राघव की बांछे खिल गया। खरीदा हुआ सभी समान अदंर रख कमरे को ऐसे भागा जैसे किसी ने रॉकेट के पूंछ में आग लगा दिया हों। प्रगति "aahannn maaaaa बहुत तक गई तन्नु बेटा एक गिलास पानी पिला दे।"

तन्नी किचन में थी पानी लाकर दिया फिर तन्नु बाजार से लाए सभी सामन को चेक किया और उन्हें सही जगह रख दिया। कुछ वक्त आराम करने के बाद प्रगति शाम की खाने की तैयारी करने किचन चली गईं। साथ में तन्नु को भी ले गईं। इधर ये दोनों खाने की तैयारी में लगे थे उधार राघव रूम में जाते ही पसार गया। आज दिन भर की थकान उसके अंग अंग से झलक रहा था। उसे लेटे एक पल ही हुआ था की नींद ने अपनी जकड़ में ले लिया। नींद की अंचल में अभी खोने ही लगा था की मोबइल ने खलाल डाल दिया मन कर रहा था मोबाइल फेक कर मारे लेकिन विचार को त्याग कर "अब कौन हैं?" बोलकर मोबाइल हाथ में लिया स्क्रीन पर फ्लैश हों रहा नाम देखकर राघव थकान नींद सब भुल गया। नाम ही ऐसा था। कॉल रिसिव किया और शुरू हों गया इनकी बाबू सोना वाली गपशप दिन भरा क्या क्या किया सब सुना डाला। इधर राघव ने कॉल कटा उधर अटल जी का आगमन हुआ। अटल जी की आभास पते ही तन्नु किचन से निकलकर रूम को भागी और किताबों में उलझ गई।

अटल जी अदंर आए घर की सुधरी हुई दशा देखकर मन में बोला "गलती से किसी ओर के घर में तो नहीं घूस गया निकल ले अटल बेटा नहीं तो सारी पंडिताई भुल जाऐगा।

अटल जी सिघ्रता से बाहर निकले। मैन गेट पर गुदे हुए नामावाली पर नज़र फेरा वहा अपना नाम देखकर बोला " ये तो मेरा ही घर हैं लगता हैं मेरे बेटे ने अपना करतब दिखा ही दिया आज तो सब्बासी देना बनता हैं। अरे सब्बासी दिया तो कहीं अपना रास्ता न भटक जाएं। बरहाल जो भी हों आज उसने एक अच्छा काम किया हैं। तारीफ तो करना ही पड़ेगा।"

बड़बड़ाते हुए अटल जी अदंर आए और आवाज दिया "भाग्य श्री किधर हों कभी पति का भी हल चल ले लिया करों जब देखो किचन और बच्चों में उलझी रहती हों।"

प्रगति उस वक्त आटा गूंध रहीं थीं हाथ खाली नहीं था तो बोली "ओ जी मेरा हाथ खाली नहीं हैं आप जरा खुद से लेकर पी लिजिए।"

अटल जी कीचन की और आते हुए बोला "ऐसा किया कर रहीं हों जो हाथ खाली नहीं हैं।"

प्रगति पीछे पलटी तब तक अटल जी किचन में आ गए थे। प्रगति की दशा देखकर अटल जी की हंसी छूट गया। हंसी तो आना ही था प्रगति के दोनों गालों पर आटा जो लगा था। अटल जी पास गए कमर में खोंचा हुआ आंचल निकला गालों पर लगे आटा को पौछते हुए बोला "भाग्य श्री आटा हाथ से गोंद रहीं हों या मुड़ी से जो इन खुबसूरत गालों पर लगा लिया।"

प्रगति मुस्कुराते हुए अपने काम में डांट गई। अटल जी फ्रीज से पानी निकला और गला तर कर लिया फिर दीवाल से टेक लगाई प्रगति को काम करते हुऐ देखने लगा कुछ वक्त देखने के बाद प्रगति के बगल में जाकर खड़ा हों गए और बोला "भाग्य श्री मैं कुछ मदद कर दू।"

प्रगति "नहीं आप थक गए होंगे जाकर थोडा विश्राम कर लिजिए।"

अटल "थक तो तुम भी गई होगी आज घर को जो चमका दिया नक्शा ही बदल दिया। मैं पहचान ही नहीं पाया बाहर जाकर नाम प्लेट देखा तब जाना मैं सही घर में घुसा हूं।"

प्रगति "सच्ची में आप झूठ तो नहीं बोल रहे हों।"

अटल "सही कह रहा हु मै आकर वापिस चला गया था। नाम प्लेट देखकर फिर वापस आया।"

प्रगति "ये जो आपको चमकता हुआ और बदला बदला घर लग रहा हैं। इस काम में हमारे बेटे और बेटी ने भी पूरा पूरा सहयोग दिया था। आज दोनों भी बहुत थक गए हैं।"

अटल "ओ तो उस नालायक ने आज घर का काम किया हैं। उम्मीद नहीं था ये आलस के पुजारी काम करेगा।"

प्रगति " आप उससे इतना खफा क्यो रहते हैं? मैं नहीं जानती लेकिन साफ साफ कह देती हूं। त्यौहार के कुछ दिन उसके साथ अच्छा वर्तव करना नहीं तो……

अटल जी बीच में ही बोल पडा "नहीं तो तुम भूख हड़ताल पर बैठ जाओगी। तुम कम करों में जाकर तनुश्री को भेजती हूं।"

अटल जी बाहर आकार तन्नु के कमरे में गए उसको कीचन में भेज दिया फिर राघव की कमरे के और बड़े राघव के कमरे की ओर जाते हुए अटल जी के पैर डगमगा रहे थे। कईं सालो बाद आज अटल जी बेटे के कमरे में जा रहे थे तो पैर तो डगमगाना ही था। एक मन जाने को कह रहा था एक रोकने की पुरी पुरी कोशिश कर रहा था। लेकिन आज अटल जी का अटल मन हार गया और बाप का मान जीत गया। ऐसा नहीं की अटल जी कभी राघव के कमरे में नहीं गए। अटल की सुबह राघव और तन्नु को देखने से ही शुरू होता था और दिन का अंत दिनों को सोता हुआ देखकर ही होता था। लेकिन समय ने ऐसा चल चाला की अटल जी बेटे से दुर होते गए सिर्फ बेटे से ही नहीं बेटी से भी दूर होते गए और एक अटल पत्थर बन कर रह गए। धीरे धीर डग भरते हुए राघव के रूम तक पूछा, खड़े होकर कुछ वक्त सोचा आवाज दे या दरवाज़ा खटखटाएं, बड़ा ही विकट और असमझास की स्थिति बन गया एक बार तो अटल जी पलट गए दो कदम बड़े फिर पलटे और आवाज दिया "राघव बेटा दरवाजों खोलो।"

राघव उस वक्त कुछ काम कर रहा था। दरसल राघव ने कमरे मे ही एक कोने में छोटा सा वर्क शॉप बना रखा था। खाली टाईम में वहां बैठ कर अपने इंजीनियरिंग दिमाग को काम में लगता था और विभिन्न प्रकार की ब्लैंक सर्किट बोर्ड में कंपोनेंट को जोड़कर नए नए डिवाइस बने का काम करता था। लेकिन उसका यहां काम हमेशा असफल ही रहा। आज भी राघव सृष्टि से बात करने के बाद एक डिवाइस पर काम कर रहा था। तभी उसके कान में अटल जी की आवाज़ गूंजी। पापा भला मुझे क्यों बुलाने आयेंगे। ये सोचकर नजरंदाज कर दिया। एक बार फिर अटल जी ने आवाज दिया तब जाकर राघव को लगा सच में पापा मुझे ही आवाज दे रहे हैं।

राघव उठाकर दरवाजे के पास गया दरवाजा खोल, अटल जी को खड़ा देखकर पहले तो चौका फिर आंखें मलकर देखा। राघव खुद को यकीन ही नहीं दिला पा रहा था कि उसका पिता इतने सालो बाद आज उसके कमरे के सामने दरवाज़े पर खड़ा हैं। इसलिए बार बार आंखें माल रहा था और विस्मित होकर देख रहा था। एक पल को अटल जी की आंखो में भी नमी आ गया। आज अटल जी अटल पत्थर की तरह अटल न रह सके। पलके भोजील होते ही पलके मूंद लिया और आंखों में आई नमी बूंदों का रूप लेकर बह निकला। अटल जी बहते आंसुओ को पोछा और बोला "कैसे हो राघव बेटा दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रभु तुम्हारी सभी मनोकामना पुरी करे।"

इतने दिनों बाद बाप से बेटा शब्द सुनाकर राघव खुद को ओर न रोक पाया और पापा मैं ठीक हूं कहकर लिपट गया। बाप बेटे का यहां अदभूत मिलाप जो न जानें कब से अधूरा था। आज पूरा हुआ। कुछ वक्त लिपटे रहने के बाद अटल जी अलग हुए राघव के सर पर हाथ फिरते हुए मन में बोला "राघव मै जानता हु तू आज बहुत खुश होगा। लेकिन मैं भी क्या करू एक बाप हूं तुझे कामियाब होते हुए देखना चहता हूं। तू नहीं जानता मैं तेरे सामने तो पत्थर बना राहता हूं लेकिन अकेले में तुझसे ज्यादा रोता हूं। तू जल्दी से सफलता की सीढ़ी चढ़कर दिखा ताकि मैं तुझे पुराना वाला दुलार फिर से दे सकूं।"

अटल जी राघव के कमरे के अंदर जाते हैं। कमरे को बारीकी से निरीक्षण करते हैं कहीं कुछ कमी तो नहीं हैं फिर बैठ कर बहुत सारी बातें करते हैं। राघव तो फुले नहीं समा पा रहा था खुशी आंखो से आंसू बन छलक रहा था। कुछ वक्त तक सभी तरह की बाते करने के बाद अटल जी "राघव बेटा अब तुम अपना काम करों थोड़ी देर में खाना खाने आ जाना और हां तुम्हारे मां को पता नहीं चलना चाहिए मैं तुमसे बात करने तुम्हारे कमरे में आया था।"

राघव के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात ओर किया होगा कि उसके पिता उससे बात करने उसके रूम तक आया। इसलिए हां में मुड़ी हिला दिया। अटल जी मुस्कुराते हुए रूम से चले गए। बाप के जाते ही राघव खुशी से उछल पड़ा किया करे किया न करें समझ ही नहीं पा रहा था। अपना यहां खुशी किस के साथ बांटे उस बंदे को मन ही मन खोज रहा था। उसे सिर्फ़ एक ही नाम सुझा वो हैं सृष्टि बस फ़िर किया था मोबइल उठाया और सृष्टि को कॉल लगा दिया। सृष्टि शायद मोबाइल हाथ में लिए बैठी थीं। पहली रिंग पर ही रिसिव कर लिया और राघव ने एक ही सांस में सब सुना डाला। सुनकर सृष्टि भी खुश हों गई। चलो अच्छा हुआ बाप बेटे का रिश्ता सुधार गया। राघव सृष्टि बातों में मगन था। इधर प्रगति खाना खाने के लिए उसे आवाज दे रहा था। तीन चार आवाज देने के बाद राघव कॉल कट कर खाना खाने चला गया। राघव को इतना खुश देख प्रगति भी खुशी खुशी खाना खिलाने लगीं। आज राघव खुशी के मारे और दिनों से ज्यादा खा लिया। एक डकार आई और उसे एहसास करा दिया बेटा घड़ा भर गया हैं अब उठा जा नही तो सारा लेथन यहां ही फैल जाएगा। राघव उठाकर चला गया बाकी सब ने भी अपने अपने पेट रूपी घड़े को परिपूर्ण भर लिया और अपने अपने रुम में सोने चले गए।


आज के अपडेट को यहां ही विराम देता हूं। पहले खरीददारी फिर बाप बेटे का मिलन कैसा लगा अपने शब्दों में बताना na भूलिएगा। मिलते है फ़िर एक नए किस्से के साथ तब तक के लिए अलविदा।
 
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